#यजुर्वेद (1-40) #YajurVed
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: #PtSantoshBhardwaj
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अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥

[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
यजुर्वेद संहिता, प्रथम अध्याय :: ऋषि :- परमेष्ठी, प्रजापति; देवता :- सविता, यज्ञ, विष्णु, अग्नि, प्रजापति, जल और सूर्य, इन्द्र, वायु, द्यौ और विद्युत्, छन्द :- बृहती, उष्णिक्, त्रिष्टुप्, जगती, अनुष्टुप्, पंक्ति, गायत्री।
हरिः ॐ। ॐ इषे त्वोर्जे त्वा वायव स्थ देवो वः सविता प्रार्पयतु श्रेष्ठतमाय कर्मण आप्यायध्वमघ्या इन्द्राय भागं प्रजावतीरनमीवा अयक्ष्मा मा व स्तेन ईशत माघशꣳसो ध्रुवा अस्मिन् गोपतौ स्यात बह्वीर्यजमानस्य पशून्याहि॥
हे पलाश वृक्ष की डाल! मैं तुम्हें वर्षा और अन्न-प्राप्ति के लिये काटता हूँ। हे गोवत्स (बछड़ा)! तुममें वायुदेवता का वास है, जाओ चरो और सूर्यास्त के समय पुनः वापस आ जाओ। हे अवध्य गौओं! इन्द्र भाग रूप दूध को अपने थनों में सुरक्षित रखो और दुहते समय उसे यज्ञ हेतु प्रदान करो। तुम सब बछड़े-बछियों वाली और रोग एवं यक्ष्मा आदि से रहित होओ। हे गायों! तुम्हें चोर अपने वश में न कर ले और न ही कसाई या बाघ-सिंह आदि हिंसक जंगली जानवर। तुम सब इस यजमान के लिये स्थिर भाव वाली (स्थिर समृद्धिवाली) होओ। हे शाखे! तुम इस यजमान के पशुओं की रक्षा करो।[यजुर्वेद 1.1]
Hey branch of butea! I cut you for the sake of rains and food grains. Hey calf! Vayu Dev resides in you. Roam, graze and come back in the evening at the time of Sun set. Hey protected (not to be killed-slaughtered) cows! Keep the milk as the share of offerings to Indr Dev in your udder. On being milked, grant it for the Yagy. You should remain free from diseases and tuberculosis with your calves. Hey cows! Neither thief nor butcher should be able to over power you. Lion, tiger etc. beasts should not be able to harm you. You should have equilibrium-balanced state of mind towards this host. Hey tree branch! Protect the cattle of this host-Ritviz.
वसोः पवित्रमसि द्यौरसि पृथिव्यसि मातरिश्वनो घर्मोऽसि विश्वधा असि।
परमेण धाम्ना दृꣳहस्व मा ह्वार्मा ते यज्ञपतिर्हार्षीत्॥
हे कुश निर्मित पवित्रक! तुम इन्द्र देवता के निवास भूत दूध को पवित्र करने वाले हो। हे स्थाली (मिट्टी के बने पाक पात्र)! तुम जल हेतु वर्षा करने वाली द्युलोक रूप हो, तुम्हीं पृथ्वी रूप हो। तुम्हीं वायु हो, तुम्हीं अन्तरिक्ष लोक हो। तुम्हीं इन तीनों लोकों को धारण करने वाली हो। विश्व को धारण करने में समर्थ हो। हे बटलोई! तुम अग्नि पक्व होकर बहुत सारा दूध धारण करने में समर्थ होओ। तुम टेढ़ी मत होओ तथा यजमान भी तुम्हें टेढ़ी न करे।[यजुर्वेद 1.2]
Hey Pavitrak (Purifier) made of Kush! You purify milk in which Indr Dev reside. Hey Sathali (clay pot used for cooking)! You are like the heavens leading to showring of rains and earth as well. You are air, as well space-sky. You support the three abodes. You are capable of supporting the universe. Hey Batloi (earthen cooking vessel)! Having backed in fire you should be able to hold a lot of milk. Neither you should be tilted nor the host should tilt you.
वसोः पवित्रमसि शतधारं वसोः पवित्रमसि सहस्त्रधारम्।
देवस्त्वा सविता पुनातु वसोः पवित्रेण शतधारेण सुप्वा कामधुक्षः॥
हे कुश निर्मित पवित्रक! तुम इन्द्र देवता के निवास भूत दूध को पवित्र करने वाले हो। हे सौ धार वाले! तुम दूध को पवित्र करने वाले हो। हे दूध! प्रेरक सविता देवता तुम्हें पवित्रक द्वारा पवित्र करें। अध्वर्यु पूछते हैं, हे दोग्धा! तुमने किस गाय को दुहा है?[यजुर्वेद 1.3]
Hey Pavitrak made of Kush! You are the purifier of milk in which Indr Dev reside. Hey Pavitrak having hundred sharp points-edges! You are purifier of milk. Hey milk! Let inspiring Savita Dev purify you with Pavitrak. The Priests ask the milk man! Whish cow has been milked by you?
Pavitrak is put in the finger during Yagy-Hawan.
सा विश्वायुः सा विश्वकर्मा सा विश्वधायाः।
इन्द्रस्य त्वा भागꣳसोमेनातनच्मि विष्णो हव्यथं रक्ष॥
दोहनकर्ता अध्वर्यु को सम्बोधित करते हुए कहता है, वह गाय विश्वायु है अर्थात् विश्व को आयुष्य प्रदान करने वाली है। वह विश्व कर्मा अर्थात् कर्तृत्व शक्ति सम्पन्न है। वह विश्व धाया है अर्थात् समस्त विश्व का पोषण करने वाली है। हे इन्द्र के निवास भूत दूध! तुम्हें मैं दही रूप में जमाता हूँ। हे विष्णो! इस हव्य रूप दूध की तुम रक्षा करना।[यजुर्वेद 1.4]
The milk man address the priest! That cow is one which grant longevity to the universe. She possess the power of Vishw Karma. She nourish the whole world. Hey milk, residence of Indr Dev! You curdle the milk. Hey Vishnu! Protect this milk in the form of offering-oblation.(03.03.2025)
अग्ने व्रतपते व्रतं चरिष्यामि तच्छकेयं तन्मे राध्यताम्। इदमहमनृतात् सत्यमुपैमि॥
हे व्रत के पालक अग्नि देव! मैं व्रत का अनुष्ठान करूँगा। तुम्हारी कृपा से मैं उसके अनुष्ठान करने में समर्थ होऊँ। हे अग्ने! मेरी सामर्थ्य को बढ़ाओ, जिससे मैं यज्ञ फल को प्राप्त कर सकूँ। मैं यजमान तुम्हारी कृपा से 'यज्ञ को पूरा न करके' के असत्य से बचकर 'यज्ञ को पूरा करने' के सत्य को प्राप्त करूँ अर्थात् यज्ञ को पूरा करूँ।[यजुर्वेद 1.5]
Hey supporter of the fast (endeavours under taken), Agni Dev! I will work over the deeds-Project under taken. I will be able to accomplish the job with your blessings. Hey Agni Dev! Increase my potential-capacity to do work so that I can attain the output-reward of the Yagy. I should prove to be truthful by accomplishing the Yagy to the host-Ritviz.
कस्त्वा युनक्ति स त्वा युनक्ति कस्मै त्वा युनक्ति तस्मै त्वा युनक्ति।
कर्मणे वां वेषाय वाम्॥
हे प्रणीता (जलधारक पात्र)! तुम्हें इस कर्म में किसने नियुक्त किया है? समस्त वेदों में जगत् के निर्वाहक के रूप में जो प्रसिद्ध है, उसी प्रजापति परमेश्वर ने तुम्हें नियुक्त किया है। हे पात्र! किसके लिये उसने तुम्हें नियुक्त किया है? प्रजापति ने तुम्हें तत्प्रीत्यर्थ (परमेश्वर प्रीत्यर्थ) नियुक्त किया है। [हे प्रणीता और शूर्प !] तुम दोनों को मैं यज्ञकर्म के प्रयोजनार्थ ग्रहण करता हूँ।[यजुर्वेद 1.6]
Hey Pranita (pot holding-storing water)! Who assigned this job? The supporter of the whole universe described in the Veds deputed for this function. Hey Pranita & Shurp! I accept you for holding the Yagy.
प्रत्युष्टꣳरक्षः प्रत्युष्टा अरातयो निष्टप्तꣳरक्षो निष्टक्षा अरातयः। उर्वन्तरिक्षमन्वेमि॥
[प्रणीता और शूर्प को तपाने से] राक्षस दग्ध हो गये हैं। दान न देने वाले दग्ध हो गये हैं। राक्षस पूरी तरह भस्म कर दिये गये, अदाता भी पूरी तरह भस्म कर दिये गये। अब मैं विस्तृत अन्तरिक्ष में प्रवेश करता हूँ।[यजुर्वेद 1.7]
शूर्प :: गेहूँ, चावल आदि अन्न पछोड़ने के लिये बना हुआ बाँस या सींक का पात्र, सूप, एक प्राचीन तौल जो 2,048 तोला या 322 सेर की होती थी; tray used for winnowing grains, winnower.
The demons have been roasted by heating the Pranita & Shurp. Those who do not donate burnt. Now, I enter the vast space-sky.
धूरसि धूर्व धूर्वन्तं धूर्व तं योऽस्मान्धूर्वति तं धूर्व यं वयं धूर्वामः।
देवानामसि वह्नितमꣳ सस्नितमं पप्रितमं जुष्टतमं देवहूतमम्॥
[हे अग्नि देव!] तुम हिंसक हो, अतः पापियों की हिंसा करो अर्थात् उनका विनाश करो। जो राक्षस लोग हमारे यज्ञ में विघ्न डालते हैं, हिंसा के लिये उद्यत रहते हैं, उनका विनाश करो। हम जिनकी हिंसा करना चाहते हैं, उनकी भी हिंसा करो [हम यज्ञ के अनुष्ठानकर्ता आलस्यादिरूप वैरियों की हिंसा करना चाहते हैं, अतः उनका विनाश करो।] हे शकट! तुम देवताओं के वाहक हो, व्रीहि (धान्य) रूप हवि प्राप्त कराने वाले हो, ब्रीहिपूर्ण (धान्यपूर्ण) शकट देखकर देवता बुलाये गये की भाँति शीघ्र आ जाते हैं।[यजुर्वेद 1.8]
Hey Agni Dev! You are violent. Hence, destroy the sinners. You should be ready to vanish the demons who disturb us during the Yagy; in addition to those whom we wish to vanish i.e., laziness. Hey Shakat-cart! You are the carrier-vehicle of demigods-deities. You make us availble the food grains, paddy etc. The demigods-deities quicky arrive seeing the cart full of food grains.(04.03.2025)
अह्रुतमसि हविर्धानं दृꣳहस्व मा ह्वर्मा ते यज्ञपतिर्हार्षीत्।
विष्णुस्त्वा क्रमतामुरु वातायापहतꣳ रक्षो यच्छन्तां पञ्च॥
हे शकट! तुम टेढ़े-मेढ़े नहीं हो अर्थात् तुमको ऊपर-नीचे करने पर भी टूटने का भय नहीं है। हे हवि रूप धान्य का वहन करने वाले! तुम मजबूत होओ। टेढ़े न होओ, यज्ञपति भी तुम्हें टेढ़ा न करे। विष्णु तुम पर आरोहण करे। वायु संचार के लिये तुम विस्तृत होओ। हे शकट! पाँच उँगलियों द्वारा बँधकर बनी हुई मुट्ठी भर हवि यव-धान्य आदि हमें प्रदान करो।[यजुर्वेद 1.9]
टेढ़ा :: चक्करदार, लहरदार, कपटी, साँप की तरह, धूर्त, चालाक, झुका हुआ, ढालू, ढालवां, तिरछा, लहरदार, चक्करदार, कपटी; sloping, tilted, crooked, serpentine, sloping, sinuous.
Hey Cart! You are not deformed. Hey user of paddy! You should be strong. Yagy Pati should not tilt you. Let Bhagwan Shri Hari Vishnu ride you. You should be broad to allow flow of air through you. Hey Cart! Grant us a fistful of offering in the form of paddy-rice etc.
देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्याम्।
अग्नये जुष्टं गृह्णाम्यग्नीषोमाभ्यां जुष्टं गृह्णामि॥
हे हवि! सविता देवता से प्रेरित हुआ मैं अग्नि देव की प्रसन्नता के लिये तुम्हें ग्रहण करता हूँ। मैं तुम्हें दोनों अश्विनी कुमारों की बाहुओं और पूषा देवता के हाथों द्वारा ग्रहण करता हूँ। अग्नि और सोम देवता के प्रीत्यर्थ तुम्हें ग्रहण करता हूँ [अपने लिये नहीं]।[यजुर्वेद 1.10]
Hey oblation! Inspired by Savita Dev, I accept you for the happiness of Agni Dev. I accept you through the hands of Ashwani Kumars and Pusha Dev. I accept you for the happiness of Agni & Som Dev, not for my self.
भूताय त्वा नारातये स्वरभिविख्येषं दृꣳ हन्तां दुर्याः पृथिव्यामउर्वन्तरिक्षमन्वेमि पृथिव्यास्त्वा नाभौ सादयाम्यदित्या उपस्थेऽग्ने हव्यथं रक्ष॥
हे शकट में स्थित बचे हुए धान्य! बोने के द्वारा अधिक होने के लिये मैं तुम्हें इस शकट में बचाकर रखता हूँ। दान के लिये मैं तुम्हें बचाकर रखता हूँ।[पूर्वाभिमुख यज्ञभूमि का निरीक्षण करे और कहे] हे हवि (धान्य)! पृथ्वी की नाभि के मध्य में तुम्हें स्थापित करता हूँ अर्थात् भूमि में बीज बोता हूँ। जैसे सोते हुए बालक को माता अपनी गोद में ले लेती है, वैसे ही इस हवि (व्रीह) को अदिति की गोद (पृथ्वी) में स्थापित करता हूँ। हे अग्नि देव! तुम इस हविरूप बीज की रक्षा करो।[यजुर्वेद 1.11]
Hey paddy saved in the Cart! After sowing, I keep the left over paddy in the Cart. I save it for donation. Hey oblation! I establish you at the nucleus of the earth i.e., I sow you. The way a mother picks up her baby in the lap, I establish this oblation in the lap of mother Aditi i.e., earth. Hey Agni Dev! Protect this seed in the form of offering.
पवित्रे स्थो वैष्णव्यो सवितुर्वः प्रसव उत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभिः।देवीरापो अग्रेगुवो अग्रेपुवोऽग्र इममद्य यज्ञं नयताग्रे यज्ञपतिꣳ सुधातुं यज्ञपतिं देवयुवम्॥
हे दो कुशों से बने पवित्रक! तुम विष्णु देवता सम्बन्धी हो। मैं सविता देव की प्रेरणा से छिद्र हीन पवित्रक को वायु द्वारा पवित्र करता हूँ। सूर्य की किरणों से भी मैं तुम्हें पवित्र करता हूँ। हे द्योतमान निम्न देश के प्रति गमनशील जल! तुम आज इस प्रवर्तमान यज्ञ को निर्विघ्न सम्पन्न करो। तुम सोमरस के प्रथम पानकर्ता हो। प्रचुर दक्षिणा देने वाले यजमान और यज्ञपति को आगे ले चलो।[यजुर्वेद 1.12]
Hey Pavitrak made of two Kush! You are related to Vishnu Dev. I sanctify the Pavitrak without hole, by the inspiration of Savita Dev, with air. I purify you with the rays of Sun. Hey radiant water flowing towards low lying areas! Accomplish this Yagy without any disturbance. You are the one who drink Somras first. Push the Ritviz-host & the Yagy Pati forward, who make sufficient donations.
युष्मा इन्द्रोऽवृणीत वृत्रतूर्ये यूयमिन्द्रमवृणीध्वं वृत्रतूर्ये प्रोक्षिता स्थ। अग्नये त्वा जुष्टं प्रोक्षाम्यग्नीषोमाभ्यां त्वा जुष्टं प्रोक्षामि। दैव्याय कर्मणे शुन्धध्वं देवयज्यादै यद्वोऽशुद्धाः पराजघ्नुरिदं वस्तच्छुन्धामि॥
हे जल! वृत्र के वध के निमित्त इन्द्र ने तुम्हारा वरण किया था। तुम भी वृत्र के वध के निमित्त इन्द्र के सहकारी होकर उनका वरण करो। हे जल! तुम प्रोक्षित होओ। हे हवि! तुम अग्नि के लिये प्रीतिकर होओ, मैं तुम्हें प्रोक्षित करता हूँ। अग्नि और सोम के लिये प्रीतिकर तुम हवि को मैं कुशों से मार्जित करता हूँ। हे यज्ञ पात्रो! देव-सम्बन्धी कार्य के लिये तुम शुद्ध हो जाओ। हे तण्डुलादि! हीन जातियों के स्पर्श करने से जो तुम अशुद्ध हुए हो, उसे मैं प्रोक्षित करके शुद्ध करता हूँ।[यजुर्वेद 1.13]
वरण :: चुनना, स्वीकार, चुनाव; choice, election.
प्रोक्षित :: सींचा हुआ, जल का छींटा मारा हुआ, वध किया हुआ, मारा हुआ, बलिदान किया हुआ; sprinkling of water.
Hey water! Indr Dev selected you for killing Vratra Sur. You too choose Indr Dev as his associate, for killing Vratr. Hey water! You should be sprinkled! Hey oblation! You should be affectionate to Agni Dev. I sanctify the oblation with Kush for the pleasure of Agni and Som. Hey Yagy vessels! You should be cleansed for the deeds related to demigods-deities. Hey rice etc.! You have become contaminated by touching the lower castes and I sanctify you by sprinkling water over you.
शर्मास्यवधूतꣳ रक्षोऽवधूता अरातयोऽदित्यास्त्वगसि प्रति त्वादितिर्वेत्तु। अद्रिरसि वानस्पत्यो ग्रावाऽसि पृथुबुध्नः प्रति त्वाऽदित्यास्त्वग्वेत्तु॥
हे कृष्ण मृग के चर्म! तुम पर आखला सुख पूर्वक रखा जाता है। कृष्णमृग चर्म से राक्षस लोग भाग जाते हैं। सभी उपद्रवों का शमन करने वाले कृष्ण मृग चर्म! तुम अदिति-भूमि देवता के त्वचारूप हो, अतः भूमि पर विराजमान तुम हमें पृथ्वी की त्वचा ही प्रतीत होते हो।[पूर्वकाल में यज्ञ ने देवताओं से रुष्ट होकर कृष्ण मृग का रूप ले लिया था। जब यह देवताओं को ज्ञात हुआ तो उन्होंने उस कृष्ण मृग का चर्म उतार लिया।] हे उलूखल (ओखली)! यद्यपि तुम काष्ठ के बने हो फिर भी दृढ़ता में पाषाण सदृश हो। तुम स्थूल मूल वाले हो अर्थात् तुम्हारा आधार भाग विस्तृत है। मुसल के आघात से तुम में चंचलता न आये इसलिये तुम्हारा मूल भाग स्थूल है। तुम इस कृष्णाजिन (कृष्ण मृगचर्म) को पृथ्वी की त्वचा जानो।[यजुर्वेद 1.14]
Hey deer with black skin! Let covering be placed over you comfortably. Black skin of the deer repel the demons. Hey black skin of the deer, eliminating all troubles! You are like the skin of Maa Aditi-earth. Therefore, you appear like skin of earth. Hey mortar! Though you are made of wood, yet you are as strong as a rock. You have a wide bottom. The pounder should not make you skittish, therefore your base is broad. Recognise the earth as having the covered with black skin of the deer.(05.03.2025)
अग्नेस्तनूरसि वाचो विसर्जनं देववीतये त्वा गृह्णामि बृहद्ग्रावाऽसि वानस्पत्यः स इदं देवेभ्यो हविः शमीष्व सुशमि शमीष्व। हविष्कृदेहि हविष्कृदेहि॥
हे हवि! तुम आहवनीय अग्नि के शरीर हो (क्योंकि अग्नि में प्रक्षिप्त हवि अग्नि हो जाता है, इसीलिये उसे अग्नि का शरीर कहा गया है।) तुम वाणी का विसर्जन हो अर्थात् मन्त्र पढ़कर तुम्हारा (हवि का) अग्नि में विसर्जन होता है। अतः देवताओं के तर्पण के लिये मैं तुम्हें ग्रहण करता हूँ। हे मुसल! यद्यपि तुम काष्ठ निर्मित हो, पर दृढ़ता में पाषाण के सदृश हो। तुम दीर्घता में बृहत् और महान् हो। हे मुसल! तुम देवताओं और अग्नि के उपकारार्थ ब्रीहि (धान) को हवि (तण्डुल) के रूप में लाते हो। हे हवि संस्कारक! यहाँ आओ।[यजुर्वेद 1.15]
Hey oblation-offering! You form the physique-body of the invoking fire. You are immersed in the fire with the recitation of Mantr. I accept you for the Tarpan-Libation of the demigods-deities. Hey Mortar! Though made of wood yet you are as strong as rock. You are long lived and great. Hey Mortar! Bring rice for the demigods-deities. Hey oblation purifier-sanctifier! Come here.
कुक्कुटोऽसि मधुजिह्व इषमूर्जमावद त्वया वयꣳ संघातꣳ संघातं जेष्म वर्षवृद्धमसि प्रति त्वा वर्षवृद्धं वेत्तु परापूत रक्षः परापूताꣳ अरातयोऽपहतꣳ रक्षो वायुर्वी विविनक्तु देवो वः सविता हिरण्यपाणिः प्रतिगृभ्णात्वच्छिद्रेण पाणिना॥
हे शम्यारूप यज्ञायुध विशेष! तुम असुरों के लिये कुक्कुट हो (क्व-क्व की ध्वनि से असुरों का नाश करते हो) और देवताओं के लिये मधुर जिह्वावाले है। हे यज्ञायुध! तुम असुरों को पराभूत और यजमान को ऊर्जावान् करो। अन्न और रस जिस प्रकार आये, वैसा शब्द करो। तुम्हारी सहायता से हम असुरों को युद्ध में पराजित कर देंगे। हे शूर्प (सूप)! तुम वर्ष वृद्ध हो अर्थात् तुम जिस बाँस की शलाकाओं से निर्मित हो, वह वर्षा के जल से बढ़ता है। हे हवि! वर्ष वृद्ध शूर्प के द्वारा तुम्हें संस्कारित किया जाता है। सूप से भूसी आदि अपद्रव्यों को तुमसे निकाला जाता है, इस प्रकार मानो राक्षसों और उनके उपद्रवों को ही मार भगाया जाता है। हे तण्डुलों! सूप द्वारा पछोरने से वायु सूक्ष्म कणों को तुमसे पृथक् कर देती है। हिरण्यपाणि सविता देवता तुम्हें अपने छिद्र रहित हाथों में ग्रहण करें।[यजुर्वेद 1.16]
शम्या :: लगुड, यष्टि, लाठी, काठ का स्तंभ, 36 अंगुल लंबा एक परिमाण या मानदंड; pillar.
यज्ञायुध :: यज्ञ में प्रयुक्त आयुध,अस्त्र, वस्तु-उपकरण; an instrument, weapon-material used in the Yagy.
Hey specific pole-pillar for the Yagy! You are like cock for demons destroying them and sweet tongue for the demigods. Hey Yagyayudh! Defeat the demons and grant energy-power to demigods. Make the sound according to the food grains or sap-juice. We will defeat the demons in the war with your support-help. Hey winnower! You are made of bamboo strips which increase the rains showers. Hey oblation! You are purified-sanctified with the winnower. You remove straw and useless objects from the paddy as if you are destroying the demons and obstacles. Hey rice! You are separated small-dust particles with the air. Let golden hand Savita Dev accept you in his hands having no space-holes.
धृष्टिरस्यपाऽग्ने अग्निमामादं जहि निष्क्रव्यादꣳ सेधा देवयजं वह। ध्रुवमसि पृथिवीं दृꣳ ह ब्रह्मवनि त्वा क्षत्रवनि सजातवन्युपदधामि भ्रातृव्यस्य वधाय॥
हे पलाश काष्ठिके! तीव्र (दहकते) अंगारों को इधर-उधर चलाने में तुम पूर्ण दक्ष हो। हे गार्हपत्य अग्नि! कच्चे अन्न को पकानेवाली अग्नि को तुम पृथक् कर दो, उसी प्रकार क्रव्यादग्नि (मांसादि को जलानेवाली चिताग्नि) को भी दूर कर दो और देवों के लिये यागयोग्य तृतीय अंगार को ले आवो। (अग्नि को कपाल से आच्छादित करे और बोले) हे कपाल! तुम दृढ़ होओ। अंगार पर स्थिर रहते हुए इधर-उधर न गिरो। तुम भूमि को दृढ़ बनाओ। ब्राह्मण के द्वार से सम्प्राप्त किये जाने वाले, क्षत्रिय के द्वारा प्राप्त किये जानेवाले और यजमान के सजातीयों द्वारा संवरण किये जाने वाले हे कपाल! अपने शत्रु असुरों के वध के लिये मैं तुम्हें अंगारों के ऊपर रखता हूँ।[यजुर्वेद 1.17]
Hey Butea wood! You are an expert in negotiating the embers. Hey Garhpaty Agni! Separate the fire used for cooking unripe grains, fire for cooking meat and cremation of body etc. Bring the ember suitable for Yagy for the demigods. Let the fire cover the skull in the cremation process and say to it! Become stout-strong. Stay over the embers and do not scatter. Make the cremation rigid-tough. Collect the skulls from door of the Brahman, Kshatriy and the people of the same cast of the host. Hey Skull! I put you over the embers to kill the enemy demons.(06.03.2025)
अग्ने ब्रह्म गृभ्णीष्व धरुणमस्यन्तरिक्षं दृꣳ ह ब्रह्मवनि त्वा क्षत्रवनि सजातवन्युपदधामि भ्रातृव्यस्य वधाय। धर्त्रमसि दिवं दृꣳ ह ब्रह्मवनि त्वा क्षत्रवनि सजातवन्युपदधामि भ्रातृव्यस्य वधाय। विश्वाभ्यस्त्वाशाभ्य उपदधामि चित स्थोर्ध्वचितो भृगूणामङ्गिरसां तपसा तप्यध्वम्॥
हे अग्ने! तुम पुरोडाशरूप अन्न के संस्कारक कपाल को अपने ऊपर धारित करो। हे कपाल! तुम पुरोडाश के धारक हो, अतः अन्तरिक्ष को दृढ़ करो। ब्राह्मण के द्वारा वरण योग्य, क्षत्रिय यजमान के द्वारा वरण योग्य तथा सजातीय यजमान के द्वारा वरण योग्य हे कपाल ! तुम को शत्रु के वध के लिये अग्नि पर रखता हूँ। हे द्वितीय कपाल! तुम पुरोडाश के धारक हो। द्युलोक को दृढ़ करो। इसी प्रकार तृतीय कपाल के लिये भी कहे। हे चतुर्थ कपाल! समस्त दिशाओं की दृढ़ता के लिये तुम्हें अग्नि पर रखता हूँ। इस प्रकार तीन कपालों को अग्नि पर रखने से यमजान तीन लोकों पर विजय करता है और चतुर्थ कपाल से समस्त दिशाओं पर जय करता है। हे कपालो! तुम एक के ऊपर एक रख दिये गये हो [इस प्रकार अंगारों को कपाल से ढके।] हे कपालों! तुम भृगु और अंगिरा नामक देवर्षियों के तप से अग्नि प्रतप्त होओ।[यजुर्वेद 1.18]
Hey Agne! Keep the skull as the Purodas made of food grain (dough of barley) over you. Hey skull! You are the supporter of Purodas, make the sky strong. Acceptable to the Brahman, Kshatriy and hosts-Ritviz of the same caste, hey skull! I place you over the fire for killing the enemy. Hey second skull! You possess the Purodas. Strengthen the heavens. Say these words pertaining to the third skull. Hey fourth skull! I place you over fire for strengthening all directions. In this way by placing the three skull the Ritviz-host win the three abodes and the fourth skull leads to victory over all the directions. Hey skulls! You have been placed one over another and covered with embers. Hey skulls! You should be ignited by the ascetics-Tap of Bhragu and Angira, Dev Rishis.
शर्मास्यवधूतꣳ रक्षोऽवधूताअरातयोऽदित्यास्त्वगसि प्रति त्वादितिर्वेत्तु। धिषणाऽसि पर्वती प्रति त्वाऽदित्यास्त्वग्वेत्तु दिवस्कम्भनीरसि धिषणाऽसि पार्वतेयी प्रति त्वा पर्वती वेत्तु॥
हे कृष्णाजिन! तुम कृष्ण मृग के चर्म हो। तुम्हें हिलाकर झाड़ने से राक्षस भाग जाते हैं। समस्त उपद्रव दूर हो जाते हैं। हे चर्म! तुम पृथ्वी की त्वचा की भाँति हो।[अब उस चर्म पर शिला (सिल) को रखे।] हे शिले! तुम पीसने के लिये आधारभूता हो। तुम पर्वतात्मिका अर्थात् पर्वत से उत्पन्न हो। पृथ्वी की त्वचा रूप कृष्णाजिन ने तुम्हें धारण किया है।[सिल के ऊपर लोढ़े को रखे।] हे शम्ये (लोढ़े)! तुम द्युलोक की स्तम्भनकारिणी हो। हे शिले! तुम पीसने सम्बन्धी कार्यों की आधारस्वरूपा हो। तुम पर्वत से उत्पन्न, अतः पर्वतपुत्री हो। हे सिल! तुम शम्या (लोढ़े) को अपनी पुत्री की भाँति जानो।[यजुर्वेद 1.19]
Hey Krashnajin! You are the skin of black deer. The demons run away by shaking you. All disturbances calm down. Hey skin! You are like the skin of earth.(place grinding stone over the skin). Hey rock-stone! You are essential for grinding. You are born out of mountain. The black skin, which is like the skin of earth, is supporting you.(place the upper stone-Lodha over the Sil-lower stone). Hey Lodhe (upper grinder)! You supress-statue the heavens. Hey lower grinding rock! You are basic-essential for grinding (sandal wood, spices etc in the kitchen). You evolved out of the mountain i.e., daughter of the mountain. Hey Sil! Consider the Lodha as your daughter.(07.03.2025)
धान्यमसि धिनुहि देवान् प्राणाय त्वो दानाय त्वा व्यानाय त्वा। दीर्घामनु प्रसितिमायुषे धां देवो वः सविता हिरण्यपाणिः प्रतिगृभ्णात्वच्छिद्रेण पाणिना चक्षुषे त्वा महीनां पयोऽसि॥
हे हवि! तुम धान्य हो, अतः अग्नि आदि देवताओं का पोषण करो। हे तण्डुल! मैं तुम्हें प्राण देने के लिये पीसता हूँ, मैं तुम्हें उदान वायु प्रदान करने के लिये पीसता हूँ, मैं तुम्हें व्यान वायु प्रदान करने के लिये पीसता हूँ। हे हवि! यजमान की आयु वृद्धि के लिये मैं तुम्हें कृष्ण मृगचर्म पर रखता हूँ। हिरण्यपाणि सविता देवता तुम्हें प्रकाश के लिये अपने छिद्र रहित हाथ से ग्रहण करें। हे हवि! यजमान के चक्षुरिन्द्रिय की शक्ति में अभिवृद्धि के लिये तुम्हें देखता हूँ। हे आज्य (घृत)! तुम गायों में पय (दुग्ध) हो।[यजुर्वेद 1.20]
Hey offering! You are paddy, hence nourish the demigods & Agni Dev. Hey rice! I grind you to survive i.e., Pran-air vital, Udan & Vyan Vayu. Hey offering! I place you over black skin of deer for the longevity of Ritviz-host. Let Savita Dev with his golden hands without holes, accept you. Hey offering Havi! I look at you for the growth of eye sight of the Ritviz. Hey Ajy-Ghee (clarified butter)! You are present in the cow milk.
देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्याम्। सं वपामि समाप ओषधीभिः समोषधयो रसेन। सꣳ रेवतीर्जगतीभिः पृच्यन्ताꣳ संमधुमतीर्मधुमतीभिः पृच्यन्ताम्॥
हे पिष्ट तण्डुल (पीसे गये चावल)! तुम्हें सम्यक् रूप से पात्र में रखता हूँ। सविता देवता की उपस्थिति में अश्विनी कुमारों की बाहुओं और पूषा देवता के हाथों से तुम्हें सम्मिश्रित करता हूँ। जल ओषधि रूप है, उस जल से मैं तुम्हें सम्मिश्रित करता हूँ। जल ओषधियों से मिश्रित हो जाय। मधुर जल का रस युक्त ओषधियों से परस्पर प्रीति युक्त सम्पर्क हो जाय।[यजुर्वेद 1.21]
सम्यक :: समुदाय, समूह, पूरा, सब, समस्त, उचित, उपयुक्त, ठीक, सही, मनोनुकूल, पूरी तरह से, सब प्रकार से, भली-भाँति, अच्छी तरह, properly, diligently.
Hey grinded rice! I keep you properly in a vessel diligently. I mix you in the arms of Ashwani Kumars, hands of Pusha Dev in the presence of Savita Dev. Water is like a medicien. I mix you in water. Sweet water should become mix-affectionate towards the medicine having sap-juices.
जनयत्यै त्वा संयौमीदमग्नेरिदमग्नीषोमयोरिषे त्वा घर्मोऽसि विश्वायुरुरुप्रथा उरु प्रथस्वोरु ते यज्ञपतिः प्रथतामग्निष्टे त्वचं मा हिꣳ सीद्देवस्त्वा सविता श्रपयतु वर्षिष्ठेऽधि नाके॥
हे पिसे हुए चावलों (जलपिष्टरूप पदार्थ)! मैं यजमान के प्रजोत्पादनार्थ (सन्तानोत्पत्ति के लिये) तुम्हें जल के साथ मिलाता हूँ। यह अग्नि का पुरोडाश है और अग्नि सोम का। हे आज्य (घृत)! इच्छित वर्षा के लिये मैं तुम्हें पात्र में रखकर अग्नि पर रखता हूँ। हे पुरोडाश! तुम दीप्यमान (प्रवर्ग्य) हो, तुम विश्वायु (सर्वायु) हो। हे पुरोडाश! तुम विस्तारक स्वभाव वाले हो, अतः पूर्णतया विस्तृत हो जाओ। तुम्हारा यजमान पुत्र, पशु आदि से विस्तृत हो। अग्नि तुम्हारे त्वचा सदृश ऊपरी भाग को न जला दे। हे पुरोडाश! सविता देवता द्युलोक में नाम वाली अग्नि से तुम्हें पकायें।[यजुर्वेद 1.22]
Hey grinded rice! I mix you in water so that the Ritviz is able to have progeny. This Purodas belong to Agni Dev and the other one to Som. Hey Ghee! I put in the pot and then place you over fire for rains. Hey Purodas! You are radiant and long lived, with the nature of extending. Your Ritviz son should progress with cattle-animals. Let Agni Dev avoid burning your skin-upper layer. Savita Dev should bake you in the heavens in fire.
मा भेर्मा संविक्था अतमेरुर्यज्ञोऽतमेरुर्यजमानस्य प्रजा भूयात् त्रिताय त्वा द्वितीय त्वैकताय त्वा॥
हे पुरोडाश! तुम भय मत करो, तुम चलायमान न होओ। यज्ञ हेतु पुरोडाश भस्माच्छादन से ग्लानि रहित रहे। इसी प्रकार यजमान के पुत्र-पौत्रादि भी ग्लानि रहित रहें अर्थात् यजमान की सन्तति को कभी दुःख न हो। हे प्रक्षालन जल! त्रित, द्वित और एकत संज्ञा वाले देवताओं के लिये मैं तुम्हें ग्रहण करता हूँ।[यजुर्वेद 1.23]
ग्लानि :: बेहोशी, ग्लानि, अवसाद, क्षीणता, किसी गलती या कुकर्म के लिए पछतावा या खेद महसूस करना, अनुचित काम करने पर लजानाअस्पष्टता; guilt, faintness.
Hey Purodas! You should move without fear. Purodas meant for Yagy should be guilt free. The sons and grandsons etc. should also be guilt free. The progeny of Ritviz should not experience pain-sorrow. Hey water meant for washing! I accept you for the demigods with single, double or triple titles.
देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्याम्। आददेऽध्वरकृतं देवेभ्य इन्द्रस्य बाहुरसि दक्षिणः सहस्त्रभृष्टिः शततेजा वायुरसि तिग्मतेजा द्विषतो वधः॥
हे स्फ्य (तलवार जैसी लकड़ी, जिससे वेदी खोदी जाती है)! सविता देवता की अनुज्ञा से मैं तुम्हें अश्विनी कुमारों की बाहुओं और पूषा के हाथों द्वारा ग्रहण करता हूँ। तुम देवताओं के निमित्त यज्ञ की वेदी बनाने वाली हो। है स्फ्य! तुम इन्द्र की दाहिनी भुजा हो, सैकड़ों शत्रुओं को मारने वाली हो। तुम सैकड़ों तेजों वाली अर्थात् अत्यन्त दैदीप्यमान हो। तुम वायु की भाँति तीक्ष्ण तेज वाली हो अर्थात् जैसे वायु अपनी तीव्रता से अग्नि की ज्वाला को बढ़ा देती है, वैसे ही यह स्फ्य अपने तेज से सैकड़ों असुर शत्रुओं का वध करती है।[यजुर्वेद 1.24]
Hey sharp tool meant for digging! I accept you for Ashwani Kumar's arms and Pusha Dev in his hands with the permission of Savita Dev. You prepare the Vedi-site for the demigods. You are the right hand of Indr Dev and slayer of hundreds of enemies. You possess hundreds of rays-brightness. You are sharp like air i.e., the way air increase the flames of fire this sharp tool kills hundreds of demons with its majesty.(08.03.2025)
पृथिवि देवयजन्योषध्यास्ते मूलं मा हिꣳसिषं व्रजं गच्छ गोष्ठानं वर्षतु ते द्यौर्बधान देव सवितः परमस्यां पृथिव्याꣳ शतेन पाशैर्योऽस्मान् द्वेष्टि यं च वयं द्विष्मस्तमतो मा मौक्॥
हे देवयजनि (देवों की यज्ञभूमि)! मैं तुम्हारी तृणरूपा औषधियों को ग्रहण करूँगा, उनका विनाश नहीं करूँगा। स्फ्य द्वारा खोदी हुई हे मृत्तिके! तुम गोशाला में जाओ। हे वेदिके! द्युलोक के अभिमानी देवता तुम पर जल की वर्षा करें। हे सविता देव! जो हमसे द्वेष करते हों और जिनसे हम द्वेष करते हों, उन शत्रुओं को भूमि के अन्तिम प्रदेश अर्थात् अन्धतामिस्त्र नरक में सैकड़ों पाशों से बाँधकर छोड़ दीजिये और कभी भी मुक्त न कीजियेगा।[यजुर्वेद 1.25]
Hey land of demigods! I will accept the medicines in the form of straw-herbs & will not damage-destroy them. Hey clay-mud digged by sharpened wood! Move to the cow shed. Hey Yagy Vedi! Let the egoistic demigods of heavens shower water over you. Hey Savita Dev! Those who are envious to us or we dislike them, should be thrown into Andhtamistr hell by tying them with hundred of cords and never release them.
अपाररुं पृथिव्यै देवयजनाद्वध्यासं व्रजं गच्छ गोष्ठानं वर्षतु ते द्यौर्बधान देव सवितः परमस्यां पृथिव्याꣳ शतेन पाशैर्योऽस्मान् द्वेष्टि यं च वयं द्विष्मस्तमतो मा मौक्। अररो दिवं मा पप्तो द्रप्सस्ते द्यां मा स्कन् व्रजं गच्छ गोष्ठानं वर्षतु ते द्यौर्बधान देव सवितः परमस्यां पृथिव्याꣳ शतेन पाशैर्योऽस्मान्द्वेष्टि यं च वयं द्विष्मस्तमतो मा मौक्॥
यज्ञ वेदी से हम असुरों को दूर हटाते हैं।[इस मन्त्र से हाथ में मिट्टी लेकर दूर प्रक्षेप करे।] हे मृत्तिके! तुम गोशाला में जाओ। हे वेदिके! द्युलोक के अभिमानी देवता तुम पर वर्षा करें। हे अररु! तुम द्युलोक न जाओ। हे सविता देव! जो हमसे द्वेष करता हो और जिससे हम द्वेष करते हों, उसे सैकड़ों बन्धनों से बाँधकर पृथ्वी के नीचे अन्धतामिस्त्र नामक नरक में डाल दो।[यजुर्वेद 1.26]
अररु :: दुश्मन, एक हथियार; weapon, enemy.
We keep off the demons from the Yagy Vedi. [Recite this Mantr and throw away the clay-mud.] Hey clay go to the cow shed. Hey Yagy Vedi! Egoistic demigods of heaven should shower rain over you. Hey enemy do not go to the heavens. Hey Savita Dev! Those who are envious to us or we dislike them, should be thrown into Andhtamistr hell by tying them with hundred of cords.
गायत्रेण त्वा छन्दसा परिगृह्णामि त्रैष्टुभेन त्वा छन्दसा परिगृह्णामि जागतेन त्वा छन्दसा परिगृह्णामि। सुक्ष्मा चासि शिवा चासि स्योना चासि सुषदा चास्यूर्जस्वती चासि पयस्वती च॥
(पूर्व दिशा की ओर बैठकर वेदी खोदने के लिये पश्चिम-दक्षिण-उत्तर में वेदी के आकार को बनाने वाली तीन रेखाओं को स्प्य से खींचते हुए कहे) हे विष्णो! मैं तुम्हें गायत्री छन्द के द्वारा ग्रहण करता हूँ। त्रिष्टुप् छन्द के द्वारा तुम्हें ग्रहण करता हूँ। जगती छन्द के द्वारा मैं तुम्हें ग्रहण करता हूँ। हे वेदि भूमे! तुम शोभना हो। तुम शान्त हो। तुम सुखस्वरूपा हो। तुम आनन्द से बैठने के योग्य हो। तुम अन्नवाली हो और तुम जलवाली हो।[यजुर्वेद 1.27]
Draw three lines in the east with sharpened wood for digging Vedi towards west, South, North and then say, hey Vishnu! I accept you with Gayatri Chhand. I accept you with Tristup Chhand. Hey land-site of the Vedi! You are glorious. You are quite, You are like comfort-pleasure. You deserve sitting with comfort. You possess food grains and water.
पुरा क्रूरस्य विसृपो विरप्शिन्नुदादाय पृथिवीं जीवदानुम्। यामैरयँश्चन्द्रमसि स्वधाभिस्तामु धीरासो अनुदिश्य यजन्ते। प्रोक्षणीरासादय द्विषतो वधोऽसि॥
हे महान् विष्णो! पूर्वकाल में देवासुर संग्राम छिड़ने के पहले देवों ने जीवन दान देने वाली पृथ्वी को उठाकर स्वधाओं के द्वारा चन्द्रमा के प्रति प्रेरित किया था (चन्द्रमा में धर दिया था कि असुर उसे हानि न पहुँचा सकें)। उसी यजन योग्य एवं चन्द्र स्थिता पृथ्वी को उद्देश्य करके आज भी बुद्धिमान् ऋत्विज देवों का यजन करते हैं। हे अग्नीध्र! तुम प्रोक्षण करने के जलों को वेदी पर धरो। हे स्फ्य! तुम शत्रु का वध करो।[यजुर्वेद 1.28]
अग्नीध्र :: यज्ञ में अग्नि की रक्षा करने वाला पुजारी-ऋत्विज, स्वायंभुव मनु के पुत्र और राजा का नाम, मनु के पुत्र राजा प्रियव्रत का बेटा, अग्नि से संबंधित, अग्नि प्रज्वलित करने वाला पुजारी, वह स्थान जहां यज्ञ की अग्नि प्रज्वलित की जाती है, यज्ञ की अग्नि में घी आदि डालकर उसे प्रज्वलित करना या उत्तेजित करना।
Hey great Vishnu! In ancient times prior to the war between demigods & demons; demigods lifted earth with woods and moved her towards Moon so that demons could not harm her. The intelligent Ritviz worship demigods for the sake of worshipable earth present over the Moon. Hey Agnidhr! Place water vessel over the Vedi for sprinkling. Hey Safy-sharpened wood! Kill the enemy.
प्रत्युष्टंꣳ रक्षः प्रत्युष्टा अरातयो निष्टप्तꣳ रक्षो निष्टप्ता अरातयः। अनिशितोऽसि सपत्नक्षिद्वाजिनं त्वा वाजेध्यायै सम्माज्मि। प्रत्युष्टꣳ रक्षः प्रत्युष्टा अरातयो निष्टप्तꣳ रक्षो निष्टप्ता अरातयः। अनिशिताऽसि सपत्नक्षिद्वाजिनीं त्वा वाजेध्यायै सम्माज्मि॥
(स्त्रुवा को उठाकर तपाते हुए) राक्षस प्रतिदग्ध हुए। अदाता-जन प्रतिदग्ध हुए। राक्षस नितान्त तप्त हुए। अदाता नितान्त तप्त हुए। हे स्रुक! तुम यद्यपि तीक्ष्णीकृत नहीं हो तथापि शत्रु का छेदन करने वाले हो। हविरन्नवान्! तुम्हें यज्ञ की दीप्ति के निमित्त मैं शुद्ध करता हूँ। हे जुहू! राक्षस प्रतिदग्ध हुए। अदाता प्रतिदग्ध हुए। राक्षस नितान्त तप्त हुए। अदाता नितान्त तप्त हुए। हे जुहू! यद्यपि तुम तीक्ष्णीकृता नहीं हो तथापि शत्रु को छेदने वाली हो। हविरन्नवती! तुम्हें यज्ञ की प्रदीप्ति के लिये मैं परिशुद्ध करता हूँ। (जुहू को तपाना)।[यजुर्वेद 1.29]
The demons were burnt while heating the spoon-Struva. Those who do not donate too were burnt. Demons were badly hurt-burnt. Non donors too, were hurt. Hey Struk! Though you are not sharp yet you pierce the enemy. Hey possessor of Havi-oblations! I sanctify you for the radiance of Yagy. Hey butea-wood! Demons and non donors were badly burnt-hurt. Hey Juhu! Though you are not sharp yet you pierce. Hey possessor of oblations! I sanctify you for the illumination of the Yagy by heating the Juhu.
अदित्यै रास्नासि विष्णोर्वेष्पोऽस्यूर्जे त्वाऽदब्धेन त्वा चक्षुषावपश्यामि। अग्नेजिह्वासि सुहूर्देवेभ्यो धाम्ने धाम्ने मे भव यजुषे यजुषे॥
(मूँज की त्रिवृता रस्सी से गार्हपत्याग्नि के दक्षिण भाग में बैठी हुई यजमान पत्नी को बाँधना) हे रज्जु! तुम पृथ्वी की बन्धिका रस्सी हो। हे दक्षिणपाश! तुम यज्ञ में व्यापनशील हो। हे आज्य! तुम्हें अन्न प्राप्त करने के लिये अहिंसक चक्षु से देखता हूँ। हे आज्य! तुम अग्नि की जिह्वा हो। तुम देवों के लिये सुष्ठु द्योतक हो। हे आज्य! तुम मुझे यज्ञ के निमित्त स्थान-स्थान में प्राप्त होओ। तुम मुझे यज्ञ-यज्ञ में प्राप्त होओ।[यजुर्वेद 1.30]
सुष्ठु :: अतिशय, अत्यंत, अच्छी तरह, भली भाँति, elegant, in a proper manner.
Wife of the host is tied with the cord made of Munj-grass. Hey cord! You are meant for tying the earth. Hey other end of cord! You should pervade the Yagy. Hey Ajy-Ghee! I look at you for having food grains with harmless-non violent eyes. Hey Ghee! You are the tongue of Agni. You are elegant for the demigods. Hey Ajy! I should have you in the Yagy at all sites-places. I should have you in all Yagy.
सवितुस्त्वा प्रसव उत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभिः। सवितुर्वः प्रसव उत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभिः। तेजोऽसि शुक्रमस्यमृतमसि धाम नामासि प्रियं देवानामनाधृष्टं देवयजनमसि॥
हे आज्य! सविता देव की अनुज्ञा से मैं तुम्हें अच्छिद्र पावन पवन तथा सूर्य की रश्मियों से पवित्र करता हूँ। हे प्रोक्षण जलों! सविता देव की अनुज्ञा से मैं तुम्हें छिद्र रहित पवित्रकारी पवन तथा सूर्य की रश्मियों के द्वारा पवित्र करता हूँ। (घृत को देखना) हे घृत! तुम तेज हो। बलवीर्य हो। तुम अमृत हो। तुम सबकी चित्तवृत्ति को धारण करने वाले स्थान हो। तुमको देखकर सभी लोग नमन करते हैं। देवों के प्रिय तुम यज्ञ का र्निविघ्न साधन हो।[यजुर्वेद 1.31]
Hey Ajy! I purify-sanctify you with the permission of Savita Dev, pious air and the rays of Sun. Hey water for sprinkling! With the permission of Savita Dev, I purify you with the purifying air and the rays of Sun. (Look at the Ghee.) Hey Ghee! You are fast, strong, nectar-elixir. You attract the mind-innerself of everyone. Everyone salute, bow before you. Loved by the demigods, you are means for conducting Yagy without disruption.(09.03.2025)
यजुर्वेद संहिता, द्वितीय अध्याय :: ऋषि :- परमेष्ठी, प्रजापति, देवत्व, वामदेव, देवता :- यज्ञ, अग्नि, विष्णु, इन्द्र, द्यु और पृथ्वी, सविता, बृहस्पति, अग्नि और सोम, इन्द्राग्नि, मित्र और वरुण, विश्वेदेव, अग्नि और वायु, अग्नि और सरस्वती, प्रजापति, त्वष्टा, ईश्वर (परमेश्वर), पितर, आप; छन्द :- पंक्ति, जगती, त्रिष्टुप्, गायत्री, बृहती, अनुष्टुप्, उष्णिक्।
कृष्णोऽस्याखरेष्ठोऽग्नये त्वा जुष्टं प्रोक्षामि वेदिरसि बर्हिषे त्वा जुष्टां प्रोक्षामि बर्हिरसि स्रुग्भ्यस्त्वा जुष्टं प्रोक्षामि॥
(यज्ञीय समिधा को जल से प्रोक्षित करते हुए बोलें) हे यज्ञ-सम्बन्धी कर्म में प्रयोग की जाने वाली समिधाओ! यज्ञ हेतु हम आपको पावन करते हैं। तुम कृष्ण मृग रूप हो और तुम कठोर वृक्ष पर रहती हो। (वेदी पर जल छिड़कते हुए बोलें) हे यज्ञ की वेदी! तुम सब कुछ लाभ करने वाली हो। हमारे द्वारा किया गया यज्ञ सफल हो, इसके निमित्त हम तुम्हें कुशों से पावन करते हैं। हे बर्हि (कुशाओं)! तुम खुवाओं के प्रीति भाजन हो, हम तुम्हें भी पावन करते हैं।[यजुर्वेद 2.1]
खुवा :: दुग्ध उत्पाद; dairy product.
Sprinkle water over the wood-Samidha meant for the Yagy and say, hey wood meant for the Yagy! We sanctify you for the Yagy. You are like blackbuck residing over hard tree. Sprinkle water over the Yagy Vedi and say, hey Yagy Vedi! You grant all sorts of profits-benefits. Let the Yagy performed by us should become successful. We sanctify you with Kush, for success of Yagy. Hey Kush! You have affinity for milk-dairy products. We sanctify you as well.
अदित्यै व्युन्दनमसि विष्णो स्तुपोस्यूर्णम्प्रदसं त्वा स्तृणामि स्वासस्थां देवेभ्यो भुवपतये स्वाहा भुवनपतये स्वाहा भूतानां पतये स्वाहा॥
हे यज्ञ के अवशेष जल! यज्ञ, धरती एवं विभिन्न ओषधि के गुण से सम्पन्न पदार्थों को आप सिंचित करने वाले हैं। हे कुश समूह! आप यज्ञ के शिखारूप हैं। देवताओं हेतु ऊन के समान कोमल आसन के रूप में आपको फैलाते हैं। (होम करते समय वेदी के बाहर गिरे हुए हवि का स्पर्श करते हुए बोले) अग्नि के प्रथम भ्राता भुवपति के लिये यह आहुति है, अग्नि के दूसरे भाई भुवनपति के लिये ये आहुति है। अग्नि के तीसरे भाई भूतपति के लिये ये आहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 2.2]
Hey residual water of the Yagy! You saturate the goods having characterises of Yagy, earth and different. Hey Kush in group! We spread you for the demigods like a woollen cushion. Touch the offering-oblations spreaded out side the Yadi and say, this offerings is made for the first brother of Agni Dev Bhuvpati, second brother Bhvanpati and the third brother Bhutpati.
गन्धर्वस्त्वा विश्वावसुः परिदधातु विश्वस्यारिष्ट्यै यजमानस्य परिधिरस्यग्निरिड ईडितः। इन्द्रस्य बाहुरसि दक्षिणो विश्वस्यारिष्टट्यै यजमानस्य परिधिरस्यग्निरिड ईडितः। मित्रावरुणौ त्वोत्तरतः परिधत्तां ध्रुवेण धर्मणा विश्वस्यारिष्टयै यजमानस्य परिधिरस्यग्निरिड इंडितः॥
जगत् के सम्पूर्ण अनिष्टों को दूर करने हेतु हम अग्नि की आराधना करते हैं। (पहली परिधि) आप यजमानों की रक्षा करनेवाली हैं, विश्वावसु गंधर्व आपको चारों दिशाओं से सँभालें। (दूसरी परिधि) आप यजमानों के संरक्षक देवेन्द्र की दाहिनी भुजा है, आपको दक्षिण दिशा में स्थापित करता हूँ। आप यजमान की रक्षा करें। (तीसरी परिधि) हे उत्तर परिधि! मित्र और वरुण देव तुम्हें उत्तर दिशा में स्थापित करें। तुम यजमान की रक्षा करो।[यजुर्वेद 2.3]
We worship Agni Dev for the rectification of all evils, troubles. First circumcircle protects the Ritviz-host, let Vishwa Vasu Gandarbh support them from all sided-directions. Second circumcircle is the right hand of patron of Ritviz-hosts Devendr-Indr Dev. I establish you in the South direction. Protect the hosts. Hey Northern circumcircle! Let Mitr & Varun Dev establish you in North for the protection of Ritviz.
वीतिहोत्रं त्वा कवे द्युमन्तꣳ समिधीमहि। अग्ने बृहन्तमध्वरे॥
(अग्नि में समिधा डालते हुए बोले) हे भूत-भविष्य को जानने वाले आहवनीय अग्नि देव! यज्ञ में देवताओं को हवि प्रदान करने के लिये हम आप महान् एवं प्रकाशमान् अग्नि को प्रदीप्त करते हैं।[यजुर्वेद 2.4]
Put Samidha in fire and say, hey invocable Agni Dev aware of the past and future! For making oblations to the demigods-deities in the Yagy, we ignite-invoke great, illuminated you.
समिदसि सूर्यस्त्वा पुरस्तात् पातु कस्याश्चिदभिशस्त्यै। सवितुर्बाहू स्थ ऊर्णम्प्रदसं त्वा स्तृणामि स्वासस्थं देवेभ्य आ त्वा वसवो रुद्रा आदित्याः सदन्तु॥
(पुनः समिधा डालते हुए बोलें) हे समिधे! आप समिधा है, आप अग्नि को प्रज्वलित करने वाली हैं। सविता देव अपनी रश्मियों द्वारा आपकी सुरक्षा करें। हे तृण युगल (कुशाद्वय)! आप दोनों सविता देव के बाहु स्वरूप हो। ऊन से निर्मित कोमल आसन के रूप में देवों के सुख से ऊँचे स्थान पर विराजमान होने के निमित्त आपको बिछाते हैं। हे दर्भासन! वसुगण, मरुद्गण एवं रुद्रगण, ये तीनों अभिमानी देवता आपके ऊपर प्रतिष्ठित हों।[यजुर्वेद 2.5]
Again put Samidha ( in Yagy Kund-pit) and say, Hey Samidha! You ignite-invoke Agni Dev. Let Savita Dev protect you with his rays. Hey twin Kush! You are like the arms of Savita Dev. We spread you for the demigods-deities at an elevated place like the cushion of wool. Hey cushion made of Kush! Let the three egoistic demigods viz Vasu Gan, Marud Gan and Rudr Gan sit over you.
घृताच्यसि जुहूर्नाम्ना सेदं प्रियेण धाम्ना प्रियꣳ सद आसीद घृताच्यस्युपभृन्नाम्ना सेदं प्रियेण धाम्ना प्रियꣳ सद आसीद घृताच्यसि ध्रुवा नाम्ना सेदं प्रियेण धाम्ना प्रियꣳ सद आसीद प्रियेण धाम्ना प्रियꣳ सद आसीद। ध्रुवा असदन्नृतस्य योनौ ता विष्णो पाहि पाहि यज्ञं पाहि यज्ञपतिं पाहि मां यज्ञन्यम्॥
(वेदी के ऊपर जुहू रखते हुए बोलें) हे जुहू! आप जुहू के नाम से प्रसिद्ध हैं। आप स्वयं के प्रिय घृत से सिंचित होकर घृत प्रदान करने वाली होकर इस यज्ञ शाला में प्रतिष्ठित हों। हे उपभृत! आप उपभृत के नाम से प्रसिद्ध हैं। आप घृत से सम्पन्न होकर अपने प्रिय घृत से पूर्ण होकर यज्ञ-स्थान पर प्रतिष्ठित हों। हे ध्रुवे! तुम तीसरी खुवा हो, तुम्हारा नाम ध्रुवा है। देवों के प्रिय घृत को अपने में धारण कर तुम इस दर्भासन पर विराजमान होओ। (दर्भासन पर रखी हवि का स्पर्श करके बोले) हे हवि ! तुम देवों प्रिय तेज घी को अपने में स्थित कर दर्भासन पर स्थित होओ। हे यज्ञशाला पर स्थापित होने वाले विष्णु देव! आप यज्ञ-स्थान पर प्रतिष्ठित सारे संसाधनों, उपकरणों, याज्ञिकों तथा हमारे यज्ञ के संचालनकर्ता की सुरक्षा करें। आप असुरों से हवि की रक्षा करो, यज्ञ की रक्षा करो, यज्ञपति की रक्षा करो, मेरी रक्षा करो।[यजुर्वेद 2.6]
Keep Juhu over the Yagy Vedi and say, hey Juhu! You are famous by the name of Juhu. You should be saturated with Ghee and established in the Yagy Shala-site. Hey Upbhrat-subservient! You are famous by the name of Upbhrat. You should be filled with Ghee and established in the Yagy. Hey Dhruve! You are the third dairy product and called Dhruva. Hold the Ghee dear to demigods and establish over the Kush cushion. Touch the oblation kept over the Kush cushion and say, hey oblation-Havi! Establish your self over Kush cushion, being saturated with Ghee dear to the demigods. Hey Vishnu Dev! Established your self in the Yagy Shala to protect every equipment, Yagyik and the person organising the Yagy. Protect the offerings from demons, the Yagy, Yagy Pati and me.
जुहू :: पलाश की लकड़ी का बना हुआ एक प्रकार का अर्ध चंद्राकार यज्ञ-पात्र जो पूर्व दिशा में रखा जाता है, अर्धचंद्राकार लकड़ी का एक बर्तन भी होता है, इसका इस्तेमाल अग्नि में घी डालने के लिए किया जाता है; wooden pot like Lunar crest, used for putting Ghee in fire, a pot made of Butea wood used in Yagy performances, kept near the Yagy Vedi in the east.
उपभृत :: पास लाया हुआ, subservient, Procured for, brought near.(10.03.2025)
अग्ने वाजजिद्वाजं त्वा सरिष्यन्तं वाजजितꣳ सम्मार्ज्मि।
नमो देवेभ्यः स्वधा पितृभ्यः सुयमे मे भूयास्तम्॥
हे अग्नि देव! आप अन्न प्रदान करने वाले हैं। आप अन्न-प्राप्ति के माध्यम एवं पुरुषार्थ प्रदान करने वाले हैं। यज्ञ के निमित्त हम आपको शोधित करते हैं। दक्षिण की ओर हाथ जोड़कर बोले, देवतागण तथा पितृगण हमारे सहायक बनें। इसके निमित्त हम उन्हें अन्न प्रदान करके नमस्कार करते हैं। आप सदैव हमारी सहायता करें।[यजुर्वेद 2.7]
Hey Agni Dev! You are food grains provider. You grant strength and medium for having food grains. We sanctify you for the Yagy. Facing South fold hands and ask-request the demigods-deities and Pitr-Manes to be helpful. For this we offer them food grains & salute them. You should always be helpful to us.
अस्कन्नमद्य देवेभ्य आज्यꣳ संभ्रियासमङ्घ्रिणा विष्णो मा त्वावक्रमिषं वसुमतीमग्ने ते च्छायामुपस्थेषं विष्णो स्थानमसीत इन्द्रो वीर्यमकृणोदूर्धोऽध्वर आस्थात्॥
मैं छिटक कर इधर-उधर गिरे हवि को पुनः देवों के लिये इकट्ठा करता हूँ। हे यज्ञ देवता! मैं आपको भूलकर भी पैर से न स्पर्श करूँ। हे अग्नि देव! मैं आपकी धनमयी छाया का आश्रय लेता हूँ। हे यज्ञ स्थान! तुम विष्णु का स्थान हो, यहीं से इन्द्र ने शत्रुवधरूप वीरतापूर्ण कार्य किया था। इन्द्र के पराक्रम से ही यह यज्ञ कार्य हो सका।[यजुर्वेद 2.8]
छिटकना :: दूर भागना, अलग हो जाना; spattering, ricochet.
I collect the scattered offerings for the demigods again. Hey deity of Yagy! I should not touch you with foot even unknowingly. Hey Agni Dev! I take shelter under your wealthy shadow. Hey Yagy site-Vedi! You are the seat-place of Bhagwan Shri Hari Vishnu. Indr Dev performed the bravery acts of killing enemies. Valour of Indr Dev led to the conduction of the Yagy.
अग्ने वेर्होत्रं वेर्दूत्यमवतां त्वां द्यावापृथिवी अव त्वं द्यावापृथिवी स्विष्टकृद्देवेभ्य इन्द्र आज्येन हविषा भूत्स्वाहा सं ज्योतिषा ज्योतिः॥
हे अग्ने! यज्ञ कार्य की विधि तथा व्यवस्था से आप अच्छी तरह से परिचित हों। आप देवशक्तियों तक हवि-भाग पहुँचाने का काम करते हैं, स्वर्गलोक एवं भूलोक आपकी सुरक्षा करें। घृत और हवि से प्रसन्न इन्द्र देव के लिये यज्ञ को पूर्ण करें। इन्द्र के लिये ये आहुति समर्पित है। ज्योति (घृत) से ज्योति (अग्नि) मिलकर एक हो जायँ।[यजुर्वेद 2.9]
Hey Agne! You are well versed with the procedure and management of Yagy. You pass on the offerings to divine powers. Let heavens & earth protect you. Complete the Yagy with Ghee and oblations for Indr Dev. These offerings are devoted to Indr Dev. Let Ghee and fire become one.
मयीदमिन्द्र इन्द्रियं दधात्वस्मान् रायो मघवानः सचन्ताम्। अस्माकꣳ सन्त्वाशिषः सत्या नः सन्त्वाशिष उपहूता पृथिवी मातोप मां पृथिवी माता ह्वयतामग्निराग्नीध्रात् स्वाहा॥
प्रधानयाग के बाद बचे हुए पुरोडाश का भक्षण करते हुए यजमान बोलें, देवेन्द्र मुझ में इस पुरोडाश के भक्षण से इन्द्रिय बल धारण करायें। इन्द्र देव हमें धन प्रदान करें। हमारी इच्छाएँ पूर्ण हों। मैं पृथ्वीमाता को पुकारूँ, पृथ्वी माता मुझे पुकारें। अग्नीध्र क्रम से मैं अग्नि स्वरूप होकर हविशेष का भक्षण करूँ।[यजुर्वेद 2.10]
When the main function of Yagy is over Ritviz-Yajman should eat the left over Purodas and say, "Indr Dev should enhance-increase my strength by eating of this Purodas". Let Indr Dev grant us wealth-money. Our desires should be accomplish. I should call mother earth and she should respond me. Priest protecting the Yagy should be a figure-form of Agni Dev and eat the remaining offerings.
उपहूतो द्यौष्पितोप मां द्यौष्पिता ह्वयतामग्निराग्नीध्रात् स्वाहा। देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्याम् प्रतिगृह्णाम्यग्नेष्ट्वास्येन प्राश्नामि॥
स्वर्गलोक के पालक सविता देव का हमने (अर्ध्वयु ने) आवाहन किया है। अतएव स्वर्ग लोक के प्रभु यज्ञ के अवशेष को अंगीकार करने की हमें आज्ञा प्रदान करें। अग्नि की अनुकूलता से हम यज्ञावशेष को अंगीकार करते हैं। यह हवि रूप यज्ञावशेष हमारी प्रगति करने वाला बने। सविता देवता की प्रेरणा से, अश्विनी कुमार के बाहुद्वय तथा पूषादेव के दोनों हाथों की सहायता से इस यज्ञावशेष अन्न का मैं भक्षण करता हूँ। हे हवि शेष! अग्निदे वता के मुख से मैं तुम्हारा भक्षण करता हूँ।[यजुर्वेद 2.11]
We the Ardharvyu-priest, have invoked Savita Dev. The Lord of heavens should allow us to take the left over of the Yagy. Due to the favour of Agni Dev we accept the remains of the Yagy. Let the left over of the Yagy become helpful in our progress. I eat the remains-remining offerings of the Yagy with the inspiration of Savita Dev and eat it through the both hands of Ashwani Kumars and Push Dev. Hey left over offerings of the Yagy! I eat the offering with the mouth of Agni Dev.
एतं ते देव सवितर्यज्ञं प्राहुर्वृहस्पतये ब्रह्मणे। तेन यज्ञमव तेन यज्ञपतिं तेन मामव॥
ऋत्विज बोले, हे प्रकाशमान् सविता देव! इस किये जाने वाले यज्ञ को यजमान तुम्हारे लिये कर रहे हैं। वृहस्पति और ब्रह्मा के लिये कर रहे हैं। हे सविता देव! आप इस यज्ञ की रक्षा करें, यज्ञपति की रक्षा करो, मेरी रक्षा करो।[यजुर्वेद 2.12]
The Ritviz said, hey aurous Savita Dev! The Yajman are conducting the Yagy for you, Brahaspati and Brahma Ji. Hey Savita Dev! Protect this Yagy, Yagy Pati and me.
मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ समिमं दधातु।
विश्वे देवास इह मादयन्तामो ३म्प्रतिष्ठ॥
मन के वेग वाले सविता इस आहुत घृत को सेवन करें। बृहस्पतिदेव इस हमारे यज्ञ को अहिंसित रखकर पूरा करें। वे इस हमारे यज्ञ को स्वयं धारण करें। इस यज्ञ में विश्वे देव आनन्दित हों। वे सब देव यज्ञ को सफल होने का आशीर्वाद दें।[यजुर्वेद 2.13]
Savita Dev having the speed of Mind-innerself should consume this offering of Ghee. Let Brahaspati should keep our Yagy free from violence. He should support our Yagy. Let Vishwe Dev should enjoy this Yagy. All these demigods-deities should bless us for the success of this Yagy.
एषा ते अग्ने समित्तया वर्धस्व चा च प्यायस्व। वर्धिषीमहि च वयमा च प्यासिषीमहि। अग्ने वाजजिद्वाजं त्वा ससृवाꣳ सं वाजजित सम्माज्मि॥
हे अग्नि देव! आप दीप्तिमान् हों, इसके निमित्त यह समिधा है। इस समिधा के द्वारा आप वृद्धि को प्राप्त करें। हम यजमानादि की अभिवृद्धि करें। (याजकगण) आपको प्रज्वलित करते हुए स्वयं की भी वृद्धि की अभिलाषा करते हैं। हे अन्न को जीतने वाले अग्नि देव! अन्न प्राप्ति के उद्देश्य से हम आपको जल से अभिषिक्त करते हैं।[यजुर्वेद 2.14]
Hey Agni Dev! You should illuminate with this Samidha-wood. You should progress with this Samidha. We should flourish the Yajman and others. The Ritviz attain growth by igniting you. Hey winner of Yagy Agni Dev! We sanctify you with water for the sake of food grains.(11.03.2025)
अग्नीषोमयोरुज्ञ्जितिमनूज्जेषं वाजस्य मा प्रसवेन प्रोहामि। अग्नीषोमौ तमपनुदतां योऽस्मान् द्वेष्टि यं च वयं द्विष्मो वाजस्यैनं प्रसवेनापोहामि। इन्द्राग्न्योरुज्जितिमनूज्जेषं वाजस्य मा प्रसवेन प्रोहामि। इन्द्राग्नी तमपनुदतां योऽस्मान् द्वेष्टि यं च वयं द्विष्मो वाजस्यैनं प्रसवेनापोहामि॥
जुहू को पूर्व दिशा की हटाते हुए यजमान बोले, अग्नि और सोम की सहायता से मैं उनकी भाँति स्वर्ग की विजय करूँ अर्थात् स्वर्गलोक प्राप्त करूँ। जो शत्रु असुरादि यज्ञ को नष्ट करने हेतु हमसे विद्वेष करते हैं तथा जिन अनुष्ठानावरोधी शत्रु से हम सभी विद्वेष करते हैं, उन्हें अग्नि देव तथा सोम देव विनष्ट कर दें। उपभृत् को पश्चिम दिशा में रखकर यजमान बोले, अन्न की आहुति द्वारा हम उसी प्रकार स्वर्ग की विजय प्राप्त करें, जिस प्रकार की विजय देवेन्द्र तथा अग्नि देव ने प्राप्त की है। जो हमसे विद्वेष की भावना रखते हैं तथा जिनसे हम विद्वेष करते हैं, उन सभी को इन्द्र देव तथा अग्नि देव विनष्ट कर दें। हम हविष्यान्न की आहुति से रिपुओं को दूर हटाते हैं।[यजुर्वेद 2.15]
उपभृत् :: यज्ञों में प्रयुक्त होने वाला गोल प्याला; a cup of a round shape used in sacrifice.
The Yajman should move the Juhu towards East and say, "I should attain heavens with the help of Agni & Som". Agni Dev & Som Dev should destroy the enemies, demons and those who are envious to Yagy. The Yajman should keep Upbhrat in the West and say, "we should attain heaven by making offerings of food grains like Indr Dev & Agni Dev". Those who are envious to us should be vanished by Indr Dev & Agni Dev. By making offerings of food grains we repel the enemies away from us.
वसुभ्यस्त्वा रुद्रेभ्यस्त्वाऽऽदित्येभ्यस्त्वा संजानाथां द्यावापृथिवी मित्रावरुणौ त्वा वृष्ट्यावताम्। व्यन्तु वयोक्तꣳ रिहाणा मरुतां पृषतीर्गच्छ वशा पृश्निर्भूत्वा दिवं गच्छ ततो नो वृष्टिमावह। चक्षुष्पा अग्नेऽसि चक्षुर्मे पाहि॥
पश्चिम, उत्तर, दक्षिण की परिधि पर जुहू से घृत डालते हुए यजमान बोले, हे पश्चिम परिधि! वसुओं की प्रीति के लिये हम आपको घी से सिक्त करते हैं। हे दक्षिण परिधि! रुद्र देवता की प्रीति के लिए हम आपको घृत से सिक्त करते हैं। हे उत्तर परिधि! आदित्य देवताओं को प्रीति के लिए हम आपको घृत से सिक्त करते हैं। ये तीनों परिधियाँ क्रमानुसार वसु को रुद्र को तथा आदित्य को समर्पित की जाती हैं। इस तथ्य को स्वर्गलोक तथा भूलोक की शक्तियाँ भली प्रकार जानें। मित्रा-वरुण देवता जल वर्षा से उनकी सुरक्षा करें। घृत से परिपूर्ण हविष्यान्न का आस्वादन लेते हुए पक्षी मरुद्गणों का अनुगमन करते हुए स्वतन्त्र रश्मियों में परिवर्तित होकर स्वर्ग लोक में पहुँचें। वहाँ से वृष्टि लेकर आयें। हे अग्नि देवता! आप चक्षुओं की रक्षा करने वाले तेजोरूप हैं, अतः आप हमारे चक्षुओं की भी रक्षा करें।[यजुर्वेद 2.16]
परिधि :: घेरा, कक्ष्या, पेटी, परिणाह, किसी आकृति का घेरा, मंडल; circumference, perimeter, girth.
Yajman should pour Ghee over the West, North, South girth and say, "hey West girth! We offer Ghee to you for the affection of Vasu Gan. Hey South girth! We offer Ghee to you for the sake of Rudr Gan. Hey North girth! We offer Ghee to you for the love of Adity Gan. Let this be known to the powers of heavens and the earth. Mitr & Varun Dev protect them from rains. Birds should enjoy the offerings of food grains, follow Marud Gan, convert them into rays and reach heavens. Bring rains from there. Hey Agni Dev! You are a form of energy which protect eyes and hence save our eyes as well.
यं परिधिं पर्यधत्था अग्ने देव पणिभिर्गुह्यमानः। तं त एतमनु जोषं भराम्येष नेत्त्वदपचेतयाता अग्नेः प्रियं पाथोऽपीतम्॥
हे प्रकाशमान् आहवनीय यज्ञाग्ने! आपके द्वारा 'पणि' नामक असुरों के उपद्रवों से बचाव हेतु जो परिधि चारों ओर निर्मित की गयी है, उसे आपके अनुरूप बनाते हैं, ताकि यह परिधि आपसे दूर न हो। यह प्रिय हव्य आपको प्राप्त हो।[यजुर्वेद 2.17]
Hey luminous invocable fire of the Yagy! Girth has been created in all direction for protection from disturbances by the demons named Pani, as per your directions, so that it remains away from you. Let this tasty offering be enjoyed-eaten by you.
सꣳ स्त्रवभागा स्थेषा बृहन्तः प्रस्तरेष्ठाः परिधेयाश्च देवाः। इमां वाचमभि विश्वे गृणन्त आसद्यास्मिन् बर्हिषि मादयध्वꣳ स्वाहा वाट्॥
हे विश्वेदेवो! आप आहुति देते समय छिटककर बाहर गिरे हुए हविभाग वाले हो। आप अपनी परिधि (मर्यादा) के अवलम्बन में रहें। अपने आसन पर विराजमान होकर ही मधुरता से युक्त रस से परिपूर्ण अन्न भाग का भक्षण करके परिपुष्ट हों तथा हर्षित हों। विश्वेदेवों के लिये यह प्रत्यक्ष आहुति है।[यजुर्वेद 2.18]
Hey Vishwe Dev! You should be entitled to the offerings which scatter while making offerings. You should remain in your limits. You should occupy your seat and enjoy the sweetened offerings having juices, be nourished & happy. This visible offering is for the Vishwe Dev.
घृताची स्थो धुर्यो पातꣳ सुम्ने स्थः सुम्ने मा धत्तम्। यज्ञ नमश्च तऽउप च यज्ञस्य शिवे संतिष्ठस्व स्विष्टे मे संतिष्ठस्व॥
हे जुहू एवं उपभृत! आप दोनों घृत से युक्त तथा घृत को प्राप्त करने वाले हों। हे शकट वाहक! आप धुरा में नियुक्त किये गये (जुहू तथा उपभृत को घृत युक्त करें) बैलों की सुरक्षा करें। हे यज्ञ वेदी! यह हव्य-पदार्थ आपके निकट लाया गया है। आप सुखरूप हैं। अतएव यज्ञार्थ हमारे इष्ट के रूप में हमें सुख प्रदान करते हुए प्रतिष्ठित हों।[यजुर्वेद 2.19]
Hey Juhu & Upbhrat! You should be filled with Ghee. Hey cart carrier! You have been deployed in the axle, to protect the bulls. Hey Yagy Vedi! This oblation has been brought near you. You are like comfort & pleasure. Hence, you should be established in the Yagy like our cherished deity.(12.03.2025)
अग्नेऽदब्धायोऽशीतम पाहि मा दिद्योः पाहि प्रसित्यै पाहि दुरिष्ट्यै पाहि दुरद्मन्या अविषं नः पितुं कृणु। सुषदा योनौ स्वाहा वाडग्नये संवेशपतये स्वाहा सरस्वत्यै यशोभगिन्यै स्वाहा॥
हे अहिंसक अग्नि देव! आप हमारी विद्युत् और वज्रपात से रक्षा करें। आप हमारी मृत्यु-बन्धन से रक्षा करें। आप हमारी अभिचार वाले यज्ञों से रक्षा करें। आप हमारी तामसी भोजन से रक्षा करें। हे अग्नि देव! आप हमारे अन्न को विष रहित करें। हे अग्नि देव! हम अपने घर में सुख तथा प्रसन्नतापूर्वक निवास करें, इसके निमित्त हम यह हवि अर्पित करते हैं। यह हवि अग्नि देव के लिये है। यह आहुति पति-पत्नी के अधिदेवता के लिये है। यश की बहन देवी सरस्वती के निमित्त यह हवि समर्पित है।[यजुर्वेद 2.20]
अभिचार :: बुरे काम के लिए मंत्र का प्रयोग, झाड़-फूँक, जादू टोना, अनुष्ठान; incantation
Hey non volent Agni Dev! protect us from lightening & Vajr. Protect us from death. Protect us from the Yagy aimed at harming us. Make our food free from poison. Hey Agni Dev! We are making this offering to you so that we can live happily in our house. This Havi-oblation is meant for Agni Dev. This oblation is for the cherished deity of husband & wife. This offering is for Devi Saraswati, sister if Yash.
वेदोऽसि येन त्वं देव वेद देवभ्यो वेदोऽभवस्तेन मह्यं वेदो भूयाः। देवा गातुविदो गातुं वित्त्वा गातुमित। मनसस्पत इमं देव यज्ञꣳ स्वाहा वाते धाः॥
यजमान की पत्नी कुशों को मुट्ठी में लेकर बोले, हे दर्भमुष्टि! आप सब कुछ जानने वाले हैं। जिस प्रकार आपने देवताओं को विवेकवान् बनाया, उसी प्रकार आप हमें भी ज्ञान से परिपूर्ण करें। हे मार्ग प्रशस्त करने वाले देवताओ! श्रेष्ठ मार्ग के विषय में भली-भाँति जानकर आप सत्य मार्ग पर अग्रसर हों। हे मन के प्रवर्तक चन्द्र देव! यह आहुति आपको अर्पित करते हैं, आप इसे वायु के द्वारा विस्तारित करें।[यजुर्वेद 2.21]
प्रवर्तक :: प्रणेता, जनक, उत्प्रेरक, क्रियावर्द्धक, क्रियात्मक, चालू करने वाला, संवर्धक; originator, promoters, activator.
Let wife of Yajman hold Kush in her fist and say, "Hey Darbh Musti (Fist holding Kush grass)! You are aware of everything. They way you made the demigods prudent, grant us enlightenment to us as well. Hey demigods paving the path-way! You should follow the path of truth. Hey mind inspiring Chandr Dev! We make this offering to you. Expand it through air.
संबर्हिरताꣳ हविषा घृतेन समादित्यैर्वसुभिः सम्मरुद्भिः। समिन्द्रो विश्वदेवेभिरक्तां दिव्यं नमो गच्छतु यत् स्वाहा॥
हे देवेन्द्र! इस कुश-समूह को हवि से संस्कार युक्त घृत द्वारा अच्छी तरह से सिंचित करके अर्पित करते हैं। इन्हें आदित्यों, वसुओं, मरुद्गणों एवं सम्पूर्ण देवताओं सहित दिव्य लोक में प्रतिष्ठित करें।[यजुर्वेद 2.22]
Hey Indr Dev! We sanctify the group of Kush grass with Ghee properly and offer it to you. Establish it in the heavens along with Adity Gan, Vasu Gan, and the entire demigod community.
कस्त्वा विमुञ्चति स त्वा विमुञ्चति कस्मै त्वा विमुञ्चति तस्मै त्वा विमुञ्चति। पोषाय रक्षसां भागोऽसि॥
प्रणीता को वेदी से हटाकर यजमान बोले, हे प्रणीते! तुम्हें किसने इस कार्य से मुक्त किया है? तुम्हें सृजन कर्ता प्रजापति ने मुक्त किया है। तुम्हें किसलिए मुक्त किया गया है? तुम्हें यजमानों एवं उनके पुत्र-पौत्रों हेतु मुक्त किया गया है। हे कृष्णमृगचर्म पर गिरे हुए हवि के अवशेष पदार्थ! तुम राक्षसों के भाग हो, तुम उन्हें प्राप्त होओ।[यजुर्वेद 2.23]
Yajman should remove Pranita from the Vedi and address her, "Who retired from this job"? Did Prajapati relieved you. Why have you been relieved? You have been relieved for the sake of Yajman, their sons and grand sons. Hey oblation scattered over the skin of black buck! You are meant for the demons and let them have you.
सं वर्चसा पयसा सं तनूभिरगन्महि मनसा सꣳ शिवेन। त्वष्टा सुदत्रो विदधातु रायोऽनुमाष्टुं तन्वो यद्विलिष्टम्॥
हमारी देह ब्रह्म तेज तथा दुग्धादि पोषणकारी तत्त्वों से पुष्ट हों। हमारे चित्त शिवत्व से सम्पन्न हों। हमारे देह के भीतर जो भी कमी हो, वह पूरी हो जाय। उत्तम दान प्रदान करने वाले त्वष्टा देव हमें विविध प्रकार के धन-वैभव से युक्त करें।[यजुर्वेद 2.24]
Let body become strong with Brahm Tej-aura, milk and other nourishing elements. Let our innerself become influenced by the Shiv Tattv. Let weakness in our body be removed. Let Twasta Dev making best donations grant us various kinds of wealth and grandeur.
दिवि विष्णुर्व्यक्रꣳस्त जागतेनच्छन्दसा ततो निर्भक्तो योऽस्मान्द्वेष्टि यं च वयं द्विष्मोऽन्तरिक्षे विष्णुर्व्यक्रꣳस्त त्रैष्ठभेन छन्दसा ततो निर्भक्तो योऽस्मान्द्वेष्टि यं च वयं द्विष्मः पृथिव्यां विष्णुर्व्यक्रꣳस्त गायत्रेण च्छन्दसा ततो निर्भक्तो योऽस्मान्द्वेष्टि यं च वयं द्विष्मोऽस्मादन्नादस्यै प्रतिष्ठाया अगन्म स्वः सं ज्योतिषाभूम॥
यज्ञ पुरुष सर्वव्यापी भगवान् विष्णु ने जगती छन्द रूप अपने चरण से स्वर्ग लोक में विशेष आक्रमण किया है, ऐसा होने पर जो हमसे विद्वेष करते हैं तथा जिनसे हम विद्वेष करते हैं. उन दोनों प्रकार के शत्रुओं को भाग रहित करके स्वर्ग लोक से निकाल दिया गया है। यज्ञ पुरुष सर्वव्यापी भगवान् विष्णु ने त्रिष्टुप्छन्दरूप चरण से अन्तरिक्ष लोक में विशेष आक्रमण किया है, ऐसा होने पर जो हमसे विद्वेष करते हैं तथा जिनसे हम विद्वेष करते हैं, उन दोनों प्रकार के शत्रु को भाग रहित करके अन्तरिक्ष से निकाल दिया गया है। यज्ञपुरुष सर्वव्यापी भगवान् विष्णु ने गायत्री छन्द रूप चरण से भूलोक पर विशेष आक्रमण किया है, ऐसा होने पर जो हमसे विद्वेष करते हैं तथा जिनसे हम विद्वेष करते हैं, उन दोनों प्रकार के शत्रु को भागरहित करके भूलोक से निकाल दिया गया है। ऐसे शत्रुओं को हविष्यान्नस्थल से तथा पूजास्थल से भी भगा दिया गया है। इस तरह से दिव्यलोक को प्राप्त करके हम तेज से युक्त हो गये हैं।[यजुर्वेद 2.25]
Yagy Purush Bhagwan Shri Hari Vishnu attacked the heavens with his foot constituting of Jagti Chhand to remove the enemies who are envious to us or whom we envied. Shri Hari Vishnu has attacked the space-sky with his foot Tristup Chhand repelling those who envy us or whom we envy depriving them of their share. Yagy Purush Bhagwan Shri Hari Vishnu attacked the earth with his foot Gayatri Chhand expelling those are envious us or whom we envy depriving them off, their share. Such enemies have run away from the site of oblations and prayer. In this manner we have achieved the divine abodes and have become radiant-aurous.(13.03.2025)
स्वयंभूरसि श्रेष्ठो रश्मिर्वर्चीदा असि वर्ची मे देहि। सूर्यस्यावृतमन्वावर्ते॥
हे तेज स्वरूप सविता देव! आप स्वयम्भू और समर्थ हैं। उत्तम तेज से युक्त किरणों वाले हैं। अतएव हमें भी तेज युक्त करें। प्रदक्षिणा करते हुए बोलें, हम सूर्य के आवर्तन के अनुरूप स्वयं भी आवर्तन करते हैं।[यजुर्वेद 2.26]
आवर्तन :: घुमाव, परिचलन, परिवहण, चक्र; rotation, twirl, gyration, cycle.
Hey Savita Dev, a form of radiance-aura! You evolve out yourself and is capable. You have excellent aura, hence make us radiant. Perform circumambulation and say, "We too should revolve like the revolution of Sury Dev".
अग्ने गृहपते सुगृहपतिस्त्वयाऽग्नेऽहं गृहपतिना भूयासꣳ सुगृहपतिस्त्वं मयाऽग्ने गृहपतिना भूयाः। अस्थूरि णौ गार्हपत्यानि सन्तु शतꣳ हिमाः सूर्यस्यावृतमन्वावर्ते॥
हे गार्हपत्य अग्नि देव! आप हमारे घर के पालनकर्ता हैं तथा आपके सानिध्य से हम भी उत्तम गृहपति बनें। गृहपति की उत्तम स्तुतियों से आप श्रेष्ठ गृहपालक बनें। हे अग्नि देव! हम दाम्पत्य-जीवन का पालन करते हुए दीर्घकाल तक यज्ञादिकर्म करते रहें। प्रदक्षिणा करते हुए बोलें, हम सूर्य के आवर्तन के अनुरूप स्वयं भी आवर्तन करते हैं।[यजुर्वेद 2.27]
Hey Garhpaty Agni Dev! You are nurturer-supporter of our house-family and we too become excellent household in your company. Hey Agni Dev! We should become best household by the recitation of excellent hymns of Grah Pati. Hey Agni Dev! We should follow the norms of descent family life and perform Yagy and other rituals for long. Perform circumambulation and say, "We too should revolve like the revolution of Sury Dev".
अग्ने व्रतपते व्रतमचारिषं तदशकं तन्मेऽराधीदमहं य एवाऽस्मि सोऽस्मि॥
हे व्रतों के स्वामी अग्नि देव! हमने जिन नियमों का भली-भाँति पालन किया है, उनके द्वारा हम सामर्थ्यवान् बने हैं। हमारे यज्ञानुष्ठान को आपने सिद्ध किया है। हमारे भीतर जो भावनाएँ यज्ञकर्म करते समय होती हैं, वही भावनाएँ अब भी हैं।[यजुर्वेद 2.28]
Hey Lord of fasting, vow, resolve, Agni Dev! We have become capable by following the rules. You accomplished our resolve for Yagy. The feeling which evolve in our innerself during the Yagy are still present.
अग्नये कव्यवाहनाय स्वाहा सोमाय पितृमते स्वाहा।
अपहता असुरा रक्षाꣳसि वेदिषदः॥
पितृजनों के लिये कव्य को हवन करने में समर्थ अग्नि के लिये आहुति है। पितृ युक्त सोम के लिये यह आहुति है। वेदी पर आ बैठने वाले असुर और राक्षस दूर हो जायें।[यजुर्वेद 2.29]
कव्य :: वह अन्न जो पितरों को दिया जाए, जिससे पिंडदान, पितृयज्ञ किया जाये; food grains meant for oblations to Manes-Pitr.
Oblations for the Manes during Hawan, form the offerings of fire. This is sacrifice for the Som along with Pitr-Manes. Let the demons and wicked people repel who come and sit over the Vedi.
ये रूपाणि प्रतिमुञ्चमाना असुराः सन्तः स्वधया चरन्ति।
परापुरो निपुरो ये भरन्त्यग्निष्टाँलोकात्प्रणुदात्यस्मात्॥
अनेक स्वरूपों को धारण करनेवाले असुर गण जो पितरों की स्वधा का भक्षणकर अपना जीवन धारण करते हैं, जो स्थूल और सूक्ष्म, अनेक प्रकार के शरीर धारण करते हैं; उन्हें यह अग्नि यहाँ से दूर भगाये।[यजुर्वेद 2.30]
Adopting several forms the demons-wicked eat away the wood. Agni Dev Dev should repel-push away them, whether they are in micro or Micro forms.
अत्र पितरो मादयध्वं यथाभागमावृषायध्वम्।
अमीमदन्त पितरो यथाभागमावृषायिषत॥
हे पितृ गण! आप सब यहाँ पिण्डस्थान पर आनन्दित हों। जिस प्रकार वृषभ अभीष्ट अन्न के भाग को प्राप्त करके संतुष्ट होता है तथा परिपुष्ट होता है, उसी प्रकार आप अपना कव्य भाग ग्रहण करके बलवान् हों, प्रसन्न हों तथा सुखपूर्वक रहें। पितरों ने पिण्ड का इच्छानुसार भक्षण कर लिया है।[यजुर्वेद 2.31]
Hey Manes-Pitr! You should enjoy here with the Pind Dan. The way the bull become satisfied and strong, similarly accept this Kavy, become happy, strong and live comfortably. The Pitr have eaten the Pind as per their wish-desire.
नमो वः पितरो रसाय नमो वः पितरः शोषाय नमो वः पितरो जीवाय नमो वः पितरः स्वधायै नमो वः पितरो घोराय नमो वः पितरो मन्यवे नमो वः पितरः पितरो नमो वो गृहान्नः पितरो दत्त सतो वः पितरो देष्मैतद्वः पितरो वास आधत्त॥
ऋतुरूप पितरों को नमस्कार करते हुए यजमान बोले, हे पितरो! आपको रसयुक्त वसन्त ऋतु के लिये नमस्कार है। हे पितरो! शोषक ग्रीष्म ऋतु के लिये आपको नमस्कार है। हे पितरो! जीवनदायिनी वर्षाऋतु के लिये आपको नमस्कार है। हे पितरो! स्वधा की हेतुभूत शरद् ऋतु के लिये आपको नमस्कार है। हे पितरो! आपको नमस्कार है, नमस्कार है। हे पितरो! क्रोधरूप शिशिर ऋतु के लिये आपको नमस्कार है। हे पितरो! आप हमें स्त्री, पुत्र-पौत्रादि प्रदान करो। हे पितरो! घर में अन्नादि होने पर ही हम आपको पिण्डदानादि कर सकेंगे, अतः आप हमें अन्न प्रदान करें। हे पितरो! इस वस्त्र (सूत्र) को धारण करो।[यजुर्वेद 2.32]
The Yajman should salute the Manes in the forms of seasons, Hey Pitr Gan! You are saluted for the spring season which is full of enjoyment. We salute you for the summer which suck-absorb moisture, the rainy season for granting life. Salutation for the wood during winters. Salutations for the acute winters which is like furiosity. Hey Pitr Gan! Grant us wife, son & grand sons. Grant us food grains for the purpose of Pind Dan. Wear the Janeu.
आधत्त पितरो गर्भ कुमारं पुष्करस्त्रजम्। यथेह पुरुषोऽसत्॥
हे पितरो! आप लोग मेरी पत्नी के गर्भ में कमलों की माला पहने हुए अश्विनी कुमारों के समान पुत्र को धारित करो, जिससे वह मेरे घर की पुरुष संख्या को पूरा करने वाला हो।[यजुर्वेद 2.33]
Hey Pitr-Manes! Support our son in the womb like Ashwani Kumars wearing the garland of Lotus flowers so that he is able to complete the number of male members in my family.
उर्ज वहन्तीरमृतं घृतं पयः कीलालं परिस्स्रुतम्। स्वधा स्थ तर्पयत मे पितृन्॥
पितरों को जल देते हुए यजमान बोले, हे जल समूह! अन्न, अमृत, घृत, दुग्ध, रस एवं सुरा में आप रस के रूप में प्रतिष्ठित हैं। इनका वहन करते हुए आप स्वधा रूप होओ तथा हमारे पितरों को संतृप्त करो।[यजुर्वेद 2.34]
The Yajman should offer water to Manes and say, "Hey water bodies! You are present in the food grains, elixir-nectar, Ghee, milk juices and wine as sap". Bear this and become like the wood for the Yagy-Hawan and satisfy our Manes, Pitr ancestors.(14.03.2025)
यजुर्वेद संहिता, तृतीय अध्याय :: ऋषि :- आंगिरस, सुश्रुत, भरद्वाज, प्रजापति, सर्पराज्ञी, कद्रु, गोतम, विरूप, देववात और भरत, वामदेव, अवत्सार, याज्ञवल्क्य, मधुच्छन्दा, सुबन्धु, श्रुतबन्धु, विप्रबन्धु, मेधातिथि, सत्यधृतिर्वारुणि, विश्वामित्र, आसुरि, शन्यु, शन्युर्बार्हस्पत्य, आगस्त्य, और्णवाभ, बन्धु, वसिष्ठ, नारायण; देवता :- अग्नि, सूर्य, इन्द्र और अग्नि, आप, विश्वेदेवा, बृहस्पति, ब्रह्मणस्पति, आदित्य, इन्द्र, सविता, प्रजापति, वास्तुरग्नि, वास्तुपति और अग्नि, वास्तुपति, मरुत्, यज्ञ, मन, सोम, रुद्र; छन्द :- गायत्री, बृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप्, जगती, उष्णिक्, अनुष्टुप्।
समिधाऽग्निं दुवस्यत घृतैर्बोधयतातिथिम्। आस्मिन् हव्या जुहोतन॥
आठ अँगुल की एक लकड़ी घृत में डुबोकर अग्नि में डालते हुए बोलें, हे ऋत्विज्! आप घृत से सिंचित समिधा से यज्ञाग्नि को प्रदीप्त करें। आप घृत की हवि समर्पित करके आप अग्नि देव का आतिथ्य करें। तदुपरान्त अग्नि में सभी तरह के हविष्यान्न पदार्थ की हवियाँ समर्पित करें।[यजुर्वेद 3.1]
Put a piece of wood-Samidha, eight fingers long, in Ghee and then put it in fire saying, "Hey Ritviz! Ignite the Samidha immersed in Ghee in the Yagy fire". Welcome Agni Dev as a guest by making oblation of Ghee. Thereafter, put all sorts of offerings in fire.
सुसमिद्धाय शोचिषे घृतं तीव्र जुहोतन। अग्नये जातवेदसे॥
हे ऋत्विज्! आप उत्कृष्ट, भली प्रकार से प्रकाशमान्, देदीप्यमान्, जातवेदा अग्नि देव के लिए अत्यधिक सुस्वादु एवं पवित्र घृत की हवियाँ समर्पित करें।[यजुर्वेद 3.2]
Hey Ritviz! Make offerings of rich in taste, sanctified Ghee to excellent, illuminated, properly shining, Jat Veda Agni Dev.
तं त्वा समिद्भिरंगिरो घृतेन वर्द्ध यामसि। बृहच्छोचा यविष्ठ्य॥
हे जाज्वल्यमान अग्नि देव! हम आपको घृत तथा घृत से सिंचित समिधाओं द्वारा संवर्द्धित करते हैं। हे नित्य तेज से युक्त अग्ने! जब आप घृत से सिंचित हवि प्राप्त कर लें तो आप ऊर्ध्वगामी लपटों के द्वारा दीप्तिमान् हों।[यजुर्वेद 3.3]
जाज्वल्यमान :: दीप्तिमान, तेजस्वी, तेजवान, प्रखर, तीव्र, उग्र, क्रोधित, भयंकर, घोर, सक्रिय, शक्तिशाली, प्रभावी, तापमान युक्त, आवेगी, उग्र, ऊर्जावान; refulgent, radiant, brilliant.
संवर्धित :: बढ़ा हुआ, उन्नत, या समृद्ध किया गया; enhance, boost.
Hey radiant Agni Dev! We enhance you with the Samidha immersed in Ghee. Hey Agni Dev, possessing regular aura! You should shine with upward rising flames.
उप त्वाऽग्ने हविष्मतीघृताचीर्यन्तु हर्यत। जुषस्व समिधो मम॥
हे अग्नि देव! आप हविष्यान्न पदार्थ तथा घृत से सिंचित समिधा प्राप्त करें। हे प्रकाशमान् अग्नि देव! हमने जिन समिधाओं को आपके निमित्त निवेदित किया है, आप उन्हें अंगीकार करें।[यजुर्वेद 3.4]
Hey Agni Dev! Accept the offerings and the Samidha immersed in Ghee. Hey luminous Agni Dev! Accept the Samidha offered to you by us.
भूर्भुवः स्वर्द्यौरिव भूम्ना पृथिवीव वरिम्णा। तस्यास्ते पृथिवी देवयजनि पृष्ठेऽग्निमन्नादमन्नाद्यायादधे॥
हे अग्नि देव! आप भूः अर्थात् भूलोक में, भुवः अर्थात् अन्तरिक्षलोक में तथा स्वः अर्थात् स्वर्गलोक में- सब जगह संव्याप्त हैं। हे पृथ्वी! आप देवगणों के लिए यज्ञकार्य हेतु श्रेष्ठ स्थान प्रदान करती हैं। हम देवताओं को आहुति प्रदान करने के निमित्त आपके ऊपर निर्मित यज्ञशाला पर अग्नि देवता को स्थापित करते हैं। हमारे इस अग्नि स्थापन कार्य से हम पुत्र-पौत्रादि एवं सुयोग्य मित्रों से सम्पन्न होकर स्वर्ग लोक के सदृश अत्यधिक विशाल एवं कीर्ति, गौरव, वैभव इत्यादि प्राप्त करके पृथ्वी के सदृश महिमा से युक्त हों।[यजुर्वेद 3.5]
Hey Agni Dev! You are present over earth, sky-space and the heavens. Hey earth! You provide best location for the Yagy by the demigods. We establish Yagy Shala over you for the Yagy by the demigods. By establishment of Agni-fire, we wish to have sons-grandsons, able friends, grandeur, name-fame, glory like heavens and become glorious like earth.
आयं गौः पृश्निरक्रमीदसदन् मातरं पुरः। पितरं च प्रयन्त्स्वः॥
भूलोक, स्वर्गलोक तथा अन्तरिक्ष लोक में भ्रमण करने वाले, नाना प्रकार की लपटों से दीप्तिमान् अग्नि देव मेघ-समूह तथा अन्तरिक्ष लोक में विद्युत् के रूप में अधिष्ठित हो गये हैं। धरती माता के निकट यज्ञवेदी में यज्ञाग्नि के रूप में अधिष्ठित हुए हैं। तत्पश्चात् यज्ञरूपी ये अग्नि देव अपनी ऊँची उठने वाली सूर्य की किरण रूपी लपटों के माध्यम से स्वर्ग लोक के पिता के समीप पहुँच गये हैं।[यजुर्वेद 3.6]
Agni Dev roaming over the earth, heavens, space has been established as lightening with various flames in the clouds and space. You have been established over the earth as Yagy Agni. Agni Dev in the form of Yagy, rise upwards in flames in the form of Sun rays to the father of heavens.
अन्तश्चरति रोचनास्य प्राणादपानती। व्यख्यन् महिषो दिवम्॥
इस अग्नि का दीप्तिमान् तेज प्राण एवं अपान वायु के माध्यम से समस्त प्राणियों में गतिमान् रहता है। ये अग्नि देव अत्यन्त शक्तिशाली हैं। ये सूर्य किरणों के माध्यम से यज्ञानुष्ठान के लिये प्रकाशित करते हैं।[यजुर्वेद 3.7]
Aura of Agni Dev remain dynamic in all creatures through air vital and waste gas in the stomach. Agni Dev is extremely powerful. He shines through the rays of Sun for the organisation of Yagy.
त्रिंशद्धाम विराजति वाक् पतङ्गाय धीयते। प्रति वस्तोरह द्युभिः॥
जो वेद युक्त वाणी आलस्य रहित होकर तीस मुहूर्त रूप स्थान में तीसों दिन याजकों के मुख से सुशोभित होती है, वही वेद युक्त वाणी अग्नि देवता के निमित्त स्तुति के रूप में उच्चारित की जाती है। प्रतिदिन या यज्ञीय अवसरों पर यह स्तुति रूप वाणी केवल अग्नि देव के लिए ही उच्चारित की जाती है, किसी और के लिए नहीं।[यजुर्वेद 3.8]
The voice-speech free from laziness, is glorified for thirty Muhurt, for thirty days in the mouth of the Ritviz. Same voice possessing the Ved, recite prayers for Agni Dev. Either everyday or the occasion of Yagy, its recited for Agni Dev only, none other than him.
अग्निज्योर्तिज्योर्तिरग्निः स्वाहा सूर्यो ज्योतिज्योर्ति: सूर्यः स्वाहा। अग्निर्वर्चों ज्योतिर्वर्चः स्वाहा सूर्यो वर्चो ज्योतिर्वर्चः स्वाहा। ज्योतिः सूर्यः सूर्यो ज्योतिः स्वाहा॥
अग्नि तेज है एवं तेज अग्नि है, हम उस तेजस्वी अग्नि को आहुति समर्पित करते हैं। सूर्य ज्योति है तथा ज्योति सूर्य है, हम उस ज्योति रूपी अग्नि में हवि समर्पित करते हैं। अग्नि वर्चस् है एवं वर्चस् ही ज्योति है, हम वर्चस्रूपी अग्नि में आहुति प्रदान करते हैं। सूर्य ब्रह्म तेज का रूप है एवं ब्रह्मवर्चस् सूर्य रूप है, हम इसमें आहुति अर्पित करते हैं। [यजुर्वेद 3.9]
वर्चस् :: तेज, चमक, आभा, शक्ति और शौर्य; shine, aura.
Agni is energy-aura and energy is Agni, we make offerings to aurous Agni Dev. Sun is light and light is Sun. We make oblations in fire in the form of radiance. Agni is shine and shine is Agni. We make offerings in fire in the form of shine. Sun is a form of Brahm Tej-Almighty. Brahm Tej is a form of Sun.
सजूर्देवेन सवित्रा सजू रात्र्येन्द्रवत्या। जुषाणो अग्निर्वेतु स्वाहा। सजूर्देवेन सवित्रा सजूरुषसेन्द्रवत्या। जुषाणः सूर्यो वेतु स्वाहा॥
हे अग्नि देव! आप सविता देव तथा इन्द्र युक्त रात्रि के साथ निवास करने वाले हैं। आप हमारे द्वारा अर्पित की गयी इस हवि को स्वीकार करें। यह हवि उन सूर्य देव को अर्पित है, जो सविता देव के साथ इन्द्र युक्त उषा से संयुक्त हुए हैं।[यजुर्वेद 3.10]
Hey Agni Dev! You reside with Savita Dev and Indr Dev during night. Accept the offerings made by us. This Havi-offering is meant for Sury Dev, who is in association with Savita Dev, Indr Dev and Devi Usha.(15.03.2025)
उपप्रयन्तो अध्वरं मन्त्रं वोचेमाग्नये। आरे अस्मे च शृण्वते॥
यज्ञ के निकट उपस्थित होते हुए हम दूर स्थित स्थानों से भी वेद मन्त्रों के उच्चारण को सुन लेने वाले अग्नि देव के लिए स्तोत्रों को अर्पित करते हैं।[यजुर्वेद 3.11]
Though close-near to the Yagy we offer Strotr to Agni Dev, who can hear the Ved Mantr, yet away.
अग्निर्मूर्द्धा दिवः ककुत्पतिः पृथिव्या अयम्। अपाꣳ रेताꣳ सि जिन्वति॥
ये अग्नि देव आदित्य के रूप में स्वर्ग लोक में उच्चतम भाग में विराजमान होकर जीवन का संचार करके, पृथ्वी का पालन करते हुए, जल में जीवन शक्ति का संचार करते हैं।[यजुर्वेद 3.12]
Agni Dev present in the heaven at a height-altitude as Adity, operate life, support the earth and grant vitality to water.
उभा वामिन्द्राग्नी आहुवध्या उभा राधसः सह मादयध्यै।
दाताराविषाꣳ रयीणामुभा वाजस्य सातये हुवे वाम्॥
हे इन्द्र तथा अग्नि देव! हम आप दोनों देवताओं का अपने यज्ञ में वरण करते हैं। आप दोनों अन्न तथा धन प्रदान करने वाले हैं, इसलिए हम अन्न तथा धन प्राप्त करने के निमित्त आप दोनों को अपने यज्ञ में आमन्त्रित करते हैं।[यजुर्वेद 3.13]
Hey Indr & Agni Dev! We choose both of you in our Yagy. Both of you grant food grains and wealth; hence we invoke-invite you in our Yagy for having food grains & wealth.
अयं ते योनिर्ऋत्वियो यतो जातो अरोचथाः। तं जानन्नग्न आरोहाथा नो वर्द्धया रयिम्॥
हे आहवनीय अग्नि देव! यह गार्हपत्य अग्नि आपकी उत्पत्ति स्थली है, जिससे उत्पन्न होकर आप दैदीप्यमान हो रहे हैं। हे अग्नि देव! आप अपनी उस उत्पत्ति स्थली को जानते हुए इस गार्हपत्य अग्नि में यज्ञ कर्म के लिये प्रविष्ट हों और हमें धन से समृद्ध करें।[यजुर्वेद 3.14]
Hey invocable Agni Dev! Garhpaty Agni is the place of your origin, by evolving from where you are illuminating. Having recognised the place of your origin enter this Garhpaty Agni and make us rich-prosper.
अयमिह प्रथमो धायि धातृभिर्होता यजिष्ठो अध्वरेष्वीड्यः।
यमप्नवानो भृगवो विरुरुचुर्वनेषु चित्रं विभ्वं विशेविशे॥
यह आहवनीय अग्नि देवताओं को आहूत करने वाले, उत्कृष्ट यज्ञ करने वाले तथा सोम यज्ञ आदि में याजकों द्वारा स्तवन करने योग्य, अग्न्याधान करने वाले ब्राह्मणों द्वारा यज्ञ में प्रतिष्ठित की गयी है। सभी जगह व्याप्त तथा दिव्य अग्नि को याजकों के हित के लिए अप्नवान् इत्यादि भृगु वंशीय मुनियों ने वनों में समिधाओं से प्रदीप्त किया था।[यजुर्वेद 3.15]
अग्न्याधान :: आग की स्थापना करना, अग्निहोत्र; incend.
This invocable fire has been established in the Som Yagy by the revered Ritviz & the Brahmans who incend fire. For the benefit of all, Apnwan & Bhragu clan Munis established all pervading divine fire in the forest with Samidha-wood.
अस्य प्रत्नामनु द्युतꣳ शुक्रं दुदुह्रे अह्रयः। पयः सहस्त्र सामृषिम्॥
पुरातन काल से प्रकट इस अग्नि के प्रकाश का अनुकरण करके असमंजस से रहित यज्ञ कर्ताओं ने दूध, दही, घी एवं हविष्यान्न आदि के द्वारा सहस्त्रों यज्ञों को परिपूर्ण करने वाले ऋषियों के सदृश गौ से दुग्ध को दुहा है।[यजुर्वेद 3.16]
असमंजस :: उभयसंकट, दुविधा, डाँवाडोलपन, अस्थिरता, धर्मसंकट, संशय, शंका, अविश्वास; confusion, indecisiveness, dilemma, doubt, irresoluteness.
Since, ancient times the followers of Agni's light, free from indecisiveness, organisers of Yagy have milked the cows for milk, curd, Ghee and oblation like the Rishis conducting thousands of Yagy.
तनूपा अग्नेऽसि तन्वं मे पाह्यायुर्दा अग्नेऽस्यायुर्मे देहि वच्र्चोदा अग्नेऽसि वर्ची मे देहि। अग्ने यन्मे तन्वा ऊनं तन्म आपृण॥
हे अग्नि देव! आप स्वभावतः देह को पवित्र करने वाले हैं। अतः आप हमारे देह को पवित्र करें। हे अग्ने! आप ही आयु प्रदान करने वाले हैं, अत:एव आप मृत्यु को दूर करके हमें दीर्घायु प्रदान करें। हे अग्ने! आप ब्रह्म तेज को देने वाले हैं, अत:एव आप हमें ब्रह्म तेज प्रदान करें एवं हे अग्ने! आप हमारे शरीर के उन अंगों को पूर्ण करें, जो अपूर्ण हैं।[यजुर्वेद 3.17]
Hey Agni Dev! You are a sanctifier by nature. Hence, purify our body. Hey Agni Dev! You grant longevity, hence repel the death and grant us long life. Hey Agni Dev! You are the granter of Brahm Taj, hence grant us Brahm Tej. Hey Agni Dev! Complete our incomplete organs.
इन्धानास्त्वा शतꣳ हिमा द्युमन्तꣳ समिधीमहि। वयस्वन्तो वयस्कृतꣳ सहस्वन्तः सहस्कृतम्। अग्ने सपत्नदम्भनमदब्धासो अदाभ्यम्। चित्रावसो स्वस्ति ते पारमशीय॥
हे अग्नि देव! आप अत्यन्त प्रकाशवान्, धन-धान्य से परिपूर्ण, हिंसा न करने वाले तथा किसी भी शत्रुओं को पराजित करने वाले हैं। हम ऋत्विगण आपकी अनुकम्पा प्राप्त करके दीर्घ जीवी, अत्यन्त बलवान् तथा किसी भी शत्रु के द्वारा पराभूत न हो पाने वाले बनकर आपको प्रज्वलित करके सौ वर्षों तक देदीप्यमान् रखेंगे। हे रात्रि देवि! हम ऋत्विक्ङ्गण सौ वर्ष जीवित रहकर सूर्य का दर्शन करें।[यजुर्वेद 3.18]
Hey Agni Dev! You are highly lustrous-illuminating, possess food grains and wealth, non violent and defeater of the enemy. We, the Ritviz having obtained your blessings, should be long lived, too strong, free from defeat by the enemy, will keep you ignited for hundred years. Hey Goddess-deity of night! Let us, the Ritviz Gan survive for hundred years and see the Sun.
सं त्वमग्ने सूर्यस्य वर्चसागथाः समृषीणाꣳ स्तुतेन। सं प्रियेण धाम्ना समहमायुषा सं वर्चसा सं प्रजया सꣳ रायस्पोषेणग्मिषीय॥
हे अग्नि देव! आप रात्रि में सूर्य के वर्चस् से युक्त हुए हैं, महर्षियों ने विभिन्न स्तुति-मन्त्रों से आपकी स्तुति की है। आप अपने प्रिय तेज के साथ यहाँ आये हैं। हम आपकी अनुकम्पा प्राप्त करके चिरायु, विद्या-वैभव से सम्पन्न, तेज, सुयोग्य संतति एवं धन-धान्य आदि पोषणयुक्त पदार्थों को प्राप्त करके समृद्धशाली बनें।[यजुर्वेद 3.19]
वर्चस् :: रूप, दीप्ति, अन्न, विष्ठा, शक्ति-शौर्य, शुक्र-वीर्य, प्रताप, श्रेष्ठता, तेज, प्रभाव, गौरव; brilliance, lustre, light, splendour, glory, vital power, vigour, energy, activity, beauty, aura, shine.
Hey Agni Dev! You are associated with the brilliance of Sun at night. Maharshi Gan have worshiped you with various Mantr-Stuti. You have evolved with your favourite shine-aura. Having received your blessings, we should have long life, able progeny, wealth, food grains and nourishing materials and become prosperous.
अन्ध स्थान्धो वो भक्षीय मह स्थ महो वो भक्षीयोर्ज स्थोर्ज वो भक्षीय रायस्पोष स्थ रायस्पोषं वो भक्षीय॥
हे गौओं! आप अन्न स्वरूपा हैं। आपकी अनुकम्पा से हम दूध, घृतादि के मिश्रण से युक्त पोषणकारी अन्नों का प्राशन करें। आप पूजनीय हैं। हम आपसे दूध-दही सदृश दस प्रकार के तेज को प्राप्त करें। आप अत्यन्त शक्तिशाली हैं। हम आपकी अनुकम्पा प्राप्त करके शक्ति-सम्पन्न बनें। आप धन-धान्य में वृद्धि करनेवाली हैं। अतः हम आपकी अनुकम्पा से धन-धान्यादि से युक्त पोषणकारी पदार्थ प्राप्त करें।[यजुर्वेद 3.20]
Hey cows! You are like food grains for us. Your blessings grant us milk, Ghee mixed with nourishing food grains. You are worshipable. Let us have ten kinds of majesty. You are highly powerful. Let us have your blessings and become powerful-strong. You increase wealth and food grains. Hence, we should attain wealth and food grains, nourishing eatables etc. by virtue of your blessings-kindness.
रेवती रमध्वमस्मिन्योनावस्मिन् गोष्ठेऽस्मिँल्लोकेऽस्मिन् क्षये। इहैव स्त मापगात॥
हे धनवती गौओं! आप अग्निहोत्र के समय यज्ञस्थान पर प्रसन्नता के साथ रहें। दुग्ध-दोहन के उपरान्त आप गोष्ठ में गमन करें। सदैव याजक के दृष्टि-पथ में ही आप विद्यमान रहें। रात के समय आप याजक के गृह में सुख तथा आनन्दपूर्वक निवास करें। आप याजक के गृह में ही रहें, अन्य किसी दूसरे स्थान पर न जायें।[यजुर्वेद 3.21]
Hey riches awarding cows! Live at the Yagy site at the occasion of Agnihotr, happily. Having being milked, you should move to cow shed. You should remain in the mind of the Ritviz. Reside comfortably in the house of the Ritviz. Stay in the house of the Ritviz and do not else where.(16.03.2025)
सꣳहितासि विश्वरूप्यूर्जा माविश गौपत्येन। उप त्वाग्ने दिवेदिवे दोषावस्तर्द्धिया वयम्। नमो भरन्त एमसि॥
गाय स्पर्श कर बोलें, "हे गौ! आप विविध स्वरूपों वाली हैं तथा शुक्ल-कृष्णादि विचित्र वर्णों से युक्त होती हुई दूध-घृत रूप हविद्रव्य प्रदान करके यज्ञ-कर्मों से संबद्ध हैं। आप दूध रूपी रस के द्वारा शक्ति प्रदान करने वाली होकर यजमान को गोपति बनायें। रात्रि में सदैव निवास करने वाले, हे गार्हपत्य अग्नि देव! प्रतिदिन हम याजक श्रद्धा युक्त बुद्धि से आपकी स्तुति करते हुए आपको हवि प्रदान करने आपके समीप आते हैं।[यजुर्वेद 3.22]
Touch the cow and say, "Hey cow! You have various-several forms and have fair-white, black etc. colours, granting milk and Ghee as offerings connected with the Yagy". Make the Yajman Gau Pati granting strength through the sap in the form of milk. Hey Garhpaty Agni Dev, always residing during the night! We the Yajak-Ritviz pray to you with honour, make oblations, coming near-close to you.
राजन्तमध्वराणां गोपामृतस्य दीदिविम्। वर्द्धमानꣳ स्वे दमे॥
यज्ञों में शोभायमान सत्य के रक्षक देदीप्यमान तथा अपने गार्हपत्यादि स्वरूप से यज्ञ कुण्ड में सदा वर्धमान अग्नि देव को हम आवाहित करते हैं।[यजुर्वेद 3.23]
We invoke illuminated, always flourishing Agni Dev who is the protector of truth, glorified in the Yagy, always present as Garh Paty etc. forms in the Yagy Kund.
स नः पितेव सूनवेऽग्ने सूपायनो भव। सचस्वा नः स्वस्तये॥
हे गार्हपत्य अग्नि देव! जैसे पुत्र के निमित्त पिता बिना किस भय (बाधा) के सुख से प्राप्त होने योग्य होता है, वैसे ही आप भी हम याजकों हेतु निर्विघ्न होकर सुखपूर्वक प्राप्त हों। आप हमारे हितार्थ सदैव हमारे समीप रहें।[यजुर्वेद 3.24]
Hey Garh Paty Agni Dev! You should become available to us like the father who is availble to the son without fear, comfortably. You should remain close to us for our benefit-welfare.
अग्ने त्वं नोऽअन्तम उत त्राता शिवो भवा बरूथ्यः।
वसुरग्निर्वसुश्रवा अच्छा नक्षि द्युमत्तमꣳ रयिं दाः॥
हे गार्हपत्य अग्नि देव! आप हमारे निमित्त सदैव अति-निकटवर्ती, रक्षण तथा पालन करने वाले, कल्याणकारी एवं पुत्रादि समूह से सम्पन्न गृह प्रदान करने वाले हैं। आप धन प्रदान करने वाले, आवास स्थल प्रदान करने वाले, आहवनीयादि रूप से गमन शील तथा यश प्रदान करने वाले हैं, अतः आप हमारे होम स्थल में जायें तथा जब-जब हम हवन करें तब तब आप हमारे होम स्थान में पधारें व हममें व्याप्त हों तथा अति दीप्ति युक्त धनादि को प्रदान करें।[यजुर्वेद 3.25]
Hey Gary Paty Agni Dev, devoted to our welfare! You should always remain very close to us, protect and nourish us, granting house possessing sons etc. You are dynamic, grant us wealth, residence and honour. Pervade us, grant illustrious wealth etc. to us and come to our house as and when we perform Hawan.
तं त्वा शोचिष्ठ दीदिवः सुम्नाय नूनमीमहे सखिभ्यः।
स नो बोधि श्रुधी हवमुरुष्या णो अघायतः समस्मात्॥
हे अत्यन्त कान्तिमान् एवं सबको प्रदीप्त करने वाले अग्नि देव! हम सुख तथा प्रसन्नता प्राप्त करने हेतु तथा अपने बन्धुजनों के मंगल हेतु आपसे अभ्यर्थना करते हैं, आप हमें अपना सेवक समझकर हमारी अभ्यर्थना को ध्यान पूर्वक सुनें तथा पापों से एवं हिंसक शत्रुओं से हमारी सुरक्षा करें।[यजुर्वेद 3.26]
Hey highly luminous Agni Dev, illuminating everyone! We pray to you for our & friend's welfare, comfort-pleasure. Considering us your servant, listen to our prayers carefully-attentively and protect us from the violet enemies and sins.
इड एह्यदित एहि काम्या एत। मयि वः कामधरणं भूयात्॥
हे इडारूपी गौ (हे पृथ्वी रूपी गौ!) दुग्धादि द्वारा मानवों का भूमि के सदृश पालनकर्त्री होने के कारण आपको पृथ्वी रूप कहा गया है। आप इडा तथा मनु के सदृश हमारे होम स्थान पर आगमन करें। घृतादि के द्वारा देवताओं का अदिति के सदृश पालन करने वाली अदिति रूप गौ! आप हमारे होम स्थान में पधारें। हे अभीष्ट फल को धारण करने वाली गौ! आप यहाँ आगमन करें तथा हमारी मनोकामनाओं की पूर्ति करें।[यजुर्वेद 3.27]
Hey cow, in the form of earth! You are considered a form of earth, since you nourish-support the humans with milk etc. Come to our Hawan site, like your visit to Ida and Manu. Hey cow in the form of Aditi, nurturing the demigods! Please visit our Hawan site. Hey cow, awarding desired accomplishments! Come here and fulfil our desires.
सोमानꣳ स्वरणं कृणुहि ब्रह्मणस्पते। कक्षीवन्तं य औशिजः॥
हे ब्रह्मण स्पते (वेद के पालक परमात्मन्)। जो याजक सोम को सुसंस्कारित करते हैं, उन्हें आप उत्तम तेज से सम्पन्न करें। जैसे दीर्घतमा ऋषि तथा उशिक् के पुत्र कक्षीवान् को आपने सोमयज्ञ से युक्त किया एवं स्तुति रूप शब्दों से युक्त किया था, वैसे ही हमें भी धनादि प्रदान करके धन्य बनाएँ।[यजुर्वेद 3.28]
Hey Brahman Spate! Grant excellent aura to those who sanctify Som. Grant & oblige us with wealth, like you provided Som Yagy and words in the form of Stuti to Rishi Deerghtama & Kakshiwan son of Ushik.
यो रेवान्यो अमीवहा वसुवित् पुष्टिवर्द्धनः। स नः सिषक्तु यस्तुरः॥
हे ब्रह्मण स्पते! आप सभी प्रकार के साधनों से युक्त हैं, समस्त रोगों को नष्ट करने वाले हैं, सभी प्रकार के धनों से युक्त करने वाले हैं, पुष्टि को बढ़ाने वाले हैं तथा रुके हुए कार्य को शीघ्रकारी बनकर क्षण मात्र में सम्पन्न करने वाले हैं। आप हम पर कृपा करें तथा हम सदैव आपके सान्निध्य में रहें।[यजुर्वेद 3.29]
Hey Brahman Spate! You are possessed with all means and destroy our all ailments-diseases. Accomplish us with all sorts of wealth, nourishments and can complete all of our restricted endeavours-ventures, within few seconds. Have mercy over us and always stay-accompany us.
मा नः शꣳसो अररुषो धूर्तिः प्रण मर्त्यस्य। रक्षा णो ब्रह्मणस्पते॥
हे वेदादि के रक्षक ब्रह्मणस्पते! यज्ञादि कर्म न करने वाले एवं हमारा अमंगल करने के लिए सोचने वाले दुष्ट रिपुओं का हिंसक दुष्प्रभाव हम पर न पड़े। आप उनसे हमारी रक्षा करें।[यजुर्वेद 3.30]
Hey protector of Veds etc. Brahman Spate! Ensure that ill effect of those who do not conduct Yagy, having ill will against us, should not be able to harm us. Protect us from them.
महि त्रीणामवोऽस्तु द्युक्षं मित्रस्यार्यम्णः। दुराधर्षं वरुणस्य॥
मित्र, अर्यमा और वरुण; इन तीन महान् देवताओं का हमें संरक्षण प्राप्त हो।[यजुर्वेद 3.31]
We should attain asylum under Mitr, Aryma and Varun Dev.
नहि तेषाममा चन नाध्वसु वारणेषु। ईशे रिपुरघशꣳ सः॥
जो इन तीनों देवताओं से रक्षित हैं, जो इनकी आराधना करते हैं, उनको गृह में, जाने के मार्ग में अथवा दूसरे दुर्गम स्थल में, गहन कानन में जहाँ चोर, डाकू, व्याघ्रादि पथिकों को निराकृत करते हैं, वहाँ भी ऐसे याजकों को कोई बाधा पहुँचाने में समर्थ नहीं हो पाता।[यजुर्वेद 3.32]
Any one under the protection of these three demigods-deities and worshiping them, can not be harmed in their house, path, far-distant place, deep forests, places inhabited by thieves, dacoits, beasts etc.
ते हि पुत्रासो अदितेः प्र जीवसे मर्त्याय। ज्योतिर्यच्छन्त्यजस्त्रम्॥
अदिति के वे पुत्र (मित्र, अर्यमन् तथा वरुण) मानव को अखण्ड तेज चिरजीवन (who possesses long life) के निमित्त प्रदान करते हैं।[यजुर्वेद 3.33]
Sons of Aditi named Mitr, Aryma & Varun Dev grant unbroken radiance-aura to the humans throughout their life.
कदा चन स्तरीरसि नेन्द्र सश्चसि दाशुषे।
उपोपेन्नु मघवन् भूय इन्नु ते दानं देवस्य पृच्यते॥
हे देवेन्द्र! आप कभी भी हिंसक नहीं होते हैं। आप आहुति समर्पित करने वाले याजकों को धन प्रदान करने वाले हैं। हे वैभवशाली इन्द्र देव! आपका विपुल मात्रा में प्रदान किया गया दान शीघ्रतापूर्वक याजक को प्राप्त हो।[यजुर्वेद 3.34]
Hey Devendr! You are never violent. You grant wealth to those Yajak who make oblations for you. Hey Indr Dev, having grandeur! Let the wealth in abundance be received by the Yajak quickly.
तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्॥
सविता देव की श्रेष्ठ ज्योति का हम ध्यान करते हैं, जो तेज सभी सत्कर्मों के सम्पादित करने हेतु हमारी बुद्धि को प्रेरित करता है।[यजुर्वेद 3.35]
We concentrate-meditate over the excellent aura-radiance of Savita Dev, which inspire our mind-intelligence to accomplish-perform virtuous deeds.(17.03.2025)
परि ते दृडभो रथोऽस्माँ२अश्नोतु विश्वतः। येन रक्षसि दाशुषः॥
हे अग्नि देव! आपका स्वच्छन्द गति वाला रथ, जिसके द्वारा आप यजमानों की सुरक्षा करते हैं, उसी के द्वारा हम सभी की चारों दिशाओं से रक्षा करें।[यजुर्वेद 3.36]
Hey Agni Dev! Protect us from all sides-directions with your charoite which is capable of moving freely-at will and you protect the Hosts-Ritviz.
भूर्भुवः स्वः सुप्रजाः प्रजाभिः स्याꣳ सुवीरो वीरैः सुपोषः पोषैः।
नर्य प्रजां मे पाहि शꣳ स्य पशून्मे पाह्यथर्य पितुं मे पाहि॥
हे सच्चिदानन्द स्वरूप अग्नि देव! आप हमें उत्तम प्रजाओं अर्थात् सन्तानों से, उत्तम वीरों से एवं पोषणकारी अन्न से युक्त करें। हे मनुष्य के शुभचिंतक आहवनीय अग्नि देव! हमारी सन्ततियों की सुरक्षा करें। हे प्रशंसा करने योग्य गार्हपत्य अग्नि देव! हमारे पशुओं की सुरक्षा करें एवं हे दक्षिणाग्नि! हमारे अन्न की सुरक्षा करें।[यजुर्वेद 3.37]
सच्चिदानन्द :: चिरंतन सत्य स्वरूप, चैतन्य और आनंद से भरा परमात्मा; blissful, a form of truth, conscious Almighty.
Hey Agni Dev, a form of blissful Almighty! Grant us excellent progeny, brave people and nourishing food grains. Hey well wisher of humans, invocable Agni Dev! Protect our progeny. Hey praise worthy Garh Paty Agni! Protect our cattle. Hey Dakshina Agni! Protect our food grains.
आ गन्म विश्ववेदसमस्मभ्यं वसुवित्तमम्। अग्ने सम्राडभि द्युम्नमभि सहआ यच्छस्व॥
हे अग्नि देव! आप देदीप्यमान् तथा आवाहन करने योग्य हैं। आप जातवेदा हैं तथा याजक हेतु विपुल मात्रा में धन-सम्पदा को धारण करने वाले हैं, अतः हम आपके समीप आगमन कर रहे हैं। हे अग्ने! हमें शक्ति प्रदान करके धन-वैभव से युक्त करें।[यजुर्वेद 3.38]
Hey Agni Dev! You are lustrous and invocable. You are Jatveda and support the Yajak with wealth in abundance. Therefore, we are approaching you. Hey Agne! Grant us power and grandeur.
अयमग्निगृहपतिर्गार्हपत्यः प्रजाया वसुवित्तमः।
अग्ने गृहपतेऽभि द्युम्नमभि सह आ यच्छस्व॥
ये गार्हपत्य अग्नि देव ही हमारे गृह के अधिपति हैं, पुत्र-पौत्रादि प्रजाओं पर अपनी कृपादृष्टि बनाये रखने वाले तथा उन्हें प्रभूत ऐश्वर्यवान् बनाने वाले हैं। हे अग्नि देव! आप हमें सभी प्रकार से धन, यश तथा बल प्रदान करें।[यजुर्वेद 3.39]
कृपा दृष्टि :: regard, grace, favour, obligation, condescension, pleasure, mercy, blessing, benevolence.
Garhpaty Agni Dev is the lord of our house. Maintain your blessing over our sons & grandsons making them affluent. Hey Agni Dev! Grant us wealth, fame-honour and strength.
अयमग्निः पुरीष्यो रयिमान् पुष्टिवर्द्धनः।
अग्ने पुरीष्याभि द्युम्नमभि सह आ यच्छस्व॥
ये दक्षिणाग्नि पशुओं के हितैषी हैं। ये अग्नि धन-वैभव तथा सुख-समृद्धि में वृद्धि करने वाले हैं। हे पृथ्वी स्थानीय दक्षिणाग्नि! आप हमें सभी ओर से धन तथा सभी ओर से शत्रुओं का पराभव करने वाला बल प्रदान करें।[यजुर्वेद 3.40]
Dakshina Agni is the well wisher of cattle-animals. Agni Dev grant us riches-grandeur. Hey local Dakshina Agni! Grant us all kinds of wealth and strength to defeat the enemy.
गृहा मा बिभीत मा वेपध्वमूर्जं बिभ्रत एमसि।
ऊर्जं बिभ्रद्वः सुमनाः सुमेधा गृहानैमि ममसा मोदमानः॥
हे गृह (गृहवासियों)! तुम डरो मत अर्थात् गृहस्वामी-यजमान गृह से बाहर गया है, ऐसा सोचकर भयभीत मत हो। कम्पायमान मत हो अर्थात् कदाचित् कोई शत्रु आकर घर का विनाश कर देगा-ऐसा सोचकर भय से प्रकम्पित मत हो। हम सहायता के लिए शक्ति-सम्पन्न होकर आपके समीप आगमन करते हैं। हम ओजस्वी बनकर, उत्तम मेधा से युक्त होकर, दुःख रहित होकर एवं प्रसन्नतापूर्वक आप में (घरों में) प्रवेश करते हैं।[यजुर्वेद 3.41](गृह प्रवेश के समय बोलने वाला मन्त्र)
Hey house owners! Do not be afraid. Do not tremble-shake. We are approaching you to help. We should become radiant-energetic, strong, free from sorrow-pain and enter-occupy the house happily.
येषामध्येति प्रवसन्येषु सौमनसो बहुः। गृहानुपह्वयामहे ते नो जानन्तु जानतः॥
परदेश में जाते समय याजक जिनके बारे में लगातार सोचा करते थे, जिनसे वह बहुत प्रीति करता है, ऐसे उस अपने गृह को याजक, अपनी उपस्थिति से हर्षित कर रहे हैं। घर के अधिष्ठाता देवता सब कुछ जानने वाले हैं, अतः वे हमारी इस भावना को स्वीकार करें।[यजुर्वेद 3.42]
गृह प्रवेश के समय बनाने वाला दूसरा मन्त्र :- देशान्तर गमन के समय, जिसके विषय में निरन्तर सोचा करते थे, को हमें अत्यधिक प्रिय था, ऐसे उस अपने घर को (अपनी उपस्थिति से प्रसन्न कर रहे हैं, घर के अधिष्ठातादेव ज्ञानवान् हैं, वे हमारे इस भाव को ग्रहण करें।
The Yajak going abroad used to continuously think about the house which was very dear to them. We are gracing that house now, making it happy with our presence. The deity of house knows all this, so he should accept our concern-feelings.
उपहूता इह गाव उपहूता अजावयः। अथो अन्नस्य कीलाल उपहूतो गृहेषु नः। क्षेमाय वः शान्त्यै प्रपद्ये शिवꣳ शग्मꣳ शंयोः शंयोः॥
हमारे गृहों में गौ तथा वृषभ, भेड़ तथा बकरियाँ सुख के साथ निवास करने हेतु आदरपूर्वक बुलायी गयी हैं। गृह समृद्धशाली बना रहे, इसके निमित्त अन्न और जल का भी आवाहन किया गया है। हे गृहों! मंगल हेतु एवं समस्त अमंगलों को नष्ट करने हेतु हम आप में प्रवेश करते हैं, जिससे लौकिक तथा पारलौकिक सुख प्राप्त हो।[यजुर्वेद 3.43]
गृह प्रवेश के समय बोला जाने वाला तीसरा मंत्र :- हमारे घरों में गाय एवं वैत, भेड़ एवं बकरियाँ सुखपूर्वक रहने के लिए सम्मानपूर्वक आवाहित की गयी है। घर की समृद्धि के लिए अन्न-रस का आवाहन किया गया है। कल्याण के लिए तथा सभी अनिष्टों के शमन के लिए हम घरों को प्राप्त करते हैं, जिससे लौकिक एवं पारलौकिक सुख की प्राप्ति।
Cows, bulls, sheep and goats have been invited gracefully to live in our house. To make our house prosperous, food grains and water have been invoked. Hey houses! We enter your house to make it auspicious and remove obstacles, troubles-inauspiciousness, so that you attain the worldly & divine pleasure-comforts.
प्रघासिनो हवामहे मरुतश्च रिशादसः। करम्भेण सजोषसः॥
चतुर्मास्य नाम यज्ञ के चार पर्व हैं। वैश्वदेव, वरुणप्रघास, साकमेध एवं शुनासीरीय। अध्वर्यु वरुणप्रघासयाग में मरुतों आवाहन करते हुए बोले, "रिपुओं का संहार करने वाले, प्रघास नामक हवि का सेवन करनेवाले एवं दधि मिले हुए सत्तू के साथ प्रेम करनेवाले, पापहारी हे मरुद्गणो! हम आपको आहूत करते हैं।[यजुर्वेद 3.44]
चातुर्मास :: चार महीने का एक समय होता है। यह आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी से शुरू होता है और कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी पर खत्म होता है। इस दौरान मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं।
Chaturmas Yagy has four stages viz. Vishwe Dev, Varun Praghas, Sak Megh and Shunasiriy. The priest should invoke Marud Gan and say, "Destroyer of the enemy, consumer of Praghas oblations, loving (Sattu Floor of roasted gram & barley) added in curd, hey destroyer of sins, we invoke you".
यद् ग्रामे यदरण्ये यत् सभायां यदिन्द्रिये।
यदेनश्चकृमा वयमिदं तदवयजामहे स्वाहा॥
यजमान तथा यजमान की पत्नी करम्भ पात्र को शूर्प में रखकर मस्तक में धारण करें। पूर्व की तरफ मुँह करके यजमान तथा उसकी पत्नी दक्षिणाग्नि में करम्भ पात्रों की आहुति देते हुए बोले, हे मरुद्गण! जो हमने गाँव में निवास करते हुए पाप किये हैं, जो हमने वन में निवास करते हुए मृगवधादिजन्य पाप किये हैं एवं सभास्थल पर सत्पुरुषों के अपमान करने-जैसे पाप किये हैं, जीभ इत्यादि इन्द्रियों के द्वारा निन्दनीय पदार्थों का भक्षण करने-जैसे जिन पापों का आचरण हमने किया है, उन सभी प्रकार के पापों को हम आहुति प्रदान करके नष्ट करते हैं। यह आहुति हम पाप नाशक मरुत देवताओं के निमित्त समर्पित करते हैं।[यजुर्वेद 3.45]
करम्भ पात्र :: वैदिक धर्म में, विशेषकर वरुणप्रघास पर्व के लिए, एक विशेष प्रकार का पात्र है, जो गोल, दीपक के आकार का होता है और जौ से बनाया जाता है।
The host along with his wife should put the Krambh pot in winnower and keep it over their head. Facing east they should offer sacrifices to Krambh pots and say, "Hey Marud Gan! The sins committed by us in the village while living there, the sins in the forest like killing deer etc., insulting virtuous people in the meetings-assembly, eating of taboo good etc., we should destroy them while making sacrifices". We make this sacrifice for the destroyer of sins Marud Gan.(18.03.2025)
मो षू ण इन्द्रात्र पृत्सु देवैरस्ति हि ष्मा ते शुष्मिन्नवयाः।
महश्चिद्यस्य मीढुषो यव्या हविष्मतो मरुतो वन्दते गीः॥
हे बलशाली देवराज इन्द्र ! आप युद्ध के समय में देवताओं का पक्ष ग्रहण करनेवाले हैं, अतः आप हमारी हिंसा न करें। आप महाज्ञानी हैं। अभीष्टवर्षक एवं हविष्यान्न को ग्रहण करने वाले देवराज इन्द्र! आपका माहात्म्य यवमय हवि के सदृश है। हम अपने वचनों के द्वारा आपके मित्र मरुद्गणों की भी आराधना करते हैं।[यजुर्वेद 3.46]
माहात्म्य :: महिमा, गौरव; greatness.
Hey mighty Indr Dev! You are on the side of demigods in the war, hence do not harm us. You are enlightened. Accomplisher of desires and acceptor of oblations, hey Indr Dev! Your glory-greatness in like the offerings having barley. We worship your friends Marud Gan with our speech.
अक्रन् कर्म कर्मकृतः सह वाचा मयोभुवा। देवेभ्यः कर्म कृत्वास्तं प्रेत सचाभुवः॥
यजमान पत्नी बोले, "वरुणप्रघास अनुष्ठानरूप कर्म करने वाले याजकगण सुखरूप, स्तुति रूप वाणी के साथ मन्त्रों का पाठ करते हैं। आपस में सहभाव से रहने वाले हैं"। ऋत्विग्गणों! आप देवगणों के निमित्त वरुणप्रघास नामक अनुष्ठान कर्म करके अपने गृह की ओर गमन करें।[यजुर्वेद 3.47]
The wife of host-Yajman should say, "The Yajak performing Varun Praghas rites-rituals recite Stuti in the form of Mantr and live together in harmony. Ritviz Gan! For the sake of demigods perform Varun Praghas rites and move to your homes-houses.
अवभृथ निचुम्पुण निचेरुरसि निचुम्पुणः। अव देवैर्देवकृतमेनोऽयासिषमव मत्यैर्मर्त्यकृतं पुरुराव्णो देव रिषस्पाहि॥
नीचे की ओर बहने वाले अवभृथ यज्ञ रूप हे जल प्रवाहो! यद्यपि आप अति वेगवान् हैं; तथापि अत्यधिक मन्थर गति से प्रवाहित हों। मैंने इस अवभृथ याग के द्वारा देवों के प्रति किये गये दुष्कर्म को इस जल में धोकर उन देवताओं से क्षमा करा लिया है। हे इन्द्र देव! आप उन शत्रुओं से हमें बचायें, जो हमें पीड़ित करनेवाले हैं।[यजुर्वेद 3.48]
अवभृथ यज्ञ :: एक वैदिक अनुष्ठान है जो यज्ञ के अंत में किया जाता है, जिसमें यज्ञ में शामिल सभी लोग पवित्र जल में स्नान करते हैं, जिससे वे शुद्ध हो जाते हैं।
Hey water streams flowing in the down ward direction in the form of Avbhrat Yagy! You run with high speed. I got pardoned for my sins towards demigods-deities by washing off in this water. Hey Indr Dev! Protect us from the enemies who wish to tease us.
पूर्णा दर्वि परा पत सुपूर्णा पुनरापत। वस्नेव विक्रीणावहा इषमूर्जꣳ शतक्रतो॥
साकमेध पर्व में थाली में रखे हुए भात को दर्वी-लकड़ी द्वारा निर्मित चमचा, नामक चमस पात्र से निकालकर याजक हवि समर्पित करते हुए बोले, हे दविं (कलछुल)! आप अन्न से युक्त स्थाली से भरी हुई निकलकर देवराज इन्द्र की ओर प्रस्थान करें और अभीष्ट प्राप्ति करके वापस लौटो। हे शतक्रतु देवराज इन्द्र! हम आपको हविष्यान्न समर्पित करें तो आप उसके बदले में हमें वर्षा तथा अन्न प्रदान करें।[यजुर्वेद 3.49]
The Yajak should use the Darvi (a spoon made of wood), take the oblation from the plate with it, in Sak Medh Parv and say, "hey Darvi! Come out of the Sthali-plate full of food grains and move towards Indr Dev and return after accomplishment of your desire". Hey performer of hundred Yagy! We make offerings to you and seek rains and food grains in return.
देहि मे ददामि ते नि मे धेहि नि ते दधे।
निहारं च हरासि मे निहारं नि हराणि ते स्वाहा॥
देवेन्द्र का कथन, हे याजक! पहले आप हमें आहुति समर्पित करें। तदुपरान्त हम आपको उपयुक्त अपेक्षित फल (वर्षा) प्रदान करेंगे। जब आप (याजक) हमें निश्चित रूप से आहुति समर्पित करेंगे, तब हम भी निश्चित रूप से आपको मनोवांछित फल प्रदान करेंगे। याजक का कथन, हे देवेन्द्र! हम आपको निश्चित रूप से आहुति प्रदान करेंगे, आप भी हमें उसका प्रतिफल निश्चित रूप से प्रदान करें। यह आहुति आपके लिये है।[यजुर्वेद 3.50]
Devendr says, "Hey Yajak! First you make offerings for me, thereafter I will reward you with rains". The Yajak replied, "Hey Devendr! To be sure, we are making offerings to you and you will reward us. Accept the offerings".
अक्षन्नमीमदन्त ह्यव प्रिया अधूषत। अस्तोषत स्वभानवो विप्रा नविष्ठया मती योजा न्विद्र ते हरी॥
पितृयज्ञ में हमारे द्वारा प्रदान किये गये हविष्यान्न को पितर गणों ने भक्षण कर लिया है, जिसके विषय में हमें हर्षयुक्त पितरों ने सिर हिलाकर बतलाया है। स्वयं दीप्ति युक्त शास्त्रादि के ज्ञाताओं ने नूतन मन्त्रों से स्तुति आरम्भ कर दी है। हे देवेन्द्र! आप अपने हरितवर्णवाले घोड़ों को रथ में योजित करें; क्योंकि अभीष्ट पितरगणों की संतुष्टि हेतु आपको शीघ्रता-पूर्वक आगमन करना होगा।[यजुर्वेद 3.51]
The Pitr-Manes have eaten the oblations made by us in the Pitr Yagy. The Pitr Gan nodded affirmatively, happily. Noted scholars of scriptures started the Stuti with newly composed Mantr. Hey Devendr! Deploy your green coloured horses in the charoite, since you have to move fast to satisfy the Pitr.
सुसन्दृशं त्वा वयं मघवन् वन्दिषीमहि। प्र नूनं पूर्णबन्धुर स्तुतो यासि वशाँ अनु योजा न्विन्द्र ते हरी॥
हे सुन्दर स्वरूपवाले वैभवशाली इन्द्र देव! हम आपकी आराधना करते हैं। आप स्तवनीय, स्तुति कर्ताओं को प्रदान करने वाले धन से भरे हुए रथ वाले हैं, अतः जो याजक आपकी अभिलाषा करते हैं, उनके समीप आप त्वरित गति से पहुँच जाते हैं। हे देवेन्द्र! आप अपने हरित वर्ण वाले घोड़ों को रथ में योजित करें।[यजुर्वेद 3.52]
Hey beautiful-handsome Indr Dev, having grandeur! We worship you. You have the wealth desired by the worshipers, in your charoite. You reach the Yajak quickly who invoke you. Hey Devendr! Deploy your green coloured horses in the charoite.
मनो न्वाह्वामहे नाराशꣳ सेन स्तोमेन। पितॄणां च मन्मभिः॥
हम मनुष्य-सम्बन्धी स्तोत्रों द्वारा तथा पितरों के आकांक्षित स्तोत्रों द्वारा शीघ्र मन का व मन के अधिष्ठात्री देवता का पितृलोक से आवाहन करते हैं अर्थात् पितृगण अनुष्ठान में जो हमारा मन पितृलोक में गया था, उसे हम बुलाते हैं।[यजुर्वेद 3.53]
We humans invoke the Pitr Gan from Pitr Lok-abode, with related Strotrs, rites, rituals.
आ न एतु मनः पुनः क्रत्वे दक्षाय जीवसे। ज्योक्च सूर्य दृशे॥
यज्ञरूप अच्छे कार्य हेतु, कार्यों में कुशलता हेतु एवं दीर्घकाल तक सूर्य देव का दर्शन करने हेतु मेरा मन बारम्बार पितृलोक से वापस आकर यज्ञकर्म में संलग्न हो जाय।[यजुर्वेद 3.54]
Let my innerself come back from the Pitr Lok for performing virtuous deeds like Yagy and seeing Sury Dev for long.
पुनर्नः पितरो मनो ददातु दैव्यो जनः। जीवं व्रातꣳ सचेमहि॥
हे पितरगणो! देव-सम्बन्धी पुरुष हमारे मन को फिर से हमें प्रदान करें, जिससे हम पुत्र, पशु आदि समूहों का भली प्रकार पालन कर सकें।[यजुर्वेद 3.55]
Hey Pitr Gan! Purus related with the demigods-deities should grant us our innerself again, so that we can nourish-support our sons, cattle, etc. properly.
वयꣳ सोम व्रते तव मनस्तनूषु बिभ्रतः। प्रजावन्तः सचेमहि॥
हे सोम देव! पुत्र-पौत्रादि से सम्पन्न हम यजमान यज्ञ और व्रतों में आपके स्वरूप में चित्त लगाकर सेवनीय वस्तुओं का सेवन करें।[यजुर्वेद 3.56]
Hey Som Dev! Let us-the Yajman, having sons & grands sons, engage our innerself in Yagy & Vrat and your form; consume the useful goods.
एष ते रुद्र भागः सह स्वस्त्रा म्बिकया तं जुषस्व स्वाहैष ते रुद्र भाग आखुस्ते पशुः॥
हे रुद्र! हमारे द्वारा दिया हुआ यह पुरोडाश आपका भाग है; आप अपनी भगिनी अम्बिका के साथ इसका सेवन कीजिये। यह प्रदत्त हवि सुहुत रहे। हमारे द्वारा अवकीर्ण किया गया यह पुरोडाश आपका भाग है; आपके द्वारा इसका सेवन किया जाय। हमने इस मूषक संज्ञक पशु को आपके लिये अर्पित किया है।[यजुर्वेद 3.57]
Hey Rudr! This Purodas offered by us is yours. Use this with your wife Ambika. Let this offering made by us become beneficial-useful. This Purodas prepared by us is your share. You should consume it. We have offered this rat to you.(19.03.2025)
अव रुद्रमदीमह्यव देवं त्र्यम्बकम्। यथा नो वस्यसस्करद्यथा नः श्रेयसस्करद्यथा नो व्यवसाययात्॥
चित्त में रुद्र और त्र्यम्बक का ध्यान करके (अथवा अन्य देवताओं से पृथक् करके) हम रुद्र को अन्न खिलाते हैं। वे रुद्र हमें निवसनशील और ज्ञाति में श्रेष्ठ कर दें तथा वे हमें समस्त कार्यों में शीघ्र निर्णय लेने की शक्ति प्रदान करें, इसके लिये हम उनका जप करते हैं।[यजुर्वेद 3.58]
ज्ञाति :: एक ही गोत्र में उत्पन्न मनुष्य, गोती; relative, cognate.
We meditate-concentrate over Rudr and Trayambak (other than demigods-deities) we feed Rudr with food grains. He should make us functional & superior in our clan, grant us strength to perform our deeds quickly. We perform Jap-recitation for him.
भेषजमसि भेषजं गवेऽश्वाय पुरुषाय भेषजम्। सुखं मेषाय मेष्यै॥
हे रुद्र! आप औषधि के तुल्य समस्त उपद्रवों के निवारक हैं, अतः हमारे गाय, अश्व और भृत्य आदि को सर्वव्याधिनिवारक औषधि दीजिये और हमारे मेष तथा मेषी को सुख प्रदान कीजिये।[यजुर्वेद 3.59]
Hey Rudr! You clam down our troubles like a medicine. Hence, grant us medicine for our cows, horses and servants. Grant comfort to our sheep.
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। माऽमृतात्। त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पतिवेदनम्। उर्वारुकमिव बन्धनादितो मुक्षीय मामुतः॥
दिव्य गन्ध से युक्त, मृत्युरहित, धन-धान्यर्वधक, त्रिनेत्र रुद्र की हम पूजा करते हैं। वे रुद्र हमें अपमृत्यु और संसाररूप मृत्यु से मुक्त करें। जिस प्रकार ककड़ी (फूट, ककड़ी, खीरा आदि) का फल अत्यधिक पक जाने पर अपने वृन्त (डंठल) से मुक्त हो जाता है, उसी प्रकार हम भी मृत्यु से छूट जायँ; किन्तु अभ्युदय और निःश्रेयसरूप अमृत से हमारा सम्बन्ध न छूटने पाये। (अग्रिम वाक्य कुमारिकाओं का है) पति की प्राप्ति कराने वाले, सुगन्ध विशिष्ट त्रिनेत्र शिव की हम पूजा करती हैं। ककड़ी (फूट) का फल परिपक्व होने पर जैसे अपने डंठल से छूट जाता है, उसी प्रकार हम कुमारियाँ माता, पिता, भाई आदि बन्धुजनों से तथा उस कुल से छूट जायें, किन्तु त्र्यम्बक के प्रसाद से हम अपने पति से न छूटें अर्थात् पिता का गोत्र तथा घर छोड़कर पति के गोत्र तथा घर में सर्वदा रहें।[यजुर्वेद 3.60]
We worship Tri Netr (three eyed) Rudr. He should free us untimely death. Let Rudr Dev release us from the bonds of death like the cucumber and treat us with nectar-elixir. Our relation with nectar-elixir should remain intact. We worship Tri Netr who grant us husband. We should be detached from our parental family but stay our husband by the blessings of Rudr.
एतत्ते रुद्रावसं तेन परो मूजवतोऽतीहि। अवततधन्वा पिनाकावसः कृत्तिवासा अहिꣳ सन्नः शिवोऽतीहि॥
हे रुद्र! आपका यह 'अवस' संज्ञक हविः शेष भोज्य है ('अवस' का अर्थ है- प्रवास में किसी सरोवर के समीप विश्राम करने पर भक्षण योग्य ओदन विशेष), उसके सहित आप अपने धनुष की प्रत्यञ्चा को हटाकर मूजवान् पर्वत के उस पार जाइये। (मूजवान् पर्वत पर रुद्र निवास करते हैं) प्रवास करते समय आप अपने 'पिनाक' नामक धनुष को सब ओर से आच्छादित कर लें, जिससे कोई भी प्राणी आपके धनुष को देखकर भयभीत न हो। हे रुद्र! आप चर्माम्बर धारण करके हिंसा न करते हुए हमारी पूजा से संतुष्ट होकर मूजवान् पर्वत को लाँघ जाइये।[यजुर्वेद 3.61]
We offer you Avas for eating. Cross the Mujvan Mountain by pulling string over your bow. Let your Pinak bow pervade all directions, so that the creatures are not afraid. Hey Rudr! Wear the skin and tiger and cross the Mujvan mountain being satisfied with our prayers.
त्र्यायुषं जमदग्नेः कश्यपस्य त्र्यायुषम्। यद्देवेषु त्र्यायुषं तन्नो अस्तु त्र्यायुषम्॥
जमदग्नि ऋषि की बाल्य-यौवन-वृद्धावस्था के जो उत्तम चरित्र हैं, कश्यप प्रजापति की तीनों अवस्थाओं के जो उत्तम चरित्र हैं तथा देवगणों में भी उनकी तीनों अवस्थाओं के जो प्रशंसनीय चरित्र विद्यमान हैं, तीनों अवस्थाओं से सम्बन्धित वैसा ही चरित्र हम यजमानों का भी हो।[यजुर्वेद 3.62]
We-Yajman should have the best, appreciable characterises of Jamdagni Rishi, Kashyap Prajapati, demigods-deities life's three stages.
शिवो नामासि स्वधितिस्ते पिता नमस्ते अस्तु मा मा हिꣳ सीः। नि वर्त्तयाम्यायुषेऽन्नाद्याय प्रजननाय रायस्पोषाय सुप्रजास्त्वाय सुवीर्याय॥
हे क्षुर! आपका नाम 'शान्त' है। वज्र आपके पिता हैं, मैं आपके लिये नमस्कार करता हूँ। आप मेरी हिंसा मत कीजिये। हे यजमान! बहुत दिनों तक जीवित रहने के लिये, अन्न-भक्षण करने के लिये, संतति के लिये, द्रव्य वृद्धि के लिये, योग्य संतान उत्पन्न होने के लिये तथा उत्तम सामर्थ्य की प्राप्ति के लिये मैं आपका मुण्डन करता हूँ।[यजुर्वेद 3.63]
क्षुर Kshur :: छुरी, उस्तरा; knife, razor.
Hey Kshur! You are named Shant-peaceful. Vajr is your father. I salute you. Do not harm me. Hey Yajman! I shave your head for excellent capability, able progeny, enhancement of wealth, longevity, eating food grains.(20.03.2025)
यजुर्वेद संहिता, चतुर्थ अध्याय :: ऋषि :- प्रजापति, आत्रेय, आंगिरस, वत्स, गोतम; देवता :- अबोषध्यौ, आप, मेघ (जल), परमात्मा, यज्ञ, अग्न्यब्बृहस्पत्य, ईश्वर, विद्वान् (कृष्णाजिन), अग्नि, मेखला, नीवि, कृष्णविषाण, दण्ड, वाग्विद्युत्, सविता, सोम, वरुण, सूर्यविद्वांसो, यजमान, सूर्य; छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्, पंक्ति, अनुष्टुप्, उष्णिक्, बृहती, शक्वरी, गायत्री।
एदमगन्म देवयजनं पृथिव्या यत्र देवासो अजुषन्त विश्वे। ऋक्सामाभ्याꣳ सन्तरन्तो यजुर्भी रायस्पोषेण समिषा मदेम। इमा आपः शमु मे सन्तु देवीरोषधे त्रायस्व स्वधिते मैनꣳ हिꣳ सीः॥
हम याजकगण उस श्रेष्ठ यज्ञस्थल पर इकट्ठा हुए हैं, जिस स्थान पर समस्त देवतागण आगमन करके प्रसन्न होते हैं। हम ऋक् एवं साम के मन्त्रों द्वारा एवं यजुमन्त्रों द्वारा यज्ञकार्य को सम्पन्न करते हुए वर्षा, धन-धान्य आदि की प्राप्ति करें। यजमान मुण्डन कार्य हेतु जल से सिर को भिगोते हुए बोले, यह कान्ति युक्त पवित्र जल हमारे निमित्त निःसन्देह सुख प्रदान करने वाला हो। हे अलौकिक गुणों से सम्पन्न ओषधे! आप हमारी छुरे से सुरक्षा करें। हे छुरे ! आप इस याजक की हिंसा न करें।[यजुर्वेद 4.1]
The Yajak-Ritviz have gathered at the excellent Yagy place where all demigods get pleasure on arrival. Let us have rains, wealth, food grains by the recitation of the hymns-Mantr of Rik, Sam & Yaju performing the Yagy related deeds. Yajman-hosts should wet the head for shaving and say, "This aurous-pious water should grant us pleasure beyond doubt. Hey medicines possessing divine qualities! Protect us from the razor. Hey razor! Do not harm the Yajak.
आपो अस्मान्मातरः शुन्धयन्तु घृतेन नो घृतप्वः पुनन्तु। विश्वꣳ हि रिप्रं प्रवहन्ति देवीरुदिदाभ्यः शुचिरा पूत एमि। दीक्षातपसोस्तनूरसि तां त्वा शिवाꣳ शग्मां परि दधे भद्रं वर्णं पुष्यन्॥
यजमान स्नान हेतु नदी के जल में प्रवेश करके बोले, हे माता के सदृश जीवनरक्षक जल! आप हमें पावन करें। घृत के द्वारा शुद्ध हुए जल हमें यज्ञकर्म करने के निमित्त पावन करें। यह तेजस्वी जल हमारे सम्पूर्ण कुकृत्यों को नष्ट करे। स्नानादि के द्वारा स्वच्छ होकर तथा आचमन के द्वारा पावन होने के पश्चात् ही हम जल से बाहर निकलते हैं। हाथ में धोती लेकर बोले, हे क्षौम वस्त्र! आप कर्म में प्रवृत्त होने की दीक्षा तथा कर्म में होने वाले कष्टों को सहने की प्रतीक हो। आप कोमल होने के कारण सुख प्रदान करने वाले, कल्याणकारी, कान्ति से सम्पन्न उत्तम वर्ण वाले वस्त्र को हम ऋत्विग्गण धारण करते हैं। इससे हमारा वर्ण और कान्तिमान हो जाता है, मैं तुम्हें धारण करता हूँ।[यजुर्वेद 4.2]
आचमन :: जल पीना, ओक में जल लेकर पीना (पूजन शुद्धि); rinse, sip.
हाथ में जल लेकर उसे अपने मुँह में डालने की क्रिया को आचमन कहते हैं। साधक अथवा ब्रह्मचारी सीधे हाथ की अंजलि में जल लेकर तीन बार मुँख में ग्रहण करे तत्पश्चात शेष जल को भोजन की परिक्रमा करते निम्नलिखित मंत्रोचार के साथ भूमि पर गिराये (Ablution, हस्त प्रक्षालन; धार्मिक कार्य में शरीर, हाथ या पवित्र पात्रों का शुद्ध करना), जल पीना, ओक में जल लेकर पीना (पूजन शुद्धि); rinse, sip. The practitioner-celibate should take a few drops of water in his right hand arm pit and then put a few of them in his mouth thereafter, drop the rest by of them by circumambulation the food in front of him by reciting the names of God.
Yajman should enter the river for bathing and say, "Hey mother like life protecting water! Sanctify us. Water sanctified with Ghee purify us for the Yagy Karm. This radiant water should destroy all of our wicked-vicious deeds. We come out of river sipping water. Hold the loin cloth-Dhoti in the hand and say, "Hey Kshoum Vastr (cotton clothing)! You represent the intension of Karm-deeds and bearing of pain in it". We wear soft, comfortable, welfare causing, radiant cloth of best colour. On wearing it make us radiant.
महीनां पयोऽसि वर्चीदा असि वर्चों मे देहि।
वृत्रस्यासि कनीनकश्चक्षुर्दा असि चक्षुर्मे देहि॥
यजमान हाथ में नवनीत लेकर बोले, हे गव्य नवनीत! आप गौओं के दुग्ध के साररूप हैं। आप तेज सम्पादन करने में सक्षम हैं, आप हमें ब्रह्मतेज प्रदान करें। (यजमान हाथ में काजल लेकर बोले) हे अंजन! आप वृत्रासुर की कनीनिका (नेत्र की पुतली) हैं। आप देखने की शक्ति प्रदान करनेवाले हैं। हे काजल! आप हमें चक्षुरिन्द्रिय की उत्कृष्टता प्रदान करें।[यजुर्वेद 4.3]
काजल :: आँखों में लगाया जानेवाला एक पदार्थ, अंजन; soot applied in the eyes, lampblack
Yajman should hold butter in the hand and say, "Hey butter! You are like the extract of cow's milk". You are capable of energising us, hence grant us Brahm Tej-aura. Yajman should hold soot applicable in the eyes and say, "Hey Anjan! You are eye ball of Vratr Sur. Grant us power to see". Hey Kajal! Make our eyes excellent.
चित्पतिर्मा पुनातु वाक्पतिर्मा पुनातु देवो मा सविता पुनात्वच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभिः। तस्य ते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत्कामः पुने तच्छकेयम्॥
ज्ञान के अधिपति व मन के अधिष्ठात्र देवता प्रजापति हमें पवित्र करें। वाणी के अधिपति बृहस्पति हमारी वाणी को पवित्र करें। छिद्रों (दोषों) से रहित पवित्र सविता देव हमें पवित्र वायु और अपनी रश्मियों से पवित्र करें। हे पवित्र पते! सोमयज्ञ अनुष्ठान करने की इच्छा से हम शुद्ध होना चाहते हैं, हमें यज्ञ अनुष्ठान करने की सामर्थ्य की प्राप्ति हो।[यजुर्वेद 4.4]
Lord of knowledge and the innerself deity Praja Pati should sanctify us. Lord of speech Brahaspati should make our voice pious. Hey Savita Dev! Free from weakness, make us pious with pious-pure air and your rays. Hey Pavitr Pate! We want to become pious-pure with the desire of conducting Som Yagy. Grant us the capability to hold Som Yagy.
आ वो देवास ईमहे वामं प्रयत्यध्वरे। आ वो देवास आशिषो यज्ञियासो हवामहे॥
हे देवताओं! यज्ञ के आरम्भ होने के पश्चात् हम उस यज्ञ के फल को प्राप्त करने की इच्छा से आप सबको आवाहित करते हैं। हे देवताओं! हम यज्ञ-सम्बन्धी फलों की प्राप्ति हेतु आपसे आशीर्वाद माँगते हैं।[यजुर्वेद 4.5]
Hey demigods-deities! We invoke you for the outcome-reward of Yagy after initiating it. Bless us for the auspicious effects of the Yagy.
स्वाहा यज्ञं मनसः स्वाहोरोरन्तरिक्षात् स्वाहा द्यावा पृथिवीभ्याꣳ स्वाहा वातादारभे स्वाहा॥
हम सच्चे मन से यज्ञ करने में प्रवृत्त हुए हैं। यह आहुति सर्पित है। विस्तृत अन्तरिक्ष लोक के निमित्त हम अनुष्ठान करते हैं। यह आहुति समर्पित है। स्वर्गलोक और भूलोक के निमित्त हम यज्ञानुष्ठान करते हैं। यह आहुति समर्पित है। समस्त कर्मों को प्रेरित करने के लिए वायुदेव की अनुकम्पा से हम यज्ञ आरम्भ करते हैं। यह आहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 4.6]
We have intended desired to hold Yagy with pure heart-mind. This oblation is meant for you. We hold rites-rituals for the vast space-sky. This offering is presented to you. We conduct Yagy for the sake of heavens and earth. Inspired by all endeavours-efforts, we begin Yagy with the blessings of Vayu Dev. This sacrifice is for you.
आकूत्यै प्रयुजेऽग्नये स्वाहा मेधायै मनसेऽग्नये स्वाहा दीक्षायै तपसेऽग्नये स्वाहा सरस्वत्यै पूष्णेऽग्नये स्वाहा। आपो देवीबृहतीर्विश्वशम्भुवो द्यावापृथिवी उरो अन्तरिक्ष। बृहस्पतये हविषा विधेम स्वाहा॥
यज्ञानुष्ठान करने के मानसिक संकल्प की पूर्ति और उसकी सफलता हेतु अग्नि देव के निमित्त यह हवि निवेदित है। श्रुत मन्त्र की धारणा शक्ति वाली मेधा एवं मन को प्रवृत्त करने वाले अग्नि देव को यह हवि निवेदित है। दीक्षा और तप के निमित्त अग्नि देव को यह हवि समर्पित है। वाणी की देवी सरस्वती एवं वाक् इन्द्रिय का पोषण करने वाले पूषा देव के निमित्त अग्नि में यह हवि समर्पित है। हे स्वर्गलोक तथा भूलोक! हे अत्यन्त विस्तीर्ण अन्तरिक्ष लोक! हे प्रकाशमान बृहत् जगत् को आनन्दित करने वाले जल! हम उत्तम ज्ञान को प्राप्त करने हेतु आहुति निवेदित करते हैं। यह हवि बृहस्पति देव के निमित्त निवेदित है।[यजुर्वेद 4.7]
श्रुत मन्त्र :: सुना हुआ मंत्र, वेदों से प्राप्त मंत्र; listened or Ved Mantr.
This offering is meant for Agni Dev for mental preparedness-readiness for the Yagy and its success. This Oblation is for Agni Dev for the mental power and intelligence, intending-inclining the brain. This offerings is for initiation and ascetics for Agni Dev. This offering is for Devi Saraswati and nurturer of sense organs Pusha Dev and is devoted-meant for offering to Agni Dev. Hey heavens and earth, vast sky-space, water i.e., grantor of pleasure to illuminated vast universe! We make offerings to have excellent knowledge-enlightenment. This offering is for Brahaspati Dev.(21.03.2025)
विश्वो देवस्य नेतुर्मर्ती वुरीत सख्यम्।
विश्वो राय इषुध्यति द्युम्नं वृणीत पुष्यसे स्वाहा॥
समस्त देवताओं के अग्रणी सविता देव के मित्र भाव को मनुष्य अपने कल्याण के लिये वरण करे। सभी मनुष्य धन के लिये सविता देवता की प्रार्थना करते हैं। अपनी सन्तति का पोषण करने के लिये धन वरण करें। सविता देवता के निमित्त यह आहुति है।[यजुर्वेद 4.8]
Let the humans accept the leader of demigods Savita Dev for their welfare. All humans pray to Savita Dev for wealth. We should accept him for the nourishment of our progeny. This oblation is for Savita Dev.
ऋक्सामयोः शिल्पे स्थस्ते वामारभे ते मा पातमास्य यज्ञस्योदृचः।
शर्मासि शर्म मे यच्छ नमस्ते अस्तु मा मा हिꣳसीः॥
कृष्ण मृग चर्म की सफेद धारियों का स्पर्श कर बोलें, हे धारियो! तुम ऋग्वेद और सामवेद का प्रतिरूप हो। तुम्हें मैं बिछाता हूँ, तुम दोनों इस यज्ञ की समाप्ति तक हमारी रक्षा करो। हे मृग चर्म! तुम मृगचर्म हो तुम मुझे सुख दो, तुम्हें मेरा नमस्कार है। मेरी हिंसा मत करो, मेरी हिंसा मत करो।[यजुर्वेद 4.9]
Touch the white strips over the black skin of the deer and say, "Hey white strips! You are the replica of Rig Ved & Sam Ved". I spread you for protection during the performance of the Yagy. Hey deer skin! I salute you for pleasure. Do not harm me.
ऊर्जस्यांगिरस्यूर्णम्प्रदा उर्जं मयि धेहि। सोमस्य नीविरसि विष्णोः शर्मासि शर्म यजमानस्येन्द्रस्य योनिरसि सुसस्याः कृषीस्कृधि। उच्छ्यस्व वनस्पत ऊर्ध्वा मा पाह्यꣳहस आस्य यज्ञस्योदृचः॥
यजमान मेखला को हाथ में लेकर बोले, हे यज्ञ मेखले! तुम अंगिरस नामक ऋषि की शक्ति हो। तुम ऊन के गलीचे के समान कोमल हो। तुम मुझ में शक्ति धारित करो। मेखला में गाँठ लगाते हुए बोलें, हे गाँठ! तुम सोम देवता की प्रियभूता ग्रन्थि हो। हे वस्त्र! तुम विष्णु रूप व्यापक हो, यज्ञ को सुख पूर्वक सम्पन्न करने वाले हो अतः यजमान को सुख प्रदान करो। हे काले मृग की सींग! तुम इन्द्र का निवासस्थान हो। हे सींग! तुम यजमान की कृषि को फलवती बनाओ। हाथ में दण्ड ग्रहण करके बोलें, हे वृक्ष के अवयव रूप दण्ड! उठो, मुझे पाप से बचाओ। इस यज्ञ के समाप्ति तक इसी रूप में रहकर रक्षा करो।[यजुर्वेद 4.10]
मेखला :: क्षेत्र, पेटी, पट्टा, कमरबन्द, करधनी, कटिसूत्र, कमरबन्द, परिखा; cord, belt, girdle, waistband.
Yajman should hold the cord in the hand and address it, "Hey Mekhla! You are the strength of Rishi Angiras". You ae soft like the cushion made of wool. Grant me strength. Tie knot in the cord and say, Hey Knot! You ae favourite to Som Dev. Hey cloth! You pervade like Bhagwan Shri Hari Vishnu. You hold the Yagy comfortably granting us pleasure. Hey horn of the black deer! Make the cultivation-agriculture of the Yajman successful. Hold wooden staff in the hand and say, "Hey segment of tree, wooden staff! Protect-save me from sin". Protect me continue in the form till the Yagy is accomplished protecting us.
व्रतं कृणुताग्निर्ब्रह्माग्निर्यज्ञो वनस्पतिर्यज्ञियः। दैवीं धियं मनामहे सुमृडीकामभिष्टये वर्चीधां यज्ञवाहसꣳ सुतीर्था नो असद्वशे। ये देवा मनोजाता मनोयुजो दक्षक्रतवस्ते नोऽवन्तु ते नः पान्तु तेभ्यः स्वाहा॥
यजमान बोले, हे ऋत्विग्गण! दुग्ध दोहनादिरूप नियम व्रत का पालन करो। यह यज्ञाग्नि ब्रह्म वेद रूप है। यह अग्नि यज्ञ साधन रूप है। खदिर, पीपल इत्यादि वनस्पतियाँ जो यज्ञ योग्य हैं, वह भी यज्ञ स्वरूप हैं। यज्ञानुष्ठान की सिद्धि हेतु देवों को लक्ष्य बनाकर प्रदान की गयी, सुख के निमित्त तेज को धारण करने वाली, यज्ञ के नियमों का पालन करने वाली, यज्ञानुष्ठान में प्रयुक्त होने वाली बुद्धि की हम प्रार्थना करते हैं। सुस्पष्ट बुद्धि हमारे अधीनस्थ रहे। दर्शन-श्रवणादि रूप कामना से प्रादुर्भूत मन से सम्बद्ध, कुशल संकल्प वाले देवगण यज्ञानुष्ठान के विघ्नों को दूर करके हमारी सुरक्षा करें। प्राणरूप देवों के निमित्त यह दुग्धरूपी हवि अर्पित है।[यजुर्वेद 4.11]
Yajman-host should say, Hey Ritviz Gan! Follow the rule for milking. Fire in the Yagy is a form of Brahm Ved. Fire-Agni is like a means for the Yagy. Khadir & Peeple etc. vegetation-wood are good-suitable for the Yagy and replica of Yagy. We worship the intelligence for performance of Yagy, follow the rules for Yagy ceremonies bearing the aura of the Yagy. Clear mind-intellect should remain under our control. Demigods-deities controlling our vision & hearing should remove the obstacles and protect us. This offerings in the form of milk is offered like air vital.
श्वात्राः पीता भवत यूयमापो अस्माकमन्तरुदरे सुशेवाः।
ता अस्मभ्यमयक्ष्मा अनमीवा अनागसः स्वदन्तु देवीरमृता ऋतावृधः॥
हे जल! हमारे द्वारा सेवन करने पर आप शीघ्रतापूर्वक पच जाते हैं। सेवन करने पर आप हमारे उदर में प्रवेश करके हमारे निमित्त सुख प्रदान करने वाले होते हैं। आप प्रबल राजरोग से रहित, सामान्य विघ्नों को दूर करने वाले, अपराधों का निवारण करने वाले, यज्ञकार्यों में सहायक रूप, स्वयं मरण धर्म रहित, दिव्य गुणों से युक्त हमारे लिए स्वादुयुक्त हों।[यजुर्वेद 4.12]
Hey Jal-water! You are easily digested on drinking. You grant us comfort, while entering our stomach. You are free from extreme Raj Rog (Tuberculosis, acute diseases), removes common disturbances, removes sins, helps in the Yagy, immortal, tasty and possess divine traits-qualities.
इयं ते यज्ञिया तनूरपो मुञ्चामि न प्रजाम्। अꣳ होमुचः स्वाहाकृताः पृथिवीमा विशत पृथिव्या सम्भव॥
मूत्र त्याग करने के पूर्व कालेमृग की सींग से खोदकर मिट्टी का एक ढेला हाथ में लेकर यजमान बोले, हे मिट्टी के ढेले! यह पृथ्वी तुम्हारा यज्ञ सम्बन्धी शरीर है। मैं मूत्र त्याग करता हूँ। संतानोत्पादक वीर्य नहीं त्याग रहा हूँ। विषाक्त जल को शरीर से बाहर निकलने वाले और क्षीरपान के द्वारा मुखाग्नि में आहुति कर हे मूत्र जलों! तुम पृथ्वी में सूख जाओ; क्योंकि तुम पृथ्वी से ही तो उत्पन्न हुए थे।[यजुर्वेद 4.13]
मिट्टी का ढेला :: clod of earth, lump of clay.
क्षीरपान :: drinking milk.
The Yajman-host should hold a piece of mud-clod in the hand by digging with the horn of black deer, prior to urination and say, "Hey mud clod! This earth is your body related to Yagy. I am urinating. I am not rejecting sperms for the production of progeny". Remove poisons material from the body and drink milk, making offerings in the mouth; say, "Hey urine water! Dry in the earth, since you evolved out of earth".
अग्ने त्वꣳ सु जागृहि वयꣳ सु मन्दिषीमहि। रक्षा णो अप्रयुच्छन् प्रबुधे नः पुनस्कृधि॥
हे अग्नि देव! आप अच्छी तरह से जाग्रत् (प्रज्वलित) रहें। हम यजमान निद्रा का आनन्द लेंगे। आप प्रमाद रहित होकर सदैव हमारी रक्षा करें। हे अग्नि देव! आप हमें फिर से जाग्रत् करके कर्मानुष्ठान करने हेतु प्रेरित करें।[यजुर्वेद 4.14]
Hey Agni Dev! Ignite properly. We hosts-Yajman will enjoy sleep. Protect us free from ego. Awake us and inspire to conduct endeavours.
पुनर्मनः पुनरायुर्म आऽगन् पुनः प्राणः पुनरात्मा म आऽगन् पुनश्चक्षुः पुनः श्रोत्रं म आऽगन्। वैश्वानरो अदब्धस्तनूपा अग्निर्नः पातु दुरितादवद्यात्॥
निद्रा से जागकर यजमान बोले, निद्रावस्था में निश्चेतन मेरा मन प्रबुद्धावस्था में पुनः शरीर में आ गया। निद्रावस्था में नष्ट हुई मेरी आयु ऐसा प्रतीत हो रहा है, मानो फिर से मिल गयी है। इसी प्रकार प्राण, आत्मा, आँख, कर्ण इत्यादि इन्द्रियाँ जाग्रतावस्था में कार्यशील होकर फिर से प्राप्त हो गयी हैं। इस तरह सारी इन्द्रियों के क्रियाशील हो जाने के पश्चात् सम्पूर्ण जगत् के हितकर, जिनका दमन न किया जा सके तथा शरीर का संरक्षण करने वाले हे अग्नि देव! घृणित पापों से हमारी रक्षा करें।[यजुर्वेद 4.15]
Host should get up from sleep and say, "My body has become active-conscious after sleeping". It appears that my age-longevity lost in sleep has been regained. In this manner vitality, Soul, eyes, ears i.e., sense organs have become active again. On activation of my senses, well wisher of the body, unsuppressed-undominated Agni Dev! Protect us hateful sins".(22.03.2025)
त्वमग्ने व्रतपा असि देव आ मर्येष्वा। त्वं यज्ञेष्वीड्यः।
रास्वेयत्सोमा भूयो भर देवो नः सविता वसोर्दाता वस्वदात्॥
हे प्रकाशात्मक अग्नि देव! आप समस्त प्राणियों के यज्ञानुष्ठान के परिपालक हैं। आप सब तरह से यज्ञों में स्तवन करने योग्य अर्थात् पूजनीय हैं। हे सोम देवता! आप हमें जीविकोपार्जन हेतु पर्याप्त धन प्रदान कीजिये। धन, वैभव प्रदान करने वाले सविता देव ने हमें पूर्व में भी प्रचुर धन प्रदान किया है।[यजुर्वेद 4.16]
Hey luminous Agni Dev! You are the administrator of Yagy of all humans. You are worshipable in all Yagy. Hey Som Dev! Grant us sufficient money for our livelihood. Provider of wealth, grandeur Savita Dev had granted us lots of wealth earlier as well.
एषा ते शुक्र तनूरेतद्वर्चस्तया सम्भव भ्राजं गच्छ। जूरसि धृता मनसा जुष्टा विष्णवे॥
हे अग्नि देव! यह शुभ्र घृत आपका शरीर तथा स्वर्णाभ आपका वर्चस् है। आप अपने इस घृत रूपी शरीर एवं स्वर्णरूपी तेज से एकरूप होकर अन्तरिक्ष में व्याप्त हो जायँ। हे वाक् वाणी! आप वेगवान् हैं। आप मन के द्वारा धारण की हुई वाणी रूप में विष्णु अर्थात् यज्ञ को तृप्त करने वाली हैं।[यजुर्वेद 4.17]
वर्चस् :: रूप, दीप्ति, अन्न, विष्ठा, शक्ति-शौर्य, शुक्र-वीर्य, प्रताप, श्रेष्ठता, तेज, प्रभाव, गौरव, तेज, चमक, आभा, प्रकाश, शक्ति, ऊर्जा, कांति, दीप्ति; aura, radiance, luminosity, brilliance, lustre, light, splendour, glory, vital power, vigour, energy, activity, beauty, aura, shine.
Hey Agni Dev! This white Ghee forms your body and golden hue is your aura. Pervade the space with your body in the form of Ghee and golden aura. Hey Vak Devi (Deity of speech-voice)! You are dynamic. You are adopted by innerself & speech satisfying the Yagy i.e., Bhagwan Shri Hari Vishnu.
तस्यास्ते सत्यसवसः प्रसवे तन्वो यन्त्रमशीय स्वाहा।
शुक्रमसि चन्द्रमस्यमृतमसि वैश्वदेवमसि॥
हे सत्य स्वरूपा वाग्देवी! आपकी अनुकम्पा से मैं अपने शरीर को यज्ञ की समाप्ति तक दृढ़ रख सकूँ। यह आज्य हवि आपके निमित्त अर्पित की गयी है। हे हिरण्य देवता! आप तेज स्वरूप हैं। आप आनन्द प्रदान करने वाले हैं। आप अमृत स्वरूप हैं। आप समस्त देवताओं के स्वरूप हैं।[यजुर्वेद 4.18]
हिरण्य देवता :: स्वर्ण देवता या स्वर्णगर्भ। यह शब्द ऋग्वेद के 10.121 सूक्त में आता है, जहाँ प्रजापति को देवता के रूप में वर्णित किया गया है। ऋग्वेद का 10.121 सूक्त हिरण्यगर्भ सूक्त कहलाता है, जो ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बारे में है।
Hey Vag Devi, a form of truth! Let me maintain my body strong till the completion of Yagy. This offering in the form of Ghee is for you. Hey Hirany Dev! You are a form of aura granting pleasure. You are like elixir, forming the body of the demigods-deities.
चिदसि मनासि धीरसि दक्षिणासि क्षत्रियासि यज्ञियास्यदितिरस्युभयतः शीष्र्णी।
सा नः सुप्राची सुप्रतीच्येधि मित्रस्त्वा पदि बध्नीतां पूषाऽध्वनस्पात्विन्द्रायाध्यक्षाय॥
हे वाग्देवता रूप सोम क्रयणी! आप चित्त स्वरूपा हैं, आप मनस्वरूपा हैं, आप बुद्धिस्वरूपा हैं। हे गाय! आप प्रदान करने योग्य द्रव्य रूपी उत्तम दक्षिणा हैं। कर्म से आप क्षत्रिय वर्ण हैं तथा सोम सम्बन्धिनी हैं। आप यज्ञ में मन्त्र रूप में प्रयोग किये जाने योग्य हैं। आप अखण्डित अथवा देवमाता अदिति हैं। आप कठोर तथा मृदु वाणीरूप दो शीश वाली हैं। आप अग्रसर करने वाली तथा पीछे हटने में सहायता प्रदान करने वाली हैं। आप यज्ञ से बाहर न जा पायें इसके लिये मित्र आपके दायें पाँव में स्नेह रूपी पाश बाँध दें। देवताओं के अध्यक्ष देवराज इन्द्र को हर्षित करने हेतु पूषादेव यज्ञ मार्ग की सुरक्षा करें।[यजुर्वेद 4.19]
(क्रयण प्रभृति-सोम)
Hey Som, a form of Vag Dev! You form the mood, innerself & intellect. Hey cow! You are the best donation. By nature you are like Kshatriy and related to Som. You are uttered as a Mantr in the Yagy. You are unfragmented Dev Mata Aditi. You posses both harsh and soft language. You help us march forward and retreat as well. Do not move out of the Yagy. Let Mitr Dev tie your legs with affection. Hey Push Dev granting pleasure to Indr Dev, lord-king of demigods; protect the Yagy.(24.03.205)
अनु त्वा माता मन्यतामनु पिताऽनु भ्राता सगर्योऽनु सखा सयूथ्यः।
सा देवि देवमच्छेहीन्द्राय सोमꣳ रुद्रस्त्वा वर्त्तयतु स्वस्ति सोमसखा पुनरेहि॥
हे गाय! यज्ञ के निमित्त सोम क्रय करने के मूल्य के रूप में आपको आपकी माता, आपके पिता, आपके सहोदर-भ्राता, साथ-साथ रहने वाले सखा (वृषभ) आज्ञा प्रदान करें। हे दिव्य गुणों से युक्त वाग्देवि! इन्द्र देव के निमित्त सोम प्राप्त करने हेतु आप गमन करें। सोम ग्रहण करने के पश्चात् रुद्र देव आपको हम लोगों के निकट लेकर आगमन करें। आप सोम सहित हमारा मंगल करते हुए फिर से यहाँ आगमन करें।[यजुर्वेद 4.20]
Hey cow! Let your mother, father, brother and the associates-bulls allow you to be purchased as the price of Som, for the Yagy. Hey Vag Devi, possessing divine traits! Proceed to receive Som for Indr Dev. After receiving Som let Rudr Dev move you near us. Come here again with Som for our welfare-well wishes.
वस्व्यस्यदितिरस्यादित्यासि रुद्रासि चन्द्रासि।
बृहस्पतिष्ट्वा सुम्ने रम्णातु रुद्रो वसुभिरा चके॥
हे सोम क्रयणी गौ! आप वसु देवता की शक्ति-स्वरूपा हैं। आप देव माता अदिति हैं। आप द्वादश आदित्य रूपा हैं। आप एकादश रुद्र स्वरूपा हैं। आप चंद्र रूपा हैं। बृहस्पति देव आपको आह्लादित करें। रुद्र देवता आठ वसुओं के साथ आपकी रक्षा करें।[यजुर्वेद 4.21]
Hey cow bartered for Som! You are the strength of Vasu Dev. You are divine mother Aditi. You are like twelve Adity Gan. You are like eleven Rudr Gan. You are like Moon. Let Brahaspati Dev grant you pleasure. Rudr Dev should protect you along with eight Vasu Gan.
अदित्यास्त्वा मूर्धन्नाजिघर्मि देवयजने पृथिव्या इडायास्पदमसि घृतवत् स्वाहा।
अस्मे रमस्वास्मे ते बन्धुस्त्वे रायो मे रायो मा वयꣳ रायस्पोषेण वियौष्म तोतो रायः॥
सारी धरती में उत्तम स्थल के रूप में देवताओं के पूजन के लिए प्रयोग किये जाने वाले स्थान (यज्ञशाला) में हे घृत! मैं आपको तपाता हूँ। हे यज्ञ स्थल! आप गाय के पदचिन्ह हैं। आपके लिये यह आहुति है। आप पृथ्वी की अधिष्ठात्री देवी हैं। हमारे द्वारा प्रदान की गयी घृताहुति से आप तृप्त हों। आप वैभवशाली हैं, हमें अपना मित्र समझकर धन-धान्य प्रदान करके समृद्धशाली बनायें। हम इस प्रकार के ऐश्वर्य प्राप्त करने से वंचित न रहें।[यजुर्वेद 4.22]
Hey Ghee, I heat you at the Yagy site, the best place for the worship by demigods-deities over the whole earth! Hey Yagy site! You are the foot-hoops marks of cow. Its an offerings for you. You should be satisfied with our offering. You possess grandeur. Considering you as our friend, grant us wealth and food grains. You should not be deprived of this grandeur.
समख्ये देव्या धिया सं दक्षिणयोरुचक्षसा।
मा म आयुः प्रमोषीर्मो अहं तव वीरं विदेय तव देवि सन्दृशि॥
यजमान की पत्नी बोले, हे सोम क्रयणी देवि! प्रकाशमान, यज्ञीय प्रधान दक्षिणा के योग्य, विशाल नेत्र वाली आपको मैं पवित्र बुद्धि से अच्छी तरह से देखती हूँ। हमारी आयु को आप समाप्त न करें। आपकी आयु को हम विनष्ट न करें। हे गाय! आपकी दया-दृष्टि में रहते हुए हम बलशाली पुत्र को प्राप्त करें।[यजुर्वेद 4.23]
Wife of host should say, "Hey devi bought for Som! I look at you having aura, presiding the Yagy, suitable for Dakshina, having large eyes, with pious mind-inclination. Do not vanish our longevity". Hey cow, With you blessings we should get mighty son.
एष ते गायत्रो भाग इति मे सोमाय ब्रूतादेष ते त्रैष्टभो भाग इति मे सोमाय बूतादेष ते जागतो भाग इति मे सोमाय ब्रूताच्छन्दोनामानाꣳ साम्राज्यं गच्छेति में सोमाय ब्रूतादास्माकोऽसि शुक्रस्ते ग्रह्यो विचितस्त्वा वि चिन्वन्तु॥
यजमान बोले, हे अध्वर्यु! यह सामने दिखाई देने वाले सोम से कहो कि यह आपका गायत्री छन्द का भाग है। यह आपका त्रिष्टुप छन्द का भाग है, यह आपका जगती सम्बन्धी छन्द का भाग है। इस तरह से याजक के आशय को अध्वर्यु सोम के निमित्त कहें। आपको उष्णिक् आदि छन्दों का आधिपत्य प्राप्त हो। हमारे इस अभिप्राय की सूचना सोम को दो। हे दिव्य सोम! आप हमारे हैं। इन्द्र आदि देवों के पीने के पात्रों में भरा हुआ तुम्हारा रस सर्व समर्थ है। बुद्धिमान् ऋत्विज्ञ तुम्हें पृथक्-पृथक् करें।[यजुर्वेद 4.24]
Host should say, hey priest! Ask Som visible in front that this is your segment of Gayatri Chhand. This is your segment of Trishtup Chhand. This is your segment related with Jagti Chhand. In this manner the priest should elaborate the meaning of hosts words. You should be empowered with Ushnik Chhand. Message our idea to Som. Hey divine Som! You belong to us. Your extract Somras kept in separate pots meant for Indr Dev and other demigods-deities, is capable of doing everything. Let intelligent Ritviz separate you.
अभि त्यं देवꣳ सवितारमोण्योः कविक्रतुमर्चामि सत्यसवꣳ रत्नधामभि प्रियं मतिं कविम्। ऊर्ध्वा यस्यामतिर्भा अदिद्युतत्सवीमनि हिरण्यपाणिरमिमीत सुक्रतुः कृपा स्वः। प्रजाभ्यस्त्वा प्रजास्त्वाऽनुप्राणन्तु प्रजास्त्वमनुप्राणिहि॥
हे सविता देव! आप स्वर्ग लोक तथा भूलोक के बीच स्थापित बुद्धिमान्, सत्य कार्य हेतु प्रेरित करने वाले, रमणीय रत्नों को धारण करने वाले, समस्त चराचर के प्रिय, स्मरणीय, नव्य तत्त्वों का साक्षात्कार करने वाले, ऊपर की ओर मुख करके आकाश में स्थित सभी को दीप्तिमान करने वाले, अपनी दीप्ति से स्वयं आलोकित होने वाले, सुवर्ण से बने आभरण से युक्त हस्त वाले, सत्संकल्प के द्वारा द्युलोक की रचना करने में सक्षम हैं। अतः हम आपकी अभ्यर्थना करते हैं। हे सोम! प्रजाओं के कल्याण हेतु हम आपको स्थिर करते हैं। हे सोम! जो प्रजाएँ श्वास लेते समय आपका अनुसरण करती हैं, वे जीवन को धारण करें और आपकी प्रजाओं का अनुसरण करते हुए श्वास लें अर्थात् आपस में एक-दूसरे का अनुसरण करते हुए जीवन धारण करें।[यजुर्वेद 4.25]
अभ्यर्थना :: अनुरोध, विनती, माँग, याचना; postulation, adjuration.
Hey Savita Dev! You are truthfully established between the heavens and earth, inspire for truthful endeavours, wear delightful gems-jewels, loved by the whole universe, rememberable, have new thoughts-ideas, keeping your mouth upward stabilized in the sky, shine your self with your aura, wearing golden ornaments, evolving the heaven with your pious-auspicious efforts. We postulate you. Hey Som! The populace which follow you while breathing should survive, support your populace & vice versa.
शुक्रं त्वा शुक्रेण क्रीणामि चन्द्रं चन्द्रेणामृतममृतेन। सग्मे ते गोरस्मे ते चन्द्राणि तपसस्तनूरसि प्रजापतेर्वर्णः परमेण पशुना क्रीयसे सहस्त्रपोषं पुषेयम्॥
चन्द्रमा के सदृश प्रमुदित करने वाले, सुस्वादिष्ट अमृत के समान हे सोम! आप प्रकाशमान हैं, अतः हम आपको दमकते हुए सुवर्ण से क्रय करते हैं। हे सोम विक्रेता! सोम क्रय करने के लिये दिये गये मूल्य के बदले आपको दी गयी गौ प्राप्त हो और बदले में हमें आपका सोमरस प्राप्त हो। हे अजे! तुम तप साधना करने वालों का पुण्य शरीर हो एवं सभी देवगणों को प्रिय, प्रजापति का शरीर हो। हे सोम! हम उत्तम पशुधन के द्वारा तुम्हें खरीदते हैं। अतः आप सहस्रों पुत्र-पौत्रों आदि को पुष्ट करने योग्य सम्पदाओं में बढ़ोत्तरी करें।[यजुर्वेद 4.26]
प्रमुदित :: मगन, आनंदित, संतोषमय, हँस मुख, प्रमुदित, विनोद पूर्ण, उत्साहयुक्त, आनंदपूर्ण, फुरतीला; merry, sprightly.
अज :: अजन्मा, ईश्वर, जीवात्मा; goat.
Granting pleasure like the Moon, tasty like the elixir, hey Som! You are luminous, therefore we buy with shinning gold. Hey seller of Som! You should get cows as your price for selling us Somras. Hey Almighty! You form the core of all those who perform pious-virtuous deeds, admired by demigods-deities and embodiment of Praja Pati. Hey Som! We buy-barter you with best cattle-animals. Hence nourish our thousands of sons and grandsons boosting their possessions-wealth.
मित्रो न एहि सुमित्रध इन्द्रस्योरुमा विश दक्षिणमुशन्नुशन्तꣳ स्योनः स्योनम्। स्वान भ्राजांघारे बम्भारे हस्त सुहस्त कृशानवेते वः सोमक्रयणास्तान्रक्षध्वं मा वो दभन्॥
हे मित्र रूप सोम देव! सखाओं को पोषित करने वाले आप हमारी ओर आगमन करें। आप सुख प्रदान करने वाले होते हुए कल्याणकारी दाहिनी जंघा में प्रविष्ट हों। शब्द करने वाले, विभूषित रहने वाले, पाप के संहारक, जगत् के पोषक, सदा आह्लादित रहने वाले, उत्तम हस्तों वाले, शक्ति विहीन चराचरों को जीवन प्रदान करने वाले, सोम का संरक्षण करने वाले हे सात विशेष देवगण! सोम को खरीदने के निमित्त सुवर्ण इत्यादि आपके सम्मुख प्रस्तुत किये गये हैं, आप उन कीमती पदार्थों का संरक्षण करें, कोई भी आपको क्षति न पहुँचाए।[यजुर्वेद 4.27]
Hey friendly Som Dev! Nurturing-nourishing friends, come to us. Being grantor of comfort-pleasure, enter our left thigh. Hey seven specific demigods-deities! You make sound, are decorated, remove the sins, nurture the world, always remain happy, have best hands, grant life to lifeless universe and are the protectors of Som. Objects-material like gold have been offered for buying Som. Grant protection to these valuables without harming them.(25.03.2025)
परि माऽग्ने दुश्चरिताद्वाधस्वा मा सुचरिते भज। उदायुषा स्वायुषोदस्थाममृताँ2अनु॥
हे अग्नि देव! आप हमें पाप से पूरी तरह से रक्षित रखें। आप सदाचार रूप पुण्य में हम याजकों को स्थापित करें। यज्ञानुष्ठान करते हुए श्रेष्ठ आयु से सोमादि देवों की आयु का अनुगमन करते हुए, सोम को प्राप्त करने से हमें अमरत्व की प्राप्ति हुई है, जिससे हम श्रेष्ठ हो गये हैं।[यजुर्वेद 4.28]
Hey Agni Dev! Protect us completely from the sins. Establish us in the hosts-Yajak with virtuousness-auspiciousness. Performance of Yagy and other rituals, following the demigods-deities like Som, blessed with excellent longevity, we attained immortality, having attained Som and became excellent.
प्रति पन्थामपद्महि स्वस्तिगामनेहसम्। येन विश्वाः परि द्विषो वृणक्ति विन्दते वसु॥
हे मार्ग! आप मंगलकारी, गमनीय, पाप अथवा अपराध-रूपी विघ्नों से रहित हैं। अतः हम आपको प्राप्त करें। हम उस मार्ग अनुगमन करें जिस मार्ग से जाता हुआ मनुष्य सभी द्वेष करने वालों को अलग छोड़ देता है और साथ ही धन की प्राप्ति अवश्य करता है।[यजुर्वेद 4.29]
Hey path! You are auspicious, worth following, free from disturbances in the form of crimes. Hence, we should attain you. We should follow that path which lead to desertion of all envious people and certain attainment of wealth.
अदित्यास्त्वगस्यदित्यै सद आसीद। अस्तन्भाद् द्यां वृषभो अन्तरिक्षममिमीत वरिमाणम्पृथिव्याः। आसीदद्विश्वा भुवनानि सम्राड् विश्वेत्तानि वरुणस्य व्रतानि॥
यजमान मृगचर्म आसन को सम्बोधित करते हुए बोले, हे कृष्णाजिन! आप समूल धरती के त्वचा रूप हैं। आप धरती के सूक्ष्म अंश यज्ञ स्थान पर विराजमान हों। यजमान मृग चर्म पर सोम पात्रों को रखे। उत्कृष्ट ब्रह्म स्वरूप एवं अत्यन्त बलशाली वरुण देव, स्वर्ग-लोक एवं अन्तरिक्ष लोक को अविचल कर देते हैं। वे धरती के माप को जानते हैं। अच्छी तरह सुसज्जित होते हुए वरुण देव समस्त लोकों को संव्याप्त कर स्थापित हैं। यह उनके प्रशंसनीय कार्य हैं।[यजुर्वेद 4.30]
Yajman-host should address the cushion in the form of skin, hey black skin! You are like the skin of the whole earth. Establish over the Yagy site which is a micro form of earth. Yajman should place the Som pots over the black skin. Excellent as a form of Brahm, extremely powerful Varun Dev, make the heavens and space undisturbed-agitated. They are aware of the dimensions of earth. Duly-properly decorated Varun Dev pervade all abodes. Its his appreciable effort-deed.
वनेषु व्यन्तरिक्षं ततान वाजमर्वत्सु पय उस्त्रियासु।
हृत्सु क्रतुं वरुणो विश्वग्निं दिवि सूर्यमदधात् सोममद्रौ॥
जिस वरुण देव ने जंगल में पेड़ों के ऊपरी भाग पर आकाश का विस्तार किया, अश्वों में बल का विस्तार किया तथा मनुष्यों में वीर्य की वृद्धि की, गौओं में दुग्ध का विस्तार किया, यजमानों के हृदयों में यज्ञ हेतु संकल्प शक्ति से युक्त मन का विस्तार किया, प्रजाओं में जाठराग्नि का विस्तार किया, स्वर्गलोक में सूर्यदेव को एवं पहाड़ों में वल्लीरूप सोम को प्रतिष्ठित किया; उन वरुणदेव की हम स्तुति करते हैं।[यजुर्वेद 4.31]
Varun Dev, who developed the upper segment of the trees in the forests, produced strength in the horses, increased sperms in the men, increased milk in cows, generated the desire for Yagy in the hearts-innerself of hosts, increased digestive power in the populace, established Sury Dev in the heavens and Som as a creeper in the mountains, is worshiped by us.
सूर्यस्य चक्षुरारोहाऽग्नेरक्ष्णः कनीनकम्। यत्रैतशेभिरीयसे भ्राजमानो विपश्चिता॥
यजमान कृष्ण मृग चर्म को वेदी पर रखते हुए बोले, हे ज्ञान युक्त तेजस्वी कृष्ण मृग चर्म! आप सूर्य और अग्नि के नेत्र से देखें, जिससे राक्षसों की बाँधा न हो। तुम बुद्धिमान् अध्वर्यु के द्वारा शोभायमान अश्वों से ले जाये जाते हो।[यजुर्वेद 4.32]
Yajman should keep the skin of black deer over the Vedi and say, hey knowledged, majestic black buke shin! Look through the eyes of Sury and Agni Dev so that the demons are unable to create disturbances. You take the glorious horses of the intelligent priests.
उस्त्रावेतं धूर्षाहौ युज्येथामनश्रू अवीरहणौ ब्रह्मचोदनौ।
स्वस्ति यजमानस्य गृहान्गच्छतम्॥
हे सूर्य रूप तथा अग्नि रूप वृषभो! आप सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को पोषण प्रदान करनेवाले पदार्थों से पूर्णतया भरी हुई गाड़ी का भार सहन करने में समर्थ, जागरूक होने के कारण पीड़ा होने पर भी रुदन न करने वाले, शूरवीरों को पीड़ित न करने वाले, यजमानों को यज्ञकर्म करने हेतु प्रेरित करने वाले हैं। आप आकर स्वयं ही रथ में योजित हो जायें। इस तरह आप दोनों मंगलकारी भावना से याजक के गृहों की ओर प्रस्थान करें।[यजुर्वेद 4.33]
Hey oxen-bulls like the Sun and fire! You are capable of pulling the cart full of materials nurturing the universe, though awake tolerate the pain without weeping, do not torture the brave people and inspire the Ritviz performing Yagy Karm. Come and deploy yourself in the charoite. In this manner you should move towards the houses of the hosts.
भद्रो मेऽसि प्रच्यवस्य भुवस्पते विश्वान्यभि धामानि। मा त्वा परिपरिणो विदन् मा त्वा परिपन्थिनो विदन् मा त्वा वृका अघायवो विदन्। श्येनो भूत्वा परा पत यजमानस्य गृहान् गच्छ तन्नौ सँस्कृतम्॥
अध्वर्यु बोले, हे सोम! आप मेरे लिये कल्याणकारी हैं। हे ऋत्विग्गणों के स्वामी सोम! तुम अपने प्रयोग के स्थानों में शीघ्र जाओ। तुम्हें रास्ते में चोर-डाकू न पा सकें। तुम बाज-पक्षी की भाँति शीघ्रतापूर्वक यजमान के घरों को जाओ। यजमान का घर ही मेरे और तुम्हारे अनुकूल स्थान है।[यजुर्वेद 4.34]
Hey priest, hey Som! You are beneficial to me. Hey Som, lord of Ritviz! Move to your place quickly. The thieves-dacoits should not be able to trace you on the way. Move like falcon towards the houses of the hosts. The house of the host is suitable for both you and me.
नमो मित्रस्य वरुणस्य चक्षसे महो देवाय तदृतꣳ सपर्यत।
दूरेदृशे देवजाताय केतवे दिवस्पुत्राय सूर्याय शꣳ सत॥
मित्र और वरुण देवता जिनके नेत्र हैं, ऐसे सूर्य देव के लिये नमस्कार है। हे ऋत्विजों! उन महान् देवता सूर्य के लिये इस यज्ञ और सोमरस को प्रदान करो। दूर से ही दिखायी देनेवाले, प्रजापति देवता से उत्पन्न, द्युलोक के पालक सूर्य की स्तुति करो।[यजुर्वेद 4.35]
I salute Sury Dev whose eyes are like Mitr & Varun Dev. Hey Ritviz! Grant Somras for this Yagy and Sury Dev. Worship Sury Dev who is visible from a distance, born out of Praja Pati.
वरुणस्योत्तम्भनमसि वरुणस्य स्कम्भसर्जनी स्थो वरुणस्य ऋतसदन्यसि वरुणस्य ऋतसदनमसि वरुणस्य ऋतसदनमा सीद॥
बैलों को गाड़ी में संयोजित कर इधर-उधर भागने से रोकने वाले हे काष्ठ उपकरण! तुम सोम की गाड़ी को रोकने वाले हो। तुम सोम का वहन करने वाली गाड़ी में जुटे हुए बैलों को रोकने वाले हो। उदुम्बर काष्ठ से विनिर्मित हे आसन्दी! आप यज्ञशाला में वरुण के आसन स्वरूप हैं। आसन्दी पर बिछे हुए हे कृष्णाजिन! आप वरुणरूपी सोम के यज्ञ-स्थल हैं। वस्त्र में बँधे हुए वरुण रूपी हे सोम! यज्ञ के आसन स्वरूप इस कृष्णाजिन पर सुख से स्थित हों।[यजुर्वेद 4.36]
आसंदी :: ऊँचा आसन, चौकी, खटोला; raised platform-cushion.
Hey equipment-tools made of wood! You prohibit the cart from moving hither & thither. You stop the cart of Som. You stop the bulls of the cart of carrying Som. Hey raised platform made of Udumbar-cluster fig! You are a form of Varun Dev in the Yagy Shala-house. Hey black buke skin laid over the platform! You are the Yagy site of Som in the form of Varun Dev. Hey Som kept in cloth, a form of Varun Dev! Be comfortable over the skin of black buke in the Yagy.
या ते धामानि हविषा यजन्ति ता ते विश्वा परिभूरस्तु यज्ञम्।
गयस्फानः प्रतरणः सुवीरोऽवीरहा प्र चरा सोम दुर्यान्॥
हे सोम! सवनादि क्रियाओं के द्वारा आपके रस को पाकर ऋत्विग्गण यज्ञ पुरुष की जहाँ-जहाँ उपासना करते हैं, आपके वे सभी यज्ञ स्थान आपको प्राप्त हों। हे गृहों को विस्तारित करने वाले, यज्ञादि सत्कर्मों के पालन कर्ता, सुन्दर पुत्रों को देने वाले तथा पुत्र-पौत्रों को न मारने वाले हे सोम देव! आप यजमान के घरों में सुखपूर्वक आसीन हों।[यजुर्वेद 4.37]
Hey Som! You should attain all sites where the Ritviz Gan worship Yagy Purush. They should be capable of extending houses. Hey Som Dev extending the homes of the pious-virtuous deeds-endeavours performers, like Yagy, granting beautiful progeny, prohibiting slaying of sons and grand sons! You should be established comfortably in the homes of the Ritviz.(26.03.2025)
यजुर्वेद संहिता, पञ्चम अध्याय :: ऋषि :- गोतम, श्यावाश्व, मेधातिथि, वसिष्ठ, दीर्घतमा औतथ्यो, मधुच्छन्दा, क्रत भार्गव, आगस्त्य; देवता :- विष्णु, विष्णुर्यज्ञ, यज्ञ, अग्नि, विद्युत्, सोम, वाक्, सविता, सूर्यविद्वांसौ, ईश्वरसभाध्यक्षौ, सोमसवितारौ, वनस्पति, कुशतरुण, परशु; छन्द :- बृहती, गायत्री, त्रिष्टुप्, पंक्ति, उष्णिक्, जगती।
अग्नेस्तनूरसि विष्णवे त्वा सोमस्य तनूरसि विष्णवे त्वा ऽतिथेरातिथ्यमसि विष्णवे त्वा श्येनाय त्वा सोमभृते विष्णवे त्वाग्नये त्वा रायस्पोषदे विष्णवे त्वा॥
हे गायत्री छन्द! तुम राजा सोम के सेवक अग्नि का शरीर हो। हे हवि! मैं तुम्हें उन व्यापक सोम के लिये भूमि पर रखता हूँ। हे त्रिष्टुप्छन्द! राजा सोम के शरीर हो। हे हवि! मैं तुम्हें उन व्यापक सोम के लिये भूमि पर रखता हूँ। हे हवि! स्वर्ग से सोम तक जाने वाले बाज पक्षी रूप धारी गायत्री छन्द तथा व्यापक सोम के लिये मैं तुम्हें भूमि पर रखता हूँ। राजा सोम के अन्य सेवक धन तथा समृद्ध देने वाले हैं। हे हवि! अग्नि तथा व्यापक सोम के लिये मैं तुम्हें भूमि पर रखता हूँ।[यजुर्वेद 5.1]
Hey Gayatri Chhand! You are the embodiment of Agni Dev, servant of king Som. Hey oblation! I keep you for the sake of vast Som over the earth. Hey Tristup Chhand! You are embodiment of king Som. Hey oblation! I keep you over the ground for the sake of Gayatri Chhand in the form of falcon and broad Som. Servants of king Som grant wealth & prosperity. Hey oblation! I put you over the ground for the sake of Agni & vast Som.
अग्नेर्जनित्रमसि वृषणौ स्थ उर्वश्यस्यायुरसि पुरूरवा असि। गायत्रेण त्वा छन्दसा मन्थामि त्रैष्टुभेन त्वा छन्दसा मन्थामि जागतेन त्वा छन्दसा मन्थामि॥
हे शकल (पत्थर के टुकड़े)! आप अग्नि के उत्पत्ति कारण हैं। हे कुश समूह! आप अग्नि को प्रकट करने में समर्थ हैं, जिसके कारण आप वीर्य स्वरूप हैं। जो अग्नि को उत्पन्न करने में सहायता करती हैं, उन नीचे की शमी 'उर्वशी' के सदृश एवं ऊपर की शमी 'पुरूरवा' के सदृश सभी का ध्यान अपनी ओर केन्द्रित करने वाली हैं। हे बर्तन में रखे हुए घी! आप अग्नि को आयु प्रदान करते हैं अर्थात् अग्नि को देर तक प्रदीप्त रखने में आप ही सहायता करते हैं। हे अग्ने! आपको उत्पन्न करने हेतु गायत्री, त्रिष्टुप् एवं जगती छन्दों के साथ मन्थन करते हैं।[यजुर्वेद 5.2]
Hey Shakal (stone)! You are the producer of fire-Agni! Hey bundle of Kush! You are capable of evolving Agni for which you are sperm-seeds. The Shami-wood kept below, is like Urvashi and the upper one is like Pururva, attracting the attention of all. Hey Ghee kept in the vessel! You grant life to Agni-fire, keep fire ignited. Hey Agne! For evolving you, Gayatri, Tristup and Jagti Chhand are churned.
