#सामवेद (पूर्वार्चिक 1-6, महानाम्न्यार्चिक, उत्तरार्चिकः 1) #Sam Ved
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
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अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
अग्न आ याहि वीतये गृणानो हव्यदातये।
नि होता सत्सि बर्हिषि॥
हे अग्नि देव! सभी लोग आपकी वन्दना करते हैं। यज्ञ में हम आपको आमन्त्रित करते हैं। आप हमारे यज्ञ को गति देने हेतु आएं, क्योंकि आप ही सभी पदार्थों को देने वाले हैं।(सामवेद 1.1.1)
Hey Agni Dev! Everyone worship you. We invite in the Yagy. Come to accelerate our Yagy, since its you who grant us all materials.
त्वमग्ने यज्ञानां होता विश्वेषां हितः। देवेभिर्मानुषे जने॥
हे अग्निदेव! आप उन सभी दैवीय शक्तियों को एकत्रित करने वाले हैं, जिनकी विद्यमानता (प्राप्ति) यज्ञों में अटल मानी गई है। आपको समस्त देवताओं के द्वारा मानव समूह के बीच सम्मानित किया जाता है।(सामवेद 1.1.2)
Hey Agni Dev! You bring together all divine powers, the presence of which is essential during the Yagy. You are honoured by all the demigods-deities in the presence of all humans beings.
अग्निं दूतं वृणीमहे होतारं विश्ववेदसम्। अस्य यज्ञस्य सुक्रतुम्॥
हे अग्निदेव! आप इस संसाररूपी यज्ञ के श्रेष्ठ विधाता हैं, आप में सभी दैवीय शक्तियों को तृप्त करने की क्षमता है। आप यज्ञ के निर्माता हैं तथा बुरे कर्मों में लिप्त हुए लोगों को दंड देने वाले हैं। ऐसे परमेश्वर की हम वन्दना करते हैं।(सामवेद 1.1.3)
Hey Agni Dev! You are the Lord of Yagy in the form of this universe, having the power to satisfy-satiate all divine powers. You are the builder of Yagy and punish those who are engaged is sinful-vicious acta. We worship such deity-God.
अग्निर्वृत्राणि जंघनद् द्रविणस्युर्विपन्यया। समिद्धः शुक्र आहुतः॥
यज्ञ करने वालों के उत्तम प्रयासों से आनन्दित होकर उन्हें सम्पन्नता प्रदान करने वाले हे सर्व व्यापक अग्ने! आप उन समस्त लोगों को नष्ट कर दें, जो बुरे कर्मों में लिप्त हैं।(सामवेद 1.1.4)
Hey all pervading Agni Dev! You gladden with the best efforts of accomplishing Yagy and grant pleasure to those who perform Yagy. Destroy all those who are engaged in nefarious, wicked-sinful deeds.
प्रेष्ठं वो अतिथिं स्तुषे मित्रमिव प्रियम्। अग्ने रथं न वेद्यम्॥
हे सर्व व्यापक अग्नि देव! आप आराधकों की मनोकामना पूर्ण करने वाले, समस्त प्राणियों पर सदैव अपनी कृपादृष्टि रखने वाले एवं सखा के भाँति आचरण करने वाले हैं।(सामवेद 1.1.5)
Hey All pervading Agni Dev! You accomplish the ambitions, desires-motives of the worshipers, has blissful watch over them and act like a colleague-friend.
त्वं नो अग्ने महोभिः पाहि विश्वस्या अरातेः। उत द्विषो मर्त्यस्य॥
हे अग्नि देव! आप विश्व के उन सभी लोगों के संपर्क से हमारी रक्षा करें जो ईर्ष्या करने वाले तथा विद्वेष रखने वाले हैं तथा असाधारण परिस्थितियों में हमें धैर्यशील बनायें।(सामवेद 1.1.6)
Hey Agni Dev! Protect us from all those who have enmity and envy with us. Make us patient during distress, abnormal circumstances.
एह्यूषु ब्रवाणि तेऽग्न इत्थेतरा गिरः। एभिर्वर्धास इन्दुभिः॥
हे अग्नि देव! हम आपकी ही वन्दना करना चाहते हैं। आप हमारी वन्दना सुनकर आप हमें प्राप्त हों तथा इस सोमरस द्वारा अपनी महानता का प्रसार करने की कृपा करें।(सामवेद 1.1.7)
Hey Agni Dev! We wish to worship you only. You should respond to us and extend your glory with this Somras.
आ ते वत्सो मनो यमत्परमाच्चि सधस्थात्। अग्ने त्वां कामये गिरा॥
हे अग्नि देव! हम आपके पुत्र रूप जीव अपने हृदय से आपकी वन्दना करके आपको प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं।(सामवेद 1.1.8)
Hey Agni Dev! We are like your son, worship you from the depth of our heart and wish to attain you.
त्वामग्ने पुष्करादध्यथर्वा निरमन्थत। मूध्ना विश्वस्य वाघतः॥
हे अग्नि देव! महान् अहिंसा सिद्धांत को मानने वाले योगी आपको हृदयाकाश में प्राप्त करते हैं तथा पंडित लोग आपको साकार पदार्थों के आधारभूत विश्व के बीच में स्थान देते हैं।(सामवेद 1.1.9)
Hey Agni Dev! The Yogi who have faith in non violence possess you in their hearts and the Pandit-scholars establish you in between the material goods in the universe.
अग्ने विवस्वदा भरास्मभ्यमूतये महे। देवा ह्यसि नो दृशे॥
हे सर्वव्यापक अग्ने! आपके भीतर ज्ञान के असीम भण्डार हैं तथा आप हमारा ज्ञान बढ़ाएं। आप हमारी उत्तम रक्षा के उद्देश्य से हमें उपयुक्त निवास स्थान देने की कृपा करें। आप ही प्रकाशों में उत्तम प्रकाशवान्, समर्थ तथा सामर्थ्यवान् देव हैं।(सामवेद 1.1.10)
Hey all pervading Agne! You increase our knowledge with the infinite enlightenment possessed by you. For our protection grant us suitable residence. You best amongest the lights, illuminated, capable & powerful-mighty deity.(28.10.2025)
सामवेद आग्नेयं पर्व (1.2) :: ऋषि :- आयुंग्क्ष्वाहि, वामदेव, गौतम, प्रयोगो, भार्गव, मधुच्छन्दा, शुनःशेप, मेधातिथि, वत्स; देवता :- अग्नि; छन्द :- गायत्री
नमस्ते अग्न ओजसे गृणन्ति देव कृष्टयः। अमैरमित्रमर्दय॥
हे अग्नि देव! आप परम् शक्तिशाली तथा पराक्रमी हैं। संसार के सभी मानव लोग आप से बल प्राप्त करने हेतु आपको प्रणाम करते हैं, आपकी वन्दना करते हैं। आप दुष्टों का विनाश करने वाले हैं। अतः आप कुकृत्य का संहार करें।(सामवेद 1.2.1)
Hey Agni Dev! You are extremely powerful & mighty. All humans salute & worship you for gaining strength. You are the destroyer of wicked-vicious. Hence, you should destroy the misdeeds.
दूतं वो विश्ववेदसं हव्यवाहममर्त्यम्। यजिष्ठमंजसे गिरा॥
हे अग्नि देव! आप कभी न समाप्त होने वाले, सब कुछ जानने वाले, समस्त लोगों को उनके कर्मों का फल देने वाले तथा लोगों के कष्टों का निवारण कर उनके दुःखों को दूर करने वाले हैं। हम आपकी वन्दना करके आपसे अनुकूल होने की प्रार्थना करते हैं। आप अपनी कृपा दृष्टि सदैव हमारे ऊपर बनाये रखें।(सामवेद 1.1.2)
कृपा दृष्टि :: kind glance, favour, benevolent gaze.
Hey Agni Dev! You are never ending-immortal, know every thing, reward the outcome of deeds to all, remove pains-sorrow. We pray to you be become favourable to us. Please maintain your benevolent glace-gaze over us.
उप त्वा जामयो गिरो देदिशतीर्हविष्कृतः। वायोरनीके अस्थिरन्॥
हे अग्निदेव! ज्ञानमयी स्तुतियां, आपके गुणों को प्रकट करती हैं तथा वायु की सहायता से आपको प्रज्वलित करती हैं।(सामवेद 1.1.3)
Hey Agni Dev! Intellectual Stuties-prayers reflet your characterises and keep you ablaze with the help of Vayu Dev.
उप त्वाग्ने दिवेदिवे दोषावस्तर्धिया वयम्। नमो भरन्त एमसि॥
हे दिव्याग्नि! हम आपके सच्चे आराधक हैं। उत्तम ज्ञान एवं बुद्धि से हम आपकी वन्दना करते हैं। हम दिन व रात्रि सर्वदा आपके गुणो का गान करते हैं, आपको नमन करते हैं। हे देव! हमें आपकी सन्निकटता प्राप्त हो।(सामवेद 1.1.4)
Hey divine fire! We are your true worshipers. We worship you with excellent knowledge and intelligence. We keep reciting your qualities through the day & night. Hey Dev! Let us attain your proximity.
जराबोध तद्वितिड्ढि विशेविशे यज्ञियाय। स्तोमं रुद्राय दृशीकम्॥
स्तुतियों के माध्यम से समझे जाने वाले हे अग्ने! याजक, पुरोहित हवि स्थल में आपके दुष्ट विनाशक स्वरूप को आमन्त्रित करने के लिए मनोहर प्रार्थना करते हैं।(सामवेद 1.1.5)
Understood through the prayers, Hey Agne! Yajak, Purohit-priest, perform attractive-adoring prayers to invoke your form at the Yagy site for the elimination of wicked.
प्रति त्यं चारुमध्वरं गोपीथाय प्र हूयसे। मरुद्भिरग्न आ गहि॥
हे अग्नि देव! विद्वानों के द्वारा इस यज्ञ की गरिमा के संरक्षण हेतु, द्विलोकों में पदार्थों की रक्षा हेतु आपको आमन्त्रित किया जाता है। आप इस हवि में आगमन करें।(सामवेद 1.1.6)
Hey Agni Dev! The learned-scholars invoke you for maintaining the glory of the Yagy and protection of materials in the heavens & earth. Enter this Havi-offering, i.e., consume it.
अश्वं न त्वा वारवन्तं वन्दध्या अग्नि नमोभिः। सम्राजन्तमध्वराणाम्॥
हे अग्ने! आप सूर्य के समान अन्धकार का विनाश कर प्रकाश फैलाने वाले व परम सामर्थ्यवान् हैं। आप इस विघ्न रहित एवं अहिंसक हवि में आगमन करें। हम आपको प्रणाम करते हैं।(सामवेद 1.1.7)
hey Agne! You remove darkness and spread light like Sury Dev-Sun. Come to this disturbance free and non volent Yagy. We salute you.
और्वभृगुवच्छुचिमप्नवानवदा हुवे। अग्नि समुद्रवाससम्॥
हे समुद्र में निवास करने वाले अग्ने ! भृगु एवं अप्नवान् आदि ज्ञानी ऋषियों ने सच्चे हृदय से आपकी प्रार्थना, स्तुति की है। ऐसी पवित्र अग्नि हमारे द्वारा भी पूजनीय हैं। हम भी आपकी वन्दना करते हैं।(सामवेद 1.1.8)
Hey Agni residing in the ocean! Rishi Bhragu and Apnwan worshiped you with pure heart. Such pious Agni deserve to be worshiped by us. We pray to you.
अग्निमिन्धानो मनसा धियं सचेत मर्त्यः। अग्निमिन्धे विवस्वभिः॥
अग्नि को प्रज्वलित करने वाले महान् योगी पुरुष अपनी भक्ति को भी प्रदीप्त करते हैं। अस्तु, सूर्य उदित होने के साथ ही अग्निहोत्र की व्यवस्था करते हैं।(सामवेद 1.1.9)
The great Yogi ignite fire and promote-boost their devotion-Bhakti as well. Hence, prepare for Agni Hotr prior to Sun rise.
आदित्प्रलस्य रेतसो ज्योतिः पश्यन्ति वासरम्। परो यदिध्यते दिवि॥
सूर्य देव आदि में भी प्रकाशमान् तथा स्वर्गलोक से भी ऊपर अग्नि देव की सर्वत्र प्रसारित श्रेष्ठ ज्योति को योगी पुरुष शीघ्र ही पहचान जाते हैं।(सामवेद 1.1.10)
The excellent light aura-radiance of fire spreaded much above the heavens, present in the Sun is recognised by the Yogi quickly.(29.10.2025)
सामवेद आग्नेयं पर्व (1.3) :: ऋषि :- प्रयोगो, भरद्वाज, वामदेव, वसिष्ठ, विरूप, शुनःशेप, गोपवन, प्रस्कण्व, मेधातिथि, सिन्धुद्वीप, अम्बरीष, त्रित आत्यो या उशना; देवता :- अग्नि; छन्द :- गायत्री।
अग्नि वो वृधन्तमध्वराणां पुरूतमम्। अच्छा नप्त्रे सहस्वते॥
हे ज्ञानी पुरुषों! आप हिंसा रहित परमार्थ कार्यों (हवि) में सहायक, परमश्रेष्ठ, समस्त जनों का हित चाहने वाले, बलवान् तथा प्रकाश से युक्त अग्ग्नि देव की सन्निकटता प्राप्त करें। उनकी वन्दना करें।(सामवेद 1.3.1)
Hey learned-enlightened! Attain proximity to Agni Dev who is helpful in welfare of others, excellent, helpful in non violent endeavours. Worship him.
अग्निस्तिग्मेन शोचिषा यं सद्विश्वं न्य3त्रिणम्। अग्निर्नो वंसते रयिम्॥
हे अग्ने! आप अपने प्रचण्ड प्रकाश एवं तीक्ष्ण ज्वालाओं द्वारा विघ्न पैदा करने वाले तत्त्वों को, शत्रुओं का विनाश करें तथा जो पुरुष आपके सच्चे आराधक तथा आपकी वन्दना करते हैं, आप उनको पराक्रम तथा वैभव प्रदान करें।(सामवेद 1.3.2)
प्रचंड प्रकाश :: तीव्र-भयानक प्रकाश-रोशनी; intense-fierce light.
Hey Agne! Destroy the disturbing elements, enemies with your blazing flames, intense-fierce light, grant invincibility and grandeur to your real-true worshipers.
अग्ने मृड महाँ अस्यय आ देवयुं जनम्। इयेथ बर्हिरासदम्॥
हे अग्नि देव! आप परम शक्तिशाली एवं महान् हैं। अतः आप अपने भक्तजनों को धन, वैभव आदि से समृद्ध तथा सुखी बनाएँ। आप सभी स्थानों पर विराजमान हैं। अतः आप यजमानो (यज्ञ करने वालों) के निकट पवित्र आसन पर स्थान ग्रहण करने हेतु उपस्थित हों।(सामवेद 1.3.3)
Hey Agni Dev! You are great with extreme might-strength. Hence, make your devotees wealthy, prosperous, comfortable and grant them grandeur. Invoke to occupy the pious Asan-seat near the Yagy accomplishing Yajman.
अग्ने रक्षा णो अंहसः प्रति स्म देव रीषतः। तपिष्ठैरजरो दह॥
हे अग्नि देव! कुटिल कृत्य से आप हमारी रक्षा करें। आप अपने तीक्ष्ण प्रकाश (तेज) से हमारे हिंसारूपी विचारों को भस्म कर दें।(सामवेद 1.3.4)
Hey Agni Dev! Protect us from treacherous-wicked deeds. Destroy our thought pertaining to violence into ashes with your intense light.
अग्ने युङ्क्ष्वा हि ये तवाश्वासो देव साधवः। अरं वहन्त्याशवः॥
हे अग्नि देव! आपके प्रचण्ड तेज को विद्वान् लोग भली प्रकार समझते हैं। तीव्र गति से चलने वाले श्रेष्ठ, योग्य अपने अश्वों (बलशाली, कर्मठ, इन्द्रियादि) को आप अपने देख-रेख में नियोजित करें।(सामवेद 1.3.5)
Hey Agni Dev! The enlightened understand your fierce-intense Tej-light. Deploy the excellent, skilled-trained (mighty, capable, devoted, sense organs), fast running horses, under your control.
नि त्वा नक्ष्य विश्पते द्युमन्तं धीमहे वयम्। सुवीरमग्न आहुत॥
हे अग्नि देव! आप सब प्रकार से पूजनीय एवं धन, वैभव के स्वामी हैं। हम इस पवित्र स्थान पर आपको स्थापित करते हैं। आप यज्ञ कर्ताओं के माध्यम से बुलाये जाते हैं। जो आपकी पूजा करते हैं, आप उन्हें सभी प्रकार के सुख प्रदान करते हैं। अतः हम हृदय से आपकी स्तुति करते हैं।(सामवेद 1.3.6)
Hey Agni Dev! You are worshipable in all possible manners-ways and the lord of wealth, prosperity. We establish you at this pious place-site. You are invited-invoked through-by the Yagy performers. You grant all sorts of comforts- amenities to those who worship you. Hence, we worship you from the depth of our heart.
अग्निर्मूर्द्धा दिवः ककुत्पतिः पृथिव्या अयम्। अपां रेतांसि जिन्वति॥
अग्निदेव स्वर्गलोक से धरती तक चारों ओर व्याप्त जीवों को जीवन प्रदान करने वाले हैं, वे जल को स्वरूप तथा गति प्रदान करने में सक्षम हैं।(सामवेद 1.3.7)
Agni Dev grant life to all living being from the heavens to earth. He grants form and motion to water.
इममू षु त्वमस्माकं सनि गायत्रं नव्यांसम्। अग्ने देवेषु प्र वोचः॥
हे अग्नि देव! आप हमारे गायत्री परक, जीवन को पोषण देने वाले स्तवनों तथा नूतन हवियों को देवताओं तक वहन करने की कृपा करें।(सामवेद 1.3.8)
Hey Agni Dev! Carry our new offerings, prayers-Satwan granting nourishment, strengthened by Gayatri to the demigods-deities.
तं त्वा गोपवनो गिरा जनिष्ठदग्ने अङ्गिरः। स पावक श्रुधी हवम्॥
गोपवन ऋषि की वन्दना से उत्पन्न हुए, शारीरिक तत्त्वों में सूक्ष्म रूप से उपस्थित, समस्त जनों को पावन करने वाले हे अग्ने! आप हमारी विनती को ध्यानपूर्वक श्रवण करें। मनुष्यों के शारीरिक तत्त्वों में चेतना के सूक्ष्म केन्द्र उपस्थित रहते हैं, वे ही मानव स्वास्थ्य के रहस्य है।(सामवेद 1.3.9)
Hey Agni Dev produced by the prayers of Gopwan Rishi, present in the body elements-components in micro forms, purifying all people; listen-respond to our requests-prayers. You remain present in the body of the humans in micro centres and is responsible for the good health of humans.
परि वाजपतिः कविरग्निर्हव्यान्यक्रमीत्। दधद्रत्नानि दाशुषे॥
सर्वज्ञाता, अन्नों के अधिपति अग्नि, यज्ञ कर्ताओं के माध्यम से दिये गये होम की वस्तुओं को अंगीकार करते हैं एवं मोक्ष परायणों को धन, अन्न आदि द्वारा समृद्ध बनाते हैं।(सामवेद 1.3.10)
Knowing all, lord of food grains, acceptor of the offerings by the Yagy performers, hey Agni Dev; you make those prosperous who seek Moksh-emancipation with wealth, food grains etc.
उदु त्यं जातवेदसं देवं वहन्ति केतवः। दृशे विश्वाय सूर्यम्॥
सूर्य की किरणें जिसकी व्युत्पत्ति विश्व को सूर्य का दर्शन कराने हेतु मानी जाती है; वह अग्नि देव को भली-भाँति धारण किये रहती हैं।(सामवेद 1.3.11)
Rays of Sun which are considered to be the reason behind evolution of the universe, support Agni Dev properly.
कविमग्निमुप स्तुहि सत्यधर्माणमध्वरे। देवममीवचातनम्॥
हे मनुष्यों! सत्य तथा धर्म को धारण करने वाले, लोगों के हित कार्यों हेतु किए जाने वाले यज्ञ में रोगों (बुराइयों) का विनाश करने वाले, महाज्ञानी अग्निदेव में ध्यान लगाओ।(सामवेद 1.3.12)
बुराई :: evil, vice, badness, immorality, faults.
Hey humans! Concentrate-meditate in Agni Dev, who is a great scholar, support truth & Dharm, destroys all sorts of evils-diseases in the Yagy accomplished for human welfare.
शं नो देवीरभिष्टये शं नो भवन्तु पीतये। शं योरभि स्रवन्तु नः॥
हमें आनन्दमयी तथा शान्ति प्रदान करने वाला जल-प्रवाह प्राप्त हो। वह पानी हमारे ग्रहण करने योग्य, लाभकारी तथा सदैव हमें सुख प्रदान करने वाला हो। (जल की उत्पत्ति अग्नि से ही मानी जाती है, इसलिए यहाँ जल की अभिलाषा की गई है।(सामवेद 1.3.13)
Let us have flowing water granting us pleasure and peace. That water should be suitable for us, profitable and always grant happiness. Water is sources from Agni fire.
Water breaks in to Hydrogen and oxygen. Hydrogen burns and oxygen helps it in burning leading to formation of water.
2H2 + O2→ 2H2O
2H2O→(electrolysis) 2H2 + O2
(Water supplied in Noida is muddy, has foul smell, some times infected with germs and microbes. Its the cause of numerous diseases in the residents. Its grossly unsuitable for drinking & bathing. But no one is ready to listen-help. MP has several hospitals and hence one never expect any help from him.)
कस्य नूनं परीणसि धियो जिन्वसि सत्पते। गोषाता यस्य ते गिरः॥
(प्रश्न है) हे सत्य के मार्ग पर चलने वाले अग्निदेव-परमात्मा! आप किस तरह के मनुष्यों की बुद्धि को विशेषतया सच्चाई के राह पर चलने हेतु प्रेरित करते हैं?
(उत्तर है) जिसकी स्तुति वेदवाणियों से युक्त तथा ज्ञान का बोध कराने वाली होती है, हम उसे ही प्रेरित करते हैं।(सामवेद 1.3.14)
Question:- Hey Agni Dev-Almighty! Following truth! How do you inspire human brain to follow the path of truth?
Answer :- We inspire only one who's Stuties possess Ved Vani and enlightenment.
सामवेद आग्नेयं पर्व (1.4) :: ऋषि :- शंयुवार्हस्पत्य, भर्ग, वसिष्ठ, प्रस्कण्व, कण्व; देवता :- अग्नि; छन्द :- बृहती।
यज्ञायज्ञा वो अग्नये गिरागिरा च दक्षसे। प्रप्र वयममृतं जातवेदसं प्रियं मित्रं न शंसिषम्॥
सच्चे मित्र की भाँति सहायता करने वाले, कभी न समाप्त होने वाले, सर्वज्ञानी, सभी जगह व्याप्त यज्ञादि को सफल बनाने वाले, अग्नि देव का हम (ऋषि) गुणगान करते हैं। हे ऋत्विजों! आप भी ऐसे शक्तिशाली अग्नि देव की समस्त प्रयोजनों में स्तुति करें।(सामवेद 1.4.1)
The Rishi Gan appreciate Agni Gan who helps like a truth friend, never ending, all knowing, pervade each & every where, makes the Yagy successful. Hey Ritviz! You too worship-pray mighty Agni Dev during all functions-rituals, Yagy etc.
पाहि नो अग्न एकया पाह्यू 3त द्वितीयया।
पाहि गीर्भिस्तिसृभिरूर्जा पते पाहि चतसृभिर्वसो॥
हे अग्नि देव! आप परा, पश्यन्ती, मध्यमा तथा वैखरी, इन चारों वेद वाणियों से युक्त, महाज्ञानी एवं अन्तर्यामी हैं। आप प्रथम स्तुति से हमारी रक्षा करें, द्वितीय स्तुति द्वारा निर्भयता प्रदान करें, तृतीय स्तुति द्वारा भी संरक्षण प्रदान करें। हे ऊर्जाओं के अधिपति ! आप चतुर्थ स्तुति द्वारा हम सबका पालन-पोषण कर समस्त रूप से हमें सुरक्षा प्रदान करें।(सामवेद 1.4.2)
Hey Agni Dev! You have intuition, possess the four branches-voices of Ved viz Para, Pashyanti, Madhyma and Vaekhari, has ultimate knowledge. With the first Stuti protect us, with second Stuti make us fearless and with the third Stuti grant us asylum. Hey Lord of energy! With the fourth Stuti nourish us all and grant protect of all sorts.
बृहद्भिरग्ने अर्चिभिः शुक्रेण देव शोचिषा।
भरद्वाजे समिधानो यविष्ठ्य रेवत्पावक दीदिहि॥
हे प्रचण्ड ज्वालाओं से युक्त, सर्वगुण सम्पन्न अग्नि देव! आप अपने दिव्य तेज द्वारा भरद्वाज हेतु अत्यधिक तेज युक्त स्वरूप में प्रकाशवान् हों। आप धन, वैभव से सम्पन्न तथा पवित्रता देने वाले महान् हैं। आप हमें भी अपने प्रखर तेज से प्रकाशमान् करें।(सामवेद 1.4.3)
Hey Agni Dev possessing fierce flames and qualities! You should become extremely luminous for Bhardwaj Rishi with your divine Tej-aura. You are the great one who grant wealth, grandeur and piousity. Illuminate-shine us with your sharp Tej-light.
त्वे अग्ने स्वाहुत प्रियासः सन्तु सूरयः। यन्तारो ये मघवानो जनानामूर्वं दयन्त गोनाम्॥
हे सर्वव्यापक अग्निदेव! जो पुरुष उत्तम कार्यों हेतु यज्ञ करते हैं, सत्पुरुषों का आदर-सत्कार करते है, धन का नियोजन करते हैं, जनहित के कार्यों में तत्पर रहते हैं, गायों की सेवा करते हैं, वे आपकी कृपा प्राप्त करने के पात्र होते हैं।(सामवेद 1.4.4)
Hey all pervading Agni Dev! Those humans who are devoted to Yagy, honour virtuous-righteous person, award wealth, ready for the benefit of humanity, serve the cows are fit for your mercy.
अग्ने जरितर्विश्पतिस्तपानो देव रक्षसः।
अप्रोषिवान् गृहपते महाँ असि दिवस्पायुर्दुरोणयुः॥
हे सर्वज्ञानी अग्ने! आप समस्त जनों का पालन-पोषण करने वाले एवं दुष्ट प्रकृति के लोगों का विनाश करने वाले हैं। आप ही समस्त जनों के गृहों के निर्माणकर्ता हैं। आप सदैव घरों में उपस्थित रहते हैं। ऐसे अग्निदेव, आप हमारे द्वारा पूजनीय हैं।(सामवेद 1.4.5)
Hey all knowing Agne! You nourish all people and destroy the wicked-viceful. You are builder of homes for everyone. You remain present in all homes. You are worshipable for us.(30.10.2025)
अग्ने विवस्वदुषसश्चित्रं राधो अमर्त्य। आ दाशुषे जातवेदो वहा त्वमद्या देवाँ उषर्बुधः॥
हे अविनाशी अग्नि देव! उषाकाल (रात्रि) में अद्भुत शक्तियां प्रवाहित होती हैं। जो व्यक्ति नित्य दान करते हैं, यह शक्तियां आप उनको प्रदान करें। हे सर्वव्यापक अग्नि देव! आप समस्त जनों को सुख प्रदान करने वाले हैं। आप उषाकाल में जाग्रत हुए देवों को भी यहाँ लेकर उपस्थित हों।(सामवेद 1.4.6)
Hey immortal Agni Dev! During dawn-Sun rise, amazing powers flow. Grant these to one who make donations in the morning. Hey all pervading Agni Dev! You grant comforts, pleasure to all people. Bring the awakened demigods here in the morning.
त्वं नश्चित्र ऊत्या वसो राधांसि चोदय।
अस्य रायसत्वमग्ने स्थीरसि विदा गाधं तुचे तु नः॥
हे समस्त जनों को शरण प्रदान करने वाले अग्ने! आपकी शक्ति असीम एवं महान् है। आप धन, संपदा, वैभव के स्वामी है। अतः आप हमें भी वैभव तथा सुख-समृद्धि प्रदान करने की कृपा करें। हे देव! आप हमारी संतानों को अपने ज्ञान के प्रकाश तथा अद्भुत गुणों से सम्पन्न कर उसे प्रतिष्ठा प्रदान करें।(सामवेद 1.4.7)
Hey Agni Dev granting shelter to all! Your powers are infinite & great. You are the Lod of wealth, prosperity and grandeur. Bless us with grandeur, comforts & pleasure. Hey Dev! Make our progeny gifted with learning and amazing traits granting them honour-reputation.
त्वमित्सप्रथा अस्यग्ने त्रातर्ऋतः कविः।
त्वां विप्रासः समिधान दीदिव आ विवासन्ति वेधसः॥
हे अग्नि देव! आप समस्त जनों की रक्षा करने वाले, महाज्ञानी, सर्वगुणों से युक्त, सबके कष्टों का विनाश करने वाले सत्य रूप तथा श्रेष्ठ हैं। हे तेजस्विता के प्रतीक अग्नि रूप! विद्वान् याजकगण आपके जलने पर आपकी स्तुति करते हैं तथा सदैव आपकी सेवा हेतु तत्पर रहते हैं।(सामवेद 1.4.8)
Hey excellent Agni Dev! You are the protector of all people-subjects, great scholar, possess all good-virtuous qualities, destroyers of trouble, tensions, tortures and embodiment of truth. Hey symbol of brilliance-vigorousness, Agni Dev! Learned-scholar Yajak Gan worship-pray to you on ignition and remain ready-alert to serve you.
आ नो अग्ने वयोवृधं रयिं पावक शंस्यम्।
रास्वा च न उपमाते पुरुस्पृहं सुनीती सुयशस्तरम्॥
हे पवित्र, आसुरी प्रकृति को नष्ट करने वाले अग्नि देव! आप धन, वैभव में बढ़ोत्तरी करते हैं। आप हमें अच्छा स्वास्थ्य एवं दीर्घायु प्रदान करें। आप हमें वह धन प्रदान करें, जो श्रेष्ठ नीति की राह पर चलकर प्राप्त हुआ हो और हमारे लिए सदैव यश प्रदान करने वाला हो। हमें कुटिल मार्गों पर चलने से बचाएं।(सामवेद 1.4.9)
Hey pious, destroyer of demonic tendencies, Agni Dev! You increase wealth and prosperity. Grant us good health and long life to us. Grant us that wealth which is obtained by following ethics, virtues and always provide us respect-honour. Protect us from cynical-crooked routes.
यो विश्वा दयते वसु होता मन्द्रो जनानाम्। मधोर्न पात्रा प्रथमान्यस्मै प्र स्तोमा यन्त्वग्नये॥
यज्ञ कर्ताओं से प्रसन्न होकर उन्हें धन-संपत्ति के रूप में असीम ऐश्वर्य प्रदान कर सुख देने वाले अग्नि की हम सर्वप्रथम वन्दना करते हैं, जैसे सबसे पहले उन्हें सोम का बर्तन अर्पित किया जाता है।(सामवेद 1.4.10)
सामवेद आग्नेयं पर्व (1.5) :: ऋषि :- वसिष्ठ, भर्ग, मनु, सुदीति एवं पुरुमीढ, प्रस्कण्व, मेधातिथि एवं मेध्यातिथि, विश्वामित्र, कण्व; देवता :- अग्नि, इन्द्र; छन्द :- बृहती।
एना वो अग्निं नमसोर्जी नपातमा हुवे। प्रियं चेतिष्ठमरतिं स्वध्वरं वश्वस्य दूतममृतम्॥
समस्त जनों को अन्नादि उपलब्ध कराकर उनका शक्तियों को कम न होने देने वाले, सबको स्नेह करने वाले, सभी के कष्टों को हरने वाले, संसार के स्वामी, बलशाली, अमर अग्नि देव का आवाहन करते हुए हम उनकी स्तुति करते हैं।(सामवेद 1.5.1)
We invoke and worship Agni Dev who provide food grains to all, maintain their powers-strength, affectionate to all, remove the trouble of all, Lord of the universe, mighty and is immortal.
शेषे वनेषु मातृषु सं त्वा मर्तास इन्धते।
अतन्द्रो हव्यं वहसि हविष्कृ आदिद्देवेषु राजसि॥
हे सर्व व्यापक अग्नि देव! आप धरती, अम्बर तथा जलादि सर्वत्र विद्यमान हैं। यज्ञकर्ता आपको अत्यन्त श्रद्धा पूर्वक जाग्रत करते हैं। हे अग्नि देव! आप आलस्य से रहित यज्ञ कर्त्ताओं के द्वारा दी आहुतियों को देवताओं तक भेजते हैं तथा स्वयं भी उनके बीच सुसज्जित होते हैं।(सामवेद 1.5.2)
Hey all pervading Agni Dev! You are present in the earth, sky and water etc. Yagy performers awake with great respect. Hey Agni Dev! You carry the offerings of the Yagy performers, who are free from laziness; to the demigods-deities and remain in between them.
अदर्शि गातुवित्तमो यस्मिन्व्रतान्यादधुः।
उपो षु जातमार्यस्य वर्धनमग्निं नक्षन्तु नो गिरः॥
जिस अग्नि के माध्यम से श्रेष्ठ मनुष्यों ने उत्तम कार्य किया, जिनके द्वारा हवन के नियम पूर्ण जाते हैं, ऐसे धर्मपरायण अग्नि देव उपस्थित हो गये हैं। श्रेष्ठ मार्ग से उपस्थित हुए, आर्यों के प्रगतिदाता अग्ने को हमारी वन्दना अर्पित है। वह इसे स्वीकार करने की कृपा करें।।(सामवेद 1.5.3)
Dedicated Agni Dev due to whom excellent humans carry out best endeavours, by whom Hawan-Yagy are accomplished as per rules-procedures, has appeared. He has come via best, virtuous route-path. Our prayers are dedicated to the Agni Dev who grant progress to Aryans. He should accept our request.
अग्निरुक्थे पुरोहितो ग्रावाणो बर्हिरध्वरे। ऋचा यामि मरुतो ब्रह्मणस्पते अवो वरेण्यम्॥
हे अग्ने! आपको सबसे पहले उक्थ नामक होम (प्रशंसनीय यज्ञ) में स्थापित किया जाता है। यज्ञ करने के स्थान पर सोम कूटने के पत्थर तथा आसन प्रतिस्थापित किये जाते हैं, अतः हे मरुतों! हे ब्रह्मण स्पते! हे ईश्वर! वैदिक मन्त्रों के माध्यम से हम आपसे श्रेष्ठ रक्षा की प्रार्थना करते हैं।(सामवेद 1.5.4)
Hey Agne! You are established in the appreciable Yagy named Ukth, first of all. Stones for crushing Som and cushions are established at the site of Yagy. Hence, hey Marud Gan! hey Brahman Spatye! hey Ishwar-God! We pray to you with excellent Mantrs for best possible protection-safety.
अग्निमीडिष्वावसे गाथाभिः शीरशोचिषम्।
अग्निं राये पुरुमीढ श्रुतं नरोSअग्नि: सुदीतये छर्दिः॥
हे ऋत्विजों! सर्वव्यापक एवं प्रचण्ड तेज से युक्त अग्नि देव की वन्दना करो। उद्गाता गण सुप्रसिद्ध अग्नि देव से वन्दना के द्वारा धन-संपत्ति, वैभव, उत्तम प्रकाशमय आवास तथा स्वयं की रक्षा करने के लिए विनती करते हैं।।(सामवेद 1.5.5)
Hey Ritviz Gan! Worship Agni Dev who pervade every place and is occupied with furious-raging shine. Udgata Gan pray to famous Agni Dev and ask him for wealth, prosperity-property, grandeur, well illuminated residence and their own protection.
श्रुधि श्रुत्कर्ण वह्निभिर्देवैरग्ने सयावभिः। आ सीदतु बर्हिषि मित्रो अ प्रातर्यावभिरध्वरे॥
हे समस्त जनों की याचना को श्रवण करने वाले अग्नि देव! आप अलौकिक शक्तियों के अधिपति हैं। हम आपकी वन्दना करते हैं। आप हमारी वन्दना को स्वीकार करने की कृपा करें। अली अग्नि देव के साथ समान गति से चलायमान मित्र एवं अर्यमा आदि देवता भी प्रातःकालीन होम आकर बैठें।(सामवेद 1.5.6)Hey Agni Dev attending to the prayers-requests of every one! You are the Lord of divine powers. We request you to accept our prayers. Let Mitr & Aryama; who too follow the speed of Agni Dev, should come in the morning and join the Hawan-Yagy.(31.10.2025)
प्र दैवोदासो अग्निर्देव इन्द्रो न मज्मना।
अनु मातरं पृथिवीं वि वावृतेन तस्थौ नाकस्य शर्मणि॥
देवराज इन्द्र के समान बलशाली अग्नि देव, दिवोदास (दिव्य कार्यों हेतु समर्पितों) के निमित्त धरती पर प्रकट हुए। अपने यज्ञीय कार्यों के फल स्वरूप वे (दिवोदास) स्वर्ग के स्वामी हों।(सामवेद 1.5.7)
Mighty like Devraj Indr, Agni Dev appeared over the earth for accomplishing divine endeavours. As a result of it let him (Divodash) become the Lord of heavens by virtue of the Yagy related deeds.
अध ज्मो अध वा दिवो बृहतो रोचनादधि।
अया वर्धस्व तन्वा गिरा ममा जाता सुक्रतो पृण॥
हे श्रेष्ठ यज्ञ के आधार अग्नि देव! आपसे अधिक ज्ञाता और कोई नहीं है। आप भूलोक तथा स्वर्गलोक में अपना तेज फैलायें तथा अपनी प्रेरणा के माध्यम से हमारे यज्ञ में साथ देने वाले लोगों को आहार प्रदान करने की कृपा करें।(सामवेद 1.5.8)
Hey Agni Dev the foundation of the excellent Yagy! There is none above you. Spread your aura-radiance over the earth & heavens and by virtue of your inspiration grant food to those who cooperate in our Yagy.
कायमानो वना त्वं यन्मातृजगन्नपः। न तत्ते अग्ने प्रमृषे निवर्तनं यद् दूरे सन्निहाभुवः॥
हे सर्वव्यापक अग्नि देव! आप हमारे पास न होकर भी अत्यन्त समीप प्रतीत होते हैं। आप वस्तुओं के मूल अवयवों को संयुक्त करने में समर्थ हैं। आपने वनों की कामना करने के बाद भी संसार के निमार्ण में सहायक जल आदि द्रव्यों को जन्म दिया, उसने हमें भ्रमित नहीं किया क्योंकि आप दिखाई न पड़ने पर भी उनके भीतर समाहित हैं।(सामवेद 1.5.9)
Hey all pervading Agni Dev! Though not near us yet you appear to be close to us. You are capable of fusing the components of materials. In spite of desirous of forests; you produced the components like water etc. It does not confuse us since being invisible you are present in them.
नि त्वामग्ने मनुर्दधे ज्योतिर्जनाय शश्वते।
दीदेथ कण्व ऋतजात उक्षितो यं नमस्यन्ति कृष्टयः॥
हे अविनाशी अग्निदेव! आप ज्योतिर्मय हैं तथा बुद्धिमान पुरुष ही आपसे ज्ञान प्राप्त करते हैं। आप सत्य की प्रतिमा हैं। अनादिकाल से ही मानव जाति हेतु आपकी ज्योति विज्ञापित है। आपकी ज्योति आश्रमों के ज्ञानी ऋषियों में उत्पन्न होती है। जब यज्ञ आरम्भ होता है तो आपका (अग्निदेव का) प्रदीप्त रूप उत्पन्न होता है। उसी समय समस्त जन आपको प्रणाम करते हैं।(सामवेद 1.5.10)
Hey immortal Agni Dev! You are lustrous and the intelligent seek learning-knowledge from you. Ever since the humans are pervaded with your aura. Your radiance appear in the enlightened Rishi Gan in the Ashrams. When the Yagy begin you appear as light. All people salute you at that moment.
सामवेद आग्नेयं पर्व (1.6) :: ऋषि :- वसिष्ठ, कण्व, सौभरि, उत्कील, विश्वामित्र; देवता :-अग्नि, ब्रह्मणस्पति, यूप; छन्द :- बृहती।
देवो वो द्रविणोदाः पूर्णां विवष्ट्वासिचम्।
उद्वा सिञ्चध्वमुप वा पृणध्वमादिद्वो देव ओहते॥
यज्ञदेव (अग्निदेव) धन-संपदा आदि प्रदान करने वाले हैं। हे यज्ञकर्ताओं! आप यज्ञ में चमस (सुवा आदि) को पूरा भरकर बारंबार हव्य पदार्थ अर्पित करें, घृत अर्पित करें, इसके बाद यज्ञदेव आपसे संतुष्ट होंगे तथा आपको उन्नति के मार्ग पर अग्रसर करेंगे।(सामवेद 1.6.1)
Agni-Yagy Dev grant wealth & prosperity. Hey Yagy performers! Pour the Chams-spoon full of offerings & Ghee. repeatedly. It will satisfy Yagy Dev and you will march over the path of progress.
प्रैतु ब्रह्मणस्पतिः प्र देव्येतु सूनृता। अच्छा वीरं नर्यं पङ्क्तिराधसं देवा यज्ञं नयन्तु नः॥
हे अग्नि देव! आपकी कृपा से हमें ज्ञान के अधिपति एवं सत्य वाणी की अधिष्ठात्री देवी का आसीस प्राप्त हो। वह हमारे यज्ञ में पधारें, देवतागण मनुष्यों का उद्धार करने वालों के समूह को, कीर्ति देने वाले वीर को, शत्रुओं का विनाश कर उन्हें उत्तम मार्ग से ले जाएँ।(सामवेद 1.6.2)
उद्धार :: बचाव, छुड़ाना, छुटकारा, मुक्ति, दस्तबरदारी, निस्तार, मुक्ति; rescue, extrication, releasement.
Hey Agni Dev! By virtue of your mercy we should attain the blessings of the Goddess of knowledge & truth. She should join our Yagy. The demigods should grant bravery, destruction of the enemies and take those who lead to release (from death & birth, Moksh, emancipation) via best route.
ऊर्ध्व ऊ षु ण ऊतये तिष्ठा देवो न सविता।
ऊर्ध्वो वाजस्य सनितायदञ्जिभिर्वाघद्भिर्विह्वयामहे॥
हे अविनाशी अग्नि देव! आप सर्वत्र स्थित हैं। आप पावन स्थल पर श्रेष्ठ रीति से विद्यमान हैं। आप हमें अज्ञादि उपलब्ध कराते हैं। आप सूर्यदेव के सदृश सदैव प्रकाशित रहते हैं तथा हमारी रक्षा करते हैं। हम उत्तम स्तोत्रों अर्थात् विद्वान् लोगों की संगत में रहकर आपके आवाहन हेतु बन्दना करते हैं।(सामवेद 1.6.3)
Hey immortal Agni Dev! You are present every where. You are established at the pious sites following best procedures. You are always shinning like Sury Dev and you protect us. We invoke you through best Strotrs-prayers, Mantrs in the company of enlightened people.
प्र यो राये निनीषति मर्तो यस्ते वसो दाशत्।
स वीरं धत्ते अग्न उक्थशंसिनं त्मना सहस्त्रपोषिणम्॥
हे जगत् के स्वामी अग्ने! जो याजक धन प्राप्ति की इच्छा हेतु सदा आपको सन्तुष्ट रखते हैं, आपके आराधक बनकर सदैव आपकी सेवा में तत्पर रहते हैं तथा यज्ञादि द्वारा हवि समर्पित करते हैं, वे देवभक्त हजारों मनुष्यों के पालन-पोषण में समर्थ शूरवीर पुत्र को जन्म देने में सक्षम होते हैं।(सामवेद 1.6.4)
Hey Lord of the universe Agni Dev! Those Yajak who always satisfy you with the desire for wealth, become ready to serve you as a devotee and make offerings in the Yagy, these patriot produce son capable of nourishment and upbring of thousands of brave people.
प्र वो यह्वं पुरूणां विशां देवयतीनाम्।
अग्निं सूक्तेभिर्वचोभिर्वृणीमहे यं समिदन्य इन्धते॥
हम (ऋषि) अपने सूक्त वाक्यों में उस अग्नि देव की महानता की व्याख्या करते हैं, जो मनुष्यों के भीतर देवत्व का विकास करते हैं। जिसको (अग्ने) समस्त विद्वजन अपने चित्त में समाहित किये रहते हैं।(सामवेद 1.6.5)
We Rishi Gan describe the greatness of Agni Dev with tour Sukt which develop the divinity in the humas. The learned scholars contain you-Agni Dev in their mood & mind.
अयमग्निः सुवीर्यस्येशे हि सौभगस्य। राय ईशे स्वपत्यस्य गोमत ईशे वृत्रहथानाम्॥
ये अग्नि देव ही अज्ञानियों के अज्ञानरूपी अन्धकार को दूर कर ज्ञान का प्रकाश भरते हैं। यही धन-संपदा के अधिपति, परम् शक्तिशाली तथा पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के प्रतीक व सौभाग्य के स्वामी हैं। गाय आदि जन्तु, सन्तान एवं धनादि के देवता हैं। शत्रुओं का विनाश करने वाले भी यही हैं।(सामवेद 1.6.6)
अज्ञानी :: अज्ञेय, निर्बोध; ignorant, unwise, nescient.
Agni Dev remove ignorance of the unwise and grant them leaning. This Lord of wealth-prosperity is extremely powerful, laborious and represent Dharm, Arth, Kam Moksh and good luck. He is the deity of cows etc animals & wealth and destroyers of enemies.
त्वमग्ने गृहपतिस्त्वं होता नो अध्वरे। त्वं पोता विश्ववार प्रचेता यक्षि यासि च वार्यम्॥
हे अग्नि देव! आप इस हवन के होता (यज्ञकर्ता) तथा ब्रह्माण्ड के अधिष्ठाता है। आप समस्त जनों को पावन करने वाले तथा सभी के द्वारा पूजनीय हैं। आप महान् ज्ञानी भी हैं। आपकी कृपा से ही लोगों को धनादि सम्पत्ति प्राप्त होती हैं तथा आप ही उसका विस्तार करते हैं।(सामवेद 1.6.7)
Hey Agni Dev! You are the Hota of this Yagy and Lord of the universe. We are the purifier of all beings and worshipable. You are a great scholar. By virtue of your mercy people get wealth, prosperity which is further increased by you.
सखायस्त्वा ववृमहे देवं मर्तास ऊतये। अपां नपातं सुभगं सुदंससं सुप्रतूर्तिमनेहसम्॥
हे समस्त जनों का उद्धार करने वाले अग्नि देव! आप देवों के देव, श्रेष्ठ वैभव से युक्त, कुटिलता से रहित, कुटिल कृत्य का नाश करने वाले तथा सभी पदार्थों की रक्षा करने वाले हैं। हम समस्त विद्वान् जन अपनी रक्षा हेतु आपको प्राप्त करने की अभिलाषा करते हैं, इसलिए हम सभी आपसे प्रकट होने की प्रार्थना करते हैं।(सामवेद 1.6.8)
कुटिलता :: बेईमानी, मिथ्या; crookedness, improbity, untruth, falsehood.
Hey releaser of all people, Agni Dev! You are the Lord of demigods, possess best grandeur, free from improbity, destroyer of falsehood and protector of all materials. We the learned-scholars, wish to have you for our safety-protection. Hence we pray to you to appear.(01.11.2025)
सामवेद आग्नेयं पर्व (1.7) :: ऋषि :- श्यावाच वामदेव, उपस्तुत वार्हिष्ट, बृहदुक्य, कुल्स, भरद्वाज, वामदेव, वसिष्ठ, त्रिशिरा, त्याष्ट्र; देवता :- अग्नि; छन्द :- त्रिष्टुप्, जगती गायत्री।
आ जुहोता हविषा मर्जयध्वं नि होतारं गृहपतिं दधिध्वम्।
इडस्पदे नमसा रातहव्यं सपर्यता यजतं पस्त्यानाम्॥
हे मनुष्यों! आप सदैव पवित्रता में वृद्धि करने हेतु हवन करें। आप अपने पूजा-स्थल में भी उस अग्नि देव की प्रतिदिन आराधना करें, जो सम्पूर्ण जगत् के पालनकर्ता हैं। आप अपने यज्ञ में प्रयुक्त होने वाले पदार्थों के संग ही शरीर रूपी घर के अधिपति अग्नि देव को भी प्रति स्थापित करें और उनकी वन्दना करते हुए उनका आदर करें।(सामवेद 1.7.1)
Hey humans! Perform Hawan-Yagy for the sake of purity-piousity. Worship Agni Dev who is the supporter-nurturer of the universe at your prayer site every day. Establish the Lord of home Agni Dev along with the Yagy materials and honour him while worshiping-praying.
चित्र इच्छिशोस्तरुणस्य वक्षथो न यो मातरावन्वेति धातवे।
अनूधा यदजीजनदधा चिदा ववक्षत्सद्यो महि दूत्यां 3 चरन्॥
हे अविनाशी अग्नि देव! आपका बाल्यावस्था से सीधे तरुण रूप (प्रखर) हो जाने का क्रम बहुत ही अलौकिक है। आप जन्म लेने के पश्चात् अपनी स्तनर हित दोनों ही माताओं (धरती एवं अरणियों) के निकट दुग्धपान (आहार पाने) के उद्देश्य से नहीं जाते, बल्कि उत्तम देवदूतों की भूमिका निभाते हुए देवताओं के समीप हवि (हवनीय पदार्थ) पहुँचाते हैं।(सामवेद 1.7.2)
Hey immortal Agni Dev! Your direct conversion from infancy to youth is divine. With your birth you do not approach your mothers viz earth and wood for drinking milk, in stead perform the job of divine messenger and carry the offerings to demigods-deities.
इदं त एकं पर ऊ त एकं तृतीयेन ज्योतिषा सं विशस्व।
संवेशनस्तन्वे 3 चारुरेधि प्रियो देवानां परमे जनित्रे॥
हे मृत्यु के मुख में जाने वाले मनुष्य! अग्नि तेरा एक हिस्सा है, दूसरा अंश वायुरूप है, तीसरे सूर्य रूप प्रखर से अपने शरीर को संयुक्त कर दो। उन तीनों से जुड़कर हे मनुष्य! बलशाली बनकर और पवित्र स्थल में उत्पन्न होकर, देवताओं के प्रिय तथा महान् बनो।(सामवेद 1.7.3)
Hey human going into the mouth of death! Join-combine the first segment of your body as Agni-fire, second segment as Vayu-air and the third segment constituting of the Sun. Hey human! Become mighty-strong, evolve at the pious site and become dear to demigods and mighty.
इमं स्तोममर्हते जातवेदसे रथमिव सं महेमा मनीषया।
भद्रा हि नः प्रमतिरस्य संसद्यग्ने सख्ये मा रिषामा वयं तव॥
आदरणीय जातवेद (अग्निदेव) को हवन में उत्पन्न करने हेतु वन्दनीय हवि को रथ की भाँति सोच समझकर प्रयोग करते हैं। अग्नि से परिपूर्ण होने वाले हवन में हमारी भलाई के विषय में विचार करने वाली बुद्धि संलग्न है। हे अग्ने! हमें सदैव आपकी मित्रता प्राप्त हो और हम कभी किसी के द्वारा दुःखी न हों।(सामवेद 1.7.4)
Worship able offerings are used as charoite in the Yagy for evolving revered Jat Ved-Agni Dev. Our intellect is fused with the ideas of our welfare, pertaining to Yagy, full of Agni-fire. Hey Agne! We should always have your friendship and should not suffer from any pain-sorrow.
मूर्धानं दिवो अरतिं पृथिव्या वैश्वानरमृत आ जातमग्निम्।
कविं सम्राजमतिथिं जनानामासन्नः पात्रं जनयन्त देवाः॥
समस्त देवताओं से ऊपर स्वर्ग लोक में निवास करने वाले, पृथ्वी लोक के अधिपति, कर्म के रूप में समस्त जीवों में विद्यमान, महान् ज्ञानी तथा प्रचण्ड तेज से युक्त, हवि में उपस्थित होने वाले अतिथि के समान, वेदों के कर्ता, पूजा करने योग्य देवताओं के मुखरूप, अविनाशी अग्नि देव! देवताओं के माध्यम से उत्पन्न किये गये।(सामवेद 1.7.5)
Immortal Agni Dev evolved in the heavens over-above all demigods, lord of earth, present in all living beings as effort, great scholar, possessing great aura-radiance, present in the offerings-oblations as a guest, performer of Veds, like the mouth of worship able demigods, hey Agni Dev! You are evolved through the demigods.
वि त्वदायो न पर्वतस्य पृष्ठादुक्थेभिरग्ने जनयन्त देवाः।
तं त्वा गिरः सुष्टुतयो वाजयन्त्याजिं न गिर्ववाहो जिग्युरश्वाः॥
हे सर्वव्यापक अग्नि देव! जिस तरह हिमालय के शिखर से जल का बहाव नीचे की ओर होता है, उसी तरह महान् पुरुष यज्ञकर्ता अपनी वन्दना के माध्यम से आपको उत्पन करते हैं। जिस तरह अश्व रणभूमि में जाकर विजेता का पद प्राप्त करते हैं, उसी तरह हमारी श्रद्धा से युक्त वन्दनाओं से आप परम शक्तिशाली बन जाते हैं।(सामवेद 1.7.6)
Hey all pervading Agni Dev! The way water from the Himalay flow in the down ward direction, similarly the great humans performing Yagy produces you by means of worship. The way the horse attains the title of winner, similarly our prayers accompanied with honour make you mighty.
आ वो राजानमध्वरस्य रुद्रं होतारं सत्ययजं रोदस्योः।
अग्निं पुरा तनयित्नोरचित्ताद्धिरण्यरूपमवसे कृणुध्वम्॥
हवन के अधिपति ईश्वर ने स्वर्गलोक और पृथ्वीलोक में परमार्थभूत हवि परिपूर्ण करने वाले प्रखर प्रकाश से युक्त अग्नि देव को अपने यज्ञादि के प्रक्रिया की रक्षा करने हेतु बिजली की प्रथम नाद से उत्पन्न किया।(सामवेद 1.7.7)
Lord of Hawan the God evolved Agni Dev shinning with sharp light, with the sound-thunder of lightening for the protection of Yagy, for the fulfilment of offerings-oblation for the welfare of others.
इन्धे राजा समर्यो नमोभिर्यस्य प्रतीकमाहुतं घृतेन।
नरो हव्येभिरीडते सबाध आग्निरग्रमुषसामशोचि॥
यह तेजस्वी स्वरूप वाले, वैश्वानर के रूप में सभी जीवों में स्थित अग्निदेव (पोषक आहार) अनाज एवं (प्रेम) घी के माध्यम से प्रदीप्त होते हैं। समस्त मानव जन इस स्वतः संचालित हवन में हिस्सा बनते हैं। यह (जीवन रूपी यज्ञ की) अग्नि उषा काल के पहले (पृथ्वी पर उत्पन्न होने के पहले माता के गर्भ में ही) प्रदीप्त हुई है।(सामवेद 1.7.8)
Agni Dev with radiance, present as Vaeshwanar Agni in all living beings lit up by virtue of Ghee. All humans beings automatically become the part & partial of the Hawan-life process, cycle. This fire in the form of life Yagy is evolved during dawn (Usha Kal-morning) in the womb of mother.
प्र केतुना बृहता यात्यग्निरा रोदसी वृषभो रोरवीति।
दिवश्चिदन्तादुपमामुदानडपामुपस्थे महिषो ववर्ध॥
प्रकाश से युक्त ये अग्नि देवता पृथ्वी और स्वर्ग के मध्य में स्थित (आकाश) से उत्पन्न होकर, दोनों लोक एवं धरती के मध्य अपने स्वरूप को तीव्रता से प्रदर्शित करते हैं। (बिजली गर्जना के रूप में) एवं पानी (बादलों) के मध्य यह प्रवर्धमान होते हैं।(सामवेद 1.7.9)
Accompanied with light Agni Dev present between the heavens & earth i.e., sky; indicate his sharpness as thunderous lightening and boost due to clouds-water.
अग्निं नरो दीधितिभिररण्योर्हस्तच्युतं जनयत प्रशस्तम्। दूरेदृशं गृहपतिमथव्युम्॥
गुणगान करने योग्य, यशस्वी, गति से युक्त, दूर से ही देखकर सब कुछ समझ जाने वाले, गृह के निर्माता, रक्षा करने वाले तथा समस्त जनों का उद्धार करने वाले अग्नि देव को यज्ञकर्ताओं ने अरणि मन्थन के माध्यम से उत्पन्न किया।(सामवेद 1.7.10)
Deserving prayers, honourable, dynamic, capable of understanding every thing from a distance, protector of all and rescuer of all huma beings Agni Dev is evolved by the Yagy performers by rubbing of wood.
सामवेद आग्नेयं पर्व (1.8) :: ऋषि :- बुधगविष्ठि, वत्सप्रिर्भालन्दन, भरद्वाज, विश्वामित्र, वसिष्ठ; देवता :- वायु, अग्नि, पूषा; छन्द :- त्रिष्टुप्।
अबोध्यग्निः समिधा जनानां प्रति धेनुमिवायतीमुषासम्।
यह्वा इव प्र वयामुज्जिहानाः प्र भानवः सस्रते नाकमच्छ॥
यज्ञ कर्ताओं की श्रद्धा के माध्यम से प्रदीप्त, इन अलौकिक अग्निदेव की शिखाएँ उसी प्रकार उषाकाल में अपनी ज्योति के माध्यम से स्वर्गलोक तक विस्तारित हो जाती है, जिस प्रकार पेड़ की डालियाँ प्रसारित हो जाती हैं।(सामवेद 1.8.1)
Evolved by virtu of the honour of the Yagy accomplishers, the flames of divine Agni Dev move towards the heavens during Usha Kal-dawn, like the branches of trees which grow further.(02.11.2025)
सामवेद आग्नेयं पर्व (1.8) :: ऋषि :- बुधगविष्ठि, वत्सप्रिर्भालन्दन, भरद्वाज, विश्वामित्र, वसिष्ठ; देवता :- वायु, अग्नि, पूषा; छन्द :- त्रिष्टुप्।
प्र भूर्जयन्तं महां विपोधां मूरैरमूरं पुरां दर्माणम्।
नयन्तं गीर्भिर्वना धियं घा हरिश्मश्रुं न वर्मणा धनर्चिम्॥
हे ऋत्विजों! दैत्यों पर विजय प्राप्त करने वाले, सूर्य की भाँति तेजस्वी किरणें से युक्त, धरती को गति देने वाले, ज्ञानी लोगों के रक्षक, बुद्धिहीन मनुष्यों के आधार का विनाश करने वाले, महाज्ञानी, बन्दना करने वाले पुरुषों को धन, वैभव प्राप्त कराने वाले, सम्पूर्ण जगत् के पालनकर्ता, वन्दनीय अग्नि देव को अपनी वेदवाणी से युक्त वन्दना से संतुष्ट करो।(सामवेद 1.8.2)
Hey Ritviz Gan! Satisfy revered, great scholar, nurturer of the universe, victorious over demons, aurous-radiant like Sury Dev, maker of the earth dynamic, protector of the enlightened, destroyer of the duffers-idiots with roots, grants wealth and grandeur to the worshipers; Agni Dev with prayers and the Ved Vani.
शुक्रं ते अन्यद्यजतं ते अन्यद्विषुरूपे अहनी द्यौरिवासि।
विश्वा हि माया अवसि स्वधावन्भद्रा ते पूषन्निह रातिरस्तु॥
एक-दूसरे के विपरीत स्वरूप वाले दिवस एवं रात्रि आपकी कृपा से ही होते हैं। हे जगत् के पालन-पोषण कर्ता पूषन् देव! दोनों लोकों के समतुल्य आभामय आप सम्पूर्ण जीव-जगत् का संरक्षण करने वाले हैं। आप सूर्य की भाँति तेज से युक्त हैं। आपका कृपारूपी अनुदान जो सबका भला चाहने वाला है, वह हमें प्राप्त हो।(सामवेद 1.8.3)
Day & night with opposite traits, appear due to your grace. Hey nurturer of the universe Pusha Dev! You grant protection-support to the living beings of both abodes (heavens & earth). You are energetic like the Sun. By virtue of your grace we should avail the help-donation, which is meant for the welfare of all.
इडामग्ने पुरुदंसं सनिं गोः शश्वत्तमं हवमानाय साध।
स्यान्नः सूनुस्तनयो विजावाग्ने सा ते सुमतिर्भूत्वस्मे॥
हे अविनाशी अग्ने! आपकी उदारशयता, भली-भाँति आराधना करने वाले हम (याजकों) लोगों के लिए हितकारी सिद्ध हो। आप हमें गाएँ एवं धरा अविरल प्रदान करते हैं, जिसका उपयोग करके हम अपने अभीष्ट कार्यों को पूर्ण करते हैं। हमारे द्वारा उत्पन्न हुई संतान हमारे वंश को आगे बढ़ाने में समर्थ हो।(सामवेद 1.8.4)
Hey immortal Agni Dev! Your liberal nature should be beneficial to us-the Yajak, properly. You continuously grant us cows & land by using which, we accomplish our goals-targets. Let our progeny be capable of continuing our clan.
प्र होता जातो महान्नभोविन्नृषद्मा सीददपां विवर्ते।
दधद्यो धायी सुते वयांसि यन्ता वसूनि विधते तनूपाः॥
सभी गृहों में उपस्थित रहने वाली अग्नि, सूर्य की भाँति आकाश के मध्य बिजली के रूप में समाहित रहती है। वही यज्ञ के लिए प्रयुक्त होने वाली अग्नि के रूप में प्रति स्थापित है। वह (अग्नि) हवन कुण्ड में भली-भाँति प्रदीप्त होकर यज्ञकर्ताओं को आहार, धन, वैभव प्रदान करने तथा उनके शरीर को संरक्षण प्रदान करने वाली सिद्ध हो।(सामवेद 1.8.5)
Agni present in all houses-planets remain present in the sky like the Sun in the form of lightening. Its used for the Yagy. On being lit in the Hawan Kund properly, this Agni grants food, wealth, grandeur and protection to the Yagy performers.
प्र सम्राजमसुरस्य प्रशस्तं पुंसः कृष्टीनामनुमाद्यस्य।
इन्द्रस्येव प्र तवसस्कृतानि वन्दद्वारा वन्दमाना विवष्णु॥
इंद्र देवता के समतुल्य शक्तिशाली, मानवों द्वारा पूजा करने योग्य तथा स्तुत्य, ईश्वर के उत्तम स्वरूप अग्नि देव की वन्दना करो। प्रसन्न चित्त भाव से उनकी स्तुति कर उनकी आराधना का लाभ प्राप्त करो। जो लोग अग्नि देव की स्तुति करते हैं, वह सदैव उनसे संतुष्ट रहते हैं।(सामवेद 1.8.6)
Worship Agni Dev who is powerful like Indr Dev, worshipable and excellent form of the God. Worship him happily and obtain the benefits of his Stuti. Those who worship Agni Dev always remain satisfied-content.
अरण्योर्निहितो जातवेदा गर्भ इवेत्सुभृतो गर्भिणीभिः।
दिवेदिव ईड्यो जागृवद्भिर्हविष्मद्भिर्मनुष्येभिरग्निः॥
यह अग्नि जो सब कुछ जानने वाली है, गर्भवती स्त्री के गर्भ में सुरक्षित शिशु की भाँति अरणियों (आत्मा व प्रणव) में विद्यमान रहती है। हवन की जिज्ञासा रखने वाले याजकों के माध्यम से यह नित्य स्तुति करने योग्य है।(सामवेद 1.8.7)
Agni which knows every thing is present in the wood like the foetus in the womb of mother. It deserve worship everyday by the desirous of Yagy everyday.
सनादग्ने मृणसि यातुधानान्न त्वा रक्षांसि पृतनासु जिग्युः।
अनु दह सहमूरान्कयादो मा ते हेत्या मुक्षत दैव्यायाः॥
हे अग्नि देव! आप अजेय हैं। आप सदैव असुरों का विनाश करते हैं। आपने सदैव शत्रुओं को रणभूमि में परास्त किया है। आप कुटिल प्रकृति के दुराचारियों को, जो कुटिल कृत्य द्वारा प्राप्त भोजन करते हैं, विनष्ट करें। वे पापीजन आपकी तेजस्विता से बचकर न निकल सकें।(सामवेद 1.8.8)
Hey Agni Dev! you are invincible. You keep destroying the demons-wicked. You always defeat the enemy in the battle field. Destroy the vicious-wicked, depraved who attain food through wicked-impious means. Those sinners should not escape your might-power.
सामवेद आग्नेयं पर्व (1.9) :: ऋषि :- गय, आत्रेय, भरद्वाज, मृक्तवाहा, द्वित, बसूयव, गोपवन, पुरुरात्रेय, वामदेव, कश्यप, या मारीचो, मनु या वैवस्वत अथवा दोनों; देवता :- अग्नि; छन्द :- अनुष्टुप्।
अग्न ओजिष्ठमा भर द्युम्नमस्मभ्यमध्रिगो। प्र नो राये पनीयसे रत्सि वाजाय पन्थाम्॥
हे प्रतिबंध से रहित गति वाले अग्नि देव! आप हमें तेज प्रदान करने वाली सम्पत्ति देने की कृपा करें। हे ईश्वर! हमें संतुष्टि प्रदान करने वाले धन एवं अन्न प्राप्त कराने वाले उत्तम मार्ग की ओर अग्रसर करें ताकि हमें पराक्रम प्राप्त हो सके।(सामवेद 1.9.1)
Hey Agni Dev, free from restrictions! Grant us the property which should grant us aura-radiance. Hey Almighty! Direct us to the excellent path which can grant us wealth and food grains to satisfy us leading us to bravery-invincibility.
यदि वीरो अनु ष्यादग्निमिन्धीत मर्त्यः। आजुह्वद्धव्यमानुषक् शर्म भक्षीत दैव्यम्॥
हे ऋत्विजों! आप शूरवीर, पराक्रमी पुत्र प्राप्त करने हेतु अग्नि को प्रज्वलित करें तथा सदैव आहुति के रूप में दिए जाने योग्य पदार्थों का उपयोग करके अलौकिक आनन्द पाने का मार्ग प्रशस्त करें।(सामवेद 1.9.2)
Hey Ritviz Gan! Ignite Agni Dev to grant brave-invincible son and always utilise the best materials for oblations-offerings as sacrifices, leading the path to divine pleasure.
त्वेषस्ते धूम ऋण्वति दिवि सञ्छुक्र आततः। सूरो न हि द्युता त्वं कृपा पावक रोचसे॥
जब अग्नि को प्रज्वलित किया जाता है तो उनका निर्मल धूम आकाश में विस्तारित होता हुआ प्रतीत होता है। हे शुद्ध अग्नि देव! सूर्य के समतुल्य वन्दना के माध्यम से आप अपनी शिखा से सुशोभित होते हैं।(सामवेद 1.9.3)
When Agni-fire is ignited, its pure smoke appears to extend through the sky. Hey pure-pious Agni Dev! Prayers comparable to the Sun-Sury Dev, make you appear with your beautiful flames.
त्वं हि क्षैतवद्यशोऽग्ने मित्रो न पत्यसे। त्वं विचर्षणे श्रवो वसो पुष्टिं न पुष्यसि॥
हे समस्त जनों को देखने वाले, सभी को सहारा (गृह) प्रदान करने वाले, सूर्य की भाँति प्रतापी अग्नि देव! आप हमारे श्रद्धापूर्वक अन्न को ग्रहण करके उसे अत्यधिक मात्रा में पूर्ण रूप से परिपोषित कर दें।(सामवेद 1.9.4)
Hey Agni Dev watching all subjects, granter of house to every one, mighty like Sury Dev! Accept our food grains offered with due respect-honour and nurture it thoroughly.(03.11.2025)
प्रातरग्निः पुरुप्रियो विश स्तवेतातिथिः। विश्वे यस्मिन्नमर्त्ये हव्यं मर्तास इन्यते॥
समस्त जनों को अत्यधिक प्रिय प्रतीत होने वाले, धन के स्वामी, सभी मानवों के गृहों में अतिथि के समतुल्य आदरणीय, प्रातः स्मरण करने योग्य, मृत्यु को कभी न प्राप्त होने वाले अग्नि में सभी लोग यज्ञ में ग्रहण किये जाने वाले पावन पदार्थों (अन्नों) से आहुति निवेदित करते हैं।(सामवेद 1.9.5)
Agni Dev appear to be extremely dear to all humans, Lord of wealth, reside in the homes of all humans as a guest, worth remembering in the morning, never perish-immortal, all being sacrifice pious-pure goods, offerings in the Yagy to him.
यद्वाहिष्ठं तदग्नये बृहदर्घ विभावसो। महिषीव त्वद्रयिस्त्वद्वाजा उदीरते॥
हे अग्नि देव! अत्यन्त शीघ्र अपना प्रभाव दिखाने वाले स्तोत्रों से आपकी वन्दना की जाती है। आप हमें अत्यधिक धन-सम्पत्ति तथा अन्नादि प्रदान करने की कृपा करें।(सामवेद 1.9.6)
Hey Agni Dev! For quick response you are prayed with Strotrs. Grant us lots of wealth, prosperity and food grains.
विशोविशो वो अतिथिं वाजयन्तः पुरुप्रियम्। अग्निं वो दुर्यं वचः स्तुषे शूषस्य मन्मभिः॥
आहार (अन्न) तथा शक्ति की कामना करने वाले हे मनुष्यों! आप समस्त जनों को प्रिय लगने वाले, सबके द्वारा पूजनीय अग्नि देव की वन्दना करें। हम (ऋत्विग्गण) भी गृहों के अधिपति अग्नि देव की आनन्द प्रदान करने वाले स्तोत्रों से वन्दना करते हैं।(सामवेद 1.9.7)
Hey humans, desirous of food grains and power-might! Worship Agni Dev who is loved by all humans. We, the Ritviz too worship Agni Dev, the Lord of house, with gladdening Strotrs.
बृहद्वयो हि भानवेऽर्चा देवायाग्नये। यं मित्रं न प्रशस्तये मर्तासो दधिरे पुरः॥
यज्ञादि करने या कराने वाले मित्र की भाँति, प्रतापी अग्नि देव को, वन्दना हेतु अपने समक्ष प्रतिस्थापित करके उसमें पर्याप्त मात्रा में हविष्यान्न (यज्ञादि में खाये जाने वाले पावन पदार्थ) को आहुति प्रदान करते हैं।(सामवेद 1.9.8)
प्रतापी :: प्रताप संबंधी, दुःख-सताने से मुक्तिदायक; glorious, august.
Sacrifices are made to glorious-august Agni Dev like a friend, who help in Yagy-Hawan etc, establish him with sufficient offerings (food grains, Ghee etc) before us.
अगन्म वृत्रहन्तमं ज्येष्ठमग्निमानवम्। यः स्म श्रुतर्वन्नार्क्षे बृहदनीक इध्यते॥
ऋक्ष के पुत्र श्रुतर्वा के विनाश हेतु, प्रखर ज्वालाओं वाले, वृत्र का नाश करने वाले, सज्जन पुरुषों हेतु कल्याणकारी अग्नि देव की हम आराधना करते हैं।(सामवेद 1.9.9)
We worship Agni Dev having blazing flames, who destroyed Raksh's son Shrutrva, destroyed Vratr, beneficial to the virtuous-gentle humans.
जातः परेण धर्मणा यत्सवृद्धिः सहाभुवः।
पिता यत्कश्यपस्याग्निः श्रद्धा माता मनुः कविः॥
हे अग्नि देव! कश्यप आपके पिता, श्रद्धा आपकी माता तथा स्तोता मनु हैं। आप हमारे श्रेष्ठ कर्मों के माध्यम से आरम्भ किये गए याग में उपस्थित हों।(सामवेद 1.9.10)
Hey Agni Dev! Kashyap is your father, Shraddha is your mother and Manu is your Stota. Invoke in the Yagy begun with excellent performances by us.
सामवेद आग्नेयं पर्व (1.9) :: ऋषि :- अग्निस्तापस, वामदेव, कश्यप, देवल या असित, सोमाहुति भार्गव, पायु, प्रस्कण्व; देवता :- विश्वेदेवा, अंगिरा, अग्नि; छन्द :- अनुष्टुप्।
सोमं राजानं वरुणमग्निमन्वारभामहे। आदित्यं विष्णुं सूर्यं ब्रह्माणं च बृहस्पतिम्॥
हम प्रार्थना करने वाले यजमान, उत्तम वन्दना के द्वारा राजा सोम, वरुण, अग्नि, आदित्य, सूर्य, ब्रह्मा, विष्णु एवं बृहस्पति को आमन्त्रित करते हैं।(सामवेद 1.10.1)
We invite the Yajman, with request-prayer, king Som, Varun, Agni, Adity, Sury, Brahma, Vishnu and Brahaspati with excellent worship.
इत एत उदारुहन्दिवः पृष्ठान्या रुहन्। प्र भूर्जयो यथा पथोद्द्यामङ्गिरसो ययुः॥
अंगिरस् ऋषि ने उत्तम याग के प्रभाव द्वारा स्वर्ग लोक को प्राप्त किया एवं श्रेष्ठ यज्ञ के प्रभाव से ही उसके ऊपर प्रतिष्ठित हो गये।(सामवेद 1.10.2)
Angiras Rishi attained heavens through the impact of excellent Yagy and established over it by virtue of excellent Yagy.
राये अग्ने महे त्वा दानाय समिधीमहि। ईडिष्वा हि महे वृषं द्यावा होत्राय पृथिवी॥
हे पूजनीय अग्नि देव! आप सुखों के अधिपति हैं। महान् धन, वैभव प्राप्त करने की अभिलाषा से हम आपको श्रद्धापूर्वक प्रज्वलित करते हैं। हे याजकों! आप प्रकृति में हो रहे हवि को सम्पन्न करने के लिए पृथ्वी और स्वर्ग लोक की वन्दना करें।(सामवेद 1.10.3)
Hey worshipable Agni Dev! You are the Lord of comforts-pleasure. We ignite you with the desire of great wealth, grandeur with reverence-honour. Hey Yajak Gan! Worship earth & heavens for the offerings produced by nature.
दधन्वे वा यदीमनु वोचद्ब्रह्मेति वेरु तत्। परि विश्वानि काव्या नेमिश्चक्रमिवाभुवत्॥
चक्र को धारण किये रहने वाली धुरी के समतुल्य, समस्त काव्यों (कर्मों) को जानने वाले इन अग्नि देव को संतुष्ट करने के उद्देश्य से हम उनका ध्यान करते हैं।(सामवेद 1.10.4)
We meditate-concentrate in Agni Dev to satisfy him, who is aware of our all efforts-endeavours, like the axle-pivot of the wheel.
प्रत्यग्ने हरसा हरः शृणाहि विश्वतस्परि। यातुधानस्य रक्षसो बलं न्युब्जवीर्यम्॥
हे अग्नि देव! आप अपने महान् बल के माध्यम से चारों ओर उपद्रव करने वाले दानवों का विनाश करें। आप इन दानवों के शक्ति और पराक्रम को पूर्ण रूप से समाप्त कर दें।(सामवेद 1.10.5)
Hey Agni Dev! Destroy all giants-demons creating trouble all around with your great strength. Abolish the might & power of these demons completely.
त्वमग्ने वसूँरिह रुद्राँ आदित्याँ उत। यजा स्वध्वरं जनं मनुजातं घृतप्रुषम्॥
वसु, रुद्र एवं आदित्य आदि ईश्वरों को प्रसन्न करने के उद्देश्य से यज्ञ कर्म करने वाले हे अग्ने! आप घी की आहुति से उत्तम हवि सम्पन्न करने वाले मनु सन्तानों (मानवों) का आर्थिक सहायता आदि द्वारा सत्कार करें।(सामवेद 1.10.6)
Hey Agni Dev accomplishing-performing deeds for appeasement of Vasu, Rudr, Adity etc deities. Honour the humans (sons of Manu) with wealth who make sacrifices of ghee & offerings in you.
सामवेद आग्नेयं पर्व (1.9) :: ऋषि :- दीर्घतमा, विश्वामित्र, गौतम, त्रित, इरिम्बिठि, विश्वमना, वैयश्व, ऋजिश्वा, भरद्वाज; देवता :- अग्नि, पवमान, अदिति, विश्वेदेवा; छन्द :- उष्णिक्।
पुरु त्वा दाशिवाँ वोचेऽरिरग्ने तव स्विदा। तोदस्येव शरण आ महस्य॥
महान् सम्पत्तिशाली की शरण में आये हुए, धन सम्पत्ति प्राप्त करने के उद्देश्य से याचकों के समान हम अग्नि देव के निमित्त आहुति प्रदान करते हुए विनती करते हैं।(सामवेद 1.11.1)
याचक :: मुद्दई, वादी, भिक्षुक-भिक्षुणी, मंगता; petitioner, mendicant, beggar, demandant.
Under asylum of those who possess great wealth and prosperity like Yachak-beggar, we pray for making sacrifices for Agni Dev.
प्र होत्रे पूर्व्य वचोऽग्नये भरता बृहत्। विपां ज्योतींषि बिभ्रते न वेधसे॥
हे ऋत्विजों! उत्तम अनुष्ठानों के द्वारा प्राप्त आभा को धारण करने वाले ज्ञानियों के सदृश, ब्रह्मा आदि ईश्वर की उपासना करने वाले अग्नि देव की उत्तम एवं प्राचीन हवनीय पदार्थों से वन्दना करो।(सामवेद 1.11.2)
अनुष्ठानों :: संस्कार, धार्मिक उत्सव, आचार, आतिथ्य सत्कार, धार्मिक क्रिया, धार्मिक संस्कार, पद्धति, शास्रविधि, समारोह, विधि, रसम, धर्मक्रिया; rituals, rite, ceremony.
Hey Ritviz Gan! Worship Agni Dev who worship Brahma Ji and Almighty with excellent offerings for the Yagy like the enlightened having attained aura due to excellent rituals, rites, ceremonies.(04.11.2025)
अग्ने वाजस्य गोमत ईशानः सहसो यहो। अस्मे देहि जातवेदो महि श्रवः॥
हे अग्नि देव! आप (अरणि-मन्थन स्वरूप) पराक्रम से जन्म लेने वाले, गायों से उत्पन्न पोषक पदार्थों, धनों एवं ज्ञान के अधिष्ठाता है। आप हमें विद्या, धन-ऐश्वर्य प्रदान करें। (सामवेद 1.11.3)
Hey Agni Dev! You evolve by rubbing wood pieces. You are the lord of the nourishing goods obtained from cows, wealth and learning. Grant us enlightenment-learning, wealth & grandeur.
अग्ने यजिष्ठो अध्वरे देवां देवयते यज। होता मन्द्रो वि राजस्यति स्त्रिधः॥
हवि में आराधना करने योग्य, देवताओं का आवाहन करने वाले, शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाले हे अग्ने! आप यज्ञकर्ताओं और देवताओं के (कल्याण के लिए) याग करते हुए विभूषित होते हैं। (सामवेद 1.11.4)
Worshipable in the offerings-sacrifices, invoker of demigods-deities, winner of the enemies, hey Agni Dev! You are adorned while accomplishing Yagy for the welfare of the Yagy performers and demigods-deities.
जज्ञानः सप्त मातृभिर्मेधामाशासत श्रिये। अयं ध्रुवो रयीणां चिकेतदा॥
सात माताओं (ज्वालाओं), सतलज, व्यास, रावी, चिनाव, झेलम, सरस्वती एवं सिन्धु के माध्यम से उत्पन्न हुए, (वृद्धि को प्राप्त याजकों की) धारण करने की क्षमता में वृद्धि करने के लिए प्रयत्नशील ये अग्नि देव धन (ज्ञान) संपदाओं इत्यादि को भली-भाँति समझने वाले हैं।(सामवेद 1.11.5)
Born out of seven mothers (flames) viz Satluj, Vyas, Ravi, Chinav, Jhelum, Saraswati and Sindhu; Agni Dev thoroughly understand the scholarly wealth and make efforts to support them, for the sake of the Yajak who seek growth.
उत स्या नो दिवा मतिरदितिरूत्यागमत्। सा शन्ताता मयस्करदप स्त्रिधः॥
हे देवताओं की माता अदिति! आप सम्पूर्ण रक्षा करने वाले साधनों के साथ हमारे सम्मुख प्रकट हों एवं शत्रुओं का संहार करें तथा हमारे समस्त दोषों का निवारण कर हमें सुख-शान्ति प्रदान करें। (सामवेद 1.11.6)
Hey mother of demigods, Aditi! Invoke with all means of protection, destroy the enemies, remove our defects-short comings and grant us peace & tranquillity.
ईडिष्वा हि प्रतीव्यां 3 यजस्व जातवेदसम्। चरिष्णुधूममगृभीतशोचिषम्॥
हे स्तुति करने वाले ऋत्विजों! शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाले प्रबल ज्वालाओं से युक्त, सर्वव्यापी धूम्र वाले, सब कुछ जानने वाले अग्नि देव की स्तुति एवं आराधना करो। (सामवेद 1.11.7)
Hey Ritviz making prayers-Stuti! Worship & pray Agni Dev who is victorious over the enemy, has furious flames and all pervading smoke.
न तस्य मायया च न रिपुरीशीत मर्त्यः। यो अग्नये ददाश हव्यदातये॥
जो यजमान यज्ञ आदि के अवसर पर खाये जाने वाले अन्नों (हविष्यान्न) की आहुति अग्नि देव को समर्पित करते हैं। ऐसे यजमानों पर किसी भी दुष्ट के छल-प्रपंच का प्रभाव नहीं पड़ता है। (सामवेद 1.11.8)
The Yajak who make sacrifices of eatable food grains in the Yagy, remain un affected by the treachery of the wicked-cheats, fraudsters.
अप त्यं वृजिनं रिपुं स्तेनमग्ने दुराध्यम्। दविष्ठमस्य सत्पते कृधी सुगम्॥
हे सत्य के स्वामी अग्नि देव! आप मायावी शत्रुओं तथा दुर्धर्ष (उग्र) चोरों को हमसे दूर करते हुए हमारे उत्तम भलाई चाहने वाले मार्ग को सरल बनाने की कृपा करें। (सामवेद 1.11.9)
Hey Lord of truth, Agni Dev! Repel the illusive enemies & furious thieves and make the path to our welfare clear.
श्रुष्ट्यग्ने नवस्य मे स्तोमस्य वीर विश्पते। नि मायिनस्तपसा रक्षसो दह॥
हे जगत् के पालनहार अग्नि देव! हमारे इस अद्भुत स्तुत्यात्मक श्लोक को श्रवण कर उत्साह से युक्त होकर आप मायावी (छल एवं कपटी) दुष्टों को अपने प्रचण्ड ज्वालाओं से जलाकर राख कर दें। (सामवेद 1.11.10)
Hey nurturer-supporter of the universe, Agni Dev! Encouraged by our Stuti Shlok burn-roast our illusive enemies and the wicked-vicious into ashes.
सामवेद आग्नेयं पर्व (1.12) :: ऋषि :- प्रयोगो भार्गव, सौभरि, काण्व, विश्वमना वैयश्व; देवता :-अग्नि; छन्द :- उष्णिक्।
प्र मंहिष्ठाय गायत ऋताव्ने बृहते शुक्रशोचिषे। उपस्तुतासो अग्नये॥
हे स्तुति करने वाले ऋत्विजों! आप अपनी उत्तम स्तुति के माध्यम से अग्नि देव की वन्दना करें। वे महान् सत्य एवं हवि के अधिष्ठाता, महान् पराक्रमी एवं महान् जगत् के रक्षक हैं।(सामवेद 1.12.1)
Hey Ritviz resorting to Stuti! Worship-pray Agni Dev with best Stuti. He is great protector of the universe, invincible and Lord of truth and oblations.
प्र सो अग्ने तवोतिभिः सुवीराभिस्तरति वाजकर्मभिः। यस्य त्वं सख्यमाविथ॥
हे अविनाशी अग्ने। आप जिनके सखा बनकर सहायता करते हैं, वे स्तोतागण आप से उत्तम संतान, अन्न, सामर्थ्य आदि समृद्धि प्राप्त कर लेते हैं।(सामवेद 1.12.2)
Hey immortal Agni Dev! Those Stota Gan who are helped by you as a friend, attain excellent progeny, prosperity & food grains from you.
तं गूर्धया स्वर्णरं देवासो देवमरतिं दधन्विरे। देवत्रा हव्यमूहिषे॥
हे स्तोताओं! द्युलोक के निमित्त हवनीय पदार्थों को पहुँचाने वाले अग्नि देव की वन्दना करो। यज्ञ करने वाले लोग वन्दना करते हैं एवं देवताओं को हवनीय पदार्थ पहुँचाते हैं।(सामवेद 1.12.3)
Hey Stota Gan! Worship-pray Agni Dev who carry oblations to heavens. Yagy performers worship and manage to send oblations-offerings to demigods via Agni Dev.
मा नो हृणीथा अतिथिं वसुरग्निः पुरुप्रशस्त एषः। यः सुहोता स्वध्वरः॥
हमारे प्रिय अतिथि स्वरूप अग्नि देव को हवन से दूर मत हटाओ। वे देवताओं का आवाहन करने वाले, धन के स्वामी तथा अनेकों ऋत्विजों द्वारा प्रशंसनीय हैं।(सामवेद 1.12.4)
Do not keep off Agni Dev; our dear guest from the Yagy. He invoke demigods, is Lord of wealth and appreciated by several Ritviz Gan.
भद्रो नो अग्निराहुतो भद्रा रातिः सुभग भद्रो अध्वरः। भद्रा उत प्रशस्तयः॥
हवनीय पदार्थों से प्रसन्न हुए हे अग्ने! आप हमारे लिए सौभाग्यशाली हों। हे वैभवशाली! हमें शुभ कार्यों को करने वाले धन की प्राप्ति हो तथा स्तुतियां हमारे लिए मंगलकारी सिद्ध हों।(सामवेद 1.12.5)
Hey Agni dev, gladdened with Yagy materials! Let you become lucky. Hey grandeur possessor! Let us have wealth-money for pious, virtuous, righteous activities. Our prayers should become auspicious for us.
यजिष्ठं त्वा ववृमहे देवं देवत्रा होतारममर्त्यम्। अस्य यज्ञस्य सुक्रतुम्॥
हे देवों के देव अग्नि देव! आप उत्तम याज्ञिक हैं। आप इस हवन को भली-भाँति परिपूर्ण करने वाले हैं। हम आपकी वन्दना करते हैं।(सामवेद 1.12.6)
Hey deity of the demigods, Agni Dev! You are best Yagyik. You accomplish Yagy-Hawan in best possible manner. We worship you.
तदग्ने द्युम्नमा भर यत्सासाहा सदने कं चिदत्रिणम्। मन्युं जनस्य दूक्यम्॥
हे अग्नि देव! आप हमें श्रेष्ठ ज्ञान एवं पराक्रम प्रदान करें, जिससे हवन में सम्मिलित होने वाले अति-भोगी दुष्पवृत्ति वाले लोगों को नियन्त्रित किया जा सके। इसके साथ ही आप कुटिल विचारों से युक्त लोगों के क्रोध को भी दूर हटा दें।(सामवेद 1.12.7)
Hey Agni Dev! Grant us excellent knowledge and courage (might), so that wicked-vicious who participate in the Yagy are controlled. Remove-eliminate the anger of the treacherous-fraudsters, along with it.
यद्वा उ विश्पतिः शितः सुप्रीतो मनुषो विशे। विश्वेदग्निः प्रति रक्षांसि सेघति॥
यज्ञ कर्ताओं की रक्षा करने वाले, सदैव दूसरों पर अपनी कृपादृष्टि बनाए रखने वाले, हविष्यान्न से प्रज्वलित ये अग्नि देव संतुष्ट होकर, याजकों के यहाँ (यज्ञ में) प्रतिस्थापित होते हैं और समस्त कुटिल, दुष्ट आचरण करने वाले लोगों का अपने प्रखर तेज से संहार कर देते हैं।(सामवेद 1.12.8)
Agni Dev who protect the Yagy performers, always keep merciful watch over others, ignited with offerings-oblations, is established in the Yagy and destroy the notorious-wicked, devious-cynical with his blazing Tej-radiance.(05.11.2025)
(between 6-9 November, I visited Kashi Vishwa Nath and Ram Lala temple in Ayodhya)
सामवेद ऐन्द्रं पर्व (2.1) :: ऋषि :- शंयु अथवा वार्हस्पत्य, श्रुतकक्ष, हर्यत, प्रागाथ, इन्द्रमातरो देवजामय, गोषुक्त्यश्व-सूक्तिनौ, मेधातिथिरांगिरस, प्रियमेध, काण्वश्च; देवता :- इन्द्र; छन्द :-गायत्री।
तद्वो गाय सुते सचा पुरुहूताय सत्वने। शं यद्गवे न शाकिने॥
हे स्तुति करने वाले ऋत्विजों! जब सोमरस तैयार हो जाता है, तब अनेकों लोग जिनकी वन्दना करते हैं, उन पराक्रमी इंद्र देव हेतु सभी लोग एक साथ मिलकर वन्दना करें। ऐसा करने से इन्द्र देव को उसी प्रकार के आनन्द की प्राप्ति होगी, जिस प्रकार गौ को घास द्वारा प्राप्त होती है।(सामवेद 2.1.1)
Hey Ritviz Gan, conducting Stuti! Worship Indr Dev along with the several people, when Somras is ready. By doing this Indr Dev will get such pleasure, which is obtained by the cow while grazing grass.
यस्ते नूनं शतक्रतविन्द्र द्युम्नितमो मदः। तेन नूनं मदे मदेः॥
हे शतकर्मा इन्द्र देवता! अत्यधिक तेजस्वी, अभिषेक किया हुआ सोमरस आपको प्रदान करने हेतु तैयार है। उस सोमरस को ग्रहण कर आप सन्तुष्ट हो जाएं तथा हमें धन-संपदा आदि प्रदान कर सुखी करें।(सामवेद 2.1.2)
Hey performer of hundred Yagy, Indr Dev! Highly aurous-energetic, extracted Somras is ready for serving you. You should be satisfied by drinking that Somras and grant us wealth, prosperity and comforts-pleasure.
गाव उप वदावटे मही यज्ञस्य रप्सुदा। उभा कर्णा हिरण्यया॥
सूर्य की किरणें यज्ञार्थ विद्यमान, उस धरती को (अन्नादि पैदा करके) यज्ञीय स्वरूप देने वाली है, जिसके दोनों ध्रुव चुम्बकीय ऊर्जा के कारण चमकीले हैं।(सामवेद 2.1.3)
The rays of Sun, provide food grains etc for granting the form of Yagy leading to shinning of its two poles through magnetism.
अरमश्वाय गायत श्रुतकक्षारं गवे। अरमिन्द्रस्य धाम्ने॥
हे श्रुतकक्ष, ऋषि! आप गायों, घोड़ों एवं इन्द्र देवता के निवास स्थान अर्थात् स्वर्ग को प्राप्त करने हेतु पर्याप्त स्तोत्रों का गान करें।(सामवेद 2.1.4)
Hey Shrut Kaksh Rishi! Recite enough Strotr for the attainment of heaven, abode of Indr Dev.
तमिन्द्रं वाजयामसि महे वृत्राय हन्तवे। स वृषा वृषभो भुवत्॥
जो वृत्रासुर का संहार करने वाले हैं, हम यज्ञ करने वाले लोग उनके गुणों का गान एवं उनकी वन्दना करते हैं, वे धन के अधिष्ठाता इन्द्र देव हमारी सभी मनोकामनाओं को पूर्ण कर हमें सुख-समृद्धि प्रदान करने की कृपा करें।(सामवेद 2.1.5)
We worship Indr Dev slayer of Vratra Sur, who is the deity of wealth, for accomplishment of comforts-pleasure and prosperity to us.
त्वमिन्द्र बलादधि सहसो जात ओजसः। त्वं सन्वृषन्वृषेदसि॥
हे देवेन्द्र! आप हमारी समस्त कामनाओं की पूर्ति करने वाले, महान् बल शाली हैं। आप अपने पराक्रम, उग्रता एवं शक्ति के निमित्त सबसे श्रेष्ठ सिद्ध हुए हैं। आप उत्तम फलों की वर्षा करने में सक्षम हैं।(सामवेद 2.2.6)
Hey Devendr! You are mighty, powerful and accomplish our all desires. You proved to be the best by virtue of your invincibility, furiousity. You are capable of granting-shower excellent rewards.
यज्ञ इन्द्रमवर्धयद्यद्भूमिं व्यवर्तयत्। चक्राण ओपशं दिवि॥
जिस हवि प्रक्रिया ने धरती को अम्बर में टांगकर घुमाते हुए रखा है अर्थात् सूर्य पृथ्वी को घुमाता रहता है। उस हवि ने राजा इन्द्र के ऐश्वर्य में वृद्धि भी की है।(सामवेद 2.1.7)
The process of sacrifices led to revolution of earth around the Sun in elliptical orbits and increased the grandeur of Indr Dev.
यदिन्द्राहं यथा त्वमीशीय वस्व एक इत्। स्तोता मे गोसखा स्यात्॥
हे इन्द्र देवता! जिस तरह आप सम्पूर्ण वैभव के अधिपति हैं, यदि मैं भी आपकी तरह धन-संपदा से सम्पन्न हो जाऊँ, तो मेरी स्तुति करने वाली गौएँ आदि भी धन-धान्य से परिपूर्ण हो जाएँ।(सामवेद 2.1.8)
Hey Indr Dev! The manner in which you are the Lord-deity of all sorts of grandeur, I too should possess cows and riches and food grains.
पन्यंपन्यमित्सोतार आ धावत मद्याय। सोमं वीराय शूराय॥
हे सोम-शोधन में मनोयोग से जुटे हुए याजको! बलशाली, शूरवीर राजा इन्द्र हेतु सुख प्रदान करने वाले सोम समर्पित करो।(सामवेद 2.1.9)
Hey Yagy performers devoted to extraction of Som! Offer Somras to brave, invincible king Indr Dev; who grant comforts-pleasure.
इदं वसो सुतमन्धः पिबा सुपूर्णमुदरम्। अनाभयिब्ररिमा ते॥
हे भय से रहित देवराज इन्द्र! आप अभिषेक द्वारा तैयार किये हुए सोम का पान करें, जिससे आप सन्तुष्ट हो। आपको प्रसन्न करने के निमित्त यह सोमरस अर्पित है।(सामवेद 2.1.10)
सामवेद ऐन्द्रं पर्व (2.2) :: ऋषि :- सुकक्षश्रुतकक्षौ, भरद्वाज, मधुच्छन्दा, त्रिशोक, वसिष्ठ। देवता-इन्द्र। छन्द-गायत्री।
उद्घेदभि श्रुतामधं वृषभं नर्यापसम्। अस्तारमेषि सूर्य॥
विश्व में प्रसिद्ध, धन, वैभव से परिपूर्ण, महान् बलशाली, मनुष्य मात्र के हितेच्छु एवं दुर्जनों पर अस्त्रों से प्रहार करने वाले, ये सभी दिशाओं को प्रकाशित करने वाले सूर्य (इन्द्र) देवता हैं।(सामवेद 2.2.1)
Sun (Indr Dev) famous in the universe, possessing wealth, grandeur, mighty-power, well wisher of humans, striking the wicked-vicious, lit all directions.
Sun & Indr are synonym to God here, being HIS excellent forms-Vibhuti.
यदद्य कच्च वृत्रहन्नुदगा अभि सूर्य। सर्वं तदिन्द्र ते वशे॥
हे वृत्र का संहार करने वाले, तत्काल उदित हुए (सूर्य) देवराज इन्द्र! वह समस्त पदार्थ आपके अधीन (वश में) है, जिसे आपने प्रकाशित किया है।(सामवेद 2.2.2)
Hey slayer of Vratra Sur, rising Sun i.e., Devraj Indr! All those means which lead to light, are controlled by you.
य आनयत्परावतः सुनीती तुर्वशं यदुम्। इन्द्रः स नो युवा सखा॥
जिन तुर्वश एवं यदु (शक्तिशाली राजाओं) को शत्रुओं के द्वारा दूरस्थ फेंक दिया गया था। वहाँ से देवराज इन्द्र ही उन्हें श्रेष्ठता पूर्वक नीति से सरलता पूर्वक वापस ले आए थे। वे युवावस्था (स्फूर्तिवान्) देवराज इन्द्र हमारे सखा हैं।(सामवेद 2.2.3)
Mighty kings Turvash & Yadu, who were thrown away by the mighty enemies, were brought back by Devraj Indr easily. Mighty-smart king Indr Dev is our friend.
मा न इन्द्राभ्या3 दिशः सूरो अक्तुष्वा यमत्। त्वा युजा वनेम तत्॥
हे देवराज इन्द्र! सभी जगह घूमने वाले, सब ओर शस्त्र फेंकने वाले दानव रात के समय हमारे समीप न आ सकें। यदि वे हमारे समीप आ भी जाएं तो आपकी कृपा से उनका विनाश हो जाए।(सामवेद 2.2.4)
Hey Devraj Indr! Prohibit the demons who launch missiles in all directions during night, from a distant, coming near-close to us. If they approach us, they should be killed instantaneously, due to your mercy-blessings.
एन्द्र सानसिं रयिं सजित्वानं सदासहम्। वर्षिष्ठमूतये भर॥
हे देवराज इन्द्र! आप हमारी रक्षा करने हेतु एवं शत्रुओं को पराजित करने के उद्देश्य से हमें धन-धान्य से सम्पन्न करें।(सामवेद 2.2.5)
hey Devraj Indr! For our protection & defeating our enemies, enrich us with wealth and food grains.
इन्द्रं वयं महाधन इन्द्रमर्भे हवामहे। युजं वृत्रेषु वज्रिणम्॥
हम जीवन के छोटे-बड़े समस्त युद्धों में, वृत्र नामक असुर का विनाश करने वाले, वज्र धारण करने वाले देवराज इन्द्र को सहयोग करने के निमित्त आमंत्रित करते हैं।(सामवेद 2.2.6)
We invoke Indr Dev in fighting small or large scale wars, throughout the life for the destruction of demons like Vratra Sur.
अपिबत्कद्रुवः सुतमिन्द्रः सहस्त्रबाहे। तत्राददिष्ट पौंस्यम्॥
कटु के द्वारा निष्पन्न सोमरस का देवराज इन्द्र ने सेवन किया तथा सहस्रों भुजाओं वाले शक्तिशाली शत्रु का हनन किया, जिससे देवराज इन्द्र का दर्शन करने योग्य बल प्रस्तुत हुआ।(सामवेद 2.2.7)
Indr Dev drunk the Somras extracted with Katu (a tool) and killed the enemy with thousands of arms leading to grant of might-power and aura to him.(10.11.2025)
सामवेद ऐन्द्रं पर्व (2.2) :: ऋषि :- सुकक्षश्रुतकक्षौ, भरद्वाज, मधुच्छन्दा, त्रिशोक, वसिष्ठ। देवता-इन्द्र। छन्द-गायत्री।
वयमिन्द्र त्वायवोऽभि प्र नोनुमो वृषन्। विद्धी त्वा 3 स्य नो वसा॥
हे अति उत्तम शूरवीर देवराज इन्द्र! हम आपकी अभिलाषा करते हुए बार-बार आपको नमस्कार करते हैं। हे सभी जनों को आश्रय प्रदान करने वाले! आप हमारे द्वारा की गयी विनतियों को श्रवण करें और उन्हें समझें।(सामवेद 2.2.8)
Hey excellent warrior Devraj Indr! We invoke you and salute you again & again. Hey granter of asylum to all! Respond to our request-prayers, understanding them.
आ घा ये अग्निमिन्धते स्तृणन्ति बर्हिरानुषक्। येषामिन्द्रो युवा सखा॥
अति उत्तम अग्नि को प्रज्वलित करने वाले याजकों के सखा चिर युवा देवराज इन्द्र हैं। वे (याजक) उनके लिए कुश-आसन फैलाते हैं।(सामवेद 2.2.9)
Always young Indr Dev is the friend of the Yajak who light-ignite excellent fire. The Yajak spread cushion for him.
भिन्धि विश्वा अप द्विषः परि बाधो जही मृधः। वसु स्पार्हं तदा भर॥
हे इन्द्र देव! आप सम्पूर्ण जगत् के बैर भाव रखने वाले शत्रुओं का शमन करें, बाधा उत्पन्न करने वाले दुर्जनों को पराभूत कर दें तथा प्रशंसनीय ऐश्वर्य हमें परिपूर्ण मात्रा में प्रदान करें।(सामवेद 2.2.10)
Hey Indr Dev! Control-destroy the enemies who are envious to the whole world, defeat those who create obstructions-trouble and grant us appreciable grandeur in sufficient quantity.
सामवेद ऐन्द्रं पर्व (2.3) :: ऋषि :- कण्वो घोर, त्रिशोक, वत्स, काण्व, कुसीदी काण्व, मेधातिथि, श्रुतकक्ष, श्यावाश्व, प्रगाथ, काण्व, इरिम्बिठि; देवता :- इन्द्र; छन्द :- गायत्री।
इहेव शृण्व एषां कशा हस्तेषु यद्वदान्। नि यामं चित्रमृञ्जते॥
मरुद्गणों (युद्ध भूमि में सारथी) के करों में स्थित चाबुकों से जो ध्वनियां हमें सुनाई पड़ती हैं, जैसे वे यहीं हो रही हों। वे ध्वनियां युद्ध के दौरान वीरों के भीतर उत्साह का संचार करती हैं।(सामवेद 2.3.1)
The sound produced by the lash present in the hands of Marud Gan in the battle field are heard by us, as if they are close to us. These sound encourage the brave warriors in the war.
इम उ त्वा वि चक्षते सखाय इन्द्र सोमिनः। पुष्टावन्तो यथा पशुम्॥
हे देवराज इन्द्र! जैसे पशुओं को पालने वाला अपने हाथों में घास लेकर प्रेम पूर्वक पशुओं की ओर देखता है, वैसे ही याजक आपको संतुष्ट करने के निमित्त सोमादि को हाथों में लेकर आपकी ओर देखते रहते हैं।(सामवेद 2.3.2)
Hey Devraj Indr! The way the animal nurturer hold grass in his hands and look at them with love, similarly the Yajak keep Somras etc in hands and look at you, to satisfy you.
समस्य मन्यवे विशो विश्वा नमन्त कृष्टयः। समुद्रायेव सिन्धवः॥
सभी मानव जन (प्रजा) देवराज इन्द्र (जो कि असुरों के प्रति अत्यधिक क्रोधित भाव रखते हैं) के प्रकोप से बचने हेतु सदैव उनका नमन करते हुए आकर्षित होते हैं, जिस प्रकार सभी नदियां सागर में मिलने हेतु अत्यन्त तीव्र गति से जाती हैं।(सामवेद 2.3.3)
The humans-subjects bow before-salute Devraj Indr (who has acute anger-furiosity towards demons) to be protected from the demons being attracted by him, like the rivers who are eager to assimilate in the ocean with high speed.
देवानामिदवो महत्तदा वृणीमहे वयम्। वृष्णामस्मभ्यमूतये॥
हे देवता गण! आपका हमें सुरक्षा प्रदान करना हमारे लिए पूजा करने योग्य है। आप समस्त अभिलाषाओं की पूर्ति करने वाले हैं। आपके महिमामय रक्षण को हम स्वीकार करते हैं।(सामवेद 2.3.4)
Hey demigods-deities! Granting protection to us deserve worship-prayers for you. You accomplish all desires. We accept your majestic protection.
सोमानां स्वरणं कृणुहि ब्रह्मणस्पते। कक्षीवन्तं य औशिजः॥
हे ब्रह्मण स्पते! सोमयज्ञ करने वाले याजक, उशिज के पुत्र कक्षीवान् को स्वर्ण से युक्त तेज प्रदान करें।(सामवेद 2.3.5)
Hey Brahman Spatye! Grant aura-radiance like gold to Kakshiwan son of Ushij.
बोधन्मना इदस्तु नो वृत्रहा भूर्यासुतिः। शृणोतु शक्र आशिषम्॥
जिस देवता हेतु अनेकों लोग एकजुट होकर सोमरस तैयार करते हैं, जो हमारी सभी अभिलाषाओं को जानने वाले हैं, रणभूमि में शत्रुओं को परास्त करने वाले हैं। वे महा शक्तिशाली, वृत्रहन्ता देवराज इन्द्र हमारे द्वारा की गई वन्दनाओं को ध्यानपूर्वक श्रवण करें।(सामवेद 2.3.6)
Devraj Indr slayer of Vratr, who defeat the enemy in the war field should respond to our prayers accomplish all of our desires. Several people together extract Somras for him.
अद्या नो देव सवितः प्रजावत्सावीः सौभगम्। परा दुःष्वप्न्यं सुव॥
हे सविता देव! आप आज हमें पुत्र-पौत्रों के साथ शुद्ध वैभव प्रदान करने की कृपा करें। कष्टदायी स्वप्नों की भाँति दुर्भाग्य को आप हमसे दूर कर दे।(सामवेद 2.3.7)
Hey Savita Dev! You should grant pure grandeur along with sons and grandsons to us. Repel the bad luck from us like bad-painful dreams.
क्व 3 स्य वृषभो युवा तुविग्रीवो अनानतः। ब्रह्मा कस्तं सपर्यति॥
युवा, मजबूत गर्दन वाले तथा किसी के भी सम्मुख न झुकने वाले वे इन्द्र देव (विधाता) इस समय कहाँ है? कौन यज्ञकर्ता उनका याजक करता है?(सामवेद 2.3.8)
Where is young Indr Dev with strong neck, who never bow before any one? Which Yagy performer is holding Yagy for him.
उपह्वरे गिरीणां सङ्गमे च नदीनाम्। धिया विप्रो अजायत॥
(इसके पूर्व दिए गए मन्त्र का उत्तर यहाँ दिया जा रहा है) (परमेश्वर) पर्वत की घाटियों (श्रांत स्थलों) तथा नदियों के मिलन, पावन स्थानों पर श्रद्धा पूर्वक ध्यान के माध्यम से सज्जन पुरुष (परमेश्वर की) अर्चना करते हैं तथा उसी स्थान पर उन्हें (इन्द्र देव को) प्राप्त (साक्षात्कार) करते हैं।(सामवेद 2.3.9)
The gentle men worship the Almighty (here Indr Dev) at pious, places, junctions of rivers, valleys of mountains; with devotion, seeking his invocation at that place.
प्र संम्राजं चर्षणीनामिन्द्रं स्तोता नव्यं गीर्भिः। नरं नृषाहं मंहिष्ठम्॥
मानव जनों में अच्छी तरह सम्मान प्राप्त, वन्दना करने योग्य, शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाले शासक, उन महान् इन्द्र देवता की वन्दना करें।(सामवेद 2.3.10)
Worship-pray great Indr Dev honoured by the humans thoroughly, who is worshipable, emperor & victorious over the enemies.
सामवेद ऐन्द्रं पर्व (1.4) :: ऋषि :- श्रुतकक्ष, मेधातिथि, गौतम, भरद्वाज, बिन्दु या पूतदक्ष, श्रुतकक्ष अथवा सुकक्ष, वत्स, काण्व, शुनःशेप, वामदेव; देवता :- इन्द्र; छन्द :- गायत्री।
अपादु शिप्रयन्धस: सुदक्षस्य प्रहोषिणः। इन्दोरिन्द्रो यवाशिरः॥
मुकुट धारण करने वाले देवराज इन्द्र ने देवताओं हेतु हवनीय द्रव्य प्रदान करने में कुशल याजको के जौ के आटे एवं दूध से तैयार किये हुए सोमरस रूपी हविष्यान्न (यज्ञादि के दौरान खाने वाले पदार्थ) का सेवन किया।(सामवेद 2.4.1)
Devraj Indr wearing crown ate the offerings prepared by expert Yajak with barley flour and milk in the form of Somras.
इमा उ त्वा पुरूवसोऽभि नोनुवुर्गिरः। गावो वत्सं न धेनवः॥
हे वैभवशाली इन्द्र! दुग्ध प्रदान करने वाली गाएँ जैसे अपने बछड़ों के समीप जाने हेतु उत्सुक रहती है। उसी प्रकार हम याजक भी आपको प्राप्त करने के उद्देश्य से उत्सुकतापूर्वक आपकी स्तुति करते हैं।(सामवेद 2.4.2)
Hey grandeur possessing Indr Dev! The way the cows are curious to feed their calf, we the Yajak too are praying to you for your invocation.
अत्राह गोरमन्वत नाम त्वष्टुरपीच्यम्। इत्था चन्द्रमसो गृहे॥
बुद्धिमान् मनुष्यों की मान्यता के अनुरूप जब संसार को प्रकाशित करने वाले सूर्य देव रात में छिप जाते हैं, उस समय भी उनका अलौकिक तेज, गतिमान् चन्द्रमण्डल में दिखलाई पड़ता है।(सामवेद 2.4.3)
When the Sun illuminating the whole universe sets at night, his divine aura-radiance is seen in the dynamic Moon, as per the belief of the intellectuals.
यदिन्द्रो अनयद्रितो महीरपो वृषन्तमः। तत्र पूषाभुवत्सचा॥
जब महाशक्तिशाली देवराज इन्द्र, गतिमान् पृथ्वी पर अत्यधिक तेज जल वर्षा के रूप में जल को नीचे गिराते हैं, तब पोषण करने में सक्षम (पूषादेव) भी उनकी सहायता करते हैं।(सामवेद 2.4.4)
When mighty Indr Dev shower rains-downpour with great speed down wards, over the earth, Push Dev capable of nourishing, too help him.(11.11.2025)
गौर्धयति मरुतां श्रवस्युर्माता मघोनाम्। युक्ता वह्नी रथानाम्॥
धन-सम्पन्न, मरुतों (वायु) के साथ अग्निरथ के द्वारा जुड़ी हुई, अन्न पैदा करने की अभिलाषा रखने वाली धरती माता, प्राणियों का पालन-पोषण करती हैं।(सामवेद 2.4.5)
Mother earth rich in wealth, joined with Agni Rath through Marud Gan, desirous of producing food grains nourish-nurture the living beings.
उप नो हरिभिः सुतं याहि मदानां पते। उप नो हरिभिः सुतम्॥
हे सोम के स्वामी देवराज इन्द्र! आप अपने अति उत्तम अश्वों के माध्यम से हमारे सोमयज्ञ में बारम्बार पदार्पण करें।(सामवेद 2.4.6)
Hey Lord of Som, Devraj Indr! Invoke-arrive in our Som Yagy riding your excellent horses again and again.
इष्टा होत्रा असृक्षतेन्द्रं वृधन्तो अध्वरे। अच्छावभृथमोजसा॥
देवराज इन्द्र का गुणगान करने वाले याजकगण अपने सामर्थ्य से हमारे हवन में अवभृत स्नान (हवन समाप्त हो जाने पर होने वाला स्नान) होने तक आहुतियाँ प्रदान करते हैं।(सामवेद 2.4.7)
The Yajak Gan who sing songs in the honour of Devraj Indr, make sacrifices in our Yagy as per their capability till bathing at the completion of Yagy.
अह मिद्धि पितुष्परि मेधामृतस्य जग्रह। अहं सूर्य इवाजनि॥
हम याज्ञिकों ने समस्त जनों का पालन-पोषण करने वाले यज्ञरूपी देवेन्द्र के विवेक को अपनी ओर आकर्षित कर लिया है। ऐसा करने से हम सूर्य देवता के सदृश प्रखर तेज (ज्ञान) से युक्त होकर समस्त लोगों को प्रकाशित करने वाले बन गये हैं।(सामवेद 2.4.8)
We the Yagyik have attracted the prudence-attention of Devendr in the form of Yagy towards us. By doing this we have become enlightened to guide the humans like Sury Dev.
रेवतीर्नः सधमाद इन्द्रे सन्तु तुविवाजाः। क्षुमन्तो याभिर्मदेम॥
जिन (इन्द्रदेव) के सहयोग करने से हम धन-सम्पदा से सम्पन्न होकर आनन्दित होते हैं, उन देवराज इन्द्र के प्रभाव से युक्त होकर हमारी गाएँ दूध, अन्नादि देकर हमें अत्यधिक शक्ति प्रदान करने वाली बन जाती है।(सामवेद 2.4.9)
By virtue of whom-Dev Indr, we become prosperous with wealth and attain pleasure. By virtue of the impact of Devraj Indr our cows become more capable of yielding milk and food grains etc.
Cow dung is used as manure which increase to fertility of the land-field leading to better crops.
सोमः पूषा च चेततुर्विश्वासां सुक्षितीनाम्। देवत्रा रथ्योर्हिता॥
देवगणों के रथ में विराजमान सोम एवं पूषादेव (वायु) मानव मात्र को उत्तेजना प्रदान करने वाले है।(सामवेद 2.4.10)
Som & Pusha Dev present in the charoite of demigods grants excitement to the humans.
सामवेद ऐन्द्रं पर्व (2.5) :: ऋषि :- श्रुतकक्ष, वसिष्ठ, मेधातिथिप्रितमेध, इरिम्बिठि, मधुच्छन्दा त्रिशोक, कुसीदी, शुनःशेप; देवता :- इन्द्र; छन्द :- गायत्री।
पान्तमा वो अन्धस इन्द्रमभि प्र गायत। विश्वासाहं शतक्रतुं मंहिष्ठं चर्षणीनाम्॥
हे याज्ञिक गण! महाशक्तिशाली, सैकड़ों तरह के कर्म करने वाले, शत्रुओं का विनाश करने वाले एवं सोमरस का पान करने वाले देवराज इन्द्र की विलक्षण वन्दनाओं के द्वारा विनती करो।(सामवेद 2.5.1)
Hey Yagyik Gan! Worship Devraj Indr, who is extremely powerful-mighty, performer of hundreds of deeds, destroyer of the enemy, drunker of Somras, through amazing prayers
प्र व इन्द्राय मादनं हर्यश्वाय गायत। सखायः सोमपाव्ने॥
हे याजकों! रश्मिरूपी अश्वों के अधिपति, सोमरस का पान करने वाले देवराज इन्द्र को प्रफुल्लित करने वाले स्तुत्यात्मक श्लोकों (स्तोत्रों) का गान करो।(सामवेद 2.5.2)
Hey Yajak Gan! Sing Strotrs which gladden Devraj Indr; who is the Lord of horses in the form of rays and drinks Somras.
वयमु त्वा तदिदर्था इन्द्र त्वायन्तः सखायः। कण्वा उक्थेभिर्जरन्ते॥
हे देवराज इन्द्र! आपसे मित्रता चाहने वाले आपके मित्र हम, आपके स्तोता एवं समस्त कण्ववंशी, वन्दनाओं के माध्यम से आपका गुणगान करते हैं।(सामवेद 2.5.2)
Hey Devraj Indr! We desirous of your friendship, your Stotas and all Kavy Vanshi-clan people, sing your glory through prayers.
इन्द्राय मद्वने सुतं परि ष्टोभन्तु नो गिरः। अर्कमर्चन्तु कारवः॥
प्रफुल्लित स्वभाव वाले देवराज इन्द्र के उद्देश्य से अभियुत किये कये अद्भुत सोमरस का हम वाणी के माध्यम से गुणगान करें। स्तोतागण (स्तुतिगान करने वाले) इस पूजा करने योग्य सोम की प्रार्थना करें।(सामवेद 2.5.4)
We should appreciate the amazing Somras which gladden Devraj Indr. Stotas should worship this Som deserving prayers.
अयं त इन्द्र सोमो निपूतो अधि बर्हिषि। एहीमस्य द्रवा पिब॥
हे देवाधिपति इन्द्र! वेदिका पर विराजमान कुशों पर निष्पन्न किया हुआ सोमरस आपके लिए रखा हुआ है। आप अति शीघ्र यहाँ पधारें एवं इस दिव्य सोमरस को ग्रहण करने की कृपा करें।(सामवेद 2.5.5)
Hey Lord of demigods, Devraj Indr! Extracted-sanctified Somras has been kept over the Kush. Come quickly and accept the divine Somras.
सुरूपकृत्नुमूतये सुदुघामिव गोदुहे। जुहूमसि द्यविद्यवि॥
नित्य मधुर दुग्ध देने वाली गौ को, जिस तरह बुलाया जाता है, उसी तरह हम अपनी रक्षा करने के निमित्त सुंदर स्वरूपों का निर्माण करने वाले देवराज इन्द्र को आमन्त्रित करते हैं।(सामवेद 2.5.6)
The way a cow yielding sweet milk is called, similarly Devraj Indr is invited for protecting us adopting beautiful forms.
अभि त्वा वृषभा सुते सुतं सृजामि पीतये। तृम्पा व्यश्नुही मदम्॥
हे शक्तिशाली इन्द्र देवता! हम आपको सोमरस का पान कराने के निमित्त इस सोमयज्ञ में आपके लिए सोमरस अर्पित करते हैं। आप इस संतुष्टि प्रदान करने वाले सोमरस का सेवन करें।(सामवेद 2.5.7)
Hey mighty Indr Dev! We offer you Somras in this Som Yagy. Drink this satisfying -satiating Somras.
य इन्द्र चमसेष्वा सोमश्चमूषु ते सुतः। पिबेदस्य त्वमीशिषे॥
हे बलशाली देवराज इन्द्र! आपके लिए पवित्र सोमरस (छोटे-बड़े) चमस पात्रों (सोमरस का पान काने हेतु चम्मच की भाँति लकड़ी का बना हुआ पात्र) में परिपूर्ण करके रखा हुआ है। आप इस अद्भुत सोमरस का सेवन करें।(सामवेद 2.5.8)
Hey mighty Devraj Indr! Pious Somras has keen kept in the Chamas pots made of wood for you. Drink this amazing Somras.
योगेयोगे तवस्तरं वाजेवाजे हवामहे। सखाय इन्द्रमूतये॥
अच्छे कर्मों को आरम्भ करने में तथा सभी प्रकार (जीवन) के युद्ध में अत्यन्त शक्तिशाली देवराज इन्द्र की, अपनी रक्षा करने के निमित्त मित्रवत् स्तुति करते हैं।(सामवेद 2.5.9)
We worship Indr Dev like a friend for our protection-safety, prior to beginning of virtuous endeavours in the fight for all sorts of wars-struggle in life.
आ त्वेता नि षीदतेन्द्रमभि प्र गायत। सखायः स्तोमवाहसः॥
हे यज्ञ करने वाले सखागण! देवराज इन्द्र को हर्ष से सम्पन्न करने हेतु, विनती करने के लिए शीघ्र आकर स्थान ग्रहण करो तथा सभी तरह से उनकी वन्दना करो।(सामवेद 2.5.10)
Hey Yagy accomplishing friends! Come quickly and occupy your place to appease-gladden Devraj Indr, praying in every possible manner.
सामवेद ऐन्द्रं पर्व (2.6) :: ऋषि :- विश्वामित्र, मधुच्छन्दा, कुसीदी काण्व, प्रियमेध, वामदेव, श्रुतकक्ष, मेधातिथि, बिन्दु, पूतदक्षो; देवता :- इन्द्र, सदसस्पति, मरुत; छन्द :- गायत्री।
इदं ह्यन्वोजसा सुतं राधानां पते। पिबा त्वा3स्य गिर्वणः॥
हे ऐश्वर्याधिपति, वन्दनीय देवराज इन्द्र! पराक्रम द्वारा निकाले (निचोड़े) गये, इस सोमरस का रुचि पूर्वक सेवन करें।(सामवेद 2.6.1)
Hey Lord of grandeur, worshipable Devraj Indr! Consume this Somras extracted by making efforts, tastefully.
महाँ इन्द्रः पुरश्च नो महित्वमस्तु वज्रिणे। द्यौर्न प्रथिना शवः॥
हमारे ये इन्द्र देव अत्यन्त श्रेष्ठ एवं महान् हैं। वज्रधारी इन्द्र देव की कीर्ति स्वर्गलोक के सदृश विस्तृत होकर प्रसारित हो और इनके पराक्रम का गुणगान चारों दिशाओं में सब ओर हो।(सामवेद 2.6.2)
Our Devraj Indr is excellent-best & great. Let the fame of Vajr wielding Devraj Indr spread like the heavens in all directions describing his valour.(12.11.2025)
आ तू न इन्द्र क्षुमन्तं चित्रं ग्राभं से गृभाय। महाहस्ती दक्षिणेन॥
सहस्रों भुजाओं वाले, हे देवराज इन्द्र! आप हमें सत्य के मार्ग पर अग्रसर कर, प्रशंसा करने योग्य अन्न, धन आदि (वैभव) अपने दाहिने हाथ से (सम्मानपूर्वक) प्रदान करें।(सामवेद 2.6.3)
Hey Devraj Indr with thousands arms! Move us to truth, grant appreciable food grains, wealth & grandeur.
अभि प्र गोपतिं गिरेन्द्रमर्च यथा विदे। सूनुं सत्यस्य सत्पतिम्॥
हे याज्ञिकों! गायों के पालनकर्ता, सज्जन पुरुषों के रक्षक देवराज इन्द्र की वैदिक मन्त्रों के उच्चारण द्वारा स्तुति करो जिससे उनकी शक्तियों का आभास हो।(सामवेद 2.6.4)
Hey Yagyik Gan! Pray to Indr Dev, who is nurturer of cows, protector of gentle men, with Vaedik Mantrs so that his might & power are demonstrated-illustrated.
कया नश्चित्र आ भुवदूती सदावृधः सखा। कया शचिष्ठया वृता॥
अविच्छिन्न उन्नति करने वाले, हे देवराज इन्द्र! आप किन-किन संतुष्टि प्रदान करने वाले पदार्थों को चढ़ाने से, किस प्रकार की अर्चना-विधि से आनन्दित होकर एवं किन अद्भुत शक्तियों के साथ हमारे सहायतार्थ बनेंगे?(सामवेद 2.6.5)
Hey Devraj Indr making continuous progress! Which offerings, worship procedures will make you helpful to us, with your amazing powers.
त्यमु वः सत्रासाहं विश्वासु गीर्ध्वायतम्। आ च्यावयस्यूतये॥
हे यज्ञकर्ताओं! अपनी सभी वाणियों में व्याप्त वन्दनाओं के द्वारा, अपनी रक्षा करने हेतु, दानवों पर विजय प्राप्त करने वाले देवराज इन्द्र का आवाहन करो।(सामवेद 2.6.6)
Hey Yagy performers! Recite prayers devoted to Devraj Indr for his invocation & victory over the demons.
सदसस्पतिमद्भुतं प्रियमिन्द्रस्य काम्यम्। सनिं मेधामयासिषम्॥
देवराज इन्द्र के प्रिय, इच्छुक पदार्थों को प्रदान करने में सक्षम, लोकों के अधिपति, अलौकिक बुद्धि (मेधा) को हमने प्राप्त किया।(सामवेद 2.6.7)
We have attained Devraj Indr Lord of the abodes, who is dear, capable to granting dear-desirable objects and divine intellect.
ये ते पन्था अधो दिवो येभिर्व्यश्वमैरयः। उत श्रोषन्तु नो भुवः॥
हे देवराज इन्द्र! द्युलोक से धरती की ओर वृद्धि करते हुए आपके मार्ग, जिनसे आप इस जगत् को गति प्रदान करते हैं, वे (मार्ग) हमारे याग करने के स्थान पर पहुँचते हैं, आप उन्हीं मार्गों के माध्यम से हमारे यज्ञ स्थल में उपस्थित हों।(सामवेद 2.6.8)
Hey Devraj Indr! Your routes-way, progressing from heavens to earth through which you accelerate the universe leading to the Yagy site. Come to the Yagy through those paths.
भद्रंभद्रं न आ भरेषमूर्ज शतक्रतो। यदिन्द्र मृडयासि नः॥
हे शतक्रतु देवराज इन्द्र! सुख प्रदान करने वाले अन्न-बल से युक्त वैभव आप हमें परिपूर्ण मात्रा में देने की कृपा करें; क्योंकि आपकी कृपा से ही हम सुखी होते हैं।(सामवेद 2.6.9)
Hey performer of hundred Yagy, Indr Dev! Grant us food grains, strength and grandeur in sufficient quantity; since we become comfortable due to your mercy-blessings only.
अस्ति सोमो अयं सुतः पिबन्त्यस्य मरुतः। उत स्वराजो अश्विना॥
हमारे (याज्ञिकों) द्वारा निष्पन्न किये हुए इस सोमरस का सेवन पराक्रमी मरुद्गण एवं अश्विनयुगल करते हैं।(सामवेद 2.6.10)
The Somras extracted-sanctified by us , the Yagyik is consumed by the invincible Marud Gan and Ashwani Kumars, duo.
सामवेद ऐन्द्रं पर्व (2.7) :: ऋषि :- देवजामय, इन्द्रमातर, गोधा, दध्यंगाथर्वण, प्रस्कण्व, गौतम, मधुच्छन्दा, वामदेव, वत्स, शुनःशेप, वातायान उल; देवता :- इन्द्र; छन्द :- गायत्री।
ईङ्खयन्तीरपस्युव इन्द्रं जातमुपासते। वन्वानासः सुवीर्यम्॥
श्रेष्ठ पराक्रम एवं कार्य की अभिलाषा करने वाली देवराज इन्द्र की माता, उत्पन्न हुए इन्द्र देवता की उपासना करती हैं।(सामवेद 2.7.1)
Desirous of excellent valour and endeavours, the mother of Devraj Indr, worship Indr Dev who has evolved.