भवतं नः समनसौ सचेतसावरेपसौ। मा यज्ञꣳ हिꣳ सिष्टं मा यज्ञपतिं जातवेदसौ शिवौ भवतमद्य नः॥
हे मन्थन द्वारा उत्पन्न अग्नि देव! आप समान चित्त वाले, समान मन वाले तथा दोषों से रहित हैं। आप हमारे द्वारा किये गये अपराधों पर क्रोधित न हों और आप हमारे यज्ञ को भी विनष्ट न होने दें। याजकों को भी किसी प्रकार की कोई क्षति न पहुँचे। आप उन्हें संरक्षण प्रदान करें। आज का दिन हम सभी के निमित्त कल्याणकारी एवं शुभ हो।[यजुर्वेद 5.3]
अपराध :: पाप, जुर्म, पातक, दुष्टता, दोष, क़सूर, अवगुण; crime, guilt, delinquency.
Hey Agni Dev, evolved by churning-rubbing wood! You have common mood, innerself free from defects. Do not be angry over our guilt. Grant them protection and save our Yagy. Let this day be auspicious for our welfare.
अग्नावग्निश्चरति प्रविष्ट ऋषीणां पुत्रो अभिशस्तिपावा।
स नः स्योनः सुयजा यजेह देवेभ्यो हव्यꣳ सदमप्रयुच्छन्त् स्वाहा॥
वेदविद् ऋत्विज ऋषियों के द्वारा उत्पन्न किये हुए हे ऋषि कुमार! प्रमाद युक्त होकर दिये गये अभिशाप से याजक की रक्षा करने वाले ये आवाहन करने योग्य अग्नि देव यज्ञ वेदी में अधिष्ठित होकर हवि का भक्षण करते हैं। हे अग्नि देव! आप याजकों के निमित्त मंगलकारी होते हुए इस उत्कृष्ट यज्ञ में हम लोगों के द्वारा समर्पित की गयी हवियों को, आलस्य रहित होकर अर्थात् सदैव प्रदीप्त रहकर स्वीकार करें एवं इन हवियों को इन्द्रादि देवताओं तक भी पहुँचायें। यह आहुति अग्नि देव के लिये है।[यजुर्वेद 5.4]
Hey Rishi sons, you are produced by scholars of Ved! Invokable Agni Dev consume oblations on being established over the Yagy Vedi and protect the Yajak from the curse spelled under intoxication. Hey Agni Dev! You should be auspicious-well wisher of the Yajak and accept over oblations in this excellent Yagy free from laziness and carry them to demigods-deities including Indr Dev. This oblation is for Agni Dev.
आपतये त्वा परिपतये गृह्णामि तनूनप्त्रे शाक्वराय शक्वन ओजिष्ठाय। अनाधृष्टमस्यनाधृष्यं देवानामोजोऽनभिशस्त्यभिशस्तिपा अनभिशस्तेन्यमञ्जसा सत्यमुपगेषꣳ स्विते मा धाः॥
हे जुहू पात्र में रखे हुए घी! सतत गति, सर्वत्र व्याप्त, ब्रह्मा के पौत्र, सबके आधार स्वरूप आकाश के पुत्र, सभी कार्यों को करने में समर्थ और अत्यन्त बलवान् वायु देव के लिये मैं तुम्हें ग्रहण करता हूँ। ऋत्विज् घृत का स्पर्श करके बोले, हे घृत! हम ऋत्विजों के द्वारा तुम सदा से अनन्दित रहो हो। आज भी तुम अनन्दित हो, स्वर्ग ले चलने वाले आप घृत को हम सरल मार्ग से प्राप्त हों। हे घृत! तुम हमें स्वर्गलोक की प्राप्ति कराओ।[यजुर्वेद 5.5]
Hey Ghee kept in the Juhu pot! I accept you for extremely powerful Vayu Dev, who is capable of performing all jobs, is the son of sky & grand son of Brahma Ji, all pervading, moving continuously. Ritviz should touch Ghee and say, hey Ghee! You should remain happy for our sake. You should be happy today and we should be able to receive you easily. Hey Ghee! Help us attaining heavens.
अग्ने व्रतपास्त्वे व्रतपा या तव तनूरियꣳ सा मयि यो मम तनूरेषा सा त्वयि। सह नौ व्रतपते व्रतान्यनु मे दीक्षां दीक्षापतिर्मन्यतामनु तपस्तपस्पतिः॥
हे व्रत के पालक अग्नि देव! आप हमारे व्रतों का पालन कीजिये। इस प्रकार में व्रतों का पालन करने वाला आपका जो शरीर है, वह शरीर हमें प्राप्त हो तथा हमारा शरीर आपको प्राप्त हो। हे व्रत के अधिपति! व्रतानुष्ठान कर्म के द्वारा अग्नि तथा याजक समान रूप से सम्माननीय हों। दीक्षा के पालक सोम हमारी दीक्षा का अनुमोदन करें। तप साधना के अधिष्ठाता सोम हमारे व्रतरूप तप का अनुमोदन करें।[यजुर्वेद 5.6]
Hey Agni Dev adhering to commitment! Support our commitments-vow, decisions. We should attain you for carrying out our endeavours. Hey lord of fast-vows! Both Agni & Yajak should be honoured equally by way of vows. Let Som support us and our enunciation-induction. Let lord Som support our ascetics in the form of endeavours.(27.03.2025)
अꣳ शुरꣳ शुष्टे देव सोमाप्यायतामिन्द्रायैकधनविदे। आ तुभ्यमिन्द्रः प्यायतामा त्वमिन्द्राय प्यायस्व। आप्याययास्मान् सखीन्त्सन्या मेधया स्वस्ति ते देव सोम सुत्यामशीय। एष्टा रायः प्रेषे भगाय ऋतमृतवादिभ्यो नमो द्यावापृथिवीभ्याम्॥
हे प्रकाशमान सोम देव! सोमवल्ली के सम्पूर्ण अवयव धनपति इन्द्र देव के निमित्त प्रीतिकर होते हुए वृद्धि को प्राप्त करें। हे सोम! आपका ध्यान करने से इन्द्रदेव की वृद्धि हो। हे सोम! आप भी इन्द्र देव के निमित्त वृद्धि को प्राप्त हों। आप प्रिय ऋत्विग्गणों की धन प्रदान करनेवाली बुद्धि के द्वारा वृद्धि को प्राप्त करें। हे सोम देव! आपका मंगल हो। आपकी अनुकम्पा से हम सोमाभिषव क्रिया को शीघ्रता पूर्वक समाप्त कर लें। आपकी कृपा से हमें धन-सम्पदा की प्राप्ति हो। द्युलोक तथा पृथ्वी लोक के लिये नमस्कार है।[यजुर्वेद 5.7]
Hey luminous Som Dev! Let all components of Somvalli become affectionate to Indr Dev and grow. Hey Som! Remembering you should grow Indr Dev. Hey Som! You should grow for the sake of Indr Dev. You should grow by the intelligence of Ritviz Gan granting wealth. Hey Som Dev! You should achieve welfare. We should be able to accomplish extraction of Somras quickly. We salute heavens and earth.
या ते अग्नेऽयःशया तनूर्वर्षिष्ठा गह्वरेष्ठा। उग्रं वचो अपावधीत्त्वेषं वचो अपावधीत् स्वाहा। या ते अग्ने रजःशया तनूर्वर्षिष्ठा गह्वरेष्ठा। उग्रं वचोअपावधीत्त्वेषं वचो अपावधीत् स्वाहा। या ते अग्ने हरिशया तनूर्वर्षिष्ठा गह्वरेष्ठा। उग्रं वचोअपावधीत्त्वेषं वचो अपावधीत् स्वाहा॥
हे अग्नि देव! आपका जो लौहनिर्मित, रजतमय एवं सुवर्ण युक्त शरीर है, वह देवताओं को अभिमत फल प्रदान करने में सक्षम है, वह असुरों के विषम देश में स्थित रखने वाला, दैत्यों की उग्र वाणी को नाश करने वाला एवं असुरों के द्वारा देवताओं के लिए कहे गये आक्षेप रूप प्रदीप्त वाक्य को पूर्णतया प्रभाव हीन करने वाला है। इस प्रकार के महिमा से युक्त शरीर को धारण करने वाले आपके निमित्त यह हवि समर्पित की जा रही है।[यजुर्वेद 5.8]
Hey Agni Dev! Your body is made of iron, jewelled and possessing gold; is capable of granting accomplishments to demigods-deities. It survives over the uneven land of the demons, destroyer of the harsh voice of demons and diminish the impact of their allegations completely. This oblation is for you for possessing this glorious body.
तप्तायनी मेऽसि वित्तायनी मेऽस्यवतान्मा नाथितादवतान्मा व्यथितात्। विदेदग्निर्नभो नामाऽग्ने अंगिर आयुना नाम्नेहि योऽस्यां पृथिव्यामसि यत्तेऽनाधृष्टं नाम यज्ञियं तेन त्वा दधे विदेदग्निर्नभो नामाग्नेऽ अंगिर आयुना नाम्नेहि यो द्वितीयस्यां पृथिव्यामसि यत्तेऽनाधृष्टं नाम यज्ञियं तेन त्वा दधे विदेदग्निर्नभो नामाऽग्ने अंगिर आयुना नाम्नेहि यस्तृतीयस्यां पृथिव्यामसि यत्तेऽनाधृष्टं नाम यज्ञियं तेन त्वा दधे। अनु त्वा देववीतये॥
हे धरती माता! आप तप्तायनी, आजीविका प्रदान करने वाली तथा वित्तायनी, धन प्रदान करने वाली हैं। निर्धनता से हमारी रक्षा करें। आप हमारी दुःखी होने से रक्षा करें। हे देवि! (खनन की हुई मृत्तिका) 'नभ' नामवाली अग्नि (अंतरिक्ष लोक में व्याप्त अग्नि देव) आपके विषय में जानें अर्थात् आपकी ओर उन्मुख हों। हे अंगिरस! (अंगों में व्याप्त अग्नि देव) आप आयु के रूप में इस स्थान पर आगमन करें। आप दृष्टमान रूप में धरती पर वास करने वाले हैं। आपका जो सम्मान करने योग्य, अनिन्दनीय यज्ञ-सम्बन्धी स्वरूप है, उसी रूप में हम आपको यहाँ प्रतिष्ठित करते हैं। हे 'नभ' नाम से प्रसिद्ध अग्नि देव! आप जिस कारण से द्वितीय स्थान में हैं, उसी उद्देश्य से दूसरी बार धरती पर विनष्ट न होने वाले यज्ञीय रूप में आपको प्रतिष्ठित करते हैं। जिस उद्देश्य से आप तृतीय स्थान में स्थित हैं, उसी उद्देश्य से तीसरी बार पृथ्वी पर नष्ट न होने वाले यज्ञीय रूप में आपको प्रतिष्ठित करते हैं। हे मृत्तिके! देवों के लिए अर्थात् उत्तर वेदिका के निमित्त आपको प्रतिष्ठित करते हैं।[यजुर्वेद 5.9]
Hey Mata Prathvi-earth! You grant livelihood & wealth to us. Protect us against poverty. Protect us in a state of sorrow-pain. Hey Devi! Excavated clay, fire in the sky-lightening pervading the three abodes, should know about you and diverted-dedicated to you. Hey Angiras (Agni pervading the body)! Come here in the form of longevity. You reside over the earth in visible form-state. We establish you here in honourable state as Yagy. Hey Agni Dev named Nabh! We establish you in un vanish able form. The aim due to which you are present over the earth, we establish you for it the third time. Hey mud-clay! We establish you for Uttar Vedica, for the sake of demigods-deities.
सिꣳह्यसि सपत्नसाही देवेभ्यः कल्पस्व सिꣳह्यसि सपत्नसाही देवेभ्यः शुन्धस्व सिꣳह्यसि सपत्नसाही देवेभ्यः शुम्भस्व॥
उत्तर वेदी का निर्माण करते हुए बोलें, हे वाक्! आप सिंहनी की भाँति रिपुओं को नष्ट करने वाली हैं। आप अपनी सामर्थ्य से देवताओं का कल्याण करने में सक्षम हैं। वेदी पर जल से प्रोक्षण करते हुए बोलें, हे वाक्! रिपुओं को विनष्ट करने वाली सिंहनी रूप आप देवों के हितार्थ पवित्रता को प्राप्त हों। आप सिंहनी के समान शत्रुओं का नाश करने वाली हैं। वेदी पर बालू डालकर उसे चिकना करते हुए बोलें, हे वेदिके! तुम देवताओं के लिये शोभायमान बनो।[यजुर्वेद 5.10]
Say while constructing Uttar Vedi, hey Vak (speech, voice)! You are capable of destroying the enemy like lioness. You are capable of demigods-deities welfare. Spray water over the Vedi and say, hey Vak! Become sanctified like the lioness killing enemies. Spread send over the Vedi, make it smooth and say, hey Vedi! Become majestic-glorious for the demigods-deities.(28.03.2025)
इन्द्रघोषस्त्वा वसुभिः पुरस्तात्पातु प्रचेतास्त्वा रुद्रैः पश्चात्पातु मनोजवास्त्वा पितृभिर्दक्षिणतः पातु विश्वकर्मा त्वाऽऽदित्यैरुत्तरतः पात्विदमहं तप्तं वार्बहिर्धा यज्ञान्निः सृजामि॥
हे उत्तर वेदिके! इन्द्र देव के नाम से विख्यात देवता आठ वसुओं के साथ पूर्व दिशा की ओर से आपकी रक्षा करें। वरुण देवता एकदश रुद्रों के साथ पश्चिम दिशा की ओर से आपकी रक्षा करें। मन के सदृश वेगवान् यम देवता दिव्य पितरों के साथ दक्षिण दिशा की ओर से आपकी रक्षा करें। विश्व कर्मा देवता जगत् निर्माता बारह आदित्यों के साथ उत्तर दिशा की ओर से आपकी रक्षा करें। आपकी सुरक्षा के लिए प्रोक्षण किये गये जल को हम यज्ञ वेदी के बाहर की तरफ प्रतिष्ठित करते हैं (ऐसा कहकर जल को बाहर फेंक दे)।[यजुर्वेद 5.11]
Hey Uttar Vedi! Let Indr Dev and 8 Vasu Gan protect you in the east, Varun Dev and 11 Rudr Gan protect you in the west. Dynamic like innerself Yam Dev and Pitr Gan protect you in the south. Vishw Karma and 12 Adity should protect you in the north. For your protection we establish water for sprinkling out side and then throw away the water.
सिꣳह्यसि स्वाहा सिꣳह्यस्यादित्यवनिः स्वाहा सिꣳह्यसि ब्रह्मवनिः क्षत्रवनिः स्वाहा सिꣳह्यसि सुप्रजावनी रायस्पोषवनिः स्वाहा सिꣳह्यस्या वह देवान्यजमानाय स्वाहा भूतेभ्यस्त्वा॥
हे उत्तर वेदिके! आप सिंहनी के समान शत्रुओं का नाश करनेवाली हैं। सिंहनी रूप आपको यह हवि निवेदित की जा रही है। आप सिंहनी रूप हैं। आप आदित्यों को हर्षित करने वाली हैं। हे वेदिके! आप ब्राह्मण तथा क्षत्रियों को प्रसन्न करने वाली हैं। आप पुत्र, पौत्रादि एवं सुवर्ण युक्त धन-धान्य प्रदान करने वाली हैं। यजमान के उपकार के निमित्त देवों को आवाहित करने वाली हैं। प्राणिमात्र के हितार्थ आपको यह हवि अर्पित करते हैं।[यजुर्वेद 5.12]
Hey Uttar Vedi! You destroy the enemy like lioness. This oblation is for your form as a lioness. You please the Adity Gan. You please the Brahmans & Kshatriy. You grant sons, grand sons, wealth including gold. You invoke the demigods-deities for the welfare of Yajman. This oblation to you for the welfare of all organism-living beings.
ध्रुवोऽसि पृथिवीं दृꣳह ध्रुवक्षिदस्यन्तरिक्षं दृꣳहाच्युतक्षिदसि दिवं दृꣳहाग्नेः पुरीषमसि॥
हे मध्यम परिधि! आप स्थिर हैं। अतएव भूमि को आप सुदृढ़ करें। हे दक्षिण परिधि! आप अन्तरिक्ष लोक में स्थित हैं। यज्ञ स्थान में निवास करने वाली हैं। अतः आप अन्तरिक्ष लोक को दृढ करें। हे उत्तर परिधि! आप स्वर्ग लोक में स्थित हैं, आप विनाश रहित यज्ञ में निवास करती हैं। अतएव स्वर्गलोक को दृढ़ करें। हे गुग्गुल आदि सुगन्ध युक्त द्रव्य समूह! आप अग्नि के पूरक हैं (ऐसा बोलकर गुग्गुल तथा सुगन्ध द्रव्य वेदी के मध्य में फेंक दे)।[यजुर्वेद 5.13]
Hey middle circumcircle! You are inertial-stable. Make the ground tough. Hey south circumcircle! You are stationed in the space-sky. You reside in the Yagy Sthan. Stable the sky. Hey north circumcircle! You reside in the heavens. You reside in the imperishable Yagy. Hence, make the heavens strong. Hey Guggul and other scented objects! You are complementary of Agni-fire. After saying this, throw away Guggle and scented materials.
युञ्जते मन उत युञ्जते धियो विप्रा विप्रस्य बृहतो विपश्चितः।
वि होत्रा दधे वयुनाविदेक इन्मही देवस्य सवितुः परिष्टुति स्वाहा॥
महान्, सब कुछ जानने वाले, वेदों को अच्छी प्रकार से पढ़ने वाले याजक गण सांसारिक विषयों से चित्त को हटाकर यज्ञ कर्म को पूर्ण करने के विषय में सोचने लगते हैं। बुद्धिमान् ब्रह्मा सात होताओं को यज्ञ कर्म में नियुक्त करते हैं। वे होतागण सविता देवता की स्तुति करते हैं। सभी प्राणियों की मनोवृत्ति को जानने वाले, प्रेरणा प्रदान करने वाले, सदैव उत्तम स्तवनों से प्रसन्न होने वाले सविता देवता को अनुकूल करने के निमित्त यह हवि समर्पित की जाती है।[यजुर्वेद 5.14]
Great Yajak Gan, aware of everything, understand the Veds thoroughly, deviate their mind from the worldly affairs and decide to accomplish the Yagy. Intelligent Brahma appoint 7 hots for Yagy. Hota Gan worship-Stuti Savita Gan. Havi-oblations are meant for the happiness of all organism-living beings, seeking favours of Savita Dev with best hymns.
इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधा निदधे पदम्। समूढमस्य पाꣳसुरे स्वाहा॥
विष्णु ने त्रिविक्रमावतार (वामनावतार) लेकर इस विश्व को तीन पदों में नाप लिया। उन विष्णु के पद में भूमि आदि लोक धूल के कण के समान विद्यमान थे। जिन विष्णु के तीन पदों में समस्त लोकों को नाप लिया था, वे ही विष्णु समस्त जगत् के रक्षक हैं, वे ही धर्म को धारण करते हैं। उन विष्णु के लिये ये आहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 5.15]
Bhagwan Shri Hari Vishnu measured the entire universe in just three steps. Earth and other abodes are present in the feet dust of Bhagwan Shri Hari Vishnu. HE is the protector of the universe and support-establish Dharm. This oblation is for HIM.(29.03.2025)
इरावती धेनुमती हि भूतꣳसूयवसिनी मनवे दशस्या।
व्यस्कभ्ना रोदसी विष्णवे ते दाधर्थ पृथिवीमभितो मयूखैः स्वाहा॥
हे द्यावा-पृथ्वी! आप मनुष्यों के लिए कृषि, जल से युक्त, विविध-विध गौओं को प्रदान करने वाली, जौ आदि उत्तम अन्नों को प्रदान करने वाली एवं बुद्धिमान् पुरुषों के निमित्त यज्ञ साधनों को प्रदान करने वाली हैं। हे भगवान् विष्णु! आपने स्वर्ग लोक तथा भूलोक को विभक्त करके उसे स्थिर कर दिया है। आपने भूलोक को दीप्तिमान् रश्मियों से संव्याप्त कर लिया है, इसलिए हम यह आहुति आपके निमित्त अर्पित करते हैं।[यजुर्वेद 5.16]
Hey heavens & earth! You provide agriculture, water, cows, barley and other best food grains in addition to means for conducting Yagy to the intelligent humans. Hey Bhagwan Shri Hari Vishnu! You separated the heavens and earth and stabilized them. You pervaded the earth with radiant rays and hence we make this offering to you.
देवश्रुतौ देवेष्वा घोषन्त प्राची प्रेतमध्वरं कल्पयन्ती ऊर्ध्वं यज्ञं नयतं मा जिह्वरतम्। स्वं गोष्ठमा वदतं देवी दुर्ये आयुर्मा निर्वादिष्टं प्रजां मा निर्वादिष्टमत्र रमेथां वर्त्मन् पृथिव्याः॥
हे देवश्रुत! दिव्य विद्याओं में कुशल आप दोनों देव सभा में उच्च स्वर से यह घोषित करें कि ये देवगण यज्ञ को पूर्व दिशा की ओर आगे बढ़ाएँ, यज्ञ को ऊर्ध्वगति प्रदान करें, नीचे न गिरने दें। आप दोनों देव स्थल में विद्यमान् गोष्ठ में कहें कि वे देवता गण जब तक जीवन है, तब तक याजक प्रजा और पशु धन से रहित न हों। हे शकट (हवि आदि को लानेवाली गाड़ी)! धरती के इस निवास करने योग्य, सेवन करने योग्य प्रदेश अर्थात् यज्ञक्षेत्र में प्रसन्नतापूर्वक निवास करें।[यजुर्वेद 5.17]
देवश्रुत :: देवताओं द्वारा सुना गया या दिव्य ज्ञान, यह नाम अक्सर उन लोगों के लिए इस्तेमाल किया जाता है जो ज्ञान, बुद्धि, और आध्यात्मिक समझ के लिए जाने जाते हैं; a name, divine knowledge.
Hey Devshrut, expert in divine knowledge! Declare in loud voice in the assembly of demigods-deities that the demigods should propagate the Yagy in east direction, grant it elevation and do not let it come down. You should say in the cow shed, in divine abode that by the time demigods are alive, till then Yajak & populace should not be deprived of pet animals, cattle. Hey cart carrying oblations! Reside in this Yagy site happily over the earth.
विष्णोर्नुकं वीर्याणि प्र वोचं यः पार्थिवानि विममे रजाꣳसि।
यो अस्कभायदुत्तरꣳ सधस्थं विचक्रमाणस्त्रेधोरु-गायो विष्णवे त्वा॥
हम उन विष्णु देव की महिमा का गुणगान करते हैं, जो भूलोक, अन्तरिक्ष लोक एवं स्वर्ग लोक को निर्मित करने वाले हैं। जो देवों के निवास स्थल स्वर्ग लोक को स्थिर करने में सक्षम हैं। जो तीन विशाल चरणों के द्वारा क्रमानुसार तीनों भुवनों में भ्रमण करने वाले हैं अथवा सृष्टि में अग्नि, वायु तथा सूर्य रूप में स्थित रहने वाले हैं; ऐसे आप विष्णु के लिये आहुति है। हे काष्ठ! इस शकट के अभिमानी देवता विष्णु देव को प्रसन्न करने हेतु हम तुम्हें प्रतिष्ठित करते हैं।[यजुर्वेद 5.18]
We sing hymns in the honour of Vishnu Dev who has built the earth, heavens and the sky-space. HE is capable of stabilizing the heaven-abode of demigods. HE covers-travels in the three abodes in three steps, pervade Agni, Vayu and the Sun. We make oblation for HIM. Hey wood! We honour you for the sake of the deity of the cart majestic Bhagwan Shri Hari Vishnu.
दिवो वा विष्ण उत वा पृथिव्या महो वा विष्ण उरोरन्तरिक्षात्।
उभा हि हस्ता वसुना पृणस्वा प्र यच्छ दक्षिणादोत सव्याद्विष्णवे त्वा॥
हे परमात्मन्! सर्वव्यापी विष्णु देव! इस महामण्डल स्वर्ग-लोक से एवं भूलोक से अथवा महान् विस्तीर्ण अन्तरिक्ष लोक से प्राप्त किये गये धन से आप अपने दोनों हाथों को पूर्ण करें, तत्पश्चात् अपने दाहिने हाथ व वाम हस्त से अनेक प्रकार के धन, रत्न हमको प्रदान करें। हे काष्ठ स्तम्भ! विष्णु देवता की प्रीति के निमित्त हम आपको गाड़ते हैं। आप विष्णु के लिये ये आहुति के लिये समर्पित है।[यजुर्वेद 5.19]
Hey Almighty! All pervading Shri Hari Vishnu! Grant us wealth with both of your hands from the heavens, earth & sky. Thereafter, grant us jewels-gems with your right & left hand. Hey wooden pillar! We erect you for the love of deity Vishnu. These offerings are for Shri Hari Vishnu.
प्र तद्विष्णु स्तवते वीर्येण मृगो न भीमः कुचरो गिरिष्ठाः।
यस्योरुषु त्रिषु विक्रमणेष्वधिक्षियन्ति भुवनानि विश्वा॥
वे विष्णु अपने पराक्रमपूर्ण कार्यों के कारण सर्वत्र स्तुत होते हैं। वे पर्वतीय क्षेत्रों तथा सर्वत्र विचरण करनेवाले भयंकर सिंह के सदृश हैं। उन विष्णु के तीन कदमों में तय की गयी दूरी में सब लोक-लोकान्तर बसे हैं।[यजुर्वेद 5.20]
Bhagwan Shri Vishnu is worshiped every where for HIS bravery. HE roam in mountainous regions and all places like a furious lion. The distance covered by HIM in three steps has all abodes.
विष्णो रराटमसि विष्णोः श्र्न्प्त्रे स्थो विष्णोः स्यूरसि विष्णोध्रुवोऽसि।
वैष्णवमसि विष्णवे त्वा॥
दर्भ समूह को आश्रय देने वाले, हे आधार! आप विष्णु के ललाट हैं। (यज्ञमण्डप के वन्दनवार के दोनों किनारों का स्पर्श करके बोले) हे वन्दनवार! तुम दोनों विष्णु की ओष्ठसन्धि हो। हे वृहत्सूचि! तुम यज्ञ मण्डप की सूची हो। हे ग्रन्थि! तू इस मण्डप की गाँठ रूप है। हे हविर्धान! तू वास्तव में विष्णु रूप ही है। विष्णु की प्रसन्नता के लिये हम तुम सबका स्पर्श करते हैं।[यजुर्वेद 5.21]
वंदनवार :: फूल, पत्ते, दुब इत्यादि से बनी झालर या माला इसे मंगल कार्यों के समय द्वार पर लटकाया जाता है, यह अत्यंत शुभ माना जाता है; garlands, hangings made of flowers, straw leaves etc., used for decoration during festivals, auspicious occasions, marriages etc.
हविर्धान मण्डप :: जहाँ हवि रखी जाती है, स्थापित की जाती है, उसे हविर्धान कहते हैं, जहाँ उसका अभिषवन किया जाता है उसे भी हविर्धान मण्डप कहते हैं। यह हविर्धान मण्डप इस आधिदैविक जगत् में अन्तरिक्ष का वह स्थान है, जहाँ वाष्प रूप में परवर्त्तित जल ठहरते हैं; place where water in the form of vapours is found in the sky-space.
Hey base granting asylum to the straw! You are the forehead of Bhagwan Shri Hari Vishnu. Hey Vandanvar! You form the junction of Bhagwan Shri Hari Vishnu's lips. Hey Vrahatsuchi (long list)! You are index of the Yagy Mandap. Hey knot! You tie the Mandap. Hey Havirdhan! You are a form of Bhagwan Shri Hari Vishnu. We touch it for pleasing Shri Hari Vishnu.
देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्याम्। आ ददे नार्यसीदमहꣳ रक्षसां ग्रीवा अपि कृन्तामि। बृहन्नसि बृहद्रवा बृहतीमिन्द्राय वाचं वद॥
काष्ठ से बने, हे खोदने के साधन (अर्धी)! हम सविता देव की आज्ञा के अनुसार दोनों अश्विनी कुमारों की भुजाओं से एवं पूषा देव के हाथों से आपको ग्रहण करते हैं। आप हमारी सहायता करने वाले हैं। (यूप गाड़ने के निमित्त खनन करते हुए बोलें, हम यज्ञ में बाधा डालने वाले शत्रुओं के गर्दन को काटते हैं। हे उपरव नाम के गर्त! आप महान् हैं, आप महान् नाद करने वाले हैं। इसलिए आप देवराज इन्द्र को प्रसन्न करने के निमित्त अपनी तेज वाणी द्वारा स्तुति वचनों का पाठ करें।[यजुर्वेद 5.22]
Hey digging tool made of wood! We accept you due to the order of Savita Dev, through the hands of Ashwani Kumars & Pusha Dev. You helps us. While fixing the pillar, say! We cut the head of those enemies who create disturbance in the Yagy. Hey dich named Uprav! You are great and produce high pitch sound. To please, make happy Indr Dev recite Stuti in your loud sound.(30.03.2025)
रक्षोहणं वलगहनं वैष्णवीमिदमहं ते वलगमुत्किरामि यं मे निष्ट्यो यममात्यो निचखानेदमहं तं वलगमुत्किरामि यं मे समानो यमसमानो निचखानेदमहं तं वलगमुत्किरामि यं मे सबन्धुर्यमसबन्धुर्निचखानेदमहं तं वलगमुत्किरामि यं मे सजातो यमसजातो निचखानोत्कृत्यां किरामि॥
असुरों को विनष्ट करने वाली, हिंसा के गोपनीय प्रयोगों को विनष्ट करने वाली वैष्णवी बृहद् वेदवाणी का उच्चारण करें। हमारे अहित के निमित्त अमात्य अर्थात् परामर्शदाता आदि के द्वारा गुप्त रूप से स्थित गूढ़ तथा हिंसाकारी प्रयोगों को उखाड़कर हम बाहर फेंकते हैं। जिस अमंगलकारी गुप्त प्रयोगों को हमारे समान अथवा असमान सामर्थ्यशाली ने छिपाकर रखा हो, उसे हम उखाड़कर दूर फेंकते हैं। जो अमंगलकारी प्रयोग छलपूर्वक हमारे सगे-सम्बन्धियों अथवा अबन्धुओं में स्थित किये हों, उन्हें भी हम उखाड़कर दूर फेंकते हैं। जिस गोपनीय प्रयोग को हमारे जातिवाले अथवा विजातिवाले मनुष्यों में अमंगल हेतु स्थित किये हों, उसे भी हम उखाड़कर दूर फेंकते हैं। इस प्रकार की गयी घातक गुप्त क्रियाओं को हम मूल रहित कर देंगे।[यजुर्वेद 5.23]
घातक :: प्राणनाशक, भाग्य का लिखा हुआ, सांघातिक, मारक, प्राणघातक, उपसंहारक, प्राणघाती, दुष्ट, हानिकारक, नुक़सानदेह, विघातक, नुक़सान पहुंचानेवाला; fatal, deadly, malignant.
Recite the Vashnavi Brahad prayers-Ved Vani, which destroy the demons and the secrets of violence. We pluck-remove the practices pertaining to violence, aimed at harming us by the advisers. We vanish such practices targeting us, our friends, relatives and those related with us. We target destruction of such practices even if they target people of other groups, castes, religions. Let us remove the secret deadly-fatal, practices-means along with their roots.
स्वराडसि सपत्नहा सत्रराडस्यभिमातिहा जनराडसि रक्षोहा सर्वराडस्य मित्रहा॥
यजमान प्रथम गर्त का स्पर्श करके बोलें, हे प्रथम गर्त! आप अत्यन्त दीप्तिमान् हैं, इस कारण आप तिमिर रूपी शत्रुओं का विनाश करनेवाले हैं। द्वितीय गर्त का स्पर्श करके बोलें, हे द्वितीय गर्त! आप तब तक रहने वाले हैं, जब तक यज्ञकार्य पूर्ण न हो जाए तथा आप अहंकार करने वालों को नष्ट करने वाले हैं। तृतीय गर्त का स्पर्श करके बोलें, हे तृतीय गर्त! आप उत्तम मनुष्यों में अत्यधिक विख्यात होने के कारण असुरों को विनष्ट करनेवाले हैं। आप समस्त लोगों को दीप्तिमान् करनेवाले हैं एवं शत्रुओं के संहारक हैं।[यजुर्वेद 5.24]
The Yajman-host should touch the first depression-pit and say, hey first pit! You are radiant and so destroy the hidden enemies in the form of darkness. Touch the second pit and say, hey second pit! You will remain till the completion of Yagy, destroy the egoistic. Touch the third pit and say, "hey third pit! You being highly popular-famous amongest the humans and destroyer of enemies, illuminate all people and kill the enemies.
रक्षोहणो वो वलगहनः प्रोक्षामि वैष्णवान् रक्षोहणो वो वलगहनोऽवनयामि वैष्णवान् रक्षोहणो वो वलगहनोऽवस्तृणामि वैष्णवान् रक्षोहणौ वां वलगहना उप दधामि वैष्णवी रक्षोहणौ वां वलगहनौ पर्यूहामि वैष्णवी वैष्णवमसि वैष्णवा स्थ॥
असुरों को नष्ट करने वाले तथा अभिचार मन्त्रों को नष्ट करने वाले विष्णु देवता से सम्बन्धित गर्तों का हम प्रोक्षण करते हैं। राक्षस घाती तथा अभिचार-साधनों को नष्ट करने वाले विष्णु देवता से सम्बन्धित गर्त को हम सींचकर शेष जल को छिड़ककर कुश-आस्तरण (कुश की चटाई) को बिछाते हैं। राक्षसघाती तथा अभिचार साधन नाशक विष्णु देवता द्वारा अधिष्ठित गर्त (गड्डे) कुशास्तरण से आच्छादित करते हैं। असुरों तथा उनके द्वारा किये जानेवाले अभिचार मन्त्रों को नष्ट करने वाले विष्णु देवता से सम्बन्ध रखने वाले सोम निचोड़ने के दोनों फलक को दोनों गर्तों के ऊपर एक-एक फलक स्थापित करते हैं। असुरों का संहार करनेवाले विष्णु देवता से सम्बन्धित गर्तों को चारों ओर से मिट्टी से आच्छादित करते हैं। हे अधिवषण! आप विष्णु देवता सम्बन्धी यज्ञ के प्रधान उपकरण हैं। हे ग्रावा समूह! आप यज्ञ की रक्षा करने वाले विष्णु देवता से सम्बन्धित हो जायें।[यजुर्वेद 5.25]
अभिचार :: अनुष्ठान, बुरे काम के लिए मंत्र का प्रयोग, झाड़-फूँक, जादू टोना; incantation.(जादू, टोना, मारक तंत्र-मंत्र, सांघातिक क्रियायें अन्य व्यक्तियों-दुश्मनों को नष्ट करने हेतु आदि काल से प्रचलित हैं और वर्तमान काल में भी इनका प्रयोग किया जाता है।)
ग्रावा :: चमकता पत्थर या चट्टान; shining rocks, pebbles, stones.
We sprinkle water over the pits related to Bhagwan Shri Hari Vishnu with the incantation practices-rituals destroying the demons. We sprinkle water over the ditch related with Bhagwan Shri Hari Vishnu who is the destroyer of demons and incantations. Spread remaining water over the Kush grass, spread cushion made of Kush and cover the pit. We place the two plates-sheets used for extracting Som one over other. Cover the pits with mud-clay. Hey Adhivashan! You are a main tool of Bhagwan Shri Hari Vishnu. Hey rocks-stones! You should join deity Vishnu for the safety of Yagy.(31.03.2025)
देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्याम्। आ ददे नार्यसीदमहꣳ रक्षसां ग्रीवा अपि कृन्तामि। यवोऽसि यवयास्मद् द्वेषो यवयारातीर्दिवे त्वाऽन्तरिक्षाय त्वा पृथिव्यै त्वा शुन्धन्ताँल्लोकाः पितृषदनाः पितृषदनमसि॥
हे अग्नि देव! हम सविता देव की प्रेरणा से, दोनों अश्विनी कुमारों की भुजाओं के द्वारा एवं पूषा देव के हाथों से आपको स्वीकारते हैं। आप हमारे अनुरूप बनें। गर्त को खोदने के रूप में हम अब असुरों की ग्रीवा को काटते हैं तथा उनको नष्ट करते हैं। हे यव! आप पृथक् करने के स्वभाव से युक्त हैं। इस कारण हमारे शत्रु व दुर्भाग्य को हमसे दूर करें अथवा पृथक् करें। शत्रु समूह को हमसे दूर करके हमें सौभाग्य युक्त धन प्रदान करें। हे उदुम्बर वृक्ष की शाखा के अग्रभाग! हम स्वर्ग लोक को प्रसन्न करने हेतु आपका प्रोक्षण करते हैं। हे उदुम्बर वृक्ष की शाखा के मध्य भाग! हम अन्तरिक्षलोक को हर्षित करने के निमित्त आपका प्रोक्षण करते हैं। हे उदुम्बर वृक्ष की शाखा के मूलभाग! हम भूलोक तो आनन्दित करने हेतु आपका प्रोक्षण करते हैं। हे यजुष्! जहाँ पितर निवास करते हैं, वे लोक इस जल से शुद्ध हो जायें। हे कुश समूह! आप पितृगण का आसन हैं एवं पितृगण इस पर सुखपूर्वक विराजमान होते हैं।[यजुर्वेद 5.26]
यजुष :: यज्ञ, बलिदान, Yagy, sacrifice.
यज् :: समर्पण या यज्ञ करना, surrendering or performing Yagy.
Hey Agni Dev! By virtue of inspiration from Savita Dev, through the arms of Ashwani Kumars and the hands of Pusha Dev, we accept you. You should be favourable to us. While digging pit, we cut the heads of demons and destroy them. Hey Yav-barley! By nature you alienate. Hence, keep off our enemies and bad luck. Keep away the enemies from us and grant us wealth associated with good luck. Hey apex of the branch of Udumbar-Ficus racemose! We sprinkle water over you for the happiness of heavens. Hey middle segment of the branch of Udumbar tree! We sprinkle water over you for the happiness of sky-space. Hey first segment of the branch of Udumbar tree branch! We sprinkle water over you for the happiness of earth. Hey Yagy-sacrifices! Let the abode of the Pitr Gan become sanctified by this water. Hey Kush grass! You form the cushion of Pitr Gan to sit over it comfortably.
उद्दिवꣳ स्तभानान्तरिक्षं पृण दृꣳहस्व पृथिव्यां द्युतानस्त्वा मारुतो मिनोतु मित्रावरुणौ ध्रुवेण धर्मणा। ब्रह्मवनि त्वा क्षत्रवनि रायस्पोषवनि पर्यूहामि। ब्रह्म दृꣳह क्षत्रं दृꣳहायुर्दृꣳह प्रजां दृꣳह॥
यजमान गूलर की डाल को गर्त में गाड़ते हुए बोले, हे उदुम्बर शाखे! आप स्वर्ग लोक को ऊँचा उठा दें एवं अन्तरिक्ष लोक को परिव्याप्त करें। आप भूलोक को स्तम्भित करें। हे उदुम्बर शाखे! प्रकाशमान मरुत्देवता तथा वायुदेवता एवं मित्रावरुण आपको स्तम्भित करने हेतु गड्ढे में डालते हैं। हे शाखे! आप ब्राह्मण जाति द्वारा स्तवनीय, क्षत्रिय जाति द्वारा स्तवनीय एवं वैश्य जाति द्वारा स्तवनीय हैं, अतः हम आपके चारों ओर मिट्टी डालते हैं। हे उदुम्बर शाखे! हम आपको सुदृढ़ (स्थिर) करते हैं। आप भी ब्राह्मणजाति को सुदृढ़ करें, क्षत्रियजाति को सुदृढ़ करें, आयु को सुदृढ़ करें तथा पुत्रादि को सुदृढ़ करें।[यजुर्वेद 5.27]
स्तंभित :: निश्चल, निस्तब्ध, सुन्न; frozen.
Yajman-host should erect the branch of fig tree saying! Uplift-raise the heavens and pervade the sky. Freeze the earth. Hey branch of Fig! Radiant Marud Gan, Vayu Dev and Mitr Varun put you in the pit and freeze you. Hey Fig branch! You deserve prayers from Brahmans, Kshatriy and the Vaeshy Gan. We spread clay-mud around you. We make you strong. Make the Brahmans, Kshatriy strong granting them longevity and sons-progeny.
ध्रुवासि ध्रुवोऽयं यजमानोऽस्मिन्नायतने प्रजया पशुभिर्भूयात्।
घृतेन द्यावापृथिवी पूर्येथामिन्द्रस्य छदिरसि विश्वजनस्य छाया॥
हे उदुम्बर शाखे! आप इस स्थल में स्थिर हों। याजक भी अपने गृह में आपकी कृपा से सन्तान तथा पशुओं से परिपूर्ण होकर सुखी हो तथा शरीर से स्थिर हो। इस घृत आहुति से आप स्वर्ग लोक तथा भूलोक को पूर्ण करें। हे तृण निर्मित छप्पर! आप रुद्र अथवा वैभवशाली याजक के इस सभा मण्डप के छादक हैं, इस कारण आप यजमान, ऋत्विग्गण आदि सभी लोगों के छाया स्वरूप हैं अर्थात् आपकी छाया में सम्पूर्ण ऋत्विग्गणादि बैठकर अपना यज्ञानुष्ठान करते हैं।[यजुर्वेद 5.28]
छप्पर :: घास-फूस से बानी छत; thatched roof.
Hey Fig branch! Become fixed at this place. Let the Yajman become happy in his house with progeny, cattle-pet animals and become settled. Accomplish the heavens and earth with the oblation of Ghee. Hey thatched roof! You cover the assembly site of Rudr and prosperous Yajak. You should be settled comfortably along with progeny and pet animals. Accomplish the heavens and earth with the offering of Ghee. The Ritviz accomplish their Yagy under you.
परि त्वा गिर्वणो गिर इमा भवन्तु विश्वतः। वृद्धायुमनु वृद्धयो जुष्टा भवन्तु जुष्टयः॥
हे स्तवनीय देवराज इन्द्र! उत्तम वीर पुरुष, तीनों कालों में सवन करने वाले याजक एवं स्तोत्र रूपी शस्त्र वाली स्तुतियाँ आपको सभी ओर से प्राप्त हों। हमारे द्वारा की गयी सेवा से आप हर्षित हों।[यजुर्वेद 5.29]
Hey worshipable Indr Dev! Brave people, Yajak and Stuties of weapons in the form of Strotr should be availed by you during the three segments of the day. Let our service please you.
इन्द्रस्य स्यूरसीन्द्रस्य ध्रुवोऽसि। ऐन्द्रमसि वैश्वदेवमसि॥
हे रज्जु! आप देवराज इन्द्र के सम्बन्ध को संयुक्त करने वाले सीवन रूप हैं। हे ग्रंथि! आप देवगणों से इन्द्र के सम्बन्ध को सुदृढ़ करो। हे गृह अथवा यज्ञशाला (सदोमण्डप) ! अब देवराज इन्द्र आपके अभिमान देवता हैं। हे आग्नीध्र! आप देवराज इन्द्र से सम्बन्धित हो गये हैं एवं आप सम्पूर्ण देवताओं से भी सम्बन्धित हो जायँ।[यजुर्वेद 5.30]
Hey Rajju-cord! You are like the stiches joining Indr Dev. Hey knot! Make the ties-connections of demigods and Indr Dev strong. Hey priest igniting fire of Yagy! You have been connected with Indr Dev and all demigods-deities.
विभूरसि प्रवाहणो वह्निरसि हव्यवाहनः। श्वात्रोऽसि प्रचेतास्तुथोऽसि विश्ववेदाः॥
हे आग्नीध्रीय धिष्ण्य (अग्नि रखने के लिये मिट्टी की बनी प्रधान वेदिके)! जो अग्नियाँ आपमें प्रदीप्त होती हैं, वह अन्य वेदियों पर भी पहुँचायी जाती हैं। अतएव वह सर्वव्यापक अग्नि विभिन्न स्वरूपों में जानी जाती है। हे होतृ धिष्ण्य! आपमें अधिष्ठित हुई अग्नि इस यज्ञ की प्रधान कार्य निर्वाहक है एवं देवताओं के उद्देश्य से प्रदान की गयी आहुति को धारण करने से हव्य वाहन है। हे मित्र एवं वरुण धिष्ण्य! आपमें उत्पन्न हुई अग्नि सभी के सखारूप होने से 'श्वात्र' तथा विकारों को नष्ट करने के कारण 'वरुण' है। हे ब्राह्मणच्छाधिष्ण्य (मिट्टी की बनी वेदिका)! आप ब्रह्म-स्वरूप हैं एवं सर्वज्ञाता हैं।[यजुर्वेद 5.31]
धिष्ण्य :: A place, a spot, a country, a house, a star, an asterism, fire, power. strength, a name of Agni, the deity of fire.
श्वात्र :: मैत्रा वरुण ऋत्विज की अग्नि का नाम।
विकार :: रूप, धर्म आदि का स्वाभाविक परिवर्तन, परिवर्तन, विकृति, कुरूपता, अव्यवस्था, उपद्रव, अशांति, विशृंखलता, कुरूपता, तोड़ना-मरोड़ना; defects, disorder, conjugation, deformation.
Hey main Vedi! Fire produced in you is taken to other Vedi as well. This fire pervading every thing is identified in various forms. Hey chief priest Dhishny! The fire ignited by you perform the Yagy and carries oblations for the demigods-deities. Hey Mitr & Varun Dhishny! Fire produced by you is friendly and destroys all sorts of disorders-defects. Hey Vedi covered with sand-clay! You are like the Brahm and knows everything.(01.04.2025)
उशिगसि कविरंघारिरसि बम्भारिरवस्यूरसि दुवस्वाञ्छुन्ध्यूरसि मार्जालीयः सम्राडसि कृशानुः परिषद्योऽसि पवमानो नभोऽसि प्रतक्वा मृष्टोऽसि हव्यसूदन ऋतधामाऽसि स्वर्योतिः॥
हे पोतृधिष्ण्य (मिट्टी की बनी वेदिका)! आपके ऊपर अधिष्ठित यह अग्नि अत्यन्त सुसज्जित है। इस कारण आप उशिक् तथा कवि नाम वाली हैं। हे नेष्ट्टधिष्ण्य! आप पापों को नष्ट करने वाली तथा अन्न-धन से भरने वाली हैं। इसलिये अंघारि तथा बंभारि ये आपके नाम हैं। हे आक्षावाद्धिष्ण्य! आप पर अधिष्ठित यह अग्नि पुरोडाश प्रधान हव्य है। इस कारण अन्न की इच्छा करने वाले (अवस्यु) और हवि वाले (दुवस्वान्), ये दोनों आपके नाम हैं। हे होत्राधिष्ण्य! आपमें अधिष्ठित यह अग्नि सम्पूर्ण ऋत्विग्गण आदि की शोधक है। इस कारण शोधक तथा सम्पूर्ण यज्ञपात्र धोने और मार्जन करने से आप मार्जन करने वाले (मार्जालीय) के नाम से विख्यात हैं। हे उत्तर वेदी में स्थित आहवनीय अग्ने! आप अनेक देवताओं के तुष्टि साधन रूप हवियों को ग्रहण करते हैं तथा व्रतधारी कृष याजक के निकट जाने के कारण आप कृशानु हैं। हे बहिष्पवमान देश! आप ऋत्विग्गणों से घिरे हुए एवं पवित्र हैं। हे चात्वाल (फावड़ा)! खनन करते समय ऊपर उठाये जाने के कारण आप नभरूप हैं एवं प्रदक्षिणा के लिए ऋत्विग्गणों हे शामित्र (यज्ञ में पशु-वध का स्थान)! आपके द्वारा हवियाँ स्वादिष्ट हो जाती हैं। इस कारण आप पवित्र कहे जाते हैं एवं हवि को परिपक्व करने वाले होने के कारण आप हवि पाचक के नाम से विख्यात हैं।
हे उदुम्बरी (गूलर की शाखा)! आप स्तोताओं के यज्ञ स्थान हैं। इस कारण आप ऋतधामा के नाम से विख्यात हैं एवं उन्नत होने के कारण स्वज्योंति नाम वाले हैं।[यजुर्वेद 5.32]
नेष्ट :: destroyed.
धिष्ण्य :: ध्यान देने योग्य, विचारणीय, प्रशंसा योग्य; a place, a spot, a country, a house, a star, an asterism, fire, power. strength, a name of Agni, the deity of fire.
होत्र :: हवि, होम।
बहिष्पवमान, ऋग्वेद और सामवेद से संबंधित एक वैदिक अनुष्ठान है, जो यज्ञों के आरंभ से पहले किया जाता है, जिसमें सामवेदी ऋत्विज चात्वाल नामक स्थान पर बैठकर सामगान करते हैं।
Hey Vedi, made of clay! Fire established over you, is beautiful. Due to this reason you have been named Ushik & Kavi. Neshtt Dhishny! You are a destroyer of sins granting wealth & food grains. Therefore, you are called Aghari and Banbhari. Hey Akshavadhishny! This fire established over you is a Purodas, principal oblation. Hence, you are desirous of food grains and oblations forming two names Avsyu & Duvsavan, respectively. Hey Hotr Dhishny! This fire established in you is a sanctifier of all Ritviz Gan. That's why you are a cleanser of Yagy vessels. Hey invocable fire in Uttar Vedi! You accept offerings for the satisfaction of demigods and called Krashanu being close to resolute Krash-weakened Yajak. Hey Bahishovman Desh! You are surrounded by the Ritviz and pure. Hey shovel! You are like sky since you are looking up and deserve circumambulations by the Ritviz. Hey Shamitr-place of Yagy animal slaughter! You make the oblations tasty. Hence, you are called pure and digester of offerings. Hey branch of fig tree! You form the Yagy site of the Stotas. Due to this reason you are called the place of Rat, i.e., Ratdhama. and Swarjyoti being elevated-raised.
समुद्रोऽसि विश्वव्यचा अजोऽस्येकपादहिरसि बुध्न्यो वागस्यैन्द्रमसि सदोऽस्यूतस्य द्वारौ मा मा सन्ताप्तमध्वनामध्वपते प्र मा तिर स्वस्ति मेऽस्मिन्पथि देवयाने भूयात्॥
हे ब्रह्मासन धिष्ण्य! आपके अधिष्ठाता ब्रह्मा चतुर्वेद वेत्ता ज्ञान के अगाध सागर हैं, इस कारण आप उनके अधिष्ठान से ज्ञान सागर रूप हैं एवं सम्पूर्ण ऋत्विग्गणों के यज्ञीय कृताकृत्य देखने से आप विश्व व्यचा के नाम से विख्यात हैं। हे प्राचीन यज्ञशाला के द्वार की लकड़ी के अग्रभाग! आप आहवनीय रूप से यज्ञ प्रदेश में गमन करते हैं एवं समस्त प्राणियों को एक चरण के नीचे अनुशासित करने वाले हैं, इसलिये 'अज एक पाद' हैं। हे प्राजहित! आप नवीन स्थान पर रख दिये जायँ, तब पर भी विनष्ट न होने वाले एवं सबसे पहले प्रतिष्ठित होने के कारण मूल अग्नि हैं। हे सदो मण्डप द्वार की दोनों शाखाओं! आप यज्ञ द्वार पर प्रतिष्ठित हैं। बार-बार आवागमन की प्रक्रिया होने पर भी आप दुःखी न हो। हे मार्ग के पालक सूर्य! हम जिस किसी मार्ग से भी गमन करें, आप उस मार्ग के मध्य में विद्यमान होकर हमको वर्द्धित करें। देव-प्राप्ति के पथ अथवा यज्ञ पथ पर गमन करते हुए हमारा कल्याण हो।[यजुर्वेद 5.33]
ईश्वर सब प्राणियों का गमनागमन करने वाला, जग व्यापक और (अज) अजन्मा है, जिसके एक पाद में विश्व है।
प्राजहित :: पुराण, गार्हपत्य अग्नि।
Hey Brahm Asan Dhishny! Your deity Brahma Ji, the source of the four Veds, is enlightened and like the deep ocean of knowledge, making you knowledged. You are famous as a Vishw Vycha-who is present in all living beings. Hey front segment of ancient Yagy Shala! You come to the Yagy site in invocable form and discipline all living being in one step, making you Aj, evolving by yourself. Hey well wisher of the living beings-Garhpaty Agni! You form the honoured basic fire, which do not stop burning even when placed at a new spot. Hey two door panels of the Yagy Mandap! Do not be frustrated by repeated arrival. Hey nurturer of the path-road, Sury Dev! Grow us keeping yourself between the paths followed by us. We should be blessed over the way to attainment of Dev-God or Yagy.
मित्रस्य मा चक्षुषेक्षध्वमग्नयः सगराः सगरा स्थ सगरेण नाम्ना रौद्रेणानीकेन पात माऽग्नयः पिपृत माऽग्नयो गोपायत मा नमो वोऽस्तु मा मा हिछंसिष्ट॥
यजमान बोले, हे ऋत्विग्गण! आप मित्र रूपी चक्षुओं से हम याजकों को देखें। हे अग्नियों! आप नाम से रहित एवं धिष्ण्य नाम के साथ स्तवनों के प्रति समान भाव रखें। हे अग्नियों! आप उग्र सेनाओं से हमें संरक्षित रखें। हे अग्नियों! आप हमें धन-सम्पदा से परिपूर्ण करें एवं हमारी रक्षा करें। हम आपको नमन करते हैं। आप हमारी हिंसा न करें तथा हमारे द्वारा किये गये यज्ञानुष्ठान को निर्विघ्न सम्पन्न कराएँ।[यजुर्वेद 5.34]
The Yajman-host should utter, hey Ritviz Gan! Look us through eyes which are like friends. Hey fires! Keep same attitude towards unnamed and Dhishny prayers. Protect us from furious armies. Enrich with wealth, protecting us. we salute you. Do not harm us and accomplish our Yagy, rituals without disturbance.(02.04.2025)
ज्योतिरसि विश्वरूपं विश्वेषां देवाना समित्। त्वꣳ सोम तनूकृद्धयो द्वेषोभ्योऽन्यकृतेभ्य उरु यन्तासि वरूथꣳ स्वाहा। जुषाणो अप्तुराज्यस्य वेतु स्वाहा॥
हे आज्य! आप प्रकाश रूप हैं, सम्पूर्ण देवताओं के दीपक, प्रकाशक हैं। आज्य का भक्षण करके ही देवगण प्रदीप्त होते हैं। उनको सन्तुष्ट करने के लिए इस समिधा को सिक्त करते हैं। हे सोम! आप प्रचरणी नामक जुहू में स्थित होकर रिपुओं को नष्ट करनेवाले हैं। आप हमारे विद्रोहियों द्वारा किये गये अन्य अनिष्ट कार्यों के नाशक हैं। आप रिपुओं से सुरक्षित स्थल पर हमें ले जाने वाले हैं। आप ही हमारी शक्ति हैं। आप सोम को लेकर आयें, इसके निमित्त यह हवि आपको समर्पित की जा रही है। हे सोम! प्रसन्नतापूर्वक आप मेरे द्वारा समर्पित किये गये आज्य का सेवन करें तथा हमारे द्वारा प्रदान की गयी यह आहुति आपको निवेदित है।[यजुर्वेद 5.35]
Hey Ajy-Ghee! You are a illuminator for the demigods-deities. Demigods shine by eating Ghee. For satisfying them soak this wood in Ghee. Hey Som! You present-establish yourself in the Juhu pot, named Prachrni to destroy the enemies. You destroy the harmful endeavours-efforts of the revolting-harmful person. Take us to a safe place, away from the enemies. You are our strength. Accompany Som. This oblation is for you. Hey Som! Eat this Ghee happily prepared by us. This sacrifice is made by us, for you.
अग्ने नय सुपथा राये अस्मान्विश्वानि देव वयुनानि विद्वान्।
युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो भूयिष्ठां ते नम उक्तिं विधेम॥
हे अग्नि देव! आप हमें सत्य मार्ग से ले चलकर धन की प्राप्ति करायें; क्योंकि आप धन के सम्पूर्ण मार्गों को जानने वाले हैं। हमें कपट पूर्ण व्यवहार करने वाले रिपुओं एवं पापों से पृथक् करें। हम आपके लिए स्तुतियों का गान करते हुए अभ्यर्थना करते हैं।[यजुर्वेद 5.36]
अभ्यर्थना :: अनुरोध, विनती, मांग, याचना; request, solicitation.
Hey Agni Dev! Enable to obtain wealth by following truth. You are aware all means of truthful earning. Isolate us from fraudulent enemies and the sins. We recite Stutis and request-solicitate you.
अयं नो अग्निर्वरिवस्कृणोत्वयं मृधः पुर एतु प्रभिन्दन्।
अयं वाजाञ्जयतु वाजसातावयꣳ शत्रूञ्जयतु जर्हषाणः स्वाहा॥
ये अग्नि देवता हम मनुष्यों को उत्तम श्रेणी का धन प्रदान करके समृद्धिशाली बनायें। यही अग्नि देव संग्राम क्षेत्र में विद्वेषी सेनादल को छिन्न-भिन्न करते हुए हमारे आगे-आगे चले। ये अग्नि देव अन्न की इच्छा करने वाले याजकों को शत्रुओं से प्राप्त होने वाले धन को प्रदान करते हुए विजय शील हों। ये अग्नि देव रिपुओं पर सहजता से विजय प्राप्त कर लें एवं हमारे द्वारा प्रदान की गयी आज्य आहुति को ग्रहण करें (यह मन्त्र पढ़कर अग्नि में घृत की आहुति दें)।[यजुर्वेद 5.37]
छिन्न-भिन्न :: टूटा, टूटा हुआ, दूर तक फैला हुआ, बिखरा हुआ, खंडित, टूटा-फूटा, बिखरा हुआ, तितर-बितर, fragmented, diffuse, broken, diffused.
Hey Agni Dev! Make us-humans prosperous by granting us best wealth. Let Agni Dev march ahead us in the war eliminating-fragmenting them. Agni Dev should be victorious by having wealth from the enemy and granting it to the Ritviz. He should win over the enemy easily and accept offerings of Ghee.
उरु विष्णो वि क्रमस्वोरु क्षयाय नस्कृधि। घृतं घृतयोने पिब प्रप्र यज्ञपतिं तिर स्वाहा॥
हे सर्वव्यापक विष्णु! आप अपने पुरुषार्थ से रिपुओं को पराभूत करें। हमारे गृह निवास के निमित्त हमें पर्याप्त स्थान उपलब्ध करायें। हे घृत की हवि से संवर्द्धित होने वाले अग्नि देव! यह घृताहुति आपके निमित्त निवेदित की जा रही है। आप इसको ग्रहण करें एवं याजक को अत्यन्त समृद्धिशाली बनायें।[यजुर्वेद 5.38]
Hey all pervading Bhagwan Shri Hari Vishnu! Let us defeat the enemy with our own efforts. Grant us enough land for building home. Hey Agni Dev flourishing with the offerings of Ghee! Ghee oblations are for you. Accept it and make the Yajak prosperous.
देव सवितरेष ते सोमस्तꣳ रक्षस्व मा त्वा दभन्। एतत्त्वं देव सोम देवो देवां2 उपागा इदमहं मनुष्यान्त्सह रायस्पोषेण स्वाहा निर्वरुणस्य पाशान्मुच्ये॥
हे सविता देव! आपके निमित्त यह सोम समर्पित किया गया है। इस कारण आप ही इस सोम को सुरक्षित रखें। हे सोम के संरक्षणकर्ता! कोई भी दुराचारी शत्रु इसको कष्ट न पहुँचाये। हे सोम देव! आप देवत्व को प्राप्त करके देवताओं द्वारा स्थित कर दिये गये हैं। हम और हमसे जुड़े सभी ऋत्विग्गण, पशु इत्यादि धन एवं पुष्टि को प्राप्त करें। अब हम यज्ञ शाला से विरत होकर इस सोम को अर्पित करने से वरुण देव के बंधन से मुक्त हो गये हैं।[यजुर्वेद 5.39]
Hey Savita Dev! This Som is for you. Keep this Som safe. Hey protector of Som! Do not let any wicked-vicious enemy destroy-waste it. Hey Som Dev! You have been awarded & established with demigodhood. Let all Ritviz, animals connected with us, should have wealth and become strong-nourished. We have been relieved from the Yagy Shala and become free from the bonds of Varun Dev by offering him Som.
अग्ने व्रतपास्त्वे व्रतपा या तव तनूर्मय्य भूदेषा सा त्वयि यो मम तनूस्त्वय्यभूदियꣳ सा मयि। यथायथं नौ व्रतपते व्रतान्यनु मे दीक्षां दीक्षापतिरमꣳस्तानु तपस्तपस्पतिः॥
हे अग्नि देवता! आप समस्त व्रतों के पालन कर्ता हैं। इसलिए आप हमारे व्रत का पालन करें। व्रत के समय हमारा शरीर आपसे सम्बद्ध हो जाय एवं आपका शरीर हमसे संबद्ध हो जाय अर्थात् हमारे और आपके बीच में कोई भी अन्तर न रहे। हे व्रत के परिपालक, अग्रगण्य अग्ने! आप हमारे उत्कृष्ट यज्ञकर्मों को यथायोग्य सम्पादित करें। जो अग्नि दीक्षा पालक है, उन्होंने हमारे दीक्षा नियम को अंगीकार कर लिया है। तप का पालन करने वाले अग्नि देव हमारे तपोव्रत को अंगीकार करें।[यजुर्वेद 5.40]
दीक्षा :: किसी धार्मिक या आध्यात्मिक मार्ग में प्रवेश करना; initiation to a sect, ordination, enrolment.
Hey Agni Dev! You accomplish all resolves, therefore accomplish our resolve as well. Let us be connected with you during fast-resolve and vice-versa. Hey resolve accomplishing and moving ahead Agni Dev! Accomplish our Yagy Karm. Agni Dev is the initiator and we have accepted the rules of initiation. Follower of ascetics Agni Dev, should accept our resolution for Tap-ascetics.
उरु विष्णो वि क्रमस्वोरु क्षयाय नस्कृधि। घृतं घृतयोने पिब प्रप्र यज्ञपतिं तिर स्वाहा॥
हे विश्व व्यापक देव विष्णु ! आप हमारे विरोधियों के प्रति हमें अत्यन्त पराक्रमी बना दें। हमारे निवास हेतु आप पर्याप्त स्थान उपलब्ध करायें। हे घृत की आहुति से वृद्धि को प्राप्त होने वाले अग्नि देव! इस घृत के कारण आपकी ज्वालाएँ वर्द्धित हों। हे अग्ने! आप याजकों को असीमित धन-ऐश्वर्य प्रदान करें। हमारे द्वारा यह हवि आपको भली-भाँति निवेदित की जा रही है।[यजुर्वेद 5.41]
Hey Bhagwan Shri Hari Vishnu, pervading the whole universe! Make us invincible against our enemies. Grant us place to live. Hey Agni Dev growing with the sacrifices of Ghee! Let this Ghee grow your flames. Grant unlimited wealth, grandeur to the Yajak. We are making the offerings to you, properly-methodically.
अत्यन्याँर2 अगां नान्याँ2 उपागामर्वाक् त्वा परेभ्योऽविदं परोऽवरेभ्यः। तं त्वा जुषांमहे देव वनस्पते देवयज्यायै देवास्त्वा देवयज्यायै जुषन्तां विष्णवे त्वा। ओषधे त्रास्यव स्वधिते मैनꣳ हिꣳसीः॥
हे यूप वृक्ष! हम उन्हीं वृक्षों को प्राप्त करें, जो यूप-निर्माण में उपयोग किये जाते हैं। हम आपसे अलग उन अयोग्य वृक्षों को प्राप्त न करें, जो यूप के निर्माण में प्रयोग नहीं किये जाते हैं। दूरस्थ एवं समीपस्थ वृक्षों में हमने आपको उत्कृष्ट जानकर समीप में ही प्राप्त कर लिया है। हे जंगल के पालनकर्ता दीप्यमान् वृक्ष! हम देवताओं के निमित्त किये जा रहे यज्ञकार्य में आपका सेवन करते हैं। देवतागण भी देवयजन कार्य के निमित्त आपका भक्षण करें। हे यूप वृक्ष! हम यज्ञकार्य के निमित्त घी का छिड़काव करते हैं। हे ओषधे! आप कुठार से इसको सुरक्षित रखें। हे परशु! आप इस यूप वृक्ष को आहत न करें।[यजुर्वेद 5.42]
Hey tree meant for the pillar! You should select only those trees which are used in the erection of pillar for the Yagy. We have got the near and far away trees for the purpose. Hey aurous trees of the forest! We participate in the Yagy devoted to the demigods. Let the demigods eat you for the worship of deities. Hey Yup Tree! We sprinkle Ghee for the Yagy Kary. Hey medicine! Keep it safe from axe. Hey halberd-hatchet do not harm this Yup tree.
द्यां मा लेखीरन्तरिक्षं मा हिꣳसीः पृथिव्या सम्भव। अयꣳ हि त्वा स्वधितिस्तेतिजानः प्रणिनाय महते सौभगाय। अतस्त्वं देव वनस्पते शतवल्शो वि रोह सहस्त्र वल्शा वि वयꣳ रु हेम॥
यजमान कटे हुए वृक्ष के स्थान पर आहुति देते हुए बोले, हे यूपवृक्ष! आप स्वर्गलोक को क्षति न पहुँचाए, आप अन्तरिक्षलोक को भी क्षति न पहुँचायें, बल्कि आप धरती पर कटकर गिर पड़ें एवं धरती पर शयन करें। हे छिन्न वृक्ष! अति तीक्ष्ण यह कुठार आपके सौभाग्य के निमित्त है। आप यज्ञ के निमित्त यूपरूप में परिवर्तित हो जायँ, अर्थात् यज्ञ में यूप के रूप में आपका उपयोग हो। हे देव वनस्पति! आप अब तक सिर्फ काष्ठ रूप थे। अब आप यज्ञ में यूप के रूप में प्रयोग किये जाने के कारण नाना अंकुरों से युक्त होते हुए विशेष जीवन को प्राप्त करें। जिस प्रकार वृक्ष की शाखा बढ़ती है, उसी प्रकार हम यजमानगण भी संतान आदि से अपने वंश को आगे बढ़ायें।[यजुर्वेद 5.43]
Yajman should make offering to the Yup tree cutting it for the Yagy and say, "Hey Yup Tree! Do not harm the heavens, sky, fell down over the earth and sleep. Hey broken tree! This sharp axe is for your favourable luck. Get converted into Yup. Hey deity of vegetation! You were in the form of wood, till now. Enjoy the new decorated form. The way branch of tree grow, similarly let our progeny too strengthen-grow our clan.(03.04.2025)
यजुर्वेद संहिता, षष्ठम अध्याय :: ऋषि :- अगस्त्य, शाकल्य, दीर्घतमा, मेधातिथि, मधुच्छन्दा, गोतम; देवता :- सविता, विष्णु, विद्धांस, त्वष्टा, बृहस्पति, दोनों अश्विनी कुमार, पूषा, आप (जल), वात, द्यु और पृथ्वी, अग्नि, विश्वेदेवा, सेनापति, वरुण, अप् (आदि लिङ्गोक्त), यज्ञ, सूर्या, प्रजा, प्रजासभ्यराजान्, सभापतिराजा, इन्द्र; छन्द :- पंक्ति, उष्णिक्, गायत्री, बृहती, अनुष्टुप्, जगती, त्रिष्टुप्।
देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्याम्। आ ददे नार्यसीदमहꣳ रक्षसां ग्रीवा अपि कृन्तामि। यवोऽसि यवयास्मद् द्वेषो यवयारातीर्दिवे त्वाऽन्तरिक्षाय त्वा पृथिव्यै त्वा शुन्धन्ताँल्लोकाः पितृषदनाः पितृषदनमसि॥
हे यज्ञ यूप को गाड़ने के लिये प्रयुक्त होने वाले अभ्रि! हम आपको सविता द्वारा प्रेरित स्वस्थ रखने वाले दोनों अश्विनी कुमारों की भुजाओं तथा पुष्टि कारक पूषा के हस्तों से ग्रहण करते हैं। हम आपके द्वारा आसुरी शक्तियों की गर्दनों पर आघात करते हैं। आप हमारे रिपुओं को हमारे समीप न आने दें। हम स्वर्गलोक, अंतरिक्ष तथा भूलोक का कल्याण करने के उद्देश्य से आपको पवित्र करते हैं। आप पिता की भाँति पालन-पोषण करनेवाले तथा प्रजाओं के शरणस्थल हैं।[यजुर्वेद 6.1]
अभ्रि :: चोट पहुँचाना, पीड़ा पहुँचाना, आक्रमण करना; hammer.
Hey sharpened iron rod-Abhri, used for erecting Yup! We receive you by the hands of Ashwani Kumars and strengthening Push Dev; who are inspired by Savita Dev. We strike the necks of demonic powers. Do not let the enemies come close to us. We sanctify you for the welfare of heavens, sky and the earth. You nourish-nurture the populace like the caring father.
अग्रेणीरसि स्वावेश उन्नेतॄणामेतस्य वित्तादधि त्वा स्थास्यति देवस्त्वा सविता मध्वानक्तु सुपिप्पलाभ्यस्त्वौषधीभ्यः। द्यामग्रेणास्पृक्ष आन्तरिक्षं मध्येनाप्राः पृथिवीमुपरेणादृꣳहीः॥
यजमान यूप को गड्ढे में रखते हुए बोले, हे यूप! तुम उन्नति के मार्ग में ले जाने वाले हो और यज्ञकर्म से स्वर्ग प्रदान करने वाले हो। तुम सुख पूर्वक इस गड्ढे में स्थिर रहों। तुम्हें सविता देव वर्षा के जल से सिंचित करें। फल युक्त औषधियों के निमित्त मैं तुम्हें इस गड्ढे में रखता हूँ। हे यूप! तुम अपने अग्रभाग से द्युलोक को, मध्यभाग से अन्तरिक्ष को और मूलभाग से पृथ्वी को स्पर्श करो।[यजुर्वेद 6.2]
Host-Yajman should erect the Yup in the pit and say, "Hey Yup! You take us to the path of progress, granting heaven through Yagy Karm". Stay here comfortably in the pit. Let Savita Dev feed you with rain water. I am placing you in the pit along with medicinal-herbs bearing fruits. Touch heavens with your upper segment, sky with the middle segment and the earth with lower-root segment.
या ते धामान्युश्मसि गमध्यै यत्र गावो भूरिश्रृंगा अयासः। अत्राह तदुरुगायस्य विष्णोः परमं पदमव भारि भूरि। ब्रह्मवनि त्वा क्षत्रवनि रायस्पोषवनि पर्यूहामि। ब्रह्म दृꣳह क्षत्रं दृꣳहायुर्दृꣳह प्रजां दृꣳह॥
हे यूप! हम आपके उस श्रेष्ठ स्थान में गमन करने की अभिलाषा करते हैं, जो सूर्य की किरणों से आलोकित है तथा सर्वत्र व्याप्त पूजनीय भगवान् विष्णु का परम धाम है। हम आपको ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा वैश्य इत्यादि वर्णों में यथोचित विधि से शक्ति एवं धन-सम्पत्ति को बाँटने वाला मानते हैं। इस कारण आप ब्रह्म चिन्तन में लगे हुए लोगों को सच्चे ज्ञान की सम्पत्ति, क्षत्रिय वर्ण के लोगों को वीरतापूर्ण बल तथा वैश्य वर्ण के लोगों को धन, वैभव प्रदान करके प्रजा की जीवन शक्ति एवं उसकी संख्या में बढ़ोत्तरी करें।[यजुर्वेद 6.3]
Hey Yup! You wish to reach the excellent place which is illuminated by the rays of Sun and is the Ultimate abode of Bhagwan Shri Hari Vishnu. We consider you to distribute might and wealth through proper-justified means amongest the Brahmans, Kshatriy & Vaeshy. Hence grant enlightenment to Brahmans, bravery-might to Kshatriy, wealth, grandeur to Vaeshy and increase the longevity of populace and increasing their numbers.
विष्णोः कर्माणि पश्यत यतो व्रतानि पस्पशे। इन्द्रस्य युज्यः सखा॥
हे ऋत्विज्! आप सभी जगह व्याप्त भगवान् विष्णु के प्रजनन, पुष्टि तथा परिवर्तन इत्यादि विश्व के संचालन सम्बन्धी कार्य को ध्यान पूर्वक देखें। इसमें बहुत सारे नियमों-अनुशासनों को अवलोकित किया जा सकता है। आत्मा के योग्य सखा उस परम सत्ता के अनुरूप बनकर जीवन-निर्वाह करे। वे विष्णु इन्द्र के परम मित्र हैं।[यजुर्वेद 6.4]
Hey Ritviz! Observe carefully the endeavours of Bhagwan Shri Hari Vishnu pertaining to reproduction, growth-nourishment and management of the universe. It shows several principles, rules, laws and discipline. Become favourable to the Ultimate and live accordingly alike friendly soul. Bhagwan Shri Hari Vishnu is the best friend of Indr Dev.
तद्विष्णोः परमं पदꣳ सदा पश्यन्ति सूरयः। दिवीव चक्षुराततम्॥
विद्वान्जन सर्वत्र व्यापक भगवान् विष्णु के उस मोक्ष-स्वरूप परम पद को वैसे ही सदा देखते हैं, जैसे हम लोग अन्तरिक्ष में स्थित नक्षत्रों को अपनी आँखों से देखते हैं।[यजुर्वेद 6.5]
The scholars see the Ultimate abode of Bhagwan Shri Hari Vishnu just as we observe the constellation & stars in the sky-space with our eyes.
परिवीरसि परि त्वा दैवीर्विशो व्ययन्तां परीमं यजमानꣳ रायो मनुष्याणाम्। दिवः सूनुरस्येष ते पृथिव्याँल्लोक आरण्यस्ते पशुः॥
यजमान कुश की रस्सी से यूप को तीन बार लपेटकर बोले, हे यूप! तुम रस्सी से लिपटे हुए हो। विद्वान् लोग यह अनुभव करते हैं कि आप सूर्य के अलौकिक प्रकाश के सदृश कण-कण में समाहित हैं। धरती, कानन तथा पशुओं इन सभी में आप ही व्याप्त हैं। आप सत्य कर्म करने में लगे हुए उत्तम मनुष्यों को चहुँ ओर से विपुल मात्रा में धन, ऐश्वर्य प्रदान करें।[यजुर्वेद 6.6]
The Yajman-host should tie the Yup trice with cord and say, "Hey Yup! You are tied with cord". The learned-scholars feel that the divine rays of Sun penetrate in your each and every particle. You pervade the earth, gardens and animals. Grant wealth & grandeur to the excellent humans in huge quantity, who are busy-engaged in truthful functions.
उपावीरस्युप देवान्दैवीर्विशः प्रागुरुशिजो वह्नितमान्।
देव त्वष्टर्वसु रम हव्या ते स्वदन्ताम्॥
हे तृण विशेष! आप शरण में आने वाले की रक्षा करने वाले मित्र हो। आपकी शरण में जो कोई भी आता है, आप उन सभी की रक्षा करने वाले हैं। उत्कृष्ट गुणों से सम्पन्न प्रजा, अद्भुत गुणों से युक्त, तेजवान्, योग्य, ज्ञानी जनों को प्राप्त हों। आप साधनों का उचित प्रयोग करे। आपके निमित्त समर्पित यह हविष्यान्न आपको तृप्ति प्रदान करने वाला हो।[यजुर्वेद 6.7]
Hey specific straw! You are a friend; who protect those seeking asylum under you. Each & every one under your asylum is protected. You should be available to the populace having excellent characterises, aura, ability and enlightenment. Let the food grains grant us satisfaction.
रेवती रमध्वं बृहस्पते धारया वसूनि।
ऋतस्य त्वा देवहविः पाशेन प्रति मुञ्चामि धर्षा मानुषः॥
हे दुग्धादिरूप धन प्रदान करने वाली गायों! तुम यजमान के घर में सुख पूर्वक रहो। हे बृहस्पते! तुम यजमान को गौरूप धन प्रदान करो। हे यज्ञ पशु! मैं तुम्हें यज्ञ में बन्धन से बाँधता हूँ। शमिता तुम्हें अपने वश में करे।[यजुर्वेद 6.8]
शमिता :: शांति पूर्ण, शांत, अनुशासित और तैयार; calm, quite, disciplined, ready.
Hey cows yielding wealth in the form of milk etc.! You should live comfortably in the house of the Yajman-host. Hey Brahaspate! Grant cows to the Yajman as wealth. Hey Yagy animal! I tie you with this Yagy Yup. Let calm over power you.(04.04.2025)
देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्याम्। अग्नीषोमाभ्यां जुष्टं नि युनज्मि। अभ्यस्त्वौषधीभ्योऽनु त्वा माता मन्यतामनु पिताऽनु भ्राता सगर्योऽनु सखा सयूथ्यः। अग्नीषोमाभ्यां त्वा जुष्टंट प्रोक्षामि॥
हे यज्ञीय पशु! सबके प्रेरक सविता देवता की प्रेरणा से अश्विनी कुमार को दोनों भुजाओं से तथा पूषा देवता के दोनों हाथों से, अग्नि तथा सोम देवता के प्रीति पात्र हम आपको ग्रहण करते हैं। अग्नि तथा सोम देवता को प्रसन्न करने हेतु हम आपको जल तथा ओषधियों के द्वारा शोधित करते हैं एवं यज्ञ जैसे उत्तम कर्म में आपको संलग्न करते हैं। इसके लिए आपके माता-पिता, भ्राता तथा सखा आज्ञा प्रदान करें।[यजुर्वेद 6.9]
Hey animal for the Yagy! We the affectionate of Agni and Som, accept you due to the inspiration from Savita Dev, with the two hands of Ashwani Kumars and Pusha Dev. We sanctify you with water and medicines-herbs and involve you in the Yagy related functions. Therefore, let you parents, brothers and friends grant us permission.
अपां पेरुरस्यापो देवीः स्वदन्तु स्वात्तं चित्सद्देवहविः। सं ते प्राणो वातेन गच्छताꣳ समङ्गानि यजत्रैः सं यज्ञपति राशिषा॥
हे पशु (यज्ञ से जुड़े जीव)! तुम जल को पीने वाले हो। जल के देवता तुम्हें पवित्र बनायें। तुम्हारा प्राण बाह्य पवन के साथ सम्मिलित हो एवं तुम्हारे सभी अंग तत्-तत् देवताओं को प्राप्त हों तथा यजमान को स्वर्ग की प्राप्ति हो।[यजुर्वेद 6.10]
Hey animal related with the Yagy! You drink water. Let the deity of water sanctify you. Let your air vital be associated with external air and all of organs be accepted by the demigods leading to heaven for the Yajman.
घृतेनाक्तौ पशूँस्त्रायेथाꣳ रेवति यजमाने प्रियं धा आ विश। उरोरन्तरिक्षात्सजूर्देवेन वातेनास्य हविषस्त्मना यज समस्य तन्वा भव। वर्षो वर्षीयसि यज्ञे यज्ञपतिं धाः स्वाहा देवेभ्यो देवेभ्यः स्वाहा॥
यज्ञ पशु मस्तक और तलवार पर घृत लगाकर बोलें, हे असि! आप इस पशु की सुरक्षा करो। हे धन की कामना से युक्त स्तुति वाणी! तुम यजमान को धन प्रदान करो। तुम इस यजमान में प्रवेश करो। हे स्तुति वाणी! तुम वायु देव के साथ मिलकर इस वध्य पश की प्रभा करो। हे वर्षा से उत्पन्न तृण! तुम यजमान को फल युक्त यज्ञ में प्ररित करो। देवों के लिये यह पशु हवि है।[यजुर्वेद 6.11]
Apply ghee over the head of the Yagy animal with sword and say, hey sword! Protect this animal". Hey voice desirous of wealth! Grant wealth to the Yajman, entering the Yajman. Hey Stuti voice! Join air and grant aura to this animal meant for slaughter. Hey straw produced by rain! Inspire the host for the Yagy involving reward. This animal is oblation for the demigods.
माहिर्भिर्मा पृदाकुर्नमस्त आतानानर्वा प्रेहि।
घृतस्य कुल्या उप ऋतस्य पथ्या अनु॥
पशु को बाँधने वाली रस्सी को दोहरा करके बोलें, हे रस्सी! तुम सर्प के आकार की मत होओ, तुम अजगर के आकार की मत होओ। यजमान की पत्नी बोले, विस्तार को प्राप्त होने वाले यज्ञ! तुम्हें नमस्कार है। तुम शत्रु रहित होकर सम्पन्न होओ। घृत की धाराओं से तुम प्रवर्तमान होओ।[यजुर्वेद 6.12]
Double the cord meant for tying the animal and say, hey cord! You neither be of the form of snake nor python. Wife of the host should say, hey Yagy getting extension! I salute you. You should become free from enemies and get accomplished. You should enforce-be accomplished with the streams of Ghee.
देवीरापः शुद्धा वोढ्द्वꣳ सुपरिविष्टा देवेषु सुपरिविष्टा वयं परिवेष्टारो भूयास्म॥
हे देवी के लिये पाद्य एवं अर्घ्य रूप में दिये जाने वाले घटस्थित प्रकाश मान जल! शुद्ध हो और इस पशु को शुद्धि के द्वारा देवों में प्राप्त कराने में समर्थ हो। देवों के मध्य स्थित हम भी इन देवी के द्वारा हर प्रकार से घिरे (रक्षित) हों।[यजुर्वेद 6.13]
पाद्य :: वह जल जिससे पूजनीय ब्यक्ति या देवता के पैर धोए जायँ, पैर धोने का पानी, षोडशोपचार पूजा में आसन और स्वागत के पश्चात् और पंचोपचार पूजा में सर्वप्रथम पाद्य ही की विधि है, जिस जल से देवता के पैर धोए जाते हैं उससे हाथ नहीं धोए जा सकते, इसी से पैर धोने के जल को पाद्य और हाथ धोने के जल को 'अर्घ' कहते हैं।
Hey radiant water used to clean feet and hands of the Goddess! Become purified and make this animal attain demigods through purification. Present amongest the demigods we too become protected by the Goddess.
वाचं ते शुन्धामि प्राणं ते शुन्धामि चक्षुस्ते शुन्धामि श्रोत्रं ते शुन्धामि न ते शुन्धामि मेढूं ते शुन्धामि पायुं ते शुन्धामि चरित्राँस्ते शुन्धामि॥
यजमान की पत्नी मृत पशु के विभिन्न अंगों का स्पर्श करते हुए बोलें, हे यज्ञ में मृत पशु! हम आपके वागीन्द्रिय को, प्राणवायु को, चक्षुइन्द्रिय को, श्रोत्रइन्द्रिय को, नाभि को, जननेन्द्रिय को, गुदेन्द्रिय तथा चारों पैरों को पवित्र करते हैं। इस तरह आपके कर्तव्य तथा कर्मों को पवित्र करते हुए तुम्हें यज्ञानुकूल बनाते हैं।[यजुर्वेद 6.14]
Wife of the Yajman should touch the different organs of the dead-slaughtered animal and say, hey dead animal! We sanctify your speech organs, air vital, eyes, ears, navel, pennies, anus and the four legs. In this manner we purify your deeds and duties favourable for the Yagy.
मनस्त आ प्यायतां वाक्त आ प्यायतां प्राणस्त आ प्यायताꣳ चक्षुस्त आ प्यायताꣳ श्रोत्रं त आ प्यायताम्। यत्ते क्रूरं यदास्थितं तत्त आ प्यायतां निष्ट्यायतां तत्ते शुध्यतु शमहोभ्यः। ओषधे त्रायस्व स्वधिते मैनꣳ हिꣳसीः॥
हे पशु! तुम्हारे मन, वाणी, प्राण, श्रोत्र शान्त हों। यज्ञ-सम्बन्धी बन्धन तथा वध के प्रति तुम्हारा क्रोध शान्त हो जाय एवं जो आचरण की स्थिरता है, वह दृढ़ता को प्राप्त हो। आपका सम्पूर्ण व्यवहार हमेशा सुख प्रदान करने वाला हो। हे ओषधे! आप इनकी सुरक्षा करें तथा इन्हें विनष्ट होने से बचायें। आप इस पशु की आत्मा को दुःखी मत करना।[यजुर्वेद 6.15]
Hey animal! Your innerself (mind & heart), voice, air vital, ears should be calm-quite. Your anger towards your tying and slaughter-sacrifice should calm down, and behaviour should be smoothened. Your entire conduct should always grant pleasure-comforts. Hey medicine! Protect these and save them from destruction, & do not pain the soul of this animal.(05.04.2025)
रक्षसां भागोऽसि निरस्तꣳ रक्ष इदमहꣳ रक्षोऽभि तिष्ठामीदमहꣳ रक्षोऽव बाध इदमहꣳ रक्षोऽधमं तमो नयामि। घृतेन द्यावापृथिवी प्रोणुवाथां वायो वे स्तोकानामग्निराज्यस्य वेतु स्वाहा स्वाहाकृते ऊर्ध्वनभसं मारुतं गच्छतम्॥
हे परित्यक्त रक्त रंजित तृण! तुम राक्षसों के भाग हो। इस कारण तुम्हें यज्ञ से दूर हटाते हैं। दुष्ट प्रवृत्ति वाले तुम्हारा परित्याग करते हुए प्रतिबन्धित कर पतन के गर्त में पहुँचाते हैं। आचरण के सूक्ष्मतम पक्ष के जानकार, हे यजमान! आप जिस जल को अर्घ्य के रूप में समर्पित करते हैं, उस जल से भूलोक तथा स्वर्गलोक दोनों परिपूर्ण हों। आप जिस घृतादि हव्य पदार्थ को समर्पित करते हैं, वे अग्नि देव को प्राप्त हों और वायु के रूप में बनकर आकाश में वायु से मिल जायँ।[यजुर्वेद 6.16]
Hey rejected straw, soaked in blood! You are the share of demons. That's why we keep you off the Yagy. Since, you possess wicked traits, we throw at the bottom of hell. Aware of the human behaviour minutely, hey Yajman! The water which you use as Ardhy-for prayers, should generate sufficient water for the heaven & earth. Offerings made in the form of Ghee etc. should reach Agni Dev, turning into air and assimilating with the sky.
इदमापः प्र वहतावद्यं च मलं च यत्। यच्चाभिदुद्रोहानृतं यच्च शेपे अभीरुणम्। आपो मा तस्मादेनसः पवमानश्च मुञ्चतु॥
हे जल देवता! आप जैसे शरीर पर जमें मलों को नष्ट करते हैं अर्थात् दूर हटाते हैं, वैसे ही यजमान के अन्दर जो भी विद्वेष की भावना, ईर्ष्याभाव, असत्य बोलने की सामर्थ्य, बिना मतलब के दोषारोपण करना इत्यादि निन्दनीय गुण हैं, आप उन सम्पूर्ण निन्दनीय दोषों को दूर करें। जल तथा वायु अपने प्रवाह से पावन करके हमें यज्ञ-सम्बन्धी कार्यों के अनुरूप बनायें।[यजुर्वेद 6.17]
Hey deity of water! The way you cleanse the impurities in the body, similarly remove condemnable traits like envy, enmity, falsehood, blaming others unnecessarily present in the behaviour of Yajman. Let water and air make us pure the Yagy related asks.
सं ते मनो मनसा सं प्राणः प्राणेन गच्छताम्। रेडस्यग्निष्ट्वा श्रीणात्वापस्त्वा समरिणन्वातस्य त्वा ध्राज्यै पूष्णो रुꣳह्या ऊष्मणो व्यथिषत्प्रयुतं द्वेषः॥
मृत पशु के हृदय को घृत में पकाये और बोलें, हे मृत पशु! तुम्हारा मन दवताआ के मन से संयुक्त हो, आपके प्राण देवताओं के प्राणों के साथ संयुक्त हों। हे मृत पशु की वसा! तुम अत्यन्त अल्प मात्रा में हो। अग्नि देव तुम्हें पकाकर पर्याप्त बनायें। जल तुम्हें भली प्रकार रस युक्त करे। आपको वायु की गति तथा सूर्य की प्रचण्ड ऊर्जा से परिपक्वता प्राप्त हो। इस तरह तुम्हारे सभी दोष नष्ट कर दिये जायँ। तुम्हें पीकर अन्तरिक्ष में स्थित राक्षस व्यथित हो जायँ।[यजुर्वेद 6.18]
Cook the heart of the dead animal in Ghee and say, hey dead animal! Your innerself and air vital should join that of the demigods. Hey fat of the dead animal! You are in insignificant quantity. Let Agni Dev should cook and make you sufficient. Water should make you juicy. You should become mature by the motion of air and the colossal energy of the Sun. Demons residing in the sky should become perturbed by drinking you.
घृतं घृतपावानः पिबत वसां वसापावानः पिबतान्तरिक्षस्य हविरसि स्वाहा। दिशः प्रदिश आदिशो विदिश उद्दिशो दिग्भ्यः स्वाहा॥
हे घृत का पान करने वाले देवताओं! तुम घृत का पान करो। वसा का पान करने वाले हे पितरों! तुम वसा का पान करो। हे घृत मिश्रित वसा! तुम अन्तरिक्ष में स्थित देवताओं और पितरों की हवि हो। लोकों के कल्याण हेतु हम यह हवि समर्पित करते हैं। पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण सभी दिशाओं, (आग्नेय, नैऋत्य, वायव्य, ईशान) सभी उपदिशाओं, आगे-पीछे, ऊपर-नीचे अर्थात् सम्पूर्ण दिशाओं को हम हवि समर्पित करते हैं।[यजुर्वेद 6.19]
Hey Ghee drinking demigods! Drink Ghee. Hey Pitr Gan drinking fat! Drink fat. Hey fat mixed with Ghee! You are oblation for the demigods & Pitr Gan present in the sky. We make this offering for the welfare of populace in all directions.
ऐन्द्रः प्राणो अंगे अंगे नि दीध्यदैन्द्र उदानो अंगे अंगे निधीतः। देव त्वष्टर्भूरि ते सꣳ समेतु सलक्ष्मा यद्विषुरूपं भवाति। देवत्रा यन्तमवसे सखायोऽनु त्वा माता पितरो मदन्तु॥
हे त्वष्टा देव! आप प्राण तथा उदान के रूप में इन्द्र की शक्ति को अंग-प्रत्यंगों में निहित करें। आप इस पशु के कटे हुए सम्पूर्ण अंगों को पुनः जोड़ दें। हे पशु! हमारी रक्षा के लिये तुम देवताओं को प्राप्त होओ। तुम्हारा माता-पिता तथा मित्र तुम्हारे इस उत्तम कार्य का समर्थन करें।[यजुर्वेद 6.20]
Hey Twasta Dev! Generate the power-strength of Indr Dev in the air vital and gas rejected by the body. Join the organs of the dead animal again. Hey animal! You should be obtained by the demigods-deities for our protection. Let your parents and friends appreciate-support your excellent endeavour.
समुद्रं गच्छ स्वाहाऽन्तरिक्षं गच्छ स्वाहा देवꣳ सवितारं गच्छ स्वाहा मित्रावरुणौ गच्छ स्वाहाऽहोरात्रे गच्छ स्वाहा छन्दाꣳसि गच्छ स्वाहा द्यावापृथिवी गच्छ स्वाहा यज्ञं गच्छ स्वाहा सोमं गच्छ स्वाहा दिव्यं नभो गच्छ स्वाहाऽग्निं वैश्वानरं गच्छ स्वाहा मनो मे हार्दि यच्छ दिवं ते धूमो गच्छतु स्वर्योतिः पृथिवीं भस्मनाऽऽपृण स्वाहा॥
हे हवि! तुम समुद्र को प्राप्त होओ। तुम्हारे लिये यह आहुति निवेदित है। हे हवि! तुम अन्तरिक्ष को प्राप्त होओ। तुम्हारे लिये यह आहुति निवेदित है। हे हवि! तुम सविता देवता को प्राप्त होओ। तुम्हारे लिये यह आहुति निवेदित है। हे हवि! तुम मित्र और वरुण देवता को प्राप्त होओ। तुम्हारे लिये यह आहुति निवेदित है। हे हवि! तुम दिवा-रात्रि रूप काल को प्राप्त होओ। तुम्हारे लिये यह आहुति निवेदित है। हे हवि! तुम गायत्री आदि सात छन्दों को प्राप्त होओ। तुम्हारे लिये यह आहुति निवेदित है। हे हवि! तुम द्युलोक और पृथ्वी लोक को प्राप्त होओ। तुम्हारे लिये यह आहुति निवेदित है। हे हवि! पशु को प्राप्त होओ। तुम्हारे लिये यह आहुति निवेदित है। हे हवि! तुम दिव्य आकाश को प्राप्त होओ। तुम्हारे लिये यह आहुति निवेदित हैं। हे हवि! तुम वैश्वानर अग्नि को प्राप्त होओ। तुम्हारे लिये यह आहुति निवेदित है। हे समुद्रादि देवता समूह! तुम सब मेरे मन को नियन्त्रित करो। हे स्वर देवता! तुम्हारे लिये किये गये इस हवन का धुआँ द्युलोक तक जाय। तुम्हारी ज्योति स्वर्ग तक पहुँचे, तुम्हारी भस्म इस सम्पूर्ण पृथ्वी को भर दे। तुम्हारे लिये यह आहुति निवेदित है।[यजुर्वेद 6.21]
Hey oblation! You should be availed by the ocean. This sacrifice is for you. Hey oblation! You should be attained by the sky-space. This sacrifice is for you. Hey oblation you should reach Savita Dev. This sacrifice is for you. Hey oblation! you should be availed by Mitr & Varun Dev. This sacrifice is for you. Hey offering! You should be availed by night duration. This sacrifice is for you. Hey offering! You should be availed by the seven Chhands of Gayatri. This sacrifice is for you. Hey oblation! You should reach the heaven & earth. This sacrifice is for you. Hey oblation! You are meant for the animal. This sacrifice is for you. Hey oblation! You are meant for the divine sky. This sacrifice is for the sky. Hey Havi-oblation! You are for the Vaeshwanar Agni! This sacrifice is for you. Hey group of demigods including the ocean! You should control my mind-innerself. Hey deity of speech! The smoke of the Hawan performed for you should reach the heaven. Your aura-radiance should reach heaven and your ashes should fill the whole earth. This offering is meant for you.(06.04.2025)
माऽपो मौषधीर्हिꣳ सीर्धाम्नो धाम्नो राजँस्ततो वरुण नो मुञ्च। यदाहुरघ्न्या इति वरुणेति शपामहे ततो वरुण नो मुञ्च। सुमित्रिया न आप ओषधयः सन्तु दुर्मित्रियास्तस्मै सन्तु योऽस्मान् द्वेष्टि यं च वयं द्विष्मः॥
यज्ञ के साधन भूत पशु के हृदय को पकाने वाली, हे शलाके! ओषधियाँ तथा जल जिस स्थान पर हैं, उसी स्थान पर आप उन्हें सुरक्षित रहने दें। उन्हें विनष्ट होने से बचायें। हे वरुण देव! आपका प्रवाह हमारे निमित्त सखा के समान सुख प्रदान करने वाला हो। जो हिंसा करने योग्य न हो, ऐसे पशु की हिंसा न करके हम पाप से सदैव मुक्त रहें। जो दुष्ट शत्रु हमसे विद्वेष करते हैं तथा जिनसे हम विद्वेष करते हैं, उनके साथ आप कटुतापूर्ण आचरण करें अर्थात् उन्हें विनष्ट कर दें।[यजुर्वेद 6.22]
विद्वेष :: द्वेष, शत्रुता, धृणा, मालिन्य, मैल, डाह, बैर, वैमनस्य, वैर, अदावत, ईर्षा; rancour, envy, enmity.
Hey rod used to cook the heart of the Yagy animal! Keep them safely at a place where water and medicines are stored. Protect it from decaying. Hey Varun Dev! Your flow should grant comfort to our companion. We should keep off-away from sin caused by the slaughter of such animal who do not deserve killing. Deal strictly-destroy those enemies who are either envious to us or we are envious to him.
हविष्मतीरिमा आपो हविष्माँ 2 आ विवासति।
हविष्मान्देवो अध्वरो हविष्माँ 2अस्तु सूर्यः॥
हे शुद्धिकारी जल! आप अविरल, उत्तम, अन्न, रस इत्यादि पैदा करते हुए यज्ञ करें। यज्ञ हमेशा उत्तम आहुतियों से सम्पन्न होकर अच्छे गुणों को प्रसारित करने वाले हों। सूर्य देवता भी याजक को पुण्य फल देने के निमित्त आहुति को ग्रहण करें।[यजुर्वेद 6.23]
Hey purifying water! You should conduct Yagy continuously producing food grains, saps etc. The Yagy should good have impact due to oblations. Sury Dev too accept the offerings to grant best out put to the Yajak.
अग्नेर्वोऽपन्नगृहस्य सदसि सादयामीन्द्राग्न्योर्भागधेयी स्थ मित्रावरुणयोर्भागधेयी स्थ विश्वेषां देवानां भागधेयी स्थ। अमूर्या उप सूर्ये याभिर्वा सूर्यः सह। ता नो हिन्वन्त्वध्वरम्॥
हे सम्पूर्ण शुद्धिकारी जल! जो यज्ञाग्नि इन्द्र, अग्नि, मित्र, वरुण इत्यादि सभी देवताओं तक उनके हविर्भाग को वहन करने वाली है, हम उस दृढ़ निवास स्थल अग्नि के समीप आपको स्थापित करते हैं। जो जल सूर्य की रश्मियों द्वारा भाप बनकर सूर्य के समीप पहुँचकर बहुत काल तक रक्षित रहता है, वह जल हमारे यज्ञ को परितृप्त करे।[यजुर्वेद 6.24]
परितृप्त :: संतृष्ट; satiated, thoroughly satisfied, fulfilled, gratified.
Hey water sanctifying-purifying thoroughly! We establish you close to the fire which carries offerings to Indr Dev, Agni, Mitr, Varun etc. demigods-deities. Rays of Sun which evaporate you and keep you safe for long duration should satiate our Yagy.
हृदे त्वा मनसे त्वा दिवे त्वा सूर्याय त्वा। ऊर्ध्वमिममध्वरं दिवि देवेषु होत्रा यच्छ॥
हे सोम! बुद्धि, मन, सूर्य तथा द्युलोक को परितृप्त करने के निमित्त आप इस यज्ञ को सम्पन्न करें तथा यज्ञकर्ताओं को देवगणों के दिव्य-लोक तक प्रेषित करें अर्थात् उनके जीवन को देवत्व से परिपूर्ण कर दें।[यजुर्वेद 6.25]
Hey Som! Conduct this Yagy by satiating intelligence, Sury Dev, heavens. Grant demigodhood to the performers of Yagy.
सोम राजन्विश्वास्त्वं प्रजा उपावरोह विश्वास्त्वां प्रजा उपावरोहन्तु। शृणोत्वग्निः समिधा हवं मे शृण्वन्त्वापो धिषणाश्च देवीः। श्रोता ग्रावाणो विदुषो न यज्ञꣳ शृणोतु देवः सविता हवं मे स्वाहा॥
हे राजा सोम! आप समस्त यजमानों को अपनी प्रजा जानकर उनके ऊपर कृपा करें तथा समस्त यजमान आपके प्रति अनुकूल आचरण करें। प्रदीप्त अग्नि देवता हमारे द्वारा अर्पित की गयी हवियों को ग्रहण करें तथा हमारी स्तुतियों को सुनें, जल देवता और वाग्वादिनी देवी भी हमारी स्तुतियों को श्रवण करें। विद्वानों के समूह तथा सभी के प्रेरक सविता देवता भी हमारे द्वारा की गयी स्तुतियों को ध्यान पूर्वक सुनें। यह आहुति हम इसलिए ही अर्पित करते हैं।[यजुर्वेद 6.26]
प्रजा :: राज्य की जनता, रिआया; people, subject.
Hey king Som! Bless all hosts considering them as your subjects. Ignited Agni Dev should accept our offerings & listen-respond to our prayers. Let deity of water and speech also respond to our prayers. Groups of scholars-enlightened and Savita Dev should also listen to our prayers attentively. We are making this sacrifice for this purpose-motive.
देवीरापो अपां नपाद्यो व ऊर्मिर्हविष्य इन्द्रियावान् मदिन्तमः।
तं देवेभ्यो देवत्रा दत्त शुक्रपेभ्यो येषां भाग स्थ स्वाहा॥
हे देवी के लिये पाद्य एवं अर्घ्यरूप जल! तुम्हारी पुत्री रूपिणी जो यह तरंग है; वह हविष्मान्, शक्तिशालिनी और अत्यन्त हर्षकारिणी है। उसे तुम देवों में प्राप्त होने के लिये वीर्यवान् सोमरस को पीने वाले उन देवों को प्रदान करो, जिन देवों का तुम भाग हो। यह आहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 6.27]
हविष्मान् :: हवन या यज्ञ में आहुति देता है या जो यज्ञ के लिए तैयार होता है; one who offers oblations, one who is offering a sacrifice.
Hey water meant for the purpose of Padhy and Ardhy! This wave is like your daughter. She make offerings, is mighty and causes pleasure. Send her to the mighty demigods-deities who drink Somras, you being a part of them. This offering is for you.
कार्षिरसि समुद्रस्य त्वा क्षित्या उन्नयामि।
समायो अद्भिरग्मत समोषधीभिरोषधीः॥
हे यज्ञ में प्रयुक्त होने वाले जल! सागर से पृथ्वी की उर्वरता शक्ति में वृद्धि करने के निमित्त आपको ऊपर उठाते हैं अर्थात् सूर्य की किरणों के द्वारा वाष्पीकृत होकर जल ऊपर पहुँचता है, तब मेघों से वर्षा के रूप में पृथ्वी पर बरसता है, जिससे ओषधियाँ पैदा होती है। इस कृषि कर्म के रूप में लोक-कल्याण हेतु लगातार यज्ञ की प्रक्रिया चलती रहती है।[यजुर्वेद 6.28]
Hey water used for the Yagy! Rays of Sun elevate you up, for increasing the fertility of land from the ocean, resulting in rains and production of medicines-herbs. The process of Yagy continues in the form of harvesting for the well fare of the populace.
यमग्ने पृत्सु मर्त्यमवा वाजेषु यं जुनाः। स यन्ता शश्वतीरिषः स्वाहा॥
हे अग्नि देव! बड़े-बड़े युद्धों में आप जिस मनुष्य की रक्षा करते हैं, आप हव्य-पदार्थों को ग्रहण करने हेतु जिन यजमानों के समीप पहुँचते हैं, वे यजमान आपकी कृपा से निरन्तर अक्षय अन्नों तथा धनों का लाभ प्राप्त करते हैं। आपके लिये यह आहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 6.29]
Hey Agni Dev! You protect the humans in large scale wars, reach the Yajman to accept offering materials and bless them with imperishable food grains and wealth. This oblation is for you.
देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्याम्। आ ददे रावाऽसि गभीरमिममध्वरं कृधीन्द्राय सुषूतमम्। उत्तमेन पविनोर्जस्वन्तं मधुमन्तं पयस्वन्तं निग्राभ्या स्थ देवश्रुतस्तर्पयत मा॥
हे यज्ञ के संसाधनों! हम यजमान सविता देवता की प्रेरणा से, अश्विनी कुमार की बाहु तथा पूषा देवता के हाथों से यज्ञ के निमित्त आपको ग्रहण करते हैं। आप अभीष्ट फल प्रदान करने वाले हैं। देवराज इन्द्र की तृप्ति के निमित्त इस महान् यज्ञ को बल-सामर्थ्य, स्वादिष्ट मधुर रस युक्त दुग्ध एवं जल के स्वादुरस से युक्त सोमरूप पोषक पदार्थों से युक्त करें। हविष्यान्न को अच्छी तरह से ग्रहण करने वाले आप हमें परितृप्त करें।[यजुर्वेद 6.30]
Hey means of Yagy! We accept you due to the inspiration from Savita Dev, Ashwani Kumars's & Pusha Dev's hands. You grant desired output-rewards. Make availble tasty & sweet saps having water and milk mixed in Somras for the satisfaction of Indr Dev, granting might and strength to the Yagy. Accept the offerings carefully and gratified us.(07.04.2025)
मनो मे तपर्यत वाचं मे तर्पयत प्राणं मे तर्पयत चक्षुर्मे तर्पयत श्रोत्रं मे तर्पयतात्मानं मे तर्पयत प्रजां मे तर्पयत पशून्मे तर्पयत गणान्मे तर्पयत गणा मे मा वि तृषन्॥
यज्ञ के निमित्त ग्रहण किये गये, हे जल समूह! आप अपने दिव्य गुणों के द्वारा हमारे मन, वाणी, प्राण, नेत्र, कर्ण, आत्मा, पुत्र-पौत्रादि प्रजा, पशु समूह, आत्मीय बन्धुओं-परिजनों को परितृप्त करें। हमारे आत्मीयजन आपके अभाव में कभी भी तृषित न हों।[यजुर्वेद 6.31]
Hey water accepted for Yagy! Satiate our innerself, voice, air vital, eyes, ears, soul, sons & grand sons, subjects, animals, intimate brothers-relatives with your divine traits. Our intimates should not be thirty for want you.
इन्द्राय त्वा वसुमते रुद्रवत इन्द्राय त्वाऽऽदित्यवत इन्द्राय त्वाऽभिमातिघ्ने।
श्येनाय त्वा सोमभृतेऽग्नये त्वा रायस्पोषदे॥
हे सोम! प्रातः सवन में वसुओं सहित इन्द्र के लिये, माध्यन्दिन सवन में रुद्रों सहित इन्द्र के लिये, तृतीय सवन में आदित्यों सहित इन्द्र के लिये तुम्हें पत्थर पर रखकर पिसता हूँ। हे सोम! द्युलोक से बाजरूप में सोम को अपहृत करने वाली गायत्री के लिये मैं तुम्हें संस्कारित करता हूँ। हे सोम! धन और अन्न देने वाले अग्नि के लिये तुम्हें ग्रहण करता हूँ।[यजुर्वेद 6.32]
Hey Som! During morning I crush you over the stones for Vasu Gan and Indr Dev, during noon for Rudr & Indr Dev, in the evening for Adity Gan and Indr Dev. I sanctify you for Gayatri who abducted you in the form of falcon from heavens. I accept you for Agni Dev who grant us wealth & food grains.
यत्ते सोम दिवि ज्योतिर्यत्पृथिव्यां यदुरावन्तरिक्षे तेनास्मै यजमानायोरु राये कृध्यधि दात्रे वोचः॥
हे दिव्य सोम! आप भूलोक, अन्तरिक्ष लोक तथा स्वर्ग लोक तक ज्योर्तिमय रूप में विस्तारित हैं। आप लोक हितार्थ सत्कर्म करने में लगे हुए यजमानों की सहायता करें।[यजुर्वेद 6.33]
Hey divine Som! You pervaded the earth, space and heavens in radiant form. Help the Yajman who are engaged in public welfare.
श्वात्रा स्थ वृत्रतुरो राधोगूर्ता अमृतस्य पत्नीः।
ता देवीर्देवत्रेमं यज्ञं नयतोपहूताः सोमस्य पिबत॥
हे देव शक्तियों! आप सोम रूपी अमृत का पालन अर्थात् संरक्षण करने वाली हैं। आप मंगल कारी हैं, वृत्रासुर रूपी विकारों को नष्ट करके सोम को पोषित करने वाली एवं धन प्रदान करने वाली हैं। आप इस यज्ञ का नेतृत्व करें एवं सोमरस का सेवन करें।[यजुर्वेद 6.34]
Hey divine powers! You protect Som which is like elixir-nectar. You are auspicious destroy the defects like Vrata Sur, nourish Som and grant wealth. Lead this Yagy and drink Somras.
मा भेर्मा सं विक्था ऊर्जं धत्स्व धिषणे वीड्वी सती वीडयेथामूर्जं दधाथाम्।
पाप्मा हतो न सोमः॥
यजमान सोम पर जल छिड़ते हुए बोलें, हे सोम! रस को निकालते समय ग्रावा के आघात से भयभीत मत हों, कम्पित मत हों, रस को धारणकर हमें प्रदान करें। आप चन्द्रमा के समान प्रसन्नता प्रदान करने वाले, द्यावा-पृथिवी के सदृश बल युक्त हैं, अतः आप सभी के दोषों का निवारण करें।[यजुर्वेद 6.35]
The Yajman should say, hey Som! Do not tremble or be afraid of the strike by the stone and provide us the juice-sap. You grant pleasure like Moon and possess might-strength like the earth & heavens; eliminate the defects of everyone.
प्रागपागुदगधराक्सर्वतस्त्वा दिश आ धावन्तु। अम्ब निष्पर समरीर्विदाम्॥
हे सोम! आप पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण आदि सम्पूर्ण दिशाओं के द्वारा अपने भागों को प्राप्त करके यज्ञ-स्थल में आगमन करें। हे माता धरित्री! अपने भागों से सोम को पूर्ण करें। इस भाग के विषय में समस्त जन अच्छी तरह से जानें।[यजुर्वेद 6.36]
Hey Som! Attain your share through east, west, north and south directions and arrive at ethe Yagy site. Hey mother earth! Accomplish Som with your share. Let every one know about this share.
त्वमंग प्रशसिषो देवः शविष्ठ मर्त्यम्। न त्वदन्यो मघवन्नस्ति मर्डितेन्द्र ब्रवीमि ते वचः॥
हे अतिशय बलशाली देवेन्द्र! आप महा वैभवशाली, महान् वीर, धनपति हैं। आप अपने दिव्य गुणों से यजमानों की प्रशंसा करने वाले हैं। आपसे अधिक सुख प्रदान करने वाला, मंगल करने वाला अन्य कोई नहीं है, इस प्रकार का सत्य वचन हम कह रहे हैं।[यजुर्वेद 6.37]
Hey mighty-majestic Indr Dev! You are invincible, wealthy and possess grandeur. You appreciate the Yajman due to you divine character. None other can grant more comforts-pleasure, welfare as compared to you. This our true statement.(08.04.2025)
यजुर्वेद यजुर्वेद संहिता, सप्तम अध्याय :: ऋषि :- गौतम, वसिष्ठ, मधुच्छन्दा, गृत्समद, त्रिसदस्यु, मेधातिथि, वत्सार काश्यप, वेन, परुच्छेप, भरद्वाज, देवश्रवा, विश्वामित्र, त्रिशोक, वत्स, प्रस्कण्व, कुत्स, आंगिरस; देवता :- प्राण, सोम, विद्वांस, मघवा, ईश्वर, योगी, वायु, इन्द्रवायु, मित्रावरुण, अश्विनी कुमार, विश्वेदेवा, शुक्र, आभिचारिक, शकल, इन्द्र, वेन, प्रजापति, यज्ञ, वैश्वानर, ध्रुव, यज्ञपति, इन्द्राग्नि, प्रजासेनापति, इन्द्रामरुत, महेन्द्र, सूर्य, अंतर्यामी जगदीश्वर, अग्नि, वरुण, आत्मा (दक्षिणा); छन्द :- अनुष्टुप् पंक्ति, जगती, उष्णिक्, त्रिष्टुप्, बृहती, गायत्री।
वाचस्पतये पवस्व वृष्णोअशुभ्यां गभस्तिपूतः। देवो देवेभ्यः पवस्व येषां भागोऽ सि॥
हे दिव्य सोम! आप सम्पूर्ण कामना के फल की वर्षा करने वाले तथा श्रेष्ठ गुणों से युक्त हैं। सूर्य देवता की किरणों के माध्यम से वाचस्पति आदि देवताओं की संतुष्टि के निमित्त आप शोधित हों। आप जिन देवताओं के भाग हैं, उन्हें तृप्त करें।[यजुर्वेद 7.1]
Hey divine Som! You accomplish all desires and possess excellent qualities. You should sanctified through the rays of Sury Dev for Vachaspati etc. demigods-deities. Satiate the demigods-deities whom you belong, being their share.
मधुमतीर्न इषस्कृधि यत्ते सोमादाभ्यं नाम जागृवि तस्मै ते सोम सोमाय स्वाहा स्वाहोर्वन्तरिक्षमन्वेमि॥
हे दिव्य सोम! आप हमारे भोजन को मधुरता से युक्त रस आदि तत्त्वों से पूर्ण कर दें। आपके जागरणशील स्वरूप के निमित्त ही हम यह हवि अर्पित करते हैं। यह हवि विशाल अन्तरिक्षलोक में संव्याप्त हो।[यजुर्वेद 7.2]
Hey divine Som! Make our meals tasty with sweet saps and other essential ingredients. We make this offerings for your awakened form. This sacrifice should pervade the entire universe.
स्वांकृतोऽसि विश्वेभ्य इन्द्रियेभ्यो दिव्येभ्यः पार्थिवेभ्यो मनस्त्वाष्टु स्वाहा त्वा सुभव सूर्याय देवेभ्यस्त्वा मरीचिषेभ्यो देवाꣳशो यस्मै त्वेडे तत्सत्यमुपरिप्लुता भंगेन हतोꣳ सौ फट् प्राणाय त्वा व्यानाय त्वा॥
हे प्राणरूप उपांशु ग्रह (सोम रखने वाले पात्र)! भूलोक तथा स्वर्गलोक में निवास करने वाले सम्पूर्ण प्राणियों तथा इन्द्रियों के कल्याण हेतु आप स्वयं उत्पन्न हुए हैं। शुद्ध चित्त वाले हे उपांशु! आपको सूर्य-देवता के निमित्त तथा रश्मियों के सदृश आलोकमान् देव-मानवों की सन्तुष्टि हेतु नियुक्त किया जाता है। हे तेज से युक्त देव! आप उन दुराचारियों को शीघ्रता से नष्ट करें, जो मर्यादा का उल्लंघन करते हैं। अपने सद्व्यवहार से ही आप स्तवनीय हैं। प्राण तथा व्यान द्वारा शरीर संचालन की भाँति यज्ञ के निमित्त आपको नियुक्त किया जाता है।[यजुर्वेद 7.3]
Hey vessel named Upanshu used for storing Som! You evolved for all living beings; residents of earth & heavens. Hey Upanshu! You are appointed for Sury Dev and satisfaction of humans & demigods aurous like the rays. Hey Dev possessing radiance! Destroy those debouchee (wicked-vicious) who cross the limits. You are worshiped with decent behaviour. The way the air vital and rejected air operate the body, you are appointed to manage the Yagy.
उपयामगृहीतोऽस्यन्तर्यच्छ मघवन् पाहि सोमम्। उरुष्य राय एषो यजस्व॥
हे उपयाम पात्र! आप इस सोमरस को धारण कीजिये। हे वैभवशाली इन्द्र देव! यज्ञ के निमित्त नियमानुसार प्राप्त किये गये इस कलश में स्थित सोमरस को आप ग्रहण करें तथा उपयाम पात्र में विद्यमान सोमरस की सुरक्षा करें। रिपुओं से संरक्षित करते हुए यजमानों को असीमित धन-सम्पदा प्रदान करें। हे इन्द्र! आप हमारे पशुधन की रक्षा करें, आप हमें वर्षा प्रदान करें।[यजुर्वेद 7.4]
Hey pot named Upyam! Hold this Somras. Hey Indr Dev possessing grandeur! Accept this Kalash having Somras as per rule of the Yagy granting it protection. Grant unlimited wealth to the Yajman protected from the enemies. Protect our cattle and shower rains.
अन्तस्ते द्यावापृथिवी दधाम्यन्तर्दधाम्युर्वन्तरिक्षम्।
सजूर्देवेभिरवरैः परैश्चान्तर्यामे मघवन् मादयस्व॥
हे अन्तर्याम ग्रह! मैं तुम्हारे अन्दर द्युलोक और पृथ्वी लोक को धारण कराता हूँ। मैं तुम्हारे अन्दर विस्तृत अन्तरिक्ष को धारण कराता हूँ। हे इन्द्र देव! आप अन्य सामान्य और उत्कृष्ट देवताओं के साथ अन्तर्याम ग्रह में स्थित सोमरस पान कर सन्तुष्ट होओ।[यजुर्वेद 7.5]
Hey Antaryam Grah! I enter the earth and heavens in you. I make you support the vast space in you. Hey Indr Dev! You should be satisfied by drinking Somras along with other demigods-deities in the Antaryam Grah.
स्वांकृतोऽसि विश्वेभ्य इन्द्रियेभ्यो दिव्येभ्यः पार्थिवेभ्यो मनस्त्वाष्ठस्वाहा त्वा सुभव सूर्याय देवेभ्यस्त्वा मरीचिषेभ्य उदानाय त्वा॥
हे इन्द्र वायु ग्रह (सोमरस पीने के पात्र)! भूलोक तथा स्वर्गलोक में निवास करने वाले सम्पूर्ण प्राणियों तथा इन्द्रियों के कल्याण हेतु आप स्वयं आलोकित हुए हैं। शुद्ध चित्तवाले हे उपांशु (पात्र विशेष)! आपको सूर्य देवता के निमित्त तथा रश्मियों के सदृश आलोकमान् देवताओं की संतुष्टि हेतु नियुक्त किया जाता है। हे अन्तर्याम ग्रह! उदान देवता जिस प्रकार शरीर का संचालन करते हैं, उसी प्रकार यज्ञ के निमित्त आपकी नियुक्ति की गयी है।[यजुर्वेद 7.6]
Hey pots used for drinking Somras (Indr Vayu Grah)! You are shining for illuminating the residents of earth & heavens and their organs. Hey Upanshu! You have been designated for the satisfaction of Sury Dev and demigods-deities shining like the ray-aura. Hey Antaryam Grah! You have been appointed to operate the Yagy the way, Udan Dev operate the body.
आ वायो भूष शुचिपा उप नः सहस्त्रं ते नियुतो विश्ववार।
उपो ते अन्धो मद्यमयामि यस्य देव दधिषे पूर्वपेयं वायवे त्वा॥
हे वायु देव! आप पवित्रता को विस्तारित करने वाले हैं। आप अपार गुणों के सागर हैं। हमारे जीवन को अच्छे गुणों से अलंकृत करें। आपका जो संतुष्टि प्रदान करने वाला भोजन अर्थात् सोमरस है, वह आपको अर्पित करते हैं, जिस सोमरस का पान आप पूर्व में भी कर चुके हैं। हे सोम! वायु देवता के निमित्त आपको प्राप्त करते हैं।[यजुर्वेद 7.7]
Hey Vayu Dev! You expand piousness-purity. You are the ocean of unlimited qualities. Make our lives full of excellent characters. We offer you Somras which satiate you, gives you satisfaction, drunk by you earlier as well. Hey Som! We accept you for the sake of Vayu Dev.
इन्द्रवायू इमे सुता उप प्रयोभिरागतम्। इन्दवो वामुशन्ति हि।
उपयाम गृहीतोऽसि वायव इन्द्रवायुभ्यां त्वैष ते योनिः सजोषोभ्यां त्वा॥
हे देवराज इन्द्र तथा वायुदेव! वह सोमरस जो पान करने योग्य तथा तृप्ति प्रदान करने वाला है, उसे हम आप दोनों के निमित्त अर्पित करते हैं, अतः इसे प्राप्त करें। हे सोम! आप वायु देव तथा इन्द्र देव के निमित्त विधिवत् अभिषवण किये जाते हैं। उन्हीं वायु देव तथा इन्द्र देव को हर्षित करने हेतु हम आपको प्राप्त करते हैं।[यजुर्वेद 7.8]
Hey Dev Raj Indr & Vayu Dev! Somras granting you satiation-satisfaction is offered by us to you. Accept it. Hey Som! You are extracted for Indr Dev and Vayu Dev, following procedures. We accept you or Vayu Dev & Indr Dev.(09.04.2025)
अयं वां मित्रावरुणा सुतः सोम ऋतावृधा। ममेदिह श्रुतꣳ हवम्।
उपयामगृहीतोऽसि मित्रावरुणाभ्यां त्वा॥
हे मित्रा-वरुण देवो! आप सत्य रूप हैं। आप यज्ञ रूप हैं। आप दोनों को परितृप्त करने हेतु सोमरस रखे गये हैं। आप हमारे यज्ञ-स्थल पर आगमन करें, हम आपको आहूत करते हैं। हे सोम! आपको उपयाम पात्र में इन्द्र देव तथा वरुण देव के निमित्त विधिपूर्वक सुसंस्कारित किया जाता है। उन्हीं इन्द्र देव तथा वरुण देव को हर्षित करने हेतु हम आपको ग्रहण करते हैं।[यजुर्वेद 7.9]
Hey Mitr-Varun Dev! You are a form of truth & Yagy. Somras has been kept to satiate you. We invite you to our Yagy. Hey Som! You are sanctified for Indr Dev and Varun Dev in the Upyam pot, methodically. We accept you to please Indr Dev and Varun Dev.
राया वयꣳ ससवाꣳ सो मदेम हव्येन देवा यवसेन गावः।
तां धेनुं मित्रा-वरुणा युवं नो विश्वाहा धत्तमनपस्फुरन्तीमेष ते योनिर्ऋतायुभ्यां त्वा॥
हे मित्रा वरुण देवों! जो गौएँ भागती नहीं हैं, ऐसी गौएँ हम यजमानों को प्रदान करें। ऐसी गौओं के हमारे पास होने से हम धन-धान्य से परिपूर्ण होकर उसी प्रकार प्रसन्नता को प्राप्त करें, जिस प्रकार गौएँ घास को प्राप्त करके तथा देवता हविष्यान्न को प्राप्त करके हर्षित होते हैं। सत्य को वर्द्धित करने हेतु तथा यज्ञ को प्रवृद्ध करने हेतु आप दोनों यज्ञस्थल में निश्चय किये गये आसन पर विराजमान हों।[यजुर्वेद 7.10]
Hey Mitr & Varun Dev! We should give such cows, which do not run away; to the Yajman. We should have wealthy by possessing such cows and become happy the way cows become happy by eating grass-straw and demigods are pleased by making oblations. You should occupy the cushion in the Yagy for the growth of truth and Yagy.
या वां कशा मधुमत्यश्विना सूनृतावती।
तया यज्ञं मिमिक्षतम्। उपयामगृहीतोऽस्यश्विभ्यां त्वैष ते योनिर्माध्वीभ्यां त्वा॥
हे दोनों अश्विनी कुमारों! हमारे इस यज्ञ को अपनी सत्य तथा माधुर्ययुक्त श्रेष्ठ वाणी से अभिषिक्त करें। हे उपयाम ग्रह! आपको उन अश्विनी कुमारों के लिए नियमानुसार स्वीकार किया है, जो अपनी मधुरता के लिए प्रसिद्ध हैं। आप यज्ञस्थल में अपने निश्चित किये गये कुश पर विराजमान हों।[यजुर्वेद 7.11]
अभिषिक्त :: anointed, crowned.
Hey Ashwani Kumar duo! Anoint our Yagy with truth and your sweet excellent voice. Hey Upyam Grah! You have been selected as per rules for Ashwani Kumars who are famous for their sweetness. Occupy the cushion at the Yagy site reserved for you.
तं प्रत्नथा पूर्वथा विश्वथेमथा ज्येष्ठतातिं बर्हिषदꣳ स्वर्विदम्। प्रतीचीनं वृजनं दोहसे धुनिमाशुं जयन्तमनु यासु वर्द्धसे। उपयामगृहीतोऽसि शण्डाय त्वैष ते योनिर्वीरतां पाह्यपमृष्टः शण्डो देवास्त्वा शुक्रपाः प्र णयन्त्वनाधृष्टाऽसि॥
हे सोम! देवराज इन्द्र यज्ञादि श्रेष्ठ क्रियाओं में अग्रणी रहने वाले और विपरीत पापादि का नाश करने वाले, श्रेष्ठ विस्तार वाले, श्रेष्ठ आसन पर स्थित, स्वर्ग के ज्ञाता और पुरातन विधि से, पूर्ण विधि से, सामान्य विधि से तथा इस प्रस्तुत विधि से वरण किये जाते हैं। हे शुक्र ग्रह! आप उपयाम के द्वारा देवों के लिए गृहीत हैं। अतः आप अपने निश्चित स्थान पर विराजमान हों। जो देवता सोमरस का पान करने वाले हैं, वे सभी देवता आपको प्राप्त करके यजमानों के पुरुषार्थ एवं ऐश्वर्य में वृद्धि करें। शुक्र का पुत्र और असुरों का पुरोहित शण्ड यज्ञ से बहिष्कृत किया गया।[यजुर्वेद 7.12]
पुरुषार्थ :: पुरुष के उद्देश्य एवं लक्ष्य का विषय, मनुष्योचित बल, पौरुष; strength, capability, effort.
Hey Som! Indr Dev, who is lead-ahead in the endeavours like Yagy, destroy the sins and opposite situations, make excellent extensions, occupying best cushion-throne, aware of the heavens, is accepted with ancient, complete and prescribed procedure. Hey Shukr Grah! You are accepted with Upyam for the demigods. Occupy your fixed-reserved seat. The demigods who are drinking Somras should accept you and increase the strength-capability and opulence-grandeur of the Yajman. Son of Shukr and the priest of demons Shand have been ousted from the Yagy.
सुवीरो वीरान् प्रजनयन् परीह्यभि रायस्पोषेण यजमानम्।
सञ्जग्मानो दिवा पृथिव्या शुक्रः शुक्रशोचिषा निरस्तः शण्डः शुक्रस्याधिष्ठानमसि॥
हे शुक्र ग्रह! आप सुन्दर और वीरता से परिपूर्ण पुत्रों को यजमान को प्रदान करो। यजमान को गो और अश्व प्रदान करो। जिस प्रकार सूर्य देव अपने प्रकाश से भूलोक एवं स्वर्ग लोक दोनों को प्रकाशमान कर देते हैं, उसी प्रकार आप भी अपने तेज से भू तथा स्वर्ग दोनों लोकों को प्रकाशित करने वाले हैं। आप यजमानों की शक्ति को बढ़ाते हुए उन्हें अत्यधिक ऐश्वर्य प्रदान करें। आप बुराइयों को विनष्ट करने वाले एवं हित करने वाले बल को शरण देकर उनमें वृद्धि करने वाले हैं। शण्ड को यज्ञ से बाहर कर दिया गया है।[यजुर्वेद 7.13]
Hey Shukr Grah! Award beautiful brave sons, cows and horses to the Yajman. The way Sury Dev illuminate the earth and heavens with his radiance, you too illuminate the earth and heavens. Enhance the power of the Yajman and grant them extreme grandeur-opulence. You destroy the evils and strengthen those who are inclined to welfare. Shand has been expelled from the Yagy.
अच्छिन्नस्य ते देव सोम सुवीर्यस्य रायस्पोषस्य ददितारः स्याम। सा प्रथमा सँस्कृतिर्विश्ववारा स प्रथमो वरुणो मित्रो अग्निः॥
हे सोम देव! आप अगाध शक्ति से परिपूर्ण एवं महावैभवशाली हैं। आपकी अनुकम्पा से हम ऋत्विग्गण सर्वदा इन्द्र देवताओं के लिए आहुति समर्पित करने वाले बनें, अर्थात् अपने सम्पूर्ण जीवन में सत्कर्म करने में संलग्न रहें। जगत् के मनुष्यों के द्वारा वरणीय यह प्रथम सर्वोत्तम संस्कृति है। अभिषवित सोमदेव, वरुण, मित्र एवं अग्नि देवताओं में प्रमुख स्थान रखते हैं।[यजुर्वेद 7.14]
Hey Som Dev! You possess extreme power and grandeur. We should offer oblations to Indr Dev including demigods and devote ourselves to virtues, righteousness, piousity due to your blessings. This is the first excellent culture to be adopted by the humans in this universe. Anointed Som Dev, Varun dev, Mitr and Agni Dev maintain prominent place-position amongest the demigods.
स प्रथमो बृहस्पतिश्चिकित्वाँस्तस्मा इन्द्राय सुतमाजुहोत स्वाहा। तृम्पन्तु होत्रा मध्वो याः स्विष्टा याः सुप्रीताः सुहुता यत्स्वाहा ऽयाडग्नीत्॥
वे बृहस्पति इस सोम को जानने वाले हैं। वे सर्वप्रधान, ज्ञानवान् तथा महाबुद्धिमान् हैं, उन्होंने देवराज इन्द्र के उद्देश्य से इस सोमरस को निवेदित किया है। यज्ञकर्ता उन देवेन्द्र को माधुर्य युक्त हव्य पदार्थ प्रदान करके तृप्त करें। वे सभी देवता यज्ञाग्नि के समीप आगमन करें, जो सोमरस का सेवन करके सन्तुष्टि प्राप्त करते हैं।[यजुर्वेद 7.15]
Brahaspati Dev knows Som. He is prominent, enlightened and genius. He offered Somras to Dev Raj Indr. Performers of Yagy should please Devendr-Indr with sweet oblations. Let all demigods who satiate by drinking Somras, come close to the Yagy fire.
अयं वेनश्चोदयत् पृश्निगर्भा ज्योतिर्जरायू रजसो विमाने। इममपाꣳ सङ्गमे सूर्यस्य शिशुं न विप्रा मतिभी रिहन्ति। उपयामगृहीतोऽसि मर्काय त्वा॥
जल के निर्माण के समय यह ज्योतिर्मण्डल से आवृत चन्द्रमा अन्तरिक्षीय जल को प्रेरित करता है। इस जल-समागम के समय ब्राह्मण सरल वाणी से चन्द्रमा की स्तुति करते हैं। हे सोम देव! मर्क नामक असुर शुक्र-पुत्र के लिए विनाश करने के उद्देश्य से आपको विधिवत् स्वीकार किया गया है।[यजुर्वेद 7.16]
Moon surrounded by the illuminated-radiant constellations, inspire the water in the space at the time of its formation. At this moment when water is formed and inspired, Brahmans worship Chandr Dev. Hey Som Dev! You have been methodically accepted (selected-elected) for the killing of demon Mark, son of Shukr.(10.04.2025)
मनो न येषु हवनेषु तिग्मं विपः शच्या वनुथो द्रवन्ता। आ यः शर्याभिस्तुविनृम्णो अस्याश्रीणीतादिशं गभस्तावेष ते योनिः प्रजाः पाह्यपमृष्टो मर्को देवास्त्वा मन्थिपाः प्र णयन्त्वनाधृष्टासि॥
सर्वदा अच्छे कर्म करने वाले विद्वज्जन जिन सोमयज्ञों में मनोयोग पूर्वक संलग्न होते हैं, उनमें प्राप्त होने वाले सोमरस को पोषणकारी पदार्थों के सदृश स्वीकारते हैं। हे मन्थिग्रह! रिपुओं का संहार करते हुए संततियों सहित यजमानों की सुरक्षा का कार्यभार सँभालें। आप निर्भीक होकर देवताओं को प्राप्त करें। यह असुर पुरोहित मर्क यज्ञ से बहिष्कृत कर दिया गया है।[यजुर्वेद 7.17]
The virtuous scholars devote themselves to Som Yagy and accepted Somras like the nourishing products. Hey churner! While destroying the enemies protect the Yajman along with their progeny. Fearlessly avail-accompany the demigods. Demon priest Mark has been ousted-expelled from the Yagy.
सुप्रजाः प्रजाः प्रजनयन् परीह्यभि रायस्पोषेण यजमानम्। सञ्जग्मानो दिवा पृथिव्या मन्थी मन्थिशोचिषा निरस्तो मर्को मन्थिनोऽधिष्ठानमसि॥
हे मन्थिग्रह! उत्तम सन्तानों से युक्त आप यजमानों को श्रेष्ठ धन, वैभव प्रदान करते हुए यज्ञकर्म में योजित करें। आप सूर्य तथा भूमि के सदृश, विवेकवान् उपासकों के जीवन को सद्गुणों से दीप्तिमान् करें। जो अति कष्ट दायी असुर हैं, वे आपके तेज के प्रभाव से भाग जायें। यह असुर पुरोहित मर्क यज्ञ से बहिष्कृत कर दिया गया है। हे यूप शकल! तुम मन्थिग्रह के आधार हो।[यजुर्वेद 7.18]
Hey churner! Employ-associate the Yajman along with their progeny awarding them best wealth, grandeur. You should make the devotees shine like the Sun and prudent like the earth possessing virtues. The torturous demons should run away due to your fear-might. Demon priest Mark has been ousted-expelled from the Yagy. Hey Yup, named Shakal! You form bottom of the churner.
ये देवासो दिव्येकादश स्थ पृथिव्यामध्येकादश स्थ। अप्सुक्षितो महिनैकादश स्थ ते देवासो यज्ञमिमं जुषध्वम्॥
भूलोक, अन्तरिक्ष लोक तथा स्वर्ग लोक में संव्याप्त ग्यारह-ग्यारह दिव्य देवता अपने माहात्म्य से जगत् के जीवन-प्रवाह को नियमानुसार संचालित करें। वे ही विश्वदेवा अर्थात् तैंतीस कोटि देवता इस यज्ञ को सफल बनायें।[यजुर्वेद 7.19]
Let the group of eleven divine demigods-deities pervading the earth, space and heaven govern-make the life proceed as per rules. Vishw Dev, the 33 Crore demigods-deities should make the Yagy successful.
उपयामगृहीतोऽस्याग्रयणोऽसि स्वाग्रयणः। पाहि यज्ञं पाहि यज्ञपतिं विष्णुस्त्वामिन्द्रियेण पातु विष्णुं त्वं पाह्यभि सवनानि पाहि॥
हे आग्रयण ग्रह! (सबसे पहले ग्रहण किये जाने वाले) यज्ञ के लिए सबसे पहले आवाहित किये गये तथा प्रतिष्ठित किये गये आप इस यज्ञ की एवं याजक की रक्षा करें तथा उसे अग्रगामी बनाएँ। यज्ञाधिपति देव, सर्वव्यापी विष्णु देव आपकी रक्षा करें। आप विष्णु देव की रक्षा करें। आप तीनों सवनों अर्थात् प्रातः, माध्यन्दिन तथा सायं की अच्छी प्रकार से रक्षा करें।[यजुर्वेद 7.20]
आग्रयण :: नए अन्न से यज्ञ या अग्निहोत्र, अहिताग्नियों का नव-शस्येष्टि, नवान्न विधान, नए अन्न, अग्नि का एक भेद, यज्ञ का समय।
Hey Agryan Grah! Being the first to be invoked & established in the Yagy, protect this Yagy and the Yajak (organiser). Let him lead the Yagy. Let deity of Yagy and Bhagwan Shri Hari Vishnu protect you. You should protect the Yagy in the morning, noon and evening.
सोमः पवते सोमः पवतेऽस्मै ब्रह्मणेऽस्मै क्षत्रायास्मै सुन्वते यजमानाय पवत इष ऊर्जे पवतेऽद्भ्य ओषधीभ्यः पवते द्यावापृथिवीभ्यां पवते सुभूताय पवते विश्वेभ्यस्त्वा देवेभ्य एष ते योनिर्विश्वेभ्यस्त्वा देवेभ्यः॥
सोम सदा पवित्र होता है। अभिषवण किया गया यह सोमरस ब्राह्मण, क्षत्रिय इत्यादि सम्पूर्ण याजकों के कल्याण के निमित्त तैयार किया जाता है। वह भूलोक, अन्तरिक्षलोक तथा स्वर्गलोक में धन-धान्य, वनस्पति तथा जीवनीय शक्ति को विस्तीर्ण करने हेतु अभिषुत होता है। हे सोम! आप सम्पूर्ण देवगणों की तृप्ति के निमित्त ग्रहण किये जाते हैं। आप यज्ञस्थल में निर्धारित किये हुए स्थान अर्थात् पात्र में स्थिर हों। मैं तुम्हें समस्त देवताओं के प्रीति के लिये यहाँ स्थापित करता हूँ।[यजुर्वेद 7.21]
Som is always pious-pure. Somras is extracted for the welfare of Brahmans, Kshatriy and all Yajak Gan. Its extracted for the extension of wealth & food grains over the earth, space and heavens; granting ability-power to survive. Hey Som! You are accepted for the satiation of all demigods. You should remain in the pot-vessel kept at the Yagy site. I am establishing you here for the sake demigods-deities.
उपयामगृहीतोऽसीन्द्राय त्वा बृहद्वते वयस्वत उक्थाव्यं गृह्णामि। यत्त इन्द्र बृहद्वयस्तस्मै त्वा विष्णवे त्वैष ते योनिरुक्थेभ्यस्त्वा देवेभ्यस्त्वा देवाव्यं यज्ञस्यायुषे गृह्णामि॥
हे सोम! आप विधिवत् तैयार कर उपयाम ग्रह में रखे गये हैं। हम आपको मित्रा-वरुण देव, इन्द्र देव तथा सर्वव्यापक विष्णुदेव इत्यादि देवगणों को परितृप्त करने के उद्देश्य से ग्रहण करते हैं। हम उन इन्द्र देव की उपासना करते हैं, जो अपने प्रिय भोजन रूप सोमरस का सेवन करने वाले हैं। यज्ञ की सम्पन्नता और यजमानों के दीर्घ जीवन की इच्छा से आपको यज्ञस्थल में पहले से निर्धारित किये गये उत्तम आसन पर प्रतिष्ठित करते हैं।[यजुर्वेद 7.22]
Hey Som! You are stored in the Upyam Grah after duly extracting you. You are accepted for the satiation of Mitr-Varun, Indr Dev, all pervading Bhagwan Shri Hari Vishnu. We worship Indr Dev who drink-consume Somras as his favourite commodity. We establish you for holding the Yagy & long life of the Yajman-hosts at the best cushion, at the Yagy site.
मित्रावरुणाभ्यां त्वा देवाव्यं यज्ञस्यायुषे गृह्णामीन्द्राय त्वा देवाव्यं यज्ञस्यायुषे गृह्णामीन्द्राग्निभ्यां त्वा देवाव्यं यज्ञस्यायुषे गृह्णामीन्द्रावरुणाभ्यां त्वा देवाव्यं यज्ञस्यायुषे गृह्णामीन्द्राबृहस्पतिभ्यां त्वा देवाव्यं यज्ञस्यायुषे गृह्णामीन्द्राविष्णुभ्यां त्वा देवाव्यं यज्ञस्यायुषे गृह्णामि॥
हे दिव्य गुणों से सम्पन्न सोम! आप तृप्तिप्रदायक हैं। मित्रा वरुण देव, इन्द्राग्नि, बृहस्पति देव तथा विष्णु देव इत्यादि देवताओं को तृप्त करने के निमित्त आपको स्वीकार करते हैं। हमारे यज्ञ बाधा रहित होकर सम्पन्न हों, इसके निमित्त हम आपको यज्ञस्थल में प्रतिष्ठित करते हैं।[यजुर्वेद 7.23]
Hey Som, possessing divine characters-qualities! You grant satisfaction-satiation. You accept you for granting satisfaction-satiation to Mitr-Varun Dev, Indr & Agni Dev, Brahaspati Dev and Bhagwan Shri Hari Vishnu. We establish you at the Yagy site so that our Yagy is held free from hindrances.
मूर्द्धानं दिवो अरतिं पृथिव्या वैश्वानरमृत आ जातमग्निम्। कविꣳ सम्राजमतिथिं जनानामासन्ना पात्रं जनयन्त देवाः॥
जिस प्रकार नभ के ऊर्ध्व भाग में प्रकाशमान, तेजवान् सूर्य देव प्रकट होते हैं, उसी प्रकार भूलोक पर प्रतिष्ठा प्राप्त, जगत् के आश्रयदाता, त्रिकालज्ञ, मूर्धन्य, दीप्तिमान्, तेजयुक्त, समस्तजनों के आतिथ्य सत्कार के योग्य ब्रह्माग्नि को यजमान ने अरणियों के द्वारा उत्पन्न किया अर्थात् प्रकट किया। इसी अग्नि से इन्द्रादि देवता अपनी हवि को प्राप्त करते।[यजुर्वेद 7.24]
The Yajman have evolved Brahmagni with the wood for the welcome-hospitality of Almighty granting asylum to the universe, cerebral, aurous-radiant, knowing-aware of past, present & future, similar to the manner in which Sury Dev arises over the elevated region of the sky; over the earth. Indr Dev and other demigods get their offerings through this fire.
उपयामगृहीतोऽसि ध्रुवोऽसि ध्रुवक्षितिर्भुवाणां ध्रुवतमोऽच्युतानामच्युतक्षित्तम एष ते योनिर्वैश्वानराय त्वा। ध्रुवं ध्रुवेण मनसा वाचा सोममव नयामि। अथा न इन्द्र इद्विशोऽसपत्नाः समनसस्करत्॥
हे सोमदेव! आप उपयामग्रह में ग्रहण किये गये हैं। आप स्थिर निवास वाले, सम्पूर्ण नक्षत्र मण्डल की तुलना में अत्यन्त अचल तथा च्युत रहितों के मध्य अत्यन्त अच्युत अथवा च्युत रहित पात्र में निवास करने वाले, 'ध्रुव' नाम से प्रसिद्ध हैं। हे ध्रुव ग्रह! यह आपका स्थान है, सम्पूर्ण नरक लोक के कल्याणकारी देवताओं की प्रीति के निमित्त हम आपको इस स्थान पर स्थापित करते हैं। स्थिर चित्त तथा वाणी से इस ध्रुव ग्रह में स्थित सोम को होतागण चमसपात्र में सिंचित करते हैं। इसके अनन्तर इन्द्र देवता ही हमारी प्रजा को शत्रु शून्य, परस्पर प्रीति युक्त करें।[यजुर्वेद 7.25]
Hey Som Dev! You have been poured-placed in this Upyam Grah. You are famous as Dhruv, being inertial-stationary, as compared to entire celestial objects-constellations. Hey Dhruv Grah! This is your place-residence. We are establishing you here for the welfare of hells, through the well wishing affectionate demigods. The Hotas store Somras in the Chamas vessel with composed mind-unperturbed innerself, speech-voice. Thereafter, Indr Dev should make the populace free from enemies and make it mutually affectionate.(11.04.2025)
यस्ते द्रप्स स्कन्दति यस्ते अꣳशुर्गावच्युतो धिषणयोरुपस्थात्। अध्वर्योर्वा परि वा यः पवित्रात्तं ते जुहोमि मनसा वषट्कृतꣳ स्वाहा देवानामुत्क्रमणमसि॥
हे सोमदेव! आप देवताओं को सर्वोच्च पद प्रदान करने वाले हैं। आपके रस का जो अंश अभिषवकाल में पाषाणों द्वारा कुचलते, निचोड़ते, छानते तथा बर्तन में डालते समय धरती पर गिर जाता है अथवा जो अध्वर्यु के निकट अवशेष बचता है, उन सभी अंशों की पूर्ति के लिये मैं यह घृत हवन करता हूँ। यह घृताहुति है। आप देवताओं को ऊर्ध्वगति प्रदान करने वाले के निमित्त सोपान सदृश हैं।[यजुर्वेद 7.26]
सोपान :: सीढ़ी, जीना, ऊपर चढ़ने का रास्ता, अक्सर मोक्ष प्राप्ति के लिए मार्ग या चरण; a step to attain salvation.
सोपान सदृश :: सीढ़ी के समान; like a staircase-steps, ladder.
Hey Som Dev! You award highest designation-position to demigods-deities. I pour Ghee to compensate your remains which fall over the earth or are left over near the priest while crushing, filtering, squeezing or pouring in the vessels. This offering is made of Ghee. You grant vertical rise-upliftment to demigods-deities like a ladder.
प्राणाय मे वर्चीदा वर्चसे पवस्व व्यानाय मे वर्चोदा वर्चसे पवस्वोदानाय मे वर्चीदा वर्चसे पवस्व वाचे मे वर्चोदा वर्चसे पवस्व क्रतूदक्षाभ्यां मे वर्चोदा वर्चसे पवस्व श्रोत्राय मे वर्चोदा वर्चसे पवस्व चक्षुर्थ्यां मे वर्चेदसौ वर्चसे पवेथाम्॥
हे उपांशु ग्रह! आप स्वभावतः ब्रह्म तेज प्रदान करने वाले हैं, अतः हमें ब्रह्म तेज और प्राण वायु प्रदान करिये।
हे उपांशु सवन! आप स्वभाव से ही ब्रह्म तेज प्रदान करनेवाले हैं, अतः आप हमें ब्रह्म तेज और व्यान वायु प्रदान करिये। हे अन्तर्याम ग्रह! आप स्वभाव से ही ब्रह्म तेज प्रदान करने वाले हैं अतः हमें ब्रह्म तेज और उदान वायु प्रदान करिये। हे इन्द्र वायव ग्रह! आप स्वभावतः ब्रह्म तेज के दाता हैं, अतः हमें ब्रह्म तेज और वाणी की पवित्रता प्रदान करिये। हे मैत्रा-वरुण ग्रह! आप स्वभाव से ही ब्रह्म तेज प्रदान करनेवाले हैं, अतः आप हमें ब्रह्म तेज और बल प्रदान करिये। हे आश्विन ग्रह! आप स्वभाव से ही ब्रह्म तेज प्रदान करने वाले हैं, अतः आप हमें ब्रह्मतेज और कर्णेन्द्रिय की शक्ति प्रदान करिये। हे शुक्र तथा मन्थिग्रह! आप स्वभाव से ही ब्रह्म तेज प्रदान करनेवाले हैं, अतः आप हमें ब्रह्मतेज और नेत्रों की शक्ति प्रदान करिये।[यजुर्वेद 7.27]
ब्रह्म तेज :: The energy, aura-lustre over the face of Brahma Ji.
Hey Upanshu Grah! By nature you grant Brahm Tej, hence grant us Brahm Tej and air vital. Hey Upanshu Sawan! Hey Upanshu Grah! By nature you grant Brahm Tej, hence grant us Brahm Tej and air vital. Hey Antaryam Grah! Hey Upanshu Sawan! Hey Upanshu Grah! By nature you grant Brahm Tej, hence grant us Brahm Tej and air vital. Hey Indr Vayav Grah! By nature you grant Brahm Tej, hence grant us Brahm Tej and purity of speech-voice. Hey Mitr-Varun Grah! By nature you grant Brahm Tej, hence grant us Brahm Tej and strength. Hey Ashvin Grah! By nature you grant Brahm Tej, hence grant us Brahm Tej and power to hear. Hey Shukr & Manthi Grah! By nature you grant Brahm Tej, hence grant us Brahm Tej and power to see.
आत्मने मे वर्चोदा वर्चसे पवस्वौजसे मे वर्चदा वर्चसे पवस्वायुषे मे वर्चोदा वर्चसे पवस्व विश्वाभ्यो मे प्रजाभ्यो वर्चीदसौ वर्चसे पवेथाम्॥
हे आग्रयण ग्रह! आप स्वभावतः ब्रह्म तेज प्रदान करने वाले हैं, अतः आप हमें ब्रह्म तेज प्रदान करें और हमारी आत्मा सम्बन्धी बल में वृद्धि करने के निमित्त प्रवृत्त हों। हे ध्रुव ग्रह! आप स्वभावतः ब्रह्मते ज प्रदान करनेवाले हैं, अतः आप हमें ब्रह्म तेज प्रदान करें और मेरे ओज, बल तथा आयुष्य की वृद्धि करने के निमित्त प्रवृत्त हों। हे पूतभृत आहवनीय ग्रहों! आप स्वभाव से ही ब्रह्म तेज प्रदान करने वाले हैं, अतः आप हमें ब्रह्म तेज प्रदान करें और हमारी सन्तानों को अक्षय पुष्टि प्रदान करने के निमित्त प्रवृत्त हों।[यजुर्वेद 7.28]
Hey Agrayan Grah! By nature you grant Brahm Tej, hence grant us Brahm Tej and inner strength. Hey Dhruv Grah! By nature you grant Brahm Tej, hence grant us Brahm Tej-aura, might and longevity. Hey Poot Brat Avahniy Grah! By nature you grant Brahm Tej, hence grant us Brahm Tej and imperishable nourishment to our progeny.
कोऽसि कतमोऽसि कस्यासि को नामासि। यस्य ते नामामन्महि यं त्वा सोमेनातीतृपाम। भूर्भुवः स्वः सुप्रजाः प्रजाभिः स्याꣳ सुवीरो वीरैः सुपोषः पोषैः॥
यजमान द्रोण कलश को देखते हुए बोलें, हे द्रोण कलश! आप कौन हैं? आप किससे सम्बन्धित हैं? आप किस नाम से जाने जाते हैं? आप अपने विषय में बतलायें, जिससे हम आपमें सोमरस भरकर आपको परिपूर्ण करें। हे द्रोण कलश! आप प्रजापति हैं। आप प्रजापति से सम्बन्धित हैं। आप प्रजापति नाम वाले हैं। हे देव! भूलोक, अन्तरिक्ष लोक तथा स्वर्ग लोक में आप अग्नि, वायु तथा सूर्य रूप में संव्याप्त हैं। इसलिए आपकी कृपा से हम सुप्रजावान्, सुपुत्रवान् तथा श्रेष्ठ धन-सम्पदा प्राप्त करने वाले हों।[यजुर्वेद 7.29]
Yajman should look at the Dron Kalash and ask him, who he is!? Tell me about you. Whom are you related to? What is your name? We wish to fill you with Somras. Hey Dron Kalash! You are Prajapati. You are related to Prajapati. Your name is Prajapati. Hey Dev! You pervade the earth, space & heavens in the form of fire, air and Sun. We wish to have subjects, virtuous sons, best wealth.
उपयामगृहीतोऽसि मधवे त्वोपयामगृहीतोऽसि माधवाय त्वोपयामगृहीतोऽसि शुक्राय त्वोपयामगृहीतोऽसि शुचये त्वोपयामगृहीतोऽसि नभसे त्वोपयामगृहीतोऽसि नभस्याय त्वोपयामगृहीतोऽसीषे त्वोपयामगृहीतोऽस्यूर्जे त्वोपयामगृहीतोऽसि सहसे त्वोपयामगृहीतोऽसि सहस्याय त्वोपयामगृहीतोऽसि तपसे त्वोपयामगृहीतोऽसि तपस्याय त्वोपयामगृहीतोऽस्यꣳ हसस्पतये त्वा॥
अर्ध्वयु बारहों महीनों अर्थात् छः ऋतुओं के नाम से हवन करें। हे ऋतु ग्रह! आप उपयाम ग्रह द्वारा विधिवत् ग्रहण किये गये हैं। हम आपको चैत्रमास, वैशाखमास, ज्येष्ठमास, आषाढ़मास, श्रवणमास, भाद्रपदमास, आश्विनमास, कार्तिक-मास, मार्गशीर्षमास, पौषमास, माघमास, फाल्गुनमास तथा पुरुषोत्तममास आदि तेरह मास (अधिक मास) की तुष्टि-पुष्टि के लिए क्रमशः ग्रहण करते हैं।[यजुर्वेद 7.30]
The priest should conduct Hawan throughout the year i.e., 6 seasons and 12 months. Hey Ritu Grah! You have been duly received by Upyam Grah. We accept you for the 12 Hindu Lunar calendar months and the 13th added month for satiation and nourishment.
चैत्र भारतीय राष्ट्रीय पंचांग का प्रथम माह है। सामान्यत: 1 चैत्र 22 मार्च को होता है और लीप वर्ष में 21 मार्च को।
चैत्र 30 (दिन) 22 मार्च, वैशाख 31 (दिन) 21 अप्रैल, ज्येष्ठ 31 (दिन) 22 मई, आषाढ़ 31 (दिन) 22 जून, श्रावण31 (दिन) 23 जुलाई, भ्राद्रपद 31 (दिन) 23 अगस्त, अश्विन 30 (दिन) 23 सितम्बर, कार्तिक30 (दिन) 23 अक्टूबर, अग्रहायण (मार्गशीर्ष) 30 (दिन) 22 नवम्बर, पूस 30 (दिन) 22 दिसम्बर, माघ 30 (दिन) 21 जनवरी और फाल्गुन 30 (दिन) 20 फरवरी।
अधिवर्ष में, चैत्र में 31 दिन होते हैं और इसकी शुरुआत 21 मार्च को होती है। वर्ष की पहली छमाही के सभी महीने 31 दिन के होते है, जिसका कारण इस समय कांतिवृत्त में सूरज की धीमी गति है।
भारतीय राष्ट्रीय पंचांग या ‘भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर’ का आधिकारिक उपयोग 1 चैत्र, 1879 शक् संवत या 22 मार्च 1957 में शुरू किया था।
चैत्र 30 (दिन) 22 मार्च, वैशाख 31 (दिन) 21 अप्रैल, ज्येष्ठ 31 (दिन) 22 मई, आषाढ़ 31 (दिन) 22 जून, श्रावण31 (दिन) 23 जुलाई, भ्राद्रपद 31 (दिन) 23 अगस्त, अश्विन 30 (दिन) 23 सितम्बर, कार्तिक30 (दिन) 23 अक्टूबर, अग्रहायण (मार्गशीर्ष) 30 (दिन) 22 नवम्बर, पूस 30 (दिन) 22 दिसम्बर, माघ 30 (दिन) 21 जनवरी और फाल्गुन 30 (दिन) 20 फरवरी।
अधिवर्ष में, चैत्र में 31 दिन होते हैं और इसकी शुरुआत 21 मार्च को होती है। वर्ष की पहली छमाही के सभी महीने 31 दिन के होते है, जिसका कारण इस समय कांतिवृत्त में सूरज की धीमी गति है।
भारतीय राष्ट्रीय पंचांग या ‘भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर’ का आधिकारिक उपयोग 1 चैत्र, 1879 शक् संवत या 22 मार्च 1957 में शुरू किया था।
(1). चित्रा नक्षत्र के नाम पर चैत्र मास (मार्च-अप्रैल), Mid of March to Mid of April, (2). विशाखा नक्षत्र के नाम पर वैशाख मास (अप्रैल-मई), Mid of April to Mid of May, (3). ज्येष्ठा नक्षत्र के नाम पर जेठ-ज्येष्ठ मास (मई-जून), Mid of May to Mid of June, (4). आषाढ़ा नक्षत्र के नाम पर आषाढ़ मास (जून-जुलाई), Mid of June to Mid of July, (5). श्रवण नक्षत्र के नाम पर सावन-श्रावण मास (जुलाई-अगस्त), Mid of July to Mid of August, (6). भाद्रपद (भाद्रा) नक्षत्र के नाम पर भाद्रपद-भादोँ मास (अगस्त-सितम्बर), Mid of August to Mid of September, (7). अश्विनी के नाम पर क्वार-आश्विन-असूज मास (सितम्बर-अक्टूबर), Mid of September to Mid of October, (8). कृत्तिका के नाम पर कार्तिक मास (अक्टूबर-नवम्बर), (9). मृगशीर्ष के नाम पर मार्गशीर्ष-अगहन (नवम्बर-दिसम्बर), Mid of November to Mid of December, (10). पुष्य के नाम पर पौष-पूस (दिसम्बर-जनवरी), Mid of December Mid of January, (11). मघा के नाम पर माघ-महा (जनवरी-फरवरी), Mid of January Mid of February तथा (12). फाल्गुनी नक्षत्र के नाम पर फाल्गुन मास (फरवरी-मार्च), Mid of February to Mid of March का नामकरण हुआ है।
इन्द्राग्नी आ गतꣳ सुतं गीर्भिर्नभो वरेण्यम्। अस्य पातं धियेषिता। उपयामगृहीतोऽसीन्द्राग्निभ्यां त्वैष ते योनिरिन्द्राग्निभ्यां त्वा॥
हे इन्द्र और अग्निदेव! आप सोमरस पान के लिये यज्ञस्थल पर आये। इस सूर्य के समान वरणीय सोमरस का तुम्हारे लिये संस्कार किया गया है। हमारी स्तुति से प्रसन्न होकर आप दोनों इसका पान करें। हे सोम रस! तुम इन्द्र और अग्नि के निमित्त उपयाम पात्र में ग्रहण किये गये हो। इन्द्र देव तथा अग्नि देव को परितृप्त एवं आनन्दित करने के लिए आप अपने लिए यज्ञ स्थल में निश्चित किये गये आसन पर प्रतिष्ठित हों।[यजुर्वेद 7.31]
Hey Indr & Agni Dev! Come to the Yagy site for drinking Somras. Somras has been sanctified for you, like the Sun. On being happy with our prayers, drink Somras. Hey Somras! You have been poured in the Upyam pot for Indr & Agni Dev. Occupy you allotted seat-cushion in the Yagy for satisfying and pleasing Indr dev and Agni Dev.
आ घा ये अग्निमिन्धते स्तृणन्ति बर्हिरानुषक्।
येषामिन्द्रो युवा सखा। उपयामगृहीतोऽस्यग्नीन्द्राभ्यां त्वैष ते योनिरग्नीन्द्राभ्यां त्वा॥
हे सोमरस! आप देवराज इन्द्र तथा अग्नि देव को परितृप्त करने के निमित्त नियमानुसार ग्रहण किये जाते हैं। आप अपने यज्ञस्थल में सुनिश्चित आसन पर स्थिर हों। हे द्रोण कलश में स्थित सोम! तेजवान् इन्द्र देव जिनके सखा हैं, जो समिधाओं से अग्नि को प्रज्वलित करने हेतु हवियाँ समर्पित करते हैं, आप उन यजमानों के यज्ञ को सम्पन्न करें तथा सफल बनायें। हे सोम! मैं तुम्हें इन्द्र और अग्नि के निमित्त इस वेदी पर स्थापित करता हूँ।[यजुर्वेद 7.32]
Hey Somras! You are duly received to satiate Indr Dev and Agni Dev as per rule. Occupy the place fixed for you in the Yagy. Hey Somras present in the Dron Kalash! Grant success to those Yajman who are friends of Indr Dev and keep fire blazing by adding wood and offerings to it. Make their Yagy successful. Hey Som! I establish you over the Vedi for the sake of Indr Dev and Agni Dev.(13.04.2025)
ओमासश्चर्षणीधृतो विश्वे देवास आ गत। दाश्वाꣳसो दाशुषः सुतम्। उपयामगृहीतोऽसि विश्वेभ्यस्त्वा देवेभ्य एष ते योनिर्विश्वेभ्यस्त्वा देवेभ्यः॥
हे विश्वेदेवों! आप सभी प्रकार से हमारे रक्षक बनें। आप यजमानों को पुष्ट करने वाले हैं, सुसंस्कारित सोम को प्रदान करने वाले व कामना की पूर्ति करने वाले आप सोमरस का पान करने हेतु यज्ञशाला में पधारें। हे ग्रह (सोमरस से परिपूर्ण पात्र)! विश्वेदेवा को संतुष्ट करने के निमित्त आप विधिवत् अभिषुत किये गये हैं। यज्ञशाला में आपका जो निश्चित किया गया स्थान है, वहाँ पर आप सम्पूर्ण देवताओं को तृप्त करने के निमित्त प्रतिष्ठित हो जायँ। मैं तुम्हें विश्वेदेवों के निमित्त यहाँ वेदी पर स्थापित करता हूँ।[यजुर्वेद 7.33]
Hey Vishwe Devs! You should become our protectors by all means. You are the nurturer of the Yajman, provide them sanctified Somras, accomplish their desires & come to the Yagy Shala for drinking Somras. Hey Grah-pot full of Somras! Somras has been extracted to satiate-satisfy Vishwe Devs. Occupy over the place fixed for you in the Yagy Shala, to satiate the demigods. I establish you here over the Yagy Vedi for the sake of Vishwe Devs.
विश्वे देवास आगत शृणुता म इमꣳ हवम्। एदं बर्हिर्निषीदत। उपयामगृहीतोऽसि विश्वेभ्यस्त्वा देवेभ्य एष ते योनिर्विश्वेभ्यस्त्वा देवेभ्यः॥
हे विश्वेदेवा! आप हमारे इस यज्ञ में आगमन करें। हमारे द्वारा किये गये आवाहन को आप सभी प्रकार से सुनें एवं इस कुशासन पर विराजमान हों। हे सोमरस! तुम्हें उपयामपात्र में ग्रहण किया गया है। हे ग्रह (सोमरस से परिपूर्ण पात्र)! विश्वेदेवा को संतुष्ट करने के निमित्त आप विधिवत् अभिषुत किये गये हैं। यज्ञशाला में आपका जो निश्चित किया गया स्थान है, वहाँ पर आप सम्पूर्ण देवताओं को तृप्त करने के निमित्त प्रतिष्ठित हो जायँ। मैं तुम्हें विश्वेदेवों के निमित्त यहाँ वेदी पर स्थापित करता हूँ।[यजुर्वेद 7.34]
Hey Vishwe Devs! Come to our Yagy. Accept our invocation and occupy the Kushasan Mat. Hey Somras! You have been received-filled in the Upyam pot. Hey pot full of Somras! Somras has been extracted to satiate the demigods-deities following procedures. Occupy over the place fixed for you in the Yagy Shala, to satiate the demigods. I establish you here over the Yagy Vedi for the sake of Vishwe Devs.
इन्द्र मरुत्व इह पाहि सोमं यथा शार्याते अपिबः सुतस्य। तव प्रणीती तव शूर शर्मन्ना विवासन्ति कवयः सुयज्ञाः। उपयाम गृहीतोऽसीन्द्राय त्वा मरुत्वत एष ते योनिरिन्द्राय त्वा मरुत्वते॥
हे मरुतों के साथ रहने वाले देवेन्द्र! जिस प्रकार आपने राजा शर्याति के यज्ञ में अभिषुत सोम का पान किया था, उसी प्रकार आप हमारे इस यज्ञ में पदार्पण करें एवं हमारे द्वारा अभिषुत किये गये सोमरस का पान करें। हे ग्रह (सोमरस से परिपूर्ण पात्र! मरुद्गणों सहित देवराज इन्द्र को हर्षित करने के निमित्त आप विधिवत् अभिषुत किये गये हैं। यज्ञशाला में आपका जो निश्चित किया गया स्थान है, वहाँ पर आप मरुतों सहित इन्द्र को संतुष्ट करने के निमित्त स्थिर हों।[यजुर्वेद 7.35]
Hey Marud Gan, accompanying Devendr! The way you drunk sanctified Somras in the Yagy of king Sharyati, similarly come to our Yagy and drink Somras. Hey Grah-pot full of Somras! Somras has been extracted to please Marud Gan along with Dev Raj Indr. Occupy the place fixed for you in the Yagy Shala and satisfy Indr Dev and Marud Gan.
मरुत्वन्तं वृषभं वावृधानमकवारिं दिव्यꣳ शासमिन्द्रम्। विश्वासाहमवसे नूतनायोग्रꣳ सहोदामिह तꣳ हुवेम। उपयामगृहीतोऽसीन्द्राय त्वा मरुत्वत एष ते योनिरिन्द्राय त्वा मरुत्वते। उपयामगृहीतोऽसि मरुतां त्वौजसे॥
याजकगण अपनी रक्षा के उद्देश्य से दिव्य गुणों से युक्त धन, वैभव एवं बल प्रदान करने वाले, जल-वृष्टि करने वाले देवराज इन्द्र को मरुतों सहित आहूत करते हैं। हे ग्रह (सोमरस से परिपूर्ण पात्र)! मरुतों सहित इन्द्र देव की प्रसन्नता के लिये आपको विधिवत् तैयार किया गया है। यह आपका स्थान है, मरुतों को पराक्रम तथा हर्ष प्रदान करने के निमित्त आपको यहाँ स्थिर करते हैं। मरुतों सहित इन्द्र के लिये मैं तुम्हें वेदी पर रखता हूँ।[यजुर्वेद 7.36]
Yajak Gan make offerings for the sake of Indr Dev and Marud Gan who possess wealth having divine characters, grant grandeur and power and shower rains; for their safety. Hey Grah-pot full of Somras! Somras has been procedurally extracted to please Marud Gan along with Dev Raj Indr. Occupy the place fixed for you in the Yagy Shala and grant valour & invincibility to Marud Gan. I place you over the Yagy Vedi for Indr Dev and Marud Gan.
सजोषा इन्द्र सगणो मरुद्भिः सोमं पिब वृत्रहा शूर विद्वान्। जहि शत्रू2रप मृधो नुदस्वाथाभयं कृणुहि विश्वतो नः। उपयामगृहीतोऽसीन्द्राय त्वा मरुत्वत एष ते योनिरिन्द्राय त्वा मरुत्वते॥
हे देवेन्द्र! आप वृत्रासुर के संहारक हैं। आप मरुद्गणों सहित हमारे इस यज्ञ में पदार्पण करें एवं सोमरस का पान करके परितृप्त हों। आप हमें शत्रु शून्य करके निर्भीक बनायें। हे ग्रह (पात्र)! मरुतों सहित देवराज इन्द्र को हर्षित करने के निमित्त आप विधिवत् अभिषुत किये गये हैं। यज्ञशाला में जो आपका निश्चित किया गया स्थान है, वहाँ पर आप मरुतों सहित इन्द्र को संतुष्ट करने के निमित्त स्थिर हों।[यजुर्वेद 7.37]
Hey Devendr! You are the destroyer of Vratra Sur. Join our Yagy with Marud Gan and satiate by drinking Somras. Make us free from the enemies and fearless. Hey Grah-pot, full of Somras! Somras has been duly extracted to please Marud Gan and Indr Dev. Occupy the seat fixed for you in the Yagy Shala to please Indr Dev and Marud Gan.
मरुत्वाँर2 इन्द्र वृषभो रणाय पिबा सोममनुष्वधं मदाय। आसिञ्चस्व जठरे मध्व ऊर्मिं त्वꣳ राजाऽसि प्रतिपत्सुतानाम्। उपयामगृहीतोऽसीन्द्राय त्वा मरुत्वत एष ते योनिरिन्द्राय त्वा मरुत्वते॥
मरुतों सहित हे इन्द्र देव! आप जल-वृष्टि द्वारा साधकों को धन-धान्य से सम्पन्न बनाने वाले हैं। आप अपने आपको आह्लादित करने और युद्ध के निमित्त सोमरस का पान करें तथा दुराचारियों से संग्राम करें। इस पोषणकारी, मधुरता से युक्त सोमरस को तब तक पान करें, जब तक आपके पेट न भर जाय। जो सोमरस नियमानुसार अभिषुत किया जाता है, उस सोमरस के आप अधिष्ठाता हैं। हे ग्रह (पात्र)! आपको मरुद्गणों सहित इन्द्र देव की तृप्ति के निमित्त नियमानुसार ग्रहण किया गया है। यह आपका मूल स्थान है। मरुतों सहित इन्द्र देव को हर्षित करने के निमित्त आपको यहाँ वेदी पर प्रतिष्ठित करते हैं।[यजुर्वेद 7.38]
Hey Indr Dev accompanying Marud Gan! You shower rains to enrich the devotees with wealth and food grains. Drink Somras till your belly is filled with it, to become happy and fight with the wicked-vicious. You are the deity of the Somras extracted following procedures. Hey pot-Grah! You have been received to satiate Marud Gan & Indr Dev, procedurally. This is your basic place-seat. We establish you over the Yagy Vedi to please Indr Dev and Marud Gan.
महाँ2 इन्द्रो नृवदा चर्षणिप्रा उत द्विबर्हा अमिनः सहोभिः। अस्मद्रयग्वावृधे वीर्यायोरुः पृथुः सुकृतः कर्तृभिर्भूत्। उपयामगृहीतोऽसि महेन्द्राय त्वैष ते योनिर्महेन्द्राय त्वा॥
अद्वितीय पराक्रमी यज्ञों को विस्तीर्ण करने वाले हे देवता! जिस प्रकार राजा अपनी प्रजा की इच्छाओं को सर्वदा पूर्ण करता है, उसी प्रकार आप यजमानों को धन-धान्य प्रदान करके उनकी मनोकामनाओं की पूर्ति करें। हे देवेन्द्र! आप याजकों द्वारा स्तवनीय हैं। इसलिए आप उन्हें शक्तिशाली बनायें। हे ग्रह! विधिवत् ग्रहण किये गये आपको महान् देवराज इन्द्र की संतुष्टि एवं प्रसन्नता के निमित्त वेदी पर रखते हैं।[यजुर्वेद 7.39]
Hey deity, extending the extraordinary Yagy! The way a king fulfil the expectations of his subjects, in the same way, grant wealth & food grains to accomplish their desires. Hey Devendr! You are worshiped by the Yajak, so make them strong. Hey pot-Grah! Having received you procedurally, we establish you over the Yagy Vedi for the pleasure of great Dev Raj Indr.(14.04.2025)
महाँ2 इन्द्रो य ओजसा पर्जन्यो वृष्टिमाँ2 इव। स्तोमैर्वत्सस्य वावृधे।
उपयामगृहीतोऽसि महेन्द्राय त्वैष ते योनिर्महेन्द्राय त्वा॥
हे महान् तेजस् से युक्त देवेन्द्र! आप जल-वृष्टि करने वाले विशाल मेघों के सदृश हैं। आप उपासकों की प्रार्थनाओं से आह्लादित होकर सुखों की वृष्टि करते हैं। हे माहेन्द्र ग्रह (इन्द्र के उद्देश्य से नियुक्त सोमरस)! नियम पूर्वक ग्रहण किये गये आपको महान् इन्द्र देव की तृप्ति तथा प्रसन्नता के निमित्त यहाँ वेदी पर स्थापित करते हैं।[यजुर्वेद 7.40]
Hey Indr Dev possessing great aura-energy! You are like the rain clouds showering rains. Gladdened with the prayers by the worshipers, you shower comforts-pleasure. Hey Mahendr Grah-pot, possessing Somras for Indr Dev! Having been duly received, we establish you over the Yagy Vedi for the happiness of Indr Dev.
उदु त्यं जातवेदसं देवं वहन्ति केतवः। दृशे विश्वाय सूर्यꣳ स्वाहा॥
सम्पूर्ण संसार को अपनी दिव्य किरणों से आलोकित करने वाले जो सूर्य देव प्राणियों को तत्त्वों का बोध कराने के निमित्त अपनी रश्मियों को अन्तरिक्ष लोक से भूलोक तक विस्तारित करते हैं, उन्हीं सूर्य देव के निमित्त हम यह हवि निवेदित करते हैं।[यजुर्वेद 7.41]
This oblation is meant for Sury Dev who illuminate the entire universe through the space to earth, with his divine rays, making the living beings conscious.
चित्रं देवानामुदगादनीकं चक्षुर्मित्रस्य वरुणस्याग्नेः।
आप्रा द्यावापृथिवी अंतरिक्षꣳ सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च स्वाहा॥
क्या विचित्र बात है कि स्थावर जंगम जगत् की आत्मा, किरणों का पुंज, अग्नि-मित्र और वरुण का नेत्र रूप यह सूर्य भूलोक, द्युलोक तथा अन्तरिक्ष को पूर्ण करता हुआ उदित होता है। इसके लिये यह आहुति निवेदित है।[यजुर्वेद 7.42]
COMPREHANDING :: बूझना, समझना, सम्मिलित करना; understand, deem, perceive, think, know, make out, reach the depth of, guess correctly, solder, include, incorporate, unite, cover.
This offerings in meant for Sury Dev who rises illuminating the soul of the amazing inertial-stationary world, with his rays, Mitr-Varun and Varun Dev as his eyes; comprehending the heavens, space and earth.
अग्ने नय सुपथा राये अस्मान्विश्वानि देव वयुनानि विद्वान्।
युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो भूयिष्ठां ते नम उक्तिं विधेम स्वाहा॥
हे अग्नि देव! आप उन्नति के समस्त मार्गों के ज्ञाता हैं। आप वैभव की अभिलाषा करने वाले हम यजमानों को उत्तम पथ पर अग्रसर करें। जो पाप वृत्तियाँ सत्कर्म करने में विघ्न उत्पन्न करती है, उन पाप वृत्तियों को आप निराकृत करें। हम याजक विनम्रता से आपकी वन्दना करते हुए आपको आहुति समर्पित करते हैं।[यजुर्वेद 7.43]
Hey Agni Dev! You are aware of the routes to progress-success. Direct us-Yajmans to excellent path. Diminish the tendency to sins in us, which obstruct the virtues, piousity, righteousness in us. We the Yajak politely worship you while making offerings-scarifies for you.
अयं नो अग्निर्वरिवस्कृणोत्वयं मृधः पुर एतु प्रभिन्दन्।
अयं वाजाञ्जयतु वाजसातावयꣳ शत्रूञ्जयतु जर्हषाणः स्वाहा॥
हे अग्नि देव! आप हमारे रिपुओं को संग्राम क्षेत्र में विदीर्ण करके, उन्हें पराजित करते हुए, उन शत्रुओं के द्वारा एकत्र किये गये ऐश्वर्य को हमें प्रदान करें। आप रिपुओं को पराभूत करने वाले हैं, अतः हम आपके निमित्त यह हवि निवेदित करते हैं।[यजुर्वेद 7.44]
Hey Agni Dev! Tear our enemies in the war field, defeat them and grant the grandeur possessed by them to us. Since, you defeat the enemy we are making this offerings for you.
रूपेण वो रूपमभ्यागां तुथो वो विश्ववेदा वि भजतु।
ऋतस्य पथा प्रेत चन्द्रदक्षिणा वि स्वः पश्य व्यन्तरिक्षं यतस्व सदस्यैः॥
ऋत्विज दक्षिणा में प्राप्त गायों को सम्बोधित करते हुए बोलें, हे दक्षिणे! हम अच्छी तरह से आपके स्वरूप को जान चुके हैं, सर्वद्रष्टा प्रजापति आपको ऋत्विग्गणों के निमित्त विधिवत् वितरित करें। आपको पाकर हम सत्य मार्ग का अनुगमन करने वाले बनें एवं जिस तरह सूर्य देव विशाल अन्तरिक्ष को देखने में समर्थ हैं, वैसे ही हम भी दूरद्रष्टा बनें। हे गौओं! हमें प्राप्त होकर तुम देवताओं और पितरों को प्रसन्न करने का हेतु बनोगी। तुम्हें प्राप्त कर हम तुम्हारे और अधिक होने की कामना करते हैं।[यजुर्वेद 7.45]
Ritviz should address the cows obtained as Dakshina, Hey Dakshina! We have duly understood your reality, let all visualising Praja Pati distribute you as per procedure. Having received you, we should follow the route of truthfulness and become capable of seeing distant objects like Sury Dev. Hey cows! You will become the object of happiness for the demigods and Pitr Gan. Having received you, we wish to have more of you.
ब्राह्मणमद्य विदेयं पितृमन्तं पैतृमत्यमृषिमार्षेयꣳसुधातु दक्षिणम्।
अस्मद्राता देवत्रा गच्छत प्रदातारमा विशत॥
जिनके पिता प्रशस्त हैं, जिनके पितामह जगन्मान्य हैं, जिनके पितर श्रोत्रिय हैं, जिन्हें सुवर्ण दक्षिणा प्राप्त होती है, ऐसे आग्नीध्र ब्राह्मणों के पास आज मैं जाता हूँ। हे दक्षिणे! हमारे द्वारा प्रदत्त होकर देवों को प्राप्त होओ और ऋत्विजों को सन्तुष्ट करो; पुनः यजमान को यज्ञफल प्रदान करो।[यजुर्वेद 7.46]
आग्नीध्र :: आग से भरा, अग्नि युक्त; fire-born, born of fire, fire-wielding.
श्रोत्रिय :: वह वेदज्ञ, ब्राह्मण-विद्वान जो छन्द आदि कंठस्थ करके उनका अध्ययन और अध्यापन करे, वेद-वेदांग में पारंगत, सभ्य, शिष्ट, सुसंस्कृत हो, ब्राह्मण समाज में एक कुलनाम; modest, docile, well-behaved.
I am visiting such Brahmans who are fire wielding, son of appreciable father, who's grand father is honoured in the whole world, who's Manes are docile. Hey Dakshina! You should be received by the demigods on been awarded by us. Satisfy the Ritviz and grant the rewards of Yagy to the Yajman.
अग्नये त्वा मह्यं वरुणो ददातु सोऽमृतत्त्वमशीयायुर्दात्र एधि मयो मह्यं प्रतिग्रहीत्रे रुद्राय त्वा मह्यं वरुणो ददातु सोऽमृत्तत्त्वमशीय प्राणो दात्र एधि वयो महां प्रतिग्रहीत्रे बृहस्पतये त्वा मह्यं वरुणो ददातु सोऽमृतत्त्वमशीय त्वग्दात्र एधि भयो प्रतिगृहीत्रे यमाय त्वा मह्यं वरुणो ददातु सोऽमृतत्त्वमशीय हयो दात्र एधि वयो महां प्रतिग्रहीत्रे॥
हे दक्षिणे! अग्नि देव, रुद्र देव, बृहस्पति देव तथा यम देव इत्यादि नाना देव शक्तियों की कृपा के रूप में आप वरुण देवता द्वारा हमें प्राप्त हो। हम आपको पाकर आरोग्य हों तथा दीर्घायु को प्राप्त करें। आप दानियों को धन-सम्पदा से युक्त सुख, वैभव प्रदान करें तथा उन्हें दीर्घ जीवी बनायें।[यजुर्वेद 7.47]
Hey Dakshina! You should be received by us in the form of divine blessings of Agni Dev, Rudr Dev, Brahaspati Dev and Yam Dev through Varun Dev. Having received you, we should become free from ailments-diseases and attain long life. Make the donors wealthy possessing grandeur, comforts-pleasure and long lived.
कोऽदात्कस्मा अदात्कामोऽदात्कामायादात्। कामो दाता कामः प्रतिग्रहीता कामैतत्ते॥
कौन दक्षिणा प्रदान करता है? किसके निमित्त दक्षिणा प्रदान किया? यज्ञफल की अभिलाषा के लिये ही दक्षिणा प्रदान की गयी, अभिलाषाओं को ही दक्षिणा प्रदान की जाती है एवं अभिलाषाओं को ही दक्षिणा प्रदान की जाती है एवं अभिलाषाएँ ही दक्षिणा ग्रहण करती हैं। अतः अभिलाषाओं ही यह सब कुछ हैं अर्थात् अभिलाषाओं के जाग्रत् होने पर ही सब कर्म किया जाता है।[यजुर्वेद 7.48]
Who grant Dakshina? For whom Dakshina is made? Dakshina is made for the desire of Yagy. Karm-endeavours are under taken with the rise of desires.(15.04.2025)
यजुर्वेद संहिता, अष्टम अध्याय :: ऋषि :- आंगिरस, कुत्स, भरद्वाज, अत्रि, शुनःशेप, गोतम, मेधातिथि, मधुच्छन्दा, विवस्वान्, वैखानस, प्रस्कण्व, कुसुरुविन्दु, शास, देवा, वसिष्ठ, कश्यप; देवता :- बृहस्पतिस्सोम, गृहपति-मघवा, आदित्य, गृहपति, सविता गृहपति, विश्वेदेवा गृहपतय, गृहपतयो विश्वेदेवा, दम्पति, परमेश्वर, सूर्य, इन्द्र, ईश्वरसभेशो, राजानौ, विश्वकर्मा और इन्द्र, प्रजापतय, यज्ञ; छन्द :- पंक्ति, जगती, अनुष्टुप्, गायत्री, बृहती, उष्णिक्, त्रिष्टुप्।
उपयामगृहीतोऽस्यादित्येभ्यस्त्वा। विष्ण उरुगायैष ते सोमस्तꣳ रक्षस्व मा त्वा दभन्॥
हे सोमरस! आप उपयाम-पात्र में ग्रहण किये गये हैं। आदित्यगणों को प्रसन्न करने के निमित्त हम आपको ग्रहण करते हैं। हे बृहत् स्तवनों द्वारा विभूषित होने वाले विष्णो! यह उपयाम-पात्र में स्थित सोम आपके निमित्त निवेदित है। आप इस सोमरस की राक्षसादि से रक्षा करें। हे सोमरस! कोई भी शत्रु आपको कष्ट न पहुँचा पाये[यजुर्वेद 8.1]
Hey Somras! You have been received in the Upyam pot. We accept-receive you to please-gladden Adity Gan. Hey Bhagwan Shri Hari Vishnu, decorated-worshiped with vast Stwan-prayers! The Somras kept in the Upyam vessel is meant for you. Save this Somras from the demons. Hey Somras! No enemy should be able to harm you.
कदा चन स्तरीरसि नेन्द्र सश्चसि दाशुषे।
उपोपेन्नु मघवन्भूय इन्नु ते दानं देवस्य पृच्यत आदित्येभ्यस्त्वा॥
हे देवराज इन्द्र! आप कभी भी हिंसा न करने वाले हैं। याजकगण जो आहुति आपको निवेदित करते हैं, उन्हें आप याजकों के अत्यन्त समीप में आकर ग्रहण करते हैं। हे उत्कृष्ट वैभव से युक्त देवराज इन्द्र! यजमानों द्वारा समर्पित हविष्यान्न के बदले में आप जो दान प्रदान करते हैं, वह याजकों को समृद्धिशाली बनाने वाला होता है। हे सोमरस! हम आदित्य देवता की प्रीति के निमित्त आपको ग्रहण करते हैं।[यजुर्वेद 8.2]
Hey Dev Raj Indr! You never resort to violence (by yourself). Offerings made to you by the Yajak Gan are received by you by becoming very close to them. Hey Indr Dev, possessing excellent grandeur! Donation made by you in return for the oblations make the Yajak prosperous. Hey Somras! We accept you for the sake of Adity Gan.
कदाचन प्र युच्छस्युभे नि पासि जन्मनी।
तुरीयादित्य सवनं त इन्द्रियमातस्थावमृतं दिव्यादित्येभ्यस्त्वा॥
हे आदित्य! आप आलस्य, उन्माद इत्यादि से हमेशा दूर रहने वाले हैं। आप देवताओं तथा मनुष्यों-दोनों को ही उत्तम तरह से सुरक्षित रखते हैं। हे आदित्य! यह बलकारी सोमरस आपके निमित्त वेदी पर स्थित है। आपका अमृतमय स्वरूप द्युलोक में स्थित है। हे आदित्य ग्रह (पात्र) में स्थित सोमरस! हम आदित्य देवता को हर्षित करने के निमित्त आपको ग्रहण करते हैं।[यजुर्वेद 8.3]
Hey Adity! You always keep off laziness, intoxication. You equally protect the demigods & humans in best possible manner. Hey Adity! This strength producing Somras has been placed over the Yagy Vedi. You are present in the heavens having elixir-nectar. Hey Somras present in the Adity Grah-pot! We accept you to gladden Adity Dev.
यज्ञो देवानां प्रत्येति सुम्नमादित्यासो भवता मृडयन्तः आ वोऽर्वाची सुमतिर्ववृत्यादꣳ होश्चिद्या वरिवोवित्तरासदादित्येभ्यस्त्वा॥
यजमान आदित्य ग्रह में स्थित सोमरस में दही मिलाते हुए बोलें, देवों के सुख के लिये यह हमेशा हम पर अनुग्रह करे। दुष्कर्म करने वालों को आपकी बुद्धि धन न प्रदान करे। हे सोम! मैं आदित्यगण के लिये तुम्हें दही में मिलाता हूँ।[यजुर्वेद 8.4]
Yajman should utter this while mixing curd in the Adity Grah, "for the pleasure of demigods oblige-favour us". Your intellect should not grant wealth to those who resort to wickedness-viciousness. Hey Som! I mix you in the curd for Adity Gan.
विवस्वन्नादित्यैष ते सोमपीथस्तस्मिन् मत्स्व। श्रदस्मै नरो वचसे दधातन यदाशीर्दा दम्पती वाममश्श्रुतः। पुमान् पुत्रो जायते विन्दते वस्वधा विश्वाहारप एधते गृहे॥
हे अन्धकार नाशक आदित्य! पात्र में रखा गया यह सोमरस आपके ग्रहण करने योग्य है। यह दधि मिश्रित सोमरस आपके पान करने के लिये है। इसे पान कर आप तृप्त हों। हे यज्ञ कार्य में संलग्न ऋत्विजों! आप लोग यजमान को आशीर्वाद दें कि यह यजमान अपनी पत्नी के साथ मनोभिलषित धन का भोग कर सके। यह सन्तान की प्राप्ति करे तथा इसकी सन्तान भी विपुल धन की प्राप्ति करे। पुत्र और धन की प्राप्ति कर यह सदा अपने घर में रहते हुए अभिवृद्धि को प्राप्त करे।[यजुर्वेद 8.5]
Hey destroyer of darkness, Adity Dev! Somras present in the pot is suitable for you to drink. This Somras mixed with curd is for you. Drink this and satiate. Hey Ritviz busy with the Yagy Kary (job-work)! Bless the Yajman so that he can enjoy the desired wealth along with with his wife. He should attain progeny and his progeny should also get lots of wealth. Having attained son and wealth, he should grow while staying in his home.
वाममद्य सवितर्वाममु श्वो दिवे दिवे वाममस्मभ्यꣳ सावीः।
वामस्य हि क्षयस्य देव भूरेरया धिया वामभाजः स्याम॥
हे सर्वव्यापक सविता देव! आज हमारे निमित्त उत्तम सुखों (वरणीय यज्ञफल) को प्रदान करें तथा अगले दिन भी उत्तम सुखों (यज्ञ-फल) को प्रदान करें। हे दिव्य गुण युक्त देव! हम निःसन्देह उत्तम ऐश्वर्य से युक्त घर में रहने वाले, उत्तम मेधा से सम्पूर्ण उत्तम सुखों को भोगने वाले बनें। हे देव! हम अपनी इस स्तुति के द्वारा धन की प्राप्ति और उसका भोग करें।[यजुर्वेद 8.6]
Hey all pervading Savita Dev! Grant us excellent comforts today and the next day as well. Hey Dev possessing divine characters! We should become utilisers of best grandeur while staying in our home by virtue of excellent intellect. Hey Dev! we should attain wealth through this prayer and utilise it as well.
उपयामगृहीतोऽसि सावित्रोऽसि चनोधाश्चनोधा असि चनो मयि धेहि।
जिन्व यज्ञं जिन्व यज्ञपतिं भगाय देवाय त्वा सवित्रे॥
हे सोम! आप उपयाम-पात्र में स्थित हैं। आप सविता देवता से सम्बन्धित है, आप अन्न को धारण करने में सक्षम हैं। हमें अन्न प्रदान करें। आप यज्ञ तथा यज्ञपति (यजमान) को पूर्णता प्रदान करें। हम सम्पूर्ण ऐश्वर्यादिगुणों से युक्त, सर्वप्रेरक सविता देव के निमित्त आपको ग्रहण करते हैं।[यजुर्वेद 8.7]
पूर्णता :: संपूर्णता, पूरापन, सिद्धि, प्रवीणता, परिपूर्णता; perfection, completeness, wholeness.
Hey Som! You are present in the Upyam pot. You are related to Savita Dev and capable of holding food grains. Grant us food grains. Grant perfection to the Yagy and the Yajman. We accept you for the sake of Savita Dev, who inspire all and possess all sorts of grandeur.
उपयामगृहीतोऽसि सुशर्मासि सुप्रतिष्ठानो बृहदुक्षाय नमः।
विश्वेभ्यस्त्वा देवेभ्य एष ते योनिर्विश्वेभ्यस्त्वा देवेभ्यः॥
हे सोम! आपको विधिवत् तैयार किया जाता है। आप सुख के आश्रय स्थल हैं, श्रेष्ठ कल्याण की खान हैं, अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कर्त्तव्य का पालन करने में समर्थ हैं। ऐसे आपको हम नमस्कार करते हैं। सेचन में समर्थ तथा जगत् को उत्पन्न करनेवाले प्रजापति के निमित्त यह अन्न समर्पित करते हैं। हम आपको विश्वेदेवा की प्रीति के निमित्त उपयाभ-पात्र में स्थित करते हैं।[यजुर्वेद 8.8]
Hey Som! You have been prepared methodically following all procedures. You are the best asylum and well wisher. We are capable of discharging very important duties. We salute you for this. We offer this food grain to Praja Pati who is capable of evolving the universe. We place-store you in the Upyam pot for the sake of Vishw Dev.(15.04.2025)
उपयामगृहीतोऽसि बृहस्पतिसुतस्य देव सोम त इन्दोरिन्द्रियावतः। पत्नीवतो ग्रहाँ2 ऋध्यासम्। अहं परस्तादहमवस्ताद्यदन्तरिक्षं तदु मे पिताऽभूत्। अहꣳ सूर्यमुभयतो ददर्शाहं देवानां परमं गुहा यत्॥
हे दिव्यगुण-सम्पन्न सोम! आप उपयाम पात्र में ग्रहण किये गये हैं, अतः ब्रह्मनिष्ठ यजमानों के द्वारा अभिषुत हुए आपको तथा मधुरता प्रधान शक्ति को, ग्रहपात्रों को हम भार्या सहित समृद्ध करते हैं। हम परमात्मारूप होकर ऊपर स्वर्गलोकादि में तथा नीचे भूलोकादि में विस्तार पायें। जो मध्य में स्थित अन्तरिक्ष लोक वह हम शरीरधारियों का पितृवत् पालक है। हम परमरूप होकर, ऊपर-नीचे स्थित होकर सूर्यदेव के दर्शन करने वाले हों तथा जो हृदय रूपी गुफा अति गोप्य है अथवा वेदज्ञाताओं के हृदय स्थल में जो परम तत्त्व-ज्ञान है, उसको भी हम देख पाने में समर्थ हों।[यजुर्वेद 8.9]
Hey Som having divine characters! You have been placed in the Upyam vessel. We enrich the you present in the vessels, possessing sweetness & strength along with your wife, extracted & sanctified by the Brahm Nishth Brahmans (enlightened). Let us have the form of the God and attain upper abodes like heavens and lower abodes like earth. The abode in between these two; nurse us like a father. We should have the ultimate form and see Sury Dev while present up or down. We should be capable of assessing extremely secret knowledge Tattv Gyan, present in the hearts-mind, innerself of the demigods.
अग्ना3 इ पत्नी वन्त्सजूर्देवेन त्वष्ट्रा सोमं पिब स्वाहा।
प्रजापतिर्वृषाऽसि रेतोधा रेतो मयि धेहि प्रजापतेस्ते वृष्णो रेतोधसो रेतोधामशीय॥
हे पत्नी युक्त अग्नि देव! आप त्वष्टा देव के साथ प्रेमपूर्वक सोमरस का पान करे। हम ये सोमरस की हवियाँ आपको अर्पित करते हैं। हे उद्गाता! आप तेज युक्त वीर्य को धारण करने वाले तथा पुत्र-पौत्रादि के पालन कर्ता हैं, इसलिए हमारे भीतर भी वीर्य स्थापित करें। इस प्रकार के गुणों से सम्पन्न हम आपके सान्निध्य से बलिष्ठ, अत्यन्त वीर्यवान् योग्य संतानों से सम्पन्न हों।[यजुर्वेद 8.10]
उद्गाता :: वह जो साम वेद के मंत्रो को खूब जोर से गाता हो; one who sings Mantrs of Sam Ved in loud voice.
Hey Agni Dev accompanied with your wife! Drink Somras along with Twasta Dev. We make offerings of Somras to you. Hey Udgata! You possess aura along with energy, nourish our sons and grand sons. Grant us energy and radiance as well. We should have strong, energetic progeny possessing your characters.
उपयामगृहीतोऽसि हरिरसि हारियोजनो हरिभ्यां त्वा। हर्योर्द्धनः स्थ सहसोमा इन्द्राय॥
हे सोम! आप उपयाम-पात्र में ग्रहण किये गये हैं। आप हरितवर्ण की रसरूप हैं। ऋग्वेद तथा सामवेद की प्रीति के निमित्त हम आपको ग्रहण करते हैं। आपको इन्द्र देवता के रथ के दोनों हरित अश्वों के निमित्त योजित करते हैं। हे सोम से सम्पन्न धान्य! आप इन्द्र देवता के दोनों हरितवर्णी अश्वों के निमित्त ग्रहणीय हैं।[यजुर्वेद 8.11]
Hey Som! You have been collected in the Upyam vessel. You are in the form of greenish sap. We receive you due to our affection for Rig Ved & Sam Ved. We deploy you for the two horses of Indr Dev's charoite. Hey food grain enriched with Som! You are acceptable for both greenish horses of Indr Dev.
यस्ते अश्वसनिर्भक्षो यो गोसनिस्तस्य त इष्टयजुष स्तुतस्तोमस्य शस्तोक्थस्योपहूतो भक्षयामि॥
हे सोमसिक्त उत्कृष्ट खाद्य! यजुर्वेद के मन्त्रों से जिसकी इच्छा की गयी है, ऋक् मन्त्रों द्वारा स्तवनीय एवं साम के स्तोत्रगान द्वारा वर्द्धित होने वाले आपका सेवन घोड़ों तथा गौओं को भी प्रेरणा प्रदान करने में सक्षम है। आपके भक्षण से उपलब्ध होने वाले इष्ट फल की कामना से युक्त हम आपका सम्मान पूर्वक भक्षण करते हैं।[यजुर्वेद 8.12]
Hey excellent eatable treated with Som! You are desired with the Mantrs of Yajur Ved, worshiped with the Mantrs of Rig Ved and grown up with the Strotrs of Som, your consumption is useful-inspiring for the horses and cows. We eat you respectfully with your ability of fulfilling desires.
देवकृतस्यैनसोऽवयजनमसि मनुष्यकृतस्यैनसोऽवयजनमसि पितृकृतस्यैनसोऽवयजनमस्यात्मकृतस्यैनसोऽवयजनमस्येनसएन सोऽवयजनमसि। यच्चाहमेनो विद्वाँश्चकार यच्चाविद्वाँस्तस्य सर्वस्यैनसोऽवयजनमसि॥
यज्ञ शाकल्य को सम्बोधित करते हुए कहते हैं, हे यूप खण्ड! आप देवताओं के प्रति हुए पाप कर्मों का निवारण करने वाले हैं, यज्ञादि कर्मों की उपेक्षा के कारण हमसे जो अपराध हुआ है, उसको आप दूर करने वाले हैं। आप मनुष्यों के लिए ईर्ष्या, विद्वेष, निन्दादि स्वभावगत किये हुए पापों को निराकृत करने वाले हैं। पितरगणों के प्रति जो हमने पाप किये हैं, आप उन पापों को भी दूर करने वाले हैं अर्थात् श्राद्ध-तर्पण इत्यादि कर्मों से रहित रहने जैसे हमने जो पाप कर्म किये हैं। उनका अपशमन करने वाले हैं। आत्मा के प्रति आत्मघात जैसे पापों से हमें मुक्ति प्रदान करनेवाले हैं, उन पापों को आप नष्ट करनेवाले हैं। आप प्रथम अपराध के कारण जन्म लेने वाले पापों को तथा दूसरे अपराध के कारण जन्म लेने वाले पापों को भी दूर करने वाले हैं। जो हमने जान-समझकर अपराध कर्म किये हैं तथा जो हमने नासमझी वश अपराध कर्म किये हैं, उन सम्पूर्ण पापों को आप दूर करने में समर्थ हैं, अतएव हमारे समस्त पापों को नष्ट करें।[यजुर्वेद 8.13]
शाकल्य :: जौ, तिल आदि के दानों का मिश्रण जिससे हवन किया जाता है; a mixture of sesame, barley etc grains, used in the Hawan.
Address the Yagy Shakaly and say, hey Yup Khand! You are capable of neutralizing our sins towards the demigods, remove our offence-guilt for avoiding the Yagy Karm. You are capable of removing the offences towards the humans in the form of envy, reproach. Remove our sins-guilt committed towards the Mans-Pitr by ignoring Shraddh Karm-failure to make oblations. You eliminate the sins by virtue of first as well as second sins. Eliminate our all sins committed unknowing or knowingly due to lack of imprudence-foolishness.
सं वर्चसा पयसा सं तनूभिरगन्महि मनसा सꣳ शिवेन।
त्वष्टा सुदत्रो वि दधातु रायोऽनुमार्ष्टु तन्वो यद्विलिष्टम्॥
यजमान जल पूर्ण घटों का स्पर्श करते हुए बोलें, हम सभी ब्रह्मतेज से युक्त, दुग्धादि रसों ने परिपूर्ण, उत्कृष्ट शरीर तथा शिव संकल्पकारी मन से सदैव सम्पन्न बने रहें। उत्तम दान प्रदान करने वाले त्वष्टा देव, हमें धन-वैभव से परिपूर्ण करें एवं हमारे शरीर में जो कमी है, उसका भी निवारण करें।[यजुर्वेद 8.14]
The Yajman should touch the pitchers full of water and say, "We should always have Brahm Tej, sufficient fluids like milk, best body and innerself with the Shiv Sankalp-determination. Twasta Dev who make best donations should grant us wealth & grandeur, eliminating the weaknesses in our body.
समिन्द्र णो मनसा नेषि गोभिः सꣳ सूरिभिर्मघवन्त्सꣳ स्वस्त्या।
सं ब्रह्मणा देवकृतं यदस्ति सं देवानाꣳ समतौ यज्ञियानाꣳ स्वाहा॥
हे वैभवशाली देवेन्द्र! आप हमें उत्तम चित्त, गौ आदि पशुओं तथा विद्वज्जनों एवं उत्तम कल्याणकारी भावनाओं से पूर्ण करें। जिन उत्तम कर्मों का सम्पादन ज्ञान से प्रेरित दिव्य मानवों द्वारा होता है, उनसे हमें संयुक्त करें। जिस सत्कर्मों के करने से हमें देवों की कृपा प्राप्त होती है, वे यज्ञरूप उत्तम कर्म, उत्तम मेधा सहित आपके लिए अर्पित हों। यह आहुति आपके लिये अर्पित है।[यजुर्वेद 8.15]
Hey Devendr possessing opulence! Fill our innerself, consciousness with the excellent ideas-sentiments, feeling towards cows, animals. Affiliate us with the divine virtues associated with divine humans. The excellent-virtuous endeavours in the form of Yagy Karm, which lead to blessings from the demigods should be offered to you by us. This oblation is for you.
सं वर्चसा पयसा सं तनूभिरगन्महि मनसा सꣳ शिवेन।
त्वष्टा सुदत्रो वि दधातु रायोऽनुमार्ष्टु तन्वो यद्विलिष्टम्॥
हम सभी लोग ब्रह्म तेज से सम्पन्न, दुग्धादि रसों से परिपूर्ण, श्रेष्ठ शरीर तथा शिव संकल्पकारी मन से सदा युक्त रहें। श्रेष्ठ दान प्रदाता त्वष्टा देव, हमें ऐश्वर्य प्रदान करें एवं हमारे शरीर में जो कमी है, उसे भी दूर करें।[यजुर्वेद 8.16]
All of us should have Brahm Tej, fluids like milk, best body and Shiv Sankalp-determination. Best donor Twasta should grant us grandeur and remove the weakness in our body.(16.04.2025)
धाता रातिः सवितेदं जुषन्तां प्रजापतिर्निधिपा देवो अग्निः।
त्वष्टा विष्णुः प्रजया सꣳरराणा यजमानाय द्रविणं दधात स्वाहा॥
दानवीर धाता (विधाता), सभी के उत्पत्ति कर्ता सविता देव, प्रजा के पालन कर्ता प्रजापति, प्रकाशमान् अग्नि देव, त्वष्टा देव तथा सर्व-व्यापक विष्णुदेव; ये समस्त देवतागण हमारी हवियों को ग्रहण करें। ये सम्पूर्ण देवता याजक की योग्य संतानों से हर्षित होकर, उन्हें पर्याप्त मात्रा में धन-साधनादि प्रदान करें। यह आहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 8.17]
Let donor Dhata-Vidhata, Savita Dev who evolved all, nurturer of the subjects Praja Pati, illuminated Agni Dev, Twasta Dev and all pervading Bhagwan Shri Hari Vishnu accept our oblations-sacrifices. All these demigods-deities should be pleased with the able progeny of the Yajak and grant them sufficient wealth, means etc. We have completed the sacrifice.
सुगा वो देवाः सदना अकर्म य आजग्मेदꣳ सवनं जुषाणाः।
भरमाणा वहमाना हवीꣳष्यस्मे धत्त वसवो वसूनि स्वाहा॥
हे देवगणों! आप यज्ञ का सेवन करने के निमित्त इस स्थान पर आगमन किये हैं, अतएव ये स्थान आपके सुख प्राप्त करने योग्य बना दिये गये हैं। हे सभी को शरण प्रदान करने वाले देवों! आप हमारे द्वारा प्रदत्त हविष्यान्नों का उपभोग करते हुए तथा उन्हें अन्य देवों तक पहुँचाते हुए हमें विपुल मात्रा में धन, वैभव प्रदान करें। ये हवियाँ आपके निमित्त निवेदित की गयी हैं।[यजुर्वेद 8.18]
Hey demigods! These places-cushions of the Yagy have been made comfortable for you. Hey demigods granting asylum to all! Grant us lots of wealth while enjoying the Havishyann-offerings and carrying them to other deities. These offerings have been made to you.
याँ2 आवह उशतो देव देवाँस्तान् प्रेरय स्वे अग्ने सधस्थे।
जक्षिवाꣳ सः पपिवाꣳ सश्च विश्वेऽसुं घर्मꣳ स्वरातिष्ठतानु स्वाहा॥
हे प्रकाशमान अग्ने! हव्य पदार्थों की अभिलाषा करने वाले जिन देवगणों को आपने आवाहित किया है, आप उन समस्त देवगणों को उनके उचित स्थान की ओर प्रेषित करें। हे देवताओं! आहुतियों को स्वीकार करते हुए तथा सोमरस का सेवन करके आप इस यज्ञ के सम्पादन होने के पश्चात् प्राण रक्षक वायु मण्डल अथवा सूर्य मण्डल में निवास करें। ये हवियाँ आपके निमित्त निवेदित हैं।[यजुर्वेद 8.19]
Hey illuminated Agni Dev! Guide the demigods desirous of offerings in the Yagy invited by you, to their suitable cushions. Hey demigods! Having consumed the offerings and drinking Somras, stay either in the air zones or Sury Mandal after the accomplishment of Yagy. These offerings are meant for you.
Sky is composed of 5 layers of air :- troposphere, stratosphere, mesosphere, thermosphere, exosphere.
वयꣳ हि त्वा प्रयति यज्ञे अस्मिन्नग्ने होतारमवृणीमहीह।
ऋधगया ऋधगुताशमिष्ठाः प्रजानन् यज्ञमुपयाहि विद्वान्त्स्वाहा॥
हे अग्निदेव! जिस कारण से आपको इस स्थान पर जिस यज्ञ के लिए हमने आवाहित किया है तथा धारण किया है, उस यज्ञ को आपने प्रवृद्ध करते हुए विधि पूर्वक सम्पन्न किया। हे ज्ञान से युक्त अग्नि देव! आप यज्ञ सम्पन्न हो गया, ऐसा जानकर अपने स्थान पर पुनः गमन करें तथा हमारे द्वारा प्रदान की गयी हवियों को भली-भाँति ग्रहण करें। यह आपके लिये आहुति है।[यजुर्वेद 8.20]
Hey Agni Dev! You accomplished and promoted the Yagy methodically following procedures as we invoked you. Hey enlightened Agni Dev! The Yagy has been accomplished, so please move to your abode, accepting the oblations & sacrifice made by us. This sacrifice is meant for you.
देवा गातुविदो गातुं वित्त्वा गातुमित। मनसस्पत इमं देव यज्ञꣳ स्वाहा वाते धाः॥
हे देवता गण! आप यज्ञ-सम्बन्धी कार्यों को जानने वाले हैं। आप हमारे इस यज्ञ से तृप्त होकर अपने-अपने स्थान के लिये गमन करें। हे मन के स्वामी देव! इस यज्ञ को उत्तम ओषधियों से युक्त करें एवं वायु को शोधित करें। अतः यह हवि हम आपके निमित्त अर्पित करते हैं।[यजुर्वेद 8.21]
Hey demigods-deities! You are well versed with the Yagy related procedures. Being satisfied with our Yagy, move to your places-abodes. Hey lord of innerself, Chandr Dev! Treat this Yagy with excellent herbs and purify the air. This offering is for you.
यज्ञ यज्ञं गच्छ यज्ञपतिं गच्छ स्वां योनिं गच्छ स्वाहा।
एष ते यज्ञो यज्ञपते सहसूक्तवाकः सर्ववीरस्तं जुषस्व स्वाहा॥
हे यज्ञ देव! आप यज्ञपति विष्णु के पास जायें। आप अपनी उत्पत्ति के मूल वायु को प्राप्त हों। यह आहुति आपके लिये है, इसे भली प्रकार ग्रहण करें। हे याजक! आपका यह यज्ञ, उत्तम श्रौत-यज्ञों तथा विविध पराक्रमी पुरुषों से परिपूर्ण है। आप इस यज्ञ को श्रेष्ठ रीति से आहुति प्रदान करके पूर्ण करें।[यजुर्वेद 8.22]
Hey Yagy Dev! Please go to Yagy Pati Bhagwan Shri Hari Vishnu. Attain your place of origin-evolution air & accept this oblation meant for you, properly. Hey Yajak! Your Yagy is supported by excellent Shrout (verbal)-Yagy and invincible people. Accomplish the Yagy by making use of excellent procedures and sacrifices.
माहिर्भूर्मा पृदाकुः। उरुꣳहि राजा वरुणश्चकार सूर्याय पन्थामन्वेतवा उ। अपदे पादा प्रतिधातवेऽकरुतापवक्ता हृदयाविधश्चित्। नमो वरुणायाभिष्ठितो वरुणस्य पाशः॥
हे मेखला रज्जु! आप जल में पतित होकर सर्प के आकृति की मत होना। हे कृष्ण विषाण! आप अजगर रूप मत ग्रहण करना। वरुण देव जो सबके द्वारा वरणीय हैं या जो सबका वरण कर लेते हैं, ऐसे विधाता ने सूर्य के जाने के लिए विस्तीर्ण मार्ग को निश्चित किया है। वे ऐसे अन्तरिक्ष स्थान पर भी गमन करने के निमित्त पथ का निर्माण कर देते हैं, जिस स्थान पर चरण भी टिक नहीं पाते हैं तथा वे हृदय के कष्ट को दूर करने वाले हैं। दुष्टों का संहार करने वाले पाश से युक्त वरुण देवता के निमित्त हम नमन करते हैं।[यजुर्वेद 8.23]
विषाण :: कूट नामक औषधि, हाथी दाँत, पशु का सींग; herb named Koot, tooth of elephant, horn of animal.