न कि देवा इनीमसि न क्या योपयामसि। मन्त्रश्रुत्यं चरामसि॥
हे देवगणों! वैदिक मन्त्रों के आधार पर व्यवहार करने वाले हम याज्ञिक तुम्हारे विपरीत अर्थात् धर्म के विरुद्ध कोई कार्य नहीं करते हैं एवं न ही किसी को कोई नुकसान पहुँचाते हैं।(सामवेद 2.7.2)
Hey demigods-deities! We the Yagyik, do not behave against the Dharm, i.e., behave as per the Vaedik Mantr without harming any one.
दोषो आगाद् बृहद्गाय द्युमद्गामन्नाथर्वण। स्तुहि देवं सवितारम्॥
हे प्रकाश मार्ग के राहगीर अथर्व वेदीय विप्र! हे बृहत् नामक साम के गायक! हवन कार्य के विकारों को स्वच्छ करने हेतु सविता (स्वप्रकाशित) देवता का स्तुति गान करो।(सामवेद 2.7.3)
Hey Athrv Vediy, Vipr-Brahman, following the lightened route! Hey singer of Brahat Sam! For the purification of the Hawan related defects-impurities sing-recite the prayer for Savita Dev.
एषो उषा अपूर्व्या व्युच्छति प्रिया दिवः। स्तुषे वामश्विना बृहत्॥
यह हर्ष प्रदान करने वाली उषा स्वर्ग लोक से आकर रात के तिमिर को दूर कर प्रकाशित होती है। हे (उषा के कार्य में सहायता करने वाले) अश्वि युगलों! हम आपकी बृहद् (विशेष) वन्दना करते हैं।(सामवेद 2.7.4)
This Usha comes from the heavens and remove the darkness of night. Hey Ashwani Kumars duo, helping in the functions of Usha! We perform-conduct your Brahat worship.
इन्द्रो दधीचो अस्थभिर्वृत्राण्यप्रतिष्कुतः। जघान नवतीर्नव॥
कभी न परास्त होने वाले देवराज इन्द्र ने दधीचि की अस्थियों के द्वारा (निर्मित वज्र के माध्यम से) असंख्य दानवों का सर्वनाश किया।(सामवेद 2.7.5)
Invincible-never defeated Indr Dev, destroyed numerous demons with the Vajr made of the bones of Dadhichi Rishi.
इन्द्रेहि मत्स्यन्धसो विश्वेभिः सोपर्वभिः। महाँ अभिष्टिरोजसा॥
हे इन्द्र देवता! अन्नरूपी सम्पूर्ण सोमरस द्वारा आप आनन्दित होते हैं। आप महान् हैं तथा हमारे सारे ऐच्छिक फलों को देने वाले हैं। आप हमारे यहाँ पधारें तथा (सोमरस का सेवन करके) अपने पराक्रम से दुर्जन शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने का सामर्थ्य प्राप्त करें।(सामवेद 2.7.6)
Hey Indr Dev! You gladden with the Somras as food grains. You are grant-award us desired rewards. Come to our house and sip Somras; there after attain the capability of winning the wicked enemies with your valour.
आ तू न इन्द्र वृत्रहन्नस्माकमर्थमा गहि। महान्महीभिरूतिभिः॥
हे वृत्र संहारक इन्द्र! आप महान् बनकर रक्षा करने के अनेकों साधनों के साथ हमारे समीप पधारें।(सामवेद 2.7.7)
Hey slayer of Vratr, Indr Dev! Become great and come to us with several protection means.
ओजस्तदस्य तित्विष उभे यत्समवर्तयत्। इन्द्रश्चर्मेव रोदसी॥
देवराज इन्द्र का वह तेज चमक उठा है, जिसको वह स्वर्गलोक से भूलोक तक चर्म के सदृश प्रसारित कर देते हैं।(सामवेद 2.7.8)
Tej-aura of Indr Dev is shinning, which is transmitted by him to the earth through the heavens, like skin (protective layer).
अयमु ते समतसि कपोत इव गर्भधिम्। वचस्तच्चिन्न ओहसे॥
हे देवराज इन्द्र! जिस प्रकार कबूतर गर्भ धारण करने वाली कबूतरी के संग निरंतर बना रहता है, उसी प्रकार आपके पान करने के उद्देश्य से तैयार किये गये सोमरस के समीप आप जाते हैं एवं हमारे स्तवन को ध्यानपूर्वक श्रवण करते हैं।(सामवेद 2.7.9)
Hey Devraj Indr! The manner in which a pigeon remain with the female pigeon when she is pregnant, similarly you move to the Somras extracted for you and listen to our prayers.
वात आ वातु भेषजं शम्भु मयोभु नो हृदे। प्र न आयूंषि तारिषत्॥
हे परमेश्वर! हमारे हृदय के लिए शान्ति प्रदान करने वाली एवं सुख देने वाली औषधियों को वायु देव (पूषा) हमारे समीप ले आएँ। ये औषधियाँ हमें शतायु प्रदान करें।(सामवेद 2.7.10)
Hey Almighty-Parmeshwar! Let Pusha-Vayu Dev bring the medicines (Jadi-Buti, herbs) granting solace-peace and pleasure-comforts to us. Let these medicine grant us a life extending to hundred years.(13.11.2025)
सामवेद ऐन्द्रं पर्व (2.8) :: ऋषि :- कण्व, वत्स, श्रुतकक्ष, मधुच्छंदा, वामदेव, इरिम्बिठि, वारुणि, सत्यधृति; देवता :- इन्द्र; छन्द :- गायत्री।
यं रक्षन्ति प्रचेतसो वरुणो मित्रो अर्यमा। न किः स दभ्यते जनः॥
जिस याजिक को श्रेष्ठ ज्ञान से युक्त वरुण, मित्र एवं अर्थमा देवता गण का रक्षण प्राप्त हो, उसे कोई भी नुकसान नहीं पहुँचा सकता है।(सामवेद 2.8.1)
The Yagyik who is under protection of enlightened Varun, Mitr & Aryma Dev Gan can not be harmed by any one.
ग व्यो षु णो यथा पुराश्वयोत रथया। वरिवस्या महोनाम्॥
हे देवराज इन्द्र! आप सर्वदा की भाँति हमें श्रेष्ठ गायों, अति उत्तम अश्वों से युक्त रथ एवं सम्मानित धन प्रदान करने की कामना से हमारे समीप पदार्पण करें।(सामवेद 2.8.2)
Hey Devraj Indr! Come to us to grant us best cows, charoite deploying excellent horses and wealth.
इमास्त इन्द्र पृश्नयो घृतं दुहत आशिरम्। एनामृतस्य पिप्युषीः॥
हे देवराज इन्द्र! आपकी ये गाएँ सत्य स्वरूप याग का विस्तार करने वाली हैं। ये गाएँ हमें घी एवं दुग्ध देती है।(सामवेद 2.8.3)
Hey Devraj Indr! Your cows are the propagator of Truthful Yagy, They grant us ghee and milk.
अया धिया च गव्यया पुरुणामन्पुरुष्टुत। यत्सोमेसोम आभुवः॥
हे अनेकों नामों से चर्चित, अनेक लोगों द्वारा गुणगान करने योग्य देवराज इन्द्र! हर एक सोमयज्ञ में जहाँ आप जाते हैं, वहाँ गायों की अभिलाषा रखने वाली बुद्धि से हम आपकी उपासना करते हैं।(सामवेद 2.8.4)
Hey praise worthy Indr Dev, famous with several names! We worship you with the desire of cows in every Som Yagy visited by you.
पावकाः न सरस्वती वाजेभिर्वाजिनीवती। यज्ञं वष्ट्टु धियावसुः॥
पावन करने वाली, अन्न प्रदान करने वाली, बुद्धिमानी से धन प्रदान करने वाली वीणा वादिनी, ज्ञान एवं कर्म से हमारे यज्ञ को सार्थक बनायें।(सामवेद 2.8.5)
Let purifying, food & wealth granting Veena Vadini-Maa Saraswati; make our Yagy successful with knowledge and endeavours.
क इमं नाहुषीष्वा इन्द्रं सोमस्य तर्पयात्। स नो वसून्या भरात्॥
मनुष्य जनों में ऐसा कौन है, जो इन देवराज इन्द्र को संतुष्ट कर सके? वे इन्द्र देवता हमारे यज्ञ में पधारें एवं हमें धन, वैभव देने की कृपा करें।(सामवेद 2.8.6)
Who amongest the humans is there to satisfy Devraj Indr! Let Indr Dev invoke in our Yagy and grant us wealth and grandeur.
आ याहि सुषुमा हि त इन्द्र सोमं पिबा इमम्। एदं बर्हिः सदो मम॥
हे देवराज इन्द्र! आप हमारे इस हवन में उपस्थित हों। अपने तृप्ति प्राप्त करने हेतु निकाले गये इस सोमरस को ग्रहण कर अत्यन्त उत्तम कुश पर विराजमान हों।(सामवेद 2.8.7)
Hey Devraj Indr! Invoke in our Hawan. Occupy the excellent Kush cushion to drink the Somras sanctified for your satiation-satisfaction.
महि त्रीणामवरस्तु द्युक्षं मित्रस्यार्यम्णः। दुराधर्षं वरुणस्य॥
मित्र, वरुण एवं अर्यमा इन तीनों देवताओं का एक साथ मिला हुआ ओजयुक्त महान् संरक्षण हमें प्राप्त हो, जिससे हम अन्य लोगों को परास्त करने में सक्षम हों।(सामवेद 2.8.8)
We should have asylum accompanied with aura-radiance, together of Mitr, Varun and Aryma, the three demigods, so that we are able to defeat others.
त्वावतः पुरुवसो वयमिन्द्र प्रणेतः। स्मसि स्थातर्हरीणाम्॥
हे सम्पूर्ण संपदाओं के अधिष्ठाता, अति उत्तम कर्म करने वाले, अश्वों पर बैठे हुए देवराज इन्द्र! आप हमारी रक्षा करें, जिससे हम सभी प्रकार से सुरक्षित रह सकें।(सामवेद 2.8.9)
Hey Lord of all wealth-grandeur, performing excellent deeds, riding horses, hey Indr Dev! Protect us so that we are safe in every manner.
सामवेद ऐन्द्रं पर्व (1.9) :: ऋषि :- प्रगाथ, विश्वामित्र, वामदेव, श्रुतकक्ष, आंगिरस मधुच्छन्दा, गृत्समद, भरद्वाज; देवता :- इन्द्र; छन्द :- गायत्री।
उत्त्वा मन्दन्तु सोमाः कृणुष्व राधो अद्रिवः। अव ब्रह्मद्विषो जहि॥
हे देवराज इन्द्र! यह सोमरस आपको सुख देने वाला हो। हे वज्रधारी देवराज इन्द्र! आप हमें धन-वैभव से परिपूर्ण कर ज्ञान से शत्रुता का भाव रखने वाले लोगों का हनन कर दें।(सामवेद 2.9.1)
Hey Devraj Indr! Let this Somras grant you pleasure-comforts. Hey Vajr wielding Indr Dev!! Accomplish-enrich us with wealth & grandeur and destroy those who are the enemy of learning-knowledge.
गिर्वणः पाहि नः सुतं मधोर्धाराभिरज्यसे। इन्द्र त्वादातमिद्यश:॥
हे स्तुत्य देवराज इन्द्र आप हमारे द्वारा शुद्ध करे सोमरस का सेवन करें, क्योंकि आप इस उल्लास से युक्त सोमरस की धाराओं के माध्यम सिंचित होते हैं। आपकी अनुकम्पा से ही हमें कीर्ति प्राप्त होती है।(सामवेद 2.9.2)
Hey worshipable Devraj Indr! Drink this sanctified Somras, since you are nourished-nurtured through the currents of Somras full of glee-frolic. Your blessings-mercy grant us fame.
सदा व इन्द्रश्चर्कृषदा उयो न स सपर्यन। न देवो यतः शूर इन्द्रः॥
हे याजकों! ये देवराज इन्द्र तुम्हारी सहायता करने हेतु हमेशा तैयार रहते हैं। वे आराधना करने के साथ ही तुम्हारे हवन की ओर उत्कंठित होते हैं। इसी प्रकार के महापराक्रमी देवराज इन्द्र हमारे द्वारा आराध्य है।(सामवेद 2.9.3)
उत्कंठित :: चिंतित, व्यग्र: eager anxious.
Hey Yajak Gan! Devraj Indr is always ready to help you. He become eager-anxious for your Yagy with the performance of prayers. Redoubtable-mighty Indr Dev is worshiped by us.
आ त्वा विशन्त्विन्दवः समुद्रमिव सिन्धवः। न त्वामिन्द्राति रिच्यते॥
हे देवराज इन्द्र! जिस प्रकार नदियाँ समुद्र में जाकर मिल जाती है, उसी प्रकार सोमरस आपके भीतर समा जाता है। हे इन्द्र! आपसे अधिक बढ़कर और कोई देव नहीं है।(सामवेद 2.9.4)
Hey Devraj Indr! The way the river merge with the ocean, Somras is absorbed-soaked by your body. Hey Indr Dev! No other demigod-deity is comparable to you.
इन्द्रमिद्गाथिनो बृहदिन्द्रमर्केभिरर्किणः। इन्द्रं वाणीरनूषत॥
सामगान के गायकों ने, गाये जाने योग्य, बृहत् (लंबे-चौड़े) साम की स्तुतियों के माध्यम से इन्द्र देव को हर्षयुक्त किया है। इसी प्रकार याजको ने भी वैदिक मन्त्रोच्चारण के माध्यम से देवराज इन्द्र की उपासना की है।(सामवेद 2.9.5)
Singers of Sam Gan gladdened Indr Dev with the long-vast prayers-Stuties. Similarly the Yajak Gan worshiped Indr Dev with Mantropchar-recitation of Mantr.
इन्द्र इषे ददातु न ऋभुक्षणमृभुं रयिम्। वाजी ददातु वाजिनम्॥
महान् शक्तिशाली देवराज इन्द्र हमें अति उत्तम धन से सर्वदा परिपूर्ण बनाये रखें। अन्न प्राप्त करने हेतु हमें मेधावी उत्तराधिकार (पुत्र) देने की कृपा करें। हे शक्तिशाली इन्द्र द्रेव! हमें बलवान् बनायें।(सामवेद 2.9.6)
Great & mighty Indr Dev should always keep us replete with excellent wealth-riches. Grant us intelligent sons for accepting food grains. Hey mighty-powerful Indr Dev! Make us strong.
इन्द्रो अङ्ग महद्भयमभी षदप चुच्यवत्। स हि स्थिरो विचर्षणिः॥
संग्राम में अचल रहने वाले विश्व द्रष्टा देवराज इन्द्र, महान् आतंक को अति शीघ्र दूर करते हैं और उन्हें स्थाई रूप से हटा देते हैं।(सामवेद 2.9.7)
During war always unmoved, watching the universe, Devraj Indr remover terror quickly and remove it permanently.
इमा उ त्वा सुतेसुते नक्षन्ते गिर्वणो गिरः। गावो वत्सं न धेनवः॥
हे आराध्य देवराज इन्द्र! जैसे दूध प्रदान करने वाली गायें अपने बछड़ों के निकट स्वयं ही चली जाती है, वैसे ही हर हवन में हमारे द्वारा की गई वन्दनाएं आपके समीप पहुँच जाती हैं।(सामवेद 2.9.8)
Hey worshiped deity Devraj Indr! The way the cows themselves move to the calf for feeding them, our prayers automatically reach you in every Hawan.
इन्द्रा नु पूषणा वयं सख्याय स्वस्तये। हुवेम वाजसातये॥
हम अनाज प्राप्त करने की अभिलाषा से, अपने कल्याण हेतु मित्रता के निमित्त इन्द्र एवं पूषा (वायु) देवताओं को स्तुतियों के माध्यम से आवाहित करते हैं।(सामवेद 2.9.9)
With the desire of food grains we invoke Indr & Push (Vayu Dev) with Stuties.
न कि इन्द्र त्वदुत्तरं न ज्यायो अस्ति वृत्रहन्। न क्येवं यथा त्वम्॥
हे शत्रुओं का हनन करने वाले देवराज इन्द्र! आपसे ज्यादा श्रेष्ठ एवं महान् अन्य कोई देवता नहीं हैं। आपके समतुल्य दूसरा और कोई भी नहीं है।(सामवेद 2.9.10)
Hey destroyer of the enemies Devraj Indr! No other deity is better & greater than you. None equals you.(14.11.2025)
सामवेद ऐन्द्रं पर्व (2.10) :: ऋषि :- त्रिशोक, मधुच्छन्दा, वत्स, सुकक्ष, वामदेव, विद्यामित्र गोपूक्त्यश्वसूक्तिनौ, श्रुतकक्ष अथवा सुरुक्षा; देवता :- इन्द्र; छन्द :- गायत्री।
तरणिं वो जनानां त्रदं वाजस्य गोमतः। समानमु प्र शंसिषम्॥
हे मनुष्यों! विपत्तियों में पड़े लोगों को मुक्त कराने वाले, शत्रुओं को डराने वाले, पशुधन के माध्यम से युक्त अन्न प्रदान करने वाले, प्रगति की ओर बढ़ने वाले देवराज इन्द्र का हम स्तवन करते हैं।(सामवेद 2.10.1)
Hey humans! We worship Devraj Indr who release the troubled, create terror-fear for the enemy, grant food grains through the animals, push us to progress.
असृग्रमिन्द्र ते गिरः प्रति त्वामुदहासत। सजोषा वृषभं पतिम्॥
हे देवराज इन्द्र! आपकी वन्दना करने हेतु हम लोगों ने स्तुत्यात्मक श्लाकों (स्तात्रों) का निर्माण किया है। पराक्रमी एवं मनुष्यों के पालनकर्ता देवराज इन्द्र, इन स्तुतियों से हमने आपकी अभ्यर्थना की है, जिसको आपने स्वीकार किया है।(सामवेद 2.10.2)
Hey Devraj Indr! We have created-written Shlok for you worship. Nurturer of the invincible-brave humans Devraj Indr has accepted our prayers.
सुनीथो घा स मों यं मरुतो यमर्यमा। मित्रास्पान्त्यद्रुहः॥
हिंसा से रहित मरुत्, मित्र एवं अर्यमा, जिस मनुष्य को संरक्षण प्रदान करते हैं, वह मनुष्य अवश्य रूप से अति उत्तम मार्ग पर चलने वाला होता है।(सामवेद 2.10.3)
The humans who are granted asylum by Marud Gan, Mitr and Aryma who are free from violence, moves over excellent path.
यद्वीडाविन्द्र यत्स्थिरे यत्पर्शाने पराभृतम्। वसु स्पार्हं तदा भर॥
हे देवराज इन्द्र! पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष) से प्राप्त किया हुआ स्थिर तथा शक्तिशाली स्तम्भ प्रदान कराने वाला श्रेष्ठ धन, जो आपके निकट है, वह हमें प्राप्त कराने की कृपा करें।(सामवेद 2.10.4)
Hey Devraj Indr! Help us attain the wealth you have, which awards might and support and is generated through efforts (labour, endeavours), Dharm, Arth, Kam & Moksh.
श्रुतं वो वृत्रहन्तमं प्र शर्धं चर्षणीनाम्। आशिषे राधसे महे॥
हे ऋत्विजों! आपने वृत्रहन्ता-पराक्रम की महिमा सुनी ही है। मानव मात्र को अति उत्तम धन प्राप्त कराने की अभिलाषा के फलस्वरूप वह महान् पराक्रम आपको प्रयोग करने हेतु प्रदान करता हूँ।(सामवेद 2.10.5)
Hey Ritviz! You have heard the glory of Vratr slaying. I grant desirous humans great courage-might for the attainment of excellent wealth.
अरं त इन्द्र श्रवसे गमेम शूर त्वावतः। अरं शक्र परेमणि॥
हे शूरवीर देवराज इन्द्र! आपकी कीर्ति को हमने बहुत बार श्रवण किया है। हे बलशाली देवराज इन्द्र! आपके सदृश महान् देवताओं के सन्निकट रहकर हम प्रफुल्लित हों।(सामवेद 2.10.6)
Hey brave-invincible Devraj Indr! We have heard your fame several times. Hey mighty Devraj Indr! Let us gladden in your proximity.
धानावन्तं करम्भिणमपूपवन्तमुक्थिनम्। इन्द्र प्रातर्जुषस्व नः॥
हे देवराज इन्द्र! दही एवं घी युक्त जौ के सत्तू से मिश्रित पुओं की हवि को मन्त्रों के उच्चारण के साथ हम आपको अर्पित करते हैं, आप प्रातः इसे स्वीकारें।(सामवेद 2.10.7)
पुआ :: Dough mixed with sugar is fried in Ghee.
Hey Devraj Indr! We offer you fried dough mixed with sugar in Ghee, curd, Ghee and roasted barley with recitation of Mantr, please accept them.
अपां फेनेन नमुचेः शिर इन्द्रोदवर्तयः। विश्वा यदजय स्पृधः॥
युद्ध करने वाले सभी लोगों को परास्त करने के पश्चात् देवराज इन्द्र ने नमुचि नामक राक्षस के सिर को पानी के फेन (समुद्र झाग औषधि) से निर्मित शस्त्र से तोड़ डाला।(सामवेद 2.10.8)
Devraj Indr defeated all those who were fighting war and then smashed the head of Namuchi, a demon with the weapon made from the foam of ocean.
इमे त इन्द्र सोमाः सुतासो ये च सोत्वाः। तेषां मत्स्व प्रभूवसो॥
हे महान् वैभवशाली देवराज इन्द्र! यह सोमरस आपके पान करने हेतु शुद्ध करके तैयार किया गया है। आप इस शोधित सोमरस का सेवन करके प्रफुल्लित हों।(सामवेद 2.10.9)
Hey glorious Devraj Indr! This Somras has been prepared for you to drink. Drink this sanctified Somras and gladden.
तुभ्यं सुतासः सोमाः स्तीर्णं बर्हिर्विभावसो। स्तोतृभ्य इन्द्र मृडय॥
हे वैभव से युक्त देवराज इन्द्र! आपके ग्रहण करने के निमित्त यह सोमरस कुश पर प्रतिस्थापित है। हे देवराज इन्द्र। इस पावन कुश-आसन पर विराजमान होकर सोमरस का सेवन करने की कृपा को एवं याजकों को हर्षयुक्त करें।(सामवेद 2.10.10)
Hey Devraj Indr possessing grandeur! This Kush cushion has been laid for you to occupy and drink Somras. Make the Yajak Gan happy by sitting over it and drinking Somras.
सामवेद ऐन्द्रं पर्व (1.11) :: ऋषि :- शुनःशेप, श्रुतकक्ष, त्रिशोक, मेधातिथि, गौतम, ब्रह्मातिथि, विश्वामित्र, जमदग्नि या प्रस्कण्व; देवता :- इन्द्र; छन्द :- गायत्री।
आ व इन्द्रं कृविं यथा वाजयन्तः शतक्रतुम्। मंहिष्ठं सिञ्च इन्दुभिः॥
जिस तरह अनाज की अभिलाषा करने वाले मनुष्य कृषि कार्य में संलग्न भूमि की जल से सिंचाई करते हैं, उसी प्रकार हम पराक्रम की इच्छा वाले याजक उन महान् देवराज इन्द्र को सोमरस के द्वारा सींचते हैं।(सामवेद 2.11.1)
The way we humans desirous of food grains irrigate the land, we too satiate Indr Dev by feeding him with Somras desiring courage-might.
अतश्चिदिन्द्र न उपा याहि शतवाजया। इषा सहस्त्रवाजया॥
हे देवराज इन्द्र! असंख्य प्रकार के बल से सम्पन्न हजारों प्रकार के पोषण प्रदान करने वाले पदार्थों एवं रसों के साथ, आप अन्तरिक्ष (पृथ्वी एवं स्वर्ग के बीच का स्थान) से हमारे यज्ञ में उपस्थित हों।(सामवेद 2.11.2)Hey Devraj Indr! Join our Yagy with hundred kinds of strength, nourishing materials and saps from the space between the heavens and earth.
आ बुन्दं वृत्रहा ददे जातः पृच्छाद्विमातरम्। क उग्राः के ह श्रृण्विरे॥
उत्पन्न होते ही शर हस्त में लेकर वृत्र नामक असुर का संहार करने वाले देवराज इन्द्र ने अपनी माता से पूछा, कि दूसरे श्रेष्ठ वीर कौन-कौन से प्रसिद्ध हैं?(सामवेद 2.11.3)
With his birth Indr Dev, who later killed Vratr the demon, held arrow in his hand and asked his mother that who were other famous great warriors?
वृबदुक्थं हवामहे सृप्रकरस्नमूतये। साधः कृण्वन्तमवसे॥
संसार में बसे समस्त लोगों के संरक्षण हेतु अपने हाथों को पसारे, साधनों के साथ तत्पर देवराज इन्द्र को हम अपनी रक्षा करने हेतु आवाहित करते हैं।(सामवेद 2.11.4)
We spread our palms for the protection of all humans and invoke Devraj Indr who is ready with his means of protection.
ऋजुनीती नो वरुणो मित्रो नयति विद्वान्। अर्यमा देवैः सजोषाः॥
विवेक से परिपूर्ण मित्र एवं वरुण देवता हमें सहज विधि वाले मार्ग पर अग्रसर करते हैं। देवताओं के साथ गमन करने वाले अर्यमा हमें सहज पथ से प्रगतिशील बनायें।(सामवेद 2.11.5)
Full of prudence Mitr & Varun Dev make us move forward with easy movement. Let Aryma who move with demigods make our journey progressive via simple path.
दूरादिहेव यत्सतोऽरुणप्सुरशिश्वितत्। वि भानुं विश्वथातनत्॥
दूर से निकट आने वाली उषा की लालिमा, जब दिखाई पड़कर अपनी किरणों को चारों ओर प्रसारित करती है, तब उसके तेज से सम्पूर्ण जगत् आलोकित हो जाता है।(सामवेद 2.11.6)
The whole universe-world is illuminated by the reddish light of Usha-dawn in all directions.
आ नो मित्रावरुणा घृतैर्गव्यूतिमुक्षतम्। मध्वा रजांसि सुक्रतू॥
हे मित्रा-वरुण! हमारी गायों (ज्ञानेन्द्रियों) को घी (प्रेम) से परिपूर्ण करें तथा त्रिलोक को भी अत्यन्त उत्तम रसों (भावों) से सींचें।(सामवेद 2.11.7)
Hey Mitra-Varun! Nurture our cows (sense organs) with Ghee (love) and in addition nourish the three abodes with best saps.(15.11.2025)
उदु त्ये सूनवो गिरः काष्ठा यज्ञेष्वत्नत। वाश्रा अभिजु यातवे॥
शब्दनाद करने वाले मरुतों ने यज्ञार्थ जल को निःसृत किया। बहते हुए पानी को पीने के लिए रैभाती गाएँ, घुटने तक जल में जाने हेतु आदिष्ट रहती है। (सामवेद 2.11.8)
निःसृत :: बाहर आया हुआ; discharged.
Marud Gan making sound released water. The cows move to running water for drinking till their knees are submerged in it.
इदं विष्णुर्वि चक्रमे त्रेधा नि दधे पदम्। समूढमस्य पांसुले॥
इस संसार को भगवान् विष्णु (वामन) देवता ने तीन पग में नाप लिया। उनके धूल से युक्त पग में सम्पूर्ण विश्व समाया हुआ है। (सामवेद 2.11.9)
Bhagwan Shri Hari Vishnu covered the whole universe as Vaman Avtar in just three steps. His foot full of dust pervade the entire universe.
सामवेद ऐन्द्रं पर्वणि पर्व (2.12) :: ऋषि :- मेधातिथि, वामदेव, प्रियमेध, विश्वामित्र, कौत्स दुर्मित्र, सुमित्र व गथिनोऽमीपाद् उदलो या श्रुतकक्ष; देवता :- इन्द्र; छन्द :- गायत्री।
अतीहि मन्युषाविणं सुषुवांसमुपेरय। अस्य रातौ सुतं पिब॥
हे देवराज इन्द्र! जो याजक क्रोध से युक्त होकर सोमरस तैयार करता है, आप उस सोमरस का सेवन न करें। श्रेष्ठ विधि से जो याजक सोमरस निकालता है, आप उस याजक के हवन में जाकर सोमरस को ग्रहण करें।(सामवेद 2.12.1)
Hey Devraj Indr! Do not drink the Somras extracted by the Yajak in ager. Accept the Somras extracted by the Yajak with best procedures in the Hawan only.
कदु प्रचेतसे महे वचो देवाय शस्यते। तदिद्ध्यस्य वर्धनम्॥
देवराज इन्द्र की प्रशंसा करने वाले, हमारे तुच्छ से दृष्टिगोचर होने वाले स्तोत्रों से भी श्रेष्ठ ज्ञानी देवराज इन्द्र संतुष्ट होते हैं।(सामवेद 2.12.2)
Our Strotr sung in the honour of best scholar Devraj Indr satisfy him though they appear to be inferior.
उक्थं च न शस्यमानं नागो रयिरा चिकेत। न गायत्रं गीयमानम्॥
आराधना न करने वालों (आस्था रहित) के देवराज इन्द्र, बैरी हैं। याजकों द्वारा पढ़े गए स्तोत्रों को वे अच्छी तरह जानते हैं। सामवेद का गायन करने वालों (उद्गाता) के गान को भी वे श्रवण करते एवं समझते हैं।(सामवेद 2.12.3)
Devraj Indr is an enemy of those who are faithless and do not pray-worship. He is aware of the Strotr read by the Yajak Gan. He listen & understand the Sam Ved sung by the recitators.
इन्द्र उक्थेभिर्मन्दिष्ठो वाजानं च वाजपतिः। हरिवांत्सुतानां सखा॥
परम् शक्तिशाली, घोड़ों से सुशोभित देवराज इन्द्र सोमयज्ञ में याजकों के स्तुत्यात्मक श्लोकों से प्रफुल्लित होकर उनके सहयोगी बन जाते हैं।(सामवेद 2.12.4)
Extremely might, glorified by the horses Indr Dev gladden with the Shloks pertaining to prayers-worship sung by the Yajak Gan and become their accomplice.
Accomplice :: साथी, सह-अपराधी, सहकारी; cooperative, co-operative, accessary, associate, associatory.
आ याह्युप नः सुतं वाजेभिर्मा हृणीयथाः। महाँ इव युवजानिः॥
पत्नीव्रत धर्म को निभाने वाले वीर पुरुष की तरह, हे देवराज इन्द्र! आप हमारे ही सोमयज्ञ में उपस्थित होकर हविष्यान्त्र का सेवन करें। अन्य लोगों के (हीन पुरुषों के) अनाज पर दृष्टि न रखें।(सामवेद 2.12.5)
Hey Devraj Indr accomplishing Dharm-duties like the brave person devoted to his wife! Present your self in our Yagy and accept offerings of food grains etc. Do not look at the food grains of other people lie a person of low dignity.
कदा वसो स्तोत्रं हर्यत आ अव श्मशा रुधद्वाः। दीर्घ सुतं वाताप्याय॥
हे स्तोत्रों से आनन्दित होने वाले देवराज इन्द्र! जिस प्रकार नहरें निकालने हेतु पानी को बाँध के माध्यम से रोका जाता है, उसी तरह निकाले गये सोमरस को समर्पित करने हेतु आपको कब रोकें?(सामवेद 2.12.6)
Hey Devraj Indr gladdened with the Strotrs! The way water is blocked by building dams for water channels-canals, similarly how long should be stop you for serving Somras.
ब्राह्मणादिन्द्र राधसः पिबा सोममृतूरनु। तवेदं सख्यमस्तृतम्॥
हे देवराज इन्द्र! विधाता को जानने वाले याजक के बर्तन से, मित्र के सदृश ऋतुओं के अनुसार सोमरस का सेवन करें; क्योंकि आपकी मित्रता कभी न समाप्त होने वाली है।(सामवेद 2.12.7)
Hey Devraj Indr! Do not drink Somras offered through the pots of the Yajak who knows the creator and season like friends; since your friendship is ever lasting.
वयं घा ते अपि स्मसि स्तोतार इन्द्र गिर्वणः। त्वं नो जिन्व सोमपाः॥
हे गुणगान करने योग्य देवराज इन्द्र! हम आपके स्तोता हैं। हे सोमरस का पान करने वाले देवराज इन्द्र! आप हमें संतोष प्रदान करें।(सामवेद 2.12.8)
Hey Devraj Indr deserving appreciation! We are your Stotas. Hey consumer of Somras Devraj Indr! Grant us satisfaction.
एन्द्र पृक्षु कासु चिन्नृम्णं तनूषु धेहि नः। सत्राजिदुग्र पौंस्यम्॥
हे देवराज इन्द्र! यज्ञ-सम्बन्धी कार्य में उपयोग किये गये हमारे अंगों को बलशाली बना दें। हे शूरवीर देवराज इन्द्र! आप हमें एक साथ समस्त शत्रुओं को परास्त करने का पराक्रम प्रदान करें।(सामवेद 2.12.9)
Hey Devraj Indr! Make our organs devoted to Yagy related deeds strong-powerful. Hey brave Devraj Indr! Grant us might & power to eliminate all enemies together.
एवा ह्यसि वीरयुरेवा शूर उत स्थिरः। एवा ते राध्यं मनः॥
हे महाशक्तिशाली देवराज इन्द्र! आप युद्धभूमि में शत्रुओं को परास्त करने वाले, संग्राम में स्थिर रहने वाले शूरवीर हैं। आपका चित्त (संकल्पशील) प्रशंसनीय है।(सामवेद 2.12.10)
Hey highly powerful-mighty Devraj Indr! You are brave-invincible and defeat the enemies in the battle. Your innerself-psyche, determination deserve appreciation.(16.11.2025)
सामवेद ऐन्द्रं पर्वणि पर्व (3.13) :: ऋषि :- वसिष्ठ, भरद्वाज, बार्हस्पत्य, प्रस्कण्व, नोधा, कलि, प्रगाथ, मेधातिथि, भर्ग, कण्व; देवता :- इन्द्र, मरुत; छन्द-बृहती।
अभि त्वा शूर नोनुमोऽदुग्धा इव धेनवः।
ईशानमस्य जगतः स्वर्दृशमीशानमिन्द्र तस्थुषः॥
हे बलशाली देवराज इन्द्र! जगत् सृजेता, सब कुछ जानने वाले, आपके दर्शन हेतु हम उसी प्रकार उत्सुक है, जिस प्रकार बिना दुही हुई गाएँ अपने बछड़े के समीप जाने हेतु उत्सुक रहती हैं।(सामवेद 3.13.1)
Hey mighty Devraj Indr! You are creator of the world, knowing every thing. We are anxious to see you just like the un milked cow who wish to reach her calf.
त्वामिन्द्धि हवामहे सातौ वाजस्य कारवः। त्वां वृत्रेष्विन्द्र सत्पतिं नरस्त्वां काष्ठास्वर्वतः॥
हे देवराज इन्द्र! हम याजक आपको अनाज में बढ़ोत्तरी करने हेतु आमन्त्रित करते हैं। हे देवराज इन्द्र! बुद्धिमान् सज्जन पुरुष मुसीबत पड़ने पर सहायता करने हेतु आपको ही पुकारते हैं।(सामवेद 3.13.2)
Hey Devraj Indr! We the Yajak invoke-call you for increase in food grain stock. Intelligent & gentle person in trouble invoke-call you.
अभि प्र वः सुराधसमिन्द्रमर्च यथा विदे।
यो जरितृभ्यो मघवा पुरूवसुः सहस्त्रेणेव शिक्षति॥
हे मनुष्यों! वैभवशाली देवराज इन्द्र वन्दना करने वालों को अनेकों तरह के अति उत्तम धन देते हैं। इसीलिए श्रेष्ठ धन प्राप्त करने के लिए जिस तरह भी संभव हो सके उनकी आराधना करो।(सामवेद 3.13.3)
Hey humans! Glorious Devraj Indr on being worshiped-prayed grant several kinds of excellent wealth. Hence, pray to him for acquisition best wealth by all possible means.
तं वो दस्ममृतीषहं वसोर्मन्दानमन्धसः।
अभि वत्सं न स्वसरेषु धेनव इन्द्रं गीर्भिर्नवामहे॥
हे मनुष्यों! शत्रुओं से हमें संरक्षण प्रदान करने वाले, पराक्रमी, सोमरस से संतुष्ट होने वाले, देवराज इन्द्र की हम (हर्षपूर्वक) वैसे ही स्तुति करते हैं, जिस प्रकार गौशाला में गाएँ अपने बछड़ों के समीप जाने हेतु उल्लसित रहती हैं।(सामवेद 3.13.4)
Hey humans! We Gladly worship Devraj Indr, who grant us asylum, is brave-invincible, satisfies on drinking Somras just like the cows who are gladly anxious to reach their calf.
तरो भिर्वो विदद्वसुमिन्द्रं सबाध ऊतये।
बृहद्गायन्तः सुतसोमे अध्वरे हुवे भरं न कारिणम्॥
जिस प्रकार शिशु अपने माता-पिता को पुकारता है, उसी प्रकार हम अपने संरक्षक देवराज इन्द्र को सहायता करने हेतु आवाहित करते हैं। हे मनुष्यों! अपने संरक्षण हेतु सोमयज्ञ में वैभव प्रदान करने वाले, वेगवान् घोड़ों से युक्त देवराज इन्द्र की अर्चना करो।(सामवेद 3.13.5)
The way an infant calls his parents, similarly we invoke Devraj Indr for our safety. Hey humans! For your protection-safety worship Devraj Indr, who possess high speed horses, who grant grandeur in the Som Yagy.
तरणिरित्सिषासति वाजं पुरन्ध्या युजा।
आ व इन्द्रं पुरुहूतं नमे गिरा नेमिं तष्टेव सुनुवम्॥
(सांसारिक-बन्धनों को) पार करने में सक्षम याजक श्रेष्ठ बुद्धि के संयोग से विवेक बल प्राप्त करने की चेष्टा करते हैं। हे साधकों! आपके लिए देवराज इन्द्र की वन्दनाओं के द्वारा हम उसी प्रकार नमस्कार करने वाले बनते हैं, जिस प्रकार योग्य शिल्पकार अच्छी तरह चलने हेतु चक्र को (पहिये पर चढ़ायी जाने वाली धातु की पट्टी को झुकाकर) गोलाई देता है।(सामवेद 3.13.6)
Capable Yajak make efforts to cut the worldly bonds-ties by the combination of excellent intelligence. Hey practitioner! We salute and worship Devraj Indr just like the artisan who make the outer metal ring of wheel round.
पिबा सुतस्य रसिनो मत्स्वा न इन्द्र गोमतः।
आपिनों बोधि सधमाद्ये वृधे 3 S स्माँ अवन्तु ते धियः॥
हे देवराज इन्द्र! गौ के दुग्ध में मिश्रित, रस रूप में हमारे द्वारा शुद्ध किये गये सोमरस का आप सेवन करें एवं आनन्दित हो। एकजुट होकर किये गये कार्य में हमारे साथी बनकर हमें प्रगतिशील पथ दिखाएँ।(सा0मवेद 3.13.7)
साथी :: व्यक्ति, मित्र, सहचर, सहभागी, जोड़ीदार, हिस्सेदार, पति, साझी, साथी, संगी, यार; partner, fellow, companion.
Hey Devraj Indr! Enjoy the Somras sanctified and mixed with milk by us. Become over co worker-companion in the endeavours undertaken by us and show the progressive path.
त्वं होह्ये चेरवे विदा भगं वसुत्तये। उद्वावृषस्व मघवन् गविष्टय उदिन्द्राश्वमिष्टये॥
हे देवराज इन्द्र! हम श्रेष्ठ आचरण से युक्त होकर आपको बुलाते हैं। हे वैभवशाली देवराज इन्द्र! आप गौ, घोड़ा एवं उत्तम धन की अभिलाषा रखने वाली हमारी मनोकामनाओं की पूर्ति करें।(सामवेद 3.13.8)
Hey Devraj Indr! We acquire virtuous-righteous conduct and call you. Hey grandeur possessing Devraj Indr! Accomplish our desire for cows, horses and excellent wealth.
न हि वश्चरमं च न वसिष्ठः परिमंसते।
अस्माकमद्य मरुतः सुते सचा विश्वे पिबन्तु कामिनः॥
हे मरुद्गण! वसिष्ठ ऋषि आप में, जो छोटे हैं हम उनकी भी आराधना करते हैं। आप हमारे इस हवन में संगठित होकर आसन ग्रहण करें एवं सभी लोग सोमरस का सेवन करें।(सामवेद 3.13.9)
Hey Marud Gan! We worship Vashishth Rishi, who is younger than you. Come together in our Yagy, occupy cushion and drink Somras.
मा चिदन्यद्वि शंसत सखायो मा रिषण्यत।
इन्द्रमित्स्तोता वृषणं सचा सुते मुहुरुक्था च शंसतः॥
हे साधकों! देवराज इन्द्र के अलावा और किसी की वन्दना करके व्यर्थ परिश्रम मत करो। इस सोमयज्ञ में एकजुट होकर पराक्रमी देवराज इन्द्र की वन्दना करने हेतु स्तोताओं से बारम्बार कहो।(सामवेद 3.13.10)
Hey practitioners! Do not waste efforts in the worship any one else except Devraj Indr. Ask the Stotas to worship Devraj Indr together in this Som Yagy repeatedly.
सामवेद ऐन्द्रं पर्वणि पर्व (3.14) :: ऋषि :- आंगिरस, तुरुहन्मा, मेधातिथिर्मेध्यातिथिश्व, विश्वामित्र, गौतम, नृमेधपुरुमेधौ, मेधातिथि, देवातिथि, कण्व; देवता :- इन्द्र; छन्द :- बृहती।
नकिष्टं कर्मणा नशद्यश्चकार सदावृधम्। इन्द्रं न यज्ञैर्विश्वगूर्तमृध्वसमधृष्टं धृष्णुमोजसा॥
महा पराक्रमी, स्तुति करने योग्य, समृद्ध, अजेय, शत्रुओं का शमन करने वाले देवराज इन्द्र को जो याजक यागादि से अपना सहचर (साथी) बना लेता है, उस याजक के उत्तम कृत्यों की कोई बराबरी नहीं कर सकता।(सामवेद 3.14.1)
Mighty, brave invincible, worship deserving, prosperous, destroyer of the enemy Devraj Indr is made a companion by the Yajak in the Yagy etc. None can compare such Yajak with his excellent-virtuous deeds.
य ऋते चिदभिनिषः पुरा जत्रुभ्य आतृदः।
सन्धाता सन्धिं मघवा पुरूवसुर्निष्कर्ता विहुतं पुनः॥
जो देवराज इन्द्र कण्ठ के स्नायुओं से रुधिर निकलने पर बिना सामग्री के ही सन्धियों को संयुक्त कर देते हैं, वे वैभवशाली देवराज इन्द्र कटे हुए अंगों को भी फिर से संयुक्त कर देते हैं।(सामवेद 3.14.2)
Grandeur possessing Devraj Indr who stops the blood oozing out of muscles of the throat without any material, join the organs cut from the body.(17.11.2025)
आ त्वा सहस्त्रमा शतं युक्त रथे हिरण्यये।
ब्रह्मयुजो हरय इन्द्र केशिनो वहन्तु सोमपीतये॥
हे इन्द्र (सूर्य) देव! सोने के रथ में (ब्रह्म युक्त) मन्त्र के प्रभाव से संयुक्त हो जाने वाले सैकड़ों-असंख्यों उत्तम अश्व (रश्मियो) सोमरस का सेवन करने हेतु आपको लेकर आएँ।(सामवेद 3.14.3)
Hey Indr (Sury)! Let hundreds-infinite (horses) rays bring you to drink Somras riding over the Golden charoite (possessing Brahm).
आ मन्दैरिन्द्र हरिभिर्याहि मयूररोमभिः।
मा त्वा के चिन्नि येमुरिन्न पाशिनोऽति धन्वेव ताँ इहि॥
जिस प्रकार राहगीर मरुभूमि को शीघ्र बिना विश्राम किये पार कर जाते हैं, उसी तरह हे देवराज इन्द्र! हर्ष प्रदान करने वाले मयूर के पंखों के सदृश रोमयुक्त अश्वों (सात रंग से युक्त मनोहर रश्मियों) के साथ रास्ते की बाधाओं को दूर करते हुए आप पधारें। जाल फैलाने वाले (व्याघ्र) आपके मार्ग में बाधा उत्पन्न न कर सकें।(सामवेद 3.14.4)
The way the passengers cross the desert-arid regions without trouble-tension, hey Devraj Indr! Come to grant pleasure like the feathers of peacock horses possessing bristles (seven colours of attractive rays of light) removing obstacles on the way. The hunters who lay net-trap on the way, should not create trouble-obstacles for you.
त्वमङ्ग प्र शंसिषो देवः शविष्ठ मर्त्यम्। न त्वदन्यो मघवन्नस्ति मर्डितेन्द्र ब्रवीमि ते वचः॥
हे स्तुत्य शक्तिशाली देवराज इन्द्र! आप अपने बल से पराक्रमी बनकर याजक का गुणगान करते है। हे वैभवशाली देवराज इन्द्र! आपके अतिरिक्त दूसरे कोई देवता सुख प्रदान करने वाले नहीं है, इसीलिए हम आपकी स्तुति कर रहे हैं।(सामवेद 3.14.5)
Hey worshipable mighty Devraj Indr! You sing the glory of the Yajak by virtue of your might-valour. Hey Devraj Indr possessor of grandeur! No other demigod-deity can grant pleasure-comfort to us, hence we are worshiping you.
त्वमिन्द्र यशा अस्पृजीषी शवसस्पतिः।
त्वं वृत्राणि हंस्यप्रतीन्येक इत्पुर्वनुत्तश्चर्षणीधृतिः॥
हे देवराज इन्द्र! आप महा पराक्रमी, सोमरस का पान करने वाले एवं ऐश्वर्यमान हैं। आप मनुष्य मात्र की भलाई हेतु अत्यधिक शक्तिशाली शत्रुओं का बगैर किसी के सहयोग के अकेले ही शमन करने में सक्षम है।(सामवेद 3.14.6)
Hey Devraj Indr! You are mighty, drinker of Somras and has grandeur. You are capable of destroying mighty enemies alone without the help of anyone for the sake of humans.
इन्द्रमिद्देवतातय इन्द्रं प्रयत्यध्वरे। इन्द्रं समीके वनिनो हवामह इन्द्रं धनस्य सातये॥
ईश्वरीय प्रयोजनों हेतु किये गये याग में हम याज्ञिक लोग, जिस तरह याग के प्रारम्भ एवं उसके अन्त होने के समय तक देवराज इन्द्र को ही मन्त्रों द्वारा आमंत्रित करते हैं, उसी प्रकार धन प्राप्त करने की अभिलाषा से भी हम देवराज इन्द्र को ही बुलाते हैं।(सामवेद 3.14.7)
The way we the Yajak Gan remain busy with the eternal efforts during the Yagy since beginning to accomplishment and invoke Devraj Indr with the recitation of Mantrs; similarly we invoke Devraj Indr for the sake of wealth.
इमा उ त्वा पुरूवसो गिरो वर्धन्तु या मम।
पावकवर्णाः शुचयो विपश्चितोऽभिस्तोमैरनूषत॥
हे वैभवशाली देवराज इन्द्र! हमारी वन्दनाएँ आपके यश में वृद्धि करें। अग्नि के सदृश तेजस्वी, ज्ञानी याजक स्तोत्रों से आपकी आराधना करते हैं।(सामवेद 3.14.8)
Hey prosperous-possessor of grandeur Devraj Indr! Let our prayers boost your glory. Enlightened Yajak who are energetic (Tejaswi) like Agni worship you.
उदु त्ये मधुमत्तमा गिर स्तोमास ईरते।
सत्राजितो धनसा अक्षितोतयो वाजयन्तो रथा इव॥
राक्षसों पर विजय प्राप्त करने वाले, धन के स्वामी, रक्षा करने में सक्षम, वेगवान् रथ के सदृश उमंग प्रदान करने वाले स्तोत्रों का विधिवत् उच्चारण किया जाता है।(सामवेद 3.14.9)
उमंग :: पदोन्नति, उल्लास, उत्साह, जोश, राग; enthusiasm, exaltation, exultation.
The Strotrs which grant victory over the demons, are the Lord of wealth, capable of protection, accelerated like a charoite granting enthusiasm are recited following procedures.
यथा गौरो अपा कृतं तृष्यन्नेत्यवेरिणम्।
आपित्वे नः प्रपित्वे तूयमा गहि कण्वेषु सु सचा पिब॥
हे देवराज इन्द्र! प्यासे गौर रंग के पशु जिस प्रकार जल से युक्त सरोवर के पास पहुँचते हैं, उसी तरह हे देवराज इन्द्र! आप सहचर (अनुकूल) होकर हमारे इस काण्व के याग में उग्र गति से पधारे एवं सोमरस का पान करके संतुष्ट हों।(सामवेद 3.14.10)
Hey Devraj Indr! The way thirsty animals of fair colour reach the water reservoirs, similarly, you should become favourable to us & come to the Yagy of Kavy with fast speed and drink Somras.
सामवेद ऐन्द्रं पर्वणि पर्व (3.15) :: ऋषि :- भर्ग, रेभ, कश्यप, जमदग्नि, मेधातिथि, नृमेधपुरुमेघौ वसिष्ठ, भरद्वाज; देवता :- इन्द्र, मित्रावरुणादित्या; छन्द :- बृहती।
शग्ध्यू3षु शचीपत इन्द्र विश्वाभिरुतिभिः।
भगं न हि त्वा यशसं वसुविदमनु शूर चरामसि॥
हे शचीपते वीर देवराज इन्द्र! सभी तरह के संरक्षण प्रदान करने वाले साधनों सहित आप हमें अभीष्ट फल प्रदान करें। सौभाग्य युक्त संपत्ति प्रदान करने वाले आपकी हम पूजा करते हैं।(सामवेद 3.15.1)
Hey Devraj Indr husband of Shachi! Accomplish our desires with all sorts of protection means. We worship you since you grant us lucky-auspicious, property-prosperity.
या इन्द्र भुज आभरः स्वर्वी असुरेभ्यः।
स्तोतारमिन्मघवन्त्रस्य वर्धय ये च त्वे वृक्तबर्हिषः॥
हे सभी धन-संपत्ति से परिपूर्ण देवराज इन्द्रः असुरों पर विजय प्राप्त करके लायी गयी संपत्ति के द्वारा आप स्तोताओं की रक्षा करें तथा जो आपकी उपासना करते हैं, उनको समृद्धि प्रदान करें।(सामवेद 3.15.2)
Hey Devraj Indr possessor of all sorts of wealth, prosperity, property won by defeating the demons protect the worshipers and grant them prosperity.
प्र मित्राय प्रार्यम्णे सचथ्यमृतावसो। वरूथ्ये3वरुणे छन्द्यं वचः स्तोत्रं राजसु गायत॥
हे परमार्थी याजकों! मित्र, वरुण एवं अर्थमा देवताओं के यज्ञशाला में स्थापित होने के पश्चात् छन्द बद्ध गाये जा सकने वाले स्तोत्रों से उनकी याचना करो।(सामवेद 3.15.3)
Hey Yajak Gan devoted to the welfare of others! Pray to Mitr, Varun & Aryma deities after they are established in the Yagy Shala, with the Strotrs sung in the form of Chhand.
अभि त्वा पूर्वपीतय इन्द्र स्तोमेभिरायवः।
समीचीनास ऋभवः समस्वरन्रुदा गृणन्त पूर्व्यम्॥
संगठित हुए देवताओं, मरुतों आदि पुरुषों के सदृश, हे देवराज इन्द्र! सर्वप्रथम सोमरस सेवन हेतु याजकगण आपकी स्तुति, स्तुत्यात्मक श्लोकों के द्वारा करते हैं।(सामवेद 3.15.4)
Hey Devraj Raj Indr, like the united demigods, Marud Gan & humans etc! The Yajak worship-pray to you with Shloks, for offering-serving Somras; first of all.
प्र व इन्द्राय बृहते मरुतो ब्रह्मार्चत। वृत्रं हनति वृत्रहा शतक्रतुर्वज्रेण शतपर्वणा॥
हे स्तोताओं! असंख्यों धार वाले वज्र से वृत्र का संहार करने वाले, शतकर्मा देवराज इन्द्र को स्तुति सुनाओ।(सामवेद 3.15.5)
Hey Stotas! Worship Devraj Indr who accomplished hundred Yagy & is a slayer (of demons, enemies) with the Vajr having infinite sharpened points.
बृहदिन्द्राय गायत मरुतो वृत्रहन्तमम्। येन ज्योतिरजनयन्नृतावृधो देवं देवाय जागृवि॥
हे याज्ञिकजन! देवराज इन्द्र के निमित्त अज्ञान को नष्ट करने वाली बहुत सारी स्तुतियों का गान करो। याग के विशेषज्ञ ऋषियों ने उसी की सहायता से अलौकिक जागृति लाने वाला प्रकाश उत्पन्न किया है।(सामवेद 3.15.6)
Hey Yagyik Gan! Sing several Stuties which eliminate ignorance-darkness for Devraj Indr. Specialist in Yagy Rishi Gan, evolved the divine aura-radiance with his help.(18.11.2025)
इन्द्र क्रतुं न आ भर पिता पुत्रेभ्यो यथा।
शिक्षा णो अस्मिन्पुरुहूत यामनि जीवा ज्योतिरशीमहि॥
हे देवराज इन्द्र। हमें याग के कार्यों में दक्ष बना दें। जिस प्रकार पिता अपने पुत्र को शिक्षा प्रदान करता है, उसी प्रकार आप हमें भी ज्ञान प्रदान करें। जनसमूहों द्वारा स्मरण करने योग्य हे देवराज इन्द्र! प्रतिदिन हमें सूर्य देव का दर्शन प्राप्त हो।(सामवेद 3.15.7)
Hey Devraj Indr! Grant us expertise in Yagy. The way a father educate his son, grant us learning like that. Worth deserving remembrance, by the groups of people, hey Devraj Indr! Ensure that we see Sury Dev every day.
मा न इन्द्र परा वृणग्भवा नः सधमाद्ये।
त्वं न ऊती त्वमिन्न आप्यं मा न इन्द्र परावृणक्॥
हे देवराज इन्द्र! आप हमें संरक्षण प्रदान करने वाले एवं हमारे बन्धु हैं। हे देवों के देव इन्द्र राज! आप हमारे इस पावन याग में उपस्थित हों, हमें अपने से कदापि दूर न हटायें।(सामवेद 3.15.8)
Hey Devraj Indr! You are the one who grant us asylum as a brother. Hey deity of demigods Devraj Indr! Invoke in our pious-virtuous Yagy and never move us away from you.
वयं घ त्वा सुतावन्त आपो न वृक्तबर्हिषः।
पवित्रस्य प्रस्त्रवणेषु वृत्रहन्यरि स्तोतार आसते॥
हे वृत्र संहारक देवराज इन्द्र! जैसे जल नीचे की तरफ बहता है, वैसे ही शुद्ध किये हुए सोमरस के साथ हम नीचे की ओर झुककर आपको प्रणाम करते हैं। पावन याग में कुश-आसन पर एक साथ विराजमान होकर याज्ञिकगण आपकी आराधना करते हैं।(सामवेद 3.15.9)
Hey slayer of Vratr, Devraj Indr! The way water flows in the down wards direction, we bow before you with sanctified Somras, prostrating before you. Gathered together the Yajak Gan, occupy the Kush cushions and worship you in the pious-virtuous Yagy..
यदिन्द्र नाहुषीष्वा ओजो नृम्णं च कृष्टिषु।
यद्वा पञ्चक्षितीनां द्युम्नमा भर सत्रा विश्वानि पौंस्या॥
हे देवराज इन्द्र! एकत्रित जनसमूहों में जो बल है, पाँच जनों (पाँच वर्गों ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और निषाद) में जो संपत्ति है, उसी प्रकार का वैभव आप हमें प्रदान करें। एकता के कारण बढ़ने वाली शक्ति हमें प्राप्त हों।(सामवेद 3.15.10)
Hey Devraj Indr! Grant us the grandeur & strength similar to the gatherings of people, wealth in the hands of Panch Jan viz Brahman, Kshatriy, Vaeshy, Shudr and Nishad
सामवेद ऐन्द्रं पर्वणि पर्व (3.16) :: ऋषि :- मेधातिथि, रेभ, वत्स, भरद्वाज, नृमेध, पुरुहन्मा, पुरुमेधौ, वसिष्ठ, मेधातिथिर्मेध्यातिथिश्च, कलि; देवता :- इन्द्र; छन्द :- बृहती।
सत्यमित्था वृषेदसि वृषजूतिर्नोऽविता। वृषा ह्युम श्रृण्विषे परावति वृषो अर्वावति श्रुतः॥
हे शूर देवराज इन्द्र! दूर एवं समीप के देशों में सभी जगह बलशाली रूप में आपकी प्रसिद्धि विस्तारित है। हे देवराज इन्द्र! आप अवश्य रूप से शक्तिशाली हैं। सोमरस के निमित्त यज्ञ करने वाले हम याज्ञिक जनों के बुलाने पर आप यहाँ पधारें तथा हमें संरक्षण प्रदान करें।(सामवेद 3.16.1)
Hey brave Devraj Indr! Your fame is spreaded far & near as a mighty person. Hey Devraj Indr! You are definitely powerful-mighty. Arrive on being invited by us, the Yagy performers; for drinking Somras and grant us protection-asylum.
यच्छक्रासि परावति यदर्वावति वृत्रहन्।
अतस्त्वा गीर्भिद्युगदिन्द्र केशिभिः सुतावाँ आ विवासति॥
हे शक्तिशाली वृत्र संहारक देवराज इन्द्र! आप असमीपस्थ हों अथवा समीपस्थ हों, उत्तम अश्वों के सदृश वेग से युक्त स्तोत्रों से सोमयज्ञ में याज्ञिक आपको आहूत करते हैं।(सामवेद 3.16.2)
Hey mighty slayer of Vratr, Devraj Indr! Whether near or far we Yagyik of Som Yagy worship you with the best Strotr, like the speed of best horses.
अभि वो वीरमन्धसो मदेषु गाय गिरा महा विचेतसम्।
इन्द्रं नाम श्रुत्यं शाकिनं वचो यथा॥
हे स्तोताओं! आप सब कल्याणकारी, दानवों को पराजित करने वाले, सोमरस का पान करके प्रफुल्लित, शूर, बुद्धिमान् एवं ऐश्वर्यवान् देवराज इन्द्र को विशेष स्तुतियों से क्षमतानुसार स्तुति करो।(सामवेद 3.16.3)
Hey Stotas! All of you should together worship Devraj Raj devoted to your welfare, drinks Somras, gladdened, brave, possess grandeur, intelligent with best special Stuties as per your strength.
इन्द्र त्रिधातु शरणं त्रिवरूधं स्वस्तये।
छर्दिर्यच्छ मघवज्ञयश्च महां च यावया दिद्युमेभ्यः॥
हे देवराज इन्द्र! संपत्ति से से परिपूर्ण याज्ञिक एवं हमें तीनों ऋतुओं (त्रिवरूथ) में कल्याणमयी, आनन्ददायक, श्रेष्ठ तीन इमारतों वाला गृह प्रदान करें एवं उनके लिए शस्त्रों का उपयोग न करें।(सामवेद 3.16.4)
Hey Devraj Indr! Grant us home with three buildings, granting pleasure-comforts during the three seasons, to the Yagyik having wealth and us without using weapons.
श्रायन्त इव सूर्य विश्वेदिन्द्रस्य भक्षत।
वसूनि जातो जनिमान्योजसा प्रति भागं न दीधिम॥
हे ऋत्विजों! जिस प्रकार सूर्य की रश्मियाँ सूर्य देव के आश्रय में रहती हैं, उसी प्रकार देवराज इन्द्र पूरे संसार को आश्रय प्रदान करने वाले हैं। जिस प्रकार पुत्र को अपने पिता से संपत्ति में हिस्सा प्राप्त होता है, उसी प्रकार देवराज इन्द्र से हम अपने भाग की अभिलाषा करते हैं। क्योंकि देवराज इन्द्र ही उत्पन्न हुए एवं उत्पन्न होने वालों को अपना भाग प्रदान करते हैं।(सामवेद 3.16.5)
Hey Ritviz! Devraj Indr grant asylum to the whole universe just like the rays of light are under the asylum of Sury Dev. The way a son wish to have his share of property from father we too expect our share from Devraj Indr, since its Devraj Indr who grant their share to those who have evolved-taken birth.
न सीमदेव आप तदिषं दीर्घायो मर्त्यः।
एतग्वा चिद्य एतशो युयोजत इन्द्रो हरी युयोजते॥
हे दीर्घजीवी देवराज इन्द्र! जो व्यक्ति परमात्मा में विश्वास नहीं रखता, वह उत्तम धन की प्राप्ति नहीं कर सकता है। जो इन्द्र देव याग में पहुँचने की इच्छा से अपने अश्वों को संयुक्त करते हैं, इस प्रकार के देवराज इन्द्र की जो मनुष्य आराधना नहीं करते, वह इन्द्र को नहीं प्राप्त कर सकते हैं।(सामवेद 3.16.6)
Hey Devraj Indr having long life! One who has no faith in the Almighty can not have excellent wealth. Those who do not worship Indr Dev, who wish to reach the Yagy deploying his horses in the charoite, can not have him.
आ नो विश्वासु हव्यमिन्द्रं समत्सु भूषत।
उप ब्रह्माणि सवनानि वृत्रहन्परमज्या ऋचीषम॥
युद्ध में रक्षा हेतु आवाहन योग्य, हे देवराज इन्द्र। आप हमारे स्तुत्यात्मक श्लोकों के द्वारा की गई स्तुतियों से सुसज्जित होते हैं। हे वृत्र संहारक, धनुष की उत्तम प्रत्यंचा के सदृश श्रेष्ठ मन्त्रों से स्तुति योग्य देवराज इन्द्र! हमारे तीनों संध्याओं (सवनों) के समय उच्चरित स्तोत्रों को आप सुसज्जित करें।(सामवेद 3.16.7)
Hey Devraj Indr, deserving to be invoke in the war! You are decorated with our Strotr meant for prayers-worship. Hey slayer of Vratr, deserving worship with the excellent Mantrs like the sound of the bow! Decorate the Mantrs recited by us during the three segments of the day prayers.
तवेदिन्द्रावमं वसु त्वं पुष्यसि मध्यमम्।
सत्रा विश्वस्य परमस्य राजसि न किष्ट्वा गोषु वृण्वते॥
हे देवराज इन्द्र! निम्न कोटि, मध्यम कोटि एवं उच्च कोटि के धन के आप ही अकेले अधिष्ठाता हैं। आप जब गौ आदि धन का दान करते हैं, तब आपको कोई भी रोक नहीं सकता।(सामवेद 3.16.8)
Hey Devraj Indr! You are the only deity of low, middle-average and excellent level wealth. When you donate wealth like cows none can stop you.
क्वेयथ क्वेदसि पुरुत्रा चिन्द्धि ते मनः। अलर्षि युध्म खजकृत्पुरंदर प्र गायत्रा अगासिषुः॥
अनेकों स्थलों में मन लगाने वाले, संग्राम कौशल में कुशल, शत्रुओं के नगर को तहस-नहस करने वाले, हे योद्धा देवराज इन्द्र! आप कहाँ चले गये थे? अब आप कहाँ है? हमारे निपुण उद्गाताओं के द्वारा किये जा रहे सामगान को श्रवण करने हेतु आप हमारे याग में उपस्थित हो।(सामवेद 3.16.9)
Hey warrior Devraj Indr, inclined to several places, expert in warfare, destroyer of the enemy forts! Where had you gone? Where are you now? Invoke to listen to the Sam Gan, recited by our expert singers, in loud voice.
वयमेनमिदा ह्योऽपीपेमेह वज्रिणम्। तस्मा उ अद्य सवने सुतं भरा नूनं भूषत श्रुते॥
हम याज्ञिकों ने देवराज इन्द्र को कल सोमरस के द्वारा संतुष्ट किया था, इसीलिए इस समय आज के याग में भी हम उन्हें सोमरस प्रदान करते हैं। हे याज्ञिकों! इस समय स्तोत्रगान सुनाकर देवराज इन्द्र को सुसज्जित करो।(सामवेद 3.16.10)
We Yagyik satisfied Devraj Indr yesterday with Somras, hence we are offering him Somras today as well. Hey Yagyik Gan! Decorate Devraj Indr with the Strota Gan.(19.11.2025)
सामवेद ऐन्द्रं पर्वणि पर्व (3.17) :: ऋषि :- पुरुहन्मा, भर्ग, इरिम्बिठि, जमदग्नि, देवातिथि, मेध्य, वसिष्ठ, भरद्वाज, कण्व; देवता :- इन्द्र, सूर्य, इन्द्राग्नी; छन्द :- बृहती।
यो राजा चर्षणीनां याता रथेभिरध्रिगुः। विश्वासां तरुता पृतनानां ज्येष्ठं यो वृत्रहा गृणे॥
मनुष्यों के अधिष्ठाता, वेगवान, शत्रुओं की सेना का हनन करने वाले, वृत्र संहारक, अति उत्तम देवराज इन्द्र की हम वन्दना करते हुए उन्हें सुसज्जित करते हैं।(सामवेद 3.17.1)
सुसज्जित :: सजा हुआ, साज-सामान से युक्त; furnished, equiped.
We equip Lord of humans, Devraj Indr, the slayer of enemy armies and Vratr, excellent worshiping him.
यत इन्द्र भयामहे ततो नो अभयं कृधि।
मघवञ्छग्धि तव तन्न ऊतये वि द्विषो वि मृधो जहि॥
हे देवराज इन्द्र! आप हमें डराने वाले लोगों से आप निडर करें। हे ऐश्वर्यवान् देवराज इन्द्र! आप सबसे अधिक पराक्रमी है, इसीलिये अपनी शक्ति से हमारे शत्रुओं एवं द्वेष व हिंसा की इच्छा रखने वालों का शमन कर हमारी रक्षा करें।(सामवेद 3.17.2)
Hey Devraj Indr! Make us fear less from the fearsome. Hey grandeur possessing Devraj Indr! You are mightier than others, hence supress our enemies and those who are envious to us and protect us.
वास्तोष्पते ध्रुवा स्थूणां सत्रं सोम्यानाम्। द्रप्सः पुरां भेत्ता शश्वतीनामिन्द्रो मुनीनां सखा॥
हे गृह अधिपति देवराज इन्द्र! गृह के स्तंभ दृढ़ हों, सोमयज्ञ करने वाले याजकों को शरीर की रक्षा करने का सामर्थ्य प्राप्त हो। असुरों के कई नगरों को तहस-नहस करने वाले, सोमरस का पान करने वाले देवराज इन्द्र ऋषियों के मित्र हैं।(सामवेद 3.17.3)
Hey Lord of house Devraj Indr! Pillars of the Yagy house should be strong & capable of protecting the bodies of the Yagy performers. Devraj Indr is the destroyer of the cities-forts of the enemy. He drinks Somras and is friendly with the Rishi Gan.
बण्महाँ असि सूर्य बडादित्य महाँ असि।
महस्ते सतो महिमा पनिष्टम मह्ना देव महाँ असि॥
हे प्रेरणा प्रदान करने वाले, अदिति पुत्र देवराज इन्द्र! यह सत्य है कि आप अत्यन्त तेजस्वी है। हे परमेश्वर! आप अत्यन्त पराक्रमी है, आपकी महानता की हम प्रशंसा करते हैं।(सामवेद 3.17.4)
Hey inspiring son of Aditi, Devraj Indr! Its true that your are majestic-highly energetic. Hey Almighty! You are very brave-mighty. We appreciate your greatness.
अश्वी रथी सुरूप इद्गोमान् यदिन्द्र ते सखा।
श्वात्रभाजा वयसा सचते सदा चन्द्रैर्याति सभामुप॥
हे देवराज इन्द्र! जो मानव आपको अपना सखा बना लेते हैं, वो अश्वों के रथ से युक्त सौन्दर्यवान्, वैभववान् एवं धन-संपत्ति से हमेशा परिपूर्ण रहते हैं। वह सदा उत्तम गहनों से सुशोभित होकर सभा आदि में जाते हैं।(सामवेद 3.17.5)
Hey Devraj Indr! The humans who make you a friend remain enriched with charoite deployed with horses, are handsome grandeur possessing, have wealth & prosperity. They go the meeting-council decorated with ornaments.
यद्याव इन्द्र ते शतं शतं भूमीरुत स्युः। न त्वा वज्रिन्त्सहस्रं सूर्या अनु न जाममष्ट रोदसी॥
हे देवराज इन्द्र! असंख्यों देवलोक, सैकड़ों पृथ्वियों एवं सहस्रों सूर्य भी यदि पैदा हो जाएँ, तो भी ये समस्त लोग आपकी तुल्यता नहीं कर सकते हैं। स्वर्गलोक से भूलोक तक आपकी समानता करने वाला कोई भी नहीं है। आपकी बराबरी करने वाला कोई भी उत्पन नहीं हुआ है।(सामवेद 3.17.6)
Hey Devraj Indr! Infinite heavens, hundreds of earth and thousands of Sun can not compare-compete with you. Non matches with you from heavens to earth. None equal-parallel to you has evolved-taken birth.
यदिन्द्र प्रागपागुदड्न्यग्वा हूयसे नृभिः। सिमा पुरू नृषूतो अस्यानवेऽसि प्रशर्ध तुर्वशे॥
हे देवराज इन्द्र! चारों दिशाओं से स्तुति करने वालों के द्वारा सहयोग हेतु आपको आवाहित किया जाता है। हे शत्रुओं का शमन करने वाले देवराज इन्द्र! अनु एवं तुर्वश हेतु आपको निवेदन पूर्वक आमंत्रित किया जाता है।(सामवेद 3.17.7)
अनु और तुर्वश :: ये राजा ययाति के पुत्र थे। तुर्वश ययाति के दूसरे पुत्र थे जो रानी देवयानी से हुए थे, जबकि अनु ययाति के चौथे पुत्र थे जो रानी शर्मिष्ठा से हुए थे। तुर्वशों का वंश दक्षिण-पूर्व की ओर फैला और अनु का वंश उत्तर-पश्चिम की ओर।
Hey Devraj Indr! You are invoked from all directions for cooperation, by the worshipers-devoted. Hey suppressor of the enemies Devraj Indr! You are invited with honour for Anu & Turvash.
कस्ममिन्द्र त्वा वसवा मत्यों दधर्षति।
श्रद्धा हि ते मघवन्पायें दिवि वाजी वाजं सिषासति॥
हे समस्त जनों को आश्रय प्रदान करने वाले देवराज इन्द्र! भला ऐसा कौन मनुष्य है, जो आपका निरादर कर सकता है? हे संपत्तिशाली देवराज इन्द्र! आपके प्रति श्रद्धा युक्त लोग शक्तिशाली होते हैं। वे दुःखों से मुक्त होने (अभावों) के समय भी अनुदान की अभिलाषा करते हैं।(सामवेद 3.17.8)
Hey Devraj Indr granting asylum to all people! Who can insult you? Hey wealthy Devraj Indr! Your devotees are powerful-strong. For release from pain-sorrow they wish you have grants-help from you.
इन्द्राग्नी अपादियं पूर्वागात्पद्वतीभ्यः।
हित्वा शिरो जिह्वया रारपच्चरत् त्रिंशत्पदा न्यक्रमीत्॥
हे देवराज इन्द्र एवं अग्निदेवों! बिना पाँव वाली वह उषा, पाँव वाली प्रजा से पहले ही आ जाती है तथा सिर के अभाव में भी जिह्वा से (जागृत हुए मुर्गे आदि की ध्वनि से) प्रेरणा प्रदान करती हुई, एक दिन में तीस मुहर्तों अर्थात् चौबीस घण्टों को पार कर लेती है।(सामवेद 3.17.9)
Hey Devraj Indr & Agni Dev! Usha Devi-dawn without legs arrive prior to the legged living beings. In the absence of head, it inspire from the tongue (awakened cook) and passes away in 24 hours (30 Muhurt).
इन्द्र नेदीय एदिहि मितमेधाभिरूतिभिः।
आ शंतम शंतमाभिरभिष्टिभिरा स्वापे स्वापिभिः॥
हे परम शान्ति प्रदान करने वाले देवराज इन्द्र! अत्यधिक सुख प्रदान करने वाली इच्छाओं के साथ, श्रेष्ठ बन्धुओं के साथ पास ही निर्मित यज्ञशाला में आप उपस्थित हों। मेधावी एवं रक्षा प्रदान करने की कामना रखने वालों के साथ आप पधारें।(सामवेद 3.17.10)
Hey Devraj Indr granting extreme peace! Invoke in the Yagy Shala with excellent brothers, to grant ultimate pleasure-comforts. Come with the intelligent and those who wish to protect.
सामवेद ऐन्द्रं पर्वणि पर्व (3.18) :: ऋषि :- नृमेध, वसिष्ठ, भरद्वाज, परुच्छेप, वामदेव, मेध्यातिथि, भर्ग, मेधातिथिर्मेध्या-तिथिश्च; देवता :- इन्द्र, अश्विनी; छन्द :- बृहती।
इत ऊती वो अजरं प्रहेतारमप्रहितम्। आशुं जेतारं होतारं रथीतममतूर्तं तुग्रियावृधम्॥
हे याजकों! शत्रुओं का शमन करने वाले, सबको प्रेरणा प्रदान करने वाले, तीव्र गति से यज्ञशाला में पहुँचने वाले श्रेष्ठ रथी, अहिंसनीय व्यापक, जल वर्षा करने वाले, अजर-अमर देवराज इन्द्र का अपनी रक्षा करने की अभिलाषा से आवाहन करो।(सामवेद 3.18.1)
Hey Yajak Gan! Invoke immortal Devraj Indr who is the destroyer of the enemies, inspire all, charioteer who reaches Yagy Shala with fast speed, pervaded as non violent and shower rains.(20.11.2025)
मो षु त्वा वाघतश्च नारे अस्मन्नि रीरमन्।
आरात्ताद्वा सधमादं न आ गहीह वा सन्नुप श्रुधि॥
हे देवराज इन्द्र! यजमान आपको हमसे दूर न कर सकें। इसलिये आप हमारे याग में शीघ्रता से पधारे एवं हमारे समीप रहकर हमारी स्तुतियों को श्रवण करें।(सामवेद 3.18.2)
Hey Devraj Indr! Do not the let Yajman keep us away from you. Hence come quickly to the Yagy and listen to our Stuties, becoming close to us.
सुनोता सोमपाव्ने सोममिन्द्राय वज्रिणे।
पचता पक्तीरवसे कृणुध्वमित्पृणन्नित्पृणते मयः॥
हे याज्ञिकों! वज्रधारी, सोमपायी देवराज इन्द्र हेतु सोमाभिषव करो। देवराज इन्द्र को संतुष्ट करने के निमित्त पुरोडाश पकाओ एवं यज्ञ करो। यजमान को सुख प्रदान करने हेतु देवराज इन्द्र स्वयं हविष्यान ग्रहण करते हैं।(सामवेद 3.18.3)
Hey Yagyik Gan! Perform Somabhishav of Somras drinking Devraj Indr. To satisfy Devraj Indr cook Purodash and perform Yagy. Devraj Indr accept the offerings of food grains to satisfy the Yajman.
यः सत्राहा विचर्षणिरिन्द्रं तं हूमहे वयम्।
सहस्त्रमन्यो तुविनृम्ण सत्पते भवा समत्सु नो वृधे॥
हे देवराज इन्द्र! आप एक साथ शत्रुओं का विनाश करने वाले एवं सर्वद्रष्टा हैं। हम आपका आवाहन करते हैं। (अनीति से संघर्ष करने वाले) मन्यु से युक्त, वैभवशाली, सज्जनों के पालनकर्ता हे देवराज इन्द्र! आप युद्धभूमि (जीवन-संग्राम) में एवं हमारे वैभव की वृद्धि में सहयोगी बनें।(सामवेद 3.18.4)
मन्यु :: क्रोध, गुस्सा, जुनून, उत्साह या शक्ति; anger, wrath, rage, grief, sorrow, passion.
अनीति :: अनैतिकता, अनौचित्य, अनुवित कार्य, ग़लती, अधर्म, अन्याय, अधर्म, नाइंसाफी, अन्यायपूर्ण कृत्य, पाप, अनैतिक आचरण; immorality, injustice, impropriety.
Hey Devraj Indr! You slay many enemies together and looks at every thing. We invoke you. You fight injustice-impropriety with anger and support the grandeur possessing gentle person. Increase our prosperity and become our associate.
शचीभिर्नः शचीवसू दिवा नक्तं दिशस्यतम्।
मा वां रातिरुपदसत्कदाचनास्मद्रातिः कदाचन॥
पुरुषार्थ पूर्वक ऐश्वर्य संगृहीत करने वाले हे अश्विन युगलों! अपने सामर्थ्य से आप हमें दिन-रात धन-धान्य से युक्त करें। आपके दानशीलता की भाँति हमारा भी दान (देने का स्वभाव) कभी समाप्त न हो।(सामवेद 3.18.5)
Hey Ashwani Kumar duo gaining grandeur through efforts! We should become possessors of wealth and food grains with our own endeavours-efforts. We should adopt your habit of donations.
यदा कदा च मीढुषे स्तोता जरेत मर्त्यः।
आदिद्वन्देत वरुणं विपा गिरा घर्त्तारं विव्रतानाम्॥
जब भी हविदाता यजमान हेतु, स्तुति गायन करने वाले लोग स्तुति करें, उस समय विशेष संरक्षण की अभिलाषा से विभिन्न प्रकार के कर्मों को धारण करने वाले, पापों को नष्ट करने वाले वरुण देव की विशेष स्तुत्यात्मक श्लोकों से स्तुति करें।(सामवेद 3.18.6)
Worship Varun Dev with the Shloks pertaining to prayers-worship devoted to destroyer of sins, when the singers of Stuti recite prayers for the Yajman making offerings, desirous of special protection devoted to various endeavours.
पाहि गा अन्यसो मद इन्द्राय मेध्यातिथे।
यः संमिश्लो हर्योर्यो हिरण्यय इन्द्रो वज्री हिरण्ययः॥
हे महाज्ञानी अतिथि! जो देवराज इन्द्र रथ में दो अश्वों को संयुक्त करते हैं, वज्रधारी हैं, सौन्दर्यशील है, स्वर्ण से युक्त रथ में बैठे हैं, ऐसे देवराज इन्द्र को सोमरस के पान से प्रफुल्लित करके अपनी गायों की सुरक्षा करो।(सामवेद 3.18.7)
Hey enlightened guest! Protect your cows by pleasing-gladdening Devraj Indr who deploy houses in his charoite having gold, wield Vajr, by offerings Somras to him for drinking.
उभयं शृणवच्च न इन्द्रो अर्वागिदं वचः।
सत्राच्या मघवान्त्सोमपीतये धिया शविष्ठ आ गमत्॥
सत्य का मार्ग प्रशस्त करने वाले, समस्त धनों के अधिपति, वैभवशाली हे देवराज इन्द्र! हमारे स्तोत्र एवं शस्त्र से की गई दोनों तरह की विनती को हमारे समक्ष आकर श्रवण करें एवं सामूहिक आराधना से प्रसन्न, हे बलशाली एवं धनवान् इन्द्र देव! सोमरक्ष के पान हेतु आप हमारे यज्ञ में पधारे।(सामवेद 3.18.8)
Hey prosperous Devraj Indr, lord of all wealth, clearing-paving the way for truth! Listen-respond to our two types of prayers, made with the Strotr and weapons, while coming to us, become happy with the prayers sung in groups. Hey mighty, wealthy Devraj Indr! Come to our Yagy for drinking Somras.
महे च न त्वाद्रिवः परा शुल्काय दीयसे।
न सहस्त्राय नायुताय वज्रिवो न शताय शतामध॥
हे वज्रधारी देवराज इन्द्र! बहुत अधिक धन के बदले में भी आपको नहीं छोड़ा जा सकता है। है वज्रधारी वैभवशाली देवराज इन्द्र! सौ अथवा दस हजार की (किली थी) कीमत पर भी आपका त्याग नहीं किया जा सकता है अर्थात् आप अनमोल है।(सामवेद 3.18.9)
अनमोल :: बहुमूल्य, मूल्यवान, प्रिय, अमूल्य, उत्कृष्ट, महंगा; precious, priceless, invaluable.
Hey Vajr wielding Devraj Indr! You can not be rejected-released for lots of wealth. Hey prosperous-grandeur possessing, wielding Vajr, Devraj Indr! You can not be separated from us even if we are offered hundred or thousands of (KILI), since you are invaluable-priceless.
वस्याँ इन्द्रासि मे पितुरुत भ्रातुरभुञ्जतः।
माता च मे छदयथः समा वसो वसुत्वनाय राधसे॥
हे धनवान् देवराज इन्द्र! आप हमारे पिताजी की तुलना में स्थादा ऐश्वर्यवान् है। आप पोषण न देने वाले भ्राता से भी ज्यादा महान् है। समस्त प्राणियों के पालनहार हे देवराज इन्द्र! आप हमारी माता के समान है। आप हमें धन-धान्य से परिपूर्ण होने हेतु महान् बनायें।(सामवेद 3.18.10)
Hey rich Devraj Indr! You possess more grandeur as compared to our father. You are great as compared to the brother who do not nourish us. Hey nurturer of all living beings-organism Devraj Indr! You are like our mother. Make us great (empower) to be equipped with wealth & food grains.
सामवेद ऐन्द्रं पर्वणि पर्व (3.19) :: ऋषि :- वसिष्ठ, वामदेव, मेधातिथिर्मेध्यातिथि, विश्वाधित्र इत्येके, मेधातिथि, वालखिल्य, श्रुष्टिगु, नृमेध; देवता-इन्द्र बहन; छन्द-बृहती।
इम इन्द्राय सुन्विरे सोमासो दध्याशिरः।
ताँ आ भदाय वज्रहस्त पीतये हरिभ्यां याह्योक आ॥
हे वज्रधारी, पराक्रमी देवराज इन्द्र! दही मिश्रित, सुखदायक, विशेषतः विधि से तैयार किये गये इस सोमरस का सेवन करने हेतु आप हमारे यज्ञ करने के स्थान पर उपस्थित हों।(सामवेद 3.19.1)
Hey Vajr wielding, mighty Devraj Indr! Arrive at the Yagy site to drink the pleasure giving Somras, mixed with curd prepared for you with special techniques.
इम इन्द्र मदाय ते सोमाश्चिकित्र उक्थिनः।
मधोः पधान उप नो गिरः शृणु रास्व स्तोत्राय गिर्वणः॥
हे देवराज इन्द्र! याजकों द्वारा विशेष प्रकार की विधि से शोधित, सुख प्रदान करने वाले, इस मधुर सोमरस का पान करके स्तोत्रों को श्रवण करते हुए हम याज्ञिकों को उत्तम धन-धान्य से परिपूर्ण कर दें।(सामवेद 3.19.2)
Hey Devraj Indr! Drink the sweetened Somras, extracted-sanctified with special techniques-methods. Having consumed Somras, listening to the Strotrs, enrich us the Yagyik with wealth and food grains.
आ त्वा3द्य सबर्दुघां हुवे गायत्रवेपसम्।
इद्धं धेनुं सुदुधामन्यामिषमुरुधारामरङ्कृतम्॥
हे देवराज इन्द्र! गतिमान, विशेषतायुक्त विधि से सहजतापूर्वक अत्यधिक दूध प्रदान करने वाली, इच्छाओं को पूर्ण करने वाली गौ के सदृश सुसज्जित, आपका हम आवाहन करते है।(सामवेद 3.19.3)
Hey Devraj Indr! We invoke you like the cow accomplishing desires, which is decorated, yielding lots of milk easily with specific techniques.
न त्वा बृहन्तो अद्रयो वरन्त इन्द्र वीडवः।
यच्छिक्षसि स्तुवते मावते वसु न किष्टदा मिनाति ते॥
बृहत्, अचल पर्वत के सदृश, अपने कर्तव्य के मार्ग से न डगमगाने वाले हे देवराज इन्द्र! आपके द्वारा दिया गया ऐश्वर्य, हम याजकों को लगातार मिलता रहे।(सामवेद 3.19.4)
Sagging :: झुकना, शिथिलता, भाव गिराना; deflate, back give, condescend, defer to.
डगमगाना :: क्रिया, लड़खड़ाना, डिगना, भचकना, हकलाना, कंपना, लड़खड़ाते हुए चलना, डगमगाते हुए चलना, लंगड़ाते हुए चलना; waver, falter, totter, toddle.
Hey Devraj Indr; like the immovable huge-vast mountain, never sagging-wavering over the dutiful path! You carry out your duties firmly. We should continue having the grandeur granted by you.(21.11.2025)
सामवेद ऐन्द्रं पर्वणि पर्व (3.19) :: ऋषि :- नृमेध, वसिष्ठ, भरद्वाज, परुच्छेप, वामदेव, मेध्यातिथि, भर्ग, मेधातिथिर्मेध्या-तिथिश्च; देवता :- इन्द्र, अश्विनी; छन्द :- बृहती।
क ई वेद सुते सचा पिवन्तं कद्वयो दधे।
अयं यः पुरो विभिनत्त्योजसा मन्दानः शिप्रयन्धसः॥
सोमयज्ञ में एक ही स्थल पर उपस्थित होकर सोमरस का सेवन करने वाले सर्वाधिक ऐश्वर्यवान् देवराज इन्द्र को कौन (नहीं) जानता है? सोमरस के सेवन से मतवाले, शिरस्त्राण (अखों-शत्रों के प्रहार से सिर की रक्षा हेतु पहना जाने वाला मुकुट) पहने हुए देवराज इन्द्र अपने पराक्रम से शत्रुओ के नगरों को उजाड़ देते हैं।(सामवेद 3.19.5)
मतवाला :: नशे में चूर, मस्त, लापरवाह; intoxicate.
Who amongest those assembled at the Som Yagy does not know the drinker of Som, possessor of highest grandeur Devraj Indr? Under the impact of Somras, Devraj Indr wearing head gear, uproot the cities-forts of the enemies.
यदिन्द्र शासो अव्रतं च्यावया सदसस्परि।
अस्माकमंशुं मघवन्पुरुस्पृहं वसव्ये अधि बर्हय॥
पाप कर्म करने वालों को निष्ठुर दंड देने के सदृश, यज्ञ-स्थल के चहुँ ओर विद्यमान, यज्ञ में बाधा उत्पन्न करने वालों को दूर रखने वाले, ऐश्वर्यवान् हे देवराज इन्द्र! आप हम याजकों के उत्तम सोमरस की अत्यधिक मात्रा में बढ़ोत्तरी करें।(सामवेद 3.19.6)
Hey Devraj Indr, possessor of grandeur! You punish the sinners with harsh penalty who gather around the Yagy site and create disturbance. Increase the quantum of excellent Somras extracted by the Yajak for your consumption.
त्वष्टा नो दैव्यं वचः पर्जन्यो ब्रह्मणस्पतिः।
पुत्रैर्भातृभिरदितिर्नु पातु नो दुष्टरं त्रामणं वचः॥
सभी वेदों के अधिष्ठाता त्वष्टा (विश्वकर्मा), इन्द्र देवता, बृहस्पति भगवान, सम्पूर्ण परिवार सहित देवमाता अदिति आदि दैवीय शक्तियाँ, दुःखों से पार करने वाले स्तोत्रों द्वारा हमें संरक्षण प्रदान करें (सामवेद 3.19.7)
Let the deity of all Veds Twasta, Vishw Karma, Indr Dev, Brahaspati, Mata Aditi with whole family etc divine powers; grant us asylum with the Strotr, which can pull us out of trouble-disaster, pain-sorrow.
कदा चन स्तरीरसि नेन्द्र सश्चसि दाशुषे। उपोपेन्नु मघवन्भूय इन्नु ते दानं देवस्य पृच्यते॥
बन्ध्या गाय (जिसे बच्चा न होता हो) के सदृश कभी भी विफल न होने वाले हे धन-सम्पत्र देवराज इन्द्र! आपके अत्यधिक अलौकिक अनुदान याज्ञिकों को आपकी कृपा से ही उपलब्ध होते हैं।(सामवेद 3.19.8)
Never failing, hey prosperous Devraj Indr like the infertile cow! Your divine donations are received by the Yagyik due to your mercy-kindness.
युङ्क्ष्वा हि वृत्रहन्तम हरी इन्द्र परावतः।
अर्वाचीनो मघवन्त्सोमपीतय उग्र ऋष्वेभिरा गहि॥
वृत्र नामक राक्षस का संहार करने में समर्थ, रथ पर विराजमान हे वैभवशाली देवराज इन्द्र! आप पराक्रम से परिपूर्ण होकर, मरुद्गणों सहित स्वर्गलोक से हमारे यज्ञ में प्रकट हों।(सामवेद 3.19.9)
Hey prosperous Devraj Indr having grandeur, riding charoite, capable of slaying demon Vratr! Invoke here in our Yagy along with Marud Gan from the heavens, equipped with mighty & power.
त्वामिदा ह्यो नरोऽपीप्यन्वज्रिन्भूर्णयः। स इन्द्र स्तोमवाहस इह श्रुध्युप स्वसरमा गहि॥
यजमानों द्वारा प्रदान किये गये सोमरस का लगातार पान करने वाले हे वज्र धारक, तेजस्वी देवराज इन्द्र! आप मनुष्यों द्वारा उच्चारित स्तोत्रों को श्रवण करते हुए यज्ञ करने के स्थान पर उपस्थित हों।(सामवेद 3.19.10)
Hey aurous-radiant Devraj drinking Somras continuously served by the Yajmans! Listen-respond to the Strotr recited by the humans and invoke at the Yagy site.
सामवेद ऐन्द्रं पर्वणि पर्व (3.20) :: ऋषि :- वसिष्ठ, अश्विन, प्रस्कण्व, मेधातिथिर्मेध्यातिथि, देवातिथि, नृमेघ; देवता :- उषा, अश्विनी, इन्द्र; छन्द :- बृहती।
प्रत्यु अदर्थ्यायत्यू 3 च्छन्ती दुहिता दिवः।
अपो मही वृणुते चक्षुषा तमो ज्योतिष्कृणोति सूनरी॥
प्रदीप्त होकर (भूलोक में) प्रकट होती हुई सूर्य देव की पुत्री उषा का साक्षात्कार होने लगा है। आभा से युक्त रूपवती उषा अपने तेज से तिमिर को समाप्त कर देती है।(सामवेद 3.20.1)
Usha Devi, daughter of Sury Dev, appeared over the earth and illuminate the world. Possessing aura, beautiful Usha destroys the darkness.
इमा उ वां दिविष्टय उस्त्रा हवन्ते अश्विना।
अयं वामह्वेऽवसे शचीवसू विशं विशं हि गच्छथः॥
हे समस्त मनुष्यों के आश्रय स्थल अश्चिन् देवता! स्वर्ग की अभिलाषा करने वाले प्रजागण आपको पुकारते हैं। आप सभी मनुष्यों के समीप जाने वाले एवं शक्ति से धन कमाने वाले हैं। हम संरक्षण प्राप्त करने के उद्देश्य से आपका आवाहन करते हैं।(सामवेद 3.20.2)
Hey Ashwin Dev granting asylum to all humans! Subjects desirous of heavens call you. You approach humans and earn money with strength. We invoke you for asylum.
कुष्ठः को वामश्विना तपानो देवा मर्त्यः। घ्नता वामश्नया क्षपमाणोंऽ शुनेत्थमु आद्वन्यथा॥
हे दिव्य तेज वाले अश्विनी कुमारों! पृथ्वी पर दूसरा कौन मनुष्य आपको प्रदीप्त करने में समर्थ है? आपको प्राप्त करने के उद्देश्य से पत्थरों से कूटकर सोमरस निर्मित करने वाला, शिथिल हुआ याजक राजा के सदृश अपने यथेष्ट (पदार्थों का) भोग करने में समर्थ होता है।(सामवेद 3.20.3)
Hey divine Ashwani Kumars! Who else over the earth amongest humans is capable of making you shine? The tired Yajak who smash-crush Som with stones for you become capable of enjoying desired pleasure-comforts like a king.
अयं वां मधुमत्तमः सुतः सोमो दिविष्टिषु।
तमश्विना पिबतं तिरोअह्नयं धत्तं रत्नानि दाशुषे॥
हे अश्विनी कुमारों! बहुत अधिक मधुर एवं एक दिन पहले शुद्ध किये गये सोमरस का आप पान करें तथा यज्ञ करने वाले पुरोहितों को धन-धान्य से परिपूर्ण कर दें।(सामवेद 3.20.4)
Hey Ashwani Kumars! Drink the sanctified very sweet Somras, extracted one day ago and grant wealth & food grains to the Priest-Purohits accomplishing the Yagy.
आ त्वा सोमस्य गल्दया सदा याचन्नहं ज्या।
भूर्णि मृगं न सवनेषु चुक्रूधं क ईशानं न याचिषत्॥
सिंह के सदृश परम् शक्तिशाली, पालन-पोषण करने में सक्षम हे देवराज इन्द्र! यज्ञ में सोमरस अर्पित करते हुए, विजय प्राप्त करने वाले स्तोत्रों द्वारा लगातार आपसे प्रार्थना करने वाले हम कभी भी क्रोध के योग्य नहीं हैं; क्योंकि ऐसा कौन प्राणी है, जो अपने स्वामी से निवेदन नहीं करता?(सामवेद 3.20.5)
Extremely powerful like the lion, capable of nourishing-nurturing, hey Devraj Indr! Offering Somras in the Yagy, praying you with victorious Strotrs we do not deserve anger. There is no living being, who do not request to his master.
अध्वयों द्रावया त्वं सोममिन्द्रः पिपासति।
उपो नूनं युयुजे वृषणा हरी आच जगाम वृत्रहा॥
पराक्रमी घोड़ों वाले रथ पर आसीन, वृत्रहन्ता देवराज इन्द्र प्रकट हो गए है। इसलिए हे यजुर्वेद ऋत्विक! सोमरस का सेवन करने की अभिलाषा रखने वाले देवराज इन्द्र हेतु आप अति शीघ्र सोमरस तैयार करें।(सामवेद 3.20.6)
Slayer of Vratr, Devraj Indr has invoked riding the mighty horses. Therefore hey Yajur Ved Yagyik! Extract Somras quickly to accomplish the desire of Somras by Devraj Indr.
अभीषतस्तदा भरेन्द्र ज्यायः कनीयसः। पुरूवसुर्हि मघवन्बभूविथ भरेभरे च हव्यः॥
है ऐश्वर्यवान् देवराज इन्द्र! आप समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाले धन-वैभव हम जैसे दरिद्र को प्रदान करने की अनुकम्पा करें। आप युद्धों (जीवन युद्ध) में सहायता करने हेतु आवाहन करने के पात्र है।(सामवेद 3.20.7)
Hey possessor of grandeur Devraj Indr! Grant wealth and prosperity which accomplish all desires to us the poverty stricken, kindly. You deserve to be invoked to fight the wars-struggles in life to help.(22.11.2025)
यदिन्द्र यावतस्त्वमेतावदहमीशीय। स्तोतारमिद्दधिषे रदावसो न पापत्वाय रंसिषम्॥
हे वैभव-सम्पन्न देवराज इन्द्र! हम आपके सदृश ऐश्वर्य के स्वामी होने की अभिलाषा करते हैं। यजमानों को धन प्रदान करने की हमारी कामना है, किंतु कुटिल कर्म करने वालों को नहीं।(सामवेद 3.20.8)
Hey Devraj possessor of grandeur-prosperity! We wish be become the Lord of grandeur like you. We wish to donate to the Yajmans not to the wicked-vicious.
त्वमिन्द्र प्रतूर्तिष्वभि विश्वा असि स्पृथः। अशस्तिहा जनिता वृत्रतूरसि त्वं तूर्य तरुष्यतः॥
हे शत्रुओं का शमन करने वाले देवराज इन्द्र! आप यश से रहित, दुर्जनों एवं बाधा उत्पन्न करने वाले, दुष्टों का विनाश करने वाले हैं।(सामवेद 3.20.9)
Hey controller-destroyer of the enemies Devraj Indr! You are the destroyer of wicked and obstructors, who are without virtues and glory.
प्र यो रिरिक्ष ओजसा दिवः सदोभ्यस्परि।
न त्वा विव्याच रज इन्द्र पार्थिवमति विश्वं ववक्षिथ॥
हे देवराज इन्द्र! आप अपने प्रभाव से स्वर्गलोक में अच्छी प्रकार प्रतिस्थापित हैं। सम्पूर्ण पृथ्वीलोक के धूलि-कण भी आपको सीमाबद्ध करने में सक्षम नहीं हैं, किंतु आप पूरे संसार को धारण करने में समर्थ हैं।(सामवेद 3.20.10)
Hey Devraj Indr! You are well established in the heavens by virtue of your might-impact. All particle of the earth are incapable of restricting you but you are capable of supporting the whole universe.
सामवेद ऐन्द्रं पर्वणि पर्व (3.21) :: ऋषि :- वसिष्ठ, गातु, पृथवैन्य, सप्तुगु, गौरिवीति, वेन, भार्गव, बृहस्पति, नकुल या सुहोत्र; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप्।
असावि देवं गोऋजीकमन्धो न्यस्मिन्निन्द्रो जनुषेमुवोच।
बोधामसि त्वा हर्यश्व यज्ञैर्बोधा न स्तोममन्धसो मदेषु॥
हे अविनाशी एवं अश्वों के पालनकर्ता देवराज इन्द्र! स्वाभाविक रूप से सभी को प्रिय सोमरस, गायों के दूध के मिश्रण से अलौकिक रूप से तैयार किया जाता है। सोमरस के सेवन से प्रफुल्लित हुए, यज्ञ में उच्चारित की जाती हुई, हमारी इन स्तुतियों पर आप विशेष कृपादृष्टि दिखायें।(सामवेद 3.21.1)
Hey immortal and nurturer of horses Devraj Indr! Somras liked by all is prepared by mixing cow milk in divine manners. Gladdened by drinking Somras, show special support-mercy to our Stuties, recited in the Yagy.
योनिष्ट इन्द्र सदने अकारि तमा नृभिः पुरुहूत प्र याहि।
असो यथा नोऽविता वृधश्चिद्ददो वसूनि ममदश्च सोमैः॥
बहुत सारे लोगों द्वारा स्तुति के योग्य हे देवराज इन्द्र! यज्ञ-स्थल पर आप अपने सहयोगियों सहित उपस्थित होने की दया करें। हमारी रक्षा करने वाले, हमें धनादि से सम्पन्न करने वाले, हमें पोषण प्रदान करने वाले आप सोमरस का सेवन करके प्रफुल्लित हों।(सामवेद 3.21.2)
Hey Devraj Indr deserving worship by lots of people! Please oblige us by arriving at the Yagy site with your associates. Being our protector, granting wealth to us & nourishment, drink Somras and gladden.
अदर्दरुत्समसृजो वि खानि त्वमर्णवान्बद्वधानाँ अरम्णाः।
महान्तमिन्द्र पर्वतं वि यद्वः सृजद्धारा अव यद्दानवान्हन्॥
हे देवराज इन्द्र! आप पयोधरों (मेघों) को चीरकर जल वृष्टि करने हेतु, जल मार्ग के विघ्नों को हटाकर ऊँची लहरों वाले सागर को अत्यधिक जल प्रदान करके आनन्दित करते हैं। उसके बाद आप असुरों (कुटिल प्रकृति वालों) का शमन करते हैं।(सामवेद 3.21.3)
Hey Devraj Indr! You shower rains by tearing into the clouds, remove all obstacles in the path of water running to high tide ocean gladdening him. Thereafter, you destroy the wicked demons.
सुष्वाणास इन्द्र स्तुमसि त्वा सनिष्यन्तश्चित्तुविनृम्ण वाजम्।
आ नो भर सुवितं यस्य कोना तना त्मना सह्याम त्वोताः॥
हे ऐश्वर्यवान् देवराज इन्द्र! सोमरस अभिषवण करने वाले एवं पुरोडाश पकाने वाले याज्ञिक, आपकी स्तुति करते हैं। आपके द्वारा प्रतिपालित ऐच्छिक धन की अभिलाषा करने वाले, हम याज्ञिकगण प्रचुर धन-वैभव कमाने की आपसे सामर्थ्य प्राप्त करते हैं।(सामवेद 3.21.4)
Hey Devraj Indr Lord of grandeur! We the Yagyik extract Somras and cook Purodash for you, worship-pray to you. Desirous of desired wealth, we Yagyik Gan attain the calibre-capability to earn wealth & grandeur-prosperity.
जगृह्मा ते दक्षिणमिन्द्र हस्तं वसूयवो वसुपते वसूनाम्।
विद्या हि त्वा गोपतिं शूर गोनामस्मभ्यं चित्रं वृषणं रयिं दाः॥
हे प्रचुर ऐश्वर्यवान् वीर देवराज इन्द्र! ऐश्वर्य की अभिलाषा करने वाले, बहुत अधिक शक्ति बढ़ाने वाले एवं धन अर्जित करने हेतु हम आपके दाहिने हाथ (बल) का सहारा लेते हैं, आप गायों के पालनकर्ता के रूप में प्रसिद्ध हैं।(सामवेद 3.21.5)
Hey Devraj Indr with lots of grandeur! We desirous of increasing our grandeur and strength, seek the help of your right hand for earning wealth. You are famous for nourishing cows.
इन्द्रं नरो नेमधिता हवन्ते यत्पार्या युनजते धियस्ताः।
शूरो नृषाता श्रवसश्च काम आ गोमति व्रजे भजा त्वं नः॥
मानव-जन संग्राम आदि के समय संकट से रक्षा करने हेतु अपनी सहायता करने के लिए देवराज इन्द्र को बुलाते हैं। इसलिए हे देवराज इन्द्र! आप मानवों हेतु धन के स्वामी तथा पराक्रम बढ़ाने वाले हैं। आप हमें गोष्ठ में, गायों से लाभ प्राप्त करने हेतु पहुँचाने की कृपा करें।(सामवेद 3.21.6)
Humans invoke Devraj Indr for their protection in the war. Hence, hey Devraj Indr! You are the one who increase might and wealth of the humans. Help us in reaching the cow shed for gain through cows.
वयः सुपर्णा उप सेदुरिन्द्रं प्रियमेधा ऋषयो नाधमानाः।
अप ध्वान्तमूर्णहि पूर्घि चक्षुर्मुमुग्ध्या 3 स्मान्निधयेव बद्धान्॥
श्रेष्ठ पंखों से युक्त पक्षी (दिव्य ज्योति-स्वर्णिम रश्मियों से युक्त) देवराज इन्द्र को प्राप्त होता है। श्रेष्ठ (यज्ञप्रेमी) ऋषि इन्द्रदेव से प्रार्थना करने में लगे हुए हैं। हे देवराज इन्द्र! आप जीवन चक्र में फंसे हुए लोगों को मुक्ति प्रदान करें, अंधकार का विनाश कर हमारे नेत्रों को अलौकिक तेज से युक्त कर दें।(सामवेद 3.21.7)
Bird (with golden aura and rays) having excellent feathers is availed by Devraj Indr. Best lovers of Yagy Rishi Gan, are busy praying to Devraj Indr. Hey Devraj Indr! Release the humans captured in the life cycle, destroy the darkness and fill our eyes with divine light-vision.
नाके सुपर्णमुप यत्पतन्तं हृदा वेनन्तो अभ्यचक्षत त्वा।
हिरण्यपक्षं वरुणस्य दूतं यमस्य योनौ शकुनं भुरण्युम्॥
पक्षी की भाँति अन्तरिक्ष में उड़नशील सुवर्ण के पंख वाले, सभी को पोषण प्रदान करने वाले हे वरुण के दूत! आप समस्त जनों के प्रिय हैं, ऊर्जा (अग्नि) के उत्पत्ति स्थल अंतरिक्ष में, आपको पक्षी की भाँति भ्रमण करते हुए देखते हैं।(सामवेद 3.21.8)
Hey ambassador-messenger of Varun Dev flying like birds in the space, granting nourishment to all! You are dear to all. We see you flying like a bird at the origin of fire-Agni in the space.
ब्रह्म जज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्वि सीमतः सुरुचो वेन आवः।
स बुध्न्या उपमा अस्य विष्ठाः सतश्च योनिमसतश्च विवः॥
परमपिता परमेश्वर (ब्रह्मा) ने सृष्टि के आरंभिक काल में सबसे पहले ब्रह्माण्ड की रचना की। उन्होंने ही सौर-मण्डल में सूर्य-मण्डल के माप के स्रोत, दिशाओं की सीमा एवं तेज को प्रसारित किया। इस तरह प्रकृति, भूत, भविष्य एवं वर्तमान को उन्होंने कई स्वरूपों में दर्शाया।(सामवेद 3.21.9)
Param Pita Parbrahm Parmeshwar generated the universe in the beginning of evolution. He created solar system, measurements Solar system, limits of directions and spreaded the energy. In this manner HE demonstrated the nature, past, present & future in many ways.
अपूर्व्या पुरुतमान्यस्मै महे वीराय तवसे तुराय।
विरप्शिने वज्रिणे शन्तमानि वचांस्यस्मै स्थविराय तक्षुः॥
परम् बलशाली, शूरवीर अति शीघ्र कार्य करने वाले, वन्दनीय, वज्रधारक, पूजनीय देवराज इन्द्र हेतु अनेक संतुष्टि प्रदान करने वाले स्तोत्रों के द्वारा वन्दना की जाती है।(सामवेद 3.21.10)
Mighty, brave-invincible, working quickly-rapidly, worshipable, honourable Devraj Indr is satisfied and worshiped with many Strotrs.(23.11.2025)
सामवेद ऐन्द्रं पर्वणि पर्व (3.22) :: ऋषि :- द्युतान, वृहदुक्थ, वामदेव, वसिष्ठ, विश्वामित्र, गोरिवीति; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप्।
अव द्रप्सो अंशुमतीमतिष्ठदियानः कृष्णो दशभिः सहस्त्रैः।
आवत्तमिन्द्रः शच्या धमन्तमप स्नीहितिं नृमणा अधद्राः॥
तीव्र गमनशील, दस हजार सैनिकों के साथ आक्रमण करने वाले, सम्पूर्ण जगत् को पीड़ा पहुँचाने वाले, अंशुमती सरिता (यमुना) के किनारे पर स्थित, (सभी को आकृष्ट करके) अपने कब्जे में कर लेने वाले (कृष्णासुर) पर समस्त जनों के प्रिय देवराज इन्द्र ने आक्रमण करके शत्रुओं की सेना को पराभूत कर दिया।(सामवेद 3.22.1)
Devraj Indr attacked the demon Krashna Sur who was troubling-torturing the whole world, over the bank of Anshumati Sarita-Yamuna, with high speed and ten thousand soldiers, defeating his armies.
वृत्रस्य त्वा श्वसथादीषमाणा विश्वे देवा अजहुर्ये सखायः।
मरुद्भिरिन्द्र सख्यं ते अस्त्वथेमा विश्वाः पृतना जयासि॥
हे देवराज इन्द्र! वृत्रासुर से भयभीत होकर आपके सहयोगी समस्त देवगण आपका साथ छोड़कर चारों दिशाओं में भाग गये। उसके पश्चात् मरुद्गणों की सहायता लेकर आपने शत्रुओं की सेना को पराभूत किया।(सामवेद 3.22.2)
Hey Devraj Indr! Terrified by Vratra Sur, your associate demigods run away in four direction. Thereafter, you defeated the enemy army with the help of Marud Gan.
विधुं दद्राणं समने बहूनां युवानं सन्तं पलितो जगार।
देवस्य पश्य काव्यं महित्वाद्या ममार स ह्यः समान॥
संग्राम में वीरता का प्रदर्शन करके शत्रुओं की सेना को भगा देने वाले देवराज इन्द्र के तेज से श्वेत केश वाला (शत्तिहीन) वृद्ध भी उत्तेजित हो जाता है। हे यजमान! देवराज इन्द्र के बल का विश्लेषण करने वाले अद्भुत काव्य का अवलोकन करो, जो आज (उच्चारण के पश्चात्) विलुप्त (सा) ज्ञात होता हुआ भी (भविष्य में) नये मन्त्रों के सदृश वन्दनाओं में प्रयोग किया जाता है।(सामवेद 3.22.3)
An old man with grey hair too become excited-agitated due to the aura of Devraj Indr, who show courage in the war and repel the enemy army. Hey Yajman! Review the amazing poetry analysing the strength of Devraj Indr which appear to be disappearing and compose new Mantrs.
त्वं ह त्यत्सप्तभ्यो जायमानोऽशत्रुभ्यो अभवः शत्रुरिन्द्र।
गूढे द्यावापृथिवी अन्वविन्दो विभुमद्भयो भुवनेभ्यो रणं धा:॥
अजातशत्रु हे देवराज इन्द्र! वृत्रादि सात असुरों के आप जन्म लेते ही बैरी बन गये। अंधकार से युक्त (असुरों द्वारा प्रतिष्ठित किये गये) स्वर्गलोक एवं भूलोक को (उद्धार करके) आपने प्रदीप्त किया। अब आपने इन लोकों को वैभवशाली एवं भली प्रकार स्थायी करके रूपवान् बना दिया है।(सामवेद 3.22.4)
Ajat Shatru (has no enemy) Devraj Indr! You became the enemy of Vratra Sur and seven other demons as soon as you took birth. You removed the darkness over the earth & heavens and illuminated them. You granted grandeur & prosperity to the three abodes and made them beautiful & stable.
मेडिं न त्वा वज्रिणं भृष्टिमन्तं पुरुधस्मानं वृषभं स्थिरप्स्नुम्।
करोष्यर्यस्तरुषीर्दुवस्युरिन्द्र द्युक्षं वृत्रहणं गृणीषे॥
अच्छे कर्मों के प्रभाव से प्रशंसा योग्य, वृत्र हन्ता, स्वर्गलोक में विराजमान, शत्रुओं का शमन करने वाले, परम बलशाली, युद्ध में अचल रहने वाले, वज्रधारी, कुटिल प्रकृति के लोगों का विनाश करने वाले, देवराज इन्द्र हमें सदैव विजय प्रदान करते हैं। इसलिए हम आपको स्तुति के माध्यम से संतुष्ट करते हैं।(सामवेद 3.22.5)
By virtue of virtuous deeds appreciation deserving, slayer of Vratra Sur, present in heavens, destroyer of enemies, unmoved in the war, Vajr wielding, destroyer of the wicked-vicious, Devraj Indr always help us win. Hence, we satisfy him through prayers-Stuties.
प्र वो महे महे वृधे भरध्वं प्रचेतसे प्र सुमतिं कृणुध्वम्।
विशः पूर्वीः प्र चर चर्षणिग्राः॥
हे ऋत्विजो! श्रेष्ठ कार्यों को परिपूर्ण करने वाले, प्रसिद्ध देवराज इन्द्र हेतु सोम अर्पित करते हुए, उत्तम स्तोत्रों से वन्दना करो। हे देवराज इन्द्र! आप मनुष्यों की इच्छाओं की पूर्ति करते हुए उनका कल्याण करें।(सामवेद 3.22.6)
Hey Ritviz! Offer Somras to Devraj Indr who accomplish the excellent endeavours and worship him with best Strotrs. Hey Devraj Indr! Accomplish the desires of the humans and look to their welfare-well being.
शुनं हुवेम मघवानमिन्द्रमस्मिन्भरे नृतमं वाजसातौ।
शृण्वन्तमुग्रमूतये समत्सु घ्नन्तं वृत्राणि सञ्जितं धनानि॥
हे सम्पूर्ण सुखों को प्रदान करने वाले, अन्नदाता, युद्ध में उत्साह जागृत करने वाले महान् शूरवीर, वैभवशाली, कुटिल कृत्य का विनाश करने वाले, हमारी याचनाओं को श्रवण करने वाले, सम्पूर्ण धन-संपत्ति के अधिपति देवराज इन्द्र! आप हमें संरक्षण प्रदान करें। हम अपने संरक्षण के उद्देश्य से आपका आवाहन करते हैं।(सामवेद 3.22.7)
Granter of all comforts & food grains, invincible-brave encouraging in the war, mighty-powerful, possessor of grandeur-prosperity, destroyer of wicked-vicious actions, responding to our prayers Lord of all wealth, hey Devraj Indr! Grant us asylum. We invoke you for our protection.
उदु ब्रह्माण्यैरत श्रवस्येन्द्रं समर्ये महया वसिष्ठ।
आ यो विश्वानि श्रवसा ततानोपश्रोता म ईवतो वचांसि॥
हे इन्द्रियों को वश में रखने वाले (वसिष्ठ) ऋषिः कीर्ति में वृद्धि करने वाले, आराधकों की याचनाओं को श्रवण करने वाले, पोषक पदाथों को प्राप्त करने की अभिलाषा से याग में देवराज इन्द्र की महिमा का वर्णन करने वाले स्तोत्रों का पाठ करो।(सामवेद 3.22.8)
Hey Vashishth Rishi, keeping the sense organs under control! Recite the Strotrs which boost the glory of Devraj Indr who respond to the prayers of the devotees, expecting nourishment-offerings in the Yagy.
चक्रं यदस्याप्स्वा निषत्तमुतो तदस्मै मध्विच्चच्छद्यात्।
पृथिव्यामतिषितं यदूधः पयो गोष्वदधा ओषधीषु॥
अन्तरिक्ष में जाज्वल्यमान देवराज इन्द्र का अस्त्र आराधकों हेतु मधुर जल (पोषक रस) को आच्छादित करता है। यह धरती पर प्रवाहित होता हुआ वनस्पतियों में पोषक रस के रूप में नीहित है।(सामवेद 3.22.9)
जाज्वल्य, जाज्वल्यमान् :: चमकता हुआ, प्रकाशमान् प्रज्वलित तेजपूर्ण, तेजोमंडित; flamboyant, shining, blazing, refulgent.
Shinning in the space, the weapons-missiles of Devraj Indr cover the devotees with sweet water. It flow-falls over the earth and nourish the vegetation.
सामवेद ऐन्द्रं पर्वणि पर्व (3.23) :: ऋषि :- अरिष्टनेमि, तार्थ्य, भरद्वाज, बसुकृद या वासुक्र, वामदेव, विश्वामित्र, रेणु, गौतम; देवता :- तार्थ्य, इन्द्र, इन्द्रापर्वतौ; छन्द :- त्रिष्टुप्।
त्यमू षु वाजिनं देवजूतं सहोवानं तरुतारं रथानाम्।
अरिष्टनेमिं पृतनाजमाशुं स्वस्तये तार्थ्यमिहा हुवेम॥
देवगणों द्वारा प्रेरित रथ को लाने वाले, आराध्य, पराक्रमी, धन-संपत्ति के अधिष्ठाता, शत्रुओं की सेना को पराजित कर विजय प्राप्त करने वाले, युद्ध में उद्धार करने में सक्षम, गतिशील, व्यापक तार्क्ष्य (गरुड़-सूर्य-इन्द्र) का हम अपने कल्याण के निमित्त आवाहन करते हैं।(सामवेद 3.23.1)
उद्धार :: निस्तार, मुक्ति, छुटकारा, बचाव, छुड़ाना, दस्तबरदारी; deliverance, extrication, releasement, rescue.
We invoke Tarksh-trio (Garud Ji, Sury Dev & Devraj Indr) who bring the charoite inspired by the demigods-deities, deity, chivalric-mighty, Lord of wealth & prosperity, defeats the enemy armies and victorious, capable of rescue in war, dynamic, for our welfare-well being.
त्रातारमिन्द्रमवितारमिन्द्रं हवेहवे सुहवं शूरमिन्द्रम्।
हुवे नु शक्रं पुरुहूतमिन्द्रमिदं हविर्मघवा वेत्विन्द्रः॥
सभी को संरक्षण प्रदान करने वाले, सभी के सहयोगी, शक्तिशाली, समर्थ, संग्राम में बुलाये जाने वाले, महादानी एवं अनेक याजकों द्वारा वन्दनीय देवराज इन्द्र को हम अपने कल्याण करने के उद्देश्य से आमन्त्रित करते हैं। संपत्तिवान वे देवराज इन्द्र (याज्ञिकों द्वारा अर्पित) हविष्यान्न को स्वीकार करें।(सामवेद 3.23.2)
We invite Devraj Indr for our welfare-well being, who is a great donor, grants asylum to everyone, associate of all, mighty-powerful, capable, join war on being invited, worshiped by the Yajak. Let wealthy Devraj Indr, accept the oblations-offerings of the Yagyik Gan.(24.11.2025)
यजामह इन्द्रं वज्रदक्षिणं हरीणां रथ्यां 3 विव्रतानाम्।
प्र श्मश्रुभिर्दोधुवदूर्ध्वधा भुवद्वि सेनाभिर्भयमानो वि राधसा॥
वज्रधारी, तीव्रगति वाले रथ पर विराजमान, सर्वोपरि, दाड़ी तथा मूंछों को हिलाकर शत्रु को कंपित कर देने वाले, सेना के द्वारा शत्रुओं को डरा देने वाले देवराज इन्द्र आराधकों को धन-ऐश्वर्य प्रदान करते है।(सामवेद 3.23.3)
Vajr wielding, riding fast moving charoite, above all, tremble the enemy just by shaking beard and moustaches, producing fear in the enemy army, Devraj Indr grants wealth & grandeur to the devotees.
सत्राहणं दाघृषिं तुम्रमिन्द्रं महामपारं वृषभं सुवज्रम्।
हन्ता यो वृत्रं सनितोत वाजं दाता मघानि मघवा सुराधाः॥
शत्रुओं की सेनाओं का शमन करने वाले, उनका तिरस्कार करने वाले, उनको युद्ध में परास्त करने वाले, महान् पराक्रमी, उत्तम वज्र धारण करने वाले, पोषणकर्ता, संपत्तिवान्, ऐश्वर्यवान, वृत्र संहारक, धनों के अधिष्ठाता एवं रक्षक देवराज इन्द्र अपने आराधकों को धन-संपत्ति से परिपूर्ण करने वाले हैं।(सामवेद 3.23.4)
Oppressor of the enemy army, disdain-reproach them, defeat them, mighty-powerful, Vajr wielding, nurturer, wealthy, possess grandeur, slayer of Vratr, deity-Lord of wealth and protector Devraj Indr grant wealth and property-prosperity to his devotees.
यो नो वनुष्यन्नभिदाति मर्त उगणा वा मन्यमानस्तुरो वा।
क्षिधी युधा शवसा वा तमिन्द्राभी ष्याम वृषमणस्त्वोताः॥
मृत्यु की अभिलाषा करने वाले, अहंकार से युक्त, नाश करने वाले, शस्त्रों के साथ हमला करने को तैयार, दृढ़ निश्चयी, आपके द्वारा संरक्षण प्राप्त कर हम (याज्ञिकगण), शत्रुओं को पराभूत करने में समर्थ हैं।(सामवेद 3.23.5)
पराभूत :: पराजित, परास्त, विनष्ट, ध्वस्त; defeated, vanquished, subjugated, overthrown.
Hey Devraj Indr! We Yagyik Gan, having the desire for death, egoistic, destroyer, ready to attack with weapons, firm-determined, under your protection are ready to defeat the enemy.
यं वृत्रेषु क्षितय स्पर्धमाना यं युक्तेषु तुरयन्तो हवन्ते।
यं शूरसातौ यमपामुपज्मन्यं विप्रासो वाजयन्ते स इन्द्रः॥
संग्राम में लगी हुई प्रजाओं द्वारा सहायता करने हेतु आवाहित किये जाने वाले, हाथ में शस्त्र लेकर लड़ाई करने वाले, शूरवीरों द्वारा बुलाये जाने वाले, जल-वृष्टि के उद्देश्य से निवेदन किये जाने वाले, ज्ञानियों द्वारा हवि अर्पित किये जाने वाले ईश्वर एक मात्र देवराज इन्द्र हैं।(सामवेद 3.23.6)
On being called by the populace busy with war for help, those fighting having arms in their hands, by the mighty-brave, oblations-offerings made by the learned scholars the responding only deity is Devraj Indr.
इन्द्रापर्वता बृहता रथेन वामीरिष आ वहतं सुवीराः।
वीतं हव्यान्यध्वरेषु देवा वर्षेथां गीर्भिरिडया मदन्ता॥
हे देवराज इन्द्र एवं पर्वत! स्तुति करने योग्य, उत्तम संतान युक्त, याजक द्वारा निवेदित हविष्यान्न से आनन्द का अनुभव करने वाले, हवन में हवि को ग्रहण करने वाले आप हमें पोषण पदार्थ प्रदान करें तथा हमारी स्तुतियों से प्रवृद्ध हों।(सामवेद 3.23.7)
Hey Devraj Indr & Parwat-mountain! Deserving worship, having excellent progeny, enjoying the offerings made by the Yajak, accept the offerings of the Hawan, you both grant us nourishing material and grow with our Stuties-prayers.
इन्द्राय गिरो अनिशितसर्गा अपः प्रैरयत्सगरस्य बुध्नात्।
यो अक्षेणेव चक्रियौ शचीभिर्विष्वक्तस्तम्भ पृथिवीमुत द्याम्॥
जिस प्रकार 'हाल' (लोहे की पट्टी) चक्र को चारों ओर से घेरे हुए उसकी रक्षा करता है, उसी प्रकार देवराज इन्द्र अपने सामर्थ्य से, स्वर्गलोक एवं पृथ्वीलोक को आच्छादित करके वहीं पर विद्यमान है। ऐसे देवराज इन्द्र हेतु ऊँचे स्वर से उच्चारित होने वाली वन्दनाएँ आकाश से जल बरसाने में समर्थ होती हैं।(सामवेद 3.23.8)
The way a flat plate-ring of iron protects the wheel from all sides, similarly Devraj Indr pervade the earth & heavens with his capability and remain there. Prayers made to Devraj Indr in loud voice leads to showers from the sky.
आ त्वा सखायः सख्या ववृत्युस्तिरः पुरू चिदर्णवां जगम्याः।
पितुर्नपातमा दधीत वेधा अस्मिन्क्षये प्रतरां दीद्यानः॥
हे देवराज इन्द्र! बहुत दूर अन्तरिक्ष में अवस्थित आपके सखागण, उत्तम स्तुतियों के माध्यम से आपको आहूत करते है। इस हवन में प्रकाशित होते हुए आपके प्रभाव से हम उत्तम पुत्र-पौत्रों को प्राप्त करें।(सामवेद 3.23.9)
Hey Devraj Indr! Your associates established in the sky-space worship you with excellent prayers. Your aura evolved in the Hawan should grant us best sons & grandsons.
को अद्य युङ्क्ते धुरि गा ऋतस्य शिमीवतो भामिनो दुर्हृणायून्।
आसन्नेषामप्सुवाहो मयोभून्य एषां भृत्यामृणधत्स जीवात्॥
हवन में जाने वाले देवराज इन्द्र के रथ की धुरी के सहयोग से गमनशील, शक्तिशाली शत्रु पर कुपित, आनन्द प्रदान करने वाले, हवन में देवराज इन्द्र को ले जाने वाले, स्तोताओं की स्तुतियों द्वारा अश्वों को (आपके अलावा) कौन रथ में संयोजित कर सकता है? देवराज इन्द्र के घोड़ों का पालन-पोषण करने वाला ही दीर्घजीवी हो सकता है।(सामवेद 3.23.10)
Movable with the help of axle of the charoite of Devraj moving towards Hawan, angry over the mighty enemy, pleasure granting, those who take Devraj Indr to Hawan, who else other than them can deploy the horses in the charoite with Stuties! One who nurse -nurture the horses of Devraj Indr can survive for long.
सामवेद ऐन्द्रं पर्वणि पर्व (3.24) :: ऋषि :- मधुच्छन्दा, जेता माधुच्छन्दस, गौतम, अत्रि, तिरश्चीरांगिरस, काण्वो, नीपातिथि, विश्वामित्र, शंयुर्वाहस्पत्य; देवता :- इन्द्र; छन्द :- अनुष्टुप्।
गायन्ति त्वा गायत्रिणोऽर्चन्त्यर्कमर्किणः। ब्रह्माणस्त्वा शतक्रत उद्वंशमिव येमिरे॥
हे श्रेष्ठ कर्म या सौ यज्ञ करने वाले (शतक्रतु) देवराज इन्द्र! स्तोतागण उच्च स्वर से स्तुतियों का उच्चारण करके आपको आहूत करते हैं। उद्गातागण पूजनीय देवराज इन्द्र का मन्त्रोच्चारण के माध्यम से सम्मान करते हैं। बाँस के ऊपर अपना खेल दिखाने वाले नट के सदृश ब्रह्मज्ञानी लोग सबसे अधिक उत्तम स्तुतियों के द्वारा आपका आवाहन करते हैं।(सामवेद 3.24.1)
Hey Devraj Indr accomplishing hundred Yagy! The Stotas make Stuties in loud voice to invoke you. The singers honour revered Devraj Indr with Mantropchar-recitation of hymns. The enlightened-Brahm Gyani invoke you with best Stuties like the contortionist-acrobat, who show his feats over the bamboo.