Hey cord of the belt! On falling in water do not occupy the shape of snake. Hey black horn do not acquire the shape of python. Varun Dev is accepted by all. He too accepts everyone. Varun Dev as Vidhata has devised the elliptical route-path for Sury Dev, where one can not put his foot. He remove the heart trouble. We bow before Varun Dev, who eliminate the wicked-vicious using his Varun Pash.
अग्नेरनीकमप आ विवेशापां न पात् प्रतिरक्षन्नसुर्यम्।
दमेदमे समिधं यक्ष्यग्ने प्रति ते जिह्वा घृतमुच्चरण्यत् स्वाहा॥
हे अग्ने! आपकी जो जल को नीचे की ओर न गिरने देने वाली सामर्थ्य है, उस सामर्थ्य (क्षमता) को जल में व्याप्त करें। हरेक यज्ञशाला को विघ्न उत्पन्न करने वाले राक्षसों से रक्षित करते हुए समिधाओं के साधन को घृत से सिंचित करें। हे अग्नि देव! आपकी ज्वाला रूपी जिह्वा घृत धारण करने के निमित्त उद्यत हो, यह आहुति श्रेष्ठ रीति से स्वीकार करें।[यजुर्वेद 8.24]
Hey Agni Dev! Comprehend-prevalent your power-ability not to allow flow of water in the down ward direction, in water. Soak the Samidha-wood used in the Yagy with Ghee protecting the Yagy Shala from the disturbing demons. Hey Agni Dev! Your tongue in the form of flame should be ready to accept Ghee. Accept this sacrifice with best means.
समुद्रे ते हृदयमप्स्वन्तः सं त्वा विशन्त्वोषधीरुतापः।
यज्ञस्य त्वा यज्ञपते सूक्तोक्तौ नमोवाके विधेम यत् स्वाहा॥
हे सोम! आपका जो हृदय है, वह सागर के गहरे जल में विद्यमान है, इसलिए हम आपको उसी जल में प्रतिष्ठित करते हैं। ओषधियाँ तथा जल आप में प्रवेश करें। हे यज्ञ के पालनकर्ता सोम! हम आपको इस उत्तम यज्ञ में स्तुतियों के साथ नमन करते हुए स्थापित करते हैं तथा यह हवि अर्पित करते हैं। आपके लिये यह आहुति है।[यजुर्वेद 8.25]
Hey Som! Your heart is present at the bottom of deep ocean, hence we establish you there. Let medicines and water enter you. Hey governor of the Yagy Som! We establish you with prayers-Stutis in this best Yagy, bowing before you and making offerings. This sacrifice is meant for you.(17.04.2025)
देवीराप एष वो गर्भस्तꣳ सुप्रीतꣳ सुभृतं बिभृत।
देव सोमैष ते लोकस्तस्मिञ्छञ्च वक्ष्व परि च वक्ष्व॥
हे देवी को अर्पित किये जाने वाले दीप्तमान जल! यह सोम कुम्भ तुम्हारा गर्भ रूप है। उस प्रिय और सम्यक् रूप से तैयार सोम को तुम धारण करो। हे जल लक्षण वाले दीप्यमान सोम! यही तुम्हारा लोक है, उसमें रहकर तुम हमारे लिये सुख-शान्ति लाओ और साथ ही हमारी सारी विपत्तियों को दूर बहा ले जाओ।[यजुर्वेद 8.26]
Hey radiant water, to be offered to the Goddess! This Som Kumbh-pitcher is like the womb for you. Store the lovely-tasty and properly extracted Somras. Hey radiant Som having the characterises of water! This is your abode-place to stay. Stay in it, bring pleasure and peace for us repelling all of our troubles-tensions.
अवभृथ निचुम्पुण निचेरुरसि निचुम्पुणः। अव देवैर्देव कृतमेनोऽयासिषमव मत्यैर्मर्त्यकृतं पुरुराव्णो देव रिषस्पाहि। देवानाꣳ समिदसि॥
यजमान इस मन्त्र को बोलकर प्रवहमान जल में स्नान करे, हे अवभृथ नामक स्नान यज्ञ! आप तीव्र गामी हैं, लगातार प्रवाहित होने वाले हैं, लेकिन फिर भी आप अब अत्यन्त मन्दगति से गमन करें। हवि के स्वामी देवताओं के प्रति हमसे जो पाप हुए हैं, उन सभी पापों को हमने जल में प्रवाहित कर दिया है। हमारे सहायभूत ऋत्विग्गणों ने यज्ञ दर्शन करने के निमित्त आये हुए मनुष्यों का अपमान करने जैसे पाप किये हैं, उन्हें भी हमने जल में प्रवाहित कर दिया है। सम्पूर्ण दुःखदायी रिपुओं से आप हमें सुरक्षित रखें। आपके अवलम्बन में हम सम्पूर्ण पापों से मुक्ति प्राप्त करें। देवताओं से सम्बन्ध रखने वाली हमारी भावना जाग्रत् हो (यजमान जल से बाहर निकल कर शुद्ध वस्त्र धारण करे और आहवनीय अग्नि में समिधा रखकर बोले) हे समिधे! तुम देवों की समिधा हो।[यजुर्वेद 8.27]
Having recited this Mantr Yajak should bathe in the flowing river water. Hey flowing water to be bathed after the Yagy! You are fast & continuously flowing, still now you should reduce your speed. The sins committed by us towards the lord of oblations, have been thrown-immersed by us in water. Protect us from the troublesome enemies. Let us attain freedom from all sins under your patronage. Let our consciousness pertaining to the demigods-deities awake. Yajman should come out of water and wear clean washed cloth and place Samidha-wood in fire and say, "Hey Samidha! You are offered to the deities".
एजतु दशमास्यो गर्भो जरायुणा सह। यथाऽयं वायुरेजति यथा समुद्र एजति। एवायं दशमास्यो अस्त्रज्जरायुणा सह॥
दस महीने का पूरा हुआ गर्भ गर्भ वेष्टन जरायु के साथ वैसे ही चलायमान हो, जैसे यह पवन कम्पित होती है तथा समुद्र अपनी लहरों से कम्पित होता है। यह दस महीने को पूर्ण कर चुका गर्भ जरायु के साथ उदर से बाहर आगमन करे।[यजुर्वेद 8.28]
जरायु :: वह झिल्ली जिसमें लिपटा हुआ बच्चा माँ के गर्भ से बाहर आता है, गर्भाशय; membrane covering foetus.
As soon as ten months old foetus begin movement, it start moving like the flowing air or the waves in the ocean. Let it come out of the womb with membrane.
यस्यै ते यज्ञियो गर्भो यस्यै योनिर्हिरण्ययी अंगान्यहुता यस्य तं मात्रा समजीगमꣳ स्वाहा॥
हे श्रेष्ठ नारी, प्रकृति! आपका गर्भ यज्ञ सम्बन्धी है। आपका गर्भ स्थान सुवर्ण सदृश शुद्ध है। जिसके सभी अंग अकुटिल, अखण्डित तथा सरल हैं, उस पुरुष को मन्त्र द्वारा आपसे संयुक्त करते हैं। प्रकृति अपनी प्रजनन प्रक्रिया भली-भाँति सम्पन्न करे, इसके निमित्त हम यह हवि अर्पित करते हैं।[यजुर्वेद 8.29]
Hey best woman nature! Your foetus pertain to the Yagy. Your womb is pure like gold. It connects you to the man who's all organs are perfect. Let the nature accomplish its process of fertilisation. We make offerings for this purpose.
पुरुदस्मो विषुरूप इन्दुरन्तर्महिमानमानञ्ज धीरः। एकपदीं द्विपदीं त्रिपदीं चतुष्पदीमष्टापदीं भुवनानु प्रथन्ताꣳ स्वाहा॥
बहुत अधिक दान से युक्त, बहुत सारे रूप वाले, उदर में स्थित, बुद्धि शाली व धीरता युक्त मेधावी गर्भ अपनी महिमा को प्रकट करे। गर्भ को अपने वशीभूत एवं नियंत्रण में रखने वाली एक पद वाली (ब्रह्म वाचक), दो पद वाली (मनुष्य रूप तथा प्रकृति), तीन पद वाली (त्रिआयामी, त्रिगुणात्मक), चार पद वाली (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष-चार पुरुषार्थ युक्त), आठ पद वाली (चार वर्ण तथा चार आश्रम युक्त) शक्ति को भुवनों में (यज्ञ के द्वारा) विस्तार प्राप्त हो, इसके निमित्त यह हवि अर्पित है।[यजुर्वेद 8.30]
Let the foetus present in the womb show its glory pertaining to donation, various forms, intelligence having patience. This oblation is for single step, two step, three step, four steps, eight stepped powers pertaining to the extension of abodes through Yagy.
मरुतो यस्य हि क्षये पाथा दिवो विमहसः। स सुगोपातमो जनः॥
द्युलोक सम्बन्धी विशिष्ट तेज से युक्त मरुत् देवता! आपने जिस यजमान के यज्ञ-स्थान में सोमपान किया, निःसंदेह वे याजक दीर्घकाल तक आपके द्वारा रक्षित हैं।[यजुर्वेद 8.31]
Hey Marud Gan associated with the specific aura of the heavens! The Yajak is protected for a long term at who's Yagy place you drunk Somras.
मही द्यौः पृथिवी च न इमं यज्ञं मिमिक्षताम्। पिपृतां नो भरीमभिः॥
महान् द्युलोक तथा पृथ्वी लोक हमारे इस यज्ञ को अपने करुणाजल से सींचें। वे हमें जीवनयापन के योग्य धनादि से परिपूर्ण करे।[यजुर्वेद 8.33]
Great heavens and earth should bless our Yagy with their mercy. They should grant us enough wealth for sustaining life.
आ तिष्ठ वृत्रहन्नथं युक्ता ते ब्रह्मणा हरी। अर्वाचीनꣳ सु ते मनो ग्रावा कृणोतु वग्गुना। उपयामगृहीतोऽसीन्द्राय त्वा षोडशिन एष ते योनिरिन्द्राय त्वा षोडशिने॥
हे वृत्रघाती इन्द्र! आपके हरित वर्ण के दोनों अश्व, तीन वेद लक्षण वाले रथ में नियोजित हुए हैं, इसलिए आप उस रथ पर आरोहण करें। आपके अपने मन को सोमाभिषव की वाणी द्वारा यज्ञाभिमुख करें। हे सोम! आप उपयाम पात्र में ग्रहण किये गये हैं, हम आपको सोलह स्त्रोत्र वाले षोडषियाग में आहूत इन्द्र देव के निमित्त ग्रहण करते हैं।[यजुर्वेद 8.33]
Hey slayer of Vratra Sur Indr Dev! Ride the charoite having three qualities-characterises in which greenish horses duo, have been deployed. Direct your mind to the Yagy where Somras has to be offered to you. Hey Som! You have been collected in the Upyam vessel. We accept-receive you for the Yagy having sixteen Strotr-dimensions for worshiping Indr Dev.
युक्ष्वा हि केशिना हरी वृषणा कक्ष्यप्रा। अथा न इन्द्र सोमपा गिरामुपश्रुतिं चर। उपयामगृहीतोऽसीन्द्राय त्वा षोडशिन एष ते योनिरिन्द्राय त्वा षोडशिने॥
हे सोमरस ग्रहण करने वाले इन्द्र देव! आप अत्यन्त लम्बे बालों वाले, बलशाली, गन्तव्य तक पहुँचाने वाले दोनों अश्वों को रथ में योजित करें। तदनन्तर सोमरस के पान करने से संतुष्ट होकर हमारे द्वारा की गयी स्तुतियों को सुनें। हे सोम! आप उपयाम-पात्र में गृहणीय हैं, अतएव सोलह कलाओं से युक्त महा ऐश्वर्यवान् इन्द्रदेव के निमित्त हम आपकी आराधना करते हैं। हे ग्रह (पात्र)! यह आपका मूल स्थान है, अतएव हम आपको इन्द्र देवता के प्रसन्नता हेतु धारण करते हैं।[यजुर्वेद 8.34]
Hey Somras accepting Indr Dev! Deploy your greenish mighty horses having long hair, to reach your destination. Thereafter, drink Somras and respond to our prayers on being satisfied-satiated. Hey Som! You are accepted in the Upyam vessel. Hence, we worship you for the sake of Indr Dev possessing sixteen divine qualities. Hey pot! This is your original place. Hence, we accept for the pleasure of Indr Dev.
इन्द्रमिद्धरी वहतोऽ प्रतिधृष्टशवसम्। ऋषीणां च स्तुतीरुप यज्ञं च मानुषाणाम्। उपयामगृहीतोऽसीन्द्राय त्वा षोडशिन एष ते योनिरिन्द्राय त्वा षोडशिने॥
हे देवेन्द्र! आप सोमरस का पान करने वाले एवं शत्रु-संहारक हैं। गन्तव्य तक ले जाने वाले दोनों घोड़े ही आपको ऋत्विजों के श्रेष्ठ स्तवनों के समीप ले जाते हैं तथा मनुष्य याजकों के यज्ञ स्थल में ले जाते हैं। हे सोम! आप उपयाम-पात्र में ग्रहणीय है; अतः सोलह कलाओं से परिपूर्ण परम वैभवशाली इन्द्र देव के लिए आपकी प्रार्थना करते हैं। हे ग्रह (पात्र)। यह आपका मूल स्थान है, सोलह कलाओं से युक्त इन्द्रदेव की प्रसन्नता के निमित्त हम आपको ग्रहण करते हैं।[यजुर्वेद 8.35]
Hey Devendr! You a drinker of Somras and destroyer of the enemy. Your horses carry you to the excellent rituals of the Ritviz and Yagy Sthal-site of the Human Yajak. Hey Som! You are acceptable in the Upyam pot. Hence, we worship you for the sake of majestic Indr Dev possessing grandeur and sixteen divine qualities.(18.04.2025)
यस्मान्न जातः परो अन्यो अस्ति य आविवेश भुवनानि विश्वा।
प्रजापतिः प्रजया सꣳरराणस्त्रीणि ज्योतीषि सचते स षोडशी॥
जिन परमात्मा के सदृश दूसरा कोई श्रेष्ठ उत्पन्न नहीं हुआ है, जो सम्पूर्ण विश्व लोकों में अन्तर्यामी रूप से संव्याप्त हैं, वे प्रजाओं के पालनकर्ता, सोलह कलाओं से अपनी प्रजा में रमण करते हैं। वे तीनों ज्योतियों (सूर्य, विद्युत्, अग्नि) को अपने अन्दर निहित किये हुए हैं।[यजुर्वेद 8.36]
None better than Almighty has evolved-appeared. HE is omniscient & pervades the entire universe including the abodes in it. HE nurture-nourish the subjects and intermix with the populace with HIS 16 divine characterises. HE has the three modes of light embedded in HIM.
इन्द्रश्च सम्राड् वरुणश्च राजा तौ ते भक्षं चक्रतुरग्र एतम्।
तयोरहमनु भक्षं भक्षयामि वाग्देवी जुषाणा सोमस्य तृप्यतु सह प्राणेन स्वाहा॥
हे ग्रह (पात्र)! सम्यक् प्रकार से दीप्तिमान् देवराज इन्द्र तथा राजा वरुण, ये दोनों देवता सबसे पहले आपके इस सोमरूपी भोजन का सेवन करते हैं, इन्द्र तथा वरुण देव के भक्षण के पश्चात् हम सोम का सेवन करते हैं। मेरे द्वारा पान किये गये इस सोमरस से वाग्देवी सरस्वती तथा प्राण देव परितृप्त हों, इसलिए यह हवि अर्पित करते हैं।[यजुर्वेद 8.37]
Hey Grah-pot! Aurous Devraj Indr Dev and king Varun dev, eat Som as food properly. We eat Som followed by them. Let Vag Devi and Pran Dev satiate by my drinking of Somras. Hence, this sacrifice is made for them.
अग्ने पवस्व स्वपा अस्मे वर्चः सुवीर्यम्। दधद्रयिं मयि पोषम्। उपयामगृहीतोऽस्यग्नये त्वा वर्चस एष ते योनिरग्नये त्वा वर्चसे। अग्ने वर्चस्विन्वर्चस्वाँस्त्वं देवेष्वसि वर्चस्वानहं मनुष्येषु भूयासम्॥
हे अग्नि देव! आप सत्कर्म करने में निपुण हैं। आप हमें तेजस्, वीर्य तथा विपुल मात्रा में ऐश्वर्य प्रदान करें। हे सोम! आप उपयाम पात्र में ग्रहणीय हैं। कान्तिप्रद अग्नि देवता की प्रीति के निमित्त हम आपको ग्रहण करते हैं। आपका यह आश्रय स्थल है। हे तेजस्वी अग्नि देव! आप देवों के मध्य में अति दीप्तिमान् हैं। अतएव आपकी अनुकम्पा से मैं भी मनुष्यों में कान्ति युक्त एवं अति तेजस्वी हो जाऊँ।[यजुर्वेद 8.38]
Hey Agni Dev! You are an expert in virtuous deeds. Grant us radiance-energy, grandeur in ample quantity and strengthen our sperms. Hey Som! You are poured in Upyam vessel. We invoke-accept you for the affection of luminous Agni Dev. This is your place of asylum. Hey radiant Agni Dev! You are present, luminous between the demigods-deities. Hence, I wish to become aurous-radiant amongest the humans due to your mercy-blessings.
उत्तिष्ठन्नोजसा सह पीत्वी शिप्रे अवेपयः। सोममिन्द्र चमू सुतम्। उपयामगृहीतोऽसीन्द्राय त्वौजस एष ते योनिरिन्द्राय त्वौजसे। इन्द्रौजिष्ठस्त्वं देवेष्वस्योजिष्ठोऽहं मनुष्येषु भूयासम्॥
हे वैभवशाली इन्द्र देव! आप अपने वीर्य से उन्नति करते हुए अभिषुत किये हुए पात्र में स्थित सोमरस का सेवन करें एवं अपने हर्ष की अभिव्यक्ति अपने हनु तथा नाक को प्रकम्पित करके करें। हे सोम! आप उपयाम-पात्र में ग्रहणीय हैं। यही आपका आश्रय-स्थान है। सेवा में उपस्थित होकर हम यजमान इस कारण आपको ग्रहण करते हैं ताकि हमें ओजयुक्त वीर्य की प्राप्ति हो। हे देवेन्द्र! जिस प्रकार आप सम्पूर्ण देवताओं में अग्रणी हैं, उसी प्रकार आपकी कृपा से मैं भी मानवों में सर्वोत्तम शक्तिशाली बनूँ।[यजुर्वेद 8.39]
Hey majestic Indr Dev, having opulence! Progress by strengthening your sperms, drinking Somras from the vessel and move your chin and nose to show your happiness-pleasure. Hey Som! You have to be stored in the Upyam pot. This is your place of asylum. We-Yajman come to your service, accept you, so that we have radiant sperms. He Devendr! The way you lead the demigods, I wish to become mightiest amongest the humans.
अदृश्रमस्य केतवो वि रश्मयो जनाँ2 अनु। भ्राजन्तो अग्नयो यथा। उपयामगृहीतोऽसि सूर्याय त्वा भ्राजायैष ते योनिः सूर्याय त्वा भ्राजाय। सूर्य भ्राजिष्ठ भ्राजिष्ठस्त्वं देवेष्वसि भ्राजिष्ठोऽहं मनुष्येषु भूयासम्॥
जिस प्रकार सूर्य की किरणें सभी जगह अपने प्रकाश को व्याप्त करती हैं, उसी प्रकार विशिष्ट रूप से दिखलायी पड़ने वाले अग्नि देव सभी जगह प्रकाशित होते हैं। हे अति ग्राह्य (पात्र)! आप उपयाम-पात्र में गृहीत हों। हम आपको दीप्तिमान् सूर्य देव की प्रीति के लिए ग्रहण करते हैं। यह आपका निश्चित किया गया आश्रय स्थान है। हम प्रकाशमान् तेज युक्त सूर्य देव की तुष्टि के निमित्त आपको प्रतिष्ठित करते हैं। हे प्रदीप्त सूर्य देव! आप सभी देवताओं में अति दीप्तिमान् हैं, अतः आपकी कृपा से हम भी मनुष्यों में अतिशय दीप्तिमान् हों।[यजुर्वेद 8.40]
The way rays of Sun illuminate all places, similarly Agni Dev in his specific form illuminate all places. Hey vessel in high demand! You should be present with the Upyam pot. We accept you like the illuminated Sur Dev. This place has been fixed for you. We establish you for the gratification of Sury Dev. Hey radiant Sury Dev! You are the most radiant amongest all the demigods-deities. We too should become highly radiant amongest the humans.
उदु त्यं जातवेदसं देवं वहन्ति केतवः। दृशे विश्वाय सूर्यम्। उपयामगृहीतोऽसि सूर्याय त्वा भ्राजायैष ते योनिः सूर्याय त्वा भ्राजाय॥
ये ज्योतिर्मान किरणें समस्त प्राणियों के ज्ञाता एवं सब कुछ देखने वाले सूर्य देव को तथा सम्पूर्ण जगत् को दृष्टि प्रदान करने के निमित्त विशिष्ट रूप से दीप्तिमान् होती हैं। हे ग्रह! आप उपयाम-पात्र में ग्रहणीय हैं, हम आपको तेजस्वी सूर्य देव के निमित्त ग्रहण करते हैं। हे सोम पात्र! आपका यह आश्रय-स्थल है, ज्योतिर्मान् तेजस्वी सूर्य देव की प्रसन्नता के लिए आपको हम स्थापित करते हैं।[यजुर्वेद 8.41]
Hey Sury Dev aware of all living beings, granting sight to the whole universe! Your radiant rays are specifically illuminated. Hey Grah! You should be received in the Upyam pot. We accept you for the radiant Sury Dev. Hey Som pot! This is the place for storing you. We establish you for the happiness of radiant Sury Dev.
आ जिघ्र कलशं मह्या त्वा विशन्त्विन्दवः। पुनरूर्जा नि वर्तस्व सा नः सहस्रं धुक्ष्वोरुधारा पयस्वती पुनर्मा विशताद्रयिः॥
हे दक्षिणारूप महिमामयी रोहिणी गौ! आप इस द्रोण कलश को सूँधें, इसके सोमादि पोषणकारी तत्त्व आपके भीतर प्रवेश करें। उस ऊर्जा को फिर से हजारों पोषणकारी प्रवाहों द्वारा हमें प्रदान करें। हमें पयस्वती रोहिणी गौ! आपकी कृपा से मुझे गो, अश्व तथा धन-सम्पत्ति की बार-बार प्राप्ति हो।[यजुर्वेद 8.42]
Hey majestic Rohini Gau-cow, forming Dakshina! Smell this Dron Kalash. Let Som and other nourishing elements enter your body. Provide this energy along with thousands of nourishing fluids to us. Hey milk yielding Rohini cow! I should get cows, horses, wealth and property due to your grace.
इडे रन्ते हव्ये काम्ये चन्द्रे ज्योतेऽदिते सरस्वति महि विश्रुति।
एता ते अघ्न्ये नामानि देवेभ्यो मा सुकृतं ब्रूतात्॥
यजमान रोहिणी गौ के कान में बोले, जो सबकी स्तुति को प्राप्त करने वाली, जो सबकी दृष्टि में रमणीय, यज्ञ में सभी मनुष्य जिनको आवाहित करते हैं, जिनके दुग्ध से हवन करते हैं, देव-मनुष्य जिनकी कामना करते हैं, जिनको देखकर प्रसन्नता होती है, प्रकाशमान्, तेज प्रदान करनेवाली, पूर्ण अवयववाली, अदीन, दुग्धवती, महिमामयी, अनेक प्रकार की स्तुति वाली अहिंसनीय हे धेनु! आपके ये अतिशय गुण सम्पन्न नाम हैं। आप इन्हीं नामों से आवाहित की जाती हैं, हमारे इस सुन्दर यज्ञानुष्ठान के निमित्त देवताओं से कहें, जिससे वे हमारी याचनाओं को ध्यान पूर्वक सुनें तथा उसे स्वीकार करें।[यजुर्वेद 8.43]
Yajman should say in the ears of the Rohini cow! You are worshiped by all, looks beautiful to all humans, invoked in the Yagy, your milk is used in the Hawan, both humans and demigods wish to have you, you grant pleasure, luminosity, energy, have all components-elements, brave & milking. Hey cow! These adjectives are associated with your name. Recommend our Yagy to the demigods-deities so that they listen to us carefully and accept the invitation.(19.04.2025)
वि नइन्द्र मृधो जहि नीचा यच्छ पृतन्यतः। यो अस्माँ2 अभिदासत्यधरं गमया तमः। उपयामगृहीतोऽसीन्द्राय त्वा विमृधएष ते योनिरिन्द्राय त्वा विमृधे॥
हे देवेन्द्र! आप हमारे शत्रुओं पर विजय प्राप्त करें, विशेषकर युद्ध-स्थल में हमारे विद्रोहियों को पराजित करें। जो शत्रु हमें हानि पहुँचाना चाहते हैं, उन शत्रुओं को रसातल में पहुँचा दो। हे सोमरस! आप उपयाम-पात्र में गृहीत है। हम आपको उन देवराज इन्द्र के निमित्त ग्रहण करते हैं, जो शत्रुओं का संहार करने वाले हैं। यह आपका आश्रय-स्थान है, हम आपको उन इन्द्र देव को हर्षित करने हेतु ग्रहण करते हैं, जो संग्राम-क्षेत्र में विशेष प्रकार से अपने पराक्रम को प्रदर्शित करते हैं।[यजुर्वेद 8.44]
Hey Devendr! Defeat our enemies in the war and attain victory. The enemy who want to harm us should be sent to abyss. Hey Somras! You are stored in the Upyam vessel. We accept you for invincible-brave Devraj Indr who has to relinquish-destroy the enemies in the war-battle; to gladden him.
वाचस्पतिं विश्वकर्माणमूतये मनोजुवं वाजे अद्या हुवेम। स नो विश्वानि हवनानि जोषद्विश्वशम्भूरवसे साधुकर्मा। उपयामगृहीतोऽसीन्द्राय त्वा विश्वकर्मण एष ते योनिरिन्द्राय त्वा विश्वकर्मणे॥
जो महाव्रती वाचस्पति, मन के समान वेग वाले, सृष्टि के उत्पादक और पालक अथवा अधिपति हैं, ऐसे इन्द्र देव को इस यज्ञ के लिए हम आहूत करते हैं। शोभन कर्म करने वाले, संसार का कल्याण करने वाले वे उपासनीय देव हमारे द्वारा समर्पित किये गये हव्य पदार्थ को ग्रहण करें। हे सोमरस! आप उपयाम-पात्र में ग्रहण किये गये हैं। आपको हम इन्द्र देव की तृप्ति के निमित्त ग्रहण करते हैं। आपका यह स्थान है, हम आपको यहाँ सर्वकर्मा इन्द्र देव की प्रीति के निमित्त स्थित करते हैं।[यजुर्वेद 8.45]
वाचस्पति :: वाणी का स्वामी, बहुत बड़ा विद्वान्; highly qualified-learned, enlightened.
We worship Indr Dev who is a great scholar, dynamic like the speed of mind, lord of evolution and nurturer. Worshiped Dev who perform great deeds, devoted to the welfare of the universe, should accept the oblations. Hey Somras! You have been put in the vessel. We accept you for the satiation of Indr Dev. This place belongs to you. We establish-keep you here for the love of Indr Dev performer of all sorts of functions.
विश्वकर्मन् हविषा वर्धनेन त्रातारमिन्द्रम कृणोरवध्यम्। तस्मै विशः समनमन्त पूर्वीरयमुग्रो विहव्यो यथाऽसत्। उपयामगृहीतोऽसीन्द्राय त्वा विश्वकर्मण एष ते योनिरिन्द्राय त्वा विश्वकर्मणे॥
हे विश्व कर्मा देव! आप समस्त श्रेष्ठ कर्मों को सम्पन्न करने वाले हैं। आप वर्द्धित करने वाले हविष्यान्न रूप साधनों द्वारा याजक की सुरक्षा करने वाले हैं। जो उपासक ऋत्विग्गणों के ज्ञान द्वारा प्रेरित होते हैं, वे आपको नमस्कार करते हैं। आप सम्मानपूर्वक आहवनीय हैं, इस कारण आपको सभी नमस्कार करते हैं। हे सोम! आप उपयाम-पात्र में ग्रहणीय हैं। आपको विश्वकर्मा इन्द्र देव की तुष्टि के निमित्त ग्रहण करते हैं। यह आपका आश्रय-स्थल है, अतः हम आपको विश्वकर्मा इन्द्र देव की प्रीति के निमित्त समर्पित करते हैं।[यजुर्वेद 8.46]
Hey Vishw Karma! You perform all sorts of excellent deeds-jobs. You protect the Yajak with the growing food grains. We salute you. You deserve to be invoked honourably. Hey Som! you are placed in the vessel. We accept and offer you for the satiation of Vishw Karm Indr Dev.
उपयामगृहीतोऽस्यग्नये त्वा गायत्रच्छन्दसं गृह्णामीन्द्राय त्वा त्रिष्टुप्छन्दसं गृह्णामि विश्वेभ्यस्त्वा देवेभ्यो जगच्छन्दसं गृह्णाम्यनुष्टुप्तेऽभिगरः॥
सोमरस को अदाभ्य पात्र में ग्रहण करके बोले, हे सोमरस! आप उपयाम-पात्र में ग्रहण किये गये हैं। गायत्री छन्द के द्वारा वरणीय आपको हम अग्नि देव की प्रसन्नता के लिए ग्रहण करते हैं। हे सोमरस! आप उपयाम पात्र में ग्रहण किये गये हैं। आप त्रिष्टुप् छन्द से धारण करने योग्य हैं, हम आपको इन्द्र देव की प्रीति हेतु ग्रहण करते हैं। हे सोमरस! आप उपयाम-पात्र में ग्रहण किये गये हैं। जगती छन्द के द्वारा हम आपको सम्पूर्ण देवगणों के निमित्त ग्रहण करते हैं। हे अदाभ्य पात्र में विद्यमान सोम! अनुष्टुप् छन्द में बद्धवाणी से हम आपकी स्तुति करते हैं।[यजुर्वेद 8.47]
Hold Somras in the pot and say, hey Somras! Having being held in the pot we accept you for Agni Dev through the Gayatri Chhand, for Indr Dev through Trishtup Chhand and through Jagti Chhand for the demigods-deities. We pray-perform your Stuti as per narration-directives of Anushtup Chhand.
व्रेशीनां त्वा पत्मन्ना धूनोमि कुकूननानां त्वा पत्मन्ना धूनोमि। भन्दनानां त्वा पत्मन्ना धूनोमि मदिन्तमानां त्वा पत्मन्ना धूनोमि। मधुन्तमानां त्वा पत्मन्ना धूनोमि शुक्रं त्वा शुक्र आ धूनोम्यह्नो रूपे सूर्यस्य रश्मिषु॥
हे सोम! इधर-उधर धावमान मेघों के उदर में जो जल के समूह हैं, उन जलों के वर्षण के निमित्त हम आपको कम्पित करते हैं। ध्वनि करते हुए जगत् के मंगलकारी मेघों में सन्निहित जल की वृष्टि हेतु आपको कम्पायमान करते हैं। हमको अत्यन्त प्रसन्नता प्रदान करने वाले मेघों के उदर में जो जल है, उसकी वृष्टि हेतु आपको कम्पायमान करते हैं। अत्यन्त तृप्तिकारक, मेघों के भीतर जो जल है, उसके वर्षण के निमित्त आपको प्रकम्पित करते हैं। जो मेघ अमृतरूपी जल से सम्पन्न हैं, उसके वर्षण के लिए आपको कम्पित करते हैं। आप शक्तिशाली एवं पावन हैं, ऐसे आपको शुद्ध जल के लिए कम्पायमान करते हैं एवं आपको दिन के रूप में सूर्य देव की रश्मियों के लिए कम्पायमान करते हैं।[यजुर्वेद 8.48]
Hey Som! You are mighty and pure. We agitate you by making sound for showering water in the form elixir stored in the running clouds, for extreme pleasure including the rays of Sun during the day.
ककुभꣳ रूपं वृषभस्य रोचते बृहच्छुक्रः शुक्रस्य पुरोगाः सोमः सोमस्य पुरोगाः। यत्ते सोमादाभ्यं नाम जागृवि तस्मै त्वा गृह्णामि तस्मै ते सोम सोमाय स्वाहा॥
हे सोम! श्रेष्ठ, शक्ति-सम्पन्न, पवित्र, तेज से युक्त आपका महिमावान् स्वरूप सूर्य देव के सदृश देदीप्यमान होता है। महान् आदित्य सोम के अग्रगामी हैं। हे सोम! आप क्षति को प्राप्त न होने वाले, जीवन को धारण करने वाले एवं जागरण-शील हैं। इसके निमित्त हम आपको स्वीकार करते हैं। हे सोम! उत्तम कर्म में लिप्त हम आपको यह हवि अर्पित करते हैं।[यजुर्वेद 8.49]
Hey Som! You are excellent, majestic form has aura like the glorious Sury Dev. Great Adity march ahead of you. Hey Som! You are indestructible, support life and awakening. Hence, we accept you. We make this excellent sacrifice for you.
उशिक् त्वं देव सोमाग्नेः प्रियं पाथोऽपीहि वशी त्वं देव सोमेन्द्रस्य प्रियं पाथोऽपीह्यस्मत्सखा त्वं देव सोम विश्वेषां देवानां प्रियं पाथोऽपीहि॥
हे सोम! आप दिव्य गुणों से युक्त हैं। आप प्रज्वलित अग्नि के प्रिय भोजन हैं, अतः उन्हें भोजनरूप में प्राप्त हों। हे देव सोम! आप जितेन्द्रिय इन्द्र के प्रिय पेय पदार्थरूप हैं, अतः उन्हें पेयरूप में प्राप्त हों। हे देव सोम! आप हमारे सखारूप होकर समस्त देवगणों के प्रिय मार्ग का अनुकरण करें अर्थात् सभी को पोषण प्रदान करते हुए परितृप्त करें।[यजुर्वेद 8.50]
Hey Som! You possess divine characterises. Being favourite food of Agni Dev, you should be available to him as a food. You are dear to stoic Indr Dev as his favourite drink, so you should be available to him as a drink. Hey deity Som! You should become our friend and follow the favourite route of the demigods i.e., satisfy everyone by nourishing them.(20.04.2025)
इह रतिरिह रमध्वमिह धृतिरिह स्वधृतिः स्वाहा।
उपसृजन् धरुणं मात्रे धरुणो मातरं धयन्। रायस्पोषमस्मासु दीधरत् स्वाहा॥
हे गौओं! आपकी यजमानों के प्रति प्रीति रहे। इन यजमानों से तृप्त होकर प्रसन्नता पूर्वक निवास करें। तुम्हारे बछड़ों को भी इन यजमान से प्रीति हो। हम यह हवि आपको निवेदित करते हैं। सृष्टि के धारणकर्ता दिव्य अग्नि देव पृथ्वी पर स्थूल अग्नि को प्रकट करें एवं पृथ्वी पर स्थित जल को शुष्क करके वाष्प बना दें और वह वाष्प मेघों के साथ संयुक्त होकर जलवृष्टि के रूप में पुनः पृथ्वी को प्राप्त हो। हमें धन, पशु, पुत्रादि से परिपूर्ण ऐश्वर्य प्रदान करें एवं हमारे द्वारा प्रदान की गयी हवियों को भली-भाँति ग्रहण करें। अग्नि देव की लिये यह आहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 8.51]
Hey cows! Maintain love for the Yajman. Be satisfied with the Yajman and live happily. Your calf should have love for he Yajman. You are making this oblation for you. Let divine Agni Dev supporter of the living beings produce embodiment of Agni and evaporate the water over earth. That water should form clouds and return to earth as rains. Grant us grandeur consisting of wealth animals, sons etc. and accept over offerings properly. This sacrifice is for Agni Dev.
Each deity like earth, moon, Sun has two form one divine and the other physical.
सत्रस्यत्ऋद्धिरस्यगन्म ज्योतिरमृताअभूम।
दिवं पृथिव्या अध्याऽरुहामाविदाम देवान्त्स्वर्योतिः॥
हे साम! आप याग की समृद्धि रूप हैं। हम याजक आपकी सहायता से सूर्यदेव की ज्योति द्वारा ज्योतित होकर मरण धर्म से रहित हों एवं पृथ्वी से द्युलोक में आरूढ़ हों। हम देवताओं के ज्योतिरूप द्युलोक का दर्शन कर पाने में और परब्रह्म की प्राप्ति में सक्षम हों।[यजुर्वेद 8.52]
Hey Som! You are a form of Yagy representing prosperity. We Yajak Gan should become immortal by virtue of the light of Sury Dev and move from the earth to heavens. We should become capable of seeing demigods-deities attainment of Par Brahm-Almighty, the Ultimate.
युवं तमिन्द्रापर्वता पुरोयुधा यो नः पृतन्यादप तं तमिद्धतं वज्रेण तं तमिद्धतम्। दूरे चत्ताय छन्त्सद् गहनं यदिनक्षत्। अस्माकꣳ शत्रून् परि शूर विश्वतो दर्मा दर्षीष्ट विश्वतः। भूर्भुवः स्वः सुप्रजा प्रजाभिः स्याम सुवीरा वीरैः सुपोषाः पोषैः॥
संग्राम-स्थल में अग्र गामी बनकर अपने पराक्रम का प्रदर्शन करने वाले हे इन्द्र तथा वज्र! आप दोनों संग्राम करने वाले हरेक रिपु को अपने तीव्र आघात से यम के लोक में पहुँचाएँ। हे वीर! रिपुओं के द्वारा चारों दिशाओं से घिर जाने के पश्चात् आप उन रिपुओं को विदीर्ण कर डालें। भूलोक, अन्तरिक्ष लोक तथा द्युलोक में संव्याप्त हे देव! आपकी कृपा से हम सभी यजमान उत्तम, शूर-वीर सन्ततियों से परिपूर्ण होकर विपुल मात्रा में धन-सम्पदा प्राप्त करके लाभान्वित हैं।[यजुर्वेद 8.53]
Remaining ahead in the war and demonstrating your invincibility, hey Indr Dev and Vajr! Send each and every enemy to Yam Lok-abode of death, Dharm Raj with your sharp strikes. Hey brave! On being surrounded by the enemy tear them apart. Hey Dev, pervading earth, space and heavens! By grace of your blessings-mercy we-Yajman should attain lots of wealth and brave progeny-sons.
परमेष्ठठ्यभिधीतः प्रजापतिर्वाचि व्याहृतायामन्धो अच्छेतः।
सविता सन्यां विश्वकर्मा दीक्षायां पूषा सोमक्रयण्याम्॥
हे यजमानों, हे यज्ञ में प्रयोग में लाये जाने वाले 'परमेष्ठी' नाम वाले सोम! बाधाओं के उत्पन्न होने पर आपके निमित्त "परमेष्ठिने स्वाहा" मन्त्र द्वारा आज्याहुति प्रदान की जाय। विघ्नागमन पर प्रजापति नाम वाले सोम के निमित्त "प्रजापतये स्वाहा" मन्त्र द्वारा आज्याहुति समर्पित करें। याजक किसी बाधा के उत्पन्न होने पर "अन्धसे स्वाहा" मन्त्र द्वारा आज्याहुति समर्पित करें। किसी बाधा के उत्पन्न होने पर सभी को परिपुष्ट करने वाले, संरक्षण कर्ता सोम को 'सविता' नाम होने से "सवित्रे स्वाहा" मन्त्र से आज्याहुति समर्पित करें। दीक्षा में सोम का नाम विश्वकर्मा होने पर किसी बाधा के उपस्थित होने पर "विश्वकर्मणे स्वाहा" मन्त्रोच्चारण से आज्याहुति अर्पित करें। सोम क्रयणी गौ को लाने वाले सोम के पूषा नाम होने से "पूष्णे स्वाहा" मन्त्रोच्चारण द्वारा आज्याहुति अर्पित करें।[यजुर्वेद 8.54]
Hey Yajman, hey Som named Parmeshthi, used in the Yagy! Sacrifices of Ghee should be made for you saying, "Parmeshthi Swaha" while facing obstructions-problems. Make Ghee sacrifices to the Som named Prajapati saying, "Prajapatye Swaha" on facing difficulties. Yajak should make Ghee sacrifices on facing obstruction saying, " Andhsey Swaha". Make sacrifices with Ghee for the protector nourishing Som named Vishwkarma, on facing tensions-troubles during initiation-Deeksha saying, "Vishwkarmane Swaha". Make sacrifices of Ghee for Som named Pusha for buying cow and saying, "Pushne Swaha".
इन्द्रश्च मरुतश्च क्रयायोपोत्थितोऽसुरः पण्यमानो मित्रः क्रीतो विष्णुः शिपिविष्ट उरावासन्नो विष्णुर्नरन्धिषः॥
क्रय करने के निमित्त उठाया हुआ सोम, इन्द्र मरुत नाम वाला होने से, किसी विघ्नागमन पर "इन्द्राय मरुद्भयश्च स्वाहा" मन्त्रोच्चारण द्वारा आज्याहुति अर्पित करें। क्रय करने के समय 'असुर' नाम वाले सोम के निमित्त कोई विघ्न आने पर "असुराय स्वाहा" मन्त्रोच्चारण द्वारा आज्याहुति अर्पित करें। क्रय किया हुआ सोम 'मित्र' नाम होने से अनिष्टोपस्थिति पर "मित्राय स्वाहा" मन्त्रोच्चारण द्वारा आज्याहुति अर्पित करें। याजक की गोद में उपलब्ध सोम 'विष्णु' नाम वाले होने पर अनिष्टोपस्थिति पर "विष्णवे शिपिविष्टाय स्वाहा" मन्त्रोच्चारण द्वारा आज्याहुति समर्पित करें। शकट पर वहन करते समय सोम को जगत्संहर्ता व जगत्पालक विष्णु के नाम से जाना जाता है। किसी विघ्न-निवारण हेतु "विष्णवे नरन्धिषाय स्वाहा" मन्त्रोच्चारण द्वारा आज्याहुति अर्पित करें।[यजुर्वेद 8.55]
Som lifted-raised for buying with the name Indr Marut should recite, "Indray Marudbhyshch Swaha" making sacrifices of Ghee, on facing trouble. While buying Som named Asur recite the Mantr, "Asuray Swaha" on facing any kind of trouble. While purchasing Som named Mitr, make sacrifices of Ghee, reciting the Mantr, "Mitray Swaha" on facing trouble. Som named Vishnu availble in the lap of the Yajak should recite the Mantr, "Vishnave Shipivishtay Swaha" while making sacrifices with Ghee. When Som is loaded in cart its known as the the nurturer and supporter of the universe Bhagwan Shri Hari Vishnu. For avoiding any disturbance-trouble, recite the Mantr "Vishnave Narandhishay Swaha" making sacrifices of Ghee.
प्रोह्यमाणः सोम आगतो वरुण आसन्द्यामासन्नोऽग्निराग्नीध्र इन्द्रो हविर्द्धानेऽथर्वोपावह्रियमाणः॥
शकट नामक वाहन द्वारा आगमन करने वाला सोम, 'सोम' नाम से ही जाना जाता है, उसे कोई बाधा उत्पन्न होने पर "सोमाय स्वाहा" मंत्रोच्चारण द्वारा आज्याहुति समर्पित करें। सोम रखने वाले मञ्च पर सोम 'वरुण' नाम से जाना जाता है, उसे किसी विघ्नोपस्थिति पर "वरुणाय स्वाहा" मन्त्रोच्चारण द्वारा आज्याहुति अर्पित करें। आग्नीध्र में विद्यमान सोम 'अग्नि' के नाम से जाना जाता है, उसे किसी विघ्नागमन की स्थिति में "अग्नये स्वाहा" मन्त्रोच्चारण द्वारा आज्याहुति अर्पित करें। हविर्धान में विद्यमान सोम 'इन्द्र' के नाम वाला होता है। उसे किसी विघ्न निवारण हेतु "इन्द्राय स्वाहा" मन्त्र द्वारा आज्याहुति समर्पित करें। कूटने को लाया हुआ सोम 'अथर्व' नाम से जाना जाता है, उसे अनिष्टोपस्थिति पर "अथर्वाय स्वाहा" मन्त्रोच्चारण द्वारा आज्याहुति अर्पित करें।[यजुर्वेद 8.56]
Som carried in the cart is termed as Som. Make sacrifices of Ghee reciting the Mantr, "Somay Swaha" on facing trouble. When Som is kept over the platform its termed as Varun. On facing trouble make sacrifices of Ghee reciting the Mantr, " "Varunay Swaha". Som present with the priest-protector of Agni its known as Agni, on facing any trouble recite the Mantr, "Agnaye Swaha" with sacrifices of Ghee. Som in offerings is named Indr. For eliminating obstruction make sacrifices of Ghee and recite the Mantr "Indray Swaha". Som brought for mashing-hammering is termed Athrv. Make sacrifices of Ghee reciting the Mantr, "Athrvay Swaha" on facing trouble.(21.04.2025)
विश्वे देवाअंशुषु न्युप्तो विष्णुराप्रीतपा आप्याय्यमानो यमः सूयमानो विष्णुः सम्भ्रियमाणो वायुः पूयमानः शुक्रः पूतः शुक्रःक्षीरश्रीर्मन्थी सक्तुश्रीः॥
भागों में खण्डित करके रखा गया सोम 'विश्वेदेवा' के नाम से जाना जाता है। उसे किसी विघ्नोपस्थिति होने पर "विश्वेभ्यो देवेभ्यः स्वाहा" मन्त्रोच्चारण द्वारा घृताहुति समर्पित करें। वृद्धि को प्राप्त हुआ सोम सभी प्रकार से अपने भक्तों की रक्षा करने वाले विष्णु के नाम से जाना जाता है, उसे किसी अनिष्टोपस्थिति पर "विष्णवे आप्रीतपाय स्वाहा" मन्त्रोच्चारण द्वारा घृताहुति अर्पित करें। सुसंस्कारित होने वाला सोम 'यम' के नाम से जाना जाता है, उसे किसी बाधा के उत्पन्न होने पर "यमाय स्वाहा" मन्त्रोच्चारण द्वारा घृताहुति अर्पित करें। अभिषवण हो चुका सोम 'विष्णु' नाम से जाना जाता है, उसे किसी विघ्नागमन पर "विष्णवे स्वाहा" मन्त्रोच्चारण द्वारा घृताहुति अर्पित करें। शुद्ध करने की प्रक्रिया में सोम 'वायु' के नाम से जाना जाता है, उसे किसी विघ्न के आगमन पर "वायवे स्वाहा" मन्त्रोच्चारण द्वारा घृताहुति अर्पित करें। शुद्ध किये जाने वाला सोम 'शुक्र' के नाम से जाना जाता है, उसे कोई बाधा उत्पन्न होने पर "शुक्राय स्वाहा" मन्त्रोच्चारण द्वारा घृताहुति अर्पित करें। पावन हुआ सोम दूध में मिलने पर 'शुक्र' के नाम से जाना जाता है, उसे यदि विघ्न आए तो "शुक्राय स्वाहा" मन्त्रोच्चारण द्वारा ही घृताहुति अर्पित करें। सत्तू में मिला हुआ सोम 'मन्थी' के नाम से जाना जाता है, उसे किसी विघ्न के उपस्थित होने पर "मन्थिने स्वाहा" मन्त्रोच्चारण द्वारा घृताहुति अर्पित करें।[यजुर्वेद 8.57]
Som placed over the earth after cutting into pieces, is known as Vishwe Dev. On arrival any trouble make sacrifices of Ghee and recite the Mantr, "Vishwebhyo Devebhy Swaha". Growing Som is known after the name of protector Bhagwan Shri Hari Vishnu. In case of any thing undesirable, recite the Mantr, "Vishnawe Apreetpay Swaha", making sacrifices of Ghee. Sanctified Som is named after Yam, deity of death. In case of any trouble recite the Mantr, "Yamay Swaha" making sacrifices with Ghee. Extracted Som is termed as Vishnu. On facing trouble recite the Mantr, "Vishnave Swaha" making sacrifices with Ghee. Som kept after dividing into segments is termed Vishwe Deva. In case of any disturbance recite the Mantr, "Vishwebhyo Devebhy Swaha" making sacrifices of Ghee. Grown up Som is known as Vishnu protector of devotees. In case of any disturbance recite the Mantr, "Vishnave Apreetpay Swaha" making sacrifices of Ghee. Sanctified Som is known as Yam. In case of any trouble recite the Mantr, "Yamay Swaha" making sacrifices of Ghee. Extracted Som is known as Vishnu. In case of any disturbance recite the Mantr, "Vishnave Swaha" making sacrifices of Ghee. During the process of cleansing Som is termed Vayu. In case of any disturbance recite the Mantr, "Vayve Swaha" making sacrifices of Ghee. Som undergoing the process of purification is termed as Shukr. In case of any disturbance recite the Mantr, "Shukray Swaha" making sacrifices of Ghee. On being mixed in water Som is called Shukr. In case of any disturbance recite the Mantr, "Shukray Swaha" making sacrifices of Ghee. Som mixed with Sattu (roasted barley and gram grinded together) is called Manthi. In case of any disturbance recite the Mantr, "Manthine Swaha" making sacrifices of Ghee.
विश्वे देवाश्चमसेषून्नीतोऽसुर्होमायोद्यतो रुद्रो हूयमानो वातोऽभ्यावृत्तो नृचक्षाः प्रतिख्यातो भक्षो भक्ष्यमाणः पितरो नाराश साँः॥
यज्ञ के निमित्त 'चमस' पात्र में विद्यमान सोम 'विश्वेदेवा' के नाम से जाना जाता है, उसे विघ्न शान्ति के निमित्त "विश्वेभ्यो देवेभ्यः स्वाहा" मन्त्रोच्चारण द्वारा आज्याहुति अर्पित करें। ग्रह होम करने को उद्यत हुआ सोम 'असु' नाम से जाना जाता है, उसे किसी विघ्नोपस्थिति में "असवे स्वाहा" मन्त्रोच्चारण द्वारा आज्याहुति अर्पित करें। हवन करते समय "युक्त सोम 'रुद्र' के नाम से जाना जाता है, उसे विघ्न उपस्थिति के निवारणार्थ "रुद्राय स्वाहा" मन्त्रोच्चारण द्वारा घृताहुति अर्पित करें। हुतशेष सोम भक्षणार्थ सोम मण्डप में लाया गया सोम 'वात' नाम से जाना जाता है, उसे किसी अनिष्टोपस्थिति में "वाताय स्वाहा" मन्त्रोच्चारण द्वारा घृताहुति अर्पित करें। हे ब्रह्मन्! यह हुतशेष सोम का पान करें, इस तरह भक्षण के निमित्त पूछा गया सोम मनुष्यों का शुभ-अशुभ देखने वाले 'नृचक्ष' के नाम से जाना जाता है, उसे विघ्न के निवारणार्थ "नृचक्षसे स्वाहा" मन्त्रोच्चारण द्वारा घृताहुति अर्पित करें। भक्षण किया जाता हुआ सोम 'भक्षक' के नाम से जाना जाता है, उसे विघ्न शान्ति के लिए "भक्षाय स्वाहा" मन्त्रोच्चारण द्वारा घृताहुति अर्पित करें। पान करने के उपरान्त रखा गया सोम 'नाराशंस' गुण विशिष्ट अथवा हितकारी पितर के नाम से जाना जाता है, उसे विघ्न के निवारणार्थ "पितृभ्यो नाराशंसेभ्यः स्वाहा" मन्त्रोच्चारण द्वारा घृताहुति समर्पित करें। [यजुर्वेद 8.58]
Som present in the Chamas vessel for the Yagy is termed as Vishwe Deva. In case of any disturbance recite the Mantr, "Vishwebhyo Devebhy Swaha" making sacrifices of Ghee. Som ready to perform Hawan in the house is named Asu. In case of any disturbance recite the Mantr, "Aswe Swaha" making sacrifices of Ghee. Left over Som brought to the Mandap is known as Vat. In case of any disturbance recite the Mantr, "Vatay Swaha" making sacrifices of Ghee. Hey Brahman! Drink this left over Som. This type of Som when asked for eating looks to auspicious or inauspiciousness and is called Nrachksh. To be relived from the disturbance recite the Mantr, "Nrachkshse Swaha" making sacrifices of Ghee. Som being eaten is termed Bhakshak. To calm down disturbance recite the Mantr, "Bhakshay Swaha" making sacrifices of Ghee.
सन्नः सिन्धुरवभृथायोद्यतः समुद्रोऽभ्यवह्रियमाणः सलिलः प्रप्लुतो ययोरोजसा स्कभिता रजाꣳसि वीर्येभिर्वीरतमा शविष्ठा। या पत्येते अप्रतीता सहोभिर्विष्णू अगन्वरुणा पूर्वहूतौ॥
अवभृथ अर्थात् यज्ञोपरान्त पवित्र स्नान के निमित्त प्रयोग किया गया सोम 'सिन्धु' नाम से जाना जाता है। उसे विघ्न उपस्थिति के निवारणार्थ "सिन्धवे स्वाहा" मन्त्रोच्चारण द्वारा घृताहुति अर्पित करें। ऋजीष कुम्भ में जल के ऊपर रखा हुआ सोम 'सागर' के नाम से जाना जाता है, उसे विघ्न शान्ति के लिए "समुद्राय स्वाहा" मन्त्रोच्चारण द्वारा घृताहुति अर्पित करें।
ऋजीष कुम्भ के जल में मग्न करते समय सोम 'सलिल' के नाम से जाना जाता है, उसे विघ्न की उपस्थिति पर "सलिलाय स्वाहा" मन्त्रोच्चारण द्वारा घृताहुति अर्पित करें। जिन विष्णुदेव तथा वरुणदेव के वीर्य के बल पर ब्रह्माण्ड के सम्पूर्ण घटक अपने-अपने मूल स्थान पर विद्यमान हैं, जो अपने वीर्य से महा शक्तिशाली है एवं जो अपने बल के द्वारा अप्रतिम है अर्थात् जिनके समान दूसरा कोई नहीं है और जिनके सम्मुख युद्ध करने की किसी की सामर्थ्य नहीं है, वे जगत् के ईश्वर हैं और वे रिपुओं के संहारक हैं, वे ही यज्ञ में सर्वप्रथम आवाहित किये जाते हैं, उनके निमित्त यज्ञ में प्रथम आहुति समर्पित की जाती है, ऐसे वरुण देव तथा विष्णुदेव के निमित्त ही यह कल्याणमयी आहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 8.59]
Som used after the Yagy for pious bathing is termed as Sindhu. To solve the arising problem recite the Mantr, "Sindhwe Swaha" making sacrifices of Ghee. Som is known as Salil while mixing it in the Ritz Kumbh. To solve the arising problem recite the Mantr, "Slilay Swaha" making sacrifices of Ghee. Som placed over the Ritiz Kumbh-pitcher is known as Sagar. To solve the arising problem recite the Mantr, "Samudray Swaha" making sacrifices of Ghee. Bhagwan Shri Hari Vishnu and Varun Dev, on who's strength-support this universe and all of its components are present-exist, who is absolute-mighty and there is no parallel to HIM, none has the courage-power to stand before HIM to fight war, HE is Almighty and destroyer of the enemies, is the first one to be invoked in the Yagy, first sacrifice is made to HIM. This sacrifice leading to welfare is made for Varun Dev & Shri Hari Vishnu.
देवान् दिवमगन्यज्ञस्ततो मा द्रविणमष्ठ मनुष्यानन्तरिक्षमगन्यज्ञस्ततो मा द्रविणमष्टु पितॄन् पृथिवीमगन्यज्ञस्ततो मा द्रविणमष्ठ यं कं च लोकमगन्यज्ञस्ततो मे भद्रमभूत्॥
हमारे द्वारा किया गया यज्ञ स्वर्गलोक में देवताओं को प्राप्त हुआ। उस स्वर्गलोक में विद्यमान यज्ञ फल से विशेष भोग साधन रूप धन यज्ञ के फल के रूप में हमें प्राप्त हो। हमारे द्वारा किया गया जो यज्ञ अन्तरिक्ष लोक को प्राप्त हुआ, उससे उत्तम धनरूप वर्षा हमें प्राप्त हो। वहाँ पर स्थित यज्ञ फल से विशेष भोग साधन रूप धन यज्ञ के फल के रूप में हमें प्राप्त हो। जो यज्ञ पितरगणों तथा भूलोक को प्राप्त हुआ, उस यज्ञ के फल के रूप में विशिष्ट ऐश्वर्य हमें प्राप्त हो, यह यज्ञ जिस किसी भी लोक में गया हो, उसके फल से हमारा कल्याण हो।[यजुर्वेद 8.60]
Yagy performed by us has been availed by the demigods-in the heavens. The reward of this Yagy should be granted to us as a means of comforts-pleasure and wealth. The Yagy conducted by us availed by the space should shower wealth, pleasure & comforts. The Yagy availed by the Pitr Gan and the earth should grant us specific grandeur. The reward of this Yagy availed by any abode should result into our welfare.
चतुस्त्रिꣳ शत्तन्तवो ये वितत्निरे यऽइमं यज्ञꣳ स्वधया ददन्ते।
तेषां छिन्नꣳसम्वेतद्दधामि स्वाहा घर्मो अप्येतु देवान्॥
यज्ञों को संवर्द्धित करने वाले प्रजापति इत्यादि चौंतीस देवता जो यज्ञ का विस्तार करते हैं एवं उत्तम पोषणकारी पदार्थ यजमानों को प्रदान करते हैं, उनके यह प्रायश्चित्त स्वरूप घृत आहुति है। यज्ञ का विस्तार करने वाले देवताओं से प्राप्त होने वाले धन-धान्य को हम यज्ञ कर्म में ही लगा देते हैं। देवताओं के निमित्त प्रदान की गयी यह आहुति उनकी प्रसन्नता में वृद्धि करने वाली सिद्ध हों।[यजुर्वेद 8.61]
This sacrifice of Ghee is for atonement-penance for the 34 demigods-deities, who grow the Yagy and grant best nourishment to the Yajman. Money-wealth received by us for the growth of Yagy from the demigods-deities is invested-spent by us for the Yagy Karm. This sacrifice made for the demigods-deities should gladden them.
यज्ञस्य दोहो विततः पुरुत्रा सो अष्टधा दिवमन्वाततान।
स यज्ञ धुक्ष्व महि मे प्रजायाꣳ रायस्पोषं विश्वमायुरशीय स्वाहा॥
यजमान बोले, यज्ञ का फल विविध प्रकार से फैलकर आठों दिशाओं में संव्याप्त हो जायें। यह यज्ञ भूलोक, अन्तरिक्ष लोक तथा द्युलोक में विस्तारित होकर हमें धन, सुसन्ततियों आदि से युक्त प्रचुर मात्रा में ऐश्वर्य प्रदान करे। इस प्रक्रिया द्वारा हम दीर्घायु को प्राप्त करें, इसी कारण हम यह हवि अर्पित करते हैं।[यजुर्वेद 8.62]
Yajman should say, "the reward of the Yagy should be pervaded in the 8 directions". It should spread over the earth, heavens and space granting us wealth, virtuous progeny and sufficient grandeur. We should attain long life in this process and hence we make this sacrifice.
आ पवस्व हिरण्यवदश्ववत्सोम वीरवत्। वाजं गोमन्तमा भर स्वाहा॥
यूप स्तम्भ पर कौए के बैठ जाने पर उद्गाता प्रायश्चित्त हवन करते हुए बोले, हे सोम! आप आकर इस यूप-स्तम्भ को पावन करें। सुवर्ण युक्त अश्व युक्त, वीर युक्त होकर आप हमें स्वर्ग, अश्व, गौ आदि अन्नादि धन-सम्पदा प्रदान करें, इसी निमित्त यह आहुति समर्पित हैं।[यजुर्वेद 8.63]
When the crow sit over the Yup-Yagy pillar, Udgata should perform atonement-penance Yagy and say, hey Som! Come and sanctify this pillar. This sacrifice is made so that you grant us gold, horses, bravery, heavens, cows, wealth and opulence.(22.04.2025)
यजुर्वेद संहिता, नवम अध्याय :: ऋषि :- इन्द्र और बृहस्पति, बृहस्पति, दधिक्रावा, वसिष्ठ, नाभानेदिष्ठ, तापस, वरुण, देववात; देवता :- सविता, इन्द्र, धर्मराजादि, अश्व, सेनापति, प्रजापति, वीर, यज्ञ, दिश, सोम, अग्नि आदित्य, विष्णु, सूर्य, बृहस्पति, अर्यमादिमंत्रोक्ता, सम्राड्, अग्न्यादय, पूषादय, मित्रादय, वस्वादयो, विश्वेदेवा, अग्नि, रक्षोघ्न, यजमान; छन्द :- त्रिष्टुप्, पंक्ति, शक्वरी, कृति, अष्टि, जगती, धृति, अत्यष्टि, उष्णिक्, अनुष्टुप्, गायत्री, बृहती।
देव सवितः प्रसुव यज्ञं प्रसुव यज्ञपतिं भगाय।
दिव्यो गन्धर्वः केतपूः केतं नः पुनातु वाचस्पतिर्वाजं नः स्वदतु स्वाहा॥
हे देदीप्यमान् सर्वश्रेष्ठ सविता देव! आप इस वाजपेय यज्ञ को श्रेष्ठ रीति से सम्पन्न करें। आप याजक को धन-धान्य उपलब्ध करने के निमित्त प्रेरणा प्रदान करें। जो अलौकिक रश्मियाँ अन्न को सुसंस्कारित करने वाली हैं, उन दिव्य रश्मियों के द्वारा आप हमारे अन्न को पावन करें तथा वाचस्पति देवता हमारे अन्न स्वरूप हवियों को स्वीकार करें।[यजुर्वेद 9.1]
Hey luminous, excellent Savita Dev! Conduct this Vajpey Yagy following all procedures. Inspire the Yajak to acquire wealth and food grains (for the Yagy). Sanctify our food grains with your divine rays. Let Vachaspati Dev accept our oblations in the form of food grains.
ध्रुवसदं त्वा नृषदं मनःसदमुपयामगृहीतोऽसीन्द्राय त्वा जुष्टं गृह्णाम्येष ते योनिरिन्द्राय त्वा जुष्टतमम् । अप्सुषदं त्वा घृतसदं व्योमसदमुपयामगृहीतोऽसीन्द्राय त्वा जुष्टं गृह्णाम्येष ते योनिरिन्द्राय त्वा जुष्टतमम्। पृथिविसदं त्वाऽन्तरिक्षसदं दिविसदं देवसदं नाकसदमुपयामगृहीतोऽसीन्द्राय त्वा जुष्टं गृह्णाम्येष ते योनिरिन्द्राय त्वा जुष्टतमम्॥
हे सोमदेव! आप सर्वश्रेष्ठ, नेतृत्व कर्ताओं के पालनकर्ता, मनुष्यों के बीच में स्थित होने वाले, मन में स्थित होने वाले इन्द्र देवता के प्रिय हैं। आप इन्द्र देव को प्रसन्नता प्रदान करने वाले हैं। इसलिए हम आपको उन इन्द्र देव के निमित्त ग्रहण करते हैं। आप प्रथम उपयाम-पात्र में गृहीत हों। आप जल में स्थित होने वाले, घृत में स्थित होने वाले, आकाश में स्थित होने वाले हैं और आप इन्द्र देवता के प्रिय हैं। अतः हम उन्हीं इन्द्र देवता की प्रीति के निमित्त आपको ग्रहण करते हैं। आप द्वितीय उपयाम-पात्र में प्रतिष्ठित होते हैं। आप पृथ्वी में स्थित होने वाले, अन्तरिक्ष में स्थित होने वाले, स्वर्गलोक में स्थित होने वाले, देवताओं में स्थित होने वाले, दुःख रहित देव स्थान में स्थित होने वाले हैं। अतः आपको हम इन्द्र देव के योग्य जान कर ग्रहण करते हैं। यह आपका मूल स्थान है। आप तृतीय उपयाम-पात्र में प्रतिष्ठित हों।[यजुर्वेद 9.2]
Hey Som Dev! You are the best, nurturer of the leaders, staying amongest the humans and are dear to Indr Dev. You please-enthuse Indr Dev. Hence, we accept you for the sake of Indr Dev. You should be stored in the first Upyam vessel. You are dear to Indr Dev & stabilize in water, Ghee, sky. We accept you for the love of Indr Dev. Stabilize in the second Upyam vessel. You stabilize in the earth, space, heavens, demigods-deities and the demigods free from sorrow-pain. Hence, we accept you being suitable-able for Indr Dev. Its your original place. You should be stored in the third Upyam vessel.
अपाꣳ रसमुद्वयसꣳ सूर्ये सन्तथं समाहितम्। अपाꣳ रसस्य यो रसस्तं वो गृह्णाम्युत्तममुपयामगृहीतोऽसीन्द्राय त्वा जुष्टं गृह्णम्येष ते योनिरिन्द्राय त्वा जुष्टतमम्॥
हे देवताओं! जलों का सार और अन्न को पकाने वाला वायु सूर्य में समाहित है। जलों के सार वायु का भी जो सार है, उस अति श्रेष्ठ को मैं आपके निमित्त ग्रहण करता हूँ। हे सोम! तुम उपयाम पात्र में ग्रहण किये गये हो। इन्द्र के प्रिय तुम सोम को मैं ग्रहण करता हूँ। हे सोम! यह तुम्हारा स्थान है। इन्द्र के लिये अत्यन्त प्रियकर मैं तुम्हें ग्रहण करता हूँ।[यजुर्वेद 9.3]
Hey demigods-deities! Extract of water and riper of food grains is embedded in the Sun. I accept you being the excellent and the extract water i.e., air; which again is the extract of air. Hey Som! You have been collected in the Upyam vessel. I accept Som which is dear to Indr Dev. Hey Som! This your place. You being too affectionate to Indr Dev, I accept you.
ग्रहा ऊर्जाहुतयो व्यन्तो विप्राय मतिम्। तेषां विशिप्रियाणां वोऽहमिषमूर्जꣳ समग्रभमुपयामगृहीतोऽसीन्द्राय त्वा जुष्टं गृह्णाम्येष ते योनिरिन्द्राय त्वा जुष्टतमम्। सम्पृचौ स्थः सं मा भद्रेण प्रङ्क विपृचौ स्थो वि मा पाप्मना पृङ्क्तं॥
हे ग्रहो (सोमरस तथा आसव के पात्रो)! आप बुद्धिमानों को उत्तम मेधा प्रदान करने वाले हैं। हम यजमानों के निमित्त उक्त रसों को उचित प्रकार से प्रतिष्ठित करते हैं। हे पाँचवें ग्रह (पात्र)! आप विधिवत् प्रतिष्ठित किये गये हैं। हे सोम! तुम उपयाम पात्र के द्वारा ग्रहण किये गये हो। हम आपको इन्द्र देवता की प्रीति के निमित्त ग्रहण करते हैं। यह आपका आश्रयस्थल है। आप दोनों परस्पर संयुक्त होकर हमें मंगल तथा सुख प्रदान करें एवं परस्पर पृथक् -पृथक् रहकर पापाचरण से पृथक् करें।[यजुर्वेद 9.4]
मेधा :: जो शक्ति विद्या को ठीक तरीके से याद रखने में तथा बुद्धि की धारणा में सहायक है, वो मेधा है, धारण शक्ति, बुद्धि; intellect, mental vigour.
Hey vessels (meant for Somras & extracts)! You grant vigour to the intellectuals. We store these extracts for the Yajman in proper way. Hey fifth vessel! You have been placed as per rule. Hey Som! You have been accepted through the Upyam vessel. We accept you for the love & affection of Indr Dev. This is place for storing you. You should jointly grant us pleasure and auspiciousness and by remaining separate isolate us from sins.
इन्द्रस्य वज्रोऽसि वाजसास्त्वयायं वाजꣳ सेत्। वाजस्य नु प्रसवे मातरं महीमदितिं नाम वचसा करामहे। यस्यामिदं विश्वं भुवनमाविवेश तस्यां नो देवः सविता धर्म साविषत्॥
हे रथ! आप देवराज इन्द्र के वज्र के सदृश अमोघ हैं। आप अन्न प्रदान करने वाले हैं। अतः इन याजकों को आपके द्वारा अन्न की प्राप्ति हो। हम अपने मन्त्रों द्वारा अदिति माता के सदृश पृथ्वी माता को अन्नादि की प्राप्ति के निमित्त निश्चित रूप से प्रेरित करते हैं। जिनमें यह सम्पूर्ण संसार प्रविष्ट है, वे सर्वप्रेरक प्रकाशमान सविता देव हमारे निमित्त धर्म को गतिशील बनायें।[यजुर्वेद 9.5]
अमोघ :: स्थिर, बेबदल, अचल, अव्यर्थ, सदा एकसा, क्रियाशील, समर्थ, वैध, असर पैदा करने वाला, अचूक, अभ्रांत, अव्यर्थता; unfailing, effectual, infallible, effectual.
Hey charoite! You are infallible for Indr Dev like the Vajr. You grant us food grains. Hence, the Yajak should get food grains from you. We inspire mother earth for granting food grains with Mantrs; like Dev Mata Aditi. Let Savita Dev, in whom whole universe is pervaded; make our Dharm-duties dynamic.
अप्स्वन्तरमृतमप्सु भेषजमपामुत प्रशस्तिष्वश्वा भवत वाजिनः।
देवीरापो यो व ऊर्मिः प्रतूर्तिः ककुन्मान् वाजसास्तेनायं वाजꣳ सेत्॥
जलों के मध्य में अमृत स्थित है तथा जलों के मध्य में ही आरोग्य-वर्धक एवं पुष्टि कारक ओषधि स्थित है। हे इन्द्र के रथ के अश्वों! तुम अमृत तथा ओषधिरूपी जल का सेवन कर शक्तिशाली बनो। हे देदीप्यमान् जलों! आपकी जो वेगवान् तरंगें एवं ऊँची उठने वाली लहरें हैं, वह हमें अन्न प्रदान करने में सक्षम हों, जिससे यजमान उस अन्न को प्राप्त कर सकें।[यजुर्वेद 9.6]
Elixir and nourishing, booster of immunity medicines are present in waters. Hey horses of Indr Dev's charoite! Become strong by drinking elixir-nectar & medicine-herbs. Hey radiant waters! Your waves-ripples which rise high, should grant us food grains to make the Yajman capable of having it.
वातो वा मनो वा गन्धर्वाः सप्तविꣳशतिः। तेऽअग्रेऽश्व मयुञ्जस्ते अस्मिञ्जवमा दधुः॥
वायु, मन और सत्ताईस नक्षत्र गन्धर्व है। ये धरती को धारण करने वाले हैं। ये पहले से ही अपने साथ अश्व को योजित किये हुए हैं। वे इस अश्व को गति प्रदान करें।[यजुर्वेद 9.7]
Vayu, Man and 27 constellations are Gandarbh. They support the earth. They have already deployed the horses in their charoites. Let them accelerate this horse.
वातरꣳहा भव वाजिन्युज्यमान इन्द्रस्येव दक्षिणः श्रियैधि।
युञ्जन्तु त्वा मरुतो विश्ववेदस आ ते त्वष्टा पत्सु जवं दधातु॥
हे वेगवान् अश्व! आप रथ में योजित हो जाने के पश्चात् वायु के सदृश वेगवान् हो जायें। दक्षिण भाग में स्थित होकर इन्द्र देव के अश्व के समान शोभा से युक्त हो जाय। सर्वज्ञ तथा सर्व धन वाले मरुत् देवता आपको रथ में नियुक्त करें। त्वष्टा देवता आपके चरणों में वेग को स्थापित करें।[यजुर्वेद 9.8]
Hey accelerated horse! You should become as fast as air after being deployed in the charoite. Having occupied South portion, you should acquire glory like the horses of Indr Dev. Aware of all events and possessor of all sorts of commodities, Marud Gan should deploy you in their charoite. Twasta Dev should make your hoofs dynamic.(23.04.2025)
जवो यस्ते वाजिन्निहितो गुहा यः श्येने परीत्तो अचरच्च वाते। तेन नो वाजिन् बलवान् बलेन वाजजिच्च भव समने च पारयिष्णुः। वाजिनो वाजजितो वाजꣳ सरिष्यन्तो बृहस्पतेर्भागमवजिघ्नत॥
हे बलशाली अश्व! तुम्हारा जो वेग हृदय में स्थापित है, जो श्येन पक्षी एवं वायु की भाँति वेगवान् है, उस बल से बलिष्ठ होते हुए तुम हमें संग्राम में विजयी बनाओ। बृहस्पति के चरु को यजमान अश्वों को सुँघाते हुए बोले, हे अश्वों! अन्न को प्राप्त करने की इच्छा से बृहस्पति देव के चरु भाग को सूँघो।[यजुर्वेद 9.9]
Hey mighty horse! Make us win the battle by virtue of your speed, which is as high as falcon and air. Make the Charu meant for Brahaspati smelled by the Yajman horses and say, "Hey horses! Smell the Charu meant for Brahaspati for the sake of attainment of food grains".
देवस्याहꣳ सवितुः सवे सत्यसवसो बृहस्पतेरुत्तमं नाकꣳ रुहेयम्। देवस्याहꣳ सवितुः सवे सत्यसवस इन्द्रस्योत्तमं नाकꣳ रुहेयम्। देवस्याहꣳ सवितुः सवे सत्यप्रसवसो बृहस्पतेरुत्तमं नाकमरुहम्। देवस्याहꣳ सवितुः सवे सत्यप्रसवस इन्द्रस्योत्तमं नाकमरु हम्॥
सर्वप्रेरक सविता देव की अनुज्ञा में रहकर हम यजमान बृहस्पति देव के उत्तम एवं इन्द्र देव के श्रेष्ठ द्युलोक में आरूढ़ हों। सत्य तथा न्याय से परिपूर्ण सुखों को प्रदान करने वाले सविता देव के अनुशासन में रहकर हम याजकगण बृहस्पति देव के श्रेष्ठ तथा इन्द्र देव के श्रेष्ठ द्युलोक में आरोहण करें।[यजुर्वेद 9.10]
Under the directives of all inspiring Savita Dev, we should be elevated to heavens- excellent abode of Yajman Brahaspati and Indr Dev. Remaining under the control of Savita Dev who grant pleasure-comforts full of truth, justice & discipline we should be elevated to the excellent abode-heaven of Brahaspati & Indr Dev.
बृहस्पते वाजं जय बृहस्पतये वाचं वदत बृहस्पतिं वाजं जापयत।
इन्द्र वाजं जयेन्द्राय वाचं वदतेन्द्रं वाजं जापयत॥
हे बृहस्पते! आप अन्न के विजयी बनें। हे यजमानों! आप बृहस्पति देव के निमित्त स्तोत्रों का गान करो। बृहस्पति को जयशील बनाओ। हे दुन्दुभियो! तुम बृहस्पति के लिये ध्वनित होओ। हे देवेन्द्र! आप अन्न के विजयी बनें, हे यजमानों! इन्द्र देव के निमित्त स्तोत्रों का उच्चारण करो, इन्द्र देव को जयशील बनाओ। हे दुन्दुभियो! तुम इन्द्र के लिये ध्वनित होओ।[यजुर्वेद 9.11]
दुन्दुभि :: वाद्य यंत्र है जो युद्ध या समारोहों में बजाया जाता है, वरुण, विष, क्रोच द्वीप का एक विभाग, एक पर्वत का नाम, पासे का एक दाँव, राक्षस जिसे बालि ने मारकर ऋष्य- मूक पर्वत पर फैका था जिस पर मतंग ऋषि ने शाप दिया था, जिसके कारण बालि उस पर्वत के पास नहीं जा सकता था, भगवान् श्री हरी विष्णु का एक नाम, संवत्सरों के क्रम में 56वां संवत्सर, नगाड़ा, धौंसा; Its a musical instrument used to produce loud sound prior to war in ancient India-Maha Bharat.
Hey Brahaspati! You should become the winner of food grains. Hey Yajman! Recite Strotr in the honour of Brahaspati Dev. Hey Dundubhis! Sound for Brahaspati Dev. Hey Devendr! Become the winner of food grains. Hey Yajman! Recite Strotr in the honour of Indr Dev and make him invincible. Hey Dundubhis! Sound for Indr Dev.
एषा वः सा सत्या संवागभूद्यया बृहस्पतिं वाजमजीजपताजीजपत बृहस्पतिं वाजं वनस्पतयो विमुच्यध्वम्। एषा वः सा सत्या संवागभूद्ययेन्द्रं वाजमजीजपताजीजपतेन्द्रं वाजं वनस्पतयो विमुच्यध्वम्॥
हे दुन्दुभियो! एक साथ स्वरों को मिश्रित करके ऐसी ध्वनि निकालो, जिससे बृहस्पतिदेव संग्राम में विजयी बनें। हे दुन्दुभियो! अपनी सेनाओं, अपने अश्वों एवं रथों को युद्ध के निमित्त छोड़ दो, जिससे देवराज इन्द्र को विजय प्राप्त हो। विजय प्राप्त करने के पश्चात् हे सेनाध्यक्ष! अपनी सेनाओं, अश्वों तथा रथों को (विश्राम के निमित्त) मुक्त कर दो।[यजुर्वेद 9.12]
Hey Dundubhis! Sound together in such a way that Brahaspati Dev become a winner in the war. Hey Dundubhis! Release the armies, horses and charoites for the war so that Indr Dev become victorious. After victory, hey army chief! Relieve your armies, horses and the charoites for rest.
देवस्याहꣳ सवितुः सवे सत्यप्रसवसो बृहस्पतेर्वाजजितो वाजं जेषम्।
वाजिनो वाजजितोऽध्वन स्कभ्नुवन्तो योजना मिमानाः काष्ठां गच्छत॥
सर्वप्रेरक, देदीप्यमान्, सत्य वचन बोलने के निमित्त प्रेरित करने वाले सविता देव एवं बृहस्पति देव की अनुज्ञा में रहकर संग्राम में विजयी बनें। युद्ध-स्थल में हमें विजयी बनाने वाले हे वेगवान् घोड़ो! रिपु के पथ को अवरुद्ध करते हुए गतिमान होकर कोसों दूरी को लाँधकर हमें सीमा पार पहुँचाओ।[यजुर्वेद 9.13]
Under the command of all inspiring, luminous, truthful Savita Dev & Brahaspati Dev, win the war. Hey fast running horses making us win in the war! Blocking the path of the enemies, take us many Kos away (a unit of distance).
एष स्य वाजी क्षिपणिं तुरण्यति ग्रीवायां बद्धो अपि कक्षआसनि।
क्रतुं दधिक्रा अनु सꣳ सनिष्यदत्पथामंकाꣳ स्यन्वापनीफणतु स्वाहा॥
गर्दन, बगल, मुख में बँधा हुआ यह घोड़ा चाबुक के संकेत पर तेजी से भागता है। यह घोड़ा सवार के अभिप्राय को जानते हुए अपने पैरों से जमीन पर निशान बनाते हुए अन्तिम सीमा तक चला जा रहा है। इस अश्व के लिये यह आहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 9.14]
बग़ल :: पहलू, पार्श्व, समीप का स्थान; armpit
This horse tied over the neck, armpit and the mouth, runs fast with the indication by the whip-lash. Its making signs of its hoofs over the ground, aware of the rider's intentions, its going to the last limit-boundaries. This sacrifice is for the horse.
उत स्मास्य द्रवतस्तुरण्यतः पर्णं न वेरनुवाति प्रगर्धिनः।
श्येनस्येव ध्रजतो अंकसं परि दधिक्राव्णः सहोर्जा तरित्रतः स्वाहा॥
तेजी से भागते हुए सीमा को पार करने की इच्छा वाले इस घोड़े के वस्त्र और चामर बाज पक्षी के पखों के समान दिखायी दे रहे हैं। तीव्र वेग से गतिमान और बलशाली इस अश्व के लिये यह आहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 9.15]
चामर Chamar :: चौर, चँवर, चौंरी, मोरछल, याक की पूँछ से बना चँवर, घोड़े की झालर; fans made of peacock feathers, fly whisk made of Yolk hair.
Clothing and Chamar of the fast running horse, having the desire to cross the boundaries, is looking like the feathers of falcon. This sacrifice is for the fast running accelerated mighty horse.
शन्नो भवन्तु वाजिनो हवेषु देवताता मितद्रवः स्वर्काः।
जम्भयन्तोऽहिं वृकꣳ रक्षाꣳसि सनेम्यस्मद्युयवन्नमीवाः॥
संग्राम क्षेत्र में यह शक्तिशाली अश्व हमारे निमित्त मंगलकारी हो तथा देवताओं सम्बन्धी कार्यों में यज्ञा हुतियों के द्वारा और भी ज्यादा अलंकृत हो। यह अश्व शीघ्र ही साँप के सदृश कुटिल स्वभाव वाले, भेड़िए के सदृश पीछे से आघात करनेवाले, विघ्न उत्पन्न करने वाले, दुष्ट लोगों को हमसे दूर करें।[यजुर्वेद 9.16]
During the war, this mighty horse should be auspicious for us and decorated more than the endeavours of demigods-deities and Yagy related deeds. This horse should repel the people cunning like snakes, strikers like the wolf and the wicked-vicious away from us.
ते नो अर्वन्तो हवनश्रुतो हवं विश्वे शृण्वन्तु वाजिनो मितद्रवः।
सहस्त्रसा मेधसाता सनिष्यवो महो ये धनꣳ समिथेषु जभ्रिरे॥
ख्याति प्राप्त यज्ञकर्ता, घोड़ों पर आरोहण करने वाले, बलिष्ठ, असाधारण गति वाले शूरवीर, हमारे वचनों को ध्यान पूर्वक सुनें। सहस्रों को संतुष्ट करने वाले, यज्ञाधिपति, आवश्यकताओं को पूर्ण करने वाले शूरवीर जन (जीवन के युद्ध में) महावैभवशाली बनते हैं अर्थात् उन्हें असीम धन-सम्पदा की प्राप्ति होती है।[यजुर्वेद 9.17]
Famous performers of Yagy, those who ride the horse, are mighty-powerful, brave, have extraordinary speed, should carefully listen to our words. Those who satisfy thousands, Lord of the Yagy, brave people who provide essentials get opulence-grandeur, riches.
वाजेवाजेऽवत वाजिनो नो धनेषु विप्रा अमृता ऋतज्ञाः।
अस्य मध्वः पिबत मादयध्वं तृप्ता यात पथिभिर्देवयानैः॥
हे शक्तिशाली अश्वों (यज्ञाग्नि)! आप मधुर रस का सेवन करके परितृप्त हो जायँ तथा परितृप्त होकर देवयान पथ से गमन करें। आप बुद्धिमान्, दीर्घजीवी तथा सत्य के पथ पर गमन करने वाले हैं, अतः हमें समस्त प्रकार के अन्नादि धन-धान्य से युक्त करके हमारा पालन करें।[यजुर्वेद 9.18]
Hey powerful horses! Become satisfied by listening to sweet words and travel through the divine path. You are intelligent, long lived and follower of truthfulness, hence grant us all sorts of food grains, wealth-amenities and support-nurture us.(24.04.2025)
आ मा वाजस्य प्रसवो जगम्यादेमे द्यावापृथिवी विश्वरूपे। आ मा गन्तां पितरा मातरा चा मा सोमो अमृतत्त्वेन गम्यात्। वाजिनो वाजजितो वाजꣳ समृवाꣳ सो बृहस्पतेर्भागमवजिघ्नत निमृजानाः॥
विश्वरूप द्यावा-पृथिवी माता तथा पिता के रूप में हमारी रक्षा करें। हमें अन्न को उत्पादित करने की जानकारी प्राप्त हो, अमृत भाव के साथ सोम प्राप्त हो। हे बलवान् अश्वो! बृहस्पति देव के अन्न भाग को पावन मन से प्राप्त करो।[यजुर्वेद 9.19]
Hey heaven & earth forming the universe, protect us like parents. We should be aware of agriculture and attain Som as nectar-elixir. Hey powerful horses! Accept the share of food grains of Brahaspati Dev with pious innerself.
आपये स्वाहा स्वापये स्वाहाऽपिजाय स्वाहा क्रतवे स्वाहा वसवे स्वाहाऽहर्पतये स्वाहाऽह्ने मुग्धाय स्वाहा मुग्धाय वैनꣳ शिनाय स्वाहा। विनꣳशिन आन्त्यायनाय स्वाहाऽन्त्याय भौवनाय स्वाहा भुवनस्य पतये स्वाहाऽधिपतये स्वाहा॥
देवत्व को प्राप्त करने हेतु, सुखों की श्रेष्ठ प्राप्ति के निमित्त, बारम्बार प्रकट होने वाले देवों के निमित्त, यज्ञ रूप परमात्मा के निमित्त, प्रजापति के निमित्त, वास के निमित्त, दिन के अधिपति के निमित्त, दिवस के निमित्त, मुग्ध के निमित्त, विनाशी पदार्थों में विद्यमान के निमित्त, अन्त्य स्थान में उत्पन्न के निमित्त, अन्त्य के निमित्त, भुवन में उत्पन्न के निमित्त, भुवन स्वामी के निमित्त, समस्त भुवन के अधिष्ठाता आदि सभी के निमित्त, ये आहुतियाँ अर्पित की जा रही हैं।[यजुर्वेद 9.20]
मुग्ध :: विकल, उलझा हुआ, भ्रांत, घबराया हुआ, व्यग्र, उत्तेजित, मूढ़, मोहित, संगी, जिस का बुद्धि नाश किया गया, जादू; enchanted, infatuated, fascinated, perplexed.
Make sacrifices for demigodhood, attainment of best pleasure-comforts, demigods reappearing again and again, Almighty in the form of Yagy, Prajapati, house-residence, lord of the day, Mugdh, production of house, owner of the house, lord of the house, etc.
आयुर्यज्ञेन कल्पतां प्राणो यज्ञेन कल्पतां चक्षुर्यज्ञेन कल्पताꣳ श्रोत्रं यज्ञेन कल्पतां पृष्ठ यज्ञेन कल्पतां यज्ञो यज्ञेन कल्पताम्। प्रजापतेः प्रजा अभूम स्वर्देवा अगन्मामृता अभूम॥
इस वाजपेय यज्ञ के फल से हमारी आयु में वृद्धि हो, इस यज्ञ के फल से पंच प्राण वृद्धि बल को प्राप्त हों, इस यज्ञफल से चक्षुरिन्द्रिय की सामर्थ्य में वृद्धि हो, इस यज्ञ के फल से श्रोत्र इन्द्रिय के बल में वृद्धि हो, हमारी पीठ की शक्ति में वृद्धि हो, हमारा यज्ञ संवर्द्धित हो। हम सभी परमात्मा की सन्तान रूप बनकर रहें। हम सभी बुद्धिमान् बनकर अलौकिक आनन्द को प्राप्त करें तथा अमृतत्व प्राप्त करने में सक्षम हों।[यजुर्वेद 9.21]
पंच प्राण :: शरीर में मौजूद जीवन शक्ति के पांच मुख्य रूप जो शरीर के विभिन्न कार्यों को संचालित करते हैं :- प्राण, अपान, समान, उदान और व्यान।
संवर्धित :: बढ़ा हुआ, उन्नत, या समृद्ध किया गया, वृद्धि, विस्तार; enhance, boost.
Outcome of Vajpey Yagy should increase our age, attain growth of Panch Pran strength, capacity to see and hear should increase, backbone should become strong and the Yagy should flourish further. We should survive as the progeny of the God. We should become intellectuals and enjoy the bliss along with capability of acquiring elixir.
अस्मे वो अस्त्विन्द्रियमस्मे नृम्णमुत क्रतुरस्मे वर्चाꣳसि सन्तु वः। नमो मात्रे पृथिव्यै नमो मात्रे पृथिव्या इयं ते राड्यन्तासि यमनो ध्रुवोऽसि धरुणः। कृष्यै त्वा क्षेमाय त्वा रय्यै त्वा पोषाय त्वा॥
हे दिशाओ! आपका सम्पूर्ण धन-वैभव, कार्य करने की क्षमता एवं तेजस्विता भी हमें प्राप्त हो। धरती माता को नमस्कार है, धरती माता को नमस्कार है। हे धरतीमाता! आप संचालन करने वाली एवं आप ही शासन-शक्ति हैं। आप ही हैं जो सभी प्रकार की व्यवस्था बनाये रखती हैं एवं स्थिर निवास-स्थल प्रदान करती हैं। आपको कृषि-सम्बन्धी कार्य की उन्नति के निमित्त, सृष्टि के हितार्थ, देश में धन-वैभव की वृद्धि के निमित्त, प्रजाओं के पालन के निमित्त एवं अपने योग-क्षेम के निमित्त हम स्वीकार करते हैं।[यजुर्वेद 9.22]
योग क्षेम :: कल्याण, भलाई, सुरक्षा; welfare, protection.
Hey directions! Let us attain your entire opulence, wealth, capability to function-work. I salute mother earth. Hey mother earth! You are the regulator and ruler. You maintain all sorts of discipline and grant fixed residence. We accept you for the progress of agriculture, welfare of the living beings, growth of prosperity-wealth of the nation, nurture of the populace, our own welfare & protection.
वाजस्येमं प्रसवः सुषुवेऽग्रे सोमꣳ राजानमोषधीष्वप्सु।
ता अस्मभ्यं मधुमतीर्भवन्तु वयꣳ राष्ट्र जागृयाम पुरोहिताः स्वाहा॥
अन्न को उत्पन्न करने वाले प्रजापति ने सर्वप्रथम सृष्टि में ओषधि तथा जल के बीच में सोम नामक देदीप्यमान पदार्थ को उत्पन्न किया। यह सोम उत्पादक ओषधि तथा जल हमारे निमित्त रस वाली एवं माधुर्य युक्त हो। हम पुरोहित जन अपने राज्य में जाग्रत् रहें। इसलिए यह हवि अर्पित की जा रही है।[यजुर्वेद 9.23]
Producer of food grains Prajapati, initially created luminous Som between water and medicines-herbs. Let medicine & water produced by Som be juicy and sweet. We the priests, should remain vigilant in our state. Hence, this sacrifice is made.
वाजस्येमां प्रसवः शिश्रिये दिवमिमा च विश्वा भुवनानि सम्राट्।
अदित्सन्तं दापयति प्रजानन्त्स नो रयिꣳ सर्ववीरं नि यच्छतु स्वाहा॥
अन्न को उत्पन्न करनेवाले प्रजापति ने समस्त लोकों के साथ पृथ्वी, स्वर्गलोक तथा समस्त प्राणियों को आश्रय दिया है। वे प्रजापति हवियाँ समर्पित करने के निमित्त हमारी मेधा को प्रेरित करें तथा योग्य सन्तानों के साथ धन-वैभव प्रदान करें, यह आहुति प्रजापति के निमित्त अर्पित की जा रही है, वे इसे भली-भाँति ग्रहण करें।[यजुर्वेद 9.24]
Producer of food grains Prajapati, has granted asylum to all abodes including earth, heavens and the living beings. Let Prajapati inspire our intelligence-mind to make sacrifices, grant us able progeny, wealth and grandeur. This sacrifice is made for Prajapati, let HIM accept it properly-carefully.
वाजस्य नु प्रसव आ बभूवेमा च विश्वा भुवनानि सर्वतः।
सनेमि राजा परि याति विद्वान् प्रजां पुष्टिं वर्धयमानो अस्मे स्वाहा॥
अन्न को उत्पन्न करने वाले प्रजापति ने समस्त लोकों की उत्पत्ति की तथा वे सनातन, सब कुछ जानने वाले प्रजापति हमारे निमित्त प्रजा, पशुरूपी धन एवं सम्पूर्ण धन-वैभव की वृद्धि करते हुए, सबसे उच्च लोक में निवास करते हैं। यह हवि उन प्रजापति के निमित्त अर्पित है।[यजुर्वेद 9.25]
Producer of food grains Prajapati, evolved all abodes. He is eternal and knows everything. He increase populace-subjects for us, animals-cattle, whole wealth & grandeur, residing in the uppermost abode. This sacrifice is for HIM.
सोमꣳ राजानमवसेऽग्निमन्वारभामहे।
आदित्यान्विष्णुꣳ सूर्य ब्रह्माणं च बृहस्पतिꣳ स्वाहा॥
जो सम्पूर्ण अन्न को उत्पन्न करने वाले हैं, जिस प्रजापति ने हमारे पालन के निमित्त राजा सोम, अग्नि, बारह आदित्य, भगवान् विष्णु, सूर्यदेव, ब्रह्मा तथा बृहस्पति देव को नियुक्त किया है, हम उस प्रजापति की स्तुति करते हैं, यह हवि उन (प्रजापति) के निमित्त अर्पित है।[यजुर्वेद 9.26]
We worship-pray the Prajapati who appointed the king Som, Agni, 12 Adity, Bhagwan Shri Hari Vishnu, Sury Dev, Brahma Ji and Brahaspati Dev. This sacrifice-oblation is for HIM.
अर्यमणं बृहस्पतिमिन्द्रं दानाय चोदय।
वाचं विष्णुꣳ सरस्वतीꣳ सवितारं च वाजिनꣳ स्वाहा॥
हे परमात्मन्! आप अर्यमा देव को, बृहस्पति देव को, इन्द्र देव को, वाणी की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती को, भगवान् विष्णु को, सर्वप्रेरक सविता देव को तथा शक्तिशाली देवताओं को दान करने के निमित्त प्रेरित करें, यह हवि आपके लिए ही अर्पित की जा रही है।[यजुर्वेद 9.26]
Hey Almighty! Inspire Aryma Dev, Brahaspati Dev, Indr Dev, Goddess of speech-voice Maa Saraswati, Bhagwan Shri Hari Vishnu, Savita Dev-who inspire everyone and the mighty demigods-deities for donations. This sacrifice is for YOU.
अग्ने अच्छा वदेह नः प्रति नः सुमना भव।
प्र नो यच्छ सहस्त्रजित्त्वꣳ हि धनदा असि स्वाहा॥
हे अग्ने! आप हमारे प्रति श्रेष्ठभाव रखकर इस यज्ञ में हमें हितकारी उपदेश करें। अकेले ही हजारों योद्धाओं पर विजय प्राप्त करने वाले हे अग्नि देव! चूँकि आप धन-सम्पदा प्रदान करने वाले हैं, इसलिए हमें भी धन-धान्य प्रदान करके समृद्धशाली बनायें। हम यह हवि आपके निमित्त अर्पित करते हैं।[यजुर्वेद 9.28]
Hey Agni Dev! Advice us in the Yagy for our welfare, with best intentions. Hey Agni Dev, attaining victory over thousands of warriors, alone! Since you grant wealth and prosperity, grant us wealth and make us prosperous. This sacrifice-offering is for you.(25.04.2025)
प्र नो यच्छत्वर्यमा प्र पूषा प्र बृहस्पतिः। प्र वाग्देवी ददातु नः स्वाहा॥
हे परमात्मन्! आपकी कृपा से अर्यमा देव, पूषादेव एवं वाणी की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती हमारे निमित्त अभिलषित दान प्रदान करें। हम यह हवि आपके निमित्त अर्पित करते हैं।[यजुर्वेद 9.29]
Hey Almighty! By virtue of your grace-blessings, let Aryma Dev, Pusha Dev and Goddess of Speech Maa Saraswati grant us desired commodities. We make this sacrifice for you.
देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्याम्।
सरस्वत्यै वाचो यन्तुर्यन्त्रिये दधामि बृहस्पतेष्ट्वा साम्राज्येनाभि षिञ्चाम्यसौ॥
हे यजमान! हम सर्व उत्पादक सविता देव की प्रेरणा से, अश्विनी कुमारों की दोनों भुजाओं से, पूषा देवता के हाथों से एवं जगत् में वाणी की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की वाणी से आपको बृहस्पति देव के उत्कृष्ट नियंत्रण में इस साम्राज्य के संचालनकर्ता के रूप में प्रतिष्ठित करते हैं।[यजुर्वेद 9.30]
Hey Yajman! We establish-appoint you as the controller of this universe; due to the inspiration by Savita Dev who produced all, both arms of Ashwani Kumars, hands of Pusha Dev and voice of Maa Saraswati Goddess of speech, under the excellent control & guidance of Brahaspati Dev.
अग्निरेकाक्षरेण प्राणमुदजयत् तमुज्जेषमश्विनौ द्वयक्षरेण द्विपदो मनुष्यानुदजयतां तानुज्जेषं विष्णुस्त्र्यक्षरेण त्रीँल्लोकानुदजयत्तानुज्जेषꣳ सोमश्चतुरक्षरेण चतुष्पदः पशूनुदजयत्तानुज्जेषम्॥
अग्नि देव ने 'एकाक्षर' (दैवी गायत्री) के प्रभाव से श्रेष्ठ प्राण पर विजय प्राप्त की। हम भी उस प्राण पर एकाक्षर के प्रभाव से विजय प्राप्त करें। अश्विनी कुमारों ने दो अक्षर (दैवी उष्णिक्) के प्रभाव से अर्थात् छन्द से दो पद वाले मानवों पर विजय प्राप्त की, हम भी उस दो अक्षर के प्रभाव से दो पैरों वाले मनुष्यों पर विजय प्राप्त करें। भगवान् विष्णु ने तीन अक्षर (दैवी अनुष्टुप्) के मन्त्र के प्रभाव से तीनों लोकों (द्युलोक, अन्तरिक्षलोक, भूलोक) पर विजय प्राप्त की, हम भी उस तीन अक्षर के मन्त्र के प्रभाव से तीनों लोकों पर विजय प्राप्त करें। सोमदेव ने चार अक्षर (दैवी बृहती) वाले छन्द के प्रभाव से पाद चतुष्टयात्मक (चार पैर वाले) पशुओं पर विजय प्राप्त की। हम भी उस चतुराक्षर मन्त्र के प्रभाव से पशुओं पर विजय प्राप्त करें।[यजुर्वेद 9.31]
Agni Dev attained victory due to single vowel (Devi Gayatri), Mantr over the excellent air vital. We too should get victory of air vital. Ashwani Kumars attained victory over the two legged humans due to the impact of two syllable (Devi Ushnik), Mantr. We too should attain victory over the two legged humans due to the impact of two syllable, Mantr. Bhagwan Shri Hari Vishnu attained victory over the three abodes due to the three syllable (Devi Anushtap), Mantr. We too should attain victory over the earth, heavens and the nether world due to the impact of the three syllable Mantr. Som Dev attained victory due to the impact of four syllable Chhand over the four legged animals. We too should get victory over the four legged animal due to the four syllable Mantr.
पूषा पञ्चाक्षरेण पञ्च दिश उदजयत्ता उज्जेषꣳ सविता षडक्षरेण षड् ऋतूनुदजयत्तानुज्जेषं मरुतः सप्ताक्षरेण सप्त ग्राम्यान् पशूनुदजयँस्तानुज्जेषं बृहस्पतिरष्टाक्षरेण गायत्रीमुदजयत्तामुज्जेषम्॥
पूषा देवता ने पाँच अक्षर के छन्द के प्रभाव से पाँच दिशाओं (उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम तथा एक ऊपर की दिशा) पर उत्कृष्ट रूप से विजय प्राप्त की। हम भी उस पाँच अक्षर वाले छन्द के प्रभाव से पाँचों दिशाओं पर विजय प्राप्त करें। सविता देवता ने छः अक्षर के छन्द के प्रभाव से छः ऋतुओं पर विजय प्राप्त की। हम भी उस छः अक्षर के छन्द के प्रभाव से छः ऋतुओं पर विजय प्राप्त करें। मरुत् देवता ने सप्ताक्षर के छन्द के प्रभाव से सात ग्राम्य गवादि पशुओं पर विजय प्राप्त की। हम भी उस सात अक्षर के छन्द के प्रभाव से सात ग्राम्य गवादि पशुओं पर विजय प्राप्त करें। बृहस्पति देव ने आठ अक्षर के छन्द के प्रभाव से गायत्री छन्द के अभिमानी देवता को वशीभूत किया। हम भी उस आठ अक्षर के छन्द के प्रभाव से गायत्री छन्द के अभिमानी देवता को वशीभूत करें।[यजुर्वेद 9.32]
Pusha Dev attained victory over the five direction viz East, West, North, South and upward by virtue of five syllable Chhand. We too should follow him. Savita Dev got victory over the six seasons by the recitation of six syllable Chhand. We too should follow him. Marud Gan attained victory over the seven animals by the impact of seven syllable Chhand. We too should perform in the same manner. Brahaspati Dev controlled the egoistic demigods due to the impact of eight syllable Gayatri Chhand. We too should do the same.
मित्रो नवाक्षरेण त्रिवृतꣳ स्तोममुदजयत् तमुज्जेषं वरुणो दशाक्षरेण विराजमुदजयत्तामुज्जेषमिन्द्र एकादशाक्षरेण त्रिष्टुभमुदजयत्तामुज्जेषं विश्वे देवा द्वादशाक्षरेण जगतीमुदजयँस्तामुज्जेषम्॥
मित्र देवता ने नौ अक्षर के मन्त्र के प्रभाव से त्रिवृत् स्तोम पर विजय प्राप्त की, हम भी उस नवाक्षर के छन्द के प्रभाव से त्रिवृत् स्तोम पर विजय प्राप्त करें। वरुण देवता ने दस अक्षर के छन्द के प्रभाव से विराट् के अभिमानी देवता को वशीभूत किया। हम भी उस दशाक्षर के छन्द के प्रभाव से विराट् पर विजय प्राप्त करें। देवराज इन्द्र ने एकादशाक्षर के छन्द के प्रभाव से त्रिष्टुभ् स्तोमों पर विजय प्राप्त की। हम भी उस एकादशाक्षर के प्रभाव से त्रिष्टुप् स्तोमों पर विजय प्राप्त करें। विश्वेदेवों ने बारह अक्षर के छन्द के प्रभाव से जगती स्तोमों पर विजय प्राप्त की। हम भी उस बारह अक्षर के छन्द के प्रभाव से जगती स्तोमों पर विजय प्राप्त करें।[यजुर्वेद 9.33]
Mitr Dev attained victory by nine syllable Mantr due to the impact of Trivrat Stom. We too should repeat the same feat. Varun Dev enchanted the egoistic demigod of Virat due to the impact of ten syllable Chhand. We too should repeat the same feat. Dev Raj Indr won over the Trishtubh Stom by the recitation of eleven syllable Chhand. We too should perform in the same manner. Vishwe Dev attained victory over the Jagti Stom with the twelve syllable Chhand. We too should be able to gain victory in the same manner.
वसवस्त्रयोदशाक्षरेण त्रयोदश स्तोममुदजयँस्तमुज्जेष रुद्राश्चतुर्दशा-क्षरेण चतुर्दश स्तोममुदजयँस्तमुज्जेषामादित्याः पञ्चदशाक्षरेण पञ्चदश स्तोममुदजयँस्तमुज्जेषमदितिः षोडशाक्षरेण षोडषधं स्तोममुदजयत्तमुज्जेषं प्रजापतिः सप्तदशाक्षरेण सप्तदश स्तोममुदजयत्तमुज्जेषम्॥
वसुओं ने तेरह अक्षर वाले छन्द के प्रभाव से त्रयोदश स्तोम पर विजय प्राप्त की। हम भी उस तेरह अक्षरवाले छन्द के प्रभाव से त्रयोदश स्तोम पर विजय प्राप्त करें। रुद्र देवताओं ने चौदह अक्षर के छन्द के प्रभाव से चौदह रत्नों को जीता, हम भी उस चौदह अक्षर के छन्द के प्रभाव से चौदह रत्नों पर विजय प्राप्त करें। आदित्यों ने पन्द्रह अक्षर के छन्द के प्रभाव से पञ्चदश स्तोम को जीता। हम भी उस पन्द्रह अक्षर के छन्द के प्रभाव से पञ्चादश स्तोम पर विजय प्राप्त करें। देवमाता अदिति ने सोलह अक्षर के छन्द के प्रभाव से षोडश स्तोम को जीता। हम भी उस सोलह अक्षर के छन्द के प्रभाव से षोडश स्तोम पर विजय प्राप्त करें। प्रजापति ने सत्रह अक्षर के छन्द के प्रभाव से सप्तदश स्तोम पर विजय प्राप्त की। हम भी उस सत्रह अक्षर के छन्द के प्रभाव से सप्तदश स्तोम पर विजय प्राप्त करें।[यजुर्वेद 9.34]
Vasus attained victory over Troyodash Stom by virtue of thirteen syllable Chhand. We too perform in the same manner. Rudr Gan-Demigods won the fourteen jewels by the impact of fourteen syllable Chhand. We too should do the same. Adity Gan won over the Panchdash Stom due to the recitation of fifteen syllable Chhand. We too should attain it. Dev Mata Aditi won the Shodash Stom by the grace of sixteen syllable Chhand. We should also perform in the same manner. Prajapati won over the Saptdash Stom with the help of seventeen syllable Chhand. We too should be successful in the same manner.
एष ते निर्ऋते भागस्तं जुषस्व स्वाहाऽग्निनेत्रेभ्यो देवेभ्यः पुरः सद्भ्यः स्वाहा यमनेत्रेभ्यो देवेभ्योः दक्षिणासभ्यः स्वाहा विश्वदेवनेत्रेभ्यो देवेभ्यः पश्चात्सद्भ्यः स्वाहा मित्रावरुणनेत्रेभ्यो वा मरुन्नेत्रेभ्यो वा देवेभ्य उत्तरासद्भ्यः स्वाहा सोमनेत्रेभ्यो देवेभ्य उपरिसद्भ्यो दुवस्वद्भ्यः स्वाहा॥
हे पृथिवी! यह पिष्ट चरु आपका भाग है, आप इसका प्रीतिपूर्वक सेवन करें, यह आहुति आपके लिये समर्पित है। पूर्व दिशा में निवास करने वाले अग्नि जिनके नेता हैं, ऐसे देवताओं के लिये यह घृताहुति समर्पित है। दक्षिण दिशा में निवास करने वाले यम जिनके नेता हैं, ऐसे देवताओं के लिये यह घृताहुति समर्पित है। पश्चिम दिशा में निवास करने वाले विश्वे देवा जिनके नेता हैं, ऐसे देवताओं के लिये यह घृताहुति समर्पित है। उत्तर दिशा में निवास करने वाले मित्रावरुण अथवा मरुत् देवता जिनके नेता हैं, ऐसे देवताओं के लिये यह घृताहुति समर्पित है। अन्तरिक्ष लोक तथा स्वर्गलोक में निवास करने वाले, हविष्यान्न का भक्षण करने वाले सोम जिनके नेता हैं, ऐसे देवताओं के लिए यह घृताहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 9.35]
Hey earth! This Charu is your share, use it affectionately. This sacrifice is for you. This sacrifice is for those demigods-deities who's leader Agni Dev, reside in the East. This Ghee sacrifice is for those demigods-deities who are headed by Yam Raj who reside in the South direction. This Ghee sacrifice is for those demigods-deities, who are headed by Vishwe Dev- who reside in the West. This sacrifice is for those demigods-deities who are headed by Mitra-Varun or Marud Gan who dominate the North direction. This sacrifice of Ghee is meant for those demigods-deities who reside in the space or heavens, headed by Som who eat the oblations-offerings.(26.04.2025)
ये देवा अग्निनेत्राः पुरःसदस्तेभ्यः स्वाहा ये देवा यमनेत्रा दक्षिणासदस्तेभ्यः स्वाहा ये
देवा विश्वदेवनेत्राः पश्चात्सदस्तेभ्यः स्वाहा ये देवा मित्रावरुणनेत्रा वा मरुन्नेत्रा वोत्तरासदस्तेभ्यः स्वाहा ये देवाः सोमनेत्रा उपरिसदो दुवस्वन्तस्तेभ्यः स्वाहा॥
अग्नि देव जिनके नेतृत्वकर्ता हैं, वे देवता पूर्व दिशा में निवास करते हैं। उन्हीं देवताओं के निमित्त यह श्रेष्ठ आहुति अर्पित की जा रही है। यम देवता जिनके नेतृत्वकर्ता हैं, वे देवता दक्षिण दिशा में निवास करते हैं, उन्हीं देवता के निमित्त यह श्रेष्ठ आहुति अर्पित की जा रही है। जिनके नेतृत्वकर्ता विश्वेदेवा हैं, वे देवता पश्चिम दिशा में निवास करते हैं, यह आहुति उन्हीं देवता के निमित्त अर्पित की जा रही है। मित्रा वरुण अथवा मरुत् जिनके नेतृत्वकर्ता हैं, वे देवता उत्तर दिशा में निवास करते हैं, यह आहुति उन्हीं देवता के निमित्त अर्पित की जा रही है। हवि भोजी सोम जिनके नेतृत्वकर्ता हैं, वे देवता स्वर्ग लोक में निवास करते हैं, यह आहुति उन्हीं देवता के निमित्त अर्पित की जा रही है।[यजुर्वेद 9.36]
Demigods whom Agni Dev leads, reside in the east. This sacrifice is made for them. This sacrifice is for those demigods who are led by Yam Dev & live in the South . Demigods led by Vishwe Dev reside in the West, next sacrifice is for them. Demigods led by Mitra-Varun & Marud Gan reside in the North. This sacrifice for them. Eater of offerings Som leading the demigods residents of heavens. This sacrifice is for them.
अग्ने सहस्व पृतना अभिमातीरपास्य। दुष्टरस्तरन्नरातीर्वर्चो धा यज्ञवाहसि॥
हे अग्नि देव! आप रिपुओं के दल को परास्त कर उनको विनष्ट कर डालें। हे अपराजेय अग्नि देव! रिपुओं का तिरस्कार कर यज्ञ कर्म का निर्वाह करने वाले याजक को अन्न तथा ब्रह्मतेज प्रदान करें।[यजुर्वेद 9.37]
Hey Agni Dev! Defeat the band of enemies and kill them. Hey unbeatable-invincible Agni Dev! Discard the enemies and grant Brahm Tej-lustre and food to the Yajak who conduct Yagy Karm.
देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्याम्। उपाꣳ शोर्वीर्येण जुहोमि हतꣳ रक्षः स्वाहा रक्षसां त्वा वधाया वधिष्म रक्षोऽवधिष्मामुमसौ हतः॥
हे तण्डुल! सविता देवता की प्राणवान् शक्तियों की सामर्थ्य से, अश्विनी कुमारों के बाहुबल से एवं पूषा देवता के दोनों हाथों से रिपुओं के विनाश के निमित्त मैं आपको उपांशुग्रह में स्थित सोम के साथ हवन करता हूँ। राक्षसों के विनाश के लिये यह श्रेष्ठ आहुति निवेदित है। हे स्रुक! मैं तुम्हें राक्षसों के वध के लिये घुमा रहा हूँ। मैं इस राक्षस वर्ग को मारता हूँ। अब यह सारा राक्षस वर्ग मारा गया।[यजुर्वेद 9.38]
Hey Tandul-rice! I perform Hawan for Som present in the Upanshu Grah-vessel with the life giving powers of Savita Dev, strength of the hands of Ashwani Kumars and both hands of Pusha Dev for the elimination of the enemies. This best sacrifice is made for the destruction of demons. Hey Struk! I am moving you for the killing of demons. I kill this group of demons. Now, the whole demon clan has been vanished.
सविता त्वा सवनाꣳ सुवतामग्निगृहपतीनाꣳ सोमो वनस्पतीनाम्। बृहस्पतिर्वाच इन्द्रो ज्यैष्ठठ्याय रुद्रः पशुभ्यो मित्रः सत्यो वरुणो धर्मपतीनाम्॥
हे यजमान! सर्व प्रेरक सविता देव यज्ञ कर्म करने के निमित्त तुम्हें प्रेरित करें। हे यजमान! अग्नि देव तुम्हें गृहस्थ जनों का अधिपति बनायें। हे यजमान! सोम देवता तुम्हारे निमित्त वनस्पति के रूप में ओषधियाँ प्रदान करें। हे यजमान! बृहस्पति देव तुम्हें विद्वत्ता प्रदान करें। हे यजमान! इन्द्र देव तुम्हें ज्येष्ठता प्रदान करें। हे यजमान! रुद्रदेव तुम्हें पशु-सम्पदा प्रदान करें। हे यजमान! मित्र एवं वरुण देवता तुम्हें धर्माधिकारी बनायें।[यजुर्वेद 9.39]
Hey Yam Raj! Let all inspiring Savita Dev motivate you for performing Yagy. Hey Yajman! Let Agni Dev appoint you as the head of house hold. Som Dev should provide you medicines in the form of vegetation-herbs. Brahaspati Dev should grant you learning. Indr Dev should make you senior. Rudr Dev should grant you animals. Mitr & Varun Dev should make you the officer governing Dharm-law & order.
इमं देवाअसपत्नꣳ सुवध्वं महते क्षत्राय महते ज्यैष्ठ्याय महते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय। इमममुष्य पुत्रममुष्यै पुत्रमस्यै विश एष वोऽमी राजा सोमोऽस्माकं ब्राह्मणानाꣳ राजा॥
हविभाग ग्रहण करने वाले हे देवता गण! महान् क्षात्र शक्ति के सम्पादन के निमित्त, महान् राज्यपद के निमित्त, उत्तम जन राज्य के निमित्त, देवराज इन्द्र के सदृश हर तरह से विभूतिवान् बनने के निमित्त, रिपुओं से विहीन, अमुक पिता के पुत्र, अमुक माता के पुत्र को प्रजा के पालन के निमित्त अभिसिंचित करें। हे अमुक प्रजाजनों! आप सभी के निमित्त एवं हम विद्वानों के निमित्त भी यह राजा चन्द्रमा के सदृश आह्लादक हैं।[यजुर्वेद 9.340]
अभिसिंचित :: अच्छी तरह सींचा हुआ; convergent, well-irrigated, thoroughly watered.
Hey demigods accepting their share of offerings! Nurture-nourish for the sake of performing Kshatr Dharm (duties of a warrior), great kingdom, best state, making glorious like Indr Dev, free from enemies, son X (spell father's name), X (spell mother's name). X (name populace)! This king is excellent for you & us enlightened-scholars) grant pleasure like king Moon-Chandr Dev.(27.04.2025)
यजुर्वेद संहिता, दशम अध्याय :: ऋषि :- वरुण, देववात, वामदेव, शुनःशेप; देवता :- आप, वृषा, अपांपति, सूर्यादयो, मंत्रोक्ता, वरण, यजमान, प्रजापति, परमात्मा, मित्रावरुणौ, क्षत्रपति, इन्द्र, अग्न्यादयो मंत्रोक्ता, सूर्य, आसन्दी, अग्नि, सवित्रादि मंत्रोक्ता, अश्विनी; छन्द :- त्रिष्टुप्, पंक्ति, कृति, जगती, धृति, बृहती, अष्टि, अनुष्टुप्।
अपो देवा मधुमतीरगृभ्णन्नूर्जस्वती राजस्वश्चितानाः । याभिर्मित्रावरुणावभ्यषिञ्चन्याभिरिन्द्रमनयन्नत्यारातीः॥
[इस अध्याय में राजसूय यज्ञ सम्बन्धी कर्मों का वर्णन है] इन्द्रादि देवताओं ने मधुर स्वाद से युक्त, विशेष अन्न से युक्त राजाओं द्वारा भी पान करने योग्य, बुद्धि प्रदाता जल को ग्रहण किया। जिस जल के द्वारा देवों का मित्रा-वरुण देवों ने अभिषेक किया एवं जिस जल के द्वारा रिपुओं के संहारक देवराज इन्द्र का देवों ने राज्याभिषेक किया, उस जल को हम ग्रहण करते हैं।[यजुर्वेद 10.1]
This chapter describe the procedures and methodology pertaining to Rajsuy Yagy.
Dev Raj Indr & other demigods-deities ate the tasty food grains and drunk water suitable for the kings, granting intelligence. We accept the water used for consecration-ablution of demigods-deities by Mitr-Varun and coronation of Indr Dev.
वृष्ण ऊर्मिरसि राष्ट्रदा राष्ट्र मे देहि स्वाहा वृष्ण ऊर्मिरसि राष्ट्रदा राष्ट्रममुष्यै देहि वृषसेनोऽसि राष्ट्रदा राष्ट्र मे देहि स्वाहा वृषसेनोऽसि राष्ट्रदा राष्ट्रममुष्मै देहि॥
हे कल्लोल अर्थात् कलकल ध्वनि करने वाली तरंगों! आप ऊर्मियाँ (लहर) हैं। आप सिंचन क्षमता से युक्त हैं। आप शक्तिशाली मनुष्य को उच्च पद पर प्रतिष्ठित करने में एवं राज्य प्रदान करने में सक्षम हैं। आप हमें राज्य प्रदान करें। इस कारण यह आहुति आपको अपित है। आप ऐसा राज्य प्रदान करने वाली हैं, जो सुख की वर्षा करने वाला होता है; अतएव राज्य प्रदान करने में सक्षम होकर राजपद प्रदान करें। आपके निमित्त यह आहुति अर्पित है। आप राज्य प्रदान करने में सक्षम हैं। अतएव शक्तिशाली सेना से परिपूर्ण याजक को राज्य प्रदान करें।[यजुर्वेद 10.2]
Hey waves making Kal-Kal sound! You are capable of irrigation. You are capable of elevating a person to high position-designation. Grant us kingdom. This sacrifice is for you. You grant us such a kingdom which showers comforts-pleasure. Become capable of granting appointment in the state, grant us high designation-position. This sacrifice is for you. Being capable of granting state, grant a state possessing mighty army to the Yajak.
अर्थेत स्थ राष्ट्रदा राष्ट्रं मे दत्त स्वाहा ऽर्थेत स्थ राष्ट्रदा राष्ट्रममुष्मै दत्तौजस्वती स्थ राष्ट्रदा राष्ट्रं मे दत्त स्वाहौजस्वती स्थ राष्ट्रदा राष्ट्रममुष्मै दत्तापां परिवाहिणी स्थ राष्ट्रदा राष्ट्र मे दत्त स्वाहाऽपः परिवाहिणी स्थ राष्ट्रदा राष्ट्रममुष्मै दत्तापां पतिरसि राष्ट्रदा राष्ट्रं मे देहि स्वाहाँऽपां पतिरसि राष्ट्रदा राष्ट्रममुष्मै देह्यपां गर्भोऽसि राष्ट्रदा राष्ट्रं मे देहि स्वाहाऽपां गर्भोऽसि राष्ट्रदा राष्ट्रममुष्मै देहि॥
हे जल समूह! आप अभिषेक में प्रयुक्त होने वाले हैं, अतएव हमें राज्य प्रदान करें। इसके निमित्त यह आहुति अर्पित है। हे जल समूह! आप धन-वैभव के बल से सामर्थ्यवान् हैं, ओज से युक्त तथा वीर्यवान् है एवं राज्य प्रदान करने में सक्षम हैं। इसके निमित्त यह आहुति अर्पित हैं। हे जलसमूह! आप बल युक्त एवं श्रेष्ठ सेनाओं से युक्त हैं, अतएव हमें राज्य प्रदान करने में सक्षम हैं। इसके निमित्त यह आहुति अर्पित है। आप हर तरह की सेना से सम्पन्न, राज्य प्रदान करने में सक्षम हैं, अतएव हमें राज्य प्रदान करें, इसके निमित्त यह आहुति अर्पित है। हे समुद्र जल! आप सम्पूर्ण जल के पालन कर्ता, रक्षण कर्ता एवं उन्हें अपने वश में रखने में सक्षम हैं; अतएव योग्य पुरुष को राज्य प्रदान करें, इसके निमित्त यह आहुति अर्पित है।[यजुर्वेद 10.3]
Hey water bodies! You are going to be used in consecration-ablution, hence grant us state-kingdom. This sacrifice is for you. You are capable of wealth & grandeur, possess aura-radiance, might, and capable of granting kingdom. Hence, this sacrifice is for you. You possess strength-might and best armies, hence grant us kingdom. This sacrifice is for you. You are capable of granting kingdom possessing all sorts of armies, hence grant kingdom. This sacrifice is for you. Hey ocean waters! You are supporter & nurturer of whole water and capable of keeping it under control, so grant kingdom to able person. This sacrifice is for you.
सूर्यत्वचस स्थ राष्ट्रदा राष्ट्र मे दत्त स्वाहा सूर्यत्वचस स्थ राष्ट्रदा राष्ट्रममुष्मै दत्त सूर्यवर्चस स्थ राष्ट्रदा राष्ट्रं मे दत्त स्वाहा सूर्यवर्चस स्थ राष्ट्रदा राष्ट्रममुष्मै दत्त मान्दा स्थ राष्ट्रदा राष्ट्रं मे दत्त स्वाहा मान्दा स्थ राष्ट्रदा राष्ट्रममुष्मै दत्त व्रजक्षित स्थ राष्ट्रदा राष्ट्रं मे दत्त स्वाहा व्रजक्षित स्थ राष्ट्रदा राष्ट्रममुष्मै दत्त वाशा स्थ राष्ट्रदा राष्ट्रं मे दत्त स्वाहा वाशा स्थ राष्ट्रदा राष्ट्रममुष्यै दत्त शविष्ठा स्थ राष्ट्रदा राष्टं मे दत्त स्वाहा शविष्ठा स्थ राष्ट्रदा राष्ट्रममुष्मै दत्त शक्करी स्थ राष्ट्रदा राष्ट्रं मे दत्त स्वाहा शक्वरी स्थ राष्ट्रदा राष्ट्रममुष्मै दत्त जनभृत स्थ राष्ट्रदा राष्ट्रं मे दत्त स्वाहा जनभृत स्थ राष्ट्रदा राष्ट्रममुष्मै दत्त विश्वभृत स्थ राष्ट्रदा राष्ट्रं मे दत्त स्वाहा विश्वभृत स्थ राष्ट्रदा राष्ट्रममुष्मै दत्तापः स्वराज स्थ राष्ट्रदा राष्ट्रममुष्मै दत्त। मधुमतीर्मधुमतीभिः पृच्यन्तां महि क्षत्रं क्षत्रियाय वन्वाना अनाधृष्टाः सीदत सहौजसो महि क्षत्रं क्षत्रियाय दधतीः॥
हे सूर्यतप्त जल समूह! आपकी उत्पत्ति सूर्य की कान्ति से हुई है, आप स्वयं देदीप्यमान होकर सभी को तेज प्रदान करने वाले हैं। आप राज्य प्रदान करने में सक्षम हैं, हमें राज्य प्रदान करें। आप सूर्य के सदृश तेजयुक्त हैं, अतएव सूर्य देव के सदृश ही हैं, आप राज्य प्रदान करने वाले हैं, अतः हमें राज्य प्रदान करें, इसके निमित्त यह आहुति अर्पित है। आप मनुष्यों को सुख पूर्वक राज्य प्रदान करने में सक्षम हैं, अतः उस सुखदाता व्यक्ति को राज्य प्रदान करें, इसके निमित्त यह आहुति समर्पित हैं।आप गौ आदि पशुओं के पालक एवं संरक्षक होकर राज्य प्रदान करने में सक्षम हैं, अतः संरक्षक पुरुष को राज्य प्रदान करें, इसके निमित्त यह आहुति अर्पित है। आप इच्छाओं को पूर्ण करने वाले होकर राज्य प्रदान करने में सक्षम हैं, अतः सामर्थ्यवान् पुरुष को राज्य प्रदान करें, इसके निमित्त यह आहुति अर्पित है। आप महाशक्तिशाली तथा महापराक्रमी होते हुए राज्य प्रदान करने वाले हैं, इसलिए हमें राज्य प्रदान करें, इसके निमित्त यह आहुति अर्पित है। आप प्रजा को सामर्थ्यशाली बनाने वाले एवं सामर्थ्य से सम्पन्न राज्य प्राप्त करने वाले हैं, अतएव सामर्थ्यवान् पुरुषों को राज्य प्रदान करें, इसके निमित्त यह आहुति अर्पित है।आप उत्तम मनुष्यों के पालन-पोषण करने वाले तथा उनको धारण करने वाले हैं, अतएव उत्तम गुण सम्पन्न राज्य हमें प्रदान करें, इसके निमित्त यह आहुति अर्पित है। आप सम्पूर्ण सृष्टि का पोषण करने वाले एवं धारण करने वाले हैं, अतएव पोषणकर्ता तथा धारणकर्ता पुरुष को राज्य प्रदान करें। आप सम्पूर्ण विद्याओं तथा धर्मों को जानने वाले हैं एवं इन गुणों से सम्पन्न राज्य आप प्रदान करने में सक्षम हैं, अतएव ऐसे धर्मज्ञ पुरुष को राज्य प्रदान करें, इसके निमित्त यह आहुति अर्पित है। हे मधुर रस वाले जल कणो! मधुरता से युक्त जल समूह के साथ महान् क्षात्र बल वाले शक्तिशाली याजक के निमित्त अपने रसों से अभिसिंचित करते हुए राज्य प्रदान करें। हे जलकणो! असुरों से पराजित न होने वाले बल को आप इस योद्धा (रक्षक) में प्रतिष्ठित करते हुए इस स्थल पर स्थापित हों।[यजुर्वेद 10.4]
Hey water bodies heated by the Sun! You are evolved by the luminosity of the Sun. You illuminate to grant energy to all. Being able, grant us kingdom-empire. You possess radiant-luminosity like the Sun and capable of granting empire, so grant us kingdom. This sacrifices if for you. You are capable of granting comfortable state to the humans, so grant empire to the person who can grant pleasure. This sacrifice is for you. You are capable of becoming the guardian and nurturer of cows and animals, hence grant kingdom to the person who can take care of them. This sacrifice is for you. You are capable of accomplishing desires and granting empire. Hence, grant state to the capable person. This sacrifice is for you. You being invincible possessing valour and capable of awarding kingdom, grant us empire. This sacrifice is for you. You make the populace capable and awarding prosperous state, hence grant empire to a suitable-capable person. This sacrifice is for you. You nurture-nourish the excellent humans and support them. Hence, grant us kingdom having excellent traits-qualities. This sacrifice is for you. You are nurturer and supporter of the entire universe, hence grant empire to the nurturer and supporter of universe. You are well versed with all knowledge and capable of awarding kingdom having al these qualities-characterises. Hence, grant empire to a dutiful-devoted person. This sacrifice is for you. Hey sweet water particles! Grant empire to a Yajak with great faculties of valour-bravery to the warrior along with water bodies possessing sweetness storing juices-saps. Hey water particles-molecules! Occupy this place granting undefeatable calibre in this warrior not to be defeated from the demons.(28.04.2025)
सोमस्य त्विषिरसि तवेव मे त्विषिर्भूयात्। अग्नये स्वाहा सोमाय स्वाहा सवित्रे स्वाहा सरस्वत्यै स्वाहा पूष्णे स्वाहा बृहस्पतये स्वाहेन्द्राय स्वाहा घोषाय स्वाहा श्लोकाय स्वाहा अꣳ शाय स्वाहा भगाय स्वाहा ऽर्यम्णे स्वाहा॥
हे व्याघ्र चर्म! तुम सोम की कान्ति हो। तुम्हारी जैसी मेरी भी कान्ति हो जाय। अग्नि देवता के लिये यह आहुति समर्पित है। सोम देवता के लिये यह आहुति समर्पित है। सर्वप्रेरक सवितादेव के लिये यह आहुति समर्पित है। वाणी की देवी सरस्वती के लिये यह आहुति समर्पित है। पूषादेव के लिये यह आहुति समर्पित है। बृहस्पति देव के लिये यह आहुति समर्पित है। इन्द्रदेव के लिये यह आहुति समर्पित है। घोष के लिये यह आहुति समर्पित है। श्लोक के लिये यह आहुति समर्पित है। अंश के लिये यह आहुति समर्पित है। भगदेवता के लिये यह आहुति समर्पित है। अर्यमा के लिये यह आहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 10.5]
Hey tiger skin! You are the luminosity of Som. Let me have luminosity like you. These sacrifices are for Agni Dev, Som Dev, Savita Dev, Goddess of speech Maa Saraswati, Pusha Dev, Brahaspati Dev, Indr Dev, Ghosh, Shlok, Ansh and Bhag Dev & Aryma Dev respectively.
पवित्रे स्थो वैष्णव्यौ सवितुर्वः प्रसव उत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभिः। अनिभृष्टमसि वाचो बन्धुस्तपोजाः सोमस्य दात्रमसि स्वाहा राजस्वः॥
हे कुशद्वय! इस याग में आप दोनों विष्णु सम्बन्धी पवित्रक हैं। आप दोनों पावन रहें। जैसे सूर्य की किरणों से जल पावन होकर ऊपर जाता है, वैसे ही हम आप दोनों को उन्नतशील करें। हे जल के समूह! आप भ्रष्ट पाप के आचरण से रहित हैं। उत्तम वाणी के द्वारा एक-दूसरे से भाई के सदृश रहें। तपोबल से राजा का पद प्रदान करने में आप सक्षम हैं, अतएव राज्य की धन-सम्पदा हमें प्रदान करें। इसके निमित्त यह आहुति अर्पित है।[यजुर्वेद 10.6]
Hey Kush duo! You form the Pavitrak of Bhagwan Shri Hari Vishnu in this Yagy. Both of you should be pure-pious. The way water rises due to the rays of Sun, we should elevate both of you. Hey water bodies! You are free from contaminated behaviour. By virtue of excellent speech, you are like brothers. You are able to attain empire by virtue of the power of ascetics. Grant wealth and assets of kingdom to us. This sacrifice is made for this purpose.
सधमादो द्युम्निनीराप एता अनाधृष्टा अपस्यो वसानाः।
पस्त्यासु चक्रे वरुणः सधस्थमपाꣳ शिशुर्मातृतमास्वन्तः॥
अभिषेक करने के निमित्त पात्रों में स्थित यह जल प्रसन्नता प्रदान करने वाला, तेज युक्त, श्रेष्ठ कर्म करने वाला एवं पराभूत न होने वाला है। यह आवास (गृह) की भाँति निवास-स्थल प्रदान करने वाला, धारण करने वाला एवं माता की भाँति पोषण प्रदान करने वाला है। शिशु रूप याजक सम्मान के साथ इसे प्रतिष्ठित करते हैं।[यजुर्वेद 10.7]
Water stored in the vessels for Abhishek grants happiness, possess aura-energy, capable of performing best deeds and undefeated. Its like the residence-shelter, supporting & grant nourishment like mother. Infant Yajman should establish it with due honour-respect.
क्षत्रस्योल्बमसि क्षत्रस्य जराय्वसि क्षत्रस्य योनिरसि क्षत्रस्य नाभिरसीन्द्रस्य वार्त्रघ्नमसि मित्रस्यासि वरुणस्यासि त्वयाऽयं वृत्रं वधेत्। दृवाऽसि रुजाऽसि क्षुमाऽसि। पातैनं प्राञ्चं पातैन प्रत्यञ्चं पातैनं तिर्यञ्चं दिग्भ्यः पात॥
हे तार्ण्य (वल्कल वस्त्र,पेड़ की छाल-पत्ते)! आप क्षात्रबल के निमित्त उल्ब (गर्भ को पोषित करने वाले जल) तथा जरायु (गर्भ की रक्षा करने वाली झिल्ली) की भाँति हैं। आप उसके उत्पत्ति-स्थल एवं केन्द्र भी हैं। (धनुष की भाँति) आप इन्द्र (याजक) के रिपुओं को विनष्ट करने वाले हैं। मित्रा-वरुण देव (धनुष की दोनों कोटि की भाँति) संग रहकर रिपुओं को विनष्ट करें। (आप वर्णों की भाँति) रिपुओं को विदीर्ण करने वाले, उन्हें प्रताड़ित करने वाले एवं आतंकित करने वाले हैं। आप (बाणों अथवा वीरों की भाँति इस क्षेत्र के याजक की) पूर्व दिशा से, पश्चिम दिशा से, उत्तर दिशा से तथा सम्पूर्ण दिशाओं से सुरक्षा करें।[यजुर्वेद 10.8]
Hey Tanry (clothing made of tree bark & leaves)! For protection of the strength of the warriors (Marshal clan) you are like water which nourish the foetus and the protecting membrane surrounding it. You are the destroyer of the enemies of Yajak -Indr Dev, like bow & arrow. Together like Mitr-Varun Dev, destroy the enemy forming the two terminal of the bow. Tear the enemies like the Varn, torturing and terrorising them. You are the Yajak of this land like the bow-arrow or warriors from all directions viz. east, west, north & south.
आविर्मर्या आवित्तो अग्नि अग्निर्गृहपतिरावित्त इन्द्रो वृद्धश्रवा आवित्तौ मित्रा-वरुणौ धृतव्रतावावित्तः पूषा विश्ववेदा आवित्ते द्यावापृथिवी विश्वशम्भुवावावित्तादितिरुरुशर्मा॥
सम्पूर्ण मानव समुदाय इस सूक्ष्म वातावरण की रक्षा करें। इसे गृह के पालनकर्ता अग्नि देव, कीर्तिमान् इन्द्र देव, व्रत को धारण करने वाले मित्रा-वरुण देव, सब कुछ जानने वाले पूषा देव, सम्पूर्ण जगत् का मंगल करने वाले भूलोक एवं स्वर्ग लोक, सुख स्वरूप देवमाता (अदिति) भी जानें अर्थात् रक्षा करें।[यजुर्वेद 10.9]
सभी मनुष्य (इस यज्ञ स्थल की) रक्षा करने की कृपा करें, गृहपति अग्नि (इस यज्ञ स्थल की) रक्षा करने की कृपा करें, यशस्वी इंद्र देव (इस यज्ञ स्थल की) रक्षा करने की कृपा करें. ऐश्वर्यवान मित्र देव और वरुण देव (इस यज्ञ स्थल की) रक्षा करने की कृपा करों, ब्रतधारी पूषा देव (इस यज्ञ स्थल की) रक्षा करने की कृपा करें समस्त देव (इस यज्ञ स्थल की) रक्षा करने की कृपा करें, स्वर्गलोक (इस यज्ञ स्थल की) रक्षा करने की कृपा करें, पृथ्वी देवी विश्व का शुभ करने वाली हैं, (इस यज्ञ स्थल की) रक्षा करने की कृपा करें, सुखदायी अदिति माता शुभ करने वाली हैं, (इस यज्ञ स्थल की) रक्षा करने की कृपा करें।
Let the entire humanity protect this Yagy site. The housekeeper Agni Dev, Indr Dev, Mitra-Varun Dev, Pusha Dev, demigods-deities, heavens, earth, Mata Aditi protect this Yagy site.
Let the whole humans clan protect this micro atmosphere. Let Agni Dev, aurous Indr Dev, determined Mitra-Varun, all knowing Pusha Dev, earth, heavens, Dev Mata Aditi protect the atmosphere.
अवेष्टा दन्दशूकाः प्राचीमा रोह गायत्री त्वाऽवतु रथन्तरꣳ साम त्रिवृत् स्तोमो वसन्त ऋतुर्ब्रह्म द्रविणम्॥
हे यजमान! काटने के स्वभाव वाले, मनुष्य को कष्ट पहुँचाने वाले साँप आदि या यज्ञ विरोधी तत्त्व नष्ट हुए। आप पूर्व दिशा की ओर अग्रसर हों। गायत्री छन्द, रथन्तर साम, त्रिवृत् स्तोम, वसन्त ऋतु एवं ज्ञान रूपी धन (ब्रह्म द्रविण) आपकी सुरक्षा करें।[यजुर्वेद 10.10]
Hey Yajman! Habitual biters, teasers of humans, snakes etc., opponents of Yagy have been destroyed. Move to the east direction. Let Gayatri Chhand, Trivrat Stom, Spring season, wealth in the form of enlightenment-learning protect you.
दक्षिणामा रोह त्रिष्टुप् त्वाऽवतु बृहत्साम पञ्चदश स्तोमो ग्रीष्मऋतुः क्षत्रं द्रविणम्॥
हे यजमान! आप दक्षिण दिशा की ओर अग्रसर हों। त्रिष्टुप् छन्द तुम्हारी रक्षा करे। बृहत् साम तुम्हारी रक्षा करे। पञ्चदश स्तोम तुम्हारी रक्षा करे। ग्रीष्मऋतु तुम्हारी रक्षा करे। पुरुषार्थ और धन आपकी सुरक्षा करें।[यजुर्वेद 10.11]
Hey Yajman! March in the South direction. Let Trishtup Chhand, Brahat Sam, Panchdash Stom, Summer, endeavours and wealth protect you.
प्रतीचीमा रोह जगती त्वावतु वैरूपꣳ साम सप्तदशस्तोमो वर्षा ऋतुर्विड् द्रविणम्॥
हे यजमान! आप पश्चिम दिशा की ओर अग्रसर हों। जगती छन्द तुम्हारी रक्षा करे। वैरूप साम तुम्हारी रक्षा करे। सप्तदश स्तोम तुम्हारी रक्षा करे। वर्षाऋतु तुम्हारी रक्षा करे एवं पोषणकारी धन आपकी सुरक्षा करें।[यजुर्वेद 10.12]
Hey Yajman! Move in the west direction. Let Jagti Chhand, Vaerup Som, Saptdash Stom, rainy season and nourishing wealth protect you.
उदीचीमा रोहानुष्टुप् त्वाऽवतु वैराजथं सामैकविथंश स्तोमः शरदृतुः फलं द्रविणम्॥
हे यजमान! आप उत्तर दिशा की ओर अग्रसर हों। अनुष्टुप् छन्द तुम्हारी रक्षा करे। वैराज साम तुम्हारी रक्षा करे। एकविंश स्तोम तुम्हारी रक्षा करे। शरदऋतु तुम्हारी रक्षा करे तथा फल प्रदान करनेवाली धन-सम्पदा आपकी सुरक्षा करें।[यजुर्वेद 10.13]
Hey Yajman! Move in the North direction. Let Anushtup Chhand, Vaeraj Sam, Ekvinsh Stom, winter and rewarding wealth-assets protect you.
ऊर्ध्वामारोह पंक्तिस्त्वाऽवतु शाक्वररैवते सामनी त्रिणवत्रयस्त्रिꣳशौ स्तोमौ हेमन्तशिशिरावृतू वर्ची द्रविणं प्रत्यस्तं नमुचेः शिरः॥
हे यजमान! आप ऊपर की ओर अग्रसर हों। पंक्ति छन्द तुम्हारी रक्षा करे। शाक्वर साम तुम्हारी रक्षा करे तथा रैवत साम तुम्हारी रक्षा करे। त्रिवण तथा त्रयस्त्रिंश नामक दोनों स्तोम तुम्हारी रक्षा करें। हेमन्त तथा शिशिर दोनों ऋतुएँ एवं तेजस्वी धन आपकी सुरक्षा करें। पापाचरण में लिप्त प्रवृत्तियों वाले व्यक्तियों (नमुचों) को विनष्ट कर दिया जाय।[यजुर्वेद 10.14]
Hey Yajman! Move in the Upward direction. Let Pankti Chhand, Shakkr Sam, Raevat Sam, Trivan and Traystrinsh Stom protect you. Hemant & Shishr (seasons), radiant wealth protect you. Namuch-a human clan, engaged in sins be destroyed.
सोमस्य त्विषिरसि तवेव मे त्विषिर्भूयात्। मृत्योः पाह्योजोऽसि सहोऽस्यमृतमसि॥
हे व्याघ्र चर्म! तुम सोम की कान्ति हो। मेरी भी कान्ति तुम्हारे जैसी हो जाय। हे स्वर्ण! आप मेरी मृत्यु से रक्षा करें। आप उत्साह रूप ओज हैं। आप ही शरीरिक बल और अमृत हैं।[यजुर्वेद 10.15]
Hey tiger skin! You are the aura of Som. Let my radiance become like you. Hey Gold! Protect me from death. You aura like enthusiasm. You physical strength and elixir.(29.04.2025)
हिरण्यरूपा उषसो विरोक उभाविन्द्रा उदिथः सूर्यश्च।
आ रोहतं वरुण मित्र गर्तं ततश्चक्षाथामदितिं दितिं च मित्रोऽसि वरुणोऽसि॥
हे मित्रा वरुण देवों! आप दोनों देव सुवर्ण के सदृश तेज युक्त, राजा की भाँति वैभव युक्त एवं उषाओं को दीप्तिमान् करते हुए सूर्य देव चन्द्र देव की भाँति उदीयमान होते हैं। अतएव आप दोनों देव रथ पर विराजमान होकर देवमाता अदिति (अखण्डित अपनी सेना) और दैत्य माता दिति (खण्डित शत्रु सेना) को देखो। हे मित्र! आप सुख प्रदान करने वाले हैं, हे वरुण! आप विघ्न को दूर करने वाले हैं। हे दक्षिण बाहु! तुम मित्र देवता हो। हे वाम बाहु! तुम वरुण देवता हो।[यजुर्वेद 10.16]
Hey Mitr-Varun Dev! You rise like Sury & Chandr Dev, possess radiance like Usha Devi, has aura like gold, grandeur like the king. Ride the charoite and look at the armies of Dev Mata Aditi and the mother of Demons Diti. Hey Mitr Dev! You grant pleasure. Hey Varun Dev! You remove the obstacles. Hey Dakshin Bahu! You are Mitr Dev. Hey Vam Bahu! you are Varun Dev.
सोमस्य त्वा द्युम्नेनाभि षिञ्चाम्यग्नेर्भाजसा सूर्यस्य वर्चसेन्द्रस्येन्द्रियेण।
क्षत्राणां क्षत्रपतिरेध्यति दिद्यून्पाहि॥
हे यजमान! मैं तुम्हें चन्द्रमा के यशः प्रकाश से अभिसिंचित करता हूँ। क्षत्रियों के एक मात्र अधिपति होकर तुम आगे बढ़ो। राजा होकर तुम हमारी शत्रुओं के बाणों से रक्षा करो। हे यजमान! मैं तुम्हें अग्नि के तेज से अभिसिंचित करता हूँ। क्षत्रियों के एकमात्र अधिपति होकर तुम आगे बढ़ो। राजा होकर तुम हमारी शत्रुओं के बाणों से रक्षा करो। हे यजमान! सूर्य के तेज से मैं तुम्हें अभिसिंचित करता हूँ। क्षत्रियों के एकमात्र अधिपति होकर तुम आगे बढ़ो। राजा होकर तुम हमारी शत्रुओं के बाणों से रक्षा करो। हे यजमान! मैं तुम्हें इन्द्र के शरीर बल से तुम्हें अभिसिंचित करता हूँ। क्षत्रियों के एकमात्र अधिपति होकर तुम आगे बढ़ो। राजा होकर तुम हमारी शत्रुओं के बाणों से रक्षा करो।[यजुर्वेद 10.17]
Hey Yajman! I grow-nurse you with the light and glory of Chandr Dev. Become the only lord of the Kshatriy and march ahead. Become king and protect us from the arrows of the enemy. Hey Yajman! I nurse with the aura of Agni Dev. Become the only lord of the Kshatriy and march ahead. Become king and protect us from the arrows of the enemy. Hey Yajman! I nurse you with the radiance of Sury Dev! Become the only lord of the Kshatriy and march ahead. Become king and protect us from the arrows of the enemy. Hey Yajman! I nourish you with the might & power of Indr Dev! Become the only lord of the Kshatriy and march ahead. Become king and protect us from the arrows of the enemy.
इमं देवा असपत्नꣳ सुवध्वं महते क्षत्राय महते ज्यैष्ट्ठ्याय महते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय। इमममुष्य पुत्रममुष्यै पुत्रमस्यै विश एष वोऽमी राजा सोमोऽस्माकं ब्राह्मणानाꣳ राजा॥
हविभाग ग्रहण करने वाले हे देवता गण! महान् क्षात्र शक्ति के सम्पादन के निमित्त, महान् राज्यपद के निमित्त, उत्तम जनराज्य के निमित्त, देवराज इन्द्र के सदृश हर तरह से विभूतिवान् बनने के निमित्त, रिपुओं से विहीन, अमुक पिता के पुत्र, अमुक माता के पुत्र को प्रजा के पालन के निमित्त अभिसिंचित करें। हे अमुक प्रजाजनों! आप सभी के निमित्त एवं हम विद्वानों के निमित्त भी यह राजा चन्द्रमा के सदृश आह्लादक हैं।[यजुर्वेद 10.18]
Hey demigods-deities, accepting share of oblations! For carrying out the duties of the warriors-Kshatriy, for the high position in the state, having grandeur like Indr Dev, free from enemies, become the son of X and mother Y, grow-nourish for the welfare of the subjects-populace. Hey subjects! Let Chandr Dev gladden us-the scholars and you, alike.
प्र पर्वतस्य वृषभस्य पृष्ठान्नावश्चरन्ति स्वसिच इयानाः। ता आऽववृत्रन्नधरागुदक्ताअहि बुध्न्यमनु रीयमाणाः। विष्णोर्विक्रमणमसि विष्णोर्विक्रान्तमसि विष्णोः क्रान्तमसि॥
जिस प्रकार पहाड़ों के पृष्ठभाग से वर्षा के जल की धाराएँ प्रवाहित होती हैं, उसी प्रकार अभिषेक काल में उत्तम राजा की पीठ से सिंचन करने वाली जल की धाराएँ प्रवाहित होती हैं। ये जल की धाराएँ जिस प्रकार पहाड़ के नीचे प्रवाहित होती हुई पहाड़ को आच्छादित करती हैं, वैसे ही ये जल की धाराएँ वैभवशाली जलों को घेरकर प्रवाहित होती हैं। (अध्वर्यु यजमान को व्याघ्र चर्म पर तीन पग चलाये। यजमान बोले) हे मेरे प्रथम पाद प्रक्षेप! तुम विष्णु के द्वारा जीते गये भूलोक हो। हे मेरे द्वितीय पाद प्रक्षेप! तुम यज्ञ पुरुष भगवान् विष्णु के द्वारा जीते गये अन्तरिक्षलोक हो। हे तृतीय पाद प्रक्षेप! तुम यज्ञ पुरुष भगवान् विष्णु के द्वारा जीते गये वैकुण्ठलोक हो।[यजुर्वेद 10.19]
The way streams originate from the mountains, water currents emerge from the back of the excellent king during coronation. The way these streams cover the mountain and flow down wards, similarly they flow carrying sumptuous-luxurious waters. Priest should take three steps over the tiger skin and the Yajman should say, "My first step forward illustrate the earth won by Bhagwan Shri Hari Vishnu". My second step put forward shows the space won by Bhagwan Shri Hari Vishnu and the third step indicate the winning of heavens by Yagy Purush Bhagwa Shri Hari Vishnu.
प्रजापते न त्वदेतान्यन्यो विश्वा रूपाणि परि ता बभूव। यत्कामास्ते जुहुमस्तन्नो अस्त्वयममुष्य पितासावस्य पिता वयꣳ स्याम पतयो रयीणा स्वाहा। रुद्र यत्ते क्रिवि परं नाम तस्मिन् हुतमस्यमेष्टमसि स्वाहा॥
हे प्रजा के पालनकर्ता! इस सम्पूर्ण जगत् में आपके अतिरिक्त और कोई अन्य अधिपति नहीं है। हम अपने जिन अभीष्ट पूर्ति के उद्देश्य से आपके लिए यज्ञ करते हैं, हमारे वे अभीष्ट पूर्ण हों। यह अमुक का पिता है तथा इसका पिता यह अमुक है। यह यजमान है और यह यजमान का पिता है। हम सब सदैव पुत्रवान् रहें। हम अपरिमित ऐश्वर्य के स्वामी बनें, इसके लिए यह आहुत्ति अर्पित है। हे रुद्र देव! आप घर के पूजनीय एवं सम्माननीय हैं। आपको प्रलयकारी, दुष्ट नाशक आदि नामों से जाना जाता है, अतः आप अपनी कृपा दृष्टि हमारे ऊपर बनाये रखें, इसके निमित्त यह आहुति अर्पित करते हैं।[यजुर्वेद 10.20]
Hey supporter-nurturer of the subjects! There is no lord except you. Our motives pertaining to Yagy should be fulfilled. He is the father of X and she is mother of Y. He is Yajman and this is Yajman's father. We must have sons. We should become owner of unlimited grandeur & wealth, opulence & hence, this sacrifice is for you. Hey Rudr Dev! You are honoured and worshiped in the house. You are knows as the annihilator and destroyer of the wicked-vicious. Be kind to us. This sacrifice is for you.
इन्द्रस्य वज्रोऽसि मित्रावरुणयोस्त्वा प्रशास्त्रोः प्रशिषा युनज्मि। अव्यथायै त्वा स्वधायै त्वाऽरिष्टो अर्जुनो मरुतां प्रसवेन जयापाम मनसा समिन्द्रियेण॥
हे रथ! आप इन्द्र देव के वज्र के सदृश शत्रुओं को विनष्ट करने वाले हैं। मैं आपको मित्र तथा वरुण देव की आज्ञा से घोड़ों के साथ युक्त करता हूँ। मैं इन्द्र के तुल्य अभय प्राप्त के निमित्त तुझ पर आरूढ़ होता हूँ। अन्न प्राप्ति के निमित्त मैं तुझ पर आरूढ़ होता हूँ। हे घोड़ों! तुम मरुत देवताओं की आज्ञा से हमारे शत्रुओं को जीतो। यजमान रथ को वेदी के उत्तर भाग में बँधी गायों के पास ले जाकर खड़ा करे और धनुष की डोरी से गायों स्पर्श करते हुए बोले- हम अपने मन से प्रारम्भ किये गये कर्म के फल को प्राप्त हुए। हम बलवीर्य से सम्पन्न हुए।[यजुर्वेद 10.21]
Hey charoite! You are a destroyer like the Vajr of Indr Dev. I deploy you with horses with the order of Mitr & Varun Dev. I ride you like Indr Dev having been granted asylum-safety. I ride you for having food grains. Hey horses! Win our enemies with the orders of Marud Gan. Yajman should carry the charoite to the north of Yagy Vedi where cows are tied, touch the string of his bow and say, "We have attained the reward of our deeds started with our thoughts-ideas. We have attained might and strength".
मा त इन्द्र ते वयं तुराषाडयुक्तासो अब्रह्मता विदसाम।
तिष्ठा रथमधि यं वज्रहस्ता रश्मीन्देव यमसे स्वश्वान्॥
शीघ्रता से रिपुओं का संहार करने में सक्षम, हाथ में वज्र धारण करनेवाले हे ऐश्वर्य युक्त, देदीप्यमान् इन्द्र! आप दिव्य गुणों से युक्त होकर जिस रथ में विराजमान होकर अच्छी तरह शिक्षित किये गये अश्वों की लगाम थामते हैं, हम आपके स्वजन उस रथ से पृथक् होकर हानि को प्राप्त न करें अर्थात् सदैव आपके आश्रय में रहें, ज्ञान रहित न होने पायें।[यजुर्वेद 10.22]
Destroyer of the enemies quickly, Vajr wielding, possessing opulence, aurous hey Indr Dev! You hold the reins of the trained-skilled horse possessing divine characterises, we your own people-subjects should remain unharmed and un detached from it.
अग्नये गृहपतये स्वाहा सोमाय वनस्पतये स्वाहा मरुतामोजसे स्वाहेन्द्रस्येन्द्रियाय स्वाहा। पृथिवि मातर्मा मा हि सीर्मो अहं त्वाम्॥
गृह के पालनकर्ता अग्नि देव के निमित्त यह आहुति समर्पित करते हैं। वनस्पति रूप सोम देव के निमित्त यह आहुति समर्पित करते हैं। मरुतों के बल के निमित्त यह हवि समर्पित करते हैं। ऐश्वर्यवान् इन्द्रदेव के इन्द्रिय बल के लिए यह आहुति समर्पित करते हैं। (यजमान पृथ्वी को सम्बोधित करते हुए बोले, हे धरती माता! हम आपको पीड़ित न करें और न ही आप हमारी हिंसा करें।[यजुर्वेद 10.23]
This sacrifice is for Agni Dev, the nurturer of the house. This sacrifice is for Som Dev in the form of vegetation. This sacrifice is for the might & power of Marud Gan. This sacrifice is for opulence possessor Indr Dev. The Yajman should touch the earth and say, "hey mother earth! Neither we should torture nor harm you".
हꣳसः शुचिषद्वसुरन्तरिक्षसद्धोता वेदिषदतिथिर्दुरोणसत्।
नृषद्वरसदृतसद्व्योमसदब्जा गोजा ऋतजा अद्रिजा ऋतं बदत॥
(यजमान रथ से नीचे उतर कर बोले- अहंकार का हनन करने वाला, पवित्रता में स्थित रहने वाला, मनुष्यों का प्रवर्तक, वायु रूप से अन्तरिक्ष में स्थित रहने वाला, देवों का आवाहन करने वाला, अग्नि भाव से वेदी में स्थित रहने वाला, सबका पूज्य, आहवनीयादि रूप से यज्ञगृह में रहने वाला, प्राण भाव से मनुष्यों में रहने वाला, उत्कृष्ट स्थानों में रहने वाला, यज्ञ में स्थित रहने वाला, मण्डल भाव से आकाश में रहने वाला, मत्स्यादि रूप से जल में रहने वाला, स्वेदज अण्डज-पिण्डज-उद्भिज्ज रूप से पृथ्वी पर उत्पन्न होने वाला, पाषाण में अग्नि भाव से और बादलों में जल रूप से, सर्वत्र विद्यमान परमात्मा के निमित्त मैं पृथ्वी पर उतरता हूँ।[यजुर्वेद 10.24]
Yajman should come down the charoite and say, "I land over the earth for the sake of all pervading Almighty who is destroyer of ego, stay in piousness, originator of the humans, stay in the form of air in the space, stay as Agni in the Vedi, revered-honoured by all, lives as air vital, remain in the Yagy as invoking, occupying excellent domains, reside in the Yagy, lives as fish in water, appear over the earth as egg, lobes, self originating, remain in the rocks as fire and as water in the clouds".(30.04.2025)
इयदस्यायुरस्यायुर्मयि धेहि युङ्डसी वर्चोऽसि वर्चो मयि धेह्युर्गस्यूर्जं मयि धेहि।
इन्द्रस्य वां वीर्यकृतो बाहू अभ्युपावहरामि॥
हे शतमान स्वर्ण! आप ही जीवन रूप हैं, अतएव हमें चिरंजीवी बनायें। आप ही अच्छे कर्मों से संयुक्त करने वाले तेज स्वरूप हैं, अतएव हमें तेज युक्त बनायें। आप शक्ति स्वरूप हैं, अतएव हमें शक्तिशाली बनायें। (यज्ञ द्रव्य उतारने वाले भुजाओं के प्रति) आप देवराज इन्द्र की पराक्रमी भुजाओं, मित्रा-वरुण देवों के सदृश हैं। हविष्यान्न को हम यज्ञ-स्थल के निकट रखते हैं।[यजुर्वेद 10.25]
Hey hundred year gold! You constitute the life, hence make us long lived. You are accompanied with virtuous deeds, hence grant us aura-radiance. You represent power hence make us powerful. You are like the mighty arms of Indr Dev and like deity Mitr-Varun. We put the food grains offerings close to the Yagy site.
स्योनाऽसि सुषदाऽसि क्षत्रस्य योनिरसि।
स्योनामासीद सुषदामा सीद क्षत्रस्य योनिमा सीद॥
हे व्याघ्र चर्म (आसन)! आप सुख प्रदान करने वाले हैं, आप सुख स्वरूप हैं एवं पुरुषार्थ को धारण करने वाले हैं। हे यजमान! आप सुखदायी आसन पर विराजें। सुख स्वरूप एवं क्षात्र शक्ति के उत्पत्ति स्थल रूप इस आसन पर आरोहण करें।[यजुर्वेद 10.26]
Hey cushion made of tiger skin! You grant comfort and hold capability for making efforts. Hey Yajman-household! Occupy the comfortable cushion. Sit over the comfortable cushion-seat representing the power seat of Kshatriy-warriors.
नि षसाद धृतव्रतो वरुणः पस्त्यास्वा। साम्राज्याय सुक्रतुः॥
अध्वर्यु यजमान के हृदय का स्पर्श कर बोले, यह याजक व्रतरूपी यज्ञीय धर्म को धारण किये हुए, अनिष्टों को दूर करने में तत्पर, उत्तम संकल्पों से सम्पन्न होकर साम्राज्य को प्राप्त करने के निमित्त, प्रजा के मध्य में सम्राट् के रूप में आसन पर विराजमान हो गया है।[यजुर्वेद 10.27]
Priest should touch the chest of the Yajman and say, "This Yajak is persuading the Kshatriy Dharm-duties of warriors, busy in removing obstacles-forbidden; makes excellent determinations for acquiring empire and sit over the thrown like a emperor".
अभिभूरस्येतास्ते पञ्च दिशः कल्पन्तां ब्रह्मस्त्वं ब्रह्माऽसि सविताऽसि सत्यप्रसवो वरुणोऽसि सत्यौजा इन्द्रोऽसि विशौजा रुद्रोऽसि सुशेवः। बहुकार श्रेयस्कर भूयस्करेन्द्रस्य वज्रोऽसि तेन मे रध्य॥
हे अक्ष अथवा याजक! आप रिपूओं को पराभूत करने वाले हैं। पाँचों दिशाएँ (पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण तथा ऊर्ध्व दिशा) आपके निमित्त मंगलकारी हों। हे महान् शक्तिमान्! आप सर्वोत्तम ज्ञान से युक्त हैं। आप अच्छे कर्म से धन सम्पदा प्रदान करने वाले हैं। आप सत्य बल वाले वरुण देव हैं। आप प्रजा की सहायता के बल पर पराक्रमी बनने वाले इन्द्र देव हैं। आप सेवा करने योग्य रुद्रदेव हैं, आप बहुकर्म करने में सक्षम हैं, मंगलकारी हैं, वैभवशाली हैं। हे सभ्य! आप देव राज इन्द्र के वज्र हैं, हमारे याजक को धन-वैभव प्रदान करें।[यजुर्वेद 10.28]
अक्ष :: किसी वस्तु-ग्रह अथवा उपग्रह के केंद्र से गुजरने वाली काल्पनिक या वास्तविक रेखा; axis.
Hey Axis or Yajak! You should defeat the enemies. Let the five direction i.e., east, west, north, south and up become auspicious to you. Hey possessor of great strength! You possess excellent knowledge. You grant wealth through auspicious-virtuous means. You are Varun Dev, the possessor of truthfulness. For are Indr Dev possessor of might-power through the subjects-populace. You are auspicious-virtuous, possessing grandeur-opulence Rudr committed to welfare, capable of performing several jobs. Hey Sabhy! You are the Vajr of Indr Dev! Grant grandeur, wealth to the Yajak.
अग्निः पृथुर्धर्मणस्पतिर्जुषाणो अग्निः पृथुर्धर्मणस्पतिराज्यस्य वेतु स्वाहा स्वाहाकृताः सूर्यस्य रश्मिभिर्यतध्वꣳ सजातानां मध्यमेष्ठठ्याय॥
महान् पुरुषार्थ से सम्पन्न, धर्म का पालन करने वाले, सभी देवताओं में अग्रणी, तेज युक्त अग्नि देव हमारी घृताहुति को ग्रहण करें। हे अक्षो! आहुति को ग्रहण करके आप सूर्य की किरणों के द्वारा बलिष्ठ होकर सामर्थ्यशाली शासकों के बीच में इस याजक को सर्वोत्तम बनाने का प्रयास करें।[यजुर्वेद 10.29]
Let Agni Dev maker of great efforts, follower of Dharm-duty, ahead of all demigods-deities possessing radiance, should accept our sacrifices of Ghee. Hey axis! Accept the sacrifices, become powerful like the rays of Sun, make this Yajak best amongest the capable mighty rulers.
सवित्रा प्रसवित्रा सरस्वत्या वाचा त्वष्ट्रा रूपैः पूष्णा पशुभिरिन्द्रेणास्मे बृहस्पतिना ब्रह्मणा वरुणेनौजसाऽग्निना तेजसा सोमेन राज्ञा विष्णुना दशम्या देवतया प्रसूतः प्र सर्पामि॥
सर्व प्रेरक सविता देव के दिव्य गुण से, वारूपा सरस्वती से, प्रजापति के रूप से, पशुधन से सम्पन्न पूषा देव से, वेद के ज्ञान से सम्पन्न बृहस्पति देव से, शासक रूप देवराज इन्द्र से, वीर्य युक्त वरुण देव से, तेज युक्त अग्नि देव से, राजा स्वरूप सोम देव से एवं पालक विष्णु देव (इन दस देवताओं) से प्रेरित होकर हम देवत्व के पथ पर अग्रसर होते हैं।[यजुर्वेद 10.30]
We should move-progress to the path of divinity on being inspired by Savita Dev, Maa Saraswati, Prajapati, lord of animals Pusha Dev, enlightened Brahaspati Dev, emperor Indr Dev, luminous Agni Dev, kingly Som Dev, mighty Varun Dev and the nurturer Bhagwan Shri Hari Vishnu, these ten deities.
अश्विभ्यां पच्यस्व सरस्वत्यै पच्यस्वेन्द्राय सुत्राम्णे पच्यस्व।
वायुः पूतः पवित्रेण प्रत्यङ्कसोमो अतिस्रुतः। इन्द्रस्य युज्यः सखा॥
हे सुरा देवि! आप अश्विनी कुमारों के लिए रस रूप में परिणत हों, वाक्देवी सरस्वती की प्रीति के लिये तथा देवराज इन्द्र के लिए पक्व रूप हों। वायु द्वारा शुद्ध होने वाले इन्द्र देव से संयुक्त हुए, उनके सखा वैभवशाली सुसंस्कारित सोम देव प्रकट हो रहे हैं, वे उसे धारण करें। यह सोम इन्द्र का परम मित्र है।[यजुर्वेद 10.31]
सुरा :: शराब; liquor or wort, strong distilled alcoholic drink referred to as an anaesthetic by Sushrut.
Hey deity of wine! You should turn into a sap-juice for Ashwani Kumars and possess roasted-backed form for Maa Saraswati and Indr Dev. Grandeur possessing Som Dev, bosom friend of Indr Dev, sanctified due to air is appearing. Som Dev is an intimate friend of Indr Dev.
कुविदङ्ग यवमन्तो यवं चिद्यथा दान्त्यनुपूर्वं वियूय। इहेहैषां कृणुहि भोजनानि ये बर्हिषो नम उक्तिं यजन्ति। उपयामगृहीतोऽस्यश्विभ्यां त्वा सरस्वत्यै त्वेन्द्राय त्वा सुत्राम्णे॥
हे सोम! प्रजाओं के संरक्षण की अभिलाषा से आपको ज्ञान युक्त, वैभव युक्त अश्विनी कुमारों, वाक्देवी सरस्वती एवं देवराज इन्द्र के निमित्त हम उपयाम-पात्र में स्वीकारते हैं। जैसे जौ की खेती करने वाले किसान जौ को बहुत ही सँभालकर काटते हैं तथा संरक्षित रखते हैं, वैसे ही देवों के प्रिय सोम दुष्टों का विनष्ट करके श्रेष्ठ पुरुषों के कथनानुसार उत्कृष्ट लोगों को पोषित कर उनकी सुरक्षा करें।[यजुर्वेद 10.32]
Hey Som! We accept you in the Upyam pot, with the desire of protection of the subjects-populace for enlightened, grandeur possessing Ashwani Kumars, Maa Saraswati and Indr Dev. Let Som, dear to the deities, destroying the wicked-vicious, as the excellent-virtuous people who act just like the farmer who cut the barley carefully and protect it.
युवꣳ सुराममश्विना नमुचावासुरे सचा। विपिपाना शुभस्पती इन्द्रं कर्मस्वावतम्॥
हे अश्विनी कुमारो! नमुचि नामक राक्षस के अधिकार में विद्यमान रमणीय सोमरस का आपने अच्छी तरह सेवन किया था, उस सोमरस का संस्कार करके उसे आपने देवराज इन्द्र को दिया था। इस प्रकार आप दोनों ने श्रेष्ठ कर्मों के कर्ता देवराज इन्द्र को स्वकर्म करने में सक्षम बनाया।[यजुर्वेद 10.33]
Hey Ashwani Kumars! You properly drunk, tasty Somras kept under the protection of demon Namuchi and granted it to Dev Raj Indr after sanctifying it. In this manner both of you made Indr Dev capable to discharging his duties.
पुत्रमिव पितरावश्विनोभेन्द्रावथुः काव्यैर्दꣳ सनाभिः।
यत्सुरामं व्यपिब: शचीभिः सरस्वती त्वा मघवन्नभिष्णक्॥
हे देवराज इन्द्र! असुरों के संगत में रहे अपवित्र सोम का क्रान्त द्रष्टा ऋषियों मन्त्रों से संस्कार कर अश्विनी कुमारों ने आपको सेवन कराया और आपकी सुरक्षा वैसे ही की, जिस प्रकार पिता पुत्र की सुरक्षा करता है। आपने नमुचि नामक असुर का संहार करके जब हर्षदायी सोमरस का सेवन किया, तब देवी सरस्वती भी आपके अनुरूप हुईं।[यजुर्वेद 10.34]
Hey Dev Raj Indr! Ashwani Kumars sanctified the Som Ras with the help of Rishis-sages enchanting Mantrs, kept with the demons and protected you just the father who protect his son. You killed Namuchi and drunk gladdening Somras and Maa Saraswati became favourable to you.(07.05.2025)
यजुर्वेद संहिता, अथैकादश अध्याय :: ऋषि :- प्रजापति, नाभानेदिष्ठ, कुक्षि, शुनःशेष, पुरोधा, मयोभू, गृत्समद, सोमक, पायु, भरद्वाज, देवश्रवो देववात, प्रस्कण्व, सिन्धुद्वीप, विश्वमना, कण्व, त्रित, चित्र, उत्कील, विश्वामित्र, आत्रेय, सोमाहुति, विरूप, वारुणि, जमदग्नि, नाभानेदि। देवता :- सविता, वाजी, क्षत्रपति, गणपति, अग्नि, द्रविणोदा, प्रजापति, दम्पती, जायापती, होता, आप, वायु, मित्र, रुद्र, सिनीवाली, अदिति, वसुरुद्रादित्यविश्वेदेवा, वस्वादयो मंत्रोक्ता, आदित्यादयो लिंगोक्ता, वस्वादयो लिंगोक्ता, अग्न्यादयो मंत्रोक्ता, अम्बा, सेनापति, अध्यापक और उपदेशक, पुरोहित और यजमान, सभापति यजमान, यजमान और पुरोहित; छन्द :- अनुष्टुप्, गायत्री, जगती, त्रिष्टुप्, शक्वरी, पंक्ति, बृहती, कृति, धृति, उष्णिक्।
युञ्जानः प्रथमं मनस्तत्त्वाय सविता धियः। अग्नेर्योतिर्निचाय्य पृथिव्या अध्याभरत्॥
सविता देव जगत् के सृजन काल के आरम्भ में मनस्तत्त्व तथा मेधा को विकसित करके, अग्नि से ज्योति जाग्रत् करके उनसे भूमण्डल को परिपूर्ण कर देते हैं।[यजुर्वेद 11.1]
मनस्तत्त्व :: मन-मानसिक तत्व, यह विचार, ध्यान, मन के विषय में कोई गूढ़ ज्ञातव्य तथ्यभावना और मनोबल को दर्शाता है, जो कि व्यक्ति के मानसिक और आध्यात्मिक विकास में भूमिका निभाता है, यह छत्तीस तत्वों में से एक है; one of the basic ingredients of mind.
Savita Dev activate the mind and intelligence, luminosity in the fire in the beginning of evolution and fill the earth with them.
युक्तेन मनसा वयं देवस्य सवितुः सवे। स्वर्याय शक्त्या॥
सविता देव द्वारा निर्मित जगत् में हम अपने मनस्तत्त्व को परमात्म तत्त्व से सम्पन्न करके, परलोक के सुख को प्राप्त करने हेतु उस ज्योति को अपने भीतर निहित करते हैं।[यजुर्वेद 11.2]
We assimilate-absorb the basic element of mind accomplish it with the root ingredient of the Almighty for comforts-pleasure in the next abodes-births in ourselves.
युक्त्वाय सविता देवान्त्स्वर्यतो धिया दिवम्।
बृहज्योतिः करिष्यतः सविता प्र सुवाति तान्॥
सर्वप्रेरक सविता देव, सुख स्वरूप एवं प्रकाश को विस्तारित करने वाले सूर्यादि देवताओं को अपनी प्रेरक शक्ति के द्वारा तेज से भर देते हैं। सर्वप्रेरक के रूप में वही सविता देव व्यापक प्रकाश को सम्पूर्ण जगत् में विस्तारित करने हेतु सूर्य आदि देवताओं को प्रखर सामर्थ्य से ओत-प्रोत कर देते हैं।[यजुर्वेद 11.3]
प्रखर :: तीक्ष्ण, तेज, उग्र, प्रचंड; fierce, sharp.
All inspiring Savita Dev, expand the comforts-pleasure and luminosity granting it to Sury Dev and other demigods-deities. For expanding the luminosity, all inspiring Savita Dev equip the demigods-deities with fierce capability.
युञ्जते मन उत युञ्जते धियो विप्रा विप्रस्य बृहतो विपश्चितः।
वि होत्रा दधे वयुनाविदेक इन्मही देवस्य सवितुः परिष्ठुतिः॥
विशेष ज्ञान से युक्त ऋत्विग्गण याजक के यज्ञ को पूर्ण तया सफल बनाने हेतु अपने मन तथा मेधा को इच्छित कर्म में पूरी तत्परता के साथ लगाते हैं। सिर्फ वे ही सम्पूर्ण विज्ञान कर्मों को जानने वाले हैं तथा सम्पूर्ण सृष्टि का रचयिता तथा धारणकर्ता है। उन सर्व प्रकाशक सविता देवता की आराधना महिमा से युक्त है।[यजुर्वेद 11.4]
Ritviz equipped with specific knowledge employ their intellect and mental vigour dedicatedly for the success of the Yagy in the desired deeds. Only they are aware of all methods-procedures being the producer & supporter of entire living world. The worship of all illuminating Savita Dev is associated with glory-grandeur.
युजे वां ब्रह्म पूर्व्य नमोभिर्वि श्लोक एतु पथ्येव सूरेः।
शृण्वन्तु विश्वे अमृतस्य पुत्रा आ ये धामानि दिव्यानि तस्थुः॥
हे यजमान पत्नी तथा याजक! आप दोनों के लिए हम अध्वर्युगण अन्नादि हव्य पदार्थ से उत्तम ज्ञान से युक्त, इस सर्वोत्तम यज्ञ का सम्पादन करते हैं, जिसकी हवियाँ जैसे-जैसे दोनों लोकों में पहुँचती है, वैसे-वैसे ही याजक की भावना से परिपूर्ण मन्त्र भी दोनों लोकों में पहुँचें तथा उसे स्वर्ग लोक में रहने वाले मरण धर्म से रहित, प्रजापति के पुत्र, सम्पूर्ण देवगण भी सुनें।[यजुर्वेद 11.5]
Hey wife of the host and Yajak! We priests, accomplish the Yagy for you, accompanied with the best offerings of food grains and excellent knowledge. As soon as the offerings & Mantrs reach both abodes (earth & heaven) immortal residents of heavens, Prajapati and all demigods-deities too should listen to them.
यस्य प्रयाणमन्वन्य इद्ययुर्देवा देवस्य महिमानमोजसा।
यः पार्थिवानि विममे स एतशो रजाꣳ सि देवः सविता महत्विना॥
जिन सर्वश्रेष्ठ सविता देव के कर्म, माहात्म्य तथा सामर्थ्य बल का दूसरे सम्पूर्ण देवता अनुकरण करते हैं, जो अपनी उत्पादक-सामर्थ्य से समस्त लोकों के सृजनकर्ता हैं, वे सृष्टा सविता देव अपनी रचना शक्ति से इस जगत् तथा ब्रह्माण्ड में सभी जगह व्याप्त हैं।[यजुर्वेद 11.6]
The efforts of excellent Savita Dev, his glory, might, capability are followed by the other demigods-deities, responsible for creation of other abodes by virtue of their capability to evolve all abodes and that creator Savita Dev pervade the entire universe including this abode.
देव सवितः प्र सुव यज्ञं प्र सुव यज्ञपतिं भगाय।
दिव्यो गन्धर्वः केतपूः केतन्नः पुनातु वाचस्पतिर्वाचं नः स्वदतु॥
हे सविता देव! आप यज्ञ कर्म करने के निमित्त सबको प्रेरित करें। यज्ञीय कर्मों का सम्पादन करने वालों को धन-वैभव से परिपूर्ण करके अच्छे कर्म की तरफ प्रेरित करें। हे सविता देव! आप दिव्य ज्ञान की रक्षा करने वाले और वाणी के अधिष्ठाता हैं, आप हमारे ज्ञान में शुद्धता को संचरित करें तथा हमारी वाणी को माधुर्य युक्त बनायें।[यजुर्वेद 11.7]
Hey Savita Dev! Inspire all to perform Yagy Karm. Grant opulence and wealth to those conducting Yagy and inspire them to perform virtuous-righteous deeds. Hey Savita Dev! You are the protector of divine knowledge and the deity of speech. Produce purity in our knowledge and make our voice sweet.
इमं नो देव सवितर्यज्ञं प्रणय देवाव्यꣳ सखिविदꣳ सत्राजितं धनजितꣳ स्वर्जितम्।
ऋचा स्तोमꣳ समर्धय गायत्रेण रथन्तरं बृहद्गायत्रवर्त्तनि स्वाहा॥
हे दिव्य गुणों से युक्त सविता देव! आप देवताओं के पोषणकर्ता, सखाभाव का विस्तार करने वाले, यज्ञ-सम्बन्धी ऊर्जा को नियोजित करने वाले तथा सुख और समृद्धि प्रदान करने वाले हैं, आप हमारे इस यज्ञ को सफलता प्रदान करें। यज्ञ को ऋग्वेद के मन्त्रों से पुष्ट करें। गायत्र साम द्वारा रथन्तर साम को तथा उसी के द्वारा बृहत् साम को भी पोषित करें। आप के लिये यह आहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 11.8]
समृद्धि :: सफलता, कुशल, सौभाग्य, श्री, संपन्नता, धन, प्रचुरता, प्रफुल्लता, ख़ुशहाली; prosperity, affluence, flourishing.
Hey Savita Dev possessing divine characterises! You are the nurturer of demigods, expand brotherhood, deploy the energy pertaining to Yagy, grant comforts-pleasure and prosperity-affluences. Make our Yagy successful. Strengthen the Yagy with the Mantrs of Rig Ved. Nourish Rathantar Sam & Brahat Sam with Gayatr Sam. This sacrifice is for you.(08.05.2025)
देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्याम्। आ ददे गायत्रेण छन्दसांगिरस्वत्पृथिव्याः सधस्थादग्निं पुरीष्यमंगिरस्वदाभर त्रैष्ठभेन छन्दसांगिरस्वत्॥
हे अभ्रे! सृजनकर्ता सविता देव की प्रेरणा से सम्पन्न होकर हम गायत्री छन्द के प्रभाव से अश्विनी कुमारों की दोनों भुजाओं द्वारा एवं पूषादेव के हाथों द्वारा आपको अंगिरा के सदृश स्वीकारते हैं। आप अंगिरा के सदृश त्रिष्टुभ् छन्द की प्रेरणा द्वारा धरती को पोषण से युक्त ऊर्जा से भर दें।[यजुर्वेद 11.9]
अभ्र :: बादल, अभ्रक खनिज, आकाश, स्वर्ण-सोना, नागरमोया, गणित में शून्य, कपूर, बेत-वेत्र; sky, cloud.
अभिभ्ररसि नार्यसि त्वया वयमग्निꣳ शकेम खनितुꣳ सधस्थ आ।
जागतेन छंदसांगिरस्वत्॥
हे अभ्रे! तुम अभ्रि अर्थात् मिट्टी खोदने का साधन हो, तुम नारी रूपा अर्थात् शत्रु रहित हो। तुम खोदते समय पत्थर आदि से भोंथरी (कुंठित) न होने वाली हो। अतएव आपके द्वारा हम जगती छन्द के प्रभाव से धरती पर स्थित (यज्ञ की वेदी में विद्यमान) अग्नि को अंगिरा के सदृश खोद निकालने में समर्थ हों।[यजुर्वेद 11.10]
Hey Abhre! You are a means for digging, like a woman and free from enemies. You do not become blunt i.e., remain intact while digging. Let us become capable of bringing out Agni-fire from the earth present over the Yagy Vedi, like Angira by virtue of the impact Jagti Chhand.
हस्त आधाय सविता बिभ्रदभ्रिꣳ हिरण्ययीम्।
अग्नेर्थ्योतिर्निचाय्य पृथिव्या अध्याऽभरदानुष्टुभेन छन्दसांगिरस्वत्॥
सर्व प्रेरक सविता देव अपने हाथ में सुवर्ण से विनिर्मित अभ्रि को धारण करके अंगिरा के सदृश अग्नि को पृथ्वी (यज्ञवेदी) के ऊपर स्थापित करें तथा याजक अनुष्टुप् छन्द से अच्छी तरह उसे प्रज्वलित करें।[यजुर्वेद 11.11]
Let all inspiring Savita Dev hold Abhri made of Gold in his hand and establish Agni over Yagy Vedi like Angira properly and the Yajak should ignite it with the help of Anushtap Chhand.
प्रतूर्तं वाजिन्ना द्रव वरिष्ठामनु संवतम्।
दिवि ते जन्म परममन्तरिक्षे तव नाभिः पृथिव्यामधि योनिरित्॥
हे अत्यन्त तीव्र गति से गमन करने वाली अग्नि ऊर्जा! आप स्वर्ग लोक में प्रकट हुए हैं, अन्तरिक्ष लोक में आपका नाभि स्थल है एवं भूलोक आपका निवास-स्थल है। आप धरती पर शीघ्रता से अपने उचित स्थान पर प्रतिष्ठित हों।[यजुर्वेद 11.12]
Hey highly accelerated Agni-fire! You evolved in the heavens, space is your nucleus and earth is abode-residence. Get established at your proper place quickly.
युञ्जाथाꣳ रासभं युवमस्मिन् यामे वृषण्वसू। अग्निं भरन्तमस्मयुम्॥
हे याजक दम्पती! आप दोनों धन-सम्पदा को बढ़ाने वाले, हमारे निमित्त लाभदायक अग्नि को प्रज्वलित करने में सक्षम हैं। आप इस शब्द तथा प्रकाशयुक्त अग्नि को यज्ञीय कर्म में संलग्न करें।[यजुर्वेद 11.13]
Hey Yajak duo! You are capable of increasing your wealth-assets and capable of igniting fire. Deploy our words-Mantrs and illuminate fire in the Yagy Karm.
योगे योगे तवस्तरं वाजे वाजे हवामहे। सखाय इन्द्रमूतये॥
दूसरों की तुलना में अत्यधिक सामर्थ्यशाली देवराज इन्द्र को हम ऋत्विज्ञ और यजमान आपस में सखाभाव में वृद्धि करने वाले प्रत्येक कार्य में अपनी रक्षा के उद्देश्य से तथा प्रत्येक युद्ध में सहायतार्थ आहूत करते हैं।[यजुर्वेद 11.14]
We Ritviz & Yajman increase friendship between us, invoke Indr Dev who is very powerful as compared to others, for the sake of safety-protection in every war-battle.
प्रतूर्वन्नेह्यवक्रामन्नशस्ती रुद्रस्य गाणपत्यं मयोभूरेहि।
उर्वन्तरिक्षं वीहि स्वस्तिगव्यूतिरभयानि कृण्वन् पूष्णा सयुजा सह॥
हे द्रुतगामी अश्व! आप शत्रुओं का संहार करते हुए, हमें सुख प्रदान करने हेतु पदार्पण करें, इस प्रकार करने से आपको रुद्र देवता का गणपतित्व प्राप्त होगा। हे रासभ! आप ऋत्विज् याजकों को भयहीन करते हुए, धरती के साथ विस्तृत अन्तरिक्ष लोक पर्यन्त मंगलकारी अन्न-जल से युक्त पथ से संव्याप्त हो जाओ अर्थात् पहुँच जाओ।[यजुर्वेद 11.15]
रासभ :: गर्दभ, गधा, गदहा, खर, अश्वतर, खच्चर, एक दैत्य जिसे व्रज के ताल वन में बलदेव जी ने मारा था, यह गर्दभ के रूप में ही रहा करता था; an ass-donkey.
Hey fast moving horse! Destroy the enemy for granting us comforts-pleasure leading to acquisition of status as Ganpati by Rudr Dev. Hey Rasabh-donkey! Make the Ritviz fearless between the earth and space granting him food grains and water.
पृथिव्याः सधस्थादग्निं पुरीष्यमंगिरस्वदा भराग्निं पुरीष्यमंगिरस्वदच्छेमोऽग्निं पुरीष्यमंगिरस्वद्भरिष्यामः॥
हे अभ्रे! आप पृथ्वी पर समस्तजनों को पोषित करने वाले, सब कुछ करने में सक्षम, तेज से युक्त, अग्रणी रहने वालों के पोषक अग्नि देव को यहाँ लेकर आगमन करें, जो पालन-पोषण करने में समर्थ हैं, शत्रु-संहारक एवं निपुण नेतृत्व कर्ता हैं। हम विशेष पोषणकारी सामर्थ्य से युक्त, अंगिरा के सदृश तेजयुक्त उन अग्नि देव को अपनी यज्ञशाला में स्थापित करेंगे।[यजुर्वेद 11.16]
Hey Abhre! You nurture all living beings of earth & are capable of doing every thing, always remain ahead. Bring Agni Dev who is capable of nourishing-nurturing, destroyer of the enemy and an expert leader. We will establish Agni Dev who possess specific aura like Angira, in our Yagy Shala.
अन्वग्निरुषसामग्रमख्यदन्वहानि प्रथमो जातवेदाः।
अनु सूर्यस्य पुरुत्रा च रश्मीननु द्यावापृथिवी आ ततन्थ॥
जो अग्नि देव पूर्व से ही स्थित हैं, वे प्रातः काल से पूर्व ही दिन को देदीप्यमान् कर देते हैं, वे ही सूर्य देव की सहस्त्रों रश्मियों को आलोकित करते हैं। लोक-स्रष्टा अग्नि देव स्वर्ग लोक तथा भूलोक में क्रमानुसार संव्याप्त होते हैं, ऐसी हम अनुभूति करते हैं।[यजुर्वेद 11.17]
Eternal Agni Dev illuminate the day-sky in the morning and grant aura-radiance to the rays of Sun. Creator of the abodes, Agni Dev pervade the earth and heavens sequentially, this is what we experience-feel.
आगत्य वाज्यध्वानꣳ सर्वा मृधो वि धूनुते। अग्निꣳ सधस्थे महति चक्षुषा नि चिकीषते॥
यह अश्व मार्ग पर संचरित होकर संग्राम क्षेत्र को कम्पायमान करता हुआ गमन करता है। वह स्थिर नेत्र से पथ्वी में वर्तमान अग्नि को देखता है।[यजुर्वेद 11.18]
This hoarse roam over the earth trembling-agitating the war field. It stare-looks at Agni over the earth.
आक्रम्य वाजिन् पृथिवीमग्निमिच्छ रुचा त्वम्।
भूम्या वृत्वाय नो ब्रूहि यतः खनेम तं वयम्॥
हे वाजिन्! आप धरती पर द्रुतगति से संचरित होकर अग्नि की खोज करें। पृथ्वी पर खोज कर हमें उस स्थल से अवगत करायें, जिस स्थान से हम उसे खोदकर ले आयें।[यजुर्वेद 11.19]
Hey horse! Move over the earth with accelerated speed and search Agni Dev. After searing-finding him, inform us, so that we are able to bring him back after digging.
द्यौस्ते पृष्ठं पृथिवी सधस्थमात्माऽन्तरिक्षꣳ समुद्रो योनिः।
विख्याय चक्षुषा त्वमभि तिष्ठ पृतन्यतः॥
हे वाजिन्! स्वर्ग लोक में आपका पृष्ठ भाग है, धरती पर आपके पाँव है तथा अन्तरिक्षलोक में आपकी जीवात्मा है। समुद्र आपका उत्पत्ति स्थल है। इस प्रकार स्तूयमान हे अश्व! आप अपने नेत्रों द्वारा योग्य मिट्टी को पहचान कर उस मिट्टी में निहित शत्रु भाव वाले असुरों को ढूँढ़कर अपने पैरों का प्रहार करके विनष्ट कर दो।[यजुर्वेद 11.20]
Hey horse! Your front portion of the body is present in the heavens, foot are there over the earth and your soul is there in space. You evolved in the ocean. Hey praise worthy horse! Identify the envious demons present in the soil with your eyes and destroy them by crushing with your hoofs.
उत्क्राम महते सौभगायास्मादास्थानाद् द्रविणोदा वाजिन्।
वयꣳ स्याम सुमतौ पृथिव्या अग्निं खनन्त उपस्थे अस्याः॥
हे वेगवान् अश्व! आप इस यज्ञशाला में धन तथा सौभाग्य प्रदान करने के उद्देश्य से पधारें। इस स्थान पर धरती की ऊपरी सतह को यज्ञादि कर्म हेतु खोदते हुए पृथ्वी के प्रति हम श्रेष्ठ बुद्धि (आभार बुद्धि) में विद्यमान हों।[यजुर्वेद 11.21]
Hey fast moving horse! Come to this Yagy Shala for granting wealth and good luck. We should be thankful to you while digging the upper surface of earth for the sake of Yagy Karm.(09.05.2025)
उदक्रमीद् द्रविणोदा वाज्यर्वाकः सुलोकꣳ सुकृतं पृथिव्याम्।
ततः खनेम सुप्रतीकमग्निꣳ स्वो रुहाणा अधि नाकमुत्तमम्॥
यह वेगवान्, धन प्रदाता अश्व धरती को लाँघकर आया है। इसने सुन्दर लोकों को पुण्यवान् बनाया है, अतः उत्तम लोकों में गमन करने की इच्छा से हम यजमान मनोहर मुख वाले अग्नि देव हेतु वेदी खोदने का प्रयत्न सर्वश्रेष्ठ लोक के सुख को प्राप्त करने के उद्देश्य से करते हैं।[यजुर्वेद 11.22]
This fast moving horse granting wealth, has come crossing the limits of earth. It turned beautiful abodes, virtuous. We the Yajman dig ground for Yagy Vedi for Agni Dev having beautiful face, with the desire of attaining pleasure in the best abodes.
आ त्वा जिघर्मि मनसा घृतेन प्रतिक्षियन्तं भुवनानि विश्वा।
पृथुं तिरश्चा वयसा बृहन्तं व्यचिष्ठमन्नै रभसं दृशानम्॥
हे अग्निदेव! सभी प्राणियों में निवास करने वाले आपको मैं श्रद्धा युक्त मन से घृत की आहुतियाँ * प्रदान करता हूँ। अपनी तिर्यग्गामिनी ज्वाला के द्वारा अत्यन्त व्याप्त हो जाने वाले और धुएँ से सम्पन्न, घृत एवं हवियों द्वारा वेगवान् आप प्रत्यक्ष देवता को आहुति समर्पित करता हूँ।[यजुर्वेद 11.23]
Hey Agni Dev residing in every living being! I make offerings-sacrifices of Ghee with devoted innerself. I make sacrifices with Ghee and offerings resulting in your flames moving vertically and dense smoke pervade the surroundings.
* निम्न मन्त्रों से दो आहुतियाँ घृत से दे :-
(1).आ त्वा जिपर्मि मनसा घृतेन प्रतिक्षियन्तं भुवनानि विश्वा।
मर्यश्रीः स्पृहयद्वर्णौ अग्निनर्नाभिमृशे तन्वा जर्भुराणः स्वाहा॥
(2).आ विश्वतः प्रत्यञ्यं जिपम्र्य रक्षसा मनसा तज्जुपेत।
पृथुं तिरश्चा वयसा बृहन्तं व्यचिष्ठमन्नै रभसं दूशानं स्वाहा॥
आ विश्वतः प्रत्यञ्चं जिघर्म्यरक्षसा मनसा तज्जुषेत।
मर्यश्री स्पृहयद्वर्णोऽअग्निर्नाभिमृशे तन्वा जर्भुराणः॥
हे अग्नि देव! सब ओर प्रत्यक्ष रूप से संव्याप्त होने वाले आपको हम आज्याहुति द्वारा प्रदीप्त करते हैं। आप समाप्त न होने वाली लपटों के द्वारा इस प्रदान की गयी आहुति को स्वीकार करें। मनुष्यों के निमित्त अत्यन्त उपयोगी सुवर्ण वर्ण से शोभायमान, वायु को दिशा में इधर-उधर गतिमान, कल्याणकारी अग्नि देव कभी भी त्यागने योग्य नहीं हैं, बल्कि सदैव ग्रहण करने योग्य हैं।[यजुर्वेद 11.24]
Hey Agni Dev! We illuminate you by making offerings of Ghee making you pervade all around. Accept the offerings with your unending flames. Very useful to humans, having golden hue, vibrating-flickering with air, well wisher Agni Dev is always acceptable and should not never be rejected.
परि वाजपतिः कविरग्निर्हव्यान्यक्रमीत्। दधद्रत्नानि दाशुषे॥
अन्नों के अधिष्ठाता, क्रान्तदर्शी अग्नि देव हविष्यान्न प्रदान करने वाले याजक को विभिन्न प्रकार के मनोहर रत्न प्रदान करते हुए सारी तरह की सम्पत्तियाँ चारों तरफ से प्रदान करते हैं।[यजुर्वेद 11.25]
क्रान्तदर्शी :: जो किसी विषय में गहन और यथार्थवादी दृष्टिकोण रखता है, दूर की बात देखने वाला, अतीत, वर्तमान और भविष्य को देखने वाला; one who can see into future, one who has realistic opinion and views, extraordinary, omniscient, adept, timely.
Omniscient Agni Dev is lord of the food grains, grant food grains, beautiful jewels & property to the Yajak in all directions.
परि त्वाऽग्ने पुरं वयं विप्रꣳ सहस्य धीमहि। धृषद्वर्णं दिवे दिवे हन्तारं भंगुरावताम्॥
हे बलपूर्वक मन्थन करके उत्पन्न किये गये अग्नि देव! आप बुद्धि सम्पन्न, सामर्थ्यवान्, नित्य दुष्टों को विनष्ट करनेवाले तथा विविध स्वरूपों से युक्त हैं। आपके सारे गुण हमारे लिए ग्रहणीय हैं। अतः हम प्रतिदिन आदरपूर्वक आपकी आराधना करते हैं।[यजुर्वेद 11.26]
Hey Agni Dev evolved by grinding-rubbing forcefully! You posses intellect, calibre, destroy the wicked everyday and possess various forms. Your all qualities, traits, characterises are desirable to us. We worship you honourably, every day.
त्वमग्ने द्युभिस्त्वमाशुशुक्षणिस्त्वमद्भ्यस्त्वमश्मनस्परि।
त्वं वनेभ्यस्त्वमोषधीभ्यस्त्वं नृणां नृपते जायसे शुचिः॥
हे अग्नि देव! आप मनुष्यों के पालक हैं। आप परम पवित्र गुणों से सम्पन्न हैं, आप घनघोर अन्धकार को शीघ्रता से हटाने वाले हैं तथा नित्य प्रज्वलित होने वाले हैं। आप जल से बडवाग्नि रूप में उत्पन्न होने वाले हैं। आप एक पत्थर को दूसरे पत्थर के साथ घिसने से चिनगारी के रूप में उत्पन्न होते हैं। आप बाँसों के घर्षण से दावानल रूप में उत्पन्न होते हैं। आप ओषधियों के द्वारा तेजाब युक्त ज्वलनशील रूप में उत्पन्न होने वाले हैं। साथ ही साथ यज्ञकर्म में प्रदीप्त अग्निरूप में याजकों के गृहों में प्रज्वलित होते हैं। आप परम पवित्रकारी हैं।[यजुर्वेद 11.27]
Hey Agni Dev! You are the nurturer of humans. You possess pious-virtuous traits. You remove dense darkness and remain luminous everyday. You are generated in the water as Badvagni. You appear by sticking one stone with another as spark. You appear as Dawanal-fire in the forest by rubbing of bamboo. You evolve in the acids and chemicals. You evolve in the Yagy Karm. You are the Ultimate purifier-cleanser.
देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्याम्। पृथिव्याः सधस्थादग्निं पुरीष्यमंगिरस्वत् खनामि। ज्योतिष्मन्तं त्वाऽग्ने सुप्रतीकमजस्त्रेण भानुना दीद्यतम्। शिवं प्रजाभ्योऽहिꣳ सन्तं पृथिव्याः सधस्थादग्निं पुरीष्य मंगिरस्वत् खनामः॥
वेदी निर्माण हेतु मिट्टी को खोदते हुए बोले, हे अग्नि देव! हम सर्व प्रेरक सविता देव के अनुशासन में, अश्विनी कुमारों की भुजाओं तथा पूषा देव के हाथों से, सभी जगह विचरण करने वाले आपको पृथ्वी के ऊपरी भाग से अंगिरा के सदृश उत्पन्न करते हैं। हे अग्ने! ज्वाला युक्त, उत्तम शोभा से युक्त, अविरल उज्ज्वल, दीप्तिमान, प्रजाओं के हितार्थ शान्त-रूप, हिंसा न करने वाले, अनिष्टों का निवारण करने वाले, धन-वैभव प्रदान करने वाले आपको पृथ्वी के गर्भ से अंगिरा के सदृश हम उपलब्ध करते हैं।[यजुर्वेद 11.28]
Say while digging clay for the Yagy Vedi, hey Agni Dev! You roam all over the earth. We evolve you like Angira under the control-discipline of all inspiring Savita Dev, in the arms of Ashwani Kumars & hands of Pusha Dev. You have flames, glory, continuous glow. You are calm & quite for the welfare of populace, non violent, remove obstacles-troubles, grant wealth-grandeur, we evolve you like Angira from the earth.
अपां पृष्ठमसि योनिरग्नेः समुद्रमभितः पिन्वमानम्।
वर्धमानो महाँ2 आ च पुष्करे दिवो मात्रया वरिम्णा प्रथस्व॥
कृष्ण मृग चर्म पर कमलिनीदल बिछाकर बोले, हे कमलिनी दल! आप जलों के ऊपर रहने के कारण जल के पृष्ठ भाग हैं, अग्नि को उत्पन्न करने वाले हैं। आप सागर के जलों में वृद्धि करते हैं, स्वयं सभी तरफ से विस्तीर्ण होते हुए, महान् जल में अच्छी तरह से व्याप्त हैं। हे कमलिनी पत्र! द्युलोक के परिमाण तथा पृथ्वी लोक की विशालता के अनुरूप आप विस्तृत हों।[यजुर्वेद 11.29]
Spread Lotus leaves over the skin of black buke and say, hey Lotus flower! You float all over water and generate fire. You increase quantum of water in the ocean. You are vast-broad pervaded in all directions and thoroughly pervaded in water. You are as vast as the earth and heavens.(10.05.2025)
शर्म च स्थो वर्म च स्थोऽच्छिद्रे बहुले उभे। व्यचस्वती सं वसाथां भूतमग्निं पुरीष्यम्॥
हे कृष्ण मृगचर्म और कमलिनी पत्र! आप दोनों विनाश रहित, अत्यन्त विस्तार वाले, उपासकों के शुभ चिंतक तथा सुख कारी हैं। सुरक्षा करने वाले कवच के सदृश रक्षक हैं, अतः आप दोनों परिपुष्ट करने वाले अग्निदेव के संरक्षक, आच्छादक और धारक बनें।[यजुर्वेद 11.30]
Hey black buke skin and lotus leaves! You are indestructible, extensive and well wisher of worshipers granting pleasure. You are like protection shield. You should become patron-guardian, supporter and cover of nurturer Agni Dev.
सं वसाथाꣳ स्वर्विदा समीची उरसा त्मना।
अग्निमन्तर्भरिष्यन्ती ज्योतिष्मन्तमजस्त्रमित्॥
हे कृष्ण मृगचर्म और कमलिनी पत्र! आप दोनों समान रूप से निरन्तर तेजवान् अग्नि देव को अपने भीतर अर्थात् उदर में प्रदीप्त रखें। जो अग्नि देव दिव्य लोक के आधार भूत हैं, उन्हें अपने हृदय में सर्वदा के लिए धारण करें।[यजुर्वेद 11.31]
Hey black buke skin and lotus leaves! You should keep radiant Agni Dev ignited continuously. Hold Agni Dev, who is the supporter-basis of heavens, in your innerself-heart.
पुरीष्योऽसि विश्वभरा अथर्वा त्वा प्रथमो निरमन्थदग्ने।
त्वामग्ने पुष्करादध्यथर्वा निरमन्थत। मूर्धी विश्वस्य वाघतः॥
हे अग्नि देव! आप सम्पूर्ण जगत् के पोषक तथा हितैषी हैं। सबसे पहले अथर्वा ऋषि ने आपको जल के ऊपर अच्छी तरह से मन्थन कर प्रकट किया था। हे अग्ने! ऋषि अथर्वा ने विस्तीर्ण अन्तरिक्ष में मन्थन द्वारा आपको उत्पन्न किया तथा आदरपूर्वक उच्च स्थान पर प्रतिष्ठित किया।[यजुर्वेद 11.32]
Hey Agni Dev! You are the nurturer and well wisher of the entire universe. Initially, Athrva Rishi evolved you over water by churning thoroughly. Rishi Athrva evolved you in the space by churning and established you at the respectable high position.
तमु त्वा दध्यङ् ऋषिः पुत्र ईधे अथर्वणः। वृत्रहणं पुरन्दरम्॥
हे अग्ने! अथर्वा के पुत्र दध्यङ् ऋषि ने रिपुओं को विनष्ट करने वाले तथा रिपुओं के दुर्ग को विनष्ट करने में आप समर्थ हैं, ऐसा समझकर आपको उत्पन्न किया है।[यजुर्वेद 11.33]
Hey Agne! Ddhyan son of Athrva Rishi considered you to be capable of destroying the enemy's forts and thus evolved you.
तमु त्वा पाथ्यो वृषा समीधे दस्युहन्तमम्। धनंजयꣳ रणे रणे॥
हे अग्नि देव! आप सन्मार्ग पर गमन करने वाले तथा बलशाली हैं। आप रिपुओं के विध्वंसक तथा हर संग्राम में जीत दिलाने वाले हैं, अतः हम आपको प्रदीप्त करते हैं।[यजुर्वेद 11.34]
Hey Agni Dev! You are mighty and follower of virtuous route. You are the destroyer of the enemy and winner in the war. Thus, we ignite you.
सीद होतः स्व उ लोके चिकित्वान्सादया यज्ञꣳ सुकृतस्य योनौ।
देवावीर्देवान् हविषा यजास्यग्ने बृहद्यजमाने वयो धाः॥
आह्वान कार्य में नियुक्त हे अग्नि देव! आप सर्वज्ञाता हैं, अतः आप अपने उस स्थान को अलंकृत करें, जिस पर आप स्थापित हैं तथा उत्तम कर्म के रूप में किये जाने वाले यज्ञ को पूर्ण करें। हे अग्निदेव! आप उसी प्रकार देवगणों को परितृप्त करते हैं, जिस प्रकार देवता गण मनुष्यों को करते हैं। जो हवियाँ यजमान समर्पित करते हैं, आप उन हवियों से देवों को हर्षित करें एवं उन याजकों को ऐश्वर्य तथा लम्बी आयु प्रदान करें।[यजुर्वेद 11.35]
Hey Agni Dev, you have been appointed for invocation! You know everything, hence occupy the place which has been sanctified for you. Accomplish the Yagy meant for excellent endeavours. The way you satisfy demigods, in the same you satisfy the humans as well. The offerings made to you by Yajman should be used to please the demigods by you. Grant grandeur-opulence and longevity to the Yajak.
नि होता होतृषदने विदानस्त्वेषो दीदिवाँ2 असदत्सुदक्षः।
अदब्धव्रतप्रमतिर्वसिष्ठः सहस्त्रम्भरः शुचिजिह्वो अग्निः॥
देवताओं को आवाहित करने वाले, देदीप्यमान्, अत्यन्त तीक्ष्ण, बुद्धिमान्, उत्कृष्ट स्थान पर निवास करने वाले, अखिल विश्व का भरण-पोषण करने वाले एवं अत्यन्त पवित्र अग्नि देव अपने तेज को उत्पन्न करते हुए यज्ञ वेदी पर शोभायमान होते हैं।[यजुर्वेद 11.36]
Lustrous and extremely pious Agni Dev, who invoke demigods-deities, is very sharp, intelligent, reside at the best place, nurturer the whole universe and is established over the Yagy Vedi.
सꣳसीदस्व महाँ2 असि शोचस्व देववीतमः।
वि धूममग्ने अरुषं मियेध्य सृज प्रशस्त दर्शतम्॥
हे यज्ञीय अग्नि देव! आप कमलपत्र आसन पर आसीन हों। आप यज्ञीय गुणों से युक्त, प्रशंसा करने योग्य हैं। आप देवों के प्रिय तथा महान् गुणों के प्रेरक हैं, यहाँ उपयुक्त स्थान पर पदार्पण करें तथा प्रदीप्त हों एवं आज्याहुति द्वारा दर्शनीय तथा तेजयुक्त होने के साथ गहरे धुएँ को छोड़ें [जिससे वृष्टि हो]।[यजुर्वेद 11.37]
Hey Agni Dev devoted to Yagy! Occupy the Lotus leaf cushion. You possess the traits-qualities of Yagy and deserve appreciation. You are dear to the demigods and inspire great characterises. Come to the suitable place and shine by the offerings of Ghee and being beautiful, radiant release dense smoke, leading to rainfall.
अपो देवीरुप सृज मधुमतीरयक्ष्माय प्रजाभ्यः।
तासामास्थानादुज्जिहतामोषधयः सुपिप्पलाः॥
हे यज्ञाग्ने! अमृतरूणी, स्निग्ध रसरूप जल को प्रकट करें, जो वर्षा द्वारा पृथ्वी को अभिसिंचित करे। उस पृथ्वी से पैदा होने वाली फलवती ओषधियाँ यजमान को रोगों से मुक्त करने में सक्षम हों।[यजुर्वेद 11.38]
स्निग्ध :: स्नेह युक्त, प्रेममय, चिकना; aliphatic, balsamic.
Hey Agni of the Yagy! Release aliphatic-balsamic water which is as good as elixir and can irrigate the soil. The medicines produced by it should be capable of releasing the Yajman from ailments-diseases.
सं ते वायुर्मातरिश्वा दधातूत्तानाया हृदयं यद्विकस्तम्।
यो देवानां चरसि प्राणथेन कस्मै देव वषडस्तु तुभ्यम्॥
हे पृथ्वी! यज्ञ कुण्ड खोदने से जो तुम्हारा हृदय रूप स्थान फटा-सा दिखायी दे रहा है, उसे अन्तरिक्ष में संचार करने वाले वायु देवता और जल देवता पूरी तरह से भर दें। हे वायुदेव! आप दिव्य प्राण-ऊर्जा सहित संचरित होने वाले हैं, अतः आपके लिये यह आहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 11.39]
Hey earth! Your location of Yagy Kund appear to be torn, let Vayu Dev & Varun Dev roaming in the space, fill it completely. Hey Vayu Dev! You blow with divine air vital, hence this offering is for you.
सुजातो ज्योतिषा सह शर्म वरूथमाऽसदत्स्वः।
वासो अग्ने विश्वरूपꣳ सं व्ययस्व विभावसो॥
(कृष्णमृगचर्म और कमलपत्र को हाथ में लेकर अध्वर्यु बोले) हे अग्नि देव! आप तेजस्वी ज्वालाओं से भली प्रकार प्रदीप्त होकर, सुखरूप, स्वर्ग के समान वरणीय यज्ञ वेदी को अलंकृत करें। हे दीप्तिमान् अग्निदेव! इस विचित्र वर्ण वाले कृष्ण मृग चर्म रूप वस्त्र को आप प्रसन्न होकर धारण करें।[यजुर्वेद 11.40]
The priest should hold black buke skin and the lotus leaves in his and say, hey Agni Dev! Decorate the Yagy Vedi which is pleasure granting akin to heavens, having been illuminated with bright flames. Hey luminous Agni Dev! Wear this amazing clothing made of black buke skin happily.
उदु तिष्ठ स्वध्वरावा नो देव्या धिया।
दृशे च भासा बृहता सुशुक्वनिराग्ने याहि सुशस्तिभिः॥
हे सुन्दर यज्ञ के निर्वाहक अग्नि देव! आप ऋत्विजो की सुन्दर स्तुतियों से प्रसन्न होकर हमारे यज्ञ में आगमन करे। आप जागरूक हों, दिव्यगुण सम्पन्न एवं उत्कृष्ट मेधा से हमारा सभी प्रकार से पालन करें तथा अपनी दिव्य किरणों से जो प्रकाशित करने वाली हैं, उससे स्तोताओं के जीवन को पूर्ण कर दें।[यजुर्वेद 11.41]
Hey supporter-performer of the beautiful Yagy Agni Dev! Be happy with the prayers-Stuti of the Ritviz and arrive at our Yagy. You should be awake, possess divine characters and nurture us with best mental vigour in all possible ways. Accomplish the lives of the Stotas with the divine rays.(11.05.2025)
ऊर्ध्व ऊ षु ण ऊतये तिष्ठा देवो न सविता।
ऊर्ध्वा वाजस्य सनिता यदञ्जिभिर्वाघद्भिर्विह्वयामहे॥
हे अग्ने! सर्वप्रेरक सविता देव जैसे अन्तरिक्ष लोक से हम सबको संरक्षण प्रदान करते हैं, वैसे ही आप भी ऊँचे उठकर अन्न आदि पोषणकारी पदार्थ प्रदान करके हमारे जीवन को संरक्षित करें। यजमान मन्त्रों का उच्चारण करते हुए, आहुति प्रदान करते हुए आपके देदीप्यमान स्वरूप को आहूत करते हैं।[यजुर्वेद 11.42]
Hey Agni Dev! The way inspirer of everyone Savita Dev grant us asylum from the space, similarly you should rise to grant us food and nourishing material. The Yajman-host make sacrifices and worship your divine form.