इन्द्रं विश्वा अवीवृधन्त्समुद्रव्यचसं गिरः। रथीतमं रथीनां वाजानां सत्पतिं पतिम्॥
अन्तरिक्ष के सदृश चारों ओर विद्यमान, श्रेष्ठ शूरवीर, सागर के सदृश विशाल रथ पर विराजमान, पराक्रम तथा अन्न के स्वामी, सत्पुरुषों की रक्षा करने वाले देवराज इन्द्र की महिमा का गुणगान सभी लोग करते हैं।(सामवेद 3.24.2)
Glory of excellent brave, riding the large charoite like ocean, invincible-mighty, deity of food grains, protector of the virtuous, Devraj Indr present in the space all around, is sung by all people.
इममिन्द्र सुतं पिब ज्येष्ठममर्त्य मदम्। शुक्रस्य त्वाभ्यक्षरन्धारा ऋतस्य सादने॥
हे देवराज इन्द्र! अविनाशी, अति उत्तम, सुख का अनुभव कराने वाले सोमरस का सेवन करें। यज्ञवेदिका में निष्पन्न किया हुआ सोमरस आपको समर्पित है।(सामवेद 3.24.3)
Hey Devraj Indr! Enjoy excellent Somras that makes feel excellent comforts, boost life span i.e., grants immortality. Somras sanctified over the Yagy Vedika is offered to you.
यदिन्द्र चित्र म इह नास्ति त्वादातमद्रिवः। राधस्तन्नो विदद्वस उभयाहस्त्या भर॥
हे विचित्र वज्र को धारण करने वाले संपत्तिवान् देवराज इन्द्र! आपको समर्पित करने हेतु पर्याप्त धन हमारे समीप नहीं है। इसलिए अपने खुले हाथों से हमें पर्याप्त धन देने की कृपा करें।(सामवेद 3.24.4)
Hey wealthy Devraj Indr wielding amazing Vajr! We do not have sufficient money to offer you. Therefore, you grant us sufficient wealth with liberal open hands.(25.11.2025)
श्रुधी हवं तिरश्र्च्या इन्द्र यस्त्वा सपर्यति। सुवीर्यस्य गोमतो राबस्पूर्धि महाँ असि॥
हे ऐश्वर्यवान् देवराज इन्द्र! तिरश्चि ऋषि जो आपके आराधक हैं, आप उनकी स्तुतियों को श्रवण करें। हे महान् देवराज इन्द्र! आप उत्तम पराक्रम तथा गाय देते हुए हमें धन-धान्य से सम्पन्न कर दें।(सामवेद 3.24.5)
Hey Devraj Indr, possessor of grandeur! Respond to the Stuti-prayers of your devotee Tirshrichi. Hey great Devraj Indr! Grant excellent valour, cows, wealth & food grains to us.
असावि सोम इन्द्र ते शविष्ठ धृष्णवा गहि।
आ त्वा पृणक्त्विन्द्रियं रजः सूर्यो न रश्मिभिः॥
महा पराक्रमी शत्रुओं को परास्त कर देने वाले हे देवराज इन्द्र! विस्तृत आकाश को अपनी रश्मियों से प्रकाशित करने वाले सूर्य के सदृश आप के अंदर भी सोमरस का सेवन करने के पश्चात् अत्यधिक शक्ति का नेतृत्व हो।(सामवेद 3.24.6)
Hey Devraj Indr defeater of the mighty enemy! You should drink Somras and spread your aura-radiance in the space like Sury Dev, lead with Ultimate might power & strength.
एन्द्र याहि हरिभिरुप कण्वस्य सुष्टुतिम्। दिवो अमुष्य शासतो दिवं यय दिवावसो॥
हे पराक्रमी देवराज इन्द्र! आप घोड़े पर सवार होकर कण्व की उत्तम स्तुतियों को सुनने के निमित्त उपस्थित हो। स्वर्गलोक में रहने में हमारी तरह आपको भी आनन्द की प्राप्ति होगी, इसलिए आप उसी स्थान पर रहने हेतु गमन करें।(सामवेद 3.24.7)
Hey mighty Devraj Indr! Ride the horse and come to listen the best Stuties-prayers by Kavy Rishi. You will experience pleasure-comforts like us residing in the heavens, hence move to that place.
आ त्वा गिरो रथीरिवास्थुः सुतेषु गिर्वणः। अभि त्वा समनूषत गावो वत्सं न घेनवः॥
हे वन्दनीय देवराज इन्द्र! रथ पर विराजमान होकर सुरक्षित उपस्थित होने वाले युद्धकर्ता (योद्धा) के सदृश एवं बछड़े के समीप जाने हेतु गमनशील गौ के सदृश, "सोमयज्ञ" में हमारे स्तोत्र आपके समीप पहुंचते हैं।(सामवेद 3.24.8)
Hey worshipable Devraj Indr! Our Strotr in the Som Yagy reach you like the warrior safe in the charoite and the moving cow reaching the calf.
एतो न्विन्द्रं स्तवाम शुद्धं शुद्धेन साम्ना। शुब्दैरुक्थैर्वावृध्वां सं शुद्धैराशीवर्वान्ममत्तु॥
हे देवराज इन्द्र! आप बिना विलम्ब किये यहाँ उपस्थित हों। पावन सामगानों तथा यजुर्मन्त्रों के द्वारा हम आपकी स्तुति करते हैं। पराक्रम बढ़ाने वाला, मन्त्रों से शुद्ध किया गया, गाय के दूध में मिला हुआ सोमरस, आपको सुखानुभूति प्रदान करे।(सामवेद 3.24.9)
Hey Devraj Indr! Come here without delay. We worship you with pious Som Gan and Yajur Mantrs. Let the Somras sanctified with Mantrs mixed with cow's milk increase your valour-bravery & grant you pleasure.
यो रयिं वो रयिन्तमो यो द्युम्नैद्युम्नवत्तमः। सोमः सुतः स इन्द्र तेऽस्ति स्वधापते मदः॥
हे ऐश्वर्यवान् देवराज इन्द्र! रूपवान्, अत्यधिक तेज से युक्त, आराधकों को धन प्रदान करने वाला यह सोमरस आपको प्रफुल्लित करने वाला है।(सामवेद 3.24.10)
Hey possessor of grandeur Devraj Indr! This Somras gladden you & grant wealth to the beautiful devotees, possessing extreme aura-radiance.
सामवेद ऐन्द्रं पर्वणि पर्व (4.25) :: ऋषि :- भरद्वाज, वामदेव अथवा शाकपूतो, प्रियमेध, प्रगाथ, श्यावश्व, आत्रेय, शंयु, वामदेव, जेता माधुच्छंदस; देवता :- इन्द्र, मरुत् अथवा दधिक्रा; छन्द :- अनुष्टुप्।
प्रत्यस्मै पिपीषते विश्वानि विदुषे भर। अरङ्गमाय जग्मयेऽपश्चादध्वने नरः॥
हे याजक! सोमरस का पान करने की अभिलाषा रखने वाले, यज्ञ का संचालन करने वाले, महाज्ञानी, निश्चित समय पर उचित स्थान को प्राप्त कराने वाले, यज्ञ में गमनशील होकर, सबसे पहले यज्ञ स्थल पर पहुँचने वाले देवराज इन्द्र को सोमरस समर्पित करके संतुष्ट करो।(सामवेद 4.25.1)
Hey Yajak! Satisfy Devraj Indr desirous of Somras, who conduct Yagy, is enlightened, attain right position at the right moment, movable to the Yagy and reaching first of all.
आ नो वयो वयःशयं महान्तं गह्वरेष्ठाम्। महान्तं पूर्विणेष्ठामुग्रं वचो अपावधीः॥
हे देवराज इन्द्र! बृहत् पर्वत पर विद्यमान, सभी जगह व्याप्त, सोमरूपी अन्न प्रदान करके हमें परिपूर्ण कर दें। अत्यन्त प्रसिद्ध भाषणों को आप हमारे निकट न आने दें। हम निन्दा करने के पात्र न बनें।(सामवेद 4.25.2)
Hey Devraj Indr! Present over the huge-vast mountain, pervading all places, suffice us with food grain in the form of Som. Do not let extreme speeches close to you. We should not attract condemnation-reprehension.
आ त्वा रथं यथोतये सुम्नाय वर्तयामसि। तुविकूर्मिमृतीषहमिन्द्रं शविष्ठ सत्पतिम्॥
शत्रुओं को पराभूत करने वाले महा पराक्रमी, याज्ञिकों के पोषणकर्ता हे महा बलशाली देवराज इन्द्र! रक्षा करने तथा सुख प्राप्त करने के उद्देश्य से, गतिमान रथ के सदृश, सभी ओर भ्रमण कराते हुए, आपको हम (याज्ञिक जन) यज्ञ-वेदिका पर ले आते हैं।(सामवेद 4.25.3)
Hey extremely powerful, defeating enemies, nurturer of the Yagyik Devraj Indr! We move all around like a movable charoite, bring you to the Yagy Vedica with the purpose of protection and comforts.
स पूव्यों महोनां वेनः क्रतुभिरानजे। यस्य द्वारा मनुः पिता देवेषु धिय आनजे॥
याजक के सहयोग से हवियों को ग्रहण करने हेतु, कर्म करने वाले, देवगणों के पोषणकर्ता, चिंतनशील, उत्तम देवराज इन्द्र यज्ञ-वेदिका पर प्रकट होते हैं।(सामवेद 4.25.4)
Thoughtful Devraj Indr nurturer of demigods-deities, performer of endeavours, appear over the Yagy Vedica for accepting offerings with the cooperation of the Yajak.
यदी वहन्त्याशवो भ्राजमाना रथेष्वा। पिबन्तो मदिरं मधु तत्र श्रवांसि कृण्वते॥
सबको आनन्द प्रदान करने वाले, अन्न पैदा करने वाले, तृप्तिकारी सोमरस का पान करने वाले, देदीप्यमान, तुरन्त गमन करने वाले मरुद्गण, देवराज इन्द्र को यज्ञ-स्थल पर ले जाते हैं।(सामवेद 4.25.5)
Producer of food grains, drinker of satisfying Somras, Marud Gan who grant pleasure to everyone, bring Devraj Indr to the Yagy site.
त्यमु वो अप्रहणं गृणीषे शवसस्पतिम्। इन्द्रं विश्वासाहं नरं शचिष्ठं विश्ववेदसम्॥
याजकों की भलाई हेतु शुभ कार्य करने वाले, पराक्रम तथा धन के अधिष्ठाता, शत्रुओं को परास्त करने वाले, हवन के नायक, पराक्रम से परिपूर्ण, सब कुछ जानने वाले देवराज इन्द्र की (हम) वन्दना करते हैं।(सामवेद 4.25.6)
We worship Devraj Indr who perform pious deeds for the welfare, well being of the Yajak Gan, deity of might & wealth, defeater of the enemy, leader of the Yagy, full of valour all knowing.(29.11.2025)
दधिक्राव्णो अकारिषं जिष्णोरश्वस्य वाजिनः।
सुरभि नो मुखा करत्प्र ण आयूंषि तारिषत्॥
सदैव विजय प्राप्त करने वाले, घोड़े के सदृश तेज गतिमान, दधिक्राव (ऋषि) की हम वन्दना करते हैं। जो शारीरिक अंगों की रक्षा करने वाले एवं हमें दीर्घ आयु प्रदान करने वाले हैं।(सामवेद 4.25.7)
We worship Dadhikrav Rishi who is accelerated like a horse and is always a winner. He protect the body organs and grant us long life.
पुरा भिन्दुर्युवा कविरमितौजा अजायत। इन्द्रो विश्वस्य कर्मणो धर्ता वज्री पुरुष्टुतः॥
वह देवराज इन्द्र शत्रुओं की पुरियों को तहस-नहस करने वाले, नित्य युवा, महाज्ञानी, कल्याणमय कार्यों को शरण प्रदान करने वाले, महा पराक्रमी, सबसे अधिक ऐश्वर्यवान् होकर उत्पन्न हुए है।(सामवेद 4.25.8)
Devraj Indr, destroyer of the forts-cities of the enemies, always young, extremely-Ultimate enlightened, shelter-protect the welfare means, possess extreme valour-might and has evolved with the grandeur which is more than everyone.
सामवेद ऐन्द्रं पर्वणि पर्व (4.26) :: ऋषि :- प्रियमेध, वामदेव, मधुच्छन्दा, आप्त्यस्त्रित, भरद्वाज, अत्रि, प्रस्कण्व; देवता :- इन्द्र, उषा, विश्वेदेवा; छन्द :- अनुष्टुप्।
प्रप्र वस्त्रिष्टुभमिषं वन्दद्वीरायेन्दवे। धिया वो मेधसातये पुरन्ध्या विवासति॥
हे याज्ञिक गण! तीन स्तोत्रों से निर्मित धान्य (भोज्य पदार्थ), उत्तम शूरवीर देवराज इन्द्र को समर्पित करो। यज्ञ को पूर्ण करने हेतु बुद्धिमानी से किये गये श्रेष्ठ कर्मों का मनवांछित फल प्रदान करके 'देवराज इन्द्र' याज्ञिकों को सम्मानित करते हैं।(सामवेद 4.26.1)
Hey Yagyik Gan! Offer the eatables backed with three food grains to the best warrior. Devraj Indr honour the Yagyik who accomplish the Yagy intelligently and reward them with accomplishment of desires.
कश्यपस्य स्वर्विदो यावाहुः सयुजाविति। ययोर्विश्वमपि व्रतं यज्ञं धीरा निचाय्य॥
सब कुछ जानने वाले देवराज इन्द्र के दोनों घोड़े हमेशा यज्ञ के कार्यों (देवराज इन्द्र को यज्ञ-वेदिका तक पहुँचाने) में लगे रहते हैं। इस बात के निश्चित होने के पश्चात्, उन्हें (बिना संकोच के) रथ में नियुक्त कर लिया जाता है, ऐसा ज्ञाता पुरुषों का कहना है।(सामवेद 4.26.2)
The horses of Devraj Indr who knows every thing, continue carrying him to the Yagy Vedica. These horses are deployed in the charoite without hitch once its decided that Devraj is going to join the Yagy.
अर्चत प्रार्चता नरः प्रियमेधासो अर्चत । अर्चन्तु पुत्रका उत पुरमिद् धृष्णवर्चत॥
हे ऋत्विजों! हवन से स्नेह करने वाले आराधकों तथा याजकों की अभिलाषा को पूरा करने वाले एवं शत्रुओं का तिरस्कार करने वाले देवराज इन्द्र का आप सभी (श्रद्धापूर्वक) आदर करें।(सामवेद 4.26.3)
Hey Ritvij Gan! Honour Devraj Indr who accomplish the desires of the devotees and the Yajak Gan who perform the Hawan with love & affection and disdain-reproach the enemies.
उक्थमिन्द्राय शंस्यं वर्धनं पुरुनिष्विधे। शक्रो यथा सुतेषु नो रारणत्सख्येषु च॥
हे उद्गाताओं! शत्रुओं का विनाश करने वाले, शक्तिशाली देवराज इन्द्र हेतु (उनके) कीर्तिवर्द्धक श्रेष्ठ स्तोत्रों का उच्चारण करो, जिसके फलस्वरूप देवराज इन्द्र हमारी संतानों तथा सखाओं पर सर्वदा अपनी कृपा बनाये रखें।(सामवेद 4.26.4)
Hey hymns singers-Udgata Gan! Recite the best Strotrs leading to the fame-glory of mighty destroyer of the enemies Devraj Indr. As an outcome of it, let Devraj Indr have mercy-compassion over our progeny and companions.
विश्वानरस्य वस्पतिमनानतस्य शवसः। एवैश्च चर्षणीनामूती हुवे रथानाम्॥
हे मरुद्गण! शत्रुओं द्वारा कभी न परास्त होने वाले, शत्रुओं के सैनिकों पर चढ़ाई करने वाले, महा पराक्रमी देवराज इन्द्र की आपके सैनिकों पर होने वाले हमले के दौरान उनके रथों की रक्षा करने हेतु आहूत करते हैं।(सामवेद 4.26.5)
Hey Marud Gan! Never defeated, attacker-raider of the enemy soldiers, absolutely mighty Devraj Indr invoke you for the protection of the charoites & warriors.
स घा यस्ते दिवो नरो धिया मर्तस्य शमतः। ऊती स बृहतो दिवो द्विषो अंहो न तरति॥
याजक के दिव्य गुणों से सम्पन्न स्तोत्रों के द्वारा जो व्यक्ति देवराज इन्द्र का सखा बन जाता है, वह मनुष्य अद्भुत संरक्षण प्राप्त कर लेता है, जिससे वह कुटिल कर्म एवं शत्रुओं से सदैव बचा रहता है।(सामवेद 4.26.6)One who attain the companionship of Devraj Indr by virtue of the divine qualities-traits of the Yajak attain amazing protection and remain safe by the wicked-vicious actions of the enemies.
अभ्यर्थना :: अनुरोध, विनती, मांग, याचना, शपथ दिलाना, सौंगंध दिलाना, कसम खिलाना, अनुरोध, आधार तत्व-स्थापन, अभियाचना, अनुबंध, इकरारनामा; candidature, postulation, adjuration.Hey Udgata Gan! Think-concentrate in appreciable Devraj Indr, who is worshipped by several Yajak Gan with Strotrs and Mantr shakti.(01.12.2015)
विभोष्ट इन्द्र राधसो विभ्वी रातिः शतक्रतो। अथा नो विश्वचर्षणे द्युम्नं सुदत्र मंहय॥
हे सर्वज्ञ, सौ अश्वमेध (सैकड़ों शुभ कर्मों को) करने वाले, महान् दानी देवराज इन्द्र! आप गौरवशाली धन प्रदान करे, हमें भी धन-धान्य से परिपूर्ण कर दें।(सामवेद 4.26.7)
Hey all knowing, performer of hundred auspicious Yagy, great donor Devraj Indr! Grant us glorious wealth and enrich us with food grains and wealth.
वयश्चित्ते पतत्रिणो द्विपाच्चतुष्यादर्जुनि। उषः प्रारन्नृतूँरनु दिवो अन्तेभ्यस्परि॥
हे दिव्य प्रकाश से युक्त उषादेवि! जब अन्तरिक्ष में आपका उदय हो जाता है, तत्पश्चात् द्विपाद (मनुष्य), चतुष्पाद (चार पैरों वाले पशु) एवं अन्तरिक्ष में भ्रमण करने वाले पक्षीगण सभी अपनी इच्छानुसार भ्रमण करते हुए दृष्टिगत होते हैं।(सामवेद 4.26.8)
Hey Usha devi possessing divine aura-radiance! When you rise in the space-sky, the two legged, four legged and birds flying in the sky appear to be roaming as per their will.
अमी ये देवा स्थन मध्य आ रोचने दिवः। कद्व ऋतं कदमृतं का प्रत्ला व आहुतिः॥
हे (इन्द्रादि) देवताओं! सूर्य के उदित हो जाने के पश्चात् अन्तरिक्ष में प्रकाश युक्त हो जाने से आप लोगों तक कोई स्तुति जाती है अथवा नहीं? या किसी विशेष प्रकार की आहुति को आप प्राप्त कर पाते है अथवा नहीं।(सामवेद 4.26.9)
Hey Indr & other demigods-deities! Does the Stuti-prayers reach after the Sun rise? Or else whether you attain any other kind of sacrifices or not?
ऋचं साम यजामहे याभ्यां कर्माणि कृण्वते। वि ते सदसि राजतो यज्ञं देवेषु वक्षतः॥
ऋचा (वेद मन्त्र) तथा साम-गान के सहयोग से यज्ञ कर्म परिपूर्ण किया जाता है। यज्ञ-वेदिका मे उच्चारित हुए (ऋचा तथा साम-गान) मन्त्रों के सहयोग से ही हवि देवताओं तक जाती है।(सामवेद 4.26.10)
Yagy Karm are accomplish with the help of Richas, Ved Mantrs. The oblations-offering reach the demigods-deities with the help of Mantr Shakti.(30.11.2025)
सामवेद ऐन्द्रं पर्वणि पर्व (4.27) :: ऋषि :- रेभ, सुवेदा, शैलूषि, वामदेव, सव्य आंगिरस विश्वामित्र, कृष्ण आंगिरस, मेधातिथि, भरद्वाज, कुत्स; देवता :- इन्द्र, द्यावापृथिवी; छन्द :- जगती, महापंक्ति।
विश्वाः पृतना अभिभूतरं नरः सजूस्ततक्षुरिन्द्रं जजनुश्च राजसे।
क्रत्वे वरे स्थेमन्यामुरीमुतोग्रमोजिष्ठं तरसं तरस्विनम्॥
मनुष्य लोग याग में उत्तम पद पर विराजमान होकर सेनानी, शक्तिशाली, एकत्रित सेना से सम्पन्न, शस्त्र-अस्त्र धारण करने वाले, शत्रु का संहार करने वाले, तेजस्वी, तीव्र वेग से काम करने वाले देवराज इन्द्र की वन्दना करते हैं।(सामवेद 4.27.1)
Humans worship mighty Devraj Indr who has attained excellent position as a warriors, has army, wield weapon-missiles, destroy the enemy, is aurous-radiant, energetic and perform at high speed.
श्रत्ते दधामि प्रथमाय मन्यवेऽहन्यद्दस्युं नर्यं विवेरपः।
उभे यत्वा रोदसी धावतामनु भ्यसाते शुष्मात्पृथिवी चिदद्रिवः॥
हे वज्रधारक देवराज इन्द्र! असुरों का विनाश करने वाले, जीव-जंतुओं के लिए कल्याणकारी जल को प्रवाहित करने वाले अर्थात् स्वेच्छानुसार गतिमान करने वाले, आपके उस तीव्र मन्यु (क्रोध) का, हम याज्ञिक जन आदर करते हैं।(सामवेद 4.27.2)
Hey Vajr wielding Devraj Indr! You are destroyer of the demons, flow water for the welfare of humans. We Yagyik Gan respect-honour your anger-furiousity.
समेत विश्वा ओजसा पतिं दिवो य एक इद्भुरतिथिर्जनानाम्।
स पूव्यों नूतनमाजिगीषन् तं वर्तनीरनु वावृत एक इत्॥
हे प्रजाओं! अपने पुरुषार्थ से स्वर्गलोक के अधिष्ठाता, एकमात्र मनुष्यों में आराधना करने योग्य, शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने की इच्छा वाले, स्तोताओं को विजय दिलाने वाले मार्ग की ओर बढ़ाने वाले, उन देवराज इन्द्र की सामूहिक वन्दना करो।(सामवेद 4.27.3)
Hey populace! Resort to groups worship of Devraj Indr, who is the Lord of heavens due to his efforts, alone qualifies for worship by the humas, victorious over the enemies, moves the Stotas towards victory.
इमे त इन्द्र ते वयं पुरुष्टुत ये त्वारभ्य चरामसि प्रभूवसो।
न हि त्वदन्यो गिर्वणो गिरः सघत्क्षोणीरिव प्रति तद्धर्य नो वचः॥
हे ऐश्वर्यवान् तथा लोगों द्वारा प्रशंसनीय देवराज इन्द्र! आपके आश्रय में रहकर काम करते हुए, श्रद्धापूर्वक निवास करते हुए, आपके सदृश दूसरे स्तुति करने योग्य देवता के न रहने के निमित्त हम आपकी आराधना करते हैं। जिस प्रकार धरती सभी को आश्रय प्रदान करती है, उसी प्रकार आप भी हमारे स्तोत्रों को आश्रय प्रदान करें, अर्थात् स्वीकार करें।(सामवेद 4.27.4)
Hey Devraj Indr appreciated by the glorious people! We remain under your asylum respectfully, worship you not to have any other deity capable like you. They way earth gives shelter to everyone, similarly grant asylum to our Strotrs i.e., accept-respond them.
चर्षणीधृतं मघवानमुक्थ्या3 मिन्द्रं गिरो बृहतीरभ्यनूषत।
वावृधानं पुरुहूतं सुवृक्तिभिरमर्त्यं जरमाणं दिवेदिवे॥
सम्पूर्ण मानवों के पोषणकर्ता, वैभवशाली, विख्यात, आराधकों की वृद्धि करने वाले, अविनाशी, विविध स्तुतियों से नित्य प्रति प्रशंसनीय, देवराज इन्द्र की हम विभिन्न दिव्य स्तोत्रों से स्तुति करते हैं।(सामवेद 4.27.5)
We worship sumptuous-glorious, famous, immortal Devraj Indr who nurture the entire human race, grant progress to the devotees with different divine appreciable Strotrs & Stuties.
अच्छा व इन्द्रं मतयः स्वर्युवः सनीचीर्विश्वा उशतीरनूषत।
परिष्वजन्त जनयो यथा पतिं मर्यं न शुन्ध्युं मघवानमूतये॥
अपनी सुरक्षा के निमित्त, पावन, वैभवशाली, देवराज इन्द्र की, आत्मबल की वृद्धि करने वाली, एक संग निवास करने वाली, उन्नतशील होने की अभिलाषा करने वाली, हमारी स्तुतियां वैसे ही इच्छा करती है, जिस प्रकार स्त्री अपने पति के प्रेम एवं श्रद्धाभाव से युक्त होकर आलिंगन करती हैं।(सामवेद 4.27.6)
For our safety, pious, glorious, boosting self confidence, accompanied together, desirous of progress our Stuties to Devraj Indr wish that they should embraces Devraj Indr just like a woman who embraces her husband with love and respect.
अभि त्यं मेषं पुरुहूतमृग्मियमिन्द्रं गीर्भिर्मदता वस्वो अर्णवम्।
यस्य द्यावो न विचरन्ति मानुषं भुजे मंहिष्ठमभि विप्रमर्चत॥
हे उद्गाताओं! शत्रुओं को परास्त करने वाले, बहु प्रशंसनीय, विपुल धन के स्वामी देवराज इन्द्र की अभ्यर्थना करो। स्वर्गलोक के विस्तार के सदृश, जिसके मंगलकारी कर्म चारों दिशाओं में व्याप्त हैं, ऐसे ज्ञान से युक्त देवराज इन्द्र की, सुख की प्राप्त करने के लिए स्तुति करो।(सामवेद 4.27.7)
Hey Udgata Gan, singers of hymns! Request Devraj Indr lord of large quantum wealth for defeating the enemy, who is respected by majority of people. His auspicious-virtuous endeavours are pervaded in the four directions. For pleasure-comforts worship him.
त्यं सु मेषं महया स्वर्विदं शतं यस्य सुभुवः साकमीरते।
अत्यं न वाजं हवनस्यदं रथमिन्द्रं ववृत्यामवसे सुवृक्तिभिः॥
जिन देवराज इन्द्र के उत्कृष्ट, सैकड़ों, श्रेष्ठ स्थान एक साथ ही उन्नतशील होते हैं, उन शत्रुओं से स्पर्द्धा करने वाले, धन तथा दान के लिए अभिलषित स्थान पर गमन करने वाले, घोड़े के सदृश तीव्रता से यज्ञ-स्थान पर पहुँचाने वाले देवता की उत्कृष्ट कीर्ति को, अपनी सुरक्षा के निमित्त, सैकड़ों बार स्तोत्रों के द्वारा स्तुति करते हुए अभिव्यक्त करो।(सामवेद 4.27.8)
Describe the glory of Devraj Indr hundreds of times with Strotrs, who's hundreds of excellent places are progressive, who compete with the enemies, moves to the desired place for making donations & wealth, reaches the desired place and Yagy site with the speed of horse, possess excellent fame for your protection-safety.
घृतवती भुवनानामभिश्रियोर्वी पृथ्वी मधुदुघे सुपेशसा।
द्यावापृथिवी वरुणस्य धर्मणा विष्कभिते अजरे भूरिरेतसा॥
प्रकाशमान् समस्त प्राणियों के आश्रय स्थान, बृहत्, सुविस्तृत, मधुरता से युक्त जल प्रदान करने वाले, उत्तम विधाता की धारक शक्ति से अमर रहने वाले तथा उत्तम उत्पादक सामर्थ्य से सम्पन्न ये स्वर्गलोक तथा भूलोक हैं।(सामवेद 4.27.9)
Heavens & earth are aurous-radiant, shelter for all creatures, vast, huge, grant sweetened water, immortal due to the support of Almighty possess best productivity and capability.
उभे यदिन्द्र रोदसी आपप्राथोषा इव। महान्तं त्वा महीनां सम्राजं चर्षणीनाम्।
देवी जनित्र्यजीजनद्भद्रा जनित्र्यजीजनत्॥
हे देवराज इन्द्र! प्रकाशमान् उषा के सदृश स्वर्गलोक तथा भूलोक को देदीप्यमान् करने वाले, महान् प्राणियों के अधिपति आपको मंगल करने वाली देवताओं की माता अदिति ने उत्पन्न किया है।(सामवेद 4.27.10)
Hey Devraj Indr! Shinning like brilliant Usha, illuminating heavens & earth, lord of all organism was evolved by the mother of demigods-deities for the welfare of great living beings.
प्र मन्दिने पितुमदर्चता वचो यः कृष्णगर्भा निरहनृजिश्वना।
अवस्यवो वृषणं वज्रदक्षिणं मरुत्वन्तं सख्याय हुवेमहि॥
हे याजकगण! सर्वप्रधान देवराज इन्द्र को हव्य पदार्थ अर्पित करके आराधना करो। ऋजिश्व के सहयोग से कृष्णासुर की गर्भयुक्त स्त्रियों के संग उसका संहार करने वाले, दायें हस्त में वज्र धारण करने वाले, मरुतों के सैन्य दल के साथ स्थित रहने वाले, बलशाली, उन देवराज इन्द्र को, अपनी रक्षा की अभिलाषा करने वाले हम (यजमान) सख्यता के लिए आवाहित करते हैं।(सामवेद 4.27.11)
Hey Yajak Gan-Yajman! Make oblations-offerings to Devraj Indr first of all. We invoke Devraj Indr who destroyed Krashna Sur along with his pregnant wives with the help of Rijishv, wielding Vajr in his right hand accompanying the army of Marud Gan, for our welfare-well being.
सामवेद ऐन्द्रं पर्वणि पर्व (4.27) :: ऋषि :- नारद, गोषूक्त्यश्वसूक्तिनौ, पर्वत, विश्वमना वैयश्च , नृमेध, गौतम; देवता :- इन्द्र; छन्द :- उष्णिक्।
इन्द्र सुतेषु सोमेषु क्रतुं पुनीष उक्थ्यम्। विदे वृधस्य दक्षस्य महाँ हि षः॥
हे देवराज इन्द्र! उत्तम विधि से निर्मित सोमरस का सेवन करके (आप) याजक तथा स्तुतिकर्ता (दोनों) को, प्रगति की ओर अग्रसर करने वाली शक्ति को प्राप्त करने के निमित्ति, पावन कर देते हैं, (क्योंकि) आप महान् हैं।(सामवेद 4.28.1)
Hey Devraj Indr! Drinking Somras with best means-methods, you cleanse both Yajak and Stuti performers, for attaining strength for progress, since you are great.
तमु अभि प्र गायत पुरुहूतं पुरुष्टुतम्। इन्द्रं गीर्भिस्तविषमा विवासत॥
हे उद्गाताओं! अनेक याजकों द्वारा आहूत किये जाने वाले प्रशंसनीय, उन देवराज इन्द्र का स्तोत्रों से स्तुति तथा मन्त्रों से चिन्तन करो।(सामवेद 4.28.2)
तं ते मदं गृणीमसि वृषणं पृक्षु सासहिम्। उ लोककृत्नुद्रिवो हरिश्रियम्॥
हे वज्रधारक देवराज इन्द्र! बलशाली, रणक्षेत्र में शत्रुओं को पराभूत करने वाले, मानवों के निमित्त मंगलकारी घोड़े जिनके निकट शोभायमान होते हैं, सोमरस के पान के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाले, उस आपके उल्लास की हम सराहना करते हैं।(सामवेद 4.28.3)
Hey Vajr wielding Devraj Indr! We appreciate mighty, defeater of the enemy in the war, appear glorious near the auspicious horses Devraj Indr; who has glee-frolic after drinking Somras.
यत्सोममिन्द्र विष्णवि यद्वा घ त्रित आप्त्ये। यद्वा मरुत्सु मन्दसे समिन्दुभिः॥
हे देवराज इन्द्र! यज्ञों में भगवान् विष्णु के आगमन करने के पश्चात् आपने जो सोमरस का पान किया अथवा आप्त्य-त्रित के अथवा मरुतों सहित अथवा दूसरे यज्ञों में सोमरस के पान से आह्वादित होने वाले आप हमारे यज्ञ में भी आगमन करके सोमपान से प्रसन्न हों।(सामवेद 4.28.4)
Hey Devraj Indr! The way you enjoy-gladden drinking Somras in the Yagy of Bhagwan Shri Hari Vishnu, Apt-Trit, the Marud Gan or the other Yagy, enjoy Somras in our Yagy as well.
एदु मधोर्मदिन्तरं सिञ्चाध्वर्यो अन्धसः। एवा हि वीरस्तवते सदावृधः॥
हे मनुष्यों! माधुर्ययुक्त सोमरस के पान से प्रफुल्लित होने वाले देवराज इन्द्र को यह रस प्रदान करो। बलशाली तथा लगातार बढ़ोत्तरी करने वाले देवराज इन्द्र ही उद्गाताओं द्वारा हमेशा प्रशंसा के योग्य होते है।(सामवेद 4.28.5)
Hey humans! Offer this sap to Devraj Indr who gladden after drinking Somras. Progressive, mighty Devraj Raj Indr is always appreciated by the Udgata Gan.
एन्दुमिन्द्राय सिञ्चत पिबाति सोम्यं मधु। प्र राधांसि चोदयते महित्वना॥
हे पुरुषों! देवराज इन्द्र के निमित्त (प्रसन्न करने के उद्देश्य से) सोमरस समर्पित करो; क्योंकि माधुर्ययुक्त सोमरस का सेवन करने के पश्चात् वह अपनी महिमा से याज्ञिकों को प्रचुर धन प्रदान करते हैं।(सामवेद 4.28.6)
Hey humans! Offer Somras to appease Devraj Indr. He grants sufficient wealth to the Yagyik after drinking Somras by virtue of his glory.
एतो न्विन्द्रं स्तवाम सखायः स्तोम्यं नरम्। कृष्टीर्यो विश्वा अभ्यस्त्येक इत्॥
हे मित्र गण! तुम तुरन्त ही यहाँ उपस्थित हो, हम उस स्तुति के योग्य, उत्तम मार्ग दर्शन करने वाले देवराज इन्द्र की याचना करें, जो अकेले ही समस्त शत्रुओं को पराभूत करने में समर्थ हैं।(सामवेद 4.28.7)
Hey Mir Gan! Present yourself here immediately so that we pray to deserving Devraj Indr to seek his guidance since he alone is capable of defeating all enemies alone.
इन्द्राय साम गायत विप्राय बृहते बृहत्। ब्रह्मकृते विपश्चिते पनस्यवे॥
हे स्तोतागण! मेधायुक्त, महान्, स्तुति करने के योग्य, परम ज्ञानी देवराज इन्द्र को प्राप्त करने के उद्देश्य से आप लोग बृहत्साम नामक स्तोत्रों का गान करिये।(सामवेद 4.28.8)
Hey Stota Gan! Sing Brahat Sam Strotr to access intelligent, worshipable, highly enlightened Devraj Indr.
य एक इद्विदयते वसु मर्ताय दाशुषे। ईशानो अप्रतिष्कुत इन्द्रो अङ्ग॥
हे प्रिय याज्ञिक गण! दानी प्रवृत्ति होने के कारण व्यक्तियों को धन प्रदान करने वाले, विरोध न किये जाने वाले, वे अकेले देवराज इन्द्र ही समस्त जनों के अधिष्ठाता हैं।(सामवेद 4.28.9)
Hey affectionate Yagyik Gan! By virtue of his tendency to donate, unopposed, Devraj Indr is sole deity of all humans.
सखाय आ शिषामहे ब्रह्मेन्द्राय वज्रिणे। स्तुष ऊ षु वो नृतमाय धृष्णवे॥
हे मित्रगण! न्यायरूपी शस्त्र धारण करने वाले देवराज इन्द्र की हम स्तोत्रों के माध्यम से स्तुति करते हुए, उनसे आशीर्वाद की प्रार्थना करते हैं। शूरवीर एवं शत्रुओं को परास्त करने वाले देवराज इन्द्र की हम, आप समस्त जनों के कल्याण हेतु वन्दना करते हैं।(सामवेद 4.28.10)
Hey Mitr Gan! We achieve blessings of Devraj Indr through Strotrs, who hold a shield of justice. We worship invincible-mighty Devraj Indr who defeats the enemies for the welfare-well being of you people.
सामवेद ऐन्द्रं पर्वणि पर्व (4.29) :: ऋषि :- प्रगाथ, भरद्वाज, नृमेध, पर्वत, इरिम्बिठि, विश्वमना, वसिष्ठ; देवता :- इन्द्र, आदित्य; छन्द :- उष्णिक्, विराडुष्णिक्।
गृणे तदिन्द्र ते शव उपमां देवतातये। यद्धंसि वृत्रमोजसा शचीपते॥
हे पराक्रमी देवराज इन्द्र! हम समीप ही पूर्ण होने वाले हवन में आपके उस पराक्रम की वन्दना करते हैं, जिसके निमित्त आप वृत्र का संहार करने में समर्थ है।(सामवेद 4.29.1)
Hey mighty Devraj Indr! We worship your calibre-might of slaying Vratra Sur; in the Hawan-Yagy being accomplished near us.
यस्य त्यच्छम्बरं मदे दिवोदासाय रन्धयन्। अयं स सोम इन्द्र ते सुतः पिब॥
हे देवराज इन्द्र! जिस सोमरस के सेवन से आनंदित होकर आपने दिवोदास की भलाई करने हेतु उनके शत्रु शम्बरासुर का संहार किया, उस निष्पन्न किये हुए सोमरस का आप पान करें।(सामवेद 4.29.2)
Hey Devraj Indr! By virtue of the pleasure attained by drinking Somras for helping Divo Das to kill Shambra Sur, drink that sanctified Somras.
एन्द्र नो गधि प्रिय सत्राजिदगोह्य। गिरिर्न विश्वतः पृथुः पतिर्दिवः॥
हे समस्त जनों के द्वारा आदरणीय एवं प्रिय देवराज इन्द्र! आप समस्त शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाले, कभी न परास्त होने वाले, पहाड़ के समान बृहत् स्वर्गलोक के अधिष्ठाता हैं। आप आर्थिक सहायता प्रदान करने के लिए हमारे निकट आगमन करें।(सामवेद 4.29.3)
Honoured by all people, hey affectionate Devraj Indr! You are the Lord of vast mountain like heavens, attain victory over the enemies and never defeated. Come close to us to grant financial help.
य इन्द्र सोमपातमो मदः शविष्ठ चेतति। येना हंसि न्या3त्रिणं तमीमहे॥
बहुत ज्यादा सोमरस का सेवन करने वाले महा पराक्रमी देवराज इन्द्र आपका हौसला प्रशंसा करने के योग्य हैं। जिससे आप (दूसरों का बुरा करने वाले) घातक दानवों (कुटिल कृत्य करने वाले) का शमन करते हैं, आप जैसे महान् की हम वन्दना करते हैं।(सामवेद 4.29.4)
Courage of Devraj Indr who drink too much Somras, deserve applaud. By virtue of which he harm-degrade the wicked demons. We worship him for his greatness.
तुचे तुनाय तत्सु नो द्राघीय आयुर्जीवसे। आदित्यासः समहसः कृणोतन॥
हे श्रेष्ठ आदित्यगण! आप आदरणीय हैं। हमारे पुत्र एवं पौत्रादि को दीर्घजीवी बनाने की आप अनुकम्पा करें।(सामवेद 4.29.5)
Hey excellent Adity Gan! You are respectable. Bless our sons and grans sons with long life.
वेत्या हि निर्ऋतीनां वज्रहस्त परिवृजम्। अहरहः शुन्थ्युः परिपदामिव॥
हे वज्र को अपने हाथ में धारण करने वाले देवराज इन्द्र! आप बाधा डालने वाले मूल कारणों को हटाने के रास्ते को जानते हैं। शुद्धता से विपत्तियों (विकारों) को समीप न आने देने वाले मनुष्य के सदृश, आप भी कठिनाइयों को दूर करने में सक्षम हैं।(सामवेद 4.29.6)
Hey Devraj Indr wielding Vajr in your right hand! You remove the root cause-basic hurdles from the path. You are capable of obstructing the defects like those humans who don't let the danger come near by virtue of their piousity-virtuousness.
अपामीवामप स्त्रिधमप सेधत दुर्मतिम्। आदित्यासो युयोतना नो अंहसः॥
हे सूर्य देव! आप हमें विकारों, शत्रुओं, कुकृत्यों तथा कुविचार के निमित्त होने वाले दुष्परिणामों से सदैव बचाकर रखें।(सामवेद 4.29.7)
Hey Sury Dev! Protect us from outcome-result of the defects, enemies, wickedness-viciousness, ill will.(don't let us follow the wicked path)
पिबा सोममिन्द्र मन्दतु त्वा यं ते सुषाव हर्यश्वाद्रिः। सोतुर्बाहुभ्यां सुयतो नार्वा॥
हे अश्वों से सम्पन्न देवराज इन्द्र! आप हर्ष प्रदान करने वाले सोमरस का सेवन करें। पाश से बँधे हुए, अचल अश्वों के सदृश (यज्ञ-वेदिका में) भली-भाँति सुरक्षित रखे गये पत्थर के माध्यम से आपके निमित्त सोमरस तैयार किया जाता है।(सामवेद 4.29.8)
Hey Devraj Indr enriched with horses! Drink gladdening Somras. Somras is produced with stones like the immovable horses in the Yagy Vedica for you.(02.12.2025)
सामवेद ऐन्द्रं पर्वणि पर्व (4.30) :: ऋषि :- सौभरि, नृमेध; देवता :- इन्द्र, मरुत; छन्द :-ककुप्।
अभ्रातृव्यो अना त्वमनापिरिन्द्र जनुषा सनादसि। युधेदापित्वमिच्छसे॥
हे देवराज इन्द्र! आप उत्पन्न होने के साथ ही भ्राताओं के स्पर्द्धा से मुक्त है, न आप पर राज्य करने वाले कोई स्वजन हैं और न सहयोग करने वाले कोई स्वजन। आप संग्राम (लोगों की रक्षा करके) के माध्यम से सहायता करने वाले (स्वजनों) उपासकों को प्राप्त करने की अभिलाषा करते हैं।(सामवेद 4.30.1)
Hey Devraj Indr! You are free from the competition of the brothers born together, There is none to rule you or own person to help-cooperate you. You wish to have helping hands-devotees by virtue of help through the war.
थो न इदमिदं पुरा प्र वस्य आनिनाय तमु व स्तुषे। सखाय इन्द्रमूतये॥
हे मित्र गण! पहले से ही जो धन प्रदान करने वाले हैं, उन देवराज इन्द्र की हम आपके लाभ हेतु वन्दना करते हैं।(सामवेद 4.30.2)
Hey Mitr Gan! We worship Devraj Indr who has been granting wealth before as well for your help.
आ गन्ता मा रिषण्यत प्रस्थावानो माप स्थात समन्यवः। दृढा चिद्यमयिष्णवः॥
गतिमान मरुतों हमें नुकसान न पहुँचाते हुए हमारे समीप पधारें। वे मन्यु (क्रोध) युक्त पराक्रमी शत्रुओं को भी कष्ट पहुँचाने वाले है, वे सदैव हमारे पास ही रहें अर्थात् हमें कभी न छोड़े।(सामवेद 4.30.3)
Let moving Marud Gan come to us without harming us. They should torture-harm the enemy full of anger. They should stay with us.
आ याह्ययमिन्दवेऽश्वपते गोपत उर्वरापते। सोमं सोमपते पिब॥
घोड़ों तथा गायों के अधिपति, पृथ्वी के संरक्षक, सोमरस का सेवन करने वाले हे देवराज इन्द्र! शोधित किये गये सोमरस का सेवन करने हेतु हम आपको आमंत्रित करते हैं।(सामवेद 4.30.4)
Hey Devraj Indr, Lord of cows & horses, protector of earth, drinker of Somras! We invite you for drinking purified-sanctified Somras.
त्वया ह स्विद्युजा वयं प्रति श्वसन्तं वृषभ ब्रुवीमहि। संस्थे जनस्य गोमतः॥
हे बैल के सदृश शक्तिशाली देवराज इन्द्र! गाय आदि भलाई करने वाले जानवरों के प्रति आक्रोश प्रकट करने वालों को, हम आपके सहयोग से उनके क्रोध का उचित उत्तर देकर दूर हटा दें।(सामवेद 4.30.5)
Hey Devraj Indr, strong like he bull! Let us repel away those who show anger towards the cows and other beneficial animals with your help, giving proper-fitting reply for their anger.
गावश्चिघा समन्यवः सजात्येन मरुतः सबन्धवः। रिहते ककुभो मिथः॥
हे उत्साह से सम्पन्न मरुद्गण! गाएँ एक ही जाति की होने के कारण आपस में बहिन के सदृश भिन्न-भिन्न दिशाओं में घूमते हुए भी, आपस में चाटकर स्नेह दर्शाने वाली हैं। कहने का तात्पर्य है कि मनुष्यों को भी गाय के सदृश परस्पर प्रेमपूर्वक निर्वाह करना चाहिए।(सामवेद 4.30.6)
उत्साह :: जोश, उमंग, राग, धुन, सरगर्मी, याद दिलाने की क्रिया, बढ़ावा, उकसावा; excitement, enthusiasm, zeal, prompting.
Hey Marud Gan full of zeal! Cows belonging to the same species, roam together and show affection like sisters by licking. The humans too should behave like them and live together with love & affection.
त्वं न इन्द्रा भर ओजो नृम्णं शतक्रतो विचर्षणे। आ वीरं पृतनासहम्॥
हे शतकर्मा देवराज इन्द्र! आप हमें पराक्रम तथा धन-वैभव देकर सम्पूर्ण कर दें और शत्रुओं को पराजित करने वाले पुत्र भी देने की कृपा करें।(सामवेद 4.30.7)
Hey Devraj Indr accomplisher of hundred Yagy! Grant us might, wealth & prosperity in addition to sons who can not be defeated by the enemy.
अधा हीन्द्र गिर्वण उप त्वा काम ईमहे ससृग्महे। उदेव ग्मन्त उदभिः॥
जिस प्रकार जल के साथ गमन करते हुए लोग आवश्यकतानुसार जल से संतुष्ट होते हैं, उस प्रकार हे गुणगान करने योग्य देवराज इन्द्र! अपनी कामनाओं की पूर्ति करने हेतु हम आपसे निवेदन करते हैं, आपके समीप आकर आपका आवाहन करते हैं।(सामवेद 4.30.8)
The way people travelling with water remain satisfied with water, similarly hey praise deserving hey Devraj Indr! We request-pray to you for the accomplishment of our desires by drawing near-close to you.
सीदन्तस्ते वयो यथा गोश्रीते मधौ मदिरे विवक्षणे। अभि त्वामिन्द्र नोनुमः॥
हे देवराज इन्द्र! निचोड़ने के पश्चात् गौ दुग्ध मिश्रित, शक्ति बढ़ाने वाले, वाणी को मधुरता प्रदान करने वाले सोमरस के समीप इकट्ठा होने वाले पक्षीगण के सदृश, हम एक साथ उपस्थित होकर आपको प्रणाम करते हैं।(सामवेद 4.30.9)
Hey Devraj Indr! After squeezing power booster Somras, increasing sweetness of voice, mixing with cow milk, like the birds flocking nearby, we gather and salute you.
वयमु त्वामपूर्व्य स्यूरं न कच्चिद्भरन्तोऽवस्यवः। वज्रि चित्रं हवामहे॥
जैसे स्थूल गुणों से युक्त (सांसारिक गुणों से युक्त बलशाली) व्यक्ति को लोग आमंत्रित करते हैं, वैसे ही हे वज्रधारक, सर्वोत्तम देवराज इन्द्र! अपने संरक्षण की अभिलाषा से, सर्वश्रेष्ठ सोमरस से आपको संतुष्ट करते हुए हम आपकी वन्दना करते हैं।(सामवेद 4.30.10)
The way we invite a person full of strength and worldly traits, similarly, hey best of all Indr Dev, we invoke you for the sake of our protection and drinking the best Somras, praying-worshiping you.
सामवेद ऐन्द्रं पर्वणि पर्व (4.31) :: ऋषि :- गौतम, त्रित, अवस्यु; देवता :- इन्द्र, विश्वेदेवा, अश्विनी; छन्द :- पंक्ति।
स्वादोरित्या विषूवतो मधोः पिबन्ति गौर्यः।
या इन्द्रेण सयावरीवृष्णा मदन्ति शोभथा वस्वीरनु स्वराज्यम्॥
उपासकों पर अपनी कृपा बरसाने वाले देवराज इन्द्र (सूर्य) देव के संग प्रसन्नतापूर्वक रहकर (गौर्यः) रश्मियों सुंदरता प्राप्त करती हैं। वे धरती पर अपने राज्य की सीमा के अनुसार, उत्पन्न स्वादिष्ट, माधुर्ययुक्त सोमरस का सेवन करती हैं।(सामवेद 4.31.1)
Remaining with Devraj Indr the rays attain beauty-happiness becoming close to him, who shower mercy-grace over the worshipers-devotees. They enjoy sweetened tasty Somras over the earth remaining in their state-boundary.
इत्था हि सोम इन्मदो ब्रह्म चकार वर्धनम्।
शविष्ठ वज्रिन्नोजसा पृथिव्या निः शशा अहिमर्चन्ननु स्वराज्यम्॥
हे महा पराक्रमी-वज्रधारक देवराज इन्द्र! सोमरस में उत्साह बढ़ाने वाले गुणों के निमित्त उसके गुणों का अनुसंधान इन स्तोत्रों में किया गया है। अपने साम्राज्य के कल्याण की दृष्टि से धरती पर आक्रमण करने वाले शत्रुओं का पूर्ण रूप से संहार हो।(सामवेद 4.31.2)
Hey extremely mighty Devraj Indr wielding Vajr! Encouragement boosting qualities have been incorporated in the Somras with these Strotrs. For the betterment-welfare of our own empire-state over the earth, the invaders-attackers should be destroyed.
इन्द्रो मदाय वावृधे शवसे वृत्रहा नृभिः।
तमिन्महत्स्वाजिषूतिमर्भे हवामहे स वाजेषु प्र नोऽविषत्॥
आनन्द एवं हौसला बढ़ाने की अभिलाषा से उद्गाताओं के माध्यम से देवराज इन्द्र की कीर्ति का फैलाव किया जाता है। इसलिए लघु एवं विशाल समस्त संग्रामों में हम संरक्षण प्रदान करने वाले देवराज इन्द्र को आहूत करते हैं। वे देवराज इन्द्र संग्रामों में हमें संरक्षण प्रदान करें।(सामवेद 4.31.3)
हौंसला :: मानसिक शक्ति, मानोबल, नैतिक शक्ति, बढ़ावा, प्रोत्साहन, ग्रहणशीलता, उत्साह; courage, morale, cheerfulness.For increasing the pleasure and morale fame-glory of Devraj Indr is spreaded with the help of Udgata Gan. Hence, Devraj Indr is invoked in small of big wars-battle. Hey Devraj Indr shelter us in wars.
इन्द्र तुभ्यमिदद्रिवोऽनुत्तं वज्रिन्वीर्यम्।
यद्ध त्यं मायिनं मृगं तव त्यन्माययावधीरर्चन्ननु स्वराज्यम्॥
हे पहाड़ों पर निवास करने वाले, अपने राज्य की पूजा करने वालों की सहायता करने वाले, वज्रधारक देवराज इन्द्र! आप महा पराक्रमी हैं। कोई भी शत्रु आप पर विजय प्राप्त नहीं कर सकता है। माया-मृग रूप वृत्र का शमन करने हेतु आप छल-कपट का भी आश्रय लेते हैं।(सामवेद 4.31.4)
माया :: Cast, enchantment, mirage.
छल-कपट :: छल, माया, धोखा; deceit, guile, charlatanry, treachery.
Hey Vajr wielding Devraj Indr, helping those who live over the mountains and worship their state! You are highly powerful-mighty. No enemy can win you. To destroyed Vratr who took shelter under charlatanry, you too resort to treachery.(03.12.2025)
प्रेह्यभीहि धृष्णुहि न ते वज्रो नि यंसते।
इन्द्र नृम्णं हि ते शवो हनो वृत्रं जया अपोऽर्चन्ननु स्वराज्यम्॥
हे देवराज इन्द्र! आप चारों ओर से आक्रमण कर शत्रुओं का संहार कर दें। आपका वज्र एवं पराक्रम सर्वोत्तम है। उसके आगे सभी शत्रु सिर झुकाते हैं। आप अपने अनुकूल स्वराज्य की अभिलाषा करते हुए वृत्र को पराजित कर उसका संहार करें एवं जल प्राप्त करें (वृष्टि के रुकाव को विनष्ट करके जल वृष्टि करे)।(सामवेद 4.31.5)
Hey Devraj Indr! Destroy the enemies by attacking them from all sides. Your Vajr and valour are the best. You never bow before the enemy. You should have-desire your own favourable empire, kill Vratra Sur and attain water by removing the blocked.
यदुदीरत आजयो घृष्णवे धीयते धनम्।
युङ्क्ष्वा मदच्युता हरी कं हनः कं वसौ दधोऽस्माँ इन्द्र वसौ दधः॥
संग्राम के आरम्भ हो जाने पर जो शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है, वही घन प्राप्त करता है। हे देवराज इन्द्र। संग्राम में शत्रुओं के मद को विनष्ट करने वाले, अपने घोड़ों को आप अपने रथ में योजित कर दें। आप किसका शमन करें, किसको धन-धान्य से परिपूर्ण करें, यह आप भली-भाँति जानते हैं। अतः हे देवराज इन्द्र! आप शत्रुओं का हनन कर, हमें धन-वैभव से परिपूर्ण कर दें।(सामवेद 4.31.6)
One who wins the enemy after victory in the war, attains wealth. Hey Devraj Indr! Deploy your horses in the charoite which destroy the ego of the enemy in the battle. You know well whom to destroy and whom to enrich with wealth and food grains. Hence, hey Devraj Indr! Destroy the enemy and enrich us wealth- prosperity & grandeur.
अक्षन्नमीमदन्त ह्यव प्रिया अधूषत।
अस्तोषत स्वभानवो विप्रा नविष्ठया मती योजा न्विन्द्र ते हरी॥
हे देवराज इन्द्र! आपके पोषण के सेवन से संतुष्ट हुए याजकों ने अपनी प्रसन्नता को प्रकट करते हुए सिर हिलाया। तत्पश्चात् उन तेज से युक्त विप्रों ने अद्भुत स्तोत्रों से आपकी वन्दना की। अतः आप अपने घोड़ों को हवन में गमन करने हेतु जोड़ दें।(सामवेद 4.31.7)
Hey Devraj Indr! The Yajak Gan satisfied with the nourishment granted by you moved their head. Thereafter, the Brahmans having radiance-energy worshiped you with Strotrs. Deploy your horses in the charoite while moving to the Hawan.
उपो षु शृणुही गिरो मघवन्मातथा इव।
कदा नः सूनृतावतः कर इदर्थयास इद्योजान्विन्द्र ते हरी॥
हे ऐश्वर्यवान् देवराज इन्द्र! आप हमारे स्तोत्रों को हमारे समक्ष प्रस्तुत होकर ध्यानपूर्वक श्रवण करें। आप हमें सत्य वाणी से युक्त कब करेंगे? हमारी स्तुतियों को सर्वदा स्वीकार करने वाले आप, घोड़ों को यज्ञ में पहुँचने हेतु रथ में जोड़ दें।(सामवेद 4.31.8)
Hey Devraj possessor of grandeur! Listen to our Strotrs while present before us. When will we accomplish with truthful speech-voice? You always respond to our prayers. Deploy your horses in the charoite to reach the Yagy.
चन्द्रमा अप्सवांऽ 3 न्तरा सुपर्णों धावते दिवि।
न वो हिरण्यनेमयः पदं विन्दन्ति विद्युतो वित्तं मे अस्य रोदसी॥
अन्तरिक्ष में रहने वाला निशाकर-चंद्रमा अपनी उत्कृष्ट रश्मियों के साथ अंबर में गतिमान हैं। हे विद्युत् रूप स्वर्ण के समान सूर्य की किरणों! आपके पगरूपी आगे के हिस्से को हमारी इंद्रियां पकड़ने में असमर्थ है। हे द्युलोक एवं पृथ्वीलोक! मेरी स्तुतियों को ग्रहण करें। रात में सूर्य का आलोक अन्तरिक्ष में गतिशील रहता है, परन्तु हमारी ज्ञानेन्द्रियां उसे अनुभव नहीं कर पाती। निशाकर (चंद्र) के माध्यम से ही हमें दीप्ति प्राप्त होती है।(सामवेद 4.31.9)
Nishakar-Moon is revolving in the space with his excellent rays. Hey Sun rays like the Golden lightening! Our senses are incapable of catching your front like the legs. Hey heavens & earth! Accept my prayers. Radiance of the Sun remain movable in the space at night, but our senses are not able to reach-grasp it. We notice it via Moon.
प्रति प्रियतमं रथं वृषणं वसुवाहनम्।
स्तोता वामश्विनावृषि स्तोमेभिर्भूषति प्रति माध्वी मम श्रुतं हवम्॥
हे देवताओं के वैद्य अश्विनी कुमारों! आपके अत्यधिक प्रिय, शक्ति से सम्पन्न, धन को ले जाने वाले रथ को, प्रार्थना करने वाले ऋषि अपने स्तोत्रों के द्वारा अलंकृत करते हैं। हे प्रिय विद्या के जानकारों! आप मेरी प्रार्थनाओं को ध्यान से सुनें।(सामवेद 4.31.10)
Hey physician of the demigods-deities! Your admirable powerful charoite which carries wealth, has been decorated by the Rishi Gan with their Strotrs. Hey enlightened-scholars of lovely knowledge! Respond to my prayers.
सामवेद ऐन्द्रं पर्वणि पर्व (4.32) :: ऋषि :- वसुश्रुत, विमद, सत्यश्रवा, गौतम; देवता :- अग्नि, उषा, सोम, इन्द्र, विश्वेदेवा; छन्द :- पंक्ति, बृहती।
आ ते अग्न इधीमहि द्युमन्तं देवाजरम्।
यद्ध स्या ते पनीयसी समिद्दीदयति द्यवीषं स्तोतृभ्य आ भर॥
हे अग्नि देव! आप दीप्तिमान् तथा अजर हैं। हम आपको प्रकाशित करते हैं। आपकी उत्कृष्ट रोशनी स्वर्गलोक में चमकती है। आप उद्गाताओं को अन्नादि प्रदान कर परिपूर्ण कर दें।(सामवेद 4.32.1)
Hey Agni Dev! You are illuminated and immortal. You shine us. Your excellent light in visible in the heavens as well. You should make us-the Udgata Gan, self sufficient in food grains etc.
आग्निं न स्ववृक्तिभिर्होतारं त्वा वृणीमहे।
शीरं पावकशोचिषं वि वो मदे यज्ञेषु स्तीर्णबर्हिषं विवक्षसे॥
उत्कृष्ट मन्त्रों से हविष्यान्न समर्पित करने वाले, यजन में जिसके लिए आसन फैलाया गया है, ऐसे सभी जगह विराजमान, पावन ज्योति से सम्पन्न महान् अग्नि देव की हम विशिष्ट प्रसन्नता के साथ स्तुति करते हैं।(सामवेद 4.32.2)
For whom the cushion has been spreaded in the Yagy in which oblations-offerings are made reciting excellent Mantrs? Present over here and every place Agni Dev accompanied with pious-virtuous light is worshiped by us with extreme happiness.
महे नो अद्य बोधयोषो राये दिवित्मती।
यथा चिन्नो अबोधयः सत्यश्रवसि वाय्ये सुजाते अश्वसूनृते॥
हे उषा देवी! जिस प्रकार आप हमें पहले धन-वैभव प्राप्त करने हेतु उठाती रहीं हैं, उसी प्रकार प्रज्वलित होकर आज भी हमें जगायें। हे उत्कृष्ट विधि से जन्म लेने वाली, सत्यप्रिय उषादेवी! वय की संतान सत्यश्रवा पर आप अपनी कृपा दृष्टि दिखायें।(सामवेद 4.32.3)
Hey Usha Devi! The way you awoke us earlier for having wealth and grandeur, similarly awake us now as well with your aura-radiance. Hey Usha Devi arising with excellent procedure! Show your mercy towards Saty Shrava, progeny of Vay.
भद्रं नो अपि वातय मनो दक्षमुत क्रतुम्।
अथा ते सख्ये अन्धसो वि वो मदे रणा गावो न यवसे विवक्षसे॥
हे विश्वेदेवा! आप सोमरस के पान से हर्षित हमारे मन को पराक्रम, कर्मशीलता, कल्याण करने वाली शक्ति, उत्कृष्टता एवं मित्रता प्राप्त करने हेतु प्रेरित करें। जिस प्रकार गायों की मित्रता हरी घास से होती है, उसी तरह हम (स्तोता) आपकी मित्रता प्राप्त करें।(सामवेद 4.32.4)
Hey Vishwe Dev! Having satisfied with the drinking of Somras inspire our innerself for valour, dedication to work, strength for welfare-well being, excellence and attainment of friendship. The way cows are friendly with grass, the same way we the Stotas should attain your friendship.
क्रत्वा महाँ अनुष्वधं भीम आ वावृते शवः।
श्रिय ऋष्व उपाकयोर्नि शिप्री हरिवां दधे हस्तयोर्वज्रमायसम्॥
अपार पराक्रमी देवराज इन्द्र सोमरस का सेवन कर अपने बल को बढ़ाते हैं। तत्पश्चात् कान्तिमय, उच्च शिरस्त्राण धारण करने वाले, रथ में घोड़ों को योजित करने वाले देवराज इन्द्र अपने दाहिने हाथ में लौह-वज्र को समृद्धि लाभ हेतु धारण करते हैं।(सामवेद 4.32.5)
Devraj Indr possessor of extreme-limitless valour, drink Somras to increase his strength. Thereafter, aurous-radiant, wearing high head gear, Devraj Indr deploy the horses in the charoite, wield Vajr in his right hand to attain prosperity.
स घा तं वृषणं रथमधि तिष्ठाति गोविदम्।
यः पात्रं हारियोजनं पूर्णमिन्द्र चिकेतति योजा न्विन्द्र ते हरी॥
देवराज इन्द्र पोषण, सोम आदि से पहले, गायों को प्रदान करने में सक्षम मजबूत रथ को भली-भाँति जानते हैं तथा उसी पर विराजमान होते हैं। इसलिए हे रथारूढ़ देवराज इन्द्र! आप अपने हर्यश्वों को रथ में नियोजित कर दें (जिससे समस्त इच्छित पदार्थ हमको प्रदान कर सकें)।(सामवेद 4.32.6)
Devraj Indr is fully aware of the strong capable charoite granting cows, prior to nourishment and Somras drinking, he rides it. Hence hey Devraj Indr riding the charoite! Deploy your green coloured horses in the charoite so that we are blessed with all desirable commodities.(04.12.2025)
अग्नि तं मन्ये यो वसुरस्तं यं यन्ति धेनवः।
अस्तमर्वन्त आशवोऽस्तं नित्यासो वाजिन इर्ष स्तोतृभ्य आ भर॥
जो अग्नि बादलों में आश्रय लिये रहती है, यज्ञ-वेदिका में आसीन जिस अग्नि की तरफ गायें गमन करती है, जिस तरफ द्रुत गति से दौड़ने वाले घोड़े जाते हैं, जिस अग्नि के समक्ष स्तोतागण हवि लेकर प्रस्तुत होते हैं, मैं उस अग्नि देवता की आराधना करता हूँ। हम यजमानों को वे अन्न-धनादि से परिपूर्ण कर दें।(सामवेद 4.32.7)
I worship Agni Dev, who has asylum under the clouds, cows run towards the Yagy Vedica where its present, horses running with fast speed towards it, Stota Gan remain present before it with oblations-offerings. Enrich us the Yajmans with food grains and wealth.
न तमंहो न दुरितं देवासो अष्ट मर्त्यम्।
सजोषसो यमर्यमा मित्रो नयति वरुणो अति द्विषः॥
हे देवताओं! एकमत होकर उपस्थित रहने वाले, अर्यमा, मित्र एवं वरुण देव कुकर्मियों का तिरस्कार करके व्यक्तियों को उन्नति के पथ पर बढ़ाते हैं, वह व्यक्ति कुकृत्य से रहित होकर दुर्दशा से दूर रहता है।(सामवेद 4.32.8)
दुर्दशा :: दुर्गति, दुरावस्था; predicament-plight.
Hey demigods-deities! Aryma, Mitr and Varun Dev together in one voice disdain, scorn wicked-sinners and lead the humans to progress. Such person supported by them remain aloof from viciousness and is protected from predicament-plight.
सामवेद ऐन्द्रं पर्वणि पर्व (4.33) :: ऋषि :- धिष्ण्या ऐश्वरयोऽग्न्य, त्र्यरुणत्रसदस्यु वसिष्ठ, वामदेवा; देवता :- पवमान, मरुत्, वाजिन; छन्द :- पंक्ति, उष्णिक्।
परि प्र धन्वेन्द्राय सोम स्वादुर्मित्राय पूष्णे भगाय॥
हे मधुर रस से युक्त सोम देव! आप पालन-पोषण करने वाले देवराज इन्द्र, परम स्नेही मित्र, पूषा एवं भग आदि देवगणों पर भी हर्ष की वर्षा करें।(सामवेद 4.33.1)
Hey Somras, associated with sweetness! Shower pleasure-bliss over Devraj Indr, extreme affectionate Pusha & Bhag Dev; who nurture you.
पर्यू षु प्र धन्व वाजसातये परि वृत्राणि सक्षणिः। द्विषस्तरध्या ऋणया न ईरसे॥
हे सुमधुर सोम देव! आप पोषण (अन्न) को प्राप्त करने हेतु अच्छी तरह कलश को अपने रस से परिपूर्ण करके उसी में मौजूद रहे। पराक्रम से युक्त होकर आप शत्रुओं पर प्रहार कर दें। हमें ऋणों से छुटकारा दिलाने वाले आप शत्रुओं को पराजित करने हेतु उन पर प्रहार करने हेतु गमन करें।(सामवेद 4.33.2)
Hey sweetened Somras (Som Dev)! Fill the Kalash-vessels fully to have nourishment with your sap. Enriched with valour you should strike the enemies. Move to strike the enemies to defeat them and relieve from debt.
पवस्व सोम महान्त्समुद्रः पिता देवानां विश्वभि धाम॥
हे सोम! विशाल समुद्र के सदृश सभी जगह स्थित एवं पिता तुल्य समस्त लोगों का पालन-पोषण करने वाले आप देवगणों के समस्त धामों के पात्रों में उपस्थित रहते हैं।(सामवेद 4.33.3)
Hey Som! You remain present in the pots of all abodes of the demigods as vast ocean like the father who nurture all people.
पवस्व सोम महे दक्षायाश्वो न निक्तो वाजी धनाय॥
हे सोम देव! तुरंग के सदृश (प्रयास पूर्वक) शुद्ध किये गये, शक्ति में वृद्धि करने वाले आप पराक्रम तथा धन-वैभव देने के लिए बर्तनों में अवस्थित रहें।(सामवेद 4.33.4)
Hey Somras (Dev)! You the booster of power-strength, remain present in the vessels sanctified like the horse to grant wealth and grandeur-prosperity.
इन्दुः पविष्ट चारुर्मदायापामुपस्थे कविर्भगाय॥
उत्कृष्ट ज्ञान से युक्त यह सोमरस संपत्ति से परिपूर्ण आनन्द को प्राप्त करने हेतु जल के बीच में स्त्रवित किया जाता है।(सामवेद 4.33.5)
Somras accompanied with excellent knowledge, is mixed with water to attain pleasure, wealth and comforts.
अनु हि त्वा सुतं सोम मदामसि महे समर्यराज्ये। वाजों अभि पवमान प्र गाहसे॥
हे सोम! आपका अभिषव होने के पश्चात् हम आपकी आराधना करते हैं। हे निष्पन्न किये हुए सोमदेव! उत्कृष्ट नरेश की रक्षा करने के उद्देश्य से, बलशाली होकर आप शत्रुओं को पराभूत करने हेतु जाते हैं।(सामवेद 4.33.6)
Hey Som! We worship you after your extraction. Hey sanctified Somras (Dev)! You acquire might to protect the best king and move to defeat the enemies.
कई व्यक्ता नरः सनीडा रुद्रस्य मर्या अथा स्वश्वाः॥
यह मंत्र एक अन्वय से प्रश्नवाचक है तथा दूसरे से समाधान वाचक है :-
प्रश्न :- हे प्रकट करने वालों! (जानकारी प्रदान करने वालों) समान स्थान में रहने वाले, उत्कृष्ट अश्वों से सम्पत्र मरुद्गणों का रुद्र से क्या सम्बन्ध है?
Hey people, who manifest-reveal! What is the relationship between Rudr Gan and Marud Gan having best horses; residing over he same place?
समाधान :: समान स्थान, (शरीर) में निवास करने वाले उत्कृष्ट घोड़ों (इन्द्रियों) से सम्पत्र मरुद्गण (प्राण, उदान, व्यान, समान, अपान आदि पंच प्राण) विशिष्ट गतिमान शरीर के नेता रुद्र (महाप्राण) के साथ चलने वाले हैं।(सामवेद 4.33.7)
Residing over the same place, excellent horses-senses, the Marud Gan (Pran, Udan, Apan, Saman, Apan etc Panch Pran-5 forms of Air Vital), are present with leader of specifically dynamic body i.e., Rudr.
अग्ने तमद्याश्वं न स्तोमैः क्रतुं न भद्रं हृदिस्पृशम्। ऋध्यामा त ओहैः॥
हे सर्वव्यापक अग्ने! आज हम याज्ञिक जन हवन के सदृश (कल्याणकारी), अश्वों के सदृश गतिमान, आपके सुख्याति में वृद्धि करने हेतु ऊह नामक चित्त को छू जाने वाले स्तोत्रों का उपयोग करते हैं।(सामवेद 4.33.8)
Hey all pervading Agne! We the Yagyik Jan, use the Strotrs which touches the innerself (mind & heart) named Uh, like the beneficial like Hawan and dynamic like horses for increasing your fame-honour.
आविर्मर्या आ वाजं वाजिनो अग्मन् देवस्य सवितुः सवम्। स्वर्गां अर्वन्तो जयत॥
मनुष्यों का हित करने वाले प्रतापी एवं बलशाली सविता देवता ने निष्पन्न किये गये सोमरस रूपी अन्न को ग्रहण कर लिया है। अतः हे यजमान! उनसे विजय प्राप्त करने हेतु घोड़ों एवं द्युलोक को प्राप्त करो।(सामवेद 4.33.9)
Mighty & honourable Savita Dev who resort to the welfare of humans has accepted the Somras. Hence hey Yajman! Have horses and heavens for attaining victory from him.
पवस्व सोम द्युम्नी सुधारो महाँ अवीनामनुपूर्व्यः॥
हे सोम देव! ज्योर्तिमय, अच्छी तरह सहज धारा से बर्तन में प्रवाहित होते हुए, आप पहले की भाँति उच्च ही है। आप (यज्ञ-वेदिका में स्थापित हुए) कलश में अपने आप ही परिपूर्ण हो जाएँ।(सामवेद 4.33.10)
Hey Somras (Dev)! You are higher like before, having flown into the vessel as a current. You should be stored in the Kalash kept over the Yagy Vedica.
सामवेद ऐन्द्रं पर्वणि पर्व (4.34) :: ऋषि :- त्रसदस्यु, संवर्त आंगिरस; देवता :- इन्द्र, विश्वेदेवा, उषा; छन्द :- द्विपदा विराट्।
विश्वतोदावन्विश्वतो न आ भर यं त्वा शविष्ठमीमहे॥
शत्रुओं का शमन करने वाले हे देवराज इन्द्र! आप हमें सब तरह की अभिलषित धन, संपदा प्रदान करें, जिसको प्राप्त करने के लिए हम अत्यधिक सामर्थ्यवान् (इन्द्र) की वन्दना करते हैं।(सामवेद 4.34.1)
Hey Devraj Indr destroyer-repressor of the enemies! Grant us all sorts of wealth, prosperity for which we worship-pray to you, possessor of extreme capability.
एष ब्रह्मा य ऋत्विय इन्द्रो नाम श्रुतो गृणे॥
सभी ऋतुओं के अनुसार कार्य का संचालन करने वाले, महाज्ञानी, देवराज इन्द्र के नाम से जो प्रसिद्ध है, उनकी हम सर्वदा याचना करते हैं।(सामवेद 4.34.2)
We always worship enlightened-a great scholar, famous Devraj Indr who function in accordance of the all seasons.(05.12.2025)
सामवेद ऐन्द्रं पर्वणि पर्व (4.34) :: ऋषि :- त्रसदस्यु, संवर्त आंगिरस; देवता :- इन्द्र, विश्वेदेवा, उषा; छन्द :- द्विपदा विराट्।
ब्रह्माण इन्द्रं महयन्तो अर्कैरवर्धयन्नहये हन्तवा उ॥
अहि नामक दानव का हनन करने हेतु विचार-सम्पन्न स्तोत्रों से पूजा किये जाने वाले इन्द्र देव के यज्ञ का हम प्रसार करते हैं।(सामवेद 4.34.3)
We expand the Yagy accomplished with the Strotrs involving meditation for killing demon Ahi by Indr Dev.
अनवस्ते रथमश्वाय तक्षुस्त्वष्टा वज्रं पुरुहूत द्युमन्तम्॥
हे देवराज इन्द्र! ऋभु देवताओं ने आपके अश्वों के निमित्त रथ की रचना की। अनेक मन्त्र द्रष्टाओं के माध्यम से आहूत किये जाने वाले हे देवराज इन्द्र! देवशिल्पी विश्वकर्मा ने आपके लिए तेजस्वी वज्र का निमार्ण किया।(सामवेद 4.34.4)
Hey Devraj Indr! Devgan Ribhus developed the charoite for you to deploy the horses. Hey Devraj Indr, summoned-invoked by many Mantr Drashta Gan! Dev Shilpi Vishw Karma produced the energised Vajr for you.
शं पदं मघं रयीषिणो न काममव्रतो हिनोति न स्पृशद्रयिम्॥
हवि समर्पित करने वाले याज्ञिक जन सुख, उच्च-आश्रय स्थल एवं धन-वैभव को प्राप्त करते हैं। जो मनुष्य यज्ञादि नहीं करते वह किसी भी तरह के पदार्थों को प्राप्त नहीं कर पाते हैं एवं वे ऐच्छिक धन-वैभव को भी स्पर्श करने में असमर्थ होते हैं।(सामवेद 4.34.5)
Yagyik Gan make offerings-oblations and achieve pleasure-comforts, high shelter, wealth and grandeur. Those humans who do not conduct Yagy etc do not get any sort of goods. They are unable to even touch the desired wealth-prosperity.
सदा गावः शुचयो विश्वधायसः सदा देवा अरेपसः॥
हे (यजमानों)! गौएं सदैव स्वच्छ समस्त जीवों को पोषण प्रदान करने वाली, उत्कृष्ट एवं कुकृत्य से रहित होती हैं।(सामवेद 4.34.6)
Hey Yajmans! Cows are excellent, free from misdeeds and provide nourishment to all clean living beings.
आ याहि वनसा सह गावः सचन्त वर्तनिं यदूधभिः॥
हे उषा देवी! जब आप दीप्तिमान् होती हुई उदित होती हैं, तब (पृथ्वी पर) दुग्ध से युक्त थनों वाली गायें (या पोषण से युक्त रश्मियाँ) मार्ग में स्थित रहती है।(सामवेद 4.34.7)
Hey Usha Devi! When you rise shinning, the cows having milk in their udder are present in its way.
उप प्रक्षे मधुमति क्षियन्तः पुष्येम रयिं धीमहे त इन्द्र॥
हे सर्वव्यापक देवराज इन्द्र! माधुर्य युक्त यज्ञ के चम्मचों से सम्पन्न (यज्ञार्थ प्रस्तुत) ऐश्वर्य हम प्राप्त करें तथा आपके निकट रहने वाले (पतनोन्मुख) हम, आपका स्मरण करने में सक्षम हों।(सामवेद 4.34.8)
Hey all pervading Devraj Indr! Let have grandeur presented with the spoons meant for the Yagy. We though near you, are prone to down fall. We should be capable of remembering you.
अर्चन्त्यर्कं मरुतः स्वर्का आ स्तोभति श्रुतो युवा स इन्द्रः॥
हे उत्कृष्ट तेजस्वी मरुतों! हम स्तुति करने योग्य देवराज इन्द्र की उपासना करते हैं। वे जरारहित, प्रसिद्ध देवराज इन्द्र समस्त शत्रुओं का हनन करने वाले हैं।(सामवेद 4.34.9)
Hey excellent Tejaswi-majestic Marud Gan! We pray to Devraj Indr who deserve worship. Famous Devraj Indr is capable of slaughtering all the enemies.
प्र व इन्द्राय वृत्रहन्तमाय विप्राय गार्थ गायत यं जुजोषते॥
हे बुद्धिमान् ऋत्विजों! वृत्र का संहार करने में निपुण देवराज इन्द्र की मनोहर मन्त्रों से अर्चना करो, जिन मन्त्रों को वे प्रसन्नतापूर्वक श्रवण करते हैं।(सामवेद 4.34.10)
Hey intelligent Ritviz Gan! Worship Devraj Indr expert in killing Vratra Sur with the attractive Mantrs which are responded by him happily.
सामवेद ऐन्द्रं पर्वणि पर्व (4.35) :: ऋषि :- पृषन, बन्धु, संवर्त, भुवन, आप्त्य, भरद्वाज इत्यादि; देवता :- अग्नि, इन्द्र, उषा, विश्वेदेवा; छन्द :- द्विपदा विराट्, एकपदा।
अचेत्यग्निश्चिकितिर्हव्यवाड् न सुमद्रथः॥
दी गई आहुतियों को देवगणों के प्रति ले जाने वाले, उत्कृष्ट हवि से युक्त, देवगणों को समर्पित समस्त पदार्थों को रथ के सदृश अभिलषित स्थलों पर पहुँचाने वाले अग्नि देव सब कुछ जानते हैं।(सामवेद 4.35.1)
Agni Dev who carry-deliver the sacrifices to demigods-deities, possessed with excellent offerings-oblations like the charoite, at all places, is aware of every thing.
अग्ने त्वं नो अन्तम उत त्राता शिवो भुवो वरूथ्यः॥
हे अग्नि देव! आप प्रार्थना करने योग्य, हमारे समीपस्थ सहायता करने वाले एवं भला करने वाले रक्षक बन गए है।(सामवेद 4.35.2)
Hey Agni Dev! Deserving worship, you have become our nearest helper and beneficial protector.
भगो न चित्रो अग्निर्महोनां दधाति रत्नम्॥
बृहत् पदाथों में सूर्य देव के सदृश, स्तुति के योग्य अग्नि देव यजमानों को उत्कृष्ट धन प्रदान करते हैं।(सामवेद 4.35.3)
Stuti deserving Agni Dev grant excellent wealth to the Yajmans like the vast-majestic objects similar-identical to Sury Dev.
विश्वस्य प्र स्तोभ पुरो वा सन्यदिवेह नूनम्॥
हे अग्नि देव! आप सभी शत्रुओं का शमन करने वाले है। आप हमारे यज्ञ-वेदिका पर अवश्य रूप से एकाग्रचित्त होकर विद्यमान् रहते हैं।(सामवेद 4.35.4)
Hey Agni Dev! You are destroyer-slaughterer of the enemy. You are present over our Yagy Vedica with concentration (meditation mode).
उषा अप स्वसुष्टमः सं वर्तयति वर्तनिं सुजातता॥
यह उषा अपनी बहिन रूपी रात्रि के तिमिर को, अपनी किरणों से विनष्ट कर देती है एवं श्रेष्ठ ज्योति के माध्यम से अपने पथ को भी प्रदीप्त करती है।(सामवेद 4.35.5)
Usha remove the darkness spreaded by her sister Ratri-night with its rays and illuminate our path with its radiance-luminosity.
इमा नु कं भुवना सीषधेमेन्द्रश्च विश्वे च देवाः॥
(मन्त्र द्रष्टा मुनि का कहना है कि) हम सुख प्राप्त करने की अभिलाषा से इस सम्पूर्ण विश्व को अपने नियंत्रण में चलाते हैं। इस कार्य को पूर्ण करने में देवराज इन्द्र आदि समस्त देवगण हमारी सहायता करते हैं।(सामवेद 4.35.6)
Mantr Drashta (Visionary of the Hymns, Mantr) says that we control this universe for the sake of comforts-pleasure. Devraj Indr and all demigods help us in accomplishing this job.
वि सुतयो यथा पथा इन्द्र त्वद्यन्तु रातयः॥
हे देवराज इन्द्र! जिस प्रकार छोटे-छोटे मार्ग राजपथ में मिल जाते हैं, उसी तरह आपके द्वारा प्रदत्त दान समस्त जनों को प्राप्त होते हैं।(सामवेद 4.35.7)
Hey Devraj Indr! The way small roads-streets merge in the Raj Path (express way), simialarly the donations made by you are obtained by everyone.
अया वाजं देवहितं सनेम मदेम शतहिमाः सुवीराः॥
इस वन्दना से आनंदित देव शक्तियों द्वारा दिया गया पोषित अन्न (आहार) एवं सामर्थ्य हमें मिले। श्रेष्ठ बलशाली पुत्रों से सम्पन्न होकर हम प्रसन्नतापूर्वक निर्वाह करें एवं दीर्घजीवी बनें।(सामवेद 4.35.8)
We should have the nourishing food grains and capability awarded by the divine powers gladdened with this prayer. We should have mighty sons, live happily and become long lived.
ऊर्जा मित्रो वरुणः पिन्वतेडाः पीवरीमिषं कृणुही न इन्द्र॥
हे देवराज इन्द्र! मित्रा-वरुण देवता हमें शक्ति बढ़ाने वाले पोषण प्रदान करते हैं। आप हमारे अन्न (पोषण) को अत्यधिक पुष्टिकर बना दें।(सामवेद 4.35.9)
Hey Devraj Indr! Mitra-Varun Dev grant us nourishment that increase our strength. You should make our food grains extremely nourishing.
इन्द्रो विश्वस्य राजति॥
देवराज इन्द्र सम्पूर्ण भूमण्डल के अधिष्ठाता है।(सामवेद 4.35.10)
Devraj Indr is the Lord-deity of the whole earth.(06.12.2025)
त्रिकद्रुकेषु महिषो यवाशिरं तुविशुष्मस्तृम्पत्सोममपिबद्विष्णुना सुतं यथावशम्।
स ई ममाद महि कर्म कर्तवे महामुरुं सैनं सश्चद्देवो देवं सत्य इन्दुः सत्यमिन्द्रम्॥
अत्यधिक पराक्रमी, आदरणीय देवराज इन्द्र ने तीनों लोकों में विद्यमान, संतुष्टि प्रदान करने वाले, अद्भुत सोम को जौ के आटे में मिश्रित कर विष्णु भगवान् के संग इच्छानुकूल सेवन किया। उस सोम ने महिमामयी देवराज इन्द्र को उत्कृष्ट कार्य करने हेतु प्रेरित किया। श्रेष्ठ अद्भुत गुणों से सम्पत्र वह अलौकिक सोमरस देवराज इन्द्र को प्राप्त हुआ।(सामवेद 4.36.1)
अत्यधिक पराक्रमी :: अत्यधिक शक्ति और बहादुरी; mighty, valiant, powerful, valorous and heroic.
Valiant, mighty, honoured Devraj Indr ate amazing Som mixed in flour, present in the three abodes, granting satisfaction, with Bhagwan Shri Hari Vishnu as per their wish. Som encouraged mighty Devraj Indr to perform excellent deeds, Devraj Indr availed the amazing Som possessing amazing qualities.
अयं सहस्त्रमानवो दृशः कवीनां मतिज्योतिर्विधर्म। ब्रध्नः समीचीरुषसः समैरयदरेपसः सचेतसः स्वसरे मन्युमन्तश्चिता गोः॥
असंख्यों व्यक्तियों का कल्याण करने वाला, दर्शनीय, विवेकशील, प्रजा का स्वामी, प्रतापी यह सूर्य स्वच्छ एवं अंधकार रहित कान्तिमय उषाओं (किरणों) को प्रेरित करता है। इन सूर्य रश्मियों के समक्ष दीप्तिमान् चन्द्रमा आदि दूसरे नक्षत्र दिन में कान्ति-रहित हो जाते हैं।(सामवेद 4.36.2)
Sury Dev scenic, prudent, Lord of subjects, resort to the welfare of infinite-numerous people. Glorious-august Sun inspire the Usha-rays to eliminate darkness. In the presence of Sun rays Moon and constellations appear faint-lustreless.
एन्द्र याद्युप नः परावतो नायमच्छा विदथानीव सत्पतिरस्ता राजेव सत्पतिः।
हवामहे त्वा प्रयस्वन्तः सुतेष्वा पुत्रासो न पितरं वाजसातये मंहिष्ठं वाजसातये॥
हे देवराज इन्द्र! जिस प्रकार सत्पुरुषों के पालनकर्ता अग्निदेव यज्ञ-वेदिका में आगमन करते हैं, जिस तरह शत्रु को परास्त करने वाला नरेश अपने गृह वापस आ जाता है, उसी तरह आप असीम अन्तरिक्ष से हमारे समक्ष प्रकट हुए। पोषण प्राप्त करने के लिए जिस प्रकार संतान अपने पिता को पुकारते हैं, शूरवीर को जिस प्रकार संग्राम में पुकारते हैं, वैसे ही हवियों के साथ हम आपको सोमयज्ञ में आहूत करते हैं।(सामवेद 4.36.3)
Hey Devraj Indr! The way the nurturer of virtuous people Agni Dev arrive at the Yagy Vedi, emperor retune home after defeating the enemy; similarly you have invoked from the limitless space-sky in front of us. The way the progeny call its father for nourishment-food, the brave is called by the war, similarly the offerings-oblations are invited & honour in the Som Yagy by us.
तमिन्द्रं जोहवीमि मघवानमुत्रं सत्रा दधानमप्रतिष्कुतं श्रवांसि भूरि।
मंहिष्ठो गीर्भिरा च यज्ञियो ववर्त राये नो विश्वा सुपथा कृणोतु वज्री॥
ऐश्वर्यवान्, शूरवीर, कभी पराजित न होने वाले देवराज इन्द्र को हम अपनी मदद करने हेतु आमन्त्रित करते हैं। सबसे महान्, यज्ञों में स्तुत्य देवराज इन्द्र की स्तोत्रों के माध्यम से याचना करते है। वज्रधारण करने वाले इन्द्र धन-संपत्ति प्राप्त करने हेतु हमारे समस्त रास्तों को सुलभ कर दें।(सामवेद 4.36.4)
We invite grandeur possessing, brave, undefeated Devraj Indr for our help. Greatest, worshiped in the Yagy through the Strotrs, Vajr wielding Devraj Indr is requested to make availble wealth-prosperity through all means-doors to us.
अस्तु श्रौषट् पुरो अग्निं धिया दध आ नु त्यच्छध्रो दिव्यं वृणीमह इन्द्रवायू वृणीमहे। यद्ध क्राणा विवस्वते नाभा सन्दाय नव्यसे। अध प्र नूनमुप यन्ति धीतयो देवाँ अच्छा न धीतयः॥
हम लोगों ने अग्नि देव को आदरपूर्वक उत्तरवेदी के अग्रभाग में प्रतिस्थापित कर दिया है। उस अद्भुत दीप्तियुक्त प्रकाश की हम उपासना करते हैं। ऐश्वर्यवान् एवं अपूर्व याजक के यज्ञ-स्थल पर उपस्थित होकर हमारी इच्छाओं की पूर्ति करने वाले देवराज इन्द्र एवं पूषा देवताओं की हम याचना करते हैं। ऐसा करने से अवश्य ही हमारी वन्दना उनके समीप पहुँचेगी। हमारे ये सब यज्ञीय कर्म देवताओं तक पहुँचाने के निमित्त सम्पन्न हो रहे हैं।(सामवेद 4.36.5)
We have established Agni Dev in the front of Uttar Vedi, honourably. We worship that lustrous light. We worship Yajak Devraj Indr & Pusha Dev possessing unparallel glory-grandeur at the Yagy Sthal-site, who accomplish our desires. It will forward our worship-prayers to them. Our Yagy Karm are accomplished to forward to the demigods.
प्र वो महे मतयो यन्तु विष्णवे मरुत्वते गिरिजा एवयामरुत्।
प्र शर्धाय प्र यज्यवे सुखादये तवसे भन्ददिष्टये धुनिव्रताय शवसे॥
एवया मरुत् नामक ऋषि द्वारा की गई स्तुतियां महा पराक्रमी देवराज इन्द्र आपको और मरुत् के साथ विष्णु भगवान् को प्राप्त हो। श्रेष्ठ अलंकारों से सुशोभित, हितकारी याजक को प्रगतिशील मरुद्गण का पराक्रम प्राप्त हो।(सामवेद 4.36.6)
Let the prayers-Stuties performed by Evya Marut Rishi reach Devraj Indr Marud Gan and Bhagwan Shri Hari Vishnu. Let the Yajak devoted to welfare, adorned with best ornaments; avail the valour of progressive Marud Gan.
अया रुचा हरिण्या पुनानो विश्वा द्वेषांसि तरति सयुग्वभिः सूरो न सयुग्वभिः। धारा पृष्ठस्य रोचते पुनानो अरुषो हरिः। विश्वा यद्रूपा परियास्यृक्वभिः सप्तास्येभिर्ऋक्वभिः॥
हरिताभ, निष्पन्न किया हुआ सोमरस अपनी आभा से शत्रुओं का विनाश करता है। तिमिर (अन्धकार) को विनष्ट करने वाली सूर्य की किरणों के समान इस सोमरस की उत्कृष्ट दिखाई देने वाली धारा प्रदीप्त होती है। पवित्र हरिताभ सोमरस भी चमकता है, जो तेज के सात मुखों (सतरंगी किरणों) एवं स्तोत्रों से अनेक रूप धारण करता है।(सामवेद 4.36.7)
Greenish, sanctified Somras destroy the enemy with its aura-radiance. The excellent rays of the Somras appear to destroy the darkness. Pious-virtuous greenish Somras too shine, display seven coloured rays and adopt many forms through the Strotrs.
अभि त्यं देवं सवितारमोण्योः कविक्रतुमर्चामि सत्यसवं रत्नधामभि प्रियं मतिम्।
ऊर्ध्वा यस्यामतिर्भा अदिद्युतत्सवीमनि हिरण्यपाणिरमिमीत सुक्रतुः कृपा स्वः॥
सोच-विचार कर कार्य करने वाले, सत्य की ओर प्रेरित करने वाले, धन प्रदान करने वाले, अत्यधिक स्नेही तथा प्रखर बुद्धि वाले उन सविता देवता की हम पूजा करते हैं, जिसका तेज द्यावा-पृथिवी तक द्रुत गति से प्रसारित होता है। श्रेष्ठ कर्म करने वाले, स्वर्ण के सदृश दीप्तिमान सविता देवता कृपापूर्वक अपनी ज्योति बिखेरते हैं।(सामवेद 4.36.8)
We worship Savita who's Tej-aura which moves to earth & heavens, who meditate (analyse-synthesize) prior to doing any thing, inspires to truthfulness, wealth awarding, affectionate with sharp intellect; with fast speed. Performer of best endeavours illuminated like the Gold Savita Dev kindly spread his light.
अग्निं होतारं मन्ये दास्वन्तं वसोः सूनुं सहसो जातवेदसं विप्रं न जातवेदसम्। य ऊर्ध्वया स्वध्वरो देवो देवाच्या कृपा। घृतस्य विभ्राष्टिमनु शुक्रशोचिष आजुह्वानस्य सर्पिषः॥
अत्यधिक धन प्रदान करने वाले, पालन की योग्यता देने वाले, सर्वज्ञाता, परम पूजनीय हवनीय यज्ञ की हम याचना करते हैं। उत्कृष्ट यज्ञ वाले महाशय, देवताओं की अनुकम्पा की अभिलाषा से, पवित्र ज्योतिर्मय अग्निदेव, घृत की आहुति देने से आनन्दित होते हैं।(सामवेद 4.36.9)
Granting lots of wealth, ability to nurse, aware of all-everything, extremely revered, Yagy is worshiped-accomplished by us. Gentle men performing excellent Yagy, by virtue of the blessings of demigods-deities, pious-virtuous illuminated Agni Dev is gladdened by making sacrifices with Ghee,
तव त्यन्नर्यं नृतोऽप इन्द्र प्रथमं पूर्वं दिवि प्रवाच्यं कृतम्। यो देवस्य शवसा प्रारिणा असु रिणन्नपः। भुवो विश्वमभ्यदेवमोजसा विदेदूर्जं शतक्रतुर्विदेदिषम्॥
हे समस्त लोगों को अपने नियमानुसार चलाने वाले देवराज इन्द्र! मनुष्य-मात्र का भला करने वाले, सर्वप्रथम किये गये आपके परम् श्रेष्ठ कार्य द्युलोक में प्रशंसनीय हैं। आपने अपने सामर्थ्य से दानवों का हनन किया, उनको पराजित किया एवं जल वर्षा के अवरोधों को दूर कर वर्षा की, अतएव शतकर्मा (शतक्रतु) देवराज इन्द्र पराक्रमी हों तथा हविरूप अन्नादि प्राप्त करें।(सामवेद 4.36.10)
Hey Devraj Indr, performer of hundred Yagy, directing all humans with your rules-regulations! Resorting to human welfare, your efforts towards best deeds are appreciated in the heavens. You destroyed the demons with your valour, defeated them, removed obstacles in the flow of water created by them. Hence, invincible Devraj Indr should attain food grains as offerings-oblations.(07.12.2025)
सामवेद पावमानं पर्व (5.1) :: ऋषि :- अमहीयु, मधुच्छन्दा, भृगुर्वारुणि, त्रित, कश्यप, जमदग्नि, दृढच्युत, आगस्त्य, काश्यपोऽसित; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
उच्चा ते जातमन्धसो दिवि सद्भूम्या ददे। उग्रं शर्म महि श्रवः॥
हे सोम! आपके शक्तिवर्द्धक रस की उत्पत्ति स्वर्ग लोक में हुई है। वहाँ विद्यमान कल्याण करने वाले सुख एवं महिमामय अन्न (आपकी अनुकम्पा से) हम धरती पर प्राप्त करते हैं।(सामवेद 5.1.1)
Hey Som Dev! Your strengthening sap evolved in the heavens. We attain the welfare & comfort-pleasure granting glorious food grains over the earth due to your kindness.
स्वादिष्ठया मदिष्ठया पवस्व सोम धारया। इन्द्राय पातवे सुतः॥
हे सोम! आप देव राज इन्द्र के पान करने हेतु तैयार किये गये हैं। इसलिए अत्यधिक माधुर्ययुक्त, आनन्द प्रदान करने वाले धारा के साथ प्रवाहित हों।(सामवेद 5.1.2)
Hey Somras! You are prepared for drinking by Devraj Indr. Hence, flow in a sweetened, pleasurous-pleasureful current.
वृषा पवस्व धारया मरुत्वते च मत्सरः। विश्वादधान ओजसा॥
हे सोम! आप स्तोता गण हेतु द्रुत गतिशील धारा से कलश में आगमन करें एवं मरुतों से सेवित देवराज इन्द्र हेतु शक्ति तथा आनन्दवर्द्धक सिद्ध हों।(सामवेद 5.1.3)
Hey Som! Move with fast speed into the Kalash-vessel for the Stota Gan and prove strength boosting and pleasureful for Marud Gan & Devraj Indr.
यस्ते मदो वरेण्यस्तेना पवस्वान्धसा। देवावीरघशंसहा॥
हे सोम! आपका रस देवगणों को आकर्षित करने वाला, कुकर्मी तथा दुर्जनों का विनाश करने वाला एवं अत्यधिक आनन्द प्रदान करने वाला है। उस पुष्टिवर्धक रस के साथ आप कलश में प्रवेश करें।(सामवेद 5.1.4)
Hey Som! Your extremely gladdening juice attracts the demigods-deities, destroys the wicked-sinful . Enter the vessel with that strength increasing sap.
तिस्त्रो वाच उदीरते गावो मिमन्ति धेनवः। हरिरेति कनिक्रदत्॥
यज्ञ के समय जब तीनों वेदों के मन्त्र उच्चारित किये जाते हैं, गाएँ दुहने के लिए रँभाती हैं, उस समय हरे रंग का सोमरस नाद करता हुआ परिष्कृत होता है।(सामवेद 5.1.5)
At the occasion of Yagy when Mantrs from the three Veds are recited, cows moo to be milked, greenish Somras is sanctified making sound.
इन्द्रायेन्दो मरुत्वते पवस्व मधुमत्तमः। अर्कस्य योनिमासदम्॥
माधुर्य युक्त हे सोम! आप इस यज्ञ-वेदिका में, जिसके सहयोगी मरुत्वान् हैं, उन देवराज इन्द्र के लिए कलश में प्रतिष्ठित हों।(सामवेद 5.1.6)
Hey sweetened Somras! Establish in the Kalash-vessel for Indr Dev who's accomplice-associates are Marud Gan.
असाव्यं शुर्मदायाप्सु दक्षो गिरिष्ठाः। श्येनो न योनिमासदत्॥
गिरि (पर्वत) पर जन्मा सोम हर्ष के लिए अभिषुत किया गया तथा जल के मिश्रण से सर्वत्र प्रसारित हुआ तथा जिस प्रकार श्येन पक्षी अपने स्थान को प्राप्त होता है, उसी प्रकार यह सोम अपने निश्चित स्थान पर प्रतिस्थापित होता है।(सामवेद 5.1.7)
श्येन पक्षी :: hawk, falcon, eagle.
Som evolved over the mountain is extracted for pleasure, mixed with water and sent every where. The way hawk moves to its nest-place, the Som too is established over its place (pitcher, vessel, Kalash).
पवस्व दक्षसाधनो देवेभ्यः पीतये हरे। मरुद्भ्यो वायवे मदः॥
हे हरिताभ सोम! आप आनन्द तथा शक्ति के साधन उपलब्ध कराने वाले हैं। देवताओं एवं मरुद्गणों के सेवन करने के उद्देश्य से आप कलश में प्रतिष्ठित हों।(सामवेद 5.1.8)
Hey greenish Som! You grant mighty and pleasure. Flow into the Kalash to be drunk by demigods & Marud Gan.
परि स्वानो गिरिष्ठाः पवित्रे सोमो अक्षरत्। मदेषु सर्वधा असि॥
यह सोमरस पावन कलश में विराजित किया गया है। हे साम! आपकी उत्पत्ति गिरि पर होती है, रस तैयार किये जाने पर हर्ष प्रदान करने वालों में आप सर्वोत्तम हैं।(सामवेद 5.1.9)
Somras has been stored in the Kalash. Hey Som! You evolve over the mountain. You are best amongest gladdening saps.
परि प्रिया दिवः कविर्वयांसि नप्त्योर्हितः। स्वानैर्याति कविक्रतुः॥
मति में वृद्धि करने वाला यह सोम, सोमरस अभिषुत करने के दो फलकों (स्वर्गलोक तथा भूलोक) के मध्य में प्रतिष्ठित होकर, ब्रह्मनिष्ठों द्वारा विवेकशील मनुष्यों तक पहुँचाया जाता है।
Intelligence booster Somras is established in two portions i.e., over the earth & heavens and is served to those prudent humans who are established in the Brahm.
सामवेद पावमानं पर्व (5.2) :: ऋषि :- श्यावाश्व, त्रित, अमहीयु, भृगु, कश्यप, निधुवि काश्यप, काश्पोऽसित; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
प्र सोमासो मदच्युतः श्रवसे नो मघोनाम्। सुता विदथे अक्रमुः॥
हर्ष प्रदान करने वाला सोम शोधित होकर हमारे याग में अन्न (पोषण) एवं कीर्ति प्रदान करने वाला बनकर प्रतिष्ठित होता है।(सामवेद 5.2.1)
Let the gladdening Som establish in our Yagy on been extracted as food-supplement and fame-glory granting.
प्र सोमासो विपश्चितोऽपो नयन्त ऊर्मयः। वनानि महिषा इव॥
विवेक का अभ्युदय करने वाला यह सोमरस, जल की लहरों के सदृश एवं सामान्य रूप से जानवरों के जंगल में गमन करने की भाँति, जल में मिश्रित किया जाता है।(सामवेद 5.2.2)
Somras which evolve prudence roaming like water waves, generally the forests; is mixed in water.
पवस्वेन्दो वृषा सुतः कृधी नो यशसो जने। विश्वा अप द्विषो जहि॥
हे शोधित सोम! आप उत्कृष्ट शक्ति में वृद्धि करने वाले हैं। हमें समस्त जनों में कीर्तिमान निर्मित करें एवं आप हमारे सारे शत्रुओं (विकारों) को विनष्ट कर दें।(सामवेद 5.2.3)
Hey purified Somras! You are excellent strength booster. Establish us a glorious person amongest the humans and destroy our defects-enemies.
वृषा ह्यसि भानुना द्युमन्तं त्वा हवामहे। पवमान स्वर्दृशम्॥
हे शुद्ध होने वाले, शक्ति बढ़ाने वाले सोम! आप सभी को एक समान देखने वाले एवं तेज से युक्त हैं। इस याग में हम आपको आमंत्रित करते हैं।(सामवेद 5.2.4)
Hey sanctified strength booster Somras! You consider everyone at par and possess energy. We invite you in this Yagy.
इन्दुः पविष्ट चेतनः प्रियः कवीनां मतिः। सृजदश्वं रथीरिव॥
उमंग का अभ्युदय वाला, सभी लोगों का प्रिय सोमरस विद्वान् लोगों की प्रार्थना के साथ, पात्र में छाना जाता है। रथ चलाने वाला जैसे अश्व को (अपने अनुशासन) चलाता है, वैसे ही यह सोम बर्तन में परिपूर्ण किया जाता है।(सामवेद 5.2.5)
उमंग :: उल्लास, उत्साह, जोश; enthusiasm, exaltation, exultation.
Somras dear to all, generating enthusiasm, is filtered in the vessel over the request of the enlightened-scholars. The way charioteer keeps the charoite under control, its filled in the vessel.
असृक्षत प्र वाजिनो गव्या सोमासो अश्वया। शुक्रासो वीरयाशवः॥
पराक्रम एवं उत्तेजना में वृद्धि करने वाला यह सोमरस तेजवान् है। यह गौ, अश्व और शूरवीर संतानों की अभिलाषा करने वालों के द्वारा निष्पन्न किया जाता है। जो याज्ञिक इसको निचोड़ते हैं, यह उनकी गौ, अश्व, शूरवीर पुत्र आदि अभिलाषाओं को पूर्ण करता है।(सामवेद 5.2.7)
Courage & excitement increasing Somras possess energy-Tej. Its extracted for those who wish to have cows, horses and brave progeny. The Yagyik who squeeze it are blessed with cows, horses and brae sons.
पवस्व देव आयुषगिन्द्रं गच्छतु ते मदः। वायुमा रोह धर्मणा॥
हे अलौकिक गुणों से युक्त सोम! आप छाने जाने हेतु बर्तन पर उपस्थित हों। आपका प्रफुल्लित करने वाला रस देवराज इन्द्र को प्राप्त हो। आप अद्भुत रूप से वायु में गमन कर जाएँ।(सामवेद 5.2.7)
Hey Somras; possessing divine powers! You should occupy the vessel on being filtered. Let your gladdening sap be availed by Devraj Indr. You should be mixed in air in your amazing form.(08.12.2025)
पवमानो अजीजनद्दिवश्चित्रं न तन्यतुम्। ज्योतिर्वैश्वानरं बृहत्॥
शोधित किये जाने के पश्चात् इस सोमरस ने स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित सभी को दीप्तिमान् करने में सक्षम, अद्भुत वैश्वानर प्रकाश को विद्युत् की भाँति उत्पन्न किया।(सामवेद 5.2.8)
After being purified Somras illuminated amazing Vaeshwar Nar which is capable of illuminating everyone established in the heavens like lightening.
परि स्वानास इन्दवो मदाय बर्हणा गिरा। मधो अर्षन्ति धारया॥
निचोड़े जाने के पश्चात् अमृत स्वरूप, बुद्धि बढ़ाने वाला, माधुर्य युक्त सोम स्तोताओं के द्वारा स्तोत्रों का गान करते हुए छाना जाता है।(सामवेद 5.2.9)
On being squeezed, elixir like sweetened Somras, capable of boosting intelligence, is filtered while singing the Strotrs, by the Stotas.
परि प्रासिष्यदत्कविः सिन्धोरूर्मावधि श्रितः। कारुं बिभ्रत्पुरुस्पृहम्॥
ज्ञान वर्द्धक, प्रशंसा करने योग्य, यजमानों को अन्न प्रदान करने वाला, सरिता की धारा में मिश्रित यह सोम बर्तन (सत्पात्र) में उपस्थित होता है।(सामवेद 5.2.10)
Appreciable Somras boosting knowledge, is collected in the vessel like a stream granting food grains to the Yajmans.
सामवेद पावमानं पर्व (5.3) :: ऋषि :- अमहीयु, वृहन्मति, आंगिरस, जमदग्नि, प्रभूवसु, मेध्यातिथि, निघुवि, काश्यप, उचथ्य; देवता :- सोम, पवमान; छन्द :- गायत्री।
उपो षु जातमप्तुरं गोभिर्भङ्गं परिष्कृतम्। इन्दुं देवा अयासिषुः॥
शत्रुओं का विनाश करने वाला, अच्छी तरह से शोधित, पानी एवं गाय के दूध में मिश्रित यह सोमरस देवताओं को संतुष्टि प्रदान करने वाला सिद्ध हो।(सामवेद 5.3.1)
Let this Somras finely purified, mixed with water & cow's milk, destroyer of the enemies, become satisfying to the demigods-deities.
पुनानो अक्रमीदभि विश्वा मृधो विचर्षणिः। शुम्भन्ति विप्रं धीतिभिः॥
विवेक में वृद्धि करने वाला, शुद्ध होने के पश्चात् ज्ञान में वृद्धि करने वाला यह सोमरस सारे शत्रुओं (विकारों) का हनन करता है। ऐसे सोम की विद्वान् लोग अद्भुत स्तोत्रों के द्वारा याचना करते हैं।(सामवेद 5.3.2)
Somras booster of prudence, on being purified-sanctified destroys all defects and increase knowledge. The scholars worship Som with amazing Strotrs.
आविशन्कलशं सुतो विश्वा अर्षन्नभि श्रियः। इन्दुरिन्द्राय धीयते॥
यह शुद्ध किया हुआ सोमरस पात्र में परिपूर्ण करते समय अलंकृत होता है, जो देवराज इन्द्र को आनन्द प्रदान करने हेतु उन्हें दिया जाता है।(सामवेद 5.3.3)
Sanctified Somras is decorated-worshiped in the vessel on being filled and served to Devraj Indr to grant him pleasure.
असर्जि रथ्यो यथा पवित्रे चम्वोः सुतः। कार्ष्मन्वाजी न्यक्रमीत्॥
नियंत्रण में रखे गये रथ के अश्व के समान अभिषुत किया गया सोमरस सतकर्त्ता पूर्वक कलश में भरा जाता है। यह शक्तिवर्द्धक सोम देवगणों को अपनी ओर आकृष्ट करने में सक्षम है।(सामवेद 5.3.4)
Extracted Somras is filled in the vessel like a controlled horse. This energising Somras is capable of attracting demigods-deities towards it.
प्र यद्गावो न भूर्णयस्त्वेषा अयासो अक्रमुः। घ्नन्तः कृष्णामप त्वचम्॥
दीप्ति युक्त एवं द्रुत गति से जाने वाला सोम अपनी काली त्वचा (छाल) को विनष्ट करते हुए याग में उसी तरह पहुँचता है, जिस तरह गाएँ (द्रुत गति से) गोष्ठ में गमन करती हैं।(सामवेद 5.3.5)
Radiant Somras moving with fast speed destroys its blackish bark-outer covering and reaches the Yag-Yagy like the fast moving cows go to the cow shed.
अपघ्नन्पवसे मृधः क्रतुवित्सोम मत्सरः। नुदस्वादेवयुं जनम्॥
है पवित्र सोम! आप सुख प्रदान करने वाले एवं यज्ञ विधा के ज्ञानी हैं। जैसे रोगों को विनष्ट करते हुए आप शुद्ध होते हैं, वैसे ही देवत्व का विरोध करने वालों का विनाश करें।(सामवेद 5.3.6)
Hey pious Som! You grant comforts-pleasure and is learned of the Yagy Vidhya-procedures. The way you are sanctifies destroying the diseases-impurities, similarly destroy those who oppose the demigodhood.
अया पवस्व धारया यया सूर्यमरोचयः। हिन्वानो मानुषीरपः॥
हे सोम! मनुष्यों का भला करने वाले कार्यों को पूर्ण करने हेतु जल को (वर्षा के लिए) प्रेरणा प्रदान करते हुए जैसे (अपने सामर्थ्य से) आपने सूर्य देवता को प्रकाशित किया, उसी धारा (सामर्थ्य) से आप कलश में शुद्ध होकर प्रतिष्ठित हो।(सामवेद 5.3.7)
Hey Som! The way you inspired Sury Dev to shine, similarly inspire rains for the welfare-benefit of the humans. By virtue of the strength of the current-rains establish in the Kalash.
स पवस्व य आविथेन्द्रं वृत्राय हन्तवे। वव्रिवांसं महीरपः॥
हे सोम! आप जल-वृष्टि में अवरोध उत्पन्न करने वाले वृत्र का संहार करने हेतु देवराज इन्द्र का उत्साहवर्द्धन करें एवं द्रुत गतिशील धारा सहित पात्र में छनते जाएँ।(सामवेद 5.3.8)
Hey Som! You encouraged Devraj Indr to remove the obstacles in the flow of water created by Vratr. Keep on pouring-filtering in the pot with fast speed.
अया वीती परि स्रव यस्त इन्दो मदेष्वा। अवाहन्नवतीर्नव॥
हे सोमदेव देवराज इन्द्र के पान करने के निमित्त आप पात्र में प्रतिष्ठित हों। आपका यह शुद्ध रस संग्राम में शत्रुओं की सारी पुरियों को विध्वंस करने हेतु, देवराज इन्द्र को क्षमता प्रदान करता है।(सामवेद 5.3.9)
Hey Somras establish in the vessel to be drunk by Devraj Indr. You grant strength to Devraj Indr to destroy the forts-cities of the enemies in the war.
परि द्युक्षं सनद्रयिं भरद्वाजं नो अन्धसा। स्वानो अर्ष पवित्र आ॥
हे सोमदेव! तेज, शक्ति एवं उत्कृष्ट धन अपने पौष्टिक रस के साथ हमें देने की कृपा करें। जब आपका शुद्ध रस छन जाए, तब वह पात्र में विद्यमान हो जाए।(सामवेद 5.3.10)
Hey Som! Grant us Tej-energy, power-might and excellent wealth with the nourishing sap. Let you juice-sap be stored in the vessel on being purified.
सामवेद पावमानं पर्व (5.4) :: ऋषि :- मेधातिथि, भृगु, उचथ्य, अवत्सार, निध्रुवि, काश्यप, असित, मारीच, कवि, जमदग्नि, अयास्य, आंगिरस, अमहीयु; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
अचिक्रददृषा हरिर्महान्मित्रो न दर्शतः। सं सूर्येण दिद्युते॥
मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला, मित्र की भाँति दर्शनीय, हरित वर्ण का, आदरणीय, अभिषुत करते समय नाद करता हुआ यह सोम वैसे ही प्रज्वलित होता है, जिस तरह सूर्य प्रज्वलित होता है।(सामवेद 5.4.1)
As soon as Somras accomplishing desires, beautiful like a friend, greenish in colour, producing sound, illuminate like the Sun.
आ ते दक्षं मयोभुवं वह्निमद्या वृणीमहे। पान्तमा पुरुस्पृहम्॥
हे सोम! आपके आनन्ददायक, धन-धान्य से परिपूर्ण करने वाले, शत्रुओं से बचाने वाले, अनेक लोगों द्वारा अभिलाषा किये गये पराक्रम को हम प्राप्त करते हैं।(सामवेद 5.4.2)
Hey Som! We attain your valour which grant pleasure, accomplish us with wealth & food grains, protects us from the enemies.
अध्वर्यो अद्रिभिः सुतं सोमं पवित्र आ नय। पुनाहीन्द्राय पातवे॥
हे यज्ञ कर्ताओं! देवराज इन्द्र के लिए पान करने योग्य तैयार करने हेतु अभिषुत सोमरस को शुद्ध करके कलश के समीप लेकर उपस्थित हो।(सामवेद 5.4.3)
Hey Yagy performers! Bring the purified Somras ready to drink by Devraj Indr in the Kalash-vessel.
तरत्स मन्दी धावति धारा सुतस्यान्धसः। तरत्स मन्दी धावति॥
निष्यन्त्र की गई सोमरस की पौष्टिक धारा सुखदायी है। यह कुटिल कृत्य से रहित एवं आराधकों को उन्नति के मार्ग पर अग्रसर करने वाली है।(सामवेद 5.4.4)
Controlled nourishing stream of Somras gives pleasure. Free from wickedness it grants progress to the devotees-moves over the path of progress.
आ पवस्व सहस्रिणं रयिं सोम सुवीर्यम्। अस्मे श्रवांसि धारय॥
हे सोमदेव! आप हजारों तरह का उत्तम, बल में वृद्धि करने वाला, अलौकिक धन एवं अन्न हमें देने की कृपा करें।(सामवेद 5.4.5)
Hey Somras! Grant thousands of types of excellent divine strength and food grains to us.(09.12.2025)
अनु प्रत्नास आयवः पदं नवीयो अक्रमुः। रुचे जनन्त सूर्यम्॥
प्राचीनकाल में लोगों ने ज्ञान को प्राप्त करने हेतु सूर्य की भाँति तेजोमय सोम को उत्पन्न किया एवं सर्वश्रेष्ठ पद को हासिल किया।(सामवेद 5.4.6)
During ancient times people evolved-grew energetic Som to have knowledge like he Sun and attained highest rank-post.
अर्षा सोम द्युमत्तमोऽभि द्रोणानि रोरुवत्। सीदन्योनौ वनेष्वा॥
हे कान्तिवान् सोम देव! आप आवाज करते हुए (यज्ञ) पात्र में पवित्र होकर प्रतिष्ठित हों। आप तपस्या करने योग्य वन में अवस्थित इस यज्ञ मण्डप में उपस्थित हो।(सामवेद 5.4.7)
Hey lustrous Som! Establish in the Yagy Kalsh making sound. Invoke in the forest suitable for ascetics-Tapasya in the Yagy Mandap.
वृषा सोम द्युमाँ असि वृषा देव वृषव्रतः। वृषा धर्माणि दध्रिषे॥
हे सोम! आप महा बलशाली एवं तेज से युक्त है। शक्ति में वृद्धि करने की योग्यता से सम्पन्न आप सर्वदा अपने इस धर्म (गुण) को धारण किये रहते हैं।(सामवेद 5.4.8)
Hey Som! You are associated with extreme power and aura-radiance. You always possess this trait to boost strength.
इषे पवस्व धारया मृज्यमानो मनीषिभिः। इन्दो रुचाभि गा इहि॥
हे सोम देव! आप विद्वान् पुरुषों के द्वारा निचोड़े जाने के पश्चात् पौष्टिक रस से युक्त धारा के रूप में पवित्र हों तथा गाय के दूध में मिश्रित होकर प्रदीप्त हो।(सामवेद 5.4.9)
Hey Som! You should be sanctified as nourishing juice-sap stream on being squeezed by the learned people and shine on being mixed with cow's milk.
मन्द्रया सोम धारया वृषा पवस्व देवयुः। अव्या वारेभिरस्मयुः॥
शक्तिवर्द्धक, देवगणों द्वारा अभिलषित हे सोम देव! आप हमारी रक्षा करें एवं छननी में सुख प्रदान करने वाली धारा के रूप में परिष्कृत किये जाएँ।(सामवेद 5.4.10)
Hey strength boosting Somras desired by the demigods-deities! Protect us and become purified as a stream-current passing through the sieve granting pleasure-comfort.
अया सोम सुकृत्यया महान्त्सन्नभ्यवर्धथाः। मन्दान इद् वृषायसे॥
हे सोम! आप अपने उत्कृष्ट कर्मों से आदर-योग्य बनकर महानता को प्राप्त करते हैं तथा सुख प्रदान कर बल में वृद्धि करते हैं।(सामवेद 5.4.11)
Hey Som! You become revered-honourable due to your virtuous deeds, attain greatness, grant pleasure and increase strength.
अयं विचर्षणिर्हितः पवमानः स चेतति। हिन्वान आप्यं बृहत्॥
विवेक में वृद्धि करने वाला, पात्र में प्रतिष्ठित होकर शोधित, यह सोमरस जल में मिश्रित होकर अत्यधिक अन्न (पोषण) देता हुआ कीर्तिमान होता है।(सामवेद 5.4.12)
Somras mixed in water increase prudence on being stored in the vessel, grant extreme nourishment and shine.
प्र न इन्दो महे तु न ऊर्मि न बिभ्रदर्षसि। अभि देवाँ अयास्यः॥
हे सोम देव! अत्यधिक धन-संपत्ति को प्राप्त करने हेतु आप पात्र में छाने जाते हैं। आपकी कान्ति को धारण करने वाले अयास्य ऋषि देव पूजन (देवत्व को धारण) करते हैं।(सामवेद 5.4.13)
Hey Som! For achievement of extreme wealth & prosperity you are filtered in the pot. Ayasy Rishi holding your lustre attain demigodhood.
अपध्नन्पवते मृधोऽप सोमो अराव्णः। गच्छन्निन्द्रस्य निष्कृतम्॥
यह सोम शत्रुओं का तथा दान न देने वालों का विनाश करता है। यह देवराज इन्द्र के समीप गमन करता हुआ स्त्रवित होता है।(सामवेद 5.4.14)
Som destroys the enemies and those who do not donate. It flows while moving close to Devraj Indr.
सामवेद पावमानं पर्व (5.5) :: ऋषि :- भरद्वाज, कश्यप, गौतमोऽचिर्विश्वामित्र, जमदग्नि, वसिष्ठ; देवता :- पवमान, सोम; छन्द-बृहती।
पुनानः सोम धारयापो वसानो अर्षसि।
आ रत्नधा योनिमृतस्य सीदस्युत्सो देवो हिरण्ययः॥
सोमरस शुद्ध होकर, पानी में मिश्रित होकर प्रवाह के साथ नीचे पात्र में गिरता है। समस्त स्त्नों को प्रदान करने वाला, यज्ञवेदी में विद्यमान प्रकाशित होता हुआ वह सोमरस प्रवाहित होता है।(सामवेद 5.5.1)
Somras on being purified and mixed with water falls into the pot. Granter of all jewels, it shines over the Yagy Vedi and flows.
परीतो षिञ्चता सुतं सोमो य उत्तमं हविः।
दधन्वाँ यो नर्यो अस्वा3न्तरा सुषाव सोममद्रिभिः॥
हे होताओं! मानवों के लिए कल्याणकारी, पाषाणों पर कूटकर तैयार किया गया शोधित, जल में मिला हुआ यह सोमरस देवताओं हेतु श्रेष्ठ हवि है।(सामवेद 5.5.2)
Hey Hota Gan! Somras constitute the best oblation for the demigods-deities on being crushed with stones, purifies & mixed in water.
आ सोम स्वानो अद्रिभिस्तिरो वाराण्यव्यया।
जनो न पुरि चम्वोर्विशद्धरिः सदो वनेषु दध्रिषे॥
पत्थरों द्वारा कूटकर निचोड़ा हुआ यह सोमरस छलनी से नीचे के पात्र में छाना जाता है। हरित वर्ण का यह सोमरस इस काष्ठ के पात्र (द्रोण कलश) में उसी तरह पहुँचकर प्रतिष्ठित रहता है, जिस प्रकार पुरी में मानव।(सामवेद 5.5.3)
On being crushed with stones, squeezed Somras is filtered in the sieve into the pot kept below. Greenish Somras present in the wooden pot (Dron), stay like the humans live in their abode-homes.
प्र सोम देवतीतये सिन्धुर्न पिप्ये अर्णसा।
अंशोः पयसा मदिरो न जागृविरच्छा कोशं मधुश्श्रुतम्॥
यह सोमरस देवगणों के पानार्थ जल में मिश्रित किया जाता है। आनन्द प्रदान करने वाला होने के साथ-साथ यह सोम उत्साह का संचार करने वाला भी है। यह सोमरस पानी में मिश्रित होकर माधुर्य युक्त रस टपकाने वाले पात्र में आसीन हो।(सामवेद 5.5.4)
Somras is mixed in water for the demigods-deities to drink. In addition to pleasure it increase enthusiasm, as well. On being mixed in water, Somras should be kept in the vessel to be sweetened.
सोम उ ष्वाणः सोतृभिरधि ष्णुभिरवीनाम्।
अश्वयेव हरिता याति धारया मन्द्रया याति धारया॥
याज्ञिकों द्वारा निचोड़कर तैयार किया गया यह सोम, शुद्ध होकर नीचे पात्र में पहुँचता है। यह हरिताभ सोम तीव्र गतिमान होकर प्रफुल्लित करने वाले प्रवाह से पात्र में प्रतिष्ठित होता है।(सामवेद 5.5.5)
Squeezed by the Yagyik, Somras on being purified, moves into the pot kept below. Greenish Somras acquire fast speed, flow happily into the pot, to be stored there.
तवाहं सोम रारण सख्य इन्दो दिवेदिवे।
पुरूणि बभ्रो नि चरन्ति मामव परिधीं रति ताँ इहि॥
हे सोम देव! हम नित्य प्रति आपकी मित्रता से लाभान्वित हों। जो अनेक तरह के दुर्जन मनुष्य हमें कष्ट देते हैं, उन दुष्ट राक्षसों का आप विनाश कर दें।(सामवेद 5.5.6)
Hey Som! We should benefited by your friendship everyday. Destroy the many types of vicious humans who torture us like the wicked demons.
मृत्यमानः सुहस्त्या समुद्रे वाचमिन्यसि। रयिं पिशङ्ग बहुलं पुरुस्पृहं पवमानाभ्यर्षसि॥
उत्तम हाथों के माध्यम से तैयार किये गये, शुद्ध हुए हे सोम! शोधित होने वाले, आप पात्र में शब्द करते हुए पहुँचते हैं तथा उद्गाताओं को अभिलषित सुवर्ण आदि धन प्रदान करते हैं।(सामवेद 5.5.7)
Hey sanctified Som prepared by the best hands! You on being purified reach the pot making sound and granting wealth like gold etc to the Udgata Gan.
अभि सोमास आयवः पवन्ते मद्यं मदम्।
समुद्रस्याधि विष्टपे मनीषिणो मत्सरासो मदच्युतः॥
व्यक्तियों के हितकारी, हर्ष प्रदान करने वाले ज्ञानवान, शुद्ध किये जाने वाले यन्त्र से नीचे की ओर गिरने वाले, हर्षयुक्त सोम, पानी से परिपूर्ण बर्तन में अपने आप पवित्र होकर इकठा होते हैं। पुनानः सोम जागृविरव्या वारैः परि प्रियः।
त्वं विप्रो अभवोऽङ्गिरस्तम मध्वा यज्ञं मिमिक्ष णः॥
ज्ञान से युक्त, मधुर एवं पावन सोम, छलनी में छनकर शुद्ध होते हुए नीचे की ओर प्रवाहित होता है। हे अंगिरस् (मुनि) की परंपरा में सर्वश्रेष्ठ देवता सोम! आप ज्ञानवर्द्धक होकर हमारे याग को माधुर्ययुक्त रस से शुद्ध करें।(सामवेद 5.5.9)
Sweetened, pious-pure Som, accompanied with Gyan-knowledge is filtered in the sieve and then it move below. Hey Som best demigod-deity in the clan of Angiras Muni! You should be associated with Gyan and sanctify our Yagy with your sweetened sap.
इन्द्राय पवते मदः सोमो मरुत्वते सुतः। सहस्त्रधारो अत्यव्यमर्षति तमी मृजन्त्यायवः॥
आनन्द प्रदान करने वाला, निचोड़कर तैयार किया गया सोम, मरुद्गण तथा देवराज इन्द्र हेतु स्वच्छ होता है। यह सोम सर्वप्रथम असंख्यों धराओं के रूप में छलनी से पवित्र होता है, तत्पश्चात् दुबारा उद्गातागण मन्त्रोच्चारण के द्वारा इसे शुद्ध करते हैं।(सामवेद 5.5.10)
Gladdening Somras is squeezed and purified for Devraj Indr & Marud Gan. Initially this Som is sanctified and then passes through the sieve in hundreds of streams-currents. Thereafter, the Udgata Gan again sanctify it by the chanting of Mantrs.