स जातो गर्भो असि रोदस्योरग्ने चारुर्विभृत ओषधीषु।
चित्रः शिशुः परि तमाꣳ स्यक्तून् प्र मातृभ्योअधि कनिक्रदद्गाः॥
हे अग्नि देव! आप शोभनीय, पूजनीय, पुरोडाशादि लक्षण वाली ओषधियों को पुष्ट करने वाली शक्ति से युक्त, अनेक वर्ण की ज्वालाओं से शोभायमान प्रतिदिन नये रूप में उत्पन्न होने के कारण शिशुरूप, द्युलोक तथा भूलोक के बीच में उत्पन्न होने के कारण गर्भरूप हैं। आप रात्रि लक्षण वाले तमस् को दूर करते हुए माता के समान ओषधियों तथा वनस्पतियों के पास से शब्द करते हुए तीव्रगति से गमन करें।[यजुर्वेद 11.43]
Hey Agni Dev! You are beautiful, worshipable, has power to nurturer medicines-herbs possessing Purodas etc., has flames of different colours-hue, appear as infant between the heavens & earth like a womb. You should rush to remove the darkness of night like the mother towards the medicines and vegetation.
स्थिरो भव वीड्वङ्ग आशुर्भव वाज्यर्वन्। पृथुर्भव सुषदस्त्वमग्नेः पुरीषवाहणः॥
पदार्थ के प्रति गमनशील हे अर्वन्! आप मिट्टी और धूल का वहन करने वाले हैं। आप स्थिर होकर स्थिर काया वाले हों, दृढ़ तथा वेगवान् होकर बलशाली बनें एवं सबको वहन करने वाले आप विशद (सभी स्थानों पर व्याप्त) अग्नि को सुखी बनायें।[यजुर्वेद 11.44]
अर्वन् :: घोड़ा, अश्व, horse.
Hey horse running towards the materials! You carry dust and clay. You should become stationary and have a stout-strong body, become dynamic, carry all, capable of reaching every place. Make Agni Dev happy.
शिवो भव प्रजाभ्यो मानुषीभ्यस्त्वमंगिरः।
मा द्यावापृथिवी अभि शोचीर्माऽन्तरिक्षं मा वनस्पतीन्॥
हे अंगिरा (अंगों में व्याप्त अग्नि देव)! आप मानवों तथा समस्त मनुष्यों के प्रति कल्याणकारी सिद्ध हों। आप द्युलोक, भूलोक, अन्तरिक्ष-लोक तथा वनस्पतियों आदि किसी को भी प्रताड़ित न करें।[यजुर्वेद 11.45]
Hey Angira-Angi Dev pervading the body! You should be beneficial to all humans. Do not tease-torture any one in heavens, earth or space including vegetation.
प्रैतु वाजी कनिक्रदन्नानदद्रासभः पत्वा। भरन्नग्निं पुरीष्यं मा पाद्यायुषः पुरा।
वृषाग्निं वृषणं भरन्नपां गर्भꣳ समुद्रियम्। अग्न आ याहि वीतये॥
यह अश्व ध्वनि सहित वेग से गमन करे। यह तेजयुक्त शब्द करता हुआ अग्रगामी हो। यह मिट्टी के ढेलों को धारण करके, लक्ष्य तक पहुँचने से पूर्व न रुके। यज्ञ की समाप्ति पूर्व इसकी मृत्यु न हो। अत्यन्त शक्ति युक्त तथा सामर्थ्यशाली जल के मध्य यह विद्युत् को धारण करके गमन करे। हे अग्नि देव! आप आहुतियों को प्राप्त करने के उद्देश्य से पदार्पण करें।[यजुर्वेद 11.46]
This horse should make sound while running forward. It should carry the lumps of soil without stopping before reaching its destination. It should not die before the completion of Yagy. It should acquire the extreme electric power in water and move. Hey Agni Dev! Move to accept the offerings.
ऋतꣳ सत्यमृतꣳ सत्यमग्निं पुरीष्यमंगिरस्वद्भरामः। ओषधयः प्रति मोदध्वमग्निमेतꣳ शिवमायन्तमभ्यत्र युष्माः। व्यस्यन् विश्वा अनिरा अमीवा निषीदन्नो अप दुर्मतिं जहि॥
शाश्वत, सत्य रूप, अमर अग्नि देव को अंगिरा के सदृश हम पुष्ट करते हैं। हे सम्पूर्ण ओषधि स्वरूप आहुतियो! आप कल्याणकारी यज्ञकुण्ड में प्रतिष्ठित अग्नि देव को प्राप्त होकर हर्ष प्रदान करें। हे अग्ने! आप यहाँ प्रकट होकर हमें सम्पूर्ण शरीर सम्बन्धी पीड़ाओं तथा मानसिक पीड़ाओं से मुक्त करें एवं कुबुद्धि के कारण उत्पन्न होनेवाले बुरे विचारों को नष्ट करें।[यजुर्वेद 11.47]
We nourish eternal, truthful, immortal Agni Dev like Angira! Hey offerings in the form of all medicinal herbs! You should be happy while meeting Agni Dev in the Yagy Kund. Hey Agni Dev! Invoke here to remove our physical troubles-pains, mental tensions, wickedness of mind, bad-vicious ideas.
ओषधयः प्रति गृभ्णीत पुष्पवतीः सुपिप्पलाः।
अयं वो गर्भ ऋत्वियः प्रत्नꣳ सधस्थमाऽसदत्॥
हे ओषधियों! आप सुन्दर फूलों तथा फलों से युक्त होकर यज्ञ की अग्नि को स्वीकार करें। यह अग्नि गर्भरूप में ऋतु के अनुरूप औषधियों से उत्पन्न होती है, यह यहाँ पर पूर्वकाल से ही विद्यमान है।[यजुर्वेद 11.48]
Hey medicines! You should be associated with beautiful flowers, fruits and accept the fire-Agni of Yagy. This Agni-fire evolves as seasons from the medicines and present here earlier as well.
वि पाजसा पृथुना शोशुचानो बाधस्व द्विषो रक्षसो अमीवाः।
सुशर्मणो बृहतः शर्मणि स्यामग्नेरहꣳ सुहवस्य प्रणीतौ॥
हे अग्नि देव! आप उत्तम शक्ति द्वारा प्रज्वलित होने वाले हैं। आप पाप कर्म करने वालों को, असुरों को तथा सम्पूर्ण मानसिक विकारों को नष्ट करें। हम उत्तम मंगलकारी महायज्ञ के लिए (अग्नि के कार्य में) तैयार करें, जिसके फलस्वरूप हमें अन्दर से आनन्द की अनुभूति हो।[यजुर्वेद 11.49]
Hey Agni Dev! You ignite with best power. Grant mental tension-tortures to the sinners and demons. We should prepare fire-Agni for auspicious Maha Yagy, so that we feel inner pleasure-gladdening.
आपो हि ष्ठा मयोभुवस्ता न ऊर्जे दधातन। महे रणाय चक्षसे॥
हे जलो! आप सुख प्रदान करने के मूलरूप साधन हैं। अतएव आप पराक्रम सम्पन्न, श्रेष्ठ, दर्शन करने योग्य कार्य करने हेतु हमें पुष्ट करें; जिससे हम उस महान् ब्रह्म का दर्शन कर सकें।[यजुर्वेद 11.50]
Hey waters! You are the basis of comforts. Nourish us with great valour, best invocation so that we are able to see the Par Brahm.
यो वः शिवतमो रसस्तस्य भाजयतेह नः। उशतीरिव मातरः॥
हे जलो! आपका जो अति मंगलकारी रस यहाँ स्थित है, उस रस के सेवन में हमें उसी प्रकार सम्मिलित करें, जिस प्रकार ममता तथा प्रेम से युक्त माताएँ अपने बालकों को अपने स्तन के मंगलकारी दूध का पान करा करके उन्हें परिपुष्ट करती हैं।[यजुर्वेद 11.51]
Hey waters! We should be associated with your auspicious sap present here just like the mothers feed & nourish their infants with love & affection.
तस्माऽअरं गमाम वो यस्य क्षयाय जिन्वथ। आपो जनयथा च नः॥
हे जलो! आपका वह मंगलकारी रस प्रचुर मात्रा में हमें प्राप्त हो। जिस रस से आप अखिल संसार को परितृप्त करते हैं तथा जिसके कारण आप हमारे उत्पत्ति के लिए आधारभूत हैं, इस प्रकार के मनुष्यों के निमित्त उपयोगी अपने गुणों से हमें पूर्ण करें। जिस यजमान के यज्ञगृह में हम आपकी प्रसन्नता के लिये यज्ञ कर रहे हैं, उसे आप पुत्र-पौत्रादि से सम्पन्न कर स्वर्ग के योग्य बनायें।[यजुर्वेद 11.52]
Hey waters! Your auspicious sap should be available to us in sufficient quantity. The sap with which you satisfy the whole world and which is the basis of our evolution. In this manner you should enrich the humans with your useful traits-qualities. You should grant the sons and grandsons to the Yajman in who's Yagy Grah we are conducting the Yagy for your happiness.(12.05.2025)
मित्रः सꣳ सृज्य पृथिवीं भूमिं च ज्योतिषा सह।
सुजातं जातवेदसमयक्ष्माय त्वा सꣳ सृजामि प्रजाभ्यः॥
जैसे विधाता सूर्य देव के द्वारा अन्तरिक्ष लोक तथा भूलोक दोनों को देदीप्यमान् करते हैं, वैसे ही हम भी उत्तम गुणों से सम्पन्न सर्वज्ञाता अग्नि को प्रजाओं के रोगों के निवारण के लिए प्रदीप्त करते हैं।[यजुर्वेद 11.53]
The way Almighty illuminate the heavens & earth through Sury Dev, similarly; we too ignite all knowing Agni, possessing all qualities, for the removal of diseases of the populace.
रुद्राः सꣳ सृज्य पृथिवीं बृहज्योतिः समीधिरे। तेषां भानुरजस्त्र इच्छुक्रो देवेषु रोचते॥
रुद्र गणों ने पृथ्वी लोक की रचना की फिर तेज युक्त महान् सूर्य देव के प्रकाश को उस सम्पूर्ण पृथ्वी लोक पर विस्तारित किया। उन रुद्र गणों की पावन तथा प्रचण्ड ज्योति ही दूसरी देव शक्तियों में विद्यमान है।[यजुर्वेद 11.54]
प्रचण्ड :: कठोर, उग्र, कड़ा, अत्यधिक उग्र, तीव्र या तेज़ी होना, बहुत तीखा, उग्र, प्रखर, प्रबल, बहुत अधिक वेगवान, भंयकर, भीषण, अति तेजस्वी, प्रतापी, दुस्सह, असह्य, पुष्ट, बलवान, कठिन, विश्वासंबंधी, विश्विक, अवाढव्य, विराट, कठोर, बड़ा, भारी, अत्यंत क्रोधी; terrific, severe, huge, colossal, cosmic, convulsion.
Rudr Gan created the earth followed by illuminating the entire earth with his rays. Pure and terrific, severe, radiance of Rudr Dev is present in other divine powers.
सꣳसृष्टां वसुभी रुद्रैर्धीरैः कर्मण्यां मृदम्।
हस्ताभ्यां मृद्वीं कृत्वा सिनीवाली कृणोतु ताम्॥
अमावस्या की अधिष्ठात्री देवी सिनी वाली बुद्धिमान् वसुगणों तथा रुद्रों के द्वारा तैयार की गयी मृत्तिका को हाथों के द्वारा कोमल बनाकर, उससे उपयोग में लाये जाने वाले मिट्टी के बर्तन निर्मित करें।[यजुर्वेद 11.55]
Let the deity of Amavasya-darkest night Devi Sini Vali make useful earthen pots with the clay prepared by intelligent Vasu Gan and Rudr Gan.
सिनीवाली सुकपर्दा सुकुरीरा स्वौपशा। सा तुभ्यमदिते मह्योखां दधातु हस्तयोः॥
हे पूजा करने योग्य देव माता! जटा-जूट युक्त बालों, श्रेष्ठ अलंकारों से शोभायमान तथा मनोहर अंगों से युक्त चन्द्रमा के सदृश सुन्दर देवी सिनी वाली आपके दोनों हाथों में पुरोडाश पक्व करने के पाक पात्र 'उखा' को धारण करायें।[यजुर्वेद 11.56]
Hey Dev Mata deserving worship! Let Devi Sini Vali having best hair locks, wearing best ornaments and attractive-beautiful organs, provide pot called Ukha for preparing-cooking Purodash.
उखां कृणोतु शक्त्या बाहुभ्यामदितिर्धिया। माता पुत्रं यथोपस्थे साऽग्निं बिभर्तु गर्भ आ। मखस्य शिरोऽसि॥
देवमाता अदिति अपने सामर्थ्य तथा बल द्वारा बुद्धि पूर्वक दोनों हाथों से पाक पात्र को धारण करें तथा यह उखा पात्र श्रेष्ठ विधि से अपने मध्य में अग्नि को धारण करे, जैसे जननी अपनी गोदी में पुत्र को धारण करती है। हे पाक पात्र! आप यज्ञकर्म में प्रयुक्त किये जाने वाले पात्रों में से मुख्य पात्र हैं।[यजुर्वेद 11.57]
Dev Mata Aditi should hold the cooking vessel & Ukha pot with her capability, strength and intelligence as well as Agni, just as a mother keep her son in the lap. Hey pot used for cooking! You are main pot used in the Yagy Karm-rituals.
वसवस्त्वा कृण्वन्तु गायत्रेण छन्दसांगिरस्वध्रुवाऽसि पृथिव्यसि धारया मयि प्रजाꣳ रायस्पोषं गौपत्यꣳ सुवीर्यꣳ सजातान्यजमानाय रुद्रास्त्वा कृण्वन्तु त्रैष्टुभेन छन्दसांगिरस्वद्ध्रुवाऽस्यन्तरिक्षमसि धारया मयि प्रजाꣳ रायस्पोषं गौपत्यꣳ सुवीर्यꣳ सजातान्यजमानायादित्यास्त्वा कृण्वन्तु जागतेन छन्दसांगिरस्वध्रुवासि द्यौरसि धारया मयि प्रजाꣳ रायस्पोषं गौपत्यꣳ सुवीर्यꣳ सजातान्यजमानाय विश्वे त्वा देवा वैश्वानराः कृण्वन्त्वानुष्टुभेन छन्दसांगिरस्वध्रुवाऽसि दिशोऽसि धारया मयि प्रजाꣳ रायस्पोषं गौपत्यꣳ सुवीर्यꣳ सजातान्यजमानाय॥
हे उखे! वसुगण, गायत्री छन्द के प्रभाव से अंगिरा के सदृश आपको निर्मित करें। आप दृढ़ होकर धरती के समान हैं अर्थात् पृथ्वी स्वरूप होने के कारण चन्द्र, सूर्य पर्यन्त स्थायी हैं, हम यजमानों के निमित्त सुसन्तति, ऐश्वर्य, पुष्टि, गोपतित्व, सुन्दर पराक्रम, सहोदर गणों का यथोचित सौहार्द्र धारण करायें। हे उखे! रुद्र गण त्रिष्टुप् छन्द की सामर्थ्य से अंगिरा के समान आपको विनिर्मित करें। आप सुदृढ़ होकर अन्तरिक्ष स्वरूप हैं, हम याजकों के निमित्त सुसन्तति, ऐश्वर्य, पुष्टि, गोपतित्व, उत्तम वीर्य, बन्धु-बान्धवों का यथोचित सौहार्द्र धारण करायें। हे उखे! आदित्यगण जगती छन्द के प्रभाव से अंगिरा की तरह आपको धारण करें, आप दृढ़ होकर स्वर्गलोक के समान हैं, हम यजमानों के निमित्त सुसन्तति, ऐश्वर्य, पुष्टि, गोपतित्व, उत्तम वीर्य, सहोदरगणों का यथोचित सौहार्द्र प्राप्त कराएँ। हे उखे! विश्वे देवा अनुष्टुप् छन्द के सामर्थ्य से अंगिरा के समान आपको विनिर्मित करें। आप सुदृढ़ होकर दिशा तुल्य हैं। हम यजमानों के निमित्त सुसन्तति, ऐश्वर्य, पुष्टि, गोपतित्व, उत्तम पराक्रम, बन्धु-बान्धवों का यथोचित सहार्द्र धारण कराएँ।[यजुर्वेद 11.58]
Hey Ukhe! Let Vasu Gan prepare you like Angira due to the impact of Gayatri Chhand. You are rigid, inertial, stationary like the earth till Moon and Sun. Grant us-the Yajman descent progeny, grandeur, nourishment, ownership of cows, bravery-valour and brothers. Hey sugar cane! Let Rudr Gan prepare you like Angira by virtue of Trishtup Chhand. On being stationary, you become like space. Grant us-the Yajman descent progeny, grandeur, nourishment, ownership of cows, strength, bravery-valour and brothers. Hey sugar cane! Let Adity Gan prepare you like Angira by virtue of Jagti Chhand. Grant us-the Yajman descent progeny, grandeur, nourishment, ownership of cows, bravery-valour and mutual relations between brothers. Hey sugar cane! Let Vishwe Deva prepare you like Angira by virtue of the Anushtap Chhand. Grant us-the Yajman descent progeny, grandeur, nourishment, ownership of cows, bravery-valour and mutual respect between the brothers.
उख :: गन्ना, ईख; sugarcane.
अदित्यै रास्नास्यदितिष्टे बिलं गृभ्णातु। कृत्वाय सा महीमुखां मृन्मयीं योनिमग्नये। पुत्रेभ्यः प्रायच्छददितिः श्रपयानिति॥
उखा पात्र के ऊपर मिट्टी से मेखला बनायें और बोले, हे मेखले! आप देव माता अदिति के सामर्थ्य से इस उखा (पाकपात्र) की मेखला के स्थान में हैं। हे उखे! देवताओं की माता आपके बीच के भाग को धारण करें। देवी अदिति इस धरती रूपी मिट्टी से अग्नि की आधारभूत उखा निर्मित करें तथा अपने देव पुत्रों को इसे पक्व करने के निमित्त प्रदान करें। अदिति देवताओं को सम्बोधित करते हुए कहती हैं, हे पुत्रो! अग्नि को धारण करने वाले इस उखापात्र को तुम ग्रहण करो।[यजुर्वेद 11.59]
Prepare ring-role of mud over the pot containing sugar Cane and say, hey Mekhla-cord! You are present in the Ukha pot by virtue of Dev Mata Aditi. Hey Sugar Cane! Let Dev Mata Aditi hold-support you in the middle segment. Let Devi Aditi prepare the basic component of Ukha with the mud which is akin to earth. Grant this to demigods for cooking it. Mother Aditi should address demigods saying, hey sons! Accept this Ukha pot which sustain-support Agni.
वसवस्त्वा धूपयन्तु गायत्रेण छंदसांगिरस्वद् रुद्रास्त्वा धूपयन्तु त्रैष्टुभेन छंदसांगिरस्वदादित्यास्त्वा धूपयन्तु जागतेन छंदसांगिरस्वद् विश्वे त्वा देवा वैश्वानरा धूपयन्त्वानुष्टुभेन छंदसांगिरस्वदिन्द्रस्त्वा धूपयतु वरुणस्त्वा धूपयतु विष्णुस्त्वा धूपयतु॥
हे उखे! वसुगण गायत्री छन्द के सामर्थ्य से अंगिरा के समान आपको सूर्य की गर्मी से तप्त करें। रुद्र गण त्रिष्टुप् छन्द के माध्यम से अंगिरा के सदृश आपको ताप दें। आदित्य गण जगती छन्द के प्रभाव से अंगिरा के सदृश आपको ताप दें एवं सभी के हितैषी विश्वेदेवा अनुष्टुप् छन्द के माध्यम से अंगिरा के समान आपको धूप में संस्कारित करें। इसी तरह इन्द्र देव आपको धूप दिखाकर सुखायें, वरुण देव आपको सूर्य की धूप दें तथा भगवान् विष्णु आपको ताप देकर सुखायें और तैयार करें।[यजुर्वेद 11.60]
Hey Ukhe! Let Vasu Gan heat you with Sun, by virtue of Gayatri Chhand like Angira. Rudr Gan should heat you by virtue of Trishtup Chhand like Angira. Adity Gan should heat you by virtu of Jagti Chhand and all Vishwe Dev well wisher of all should treat you with Anushtup Chhand in the Sun. Similarly Indr Dev, Varun Dev and Bhagwan shri Hari Vishnu should heat you in the Sun.(13.05.2025)
अदितिष्ठवा देवी विश्वदेव्यावती पृथिव्याः सधस्थे अंगिरस्वत् खनत्ववट देवानां त्वा पत्नीर्देवीर्विश्वदेव्यावतीः पृथिव्याः सधस्थे अंगिरस्वद्दद्धतूखे धिषणास्त्वा देवीर्विश्वदेव्यावतीः पृथिव्याः सधस्थे अंगिरस्वदभीन्धतामुखे वरूत्रीष्ट्रा देवीर्विश्वदेव्यावतीः पृथिव्याः सधस्थे अंगिरस्वच्छूपयन्तूखे ग्नास्त्वा देवीर्विश्वदेव्यावतीः पृथिव्याः सधस्थे अंगिरस्वत्पचन्तूखे जनयस्त्वाच्छिन्नपत्रा देवीर्विश्वदेव्यावतीः पृथिव्याः सधस्थे अंगिरस्वत्पचन्तूखे॥
हे अवट (गर्त)! समस्त देवताओं की अधिष्ठात्री, समस्त दिव्य गुण-सम्पन्न देव जननी पृथ्वी के ऊपर भाग में अंगिरा के समान आपका खनन करें। हे उखे! दैवी शक्तियाँ सम्पूर्ण दिव्य गुणों के साथ दीप्यमान् भूमि के उच्चस्थ भाग में अंगिरा के सदृश आपको प्रतिष्ठित करें। हे उखे! समस्त देवगणों की अधिष्ठात्री, स्तवनीय, वाणी की अधिष्ठात्री देवी दिव्य गुणों से सम्पन्न भूमि के उच्चस्थ भाग में अंगिरा-सदृश आपको प्रदीप्त करें। हे उखे! सम्पूर्ण दैवी गुणों से सम्पन्न अहोरात्र की निर्मात्री पृथ्वी के ऊपरी भाग में अंगिरा के सदृश आपको परिपक्व करें। हे उखे! सम्पूर्ण शक्तियों की पोषक देवी भूमि के ऊपर भाग में अंगिरा के सदृश आपको परिपक्व करें। हे उखे! निरन्तर गमनशील दैवी शक्तियाँ समस्त देवगुणों के साथ भूमि के ऊपरी भाग में अंगिरा सदृश आपको पकायें।[यजुर्वेद 11.61]
Hey Avat (depression, pit, hole)! Deity of all demigods, possessing all divine qualities Goddess earth, should be excavate like Angira. Hey sugar cane! You should be established over the elevated-highest segment of the earth, possessing all divine traits like Angira. Hey sugar cane! Deity of all demigods, deity of speech possessing all divine characterises should illuminate you over the highest segment of earth, like Angira. Hey sugar cane! You should be matured over the upper segment of earth-deity of the day & night possessing, entire divine characterises, like Angira. Hey sugar cane! You should be matured over the upper segment of earth-deity nourishing all power like Angira. Hey sugar cane! Dynamic divine powers should bake-cook you over the upper segment of earth with all the demigods like Angira.
मित्रस्य चर्षणीधृतोऽवो देवस्य सानसि। द्युम्नं चित्रश्रवस्तमम्॥
मानवों को पोषण प्रदान करने वाली शक्ति से दीप्तिमान, मित्र देवता के सनातन, यश रूप में प्रसिद्ध ऐश्वर्य को हम धारण करें।[यजुर्वेद 11.62]
We should possess the divine powers granting nourishment to the humans, like Mitr Dev in his eternal form, which is famous & has grandeur.
देवस्त्वा सवितोद्वपतु सुपाणिः स्वंगुरिः सुबाहुरुत शक्तत्या।
अव्यथमाना पृथिव्यामाशा दिश आ पृण॥
हे उखे! सुन्दर हाथ, सुन्दर अंगुली, सुन्दर भुजा वाले, दिव्य गुणों से युक्त सबके प्रेरक सविता देव अपनी शक्ति से तथा बुद्धि से आपको आलोकित करें। आप व्यथा रहित होकर अचल पृथ्वी में अपनी महत्त्वा-कांक्षाओं तथा श्रेष्ठ उद्देश्यों को पूर्ण करें।[यजुर्वेद 11.63]
Hey sugar cane! Let Savita Dev having beautiful hands, fingers, arms, divine characterises illuminate you. You should fulfil your desires, goals free from troubles-worries over the inertial earth.
उत्थाय बृहती भवोदु तिष्ठ ध्रुवा त्वम्।
मित्रैतां त उखां परि ददाम्यभित्या एषा मा भेदि॥
हे उखे! आप इस पाक-गर्त से बाहर निकलकर बड़े सत्कार योग्य हों तथा स्थिर होकर अपने कर्म में प्रवृत्त हों। हे मित्र देवता! प्राणियों का हित करने वाले इस उखा को खण्डित न होने अर्थात् संरक्षण के निमित्त आपको सौंपते हैं। आप इस उखा को किसी भी प्रकार से विदीर्ण न होने दें। यह सदैव यथावत् रहे।[यजुर्वेद 11.64]
Hey sugar cane! You should come out of this pious pit, become worshipable & devote yourself to duties. Hey deity Mitr! We hand over this sugar cane for protection.
वसवस्त्वाऽऽछुन्दन्तु गायत्रेण छन्दसांगिरस्वद्रुद्रास्त्वाऽऽछृन्दन्तु त्रैष्टुभेन छन्दसांगिरस्वदादित्यास्त्वाच्छ्रन्दन्तु जागतेन छन्दसांगिरस्वद्विश्वे त्वा देवा वैश्वानरा आच्छृन्दन्त्वानुष्टुभेन छन्दसांगिरस्वत्॥
उखा के ऊपर बकरी का दूध छिड़ककर बोलें, हे उखे! वसुगण गायत्री छन्द के सामर्थ्य से अंगिरा के सदृश आपको सिंचित करें। रुद्रगण त्रिष्टुप् छन्द के प्रभाव से अंगिरा के समान आपको अभिषिक्त करें। आदित्यगण जगती छन्द के सामर्थ्य से अंगिरा के समान आपके अभिषिक्त करें। विश्व के हितकारी विश्वेदेवा अनुष्टुप् छन्द के प्रभाव से अंगिरा के सदृश आपको अभिषिक्त करें।[यजुर्वेद 11.65]
Spray goat milk over sugar cane and say, hey Ukhe! Let Vasu Gan irrigate you by the impact of Gayatri Chhand like Angira. Rudr Gan should anoint you like Angira by the impact of Trishtup Chhand. Adity Gan should anoint you with Jagti Chhand like Angira. Well wisher of the world Vishwe Dev should anoint you with Anushtup Chhand like Angira.
आकूतिमग्निं प्रयुजꣳ स्वाहा मनो मेधामग्निं प्रयुजꣳ स्वाहा चित्तं विज्ञातमग्निं प्रयुजꣳ स्वाहा वाचो विधृतिमग्निं प्रयुजꣳ स्वाहा प्रजापतये मनवे स्वाहा ऽग्नये वैश्वानराय स्वाहा॥
यज्ञ संकल्प के प्रेरक अग्नि देव के लिए यह आहुति प्रदान करते हैं। मन तथा मेधा को प्रेरणा प्रदान करने वाले अग्नि देव को यह आहुति समर्पित करते हैं। मन और धारणा बुद्धि को अनुष्ठान में प्रेरित करने वाले अग्नि देव को यह आहुति समर्पित करते हैं। मन्त्र पाठ रूप वाणी तथा विशेष विद्याओं को प्रेरित करने वाले अग्नि देव को यह आहुति समर्पित करते हैं। मन्वन्तर प्रवृत्त करने वाले प्रजापति के निमित्त अग्नि देव को यह आहुति समर्पित करते हैं। विश्व के हितकारी अग्नि देव के लिए यह आहुति प्रदान करते हैं।[यजुर्वेद 11.66]
This offerings-sacrifice is for Agni Dev who inspire for the initiation of Yagy. This sacrifice is for Agni Dev who inspire the innerself and mental vigour. This sacrifice for Agni Dev who inspire the innerself and dedication-devotion in the rituals. This sacrifice is for Agni Dev who inspire the innerself with recitation of Mantrs and specific knowledges-Gyan. This sacrifice is for the Prajapati through Agni Dev, who inspire the Manvantar. This sacrifice for the well wisher of the universe Agni Dev.
विश्वो देवस्य नेतुर्मर्तो वुरीत सख्यम्। विश्वो राय इषुध्यति द्युम्नं वृणीत पुष्यसे स्वाहा॥
सम्पूर्ण मानव इस सृष्टि के संचालन कर्ता परमात्मा की सख्यता को प्राप्त करने की प्रार्थना करें। कर्म, उपासना, ज्ञान की पुष्टि के लिए यश एवं अन्न की इच्छा से उस परमात्मा के तेज को धारण करें, उसके निमित्त हम यह आहुति प्रदान करते हैं।[यजुर्वेद 11.67]
सख्यता :: मित्रता, सहेली या सखी, friendship.
Let the entire human race pray for the friendship with the Almighty who operate -maintain the universe. Let us hold the aura-radiance of the Almighty for making efforts, worship and strengthening knowledge with the desire of fame and food grains. We make this sacrifice for HIM.
मा सु भित्था मा सु रिषोऽम्ब धृष्णु वीरयस्व सु। अग्निश्चेदं करिष्यथः॥
हे माता उखे! आप कभी भी विदीर्ण न हों, कभी भी विनष्ट न हों, दृढ़ता के साथ उत्कृष्ट वीर के समान कर्तव्यों को पूर्ण करें। अग्नि देव तथा आप दोनों ही इस कार्य की पूर्णता तक स्थित रहें।[यजुर्वेद 11.68]
Hey mother sugar cane! You should neither to torn or destroyed, making efforts like an excellent warrior. Agni Dev and you both, should remain present till the endeavours is accomplished.
दृꣳहस्व देवि पृथिवि स्वस्तय आसुरी माया स्वधया कृताऽसि।
जुष्टं देवेभ्य इदमस्तु हव्यमरिष्टा त्वमुदिहि यज्ञे अस्मिन्॥
हे धरती माता! जिस प्रकार मायावी राक्षस रूप बदलने में सक्षम होते हैं, उसी प्रकार आप भी रूप बदलने में समर्थ हैं। आपने प्राणियों के मंगल की भावना से परिपूर्ण होकर उखा का रूप धारण किया है, उत्तर विधि से दृढ़तापूर्वक रहें। हे उखे! यह हविष्य दैवी शक्तियों के निमित्त प्रसन्नता प्रदान करने वाला हो। आप यज्ञ की समाप्तिपर्यन्त यज्ञस्थल में ही स्थित रहें।[यजुर्वेद 11.69]
Hey mother earth! You are capable of changing your form like the enchanting demons. You should support sugar cane with the desire of humanity's welfare. Hey sugar cane! Let this offerings gladden the divine powers. Remain at the Yagy site till its accomplished.(14.05.2025)
द्वन्नः सर्पिरासुतिः प्रत्नो होता वरेण्यः। सहसस्पुत्रो अद्भुतः॥
सुपारी के वृक्ष की समिधाओं का हवन करते हुए बोलें; हे अग्नि देव! वृक्ष की समिधाएँ ही आपका मुख्य भोजन है एवं घी श्रेष्ठ पेय पदार्थ है, ऐसे आप सनातन, देवताओं का आवाहन करने वाले एवं शक्ति प्रयोग के साथ अरणि-मन्थन के द्वारा प्रादुर्भूत होनेवाले हैं, आप इन समिधाओं को भस्म करें और हमारे इस यज्ञ को सफलता प्रदान करें।[यजुर्वेद 11.70]
सुपारी :: areca nut, betel nut.
Perform the Yagy-Hawan with areca nut wood and say, "Hey eternal Agni Dev! Wood constitute your prime food and Ghee is best drinking fluid for you. You invoke the demigods-deities and evolve by using strength for rubbing wood. Burn these wood and make our Yagy successful".
परस्या अधि संवतोऽवराँ२ अभ्यातर। यत्राहमस्मि ताँ2 अव॥
वैकंकत वृक्ष की समिधाओं का हवन करते हुए बोलें; "हे अग्नि देव! आप शत्रु सम्बन्धी संग्राम में हमारे सैन्य दलों की सुरक्षा करें तथा जिस स्थान पर हम खड़े हैं, उस स्थल की सुरक्षा-व्यवस्था को और भी सुदृढ़ करें"।[यजुर्वेद 11.71]
Perform the Yagy-Hawan with Vaekankat wood and say, "Hey Agni Dev! Protect our battalions in the war against the enemy. Ensure our security".
परमस्याः परावतो रोहिदश्व इहा गहि। पुरीष्यः पुरुप्रियोऽग्ने त्वं तरा मृधः॥
गूलर (sycamore, fig) वृक्ष की समिधाओं का हवन करते हुए बोलें हे अग्नि देव! आप रोहित नामक (उदीयमान सूर्य की ज्योति) से युक्त हैं। ऐश्वर्यवान् तथा बहुजन प्रिय आप दूरवर्ती स्थान से भी यहाँ आगमन करें तथा संग्रामक्षेत्र में शत्रुओं का विनाश करके हमारे यज्ञकर्म को सफल करें।[यजुर्वेद 11.72]
Perform the Yagy-Hawan with Gular wood and say, "Hey Agni Dev! You possess the light-rays of Sun called Rohit at the time of Sun rise". Possessor of grandeur and beloved of the populace, make our Yagy successful by arriving here from a distant place and killing the enemies in war.
यदग्ने कानि कानि चिदा ते दारूणि दध्मसि। सर्वं तदस्तु ते घृतं तज्जुषस्व यविष्ठ्य॥
वृक्षों से स्वतः टूटकर गिरी समिधाओं का हवन करते हुए बोलें; हे वैभवशाली अग्निदेव! वृक्ष की जो भी समिधाएँ आपको अर्पित की जायें, वे सभी समिधाएँ आपको घी की आहुति के सदृश ही अति प्रिय हों, आप उन सभी को आनन्दपूर्वक स्वीकार करें।[यजुर्वेद 11.73]
Perform Yagy with the branches of tree which fell down by them selves and say, hey grandeur possessing Agni Dev! The wood offered to you with Ghee should be dear to you. Accept them happily.
यदत्त्युपजिह्विका यद्वम्रो अतिसर्पति। सर्वं तदस्तु ते घृतं तज्जुषस्व यविष्ठ्य॥
हे तरुण अग्नि देव! वल्मीक जिस लकड़ी के पार होकर निकल जाता है अर्थात् घुन जिस काष्ठ को चट कर जाता है, दीमकगण जिस लकड़ी का भक्षण कर लेते हैं, ऐसी लकड़ी की समिधाएँ आपको घी के समान परमप्रिय हों, उन्हें भी आप प्रसन्नतापूर्वक ग्रहण करें।[यजुर्वेद 11.74]
घुन :: weevil-woodworm.
Hey young Agni Dev! The wood used for performing Yagy which are eaten either by termite or weevil-woodworm should be liked by you like the Ghee. Accept them happily.
अहरहरप्रयावं भरन्तोऽश्वायेव तिष्ठते घासमस्मै।
रायस्पोषेण समिषा मदन्तोऽग्ने मा ते प्रतिवेशा रिषाम॥
पलाश वृक्ष की समिधाओं का हवन करते हुए बोलें; हे अग्नि देव! जैसे वाजिशाला में निवास करने वाले अश्व को प्रतिदिन घास दी जाती है, उसी प्रकार आपके शरण में रहने वाले हम यजमान यज्ञ के भोजनरूप समिधाओं को इकट्ठा करते हुए, प्रतिदिन हव्य पदार्थ समर्पित करते हुए ऐश्वर्य प्राप्तकर, हर्षित हों एवं कभी भी दुःखी न हों।[यजुर्वेद 11.75]
वाजिशाला :: घुड़साल; stable.
Perform Yagy with butea wood and say, hey Agni Dev! The way grass is provided to the horse in the stable everyday, similarly we Yajman under your asylum should collect wood as your food & offer them to you; attaining grandeur, gladden and never become worried.
नाभा पृथिव्याः समिधाने अग्नौ रायस्पोषाय बृहते हवामहे।
इरम्मदं बृहदुक्थं यजत्रं जेतारमग्निं पृतनासु सासहिम्॥
हम उन यज्ञाग्नि को आहूत करते हैं, जो धरती की नाभि के सदृश यज्ञ वेदी में प्रज्वलित होने की अवस्था में हव्य पदार्थ से तृप्ति को प्राप्त करने वाले एवं अति प्रशंसनीय हैं। रिपुओं को पराजित करके संग्राम में जीत हासिल करने वाले अग्नि देव से हम महान् ऐश्वर्य को प्राप्त करने की अभिलाषा करते हैं और उन्हें आवाहित करते हैं।[यजुर्वेद 11.76]
We make such offerings in the Yagy fire which are like the nucleus of the earth (too hot, blazing) appreciable and grant satisfaction. We expect great grandeur from Agni Dev who attain victory in the war by defeating the enemy and invoke him.
याः सेना अभीत्वरीराव्याधिनीरुगणा उत।
ये स्तेना ये च तस्करास्ताँस्ते अग्नेऽपि दधाम्यास्ये॥
हे अग्नि देव! प्रहार करने के निमित्त तैयार रिपुओं के सैन्य दल जो शक्तिशाली सेनापतियों से युक्त हैं तथा चोर एवं डाकुओं को आपके प्रदीप्त मुँह में डालते हैं, जिससे आप उनका भक्षण कर लें।[यजुर्वेद 11.77]
Hey Agni Dev! We pour the enemy armies headed by mighty commanders, thieves and dacoits in your blazing mouth, so that you can eat them.
दꣳष्ट्राभ्यां मलिम्लूञ्जम्भ्यैस्तस्कराँ 2 उत।
हनुभ्याꣳ स्तेनान् भगवस्ताँस्त्वं खाद सुखादितान्॥
हे वैभवशाली अग्नि देव! आप पाप कर्म में लिप्त पापियों को अपने दाढ़ों से, दस्युओं को दाँतों तथा चोरों को ठोड़ी से संतप्त करें अर्थात् जो शत्रु भयभीत करते हैं, उन्हें पूर्णतया विनष्ट कर दें।[यजुर्वेद 11.78]
Hey Agni Dev having grandeur! Crush the sinners under your jaws, dacoits under your teeth, thieves under the chin i.e., destroy those enemies who cause fear.
ये जनेषु मलिम्लव स्तेनासस्तस्करा वने। ये कक्षेष्वधायवस्ताँस्ते दधामि जम्भयोः॥
हे अग्नि देव! जो गाँवों में रहने वाले मानवों को मारने वाले तथा उनका धन चुराने वाले हैं, जो निर्जन जंगलों में विचरण करने वाले लुटेरे हैं तथा सघन स्थलों पर मानवों के निमित्त प्राण घातक हैं, उन सभी को आपकी दाढ़ों रूप तीक्ष्ण ज्वाला में झोंकते हैं।[यजुर्वेद 11.79]
Hey Agni Dev! We push the killers of villagers, thieves of wealth, dacoits-looters roaming tin the men less forests, may kill the humans in dense colonies into your jaws containing fierce blaze.
यो अस्मभ्यमरातीयाद्यश्च नो द्वेषते जनः।
निन्दाद्यो अस्मान्धिप् साच्च सर्वं तं मस्मसा कुरु॥
हे अग्नि देव! जो मानव हमसे शत्रुता करें, तो हमारे देय धन को हमें न दें तथा जो हमसे द्वेषकर हमारे कार्यों को नष्ट करते हैं, जो हमारी निन्दा करते हैं अर्थात् जो हमारे गुण में भी दोष निकालते हैं अथवा अल्प दोषों को भी बड़ा कहते हैं, जो हमारे प्राण वध का यत्न करते हैं- ऐसे चार प्रकार के अराति, द्वेषी, निन्दक, जिघांसु-सबको नष्ट कर डालें।[यजुर्वेद 11.80]
Hey Agni Dev! Destroy these four categories of humans :- (1).who are our enemies, (2).do not return our money & envious to us, (3). condemnation us, find faults with us or (4). try to kill us.
सꣳशितं मे ब्रह्म सꣳशितं वीर्यं बलम्। सꣳशितं क्षत्रं जिष्णु यस्याहमस्मि पुरोहितः॥
हे अग्नि देव! आपकी कृपा से हमारा तथा जिसके हम पुरोहित हैं, उस याजक का प्रशंसा योग्य ब्रह्म ज्ञान, प्रशंसा के योग्य तेज एवं प्रशंसा के योग्य विजयी क्षात्र बल व्यापक हो।[यजुर्वेद 11.80]
Hey Agni Dev! By virtue of your grace, the Yajak for whom we conduct Yagy, deserve appreciation, has Brahm Gyan (Ultimate knowledge); should possess tremendous-vast qualities of a warrior.
उदेषां बाहू अतिरमुद्वर्ची अथो बलम्। क्षिणोमि ब्रह्मणाऽमित्रानुन्नयामि स्वाँ 2 अहम्॥
हे अग्नि देव! दुष्कर्म करने वालों के बाहुबल की तुलना में हमारी भुजाओं की शक्ति अर्थात् पराक्रम में वृद्धि हो, उनके तेज की तुलना में हमारा ब्रह्म तेज (मन्त्र शक्ति) उत्तम हो। ज्ञान के तेज से विरोधी समाप्त हो जायँ, हम बन्धुजनों को ऊँचा उठाते हैं।[यजुर्वेद 11.82]
Hey Agni Dev! Our arms should possess more power-strength as compared to the wicked-vicious, our mighty-power, aura-radiance should be excellent. We should possess Brahm Gran & Mantr Shakti. Our opponents should be destroyed due to our power. We elevate our brothers-relatives.
अन्नपतेऽन्नस्य नो देह्यनमीवस्य शुष्मिणः।
प्र प्र दातारं तारिष ऊर्जं नो धेहि द्विपदे चतुष्पदे॥
हे अग्नि देव! आप अन्नाधिपति हैं। आप हमारे निमित्त व्याधि रहित एवं बलदायक अन्न प्रदान करें, अन्न का दान करनेवाले हमारे यजमान का आप अच्छी तरह से पोषण करें। हमारी सन्तानों तथा हमारे पशुओं के निमित्त भी शक्ति में वृद्धि करने वाला अन्न प्रदान करें।[यजुर्वेद 11.83]
Hey Agni dev! You are the lord of food grains. Grow such food grains for us which diseases resistant, grant strength. Properly nourish the donor of food grains and the Yajman. Grant such food grains to us which are capable of increasing strength of our progeny & animals.(15.05.2025)
यजुर्वेद संहिता, द्वादश, अध्याय :: ऋषि :- वत्सप्री, कुत्स, श्यावाश्च, ध्रुव, शुनःशेप, त्रित, विरूपाक्ष, विरूप, तापस, वसिष्ठ, दीर्घतमा, सोमाहुति, विश्वामित्र, प्रियमेधा, सुतजेतृमधुच्छन्दा, मधुच्छन्दा, विश्वावसु, कुमारहारित, भिषगू, वरुण, हिरण्यगर्भ, पावकाग्नि, गौतम, वत्सार, प्रजापति; देवता :- अग्नि, सविता, गरुत्मान्, विष्णु, वरुण, जीवेश्वरौ, आप, पितर, इन्द्र, दम्पती, पत्नी, निर्ऋति, यजमान, कृषीवलाः कवयो वा, कृषीवला, मित्रादयो लिंगोक्ता, अध्या, अश्विनौ, वैद्य, चिकित्सु औषधयः, वैद्या, भिषज, भिषग्वरा, ओषधि, विद्वान, सोम; छन्द :- पंक्ति, त्रिष्टुप्, जगती, धृति, कृति, अनुष्टुप्, गायत्री, उष्णिक्, बृहती।
दृशानो रुक्म उर्व्या व्यद्यौद् दुर्मर्षमायुः श्रिये रुचानः।
अग्निरमृतो अभवद्वयोभिर्यदेनं द्यौरजनयत्सुरेताः॥
सभी पदार्थों को आलोकित करने वाले, तेजवान् सूर्य देव पूर्व दिशा में उदित होते हैं। वे इस लोक में सहज दर्शनीय हैं एवं विशिष्ट प्रकार से धन-वैभव की वृद्धि करते हुए सुशोभित होते हैं। वैसे ही ये अग्नि देव दिव्य गुण युक्त, अमरत्व प्रदान करने वाले, दुःखों का नाश करने वाले, आयु में वृद्धि करने वाले हैं। देवों के द्वारा इन्हें प्रकट किया गया है।[यजुर्वेद 12.1]
Aurous Sury Dev rises in the east and illuminate every thing. He is visible in this abode, boosts specific grandeur-opulence and graced. Similarly, Agni Dev possess divine qualities, grant immortality, destroy pains-sorrow, increase longevity. Demigods-deities have evolved him.
नक्तोषासा समनसा विरूपे धापयेते शिशुमेकꣳ समीची।
द्यावाक्षामा रुक्मो अन्तर्वि भाति देवा अग्निं धारयन् द्रविणोदाः॥
जैसे माता-पिता (विपरीत वर्ण वाले होने पर भी) एक मन वाले होकर आपसी सहयोग से शिशु का पोषण करते हैं, वैसे ही श्वेत-कृष्ण वर्ण रूप रात-दिन मानों एक मन वाले होकर अग्निरूपी बालक को प्रातःकाल तथा सार्यकाल आहुति प्रदान करके पोषित करते हैं, जिससे वे स्वर्ग लोक तथा पृथ्वी लोक के अन्दर सूर्य देव के सदृश शोभायमान होते हैं, ऐसे अग्नि देव को धन-ऐश्वर्य प्रदान करने वाली शक्तियों ने धारण किया है।[यजुर्वेद 12.2]
The way parents from two different families grow the infant with identical innerself cooperating mutually, each other; similarly day & night having two opposite characters viz bright & dark, nurture the Agni as a child in the morning and evening, making offerings-sacrifices, so that he become aurous-radiant like Sury Dev. In this manner Agni Dev has been supported by the powers capable of granting wealth and grandeur.
विश्वा रूपाणि प्रति मुञ्चते कविः प्रासावीद् भद्रं द्विपदे चतुष्पदे।
वि नाकमख्यत्सविता वरेण्योऽनु प्रयाणमुषसो वि राजति॥
वरण करने योग्य, श्रेष्ठ, विद्वान्, क्रान्तदर्शी, जगत् के प्रेरक सविता देव उषाकाल के पश्चात् विशिष्ट आलोक को विस्तारित करते हैं, जिसके फलस्वरूप सम्पूर्ण पदार्थ अपने स्वस्थ स्वरूपों को धारण करते हैं। मानवों सहित समस्त प्राणियों को मंगलकारी पथ में प्रवृत्त करते हैं।[यजुर्वेद 12.3]
Qualified to be accepted, scholar, radiant, inspiring the universe, Savita Dev extend the luminosity such that all objects acquire their heathy forms. He inspire all living beings to auspicious routes.
सुपर्णोऽसि गरुत्माँस्त्रिवृत्ते शिरो गायत्रं चक्षुर्वृहद्रथन्तरे पक्षौ। स्तोम आत्मा छन्दाꣳ स्यंगानि यजूꣳषि नाम। साम ते तनूर्वामदेव्यं यज्ञायज्ञियं पुच्छं धिष्ण्याः शफाः। सुपर्णोऽसि गरुत्मान्दिवं गच्छ स्वः पत॥
हे अग्नि देव! आप ऊर्ध्वगामी तथा महान् हैं। आप मनोहर पंखों वाले पक्षिराज वेग गामी गरुड़ के समान हैं। त्रिवृत् स्तोम आपके शीश तथा गायत्री छन्द आपके चक्षु हैं। बृहत् साम तथा रथन्तर साम आपके दोनों पंख हैं, पंचदश स्तोम आपका अन्तःकरण है, गायत्री आदि इक्कीस छन्द आपके हृदयादि अंग है, इषे त्वा० आदि यजुः मन्त्र आपके नाम अर्थात् परिचायक हैं। वामदेव नामक साम आपका शरीर है, यज्ञायज्ञिय नामक साम आपकी पुच्छ है तथा धिष्णय स्थित अग्नि आपके खुर-नख हैं। हे अग्नि देव! आप वेगवान् गरुड़ के समान पक्षिरूप हैं, इस कारण आकाश के लिए गमन करें तथा स्वर्गलोक को प्राप्त हों।[यजुर्वेद 12.3]
धिष्णय :: हवन कुंड, शुक्राचार्य, शुक्र ग्रह, शक्ति, बल, स्थान, भवन, घर, उल्का, अग्नि; Hawan Kund, fire.
Hey great Agni Dev! You move upwards. Your speed is like fast moving king of birds Garud Ji, having beautiful feathers. Trivrat Stom form your head and Gayatri Chhand form your eyes. Brahat Sam & Rathantar Sam constitute your two feathers. Panchdash Stom is your innerself (heart & mind). Gayatri and 21 Chhands form your heart. Ishe Twa etc. Yaju Mantr describe you. Vam Dev Sam constitute your body. Yagyaygiy Sam form your tail. Dhishny form your claws-hoofs. Hey Agni Dev! You are a fast flying birds like Garud Ji. Move to the sky and attain heavens.
विष्णोः क्रमोऽसि सपत्नहा गायत्रं छन्द आ रोह पृथिवीमनु वि क्रमस्व विष्णोः क्रमोऽस्यभिमातिहा त्रैष्टुभं छन्द आ रोहान्तरिक्षमनु वि क्रमस्व विष्णोः क्रमोऽस्यरातीयतो हन्ता जागतं छन्द आ रोह दिवमनु वि क्रमस्व विष्णोः क्रमोऽसि शत्रूयतो हन्ताऽऽनुष्ठभं छन्द आ रोह दिशोऽनु वि क्रमस्व॥
यजमान चार कदम पूर्व दिशा में चले और प्रत्येक पादन्यास पर बोलें, हे मेरे प्रथम पादन्यास! आप अग्निरूपी विष्णु के पादन्यास हो। आप शत्रुओं का नाश करने वाले हो। आप गायत्री छन्द पर आरूढ़ हो और इस पृथ्वी को जीत लो। हे मेरे द्वितीय पादन्यास! आप विष्णु के पराक्रम हैं, आप अभिमानी शत्रु का हनन करने वाले हैं। आप त्रिष्टुप्छन्द पर आरूढ़ हो और अन्तरिक्ष को जीत लो। हे मेरे तृतीय पादन्यास! आप विष्णु के पराक्रम हैं और दुष्टों को मारनेवाले हैं। आप जगती छन्द पर आरूढ़ होकर द्युलोक जीत लो। हे मेरे चतुर्थ पादन्यास! आप विष्णु के चौथे पादन्यास हो। आप मुझसे शत्रुता रखने वालों का हनन करें। आप अनुष्टप्छन्द आरूढ़ होकर दिशाओं-विदिशाओं को जीत लें।[यजुर्वेद 12.5]
Yajman should march 4 foot forwards in the east direction and say, "hey my first foot forward! You are the forward food of Bhagwan Shri Hari Vishnu in the form of Agni-fire. You are the destroyer of the enemy. Ride the Gayatri Chhand and win the earth". Hey my second food forward! "You are the valour of Bhagwan Shri Hari Vishnu. You are the destroyer of egoistic enemy. Ride Tristup Chhand and win the space". Hey my third foot forward! You are the valour of Bhagwan Shri Hari Vishnu. Ride the Jagti Chhand and win the heaven". Hey my fourth foot forward! You constitute the forth foot of Bhagwan Shri Hari Vishnu. Eliminate those who are my enemies. Ride Anushtap Chhand and win the directions and anti-opposite directions.(16.05.2025)
अक्रन्ददग्नि स्तनयन्निव द्यौः क्षामा रेरिहद्वीरुधः समञ्जन्।
सद्यो जज्ञानो वि हीमिद्धो अख्यदा रोदसी भानुना भात्यन्तः॥
हे अग्नि देव! आप नभ में बादलों के बीच में बिजली के रूप में दमकते तथा गर्जना करते हुए भूलोक को गुंजरित करते हैं। प्राण-पर्जन्य के रूप में पेड़ तथा ओषधियों को अंकुरित करते हैं। त्वरित गति से उत्पन्न तथा प्रदीप्त होकर सभी को आलोकित करते हैं। भूलोक तथा स्वर्गलोक के बीच में बिजली के रूप में शोभायमान आप स्तवनीय हैं।[यजुर्वेद 12.6]
Hey Agni Dev! You resonate the earth while thundering & lightening in the sky amongest the clouds. You sprout-germinate the trees and medicines as air vital and Parjany Dev. You evolve quickly and illuminate everyone. Present between the earth & heavens you are worshipable.
अग्नेऽभ्यावर्त्तिन्नभि मा नि वर्तस्वायुषा वर्चसा प्रजया धनेन। सन्या मेधया रख्या पोषेण॥
हे अग्नि देव! आप सम्मुख आलोकित होने वाले हैं। आप आयु, तेजस्, कान्ति, सन्तान, श्रेष्ठ बुद्धि, सुवर्णादि अलंकार, गो-अश्वादि एवं शारीरिक पोषण आदि के रूप में इष्ट लाभ प्रदान करते हुए शीघ्र हमारे निकट आगमन करें।[यजुर्वेद 12.7]
Hey Agni Dev! You luminate in front. Come to us quickly granting longevity, aura-radiance, progeny, excellent intelligence, ornaments of golf etc., cows & horses and physical nourishment like our deity.
अग्ने अंगिरः शतं ते सन्त्वावृतः सहस्त्रं त उपावृतः।
अधा पोषस्य पोषेण पुनर्नो नष्टमा कृधि पुनर्नो रयिमा कृधि॥
हे अङ्गिरावत् प्रकाशमान् अग्नि देव! आप सहस्त्रों बार हमारे बुलाए जाने पर आगमन करें, आपका यहाँ से विसर्जन भी हजारों बार हो। आप पोषण करने वाले, धन में वृद्धि करते हुए, हमारे खोये हुए धन को फिर से प्राप्त करायें तथा हमें फिर से ऐश्वर्यवान् बनायें।[यजुर्वेद 12.8]
Illuminated like Angira, hey Agni Dev! You should come to us thousands of times & leave. You grant nourishment, increase wealth, help us trace our lost wealth and make us opulent again.
पुनरूर्जा नि वर्त्तस्व पुनरग्न इषाऽऽयुषा। पुनर्नः पाह्यꣳ हसः॥
हे अग्नि देव! आप हमें पुनः बलवीर्य से सम्पन्न करें। अन्न तथा आयु में वृद्धि करने के लिए फिर से यहाँ पधारें तथा यहाँ आगमन करके दुष्कृत्यों से हमें मुक्ति दिलाएँ।[यजुर्वेद 12.9]
Hey Agni Dev! Make us mighty, energetic. Come to us again for granting food grains and longevity. Free us from our misdeeds.
सह रय्या नि वर्तस्वाग्ने पिन्वस्व धारया। विश्वप्स्न्या विश्वतस्परि॥
हे अग्नि देव! आप धन सहित लौटें तथा जगत् के उपयोग के निमित्त उत्तम पावन जल प्रवाह से ओषधियों, वनस्पतियों आदि सभी को सिंचित करें।[यजुर्वेद 12.10]
Hey Agni Dev! Come back with wealth and irrigate the medicines & vegetation and maintain descent flow of water for the benefit of the world.
आ त्वाऽहार्षमन्तरभूर्धुवस्तिष्ठाविचाचलिः।
विशस्त्वा सर्वा वाञ्छन्तु मा त्वद्राष्ट्रमधिभ्रशत्॥
हे अग्नि देव! आपको यहाँ हम आदरपूर्वक लेकर आये हैं, आप अत्यन्त अचल होकर, स्थिरता से युक्त होकर उखा के मध्य भाग में स्थित हों। सम्पूर्ण प्रजाएँ आपकी अभिलाषा करें, हमारा राज्य आपके तेजयुक्त गुणों से कभी भी शून्य न हो।[यजुर्वेद 12.11]
Hey Agni Dev! We have brought you here respectfully. You should stabilise at the centre of Ukha-sugar cane, rigidly. Let the entire populace desire to have you and our state-country should never be without your characterises of aura, brilliance.
उदुत्तमं वरुण पाशमस्मदवाधमं वि मध्यमꣳ श्रथाय।
अथा वयमादित्य व्रते तवानागसो अदितये स्याम॥
हे सब पाप-ताप विनाशक वरुण देव! आप अपने तीनों ताप रूपी पाश से हमें मुक्ति प्रदान करें। आधिदैविक, आधिभौतिक तथा आध्यात्मिक बन्धन से हमें मुक्ति प्राप्त हो एवं ऊपर, मध्य तथा नीचे के पाश से भी हमारे शरीर को मुक्त करो। हे अदिति पुत्र! पाप रहित होकर आपके कर्मफल के नियम में बँधे हुए हम दयनीय अवस्था में न रहें।[यजुर्वेद 12.12]
दयनीय अवस्था :: दुखी या दुखद अवस्था; miserable condition, pitiable condition, pathetic state.
Hey Varun Dev remover of the impact of sins! Release us from your three dimensional torture. Relieve our body from Adhidaevik, Adhibhoutik and Adhyatmic ties-bonds from top, middle and bottom. Hey son of Mata Aditi! On being sinless we should not remain in a state of
अग्रे बृहन्नुषसामूर्ध्वो अस्थान्निर्जगन्वान् तमसो ज्योतिषाऽऽगात्।
अग्निर्भानुना रुशता स्वंग आ जातो विश्वा सद्यान्यप्राः॥
महिमावान् अग्नि देव की उत्पत्ति उषाकाल के पहले हुई, वे रात्रि लक्षण वाले अंधकार को हटा करके दिन लक्षण वाली ज्योति के संग यहाँ आये हैं। अपनी लपटों द्वारा शोभायमान होते हुए समस्त लोकों को वे अपनी तेजस्विता से देदीप्यमान् करते हैं।[यजुर्वेद 12.13]
Glorious Agni Dev evolved prior to dawn-Usha Kal. He eliminated the impact of darkness due to night and appeared with the chractrices-traits of the day. He appear beautifully with his flames and illuminate all abodes with his aura, radiance, luminosity.
हꣳसः शुचिषद्वसुरन्तरिक्षसद्धोता वेदिषदतिथिर्दुरोणसत्।
नृषद्वरसदृतसद् व्योमसदब्जा गोजा ऋतजा अद्रिजा ऋतं बृहत्॥
सभी में चैतन्य रूप में विद्यमान, पवित्रता में स्थित रहने वाले, अन्तरिक्ष लोक में वायु के रूप में स्थित रहने वाले, सभी के आश्रय स्थल, यज्ञ कुण्ड में प्रदान की जाने वाली आहुतियों को देवताओं तक पहुँचाने वाले, यज्ञ स्थल में निवास करने वाले, वरणीय, अतिथि, प्राणाग्नि के रूप में सभी मानवों में स्थित, नभ में बिजली के रूप में विद्यमान, जल के भीतर बड़वाग्नि के रूप में विद्यमान, पृथ्वी के भीतर ज्वालामुखी फूटने के रूप में विद्यमान, सत्य तथा ज्ञान से युक्त, पाषाणों के घर्षण से चिनगारी के रूप में प्रकट होने वाले, ऐसे सभी जगह व्याप्त अग्नि देव की महिमा का हम गुणगान करते हैं।[यजुर्वेद 12.14]
We praise Agni Dev pervading all places in this manner :- Present every where as conscious, pious, present in space as air, grant asylum to all, pass on the offerings to demigods-deities which are made in the Yagy Kund, reside at the site of Yagy, acceptable, guest, present in all living beings, present in the sky as lightening, present in water as Badvagni, present in the earth as volcanic eruption, possess truth and enlightenment, appear by the rubbing of rocks-stones.(18.05.2025)
सीद त्वं मातुरस्या उपस्थे विश्वान्यग्ने वयुनानि विद्वान्।
मैनां तपसा माऽर्चिषाऽभि शोचीरन्तरस्याꣳ शुक्रज्योतिर्वि भाहि॥
हे अग्नि! आप समस्त कर्मों के विषय में जानने वाले हैं, अतः आप माता के समान उखा के गोद में विद्यमान हों। इसे अपनी तप्त करने वाली ऊर्जा से संतापित न होने दें। अपनी लपटों से जलाएँ नहीं। इस उखा के मध्य में आप अपने निर्मल प्रकाश से विशेष रूप से दीप्तिमान हों।[यजुर्वेद 12.15]
Hey Agni Dev! You know all Karm (endeavours, efforts), so sit in the lap of Ukha as if she is your mother. Do not torture us with your blazing-scorching heat. Do not burn us with your flames. Establish your self in the middle of Ukha with specific brilliancy.
अन्तरग्ने रुचा त्वमुखायाः सदने स्वे। तस्यास्त्वꣳ हरसा तपञ्जातवेदः शिवो भव॥
हे अग्नि देव! आप अपनी दीप्ति से इस उखा के बीच में अपने निवास स्थल पर ही प्रदीप्त हों। हे जातवेदा अग्नि देव! आप ज्वाला से तेज युक्त होते हुए उखा का सभी प्रकार से कल्याण करें।[यजुर्वेद 12.16]
Hey Agni Dev! You should be illuminated at your residence in the Ukha (sugar Cane). Hey Jat Veda Agni Dev! Grant all sorts of benefits to Ukha on possessing radiance-aura after acquiring flames.
शिवो भूत्वा मह्यमग्ने अथो सीद शिवस्त्वम्।
शिवाः कृत्वा दिशः सर्वाः स्वं योनिमिहासदः॥
हे अग्नि देवता! आप हमारे निमित्त कल्याणकारी होकर यहाँ शान्तरूप में स्थित हों। सभी दिशाओं को मंगलकारी भावना से युक्त करें एवं उखा की गोदी में स्थित हों।[यजुर्वेद 12.17]
Hey Agni Dev! Sit here quietly for our welfare. Have auspicious feeling for all directions and sit in the lap of Ukha.
दिवस्परि प्रथमं जज्ञे अग्निरस्मद् द्वितीयं परि जातवेदाः।
तृतीयमप्सु नृमणा अजस्त्रमिन्धान एनं जरते स्वाधीः॥
उत्तम मेधा से युक्त याजक प्रदीप्त होने पर उन अग्नि देव की अभ्यर्थना करते हैं जो सबसे पहले स्वर्ग लोक में सूर्यरूप में प्रकट हुए, दूसरी बार पृथ्वी लोक में यज्ञाग्नि के रूप में प्रकट हुए और जातवेदा के नाम से विख्यात हुए, तीसरी बार जल में प्रकट हुए और बड़वाग्नि के रूप में विख्यात हुए। मनुष्यों के कल्याण की कामना करने वाला यह अग्नि उस जल की वर्षा करता है।[यजुर्वेद 12.18]
Intellectual Yajak worship Agni Dev as soon he evolves. He evolved at first in the heavens as Sury Dev, secondly over the earth as Yagyagni-Yagy fire named Jatveda thereafter thirdly he appeared in the waters as Badvagni and became famous. Agni resort to humans welfare and shower rains.
विद्या ते अग्ने त्रेधा त्रयाणि विद्मा ते धाम विभृता पुरुत्रा।
विद्मा ते नाम परमं गुहा यद्विद्मा तमुत्सं यत आजगन्थ॥
हे अग्नि देव! आपके जो सूर्य, अग्नि तथा बड़वा तीन तेज हैं, उनसे हम भली-भाँति परिचित हैं। गार्हपत्य, आहवनीय, दक्षिणाग्नि आदि आपके सभी रूपों से भी हम भली-भाँति परिचित हैं। आपका जो मन्त्र में विद्यमान गोपनीय नाम है, उसको भी हम जानते हैं तथा आपके बिजली के रूप में दमकने वाले जल के स्रोत से उत्पन्न होने वाले स्थान से भी हम भली-भाँति परिचित हैं।[यजुर्वेद 12.19]
Hey Agni Dev! We are aware-well versed with of your three Tej-aura, forms named Sury, Agni & Badva. We are aware of your forms named Garhpaty, Ahavneey, Dakshinagni. We know your secret name in the Mantr. We know your place where you appear as lightening and source of water.
समुद्रे त्वा नृमणा अप्स्वन्तर्नृचक्षा ईधे दिवो अग्न ऊधन्।
तृतीये त्वा रजसि तस्थिवाꣳ समपामुपस्थे महिषा अवर्धन्॥
हे अग्ने! मनुष्यों के हितकारी प्रजापति ने आपको समुद्र में बड़वानल के रूप में, तेजवान् प्रजापति ने अन्तरिक्ष लोक के बादलों के मध्य में बिजली के रूप में एवं तीसरे स्वर्ग लोक में तेज युक्त सूर्य के रूप में प्रकट किया। मनुष्यों में जठराग्नि रूप से स्थित होकर तुम उनके प्राण रक्षा करते हो।[यजुर्वेद 12.20]
Hey Agne! Prajapati devoted to human welfare evolved in the ocean as Badvagni, in the space-clouds as lightening and as Sury in the heavens. You become Jathragni in the humans and protect their lives.
अक्रन्ददग्नि स्तनयन्निव द्यौः क्षामा रेरिहद् वीरुधः समञ्जन्।
सद्यो जज्ञानो वि हीमिद्धो अख्यदा रोदसी भानुना भात्यन्तः॥
हे अग्नि देव! आप आकाश में मेघों से मध्य विद्युत् के रूप में चमकते एवं गर्जना करते हुए पृथ्वी को गुंजायमान करते हैं। प्राण-पर्जन्य के रूप में वृक्ष-वनस्पतियों को अंकुरित करते हैं। शीघ्र उत्पन्न तथा प्रज्वलित होकर सभी को प्रकाशित करते हैं। पृथ्वी और द्युलोक के मध्य विद्युत् के रूप में सुशोभित होने वाले आप स्तुत्य हैं।[यजुर्वेद 12.21]
Hey Agni Dev! You rattle-resonate the earth by shining as lightening in the sky between the clouds. You sprout-germinate the seeds as air vital-Parjany. You evolve quickly and illuminate all. Appearing between the earth & heavens you are worshipable.
श्रीणामुदारो धरुणो रयीणां मनीषाणां प्रार्पणः सोमगोपाः।
वसुः सूनुः सहसो अप्सु राजा वि भात्यग्रउषसा मिधानः॥
गौ, अश्व आदि सम्पत्ति को प्रचुर मात्रा में प्रदान करने वाले, धन को धारण करने वाले, मन के अभीष्टों को पूर्ण करने वाले, यजमान द्वारा किये जाने वाले सोम याग के रक्षक, सबके आश्रय, बल पूर्वक अरणि से प्रकट होने के कारण बल के पुत्र रूप, जल में राजा वरुण के रूप में, उषाकाल के बाद सूर्य देव के रूप में देदीप्यमान् अग्नि देव विशेषकर प्रकाशित होते हैं।[यजुर्वेद 12.22]
Hey Agni Dev! You grant cows, horses, property in abundance, support wealth, accomplish the desires appearing in the innerself, protector of the Sam Yagy by the Yajman-host, asylum for all, appear by rubbing wood with force generating friction, known as son of Bal, in waters you are the king Varun after Usha appearance you are appear as Sury Dev specifically.
विश्वस्य केतुर्भुवनस्य गर्भ आ रोदसी अपृणाज्जायमानः।
वीडुं चिदद्रिमभिनत् परायञ्जना यदग्निमयजन्त पञ्च॥
सम्पूर्ण जगत् की ध्वजा स्वरूप ये अग्नि देव समस्त भुवनों में देदीप्यमान् होकर स्वर्ग लोक तथा भूलोक को अपने तेज से परिपूर्ण करते हैं। सभी जगह गमनशील, अत्यन्त दृढ़ मेघों को भी छिन्न-भिन्न कर देते हैं, ऐसे अग्नि देव के लिए यजमान और चार ऋत्विज् (पंचजन) मिलकर यज्ञ का सम्पादन करते हैं।[यजुर्वेद 12.23]
Agni Dev, like the flag of the whole world, fulfil all the abodes with his brilliance -light between the earth and heavens. Capable of moving to all places he tear the dense clouds. Panch Jan (Four Ritviz and Yajman) join to perform-accomplish Yagy for Agni Dev.(20.05.2025)
उशिक् पावको अरतिः सुमेधा मत्र्येष्वग्निरमृतो निधायि।
इयत्ति धूममरुषं भरिभ्रदुच्छुक्रेण शोचिषा द्यामिनक्षन्॥
कभी भी क्षीण न होने वाली कान्ति से युक्त, पवित्रता प्रदान करने वाले, दुष्टों के विनाशक, बुद्धिमान् अग्नि देव मानवों में स्थित किये गये हैं। ये अग्नि देव उपद्रव रहित अथवा रोष रहित धूम को जल वृष्टि के निमित्त आकाश में भेजते हैं। साथ ही साथ अपनी पवित्र महिमा से स्वर्ग लोक में व्याप्त होते हैं।[यजुर्वेद 12.24]
Purifying intelligent, destroyer of the wicked-vicious Agni Dev whose brilliance never diminish has been established amongest the humans. Agni Dev ascend the smoke which is free form agitation in the sky for producing rains. By virtue of his glory he pervades till the heavens.
दृशानो रुक्म उर्व्या व्यद्यौदुर्मर्षमायुः श्रिये रुचानः।
अग्निरमृतो अभवद्वयोभिर्यदेनं द्यौरजनयत्सुरेताः॥
स्वर्ण सदृश आभा वाले अग्नि देव सब पदार्थों को प्रकाशित करने वाले हैं और इस लोक में सहज दर्शनीय हैं। वे विभिन्न प्रकार से धन-ऐश्वर्य को बढ़ाते हुए शोभायमान होते हैं। ये अग्नि देव श्रेष्ठ शक्ति-सम्पन्न, अमृत-स्वरूप, दुःखनाशक, आयुष्य के संवर्धक हैं। देवताओं द्वारा इन्हें प्रकट किया गया है। विविध हविरान्नों से यह अग्नि देवत्व को प्राप्त होता है।[यजुर्वेद 12.25]
प्रकट किया :: revealed, exposed, manifested, disclosed, showed, brought forth, announced.
Agni Dev possessing brilliance like gold, illuminating all goods is easily seen-available in this abode. He become glorious by boosting various kinds of wealth & grandeur. Agni Dev is excellent-best, possess divine powers, removes pain-sorrow & increase longevity. Demigods-deities have manifested him. Agni Dev attains demigodhood by virtue of various oblations-offerings.
यस्ते अद्य कृणवद्भद्रशोचेऽपूपं देव घृतवन्तमग्ने।
प्र तं नय प्रतरं वस्यो अच्छाभि सुम्नं देवभक्तं यविष्ठ॥
हे कल्याणकारी, दिव्य गुण संयुक्त अग्नि देव! आज इस समय जो याजक आपको घी से सिंचित किये गये पुरोडाश को अर्पित कर रहा है, उस याजक को सबसे ऊँचे पद पर स्थापित करें। हे अग्नि देव! आप महाशक्ति सम्पन्न हैं। आप देवों के निमित्त प्राप्त होने वाले उत्तम स्वर्गादि सुखों को भी उसे प्रदान करें।[यजुर्वेद 12.26]
Hey Agni Dev possessing divine chractrices leading to welfare! Establish the Yajak making offerings of Purodas treated with Ghee above all i.e., at higher post-position. Hey Agni Dev! You possess Ultimate powers. Grant the pleasure-comforts to the Yajak which are available to the demigods-deities.
आ तं भज सौश्रवसेष्वग्न उक्थ उक्थ आ भज शस्यमाने।
प्रियः सूर्ये प्रियो अग्ना भवात्युज्जातेन भिनददुज्जनित्वैः॥
हे अग्ने! आप याजक को कीर्ति बढ़ाने वाले यज्ञ कर्म में संलग्न करें, उसे यज्ञानुष्ठान के अवसर पर हवन कर्म और स्तोत्र पाठ हेतु प्रेरित करें। आराधक याजक सूर्य देव तथा आपके प्रीति-पात्र हों एवं पुत्र-पौत्रादि सभी सन्ततियों के सुख से समृद्धिशाली बनें॥
Hey Agni Dev! Engage the Yajak to Yagy Karm which increase glory-fame. Inspire him to recite Strotr during Hawan and organisation of Yagy. Worshiper Yajak should attain your affection in addition to that of Sury Dev. Grant comforts-pleasure to his sons & grand sons.
त्वामग्ने यजमाना अनु द्यून् विश्वा वसु दधिरे वार्याणि।
त्वया सह द्रविणमिच्छमाना व्रजं गोमंतमुशिजो वि ववुः॥
हे अग्ने! याजक आपकी सेवा करने में लगे रहते हैं। वे आपकी कृपा से नित्य प्रति धन-वैभव प्राप्त करते हैं एवं आपके सहयोग की कामना करते हुए बुद्धिमान लोग यज्ञ के पुण्य कर्मों से दिव्य प्रकाश की रश्मियों से युक्त, देवपथ को प्राप्त करते हैं।[यजुर्वेद 12.28]
Hey Agne! The Yajak are busy serving you. They earn-get money by virtue of your kindness-blessings. The intelligent expect cooperation from you while attaining route to divinity illuminated with divine aura performing Yagy Karm by virtue of auspicious acts-endeavours.
अस्ताव्यग्निर्नराꣳ सुशेवो वैश्वानर ऋषिभिः सोमगोपाः।
अद्वेषे द्यावापृथिवी हुवेम देवा धत्त रयिमस्मे सुवीरम्॥
जठराग्नि रूप में सम्पूर्ण मानव जाति के हितैषी तथा सोम के संरक्षक अग्नि देव की ऋषि गण आराधना करते हैं। आपसी विद्वेष की भावना से रहित पृथ्वी तथा स्वर्ग लोक के अधिष्ठाता देव शक्तियों को हम आवाहित करते हैं। हे अग्नि आदि देवताओं! हमें शक्तिशाली पुत्रों सहित विपुल धन-वैभव प्रदान करें।[यजुर्वेद 12.29]
Rishi Gan worship Agni Dev who is the protector of entire human race and guardian-patron of Som. We invoke the deities of earth and heaven, free from envy. Hey Agni Dev & other demigods-deities! Grant us lots-ample wealth-grandeur, opulence and mighty sons.
समिधाऽग्निं दुवस्यत घृतैर्बोधयतातिथिम्। आऽस्मिन् हव्या जुहोतन॥
हे यजमान और ऋत्विग्गणो! आप समिधाओं द्वारा अग्नि देव को हर्षित करें, अतिथि रूप अग्नि देव को घृत की आहुति प्रदान करके प्रज्वलित करें एवं इस प्रज्वलित अग्नि में हव्य-पदार्थों की आहुतियाँ समर्पित करें।[यजुर्वेद 12.30]
Hey Yajman and Ritviz Gan! Make Agni Dev happy as a gust by offering wood and Ghee. Sacrifice various offerings in the blazing fire.
उदु त्वा विश्वे देवा अग्ने भरन्तु चित्तिभिः। स नो भव शिवस्त्वꣳ सुप्रतीको विभावसुः॥
हे अग्ने! आपको सम्पूर्ण दैवी शक्तियाँ श्रेष्ठ वृत्तियों द्वारा पोषित करें। आप अपनी उत्कृष्ट ज्वालाओं रूप सुन्दर मुख के द्वारा शोभायमान होते हैं। आप अगाध धन-ऐश्वर्य से सम्पन्न होकर हमारे निमित्त सभी तरह से मंगलकारी सिद्ध हों।[यजुर्वेद 12.31]
Hey Agne! Let all the divine powers nourish you with best efforts-intensions. Your face appear beautiful with the glowing flames. You should be auspicious to us in all possible ways enriched with lots of wealth & grandeur.
प्रेदग्ने ज्योतिष्मान् याहि शिवेभिरर्चिभिष्टुवम्।
बृहद्भिर्भानुभिर्भासन् मा हिꣳसीस्त्वा प्रजाः॥
हे अग्ने! आप मंगलकारी, तेज युक्त ज्वालाओं के साथ यहाँ पधारें तथा व्यापनशील किरणों से प्रकाशमान् होकर हमारी सन्ततियों को हर आपदाओं से रक्षित करें, उन्हें हिंसित न करें।[यजुर्वेद 12.32]
Hey Agne! Come here accompanied with your bright flames and expanding rays, protecting our progeny from all evils without harming them.
अक्रन्ददग्नि स्तनयन्निव द्यौः क्षामा रेरिहद् वीरुधः समञ्जन्।
सद्यो जज्ञानो वि हीमिद्धो अख्यदा रोदसी भानुना भात्यन्तः॥
हे अग्नि देव! आप आकाश में मेघों से मध्य विद्युत् के रूप में चमकते एवं गर्जना करते हुए पृथ्वी को गुंजायमान करते हैं। प्राण-पर्जन्य के रूप में वृक्ष-वनस्पतियों को अंकुरित करते हैं। शीघ्र उत्पन्न तथा प्रज्वलित होकर सभी को प्रकाशित करते हैं। पृथ्वी और द्युलोक के मध्य विद्युत् के रूप में सुशोभित होने वाले आप स्तुत्य हैं।[यजुर्वेद 12.33]
Hey Agni Dev! You resonate the earth while appearing as lightening in the clouds in the sky. Sprout the trees and vegetation in the form of air vital & Parjany Dev. You ignite quickly and luminate every one. You are glorified between the earth and heavens in the form of lightening and is worshiped.
प्र प्रायमग्निर्भरतस्य शृण्वे वि यत्सूर्यो न रोचते बृहद्भाः।
अभि यः पूरुं पृतनासु तस्थौ दीदाय दैव्यो अतिथिः शिवो नः॥
हविष्यान्न समर्पित करने वाले यजमान के आह्वान को सुनकर देवताओं के अतिथि अग्नि देव अत्यन्त दीप्तिमान् होकर सूर्य देव के सदृश ही प्रकाशमान होते हैं। जो रणस्थल में दुष्प्रवृत्ति रूपी राक्षसों के सम्मुख प्रकट होते हैं तथा हमारे निमित्त मंगलकारी भावनाओं से परिपूर्ण होकर प्रदीप्त होते हैं।[यजुर्वेद 12.34]
On being invoked by the Yajman making oblations-offerings to the guest of demigods-deities Agni Dev, become luminous like Sury Dev. He who appear before the demons having wickedness-viciousness, bad intensions-tendencies in the war, become auspicious for us and luminate.(19.05.2025)
आपो देवीः प्रतिगृभ्णीत भस्मैतत्स्योने कृणुध्वꣳ सुरभा उ लोके।
तस्मै नमन्तां जनयः सुपत्नीर्मातेव पुत्रं बिभृताप्स्वेनत्॥
उखा में स्थित भस्म को नदी या तालाब के जल में फेंककर बोलें, हे दिव्य गुण सम्पन्न जलो! आप भस्म को स्वीकार करके उचित, उत्तम तथा सुगन्ध युक्त स्थान पर रखें। जिस प्रकार उत्तम गुणों से परिपूर्ण स्त्रियाँ अपने पति के सामने विनम्रता के साथ झुकती हैं, उसी प्रकार आप अग्नि देव के सामने झुकें। हे जलो! आप इस भस्म को अपने में वैसे ही धारण करें, जिस प्रकार माताएँ अपने पुत्र को गोद में धारण करती हैं।[यजुर्वेद 12.35]
Immerse the ashes present in the Ukha-sugar cane in either river or pond and say, hey water possessing divine qualities! Accept the ashes and place them over proper, best scented location. The way women possessing excellent characteristics bow before their husband, you should also bow before Agni Dev. Hey waters! Keep these ashes just like the mother, who keep her infant in the lap.
अप्स्वग्ने सधिष्टव सौषधीरनु रुध्यसे। गर्भे सञ्जायसे पुनः॥
हे भस्मीभूत अग्ने! आप जल में बड़वाग्नि रूप में विद्यमान हैं। सभी ओषधियों में स्थित रहते हैं तथा अरणि-मन्थन से आप बारम्बार प्रादुर्भूत होते हैं।[यजुर्वेद 12.36]
Hey Agne turned to ashes! You are present in the waters as Badvagni. Remain in the medicines-herbs and evolve repeatedly by rubbing wood.
गर्भो अस्योषधीनां गर्भो वनस्पतीनाम्। गर्भो विश्वस्य भूतस्याग्ने गर्भो अपामसि॥
हे अग्नि देव! आप ओषधियों के गर्भ में विद्यमान हैं। आप वनस्पतियों के गर्भ में विद्यमान हैं, क्योंकि अरणि रूप काष्ठ के मन्थन से उत्पन्न होते हैं। आप सम्पूर्ण प्राणियों के गर्भ में जठराग्नि रूप से विद्यमान हैं। आप जल के गर्भ में वडवाग्नि रूप से विद्यमान हैं अर्थात् उन सभी के उत्पत्ति के कारण आप हैं।[यजुर्वेद 12.37]
Hey Agni Dev! You are present in the bomb of herbs-vegetation, since you evolve by rubbing wood pieces. You are present in stomach of all living beings as Jathragni. You are present in the waters as Badvagni. You are behind your evolution.
प्रसद्य भस्मना योनिमपश्च पृथिवीमग्ने। सꣳध्सृज्य मातृभिष्ट्वं ज्योतिष्मान् पुनराऽसदः॥
हे अग्नि देव! आप भस्म स्वरूप में धरती तथा जल में प्रतिष्ठित हैं। पुनः पृथ्वी और माता रूपी जल से सिंचित होकर तेज से सम्पन्न होकर यज्ञ में फिर से प्रकट होकर अपना स्थान ग्रहण करें।[यजुर्वेद 12.38]
Hey Agni Dev! you are present in the soil and water as ashes. You revive your form with radiance on being nursed by the earth & water, then appear in the Yagy and occupy your seat.
पुनरासद्य सदनमपश्च पृथिवीमग्ने। शेषे मातुर्यथोपस्थेऽन्तरस्याꣳ शिवतमः॥
हे अग्ने! अत्यन्त कल्याणकारी आप जल तथा पृथ्वी के स्थान को प्राप्त कर पुनः उखा में इस प्रकार शयन करते हैं, जैसे शिशु अपनी माँ की गोद में सो रहा हो।[यजुर्वेद 12.39]
Hey Agne! Being extraordinarily beneficial you attain earth and water and sleep in the Ukha like a child sleeping in the lap of his mother.
पुनरूर्जा निवर्तस्व पुनरग्न इषाऽऽयुषा। पुनर्नः पाह्यꣳ हसः॥
हे अग्ने! आप अपनी प्रखर ऊर्जा के साथ फिर से यहाँ उपस्थित हों और हमें शक्ति तथा ऊर्जा से सम्पन्न करें। हे अग्नि देव! आप अन्न तथा आयुष्य के संवर्द्धन हेतु फिर से आगमन करें और आगमन करके पाप कृत्यों से हमें मुक्ति दिलायें।[यजुर्वेद 12.40]
Hey Agne! Invoke here with your tremendous energy and grant us strength and energy. Hey Agni Dev! Enriched with food grains and life come here again releasing us from the sins.
सह रय्या निवर्तस्वाग्ने पिन्वस्व धारया। विश्वप्स्न्या विश्वतस्परि॥
हे अग्नि देव! आप गो-अश्व आदि पशुधन के साथ वापस आयें तथा संसार के उपयोग के लिए श्रेष्ठ-पवित्र जलधारा से ओषधियों, वनस्पतियों आदि सभी को अभिषिक्त करें।[यजुर्वेद 12.41]
Hey Agni Dev! Come again with cows & horses. Anoint the medicines-herbs, vegetation for the utilisation of the world with excellent pious water currents.
बोधा मे अस्य वचसो यविष्ठ मꣳ हिष्ठस्य प्रभृतस्य स्वधावः।
पीयति त्वो अनु त्वो गृणाति वन्दारुष्टे तन्वं वन्दे अग्ने॥
हे श्रेष्ठ युवारूप अग्नि देव! मेरे द्वारा की गयी स्तुति को आप सुनें। हमारे महिमा युक्त बारम्बार किये गये निवेदन के अभिप्राय को आप जानें। कोई आपकी निन्दा करे या कोई आपकी महिमा का गुणगान करे, यह मनुष्य की प्रकृति है, लेकिन हम स्तुति करने वाले आपके देदीप्यमान् स्वरूप की सर्वदा वन्दना ही करते हैं।[यजुर्वेद 12.42]
Hey excellent young form Agni Dev! Listen-respond to my prayer. Understand the theme behind our glorious prayers. Its a human tendency to either appreciate or reproach others, but we always worship your radiant divine form.
स बोधि सूरिर्मघवा वसुपते वसुदावन्। युयोध्यस्मद् द्वेषाꣳसि विश्वकर्मणे स्वाहा॥
हे अग्नि देव! आप धनपति तथा धन के दाता हैं। आप सर्वज्ञाता तथा ऐश्वर्यवान् हैं, अतएव हमारे द्वारा की गयी प्रार्थनाओं के अभिप्राय को समझें तथा हमसे द्वेष करने वालों को हमसे पृथक् करें। आप जगत् के सम्पूर्ण क्रिया कलापों को उत्तम रीति से सम्पादित करने वाले हैं, अतः हम यह आहुति आपको अर्पित करते हैं, आप इसे ग्रहण करें।[यजुर्वेद 12.43]
Hey Agni Dev! You are wealthy and a donor. You are enlightened-all knowing and possess grandeur. Respond to our prayers favourably and alienate those who are envious to us. You perform all deeds related with the world efficiently, hence we make this sacrifice to you. Please accept it.
पुनस्त्वाऽऽदित्या रुद्रा वसवः समिन्धतां पुनर्ब्रह्माणो वसुनीथ यज्ञैः।
घृतेन त्वं तन्वं वर्धयस्व सत्याः सन्तु यजमानस्य कामाः॥
हे अग्ने! धन के लिए स्तुति करने वाले आदित्यगण, रुद्रगण तथा वसुगण आपको फिर से प्रदीप्त करें। ऋषिगण यज्ञ-कार्य को सम्पादित करने के निमित्त आपको फिर से प्रज्वलित करें, आप घृताहुति के द्वारा अपने ज्योतिरूप शरीर को बढ़ायें। आपके वृद्धि के प्राप्त होने से यजमानों के सभी मनोरथ पूर्ण हों।[यजुर्वेद 12.44]
Hey Agne! Let Adity Gan, Rudr Gan, Vasu Gan who worship you for wealth should evolve you again. The Ritviz should accomplishing the Yagy and ignite you again. You should boost your body with the sacrifices of Ghee. Your growth will accomplish the desires of the Yajman.
अपेत वीत वि च सर्पतातो येऽत्र स्थ पुराणा ये च नूतनाः।
अदाद्यमोऽवसानं पृथिव्याऽ अक्रन्निमं पितरो लोकमस्मै॥
हे यमदूतो! आप चाहे पहले से यहाँ रह रहे हों या अभी-अभी आये हों, इस यज्ञशाला से दूर चले जायें। इस स्थल को याजक के निमित्त स्वयं यमदेव ने प्रदान किया है और पितरों ने इसके लिये इस स्थान को निश्चित किया है, अतएव आप इस जगह को त्यागकर अन्य स्थान पर चले जायें।[यजुर्वेद 12.45]
Hey messengers of Yam Dev! Move away from this Yagy Shala. Yam Raj himself provided this Yagy Shala to Yajak and the Pitr-Manes selected this place. Hence, move to some other place.
संज्ञानमसि कामधरणं मयि ते कामधरणं भूयात्।
अग्नेर्भस्मास्यग्नेः पुरीषमसि चित स्थ परिचित ऊर्ध्वचितः श्रयध्वम्॥
हे उखे! आप यज्ञ-सम्बन्धी कर्म के द्वारा श्रेष्ठ ज्ञान को सम्पादित करती हैं। अतः आपके भीतर जो ज्ञान अर्जित करने की सामर्थ्य-शक्ति है, वह हमें भी प्राप्त हो, आप अग्नि देव के भस्म रूप हैं, अतएव अग्नि देव के ही स्वरूप हैं। आप भूमि पर विस्तीर्ण होने के कारण सभी जगह व्याप्त हैं, अतएव इस गार्हपत्य अग्नि के स्थान को स्वीकार करें।[यजुर्वेद 12.46]
Hey Ukha! You accomplish best knowledge pertaining to Yagy. Let us have the power to attain enlightenment possessed by you. You form the ashes of Agni Dev, hence you are like him. You are widely spread over the earth, hence accept the location of this Garhpaty Agni.(22.05.2025)
अयꣳसो अग्निर्यस्मिन्सोममिन्द्रः सुतं दधे जठरे वावशानः।
सहस्त्रियं वाजमत्यं न सप्तिꣳ ससवान्त्सन्त्स्तूयसे जातवेदः॥
सोमरस की अभिलाषा से युक्त देवेन्द्र ने हजारों को तृप्त करने योग्य अन्न के समान भक्षण किये जाने योग्य हर्ष कारक, तृप्ति कारक सोमरस को जिस माध्यम से उदरस्थ किया, वह माध्यम और कोई नहीं, ये अग्नि देव ही हैं। हे जात वेदा अग्नि देव! इस तरह सोम से युक्त हवियों को ग्रहण करते हुए आप याजकों की स्तुतियों को प्राप्त करते हैं।[यजुर्वेद 12.47]
Desirous of Somras capable of satisfying thousands with the eating of food grains, satisfying & gladdening; Devraj Indr drunk it through Agni Dev. Hey Jat Veda Agni Dev! You accept the prayers of the Yajak Gan, while receiving the offerings having Som.
अग्ने यत्ते दिवि वर्चः पृथिव्यां यदोषधीष्वप्स्वा यजत्र।
येनान्तरिक्षमुर्वाततन्थ त्वेषः स भानुरर्णवो नृचक्षाः॥
हे यज्ञाग्नि! आपकी जिस ज्योति ने द्युलोक को आदित्य के रूप में, पृथ्वी को अग्नि रूप में, तेजरूप में ओषधियों को, मेघों में जल रूप से तथा विस्तीर्ण अन्तरिक्ष लोक को विद्युत् के रूप में व्याप्त किया है, विश्व-प्रकाशक, सब ओर गमन शील, मनुष्यों के शुभाशुभ कर्मों के द्रष्टा सूर्यरूप में जो सर्वत्र दीप्तिमान है, तुम्हारे उसे तेज को हम यज्ञ कुण्ड निर्माण हेतु ईटों के रूप में चयन करते हैं।[यजुर्वेद 12.48]
Hey Yagyagni! We select your luminosity for building Yagy Kund in the form of bricks which is Adity in heavens, Agni over the earth, Tej-energy in the herbs-medicines, as water in the vast clouds, lightening in the sky-space, pervading the universe, in all directions, Sury Dev who looks at auspicious and inauspicious deeds of humans present every where.
अग्ने दिवो अर्णमच्छा जिगास्यच्छा देवाँ 2 ऊचिषे धिष्ण्या ये।
या रोचने परस्तात् सूर्यस्य याश्चावस्तादुपतिष्ठन्त आपः॥
हे अग्ने! आप स्वर्ग लोक के अमृत स्वरूप जल को श्रेष्ठ विधि से धारण करते हैं। जो बुद्धि इन्द्रिय के प्रेरक प्राण कहलाते हैं, उन प्राण स्वरूप देवताओं के सम्मुख भी आप गतिमान् होते हैं। दीप्तिमान् सूर्य मण्डल में विद्यमान सूर्य के आगे जो जल है एवं जो जल इसके नीचे है, उन सभी जलों में आप विद्यमान हैं, आप ही उसकी वर्षा करते हैं।[यजुर्वेद 12.49]
Hey Agne! You support the water of heavens like elixir. You are dynamic in front demigods forming air vital which inspires the sense organs. You are present in the waters every where viz in the Sury Mandal, in front of Sury Dev and the water below him and cause rains.
पुरीष्यासो अग्नयः प्रावणेभिः सजोषसः। जुषन्तां यज्ञमद्रुहोऽ नमीवा इषो महीः॥
प्रजा का पालन करने वाली, समान मनों में प्रीति युक्त, हिंसा न करने वाली, पशुओं का हित करने वाली ये अग्नियाँ इस यज्ञ में आरोग्य प्रदान करने वाली वन की ओषधियों से सम्पन्न हविष्य को प्रचुर मात्रा में स्वीकार करें।[यजुर्वेद 12.50]
Let the various forms of Agni accept the offerings-oblations which grant health from the forest herbs, in sufficient quantity, which nourish the populace, possess mutual affection, non violent, favourable to the animals; in this Yagy.
इडामग्ने पुरुदꣳ सꣳ सनिं गोः शश्वत्तमꣳ हवमानाय साध।
स्यान्नः सूनुस्तनयो विजावाग्ने सा ते सुमतिर्भूत्वस्मे॥
हे अग्ने! विविध यज्ञ-सम्बन्धी कर्मों को पूर्ण करने वाले अन्न तथा गौ एवं उससे प्राप्त होने वाले दुग्ध, घी आदि को यजमान को प्रदान करें। हे अग्ने! यजमानों को योग्य सन्तान, ऐश्वर्य आदि से युक्त करने वाली आपकी उत्कृष्ट मेधा हमारे निमित्त मंगलकारी सिद्ध हो।[यजुर्वेद 12.51]
Hey Agne! Grant food grains & cows along with their products viz milk and Ghee to the Yajman to accomplish various rituals in the Yagy. Hey Agne! Your best intellect which grant able progeny & grandeur to the Yajman should be auspicious to us.
अयं ते योनिर्ऋत्वियो यतो जातो अरोचथाः। तं जानन्नग्न आरोहाथा नो वर्धया रयिम्॥
हे अग्नि देव! यह वेदी प्रत्येक ऋतु में आपकी जननी है। इससे उत्पन्न होकर आप प्रज्वलित होते हैं। इस अग्नि को अपना जनक मानते हुए पुनः प्रदीप्त होने के निमित्त, यज्ञ कर्म के अन्त में उसी गार्हपत्य अग्नि में आप पुनः प्रविष्ट हो जायें। तदनन्तर पुनः यज्ञ करने के लिए आप हमें समृद्ध करें।[यजुर्वेद 12.52]
Hey Agni Dev! This Vedi is your mother in every season. You evolve out of it and blaze. Considering this Agni as your mother after ignition, enter the Garhpaty Agni after the Yagy again. Thereafter, make us prosperous for performing the Yagy again.
चिदसि तया देवतयांगिरस्वद् ध्रुवा सीद। परिचिदसि तया देवतयांगिरस्वद् ध्रुवा सीद॥
हे इष्टके! आप सुख के साधनों को एकत्रित करने वाली हैं। वाक्देवता द्वारा प्राणों के संचार के सदृश ही आप निश्चित स्थान पर विराजमान हों। हे इष्टके! आप सभी ओर से अपने स्थान पर विराजमान हों। हे इष्टके! आप सभी तरफ से साधनों को संगृहीत करने वाली होकर वाणी के देवता द्वारा अंगों में संचरित प्राण के सदृश ही उचित स्थान पर विराजित हों।[यजुर्वेद 12.53]
Hey deity! You collect the means of comforts-pleasure. Establish at the place fixed for you, like the air vital by the deity of speech. Hey deity! Establish at your seat-place from all directions. Become collector of means from all directions, establish at the proper site by the deity of speech, like the air vital, moving in all organs.
लोकं पृण छिद्रं पृणाथो सीद ध्रुवा त्वम्। इन्द्राग्नी त्वा बृहस्पतिरस्मिन् योनावसीषदन्॥
हे लोकम्पृण नाम वाली इष्टके! आप गार्हपत्य के चयन स्थान में खाली जगह को भरें, छेद को पूरी तरह से भर दें एवं यहाँ दृढ़ता के साथ प्रतिष्ठित हों। देवराज इन्द्र, अग्नि देव तथा बृहस्पतिदेव इन तीनों देवताओं ने यह स्थल आपके निमित्त ही निर्धारित किया है।[यजुर्वेद 12.54]
Hey deity named Lokampran! Fill the pit chosen for Garhpaty Agni, fill the holes completely and establish rigidly. The trio demigods viz Devraj Indr, Agni Dev and Brahaspati Dev have fixed this site for you.
ता अस्य सूददोहसः सोमꣳ श्रीणन्ति पृश्नयः। जन्मन्देवानां विशस्त्रिष्वा रोचने दिवः॥
द्युलोक में विद्यमान विभिन्न अन्न से सम्पन्न वे प्रसिद्ध जल धारायें देवों के उदय काल में द्युलोक, अन्तरिक्ष लोक तथा भूलोक तीनों लोकों में इस यज्ञ से सम्बन्ध रखने वाले सोम को उत्तम रीति से सम्पन्न करती हैं।[यजुर्वेद 12.55]
Famous water streams present in the heavens, possessing various food grains, during the dawn of demigods, extract the Somras with best procedures related with the Yagy in the three abodes viz heavens, space and earth.
इन्द्रं विश्वा अवीवृधन्त्समुद्रव्यचसं गिरः। रथीतमꣳ रथीनां वाजानाꣳ सत्पतिं पतिम्॥
सम्पूर्ण ज्ञान से युक्त वाणियाँ अर्थात् ऋक्, यजुः, साम एवं अथर्व रूप स्तुतियों, अन्तरिक्ष के सदृश विशाल सभी रथियों की तुलना में महारथी एवं वैभव शाली इन्द्र देव की प्रशंसा करते हुए उनके माहात्म्य में वृद्धि करती हैं।[यजुर्वेद 12.56]
Possessing the entire knowledge, speeches like i.e., Rik, Yaju, Sam & Athrv, in the form of Stuties-prayers, like the huge charioteers of space as compared to the Maha Rathi Indr Dev, increase his glory-significance, while praising him.(22.05.2025)
समितꣳ सं कल्पेथाꣳ संप्रियौ रोचिष्णू सुमनस्यमानौ। इषमूर्जमभि संवसानौ॥
हे गार्हपत्य और उखा में स्थित अग्नि देव! आप दोनों समान प्रीति वाले, कान्तिमान्, परस्पर श्रेष्ठ चित्त वाले हैं। आप अन्न तथा घृतादि का भोग करें अर्थात् हमारे द्वारा समर्पित किये जाने वाले अन्न-भूतादि से युक्त हविष्यान्न को ग्रहण करें। आप हमारे अनुरूप होकर यज्ञ रूप उत्तम कर्म को सफल बनायें।[यजुर्वेद 12.57]
Hey Garhpaty and Agni Dev present in Ukha! Both of you have similar affection, aura and mutual excellent mood. Consume the food grains and Ghee offered by us. Become favourable to us and accomplish our Yagy.
सं वां मनाꣳसि सं व्रता समुचित्तान्याकरम्।
अग्ने पुरीष्याधिपा भव त्वं न इषमूर्जं यजमानाय धेहि॥
हे गार्हपत्य और उखा में स्थित अग्नि देव! हम आपके कार्यों, मन तथा भावनाओं को एक साथ संयुक्त करते हैं। हे पुरीष्य अग्नि देव। आप हमारे अधिपति हैं, अतः पोषणकारी शक्ति से युक्त अन्न याजक के हितार्थ प्रदान करें।[यजुर्वेद 12.58]
पुरीष :: मल, विष्ठा; stool.
Hey Garhpaty and Agni Dev present in Ukha! You merge assume-consider your efforts, innerself, feeling as one. Hey Pueeshy Agni Dev! You are our lord, hence grant us food grains full of nourishment for our welfare.
अग्ने त्वं पुरीष्यो रयिमान् पुष्टिमाँ2 असि।
शिवाः कृत्वा दिशः सर्वाः स्वं योनिमिहाऽसदः॥
हे अग्नि देव! सबका मंगल करने वाले आप पशुओं के हित कारी, धनवान् और ऐश्वर्यवान् हैं। आप समस्त प्राणियों के पोषणकर्ता हैं। हमारे निमित्त सभी दिशाओं को कल्याणकारी बनाते हुए, यहाँ अपने स्थान में स्थित हों।[यजुर्वेद 12.59]
Hey Agni Dev! You look to the welfare of everyone, beneficial to the animals, wealthy and possess grandeur. You nourish all living beings-organism, creatures. Make all direction suitable-favourable to us and stay here at your seat.
भवतं नः समनसौ सचेतसावरेपसौ।
मा यज्ञꣳ हिꣳसिष्टं मा यज्ञपतिं जातवेदसौ शिवौ भवतमद्य नः॥
एकाग्र मन वाले, सद्भाव युक्त तथा प्रमाद रहित हे गार्हपत्य और उखा में स्थित अग्नि देव! हमारे अपराधों पर क्रोधित न होते हुए, आप दोनों हमारे यज्ञ को नष्ट न होने दें। यजमानों का भी नाश न होने दें। उनकी रक्षा करें। आज का दिन हम सभी के लिए कल्याणकारी एवं शुभ हो।[यजुर्वेद 12.60]
सद्भाव :: शुभ भाव; amiability, amiableness.
Hey Garhpaty and Agni Dev present in Ukha with concentrated mind, possessing amiability, free from intoxication! Do not be angry with our behaviour and protect our Yagy. Protect the Yajman-hosts as well. Let this occasion-day be auspicious to all of us.
मातेव पुत्रं पृथिवी पुरीष्यमग्निꣳ स्वे योनावभारुखा।
तां विश्वैर्देवैर्ऋतुभिः संविदानः प्रजापतिर्विश्वकर्मा वि मुञ्चतु॥
भूमि (मृत्तिका) द्वारा निर्मित उखा प्राणियों का मंगल करने वाली अग्नि को अपने मध्य में उसी तरह धारण करती है, जैसे माता अपने बालक को अपने गोद में धारण करती है। सम्पूर्ण देवों तथा ऋतुओं के द्वारा यह कहकर कि इस उखा द्वारा महान् कार्य हुआ है, एकता की भावना से प्रेरित उखा को जगत् के रचयिता प्रजापति (विश्वकर्मा) शिकहर रूपी बन्धन से मुक्त करें।[यजुर्वेद 12.61]
शिकहर :: शिकार करना, hunting.
Ukha auspicious to the produced in the soil, bear Agni Dev in her like the mother keeping infant in her lap. Ask all the demigods and seasons that Ukha has done a great job, inspired towards unity, Prajapati who evolved the universe; should release her the from the ties-bonds of hunting.
असुन्वन्तमयजमानमिच्छ स्तेनस्येत्यामन्विहि तस्करस्य।
अन्यमस्मदिच्छ सा त इत्या नमो देवि निर्ऋते तुभ्यमस्तु॥
यजमान यज्ञ कुण्ड के दक्षिणी भाग में निऋति संज्ञक रखते हुए बोलें, हे निऋते! आप दुष्टों का संहार करने में सक्षम हैं। सोमयाग न करने वाले अर्थात् यज्ञादि नहीं करने वाले तथा दान आदि धर्मकर्मों से रहित पुरुषों के निकट जायँ अर्थात् उन्हें अपने अधीनस्थ रखें। आपकी ऐसी ही इच्छा हो। हे देवि! आपको हम नमस्कार करते हैं।[यजुर्वेद 12.62]
Yajman should place object addressed Nirati in the south and say, hey Nirati! You are capable of destroying the wicked. Move to those who do not perform Sam Yagy, Dharm Karm, donations etc. and keep them under your subordination-control. You should too wish like this, as well. Hey Devi! We salute you.
नमः सु ते निर्ऋते तिग्मतेजोऽयस्मयं वि चुता बन्धमेतम्।
यमेन त्वं यम्या संविदानोत्तमे नाके अधि रोहयैनम्॥
हे निर्ऋते! आप तीक्ष्ण तेज वाली तथा घोर क्रूर रूपा हैं। हम आपकी शक्ति को निरन्तर नमस्कार करते हैं। आप लौहपाश के सदृश मजबूत जन्म-मरण रूप अज्ञान का छेदन करें तथा अग्नि एवं पृथ्वी के साथ मतैक्य को प्राप्त करने वाले इस याजक को उत्तम दिव्य लोक में विराजमान करें।[यजुर्वेद 12.63]
घोर :: जो आकार, प्रकार, प्रभाव आदि की दृष्टि से विकराल या भीषण हो, डरावना, जो मान, मात्रा आदि के विचार से अति तक पहुँचा हुआ हो, (स्वर जो बहुत ही कठोर और भय उत्पादक हो), बहुत बड़ा, भूषण, बहुत ही बुरा, बहुत ही घना या सघन, बहुत अधिक, अत्यन्त, अत्यंत क्रूर,बेहद निर्दयी, भयंकर क्रूर; Mortal, fiasco, heinous, horrible, macabre, atrocious, outraged, awful, outrageous, blatant, serious, diabolic, severe, diabolical, terrible, dismal, unrelieved, eerie, egregious, flagrant, formidable, grave, grievous.
मतैक्य :: मत की एकता, समानता; unanimity.
Hey Nirati Devi! You are sharp and perform horrible deeds. We continue saluting your power. Eliminate the ignorance like bonds of iron and grant divine abodes to the Yajak who attained the unanimity of both Agni & earth.
यस्यास्ते घोर आसञ्जुहोम्येषां बन्धानामवसर्जनाय।
यां त्वा जनो भूमिरिति प्रमन्दते निऋतिं त्वाऽहं परिवेद विश्वतः॥
हे विषम शील क्रूर रूपा निर्ऋति देवी! इन याजकों के द्युलोक प्राप्ति के प्रति बन्धक पापों को नष्ट करने के लिए आपके मुँह में हवि अर्पित करते हैं। साधारण ज्ञान से पूर्ण मानव आपको "हे भूमि" इस प्रकार सम्बोधित करते हैं; लेकिन हम आपको सभी तरह के पाप कृत्यों से मुक्त करने वाली ही मानते हैं।[यजुर्वेद 12.64]
Hey Devi Nirati, performing odd-cruel deeds! We make offerings in your mouth to release the bonding sins for availing heavens. Humans with low level of knowledge address you as "hey earth!", but we consider you as the reliever from all sins.
यं ते देवीं निर्ऋतिराबबन्ध पाशं ग्रीवास्वविवृत्यम्।
तं ते वि ष्याम्यायुषो न मध्यादथैतं पितुमद्धि प्रसूतः। नमो भूत्यै येदं चकार॥
हे याजक! निऋति देवी ने आपकी ग्रीवा में जिस दृढ़ पाश को बाँधा था, उसे अग्नि के मध्य निर्ऋति की अनुमति से अभी हटाते हैं। पाश से मुक्त होने के पश्चात् इस पोषणकारी अन्न को स्वीकार करें। जिस देवी की अनुकम्पा से, यह समस्त क्रिया सम्पन्न हुई अथवा जिसने इस क्रिया का सम्पादन किया, उस वैभवमयी देवी को हम सदा नमस्कार करते हैं।[यजुर्वेद 12.65]
Hey Yajak! Nirati Devi tied your neck with rigid cord, we remove it from the middle of Agni with the permission of Nirati. After releasing the Yajak from the cord, accept the nourishing food grains. We always salute the Devi who performed this deed, blessed and granted grandeur.
निवेशनः संगमनो वसूनां विश्वा रूपाऽभि चष्टे शचीभिः।
देव इव सविता सत्यधर्मेन्द्रो न तस्थौ समरे पथीनाम्॥
स्वर्ग गृह में याजक को स्थित करने वाले, पशुरूप धन के प्रदाता, सत्य धर्मा यह अग्नि देव अपने कर्मों से अपने सारे स्वरूपों को प्रकट करते हैं। सविता देवता के समान दीप्तिमान् होकर देवराज इन्द्र की भाँति ही वे रणक्षेत्र में स्थित रहते हैं।[यजुर्वेद 12.66]
Truthful Agni Dev who establish the Yajak in the heavens, grant wealth in the form of animals, expose his endeavours in all forms. Radiant like Savita Dev and Dev Raj Indr, he remain present in the war field.
सीरा युञ्जन्ति कवयो युगा वि तन्वते पृथक्। धीरा देवेषु सुम्नया॥
अध्वर्यु छः, दस या चौबीस बैलों को गूलर की लकड़ी से बने हल में योजित करे और बोलें; बुद्धिमान्, सूक्ष्मदर्शी, कृषिकर्म में कुशल, हलों को बैलों के साथ देवताओं के हर्ष के निमित्त योजित करते हैं। सभी के मंगल के लिए हल तथा वृषभों के युग्मों से इस खेत को जोतते हैं।[यजुर्वेद 12.67]
गूलर की लकड़ी :: sycamore wood.
Priest should deploy 6, 10 or 24 oxen in the plough made of sycamore wood and say, "intelligent, discerning-perspicacious, expert in agriculture deploy for the happiness of the demigods-deities". For the welfare of all, this field is ploughed with plough and bulls duo.(23.05.2025)
युनक्त सीरा वि युगा तनुध्वं कृते योनौ वपतेह बीजम्।
गिरा च श्रृष्टिः सभरा असन्नो नेदीय इत्सृण्यः पक्वमेयात्॥
हे कृषक गण! हल आदि को व्यवस्थित करके वृषभों के कन्धे पर जुए को रखो एवं खेत की जुताई करो। तैयार किये गये खेत में बीजों की रोपाई करो तथा कृषि विज्ञान के अन्तर्गत फसलों की विविध प्रजातियाँ उत्तम रीति से तैयार करो। इस प्रकार शीघ्रता से काटने योग्य धान्य हमारे निमित्त प्राप्त हों। हमारी वेद वाणी और यह फसल दोनों फलयुक्त हो।[यजुर्वेद 12.68]
हल का जुआ :: The main part of a plough where bulls are tied up is the beam. The beam is a long wooden pole or bar that connects to the plough's shaft and rests on the necks of the bulls.Hey farmers! Manage the plough and keep beam over the necks of the oxen-bulls followed by ploughing the field. Plant the sapling in the filed and prepare various species scientifically. Produce paddy ready to ripe quickly. Let the Ved Vani and the crops prove to be useful.
शुनधंसु फाला विकृषन्तु भूमि शुनं कीनाशा अभि यन्तु वाहैः।
शुनासीरा हविषा तोशमाना सुपिप्पला ओषधीः कर्तनास्मै॥
हे सुन्दर फाल वाले हल! आप पृथ्वी को सुख पूर्वक जोतें तथा कृषक लोग वृषभों के संग सुख पूर्वक गमन करें। हे वायु देव तथा सूर्य देव! आप दोनों हविष्यान से हर्षित होकर धरती को जल से अभिषिक्त करते हुए इन ओषधियों को सुन्दर फल वाली बनायें।[यजुर्वेद 12.69]
हल का फाल :: लकड़ी या लोहे का बना हल का वह नुकीला हिस्सा जो खेत की भूमि में घुसकर उसे खोलता है; ploughshares, blade, coulter.
Hey plough possessing beautiful ploughshare! Plough the soil comfortably and the farmers should live comfortably with the bulls. Hey Vayu Dev & Sury Dev! Be happy with the oblations, irrigate-sprinkle water in the fields and the medicines- herbs should bear beautiful-useful fruits.
घृतेन सीता मधुना समज्यतां विश्वैर्देवैरनुमता मरुद्भिः।
ऊर्जस्वती पयसा पिन्वमानास्मान्त्सीते पयसाऽभ्याववृत्स्व॥
जिस हल की फाल को सम्पूर्ण देवताओं तथा मरुद्गणों ने अंगीकार कर लिया है, वह हल की फाल मधुर घृत अर्थात् अमृत रूप जल से सिंचित हो। हे हल की फाल! आप अन्नवती होकर पय, दही, घृतादि से सभी दिशाओं को युक्त करती हुई, दुग्धादि पोषणकारी पदार्थ हमारे निमित्त प्रदान करें।[यजुर्वेद 12.70]
The ploughshare accepted by all the demigods & Marud Gan should treated with Ghee or water equivalent to nectar. Hey ploughshare! Possess food grains & grant us nourishing products like Ghee, curd in all directions.
लांगलं पवीरवत्सुशेवꣳ सोमपित्सरु।
तदुद्वपति गामविं प्रफर्व्यं च पीवरीं प्रस्थावद्रथवाहणम्॥
भूमि की खोदाई करने वाले तथा सोम की रक्षा करने वाले ये फाल युक्त हल उत्तम मंगलकारी हैं। ये कृषि उत्पादन के द्वारा भेड़, बकरी, स्वस्थ देह वाली गाय तथा रथ वाहक तीव्रगामी अश्व आदि को प्रदान करते हैं।[यजुर्वेद 12.71]
The plough with ploughshare which dig the soil and protect the Som are excellent & auspicious. They grant agricultural products and help in growing sheep, goats, healthy cows and carrier of charoite fast moving horses.
कामं कामदुघे धुक्ष्व मित्राय वरुणाय च। इन्द्रायाश्विभ्यां पूष्णे प्रजाभ्य ओषधीभ्यः॥
हमारे सारे मनोरथ पूर्ण करने वाले हे हल के फाल! आप कृपा पूर्वक मित्र, वरुण, इन्द्र, दोनों अश्विनी कुमारों तथा पूषा आदि देवों एवं सम्पूर्ण प्रजाओं के निमित्त उपयोगी-उत्तम ओषधियों तथा मनोवांछित भोज्य पदार्थ प्राप्त करायें।[यजुर्वेद 12.72]
Hey ploughshare, accomplishing our all motives! Make availble excellent medicinal herbs for Mitr & Varun Dev, Indr Dev, Ashwani Kumars duo, Pusha, all demigods and the entire populace.
वि मुच्यध्वमध्या देवयाना अगन्म तमसस्पारमस्य। ज्योतिरापाम॥
हे देवताओं के लिए कर्म करने वाले मनुष्य अर्थात् कृषि कार्य द्वारा देवयान मार्ग को प्राप्त कराने वाले हे मनुष्य! न मारने योग्य बैल आदि से जगत् की सुव्यवस्था के लिए आप कृषि कार्य का सम्पादन करें। हे अवध्य बैलों! अब आप अपने को हल से मुक्त करें। आपकी अनुकम्पा से हम भूख-प्यास के कारण उत्पन्न होने वाले दुःखों से मुक्त हों तथा परमात्मा लक्षण वाले यज्ञ एवं शान्ति को प्राप्त करें।[यजुर्वेद 12.73]
Hey human being performing agricultural practices for the demigods leading to the path of divinity! Perform agriculture with the bulls which should not be killed; for best management of the world. Hey oxen not to be slaughtered! Release yourself from the plough. We should become free from the torture of hunger & thirst, perform Yagy having the characterises of God leading to peace, tranquillity due to your mercy.
सजूरब्दो अयवोभिः सजूरुषा अरुणीभिः।
सजोषसावश्विना दꣳ सोभिः सजूः सूर एतशेन सजूर्वैश्वानर इडया घृतेन स्वाहा॥
महीने-दिन आदि सम्वत्सर के अवयवों से स्नेह करने वाले जल के दाता संवत्सर के निमित्त अरुण वर्ण वाली किरणों से स्नेह करने वाली प्रातःकाल की अधिष्ठात्री उषा के निमित्त, चिकित्सा आदि कर्मों से स्नेह करने वाले अश्विनी कुमारों के निमित्त, घोड़ों से स्नेह करने वाले सूर्य देवता के निमित्त तथा घृतादि हविष्यान्न से स्नेह करने वाले अग्नि देव के निमित्त यह घृताहुति अर्पित है।[यजुर्वेद 12.74]
The sacrifice of Ghee is meant for lover of months, days, fortnight, lover of golden coloured rays and the deity of the day Usha, Ashwani Kumars devoted to medical treatment, lovers of horses Sury Dev and lover of Ghee & oblations Agni Dev.
या ओषधीः पूर्वा जाता देवेभ्यस्त्रियुगं पुरा। मनै नु बभ्रूणामहꣳ शतं धामानि सप्त च॥
जगत् के आरम्भकाल में जो ओषधियाँ देवों द्वारा वसन्त, वर्षा, शरद्, इन तीन ऋतुओं में प्रकट हुई हैं, पक्व होकर पीले रंग से युक्त उन सैकड़ों ओषधियों तथा ब्रीहि-यव-नीवारादि सात प्रकार के अन्नों के सामर्थ्य से हम भली-भाँति परिचित हैं।[यजुर्वेद 12.75]
अन्न के प्रकार ::
ब्रीहि :- चावल-paddy, गेहूँ-गोधूम, wheat.
यव :- जौ-barley.
नीवार :- जंगली चावल या धान, पसही या तिन्नी का चावल, मुन्यन्न, ओइरी धान।
We are well versed with the medicines which appeared during spring, rains and winters ripened turning yellow and seven categories of food grains like Breehi, Yav and Neevar.
शतं वो अम्ब धामानि सहस्त्रमुत वो रुहः। अधा शतक्रत्वो यूयमिमं मे अगदं कृत॥
हे माता के समान पोषणकारी गुणों से युक्त ओषधियों! आप सभी के सैकड़ों नाम हैं तथा हजारों अंकुर हैं। सैकड़ों कर्मों को पूर्ण करने वाली हे ओषधियों! आप सभी हमारे इस याजक को समस्त प्रकार के रोगों से मुक्त करो।[यजुर्वेद 12.76]Hey medicines possessing nourishing powers like mother! You have thousands of names and sprouts. Hey medicines performing hundreds of functions! Together you should make our Yajak free from diseases.
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We invoke Dev Mata Aditi for our protection, who possess great honour-reverence, produce greatest endeavours, supporter of truthful Yagy, protect us from all sorts of shocks, immortal, follows virtuous-righteous path and has policies.(03.08.2025)
ओषधीः प्रतिमोदध्वं पुष्पवतीः प्रसूवरीः। अश्वा इव सजित्वरीर्वीरुधः पारयिष्ण्वः॥
हे ओषधियों! आप तीव्रगामी अश्व के सदृश ही विविध प्रकार के रिपु के समान रोगों को तीव्रता से विनष्ट करने वाली हो। आप फूलों से युक्त एवं फलों को उत्पन्न करने वाले गुणों से युक्त हैं, अतः आप हमें प्रसन्नता प्रदान करनेवाली सिद्ध हों।[यजुर्वेद 12.77]
Hey medicines! You should destroy the diseases which are like enemies, quickly like fast moving horse. You possess the qualities of reproducing flowers and fruits, hence you should be capable of granting us pleasure.
ओषधीरिति मातरस्तद्वो देवीरुप ब्रुवे। सनेयमश्वं गां वास आत्मानं तव पूरुष॥
हे ओषधियों! आप मातृवत् पालन शक्ति से सम्पन्न दिव्य गुणों से युक्त हैं, आपके ऐसे गुणों की हम प्रशंसा करते हैं। उसे आप स्वीकारें। हे यज्ञ पुरुष! आपसे उपलब्ध गौ, अश्व, वस्त्र तथा रोग-रहित शरीर के सुखों का हम भली-भाँति उपभोग करें।[यजुर्वेद 12.78]
Hey medicines! You are motherly, possessing divine qualities appreciated by us. Accept our gratitude. Hey Yagy Purush! You should properly use the cows, horses, cloths and diseases-ailments free bodies.(24.05.2025)
अश्वत्थे वो निषदनं पर्णे वो वसतिष्कृता। गोभाज इत् किलासथ यत् सनवथ पूरुषम्॥
हे ओषधियों! आपका स्थान पीपल की लकड़ी द्वारा बनाया गया उपभृत तथा सुवपात्र में हैं। पलाश के पत्ते से बनी हुई जुहू में आपने अपना स्थान बनाया है। हे आहुति में प्रयोग की जाने वाली ओषधियों! आप पवन के समान होकर नभ का सेवन करें, तदुपरान्त प्राण-पर्जन्य वृष्टि के माध्यम से याजक को अन्नादि से युक्त करें।[यजुर्वेद 12.79]
उपभृत :: उपयुक्त, सक्षम; suitable, capable.
सुवपात्र :: well, deserving.
Hey medicines! Your place is in the pot-vessels made of Peepal wood. You have made the pot made of butea your home. Hey medicines used in sacrifices! Enjoy sky like Pawan Dev, thereafter grant food grains to the Yajak by showering rains.
यत्रौषधीः समग्मत राजानः समिताविव। विप्रः स उच्यते भिषग्रक्षोहामीवचातनः॥
हे ओषधियों! आप शत्रुवत् व्याधियों को नष्ट करने हेतु रोगी के निकट वैसे ही गमन करती हैं, जैसे शासक राक्षसों का संहार करने हेतु युद्धक्षेत्र में गमन करता है। वहाँ आपके माध्यम से वैद्य व्याधिरूपी राक्षस को पराजित करते हैं। ओषधि देकर रोगों का नाश करने वाले होने के कारण ही उन्हें चिकित्सक (वैद्य) कहा जाता है।[यजुर्वेद 12.80]
Hey medicines! You become close to the patient for removing diseases similar to the king who goes to the battle field for destroying demons. The doctor-Vaedy kills the ailments which are like demons. They are called physicians since they provide medicine to cure.
अश्वावतीꣳ सोमावतीमूर्जयन्तीमुदोजसम्। आऽवित्सि सर्वा ओषधीरस्मा अरिष्टतातये॥
इस याजक के पीड़ादायी व्याधियों के निवारण हेतु अश्व की भाँति बलशाली, सोमयाग के निमित्त उपयोगी, शक्ति-सामर्थ्य से सम्पन्न, वीर्य में वृद्धि करने वाली एवं तेजस्विता की पोषक, ऐसी सभी प्रकार की अरिष्ट विनाशक ओषधियों के अद्भुत गुणों से हम भली-भाँति परिचित हैं।[यजुर्वेद 12.81]
अरिष्ट :: जिन दवाओं में पंचामूल अर्थात् जड़, तना, पत्ता, फल, फूल का प्रयोग, जब काढ़ा बनाने के पश्चात संधान किया जाता है तो उन्हें अरिष्ट कहते हैं यथा दशमूलारिष्ट, अर्जुनारिष्ट, द्राक्षारिष्ट।
We are well versed with the medicines having amazing properties which are used to cure ailments, as strong as horse, useful for Som Yagy, boosts strength, increase sperm count-potency, grows shine, aura-radiance.
उच्छुष्मा ओषधीनां गावो गोष्ठादिवेरते। धनꣳ सनिष्यन्ती नामात्मानं तव पूरुष॥
हे यज्ञ पुरुष! आपके अग्नि रूपी देह के निमित्त हविष्यान्न के रूप में प्रयोग की जाने वाली ओषधियों से सामर्थ्य-शक्ति उत्पन्न होती हैं। जिस प्रकार गोष्ठ से गौयें अरण्य की तरफ गमन करती हैं, उसी प्रकार यज्ञ के धुएँ से ओषधियों की सामर्थ्य-शक्ति विस्तीर्ण वायुमण्डल में संव्याप्त हो जाती है अर्थात् फैल जाती हैं।[यजुर्वेद 12.82]
Hey Yagy Purush! The medicines used as sacrifices-offerings to evolve fire produce strength and calibre. The way cows move to forest from the cow shed, the smoke from the Yagy fire spread in the sky possessing the strength of the medicines.
इष्कृतिर्नाम वो माताऽथो यूयꣳ स्थ निष्कृतीः।
सीराः पतत्रिणी स्थन यदामयति निष्कृथ॥
हे ओषधियो! निष्कृति (सम्पूर्ण व्याधियों की नाशक अथवा सम्पूर्ण सस्यादि की उत्पादक पृथ्वी) नाम वाली आपकी माता है। जिस प्रकार अन्न भूख को शान्त करता है, उसी प्रकार आप मानवों में विद्यमान समस्त रोगों को निराकृत करें।[यजुर्वेद 12.83]
Hey medicines! Nishkrati-earth is your mother. The way hunger is satiated by the food, similarly you should cure all ailments of the humans.
अति विश्वाः परिष्ठा स्तेन इव व्रजमक्रमुः। ओषधीः प्राचुच्यवुर्यत्किं च तन्वो रपः॥
जैसे दस्यू गौओं के गोष्ठ पर आक्रमण करके उन्हें अपने वश में कर लेते हैं वैसे ही अपने गुणों से ओषधियाँ भी शरीर में व्याप्त व्याधियों के समूह पर आक्रमण करके उन्हें अपने वश में कर लेती हैं एवं देह के समस्त विकारों को अपनी सामर्थ्य शक्ति द्वारा मह करती हैं।[यजुर्वेद 12.84]
The way dacoits attack the cow shed and size the cows, similarly medicines attack multiple ailments in the body and cure them by virtue of their curative properties.
यदिमा वाजयन्नहमोषधीर्हस्त आदधे। आत्मा यक्ष्मस्य नश्यति पुरा जीवगृभो यथा॥
जिस प्रकार वध-गृह में जाने से पहले ही मारने के लिए ले जाया जा रहा प्राणी स्वयं को मृत समझ लेता है, उसी प्रकार जब हम विशिष्ट सामर्थ्य, शक्ति, गुणों से युक्त इन ओषधियों को भक्षण के लिए अपने हाथ में धारण करते हैं, तब राजयक्ष्मा (टी०बी०) जैसे भयंकर रोग अपने आपको नष्ट समझ लेते हैं।[यजुर्वेद 12.85]
The way a person taken to slaughter house consider himself as dead, similarly when medicines having specific curative powers are taken over the palm tuberculosis consider itself to be destroyed.
यस्यौषधीः प्रसर्पथांगमंगं परुष्यरुः। ततो यक्ष्मं वि बाधध्व उग्रो मध्यमशीरिव॥
हे ओषधियो! जब आप रोगी मनुष्य के अंग-अवयव में पूरी तरह से समा जाती हैं, तब जैसे शूरवीर पुरुष रिपु के हृदय स्थल को अपने बाणों से पीड़ित करके नष्ट कर देता है, वैसे ही आप यक्ष्मादि रोगों को पूर्णतया नष्ट कर देती हैं।[यजुर्वेद 12.86]
Hey medicines! When you are completely absorbed in the body of the patient, you destroy tuberculosis like the brave person who tear the heart of the enemy.
साकं यक्ष्म प्र पत चाषेण किकिदीविना। साकं वातस्य ध्राज्या साकं नश्य निहाकया॥
हे (यक्ष्मा) व्याधि! तुम पित्त, कफ तथा वायुविकार के साथ-साथ इस शरीर से दूर चली जाओ। हे यक्ष्मा! समस्त शरीर को पीड़ा देने वाली व्याधि के साथ अब तुम भी नष्ट हो जाओ।[यजुर्वेद 12.87]
Hey tuberculosis! Move away from the body along with Pitt, cough, Vayu Vikar (gastric trouble) and get destroyed.
अन्या वो अन्यामवत्वन्यान्यस्या उपावत। ताः सर्वाः संविदाना इदं मे प्रावता वचः॥
हे ओषधियो! आप आपस में एक-दूसरे की सामर्थ्य-शक्ति में वृद्धि करें। प्रयोग की गयी एक ओषधि दूसरी ओषधि की रक्षा के उद्देश्य से समीप आये अर्थात् पहली ओषधि के लाभ से अत्यधिक लाभ रोगी को प्रदान करे। सम्पूर्ण ओषधियाँ आपस में सहयोग की भावना का परिचय देती हुई हमारी प्रार्थनाओं को स्वीकार करें। ये ओषधियाँ इस यक्ष्मा रोग को अवश्य नष्ट कर देंगी, मेरा यह वचन असत्य न हो।[यजुर्वेद 12.88]
Hey medicine! Increase your potency mutually. Second medicine should increase its impact over the first, granting cure-recovery to the patient. All medicines should act mutually and accept our prayers. These medicines have to cure tuberculosis, my promise should be upheld.
याः फलिनीर्या अफला अपुष्पा याश्च पुष्पिणीः। बृहस्पतिप्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्वꣳ हसः॥
जो ओषधियाँ फल देने वाली हैं; जो फल नहीं देतीं; जो बिना फूलों वाली हैं और जो फूलों वाली हैं; बृहस्पति देव के द्वारा उत्पन्न या प्रेरित की गयी वे सब ओषधियाँ मुझे रोग रूपी पाप से अब शीघ्र ही मुक्त करें।[यजुर्वेद 12.89]
Let the medicines which grow fruits, without fruits, with flowers & without flowers evolved by Brahaspati Dev, should relieve me from the ailments-diseases appearing due to the sins.(25.05.2025)
मुञ्चन्तु मां शपथ्यादथो वरुण्यादुत। अथो यमस्य षड्वीशात्सर्वस्माद् देवकिल्बिषात्॥
हे ओषधियो! आप मिथ्या शपथ के कारण हुए पाप फल से उत्पन्न रोगों से और निन्दनीय कुकर्मों से उत्पन्न जल जनित रोगों से, यम के नियम तथा अनुशासन का उल्लंघन करने के कारण हुए कुकृत्यों से एवं दैवी अनुशासन के नियमों का पालन न करते हुए अपराध जनित कुकृत्यों जैसे सभी विकारों से हमें मुक्त करें।[यजुर्वेद 12.90]
Hey medicines! Relieve us from the diseases caused by false promise-oath, condemnable, wicked deeds leading to water born diseases, failure to follow the rules, discipline, dictates of Yam Raj and divine discipline.
अवपतन्तीरवदन्दिव ओषधयस्परि। यं जीवमश्नवामहै न स रिष्याति पूरुषः॥
द्युलोक से प्राणरूप में पृथ्वी पर आगमन करने वाली ओषधियाँ परस्पर कहती हैं कि जिस प्राणी ने हमारा भक्षण किया, उसके शरीर में हम व्याप्त हो जाती हैं; वह रोगों से मुक्त हो जाता है और समय से पहले मृत्यु के मुख में नहीं जाता।[यजुर्वेद 12.91
Medicines which descend over the earth from he heavens talk to each other saying that the living being who's body is pervaded by them is relieved from the ailments and do not die prior to his fixed time of death.
या ओषधीः सोमराज्ञीर्बह्वीः शतविचक्षणाः। तासामसि त्वमुत्तमारं कामाय शꣳहृदे॥
यजमान ओषधियों से प्रार्थना करता हुआ कहता है; राजा सोम के द्वारा उत्पन्न की गयी अनेक ओषधियाँ जो सैकड़ों प्रकार के प्रभाववाली हैं, वे इस सम्पूर्ण पृथ्वी पर व्याप्त हैं। मेरे द्वारा ग्रहण की गयी हे ओषधियों! तुम सभी ओषधियों में श्रेष्ठ हो। तुम मेरे मनोरथ को पूर्ण करने में समर्थ होओ और हृदय को शान्ति प्रदान करो।[यजुर्वेद 12.92]
The Yajman pray to the medicines and say that medicines evolved by king Som, which are in hundreds, pervade the earth. Hey medicines consumed by me! You are nest medicines. You should be capable to accomplishing my motive and grant peace of mind-heart to me.
या ओषधीः सोमराज्ञीर्विष्ठिताः पृथिवीमनु। बृहस्पतिप्रसूता अस्यै संदत्त वीर्यम्॥
यजमान ओषधियों से प्रार्थना करता हुआ कहता है, राजा सोम के द्वारा उत्पन्न की गयी अनेक ओषधियाँ इस सम्पूर्ण पृथ्वी पर व्याप्त हैं। हे ओषधियों! बृहस्पति की आज्ञा से आप सब अपने-अपने प्रभाव को मेरे द्वारा ग्रहण की गयी ओषधि में धारित करो।[यजुर्वेद 12.93]
Yajman worship medicines and say that medicines produced by king Som pervade the entire earth. Hey medicines! By virtue of Brahaspati Dev's orders show your impact in the medicine consumed by me.
याश्चेदमुपशृण्वन्ति याश्च दूरं परागताः। सर्वाः संगत्य वीरुधोऽस्यै संदत्त वीर्यम्॥
जो ओषधि हमारे समीप स्थित हैं, जो ओषधि हमसे दूर स्थित हैं तथा जो हमारे वचनों को सुनती हैं; ऐसी वृक्ष-लतादि विविध स्वरूपों में उगने वाली वे सारी ओषधियाँ मिलकर इस मनुष्य को ओजस्वी वीर्यवान् बनायें।[यजुर्वेद 12.94]
ओजस्वी :: रोचक, तीव्र, तीक्ष्ण, जीवित, सजीव, जीवंत, सीधा प्रसारण, शक्तिपूर्ण, उज्ज्वल, शक्तिपूर्ण, रंगीन, सक्रिय; live, lively, dignified, perfervid, strong, vehement, aurous, radiant, energetic, vigorous, live, lively.
The medicines-herbs in the form of trees, creepers close or far, which hear our conversation, together make this person healthy-energetic.
मा वो रिषत् खनिता यस्मै चाहं खनामि वः। द्विपाच्चतुष्पादस्माकꣳ सर्वमस्त्वनातुरम्॥
हे ओषधियो! रोगों की चिकित्सा के निमित्त आपके मूल भाग को ग्रहण करने की जरूरत है, अतः खुदाई करने वाला पुरुष खनन-दोष से हमेशा विमुक्त रहे तथा जिस रोगी की चिकित्सा के लिए आपका खनन किया जाता है, वह भी दोषों से मुक्त हो। हमारे स्त्री-पुत्रादि एवं गौ आदि पशु सभी रोग रहित हो जायँ।[यजुर्वेद 12.95]
दोष :: त्रुटि, खोट, दरार, नुक्स, धब्बा, निंदा, त्रुटि, कमी, अभाव, अवगुण, नुक्स; blame, defect, flaw.
Hey medicines! Its essential to obtain your root, therefore always keep the digger free from the sin of excavating you. The patient for whom your have been digged should also remain free form the blame of excavating you. Let our women, sons, cows and animals remain free from all ailments-diseases.
ओषधयः समवदन्त सोमेन सह राज्ञा। यस्मै कृणोति ब्राह्मणस्तꣳ राजन् पारयामसि॥
ओषधियाँ अपने स्वामी सोम से कहती हैं, हे राजन् सोम! चिकित्सा विशेषज्ञ जिस रोगी के रोग का निवारण करने के निमित्त हमारे मूल, फल, पत्र आदि को स्वीकार करते हैं, उसको हम रोग रहित करती हैं, अन्य को नहीं।[यजुर्वेद 12.96]
Medicines say to their king Som, hey king Som! We make only that person free from diseases for whom the specialist doctor select our root, fruits, leaves, none other then him.
नाशयित्री बलासस्यार्शस उपचितामसि। अथो शतस्य यक्ष्माणां पाकारोरसि नाशनी॥
हे ओषधे! आप शक्ति को क्षीण करने वाले कफ रोग, क्षय रोग, बवासीर, सूजन एवं फोड़ों तथा गण्डमाला आदि रोगों को निराकृत करने में समर्थ हैं। हे ओषधे! आप मुख के रोगों एवं मन्दाग्नि को भी नष्ट करने वाली हो।[यजुर्वेद 12.97]
Hey medicine! You are capable of curing the diseases leading to loss of resistance towards cough, tuberculosis, piles, swelling, boils, Goitre etc. Hey medicine! You relieve us from the diseases of mouth and slow digestion.
त्वां गन्धर्वा ऽअखनँस्त्वामिन्द्रस्त्वां बृहस्पतिः।
त्वामोषधे सोमो राजा विद्वान् यक्ष्मादमुच्यत॥
हे ओषधे! गन्धर्वों जो कि ओषधि के गुणों को पहचानने वाले हैं, उन्होंने आपकी खोदाई की, देवराज इन्द्र तथा बृहस्पति देव ने आपको खोदा, तब ओषधि के स्वामी राजा सोम ने भी आपकी सामर्थ्य तथा उपयोगिता को जानकर तुम्हें खोदा और अपने यक्ष्मादि रोगों का निवारण किया और उनसे मुक्त हुए।[यजुर्वेद 12.98]
Hey medicines! Gandarbhs who care capable of identifying the characterises of medicines, Dev Raj Indr, Dev Guru Brahaspati etc. digged you and king of medicine Som too digged you by identifying-recognising your applicability-calibre and usefulness towards treatment of tuberculosis and other ailments & cured them.
सहस्व मे अरातीः सहस्व पृतेनायतः। सहस्व सर्व पाप्मानꣳ सहमानास्योषधे॥
हे ओषधे! आप शत्रुओं को तिरस्कृत करने वाली हैं, अतः हमारे अदानशील शत्रु सेना को तिरस्कृत करें। आप शरीर के रोगों को दूर करने में समर्थ हैं, अतः समस्त विकारों को दूर करें और हमें शारीरिक तथा मानसिक पीड़ा से मुक्ति प्रदान करें।[यजुर्वेद 12.99]
तिरस्कृत :: तुच्छ समझने वाला, अपमानित, अनादृत, जिसकी अवज्ञा की गई हो; contemner, discard, ignore, scornful, insult, despise, contempt, scorn.
Hey medicines! You are capable of insulting the enemies, hence despise the enemy army which do not resort to donations. You are capable of eliminating all ailments of the body; hence relieve us from all defects and relieve us from physical & mental tension, pain-sorrow.
दीर्घायुस्त ऽओषधे खनिता यस्मै च त्वा खनाम्यहम्।
अथो त्वं दीर्घायुर्भूत्वा शतवल्शा विरोहतात्॥
हे ओषधे! जो आपका खनन करते हैं, वे दीर्घायु प्राप्त करें। जिस रोगी की चिकित्सा के निमित्त आपका खनन करते हैं, वह भी दीर्घायु प्राप्त करे एवं आप भी दीर्घजीवी होकर सैकड़ों अंकुरवाली होकर सर्वत्र विस्तृत हों और वृद्धि को प्राप्त हों।[यजुर्वेद 12.100]
Hey medicine! Those who excavate you, should live long. The patient for whom you are digged, too also should live long. You too should long life, have hundreds of sprouts and spread everywhere and grow.
त्वमुत्तमास्योषधे तव वृक्षा ऽउपस्तयः।
उपस्तिरस्तु सोऽस्माकं योअस्माँ2 ऽअभिदासति॥
हे ओषधे! आप उत्तम गुणों से सम्पन्न हैं। निकटस्थ पेड़ सभी तरह से आपके निमित्त मंगलकारी हों। जो हमारे प्रति घृणा तथा विद्वेष-जैसी बुरी भावनाओं से ग्रस्त हैं, वे भी आपके सामर्थ्य से हमारे अनुगत हों अर्थात् हमारे उत्तम कर्मों में सहायता करें।[यजुर्वेद 12.101]
Hey medicine! You are blessed with excellent qualities. Nearest tree should be auspicious to you. Those who have hate, envy etc. towards us should also follow you by virtue of your impact i.e., they should help us in excellent endeavours.
मा मा हिꣳ सीज्जनिता यः पृथिव्या यो वा दिवꣳ सत्यधर्मा व्यानट्।
यश्चापश्चन्द्राः प्रथमो जजान कस्मै देवाय हविषा विधेम॥
जो प्रजापति, पृथ्वी के उत्पत्ति कर्ता, सत्य धर्मा, द्युलोक के सृजेता, आदि पुरुष, जगत् के आह्वादक तथा तृत्ति कारक जल को उत्पन्न करने वाले हैं, उनके अनुशासन के प्रतिकूल होकर हम दुःख को प्राप्त न करें। हम उनके अनुशासन में रहकर उस परमपिता परमेश्वर के निमित्त हवि अर्पित करते हैं।[यजुर्वेद 12.102]
We should never go against the Prajapati, evolver of the earth, truthful, creator of heavens, eternal Ultimate-Almighty, granting bliss to the universe, producer of water satiating thirst, to have pain-sorrow. We remain under the control-discipline of the Almighty and make sacrifices to him.
अभ्यावर्त्तस्व पृथिवि यज्ञेन पयसा सह। वपां ते अग्निरिषितो अरोहत्॥
हे पृथ्वी! यज्ञानुष्ठान के लिये हम दुग्ध-घृत आदि हविष्य पदार्थों के साथ उपस्थित हैं, आप हमारे निमित्त अनुकूल बनें। प्रजापति द्वारा प्रेरित होकर अग्नि देव आपके पृष्ठ भाग पर विद्यमान हों।[यजुर्वेद 12.103]
Hey earth! We are present-here for the observation of the Yagy with oblations-offerings, become favourable to us. Inspired by Prajapati, Agni Dev should be present behind your back.
अग्ने यत्ते शुक्रं यच्चन्द्रं यत्पूतं यच्च यज्ञियम्। तद्देवेभ्यो भरामसि॥
हे अग्नि देव! आपका ज्वाला रूपी शरीर शुक्ल वर्ण के सदृश दीप्तिमान्, चन्द्रमा की रश्मियों के सदृश प्रसन्नता प्रदान करने वाला, ज्योति स्वरूप पवित्र तथा यज्ञ-सम्बन्धी कर्मों के योग्य हैं। उस ज्योति-स्वरूप प्रशंसा करने योग्य शरीर को हम देवताओं के लिए हविष्य अर्पित करने के निमित्त प्रज्वलित करते हैं।[यजुर्वेद 12.104]
Hey Agni Dev! Your blazing body-form with fair colour is brilliant and your rays grant happiness like the rays of light from the Moon and suitable for the Yagy. We produce that appreciable body in the form of light for making offerings to demigods.
इषमूर्जमहमित आदमृतस्य योनिं महिषस्य धाराम्।
आ मा गोषु विशत्वा तनृषु जहामि सेदिमनिराममीवाम्॥
हम उन अग्नि देव के निमित्त उदीची (उत्तर) दिशा को स्वीकारते हैं, जो सत्य तथा यज्ञ के उत्पत्ति कारण, अन्न तथा घृतादि हविष्यान्न को ग्रहण करने वाले एवं महान् इच्छा से युक्त हैं। ये सभी हमारे निकट आयें तथा हमारे पुत्रादि एवं गौ आदि पशुओं में प्रवेश करें। अन्न के अभाव के कारण उत्पन्न होने वाली प्राण घातक आपदाओं का हम परित्याग करते हैं।[यजुर्वेद 12.105]
We accept North direction for the sake of that Agni Dev who is truthful, cause-reason of the producer of the Yagy, acceptor of food grains & Ghee as offerings, possessing great wish-desire. He should come near us and enter-pervade our sons, cows, animals-cattle. We reject the painful-torturous trouble slayer disasters.(26.05.2025)
अग्ने तव श्रवो वयो महि भ्राजन्ते अर्चयो विभावसो।
बृहद्भानो शवसा वाजमुक्थ्यं दधासि दाशुषे कवे॥
हे कान्ति रूप धन वाले, अति प्रकाशमान्, त्रिकाल दर्शी हे अग्नि देव! यज्ञ की सूचना देने वाला आपका धुआँ व्यापनशील, दीप्तिमान् होते हुए द्युलोक को प्राप्त होता है। आप हविष्य प्रदान करने वाले याजक के निमित्त शक्ति सहित यज्ञ के निमित्त योग्य अन्नादि प्रदान करते हैं।[यजुर्वेद 12.106]
Too bright Agni Dev possessing glittering wealth, knowing past, present & future! Your spreading-pervading smoke indicate conduction of Yagy & reaches heavens. You grant suitable food grains to the Yajak making oblations in the Yagy.
पावकवर्चाः शुक्रवर्चा ऽअनूनवर्चा उदियर्षि भानुना।
पुत्रो मातरा विचरन्नुपावसि पृणक्षि रोदसी उभे॥
हे अग्नि देव! आप शुद्धता प्रदान करने वाले, उज्ज्वल, सशक्त तेज से उत्तम स्थिति को प्राप्त करते हैं। चारों ओर भ्रमणशील होकर जगत् की रक्षा करते हैं। वृद्धावस्था में माता-पिता के रक्षक सुपुत्र के समान आप भूलोक तथा स्वर्ग लोक का पालन करते हैं।[यजुर्वेद 12.107]
Hey Agni Dev! You grant purity, brightness and attain powerful excellent position-state. You move all around and protect the universe. You support-nurture the earth & heavens like the able & obedient son who serve-protect his parents in old age.
ऊर्जा नपाज्जातवेदः सुशस्तिभिर्मन्दस्व धीतिभिर्हितः।
त्वेइषः संदधुर्भूरिवर्पसश्चित्रोतयो वामजाताः॥
हे अग्नि देव! आप जल की पुत्री ओषधियों के पुत्र हैं। आप अन्न के रक्षक हैं। यज्ञ-सम्बन्धी कर्मों द्वारा सबका मंगल करते हुए आप श्रेष्ठ स्तुतियों से हर्षित हों। विविध संरक्षण साधनों के द्वारा रक्षित तथा श्रेष्ठ कुल में उत्पन्न होने वाले यजमानों ने अपने हव्यरूपी अन्न की आहुति रूप में अर्पित किया है।[यजुर्वेद 12.108]
You are the son of medicines who are in turn the daughters of water. You are protector of food grains. You become happy while benefiting everyone through Yagy Karm. Yajman born in excellent clans, protected through various means, make sacrifices of food grains to you.
इरज्यन्नग्ने प्रथयस्व जन्तुभिरस्मे रायो अमर्त्य।
स दर्शतस्य वपुषो वि राजसि पृणक्षि सानसिं क्रतुम्॥
हे अजर-अमर अग्नि देव! हवि प्रदान करने वाले याजकों के द्वारा प्रदीप्त होकर हमें विपुल मात्रा में धन-वैभव प्रदान करें। आप दर्शनीय मनोहर ज्वालारूपी देह से विशेष प्रकार से प्रज्वलित होते हैं तथा हमारे चिरन्तन संकल्पों को पूर्ण करते हैं अर्थात् हमको यथेष्ट ऐश्वर्य प्रदान करते हैं।[यजुर्वेद 12.109]
Hey immortal Agni Dev, free from old age! Grant enough wealth and grandeur to the Yajak making offerings on being ignited. You are ignited with beautiful-attractive body-blaze, accomplishing our motives i.e., grant us desired grandeur-opulence.
इष्कर्तारमध्वरस्य प्रचेतसं क्षयन्तꣳ राधसो महः।
रातिं वामस्य सुभगां महीमिषं दधासिꣳ सानसि रयिम्॥
यज्ञ वेदी में निवास करने वाले, श्रेष्ठ चित्त वाले हे अग्नि देव! आप यज्ञशाला में हवि प्रदान करने वाले याजक को पर्याप्त मात्रा में धन-वैभव, श्रेष्ठ ऐश्वर्य, अन्न तथा सनातन आध्यात्मिक सम्पदाएँ प्रदान करते हैं।[यजुर्वेद 12.110]
Hey Agni Dev residing in the Yagy Vedi, having excellent mood-innerself! You award sufficient food grains, excellent grandeur, wealth in addition to spiritual property. in the Yagy Shala.
ऋतावानं महिषं विश्वदर्शतमग्निꣳ सुम्नाय दधिरे पुरो जनाः।
श्रुत्कर्णꣳ सप्रथस्तमं त्वा गिरा दैव्यं मानुषा युगा॥
हे अग्नि देव! सत्य धर्मा, महिमावान्, पृथ्वी लोक के निमित्त देखने योग्य, अभ्यर्थनाओं को पूर्ण करने वाले, कीर्तिमान्, दिव्यगुणों से युक्त आपको यज्ञ कर्म के सम्पादन के लिए पहले प्रतिष्ठित करते हैं, तदुपरान्त याजक स्त्री-पुरुष स्तोत्रों का गान करते हैं।[यजुर्वेद 12.111]
Hey truthful, glorious Agni Dev! Suitable for the earth, accomplishing desires, having divine characteristics, established prior to Yagy, followed by the recitation of Strotrs.
आ प्यायस्व समेतु ते विश्वतः सोम वृष्ण्यम्। भवा वाजस्य संगथे॥
हे सोम! सभी तरफ से, सभी प्राणियों की उत्पत्ति करने वाला तेज आपमें व्याप्त हो। आप अपने सामर्थ्य तथा वीर्य से सभी प्रकार से संवर्द्धित हों तथा यज्ञ-सम्बन्धी अच्छे कर्मों के निमित्त आवश्यक अन्न को प्राप्त करने के साधनभूत आप हमारे निकट आगमन करें अर्थात् हमें प्राप्त हों।[यजुर्वेद 12.112]
Hey Som! Let the aura-radiance evolving all living beings be established in you. You should grow with capability and potential, come to us for having food grains for the Yagy related endeavours.
सं ते पया सि समु यन्तु वाजाः सं वृष्ण्यान्यभिमातिषाहः।
आप्यायमानोऽअमृताय सोम दिवि श्रवाꣳ स्युत्तमानि धिष्व॥
हे सोम! विभिन्न प्रकार के पोषणकारी तथा विनाशकारी रसों से सम्पन्न आप शक्ति में वृद्धि करने वाले विभिन्न प्रकार के अन्नों को प्राप्त करें। दिव्य पोषणकारी पदार्थों को धारण करते हुए दीर्घकाल पर्यन्त वृद्धि करते हुए स्थित रहें।[यजुर्वेद 12.113]
Hey Som! Have the various kinds of food grains which grant nourishment, increase strength and possess destructive saps-juices. Stay motionless-static while having divine nourishing materials & continue growing for long.
आप्यायस्व मदिन्तम सोम विश्वेभिरꣳ शुभिः। भवा नः सप्रथस्तमः सखा वृधे॥
हे अत्यन्त तृप्ति प्रदान करने वाले सोम! आप अपने अद्भुत गुणों की यश-गाथाओं द्वारा चारों दिशाओं में व्यापक विस्तार को प्राप्त करें एवं हमारी वृद्धि के लिए सखारूप में सहयोगी बनें।[यजुर्वेद 12.114]
Hey Som granting extreme satisfaction! You should extend in the four directions through your amazing divine characteristics and become a friend & associate for our growth.
आ ते वत्सो मनो यमत्परमाच्चित्सधस्थात्। अग्ने त्वां कामया गिरा॥
हे अग्नि देव! आपका पुत्र रूप याजक सांसारिक कर्मों से ध्यान को हटा करके श्रेष्ठ स्तुतियों से आपकी आराधना करता है।[यजुर्वेद 12.115]
Hey Agni Dev! The Yajak who is like your son, divert his attention from the worldly chores and worship-pray to you with best Stuties.
तुभ्यं ता अंगिरस्तम विश्वाः सुक्षितयः पृथक्। अग्ने कामाय येमिरे॥
होता कहते हैं, अंगारों से युक्त, हे अग्नि देव! आप महान् तेज से युक्त हैं। अभीष्ट फल प्राप्ति के निमित्त सभी याजक आपकी ही अभ्यर्थना करते हैं।[यजुर्वेद 12.116]
Hota says, hey Agni Dev possessing blaze-ambers! You possess great aura-radiance, energy. The Yajak pray to you for the attainment of desired rewards.
अग्निः प्रियेषु धामसु कामो भूतस्य भव्यस्य। सम्राडेको वि राजति॥
यजमानों के सभी वर्तमान तथा भविष्य के मनोरथों को पूर्ण करने वाले, अच्छी तरह से विराजित अग्नि देव अपने प्रिय स्थान (यज्ञशाला) पर स्वयं ही शोभायमान हो रहे हैं।[यजुर्वेद 12.117]
Agni Dev who accomplish the motives of the Yajman at present and in future, is well established in the Yagy Shala which is dear to him, is being glorified there.(27.05.2025)
यजुर्वेद संहिता, त्रयोदश, अध्याय :: ऋषि :- वत्सार, हिरण्यगर्भ, वामदेव, त्रिशिरा, अग्नि, इन्द्राग्नि, सविता, भरद्वाज, विरूप, उशना; देवता :- अग्नि, आदित्य, प्रजापति, ईश्वर, सूर्य, हिरण्यगर्भ, बृहस्पति, विश्वेदेवा, वरुण, द्यावा-पृथिवी, विष्णु, जातवेदा, आप, प्राण; छन्द :- पंक्ति, त्रिष्टुप्, उष्णिक्, जगती, बृहती, गायत्री, कृति।
मयि गृह्णाम्यग्रे अग्निꣳ रायस्पोषाय सुप्रजास्त्वाय सुवीर्याय। मामु देवताः सचन्ताम्॥
यजमान बोले, "हम याजक सबसे पहले धन की पुष्टि के निमित्त, सुन्दर पुत्र की प्राप्ति के निमित्त, सुन्दर सामर्थ्य की प्राप्ति के निमित्त अग्नि देव को यज्ञशाला में स्थापित करते हैं"। सभी देवगण मेरे द्वारा दी गयी हवि का सेवन करें।[यजुर्वेद 13.1]
पुष्टि :: स्थापना, प्रतिपालन; confirmation, vindication.
Yajman should say, "We Yajak establish Agni Dev in the Yagy Shala for attainment of wealth, beautiful son and capability-strength. Let all demigods-deities consume the offerings-oblations made by me.
अपां पृष्ठमसि योनिरग्नेः समुद्रमभितः पिन्वमानम्।
वर्धमानो महाँ2आ च पुष्करे दिवो मात्रया वरिम्णा प्रथस्व॥
आसन के रूप में प्रयोग किये जाने वाले कमल पत्र आदि के माध्यम से वनस्पतियों को सम्बोधित किया जा रहा है। हे पत्र! आप जल के पृष्ठ (आधार) हैं, अग्नि के उत्पन्न कर्ता हैं। आप समुद्र को बढ़ाते हैं, स्वयं सभी ओर से विस्तार को प्राप्त हुए महान् जल में भली प्रकार संव्याप्त हैं। हे पत्र! द्युलोक की तेजस्विता तथा धरती की विशालता के अनुरूप आप विस्तार पायें।[यजुर्वेद 13.2]
Vegetation is addressed by using Lotus leaves, which are used as mat. Hey leaf! You form the top layer of water and producer of fire. You extend the sea, extended in all directions you pervade the water. Attain extension according to the luminosity of the heavens and gigantic size of earth.
ब्रह्म जज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्विसीमतः सुरुचो वेन आवः।
स बुध्न्या उपमा अस्य विष्ठाः सतश्च योनिमसतश्च वि वः॥
ब्रह्मरूप आदित्य सर्वप्रथम पूर्व दिशा में उदित होता है, तत्पश्चात् वह अपने प्रकाश से इन लोकों को प्रकाशित करता है। वह समस्त दिशाओं में स्थित मूर्त और अमूर्त सभी वस्तुओं को प्रकाशित करता है।[यजुर्वेद 13.3]
Adity-Sun, a form of Brahm, rise in the east, thereafter; he illuminate these abodes with his light. He illuminate all goods with form or without form in all direction.
हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत्।
स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम॥
जगत् के आरम्भ काल में हिरण्यगर्भ पुरुष (प्रजापति) समस्त ब्रह्माण्ड के एक मात्र उत्पादक तथा पालनकर्ता रहे। जो सारी सृष्टि की उत्पत्ति से पूर्व भी स्थित थे, वही द्युलोक, अन्तरिक्ष लोक तथा भूलोक को धारण करने वाले हैं, हम उसी प्रसन्नता स्वरूप प्रजापति की संतुष्टि के निमित्त आहुति अर्पित करते हैं।[यजुर्वेद 13.4]
At the time of evolution the Hirany Garbh-Purush (Narayan), Prajapati was the sole producer and nurturer. He existed prior to evolution and support the heavens, sky and the earth. We make sacrifice happily for his satisfaction.
द्रप्सश्चस्कन्द पृथिवीमनु द्यामिमं च योनिमनु यश्च पूर्वः।
समानं योनिमनु सञ्चरन्तं द्रप्सं जुहोम्यनु सप्त होत्राः॥
जगत् के आरम्भ काल से ही जो हिरण्यगर्भ, यज्ञ के फल स्वरूप उत्पन्न होने वाले, प्राण-पर्जन्य युक्त दिव्य रस 'द्रप्स' को देवों की संतुष्टि के निमित्त स्वर्ग लोक को, वनस्पतियों की वृद्धि के निमित्त पृथ्वी को एवं देहधारियों की उन्नति के निमित्त अपने निर्धारित स्थल-यज्ञशाला को सिंचित करते हैं। तीनों धामों में विचरणशील उस द्रप्स रूप आदित्य के निमित्त हम सात यजमान आहुति अर्पित करते हैं।[यजुर्वेद 13.5]
Since the very beginning of the universe the Hirany Garbh, irrigate the Yagy Shala. As a outcome of the Yagy, Air Vital-Parjany evolved having the divine sap called Draps for the satisfaction of demigods-deities in the heavens, growth of vegetation over the earth & for the growth of living beings. We seven Yajman make sacrifice for the Adity in the form of Draps which roam in the three abodes.
नमोऽस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथिवीमनु। येऽअन्तरिक्षे ये दिवि तेभ्यः सर्पेभ्यो नमः॥
उन सपों को नमस्कार है, जो इस पृथ्वी पर यत्र-तत्र विद्यमान हैं। उन सर्पों को नमस्कार है, जो अन्तरिक्ष और द्युलोक में विद्यमान हैं।[यजुर्वेद 13.6]
We salute the snakes present over the earth hither & thither and the ones present in the space & heavens.
या इषवो यातुधानानां ये वा वनस्पतीꣳरनु। ये वावटेषु शेरते तेभ्यः सर्वेभ्यो नमः॥
जो सर्प राक्षस गणों के द्वारा संधान किये गये बाणों के रूप में होते हैं, जो सर्प चन्दन वृक्षादि वनस्पतियों के आश्रय में रहते हैं एवं जो सर्प बिलों में शयन करते हैं, उन सभी प्रकार के सर्पों को हम नमस्कार करते हैं।[यजुर्वेद 13.7]
संधान :: निशाना बैठाना, मिलाना; collimation, colligation.
We salute all those serpents who are there like the arrows of the demons raised over the bow, those who reside over the sandal wood tree and vegetation & those who sleep-live in the burrows-holes.
ये वामी रोचने दिवो ये वा सूर्यस्य रश्मिषु। येषामप्सु सदस्कृतं तेभ्यः सर्पेभ्यो नमः॥
जो सर्प आदि दीप्तिमान् स्वर्ग लोक में निवास करते हैं, जो सर्पादि सूर्य की रश्मियों में वास करते हैं, जो सर्पादि जल के गर्भ में वास करते हैं, उन सभी सर्पों के प्रति हम नमन करते हैं।[यजुर्वेद 13.8]
We salute all those serpents-snakes who live in the luminous heavens, in the rays of Sun & in water.
कृणुष्व पाजः प्रसितिं न पृथ्वीं याहि राजेवामवाँ 2 इभेन।
तृष्वीमनु प्रसितिं द्रूणानोऽस्तासि विध्य रक्षसस्तपिष्ठैः॥
यजमान हिरण्य पुरुष को घृताहुति देते हुए बोले, हे अग्ने! तुम अपना बल व्यक्त करो। दुष्टों को सन्तापित करने के लिये तुम इस पृथ्वी पर वैसे ही विस्तार को प्राप्त होओ, जैसे कोई राजा अपने मन्त्रियों के साथ हाथी से भ्रमण करता है। हे अग्ने! क्रोधित होकर आप दुष्ट राक्षसों पर बाण वर्षा करने वाले हों। हे अग्ने! आप अपने गर्म ज्वाला बाणों से बींध डालो।[यजुर्वेद 13.9]
The Yajman should make sacrifice with Ghee and say, hey Agne! Release your might-power. You should extend over the earth to torture the wicked-vicious just like the king who roam with his ministers riding the elephant. Hey Agne! You should shower arrows over the wicked on being angry. Pierce them with your blazing flames in the form of arrows.
तव भ्रमास आशुया पतन्त्यनुस्पृश धृषता शोशुचानः।
तपूꣳष्यग्ने जुह्वा पतंगानसन्दितो वि सृज विश्वगुल्काः॥
हे अग्ने! तुम्हारे जो शीघ्रगामी ज्वाला समूह पवन के सम्पर्क में आकर गतिमान होते हैं, अपने उन ज्वाला समूहों के द्वारा दुष्ट राक्षसों को दग्ध कर दो। आहूति समर्पित करने पर तुम अपनी बढी हई लपटों के द्वारा राक्षसों का नाश कर दो। हे अग्ने! तुम अखण्डित रहकर अपनी चिनगारियों को चारो ओर बिखेरो।[यजुर्वेद 13.10]
Hey Agne! Roast the demons with your fast moving flames which come in contact with air. On making sacrifices destroy the demons with your rising flames. Spread your spark-embers without being divided into parts.
प्रति स्पशो विसृज तूर्णितमो भवा पायुर्विशो अस्या अदब्धः।
यो नो दूरे अघशꣳ सो यो अन्त्यग्ने मा किष्टे व्यथिरादधर्षीत्॥
हे अग्ने! हमारी रक्षा के लिये चारों और अपने अनुचरों को छोड़ो। अत्यन्त वेगवान् और अहिंसक आप हमारी प्रजा का पालन करें। जो निन्दक हमारे निकट या दूर हो, उसका आप दमन करें।[यजुर्वेद 13.11]
निन्दक :: अपमानकारी, अपवादी, उपहासात्मक, मुँहफट, बुराई करने वाला, मानव द्वेषी, चुगलखोर, आक्षेपक, निन्दोपाख्यान लेखक, उपहासात्मक; निंदा करने वाला, दूसरों के दोष या बुराई कहने वाला; detractor, critic, backbiter, maligning, traducer, cynic, satirist, slanderer, defamer, libellers, traducer, vilifier, cynical, denigrator, satirist, satirical.
Hey Agne! Send your servants in all direction for our safety. Nourish our populace being non violent and dynamic. Destroy the backbiter whether near or away from us.
उद्ने तिष्ठ प्रत्या तनुष्व न्यमित्राँ2 ओषतात्तिग्महेते।
यो नो अरातिꣳ समिधान चक्रे नीचा तं धक्ष्यतसं न शुष्कम्॥
हे अग्नि देव! आप अपने ज्वाला समूहों से उदित होओ, अपनी ज्वालाओं का विस्तार करो और हमारे शत्रुओं को जला डालो। हे तीक्ष्ण ज्वाला वाले अग्नि देव! जिसने किसी को हमें दान न देने दिया हो, उसे आप वैसे ही भस्मीभूत कर डालें, जैसे सूखे तिनके को भस्मीभूत कर डालते हैं।[यजुर्वेद 13.12]
Hey Agni Dev! Rise with your groups of flames, extend your flames and burn our enemy. Hey Agni Dev, possessing sharp flames! One who did not make donation too, should be burnt like a straw.
ऊर्ध्वो भव प्रति विध्याध्यस्मदाविष्कृणुष्व दैव्यान्यग्ने।
अव स्थिरा तनुहि यातुजूनां जामिमजामिं प्र मृणीहि शत्रून्।
अग्नेष्ट्वा तेजसा सादयामि॥
हे अग्ने! ऊर्ध्व ज्वाला वाले होओ। हमारे शत्रुओं को अपने ज्वालारूप बाणों से बींध डालो और अपने दिव्य गुण-कर्मों को अभिव्यक्त करो। हे अग्ने! राक्षसों की तनी हुई प्रत्यंचाओं को तुम ढीली करवा दो। हमारे एक या अनेक शत्रुओं को तुम सर्वथा मरोड़ डालो।[यजुर्वेद 13.13]
Hey Agne! Have rising flames. Burn our enemy with your flames in the form of arrows and express your divine qualities. Loosen the cords of bows of the demons. Destroy our enemies whether one or many in numbers.
अग्निर्मूर्द्धा दिवः ककुत्पतिः पृथिव्या अयम्। अपाꣳ रेताꣳ सि जिन्वति।
इन्द्रस्य त्वौजसा सादयामि॥
यह अग्नि देव! (आदित्यरूप में) द्युलोक के शीर्षरूप सर्वोच्च भाग में विद्यमान होकर जीवन का संचार करके, धरती का पालन करते हुए, जल में जीवनीय शक्ति का संचार करते हैं। हे गूलर की लकड़ी से बने हुए सुव! इन अग्नि देव हेतु इन्द्र देव की शक्ति से आपकी स्थापना करते हैं।[यजुर्वेद 13.14]
Hey Agni Dev! You commence-transmit life, presenting your self in the highest region of heavens as Adity. You nurture the earth transmit the life force in water. Hey spoon made of Goolar wood! We establish you for Agni Dev with the strength of Indr Dev.
भुवो यज्ञस्य रजसश्च नेता यत्रा नियुद्भिः सचसे शिवाभिः।
दिवि मूर्द्धानं दधिषे स्वर्षां जिह्वामग्ने चकृषे हव्यवाहम्॥
हे अग्नि देव! आप जिस समय अपनी ज्वालाओं रूपी जीभ को प्रकट करके हविष्य का भक्षण करते हैं, उस समय यज्ञ तथा उसके फल स्वरूप जल को प्रेरित करने वाले नायक होते हैं। साथ ही साथ आप लोक के हित के निमित्त शीघ्रता से द्युलोक में सूर्य को धारण करते हैं।[यजुर्वेद 13.15]
Hey Agni Dev! When you digest the offerings with your tongue in the form of flames, you become leader of the Yagy and inspirer of water. At the same time you support Sury Dev in the heavens quickly, for the welfare of abodes.(28.05.2025)
ध्रुवासि धरुणास्तृता विश्वकर्मणा।
मा त्वा समुद्र उद्वधीन्मा सुपर्णोऽ व्यथमाना पृथिवीं दृꣳह॥
हे पत्थर की बनी इष्टके-ईंट! आप भूमि के रूप में सम्पूर्ण जगत् को धारण करने वाली हैं। प्रजापति विश्व कर्मा द्वारा आप यहाँ द्रढ़ तथा स्थिर की गयी हैं। सागर आपको विनष्ट न करे, वायु आपके निमित्त बाधक न बने। आप व्यथित न होकर धरती को स्थिरता प्रदान करें।[यजुर्वेद 13.16]
Hey brick! You support the whole universe in the form of clay. Prajapati Vishw Karma made you strong and fixed you here. Let the ocean do not destroy you and the air should not obstruct you. Do not be perturbed-distressed and grant stability to earth.
प्रजापतिष्ट्वा सादयत्वपां पृष्ठे समुद्रस्येमन्। व्यचस्वतीं प्रथस्वतीं प्रथस्व पृथिव्यसि॥
हे पत्थर की बनी इष्टके-ईंट! आप अपने प्रकट रूप से विस्तार करने वाली हैं। आप प्रजापति के द्वारा सागर के पृष्ठभाग में प्रतिष्ठित होकर, जल में व्यापक रूप से विस्तारित हों। आपका निर्माण धरती के अंश से हुआ है, अतः आप पृथ्वी रूप हैं।[यजुर्वेद 13.17]
Hey brick! You are visibly extending. On being established over the front portion of the ocean, you should extend inside the ocean. You are made from the fragment of earth-clay, hence you are a form of earth.
भूरसि भूमिरस्यदितिरसि विश्वधाया विश्वस्य भुवनस्य धर्ती।
पृथिवीं यच्छ पृथिवीं दृह पृथिवीं मा हि सीः॥
हे पत्थर की बनी इष्टके-ईंट! आप पृथ्वी रूपा हैं। आप पृथ्वी की तरह सुख प्रदान करने वाली हैं। आप जगत् का पालन करने के कारण देवमाता अदिति हैं। आप सम्पूर्ण जगत् के प्राणियों का पोषण करने वाली हैं। आप धरती पर अपनी कृपा दृष्टि बनाये रखें, इसके भूभाग को सुदृढ़ तथा स्थिरता प्रदान करें एवं इसे कभी भी कोई कष्ट मत होने दें।[यजुर्वेद 13.18]
Hey brick! You are a form of clay. You grant comfort like the earth. You are Dev Mata Aditi for nurturing the universe. You support-nurture all living beings of the earth. Bless the earth and make the top of the earth strong and stable. Do not let be destroyed.
विश्वस्मै प्राणायापानाय व्यानायोदानाय प्रतिष्ठायै चरित्राय।
अग्निष्ट्वाभिपातु मह्या स्वस्त्या छर्दिषा शन्तमेन तया देवतयांगिरस्वद् ध्रुवा सीद॥
हे पत्थर की बनी इष्टके (ईंट)! सम्पूर्ण प्राण, अपान, व्यान तथा उदान नामक शरीर में स्थित वायु की उन्नति की इच्छा के निमित्त तथा प्रतिष्ठा, कीर्तिलाभ के लिए, शास्त्रीय आचरण के लिए यज्ञशाला में आपको प्रतिष्ठित करते हैं। लोकों का कल्याण करने वाले अग्नि देव शीतल-सुखकारी साधनों के द्वारा आपकी सुरक्षा करें। उनकी कृपा से आप वैसे ही स्थिर रहें, जैसे आप अङ्गिरा के यज्ञ में सुदृढ़ तथा सुस्थिर थे।[यजुर्वेद 13.19]
Hey brick! All forms of air present in the body viz Pran, Apan, Udan establish you in the Yagy Shala with the desire of prestige, fame, virtuous conduct. Let Agni Dev devoted to the welfare of the world protect you with cooling comfortable means. You should remain rigid-stable as you did in the Yagy of Angira, dure to his mercy.
काण्डात्काण्डात्प्ररोहन्ती परुषः परुषस्परि। एवा नो दूर्वे प्र तनु सहस्त्रेण शतेन च॥
यजमान दूब को पत्थर की ईंट पर इस प्रकार रखे कि उसका कुछ भाग भूमि से स्पर्श करे, फिर बोले; हे दूर्वा! आप विविध ग्रन्थियों तथा मर्मस्थलों से सभी तरफ से अच्छी तरह से अंकुरित होती हैं, अतएव अपने सदृश ही अनगिनत पुत्र-पौत्रों के रूप में हमारे ऐश्वर्य में वृद्धि करें।[यजुर्वेद 13.20]
Yajman should place Dub grass over he brick such that a bit of it touch the earth-ground and then say, hey Durva! You have been sprouted through all glands and sensitive organs, hence increase our opulence-grandeur in the form of unlimited sons & grans sons, like you.
या शतेन प्रतनोषि सहस्त्रेण विरोहसि। तस्यास्ते देवीष्टके विधेम हविषा वयम्॥
हे अदभुत गुणों से युक्त दूर्वे! आप जो सैकड़ों शाखाओं तथा हजारों अंकुरों से अंकरित होती हैं, ऐसी आपके निमित्त हम आहूति समर्पित करते हैं।[यजुर्वेद 13.21]
Hey Durva, possessing amazing powers! You sprout with hundreds of branches and shoots-seedlings, we make sacrifice for you.
यास्ते अग्ने सूर्ये सर्वे दिवमातन्वन्ति रश्मिभिः।
ताभिर्नो अद्य सर्वाभी रुचे जनाय नस्कृधि॥
हे अग्नि देव! आपकी जो दीप्ति सूर्य मण्डल में विद्यमान रश्मियों के रूप में है, उन सम्पूर्ण किरणों द्वारा हमें एवं हमारे पुत्र-पौत्रादि को तेज प्रदान करें।[यजुर्वेद 13.22]
Hey Agni Dev! Your luminescence in the Sury Mandal and the rays should grant Tej-energy to our sons & grandsons.
या वो देवाः सूर्य रुचो गोष्वश्वेष या रुचः। इन्द्राग्नी ताभिः सर्वाभी रुचं नो धत्त बृहस्पते॥
हे इन्द्राग्नी! हे बृहस्पते! हे देवजनो! आपकी जो दीप्ति सूर्यमण्डल में शोभायमान होती है, जो पुष्टि प्रदान करने वाली आत्मा पोषण प्रदान करने में समर्थ गौओं तथा शक्तिशाली गतिमान् घोड़ों में विद्यमान है, उन सम्पूर्ण आभा से शोभायमान होकर आप हमारे निमित्त आरोग्य तथा दीप्ति प्रदान करें।[यजुर्वेद 13.23]
Hey Indragni, Brahaspati, demigods-deities! Your luminescence in the Sury Mandal which is capable of granting growth, nourishment, to the cows and dynamic horses, should grant us freedom from ailments and luminosity.
विराड् ज्योतिरधारयत् स्वराड् ज्योतिरधारयत्। प्रजापतिष्ट्वा सादयतु पृष्ठे प्रथ्विया ज्योतिष्मतीम्। विश्वस्मै प्राणायापानाय व्यानाय विश्वं ज्योतिर्यच्छ। अग्निष्टेऽधिपतिस्तया देवतयांगिरस्वद् ध्रुवा सीद॥
यह अत्यन्त शोभायमान विराट रूप पृथ्वी लोक अग्नि देव को धारण करता है। स्वयं ज्योतियुक्त दिव्यलोक ने ज्योतिस्वरूप आदित्य के तेज को धारण किया है। प्राण, अपान, व्यान आदि की ज्योति से प्रजा के पालनकर्ता प्रजापति आपको धरती के ऊपर स्थापित करें। आप सम्पूर्ण ज्योति प्रदान करें। अग्नि देव आपके अधिष्ठाता हैं। उन प्रसिद्ध देवता सहित स्थिर होकर आप अंगिरावत् तेज युक्त हों।[यजुर्वेद 13.24]
शोभायमान :: शानदार, अजीब, हक्का-बक्का करने वाला, सुरूप, मंजु, मंजुल, सुंदर, तेजस्वी, नादकार, तेज़, शीघ्र, कोलाहलमय, शोभा देता हुआ, सुंदर; beautiful, stunning, rattling.
This extremely beautiful, stunning vast-gigantic form of earth is held-supported by Agni Dev. Luminous heaven has held by brilliant Adity. Let Prajapati establish you over the earth with the luminosity of Pran, Vyan and Apan. Agni Dev is your deity. You should establish like the famous deity Angira and possess brilliance.
मधुश्च माधवश्च वासन्तिकावृतू अग्नेरन्तः श्लेषोऽसि कल्पेतां द्यावापृथिवी कल्पन्तामाप ओषधयः कल्पन्तामग्नयः पृथङ् मम ज्यैष्ठठ्ठयाय सव्रताः। ये अग्नयः समनसोऽन्तरा द्यावापृथिवी इमे। वासन्तिकावृतू अभिकल्पमाना इन्द्रमिव देवा अभिसंविशन्तु तया देवतयांगिरस्वद् ध्रुवे सीदतम्॥
मधु (चैत्र), माधव (वैशाख) ये दोनों मास वसन्त ऋतु से सम्बन्धित हैं। ऋतुओं की भाँति दोनों ईंटें अग्नि के आधार स्वरूप प्रतिष्ठित हों। कार्य के अनुसार अग्नि का चयन करने वाले हम यजमानों की प्रसन्नता के लिये ये स्वर्ग लोक तथा भूलोक परस्पर सहायता करें। जल एवं ओषधियाँ हमें श्रेष्ठ बनायें। समान व्रतवाली अग्नियाँ श्रेष्ठतापूर्वक सहायक बनें। इस समय पृथ्वी तथा आकाश के मध्य में समान चित्त से युक्त जो अग्नियाँ हैं, वे वसन्त ऋतु को सम्पादित करती हुई, इस (यज्ञ) कर्म के आश्रित हों। जैसे सम्पूर्ण दैवी शक्तियाँ देवराज इन्द्र के शरण में रहती हैं, वैसे ही अग्नि देवता के साथ आप अंगिरावत् स्थित होकर प्रतिष्ठित हों।[यजुर्वेद 13.25]
Madhu-Chaetr & Vaeshakh-Madhav months are related with spring season. Let the two bricks be established as the foundation, like the seasons. Let heavens & earth cooperated mutually for the happiness of the Yajman selecting Agni as per need. Let water and medicines-herbs make us the best. Agni of the same magnitude should help us. The Agni present between the earth & sky having same magnitude should promote the spring season and depend over this Yagy. The way all powers are focused in Indr Dev, you too be established along with Agni Dev like Angira.(29.05.2025)
अषाढासि सहमाना सहस्वारातीः सहस्व पृतनायतः। सहस्त्र वीर्यासि सा मा जिन्व॥
हे इष्टके! आप अषाढा नामवाली हैं, आप प्राकृतिक रूप से रिपूओं को पराभूत करने की सामर्थ्यता से युक्त एवं रिपूओं से पराभूत न होनेवाली हों। आप रिपूओं का तिरस्कार करें, युद्ध की इच्छा करनेवाले रिपूओं को तिरस्कृत करें। आप अति बलशाली हों तथा हमें आह्लादित करनेवाली हों।[यजुर्वेद 13.26]
Hey brick! You are named Ashadha, possessing the capability to defeat the enemies and remain undefeated. Disdain-reproach the enemies who want to indulge in war. You are mighty and gladden us.
मधु वाता ऋतायते मधु क्षरन्ति सिन्धवः। माध्वीर्नः सन्त्वोषधीः॥
स्वर्ण निर्मित कछुए को दही, शहद् और घी के मिश्रण से स्नान कराते हुए यजमान बोले, जो यज्ञ की कामना करने वाले याजक हैं, उनके निमित्त वायु तथा नदियाँ मधुर प्रवाह उत्पन्न करें। सम्पूर्ण ओषधियाँ माधुर्य युक्त हों।[यजुर्वेद 13.27]
Yajman should bathe the tortoise made of gold with curd, honey and Ghee and say, "The rivers and air should ensure smooth flow for the Yajak. All medicines should possess sweet taste".
मधु नक्तमुतोषसो मधुमत्पार्थिवꣳ रजः। मधु द्यौरस्तु नः पिता॥
हमारे लिये रात्रि मधुर हो, दिन मधुर हो, यह पार्थिवलोक माधुर्य-युक्त हो और हम सबका पालक द्युलोक भी हमारे लिये मधुर हो।[यजुर्वेद 13.28]
Night, day, next abodes and the heavens nurturing all, should be pleasant for us.
मधुमान्नो वनस्पतिर्मधुमाँ2 अस्तु सूर्यः। माध्वीर्गावो भवन्तु नः॥
सारी वनस्पतियाँ हमारे निमित्त मधुर रस से परिपूर्ण हों। सूर्य देव हमें अपने मधुर रस से पुष्टि प्रदान करें एवं गौएँ भी हमें अमृतमय, मधुरता से युक्त दूध प्रदान करने वाली बनें।[यजुर्वेद 13.29]
Every vegetation should possess sweet sap. Sury Dev should nourish us with his sweet sap and the cows too grant us sweet milk like elixir.
अपां गम्भन्त्सीद मा त्वा सूर्योऽभिताप्सीन्माग्निर्वैश्वानरः।
अच्छिन्नपत्राः प्रजा अनुवीक्षस्वानु त्वा दिव्या वृष्टिः सचताम्॥
यजमान अषाढा ईंट के बगल पद्मा नामक ईंट और स्वर्ण निर्मित कछुए को रखते हुए बोले; हे कूर्म! आप जल के अन्दर गहन स्थान में विद्यमान हों तथा आदित्य मण्डल में विद्यमान हों, आपके सूर्य मण्डल में स्थित होने पर भी वहाँ स्थित सूर्य देव आपको सन्तप्त न करें। सम्पूर्ण मनुष्यों के हितकारी वैश्वानर अग्नि देव भी आपको सन्तप्त न करें। आप निरन्तर प्रजा का अवलोकन करते रहें एवं दिव्य वर्षा सर्वदा आपकी सहायता करे।[यजुर्वेद 13.30]
Yajman should keep Ashadha brick by the side of Padma brick and the tortoise made of gold with them and say, "Hey tortoise! You should be present in deep water and Adity Mandal without being tortured-troubled by Sury Dev". Vaeshwanar Agni who is beneficial to the humans, should also avoid torturing-bothering you. You keep watching the populace-subjects and divine rains should always help you.
त्रीन्समुद्रान्त्समसृपत् स्वर्गानपां पतिर्वृषभ इष्टकानाम्।
पुरीषं वसानः सुकृतस्य लोके तत्र गच्छ यत्र पूर्वे परेताः॥
हे कूर्मरूप प्राण! आप इष्टकाओं में शक्ति को संचरित करने में सक्षम हैं। आपने ही भोग्य सामग्री के रूप में तीनों भुवनों को तथा सागरों को व्याप्त किया है। आप पशुओं को आवृत करते हुए उसी तरफ गमन करें, जिस स्थान पर उत्कृष्ट कर्म करने वाले जीव पहले ही पहुँच चुके हैं।[यजुर्वेद 13.31]
Hey air vital in the form of tortoise! You are capable of granting strength to the bricks. Its you who has pervaded the three abodes and the ocean with eatables. You should cover the animals and move to that region, where the living beings performing decent endeavours, have already reached.
मही द्यौः पृथिवी च न इमं यज्ञं मिमिक्षताम्। पिपुतां नो भरीमभिः॥
हे महान् स्वर्ग लोक तथा पृथ्वी लोक! आप दोनों स्वर्ण रत्नादि, धन-धान्यों से परिपूर्ण वैभव द्वारा हमारे इस श्रेष्ठ कर्म रूपी यज्ञ को सम्पन्न करें एवं उसे संरक्षित करें।[यजुर्वेद 13.32]
Hey great heavens and the earth! Both of you should conduct & patronise this excellent Karm Yagy with gold, jewels, food grains, grandeur-opulence.
विष्णोः कर्माणि पश्यत यतो व्रतानि पस्पशे। इन्द्रस्य युज्यः सखा॥
यजमान पत्थर की ईंट पर गूलर की लकड़ी से बनी एक चौकी रखें और उस पर भोखली तथा मूसल रखें तथा बोले; हे याजको! सर्वव्यापक भगवान् विष्णु के महान् कार्यों को ध्यान से देखें, जिससे ये यज्ञादि व्रत उत्पन्न होते हैं। वे विष्णु इन्द्र के सखा हैं।[यजुर्वेद 13.33]
Yajman should keep the brick over the little table made of Goolar wood, place mortar and pestle over it and say, hey Yajak Gan! Watch the great functions of Bhagwan Shri Hari Vishnu, friend of Indr Dev carefully, from whom all Yagy and fasts-resolves etc., evolve.
ध्रुवासि धरुणेतो जज्ञे प्रथममेभ्यो योनिभ्यो अधि जातवेदाः।
स गायत्र्या त्रिष्टुभानुष्टुभा च देवेभ्यो हव्यं वहतु प्रजानन्॥
हे उखे (अग्नि धारण करने वाले पात्र)! आप हवि की धारण सामर्थ्य से युक्त तथा स्थिर हैं। जगत् के सम्पूर्ण पदार्थों के ज्ञान से युक्त सर्वज्ञाता अग्नि देव सबसे पहले आपके यहाँ इन उत्पत्ति स्थलों में प्रकट हुए। वे प्रसिद्ध अग्नि देव अपने कर्म से, भली प्रकार जानते हुए गायत्री, त्रिष्टुप् तथा अनुष्टुप् छन्दों के माध्यम से प्रदान की गयी हवियों द्वारा देवों हे निकट हविष्य को पहुँचायें।[यजुर्वेद 13.34]
Hey Ukhe-pot for holding fire! You are capable of supporting-holding the oblations. Agni Dev aware of all materials-objects of the universe appeared at these places of evolution. Let Agni Dev carry forward the offerings to demigods-deities through the Trishtup & Anushtap Chhands.
इषे राये रमस्व सहसे द्युम्न ऊर्जे अपत्याय।
सम्राडसि स्वराडसि सारस्वतौ त्वोत्सौ प्रावताम्॥
हे उखे! आप अन्न, धन, शक्ति, कीर्ति, दुग्ध, दधि, घृतादि रस तथा पुत्र-पौत्रादि देने के लिए यहाँ दीर्घकाल तक आनन्दपूर्वक स्थित हों। आप पृथ्वी को भली प्रकार प्रकाशमान करने के कारण सम्राट् हैं तथा स्वयं प्रकाशमान् होने के कारण स्वराट् हैं। सरस्वती-सम्बन्धी वाणी तथा मन आपको पालन शक्ति से परिपूर्ण करें।[यजुर्वेद 13.35]
स्वराट् :: ब्रह्मा, ईश्वर, एक प्रकार का वैदिक छंद; God, a Vaedic composition having six stanzas.
Hey Ukhe! You should stay here comfortably-happily for long for granting food grains, wealth, strength, fame, milk, curd, Ghee, juices and sons-grandsons. You are the emperor due to illuminating the earth and being illuminated yourself; is Swarat (God, a Vaedic composition having six stanzas). Let the speech related to Maa Saraswati and the innerself grant you strength.
अग्ने युक्ष्वा हि ये तवाश्वासो देव साधवः। अरं वहन्ति मन्यवे॥
हे दिव्य गुण सम्पन्न अग्नि देव! आपके जो चतुर, श्रेष्ठ, तीव्रगामी घोड़े आपको शीघ्रता पूर्वक यज्ञ स्थल पर पहुँचाने की सामर्थ्य से युक्त हैं, ऐसे घोड़ों को आप अवश्य रथ में योजित करें, जिससे वे आपको यज्ञ स्थल शीघ्रता से पहुँचा सकें।[यजुर्वेद 13.36]
Hey Agni Dev, possessing divine traits! Deploy the clever, best, fast moving horses, capable of taking you quickly to the Yagy site, in the charoite.
युश्वा हि देवहूतमाँ 2 अश्वाँ 2 अग्ने रथीरिव। नि होता पूर्व्यः सदः॥
हे अग्नि देव! आप देवताओं को बुलाने वाले घोडों को निश्चित रूप से रथ वाहक के देश शीघ्रता पूर्वक रथ में योजित करें। सबसे पहले हविष्यान्न प्रदान करने वाले होने के कारण आप हमारे इस यज्ञानुष्ठान अर्थात यज्ञ स्थान पर विराजमान हों।[यजुर्वेद 13.37]
Hey Agni Dev! Deploy the horses for inviting demigods in the charoite quickly. Being the first to grant offerings, you should be present in our Yagy.(30.05.2025)
सम्यक् स्त्रवन्ति सरितो न धेनाऽअन्तर्हृदा मनसा पूयमानाः।
घृतस्य धाराऽअभिचाकशीमि हिरण्ययो वेतसो मध्ये अग्नेः॥
उत्पत्ति-स्थान से बहने वाली नदियों की धारा के सदृश, अन्तःकरण तथा चित्त से शुद्ध होकर हमारी वाणियाँ यज्ञ सम्बन्धी मन्त्रों के रूप में प्रवाहित होती हैं। (हम उन्हें) सुवर्ण आलोक से युक्त यज्ञाग्नि को प्रभावपूर्ण बनाने में घृत की आहुति को धारा के प्रवाह की भाँति देखते हैं।[यजुर्वेद 13.38]
Our voice flow in the form of Mantr like the river arising out of their place of origin, with pure innerself & mood. We make offerings of Ghee in the Yagy to make it effective & glow-glitter like gold.
ऋचे त्वा रुचे त्वा भासे त्वा ज्योतिषे त्वा।
अभूदिदं विश्वस्य भुवनस्य वाजिनमग्नेवैश्वानरस्य च॥
हे ऋग्वेद की ऋचा! सत्य, ज्ञान, दीप्ति, विशेष ज्ञान तथा तेज प्राप्ति के निमित्त हम आपकी शरण में आते हैं। आपकी अनुकम्पा से इस प्राणि समूह (आश्रित जन) एवं समस्त मनुष्यों में विद्यमान वैश्वानर (प्राणाग्नि) के वचन (संकेतों) को समझ पाने में हम सक्षम हुए हैं।[यजुर्वेद 13.39]
Hey Richa of Rig Ved! We come under your asylum for the sake of truth, luminescence, specific knowledge-enlightenment and Tej-aura. By virtue of your mercy-kindness, we have become capable of understanding the indications-pointers of the Vaeshwanar Agni present in living beings and all humans.
अग्निर्योतिषा ज्योतिष्मान् रुक्मो वर्चसा वर्चस्वान्। सहस्त्रदा असि सहस्त्राय त्वा॥
हे तेजस्विन्! आप ज्योति से प्रकाशमान् होने के कारण अग्निस्वरूप हैं, तेज से तेजवान् होने के कारण 'रुक्म' अर्थात् सुवर्ण के समान हैं। आप ही अपरिमित धन-वैभव को प्रदान करने वाले हैं, विपुल ऐश्वर्य तथा ज्ञान की सुरक्षा तथा अर्जित करने के लिए हम आपकी आराधना करते हैं।[यजुर्वेद 13.40]
Hey luminous! You being lit with light, is like the Agni, having Tej-aurous, Tejwan (possessing aura-energy) you are Rukm i.e., like Gold. You grant unlimited wealth-grandeur, thus we worship you for lots of opulence, enlightenment and protection.
आदित्यं गर्भं पयसा समंग्धि सहस्त्रस्य प्रतिमां विश्वरूपम्।
परिवृंधि हरसा माभि मꣳ स्थाः शतायुषं कृणुहि चीयमानः॥
दैवी शक्तियों के उद्गम स्थान तथा पशुओं के पालन-पोषण की शक्ति से परिपूर्ण सहस्रों स्वरूप वाले तथा जगत् को दीप्तिमान् करने वाले अग्नि देव को दूध आदि से सिंचित करें एवं सम्पूर्ण वीर्य को हरने वाले अग्नि देव के तेज से सम्पूर्ण व्याधियों का नाश करें। वे अग्नि देव प्रवृद्ध होकर याजक को दीर्घायु प्रदान करें तथा अहं की भावना से मुक्त रखें।[यजुर्वेद 13.41]
The origin of all powers, powered with nurture & nourishment of animals-living beings, having thousands of forms, shining Agni Dev should be served-satiated with milk. Destroy all the ailments with the radiance of Agni Dev who can suck entire strength. Let Agni Dev grow and grant longevity to the Yajak keeping him free from ego.
वातस्य जूतिं वरुणस्य नाभिमश्व जज्ञानꣳ सरिरस्य मध्ये।
शिशुं नदीनाꣳ हरिमद्रिबुध्नमग्ने मा हिꣳसीः परमे व्योमन्॥
हे अग्नि देव! वायु के समान वेगवान्, वरुण देवता के नाभि स्वरूप, जल धाराओं के बीच में उत्पन्न होने वाले, नदियों के पालक रूप, हरित (हरिताभ अथवा गतिमान्) परम व्योम में संव्याप्त, पहाड़ों के मूलकारण अथवा पहाड़ों पर अपने पर चिह्न बनाने वाले इन घोड़ों की आप हिंसा मत करें।[यजुर्वेद 13.42]
Hey Agni Dev! Do not destroy these horses which are as fast as air, like naval of Varun Dev, born between the streams of water, like the nurturer of rivers, Harit (Haritabh-accelerated) pervading the Ultimate space, root cause behind the mountains i.e., make their hoof marks over the mountains.
अजस्त्रमिन्दुमरुषं भुरण्युमग्निमीडे पूर्वचित्तिं नमोभिः।
स पर्वभिऋतुशः कल्पमानो गां मा हि सीरदितिं विराजम्॥
क्षय रहित, ऐश्वर्य से युक्त, रोष रहित अथवा उपासना के योग्य, प्राचीन कालीन ऋषियों के द्वारा ग्रहणीय, अन्न से सबका पोषण करनेवाले अग्नि देव की हम आराधना करते हैं। वे विख्यात अग्नि देव अमावस्या आदि पर्वों से हर ऋतु के अनुरूप कर्मों का सम्पादन करें एवं दुग्धादि प्रदान करने में समर्थ देवमाता अदिति के सदृश पोषण सामर्थ्य से युक्त गाय को नष्ट मत करें।[यजुर्वेद 13.43]
We worship Agni Dev who is free from deterioration, possessing grandeur, free from anguish, worship deserving, acceptable to the ancient Rishis, nurturer of all with food grains. Let famous Agni Dev accomplish endeavours as per season, festival like Amavshya-dark night and should not destroy the cows which grant milk and are capable of nourishment like Dev Mata Aditi.
वरूत्रीं त्वष्टुर्वरुणस्य नाभिमविं जज्ञानाꣳ रजसः परस्मात्।
महीꣳ माहस्त्रीमसुरस्य मायामग्ने मा हिꣳसीः परमे व्योमन्॥
हे अग्ने! आप परम व्योम में प्रतिष्ठित, कम्बल आदि के रूप में जगत् के प्राणियों को ढकने वाली, वरुण देवता के नाभिस्वरूप, रमणीय, श्रेष्ठ उच्च लोक से प्रकट हुई महिमावान् सहस्त्रों की हितैषी, प्राणियों की रक्षा करने वाली 'अवि' (भेड़) को नष्ट मत करें।[यजुर्वेद 13.44]
Hey Agne! Do not destroy the sheep which is beautiful-attractive, well wisher & protector of hundreds of people, has appeared from the higher abodes; you being established in the Ultimate space, cover the living beings like a blanket, like the navel of Varun Dev.
यो अग्निरग्नेरध्यजायत शोकात्पृथिव्या उत वा दिवस्परि।
येन प्रजा विश्वकर्मा जजान तमग्ने हेडः परि ते वृणक्तु॥
विराट् अग्नि से पैदा हुए अग्नि देव, प्रजापति के शोक अर्थात् संताप से पैदा हुए अग्नि देव, स्वर्गलोक तथा भूलोक को अपने ही तेज से दीप्तिमान् करते हैं; स्रष्टा ने जिससे जगत् की रचना की-ऐसे हे अग्निदेव! यजमान कभी आपके आक्रोश से दुःखी न हाँ।[यजुर्वेद 13.45]
Hey Agni Dev born out of large-huge fire, sorrow-pain of Prajapati, illuminating the heavens and earth with your radiance, created by the creator-Brahma Ji! Do not let the Yajman punished by your anger.
चित्रं देवानामुदगादनीकं चक्षुर्मित्रस्य वरुणस्याग्नेः।
आप्रा द्यावापृथिवी अन्तरिक्षꣳ सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च॥
मित्र, वरुण तथा अग्नि आदि देवताओं के चक्षुरूप, स्थावर तथा जंगम जगत् के आत्म रूप जो सूर्य देव अपनी दिव्य (प्रकाश) किरणों से पृथ्वी, अन्तरिक्ष तथा द्युलोक को तेजस्विता प्रदान करते हैं, उन्हीं देवता के निमित्त यह आहुति समर्पित है। सूर्य देव को यहाँ दृष्टि के आत्मारूप इसलिए कहा गया है; क्योंकि सूर्य देव से ही धरती पर जीवन है।[यजुर्वेद 13.46]
This sacrifice is meant for Sury Dev who is like the eyes of Mitr, Varun, Agni and the demigods, air vital of the static and movable world, who illuminate the earth, space, heavens. Sury Dev is addressed as the air vital since he is like life for the earth.
इमं मा हिꣳसीद्विपादं पशुꣳ सहस्त्राक्षो मेधाय चीयमानः। मयुं पशुं मेधमग्ने जुषस्व तेन चिन्वानस्तन्वो निषीद। मयुं ते शुगृच्छतु यं द्विष्मस्तं ते शुगृच्छतु॥
हे अग्नि देव! आप यज्ञकर्म के उद्देश्य से उत्पन्न किये जाते हैं। आप मानवों तथा पशुओं को कष्ट न दें। आप सहस्रों चक्षु से सम्पन्न हों। हमारे निमित्त पोषणकारी अन्न प्रदान करें एवं हमारे पशुओं को वर्द्धित करें। सम्पूर्ण धन-सम्पदा को प्राप्त करके हम सुखपूर्वक जीवन यापन करें। आपका संतप्त करने वाला कोप, हिंसा करने वाले पशुओं को तथा जिनसे हम ईर्ष्या करते हैं एवं जो हमसे ईर्ष्या करते हैं, उन्हें ही संतापित करें।[यजुर्वेद 13.47]
Hey Agni Dev! You are evolved for the purpose of Yagy. Do not tease the humans and the animals. You should be blessed with thousands of eyes. Grant nourishing food grains to us and grow our animals. We should live comfortably having attained all sorts of wealth and property. Let your anger torture those who are envious to us and we are envious to them; including the beasts.(31.05.2025)
इमं मा हिꣳ सीरेकशफं पशुं कनिक्रदं वाजिनं वाजिनेषु।
गौरमारण्यमनु ते दिशामि तेन चिन्वानस्तन्वो निषीद।
गौरं ते शुगृच्छतु यं द्विष्मस्तं ते शुगृच्छतु॥
हे अग्नि देव! आप हिनहिनाकर अपनी स्फूर्ति की अभिव्यक्ति करने वाले अत्यन्त वेगवान् घोड़ों को कष्ट न दें। वन में रहने वाले हानि कारक पशुओं को प्रताड़ित करते हुए अपने ज्वालारूपी देह को प्रवृद्ध करें। आप अपनी संतप्त सामर्थ्य द्वारा उन पशुओं को संतप्त करें जो खेती को क्षति पहुँचाते हैं एवं उन्हें संतप्त करें जिनसे हम विद्वेष करते हैं अथवा जो हमसे विद्वेष करते हैं।[यजुर्वेद 13.48]
स्फूर्ति :: फड़कना, कोई काम करने के लिये मन में उत्पन्न होने वाली हलकी उत्तेजना, तेज़ी; चुस्ती, तेज़ी, फुरती, फुर्ती, स्फुरण; energy, quick, vitality, perkiness, agility, spirit.
Hey Agni Dev! Do not torture-pain the fast running horses who show their vitality-spirit by neighing. Grow your body with flames to tease-punish the harmful animals in the jungle-forest. Torture-pain those animals who destroy the agriculture and those people who are envious to us.
इमꣳ साहस्त्रꣳ शतधारमुत्सं व्यच्यमानꣳ सरिरस्य मध्ये। घृतं दुहानामदितिं जनायाग्रे मा हिꣳ सीः परमे व्योमन्। गवयमारण्यमनु ते दिशामि तेन चिन्वानस्तन्वो निषीद। गवयं ते शुगृच्छतु यं द्विष्मस्तं ते शुगृच्छतु॥
हे अग्नि देव! सैकड़ों-सहस्रों प्रवाहों की स्रोत, लोकों के बीच घी-तेज या दुग्ध का सारतत्त्व उत्पन्न करने वाली, विस्तृत आकाश अथवा उत्तम स्थल में विद्यमान, यह जो अदीना गौ है, इसकी हिंसा मत करें। वन में निवास करने वाले गवय आदि पशुओं (खेती को क्षतिग्रस्त करनेवाली नील गाय आदि) की ओर आपको भेजते हैं। अपनी ज्वालारूपी शरीर को संवर्धित करते हुए आप उनके संग रहें। जिनके प्रति हमारी प्रीति नहीं हैं, ऐसे गवय पशुओं पर आप आवेशित हों।[यजुर्वेद 13.49]
Hey Agni Dev! Do not torture-pain the cow which is the source of hundred-thousands of streams, evolve the extract of Ghee-energy or milk, present under the vast sky or the best place, is not pitiable, is strong. We repel the animal in the forest who harm agriculture towards (deer and large Indian antelope etc.) you. Remain with them increasing your blazing body. You should attack such animals for which do not have sympathy.
इममूर्णायुं वरुणस्य नाभिं त्वचं पशूनां द्विपदां चतुष्पदाम्। त्वष्टुः प्रजानां प्रथमं जनित्रमग्ने मा हिꣳसीः परमे व्योमन्। उष्ट्रमारण्यमनु ते दिशामि तेन चिन्वानस्तन्वो निषीद। उष्ट्रं ते शुगृच्छतु यं द्विष्मस्तं ते शुगृच्छतु॥
है अग्नि देव! इस परम व्योम (व्यापक आकाश अथवा उत्तम स्थान) में, जगत् में सर्वप्रथम उत्पन्न, वरुणदेव (जल) की नाभि (उद्गम स्थान) रूप, त्वचा की भाँति चार पैर वालों तथा दो पैर वालों की सुरक्षा करने वाली, इस ऊन से सम्पन्न (भेड़ या प्रकृति की रक्षण सामर्थ्य) की आप हिंसा मत करें। आपको वन में रहने वाले उष्ट्र की ओर भेजते हैं। आप अपनी ज्वालाओं को बढ़ाते हुए उनके साथ रहें। जिनके प्रति हमारी प्रीति नहीं हैं, ऐसे (बेडौल-अनुपजाऊ प्रदेश में निवास करने के अभिलाषी) उष्ट्र आदि पशुओं पर आपका क्रोध प्रकट हो।[यजुर्वेद 13.50]
उबड़ खाबड़-बेडौल भूमि :: rough land-terrains or uneven terrain, land that is not flat or smooth, but has bumps, hills, and valleys.
Hey Agni Dev! Varun Dev evolved first at the nucleus of water, in the vast sky-space like the skin of the sheep granting wool, who protect the two or four legged, do not harm it. We divert you towards the camels residing in the forest. Stay with them increasing your flames-blaze. Let your anger appear over those animals residing in the non fertile lands.
अजो ह्यग्नेरजनिष्ट शोकात्सो अपश्यज्जनितारमग्रे। तेन देवा देवतामग्रमायँस्तेन रोहमायन्नुप मेध्यासः। शरभमारण्यमनु ते दिशामि तेन चिन्वानस्तन्वो निषीद। शरभं ते शुगृच्छतु यं द्विष्मस्तं ते शुगृच्छतु॥
यह अज (बकरा अथवा अजन्मा-सनातन तेज) प्रजापति के तेज से उत्पन्न हुआ है। उसी के द्वारा वह जीव सृष्टि के सृजनकर्ता का साक्षात्कार कर पाने में समर्थ हो सका है, उसी के द्वारा देवगण उत्कृष्ट देवत्व के परम पद को पाते हैं तथा उसी के मामर्थ्य-शक्ति मे यजमान लोक के सुख को प्राप्त करने में समर्थ हो पाते हैं। हे अग्नि देव! आपको हम जंगली शरभ (हिंसक पशु) की ओर निर्देशित करते हैं। उनके साथ विस्तार पाकर आप सुख माने। जिनसे हम द्वेष रखते हैं, ऐसे शरभ आदि पशुओं पर आपका क्रोध प्रकट हो।[यजुर्वेद 13.51]
अज :: बकरा अथवा अजन्मा-सनातन तेज; goat, eternal aura-radiance of God.
This goat has evolved out of the aura of Prajapati. The living being has become capable of seeing the creator-Brahma Ji, demigods attained excellent demigodhood and the Yajman obtain comforts-pleasure in this universe. Hey Agni Dev! We direct-divert you towards the beast known as Sharabh. You should be happy with him. Show your anger to such animals and Sharabh with which we have anonymity.
Bhagwan Shiv appeared as Sharabh and coiled Nar Singh Avtar in his tail to calm him down.
त्वं यविष्ठ दाशुषो नऋृँ पाहि शृणुधी गिरः। रक्षा तोकमुतत्मना॥हे अतिशय तरुण अग्ने! आप हमारे द्वारा की जा रही स्तुतियों को ध्यानपूर्वक सुनें। जो याजक यज्ञ में हवि समर्पित करते हैं, उनकी रक्षा करें एवं उनके पुत्र-पौत्रादि की भी रक्षा करें।[यजुर्वेद 13.52]
Hey too young Agni Dev! Carefully listen to our Stuties and respond to them. Protect the Yajak who make offerings in the Yawan-Yagy along with their sons and grandsons.
अपां त्वेमन्त्सादयाम्यपां त्वोद्मन्सादयाम्यपां त्व भस्मन्त्सादयाम्यपां त्वा ज्योतिषि सादयाम्यपां त्वायने सादयाम्यर्णवे त्वा सदने सादयामि समुद्रे त्वा मदने सादयामि सरिरे त्वा सदने सादयाम्यपां त्वा क्षये सादयाम्यपां त्वा सधिषि सादयाम्यपां त्वा सदने सादयाम्यपां त्वा सधस्थे सादयाम्यपां त्वा योनौ सादयाम्यपां त्वा पुरीषे सादयाम्यपां त्वा पाथसि सादयामि। गायत्रेण त्वा छन्दसा सादयामि त्रैष्टुभेन त्वा छन्दसा सादयामि जागतेन त्वा छन्दसा सादयाम्यानुष्टुभेन त्वा छन्दसा
सादयामि पांक्तेन त्वा छन्दसा सादयामि॥
यजमान अपस्या संज्ञक पाँच ईंटें रखकर बोले, हे अपस्या नामक इष्टके! जलों स्थान में अर्थात् वायु में आपकी स्थापना करते हैं, ओषधियों में आपकी स्थापना करते विद्युत् ज्योति में आपको प्रतिष्ठित करते हैं, वाणी के स्थान में आपको प्रतिष्ठित करते है। आपको नेत्रों के स्थान में, श्रवण के स्थान में, द्युलोक में, अन्तरिक्ष लोक में, सागर में, सिकता में एवं अन्नों में प्रतिष्ठित करते हैं। आपको गायत्री छन्द के प्रभाव से, त्रिष्टुप् छन्द के प्रभाव से, जगती छन्द के प्रभाव से, अनुष्टुप् छन्द के प्रभाव से तथा पंक्ति छन्द प्रतिष्ठित करते हैं, अर्थात् इन समस्त स्थलों पर आपको प्रतिष्ठित करते हैं।[यजुर्वेद 13.53]
सिकता :: बालू, बलुई ज़मीन; sandy soil, sand.