पवस्व वाजसातमोऽभि विश्वानि वार्या। त्वं समुद्रः प्रथमे विधर्मन् देवेभ्यः सोम मत्सरः॥
स्तोत्रों के द्वारा स्वच्छ हुए, असाधारण अन्न (पोषकता) से सम्पन्न, देवताओं को हर्षित करने वाले हे सोम! दयालुता आदि विशेषतायुक्त गुणों से सम्पन्न होकर आप इस उत्कृष्ट याग में शोधित हो।(सामवेद 5.5.11)
असाधारण :: अपूर्व, निराला, विशेष, ख़ास, न्यारा, ग़ैरमामूली; extraordinary, exceptional, unique, extravagant.
Sanctified with the Strotrs, extraordinary nourishing food grain, gladdening the demigods, hey Som! Accompanying with kindness-mercy etc, special qualities you should be sanctified in this Yagy.
पवमाना असृक्षत पवित्रमति धारया।
मरुत्वन्तो मत्सरा इन्द्रिया हया मेधामभि प्रयांसि च॥
मरुतों का सखा, आनन्द प्रदान करने वाला, देवराज इन्द्र को प्रिय, विवेक एवं पोषण से सम्पन्न, यज्ञ में प्रयोग किया जाने वाला एवं शोधित होने वाला सोमरस छलनी से छनते हुए नीचे पात्र में प्रवाहित होता है।(सामवेद 5.5.12)
Friend of Marud Gan, gladdening, dear to Devraj Indr, possessing prudence & nourishment, the Somras used in the Yagy is purified and passes through the sieve.
सामवेद पावमानं पर्व (5.6) :: ऋषि :- उशना, काव्य, वृषणो वासिष्ठ, पराशर, वसिष्ठ, पराशर, शाक्यत्य, वसिष्ठौ मैत्रावरुणि, प्रतर्दनो दैवोदासि, प्रस्कण्व, काण्व; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- त्रिष्टुप्।
प्र तु द्रव परि कोशं नि षीद नृभिः पुनानो अभि वाजमर्ष।
अश्वं न त्वा वाजिनं मर्जयन्तोऽच्छा बर्ही रशनाभिर्नयन्ति॥
हे सोम! याज्ञिकगण आपको शोधित कर कलश में प्रतिष्ठित करते हैं। आप याज्ञिकों को अन्न एवं धन प्रदान करें। पराक्रमी अश्व के सदृश शोधित करते हुए याज्ञिकगण आपको यज्ञ-वेदी तक पहुंचाते हैं।(सामवेद 5.6.1)
Hey Som! The Yagyik Gan purify you and collect in the Kalash. Grant food grains and wealth to the Yagyik Gan. The Yagyik Gan carry you to the Yagy Vedi like a chivalric horse.
प्र काव्यमुशनेव ब्रुवाणो देवो देवानां जनिमा विवक्ति।
महिव्रतः शुचिबन्धुः पावकः पदा वराहो अभ्येति रेभन्॥
ऋषि उशना के समान स्तोत्रों का उच्च्चारण करने वाले याजक, देवगणों के जीवन-चरित्र का वर्णन करते हैं। श्रेष्ठ, धर्माचारी, तेजोमय एवं स्वच्छ करने वाला उत्कृष्ट सोमरस, आवाज करते हुए कलश में गिरता है।(सामवेद 5.6.2)
The Yajak who recite the Strotrs like Rishi Ushna describe the nature-character of demigods-deities. Excellent, duty bound, energetic, clean-pure Somras falls into the Kalash.
तिस्त्रो वाच ईरयति प्र वह्निर्ऋतस्य धीतिं ब्रह्मणो मनीषाम्।
गावो यन्ति गोपतिं पृच्छमानाः सोमं यन्ति मतयो वावशानाः॥
याज्ञिक जन सत्य को धारण करने वाले, तीनों वेदों (ऋक्, यजु, साम) के मन्त्रों द्वारा अद्भुत, उत्कृष्ट सोम की याचना करते हैं। जिस प्रकार वृषभ गायों के निकट गमन करते हैं, उसी प्रकार श्रेष्ठ सुख की कामना करने वाले उद्गातागण सोम के निकट गमन करते हैं।(सामवेद 5.6.3)
Truthful Yagyik Gan prepare excellent Somras with the Mantrs of three Veds Rik, Yajur, Sam). The way the bull move to the cows, the Udgata Gan with the desire of excellent comforts-pleasure move to Som.
अस्य प्रेषा हेमना पूयमानो देवो देवेभिः समपृक्त रसम्।
सुतः पवित्रं पर्येति रेभन् मितेव सद्म पशुमन्ति होता॥
स्वर्ण से परिष्कृत, यज्ञ को प्रेरणा प्रदान करने वाला, अलौकिक सोमरस देवगणों को निवेदित किया जाता है। निचोड़कर निकाला गया यह सोमरस, यज्ञ-मण्डप में पहुँचने वाले यजमान या गाय के बाड़े में गमन करने वाले ग्वाले के सदृश कलश में उपस्थित हो रहा है (शुद्ध हो रहा है)।(सामवेद 5.6.4)
Divine Somras sanctified with gold, inspiring Yagy is served to the demigods-deities. Squeezed Somras is present in the Kalash like the Yajman going to the Yagy or the cowherd going to the cow shed.
सोमः पवते जनिता मतीनां जनिता दिवो जनिता पृथिव्याः।
जनिताग्नेर्जनिता सूर्यस्य जनितेन्द्रस्य जनितोत विष्णोः॥
उच्च विवेक, भूलोक, दिव्यलोक, अग्नि, दिनकर, इन्द्र एवं नारायण आदि देवताओं को प्रकट करने वाला अलौकिक सोम पात्र में पवित्र होकर विद्यमान है।(सामवेद 5.6.5)
Sanctified divine pure-pious Somras with high prudence, invoke divine abodes, earth, Agni, Dinkar, Indr & Narayan etc demigods is present in the pot.
अभि त्रिपृष्ठं वृषणं वयोधामङ्गोषिणमवावशन्त वाणीः।
वना वसानो वरुणो न सिन्धुर्वि रत्नधा दयते वार्याणि॥
तीन स्थानों (व्योम, वनस्पति तथा काया) में वास करने वाले, सौंदर्य प्रदान करने वाले एवं पोषण प्रदान करने वाले सोम की ऊँचे स्वर में यजमानों की वेद-मन्त्रों से युक्त वाणियाँ स्तुति करती हैं। जल देवता (वरुण) के सदृश पानी में मिश्रित सोम उपासकों को रत्न एवं धन से परिपूर्ण करता है।(सामवेद 5.6.6)
Som residing in the three abodes (space-sky, vegetation and the body), granting beauty and nourishment, is prayed in loud voice with the recitation of Ved Mantrs. Mixed in water Som, grants jewels-Gems, wealth to the worshipers like Varun Dev.
अक्रांत्समुद्रः प्रथमे विधर्मं जनयन् प्रजा भुवनस्य गोपाः।
वृषा पवित्रे अधि सानो अव्ये बृहत्सोमो वावृधे स्वानो अद्रिः॥
जल वर्षा करने वाला, यज्ञ का पालनकर्ता, शक्तिवर्द्धक, निष्पन्न किया हुआ सोम सबसे पहले प्रजाओं का हौसला वर्द्धन कर उनकी प्रगति करते हुए सर्वश्रेष्ठ हो गया।(सामवेद 5.6.7)
Extracted Som became best by showering rains, supporting Yagy, boosting strength, inspiring-encouraging the populace.
कनिक्रन्ति हरिरा सृज्यमानः सदीन्वनस्य जठरे पुनानः।
नृभिर्यतः कृणुते निर्णिजं गामतो मतिं जनयत स्वधाभिः॥
ऋत्विजों द्वारा निचोड़कर रस निकाला जाने वाला, हरित वर्ण का सोम स्वच्छ होता है। गाय के दूध में मिला हुआ वह शब्द करता हुआ द्रोण कलश में प्रवाहित होता है। स्तोतागण इस सोम की हवियुक्त स्तुति करते हैं।(सामवेद 5.6.8)
Squeezed by the Ritviz, greenish Somras is pure. It flows into the Dron-wooden pot mixed with cow's milk, making sound. Stota Gan worship this Somras with the oblations.(11.12.2025)
एष स्य ते मधुमाँ इन्द्र सोमो वृषा वृष्णः परि पवित्रे अक्षाः।
सहस्त्रदाः शतदा भूरिदावा शश्वत्तमं बर्हिरा वाज्यस्थात्॥
हे महापराक्रमी देवराज इन्द्र! शक्ति बढ़ाने वाला, आपका यह सोम माधुर्ययुक्त एवं तेजवान् होकर कलश में प्रवाहित होता है। सैकड़ों-सहस्रों तरह का अत्यधिक घन देने वाला, यह बलयुक्त सोम, निरन्तर होने वाले याग में प्रकट होकर प्रतिष्ठित होता है।(सामवेद 5.6.9)
Hey extremely mighty Devraj Indr! Somras which increase your potential-strength flows into the Kalash. Somras possessing energy-nourishment is established in the Yagy, continuously. It grants hundreds & thousands of kinds of wealth.
पवस्व सोम मधुमाँ ऋतावापो वसानो अधि सानो अव्ये।
अव द्रोणानि घृतवन्ति रोह मदिन्तमो मत्सर इन्द्रपानः॥
हे माधुर्ययुक्त सोम! आप पानी में मिश्रित होकर, उच्च स्थान पर विराजमान होकर, शोधन यन्त्र से शुद्ध होते हैं। तत्पश्चात् आनन्द प्रदान करने वाले एवं देवराज इन्द्र के पान करने योग्य आप (सोम) जल में मिश्रित होकर पात्र में प्रतिष्ठित होते हैं।(सामवेद 5.6.10)
Hey sweetened Somras! You are purified through a machine kept over a high place on being mixed in water. Thereafter, you become suitable to be drunk by Devraj Indr and gladden him, after mixing in water and kept in the pot.
सामवेद पावमानं पर्व (5.7) :: ऋषि :- प्रतर्दन, पराशर, शाक्त्य, इन्द्रप्रमतिर्वासिष्ठ, वसिष्ठो मैत्रावरुणि, कर्णश्रुद्वासिष्ठ, नोधा गौतम, कण्वोधौर, मन्युर्वासिष्ठ, कुत्स, आंगिरस, कश्यपो मारीच, प्रस्कण्व काण्व: देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- त्रिष्टुप्।
प्र सेनानीः शूरो अग्ने रथानां गव्यन्नेति हर्षते अस्य सेना।
भद्रान् कृण्वन्निन्द्रहवांत्सखिभ्य आ सोमो वस्त्रा रभसानि दत्ते॥
सेना का संचालन करने वाला, पराक्रमी सोम गौ (के दुग्ध) की अभिलाषा करते हुए, रथों के आगे-आगे चलता है, जिससे इसका दल आनंदित होता है। यह सोम देवराज इन्द्र की याचनाओं को सखाओं तथा यजमानों हेतु कल्याणकारी बनाते हुए प्रखर तेज को ग्रहण करता है।(सामवेद 5.7.1)
Mighty Som which control the army, desiring cow's milk, moves ahead of the charoites leading to pleasure of the group. Som makes the requests-prayers of Devraj Indr and the Yajmans beneficial-useful and adopt sharp aura.
प्र ते धारा मधुमतीरसृग्रन्वारं यत्पूतो अत्येष्यव्यम्।
पवमान पवसे धाम गोनां जनयंत्सूर्यमपिन्वो अर्कैः॥
हे सोम! शुद्धिकाल में आपकी दूध में मिली हुई माधुर्ययुक्त धाराएं, ऊन की छलनी से छनकर बर्तन में विद्यमान होती हैं। तब शुद्धता को प्राप्त हुए आप सूर्य देवता के सदृश प्रखर तेज को ग्रहण करते हैं।(सामवेद 5.7.2)
Hey Somras! Your sweetened streams mixed in water, being filtered through the sieve of wool are stored in the vessel. On being sanctified you accept sharp radiance like Sury Dev.
प्र गायताभ्यर्चाम देवान्त्सोमं हिनोत महते धनाय।
स्वादुः पवतामति वारमव्यमा सीदतु कलशं देव इन्दुः॥
माधुर्य एवं तेज से युक्त सोमरस शोधन यन्त्र से क्षरित होकर बर्तन में प्रवाहित होता हुआ प्रतिष्ठित होता है। धन-ऐश्वर्य प्राप्त करने की अभिलाषा से हम स्तुति किये जाने वाले सोम को प्रेरित करते हुए देवगणों की आराधना करते हैं।(सामवेद 5.7.3)
Sweetened Somras having radiance on passing through purifier plant-machine flow into the vessels. We worship demigods-deities who inspire Som; with the desire of wealth-grandeur & prosperity.
प्र हिन्वानो जनिता रोदस्यो रथो न वाजं सनिषन्नयासीत्।
इन्द्रं गच्छन्नायुधा संशिशानो विश्वा वसु हस्तयोरादधानः॥
देवलोक तथा भूलोक का उद्गम करने वाले, शस्त्रों की धार को तेज करने वाले, देवगणों को पोषण देने वाले सोमदेव द्रुत गति से देवराज इन्द्र के पास गमन करते हुए मानो जगत् का सम्पूर्ण ऐश्वर्य हम याजकगणों को देने हेतु उपस्थित हुए हैं।(सामवेद 5.7.4)
Som Dev who evolve the heavens & earth, sharpen the weapons, nourishing the demigods-deities moves with high speed to Devraj Indr as if he has invoked to grant the entire grandeur of the universe to the Yajak Gan.
तक्षद्यदी मनसो वेनतो वाग् ज्येष्ठस्य धर्मं द्युक्षोरनीके।
आदीमायन्वरमा वावशाना जुष्टं पतिं कलशे गाव इन्दुम्॥
अभ्युदय की आकांक्षा से युक्त, उपासकों के चित्त में विचारों के माध्यम से अभिप्रेरित स्तुति, जिस सोम का निर्माण करती है, उस याग के श्रेष्ठ हवि के समीप उसकी सराहना होती है। तत्पश्चात् भली-भाँति तैयार, सबको पोषण प्रदान करने वाले एवं पात्र में प्रतिष्ठित इस सोम में गौ का माधुर्ययुक्त दुग्ध मिश्रित किया जाता है।(सामवेद 5.7.6)
अभ्युदय :: वृद्धि, उदय, ऊंचाई, चढ़ाव, उन्नति; prosperity, rise, aggrandizement, advent.
The prayers which inspire the innerself of the worshipers, with the desire of advent, Somras produced is appreciated near the best offerings of the Yagy. Thereafter, properly prepared, nourishing Somras kept in the pot is mixed with cow's milk.
साकमुक्षो मर्जयन्त स्वसारो दश धीरस्य धीतयो धनुत्रीः।
हरिः पर्यद्रवज्जाः सूर्यस्य द्रोणं ननक्षे अत्यो न वाजी॥
कर्म परायण उंगलियाँ सोमरस को शोधित करती है। यह दसों उंगलियाँ तेजवान् सोम को डोलाती एवं धारण करती हैं। हरे रंग का यह सोमरस सब दिशाओं में गमन करता हुआ, तीव्र वेग से चलने वाले अश्व के सदृश कलश में विद्यमान होता है।(सामवेद 5.7.7)
Fingers dedicated to work, purify the Somras. These ten finger move-churn aurous Somras and hold it in vessels. Greenish Somras moving in all directions like a high speed horse is stored in the vessel.
अधि यदस्मिन्वाजिनीव शुभः स्पर्धन्ते धियः सूरे न विशः।
अपो वृणानः पवते कवीयान्व्रजं न पशुवर्धनाय मन्म॥
जिस प्रकार घोड़े को अलंकारों से सुसज्जित करते हैं, उसी प्रकार सूर्य की रश्मियाँ उस सोम (सूर्य) को अलंकृत करती हैं। रस निकालने में ये दसों उंगलियाँ समझदारी के साथ प्रतियोगिता करती हैं। जैसे पशुओं का पालन-पोषण करने हेतु गोपति गायों को बाड़े में ले जाता है, वैसे ही पानी में मिश्रित होकर एवं स्तुतियों को श्रवण करते हुए सोम पात्रों में छनता है।(सामवेद 5.7.8)
The way the horse is decorated with ornaments, rays of Sun decorate Somras. The finger compete amongst themselves to squeeze Somras. The way the nurturers of animals-Goupati take the cows to the shed, Somras mixed in water is filtered in the vessels with the recitation of hymns-Stuties.
इन्दुर्वाजी पवते गोन्योघा इन्द्रे सोमः सह इन्वन्मदाय।
हन्ति रक्षो बाधते पर्यरातिं वरिवस्कृण्वन्वृजनस्य राजा॥
देवराज इन्द्र के पराक्रम में वृद्धि करने वाला, याजकों को धन प्रदान करने वाला, बल का अधिपति सोम आनन्द में वृद्धि करने हेतु पात्र में छाना जाता है। वह सोमरस असुरों का शमन करता है एवं दुर्जनों को विनष्ट कर देता है।(सामवेद 5.7.8)
Lord of might, strength & power Som, which increase valour-might of Devraj Indr, granting wealth to the Yajak is filtered with increase in pleasure. Somras destroys the demons and the wicked-vicious.
अया पवा पवस्वैना वसूनि माँश्चत्व इन्दो सरसि प्र धन्व।
ब्रध्नश्चिद्यस्य वातो न जूतिं पुरुमेधाश्चित्तकवे नरं धात्॥
हे सोम! आपकी धारा पवित्रता से युक्त है। आप हमें उसी धारा के माध्यम से धन-धान्य से परिपूर्ण करें। जैसे सूर्यदेव सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के मूलाधार हैं, वायु को गतिमान करने वाले हैं, वैसे ही आप वसतीवरी जल में मिश्रित होकर पात्र में उपस्थित होकर मेधावी देवराज इन्द्र को ग्रहण हों तथा हमें सुयोग्य संतान प्रदान करें।(सामवेद 5.7.9)
Hey Somras! Your current possess piousity. Enrich us with food grains & wealth with that current. The way Sury Dev is at the core-helm of the universe, Vayu Dev grants speed; similarly you on being mixed with Vastivari water, kept in the pot be accepted by Devraj Indr and grant us able progeny.
महत्तत्सोमो महिषश्चकारापां यद्गर्भोऽवृणीत देवान्।
अदधादिन्द्रे पवमान ओजोऽजनयत्सूर्ये ज्योतिरिन्द्रः॥
हे सोम! आप महान् हैं। आप श्रेष्ठ कर्मों को सम्पन्न करने वाले हैं, आप ही जल का गर्भ (धारण करने वाले) एवं देवगणों को अन्न प्रदान करने वाले हैं। आप ही पवित्र होकर देवराज इन्द्र को शक्ति प्रदान करते हैं एवं सूर्य देव को तेजवान बनाते हैं।(सामवेद 5.7.10)
Hey Som! You are great. You accomplish excellent efforts. You hold water and grant food grains to demigods-deities. On being sanctified you boost strength of Devraj Indr and make Sury Dev shine-radiant.(12.12.2025)
असर्जि वक्वा रथ्ये यथाजौ धिया मनोता प्रथमा मनीषा।
दश स्वसारो अधि सानो अव्ये मृजन्ति वह्निं सदनेष्वच्छ॥
जिस तरह घोड़ों को रणभूमि में भेजा जाता है, उसी तरह सर्वप्रिय, सर्वप्रथम स्तुत्य सोम शब्द करता हुआ, स्तोत्रों का उच्चारण करते हुए पात्र के जल में मिलाया जाता है। दसों उंगलियाँ सोम को ऊपर स्थित छलनी से छानकर (कलश में) गिराती हैं।(सामवेद 5.7.11)
The way horses are sent to war field, similarly Somras is initially mixed in water vessel reciting Strotrs. All the ten fingers involve in squeezing Som through the sieve.
अपामिवे दूर्म यस्तर्तुराणाः प्र मनीषा ईरते सोममच्छ।
नमस्यन्तीरुप च यन्ति सं चाच विशन्त्युशतीरुशन्तम्॥
जल की तीव्र वेगवान् लहरों के समान शीघ्रता से स्तुति करने वाले उद्गातागण याचनाओं को शीघ्र ही सोम के समीप पहुँचाते हैं। प्रगति की अभिलाषा रखने वाली नमनशील याचनाएँ लालसा करने वाले सोम के समीप पहुँचाती हैं तथा उसी में मिश्रित हो जाती है।(सामवेद 5.7.12)
Udgata Gan quickly move the prayers-Stuties like the fast moving waves-currents of water near Somras. Bowing requests-prayers with the desire for progress, reach Somras and are mixed in it.
सामवेद पावमानं पर्व (5.8) :: ऋषि :- अंधीगु, श्यावाश्चि, नहुषो मानव, ययातिर्नाहुष, मनु, सांवरण, भरद्वाज, रेभसूनू काश्यप, प्रजापतिर्वाच्योवा; देवता-पवमान, सोम; छन्द :-अनुष्टुप्, बृहती।
पुरोजिती वो अन्धसः सुताय मादयित्नवे। अप श्वानं श्नथिष्टन सखायो दीर्घजिह्वयम्॥
हे ऋत्विजों! आपके समक्ष हर्ष प्रदान करने वाला सोमरस रखा हुआ है। बड़ी जिह्वा वाले श्वान उस सोमरस के समीप पहुँचकर उसे जूठा करना चाहते हैं, अतः आप उन्हें वहाँ से दूर हटा दें।(सामवेद 5.8.1)
Hey Ritviz Gan! Gladdening Somras is kept in front of you. Dogs with long tongue wish to defile-invalidate or just make is left over. Hence, repel them away.
अयं पूषा रयिर्भगः सोमः पुनानो अर्षति। पतिर्विश्वस्य भूमनो व्यख्यद्रोदसी उभे॥
सभी जीवों को पोषण प्रदान करने वाला, पान करने योग्य, रमणीय, यह अलौकिक सोम छनते हुए नीचे पात्र (पृथ्वी) में गिरता है। प्राणियों का पालनकर्ता यह सोमरस अपने ओज से देवलोक एवं पृथ्वीलोक को प्रदीप्त करता है।(सामवेद 5.8.2)
Divine delightful Somras ready to drink granting nourishment to all living beings falls into the pot. Nurturer of living beings Somras illuminate the heavens and earth with its glow-aura.
सुतासो मधुमत्तमः सोमा इन्द्राय मन्दिनः। पवित्रवन्तो अक्षरन् देवान् गच्छन्तु वो मदाः॥
माधुर्ययुक्त एवं आनन्द प्रदान करने वाला सोमरस स्वच्छ होकर देवराज इन्द्र के निमित्त पात्र में विद्यमान होता है। हे सोम! आपका यह हर्ष प्रदान करने वाला रस देवताओं के समीप पहुँचे।(सामवेद 5.8.3)
Sweetened, gladdening Somras is ready in the vessel of Devraj Indr for drinking. Hey Som! Let your pleasure granting juice-sap reach demigods-deities.
सोमाः पवन्त इन्दवोऽस्मभ्यं गातुवित्तमाः। मित्राः स्वाना अरेपसः स्वाध्यः स्वर्विदः॥
उत्कृष्ट मार्गों का जानकार, सखा की भाँति, अभिषुत किया हुआ, कुकृत्य से रहित, एकाग्रचित्त करने वाला, आत्मज्ञाता यह सोमरस हमारे लिए पवित्र किया जाता है।(सामवेद 5.8.4)
Aware of the excellent routes-paths, like friends, extracted, free from wickedness, leading to concentration of mind, aware of innerself-granting self assessment Somras is sanctified for us.
अभी नो वाजसातमं रयिमर्ष शतस्पृहम्। इन्दो सहस्त्रभर्णसं तुविद्युम्नं विभासहम्॥
हे सोम! आप असंख्य लोगों द्वारा प्रशंसनीय, सहस्रों को पोषण प्रदान करने वाले, अत्यन्त प्रखर तेज से युक्त एवं शक्तिवर्द्धक हैं। आप हमें धन-धान्य प्रदान करें।(सामवेद 5.8.5)
Hey Somras! You are appreciated by numerous people, grant nourishment to hundreds, possessing extreme glow and boost strength. Grant us food grains and wealth.
अभी नवन्ते अद्रुहः प्रियमिन्द्रस्य काम्यम्। वत्सं न पूर्व आयुनि जातं रिहन्ति मातरः॥
जिस तरह गायें अपने बछड़े को चाटती हैं, उसी तरह हानि न पहुँचाने वाले जल समूह, देवराज इन्द्र को अत्यधिक प्रिय एवं ऐच्छिक सोम से मिश्रित हो जाते हैं।(सामवेद 5.8.6)
The way cows lick their calf, similarly harmless water bodies-reservoirs, are mixed with desired Somras dear to Devraj Indr.
आ हर्यताय धृष्णवे धनुष्टन्वन्ति पौंस्यम्।
शुक्रा वि यन्त्यसुराय निर्णिजे विपामग्रे महीयुवः॥
जिस तरह शूरवीर कमान पर प्रत्यंचा चढ़ाते हैं, उसी तरह पुरुषों में श्रेष्ठ, अर्चना की लालसा रखने वाले याजकगण, शत्रुओं को नष्ट करने वाले, पूजा करने योग्य सोम को उत्कृष्ट बनाने हेतु उसे शुद्ध गौ-दुग्ध से मिश्रित करते हैं। (उसे सेवन करने योग्य निर्मित करते हैं)।(सामवेद 5.8.7)
The way a mighty person pulls the string of bow, excellent in males, desirous of worship Yajak Gan, destroyer of the enemies, make Somras worth consuming by mixing it with cow's milk.
परि त्यं हर्यतं हरिं बभ्रुं पुनन्ति वारेण। यो देवान्विश्वाँ इत्परि मदेन सह गच्छति॥
हरिताभ एवं सर्वप्रिय सोम को भेड़ों के बालों की छलनी से छानते हैं। यह सोम देवराज इन्द्र आदि सभी देवों के समीप अपनी आनन्द पहुँचाने वाली धाराओं सहित पहुँचता है।(सामवेद 5.8.8)
Greenish Somras liked by everyone is filtered through the hairs of sheep. This Somras reach Devraj Indr & demigods-deities through gladdening streams-currents.
प्र सुन्वानायान्धसो मर्तों न वष्ट तद्वचः। अप श्वानमराधसं हता मखं न भृगवः॥
शुद्ध होते समय सोम का शब्द, विघ्न उत्पन्न करने वाले व्यक्ति श्रवण न करें। हे याजकों! जिस प्रकार भृगु ऋषि ने दान-दक्षिणा से रहित मख नामक असुर को विनष्ट कर दिया था, उसी तरह इन गंडको (कुत्तों) को यज्ञ-स्थल से दूर हटा दो।(सामवेद 5.8.9)
While purification the sound produced by Somras should not be heard by disturbing people. Hey Yajak Gan! The way Rishi Bhragu destroyed the demons named Makh, similarly the dogs should be repelled from the Yagy site.
सामवेद पावमानं पर्व (5.9) :: ऋषि :- कविभार्गव, सिकता निवावरी, रेणुर्वैश्वामित्र, वेनोभार्गव, वसुर्भारद्वाज, वत्सप्री, गृत्समद, शौनक, पवित्र आंगिरस; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- जगती।
अभि प्रियाणि पवते चनोहितो नामानि यह्नो अधि येषु वर्धते। आ सूर्यस्य बृहतो बृहन्नधि रथं विष्वञ्चमरुहद्विचक्षणः॥
लोकातीत सोम, सभी जगह जाने वाले सूर्य के रथ पर विराजमान होकर सम्पूर्ण विश्व को देखने वाला बन जाता है। वह भरतार जल के साथ मिश्रित होकर, पोषण के लिए हितैषी बनकर, व्यापक होता हुआ प्रवाहित होता है।(सामवेद 5.9.1)
लोकातीत :: असाधारण; superhuman, preternatural, extra ordinary.
Extra ordinary Somras ride the charoite of Sury Dev and become viewer of the whole universe. It become well wisher and nourishing like a husband on mixing with water and flow acquiring huge mass-quantum.(13.12.2025)
अचोदसो नो धन्वन्त्विन्दवः प्र स्वानासो बृहद्देवेषु हरयः।
वि चिदश्नाना इषयो अरातयोऽर्यो नः सन्तु सनिषन्तु नो धियः॥
अन्य लोगों से प्रेरित न होने वाला, उचित तरीके से अभिषुत किया गया, हरे एवं भूरे रंग का सोमरस, यजमानों के याग में पधारे। दान न करने वाले, यज्ञ में बाधा उत्पन्न करने वाले विपक्षी, यजमानों के बैरी, पोषण की लालसा करने पर भी उसे न ग्रहण कर सकें। हमारी स्तुतियां देवताओं तक पहुँचे।(सामवेद 5.9.2)
Extracted through proper means-methods, uninspired by other people, greenish and brownish Somras should reach the Yagy of the Yajmans. Those who create obstacles in Yagy, do not donate, enemies of the Yajmans should not be able to get Somras with the desire for nourishment. Let our prayers-Stuties reach the demigods-deities.
एष प्र कोशे मधुमाँ अचिक्रददिन्द्रस्य वज्रो वपुषो वपुष्टमः।
अभ्यृ3तस्य सुद्घा घृतश्चतो वाश्रा अर्षन्ति पयसा च धेनवः॥
देवराज इन्द्र के वज्र के सदृश सामर्थ्यवान्, दूध देने वाली गायों के घी से युक्त उत्कृष्ट दुग्ध की धारा की भाँति नाद करता हुआ, मनोहरम बीजों को प्रस्फुटित करने वाला सोमरस, काष्ठ के पात्र में प्रवाहित होता है।(सामवेद 5.9.3)
बीज प्रस्फुटित होना :: बीज अंकुरण-अंकुरित; seed germination.
Capable like the Vajr of Devraj Indr, like the stream of milch cow's excellent milk containing Ghee & making sound, germinating beautiful seeds; Somras flows into wooden pot.
प्रो अयासीदिन्दुरिन्द्रस्य निष्कृतं सखा सख्युर्न प्र मिनाति सङ्गिरम्।
मर्य इव युवतिभिः समर्षति सोमः कलशे शतयामना पथा॥
सखा की भाँति यह सोमरस देवराज इन्द्र के उदर में पहुँचकर हर्ष प्रदान करता है, उन्हें कोई संताप नहीं देता है। जैसे नवयुवक नवयुवतियों के संग मिल-जुलकर वास करते है, वैसे ही यह सोम जल के साथ संयुक्त होकर, छलनी से छनकर पात्र में प्रतिष्ठित होता है।(सामवेद 5.9.4)
Somras reaches Devraj Indr's stomach like a friend and gladden him without troubling-torturing him. The way young man & woman live together, Somras mixed with water passes through the sieve and is stored in the pot-Kalash.
घर्ता दिवः पवते कृत्व्यो रसो दक्षो देवानामनुमाद्यो नृभिः।
हरिः सृजानो अत्यो न सत्वभिर्वृथा पाजांसि कृणुषे नदीष्वा॥
धारण करने की क्षमता से युक्त सोम अपने कर्मों को श्रद्धापूर्वक करने वाला, देवगणों के पुरुषार्थ में वृद्धि करने वाला, पात्र में शोधन यन्त्र से छनकर प्रविष्ट होता है। यजमानों के माध्यम से शोधित यह सोमरस शक्तिशाली घोड़ों के सदृश सरलता से ही स्वतः नदी के जल में संयुक्त हो जाता है।(सामवेद 5.9.5)
Somras with the capability to support, performs its functions respectfully, increase the calibre-efforts of demigods-deities, enter the pot after filtration through the purification plant. Through the Yajmans, purified Somras easily, mixes with the river water easily, like powerful horses.
वृषा मतीनां पवते विचक्षणः सोमो अह्नां प्रतरीतोषसां दिवः।
प्राणा सिन्धूनाँ कलशाँ अचिक्रददिन्द्रस्य हार्धाविशन्मनीषिभिः॥
यजमानों की अभिलाषाओं को पूरा करने वाला, सम्पूर्ण विश्व पर अपनी कृपा दृष्टि रखने वाला, दिवस, उषा एवं दिनकर के बल में वृद्धि करने वाला यह सोम शुद्ध किया जाता है। नदी के जीवन दायक पानी में संयुक्त होकर, दृष्टिवत स्तोताओं के माध्यम से अभिषुत किया हुआ यह सोमरस देवराज इन्द्र के उदर में जाने की लालसा से बर्तन में नाद करता हुआ प्रविष्ट होता है।(सामवेद 5.9.6)
Somras which accomplish the wishes-desires of the Yajmans, looking with mercy over the whole universe, increasing the power of day, Usha and the Sun is purified. Mixed in the life supporting water of the river, extracted by the Stotas carefully the Somras with the desire of reaching the stomach of Devraj Indr; enter the pot making sound.
त्रिरस्मै सप्त धेनवो दुदुह्रिरे सत्यामाशिरं परमे व्योमनि।
चत्वार्यन्या भुवनानि निर्णिजे चारूणि चक्रे यदृतैरवर्धत॥
विशाल अन्तरिक्ष में विद्यमान इस सोम को त्रिसप्त (तीन एवं सात के संयोग से निर्मित) अर्थात् इक्कीस गौएँ (पोषक शक्तियां) उत्कृष्ट दूध प्रदान करती हैं। जिस समय यह सोम याग आदि द्वारा बढ़ता है, उस समय चारों लोकों के जल, दूध को शोधित करने हेतु हितकारी रूप से प्रवााहित (गतिशील) होते हैं।(सामवेद 5.9.7)
त्रिसप्त :: 3x7=21.
Somras present in the space is enriched with the excellent milk of twenty one cows. When Som Yagy is accomplished, water from the four abodes (heavens, earth, nether world and space), is made to flow to purify milk.
इन्द्राय सोम सुषुतः परि स्त्रवापामीवा भवतु रक्षसा सह।
मा ते रसस्य मत्सत द्वयाविनो द्रविणस्वन्त इह सन्त्विन्दवः॥
हे सोम! आप उत्कृष्ट विधि से अभिषुत होने के बाद देवराज इन्द्र के पान करने के लिए गतिमान हों तथा विकार एवं असुरों से मुक्त हों। दो तरह का (झूठा एवं सच्चा) आचरण करने वाले दुर्जन मनुष्य इस सोमरस को ग्रहण न कर पायें। इस हितकारी याग में यह सोमरस धन-संपत्ति से सम्पन्न बने।(सामवेद 5.9.8)
Hey Somras! You should flow to be consumed by Devraj Raj on being extracted through best procedures, freed from impurities and demons. People with dualistic behaviour should not be able to drink it. Let Somras possess wealth & prosperity in the favourable Yagy.
असावि सोमो अरुषो वृषा हरी राजेव दस्मो अभि गा अचिक्रदत्।
पुनानो वारमत्येष्यव्ययं श्येनो न योनिं घृतवन्तमासदत्॥
तेजोमय, बल बढ़ाने वाला, हरिताभ सोमरस तैयार किया गया है। वह सोम, नरेश की भाँति रमणीय है। गाय के दूध में संयुक्त होने के पश्चात् नाद करता हुआ, पावन होने के बाद भी यह शोधन यन्त्र से शुद्ध किया जाता है। तत्पश्चात् श्येन पक्षी की तरह जल से परिपूर्ण कलश में प्रवाहित होकर प्रतिष्ठित होता है।(सामवेद 5.9.9)
Radiant, strength boosting greenish Somras is ready. Somras is delightful like a king. Sound producing Somras mixed in cow's milk is subjected to further purification by machine in spite of purifying. Thereafter, its made to be stored in the Kalash containing water, like a hawk.
प्र देवमच्छा मधुमन्त इन्दवोऽसिष्यदन्त गाव आ न धेनवः।
बर्हिषदो वचनावन्त ऊधभिः परिस्रुतमुस्त्रिया निर्णिजं घिरे॥
यह सोमरस माधुर्ययुक्त है। यह देवताओं के पान करने के निमित्त कलश में प्रवाहित होते हुए उसी प्रकार प्रविष्ट करता है, जिस प्रकार गौएँ अपने बछड़ों के समीप पहुँचती हैं। यज्ञशाला में विद्यमान एवं रँभाती हुई गायें अपने कुचों से टपकने वाले दूध में सोमरस को धारण करती हैं।(सामवेद 5.9.10)
Somras is sweetened. It flows into the Kalsh for consumption by the demigods-deities like the cows reaching their calf. Cows present in the Yagy Shala hold Somras in the milk coming out of their nipples-udder.
(Somras is mixed in the milk of the cows present in the Yagy Shala).
अञ्जते व्यञ्जते समञ्जते क्रतुं रिहन्ति मध्वाभ्यञ्जते।
सिन्धोरुछ्वासे पतयन्तमुक्षणं हिरण्यपावाः पशुमप्सु गृभ्णते॥
यजमान, सोमरस को गाय के दूध में विशेषता युक्त तरीके से भली-भांति मिश्रित करते हैं, जिसका देवता लोग आस्वादन करते हैं। उस सोम में गौ का घी एवं मधु संयुक्त करते हैं। तत्पश्चात् सरोवर के पानी में विराजमान सोम को सुवर्ण से शोधित करके कान्तिमय रूप प्रदान करते हैं।(सामवेद 5.9.11)
Yajman mix the Somras in cow's milk with various techniques, which is tasted- drunk by the demigods-deities. Somras is mixed with cow's ghee and honey. Thereafter, its treated with the water of the reservoir to give it lustre.
पवित्रं ते विततं ब्रह्मणस्पते प्रभुर्गात्राणि पर्येषि विश्वतः।
अतप्ततनूर्न तदामो अश्नुते शृतास इद्वहन्तः सं तदाशत॥
हे वेदों के ज्ञाता सोम! आपके पावन अंग सभी जगह व्याप्त है। आप पराक्रमी होने के निमित्त सेवन करने वाले के शरीर में स्फूर्ति का संचार करते हैं। तपस्या से जिसका देह तेजोमय नहीं हुआ है, उसे वह फल ग्रहण नहीं हो पाता है। उपासना परिपक्व होने के बाद ही उपासक उसे ग्रहण करने में सक्षम होता है अर्थात् तभी उस पर आपकी कृपा होती है।(सामवेद 5.9.12)
Hey Som having deeply learnt Veds! Your pious organs pervade all places. Somras cause alertness in the body of one who consume it for becoming mighty. One who has not attained aura due to ascetics-Tapasya fails to have its impact-affect. Only after success of the worship one becomes capable of accepting the reward-impact of it.(14.12.2025)
सामवेद पावमानं पर्व (5.10) :: ऋषि :- अग्निश्चाक्षुष, चक्षुर्मानव, पर्वतनारदौ, त्रित आप्त्य, मनुराप्सव, द्वित आप्त्य; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- उष्णिक्।
इन्द्रमच्छ सुता इमे वृषणं यन्तु हरयः। श्रुष्टे जातास इन्दवः स्वर्विदः॥
अविलम्ब तैयार हुआ, ज्ञान में वृद्धि करने वाला, यह हरे एवं भूरे रंग का सोमरस शक्तिशाली देवराज इन्द्र को शीघ्रता से प्राप्त हो।(सामवेद 5.10.1)
Let this Gyan-knowledge boosting, greenish & brownish Somras prepared without delay, be availed by Devraj Indr quickly.
प्र धन्वा सोम जागृविरिन्द्रायेन्दो परि स्रव। द्युमन्तं शुष्ममा भर स्वर्विदम्॥
हे सोमदेव! उमंग से परिपूर्ण होकर आप, देवराज इन्द्र के पान करने के उद्देश्य से पात्र में प्रविष्ट हो। हमें ओज बढ़ाने वाले तथा बुद्धि में वृद्धि करने वाले पराक्रम से सम्पन्न कर दें।(सामवेद 5.10.2)
उमंग :: पदोन्नति, उल्लास, उत्साह, जोश, राग; enthusiasm, exaltation, exultation.
Hey Somras! Full of enthusiasm-exaltation Somras should enter the pot for drinking by Devraj Indr. Fill us with aura, intelligence and valour.
सखाय आ नि षीदत पुनानाय प्र गायत। शिशुं न यज्ञैः परि भूषत श्रिये॥
हे सखाओं (मनुष्यों)! आप यहाँ आसन ग्रहण करें। सोम को अभिषुत करते समय सामगान करो। जैसे-नवजात बच्चे को आभरण से सुसज्जित करते हैं, वैसे ही याग (हवनीय सामग्री) से इस सोमरस को अलंकृत करो।(सामवेद 5.10.3)
Hey friends! Occupy the cushion-seat here. While extracting Somras recite Sam Gan. The way an infant is decorated with ornaments-clothing, similarly decorate this Somras with the Yagy related goods.
तं वः सखायो मदाय पुनानमभि गायत। शिशुं न हव्यैः स्वदयन्त गूर्तिभिः॥
प्रफुल्लित करने वाले, सोमरस का शोधन करते समय हे सखाओं! इसकी याचना करो। नवजात बालक को जैसे सजाया जाता है, वैसे ही हवियों एवं सामगान के माध्यम से आप इसे स्वादिष्ट अर्थात् ग्रहण करने योग्य निर्मित करें।(सामवेद 5.10.4)
Hey friends colleagues! While extracting Somras worship it. The way an infant is decorated, make it tasty with oblations and Sam Gan.
प्राणा शिशुर्महीनां हिन्वज्ञतस्य दीधितिम्। विश्वा परि प्रिया भुवदध द्विता॥
यह सोम, यज्ञ का मूलाधार एवं जल की संतान है। यह याग को प्रदीप्त करने वाले अपने रस को प्रेरित करता है। यह समस्त हवियों में विद्यमान होता हुआ, द्यावा-पृथ्वी तक प्रतिष्ठित रहता है।(सामवेद 5.10.5)
Som forms the basis of Yagy and is the progeny of water (Varun Dev). It illuminate the Yagy and inspire juice-sap. Being present in all offerings, its established-honoured in the heavens & earth.
पवस्व देववीतय इन्दो धाराभिरोजसा। आ कलशं मधुमान्त्सोम नः सदः॥
हे सोम! देवताओं के ग्रहण करने के निमित्त, द्रुत गतिमान धाराओं के साथ आप बर्तन में प्रविष्ट हो। प्रसन्नता प्रदान करने वाले हे सोम! आप हमारे इस पात्र में विराजमान हों।(सामवेद 5.10.6)
Hey Somras! Enter the vessel to be drunk by the demigods-deities. Hey pleasure granting Somras! Settle in the pot.
सोमः पुनान ऊर्मिणाव्यं वारं वि धावति। अग्रे वाचः पवमानः कनिक्रदत्॥
स्वच्छ होने वाला, सामगान के बाद शब्द करता हुआ, निष्पन्न होने वाला यह सोम, अपनी तीव्र धारा सहित शोधन यन्त्र में छनने के लिए गमन करता है।(सामवेद 5.10.7)
After cleansing & Sam Gan sound producing, extracted Somras enters the machine for filtration with high speed.
प्र पुनानाय वेधसे सोमाय वच उच्यते। भृतिं न भरा मतिभिर्जुजोषते॥
हे स्तोताओं! आप पवित्र होने वाले एवं कर्म करने के लिए प्रेरणा प्रदान करने वाले सोम की याचना करें। जिस प्रकार हम परिचारक की आराधना से हर्षित होकर उसे धन-धान्य से परिपूर्ण कर देते हैं, उसी प्रकार हम सोम को हर्षित करने के निमित्त विशेष सामगान करें।(सामवेद 5.10.8)
Hey Stotas! Worship Somras to inspire for virtuous-righteous efforts. The way we enrich the servants with food grains and wealth on being happy with their service-requests, similarly we should recite Som Gan to gladden Som.
गोमन्न इन्दो अश्ववत्सुतः सुदक्ष धनिव। शुचिं च वर्णमधि गोषु धारय॥
अभिषवण करने के बाद पराक्रमी सोम! आप हमें गौ तथा अश्वों से सम्पन्न धन देने की कृपा करें। इसके बाद गाय के दुग्ध में संयुक्त होकर पवित्र वर्ण (श्वेत रंग) वाले निर्मित हो जाएँ।(सामवेद 5.10.9)
अभिषवण :: स्नान, विशेषकर यज्ञ या धार्मिक अनुष्ठानों के समय का स्नान और यह सोमरस को निचोड़ने या निकालने की क्रिया या उसके लिए प्रयुक्त साधन।
After bathing and rituals, hey mighty Som! Enrich us with cows and horses i.e., grant us wealth. Thereafter, on being mixing with cow's milk acquire white colour.
अस्मभ्यं त्वा वसुविदमभि वाणीरनूषत। गोभिष्टे वर्णमभि वासयामसि॥
हे सोम! आप धन के स्वामी हैं, हमें आपके द्वारा दिया हुआ धन प्राप्त हो, अतएव हम वेदवाणी से युक्त आपकी स्तुति करते हैं। हम आपके रस को गाय के दूध में संयुक्त करते हैं।(सामवेद 5.10.10)
Hey Som! You are the Lord of wealth. Let us have the wealth granted by you. Hence, we worship you with Ved Vani (Mantrs, Shloks, Stutis etc). We mix your sap-juice in cow's milk.
पवते हर्यतो हरिरति ह्वरांसि रं ह्या। अभ्यर्ष स्तोतृभ्यो वीरवद्यशः॥
हे नमस्कार करने योग्य हरिताभ सोम! आप छलनी के माध्यम से शुद्ध होते हुए, वेगपूर्वक धारा सहित हमारे पात्र में प्रवाहित होते हैं। आप हम सभी याजकों को संतान अथवा पोषण से संबंधित ऐश्वर्य प्रदान करें।(सामवेद 5.10.11)
Hey salute deserving greenish Somras! On being filtered through the sieve you move into the pot with speed. Grant progeny and grandeur related to nourishment to all of us i.e., the Yajak Gan.
परि कोशं मधुश्रुतं सोमः पुनानो अर्षति। अभि वाणीर्ऋषीणां सप्ता नूषत॥
हे सोम! आप पवित्र होते हुए अपने माधुर्ययुक्त रस को कलश में प्रविष्ट कराते हैं। गायत्री आदि सातों छन्द वाली ऋषियों की वाणियाँ आपकी याचना करती हैं।(सामवेद 5.10.12)
Hey Somras! Your sweetened sap-juice enter the vessel on being purified. Gayatri etc verses constituting seven Chhands worship you.
सामवेद पावमानं पर्व (5.11) :: ऋषि :- गौरवीति शाक्त्य, उर्ध्वसद्या आंगिरस, ऋजिश्वा भरद्वाज, कृतयशा आंगिरस, ऋणंचय, शक्तिर्वासिष्ठ, उरुयंगिरस; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- ककुप्, यवमध्या गायत्री।
पवस्व मधुमत्तम इन्द्राय सोम क्रतुवित्तमो मदः। महि द्युक्षतमो मदः॥
हे सोम! आप अत्यधिक मधुरता से युक्त, याग के विषय में सब कुछ जानने वाले, उत्कृष्ट शान्ति से युक्त तथा हर्षवर्द्धक है। आप देवराज इन्द्र को प्रसन्न करने के निमित्त पवित्र हों।(सामवेद 5.11.1)
Hey Som! You possess lots of sweetness, aware of every thing about the Yagy, has excellent peace and boost happiness. Become purified for gladdening Devraj Indr.
अभि द्युम्नं बृहद्यश इषस्पते दिदीहि देव देवयुम्। वि कोशं मध्यमं युव॥
हे अन्न के अधिष्ठाता तथा तेजोमंडित सोम! आप देवताओं के पान करने योग्य हैं। आप हमें कान्तिमय तथा महान् ऐश्वर्य प्रदान करें एवं द्रोण कलश में प्रवाहित होकर उसे परिपूर्ण कर दें।(सामवेद 5.11.2)
Hey Lord of food lustrous Somras! You are fit-suitable for drinking by the demigods-deities. Grant us illuminate-lustrous grandeur and flow through the Dron-wooden vessel, to fill it.
आ सोता परि षिञ्चताश्वं न स्तोममप्तुरं रजस्तुरम्। वनप्रक्षमुदप्रुतम्॥
हे यजमानों! स्तुति करने योग्य, घोड़े की भाँति द्रुत गतिमान, जल की भाँति बहने वाले, प्रकाश की रश्मियों की भाँति त्वरित उपस्थित होने वाले, जल में मिले हुए, जल से सम्पन्न सोमरस को निचोड़ें तथा उसे गौ-दुग्ध से सिंचित करें।(सामवेद 5.11.3)
Hey Yajman Gan! Squeeze the Somras mixed with water and cow's milk; which deserve worship, move fast like a horse, flowing like water, quick like the rays of light.
एतमु त्यं मदच्युतं सहस्त्रधारं वृषभं दिवोदुहम्। विश्वा वसूनि बिभ्रतम्॥
प्रसन्नता प्रदान करने वाले, हजारों प्रवाह के साथ पात्र में गिरने वाले, बल बढ़ाने वाले, समस्त ऐश्वयों के अधिपत्ति इस सोमरस को विद्वान् लोग अभिषुत करते हैं।(सामवेद 5.11.4)
Somras is extracted by the learned-scholars which grants happiness-pleasure, falling through thousands of streams-currents and is the Lord of all grandeurs.
स सुन्वे यो वसूनां यो रायामानेता य इडानाम्। सोमो यः सुक्षितीनाम्॥
याजकों ने धन-वैभव, दूध आदि पदार्थ, पृथ्वी एवं उत्तम संतान देने वाले उस सोम के रस को अभिषुत कर लिया है।(सामवेद 5.11.5)
The Yajak Gan have extracted Somras which grants wealth-prosperity, milk and other goods-materials, land-home.
त्वं ह्या3ङ्ग दैव्यं पवमान जनिमानि द्युमत्तमः। अमृतत्वाय घोषयन्॥
हे सोम देवता! आप अत्यधिक तेजस्वी, अद्भुत जन्मों के जानकार एवं उनकी अमरता की उद्घोषणा करने वाले हैं।(सामवेद 5.11.6)
Hey Somras! You are radiant, aware of amazing rebirths and declare their immortality.(15.12.2025)
एष स्य धारया सुताऽव्या वारेभिः पवते मदिन्तमः। क्रीळन्नूर्मिरपामिव॥
परम आनन्द प्राप्त कराने वाले, जल की लहरों के समान खेल खेलते हुए यह सोमरस ऊन के शोधन यन्त्र से छनते हुए पात्र में प्रवाहित होता है।(सामवेद 5.11.7)
Somras grants bliss, playing with the water waves, passes through the purification plant made of wool and flows into the pot.
य उस्त्रिया अपि या अन्तरश्मनि निर्गा अकृन्तदोजसा।
अभि व्रजं तत्निषे गव्यमश्र्व्यं वर्मीव घृष्णवा रुज। ॐ वर्मीव धृष्णवा रुज॥
यह सोम, मेघ के अंदर उपस्थित पानी को अपने बल से इधर-उधर कर देता है, व्योम का विस्तार करने वाला यह सोम पानी को प्राप्त करने वाला है। यह गायों एवं घोड़ों को चहुँ ओर से आच्छादित कर लेता है। हे शत्रुओं का शमन करने वाले सोम! रक्षा कवच धारण करने वाले योद्धा के सदृश आप शत्रुओं का संहार करें।(सामवेद 5.11.8)
व्योम :: आकाश, अंतरिक्ष, आसमान; space, sky, ether, welkin.
Som moves the water present in the clouds hither & thither with its strength, leading to extension of sky and sucks water. It covers the cows and horses from all sides. Hey destroyers of the enemies Som! Destroy the enemies like the warrior who wear shield.
सामवेद आरण्यं पर्व (6.1) :: ऋषि :- भरद्वाज, वसिष्ठ, वामदेव, शुनःशेप, गृत्समद, अमहीयु, आत्मा; देवता :- इन्द्र, वरुण, पवमान, सोम, विश्वेदेवा, अन्नम्; छन्द :- वृहती, त्रिष्टुप्, गायत्री, जगती।
इन्द्र ज्येष्ठं न आ भर ओजिष्ठं पुपुरि श्रवः। यद्दिधृक्षेम वज्रहस्त रोदसी उभे सुशिप्र पप्राः॥
हे वज्र धारण करने वाले देवराज इन्द्र! आप हमें तेज तथा शक्ति से युक्त अन्न (पोषक पदार्थ) प्रदान करें। जो पौष्टिकता से युक्त अन्न द्यावा-पृथ्वी तक पोषण प्रदान करते हैं, उन्हें हम अपने समीप रखने की अभिलाषा करते हैं।(सामवेद 6.1.1)
Hey Vajr wielding Devraj Indr! Grant us nourishing food grains equipped with Tej (might) and strength. We wish to have the food grains with us which grants nourishment over the earth and in the heavens.
इन्द्रो राजा जगतश्चर्षणीनामधि क्षमा विश्वरूपं यदस्य।
ततो ददाति दाशुषे वसूनि चोदद्राध उपस्तुतं चिदर्वाक्॥
देवराज इन्द्र ही सम्पूर्ण जगत् के अधिपति एवं समस्त धन-वैभव के सम्राट हैं, अतएव दान करने की प्रवृत्ति वालों को वे जीवन के लिए उपयोगी पदार्थ देते हैं। वे उत्कृष्ट (लौकिक तथा दैवी) धन-संपत्ति हमारी तरफ प्रेषित करें।(सामवेद 6.1.2)
WORLDLY :: सांसारिक, लौकिक; earthly, mundane, carnal, terrestrial, cosmic, profane.
Devraj Indr is the Lod of the whole universe, wealth, grandeur, prosperity. He grants useful commodities to those who has the tendency to donate. He should direct the divine and worldly wealth & grandeur towards us.
यस्येदमा रजोयुजस्तुजे जने वनं स्वः। इन्द्रस्य रन्त्यं बृहत्॥
हे महाप्रतापी देवराज इन्द्र! आपके द्वारा दिया गया दान देवलोक एवं दानी दोनों लोगों के मध्य गुणगान करने योग्य, सर्वश्रेष्ठ तथा संतुष्टि प्रदान करने वाला है।(सामवेद 6.1.3)
महाप्रतापी :: शानदार, आलीशान, तेजस्वी, ठाठदार, शोभमान; majestic, magnificent.
Hey magnificent Devraj Indr! Donations made by you deserve appreciation in the heavens and amongest the donors, being excellent, satisfying.
उदुत्तमं वरुण पाशमस्मदवाधमं वि मध्यमं श्रथाय।
अथादित्य व्रते वयं तवानागसो अदितये स्याम॥
हे वरुण देव! आप ऊँचे बन्धनों को हमसे ऊपर की तरफ से, निम्न बन्धनों को नीचे की तरफ से और बीच के बन्धनों को खोलकर हमें बन्धन रहित कर दें, जिससे हम आपके अनुशासन स्वरूप आचरण करके कुकृत्य एवं संताप से मुक्त होकर जीवन-यापन कर सकें।(सामवेद 6.1.4)
संताप :: दु:ख, कष्ट, पीड़ा, दण्ड; agony, anguish, pain, sorrow.
Hey Varun Dev! Make us free form all ties-bonds, so that we adopt discipline life, remain aloof from wickedness and agony.
त्वया वयं पवमानेन सोम भरे कृतं वि चिनुयाम शश्वत्।
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः॥
हे सोम देव! आप सम्पूर्ण विश्व को पवित्र करने वाले हैं। आपके सहयोग से हम रणभूमि (जीवन-संग्राम) में लगातार श्रेष्ठ कर्मों का चुनाव करें। जिसके निमित्त अदिति, मित्र वरुण, धरती, सागर एवं परमधाम हमें समृद्धशाली बनाएँ।(सामवेद 6.1.5)
Hey Som Dev! You make the entire world pure-pious. Let us select best endeavours with your cooperation. Let the earth, Aditi, Mitr-Varun, ocean-Sagar and the Ultimate abode make us prosperous for this purpose.
इमं वृषणं कृणेतैकमिन्माम्॥
हे देवों! आप इस सोम को शक्ति से सम्पन्न बनाएँ, जिससे वह हमारी सभी अभिलाषाओं को पूर्ण कर सकें तथा हमें सामर्थ्यवान् बना दे।(सामवेद 6.1.6)
Hey demigods-deities! Make Som full of strength so that its able to accomplish our wishes-desires and capable.(16.12.2025)
स न इन्द्राय यज्यवे वरुणाय मरुद्भयः वरिवोवित्परिस्रव॥
हमें समृद्धिवान् बनाने वाले हे सोम देव! हम याजकगण जिनके लिए याग करते हैं, उन इन्द्र, मरुतों एवं वरुण देवताओं के ग्रहण करने के उद्देश्य से आप अच्छी तरह से पवित्र हों।(सामवेद 6.1.7)
Hey Somras enriching us! You should be thoroughly sanctified for consumption by Indr Dev, Marud Gan, Varun Dev; for whom we Yajak Gan organise Yagy.
एना विश्वान्यर्य आ द्युम्नानि मानुषाणाम्। सिषासन्तो वनामहे॥
इस सोम के सहयोग से मानवों हेतु आवश्यक सब तरह के अन्नादि (धन) हमें प्राप्त हों। हम उनके उत्कृष्ट प्रयोग की लालसा रखते हैं।(सामवेद 6.1.8)
Let us have all sorts of food grains etc. With the help of Som, we wish to put it to excellent use.
अहमस्मि प्रथमजा ऋतस्य पूर्वं देवेभ्यो अमृतस्य नाम।
यो मा ददाति स इदेवमावदहमन्नमन्नमदन्तमद्मि॥
मैं अन्न देवता सनातन याग के माध्यम से देवगणों से भी पूर्व पैदा हुआ हूँ। जो मुझे अतिथियों को प्रदान करते हैं, वे अवश्य ही समस्त लोगों की भलाई करते हैं। जो दान न देकर, अकेले ही मेरा भक्षण करते हैं, उन कंजूसों को तो मैं ही नष्ट कर देता हूँ।(सामवेद 6.1.9)
I, deity of food grains evolved prior to demigods through eternal Yagy. Those who award-offer me to the guests, certainly resort to the welfare of all people-whole community. Those who do not donate and just eat me alone are destroyed by me.
सामवेद आरण्यं पर्व (6.2) :: ऋषि :- श्रुतकक्ष, पवित्र, मधुच्छन्दा, वैश्वामित्र, प्रथ, गृत्समद, नृमेधपुरुमेधौ; देवता :- इन्द्र, पवमान, विश्वेदेवा, वायु; छन्द :- गायत्री, जगती, त्रिष्टुप्, अनुष्टुप्।
त्वमेतदधारयः कृष्णासु रोहिणीषु च। पुरुष्णीषु रुशत्पयः॥
हे देवराज इन्द्र! आपने काले, भूरे, लाल, आदि अनेक रंगों की गौओं में एक समान तेजो मंडित सफेद रंग के दूध को प्रतिस्थापित किया है। हम आपकी इस दिव्य शक्ति का गुणगान करते हैं।(सामवेद 6.2.1)
Hey Devraj Indr! You have established aurous-radiant milk in the cows possessing different colours viz black, brown, red. We praise your divine powers.
अरूरुचदुषसः पृश्निरग्रिय उक्षा मिमेति भुवनेषु वाजयुः।
मायाविनो ममिरे अस्य मायया नृचक्षसः पितरो गर्भमादधुः॥
उषाकाल एवं सूर्य से संबन्धित सोम अपने आप ही प्रदीप्त होते हैं। जल वृष्टि करने में समर्थ मेघ, विश्व को अन्नादि पोषण प्रदान करने की अभिलाषा से नाद करते हैं। उत्कृष्ट देवगणों ने अपनी योग्यता से इस संसार का निर्माण किया है। देख-रेख करने वाले पितरों अर्थात् विश्व का पालन-पोषण करने वाली किरणों ने वनस्पतियों में गर्भ प्रतिस्थापित किये या जलवृष्टि करने हेतु गर्भ धारण किया।(सामवेद 6.2.2)
Som related to Usha Kal (morning) and Sun illuminate by it self. Clouds capable of showring rains, thunder with the desire of granting nourishment to the universe. Excellent demigods-deities have produced the universe with their ability. The Manes supervising the universe and the rays of light which nourish the vegetation have either established the foetus in them or the vegetation has conceived for the sake of showering rains.
इन्द्र इद्धयोंः सचा सम्मिश्ल आ वचोयुजा। इन्द्रो वज्री हिरण्ययः॥
वज्रपाणि, सुवर्ण के अलंकारों से सुशोभित, देवराज इन्द्र के केवल संकेत मात्र से ही रथ के बल एवं वैभव रूपी दोनों अश्व रथ में एक साथ संयुक्त हो जाते हैं, अर्थात् वह अपने सारथी इन्द्र के पूर्ण प्रतिबन्धन में रहते हैं।(सामवेद 6.2.3)
Greenish horses together deploy themselves in the charoite as per the strength and grandeur just by signalling by Vajr wielding Devraj Indr decorated with ornaments-jewels. They remain under the command of the charioteer Devraj Indr.
इन्द्र वाजेषु नोऽव सहस्रप्रधनेषु च। उग्र उग्राभिरूतिभिः॥
हे देवराज इन्द्र! आप सहस्रों तरह के हितकारी धन वाले, छोटे-बड़े युद्धों में बलपूर्वक हमें संरक्षण प्रदान करें। (सामवेद 6.2.4)
Hey Devraj Indr! Grant us protection forcefully in hundreds of beneficial wealth-riches in large or small scale wars.
प्रथश्च यस्य सप्रथश्च नामानुष्टुभस्य हविषो हविर्यत्।
धातुर्द्युतानात्सवितुश्च विष्णो रथन्तरमा जभारा वसिष्ठः॥
वसिष्ठ के वत्स प्रथ तथा भरद्वाज के वत्स सप्रथ हेतु अनुष्शुप् छन्द में सामगान करके एवं उत्कृष्ट याग को समर्पित करके, वसिष्ठ ऋषि ने रथंतर नामक साम को प्रतापी धाता (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) से ग्रहण किया।(सामवेद 6.2.5)
प्रथ :: प्रसिद्ध होना, फैलना, बढ़ना या दिखाई देना।
Vashishth Rishi attained the Rathantar Sam from Dhata (Brahma, Vishnu and Shiv) for the sake of his Vats Prath and Rishi Bhardwaj's Saprath Anushshup Chhand in Sam Gan and the excellent Yagy.
नियुत्वान्वायवा गह्ययं शुक्रो अयामि ते। गन्तासि सुन्वतो गृहम्॥
यजमानों के समक्ष रथ में आरूढ़ होकर उपस्थित होने वाले हे वायु देवता! आपके उद्देश्य से यह तेजोमंडित सोमरस तैयार किया गया है। इसलिए हम आपको आमंत्रित करते हैं।(सामवेद 6.2.6)
Hey Vayu Dev, riding the charoite in front to the Yajmans! Somras has been extracted for you to drink. Hence, we invite you to have it.
यज्जायथा अपूर्व्य मघवन्वृत्रहत्याय। तत्पृथिवीमप्रथयस्तदस्तभ्ना उतो दिवम्॥
हे लोकातीत, वैभव-सम्पन्न देवराज इन्द्र! आपने वृत्र (दानवता) का शमन करने के निमित्त, धरती को स्थिर एवं विस्तारित करने के साथ-साथ परमधाम (स्वर्ग) को भी दृढ़ किया।(सामवेद 6.2.7)
लोकातीत :: असाधारण; extraordinary, superhuman, preternatural.
Hey extraordinary, possessor of grandeur Devraj Indr! You strengthened and extended the earth & heaven for slaying Vratra Sur.
सामवेद आरण्यं पर्व (6.3) :: ऋषि :- वामदेवो, गौतम, मधुच्छंदा, गृत्साद्, भरद्वाजो बार्हस्पत्य, ऋजिश्वा, हिरण्यस्तूप, विश्वामित्र; देवता :- प्रजापति, पवमान, सोम, अग्नि, रात्रि, अपांनपात्, विश्वेदेवा, लिंगोक्ता, इन्द्र, आत्मा वैश्वानर; छन्द :- अनुष्टुप्, त्रिष्टुप्, गायत्री, जगती, पंक्ति।
मयि वर्षों अथो यशोऽथो यज्ञस्य यत्पयः। परमेष्ठी प्रजापतिर्दिवि द्यामिव दंहतु॥
देवलोक में निवास करने वाले, विश्व के पालनकर्ता परमपिता हमारे अंदर ज्ञान के प्रकाश, कीर्ति तथा अन्नादि की बढ़ोत्तरी करें। अद्भुत तेज से युक्त व्योम के समान हमारा जीवन भी प्रकाशित हो।(सामवेद 6.3.1)
Almighty, nurturer of the universe, residing in the heavens, should initiate the power of Gyan-enlightenment in our innerself, fame-honour and the food grains. Eternal-amazing aura-radiance like space should illuminate our lives as well.
सं ते पयांसि समु यन्तु वाजाः सं वृष्ण्यान्यभिमातिषाहः।
आप्यायमानो अमृताय सोम दिवि श्रवांस्युत्तमानि धिष्व॥
हे शत्रुओं का विनाश करने वाले सोम! आप दुग्ध, पोषण तत्त्व व बल को ग्रहण करें। अपने अमरत्व के निमित्त स्वर्गलोक में उत्कृष्ट पोषक पदार्थों को अर्थात् उच्च पद को धारण करें।(सामवेद 6.3.2)
Hey destroyer of the enemies, Som! Accept milk, nourishing elements and strength. For your immortality have the excellent nourishment in the heavens i.e., possess high position-dignity.
त्वमिमा ओषधीः सोम विश्वास्त्वमपो अजनयस्त्वं गाः।
त्वमातनोरुर्वा 3 न्तरिक्षं त्वं ज्योतिषा वि तमो ववर्थ॥
अपने प्रकाश से तम को विनष्ट करने वाले तथा आकाश को व्यापक करने वाले हे लोकातीत सोम! आपने ही धरती पर समस्त औषधियों, गायों तथा पानी का आविर्भाव किया है।(सामवेद 6.3.3)
Hey extraordinary Som, eliminating the darkness with your light-aura, pervading the space-sky! Its you who evolved all the medicine over earth, the cows & water.(17.12.2025)
अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम्। होतारं रत्नधातमम्॥
हम विश्व का कल्याण करने वाले, यज्ञ को देदीप्यमान् करने वाले, पूजा करने योग्य, देवगणों को आहूत करने में सक्षम तथा याज्ञिकों को घन-ऐश्वर्य से सम्पन्न करने वाले अग्नि देव की याचना (स्तुति) करते हैं।(सामवेद 6.3.4)
We worship Agni Dev who resort to the welfare of the universe, illuminate the Yagy, capable of invoking the demigods and grant wealth, prosperity, grandeur to the Yagyik.
ते मन्वत प्रथमं नाम गोनां त्रिः सप्त परमं नाम जानन्।
ता जानतीरभ्यनूषत क्षा आविर्भुवन्नरुणीर्यशसा गावः॥
हे अग्नि देव! आपके नाम ओंकार को वाणियों में सर्वप्रथम मानकर, ऋषियों ने गायत्री आदि इक्कीस छन्दों में होने वाले स्तोत्रों को समझा। इसके बाद उस वाणी से उषा की स्तुति की, जिसके प्रभाव से सूर्य की रश्मियां उत्पन्न हुई।(सामवेद 6.3.5)
Hey Agni Dev! The Rishi Gan considered your name Onkar (Omॐ) as the first in the speech-voice and understood the twenty one Chhands in the Gayatri and the Strotrs. Thereafter, Usha was prayed leading to the evolution of Sun rays.
समन्या यन्त्युपयन्त्यन्याः समानमूर्वं नद्यस्पृणन्ति।
तमू शुचिं शुचयो दीदिवां समपान्नपातमुप यन्त्यापः॥
जैसे बारिश का पानी, भूमि पर प्रवाहित होकर, भू-जल में संयुक्त होकर नदी का रूप ग्रहण करके सिंधु में मिल जाता है और वहाँ समुद्र-अग्नि को प्रफुल्लित करता है, जैसे जल को ऊँची गति प्रदान करने वाले आग के समीप सारा जल पहुँचता है, वैसे ही सोमरस जल में संयुक्त होकर सबको हर्षित करता है।(सामवेद 6.3.6)
The way rain water flow over the earth, mixes with the land water and turn into river, joining ocean-sea thereafter, entire water reaches fire-Agni granting it high speed and gladden every one on being mixed in Somras.
आ प्रागाद्भद्रा युवतिरह्नः केतून्त्समीर्त्सति। अभूद्भद्रा निवेशनी विश्वस्य जगतो रात्री॥
हितकारी नारी के रूप में निशा आते ही दिन को प्रदीप्त करने वाली सूर्य की किरणों को नियंत्रित कर देती है। सारे विश्व को आराम देने वाली यह रात सभी जनों के लिए कल्याणकारी है।(सामवेद 6.3.7)
Night falls as a beneficial woman and controls-checks the Sun rays. Night relaxes the whole world and grants rest.
प्रक्षस्य वृष्णो अरुषस्य नू महः प्र नो वचो विदथा जातवेदसे।
वैश्वानराय मतिर्नव्यसे शुचिः सोम इव पवते चारुरग्नये॥
हे अग्नि देव! आप सभी जगह विद्यमान, देदीप्यमान् व तेज से युक्त हैं, हम आपकी वन्दना करते हैं। यज्ञादि कर्मों में आपके निमित्त उच्चारित होने वाले ये पावन एवं रमणीय स्तोत्र, समस्त स्तोताओं के शुभचिंतक अग्नि देव के समक्ष उसी तरह पहुँचते हैं, जिस प्रकार यज्ञ के समक्ष सोमदेव गमन करते हैं।(सामवेद 6.3.8)
Hey Agni Dev! Shining-lustrous and Tej possessing, you are present every where,. We worship you. Delightful-enjoyable, pious, well wisher of all Stotas; Strotrs recited for you in the Yagy Karm & reach you like the movement of Som Dev in front of Yagy.
विश्वे देवा मम शृण्वन्तु यज्ञमुभे रोदसी अपां नपाच्च मन्म।
मा वो वचांसि परिचक्ष्याणि वोचं सुम्नेष्विद्वो अन्तमा मदेम॥
समस्त देवतागण हमारे जनीय उत्कृष्ट स्तोत्रों को सुनें। पृथ्वीलोक एवं देवलोक दोनों ही हमारे पूज्य स्तोत्रों को श्रवण करें। अग्नि देव भी हमारे स्तोत्रों को श्रवण करने की अनुकम्पा करें। हम कदापि देवों को अरुचिकर लगने वाले एवं तिरस्कार करने योग्य वचन न बोलें तथा सदैव देवताओं द्वारा प्रदान किये हुए अनुदानों से ही आनंदित हों।(सामवेद 6.3.9)
अनुकम्पा :: दया, हमदर्दी; sympathy, kindness, yearning, mercy, compassion.
Let all demigods-deities listen to our Strotrs. Let Earth & heavens respond to our Strotrs. Agni Dev should listen to our Strotr and have compassion-mercy our us. We should never speak such words which are disliked by them or reproach them. We should always enjoy-rejoice the grants made by demigods-deities.
यशो मा द्यावापृथिवी यशो मेन्द्रबृहस्पती। यशो भगस्य विन्दतु यशो मा प्रतिमुच्यताम्। यशस्व्या 3 स्याः संसदोऽहं प्रवदिता स्याम्॥
हे ईश्वर! हम याजकों को सम्पूर्ण लोकों (द्यावा-पृथिवी से) तथा वज्रपाणि इन्द्र, बृहस्पति आदि
देवों से ऐश्वर्य की प्राप्ति हो। हम कभी भी वैभव से विनष्ट न हों तथा संसद में अपने मतों को प्रकट करने का सामर्थ्य प्राप्त हो।(सामवेद 6.3.10)
Hey God! Let us-the Yajak Gan have grandeur from all abodes (earth, heavens etc), Vajr wielding Indr Dev, Dev Guru Brahaspati etc. Our grandeur should never destroy and make us capable of putting forward our views in the meeting-councils.
इन्द्रस्य नु वीर्याणि प्रवोचं यानि चकार प्रथमानि वज्री।
अहन्नहिमन्वपस्ततर्द प्र वक्षणा अभिनत्पर्वतानाम्॥
हे देवराज इन्द्र! आप महा शक्तिशाली, अम्बर को भेदकर जल-वृष्टि करने वाले, पहाड़ों की नदियों के तटों का निर्माण करने वाले, वज्र को धारण करने वाले हैं। आपके द्वारा किये गये इन उत्कृष्ट कर्मों का हम बारम्बार वर्णन करते हैं।(सामवेद 6.3.11)
Hey Devraj Indr! You ae extremely powerful, Vajr wielding, tear into the sky leading to rain fall, produce the embarkments of the mountain rivers. We repeatedly describe your great deeds-efforts.
अग्निरस्मि जन्मना जातवेदा घृतं मे चक्षुरमृतं म आसन्।
त्रिधातुरर्को रजसो विमानोऽजस्त्रं ज्योतिर्हविरस्मि सर्वम्॥
मैं (आत्मा) उत्पन्न होने के साथ से ही अग्नि स्वरूप, सर्वज्ञाता, कान्तिमान हूँ। (घी के प्रज्वलन से होने वाली दीप्ति) मेरे नयन है। मेरे मुँह में अमृतमयी वाणी है। मैं विश्व का निर्माता प्राण, तीनों प्राणो (प्राण, अपान, व्यान) में विद्यमान हूँ, आकाश का अधिष्ठाता हूँ। प्रखर, तेजस्वी सूर्य, हवि तथा अग्नि भी मैं ही हैं।(सामवेद 6.3.12)
प्रखर :: तीक्ष्ण, तेज, उग्र, प्रचंड; fierce, sharp.
I (soul) am aurous like Agni, all knowing. Shine-glitter produced by ghee, form my eyes. My mouth has voice-speech like he elixir. I am producer of the universe, Air Vital and reside in the three Pran viz Pran, Apan & Vyan. I am the Lord of the sky. I am fierce, Tejaswi-majestic Sun, oblations and Agni.
पात्यग्निर्विपो अग्रं पदं वेः पाति यह्नश्चरणं सूर्यस्य।
पाति नाभा सप्तशीर्षाणमग्निः पाति देवानामुपमादमृष्वः॥
हे अग्नि देव! आप धरती के अग्रणी (प्रमुख) जगहों की, सूर्य के मार्ग की, आकाश तथा द्युलोक में निवास करने वाले मरुतों तथा देवताओं के प्राणेश यज्ञों की रक्षा करते हैं।(सामवेद 6.3.13)
प्राणेश यज्ञ :: वे पंच महायज्ञ (ब्रह्मयज्ञ, देवयज्ञ, पितृयज्ञ, नृयज्ञ-मनुष्य यज्ञ, वैश्वदेव यज्ञ) जो जीवन के प्राण, आत्मा और परम कल्याण से जुड़े हैं।
Hey Agni Dev! You protect the important places of earth, route-path of the Sun. You protect the Marud Gan and demigods-deities in the heavens and life sustaining the Yagy.
सामवेद आरण्यं पर्व (6.4) :: ऋषि :- वामदेव, नारायण; देवता :- अग्नि, पुरुष, द्यावा-पृथ्वी, इन्द्र, गौ; छन्द :- पंक्ति, अनुष्टुप्, त्रिष्टुप्।
भ्राजन्त्यग्ने समिधान दीदिवो जिह्वा चरत्यन्तरासनि।
स त्वं नो अग्ने पयसा वसुविद्रयिं वर्ची दृशेऽदाः॥
हे देदीप्यमान् अग्ने! आपके वर्चस्वरूपी मुख में जीभ के समान अग्निशिख हवि को धारण करती है। हे ऐश्वर्यशाली अग्निदेव! आप हमें उपयोग करने योग्य संपत्ति तथा तीक्ष्ण प्रकाश प्रदान करें।(सामवेद 6.4.1)
देदीप्यमान :: बड़ा चमकीला, शानदार, आलीशान, तेजस्वी, ठाठदार, शोभमान; resplendent, refulgent, magnificent.
वर्चस्व :: तेज, प्राबल्य, प्रधानता, प्रभाव; supremacy, predominance.
Hey resplendent Agni! Your predominant mouth hold the oblations over your tongue tip. Hey grandeur possessor Agni Dev! Grant us useful assists and sharp light.
वसन्त इन्नु रन्त्यो ग्रीष्म इन्नु रन्त्यः। वर्षाण्यनु शरदो हेमन्तः शिशिर इन्नु रत्यः॥
बसंत ऋतु अवश्य ही हर्ष प्रदान करने वाली है। ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत तथा शीत ऋतु भी हर्ष प्रदान करने वाली है।(सामवेद 6.4.2)
Spring season grants pleasure. Summer, rainy season, chilly winters, Hemant and winters too grant happiness.
India is the only country all over the world, where all these six seasons are observed.
सहस्रशीर्षाः पुरुषः सहस्राक्षः सहस्त्रपात्। स भमिं सर्वतो वृत्वात्यतिष्ठद्दशाङ्गुलम्॥
हजारों शीश वाले, हजारों चक्षु तथा हजारों पग वाले विराट् पुरुष हैं। वे सम्पूर्ण जगत् को समेटकर भी दस अंगुल बचे रहते हैं।(सामवेद 6.4.3)
Virat Purush possess thousands head, eyes, legs-feet. In spite of covering the whole universe HE still has about ten inches more space.
Almighty is infinite, limit less. Virat Purush is HIS one of little forms.(18.12.2025)
त्रिपादूर्ध्व उदैत्पुरुषः पादोऽस्येहाभवत्पुनः। तथा विष्वङ् व्यक्रामदशनानशने अभि॥
जड़ एवं चेतन बहुत सारे रूपों में, चार भागों वाले विराट् पुरुष में यह सम्पूर्ण विश्व समाया हुआ है। इसके तीन भाग असीम व्योम में व्याप्त हैं।(सामवेद 6.4.4)
Virat Purush HAS static-inertial & conscious forms, sub divided into four segments containing the whole universe. Infinite space-sky constitute HIS three segments.
पुरुष एवेदं सर्वं यद्भूतं यच्च भाव्यम्। पादोऽस्य सर्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि॥
जिस जगत् का निर्माण हो चुका है तथा जिसका होने वाला है, यह सभी विराट् पुरुष ही है। इसके एक पाद में समस्त जीव हैं तथा तीन पाद असीम द्युलोक में समाये हुए हैं।(सामवेद 6.4.5)
The universe which has evolved or the one which is going evolve constitute the Virat Purush only. One foot of HIM constitute all living beings while the infinite heavens are present in HIS three feet-steps.
तावानस्य महिमा ततो ज्यायाँश्च पूरुषः। उतामृतत्वस्येशानो यदन्नेनातिरोहति॥
यह विराट् पुरुष जड़-चेतन तथा सम्पूर्ण धरती इन सबसे विशाल है। इस अमर प्राणी जगत् का भी वही अधिपति है। जो अन्न (पोषक पदार्थों) द्वारा बढ़ोत्तरी करते हैं। उनका भी अधिपति वही (विराट् पुरुष) है।(सामवेद 6.4.6)
Virat Purush is larger than the static, conscious and the entire earth. HE is the Lord deity of the immortal universe. HE increases the quantum of food grains, nourishing-nurturing materials, being their Lord-deity as well.
ततो विराडजायत विराजो अधि पूरुषः। स जातो अत्यरिच्यत पश्चाद्भूमिमथो पुरः॥
उस विराट् (पूर्ण) पुरुष से ही इस ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति हुई है। उसी विराट् पुरुष से सम्पूर्ण सृष्टि एवं समस्त जीव समुदाय की उत्पत्ति हुई है। वही शरीरधारी रूप में सर्वश्रेष्ठ हुआ, जिसने सर्वप्रथम धरती, तत्पश्चात् देह धारण करने वालों का आविर्भाव किया।(सामवेद 6.4.7)
The universe, evolved from HIM. HE created the living & non living. HE became best amongest all living beings. HE produced earth initially followed by other creatures.
मन्ये वां द्यावापृथिवी सुभोजसौ ये अप्रथेथाममितमभि योजनम्।
द्यावापृथिवी भवतं स्योने ते नो मुञ्चतमं हसः॥
हे पृथ्वी लोक एवं देव लोक! हम आपको पालनहार के रूप में जानते हैं। आप हमें असीमित धन-वैभव से परिपूर्ण करें। हे द्यावा-पृथ्वी के देवगण! आप हमें आनन्द प्रदान करें तथा हमें कुकृत्य से रहित करें।(सामवेद 6.4.8)
Hey earth and heavens! We recognise you as the nurturer. Grant us unlimited wealth, prosperity-grandeur. Hey demigods governing the earth & heavens! Grant us pleasure and keep us off sins, wickedness, viciousness.
हरी त इन्द्र श्मश्रूण्युतो ते हरितौ हरी। तं त्वा स्तुवन्ति कवयः परुषासो वनर्गवः॥
हे वज्रपाणि इन्द्र! हरे एवं भूरे रंग के सोमरस का सेवन करने से आपकी मूँछे भी उसी रंग की हो गई है तथा आपके दोनों अश्वों का वर्ण भी हरिताभ है। हे श्रेष्ठ गायों के पालनकर्ता! बुद्धिमान् लोग आपकी याचना करते हैं।(सामवेद 6.4.9)
Hey Vajr wielding Indr Dev! Your mustachoes have acquired the colour greenish & brown colours of the Somras you drink. Your horses too are greenish. Hey excellent nurturers of cows! The intelligent-enlightened worship you.
यद्वर्चो हिरण्यस्य यद्वा वर्चो गवामुत। सत्यस्य ब्रह्मणो वर्चस्तेन मा सं सृजामसि॥
जो तेज स्वर्ण, गौओं तथा सत्य ज्ञान में है, हम भी उस तेज से युक्त होने की अभिलाषा करते हैं।(सामवेद 6.4.10)
We wish to acquire the Tej (aura, energy) present in gold, cows and the true knowledge.
सहस्तन्न इन्द्र दद्धयोज ईशे ह्यस्य महतो विरप्शिन्।
क्रतुं न नृम्णं स्थविरं च वाजं वृत्रेषु शत्रून्त्सहना कृधी नः॥
हे महापराक्रमी, वैभवशाली देवराज इन्द्र! आप हमारे उत्कृष्ट याग के अनुसार धन-वैभव, पराक्रम तथा शक्ति दें तथा रणभूमि में शत्रुओं को परास्त करने का सामर्थ्य भी प्रदान करें।(सामवेद 6.4.11)
Hey great majestic, grandeur possessing Devraj Indr! Grant us wealth and prosperity, valour, strength and the power to defeat the enemy in the war, as per our Yagy.
सहर्षभाः सहवत्सा उदेत विश्वा रूपाणि बिभ्रतीद्वर्यूध्नीः।
उरुः पृथुरयं वो अस्तु लोक इमा आपः सुप्रपाणा इह स्त॥
बड़े-बड़े स्तनों वाली, बछड़ों तथा सांडों के साथ विविध रूप रंगों वाली गायें हमारे समीप आगमन करें। यह पृथ्वी लोक तुम्हारे रहने योग्य है, तुम्हें यह संतुष्टि प्रदान करने वाला पानी प्राप्त हो।(सामवेद 6.4.12)
Let the cows of vivid colours with large udders-nipples, calf and bulls come to us. The earth suits you for living-survival and it should grant you water to satisfy.
सामवेद आरण्यं पर्व (6.4) :: ऋषि :- शतं वैखानसा, विभ्राट, कुत्स, सार्पराज्ञी, प्रस्कण्व, कण्व; देवता :- अग्नि, पवमान, सूर्य; छन्द :- गायत्री, जगती, त्रिष्टुप्।
अग्न आयूंषि पवस आ सुवोर्जमिषं च नः। आरे बाधस्व दुच्छुनाम्॥
हे सर्वव्यापक अग्नि देव! आप हमें पोषक पदार्थ तथा पराक्रम से परिपूर्ण करें, हमें दीर्घायु दें एवं आसुरी-प्रवृत्ति वाले शत्रुओं को हमारे समीप न आने दें।(सामवेद 6.5.1)
Hey all pervading Agni Dev! Grant us nourishment, valour, long life and do not let the enemies with demonic tendencies approach us.
विभ्राड् बृहत्पिबतु सोम्यं मध्वायुर्दधद्यज्ञपतावविह्रुतम्।
वातजूतो यो अभिरक्षति त्मना प्रजाः पिपर्ति बहुधा वि राजति॥
असीम प्रतापी सूर्य देव अत्यधिक मात्रा में सोमरस का सेवन करें, यजमानों को विकार से रहित आयु प्रदान करें। ये सूर्य देव वायु से प्रेरणा प्रदान कर किरणों के द्वारा सारे संसार का पालन करते है तथा उन्हें तेज आदि से युक्त करके अनेक रूपों में प्रदीप्त होते हैं।(सामवेद 6.5.2)
Let too much majestic Sury Dev drink Somras and grant us defect free life. Sury Dev inspired by Vayu Dev nurture the entire universe and its his Tej-energy which appears in different forms.
चित्रं देवानामुदगादनीकं चक्षुर्मित्रस्य वरुणस्याग्नेः।
आप्रा द्यावापृथिवी अन्तरिक्षं सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च॥
जंगम-स्थावर, विश्व की आत्मा स्वरूप सूर्य देव, देवगणों के अलौकिक आभा-मंडल के रूप में प्रकाशित हो गये हैं। सूर्य देव मित्र, वरुण एवं अग्नि आदि देवताओं के नयन हैं। यह उदित होते ही तीनों लोकों (पृथ्वी, स्वर्ग एवं अन्तरिक्ष) को अपनी आभा से परिपूर्ण कर देते हैं।(सामवेद 6.5.3)
Movable, like the soul of the universe Sury Dev, shinning in the divine aura region of the demigods has illuminated static-fixed and movable. Sury Dev constitute the eyes of Mitr, Varun and Agni Dev etc demigods. He fills the three abodes (earth, heavens and the nether world) with his aura-radiance.
आयं गौः पृश्निरक्रमीदसदन्मातरं पुरः। पितरं च प्रयन्त्स्वः॥
यह सूर्य देव गतिशील तथा प्रखर तेज से युक्त है। यह उदित होते ही ऊपर आकाश में प्रतिष्ठित हो जाते हैं। सर्वप्रथम वह जननी पृथ्वी लोक को, तत्पश्चात् तात् द्युलोक एवं अन्तरिक्ष लोक को प्राप्त होते हैं।(सामवेद 6.5.4)
Sury Dev is dynamic and has intense Tej. He establishes in the sky as soon as he evolve. Initially, he rises over the earth followed by the heavens and the space-sky.
अन्तश्चरति रोचनास्य प्राणादपानती। व्यख्यन्महिषो दिवम्॥
सूर्य देव का आलोक अंबर में किरणों के रूप में गतिमान् होता है। सूर्य के उदित होने पर ये किरणें प्रदीप्त होती हैं तथा अस्त हो जाने पर विलुप्त हो जाती हैं। ये परम् प्रतापी सूर्य देव स्वर्गलोक को विशेष रूप से प्रदीप्त करते हैं।(सामवेद 6.5.5)
Aura-radiance of Sury Dev moves-spread as the rays in the sky. The rays of light appear as soon as Sun rises and disappear as soon as the Sun sets. Majestic Sury Dev specifically lit the heavens.(19.12.2015)
त्रिंशद्धाम वि राजति वाक्पतङ्गाय धीयते। प्रति वस्तोरह द्युभिः॥
ये सूर्य देव दिन की तीस घड़ियों (1 घड़ी = 24 मिनट) तक अपनी किरणों से आलोकित होते हैं। तब इन आलोकित सूर्य देव की स्तुति की जाती है।(सामवेद 6.5.6)
Sury Dev shine for 30 Ghadi (30X24 minutes) with his rays. During this period he is worshiped.
अप त्ये तायवो यथा नक्षत्रा यन्त्यक्तुभिः। सूराय विश्वचक्षसे॥
सम्पूर्ण जगत् को आलोक प्रदान करने वाले सूर्य देव के उदित होते ही ग्रह, नक्षत्र एवं तारों के समूह उसी प्रकार अदृश्य हो जाते है, जिस प्रकार दिन में चोर अदृश्य अर्थात् छिप जाते हैं।(सामवेद 6.5.7)
With the rise of Sun constellations, planets, stars disappear like the thief, in the universe.
अदृश्रन्नस्य केतवो वि रश्मयो जनाँ अनु। भ्राजन्तो अग्नयो यथा॥
देदीप्यमान् अग्नि की शिखाओं की भाँति इन सूर्य देव की ज्योतिर्मय किरणें संसार के सभी प्राणियों का अवलोकन करती हैं।(सामवेद 6.5.8)
Rays of Sun looks at all the living beings over the earth, like the blazing fire.
तरणिर्विश्वदर्शतो ज्योतिष्कृदसि सूर्य। विश्वमाभासि रोचनम्॥
हे सूर्य देव! आप उपासकों का कल्याण करने वाले हैं, सम्पूर्ण जगत् में अकेले ही अवलोकित करने वाले तथा प्रकाशित करने वाले हैं। चंद्र, तारामण्डल आदि जगमगाने वाले पदार्थों को भी आप ही आलोकित करते हैं।(सामवेद 6.5.9)
Hey Sury Dev! You look to the welfare of the devotees, shine alone in the universe and illuminate it. Moon, group of Stars-constellation and all shining objects shine due to your light.
प्रत्यङ् देवानां विशः प्रत्यङ्ङ्गुदेषि मानुषान्। प्रत्यङ् विश्वं स्वर्दृशे॥
हे सूर्य! आप देवताओं के सहायक मरुद्गण, प्राणियों एवं सम्पूर्ण जगत् का अवलोकन करने हेतु अपनी किरणों के रूप में प्रकट होते हैं।(सामवेद 6.5.10)
Hey Sury Dev! You appear in the form of rays to see Marud Gan-helper of demigods-deities, living beings and the entire universe.
येना पावक चक्षसा भुरण्यन्तं जनाँ अनु। त्वं वरुण पश्यसि॥
हे सारे लोगों को शुद्ध करने वाले तेजोमय सूर्य देव! सभी को पोषण प्रदान करने वाले, तीनों लोकों को आलोकित करने वाले, आपके अद्भुत आलोक की हम याचना करते हैं।(सामवेद 6.5.11)
Hey shining Sury Dev, purifying all people! We worship your amazing aura-radiance which nourish all and illuminate the three abodes.
उद्द्यामेषि रजः पृथ्वहा मिमानो अक्तुभिः। पश्यञ्जन्मानि सूर्य॥
हे सूर्य! आप काया धारण करने वाले लोगों को प्रदीप्त करते हैं, दिन को निशा से मापते हैं तथा देवलोक एवं अनंतलोक को भी दीप्ति से युक्त कर देते हैं।(सामवेद 6.5.12)
Hey Sury! You adopts the body-physical form and illuminate the populace, measure the day with night (remove darkness with the day) and illuminate the heavens and the infinite abode.
अयुक्त सप्त शुन्ध्युवः सूरो रथस्य नप्त्र्यः। ताभिर्याति स्वयुक्तिभिः॥
सूर्य देवता पवित्र करने वाले, सप्त अश्वों (सप्त किरणों- बैंगनी, नीला, आसमानी, हरा, पीला, नारंगी, लाल) को अपने रथ में संयोजित किये हुए हैं। रथ को संभालने वाली, अश्वरूपी रश्मियों से अपने पराक्रम के द्वारा सूर्य देवता यज्ञादि सभी स्थान पर गमन करते हैं।(सामवेद 6.5.13)
Sury Dev is purifying-sanctifying deploying his seven horses (seven rays viz violet, blue, sky coloured, green, yellow, orange and red) in the charoite. Rays in the form of horses control the charoite & move to all places including the Yagy sites.
सप्त त्वा हरितो रथे वहन्ति देव सूर्य। शोचिष्केशं विचक्षण॥
हे सूर्य देव! आप सम्पूर्ण जगत् को प्रदीप्त करने वाले हैं। पवित्र करने वाली सतरंगी सप्त रश्मियाँ आपके रथ को ले जाती हैं।(सामवेद 6.5.14)
Hey Sury Dev! You illuminate the entire world. Sanctifying seven coloured rays pull your charoite.
महानाम्न्यार्चिक ::
विदा मघवन् विदा गातुमनुशंसिषो दिशः। शिक्षा शचीनां पते पूर्वीणां पुरूवसो॥
हे महाज्ञानी तथा ऐश्वर्यवान् देवराज इन्द्र। आप सर्वज्ञाता है, इसलिए हमें हमारे लक्ष्य को प्राप्त करने का रास्ता दिखाएँ। हे महाबलशाली, वैभवशाली ईश्वर। आप हमें शिक्षा प्रदान करें।(सामवेद महानाम्न्यार्चिक 1)
Hey enlightened and grandeur possessing Devraj Indr! You know every thing, therefore guide us to attain our goal-target. Educate us.
आभिष्छ्वमभिष्टिभिः स्वाऽ 3 न्नाशुः। प्रचेतन प्रचेतयेन्द्र द्युम्नाय न इषे॥
हे तीनों लोकों के अधिष्ठाता इन्द्र। आप आत्मा स्वरूप, सूर्य देवता की भाँति प्रखर कान्तिमय हैं। आप हमें पोषण पदार्थ प्रदान करें और मनवांछित अभिलाषाओं को पूर्ण करते हुए हमारी रक्षा करें।(सामवेद महानाम्न्यार्चिक 2)
Hey Lord-deity of the three abodes Devraj Indr! You are glorious in the form of soul like Sury Dev. Grant us nourishment, accomplish our desires-wishes and protect us.
एवा हि शक्रो राये वाजाय वज्रिवः। शविष्ठ वज्रिनृञ्जसे मंहिष्ठ वज्रिनृञ्जस।
आ याहि पिब मत्स्व॥
हे महान् वज्रधारक देवराज इन्द्र! आप महा पराक्रमी हैं। अतः हे शक्तिशाली देवराज इन्द्र! आप हमें पराक्रम से युक्त कर अत्यन्त पराक्रमी बनाएँ तथा हमें संपत्ति प्राप्त करने हेतु सक्षम बनाएँ। आप हमारे समक्ष प्रकट होकर हमारे सोमरस को ग्रहण कर सुख का अनुभव करें।(सामवेद महानाम्न्यार्चिक 3)
Hey Vajr wielding Devraj Indr! You are mighty-powerful. Hence, hey majestic Devraj Indr! Accomplish us with valour and make us capable of acquiring prosperity. Invoke before us, be comfortable, enjoy Somras and gladden.
विदा राये सुवीर्यं भवो वाजानां पतिर्वशाँ अनु। मंहिष्ठ वज्रिनृञ्जसे यः शविष्ठः शूराणाम्॥
हे देवराज इन्द्र! आपको उत्कृष्ट योग्यता से संपत्तिवान् बनने का रास्ता ज्ञात है। मानवों में पराक्रमी योद्धा की भाँति हे वज्रधारक देवराज इन्द्र! आप सभी सामर्थों के अधिपति हैं। आपका अनुसरण करने बाले उपासक आपसे प्रभावित होकर शक्तिशाली बनते हैं।(सामवेद महानाम्न्यार्चिक 4)
Hey Devraj Indr! Your excellent qualification is the way for prosperity. Amongest the humans like a majestic warrior, hey Devraj Indr! You are the Lord-deity of ability-capability. The devotees who follow you become mighty by following you.
यो मंहिष्ठो मघोनाम शुर्न शोचिः। चिकित्वो अभि नो नयेंद्रो विदे तमु स्तुहि॥
हे संपत्तिवान् देवराज इन्द्र! आप वैभवशालियों में परम् महान् हैं, अपने प्रखर तेज से सर्वत्र विद्यमान सूर्य देव की भाँति तेजस्वी हैं।(सामवेद महानाम्न्यार्चिक 5)
Hey prosperous Devraj Indr! You are great amongest the prosperous and is aurous like Sury Dev.
ईशे हि शक्रस्तमूतये हवामहे जेतारमपराजितम्।
स नः स्वर्षदति द्विषः क्रतुश्छन्द ऋतं बृहत्॥
सबसे अधिक बलशाली, देवराज इन्द्र ही सभी की रक्षा करने वाले है, अतएव सर्वदा विजय प्राप्त करने वाले देवराज इन्द्र को अपनी रक्षा के निमित्त आवाहित करते हैं। वे शत्रुओं को विनष्ट करने वाले, सत्य के पथ पर जाने वाले कर्मों को करने वाले, सभी के संरक्षक, बुद्धिमान् तथा महान् हैं।(सामवेद महानाम्न्यार्चिक 6)
Powerful as compared to others, Devraj Indr protects every one, hence always victorious Devraj Indr is requested for our own safety. He destroys the enemies, protector of those who follow truthful path and virtuous-righteous path-deeds, being patron of all, intelligent and great.
इन्द्रं धनस्य सातये हवामहे जेतारमपराजितम्।
स नः स्वर्षदति द्विषः स नः स्वर्षदति द्विषः॥
ऐश्वर्यवान् बनने की अभिलाषा से कभी न परास्त होने वाले, विजयी देवराज इन्द्र को हम अपनी सहायता करने हेतु आहूत करते हैं। वे देवराज इन्द्र हमारे शत्रुओं का नाश करते हुए हमारी रक्षा करें।(सामवेद महानाम्न्यार्चिक 7)
We call victorious Devraj Indr for our help with the desire of becoming prosperous and possessor of grandeur. Let him destroy our enemies and protect us.(20.12.2025)
पूर्वस्य यत्ते अद्रिवोंऽ शुर्मदाय। सुम्न आ धेहि नो वसो पूर्तिः शविष्ठ शस्यते।
वशी हि शक्रो नूनं तन्नव्यं संन्यसे॥
हे वज्रपाणि देवराज इन्द्र! आपकी ज्ञानवान् किरणें अत्यधिक सुख प्रदान करने वाली हैं। हे सभी के पालक देवराज इन्द्र! वह किरणें हमारे आनन्द हेतु हमें दें। हे शक्तिशाली देवराज इन्द्र! आप अवश्य रूप से सामर्थ्यवान् तथा सभी को अपने अधीन करने वाले हैं, इसीलिए अपनी नवीन स्तुतियों के योग्य आपको हम अपने आराधना करने वाले स्थान पर प्रतिस्थापित करते हैं।(सामवेद महानाम्न्यार्चिक 8)
Hey Vajr wielding Devraj Indr! Your rays of enlightenment grant extreme pleasure-comfort. Hey nurturer of all Devraj Indr! Let these rays grant us pleasure. Hey mighty Devraj Indr! You are capable and keep everyone under your control, hence we worship you with newly composed Stuties-verse, establishing you at our place of worship.
प्रभो जनस्य वृत्रहन्त्समर्येषु ब्रवावहै। शूरो यो गोषु गच्छति सखा सुशेवो अद्वयुः॥
हे वृत्र का संहार करने वाले ईश्वर! हम उत्कृष्ट पुरुषों में आपका गुणगान करते हैं। आप हमारे लिए आत्मा स्वरूप है, सखा के समान हैं। आप उचित तरीके से सेवा करने योग्य, अद्वितीय व श्रेष्ठ हैं।(सामवेद महानाम्न्यार्चिक 9)
Hey slayer of Vratr God! We praise you amongest the excellent humans. You are like our soul and friend. You deserve service in proper way, unique and best.
एवाहो ऽ3S33 व। एवा ह्यग्ने। एवाहीन्द्र।
एवा हि पूषन्। एवा हि देवाः ॐ एवाहि देवाः॥
हे देवराज इन्द्र! आप शत्रुओं का शमन करने वाले हैं। हे अग्नि देव! आप आभा स्वरूप हैं। हे पूषा देव! आप सभी को पोषण प्रदान करने वाले हैं। हे सभी दैवी शक्तियों! आप समस्त लोग अद्भुत गुणों से युक्त हैं। आपका जैसा वर्णन किया जाता है, आप सभी वैसे ही हैं। अर्थात् दिव्य गुणों से सम्पन्न हैं।(सामवेद महानाम्न्यार्चिक 10)
Hey Devraj Indr! You are destroyer of the enemies. Hey Agni Dev! You are embodiment of aura-radiance. Hey all divine powers! You all possess amazing traits-qualities.
सामवेद उत्तरार्चिकः (1) :: ऋषि :- काश्यप, देवल अघवा असित, कश्यप, मारीच, शतं वैखानस, भरद्वाज, विश्वामित्र अथवा जमदग्नि, इरिम्बिठि, विश्वामित्र गाथिन, अमहीयुरांगिरस, सप्तर्ष, उशना काव्य, वसिष्ठ, वामदेव, नोधा गौतम, कलि प्रगाथ, मधुच्छंदा, गौरवीति, अग्निश्चाक्षुष, अंधीगु, श्यावाश्चि, कविभार्गव, शंयुर्वार्हस्पत्य, सौभरि, नृमेध; देवता :-पवमान, सोम, अग्नि, मित्रावरुणौ, इन्द्राग्नि; छन्द :- गायत्री, पादनिवृत्, प्रगाथ, त्रिष्टुप्, काकुभ, उष्णिक्, अनुष्टुप्, जगती।
उपास्मै गायता नरः पवमानायेन्दवे। अभि देवाँ इयक्षते॥
हे ऋत्विजों! यदि आप सब देवगणों को प्रसन्न करने की इच्छा रखते हों, तो यज्ञादि में प्रयोग होने वाले, निष्पन्न किये हुए सोम की याचना करो।(सामवेद उत्तरार्चिक.1.1)
Hey Ritviz Gan! If you possess the desire-wish to please all demigods-deities, pray to the extracted Somras used in the Yagy and rituals etc.
अभि ते मधुना पयोऽथर्वाणो अशिश्रयुः। देवं देवाय देवयुः॥
यह लोकातीत सोमरस देवताओं ने देवताओं के निमित्त उत्पन्न किया है। अथर्वा ऋषियों ने इस दिव्य रस को गौ के दूध में संयुक्त कर याज्ञिकों हेतु तैयार किया है।(सामवेद उत्तरार्चिक 1.1.2)
Unique-extraordinary Somras has been extracted for the demigods-deities. Athrva Rishi mixed cow's milk in it and prepared it for the Yagyik Gan.
स नः पवस्व शं गवे शं जनाय शमर्वते। शं राजन्नोषधीभ्यः॥
हे शुभचिंतक सोम! आप स्वयं पवित्र होकर हमारी गौ रूपी धन, पुत्र-पौत्रों से संबंधित धन एवं अश्व आदि के समूह का हित करें तथा औषधियों को स्वच्छ निर्मित करें।(सामवेद उत्तरार्चिक 1.1.3)
Hey well wisher Somras! You should be sanctified for the welfare of our wealth in the form of cows, horses, wealth of our sons & grand sons, including medicines-herbs.
दविद्युतत्या रुचा परिष्टोभन्त्या कृपा। सोमाः शुक्रा गवाशिरः॥
प्रखर तेजोमय, ध्वनि से पूर्ण प्रवाह से छने एवं पवित्र हुए सोमरस को गौ के दुग्ध में मिश्रित कर तैयार किया जाता है।(सामवेद उत्तरार्चिक 1.1.4)
Possessing high degree of aura, filtered while making sound sanctified Somras is prepared by mixing in cow's milk.
हिन्वानो हेतृभिर्हित आ वाजं वाज्यक्रमीत्। सीदन्तो वनुषो यथा॥
जिस प्रकार रणभूमि में पराक्रमी योद्धा विचरण करते हैं, उसी तरह यजमानों से प्रशंसित, शक्ति बढ़ाने वाला, सभी का कल्याण करने वाला सुसंस्कारित सोमरस यज्ञ वेदी में सम्मान ग्रहण करता है।(सामवेद उत्तरार्चिक 1.1.5)
The way the mighty warriors move in war field, similarly strength increasing Somras, resorted to the welfare of all, honoured by the Yajman Gan attain honour at the Yagy Vedi.
ऋधक्सोमै स्वस्तये संजग्मानो दिवा कवे। पवस्व सूर्यो दृशे॥
हे ज्ञानवान् सोम! आप परम् प्रतापी आदित्य के समान, अद्भुत प्रकाश से पूर्ण होकर सबका हित करने के निमित्त सुसंस्कारित बनें।(सामवेद उत्तरार्चिक 1.1.6)
Hey enlightened Som! You should be sanctified to become majestic like Adity, acquiring amazing light, for the welfare of all.
पवमानस्य ते कवे वाजिन्त्सर्गा असृक्षत। अर्वन्तो न श्रवस्यवः॥
हे शक्ति वर्द्धक सोम! पवित्र काल में आपकी परम् प्रतापी धारा घुड़साल से निकलने वाले घोड़ों की भाँति गतिमान होती हैं।(सामवेद उत्तरार्चिक 1.1.7)
Hey strength increasing Som! During the auspicious period, your stream-current is fast like the majestic horses coming out of the horse shed.(21.122025)
अच्छा कोशं मधुश्श्रुतमसृग्रं वारे अव्यये। अवावशन्त धीतयः॥
माधुर्य युक्त रस से परिपूर्ण काष्ठ पात्र में हम (याजक) सोमरस को छानते हैं, जिसे हमारी उंगलियाँ बारम्बार स्वच्छ करती हैं।(सामवेद उत्तरार्चिक 1.1.8)
Our fingers repeatedly clean the sweetened Somras filtered in the wooden pot.
अच्छा समुद्रमिन्दवोऽस्तं गावो न धेनवः। अग्मन्नृतस्य योनिमा॥
जिस प्रकार तुष्टि कारक दुग्ध प्रदान करने वाली गौएँ अपने बाड़े में पहुँचती हैं, उसी प्रकार छाना हुआ सोमरस यज्ञ-मण्डप में अपने आप पहुँच जाता है।(सामवेद उत्तरार्चिक 1.1.9)
The way the cows yielding satiating milk reach the shed, similarly the filtered Somras reach the Yagy Mandap-site by it self.
सामवेद उत्तरार्चिक (2) ::
अग्न आ याहि वीतये गृणानो हव्यदातये। नि होता सत्सि बर्हिषि॥
हे सर्वव्यापक अग्ने! सर्वप्रथम हम आपकी स्तुति करते हैं। तत्पश्चात् देवगणों तक हवियों को भेजने हेतु हम आपको आहूत करते हैं। आप इस यज्ञ में पधारें।(सामवेद उत्तरार्चिक 1.2.1)
Hey all pervading Agni Dev! Initially we worship you. Thereafter, we invoke you for sending the offerings-oblations to demigods-deities. Come to this Yagy.
तं त्वा समिद्भिरङ्गिरो घृतेन वर्धयामसि। बृहच्छोचा यविष्ठ्य॥
हे ज्योतिर्मय ईश्वर! हम आपको समिधाओं एवं घी द्वारा प्रकाशित करते हैं। इसीलिए हे शक्तिशाली! आप अत्यधिक तेज से युक्त हों।(सामवेद उत्तरार्चिक 1.2.2)
Hey lustrous God! We lit you with wood and Ghee. Hence, hey mighty! You should be accompanied with extreme Tej-aura.
स नः पृथु श्रवाय्यमच्छा देव विवाससि। बृहदग्ने सुवीर्यम्॥
हे अग्नि देव! हमें अत्यधिक शक्ति तथा उत्कृष्ट ऐश्वर्यदायक सामर्थ्य प्रदान करने की अनुकम्पा करें।(सामवेद उत्तरार्चिक 1.2.3)
Hey Agni Dev! Bless us extreme strength and excellent grandeur-prosperity.
आ नो मित्रावरुणा घृतैर्गव्यूतिमुक्षतम्। मध्वा रजांसि सुक्रतू॥
हे मित्रा-वरुण! हमारी ज्ञानेन्द्रियों के निवास स्थान को अर्थात् हमारे शरीर को कान्तिमय होने के भाव से सम्पन्न करें तथा परलोक का भी उत्कृष्ट रसों (भावों) से सिंचन करें।(सामवेद उत्तरार्चिक 1.2.4)
Hey Mitra-Varun! Bless our sense organs with virtuous thoughts-ideas granting aura to our body and ascertain that our next birth too posses best-righteous, auspicious feelings.
उरुशंसा नमोवृधा मह्ना दक्षस्य राजथः। द्राधिष्ठाभिः शुचिव्रता॥
हे मित्रा-वरुण! आप शुद्ध कर्म करने वाले हैं। आप हवियों तथा श्रेष्ठ स्तुतियों द्वारा बलशाली बनकर अपने महिमामयी उत्कृष्ट ऐश्वर्य को अधिकृत करते हैं।(सामवेद उत्तरार्चिक 1.2.5)
Hey Mitra-Varun! You perform virtuous-righteous endeavours. You acquire might from oblations-offerings, become mighty-powerful and grant us excellent grandeur.
गृणाना जमदग्निना योनावृतस्य सीदतम्। पातं सोममृतावृधा॥
हे मित्रा-वरुण! जमदाग्नि ऋषि आपकी वन्दना करते हैं। आप हमारे यज्ञ-मण्डप में उपस्थित हों तथा हमारे द्वारा तैयार किये गये सोमरस का सेवन कर आनंदित हों।(सामवेद उत्तरार्चिक 1.2.6)
Hey Mitra-Varun! Jamdagni Rishi pray to you. Come to our Yagy Mandap, drink Somras and gladden.
आ याहि सुषुमा हि त इन्द्र सोमं पिबा इमम्। एदं बर्हिः सदो मम॥
हे देवराज इन्द्र! आप हमारे यज्ञ-मण्डप में उपस्थित हों। वहाँ पर आपके पान करने के निमित्त सिद्ध किया हुआ सोमरस रखा है, उस सोमरस को आप ग्रहण करें तथा उत्तम आसन पर बैठने की कृपा करें।(सामवेद उत्तरार्चिक 1.2.7)
Hey Devraj Indr! Come to our Yagy Mandap! We have kept Somras for you to drink. Accept it and occupy the best cushion-seat.
आ त्वा ब्रह्मयुजा हरी वहतामिन्द्र केशिना। उप ब्रह्माणि नः शृणु॥
हे देवराज इन्द्र! मन्त्र को श्रवण करते ही रथ में संयोजित हो जाने वाले घोड़ों पर विराजमान होकर आप हमारे समक्ष प्रकट होकर हमारी स्तुतियों को ध्यानपूर्वक श्रवण करें।(सामवेद उत्तरार्चिक 1.2.8)
Hey Devraj Indr! With the recitation of Mantr by us you should deploy the horses in your charoite and visit us. Stay in front of us and listen-respond to our Stuties-prayers.
ब्रह्माणस्त्वा युजा वयं सोमपामिन्द्र सोमिनः। सुतावन्तो हवामहे॥
हे देवराज इन्द्र! हम ब्रह्म चिंतन (Contemplation of the Ultimate Reality-Ultimate Reality) में लीन रहने वाले सोमयज्ञ कर्ता तथा सोमरस सिद्ध करने वाले याजक सोमरस का पान करने वाले आपको श्रेष्ठ स्तोत्रों के द्वारा आवाहित करते हैं।(सामवेद उत्तरार्चिक 1.2.9)
Hey Devraj Indr! We the people who meditate-concentrate, contemplate in the Brahm, accomplishers of Som Yagy, extractors of Somras, Yajak who drink Somras invoke with the recitation of best Strotr.
इन्द्राग्नी आ गतं सुतं गीर्भिर्नभो वरेण्यम्। अस्य पातं धियेषिता॥
हे देवराज इन्द्र एवं अग्निदे वता! हमारी स्तुतियों से प्रभावित, अन्तरिक्ष से उच्च हिमालय की चोटियों अर्थात् द्युलोक से आया हुआ यह पवित्र सोमरस उत्कृष्ट है। आप हमारी सेवा की भावना को ग्रहण करने हेतु इस सोमरस का सेवन करें।(सामवेद उत्तरार्चिक 1.2.10)
Hey Devraj Indr& Agni Dev! Starting from the space, heavens and cliffs of Himalay Parwat, the impact of our Stuties have made the Somras excellent. Accept our feeling-prayers and drink Somras.
इन्द्राग्नी जरितुः सचा यज्ञो जिगाति चेतनः। अया पातमिमं सुतम्॥
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! आप स्तोताओं की सहायता करने वाले हैं। स्तोत्रों के माध्यम से आवाहित आप स्फूर्ति जाग्रत करने वाले तथा यज्ञ के साधनभूत सोमरस का सेवन करें।(सामवेद उत्तरार्चिक 1.2.11)
Hey Indr Dev & Agni Dev! You help the Stotas. Invoked through the Strotrs and drink the Somras, a means-tool for the Yagy, which grant vitality and alertness.
इन्द्रमग्निं कविच्छदा यज्ञस्य जूत्या वृणे। ता सोमस्येह तृम्पताम्॥
यज्ञ के साधन भूत सोमरस से प्रेरित होने वाले हम स्तोता गण कर्मों के परिणाम स्वरूप फल प्रदान करने वाले दोनों देवता (अग्नि एवं इन्द्र) की आराधना करते हैं। वे दोनों देवता इस सोमरस का सेवन कर तुष्टि से युक्त हों।(सामवेद उत्तरार्चिक 1.2.12)
We the Stota Gan invoke Indr & Agni Dev, inspired by the Somras, a means-tool of Yagy for the grant of desired rewards-output, accomplishment of wishes. Let both Indr & Agni Dev drink the satiating Somras.
सामवेद उत्तरार्चिक (3) ::
उच्चा ते जातमन्धसो दिवि सद्भूम्या ददे। उग्रं शर्म महि श्रवः॥
हे सोमदेव! आप पराक्रमी, आनन्द प्रदान करने वाले, महान् यशस्वी हैं। आप स्वर्गलोक में निवास करते हैं। हम (याजकगण) आपको पोषक पदार्थ के रूप में पृथ्वीलोक में ग्रहण करते हैं।(सामवेद उत्तरार्चिक 1.3.1)
Hey Som Dev! You are majestic, gladdening and possess great glory. You reside in the heavens. We the Yajak Gan, accept you as a nourishing product-material over the earth.
स न इन्द्राय यज्यवे वरुणाय मरुद्भ्यः। वरिवोवित्परि स्रव॥
हे धन-संपत्ति प्रदान करने वाले सोमदेव! हमारे आराध्य इन्द्र, वरुण एवं मरुद्गणों के निमित्त आप स्रवित हों।(सामवेद उत्तरार्चिक 1.3.2)
Hey Somras granting grandeur & prosperity! You should to be extracted for the sake of our adorable-placable deities Indr Dec, Varun Dev and Marud Gan.
एना विश्वान्यर्य आ द्युम्नानि मानुषाणाम्। सिषासन्तो वनामहे॥
हे सोमदेव! आपकी कृपा से हमें मानवों में श्रेष्ठ धन-संपत्ति की प्राप्ति हुई है। परन्तु हम आपकी सेवा करने की लालसा से आपकी स्तुति करते हैं।(सामवेद उत्तरार्चिक 1.3.3)
Hey Som Dev! By virtue of your blessing-mercy, we the humans have acquired best wealth-prosperity, property. We worship you with the desire of serving you.
पुनानः सोम धारयापो वसानो अर्षसि।
आ रत्नधा योनिमृतस्य सीदस्युत्सो देवो हिरण्ययः॥
हे सोमदेव! आप वैभव प्रदान करने वाले, सुवर्ण की भाँति कान्तिमान, निर्मल हैं। आप जल के साथ मिश्रित होकर, गतिमान धारा के रूप में अवश्यरूप से यज्ञ में उपस्थित कलश में प्रतिस्थापित हों।(सामवेद उत्तरार्चिक 1.3.4)
Hey Somras! You grant grandeur, has holden hue and pure. On mixing with water current-stream you present yourself in the Yagy and establish in the Kalash-vessel.(22.12.2025)
दुहान ऊधर्दिव्यं मधु प्रियं प्रत्नं सधस्थमासदत्।
आपृच्छयं धरुणं वाज्यर्षसि नृभिर्धौतो विचक्षणः॥
याजकों द्वारा शुद्ध किया हुआ माधुर्ययुक्त, हर्षदायक, लोकातीत सोमरस यज्ञ-स्थल पर प्रतिष्ठित है। उपासकों पर अपनी कृपादृष्टि बनाये रखने वाला यह सोम, उत्कृष्ट यज्ञ करने की भावना से युक्त याज्ञिको को ग्रहण होता है।(उत्तरार्चिक 1.3.5)
Sweetened, gladdening, extraordinary Somras, sanctified by the Yajak Gan is established at the Yagy site-Sthal. Somras merciful over the devotees is available to Yajak Gan accomplishing excellent Yagy.
प्र तु द्रव परि कोशं नि षीद नृभिः पुनानो अभि वाजमर्ष।
अश्वं न त्वा वाजिनं मर्जयन्तोऽच्छा बहीं रशनाभिर्नयन्ति॥
यज्ञ कर्ताओं द्वारा परिष्कृत हे सोम! आप हमारे यज्ञ-स्थल में उपस्थित होकर हमारे पूजा योग्य पात्र में प्रतिष्ठित हों। आप हविष्यान्न को ग्रहण करें। पराक्रमी अश्वों को पवित्र करने वालों की भाँति याज्ञिक गण आपको परिष्कृत करते हैं और घोड़ों की भाँति, उंगलियों के द्वारा आपको यज्ञ-वेदी तक ले जाते है।(उत्तरार्चिक 1.3.6)
Hey Somras, extracted by the Yagy performers! Come to our Yagy site and establish in the pot good enough for prayers. The Yagyik purify you like those who purify-train the mighty horses and take you to the Yagy Vedi through fingers like the horses.
स्वायुधः पवते देव इन्दुरशस्तिहा वृजना रक्षमाणः।
पिता देवानां जनिता सुदक्षो विष्टम्भो दिवो धरुणः पृथिव्याः॥
श्रेष्ठ अस्त्रों-शस्त्रों से सम्पन्न, शत्रुओं का संहार करने वाला, व्यवधानों को विनष्ट कर उनसे सुरक्षा करने वाला, पालनकर्ता, दिव्यता का विकास करने वाला, श्रेष्ठ पराक्रमी, द्यावा-पृथ्वी को धारण करने वाला, लोकातीत सोम परिष्कृत किया जाता है।(उत्तरार्चिक 1.3.7)
Extraordinary Somras possessing weapons & missiles, destroyer of the enemy and troubles-disturbances, protecting from them, booster of divinity, excellent mighty, supporter of the heavens & earth is extracted.
ऋषिर्विप्रः पुर एता जनानामृभुर्धीर उशना काव्येन।
स चिद्विवेद निहितं यदासामपीच्यां 3 गुह्यं नाम गोनाम्॥
तीक्ष्ण, महाज्ञानी, संचालन करने वाले, अधीर न होने वाले उशना ऋषि ने अपने स्तुतियों के माध्यम से, गायों में छिपे रहने वाले सोम को परिश्रम से अधिगत किया।(उत्तरार्चिक 1.3.5)
Sharp, highly qualified, calm-patient Rishi Ushna attained the Somras hidden in the cows by means of Stuties and his labour.
सामवेद उत्तरार्चिक (4) ::
अभि त्वा शूर नोनुमोऽदुग्धा इव धेनवः।
ईशानमस्य जगतः स्वर्दृशमीशानमिन्द्र तस्थुषः ॥
हे पराक्रम से युक्त देवराज इन्द्र! आप सब कुछ जानने वाले एवं संसार का पालन करने वाले हैं। आपके साक्षात्कार हेतु हम वैसे ही उत्सुक रहते हैं, जिस प्रकार बिना दुही हुई गायें अपने बछड़े के समीप जाने हेतु उत्सुक रहती हैं।(उत्तरार्चिक 1.4.1)
Hey mighty Devraj Indr! You know every thing and support the universe. We are keen to see you just like the cows who have not been milked and are ready to move to their calf.
न त्वावाँ अन्यो दिव्यो न पार्थिवो न जातो न जनिष्यते।
अश्वायन्तो मघवन्निन्द्र वाजिनो गव्यन्तस्त्वा हवामहे॥
हे वैभवशाली देवराज इन्द्र! इस भूलोक अथवा सुरलोक में आपके सदृश न कोई है, न कोई हुआ और न ही कभी कोई होगा। हम गाय रूपी द्रव्य (धन) एवं धन-संपत्ति प्राप्त करने की अभिलाषा से आपकी याचना करते हैं।(उत्तरार्चिक 1.4.2)
Hey possessor of grandeur Devraj Indr! Neither there is anyone comparable to you nor will be there, over the earth or heavens. We worship you with the wish to have wealth in the form of cows, prosperity etc.
कया नश्चित्र आ भुवदूती सदावृधः सखा। कया शचिष्ठया वृता॥
हे देवराज इन्द्र! आप लगातार उन्नति की ओर बढ़ने वाले हैं। किन तुष्टि कारक तत्त्वों को समर्पित करने से, किस प्रकार के विवेक से युक्त आराधना से, किन सामर्थों के साथ आप हमारे सहायक होंगे?(उत्तरार्चिक 1.4.3)
Hey Devraj Indr! You continue moving towards progress. By virtue which satisfying factors-means or the goods offered to you, worship prudently or the means will make you favourable-helping to us.
कस्त्वा सत्यो मदानां मंहिष्ठो मत्सदन्धसः। दृढा चिदारुजे वसु॥
हे इन्द्र! सत्य का पालन करने वालों को सुख प्रदान करने वाले पदार्थों में कौन-सा पदार्थ सबसे श्रेष्ठ है? सोमरस सबसे उत्कृष्ट है, क्योंकि ये आपको आनंदित करने वाला तथा परास्त न होने वाले शत्रुओं की सम्पन्नता का विनाश करने वाला है।(उत्तरार्चिक 1.4.4)
Hey Indr Dev! Which material is best to grant pleasure-comforts to the ruthful? Somras is best., since it gladden you and destroys the riches-prosperity of the undefeated enemy.
अभी षु णः सखीनामविता जरितृणाम्। शतं भवास्यूतये॥
हे मित्र देवराज इन्द्र! आप याजकों की रक्षा करने वाले हैं। अतः आप सब तरह से सुरक्षा करने के निमित्त उत्कृष्ट तैयारी के साथ उपस्थित हों।(उत्तरार्चिक 1.4.5)
Hey friendly Devraj Indr! You protect the Yajak Gan. Therefore, invoke with excellent preparedness for our safety.
तं वो दस्ममृतीषहं वसोर्मन्दानमन्धसः।
अभि वत्सं न स्वसरेषु धेनव इन्द्रं गीर्भिर्नवामहे॥
जिस तरह बाड़े में गायें अपने बछड़ों के समीप जाने हेतु उत्सुक होकर शब्द करती है, उसी प्रकार हम (स्तोतागण) शत्रुओं से सुरक्षित होने वाले देवराज इन्द्र के निमित्त उत्सुक होकर प्रार्थना करते हैं।(उत्तरार्चिक 1.4.6)
The way cows moo to reach their calves in the shed, similarly we the Strota Gan anxiously worship Devraj Indr for our protection from the enemy.
द्युक्षं सुदानं तविषीभिरावृतं गिरि न पुरुभोजसम्।
क्षुमन्तं वाजं शतिनं सहस्रिणं मक्षु गोमन्तमीमहे॥
हे देवराज इन्द्र! आप श्रेष्ठ दानी, स्वर्गलोक में निवास करने वाले व महा पराक्रमी हैं। हम आपसे सभी तरह की धन-संपत्ति, असंख्यों गायों एवं अन (पोषण पदार्थ) प्राप्त करने की अभिलाषा करते है।(उत्तरार्चिक 1.4.7)
Hey Devraj Indr! You are best donor, resident of heavens and majestic warrior. We expect wealth, prosperity, grandeur, numerous cows and food grains from you.
तरोभिर्वो विदद्वसुमिन्द्रं सबाध ऊतये।
बृहद्गायन्तः सुतसोमे अध्वरे हुवे भरं न कारिणम्॥
जिस प्रकार शिशु अपने माता-पिता को पुकारता है, उसी प्रकार हम अपने हितैषी देवराज इन्द्र को अपने सहायतार्थ आवाहित करते हैं। हे याजकों! सोमयज्ञ में वैभव से युक्त करने वाले गतिमान घोड़ों से सम्पन्न देवराज इन्द्र की अपनी सुरक्षा के उद्देश्य से पूजा करो।(उत्तरार्चिक 1.4.8)
The way an infant call his parents, similarly we invoke our well wisher Devraj Indr for our help. Hey Yajak Gan! Worship the Devraj Indr lord of fast moving horses, possessing grandeur, for your own safety.
न यं दुध्रा वरन्ते न स्थिरा मुरा मदेषु शिप्रमन्धसः।
य आदृत्या शशमानाय सुन्वते दाता जरित्र उक्थ्यम्॥
सुरम्य आकार वाले देवराज इन्द्र को महा पराक्रमी दानव भी पराजित नहीं कर सकते हैं। हम उस देवराज इन्द्र की अभ्यर्थना करते हैं, जो सोमरस के उल्लास में सोमयज्ञ के निमित्त यज्ञ करने वालों को ऐश्वर्य से सम्पन्न करते हैं।(उत्तरार्चिक 1.4.9)
Devraj Indr possessor of picturesque-beautiful body can not be defeated by majestic demons-giants. We worship Devraj Indr having glee-frolic due to Somras drinking, who grant grandeur to those who conduct Som Yagy.(23.12.2025)

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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)
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