Yajman should keep five bricks and say, hey bricks named Apsya! We establish you in the water, air, medicines, lightening and voice-speech. We establish you in the ears, eyes, heavens, space, ocean, sandy soil and food grains. We establish you by virtue of Gayatri, Tristup, Jagti, Anushtap and Pankti Chhand. We establish you at all these places.(01.06.2025)
अयं पुरो भुवस्तस्य प्राणो भौवायनो वसन्तः प्राणायनो गायत्री वासन्ती रायत्र्यै गायत्रं गायत्रादुपाꣳ शुरुपाꣳ शोस्त्रिवृत् त्रिवृतो रथन्तरं वसिष्ठ ऋषिः नापतिगृहीतया त्वया प्राणं गृह्णामि प्रजाभ्यः॥
यजमान दो पंक्तियों में प्राणभृत संज्ञक दस-दस ईंटें रखकर बोले, हे इष्टके! ये निदेव सबसे पहले उत्पन्न होने के कारण प्राणरूप में विद्यमान हैं। ये प्राण भुवनात्मक अग्नि से उत्पन्न होने के कारण प्राणरूप में विद्यमान हैं। ये प्राण भूवनात्मक अग्नि से उत्पन्न से 'भैवायन' नाम से प्रसिद्ध हैं। इन भैवायन के लिए इष्टका की स्थापना करते हैं। प्राण से उत्पन्न होने वाले वसन्त ऋतु हैं। वसन्त ऋतू से गायत्री, गायत्री से गायत्र साम, यत्र साम से उपांश नामक प्राण की उत्पत्ति हई। उपांश प्राण से त्रिवत् नामक स्तोम, त्रिवृत् स्तोम से रथन्तर साम की उत्पत्ति हुई। इन सभी के प्रवर्तक तथा द्रष्टा समस्त प्राणों के प्रधान रूप से स्थित ऋषि वसिष्ठ हुए हैं। इन सम्पूर्ण दैवी शक्तियों के लिए इष्टका की स्थापना करते हैं। हे इष्टके! प्रजापति द्वारा ग्रहण की हुई (विनिर्मित) आपके सहयोग से हम सब प्रजाओं के निमित्त प्राण को धारण करते हैं, अर्थात् सबके लम्बी आयु की कामना करते हैं।[यजुर्वेद 13.54]
Yajman should place two rows of bricks, each containing 10 bricks called Pranbhrat and say, hey bricks! Ni Dev evolved as air vital first of all. He is like Air Vital since he appeared out of Agni. Born out of Pran Bhuvnatmak Agni, he is famous as Bhaevayan. Place brick for Bhaevayan. Spring season evolved out of Air Vital. Out of Spring season Gayatri, out of Gayatri Gayatrak Sam, Out of Trivrat Stom Rathantar Sam appeared. Vashishth Rishi became the propagator & visionary of all these. We establish bricks for all these divine powers. Hey bricks! We support Air Vital accepted by Prajapati, with your cooperation for the entire populace i.e., pray for their long life.
अयं दक्षिणा विश्वकर्मा तस्य मनो वैश्वकर्मणं ग्रीष्मो मानसस्त्रिष्टुब् ग्रैष्मी त्रिष्टुभः स्वारꣳ स्वारादन्तर्यामोऽन्तर्यामात्पञ्चदशः पञ्चदशाद् बृहद भरद्वाजऋषिः प्रजापतिगृहीतया त्वया मनो गृह्णामि प्रजाभ्यः॥
यह इष्टका विश्व के निर्माता विश्वकर्मा के नाम से प्रसिद्ध है और दक्षिण-दिशा में प्रतिष्ठित होती है। वायु देवता का मनन कर हम इस इष्टका को प्रतिष्ठित करते हैं। मन की उत्पत्ति उन विश्वकर्मा से हुई है, मन से ग्रीष्म ऋतु की उत्पत्ति हुई है, सूर्य देव के तीक्ष्ण तेज से युक्त ग्रीष्म ऋतु के मन के तेज से त्रिष्टुप् छन्द की उत्पत्ति हुई, त्रिष्टुप् छन्द से स्वार साम की उत्पत्ति हुई, स्वार साम से अन्तर्याम ग्रह की उत्पत्ति हुई, अन्तर्याम से पञ्चदश स्तोम की उत्पत्ति हुई, पञ्चदश स्तोम से बृहत्साम की उत्पत्ति हुई, इन सभी के प्रवर्तक तथा द्रष्टा स्वयं प्राण के समान भरद्वाज ऋषि हैं। इन सभी देव शक्तियों के लिए इस इष्टिका को प्रतिष्ठित करते हैं। हे चितिशक्ति! प्रजापालक द्वारा गृहीत (विनिर्मित) आपके सहयोग से प्रजाओं के लिए मन को ग्रहण करते हैं, अर्थात् सबके मनोबल की अभिलाषा करते हैं।[यजुर्वेद 13.55]
चिति शक्ति :: सार्वभौमिक चेतना की शक्ति; consciousness of the whole universe.
This brick is famous by the name Vishwkarma, the creator of the universe and is established in South direction. We invoke-recall Vayu Dev and establish the brick. Inner self (mind+heart) evolved out of Vishwkarma. Summer evolved out of innerself. The Summer possessing sharp Tej-heat (furiousness) of Sury Dev, produced Tristup Chhand. Trishtup Chhand released Swar Sam. Swar Sam produced Antaryam Grah, which them produced Panchdash Stom. Panchdash Stom released Brahatsam. Rishi Bhardwaj became visionary and propagator of all these. Hey Chiti Shakti! We accept the innerself-consciousness of the populace produced by Praja Palak i.e., desire, mental power.
अयं पश्चाद् विश्वव्यचास्तस्य चक्षुर्वैश्वव्यचसं वर्षाश्चाक्षुष्यो जगती वार्षी जगत्या ऋक्सममृक्समाच्छुक्रः शुक्रात्सप्तदशः सप्तदशाद्वैरूपं जमदग्निर्ऋषिः प्रजापतिगृहीतया त्वया चक्षुर्गृह्णामि प्रजाभ्यः॥
ये इष्टका विश्वव्यचा (सूर्य) के नाम से विख्यात हैं और पश्चिम दिशा में प्रतिष्ठित होती हैं, इन पश्चिम गामी सूर्यदेव का मनन करते हुए हम इष्टका की स्थापना करते हैं। नेत्र की उत्पत्ति उस विश्वव्यचा सूर्यदेव से हुई, वर्षाऋतु की उत्पत्ति चक्षुओं से हुई वर्षाऋतु के द्वारा जगती छन्द प्रादुर्भूत हुए (सम्पूर्ण संसार वर्षाऋतु से उत्पन्न होता है), जगती छन्द से ऋक्-साम की उत्पत्ति हुई, ऋक्-साम से शुक्रग्रह उत्पन्न हुआ, शुक्रग्रह से सप्तदश स्तोम की उत्पत्ति हुई, सप्तदश स्तोम से वैरूप साम की उत्पत्ति हुई अर्थात् विभिन्न जीव सृष्टि की उत्पत्ति हुई, वैरूप अनेक प्रकार के जीव-जन्तुओं की सुरक्षा करने वाले नेत्र-सूर्य के द्रष्टा जमदग्नि ऋषि हैं। इन समस्त दिव्य शक्तियों का मनन करते हुए इष्टका को प्रतिष्ठित करते हैं। हे इष्टके! प्रजापति के द्वारा ग्रहणीय (विनिर्मित) आपके सहयोग से प्रजाओं के निमित्त हम चक्षु को ग्रहण करते हैं अर्थात् सबके दूरदर्शी विवेक की अभिलाषा करते हैं।[यजुर्वेद 13.56]
This brick is famous by the name of Vishwvyacha i.e., Sury and is established in the West. We establish this brick by meditating in Sury Dev moving towards the West. Eyes evolved out of Sury Dev, rainy season evolved out of eyes, Jagti Chhand evolved out of rainy season (entire world evolve out of rainy season). Jagti Chhand released Rik Sam, Rik Sam produced Shukr-Venus Grah-planet, Venus evolved Saptdash Stom, Saptdash Stom evolved Vaerup Sam i.e., entire living world was evolved out of it. Vaerup constitute the eyes i.e., Sury & Rishi Jamdagni is the visionary and propagator, protector of various living beings. We invoke-remember all these divine powers and establish the bricks. Hey bricks! Acceptable to Prajapati, with your cooperation, we accept the eyes i.e., desire for far sighed prudence.
इदमुत्तरात्स्वस्तस्य श्रोत्रꣳ सौवꣳ शरच्छ्रौत्र्यनुष्टुप् शारद्यनुष्टुभ ऐड मैडान्मन्थी मन्थिन एकविꣳश एकविꣳशाद् वैराजं विश्वामित्र ऋषिः प्रजापतिगृहीतया त्वया श्रोत्रं गृह्णामि प्रजाभ्यः॥
हे इष्टके! आप उत्तर दिशा की ओर विद्यमान, द्युलोक से सम्बन्धित श्रोत्र स्वरूपा हैं। आप प्रजापति की मुख्य सुख-साधन रूपा है। उसका मनन करके आप इष्टका को हम प्रतिष्ठित करते हैं। श्रोत्र से शरऋतु की उत्पत्ति हुई, शरऋतु से अनुष्टुप् छन्द की उत्पत्ति हुई, अनुष्टुप् छन्द से एडसाम का प्रादुर्भाव हुआ, एडसाम से मन्थीग्रह की उत्पत्ति हुई, मन्थीग्रह से यज्ञ में एकविंश स्तोम की उत्पत्ति हुई, एकविंश स्तोम से बैराज साम उत्पन्न हुए। इन सबके द्रष्टा ऋषि विश्वामित्र हैं। इन समस्त देवताओं का मनन करते हुए हम इष्टका को प्रतिष्ठित करते हैं। हे इष्टके! प्रजापति के द्वारा ग्रहणीय (विनिर्मित) आपके सहयोग से प्रजाओं के निमित्त हम श्रोत्र को धारण करते हैं अर्थात् सबके दूर श्रवण की अभिलाषा करते हैं।[यजुर्वेद 13.57]
Hey brick! You being established in the North, is like the source of the Strotr related with the heavens. You are the main means for of pleasure-comfort of Prajapati. We establish the brick by remembering that. Shrotr begun the winters, winters produced Anushtap Chhand. Anushtap evolved Ad Sam. Ad Sam evolved Manthi Grah. Manthi Grah evolved the Yagy and Ekvinsh Stom. Ekvinsh Stom produced Baeraj Sam. Rishi Vishwa Mitr is the visionary and propagator of all these. We remember-invoke all these demigods-deities and establish the brick. Hey brick! We support the Shrotr acceptable to Prajapati by virtue of your cooperation i.e., we wish to hear all these from a distance.
इयमुपरि मतिस्तस्यै वाड्मात्या हेमन्तो वाच्यः पंक्तिर्दैमन्ती पंक्त्यै निधनवन्निधनवत आग्रयणऽआग्रयणात् त्रिणवत्रयस्त्रिꣳ शौ त्रिणवत्रयस्त्रिꣳ शाभ्याꣳ शाक्वररैवते विश्वकर्मऋषिः प्रजापतिगृहीतया त्वया वाचं गृह्णामि पजाभ्यो लोकं ता इन्द्रम्॥
सर्वोच्च भाग पर चन्द्रमारूपी मति प्रतिष्ठित है। उसका मनन करते हुए इष्टका को प्रतिष्ठित करते हैं। उस प्रजावान् बुद्धि से वाणी की उत्पत्ति हुई। उस वाणी से हेमन्त ऋतु उत्पन्न होती है, हेमन्त ऋतु से पंक्ति छन्द की उत्पत्ति होती है। पंक्ति छन्द से निधनवत् साम की उत्पत्ति हुई, निधनवत् साम से आग्रयण ग्रह उत्पन्न हुए, आग्रयण ग्रह से त्रिवण तथा त्रयस्त्रिंश दोनों स्तोम की उत्पत्ति हुई, त्रिवण तथा त्रयस्त्रिंश दोनों स्तोम से शाक्वर तथा रैवत नामक साम की उत्पत्ति हुई, इन सबके द्रष्टा विश्वकर्मा ऋषि हैं। इन समस्त दिव्य शक्तियों का मनन करते हुए इष्टका को प्रतिष्ठित करते हैं। हे इष्टके! प्रजापति द्वारा गृहीत (विनिर्मित) आपकी सहायता से प्रजाओं के निमित्त वाणी को धारण करते हैं अर्थात् सबके श्रेष्ठ वक्तृत्व शक्ति की अभिलाषा करते हैं। हे सम्पूर्ण इष्टकाओं! आप सम्पूर्ण लोकों को पूर्ण करें, आपके निमित्त सम्पूर्ण प्रजाजन स्तुतियों का गान करते हुए देवराज इन्द्र को आवाहित करती है।[यजुर्वेद 13.58]
At the peak, intelligence in the form of Chandr Dev is established. We meditate in it and establish the brick. That intellect produced voice-speech. Speech evolved Hemant season. Hemant evolved Pankti Chhand. Pankti Chhand produced Nidhanvat Sam. Nidhanvat Sam evolved Agryan Grah, Agryan Grah produced Trivan and Trystrinsh i.e., the two Stom. Out of Trivan & Trystrinsh two Stom Shakkar & Raevat named Sam appeared. Vishwkarma is the visionary and propagator of all these. We meditate in all these divine powers and establish the brick. Hey brick! We support the voice-speech produced by Prajapati with your support i.e., we desire for the best power to speak. Hey all bricks! Complete all abodes. For your sake entire populace invoke Indr Dev reciting Stuties.(02.06.2025)
यजुर्वेद संहिता, चतुर्दश, अध्याय :: ऋषि :- उशना, विश्वेदेवा, विश्वकर्मा; देवता :-अश्विनौ, ग्रीष्मर्तु, वस्वादयो मंत्रोक्ता, दम्पती, प्रजापत्यादय, विद्वांस, इन्द्राग्नी, वायु, दिश, ऋतव, छन्दांसि, पृथिव्यादय, विदुषी, यज्ञ, मेधाविन, वस्वादयो लिंगोक्ता, ऋभव, ईश्वर, जगदीश्वर, प्रजापति; छन्द :- त्रिष्टुप, बृहती, पंक्ति, उष्णिक, जगती, गायत्री, कृति।
ध्रुवक्षितिर्ध्रुवयोनिर्ध्रुवासि ध्रुवं योनिमासीद साधुया।
उख्यस्य केतुं प्रथमं जुषाणाश्विनाध्वर्यू सादयतामिह त्वा॥
यजमान अश्विनी संज्ञक पाँच ईंटें रखते हुए बोले, हे अश्विनी संज्ञक इष्टके! आप स्थिर निवास, स्थिर स्वभाव तथा अचल स्वरूप से परिपूर्ण हैं। आप अग्नि देव के पहले ध्वज (ज्वाला) के रूप का सेवन करती हुई स्थिर हों तथा सुस्थिर उत्तम स्थान अन्तरिक्ष लोक को प्राप्त हों। आप देवों के अध्वर्यु अश्विनी कुमारों के द्वारा इस श्रेष्ठ स्थान में स्थापित हों।[यजुर्वेद 14.1]
Yajman should keep bricks named Ashwani and say, hey brick! You have a fixed location, nature and immovable form. You should experience the blaze of Agni Dev and attain best place in the space. You should be placed there by Ashwani Kumars, priest of demigods-deities.
कुलायिनी घृतवती पुरन्धिः स्योने सीद सदने पृथिव्याः।
अभि त्वा रुद्रा वसवो गृणन्त्विमा ब्रह्म पीपिहि सौभगायाश्विनाध्वर्यू सादयतामिह त्वा॥
हे अश्विनी संज्ञक इष्टके! आप पृथ्वी रूपी निवास करने योग्य गृह से सम्पन्न होकर पोषणकारी घृतादि पदार्थों से युक्त होकर, पुर को धारण करने वाली धरती के सुखकारी घर में विराजमान हों। रुद्रगण तथा वसुगण आपकी वन्दना करें। इन मन्त्रों को आप हमारे भाग्योदय की वृद्धि के लिए अभिवर्धित करें। आप यजमान के सौभाग्य के लिये यहाँ स्थित रहें। दोनों अश्विनीकुमार अध्वर्युरूप में आपको इस यज्ञस्थान पर प्रतिष्ठित करें।[यजुर्वेद 14.2]
Hey brick named Ashwani! You should be placed in comfortable house, containing nourishing materials like Ghee over the earth. Let Rudr Gan and Vasu Gan worship you. You should grow these Mantr for our improved Luck. Stay with the Lucky Yajman. Let both Ashwani Kumars establish you here performing as a priest.
स्वैर्दक्षैर्दक्षपितेह सीद देवानाꣳ सुम्ने बृहते रणाय।
पितेवैधि सूनव आ सुशेवा स्वावेशा तन्वा सं विशस्वाश्विनाध्वर्यू सादयतामिह त्वा॥
हे इष्टके! आप बल की रक्षा करनेवाली हैं। दैवी शक्तियों के सुख तथा संवर्द्धन के लिए आप यहाँ दूसरे चिति के स्थान पर प्रतिष्ठित होकर सबका मंगल करें। जिस प्रकार पिता सर्वदा अपने पुत्र के निमित्त सुखी जीवन की अभिलाषा करता है, उसी प्रकार आप भी सभी प्रकार से सुख देनेवाली बनें। हे अश्विनी संज्ञक इष्टके! देवों के अध्वर्यु दोनों अश्विनी कुमार आपको इस स्थान पर विराजमान करें।[यजुर्वेद 14.3]
Hey brick! You are a protector of strength. For the establishment of divine powers and comforts get fixed here in the second pile resorting to welfare of all. The way a father makes efforts for the welfare of his son, you too resort to comforts-pleasure of all. Hey brick named Ashwani! Let Ashwani Kumars, priest of demigods-deities establish you here.
पृथिव्याः पुरीषमस्यप्सो नाम तां त्वा विश्वे अभिगृणन्तु देवाः।
स्तोमपृष्ठा घृतवतीह सीद प्रजावदस्मे द्रविणायजस्वाश्विनाध्वर्यू सादयतामिह त्वा॥
हे इष्टके! आप पृथ्वी की प्रथम चिति को पूर्ण करने वाली हैं। आपकी उत्पत्ति जल से हुई है। सम्पूर्ण दैवी शक्तियाँ सब ओर से आपकी वन्दना करें। आप हमारे द्वारा की जाने वाली प्रार्थनाओं के अभिप्राय को भली-भाँति समझकर आज्याहुति से परितप्त होकर यहाँ विराजें। आप त्रिवृद् आदि स्तोम और रथन्तरादि पृष्ठों वाली हो। हमें पुत्र-पौत्रादि सहित समृद्ध ऐश्वर्य प्रदान करें। देवों के अध्वर्यरूप दोनों अश्विनी कुमार आपको इस यज्ञ स्थल में विराजमान करें।[यजुर्वेद 14.4]
Hey brick! You accomplish the first pile of the earth. You were born in water. Let all divine powers worship you from all directions. Having properly understood the purpose of our prayers, satisfied with the sacrifices of Ghee, arrive here. You should have Trivrad etc. Stom and Rathantar back. Grant grandeur-opulence to our sons and grandsons. Ashwani Kumars duo, priests of demigods-deities, should establish you here.
अदित्यास्त्वा पृष्ठे सादयाम्यन्तरिक्षस्य धर्त्रीं विष्टम्भनीं दिशामधिपत्नीं भुवनानाम्।
ऊर्मिर्द्रप्सो अपामसि विश्वकर्मा त ऋषिरश्विनाध्वर्यू सादयतामिह त्वा॥
हे इष्टके! आप प्राणी समूहों की स्वामिनी हैं। आप दिशाओं को स्थिरता प्रदान करने वाली हैं। आप अन्तरिक्ष लोक को धारण करने में सक्षम हैं। हम आपको पहली चिति धरती के ऊपर प्रतिष्ठित करते हैं। आप जलों की रस-रूप तरंग रूप हैं। प्रजापति आपके द्रष्टा हैं। आप देवताओं के अध्वर्यु अश्विनी कुमारों द्वारा इस उत्तम स्थल में प्रतिष्ठित हों।[यजुर्वेद 14.5]
Hey brick! You are the lord of living beings. You grant stability to directions. You are capable of supporting the space-sky. We establish you over the first pile. You form the fluid form & waves in water. Prajapati is your visionary. You should be established here at the best place by the priests of demigods-deities, Ashwani Kumars.
शुक्रश्च शुचिश्च ग्रैष्मावृतू अग्नेरन्तःश्लेषोऽसि कल्पेतां द्यावापृथिवी कल्पन्तामापओषधयः कल्पन्तामग्नयः पृथङ्मम ज्यैष्ठ्ठयाय सव्रताः। ये अग्नयः समनसोऽन्तरा द्यावापृथिवी इमे। ग्रैष्मावृतू अभि कल्पमाना इन्द्रमिव देवा अभिसंविशन्तु तया देवतयांगिरस्वद् ध्रुवे सीदतम्॥
यजमान ऋतव्या संज्ञक दो ईंटों को रखते हुए बोले, ग्रीष्मऋतु के ज्येष्ठ तथा आषाढ़ मास के सदृश, हे ऋतु रूप दोनों इष्टकाओं! आप अग्निदेव के मध्य में ज्वलनशीलता के रूप में स्थित हैं। हम उन्नति करते हुए स्वर्गलोक तथा भूलोक तक विस्तारित हों। जल तथा ओषधियाँ इस कार्य में हमारी सहायता करें। व्रतधारी विविध अग्नियाँ हमें उत्कृष्टता की ओर निर्देशित करें। ग्रीष्म ऋतु को सम्पादित करने वाली भूलोक तथा स्वर्ग लोक के बीच में प्रतिष्ठित इष्टकायें वैसे ही शोभायमान हों, जैसे देवों के साथ देवराज इन्द्र सुशोभित होते हैं। हे इष्टके! आप अपने अद्भुत गुणों से अङ्गिरा के समान अविचल रहें।[यजुर्वेद 14.6]
The Yajman should place two bricks named Ritvya and say, hey bricks representing two seasons summer Jyeshth and Ashadh! You are present in the blazing fire. We should progress and extend-grow between the heavens and earth. Let water and medicines help us in this endeavour. Let these bricks who help bring summer, be glorified just like Indr Dev, who is glorified in the heavens.
सजूर्ऋतुभिः सजूर्विधाभिः सजूर्देवैः सजूर्देवैर्वयोनाधैरग्नये त्वा वैश्वानरायाश्विनाध्वर्यू सादयतामिह त्वा सजूर्ऋतुभिः सजूर्विधाभिः सजूर्वसुभिः सजूर्देवैर्वयोनाधैरग्नये त्वा वैश्वानरायाश्विनाध्वर्यू सादयतामिह त्वा सजूर्ऋतुभिः सजूर्विधाभिः सजू रुद्रैः सजूर्देवैर्वयोनाधैरग्नये त्वा वैश्वानरायाश्विनाध्वर्यू सदयतामिह त्वा सजूर्ऋतुभिः सजूर्विधाभिः सजूरादित्यैः सजूर्देवैर्वयोनाधैरग्नये त्वा वैश्वानरायाश्विनाध्वर्यू सादयतामिह त्वा सजूर्ऋतुभिः सजूर्विधाभिः सजूर्विश्चैर्देवैः सजूर्देवैर्वयोनाधैरग्नये त्वा वैश्वानरायाश्विनाध्वर्यू सादयतामिह त्यो॥
यजमान वैश्वदेवी संज्ञक पाँच ईंटें को रखते हुए बोले, हे इष्टके! ऋतुओं, देवों तथा जल से समान प्रीति रखने वाले बाल्यादि अवस्थाओं को जोड़ने वाले प्राण सहित देवराज इन्द्रादि देवताओं के साथ आपको अग्नि देव के हर्ष के लिए ग्रहण करते हैं।देवताओं के प्रधान अध्वर्य दोनों अश्विनी कुमार आपको इस द्वितीय चिति में प्रतिष्ठित करें।ऋतुओं, जल, वसुगणों के साथ समान प्रीति रखने वाली आप वैश्वदेवी इष्टका को बाल्यादि अवस्थाओं को जोड़ने वाले प्राणों सहित आपको अग्नि देव की प्रसन्नता के निमित्त ग्रहण करते हैं। देवताओं के प्रधान अध्वर्यु दोनों अश्विनी कुमार आपको द्वितीय चिति में प्रतिष्ठित करें। ऋतुओं, जल तथा रुद्रगणों और बाल्यादि अवस्थाओं को जोड़ने वाले प्राण देवों के साथ समान प्रीति रखने वाली आप वैश्वदेवी इष्टका को अग्नि देव की तृप्ति के निमित्त ग्रहण करते हैं। देवताओं के प्रधान अध्वर्यु दोनों अश्विनी कुमार आपको द्वितीय चिति में प्रतिष्ठित करें। ऋतुओं, जल तथा आदित्य गणों और बाल्यादि अवस्थाओं को जोड़ने वाले प्राण देवों के साथ समान प्रीति रखनेवाली आप वैश्व देवी इष्टका को अग्नि देव की तृप्ति के निमित्त ग्रहण करते हैं। देवताओं के प्रधान अध्वर्यु दोनों अश्विनी कुमार आपको द्वितीय चिति में प्रतिष्ठित करें।[यजुर्वेद 14.7]
Yajman should place five bricks named Vaeshv Devi and say, coordinating seasons, demigods and water having childhood etc. stages, having same affection along with air vital, we accept you with Devraj Indr, demigods, deities and Agni Dev. Let head priests of the demigods Ashwani Kumars duo, should place you in this second pile. You Vaeshv Devi bricks having same affection for seasons, water and Vasu Gan, connecting stages in life like childhood etc., we accept you for the happiness of Agni Dev. Let the head priests of demigods Ashwani Kumars place you in the second pile. We accept Vaeshv Devi bricks having same level of affection for the pleasure-satisfaction of Agni Dev, connecting-coordinating the seasons, water and Rudr Gan. Let the head priests of demigods, Ashwani Kumars place-fix you in the second pile. We accept Vaeshv Devi bricks for the satisfaction of Agni Dev, having same level of affection for the seasons, water, Adity Gan & the stages in life like childhood connecting with the deity of air vital. Let the head priests of demigods-deities Ashwani Kumars place-fix you in the second pile.(03.06.2025)
प्राणम्मे पाह्यपानम्मे पाहि व्यानम्मे पाहि चक्षुर्मउर्व्या विभाहि श्रोत्रम्मे श्लोकय।
अपः पिन्वौषधीर्जिन्व द्विपादव चतुष्यात् पाहि दिवो वृष्टिमेरय॥
यजमान प्राणभृत् संज्ञक पाँच ईंटों को रखते हुए बोले' हे इष्टके! आप हमारे प्राण की रक्षा करें। आप हमारे अपान की रक्षा करें। आप हमारे व्यान की रक्षा करें। आप हमारे चक्षुओं को दूर तक देखने की क्षमता प्रदान करें। आप हमारे कर्णेन्द्रिय को श्रवण में सक्षम बनायें। आपकी कृपा से यह धरती वर्षा के जल से अभिषिक्त हो। आप ओषधियों के पोषणकारी तत्त्व में वृद्धि करें, मनुष्यों की रक्षा करें, गौ आदि पशुओं की सुरक्षा करें एवं द्युलोक से वृष्टि के जल को सर्वदा प्रेरित करें।[यजुर्वेद 14.8]
Yajman should put five bricks and say, hey brick! Protect our Pran, Apan and Vyan (three forms of air). Grant power to see through a distance to our eyes. Make our ears capable of hearing. This land should be satiated with water by virtue of your blessings-mercy. Enhance the nourishing ingredients in medicines-herbs, protect the humans, cows, animals and inspire water in the heavens for rains.
मूर्धा वयः प्रजापतिश्छन्दः क्षत्रं वयो मयन्दं छन्दो विष्टम्भो वयोऽधिपतिश्छन्दो विश्वकर्मा वयः परमेष्ठी छन्दो वस्तो वयो विवलं छन्दो वृष्णिर्वयो विशालं छन्दः पुरुषो वयस्तन्द्रं छन्दो व्याघ्रो वयोनाधृष्टं छन्दः सिꣳहो वयश्छदिश्छन्दः पृष्ठवाड्वयो बृहती छन्द उक्षा वयः ककुप् छन्दऽऋषभो वयः सतोबृहती छन्दः॥
यजमान दक्षिण-उत्तर-पश्चिम के कोणों में पाँच-पाँच और पूर्व में चार वयस्या संज्ञक ईंटों को रखते हुए बोले' गायत्री-रूप से प्रजापति ब्रह्मा ने कामना शक्ति के द्वारा मूर्धन्य ब्राह्मण को उत्पन्न किया। अनिरुक्त छन्द से संरक्षण से युक्त क्षत्रिय की रचना की। सृष्टि के पोषण कर्ता परमेश्वर ने छन्द रूप हो वैश्य की उत्पत्ति की। परमेष्ठी विश्वकर्मा ने शक्ति के द्वारा छन्द रूप शूद्र की रचना की। एकपद नामक छन्द से परमेश्वर ने भेड़ की उत्पत्ति की। पंक्ति छन्द के सामर्थ्य से मानव की उत्पत्ति की। विराट् छन्द के सामर्थ्य से प्रजापति ने व्याघ्र पशु को उत्पन्न किया। अतिजगती छन्द के प्रभाव से सिंह को उत्पन्न किया। बृहती छन्द के प्रभाव से भार वहन करने वाले पशुओं को उत्पन्न किया। ककुप् छन्द के प्रभाव से परमेश्वर ने उक्षा जाति को उत्पन्न किया। सतो बृहती छन्द के प्रभाव से भालू आदि पशुओं को उत्पन्न किया।[यजुर्वेद 14.9]
Yajman should lay 5-5 bricks in South, North and the West directions called Vysya and say, "Prajapati Brahma Ji evolved Murdhany Brahmn through his power of imagination as Gayatri Chhand". Kshatriy were evolved through Anirukt Chhand. Nurturer of the life forms Parmeshwar, produced Vaeshy by becoming Chhand. Parmeshthi Vishw Karma produced Shudr through the Shakti Chhand. He produced sheep through Ekpad Chhand & humans through Pankti Chhand. He evolved the beasts (Lion, tiger, wolves etc) through Virat Chhand. By virtue of Brahati Chhand carrier animals (ox, horse, donkey, mule, camel) were produced. By virtue of Kakup Chhand he produced the species Uksha. Sato Brahati Chhand was used to produce bears etc.
अनड्वान् वयः पंक्तिश्छन्दो धेनुर्वयो जगतीछन्दस्त्र्यविर्वयस्त्रिष्टुप् छन्दो दित्यवाड् वयो विराट् छन्दः पंचाविर्वयो गायत्री छन्दस्त्रिवत्सो वयउष्णिक् छन्दस्तुर्यवाड् वयोऽनुष्टुप् छन्दो लोकं ता इन्द्रम्॥
हे इष्टके! पंक्ति छन्द का स्वरूप धारण कर परमेश्वर ने बलीवर्द (वृषभ) की उत्पत्ति को। जगती छन्द के प्रभाव से परमेश्वर ने धेनु जाति को उत्पन्न किया। त्रिष्टुप् छन्द के प्रभाव से त्र्यवि जाति के पशुओं (तीन वर्षीय) की रचना की। विराट् छन्द के प्रभाव से दित्यवाड् (भारवाहक) पशुओं को उत्पन्न किया। गायत्री छन्द के प्रभाव से परमेश्वर ने पंचावि जाति के पशुओं की रचना की। उष्णिक् छन्द के प्रभाव से त्रिवत्सा (तीन वत्सर वाले) पशुओं को उत्पन्न किया। अनुष्टुप् छन्द के प्रभाव से प्रजापति ने तुर्यवाड् जाति के पशुओं (चार वर्षीय) को उत्पन्न किया। हे इष्टके! आप लोक को संरक्षित करें। समस्त प्राणी वैभवशाली इन्द्र देव की अभ्यर्थना करते हैं।[यजुर्वेद 14.10]
अभ्यर्थना :: अनुरोध, विनती, मांग, याचना; postulation, adjuration.
Hey brick! The Almighty took the form of Pankti Chhand to produce Balivard-oxen. By virtue of Jagti Chhand the God produced cows. By virtue of Trishtup Chhand HE produced animals of Trayvi (surviving for three years) species. Virat Chhand was used to produce Dityvad (carrier animals). Using Gayatri Chhand HE produced animals of Panchavi species. With Ushnik Chhand HE produced Trivatsa animals (Life of three years). By virtue of Anushtup Chhand Prajapati produced Turyvad-animals with a life span of four years. Hey brick! Protect the abode. All living being resort to postulation before luxurious-sumptuous Indr Dev.
इन्द्राग्नी अव्यथमानामिष्टकां दृꣳहतं युवम्। पृष्ठेन द्यावापृथिवी अंतरिक्षं च वि बाधसे॥
यजमान पत्थर की स्वयमातृण्णा नामक ईंट रखते हुए बोले, हे इन्द्राग्नि दोनों देवताओं! आप दोनों कष्ट से रहित होते हुए इष्टका को अचल करें। आप अपने ऊपर के भाग से परलोक, अन्तरिक्षलोक तथा पृथ्वी लोक को धारण करती हैं।[यजुर्वेद 14.11]
Yajman should lay brick of stone named Svyamatranna and say, hey Indr & Agni Dev! Still the brick, remaining free from pain. You support the upper abodes Par Lok-heavens, sky-space and the earth.
विश्वकर्मा त्वा सादयत्वन्तरिक्षस्य पृष्ठे व्यचस्वतीं प्रथस्वतीमन्तरिक्षं पच्छान्तरिक्षं दृꣳहान्तरिक्षं मा हिꣳसीः। विश्वस्मै प्राणायापानाय व्यानायोदानाय प्रतिष्ठायै चरित्राय। वायुष्ट्राभिपातु मह्या स्वस्त्या छर्दिषा शन्तमेन तया देवतयांगिरस्वद् ध्रुवा सीद॥
हे इष्टके! प्रजापति विश्वकर्मा आपको विस्तारित करते हुए अन्तरिक्ष के ऊपर के स्थान पर प्रतिष्ठित करें। आप सम्पूर्ण सृष्टि के प्राण, अपान, व्यान, उदान आदि प्राणों की प्रतिष्ठा के निमित्त अन्तरिक्ष लोक को ग्रहण करें। उस अन्तरिक्ष लोक को दृढ़ करें तथा अन्तरिक्ष लोक को कोई पीड़ित न करे अर्थात् अन्तरिक्ष लोक में कोई उपद्रव न हो। वायुदेव आपको अपने शुभकारी तथा तीक्ष्ण तेज से संरक्षित करें। उन देवों द्वारा आप अनुग्रहित की हुई अंगिरा के समान स्थिर हों।[यजुर्वेद 14.12]
Hey brick! Let Prajapati Vishw Karma extend you and establish you over the space-sky. Accept the space-sky for the honour of Air vital form viz. Pran, Vyan, Apan and Udan. Make space strong free from disturbances-troubles. Let Vayu Dev protect you with his sharp Tej-energy. Obliged by the demigods-deities, you should be established like Angira.(04.06.2025)
राज्यसि प्राची दिग्विराडसि दक्षिणा दिक् सम्राडसि प्रतीची दिक् स्वराडस्युदीची दिगधिपत्नयसि बृहती दिक्॥
यजमान पाँच दिश्या संज्ञक ईंटों को रखते हुए बोले, हे इष्टके! आप तेजस्विता को धारण करके पूर्व दिशा के रूप में शोभायमान हैं, विशेष प्रकार से तेजस्वितासम्पन्न आप दक्षिणदिशारूप हैं, उत्तम रीति से प्रतिष्ठित आप पश्चिम दिशारूप हैं, स्वयं प्रकाशमान् आप उत्तर दिशारूप हैं, अत्यन्त रक्षणशील आप अत्यन्त विस्तीर्ण ऊर्ध्व दिशा रूप हैं अर्थात् आप दिशाओं की अधिष्ठात्री के रूप में प्रतिष्ठित हैं।[यजुर्वेद 14.13]
तेजस्विता :: प्रभाव पूर्णता, निर्भीकता, साहस या उत्साह; brilliance, vigorousness, high spirit.
Yajman should lay five bricks named Dishya and say, hey bricks! Bearing brilliance, you are established-glorified in the east direction, established with excellent methods in the west, luminous in the north and has the protective mode in upward direction, as the deity of directions.
विश्वकर्मा त्वा सादयत्वन्तरिक्षस्य पृष्ठे ज्योतिष्मतीम्। विश्वस्मै प्राणायापानाय व्यानाय विश्वं ज्योतिर्यच्छ। वायुष्टेऽधिपतिस्तया देवतयांगिरस्वद् ध्रुवा सीद॥
हे इष्टके! जगत् के रचयिता प्रजापति विश्वकर्मा आपको अन्तरिक्ष लोक के उच्च भाग में विराजमान करें। आप यजमानों के सम्पूर्ण प्राण, अपान, व्यान के लाभ के निमित्त समस्त ज्योतियों को प्रदान करें। आपके अधिष्ठाता वायु देवता हैं अतः उन वायुदेव के प्रभाव से अङ्गिरा के समान इस कार्य में स्थिर हों।[यजुर्वेद 14.14]
Hey brick! Let Vishw Karma Prajapati, creator of the universe, establish you in the upper segment of the space. Grant all lights for the benefit of the Yajman related to air vital Pran, Apan, Vyan. Vayu Dev is your deity, hence remain fixed-devoted with this job like Angira.
नभश्च नभस्यश्च वार्षिकावृतूअग्नेरन्तः श्लेषोऽसि कल्पेतां द्यावापृथिवी कल्पन्तामापऽओषधयः कल्पन्तामग्नयः पृथङ् मम ज्यैष्ठठ्याय सव्रताः। ये अग्नयः समनसोऽन्तरा द्यावापृथिवी इमे वार्षिकावृतू अभिकल्पमाना इन्द्रमिव देवा अभिसंविशन्तु तया देवतयांगिरस्वद् ध्रुवे सीदतम्॥
यजमान दो ऋतव्या ईंटों को रखते हुए बोले, हे ऋतव्या इष्टके! श्रावण मास तथा भाद्रपद मास-ये दोनों मास वर्षाकालीन ऋतु हैं। हे इष्टके! आप देदीप्यमान् अग्नि देव के मध्य में ज्वलनशीलता के रूप में सुस्थिर हैं। हमारे कल्याण के लिए ये स्वर्गलोक तथा भूलोक सहायता करें, जल तथा ओषधियाँ हमारी सहायता करें। स्वरूप कार्य में वियुक्त अग्नियाँ हर्ष प्रदान करें। ये द्यावा पृथिवी के मध्य में विराजमान जो अग्नि देव हैं, वे वर्षाकालीन ऋतु को सम्पादित करते हुए इस कार्य को पूर्णता प्रदान करें, जैसे देवतागण इन्द्र देव की स्तुति करते हुए उनके आश्रय में निवास करते हैं। हे इष्टके! आप उस मुख्य देवता के द्वारा अङ्गिरा वत् इस कार्य में सुस्थिर हों।[यजुर्वेद 14.15]
वियुक्त :: अलग किया हुआ, परित्यक्त, वंचित; deserted, separated.
Yajman should lay two Ritvya bricks and say, hey Ritvya bricks! Shravan and Bhadrpad are the two months constituting rainy season. Hey bricks! You are established in the blazing fire (Agni Dev) vigorously. Let the heavens, earth, water and medicines help us. Agni forms devoid of their duty should grant us pleasure. Agni Dev present between the heavens & earth should accomplish the rains like the demigods who remain under the asylum of Indr Dev worshiping him. Hey brick! You should be stabilised like Angira in the main-chief deity.
इषश्चोर्जश्च शारदावृतू अग्नेरन्तःश्लेषोऽसि कल्पेतां द्यावापृथिवी कल्पन्तामापओषधयः कल्पन्तामग्नयः पृथङ् मम ज्यैष्ठयाय सव्रताः। ये अग्नयः समनसोऽन्तरा द्यावापृथिवी इमे। शारदावृतू अभिकल्पमाना इन्द्रमिव देवा अभिसंविशन्तु तया देवतयांगिरस्वद् ध्रुवे सीदतम॥
आश्विन तथा कार्तिक मास शरद ऋतु के दो मास हैं। हे ऋतुरूप इष्टकाओं! आप अग्नि के आधार रूप में स्थापित रहें। अग्नि का चुनाव करने वाले हम यजमानों के उत्कर्ष हेतु स्वर्गलोक तथा भूलोक परस्पर सहयोग करें। जल तथा ओषधियों हमें श्रेष्ठता प्रदान करने वाली हों। समान वतशील अनेक अग्नियाँ उत्कृष्टता से सहायता कार्य करें। द्यावा-पृथिवी के बीच में उस समय समान मन युक्त जो अग्नियाँ हैं, वे वसन्त ऋतु का सम्पादन करती हुई, इस यज्ञ कर्म के आश्रित हों, जिस प्रकार सभी देवशक्ति इन्द्र देव का आश्रय ग्रहण करती हैं, उसी प्रकार अग्नि देवता के साथ आप अंगिरा के समान सुस्थिर होकर स्थापित हों।[यजुर्वेद 14.16]
Ashwin and Kartik are the two months pertaining to winter. Hey bricks representing season! Form the basis-foundation of Agni. For our sake, the Yajman, heavens & earth should mutually cooperate. Water and medicines should grant excellence. Various forms of Agni should work efficiently. Like minded fires should attain excellence. Fires present between the heavens & earth of the same attitude, should accomplish spring season, depending over this Yagy, the way divine strength depending over Indr Dev seek asylum under him, similarly you should join-establish Agni Dev and Angira.
आयुर्मे पाहि प्राणं मे पाह्यपानं मे पाहि व्यानं मे पाहि चक्षुर्मे पाहि श्रोत्रं मे पाहि वाचम्मे पिन्व मनो मे जिन्वात्मानं मे पाहि ज्योतिर्मे यच्छ॥
यजमान दस प्राणभृत् संज्ञक ईंटों को रखते हुए बोले, हे इष्टके! आप हमारी आयु की रक्षा करें, आप हमारे जीवन के आधाररूप प्राण की रक्षा करें। हमारे अपान वायु की रक्षा करें। हमारे व्यान वायु की रक्षा करें। हमारे दोनों चक्षुओं को संरक्षित करें। हमारे दोनों कर्णों को संरक्षित करें। हमारे वचनों (वाणी) को प्रसन्नता प्रदान करने वाली बनायें, हमारे चित्त को उन्नतशील बुद्धि से युक्त करें, हमारे जीवन की रक्षा करें तथा हमारे तेज को और भी तीक्ष्ण करें।[यजुर्वेद 14.17]
Yajman should lay ten bricks named Pranbhrat and say, hey bricks! Protect our longevity, air vital, Apan and Vyan as well. Protect our eyes & ears. Make our words pleasing granting happiness. Let our mood become upgraded with high degree of intelligence. Protect our lives and boost & sharpen our Tej.
मा छन्दः प्रमा छन्दः प्रतिमा छन्दो अस्त्रीवयश्छन्दः पंक्तिश्छन्द उष्णिक् छन्दो बृहती छन्दोऽनुष्टुप् छन्दो विराट् छन्दो गायत्री छन्दस्त्रिष्टुप् छन्दो जगती छन्दः॥
यजमान बारह छन्दस्या संज्ञक ईंटों को रखते हुए बोले, हे इष्टके! 'मा' छन्द संज्ञक भूलोक, 'प्रमा' छन्द संज्ञक अन्तरिक्षलोक तथा 'प्रतिमा' छन्द संज्ञक स्वर्गलोक का मनन करते हुए हम आपको प्रतिष्ठित करते हैं। हम अस्त्रीवय छन्द, पंक्ति छन्द, उष्णिक् छन्द, बृहती छन्द, अनुष्टुप् छन्द, विराट् छन्द, गायत्री छन्द, त्रिष्टुप् छन्द तथा जगती छन्द का मनन करते हुए आपकी स्थापना करते हैं।[यजुर्वेद 14.18]
Yajman should lay twelve bricks titled-named Chhandasya and say, hey bricks! We honour-establish earth with Chhand Maa, space with Prama Chhand and heavens with Pratima Chhand. We establish-lay you meditating in Astrivay Chhand, Pankti Chhand, Ushnik Chhand, Brahati Chhand, Anushtup Chhand, Virat Chhand, Gayatri Chhand, Trishtup Chhand and Jagti Chhand.
पृथिवी छन्दोऽन्तरिक्षं छन्दो द्यौश्छन्दः समाश्छन्दो नक्षत्राणि छन्दो वाक् छन्दो मनश्छन्दः कृषिश्छन्दो हिरण्यं छन्दो गौश्छन्दोऽजा छन्दोऽश्वछन्दः॥
हे इष्टके! भूलोक, अन्तरिक्ष लोक तथा स्वर्ग लोक से सम्बन्धित छन्दों का मनन करके हम आपकी स्थापना करते हैं। वर्षा देवता के छन्द का, नक्षत्र देवता के छन्द का, वाक् देवता के छन्द का, मन देवता के छन्द का, कृषि देवता के छन्द का, हिरण्य देवता के छन्द का, गो देवता के छन्द का, अजा देवता के छन्द का तथा अश्व देवता के छन्द का मनन करते हुए हम आपकी स्थापना करते हैं।[यजुर्वेद 14.19]
Hey bricks! We establish-lay you meditating in the earth, space and heavens. Simultaneously, we meditate in Chhand devoted for deity of rains, Chhand devoted to constellation, Chhand meant for deity of speech, Chhand devoted to Hirany Dev, Chhand devoted to deity of cows with, Chhand meant for deity Aja and the Chhand for the deity of horses.(05.06.2025)
अग्निर्देवता वातो देवता सूर्यो देवता चन्द्रमा देवता वसवो देवता रुद्रा देवतादित्या देवता मरुतो देवता विश्वेदेवा देवता बृहस्पतिर्देवतेन्द्रो देवता वरुणो देवता॥
हे इष्टके! आप अग्नि देवता रूपा हैं, आप वायु देवता रूपा हैं, आप सूर्य देवता रूपा हैं, आप चन्द्र देवता रूपा हैं, आप आठों वसुगण देवताओं का रूप हैं, आप ग्यारह रुद्रगण देवताओं का रूप हैं, आप बारह आदित्य गण देवताओं का रूप हैं, आप मरुद्गण रूपा हैं, आप विश्वेदेवा रूपा हैं, आप बृहस्पति देवता रूपा हैं, आप देवराज इन्द्र रूपा हैं तथा आप वरुण देवता रूपा हैं। हम आपकी स्थापना करते हैं।[यजुर्वेद 14.20]
Hey brick! We lay you, being a form of Agni Dev, Vayu Dev, Sury Dev, Chandr Dev, eight Vasu Gan, eleven Rudr Gan, twelve Adity Gan, 49 Marud Gan, Vishwe Dev, Brahaspati Dev and Dev Raj Indr & Varun Dev.
मूर्द्धासि राड् धुवासि धरुणा धर्त्र्यसि धरणी।
आयुषे त्वा वर्चसे त्वा कृष्यै त्वा क्षेमाय त्वा॥
यजमान बालखिल्या संज्ञक सात ईंटों को रखते हुए बोले, हे इष्टके! आप सर्वोच्च मूर्धाभाग पर विद्यमान हैं। आप स्वयं सुस्थिर होकर दूसरों को धारण करने की क्षमता से सम्पन्न हों। जिस प्रकार सम्पूर्ण प्रजा को यह पृथ्वी धारण करती है, उसी प्रकार आप इस स्थान को धारण करें। चिरंजीवी बनने के निमित्त हम आपकी स्थापना करते हैं, तेज से युक्त होने के उद्देश्य से हम आपको धारण करते हैं, कृषिकार्य से उत्पन्न होनेवाले अन्न आदि की वृद्धि के लिए हम आपकी स्थापना करते हैं तथा सुख की वृद्धि के लिए हम आपकी स्थापना करते हैं।[यजुर्वेद 14.21]
मूर्धा :: सबसे ऊपरी भाग, मस्तक, कठोर तालु का सबसे ऊपरी भाग, ऊपरी बिंदु, सबसे ऊपर का बिंदु; highest point, peak.
Yajman should lay bricks named Balkhily and say, hey bricks! You are laid over the steepest portion-place. You become stationary and grant stability to others. The way earth support the entire populace you support this place. We establish you to become long lived, attain Tej-aura, increase the quantum of food grains through agriculture and comforts-pleasure.
यन्त्री राड् यन्त्र्यसि यमनी ध्रुवासि धरित्री।
इषे त्वोर्जे त्वा रय्यै त्वा पोषाय त्वा लोकं ता इन्द्रम्॥
पृथ्वी के सदृश स्थिर, नियम के अनुसार गतिमान हे इष्टके! आप स्वयं नियम पूर्वक रहकर सभी का नियमानुसार संचालन करती हैं। हम अन्न को प्राप्त करने के उद्देश्य से आपको ग्रहण करते हैं, हम बल प्राप्ति हेतु आपको ग्रहण करते हैं, धन-वैभव में वृद्धि के लिए आपको ग्रहण करते हैं एवं सम्पूर्ण प्राणियों की पुष्टि के निमित्त हम आपको ग्रहण करके प्रतिष्ठित करते हैं। आप सम्पूर्ण भुवनों की सुरक्षा करते हुए देवराज इन्द्र आदि देवों को परितृप्त करें।[यजुर्वेद 14.22]
Stationary like the earth, moving as per rule, hey brick! You follow the rules-laws and let other abide by them. We accept & establish you for obtaining food grains, wealth-opulence, might-power, nourishment-support of all living beings. Protect all abodes and satisfy Dev Raj Indr and all demigods.
आशुस्त्रिवृद्भान्तः पंचदशो व्योमा सप्तदशो धरुण एकविꣳशः प्रतूर्तिरष्टादशस्तपो नवदशोऽभीवर्तः सविꣳशो वर्ची द्वाविꣳशः सम्भरणस्त्रयोविꣳशो योनिश्चतुर्विꣳशो गर्भाः पञ्चविꣳश ओजस्त्रिणवः क्रतुरेकत्रिꣳशः प्रतिष्ठा त्रयस्त्रिꣳशो ब्रध्नस्य विष्टपं चतुस्त्रिꣳशो नाकः षट्त्रिꣳशो विवर्तोऽष्टाचत्वारिꣳशो धर्त्रं चतुष्टोमः॥
आवर्तन :: परिचलन, परिवहण, चक्र, घूमना, घुमाव, फेरना या चक्कर देना; rotation, twirl, gyration, cycle.
हे इष्टके! त्रिवृत् स्तोम तथा त्रिलोक में संव्याप्त वायु देवता का मनन करके हम आपको इस स्थान में विराजमान करते हैं। जो चन्द्र ज्योति पन्द्रह दिन में घटती है तथा जो पन्द्रह दिन में बहती है, उस चन्द्र ज्योति का मनन करके हम आपकी स्थापना करते है। अनेक प्रकार से रक्षा करने वाले प्रजापति सप्तदश स्तोम रूप हैं, इनका मनन करके आपको स्थापित करते हैं। धारणकर्ता प्रतिष्ठारूप एकविंश स्तोम का मनन करके आपकी स्थापना करते हैं। बारह महीने पाँच ऋतुओं के साथ एक संवत्सर मिलकर अठारह अंगों ने सम्पन्न प्रवृत्ति स्तोम का मनन करके आपकी स्थापना करते हैं। तपः रूप नवदश स्तोम है, उन देवों का मनन करके आपको स्थापित करते हैं। सब प्राणियों को आवर्तन करने वाले बारह मास, सप्त ऋतु तथा संवत्सर रूप बीस संख्या सहित बीस अभीवर्त देवता का मनन करके आपको स्थापित करते हैं। विशेष बल प्रदान करने वाले द्वाविंश स्तोम है, उन वर्च देवता का मनन करके इष्टका को स्थापित करते हैं। सम्यक् पुष्टि कारक त्रयोविंश स्तोम है, उन संभरण देवता का मनन करके आपकी स्थापना करते हैं। प्रजा के उत्पादक चतुर्विंश स्तोम हैं, उस योनि देवता का मनन करके इष्टका की स्थापना करते हैं। त्रिवण ओज युक्त देवता का मनन करके आपकी स्थापना करते हैं। जो इकतीस अवयव युक्त यज्ञ के निमित्त उपयुक्त एकत्रिंश स्तोम हैं, उस क्रतु देवता का स्मरण कर इष्टका की स्थापना करते हैं। तैतीस अवयवों से सम्पन्न प्रतिष्ठा के कारण रूप त्रयस्त्रिंशत् स्तोम हैं, उस प्रतिष्ठा देवता का स्मरण करके आपकी स्थापना करते हैं। सूर्य के निवास स्थान चतुस्त्रिंशत् स्तोम है, उन ब्रध्नेविष्टुप् देवता का स्मरण करके आपकी स्थापना करते हैं। द्युलोक प्रदान करने वाले श्ट्विंश स्तोम है, उस देवता का मनन करके इष्टका की स्थापना करते हैं। साम के आवर्तनों से युक्त अष्टचत्वारिंश स्तोम है, उस विक्त देवता को स्मरण करके इष्टका की स्थापना करते हैं। त्रिवृत्, पञ्चदश, सप्तदश, एकविंश इन चार स्तोमों का समूह चतुष्टोम सभी को धारण करने की सामर्थ्य से युक्त है। चतुष्टोम धर्म देवता को स्मरण करके इष्टका की स्थापना करते हैं।[यजुर्वेद 14.23]
Hey brick! We lay you meditating in Trivrat Stom and Vayu Dev pervading in the three abodes. We establish you meditating in the Moon light which recede for 15 days and then increase for 15 days. You are icon to Prajapati Sapt Dash Stom, protecting in all possible ways, we lay you meditating in them. We establish you meditating in supporter, prestige like Ekvinsh Stom. We meditate in one Sanvatsar with twelve months, five seasons having eighteen segments Pravratti Stom, while laying you. Navdash Stom is like ascetics, we remember these demigods-deities and establish you. We lay you meditating in 12months, 7 seasons, Sanvatsar like 20 numerals and 20 Abhivart demigods-deities, which rotate all living beings. We meditate in Varch Dev and specific power granting Dwavinsh Stom for laying bricks. We remember Sambharan Dev and Samyak nourishing Tryovinsh Stom, while laying you. We remember the deity of Yoni-evolution and the producer of the populace Chaturvinsh Stom to lay brick. We remember Trivan demigods having aura and lay you. We meditate in Kratu Dev, Yagy having 31 ingredient and suitable Ektrinsh Stom to lay brick. Trystrinshat Stom has 33 elements. We meditate in the prestige deity and lay you. Location of Sury Dev is Chatustrinshat. We remember the deity Brandhevishtup and lay you. Shatvinsh Stom award heavens. We remember that deity and establish the brick. Ashtchatvarinsh Stom has cycles of Sam. We remember the Vikt Dev and lay brick. Trivrat, Panchdash, Saptdash, Ekvinsh form the group of Chatushtom Stom which possess the power to support all. We meditate in Chatushtom Dharm deity and lay brick.
अग्नेर्भागोऽसि दीक्षाया आधिपत्यं ब्रह्म स्मृतं त्रिवृत्स्तोमऽ इन्द्रस्य भागोऽसि विष्णोराधिपत्यं क्षत्रꣳ स्मृतं पंचदश स्तोमो नृचक्षसां भागोऽसि धातुराधिपत्यं जनित्रꣳ स्पृतꣳ सप्तदश स्तोमो। मित्रस्य भागोऽसि वरुणस्याधिपत्यं दिवो वृष्टिर्वात स्पृतएक विꣳशः स्तोमः॥
यजमान स्मृत् संज्ञक दस ईंटों को रखे और बोले, हे इष्टके! आप अग्नि देव के भाग हैं, दीक्षा का आधिपत्य आपके ऊपर है। त्रिवृत् स्तोम द्वारा ब्राह्मण जाति मृत्यु से रक्षित हुई। उस त्रिवृत् स्तोम का स्मरण करके हम आपकी स्थापना करते हैं। हे इष्टके! आप देवराज इन्द्र के भाग हैं, भगवान् विष्णु का आधिपत्य आपके ऊपर है। पंचदश स्तोम द्वारा क्षत्रिय जाति मृत्यु से रक्षित हुई।उस पंचदश स्तोम का स्मरण करके हम आपकी स्थापना करते हैं। हे इष्टके! आप मनुष्यों के शुभाशुभ जाननेवाले देवताओं के भाग हैं, आपके ऊपर धाता का आधिपत्य है। आपने सप्तदश स्तोम से वैश्यवर्ग की मृत्यु से रक्षा की। उस सप्तदश स्तोम का मनन करके हम आपको प्रतिष्ठित करते हैं। हे इष्टके! आप प्राण के अंगरूप हैं, आपके ऊपर वरुणदेव का आधिपत्य है, आपने एकविंश स्तोम द्वारा स्वर्गलोक से वर्षा तथा पवन को मृत्यु से रक्षित किया, अतएव एकविंश स्तोम का मनन करके हम आपकी स्थापना करते हैं।[यजुर्वेद 14.24]
Yajman should lay ten bricks named Smrat and say, hey bricks! You are components of Agni Dev, Deeksha occupy a segment over you. Trivrat Stom protected the Brahman clan. We remember that Trivrat Stom and establish you. Hey brick! You are a component of Indr Dev, having powers over you. Panchdash Stom protected the Kshatriy. We remember that Panchdash Stom and lay you. Hey brick! You are a component of the demigods-deities aware of the humans welfare and bad luck. You protected the Vaeshy clan with Saptdash Stom. We meditate in Saptdash Stom and lay you. Hey Brick! You are a component of air vital, having control of Varun Dev. You protected the rains with heavens & Pawan from death with Ekvinsh Stom. Hence we meditate in Ekvinsh Stom and lay you.(06.06.2025)
वसूनां भागोऽसि रुद्राणामाधिपत्यं चतुष्यात् स्मृतं चतुर्विꣳश स्तोम आदित्यानां भागोऽसि मरुतामाधिपत्यं गर्भाः स्मृताः पंचविꣳशः स्तोमोऽदित्यै भागोऽसि पूष्ण आधिपत्यमोज स्पृतं त्रिणव स्तोमो देवस्य सवितुर्भागोऽसि बृहस्पतेराधिपत्यꣳ समीचीर्दिश स्पृताश्चतुष्टोम स्तोमः॥
हे इष्टके! आप वसुओं के भाग रूप हैं, आपके ऊपर रुद्रगणों का आधिपत्य है, आपने चतुर्विंश स्तोम के द्वारा चार पैर वाले पशुओं को मृत्यु से रक्षित किया है, अतः चतुर्विंश स्तोम देवता को स्मरणकर आपकी स्थापना करते हैं। हे इष्टके! आप आदित्यगण के भाग रूप हैं, आपके ऊपर मरुद्गणों का आधिपत्य है, आपने पञ्चत्रिंश स्तोम द्वारा गर्भ में स्थित प्राणियों को मृत्यु से संरक्षित किया, अतः पञ्चत्रिंश स्तोम देवता को स्मरण कर आपकी स्थापना करते हैं। हे इष्टके! आप अदिति के भागरूप हैं, आपके ऊपर पूषादेव का आधिपत्य है, आपने त्रिणव स्तोम द्वारा प्रजाओं के ओज की रक्षा की, अतः हम त्रिणव स्तोम देवता को स्मरणकर आपको प्रतिष्ठित करते हैं। हे इष्टके! आप सबको प्रेरित करने वाले सविता देव के भाग रूप हैं, आपके ऊपर बृहस्पति देव का आधिपत्य है, आपने चतुष्टोम स्तोम द्वारा सम्पूर्ण मानवों के विचरने योग्य दिशाओं को संरक्षित किया, अतः हम उस चतुष्टोम स्तोम देवता को स्मरण कर आपको प्रतिष्ठित करते हैं।[यजुर्वेद 14.25]
Hey brick! You are like the segment-form of Vasu Gan ruled by Rudr Gan. You have protected the four hoofed animals through Chaturvinsh Stom, hence we meditate in Chaturvinsh deity and lay you. Hey brick! You are like the segment-form of Adity Gan ruled by Marud Gan. You have saved the living being in the womb from death through Panchtrinsh Stom, hence we meditate in Panchtrinsh deity and lay you. Hey brick! You are like the segment-form of Aditi ruled by Pusha Dev. You have protected the aura of populace through Trinav Stom, hence we remember the Trinav deity and lay you. Hey brick! You are like the segment-form of all inspiring Savita Dev, ruled by Brahaspati Dev. You protected all direction suitable for roaming of all humans through Chatushtom Stom, hence we lay you meditating in the deity Chatushtom.
यवानां भागोऽस्य यवानामाधिपत्यं प्रजाः स्पृताश्चतुश्चत्वारिꣳश स्तोम ऋभूणां भागोऽसि विश्वेषां देवानामाधिपत्यं भूतꣳ स्मृतं त्रयस्त्रिꣳशः स्तोमः॥
हे इष्टके! आप पूर्व पक्ष के अंगरूप हैं, अपर पक्ष का आधिपत्य आपके ऊपर है, आपने चत्वारिंशत् स्तोम द्वारा प्रजा को मृत्यु से रक्षित किया, अतः हम चत्वारिंशत् स्तोम देव को स्मरण कर आपको स्थापित करते हैं। हे इष्टके! आप ऋभु देवताओं के अंग रूप हैं, विश्वे देवों का आधिपत्य आपके ऊपर है, आपने त्रयस्त्रिंशत् स्तोम द्वारा प्राणिमात्र को मृत्यु से रक्षित किया, अतः हम त्रयस्त्रिंशत् स्तोम देव का मनन करके आपको इस स्थान पर प्रतिष्ठित करते हैं।[यजुर्वेद 14.26]
Hey brick! You are like the segment-section (fortnight) ruled by the upper segment (fortnight). You protected the populace from death through Chatvarinshat Stom, hence we remember the deity of Chatvarinshat Stom and lay you. Hey bricks! you are like the segment of Ribhu Gan, ruled by Vishwe Dev. You protected the living beings from death through Traystrinshat Stom, hence we lay you meditating in Traystrinshat deity.
सहश्च सहस्यश्च हैमंतिकावृतू अग्नेरन्तःश्लेषोऽसि कल्पेतां द्यावापृथिवी कल्पन्तामापओषधयः कल्पन्तामग्नयः पृथङ्मम ज्यैष्ठ्याय सव्रताः। ये अग्नयः समनसोऽन्तरा द्यावापृथिवी इमे। हैमंतिकावृतू अभिकल्पमानाइन्द्रमिव देवा अभिसंविशन्तु तया देवतयांगिरस्वद् ध्रुवे सीदतम्॥
यजमान ऋतव्या संजक दो ईंटों को रखकर बोले, मार्गशीर्ष तथा पौष मास हेमन्त ऋतु के अवयव हैं। ये दोनों अग्निदेव के भीतर विद्यमान होकर दृढ़ता के निमित्त नियुक्त किये गये हैं। (कार्य के अनुरूप) अग्नि का चुनाव करने वाले हम याजकों के उत्कर्ष हेतु द्युलोक तथा धरती लोक परस्पर सहयोग करें। जल तथा ओषधियाँ हमें श्रेष्ठता प्रदान करने वाली हों। समान व्रतशील अनेक अग्नियाँ उत्कृष्टता से सहायता कार्य करें। धावा पृथ्वी के बीच में इस समय समान मनयुक्त जो अग्नियाँ हैं, वे वसन्त ऋतु का सम्पादन करती हई, इस यज्ञकर्म के आश्रित हों। जिस प्रकार सभी देव शक्तियाँ इन्द्र देव का आश्रय ग्रहण करती हैं, उसी प्रकार अग्नि देवता के साथ आप अंगिरा के समान सुस्थिर होकर स्थापित हों।[यजुर्वेद 14.27]
Yajman should lay two brick named Ritvya and say, Margsheersh and Poush are the two segments of Hemant season. Both of them have been fixed rigidly in Agni Dev. We the choosers of Agni as per endeavour, should act mutually for excellent heavens & earth. Let water & medicines grant us excellence. Agni of the same magnitude-nature should perform excellently. Agni-fire of the same intensity present between the heavens and earth should depend over this Yagy accomplishing spring season. The way the divine powers depend over Indr Dev, similarly you should be established-laid along with Agni Dev and Angira.
एकयास्तुवत प्रजा अधीयन्त प्रजापतिरधिपतिरासीत् तिसृभिरस्तुवत ब्रह्मासृज्यत ब्रह्मणस्पतिरधिपतिरासीत्यंचभिरस्तुवत भूतान्यसृज्यन्त भूतानां पतिरधिपतिरासीत्सप्तभिरस्तुवत सप्तऋषयो सृज्यन्त धाताधिपतिरासीत्॥
यजमान सृष्टि संज्ञक अट्ठारह ईंटों को रखकर बोले, प्रजापति ने एक ही वाणी से परमात्मा की स्तुति की, जिससे सम्पूर्ण प्रजा की उत्पत्ति हुई, प्रजापति ही सबके स्वामी हुए। प्राण, अपान तथा व्यान इन तीनों शक्तियों के द्वारा ब्राह्मण उत्पन्न हुए। ब्रह्मा ने प्राण, अपान तथा व्यान की प्रार्थना की। ब्रह्मणस्पति ब्राह्मणों के स्वामी हुए। ब्रह्मा ने पाँच प्राणों से परमेश्वर की स्तुति की। उसने पञ्चभूतों को प्रकट किया, उन पञ्चभूतों के अधिपति परमात्मा ही सबके स्वामी हुए। दो कर्ण, दो नासिका, दो चक्षु, एक जीभ इन सातों की सहायता से ब्रह्मा ने परमात्मा की स्तुति की, तब सप्तर्षि प्रादुर्भूत हुए, सृष्टि के धारणकर्ता परमेश्वर (धाता) ही उनके अधिष्ठाता हुए।[यजुर्वेद 14.28]
Yajman should lay 18 bricks named Srashti and say, "Prajapati's single prayer to Almighty created the entire populace-living beings". Pran-air vital, Apan-rejected gas and Vyan led to the creation of Brahmans. Brahma Ji worshiped Pran, Apan and Vyan and Brahmanspati became the lord of Brahmans. Brahma Ji worshiped the Almighty with 5 Pran. He evolved Panch Bhoot and the lord of Panch Bhoot Almighty became the lord of all. Two ears, two nostrils, two eyes, one tongue; with the help of these seven together Brahma Ji worshiped the Almighty, leading to evolution of Sapt Rishi Gan and the supporter of the nature Almighty became their lord.
नवभिरस्तुवत पितरोऽसृज्यन्तादितिरधिपत्न्यासीदेकादशभिरस्तुवत ऋतवोऽसृज्यन्तार्तवाधिपतय आसँस्त्रयोदशभिरस्तुवत मासा असृज्यन्त संवत्सरोऽधिपतिरासीत्पंचदशभिरस्तुवत क्षत्रमसृज्यतेन्द्रोऽधिपतिरासीत्सप्तदशभिरस्तुवत ग्राम्याः पशवोऽसृज्यन्त बृहस्पतिरधिपतिरासीत्॥
जिस परमेश्वर ने पितर गणों के संरक्षक के रूप में उत्पन्न किया, देवमाता अदिति जिसकी अधिष्ठात्री हुई, उसकी नवप्राणों से वन्दना की गयी, जिनसे वसन्तादि ऋतुओं की उत्पत्ति हुई, एवं जिनके द्वारा ऋतुओं के गुण अपने-अपने विषय के अधिष्ठाता होते हैं, उनकी दस प्राणों तथा ग्यारहवें आत्मा से स्तुति की गयी। जिसने सम्पूर्ण महीनों को उत्पन्न किया तथा जो पन्द्रह तिथियों के संग संवत्सर काल के अधिष्ठाता के रूप में नियुक्त हुए, उसकी दस प्राण, ग्यारहवीं जीवात्मा तथा दो पदों से प्रार्थना की गयी। जिसने राज्य तथा क्षत्रिय जाति की रचना की, उसकी दस पाँव की अंगुलियों, दो जङ्गाओं, दो जानुओं तथा एक नाभि एवं इसके ऊपरी अंग (चक्षु, जीभ), इन पन्द्रहों से प्रार्थना की गयी। जिसने वैश्यवर्ग के अधिकारी को सृजित किया तथा गाँव के गौ आदि पशुओं को सृजित किया, उसकी दस पाँव की अँगुलियों, घुटने के नीचे तथा ऊपर के चार जोड़ों, दो पाँव एवं सत्रहवें नाभि के नीचे के प्रदेश से प्रार्थना की गयी।[यजुर्वेद 14.29]
Almighty created the Pitr-Manes as the guardian, Dev Mata Aditi became their deity and was worshiped with Nav Pran leading to evolution of seasons like spring, all seasons has their respective deities who were worshiped with 10 Pran and eleventh Soul. HE who created the 12 months and 15 dates of the year-Sanvatsar, became the deity and worshiped with 10 Pran, the eleventh Jeevatma-Soul and two Pad. HE who generated the Kshatriy clan, ten fingers of the feet, two thighs, two legs, one navel and the organs over them like eyes and tongue, was worshiped with these 15. HE who evolved the Vaeshy clan, villages, cows, animals, was worshiped with 10 fingers, 4 joints over and below the knees, 2 legs and the region below the 17th tongue.
नवदशभिरस्तुवत शूद्रार्यावसृज्येतामहोरात्रे अधिपत्नी आस्तामेकविꣳ शत्यास्तुवतैकशफाः पशवोऽसृज्यन्त वरुणोऽधिपति रासीत् त्रयोविꣳशत्यास्तुवत क्षुद्राः पशवोऽसृज्यन्त पूषाधिपतिरासीत्पंचविꣳशत्यास्तुवतारण्याः पशवोऽसृज्यन्त वायुरधिपति रासीत्सप्तविꣳ शत्यास्तुवत द्यावापृथिवी व्यैतां वसवो रुद्रा आदित्या अनुव्यायँस्त एवाधिपतय आसन्॥
हाथों की दस अँगुलियों तथा शरीर के नौ प्राणों इन उन्नीस से प्रार्थना की गयी, इन उन्नीस आन्तरिक तथा बाह्य अंगों की भाँति ही शूद्र तथा आर्यों की उत्पत्ति हुई, उनके अधिपति रात-दिन हुए। हाथों की दस तथा पाँव की दस अँगुलियाँ एवं एक आत्मा शरीर में स्थित है, इनसे परमेश्वर के माहात्म्य का गुणानुवाद हुआ। उन अंगों की शक्तियों द्वारा क्षुद्र पशुओं की उत्पत्ति हुई, उन सभी के अधिष्ठाता पूषादेव अर्थात् अन्न प्रदान करने वाली धरती हैं। हाथों की दस तथा पाँव की दस अँगुलियों, दो बाजू, दो पाँव तथा पच्चीसवाँ आत्मा-ये पच्चीस शरीर के अवयव हैं। इनसे परमात्मा के माहात्म्य का गुणगान किया जाता है। उन अवयवों से वन के पशुओं की उत्पत्ति हुई, इन सबके अधिपति वायुदेव हैं। हाथों की दस एवं पैरों के दस अँगुलियाँ, दो भुजायें, दो घुटने तथा दो पाँव एवं सत्ताइसवाँ आत्मा-इन घटकों से विधाता के कला-कौशल का बखान करते हुए महिमा का गान किया गया। इनके द्वारा ही स्वर्गलोक तथा भूलोक दोनों व्याप्त हैं, उनमें ही आठ वसु, ग्यारह रुद्र (अर्थात् प्राण) और बारह महीने अच्छी तरह रहते हैं, वे ही उन दोनों अन्तरिक्षलोक तथा पृथ्वीलोक के अधिष्ठाता तथा पालनकर्ता हुए।[यजुर्वेद 14.30]
HE was worshiped with 10 fingers and 9 Pran i.e., these 19. Shudr and Aryans were evolved like these external and internal 19 organs. Night & day became their lords. Grandeur-glory of the Almighty was sung-recited with the 10 fingers of the hands and 10 fingers of the legs including the soul in the body. The might of these organs evolved the lower species, Pusha Dev is their deity and the earth provides them food grains. 10 fingers of hands, 10 fingers of legs, 2 arms, 2 feet and the 25th soul, constitute the organs of the body. These organs are used to recite the glory of the Almighty. These components evolved the animals in the forest and Vayu Dev became their deity. 10 fingers of hands, 10 fingers of legs, 2 arms, 2 knees, 2 feet and the 27th soul are used to recite the skills & glory of the Almighty. HE pervades the heavens & earth. 8 Vasus, 11 Rudr-Pran and 12 months function properly due to HIS might & power. HE is the deity and nurturer of the heavens & the earth.
नवविꣳशत्यास्तुवत वनस्पतयोऽसृज्यन्त सोमोऽधिपतिरासीदेकत्रिꣳ शतास्तुवत प्रजा असृज्यन्त यवाश्चायवाश्चाधिपतय आसँस्त्रयस्त्रिꣳ शतास्तुवत भूतान्यशाम्यन्प्रजापतिः परमेष्ठठ्यधिपतिरासील्लोकं ता इन्द्रम्॥
शरीर में हाथों की दस तथा पैरों की दस अँगुलियाँ एवं नौ प्राण, इस तरह उनतीस घटक (शक्तियाँ) जगत् की रचना कर रहे हैं, उनसे परमेश्वर की प्रार्थना की गयी। उन घटकों से ही वनस्पतियों का निर्माण किया गया। सोम उनके अधिष्ठाता हुए। हाथों तथा पैरों की दस-दस अँगुलियाँ, दस प्राण, इकतीसवाँ जीवात्मा, इन घटक शक्तियों द्वारा सारे शरीर की रचना हुई है, इन शक्तियों द्वारा परमेश्वर के कला-कौशल का वर्णन करते हुए महिमा का गुणगान हुआ। इनसे ही प्रजा की रचना हुई। पुरुष तथा स्त्रियाँ इनके अधिपति हैं। हाथों तथा पैरों की दस-दस अँगुलियाँ, दस प्राण, दो पैर तथा तैतीसवाँ जीवात्मा इन अवयवों से सारा शरीर बना है, इन शक्तियों द्वारा परमपिता परमेश्वर की वन्दना की गयी। उनसे ही सम्पूर्ण प्राणीजन सुखी हुए। परम पद पर विद्यमान प्रजापति परमेश्वर ही सबके अधिष्ठाता हुए। सम्पूर्ण वैभवशाली देवराज इन्द्र की स्तुति करते हैं।[यजुर्वेद 14.31]
29 powers constituting of 10 fingers of hands, 10 fingers of the legs and the 9 Pran constitute the world and these are used to worship the Almighty. These constituents created the vegetation. Som became their lord. 10-10 fingers of the hands & legs 10 Pran, 31th Jeevatma; these component powers generated the body; which are used to describe the glory-grandeur of the Almighty. They created the populace. Man and women are their deities. 10-10 fingers of the hands & legs, 10 Pran, 2 legs and 31th Jeevatma form the body. These powers are used to sing-recite the glory of the Almighty. These made the populace-living beings comfortable. The Ultimate, Almighty is the deity of all. Devraj having all grandeur-glory is worshiped.(07.06.2025)
अग्ने जातान् प्र णुदा नः सपत्नान् प्रत्यजातान्नुद जातवेदः।
अधि नो ब्रूहि सुमना अहेडॅस्तव स्याम शर्मंस्त्रिवरूथ उद्धौ॥
यजमान असपत्ना संज्ञक पाँच ईंटें रखे और बोले, हे सर्वज्ञाता अग्नि देव! आप हमारे पूर्व में प्रकट हुए शत्रुओं को अच्छी तरह से नष्ट करें तथा उत्पन्न होने वाले विद्रोहियों का प्रतिबन्ध करें। हमारा तिरस्कार न करके प्रसन्नचित्त से हमें मनोवांछित वर प्रदान करें। आप हमें यज्ञ विद्या का उपदेश करें। हम आपके उत्तम सुख के उत्पादक आश्रय में विद्यमान रहकर तीनों मण्डपों में (आग्नीध्र, हविर्धान तथा सदोमण्डप) यज्ञकर्म पूर्ण करें।[यजुर्वेद 15.1]
प्रतिबन्ध :: ban, restrict.
Yajman should lay bricks named Aspatna and say, hey all knowing-omniscient Agni Dev! Destroy our earlier enemies thoroughly and ban-restrict the rebels. Do not reproach us and grant us desired boons. Grant us knowledge pertaining to Yagy. Under your comfortable asylum let us accomplish the Yagy Karm in three Mandap i.e., Agneedhr, Havirdhan and Sadomandap.
सहसा जातान् प्रणुदा नः सपत्नान् प्रत्यजातान् जातवेदो नुदस्व।
अधि नो ब्रूहि सुमनस्यमानो वयꣳस्याम प्रणुदा नः सपत्नान्॥
हे सर्वज्ञाता अग्नि देव! आप हमारे विद्रोहियों को सेना के साथ सभी प्रकार से विनष्ट करें। भविष्य में उत्पन्न होने वाले शत्रुओं को भी विनष्ट करें। आप सद अन्तःकरण से हमारे पथ-प्रदर्शक बनें, जिससे हम समस्त रिपुओं को विनष्ट करके सामर्थ्यशाली बन सकें।[यजुर्वेद 15.2]
सर्वज्ञाता :: omniscient-all knowing.
Hey omniscient-all knowing Agni Dev! Crush the army of our rebels. Destroy our enemies arising in future. Remain our guide with virtuous innerself, so that we become capable of destroying all of our enemies.
षोडशी स्तोमओजो द्रविणं चतुश्चत्वारिꣳश स्तोमो वर्ची द्रविणम्। अग्नेः पुरीषमस्यप्सो नाम तां त्वा विश्वे अभि गृणन्तु देवाः। स्तोमपृष्ठा घृतवतीह सीद प्रजावदस्मे द्रविणा यजस्व॥
हे इष्टके! पन्द्रह कलाओं से युक्त षोडशी स्तोम का मनन करके हम आपकी स्थापना करते हैं। वे स्तोम पराक्रम युक्त धन-सम्पदा प्रदान करते हैं। चौवालिस शक्ति सम्पन्न स्तोम का ध्यान कर आपकी स्थापना करते हैं। वे ओज तथा बल प्रदान करते हैं। आप रक्षक नाम से युक्त पंचदश कला वाले चन्द्र रूप अग्नि देव को पूर्णता प्रदान करते हैं। पूर्ण शक्ति को देवता गणों द्वारा हर्षित किया जाता है। आपको विश्वे देव संस्तुत करें। समस्त दैवी शक्तियों तथा शक्तिशाली पुरुषों से आदर को प्राप्त करके, तेज को धारण करके आप इस स्थान पर विराजें। आप हमारे निमित्त लाभान्वित करने वाला धन-वैभव तथा पुत्र प्रदान करें।[यजुर्वेद 15.3]
Hey brick! We establish you remembering the Shodsi Stom, having 15 phases. These Stom grant valour along with riches-wealth. We establish-lay you meditating in 44 mighty Stom. They award aura and strength. You grant completion-perfection to protector Agni in the form of Chandr having 15 phases. Complete power-strength is gladdened by demigods-deities. Let Vishwe Dev pray to you. Having attained all divine powers and honour by the mighty person, having aura-radiance you should be established here. Grant us profitable wealth, grandeur and son.
एवश्छन्दो वरिवश्छन्दः शम्भूश्छन्दः परिभूश्छन्दऽ आच्छच्छन्दो मनश्छन्दो व्यचश्छन्दः सिन्धुश्छन्दः समुद्रश्छन्दः सरिरंछन्दः ककुप् छन्दस्त्रिककुप् छन्दः
काव्य छन्दो अंक छन्दोऽक्षरपंक्ति श्छन्दः पदपंक्तिश्छन्दो विष्टारपंक्तिश्छन्दः क्षुरोभ्रजश्छन्दः॥
यजमान प्रत्येक दिशा में दस-दस विराट् संज्ञक ईंटें रखते हुए बोले, हे इष्टके! अवश्छन्द सिन्धुश्छन्द, समुद्रश्छन्द, सरिरछन्द, ककुप् छन्द, स्त्रिककुप् छन्द, काव्य छन्द, आप एव छन्दस्वरूपा, वरिवश्छन्द, शभूछन्द, परिभूश्छन्द, आच्छच्छन्द, मनश्छन्द, आपको स्थापित करता हूँ। प्राणियों के निमित्त भ्रमण करने योग्य धरती, प्रभामण्डल से अङ्कप छन्द क्षरपंक्तिश्छन्द पदपंक्तिश्छन्द, विष्टारपंक्तिछन्द और क्षुरोभ्रजश्छन्द रूपा हैं। मैं व्याप्त अन्तरिक्षलोक, स्वर्गीय सुख को प्रदान करने वाला स्वर्ग लोक तथा सभी ओर संव्याप्त देशाओं का ध्यान करके आपको प्रतिष्ठित करते हैं। प्रजापति का दृढ़ निश्चय, मन की स्मरण सामर्थ्य, सम्पूर्ण जगत् में संव्याप्त गुण से युक्त सूर्यदेव, नाड़ियों द्वारा शरीर में व्याप्त प्राण वायु, सागर के सदृश गम्भीर मन एवं मुख से निकली हुई वाणी का स्मरण करके आपको प्रतिष्ठित करते हैं। प्राण तथा उदान का मनन कर आपको प्रतिष्ठित करते हैं। प्रकाश स्वरूप वेद त्रयी (तीन वेदों ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद का समूह) कुटिल गति से चलने वाले जल, भूमि, अन्तरिक्ष, पाताल, दिशाएँ तथा प्रकाशमान् विद्युत् का ध्यान करते हुए आपकी स्थापना करते हैं।[यजुर्वेद 15.4]
Yajman should lay 10-10 bricks named Virat in each direction and say, hey bricks! I establish-lay Avsh Chhand, Sindush Chhand, Samudrsh Chhand, Sarir Chhand, Kakup Chhand, Strikkup Chhand, Kavy Chhand, Aap and Chhand form, Varivsh Chhand, Shabhu Chhand, Paribhush Chhand, Achchhch Chhand, Manash Chhand.
Land good enough for walking by the living beings, is in the form of Prabha Mandap ankap Chhand, Ksharpankti Chhand, Vishtarpankti Chhand, Mansh Chhand, Kshurobhrsh Chhand. I meditate in the space, heavens and all directions and then establish-lay you. We establish-lay you meditating in firm determination by Prajapati, capability to remember by the mind, Sury Dev pervading the entire world-universe, air vital in the nerves, mind as serious as ocean and the voice coming out of the mind. We remember Pran & Udan and then lay you. We meditate in aurous Ved Trayi (Rig, Yajur and Sam Ved), water flowing with uneven speed, land, space, nether world, directions and lightening and lay you.
आच्छच्छन्दः प्रच्छच्छन्दः संयच्छन्दो वियच्छन्दो बृहच्छन्दो रथंतरं छन्दो निकायश्छन्दो विवधश्छन्दो गिरश्छन्दो भ्रजश्छंदः सꣳस्तुप्छन्दोऽनुष्टुप्छन्दएवश्छन्दो वरिवश्छन्दो वयश्छन्दो वयस्कृच्छन्दो विष्पर्धाश्छन्दो विशालं छन्दश्छदिश्छन्दो दूरोहणं छन्दस्तन्द्रं छन्दोऽ अंकांकं छन्दः॥
हे इष्टके! आप आच्छच्छन्द, प्रच्छच्छन्द, संमच्छच्छन्द, वियच्छन्द, बृहच्छन्द, व्यन्तरच्छन्द, निकायच्छन्द, विवधच्छन्द, गिरश्च्छन्द भ्रजश्च्छन्द, संस्तुप्-अनुष्टुप् छन्द, एवश्च्छन्द, वरिवश्च्छन्द, वयश्च्छन्द, वयस्कृच्छन्द, विस्पर्धाछन्द, विशालच्छन्द, छदिश्च्छन्द, दुरोहणच्छन्द, तन्द्रछन्द और अंकांकछन्द रूपा हो। शरीर को आच्छादित करनेवाले अन्न का ध्यानकर आपको प्रतिष्ठित करते हैं। शरीर को स्वच्छ करने वाले जल का, कर्मों से निवृत्त करने वाली रात का, विशेष व्यापार प्रवर्तक दिन का ध्यानकर आपको प्रतिष्ठित करते हैं। विस्तीर्ण स्वर्गलोक, रथादि के द्वारा गमनीय धरती का एवं अत्यन्त ध्वनि करने वाले वायु देव का ध्यान करते हुए आपको प्रतिष्ठित करते हैं। जहाँ भूतप्रेत विभिन्न प्रकार से पाप का उपभोग करते हैं, वहाँ पोषणकारी अन्न का, देदीप्यमान् अग्निदेव का मनन कर आपको प्रतिष्ठित करते हैं। वैखरी वाणी, मध्यमा वाणी तथा पृथ्वीलोक का ध्यान करके आपको प्रतिष्ठित करते हैं। प्रभामण्डल का ध्यान करके, बाल्यादि अवस्था का ध्यान न सके, जठराग्नि का ध्यान करके आपको विपुल धन-वैभव प्रदान करने वाले द्युलोक का ध्यान करके, जहाँ विविध प्रकार के मनुष्य सुशोभित होते हैं, उस भूलोक का ध्यान करके, सूर्य की किरणों से संव्याप्त अन्तरिक्षलोक तथा स्वर्गलोक का ध्यान करके आपको प्रतिष्ठित करते हैं। निष्काम ज्योति होमादि यज्ञ की अनुकम्पा से सिद्ध ज्ञान रूप सूर्य देव का ध्यान करके, अज्ञान का ध्यान करके, गर्त पाषाणादि से परिपूर्ण जल का ध्यान करके आपको प्रतिष्ठित करते हैं।[यजुर्वेद 15.5]
Hey bricks! We establish-lay you by meditating in the form of Aap Achchh Chhand, Prachchhch Chhand, Snmachchhch Chhand,Viych Chhand, Brahch Chhand, Vyantarch Chhand, Nikaych Chhand, Vividhch Chhand, Girshch Chhand, Bhrashch Chhand, Santup Anushtap Chhand, Evshch Chhand, Varivshch Chhand, Vyshch Chhand, Vyskch Chhand, Vispardha Chhand, Vishalch Chhand, Chhadishch Chhand, Durohanshch Chhand, Tandr Chhand, Ankank Chhand. We lay you by remembering the water meant for cleaning the body, night that relieves us from work & the day leading to business. We lay you meditating in the vast heavens, land for riding the charoite and Vayu Dev producing high pitch sounds. We lay you after remembering the Ghosts eating the sins and nourishing food grains, luminous Agni Dev. We establish you remembering the local dialect, medium pitch voice and the earth. We establish you, remembering the Aura-region, child hood, digestive Agni, granting lots of wealth-riches, opulence, place where various kinds of humans gather, the earth, space pervaded the rays of Sun and the heavens. We establish you remembering the light free from desires, grace of Yagy-Hawan etc., enlightenment through the Sury Dev, ignorance, depressions, rocks-stones full of waters.(08.06.2025)
रश्मिना सत्याय सत्यं जिन्व प्रेतिना धर्मणा धर्म जिन्वान्वित्या दिवा दिवं जिन्व सन्धिनान्तरिक्षेणान्तरिक्षं जिन्व प्रतिधिना पृथिव्या पृथिवीं जिन्व विष्टम्भेन वृष्टया वृष्टिं जिन्व प्रवयाह्नाहर्जिन्वानुया रात्र्या रात्रीं जिन्वोशिजा वसुभ्यो वसूञ्जिन्व प्रकेतेनादित्येभ्य आदित्याञ्जिन्व॥
यजमान पन्द्रह स्तोम भागा ईंटों रखते हुए बोले, हे इष्टके! तेजस्विता के द्वारा सत्य (की प्रतिष्ठा) के निमित्त सत्य को तृप्त करें। गतिशीलता (आचरण) के माध्यम से धर्म (की प्रतिष्ठा) के निमित्त धर्म को पुष्ट करें। दिव्यता से (उसके) अनुगामी बनकर स्वर्गलोक को तुष्ट करें। सन्धि (परस्पर के संचार) के द्वारा अन्तरिक्ष (भूलोक तथा स्वर्गलोक, जड़ तथा चेतन को संयुक्त करने वाले की प्रतिष्ठा) के निमित्त अन्तरिक्ष को तृप्त करें। प्रतिधान (पदार्थ परक प्रतिदान) के द्वारा पृथ्वी (की उर्वरता अथवा यथा-अवस्था बनाये रखने) के निमित्त धरती को तुष्ट करें। वर्षा (की सफलता) के निमित्त (वर्षा से उपलब्ध जल आदि को) स्थिरता प्रदान करके वृष्टि को तृप्त करें। दिन (की सार्थकता) के निमित्त (कर्तव्य के अनुसार) विशेष कर्मठता के द्वारा दिन को तुष्ट करें। (देह तथा वातावरण के अवयवों के) अनुकूलन के द्वारा, रात (आराम करने की अवस्था) से रात को तुष्ट करें। वसुगणों (निवास स्थान प्रदान करने वालों की प्रतिष्ठा) के निमित्त, कल्याण की कामना से वसुगणों (सभी के भीतर स्थित चेतना) को संतुष्ट करें। ज्ञान प्रतिभा (के उद्भव) के द्वारा आदित्यगणों (दीप्तिमान् करने वालों की प्रतिष्ठा) के निमित्त, आदित्यगणों (प्रकाश-प्रतिभावनाओं) को तृप्त करें।[यजुर्वेद 15.6]
हे विद्वान् पुरुष! तू किरणों से वर्त्तमान में हुए सूर्य के तुल्य नित्य सुख और स्थूल पदार्थों के लिये अव्यभिचारी कर्म को प्राप्त हो। उत्तम ज्ञान युक्त न्याय के आचरण से धर्म को जान। खोज के हेतु धर्म के प्रकाश से सत्य के प्रकाश को प्राप्त हो। सन्धि रूप आकाश से अवकाश को जान। भूगर्भ विद्या के सम्बन्ध से भूमि को जान। शरीर धारण के हेतु आहार के रस से तथा वर्षा की विद्या से वर्षा को जान। कान्ति युक्त प्रकाश की विद्या से, दिन को जान। प्रकाश के पीछे चलने वाली रात्रि की विद्या से रात्रि को जान। कामनाओं से अग्नि आदि आठ वसुओं की विद्या से उन अग्नि आदि वसुओं को जान और उत्तम विज्ञान से बारह महीनों की विद्या से बारह महीनों को तत्त्वस्वरूप से जान।
Yajman should lay 15 bricks named Stom Bhaga and say, hey bricks! Let vigorousness satisfy the truth. Establish-nourish the Dharm through dynamicity. Satisfy the heavens with divinity and space with connectivity. Satisfy the earth for maintaining its fertility through replacement, alteration. Satisfy the rains for its stability-continuity. For the usefulness-utility of the day make endeavours. Make the night favourable through body and environment. Satisfy the Vasu Gan for their prestige. Satisfy the Adity Gan through enlightenment.
तेजस्विता :: निर्भीकता, साहस या उत्साह, प्रभाव पूर्णता; brilliance, vigorousness, high spirit.
पुष्ट :: बलवान, तगड़ा, हट्टा कट्टा, अंगवाला, प्रबल, मज़बूत, दबंग; athletic, robust, sturdy.
प्रतिधान :: प्रतिस्थापन, पुनर्स्थापन; replacement.
तन्तुना रायस्पोषेण रायस्पोषं जिन्व सꣳ सर्पेण श्रुताय श्रुतं जिन्वैडेनौषधीभिरोषधीर्जिन्वोत्तमेन तनूभिस्तनूर्जिन्व वयोधसाधीतेनाधीतं जिन्वाभिजिता तेजसा तेजो जिन्व॥
हे इष्टके! तन्तुओं (विस्तार उत्पादन में सक्षम) के द्वारा वैभव की प्रतिष्ठा के निमित्त सम्पत्ति को तृप्त करें। श्रुतियों (वेद ज्ञान की प्रतिष्ठा) के निमित्त भली प्रकार प्रसार (प्रचार) के द्वारा श्रुतियों को पुष्ट करें। पदार्थ (धरती से पैदा होने वाले अन्न तथा वनस्पति आदि) के गुणों के द्वारा ओषधियों (चिकित्सा की प्रतिष्ठा) के निमित्त ओषधियों को तुष्ट करें। श्रेष्ठता (विकारों को नष्ट करने की शक्ति) के द्वारा शरीर की प्रतिष्ठा के निमित्त शरीर के अंग-प्रत्यंगों को परिपुष्ट बनायें। अध्ययन की प्रतिष्ठा के निमित्त, जो अनुभव से युक्त है उनके द्वारा अध्ययनों से प्रेम करें। तेज की प्रतिष्ठा के निमित्त, जयशीलता के द्वारा (विघ्नों पर विजय प्राप्त करके) तेजस्विता को तृप्त करें।[यजुर्वेद 15.7]
Hey brick! Satisfy the property through threads for the prestige of grandeur-opulence. Satisfy-nourish the Ved knowledge through its expansion. Satisfy the objects-food grains etc. obtained from the earth through medicines. Nourish the body organs for excellence. For the prestige-honour of knowledge resort to learning. For the honour of aura-radiance over come the troubles-disturbances.
प्रतिपदसि प्रतिपदे त्वानुपदस्यनुपदे त्वा सम्पदसि सम्पदे त्वा तेजोSसि तेजसे त्वा॥
हे इष्टके! जिस अन्न से जीवन का अस्तित्व है, आप उस अन्न के समान हैं, अतः उसी अन्न को प्राप्त करने के उद्देश्य से हम आपको ग्रहण करते हैं। आप विचार स्वरूप है अतएव मेधा के निमित्त आपकी स्थापना करते हैं। आप सम्पत्ति स्वरूप हैं, अतएव सम्पत्ति के निमित्त आपको स्वीकृत करते हैं। आप मानव शरीर में तेज स्वरूप हैं, अतएव देवता के निमित्त आपको उपलब्ध करते हैं।[यजुर्वेद 15.8]
Hey bricks! You are like the food grains which support life, hence we accept you for having that food grain. You are like thoughts, hence we accept you for the sake of intelligence. You are like property-prosperity, hence we accept you for the sake of prosperity. You are energy of the body, hence we make you available for demigods-deities.
त्रिवृदसि त्रिवृते त्वा प्रवृदसि प्रवृते त्वा विवृदसि विवृते त्वा सवृदसि सवृते त्वा क्रमोऽस्याक्रमाय त्वा संक्रमोऽसि संक्रमाय त्वोत् क्रमोऽस्युत्क्रमाय त्क्रान्तिरस्युत्क्रान्त्यै त्वाधिपतिनोर्जीजं जिन्व॥
हे इष्टके! आप कृषिकार्य, वृष्टि तथा बीजारोपण से पैदा होने वाले अन्न स्वरूप हैं, अतः अन्न की वृद्धि के निमित्त आपकी स्थापना करते हैं। आप सभी प्राणियों को अच्छे कर्म प्रवृत्त करनेवाली हैं, अतएव अच्छे कर्म की प्रवृत्तियाँ उत्पन्न करने के उद्देश्य से हम आपको प्रतिष्ठित करते हैं। आप श्रेष्ठ रीति से कर्म को सम्पादित करने वाली हैं, अतएव ऐसे कल्याणकारी कर्मों के निमित्त आपको स्थापित करते हैं। आप उत्तम व्यवहारवाली हैं, अतः श्रेष्ठ चरित्र के निमित्त आपको विराजित करते हैं। आप भूख को शान्त करने-वाले अन्न के समान हैं, अतएव क्षुधा-निवारण के निमित्त आपको प्रतिष्ठित करते हैं। आप श्रेष्ठ रीति से उन्नतशील हैं, अतएव उन्नतशील होने के निमित्त आपको प्रतिष्ठित करते हैं। आप उन्नत कान्ति के प्रवर्तक हैं, अतएव क्रान्तिकारी परिवर्तन के निमित्त आपकी स्थापना करते हैं।[यजुर्वेद 15.9]
You inspire the living beings towards virtuousness, hence we lay you. Hey brick! You are like agricultural practices, rains, sowing of seeds, growth of food grains, hence we establish you. You perform the deeds with excellence, hence we lay you. You have excellent behaviour, hence we lay for welfare endeavours. You are like the food grains which satisfy hunger, hence we lay you. You are progressive through best means, hence we lay you. You are the promoter of developed shine, hence we lay for rebellious change.
प्रवर्तक :: प्रणेता, उत्प्रेरक, क्रिया वर्द्धक, क्रियात्मक, चालू करने वाला जनक, संवर्धक; promoters, originator, promoters, activator.
Methodology, procedures described in Yajur Ved are too sophisticated, intricate, difficult to understand for the common man. Hindi translations made by different people do not match either in words or spirit.
राज्यसि प्राची दिग्वसवस्ते देवा अधिपतयोऽग्निर्हेतीनां प्रतिधर्ता त्रिवृत् त्वा स्तोम: पृथिव्याꣳ श्रयत्वाज्यमुक्थमव्यथायै स्तभ्नातु रथन्तरꣳ साम प्रतिष्ठित्या अन्तरिक्ष ऋषयस्त्वा प्रथमजा देवेषु दिवो मात्रया वरिम्णा प्रथन्तु विधर्त्ता चायमधिपतिश्च ते त्वा सर्वे संविदाना नाकस्य पृष्ठे स्वर्गे लोके यजमानं च पादयन्तु॥
यजमान पश्चिम उत्तर तथा दक्षिण दिशाओं में नाकसद् संज्ञक ईंटों को रखते हुए बोले, हे इष्टके! आप पूर्व दिशा की अधिष्ठात्री हैं। आठ वसु देवता, आपके पालनकर्ता अग्नि देव आपकी सम्पूर्ण बाधाओं का निवारण करने वाले हैं। त्रिवृत् स्तोम आपको देवी पर प्रतिष्ठित करें। आज्य तथा उक्थ (कथन, सूक्ति) आपको स्थिर करने वाले हों। रथन्तर साम अन्तरिक्ष लोक में प्रतिष्ठा के निमित्त आपको सुदृढ़ करें। सबसे पहले उत्पन्न हुए ऋषिगण देवताओं के लोक (द्युलोक) में उत्तम देवताओं के साथ आपको सुदृढ़ करें। विशेष विधि से धारण करने वाले अधिष्ठाता भी आपका विस्तार करें। इस तरह सम्पूर्ण वसु आदि देवता एक संग मिलकर यजमानों को उत्कृष्ट सुख की खान स्वर्गलोक प्राप्त करायें।[यजुर्वेद 15.10]
उक्थ :: कथन, सूक्ति, एक यज्ञ, स्तोत्र-पाठ; sacred compositions.
Yajman should lay bricks named Naksad in west, north and south directions and say, bricks! You are the deity of east. 8 Vasu Gan, your nurturer Agni Dev should solve all of your problems. Let Trivrat Stom establish you as a deity. Let Ajy-ghee and Ukth make you stable. Let Rathantar Sam should make you rigid-strong in the space for grace-prestige. The Rishi Gan who evolved first of all establish-fix you in the heavens with best demigods-deities. Those who establish you with specific procedures should expand you. In this manner all Vasu Gan etc. demigods-deities together with Yajman, elevate you to the heavens treasure house of comforts-pleasure.(09.06.2025)
विराडसि दक्षिणा दिगुद्रास्ते देवा अधिपतय इन्द्रो हेतीनां प्रतिधर्ता पञ्चदशस्त्वा स्तोमः पृथिव्याꣳ श्रयतु प्र उगमुक्थमव्यथायै स्तभ्रातु बृहत्साम प्रतिष्ठित्या अंतरिक्ष ऋषयस्त्वा प्रथमजा देवेषु दिवो मात्रया वरिम्णा प्रथन्तु विधर्ता चायमधिपतिश्च ते त्वा सर्वे संविदाना नाकस्य पृष्ठे स्वर्गे लोके यजमानं च सादयन्तु॥
हे इष्टके! आप विशिष्ट रस से विस्तारित दक्षिण दिशा रूप हैं। रुद्रगण आपके अधिपति देवता हैं। देवराज इन्द्र समस्त अनिष्टों के विनाशक हैं। पञ्चदश स्तोम आपको भू पर स्थापित करें। प्रउग नामक उक्थ आपको सुदृढ़ करने वाले हों। बृहत्साम अन्तरिक्ष लोक में प्रतिष्ठा हेतु आपको दृढ़ करें। सर्वप्रथम उत्पन्न हुए ऋषिगण देवलोक में श्रेष्ठ देवताओं के साथ आपको स्थिर करें। विशिष्ट रीति से धारणकर्ता अधिपति भी आपको विस्तारित करें, इस प्रकार सम्पूर्ण वसवादि देवता एक साथ मिलकर यजमानों को द्युलोक के सुख से लाभान्वित करें।[यजुर्वेद 15.11]
Hey brick! Possessing specific saps-juices; you are the extended in the south direction. Rudr Gan are your deity. Dev Raj Indr is the destroyer of all evils-inauspiciousness. Let Panch Dash Stom establish-lay you over the earth. Ukth named Praug make you strong-rigid. Let Brahatsam establish you in the space. Let the Rishi Gan who evolved first, should establish you along with the best demigods of heavens. Let the lord supporting you, extend-expand you. In this manner all Vasu Gan and demigods should grant comforts-pleasure of heavens to the Yajman.
सम्राडसि प्रतीची दिगादित्यास्ते देवा अधिपतयो वरुणो हेतीनां प्रतिधर्ता सप्तदशस्त्वा स्तोमः पृथिव्याꣳ श्रयतु मरुत्वतीयमुक्थमव्यथायै स्तभ्रातु वैरूपꣳ साम प्रतिष्ठित्या अन्तरिक्षऋषयस्त्वा प्रथमजा देवेषु दिवो मात्रया वरिम्णा प्रथन्तु विधर्ता चायमधिपतिश्च ते त्वा सर्वे संविदाना नाकस्य पृष्ठे स्वर्गे लोके यजमानं च सादयन्तु॥
हे इष्टके! आप विशेष दीप्तिमान् पश्चिम दिशा रूप हैं। आदित्यगण आपके अधिपति देवता हैं। वरुण देव दुःखों के निवारक हैं। सप्तदश स्तोम आपको पृथ्वी में विराजित करें। मरुत् नामक उक्थ आपको सुदृढ़ता के निमित्त स्थित करें। वैरूप साम अन्तरिक्ष लोक में आपको सुस्थिर करें। प्रथम उत्पन्न ऋषिगण सम्पूर्ण दिव्यलोक में उत्तम दैवी गुणों को संव्याप्त करें। अभीष्ट निष्पादनकर्ता तथा ये मुख्य स्वाभिमानी देवता भी आपको विस्तारित करें। इस प्रकार वे सम्पूर्ण वसवादि देवता, याजकों को एकमत होकर सुख-स्वरूप ऊपर स्वर्गलोक में अवश्य ही पहुँचायें।[यजुर्वेद 15.12]
Hey brick! You are a form of the luminous west direction. Adity Gan are you lords. Varun Dev remove all evils-troubles. Let Sapt Dash Stom establish you over the earth. Ukth named Marut fix you rigidly-tightly. Vaerup Sam should stabilize you in the space. Let the Rishi Gan who evolved first should grant you divine traits. Egoistic demigods accomplishing the desired should expand-extend you. In this manner all demigods including Vasu Gan should unitedly raise the Yajak Gan to heavens.
स्वराडस्युदीची दिङ् मरुतस्ते देवा अधिपतयः सोमो हेतीनां प्रतिधर्तेैकविꣳशस्त्वा स्तोमः पृथिव्याꣳ श्रयतु निष्केवल्यमुक्थमव्यथायै स्तभ्नातु वैराजꣳ साम प्रतिष्ठित्या अंतरिक्षऋषयस्त्वा प्रथमजा देवेषु दिवो मात्रया वरिम्णा प्रथन्तु विधर्ता चायमधिपतिश्च ते त्वा सर्वे संविदाना नाकस्य पृष्ठे स्वर्गे लोके यजमानं च सादयन्तु॥
हे इष्टके! आप स्वयं देदीप्यमान उत्तर दिशा के समान हैं। मरुद्गण आपके अधिपति देवता हैं। सोम सम्पूर्ण रोगों और शत्रुओं के आयुधों के निवारक हैं। एकविंश स्तोम आपको भू पर स्थापित करें। निष्केवल्य नामक शस्त्र (स्तोत्र) दृढ़ता के निमित्त आपको स्थापित करें। वैराजसाम अन्तरिक्ष में दृढ़ता के निमित्त आपको स्थापित करें। सृष्टि-क्रम में प्रथम प्रादुर्भूत ऋषिगण आपको देवलोक में स्थापित करें। अभीष्ट कार्य सम्पन्न करने वाले तथा प्रधान अभिमानी देवता भी आपको विस्तारित करें। वाक् और मन के अभिमानी देवता भी आपको स्थापित करें। इस प्रकार वे सभी वसु आदि देवता एकमत होकर सुखस्वरूप उच्वस्थ स्वर्गलोक में आपको और यजमान को अवश्य ही प्रतिष्ठित करें।[यजुर्वेद 15.13]
Hey brick! You are like the luminous north direction. Marud Gan are your deities. Som eliminate-destroy all diseases and the weapons of the enemy. Let Ekvinsh Stom establish you over the earth. Let Nishkevly Shastr-Strotr establish you rigidly. Vaeraj Sam should establish you in the space for rigidity-stability. Let the egoistic main demigods who accomplish desires too establish you. Egoistic deities of the voice and innerself should also establish you. In this manner all Vasu Gan etc. demigods, unitedly establish you along with the Yajman in the heavens.
अधिपत्न्यसि बृहती दिग्विश्वे ते देवाधिपतयो बृहस्पतिर्हेतीनां प्रतिधर्ता त्रिणवत्रयस्त्रिंशौ त्वा स्तोमौ पृथिव्याꣳ श्रयतां वैश्वदेवाग्निमारुते उक्थे अव्यथायै स्तभ्नीताꣳ शाक्वररैवते सामनी प्रतिष्ठित्या अन्तरिक्षऋषयस्त्वा प्रथमजा देवेषु दिवो मात्रया वरिम्णा प्रथन्तु विधर्ता चायमधिपतिश्च ते त्वा सर्वे संविदाना नाकस्य पृष्ठे स्वर्गे लोके यजमानं च सादयन्तु॥
हे इष्टके! आप पालन शक्ति सम्पन्न ऊर्ध्व दिशा के समान हैं। विश्वे देवता आपके अधिपति देवता हैं। बृहस्पति देव दुःखों और शत्रुओं के आयुधों को दूर करने वाले हैं। त्रिणवत्रयस्त्रिंश स्तोम पृथ्वी पर आपको स्थापित करें। वैश्वदेव, अग्निदेव, मरुत्देव सम्बन्धी उक्थ सुदृढ़ता के निमित्त आपको प्रतिष्ठित करें। शाक्वर तथा रैवत दोनों साम आपको अन्तरिक्ष लोक में सुस्थिर करें। सर्वप्रथम उत्पन्न हुए ऋषिगण देवलोक में श्रेष्ठ देवताओं के साथ आपको स्थिर करें। वाक् और मन के अभिमानी देवता भी आपको स्थापित करें। विशिष्ट रीति से धारणकर्ता अधिपति भी आपको विस्तारित करें, इस प्रकार सम्पूर्ण वसवादि देवता एक साथ मिलकर यजमान और आपको द्युलोक में प्रतिष्ठित करें।[यजुर्वेद 15.14]
Hey brick! You possess the ability to nourish and is like the upward direction. Vishwe Dev is your deity. Brahaspati Dev remove the pains-sorrow and the weapon of the enemy. Let Trin Vatry Strinsh Stom establish you over the earth. Ukth related with Vishwe Dev, Agni Dev, Marud Gan should establish you firmly-rigidly. Shakkar and Raevat Sam should establish you in the space. The Rishi Gan who evolved first, should establish you in the heavens, with the best demigods-deities. Egoistic deities of voice and innerself should also establish you. The lords who established you with special procedure, should expand you. In this manner all demigods-deities like Vasu Gan together establish you, along with the Yajman in the heavens.
अयं पुरो हरिकेशः सूर्यरश्मिस्तस्य रथगृत्सश्च रथौजाश्च सेनानीग्रामण्यौ। पृश्चिकस्थला च ऋतुस्थला चाप्सरसौ दङ्क्ष्णवः पशवो हेतिः पौरुषेयो वधः प्रहेतिस्तेभ्यो नमो अस्तु ते नोऽवन्तु ते नो मृडयन्तु ते यं द्विष्मो यश्च नो द्वेष्टि तमेषां गाभे दध्मः॥
यजमान पंचचूडा संज्ञक पाँच ईंटों को रखते हुए बोले, सूर्य देव के समान स्वर्णिम कान्ति से युक्त, दीप्तिमान् अग्नि देव पूर्व दिशा में इष्टका के रूप में स्थापित हैं। उन अग्नि देव के रथ विद्या में कुशल तथा रथ युद्ध में दक्ष, रथौजा नामक देव सेनानी तथा ग्रामणी हैं। ये दोनों वसन्त ऋतु के फाल्गुन और चैत्र संज्ञक दो मास हैं। सत्संकल्प तथा रूपादि की आधारभूता दिशा तथा उपदिशा पंजिक स्थला और क्रतु स्थला अप्सराओं के रूप में हैं। व्याघ्रादि हिंसाकारी पशु ही इनके हथियार हैं, लड़कर मरना ही इनका वध है। इस तरह उन अग्निदेव को सम्पूर्ण परिचारकों के साथ नमस्कार करते हैं। वे सभी हमें सुखी करें, वे सभी हमारी सुरक्षा करें, जो हमसे विद्वेष करते हैं तथा जिनसे हम विद्वेष करते हैं, उन सभी को हम अग्निदेव की दाढ़ों में डालते हैं अर्थात् उन्हें विनष्ट करते हैं।[यजुर्वेद 15.15]
ग्रामणी :: गाँव, दाति या समूह का मालिक या मुखिया, प्रधान, अगुआ; village head.
सत्संकल्प :: सकारात्मक और सही इरादा; good intention, noble resolve.
Yajman should lay 5 bricks named Panch Chuda and say, "Possessing golden hue like Sury Dev, luminous Agni Dev is established in the east in the form of bricks". Demigod named Rathouja expert in education and warfare involving charoite, is the warrior and village head; is there in the charoite of Agni Dev. Both these represent the spring season and two months viz. Falgun & Chaetr. Fundamental direction & sub direction of Pious-auspicious, noble resolve, are in the form of Panjik Sthla and Kratu Sthla nymphs. Tiger and beasts are their weapons, their murder means fight. In this manner we salute Agni Dev along with his servants-attendants. They should gladden us, protect us, destroy those whom we envy or those who are envious to us. We through them in the jaws of Agni Dev.(10.06.2025)
अयं दक्षिणा विश्वकर्मा तस्य रथस्वनश्च रथे चित्रश्च सेनानीग्रामण्यौ। मेनका च सहजन्या चाप्सरसौ यातुधाना हेती रक्षाꣳसि प्रहेतिस्तेभ्यो नमो अस्तु ते नोऽवन्तु ते नो मृडयन्तु ते यं द्विष्मो यश्च नो द्वेष्टि तमेषां जम्भे दध्मः॥
दक्षिण दिशा में सभी कर्मों का निर्वाह करने वाले विश्वकर्मा देव, वायु के रूप में यह इष्टका प्रतिष्ठित है। रथ में विराजमान होकर शब्द करते हुए शासक, सेनापति तथा नगर रक्षक ग्रीष्म ऋतु रूप हैं। मेनका सबके द्वारा माननीय तथा सहजन्या सर्वसाधारण के साथ सामंजस्य भावना से विद्यमान ये दो अप्सरायें हैं। हेति और प्रहेति इनके अस्त्र एवं तीक्ष्ण शस्त्र हैं। इस तरह उस वायुरूप इष्टका को हम सभी सहभागियों के साथ नमस्कार करते हैं। वे सभी हमारी रक्षा करते हुए सुख प्रदान करें। वे सब जिनसे हम विद्वेष करते हैं तथा जो हमसे विद्वेष करते हैं, उनको इनकी दाढ़ों में डालकर समाप्त करते हैं।[यजुर्वेद 15.16]
This brick is established in the form of Vayu, for Vishw Karma Dev performing all functions-deeds in the south direction. The rulers, commander-general and the protectors of city present in the charoite are making sound like summer season. Nymph Menka is with the elite and nymph Sahjanya is with the common people-masses. Heti & Praheti are their Astr and sharp weapons. In this manner we salute the brick in the form of Vayu along with our all associated. Let them protect us and grant us comforts. We destroy all those envious to us or we are envious to them by putting them into their jaws.
अयं पश्चाद् विश्वव्यचास्तस्य रथप्रोतश्चासमरथश्च सेनानीग्रामण्यौ। प्रम्लोचन्ती चानुम्लोचन्ती चाप्सरसौ व्याघ्रा हेतिः सर्पाः प्रहेतिस्तेभ्यो नमो अस्तु ते नोऽवन्तु ते नो मृडयन्तु ते यं द्विष्मो यश्च नो द्वेष्टि तमेषां जम्भे दध्मः॥
यह पश्चिम दिशा में स्थापित इष्टका सम्पूर्ण जगत् के प्रकाशक आदित्यरूप है। संग्राम में धैर्यवान्, वीर तथा महारथी रथप्रोत इसके सेनापति तथा असमरथ इसके ग्रामनायक हैं। ये वर्षाऋतु के आषाढ और श्रावण संज्ञक दो मास हैं। अपने वेशविन्यासादि द्वारा सर्वसाधारण के मन को हरने में सक्षम, मुग्ध होनेवाले मनुष्य को फिर से मुग्ध करनेवाली प्रम्लोचन्ती तथा अनुम्लोचन्ती दो अप्सराएँ हैं। व्याघ्रादि हिंसक पशु इसके अस्त्र एवं सर्पादि तीक्ष्ण शस्त्र हैं। उन सबको हमारा नमस्कार है। वे सभी हमें सुखी करें, वे सभी हमारी सुरक्षा करें, जो हमसे विद्वेष करते हैं तथा जिनसे हम विद्वेष करते हैं, उन्हें इनकी वेग रूपी दाढ़ों में डालते हैं अर्थात् उनका विनाश करते हैं।[यजुर्वेद 15.17]
रथप्रोत :: यह एक राजा था।
Brick present in the west is like the illuminator of the whole world Adity Gan. During the war patient, brave Maha Rathi Rathprot was their general and Asamrath was the village head. They are like the two months of rainy season Ashadh and Shravan. Tiger and other beasts are like their Astr and snakes etc. are their sharp weapons. We salute all of them. Let them protect us and grant us comforts. We destroy all those envious to us or we are envious to them by putting them into their accelerated jaws.
अयमुत्तरात् संयद्वसुस्तस्य तार्थ्यश्चारिष्टनेमिश्च सेनानीग्रामण्यौ। विश्वाची च घृताची चाप्सरसावापो हेतिर्वातः प्रहेतिस्तेभ्यो नमो अस्तु ते नोऽवन्तु ते नो मृडयन्तु ते यं द्विष्मो यश्च नो द्वेष्टि तमेषां जम्भे दध्मः॥
यह उत्तर दिशा में स्थापित इष्टका धन से सिद्ध होने वाले यज्ञ के समान है। अन्तरिक्ष में प्रखर पशुरूपी अस्त्रों को विस्तारित करने वाले तथा विकारों को नष्ट करने वाले अपराजेय आयुधों से युक्त गरुड़ इसके सेनानायक तथा अरिष्टनेमि ग्राम रक्षक हैं। ये शरद् ऋतु के आश्विन और कार्तिक संज्ञक दो मास हैं। उसकी जगत् द्वारा वन्दित एवं घृत का सेवन करने वाली विधाची तथा घृताची दो अप्सराएं है, जल जिनका अस्त्र है और वायु तीक्ष्ण शस्त्र उन सबके निमित्त हमारा नमस्कार है। वे सब हमारे लिए सुखप्रद हों। वे सब हमारी रक्षा करें। वे सभी जिनसे हम विद्वेष करते हैं तथा जो हमसे विद्वेष करते हैं उन्हें इनकी दाढ़ों में डालते हैं अर्थात उनको विनष्ट करते हैं।[यजुर्वेद 15.18]
The brick present in the north is like the Yagy accomplished with wealth-money. Garud Ji is their general; who expand the invincible weapons and the Astr in the form of animals and Arisht Nemi is the village head. These are the two months of winter named Ashwin and Kartik. Nymphs Vidhachi and Ghratachi who drink Ghee are worshiped by the world, who's Ashtr is water and Vayu is sharp weapon. We salute them all. They should be comfortable to us. Let them protect us. We destroy all those who are envious to us or we are envious to them by putting them into their jaws, i.e., destroy them.
अयम्पर्यर्वाग्वसुस्तस्य सेनजिच्च सुषेणश्च सेनानीग्रामण्यौ उर्वशी च पूर्वचित्तिश्चाप्सरसाववस्फूर्जन्हेतिर्विद्युत् प्रहेतिस्तेभ्यो नमो अस्तु ते नोऽवन्तु ते नो प्रहयन्तु ते यं द्विष्मो यश्च नो देष्टि तमेषां जम्भे दध्मः॥
यह ऊपर मध्य दिशा में प्रतिष्ठित इष्टका पर्जन्य रूप है। उनके विजयशील तथा समर्थ सेना से युक्त सेनजित् सेनापति तथा सुषेण ग्रामरक्षक हैं। ये हेमन्त ऋतु के मार्गशीर्ष और संज्ञक दो मास हैं। जिनके विस्तुत कार्य को वश में करने वाली तथा अत्यन्त रूपवान् ये के कारण मनुष्यों को मन्त्र मुग्ध करने वाली उर्वशी तथा पूर्वचिति दो अप्सराएँ हैं। भयंकर गर्जना जिनका अस्त्र है, बिजली तीक्ष्ण शस्त्र है, उन सभी के निमित्त हमारा नमस्कार है। वे सभी हमारे लिए सुखप्रद हों वे सब हमारी सुरक्षा करें। वे सभी जिनसे प्रीति रहित हैं तथा जो हमारे लिए द्वेष-भावना से ग्रसित हैं, उन्हें इनकी दाढ़ों में डालते अर्थात् विनष्ट करते हैं।[यजुर्वेद 15.19]
The revered brick present in the upper middle direction is like Parjany Dev. Winner Senjit is accompanied by mighty army as their general and Sushen is village head. Hemant seasons has two months named Marg Sheesh and Sangyak. Extremely beautiful, enchanting Urvashi and Purv Chiti are the two nymphs who control the broad-vast endeavours. Loud-furious roar is their Astr and lightening is their weapon. We salute all of them. They all should be protective & comfortable to us. All those for whom we have no affection and are afflicted with enmity are crushed under the jaws.
अग्निर्मूर्द्धा दिवः ककुत्पतिः पृथिव्या अयम्। अपाꣳ रेताꣳसि जिन्वति॥
यह अग्निदेव (आदित्यरूप में) द्युलोक के शीर्षरूप सर्वोच्च भाग में विद्यमान होकर, जीवन का संचार करके, धरती का पालन करते हुए, जल में जीवनी शक्ति का संचार करते।[यजुर्वेद 15.20]
Agni Dev as Adity Gan, possess the highest position, make the world lively, nurture the earth and induce the power of life in water.
अयमग्निः सहस्त्रिणो वाजस्य शतिनस्पतिः। मूर्द्धा कवी रयीणाम्॥
क्रान्तदर्शी ये अग्नि देव हजारों सुखों को प्रदान करने वाले, सैकड़ों धन-सम्पदाओं से युक्त एवं अन्नाधिपति हैं। मूर्धारूप उच्च स्थान पर विराजमान परम धन-सम्पदाओं के अधिपति हैं।[यजुर्वेद 15.21]
क्रान्तदर्शी :: भविष्य देखने में सक्षम, one who can see the future, visionary, seer.
Visionary Agni Dev grant thousands of comforts, hundreds of wealth-prosperity and is the lord of food grains. He is present at the apex and is the lord of Ultimate wealth.
त्वामग्ने पुष्करादध्यथर्वा निरमन्थत। मूर्ध्नो विश्वस्य वाघतः॥
हे अग्नि देव! ऋषि अथर्वा ने सर्वप्रथम पुष्कर (कमल पत्र) पर मन्थन द्वारा आपको प्रकट किया तथा सम्मानपूर्वक उच्च स्थान पर स्थापित किया।[यजुर्वेद 15.22]
Hey Agni Dev! Rishi Arthva initially evolved you by churning the lotus leaf and established you at a high position honourably.
भुवो यज्ञस्य रजसश्च नेता यत्रा नियुद्भिः सचसे शिवाभिः।
दिवि मूर्द्धानं दधिषे स्वर्षां जिह्वामग्ने चकृषे हव्यवाहम्॥
यजमान तीन त्रिष्टुप् संज्ञक ईंटों को रखते हुए बोले, हे अग्नि देव! आप जब अपनी ज्वालाओं रूपी जिह्वा को प्रकट करके हविष्यान्न ग्रहण करते हैं, तब यज्ञ एवं उसकी फलश्रुति रूपी जल को प्रेरित करनेवाले नायक होते हैं। साथ ही आप लोक कल्याण के निमित्त वर्षा करते हैं और दिव्य लोक में सूर्य को धारण करते हैं।[यजुर्वेद 15.23]
Yajman should lay the bricks named Trishtup and say, hey Agni Dev! You accept the offerings of food grains with your tongue, in the form of flames and become leader, inspiring the water in the form of Yagy and its outcome-rewards. You shower rains for the benefit-welfare of the populace and support the Sun in divine abodes.(11.06.2025)
अबोध्यग्रिः समिधा जनानां प्रतिधेनुमिवायतीमुषासम्।
यह्वाइव प्र वयामुज्जिहानाः प्र भानवः सिस्रते नाकमच्छ॥
सत्य, ज्ञान तथा कर्मों से युक्त यजमानों की समिधाओं से अग्नि देव वैसे ही प्रज्वलित होते हैं, जैसे अपनी ओर उन्मुख हुई गौ को देखकर बछड़ा दुग्धपान के निमित्त प्रेरित होता है। जैसे उषाकाल में समस्त प्राणी चैतन्य बुद्धि से सम्पन्न होते हैं एवं पक्षी ऊपर उड़कर नभ में फैल जाते हैं, वैसे ही ज्ञान का प्रकाश नभ में सभी जगह विस्तारित होता है।[यजुर्वेद 15.24]
Agni Dev is ignited with the Samidha-woods of the Yajman who possess truthfulness, enlightenment and efforts-endeavours just like the calf who wish to drink milk as soon as the cow moves towards it. The aura of knowledge extend in the sky just like the consciousness of the living being in the morning-dawn i.e., Usha Kal and flying of the birds in the sky.
अवोचाम कवये मेध्याय वचो वन्दारु वृषभाय वृष्णे।
गविष्ठिरो नमसा स्तोममग्नौ दिवीव रुक्ममुरुव्यञ्चमश्रेत्॥
क्रान्तदर्शी, बलशाली एवं सेचन में सक्षम अर्थात् तीक्ष्ण यज्ञाग्नि का स्तोत्र पाठ से हम स्तुति करते हैं। आहूत की गयी अग्नि में हवि प्रदान करने वाले पुरुष स्थिर वाणी से मन्त्रों के उच्चारण के द्वारा हव्य पदार्थ वैसे ही अर्पित करते हैं, जैसे स्वर्गलोक में दीप्तिमान् आदित्य को सन्ध्यावन्दन के समय कही गयी विशेष महिमावान् स्तुतियाँ अर्पित की जाती है।[यजुर्वेद 15.25]
We pray with the Strotr the fierce Yagy fire which is visionary, mighty and reproducing. The humans make offerings in fire reciting Mantr in steady voice just like glorious prayers made addressing luminous Adity Dev in the evening in the heavens.
अयमिह प्रथमो धायि धातृभिर्होता यजिष्ठो अध्वरेष्वीड्यः।
यमप्नवानो भृगवो विरुरुचुर्वनेषु चित्रं विभ्वं विशे विशे॥
यजमान जगती छन्द संज्ञक तीन ईंटों को रखे और बोले, यह आहवनीय अग्नि देवताओं का आवाहन करने वाले, श्रेष्ठ यज्ञ करने वाले एवं सोम यागादि में ऋत्विजों द्वारा स्तुत्य, अग्न्याधान करने वाले पुरोहितों द्वारा यज्ञ में स्थापित की गयी है। सर्वव्यापी तथा विलक्षण अग्नि को यजमानों के उपकार के लिए पुत्र-पौत्रादि के साथ भृगुवंशीय मुनियों ने जंगलों में प्रज्वलित किया था।[यजुर्वेद 15.26]
Yajman should lay 3 bricks named after Jagti Chhand and say, this invocable fire worshiped by the Ritviz performing excellent Yagy, like Som; is ignited by the priests. All pervading amazing fire was ignited in the forests by the Munis of Bhragu clan for the welfare-benefit of sons and grand sons; along with the Yajman.
जनस्य गोपाअजनिष्ट जागृविरग्निः सुदक्षः सुविताय नव्यसे।
घृतप्रतीको बृहता दिविस्पृशा द्युमद्विभाति भरतेभ्यः शुचिः॥
यजमानों के रक्षक, जागरणशील, अत्यन्त कुशल, घृताहुति को अपनी लपटों के द्वारा स्वीकार करने वाले तथा पवित्र अग्नि देव प्रतिदिन नवीन यज्ञ कार्य के सम्पादन के निमित्त ऋत्विजों के द्वारा प्रकट किये गये हैं। ये अग्नि देव अपनी तेजयुक्त ज्वालाओं द्वारा द्युलोक को स्पर्श करते हुए विशिष्ट रूप से दीप्तिमान् होते हैं।[यजुर्वेद 15.27]
Protector of the Yajman, awakened, highly efficient, skilled-expert, pious Agni Dev is invoked the Ritviz making offerings of Ghee for the accomplishment of new Yagy. Agni Dev become specifically luminous touching the heavens with his flames.
त्वामग्ने अंगिरसो गुहा हितमन्वविन्दञ्छिश्रियाणं वने वने।
स जायसे मथ्यमानः सहो महत्त्वामाहुः सहसस्पुत्रमंगिरः॥
अनेक रूप से यज्ञ में विचरने वाले हे अग्नि देव! अंगिरा ऋषि के वंश में उत्पन्न हुए ऋषियों ने जलरूप गूढ़ स्थानों में विद्यमान तथा विविध वनस्पतियों में स्थित आपको ढूँढ़कर प्राप्त किया। आप अत्यधिक शक्ति के साथ धर्षण करने के पश्चात् अरणियों से प्रकट होते हैं, इसीलिए विद्वजन आपको शक्ति-पुत्र कहते हैं।[यजुर्वेद 15.28]
Hey Agni Dev roaming in various forms in the Yagy! Rishis born in Angira clan traced-found you in secret places in waters and various vegetation. You evolve by rubbing two pieces of wood with Shakti-power and hence the scholars call you Shakti Putr.
सखायः सं वः सम्यञ्चमिषꣳ स्तोमं चाग्रये। वर्षिष्ठाय क्षितीनामूर्जी नावे सहस्वते॥
यजमान तीन अनुष्टुप् संज्ञक ईंटों को रखते हुए बोले, हे सखा ऋत्विग्गणो! ये श्रेष्ठ अग्नि देव जल के पौत्र रूप, उत्तम बलों को प्रदान करने वाले हैं। आप इनके लिए त्रिवृत्त और पंचदश आदि उत्कृष्ट स्तोत्रों से स्तुति करते हुए हव्य पदार्थ निवेदित करें।[यजुर्वेद 15.29]
Yajman should lay 3 bricks named after Anushtap Chhand and say, hey friendly Ritviz Gan! Excellent Agni Dev grant best grandsons, like the water. Make offerings of Trivrat and Panch Dash etc. Strotr and oblations-offerings for him.
सꣳ समिद्युवसे वृषन्त्रग्ने विश्वान्यर्य आ। इडस्पदे समिध्यसे स नो वसून्याभर॥
हे अग्नि देव! आप परम बलशाली हैं। आप समस्त प्राणियों के स्वामी हैं। आप सभी यज्ञ-सम्बन्धी कर्मों के फलों को सभी तरफ से याजक को प्राप्त कराने में सक्षम हैं। आप यज्ञ स्थान पर विद्यमान उत्तर वेदी में भली-भाँति प्रदीप्त होते हैं। हे अग्नि देव! आप हमारे निमित्त धन-वैभव को सब ओर से लाकर प्रदान करें।[यजुर्वेद 15.30]
Hey Agni Dev! You possess Ultimate power. You are the lord of all living beings-organism. You are capable of granting the out come-rewards of the Yagy to the Yajak. You ignite properly at the Yagy Sthan-site over the Uttar Vedi. Hey Agni Dev! Bring wealth and grandeur for us, from all sides-directions.
त्वां चित्रश्रवस्तम हवन्ते विक्षु जन्तवः। शोचिष्केशं पुरुप्रियाग्ने हव्याय वोढवे॥
हे प्रज्वलित अग्नि देव! आप प्रसन्नतापूर्वक याजकों द्वारा समर्पित किये गये हविष्य को स्वीकारते हैं। आप अति विचित्र ऐश्वर्य से युक्त हैं। सारे याजकगण और ऋत्विग्गण यज्ञकर्म के सम्पादन हेतु आपको आहूत करते हुए हविष्यान्न अर्पित करते हैं।[यजुर्वेद 15.31]
Hey ignited Agni Dev! You accept the oblations by the Yajak happily. You possess amazing grandeur. All Yajak & Ritviz Gan invoke you for conducting the Yagy Karm and make offerings of food grains.
एना वो अग्निं नमसोर्जी नपातमा हुवे। प्रियं चेतिष्ठमरतिꣳ स्वध्वरं विश्वस्य दूतममृतम्॥
हे ऋत्विग्गणों और यजमानों! तुम्हारे द्वारा प्रदान की गयी हवियों से मैं ब्रह्मा जल के पौत्र*, अत्यन्त प्रिय, जागरणशील, ज्ञानदाता, सदैव उद्यमी, यज्ञ-सम्पादक, समस्त यज्ञ-सम्बन्धी कर्मों के निर्वाहक अमृत रूप अग्नि देव को आहूत करता हूँ।[यजुर्वेद 15.32]
*वनस्पतियाँ जल से उत्पन्न होने के कारण उसका पुत्र कही जाती हैं। अग्नि वनस्पति (अरणी काष्ठ) का मन्थन करके उत्पन की जाती है, इसलिये अग्नि को वनस्पतियों का पुत्र और जल का पौत्र कहा जाता है।
Hey Ritviz Gan & Yajman! I make sacrifices for Agni Dev made by you with Brahm Jal-water, who is highly loved, alert-awakened, awarding Gyan-knowledge, always busy in endeavours, performer of all Yagy Karm.
विश्वस्य दूतममृतं विश्वस्य दूतममृतम्।
स योजते अरुषा विश्वभोजसा स दुद्रवत् स्वाहुतः॥
दूतवत् शीघ्रता पूर्वक यज्ञादि कर्म को सम्पन्न करने वाले, उन अविनाशी अग्नि देव को हम स्तवनों का गान करके आहूत करते हैं। वे विख्यात अग्नि देव रुष्ट न होने वाले, श्रेष्ठ यज्ञ भाग का उपभोग करनेवाले, घोड़ों को अपने रथ में योजित करते हैं तथा उस रथ पर आरूढ़ होकर उत्तम रीति से आवाहित किये जाने पर तत्परतापूर्वक यज्ञ-स्थान पर आगमन करते हैं।[यजुर्वेद 15.33]
आहूत :: संयोजित, बुलायी गयी, आमन्त्रित; summoned, convened.
रुष्ट :: क्रुद्ध, अप्रसन्न; indignant, angry.
We invite-summon immortal Agni Dev, by reciting prayers, like messengers quickly. Famous Agni Dev do not get angry, use the best share of the Yagy, deploy the horses in his charoite and ride it and reach quickly at the place where he is invoked with best procedures.(12.06.2025)
स दुद्रवत् स्वाहुतः स दुद्रवत् स्वाहुतः।
सुब्रह्मा यज्ञः सुशमी वसूनां देवꣳ राधो जनानाम्॥
उत्कृष्ट ऋत्विजों से युक्त, शुभ कर्म रूपी यज्ञ में आमन्त्रित किये जाने पर वे विख्यात अग्नि देव त्वरित गति से आगमन करते हैं। वसुगण, रुद्रगण, आदित्यगण आदि देवताओं वाले यज्ञ में, जहाँ दैवी सम्पदा युक्त मनुष्यों द्वारा श्रेष्ठ रीति से हवियाँ निवेदित की जाती हैं, वहाँ आप शीघ्रता से जाते हैं।[यजुर्वेद 15.34]
Agni Dev arrive quickly in the Yagy which is like the auspicious deeds, having excellent Ritviz. You come quickly in the Yagy where Vasu Gan, Rudr Gan, Adity Gan etc. demigods-deities are present and offerings-oblations are made by the humans possessing including divine grandeur.
अग्ने वाजस्य गोमतईशानः सहसो यहो। अस्मे धेहि जातवेदो महि श्रवः॥
हे सर्वज्ञाता अग्नि देव! आपकी उत्पत्ति अरणि मन्थन से हुई है। आप अन्न, धन, पशु (गो-अश्व) आदि से युक्त हैं। हमें अगाध धन-सम्पदा का स्वामी बनायें।[यजुर्वेद 15.35]
Hey omniscient Agni Dev! You evolved by rubbing of wood. You possess food grains, wealth, animals viz. cows and horses. Make us wealthy with lots of opulence.
स इधानो वसुष्कविरग्निरीडेन्यो गिरा। रेवदस्मभ्यं पुर्वणीक दीदिहि॥
हे प्रज्वलित अग्नि देव! ज्वालाओं के रूप में आपके अनेकानेक मुख हैं। आप क्रान्तदर्शी तथा सभी के निवास स्थान हैं। वेदों की वाणी से स्तवनीय, यज्ञ में सबसे पहले आगमन करने वाले आप हमारी आहुतियाँ ग्रहण करें और हमें अपने तेज से यथेष्ट ऐश्वर्य प्रदान करें।[यजुर्वेद 15.36]
Hey blazing Agni Dev! You have several mouths in the form of flames. You are a visionary and reside at all places. You are worshiped with the hymns of Ved and arrive first of all, in the Yagy. Accept our offerings and grant us desired grandeur with your Tej-aura.
क्षपो राजन्नुत त्मनाग्ने वस्तोरुतोषसः। स तिग्मजम्भ रक्षसो दह प्रति॥
ज्वालाओं के रूप में विकराल दाढ़ों वाले, हे दीप्यमान् अग्नि देव! आप अपने उग्र स्वभाव से ही राक्षसों का विनाश करते हैं। अतः हमारे निमित्त हानिकारक, दिन के तथा उषाकाल के समस्त विकारोंरूपी राक्षसों को भस्मीभूत कर दें।[यजुर्वेद 15.37]
Hey luminous Agni Dev, having large jaws in the form of flames! You destroy the demons with your furiosity. Hence, destroy our demon like defects-vices, wickedness; for the day or dawn.
भद्रो नो अग्निराहुतो भद्रा रातिः सुभग भद्रो अध्वरः। भद्रा उत प्रशस्तयः॥
हे वैभवशाली अग्नि देव! आप याजकों के आवाहित किये जाने पर प्रकट होते हैं। आप हमारे निमित्त मंगलकारी सिद्ध हों। यज्ञकार्य तथा दान हमारे निमित्त कल्याणकारी होकर मंगल करें एवं हमारे द्वारा की गयी आपकी स्तुतियाँ भी हमारे निमित्त सुखकारी हों।[यजुर्वेद 15.38]
Hey Agni Dev possessing opulence! You arrive on being invoked by the Yajak. You should be auspicious to us. Let Yagy Kary and donations become auspicious to us and prayers-worship devoted to you by us, should be comfortable to us.
भद्रा उत प्रशस्तयो भद्रं मनः कृणुष्व वृत्रतूर्ये। येना समत्सु सासहः॥
हे अग्नि देव! जिस मनोबल से आप जीवन के युद्ध क्षेत्र में कुटिल विचार रूपी रिपुओं को पराभूत करते हैं, उसी मनोबल को हमारे कुकर्म रूपी पापों को नष्ट करने में योजित कर हमारा मंगल करें।[यजुर्वेद 15.39]
Hey Agni Dev! The will-mantle power with which you defeat the crookedness-devious mind as enemies, in the fight for struggle in life, should be used to destroy our sins-evilness, leading to our welfare.
येना समत्सु सासहोऽव स्थिरा तनुहि भूरिशर्धताम्। वनेमा ते अभिष्टिभिः॥
हे अग्ने! आप जिस शक्ति से संग्रामों से रिपुओं को विनष्ट करते हैं, वैसे ही आप अत्यन्त संघर्षशील रिपूओं के दृढ धनुषों की प्रत्यचा को काट दें। आपके द्वारा प्रदान किये जाने वाले धन-वैभव को प्राप्त करके हम सदैव सुखी रहें।[यजुर्वेद 15.40]
Hey Agne! The way you destroy the enemies in the war, similarly cut the cord of their bows. Let us remain comfortable, happy with the wealth, grandeur granted to us by you.
अग्निं तं मन्ये यो वस्रस्तं यं यन्ति धेनवः।
अस्तमर्वन्त आशवोऽस्तं नित्यासो वाजिनइषꣳ स्तोतुभ्य आ भर॥
यजमान पंक्ति संज्ञक तीन ईंटों को रखे और बोले, हम उन अग्नि देव को भली-भाँति जानते हैं, जो सबके आश्रय स्थल हैं, धेनुगण जिन अग्नि देव को प्रज्वलित जानकर अपने-अपने गृहों में वापस जाती हैं एवं जिन अग्नि देव को प्रज्वलित होता देखकर तीव्रगामी घोड़े प्रति दिन अश्वशाला में वापस लौटते हैं, हम उन अग्नि देव से भी भली-भाँति परिचित हैं। हे अग्नि देव! ऐसे आप यजमानों के निमित्त अगाध ऐश्वर्य प्रदान करने की कृपा करें।[यजुर्वेद 15.41]
अगाध :: गम्भीर, वितलीय, अतल, गहरा; the abyss, profound, abyssal, unfathomable.
Yajman should lay 3 bricks named Pankti and say, we are very well acquainted with Agni Dev who grant asylum to all, cows return to their homes-cowshed watching glowing Agni Dev, fast moving horses return to their stable everyday. Hey Agni Dev! Grant profound-unfathomable wealth to the Yajman.
सो अग्निर्यो वसुर्गुणे सं यमायन्ति धेनवः।
समर्वन्तो रघुद्रुवः सꣳ सुजातासः सूरय इषꣳ स्तोतृभ्य आ भर॥
जो सबके आश्रय स्थल एवं सम्पत्ति अथवा धन के सहायक हैं, उन अग्नि देव की हम अभ्यर्थना करते हैं। जिनके निकट धेनुगण गमन करती हैं तथा तीव्रगामी घोड़े भी जिनके निकट गमन करते हैं, ऐसे अग्नि देव की आराधना उत्तम कुल में पैदा होकर अच्छे संस्कार से युक्त विद्व्द्जन करते हैं। इन गुणों से सम्पन्न हे अग्नि देव! यजमानों को मंगलकारी प्रचुर धन-धान्य प्रदान करें।[यजुर्वेद 15.42]
अभ्यर्थना :: विनती, मांग, याचना, आधार तत्व-स्थापन, अभियाचना, अनुबंध, इकरारनामा, शपथ दिलाना, सौंगंध दिलाना, कसम खिलाना, अनुरोध; postulation, adjuration, request.
We request-postulate Agni Dev who is asylum to everyone and grant wealth and property. Cows and horse move towards him. Those who worship Agni Dev take birth in excellent clan-families of enlightened-scholars, with moral, virtuous, righteous characterises-traits. Hey Agni Dev possessing morals, virtuousness, righteousness! Grant auspicious wealth to the Yajman.
उभे सुश्चन्द्र सर्पिषो दर्वी श्रीणीष आसनि।
उतो न उत्पुपूर्या उक्थेषु शवसस्पत इषꣳ स्तोतृभ्य आ भर॥
सबके प्रार्थनीय चन्द्रमा के समान आह्लादित करने वाले, हे अग्नि देव! आप अपने मुख में घृत का सेवन करने के लिए दोनों दर्वी आकार वाले हाथों का प्रयोग करते हैं। हे बल के अधिपति अग्नि देव! आप स्तवनों के द्वारा किये गये यज्ञों से हमें धन-सम्पदा से युक्त करें तथा हम यजमानों के निमित्त विपुल वर्षा कर हमें धन-धान्य प्रदान करें।[यजुर्वेद 15.43]
दर्वी :: साँप का फन; बड़ी करछी; hood of a snake, large ladle-spoon.
Hey Agni Dev gladdening like Chandr Dev, who is worshiped by all! You use your hands like the large ladle for pouring Ghee in your mouth. Hey Agni Dev, lord of strength-might! You should grant us lots of wealth by means of Yagy performed by us.
अग्ने तमद्याश्वं न स्तोमैः क्रतुं न भद्रꣳ हृदिस्पृशम्। ऋध्यामा त ओहैः॥
यजमान पद पंक्ति संज्ञक तीन ईंटों को रखे और बोले, हे अग्ने! आज आपके इस यज्ञ को यथेष्ट फल दायक साम स्तुतियों से हम समृद्ध करते हैं। जैसे अनेक प्रकार के स्तवनों से अश्वमेध यज्ञ के घोड़ों को विशिष्ट रूप से प्रेरित किया जाता है, उसी प्रकार हम मंगलकारी यज्ञ-सम्बन्धी संकल्पों को दृढ़ करते हैं।[यजुर्वेद 15.44]
Yajman should lay 3 bricks named Pad Pankti and say, hey Agne! We enrich your Yagy with the Sam Stuties. The way horse of Ashw Medh Yagy is inspired through special prayers, we become firm with our resolutions for the Yagy.(13.06.2025)
अधा हाग्ने कतोर्भद्रस्य दक्षस्य साधोः। रथीर्ऋतस्य बृहतो बभूथ॥
हे अग्ने! जैसे सारथी सावधानी के साथ रथ को चलाते हुए अपने अभीष्ट स्थान को ले जाता है जैसे ही आप हम पर प्रसन्न होकर हमें यज्ञ के फल को प्राप्त करायें।[यजुर्वेद 15.45]
Hey Agne! The way the charioteer take the charoite to the destination, you should grant us the auspicious results-awards of the Yagy.
एभिर्नो अर्कैर्भवा नो अर्वाङ् स्वर्णज्योतिः। अग्ने विश्वेभिः सुमना अनीकैः॥
हे अग्ने! हमारे द्वारा उच्चारित किये गये स्तोत्रों द्वारा हर्षित होकर आप हमारे समक्ष उपस्थित हों। जैसे सूर्य देव उदीयमान होकर समस्त किरणों से जगत् के समक्ष प्रकट होते हैं, वैसे ही हमारी अभ्यर्थना को श्रवण करके आप हमारे जीवन को प्रकाशित करें।[यजुर्वेद 15.46]
Hey Agne! Be happy with the Strotr recited by us and invoke before us. The way the Sury Dev rise with his rays over-before the universe, similarly you should listen to our request-prayer and illuminate our lives.
अग्निꣳ होतारं मन्ये दास्वन्तं वसुꣳ सूनुꣳ सहसो जातवेदसं विप्रं न जातवेदसम्। य ऊर्ध्वया स्वध्वरो देवो देवाच्या कृपा। घृतस्य विभ्राष्टिमनु वष्टि शोचिषाजुह्वानस्य सर्पिषः॥
जो दानादि गुणों से युक्त, शुभ यज्ञ कर्म को सम्पादित करने वाले अग्नि देव देवों के निकट पहुँचने वाले, ऊँची उठने वाली लपटों से प्रज्वलित तथा विस्तारित होकर, निरन्तर घृत का सेवन करने का काम करते हैं, उन अग्नि देव को देवता को आहूत करने वाले, दान करने वाले, निवासक, मन्थन होने के कारण बल के पुत्र, सब प्रकार से ज्ञान से युक्त, सभी शास्त्रों को जानने वाले ब्रह्मनिष्ठ ज्ञानी के समान हम स्वीकृत करते हैं।[यजुर्वेद 15.47]
We enlightened, learned, Brahm Nishth Gyani devoted to Brahm, scholar of Shastr-scriptures, offer sacrifices to Agni Dev; who possess the ability to donate, perform virtuous Yagy Karm, spread with high rising dazzling flames, approaches the demigods-deities, drink Ghee continuously, accept-approve him.
अग्ने त्वं नो अन्तमउत त्राता शिवो भवा वरूथ्यः। वसुरग्निर्वसुश्रवा अच्छा नक्षि द्युमत्तमꣳ रयिन्दाः। तं त्वा शोचिष्ठ दीदिवः सुम्नाय नूनमीमहे सखिभ्यः॥
यजमान द्विपदा संज्ञक ईंटों को रखते हुए बोले, हे गार्हपत्य अग्ने! आप हमारे लिए समीपवर्ती, पालन कर्ता, शान्त एवं पुत्रादि से युक्त घर प्रदान करने वाले हों। लोगों को निवास प्रदान करने वाले, आहवनीय आदि विविध रूपों में गमन शील, धन एवं कीर्ति प्रदान करने वाले, आप हमारे यज्ञ-स्थान को प्राप्त हों तथा हमें प्रचुर धन-ऐश्वर्य प्रदान करें। हे सर्वाधिक कान्तिमान् तथा सभी को प्रकाशित करने वाले अग्नि देव! हम सुख प्राप्ति तथा अपने मित्रों के कल्याण की कामना करते हैं। आप हमें अपना सेवक समझकर हमारी प्रार्थना सुनें एवं सभी दुष्ट शत्रुओं से हमारी रक्षा करें।[यजुर्वेद 15.48]
Yajman should lay bricks named Dvipada and say, hey Garhpaty Agne! You are close to us, nurture us, grant peace & home with sons. You are invocable and grant homes to people, moves in different ways, grant wealth and fame-honour. Come to out Yagy Sthal-site and grant us ample wealth-grandeur. Hey Agni Dev possessing more shine as compared to others! We pray for comforts-pleasure and welfare of our friends and relatives. Treat us as your followers-servants, listen to our prayers and protect us from the enemies.
येन ऋषयस्तपसा सत्रमायन्निन्धाना अग्निꣳ स्वराभरन्तः।
तस्मिन्नहं नि दधे नाकेअग्निं यमाहुर्मनवस्तीर्णबर्हिषम्॥
चित्त को केन्द्रित करने वाले जिस तपोबल से ऋषियों ने अग्नि को प्रदीप्त करके देवत्व प्राप्ति रूप परम पुरुषार्थ किया, उसी चित्त की एकाग्रता रूप तपोबल से हम भी दैवी सामर्थों को जाग्रत् करने के निमित्त अग्नि देव को प्रतिष्ठित करते हैं। उन अग्नि देव को विद्वज्जन यज्ञ-सम्बन्धी उत्तम कर्मों को सम्पन्न करने वाला कहते हैं।[यजुर्वेद 15.49]
We establish Agni Dev to achieve concentration of mind, awakening of the divine capabilities like the Rishis who concentrated their mood-mind with the power of ascetic, igniting Agni. We address Agni Dev as the performer of excellent-virtuous endeavours pertaining to the Yagy by the enlightened.
त्तं पत्नीभिरन् गच्छेम देवाः पुत्रैर्भातृभिरुत वा हिरण्यैः।
नाके गृभ्णानाः सुकृतस्य लोके ततीये पृष्ठे अधिरोचने दिवः॥
हे दिव्य गुण सम्पन्न ऋत्विजों! अच्छे कर्मों से उपलब्ध तीसरे दीतिमान् लोक-मार्ग लोक में उत्कृष्ट दुःख रहित स्थान को प्राप्त करने की अभिलाषा करते हुए हम पत्नी, सगे सम्बन्धियों एवं सुवर्णादि द्रव्यों के साथ अग्नि का अनुसरण करते हैं। इसमें हम उत्कृष्ट स्वर्ग लोक को प्राप्त करेंगे।[यजुर्वेद 15.50]
Hey accomplished Ritviz possessing divine qualities! We follow Agni Dev with our wife, near & rear, relatives with materials like gold, with virtuous deeds having the desire of attaining the third luminous abode, where there is no pain-sorrow. Let us attain the excellent abodes.
आ वाचो मध्यमरुहद्भुरण्युरयमग्निः सत्पतिश्चेकितानः।
पृष्ठे पृथिव्या निहितो दविद्युतदधस्पदं कृणतां ये पृतन्यवः॥
जगत के भरण कर्ता, सत्पुरुषों के पालन कर्ता, ज्ञान वान, पृथ्वी के ऊपर स्थापित, अत्यन्त आलोकमान, हे अग्नि देव! आप मन्त्रोच्चारण के मध्य चयन स्थल (यजस्थान) में प्रतिष्ठित होने वाले हैं। सैन्यबल से युक्त जो दुष्ट-दुराचारी हमसे संग्राम करने की अभिलाषा करते हैं, आप उन्हें चरणों के नीचे दबाकर विनष्ट कर डालें।[यजुर्वेद 15.51]
Hey dazzling Agni Dev, established over the earth for nurturing the universe, virtuous & the enlightened! You are going to be establish at the Yagy Sthal-site amid Mantropchar-recitation of Mantr Vedic hymns. Wicked sinners wish to attack us-entangle in war, crush them under your feet.
अयमग्निर्वीरतमो वयोधाः सहस्त्रियो द्योततामप्रयुच्छन्।
विभ्राजमानः सरिरस्य मध्य उप प्र याहि दिव्यानि धाम॥
अत्यन्त शक्ति शाली, हव्य पदार्थ का भक्षण करने में सक्षम, सहस्रों कर्मों के साधक हे अग्नि! आप आरम्भ किये गये धर्मानुष्ठान को सम्पन्न करने के निमित्त प्रमाद रहित होकर प्रादुर्भूत हों। तीनों भुवनों के मध्य विशिष्ट रूप से आलोकमान होकर आप दिव्य लोकों को प्राप्त करें।[यजुर्वेद 15.52]
Hey highly powerful, eater of oblations, accomplisher of hundreds of deeds, Agni Dev! You evolve-invoke to accomplish the religious rituals, activities-endeavours with out ego. Having been luminous in the middle of three abodes, you should attain the divine abodes.
सम्प्रच्यवध्वमुप सम्प्रयाताग्ने पथो देवयानान् कृणुध्वम्।
पुनः कृण्वानाः पितरा युवानान्वाताꣳ सीत् त्वयि तन्तुमेतम्॥
हे ऋषिगणो! आप समस्त ऋषिगण इन अग्नि देव के समीप आगमन करें, समीप आकर अच्छी तरह से उन्हें प्रदीप्त करें। हे अग्नि देव! आप हमारे देवयान पथ को आलोकित करें। वाणी तथा मन को तरुण करते हुए ऋषिगणों ने इस यज्ञ में आपको उत्तम विधि से विस्तारित किया है।[यजुर्वेद 15.53]
Hey Rishi Gan! Let all Rishi Gan come near-close to Agni Dev and ignite him properly. Hey Agni Dev! Illuminate or divine path to heavens. Making the mind-innerself and voice alert, the Rishi Gan have extended you in this Yagy with best procedures-methods.
उद्बुध्यस्वाग्ने प्रति जागृहि त्वमिष्टापूर्ते सꣳसृजेथामयं च।
अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन् विश्वेदेवा यजमानश्च सीदत॥
हे अग्नि देव! आप जाग्रत् (प्रज्वलित) हों और इस याजक को भी नित्य सत्कर्म करने के लिए जाग्रत् करें। याजक द्वारा किये जा रहे यज्ञ में आप उसके साथ सुसंगत हों। आपकी कृपा से इस याजक के सम्पूर्ण अभीष्ट पूर्ण हों, हे विश्वे देवो! यह निष्पाप यजमान देवों के योग्य सर्वोत्तम स्थान स्वर्ग लोक में दीर्घकाल तक वास करे।[यजुर्वेद 15.54]
Hey Agni Dev! Get up and awake the Yajak to perform virtuous-righteous deeds. You should join the Yajak in his Yagy. Hey Vishwe Dev! With your blessings-good will, the desires of the Yajman should be accomplished. Let the sin less Yajman live-reside in the best place of the heavens for long.(16.06.2025M)
येन वहसि सहस्त्रं येनाग्ने सर्ववेदसम्। तेनेम यज्ञ नो नय स्वर्देवेष गन्तवे॥
हे अग्ने! आप जिस सामर्थ्य से हजारों दक्षिणा वाले तथा सर्वमेध अर्थात् सर्वस्व अर्पित करने वाले यज्ञों को पूर्ण करते हैं, अपनी उसी सामर्थ्य से हमारे इस यज्ञ को भी पूर्ण करें। यज्ञ के प्रभाव से हम यजमान देवत्व के परम पद को प्राप्त करें।[यजुर्वेद 15.55]
Hey Agne! The capability with which you perform Sarvmedh Yagy involving thousands of Dakshina-donations to Brahmans sacrificing every thing, should be used to accomplish our Yagy. Let us-the Yajman attain the Ultimate abode of the demigodhood.
अयं ते योनिर्ऋत्वियो यतो जातो अरोचथाः। तं जानन्नग्न आरोहाथा नो वर्धया रयिम्॥
हे अग्नि देव! यह गार्हपत्य अग्नि आपका उद्गम स्थान है, जिससे उत्पन्न होकर आप प्रकाशित होते हैं। हे अग्नि देव! अपनी उस जन्म भूमि को जानते हुए आप दक्षिण कुण्ड में प्रतिष्ठित हों और हमारे निमित्त धन-वैभव एवं गो-अश्वादि पशुओं को अच्छी तरह से संवर्धित करें।[यजुर्वेद 15.56]
Hey Agni Dev! This Garhpaty Agni is the place of your origin with which you illuminate. Hey Agni Dev! Recognise your birth place and establish in the South Kund-pit grow our wealth-grandeur, cows, horses etc. animals.
तपश्च तपस्यश्च शैशिरावृतू अग्नेरन्तः श्लेषोऽसि कल्पेतां द्यावापृथिवी कल्पन्तामापओषधयः कल्पन्तामग्नयः पृथड्मम ज्यैष्ठठ्याय सव्रताः। ये अग्नयः समनसोऽन्तरा द्यावापृथिवी इमे। शैशिरावृतू अभिकल्पमाना इन्द्रमिव देवा अभिसंविशन्तु तया देवतयांगिरस्वद् ध्रुवे सीदतम्॥
यजमान दो ऋतव्या संज्ञक ईंटों को रखते हुए बोले, माघमास तथा फाल्गुन मास शिशिर ऋतु के अवयव हैं। हे इष्टके! आप प्रदीप्त अग्नि में उसके आधार रूप में प्रतिष्ठित हों। अग्नि का चयन करने वाले हम याजकों के उत्कर्ष हेतु ये स्वर्ग लोक तथा भूलोक परस्पर सहयोग करें। जल तथा ओषधियाँ हमें श्रेष्ठता प्रदान करने वाली हों। समान व्रतशील अनेक अग्नियाँ उत्कृष्टता से सहायता कार्य करें। द्यावा-पृथ्वी के बीच में इस समय समान मन युक्त जो अग्नियाँ हैं, जो वसन्त ऋतु का सम्पादन करती हुई, इस यज्ञ कर्म के आश्रित हों। जिस प्रकार सभी देव-शक्तियाँ इन्द्र देव का आश्रय ग्रहण करती हैं, उसी प्रकार (अग्नि) देवता के साथ आप अंगिरा के यज्ञ की भाँति सुस्थिर होकर स्थापित हों।[यजुर्वेद 15.57]
Yajman should lay 2 bricks named Ritvya and say, Maghmas and Falgun months are the components of chilly winter season. Hey bricks! You should establish in the ignited fire forming the foundation. Let the heavens and earth mutually cooperate for the Yajak who have chooses the fire-Agni for progress. Let medicines-herbs and water grant us excellence. Agni with the same resolution grant us excellence. The like minded fires present between the heavens & earth should conduct the spring season depending upon the Yagy. The divine powers depend upon Indr Dev, similarly you should establish properly like the Yagy of Angira.
परमेष्ठी त्वा सादयतु दिवस्पृष्ठे ज्योतिष्मतीम्। विश्वस्मै प्राणायांपानाय व्यानाय विश्वं ज्योतिर्यच्छ। सूर्यस्तेऽधिपतिस्तया देवतयांगिरस्वद् ध्रुवा सीद॥
यजमान विश्व ज्योति संज्ञक ईंटों को रखते हुए बोले, हे तेजो मण्डित इष्टके! वायु रूप आपको विश्वकर्मा ऊपर द्युलोक में स्थापित करें। सूर्य देव आपके अधिपति हैं। आप यजमानों के समस्त प्राण, अपान, व्यान की प्राप्ति हेतु सम्पूर्ण ज्योतियों को प्रदान करें। आप अपने अधिपति वायु देव की सामर्थ्य से वैसे ही स्थिर हों, जैसे अंगिरा के यज्ञकार्य में स्थिर हुए थे।[यजुर्वेद 15.58]
The Yajman should lay bricks named Jyoti and say, hey radiating-illuminated bricks! Let Vishw Karma in the form of Vayu, establish you in the heavens. Sury Dev is your lord. Grant all sorts of light-rays for the Apan, Vyan and Apan of the Yajman. Establish yourself with the help of your lord Vayu Dev; the way Angira established himself in the Yagy.
लोकं पृण छिद्रं पृणाथो सीद ध्रुवा त्वम्। इन्द्राग्नी त्वा बृहस्पतिरस्मिन् योनावसीषदन्॥
यजमान लोकम्पृणा संज्ञक ईंटों को रखते हुए बोले, हे इष्टके! आप गार्हपत्य के चयन स्थल में रिक्त स्थान को पूर्ण करें-छिद्र को भर दें तथा यहाँ सुदृढ़ता पूर्वक स्थापित हो। इन्द्र देव, अग्नि देव तथा बृहस्पति देव ने यह स्थान आपके लिए नियत किया है।[यजुर्वेद 15.59]
Yajman should lay bricks named Lokamprana and say, hey bricks! Fill the gaps in the selected place of Garhpaty and establish rigidly-tightly. Indr Dev, Agni Dev and Brahaspati De allotted-this site to you.
ता अस्य सूददोहसः सोमꣳ श्रीणन्ति पृश्नयः। जन्मन्देवानां विशस्त्रिष्वारोचने दिवः॥
देवलोक में स्थित विविध अन्न से युक्त वे प्रख्यात जल प्रवाह देवताओं के उदय काल में स्वर्ग, अन्तरिक्ष तथा पृथ्वी तीनों लोकों में इस यज्ञ से सम्बन्धित सोम को श्रेष्ठ विधि से परिपूर्ण करते हैं।[यजुर्वेद 15.60]
The famous streams of water established in the heavens having food grains; establish Som following the excellent procedure at the time of the rise of demigods, in the three abodes heavens, earth and space-sky.
इन्द्रं विश्वा अवीवृधन्त्समुद्रव्यचसं गिरः। रथीतम रथीनां वाजानाꣳ सत्पतिं पतिम्॥
सभी ज्ञान-सम्पन्न वाणियाँ अर्थात् ऋक्, यजुः, साम तथा अथर्व रूप स्तुतियाँ सागर के समान गंभीर हृदय वाले, सभी रथियों की अपेक्षा महारथी एवं ऐश्वर्य शाली इन्द्र देव का गुणगान करते हुए उनकी महिमा को बढ़ाती हैं।[यजुर्वेद 15.61]
All speeches-voices i.e., Rik, Yaju, Sam and Athrv in the form of Stuti-prayers, sing-recite in the honour of Indr Dev, who's heart is too deep like the ocean, is Maha Rathi amongest the Rathis, having grandeur-opulence, increasing his glory.
प्रोथदश्वो न यवसेऽविष्यन्यदा महः संवरणाद्व्यस्थात्।
आदस्य वातो अनुवाति शोचिरध स्म ते व्रजनं कृष्णमस्ति॥
जब श्रेष्ठ काष्ठरूप अरणियों के मन्थन से अग्नि देव प्रदीप्त होते हैं, तब वह वैसे ही शब्द करते हैं जैसे भोजन करने की कामना से घास के प्रति घोड़ा शब्द करता है। तदुपरान्त वायु देव उनकी ज्वालाओं के साथ अनुगमन करते हुए उन्हें और भी अधिक प्रदीप्त करते हैं। हे अग्नि देव! उस समय आपकी उन्नति का पथ कृष्ण वर्ण धुएँ से युक्त होता है।[यजुर्वेद 15.62]
When Agni Dev evolve by the rubbing of wood, it make sound like the horse who need grass. Thereafter, Agni Dev follow those flames and make them even more blazing. Hey Agni Dev! At that moment your elevation path has black smoke.
आयोष्ट्वा सदने सादयाम्यवतश्छायायाꣳ समुद्रस्य हृदये।
रश्मीवतीं भास्वतीमा या द्यां भास्या पृथिवीमोर्वन्तरिक्षम्॥
तेज युक्त किरणों के आलोक से शोभायमान हे स्वयमातृण्णे! जलवृष्टि करने वाले समुद्र के समान पोषणकारी तत्त्वों की वर्षा द्वारा जगत् का पालन करने वाले आदित्य के हृदय-स्थान में हम आपको स्थापित करते हैं। आप भूलोक, अन्तरिक्ष लोक तथा स्वर्गलोक को अपने दिव्य आलोक से सम्पन्न अर्थात् प्रकाशमान् कर देती हैं।[यजुर्वेद 15.63]
Hey brick named Svymatranne, having rays with aura! We establish you in the heart of Adity. You support the universe, like the rain showering ocean, having nourishing elements-components. You illuminate the earth, space and heavens with your divine aura.
परमेष्ठी त्वा सादयतु दिवस्पृष्ठे व्यचस्वतीं प्रथस्वतीं दिवं यच्छ दिवं दृꣳह दिवं मा हिꣳसीः। विश्वस्मै प्राणायापानाय व्यानायोदानाय प्रतिष्ठायै चरित्राय। सूर्यस्त्वाभिपातु मह्या स्वस्त्या छर्दिषा शन्तमेन तया देवतयांगिरस्वद् ध्रुवे सीदतम्॥
सम्पूर्ण सृष्टि में अपने तेज को विस्तारित करने वाली, हे स्वयमातृण्णे! सृष्टि सृजेता विश्व कर्मा आपको स्वर्ग लोक के ऊपर प्रतिष्ठित करें। आप सभी प्राणियों के प्राण, अपान, व्यान तथा उदान की शक्ति को दृढ़ता प्रदान करने के निमित्त अपने स्थान पर स्थापित हों एवं सदाचरण को विस्तारित करने में सहायता करें। सूर्य देव आपको अच्छी तरह से संरक्षित करें। आप दिव्य गुणों का वासन होने दें। अपने उस अधिपति देव की अनुकूलता से आप वैसे ही स्थिर हों, जैसे अंगिरा के यज्ञ में स्थिर होकर प्रतिष्ठित हुई थी।[यजुर्वेद 15.64]
Hey Svymatranne, illuminating the entire universe with your radiance! Let creator Vishw Karm establish you over the heavens. You should be established at your site, grant support-rigidity to the Pran, Apan, Vyan & Udan power, to all living beings leading to comprehension of virtues. Let Sury Dev patronise you properly. You should allow the establishment of virtuousness-righteousness. You should be established with the favour of your lord, when you were established in the Yagy of Angira.
सहस्त्रस्य प्रमासि सहस्त्रस्य प्रतिमासि सहस्त्रस्योन्मासि साहस्त्रोऽसि सहस्राय त्वा॥
यजमान इष्टकाओं द्वारा तैयार हुई वेदी पर जल छिड़कते हुए बोले, हे वेदिके! आप सहस्रों इष्टकाओं से निर्मित और उनकी प्रतिनिधिभूता हैं, आप सहस्त्र ऐश्वर्यों की प्रतिमारूप हैं एवं अनगिनत स्थानों पर प्रतिष्ठित होने की अधिकारी हैं। इसी कारण हम हजारों फल प्राप्ति के निमित्त आपको ग्रहण करते हैं।[यजुर्वेद 15.65]
Yajman should sprinkle water over the bricks and say, hey Vedike! You are constructed with thousands of bricks and represent them. You are like the idol-symbol of thousands of grandeur and deserve to be established at infinite sites. That's why we accept you, for attaining thousands of rewards.(16.06.2025E)
यजुर्वेद संहिता, षोडश, अध्याय :: ऋषि :- परमेोठी वा कुत्स, परमेष्ठी, बृहस्पति, प्रजापति, कुत्स, परमेष्ठी प्रजापति; देवता :- रुद्र; छन्द :- गायत्री, अनुष्टुप्, बृहती, पंक्ति, उष्णिक्, जगती, भूति, अष्टि, शक्वरी, अतिजगती त्रिष्टुप्।
नमस्ते रुद्र मन्यव उतो त इषवे नमः। बाहुभ्यामुत ते नमः॥
हे रुद्र! आपके मन्यु (क्रोध) रूप को मेरा प्रणाम है। आपके बाणों तथा दोनों भुजाओं को नमस्कार है। अतः हे भगवन्! आपका क्रोध तथा बाण युक्त हाथ मेरे शत्रुओं का वध करे तथा मुझे शान्ति प्रदान करे।[यजुर्वेद 16.1]
Hey Rudr! I salute your anger, arrows& both arms. Hey God! Let your anger & hands holding bow & arrow, kill my enemies.
या ते रुद्र शिवा तनूरघोराऽपापकाशिनी।
तया नस्तन्वा शन्तमया गिरिशन्ताभि चाकशीहि॥
हे रुद्र देव! आप कैलास पर्वत पर स्थित होकर प्राणियों का विस्तार करने वाले हैं। आप मंगलकारी, शान्तरूप, पापों को नष्ट करने वाले होने के कारण सौम्य तथा शक्तिशाली भी हैं। अपने उसी सुखमय रूप से हमारा अवलोकन कीजिये।[यजुर्वेद 16.2]
सौम्य :: शीतल और स्निग्ध, सुंदर, रमणीक; benign, placid, kindly.
Hey Rudr Dev! Stationed at mount Kaelash, you increase the number of living beings. You are auspicious, calm & quite, destroyer of sins, placid and mighty. Have a look over us with your comforting posture.
यामिषं गिरिशन्त हस्ते बिभर्म्यस्तवे। शिवां गिरित्र तां कुरु मा हिꣳसीः पुरुषं जगत्॥
हे गिरिशन्त! हे वाणी, पर्वत एवं मेघों में निवासकर जगत् का कल्याण करनेवाले गिरिश प्रभो! आप शत्रुओं का विनाश एवं जगत् का प्रलय करने वाले अपने हाथों में जिस धनुष-बाण को धारण किये हुए हैं, उन बाणों को हम भक्तों के लिये कल्याणकारी बनायें और उससे हमारे पुत्र-पौत्र, अश्व एवं गौवों का वध न करें, किन्तु हमारी रक्षा करें।[यजुर्वेद 16.3]
Hey Girishant! Hey Girish, hey lord residing in the speech-voice, mountains, clouds preforming the welfare of universe! You are the destroyer of enemies, cause annihilation, hold bow & arrow. Make your arrows protective and beneficial for us, do not kill our sons, grand sons, horses and cows. Protect us.
शिवेन वचसा त्वा गिरिशाऽच्छा वदामसि। यथा नः सर्वमिज्जगदयक्ष्मꣳ सुमना असत्॥
हे गिरिश! हम लोग मांगलिक वचनों से आपकी स्तुति करते हैं, इसलिये जिस प्रकार इस समस्त स्थावर जंगमात्मक जगत् का कल्याण हो एवं जगत् के पशु-पक्षी एवं मनुष्य जिस प्रकार नीरोग रहें, वैसी कृपा करें।[यजुर्वेद 16.4]
Hey Girish! We worship-pray you with auspicious words (Mantr, hymns). Bless us with the protection of living being (plants & animals) and ensure that animals, birds and humans remain free from ailments.
अध्यवोचदधिवक्ता प्रथमो दैव्यो भिषक्।
अहीꣳश्च सर्वाञ्जम्भयन्त्सर्वाश्च यातुधान्योऽधराचीः परा सुव॥
हे रुद्र देव! आप निगमागम के व्याख्याता एवं सर्व मन्त्र वेत्ता हैं और देवताओं के हितकारी तथा संसार के सर्वश्रेष्ठ चिकित्सक हैं। हे प्रभो! आप सर्प, व्याघ्रादि हिंसक जन्तुओं से तथा सभी व्याधियों से हमारी रक्षा कर हमें स्वस्थ बनायें, यही मेरी प्रार्थना है।[यजुर्वेद 16.5]
निगमागम :: वेद-शास्त्र, Veds and scriptures.
Hey Rudr Dev! You explain-describe the Veds & scriptures and has expertise in all Mantrs. You are best physician-doctor of the world looking after the welfare of demigods-deities. Hey Prabho-lord! Protect us from snakes, beasts, all diseases and keep us fit & fine, i.e., healthy. This is our prayer-request.(17.06.2025M)
असौ यस्ताम्रोअरुण उत बभ्रुः सुमंगलः।
ये चैनꣳ रुद्रा अभितो दिक्षु श्रिताः सहस्त्रशोऽवैषाꣳ हेड ईमहे॥
जो रुद्र रूप सूर्य प्रातःकाल में ताम्र वर्ण एवं सायं काल में लाल वर्ण के मूर्तिमान् मंगल के समान दृष्टिगोचर होते हैं; इसी प्रकार दिन भर में विविध रूप धारण कर जिनकी सहस्रों किरणें सभी दिशाओं को प्रकाशित करती हैं और जो संसार को समस्त वैभव से पूर्ण करने में समर्थ हैं, वे रुद्र हम लोगों पर क्रोध न करें और हमें वैभव पूर्ण बनायें, यही प्रार्थना है।[यजुर्वेद 16.6]
इस मन्त्र में भगवान् रुद्र के सूर्य स्वरूप की स्तुति की गयी है।
In this Mantr Rudr has been worshiped in the form of Sury Dev.
Rudr shines like Sun in the morning with the colour of copper, in the evening he turn red and appear like Mars. He takes various forms during the day and spread infinite rays in all directions. He is capable of granting whole grandeur of the world. He should not become angry with us and increase our grandeur, this is what we pray-request.
असौ योऽवसर्पति नीलग्रीवो विलोहितः।
उतैनं गोपा अदृश्रन्नदृश्रन्नुदहार्यः स दृष्टो मृडयाति नः ॥
उदयास्त काल में विशेष लालवर्ण के आदित्य रूपी रुद्र, जो रात्रि रूपी कालिमा के कारण एवं भक्तों के कष्ट रूपी विष को पी जाने के कारण नील कण्ठ कहे जाते हैं, वे हम लोगों को सर्वदा सुख प्रदान करें, जिन्हें वेद संस्कार हीन गोपियाँ एवं जल भरने वाली सामान्य शूद्र स्त्रियाँ भी प्रत्यक्ष रूप से देखती हैं।[यजुर्वेद 16.7]
प्रत्यक्ष :: स्पष्ट दिखाई पड़ने वाला, जिसका ज्ञान इंद्रिय द्वारा स्पष्ट हो, आँखों के सामने; direct, discernible, face to face.
In the evening at the time of Sun set, he acquires red colour like Adity. He is termed Neel Kanth since he swallows the pain-sorrow in the form of poison, of the devotees due to the blackish night. He should always grant us comforts-pleasure. Gopies-women fetching water, devoid of virtues of the Veds and ordinary Shudr women too see him face to face.
नमोऽस्तु नीलग्रीवाय सहस्त्राक्षाय मीढुषे। अथो ये अस्य सत्वानोऽहं तेभ्योऽकरं नमः॥
नील ग्रीव सहस्राक्ष स्वरूप रुद्र को हमारा बारम्बार नमस्कार है। उन रुद्र के अनुचर स्वरूप मेषादि राशियों को अथवा जगत् को सींचने वाले मेघों को भी हमारा प्रणाम है, वे सभी हम लोगों के लिये शिव कल्प हों।[यजुर्वेद 16.8]
शिव कल्प :: ब्रह्मा जी के एक दिन के बराबर समय की अवधि, जो 4.32 अरब मानव वर्षों के बराबर होती है। यह समय भगवान् शिव के एक विशिष्ट रूप से जुड़ा हुआ है, जिसे अघोर रूप कहा जाता है।
We salute Rudr with blue neck, having thousands of eyes repeatedly. We salute the constellations like Mesh and the clouds who nurture the universe repeatedly. They all should be like Shiv Kalp for us.
प्रमुञ्च धन्वनस्त्वमुभयोरार्योर्य्याम्। याश्च ते हस्त इषवः परा ता भगवो वप॥
हे भगवन् (ऐश्वर्यशाली) रुद्र प्रभो! आप अपने धनुष की दोनों छोरों पर चढ़ी हुई प्रत्यंचा को शीघ्र उतार लीजिये और अपने हाथ में लिये हुए बाणों को भी दूर फेंक दीजिये। तदनन्तर सौम्य रूप धारणकर हमारा सब प्रकार से कल्याण कीजिये, यही मेरी प्रार्थना है।[यजुर्वेद 16.9]
सौम्य :: शीतल और स्निग्ध, सुंदर, रमणीक; benign, kindly, calm & quite, composed.
Hey lord Rudr! Remove the cord stretched over the two ends of the bow and throw away the arrows. Thereafter, acquire benign form. Having adopted the benign form resort to our welfare, this is what we request-pray to you.
विज्यं धनुः कपर्दिनो विशल्यो बाणवाँ2उत। अनेशन्नस्य या इषव आभुरस्य निषंगधिः॥
जटा-जूट धारण करने वाले भगवान् कपर्दी का धनुष हमारे लिये प्रत्यंचा रहित हो। तरकस भी तीक्ष्ण बाणों से रिक्त हो जाय तथा म्यान भी खड्ग रहित हो जाय। इस प्रकार शस्त्रास्त्रों से रहित वे रुद्र सौम्य हो हम भक्तों का कल्याण करें।[यजुर्वेद 16.10]
जटा जूट :: जटाओं का समूह, बहुत से लंबे-बढ़े हुए बाल; matted hair, tress.
तरकस :: तूणीर; quiver.
म्यान :: तलवार रखने का कोष, खोल; sheath, scabbard.
The bow of Bhagwan Kapardi-Bhagwan Shiv having matted hair, should be without cord. Quiver should be empty, sheath should be without sword-empty. In this manner Bhagwan Rudr should be free from weapons and adopt a benign-composed quite form.
या ते हेतिर्मीढुष्टम हस्ते बभूव ते धनुः। तयास्मान्विश्वतस्त्वमयक्ष्मया परि भुज॥
हे ज्ञान-सुधा से सिंचन करने वाले भगवान् मीढष्टम! आप अपने हाथ में धारण किये हुए धनुष के द्वारा यक्ष्मादि रोगों से हमें सब प्रकार से मुक्त कीजिये जिससे हम भक्तों पर किसी भी प्रकार की विपत्ति न आये।[यजुर्वेद 16.11]
Hey Bhagwan Shiv-Meedshtam, nursing with enlightenment! Clear us of the disease called tuberculosis, etc. with your bow and relieve us from all sorts of troubles.
परि ते धन्वनो हेतिरस्मान्वृणक्त विश्वतः। अथो व इषुधिस्तवारे अस्मन्निधेहि तम्॥
हे रुद्र! आपका धनुष एवं तरकस हमारी चारों ओर से रक्षा करे। उससे हमारी कोई क्षति न हो अथवा आप अपने धनुष एवं बाण को दूर रखकर हमें अपनी कृपा-दृष्टि से सुरक्षित रखें।[यजुर्वेद 16.12]
Hey Rudr! Your bow & arrow should protect from all sides. We should not be harmed by them. Keep off the bow & arrow from us. Protect us with your kind glance, blessing.
अवतत्य धनुष्टुवꣳ सहस्त्राक्ष शतेषुधे। निशीर्य शल्यानां मुखा शिवो नः सुमना भव॥
हे हजारों चक्षु वाले रुद्र देव! आपके सहस्रों तरकस हैं। अपने धनु को ज्या रहित करके शरों के नुकीले फलकों को भी आप निकालकर फेंक दें। इस प्रकार आप हमारे निमित्त मंगलकारी तथा शोभन चित्त वाले हों।[यजुर्वेद 16.13]
Hey Rudr with thousands of eyes! You have hundred of quiver. Remove the cord of your bow and the sharp tips of the arrows. In this way you should be auspicious for us and with graceful mind-mood.
नमस्ते आयुधायानातताय धृष्णवे। उभाभ्यामुतते नमो बाहुभ्यां तव धन्वने॥
हे प्रभो! आपके प्रत्यंचा रहित धनुष को मेरा प्रणाम है तथा मुझे धर्षित करने वाले शत्रु गणों को मारने में दक्ष आप की दोनों भुजाओं को भी प्रणाम है।[यजुर्वेद 16.14]
धर्षित :: जिसका धर्षण किया गया हो, दबाया या दमन किया हुआ, परिभूत, हराया हुआ, जिसे नीचा दिखाया गया हो, अपमानित, रति, मैथुन; supressed.
Hey lord! I salute your bow without cord. I salute your hands which are expert in killing the enemies, who supress-dominate me.
मा नो महान्तमुत मा नो अर्भकं मा न उक्षन्तमुत मा न उक्षितम्।
मा नो वधीः पितरं मोत मातरं मा नः प्रियास्तन्वो रुद्र रीरिषः॥
हे रुद्र! आप हमारे गुरुजनों, माता-पिता, सगे-सम्बन्धियों, पुत्र-पौत्रों एवं भाइयों का वध न कीजिये और हमारे गर्भस्थ शिशुओं की रक्षा कीजिये। आपसे हमारी यही प्रार्थना है।[यजुर्वेद 16.15]
Hey Rudr! Do not kill our Gurus-elders, teachers, relatives, brothers, sons & grandsons. Protect the child in the womb. This is our appeal-prayer to you.
मा नस्तोके तनये मा न आयुषि मा नो गोषु मा नो अश्वेषु रीरिषः।
मा नो वीरान् रुद्र भामिनो वधीर्हविष्मन्तः सदमित् त्वा हवामहे॥
हे रुद्र! आप हमारे छोटे-छोटे बच्चों की, हमारी आयु की, हमारे पशुओं की एवं हमारे क्रोधी वीर सैनिकों की हिंसा मत कीजिये। इस यज्ञ में आहुति ग्रहण करने के लिये हम आपका आवाहन करते हैं। यही प्रार्थना है।[यजुर्वेद 16.16]
Hey Rudr! Do not kill our infants, animals, us and the warriors. We invoke you to accept offerings-oblations in the Yagy. This is what we pray.
नमो हिरण्यबाहवे सेनान्ये दिशां च पतये नमो नमो वृक्षेभ्यो हरिकेशेभ्यः पशूनां पतये नमो नमः शष्पिञ्जराय त्विषीमते पथीनां पतये नमो नमो हरिकेशायोपवीतिने पुष्टानां पतये नमः॥
हिरण्यबाहु को नमस्कार है, सेनानी को नमस्कार है, दिशाओं के स्वामी को नमस्कार है, हरित केश को नमस्कार है, वृक्षरूपी रुद्र को नमस्कार है, पशुपति को नमस्कार है, जिनका शरीर नये उगे अंकुर के समान पीले वर्णवाला है-ऐसे रुद्र को नमस्कार है, मार्गों के स्वामी रुद्र के लिये नमस्कार है, नीले रंग के केश वाले तथा यज्ञोपवीत धारण करने वाले को नमस्कार है, गुणों से परिपूर्ण मनुष्यों के स्वामी रुद्र के लिये नमस्कार है।[यजुर्वेद 16.17]
We salute Rudr-Hiranybahu, Senai, lord of the directions, Harit Kesh, Rudr in the form of tree, Pashupati, who's body is like the new sprout-radicle, who's body is yellowish; having all these forms. We salute Rudr who is the lord of roads, with blue hair, wearing the sacred thread. We salute Rudr who is the lord of humans full of virtues.(17.06.2025E)
नमो बभ्लुशाय व्याधिनेऽन्नानां पतये नमो नमो भवस्य हेत्यै जगतां पतये नमो नमो रुद्रायाततायिने क्षेत्राणां पतये नमो नमः सूतायाहन्त्यै वनानां पतये नमः॥
कपिल वर्ण वाले अथवा वृषभ पर स्थित होने वाले, रिपुओं को विनष्ट करने वाले, अन्नों के स्वामी, जगत् के आयुध अर्थात् जगत् के संहारक, संसार के पालक, आततायियों के निमित्त शस्त्र धारण करने वाले, प्रदेशों तथा जंगलों के पालन कर्ता एवं अहिंसनीय सारथी रूप (देवाधिदेव) रुद्र देव के निमित्त नमस्कार है।[यजुर्वेद 16.18]
कपिल वर्ण :: भूरा, बादामी रंग, ताँबे के रंग जैसा, brownish colour.
आताताई :: अपराधी, अति पातकी, हत्यारा, तानाशाह, उत्पीड़क, उपाधी, तानाशाह, निरंकुश शासक, प्रजापीड़क, निर्दयी; invaders, felon, tyrant, despot.
We salute Rudr Dev who possess brown colour, rides the bull-Nandi Maha Raj, destroys the enemies, lord of food grains, causing annihilation, hold weapons for attackers-tyrants, nurturer of the residential lands & forests and who is non violent charioteer.
नमो रोहिताय स्थपतये वृक्षाणां पतये नमो नमो भुवन्तये वारिवस्कृतायौषधीनां पतये नमो नमो मंत्रिणे वाणिजाय कक्षाणां पतये नमो नमो उच्चैर्घोषायाक्रन्दयते पत्तीनां पतये नमः॥
लोहित वर्ण वाले, विश्वकर्मा रूप (घर आदि की स्थापना करने वाले), वृक्षों के स्वामी, लोकों का विस्तार करने वाले, धन-वैभव प्रदान करने वाले, ओषधियों के स्वामी, व्यापार कर्ताओं के रूप में स्थित, मनुष्यों को प्रेरित करने वाले, जंगलों के लता-वृक्ष आदि के स्वामी, युद्ध में रिपुओं को रुदन कराने वाले, अत्यन्त उग्र ध्वनि करने वाले एवं गज सेना, अश्व सेना, रथों तथा पैदल सेना के रक्षक रुद्र देवता के निमित्त नमस्कार है।[यजुर्वेद 16.19]
लोहित :: लाल रंग का, लाल, ताँबे का बना हुआ, लाल चंदन; reddish.
पैदल सेना :: युद्ध में पैदल चलने वाले सैनिक; infantry, soldiers in an army who fight on foot.
We salute Rudr Dev who has reddish colour, is a form of Vishw Karma, is the lord of tees, expand the abodes, lord of medicines-herbs, established as businessmen-tradesmen, inspires the humans, lord of creepers & trees of the forests, makes the enemies weep in war, makes extremely loud sound, protector of elephant, horse, charoite and the infantry, armies.
नमः कृत्स्नायतया धावते सत्वनां पतये नमो नमः सहमानाय निव्याधिन आव्याधिनीनां पतये नमो नमो निषंगिणे ककुभाय स्तेनानां पतये नमो नमो निचेरवे परिचरायारण्यानां पतये नमः॥
धनुष की डोरी को कान तक खींच कर युद्ध में शीघ्रता पूर्वक दौड़ने वाले रुद्र के लिये नमस्कार है, शरणागतों के रक्षक रुद्र के लिये नमस्कार है, शत्रुओं का पराभव करने वाले तथा उन्हें भेदने वाले रुद्र के लिये नमस्कार है, चारों ओर से प्रहार करने वाली वीर सेनाओं के रक्षक रुद्र के लिये नमस्कार है, तलवार चलाने वाले महान् रुद्र के लिये नमस्कार है, चोरों के रक्षक रुद्र के लिये नमस्कार है, चोरी तथा हरण आदि की इच्छा से बाजार में घूमने वाले रुद्र के लिये नमस्कार है, वनों के रक्षक रुद्र के लिये नमस्कार है।[यजुर्वेद 16.20]
We salute Rudr Dev who pull the string-cord of the bow till the ears, runs fast in the war, grant asylum, defeats & pierces the enemies, protector of the army which attack from 4-all directions, wields sword, protector of the thieves, roams with the desire of theft and abduction & who is the protector of the forests.
नमो वञ्चते परिवञ्चते स्तायूनां पतये नमो नमो निषंगिण इषुधिमते तस्कराणां पतये नमो नमः सृकायिभ्यो जिघाꣳ सद्भयो मुष्णतां पतये नमो नमोऽसिमद्भयो नक्तं चरद्भयो विकृन्तानां पतये नमः॥
ठगने तथा लूटने का कार्य करने वाले रुद्र के निमित्त नमस्कार है। गुप्त धन को चुराने वाला के पालक रुद्र को नमस्कार है। तरकस तथा बाण धारण करने वाले रुद्र के निमित्त नमस्कार है। तस्करी करने वालों के रक्षक रुद्र देव के निमित्त नमस्कार है। वज्र धारण करने वाले तथा रिपुओं के संहारक रुद्र देव के निमित्त नमस्कार है। खड्ग धारणकर रात्रि-पहर में विचरने वालों के पालन कर्ता रुद्र देव के निमित्त नमस्कार है। सेंध लगाना लगाकर पराया धन का हरण करने वाले दस्युओं की रक्षा करने वाले रुद्र देव के निमित्त नमस्कार है।[यजुर्वेद 16.21]
सेंध :: चोर द्वारा चोरी के उद्देश्य से दीवार में किया गया छेद, नकब;burglary, irruption
We salute Rudr who deceive and loot. Salutations to Rudr who steal hidden wealth. Salutations to Rudr who has quiver and arrows. Salutations to Rudr, the protector of smugglers. Salutations to Rudr who wield Vajr and destroy the enemies. Salutation for Rudr Dev who wield sword and nurture those who roam at night. Salutations to Rudr Dev who protect the dacoits who commit burglary and snatch others wealth.
नम उष्णीषिणे गिरिचराय कुलुञ्चानां पतये नमो नम इषुमद्भयो धन्वायिभ्यश्च वो नमो नम आतन्वानेभ्यः प्रतिदधानेभ्यश्च वो नमो नम आयच्छद्भयोऽस्यद्भयश्च वो नमः॥
सिर पर पगड़ी धारण करके पहाड़ों पर विचरण करने वाले रुद्र देव के निमित्त नमस्कार है। छल तथा बल पूर्वक दूसरों की भूमि तथा गृह का हरण करने वालों के पालन कर्ता रुद्र देव के निमित्त नमस्कार है। लोगों को भयभीत करने हेतु धनुष तथा बाण को धारण करने वाले रुद्र देव के निमित्त नमस्कार है। धनुष पर डोरी चढ़ाकर धनुष को खींचने तथा चलाने वाले रुद्र देव के निमित्त नमस्कार है। हे बाणों से आक्रमण करने वाले रुद्र देव! हम आपको बारम्बार नमस्कार करते हैं।[यजुर्वेद 16.22]
Salutations to Rudr Dev who wear turban and roam over the mountains. Salutations to Rudr Dev who protect the deceivers and snatchers of other's land and house. Salutations to Rudr Dev who string the bow and pull it for creating fear. Hey Rudr Dev attacking with arrows! Our repeated salutations to you.
नमो विसृजद्भयो विध्यद्भयश्च वो नमो नमः स्वपद्भयो जाग्रद्भयश्च वो नमो नमः शयानेभ्य आसीनेभ्यश्च वो नमो नमस्तिष्ठद्भयो धावद्भयश्च वो नमः।[यजुर्वेद 16.23]
पापियों के दमनार्थ बाणों का सन्धान करने वाले रुद्र देवता के निमित्त नमस्कार है। रिपुओं का भेदन करने वाले रुद्र देव के निमित्त नमस्कार है। स्वप्नावस्था में रहने वालों के अन्तःकरण में स्थित रुद्र देव को नमस्कार है। जाग्रतावस्था में रहने वालों के अन्तःकरण में स्थित रुद्र देव को नमस्कार है। सुषुप्ति अवस्था वालों के अन्तःकरण में स्थित रुद्र देवता को नमस्कार है। स्थिर रहने वाले रुद्र देव को नमस्कार है। वेगवान् रुद्र देव को नमस्कार।[यजुर्वेद 16.23]
दमन :: रोक, निरोध, नियंत्रण, पराजय, आधिपत्य, वशीकरण, शमन, दबाव, अवरोध, छिपाव, स्तंभन, आत्मनियंत्रण, बलपूर्वक शांत करने का काम, आत्म नियंत्रण, बल पूर्वक शांत करने का काम; suppression, repression, subjugation.
Salutations to Rudr Dev, who wield arrows for the suppression of sinners-wicked, vicious, pierce the enemies. Salutations to Rudr Dev who is present in the innerself while dreaming, sleep & awoken state. Salutations to Rudr Dev who is stationary. Salutations to dynamic Rudr Dev.
नमः सभाभ्यः सभापतिभ्यश्च वो नमो नमोऽश्वेभ्यो ऽश्वपतिभ्यश्च वो नमो नम आव्याधिनीभ्यो विविध्यन्तीभ्यश्च वो नमो नम उगणाभ्यस्तृꣳ हतीभ्यश्च वो॥
सभा रूप रुद्र देव के निमित्त नमस्कार है। सभापति रूप रुद्रदेव के निमित्त नमस्कार है। अश्व रूप रुद्र देवता के निमित्त नमस्कार है। अश्वों के अधिष्ठाता रुद्र देव के निमित्त नमस्कार है। विशेष रूप से भेदन करने वाले देव सेना रूप आप रुद्र के लिये नमस्कार है, श्रेष्ठ सेवकों वाली ब्राह्मी आदि माताएँ जिनका स्वरूप हैं, ऐसे रुद्र के लिये नमस्कार है, संहार में समर्थ दुर्गा आदि जिनकी शक्ति हैं, उन रुद्र के लिये नमस्कार है।[यजुर्वेद 16.24]
सभा :: समिति, परिषद्, मंडली; gathering, confrence, meeting.
सभापति :: अध्यक्ष, सभा का मुखिया, सदर; chairman, prolocutor, symposiarch.
Salutations to Rudr in the form of gathering and the chairman of the meeting. Salutations to Rudr Dev in the form of horses and their lord. Salutations to Rudr who is a form of specifically penetrating demigods-deities army. Salutations to Rudr; Brahmi etc. mothers are who's form. Salutations to Rudr; Mata Durga capable of destructions is who's strength.
नमो गणेभ्यो गणपतिभ्यश्च वो नमो नमो व्रातेभ्यो व्रातपतिभ्यश्च वो नमो नमो गृत्सेभ्यो गृत्सपतिभ्यश्च वो नमो नमो विरूपेभ्यो विश्वरूपेभ्यश्च वो नमः॥
देव सेना के समूह रूप तथा उनके अधिष्ठाता रूप रुद्र देव के निमित्त नमस्कार है। विशिष्ट समूह तथा उनके अधिष्ठाता रूप रुद्र देव के निमित्त नमस्कार है। विवेकवान् वर्गरूप तथा उनके समूह रूप रुद्र देव के निमित्त नमस्कार है। निकृष्ट रूप वाले रुद्रों के लिये नमस्कार है, अनेकों स्वरूप वाले तथा सहस्रों स्वरूप वाले रुद्र देव के निमित्त नमन है।[यजुर्वेद 16.25]
निकृष्ट :: बुरा, तुच्छ, अशिष्ट, असभ्य, ग्राम्य, हतोत्साह, अप्रिय, भद्दा, अतिदुष्ट, नीच, अधम; abject, mean, abominable, arrant.
Salutations to Rudr Dev who is like the battalion of Demigods army and their lord. Salutations to Rudr Dev who is the lord of specific groups and the specific groups them selves. Salutations to Rudr Dev who is the lord of the group of prudent and the group itself. Salutations to Rudrs who form the group of abject, having several forms, figure, shape & size.
नमः सेनाभ्यः सेनानिभ्यश्च वो नमो नमो रथिभ्यो अरथेभ्यश्च वो नमो नमः क्षत्तृभ्यः संग्रहीतृभ्यश्च वो नमो नमो महद्भयो अर्भकेभ्यश्च वो नमः॥
सेना रूप रुद्र देव के निमित्त नमस्कार है। सेनापति रूप रुद्रदेव के निमित्त नमस्कार है। रथ वाले वीरों को नमस्कार तथा रथ हीन वीरों को नमस्कार है। युद्ध करने वाले रथ सामग्री युक्त वीर रूप रुद्र देव के निमित्त नमस्कार है। सारथी रूप रुद्र देव के निमित्त नमस्कार है। जाति तथा विद्या आदि से उत्कृष्ट प्राणि रूप रुद्रों के लिये नमस्कार है। जिनका प्रमाण से ज्ञान नहीं हो सकता, ऐसे रुद्र के लिये नमस्कार है।[यजुर्वेद 16.26]
Salutations to Rudr Dev representing army and its general. Salutations to warriors with or without charoite. Salutations to Rudr in the form of a warriors possessing charoite and is a charioteer. Salutations to enlightened Rudrs in the form of excellent species-castes. Salutations to Rudr who's level of knowledge can not be ascertained-measured.
नमस्तक्षभ्यो रथकारेभ्यश्च वो नमो नमः कुलालेभ्यः कर्मारेभ्यश्च वो नमो नमो निषादेभ्यः पुञ्जिष्ठेभ्यश्च वो नमो नमः श्वनिभ्यो मृगयुभ्यश्च वो नमः॥
शिल्प कार्य करने वाले रुद्र के लिये नमस्कार है, रथ बनाने वाले रुद्र देव के निमित्त नमस्कार है। मिट्टी का बर्तन बनाने वाले कुम्हार तथा लोहे के हथियार बनाने वाले लोहार रूप रुद्र देव को नमस्कार है। पहाड़ों तथा वन में रहने वाले भीलों के रूप में स्थित रुद्र देव को नमस्कार है, पक्षियों को मारने वाले बहेलिया आदि रूप वाले रुद्र को नमस्कार है, कुत्तों के गले में रज्जु बाँधकर ले चलने वाले रुद्रदेव के निमित्त नमस्कार है। मृगों की अभिलाषा करने वाले व्याध रूप वाले रुद्र देव के निमित्त नमस्कार है।[यजुर्वेद 16.27]
शिल्प :: हस्त कला, दस्तकारी; crafts, handiwork.
Salutations to Rudr devoted to crafts, maker of charoite. Salutations to Rudr who acts like a potter making earthen ware-pots and smith making weapons with iron. Salutations to Rudr residing in the forests as Bheel, killer of birds and who walks with dog, having string in its neck. Salutations Rudr who has a form of hunter, who desire to have deer, antelopes.
नमः श्वभ्यः श्वपतिभ्यश्च वो नमो नमो भवाय च रुद्राय च नमः शर्वाय च पशुपतये च नमो नीलग्रीवाय च शितिकण्ठाय च॥
श्वानों के अन्तःकरण में अवस्थित रुद्र देव को नमस्कार है। श्वानों के स्वामी किरातों के अन्तःकरण में अवस्थित रुद्र देव को नमस्कार है। जिनसे सब जगत् उत्पन्न हुआ उन रुद्र देवता को नमस्कार है। पापों को नष्ट करने वाले रुद्र देवता को नमस्कार है। नील वर्ण की ग्रीवा वाले रुद्र देव को नमस्कार है। श्वेत कण्ठ वाले रुद्र देवता को नमस्कार है।[यजुर्वेद 16.28]
Salutations to Rudr Dev who reside in the innerself of dogs and the lord of dogs-Kirat. Salutations to Rudr from whom the universe has evolved. Salutations to Rudr Dev who destroys the sins. Salutations to Rudr Dev with blue neck & fair coloured throat.
नमः कपर्दिने च व्युप्तकेशाय च नमः सहस्त्राक्षाय च शतधन्वने च नमो गिरिशयाय च शिपिविष्टाय च नमो मीढुष्टमाय चेषुमते च॥
हजारों नेत्रों वाले इन्द्र रूप रुद्र देव को नमस्कार है। सैकड़ों धनुष धारण करने वाले रुद्र देव जटा-जूट धारी रुद्र देव को नमस्कार है। मुण्डित केश रूप रुद्र देव के निमित्त नमस्कार है।पर्वत पर शयन करने वाले रुद्र देव को नमस्कार है। सभी प्राणियों में स्थित विष्णु रूप रुद्र देव को नमस्कार है। वर्षा करने वाले मेघरूप रुद्र देव को नमस्कार है। बाण धारण करने वाले रुद्र देव को नमस्कार है।[यजुर्वेद 16.29]
Salutations to Rudr Dev in the form of Indr Dev, possessing thousands of eyes. Salutations to Rudr Dev with matted hair, having hundreds of bows. Salutations to Rudr Dev with shaved head. Salutations to Rudr Dev who sleep over the mountain. Salutations to Rudr Dev who reside in all living beings as Shri Hari Vishnu. Salutations to Rudr Dev who shower rains as clouds. Salutations to Rudr Dev who wield arrows.(18.06.2025)
नमो ह्रस्वाय च वामनाय च नमो बृहते च वर्षीयसे च नमो वृद्धाय च सवृधे च नमोऽग्रयाय च प्रथमाय च॥
अल्प शरीर वाले रुद्र को नमस्कार है। छोटे कद वाले रुद्र को नमस्कार है। विशाल शरीर वाले रुद्र को नमस्कार है। वृद्ध शरीर वाले रुद्र को नमस्कार है। अत्यधिक आयु वाले रुद्र को नमस्कार है। मनोहर युवावस्था वाले रुद्र को नमस्कार है। विद्वानों में अग्रणी पुरुष रूप रुद्र को नमस्कार है तथा सर्व गुण सम्पन्न रुद्रदेव को नमस्कार है।[यजुर्वेद 16.30]
We salute Rudr with small-micro, dwarf, huge, old or having highly aged body. Salutations to young attractive bodied Rudr, possessing all virtues qualities & leader of the learned-scholar, enlightened.
नम आशवे चाजिराय च नमःशीघ्राय च शीभ्याय च नम ऊर्याय चावस्वन्याय च नमो नादेयाय च द्वीप्याय च॥
सम्पूर्ण संसार में व्यापक रुद्र देव को नमस्कार है, तीव्र गति शील रूप रुद्र देव को नमस्कार है। वेगशाली वस्तुओं में विद्यमान रुद्र देव को नमस्कार है। जल प्रवाह में विद्यमान रुद्र देव को नमस्कार है। जल तरंगों में गतिरूप तथा स्थिर जल में स्थिररूप रुद्र देव को नमस्कार है। नदी में विद्यमान तथा द्वीप में विद्यमान रुद्र देव को नमस्कार है।[यजुर्वेद 16.31]
Salutations to fast moving Rudr Dev pervading the whole universe, present in accelerated bodies, water streams. Salutations to stationary Rudr Dev, present in rivers or islands.
नमो ज्येष्ठाय च कनिष्ठाय च नमः पूर्वजाय चापरजाय च नमो मध्यमाय चापगल्भाय च नमो जघन्याय च बुध्न्याय च॥
ज्येष्ठ रूप वाले रुद्र देव को नमस्कार है, कनिष्ठ रूप वाले रुद्र देव को नमस्कार है, सृजन काल के प्रारम्भ में उत्पन्न पूर्वज रूप रुद्र देव को नमस्कार है। वर्तमान में स्थित रुद्र देव को नमस्कार है। प्रलय समय स्थित रुद्र देव को नमस्कार है, गाय की सन्तति रूप से पैदा होने वाले रुद्र देव को नमस्कार है। वृक्षादि के जड़ में स्थित रुद्र देव को नमस्कार है।[यजुर्वेद 16.32]
Salutations to senior or junior Rudr. Salutations to Rudr who evolved at the time of evolution as Manes-Pitr. Salutations to the present Rudr Dev. Salutations to Rudr present at the time annihilation. Salutations to Rudr Dev who appeared as the progeny of cow. Salutations to Rudr present as stationary-immobile as the tree.
नमः सोभ्याय च प्रतिसर्याय च नमो याम्याय च क्षेम्याय च नमः श्लोक्याय चावसान्याय च नम उर्वर्याय च खल्याय च॥
पाप-पुण्य युक्त मनुष्य लोक में उत्पन्न होने वाले रुद्र देव को नमस्कार है। विवाह के समय हस्त सूत्र में उत्पन्न होने वाले रुद्र देव को नमस्कार है। पापियों को नरक की यातना देने वाले यम रूप रुद्र के लिये नमस्कार है, कुशल-क्षेम रूप रुद्र के लिये नमस्कार है, स्तुति योग्य रुद्र के लिये नमस्कार है, वेदान्त रूप रुद्र के लिये नमस्कार है, उर्वर भूमि में शस्य रूप से उत्पन्न होने वाले रुद्रदेव के लिये नमस्कार है, खलिहान के उत्पन्न होने वाले धान्य रूप रुद्र के लिये नमस्कार है।[यजुर्वेद 16.33]
खलिहान :: बखार, कोठार, खत्ती, भुसौरा; barn, grainery, stackyard
Salutations to Rudr who evolved in the human abode having sins and virtues. Salutations to Rudr who appear as the cotton cord for the hand (कलावा-Kalava, sacred thread or holy thread). Salutations to Rudr Dev who punish-torture the sinners as Yam-Dharm Raj, in the hell. Salutations to Rudr Dev as welfare-well being. Salutations to Rudr Dev deserving worship. Salutations to Rudr Dev as Vedant. Salutations to Rudr Dev who evolve as greenery in the fertile land-fields and as paddy-rice in the barn.
नमो वन्याय च कक्ष्याय च नमः श्रवाय च प्रतिश्रवाय च नम आशुषेणाय चाशुरथाय च नमः शूराय चावभेदिने च॥
वन में उत्पन्न वृक्ष-गुल्म वृक्ष रूप रुद्रों के लिये नमस्कार है, शब्द-प्रतिशब्द रूप रुद्र के लिये नमस्कार है, तीव्र गति वाले योद्धा के रूप में स्थित रुद्र देव को नमस्कार है, शीघ्र गामी सेना के रूप में स्थित रुद्र देव को नमस्कार है, शीघ्र गामी रथ के रूप में रुद्र देव को नमस्कार है, शत्रुओं का भेदन करने वाले रुद्र देव के लिये नमस्कार है।[यजुर्वेद 16.34]
Salutations for the trees, flowers grown in the forests. Salutations to Rudr for the words and their opposite words. Salutations to Rudr Dev as a warrior and a fast moving army column, charoite and penetrator of the enemies.(19.06.2025)
नमो बिल्मिने च कवचिने च नमो वर्मिणे च वरूथिने च नमः श्रुताय च श्रुतसेनाय च नमो दुन्दुभ्याय चाहनन्याय च॥
शिरस्त्राण को धारण करने वाले रुद्र देव के लिये नमस्कार है, कवच धारण करने वाले रुद्र देव को नमस्कार है, हाथी पर रखे जाने वाले हौदे में स्थित रुद्र देव के लिये नमस्कार है, प्रसिद्ध योद्धा रूप के लिये नमस्कार है, प्रसिद्ध सेना रूप रुद्र के लिये नमस्कार है। युद्ध वाद्य के रूप में प्रयुक्त नगाड़े तथा उसे बजाने वाले वादन दण्ड रूप रुद्र के लिये नमस्कार है।[यजुर्वेद 16.35]
कवच :: ढाल, रक्षा करने वाला भाग, आश्रय, पनाह, शरण; shield, armour.
Salutations to Rudr Dev who wear headgear, armour, present in the howdahs mounted on elephant. Salutations to the famous warrior and general Rudr Dev. Salutations to Rudr Dev as the Nagada-drum in the battle field and the stick to beat the drum.
नमो धृष्णवे च प्रमृशाय च नमो निषङ्गिणे चेषुधिमते च नमस्तीक्ष्णेषवे चायुधिने च नमः स्वायुधाय च सुधन्वने च॥
दूसरों का पराभव करने वाले योद्धा रूप रुद्र के लिये नमस्कार है, तत्त्व विमर्श करने वाले विद्वान्रूप रुद्र के लिये नमस्कार है, तीक्ष्ण खड्ग धारण करने वाले रुद्र देव के लिये नमस्कार है, तीक्ष्ण बाणों को धारण करने वाले रुद्र देव के नमस्कार है, आयुध धारण करने वाले रुद्र देव को नमस्कार है, आयुध रूप रुद्र के लिये नमस्कार है, सुन्दर धनुष धारण करने वाले रुद्र देव के लिये नमस्कार है।[यजुर्वेद 16.36]
Salutations to Rudr Dev who defeat others as a warrior, a scholar, wield sharp sword & arrows, wield weapons and beautiful arrows.
नमः स्रुत्याय च पथ्याय च नमः काट्याय च नीप्याय च नमः कुल्याय च सरस्याय च नमो नादेयाय च वैशन्ताय च॥
क्षुद्र पथ में अवस्थित रुद्र देव को तथा राज पथ में अवस्थित रुद्र देव को नमस्कार है। कठिन मार्गों में अवस्थित एवं पहाड़ों के निचले भाग में अवस्थित रुद्र देव को नमस्कार है। नहर के मार्ग में विद्यमान तथा सरोवर आदि में विद्यमान रुद्र देव को नमस्कार है। नदी के जल में उत्पन्न एवं सरोवर के जल में उत्पन्न रुद्र देव को नमस्कार है।[यजुर्वेद 16.37]
Salutations to Rudr De occupying narrow street, the royal path, tough terrain and lower segments of the mountains, present in the path of canals-streams, lacks. Salutations to Rudr Dev who evolve in the river waters and the lakes.
नमः कूप्याय चाऽवट्याय च नमो वीध्याय चातप्याय च नमो मेच्याय च विद्युत्याय च नमो वर्ष्याय चावर्ष्याय च॥
कुएँ में उत्पन्न रुद्र देव को नमस्कार है, गर्त में उत्पन्न रुद्र देव को नमस्कार है, अत्यन्त प्रकाश में उत्पन्न रुद्र देव को नमस्कार है, सूर्य के आतप में स्थित रुद्र देव को नमस्कार है, शरऋतु के बादलों में उत्पन्न रुद्र देव को नमस्कार है, विद्युत् में उत्पन्न रुद्र देव को नमस्कार है, वर्षा की धारा में उत्पन्न रुद्र देव को नमस्कार है, वृष्टि रहित समय में उत्पन्न रुद्र देव के लिये नमस्कार है।[यजुर्वेद 16.38]
Salutations to Rudr Dev who evolve in the well, pit, dazzling light, hot Sun light, clouds in the winters, streams during rains and the time when there is no rain.
नमो वात्याय च रेष्याय च नमो वास्तव्याय च वास्तुपाय च नमः सोमाय च रुद्राय च नमस्ताम्राय चारुणाय च॥
वायु के प्रवाह में उत्पन्न रुद्र देव को नमस्कार है। प्रलय काल में उत्पन्न रुद्र देव को नमस्कार है। वास्तुपति के रूप में अवस्थित रुद्र देव को नमस्कार है। उमा सहित रुद्र को नमस्कार है, ताम्र वर्ण वाले रुद्र देव को नमस्कार है। अरुण वर्ण वाले रुद्रदेव को नमस्कार है।[यजुर्वेद 16.39]
Salutations to Rudr Dev who evolve in blowing air or during annihilation. Salutations to Rudr Dev having the form of Vastu Pati or in the company of Mata Uma. Salutations to Rudr Dev having brown or yellow colour.
नमः शङ्गवे च पशुपतये च नम उग्राय च भीमाय च नमोऽग्रेवधाय च दूरेवधाय च नमो हन्त्रे च हनीयसे च नमो वृक्षेभ्यो हरिकेशेभ्यो नमस्ताराय॥
कल्याणकारी रुद्र देव को नमस्कार है। पशुपति रुद्र देव को नमस्कार है। उग्र रूप रुद्र को नमस्कार है। भयंकर रूप वाले रुद्र देव के निमित्त नमस्कार है। सम्मुख के शत्रु का वध करने वाले रुद्र देव को नमस्कार है। दूरस्थित शत्रुओं का वध करने वाले रुद्र देव को नमस्कार है। संहारक रूप रुद्र देव को नमस्कार है। प्रलयंकारी संहारक रूप रुद्र देव को नमस्कार है। पत्तों के समान हरे वर्ण वाले केशों वाले रुद्र देव को नमस्कार है। जगत् के तारनहार रूप रुद्र देव को नमस्कार है।[यजुर्वेद 16.40]
भयंकर :: उग्र, क्रूर, प्रखर, क्रुद्ध, चंड, घोर, महिमामय, घिनौना, डरावना, बड़ा भद्दा, ख़ौफ़नाक; terrifying, fierce, awful, hideous.
Salutations to Pashu Pati Nath Rudr Dev resorting to welfare. Salutations to furious form of terrifying Rudr Dev & killer of the enemy in front. Salutations to Rudr Dev who attacks distant enemies. Salutations to destroyer or annihilating Rudr Dev. Salutations to Rudr Dev who's hair colour is green like the tree leaves. Salutations to savoir of the world Rudr Dev.
नमः शम्भवाय च मयोभवाय च नमः शङ्कराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च॥
सुख रूप रुद्र देव को नमस्कार है। कल्याण रूप रुद्र देव को नमस्कार है। सभी प्रकार से कल्याण करने वाले रुद्र देव को नमस्कार है, शिव स्वरूप रुद्र देव को नमस्कार है, अत्यन्त पवित्र रूप रुद्र देव को नमस्कार है।[यजुर्वेद 16.41]
Salutations to Rudr Dev granting comfort-pleasure, resorting to welfare of all kinds, possessing the form of Shiv & highly pious Rudr Dev.
नमः पार्याय चावार्याय च नमः प्रतरणाय चोत्तरणाय च नमस्तीर्ध्याय च कूल्याय च नमः शष्याय च फेन्याय च॥
संसार-सागर से पार रुद्र देव को नमस्कार है, संसार सागर के मध्य में मनुष्य रूप से उत्पन्न रुद्र देव को नमस्कार है, उत्कृष्ट मन्त्रों के जप से तारने वाले रुद्र देव के लिये नमस्कार है, उत्कृष्ट तत्त्व ज्ञान द्वारा तारने वाले रुद्र देव के निमित्त नमस्कार है, तीर्थ रूप रुद्र देव के लिये नमस्कार है, गंगादि नदियों के तट पर उत्पन्न होने वाले रुद्र देव के लिये नमस्कार है, कुशादि के रूप में उत्पन्न होनेवाले रुद्रदेव को नमस्कार है, फेन में उत्पन्न होने वाले रुद्र देव के लिये नमस्कार है।[यजुर्वेद 16.42]
Salutations to Rudr Dev across, middle of the ocean type world. Salutations to Rudr Dev who help swim across the world through Mantr Shakti, excellent gist-extract of enlightenment, pilgrimage, bathing in holy rivers like Ganga, Kush grass and the froath-foam.
नमः सिकत्याय च प्रवाह्याय च नमः किꣳशिलाय च क्षयणाय च नमः कपर्दिने च पुलस्तये च नम इरिण्याय च प्रपथ्याय च॥
नदी आदि की रेती में उत्पन्न होने वाले रुद्र देव के लिये नमस्कार है, नदी आदि के प्रवाह में उत्पन्न होने वाले रुद्र देव को नमस्कार है। कंकड़ादि छोटे पत्थरों में उत्पन्न होने वाले रुद्र देव को नमस्कार है, जटा जूट धारी रुद्र के लिये नमस्कार है, सर्वान्तरयामी रुद्र देव को नमस्कार है। तृणादि रहित ऊसर भूमि में उत्पन्न होने वाले रुद्र देव को नमस्कार है, जिस मार्ग से बहुत से लोग आते-जाते हों, ऐसे मार्ग पर उत्पन्न रुद्र देव के लिये नमस्कार है।[यजुर्वेद 16.43]
Salutations to Rudr Dev evolving in the sand of river, river flow, pebbles, having matted hair, aware of all time segments. Salutations to Rudr Dev who evolve in the barren land having no straw or the road over which people walk.
नमो व्रज्याय च गोष्ठयाय च नमस्तल्प्याय च गेह्याय च नमो हृदय्याय च निवेष्याय च नमः काट्याय च गह्वरेष्ठाय च॥
गो समूह में उत्पन्न होने वाले रुद्र देव को नमस्कार है। गोशाला में उत्पन्न होने वाले रुद्र देव को नमस्कार है। शय्या में उत्पन्न होने वाले रुद्र देव को नमस्कार है, गर्भ गृह में उत्पन्न होने वाले रुद्र देव को नमस्कार है, हृदय में उत्पन्न होने वाले रुद्र देव को नमस्कार है। ओस की बूँदों में उत्पन्न होने वाले रुद्र देव को नमस्कार है, दुर्गम देश में उत्पन्न होने वाले रुद्र देव को नमस्कार है, कुएँ में उत्पन्न होने वाले रुद्र देव को नमस्कार है, पर्वतों के गुफाओं में उत्पन्न होने वाले रुद्र देव को नमस्कार है।[यजुर्वेद 16.44]
Salutations to Rudr Dev who evolve in the cow herd, cow shed. Salutations to Rudr Dev evolving over the bed, basement, heart, dew drops, distant places, well, caves in the mountains.
नमः शुष्क्याय च हरित्याय च नमः पाꣳसव्याय च रजस्याय च नमो लोप्याय चोलप्याय च नमऽऊर्व्याय च सूर्य्याय च॥
सूखे काष्ठादि में उत्पन्न होने वाले रुद्र देव को नमस्कार है, हरे रंग के पत्तों में उत्पन्न होने वाले रुद्र देव को नमस्कार है, वडावानल में उत्पन्न होने वाले रुद्र देव को नमस्कार है, कल्पान्त में महा प्रलय की भयंकर अग्नि में उत्पन्न होने वाले रुद्र देव को नमस्कार है।[यजुर्वेद 16.45]
Salutations to Rudr Dev who evolve in dry wood, green leaves, fire beneath ocean, in the terrifying fire during the termination of the annihilation.
नमः पर्णाय च पर्णशदाय च नम उद्गुरमाणाय चाभिघ्नते च नम आखिदते च प्रखिदते च नम इषुकृद्भ्यो धनुष्कृद्धयश्च वो नमो नमो वः किरिकेभ्यो देवानाꣳ हृदयेभ्यो नमो विचिन्वत्केभ्यो नमो विक्षिणत्केभ्यो नम आनिर्हतेभ्यः॥
पर्ण रूप रुद्र को नमस्कार है, पतित पर्ण में विराजमान रुद्र देव को नमस्कार है। उद्यमशील को नमस्कार है, शत्रुओं को मारने वाले को नमस्कार है, सभी प्रकार से अभक्तों को दुःख देनेवाले को नमस्कार है, पापियों को अत्यन्त कष्ट देने वाले को नमस्कार है, बाण बनाने वाले रुद्र को नमस्कार है, धनुष का निर्माण करने वाले रुद्र को नमस्कार है, वर्षा द्वारा जगत् को उत्पन्न करने वाले रुद्रदेव को नमस्कार है, देवताओं के हृदय रूप रुद्र देव को नमस्कार है, धर्मात्माओं और पापियों को अलग-अलग करने वाले रुद्र देव के लिये नमस्कार है, पापों को नष्ट करने वाले रुद्र देव को नमस्कार है, सृष्टि के समय अग्नि-वायु-सूर्य आदि के रूप में उत्पन्न होने वाले रुद्र देव को नमस्कार है।[यजुर्वेद 16.46]
Salutations to Rudr forming leaves or present in the fallen leaves. Salutations to Rudr Dev making efforts-endeavours, destroy the enemy, torture-pain sinners & all those who are not incline to devotion. Salutations to Rudr Dev maker of bow & arrows, forms the universe during rains, forms the heart of demigods-deities. Salutations to Rudr Dev who segregate the virtuous and sinners and destroys the sins. Salutations to Rudr Dev who appear as fire, air, Sun at the time of evolution.(20.06.2025)
द्रापे अन्धसस्पते दरिद्र नीललोहित। आसां प्रजानामेषां पशूनां मा भेर्मा रोड्यो च नः किंचनाममत्॥
हे पापियों को दुर्गति देने वाले, हे सोम के रक्षक! हे महाअकिंचक! हमारी प्रजाओं-पुत्रों और गौ आदि पशुओं को भय न प्रदान करो, उन्हें बीमार ना करो, हमारा कोई भी पशु किसी रोग से रुग्ण न हो।[यजुर्वेद 16.47]
जो धनाढ्य हैं, वे दरिद्रों का पालन करें तथा जो राजा और प्रजा के पुरुष हैं, वे प्रजा के पशुओं को कभी न मारें, जिससे प्रजा में सब प्रकार सब का सुख बढ़े।
दुर्गति :: कष्ट, मुसीबत, अभाग्य, विगति, आफ़त; misery, misadventure, misfortune, catastrophe.
अकिंचन :: बहुत गरीब, दरिद्र; pauper, destitute.
Hey protector of Som, causing misfortune to sinners! Do not cause fear to our subjects, sons, cows, animals, do not cause-afflict them with illness, including our animals.
इमा रुद्राय तवसे कपर्दिने क्षयद्वीराय प्र भरामहे मतीः। यथा शमसद् द्विपदे चतुष्पदे विश्वं पुष्टं ग्रामेऽ अस्मिन्ननातुरम्॥
हम इन स्तुतियों द्वारा बलवान्, जटा-जूट धारी तथा शत्रु-हन्ता रुद्र देव की स्तुति करते हैं, जिससे हमारे दो पैरों वाले मनुष्यों तथा चार पैर वाले गाय आदि पशुओं का कल्याण हो। हमारे गाँव में सभी लोग स्वस्थ और आपत्तियों से रहित हों।[यजुर्वेद 16.48]
We worship mighty, Rudr Dev, having matted hair, slayer of the enemy with these hymns for the welfare of two legged humans and four legged animals. Let residents in our village be healthy and free from all troubles.
या ते रुद्र शिवा तनूः शिवा विश्वाहा भेषजी। शिवा रुतस्य भेषजी तया नो मृड जीवसे॥
हे रुद्र देव! आपका जो मंगलकारी स्वरूप है, जो जगत् को रोग मुक्त करने वाला ओषधि रूप है, उसी स्वरूप से हमारे जीवन को सुखमय बनायें।[यजुर्वेद 16.49]
Hey Rudr Dev! Let your auspicious form as medicine, which make the world free from diseases and it should make us comfortable-grant us pleasure.
परि नो रुद्रस्य हेतिर्वृणक्तु परि त्वेषस्य दुर्मतिरघायोः।
अव स्थिरा मघवद्भयस्तनुष्व मीद्वस्तोकाय तनयाय मृड॥
रुद्र देव के सम्पूर्ण आयुध हमारा परित्याग कर दें। उनकी हिंसक बुद्धि हमको सब प्रकार से त्याग दे। हे अभीष्ट फल प्रदायक रुद्र देव! वैभवशाली याजक के डर के निवारणार्थ अपने धनुष को ज्या रहित कर दें तथा हमारे पुत्र-पौत्रादि के निमित्त सुख-सौभाग्य प्रदान करें।[यजुर्वेद 16.50]
Let all weapons of Rudr Dev spare us. His violent attitude should spare us. Hey Rudr Dev accomplishing desires! Make your bow stringless to remove the fear of Yajak possessing grandeur. Grant comforts-pleasure, good luck to our sons & grand sons.
मीढुष्टम शिवतम शिवो नः सुमना भव। परमे वृक्ष आयुधं निधाय कृत्तिं वसान आचर पिनाकम्बिभ्रदा गहि॥
हे अभीष्ट फल प्रदायक रुद्र देव! आप हमारे लिए अत्यन्त शुभकारी हैं। आप हम पर प्रसन्न हो। अपने आयुधों को ऊँचे पेड़ पर रखकर, शस्त्र विहीन होकर चर्मरूप परिधान धारण करके पधारें। आप ज्या तथा बाणों से रहित धनुष को मात्र शोभा के निमित्त धारण करके यहाँ आगमन करें।[यजुर्वेद 16.51]
Hey Rudr Dev accomplishing desires! You are extremely auspicious to us. Be happy with us. Hang your weapons over a tall tree and come to us wearing skin. Come with your bow without string and arrow, just using it as a piece of decoration.
विकिरिद्र विलोहित नमस्तेअस्तु भगवः। यास्ते सहस्त्रꣳ हेतयोऽन्यमस्मन्नि वपन्तु ताः॥
हे शुद्ध स्वरूप रुद्र देव! हे बाणों को बरसाने वाले, हे भगवन्! आपको नमस्कार है, आपके आयुध रूप जो हजारों बीमारियाँ हैं, वे हमारे शत्रुओं को आक्रान्त करें।[यजुर्वेद 16.52]
Hey Rudr Dev a from of purity! Hey Lord showing arrows! We salute you. Your weapons in the form of diseases-aliments should harm over enemies.
सहस्त्राणि सहस्त्रशो बाह्वोस्तव हेतयः। तासामीशानो भगवः पराचीना मुखा कृधि॥
हे रुद्र देव! आपकी भुजाओं में असंख्यों तरह के खड्ग-शूलादि शस्त्र हैं। हे भगवन्! आप इन विनाशक शस्त्रों के मुख को हमारी विपरीत दिशा में फेर दें, जिससे इनके द्वारा हमें कोई नुकसान न पहुँचे।[यजुर्वेद 16.53]
शूल :: विकट पीड़ा, कांटा, कीला, त्रिशूल, spike, colic, spear.
Hey Rudr Dev! Your arms-hands, possess innumerable weapons like swords, spikes and spears. Hey God! Divert these destructive weapons in other directing so that they do not harms us.
असंख्याता सहस्त्राणि ये रुद्रा अधि भूम्याम्। तेषाꣳ सहस्त्रयोजनेऽव धन्वानि तन्मसि॥
जो असंख्य रुद्र भूमि पर स्थित है, उनके धनुषों की डोरियों को हम उतारने की प्रार्थना करते हैं।[यजुर्वेद 16.54]
We pray innumerable Rudr present over he earth to remove the string of their bows.
अस्मिन् महत्यर्णवेऽन्तरिक्षे भवा अधि। तेषाꣳ सहस्त्रयोजनेऽव धन्वानि तन्मसि॥
जो इस अन्तरिक्ष लोक में तथा विस्तीर्ण समुद्र में प्रलयंकारी रुद्र गण हैं, हे महारुद्र! उनके धनुषों को ज्या रहित करके हमसे दूर रखें।[यजुर्वेद 16.55]
Hey Maha Rudr! Make the bows of annihilation causing Rudr Gan, present in the space and vast ocean, without string and keep them away from us.
नीलग्रीवाः शितिकण्ठा दिवꣳ रुद्रा उपश्रिताः।
तेषाꣳ सहस्त्र योजनेऽव धन्वानि तन्मसि॥
जो नील वर्ण की ग्रीवा वाले तथा श्वेत कंठ धारी रुद्र गण स्वर्ग लोक में स्थित हैं, हे महारुद्र! उनके धनुषों को हमसे हजारों योजन दूर स्थित करें।[यजुर्वेद 16.56]
Hey Maha Rudr! Keep the bows of Rudr Gan present in the heavens with blue neck and white throat, away from us thousands of Yojans.
नीलग्रीवाः शितिकण्ठाः शर्वाऽधः क्षमाचराः। तेषाꣳ सहस्त्रयोजनेऽव धन्वानि तन्मसि॥
जो नीली ग्रीवा वाले तथा श्वेत कंठ वाले रुद्रगण पृथ्वी के नीचे विचरण करते हैं, हे महारुद्र। उनके धनुषों को हमसे सहस्त्र योजन दूर प्रत्यञ्चारहित रखें।[यजुर्वेद 16.57]
Hey Maha Rudr! Keep the bows of Rudr Gan with blue neck and white throat roaming below the earth, away from us by thousands of Yojans free from string-cord.
ये वृक्षेषु शष्पिञ्जरा नीलग्रीवा विलोहिताः। तेषाꣳ सहस्त्र योजनेऽव धन्वानि तन्मसि॥
जो नीली गर्दन वाले, हरित वर्ण के तेज से युक्त, पाप रहित रुद्रगण वृक्षादि में प्रतिष्ठित हैं, हे महारुद्र! उनके सब धनुषों को प्रत्यञ्चा रहित करके हमसे सहस्त्र योजन दूर स्थापित करें।[यजुर्वेद 16.53]
Hey Maha Rudr! Make the bows of Rudr Gan present in thee trees etc. without string-cord, distancing them away from us by thousands of Yojans.
ये भूतानामधिपतयो विशिखासः कपर्दिनः। तेषाꣳ सहस्त्रयोजनेऽव धन्वानि तन्मसि॥
हे महा रुद्र! जो समस्त प्राणियों के संरक्षक हैं, मुण्डित शीश वाले तथा जटा-जूट धारी हैं, उन रुद्र गणों के सब धनुषों को ज्या रहित करके हमसे दूर रखें।[यजुर्वेद 16.59]
Hey Maha Rudr! Keep the Rudr Gan who are protector of living being, having bald head and those with matted hairs, making their bows free from cords-strings.
ये पथां पथिरक्षयऐलबृदा आयुर्युधः। तेषाꣳ सहस्त्रयोजनेऽव धन्वानि तन्मसि॥
जो रुद्र गण विभिन्न पथों के पथिकों के संरक्षक हैं तथा अन्नादि के द्वारा प्राणियों को परिपुष्ट करने वाले हैं एवं आजीवन युद्ध करने में संलग्न रहते हैं, हे महा रुद्र! उनके सब धनुषों को हमसे सहस्त्र योजन दूर प्रत्यञ्चा रहित रखें।[यजुर्वेद 16.60]
Hey Maha Rudr! Make the bows of Rudr Gan who are the patrons of the walkers over different roads nourishing them with food grains, without strings, distancing us by thousands of Yojans, .
ये तीर्थानि प्रचरन्ति सृकाहस्ता निषङ्गिणः। तेषाꣳ सहस्त्रयोजनेऽव धन्वानि तन्मसि॥
जो रुद्र गण पाश और खड्ग धारण करके काशी, प्रयागादि तीर्थों में विचरते हैं, हे महा रुद्र! उनके सब धनुषों को प्रत्यञ्चाहीन करके हमसे हजारों योजन दूर स्थापित करें।[यजुर्वेद 16.61]
पाश :: वह वस्तु जिसमें कोई वस्तु आदि फँसाई जा सके, रस्सी से बनाया गया फंदा, खंड, टुकड़ा; loop.
Hey Maha Rudr! Make the Rudr Gan free from Loops and swords, who roam in Kashi and Prayag etc., making their bows stringless, distancing them away from us by thousands of Yojans.
येऽन्नेषु विविध्यन्ति पात्रेषु पिबतो जनान्। तेषाꣳ सहस्त्रयोजनेऽव धन्वानि तन्मसि॥
जो रुद्रगण अन्न का भक्षण करने वाले प्राणियों को विशेष रूप से ताड़ित करते हैं, रोग से पीड़ित करते हैं तथा बर्तनों में जल, दुग्ध आदि का पान करने वालों को कष्ट देते हैं, हे महारुद्र! उनके सब धनुषों को प्रत्यञ्चा रहित करके हमसे हजारों योजन दूर स्थापित करें।[यजुर्वेद 16.62]
Hey Maha Rudr! Make the bows of Rudr Gan who tease-torture the living beings eating food grains, with illness, without string and distance them away from us by thousands of Yojans.
य एतावन्तश्च भूयासश्च दिशो रुद्रा वितस्थिरे। तेषाꣳ सहस्त्रयोजनेऽव धन्वानि तन्मसि॥
जो रुद्रगण दिशाओं-विदिशाओं में स्थित हैं, हे महा रुद्र! उनके सब धनुषों को ज्या-रहित करके हमसे हजारों योजन दूर स्थापित करें।[यजुर्वेद 16.63]
Hey Maha Rudr! Make the bow of Rudr Gan present in various directions, without string and distance them away from us by thousands of Yojans.
नमोऽस्तु रुद्रेभ्यो ये दिवि येषां वर्षमिषवः। तेभ्यो दश प्राचीर्दश दक्षिणा दश प्रतीचीर्दशोदीचीर्दशोर्ध्वाः। तेभ्यो नमो अस्तु ते नोऽवन्तु ते नो मृडयन्तु ते यं द्विष्मो यश्च नो द्वेष्टि तमेषां जम्भे दध्मः॥
उन रुद्र गणों के लिए नमस्कार है, जो स्वर्ग लोक में प्रतिष्ठित हैं; जिनके बाण वृष्टि धाराएँ हैं। उन्हें पूर्व में, दक्षिण में, पश्चिम में, उत्तर में तथा ऊर्ध्व दिशा में हाथ जोड़कर नमस्कार करते हैं। वे रुद्र गण हमारी सुरक्षा करें एवं सुखी करें। जिनसे हम विद्वेष करते हैं तथा जो हमसे विद्वेष करते हैं, उन्हें हम रुद्रगणों के भयंकर मुख में डालते हैं।[यजुर्वेद 16.64]
Salutations to the Rudr Den present in the heavens, who's arrows from the streams of rains. We salute them in east, west, north, south and upward directions with folded hands. Rudr Gan should protect us and make us comfortable. Rudr Gan swallow-engulf in their furious mouths, those who envy us or we are envious to them.
नमोऽस्तु रुद्रेभ्यो येऽअन्तरिक्षे येषां वात इषवस्तेभ्यो दश प्राचीर्दश दक्षिणा दश प्रतीचीर्दशोदीचीर्दशोर्ध्वास्तेभ्यो नमो अस्तु ते नोऽवन्तु ते नो मृडयन्तु ते यं द्विष्मो यश्च नो द्वेष्टि तमेषां जम्भे दध्मः॥
उन रुद्र गणों के निमित्त नमस्कार है, जो अन्तरिक्ष लोक में स्थित हैं, वायु जिनके बाण हैं। उन्हें पूर्व दिशा में, दक्षिण दिशा में, पश्चिम दिशा में, उत्तर दिशा में तथा ऊर्ध्व दिशा में दसों अंगुलियाँ (हाथ) जोड़कर नमस्कार करते हैं। वे रुद्र गण हमें संरक्षण प्रदान करें एवं हमें सुखी बनायें। जिनसे हम ईर्ष्या करते हैं तथा जो हमसे ईर्ष्या करते हैं, उन्हें हम रुद्रगणों भयंकर मुख में डालते हैं।[यजुर्वेद 16.65]
Salutations to Rudr Gan present in the space with air as their arrows. We salute them in east, west, north, south and upward direction, folding our ten fingers. Let Rudr Gan grant us asylum and make us comfortable-happy. Rudr Gan swallow-engulf in their furious mouths, those who envy us or we are envious to them.
नमोऽस्तु रुद्रेभ्यो ये पृथिव्यां येषामन्नमिषवः। तेभ्यो दश प्राचीर्दश दक्षिणा दश प्रतीचीर्दशोदीचीर्दशोर्ध्वाः। तेभ्यो नमो अस्तु ते नोऽवन्तु ते नो मृडयन्तु ते यं द्विष्मो यश्च नो द्वेष्टि तमेषां जम्भे दध्मः॥
उन रुद्र गणों के निमित्त नमस्कार है, जो पृथ्वी पर स्थित हैं, जिनके बाण अन्न हैं। उन्हें पूर्व दिशा में, दक्षिण दिशा में, पश्चिम दिशा में, उत्तर दिशा में तथा ऊर्ध्व दिशा में दसों अंगुलियाँ (हाथ) जोड़कर नमस्कार करते हैं। वे रुद्रगण हमें संरक्षण प्रदान करें एवं हमें सुखी बनायें। जिनसे हम ईर्ष्या करते हैं तथा जो हमसे ईर्ष्या करते हैं, उन्हें हम रुद्रगणों के भयंकर मुख में डालते हैं।[यजुर्वेद 16.66]
Salutations to Rudr Gan present over the earth and their arrows forms the food grains. We salute them in east, west, north, south and upwards directions with folded ten fingers. Let them grant us protection making us happy-comfortable. Rudr Gan swallow-engulf in their furious mouths, those who envy us or we are envious to them.(27.06.2025)
यजुर्वेद संहिता, सप्तदश, अध्याय :: ऋषि :- मेधातिथि, वसूयुव, भरद्वाज, लोपामुद्रा, विश्वकर्मा, अप्रतिरथ, विश्वावसु, मधुत्तन्दा, सुतजेता, विधृति, कुत्स, कण्व, गृत्समद, वसिष्ठ, परमेष्ठी, सत ऋषय, वामदेव; देवता :- मरुत्, अग्नि, प्राण, विश्वकर्मा, इन्द्र, योद्धागण, इन्द्र बृहस्पत्यादय, सोमवरुणदेवा, दिग, यज्ञ, आदित्या, इन्द्र और अग्नि, सविता, चातुर्मास्या मरुत्. यज्ञ पुरुष; छन्द :- शक्वरी, कृति, पंक्ति, गायत्री, त्रिष्टुप्, बृहती, जगती, अनुष्टुप्, उष्णिक्।
अश्मन्नूर्जं पर्वते शिश्रियाणामद्भय ओषधीभ्यो वनस्पतिभ्यो अधि सम्भृतं पयः। तां न इषमूर्ज धत्त मरुतः सꣳरराणा अश्मँस्ते क्षुन् मयि त ऊग्र्यं द्विष्मस्तं ते शुगृच्छतु॥
हे मरुद्गण! आप हमें अन्नादि से युक्त करने में समर्थ हैं। आप पहाड़ों के आश्रय में रहने वाली वर्षा, जल, ओषधियों, वनस्पतियों से निकलने वाले रसों को एवं उत्कृष्ट अन्न तथा तेज को हमें प्रदान करें। हे सर्व भक्षी (सब कुछ आत्मसात् कर लेने वाले) अग्नि देव! आपकी भूख शान्त हो अर्थात् अत्यधिक हविष्य ग्रहण करें। आपका साररूप अंश हमें उपलब्ध हो। जो हमसे विद्वेष करते हैं अर्थात् जो हमारे शत्रु हैं, उन पर आपके क्रोध का प्रभाव पड़े।[यजुर्वेद 17.1]
Hey Marud Gan! You are capable of granting us food grains. Grant us the rains dependent over mountains, water, medicines-herbs, extracts-juices, saps obtained from vegetation in addition to Tej-aura, energy. Hey Agni Dev eater of every thing! Let your appetite be satisfied i.e., accept the offerings to maximum level. We should attain your extract-gist. Those who envy us should face your anger.
इमा मे अग्न इष्टका धेनवः सन्त्वेका च दश च दश च शतं च शतं च सहस्त्रं च सहस्त्रं चायुतं चायुतं च नियुतं च नियुतं च प्रयुतं चार्बुदं च न्यर्बुदं च समुद्रश्च मध्यं चान्तश्च परार्द्धश्चैता मे अग्न इष्टका धेनवः सन्त्वमुत्रामुष्मिँल्लोके॥
हे अग्नि देवता! ये इष्टकायें अर्थात् समर्पित हविष्यान्न की सूक्ष्म इकाइयाँ हमारे निमित्त मनोवांछित फल प्रदान करने वाली कामधेनु गौरूप हो जायें, ये इष्टकायें एक, एक से दस गुणित होकर दस, दस की दस गुणित होकर सौ, सौ की दस गुणित होकर सहस्र (हजार), सहस्र की दस गुणित होकर अयुत (दस हजार), अयुत की दस गुणित होकर नियुत (लक्ष), नियुत की दस गुणित होकर प्रयुत (दस लाख), प्रयुत की दस गुणित होकर कोटि (करोड़), कोटि की दस गुणित होकर अर्बुद (दस करोड़), अर्बुद की दस गुणित होकर न्यर्बुद (अरब) इसी तरह दस के गुणक में बढ़ती हुई न्यर्बुद की दस गुणित खर्व (दस अरब), खर्व की दस गुणित पद्म (खरब), पद्म की दस गुणित महापद्म (दस खरब), महापद्म की दस गुणित शंकु (नील), शंकु की दस गुणित समुद्र (दस नील), समुद्र की दस गुणित मध्य (शंख-पद्म), मध्य की दस गुणित अन्त (दस शंख) तथा अन्त की दस गुणित होकर परार्द्ध (लक्ष-लक्ष कोटि) संख्या तक बढ़ जायें। ये बढ़ी हुई इष्टकायें हमारे निमित्त इस लोक में तथा परलोक में सभी प्रकार से मनोवांछित फल प्रदान करने वाली कामधेनु गौरूप हो जायँ।[यजुर्वेद 17.2]
Hey Agni Dev! These bricks i.e., the micro units of offerings-oblations should turn into Kam Dhenu, the cow who accomplish all desires increasing in multiples of ten reaching the ultimate numbers in counting, accomplishing the desired rewards in this and the next abode-birth, incarnation.
ऋतवः स्थ ऋतावृध ऋतुष्ठाः स्थ ऋतावृधः। घृतश्च्युतो मधुश्च्युतो विराजो नाम कामदुघा अक्षीयमाणाः॥
हे इष्टके! आप वसन्तादि ऋतुओं के स्वरूप वाली, यज्ञ को बढ़ाने वाली और प्रत्येक ऋतु के यज्ञ में स्थिर रहने वाली हो। तुम घृत क्षरण करने वाली, मधु चुआने वाली, विराज संज्ञका और कभी क्षीयमाण न होने वाली लोकम्पूर्णा ईंटें साक्षात् काम धेनु हैं।[यजुर्वेद 17.4]
क्षरण :: क्षय, विनाश, टपकना, चूना, फूट निकलना, क्षीण होना, रिसना; corrosion, ambrosia, dripping, distillatory, leak.
Hey brick! You posses the form of spring and other seasons, remain stationary-rigid during every season. You are named Viraj, never decaying-corroding, ambrosia, absorbing Ghee and release honey, like Kam Dhenu protecting-nurse the universe.समुद्रस्य त्वावकयाग्ने परि व्ययामसि। पावको अस्मभ्यꣳ शिवो भव॥
हे अग्ने! हम आपको सागर के शैवाल आदि से घेरकर रक्षित रखते हैं। जीवन को पावन बनाते हुए आप हमारे निमित्त मंगलकारी सिद्ध हों।[यजुर्वेद 17.4]
Hey Agni! We surround you with the ocean algae-moss of the ocean to protect. Make our lives pious and prove auspicious for us.
हिमस्य त्वा जरायुणाग्ने परि व्ययामसि। पावको अस्मभ्यꣳ शिवो भव॥
हे अग्ने! हिम के जरायुवत् अर्थात् संरक्षक आवरण के द्वारा सब ओर से घेरकर आपको सुरक्षित रखते हैं। जीवन को पवित्र बनाते हुए आप हमारा कल्याण करें।[यजुर्वेद 17.5]
Hey Agne! We keep you safe with protective shield. Make our lives pious and resort to our welfare-well being.
उप ज्मन्नुप वेतसेऽवतर नदीष्वा। अग्ने पित्तमपामसि मण्डूकि ताभिरागहि सेमं नो यज्ञं पावकवर्णꣳ शिवं कृधि॥
हे अग्ने! पृथ्वी के ऊपर आगमन करें तथा वेतस् (बड़वानल) के साथ नदियों में प्रवाहित हों; क्योंकि आप जलों के तेज स्वरूप हैं। हे मेंढ़की! तुम भी अग्नि का अनुकरण करते हुए भूमि से बाहर निकलकर जल में प्रविष्ट हो। हमारे इस यज्ञ को पावन तथा मंगलकारी बनाओ।[यजुर्वेद 17.6]
Hey Agne! You should move with the river in the form of Badvanal-ocean fire, since you are a form of water. Hey female frog! Follow the fire and come out of the earth to enter water. Make our Yagy pious and auspicious.
अपामिदं न्ययनꣳ समुद्रस्य निवेशनम्। अन्याँस्ते अस्मत्तपन्तु हेतयः पावको अस्मभ्यधं शिवो भव॥
यह अग्नि जल के उद्गम स्थान सागर में बड़वाग्नि के रूप में प्रतिष्ठित है। हे अग्नि देव! आपकी ज्वालाएँ हमें संतप्त न करके हमारे रिपुओं को संतप्त करें। आप हमारे निमित्त पवित्रताप्र दायक तथा मंगल रूप सिद्ध हों।[यजुर्वेद 17.7]
This fire-Agni is established in the ocean in the form of Badvanal. Hey Agni Dev! Your flames should not torture us, instead the enemy should be tortured. You should grant us purity-piousness and be auspicious to us.
अग्ने पावक रोचिषा मन्द्रया देव जिह्वया। आ देवान वनि यक्षि च॥
हे अग्नि देव! आप सबको पवित्रता प्रदान करने वाले तथा दिव्य गुणों से युक्त हैं। आप अपने देदीप्यमान, प्रसन्नतादायक ज्वालाओं रूप मधुर जीभ से देवताओं का आवाहन करें तथा पूजन करें।[यजुर्वेद 17.8]
Hey Agni Dev! You grant purity-piousness to all and has divine traits-characterises. Invoke the demigods-deities with your blissful flames in the form of tongue and wordship-pray to them.
स नः पावक दीदिवोऽग्ने देवॉ2इहा वह। उप यज्ञꣳ हविश्व नः॥
हे पवित्र करने वाले, दीप्तिमान् अग्नि देव! आप देवताओं को हमारे इस यज्ञ कर्म में आहूत करें तथा यज्ञ के निकट अधिष्ठित करें और उन्हें हव्य पदार्थ अर्पित करायें।[यजुर्वेद 17.9]
Hey purifying illuminated Agni Dev! Make sacrifices to demigods-deities in our Yagy Karm, establish them near the Yagy site and make offerings-oblations to them.(28.06.2025)
पावकया यश्चितयन्त्या कृपा क्षामन् रुरुचऽ उषसो न भानुना।
तूर्वन्न यामन्नेतशस्य नू रण आ यो घृणे न ततृषाणो अजरः॥
जो अग्नि देव पावन करने वाली लपटों से प्रदीप्त हैं, वे पृथ्वी मण्डल पर वैसे ही शोभायमान होते हैं, जिस प्रकार उषाकाल सूर्य की किरणों से सुशोभित होता है। वे अग्नि देव पूर्णाहुति काल में प्रखरता पूर्वक तेजोमंडित होकर संग्राम में रिपुओं का वध करने वाले गतिशील घोड़े पर विराजमान शूरवीर सेनापति के समान अपने तेज से शोभायमान होते हैं।[यजुर्वेद 17.10]
Agni Dev is illuminated with the purifying flames. He is glorified over the earth like the Sun days during dawn-Usha Kal. At the time of final sacrifice glittering-shining Agni Dev rides the accelerated horse in the war, like the general to kill the enemies.
नमस्ते हरसे शोचिषे नमस्ते अस्त्वर्चिषे।
अन्याँस्ते अस्मत्तपन्तु हेतयः पावको अस्मभ्यꣳ शिवो भव॥
हे अग्नि देव! आपकी देदीप्यमान् लपटें सभी रसों को आकृष्ट करने वाली हैं। ऐसे आपके तेज को नमस्कार है। आपकी ज्वालाएँ हमें छोड़कर अन्यान्य रिपुओं को संतप्त करें। आप हमारे निमित्त पवित्रता प्रदान करनेवाले तथा मंगलकारी हों।[यजुर्वेद 17.11]
Hey Agni Dev! Your shining rays attract all sorts of saps-juices. Salutations to your aura-radiance. Your flames should spare us and torture the enemies. You should be auspicious & purifying to us.
नृषदे वेडप्सुषदे वेड् बर्हिषदे वेड् वनसदे वेट् स्वर्विदे वेट्॥
यजमान स्वयमातृण्णा ईंटों पर पाँच आहुतियाँ देते हुए बोले, यह अग्नि मानवों में जठराग्नि के रूप में स्थित प्राणरूप हैं, उसके लिए यह हवि अर्पित है। यह अग्नि समुद्रादि के जल के मध्य में बड़वानल के रूप में स्थित हैं, उसके निमित्त यह हवि समर्पित है। यह अग्नि यज्ञीय कुशादि के ऊपर अथवा ओषधि में निवास करती है, उसके निमित्त यह आहुति समर्पित है। यह अग्नि वृक्षादि के समूह में दावानल रूप में स्थित है, उसके लिए यह आहुति समर्पित है। यह अग्नि स्वर्ग लोक में अधिष्ठित सूर्य रूप में प्रख्यात है, उसके निमित्त यह आहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 17.12]
Yajman should make five sacrifices to the bricks named Svaymatrnna and say, This sacrifice is for the Jathragni present in humans as Air Vital. This sacrifice is for the Badvanal present in the ocean water. This sacrifice is for Agni present in the Kush meant for the Yagy and resides in the medicines-herbs. This sacrifice is for Agni present in the trees as Dawanal. This sacrifice is for the Sun established in the heavens.
ये देवा देवानां यज्ञिया यज्ञियानाꣳ संवत्सरीणमुप भागमासते।
अहुतादो हविषो यज्ञे अस्मिन्त्स्वयं पिबन्तु मधुनो घृतस्य॥
जो देवता गण स्वाहाकार दिये बिना ही हव्य पदार्थ का भक्षण करते हैं, वे प्राण रूप देवता गण इस चयन रूप यज्ञ में मधु, घी आदि हविष्यान्न के अंश का स्वाहाकार के बिना ही सेवन करें। जो देवता गण पूजन के लिए अधिष्ठित देवताओं के बीच दीप्तिमान् हैं, वे संवत्सर के अन्त में होने वाले यज्ञ के हवि भाग का पान करते हैं।[यजुर्वेद 17.13]
The demigods-deities in the form of Air Vital, who eat the oblations without Swahakar-sacrifice, eat honey & ghee as a portion of offerings without Swahakar. The demigods who are present-glorified amongest the deities for worship, sip-accept the share of Yagy at the ends of Sanwatsar.
ये देवा देवेष्वधि देवत्वमायन्ये ब्रह्मणः पुरऽएतारो अस्य।
येभ्यो नऋते पवते धाम किञ्चन न ते दिवो न पृथिव्या अधि स्नुष॥
जिन प्राण रूप देवताओं ने इन्द्रादि के सदृश देवत्व का अधिकार प्राप्त किया है, जो आत्माग्नि के सामने संचरण करते हैं, जिनके बिना शरीर तनिक भी गति नहीं कर सकता, वे प्राण न स्वर्गलोक में हैं तथा न ही भूलोक में हैं, बल्कि प्रत्येक इन्द्रिय में स्थित हैं।[यजुर्वेद 17.14]
The demigods who have hold over demigodhood like Dev Raj Indr, who move like the Atmagni, without whom the body cannot move, these Air Vital are neither present in the heavens nor earth, instead they occupy the sense organs.(30.05.2025)
प्राणदा अपानदा व्यानदा वर्चीदा वरिवोदाः।
अन्याँस्ते अस्मत्तपन्तु हेतयः पावको अस्मभ्यःꣳ शिवो भव॥
हे अग्नि देव! आप यजमानों को प्राण देने वाले, अपान देने वाले, व्यान तथा सम्पूर्ण शरीर में वायु प्रदान करने वाले, बल दाता तथा धन प्रदान करने वाले हैं। हे अग्ने! आपके ज्वालारूपी आयुध हमें पवित्रता प्रदान करने वाले तथा कल्याणकारी हों एवं हमारे रिपुओं को संतापित करें।[यजुर्वेद 17.15]
Hey Agni Dev! You circulate air in the whole body, grant Air Vital, Apan, Vyan, strength and wealth to the Yajman. Hey Agne! Your weapons in the form of flames should be beneficial to us and torture the enemies.
अग्निस्तिग्मेन शोचिषा यासद्विश्वं न्यत्त्रिणम्। अग्निर्नो वनते रयिम्॥
यजमान यज्ञशाला के द्वार पर अग्नि में पाँच आहुतियाँ देते हुए बोले, ये अग्निदेव उग्र तेज से युक्त लपटों से यज्ञकर्मों में विघ्न उत्पन्न करने वाले सम्पूर्ण राक्षसों को पूर्णतया समाप्त करें तथा ये अग्निदेव हमें धन-वैभव प्रदान करके समृद्धशाली बनायें।[यजुर्वेद 17.16]
Yajman should make five sacrifices at the door of the Yagy Shala and say, "Destroy all demons completely who make disturbances in the Yagy Karm". Make us prosperous by Granting wealth and grandeur.
य इमा विश्वा भुवनानि जुह्वदृषिर्होता न्यसीदत्पिता नः।
स आशिषा द्रविणमिच्छमानः प्रथमच्छदवराँ2 आ विवेश॥
हमें परिपुष्ट करने वाले पिता रूप जो परमात्मा इन समस्त भुवनों के प्राणियों का विनाश करने वाले होकर स्वयं सूक्ष्म द्रष्टा (ऋषि) तथा यजमानों में प्रतिष्ठित रहते हैं, वे परमात्मा सबके ऐश्वर्य प्राप्ति की कामनाओं को पूर्ण करते हुए सभी को अपने अधीनस्थ रखते हैं तथा अधीनस्थ प्राणियों में प्रविष्ट हो जाते हैं।[यजुर्वेद 17.17]
परिपुष्ट :: मोटा, स्थूल; fortify, fattened, well-fed, feed-up.
The Almighty who fortify-nurture us as the father present in all abodes, destroy all living beings and establish himself as the Rishi Gan, micro visionary, grant us grandeur, accomplish our desires, keep every one under HIS control and enter all creatures.
किꣳ स्विदासीदधिष्ठानमारम्भणं कतमत् स्वित्कथासीत्।
यतो भूमिं जनयन् विश्वकर्मा वि द्यामौर्णोन्महिना विश्वचक्षाः॥
जगत् के सृजन के पहले परमात्मा किस आश्रय पर प्रतिष्ठित थे? जगत् के सृजन में प्रयोग किया जाने वाला मूल द्रव्य क्या था? कैसा था? जिससे वे विश्वकर्मा परमात्मा इस विस्तीर्ण भूलोक को निर्मित करके अपनी महान् सामर्थ्य से सारी सृष्टि को देखने वाले होकर विशिष्ट रूप से सम्पूर्ण स्वर्गलोक में व्याप्त हो जाते हैं।[यजुर्वेद 17.18]
Whom did the Almighty depend prior to creation of universe!? Which material was used for evolution of the world? What was the form of the material used for generating life. How did Vishw Karma-Almighty created the earth, became capable of seeing the whole universe-all creation and then specially-specifically pervade the entire heavens.
विश्वतश्चक्षुरुत विश्वतोमुखो विश्वतोबाहुरुत विश्वतस्पात्।
सं बाहुभ्यां धमति सं पतत्रैर्धावाभूमी जनयन्देव एकः॥
सब ओर नेत्र वाले, सभी ओर मुख वाले, सब ओर भुजाओं वाले तथा सब ओर पैर वाले उस अद्वितीय परमात्मा ने अपने बाहुओं से भूलोक तथा स्वर्गलोक को बिना आश्रय के प्रादुर्भूत किया। वे प्रकृति के परमाणुओं के संयोग अथवा वियोग से नये जगत् का सृजन करते हुए अथवा विलय करते हुए इसे सुव्यवस्थित रखते हैं। उसे किसी बाह्य उपकरण आदि की आवश्यकता नहीं रहती है।[यजुर्वेद 17.19]
The unique Almighty having eyes, mouth, hands, legs all around evolved the earth and heavens with his hands without the support of anyone. HE generated the new universe by the permutations and combinations of the atoms-molecules, in well organised manner. HE did not need any external equipment-tool.(01.07.2025M)
किꣳ स्विद्धनं क उ स वृक्ष आस यतो द्यावापृथिवी निष्टुतक्षुः।
मनीषिणो मनसा पृच्छतेदु तद्यदध्यत्तिष्ठद्भुवनानि धारयन्॥
वह जंगल कौन-सा है? वह पेड़ कौन-सा है? जिससे कि विश्वकर्मा परमात्मा ने स्वर्ग लोक तथा भूलोक की रचना की? हे बुद्धिमान् पुरुषी! विचार करके यह प्रश्न पूछो कि सम्पूर्ण लोकों को धारण करते हुए वह विश्वकर्मा देव किस स्थान पर प्रतिष्ठित था?[यजुर्वेद 17.20]
Which forest is that! Which is that tree? With which-what Vishw Karma, Almighty created the heaven and earth? Hey intelligent human! Meditate and ask where was the creator Almighty present while supporting these abodes?
या ते धामानि परमाणि यावमा या मध्यमा विश्वकर्मन्नुतेमा।
शिक्षा मखिभ्यो हविषि स्वधावः स्वयं यजस्व तन्वं वृधानः॥
हे जगत् के सृजनकर्ता परमात्मन्! हे सबके धारण कर्ता तथा पोषण कर्ता विधाता! आपके जो उत्कृष्ट, निकृष्ट तथा मध्यम श्रेणी के स्थान हैं, उन सभी को एवं हम याजकों को आप ही सखाभाव से प्रदर्शित करते हैं अर्थात् उनका बोध कराते हैं। आप ही हम सभी प्राणियों के शरीर को वृद्धि प्रदान करते हुए स्वयं ही श्रेष्ठ आहुति द्वारा यजन करें, यह कार्य दूसरे के लिए सम्भव नहीं है।[यजुर्वेद 17.21]
Hey creator of universe, God! Hey God supporter & nurturer of all! You make Yajak realise the excellent, worst and mediocre abodes, as a friend. You should perform Yagy-Pooja, while growing the bodies of living beings, making best sacrifices since none other can do it.
विश्वकर्मन् हविषा वावृधानः स्वयं यजस्व पृथिवीमुत द्याम्।
मुह्यन्त्वन्ये अभितः सपत्ना इहास्माकं मघवा सूरिरस्तु॥
हे जगत् के सृजनकर्ता परमात्मन्! हमारे द्वारा समर्पित किये गये हविरूपी अन्न से हर्षित होकर आप हमारे यज्ञ में धरती के सभी आश्रित जीवों तथा द्युलोक के आश्रित जीवों के कल्याण हेतु स्वयं यजन करें। आप सम्पूर्ण रिपुओं को अपनी शक्ति द्वारा मोहित कर लें। इस यज्ञ में देवराज इन्द्र हमारे लिए आत्मज्ञान के उपदेशक विद्वान् रूप बनें।[यजुर्वेद 17.22]
Hey creator of the universe, God! Perform-conduct Yagy, make efforts for the dependent living beings over the earth, pleased with the food grains as offerings and conduct Yagy yourself for the betterment of the habitants of heavens. Control-mesmerise the enemies with your power. Let Indr Dev become the preacher of self realisation in this Yagy as an enlightened scholar.
वाचस्पतिं विश्वकर्माणमूतये मनोजुवं वाजे अद्या हुवेम।
स नो विश्वानि हवनानि जोषद्विश्वशम्भूरवसे साधुकर्मा॥
जो महाव्रती, वाचस्पति, मन के समान गतिशील, सर्वश्रेष्ठ कर्मों के निर्माता हैं; इस यज्ञ के निमित्त हम उन इन्द्र देव का आवाहन करते हैं। उत्तम कर्म करने वाले, सबके हितकारी उन इन्द्र को हम नमस्कार करते हैं, वे हमारे हविष्यान्न को स्वीकार करें।[यजुर्वेद 17.23]
वाचस्पति :: बहुत बड़ा विद्वान्; great scholar-enlightened.
We Invoke Indr Dev for this Yagy who make great resolve, is enlightened, accelerated like the innerself, make great endeavours. We salute Indr Dev who benefit all. Let him accept our offerings of food grains.
विश्वकर्मन् हविषा वर्द्धनेन त्रातारमिन्द्रमकृणोरवध्यम्।
तस्मै विशः समनमन्त पूर्वीरयमुग्रो विहव्यो यथासत्॥
सम्पूर्ण उत्तम कार्यों को सम्पन्न करने वाले, हे विश्व कर्मा देव! आप वृद्धि करने वाले हविष्यान्न साधनों से यजमान की रक्षा करने वाले हैं। हवि के द्वारा आपने इन्द्र को अवध्य बना दिया है। ऋषियों के ज्ञान से प्रेरित साधक आपको नमस्कार करते हैं। आप विशेष आदरपूर्वक आवाहन करने योग्य हैं, इसलिए आपको सभी प्रणाम करते हैं।[यजुर्वेद 17.24]
Hey Vishw Karma, performing excellent deeds! You protect the Yajman with the food grains, which help in growth. You made Indr Dev immortal with the offerings. We salute you inspired by the knowledge of Rishis. You deserve to be invoked with great respect, hence we all salute you.
चक्षुषः पिता मनसा हि धरो घृतमेने अजनन्नम्नमाने।
यदेदन्ता अददृहन्त पूर्वआदिद् द्यावापृथिवी अप्रथेताम्॥
जगत् के आरम्भ में वसिष्ठादि पूर्वज ऋषियों द्वारा भूमण्डल तथा स्वर्ग लोक के आन्तरिक भाग को दृढ़ता प्रदान किये जाने के पश्चात्, वह दोनों लोक विस्तारित हुए। तब नेत्र आदि सम्पूर्ण इन्द्रियों के पालन कर्ता सृष्टा ने मन के द्वारा धैर्य पूर्वक स्वर्ग लोक तथा भूलोक के भीतर रस रूप जल को प्रकट किया।[यजुर्वेद 17.25]
Both heavens & earth expended after granting strength to the internal region in the beginning of the universe by Vashishth and other Rishis. The creator nurturing the eyes and all senses, patiently generated water in the heavens & earth as fluid.
विश्वकर्मा विमना आद्विहाया धाता विधाता परमोत सन्दृक्।
तेषामिष्टानि समिषा मदंति यत्रा सप्त ऋषीन् पर एकमाहुः॥
हे मनुष्यो! जगत् निर्माता विश्व कर्मा देव की शक्ति के साथ मिल कर कार्य करने वाले सप्त ऋषियों का समूह अद्वितीय है। ये श्रेष्ठ मन वाले सम्पूर्ण कर्म के ज्ञाता, आकाश में व्यापनशील, सबके धारणकर्ता तथा पोषणकर्ता, सबके उत्पादक तथा सर्वश्रेष्ठ हैं। इनकी कृपा से प्राणी अपने अभिलषित फल को प्राप्त करके आनन्दित होता है। वे परमेश्वर आहुति रूप अन्न से आनन्दित होकर परिपुष्ट होते हैं, अतः इन्हीं परमेश्वर की आराधना करो।[यजुर्वेद 17.26]
Hey humans! A unique group is formed by the Sapt Rishis who work in unison together with the might-strength of Vishw Karma. These nurturer, supporter & producer of all, possessing best innerself, aware of all Karm-efforts (endeavours, deeds), pervading the sky are excellent. The living beings are gladdened by the accomplishment of their desires-reward of their efforts. The Almighty become happy and strong with the offerings of food grains, hence worship the God.
यो नः पिता जनिता यो विधाता धामानि वेद भुवनानि विश्वा।
यो देवानां नामधा एक एव तꣳ संप्रश्नं भुवना यन्त्यन्या॥
जो परमेश्वर हम सभी के पालक तथा उत्पादक हैं, जो सबको धारण करने वाले, जो समस्त स्थलों तथा भुवनों को जानने वाले हैं, जो एक होकर भी विभिन्न देवताओं के विभिन्न नामों को धारण करते हैं। सम्पूर्ण लोकों के प्राणी समूह अन्त में उन्हीं परमात्मा में लय को प्राप्त होते हैं।[यजुर्वेद 17.27]
The Almighty who is nurturer and producer of us all, who support & is aware of all abodes, though one, yet HE assumes different names in the form of various demigods-deities. All living beings of all abodes ultimately assimilate in the God in the end-annihilation.
त आयजन्त द्रविणꣳ समस्मा ऋषयः पूर्वे जरितारो न भूना।
असूर्ते सूर्ते रजसि निषत्ते ये भूतानि समकृण्वन्निमानि॥
अन्तरिक्ष लोक में प्रत्यक्ष रूप अथवा अप्रत्यक्ष रूप से निवास करने वाले जिस परमेश्वर ने सम्पूर्ण प्राणियों का सृजन किया है, उस सृष्टा के निमित्त प्राचीन कालीन वसिष्ठादि ऋषिगण स्तुतियों द्वारा यज्ञ में महान् ऐश्वर्य अर्पित करते हैं।[यजुर्वेद 17.28]
The ancient-eternal Rishi Gan make great opulence-grandeur for the Almighty who created all living beings, while present in the space in either visible or invisible form; in the Yagy while making prayers.
परो दिवा पर एना पृथिव्या परो देवेभिरसुरैर्यदस्ति।
कꣳ स्विद् गर्भं प्रथमं दध्न आपो यत्र देवाः समपश्यन्त पूर्वे॥
जो हृदय स्थल में विद्यमान् ईश्वर का तत्त्व है, वह स्वर्ग लोक से दूर है, इस भूलोक से भी दूर है तथा देवताओं तथा असुरों से भी दूर है। जल ने सबसे पहले किस गर्भ को धारण किया? वह गर्भ कैसा आश्चर्यरूप था? जहाँ पूर्वज देवता गण (ऋषि गण) उस परमात्मा का दर्शन करते हुए देवत्व के महान् पद को प्राप्त करते हैं।[यजुर्वेद 17.29]
The gist of Almighty present in the heart is away from the heavens & earth, demigods & demons. Initially which ovulation was resorted to by water! How amazing that ovulation was, where the eternal demigods and Rishi Gan attained divinity having seen the God.
तमिद् गर्भ प्रथमं दध्न आपो यत्र देवाः समगच्छन्त विश्वे।
अजस्य नाभावध्येकमर्पितं यस्मिन्विश्वानि भुवनानि तस्थुः॥
जगत् के आदिकाल से ही स्थित उस परमतत्त्व ने जल के गर्भ को धारण किया है, जहाँ समस्त दैवीशक्तियाँ निवास करती हैं। उस जन्म रहित ईश्वर के नाभिस्थान में एक ही परम तत्त्व स्थित है, जिसमें सम्पूर्ण लोक आश्रित होकर अचल हैं, वहाँ सम्पूर्ण लोक और प्राणि समुदाय प्रलयकाल में भी स्थित रहता है।[यजुर्वेद 17.30]
Since the beginning of the universe Ultimate gist was supported by water, where the divine powers were living. The Ultimate gist-extract is present in the navel of the Almighty who is free from birth; where all abodes and groups of living beings reside during annihilation.(01.07.2025E)
न तं विदाथ य इमा जजानान्यद्युष्माकमन्तरं बभूव।
नीहारेण प्रावृता जल्प्या चासुतृप उक्थशासश्चरन्ति॥
हे मानवो! परमेश्वर इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के सृजेता हैं, उनसे आप लोग परिचित नहीं हैं। वह परम तत्त्व सबसे अलग होकर भी सबके अन्दर अधिष्ठित है। अज्ञानतारूपी गहन अन्धकार से आच्छादित और सिर्फ वार्ता अथवा विवाद में संलग्न मात्र प्राणों की रक्षा करने तथा पोषण की चिन्ता से व्यथित लोग उस परमेश्वर के विषय में व्यर्थ विवाद करते हुए विचरण करते हैं। वे उसका साक्षात्कार करने में असमर्थ होते हैं।[यजुर्वेद 17.31]
Hey humans! You are not acquainted with the creator of the universe, the Almighty. Though most different from all, the Ultimate-gist is present in everyone. Ignorant people shrouded by darkness, just talk about HIM and indulge in useless debate, roaming, bothering about the protection of Air Vital and nourishment. They are unable to view, see-met him.
विश्वकर्मा ह्यजनिष्ट देवआदिद् गन्धर्वो अभवद् द्वितीयः।
तृतीयः पिता जनितौषधीनामपां गर्भं व्यदधात्पुरुत्रा॥
सृष्टि क्रम में सबसे पहले ब्रह्माण्ड के संचालनकर्ता देवतागण उत्पन्न हुए, तत्पश्चात् धरती को धारण करनेवाले अग्नि तथा सूर्यदेव आविर्भूत हुए। तीसरे क्रम में ओषधियों की उत्पत्ति तथा पालन करने वाले प्राण-पर्जन्य आविर्भूत हुए। वह (जगत् सृजेता) सभी जल के गर्भ को विभिन्न स्वरूपों में धारण करता है।[यजुर्वेद 17.32]
In sequence of evolution, demigods compliers, of the universe appeared first followed by supporters of the earth Agni Dev and Sury Dev. Thereafter, evolution of medicines-herbs and the Pran Parjany took place. HE, the creator of the universe takes various forms in the womb of water.
आशुः शिशानो वृषभो न भीमो घनाघनः क्षोभणश्चर्षणीनाम्।
संक्रन्दनोऽनिमिषएकवीरः शतꣳसेना अजयत्साकमिन्द्रः॥
वेग गामी, वज्र तीक्ष्णकारी, वर्षण की उपमा वाले, भयंकर मेघ तुल्य वृष्टि करने वाले, मानवों के मोक्ष कर्ता, निरन्तर गर्जना युक्त, अपलक, अद्वितीय वीर इन्द्र ने शत्रुओं की सैकड़ों सेनाओं को एक साथ जीत लिया है।[यजुर्वेद 17.33]
Fast moving, Vajr wielding, nick named rain, like the furious clouds, rain showering, grantor of Moksh to humans, thundering-roaring continuously, un paralleled invincible Indr Dev won hundred of armies at once-in one go.
संक्रन्दनेनाऽनिमिषेण जिष्णुना युत्कारेण दुश्च्यवनेन धृष्णुना।
तदिन्द्रेण जयत तत्सहध्वं युधो नर इषुहस्तेन वृष्णा॥
हे योद्धाओ! गर्जनकारी, अपलक, जयशील, युद्ध रत, अपराजेय, प्रतापी, हाथ में बाण सहित, कामनाओं की वृष्टि करने वाले इन्द्र की कृपा से शत्रु को जीतो और उसका संहार करो।[यजुर्वेद 17.34]
Hey warriors! By the grace of thundering, unblinking eyes, busy with war, holding bow & arrow, accomplishes desires, Indr Dev win the enemy and destroy him.
स इषु हस्तैः स निषङ्गिभिर्वशी सꣳस्त्रष्टा स युधइन्द्रो गणेन।
सꣳ सृष्टजित् सोमपा बाहुशर्ध्युग्रधन्वा प्रतिहिताभिरस्ता॥
वह संयमी, युद्धार्थ उपस्थितों को जीतने वाला, शत्रु समूहों से युद्ध करने वाला, सोमपान करने वाला, बाहुबल से युक्त, कठोर धनुष वाला इन्द्र बाणधारी एवं तूणीरधारी शत्रुओं से भिड़ जाता है और अपने फेंके गये बाणों से उन्हें परास्त करता है।[यजुर्वेद 17.35]
Self controlled, winner of the enemies willing to fight, fighter with the enemies, drinks Somras, possess muscle power, has tough-strong bow, Indr Dev clash with the enemies having quiver full of arrows and defeats them with the arrows shot over them.
बृहस्पते परि दीया रथेन रक्षोहामित्राँ2 अपबाधमानः।
प्रभञ्जन्त्सेनाः प्रमृणो युधा जयन्नस्माकमेध्यविता रथानाम्॥
हे बृहस्पते! तुम रथ से संचरण करने वाले, राक्षस-विनाशक, शत्रु पीड़ा कारक, उनकी सेनाओं के विध्वंसकर्ता एवं युद्ध द्वारा हिंसाकारियों के जेता हो। हमारे रथों के रक्षक बनो।[यजुर्वेद 17.36]
Hey Brahaspate! You move in the charoite, destroys the demons, torture the enemy, destroys their army and win the violent-aggressive attackers. Become the protector of our charoites.
बलविज्ञाय स्थविर प्रवीरः सहस्वान् वाजी सहमान उग्रः।
अभिवीरो अभिसत्त्वा सहोजा जैत्रमिन्द्र रथमा तिष्ठ गोवित्॥
हे दूसरों के बल को जानने वाले, पुरातन शासक, शूर, साहसी, अन्नवान्, उग्र, वीरों से युक्त, परिचरों से युक्त, सहज ओजस्वी, स्तुति के ज्ञाता एवं शत्रुओं के तिरस्कर्ता इन्द्र! तुम अपने जयशील रथपर आरूढ हो जाओ।[यजुर्वेद 17.37]
Hey Indr Dev! You recognise-identify the strength of others. You are eternal administrator, brave, invincible, daring, furious, possessor of food grains, associated with the fellow people, normal, aurous, aware of prayers-worship and contemner of the enemy, ride your winning charoite.
गोत्रभिदं गोविदं वज्रबाहुं जयन्तमज्म प्रमृणन्तमोजसा।
इमꣳ सजाताऽअनु वीरयध्वमिन्द्रꣳ सखायो अनु सꣳरभध्वम्॥
हे तुल्य जन्मा इन्द्र सखा देवो! इस असुर संहारक, देवज्ञ, वज्रबाहु, रणजेता, बलपूर्वक शत्रु-संहर्ता इन्द्र के अनुरूप ही तुम लोग भी शौर्य दिखाओ और इसकी ओर से तुम भी आक्रमण करो।[यजुर्वेद 17.38]
Hey demigods having equivalent birth-origin, companion of Indr Dev! Show your might like Indr Dev who is destroyer of demons, has divinity, wield Vajr, invincible, destroyer of the enemy forcefully; attack like him.
अभि गोत्राणि सहसा गाहमानोदयो वीरः शतमन्युरिन्द्रः।
दुश्च्यवनः पृतनाषाडयुध्योऽस्माकꣳ सेना अवतु प्र युत्सु॥
शत्रुओं को निर्दयता पूर्वक, विविध क्रोध युक्त हो सहसा मर्दित करने वाला और अडिग होकर उनके आक्रमणों को झेलने वाला वीर इन्द्र हमारी सेना की सर्वथा रक्षा करे।[यजुर्वेद 17.39]
निर्दयता :: बिना दया, करुणा या सहानुभूति के, क्रूरतापूर्वक; cruelly, ruthlessly, mercilessly.
Let Indr Dev protect our army, who mercilessly, having various degrees of anger, unmoved, bear-survive their attacks.
इन्द्र आसां नेता बृहस्पतिर्दक्षिणा यज्ञः पुर एतु सोमः।
देवसेनानामभिभञ्जतीनां जयन्तीनां मरुतो यन्त्वग्रम्॥
शत्रुओं का मान-मर्दन करनेवाली, विजयोन्मुखी-इन देवसेनाओं का नेता वेदज्ञ इन्द्र है। विष्णु इसके दाहिने ओर से आयें, सोम सामने से आयें तथा गण देवता आगे-आगे चलें।[यजुर्वेद 17.40]
मानमर्दन :: अपमान, अपकार, नाराज़ी, अधोगति, नीचा दिखाना, नीच स्थिति, अपमानित करना, गर्व पर प्रहार करना, लाघव, गौरव-हीनता, बेइज़्ज़ती; debasement, let down, derogation.
Indr Dev, who let-down-derogate the enemy, is a scholar of Veds, is the general of these armies. Let Bhagwan Shri Hari Vishnu come to his right side, Som should come from front and the demigods should walk in front of him.
इन्द्रस्य वृष्णो वरुणस्य राज्ञ आदित्यानां मरुताꣳ शर्द्धऽउग्रम्।
महामनसां भुवनच्यवानां घोषो देवानां जयतामुदस्थात्॥
वर्षणशील इन्द्र की, राजा वरुण की, महामनस्वी आदित्यों और मरुतों की तथा भुवनों को दबाने वाले विजयी देवताओं की सेना का उग्र घोष हुआ।[यजुर्वेद 17.41]
उग्र घोष :: गंभीर आवाज, तेज आवाज; furious roar, causing fear or dread or terror.
The army of demigods which compress the abodes, rain showering Indr Dev, emperor Varun Dev, enlightened Adity Gan made furious roar.(02.07.2025)
उद्धर्षय मघवन्नायुधान्युत्सत्वनां मामकानां मनाꣳसि।
उद्धृत्रहन् वाजिनां वाजिनान्युद्रथानां जयतां यन्तु घोषाः॥
हे इन्द्र! आयुधों को उठाकर चमका दो। हमारे जीवों के मन प्रसन्न कर दो। हे इन्द्र! घोड़ों की गति तीव्र कर दो और जयशील रथों के घोष तुमुल हों।[यजुर्वेद 17.42]
Hey Indr! Shine your weapons. Gladden our living beings. Hey Indr! Increase the speed of horses ensuring that the sound made by the charoite is terrible.
अस्माकमिन्द्रः समृतेषु ध्वजेष्वस्माकं याइषवस्ता जयन्तु।
अस्माकं वीराउत्तरे भवन्त्वस्माँ2उ देवा अवता हवेषु॥
हमारी ध्वजाओं के शत्रु-ध्वजाओं से जा मिलने पर इन्द्र हमारी रक्षा करें। हमारे बाण विजयी हों। हमारे वीर शत्रुवीरों से उत्कृष्ट हों तथा युद्धों में देवता हमारी रक्षा करें।[यजुर्वेद 17.43]
When our flags touch the enemy's flags, Indr Dev should protect us. Our arrows should be winning. Our brave warriors should be better than enemy's warriors. Let the demigods protect us during war.
अमीषां चित्तं प्रतिलोभयन्ती गृहाणांगन्यप्वे परेहि।
अभि प्रेहि निर्दह हृत्सु शोकैरन्धेनामित्रास्तमसा सचन्ताम्॥
हे व्याधि देवि! इन शत्रुओं के चित्तों को मोहित करती हुई पृथक् हो जा। चारों ओर से अन्यान्य शत्रुओं को भी समेटती हुई पृथक् हो जा। उनके हृदयों को शोकाकुल कर दो और वे हमारे शत्रु तामस अहंकार से ग्रस्त हो जायँ।[यजुर्वेद 17.44]
Hey deity of illness! enchant the mind-innerself of the enemies and separate. Surround the enemies from all sides and separate. Fill their hearts with pain-sorrow ensuring that our enemies are misguided and suffer from worst ego.
अवसृष्टा परा पत शरव्ये ब्रह्मसꣳशिते। गच्छामित्रान् प्र पद्यस्व मामीषां कञ्चनोच्छिषः॥
ब्रह्म मन्त्र से अभिमन्त्रित हे हमारे बाण-ब्रह्मास्त्रो! हमारे द्वारा छोड़े जाने पर तुम शत्रुओं पर जा पड़ो। उनके पास जाओ और उनके शरीरों में प्रविष्ट हो जाओ तथा उनमें से किसी को भी न छोड़ो।[यजुर्वेद 17.45]
Hey our arrows and Brahmastr, enchanted with Brahm Mantr! On being shot by us pierce the body of enemies without sparing any one.
प्रेता जयता नरऽइन्द्रो वः शर्म यच्छतु। उग्रा वः सन्तु बाहवोऽनाधृष्या यथासथ॥
हे हमारे नरो! जाओ और विजय करो। इन्द्र तुम्हें विजय सुख दें। तुम्हारी भुजाएँ उग्र हों, जिससे तुम अघर्षित होकर टिके रहो।[यजुर्वेद 17.46]
Hey our humans-warriors! Move and attain victory. Let Dev Raj Indr grant you victory. Your arms should be furious so that you are not victimised while facing the enemy.
असौ या सेना मरुतः परेषामभ्यैति न ओजसा स्पर्द्धमाना।
तां गूहत तमसाऽपव्रतेन यथामी अन्यो अन्यन्न जानन्॥
हे मरुद्गण! यह जो शत्रु सेना बल में हमसे स्पर्धा करती हुई हमारी ओर चली आ रही है। उसे कर्म हीनता के अन्धकार से आच्छादित कर दो, ताकि वे आपस में ही एक-दूसरे को न जानते हुए लड़ मरें।[यजुर्वेद 17.47]
Hey Marud Gan! Shroud the enemy army competing us with darkness, making it useless-incompatible such that they fight each other without identifying-recognising mutually, themselves.
यत्र बाणाः सम्पतन्ति कुमारा विशिखा इव।
तन्न इन्द्रो बृहस्पतिरदितिः शर्म यच्छतु विश्वाहा शर्म यच्छतु॥
शिखाहीन कुमारों की भाँति शत्रु प्रेरित बाण जहाँ-जहाँ पड़ें, वहाँ-वहाँ इन्द्र, बृहस्पति और अदिति हमारा कल्याण करें। विश्व संहारक हमारा कल्याण करें।[यजुर्वेद 17.48]
Let Indr Dev, De Guru Brahaspati and Mata Aditi take care of us, where the arrows of the enemy fall like the unguided-confused youth. Destroyer to the world should protect us.
मर्माणि ते वर्मणा छादयामि सोमस्त्वा राजाऽमृतेनानुवस्ताम्।
उरोवरीयो वरुणस्ते कृणोतु जयन्तं त्वानु देवा मदन्तु॥
हे यजमान! मैं तुम्हारे मर्म स्थानों को कवच से ढँकता हूँ, ब्राह्मणों के राजा सोम तुमको मृत्यु के मुख से बचाने वाले कवच से आच्छादित करें, वरुण तुम्हारे कवच को उत्कृष्ट बनायें और अन्य सभी देवता विजय की ओर अग्रसर हुए तुम्हारा उत्साहवर्धन करें।[यजुर्वेद 17.49]
मर्म स्थान :: शरीर के वे कोमल अंग जहाँ चोट लगने से व्यक्ति मर सकता है यथा कपाल, अंडकोश, हृदय आदि; sensitive organs, vital point, vulnerable point, sensitive spot, key area.
Hey Yajman! Let me cover your vulnerable-sensitive organs. Let the king of Brahmans Som cover you with protective shield to save you from death. Let Varun Dev make your shield excellent. All demigods-deities should encourage you while marching towards victory.
उदेनमुत्तरां नयाग्ने घृतेनाहुत। रायस्पोषेण सꣳ सृज प्रजया च बहुं कृधि॥
हे अग्निदेव! यजमानों द्वारा समर्पित की गयी आज्याहुतियों से परितृप्त होकर आप उन्हें पर्याप्त मात्रा में धन-सम्पदा के रूप में विपुल ऐश्वर्य प्रदान करें। पुत्र-पौत्रादि प्रदान करके सन्तान के सुख से लाभान्वित करें।[यजुर्वेद 17.50]
Hey Agni Dev! Grant sufficient grandeur-opulence to the Yajman on being satisfied with their offerings of Ghee. Grant them with the pleasure of having sons & grandsons
इन्द्रेमं प्रतरां नय सजातानामसद्वशी। समेनं वर्चसा सृज देवानां भागदा असत्॥
हे देवराज इन्द्र! इस याजक को श्रेष्ठता की ओर अग्रसर करें, जिससे यह अपनी जातिवालों को अपने अनुकूल कर पाने में सक्षम हो। इसे आप ब्रह्म तेज से युक्त करें और ऐश्वर्य प्रदान करें, जिससे यह यज्ञ के रूप में देवताओं को उनका भाग प्रदान करने में सक्षम हो सके।[यजुर्वेद 17.51]
Hey Dev Raj Indr! Let this Yajak march ahead towards excellence so that he become capable of making his caste people in his favour. Grant him Brahm Tej & grandeur so that he become capable of providing the demigods-deities their share of offerings-oblations.
यस्य कुर्मो गृहे हविस्तमग्ने वर्द्धया त्वम्। तस्मै देवाऽअधि ब्रुवन्नयं च ब्रह्मणस्पतिः॥
हे अग्नि देव! हम जिस यजमान के निवास स्थल पर यज्ञ कर्म करते हैं, आप उसकी धन-सम्पदा में वृद्धि करें। सम्पूर्ण देवतागण का वह प्रिय हो। वह याजक यज्ञ सम्बन्धी उत्तम कर्मों का सर्वदा निर्वाह करते हुए सुखी तथा समृद्धिशाली जीवन व्यतीत करे।[यजुर्वेद 17.52]
Hey Agni Dev! Increase the wealth & property of the Yajman in who's house we conduct Yagy. He should be dear to all demigods-deities. That Yajak should live comfortably and have a prosperous life, performing Yagy related excellent deeds.
उदु त्वा विश्वेदेवा अग्ने भरन्तु चित्तिभिः। स नो भव शिवस्त्वधं सुप्रतीको विभावसुः॥
हे अग्नि देव! अलौकिक गुणों से युक्त सम्पूर्ण देवगण प्रतिदिन यज्ञादि श्रेष्ठ कर्मों तथा श्रेष्ठ बुद्धि के द्वारा आपका विस्तार करें। होता मन्त्रोच्चारण सहित हविष्यान्न समर्पित करके यज्ञाग्नि को संवर्द्धित करें। आप हम यजमानों को प्रचुर तेजयुक्त धन-वैभव प्रदानकर हमारा मंगल करने की कृपा करें।[यजुर्वेद 17.53]
Hey Agni Dev! Let all demigods-deities possessing divine characterises extend -expand you with best Yagy Karm and excellent intelligence-mind. The Hota should recite Mantrs, making offerings of food grains increasing-boosting the Yagy. Grant us-the Yajman, wealth and grandeur possessing aura leading to our welfare.
पञ्च दिशो दैवीर्यज्ञमवन्तु देवीरपामतिं दुर्मतिं बाधमानाः।
रायस्पोषे यज्ञपतिमाभजन्ती रायस्पोषे अधि यज्ञो अस्थात्॥
देवराज इन्द्र से सम्बन्धित पूर्व दिशा, यमदेव से सम्बन्धित पश्चिम दिशा, वरुणदेव से सम्बन्धित उत्तर दिशा, सोमदेव से सम्बन्धित दक्षिण दिशा तथा परमपिता परमेश्वर ब्रह्मा से सम्बन्धित मध्य दिशा में पाँचों देवों से सम्बन्धित पाँचों दिशायें हम याजकों की मन्द बुद्धि तथा पाप विषयक बुद्धि को नष्ट करके हमें सद्बुद्धि प्रदान करें। यज्ञादि उत्कृष्ट कर्म के सम्पादक यजमान को अपार तेजस्वी वैभव प्राप्त करायें तथा हमारे यज्ञों की रक्षा करें। धन की पुष्टि के साथ ही हमारे यज्ञ को भी समृद्धि प्राप्त हो।[यजुर्वेद 17.54]
Let the five directions pertaining to 5 deities, grant us such intelligence which eliminate our low intelligence and sins; directing us to virtuousness-righteous, piousity; in the East related to Indr Dev, West pertaining to Yam Dev, North connected with Varun Dev, South related to Som Dev and the middle direction connected with Par Bram Parmeshwar-Almighty. They should grant unlimited wealth and aurous grandeur to the Yajman and protect our Yagy. In addition to increasing wealth our Yagy should also be boosted leading to prosperity.
समिद्धे अग्नावधि मामहानउक्थपत्रईड्यो गृभीतः।
तप्तं घर्म परिगृह्यायजन्तोर्जा यद्यज्ञमयजन्त देवाः॥
जिस समय अलौकिक गुणों से युक्त यजमान तपाये हुए घी को लेकर यज्ञकर्म करते हैं तथा घृत से परिपूर्ण हविष्यान्न के द्वारा अग्नि देव को प्रज्वलित करते हैं, उस समय ऋचाओं के द्वारा अति पूजनीय, स्तवनीय देवताओं की स्तुतियाँ करके यज्ञ को श्रेष्ठ प्रकार से सम्पन्न किया जाता है।[यजुर्वेद 17.55]
When the Yajman having divine traits perform Yagy with molten Ghee and making offerings laced with Ghee invoking Agni Dev, highly worshiped with Richas, worshipable demigods-deities Yagy is performed in best possible manner.(03.07.2025)
दैव्याय धर्ने जोष्ट्रे देवश्रीः श्रीमनाः शतपयाः।
परिगृह्य देवा यज्ञमायन् देवा देवेभ्योअध्वर्यन्तो अस्थुः॥
देवों के हितकारी, यज्ञ के द्वारा जगत् के धारण करता तथा दी गयी हवि को सेवन करने वाले अग्नि देव के लिये देवों का श्रयण करने वाला, यजमान के प्रति अनुग्रह बुद्धि तथा शत संख्यक हवियों वाला यज्ञ प्राप्त होता है। ऐसे यज्ञ का परिग्रह करके देव यज्ञ को प्राप्त होते हैं। स्वयं ऋत्विज ही देवों के निमित्त यज्ञकर्म करते हुए स्थित होते हैं।[यजुर्वेद 17.56]
श्रयण :: शरण, आश्रय, सुरक्षा; asylum, protection.
अनुग्रह :: कृपा; grace, favour.
Well wisher of the demigods-deities, supporter of universe through Yagy, user-eater of the offerings Agni Dev, granter of asylum to demigods-deities, favouring the Yajman, attain Yagy with hundred offerings-oblations.
वीतꣳ हविः शमितꣳ शमिता यजध्यै तुरीयो यज्ञो यत्र हव्यमेति।
ततो वाकाऽआशिषो नो जुषन्ताम्॥
जब उदार मन वाले सौम्य पुरुष द्वारा संस्कारित हवियों वाला यज्ञ देवताओं को तृप्ति तथा संतुष्टि के उद्देश्य से सम्पन्न होता है, तो वह तुरीय अर्थात् चतुर्थ या श्रेष्ठ यज्ञ कहलाता है। उस काल में यज्ञ में उच्चारण किये जा रहे वेद मन्त्रों के आशी र्वचन हमारे अनुरूप फल प्रदान करने वाले होते हैं।[यजुर्वेद 17.57]
सौम्य पुरुष :: शांत, सुशील, मृदु स्वभाव वाला पुरुष; a quite-peaceful person with sweet nature.
The Yagy accomplished by liberal minded, quite-peaceful person with sweet nature, satisfying the demigods with the desire of gratification; is titled fourth or excellent Yagy. The blessings of the Mantrs recited during the Yagy period grants favourable result
सूर्यरश्मिर्हरिकेशः पुरस्तात्सविता ज्योतिरुदयाँ2 अजस्त्रम्।
तस्य पूषा प्रसवे याति विद्वान्त्सम्पश्यन्विश्वा भुवनानि गोपाः॥
हरे रंग की वनस्पतियों तथा इस पर आश्रित रहने वाले प्राणियों का पोषण करने वाले महान् ज्योतिरूप सूर्य देव अपने किरणों को पूर्व दिशा से ही प्रकट कर देते हैं। इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करने वाले, धर्मरक्षक तथा पोषक सूर्यदेव प्राद्भुत हुए समस्त भवनों को आलोकित करते निरन्तर गमनशील हैं।[यजुर्वेद 17.58]
Sury Dev with great luminosity, who nurture greenery-vegetations and the living beings, appears in the East. Sury Dev who has attained control over the senses, protects the Dharm (duty-religion) and nurse-nurture, illuminate all abodes and moves continuously.
विमान एष दिवो मध्य आस्त आपप्रिवात्रोदसी अन्तरिक्षम्।
स विश्वाचीरभिचष्टे घृताचीरन्तरा पूर्वमपरं च केतुम्॥
ये स्वर्गलोक, भूलोक तथा अन्तरिक्ष लोक को अपने तेज से पूर्णतया प्रकाशित करते ये सूर्य देव संसार का निर्माण करने में सक्षम हैं। स्वर्ग लोक के मध्य में अधिष्ठित ये सूर्य देव सम्पूर्ण जगत् को अपने आश्रय में ग्रहण करने वाले, जल धारण करने वाले एवं सर्वद्रष्टा हैं। इस लोक तथा दूसरे लोक में विद्यमान जनों के चित्त तथा अभिप्राय से ये सूर्यदेव अच्छी तरह से परिचित हैं।[यजुर्वेद 17.59]
Sury Dev who illuminate the heavens, earth and sky is capable of creating the universe. Established in the middle of the heavens grants asylum to the whole universe. He support water and watches everything-event. He is thoroughly aware of the mood & purpose of residents of this abode and other abodes.
उक्षा समुद्रो अरुणः सुपर्णः पूर्वस्य योनिं पितुराविवेश।
मध्ये दिवो निहितः पृश्निरश्मा विचक्रमे रजसस्पात्यन्तौ॥
जो सूर्य देव जलवर्षा द्वारा धरती को सिंचित करने वाले, समुद्र से जल को धारण करने वाले, रक्त वर्ण युक्त आकाश में लगातार गतिमान हैं। सहस्रों किरणों से युक्त पूर्व दिशा से उदयमान होकर स्वर्गलोक के गर्भ में प्रवेश करते हैं, वे व्यापक आकाश में विचरण करते हुए सम्पूर्ण लोकों की सभी ओर से रक्षा करते हैं।[यजुर्वेद 17.60]
Sury Dev irrigate the earth with water, support the water in the ocean, moves continuously in the reddish space. He travel through the wide space and protect all abodes from all sides-angles.
इन्द्रं विश्वाऽअवीवृधन्त्समुद्रव्यचसं गिरः। रथीतमꣳ रथीनां वाजानाꣳ सत्पतिं पतिम्॥
सागर के समान व्यापक, सम्पूर्ण रथियों में महान्, अन्नाधिपति तथा सत्प्रवृत्तियों के पालनकर्ता इन्द्र देव को सम्पूर्ण स्तुतियाँ वृद्धि प्रदान करती हैं।[यजुर्वेद 17.61]
All prayers, worships boost, grant growth to Indr Dev who is wide like ocean, greatest charioteer, lord of food grains, follows virtues, righteousness, piousity.
देवहूर्यज्ञ आ च वक्षत्सुम्नहूर्यज्ञ आ च वक्षत्। यक्षदग्निर्देवो देवाँ2 आ च वक्षत्॥
देवताओं को आहूत करने वाला यज्ञ, देवताओं के निमित्त हव्य पदार्थों को ग्रहण करे तथा उनका पूजन करे। समस्त सुखों को आहूत करने वाला यज्ञ देवताओं तक हवियों को पहुँचाने का कार्य पूर्ण करे। अग्नि देवता सभी देवों को यज्ञस्थल में प्रतिष्ठित करके यजन का कार्य सम्पन्न करें।[यजुर्वेद 17.62]
आहूत :: संयोजित, आहूत, बुलायी गयी, आमन्त्रित, बुलाना, निमंत्रित; convened, invoke, invited, summon.
The Yagy in which demigods are invited, should accept offerings for them and worship them. The Yagy which award all comforts-pleasure, should transfer the oblations to them. Let Agni Dev make the demigods-deities occupy their seats and accomplish the Yagy Karm.
वाजस्य मा प्रसवऽउद्ग्राभेणोदग्रभीत्। अधा सपत्नानिन्द्रो मे निग्राभेणाधराँ2 अकः॥
हे देवराज इन्द्र! आप यज्ञ कर्म करने वाले यजमानों के निमित्त अन्न उत्पन्न करने वाले होकर उन्नति का पथ प्रशस्त करते हुए श्रेष्ठ स्थान प्रदान करें तथा हमारे रिपओं को निम्न अवस्था में पहुंचाकर तिरस्कृत करें।[यजुर्वेद 17.63]
Hey Dev Raj Indr! You should become the grower of best food grains for the Yajman who perform Yagy Karm, grant them high status pave the path for their progress. Throw our enemies to lowest state-status and insult-despise them.
उद्ग्राभं च निग्राभं च ब्रह्म देवा अवीवृधन्।
अधा सपत्नानिन्द्राग्नी मे विषूचीनान्व्यस्यताम्॥
हे देवताओं! हम अच्छे कर्म करने वालों को श्रेष्ठ सामर्थ्य धारण करने की अवस्था में तथा हमारे रिपूओं को निकृष्ट अवस्था में पहुंचायें। आप हमारे ज्ञान में निरन्तर वृद्धि करें। देवराज इन्द्र तथा अग्निदेव हमारे रिपूओं को पूर्णरूप से विनष्ट करें।[यजुर्वेद 17.64]
Hey demigods! Elevate us-the performers of virtuous deeds, to best capability and degrade the enemies to lowest rank. Continuously increase-boost our knowledge. Let Dev Raj Indr & Agni Dev destroy our enemies completely.
क्रमध्वमग्निना नाकमुख्यꣳ हस्तेषु बिभ्रतः। दिवस्पृष्ठꣳ स्वर्गत्वा मिश्रा देवेभिराध्वम्॥
हे यज्ञकर्ताओ! आप लोग उखा पात्र में अग्नि को प्रतिष्ठापित कर हाथों में लेकर स्वर्ग लोक को जाओ। आप देवतागणों के साथ मिलकर स्वर्गलोक में पहुँचकर सुख के साथ वास करें।[यजुर्वेद 17.65]
उख :: गन्ना, ईख; sugarcane.
Hey performers of Yagy! Establish Agni-fire in Uksha pot and carry it to heavens. Live comfortably with the demigods-deities together.
प्राचीमनु प्रदिशं प्रेहि विद्वानग्नेरग्ने पुरो अग्निर्भवेह।
विश्वा आशा दीद्यानो वि भाह्युर्जं नो धेहि द्विपदे चतुष्पदे॥
उखा पात्र में विद्यमान हे अग्नि देव! आप पूर्व दिशा को लक्ष्य बनाकर उसकी ओर उन्मुख हों। आगे की ओर बढ़कर सबके नेतृत्वकर्ता बनें। सभी दिशाओं को प्रकाशित करें तथा हमारी सन्तानों एवं गौ आदि पशुओं में बल की स्थापना करें।[यजुर्वेद 17.66]
Hey Agni Dev occupying Ukha pot! Target East and move towards it. Move further and guide us all. Illuminate all directions and and grant strength to our sons, grandsons, cows, animals.
पृथिव्या अहमुदन्तरिक्ष मा रुहमन्तरिक्षाद्दिवमारुहम्।
दिवो नाकस्य पृष्ठात् स्वर्योतिरगामहम्॥
हम भूलोक से उन्नत होकर अन्तरिक्ष लोक में आरोहण करते हैं तथा अन्तरिक्ष लोक से उच्च स्थान पर स्थित होकर स्वर्ग लोक में आरोहण करते हैं एवं तब स्वर्ग लोक के दुःख रहित पृष्ठ प्रदेश से स्वर्ग लोक में स्थित आदित्य-मण्डल रूप परमात्म ज्योति को प्राप्त होते हैं।[यजुर्वेद 17.67]
We born-evolve over the earth, elevate to space, occupying the higher regions of heavens, further elevate in the heavens, thereafter; from the pain-sorrow free regions, we attain the Ultimate-divine light present in the Adity Mandal.
स्वर्यन्तो नापेक्षन्त आ द्याꣳ रोहन्ति रोदसी। यज्ञं ये विश्वतोधारꣳ सुविद्वाꣳ सो वितेनिरे॥
जो श्रेष्ठ कोटि के विद्वज्जन जगत् की चक्रीय व्यवस्था को धारण करने वाले यज्ञ का अनुष्ठान करके अपने कीर्ति को विस्तारित करते हैं, वे अति सुखकारी द्युलोक के सुख का उपभोग करते हुए लौकिक भोगों की अपेक्षा नहीं करते हैं, बल्कि पृथ्वी तथा आकाश से उच्च अवस्थित होकर स्वर्गलोक में आरूढ़ होते हैं।[यजुर्वेद 17.68]
Scholars of higher status (enlightened), adopt the cyclical state of the world, organise Yagy and increase their fame. They enjoy the comforts-pleasure of heaven and do not crave for the physical comforts of earth. Instead, they occupy the higher regions of earth & heavens and establish themselves in the heavens.
अग्ने प्रेहि प्रथमो देवयतां चक्षुर्देवानामुत मर्त्यानाम्।
इयक्षमाणा भृगुभिः सजोषाः स्वर्यन्तु यजमानाः स्वस्ति॥
हे अग्नि देव! आप देवताओं तथा मानवों के चक्षुरूप हैं, अलौकिक गुणों की कामना करने वाले याजकों में मुख्य हैं। अतएव आप अग्रणी तथा सभी के मार्गदर्शक हैं। यज्ञ की कामना करने वाले, पाप वृत्तियों को नष्ट करके सबसे प्रेम करने वाले यजमानों का हित करके आप उन्हें द्युलोक को प्राप्त कराते हैं।[यजुर्वेद 17.69]
Hey Agni Dev! You are like the eyes of demigods-deities and humans. You are the main-chief amongest the Yajak. You are remain ahead and show path, guide all. You develop desire for Yagy, destroys the sins, resort to well being of the Yajman who love all and promote them to heavens.
नक्तोषासा समनसा विरूपे धापयेते शिशुमेकꣳ समीची।
द्यावाक्षामा रुक्मो अन्तर्विभाति देवा अग्निं धारयन् द्रविणोदाः॥
पारस्परिक सहयोग से बालक का पोषण करते हैं। उसी प्रकार रात्रि दिवस मानो एक जिस प्रकार माता-पिता विपरीत स्वभाव से युक्त होने पर भी एकचित्त होकर समान एकचित्त होकर अग्निरूपी शिशु को प्रातः सायं हवि द्वारा पोषित करते हैं, जिससे वे दिव्यलोक तथा भूलोक के भीतर सूर्यदेव के समान सुशोभित होते हैं। ऐसे अग्नि देव को ऐश्वर्य-प्रदायक शक्तियों ने धारण किया है।[यजुर्वेद 17.70]
Child is nourished through mutual cooperation. Similarly, day and night though of different nature yet are like the parents, who grow the infant Agni Dev in unison with the same attitude-mind, such that he is glorified in the divine abodes and earth like Sury Dev. Such Agni Dev has been supported by the divine powers who grant grandeur.(04.07.2025)
अग्ने सहस्त्राक्ष शतमूर्द्धञ्छतं ते प्राणाः सहस्त्रं व्यानाः।
त्वꣳ साहस्त्रस्य रायऽईशिषे तस्मै ते विधेम वाजाय स्वाहा॥
हे असंख्य चक्षुओं वाले! हे सौ शीशवाले अग्निदेव! आपके अनन्त प्राण है, अनन्त व्यान है। आप अनन्त धन-सम्पदाओं के अधिपति हैं। आपके निमित्त हम हव्य पदार्थ समर्पित करते हैं। हमारे द्वारा समर्पित की गयी हवियों को आप ग्रहण करें।[यजुर्वेद 17.71]
Hey Agni Dev with infinite eyes and hundred heads! You possess infinite Pran & Vyan. You are the Lord of infinite wealth. We make offerings to you, accept them.
सुपर्णोऽसि गरुत्मान् पृष्ठे पृथिव्याः सीद।
भासान्तरिक्षमापृण ज्योतिषा दिवमुत्तभान तेजसा दिश ऽउदृꣳह॥
हे अग्नि देव! आप सुवर्ण पंख वाले गरुड़ पक्षीरूप हैं। आप सुख से परिपूर्ण तथा दिव्यता अथवा श्रेष्ठता से युक्त हैं। धरती के पृष्ठभाग पर अधिष्ठित होकर आप अपनी कान्ति से अन्तरिक्ष लोक को पूर्ण करें। अपनी ज्योति से स्वर्गलोक का कल्याण करें तथा अपने तेज से दिशाओं को दृढ़ता प्रदान करें।[यजुर्वेद 17.72]
Hey Agni Dev! You are in the form of Garud bird with golden feathers. You possess comfort-pleasure, divinity and excellence. Fill the space with your radiance, while present over the earth. Resort to welfare of the heavens and smoothen the directions with your aura-radiance.
आजुह्वानः सुप्रतीकः पुरस्तादग्ने स्वं योनिमासीद साधुया।
अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन् विश्वेदेवा यजमानश्च सीदत॥
हे अग्नि देव! आप विनम्रता पूर्वक आवाहनीय, श्रेष्ठ गुण सम्पन्न, श्रेष्ठ स्थान में पहले से ही प्रतिष्ठित हैं। दिव्य गुणों से युक्त यह याजक अग्नि देव के साथ यज्ञादि सत्कर्म करते हुए उन्नतशील जीवन व्यतीत करके उच्चतम सोपानों को प्राप्त करें।[यजुर्वेद 17.73]
Hey Agni Dev! You are established at the best place, possess excellent traits-qualities and should be invoked politely. Let this Yajak having divine characters, attain highest position, progressive life, while performing virtuous deeds and Yagy Karm.
ताꣳ सवितुर्वरेण्यस्य चित्रामाहं वृणे सुमतिं विश्वजन्याम्।
यामस्य कण्वो अदुहत्प्रपीनाꣳ सहस्त्रधारां पयसा महीं गाम्॥
कण्व गोत्र में उत्पन्न हुए ऋषि ने सविता देव की पोषित करने वाले हजारों किरणों को धारण करने वाली पयस्विनी महान् गौ (पोषण सामर्थ्य) का दोहन किया। सभी के द्वारा स्वीकृत सविता देव की उस दिव्य, हितकारी, सृजन शक्ति से युक्त श्रेष्ठ मेधा को हम स्वीकार करते हैं।[यजुर्वेद 17.74]
Rishi born in Kavy clan, milked the cows bearing thousands of nourishing rays of Savita Dev. We accept the divine, resorting to well being, creative excellent-superior intelligence of Savita Dev, approved by all.
विधेम ते परमे जन्मन्नग्ने विधेम स्तोमैरवरे सधस्थे।
यस्माद्योने रुदारिथा यजे तं प्र त्वे हवीꣳषि जुहरे समिद्धे॥
हे अग्नि देव! सर्वश्रेष्ठ स्थल द्युलोक में उत्पन्न होने वाले आपको हम हविष्य अर्पित करते हैं। अन्तरिक्ष में विद्युत् रूप में स्थित आपको हम हविष्य अर्पित करते हैं। आप जिस किसी स्थान से प्रादुर्भूत होते हैं, उस स्थान को हम यज्ञ-कर्म के अनुरूप बनाते हैं और उसका पूजन करते हैं। हम श्रेष्ठ रीति से प्रज्वलित होने वाले आपमें हवियाँ अर्पित करते हैं।[यजुर्वेद 17.75]
Hey Agni Dev! We make offerings to you at the best location of heavens. We make offerings to you present in the space as lightening. We make that place worshipable where you evolve and pray-worship there. We make sacrifices in you evolved in the best manner.
प्रेद्धो अग्ने दीदिहि पुरो नोऽजस्त्रया सूर्म्या यविष्ठ। त्वाꣳशश्वन्त उपयन्ति वाजाः॥
हे प्रज्वलित अग्नि देव! आप क्षीण न होने वाली अखण्ड समिधा द्वारा प्रदीप्त होकर हमारे सामने दीप्तिमान् हों। हम आपको निरन्तर हव्य पदार्थ अर्पित करते हैं।[यजुर्वेद 17.76]
Hey blazing Agni Dev! You are illuminated before us ignited by the Samidha-wood without pieces. We continuously make offerings to you.
अग्ने तमद्याश्वं नस्तोमैः क्रतुं न भद्रꣳ हृदिस्पृशम्। ऋध्यामा तऽओहैः॥
हे अग्नि देव! आज आपके इस यज्ञ को अभीष्ट फलदायक, सामगान से हम संवर्द्धित करते हैं। जिस प्रकार नानाविध स्तुतियों से अश्वमेध यज्ञ के अश्वों को विशेष रूप से प्रेरित किया जाता है, उसी प्रकार हम कल्याणकारी यज्ञीय संकल्पों को सुदृढ़ करते हैं।[यजुर्वेद 17.77]
Hey Agni Dev! Today, we enrich this Yagy of yours, granting desired rewards-boons with Sam Gan. The way the horses of Ashw Medh Yagy are inspired specially with various Stutis-prayers, we boost the welfare awarding resolves pertaining to Yagy.
चित्तिं जुहोमि मनसा घृतेन यथा देवा इहागमन्वीतिहोत्रा ऋतावृधः।
पत्ये विश्वस्य भूमनो जुहोमि विश्वकर्मणे विश्वाहा दाभ्यꣳ हविः॥
हम मन के संयोग से आज्याहुतियों के द्वारा इस चिति में विद्यमान अग्नि देव को परिपुष्ट करते हैं। जिससे इस यज्ञ में हवियों की कामना करने वाले तथा यज्ञ को संवर्द्धित करने वाले देवतागण प्रसन्नतापूर्वक पदार्पण करें। हम इस विशाल जगत् के अधिपति, जगत् के सृजनकर्ता, जगत् की पीड़ा को दूर करने वाले परमेश्वर के प्रति उत्तम आहुतियाँ समर्पित करते हैं।[यजुर्वेद 17.78]
चिति :: ढेर, राशि, चेतना; chitty, pile.
पदार्पण :: किसी स्थान या क्षेत्र में होने वाला प्रवेश, शुभागमन, आगमन; debut.
We enrich Agni Dev with the offerings of Ghee present in this pile of wood with the desire of innerself, so that the demigods-deities who wish to have offerings arrive here to boost the Yagy happily. We make best offerings to the Lord of the universe, who evolved it and who remove pain-sorrow of the world.
सप्त ते अग्ने समिधः सप्त जिह्वाः सप्त ऋषयः सप्त धाम प्रियाणि।
सप्त होत्राः सप्तधा त्वा यजन्ति सप्त योनीरापृणस्व घृतेन स्वाहा॥
हे अग्नि देव! आप सात प्रकार की विशेष समिधाओं से प्रदीप्त होते हैं अर्थात् शमी, बैंककती, उदुम्बरी, बेल, पलाश (ढाक), न्यग्रोध तथा अश्वत्थ यही सात समिधा हैं। आप सात ज्वालारूपी जीभ से हवियों के रस को ग्रहण करते हैं *अर्थात् काली, कराली, मनोजवा, विलोहिता, धूम्रवर्णा, स्फुलिङ्गिनी, विश्वरुचि यही सात जिह्वा हैं। सप्त ऋषि उसके स्वरूप द्रष्टा हैं अर्थात् मरीचि, अत्रि, पुलस्त्य, पुलह, अंगिरा, वसिष्ठ तथा क्रतु-यही ऋषि द्रष्टा हैं, यही सप्तऋषि हैं। सात गायत्री आदि छन्द आपके प्रिय धाम हैं अर्थात् आहवनीय, गार्हपत्य, दक्षिणाग्नि, सभ्य, आवसथ्य, प्राजहित, आग्नीध्र यह सात सोमयाग में अग्नि-धारक धाम हैं। सात होता (होता, प्रशास्ता, ब्राह्मणशंसी, पोता, नेष्टा, आग्नीध्र तथा अच्छावाक) यह सात होता है। आपके लिए सात अग्निहोत्र (अग्निष्टोम, उक्थ, पोडशी, अतिरात्र, आप्तोर्याम तथा वाजपेय) से यजन करते हैं। सात चिति आपके उद्गम स्थल हैं, जो घृताहुतियों से पूर्ण होते हैं। यह आहुति भली प्रकार ग्रहण करें।[यजुर्वेद 17.79]
Hey Agni Dev! You are ignited with 7 kinds of wood-Samidha i.e., Shami, Bankkati, Udumbari, Bel, Butea, Nygrodh that Ashwatth. You accept offerings with 7 kinds of tongue in the form of flames i.e., Kali, Karali, Manojva, Vilohita, Dhumr Varna, Sfulingini, Vishw Ruchi. Sapt Rishi view your form named Marichi, Atri, Pulasty, Pulah, Angira, Vashishth and Kratu. 7 Gayatri are your dear locations i.e., Ahavneey, Garhpaty, Dakshinagni, Sabhy, Avsathy, Prajhit, Agnidhr. There are 7 Hota :- Hota, Prashasta, Brahman Shansi, Pota, Agnidhr, Achchavak. 7 Agnihotr :- Agnishtom, Ukth, Podshi, Ati Ratr, Apyoryam & Vajpaey. 7 Chiti are your evolution points which are accomplished with the offerings of Ghee. Accept this offerings carefully.
* काली कराली च मनोजवा च विलोहिता चापि सधूम्रवर्णा।
स्फुलिङ्गिनी विश्वरुची च देवी लेलायमाना इति सप्त जिह्वाः॥(मुण्डकोपनिषद्)
(05.07.2025)
शुक्रज्योतिश्च चित्रज्योतिश्च सत्यज्योतिश्च ज्योतिष्माँश्च। शुक्रश्च ऋतपाश्चात्यꣳ हाः॥
श्रेष्ठ ज्योति वाले, विविध ज्योति वाले, सत्यरूप ज्योतिवाले, तेजस्वी, दीप्तिमान्, यज्ञ की रक्षा करने वाले, पाप रहित सात मरुद्गण अपने-अपने गणों को लेकर हमारे यज्ञ में पदार्पण करें। उनके लिए यह हवि समर्पित है।[यजुर्वेद 17.80]
Let 7 Marud Gan who have excellent radiance, different kind of light, truthful, aurous, protector of Yagy, sinless, come to our Yagy, with their Gan. This offering is for them.
ईदृङ् चान्यादृङ् च सदृङ्च प्रतिसदृङ्। मितश्च संमितश्च सभराः॥
यज्ञ में समर्पित हविष्यान्न को समान दृष्टि से देखने वाले (ईदृङ्), अन्य दृष्टि से देखने वाले (अन्यादृङ्), श्रेष्ठ विधि से देखने वाले (सदृङ्), समान भावना से देखने वाले (प्रतिसदृङ्), समान चित्त वाले (मित), पूर्णतया सम्मिलित चित्त वाले (संमित) तथा समान आयुधों को धारण करने वाले (सभर) मरुद्गण हमारे यज्ञ में पदार्पण करें। उनके लिए यह हवि समर्पित है।[यजुर्वेद 17.81]
Let Marud Gan who grant same weightage to offerings; look at them in different ways, best method, similar manner, same attitude, wielding same weapons, with mixed feelings come to our Yagy. This offering is for them.
ऋतश्च सत्यश्च ध्रुवश्च धरुणश्च। धर्त्ता च विधर्त्ता च विधारयः॥
ऋत, सत्य, ध्रुव, धरुण, धर्त्ता, विधर्त्ता, विधारय नामक मरुद्गण हमारे यज्ञ में पदार्पण करें। उनके लिए यह हवि अर्पित है।[यजुर्वेद 17.82]
Let Marud Gan named Rit, Saty, Dhruv, Dharun, Dhartta, Vidhartta, Vidhray come to our Yagy. This offerings is meant for them.
ऋतजिच्च सत्यजिच्च सेनजिच्च सुषेणश्च। अन्तिमित्रश्च दूरे अमित्रश्च गणः॥
ऋतजित्, सत्यजित्, सेनजित्, सुषेण, अन्तिमित्र और दूरेअमित्र, ये मरुद्गण हमारे इस यज्ञ में पदार्पण करें। उनके लिए यह हवि अर्पित है।[यजुर्वेद 17.83]
Let Marud Gan named Ritjit, Satyjit, Senjit, Sushen, Antimitr and Dureamitr come to our Yagy. This offerings is meant for them.
ईदृक्षास एतादृक्षास ऊ षु णः सदृक्षासः प्रतिसदृक्षास एतन।
मितासश्च सम्मितासो नो अद्य सभरसो मरुतो यज्ञे अस्मिन्॥
ईदक्षास, एतादृक्षास, ऊषुण, सदृक्षास, प्रतिसदृक्षास, मितास, सम्मितास तथा सभरसंज्ञक मरुद्गण हमारे इस यज्ञ में पदार्पण करें। आपके लिए यह हवि समर्पित है।[यजुर्वेद 17.84]
Let Marud Gan named Eedkshas, Ethadrkshas, Ooshun, Sadrkshas, Pratisdrakshas, Mitas, Sammitaso and Sabharsangyak join our Yagy. This offerings is meant for them.
स्वतवाँश्च प्रघासी च सान्तपनश्च गृहमेधी च। क्रीडी च शाकी चोज्जेषी॥
स्वतवान्, प्रघासी, सान्तपन, गृहमेधी, क्रीडी, शाकी और उज्जेषी संज्ञक मरुद्गण हमारे यज्ञ में पदार्पण करें। आपके लिए यह हवि अर्पित है।[यजुर्वेद 17.85]
Let Marud Gan named Savatvan, Praghasi, Santpan, Grahmedhi, Kreedi, Shaki aur Ujjeshi
इन्द्रं दैवीर्विशो मरुतोऽनुवर्त्मनोऽभवन्यथेन्द्रं दैवीर्विशो मरुतोऽनुवर्त्मनोऽभवन्।
एवमिमं यजमानं दैवीश्च विशो मानुषीश्चानुवर्मानो भवन्तु॥
बलशाली मरुद्गणों के रूप में देवगणों की सेना जैसे देवराज इन्द्र की प्रजा रूप तथा उनकी अनुगामिनी है, वैसे ही सम्पूर्ण दैवी शक्तियाँ तथा मनुष्य रूप सम्पूर्ण प्रजा इस याजक की अनुगामिनी बनें।[यजुर्वेद 17.86]
The manner in which the divine army having Marud Gan like the subjects & followers of Indr Dev, similarly all divine powers and entire populace composing of humans follow this Yajak.
इमꣳ स्तनमूर्जस्वन्तं धयापां प्रपीनमग्ने सरिरस्य मध्ये।
उत्सं जुषस्व मधुमन्तमर्वन्त्समुद्रियꣳ सदनमा विशस्व॥
हे अग्नि देव! जल के बीच में स्थित विशेष प्रकार के रस से युक्त, घृत प्रवाह से युक्त स्रुक (घी होमने वाले बर्तन) रूप स्तन का पान करें। हे अर्वन्! (गमनशील अग्नि देव) मधुर ग्वाद वाले घी से परिपूर्ण स्रुक का प्रेम पूर्वक पान करें तथा परितृप्त होकर सागर-सम्बन्धी इस यज्ञशाला में शीघ्रता से प्रवेश करें।[यजुर्वेद 17.80]
Hey Agni Dev! Suck the nipple present in water, containing special type of saps, and spoon filled with Ghee. Hey Arvan-roaming Agni! Drink sweet Gwad in the Stuck-spoon filled with Ghee affectionately and on being satisfied enter the Yagy Shala related with ocean quickly.
घृतं मिमिक्षे घृतमस्य योनिघृते श्रितो घृतम्वस्य धाम।
अनुष्वधमावह मादयस्व स्वाहाकृतं वृषभ वक्षि हव्यम्॥
हम घी को अग्नि के मुख में अर्पित करने की अभिलाषा करते हैं; क्योंकि अग्नि देव घृत द्वारा ही उत्पन्न होते हैं, यह घृत के आश्रित होते हैं। घृत ही अग्नि का आधाररूप है। हे अध्वर्यु! हवि को संस्कारित करके अग्नि देव को आहूत करो, उसे परितृप्त करके कहो, पर्जन्य की वृष्टि करने वाले हे अग्नि देव! हवियों द्वारा अर्पित किये गये हव्यपदार्थों को देवगणों तक प्रेषित करें।[यजुर्वेद 17.88]
We wish to offer Ghee in the mouth of Agni Dev, since he invokes through Ghee and is dependent upon of Ghee. Hey Priest! Sanctify the offerings and sacrifice it in fire-Agni. Satisfy him and say, hey Parjany-rain showering Agni Dev. Carry the offerings made by us to demigods-deities.
समुद्रादूर्मिर्मधुमाँ 2 उदारदुपाꣳ शुना सममृतत्वमानट्।
घृतस्य नाम गुह्यं यदस्ति जिह्वा देवानाममृतस्य नाभिः॥
गाय के स्तन रूप समुद्र में दुग्ध रूप मधुर रस से परिपूर्ण तरंगें अग्नि देव की संगति को प्राप्त करके अमृतत्व धर्म को प्राप्त होती हैं और उससे घृत की उत्पत्ति होती है। उस घृत का गुप्त नाम (आयुर्वे घृतम्) जो श्रुति में पठित है वह देवताओं की जिह्वा है और अमृत की नाभि है।[यजुर्वेद 17.81]
The waves in the form of milk in the ocean, as cow's udder, attain immortality in association with Agni Dev. The secret name of that Ghee is present Shruti (Ayurve Ghratam) composing the tongue of demigods-deities and the naval of elixir-nectar.
वयं नाम प्र ब्रवामा घृतस्यास्मिन् यज्ञे धारयामा नमोभिः।
उप ब्रह्मा शृणवच्छस्यमानं चतुःश्रृंगोऽवमीद् गौर एतत्॥
हम इस यज्ञ में घृत के नाम का उच्चारण करते हुए हविरूप अन्न द्वारा यज्ञ को धारण करते हैं। यज्ञ में ब्रह्मा संज्ञा से अलंकृत विद्वान् स्तुति में समर्पित घृत के नाम को श्रवण करें। यह चार प्रकार के होताओं वाले और गौरवर्ण के घृत से यज्ञ सम्पन्न होता है।[यजुर्वेद 17.90]
We adopt the food grains forming Havi-offerings, pronouncing the name of Ghee, supporting the Yagy. Brahman named Brahma, should pronounce the name of Ghee in the Yagy. This Yagy is accomplished by four types of Hotas with white coloured Ghee.
चत्वारि श्रृंगा त्रयोऽअस्य पादा द्वे शीर्षे सप्त हस्तासो अस्य।
त्रिधा बद्धो वृषभो रोरवीति महो देवो मत्याँ आविवेश॥
इस फलप्रद यज्ञ के चार शृङ्ग ब्रह्मा, उद्गाता, होता तथा अध्वर्यु हैं। इसके तीन चरण ऋक्, यजुः तथा साम हैं। इसके दो शिर-हविर्धान तथा प्रवर्ग्य हैं। इसके सात हाथ सात छन्दों के रूप में हैं। यह तीन सवनों :- प्रातः सवन, माध्यन्दिन सवन तथा सायं सवन में बँधा हुआ है। यह अति शक्तिशाली, महान, ध्वनि करने वाला सर्वश्रेष्ठ यज्ञ देव और मनुष्य-लोक में प्रतिष्ठित है।[यजुर्वेद 17.91]
4 cliffs of this reward granting Yagy are Brahma, Udgata, Hota and Adhvaryu. It has 3 segments viz. Rik, Yaju and Sam. Its two heads are :- Havirdhan and Pravagary. It has 7 hands in the form of 7 Chhand. Its tied with the 3 segments of the day :- morning, mid day and evening. This is very powerful, great, sound making best Dev Yagy and established in the humans abode.(06.07.2025)
त्रिधा हितं पणिभिर्गुह्यमानं गवि देवासो घृतमन्वविन्दन्।
इन्द्र एकꣳ सूर्य एकं जजान वेनादेकꣳ स्वधया निष्टतक्षुः॥
तीनों लोकों में विद्यमान राक्षसों से छिपाकर रखे, यज्ञ के परिणाम स्वरूप घृत को देवताओं ने गौओं से उपलब्ध किया। उसके एक भाग को देवराज इन्द्र के लिए तथा दूसरे भाग को सूर्य देव के लिए प्रादुर्भूत किया एवं तीसरे भाग को यज्ञ-साधन रूप अग्निदेव से आहुति के रूप में यजमानों ने उपलब्ध किया।[यजुर्वेद 17.92]
The Ghee hidden by the demons in the three abodes as the yield of Yagy, was obtained by the demigods from the cows. One part of it was to given to Devraj Indr, second to Sury Dev and the third to Agni Dev as a means of Yagy.
एता अर्षन्ति हृद्यात्समुद्राच्छतव्रजा रिपुणा नावचक्षे।
घृतस्य धारा अभिचाकशीमि हिरण्ययो वेतसो मध्य आसाम्॥
यह अनेक प्रकार की गति वाली घृत की धाराएँ यजमान के हृदय रूपी सागर से संकल्प द्वारा निर्गत होती हैं। रिपुगण इस धारा का दर्शन करने में असमर्थ हैं। इनके मध्य में देदीप्यमान् अग्नि देव का दर्शन हम सभी ओर से करते हैं।[यजुर्वेद 17.93]
निर्गत :: बाहर आया हुआ, निःसृत; निकला हुआ; output, issued, gone forth, issued, come forth.
These streams of Ghee come forth due to the determination of the Yajman. The enemies can not see these streams. We see luminous Agni Dev from all sides.
सम्यक् स्त्रवन्ति सरितो न धेना अन्तर्हदा मनसा पूयमानाः।
एते अर्षन्त्यूर्मयो घृतस्य मृगा इव क्षिपणोरीषमाणाः॥
शरीर के अन्तःकरण तथा हृदय से शोधित हुई वाणियाँ वैसे ही स्रवित होती हैं, जिस प्रकार शब्दायमान नदी-प्रवाह। ये घृत प्रवाह यज्ञाग्नि की ओर वैसे ही बहते हैं, जैसे व्याध को देखकर मृग प्राण के भय से पलायन करते हैं अर्थात् भागते हैं।[यजुर्वेद 17.94]
स्रवित :: चुआया हुआ, बहाया हुआ; secreted.
Voice coming out of the innerself (heart & mind) is secreted like the sounding river. The flow of Ghee move to the Yagy fire like the deer who run after seeing tiger.
सिन्धोरिव प्राध्वने शूघनासो वातप्रमियः पतयन्ति यह्वाः।
घृतस्य धारा अरुषो न वाजी काष्ठा भिन्दन्नर्मिभिः पिन्वमानः॥
घृत की प्रवाहित धाराएँ यज्ञाग्नि पर उसी प्रकार गिरती हैं, जिस प्रकार शीघ्र गति से बहने वाली नदी की पवन के संयोग से उठती तरंगें विषम प्रदेश में पतित होती हैं तथा जिस प्रकार उत्तम गुण सम्पन्न शक्तिशाली घोड़े रणक्षेत्र में रिपुओं के सैन्यदल को भेदते हुए श्रम से निकले हुए पसीने से धरती को अभिषिक्त करते हुए गमन करते हैं।[यजुर्वेद 17.95]
Streams of Ghee fall into the Yagy fire like the waves accompanied by air in the odd regions and like the excellent mighty horse piece through the enemy soldiers secreting sweat soaking the earth.
अभि प्रवन्त समनेव योषाः कल्याण्यः स्मयमानासो अग्निम्।
घृतस्य धाराः समिधो नसन्त ता जुषाणो हर्यति जातवेदाः॥
जैसे समान मन वाली रूप-यौवन सम्पन्न स्त्रियाँ हर्ष तथा प्रसन्नता की अभिव्यक्ति करती हुई अपने-अपने पति के निकट जाती हैं, वैसे ही घृत की धाराएँ प्रज्वलित अग्नि को प्राप्त होकर उसे संव्याप्त करती हैं। वे सर्वज्ञाता अग्नि देव उन धाराओं की निरन्तर अभिलाषा करते हैं और उनका सेवन करते हुए अत्यन्त प्रसन्न होते हैं।[यजुर्वेद 17.96]
The way young beautiful women go to their husband expressing pleasure, streams of Ghee meet Agni Dev. All knowing Agni Dev, continuously crave for these streams of Ghee and show his happiness after consuming them.
कन्या इव वहतुमेतवा उ अञ्ज्यञ्जाना अभिचाकशीमि।
यत्र सोमः सूयते यत्र यज्ञो घृतस्य धारा अभितत्पवन्ते॥
जैसे अपने कमनीय रूप को प्रकट करती हुई नवपरिणीता कन्या पति गृह को जाती है, वैसे ही जिस स्थान पर सोम को सुसंस्कारित किया जाता है, जहाँ यज्ञकर्म होता है, उसी स्थान पर घृत की धाराओं को जाते हुए देखा जाता है और उस स्थान को पवित्र बनाती हैं।[यजुर्वेद 17.99]
The way a newly wedded women goes to her husband's house showing her beauty, similarly Agni Dev is established at the place where the Yagy Karm has to be performed. Streams of Ghee are seen moving there after sanctifying that place.
अभ्यर्षत सुष्टुतिं गव्यमाजिमस्मासु भद्रा द्रविणानि धत्त।
इमं यज्ञं नयत देवता नो घृतस्य धारा मधुमत्पवन्ते॥
हे देवताओ! आप उत्तम स्तवनों वाले घृत से परिपूर्ण यज्ञ को सभी ओर से प्राप्त हो। जैसे यज्ञ में सुस्वादु घृत की धारायें पतित होती हैं, वैसे ही हमारे लिये धन की धाराएँ प्रवाहित करें। इन आहुतियों को देवलोक को प्राप्त करायें तथा हमें सभी प्रकार के मंगलकारी धन-वैभव प्रदान करें।[यजुर्वेद 17.98]
Hey demigods-deities! You should avail the Yagy performed in all segments of time using Ghee. The way streams of sweet Ghee flow into the Yagy, similarly streams of wealth should move to us. Ensure the availability of these sacrifices in the heavens and all sorts of auspicious wealth and grandeur for us.
धामन्ते विश्वं भुवनमधि श्रितमन्तः समुद्रे हृद्यन्तरायुषि।
अपामनीके समिथे य आभृतस्तमश्याम मधुमन्तं त ऊर्मिम्॥
हे अग्नि देव! आपने अपनी धारक क्षमता से सभी लोकों, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को आश्रय प्रदान किया है। समुद्र के मध्य में, हृदय में, जीवनकाल में, जल के संघात में तथा यज्ञकार्य में भी जो आपका उत्तम घृत रूप निहित है, उस मधुरता से युक्त, आनन्दयुक्त, रसरूप तरंगों को हम प्राप्त करें।[यजुर्वेद 17.99]
संघात :: आघात, टक्कर; impact.
Hey Agni Dev! You grant asylum to the all abodes & the entire universe with your capability to destroy. Let us receive the sweet, gladdening, fluid waves in the middle of the ocean, in the heart, through out the life, impact of water and the Yagy Kary in which the best Ghee is used.(07.07.2025)
यजुर्वेद संहिता अष्टादश अध्याय :: ऋषि :- देवा, पूर्वदेवा, शुनःशेप, गालव, विश्वकर्मा, देवश्रवा, देववात, विश्वामित्र, इन्द्र विश्वामित्र, शास, जय, कुत्स, भरद्वाज, उत्कील, उशना; देवता :- अग्नि, प्रजापति, आत्मा, श्रीमदात्मा, रत्नवान्धन वानात्मा, धान्यदात्मा, अग्न्यादियुक्तात्मा, धनादि युक्तात्मा, अग्न्यादि विद्याविदात्मा, मित्रैश्वर्य सहितात्मा, राजेश्वर्यादि युक्तात्मा, पदार्थ विदात्मा, यज्ञानुष्ठानात्मा, यज्ञांगवानात्मा, यज्ञवानात्मा, काल विद्याविदात्मा, विषमांक गणितविद्याविदात्मा, समांक गणितविद्या-विदात्मा, पशु विद्याविदात्मा, पशुपालन विद्याविदात्मा, संग्रामादि विदात्मा, राज्यवानात्मा, विश्वेदेवा, अन्नवान् विद्वान्, अन्त्रपति, रसविद्याविद्विद्वान्, सम्राड्रराजा, ऋतुविद्या विद्विद्वान्, सूर्य, चंद्रमा, वात, यज्ञ, विश्वकर्मा, बृहस्पति, इन्दु, इन्द्र, विश्वकर्माग्निर्वा; छन्द :- शक्वरी, जगती, अष्टि, पंक्ति, धृति, बृहती, त्रिष्टुप्, अनुष्टुप्, उष्णिक्, गायत्री।
वाजश्च मे प्रसवश्च मे प्रयतिश्च मे प्रसितिश्च मे धीतिश्च मे क्रतुश्च मे स्वरश्च मे श्लोकश्च मे श्रवश्च मे श्रुतिश्च मे ज्योतिश्च मे स्वश्च मे यज्ञेन कल्पन्ताम्॥
अन्न, अन्नदान की अनुज्ञा, शुद्धि, अन्न-भक्षण की उत्कण्ठा, ध्यान, श्रेष्ठ संकल्प, सुन्दर शब्द, स्तुति-सामर्थ्य, वेद मन्त्र अथवा श्रवण शक्ति, ब्राह्मण, प्रकाश और स्वर्ग; ये सब मेरे द्वारा किये गये इस यज्ञ के फल के रूप में मुझे प्राप्त हों।[यजुर्वेद 18.1]
अनुज्ञा :: अनुमति, स्वीकृति; permission, license.
Let me have the reward-outcome of the Yagy like food grains, ability-permission to donate food grains, purity, desire to eat food grains, meditation-concentration in the Almighty, best resolution, beautiful words, capability to pray-worship, Ved Mantr, capability to hear-listen, Brahman, Light and heavens.
प्राणश्च मेऽपानश्च मे व्यानश्च मेऽसुश्च मे चित्तं च म आधीतं च मे वाक् च मे मनश्च मे चक्षुश्च मे श्रोत्रं च मे दक्षश्च मे बलं च मे यज्ञेन कल्पन्ताम् ॥
प्राण वायु, अपान वायु, सारे शरीर में विचरण करने वाला व्यान वायु, मनुष्यों को प्रवृत्त करने वाला वायु, मानस संकल्प, बाह्य विषय सम्बन्धी ज्ञान, वाणी, शुद्ध मन, पवित्र दृष्टि, सुनने की सामर्थ्य, ज्ञानेन्द्रियों का कौशल तथा कर्मेन्द्रियों में बल- ये सब मेरे द्वारा किये गये यज्ञ के फल के रूप में मुझे प्राप्त हों।[यजुर्वेद 18.2]
Let me have the reward-outcome of the Yagy like :- Pran Vayu-Air Vital, Apan Vayu, Vyan Vayu, Vayu, firm determination-resolve, knowledge of the outer world, speech, pure innerself (mind & heart), pure pious vision, capability to hear, ability of sense organs, strength of the work-function organs.
ओजश्च मे सहश्च म आत्मा च मे तनूश्च मे शर्म च मे वर्म च मेऽङ्गानि च मेऽस्थीनि च मे परूꣳषि च मे शरीराणि च मआयुश्च मे जरा च मे यज्ञेन कल्पन्ताम्॥
बल का कारण भूत ओज, देहबल, आत्मज्ञान, सुन्दर शरीर, सुख, कवच, हृष्ट-पुष्ट अंग, सुदृढ़ हड्डियाँ, सुदृढ़ अँगुलियाँ, नीरोग शरीर, जीवन और वृद्धावस्था पर्यन्त आयु, ये सब मेरे द्वारा किये गये इस यज्ञ के फल के रूप में मुझे प्राप्त हों।[यजुर्वेद 18.3]
Grant me these as the reward-out come of the Yagy performed by me :- radiance behind might-strength, physical strength, beautiful-handsome body, healthy organs, strong bones, strong fingers, ailment free body, longevity.
ज्यैष्ठ्यं च म आधिपत्यं च मे मन्युश्च मे भामश्च मेऽमश्च मेऽम्भश्च मे जेमा च मे महिमा च मे वरिमा च मे प्रथिमा च मे वर्षिमा च मे द्राधिमा च मे वृद्धं च मे वृद्धिश्च मे यज्ञेन कल्पन्ताम्॥
प्रशस्तता, प्रभुता, दोषों-अपराध पर कोध, अपरिमेयता, शीतल-मधुर जल, जोहने की शक्ति, प्रतिष्ठा, संतान की वृद्धि, गृह क्षेत्र आदिका विस्तार, दीर्घ जीवन, अविच्छिन्न वंश परम्परा, धन-धान्य की वृद्धि और विद्या आदि गुणों का उत्कर्ष, ये सब मेरे द्वारा किये गये इस यज्ञ के फल के रूप में मुझे प्राप्त हों।[यजुर्वेद 18.4]
प्रशस्त :: विशालता-चौड़ाई, बड़ा होना, प्रशंसा किया हुआ, प्रशंसा योग्य, expansive, smashing.
अपरिमेय :: अनापा, विशाल, जिसकी नाप तौल न हो सके, अनगिनत; unmeasured, inestimable.
I should get these as the reward of the Yagy conducted by me :- dignity-appreciation, power-might, anger over faults-defects & crime, inestimable, cold-sweet drinking water, power to view-see & watch, prestige, growth of progeny, widening of residence, long life, continuity of clan-dynasty, increase in wealth-prosperity, rise of qualities like education-learning.
सत्यं च मे श्रद्धा च मे जगत्त्व मे धनं च मे विश्वं च मे महश्च मे क्रीडा च में मोदन मे जातं च मे जनिष्यमाणं च मे सूक्तं च मे सुकृतं च मे यज्ञेन कल्पन्ताम्॥
यथार्थ भाषण, परलोक पर विश्वास, गो आदि पशु, सुवर्ण आदि धन, स्थावर पदार्थ, कोर्ति, क्रीडा, क्रीडा दर्शन-जनित आनन्द, पुत्र से उत्पन्न संतान, होने वाली संतान, शुभदायक ऋचाओं का समूह और ऋचाओं के पाठ से शुभ फल-ये सब मेरे द्वारा किये गये इस यज्ञ के फल के रूप में मुझे प्राप्त हों।[यजुर्वेद 18.5]
I should get all these as a result of the Yagy conducted by me :- ability to speak reality-truth, faith over next birth, cows & animals, gold & wealth, permanent objects, fame, playing games, pleasure-joy i.e., fun & frolic in watching, progeny born from the son, group of auspicious Richas and auspicious result of the reading of Richas.
ऋतं च मेऽमृतं च मेऽयक्ष्मं च मेऽनामयच्च मे जीवातुश्च मे दीर्घायुत्वं च मेऽनमित्रं च मेऽभयं च मे सुखं च मे शयनं च मे सूषाश्च मे सुदिनं च मे यज्ञेन कल्पन्ताम्॥
यज्ञ आदि कर्म और उनका स्वर्ग आदि फल, धातुक्षय आदि रोगों का अभाव तथा सामान्य व्याधियों का न रहना, आयु बढ़ाने वाले साधन, दीर्घायु, शत्रुओं का अभाव, निर्भयता, सुख, सुसज्जित शय्या, सन्ध्या वन्दन से युक्त प्रभात और यज्ञ-दान-अध्ययन आदि से युक्त दिन-ये सब मेरे द्वारा किये गये इस यज्ञ के फल के रूप में मुझे प्राप्त हों।[यजुर्वेद 18.6]
I should get all these as the reward of holding Yagy :- Yagy & related performances-deeds including heavens as their award, lack of ejaculation and illness including common ailments, fearlessness, means to boost longevity, lack of enemies, fearlessness, pleasure-comforts, decorated bed, positive impact of morning & evening prayers, impact of Yagy, donations and studies-learning.
यन्ता च मे धर्ता च मे क्षेमश्च मे धृतिश्च मे विश्वं च मे महश्च मे संविच्च मे ज्ञात्रं च मे सूश्च मे प्रसूश्च मे सीरं च मे लयश्च मे यज्ञेन कल्पन्ताम्॥
अश्व आदि का नियन्तृत्व और प्रजापालन की क्षमता, वर्तमान धन की रक्षण शक्ति, आपत्ति में चित्त की स्थिरता, सबकी अनुकूलता, पूजा-सत्कार, वेदशास्त्र आदि का ज्ञान, विज्ञान-सामर्थ्य, पुत्र आदि को प्रेरित करने की क्षमता, पुत्रोत्पत्ति आदि के लिये सामर्थ्य, हल आदि के द्वारा कृषि से अन्न-उत्पादन और कृषि में अनावृष्टि आदि विघ्नों का विनाश-ये सब मेरे द्वारा किये गये इस यज्ञ के फल के रूप में मुझे प्राप्त हों।[यजुर्वेद 18.7]
I should get all these as the reward of holding Yagy :- control over horses, ability to support populace, power to protect wealth & property, stability of mind during distress-trouble, favour of all, worship and honouring guest, knowledge of Ved Shastr-scriptures, knowledge of sciences and capability, power to inspire son, power to produce son, capability to plough and produce food grains and removal of obstructions during no rain period.
शं च मे मयश्च मे प्रियं च मेऽनुकामश्च मे कामश्च मे सौमनसश्च मे भगश्च मे द्रविणं च मे भद्रं च मे श्रेयश्च मे वसीयश्च मे यशश्च मे यज्ञेन कल्पन्ताम्॥
इस लोक का सुख, परलोक का सुख, प्रीति-उत्पादक वस्तु, सहज यत्न साध्य पदार्थ, विषय भोग जनित सुख, मन को स्वस्थ करने वाले बन्धु-बान्धव, सौभाग्य, धन, इस लोक को और परलोक का कल्याण, धन से भरा निवास योग्य गृह तथा यश,ये सब मेरे द्वारा किये गये इस यज्ञ के फल के रूप में मुझे प्राप्त हों।[यजुर्वेद 18.8]
I should get the following as the reward of holding Yagy :- comfort-pleasure in this abode and the next birth, goods increasing love & affection, easy effort for obtaining materials-objects, comforts related with sex, friends & relatives keeping the mind healthy, good luck, welfare for the current and next birth, house full of wealth good enough for living, fame-recognition.(08.07.2025)
ऊर्क् च मे सूनृता च मे पयश्च मे रसश्च मे घृतं च मे मधु च मे सग्धिश्च मे सपीतिश्च मे कृषिश्च मे वृष्टिश्च मे जैत्रं च म औद्भिद्यं च मे यज्ञेन कल्पन्ताम्॥
अन्न, सत्य और प्रिय वाणी, दूध, दूध का सार, घी, शहद, बान्धवों के साथ खान-पान, धान्य की सिद्धि, अन्न उत्पन्न होने के अनुकूल वर्षा, विजय की शक्ति तथा आम आदि वृक्षों की उत्पत्ति ये सब मेरे द्वारा किये गये इस यज्ञ के फल के रूप में मुझे प्राप्त हों।[यजुर्वेद 18.9]
Grant me food grains, truth and sweet words, extract of milk, Ghee, honey, eating with the friends & relatives, accomplishment of rice-paddy, favourable rainy season for growing food grains, power to win, growth of mango and other trees, as the outcome of the Yagy.
रविश्च मे रायश्च मे पुष्टं च मे पुष्टिश्च मे विभु च मे प्रभु च मे पूर्णं च मे पूर्णतरं च मे कुयवं च मेऽक्षितं च मेऽन्नं च मेऽक्षुच्च मे यज्ञेन कल्पन्ताम्॥
सुवर्ण, मौक्तिक आदि मणियाँ, धन की प्रचुरता, शरीर की पुष्टि, व्यापकता की शक्ति, ऐश्वर्य, धन-पुत्र आदि की बहुलता, हाथी-घोड़ा आदि की अधिकता, कुत्सित धान्य, अक्षय अन्न, भात आदि सिद्धान्न तथा भोजन पचाने की शक्ति- ये सब मेरे द्वारा किये गये इस यज्ञ के फल के रूप में मुझे प्राप्त हों।[यजुर्वेद 18.10]
व्यापक :: फैला हुआ, छाया हुआ; comprehensive, extensive.
I should get these as reward of the Yagy held by me :- gold, jewels, abundance of wealth and sons, power to nourishment of the body, elephants & horses in abundance, raw paddy, imperishable food grains, comprehensive-extensive power, grandeur, eatable cooked rice, excellent digestion etc.
वित्तं च मे वेद्यं च मे भूतं च मे भविष्यच्च मे सुगं च मे सुपथ्यं च म ऋद्धं चम ऋद्धिश्च मे क्लृप्तं च मे क्लृप्तिश्च मे मतिश्च मे सुमतिश्च मे यज्ञेन कल्पन्ताम्॥
पूर्व प्रास धन, प्राप्त होने वाला धन, पूर्व प्राप्त क्षेत्र आदि, भविष्य में प्राप्त होने वाले क्षेत्र आदि, सुगम्य देश, परम पथ्य पदार्थ, समृद्ध यज्ञ-फल, यज्ञ आदि की समृद्धि, कार्य साधक अपरिमित धन, कार्यसाधन की शक्ति, पदार्थ-मात्र का निश्चय तथा दुर्घट कार्यों का निर्णय करने की बुद्धि-ये सब मेरे द्वारा किये गये इस यज्ञ के फल के रूप में मुझे प्राप्त हों।[यजुर्वेद 18.11]
Parental wealth, wealth to be received, land acquired earlier and land to be obtained next, places to be reached easily, rich rewards of Yagy, prosperity, wealth to achieve goal, power to make efforts-accomplish job, ability to identify objects-materials, intelligence-ability to perform tough-difficult jobs etc., should be granted to me as the reward of performing Yagy.
व्रीहयश्च मे यवाश्च मे माषाश्च मे तिलाश्च मे मुद्गाश्च मे खल्वाश्च मे प्रियंगवश्च मेऽणवश्च मे श्यामाकाश्च मे नीवाराश्च मे गोधूमाश्च मे मसूराश्च मे यज्ञेन कल्पन्ताम्॥
उत्कृष्ट कोटि के धान, यव, उड़द, तिल, मूंग, चना, प्रियंगु, चीनक धान्य, सावाँ, नीवार, गेहूँ और मसूर, ये सब मेरे द्वारा किये गये इस यज्ञ के फल के रूप में मुझे प्राप्त हों।[यजुर्वेद 18.12]
दाल :: lentils or pulses.
Grant me excellent quality paddy, barley, Udad, Mung, gram, Priyngu, Cheenak, Savan, Newar, and Masur, etc., i.e., lentils-pulses as the reward of the Yagy conducted by me.
अश्मा च मे मृत्तिका च मे गिरयश्च मे पर्वताश्च मे सिकताश्च मे वनस्पतयश्च मे हिरण्यं च मेऽयश्च मे श्यामं च मे लोहंच मे सीसं च मे न्नपु च मे यज्ञेन कल्पन्ताम्॥
सुन्दर पाषाण और श्रेष्ठ मृत्तिका, गोवर्धन आदि छोटे पर्वत, हिमालय आदि विशांल पर्वत, रेतीली भूमि, वनस्पतियाँ, सुवर्ण, लोहा, ताँबा, काँसा, सीसा तथा राँगा-ये सब मेरे द्वारा किये गये इस यज्ञ के फल के रूप में मुझे प्राप्त हों।[यजुर्वेद 18.13]
Award me beautiful stones-rocks, best clay, Govardhan and other mountains, Himalay-Everest, sandy soil, vegetation, gold, iron, copper, bronze and tin; as the reward of conducting Yagy.
अग्निश्च म आपश्च मे वीरुधश्च म ओषधयश्च मे कृष्टपच्याश्च मेऽकृष्टपच्याश्च मे ग्राम्याश्च मे पशवआरण्याश्च मे वित्तं च मे वित्तिश्च मे भूतञ्च मे भूतिश्च मे यज्ञेन कल्पन्ताम्॥
पृथ्वी पर अग्नि की तथा अन्तरिक्ष में जल की अनुकूलता, छोटे-छोटे तृण, पकते ही सूखने वाली औषधियाँ, जोतने-बोने से उत्पन्न होने वाले तथा बिना जोते-बोये स्वयं उत्पन्न होने वाले अन्न, गाय-भैंस आदि ग्राम्य पशु तथा हाथी सिंह आदि जंगली पशु, पूर्वलब्ध तथा भविष्य में प्राप्त होनेवाला धन, पशु आदि तथा ऐश्वर्य- ये सब मेरे द्वारा किये गये इस यज्ञ के फल के रूप में मुझे प्राप्त हों।[यजुर्वेद 18.14]
Favourable conditions of fire over earth and water in space, small straw, medicines which become dry as soon as they ripe, food grains which grow with & without cultivation, cows, buffalos etc. domesticated animals-cattle, elephants, lions and forest animals including the wealth earned earlier and yet to be added in future, animals and prosperity-grandeur, as the reward of my accomplishing Yagy.
वसु च मे वसतिश्च मे कर्म च मे शक्तिश्च मेऽर्थश्च म एमश्च म इत्या च मे गतिश्च मे यज्ञेन कल्पन्ताम्॥
गो आदि धन, रहने के लिये सुन्दर घर, अग्निहोत्र आदि कर्म तथा उनके अनुष्ठान की सामर्थ्य, इच्छित पदार्थ, प्राप्ति योग्य पदार्थ, इष्ट प्राप्ति का उपाय एवं इष्ट प्राप्ति-ये सब मेरे द्वारा किये गये इस यज्ञ के फल के रूप में मुझे प्राप्त हों।[यजुर्वेद 18.15]
Cows and other wealth, Karm like Agni Hotr and Hawan etc. materials for their performances (Yagy Hawan Samigri), desired materials, accomplishment of desires and invoking the deity; grant me these as the reward of the Yagy performed by me.
अग्निश्च म इन्द्रश्च मे सोमश्च म इन्द्रश्च मे सविता च म इन्द्रश्च मे सरस्वती चम इन्द्रश्च मे पूषा च म इन्द्रश्च मे बृहस्पतिश्च म इन्द्रश्च मे यज्ञेन कल्पन्ताम्॥
अग्नि और इन्द्र, सोम तथा इन्द्र, सविता और इन्द्र, सरस्वती तथा इन्द्र, पूषा तथा इन्द्र, बृहस्पति और इन्द्र; ये सब मेरे द्वारा किये गये इस यज्ञ के फल के रूप में मुझे प्राप्त हों।[यजुर्वेद 18.16]
Let me attain-invoke the deities as a result of my performances of Yagy :- Agni, and Indr Dev, Som and Indr Dev, Savita and Indr Dev, Maa Saraswati & Indr dev, Pusha & Indr Dev, Brahaspati & Indr Dev.
मित्रश्च म इन्द्रश्च मेवरुणश्च म इन्द्रश्च मे धाता च म इन्द्रश्च मे त्वष्टा च म इन्द्रश्च मे मरुतश्च म इन्द्रश्च मे विश्वे च मे देवा इन्द्रश्च मे यज्ञेन कल्पन्ताम्॥
मित्र देव एवं इन्द्र, वरुण तथा इन्द्र, धाता और इन्द्र, त्वष्टा तथा इन्द्र, मरुद्गण और इन्द्र विश्वेदेव और इन्द्र, ये सब मेरे द्वारा किये गये इस यज्ञ के फल के रूप में मुझे प्राप्त हों।[यजुर्वेद 18.17]
Let me attain-invoke the deities as a result of my performances of Yagy :- Mitr Dev & Indr Dev, Varun Dev & Indr Dev, Twasta and Indr Dev, Marud Gan and Indr Dev, Vishwe dev and Indr Dev.
पृथिवी च म इन्द्रश्च मेऽन्तरिक्षं च म इन्द्रश्च मे द्यौश्च म इन्द्रश्च मे समाश्च म इन्द्रश्च मे नक्षत्राणि च म इन्द्रश्च मे दिशश्च म इन्द्रश्च मे यज्ञेन कल्पन्ताम्॥
पृथ्वी और इन्द्र, अन्तरिक्ष एवं इन्द्र, स्वर्ग तथा इन्द्र, वर्ष की अधिष्ठात्री देवता तथा इन्द्र, नक्षत्र और इन्द्र, दिशाएँ एवं इन्द्र- ये सब मेरे द्वारा किये गये इस यज्ञ के फल के रूप में मुझे प्राप्त हों।[यजुर्वेद 18.18]
Let me attain-invoke the deities as a result of my performances of Yagy :- Earth & Indr Dev, Space & Indr Dev, heavens & Indr Dev, deity of the year and Indr Dev, deity of constellations and Indr Dev, directions and Indr Dev.(09.07.2025)
अꣳशुश्च मे रश्मिश्च मेऽदाभ्यश्च मेऽधिपतिश्च म उपाꣳशुश्च मेऽन्तर्यामश्च म ऐन्द्रवायवश्च मे मैत्रावरुणश्च मऽआश्विनश्च मे प्रतिस्थानश्च मे शुक्रश्च मे मन्थी च मे यज्ञेन कल्पन्ताम्॥
अंशु, रश्मि, अदाभ्य, निग्राह्य, उपांशु, अन्तर्याम, ऐन्द्रवायव, मैत्रावरुण, आश्विन, प्रतिप्रस्थान, शुक्र और मन्थी ये सभी ग्रह मेरे द्वारा किये गये इस यज्ञ के फल के रूप में मुझे प्राप्त हों।[यजुर्वेद 18.19]
Let the following planets-celestial bodies be available to me as the reward of Yagy accomplished by me :- Anshu, Rashmi, Adabhy, Nigrahy, Antaryam, Endrvayav, Maetra Varun, Ashwin, Pratiprasthan. Shukr and Manthi.
आग्रयणश्च मे वैश्वदेवश्च मे ध्रुवश्च मे वैश्वानरश्च म ऐन्द्राग्नश्च मे महावैश्वदेवश्च मे मरुत्वतीयाश्च मे निष्केवल्यश्च मे सावित्रश्च मे सारस्वतश्च मे पात्त्रीवतश्च मे हारियोजनश्च मे यज्ञेन कल्पन्ताम्॥
आग्रयण, वैश्व देव, ध्रुव, वैश्वानर, ऐन्द्राग्न, महावैश्वदेव, मरुत्त्वतीय, निष्केवल्य, सावित्र, सारस्वत, पात्नीवत एवं हारियोजन-ये यज्ञ ग्रह मेरे द्वारा किये गये इस यज्ञ के फल के रूप में मुझे प्राप्त हों।[यजुर्वेद 18.20]
Let the following planets-celestial bodies related to Yagy be available to me as the reward of Yagy accomplished by me :- Agryan, Vaeshw Dev, Dhruv, Vaeshwanar, Endragn, Maha Vaeshw Dev, Maruttvteey, Nishkevly, Savitr, Saraswat, Patnivat and Hari Yojan.
स्रुचश्च मे चमसाश्च मे वायव्यानि च मे द्रोणकलशश्च मे ग्रावाणश्च मेऽधिषवणे च मे पूतभृच्च म आधवनीयश्च मे वेदिश्च मे बर्हिश्च मेऽवभृथश्च मे स्वगाकारश्च मे यज्ञेन कल्पन्ताम्॥
स्रुक, चमस, वायव्य, द्रोण कलश, ग्रावा, काष्ठ फलक, पूतभृत्, आधवनीय, वेदी, कुशा, अवभृथ और शम्युवाक, ये सब यज्ञ पात्र मेरे द्वारा किये गये इस यज्ञ के फल के रूप में मुझे प्राप्त हों।[यजुर्वेद 18.21]
Let the following vessels be granted to me as a result of the Yagy accomplished by me :- Struck, Chamas, Vayavy, Dron Kalash, Grava, Kasht Falak, Putbhrat, Adhavneey, Vedi, Kusha, Avbhrat & Shmyuvak.
अग्निश्च मे घर्मश्च मेऽर्कश्च मे सूर्यश्च मे प्राणश्च मेऽश्वमेधश्च मे पृथिवी च मेऽदितिश्च मे दितिश्च मे द्यौश्च मेऽङ्गुलयः शक्वरयो दिशश्च मे यज्ञेन कल्पन्ताम्॥
अग्निष्टोम, प्रवर्ग्य, पुरोडाश, सूर्य सम्बन्धी चरु, प्राण, अश्वमेधयज्ञ, पृथ्वी, अदिति, दिति, द्युलोक, विराट् पुरुष के अवयव, सब प्रकार की शक्तियाँ और पूर्व आदि दिशाएँ, ये सब मेरे द्वारा किये गये इस यज्ञ के फल के रूप में मुझे प्राप्त हों।[यजुर्वेद 18.22]
Let me get all these as the reward of accomplishing Yagy by me :- Agnishtom, Pravry, Purodash, Charu related with the Sun, Pran, Ashw Medh Yagy, Prathvi-earth, Aditi, Diti, Dyulok, components of Virat Purush, all sorts of powers, and all directions alike east.
व्रतं च म ऋतवश्च मे तपश्च मे संवत्सरश्च मेऽहोरात्रे ऊर्वष्ठीवे बृहद्रथन्तरे च मे यज्ञेन कल्पन्ताम्॥
व्रत, वसन्त आदि ऋतुएँ, कृच्छ्र-चान्द्रायण आदि तप, प्रभव आदि सम्वत्सर, दिन रात, जंघा तथा जानु, ये शरीरावयव और बृहद् तथा रथन्तर साम, ये सब मेरे द्वारा किये गये इस यज्ञ के फल के रूप में मुझे प्राप्त हों।[यजुर्वेद 18.23]
Let me grant these as the outcome of the Yagy accomplished by me :- Vrat, Vasant & other seasons, Krachchh-Chandrayan ascetics; Prabhav etc. Samvatsar, day & night, thigh & knee, these components of body, Brahad & Rathantar Sam.
एका च मे तिस्त्रश्च मे तिस्स्रश्च मे पंच च मे पंच च मे सप्त च मे सप्त च मे नव च मे नव च म एकादश च म एकादश च मे त्रयोदश च मे त्रयोदश च मे पञ्चदश च मे पञ्चदश च मे सप्तदश च मे सप्तदश च मे नवदश च मे नवदश च मऽएकविꣳ शतिश्च म एकविꣳ शतिश्च मे त्रयोविꣳ शतिश्च मे त्रयोविधं शतिश्च मे पञ्चवि शतिश्च मे पञ्चविꣳ शतिश्च मे सप्तविꣳ शतिश्च मे सप्तविꣳ शतिश्च मे नवविꣳ शतिश्च मे नवविꣳ शतिश्च म एकत्रिꣳशच्च म एकत्रिशच्च मे त्रयस्त्रिꣳशच्च मे यज्ञेन कल्पन्ताम्॥
एक और तीन, तीन तथा पाँच, पाँच और सात, सात तथा नौ, नौ और ग्यारह, ग्यारह और तेरह, तेरह और पन्द्रह, पन्द्रह तथा सत्रह, सत्रह तथा उन्नीस, उन्नीस और इक्कीस, इक्कीस तथा तेईस, तेईस और पच्चीस, पच्चीस तथा सत्ताईस, सत्ताईस तथा उनतीस, उनतीस और इकतीस, इकतीस तथा तैंतीस, इन सब संख्याओं से कहे जाने वाले सकल श्रेष्ठ पदार्थ मेरे द्वारा किये गये इस यज्ञ के फल के रूप में मुझे प्राप्त हों।[यजुर्वेद 18.24]
Let all the best goods related with these combinations of odd numbers be available to me as the outcome of the Yagy accomplished by me :- 1 & 3, 3 & 5, 5 & 7, 7 & 9, 9 & 11, 11 & 13, 13 & 15, 15 & 17, 17 & 19, 19 & 21, 21 & 23, 23 & 25, 25 & 27, 27 & 29, 29 & 3q, 31 & 33.
चतस्त्रश्च मेऽष्टौ च मेऽष्टौ च मे द्वादश च मे द्वादश च मे षोडश च मे षोडश च मे विꣳशतिश्च मे विꣳशतिश्च मे चतुर्विꣳशतिश्च मे चतुर्विꣳशतिश्च मेऽष्टाविꣳशतिश्च मेऽष्टाविꣳशतिश्च मे द्वात्रिꣳ शच्च मे द्वात्रिꣳशच्च मे षट्त्रिꣳशच्च मे षट्त्रिंꣳशच्च मे चत्वारिꣳशच्च मे चत्वारिꣳशच्च मे चतुश्चत्वारिꣳशच्च मे चतुश्चत्वारिꣳशच्च मेऽष्टा चत्वारिशच्च मे यज्ञेन कल्पन्ताम्॥
चार तथा आठ, आठ और बारह, बारह तथा सोलह, सोलह और बीस, बीस और चौबीस, चौबीस तथा अट्ठाईस, अट्ठाईस और बत्तीस, बत्तीस तथा छत्तीस, छत्तीस और चालीस, चालीस तथा चौवालीस, चौवालीस तथा अड़तालीस; इन सब संख्याओं से कहे जानेवाले सकल श्रेष्ठ पदार्थ मेरे द्वारा किये गये इस यज्ञ के फल के रूप में मुझे प्रा हों।[यजुर्वेद 18.25]
Let all the best goods related with these combinations of even numbers be available to me as the outcome of the Yagy accomplished by me :- 4 & 8, 8 &12, 12 & 16, 16 & 20, 20 & 24, 24 & 28, 28 & 32, 32 & 36, 36 & 40, 40 & 44, 44 & 48.
त्र्यविश्च मे त्र्यवी च मे दित्यवाट् च मे दित्यौही च मे पञ्चाविश्व मे पञ्चावी च मे त्रिवत्सश्च मे त्रिवत्सा च मे तुर्यवाट् च मे तुर्यौही च मे यज्ञेन कल्पन्ताम्॥
डेढ़ वर्ष का बछड़ा, डेढ़ वर्ष की बछिया, दो वर्ष का बछड़ा, दो वर्ष की ही बछिया, ढाई वर्ष का बैल, ढाई वर्ष की गाय, तीन वर्ष का बैल तथा तीन वर्ष की गाय, साढ़े तीन वर्ष का बैल और साढ़े तीन वर्ष की गाय, ये सब मेरे द्वारा किये गये इस यज्ञ के फल के रूप में मुझे प्राप्त हों।[यजुर्वेद 18.26]
I should get all these as the outcome of accomplishing Yagy :- calf 11/2 year old, she calf 11/2 year old, calf 2 years old, she calf 2 years old, bull-ox 21/2 year old, cow 21/2 year old, ox 3 year old, cow 3 year old, bull 31/2 year old, cow 31/2 year old.(10.07.2025)
पष्ठवाट् च प मेष्ठौही च म उक्षा च मे वशा च म ऋषभश्च मे वेहच्च मेऽनड्वांश्च मे धेनुश्च मे यज्ञेन कल्पन्ताम्॥
चार वर्ष का बैल, चार वर्ष की गाय, सेचन में समर्थ वृषभ, वन्ध्या गाय, तरुण वृषभ, गर्भघातिनी गाय, भार वहन करने में समर्थ बैल तथा नवप्रसूता गाय- ये सब मेरे द्वारा किये गये इस यज्ञ के फल के रूप में मुझे प्राप्त हों।[यजुर्वेद 18.27]
4 year old ox, 4 year old cow, bull capable of inseminating, infertile cow, young bull, cow which destroys its foetus, ox capable of bearing load, newly conceived cow; should be granted to me as the reward of accomplishing Yagy.
वाजाय स्वाहा प्रसवाय स्वाहाऽपिजाय स्वाहा क्रतवे स्वाहा वसवे स्वाहाऽहर्पतये स्वाहाह्ने मुग्धाय स्वाहा मुग्धाय वैनꣳशिनाय स्वाहा विनꣳशिनआन्त्यायनाय स्वाहान्त्याय भौवनाय स्वाहा भुवनस्य पतये स्वाहाधिपतये स्वाहा प्रजापतये स्वाहा। इयं ते राण्मिन्नाय यन्तासि यमनऊर्जे त्वा वृष्ट्यै त्वा प्रजानां त्वाधिपत्याय॥
प्रचुर अन्न की उत्पत्ति करने वाले अन्न रूप चैत्रमास के लिये यह श्रेष्ठ आहुति समर्पित है, वैशाख मास के लिये यह श्रेष्ठ आहुति समर्पित है, जल-क्रीड़ा में सुख दायक ज्येष्ठ मास के लिये यह श्रेष्ठ आहुति समर्पित है, याग रूप आषाढ़ मास के लिये यह श्रेष्ठ आहुति समर्पित है, चातुर्मास्य में यात्रा का निषेध करने वाले श्रावण मास के लिये यह श्रेष्ठ आहुति समर्पित है, दिन के स्वामी सूर्य रूप भाद्रपद मास के लिये यह श्रेष्ठ आहुति समर्पित है, तुषार आदि से मोह कारक दिवस वाले आश्विन (क्वार) मास के लिये यह श्रेष्ठ आहुति समर्पित है, स्नान आदि से प्राणियों का पाप नाश करने के कारण मोह निवर्तक तथा दिन मान के थोड़ा घटने से विनाश शील कार्तिक मास के लिये यह श्रेष्ठ आहुति समर्पित है, सम्पूर्ण सृष्टि के विनाश के बाद भी विद्यमान रहने वाले अविनाशी विष्णु रूप मार्ग शीर्ष (अगहन)-मास के लिये यह श्रेष्ठ आहुति समर्पित है, सम्पूर्ण लोकों के पालक रूप माघ मास के लिये यह श्रेष्ठ आहुति समर्पित है और सभी प्राणियों के लिये सर्वाधिक पालक फाल्गुन मास के लिये यह श्रेष्ठ आहुति समर्पित है। बारहों मासों के अधिष्ठातृ देव प्रजापति के लिये यह श्रेष्ठ आहुति दी जाती है। हे प्रजापति स्वरूप अग्नि देव! यह यज्ञ स्थान आपका राज्य है, अग्निष्टोम आदि कर्मों में सबके नियन्ता आप मित्र रूप इस यजमान के प्रेरक हैं। अधिक अन्न आदि की प्राप्ति के लिये मैं आपका अभिषेक करता हूँ, वर्षा के लिये मैं आपका अभिषेक करता हूँ और प्रजाओं पर प्रभुता प्राप्ति के लिये मैं आपका अभिषेक करता हूँ।[यजुर्वेद 18.28]
This sacrifice is for the Chaetr Month in which sufficient food grains are produced, best sacrifice is made for the month of Vaeshakh, this excellent sacrifice is for the month of Jyeshth in which water sports grant pleasure, this sacrifice is for the month Ashadh which is like Yag-Hawan, Yagy, this sacrifice is for the Shrawan mass during Chaturmass (rainy season) in which travel is prohibited, this excellent sacrifice is made for the lord of the day Sury-Sun during Bhadr Pad, in which month rains are at peak, this excellent sacrifice is for the month Ashwin-Kawar in which frost-blight are observed, this sacrifice is for the month Kartik in which the length of the day is reduced and bathing leads to loss of sins and freedom from attachment, this excellent sacrifice is for the month Marg Sheersh (Aghan) during which immortal Bhagwan Shri Hari Vishnu remain-persists even after annihilation, this sacrifice is for the month Magh which is the supporter of all abodes and all the living beings flourishing during Falgun month. This excellent sacrifice is made for the deity Prajapati of all 12 months. Hey Agni Dev in the form of Prajapati! This Yagy place is your domain. You inspire the Agnishtom etc Yagy Karm like a friend. I consecration you for availing more food grains, rains, power over the subjects.
तुषार :: हवा में मिली हुई भाप जो जमकर श्वेत कणों के रूप में दिखाई देती है, पाला बर्फ़, हिम, बर्फ़ की तरह ठंडा; blight, hoar frost.
आयुर्यज्ञेन कल्पतां प्राणो यज्ञेन कल्पतां चक्षुर्यज्ञेन कल्पताꣳश्रोत्रं यज्ञेन कल्पतां वाग्यज्ञेन कल्पतां मनो यज्ञेन कल्पतामात्मा यज्ञेन कल्पतां ब्रह्मा यज्ञेन कल्पताꣳ ज्योतिर्यज्ञेन कल्पतां स्वर्यज्ञेन कल्पतां पृष्ठं यज्ञेन कल्पतां यज्ञो यज्ञेन कल्पताम्। स्तोमश्च यजुश्च ऋक् च साम च बृहच्च रथन्तरं च। स्वदैवा अगन्मामृताऽअभूम प्रजापतेः प्रजा अभूम वेट् स्वाहा॥
यज्ञ के फल से मेरी आयु में वृद्धि हो, यज्ञ के फल स्वरूप मेरे पराण बलिष्ठ हों, यज्ञ के फल स्वरूप नेत्रों की ज्योति बढ़े, यज्ञ के फल से श्रवण शक्ति उत्कृष्टता को प्राप्त हो। यह के फल में वाणी में श्रेष्ठता रहे, यज्ञ के फलस्वरूप मन सदा स्वच्छ रहे, यज्ञ के फलस्वरूप आत्मा बलवान हो, सभी वेद मेरे ऊपर प्रसन्न रहें, इस यज्ञ के फल स्वरूप मुझे परमात्मा की दिव्य ज्योति प्राप्त हो, यज्ञ के फलस्वरूप स्वर्ग की प्राप्ति हो, यज्ञ के फल स्वरूप संसार का सर्वश्रेष्ठ सुख प्राप्त हो, यज्ञ के फलस्वरूप यज्ञ की महायज्ञ करने की शक्ति प्राप्त हो, त्रिवृत्पंचदश आदि स्तोम यजुर्मन्त्र, ऋचाएँ साम की गीतियाँ, बृहत्माम और रथन्तर साम-ये सब यज्ञ के फल से मेरे ऊपर अनुग्रह करें, मैं यज्ञ के फल में देवत्व को प्राप्त कर स्वर्ग जाऊँ तथा अमर हो जाऊँ, यज्ञ के प्रसाद से हम हिरण्यगर्भ प्रजापति की प्रियतम प्रजा हों। समस्त देवताओं के निमित्त यह वसोर्धारा हवन सम्पन्न हुआ ये सभी आहुतियाँ उन्हें भली-भाँति समर्पित हैं।[यजुर्वेद 18.29]
As the result of the accomplishment of the Yagy my age should increase, my Air Vital should boost, my eye sight should improve-increase and my hearing power should increase, speech voice should become excellent, innerself should be cleansed, soul should become strong, all Veds should become happy with me. I should attain the divine aura o the almighty. I should attain heavens, best comforts of the world, power to conduct Maha Yagy Trivratpanchdash etc. Stom Yajur Mantr, Richas, Gitis of Sam, Brahatsam and Rathantar sam, all these should favour me as the out come accomplishing Yagy. I should attain demigodhood and go to heavens becoming immortal. As the reward-Prasad we should become the favourite subjects of Prajapati. This Yagy termed Vasordhara Hawan has been accomplished for all the demigods-deities. All these sacrifices have been offered to them carefully.
वाजस्य नु प्रसवे मातरं महीमदितिं नाम वचसा करामहे। यस्यामिदं विश्वं भुवनमाविवेश तस्यां नो देवः सविता धर्म साविषत्॥
हे पृथ्वी माता! आप अन्न प्रदान करने वाली हैं, अतः इन याजकों को आपके द्वारा अन्न को प्राति हो। हम अपने मन्त्रों द्वारा अदिति माता के समान पृथ्वी माता को अन्नादि की प्राप्ति के निमित्त निश्चय रूप से प्रेरित करते हैं। जिनमें यह सम्पूर्ण संसार प्रविष्ट है, वे सर्वप्रेरक प्रकाशमान् सविता देव हमारे निमित्त धर्म को गति शील बनायें।[यजुर्वेद 18.30]
Hey mother earth! You yield food grains, hence let these Yajak have food grains. We motivate Mara Prathvi-earth like Maa Aditi with our Mants. Illuminated Savita who inspire the entire universe should make the Dharm dynamic for us.
विश्वे अद्य मरुतो विश्वऊती विश्वे भवन्त्वग्रयः समिद्धाः।
विश्वे नो देवा अवसागमन्तु विश्वमस्तु द्रविणं वाजो अस्मे॥
आज हमारे इस यज्ञ में सारे मरुद्गण आगमन करें। रक्षा करने वाली सारी देव सत्तायें रक्षण कारी साधनों के साथ हमारे इस यज्ञ में पदार्पण करें। सम्पूर्ण अग्नियाँ प्रज्वलित हों। हमें महान् धन-सम्पदा तथा धान्य प्राप्त कराने में सहायक बनें।[यजुर्वेद 18.31]
Let all Marud Gan visit our Yagy today. Protective powers of demigods should come to our Yagy. Let all Agnis be ignited. Become favourable to us for great wealth and prosperity.
वाजो नः सप्त प्रदिशश्चतस्त्रो वो परावतः। वाजो नो विश्चैर्देवैर्धन साता विहावतु॥
हमें अन्न, सात लोक, चार प्रकृष्ट दिशाएँ तथा दूर विद्यमान स्वर्ग भी प्राप्त हो। इस यज्ञ में विश्वे देवों की कृपा से हमें धन और अन्न प्राप्त हो।[यजुर्वेद 18.32]
Let us attain food grains, 7 abodes, 4 dominant directions and distant heavens. In this Yagy we should attain wealth and food grains by the grace of Vishwe Dev.
वाजो नो अद्य प्र सुवाति दानं वाजो देवाँ2ऋतुभिः कल्पयाति।
वाजो हि मा सर्ववीरं जजान विश्वा आशा वाजपतिर्जयेयम्॥
अन्न के अधिपति देवता आप हमें अन्न का दान देने के निमित्त प्रेरित करें। सम्पूर्ण देवतागणों को ऋतुओं के अनुकूल हव्य पदार्थ प्राप्त होता रहे। अन्नाधिपति हमें पुत्र-पौत्रादि में समृद्ध करें। हम अन्न के अधिष्ठाता देवरूप को प्राप्त कर सम्पूर्ण दिशाओं को जीत लें।[यजुर्वेद 18.33]
Let the lord of food grains inspire us for donating food grains. Let all the demigods-deities continue getting offerings as per seasons. Lord of food grains should prosper us amongest sons & grandsons. We should attain the lord of food grains as the deity of food grains and win all the directions.(11.07.2025)
वाजः पुरस्तादुत मध्यतो नो वाजो देवान् हविषा वर्द्धयाति।
वाजो हि मा सर्ववीरं चकार सर्वाआशा वाजपतिर्भवेयम्॥
अन्न हमारे आगे हो, अन्न हमारे पीछे हो तथा अन्न हमारे मध्य में हो। अन्न आहुतियों के द्वारा देवता गणों को संतुष्ट करता है। अन्न ही हमें पुत्र-पौत्रादि से सम्पन्न बनाता है। हम अन्न के अधिष्ठाता होकर सम्पूर्ण दिशाओं को अपने वश में करने में समर्थ हों।[यजुर्वेद 18.34]
We should have food grains in front, in the back and in between. Food grains satisfy the demigods-deities through sacrifices. Food grains make us prosper with sons-grandsons. Let us become the deity of food grains and become capable of controlling all directions.
सं मा सृजामि पयसा पृथिव्याः सं मा सृजाम्यद्भिरोषधीभिः। सोऽहं वाजꣳ सनेयमग्ने॥
हे अग्नि देव! पृथ्वी-सम्बन्धी रस से हम अपनी आत्मा को संयुक्त करते हैं। जलों से तथा ओषधियों से हम अपनी आत्मा को संयुक्त करते हैं। हम आपकी कृपा से ओषधियों तथा जल रूप में पोषणकारी अन्न उपलब्ध करें।[यजुर्वेद 18.35]
Hey Agni Dev! We connect our soul with the saps-juices of the earth. We join our soul with the water and medicines. We should attain medicines and nourishing food grains in the form of water-fluids due to your mercy-favour.
पयः पृथिव्यां पय ओषधीषु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयो धाः। पयस्वतीः प्रदिशः सन्तु मह्यम्॥
हे अग्नि देव! आप इस धरती पर सम्पूर्ण पोषणकारी रसों की स्थापना करें। ओषधियों में जीवन प्रदान करने वाले रस को प्रतिष्ठित करें। स्वर्ग लोक में अलौकिक रस को अधिष्ठित करें। अन्तरिक्ष लोक में उत्तम रस को प्रतिष्ठित करें। हमारे निमित्त ये सभी दिशायें तथा उप दिशाएँ मनोवांछित रसों को प्रदान करने वाली सिद्ध हों।[यजुर्वेद 18.36]
Hey Agni Dev! Establish the nourishing fluids over the earth. Establish the life saving saps in the medicines. Establish the divine fluids in the heavens. Establish excellent fluids-saps in the space. Let these directions and sub directions provide the desired fluids to us.
देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्याम्।
सरस्वत्यै वाचो यन्तुर्यन्त्रेणाग्नेः साम्राज्येनाभिषिञ्चामि॥
सविता देव के उदित होने पर उनकी प्रेरणा से, दोनों अश्विनी कुमारों की भुजाओं तथा पूषा देव के दोनों हाथों से, देवी सरस्वती की वाणी तथा नियामक सत्ता के नियमन से एवं अग्नि देव के साम्राज्य से हे याजक! अनुदानों की वृष्टि के रूप में मैं आपका अभिषेक करता हूँ।[यजुर्वेद 18.37]
नियामक :: नियम पर चलाने वाला, विनियामक, गति व्यवस्थापक; regulator, regulative.
After the rise of Savita Dev due to his inspiration, arms of Ashwani Kumars and both hands of Push Dev, Maa Saraswati's voice and the regulative power & regulation of Agni Dev's empire, hey Yajak! I anoint you with the showering of grants.
ऋताषाडृतमाग्निर्गन्धर्वस्तस्यौषधयोऽप्सरसो मुदो नाम।
स न इदं ब्रह्म क्षत्रं पातु तस्मै स्वाहा वाट् ताभ्यः स्वाहा॥
सत्य को सहने वाला तथा सत्य के स्थान वाला अग्नि ही गन्धर्व है। औषधियाँ ही उसकी अप्सराएँ हैं। उन अप्सराओं का नाम ही 'मुद' है। वह गन्धर्व हमारे इस ब्राह्मण जाति को और क्षत्रिय जाति को पाले। उसके लिये यह आहुति है। उन औषधियों के लिये यह आहुति है।[यजुर्वेद 18.38]
Tolerating the truth, established as truth, Agni is Gandarbh. Medicines are his nymphs. These nymphs are called Mud. Let that Gandarbh nurturer-nourish the Brahman & Kshatriy clan. This sacrifice is for him. This sacrifice is for those medicines.
सꣳहितो विश्वसामा सूर्यो गन्धर्वस्तस्य मरीचयोऽप्सरस आयुवो नाम।
स न इदं ब्रह्म क्षत्रं पातु तस्मै स्वाहा वाट् ताभ्यः स्वाहा॥
दिन तथा रात्रि की संधि कराने वाला होने के कारण सूर्य की संहित संज्ञा है, सामवेद की श्रेष्ठ ऋचाओं द्वारा स्तवनीय होने के कारण उन्हें सर्वसाम कहा जाता है। ये सूर्य ही गन्धर्व हैं, किरणें उनकी अप्सराएँ हैं। उनका नाम आयुव है। पृथ्वी लोक के कर्ता-धर्ता सूर्य देव हमारे श्रेष्ठ वर्णों, ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि सवर्णों अर्थात् संस्कारवान् नागरिकों की सुरक्षा करें। उनकी प्रीति के निमित्त श्रेष्ठ आहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 18.39]
कर्ता धर्ता :: सब कुछ करने-धरने वाला, वह व्यक्ति जिसे सब कुछ करने-धरने का अधिकार हो, किसी भी कार्य या मामले का मुख्य संचालक, व्यवस्थापक या प्रभारी; doer, a person who manages the affairs, the active or managing member of a family, one who manages-controls the family as a head, superior, guardian.
Sun is called Sanhit due to his ability to join day and night. He is named Sarvnam due to the excellent prayers of the Richas of Sam Ved being offered to him. This Sury is Gandarbh, his rays are nymphs. He is named Ayuv. Sury Dev as the guardian-superior of the earth, should protect the Brahmans, Kshatriy, upper class, virtuous populace. This excellent sacrifice for his affection.
सुषुम्णः सूर्यरश्मिश्चन्द्रमा गन्धर्वस्तस्य नक्षत्राण्यप्सरसो भेकुरयो नाम।
स न इदं ब्रह्म क्षत्रं पातु तस्मै स्वाहा वाट् ताभ्यः स्वाहा॥
श्रेष्ठ प्रसन्नतादायक, सूर्य की किरणों से दीप्ति प्राप्त करने वाले चन्द्रमा-रूप गन्धर्व हमारे सुवर्णों अर्थात् संस्कारवान् ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि वर्णों की रक्षा करें। उनके निमित्त यह आहुति प्रीति पूर्वक समर्पित है। विशिष्ट रूप से दीप्तिमान्, रोग रहित करने वाली 'भेकुरी' संज्ञा वाली सौम्य किरणें उनकी अप्सराएँ हैं, वे हमारी सुरक्षा करें। उनकी प्रीति के निमित्त श्रेष्ठ आहुति समर्पित है। उन नक्षत्रों के लिये भी यह आहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 18.40]
Chandr Dev who generate excellent happiness, illuminate due to the rays of Sun, should protect the virtuous upper caste i.e., Brahmans, Kshatriy. This sacrifice is offered to him with love. His nymphs with specially illuminated rays, free from ailments, named, Bhekuri should protect us. This best sacrifice is offered for the sake of his love. This sacrifice is offered to the constellations as well.
इषिरो विश्वव्यचा वातो गन्धर्वस्तस्यापो अप्सरस ऊर्जी नाम।
स न इदं ब्रह्म क्षत्रं पातु तस्मै स्वाहा वाट् ताभ्यः स्वाहा॥
शीघ्रगामी, सर्वव्यापी, इस पृथ्वी को धारण करने वाले जो गन्धर्व रूप पवन देव हैं, वे हमारे ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि श्रेष्ठ वर्णों, द्विजातियों की रक्षा करने वाले हों। उनके निमित्त यह आहुति अर्पित है। प्राणियों को जीवन प्रदान करने वाला जल इनकी अप्सराएँ हैं, वे हमारी सुरक्षा करें। उनकी प्रीति के निमित्त यह श्रेष्ठ आहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 18.41]
Fast moving-dynamic, all pervading, supporting the earth, Gandarbh Pawan Dev, should protect the Brahmans, Kshatriy, excellent upper clans, Dwijati Gan. This sacrifice is offered for him. Water supporting life of the living beings is his nymphs, to protect us. This excellent sacrifice is offered for his love & affection.
भुज्युः सुपर्णो यज्ञो गन्धर्वस्तस्य दक्षिणा अप्सरसस्तावा नाम।
स न इदं ब्रह्म क्षत्रं पातु तस्मै स्वाहा वाट् ताभ्यः स्वाहा॥
प्राणियों के पालक, द्युलोक में गमन कराने वाले यज्ञ रूप गन्धर्व हैं, वे हमारे क्षात्र तथा ब्राह्म बल की रक्षा करें। उनके निमित्त प्रीतिपूर्वक आहुति समर्पित है। उत्तम स्तुति रूप स्तावा नामक दक्षिणा उस यज्ञ की अप्सरा है, वे हमारी सुरक्षा करें। उनके निमित्त प्रीतिपूर्वक आहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 18.42]
The Gandarbhs who support the living beings constitute the Yagy. They should help us in moving to heavens. They should protect our majesty as Kshatriy. This sacrifice is offered to them. Constituting the best offerings termed Stava, Dakshina is his nymph. He should protect us. This sacrifice is offered to him with love.
प्रजापतिर्विश्वकर्मा मनो गन्धर्वस्तस्य ऋक्सामान्यप्सरस एष्टयो नाम।
स न इदं ब्रह्म क्षत्रं पातु तस्मै स्वाहा वाट् ताभ्यः स्वाहा॥
प्रजा के पालनहार, सम्पूर्ण जगत् के कर्ता, मन रूप गन्धर्व हैं, वे हमारे सुवर्णों अर्थात् संस्कारवान् ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि वर्णों की रक्षा करें। उनके लिए यह आहुति प्रीतिपूर्वक समर्पित है। अभीष्ट प्रदान करने वाली इष्टि नाम की ऋक् तथा सामवेद की ऋचायें मन की अप्सरा हैं, वे हमारी सुरक्षा करें। उनकी प्रीति के निमित्त श्रेष्ठ आहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 18.43]
Nurturer of the subjects, doer of the whole universe in the form of innerself are the Gandarbhs. They should protect the virtuous Swarn-upper class i.e., Brahmans, Kshatriy etc clans. This sacrifice is offered to them. The Richas named Ishti from Rik and Sam Ved are the nymphs of the innerself (mind & heart). They should protect us. For their affection, this best sacrifice is offered to them.
स नो भुवनस्य पते प्रजापते यस्य त उ परिगृहा यस्य वेह।
अस्मै ब्रह्मणेऽस्मै क्षत्राय महि शर्म यच्छ स्वाहा॥
जगत् के पालक हे प्रजापते! ऊपर स्वर्गलोक के गृह अथवा इस लोक के गृह आपके ही आश्रय पर अवलम्बित हैं। ऐसे आप हमारे इस ब्राह्मण तथा क्षत्रिय समुदाय को तथा मुझे भी महान् सुख प्रदान करने वाले हों। यह आहति आपके निमित्त प्रीतिपूर्वक अर्पित है।[यजुर्वेद 18.44]
Nurturer of the universe, hey Prajapate! The planets constituting the upper heavens and this abode; are dependent upon you. You grant pleasure-comforts to Brahmans, Kshatriy and me. This sacrifice is made for you with love and affection.(12.07.2025)
समुद्रोऽसि नभस्वानार्द्रदानुः शम्भूर्मयोभूरभि मा वाहि स्वाहा। मारुतोऽसि मरुतां गणः शम्भूर्मयोभूरभि मा वाहि स्वाहा। अवस्यूरसि दुवस्वाञ्छम्भूर्मयोभूरभि मा वाहि स्वाहा॥
हे वायो! आप सागर के समान असीमित जलों से युक्त हैं, आकाश मण्डल में सभी जगह व्याप्त रहने वाले, जल वर्षा द्वारा पृथ्वी को सिंचित करने वाले, इस लोक का सुख प्राप्त कराने वाले, परलोक का सुख प्राप्त कराने वाले एवं परम हर्ष की उत्पत्ति करने वाले हैं। आप अन्तरिक्ष लोक में गमन शील, मरुद्गण स्वरूप हैं। आप सबको अपनी शरण में रखकर सुरक्षा प्रदान करने वाले, अन्न के उत्पादक, सम्पूर्ण सुखों के दाता तथा आनन्द को उत्पन्न करनेवाले हैं, अतः आप हमारी सुरक्षा करें। आपके निमित्त यह आहुति प्रीतिपूर्वक समर्पित है।[यजुर्वेद 18.45]
Hey Pawan-Vayu Dev! You possess unlimited water like the ocean, pervade the whole sky, irrigate the earth with water, grant happiness-pleasure in this abode & the next abode and evolve bliss. You are like the Marud Gan in the space. You grant asylum to everyone, produce the food grains, all sorts of comforts, produce happiness; hence protect us. This sacrifice is made for you with love & affection.
यास्ते अग्ने सूर्ये रुचो दिवमातन्वन्ति रश्मिभिः।
ताभिर्नो अद्य सर्वाभी रुचे जनाय नस्कृधि॥
हे अग्नि देव! आपकी जो आभा सूर्य मण्डल में स्थित किरणों के रूप में है, उन सभी रश्मियों द्वारा हमें तथा हमारे पुत्र-पौत्रादि को तेजस्विता प्रदान करें।[यजुर्वेद 18.46]
तेजस्विता :: प्रभावपूर्णता, निर्भीकता, साहस-उत्साह; brilliance, vigorousness, high spirit.
Hey Agni Dev! Your aura is present in the rays of Sun. Grant brilliance-vigorousness to our sons & grandsons.
या वो देवाः सूर्ये रुचो गोष्वश्वेषु या रुचः। इन्द्राग्नी ताभिः सर्वाभी रुचं नो धत्त बृहस्पते॥
हे इन्द्राग्नि, हे बृहस्पते, हे देवजनो! आपकी जो आभा सूर्य मण्डल में सुशोभित है, जो पुष्टि प्रद दीप्तियाँ गौओं और अश्वों में स्थित हैं, उन समस्त दीप्तियों से सुशोभित होकर आप हमारे लिए आरोग्य तथा कान्ति प्रदान करें।[यजुर्वेद 18.47]
Hey Indragni, Dev Guru Brahaspati, and demigods-deities! You should be glorified with the radiance present in the Sury Mandal, nourishing cows and the horses to grant us good health and glory.
रुचं नो धेहि ब्राह्मणेषु रुचꣳ राजसु नस्कृधि। रुचं विश्वेषु शूद्रेषु मयि धेहि रुचा रुचम्॥
हे अग्नि देव! हमारे ब्राह्मणों में कान्ति की स्थापना करें। हमारे क्षत्रियों में कान्ति की स्थापना करें। हमारे वैश्यों में कान्ति की स्थापना करें तथा हमारे शूद्रों में कान्ति की स्थापना करें, साथ ही हमें भी विशेषरूप से कान्तिमान् बनायें।[यजुर्वेद 18.48]
Hey Agni Dev! Evolve brilliance in the Brahmans, Kshatriy, Vaeshy and the Shudr Gan; making us vigorous in addition to them.
तत्त्वायामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदा शास्ते यजमानो हविर्भिः।
अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुशꣳ स मा न आयुः प्र मोषीः॥
वेद मन्त्रों द्वारा स्तुत्य हे वरुण देव! याजक हविदान करके लौकिक सखों को प्राप्त करने की कामना करते हैं। हम वेद वाणियों के द्वारा आपकी अभ्यर्थना करते हैं। हे महास्तुति को प्राप्त आराध्य देव! इस स्थान में आप कोप न करके हमारी याचनाओं को ध्यानपूर्वक सुनें। हमें दीर्घायु प्रदान करें।[यजुर्वेद 18.49]
Worshiped with the Ved Mantrs, hey Varun Dev! Yajak make offerings with the hope of pleasure & comforts in this abode. We pray to you with the Ved Vani (Mantr-Shloks). Hey deity availing the great prayers-worship! Listen to our prayers without anger carefully and grant us long life.
स्वर्ण घर्मः स्वाहा स्वर्णार्कः स्वाहा स्वर्ण शुक्रः स्वाहा स्वर्ण ज्योतिः स्वाहा स्वर्ण सूर्यः स्वाहा॥
यजमान अर्क अश्वमेध संतति संज्ञक पाँच आहुतियाँ देते हुए बोले; सभी जगह अपने आलोक को विस्तारित करनेवाले आदित्य देव के लिए यह आहुति अर्पित है। सूर्य के समान अग्नि देव के लिए यह आहुति अर्पित है। शुभ्र तेजों से सम्पन्न देवता के लिए यह आहुति अर्पित है। अन्तर्निहित ज्योति के लिए यह आहुति अर्पित है। अन्तःकरण में प्रकाशित सूर्य के लिए यह आहुति अर्पित है। यह सभी आहुतियाँ श्रेष्ठ प्रकार से ग्रहण हों।[यजुर्वेद 18.50]
The Yajman should make 5 sacrifices with respect to Ashw Medh Yagy and say, hey Adity Dev, illuminating all places! This sacrifice is for you. This sacrifices is for Agni Dev who is like Sury Dev. This sacrifice is for the deities possessing brilliance. This sacrifice is for the inborn-hidden radiance. This sacrifice is for the Sun present in our innerself. Accept all these sacrifices in best possible manner.
अग्निं युनज्मि शवसा घृतेन दिव्यꣳ सुपर्णं वयसा बृहन्तम्।
तेन वयं गमेम ब्रन्धस्य विष्टपꣳ स्वो रुहाणा अधिनाकमुत्तमम्॥
दिव्य गुणों से युक्त, गति सम्पन्न, घृताहुतियों द्वारा अभि वृद्धि को प्राप्त करने वाले अग्नि देव को शक्ति प्रदायक घृत से संयुक्त करते हैं। हम इनके द्वारा आदित्य लोक में जायेंगे, तत्पश्चात् ऊपर द्युलोक में जाते हुए दुःख रहित, सर्वश्रेष्ठ लोक को प्राप्त होंगे।[यजुर्वेद 18.51]
We make offerings of Ghee to dynamic Agni Dev, attaining growth with the offerings of Ghee & associated with divine traits. We will reach the Adity Lok due to them, thereafter rising to heavens we will attain best abode free from pains-sorrow.
इमौ ते पक्षावजरौ पतत्रिणौ याभ्याꣳ रक्षाꣳ स्यपहꣳ स्यग्ने।
ताभ्यां पतेम सुकृतामु लोकं यत्र ऋषयो जग्मुः प्रथमजाः पुराणाः॥
हे अग्नि देव! आपके ये दोनों दाहिने तथा बायें पक्ष जरा रहित एवं सर्वदा उड़ने के स्वभाव वाले हैं, जिसके द्वारा आप राक्षसों को नष्ट करते हैं। उन पंखों की सहायता से हो हम पुण्यात्माओं के दिव्यलोक को गमन करें, जहाँ प्रथम उत्पन्न हुए पुरातन ऋषिगण गये हैं।[यजुर्वेद 18.52]
Hey Agni Dev! You hands (feathers) free from old age, have the habit of flying, with which you destroy the demons. With the help these feathers we should move to divine abodes, where the Rishis who first have gone.
इन्दुर्दक्षः श्येन ऋतावा हिरण्यपक्षः शकुनो भुरण्युः।
महान्त्सधस्थे ध्रुव आ निषत्तो नमस्ते अस्तु मा मा हिꣳसीः॥
हे अग्नि देव! आप चन्द्रमा के समान हर्ष प्रदान करने वाले, निरन्तर प्रयत्नशील, श्येनवत् (बाजपक्षी की भाँति) आकाश में वेग से गमन करनेवाले, सत्य-यज्ञ और जल से युक्त, सुवर्ण युक्त पंख वाले, बलशाली, पालन-पोषण के आधारभूत, महान्, सामर्थ्यशाली, स्थिर, यज्ञ में अविच्छिन्न रूप से विद्यमान रहने वाले हैं, आपको बारम्बार नमस्कार है। आप हमें किसी भी प्रकार से पीड़ित न करें।[यजुर्वेद 18.53]
Hey Agni Dev! You gladden the Moon, make continuous efforts, move fast like falcon in the sky, associated with Truthful Yagy, has water, bearing feathers of gold, mighty, root cause of nourishment, great, majestic-capable, stationary-inertial, remain present in the Yagy continuously. We salute you repeatedly. Please do not torture in any way.
दिवो मूर्द्धासि पृथिव्या नाभिरूर्गपामोषधीनाम्। विश्वायुः शर्म सप्रथा नमस्पथे॥
हे अग्नि देव! आप द्युलोक के मस्तक रूप हैं तथा धरती के नाभिस्वरूप हैं, जिनसे सबको जीवन प्राप्त होता है आप उन जलों तथा ओषधियों के साररूप हैं। आप सभी प्राणियों के जीवन हैं, सबके शरणदाता हैं, स्वर्ग-मार्गरूप (देवयान पथ) हैं, अतः आपको नमस्कार है।[यजुर्वेद 18.54]
Hey Agni Dev! You are like the forehead of heavens and the navel of the earth from whom everyone get nourishment. You are the extract of the waters and the medicines. You are the life of all living beings, grant asylum to everyone and Devyan-divine path to heavens, hence we salute.(13.07.2025)
विश्वस्य मूर्द्धन्नधि तिष्ठसि श्रितः समुद्रे ते हृदयमप्स्वायुरपो दत्तोदधिं भिन्त। दिवस्पर्जन्यादन्तरिक्षात्पृथिव्यास्ततो नो वृष्ट्याव॥
हे अग्नि देव! आप सभी जगह संव्याप्त होकर जगत् के सबसे ऊँचे स्थान पर प्रतिष्ठित हैं। आप हृदय रूप अन्तरिक्ष लोक में अधिष्ठित हैं तथा आयु रूप जल में संव्याप्त होकर अधिष्ठित हैं। आप स्वर्ग लोक से, अन्तरिक्ष लोक से, भूलोक के गर्भ एवं अन्य जगहों से जल लाकर धरती पर वर्षा द्वारा हमारी सुरक्षा करें। बादलों को छिन्न-भिन्न कर हमें जल प्रदान करें।[यजुर्वेद 18.55]
Hey Agni Dev! You pervade every place and established at the highest position in the universe. You are established in the heart form space and age form water. Protect us by bringing water from heavens, space, core of the earth and other places causing rains. Tear the clouds and and grant us rains.
इष्टो यज्ञो भृगुभिराशीर्दा वसुभिः। तस्य न इष्टस्य प्रीतस्य द्रविणेहागमेः॥
हे द्रविण (धन)! आप हमारे ईश्वर के समान हैं एवं हमसे प्रेम करने वाले हैं। जो याजक धन की अभिलाषा करते हैं, उन्हें ऐश्वर्य प्रदान करके समृद्धिशाली बनायें। अभीष्ट फल प्रदायक यह यज्ञ भृगुओं (ब्राह्मणों) तथा वसुओं (क्षत्रियों) द्वारा श्रेष्ठ रीति से सम्पादित किया गया है।[यजुर्वेद 18.55]
Hey Dravin (wealth! You are like our Lord-God and loves us. Grant grandeur and prosperity to the Yajak. The Yagy which accomplish desires has been conducted following the methodology & procedures adopted by Bhragu clan Brahmans and the Kshatriy.
इष्टो अग्निराहुतः पिपर्तु न इष्टꣳ हविः। स्वगेदं देवेभ्यो नमः॥
यज्ञ करने वाले परम प्रिय अग्नि देव यजमानों के द्वारा प्रदान की गयी आहुतियों से परितृप्त होकर हमारी मनोकामनाओं को पूर्ण करें तथा स्वयं गमनशील होकर यह हविष्यान्न देवगणों तक पहुँचायें।[यजुर्वेद 18.57]
Let dearest Agni Dev performing the Yagy should be satisfied with the sacrifices made by the Yajmans and accomplish their desires, become dynamic and carry the offerings to demigods-deities.
कूयदाक्तात्समसुस्त्रोद्धृदो वा मनसो वा सम्भृतं चक्षुषो वा।
तदनु प्रेत सकृतामु लोकं यत्र ऋषयो जग्मुः प्रथमजाः पुराणाः॥
हे ऋत्विग्गणो! जो ज्ञान आन्तरिक प्रेरणा से, हृदय से, मन से, नेत्र तथा चक्षु आदि इन्द्रियों से निर्गत हुआ है, उस ज्ञान के द्वारा यज्ञ कर्म का सम्पादन कर आचरणशील सत्पुरुषों के दिव्य लोक को प्राप्त करें, जहाँ प्रथमोत्पन्न पुरातन ऋषि गये हैं।[यजुर्वेद 18.58]
Hey Ritviz Gan! Use the knowledge acquired through the enlightenment attained through inner inspiration, innerself, heart, mind, eyes and the senses and organise the Yagy, attain the divine, higher abodes of the virtuous, righteous pious people where the ancient Rishi Gan have reached.
एतꣳ सधस्थं परि ते ददामि यमावहाच्छेवधिं जातवेदाः।
अन्वागन्ता यज्ञपतिर्वो अन्त्र तꣳ स्म जानीत परमे व्योमन्॥
हे देवताओं! आपका निवास स्थान द्युलोक है। अग्नि देव ने जिस यज्ञ के फलरूप परम सुख को याजक के निमित्त प्रदान किया है, उस फल को हम आपके निमित्त समर्पित करते हैं। हे देवताओं! यह समाप्ति के पश्चात् याजक आपके निकट आगमन करेगा, आप आकाशवत् विस्तृत स्वर्गस्थान में आये हुए याजक को जानें एवं उसके अभीष्ट को पूर्ण करें।[यजुर्वेद 18.59]
Hey demigods-deities! Heaven is your abode. The Ultimate bliss acquired by Agni Dev through Yagy granted to Yajak, is offered by us to you. After accomplishing this the Yajak will come to you in the heaven. Recognise him and accomplish his desire.
एतं जानीथ परमे व्योमन् देवाः सधस्था विद रूपमस्य।
यदागच्छात्यथिभिर्देवयानैरिष्टापूर्ते कृणवाथाविरस्मै॥
उत्कृष्ट स्थान द्युलोक में निवास करने वाले, हे देवताओं! आप इस याजक को जानें तथा इसके उत्तम स्वरूप से भी भली-भाँति परिचित हों। जब यह याजक देवताओं के गमन योग्य मार्ग से जाए, तब यज्ञ कर्मों के सभी फलों को इस याजक को प्रदान करने की कृपा करें, ताकि वह सुखी हो सके।[यजुर्वेद 18.60]
Hey deities residing in the excellent heavens! Recognise this Yajak and acquaint with him thoroughly. When the Yajak follow the route-path of the demigods, grant all the rewards of the Yagy to him so that he become happy-comfortable.
उद्बुध्यस्वाग्ने प्रति जागृहि त्वमिष्टापूर्ते सꣳ सृजेथामयं च।
अस्मिन्त्सधस्थेऽअध्युत्तरस्मिन् विश्वेदेवा यजमानश्च सीदत॥
हे अग्नि देव! आप जाग्रत् अर्थात् प्रज्वलित हों और प्रतिदिन यजमान को भी जाग्रत् करें। इस यज्ञ में यजमान के साथ सुसंगत हों। हे अग्ने। तुमने श्रौतस्मार्त कर्मों को उत्पन्न किया है और तुम्हीं ने इस यज्ञ को भी उत्पन्न किया है। इस उत्तम यज्ञरूप सहस्थान में विश्वेदेव और यजमान बैठें।[यजुर्वेद 18.61]
Hey Agni Dev! Awake-ignite and awake the Yajman too. Join this Yagy with the Yajman. You have evolved the Shrout Smart Karm (Karm Kand) in addition to Yagy. Vishwe Dev and Yajman should sit together in the excellent Yagy.
येन् वहसि सहस्त्रं येनाग्ने सर्ववेदसम्। तेनेमं यज्ञं नो नय स्वर्देवेषु गन्तवे॥
हे अग्नि देव! आप जिस शक्ति से सहस्त्र दक्षिणा वाले तथा सर्वमेध अर्थात् सर्वस्व समर्पित करने वाले यज्ञों को सम्पन्न करते हैं, उसी पराक्रम से हमारे इस यज्ञ को सम्पन्न करें। यज्ञ के प्रभाव से हम याजक देवत्व के परमपद को प्राप्त करें।[यजुर्वेद 18.62]
Hey Agni Dev! Conduct our Yagy with the power with which you organise Yagy awarding thousands of Dakshina i.e., you offer every thing possessed by you. Let us attain Ultimate position of demigodhood as the impact of the Yagy.
प्रस्तरेण परिधिना स्रुचा वेद्या च बर्हिषा। ऋचेमं यज्ञं नो नय स्वर्देवेषु गन्तवे॥
हे अग्नि देव! हमारे प्रस्तर, परिधि, खुक्, वेदी, कुशा तथा ऋचा आदि से युक्त इस यज्ञ को देवताओं के निकट पहुँचाने के निमित्त दिव्यलोक की ओर प्रेषित करें।[यजुर्वेद 18.63]
Hey Agni Dev! Move this Yagy to demigods in the heavens associated with the stones, Paridhi, Khuk, Vedi, Kusha and Richa.
यद्दत्तं यत्परादानं यत्पूर्त याश्च दक्षिणाः। तदग्निर्वैश्वकर्मणः स्वर्देवेषु नो दधत्॥
हे विश्वकर्मा सम्बन्धी अग्नि देव! हमारे द्वारा कुटुम्बीजनों-पत्नी, पुत्र, जामाता आदि को दिया गया धन; दीन-दुःखियों, अतिथिगणों तथा विप्रों को धन-साधनादि के रूप में प्रदान किये गये दान (परादान) को एवं कूप-बावड़ी आदि के निर्माण जैसे उत्तम कार्यों (पूर्त) हेतु दिये गये धन एवं यज्ञ में दी गयी दक्षिणा को स्वर्ग में स्थित देव शक्तियों तक पहुँचायें, जिससे हम स्वर्गलोक की प्राप्ति कर सकें।[यजुर्वेद 18.64]
Hey Agni Dev associated with Vishw Karma! Wealth granted to wife, sons, son in law by us; awarded by the members of clan-family; wealth given to poor, guests, Brahmans & donations; wealth granted for digging wells ponds, reservoirs and the Dakshina of the Yagy etc. should to be carried to the divine powers in the heavens, so that we are able to attain heavens.
यत्र धारा अनपेता मधोघृतस्य च याः। तदग्निर्वैश्वकर्मणः स्वर्देवेषु नो दधत्॥
ये विश्वकर्मा-अग्निदेव हम यजमानों को ऐसे दिव्यलोक में पहुँचाएँ, जहाँ मधु की, घृत की तथा दुग्ध-दधि आदि की कभी भी समाप्त न होने वाली धाराएँ निरन्तर प्रवाहमान रहती हैं।[यजुर्वेद 18.65]॥
Let Vishw Karma & Agni Dev take us to divine abodes, where honey, ghee, milk and curd, never finishing streams keep flowing. (14.07.2025)
अग्ग्रिरस्मि जन्मना जातवेदा घृतं मे चक्षुरमृतं म आसन्।
अर्कस्त्रिधातू रजसो विमानोऽजस्त्रो घर्मो हविरस्मि नाम॥
मैं जन्म से ही जात वेदस् अग्नि हूँ। घृत मेरी चक्षु है। मेरे मुख में अमृत रहता है। ऋग्-यजु-साम लक्षण त्रिधातु यज्ञ भी मैं ही हूँ। जल का निर्माता, कभी भी क्षीण न होने वाला आदित्य या मेघरूप प्रवर्ग्य भी मैं ही हूँ। हवि भी मैं ही हूँ ।[यजुर्वेद 18.66]
प्रवर्ग्य :: वैदिक यज्ञीय अनुष्ठान है, जो सोम यज्ञ का एक प्रारंभिक समारोह है। इसे अश्विन-प्रवाया के रूप में भी जाना जाता है। इस यज्ञ में, मिट्टी से बने एक बर्तन में दूध उबाला जाता है और उसे अश्विन देवताओं को अर्पित किया जाता है।
I am Jatvedas Agni, since birth. Ghee constitute my eyes. My mouth is full of elixir-nectar. I am the Rig, Yaju, Sam Tridhatu Yagy. I evolve water and never receding Adity or cloud like Pravargy. I am offering-oblation as well.
ऋचो नामास्मि यजूꣳषि नामास्मि सामानि नामास्मि। ये अग्नयः पाञ्चजन्या अस्यां पृथिव्यामधि। तेषामसि त्वमुत्तमः प्र नो जीवातवे सुव॥
ऋग्वेद में हूँ। यजुर्वेद में हूँ और सामवेद भी मैं ही हूँ। इस पृथ्वी के ऊपर जो भी अन्य ब्राह्मणादि की उपकारिणी अग्नियाँ हैं, हे अग्ने! तुम उन सब में उत्तम हो, तुम हमें जीवन के लिये प्रेरणा प्रदान करो।[यजुर्वेद 18.67]
I am Rig Ved, Yajur Ved and Sam Ved. Hey Agni! You are better-superior to all Agni-fire like Brahmans etc. over the earth. You are better than all of them and inspire for a better life.
वार्त्रहत्याय शवसे पृतनाषाह्याय च। इन्द्र त्वा वर्तयामसि॥
हे वृत्रहन्ता देवराज इन्द्र! आप रिपुओं के संहारक, शत्रु सेना का पराभव करने में सक्षम एवं अत्यन्त पराक्रमी हैं, अतः हम आपको युद्ध में सहायता हेतु बारम्बार आवाहित करते हैं।[यजुर्वेद 18.68]
Hey slayer of Vratr Dev Indr Dev! You are destroyer of the enemies, capable of defeating the enemy army, hence we invoke for help in the war.
सहदानुं पुरुहूत क्षियन्तमहस्तमिन्द्र सं पिणक् कुणारुम्।
अभि वृत्रं वर्द्धमानं पियारुमपादमिन्द्र तवसा जघन्थ॥
अनेकानेक याजकों द्वारा प्रदत्त हवि को ग्रहण करने वाले हे देवराज इन्द्र! आप निकटस्थ शत्रु तथा दुर्वचन बोलने वाले शत्रु को हाथों से रहित करके चूर्ण कर डालें। हे देवराज इन्द्र ! आप अभ्युदय को प्राप्त होने वाले एवं चारों ओर हिंसा का डर विस्तारित करने वाले हैं। आप वृत्रासुर अथवा पाप को चरण हीन करके अर्थात् गति रहित करने नष्ट कर डालें।[यजुर्वेद 18.69]
Hey Dev Raj Indr acceptor of the offerings by several Yajak Gan! Make the enemy who speak bad-foul words handless and convert him into powder. You attain growth and spread fear of violence all around (amongest the enemies). You make Vratra Sur i.e., the sins feet less and kill him.
वि न इन्द्र मृधो जहि नीचा यच्छ पृतन्यतः। योऽअस्माँ2 अभिदासत्यधरं गमया तमः॥
हे देव राज इन्द्र! आप हमारे रिपुओं को पराजित करें। रणक्षेत्र में हमारे विरोधियों को परास्त करें। जो हमें अपने अधीन रखना चाहते हैं, उनका जीवन घोर अन्धकारमय हो।[यजुर्वेद 18.70]
Hey Devraj Indr! Defeat our enemies in the battle field. Make the life full of darkness-misery who wish to keep us under their subordination.
मृगो न भीमः कुचरो गिरिष्ठाः परावत आ जगन्था परस्याः।
सृकꣳसꣳशाय पविमिन्द्र तिग्मं वि शत्रून् ताढि वि मृधो नुदस्व॥
हे देवराज इन्द्र ! आप कुटिल गति वाले, गिरि की गुफाओं में निवास करने वाले, शेर के समान विकराल हैं। आप द्युलोक से आये हैं। आप अति दूर-स्थलों में विद्यमान रिपुओं को सभी ओर से घेर लें। अपने तीक्ष्ण वज्र द्वारा शत्रु के देह को विदीर्ण करके उन्हें पीड़ित करें एवं शत्रुओं के सैन्यदल को पीछे भगा दें।[यजुर्वेद 18.71]
कुटिल :: छली, चालबाज, रूखा, भूला हुआ, वक्र, हुकनुमा, टेढ़ा, वक्र, कपटी, धोखेबाज़ी; improbity, untruth, crooked, devious, hooked, cynical, devious.
Hey Devraj Indr! You are devious-diplomatic by nature, residing in caves, furious like the lion. You have descended from the heavens. Surround the enemies from all sides. Pierce their bodies with your sharp Vajr, torture them, repel them and their armies backwards.
वैश्वानरो न ऊतय आ प्र यातु परावतः। अग्निर्नः सुष्टुतीरुप॥
हे अग्नि देव! आप समस्त प्राणियों के हितैषी हैं। आप हमारी श्रेष्ठ स्तुतियों को ध्यान पूर्वक सुनें। आप यदि दूरस्थ हों तब पर भी पदार्पण करके हम यजमानों की सुरक्षा करें।[यजुर्वेद 18.72]
Hey Agni Dev! You are the well wisher of all living beings-organism. Respond to our Stuties-prayers carefully. Even if you away, come and protect the Yajman.
पृष्टो दिवि पृष्टो अग्निः पृथिव्यां पृष्टो विश्वा ओषधीराविवेश।
वैश्वानरः सहसा पृष्टो अग्निः स नो दिवा स रिषस्पातु नक्तम्॥
स्वर्ग लोक में आदित्यरूप से कौन प्रतिष्ठित है, यह पूछने पर उत्तर मिला 'अग्नि'। अन्तरिक्ष में विद्युत् रूप से कौन प्रतिष्ठित है, यह पूछने पर उत्तर मिला 'अग्नि'। पुनः पूछा गया कि बल के द्वारा मन्थन कर कौन प्रकट किया जा रहा है, यह पूछने पर उत्तर मिला 'अग्नि'। ऐसे वैश्वानर अग्नि देव हमारी दिन और रात में रक्षा करें।[यजुर्वेद 18.73]
प्रतिष्ठित :: सम्मान प्राप्त, आदर प्राप्त, स्थापित; established-recognised, prestigious, honourable.
When asked, who is established-honoured in the heavens, the answer is "Agni Dev". Who is established in the space as lightening, the answer is "Agni Dev". It was again that who can be evolved by churning with force, the answer is "Agni Dev". Such Vaeshwar Nar Agni should protect during the day & night.
अश्याम तं काममग्ने तवोती अश्याम रयिꣳ रयिवः सुवीरम्।
अश्याम वाजमभि वाजयन्तोऽश्याम द्युम्नमजराजरं ते॥
हे अग्नि देव! आपके द्वारा संरक्षण प्राप्त करके हम अपने अभीष्ट पूर्ण करें। हे वैभवशाली! आपके अनुग्रह से हम श्रेष्ठ पराक्रमी सन्तान तथा धन-सम्पदा को प्राप्त करें। रणक्षेत्र में रिपुओं को पराजित करके ऐश्वर्य को प्राप्त करें। हे जरा रहित! आपके कभी भी समाप्त न होने वाले यश को हम प्राप्त करें अर्थात् हम सदैव यशस्वी बने रहें।[यजुर्वेद 18.74]
वैभवशाली :: ऐश्वर्य शाली, अत्यधिक समर्थ; sumptuous, luxurious.
Hey Agni Dev! We should accomplish our goal-target under your patronage. Hey sumptuous! By virtue of your grace, we should have excellent invincible progeny and wealth. We should defeat the enemy in the battle field and attain grandeur-glory. Hey Agni Dev free from old age! We should attain your never ending glory.
वयं ते अद्य ररिमा हि काममुत्तानहस्ता नमसोपसद्य।
यजिष्ठेन मनसा यक्षि देवानस्त्रेधता मन्मना विप्रोऽअग्ने॥
हे अग्नि देव! हम अपने हाथों को ऊँचा उठाकर आपको प्रणाम करते हैं और आपके निकट पहुँचते हैं। आज हम यज्ञानुष्ठान में लगे हुए हैं। एकाग्र चित्त तथा चिन्तनशील मन के द्वारा, अभीष्ट हविष्यान्न को आपके हेतु समर्पित करते हैं। हे अग्नि देव! हमारे द्वारा समर्पित की गयी इस श्रेष्ठ हवि को विवेकवान् देवताओं तक पहुँचायें।[यजुर्वेद 18.75]
Hey Agni Dev! We salute you by raising our hands and approach you. We are busy with rituals. We make offerings to you with dedication, concentration, thoughtful innerself. Hey Agni Dev! Carry our offerings to prudent demigods-deities.
धामच्छदग्निरिन्द्रो ब्रह्मा देवो बृहस्पतिः। सचेतसो विश्वे देवा यज्ञं प्रावन्तु नः शुभे॥
सम्पूर्ण भुवनों के धारक देवता गण, अग्नि, इन्द्र, ब्रह्मा, बृहस्पति तथा श्रेष्ठ विवेकवाले हे विश्वेदेवो! आप हमारे यज्ञ को इष्ट स्थान स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित करें। यजमानों के इस उत्तम कर्मस्वरूप यज्ञानुष्ठान को दिव्यलोक तक पहुँचायें।[यजुर्वेद 18.76]
Supporter of all abodes demigods-deities, Agni Dev, Indr Dev, Brahma Ji, Dev Guru Brahaspati and the highly prudent Vishwe Dev Gan! Establish our Yagy in the deity "heavens". Carry this excellent endeavour of the Yajman in the form of Yagy to divine abodes.
त्वं यविष्ठ दाशुषो नॄँ: पाहि शृणुधी गिरः। रक्षा तोकमुत त्मना॥
हे अत्यन्त तेजोमण्डित तरुण अग्नि देव! आप हमारे द्वारा वेद मन्त्रों के रूप में स्तुतियों को सुनें तथा याजक की सन्तानों को संरक्षण प्रदान करें। सत्कर्म करने में लगे हुए यजमानों से सम्बन्धित सम्पूर्ण मानवों की रक्षा करें।[यजुर्वेद 18.77]
Hey young Agni Dev possessing great aura! Respond to our Stuties-prayers in the form of Ved Mantrs and grant protection to our progeny. Grant asylum to all those who are connected to virtuous, righteous, pious humans.(15.07.2025)
यजुर्वेद संहिता नवदश अध्याय :: ऋषि :- प्रजापति, भरद्वाज, आभूति, हैमवर्चि, वैखानस, शंख; देवता :- सोम, इन्द्र, अग्नि, विद्वांस, यज्ञ, अतिध्यादयो लिंगोक्ता, गृहपति, यजमान, विद्वान, इडा, पितर, सरस्वती, पवित्रकर्ता, सविता, विश्वेदेवा, श्री, अंगिरसि, प्रजापति, वरुण, अश्विनी, आत्मा; छन्द :- शक्वरी, अनुष्टुप, त्रिष्टुपू, गायत्री, जगती, पंक्ति, उष्णिक्, अष्टि।
स्वाद्वीं त्वा स्वादुना तीव्रां तीव्रणामृताममृतेन। मधुमतीं मधुमता सृजामि सꣳसोमेन। सोमोऽस्यश्विभ्यां पच्यस्व सरस्वत्यै पच्यस्वेन्द्राय सुत्राम्णे पच्यस्व॥
अत्यन्त स्वादिष्ट, अमृत के सामान गुणवाली, मधुर मीठी रस वाली हे सुरे! आपको सुस्वाद युक्त, तीक्ष्ण, अमृतवत् गुण वाले तथा मधुर सोम के साथ मिलाते हैं। हे सुरे! सोम की संगति के कारण आप भी सोम के समान हो गयी हैं। आप दोनों अश्विनी कुमारों के लिए परिपक्व हों। वाणी की देवी सरस्वती के लिए परिपक्व हों एवं सभी प्रकार से संरक्षण प्रदान करने वाले देवराज इन्द्र के लिए भी परिपक्व हों।[यजुर्वेद 19.1]
Highly tasty, possessing characterises like the elixir, having sweet sap-juice, hey Sure! You are mixed in pungent, tasty Som which is like elixir. You have become like Som in its company. You should be ripe for Ashwani Kumars duo, deity of speech Maa Saraswati and Devraj Indr who grant asylum to everyone.
परीतो षिञ्चता सुतꣳ सोमो य उत्तमं हविः।
दधन्वा यो नर्यो अप्स्वन्तरा सुषाव सोममद्रिभिः॥
हे ऋत्विग्गणों! यह सोम श्रेष्ठ हवि रूप है। यह सोम याजकों का हितैषी बनकर उनके लिए सुखों को धारण करता है। जल के बीच में स्थित इस सोम को पत्थरों द्वारा कूटकर निचोड़ो तथा उस शोधित सोम को गाय के दूध में मिलाओ।[यजुर्वेद 19.2]
Hey Ritviz Gan! This Som constitute the best offering. Som become favourable to the Yajak Gan and support the pleasure, comforts for them. Crush this Som with stones in water, squeeze and mix the extracted Som in cow's milk.
वायोः पूतः पवित्रेण प्रत्यंक्सोमो अतिद्रुतः। इन्द्रस्य युज्यः सखा। वायोः पूतः पवित्रेण प्रांक्सोमो अतिद्रुतः। इन्द्रस्य युज्यः सखा॥
यह अलौकिक लक्षण युक्त सोम जब ऊपर से अर्थात् अन्तरिक्ष-लोक से प्रकट होता है, तब वायु के द्वारा पवित्र होकर देवराज इन्द्र का सखा बनता है। यही सोम जब नीचे से ऊपर जाता है, तब भी वायु के द्वारा पवित्र होकर देवराज इन्द्र का सखा ही होता है।[यजुर्वेद 19.3]
This Som possessing divine traits appears out of space and become friendly after being purified by air to be friendly with Indr Dev. When it descend, it is sanctified by air and it remain friendly with Indr Dev.
पुनाति ते परिस्रुतꣳ सोम सूर्यस्य दुहिता। वारेण शश्वता तना॥
अध्वर्यु यजमान से कहता है, हे याजक! तुम्हारे द्वारा संस्कार किये गये सोम को सूर्य की पुत्री श्रद्धा अन्न तथा धन के निमित्त गाय और अश्व के बाल से पावन करके देव शक्तियों के निमित्त उपयोगी बनाती है।[यजुर्वेद 19.4]
Ardhvaryu-priest say to Yajman, hey Yajak! Som sanctified by you is made useful by Shraddha, the daughter of Sury Dev; for the divine powers, using hairs of cow & horse for the sake of food grains and wealth.
ब्रह्म क्षत्रं पवते तेज इन्द्रियꣳ सुरया सोमः सुतो आसुतो मदाय।
शुक्रेण देव देवताः पिपृग्धि रसेनान्नं यजमानाय धेहि॥
हे सोम! अभिषुत होकर आप ब्राह्मण, क्षत्रिय को तथा इन्द्रियों के तेज को उत्पन्न करते हैं। सुरा से सम्मिश्रित होकर आप मदकारी भी हो जाते हैं। हे सोम देव! तुम अपने शुद्ध वीर्य के द्वारा अग्नि प्रभृति देवों को प्रसन्न करो और तदनन्तर घृतादि सहित यजमान को अन्न-रस प्रदान करो।[यजुर्वेद 19.5]
प्रभृति :: इत्यादि, आदि, वगैरह; induction, influence.
Hey Som! On being sanctified you evolve radiance-energy of the Brahmans, Kshatriy and of the senses. You become intoxicating on being mixed with wine. Hey Som Dev! Make the Agni and influencing demigods happy with your extract. Thereafter, grant Ghee, food grains and juices to the Yajman.
कुविदंग यवमन्तो यवं चिद्यथा दान्त्यनुपूर्व वियूय। इहेहैषां कृणुहि भोजनानि ये बर्हिषो नम उक्तिं यजन्ति। उपयामगृहीतोऽस्यश्विभ्यां त्वा सरस्वत्यै त्वेन्द्राय त्वा सुत्राम्ण एष ते योनिस्तेजसे त्वा वीर्याय त्वा बलाय त्वा॥
हे अग्नि देव! जिस प्रकार यवादि अन्न से युक्त किसान प्रचुर मात्रा में जौ प्राप्त करने हेतु शीघ्रता से उसे काटकर सुरक्षित रखता है; उसी प्रकार आप इस याजक के निमित्त सभी भक्षणीय पदार्थों को तैयार रखें। कुश-आसन पर प्रतिष्ठित ये याजक हविष्य लेकर मन्त्रोच्चारण सहित आपका पूजन करते हैं।हे हव्य रूप सोम! आप उपयाम-पात्र में ग्रहण करने योग्य हैं। हम आपको अश्विनी कुमारों के लिए स्वीकार करते हैं। यह आपका मूलस्थान है, अतएव इस स्थान पर हम आपको प्रतिष्ठित करते हैं। देवी सरस्वती के लिए आपकी स्थापना करते हैं। रक्षणकारी उत्कृष्ट देवराज इन्द्र के लिए आपको प्रतिष्ठित करते हैं। वीर्य एवं शक्ति-सम्पन्नता के लिए भी आपको यहाँ अधिष्ठित करते हैं।[यजुर्वेद 19.6]
Hey Agni Dev! The way in which the farmers cuts the crops of barley with husk and quicky saves it, you too keep the eatable ready for the Yajak. The Yajak sitting over the Kush Matt, worship you with Mantrs keeping offerings ready in their hands. Hey Som forming offerings! This Upyam pot is suitable for accepting you. We accept you for Ashwani Kumars. This is native seat, hence we establish you here. We establish you Devi Saraswati. We establish you for the best protector Devraj Indr. We establish you here for power and prosperity.
नाना हि वां देवहितꣳ सदस्कृतं मा स सृक्षाथां परमे व्योमन्।
सुरा त्वमसि शुष्मिणी सोमꣳ एष मा मा हिꣳसीः स्वां योनिमाविशन्ती॥
हे सुरा (ओषधि रस) तथा सोम! जिस प्रकार देवताओं के हितैषी आप दोनों यज्ञशाला में अलग-अलग विद्यमान होते हैं, उसी प्रकार अति ऊँचे नभ में यजन के बाद भी आप संयुक्त न हों। हे सुरे! आप शक्तिशाली रस स्वरूप हैं तथा यह सोम आपसे अलग स्वभाव वाला है, अतएव उस स्थान में प्रविष्ट होते हुए आप सोम के स्वभाव को विनष्ट न करें।[यजुर्वेद 19.7]
Hey Sura (extract of medicines-herbs) and Som! Well wishers of demigods-deities, you both establish in the Yagy Shala separately, similarly you should not join in high skies. He Sure! You are like the powerful juice-extract and this Som has different nature. Therefore, in spite of entering that space you should not destroy the nature of Som.
उपयामगृहीतोऽस्याश्विनं तेजः सारस्वतं वीर्यमैन्द्रं बलम्।
एष ते योनिर्मोदाय त्वानन्दाय त्वा महसे त्वा॥
हे सोम! आप उपयाम-पात्र में गृहीत होते हैं। यह आपका उत्पत्ति स्थान है, इस स्थान में आपको अश्विनी कुमारों के तेज, सरस्वती देवी की शक्ति तथा देवराज इन्द्र के वीर्य की प्राप्ति के लिए प्रतिष्ठित करते हैं। हे सोम! आपको देवताओं की प्रसन्नता, हर्ष तथा उनकी महत्ता के लिए उन्हें प्रदान करते हैं।[यजुर्वेद 19.8]
Hey Som! You are accepted in the Upyam pot. This is the place of your origin. You are established here to attain the radiance of Ashwani Kumars, power of Maa Saraswati and the gist-might of Indr Dev. You are established here to attain the happiness of demigods-deities, pleasure and their majesty.(16.07.2025)
तेजोऽसि तेजो मयि धेहि वीर्यमसि वीर्य मयि धेहि बलमसि बलं मयि धेह्योजोऽस्योजो मयि धेहि मन्युरसि मन्युं मयि धेहि सहोऽसि सहो मयि धेहि॥
हे तेजस्वी पय! आप हमें तेजवान् बनायें। हे वीर्यवान् पय! आप हमें वीर्यवान् बनायें। हे बलशाली पय! आप हमें शक्तिशाली बनायें। हे ओजवान् पय! आप हमें ओजस्वी बनायें। हे मन्युरूप पय! आप हमें दुष्टों पर क्रोध करने की शक्ति प्रदान करें। हे संघर्षशील पय! आप हममें संघर्ष करने की सामर्थ्य में वृद्धि करें।[यजुर्वेद 19.9]
पय :: दूध, दुग्ध, जल, पानी; drink.
मन्यु :: कर्म, शोक, याग, कोप, क्रोध; efforts, endeavours, grief, Yagy, anger.
Hey radiant milk! Make us aurous. Hey milk producing sperms! Generate sperms in our body. Hey mighty milk! Make us strong. Hey aurous milk! Make us aurous. Hey milk producing efforts! Grant us strength to anger over the wicked. Hey struggling milk! Increase of power to struggle.
या व्याघ्नं विषूचिकोभौ वृकं च रक्षति। श्येनं पतत्रिणꣳ सिꣳ हꣳ सेमं पात्वꣳ हसः॥
जो विसूचिका बाघ तथा भेड़िया इन दोनों की सुरक्षा करती है तथा वेग से जा टूटने वाले दोनों श्येन एवं सिंह की भी सुरक्षा करती है, वह विसूचिका इन यजमानों की भी सुरक्षा करे। अर्थात् जैसे पुरुषार्थी भूचरों तथा नभचरों पर अन्न दोष रूप विसूचिका का प्रभाव नहीं पड़ता, उसी प्रकार यजमानों पर भी न हो।[यजुर्वेद 19.10]
विसूचिका :: हैजा; Cholera. यह एक संक्रामक आंत्रशोथ (intestinal infection) है जो वाइब्रियो कोलेरी नामक जीवाणु के कारण होता है। इसे आम बोलचाल में "हैजा" भी कहा जाता है, और यह एक महामारी (epidemic) के रूप में भी फैल सकता है।
Cholera which protects the tiger and wolf and quick attackers lion & falcon should protect the Yajman too. The way cholera has no impact over the endeavourous living beings over the earth or sky it should not have impact over the Yajman in the form of defect caused by food.
यदा पिपेष मातरं पुत्रः प्रमुदितो धयन् । एतत्तदग्नेअनृणो भवाम्यहतौ पितरौ मया। सम्पृच स्थ सं मा भद्रेण पृक्त। विपृच स्थ वि मा पाप्मना पृक्त॥
बालक अनजाने में ही माता का स्तनपान करते हुए, प्रसन्न होता हुआ हाथ-पाँव पटककर माँ को कष्ट पहुँचाता है। हे अग्नि देव! हम इस तरह माता तथा पिता के प्रति हुए ऋणों से आपके सामने ऋण मुक्त होना चाहते हैं। हमने जो भी किया है, वह अनजाने में किया है अर्थात् जान-बूझकर हमने अपना हित करनेवाले माता-पिता को प्रताड़ित नहीं किया है। आप संयोग कराने में सक्षम हैं, अतः हमें कल्याण से सम्पन्न करें। आप वियोग करने में सक्षम हैं, अतः हमें पापों से मुक्त करें।[यजुर्वेद 19.11]
The infant sucks milk from the mother's breast and unknowingly cause pain to her by striking his legs and hands. Hey Agni Dev! We want to become free from the debt of parents. What ever was done by us was due to ignorance. You are capable of causing good omens, hence resort to our welfare-well being. You are capable of causing separation, hence free us from sins.
देवा यज्ञमतन्वत भेषजं भिषजाश्विना। वाचा सरस्वती भिषगिन्द्रायेन्द्रियाणि दधतः॥
देवगणों ने ओषधियों का हवन कर यज्ञ को विस्तारित किया। चिकित्सक अश्विनी कुमारों ने तथा सरस्वती देवी ने वेद-वाणियों से देवराज इन्द्र के निमित्त इंन्द्रिय-सामर्थों को धारण किया।[यजुर्वेद 19.12]
The demigods-deities performed Yagy with herbs-medicine and extended it. Physicians Ashwani Kumars and Maa Saraswati support the capability of senses for Devraj Indr with Ved Vani.
दीक्षायै रूपꣳ शष्याणि प्रायणीयस्य तोक्मानि।
क्रयस्य रूपꣳ सोमस्य लाजाः सोमाꣳ शवो मधु॥
नये उत्पन्न ब्रीहि दीक्षा यज्ञ के निमित्त आवश्यक हैं। नये जौ प्रायणीय यज्ञ के समान हैं। लाजा (खीलें) एवं शहद सोम के समान हैं।[यजुर्वेद 19.13]
ब्रीहि :: चावल या धान; rice or paddy.
प्रायणीय :: आरंभिक या शुरू में होने वाला; initial. यह शब्द आमतौर पर किसी यज्ञ या धार्मिक अनुष्ठान के पहले दिन के कर्म के लिए उपयोग किया जाता है, खासकर सोम यज्ञ में।
Fresh Breehi (rice-paddy) is essential for the Yagy. Fresh barley is like the initial Yagy. Roasted rice and honey are like Som.
आतिथ्यरूपं मासरं महावीरस्य नग्नहुः। रूपमुपसदामेतत्तिस्त्रो रात्रीः सुरासुता॥
ब्रीहि आदि अन्नों, ओषधियों के मिश्रित चूर्ण अतिथि के रूप में उपादेय हैं। शोधित अन्न शूरवीरों के निमित्त उपादेय हैं। उपसद प्रक्रिया के अन्तर्गत तीन रात्रि पर्यन्त सुसंस्कारित होकर रस 'सुरा' बन जाता है।[यजुर्वेद 19.14]
उपादेय :: ग्रहण करने योग्य, उपयोगी; acceptable, useful.
Grains like rice, powdered mixtures of medicines-herbs are useful for the guest. Purified-sanctified grains are useful for the warriors. Supplementary processes-functions turn the juices in Sura-wine after 3 nights.
सोमस्य रूपं क्रीतस्य परिस्रुत्परिषिच्यते। अश्विभ्यां दुग्धं भेषजमिन्द्रायैन्द्रꣳ सरस्वत्या॥
जिन औषधि के रसों को अश्विनी कुमार दुहते हैं तथा जिन दुग्ध को सरस्वती देवी द्वारा दुहा जाता है, उनको श्रेष्ठ प्रकार से मिलाया जाता है, वही वैभवशालियों द्वारा खरीदे हुए सोमरस का रूप है। यह वैभवशाली देवराज इन्द्र के लिए है।[यजुर्वेद 19.15]
The medicines extracted by Ashwani Kumars and the milk obtained by Maa Saraswati mixed in best manner become equivalent to Somras bought by prosperous people. This is meant for glorious Indr Dev.
आसन्दी रूपꣳ राजासन्यै वेद्यै कुम्भी सुराꣳधानी।
अन्तर उत्तरवेद्या रूपं कारोतरो भिषक्॥
जिस प्रकार राजा आसन पर विराजमान होता है, उसी प्रकार सोम आसन पर विराजमान है। सौमिकी वेदिका पर सुरा का घड़ा स्थित है। दोनों के मध्य का रिक्त स्थान उत्तर वेदी रूप में है। ओषधि तथा अनुपान को मिश्रित करने वाले निपुण ओषधिकर्ता भिषक् के रूप में छन्नी प्रतिष्ठित है।[यजुर्वेद 19.16]
The way the king occupies throne, Som too occupy throne. Pitcher containing Sura is placed over the Vedi-seat (table) meant for Som. Its placed in between, in the form of Uttar Vedi. Experts in mixing the medicine and drinks are established as physicians.
वेद्या वेदिः समाप्यते बर्हिषा बर्हिरिन्द्रियम्। यूपेन यूप आप्यते प्रणीतो अग्निरग्निना॥
इस यज्ञ के निमित्त वेदी (धरती) से यह सोम वेदिका, कुश समूह से कुशा, दिव्य इन्द्रियों से पुरुषार्थ, स्तम्भ रूप से स्तम्भ तथा दिव्य अग्नि देव से अग्नि को अच्छी तरह से प्राप्त किया गया है।[यजुर्वेद 19.17]
Fire-Agni has been obtained from the ground for the Yagy Vedi, Som Vedica, Kush Matt, divine senses through endeavours, pole-Yup and Agni Dev.
हविर्धानं यदश्विनाग्नीधं यत्सरस्वती। इन्द्रायैन्द्रꣳ सदस्कृतं पत्नीशालं गार्हपत्यः॥
यज्ञ में जो अश्विनी कुमार उपस्थित हैं, उनकी कृपा से सोम-सम्बन्धी हविर्धान उपलब्ध होता है। जो वाणी की देवी सरस्वती हैं, उनकी कृपा से सोम-सम्बन्धी आग्नीध्र उपलब्ध होते हैं। देवराज इन्द्र के निमित्त उनके ऐश्वर्य के अनुरूप हवियाँ सभागृह में, पत्नीशाला में तथा गार्हपत्य अग्नि में देवयज्ञ द्वारा प्रस्तुत की जाती है।[यजुर्वेद 19.18]
हविर्धान :: वह स्थान जहाँ यज्ञ में देवताओं को चढ़ाने के लिए हवि (अग्नि में आहुति देने योग्य वस्तु) रखी जाती है; place where the offerings are kept for the demigods-deities.
आग्नीध्र :: आग से भरा, अग्नि युक्त, यज्ञ में अग्नि प्रज्वलित करने वाला पुरोहित, यज्ञ की अग्नि प्रज्वलित करने का स्थान, स्वायंभुव मनु के पुत्र एक राजा का नाम; fire-born, born of fire, fire-wielding.
By virtue of the presence of Ashwani Kumars in the Yagy the place for storing offerings for demigods deities is obtained. By virtue of the goddess of speech Maa Saraswati Agnidhr-priest is available. Offerings are made suitable for Indr Dev as per his glory in the assembly and the wife's chamber, in addition to Garhpaty Agni in the Dev Yagy.
प्रैषेभिः प्रैषानाप्नोत्याप्रीभिराप्रीर्यज्ञस्य। प्रयाजेभिरनुयाजान् वषट्कारेभिराहुतीः॥
प्रैष नामक यज्ञ कर्मों से आज्ञाकारियों की प्राप्ति होती है। तृप्ति कारक क्रियाओं से तृप्ति प्रदान करने वालों की प्राप्ति होती है। उत्कृष्ट प्रकार के यज्ञ-संसाधनों से यज्ञादि क्रियाओं की प्राप्ति होती है तथा वषट्कार आदि से आहुतियों की प्राप्ति होती है।[यजुर्वेद 19.19]
By virtue of the Yagy Karm obedient workers, termed Praesh are obtained. Functions related to satisfaction grant satisfaction. Excellent Yagy means, yield Yagy related activities and Vashtkar oblations-offerings.(17.07.2025)
पशुभिः पशूनाप्नोति पुरोडाशैर्हवीꣳया। छन्दोभिः सामिधेनीर्याज्याभिर्वषट्कारान्॥
पशुओं के द्वारा पशुओं की प्राप्ति होती है। पुरोडाश के द्वारा हवियों की प्राप्ति होती है। छन्दों के द्वारा छन्दों की प्राप्ति होती है। सामधेनी अर्थात् विशिष्ट ऋचाओं के द्वारा सामधेनियों (रहस्यात्मक ज्ञान) की प्राप्ति होती है याज्याओं द्वारा याज्याओं की और वषट्कारों के द्वारा वषट्कारों की प्राप्ति होती है।[यजुर्वेद 19.20]
Animals are obtained through the animals. Purodash yield offerings. Chhand grant Chhand. Specific Richas yield Samdheni (secret knowledge). Yajya yield Yajya and Vashtkar yield Vashtkar.
धानाः करम्भः सक्तवः परीवापः पयो दधि।
सोमस्य रूपꣳ हविष आमिक्षा वाजिनं मधु॥
भूने हुए धान, लप्सी, सत्तू इत्यादि यह हव्य पदार्थ तथा दूध, दही आदि सोम के रूप हैं। छेना, मधु तथा अन्नादि हविष्यान के अन्य रूप हैं।[यजुर्वेद 19.21]
लप्सी :: भारतीय मीठा व्यंजन है जो दलिया (टूटे हुए गेहूँ) से बनाया जाता है; इसे घी, दूध, चीनी, मेवे और किशमिश के साथ पकाया जाता है और अक्सर धार्मिक अवसरों पर प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है; wheat pieces cooked in milk added with dry fruits and distributed as Prasad.
Roasted rice-paddy, Lapsi and Sattu (roasted gram and barley) used as offering are the forms of Som. Cheese, honey and food grains used as offerings are other forms of Som.
धानानाꣳ रूपं कुवलं परीवापस्य गोधूमाः। सक्तूनाꣳ रूपं बदरमुपवाकाः करम्भस्य॥
मूल धान्य ही भुने हुए अन्न के रूप में, गेहूँ के पक्व पुरोडाश आदि हव्य पदार्थों के रूप में, चूरा किया हुआ बेर सत्तू रूप में तथा यव, लप्सी रूप में यज्ञ में प्रयोग किया जाता है।[यजुर्वेद 19.22]
Roasted rice, wheat cooked as Purodash and then powdered, jujube, in the form of Lapsi are used in the Yagy.
पयसो रूपं यद्यवा दन्धो रूपं कर्कन्धूनि।
सोमस्य रूपं वाजिनꣳ सौम्यस्य रूपमामिक्षा॥
दूध के सदृश पौष्टिक आहार के रूप में यह यव है, बेर दही के रूप में है एवं छेना जल सोम स्वरूप है तथा छेना सोम रस चरु के समान है।[यजुर्वेद 19.23]
Barley is digestive food like milk, jujube is like curd and cheese left over water is like Som. Cheese is like Somras and Charu.
आ श्रावयेति स्तोत्रियाः प्रत्याश्रावो अनुरूपः। यजेति धाय्यारूपं प्रगाथा ये यजामहाः॥
स्तोत्र की प्रथम तीन ऋचायें "आश्रावय" शब्द को लक्षित करती हैं एवं अन्तिम तीन ऋचायें "प्रत्याश्राव" को। धाय्या नामक ऋचायें "यज" पद से आरम्भ होती हैं। प्रगाथा रूप ऋचाओं का आरम्भ "ये यजामहे" पद से होता है।[यजुर्वेद 19.24]
First three Richas of the Strotr target the word Ashravay and the last 3 Richas aim at Pratyashrav. Richas named Dhayya start with Yaj. Richas in the form of Praghatha begin with Ye Yajamahe.
अर्धऋचैरुक्थानाꣳ रूपं पदैराप्नोति निविदः।
प्रणवैः शस्त्राणाꣳ रूपं पयसा सोम आप्यते॥
अर्द्ध ऋचाओं के उच्चारण से उन मन्त्रों की जानकारी प्राप्त होती है, जो उक्थ नाम से जाने जाते हैं। पदों से "निविद" नामक ऋचाओं के उच्चारण का बोध किया जाता है। प्रणवों से शस्त्रों के स्वरूप की अनुभूति होती है एवं दूध से सोम के स्वरूप का अनुभव होता है।[यजुर्वेद 19.25]
Half Richas indicate those Mantr which are termed as Ukth. Pad indicate Richas termed as Nivid. Pranav generate the feeling of Shastrs. Milk generate the feeling of Som.
अश्विभ्यां प्रातः सवनमिन्द्रेणैन्द्रं माध्यन्दिनम्।
वैश्वदेवꣳ सरस्वत्या तृतीयमाप्तꣳ सवनम्॥
अश्विनी कुमारों के द्वारा 'प्रातः सवन' की प्राप्ति होती है, देवेन्द्र से सम्बन्धित देवेन्द्र के मन्त्रों द्वारा 'माध्यन्दिन सवन' की प्राप्ति होती है तथा विश्वेदेवों से सम्बन्धित देवी सरस्वती के द्वारा 'तृतीय सवन' की प्राप्ति होती है।[यजुर्वेद 19.26]
Ashwani Kumars yield the morning Sawan, Mantr pertaining to Devendr grant the middle Sawan-segment of the day and the Mantrs pertaining to Maa Saraswati related with Vishwe Dev grant third Sawan of the day.
वायव्यैर्वायव्यान्याप्नोति सतेन द्रोणकलशम्।
कुम्भीभ्यामम्भृणौ सुते स्थालीभिः स्थालीराप्नोति॥
महान् वायव्य सोमपात्रों द्वारा वायव्य पात्रों की प्राप्ति होती है तथा वेतस पात्र से द्रोण कलश की प्राप्ति होती है। सोम सवन होने पर दोनों कुम्भियों से पूतभृत् तथा आधवनीय की प्राप्ति होती है एवं यज्ञ कर्ता याजक को दिव्य स्थालियों से स्थालियों की प्राप्ति होती है।[यजुर्वेद 19.27]
Great Vayavy vessels yield Vayavy pots, Vetas pots grant Dron Kalash. During Som Sawan both Kumbhi yield Pootbhrat and Adhavneey. Yagy performer Yajak attains divine Sthalis from Sthalis.
यजुर्भिराप्यन्ते ग्रहा ग्रहैः स्तोमाश्च विष्टुतीः।
छन्दोभिरुक्थाशस्त्राणि साम्नावभृथ आप्यते॥
यजुर्मन्त्रों से यजुष् प्राप्त होता है, सभी ग्रह पात्रों से ग्रहपात्र प्राप्त होता है, सभी स्तोमों द्वारा स्तोम प्राप्त होता है, श्रेष्ठ स्तुतियों द्वारा स्तुति प्राप्त होती है, छन्दों द्वारा सभी उक्थ तथा शस्त्र, साम मन्त्रों द्वारा साम एवं अवभृथ स्थान द्वारा अवभृथ का पुण्य प्राप्त होता है।[यजुर्वेद 19.28]
Yajur Mantrs yield Yajus, all Grah pots yield Grah vessels, all Stoms yield Stoms, best Stuties yield Stuties, excellent Chhands yield Ukth and Shastr, Sam Mantr yield Sam & Avbhrat virtuous rewards.
इडाभिर्भक्षानाप्नोति सूक्तवाकेनाशिषः।
शंयुना पत्नीसंयाजान्त्समिष्टयजुषा सꣳ स्थाम्॥
इडा से इडा को, भक्षों से भक्षों को, सूक्त वाक से सूक्त वाक को, आशीर्वचनों से आशीर्वचनों को, शंयु (होम विशेष) से शंयु को; पत्नी संयाजों से पत्नी संयाजों को; समिष्ट यजुष् के द्वारा समिष्ट यजुष् को तथा संस्था से संस्था को प्राप्त करता है।[यजुर्वेद 19.29]
Ida yield Ida, Bhaksh yield Bhaksh, Sukt Vak grant Sukt Vak, blessings yield blessings, Shanyu (a specific Yagy) yield Shanyu, Patni Sanyaj yield Patni Sanyaj, Samisht yield Samisht and the Sanstha yield Sanstha.
व्रतेन दीक्षामाप्नोति दीक्षयाप्नोति दक्षिणाम्। दक्षिणा श्रद्धामाप्नोति श्रद्धया सत्यमाप्यते॥
व्रत से दीक्षा की प्राप्ति होती है और दीक्षा से दाक्षिण्य की, दाक्षिण्य से श्रद्ध उपलब्ध होती है और श्रद्धा से सत्य की उपलब्धि होती है।[यजुर्वेद 19.30]
Resolve yield initiation, initiation grant Dakshiny, Dakshiny yield Shradhd and Shraddha grant truth.
एतावद्रूपं यज्ञस्य यद्देवैर्ब्रह्मणा कृतम्। तदेतत्सर्वमाप्नोति यज्ञे सौन्नामणी सुते॥
जो यज्ञ देवताओं तथा ब्रह्मा द्वारा सम्पादित किया जाता है, यज्ञ का वह श्रेष्ठ स्वरूप सौत्रामणी-यज्ञ रूप में जाना जाता है। इस सौत्रामणी यज्ञ में जब सोम को अभिषुत किया जाता है तभी यज्ञ पूर्णता को प्राप्त होता है।[यजुर्वेद 19.31]
The best form of the Yagy conducted by demigods & Brahma Ji is termed Soutramani Yagy. When Som is extracted in the Soutramani Yagy, the Yagy attains completion.
सुरावन्तं बर्हिषदꣳ सुवीरं यज्ञꣳ हिन्वन्ति महिषा नमोभिः।
दधानाः सोमं दिवि देवतासु मदेमेन्द्रं यजमानाः स्वर्काः॥
सुरायुक्त, देवों के बैठने के दर्भासनों से युक्त और वीरों से युक्त सौत्रामणि याग को महान् ऋत्विज नमस्कारों के साथ आगे बढ़ाते हैं। हम ऋत्विज और यजमान देवलोक में देवों को मन्त्रों के द्वारा सोम को पहुँचाते हुए इन्द्र को संतृप्त करें।[यजुर्वेद 19.32]
The great Ritviz of Soutramani Yagy having Sura, cushions for demigods called Darbhasan and the warriors proceed with salutations. We Ritviz and Yajman deliver-supply Som in the heavens through Mantrs to satisfy Indr Dev.(18.07.2025)
यस्ते रसः सम्भृत ओषधीषु सोमस्य शुष्मः सुरया सुतस्य।
तेन जिन्व यजमानं मदेन सरस्वतीमश्विनाविन्द्रमग्निम्॥
हे सुरा देवि! ओषधियों के अन्दर एकत्रित किया गया आपका जो सारतत्त्व है, वह तीव्र ओषधि रस है। आप में जो पोषणकारी तत्त्वरूप शक्ति है, उस हर्ष प्रद रस रूप सार से याजक, देवी सरस्वती, दोनों अश्विनी कुमारों तथा अग्नि देव को हम तृप्त करते हैं।[यजुर्वेद 19.33]
Hey Sura Devi! Your gist present in the medicinal herbs, is a fast-quick relieving medicine. The Yajak satisfy Maa Saraswati, Ashwani Kumars duo and Agni Dev, with the nourishing pleasant sap-juice, extract of the medicines.
यमश्विना नमुचेरासुरादधि सरस्वत्यसुनोदिन्द्रियाय।
इमं तꣳ शुक्र मधुमन्तमिन्दुꣳ सोमꣳ राजानमिह भक्षयामि॥
जिस सोम को दोनों अश्विनी कुमारों ने असुर पुत्र नमुचि के पास से प्राप्त किया एवं जिस सोम को देवी सरस्वती ने देवराज इन्द्र की वीर्य शक्ति में वृद्धि के लिए संस्कारित किया; उस माधुर्य युक्त रस वाले सोमरस का पान ऐश्वर्यवान् हम सोम याग में करते हैं।[यजुर्वेद 19.34]
Som received by both Ashwani Kumars from the demon's son Namuchi, which was sanctified by Maa Saraswati to improve the potency of Indr Dev, that Somras is drunk by us, the grandeur possessors.
यदत्र रिप्तꣳ रसिनः सुतस्य यदिन्द्रो अपिबच्छचीभिः।
अहं तदस्य मनसा शिवेन सोमꣳ राजानमिह भक्षयामि॥
उस सोम का जो कुछ भाग इस सुरा में लग गया है और जिसका इन्द्र ने अनेक प्रकार से शोधन कर पान किया था, उस राजा सोम के अंश मात्र को मैं भी अपने शुभ मन से यज्ञ में भक्षण करता हूँ।[यजुर्वेद 19.35]
A fraction of that Som remained attached with the Sura which was extracted and drunk by Indr Dev, I eat that fraction of Som with my auspicious innerself in the Yagy.
पितृभ्यः स्वाधायिभ्यः स्वधा नमः पितामहेभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः प्रपितामहेभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः। अक्षन् पितरोऽमीमदन्त पितरोऽतीतृपन्त पितरः पितरः शुन्धध्वम्॥
पितरों के लिये यह स्वधारूप अन्न है, पितरों को नमस्कार है। पितामहों के लिये स्वधारूप अन्न है, पितामहों को नमस्कार है। प्रपितामहों के लिये स्वधारूप अन्न है, प्रपितामहों को नमस्कार है। पितरों ने सोमरस का भक्षण किया। पितर तृप्त हुए। हे पितरो ! हाथ का प्रक्षालन कर शुद्ध होओ।[यजुर्वेद 19.36]
Salutations for the Manes-Pitre for whom Swadha is like food grains. Swadha is like food for the grand fathers, thus we salute them. For great grand fathers Swadha is like food grains, so we salute them. Pitre-Manes have consumed Somras and are satisfied. Hey Pire Gan-Manes! Wash the hands and become sanctified.
पुनन्तु मा पितरः सोम्यासः पुनन्तु मा पितामहाः पुनन्तु प्रपितामहाः पवित्रेण शतायुषा। पुनन्तु मा पितामहाः पुनन्तु प्रपितामहाः पवित्रेण शतायुषा विश्वमायुर्व्यश्नवै॥
सोमप्रिय पितरगण मुझे पवित्र करें। पितामह मुझे पवित्र करें। जिस पवित्रक से पवित्र करने से सौ वर्ष की आयु प्राप्त होती है, प्रपितामह उस पवित्रक से मुझे पवित्र करें। पितामह और प्रपितामह मुझे उसी शतायुष पवित्रक से पवित्र करें। उनके द्वारा पवित्र किया गया मैं सौ वर्षों की आयु प्राप्त करूँ।[यजुर्वेद 19.37]
Pitre Gan who love Som should purify me. Grand father should cleanse me. Grand father should cleanse me with that Pavitrak which award the longevity of 100 years. Great grans father should purify me with that Pavitrak with award an age of 100 years. On being purified with that Pavitrak I should attain a life of 100 years.
अग्नऽआयूꣳषि पवस आ सुवोर्जमिषं च नः। आरे बाधस्व दुच्छुनाम्॥
हे अग्नि देव! आप दीर्घायु प्रदान करने वाले यज्ञ-सम्बन्धी कर्मों का सम्पादन करने वाले हैं। आप हमें पोषणकारी अन्न तथा दूध आदि रस प्रदान करें। दुष्ट-दुर्जनों से हमारे जीवन को संरक्षित करते हुए हमें उनसे दूर करें।[यजुर्वेद 19.38]
Hey Agni Dev! You accomplish the Yagy related endeavours which grant long life. Grant us nourishing food grains and milk including juices-saps. Protect our lives from the wicked-vicious and distance us from them.
पुनन्तु मा देवजनाः पुनन्तु मनसा धियः। पुनन्तु विश्वा भूतानि जातवेदः पुनीहि मा॥
देवगण मुझे पवित्र करें, वे मेरे मन और बुद्धि को पवित्र करें। सम्पूर्ण प्राणी मुझे पवित्र करें। हे जातवेद अग्निदेव! आप भी मुझे पवित्र करें।[यजुर्वेद 19.39]
Let the demigods-deities purify me, my innerself (mind & heart) and the intelligence. Let all living beings sanctify me. Hey Jat Ved Agni Dev! Purify me.
पवित्रेण पुनीहि मा शुक्रेण देव दीद्यत्। अग्ने क्रत्वा क्रतूँ2रनु॥
हे अग्नि देव! आप दिव्य गुणों से युक्त हैं। आप अपनी देदीप्यमान तथा पावन करने वाली तेजस्विता से हमें पावन करें। आप हमारे सत्कर्मों को देखने वाले हैं, अतः आप अपने पावन कर्मों से हमें पावन करें।[यजुर्वेद 19.40]
Hey Agni Dev! You posses divine traits. Purify us with your illuminating and purifying vigorousness. You watch our virtuous deeds, hence sanctify us with your pious endeavours.
यत्ते पवित्रमर्चिष्यग्ने विततमन्तरा। ब्रह्म तेन पुनातु मा॥
हे अग्नि देव! आपकी तेज युक्त ज्वालाओं के बीच में जो महा पावन सत्य, ज्ञान तथा अनन्त रूप विभिन्न लक्षणों से युक्त विस्तृत है, उस परब्रह्मरूप से हमारे जीवन को पावन बनायें।[यजुर्वेद 19.41]
Hey Agni Dev! Cleanse us with the Par Brahm Parmeshwar present in your blazing flames, having great pure truth, enlightenment and infinite forms-traits.
पवमानः सो अद्य नः पवित्रेण विचर्षणिः। यः पोता स पुनातु मा॥
सबको देखने वाला वह पवित्रकारी सोम आज अपने पवित्र बल से मुझे पवित्र करें और जो पवित्र कारी वायुदेव हैं, वे भी मुझे पवित्र करें।[यजुर्वेद 19.42]
Let all watching purifying Som sanctify me with his pious might-power and purifying Vayu Dev too sanctify me.
उभाभ्यां देव सवितः पवित्रेण सवेन च। मां पुनीहि विश्वतः॥
हे सवितृ देव! आप मुझे सावित्री और गायत्री-दोनों के द्वारा पवित्र बनायें।[यजुर्वेद 19.43]
Hey Savitr Dev! Sanctify me like Savitri and Gayatri.
वैश्वदेवी पुनती देव्यागाद्यस्यामिमा बह्वयस्तन्वो वीतपृष्ठाः।
तया मदन्तः सधमादेषु वयꣳ स्याम पतयो रयीणाम्॥
दैदीप्यमान वैश्वदेवी सुराकुम्भी पवित्र करती हुई यहाँ आयी हैं, इनके शरीर में अनेक धाराएँ दिखायी दे रही हैं। उनके साथ आनन्दित होते हुए हम धनों के स्वामी हों।[यजुर्वेद 19.44]
Let illuminating Vaeshw Devi Surakumbhi come here, sanctifying. Many streams are seen in her body. Let us become the owner of wealth enjoying with her.
ये समानाः समनसः पितरो यमराज्ये। तेषाँल्लोकः स्वधा नमो यज्ञो देवेषु कल्पताम्॥
समान मन वाले, जाति और रूप में समान जो पितरगण यमलोक में विद्यमान हैं, उनके लिये उस लोक में स्वधान्न प्राप्त हो, उन पितरों को नमस्कार है। यह यज्ञ देवताओं को तृप्त करने में समर्थ हो।[यजुर्वेद 19.45]
We salute the Manes-Pitre Gan with the identical innerself, caste and form; present the Yam Lok, who should get food grains in that abode. Let this Yagy be satisfying the demigods-deities.(19.07.2025)
ये समानाः समनसो जीवा जीवेषु मामकाः।
तेषाꣳ श्रीर्मयि कल्पतामँस्मिल्लोके शतꣳ समाः॥
समान मन वाले, जाति और रूप में समान मेरे सपिण्ड जो इस भूलोक में विद्यमान हैं, उन सबकी सम्पत्ति (धन-लक्ष्मी) मेरा ही आश्रय करे; क्योंकि वे लोग सहज ही पापात्मा और मेरे शत्रु हैं।
जो समान मन वाले, समान जीवन वाले और मेरे अपने हैं, उन सबके वैभव मुझ में स्थापित हों, इस संसार में सौ वर्षों तक। [यजुर्वेद 19.46]
The property-assets of like minded people, possessing same caste & form over the earth, should be dependent over me for the next 100 years and their grandeur should be established in me.
द्वे सृती अश्रृणवं पितॄणामहं देवानामुत मर्त्यानाम्।
ताभ्यामिदं विश्वमेजत्समेति यदन्तरा पितरं मातरं च॥
हमने मरणधर्मा मानवों के जाने वाले दो मार्गों के बारे में सुना है। पहला मार्ग पितरों का पितृयान मार्ग तथा दूसरा देवताओं का देवयान मार्ग है। मर्त्यलोक के प्राणियों की पृथ्वी माता हैं और द्युलोक उनका पिता है।[यजुर्वेद 19.47]
Immortals follow two routes viz the one belonging to Pitr Gan-Manes and the other one belongs to demigods deities i.e., Dev Yan. Immortals of earth have earth as their mother and heavens as father.
इदंꣳ हविः प्रजननं मे अस्तु दशवीरꣳ सर्वगणꣳ स्वस्तये। आत्मसनि प्रजासनि पशुसनि लोकसन्यभयसनि। अग्निः प्रजां बहुलां मे करोत्वन्नं पयो रेतो अस्मासु धत्त॥
यह हवि (पय) मुझे प्रजोत्पादक क्षमता देने वाला हो, मेरे दस प्राणों (प्राण, अपान, समान, व्यान, उदान, नाग, कूर्म, कूकल, देवदत्त और धनंजय; ये दस प्राण हैं)और सम्पूर्ण अंगों का पोषक हो, मेरे लिये कल्याणकारी हो। यह हवि मुझे आत्मबल, संतान, पशु, लौकिक सुख और मोक्ष प्रदान करने वाली हो। अग्नि मेरी सन्तति को बहुत अधिक बढ़ाये। हे ऋत्विग्गण! आप लोग इस हवि में अन्न, दूध और बल प्रतिष्ठित करो।[यजुर्वेद 19.48]
Let this offering of milk, curd, ghee etc. should grant me power to produce progeny, it should be nourishing to my 10 Air Vital, all organs and beneficial to me. This Havi-oblation should grant me self confidence, progeny, animals, comforts-pleasure and Moksh-emancipation. Let Agni increase my progeny. Hey Ritviz Gan! You should add milk, food grains and strength in this Havi-offering.
उदीरतामवर उत्परास उन्मध्यमाः पितरः सोम्यासः।
असुं य ईयुरवृका ऋतज्ञास्ते नोऽवन्तु पितरो हवेषु॥
सोम का उत्पादन करने वाले हमारे जो पितर भूलोक में स्थित हैं, वे उन्नत मध्यम लोक में जायें; जो मध्यम लोकवासी हैं, वे उत्तम लोकों में जायँ; जो उत्तम लोकवासी हैं, वे मोक्ष प्राप्त करें। सत्य को जानने वाले, यज्ञकर्म और उसके फल को जानने वाले और शत्रु रहित वायु रूप धारी पितर हमारी रक्षा करें।[यजुर्वेद 19.49]
Our Pitre who produce Som present over the earth should move to developed medium level abodes, those present in the middle level abodes should move to excellent abodes and those based in excellent abodes should attain Moksh-Salvation. Our Manes knowing truth, Yagy Karm and their rewards, free from enemies in the form of Vayu (deity) should protect us.
अंगिरसो नः पितरो नवग्वा अथर्वाणो भृगवः सोम्यासः।
तेषां वयꣳ सुमतौ यज्ञियानामपि भद्रे सौमनसे स्याम॥
अग्नि की भाँति तेजोमय एवं नवीन स्तुति वाले अथर्वावंशी और भृगुवंशी हमारे पितर जिनका यज्ञादि में आह्वान किया जाता है, वे हमारी बुद्धि में वृद्धि करें। उनकी श्रेष्ठ बुद्धि और कल्याणकारी मति हमसे विलग न हो और हमारा कल्याण करे।[यजुर्वेद 19.50]
Our Pitre from Athrv and Bhragu clans invoked in the Yagy, who are brilliant like fire-Agni, should boost our intelligence. Their excellent and well being granting intelligence should always help us.
ये नः पूर्वे पितरः सोम्यासोऽनूहिरे सोमपीथं वसिष्ठाः।
तेभिर्यमः सꣳरराणो हवीꣳष्युशन्नुशद्भिः प्रतिकाममत्तु॥
जिन शान्त स्वभाव वाले, विशेष सुखों में निवास करने वाले, वसिष्ठ गोत्र में उत्पन्न हुए हमारे पूर्व पितरों ने सोमरस का पान करने के लिये सोमयाग में देवताओं का आह्वान किया था वे पितर हमारे निमित्त कल्याणकारी हों। जब हम उनको आहूत करें तो वे इस यज्ञ में यम के साथ पदार्पण करें एवं आहुतियों को ग्रहण करते हुए परितृप्त हों।[यजुर्वेद 19.51]
Our calm, quite, composed, Pitre-Manes who invoked demigods-deities for sipping Somras, having specific comforts-pleasures, born in Vashishth clan should be beneficial to us. When we make sacrifices for them, they should come to the Yagy along with Yam Raj-deity of death for accepting offerings and become satisfied with them.
त्वꣳ सोम प्रचिकितो मनीषा त्वꣳ रजिष्ठमनु नेषि पन्थाम्।
तव प्रणीती पितरो नऽइन्दो देवेषु रत्नमभजन्त धीराः॥
हे सोम! आप अत्यन्त देदीप्यमान् हैं। आप अपनी मेधा द्वारा अत्यन्त सुगम देवयान मार्ग की तरफ ले जाने वाले हैं। हे सोम! आपकी सहायता को प्राप्त करके हमारे धैर्यशाली पितरों ने यज्ञानुष्ठान आदि उत्कृष्ट कर्म सम्पादित किये एवं इनके द्वारा प्राप्त होने वाले सुखकारी फल को प्राप्त किया।[यजुर्वेद 19.52]
Hey Som! You are aurous-radiant. By virtue of your intellect-vigour you take us to extremely easy Dev Yan. By virtue of your help, our patient Manes-Pitre Gan performed excellent Yagy Karm-Anushthan etc. and attained awards as the comforts-pleasure.
त्वया हि नः पितरः सोम पूर्वे कर्माणि चक्रुः पवमान धीराः।
वन्वन्नवातः परिधीं2रपोर्ण वीरेभिरश्वैर्मघवा भवा नः॥
हे शोधित सोम! आपकी सहायता से ही हमारे प्राचीन कालीन पितर-गणों ने सम्पूर्ण यज्ञादि सत्कर्मों का सम्पादन किया। आप इस समय हमारे लिए यज्ञ-सम्बन्धी कर्मों से सम्बद्ध होकर उपद्रव कारियों को दूर करें और हमें अश्व-धनादि प्रदान करके इन्द्र की भाँति वैभवशाली बनायें।[यजुर्वेद 19.53]
Hey sanctified Som! By virtue of your help, our ancient Pitre Gan performed virtuous endeavours like Yagy. Get connected with our Yagy and repel the disturbing elements. Grant us horses wealth etc. and make us sumptuous-luxurious like Indr Dev.
त्वꣳ सोम पितृभिः संविदानोऽनु द्यावापृथिवी आ ततन्थ।
तस्मै त इन्दो हविषा विधेम वयꣳ स्याम पतयो रयीणाम्॥
हे पवित्र सोम! आपने हमारे पितरों के संग सम्मिलित होकर स्वर्गलोक तथा भूलोक में सुखों का विस्तार किया है। हे देदीप्यमान् सोम! हम आपके निमित्त आहुति समर्पित करके यज्ञ करते हैं। आप हमारे निमित्त महान् धन-वैभव प्राप्त करायें।[यजुर्वेद 19.54]
Hey pious Som! You have extended the pleasure-comforts of earth & heavens in association with our Manes. Hey aurous-radiant Som! We make sacrifices in the Yagy for you. Grant us great wealth and luxuries.
बर्हिषदः पितर ऊत्यर्वागिमा वो हव्या चकृमा जुषध्वम्।
त आ गतावसा शंतमेनाथा नः शं योररपो दधात॥
हे बर्हिषद पितर गणो! आप कुशासन पर विराजमान होनेवाले हैं। आपके निमित्त इन हव्य पदार्थों को हम अर्पित करते हैं। आप इन्हें अपनी संतुष्टि के निमित्त हर्ष पूर्वक ग्रहण करें। आप अति सुखकारी रक्षाकारी संसाधनों के साथ इस यज्ञ में पदार्पण करें और सभी प्रकार के डर, पाप तथा दुःखों को दूर करके हमें सुखी करें।[यजुर्वेद 19.55]
बर्हिषद :: वे जिन्होंने बर्हि पर बैठकर श्राद्ध किया, पितरों का एक वर्ग,यह शब्द पितरों के एक विशिष्ट वर्ग को दर्शाता है, जिन्हें श्राद्ध कर्म में बर्हि (कुश घास) पर बैठा हुआ माना जाता है।
Hey Barhishad Pitre Gan! You are ready to occupy Kush Matts. We make these offerings for you. Accept these for your satisfaction happily. Join this Yagy with highly comfortable-pleasure granting protection means and remove all sorts of fear, sins and pains-sorrows, worries to make us comfortable-happy.
आहं पितृन्सुविदत्राँ2अवित्सि नपातं च विक्रमणं च विष्णोः।
बर्हिषदो ये स्वधया सुतस्य भजन्त पित्वस्त इहागमिष्ठाः॥
हम विभिन्न ज्ञानों के श्रेष्ठ ज्ञाता अपने पितरगणों के कल्याणकारी ज्ञान को ग्रहण करें। व्यापक परमेश्वर के सनातन गतिमान सुष्टि-चक्र के क्रम से हम परिचित हों। कुशासन पर विराजमान, स्वधा सम्पन्न, सोमरस का सेवन करने वाले, हमारे सभी पितर इस यज्ञशाला में पदार्पण करें।[यजुर्वेद 19.56]
Let us follow-accept the beneficial knowledge from the enlightened Pitre Gan expert in various dimensions. We should be aware of the eternal, dynamic evolution cycles. Let our Somras drinking Manes occupying Kush Matts, having Swadha-eatables offered to Manes; come to this Yagy Shala.(20.07.2025)
उपहूताः पितरः सोम्यासो बर्हिष्येषु निधिषु प्रियेषु।
त आ गमन्तु त इह श्रुवन्त्वधिब्रुवन्तु तेवन्त्वस्मान्॥
जो सोम की कामना करने वाले कुशासन पर अधिष्ठित अत्यन्त प्रिय पितर हैं, उनको हम इस यज्ञ में आहूत करते हैं। वे इस यज्ञ में पदार्पण करें। हमारी वाणियों को ध्यानपूर्वक सुनें। पिता के समान वे हम पुत्रों को प्रेरणाकारी उपदेश दें तथा हमारी सुरक्षा करें।[यजुर्वेद 19.57]
We invoke the very dear Manes occupying Kush Matts desirous of Som. Let them join the Yagy. Listen to our words carefully. Let them inspire and guide us-the sons, like father.
आ यन्तु नः पितरः सोम्यासोऽग्निष्वात्ताः पथिभिर्देवयानैः।
अस्मिन् यज्ञे स्वधया मदन्तोऽधिब्रुवन्तु तेऽवन्त्वस्मान्॥
जो सोम के सदृश शीत स्वभाव वाले, अग्नि के समान तेज को धारण करने वाले हमारे पितर हैं, वे अग्निष्वात्त पितर देवताओं के निमित्त देवयान मार्ग से इस यज्ञ में पदार्पण करें। यहाँ स्वधा से तृप्त होकर हमें दिव्य ज्ञान का उपदेश करें एवं हमारी सुरक्षा करें।[यजुर्वेद 19.58]
अग्निष्वात्त :: कश्यप ऋषि से संबंधित पितरों का एक वर्ग जो कि सोम नामक लोक में निवास करते हैं। अग्निष्वात्त पितरों का देवताओं द्वारा भी सम्मान किया जाता है।
Our Manes known as Agnishvat, who possess cool nature and Tej (aura, radiance, energy) like Agni should descend in the Yagy through Dev Yan route. On being satisfied with the Swadha they should grant us divine knowledge and protect us.
अग्निष्वात्ताः पितर एह गच्छत सदः सदः सदत सुप्रणीतयः।
अत्ता हवीꣳषि प्रयतानि बर्हिष्यथा रयिꣳ सर्ववीरं दधातन॥
हे अग्नि के समान तेज युक्त अग्निष्वात्त पितरगण! आप हमारे यज्ञानुष्ठान में पदार्पण करें तथा श्रेष्ठ विधि से संस्कारित उच्च स्थान में अधिष्ठित होकर अत्यन्त प्रयत्न से सिद्ध हुए हव्य पदार्थ को ग्रहण करें। तत्पश्चात् कुशासन पर अधिष्ठित आप हम यजमानों को वीर-पराक्रमी सन्तानें तथा धन-धान्य आदि महान् धन-वैभवों को प्रदान करें।[यजुर्वेद 19.59]
Hey Agnishvat Pitr Gan possessing aura like Agni! Join our Yagy and on being sanctified, occupy the highest seat and accept the sanctified offerings. Established over the Kush Matts grant brave, invincible progeny, wealth, food grains, luxuries etc. to us, the Yajmans.
ये अग्निष्वात्ता ये अनग्निष्वात्ता मध्ये दिवः स्वधया मादयन्ते।
तेभ्यः स्वराडसुनीतिमेतां यथावशं तन्वं कल्पयाति॥
जो विधि पूर्वक अग्निदाह से ऊर्ध्वगति को प्राप्त हुए पितर हैं अथवा जो अभी ऊर्ध्वगति को प्राप्त नहीं हुए हैं, स्वर्गलोक के बीच में स्थित वे सब पितर स्वधा-संज्ञक अन्न को प्राप्त करके हर्षित होते हैं। उन सभी को परमेश्वर, मानव शरीर प्रदान कर कर्मफल प्रदान करते हैं।[यजुर्वेद 19.60]
The Pitr Gan who attained higher abodes on being cremated or the once who have not attained higher abodes and are still in between heavens, they all become happy on receiving food grains named Swadha. The Almighty grant human body to all of them to have the out come of their Karm Fal.
अग्निष्वात्तानृतुमतो हवामहे नाराशꣳ से सोमपीथं य आशुः।
ते नो विप्रासः सुहवा भवन्तु वयꣳ स्याम पतयो रयीणाम्॥
अग्नि के द्वारा ऊर्ध्वगति को प्राप्त हुए ऋतुमन्त पितर जो यज्ञ-सम्बन्धी श्रेष्ठ कर्मों से सोमरस का पान करने वाले हैं, श्रेष्ठ पुरुषों के योग्य प्रशंसा करते हुए हम उनको आहूत करते हैं। उन ज्ञान युक्त पितर गणों की दया से हम धन-धान्यादि के रूप में अगाध ऐश्वर्य प्राप्त करें।[यजुर्वेद 19.61]
Ritumant Pitr Gan who attained higher abodes by virtue of Agni, who drink Somras by virtue of their excellent deeds, are invoked by us; appreciating them like the excellent people. Let us have unlimited food grains and wealth as grandeur by virtue of the mercy-blessings of these enlightened Pitr Gan.
आच्या जानु दक्षिणतो निषद्येमं यज्ञमभिगृणीत विश्वे।
मा हिꣳ सिष्ट पितरः केनचिन्नो यद्वआगः पुरुषता कराम॥
अपनी वाम जानुओं को दक्षिण की ओर मुख करके बैठते हुए कहे, हे पितरो। इस यज्ञ की प्रशंसा करो। यदि हमारे यज्ञानुष्ठान में किसी प्रकार की कोई त्रुटि हो तो उसके लिये हमें हिंसित न करना। भूल से हुए हमारे अपराध को क्षमा करके हमारी रक्षा करो।[यजुर्वेद 19.62]
While sitting facing south moving knees towards left, say hey Pitr Gan! Applaud this Yagy. If there is some mistake in carrying out Yagy do not torture-punish us. Forgive our mistakes and protect us.
आसीनासो अरुणीनामुपस्थे रयिं धत्त दाशुषे मर्त्याय।
पुत्रेभ्यः पितरस्तस्य वस्वः प्रयच्छत त इहोर्ज दधात॥
रक्त वर्ण की भेंड़ के ऊन से बने हुए आसनों पर विराजित, हे पितर गणो! आप यज्ञादि उत्तम कर्म करने वाले उत्कृष्ट मनुष्यों के निमित्त धन-वैभव प्रदान करें। इनके पुत्रों को भी उत्तम धन-वैभव प्रदान करें, जिससे वे सभी गृहस्थाश्रम में रहकर शक्ति तथा ऐश्वर्य को धारण करें एवं सुखपूर्वक जीवन यापन करें।[यजुर्वेद 19.63]
Hey Pitr Gan, occupying the cushions made of red coloured sheep's wool! Grant grandeur-wealth to those humans who perform excellent Yagy Karm-deeds. Grant excellent wealth & grandeur to their sons as well, so that they live comfortably having strength and grandeur.
यमग्ने कव्यवाहन त्वं चिन्मन्यसे रयिम्। तन्नो गीर्भिः श्रवाय्यं देवत्रा पनया युजम्॥
हे अग्ने! कव्य वहन करने वाले आप हविरूप अन्न को जानने वाले हैं। वाणियों द्वारा वर्णनीय तथा विद्वानों द्वारा स्तुत्य आप जिन गुणों को श्रेष्ठ मानते हैं, उन्हें हमारे लिये सुलभ करायें। हमारे द्वारा समर्पित हवि आप देवताओं को पहुँचाएँ।[यजुर्वेद 19.64]
कव्य :: वह अन्न जो पितरों को दिया जाय, वह द्रव्य जिससे पिंड, पितृ यज्ञादि किए जायें; the food meant for offerings to the Manes, a ball of dough meant for performing Pitr Yagy.
Hey Agne! Carrier of Kavy, you know the food grains used as offerings. You should make availble the excellent traits, qualities, characterises worshiped by the enlightened and described in words. Carry the offerings made by us, to demigods-deities.
यो अग्निः कव्यवाहनः पितॄन्यक्षदृतावृधः। प्रेदु हव्यानि वोचति देवेभ्यश्च पितृभ्य आ॥
पितर गणों के निमित्त समर्पित की गयी हवियों को वहन करने वाले, हे अग्नि देव! आप सत्य रूपी यज्ञ की वृद्धि करने वाले हैं। आप पितरगणों तथा देवों तक हमारे द्वारा अर्पित की गयी आहुतियों को प्रेषित करते हैं।[यजुर्वेद 19.65]
Hey carrier of offerings-oblations to Pitr Gan, Agni Dev! You boost the Yagy, a form of truth. You transfer the sacrifices made by us to Pitr Gan and demigods-deities.
त्वमग्न ईडितः कव्यवाहनावाङ्कव्यानि सुरभीणि कृत्वी।
प्रादाः पितृभ्यः स्वधया ते अक्षन्नद्धि त्वं देव प्रयता हवीꣳषि॥
कव्य (पितरों के लिए आहुति) वहन करने वाले तथा विद्वञ्जनों द्वारा वर्णित गुणों तथा सामर्थ्यों के धारण कर्ता हे अग्निदेव! आप स्तुतियों को प्राप्त होकर श्रेष्ठ सुगन्ध से युक्त अन्नादि पदाथों को धारण करें। इसे स्वधा रूप में पितर गणों को समर्पित करें। हे देव! आप भी प्रसन्नता पूर्वक हव्य पदार्थों को स्वीकार करें।[यजुर्वेद 19.66]
Hey carrier of Kavy & sacrifices to Pitr Gan, possessing the qualities and capabilities described by the scholars, Agni Dev! Accept the Stuties, excellent scents (aroma, flavours) and materials like food grains. Offer this Swadha to Pitr Gan. Hey Dev! You too accept offerings happily.
ये चेह पितरो ये च नेह याँश्च विद्य याँ2उ च न प्रविद्म।
त्वं वेत्थ यति ते जातवेदः स्वधाभिर्यज्ञꣳ सुकृतं जुषस्व॥
इस लोक और स्वर्ग लोक में स्थित पितर, जिन्हें हम जानते अथवा नहीं जानते, वे सब जितने भी हैं, हे जातवेदा अग्ने! उन्हें तुम्हीं जानते हो। अतः अन्नादि पोषक पदार्थों से स्वधापूर्वक सम्पन्न इस श्रेष्ठ यज्ञानुष्ठान को स्वीकार करो।[यजुर्वेद 19.67]
स्वधा :: पितरों को दिया जाने वाला भोजन, पितरों को अर्पित किया जाने वाला अन्न, इसे एक पवित्र अर्पण के रूप में भी जाना जाता है, जो पूर्वजों को दिया जाता है। इसका उपयोग श्राद्ध कर्मों में, पितरों को भोजन अर्पित करते समय किया जाता है।
Pitr in this abode or heavens, whether we know them or not, hey Jat Veda you them all! Its only you who know them. Hence, accept this excellent Yagy celebrations with Swadha-food and nourishing materials. (21.07.2025)
इदं पितृभ्यो नमोऽस्त्वद्य ये पूर्वासो य उपरास ईयुः।
ये पार्थिवे रजस्या निषत्ता ये वा नूनꣳ सुवृजनासु विक्षु॥
जो पूर्व पितर द्युलोक में गमनशील गये हैं, जो मुक्ति प्राप्त करके परब्रह्म में विलीन हो चुके हैं, जो धरती में स्थित अग्नि रूप ज्योति में विलीन हो गये हैं अथवा जो पितर धर्मरूप और बल से युक्त प्रजाओं में देह धारण करके आ गये हैं, उन सभी प्रकार के पितरों को हम अन्नादि प्रदान करते हैं।[यजुर्वेद 19.68]
We offer food grains etc to those Pitr Gan who are movable in the heavens, those who have attained Salvation and immersed in the Almighty-Brahm, those who have immersed in the luminosity of Agni-fire over the earth or those Pitr who have become populace representing Dharm and might.
अधा यथा नः पितरः परासः प्रत्नासो अग्न ऋतमाशुषाणाः।
शुचीदयन्दीधितिमुक्थशासः क्षामा भिन्दन्तो अरुणीरपव्रन्॥
हे अग्ने! यज्ञादि श्रेष्ठ कर्मों को करने वाले हमारे पूर्वज (पितरों) ने शरीर त्याग के पश्चात् स्वर्ग लोक को प्राप्त किया। उत्तम ज्ञान का विस्तार करते हुए हम भी वैसे ही श्रेष्ठ कर्म करें और पितरों की भाँति स्वर्गलोक में गमन करने वाले हों।[यजुर्वेद 19.69]
Hey Agne! Our ancestors attained heavens due to their excellent auspicious deeds like Yagy, after death. We should extend excellent knowledge, perform best endeavours like them and attain heavens.
उशन्तस्त्वा निधीमह्युशन्तः समिधीमहि। उशन्नुशत आ वह पितॄन्हविषे अत्तवे॥
हे अग्ने! हम आपकी कामना करते हुए आपको यहाँ स्थापित करते हैं। यज्ञानुष्ठान करने की अभिलाषा से हम आपको प्रदीप्त करते हैं। हवि की कामना करने वाले पितरों को आप हवि ग्रहण करने के लिये बुलायें।[यजुर्वेद 19.70]
Hey Agne! We wish to attain you and hence we have established you here. We ignite you with of desire of conducting Yagy and other rituals. Invoke the Pitr Gan desirous of accepting Havi-oblations.
अपां फेनेन नमुचेः शिर इन्द्रोदवर्तयः। विश्वा यदजयः स्पृधः॥
रणक्षेत्र में समस्त शत्रुओं के सैन्य दल को पराजित करनेवाले हे देवराज इन्द्र! आपने नमुचि नामक राक्षस के सिर को जल के फेन से सुगमता से काट डाला था।[यजुर्वेद 19.71]
Hey Devraj Indr, defeating the entire enemy groups! You easily cut down the head of demon named Namuchi with the frost over the ocean.
सोमो राजामृतꣳ सुत ऋजीषेणाजहान्मृत्युम्।
ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपानꣳ शुक्रमन्धस इन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु॥
सुसंस्कारित हुए रसों का राजा सोम अमृत स्वरूप है, क्योंकि वह अपने सामर्थ्य से मृत्यु को शीघ्रतापूर्वक दूर हटा देता है। वह यज्ञ से सत्य, शक्ति, अन्न, पराक्रम, इन्द्रिय-शक्ति, दूध आदि पेय, अमृत के समान हर्ष तथा माधुर्य युक्त पदार्थों को हमारे लिए प्राप्त कराता है। ये सभी पदार्थ इन्द्र के लिये मधुर अमृततुल्य हों।[यजुर्वेद 19.72]
King of sanctified saps is like the elixir-nectar, since it repels death with its power easily. It makes available sweet eatables, truth, food grains, power of sense organs, milk etc drinks and pleasure like elixir, due to the power of Yagy.
अद्भयः क्षीरं व्यपिबत्कुड्डाङ्गिरसो धिया। ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपानꣳ शुक्रमन्धस इन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु॥
जिस प्रकार हंस जल के मध्य से दूधरूपी सारभूत अंश को अलग करके पीता है, उसी प्रकार प्राण शरीर के अंगों के रसों का पान करता है। यही प्राण ऋत के द्वारा सत्य की प्राप्ति कराता है। यही प्राण हमें पीने के लिए प्रयोगकारी साधन, शक्ति, अन्न, वीर्य, सामर्थ्य, दुग्धादि पेय पदार्थ तथा मधुर पदार्थों को हमारे लिए प्राप्त कराता है।[यजुर्वेद 19.73]
The way swan drinks milk out of water, Air Vital sucks the saps from the different body parts. Air Vital leads to truth of the Rit. Same Air Vital grant us useful means for drinking, power, food grains, generate sperms in the body, capability, milk and other drinks and sweet eatables.
सोममद्भयो व्यपिबच्छन्दसा हꣳसः शुचिषत्। ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपानꣳ शुक्रमन्धस इन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु॥
हंस के सदृश, निर्मल आकाश में विचरण करने वाले आदित्य देव जल मिले हुए सोम को जल से वेद द्वारा तथा किरणों द्वारा अलग करके सोमरस का सेवन करते हैं। उक्त ऋत सत्य से ही अगला सत्य प्रकट होता है। यही अन्न रस रूप सोम, शक्ति, अन्न, वीर्य, इन्द्रिय-सामर्थ्य, दुग्धादि पेय, अमृतोपम आनन्द तथा मधुर पदार्थ प्राप्त कराता है।[यजुर्वेद 19.74]
Adity Dev roaming in the clear skies like the swan, drink Som mixed in water with the Veds and separated with the rays. Next truth is revealed with the Rit Saty-truth. This Som in the form of food grains grants power, food grains, generate sperms, produce power of the sense organs, pleasure like elixir and sweet eatables.
अन्नात्परिस्रुतो रसं ब्रह्मणा व्यपिबत् क्षत्रं पयः सोमं प्रजापतिः।
ऋतेन सत्यामेन्द्रियं विपानꣳ शुक्रमन्धस इन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु॥
वेदों को जानने वाले ब्राह्मणों के साथ प्रजापति, परिसुत हुए अन्नों के रस रूप दूध को अलग करके पीते हैं तथा क्षात्र शक्ति को धारण करते हैं। इस परम सत्य से ही लौकिक सत्य प्रकट होता है। यही सोम हमें उपयोग के निमित्त साधन, बल, अन्न, तेज (वीर्य), इन्द्रिय-सामर्थ्य, दुग्धादि पेय, अमृतोपम आनन्द तथा मधुर पदार्थ को प्राप्त कराता है।[यजुर्वेद 19.75]
परिस्रुत :: पुष्पसार; फूलों का सुगंधित सार, आसवन विधि से द्रव्य के सार को निकालने की क्रिया; extraction of the flowers through distillation.
Prajapati drinks the distilled food grains along with Brahmans aware of the Veds, separating it from the milk and adopt the powers of Kshatriy clan. Truth pertaining to the current abode earth evolve out of Ultimate truth. This Som in the form of food grains grants power, food grains, generate sperms, produce power of the sense organs, pleasure like elixir and sweet eatables.
रेतो मूत्रं वि जहाति योनिं प्रविशदिन्द्रियम्। गर्भो जरायुणावृतऽ उल्बं जहाति जन्मना। ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपानꣳ शुक्रमन्धसइन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु॥
जैसे गर्भ अपनी सुरक्षा के निमित्त स्वयं को जरायु से आच्छादित करता है, लेकिन जन्म के बाद उसे छिन्न-भिन्न करके छोड़ देता है, वैसे ही एक ही पथ से वीर्य और मूत्र परिस्थिति वश अलग-अलग निकलते हैं। इस परम सत्य से ही लौकिक सत्य प्रकट होता है। यही सोम हमें उपयोग के निमित्त साधन, बल, अन्न, तेज (वीर्य), इन्द्रिय-सामर्थ्य, दुग्धादि पेय, अमृतोपम आनन्द तथा मधुर पदार्थ को प्राप्त कराता है।[यजुर्वेद 19.76]
The way the foetus is covered with chorion (protective layer) and dropped after birth, similarly same route is there to secret sperms and reject urine depending upon the conditions. Local truth is evolved from Ultimate truth. This Som in the form of food grains grants power, food grains, generate sperms, produce power of the sense organs, pleasure like elixir and sweet eatables.
दृष्ट्वा रूपे व्याकरोत्सत्यानृते प्रजापतिः। अश्रद्धामनृतेऽद्धाच्छूद्धार्थं सत्ये प्रजापतिः। ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपानꣳ शुक्रमन्धस इन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु ॥
प्रजापति ने देखभाल कर ही सत्य और असत्य को पृथक् पृथक् किया था। उसने सत्य में श्रद्धा को स्थापित किया और असत्य में अश्रद्धा को। इस प्रकार स्पष्ट है कि परिशोधित सोम बल देने वाला है। यही सोम हमें उपयोग के निमित्त साधन, बल, अन्न, तेज (वीर्य), इन्द्रिय-सामर्थ्य, दुग्धादि पेय, अमृतोपम आनन्द तथा मधुर पदार्थ को प्राप्त कराता है।[यजुर्वेद 19.77]
Prajapati separated the truth and false after examining it. He established devotion in truth and lack of faith in falsehood. Its clear that the extracted Som grants strength. This Som in the form of food grains grants power, food grains, generate sperms, produce power of the sense organs, pleasure like elixir and sweet eatables.
वेदेन रूपे व्यपिबत्सुतासुतौ प्रजापतिः। ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपानꣳ शुक्रमन्धस इन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु॥
प्रजापति ने सत्य ज्ञान स्वरूप वेदत्रयी से प्रेरित होकर इन्द्रियों द्वारा ग्रहणीय तथा अग्रहणीय पदार्थों को विचार करके सोम को स्वीकृत किया था। प्रस्तुत सत्य उसी सत्य का रूप है। यह अन्न रसरूप सोम, विशिष्ट पान करने के साधन, बल, अन्न, तेज, इन्द्रिय-सामर्थ्य, दुग्धादि पेय तथा मधुर पदार्थ प्रदान करता है।[यजुर्वेद 19.78]
Prajapati sanctioned Som after examining the acceptable & unacceptable materials after being inspired with truthful scholarly Ved Trayi. Presented truth is a form of that truth. This Som in the form of food grains grants power, food grains, generate sperms, produce power of the sense organs, pleasure like elixir and sweet eatables.(22.07.2025)
दृष्ट्वा परिस्रुतो रसꣳ शुक्रेण शुक्रं व्यपिबत् पयः सोमं प्रजापतिः।
ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपानꣳ शुक्रमन्धस इन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु॥
प्रजापति ने शोधित किये हुए प्रकाशमान सोमरस को दुग्ध के साथ पान किया तथा इस शाश्वत सत्य द्वारा लौकिक सत्य को जाना। यह अन्न रसरूप सोमपान करने के विशिष्ट साधन, बल, तेज, इन्द्रिय बल, दुग्धादि पेय, अमृतोपम मधुर पदार्थ प्रदान करता है।[यजुर्वेद 19.79]
Prajapati drunk the sanctified aurous Somras with milk and recognised the eternal truth and the worldly truth. This Som in the form of food grains grants power, food grains, generate sperms, produce power of the sense organs, pleasure like elixir and sweet eatables.
सीसेन तन्त्रं मनसा मनीषिण ऊर्णासूत्रेण कवयो वयन्ति।
अश्विना यज्ञꣳ सविता सरस्वतीन्द्रस्य रूपं वरणो भिषज्यन्॥
जैसे सीसे (धातु विशेष) के यन्त्र तथा ऊन आदि कोमल सूत्र वाले पदार्थों के सहयोग से कपड़ा बुना जाता है, वैसे ही दोनों अश्विनी कुमार, सभी को प्रेरित करने वाले सविता देव, देवी सरस्वती, वरुण देव तथा मेधावी त्रिकालदर्शी इन्द्र देव के रूप को ओषधि के द्वारा परिपुष्ट करते हैं तथा इस तरह मनोयोगपूर्वक सौत्रामणी नामक यज्ञ को पूर्ण करते हैं।[यजुर्वेद 19.80]
The way machines made of lead soft fibre of wool are used to weave, similarly both Ashwani Kumars, all inspiring Savita Dev, Devi Saraswati, Varun Dev and intellectual, all knowing Indr Dev fortify-nourish as medicine and accomplish Soutramani Yagy.
तदस्य रूपममृतꣳ शचीभिस्तिस्त्रो दधुर्देवताः सꣳरराणाः।
लोमानि शष्यैर्बहुधा न तोक्मभिस्त्वगस्य माꣳसमभवन्न लाजाः॥
इस यज्ञ में दोनों अश्विनी कुमारों तथा देवी सरस्वती ने साथ में मिलकर अपने सामर्थ्य द्वारा देवराज इन्द्र के विराट्, अमृत स्वरूप मरण धर्म रहित स्वरूप का निर्माण किया। यज्ञ में मुख्य बृहत् घास-वनस्पतियाँ देवराज इन्द्र के शरीर के रोम हुए। यज्ञ में उगे हुए यवों से त्वचा को प्रकट किया तथा खीलों अर्थात् यज्ञ हवि में प्रयोग किये जाने वाला लाजा से उनके शरीर का मांस बना।[यजुर्वेद 19.81]
Both Ashwani Kumars and Devi Saraswati together built the huge immortal body of Devraj Indr, like the elixir. Main grasses, vegetation grew over the body of Devraj Indr in the Yagy. The barley which grew up in the Yagy formed his skin and roasted rice formed the flesh of his body.
तदश्विना भिषजा रुद्रवर्तनी सरस्वती वयति पेशो अन्तरम्।
अस्थि मज्जानं मासरैः कारोतरेण दधतो गवां त्वचि॥
रुद्रदेव के सदृश आचरण वाले चिकित्सक अश्विनी कुमारों तथा देवी सरस्वती ने धरती के ऊपर सोम को प्रतिष्ठित करते हुए देवराज इन्द्र के विराट् शरीर की रचना को परिपूर्ण किया। वह रचना हाड़, मज्जा तथा परिपक्व ओषधि रसों से विनिर्मित श्रेष्ठ शिल्पी के समान निर्माण का परिचय देती है।[यजुर्वेद 19.82]
Ashwani Dev and Devi Saraswati, with the Rudr Dev like behaviour-actions, established Som over the earth and created the huge-large body of Devraj Indr. That body of Indr Dev illustrate the creation by the best artisan having bones, bone marrow and ripe sap-extract of medicines.
सरस्वती मनसा पेशलं वसु नासत्याभ्यां वयति दर्शतं वपुः।
रसं परिस्रुता न रोहितं नग्ग्रहुर्धीरस्तसरं न वेम॥
अश्विनी कुमारों के संग मिलकर देवी सरस्वती ने ध्यानपूर्वक अत्यन्त मनोहर, स्वर्णिम, तेजयुक्त, पोषित तथा दर्शनीय शरीर की रचना की। धैर्य पूर्वक इन्होंने तब देवराज इन्द्र के शरीर की परम सुन्दरता तथा तेजस्विता के निमित्त विकारों को नष्ट करने वाले लोहित वर्ण युक्त रस रक्त को शरीर में पैदा किया।[यजुर्वेद 19.83]
Saraswati Devi jointly developed the extremely attractive-beautiful, golden, nourished, possessing aura-radiance and scenic body of Indr Dev. Thereafter, they produced the red coloured sap in the extremely beautiful, aurous-radiant body of Devraj Indr which could destroy all defects, disorders, deformations.
पयसा शुक्रममृतं जनित्रꣳ सुरया मूत्राज्जनयन्त रेतः।
अपामतिं दुर्मतिं बाधमाना ऊवध्यं वातꣳ सब्वं तदारात्॥
अश्विनी कुमारों तथा देवी सरस्वती ने दुग्ध से जीवन की शक्ति में वृद्धि करने वाले, अमृत के समान प्रजननशील वीर्य को प्रकट किया। समीप स्थित होकर अज्ञानरूपी अन्धकार तथा दुर्बुद्धि से उत्पन्न होने वाले अन्धकार को नष्ट किया। वे आमाशय में विद्यमान असार भाग को वातनाड़ी से अपानवायु द्वारा तथा पक्वाशय में विद्यमान अन्न को विविध रसों द्वारा संयुक्त करके असार भाग को मूत्रमार्ग से बाहर निष्कासित कर देते हैं।[यजुर्वेद 19.84]
Ashwani Kumars and Devi Saraswati produced sperms like the elixir capable of reproducing, which increase strength in life like the milk. Destroyed the ignorance like darkness and darkness produced by wickedness. They separate the useless components with Vat Nadi and waste gases in the stomach, mixed the various juices-saps and excrete the useless component-urine through pennies.
इन्द्रः सुत्रामा हृदयेन सत्यं पुरोडाशेन सविता जजान।
यकृत् क्लोमानं वरुणो भिषज्यन् मतस्ने वायव्यैर्न मिनाति पित्तम्॥
भली प्रकार रक्षा करने वाले देवराज इन्द्र ने हृदय से हृदय को तथा सविता देव ने पुरोडाश संज्ञक अन्न से सत्य स्वरूप यज्ञ के शरीर को पोषित किया। वरुण देव ने ओषधि-उपचार द्वारा यकृत् तथा ग्रीवा की नाड़ी को ठीक किया है। वायुरूप प्राणों ने हृदय की दोनों पसलियों की अस्थि तथा पित्त का निर्माण किया।[यजुर्वेद 19.85]
Indr Dev who protect properly, nourished the heart with heart and Savita Dev nourished the body with food grains like Purodas & created the body of Yagy. Varun Dev cured the liver and nerve of the neck with medicines and treatment. Air Vital like Vayu Dev generated the two ribs of the rib cage of the hearth and the bile.
आन्त्राणि स्थालीर्मधु पिन्वमाना गुदाः पात्राणि सुदुघा न धेनुः।
श्येनस्य पत्रं न प्लीहा शचीभिरासन्दी नाभिरुदरं न माता॥
मधु सींचती हुई बटलोइयाँ आँतें बन गयीं और दुहने के पात्र तथा सुदुघा गाय गुदा के अवयव बन गये। बाज का पंख प्लीहा बन गया। जननी स्थानीया आसन्दी युक्तियों से नाभि एवं पेट बन गयी।[यजुर्वेद 19.86]
बटलोई :: बर्तन जो आमतौर पर दाल पकाने के लिए इस्तेमाल होता है, इसे पतीली या देगची के समान माना जाता है, लेकिन इसका मुँह थोड़ा चौड़ा होता है, यह आमतौर पर तांबे या पीतल से बना होती है।
प्लीहा :: तिल्ली, spleen. पेट के ऊपरी बाएँ हिस्से में स्थित एक अंग है। यह लसीका तंत्र का एक हिस्सा है और शरीर में रक्त को फिल्टर करने, पुरानी लाल रक्त कोशिकाओं को हटाने, और प्रतिरक्षा प्रणाली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
आसंदी :: ऊँचा आसन, चौकी, खटोला; small bed, raised platform.
Wide mouth brass cooking vessel formed the intestines and the pots used for collecting milk from the cow turned into anus of cow. Feathers of the hawk formed spleen. Abdomen turned into naval and stomach.
कुम्भो वनिष्ठुर्जनिता शचीभिर्यस्मिन्नग्ने योन्यां गर्भो अन्तः।
प्लाशिर्व्यक्तः शतधार उत्सो दुहे न कुम्भी स्वधां पितृभ्यः॥
आसवन की गयी ओषधियों के रस के निमित्त प्रतिष्ठित कुम्भ बृहत् आँत बन गया। घड़े के भीतर गर्भरूप में प्रतिष्ठित सोम के द्वारा जननेन्द्रिय की उत्पत्ति हुई। सैकड़ों धाराओं वाले स्स्रोत को दुह करके सुराधानी कुम्भी ने पितरगणों को परितृप्त किया।[यजुर्वेद 19.87]
Sanctified pitcher carrying medicines turned into intestines. Som present in the pitcher as foetus formed genitals. Strotr having hundreds of currents was extracted into small pot-pitcher carrier of Sura to satisfy the Pitr Gan.
मुखꣳ सदस्य शिर इत् सतेन जिह्वा पवित्रमश्विनासन्त्सरस्वती।
चप्यं न पायुर्भिषगस्य बालो वस्तिर्न शेपो हरसा तरस्वी॥
सत् नामक पात्र विशेष इन्द्र का मुख बना। उसी सत् से सिर बना, सोम को छानने वाले पात्र से जिह्वा बनी। अश्विनी कुमार और सरस्वती की उत्पत्ति हुई। चप्य से गुदा का निर्माण हुआ। सुरा छानने का वस्त्र इस इन्द्र की वस्ति एवं लिंग बना। वह लिंग वीर्य से अत्यन्त वेगवान था।[यजुर्वेद 19.88]
वस्ति :: नाभि के नीचे का भाग, पेडू, मूत्राशय; bladder, syringe.
Pot termed Sat became the mouth of Indr Dev. It turned into head. Pot for filtration became tongue. Ashwani Kumars and Devi Saraswati evolved. Cloths used for filtering Sura became bladder & pennies of Indr Dev. The pennies was speedy having sperms.(23.07.2025)
अश्विभ्यां चक्षुरमृतं ग्रहाभ्यां छागेन तेजो हविषा श्रृतेन।
पक्ष्माणि गोधूमैः कुवलैरुतानि पेशो न शुक्रमसितं वसाते॥
दो सनातन चक्षुओं की रचना दोनों अश्विनी कुमारों ने ग्रहों से की। उस आहुति के द्वारा उनके चक्षुओं में ज्योति प्रविष्ट हुई, जो अजा के दूध द्वारा परिपक्व हुयी थी। चक्षुओं के नीचे वाले लोम गेहूँ के बाल से तथा बेरों से ऊर्ध्वलोम को प्रतिष्ठित किये, जो चक्षुओं के शुक्ल तथा कृष्ण रूप को सुरक्षा प्रदान करते हैं।[यजुर्वेद 19.89]
अज :: अजन्मा, ईश्वर, जीवात्मा; goat.
अजा :: प्रकृति, शक्ति; nature, power.
Two eternal eyes were created by Ashwani Kumars from the planets. Sacrifice led to the entering of illumination in their eyes, which were matured with the milk of goat. Lower eye bros were produced from the wheat ear-head & upper eye bros were produced from the jujube, which grant protection to eye's bright and dark forms.
अविर्न मेषो नसि वीर्याय प्राणस्य पन्था अमृतो ग्रहाभ्याम्।
सरस्वत्युपवाकैर्व्यानं नस्यानि बर्हिर्बदरैर्जजान॥
उस विराट् के नाक में शक्ति की बढ़ोत्तरी के निमित्त 'भेड़' कारण बनी। ग्रहों से नाश रहित प्राण का मार्ग प्रवहमान हुआ। देवी सरस्वती ने यव अंकुरों से व्यान वायु को उत्पन्न किया। बेरों तथा कुश समूहों द्वारा नाक के लोम प्रकट हुए।[यजुर्वेद 19.90]
Sheep became the cause for the increase in the power of nose of Virat Indr Dev. Planets made the immortal Air Vital flow. Devi Saraswati produced Vyan Vayu from the germinating barley. Jujube and Kush produced the hairs in the nose.
इन्द्रस्य रूपमृषभो बलाय कर्णाभ्याश्रोत्रममृतं ग्रहाभ्याम्।
यवा न बर्हिर्भुवि केसराणि कर्कन्धु जज्ञे मधु सारघं मुखात्॥
बैल ने शक्ति के लिए इन्द्र (इन्द्रियों) का रूप निर्मित किया। इन्द्र-सम्बन्धी गृहों द्वारा अविनश्वर ध्वनि को धारण करने वाली सुनने के सामर्थ्य से परिपूर्ण दोनों कर्णों की उत्पत्ति हुई। जौ तथा कुशा द्वारा भौहों के बाल उत्पन्न हुए तथा बेर से मुँह में मधु के समान लार की रचना हुई।[यजुर्वेद 19.91]
Bull created Indr (senses) for strength. Planets related with Indr produced the immortal sound supported with the capability to hear and two ears. Barley and Kush grass lead to generation of eye bros and jujube produced saliva, sweet like honey.
आत्मन्नुपस्थे न वृकस्य लोम मुखे श्मश्रूणि न व्याघ्रलोम।
केशा न शीर्षन्यशसे श्रियै शिखा सिꣳहस्य लोम त्विषिरिन्द्रियाणि॥
उस विराट् इन्द्र देव के शरीर में गुह्य स्थान के तथा अधोभाग के लोम वृक (भेड़िया) के लोम से उत्पन्न हुए। मुँह में जो मुँह तथा दाढ़ी के बाल हैं, वे व्याघ्र के लोम से उत्पन्न हुए। सिर के लिए बाल, चोटी, तेज तथा इन्द्रियाँ सिंह के लोम से उत्पन्न हुए।[यजुर्वेद 19.92]
Hairs in the secret and lower sections of Indr Dev evolved from the hairs of wolf. Beard and moustache were produced from the hairs of tiger. Hairs over the head, braid, radiance and senses evolved from the hairs of lion.
अंगान्यात्मन् भिषजा तदश्विनात्मानमंगैः समधात् सरस्वती।
इन्द्रस्य रूपꣳ शतमानमायुश्चन्द्रेण ज्योतिरमृतं दधानाः॥
अनेकानेक प्राणियों के द्वारा आराध्य देवराज इन्द्र के स्वरूप को एवं उनकी सौ वर्ष की आयु को अश्विनी कुमारों ने चन्द्रमा की प्रसन्नता प्रदान करने वाली ज्योति से उत्पन्न किया। अश्विनी कुमारों ने शारीरिक अंगों को आत्मा के साथ संयुक्त किया तथा देवी सरस्वती ने उस आत्मा को अंगों के साथ योजित किया।[यजुर्वेद 19.93]
The shape-form of Indr Dev deity of many-many living beings and his age of 100 years were produced from the gladdening brilliance of Luna-Moon. Ashwani Kumars added the soul with the body and Devi Saraswati added the soul with the orans.
सरस्वती योन्यां गर्भमन्तरश्विभ्यां पत्नी सुकृतं बिभर्त्ति।
अपाꣳ रसेन वरुणो न साम्नेन्द्रꣳ श्रियै जनयन्नप्सु राजा॥
उस विराट् देवराज इन्द्र को सरस्वती देवी अश्विनी कुमारों की भार्या बनकर गर्भ में धारण करती हैं। जलाधिपति वरुण देव श्री के निमित्त इन्द्र को उत्पन्न करते हुए उसे जलों में धारण करते हैं।[यजुर्वेद 19.94]
Devi Saraswati support giant Indr Dev in the womb by becoming the wife of Ashwani Kumars. Lord of waters Varun Dev, support-possess Indr for Shri in waters.
तेजः पशूनाꣳ हविरिन्द्रियावत् परिस्रुता पयसा सारघं मधु।
अश्विभ्यां दुग्धं भिषजा सरस्वत्या सुतासुताभ्याममृतः सोम इन्दुः॥
दोनों चिकित्सक अश्विनी कुमारों तथा देवी सरस्वती ने शक्ति से परिपूर्ण, वीर्यवान् पशुओं के दूध के घी को मधु मक्षिका सम्बन्धी शहद के साथ मिला करके देवराज इन्द्र के निमित्त तेजयुक्त पेय पदार्थ बनाया। परिस्रुत दूध से अमृत के समान शक्ति में वृद्धि करने वाले सोम को निर्मित किया। इस प्रकार के सौत्रामणि याज्ञिकों को हाथ जोड़कर नमस्कार करते हुए हम उनकी आराधना करते हैं।[यजुर्वेद 19.95]
Both physicians Ashwani Kumars and Devi Saraswati produced a powerful material by adding ghee of mighty animals & honey from honey bee &produced Som from the milk increasing strength. In this manner we salute Soutramani Yagyik with folded hands.(24.07.2025)
यजुर्वेद संहिता विंशोsध्याय :: ऋषि :- प्रजापति, अश्विनी, प्रस्कण्व, आश्वतराश्चि, विश्वामित्र, नृमेध और पुरुषमेध, कौण्डिन्य, काक्षीवत्सुकीर्ति, आंगिरस, वामदेव, गर्ग, वसिष्ठ, विदर्भि, गृत्समद, मधुच्छन्दा; देवता :- सभेश, सभापति, राजा, उपदेशक, विश्वेदेवा, अध्यारक और उपदेशक, अग्नि, वायु, सूर्य, लिंगोक्त ग्रह, वरुण, आप, समिद्, सोम, इन्द्र, परमात्मा, तनूनपात्, उषासानक्ता, दिव्य अध्यापक और पदेशक, तीन देवियाँ, त्वष्टा, वनस्पति, स्वाहाकृति, अश्विनीकुमार सरस्वती और इन्द्र, सविता और वरुण, अश्विनौ, सरस्वती; छन्द :-गायत्री, उष्णिक्, धृति, अनुष्टुप्, जगती, शक्वरी, पंक्ति, त्रिष्टुप्, अष्टि, बृहती।
क्षत्रस्य योनिरसि क्षत्रस्य नाभिरसि। मा त्वा हिथं सीन्मा मा हिथंसीः॥
हे आसन्दी! आप क्षत्रिय जाति के उत्पत्ति स्थान हैं। आप क्षत्रिय जाति के नाभिरूप केन्द्र बिन्दु हैं। हे कृष्ण मृग चर्म! यह आसन्दी आपको कष्ट न पहुँचायें और आप भी हमें पीड़ा न दें।[यजुर्वेद 20.1]
आसंदी :: ऊँचा आसन, चौकी, खटोला; raised seat, platform, small bed.
Hey Asandi! You are the place of origin-evolution of the Kshatriy. You constitute the navel-centre of Kshatriy Varn-clan. Hey skin of black buke! Let this Asandi do not pain you and us as well.
निषसाद धृतव्रतो वरुणः पस्त्यास्वा।
साम्राज्याय सुक्रतुः। मृत्योः पाहि विद्योत्पाहि॥
अध्वर्यु यजमान के पैर के नीचे चाँदी का रुक्म और सिर पर सोने का रुक्म रखे। आसन्दी पर विराजमान् हे याजक! यज्ञ करने का दृढ़ निश्चय किये हुए, अमंगल के दूर करने में लगे हुए एवं कल्याणकारी संकल्पों से युक्त आप साम्राज्य की इच्छा से मानों प्रजावर्ग के ऊपर ही स्थापित हैं। हे सौवर्ण रुक्म! आप अकाल मृत्यु से सबकी रक्षा करें। विद्युत्पात जैसी आपदाओं से हमें सुरक्षित रखें।[यजुर्वेद 20.2]
रुक्म :: चमकने वाला या सुनहरा, सोना, स्वर्ण, धतूरा, स्वर्ण भिरण, धतूरा, लोहा, नागकेसर रुक्मिणी जी के भाई का नाम ; glittering.
सौवर्ण :: एक कर्ष सोना, सोने की बाली; gold ear ring.
The priest should place shinning metal below the feet and head of the Yajman. Hey Yajak, occupying Asandi! Having resolved to perform Yagy, busy in removing inauspiciousness, resolved to welfare-well being, you seems-appears to have established over the populace. Hey Souvarn Rukm! Protect everyone from untimely death, including lightening.
देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्याम्। अश्विनोर्भैषज्येन तेजसे ब्रह्मवर्चसायाभिषिंचामि सरस्वत्यै भैषज्येन वीर्यायान्नाद्यायाभिषिंचामीन्द्रास्येन्द्रियेण बलाय श्रियै यशसेऽभिषिंचामि॥
अध्वर्यु यजमान के सिर पर जल छिड़के और बोले, हे याजक! सूर्योदय के समय में अश्विनी कुमार की भुजाओं, पूषा देव के हस्तों तथा अश्विनी कुमार की ओषधि द्वारा की गयी चिकित्सा से अलौकिक तेज, ब्रह्म वर्चस् को प्राप्त करने के उद्देश्य से आपको हम इस स्थान में सिक्त करते हैं। देवी सरस्वती के ओषधि द्वारा की गयी चिकित्सा से शक्ति प्राप्ति के लिए तथा धान्य की प्राप्ति के उद्देश्य से हम आपको अभिषिक्त करते हैं। देवराज इन्द्र के सामर्थ्य के निमित्त, बल तथा वैभव के निमित्त तथा कीर्ति प्राप्ति के निमित्त आपको अभिषिक्त करते हैं।[यजुर्वेद 20.3]
सिक्त :: सींचा हुआ, गीला; moistened, soaked.
वर्चस् :: रूप, दीप्ति, अन्न, विष्ठा, शक्ति-शौर्य, शुक्र-वीर्य, प्रताप, श्रेष्ठता, तेज, प्रभाव, गौरव, तेज, चमक, आभा, प्रकाश, शक्ति, ऊर्जा, कांति, दीप्ति, अन्न, शक्ति, शौर्य; figure, radiance, aura, radiance, luminosity, brilliance, lustre, light, splendour, glory, vital power, vigour, energy, activity, beauty, shine.
अभिषिक्त :: जिसका अभिषेक हुआ हो, सींचा हुआ; crowned, anointed.
Priest should sprinkle water over the head of Yajman and say, hey Yajak! We moisturise you at Sun rise for the arms of Ashwani Kumars, hands of Pusha Dev, the treatment by Ashwani Kumars with the divine lustre, attainment of Brahm lustre at this place. We anoint you with the medicines of Devi Saraswati for availing strength and food grains. WE crown you for might, grandeur, fame for the strength-capability of Indr Dev.
कोऽसि कतमोऽसि कस्मै त्वा काय त्वा। सुश्लोक सुमंगल सत्यराजन्॥
अध्वर्यु यजमान का स्पर्श करते हुए बोले, हे श्रेष्ठ यश वाले! हे श्रेष्ठ कल्याणकारी कार्य करने वाले याजक! आप कौन-से प्रजापति हैं? जो प्रतिष्ठित हैं, उनमें से आप कौन-से पुरुष हैं? किस पद के निमित्त प्रजापति अभिषिक्त करते हैं? आपको प्रजापति के श्रेष्ठ पद के निमित्त अभिषिक्त करते हैं। हे उत्कृष्ट सत्यव्रत धारण करने वाले! इस उद्देश्य के निमित्त आप यहाँ आगमन करें।[यजुर्वेद 20.4]
Priest should touch the Yajman and say, hey possessor of excellent fame! Hey Yajak devoted to excellent welfare-well being! Which Prajapati are you! Who are you, amongest the reputed people? For which post-status Prajapati is anointed? We anoint you over the best status-post of Prajapati. Hey bearer of excellent truthful resolves! Invoke here for this purpose.
शिरो मे श्रीर्यशो मुखं त्विषिः केशाश्च श्मश्रूणि।
राजा मे प्राणो अमृतꣳ सम्राट् चक्षुर्विराट् श्रोत्रम्॥
यजमान अपने सिर आदि अंगों का स्पर्श करते हुए बोले, मेरा सिर वैभवशाली हो, मेरा मुख कीर्तिमान् हो, मेरे बाल तथा मूँछें तेजस्वी हों, मेरा उत्कृष्ट प्राण अमृतवत् हो, मेरे चक्षु प्रजाजनों को जानने वाले हों, मेरे कान प्रजाजनों के सारे व्यवहारों को सुनने वाले बनें।[यजुर्वेद 20.5]
Yajman should touch his organs like head and say, let my head should become sumptuous, my mouth should be aurous, my beard and moustache should be lustrous, my Air Vital should be like elixir, my eyes should recognise the populace, my ears should listen to the behaviour of the populace.
जिह्वा मे भद्रं वाङ् महो मनो मन्युः स्वराड् भामः।
मोदाः प्रमोदा अंगुलीरंगानि मित्रं मे सहः॥
मेरी जीभ मंगलकारी वचन रूप हो। वागिन्द्रिय पूज्य रूप हो। मेरा मन दुष्टों पर क्रोधित होनेवाला हो। मेरी अँगुलियाँ स्पर्श का सुख प्राप्त करने वाली हों। मेरे सम्पूर्ण अंग-अवयव सुख प्रदान करने वाले हों। मेरे सखा रिपुओं को पराजित करने में समर्थ हो सकें।[यजुर्वेद 20.6]
My tongue should speak auspicious words. My tongue should be worshipable. My innerself should become angry with the wicked-vicious. My fingers should attain comforts. All of my body organs should grant pleasure. My companions should defeat the enemy.
बाहू मे बलमिन्द्रिय हस्तौ मे कर्म वीर्यम्। आत्मा क्षत्रमुरो मम॥
मेरी दोनों भुजाएँ तथा इन्द्रियाँ शक्ति से युक्त हों। मेरे दोनों हाथ कर्म करनेवाले हों। मेरी अन्तरात्मा तथा मेरा हृदय क्षत्रियधर्म के अनुरूप सामर्थ्यशाली हो।[यजुर्वेद 20.7]
पृष्ठीमें राष्ट्रमुदरमꣳ सौ ग्रीवाश्च श्रोणी। ऊरू अरत्नी जानुनी विशो मे ऽअंगानि सर्वतः॥
राष्ट्र जिस प्रकार सबको धारण करने में सक्षम है, उसी प्रकार मेरा पृष्ठ भाग (पीठ) सबको धारण करने में सक्षम हो। पेट, दोनों कंधे, गला, दोनों ऊरू, दोनों हस्त, भुजा के बीच का भाग, कटि, घुटने आदि मेरे सभी अंग अवयव प्रजा के समान पोषण करने योग्य हों।[यजुर्वेद 20.8]
The way a nation is capable of supporting everyone, my back should support all. My stomach, shoulders, neck, thighs, hands, middle segment of the arms, waist, knees, etc. all organs should be devoted for supporting-nourishing the populace.
नाभिर्मे चित्तं विज्ञानं पायुर्मेऽपचितिर्भसत्। आनन्दनन्दावाण्डौ मे भगः सौभाग्यं पसः। जंघाभ्यां पद्धयां धर्मोऽस्मि विशि राजा प्रतिष्ठितः॥
मेरी नाभि ज्ञान स्वरूप हो। मेरी गुदेन्द्रिय ज्ञान जनित संस्कार का आधार हो। मेरी स्त्री की योनि प्रजनन कार्य में सक्षम हो। मेरे दोनों अंडकोश आनन्दयुक्त हों। परम वैभवशाली इन्द्रियों से युक्त मेरा शरीर सौभाग्य युक्त हो। जंघा द्वारा, चरणों द्वारा धर्मरूप हो अर्थात् सभी अंगों से धर्मरूप होकर हम समाज में सम्मान को प्राप्त करें।[यजुर्वेद 20.9]
My naval should be like knowledge. My anus should constitute the base of learning. Vagina-genital of my wife should be capable of reproducing. My testicles should grant pleasure. My body possessing ultimate grandeur should be auspicious. My thighs feet should represent Dharm leading to honour-respect in the society.(25.07.2025)
प्रति क्षत्रे प्रति तिष्ठामि राष्टे प्रत्यश्वेषु प्रति तिष्ठामि गोषु। प्रत्यङ्गेषु प्रति तिष्ठाम्यात्मन् प्रति प्राणेषु प्रतितिष्ठामि पुष्टे प्रति द्यावापृथिव्योः प्रति तिष्ठामि यज्ञे॥
यजमान कृष्ण मृग चर्म पर बैठे और बोले, मैं क्षत्रियों तथा राज्य में अधिष्ठित हूँ। घोड़े तथा धेनु आदि पशुओं में अधिष्ठित हूँ। प्राणों तथा अंगों में अधिष्ठित हूँ। आत्मा में अधिष्ठित हूँ। पुष्टि में अधिष्ठित हूँ। पृथ्वी तथा अन्तरिक्षलोक में अधिष्ठित हूँ तथा यज्ञ में अधिष्ठित हूँ।[यजुर्वेद 20.10]
Yajman should sit over the black buke skin and say, "I am honoured-established amongest the Kshatriy, the state, horses, cows, animals, Air Vital, body organs, soul, nourishment, earth, space and the Yagy.
त्रया देवा एकादश त्रयस्त्रिꣳशाः सुराधसः। बृहस्पतिपुरोहिता देवस्य सवितुः सवे।
देवा देवैरवन्तु मा॥
विशेष प्रकार की शक्ति से युक्त ग्यारह ग्यारह देवताओं के तीन समूहों में ये तैंतीस देवता श्रेष्ठ वैभवों से परिपूर्ण होकर बृहस्पति को पुरोहित बनाकर सर्वप्रेरक सविता देव के अधिशासन में रहें तथा वे सम्पूर्ण देव अपने अलौकिक सामथ्यर्थों से मुझे संरक्षण प्रदान करें।[यजुर्वेद 20.11]
3 groups of 11 demigods i.e., 33 in all, should have best grandeur, have Dev Guru Brahaspati as the priest and remain under the discipline-control of all inspiring Savita Dev. Let all of them-deities grant me their divine powers and protection.
प्रथमा द्वितीयैर्द्वितीयास्तृतीयाः सत्येन सत्यं यज्ञेन यज्ञो यजुर्भिर्यजूꣳषि सामभिः सामान्यृग्भिर्ऋचः पुरोऽनुवाक्याभिः पुरोऽनुवाक्या याज्याभिर्याज्या वषट्कारैर्वषट्कारा आहुतिभिराहुतयो मे कामान्त्समर्धयन्तु भूः स्वाहा॥
प्रथम देवता वसु रुद्र के साथ मिलकर हमारी रक्षा करें, दूसरे देवता रुद्र आदित्य के साथ मिलकर हमारी रक्षा करें। तीसरे देवता आदित्य सत्य के साथ मिलकर हमारी रक्षा करें। सत्य यज्ञ के साथ, यज्ञ यजुष् के साथ, यजुर्वेद सामवेद के साथ, सामवेद ऋचाओं के साथ, ऋचायें पुरोनुवाक्या के साथ, पुरोनुवाक्या यज्ञमन्त्रों के साथ, यज्ञमन्त्र वषट्कारों के साथ, वषट्कार आहुतियों के साथ संयुक्त होकर मुझे समृद्ध करें। आहुतियाँ इस भूलोक पर हमारी इच्छाओं को अच्छी तरह से सिद्ध करनेवाली बनें।[यजुर्वेद 20.12]
First deity & Vasu Rudr should protect us jointly, second deity and Rudr Adity should together protect us. Third deity should jointly protect us with Adity Saty. Saty should affiliate with Yagy, Yagy should join Yajus, Yajur Ved should affiliate with Sam Ved, Sam Ved with Richas, Richas with Puronuvaky, Puronuvaky with Yagy Mantr, Yagy Mantr with Vashatkar, Vashatkar with sacrifices should be joined respectively and join me as well. Let the sacrifices accomplish our desires over the earth.
लोमानि प्रयतिर्मम त्वङ्मआनतिरागतिः। माꣳसं म उपनतिर्वस्वस्थि मज्जा म आनतिः॥
मेरे शरीर के सारे रोम क्रियाशील हों। मेरी त्वचा नमनशील हो एवं सभी को आकर्षित करने वाली हो। मेरा मांस नमनशील (शरीर को लचीला बनानेवाला) हो तथा अस्थियाँ जगत् के आधारभूत धनस्वरूप हों। मेरी मज्जा (अस्थि के अन्दर का भाग) शरीर को दृढ़ता प्रदान करनेवाली हो। मेरे सातों धातु जगत् का वशीकरण करने में समर्थ हूँ।[यजुर्वेद 20.13]
Let the bristles over my body be activated. My skin should be flexible and attract all. My flesh should be flexible and my bones should form the basis of the universe like wealth. My bone marrow should grant rigidity-strength to the body. Let 7 components of my body be capable of mesmerising the world.
यद्देवा देवहेडनं देवासश्चकृमा वयम्। अग्निर्मा तस्मादेनसो विश्वान्मुञ्चत्वꣳ हसः॥
हे अलौकिक गुण सम्पन्न देवताओ! हमने जो अपराध देवों के प्रति किया है, अग्नि देव हमें उस अपराध से तथा दूसरे सभी अधर्म के मूल कार्यों से दूर करें। पाप से हमें रक्षित करें।[यजुर्वेद 20.14]
अपराध :: दोष, क़सूर, अवगुण, पाप, जुर्म, पातक, दुष्टता; crime, guilt, delinquency.
Hey demigods possessing divine qualities! Let Agni Dev relieve-forgive us for our crime-guilt towards the demigods-deities and other acts of delinquency, protecting us from the sins.
यदि दिवा यदि नक्तमेनाꣳ सि चकृमा वयम्। वायुर्मा तस्मादेनसो विश्वान्मुञ्चत्वꣳ हसः॥
यदि हमने दिन के समय तथा रात के समय कोई दुष्कर्म किये हैं, तो वायु देवता हमें उस दुष्कर्म से तथा अन्य सभी अधर्म के मूल कायों से बचायें।[यजुर्वेद 20.15]
If we indulge in wickedness-vicious acts either during the day of night, let Vayu Dev protect-prohibit us from them-misdeeds and other anti Dharm actions.
यदि जाग्रद्यदि स्वप्नऽएनाꣳ सि चकृमा वयम्।
सूर्यो मा तस्मादेनसो विश्वान्मुञ्चत्वꣳ हसः॥
हमने जो पाप जाग्रत् अवस्था में किये हैं, जो पाप निद्रावस्था में किये हैं अर्थात् हमने जो पाप जान-बूझकर और अनजाने में किये हैं, इन सभी पापों से सूर्य देव हमें मुक्त करें तथा अन्य सभी अनाचारों से भी हमारी रक्षा करें।[यजुर्वेद 20.16]
अनाचार :: कौटुम्बिक व्यभिचार, भ्रष्टाचार, अगम्यागमन, कदाचार, भ्रष्टाचार, कुरीति, कुप्रथा; incest, malpractice, malpractices.
Let Sury Dev relieve us from all sins committed either in awakened state or during sleep, i.e., knowingly or unknowingly; protecting us from the incest.
यद् ग्रामे यदरण्ये यत्सभायां यदिन्द्रिये। यच्छूद्रे यदर्ये यदेनश्चकृमा वयं यदेकस्याधि धर्मणि तस्यावयजनमसि॥
जो गाँव में, जो वन में, जो सभागृह में, जो इन्द्रियों से सम्पन्न कार्यों में शूद्र अथवा वैश्य वर्ग के साथ जो भी अपराध किया है तथा जो अपराध किसी अधिकार को धारण करने में किया है, हे वरुण देव! आप हमारे उन सभी पापों को दूर करें।[यजुर्वेद 20.17]
Let Varun Dev relieve us from the sins (crime, guilt) committed by us in the village, forest, meeting place, functions related with body organs with Shudr or Vaeshy or any crime committed in association with the implementation of authority, others.
यदापोऽअघ्न्याऽइति वरुणेति शपामहे ततो वरुण नो मुञ्च। अवभृथ निचुम्पुण निचेरुरसि निचुम्पुणः। अव देवैर्देवकृत मेनोऽयक्ष्यव मत्र्यैर्मर्त्यकृतं पुरुराव्णो देव रिषस्पाहि॥
हे वरुण देव! हमने असत्य वचन बोलने के रूप में जो पाप किये हैं, उनसे आप हमें मुक्त करें। नीचे प्रवाहित होने वाले (अवभृथ यज्ञरूप) हे जल प्रवाह! यद्यपि आप अति वेगवान् हैं, तथापि अत्यधिक मन्थर गति से प्रवाहित हों। चैतन्य इन्द्रियों द्वारा देवताओं के प्रति किये गये पाप को, इस जल में धोने के निमित्त हम आये हैं। हे (अवभृथ नामक यज्ञ) देव! दुःखदायी शत्रुओं से आप हमारी रक्षा करें।[यजुर्वेद 20.18]
मंथर गति :: slow speed, sluggishness, slow motion, lethargic.
Hey Varun Dev! Relieve us from the sins of speaking untruth-falsehood. Hey stream flowing down wards like Avbhrat Yagy! Although you are fast yet you should flow with low speed. We have come to wash the sins committed with conscious senses towards the demigods-deities, in you. Hey Avbhrat Yagy Dev! Protect us from the enemies who cause us pain-sorrow.
समुद्रे ते हृदयमप्स्वन्तः सं त्वा विशन्त्वोषधीरुतापः।
सुमित्रिया न आप ओषधयः सन्तु दुर्मित्रियास्तस्मै सन्तु योऽस्मान् द्वेष्टि यं च वयं द्विष्मः॥
हे सोम! आपका हृदय समुद्र के गहरे जल में स्थित है। हम आपको उसी में स्थापित करते हैं। ओषधियाँ तथा जल आप में प्रतिष्ठित हों। हम गौ आदि न मारने योग्य पशुओं की हत्या न करके पाप मुक्त रहें। जिन दुराचारियों के प्रति हम शत्रुता का भाव रखते हैं अथवा जो हमसे द्वेष करते हैं उनके साथ आप (जल तथा ओषधियों) कठोरता का व्यवहार करें अर्थात् उन्हें नष्ट करें (यजमान अपने स्थान से दो कदम चलकर जिस दिशा में उसका शत्रु हो उधर जल फेंके)।[यजुर्वेद 20.19]
दुराचारी :: क्रूर, राक्षसी, कामुक, जान बूझ कर कुकृत्य करने वाला, अपराधी, महापापी, बुरा, दुष्कर्ता, दुराचारी, दुराचरण युक्त, अपकर्ता, दुष्कृत्य करने वाला, कदाचारी, पापात्मा, कुकर्मी, अधर्मी, लंपट, दुष्ट, misanthrope, cyprian, debouchee, sinful, dreaded-wretched criminal, unprincipled, devilish, debauchee, felonious, malfeasance, malpractitioner.
Hey Som! Your heart is present in the depth of ocean. We establish you there. Let medicines and water be established in you. We should not commit sins like cow slaughter. Destroy those debouchee-sinful, who possess enmity and are envious with us. You should be tough with them. The Yajman should throw water walking 2-3 steps away in the direction of the enemy.(26.07.2025)
द्रुपदादिव मुमुचानः स्विन्नः स्नातो मलादिव। पूतं पवित्रेणेवाज्यमापः शुन्धन्तु मैनसः॥
नदी आदि के जल में स्नान करते हुए यजमान बोले, दिव्य गुणों से युक्त जल के प्रभाव से हम वैसे ही पापों से विमुक्त हों, जिस प्रकार पाँव से उतारते ही खड़ाऊँ पृथक् हो जाती है, जिस प्रकार स्वेद युक्त पुरुष जल से नहा करके पसीना तथा मैल से मुक्त हो जाता है तथा जिस प्रकार छन्ने से छना हुआ घी मैल से मुक्त हो जाता है, उसी प्रकार हे जल-देवता! आप हमें भी पाप से रहित करके निर्मल करें।[यजुर्वेद 20.20]
खड़ाऊँ :: काष्ठ पादुका, सैंडल, चप्पलें, patten, sandals.
While bathing in river waters, Yajman should say, by virtue of water having divine characterises, we should become free from sins just like the wooden sandals are removed from the feet. The way a person having sweat & dirt is cleansed by bathing and Ghee is purified by filtering, similarly hey deity of water! Make us sinless.
उद्वयं तमसस्परि स्वः पश्यन्त उत्तरम्। देवं देवत्रा सूर्यमगन्म ज्योतिरुत्तमम्॥
जल से बाहर आकर यजमान पुनः यज्ञ स्थल पर आयें और बोले, हम अन्धकारमय इस लोक से दूर श्रेष्ठ स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित, ज्योति स्वरूप, दिव्य तेज से परिपूर्ण सूर्य देव को देखते हुए श्रेष्ठ ब्रह्मस्वरूप को प्राप्त हों।[यजुर्वेद 20.21]
Yajman should come out of waters, reach Yagy Sthal and say, we should be established out of this abode full of darkness to illuminated heavens and attain Brahm form-figure while looking over Sury Dev, shinning with divine aura.
आपो अद्यान्वचारिषꣳ रसेन समसृक्ष्महि।
पयस्वानग्न आगमं तं मा सꣳसृज वर्चसा प्रजया च धनेन च॥
यजमान आहवनीय अग्नि का स्थापन करें और बोले, हे अग्नि देव! आज हमने जल-कर्म (स्नान) सम्पन्न किया है। तब हम जलों के रस से संयुक्त (सिक्त) हुए हैं। मैं जलसिक्त ही आपके निकट आया हूँ। इस तरह आये हुए आप मुझे कान्ति, अपत्य तथा धन इत्यादि ऐश्वर्य से सम्पन्न करें।[यजुर्वेद 20.22]
अपत्य :: औलाद, वंशज; संतती, सन्तान; child, offspring, progeny, children.
Yajman should ignite invoking fire and say, hey Agni Dev! Today we have accomplished rituals related to water. We are drenched with water & I have to you drenched with water. Grant me progeny, wealth, grandeur and brilliance.
एधोऽस्येधिषीमहि समिदसि तेजोऽसि तेजो मयि धेहि। समाववर्ति पृथिवी समुषाः समु सूर्यः। सम विश्वमिदं जगत्। वैश्वानरज्योतिर्भूयासं विभून्कामान्व्यश्रवै भूः स्वाहा॥
यजमान आहवनीय अग्नि में समिधा डालते हुए बोले, हे समिध्! आप ईंधन हैं। आप देदीप्यमान् एवं तेजस्वरूपा हैं। हम आपकी अनुकम्पा से धन-वैभव को प्राप्त कर समृद्धशाली बनें। हे समिध्। आप भली प्रकार दीप्ति करने वाली तथा तेज स्वरूपा हैं अतः आप हमारे भीतर तेज को स्थापित करें। यह धरती प्रतिक्षण आवर्तनयुक्त है। उषाकाल तथा सूर्य इसे आवर्तित करते हैं। सम्पूर्ण संसार भी अस्थिर हैं अर्थात् कुछ भी स्थिर नहीं है। हम अपनी सम्पूर्ण इच्छाओं की पूर्ति हेतु वैश्वानर ज्योति को प्राप्त करें और अपने सम्पूर्ण मनोरथों को पूर्ण करें। जो ब्रह्म स्वयं उत्पन्न हुए हैं, उनके निमित्त यह आहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 20.23]
Yajman should add wood-Samidha in invoked fire and say hey Samidha! You are fuel, illuminating and represent Tej-aura, radiance. Let us become wealthy, prosperous with your favour. Establish aura in us. The earth is cyclic and is always changing like the Usha-dawn and Sun. Entire earth is unstable. Let us have Vaeshwanar light for the fulfilment of our desires. You should accomplish our desires. This sacrifice is for the Brahm who has evolved by himself.
अभ्या दधामि समिधमग्ने व्रतपते त्वयि। व्रतं च श्रद्धां चोपैमीन्धे त्वा दीक्षितो अहम्॥
यजमान आहवनीय अग्नि में तीन समिधाएँ डालते हुए बोले; हे अग्नि देव! आप सम्पूर्ण कर्मों के अधिपति हैं। मैं आप में ये समिधाएँ डालता हूँ। मैं यज्ञ में दीक्षित होकर कर्म तथा श्रद्धा से युक्त होते हुए आपको प्रदीप्त करता हूँ।[यजुर्वेद 20.24]
Yajman should put 3 pieces of Samidha in the invoked fire and say, hey Agni Dev! You are the lord of all endeavours-deeds. I am putting wood pieces in you. I have been initiated into Yagy Karm and ignite you with respect-honour.
यत्र ब्रह्म च क्षत्रं च सम्यञ्चौ चरतः सह। तं लोकं पुण्यं प्रज्ञेषं यत्र देवाः सहाग्निना॥
जिस ब्रह्मलोक में ब्राह्मण जाति तथा क्षत्रिय जातियाँ एक जैसी चित्तवाली होकर विचरती हैं तथा जिस लोक में देवतागण अग्नि देव के साथ रहते हैं, मैं उसी पुण्य से प्राप्त होने वाले ब्रह्मलोक को प्राप्त करूँ।[यजुर्वेद 20.25]
I would like to attain virtuous-pious, auspicious Brahm Lok in which the Brahmans and Kshatriy clan roam with the identical thoughts, innerself, ideas and the demigods-deities live with Agni Dev.
यत्रेन्द्रश्च वायुश्च सम्यञ्चौ चरतः सह। तं लोकं पुण्यं प्रज्ञेषं यत्र सेदिर्न विद्युते॥
जिस लोक में इन्द्र देवता तथा वायु देवता एक समान मन वाले होकर एक साथ विचरण करते हैं तथा जिस लोक में कभी भी अन्न की कमी नहीं होती और न ही कभी किसी भी प्रकार का दुःख होता है, मैं उसी पुण्य लोक को प्राप्त करूँ।[यजुर्वेद 20.26]
I would like to attain that virtuous, pious abode in which Indr Dev & Vayu Dev roam together with identical innerself, which never face shortage of food grains and has no pain, sorrow worries.
अꣳशुना ते अꣳशुः पृच्यतां परुषा परुः। गन्धस्ते सोममवतु मदाय रसो अच्युतः॥
हे सुरे! आपके अंश सोम के भाग में मिश्रित हो जायें। आपका पर्व सोम के पर्व से मिले। आपकी सुगन्ध तथा अमृत स्वरूप रस प्रसन्नता की प्राप्ति हेतु सोम में मिले।[यजुर्वेद 20.27]
पर्व :: उत्सव, त्योहार, समारोह, मेला, आडंबर; festival, gala, fiesta
Hey Sure! Let your component mix with the segment of Som. Your Parv-festivities should join the Parv gala of Som. Your fragrance should attain Som for the happiness like elixir.
सिञ्चन्ति परि षिञ्चन्त्युत्सिञ्चन्ति पुनन्ति च। सुरायै बभ्वै मदे किन्त्वो वदति किन्त्वः॥
सोमरस को सुरा से सिंचित, परिसिंचित और उत्सिश्चित करते हैं। उसे पवित्र करते हैं। पीतवर्ण सुरा के मद में मत्त होकर इन्द्र शत्रु से पूछते हैं, तू क्या है? तू क्या है? आदि तिरस्कार-वाक्य कहता है।[यजुर्वेद 20.28]
Somras is treated with Sura and sanctified. Under the impact-in toxification of yellowish Sura, Indr Dev reproach the enemy, "Who are you, what is your status".
धानावन्तं करम्भिणमपूपवन्तमुक्थिनम्। इन्द्र प्रातर्जुषस्व नः॥
हे देव राज इन्द्र! आप प्रातः काल में हमारे अन्न से युक्त दही, सत्तू तथा मालपूए आदि से युक्त पुरोडाश एवं उत्तम स्तुतियों को स्वीकार करें।[यजुर्वेद 20.29]
Hey Devraj Indr! Accept of offerings of food grains mixed in curd, Sattu, Purodas, Malpue etc and excellent oblations.
बृहदिन्द्राय गायत मरुतो वृत्रहन्तमम्। येन ज्योतिरजनयन्नृतावृधो देवं देवाय जागृवि॥
हे ऋत्विग्गण! आप अतिशय पाप नाशक अथवा वृत्रासुर नाशक देवराज इन्द्र के लिए बृहत् साम को गायें। यज्ञ को संवर्द्धित करने वाले देवों ने इसी साम-गान के द्वारा देवराज इन्द्र के निमित्त जागरण शील अविनाशी तथा देदीप्यमान तेज को प्राप्त कराया था अर्थात् इसी सामगान के द्वारा देवराज इन्द्र तेजस्वी होते हैं।[यजुर्वेद 20.30]
Hey Ritviz Gan! Sing the Brahat Gan pertaining to slayer of Vratra Sur, Indr Dev who eliminate extreme sins. Demigods-deities who support Yagy helped Indr Dev in attaining immortal-imperishable aura-radiance by virtue of Sam Gan.(27.07.2025)
अध्वर्यो अद्रिभिः सुतꣳ सोमं पवित्र आनय। पुनीहीन्द्राय पातवे॥
ब्रह्मा अध्वर्यु से कहते हैं, हे अध्वर्यु गण! आप पत्थरों से कूट कर सुसंस्कारित किये गये,सोम को इस स्थान पर लेकर उपस्थित हों तथा इन्द्र देव इस सोमरस का पान करके परितृप्त हो सकें, इसके निमित्त इसे पवित्र करें।[यजुर्वेद 20.31]
Brahma asks the Priest, hey Adhavaryu Gan! Come here with the Som extracted by crushing it and sanctifying it. Let Devraj Indr drink it, get satisfied by drinking Somras and sanctify-purify this place.
यो भूतानामधिपतिर्यस्मिँल्लोका अधिश्रिताः।
य ईशे महतो महाँस्तेन गृह्णामि त्वामहं मयि गृह्णामि त्वामहम्॥
जो परमात्मा सभी प्राणियों का स्वामी है और जिसमें यह सब लोक-लोकान्तर अधिष्ठित हैं। जो महानों से भी महान् और सामर्थ्यवान् है, उसी परब्रह्म के अनुशासन के द्वारा हे ग्रह! मैं तुझे ग्रहण करता हूँ। पर ब्रह्म स्वरूप मैं तुझे स्वयं में ग्रहण करता हूँ।[यजुर्वेद 20.32]
The Almighty, Lord of all living beings is established in all abodes and the space in between. Hey Grah-planet! I accept you under the discipline of greatest of the great and mighty-capable. I accept you in the form of Par Brahm (Parmeshwar).
उपयाम गृहीतोऽस्यश्विभ्यां त्वा सरस्वत्यै त्वेन्द्राय त्वा सुत्राम्णे।
एष ते योनिरश्विभ्यां त्वा सरस्वत्यै त्वेन्द्राय त्वा सुत्राम्णे॥
हे ओषधिरूप रस! आप दोनों अश्विनी कुमारों के लिए शोधित होकर उपयाम-पात्र में गृहीत हैं। हम आपको देवी सरस्वती के निमित्त, देवराज इन्द्र के निमित्त तथा श्रेष्ठ संरक्षण के निमित्त ग्रहण करते हैं। यह आपका उद्गम स्थल हैं। दोनों अश्विनी कुमारों, सरस्वती तथा देवराज इन्द्र की कृपा से हम संरक्षित करते हैं।[यजुर्वेद 20.33]
Hey sap forming medicine! You have been stored-kept in the Upyam-pot on being extracted by Ashwani Kumars. We accept you for the sake Devi Saraswati, Dev Raj Indr and preservation. This is the place of your origin. We preserve you with the blessings of Ashwani Kumar duo, Maa Saraswati and Devraj Indr.
प्राणपा मेऽअपानपाश्चक्षुष्पाः श्रोत्रापाश्च मे। वाचो मे विश्वभेषजो मनसोऽसि विलायकः॥
ऋत्विज्ञ ग्रह पात्र को सूँघते हुए बोले, हे ओषधे! आप मेरे प्राणों के संरक्षक हैं, आप मेरे अपानों के संरक्षक हैं, आप मेरे पशुओं के संरक्षक हैं तथा आप मेरे कर्णों के संरक्षक हैं। आप मेरी वागीन्द्रिय सहित सम्पूर्ण इन्द्रियों की अपने अलौकिक गुणों से सुरक्षा करें। आप इन इन्द्रियों के संचालक मन को विषयों से निवृत्त करके आत्मा में स्थापित करें। आप मेरे मन के सत्प्रेरक हैं।[यजुर्वेद 20.34]
Ritviz should address the medicine, while smelling the Grah Pot! You are the protector of Air Vital, Apan, animals and my ears. You should protect all organs including tongue with your divine powers. Relieve the innerself (mind & heart) which tackle-negotiate these sense organs and establish them in the soul. You inspire my innerself to virtues-auspiciousness.
अश्विनकृतस्य ते सरस्वतिकृतस्येन्द्रेण सुत्राम्णा कृतस्य। उपहूत उपहूतस्य भक्षयामि॥
हे ओषधे! आप अश्विनी कुमारों द्वारा संस्कार किये हुए, देवी सरस्वती द्वारा बल से परिपुष्ट हुए तथा श्रेष्ठ संरक्षक देवराज इन्द्र द्वारा उत्पन्न हुए हैं। अतः हम आपको सम्मानपूर्वक आहूत करते हैं अर्थात् स्वस्थ रहने और दीर्घायु होने की इच्छा से आपका भक्षण करते हैं।[यजुर्वेद 20.35]
Hey medicine! You have been sanctified by Ashwani Kumars, nourished by Devi Saraswati and produced by Devraj Indr. Hence, we summon you with due respect i.e., eat you with the desire of long age.
समिद्ध इन्द्र उषसामनीके पुरोरुचा पूर्वकृद्वावृधानः।
त्रिभिर्देवैस्त्रिꣳ शता वज्रबाहुर्जघान वृत्रं वि दुरो ववार॥
अपूर्व कर्मों को करने वाले और सोमरस पान अभिवृद्धि को प्राप्त होने वाले इन्द्र, उषाओं के मुख काल में पूर्व की ओर प्रथम आने वाली ज्योति के समय प्रबुद्ध हुए। तैतीस देवों के साथ वज्रबाहु इन्द्र ने वृत्र को मार डाला और नदियों के बन्द द्वारों को खोल दिया।[यजुर्वेद 20.36]
अपूर्व कर्म :: extraordinary deeds, unprecedented action, unique deed.
Hey Indr Dev! You intend to commit unprecedented actions, increase the quantum-intake of drinking Somras. You faced the first rays of Usha in the East. Killed Vajr Bahu with the help of 33 demigods-deities and released water obstructed with gates.
नराशꣳसः प्रति शूरो मिमानस्तनूनपात्प्रति यज्ञस्य धाम।
गोभिर्वपावान्मधुना समञ्जह्रिरण्यैश्चन्द्री यजति प्रचेताः॥
ऋत्विग्गणों द्वारा स्तवनीय यज्ञरूप शूरता आदि गुण सम्पन्न यज्ञ-स्थल को जानने वाले जठराग्निरूप से शरीर के संरक्षक, पशुओं से सम्बन्धित वपन क्रिया युक्त मधु के सदृश सुस्वादु घृत के द्वारा हवियों का सेवन करने वाले, सुवर्ण आदि द्रव्यों से युक्त कर्म को जानने वाले इन्द्र देव के निमित्त याजक प्रतिदिन यज्ञ तथा यजन करते हैं।[यजुर्वेद 20.37]
वपन :: बीज बोना, केशमुंडन, क्रम से रखना, शुक, बीज, बाल बनाने का अस्तुरा, रोपना।
Yajak every day hold Yagy for the sake of Devraj Indr who is revered by the Ritviz as Yagy, has qualities like bravery, knows the Yagy place, protector of the body like Jathragni, shaving of head, sowing of seeds related with animals, mixing oblations with honey and Ghee and knows how to deal with gold and other materials.
ईडितो देवैर्हरिवाँ2 अभिष्टिराजुह्वानो हविषा शर्द्धमानः।
पुरन्दरो गोत्रभिद्वज्रबाहुरायातु यज्ञमुप नो जुषाणः॥
जो देवराज इन्द्र देवों द्वारा आराध्य, हरि नामक घोड़ों वाले, सभी यज्ञों में स्तुतियों को प्राप्त, आहुतियों के द्वारा याजकों द्वारा आवाहित किये गये, महाशक्तिशाली, रिपुओं के नगरों को ध्वस्त करने वाले, असुरों के कुलों का नाश करने वाले एवं वज्र पाणि हैं, ऐसे इन्द्र देव हमारे द्वारा किये जा रहे यज्ञ को स्वीकृत करके पधारें।[यजुर्वेद 20.38]
Indr Dev revered by the demigods-deities, lord of horses named Hari, attain prayers in all Yagy, invoked by the Yajak with sacrifices, extremely mighty-powerful, destroyer of enemy forts, destroyer of the clans of demons, wield Vajr, should accept our Yagy.
जुषाणो बर्हिर्हरिवान्नइन्द्रः प्राचीनꣳ सीदत्प्रदिशा पृथिव्याः।
उरुप्रथाः प्रथमानꣳ स्योनमादित्यै रक्तं वसुभिः सजोषाः॥
हे देवराज इन्द्र! आप हरे वर्ण के अश्वों से युक्त हैं, महाकीर्तिमान् हैं, प्रीतिमान् हैं। आप देवताओं की यजन भूमि के प्रदिशा में निर्मित उत्तम बर्हिशाला को दृष्टिगत करते हुए बारह आदित्यों तथा आठ वसुओं के साथ महासुख प्रदान करने वाले कुशासन पर आसीन होने हेतु हमारे इस प्राचीन यज्ञ-स्थल में पधारें।[यजुर्वेद 20.39]
बर्हि :: अग्नि और कुश (एक प्रकार की घास), कभी-कभी इसका अर्थ मोर भी होता है।
Hey Devraj Indr! You possess green coloured horses & is honoured-revered lovable-affectionate. Come to our excellent Yagy Shala-site made of Barhi grass, be seated over highly comfortable cushion-Matt made of Kush grass, along with 12 Adity Gan, 8 Vasu Gan.
इन्द्रं दुरः कवष्यो धावमाना वृषाणं यन्तु जनयः सुपत्नीः।
द्वारो देवीरभितो वि श्रयन्ताꣳ सुवीरा वीरं प्रथमाना महोभिः॥
जिस यज्ञगृह के यहाँ से वायु के गमना-गमन का मार्ग है, जहाँ मानव ध्वनि करते हैं, वे यज्ञगृह के द्वार कामना वर्षक पराक्रमी इन्द्र देव को प्राप्त हों, जैसे याजक की स्त्री जो कि पतिधर्म का भली-भाँति पालन करती है, वह स्त्री तथा उत्तम कर्म करने वाले ऋत्विज आदि के साथ तथा उत्सवों में सुविस्तृत तथा सुसज्जित द्वार दिव्य गुणों से युक्त होकर सभी ओर से खुलते हैं।[यजुर्वेद 20.40]
The Yagy Shala where provision is made for free movement of air, humans make sound, the doors of which grant pleasure to invincible-brave Indr Dev; the way a woman carries out her duties pertaining to her husband, that woman and Ritviz devoted to excellent virtuous (righteous, pious) deeds, where the decorated doors possessing divine qualities open in all directions, should be available to Devraj Indr.(29.07.2025)
उषासानक्ता बृहती बृहन्तं पयस्वती सुदुघे शूरमिन्द्रम्।
तन्तुं ततं पेशसा संवयन्ती देवानां देवं यजतः सुरुक्मे॥
महती, जलवती, उत्तम प्रकार से दोहन वाली, विस्तार वाली, सूत्र के सदृश अद्भुत रूप से ग्रथित करने वाली सूर्य की ज्योति तथा रात्रि, महान् पराक्रमी देवताओं में मुख्य देवता इन्द्र को सुन्दर दीप्ति से युक्त करती है।[यजुर्वेद 20.41]
महती :: महिमा, बड़ाई, बड़ी; glory.
Sun light and night which are glorious, possess water, extract in best possible manner, extended-comprehensive, like fine thread, connects invincible, greatest amongest demigods-deities; Devraj Indr with beautiful brilliance.
दैव्या मिमाना मनुषः पुरुत्रा होताराविन्द्रं प्रथमा सुवाचा।
मूर्द्धन्यज्ञस्य मधुना दधाना प्राचीनं ज्योतिर्हविषा वृधातः॥
अनेकों प्रकार से यज्ञ करने वाले मानव यज्ञ कर्ता प्रथमतः उत्तम वचन वाले यज्ञ के शिरोभाग में इन्द्र देव को धारण अथवा स्थापित करते हैं। देवताओं से सम्बन्धित यज्ञकर्ता वायुदेव तथा अग्नि पूर्व दिशा में विद्यमान आवाहित किये जाने वाले अग्निदेव को आहुतियों द्वारा प्रज्वलित करते हैं।[यजुर्वेद 20.42]
The humans performing various kinds of Yagy, speaks pleasant words related with demigods-deities, establish Indr Dev at the apex of Yagy. Either Vayu Dev or Agni Dev performing the Yagy, ignite fire with sacrifices in the east direction.
तिस्त्रो देवीर्हविषा वर्द्धमाना इन्द्रं जुषाणा जनयो न पत्नीः।
अच्छिन्नं तन्तुं पयसा सरस्वतीडा देवी भारती विश्वतूर्त्तिः॥
दिव्य गुण सम्पन्न, सभी जगह विचरण करने वाली, धारण तथा पोषण करने वाली सरस्वती, भारती तथा इला (इडा) तीनों देवियाँ साध्वी स्त्रियों के सदृश देवराज इन्द्र की सेवा करती हैं। वे देवियाँ हमारे यज्ञ निर्विघ्न करते हुए दूध तथा हवि से सम्पन्न करें।[यजुर्वेद 20.43]
Devi Saraswati, Bharti and Ila-Ida possessing divine traits nursing, roaming all around-every where, serve Indr Dev like Sadhvi (Saintly virtuous-pious, righteous) women. Let these deities accomplish our Yagy making it free from disruption-disturbances, with milk and oblations-offerings.
त्वष्टा दधच्छुष्ममिन्द्राय वृष्णेऽपाकोऽचिष्टुर्यशसे पुरूणि।
वृषा यजन्वृषणं भूरिरेता मूर्द्धन्यज्ञस्य समनक्तु देवान्॥
तेज युक्त, पराक्रमी, शत्रुओं की शक्ति को नष्ट करने वाले त्वष्टा देव, इन्द्र देव के निमित्त बल को धारण करें एवं अति प्रशंसनीय अर्चनीय, अगाध ऐश्वर्यों को धारण करें। वे हो कामना वर्षक, अति बलशाली, शक्ति-सम्पन्न देवराज इन्द्र की सहायता करते हुए यज्ञ के मूर्धारूप आहवनीय देवों को परितृप्त करें।[यजुर्वेद 20.44]
मूर्धा :: cerebrum, cranium, palate.
Let aurous, invincible-mighty, destroyer of enemies, strong Twasta Dev hold strength, unlimited appreciable grandeur, for the sake of Indr Dev. He should help Indr Dev who accomplish desires-wishes, is mighty, powerful; satisfy the demigods, who are like the cerebrum of the Yagy.
वनस्पतिरवसृष्टो न पाशैस्त्मन्या समञ्जञ्छमिता न देवः।
इन्द्रस्य हव्यैर्जठरं पृणानः स्वदाति यज्ञं मधुना घृतेन॥
सम्पूर्ण पाशों से मुक्त, आत्मा की शक्ति से प्रकाशवान, वनस्पतियों के देवता घृतादि मधुर रस से यज्ञ को सिद्ध करते हैं एवं देवराज इन्द्र के पेट की जठराग्नि को हविष्यान्न द्वारा शान्त करते हैं।[यजुर्वेद 20.45]
Free from all bonds-ties, shining with the power of soul, deity of vegetation, accomplish the Yagy with Ghee and sweet juices-saps; satisfying the Jathragni of Indr Dev with food grains of oblations.
स्तोकानामिन्दुं प्रति शूर इन्द्रो वृषायमाणो वृषभस्तुराषाट्।
घृतप्रुषा मनसा मोदमानाः स्वाहा देवा अमृता मादयन्ताम्॥
वीर रिपुओं के प्रति गर्जना करने वाले, सुख की वृष्टि करने वाले, हिंसक प्रवृत्ति के रिपुओं का संहार करने वाले देवराज इन्द्र स्वाहाकार रूप से उपलब्ध होने वाले घृत से परितृप्त होते हैं तथा अमृत के समान दिव्य गुण से युक्त सोम को कम मात्रा में प्राप्त करके भी अति प्रसन हीं।[यजुर्वेद 20.46]
Devraj Indr roaring like brave enemies, showering pleasure, destroyer of the violent beasts, pronouncing Swaha in the Yagy, satisfies with Ghee, remain content extremely pleased & happy having Somras with divine traits, even in less quantity.
आ यात्विन्द्रोऽवस उप न इह स्तुतः सधमादस्तु शूरः।
वावृधानस्तविषीर्यस्य पूर्वीर्द्यौर्न क्षत्रमभिभूति पुष्यात्॥
शक्तिशाली देवराज इन्द्र हमारी सुरक्षा के लिए यहाँ हमारे निकट आगमन करें, ये स्तुतियों द्वारा समृद्ध होकर सम्पूर्ण लोगों के साथ विराजमान होकर आनन्दित हीं। जिनके पहले के सामर्थ्य द्वारा बड़े-बड़े महान् कार्य पूर्ण हुए हैं, ऐसे इन्द्र देव रिपुओं को पराजित करने में सक्षम हमारे क्षात्रधर्म को स्वर्गलोक के समान विस्तृत तथा परिपुष्ट करें।[यजुर्वेद 20.47]
Let mighty Indr Dev come here for our protection and enrich himself with the Stuties, enjoy with all the people present here. By virtue of who's might great endeavours have been accomplished by us, let him make us capable of defeating the enemies, boost our power of Kshatr Dharm like the heavens, extend it and fortify it.
आ न इन्द्रो दूरादा न आसादभिष्टिकृदवसे यासदुग्रः।
ओजिष्ट्रेभिर्नुपतिर्वज्रबाहुः सङ्गे समत्सु तुर्वणिः पृतन्यून्॥
मनोरथों की पूर्ति करने वाले, ओजस्वी, बलशाली, मनुष्यों का पालन करने वाले, वज्र पाणि, अनेक छोटे-बड़े संग्रामों में रिपुओं का हनन करने वाले देवराज इन्द्र हमारी रक्षा के निमित्त दूरस्थ द्युलोकअथवा निकटस्थ पृथ्वीलोक जहाँ कहीं भी हों, वहाँ से यहाँ पदार्पण करें।[यजुर्वेद 20.48]
Accomplisher of desire, aurous, mighty, nurturer of humans, wielding Vajr, destroyer of the enemy in small or large battles, Indr Dev should come here for our protection from where ever he is, distant heavens or the earth.
आ न इन्द्रो हरिभिर्यात्वच्छार्वाचीनोऽवसे राथसे च।
तिष्ठाति वज्री मघवा विरप्शीमं यज्ञमनु नो वाजसाती॥
महावैभवशाली, वज्रपाणि देवराज इन्द्र हमारी सुरक्षा के लिए तथा धन प्रदान करने के लिए हमारे निमित्त अनुकूल होकर अपने हरश्वों के द्वारा आगमन करें। हमारे इस यज्ञ में अपने उपयुक्त हव्य पदार्थ के अंश की भक्षण करने के निमित इस यज्ञशाला में स्थित हों और इसकी रक्षा करें।[यजुर्वेद 20.49]
Possessor of great grandeur, Vajr wielding Indr Dev should come to us, riding his green coloured horses, for our protection and granting wealth. He should eat the oblations suitable to him, in our Yagy Shala and protect it.
त्रातारमिन्द्रमवितारमिन्द्रꣳ हवे हवे सुहवꣳ शूरमिन्द्रम्।
ह्वयामि शक्रं पुरुहूतमिन्द्रꣳ स्वस्ति नो मघवा धात्विन्द्रः॥
मैं रक्षक इन्द्रदेव की आहूत करता हूँ। मैं युद्ध में आहवनीय इन्द्र देव को आहूत करता हैं। मैं पालन कर्ता इन्द्र देव की यज्ञ में बारम्बार आहूत करता हूँ। हम वीर इन्द्र देव श्रेष्ठ विधि से बुलाते हैं। अनेकों के द्वारा स्तनीय एवं अति सामर्थ्य शाली इन्द्र देव को मैं आहुत करता है। वे वैभवशाली इन्द्र देव हमारा सभी प्रकार से मंगल करें।[यजुर्वेद 20.50]
I invoke protector Indr Dev. I invoke Indr Dev who deserve to be invoked in the war. I repeatedly invoke nurturer Indr Dev. We invoke Indr Dev with best procedures. I invoke extremely powerful Indr Dev who is worshiped by many. Let possessor of grandeur Indr Dev resort to our welfare, well being in all manners.
इन्द्रः सुत्रामा सव्वाँ2 अयोधिः सुमृडीको भवतु विश्ववेदाः।
बाधतां द्वेषो अभयं कृणोतु सुवीर्यस्य पतयः स्याम॥
श्रेष्ठ रक्षण साधनों से युक्त, अनेकों सहायक पुरुषों वाले, जगत् के सम्पूर्ण धन-सम्पदाओं से युक्त इन्द्र देव अन्नादि पदार्थों द्वारा प्रजा को पुष्ट करें। वे इन्द्र देव हमसे द्वेष करने वालों से हमें दूर करे और हमें सौभाग्यशाली बनायें। वे हमारे भयों को विनष्ट करके हमें भयहीन करें। उनकी कृपा से हम श्रेष्ठ शक्ति तथा वीर्य से युक्त हों।[यजुर्वेद 20.51]
Supported by best protection means, having many helping humans, possessing all sorts of wealth of the universe, Indr Dev should nourish the populace with food grains etc. Let him repel those who are envious to us and make us lucky. He should eliminate the fears and make us fearless. We should attain best power by virtue of his blessings.(30.07.2025)
तस्य वयꣳ सुमतौ यज्ञियस्यापि भद्रे सौमनसे स्याम।
स सुत्रामा स्ववाँ2 इन्द्रो अस्मे आराच्चिद् द्वेषः सनुतर्युयोतु॥
हम इन्द्र देव के लिए यज्ञकर्म करते हुए उनकी अनुकम्पा तथा श्रेष्ठ बुद्धि को प्राप्त करें तथा उनके मंगलकारी मन की प्रसन्नता में निवास करें। वे श्रेष्ठ रक्षण सामर्थ्य वाले धनपति इन्द्र देव हमसे दूर रहते हुए भी जो दुर्भाग्य भविष्य में हमारे सम्मुख उपस्थित होने वाले हैं, उसे सर्वदा के लिए दूर करें। वे इन्द्रदेव हमारे शत्रुओं को पृथक् करके नष्ट करें।[यजुर्वेद 20.52]
We should attain the favours-blessings and excellent intelligence, performing Yagy devoted to Indr Dev and reside in his auspicious innerself's happiness. Possessor of protection-safety during war, wealthy Indr Dev; though away from us yet he become close during bad luck to remove it for ever. Indr Dev should isolate-separate our enemies and destroy them.
आ मन्द्रैरिन्द्र हरिभिर्याहि मयूररोमभिः।
मा त्वा के चिन्नि यमन्विं न पाशिनोऽति धन्वेव ताँइ2हि॥
हे देवराज इन्द्र! मोर के पंखों के सदृश आकर्षक रोम वाले तथा गम्भीरतायुक्त ध्वनि वाले अपने घोड़ों के द्वारा आप यहाँ हमारे यज्ञस्थल में पदार्पण करें। जिस प्रकार शिकारी जाल को फेंककर पक्षी को उसमें फँसा लेता है, उसी प्रकार कोई दुष्ट राक्षस आपको न फँसा सकें। आप उन दुष्ट राक्षसों को बड़े धनुर्धारी के सदृश दूर करके यहाँ आगमन करें। जैसे व्यापारी मरुस्थल की रुकावट को पार करता है उसी तरह हमारे यज्ञ में आओ।[यजुर्वेद 20.53]
Hey Devraj Indr! Come to our Yagy riding your greenish horses which make serious sounds, having attractive bristles like peacock. The demons should not be able to trap you like the hunter who use net to catch birds. Repel the wicked demons like a great archer and come here. The way a trader crosses the desert clearing all hurdles, similarly you come to the Yagy.
एवेदिन्द्रं वृषणं वज्रबाहुं वसिष्ठासोऽअभ्यर्चन्त्यर्कै:।
स न स्तुतो वीरवद्धातु गोमद्यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
कामना वर्षक तथा वज्र के सदृश बाहु वाले देवराज इन्द्र की महर्षि वसिष्ठ के वंशज मन्त्रोच्चारण द्वारा अर्चना करते हैं। वे कीर्तिमान् कर्मों से स्तवनीय इन्द्र देव, हमारे वीरों तथा गौ आदि पशुओं को अपनी सुरक्षा में धारण करें। हे देवताओ! आप सभी हमारे निमित्त सदा मंगलकारी तथा रक्षाकारी बनें।[यजुर्वेद 20.54]
Desires accomplishing, having arms like Vajr, Devraj Indr is worshiped-prayed by the descendants of Vashishth Maharshi. Indr Dev is worshiped with the recitation of his great deeds-land marks, should have our brave people, cows, animals under his asylum. Hey demigods-deities! You should always be auspicious and protective to us.
समिद्धो अग्निरश्विना तप्तो घर्मों विराट् सुतः।
दुहे धेनुः सरस्वती सोमꣳ शुक्रमिहेन्द्रियम्॥
होता कहता है, हे अश्विनी कुमारों! अग्नि देव अपने तेज से अत्यन्त दीप्तिमान होकर यज्ञ में प्रज्वलित हैं, इस अग्नि को परितृप्त करने के उद्देश्य से विराट् से सोम को निचोड़ा गया है। गाय के दोहन के समय देवी सरस्वती विभिन्न सार पदार्थों से शुभ्र, तेज युक्त तथा शक्तिशाली सोम का दोहन करने वाली हैं।[यजुर्वेद 20.55]
Hota says, hey Ashwani Kumars! Agni Dev is illuminate with his sharpness and ignited in the Yagy. Som has been extracted to satisfy Agni Dev with Virat. While milking cow, Devi Saraswati is going to extract various white, energetic and powerful materials.
तनृपा भिषजा सुतेऽश्विनोभा सरस्वती। मध्वा रजाꣳ सीन्द्रियमिन्द्राय पथिभिर्वहान्॥
अपने अलौकिक ओषधीय गुणों से हमारे शरीर के संरक्षक चिकित्सक दोनों अश्विनी कुमार तथा देवी सरस्वती अत्यन्त मधुर ओषधि रस से लोकों को पूरित करते हैं। वे अनेक यज्ञों के द्वारा उस सोमरस से इन्द्र देव को पुष्टि प्रदान करते हैं।[यजुर्वेद 20.56]
Patrons of our body both Ashwani Kumars and Devi Saraswati enrich the various abodes with the divine traits of medicines and their sweet juices-saps. They grant nourishment to Indr Dev through several Yagy and Somras.
इन्द्रायेन्दुꣳ सरस्वती नराशꣳ सेन नग्नहुम्। अधातामश्विना मधु भेषजं भिषजा सुते॥
यज्ञ के साथ ही साथ देवी सरस्वती ने देवराज इन्द्र के निमित्त सोम तथा महौषधियों के तत्त्व को प्रतिष्ठित किया एवं चिकित्सक अश्विनी कुमारों ने अभिषुत किये गये मधुर ओषधि रूपी सोम को धारण किया।[यजुर्वेद 20.57]
With the commencement of Yagy, Devi Saraswati sanctified the saps of Som and great medicines and Ashwani Kumars held-stored the extracted sweet Som as the medicine.
आजुह्वाना सरस्वतीन्द्रायेन्द्रियाणि वीर्यम्। इडाभिरश्विना विषꣳ समूर्जꣳ स रयिं दधुः॥
देवराज इन्द्र को आहूत करने वाली देवी सरस्वती तथा अश्विनी कुमारों ने देवराज इन्द्र के निमित्त इन्द्रियों में शक्ति तथा पराक्रम की स्थापना की। तत्पश्चात् गवादि पशुओं सहित अन्न, दूध, दही तथा श्रेष्ठ धन को भी धारण किया अर्थात् इन्द्र को प्रदान किया।[यजुर्वेद 20.58]
Devi Saraswati & Ashwani Kumars who summoned Devraj Indr, established power-strength and bravery in the organs. Thereafter, provided cows & other animals, curd, milk and excellent wealth to Indr Dev.
अश्विना नमुचेः सुतꣳ सोमꣳ शुक्रं परिस्रुता। सरस्वती तमाभरद् बर्हिषेन्द्राय पातवे॥
दोनों अश्विनी कुमारों ने महाओषधियों के रस के साथ सुसंस्कारित हुए तेजस्वी सोम को संयुक्त किया। देवी सरस्वती ने नमुचि नामक असुर से सोम का हरण करके उसे देवराज इन्द्र के पान के निमित्त कुशसमूह पर प्रतिष्ठित किया।[यजुर्वेद 20.59]
हरण :: लूटना, चुराना, मिटाना, दूर करना; kidnapping, divestment.
Both Ashwani Kumars sanctified the sap-juices of Ultimate medicines with radiant Somras. Devi Saraswati divested Som from the demon Namuchi and provided it to Devraj Indr for drinking, occupying Kush Matt.
कवष्यो न व्यचस्वतीरश्विभ्यां न दुरो दिशः। इन्द्रो न रोदसी उभे दुहे कामान्त्सरस्वती॥
दोनों अश्विनी कुमारों के साथ देवी सरस्वती ने तथा देवराज इन्द्र ने शब्द तथा अवकाश से युक्त अति विराट् यज्ञ के माध्यम से धरती तथा आकाश दोनों का एवं सभी दिशाओं से अपनी इच्छाओं का दोहन किया।[यजुर्वेद 20.60]
Both Ashwani Kumars, Devi Saraswati and Indr Dev extracted their desires from the earth, sky, all directions through the Yagy having sound, rest-space.
उषासानक्तमश्विना दिवेन्द्रꣳ सायमिन्द्रियैः। संजानाने सुपेशसा समञ्जाते सरस्वत्या॥
देवी सरस्वती सहित दोनों अश्विनी कुमारों ने समान गुण तथा धर्म वाले होकर उषाकाल, रात-दिन तथा सन्ध्याकाल में देवराज इन्द्र को सम्पूर्ण शक्ति के साथ भली-भाँति संयुक्त किया।[यजुर्वेद 20.61]
Devi Saraswati and both Ashwani Kumars, having common traits and similar endeavours-means coordinated-organised the powers of Devraj Indr, during Usha Kal-dawn, night-day and evening, properly.
पातं नोअश्विना दिवा पाहि नक्तꣳ सरस्वति।
दैव्या होतारा भिषजा पातमिन्द्रꣳ सचा सुते॥
हे अश्विनी कुमारों! आप दिन में हमारी सुरक्षा करें। हे देवी सरस्वती! आप रात में हमें संरक्षण प्रदान करें। विराट् प्रकृति यज्ञ के दिव्य होता, हे अश्विनी कुमारों। आप ओषधिरूप दिव्य सोम के द्वारा देवराज इन्द्र की सुरक्षा करें।[यजुर्वेद 20.62]
Hey Ashwani Kumars! Protect us through the day. Hey Saraswati! Protect us during the night. Hey Ashwani Kumars the Hota of Virat-large Prakrati Yagy! You should protect Devraj Indr with Som which is like divine medicine.
तिस्त्रस्त्रेधा सरस्वत्यश्विना भारतीडा। तीव्रं परिस्रुता सोममिन्द्राय सुषुवुर्मदम्॥
हे अश्विनी कुमारों। तीन तरह से विद्यमान अन्तरिक्ष लोक में सरस्वती, स्वर्गलोक में भारती तथा धरती में इडा-इन तीनों देवियों ने आप के द्वारा महाओषधियों के दिव्य रोग रहित करने वाले गुणों से परिपूर्ण सोम को देवराज इन्द्र के निमित्त शोधित किया।[यजुर्वेद 20.63]
Hey Ashwani Kumars! Devi Saraswati present in the space-sky, Devi Bharti present in the heavens and Devi Ida present over the earth, extracted Som through you along with the Ultimate medicines having curing effect for Indr Dev.
(31.07.2025)
अश्विना भेषजं मधु भेषजं नः सरस्वती। इन्द्रे त्वष्टा यशः श्रियꣳ रूपꣳ रूपमधुः सुते॥
सोम के सुसंस्कारित होने पर दोनों अश्विनी कुमारों ने ओषधि, सरस्वती ने मधुरूप ओषधि, त्वष्टा देव ने कीर्ति रूप तथा ऐश्वर्यों के अनेक रूपों को देवराज इन्द्र की पुष्टि के निमित्त धारण किया।[यजुर्वेद 20.64]
On sanctifying Som, both Ashwani Kumars held medicines, Devi Saraswati held medicated honey, Twasta Dev adopted glorious form and grandeur for the nourishment of Indr Dev.
ऋतुथेन्द्रो वनस्पतिः शशमानः परिस्रुता। कीलालमश्विभ्यां मधु दुहे धेनुः सरस्वती॥
वनस्पतियों के अधिष्ठाता प्रयाज देव ने देवराज इन्द्र के लिये ऋतुओं के अनुसार समय-समय पर सुसंस्कारित हुए महाओषधियों के मधुर रसों तथा अनरसों को प्रदान किया। उन्हें प्राप्त कर इन्द्र देव अभ्युदय को प्राप्त हुए हैं। अश्विनी कुमारों तथा देवी सरस्वती ने गौ को दुहने के सदृश इन मधुर रसों का दोहन किया है।[यजुर्वेद 20.65]
Deity of vegetation Prayaj Dev granted sanctified extracts of Ultimate medicines & pulp from time to time for Devraj Indr. It led to the rise-growth of Devraj Indr. Ashwani Kumars & Devi Saraswati extracted these sweet saps like milking the cow.
गोभिर्न सोममश्विना मासरेण परिस्रुता। समधातꣳ सरस्वत्या स्वाहेन्द्रे सुतं मधु॥
हे अश्विनी कुमारों! आप दोनों देवी सरस्वती सहित, गौ के दूध-घी आदि के संग महा ओषधियों के मधुर रस से निष्पन्न सोम को मिश्रित करके देवराज इन्द्र के निमित्त समर्पित करें। यह आहुति वे भली-भाँति स्वीकार करें। हे प्रयाज देवों! आप भी सरस्वती के साथ इन्द्र को सोमरस प्रदान करें।[यजुर्वेद 20.66]
Hey Ashwani Kumars! Both of you and Devi Saraswati serve the mixture of the extract of Ultimate medicines, cows milk & Ghee and sweet Somras to Indr Dev. He will accept this offering properly. Hey Prayaj demigods! You too serve this combination of Somras to Indr Dev.
अश्विना हविरिन्द्रियं नमुचेर्धिया सरस्वती। आ शुक्रमासुराद्वसु मघमिन्द्राय जभ्रिरे॥
अश्विनी कुमारों तथा देवी सरस्वती ने बुद्धि पूर्वक नमुचि नामक दैत्य से उत्तम रीति से अभिषुत किये गये हवि तथा उत्तम धन को प्राप्त कर देवराज इन्द्र के निमित्त समर्पित किया।[यजुर्वेद 20.67]
Ashwani Kumars and Devi Saraswati tactfully obtained the oblations extracted by following best procedures from demon Namuchi, in addition to wealth and offered them to Devraj Indr.
यमश्विना सरस्वती हविषेन्द्रमवर्धयन्। स बिभेद बलं मघं नमुचावासुरे सचा॥
दोनों अश्विनी कुमारों तथा देवी सरस्वती ने संयुक्त होकर देवराज इन्द्र के निमित्त हवि अर्पित कर उन्हें परिपुष्ट किया तथा इन्द्र देव ने नमुचि नामक असुर के महान् बल को छिन्न-भिन्न कर दिया।[यजुर्वेद 20.68]
Both Ashwani Kumars & Devi Saraswati jointly granted the offerings to Devraj Indr and nourished him. Indr Dev teared Namuchi into pieces with his great strength and power.
तमिन्द्रं पशवः सचाश्विनोभा सरस्वती। दधाना अभ्यनूषत हविषा यज्ञ इन्द्रियैः॥
अश्विनी कुमारों तथा देवी सरस्वती ने एक साथ संयुक्त होकर यज्ञ में उन देवेन्द्र को पशुओं के दुग्ध-घृत से युक्त हवि अर्पित की तथा उनके बल एवं सामर्थ्य में वृद्धि की और उनकी स्तुति की।[यजुर्वेद 20.69]
Both Ashwani Kumars and Devi Saraswati jointly worshiped Indr Dev and offered milk & Ghee to him in the Yagy, increasing his strength and capability.
य इन्द्र इन्द्रियं दधुः सविता वरुणो भगः। स सुत्रामा हविष्पतिर्यजमानाय सश्चत॥
जो सविता, वरुण तथा भगदेव हैं, उन्होंने देवेन्द्र में बलों को धारण कराया। वे श्रेष्ठ प्रकार से रक्षा करने वाले हवि के अधिपति इन्द्र देव यजमानों की कामनाओं को पूर्ण करके सबको सुखी बनायें।[यजुर्वेद 20.70]
Savita, Varun and Bhag Dev boosted the powers of Indr Dev. The lord of best oblations Indr Dev, should accomplish wishes and make everyone comfortable-happy.
सविता वरुणो दधद्यजमानाय दाशुषे। आदत्त नमुचेर्वसु सुत्रामा बलमिन्द्रियम्॥
भली प्रकार रक्षा करने वाले देवराज इन्द्र ने नमुचि नामक असुर से उसका धन, बल तथा इन्द्रिय शक्ति को ले लिया। सविता देव तथा वरुण देव ने यजमानों को हर्षित करने के लिए उस धन तथा बल को धारण किया अर्थात् यजमानों प्रदान किया।[यजुर्वेद 20.71]
Properly protecting Devraj Indr killed demon Namuchi and snatched his wealth, might and physical powers. To please the Yajman Savita and Varun Dev kept that wealth and might i.e., gave to the Yajmans.
वरुणः क्षत्रमिन्द्रियं भगेन सविता श्रियम्। सुत्रामा यशसा बलं दधाना यज्ञमाशत॥
यजमानों को क्षात्रबल तथा इन्द्रिय सामर्थ्य प्रदान करने वाले वरुण देव, धन-वैभव प्रदान करने वाले सविता देव तथा कीर्ति एवं वीर्य को बढ़ाने वाले इन्द्र देव हमारे इस सौत्रामणि यज्ञ में पदार्पण करें।[यजुर्वेद 20.72]
Let Varun Dev who boost the powers of the Kshatriy, Savita Dev who increase wealth and grandeur and Indr Dev who increase fame and might should join our Soutramani Yagy.
अश्विना गोभिरिन्द्रियमश्वेभिर्वीर्यं बलम्। हविषेन्द्रꣳ सरस्वती यजमानमवर्द्धयन्॥
अश्विनी कुमार तथा देवी सरस्वती ने गौओं से इन्द्रिय बल, घोड़ों से वीर्य बल और हवियों से इन्द्र देव तथा याजक के बल, वीर्य एवं वैभव को समृद्ध किया।[यजुर्वेद 20.73]
वीर्य बल :: semen strength, sperm power. Spermatic power is generally refers to the reproductive potential or potency of sperm, encompassing its ability to fertilize an egg and initiate pregnancy.
Both Ashwani Kumars & Devi Saraswati used the might-strength from cows, potency from horses and offerings to Devraj Indr; to increase the strength, potency, grandeur of the Yajak.
ता नासत्या सुपेशसा हिरण्यवर्त्तनी नरा। सरस्वती हविष्मतीन्द्र कर्मसु नोऽवत॥
सुवर्णमय मार्गों पर विचरण करने वाले, सुन्दर, उत्कृष्ट, मनुष्याकृति वाले दोनों अश्विनी कुमार, देवी सरस्वती तथा इन्द्र देव हमारे यज्ञकर्मों में आगमन करके सभी प्रकार से हमें संरक्षण प्रदान करें।[यजुर्वेद 20.74]
Both beautiful, excellent Ashwani Kumars with humans looks, walking over the paths having Gold, Devi Saraswati and Indr Dev should arrive in our Yagy and grant us asylum-protection.(01.08.2025M)
ता भिषजा सुकर्मणा सा सुदुघा सरस्वती। स वृत्रहा शतक्रतुरिन्द्राय दधुरिन्द्रियम्॥
वे श्रेष्ठ कर्म वाले, श्रेष्ठ चिकित्सक दोनों अश्विनी कुमार तथा श्रेष्ठ इच्छाओं का दोहन करने वाली देवी सरस्वती और उस वृत्रासुर का संहार करने वाले बहुकर्मा इन्द्र देव ने यजमानों के निमित्त इन्द्रिय सामर्थ्य को प्रदान कर उन्हें परिपुष्ट किया।[यजुर्वेद 20.75]
परिपुष्ट :: मोटा, स्थूल, सुदृढ़; fortified, fattened, well-fed, fed-up.
Both Ashwani Kumars making excellent endeavours, Devi Saraswati extracting best wishes and slayer of Vratra Sur Indr Dev, granted ability-capability of organs-senses and fortified the Yajmans.
युवꣳ सुराममश्विना नमुचावासुरे सचा। विपिपानाः सरस्वतीन्द्रं कर्मस्वावत॥
हे अश्विनी कुमारों! हे देवी सरस्वती! आप दोनों एक साथ संयुक्त होकर नमुचि नामक राक्षस से महाओषधियों के रस को प्राप्तकर देवराज इन्द्र को अनेकों प्रकार से पान कराते हुए सभी प्रकार से उनकी रक्षा करें।[यजुर्वेद 20.76]
Hey Ashwani Kumars & Devi Saraswati! You should jointly obtain the sap of Ultimate medicines, feed Devraj Indr with them and protect him in all possible manners.
पुत्रमिव पितरावश्विनोभेन्द्रावथुः काव्यैर्दꣳ सनाभिः।
यत्सुरामं व्यपिबः शचीभिः सरस्वती त्वा मघवन्नभिष्णक्॥
हे इन्द्र देव! मन्त्र द्रष्टा ऋषियों की स्तुतियों को श्रवण करके, राक्षसों से युद्ध करके, जब आप विपत्ति ग्रस्त होते हैं, तब दोनों अश्विनी कुमार आपको वैसे ही संरक्षण प्रदान करते हैं, जैसे माता-पिता अपने पुत्र को संरक्षण प्रदान करते हैं। हे वैभव शाली इन्द्रदेव! जब आप अपनी सामर्थ्य द्वारा महाओषधियों के रस का सेवन करते हैं, तब देवी सरस्वती स्तुति रूप में आपकी पूजा करती है।[यजुर्वेद 20.77]
Hey Indr Dev! When you listen to the Stutis of Mantr Drashta Rishis, fight war with the demons and in trouble, then both Ashwani Kumars grant you protection like parents granting support to the son. Hey prosperous Indr Dev having grandeur! When you drink the sap-extract of Ultimate medicines, Devi Saraswati worship you in the form of Stuti.
यस्मिन्नश्वास ऋषाभस उक्षणो वशा मेषा अवसृष्टास आहुताः।
कीलालपे सोमपृष्ठाय वेधसे हृदा मतिं जनय चारुमग्नये॥
हे यजमानो! अन्न के रस का सेवन करने वाले, सोम की आहुति को स्वीकारने वाले, उत्तम मेधा वाले अग्नि देव के निमित्त चित्त तथा बुद्धि को शोधित करो। इससे घोड़े, सेचन में सक्षम बैल, गौ तथा बन्ध्या मेष सुसज्जित होकर उपहार के रूप में प्राप्त होते हैं।[यजुर्वेद 20.78]
Hey Yajmans! Cleanse your mood and intelligence for the sake of Agni Dev who eat food grains, accept offerings, possess excellent intelligence. As a result of it horses, bull capable of insemination, cows and infertile sheep are received as gifts.
अहाव्यग्ने हविरास्ये ते स्रुचीव घृतं चम्वीव सोमः।
वाजसनिꣳ रयिमस्मे सुवीरं प्रशस्तं धेहि यशसं बृहन्तम्॥
हे अग्नि देव! हम आपके मुख (यज्ञाग्नि) में आहुति समर्पित करते हैं, जिस प्रकार सुवा में घी तथा पात्र में सोम स्थित रहता है, उसी प्रकार आप हमें अन्न, पराक्रमी, पुत्रादि, प्रशंसा करने योग्य उत्तम धन तथा सम्पूर्ण भुवनों में कीर्ति में वृद्धि करने वाला वैभव प्रदान करते हुए सौभाग्यशाली बनायें।[यजुर्वेद 20.79]
Hey Agni Dev! We make offerings in your mouth-Yagy. The way Ghee remains in spoon, Som remains unshaken in pot, similarly you should grant food grains, valour, sons etc, appreciable wealth & grandeur increasing our fame in all abodes making us lucky.
अश्विना तेजसा चक्षुः प्राणेन सरस्वती वीर्यम्। वाचेन्द्रो बलेनेन्द्राय दधुरिन्द्रियम्॥
यजमानों के मंगल हेतु दोनों अश्विनी कुमारों ने अपने तेज से चक्षु की ज्योति, देवी सरस्वती ने प्राण के साथ वीर्य एवं इन्द्र देव ने वाणी के सामर्थ्य के साथ इन्द्रिय-शक्ति प्रदान की।[यजुर्वेद 20.80]
For the welfare of the Yajmans, both Ashwani Kumars granted eye sight with their Tej-aura, Devi Saraswati granted Air Vital and potency, Devraj Indr granted the power of speech and capability of sense and functional organs.
गोमदू षु णासत्याश्वावद्यातमश्विना। वर्त्ती रुद्रा नृपाय्यम्॥
सदैव सत्य कर्म करने वाले, अपने रुद्र रूप से दुष्ट दुराचारियों को प्रताड़ित करने वाले हे अश्विनी कुमारों! आप गौओं से परिपूर्ण, अश्वों से सम्पन्न, उत्तम पथों से सोमरस का पान करने वाले हमारे इस सोम यज्ञ में निश्चित रूप से पदार्पण करें।[यजुर्वेद 20.81]
Devoted to truthfulness, torturing the wicked with your Rudr form, hey Ashwani Kumars! Possessor of cows & horses, drinker of Somras through best means, you should join our Som Yagy to be sure.
न यत्परो नान्तर आदधर्षवृषण्वसू। दुःशꣳ सो मर्यो रिपुः॥
हे अश्विनी कुमारो! आप ओषधि रसों की वृष्टि करने वाले हैं। जो व्यक्ति हमारी निन्दा करने वाले, रिपुओं के समान दुष्ट प्रकृति वाले हों, वे हमें कभी भी कष्ट न पहुँचा सकें आप उन्हें विनष्ट कर डालें।[यजुर्वेद 20.82]
Hey Ashwani Kumars! You shower the sap-extract of medicines. Those who condemn-reproach us, possess tendency like the enemy, can harm-trouble us any time, should be destroyed by you.
ता नऽ आ वोढमश्विना रयिं पिशंगसंदृशम्। धिष्ण्या वरिवोविदम्॥
हे अश्विनी कुमारो! आप हम सबके धारक हों। आप दोनों हमारे लिए पीले रंग की सुवर्ण युक्त ऐश्वर्य-सम्पदा और अश्व-गौ आदि पशु धन प्रदान करें।[यजुर्वेद 20.83]
Hey Ashwani Kumars! You are our supporter. Grant us grandeur including yellow coloured wealth i.e., gold, cows & horses, animals etc.
पावका नः सरस्वती वाजेभिर्वाजिनीवती। यज्ञं वष्टु धियावसुः॥
सभी को पवित्र करने वाली, अन्नादि के द्वारा यज्ञ सम्बन्धी उत्तम कर्मों को सम्पादित करने वाली देवी सरस्वती हमारे यज्ञ को धारण करें एवं हमें अभिलषित ऐश्वर्य प्रदान करें।[यजुर्वेद 20.84]
Purifying all, accomplishing Yagy with food grains and excellent deeds Devi Saraswati should support our Yagy and grant desired grandeur.
चोदयित्री सूनृतानां चेतन्ती सुमतीनाम्। यज्ञं दधे सरस्वती॥
श्रेष्ठ तथा प्रिय वचनों के द्वारा सत्य मार्ग की ओर प्रेरित करने वाली, दुर्बुद्धि को हटा करके सद्बुद्धि को जाग्रत् करने वाली देवी सरस्वती हमारे यज्ञ को धारण करती हैं।[यजुर्वेद 20.85]
Devi Saraswati guide-inspire us with excellent and sweet words to truthfulness, remove wicked-viciousness of mind, awake virtuousness-righteousness and support our Yagy.
महो अर्णः सरस्वती प्र चेतयति केतुना। धियो विश्वा वि राजति॥
विस्तीर्ण अन्तरिक्ष से दिव्य रसों की वृष्टि द्वारा, सत्कर्म की ओर प्रेरित करने वाली देवी सरस्वती समस्त जनों की बुद्धियों को जाग्रत् करती हैं।[यजुर्वेद 20.86]
Devi Saraswati shower divine saps from the vast sky, inspire to perform pious deeds and awake the intelligence of all humans.
इन्द्रा याहि चित्रभानो सुता इमे त्वायवः। अण्वीभिस्तना पूतासः॥
हे दिव्य तेज से युक्त इन्द्र देव! आपकी अभिलाषा करते हुए, हमने अपनी अँगुलियों से निचोड़कर पावन सोमरस आपके निमित्त तैयार किया है। आप हमारे इस यज्ञ-स्थल में आगमन करें।[यजुर्वेद 20.87]
Accompanied with divine aua-radiance, hey Indr Dev! We have squeezed Somras with our fingers with the desire to invoke you. Come to our Yagy site.
इन्द्रा याहि धियेषितो विप्रजूतः सुतावतः। उप ब्रह्माणि वाघतः॥
हे देवराज इन्द्र! अपनी अन्तरात्मा से प्रेरित होकर हमारे इस यज्ञ-स्थल में पधारें। आपकी आराधना करने वाले ऋत्विज, सोम को शुद्ध तथा अभिषुत करने वाले हैं, अतः आप निकट आकर इन हवियों को ग्रहण करें।[यजुर्वेद 20.88]
Hey Devraj Indr! Inspired by your innerself come to our Yagy site. Your worshiper Ritviz are ready to extract pure Somras for you. Come near us and have the offerings.
इन्द्रा याहि तूतुजान उप ब्रह्माणि हरिवः। सुते दधिष्व नश्चनः॥
हरि संज्ञक अश्वों पर आरूढ़ हे इन्द्र देव! आप इस यज्ञ में शीघ्रतापूर्वक ऋत्विजों के निकट पधारें। सोम के अभिषुत होने के पश्चात् हमारे द्वारा हवियों को स्वीकार करके परितृप्त हों।[यजुर्वेद 20.89]
Hey Indr Dev riding the greenish horses! Come to the Yagy quickly. After the extraction and consumption of Somras, accept our offerings and be satisfied.(01.08.2025E)
अश्विना पिबतां मधु सरस्वत्या सजोषसा। इन्द्रः सुत्रामा वृत्रहा जुषन्ताꣳ सोम्यं मधु॥
हे अश्विनी कुमारों! देवी सरस्वती के साथ समान चित्त वाले होकर आप दोनों मधुर सोम रस का सेवन करें तथा श्रेष्ठ संरक्षक, वृत्रा सुर संहारक इन्द्र देव भी इस मधुर सोमरस का पान करें।[यजुर्वेद 20.90]
Hey Ashwani Kumars! You should have the same mood-psyche like Devi Saraswati and drink Somras. Best protector and pattern slayer of Vratra Sur Indr Dev should also drink this sweet Somras.
यजुर्वेद संहिता अथैकविंशोsध्याय :: ऋषि :- शुनःशेप, वामदेव, गयस्फान, गयप्लात, विश्वामित्र. वसिष्ठ, स्व, आत्रेय, स्वस्त्यात्रेय; देवता :- वरुण, अग्नि और वरुण, आदित्य, अदिति, स्वर्या नौ, मित्रावरुण, अग्नि, ऋत्विज, विद्वांस, विश्वेदेवा, रुद्र, इन्द्र, अग्न्यश्वीन्द्रसरस्वत्याद्या लिंगोक्ता, अश्व्यादयो लिंगोक्ता, अव्यादय, सरस्वत्यादय, होत्रादय, यजमानर्विज, अग्न्यादय लिंगोक्ता; छन्द :- गायत्री, त्रिष्टुप्, पंक्ति, अनुष्टुप्, बृहती, अष्टि, धृति, कृति, उष्णिक्, जगती, शक्वरो।
इमं मे वरुण श्रुधी हवमद्या च मृडय। त्वामवस्युराचके॥
हे वरुण देव! आप हमारे द्वारा की जाने वाली स्तुतियों को श्रवण करके हर्षित हों, हमको सभी प्रकार के सुख प्रदान करें। हम अपनी सुरक्षा के लिए आपको बुलाते हैं।[यजुर्वेद 21.1]
Hey Varun Dev! Be happy with our prayers-Stutis and grant us pleasure-comforts. We invoke you for our safety.
तत्त्वा यामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदा शास्ते यजमानो हविर्भिः।
अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुशꣳस मा न आयुः प्र मोषीः॥
हे वरुण देव! जो याजक ऋचाओं द्वारा आपकी आराधना करते हैं एवं हवियाँ अर्पित करते हैं, उन याजकों पर आप प्रसन्न होकर उन्हें सुखी बनायें। हे अनेकों द्वारा प्रशंसनीय तथा पूजनीय वरुण देव! आप हम पर क्रोधित न हों तथा हमें दीर्घायु प्रदान करें।[यजुर्वेद 21.2]
Hey Varun Dev! Be happy with us and grant comforts-pleasure to those Yajak who worship & pray you, making offerings. Hey Varun Dev deserving prayers & worship in various ways! Do not be angry with us and grant us long age.
त्वं नो अग्ने वरुणस्य विद्वान् देवस्य हेडो अव यासिसीष्ठाः।
यजिष्ठो वह्नितमः शोशुचानो विश्वाꣳ द्वेषा सि प्र मुमुग्ध्यस्मत्॥
हे अग्ने! आप सर्वज्ञाता, तेजस्वी, आराध्य तथा अत्यन्त हवि-वाहक हैं। आप हमारे निमित्त वरुण देवता के क्रोध को दूर करें तथा हमारे सम्पूर्ण पापों को हमसे दूर करें।[यजुर्वेद 21.3]
Hey Agne! Aurous-radiant and carrier of oblations-offerings, you know every thing, Remove the anger of Varun over us and repel away all our sins.
स त्वं नो अग्नेऽवमो भवोती नेदिष्ठो अस्या उषसो व्युष्टौ।
अव यक्ष्व नो वरुणꣳ रराणो वीहि मृडीकꣳ सुहवो न एधि॥
हे अग्ने ! इस उषा काल में अपनी रक्षाकारी सामर्थों के साथ हमारे अत्यन्त समीप आकर हमें संरक्षण प्रदान करें। हम जो हवियाँ समर्पित करते हैं, उन्हें वरुण देवता तक पहुँचाकर उन्हें परितृप्त करें। हे अग्नि देव! आप सदैव आहवनीय हैं, अतः आप स्वयं भी हमारे द्वारा समर्पित की जाने वाली सुखदायी हवियों को भक्षण करें।[यजुर्वेद 21.4]
Hey Agne! Come close to us with protection means in the morning at dawn and grant us protection. Carry the offerings to Varun Dev and satisfy him. Hey Agni Dev! You deserve to be invoked always, therefore, you should consume our gladdening offerings.
महीमू षु मातरꣳ सुव्रतानामृतस्य पत्नीमवसे हुवेम।
तुविक्षत्रामजरसन्तीमुरूचीꣳ सुशर्माणमदितिꣳ सुप्रणीतिम्॥
हम उन देवमाता अदिति को अपनी रक्षा के निमित्त बुलाते हैं, जो महान् यशवाली, उत्कृष्ट कर्मों की जननी, सत्यरूप यज्ञ की पालिका, विभिन्न प्रकार के आघातों से बचानेवाली, अजर, सतत सन्मार्ग गामिनी तथा नीति मती हैं।[यजुर्वेद 21.5]
सुत्रामाणं पृथिवीं द्यामनेहसꣳ सुशर्माणमदितिथं सुप्रणीतिम्।
दैवीं नावꣳ स्वरित्रामनागसमस्त्रवन्तीमा रुहेमा स्वस्तये॥
भली प्रकार से रक्षा करने वाली, पर्याप्त विस्तार वाली, अत्यन्त विशाल, सुख दायी, उत्तम आश्रय प्रदान करने वाली, दोष रहित, श्रेष्ठ पतवार वाली, छिद्र रहित नौका वाली, मृत्यु के भय से रक्षा करने वाली, दिव्य तथा अखण्डित इस यज्ञ रूपी नौका को प्राप्त कर हम उस पर आरूढ़ हों, जिससे हमारा मंगल हो।[यजुर्वेद 21.6]
We should ride the boat in the form of Yagy which protect us in best possible manner, has sufficient length, very large, comfortable, grants asylum, has best rudder, excellent, free from hole, protect from the fear of death, divine and unbroken.
सुनावमा रुहेयमस्त्रवन्तीमनागसम्। शतारित्राꣳ स्वस्तये॥
बिना छेद वाली, दोष रहित, सौ पतवार वाली, जिसकी रचना में कोई दोष न हो, ऐसी रमणीय यज्ञ रूपी नौका को संसार रूपी समुद्र से पार करने के लिए प्राप्त कर हम अपने मंगल की कामना से उस पर आरूढ़ हों अर्थात् यज्ञ-सम्बन्धी सिद्धान्तों पर आरूढ़ हों।[यजुर्वेद 21.7]
Let ride the boat which has no hole, is free from defect, has hundred rudders, its structure is free from defects, such boat in the form of Yagy can help us swim-tide over the ocean in the form of world, with the desire of our benediction-well being.
आ नो मित्रावरुणा घृतैर्गव्यूतिमुक्षतम्। मध्वा रजाꣳ सि सुक्रतू॥
हे उत्तम कर्मा मित्रा-वरुण! आप यज्ञ कर्म के सम्पादन हेतु हमें प्रचुर मात्रा में घृत प्रदान करें तथा खेतों को अमृत के समान मधुर जल से अभिषिक्त करें। जिसके फलस्वरूप हमें वहाँ से यज्ञकर्म के लिए उत्तम ओषधियाँ, अन्न, समिधादि उपलब्ध हो।[यजुर्वेद 21.8]
Hey Mitra-Varun! Grant us Ghee in sufficient quantity for accomplishment of Yagy and irrigate our field with sweet water. As a result of it best medicines, food grains and Samidha-wood should be availble to us for Yagy Karm.
प्र बाहवा सिसृतं जीवसे न आ नो गव्यूतिमुक्षतं घृतेन।
आ मा जने श्रवयतं युवाना श्रुतं मे मित्रावरुणा हवेमा॥
हे मित्रा-वरुण देवताओ! आप हमारी अभ्यर्थनाओं से प्रसन्न होकर अपनी बाहुओं को फैलाकर (आशीर्वाद देकर) हमें दीर्घायु प्रदान करें। हमारे खेतों को वर्षा जल से सिंचित करें। हमें प्रचुर मात्रा में घी, दूध देने वाली गायों से सम्पन्न करें तथा हमें इस लोक में विख्यात करें।[यजुर्वेद 21.9]
Hey Mitra-Varun, deities! You should be happy with our prayers and grant us long life by extending your arms. Irrigate our fields. Grant us cows which can yield in sufficient quantity of milk & Ghee making us famous in this world.
शन्नो भवन्तु वाजिनो हवेषु देवदाता मितद्रवः स्वर्काः।
जम्भयन्तोऽहिं वृकꣳ रक्षाꣳसि सनेम्यस्मद्युयवन्नमीवाः॥
हे मित्रा-वरुण देवताओ! आप साँप भेड़िये तथा आसुरी प्रवृत्ति के प्राणियों को विनष्ट करते हुए हमारी व्याधियों को विनष्टकर हमें सनातन सुख-शान्ति प्रदान करें। अन्न हमें शान्ति प्रदान करने वाला हो।[यजुर्वेद 21.10]
Hey Mitra-Varun, deities! Destroy the snakes, wolfs and the living beings with demonic tendencies and our ailments-troubles; granting us eternal peace (solace-tranquillity). Food grain should grant us peace.
वाजे वाजेऽवत वाजिनो नो धनेषु विप्रा अमृता ऋतज्ञाः।
अस्य मध्वः पिबत मादयध्वं तृप्ता यात पथिभिर्देवयानैः॥
दीर्घ जीवी, सत्य रूप यज्ञ के ज्ञाता, मेधावी तथा पराक्रमी हे मित्रा-वरुण देवो! आप प्रत्येक संग्राम तथा धन प्राप्त करने के कार्यों में हमारी सुरक्षा करें। इस मधु रस का सेवन करके हर्षित तथा परितृप्त होकर आप लोग देवपथ से गमन करें।[यजुर्वेद 21.11]
Long lived, performing truthful Yagy, intelligent and chivalric, hey Mitra-Varun! You should protect us in each war and in our endeavours for earning wealth-money. Drink this honey, sweet sap, become happy, satisfied and move over the divine path.
समिद्धो अग्निः समिधा सुसमिद्धो वरेण्यः। गायत्री छन्द इन्द्रियं त्र्यविर्गीर्वयो दधुः॥
अग्नि प्रदीप्त हुआ। वरणीय वह समिधा के द्वारा पूर्णतया प्रदीप्त हुआ। गायत्री छन्द एवं डेढ़ साल की गाय ने इन्द्र में बल और आयु को धारित किया।[यजुर्वेद 21.12]
Fire is blazing. Samidha has fully illuminated. Gayatri Chhand and one and a half year old cow has supported the strength and longevity of Indr Dev.
तनूनपाच्छुचिव्रतस्तनूपाश्च सरस्वती। उष्णिहा छन्द इन्द्रियं दित्यवाङ् गौर्वयो दधुः॥
शुद्ध कर्म वाले, शरीर को नश्वरता से बचाने वाले अग्नि देव! रक्षा करने वाली वाणी, सरस्वती, उष्णिक् छन्द तथा दिव्य हवि को धारण करने वाली गौ हर्षित होकर हमें शक्ति तथा आयु प्रदान करे।[यजुर्वेद 21.13]
Performing pure deeds, protecting the body from death, hey Agni Dev! Protecting voice-Saraswati, Ushnik Chhand and supporting divine offerings, cow should gladden and grant us strength and longevity.
इडाभिरग्निरीड्यः सोमो देवो अमर्त्यः। अनुष्टुप् छन्द इन्द्रियं पञ्चाविगौर्वयो दधुः॥
प्रयाज देवताओं के साथ स्तुत्य अग्नि, अमरण धर्मा एवं द्योतमान सोम, अनुष्टुप् छन्द और ढाई वर्ष की गाय ने इन्द्र में बल एवं आयुष्य को धारित किया।[यजुर्वेद 21.14]
Worship able Agni with Prayaj demigods, immortal and luminary Som, Anushtap Chhand and cow aged two and a half year should support strength and longevity in Indr Dev.
सुबर्हिरग्निः पूषण्वान्त्स्तीर्णबर्हिरमर्त्यः। बृहती छन्द इन्द्रियं त्रिवत्सो गौर्वयो दधुः॥
पूषा के साथ शुभ दर्भासन पर विराजमान अग्नि देव, मर्त्य भिन्न स्तीर्णबर्हि प्रयाज देवता, बृहती छन्द और तीन वर्ष की गाय ने इन्द्र में बल एवं आयुष्य को धारित किया।[यजुर्वेद 21.15]
Agni Dev occupying Darbhasan with Pusha, Marty differentiated Steernbarhi Prayaj demigods and three year old cow should support strength and longevity in Indr Dev.
दुरो देवीर्दिशो महीर्ब्रह्मा देवो बृहस्पतिः। पंक्तिश्छन्द इहेन्द्रियं तुर्यवाड् गौर्वयो दधुः॥
प्रकाशमान् बड़े द्वार (प्रयाज देवता), महती दिशाएँ, बृहस्पति, ब्रह्मा देवता, पंक्ति छन्द तथा चार वर्ष के वृषभ ने इन्द्र में बल एवं आयु को प्रदान किया।[यजुर्वेद 21.16]
Illuminated large door (Prayaj demigods), Mahti-great directions, Brahaspati, Brahm Dev, Pankti Chhand and four year old bull supported strength and longevity in Indr Dev.
उषे यह्वी सुपेशसा विश्वेदेवा अमर्त्याः। त्रिष्टुप् छन्द इहेन्द्रियं पष्ठवाड् गौर्वयो दधुः॥
महान्, उत्कृष्ट स्वरूप वाली उषा और रात्रि, अमरण धर्मा विश्वे देव, त्रिष्टुप् छन्द एवं पीठ पर भार वहन करने में सक्षम वृषभ ने इन्द्र में बल एवं आयु को प्रदान किया।[यजुर्वेद 21.17]
Great, with excellent form Usha and night, immortal Vishwe Dev, Trishtup Chhand and the bull capable of holding weights over its back, supported strength and longevity in Indr Dev.
दैव्या होतारा भिषजेन्द्रेण सयुजा युजा। जगती छन्द इन्द्रियमनड्वान् गौर्वयो दधुः॥
दिव्य हवियों को स्वीकार करने वाले, देवराज इन्द्र के साथ सुसंगत, वैद्यरूप अग्नि देव तथा वायु देव, जगती छन्द एवं पूर्णवय वाले वृषभ ने इन्द्र में बल एवं आयु को प्रदान किया।[यजुर्वेद 21.18]
सुसंगत :: संसक्त, स्पष्ट, बद्ध, क्रम बद्ध, तर्क संगत, सिलसिलेवार, तर्कसंगत, क्रमबद्ध, तर्कयुक्त, परंपरा संबंधी; consistent, coherent, sequential, sequent.
Agni Dev as physician-doctor, accepting offerings, accompanying Indr Dev, Vayu Dev, Jagti Chhand and bull with complete life span support-consistent strength and longevity in Indr Dev.(04.08.2025)
तिस्त्र इडा सरस्वती भारती मरुतो विशः। विराट् छन्द इहेन्द्रियं धेनुर्गोर्न वयो दधुः॥
इडा, सरस्वती तथा भारती ये तीनों देवियाँ, मरुद्गण, विराट् छन्द तथा दुग्ध प्रदान करने वाली गौ ने इन्द्र में बल एवं आयु को प्रदान किया।[यजुर्वेद 21.19]
Ida, Saraswati and Bharti, the three Devis, Marud Gan, Virat Chhand and milk yielding cow granted strength & longevity to Indr.
त्वष्टा तुरीपो अद्भुत इन्द्राग्नी पुष्टिवर्धना। द्विपदा छन्द इन्द्रियमुक्षा गौर्न वयो दधुः॥
द्रुतगामी, दिव्य गुणों से सम्पन्न, कर्मशील स्वभाव वाले त्वष्टा देवता, तुष्टि तथा पुष्टि की वृद्धि करने वाले इन्द्र देव तथा अग्नि देव, द्विपदा छन्द तथा सेचन में सक्षम वृषभ ने इन्द्र में बल एवं आयु को प्रदान किया।[यजुर्वेद 21.20]
Fast moving, possessing divine characters, effort making Twasta Dev, Tushti & Pushti, strength increasing Indr Dev, Agni Dev, Dwipada Chhand and bull capable of impregnation granted strength and longevity to Indr.
शमिता नो वनस्पतिः सविता प्रसुवन् भगम्। ककुप्छन्द इहेन्द्रियं वशा वेहद्वयो दधुः॥
हमको सुख प्रदान करने वाली वनस्पति तथा धन-सम्पदा के प्रेरक सविता देव, ककुप् छन्द तथा स्व अनुशासन (संतुलन) में रहने वाली गौ ने इन्द्र में बल एवं आयु को प्रदान किया।[यजुर्वेद 21.21]
Vegetation granting comforts & pleasure, inspirer of wealth Savita Dev, Kakup Chhand and cow having self discipline granted strength & longevity to Indr.
स्वाहा यज्ञं वरुणः सुक्षत्रो भेषजं करत्। अतिच्छन्दा इन्द्रियं बृहदृषभो गौर्वयो दधुः॥
श्रेष्ठ प्रकार दुःखों से भली प्रकार रक्षा करने वाले वरुण देवता, उत्तम पदार्थों एवं ओषधियों द्वारा किये गये यज्ञ से हर्षित हुए देवेन्द्र, अति छन्द एवं महान् वृषभ ने इन्द्र में बल एवं आयु को प्रदान किया।[यजुर्वेद 21.22]
Varun Dev who thoroughly protect from sorrow-pain in best possible manner, Devendra who gladdened due to the best materials-offerings and medicines in the Yagy, Ati Chhand and the great bull granted strength and longevity to Indr.
वसन्तेन ऋतुना देवा वसवस्त्रिवृता स्तुताः। रथन्तरेण तेजसा हविरिन्द्रे वयो दधुः॥
त्रिवृत् स्तोम तथा रथन्तर स्तोम द्वारा स्तुति को प्राप्त हुए वसु-देवता अर्थात् सबके संरक्षक तथा सम्पूर्ण देवता वसन्त ऋतु के द्वारा, तेजस्वी हवि तथा दीर्घायु को देवराज इन्द्र में प्रतिष्ठित करते हैं।[यजुर्वेद 21.23]
Vasu Demigod who was worshiped with Trivrat Stom and Rathantar Stom i.e., protector of all and Sumpurn demigod through spring season established with aurous-radiant offerings and longevity in Devraj Indr.
ग्रीष्मेणऋतुना देवा रुद्राः पञ्चदशे स्तुताः। बृहता यशसा बलꣳ हविरिन्द्रे वयो दधुः॥
रुद्र देवता, जिनकी पञ्चदश स्तोम तथा बृहत् छन्दों से स्तुति की गयी है, वे ग्रीष्म ऋतु के द्वारा कीर्तिमान, बल शाली हवि तथा दीर्घायु को इन्द्र देव में प्रतिष्ठित करते हैं।[यजुर्वेद 21.24]
Rudr Dev who was worshiped with Panchdash Stom and Brahat Chhand establish record (Ultimate) through summer season & powerful offerings and longevity in Indr Dev.
वर्षाभिर्ऋतुनादित्याः स्तोमे सप्तदशे स्तुताः। वैरूपेण विशौजसा हविरिन्द्रे वयो दधुः॥
जिनकी स्तुति सप्तदश स्तोम तथा द्वैरूप छन्द द्वारा की गयी है, वे आदित्य देवता वर्षा ऋतु के द्वारा इन्द्र देव में ओज युक्त हवि तथा आयुष्य को प्रतिष्ठित करते हैं।[यजुर्वेद 21.25]
He who is worshiped with Saptdash Stom & Dwaerup Chhand, Adity Dev establish aurous offerings and longevity in Indr Dev through rainy season.
शारदेन ऋतुना देवा एकविꣳश ऋभवः स्तुताः।
वैराजेन श्रिया श्रियꣳ हविरिन्द्रे वयो दधुः॥
जिनकी स्तुति एकविंश स्तोम तथा वैराज छन्द द्वारा की गयी है, वे लक्ष्मी (ऐश्वर्य) सहित ऋभु नामक देव शरद् ऋतु के द्वारा कान्ति युक्त हवि तथा आयुष्य इन्द्र देव में प्रतिष्ठित करते हैं।[यजुर्वेद 21.26]
He who is worshiped through Ekvinsh Stom & Vaeraj Chhand, Lakshmi-grandeur and Ribhu Dev establish aurous offerings and longevity in Indr Dev, through winter season.
हेमन्तेन ऋतुना देवास्त्रिणवे मरुतः स्तुताः। बलेन शक्वरीः सहो हविरिन्द्रे वयो दधुः॥
जिनकी स्तुति त्रिणव स्तोम तथा शक्वरी छन्द द्वारा की गयी है, वे मरुत् देवता, हेमन्त ऋतु के माध्यम से बलयुक्त हवि तथा आयु इन्द्र देव में प्रतिष्ठित करते हैं।[यजुर्वेद 21.27]
He who is worshiped with Trinav Stom and Shakkri Chand, Marut Dev, establish powerful offerings and longevity in Indr Dev, through Hemant season.
शैशिरेण ऋतुना देवास्त्रयस्त्रिꣳ शेऽमृताः स्तुताः।
सत्येन रेवतीः क्षत्रꣳ हविरिन्द्रे वयो दधुः॥
जिनकी स्तुति त्रयस्त्रिंश स्तोम तथा रैवत पृष्ठ छन्द द्वारा की गयी है, वे अमृत नामक देवतागण, शिशिर ऋतु के माध्यम से देवराज इन्द्र में सत्य युक्त, क्षात्र बल युक्त हवि तथा आयु को प्रतिष्ठित करते हैं।[यजुर्वेद 21.28]
He who is worshiped with Traystirinsh Stom and Raewat Prashth Chhand, demigod named Amrat establish truthful ness, Kshatr Bal possessing offerings and longevity in Indr Dev through Shishir season.
होता यक्षत्समिधाग्निमिडस्पदेऽश्विनेन्द्रꣳ सरस्वतीमजो धूम्रो न गोधूमैः कुवलैर्भेषजं मधुशष्यैर्न तेजꣳ इन्द्रियं पयः सोमः परिस्रुता घृतं मधु व्यन्त्वाज्यस्य होतर्यज॥
दिव्य यजमान द्वारा समिधाओं के माध्यम से प्रज्वलित आहवनीय अग्नि देव में, अश्विनी कुमारों, इन्द्र देव तथा देवी सरस्वती के लिए किये जाने वाले यज्ञ से पोषणकारी अन्न, मधुरता युक्त ओषधि, कान्ति तथा शक्ति प्रद दूध, सोम, घी आदि सभी को उपलब्ध हो। हे होता! इस प्रकार के पावन उद्देश्य की पूर्ति के निमित्त आप भी यज्ञ सम्पन्न करें, जिससे सबका मंगल हो।[यजुर्वेद 21.29]
Let nourishing food grains, sweetened medicines, aura and strength giving milk, Som, Ghee etc should be provided by the divine Yajman through Samidha in ignited fire-Agni Dev, in the Yagy for Ashwani Kumars, Indr Dev and Devi Saraswati. Hey Hota! For the sake of pious aim-goal you too perform Yagy so that every one is benefitted.
होता यक्षत्तनूनपात्सरस्वतीमविर्मेषो न भेषजं पथा मधुमता भरन्नश्विनेन्द्राय वीर्यꣳ बदरैरुपवाकाभिर्भेषजं तोक्मभिः पयः सोमः परिस्रुता घृतं मधु व्यन्त्वाज्यस्य होतर्यज॥
दिव्य यजमान द्वारा शरीर की रक्षा करने वाले देवता, दोनों अश्विनी कुमारों तथा सरस्वती देवी एवं देवराज इन्द्र के लिए बेर, इन्द्र जौ, ब्रीहि, अज, मेष आदि हविष्य से किये जाने वाले यज्ञ से शरीर को पोषण देने वाली ओषधि अर्थात् रोग रहित करने वाली ओषधि, परिस्रुत दुग्ध, सोम, मधु तथा घृत को सब ग्रहण करें। हे होता! ऐसे पवित्र उद्देश्य के निमित्त आप भी यज्ञ सम्पन्न करें, जिससे सबका कल्याण हो।[यजुर्वेद 21.30]
परिस्रुत :: टपकना, जो चू या टपक रहा हो, स्रावयुक्त, टपकाया हुआ, निचोड़ा हुआ या जिसमें से जल का अंश अलग कर लिया गया हो के अर्थ में भी प्रयोग होता है, जैसे कि परिस्रुत दुग्ध-दही; dripping.
For the sake of the demigods Ashwani Kumars, Devi Saraswati and Devraj Indr by whom the body of the divine Yajman is protected; offerings such as Indr Jou-barley, Aj, Mesh-medicine etc in the Yagy, nourishing-curing medicines, dripping milk, Som, honey and Ghee are accepted. Hey Hota! For such pious aim-goal you too perform Yagy so that welfare of everyone is ensured.
होता यक्षन्नराशꣳ सं न नग्नहुं पतिꣳ सुरया भेषजं मेषः सरस्वती भिषग्रथो न चन्द्रयश्विनोर्वपा इन्द्रस्य वीर्य बदरैरुपवाकाभिर्भेषजं तोक्मभिः पयः सोमः परिस्रुता घृतं मधु व्यन्त्वाज्यस्य होतर्यज॥
दिव्य याजकों ने मनुष्यों द्वारा स्तवनीय, पुष्टि कारक ओषधियों आदि से यज्ञ किया। यज्ञ से पोषित ओषधियों का रस, बेर, इन्द्र जौ, अंकुरित ब्रीहि, तथा मेष (ओषधि) ऐसे गुण सम्पन्न हो गये, जैसे स्वर्णमय रथ वाले अश्विनी कुमारों ने तथा देवी सरस्वती ने देवराज इन्द्र के निमित्त वीर्यप्रद ओषधि को कल्पित किया हो। वे देवतागण परिस्रुत दुग्ध, सोम, शहद, औषधि एवं घृत का सेवन करें। हे होता! आप भी श्रेष्ठ आहुतियों द्वारा ऐसा ही यज्ञ करें।[यजुर्वेद 21.31]
Divine Yajak accomplished the Yagy with nourishing medicines-herbs, which are worshiped by the humans. The extract of the medicines-herbs (Jadi-Buti) nourished by the Yagy, Ber-Jujube, Indr Jou, sprouted Breehi and Mesh-medicine possessed such qualities as if Ashwani Kumars riding golden charoite, Devi Saraswati proposed medicine boosting potential of Devraj Indr. Let these demigods consume the extracted milk, Som, honey, medicines and Ghee. Hey Hota! You too perform such Yagy with the best offerings.(05.08.2025)
होता यक्षदिडेडित आजुह्वानः सरस्वतीमिन्द्रं बलेन वर्धयन्नृषभेण गवेन्द्रियमश्विनेन्द्राय भेषजं यवैः कर्कन्धुभिर्मधु लाजैर्न मासरं पयः सोमः परिस्रुता घृतं मधु व्यन्त्वाज्यस्य होतर्यज॥
दिव्य होता ने प्रशंसित होकर स्तुति द्वारा इडादि को आहूत किया। बलशाली दुग्ध प्रदान करने वाली गौ के (शक्ति में वृद्धि करने वाले दूध के) द्वारा बल बढ़ाते हुए देवी सरस्वती, देवराज इन्द्र तथा दोनों अश्विनी कुमारों के लिए जौ, बेर, लाजा (खील, roasted rice) तथा इन्द्र देव को शक्ति प्रदान करने वाली ओषधि आदि हव्य से यज्ञ किया। वे सभी देवतागण परिस्रुत दूध, सोम, शहद तथा घी का सेवन करें। हे होता! आप भी ऐसा ही यज्ञ सम्पन्न करें, जिससे सबका मंगल हो।[यजुर्वेद 21.32]
Divine Hota on being praised, invoked Devi Ida (Saraswati & Bharti) etc. Yagy was conducted with milk of cow which increases strength, for Devi Saraswati, Devraj Indr and Ashwani Kumars duo with jujube, Laja and medicinal herbs for the sake of granting strength to Indr Dev. Let all demigods-deities consume extracted milk, Som, honey and Ghee. Hey Hota! You too conduct Yagy with such pious motive, leading to well being-welfare of all.
होता यक्षद् बर्हिरूर्णम्प्रदा भिषड्नासत्या भिषजाश्विनाश्वा शिशुमती भिषग्धेनुः सरस्वती भिषग्दुह इन्द्राय भेषजं पयः सोमः परिस्रुता घृतं मधु व्यन्त्वाज्यस्य होतर्यज॥
याजक ने ऊन के सदृश मृदुबर्हि (कुश-आहूत देवताओं के लिए विराजमान होने के आसन) को देवता चिकित्सक अश्विनी कुमारों तथा देवी सरस्वती के लिए समर्पित किया। शिशु वाली घोड़ी तथा बछड़े वाली गाय के उपचारक ने देवराज इन्द्र के निमित्त ओषधि का दोहन किया। उस यज्ञ में सब देवता परिस्रुत दुग्ध, सोम, शहद तथा घी का सेवन करें। हे होता! ऐसे पवित्र उद्देश्य के निमित्त आप भी यज्ञ सम्पन्न करें, जिससे सबका कल्याण हो।[यजुर्वेद 21.33]
उपचारक :: उपचार करने वाला, नर्स; healer.
Yajak offered cushion like the wool Mradubarhi (cushion-Matt made of Kush for the demigods) to physician of demigods-deities Ashwani Kumars and Devi Saraswati. Healer of the Mare and cows having calf milked medicines. Let all demigods-deities consume milk extract, Som, honey and Ghee. Hey Hota! You too conduct Yagy with such pious motive, leading to well being-welfare of all.
होता यक्षहुरो दिशः कवष्यो न व्यचस्वतीरश्विभ्यां न दुरो दिश इन्द्रो न रोदसी दुघे दुहे धेनुः सरस्वत्यश्विनेन्द्राय भेषजꣳ शुक्रं न ज्योतिरिन्द्रियं पयः सोमः परिस्नुता घृतं मधु व्यन्त्वाज्यस्य होतर्यज॥
दिव्य यजमानों ने दिशाओं के सदृश द्वार रूप इन्द्र देव, देवी सरस्वती तथा अश्विनी कुमारों के लिए यज्ञ किया। यज्ञ के द्वारा दोनों अश्विनी कुमारों के साथ विस्तारित होने वाली पृथ्वी तथा नभ ने ओषधि तथा देवी सरस्वती ने दुधारू गौ होकर देवराज इन्द्र के निमित्त अलौकिक तेज तथा शक्ति प्रदान किया। इस यज्ञ में समस्त देवतागण परिस्रुत दुग्ध, सोम, शहद तथा घी का सेवन करें। हे होता! आप भी श्रेष्ठ आहुति द्वारा ऐसा ही यज्ञ सम्पन्न करें, जिससे सबका मंगल हो।[यजुर्वेद 21.34]
Divine Yajman conducted Yagy for Indr Dev, Devi Saraswati and Ashwani Kumars who are like the doors to the directions. By virtue of Yagy the earth extending with Ashwani Kumars and the sky yielded medicines, Devi Saraswati became a cow and granted divine radiance and strength to Indr Dev. Let all demigods-deities consume milk extract, Som, honey and Ghee. Hey Hota! You too conduct Yagy with such pious motive, leading to well being-welfare of all.
होता यक्षत्सुपेशसोषे नक्तं दिवाश्विना समञ्जाते सरस्वत्या त्विषिमिन्द्रे न भेषजꣳश्येनो न रजसा हृदा श्रिया न मासरं पयः सोमः परिस्रुता घृतं मधु व्यन्त्वाज्यस्य होतर्यज॥
देवगणों के यजमान ने श्रेष्ठ रूप वाले दिन-रात्रि, अश्विनी कुमारों तथा सरस्वती देवी को प्रसन्न करने के निमित्त यजन किया। उस यज्ञ द्वारा दिन-रात में विद्यमान ज्योति ने मन को एवं श्री के साथ मासर (माँड़), ओषधि तथा श्येन पत्र ने तेज को इन्द्र देव में प्रतिष्ठित किया। इस यज्ञ में सब देवतागण परिस्रुत दुग्ध, सोम, शहद तथा घी का पान करें। हे होता! आप भी इसी प्रकार का यज्ञ करें।[यजुर्वेद 21.35]
The Yajman of demigods-deities gladdened the day & night, Ashwani Kumars and Devi Saraswati. By virtue of that Yagy brilliance of the day & night, the innerself in addition to Shri with the water of cooked rice, medicines and Shyen Patr established in Indr Dev. Let all demigods-deities consume milk extract, Som, honey and Ghee. Hey Hota! You too conduct Yagy with such pious motive, leading to well being-welfare of all.
होता यक्षदैव्या होतारा भिषजाश्विनेन्द्रं न जागृवि दिवा नक्तं न भेषजैः शूषꣳ सरस्वती भिषक् सीसेन दुह इन्द्रियं पयः सोमः परिस्रुता घृतं मधु व्यन्त्वाज्यस्य होतर्यज॥
देवों के यजमान ने दिव्य होताओं, देव चिकित्सक दोनों अश्विनी कुमारों एवं देवराज इन्द्र के निमित्त यजन किया। उस यज्ञ में दिन-रात्रि अपने कर्म में संलग्न सुयोग्य चिकित्सक देवी सरस्वती ने ओषधियों तथा सीसा (धातु विशेष) से शक्ति तथा पराक्रम का दोहन किया अर्थात् शक्तिवर्धक एवं पराक्रम वर्धक ओषधि योग का निर्माण किया। इस यज्ञ में सब देवता गण परिस्रुत दुग्ध, सोम, शहद तथा घी का सेवन करें। हे होता! आप भी इसी प्रकार का यज्ञ सम्पन्न करें।[यजुर्वेद 21.36]
Yajman of the demigods performed Yagy for the sake of divine Hotas, divine physician Ashwani Kumars and Devraj Indr. In this Yagy busy with her routine Karm skilled physicians Devi Saraswati extracted medicines and Lead-a metal, medicine for boosting strength and valour-might. Let all demigods-deities consume milk extract, Som, honey and Ghee. Hey Hota! You too conduct Yagy with such pious motive, leading to well being-welfare of all.
होता यक्षत्तिस्त्रो देवीर्न भेषजं त्रयस्त्रिधातवोऽपसो रूपमिन्द्रे हिरण्ययमश्विनेडा न भारती वाचा सरस्वती मह इन्द्राय दुह इन्द्रियं पयः सोमः परिस्रुता घृतं मधु व्यन्त्वाज्यस्य होतर्यज॥
दिव्य होता ने इडा, भारती, सरस्वती-तीन देवियों, इन्द्र देव तथा अश्विनी कुमारों के लिये कर्म वाले, त्रिगुणात्मक तीन पशु, तीन रूप वाली वाणी से यज्ञ किया। ज्योतिर्मय स्वरूप वाली महत्त्वपूर्ण ओषधियों से देवी सरस्वती ने देवराज इन्द्र के निमित्त महान् बल का दोहन किया। उस यज्ञ में सभी रसों से युक्त, दुग्ध, सोम, शहद तथा घी का सब देवतागण पान करें। हे होता! आप भी इसी प्रकार का यज्ञ सम्पन्न करें।[यजुर्वेद 21.37]
The divine Hota conducted Yagy for the three Devis viz Ida, Bharti & Saraswati, Devraj Indr and Ashwani Kumars involving efforts, three animals with three characterises and voice having three forms. Devi Saraswati extracted great power for Devraj Indr from important medicinal herbs. Let all demigods-deities consume milk extract, Som, honey and Ghee. Hey Hota! You too conduct Yagy with such pious motive, leading to well being-welfare of all.
होता यक्षत्सुरेतसमृषभं नर्यापसं त्वष्टारमिन्द्रिमश्विना भिषजं न सरस्वतीमोजो न जूतिरिन्द्रियं वृको न रभसो भिषग् यशः सुरया भेषजꣳश्रिया न मासरं पयः सोमः परिस्रुता घृतं मधु व्यन्त्वाज्यस्य होतर्यज॥
देवों के यजमानों ने पराक्रमी, श्रेष्ठ वीर्यवान्, सुन्दर वृष्टि रूप वर्षक तथा हितैषी त्वष्टारूप प्रयाज देवता, इन्द्र देव, अश्विनी कुमारों तथा देवी सरस्वती को (तीनों शरीरों के) उपचार के उद्देश्य से प्रसन्न करने हेतु यज्ञ किया। उद्यमी चिकित्सक ने वृक, सुरा एवं मासर (माँड़) ओषधि के रस से वैभवशाली यज्ञ किया, जिसके फल स्वरूप इन्द्र देव को तेज, वेग, बल एवं कीर्ति की प्राप्ति हुई। इस यज्ञ में सम्पूर्ण देवतागण परिस्रुत दूध, सोम, शहद तथा घृत का सेवन करें। हे होता! आप भी श्रेष्ठ आहुति द्वारा ऐसा ही यज्ञ सम्पन्न करें, जिससे सबका कल्याण हों।[यजुर्वेद 21.38]
Yajman of the demigods conducted Yagy for gladdening mighty possessors of excellent potential, beautiful rain showering & looking to well being, Prayaj like Twasta, Indr Dev, Ashwani Kumars and Devi Saraswati to treat the three forms of the body (acquired by the soul). Devoted physician conducted sumptuous Yagy resulting in the grant of aura, dynamism, strength and fame to Indr Dev. Let all demigods-deities consume milk extract, Som, honey and Ghee. Hey Hota! You too conduct Yagy with such pious motive, leading to well being-welfare of all.
होता यक्षद्वनस्पतिथं शमितार शतक्रतुं भीमं न मन्युधं राजानं व्याघ्घ्रं नमसाश्विना भामधं सरस्वती भिषगिन्द्राय दुह इन्द्रियं पयः सोमः परिस्रुता घृतं मधु व्यन्त्वाज्यस्य होतर्यज॥
देवताओं के यजमान ने वनस्पति को पवित्र करनेवाले, शतकर्मा, विकराल, क्रोधयुक्त व्याघ्र के समान राजा इन्द्र, अश्विनीकुमारों तथा देवी सरस्वती के निमित्त अन्न के द्वारा यज्ञ किया। तत्पश्चात् चिकित्सिका सरस्वती ने देवराज इन्द्र के निमित्त मन्यु (क्रोध) तथा बल को दुहा। इस यज्ञ में सम्पूर्ण देवतागण परिस्रुत दुग्ध, सोम, शहद तथा घृत का सेवन करें। हे होता! आप भी आज्याहुति द्वारा इसी प्रकार का यज्ञ सम्पन्न करें, जिससे सबका कल्याण हो।[यजुर्वेद 21.39]
होता यक्षदग्नि स्वाहाज्यस्य स्तोकाना स्वाहा मेदसां पृथक् स्वाहा छागमश्विभ्या स्वाहा मेष सरस्वत्यै स्वाहा ऋषभमिन्द्राय सिहाय सहसइन्द्रिय स्वाहाग्निं न भेषजथं स्वाहा सोममिन्द्रिय स्वाहेन्द्रथं सुत्रामाण सवितारं वरुणं भिषजां पति स्वाहा वनस्पतिं प्रियं पाथो न भेषजथं स्वाहा देवा आज्यपा जुषाणोग्निर्भेषजं पयः सोमः परिस्रुता घृतं मधु व्यन्त्वाज्यस्य होतर्यज॥
दिव्य होता ने अग्निदेव के निमित्त यज्ञ किया तथा घृत की बूँदों को उत्कृष्ट कहा गया। दोनों अश्विनीकुमारों के निमित्त छाग तथा देवी सरस्वती के निमित्तं मेष को उत्तम कहा गया है। सिंह के समान बलशाली इन्द्रदेव के निमित्त ऋषभ को श्रेष्ठ कहा गया है। श्रेष्ठ संरक्षक सवितादेव तथा भिषक्श्रेष्ठ वरुणदेव के निमित्त बलकारी पुरोडाशरूप सोम की हवि प्रदान की। वनस्पति के निमित्त अन्न के सदृश प्रिय ओषधि के द्वारा आहुति प्रदान की। घृत का सेवन करनेवाले अग्निदेव ओषधि का भक्षण करते हुए सम्पूर्ण देवों सहित परिस्रुत दूध, सोम, शहद तथा घृत का सेवन करें। हे होता! आप भी ऐसा ही पवित्र यज्ञ करें।[यजुर्वेद 21.40](07.08.2025)
होता यक्षदश्विनौ, छागस्य वपाया मेदसो जुषेताꣳ हविर्होतर्यज। होता यक्षत्सरस्वतीं मेषस्य वपाया मेदसो जुषताꣳ हविर्होतर्यज। होता यक्षदिन्द्रमृषभस्य वपाया मेदसो जुषताꣳ हविर्होतर्यज॥
दिव्य होता ने दोनों अश्विनी कुमारों के निमित्त बीज बढ़ाने वाली क्रिया से प्राप्त छाग (नामक औषधि) के वसा भाग से पावन यज्ञ किया। हे होता! आप भी उसी प्रकार का यज्ञ करें। दिव्य होता ने देवी सरस्वती को प्रसन्न करने के निमित्त, बीज बढ़ाने वाली क्रिया द्वारा प्राप्त मेष (ओषधि) के वसा युक्त भाग से यज्ञ किया। हे होता! आप भी उसी प्रकार का पावन यज्ञ करें। देवों के याजकों ने देवराज इन्द्र को प्रसन्न करने के निमित्त, बीज बढ़ाने वाली क्रिया से प्राप्त ऋषभ (नामक ओषधि) के वसा वाले भाग से पावन यज्ञ किया। हे होता! आप भी उसी प्रकार का यज्ञ करें।[यजुर्वेद 21.41]
Divine Hota performed pious Yagy for the Ashwani Kumars using the fat segment of the medicine named Chhag, which increase the seeds. Hey Hota! You too conduct such Yagy. Divine Hota conducted Yagy with fat of the medicine which increase the seeds (sperms) to please Devi Saraswati. Hey Hota! You should perform such Yagy for yourself. The Yajak of the demigods-deities accomplished Yagy to please Devraj Indr for increasing seeds using the fat of medicine called Rishabh. Hey Hota! You should also hold such Yagy.
होता यक्षदश्विनौ सरस्वतीमिन्द्रꣳ सुत्रामाणमिमे सोमाः सुरामाणश्छागैर्न मेषैर्ऋषभैः सुताः शष्यैर्न तोक्मभिर्लाजैर्महस्वन्तो मदा मासरेण परिष्कृताः शुक्राः पयस्वन्तोऽमृताः प्रस्थिता वो मधुश्चतस्तानश्विना सरस्वतीन्द्रः। सुत्रामा वृत्रहा जुषन्ताꣳ सोम्यं मधु पिबन्तु मदन्तु व्यन्तु होतर्यज॥
दिव्य होता ने दोनों अश्विनी कुमारों, देवी सरस्वती तथा उत्तम प्रकार के संरक्षक वैभवशाली इन्द्र देव के लिये इस सुन्दर छाग, मेष तथा ऋषभ (नामक औषधियों) द्वारा यज्ञ किया। हे अध्वर्युगण! तृण, अन्न, जौ, खीलें, तेजस्वी, प्रसन्न करने वाले, परिपक्व चावलों आदि से शोभायमान, दूध, तेज युक्त, अमृत के समान मधु से उपलब्ध सोम आप सबके निमित्त प्रस्तुत किये गये हैं। दोनों अश्विनी कुमारों, देवी सरस्वती तथा श्रेष्ठ संरक्षक वृत्रासुर संहारक इन्द्र देव आदि देवता गण इस सोमरस का पान तब तक करें जब तक परितृप्त न हो जायें। हे होता! आप भी ऐसा ही पवित्र यज्ञ सम्पन्न करें।[यजुर्वेद 21.42]
The divine Hota accomplished Yagy for both Ashwani Kumars, Devi Saraswati and the best protector Indr Dev with the medicines named Chhag, Mesh and Rishabh. Hey priest! Present straw, food grains, Barley, Laja, which are brightened, gladdening, mature rice, milk, honey and Som comparable to elixir for all. Both Ashwani Kumars, Devi Saraswati and the best protector, slayer of Vratra Sur Devraj Indr should drink Somras till they are content-satisfied. Hey Hota! You should also accomplish such Yagy for yourself.
होता यक्षदश्विनौ छागस्य हविष आत्तामद्य मध्यतो मेद उद्धृतं पुरा द्वेषोभ्यः पुरा पौरुषेय्या गृभो घस्तां नूनं घासे अज्राणां यवसप्रथमानाꣳ सुमत्क्षराणाꣳ शतरुद्रियाणामग्निष्वात्तानां पीवो पवसनानां पार्श्वतः श्रोणितः शितामत उत्सादतोऽङ्गादंगादवत्तानां करतएवाश्विना जुषेताꣳ हविर्होतयंज॥
देवताओं के याजक ने दोनों अश्विनी कुमारों के निमित्त आज छाग (ओषधि) के मध्य से प्राप्त किये गये चिकने भाग (वसा) की आहुतियों से यज्ञ किया। विद्वेष करने वाले राक्षसों के आने के पूर्व ही, जिन्हें अन्न-भक्षण करने का अधिकार है, ऐसे (देवता) पुरुषार्थ से निःसन्देह पहले ग्रहण करें, जो अग्नि देव द्वारा श्रेष्ठ विधि से सुपाचित होकर सैकड़ों गुना प्राणों के स्वरूप में उत्पन्न हों, पार्श्व, कटि, गुह्य अंग तथा जिनको हानि हो सके, ऐसे प्रत्येक मर्म अंग के प्राण अंशों को परिपुष्ट कर रक्षित करें। यह सब दोनों अश्विनी कुमार ही संचालित करें। हे होता! आप भी आहुति द्वारा इसी प्रकार का यज्ञ करें।[यजुर्वेद 21.43]
Yajak of the demigods-deities used the fat obtained from the medicine Chhag for both Ashwani Kumars and accomplished Yagy. Prior to the arrival of the demons the demigods-deities who has the right to eat food grains, should accept it with their effort and are digestible by Agni Dev with best methods, should hundred times of its volume, like the Air Vital and protect the sensitive-vital organs like side, waist secret organs like anus, pennies, genitals, which can be harmed. This should be governed by Ashwani Kumars. Hey Hota! You too should organise such Yagy.
होता यक्षत् सरस्वतीं मेषस्य हविष आवयदद्य मध्यतो मेद उद्धृतं पुरा द्वेषोभ्यः पुरा पौरुषेय्या गृभो घसन्नूनं घासे अज्राणां यवसप्रथमानाꣳ सुमत्क्षराणाꣳ शतरुद्रियाणामग्निष्वात्तानां पीवोपवसनानां पार्श्वतः श्रोणितः शितामतउत्सादतोऽङ्गादंगादवत्तानां करदेवꣳ सरस्वती जुषताꣳ हविहोंतर्यज॥
दिव्य याजक ने देवी सरस्वती को प्रसन्न करने के निमित्त मेष रूप ओषधि के बीच से लिये गये चिकने भाग की आहुतियों से यजन किया। द्वेष रखने वाले दुष्टों के पहले ही जिन्हें अन्न ग्रहण करने का अधिकार है, ऐसे (देवता) पुरुषार्थ के बल पर निःसन्देह ही पहले अन्न ग्रहण करें, जो अग्नि देव द्वारा श्रेष्ठ विधि से सुपाचित (वायुभूत) होकर सैकड़ों गुना प्राणों के स्वरूप में प्रकट हों। पार्श्व, कटि, गुह्य अंग तथा जिनको हानि हो सके, ऐसे प्रत्येक मर्म अंग के प्राण-अंशों को परिपुष्ट कर रक्षित करें। यह सब देवी सरस्वती ही संचालित करें। हे होता! आप भी आहुति द्वारा ऐसा ही यज्ञ सम्पन्न करें।[यजुर्वेद 21.44]
Divine Yajak performed Yagy with the fatty middle segment of the medicine named Mesh to please Devi Saraswati. Those who has right to accept food grains should accept food prior to the wicked who are envious with them. It should turn out hundred times in the form of Air Vital on being digested in best manner and protect the sensitive-vital organs like side, waist secret organs like anus, pennies, genitals, which can be harmed. Hey Hota! You too should organise such Yagy.(10.08.2025N)
होता यक्षदिन्द्रमृषभस्य हविष आवयदद्य मध्यतो मेद उद्धृतं पुरा द्वेषोभ्यः पुरा पौरुषेय्या गृभो घसन्नूनं घासे अज्राणां यवसप्रथमानाꣳ सुमत्क्षराणाꣳ शतरुद्रियाणामग्निष्वात्तानां पीवोपवसनानां पार्श्वतः श्रोणितः शितामत उत्सादतोऽङ्गादंगादवत्तानां करदेवमिन्द्रोजुबताꣳ हविर्होतर्यज॥
देवताओं के याजक ने देवराज इन्द्र के लिए ऋषभ नामक ओषधि के बीच से लिये गये चिकने भाग (वसा) की आहुतियों द्वारा यज्ञ किया। द्वेष रखने वाले दुष्टों के पहले ही जिन्हें अन्न ग्रहण करने का अधिकार है, ऐसे (देवता) पुरुषार्थ से निःसन्देह ही पहले अन्न ग्रहण करें, जो अग्निदेव द्वारा श्रेष्ठ विधि से सुपाचित होकर (वायुभूत होकर) सैकड़ों गुना प्राणों के स्वरूप में प्रकट हो। पार्श्व, कटि, गुह्यांग तथा जिनको हानि न हो सके, ऐसे मर्म अंगों के प्राण-अंशों को परिपुष्ट कर सुरक्षित करें। यह सब देवराज इन्द्र ही संचालित करें। हे होता! आप भी हवि से ऐसा ही यज्ञ करें।[यजुर्वेद 21.45]
Yajak of demigods-deities accomplished Yagy with the fat obtained from the medicine called Rishabh. The demigods-deities who are authorised to accept meals prior to the envious wicked, no doubt they should accept food grains which should be digested by Agni Dev in best possible manner and reveal as hundred times Air Vital and protect the sensitive-vital organs like side, waist, secret organs like anus, pennies, genitals, which can be harmed. Devraj Indr should accomplish this all. Hey Hota! You too should organise such Yagy.
होता यक्षद्वनस्पतिमभि हि पिष्टतमया रभिष्ठया रशनयाधित। यत्राश्विनोश्छागस्य हविषः प्रिया धामानि यत्र सरस्वत्या मेषस्य हविषः प्रिया धामानि यत्रेन्द्रस्य ऋषभस्य हविषः प्रिया धामानि यत्राग्नेः प्रिया धामानि यत्र सोमस्य प्रिया धामानि यत्रेन्द्रस्य सुत्राम्णः प्रिया धामानि यत्र सवितुः प्रिया धामानि यत्र वरुणस्य प्रिया धामानि यत्र वनस्पतेः प्रियाꣳ पाथा सि यत्र देवानामाज्यपानां प्रिया धामानि यत्राग्नेर्हेतुः प्रिया धामानि तत्रैतान् प्रस्तुत्येवोपस्तुत्येवोपावस्त्रक्षद्रभीयस इव कृत्वी करदेवं देवो वनस्पतिर्जुषता हविर्हेतर्यज॥
यजमान ने वनस्पति देव के लिए यज्ञ किया, जिससे वनस्पतियाँ भी अपने स्थानों में वैसे ही अचल हो जायें, जिस प्रकार रज्जु से बँधा हुआ पशु अपने स्थान पर अविचल रहत्ता है। जहाँ दोनों अश्विनी कुमारों की प्रिय हवि मेषरूप ओषधि का एवं इन्द्र देव की प्रिय हवि ऋषभ रूप ओषधि का स्थिर स्थान है। जहाँ अग्निदेव का, सोमदेव का, श्रेष्ठ संरक्षक इन्द्र देव का, सर्वप्रेरक सविता देव का, वरुण देव का, घी का सेवन करने वाले देवों का प्रिय धाम है, जहाँ वनस्पति अर्थात् वृक्षादि की सुरक्षा की जाती है, वहाँ उस धाम से देवतागण श्रेष्ठ आहुति का भक्षण करते हैं। हे होता! आप भी ऐसा ही पवित्र यज्ञ करें।[यजुर्वेद 21.46]
Yajman carried out the Yagy for Vanaspati Dev to establish the vegetation like the animal tied with the cord at one place, where the offerings as Mesh medicine, dear to Ashwani Kumars and Rishabh medicine dear to Devraj Indr are fixed. Which constitutes the dear abode of Agni Dev, Som Dev, protector Indr Dev, all inspiring Savita Dev, Varun Dev and those who use Ghee i.e., where vegetation etc are protected, the demigods-deities should accept the offerings there. Hey Hota! You too accomplish such a pious Yagy.
होता यक्षदग्निꣳ स्विष्टकृतमयाडग्निरश्विनोश्छागस्य हविषः प्रिया धामान्ययाट् सरस्वत्या मेषस्य हविषः प्रिया धामान्ययाडिन्द्रस्यऽ ऋषभस्य हविषः प्रिया धामान्ययाडग्नेः प्रिया धामान्ययाट् सोमस्य प्रिया धामान्ययाडिन्द्रस्य सुत्राम्णः प्रिया धामान्ययाट् सवितुः प्रिया धामान्ययाड् वरुणस्य प्रिया धामान्ययाड् वनस्पतेः प्रिया पाथाꣳ स्ययाड् देवानामाज्यपानां प्रिया धामानि यक्षदग्नेर्हेतुः प्रिया धामानि यक्षत् स्वं महिमानमायजतामेज्या इषः कृणोतु सो अध्वरा जातवेदा जुषताꣳ हविर्होतर्यज॥
दिव्य होता ने अग्नि देव के लिए यज्ञ किया। अग्नि देव ने अश्विनी कुमारों की प्रिय हवि छाग के धामों को, सरस्वती देवी की प्रिय हवि मेषरूप ओषधि के धामों को, इन्द्र देव की प्रिय हवि ऋषभ रूप ओषधि के धामों को, सर्वप्रेरक सविता देव के, वरुण देव के, वनस्पति देव के, घृत का सेवन करने वाले देवों के, होता अग्नि देव के प्रिय धामों को अर्पित किया। वे सर्वज्ञाता अग्निदेव, अपनी प्रिय हवि को ग्रहणकर श्रेष्ठ अभिलाषा करनेवाली प्रजा का सब प्रकार कल्याण करें। हे होता! आप भी इसी प्रकार का यज्ञ सम्पन्न करें।[यजुर्वेद 21.47]
Divine Hota accomplished Yagy for Agni Dev. Agni Dev offered to Chhag dear abode to Ashwani Kumars, offerings of medicine as Mesh dear to Devi Saraswati, to the abodes of the medicine called Rishabh dear to Indr Dev, all inspiring Savita Dev, Varun Dev, Vanaspati Dev, consumers of Ghee to the abodes dear to Agni Dev. Hey Hota! You should also conduct such auspicious Yagy.
देवं बर्हिः सरस्वती सुदेवमिन्द्रे अश्विना। तेजो न चक्षुरक्ष्योर्बर्हिषा दधुरिन्द्रियं वसुवने वसुधेयस्य व्यन्तु यज॥
देवी सरस्वती. ने देवराज इन्द्र के निमित्त कुशासन प्रदान किया। अश्विनी कुमारों ने देवराज इन्द्र में तेज की स्थापना की एवं उनकी चक्षु इन्द्रियों में दृष्टि को प्रतिष्ठित किया। ऐश्वर्य के अधिपति ये इन्द्रादि देवता गण हव्य का पान करें। ऐश्वर्य प्राप्ति की अभिलाषा करने वाले यजमान यज्ञ करें।[यजुर्वेद 21.48]
Devi Saraswati offered Kushashan for Devraj Indr. Ashwani Kumars established Tej (energy, aura, might) and eyes in Indr Dev. Lord of grandeur Indr & other demigods-deities should consume offerings. Yajman desirous of grandeur should accomplish Yagy.
देवीर्द्वारो अश्विना भिषजेन्द्रे सरस्वती। प्राणं च वीर्य नसि द्वारो दधुरिन्द्रियं वसुवने वसुधेयस्य व्यन्तु यज॥
यज्ञशाला की जो द्वार देवियाँ हैं, उन द्वार देवियों के साथ वैद्य अश्विनी कुमारों तथा सरस्वती ने इन्द्र में बल धारित किया। इन्द्र की नासिका में उन्होंने घ्राणेन्द्रिय तथा प्राण को निहित किया। इन्होंने धन लाभ के लिये और इन्द्र में धन धरने के लिये उसमें शक्ति धारित की। वे इन्द्रादि हवि का भक्षण करें। हे होता! यजन करो।[यजुर्वेद 21.49]
Ashwani Kumars and Devi Saraswati including Devis of the gates of Yagy Shala established strength-might in Devraj Indr. They established the senses of smell in the nose of Indr Dev and Air Vital. For the sake of wealth and enriching Indr Dev with wealth established might in him. Indr Dev and other demigods deities should eat the offerings. Hey Hota! conduct Yagy.
देवी उषासावश्विना सुत्रामेन्द्रे सरस्वती। बलं न वाचमास्य उषाभ्यां दधुरिन्द्रियं वसुवने वसुधेयस्य व्यन्तु यज॥
उषा-रात्रि अनुयाज देवियाँ हैं। उन उषा-रात्रि के साथ दोनों अश्विनी कुमारों तथा सुरक्षिका सरस्वती ने इन्द्र में बल को धारित किया। उन्होने उषा-रात्रि के साथ इन्द्र के मुख में वागिन्द्रिय को निहित किया। उन्होंने इन्द्र में धन लाभ और धन रखने के निमित्त बल निहित किया। वे इन्द्रादि हवि का भक्षण करें। हे होता! आहुति डालो।[यजुर्वेद 21.50]
Usha and Ratri are Anuyaj Devis who complete the Yagy. Usha, Ratri, both Ashwani Kumars and protractor Saraswati Devi established strength in Indr Dev. Together with Usha & Ratri they established the organ of voice-speech in Indr Dev. They induced might in Indr Dev to hold wealth. Indr etc should eat the offerings. Hey Hota! Make sacrifices.(10.08.2025)
देवी जोष्टी सरस्वत्यश्विनेन्द्रमवर्धयन्। श्रोत्रं न कर्णयोर्यशो जोष्ट्रीभ्यां दधुरिन्द्रियं वसुवने वसुधेयस्य व्यन्तु यज॥
द्यावा और पृथ्वी प्रेरणा देने वाली दो देवियाँ हैं। उन द्यावा पृथ्वी के साथ दोनों अश्विनी कुमारों और सरस्वती ने इन्द्र को अभिवर्धित किया। उनके साथ उन्होंने इन्द्र के कान में श्रोत्रेन्द्रिय तथा यश को धारण कराया। उन्होंने इन्द्र में धन लाभ और धन धारण कराने के लिये बल निहित किया। वे इन्द्रादि हवि का भक्षण करें। हे होता! आहुति डालो।[यजुर्वेद 21.51]
Heavens & earth constitute the two inspiring Goddesses. Along with heavens, earth, both Ashwani Kumars and Devi Saraswati grew Indr Dev. They established hearing organ-senses and glory in the ears of Indr Dev. They constituted the power to hold wealth and maintain it. Let Indr and other demigods-deities eat the offerings. Hey Hota! Make sacrifices.
देवी ऊर्जाहुती दुघे सुदुघेन्द्रे सरस्वत्यश्विना भिषजावतः। शुक्रं न ज्योतिस्तनयोराहुती धत्त इन्द्रियं वसुवने वसुधेयस्य व्यन्तु यज॥
शक्ति और आहुति दो देवियाँ हैं। वे दोनों दुघा (कामना परक) और सुदुघा हैं। उनके साथ दोनों अश्विनी कुमार और सरस्वती इन्द्र की रक्षा करते हैं। वे सब इन्द्र में तेज और उनके हृदय में वीर्य-बल धारित करते हैं। उन्होंने इन्द्र में धन लाभ और धन धारण कराने के लिये बल निहित किया। वे इन्द्रादि हवि का भक्षण करें। हे होता! आहुति डालो।[यजुर्वेद 21.52]
सुदुघा :: अच्छा और बहुत दूध देने वाली, जो सहज में दूही जाती हो। (गौ, बकरी, भैंस आदि). which yield, grant-provide lot of milk and are milked easily.
Shakti & Ahuti are two goddesses. They accomplish desires. Both Ashwani Kumars and Devi Saraswati protect Indr Dev. They constituted the power-strength to hold wealth and maintain it. Let Indr and other demigods-deities eat the offerings. Hey Hota! Make sacrifices.
देवा देवानां भिषजा होताराविन्द्रमश्विना। वषट्कारैः सरस्वती त्विषिं न हृदये मतिꣳ होतृभ्यां दधुरिन्द्रियं वसुवने वसुधेयस्य व्यन्तु यज॥
देवताओं के याजक, उत्तम देव, अश्विनी कुमारों तथा देवी सरस्वती ने देवराज इन्द्र में वषट्कार पूर्वक कान्ति तथा हृदय में बुद्धि को प्रतिष्ठित किया। ऐश्वर्याधिपति ये इन्द्रादि देवतागण हव्यपान करें। उन्होंने इन्द्र में धन लाभ और धन धारण कराने के लिये बल निहित किया। वे इन्द्रादि हवि का भक्षण करें। हे होता! आहुति डालो।[यजुर्वेद 21.53]
Yajak of demigods-deities, Uttam Dev, Ashwani Kumars and Devi Saraswati established intelligence in Devraj Indr through Vashatkar in the glory and heart. Let the Lord of grandeur Indr & others drink offerings-oblations. They constituted the power-strength to hold wealth and maintain it. Let Indr and other demigods-deities eat the offerings. Hey Hota! Make sacrifices.
देवीस्तिस्त्रस्तिस्त्रो देवीरश्विनेडा सरस्वती। शूषं न मध्ये नाभ्यामिन्द्राय दधुरिन्द्रियं वसुवने वसुधेयस्य व्यन्तु यज॥
इडा, भारती, सरस्वती तीनों देवियों के साथ अश्विनी कुमारों ने देवराज इन्द्र की नाभि के बीच के भाग में बल की स्थापना की। जिस प्रकार इन देवताओं ने इन्द्र को समृद्ध किया, वैसे ही हे होता गण! आप भी अपने यजमान को समृद्ध कीजिये। हे होता! आहुति डालो।[यजुर्वेद 21.54]
Three goddesses Ida, Bharti and Saraswati along with Ashwani Kumars constituted-established strength in the center of navel of Indr Dev. Hey Hota, the way these deities enriched Indr Dev, you too should prosper your Yajman. Hey Hota! Make sacrifices.
देव इन्द्रो नराशꣳ सस्त्रिवरूथः सरस्वत्याश्विभ्यामीयते रथः। रेतो न रूपममृतं जनित्रमिन्द्राय त्वष्टा दधदिन्द्रियाणि वसुवने वसुधेयस्य व्यन्तु यज॥
वैभवशाली त्वष्टा देव, सरस्वती देवी तथा दोनों अश्विनी कुमारों ने देवराज इन्द्र के निमित्त सभी लोगों द्वारा प्रशंसनीय तीन गृहवाला रथ (यज्ञ) प्रस्तुत किया। उस माध्यम से उनको उत्पन्न करने में सक्षम इन्द्रिय में अमृत के समान रेतस् प्रतिष्ठित किया। ऐश्वर्याधिपति ये इन्द्रादि देवता गण हव्यपान करें। ऐश्वर्य प्राप्ति की अभिलाषा करने वाले याजक यजन करें। हे होता! आहुति डालो।[यजुर्वेद 21.55]
Twasta Dev possessing grandeur, Devi Saraswati and Ashwani Kumar duo presented the charoite (Yagy) with three segments-compartments. They established potential (sperms) like elixir through that medium in the sense organs. Lord of grandeur-opulence Indr Dev and other demigods drink the offerings. Yajak desirable of grandeur should perform Yagy-Hawan. Hey Hota! Make sacrifices.
देवो देवैर्वनस्पतिर्हिरण्यपर्णो अश्विभ्याꣳ सरस्वत्या सुपिप्पल इन्द्राय पच्यते मधु।
ओजो न जूतिऋषभो न भामं वनस्पतिर्नो दधदिन्द्रियाणि वसुवने वसुधेयस्य व्यन्तु यज॥
सुवर्ण पत्र युक्त तथा श्रेष्ठ फलों के अधिपति वनस्पति देव, दोनों अश्विनी कुमारों तथा सरस्वती देवी ने देवराज इन्द्र को मधुर फल, तेज, सीमित क्रोध प्रदानकर उनकी इन्द्रियों में गति तथा सामर्थ्य को प्रतिष्ठित किया। ऐश्वर्याधिपति ये इन्द्रादि देवतागण हव्यपान करें। ऐश्वर्य-प्राप्ति की अभिलाषा करने वाले याजक यजन करें। हे होता! आहुति डालो।[यजुर्वेद 21.56]
Lord of vegetation having golden leaves and excellent fruits, both Ashwani Kumars and Devi Saraswati granted-offered sweet fruits, Tej, limited anger to Indr Dev and established motion and capability in his organs-senses. let the Lords of opulence-grandeur Devraj Indr & demigods drink offerings. Yajak desirable of grandeur should perform Yagy-Hawan. Hey Hota! Make sacrifices.
देवं बर्हिर्वारितीनामध्वरे स्तीर्णमश्विभ्यामूर्णम्प्रदाः सरस्वत्या स्योनमिन्द्र ते सदः।
ईशायै मन्युꣳ राजानं बर्हिषा दधुरिन्द्रियं वसुवने वसुधेयस्य व्यन्तु यज॥
सुखद सभा (यज्ञशाला) में देवी सरस्वती तथा दोनों अश्विनी कुमारों ने जल में प्रकट होने वाली कुशा से विनिर्मित आसन देवराज इन्द्र के लिए प्रदान किया तथा उनके ऐश्वर्य एवं मन्यु से सुशोभित किया। ऐश्वर्य प्राप्ति की अभिलाषा करने वाले यजमान यजन करें। हे होता! आहुति डालो।[यजुर्वेद 21.57]
मन्यु :: कर्म, शोक, याग, कोप, क्रोध, गुस्सा, जुनून; passion, efforts, endeavours, grief, Yagy, anger.
In the comfortable assembly-Yagy Shala, Devi Saraswati and Ashwani Kumars offered the matt made out of the Kush grown in water and established him with grandeur, anger and passion. Yajak desirable of grandeur should perform Yagy-Hawan. Hey Hota! Make sacrifices.
देवो अग्निः स्विष्टकृद्देवान्यक्षद्यथायथꣳ होताराविन्द्रमश्विना वाचा वाचꣳ सरस्वतीमग्निꣳ सोमꣳ स्विष्टकृत् स्विष्टइन्द्रः सुत्रामा सविता वरुणो भिषगिष्टो देवो वनस्पतिः स्विष्टा देवा आज्यपाः स्विष्टो अग्निरग्निना होता होत्रे स्विष्टकृद्यशो न दधदिन्द्रियमूर्जमपचितिꣳ स्वधां वसुवने वसुधेयस्य व्यन्तु यज॥
श्रेष्ठ यज्ञ कर्म वाले, दिव्य अग्नि देव, मित्रा-वरुण देव, अश्विनी कुमारों, देवी सरस्वती देवराज इन्द्र, सर्वप्रेरक सविता देव, वरुण देव, वनस्पति देवता तथा घृत को भक्षण करने वाले अन्य देवता गणों ने स्विष्टकृत् होम से अग्नि देव द्वारा हवि को ग्रहण किया। यज्ञ द्वारा हर्षित हुए देवगणों ने यजमानों को कीर्ति, इन्द्रिय-बल, अन्न, धन-सम्पदा आदि प्रदान किया। ऐश्वर्याधिपति ये इन्द्रादि देवतागण हव्यपान करें। ऐश्वर्य की आकांक्षा रखनेवाले यजमान यजन करें। हे होता! आहुति डालो।[यजुर्वेद 21.58]
Performers of excellent deeds, divine Agni Dev, Mitr-Varun Dev, Ashwani Kumars, Devi Saraswati, all inspiring Savita Dev, Varun Dev, Vanaspati Dev and the other demigods-deities who drink Ghee; accepted the offerings through Swishtkrat Home from Agni Dev. Demigods gladdened with Yagy granted glory-fame, might, food grains, wealth-prosperity to the Yajak. Let Lord of opulence & grandeur Devraj Indr and other demigods-deities drink offerings. Yajak desirable of grandeur should perform Yagy-Hawan. Hey Hota! Make sacrifices.
अग्निमद्य होतारमवृणीतायं यजमानः पचन् पक्तीः पचन् पुरोडाशान् बघ्नन्नश्विभ्यां छागꣳ सरस्वत्यै मेषमिन्द्राय ऋषभꣳ सुन्वन्नश्विभ्याꣳ सरस्वत्या इन्द्राय सुत्राम्णे सुरासोमान्॥
आज पुरोडाश को पक्व करने के निमित्त याजक ने अग्नि देव का पूजन किया तथा अश्विनी कुमारों के निमित्त छागरूप ओषधि द्वारा, देवी सरस्वती के निमित्त मेषरूप ओषधि द्वारा एवं देवराज इन्द्र के निमित्त ऋषभरूप ओषधि द्वारा पुरोडाशों को परिपक्व किया। अश्विनी कुमारों तथा देवी सरस्वती ने देवराज इन्द्र के निमित्त महाओषधियों का तीक्ष्ण रस तथा सोमरस प्रदान किया।[यजुर्वेद 21.59]
For cooking Purodas Yajak worshiped Agni Dev, for Ashwani Kumars medicine in the form of Chhag, for Devi Saraswati medicine in the form of Mesh and for Indr Dev medicine in the form of Rishabh were used to back Purodas. Ashwani Kumars and Devi Saraswati extracted the sharp pungent sap of Ultimate medicines and Somras for Indr Dev.
सूपस्था अद्य देवो वनस्पतिरभवदश्विभ्यां छागेन सरस्वत्यै मेषेणेन्द्राय ऋषभेणाक्षैस्तान् मेदस्तः प्रतिपचतागृभीषतावीवृधन्त पुरोडाशैरपुरश्विना सरस्वतीन्द्रः सुत्रामा सुरासोमान्॥
यज्ञ स्थान में वनस्पति देव ने प्रकट होकर छागरूप ओषधि द्वारा अश्विनी कुमारों को, मेष ओषधि द्वारा देवी सरस्वती को एवं ऋषभ रूप ओषधि द्वारा देवराज इन्द्र को हर्षित किया। तृप्त हुए देवराज इन्द्र ने दोनों अश्विनी कुमारों तथा सरस्वती देवी के साथ महाओषधियों का तीक्ष्ण रस तथा सोमरस प्रदान किया।[यजुर्वेद 21.60]
Vanaspati Dev invoked at the Yagy site and gladdened Ashwani Kumars with medicine named Chhag, Devi Saraswati with the medicine called Mesh, Devraj Indr with medicine termed Rishabh. Ashwani Kumars and Devi Saraswati awarded the pungent extract of Ultimate medicines and Somras to Devraj Indr.
त्वामद्य ऋष आर्षेय ऋषीणां नपादवृणीतायं यजमानो बहुभ्य आ सङ्गतेभ्य एष मे देवेषु वसु वार्यायक्ष्यत इति ता या देवा देव दानान्यदुस्तान्यस्मा आ च शास्स्वा च गुरस्वेषितश्च होतरसि भद्रवाच्याय प्रेषितो मानुषः सूक्तवाकाय सूक्ता ब्रूहि॥
ऋषि प्रणीत मार्ग पर स्थिर यजमान ने यज्ञ स्थल में उपस्थित विविध देवता गणों में से धन-सम्पदा प्रदान करने वाले देवों का पूजन किया तथा ऐश्वर्य प्राप्ति के लिए उनका यजन किया। इन देवगणों ने यजमान को दिव्य दान दिया। हे होता! आप भी इन मंगलकारी सूत्रों का, सबके हितार्थ गान करें।[यजुर्वेद 21.61]
प्रणीत :: प्रस्तुत, प्रस्तावित, पवित्र, अनुष्ठानिक; established, created, offered.
Yajman present over the path established by the Rishis, worshiped the various demigods who granted wealth and grandeur, present over the Yagy site. These demigods awarded divine donations-gifts to the Yajman. Hey Hota! You too should sing the glory of these auspicious Strotr-Mantr for the well being-welfare of everyone.(11.08.2025)
तेजोऽसि शुक्रममृतमायुष्पा आयुर्मे पाहि। देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्यामाददे॥
अध्वर्यु यजमान के गले में सोने का हार पहनाते हुए बोले, हे तेजः स्वरूप सुवर्ण (निष्क)! आप अग्नि देव से सम्बन्धित होने के कारण तेजस्वी, वीर्यरूप, शक्ति रूप, अमृत स्वरूप और आयु की रक्षा करने वाले हैं। अतएव आप हमारी आयु की भी रक्षा करें। अध्वर्यु अश्व को बाँधने के लिये हाथ में रस्सी लेकर बोले, हे रस्सी! सविता देव के अनुशासन में दोनों अश्विनी कुमारों की भुजाओं तथा पूषा देवता के हस्तों द्वारा हम आपको ग्रहण करते हैं।[यजुर्वेद 22.1]
The priest should tie gold chain-neckless in the neck of the Yajman and say, hey gold! Being related to Agni Dev you are brilliant, like sperms-potential, strength, elixir and a protector of life. Hence protect our life. The priest should hold cord for tying the horse and say, hey cord! Under the control of Savita Dev, we accept you with the arms of Ashwani Kumars and hands of Pusha Dev.
इमामगृभ्णन् रशनामृतस्य पूर्व आयुषि विदथेषु कव्या।
सा नोऽ अस्मिन्त्सुत आ बभूव ऋतस्य सामन्त्सरमारपन्ती॥
जो ज्ञान की शक्ति यज्ञ से उपलब्ध होती है, उस ज्ञान-शक्ति द्वारा ऋषियों ने विश्व के आदि कारण ऋत के व्यापार को जाना अर्थात् ब्रह्म तथा प्रकृति के क्रिया कलाप सम्बन्धी विषय में ज्ञान प्राप्त किया। हम भी यज्ञ का सम्पादन करके ज्ञान-श्रृंखला के द्वारा ब्रह्म-प्रकृति के रहस्यों को स्पष्टतः जानें।[यजुर्वेद 22.2]
The enlightenment obtained through Yagy, led the Rishis to know-identify the Brahm and the working of nature. Let us conduct Yagy and understand the chain of knowledge and secret of Brahm-nature.
अभिधाऽअसि भुवनमसि यन्तासि धर्त्ता।
स त्वमग्निं वैश्वानरꣳ सप्रथसं गच्छ स्वाहाकृतः॥
ब्रह्मा के आदेश पर अध्वर्यु रस्सी से घोड़े को बाँधते हुए बोले, हे अश्व! आप स्तवनीय तथा समस्त प्राणियों के आश्रयभूत हैं। आप सम्पूर्ण भुवनों को धारण करने वाले तथा नियन्ता है। वैश्वानर अग्नि में समर्पित किये जाने वाले हविष्यान्न की आहुति से अत्यधिक बलशाली बनकर आप लक्ष्य की ओर गमन करें।[यजुर्वेद 22.3]
On being asked by Brahma, priest should tie the horse with cord and say, hey horse! You are worshipable and grant asylum to all living beings. You hold-support all abodes and control them. Let the sacrifice of food grains made in Vaeshwanar Agni should become powerful and lead to its target.
स्वगा त्वा देवेभ्यः प्रजापतये ब्रह्मन्नश्वं भन्स्यामि देवेभ्यः प्रजापतये तेन राध्यासम्।
तं बधान देवेभ्यः प्रजापतये तेन राध्नुहि॥
हे अश्व! आप सर्वत्र संचरित होने में सक्षम हैं, अतः आप प्रजापति आदि देवों तक स्वयं ही जाने में सक्षम हैं। (अध्वर्यु ब्रह्मा से बोले) हे ब्रह्मन्! मैं देवताओं प्रजापति के हेतु इस अश्व को बाँधूँगा। में इससे उन देवों को अपने अनुकूल बनाऊँगा। (ब्रह्मा बोले) हे अध्वर्यु! तुम उसे देवों और प्रजापति के निमित्त बाँधों, उससे तुम उन्हें अपने अनुकूल करो।[यजुर्वेद 22.4]
Hey horse! You are capable of roaming every where, hence you are capable of reaching Prajapati and other demigods. The priest should ask Brahma, hey Brahman! I will tie this horse for the sake of Prajapati and demigods. I will attain favours of demigods. Brahma should say, hey priest! You should tie the horse for the sake of demigods and Prajapati, making them favourable to you.
प्रजापतये त्वा जुष्टं प्रोक्षामीन्द्राग्निभ्यां त्वा जुष्टं प्रोक्षामि वायवे त्वा जुष्टं प्रोक्षामि विश्वेभ्यस्त्वा देवेभ्यो जुष्टं प्रोक्षामि सर्वेभ्यस्त्वा देवेभ्यो जुष्टं प्रोक्षामि। योअर्वन्तं जिघाꣳ सति तमभ्यमीति वरुणः परो मर्त्तः परः श्वा॥
अध्वर्यु पवित्र जल से अश्व का प्रोक्षण करे और बोले, हे सबके प्रिय अश्व! प्रजापति की तृप्ति के निमित्त मैं आपका अभिषेक करता हूँ। देवराज इन्द्र तथा अग्नि देव के निमित्त आपका अभिषेक करता हूँ। वायु देव तथा विश्वे देवों की प्रीति के निमित्त आपका अभिषेक करता हूँ। सम्पूर्ण देवताओं की प्रीति के निमित्त आपका अभिषेक करता हूँ। यजमान बोले, जो इस अश्व को मारना चाहता है, उसे वरुण देव पहले ही मार डालते हैं। घोड़ें को मारने की इच्छा करने वाला दूर चला गया।[यजुर्वेद 22.5]
प्रोक्षण :: छिड़काव, बलि से पूर्व पशु पर जल छिड़कना; sprinkling water.
The priest should sprinkle pious water over the horse and say, hey horse, dear to all! I coronate-anointment you for the love & satisfaction of Prajapati, Devraj Indr, Agni Dev, Vayu Dev, Vishwe Dev and all demigods. Yajman should say, any one who wish to kill this horse should be killed by Varun Dev prior to it. One who wish to kill the horse should move away.
अग्नये स्वाहा सोमाय स्वाहापां मोदाय स्वाहा सवित्रे स्वाहा वायवे स्वाहा विष्णवे स्वाहेन्द्राय स्वाहा बृहस्पतये स्वाहा मित्राय स्वाहा वरुणाय स्वाहा॥
अश्व को यज्ञ स्थल पर लाकर यज्ञाग्नि में घृत की आहुतियाँ देते हुए बोले, अग्नि देवता के निमित्त यह आहुति अर्पित है। सोम देवता के निमित्त यह आहुति समर्पित है। जल के आनन्द दायक देवताओं के निमित्त यह आहुति समर्पित है। सविता देव के निमित्त यह आहुति समर्पित है। वायु देवता के निमित्त यह आहुति समर्पित है। विष्णु देवता के निमित्त यह आहुति समर्पित है। देवराज इन्द्र के निमित्त यह आहुति समर्पित है। बृहस्पति देव के निमित्त यह आहुति समर्पित है। मित्रा-वरुण देवों के निमित्त यह आहुति समर्पित है,वे सभी इसे स्वीकार करें।[यजुर्वेद 22.6]
Bring the horse to the Yagy site make sacrifices of Ghee and say that this sacrifice for Agni Dev. This sacrifice is for Som Dev, demigods for the pleasure of water, Savita Dev, Vayu Dev, Bhagwan Shri Hari Vishnu, Devraj Indr, Dev Guru Brahaspati, Mitr-Varun. Let them all accept it.
हिंकाराय स्वाहा हिंकृताय स्वाहा क्रंदते स्वाहाऽवक्रंदाय स्वाहा प्रोथते स्वाहा प्रप्रोथाय स्वाहा गंधाय स्वाहा घ्राताय स्वाहा निविष्टाय स्वाहोपविष्टाय स्वाहा सन्दिताय स्वाहा वल्गते स्वाहासीनाय स्वाहा शयानाय स्वाहा स्वपते स्वाहा जाग्रते स्वाहा कूजते स्वाहा प्रबुद्धाय स्वाहा विजृम्भमाणाय स्वाहा विचृत्ताय स्वाहा सꣳहानाय स्वाहोपस्थिताय स्वाहाऽयनाय स्वाहा प्रायणाय स्वाहा॥
अश्व की हिंकार आदि उनचास क्रियाओं के नाम से आहुतियाँ देते हुए बोले, अश्व की हिंकार (उत्साहित होने पर अपने आप ही प्रकट होनेवाली ध्वनि) के निमित्त यह आहुति समर्पित है। हिंकृत चेष्टा (उत्साह व्यक्त किया जा चुका) के निमित्त यह आहुति समर्पित है। क्रन्दन (ऊँचे स्वर से उद्घोष) के निमित्त यह आहुति समर्पित है। अवक्रन्दन (निम्न स्वर से अभिव्यक्ति) के निमित्त यह आहुति समर्पित है। पर्याण क्रिया के निमित्त यह आहुति समर्पित है। गन्ध चेष्टा के निमित्त यह आहुति समर्पित है। सूँघने की पूर्ण हो चुकी क्रियाओं के निमित्त यह आहुति समर्पित है। पहुँचने की क्रिया के निमित्त यह आहुति समर्पित है। बैठने की चेष्टाओं के निमित्त यह आहुति समर्पित है। समान-चेष्टा के निमित्त यह आहुति समर्पित है। जाते हुए के निमित्त यह आहुति समर्पित है। आसन ग्रहण करने के निमित्त यह आहुति समर्पित है। सोते हुए के निमित्त यह आहुति समर्पित है। लेटने की चेष्टाओं के निमित्त यह आहुति समर्पित है। जागते हुए के निमित्त यह आहुति समर्पित है। कूजते हुए के निमित्त यह आहुति समर्पित है। जैभाई-जम्हाई लेते हुए के निमित्त यह आहुति समर्पित है। शारीरिक सुडौलता के निमित्त यह आहुति समर्पित है। उपस्थिति के निमित्त यह आहुति समर्पित है। गमन तथा प्रयाण के निमित्त यह आहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 22.7]
अवक्रन्दन :: abruption, breaking off, disintegration.
पर्याण :: प्रस्थान, यात्रा; movement, departure, journey.
Make 49 sacrifices for the neigh of horse and say, this sacrifice is for the horse. This sacrifice is for the excitement of neigh of the horse the loud sound. This sacrifice for expression in low voice, journey, smell, respiration, reaching destination, sitting, efforts, common efforts, departing, occupying seat, sleeping, awakening, lying down, writhing, yawning, handsome body, presence and going away.(12.08.2025)
यते स्वाहा धावते स्वाहोद्द्रावाय स्वाहोद्द्रुताय स्वाहा शूकाराय स्वाहा शूकृताय स्वाहा निषण्णाय स्वाहोत्थिताय स्वाहा जवाय स्वाहा बलाय स्वाहा विवर्त्तमानाय स्वाहा विवृत्ताय स्वाहा विधून्वानाय स्वाहा विधूताय स्वाहा शुश्रूषमाणाय स्वाहा शृण्वते स्वाहेक्षमाणाय स्वाहेक्षिताय स्वाहा वीक्षिताय स्वाहा निमेषाय स्वाहा यदत्ति तस्मै स्वाहा यत् पिबति तस्मै स्वाहा यन्मूत्रं करोति तस्मै स्वाहा कुर्वते स्वाहा कृताय स्वाहा॥
गतिमान अश्व के निमित्त प्रदत्त यह आहुति समर्पित है। दौड़ते हुए के निमित्त प्रदत्त यह आहुति समर्पित है। तीव्र गति वाले के निमित्त प्रदत्त यह आहुति समर्पित है। उत्कर्ष के निमित्त यत्नशील, जो शीघ्रता करने वाले हैं एवं जो शीघ्रता कर चुके हैं, उनके निमित्त प्रदत्त यह आहुति समर्पित है। बैठे हुए के निमित्त यह आहुति समर्पित है। उठते हुए के निमित्त यह आहुति समर्पित है। वेगवान् के निमित्त यह आहुति समर्पित है। काँपनेवाले के निमित्त यह आहुति समर्पित है। अत्यधिक काँपनेवाले के निमित्त यह आहुति समर्पित है। शुश्रूषा की इच्छा करनेवाले के निमित्त प्रदत्त यह आहुति समर्पित है। विशेष क्रम में उपस्थित एवं विवृत्त गति के निमित्त यह आहुति समर्पित है। सुनने वाले के निमित्त यह आहुति समर्पित है। दर्शन शक्ति वाले के निमित्त यह आहुति समर्पित है। विशेष द्रष्टा के निमित्त यह आहुति समर्पित है। पलक झपकने तथा खाने की चेष्टाओं के निमित्त यह आहुति समर्पित है। जल का पान करने वाले के निमित्त यह आहुति समर्पित है। जो मूत्र क्रिया अथवा चेष्टा करता है, उसके निमित्त यह आहुति समर्पित है। क्रियाएँ, जो की जा रही हैं एवं जो की जा चुकी हैं, उन सबके निमित्त ये आहुतियाँ समर्पित हैं।[यजुर्वेद 22.8]
This sacrifice is made for the fast running horse. This sacrifice is for one who is quick and make efforts to perform excellent deeds. This sacrifice is for one who is sitting, rising, accelerated, trembling or trembling too much. This sacrifice is for one who looks after-takes care. This sacrifice is for specific order-sequence, irregular motion. This sacrifice is for the listener. This sacrifice if for one possessing power to see-observe. This sacrifice is for one who is a special watcher, seer. This sacrifice for blinking eyes and efforts to eat. This sacrifice is for one who drink water. This sacrifice is for one who urinate of make efforts to urinate. This sacrifice for those activities, which are either progressing or have been accomplished-done.
तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्॥
सभी को प्रेरित करने वाले, पापों का नाश करने वाले, वरणीय, देव स्वरूप सविता देव को हम धारण करते हैं, वे हमारी बुद्धियों को श्रेष्ठ कर्मों को करने के निमित्त प्रेरित करें।[यजुर्वेद 22.9]
धारण :: accept, assume, possess, wear, hold, adopt, take on, among other.
We accept-adopt deity Savita Dev who inspire all, destroy sins, inspire our mind & heart o perform excellent deeds.
हिरण्यपाणिमूतये सवितारमुप ह्वये। स चेत्ता देवता पदम्॥
हम उन सविता देव को अपनी सुरक्षा हेतु आवाहित करते हैं, जो हिरण्य पाणि अर्थात् ज्योतिरूप हाथ (किरणों) वाले हैं। वे सर्व ज्ञानी तथा सर्व प्रेरक विद्वानों के लिए आश्रयरूप हैं और वे ही उनके स्वरूप को जानते हैं।[यजुर्वेद 22.10]
We invoke Savita Dev for our protection-accept, who has holden hands (hands like aura-radiance). He inspires all, knows every thing and its only he who knows his real self.
देवस्य चेततो महीं प्र सवितुर्हवामहे। सुमतिꣳ सत्यराधसम्॥
सबको जागरूक करने वाले तथा सर्वज्ञ सविता देव की सत्य को सिद्ध करने वाली महिमावान् उत्तम मेधा की हम याचना करते हैं अर्थात् परमात्मा हमको सर्वगुण सम्पन्न बुद्धि प्रदान करे, इसकी हम प्रार्थना करते हैं।[यजुर्वेद 22.11]
We worship all knowing Savita Dev who awakes all, who's intelligence makes truth. Let the Almighty grant us intelligence with all sorts of ability-expertise.
सुष्टुतिꣳ सुमतीवृधो रातिꣳ सवितुरीमहे। प्र देवाय मतीविदे॥
जो सबकी मति से भली-भाँति परिचित हैं, दिव्य गुण से युक्त हैं तथा सुमति में वृद्धि करने वाले हैं, उन सविता देव की स्तुति करते हुए हम उनसे सामर्थ्य रूप धन की कामना करते हैं।[यजुर्वेद 22.12]
We worship Savita Dev who is aware of the thoughts of everyone and increase auspicious-virtuous intellect. While worshiping him, we wish to have his wealth in the form of capability.
रातिꣳ सत्पतिं महे सवितारमुप ह्वये। आसवं देववीतये॥
सभी प्रकार के धनों को प्रदान करने वाले, सत्पुरुषों व भक्तों के पालन कर्ता, सभी प्रकार के सत्कर्म करने के निमित्त प्रेरित करने वाले सविता देव को, देवों को परितृप्त करने के निमित्त आमंत्रित करते हैं तथा उनकी अच्छी तरह से उपासना करते हैं।[यजुर्वेद 22.13]
We worship Savita Dev thoroughly who grants all sorts of wealth, nourish the virtuous devotees, inspire for virtuous, righteous deeds, for the contentment of demigods-deities.
देवस्य सवितुर्मतिमासवं विश्वदेव्यम्। धिया भगं मनामहे॥
उत्तम मेधा के द्वारा सविता देव ही सभी प्रकार के धनों के कारण-रूप हैं, अतः सभी देवताओं के हितकारी बुद्धिरूप धन की हम याचना करते हैं।[यजुर्वेद 22.14]
By virtu of excellent intellect Savita Dev is the reason behind all wealth, hence we request wealth in the form of welfare well being of/for demigods-deities for wealth.(13.08.2025)
अग्निꣳ स्तोमेन बोधय समिधानो अमर्त्यम्। हव्या देवेषु नो दधत्॥
हे अध्वर्यो! आप मरण धर्म रहित अग्नि देव को प्रदीप्त करके तथा उनकी स्तुति करके उन्हें चैतन्य करें, जिससे वे हमारे द्वारा समर्पित की गयी आहुतियों को देवताओं तक पहुँचायें।[यजुर्वेद 22.15]
Hey priests! Ignite fire-Agni Dev, worship him to make him conscious-alert, so that he carries our sacrifices, offerings to demigods.
स हव्यवाडमर्त्य उशिग्दूतश्च नोहितः। अग्निर्धिया समृण्वति॥
हवि को वहन करने वाले, अविनाशी, स्वप्रकाशित, देवताओं के दूत तथा हम सबके शुभचिंतक हे अग्नि देव! धारण करने की सामर्थ्य द्वारा ही आप हवियों को धारण करके देवों तक पहुँचाने का सम्पूर्ण कार्य करते हैं।[यजुर्वेद 22.16]
Self illuminating, immortal Agni Dev, ambassador of demigods, is our well wisher, carries the offerings. You carry the offerings to demigods due to your capability to do so.
अग्निं दूतं पुरो दधे हव्यवाहमुप ब्रुवे। देवाँ2 आ सादयादिह॥
हवियों को पहुँचाने वाले देव दूत अग्नि देव को हम अपने सम्मुख प्रतिष्ठित करते हैं। उनसे निवेदन करते हैं कि हे अग्नि देव! आप यहाँ हमारे यज्ञ स्थल पर सभी देवताओं को ले आयें।[यजुर्वेद 22.17]
Carrier of offerings, hey ambassador of demigods, Agni Dev! We establish you in our front. We pray to you to bring all demigods to our Yagy sthal-site.
अजीजनो हि पवमान सूर्य विधारे शक्मना पयः। गोजीरया रꣳहमाणः पुरन्ध्या॥
हे पवमान! आप पवित्र करने वाले हैं। आप सूर्य को प्रादुर्भूत करने वाले, गति प्रदान करने वाले एवं शरीर के पोषण कर्ता हैं। गवादि पशुओं को जीवन प्रदान करने वाले जल को आप अपनी गतिमान शक्ति द्वारा धारण करते हैं और उस जल की वर्षा करते हैं। गौएँ आपकी शक्ति द्वारा ही दुग्ध को धारण करती हैं और दुग्ध से ही हवि तथा हवि से ही यज्ञ-कर्म सम्पन्न होता है।[यजुर्वेद 22.18]
पवमान :: शुद्ध होना, पवित्र होना, स्वच्छ होना, हवा या पवन; purifying, sanctifying.
Hey Pawman! You are sanctifier.
प्रादुर्भूत :: प्रकट हुआ, उत्पन्न; appear.
You make the Sun appear, grant him speed and nurse the body. Grant life to animals like cows, get strength from water and lead to showering of rains. Cows yield milk by virtue of you. Milk is used to produce offerings leading to accomplishment of Yagy Karm.
विभूर्मात्रा प्रभूः पित्राश्वोऽसि हयोऽस्यत्योऽसि मयोऽस्यर्वासि सप्तिरसि वाज्यसि वृषासि नृमणा असि। ययुर्नामासि शिशुर्नामास्यादित्यानां पत्वान्विहि देवा आशापाला एतं देवेभ्योऽश्वं मेधाय प्रोक्षितꣳ रक्षत। इह रन्तिरिह रमतामिह धृतिरिह स्वधृतिः स्वाहा॥
हे अश्व! आप पृथ्वी रूप माता के समान गुणों से विभूषित एवं पितारूप द्युलोक के समान गुणों से प्रभुता सम्पन्न हैं। आप ययु (गमन शील) तथा शिशु (प्रशंसनीय) नाम से प्रख्यात, अविरल गमनशील, रिपुओं का पीछा करने में सक्षम, शत्रुहन्ता, प्रजा को सुख प्रदान करने वाले तथा वीर्यवान् हैं। इसी कारण मनुष्यों के मध्य में आप सम्मानित हैं। जैसे आदित्यगण अपने पथ में गमन करते हैं, उसी प्रकार ही आप भी तेज युक्त होकर गमन करें। दिव्य गुण सम्पन्न, सम्पूर्ण दिशाओं के संरक्षक देवों के लिए प्रोक्षित इस अश्व की सुरक्षा करें। यह अश्व यहीं प्रसन्नतापूर्वक रमण करे। यज्ञ की धारणा सामर्थ्य में वृद्धि हेतु यह आहुति समर्पित है, उपासकों के अन्तःकरण में धारण-सामर्थ्य में वृद्धि की भावना से यह आहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 22.19]
Hey horse! You possess the qualities of earth as mother and heaven as father. You are dynamic, appreciable, move continuously, chase the enemies and has potential. Due to this reason humans honour-respect you. The way Adity Gan move over their path, similarly you too have aura-radiance, energy and move. Protect this horse meant for the demigods. This horse should roam here happily. This sacrifice is for you for having the capability to support-hold Yagy. This sacrifice is made to boost the capability in the innerself of the worshiper leading to growth.
प्रोक्षित :: सींचा हुआ, जिस पर जल छिड़का गया हो, जिसका वध या हत्या की गई हो, पशु जो बलि चढ़ाया गया हो, वह मांस जो यज्ञ के लिए संस्कृत किया गया हो; nurse, grown.
काय स्वाहा कस्मै स्वाहा कतमस्मै स्वाहा स्वाहाधिमाधीताय स्वाहा मनः प्रजापतये स्वाहा चित्तं विज्ञातायादित्यै स्वाहादित्यै महौ स्वाहादित्यै सुमृडीकायै स्वाहा सरस्वत्यै स्वाहा सरस्वत्यै पावकायै स्वाहा सरस्वत्यै बृहत्यै स्वाहा पूष्णे स्वाहा पूष्णे प्रपथ्याय स्वाहा पूष्णे नरन्धिषाय स्वाहा त्वष्टे स्वाहा त्वष्ठेने तुरीपाय स्वाहा त्वष्टे पुरुरूपाय स्वाहा विष्णवे स्वाहा विष्णवे निभूयपाय स्वाहा विष्णवे शिपिविष्टाय स्वाहा॥
प्रजापति देव के निमित्त यह आहुति समर्पित है। उत्तम प्रजापति के निमित्त यह आहुति समर्पित है। अति उत्कृष्ट प्रजापति के निमित्त आहुति समर्पित है। विद्या में वृद्धि करने वाले के निमित्त आहुति समर्पित है। मन में विद्यमान प्रजापति के निमित्त आहुति समर्पित है। चित्त के साक्षी आदित्य के निमित्त आहुति समर्पित है। अखण्डित अदिति के निमित्त आहुति समर्पित है। पूजनीय अदिति के निमित्त आहुति समर्पित है। सुखदात्री अदिति के निमित्त आहुति समर्पित है। देवी सरस्वती के निमित्त आहुति समर्पित है। शुद्ध करने वाली देवी सरस्वती के निमित्त आहुति समर्पित है। महान् देवी सरस्वती के निमित्त आहुति समर्पित है। पूषा देवता के निमित्त आहुति समर्पित है। वैदिक मनुष्यों के शिक्षक के निमित्त आहुति समर्पित है। त्वष्टा देव के निमित्त आहुति समर्पित है। वेग के रक्षक पूषा देवता के निमित्त आहुति समर्पित है। बहुरूप त्वष्टा देव के निमित्त आहुति समर्पित है। विष्णु देवता के निमित्त आहुति समर्पित है। अनेक अवतार धारण करनेवाले एवं रक्षा करने वाले विष्णु देवता के निमित्त आहुति समर्पित है। पशुओं तथा मनुष्यों में अन्तर्यामी रूप में प्रवेश करने वाले विष्णु देव के निमित्त आहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 22.20]
अन्तर्यामी :: omnipresent, immanent form, immanent power, immanent object, immanent activity, immanent logic. One who knows every thing, event resides in the mind & heart of all living beings.
This sacrifice is for knowledge increasing excellent Prajapati, who reside in the heart-innerself. This sacrifice is for Adity Gan who are the witness of the innerself-mood. This sacrifice is for revered Mata Aditi granting comfort-pleasure. This sacrifice is for purifying-sanctifying great Devi Saraswati. This sacrifice is for Pusha Dev being the eternal-Vaedic Guru-teacher. This sacrifice is for the protector of speed. This sacrifice is for Twasta Dev. This sacrifice is for protector Bhagwan Shri Hari Vishnu who had numerous incarnations-Avtars and is immanent amongest the humans and living beings.(14.08.2025)
विश्वो देवस्य नेतुर्मर्ती वुरीत सख्यम्। विश्वो राय इषुध्यति द्युम्नं वृणीत पुष्यसे स्वाहा॥
सांसारिक मनुष्यों को कर्मों के अनुसार फल प्रदान करने वाले, दानादि गुणों से युक्त, सर्वप्रेरक सविता देव की मित्रता को प्राप्त करने के लिए हम स्तुति करते हैं। वे सविता देव पुष्टि के निमित्त अन्न प्रदान करें। सभी प्राणी उन्हीं से धन प्राप्ति के निमित्त याचना करते हैं। उन सविता देव के निमित्त यह आहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 22.21]
We request-pray for the friendship of all knowing, Savita Dev who grant reward according to deeds-efforts, donations. Savita Dev should grant us food grains for nourishment. All humans pray to him for wealth. This sacrifice is for him.
आ ब्रह्मन् ब्राह्मणो ब्रह्मवर्चसी जायतामा राष्ट्र राजन्यः शूर इषव्योऽतिव्याधी महारथो जायतां दोग्ध्री धेनुर्वोढानड्वानाशुः सप्तिः पुरंधिर्योषा जिष्णू रथेष्ठाः सभेयो युवास्य यजमानस्य वीरो जायतां निकामे निकामे नः पर्जन्यो वर्षतु फलवत्यो न ओषधयः पच्यन्तां योगक्षेमो नः कल्पताम्॥
हे ब्रह्मन्! हमारे देश में ब्रह्म वर्चस्व वाले ब्राह्मण सभी जगह उत्पन्न हों। ऐसे क्षत्रिय उत्पन्न हों जो बाण-विद्या में चतुर, रिपुओं को अच्छी तरह से विदीर्ण करनेवाले, महारथी तथा वीर हों। यहाँ के याजक की गौ दुग्ध प्रदान करने वाली हो। वृषभ बलशाली और बोझा ढोने वाले हों, अश्व द्रुतगति से गमन करने वाले हों। स्त्रियाँ सर्वगुण सम्पन्न एवं रथ में विराजमान होने पुरुष जयशील बनें। यह देश युवा तथा वीर पुरुषों से सम्पन्न हो। अभिलाषा करने पर मेघ जलवृष्टि करें। ओषधियाँ फलवती तथा परिपक्व हों। परमात्मा हमारे योग और क्षेम का निर्वहन करें।[यजुर्वेद 22.22]
वर्चस्व :: तेज, प्राबल्य; predominance.
क्षेम :: कुशल मंगल, सुख-चैन, ख़ैरियत; ; well being, safety.
Hey Brahman! Let Brahmans with the predominance of Brahm evolve-take birth every where. Such Kshatriy should take birth who are expert in archery and tear the enemies, are Maha Rathi and brave. The cows at the house of the Yajak should yield milk. Oxen-bulls should be strong and capable of carrying load. Horses should be fast moving-running. Women should have all virtuous qualities. The male riding the charoite should be invincible. This land-country should have young and brave people. The clouds should shower rains as per desire-need. Medicine should be ripe and curing. The Almighty should take care of well being-welfare & safety.
प्राणाय स्वाहापानाय स्वाहा व्यानाय स्वाहा चक्षुषे स्वाहा श्रोत्राय स्वाहा वाचे स्वाहा मनसे स्वाहा॥
प्राणों के निमित्त यह आहुति समर्पित है। अपान के निमित्त यह आहुति समर्पित है। व्यान के निमित्त यह आहुति समर्पित है। नेत्रों के निमित्त यह आहुति समर्पित है। कर्णेन्द्रिय के निमित्त यह आहुति समर्पित है। वाणी के निमित्त यह आहुति समर्पित है। मन के निमित्त यह आहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 22.23]
These sacrifice are for the Air Vital, Apan, Vyan, eyes, ears, voice, and the innerself respectively.
प्राच्यै दिशे स्वाहार्वाच्यै दिशे स्वाहा दक्षिणायै दिशे स्वाहार्वाच्यै दिशे स्वाहा प्रतीच्यै दिशे स्वाहार्वाच्यै दिशे स्वाहोदीच्यै दिशे स्वाहार्वाच्यै दिशे स्वाहोर्ध्वायै दिशे स्वाहार्वाच्यै दिशे स्वाहार्वाच्यै दिशे स्वाहार्वाच्यै दिशे स्वाहा॥
पूर्व दिशा के निमित्त यह आहुति समर्पित है। आग्नेय दिशा के निमित्त यह आहुति समर्पित है। दक्षिण दिशा के निमित्त यह आहुति समर्पित है। नैर्ऋत्य दिशा के निमित्त यह आहुति समर्पित है। पश्चिम दिशा के निमित्त यह आहुति समर्पित है। वायव्य दिशा के निमित्त यह आहुति समर्पित है। उत्तर दिशा के निमित्त यह आहुति समर्पित है। ईशान दिशा के निमित्त यह आहुति समर्पित है। ऊर्ध्व दिशा के निमित्त यह आहुति समर्पित है। अधो दिशा के निमित्त यह आहुति समर्पित है। सबसे नीचे की दिशा के निमित्त यह आहुति समर्पित है। भूगोल में तलरूप दिशा के निमित्त यह आहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 22.24]
These sacrifices are meant for the East, Agney direction, South, Naerarty direction, West, Vayavy direction, North, Ishan direction, Urdhv-up direction, Adho direction, lowest direction respectively. This sacrifice is meant for the geographic lower direction.
अद्भ्यः स्वाहा वार्ध्यः स्वाहोदकाय स्वाहा तिष्ठन्तीभ्यः स्वाहा स्त्रवन्तीभ्यः स्वाहा स्यन्दमानाभ्यः स्वाहा कूप्याभ्यः स्वाहा सूद्याभ्यः स्वाहा धार्याभ्यः स्वाहार्णवाय स्वाहा समुद्राय स्वाहा सरिराय स्वाहा॥
जलों के निमित्त आहुति समर्पित है। वारिरूप जलों के निमित्त यह आहुति समर्पित है। सूर्य की किरणों द्वारा ऊपर की ओर गमन करने वाले जलों के निमित्त यह आहुति समर्पित है। अविचल जलों के निमित्त आहुति समर्पित है। क्षरणशील जलों के निमित्त यह आहुति समर्पित है। गमन करते हुए जलों के निमित्त यह आहुति समर्पित है। जो जल धारण करने योग्य हैं, उनके निमित्त यह आहुति समर्पित है। नदियों के जल के निमित्त यह आहुति समर्पित है। सागर के जलों के निमित्त यह आहुति समर्पित है। उत्तम जलों के निमित्त यह आहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 22.25]
These sacrifice is for water reservoirs, other forms of water (vapours, ice etc., ice cliffs), the water vapours moving in upper directions due to Sun, stationary water, degrading water, running waters, the water which is bearable, water flowing in the rivers, water in the ocean and the best water respectively.
वाताय स्वाहा धूमाय स्वाहाभ्राय स्वाहा मेघाय स्वाहा विद्योतमानाय स्वाहा स्तनयते स्वाहावस्फूर्जते स्वाहा वर्षते स्वाहाववर्षते स्वाहोग्रं वर्षते स्वाहा शीघ्रं वर्षते स्वाहोद्गृह्णते स्वाहोद्गृहीताय स्वाहा प्रुष्णते स्वाहा शीकायते स्वाहा प्रुष्वाभ्यः स्वाहा ह्रादुनीभ्यः स्वाहा नीहाराय स्वाहा॥
वायु देवता के निमित्त यह आहुति समर्पित है। धूम के निमित्त यह आहुति समर्पित है। मेघ के कारण रूप अभ्र (sky) के निमित्त यह आहुति समर्पित है। मेघ के निमित्त यह आहुति समर्पित है। विद्युत्युक्त के निमित्त यह आहुति समर्पित है। गर्जन करते हुए मेघ को यह आहुति समर्पित है। वज्र के सदृश घोर शब्द करने वाले मेघ को यह आहुति समर्पित है। वर्षा करते हुए मेघ के निमित्त यह आहुति समर्पित है। थोड़ी वर्षा के निमित्त यह आहुति समर्पित है। उग्र वर्षा के निमित्त यह आहुति समर्पित है। शीघ्र वर्षा के निमित्त यह आहुति समर्पित है। जल को ऊपर की ओर खींचने वाले के निमित्त यह आहुति समर्पित है। ऊपर से ग्रहण करने के निमित्त यह आहुति समर्पित है। अधिक जल गिराते हुए मेघ के निमित्त यह आहुति समर्पित है। ठहर-ठहर कर वर्षा करने वाले मेघ के निमित्त यह आहुति समर्पित है। घोर वर्षा वाले मेघ के निमित्त यह आहुति समर्पित है। गड़गड़ शब्द करने वाले मेघों के निमित्त यह आहुति समर्पित है। कुहरे वाले मेघों के निमित्त यह आहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 22.26]
These sacrifices are meant for Vayu Dev, smoke, sky supporting clouds, clouds, lightening, rattling-thundering clouds, clouds making sound like Vajr, clouds showering rains, low rains, furious rains and for quick rains respectively, for pouring water from the top, raining at intervals, excessive rains, rattling clouds, frost-mist forming waters.(15.08.2025)
अग्नये स्वाहा सोमाय स्वाहेन्द्राय स्वाहा पृथिव्यै स्वाहान्तरिक्षाय स्वाहा दिवे स्वाहा दिग्भयः स्वाहाशाभ्यः स्वाहोर्व्यै दिशे स्वाहार्वाच्यै दिशे स्वाहा॥
अग्नि देवता के निमित्त यह आहुति समर्पित है। सोमदेव के निमित्त यह आहुति समर्पित है। देवराज इन्द्र के निमित्त यह आहुति समर्पित है। धरती माता के निमित्त यह आहुति समर्पित है। अन्तरिक्ष के निमित्त यह आहुति समर्पित है। द्युलोक के निमित्त यह आहुति समर्पित है। सभी दिशाओं के निमित्त यह आहुति समर्पित है। ईशान आदि कोणरूप दिशाओं के निमित्त यह आहुति समर्पित है। पृथ्वी की दिशाओं के निमित्त यह आहुति समर्पित है। नीचे की दिशाओं के निमित्त यह आहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 22.27]
These sacrifices are for Agni Dev, Som Dev, Devraj Indr, earth, space-sky, heavens, all directions, Ishan Kon etc, respectively, including directions over the earth and lower directions.
नक्षत्रेभ्यः स्वाहा नक्षत्रियेभ्यः स्वाहाहोरात्रेभ्यः स्वाहार्धमासेभ्यः स्वाहा मासेभ्यः स्वाहा ऋतुभ्यः स्वाहार्तवेभ्यः स्वाहा संवत्सराय स्वाहा द्यावापृथिवीभ्याꣳ स्वाहा चंद्राय स्वाहा सूर्याय स्वाहा रश्मिभ्यः स्वाहा वसुभ्यः स्वाहा रुद्रेभ्यः स्वाहादित्येभ्यः स्वाहा मरुद्भ्यः स्वाहा विश्वेभ्यो देवेभ्यः स्वाहा मूलेभ्यः स्वाहा शाखाभ्यः स्वाहा वनस्पतिभ्यः स्वाहा पुष्पेभ्यः स्वाहा फलेभ्यः स्वाहौषधीभ्यः स्वाहा॥
नक्षत्रों के निमित्त यह आहुति समर्पित है। नक्षत्रों के अधिपति-देवता के निमित्त यह आहुति समर्पित है। दिवस तथा रात्रि के देवताओं के निमित्त यह आहुति समर्पित है। अर्द्धमास के निमित्त यह आहुति समर्पित है। मास के निमित्त यह आहुति समर्पित है। ऋतुओं के निमित्त यह आहुति समर्पित है। ऋतुओं में उत्पन्न पदार्थों के निमित्त यह आहुति समर्पित है। संवत्सर के निमित्त यह आहुति समर्पित है। पृथ्वी तथा आकाश के निमित्त यह आहुति समर्पित है। चन्द्रमा के निमित्त यह आहुति समर्पित है। सूर्यदेव के निमित्त यह आहुति समर्पित है। सूर्य की किरणों के निमित्त यह आहुति समर्पित है। वसुगणों के निमित्त यह आहुति समर्पित है। रुद्रगणों के निमित्त यह आहुति समर्पित है। आदित्यगणों के निमित्त यह आहुति समर्पित है। मरुद्गणों के निमित्त यह आहुति समर्पित है। विश्वेदेवों के निमित्त यह आहुति समर्पित है। सबकी मूलों के निमित्त यह आहुति समर्पित है। शाखाओं के निमित्त यह आहुति समर्पित है। वनस्पतियों के निमित्त यह आहुति समर्पित है। फूलों की वृद्धि के निमित्त यह आहुति समर्पित है। फलों के निमित्त यह आहुति समर्पित है। ओषधियों के निमित्त यह आहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 22.28]
These sacrifices are meant for the constellations, deity of the constellations, deities of day & night, half month-fortnight, full month, seasons & the materials grown in them, Sanvatsar, earth & sky, Moon & Sun, rays of Sun, Vasu Gan, Rudr Gan, Adity Gan, Marud Gan, Vishwe Dev, roots-basics of all, branches, fruits, flowers, medicines etc etc, respectively.
पृथिव्यै स्वाहान्तरिक्षाय स्वाहा दिवे स्वाहा सूर्याय स्वाहा चंद्राय स्वाहा नक्षत्रेभ्यः स्वाहाद्भ्यः स्वाहौषधीभ्यः स्वाहा वनस्पतिभ्यः स्वाहा परिप्लवेभ्यः स्वाहा चराचरेभ्यः स्वाहा सरीसृपेभ्यः स्वाहा॥
धरती माता के निमित्त यह आहुति समर्पित है। अन्तरिक्ष लोक के निमित्त यह आहुति समर्पित है। द्युलोक के निमित्त यह आहुति समर्पित है। सूर्य देव के निमित्त यह आहुति समर्पित है। चन्द्रमा के निमित्त यह आहुति समर्पित है। नक्षत्रों के निमित्त यह आहुति समर्पित है। जलों के निमित्त यह आहुति समर्पित है। ओषधियों के निमित्त यह आहुति समर्पित है। वनस्पतियों के निमित्त यह आहुति समर्पित है। भ्रमणशील ग्रहों के निमित्त यह आहुति समर्पित है। समस्त प्राणियों के निमित्त यह आहुति समर्पित है। सर्पादि के निमित्त यह आहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 22.29]
These sacrifices are meant for Mother earth, sky-space, heavens, Sury Dev, Moon, constellations. water, medicines, vegetation, movable-dynamic planets, all living beings and snakes etc. etc. respectively.
असवे स्वाहा वसवे स्वाहा विभुवे स्वाहा विवस्वते स्वाहा गणश्रिये स्वाहा गणपतये स्वाहाभिभुवे स्वाहाधिपतये स्वाहा शूषाय स्वाहा सꣳसर्पाय स्वाहा चंद्राय स्वाहा ज्योतिषे स्वाहा मलिम्लुचाय स्वाहा दिवापतयते स्वाहा॥
प्राण देवता के निमित्त यह आहुति समर्पित है। वसु गणों के निमित्त यह आहुति समर्पित है। विभु देवता के निमित्त यह आहुति समर्पित है। सूर्य देव के निमित्त यह आहुति समर्पित है। गणश्री देवता के निमित्त यह आहुति समर्पित है। गणपति के निमित्त यह आहुति समर्पित है। अभिक्षुत के निमित्त यह आहुति समर्पित है। सबके अधिष्ठाता के निमित्त यह आहुति समर्पित है। शक्तिशाली देवता के निमित्त यह आहुति समर्पित गमनशील के निमित्त यह आहुति समर्पित है। चन्द्रमा के निमित्त यह आहुति समर्पित ज्योति देवता के निमित्त यह आहुति समर्पित है। मलिम्लुच के निमित्त यह आहुति समभीति है। दिन के अधिपति सूर्यदेव के निमित्त यह आहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 22.30]
These sacrifices are meant for deity of Air Vital (Dharm Raj), Vasu Gan, Vibhu Dev, Sury Dev, Gan Shree Demi God, Ganpati, Abhikshut, deity of all, mighty demigod, dynamic, Moon, deity of light, Malimluch, Lord of the day Sun respectively.
मधवे स्वाहा माधवाय स्वाहा शुक्राय स्वाहा शुचये स्वाहा नभसे स्वाहा नभस्याय स्वाहेषाय स्वाहोर्जाय स्वाहा सहसे स्वाहा सहस्याय स्वाहा तपसे स्वाहा तपस्याय स्वाहां हसस्पतये स्वाहा॥
मधुरादि गुणयुक्त चैत्र मास के निमित्त यह आहुति समर्पित है। वैशाख मास के निमित्त यह आहुति समर्पित है। पवित्र करनेवाले ज्येष्ठ मास के निमित्त यह आहुति समर्पित है। भूमि को जल से शुद्ध करनेवाले आषाढ़ मास के निमित्त यह आहुति समर्पित है। बादलों के ध्वनि करने वाले श्रावण मास के निमित्त यह आहुति समर्पित है। वृष्टि करनेवाले भाद्र पद मास के निमित्त यह आहुति समर्पित है। अन्न-सम्पादक आश्विन मास के निमित्त यह आहुति समर्पित है। बल और अन्न के पोषणकर्ता कार्तिक मास के निमित्त यह आहुति समर्पित है। बलदायक मार्गशीर्ष मास के निमित्त यह आहुति समर्पित है। बल प्रदान करने में उत्कृष्ट पौषमास के निमित्त यह आहुति समर्पित है। व्रतयुक्त एवं स्नानादि से युक्त माघ मास के निमित्त यह आहुति समर्पित है। उष्णता के प्रवर्तक फाल्गुन मास के निमित्त यह आहुति समर्पित है। मल मास के निमित्त यह आहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 22.31]
These sacrifices are meant for the Months of the year i.e., Chaetr having honey etc., Vaeshakh, sanctifying Jyeshth, Ashadh purifying the land with waters, Shravan having rattling sound of cloud, rain showering Bhadoun, food grains producer Ashvin, food grains developer and strength generating Kartic, strength generating Marg Sheersh, Poush, Magh associated with fasting and bathing, associated with heat-warmth Falgun and the thirteen month Mal mass respectively.
वाजाय स्वाहा प्रसवाय स्वाहाऽपिजाय स्वाहा क्रतवे स्वाहा स्वः स्वाहा मूर्ध्ने स्वाहा व्यश्नुविने स्वाहान्त्याय स्वाहान्त्याय भौवनाय स्वाहा भुवनस्यपतये स्वाहाधिपतये स्वाहा प्रजापतये स्वाहा ॥
अन्न देवता के निमित्त यह आहुति समर्पित है। पदार्थों के उत्पादक के निमित्त यह आहुति समर्पित है। जल से उत्पन्न होने वाले अन्नों के निमित्त यह आहुति समर्पित है। यज्ञ के योग्य हविष्यान्न के निमित्त यह आहुति समर्पित है। दिव्य अन्न के निमित्त यह आहुति समर्पित है। मूर्धन्य रूप अन्न के निमित्त यह आहुति समर्पित है। व्यापनशील अन्न के निमित्त यह आहुति समर्पित है। महत् रूप अन्न के निमित्त यह आहुति समर्पित है। जगत् में उत्पन्न होने वाले महान् अन्न के निमित्त यह आहुति समर्पित है। जगत् के पालक अन्न देवता के निमित्त यह आहुति समर्पित है। सबके अधिष्ठाता अन्न के निमित्त यह आहुति समर्पित है। प्रजापतिरूप अन्न के निमित्त यह आहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 22.32]
These sacrifices are meant for the deity of food, producer of food materials, food grains grown in water, food grains used in oblations-offerings of Yagy, divine food materials, food grains related with the head, food pervading the universe, vast-broad food grains, food grains grown over the earth, nurturer of the world deity of food grains, deity of all food grains, food grains in the form of Prajapati respectively.
आयुर्वज्ञेन कल्पताꣳ स्वाहा प्राणो यज्ञेन कल्पताꣳ स्वाहापानो यज्ञेन कल्पताꣳ स्वाहा व्यानो यज्ञेन कल्पताꣳ स्वाहोदानो यज्ञेन कल्पताꣳ स्वाहा समानो यज्ञेन कल्पताꣳ स्वाहा चक्षुर्यज्ञेन कल्पताꣳ स्वाहा श्रोत्रं यज्ञेन कल्पताꣳ स्वाहा वाग्यज्ञेन कल्पताꣳ स्वाहा मनो यज्ञेन कल्पताꣳ स्वाहात्मा यज्ञेन कल्पताꣳ स्वाहा ब्रह्मा यज्ञेन कल्पताꣳ स्वाहा ज्योतिर्यज्ञेन कल्पताꣳ स्वाहा स्वर्यज्ञेन कल्पताꣳ स्वाहा पृष्ठ यज्ञेन कल्पताꣳ स्वाहा यज्ञो यज्ञेन कल्पताꣳ स्वाहा॥
यज्ञ के द्वारा कल्पित आयु के निमित्त यह आहुति समर्पित है। यज्ञ के द्वारा कल्पित प्राण के निमित्त यह आहुति समर्पित है। यज्ञ के द्वारा कल्पित अपान की समृद्धि के निमित्त यह आहुति समर्पित है। यज्ञ के द्वारा कल्पित व्यान की समृद्धि के निमित्त यह आहुति समर्पित है। यज्ञ के द्वारा कल्पित उदान की समृद्धि के निमित्त यह आहुति समर्पित है। यज्ञ के द्वारा कल्पित समान वायु की समृद्धि के निमित्त यह आहुति समर्पित है। यज्ञ द्वारा कल्पित चक्षुओं के निमित्त यह आहुति समर्पित है। यज्ञ के द्वारा कल्पित श्रोत्रों की समृद्धि के निमित्त यह आहुति समर्पित है। यज्ञ के द्वारा कल्पित वाणी की समृद्धि के निमित्त यह आहुति समर्पित है। यज्ञ के द्वारा कल्पित मन की समृद्धि के निमित्त यह आहुति समर्पित है। यज्ञ के द्वारा कल्पित आत्मा की समृद्धि के निमित्त यह आहुति समर्पित है। यज्ञ के द्वारा कल्पित ब्रह्मा की समृद्धि के निमित्त यह आहुति समर्पित है। यज्ञ के द्वारा कल्पित आत्मज्योति की समृद्धि के निमित्त यह आहुति समर्पित है। यज्ञ को प्राप्त होनेवाले फल के द्वारा द्युलोक की प्राप्ति के निमित्त यह आहुति समर्पित है। यज्ञ के फलस्वरूप ब्रह्मलोक की प्राप्ति के निमित्त यह आहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 22.33]
These sacrifices are meant for the age determined through Yagy, Air Vital, Apan, Vyan, Udan, Saman, eyes, ears, voice-speech, innerself, soul, enrichment of Brahma, heavens, Brahm Lok attained by virtue of Yagy.
एकस्मै स्वाहा द्वाभ्या स्वाहा शताय स्वाहैकशताय स्वाहा व्युष्ट्यै स्वाहा स्वर्गाय स्वाहा॥
एकमात्र अद्वितीय परमात्मादेव के निमित्त यह आहुति समर्पित है। प्रकृति तथा पुरुष के निमित्त यह आहुति समर्पित है। अनन्त रूप ईश्वर के निमित्त यह आहुति समर्पित है। बहुरूप होकर भी एक अथवा एक सौ पदार्थों के निमित्त यह आहुति समर्पित है। रात्रि के देवता के निमित्त यह आहुति समर्पित है। दिन के अधिपति देवता के निमित्त यह आहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 22.34]
These sacrifices are meant for the unique Almighty, Prakrati nature and Purush-God, God in the form of infinity. Although having multiple forms yet one or hundred materials constitute the offerings, These sacrifices are meant for the deity of night and the lord of the day.(16.08.2025)
हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत्।
स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम॥
सृष्टि के प्रारम्भ में एक मात्र हिरण्यगर्भ पुरुष (प्रजापति) ही विद्यमान था। वही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का एक मात्र उत्पादक, स्वामी तथा पालक था। जो सम्पूर्ण जगत् की उत्पत्ति से पूर्व भी विद्यमान थे, वही स्वर्ग, अन्तरिक्ष तथा पृथ्वी लोक का धारण करने वाला था। हम उसी आनन्द स्वरूप प्रजापति की तृप्ति के लिए आहुति समर्पित करते हैं।[यजुर्वेद 23.1]
At the occasion-time of evolution only Hirany Garbh-Prajapati (Bhagwan Shri Hari Vishnu) was present. HE is the sole producer, Lord and nurturer of the universe. HR supported the heavens, sky-space and the earth. We make sacrifices to blissful Prajapati.
उपयामगृहीतोऽसि प्रजापतये त्वा जुष्टं गृह्णाम्येष ते योनिः सूर्यस्ते महिमा। यस्तेऽहन्संवत्सरे महिमा सम्बभूव यस्ते वायावन्तरिक्षे महिमा सम्बभूव यस्ते दिवि सूर्ये महिमा सम्बभूव तस्मै ते महिम्ने प्रजापतये स्वाहा देवेभ्यः॥
हे हवि! आप प्रजापति के प्रिय हो, उसके निमित्त हम आपको ग्रहण करते हैं। आप उपयाम-पात्र में विद्यमान हो, क्योंकि यही आपका मूलस्थान है। सूर्य, वायु, अन्तरिक्ष, स्वर्ग, दिन तथा संवत्सर के रूप में आपकी महिमा प्रकट है अर्थात् यह सभी आपकी महिमा के परिचायक हैं। हिमायुक्त आप, प्रजापति तथा सम्पूर्ण देवताओं के लिए यह आहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 23.2]
Hey offering! You are dear to Prajapati, we accept you for his sake. You are present in the Upyam Patr-pot, since that is the place of your origin. Your glory has emerged in the form of Sun, air, space-sky, heavens, day-night and the Sanwatsar. This sacrifice has been made-offered to you and all demigods-deities.
यः प्राणतो निमिषतो महित्वैकऽइद्राजा जगतो बभूव।
य ईशे अस्य द्विपदश्चतुष्पदः कस्मै देवाय हविषा विधेम॥
हम उन आनन्दस्वरूप परमात्मा के निमित्त आहुति अर्पित करते हैं, जो अपने माहात्म्य के माध्यम से प्राणियों के एकमात्र स्वामी है, दो पाँव वाले मनुष्यों, चार पाँव वाले पशुओं के साथ-साथ सारी सृष्टि के अधिष्ठाता हैं। अर्थात् इन सबकी उत्पत्ति के कारणभूत हैं, इसलिए इन परमेश्वर के अतिरिक्त कोई ऐसा नहीं है, जिन्हें हम आहुति समर्पित करें।[यजुर्वेद 23.3]
We make sacrifices for the blissful Almighty, who is the sole Lord of all living beings, be it two legged, four legged, including the entire-whole nature. You are the sole reason behind all these creations. Hence, there is none other than you for whole we should make sacrifices.
उपयामगृहीतोऽसि प्रजापतये त्वा जुष्टं गृह्णाम्येष ते योनिश्चन्द्रमास्ते महिमा। यस्ते रात्रौ संवत्सरे महिमा सम्बभूव यस्ते पृथिव्यामग्नौ महिमा सम्बभूव यस्ते नक्षत्रेषु चन्द्रमसि महिमा सम्बभूव तस्मै ते महिम्ने प्रजापतये देवेभ्यः स्वाहा॥
हे हवि! आप प्रजापति के प्रिय हो, इसके निमित्त हम आपको ग्रहण करते हैं। आप उपयामपात्र में विद्यमान हों, क्योंकि यही आपका मूल स्थान है। हे प्रजापति! चन्द्र, अग्नि, नक्षत्र, भूलोक, रात तथा प्रत्येक संवत्सर में आपकी महिमा प्रकट है अर्थात् यह सब आपकी महिमा के परिचायक हैं। आप महिमावान् प्रजापति तथा सम्पूर्ण देवगणों के निमित्त हम यह आहुति समर्पित करते हैं।[यजुर्वेद 23.4]
Hey offerings! You are dear to Prajapati, hence we accept you. You are present in the Upyam Patr-pot, since it constitute your place of origin. Hey Prajapati! Moon, fire, constellations, earth, day-night and each and every Sanwatsar reflect-represent your glory-might. We make sacrifices for the Prajapati and all the demigods-deities.
युञ्जन्ति ब्रध्नमरुषं चरन्तं परितस्थुषः। रोचन्ते रोचना दिवि॥
जैसे विस्तीर्ण नभ में अपने तेज से प्रकाशमान सूर्य देव सम्बन्धित ग्रहों को अपने साथ संयुक्त रखते हैं, वैसे ही संतुलित मन वाले ऋत्विग्गण इस स्वप्रकाशित यज्ञाग्नि के साथ सारे प्रकार के यज्ञीय चिकित्सा को नियोजित रखते हैं।[यजुर्वेद 23.5]
The way the illuminate Sun keep the planets connected with him-it, similarly Ritviz-those with balanced innerself (mind & heart) keep the whole self illuminated Yagy Agni-fire with the entire Yagy related medicinal system.
युञ्जन्त्यस्य काम्या हरी विपक्षसा रथे। शोणा धृष्णू नृवाहसा॥
ऋत्विज्ञ अपनी स्तुतियों के द्वारा इस सूर्य के कमनीय रथ के दोनों ओर जुतने वाले, शोण वर्ण, शत्रु वर्धक और नेता सूर्य को वहन करने में समर्थ हरित वर्ण वाले अश्वों को रथ में संयोजित करते हैं।[यजुर्वेद 23.6]
The Ritviz organise-deploy the green coloured attractive horses on both sides of charoite of reddish leader Sun, who is capable of destroying the enemy.
यद्वातो अपो अगनीगन्प्रियामिन्द्रस्य तन्वम्।
एतꣳस्तोतरनेन पथा पुनरश्वमावर्त्तयासि नः॥
यजमान अध्वर्यु से बोले, जिस समय वायु के सदृश द्रुतगामी ये अश्व देवराज इन्द्र के प्रिय जल में प्रविष्ट हो जायँ, उस समय हे उद्गाताओ! हमारे इन अश्वों को इस पथ से पुनः वापस लाओ।[यजुर्वेद 23.7]
Yajman should ask the priest, when these horses as fast as air, enter in the waters dear to Devraj Indr, hey Udgatas-singer of Sam Ved in loud voice! Bring our horses back to the right track.
वसवस्त्वाञ्जन्तु गायत्रेण छन्दसा रुद्रास्त्वाञ्जन्तु त्रैष्टुभेन छन्दसादित्यास्त्वाञ्जन्तु जागतेन छन्दसा भूर्भुवः स्वर्लाजी3ञ्छाची 3न्यव्ये गव्यएतदन्नमत्त देवा एतदन्नमद्धि प्रजापते॥
हे अश्व! गायत्री छन्द के द्वारा वसुगण आपको सिरोभाग में घृत से अभिषिक्त करें। आदित्यगण जगती छन्द के द्वारा आपके पृष्ठ भाग को घृत से अभिषिक्त करें। रुद्र गण त्रिष्टुप् छन्द के द्वारा आपके मध्य भाग को घृत से अभिषिक्त करें। हे अश्व! खीलें, सत्तू, यव और दही का भक्षण कीजिये। पृथ्वी लोक, अन्तरिक्ष लोक तथा द्युलोक में विद्यमान, देदीप्यमान तथा सामर्थ्यशाली हे देवताओ! आप इस हविष्यान्न को स्वीकार करें। हे सत्पुरुषो! इस यज्ञ-सम्बन्धी प्रक्रिया से परिपुष्ट हुए यवादि अन्नों तथा गौओं से प्राप्त होने वाले दुग्ध आदि का भक्षण करें।[यजुर्वेद 23.8]
Hey horses! Vasu Gan should anoint-crown the tip of your head with Gayatri Chhand and Ghee. Adity Gan should anoint your upper surface with Jagti Chhand and Ghee. Rudr Gan should anoint your middle segment with Trishtup Chhand and Ghee. Hey horse! Eat, roasted rice, Sattu (roasted barley and Gram powder), Barley and curd. Hey aurous-radiant mighty demigods-deities present over earth, heavens and space-sky! Accept these offerings constituting of food grains. Hey virtuous-righteous people! Eat the barley & other food grains used in the Yagy and milk obtained from the cows.
कः स्विदेकाकी चरति क उ स्विज्जायते पुनः।
किꣳ स्विद्धिमस्य भेषजं किम्वावपनं महत्॥
ब्रह्मा होता से प्रश्न करते हैं, हे होता! अकेला कौन विचरता रहता है? वह कौन है जो बारम्बार उत्पन्न होता है अर्थात् प्रकाशित होता है? हिम की ओषधि क्या है? तथा बीज को बोने हेतु विस्तृत क्षेत्र कौन सा है?[यजुर्वेद 23.9]
Brahma ask the Hota! Who roam alone? Who is reborn or illuminated again and again? Name the medicine constituting of ice. Name the vast land suitable for sowing seeds.(17.08.2025)
सूर्य एकाकी चरति चंद्रमा जायते पुनः। अग्निर्हिमस्य भेषजं भूमिरावपनं महत्॥
यज्ञकर्ता होता उत्तर देता है, हे ब्रह्मन्! सूर्य देव ही ऐसे हैं, जो अकेले विचरते हैं। चन्द्रमा बारम्बार उत्पन्न होते हैं अर्थात् प्रकाशित होते हैं। अग्नि हिम (शीत) की ओषधि है। बीज को बोने हेतु विस्तृत क्षेत्र यह धरती है।[यजुर्वेद 23.10]
Yagy performer answers, hey Brahman! Sury Dev roam alone. Chandr Dev rises again & again i.e., illuminated. Fire is the medicine for cold. To sow seeds the vast land is available over the earth.
Moon is illuminated by the Sun light. The cycle varies from Full Moon to no Moon night.
का स्विदासीत्पूर्वचित्तिः किꣳ स्विदासीद् बृहद्वयः।
का स्विदासीत्पिलिप्पिला का स्विदासीत्पिशंगिला॥
ब्रह्मा होता से प्रश्न करते हैं, हे होता! सर्वप्रथम चित्त में धारण करने योग्य कौन-सा विषय है? सबसे अधिक शक्तिशाली पक्षी कौन है? शोभनीय कौन है? सभी स्वरूप को निगल जानेवाला कौन है?[यजुर्वेद 23.11]
Brahma questions the Hota, hey Hota! What should be born in the mind-innerself first? Which bird is mightiest? Who is glorious? What swallows every form?
द्यौरासीत्पूर्वचित्तिरश्व आसीद् बृहद्वयः। अविरासीत्पिलिप्पिला रात्रिरासीत्पिशंगिला॥
होता कहते हैं, हे ब्रह्मन्! सर्वप्रथम चिन्तनीय (स्मरणीय) विषय द्यौ (वृष्टि) है। अश्व ही सबसे अधिक बलवान् पक्षी हैं। वृष्टि से गीली हुई धरती ही पिलिप्पिला है। रात सम्पूर्ण पदार्थों के स्वरूप को निगलने वाली अर्थात् अपने तमिस्त्र में छिपाकर रखने वाली है।[यजुर्वेद 23.12]
द्यौ (आकाश) पूर्वचित्ति (पहले से विद्यमान ज्ञान) था, अश्व (सूर्य) बृहद्वय (बड़ी कांति वाला) था, अवि (पृथ्वी) पिलिप्पिला (जिसमें अनेक प्रकार के जीव-जंतु रहते हैं) थी, और रात्रि पिशङ्गिला (श्याम वर्ण वाली) थी।
Hota says, hey Brahman! Sky-space was present from the very beginning. Sun was very bright. Earth was suitable for supporting several kinds of living beings. Night was dark.
वायुष्ट्वा पचतैरवत्वसितग्रीवश्छागैर्यग्रोधश्चमसैः शल्मलिर्वृद्धया।
एष स्य राथ्यो वृषा पड्भिश्चतुर्भिरेदगन्ब्रह्माऽकृष्णश्च नोऽवतु नमोऽग्नये॥
हे अश्व! वायु आपकी रक्षा करें। अग्नि आपकी रक्षा करें। वट वृक्ष चमस प्रदान करके आपकी रक्षा करे। सेमल वृक्ष वृद्धि प्रदान करके आपकी रक्षा करे। सेचन में सक्षम तथा रथ में योजित होने के योग्य अश्व हमारी कामनाओं के वर्षक हों। यह अश्व चार चरणों से यहाँ पधारे। चन्द्रमा हमारी रक्षा करे। हम अग्नि देव को नमन करते हैं, वे हमारे विघ्नों को दूर करें।[यजुर्वेद 23.13]
Hey horse! Let Vayu Dev protect you. Vat Vraksh should provide Chamas and protect you. Semal tree should grow and protect you. Horses capable of impregnating capable of deploying in the charoite, should accomplish our desires. This horse should come here in four stages. Moon should protect us. We salute-bow before Agni Dev and let him remove all obstacles.
सꣳशितो रश्मिना रथः सꣳशितो रश्मिना हयः।
सꣳशितो अस्वप्सुजा ब्रह्मा सोमपुरोगवः॥
रथ लगाम से शोभित होता है। लगाम से घोड़ा शोभित होता है। जलों से उत्पन्न अश्व जलों में ही शोभित होता है। ब्रह्मा अश्वमेध सोम को आगे करके स्वर्ग जाने वाला है।[यजुर्वेद 23.14]
Charoite and horses are glorifies by the reins. Water born horses are glorified in water. Brahma will move to heavens keeping Som in front.
स्वयं वार्जंस्तन्वं कल्पयस्व स्वयं यजस्व स्वयं जुषस्व। महिमा तेऽन्येन न सन्नशे॥
हे अश्वमेधीय अश्व! आप स्वयं सामर्थ्यशाली बनें, स्वयं यज्ञ द्वारा विस्तारित हों, स्वयं ही पदार्थों से युक्त होकर उन्हें प्राणवान् बनायें। अन्य पदार्थों से जुड़कर आपकी महिमा (आपका प्रभाव) विनष्ट न हो।[यजुर्वेद 23.15]
Hey horse meant for Ashwmedh Yagy! You should become capable-mighty, expand the Yagy by yourself, posses the materials by yourself so that your influence-glory is not destroyed.
न वा उ एतन्प्रियसे न रिष्यसि देवाँ2इदेषि पथिभिः सुगेभिः।
यत्रासते सुकृतो यत्र ते ययुस्तत्र त्वा देवः सविता दधातु॥
हे अश्व! आत्मा कभी मृत्यु को प्राप्त नहीं होती और न ही कभी नष्ट होती हैं। यह देवयान पथ से देवताओं के निकट इस स्थान तक पहुँचती है, जहाँ उत्कृष्ट कर्म करने वाले व्यक्ति निवास करते हैं। जिस लोक में वे पुण्यात्मा मनुष्य गये हैं, वहाँ सर्वप्रेरक सविता देवता तुझे प्रतिष्ठित करें।[यजुर्वेद 23.16]
Hey horse! Soul is neither dead nor destroyed. It reaches close to demigods through the Devyan-divine path where virtuous souls reside. Let all inspiring Savita Dev, place you where the virtuous souls reside.
अग्निः पशुरासीत्तेनायजन्त स एतँल्लोकमजयद्यस्मिन्नग्निः स ते लोको भविष्यति तं जेष्यसि पिबैता अपः। वायुः पशुरासीत्तेनायजन्त स एतँल्लोकमजयद्यस्मि न्वायुः स ते लोको भविष्यति तं जेष्यसि पिबैता अपः। सूर्यः पशुरासीत्तेनायजन्त स एतँल्लोकमजयद्यस्मिन्त्सूर्यः स ते लोको भविष्यति तं जेष्यसि पिबैताऽ अपः॥
पूर्वकाल में स्वयं अग्नि ही यज्ञपशु था। सर्वद्रष्टा उस अग्निरूप पशु के द्वारा देवों ने यजन किया। जिसमें अग्नि तत्त्व प्रधान बल होता है, वह इस लोक को जीत लेता है। हे याजकगण! आप भी इस लोक को जीतने तथा आश्रय प्राप्त करने के लिए इस प्रोक्षणी जल का पान करें। सर्वद्रष्टा वायुरूप पशु के द्वारा देवों ने यजन किया। जिसमें वायु तत्त्व प्रधान बल होता है, वह इस लोक को जीतता है। याजकगण भी इस लोक को जीतने तथा उसमें आश्रय प्राप्त करने के लिए इस शाश्वत ज्ञान को आत्मसात् करें। सर्वद्रष्टा सूर्यरूप पशु के द्वारा देवों ने यजन किया। जिसमें सूर्य तत्त्व प्रधान बल होता है, वह इस लोक को जीतता है। हे याजकगण! आप भी इस शाश्वत ज्ञान को आत्मसात् करें।[यजुर्वेद 23.17]
शाश्वत :: सदा रहने वाला; perpetuity, sempiternal.
During earlier times, Agni Dev himself used to be the Yagy Pashu-animal. Demigods performed Yagy using all sighting Pashu-Agni in the form of Agni-fire. One who has predominant Agni Tattv, over powers this Lok-abode. Hey Yajak Gan! You too should make efforts to win this abode and drink Prokshni water and seek protection. All sighting Vayu was used as a Yagy Pashu by the demigods to perform Yagy. One in whom Vayu Tattv is significant wins this abode. The Yajak Gan too should make efforts to win this abode and seek protection in it, to attain perpetual enlightenment. All sighting Sury Dev was used as the Yagy Pashu by the demigods to perform Yagy. One in whom Sury Tattv is predominant wins this abode. Hey Yajak Gan! You too make efforts to attain this perpetual enlightenment.
प्राणाय स्वाहापानाय स्वाहा व्यानाय स्वाहा। अम्बे अम्बिकेऽम्बालिके न मा नयति कश्चन। ससस्त्यश्वकः सुभद्रिकां काम्पीलवासिनीम्॥
शिथिल अग्नि काम्पीलवासिनी (काम्पील के वृक्ष की समिधाओं पर पड़ी हुई) सुभद्रिकाओं (उत्तम हवियों) के साथ सोती (अप्रज्वलित अवस्था में पड़ी) है। हवियों (यज्ञ पत्नियों) तीन देवियों अम्बा, अम्बिका तथा अम्बालिका से अभ्यर्थना करती हैं कि हे अम्बे! हे अम्बिके! तथा हे अम्बालिके! हमें कोई ऐसी (शिथिल अप्रखर) अवस्था में न ले जायें। प्राणों की तुष्टि के निमित्त यह आहुति समर्पित है। अपान की तुष्टि के लिए यह आहुति समर्पित है। व्यान की तृप्ति के लिए यह आहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 23.18]
शिथिल :: ढीला, थका माँदा; loose, inactive.
Inactive Agni is present in the wood of Kampeel Vraksh-tree with excellent offerings. We worship the three Goddesses Amba, Ambika and Ambalika, hey Ambike, hey Ambalike! One should not carry us in inactive state. For the satisfaction of the Air Vital, Apan & Vayan respectively, these sacrifices are made.
गणानां त्वा गणपतिꣳ हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपतिꣳ हवामहे निधीनां त्वा निधिपतिꣳ हवामहे वसो मम। आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्॥
समस्त गणों का पालन करने के कारण गणपति रूप में प्रतिष्ठित आपको हम आवाहित करते हैं, प्रियजनों का कल्याण करने के कारण प्रियपति रूप में प्रतिष्टित आपको हम आवाहित करते हैं और पद्म आदि निधियों का स्वामी होने के कारण निधिपति रूप में प्रतिष्ठित आपको हम आवाहित करते हैं। हे हमारे परम धन रूप ईश्वर! आप मेरो रक्षा करें। मैं गर्भ से उत्पन्न हुआ जीव हूँ और आप गर्भादि रहित स्वाधीनता से प्रकट हुए परमेश्वर हैं। आपने ही हमें माता के गर्भ से उत्पन्न किया है।[यजुर्वेद 23.19]
पद्म :: कमल का पौधा और फूल; lotus, trillion
We invoke you to establish as Ganpati being the nurturer of all Gans. We invoke you for establishing as Piray Pati for the wellbeing-welfare of the loved ones. You being the Lord of Lotus (seat of Mata Lakshmi) and wealth we invoke & establish you as Nidhi Pati. I am born out of womb and you evolved yourself as Almighty, by yourself without womb. Its you who has produced us from the womb.(19.08.2025)
ता उभौ चतुरः पदः संप्रसारयाव स्वर्गे लोके प्रोर्णुवाथां वृषा वाजी रेतोधा रेतो दधातु॥
आप दोनों (यज्ञीय ऊर्जा तथा दैवी शक्तियाँ) द्युलोक में एक दूसरे की रक्षा करें। दोनों मिलकर धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष रूपी चारों चरणों को भली प्रकार जगत् में विस्तारित करें। हे बलवान्! वीर्य पराक्रम को धारण करने वाले आप हमें (रेतस्) पराक्रम प्रदान करें (वीर्यवान् बनायें)।[यजुर्वेद 23.20]
Both of you (energy of the Yagy and divine powers) should protect each other in the heavens. Both of you should promote the four segments-pillars of life viz Dharm, Arth, Kam, Moksh in the universe. Hey mighty! Make us capable of developing-possessing sperms.
उत्सक्थ्या अव गुदं धेहि समञ्जि चारया वृषन्। य स्त्रीणां जीवभोजनः॥
हे शक्ति शाली दुर्जनों का नाश करने वाले! जो लोग अपनी स्त्रियों (बुद्धियों) को क्रीड़ा तथा व्यसन में योजित करके अपनी आजीविका उपलब्ध करते हैं, आप उनको पीड़ित करें तथा विद्या और न्याय में बुद्धियों के द्वारा श्रेष्ठ सुख को प्रतिष्ठित करें।[यजुर्वेद 23.21]
Hey mighty, capable of destroying the wicked! Torture those who involve women (intellect) in bad habits to earn livelihood and support those who are devoted to enlightenment-learning & justice granting them best comforts-pleasure.
यकाऽसकौ शकुन्तिकाऽऽहलगिति वञ्चति। आहन्ति गभे पसो निगल्गलीति धारका॥
(अध्वर्यु का कथन) यह जो शक्ति धारण किये हुए प्रवाहमान जल है, शकुन्तिका (पक्षी) के सदृश आह्लाद जनित शब्द करता है। इस उत्पादक जल में यज्ञ का तेज आगमन करता है। तेज को धारण करने वाला जल गलगल शब्द करता है।[यजुर्वेद 23.22]
The priest says :- This flowing water produce enthralling-gladdening sound like the bird named Shakuntika. Energy-aura of the Yagy flow with fast speed in this water making Gal-Gal sound.
यकोऽसकौ शकुन्तक आहलगिति वञ्चति।
विवक्षत इव ते मुखमध्वर्यो मा नस्त्वमभि भाषथाः॥
कुमारी का कथन, हे अध्वर्यु! (पूर्वोक्त तेज के प्रभाव से) आपका बोलने के निमित्त आतुर मुख शकुन्तक पक्षी की भाँति सतत शब्द कर रहा है। आप बिना मतलब की बातचीत मत करें (केवल यज्ञीय संदर्भ में अपनी वाणी को प्रयुक्त करें)।[यजुर्वेद 23.23]
Virgin girl says, hey priest! By virtue of the Tej-energy discussed just now, your mouth, ready to speak make sound like the Shakuntak bird regularly. Do not talk unnecessarily; speak only those words which are related with Yagy.
माता च ते पिता च तेऽग्र वृक्षस्य रोहतः। प्रतिलामीति ते पिता गभे मुष्टिमतꣳ सयत्॥
ब्रह्मा का कथन, हे महिषि! आपकी माता अग्नि तथा पिता हवि वृक्ष के अग्रभाग पर (समिधाओं के ऊपर) यज्ञ-सम्बन्धी प्रक्रिया की सहायता से ऊर्ध्व गति को प्राप्त करते हैं। वहाँ से आपके पिता सुसंगठित होकर (यज्ञ के धुएँ से पर्जन्य गठितकर) पर्जन्य की वृष्टिकर शोभायमान होते हैं (यज्ञ के प्रभावित क्षेत्र में पर्जन्य की वृष्टि करते हैं), तब ऐसा लगता है, मानों वे कहते हैं, "मैं प्रसन्न हूँ"।[यजुर्वेद 23.24]
Brahma says, hey Mahishi! Your mother Agni and father offerings-oblations rise up in the sky. There your father is condensed leading to formation of clouds-Parjany, for comforting rain fall in the region of Yagy. It appears as if they are saying, "I am happy".
माता च ते पिता च तेऽग्रे वृक्षस्य क्रीडतः। विवक्षत इव ते मुखं ब्रहान्मा त्वं वदो बहु॥
महिषी-पटरानी का कथन, हे ब्रह्मा! आपकी माता देवगण तथा पिता हवि हैं, जो जगरूपी वृक्ष के उच्च भाग पर क्रीड़ा में संलग्न (शक्ति प्रयोग में लगे हुए) हैं। आपका मुँह बोलने के निमित्त उत्साहित है। इस समय आप व्यर्थ की बात मत बोलें अर्थात् यज्ञ-सम्बन्धी मन्त्रों का ही उच्चारण करें।[यजुर्वेद 23.25]
महिषी :: पटरानी, chief wife of the king, head queen.
Mahishi says, hey Brahma! Your mother constitute the demigods and father is Havi-oblations, who are busy playfully at the apex of the tree. Your mouth is excited to speak. Do not speak unrelated-useless words, speak only those words which are related with the Yagy.
ऊर्ध्वामेनामुच्छ्रापय गिरौ भारꣳ हरन्निव। अथास्यै मध्यमेधताꣳ शीते वाते पुनन्निव॥
उद्गाता वावाता से कहता है, जैसे किसी भार को, पहाड़ों पर पहुँचाकर उन्नत करते हैं तथा कृषक अन्न के बर्तन को ऊँचा उठाकर अन्न को हवा के प्रवाह से शोधित करता है अर्थात् अन्न में जो कचरा होता है उस वायु के द्वारा उड़ाकर साफ करता है, वैसे ही हे प्रजापते! आप हम सबको उन्नत एवं पावन करें।[यजुर्वेद 23.26]
वावाता :: प्राचीन काल में राजा की वह प्रिया पत्नी जो शूद्र जाति की होती थी, इसे प्रिया भी कहा जाता था, जो कि राजा की चार पत्नियों में से एक होती थी।
Udgata says to Vavata, the way a load is raised up by taking it to the mountain, in the same manner the peasant raise the pot-winnower full of grains and clear it with air. Similarly, hey Prajapati you should cleanse us in the similar manner.
ऊर्ध्वमेनमुच्छ्रयताद् गिरौ भार हरन्निव। अथास्य मध्यमेजतु शीते वाते पुनन्निव॥
वावाता का उद्गाता के प्रति कथन, जैसे किसी भार को, पहाड़ों पर पहुंचाकर उन्नत करते हैं तथा कृषक अन्न के बर्तन को ऊँचा उठाकर अन्न को हवा के द्वारा शुद्ध करता है। वैसे ही हे प्रजापते! आप भी उसे (उस राज्य को जिसके लिए यह अश्वमेध किया जा रहा है) उन्नत तथा पावन करें।[यजुर्वेद 23.27]
Udgata says to Vavata, the way a load is raised up by taking it to the mountain, in the same manner the peasant raise the pot-winnower full of grains and clear it with air. Similarly, hey Prajapati you should make the kingdom prosperous and pious for which Ashwmedh Yagy is performed.
यदस्या अꣳहु भेद्याः कृधु स्थूलमुपातसत्। मुष्काविदस्या एजतो गोशफे शकुलाविव॥
होता का परिवृक्ता के प्रति कथन, जिस समय इस पाप को नष्ट करने वाले, दुर्जनों के विनाशक यज्ञीय प्रकृति की धरती पर साक्षात् स्थापन हो जाता है, उस समय क्षत्रिय तथा ब्राह्मण धर्मरूपी गाय के पदों में दो खुरों के सदृश शोभायमान होते हैं।[यजुर्वेद 23.28]
जैसे एक-दूसरे से प्रीति रखनेवाली मछली छोटी ताल तलैया में निरन्तर बसती है, वैसे राजा और राजपुरुष थोड़े भी कर के लाभ में न्यायपूर्वक प्रीति के साथ वर्त्तें और यदि दुःख को दूर करनेवाली प्रजा के थोड़े बहुत उत्तम काम की प्रंशसा करें तो वे दोनों प्रजाजनों को प्रसन्न कर अपने में उनसे प्रीति करावें।
The Hota address the listener, when the Kshatriy and Brahman make efforts jointly like the two hoofs of a virtuous cow; they destroy the sins and the wicked-vicious from the earth over which Yagy is carried out.
यद्देवासो ललामगुं प्रविष्टीमिनमाविषुः। सक्थ्ना देदिश्यते नारी सत्यस्याक्षिभुवो यथा॥
परिवृक्ता का होता के प्रति कथन, जिस समय दिव्य कर्मों (यज्ञादि) में उत्तम पुरुष, (यज्ञ की) हर्ष में वृद्धि करने वाली क्रिया पूर्ण करते हैं, तब जैसे स्त्री को देखकर स्त्री की पहचान हो जाती है, वैसे ही नेत्रों से देखे जाने की भाँति उन्हें सत्य की अनुभूति हो जाती है।[यजुर्वेद 23.29]
Listener replies to the Hota, when divine endeavours are accomplish by the excellent (virtuous, righteous, pious) human beings, gladdening efforts are performed, like the woman's traits-qualities are identified by looking at her, similarly truth is sensed-grasped just by looking.(20.08.2025)
यद्धरिणो यवमत्ति न पुष्टं पशु मन्यते। शूद्रा यदर्ययैजारा न पोषाय धनायति॥
क्षत्ता का पालागली के प्रति कथन :- यदि हिरण खेत में प्रविष्ट हो करके जौ का भक्षण कर ले, तब कृषक हिरण के उदर भरने से खुश नहीं, खेत की क्षति से दुःखी होता है, वैसे ही किसी विद्वान् से शिक्षा प्राप्त करने वाली शूद्रा का अज्ञान से युक्त पति, पत्नी के ज्ञान की वृद्धि से प्रसन्न नहीं होता, बल्कि किसी दूसरे की बात मानने के कारण पत्नी से रुष्ट हो जाता है।[यजुर्वेद 23.30]
क्षत्ता :: द्वारपाल-door keeper, दरबान, मछली-fish, नियोग करने वाला पुरुष, दासीपुत्र-son of a slave woman, प्राचीन काल की एक जाति-ancient caste, ब्रह्मा, कोचवान, सारथी-charoteer, रथ द्वारा युद्ध करने वाला, रथी, कोषाध्यक्ष-treasurer-cashier, क्षत करने वाला, काटने या घाव करने वाला।
पालागली :: प्राचीन भारत में राजा की चौथी और सबसे कम आदर पाने वाली पत्नी, जो शूद्र जाति की होती थी; fourth queen of the king who used to be from lower caste-Shudr.
Kshatta told Palagali :- If the deer enter the crops and eats them, the peasant does become happy, instead he is annoyed. Similarly, the ignorant husband become unhappy with his Shudr wife-woman who is taught-guided by a learned-scholar, under the influence of others.
यद्धरिणो यवमत्ति न पुष्टं बहु मन्यते। शूद्रो यदर्यायै जारो न पोषमनुमन्यते॥
पालागली का क्षत्ता के प्रति कथन :- जिस प्रकार हिरण खेत में प्रवेश करके जौ का भक्षण कर लेता है, तो अत्यधिक पुष्ट हुआ देखकर किसान अप्रसन्न होता है, उसी प्रकार शूद्र (क्षुद्र पुरुष) से प्राप्त गलत शिक्षा को पाकर पुष्ट हुई अपनी स्त्री को देखकर आर्य (ज्ञानी) प्रसन्न नहीं होते।[यजुर्वेद 23.31]
Palagali replied to Kshatta :- The way the deer enters the field and eat barley, the farmer become unhappy on seeing him become strong; similarly the learned-scholar husband does not become happy on finding his wife having taught-misguided by an ignorant Shudr.
Women are easily cheated, mislead-misguided by thugs, wicked, vicious person.
दधिक्राव्णो अकारिषं जिष्णोरश्वस्य वाजिनः।
सुरभि नो मुखा करत्प्र णऽआयूꣳषि तारिषत्॥
मनुष्यों के धारक, द्रुतगामी, सब पर विजय प्राप्त करने में सक्षम अश्व को हम संस्कारित करते हैं। यह अश्व इस यज्ञ के द्वारा हमारे मुखों को सुरभित करने वाला तथा आयु में वृद्धि करने वाला हो।[यजुर्वेद 23.32]
सुरभित :: सुगंधित, सुवासित; aromatic, scented.
We sanctify the fast moving capable-potential horse, who carry human over his back capable of achieving success-victory over all. This horse makes our mouth aromatic, scented in beginning of the Yagy and increase longevity as well.
गायत्री त्रिष्टुब्जगत्यनुष्टुप्पंक्त्या सह। बृहत्युष्णिहा ककुप्सूचीभिः शम्यन्तु त्वा॥
यजमान पत्नी ताँबे, सोने और चाँदी की सुइयों से अश्व की त्वचा को छेदते हुए बोले :- हे अश्व ! गायत्री छन्द, त्रिष्टुप् छन्द, जगती छन्द, अनुष्टुप् छन्द, पंक्ति छन्द के साथ बृहती छन्द, उष्णिक् छन्द तथा ककुप् आदि छन्द इन सुइयों के द्वारा आपको संस्कृत करें।[यजुर्वेद 23.33]
Yajman's wife should pierce the horse skin with the needles of copper, gold and silver and say :- hey horse! Gayatri, Trishtup, Jagti, Anushtap, Pankti, Ushnik, Kakup Chhand respectively etc. should sanctify you with these needles.
द्विपदा याश्चतुष्पदास्त्रिपदा याश्च षट्पदाः।
विच्छन्दा याश्च सच्छन्दाः सूचीभिः शम्यन्तु त्वा॥
हे अश्व! जो दो चरण वाले, तीन चरण वाले, चार चरण वाले तथा छः चरण वाले छन्द हैं, जो छन्द लक्षणों से रहित अथवा लक्षणों से युक्त हैं, ये सभी सुइयों द्वारा आपको संस्कृत करें।[यजुर्वेद 23.34]
Hey horse! Chhands having two, three, four and six stanza with characterises or without characterises, these needles should sanctify you with these.
महानाम्न्यो रेवत्यो विश्वा आशाः प्रभूवरीः। मैघीर्विद्युतो वाचः सूचीभिः शम्यन्तु त्वा॥
हे अश्व! समस्त प्राणियों को धारण करने वाली ऋचाएँ, सम्पूर्ण दिशाएँ, "महानाम्नी" नामक देव वाणियाँ, रेवती नामक ऋचाएँ, बादलों से प्रकट होने वाली बिजली तथा सभी प्रकार की उत्कृष्ट वाणियाँ इन सुइयों द्वारा आपको संस्कृत करें।[यजुर्वेद 23.35]
Hey horse! Let these needles sanctify you with all Richas, all directions, divine speech-voice, excellent voices, Richas named Rewti, lightening in the clouds.
नार्यस्ते पत्न्यो लोम विचिन्वन्तु मनीषया। देवानां पल्यो दिशः सूचीभिः शम्यन्तु त्वा॥
हे अश्व! यजमान पत्नी बुद्धि पूर्वक तुम्हारे रोमों को तोड़े। देवताओं की पत्नियाँ और दिशाएँ इन सुइयों से आपको संस्कृत करें।[यजुर्वेद 23.36]
Hey horse! Wife of the Yajman should prick your bristles carefully. Wife's of the demigods and directions should sanctify you with these needles.
रजता हरिणीः सीसा युजो युज्यन्ते कर्मभिः।
अश्वस्य वाजिनस्त्वचि सिमाः शम्यन्तु शम्यन्तीः॥
चाँदी, सुवर्ण तथा ताम्र आदि की सुइयों से अश्व के शरीर को छेदने से ये सुइयाँ उसके शरीर का संयोग प्राप्त करती हैं। वे सुइयाँ इस अश्व का संस्कार करें।[यजुर्वेद 23.37]
Needle of silver, gold and copper etc. connect-join the skin of the horse. Let these needle sanctify the horse.
कुविदंग यवमन्तो यवञ्चिद्यथा दान्त्यनुपूर्वं वियूय।
इहेहैषां कृणुहि भोजनानि ये बर्हिषो नम उक्तिं यजन्ति॥
हे सोम! जैसे अत्यधिक जौ से परिपूर्ण फसल को किसान विचारपूर्वक क्रमानुसार घास (खरपतवार) आदि से पृथक् करके काटते हैं, वैसे ही कुशासन पर विराजमान होकर जो नमः आदि का उच्चारण करते हुए यज्ञ करते हैं, उन यजमानों के लिए विविध प्रकार के उपभोग योग्य पदार्थ अलग-अलग करके प्रदान करें।[यजुर्वेद 23.38]
Hey Som! The way the farmer-peasant cuts-remove the grass-weeds carefully from the field containing barley crop, similarly provide different useful commodities to the Yajmans separately, uttering ॐ (om) sitting over the Kushasan accomplishing the Yagy.
कस्त्वाऽऽच्छ्यति कस्त्वा विशास्ति कस्ते गात्राणि शम्यति। क उ ते शमिता कविः॥
(प्रश्न) हे अश्व! आपको कौन काटता है? कौन आपकी त्वचा को शरीर से पृथक् करता है? (उत्तर) यह सब कार्य मेधावी प्रजापति ही करते हैं, अन्य नहीं।[यजुर्वेद 23.39]
(Question) :- hey horse! Who licks you? You remove you skin from the body? (Answer) :- This is done by intelligent Prajapati.
ऋतवस्त ऋतुथा पर्व शमितारो वि शासतु। संवत्सरस्य तेजसा शमीभिः शम्यन्तु त्वा॥
हे अश्व ! ऋतुएँ ऋतु के अनुरूप संवत्सर के तेज से तुम्हारी अस्थि-ग्रन्थियों को काटे और हवि रूप में तुम्हें यज्ञकर्म में देवताओं को प्रदान करें।[यजुर्वेद 23.40]
Hey horse! Your Asthi-bones should be cut according to the seasons and the Tej of the Sanwatsar and offer you as oblation to the demigods for performing the Yagy.
अर्द्धमासाः परूꣳषि ते मासा आच्छ्यन्तु शम्यन्तः।
अहोरात्राणि मरुतो विलिष्ट सूदयन्तु ते॥
हे अश्व! रात्रि-दिवस, दोनों पक्ष तथा महीने संस्कार करते हुए तुम्हारे पर्वों को काटें। मरुद्गण तुम्हारे छोटे अंगों को अपने में मिला लें।[यजुर्वेद 23.41]
Hey horse! Day-night, both fortnights & months should sanctify and cut you organs-Parv. Marud Gan should assimilate your small organs in their organs.
दैव्या अध्वर्यवस्त्वाच्छ्यन्तु वि च शासतु। गात्राणि पर्वशस्ते सिमाः कृण्वन्तु शम्यन्तीः॥
दिव्य गुण सम्पन्न अध्वर्यु गण (दोनों अश्विनी कुमार) आपके दोषों का निवारण करके आपको संस्कृत करें तथा आपको हवि रूप प्रदान करें।[यजुर्वेद 23.42]
Let priests having divine traits (both Ashwani Kumars), should remove your defects, sanctify you and grant you as oblation.(21.08.2025)
द्यौस्ते पृथिव्यन्तरिक्षं वायुश्छिद्रं पृणातु ते। सूर्यस्ते नक्षत्रैः सह लोकं कृणोतु साधुया॥
हे अश्व! भूलोक, द्युलोक तथा अन्तरिक्ष लोक आपके दोषों का निवारण करें, वायुदेव तुम्हारे छिद्रों को भर दें। सूर्य तथा नक्षत्र आपके लिए श्रेष्ठ लोकों की रचना करें।[यजुर्वेद 23.43]
Hey horse! Let earth, heavens, the space-sky remove your defects and Vayu Dev should fill your holes. Sury Dev and constellations should create-produce excellent abodes for you.
शं ते परेभ्यो गात्रेभ्यः शमस्त्ववरेभ्यः। शमस्थभ्यो मज्जभ्यः शम्वस्तु तन्वै तव॥
हे अश्व! आपके सिर आदि ऊपर के अंग तथा नीचे का धड़-सभी अंग सुखी हों, उन्हें शान्ति मिले। आपके शरीर की हड्डियों एवं मज्जा को शान्ति मिले। हे अश्व! आपके सब अवयव सुख से पूर्ण हों, आपका सम्पूर्ण शरीर शान्ति को प्राप्त करे।[यजुर्वेद 23.44]
Hey horse! Let all of your body organs be comfortable and have peace. Your bones and marrow should attain peace. Hey horse! Let all of your body organs be complete and whole body should attain peace.
कः स्विदेकाकी चरति क उ स्विज्जायते पुनः।
किꣳ स्विद्धिमस्य भेषजं किम्वावपनं महत्॥
ब्रह्मा होता से प्रश्न करते हैं :- हे होता! अकेला कौन विचरता रहता है? वह कौन है जो बारम्बार उत्पन्न होता है अर्थात् प्रकाशित होता है? हिम की ओषधि क्या है? तथा बीज को बोने हेतु विस्तृत क्षेत्र कौन-सा है?।[यजुर्वेद 23.45]
Brahma questions Hota :- Hey Hota! Who loiter-roam alone? Who shine-reappear again and again? What is the medicine of Ice-cold. Which is the broad-vast place-land for sowing seeds?
सूर्य एकाकी चरति चंद्रमा जायते पुनः। अग्निर्हिमस्य भेषजं भूमिरावपनं महत्॥
यज्ञकर्ता होता उत्तर देता है :- हे ब्रह्मन्! सूर्यदेव ही ऐसे हैं, जो अकेले विचरते हैं। चन्द्रमा बारम्बार उत्पन्न होते हैं अर्थात् प्रकाशित होते हैं। अग्नि हिम (शीत) की ओषधि है। बीज को बोने हेतु विस्तृत क्षेत्र यह धरती है।[यजुर्वेद 23.46]
Yagy performer answers :- Hey Brahman! Sun roam alone. Moon reappears again and again. Fire is the medicine for ice-cold. For sowing seeds earth is a vast place.
किꣳ स्वित्सूर्यसमं ज्योतिः किꣳ समुद्रसम सरः।
किꣳ स्वित्पृथिव्यै वर्षीयः कस्य मात्रा न विद्यते॥
अध्वर्यु होता से पूछता है :- हे होता! वह कौन-सी ज्योति है जो सूर्य के प्रकाश के सदृश है? कौन-सा सरोवर सागर के समान है? धरती से बढ़कर कौन है? किसका परिमाण मापना असम्भव है ?[यजुर्वेद 23.47]
Priest ask the Hota :- Hey Hota! Which light is like the Sun light? Which reservoir is like the ocean? Which place is vast as compared to earth? What is impossible to measure?
ब्रह्म सूर्यसमं ज्योतिर्द्यौ: समुद्रसमꣳ सरः।
इन्द्रः पृथिव्यै वर्षीयान् गोस्तु मात्रा न विद्यते॥
यज्ञकर्ता होता उत्तर देता है :- हे ब्रह्मन्! सूर्य के प्रकाश के समान ब्रह्म ज्योति है। समुद्र के जैसा सरोवर स्वर्ग लोक है, जहाँ से वर्षा होती है। धरती से भी अधिक पुरातन इन्द्र हैं। गौ का परिमाण मापना सम्भव नहीं है अर्थात् गौ की तुलना किसी अन्य से नहीं हो सकती; क्योंकि गौ यज्ञ का धारण करती है।[यजुर्वेद 23.48]
Yagy performer replies :- Hey Brahman! Brahm Jyoti is like the light of Sun. Reservoir like the ocean is heaven from where rain showers. Indr is older than earth. Measuring the quantum is impossible since cow support the Yagy.
पृच्छामि त्वा चितये देवसख यदि त्वमत्र मनसा जगन्थ।
येषु विष्णुस्त्रिषु पदेष्वेष्टस्तेषु विश्वं भुवनमाविवेशाँ3॥
हे देवगणों के सखा उद्गाता! यदि आप मन के द्वारा जानते हों, तो समाधान करें कि विष्णुदेव जिन तीन स्थानों में पूजनीय बने, तो क्या उनमें सम्पूर्ण लोक समाहित हो गये? यह जानने की हमें जिज्ञासा है, इसलिए हम आपसे पूछते हैं।[यजुर्वेद 23.49]
समाहित :: व्यवस्थित रूप में एकत्र किया हुआ; व्यवस्थित; contained.
Hey companion of demigods, Udgata! If you know from the depth of the heart, the three places where Bhagwan Shri Hari Vishnu became worshipable. Were the three abodes contained in HIM? We are eager to know this, hence we are questioning you.
अपि तेषु त्रिषु मदेष्वस्मि येषु विश्वं भुवनमाविवेश।
सद्यः पर्येमि पृथिवीमुत द्यामेकेनांगेन दिवो अस्य पृष्ठम्॥
उद्गाता उत्तर देता है :- हे ब्रह्मन्! उन तीन स्थानों में भी मैं ही हूँ, जिनमें समस्त लोक समाहित हैं। द्युलोक तथा भूलोक एवं ऊर्ध्व लोकों को भी क्षणमात्र में ही मैं इस एक अंग (मन) से जान लेता हूँ।[यजुर्वेद 23.50]
Udgata replies:- Hey Brahman! I constitute one of the three places in whom the three abodes are contained. I identify-recognise the heavens, earth and upper abodes through the innerself (mind & heart), within a fraction of second.
केष्वन्तः पुरुष आविवेश कान्यन्तः पुरुषे अर्पितानि।
एतद् ब्रह्मन्नुप वल्हामसि त्वा किꣳ स्विन्नः प्रति वोचास्यत्र॥
उद्गाता ब्रह्मा से पूछता है :- हे ब्रह्मन्! सबके अन्तःकरण में निवास करने वाला परमेश्वर किन पदार्थों में रमा हुआ है? इस परमात्मा के मध्य में कौन-सी वस्तुएँ अर्पित की गयी हैं? यह जिज्ञासा-पूर्वक आपसे पूछता हूँ। इस विषय में आप क्या कहते हैं?[यजुर्वेद 23.51]
Udgata asks Brahma :- Hey Brahman! In which goods-objects, the Almighty who resides in the innerself of all, is assimilated? Which oblations have been offered in the centre of the Almighty-God? I am anxious to know this. What do you know in this regard?
पञ्चस्वन्तः पुरुष आविवेश तान्यन्तः पुरुषे अर्पितानि।
एतत्त्वात्र प्रतिमन्वानो अस्मि न मायया भवस्युत्तरो मत्॥
ब्रह्मा उत्तर देते हैं :- हे उद्गाता! परमात्मा पंचभूतों में रमा हुआ है। वही समस्त प्राणियों के अन्तःकरण में संव्याप्त है। सभी भूत आत्मा के भीतर तथा आत्मा सब भूतों में समाहित है। इस सम्बन्ध में जानते हुए आपको उत्तर देते हैं, क्योंकि हम आपसे अधिक जानकार हैं।[यजुर्वेद 23.52]
Brahma answers :- Hey Udgata! The Almighty is assimilated in the Panch Bhoot (earth-Prithvi), water-Jal, fire-Agni, air-Vayu) and space-Akash). HE is pervaded in the innerself of all. The past is present in the soul and the soul is assimilated in the past. We reply since we we are aware of this and knows better than you.
का स्विदासीत्पूर्वचित्तिः किꣳ स्विदासीद् बृहद्वयः।
का स्विदासीत्पिलिप्पिला का स्विदासीत्पिशंगिला॥
ब्रह्मा होता से प्रश्न करते हैं :- हे होता! सर्वप्रथम चित्त में धारण करने योग्य कौन-सा विषय है? सबसे अधिक शक्तिशाली पक्षी कौन है? शोभनीय कौन है? सभी स्वरूप को निगल जानेवाला कौन है?[यजुर्वेद 23.53]
Brahma asks the Hora :- Hey Hota! What should be adopted-accepted in the innerself first? Which bird is the mightiest.? What is glorious? What swallows all forms?
द्यौरासीत्पूर्वचित्तिरश्वऽआसीद् बृहद्वयः।
अविरासीत्पिलिप्पिला रात्रिरासीत्पिशंगिला ॥
होता कहते हैं :- हे ब्रह्मन्! सर्वप्रथम चिन्तनीय (स्मरणीय) विषय द्यौ (वृष्टि) है। अश्व ही सबसे अधिक बलवान् पक्षी हैं। वृष्टि से गीली हुई धरती ही पिलिप्पिला है। रात सम्पूर्ण पदार्थों के स्वरूप को निगलने वाली अर्थात् अपने तमिस्त्र में छिपाकर रखने वाली है।[यजुर्वेद 23.54]
Hota says :- Hey Brahman! First to remember is the rain. Horse is the mightiest bird-animal. Earth wetted by the rain is soft. Night swallows every thing i.e., shrouds under darkness.(22.08.2025)
का ईमरे पिशङ्गिला का ईं कुरुपिशङ्गिला। क ई मास्कन्दमर्षति क ईं पन्थां विसर्पति॥
अध्वर्यु होता से पूछता है :- हे होता! रूपों को निगलने वाली कौन है? शब्द करती हुई रूपों को कौन निगल लेती है? कौन है जो कूद-कूदकर चलता है? कौन पथ पर सरककर चलता है?[यजुर्वेद 23.55]
Priest asks the Hota :- Hey Hota! Who swallows the forms (organism)? Who swallows the forms making sound? Who walk by jumps? who move over the path by crawling?
अजारे पिशङ्गिला श्वावित्कुरुपिशङ्गिला। शश आस्कन्दमर्षत्यहिः पन्थां विसर्पति॥
होता उत्तर देता है :- हे अध्वर्यो! रूपों को निगलने वाली अजन्मा माया (enchantment) है। शब्द पूर्वक रूपों को वही निगल जाती है। वन का खरगोश कूद-कूदकर चलता है और साँप पथ पर विशेष गति से सरक-सरककर चलता है।[यजुर्वेद 23.56]
Hota replies :- Hey priest! Maya which swallows the forms (living beings) is unborn. She swallows the form making sound. Rabbit jumps in the forest-jungle. Serpent crawls over the path.
कत्यस्य विष्ठाः कत्यक्षराणि कति होमासः कतिधा समिद्धः।
यज्ञस्य त्वा विदथा पृच्छमत्र कति होतार ऋतुशो यजन्ति॥
ब्रह्मा उद्गाता से पूछता है :- हे उद्गाता! यज्ञ के अन्न कितने प्रकार के होते हैं? अक्षर कितने हैं? हवन कितने प्रकार के हैं? समिधा कितने प्रकार की है? कितने यज्ञकर्ता हैं, जो यज्ञ करते हैं? हम आपसे यज्ञ का ज्ञान प्राप्त करने हेतु प्रश्न करते हैं।[यजुर्वेद 23.57]
Brahma asks the Udgata :- Hey Udgata! How many forms of the food grains for the Yagy are there? How many alphabets are there? How many kinds of Samidha (wood for the Yagy) are there? How many performers of Yagy are there who conduct Yagy? We ask you questions for attaining knowledge of the Yagy.
षडस्य विष्ठाः शतमक्षराण्यशीतिर्होमाः समिधो ह तिस्त्रः।
यज्ञस्य ते विदथा प्र ब्रवीमि सप्त होतार ऋतुशो यजन्ति॥
उद्गाता उत्तर देता है :- हे ब्रह्मन्! यज्ञ के अन्न छः प्रकार के होते हैं। अक्षर सौ होते हैं। हवन अस्सी प्रकार के होते हैं। विख्यात समिधा तीन प्रकार की होती हैं। वषट्कार वाले सात यज्ञ कर्ता प्रत्येक ऋतु में यजन करते हैं। यह बात यज्ञ के ज्ञान हेतु आपसे कहता हूँ।[यजुर्वेद 23.58]
Udgata answers :- Hey Brahman! Six kinds of food grains are there for the Yagy. Hawan has eighty forms. Famous Samidha is of three kinds. Seven performers of Yagy having Vashatkar perform Yagy in every season. I have described you pertaining to Yagy.
को अस्य वेद भुवनस्य नाभिं को द्यावापृथिवी अंतरिक्षम्।
कः सूर्यस्य वेद बृहतो जनित्रं को वेद चन्द्रमसं यतोजाः॥
उद्गाता ब्रह्मा से पूछता है :- हे ब्रह्मन्! इस सृष्टि की नाभि का ज्ञाता कौन है? कौन है जो पृथ्वी, द्युलोक तथा आकाश को जानता है? कौन है जो महान् सूर्य की उत्पत्ति के स्थान का ज्ञाता है? जिससे यह चन्द्रमा उत्पन्न हुआ है, उसे कौन जानता है?[यजुर्वेद 23.55]
Udgata ask the Brahma :- Hey Brahman! Who knows about the center of the evolution? Who is aware of the earth, heavens and the sky-space? Who know about the place of origin of great Sury Dev? Who know one from whom the Moon has evolved?
वेदाहमस्य भुवनस्य नाभिं वेद द्यावापृथिवी अंतरिक्षम्।
वेद सूर्यस्य बृहतो जनित्रमथो वेद चन्द्रमसं यतोजाः॥
ब्रह्मा उत्तर देते हैं :- हे उद्गाता! मैं इस संसार की नाभि को जानने वाले हूँ। मैं स्वर्ग लोक, पृथ्वी लोक तथा अन्तरिक्ष लोक को जाननेवाला हूँ। महान् सूर्य की उत्पत्ति स्थान को भी मैं ही जानता हूँ। चन्द्रमा के उत्पन्न करनेवाले को भी मैं ही जनता हूँ।[यजुर्वेद 23.60]
Brahma answers :- Hey Udgata! I am aware of the navel-nucleus of this universe. I know about the earth, heavens and the sky-space. I know the place of origin of the great Sun. I know who evolved the Moon.
पृच्छामि त्वा परमन्तं पृथिव्याः पृच्छामि यत्र भुवनस्य नाभिः।
पृच्छामि त्वा वृष्णो अश्वस्य रेतः पृच्छामि वाचः परमं व्योम॥
यजमान अध्वर्यु से पूछता है :- हे अध्वर्यु! हम धरती के महाअन्त के विषय में पूछते हैं। धरती के नाभि स्थान को भी पूछते हैं। सभी प्रकार के सुखों की वृष्टि करने में सक्षम, सभी जगह व्याप्त परमेश्वर का उत्पादक बल कौन है? यह हम आपसे पूछते हैं। वाणी का उत्कृष्ट स्थल क्या है? यह भी आपसे पूछते हैं।[यजुर्वेद 23.61]
Yajman asks the Priest :- Hey priest! We are asking about the annihilation & navel-nucleus of the earth. Who is capable of showering all sorts of comforts-pleasure and generating might-strength in all pervading Almighty? This is what we are asking you. Which is the best place of sound-voice? We ask you this as well.
इयं वेदिः परो अन्तः पृथिव्या अयं यज्ञो भुवनस्य नाभिः।
अय सोमो वृष्णो अश्वस्य रेतो ब्रह्मायं वाचः परमं व्योम॥
अध्वर्यु उत्तर देता है :- हे यजमान! यह उत्तर वेदी ही धरती का परम अन्त है। यह यज्ञ ही सम्पूर्ण लोकों की नाभि (यज्ञ से ही सम्पूर्ण संसार की उत्पत्ति हुई) है। सब प्रकार के सुखों की वृष्टि करने में सक्षम सभी जगह व्याप्त परमेश्वर का उत्पादक बल यह सोम ही है। ब्रह्मा ही वाणी का श्रेष्ठ स्थान है।[यजुर्वेद 23.62]
Priest answers :- Hey Yajman! This Uttar Vedi is the Ultimate end of the earth. This Yagy constitute the nucleus of the universe. Showerer of all kinds of comforts-pleasure and strength of the all pervading Almighty is Som. Brahma is the best place of the voice-speech.
सुभूः स्वयंभूः प्रथमोऽन्तर्महत्यर्णवे। दधे ह गर्भमृत्वियं यतो जातः प्रजापतिः॥
सम्पूर्ण सृष्टि के उत्पत्ति कर्ता स्वयम्भू परमात्मा ने महान् सागर के मध्य समयानुसार उपलब्ध गर्भ को धारण किया, जिससे प्रजापति ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई।[यजुर्वेद 23.63]
The evolver of the entire life, self evolving Almighty him self supported the bomb in the ocean at the most opportunate time, leading to the birth of Brahma.
होता यक्षत्प्रजापतिꣳ सोमस्य महिम्नः। जुषतां पिबतु सोमꣳ होतर्यज॥
यज्ञकर्ता ने महिमावान् सोम के माध्यम से प्रजापति का पूजन किया। प्रजापति सोमरस को प्रसन्नता के साथ ग्रहण करें तथा पान करें। हे यज्ञकर्ता होता! आप भी ऐसे ही यजन करें।[यजुर्वेद 23.64]
The Yagy performer worshipped Prajapati with glorious Som. Let Prajapati accept & drink Somras happily. Hey Yagy performing Hota! You too organise such Yagy.
प्रजापते न त्वदेतान्यन्यो विश्वा रूपाणि परि ता बभूव।
यत्कामास्ते जुहुमस्तन्नो अस्तु वयꣳ स्याम पतयो रयीणाम्॥
सभी प्रजाओं के पालक हे प्रजापति! हम जिस कारण यह यज्ञ करते हैं, हमारा अभिप्राय पूर्ण हो। हम आपकी अनुकम्पा अनुग्रह द्वारा वीर्यवान् बनें एवं धन-सम्पदा प्राप्त करें अर्थात् सदैव सुखपूर्वक रहें।[यजुर्वेद 23.65]
Hey supporter of the entire populace, Prajapati! Our desire-motive for conducting Yagy should be accomplished. By virtue of your grace-blessings, we should become potential-potent, have wealth-prosperous and remain comfortably.(23.08.2025)
यजुर्वेद संहिता चतुर्विंशोऽध्याय :: ऋषि :- प्रजापति; देवता :- प्रजापति, सोम, अश्व, मरुत, विश्वेदेवा, अग्न्यादि, इन्द्रादि, इन्द्र और अग्नि, अंतरिक्ष, वसन्त आदि, विराजादि, पितर, वायु, वरुण, सोमादि, कालावयव, भूम्यादि, वसु, ईशान, प्रजापति, मित्रादि, चन्द्रादि, अश्विनी कुमार, अर्धमासादि, वर्षादि, आदित्यादि, विश्वेदेवादि; छन्द :- कृति, जगती, धृति, बृहती, उष्णिक्, पंक्ति, गायत्री, अनुष्टुप्, शक्वरी, त्रिष्टुप्।
अश्वस्तूपरो गोमृगस्ते प्राजापत्याः कृष्णग्रीव आग्नेयो रराटे पुरस्तात्सारस्वती मेष्यधस्ताद्धन्वोराश्विनावधोरामौ बाह्वोः सौमापौष्णः श्यामो नाभ्याꣳ सौर्ययामौ श्वेतश्च कृष्णश्च पार्श्वयोस्त्वाष्ट्रौ लोमशसक्थौ सक्थ्योर्वायव्यः श्वेतः पुच्छ इन्द्राय स्वपस्याय वेहद्वैष्णवो वामनः॥
द्रुतगामी अश्व, श्रृंगहीन बैल तथा नीलगाय, ये तीनों पशु को प्रजापति की प्रीति के निमित्त बाँधे। काली ग्रीवा वाले अज को अग्नि देव की प्रीति के निमित्त बाँधे। मेषी को देवी सरस्वती की प्रसन्नता के निमित्त बाँधे। श्वेत वर्ण के अज को अश्विद्वय की प्रसन्नता के लिए बाँधे। ऐसा अश्व जिसका नाभि-स्थान कृष्ण वर्ण का हो, उसे सोमदेव तथा पूषा देव की प्रीति के निमित्त बाँधे। श्वेत तथा कृष्ण वर्ण के जिनके पार्श्व हैं, ऐसे अश्व को सूर्य देव तथा यम देव की प्रीति के निमित्त बाँधे। अधिक रोम वाले को त्वष्टा देव की प्रीति के निमित्त बाँधे। श्वेत पूँछ वाले को वायु देव के निमित्त बाँधे, गर्भ घातिनी गौ को देवराज इन्द्र के निमित्त बाँधे तथा विष्णु देव की प्रीति के निमित्त वामन अर्थात् कम ऊँचाई वाले अथवा नाटे पशु को बाँधे।[यजुर्वेद 24.1].
Fast moving horse, ox without horns and Neel Gay should be tied for the sake of Prajapati. Goat with black neck should be tied for the sake of Agni Dev. She sheep should be tied for the sake-happiness of Devi Saraswati. Horse with black navel should be tied for the happiness of Som Dev and Pusha Dev. Horse with black and white sides, should be tied for Sury Dev & Yam Dev. Horse with excess bristles should be tied for Twasta Dev. Horse for Vayu Dev having white tail should be tied. Cow with lost embryo should be tied for Devraj Indr. For the love & affection of Bhagwan Shri Hari Vishnu tie horse with low height i.e., dwarf.
रोहितो धूम्ररोहितः कर्कन्धुरोहितस्ते सौम्या बभ्रुररुणबभ्रुः शुकबभ्रुस्ते वारुणाः शितिरन्ध्रोऽन्यतः शितिरन्ध्रः समन्तशितिरन्धस्ते सावित्राः शितिबाहुरन्यतः शितिबाहुः समन्तशितिबाहुस्ते बार्हस्पत्याः पृषती क्षुद्रपृषती स्थूलपृषती ता मैत्रावरुण्यः॥
लाल, धूम्र वर्ण के, पक्व बदरी फल (बेर) के सदृश वर्ण वाले पशु सोम देवता से सम्बन्धित हैं। भूरा, लाल भूरा, हरा भूरा वर्ण का पशु वरुण के निमित्त है। श्वेत वर्ण की बिन्दियों वाले, एक ओर श्वेत बिन्दियों वाले, सभी ओर श्वेत बिन्दियों वाले पशु सर्व प्रेरक सविता देव के निमित्त हैं। श्वेत वर्ण के चरण वाले पशु बृहस्पति देव के निमित्त हैं। चितकबरे छोटे अथवा बड़े चकत्ते वाले पशु मित्रा-वरुण देवों से सम्बन्धित हैं।[यजुर्वेद 24.2]
चितकबरे :: विचित्र, अबलख़, रंग-बिरंग, चितला, अबलख़; spotted, pinto, piebald, dappled.
Animals with red, smoky or ripe jujube are related with Som Dev. Umber-brown, greenish brown coloured animals are for Varun Dev. Animals having white spots, one sided white spots, white spots on all sides are meant for all knowing Savita Dev. Animals with white legs are meant for Brahaspati Dev. Spotted, dappled animals with small or large spots are for Mitra Varun Dev.
शुद्धवालः सर्वशुद्धवालो मणिवालस्त आश्विनाः श्येतः श्येताक्षोऽ रुणस्ते रुद्राय पशुपतये कर्णा यामाअवलिप्ता रौद्रा नभोरूपाः पार्जन्याः॥
शुभ्र केश वाले, सर्व शुद्ध केशों वाले, मणि के समान वर्ण वाले पशु दोनों अश्विनी कुमारों के लिए हैं। ऐसे वर्ण के पशु, श्वेत चक्षु वाले पशु तथा लाल श्वेत वर्ण वाले पशु पशुओं के अधिपति रुद्र देव के निमित्त हैं। जो पशु चन्द्रमा के सदृश श्वेत कर्ण वाले हैं, वे यमदेव से सम्बन्धित हैं। जो पशु रौद्र स्वभाव वाले हैं, वे रुद्र देवता के निमित्त हैं। नभ के सदृश नीले वर्ण वाले पशु पर्जन्य देवता की प्रीति के निमित्त हैं।[यजुर्वेद 24.3]
Animals with white hair, clean hair, having colour of Mani-Jewel are mean for both Ashwani Kumars. Animals with such colours, white eyes, red & white coloured, are set for the Lord of animals Rudr Dev. Animals with white colour Moon are related with Yam Raj. Furious animals are set for Rudr Dev. Animals with the colour of sky are meant for Parjany Dev.
पृश्विस्तिरश्चीनपृश्विरूर्ध्वपृश्निस्ते मारुताः फल्यूर्लोहितोर्णी पलक्षी ताः सारस्वत्यः प्लीहाकर्णः शुण्ठाकर्णोऽध्यालोहकर्णस्ते त्वाष्ट्राः कृष्णग्रीवः शितिकक्षोऽञ्जिसक्थस्तऐंद्राग्नाः कृष्णाञ्जिरल्पाञ्जिर्महाञ्जिस्त उषस्याः॥
दिव्य वर्ण वाले पशु, तिर्यक् रेखा वाले पशु, ऊर्ध्व अधः लम्ब मान रेखा वाले पशु मरुद्गण से सम्बन्धित है। अपुष्ट शरीर वाले पशु, लोहित वर्ण अथवा श्वेत वर्ण के लोम वाले पशु देवी सरस्वती से सम्बन्धित हैं। प्लीहा के सदृश कर्ण वाले, लम्ब कर्ण वाले, छोटे-छोटे कर्ण वाले, रक्त वर्ण कर्ण वाले पशु त्वष्टादेव से सम्बन्धित हैं। कृष्ण रेखा वाले, अल्प रेखा वाले या पूरे देह पर रेखाओं से युक्त पशु उषा देवता से सम्बन्धित हैं।[यजुर्वेद 24.4]
Animals having divine colour, cross lines, vertical-perpendicular lines are related with Marud Gan. Under nourished, red coloured or having white coloured bristles are related with the Goddess of animals Devi Saraswati. Animals with the ears of colour of Spleen, long ears, small ears, red coloured ears are related with Twasta Dev. Animals having black lines, small lines or with lines over the whole body are related with Usha Devi.
शिल्पा वैश्वदेव्यो रोहिण्यस्त्र्यवयो वाचेऽविज्ञाता अदित्यै सरूपा धात्रे वत्सतर्यो देवानां पत्नीभ्यः॥
दिव्य तथा अनेक वर्णों वाले पशु विश्वेदेवों से सम्बन्धित हैं। लाल वर्ण के पशु जो डेढ़ वर्षों की आयु वाले हैं, वे वायु देवता से सम्बन्धित हैं। अज्ञानी अथवा चिह्न विहीन पशु देवताओं की माता अदिति से सम्बन्धित हैं। उत्तम स्वरूप वाले पशु धाता देवता से सम्बन्धित हैं। तीन बाल वाली छागी देवताओं की पत्नियों से सम्बन्धित हैं।[यजुर्वेद 24.5]
Animals with divine and many colours are related with Vishwe Dev. Red coloured animals with the age of one and a half years are related with Vayu Dev. Ignorant animals or without signs are related with Mata Aditi. Animals with excellent beauty are related Dhata Dev. Goat with 3 hairs is related with the wives of the demigods.
कृष्णग्रीवा आग्नेयाः शितिभ्रवो वसूनाꣳरोहिता रुद्राणाꣳ श्वेताऽ अवरोकिण आदित्यानां नभोरूपाः पार्जन्याः॥
काली गर्दन वाले पशु अग्नि देवता से सम्बन्धित हैं। श्वेत वर्ण की भौंह वाले पशु वसु देवता से सम्बन्धित हैं। लाल वर्ण के पशु रुद्र देवता से सम्बन्धित हैं। श्वेत वर्ण के पशु आदित्य देवता से सम्बन्धित हैं। आकाश के सदृश नीले वर्ण वाले पशु पर्जन्य देवता से सम्बन्धित हैं।[यजुर्वेद 24.6]
Animals with black neck are set for Agni Dev. Animals with white brows are meant for Vasu Dev. Red coloured animals are related to Rudr Dev. White coloured animals are related to Adity Dev. Animals with the eye colour of the sky, are meant for Parjany dev.
उन्नतऋषभो वामनस्त ऐंद्रा वैष्णवा उन्नतः शितिबाहुः शितिपृष्ठस्त ऐंद्रा बार्हस्पत्याः शुकरूपा वाजिनाः कल्माषा आग्निमारुताः श्यामाः पौष्णाः॥
ऊँचे, परि पुष्ट अथवा बौने पशु देवराज इन्द्र और बृहस्पति देवता से सम्बन्धित हैं। तोते नामक पक्षी के सदृश वर्ण वाले पशु वाजी देवता से सम्बन्धित हैं। चितकबरे पशु अग्नि देवता से तथा मरुद्गण से सम्बन्धित हैं। श्याम वर्ण वाले पशु पूषा देवता से सम्बन्धित हैं।[यजुर्वेद 24.7]
Tall, properly nourished or dwarf animals are related with Devraj Indr & Brahaspati Dev. Animals with the colour of the parrot are related with Vaji Dev of the animals. Spotted-dappled animals are related to Marud Gan. Black coloured animals are to Pusha Dev.(24.08.2025)
एता ऐंद्राग्नाः द्विरूपा अग्नीषोमीया वामना अनड्वाह आग्नावैष्णवा वशा मैत्रावरुण्योऽन्यत एन्यो मैत्र्यः॥
चितकबरे पशु इन्द्राग्नि देवता से सम्बन्धित हैं। दो स्वरूप वाले पशु अग्नि देवता तथा सोम देवता से सम्बन्धित हैं। नाटे पशु अग्नि देव तथा विष्णु देवता से सम्बन्धित हैं। वन्ध्या अजा मित्रा-वरुण देवों से सम्बन्धित हैं तथा एक ओर से चित्त-विचित्र पशु मित्र देवता से सम्बन्धित हैं।[यजुर्वेद 24.8]
चित्र-विचित्र :: कई रंगों वाला, रंग-बिरंगा या बेल-बूटेदार; mottled, variegated, chequered, picturesque.
Spotted animals are related to demigods & Indr Dev. Animals having two forms are related with Agni Dev & Som Dev. Dwarf animals are related to Agni Dev and Shri Hari Vishnu. Sterilized goat are connected with Mitra-Varun Dev. Chequered animals are related to the demigod of the animals Mitr Dev.
कृष्णग्रीवा आग्नेया बभ्रवः सौम्याः श्वेता वायव्या अविज्ञाता अदित्यै सरूपा धात्रे वत्सतर्यो देवानां पत्नीभ्यः॥
काली गर्दन वाले पशु अग्नि देवता से सम्बन्धित हैं। कपिल वर्ण के पशु सोम देवता से सम्बन्धित हैं। जिन पशुओं के सम्पूर्ण अंग श्वेत वर्ण के हों, वे वायु देवता से सम्बन्धित हैं। अविज्ञात वर्ण वाले पशु देवमाता अदिति से सम्बन्धित हैं। उत्कृष्ट स्वरूप वाले पशु धाता देवता से सम्बन्धित हैं तथा वत्सछागी पशु देवांगनाओं से सम्बन्धित हैं।[यजुर्वेद 24.9]
कपिल वर्ण :: तांबे जैसा भूरा रंग; Tawny, Brownish colour.
Animals with black neck are related with Agni Dev. Animals with Tawny, or Brownish colour are related with Som Dev. Animals with white colour are related with Vayu Dev. Animals with unspecified colour are related with Dev Mata Aditi. Animals with excellent form are related to Pashu Dhata Dev. Vatschhagi (adultery) animals are related with nymphs, goddesses.
कृष्णा भौमा धूम्रा आंतरिक्षा बृहन्तो दिव्याः शबला वैद्युताः सिध्मास्तारकाः॥
कृष्ण वर्ण वाले पशु पृथ्वी से सम्बन्धित हैं। धूम्र वर्ण के पशु अन्तरिक्ष से सम्बन्धित हैं। बड़े पशु स्वर्ग से सम्बन्धित हैं। चितकबरे पशु विद्युत् से सम्बन्धित हैं। सिध्म पशु नक्षत्र से सम्बन्धित हैं।[यजुर्वेद 24.10]
Black coloured animals are related with the earth. Animals with smoky colour are related with the space-sky. Large animals are related with the heavens. Spotted animals are related with lightening. Animals having leprosy with white spots, are connected with the constellations.
धूम्रान् वसन्तायालभते श्वेतान् ग्रीष्माय कृष्णान् वर्षाभ्योऽरुणांछरदे पृषतो हेमन्ताय पिशङ्गाञ्छिशिराय॥
धूम्र वर्ण वाले पशु वसन्त ऋतु से सम्बन्धित हैं। श्वेत वर्ण वाले पशु ग्रीष्म ऋतु से सम्बन्धित हैं। कृष्ण वर्ण के पशु वर्षा ऋतु से सम्बन्धित हैं। अरुण वर्ण के पशु शरद् ऋतु से सम्बन्धित हैं। विविध वर्ण के पशु तथा बिन्दु युक्त पशु हेमन्त ऋतु से सम्बन्धित हैं। अरुण, कपिल वर्ण वाले पशु शिशिर ऋतु से सम्बन्धित हैं।[यजुर्वेद 24.11]
Animals with smoky colour are related with the spring season. White animals are related to summers. Reddish-yellow animals are related with winters. Animals having dots and vivid colours are related with Hemant (winters). Reddish-yellow, tawny, brown, dull brown, reddish-brown coloured animals are related with Shishir (winters).
त्र्यवयो गायत्र्यै पञ्चावयस्त्रिष्टुभे दित्यवाहो जगत्यै त्रिवत्साऽ अनुष्टुभे तुर्यवाह उष्णिहे॥
डेढ़ वर्ष की आयु वाले पशु गायत्री छन्द से सम्बन्धित हैं। ढाई वर्ष की आयु वाले पशु त्रिष्टुप् छन्द से सम्बन्धित हैं। दो वर्ष की आयुवाले पशु जगती छन्द से सम्बन्धित हैं। तीन वर्ष की आयु वाले पशु अनुष्टुप् छन्द से सम्बन्धित हैं। साढ़े तीन वर्ष वाले पशु उष्णिक् छन्द से सम्बन्धित हैं।[यजुर्वेद 24.12]
Animals of the age of one & half years are related with Gayatri Chhand. Animals with the age of two and half years are related with Trishtup Chhand. Two year old animals are related with Jagti Chhand. Three year old animals are related with Anushtap Chhand. Animals with the age of three and half years are related with Ushnik Chhand.
पष्ठवाहो विराज उक्षाणो बृहत्या ऋषभाः ककुभेऽनड्वाहः पंक्त्यै धेनवोऽतिच्छन्दसे॥
चार वर्ष की आयु वाले पशु विराट् छन्द से सम्बन्धित हैं। युवावस्था वाले पशु बृहती छन्द से सम्बन्धित हैं। उक्षा से अधिक आयु वाले ककुभ् छन्द से सम्बन्धित हैं। शकट-वाहक पशु पंक्ति छन्द से सम्बन्धित हैं। नवोत्पन्न पशु अतिछन्द से सम्बन्धित हैं।[यजुर्वेद 24.13]
उक्षा :: sprinkling, wet, cleansed, moist, large uncastrated male cattle (bull).
Four year old animals are related with Virat Chhand. Young animals are related with Brahati Chhand. Large uncastrated male cattle (bull) are related to Kakubh Chhand. Cart carrying animals are related to Pankti Chhand. Newly born animals are related to Atichhand.
कृष्णग्रीवा आग्नेया बभ्रवः सोम्या उपध्वस्ताः सावित्रा वत्सतर्यः सारस्वत्यः श्यामाः पौष्णाः पृश्नयो मारुता बहुरूपा वैश्वदेवा वशा द्यावापृथिवीयाः॥
कृष्ण वर्ण की गर्दन वाले पशु अग्नि देवता से सम्बन्धित हैं। भूरे वर्ण के पशु सोम देवता से सम्बन्धित हैं। मिले-जुले वर्ण वाले पशु सर्वप्रेरक सविता देव से सम्बन्धित हैं। वत्सछागी (कम आयु वाली बछिया) देवी सरस्वती से सम्बन्धित हैं। श्यामल वर्ण के पशु पूषा देवता से सम्बन्धित हैं। चितकबरे पशु मरुद्गण से सम्बन्धित हैं। विविध स्वरूप वाले पशु विश्वेदेवा से सम्बन्धित हैं। वन्ध्या गौएँ द्यावा पृथिवी से सम्बन्धित हैं।[यजुर्वेद 24.14]
बछिया :: बछड़ी, ओसर, जघनपिंडिका; heifer, calf, she calf.
Black necked animals are related to Agni Dev. Brown coloured animals are related to Som Dev. Animals having mixed colours are related to all inspiring, Savita Dev. Heifer-she calf is related to Devi Saraswati. Animals having black colour are related to Pusha Dev. Spotted animals are related to Marud Gan. Animals with vivid forms-colours are related to Vishwe Dev.
उक्ताः सञ्चरा एता ऐंद्राग्ग्राः कृष्णा वारुणाः पृश्नयो मारुताः कायास्तूपराः॥
कृष्ण वर्ण की गर्दन वाले जो पन्द्रह पशु बतलाये गये हैं, वे अग्नि देव, सोम देव, सर्वप्रेरक सविता देव, देवी सरस्वती आदि से सम्बन्धित हैं। श्यामल वर्ण के पशु पूषा देव से सम्बन्धित हैं। चितकबरे पशु इन्द्राग्नि से सम्बन्धित हैं। कृष्ण वर्ण के पशु वरुण देव से सम्बन्धित हैं। दुबले-पतले शरीर वाले पशु मरुद्गण से सम्बन्धित हैं। शृंग रहित पशु प्रजापति से सम्बन्धित हैं।[यजुर्वेद 24.15]
15 animals with black neck are related to Agni Dev, Som Dev, all inspiring Savita Dev, Devi Saraswati etc. Black skinned animals are related to Pusha Dev. Spotted animals are related to Indragni. Black skinned animals are related to Varun Dev. Lean & thin animals are connected to Marud Gan. Animals without horns are related to Prajapati.
अग्नयेऽनीकवते प्रथमजानालभते मरुद्भ्यः सांतपनेभ्यः सवात्यान् मरुद्भ्यो गृहमेधिभ्यो बष्किहान्मरुद्भयः क्रीडिभ्यः सꣳसृष्टान्मरुद्भ्यः स्वतवद्भ्योऽनुसृष्टान्॥
माता के प्रथम गर्भ से उत्पन्न हुए पशु अग्नि देव से सम्बन्धित हैं। वात मण्डली के मध्य में विद्यमान पशु मरुद्गण से सम्बन्धित हैं। दीर्घकाल के उत्पन्न हुए पशु गृहमेधी नामक मरुद्गण की प्रीति के लिए बन्धन युक्त करना चाहिए।[यजुर्वेद 24.16]
वात मण्डली :: weather group.
Animals born out of mother's uterus-embryo are related to Agni Dev. Animals present in between the weather group-Vat Mandali, are related with Marud Gan. Animal born long ago should be tied for the Marud Gan named Grah Medhi.
उक्ताः सञ्चरा एता ऐंद्राग्ग्राः प्राशृंगा माहेन्द्रा बहुरूपा वैश्वकर्मणाः॥
कृष्ण वर्ण की गर्दन वाले जो 15 पशु अट्ठारहवें यूप में कहे गये हैं, वे अग्नि देव, सोम देव, सर्वप्रेरक सविता देव, देवी सरस्वती तथा पूषा देवता से सम्बन्धित हैं। उन्नीसवें यूप में जो चितकबरे पशु बताये गये हैं, वे इन्द्राग्नि से सम्बन्धित हैं। प्रकृष्ट श्रृंगों वाले पशु महेन्द्र देवता से सम्बन्धित हैं। विविध स्वरूप वाले तीन पशु विश्वकर्मा देव की प्रसन्नता के निमित्त बाँधने चाहिए।[यजुर्वेद 24.17]
यूप :: यज्ञ के लिए प्रयुक्त वह खंभा है जिसमें बलि का पशु बाँधा जाता है या विजय/कीर्ति की स्मृति में बना स्तंभ; central pole fixed in the Yagy.
15 animals with black neck explained in 18th Yoop are related to Agni Dev, Som Dev, all inspiring Savita Dev, Devi Saraswati and Pusha Dev. Animals described in the 19th Yoop are spotted animals related to Indragni. Animals with excellent horns are related to Mahendr Dev. Animals having various forms are related to Vishw Karma Dev.
धूम्रा बभ्रुनीकाशाः पितॄणाꣳ सोमवतां बभ्रवो धूम्रनीकाशाः पितॄणां बर्हिषदां कृष्णा बभ्रुनीकाशाः पितॄणामग्निष्वात्तानां कृष्णाः पृषतस्त्रैयम्बकाः॥
धूम्र वर्ण वाले पशु तथा कपिल वर्ण के पशु सोम पान करने वाले पितर गणों से सम्बन्धित हैं। कपिल वर्ण के पशु, धूम्म्र के सदृश पशु कुशासन पर विराजमान होने वाले (बर्हिषद्) पितर गणों से सम्बन्धित हैं। कृष्ण वर्ण के पशु तथा कपिल वर्ण के पशु अग्निष्वात्त नामक पितर गणों से सम्बन्धित हैं। कृष्ण वर्ण के पशु तथा बिन्दु युक्त पशु त्र्यम्बक देवता से सम्बन्धित हैं।[यजुर्वेद 24.18]
Smoke coloured and brownish animals are related to the Manes who drink Somras. Brownish and smoke skinned animals are related to the Manes-Pitr Gan called Barhishad, who occupy Kushasan-Kush Matt. Black skinned and Kapil-brownish animals are related to the Manes named Agnishvatt. Black skinned spotted animals are related with Trayambak Dev.(26.08.2025)
उक्ताः सञ्चरा एताः शुनासीरीयाः श्वेता वायव्याः श्वेताः सौर्याः॥
पूर्व में बतलाये जा चुके पशुओं के अलावा शुनासीर (इंद्र, सूर्य, देवता) संज्ञक पशु भी हैं। चितकबरे वर्ण के पशु शुनासीरीय हैं। वायु देव की प्रीति के लिए श्वेतवर्ण के पशु तथा सर्वप्रेरक सविता देव की प्रीति के निमित्त धवल आभायुक्त पशु बाँधना चाहिए।[यजुर्वेद 24.19]
Other than those discussed before, there are animals called Shunaseer (demigods, Devraj Indr, Sury Dev). Spotted animals are Shunaseer. For the love and affection of Vayu Dev white and all inspiring Savita Dev white coloured animals with aura should be tied.
वसन्ताय कपिञ्जलानालभते ग्रीष्माय कलविंकान्वर्षाभ्यस्तित्तिरीञ्छरदे वर्त्तिका हेमन्ताय ककरांछिशिराय विककरान्॥
वसन्त ऋतु के निमित्त कपिञ्जल (चातक), ग्रीष्म ऋतु के निमित्त कलविंक गौरैया, वर्षा ऋतु के निमित्त तीतर, शरद् ऋतु के निमित्त लवा, हेमन्त ऋतु के निमित्त ककर तथा शिशिर ऋतु के निमित्त विककर पक्षियों को नियुक्त करें।[यजुर्वेद 24.20]
For springs Kapinjal-Chatak, summers Kalvink Gouraeya, rainy season Teetar, winters Lava, Hemant Kakar and Shishir Vikkar named birds should be selected.
समुद्राय शिशुमारानालभते पर्जन्याय मंडूकानद्भ्यो मत्स्यान् मित्राय कुलीपयान् वरुणाय नाक्रान्॥
सागर के निमित्त शिशुमार, पर्जन्य अर्थात् बादल के जल के निमित्त मण्डूक, जल के निमित्त मत्स्य, मित्र देवता के निमित्त केकड़े एवं वरुण देवता के निमित्त नक्र नामक जलीय जन्तु की नियुक्ति करें।[यजुर्वेद 24.21]
For the ocean Shishumar, for Parjany Manduk, for water Matsy-fish, for Mitr Dev crab and for Varun Dev select Nakr-a water born animal.
सोमाय हꣳ सानालभते वायवे बलाकाइन्द्राग्निभ्यां क्रुञ्चान् मित्राय मद्गुन् वरुणाय चक्रवाकान्॥
सोमदेवता के निमित्त हंस, वायु देवता के निमित्त बगुली, इन्द्राग्नि के निमित्त सारस, मित्र देव के निमित्त जल-काक तथा वरुण देवता के निमित्त चकवों की नियुक्ति करें।[यजुर्वेद 24.22]
For Som Dev Swan, Vayu Dev female Heron, Indragni Crane, Mitr Dev Jal Kak, Varun Dev Chakva-skylark respectively should be selected.
अग्नये कुटरूनालभते वनस्पतिभ्य उलूकानग्नीषोमाभ्यां चाषानश्विभ्यां मयूरान् मित्रावरुणाभ्यां कपोतान्॥
अग्नि देवता के निमित्त मुर्गे, वनस्पति देवता के निमित्त उलूक नामक पक्षी, अग्नि-सोम के निमित्त नीलकंठ नामक पक्षी, अश्विनी कुमारों के निमित्त मोर नामक पक्षी एवं मित्रा-वरुण देवों के निमित्त कबूतर नामक पक्षी को नियोजित करें।[यजुर्वेद 24.23]
For Agni Dev cock, Vanaspati Dev owl, Agni-Som Neel Kanth (Indian Roller Coracias benghalensis), Ashwani Kumars peacock and Mitra-Varun pigeon, named birds should be selected, respectively.
सोमाय लबानालभते त्वष्ठे कौलीकान् गोषादीर्देवानां पत्नीभ्यः कुलीका देवजामिभ्योऽग्नये गृहपतये पारुष्णान्॥
सोम देवता की प्रीति के निमित्त बटेर (लवा) नामक पक्षी, त्वष्टा देव की प्रीति के निमित्त कौलीक (बया) नामक पक्षी, देवताओं की पत्नियों की प्रीति के निमित्त गोहादि, गुह्यतल पक्षी, देवताओं की भगिनिओं के निमित्त कुलीक नामक पक्षी तथा गृहों के अधिष्ठाता अग्नि देवता के निमित्त पारुष्ण नामक पक्षी को नियुक्त करें।[यजुर्वेद 24.24]
For the love of Som quail, Twasta Dev weaver bird, wives of demigods Guhytal, sisters of demigods Kukeel and deity of the planets Agni Dev Parushn should be deployed, respectively.
अह्ने पारावतानालभते रात्र्यै सीचापूरहोरात्रयोः संधिभ्यो जतुर्मासेभ्यो दात्यौहान्त्संवत्सराय महतः सुपर्णान्॥
दिवस के निमित्त कपोत नामक पक्षी को, रात के निमित्त सीचापू नामक पक्षी की, दिन-रात के मध्य में सायंकाल के निमित्त जतू (चमगादड़) नामक पक्षी को, महीनों के निमित्त दात्यौह (कृष्ण वर्ण के कौवों) को एवं संवत्सर के निमित्त मनोहर पक्ष वाले सुपर्ण (गरुड़) नामक पक्षी को नियोजित करें।[यजुर्वेद 24.25]
For the day pigeon, night Seechapu, middle of day & night bat, months black crows, Sanvatsar Garud with beautiful feathers should be selected, respectively.
भूम्या आखूनालभतेऽन्तरिक्षाय पांक्त्रान् दिवे कशान् दिग्भ्यो नकुलान् बभुकानवान्तरदिशाभ्यः॥
धरती माता के निमित्त चूहे, अन्तरिक्ष के निमित्त पाङ्क नामक चूहे, स्वर्गलोक के निमित्त कश नामक चूहे, दिशाओं के निमित्त नेवलों को एवं उपदिशाओं के निमित्त बभ्रुक नामक जन्तुओं को नियोजित करें।[यजुर्वेद 24.26]
For mother earth rats, space rats named Pank, heavens rats named Kash, directions mongoose, sub directions animals named Babhruk should be employed, respectively.
वसुभ्य ऋश्यानालभते रुद्रेभ्यो रुरूनादित्येभ्यो न्यंकून् विश्वेभ्यो देवेभ्यः पृषतान्त्साध्येभ्यः कुलुङ्गान्॥
वसुओं के निमित्त ऋश्य मृगों को, रुद्र देव के निमित्त रुरु जाति के मृग को, आदित्यगणों के निमित्त न्यकु जाति के मृग को, विश्वेदेवों के निमित्त पृषत (चित्तीदार) मृग को एवं साध्य देवताओं के निमित्त कुलुङ्ग जाति के मृग को नियोजित करें।[यजुर्वेद 24.27]
For vasu Gan deer named Rashy, Rudr Dev Ruru deer, Adity Gan deer Nyuk, Vishwe Dev spotted deer, Sadhy Gan demigods Kulung deer should be employed, respectively.
ईशानाय परस्वत आलभते मित्राय गौरान् वरुणाय महिषान् बृहस्पतये गवयाँस्त्वष्ट्र उष्ट्रान॥
ईशान देवता के निमित्त परस्वत जाति के मृग को बाँधे। मित्रदेवता के निमित्त गौर मृग को बाँधें। वरुण देवता के निमित्त वन-महिष को बाँधें। बृहस्पति देवता के निमित्त नील गाय को बाँधें तथा त्वष्टा देवता के निमित्त ऊँटों को बाँधें।[यजुर्वेद 24.28]
Parsvat deer for Ishan Dev, Mitr Dev Gour deer, Varun Dev jungle buffalo, Brahaspati Dev Neel Gay, Twasta camels should be tied, respectively.
प्रजापतये पुरुषान्हस्तिन आलभते वाचे प्लुर्षं श्चक्षुषे मशकाञ्छ्रोत्राय भृङ्गाः॥
प्रजापति के निमित्त गज को, वाणी के निमित्त वक्रतुण्ड को, नेत्रों के निमित्त मच्छर को तथा कर्णेन्द्रिय के निमित्त भौरों को नियुक्त करें।[यजुर्वेद 24.29]
For Prajapati elephant, Vani Vakr Tund, eyes mosquitoes, ears bumblebees should be employed respectively.
प्रजापतये च वायवे च गोमृगो वरुणायारण्यो मेषो यमाय कृष्णो मनुष्यराजाय मर्कटः शार्दूलाय रोहिदृषभाय गवयी क्षिप्रश्येनाय वर्त्तिका नीलङ्गोः कृमिः समुद्राय शिशुमारो हिमवते हस्ती॥
प्रजा पति तथा वायु देवता के लिए 'नर-नील-गाय', वरुण देवता के निमित्त वनमेष, यमदेव के लिए कृष्णमेष, मनुष्य शासक के निमित्त वानर, शार्दूल के निमित्त लालवर्ण के मृग, ऋषभदेव के निमित्त मादा नीलगाय, क्षिप्रश्येन देवता के निमित्त बटेर, नीलाङ्ग के निमित्त कृमि, सागर के निमित्त शिशुमार नामक जलजन्तु तथा हिमवान् देव के निमित्त गज को बाँधे।[यजुर्वेद 24.30]
For Prajapati & Vayu Dev male Neel Gay, Varun Dev Vanmesh (jungle sheep), Yam Dev black sheep, Humans Vanar, Shardul red coloured deer, Rishabh Dev female Neel Gay, Kshiprashyen Dev quail, Neelang worms, Ocean water born animal called Shishumar, Himvan elephant should be tied respectively.(27.08.2025)
मयुः प्राजापत्य उलो हलिक्ष्णो वृषदꣳ शस्ते धात्रे दिशां कङ्को धुंक्षाग्ग्रेयी कलविङ्को लोहिताहिः पुष्करसादस्ते त्वाष्टा वाचे क्रुञ्चः॥
प्रजापति के निमित्त तुरंग-किन्नर, धातादेव के निमित्त उपपक्षी, सिंह तथा विडाल, दिशाओं के निमित्त कङ्क, आग्नेय दिशा के निमित्त धुड्क्षा, त्वष्टा देवता के निमित्त चिड़ा, लाल सर्प तथा कमल का भक्षण करनेवाले पक्षी विशेष तथा वाणी के निमित्त क्रौंच (सारस) नामक पक्षी को नियुक्त करें।[यजुर्वेद 24.31]
Employ infertile horse for Prajapati, Uppakshi for Dhata Dev, lion, male cat, Kank for directions, Dudksha for Agney direction, male Chida, red snake the birds eating lotus for Twasta Dev, crane for voice-speech.
सोमाय कुलुङ्ग आरण्योऽजो नकुलः शका ते पौष्णाः क्रोष्टा मायोरिन्द्रस्य गौरमृगः पिद्वो न्यङ्कु: कक्कटस्तेऽनुमत्यै प्रतिश्रुत्कायै चक्रवाकः॥
सोम देवता के निमित्त कुलुंग नामक एक हिरण, पूषादेव के निमित्त जंगली मेष, नेवला तथा शकुनि, वायु देवता के निमित्त शृगाल, देवराज इन्द्र के निमित्त गौर मृग, अनुमति देवता के निमित्त न्यंकु नामक मृग तथा कक्कट मृग, प्रतिश्रुत्क देवता के निमित्त चक्रवाक को नियोजित करें।[यजुर्वेद 24.32]
Employ Kulung deer for Som Dev, jungle sheep, mongoose & Shakuni for Pusha Dev, jackal for Vayu Dev, Gour deer for Devraj Indr, Nayunk & Kakkat deers or Anumati Dev, Chakr Vak for Pratishrutk Dev.
सौरी बलाका शार्गः सृजयः शयाण्डकस्ते मैत्राः सरस्वत्यै शारिः पुरुषवाक् श्वाविद्भौमी शार्दूलो वृकः पृदाकुस्ते मन्यवे सरस्वते शुकः पुरुषवाक्॥
बगुली और शार्ग पक्षी सूर्य देवता के निमित्त, मित्र देवता के निमित्त सृजय तथा शयाण्डक नामक पक्षी, देवी सरस्वती के निमित्त पुरुषों के सदृश बोलने वाली मैना नामक पक्षी, धरती माता के निमित्त सेही, क्रोध देवता के निमित्त सिंह, शृगाल तथा साँप एवं सागर के निमित्त पुरुषों के सदृश बोलने वाला तोता नियोजित करें।[यजुर्वेद 24.33]
Employ female Heron & Sharg birds for Sury Dev, Srajay and Shyandak birds for Mitr Dev, starling birds which talks for Devi Saraswati, Sehi for mother earth, jackal, snake & parrot who talk like humans for the Ocean-Sagar Dev.
सुपर्णः पार्जन्य आतिर्वाहसो दर्विदा ते वायवे बृहस्पतये वाचस्पतये पैंगराजोऽलज आंतरिक्षः प्लवो मद्गुर्मत्स्यस्ते नदीपतये द्यावापृथिवीयः कूर्मः॥
पर्जन्य देवता के निमित्त सुपर्ण (गरुड़), आड़ी पक्षी, वाहस तथा काष्ठकुरट (कठफोड़वा) पक्षी वायु देवता के निमित्त, वाणी के अधिपति बृहस्पति देव के निमित्त पैङ्गराज पक्षी, अन्तरिक्ष लोक के निमित्त अलज पक्षी, जल में तैरने वाला जलकुक्कुट, जल का कौआ कारण्डव तथा मत्स्य यह तीनों नदी के अधिपति समुद्र के निमित्त एवं द्यावा-पृथिवी के निमित्त कच्छप को नियोजित करें।[यजुर्वेद 24.34]
Employ Garud for Parjany Dev, Adi bird, Vahas & Kashthrat-woodpecker for Vayu Dev, Paengraj bird for the lord Brahaspati Dev, Alaj bird for the space-sky, waterfowl, crow of water & fish for the lord of sea, tortoise for heavens & earth.
पुरुषमृगश्चन्द्रमसो गोधा कालका दार्वाघाटस्ते वनस्पतीनां कृकवाकुः सवित्रो हꣳसो वातस्य नाक्रो मकरः कुलीपयस्तेऽकूपारस्य ह्रियै शल्यकः॥
नर हिरण चन्द्रमा देव के निमित्त, वनस्पति देवता के निमित्त गोधा, कालका तथा कठफोर, सूर्य देवता के निमित्त ताम्रचूड (मुर्गा), वायुदेवता के निमित्त हंस, समुद्र के निमित्त नक्र, मगर तथा जल में रहने वाले जीव तथा ह्री देवी के निमित्त शल्यक (स्याही) की नियुक्ति करें।[यजुर्वेद 24.35]
Employ male deer for Chandr Dev, Godha, Kalka and woodpecker for Vanaspati Dev, Cock for Sury Dev, Swan for Vayu Dev, Nakr, crocodile and water born animals for ocean, Shlyak-Syahi (ink) for Hree Devi.
एण्यह्नो मण्डूको मूषिका तित्तिरिस्ते सर्पाणां लोपाश आश्विनः कृष्णो रात्र्याऋक्षो जतूः सुषिलीका तऽइतरजनानां जहका वैष्णवी॥
अह (दिन) देवता के निमित्त हरिणी, सर्प के निमित्त मण्डूक, मूषिका तथा तीतर; दोनों अश्विनी कुमारों के निमित्त, लोपाश नामक वनचर, रात्रि के निमित्त कृष्ण वर्ण का मृग, अन्य देवगणों के निमित्त रीछ, जतु तथा सुषिलीका नामक पक्षी एवं जहका (जोंक) को विष्णुदेव के निमित्त नियुक्त करें।[यजुर्वेद 24.36]
Employ she dear, serpent for Ah-deity, Manduk, she rat and pheasant for serpent, night roaming Lopash, black deer for Ashwani Kumars, bear for other demigods, birds named Jatu & Sushileeka and leech for Vishnu Dev.
अन्यवापोऽर्द्धमासानामृश्यो मयूरः सुपर्णस्ते गंधर्वाणामपामुद्रो मासां कश्यपो रोहित्कुण्डृणाची गोलत्तिका तेऽप्सरसां मृत्यवेऽसितः॥
अर्धमास के निमित्त कोकिल पक्षी, गंधर्वों के निमित्त ऋश्य मृग, मयूर तथा सुवर्ण, जलों के निमित्त कर्कटादि, मास के निमित्त कछुआ, अप्सराओं के निमित्त लालवर्ण के मृग, वनचरी एवं गोलत्तिका पक्षिणी एवं कृष्ण वर्ण के मृग मृत्यु देवता के निमित्त नियोजित करें।[यजुर्वेद 24.37]
Employ Kokil bird for fortnight, Rishy deer, peacock and Suwarn for Gandarbhs, Karkat etc. for waters, tortoise for the month, red coloured deer for nymphs, birds called Vanchari & Golttika, black buck for the deity of death-Yam Dev.
वर्षाहूॠतूनामाखुः कशो मान्थालस्ते पितृणां बलायाजगरो वसूनां कपिञ्जलः कपोतऽउलूकः शशस्ते निर्ऋत्यै वरुणायारण्यो मेषः॥
ऋतुओं के निमित्त भेकी, पितर गणों के निमित्त मूषक, छछून्दर तथा छिपकली, बलदेवता के निमित्त अजगर, वसुगणों के निमित्त कपिंजल, निर्ऋति देवता के निमित्त कबूतर, उलूक तथा शश एवं वरुणदेव के निमित्त वन-मेष (जंगली भेड़ा) को नियोजित करें।[यजुर्वेद 24.38]
Employ Bheki for Ritus-seasons, rats, lizards & shrew for Pitr Gan-Manes, Python for Bal Dev, Kapinjal for Vasu Gan, pigeons, owl and Shash for Nirati Dev, male jungle sheep for Varun Dev.
श्वित्त्र आदित्यानामुष्ट्रो घृणीवान् वार्ध्रीनसस्ते मत्याऽ अरण्याय सृमरो रुरू रौद्रः क्वयिः कुटरुर्दात्यौहस्ते वाजिनां कामाय पिकः॥
आदित्य गणों के निमित्त श्वेत पशु, मतिदेवी के निमित्त ऊँट, घृणीवा और वार्धीनस्, अरण्य के निमित्त नीलगौ, रुद्रगणों के निमित्त रुरुमृग, वाजि देवताओं के निमित्त कुटरु (मुर्गा), काल कण्ठ तथा क्वयि नामक पक्षी एवं काम देवता के निमित्त कोकिल की नियुक्ति करें।[यजुर्वेद 24.39]
Employ white animals for Adity Gan, camel, Ghraneeva & Vardhinas for Mati Devi, Neel Gay for Arny, Ruru deer for Rudr Gan, Cock, Kalkanth and Kavyi birds for Vaji Dev, Kokil for Kam Dev.
खड्गो वैश्वदेवः श्वा कृष्णः कर्णो गर्दभस्तरक्षुस्ते रक्षसामिन्द्राय सूकरः सिꣳहो मारुतः कृकलासः पिप्पका शकुनिस्ते शरव्यायै विश्वेषां देवानां पृषतः॥
विश्वेदेवा के निमित्त गैंडा, राक्षसों के निमित्त कृष्णवर्ण का कुत्ता, गर्दभ तथा व्याघ्र, देवराज इन्द्र के निमित्त शूकर, सिंह मरुद्गण के निमित्त कृकलास, शरव्या देवी के निमित्त पपीहा एवं शकुनि तथा विश्वेदेवों के निमित्त पृषत जातिवाले मृग को नियोजित करें।[यजुर्वेद 24.40]
Employ Rhino for Vishw Dev, black dog, ass and tiger for demons, pig-hog for Indr Dev, Papiha and Shakuni for Sharvya Devi, lion for Marud Gan, deer of the Prashat breed for Vishwe Devs.(28.08.2025)
यजुर्वेद संहिता पञ्चविंशोऽध्याय :: ऋषि :- प्रजापति, गोतम, हिरण्यगर्भ, दीर्घतमा बन्धु, सुबन्धु, श्रुतबन्धु; देवता :- सरस्वत्यादि, प्राणादि, इन्द्रादि, अग्न्यादि, मरुतादि, पूषादि, हिरण्यगर्भ, ईश्वर, परमात्मा, यश, विद्वांस, विश्वेदेवा, वायु, द्यौरित्यादि, मित्रादि, यजमान, आत्मा, प्रजा, अग्नि, विद्वान्; छन्द :- शक्वरी, कृति, धृति, अष्टि, त्रिष्टुप्, पंक्ति, जगती, बृहती।
शादं दद्भिरवकां दन्तमूलैर्मृदं वस्र्वैस्तेगान्दꣳछष्टाभ्याꣳ सरस्वत्या अग्रजिह्व जिह्वाया उत्सादमवक्रन्देन तालु वाजꣳ हनुभ्यामपऽ आस्येन वृषणमाण्डाभ्यामादित्याँ श्मश्रुभिः पन्थानं भूम्यां द्यावापृथिवी वर्त्ताभ्यां विद्युतं कनीनकाभ्याꣳ शुक्लाय स्वाहा कृष्णाय स्वाहा पार्याणि पक्ष्माण्यवार्याऽइक्षवोऽवार्याणि पक्ष्माणि पार्या इक्षवः॥
अश्व के दाँतों द्वारा शाद देवता को, दाँतों की जड़ों द्वारा अवका देवता को, दाँतों के पीछे वाले भाग द्वारा मृद् देवता को, दाढ़ों द्वारा तेगा देवता को, जिह्वा की नोंक से सरस्वती देवी को, जिह्वा से उत्साद देवता को, तालु द्वारा अवक्रन्द देव को, ठोढ़ी से अन्न देवता को, मुख से अप देवता को प्रसन्न करते हैं। दोनों अण्ड कोशों द्वारा वरुण देव को, दाढ़ी-मूँछ के द्वारा आदित्य गणों को, दोनों भौहों द्वारा पन्थ देव को, दोनों पलकों के बालों द्वारा द्यावा-पृथिवी को एवं नेत्रों की दोनों पुतलियों द्वारा विद्युत् देवता को प्रसन्न करते हैं। शुक्ल देवता तथा कृष्ण देवता को शक्तियों की तृप्ति के लिए यह आहुति समर्पित है। चक्षुओं के ऊपरी तथा नीचे के लोमों (बालों) द्वारा 'पार' तथा 'अवार' देव शक्तियों को प्रसन्न करते हैं।[यजुर्वेद 25.1]
The deities are pleased-gladdened respectively :- Shad Dev with the teeth of horse, Avka with the root of the teeth, Mrad Dev with the back portion of the teeth, Tega Dev with the molar-cheek tooth, Devi Saraswati with the tip of tongue, Utsad Dev with tongue, Avkrand Dev with palate, Food grains Dev with chin, Ap Dev with mouth. Varun Dev is pleased with the testicles, Adity Gan beard & moustache, Panth Dev with eye brows, heavens-earth & lightening with eyelid & eye balls respectively. This sacrifice is meant for the Shukl-bright & Krashn-black Dev. Divine power Par and Avar are pleased hairs over the upper & lower of the eye lids.
वातं प्राणेनापानेन नासिके उपयाममधरेणौष्ठठेन सदुत्तरेण प्रकाशेनान्तर-मनूकाशेन बाह्यं निवेष्यं मूर्धा स्तनयितुं निर्बाधेनाशनिं मस्तिष्केण विद्युतं कनीनकाभ्यां कर्णाभ्याꣳ श्रोत्रꣳ श्रोत्राभ्यां कर्णों तेदनीमधरकण्ठेनापः शुष्ककण्ठेन चित्तं मन्याभिरदितिꣳ शीर्णा निर्ऋतिं निर्जल्पेन शीर्णा संक्रोशैः प्राणान् रेष्माणꣳ स्तुपेन॥
अश्व की प्राण वायु शक्ति द्वारा वायु देव को एवं अपान वायु की शक्ति द्वारा नासिका देवता को प्रसन्न करते हैं। ऊपर के अधर द्वारा सत् देवता को एवं नीचे के अधर द्वारा उपयाम देवता को प्रसन्न करते हैं। देह की बाहरी कान्ति द्वारा अन्तर देवता एवं आन्तरिक शरीर की कान्ति द्वारा बाह्य देवता को प्रसन्न करते हैं। मस्तक द्वारा निवेष्य देवता को, सिर के अन्दर के मज्जा भाग से स्तनयित्नु देवता को, मस्तिष्क के द्वारा अशनि देवता को, नेत्रों की पुतलियों द्वारा विद्युत् को, दोनों कर्णों द्वारा श्रोत्रदेव को तथा श्रवण करने की शक्ति द्वारा दोनों कर्णों की देवशक्ति को प्रसन्न करते हैं। नीचे के गले (कण्ठ) द्वारा तेदनी देव को शुष्क गले द्वारा जल देवता को, गले की नाड़ियों द्वारा चित्त देव शक्ति को, शिर से देव माता अदिति को, जर्जरित शिरोभाग द्वारा निर्ऋति देव को, शब्दायमान अंगों द्वारा प्राणों को एवं शिखा की शक्ति द्वारा रेष्म देवता को प्रसन्न करते हैं।[यजुर्वेद 25.2]
Vayu Dev is pleased with the Air Vital of the horse & Nasika Dev is pleased with Apan Vayu. Sat Dev is pleased with upper lip and Upyam Dev is pleased with the lower lip. Outer aura pleases Antar Dev while the outer glow pleases Bayh Dev. Niveshy Dev with the forehead, Stanyintu with the marrow of the head, Ashani with mind, lightening with eye ball, Shrotr Dev with ears, Dev Shakti with the ears and power to hear, Tewani Dev with lower gorge, Jal Dev with dry gorge, Chitt Dev with the nerves of the neck, Dev Mata Aditi with with the head, Nirati Dev with dilapidated head end, Air Vital with sounding organs and Reshm Dev with he power of the crest-crista.(29.08.2025)
मशकान् केशैरिन्द्रꣳ स्वपसा वहेन बृहस्पतिꣳ शकुनिसादेन कूर्माञ्छफैराक्रमणꣳ स्थूराभ्यामृक्षलाभिः कपिञ्जलाञ्जवं जङ्घाभ्यामध्वानं बाहुभ्यां जाम्बीलेनारण्यमग्निमतिरुग्भ्यां पूषणं दोर्थ्यामश्विनावꣳ साभ्या रुद्रꣳ रोराभ्याम्॥
कन्धे के बालों द्वारा मशकों को, धारण करने वाले, वहन करने वाले एवं शुभ कर्म करने वाले स्कंध द्वारा देवराज इन्द्र को, गमन द्वारा बृहस्पति देव को, खुरों के द्वारा कूर्मों को, स्थूल गुल्फों द्वारा आक्रमण को, नाड़ियों द्वारा कपिंजल को, जाँघों द्वारा वेग को, बाहु द्वारा मार्ग को, जानु द्वारा अरण्य को, जानु प्रदेश द्वारा अग्नि को, जानु के अधोभाग द्वारा पूषा देवता को, अंसों द्वारा दोनों अश्विनी कुमारों को तथा अंस ग्रन्थि द्वारा रुद्र देव को प्रसन्न करते हैं।[यजुर्वेद 25.3]
Demigods are pleased respectively with the :- Hairs over the shoulders please the skin-leather bag-gnat, Skandh support, carry and perform virtuous endeavours to please Devraj Indr, movement please Brahaspati Dev, hoofs please tortoise, heavy ankle please the attack, nerves please the francolin partridge, thigs please speed, arms please the path, joint between the femur and tibia please the forests-jungles, region between the joint between the femur and tibia pleases Agni Dev, upper segment of joint between the femur and tibia please Pusha Dev, Ansh-segments please Ashwani Kumars and the Ansh gland satisfies the Rudr Dev.
अग्नेः पक्षतिर्वायोर्निपक्षतिरिन्द्रस्य तृतीया सोमस्य चतुर्थ्यदित्यै पञ्चमीन्द्राण्यै षष्ठी मरुताꣳ सप्तमी बृहस्पतेरष्टम्यर्यम्णो नवमी धातुर्दशमीन्द्रस्यैकादशी वरुणस्य द्वादशी यमस्य त्रयोदशी॥
अग्नि देव के निमित्त दक्षिण पार्श्व की प्रथम अस्थि, वायुदेव के निमित्त दूसरी, देवराज इन्द्र के निमित्त तीसरी, सोमदेव के निमित्त चौथी, देवमाता अदिति के निमित्त पाँचवीं, इन्द्राणी के निमित्त छठवीं, मरुद्गणों के निमित्त सातवीं, बृहस्पति देव के निमित्त आठवीं, अर्यमादेव के निमित्त नौवीं, धाता देव के निमित्त दसवीं, इन्द्रदेव के निमित्त ग्यारहवीं, वरुणदेव के निमित्त बारहवीं तथा यमदेव के निमित्त तेरहवीं अस्थि से आहुति प्रसन्न करनेवाली है।[यजुर्वेद 25.4]
Demigods are pleased respectively with the :- For Agni Dev first rib-bone of the left, for Vayu Dev second, Devraj Indr third, for Som Dev fourth, for Dev Mata Aditi fifth, Indrani sixth, Marud Gan seventh, Brahaspati Dev eight, Aryma Dev ninth, Dhata Dev tenth, Indr Dev eleventh, Varun Dev twelfth, Yam Dev thirteenth ribs used for sacrifice appease them.
इन्द्राग्न्योः पक्षतिः सरस्वत्यै निपक्षतिर्मित्रस्य तृतीयापां चतुर्थी निर्ऋत्यै पञ्चम्यग्नीषोमयोः षष्ठी सर्पाणाꣳ सप्तमी विष्णोरष्टमी पूष्णो नवमी त्वष्टुर्दशमीन्द्रस्यैकादशी वरुणस्य द्वादशी यम्यै त्रयोदशी द्यावापृथिव्योर्दक्षिणं पार्श्व विश्वेषां देवानामुत्तरम॥
इन्द्राग्नि के निमित्त अश्व के वाम पार्श्व की प्रथम अस्थि, देवी सरस्वती को दूसरी, मित्रदेव को तीसरी, अपदेवता को चौथी, निर्ऋति देवता को पाँचवीं, अग्निदेव-सोमदेव के निमित छठवीं, साँपों के निमित्त सातवीं, विष्णुदेव के निमित्त आठवीं, पूषादेव के निमित्त नौवीं, त्वष्टादेव के निमित्त दसवीं, इन्द्रदेव के निमित्त ग्यारहवीं, वरुणदेव के निमित्त बारहवी, यमदेव के निमित्त तेरहवीं अस्थि प्रसन्नता प्रदान करनेवाली है। पृथ्वी तथा अन्तरिक्ष के लिये पार्श्व भाग तथा विश्वे देव के लिये उत्तर पार्श्व है, वे उससे प्रसन्नता प्राप्त करें।[यजुर्वेद 25.5]
Demigods are pleased respectively with the :- For Indragni first rib of the left of he horse, Devi Saraswati second, Mitr Dev third, Ap Dev fourth, Nirati Dev fifth, Agni & Som Dev sixth, snakes-serpents seventh, Vishnu Dev eight, Push Dev ninth, Twasta Dev tenth, Indr Dev eleventh, Varun Dev twelfth, Yam Dev thirteenth rib grant happiness. Earth & sky-space side- lateral part and Vishwe Dev should get happiness from the north segment.
मरुताꣳ स्कन्धा विश्वेषां देवानां प्रथमा कीकसा रुद्राणां द्वितीयादित्यानां तृतीया वायोः पुच्छमग्नीषोमयोर्भासदौ कुञ्चौ श्रोणिभ्यामिन्द्राबृहस्पतीऊरुभ्यां मित्रावरुणावल्गाभ्यामाक्रमणꣳ स्थूराभ्यां बलं कुष्ठाभ्याम्॥
मरुद्गणों को अश्व के स्कन्ध, विश्वेदेवों को अश्व की पूँछ की पहली अस्थि पंक्ति, रुद्रगणों को दूसरी, आदित्यगणों को तीसरी, वायुदेवता को पुच्छ, अग्नि-सोम देवता को दोनों नितम्ब, कुंच देवताओं को श्रोणी, इन्द्र बृहस्पति को उरु, मित्रा-वरुण देवों को जंघा-संधि, अधोभाग के द्वारा आक्रमण देव को एवं नितम्बस्थ आवर्तों से बल देवता को प्रसन्न करता हूँ।[यजुर्वेद 25.6]
Demigods are pleased respectively with the :- For the Marud Gan shoulders of horse, Vishwe Dev first bone of the tail, Rudr Gan second, Adity Gan third, Vayu Dev fourth, Agni-Som both hips, Kunch demigods pelvis, Indr Dev thighs, Mitra Varun Dev joint of thighs, Upper segment for Akraman Dev hip girdles are to please the Bal Dev.
पूषणं वनिष्ठुनान्धाहीन्स्थूलगुदया सर्पान् गुदाभिर्विहुत आन्त्रैरपो वस्तिना वृषणमाण्डाभ्यां वाजिन शेपेन प्रजा रेतसा चाषान् पित्तेन प्रदरान् पायुना कुश्माञ्छकपिण्डैः॥
अश्व की वनिष्ठ (बड़ी आँत) द्वारा पूषा देव को, गुदा के स्थूल भाग द्वारा नेत्रहीन साँपों को, आँतों के मांस भाग द्वारा विहुत देवताओं को, वस्ति द्वारा जल (आपः देवता) को, अण्डकोषों द्वारा वृषण देव को, मेद्र द्वारा वाजी देवता को, वीर्य द्वारा प्रजा देवता को, पित्त द्वारा चाष देवताओं को, पायु भाग द्वारा प्रदर देवताओं को तथा विष्ठा पिण्डों द्वारा कूश्म देवताओं को प्रसन्न करते हैं।[यजुर्वेद 25.7]
Demigods are pleased respectively with the :- Large intestine of the horse for Pusha Dev, heavy segment of the anus for blind snakes, flesh of the intestine for Vihut Dev, Vasti for water-Aap Dev, testicles for Vrashan Dev, male sheep for Vaji Dev, Veery-sperms for Praja Dev, Pitt-bile for Chash Dev, Payu for Pradar Dev, Granules of faces for Kushm Dev.
इन्द्रस्य क्रोडोऽदित्यै पाजस्यं दिशां जत्रवोऽदित्यै भसज्जीमूतान् हृदयौपशेनान्तरिक्षं पुरीतता नभ उदर्येण चक्रवाकौ मतस्नाभ्यां दिवं वृक्काभ्यां गिरीन् प्लाशिभिरुपलान् प्लीहा वल्मीकान् क्लोमभि॑र्ग्लौभिर्गुल्मान् हिराभिः स्रवन्तीर्ह्रदान् कुक्षिभ्या समुद्रमुदरेण वैश्वानरं भस्मना॥
अश्व के क्रोड भाग (वक्षःस्थल के मध्य भाग) द्वारा देवराज इन्द्र को, पाजस्य (बलकर भाग) द्वारा अदितिपुत्र देवताओं को, जत्रु (कन्धे और पार्श्व के बीच के सन्धिभाग) द्वारा दिशाओं को, मेद्वाग्र द्वारा अदिति को, हृदय के मांस द्वारा जीमूत देवताओं को, हृदय को आच्छादित करने वाली आँत द्वारा अन्तरिक्ष को, उदर के मांस से नभो देवता को, पार्श्व अस्थि द्वारा चक्रवाक देवताओं को, वृक्क द्वारा दिव (दिन) देवता को, प्लाशी नाड़ियों द्वारा गिरि देवताओं को, प्लीहा द्वारा उपल देवों को, क्लोम (हृदय के दक्षिणभाग में स्थित गलनाड़ी) द्वारा वल्मीक देवों को, हृदय नाड़ियों द्वारा गुल्मदेवों को, अन्न-वहिनियों द्वारा सागर को तथा अंगों की भस्म द्वारा वैश्वानर अग्निदेव को प्रसन्न करता हूँ।[यजुर्वेद 25.8]
Demigods are pleased respectively with the :- Chest of the horse for Indr Dev, sides for the demigods sons of Mata Aditi, joints of the shoulders and sides for the detections, front of the fat for Aditi, flesh of the hearth for Jeemoot demigods, intestine covering the heart for space, flesh of the stomach for sky demigod, side bone for Chakrvak demigods, kidney for deity of the day, Palashi nerves for the Giri demigods, Paliha-spleen for Upal Devs, right lung-nerve for Valmeek Devs, heart nerves for Gulm Dev, food carriers for ocean and the ash of organs for Vaeshwanar Agni Dev respectively.(30.08.2025)
विधृतिं नाभ्या घृतꣳ रसेनापो यूष्णा मरीचिर्विप्रुड्भिर्नीहारमूष्मणा शींन वसया प्रुष्वा अश्रुभिर्हादुनीर्दूषीकाभिरस्ना रक्षाꣳसि चित्राण्यंगैर्नक्षत्राणि रूपेण पृथिवीं त्वचा जुम्बकाय स्वाहा॥
अश्व की नाभि द्वारा विधृति देवता को, वीर्य द्वारा मृत देवता को, पके हुए अन्न द्वारा आपःदेवता को, वसा-बिन्दुओं द्वारा मरीचि देवताओं को, शरीर की उष्णता द्वारा नीहार देवता को, वसा द्वारा शीन देवता को, दूषिका (आँखों के कीचड़) द्वारा ह्रादुनी देवताओं को, अनुओं के द्वारा पुष्वा देवताओं को, रुधिर से राक्षसों को, अंगों द्वारा चित्र देवों को, स्वरूप द्वारा नक्षत्रों को तथा त्वचा द्वारा पृथ्वी को प्रसन्न करता हूँ। *जुम्बक (वरुण देवता) के लिये यह आहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 25.9]
*वरुणो वै जुम्बः। जुम्बका नाम की गायत्री का वेद में उल्लेख है; इसका जल में जप करने से ब्रह्म हत्या जैसे पापों का नाश होता है।
Through the navel of the horse, sperms Mrat Dev, cooked food Aap Dev, fat dots Marichi Dev, body heat Neehar Dev, fat Sheen Dev, eye mattery discharge Hraduni Dev, Anu Pushva Dev, blood demons, organs Chitr Dev, own form constellations, skin earth are respectively pleased. This sacrifice is made for Varun Dev.
हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत्।
स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम॥
प्राणियों की उत्पत्ति से पूर्व हिरण्यगर्भ ने शरीर धारण किया तथा उत्पन्न होते ही वह सारे संसार के अधिपति हुए। उन्होंने इस पृथ्वी, स्वर्ग तथा अन्तरिक्ष को रच कर धारण किया। उन्हीं प्रजापति के निमित्त हम हवियाँ समर्पित करते हैं।[यजुर्वेद 25.10]
Prior to evolution of living beings-organism Hiranygarbh Dev adopted form and became the Lord of the universe. HE created and supported the earth, heavens and space-sky. We make sacrifices for the same Prajapati.
यः प्राणतो निमिषतो महित्वैकऽइद्राजा जगतो बभूव।
य ईशे अस्य द्विपदश्चतुष्पदः कस्मै देवाय हविषा विधेम॥
जो प्रजापति प्राणरूप व्यापार करते हुए सम्पूर्ण प्राणियों के एकमात्र स्वामी हैं, जो अपनी महिमा से ही इन दो पाँव वाले मनुष्यों तथा चार पाँव वाले पशुओं पर प्रभुत्व करते हैं, उन प्रजापति के लिए हम आहुति समर्पित करते हैं।[यजुर्वेद 25.11]
Prajapati generated Air Vital in the two & four legged animals and rule them. We make this sacrifice for HIM.
यस्येमे हिमवन्तो महित्वा यस्य समुद्रꣳ रसया सहाहुः।
यस्येमाः प्रदिशो यस्य बाहू कस्मै देवाय हविषा विधेम॥
ऊँचे शिखर वाले हिमाचलादि पर्वत जिनकी महिमा का गुणगान करते हैं, नदियों सहित सागर को भी जिनकी महिमा का ही रूप बतलाया गया है तथा सम्पूर्ण दिशाएँ जिनके पराक्रम का रूप बतायी गयी हैं, जिनकी भुजाएँ जगत् का पालन करनेवाली हैं, उन परमात्मदेव के लिए हम आहुति समर्पित करते हैं।[यजुर्वेद 25.12]
High rise mountains viz Himalay etc sing His glory, rivers & ocean are HIS glorious forms. Directions describe HIS valour. HIS arms support the universe. We make this sacrifice for that Almighty.
य आत्मदा बलदा यस्य विश्व उपासते प्रशिषं यस्य देवाः।
यस्य च्छायामृतं यस्य मृत्युः कस्मै देवाय हविषा विधेम॥
जो परमात्मा शरीर में प्राण को संचरित करते हैं, जो शक्ति प्रदाता तथा सभी प्राणियों के अधिपति हैं, सम्पूर्ण देवता जिनके अधीनस्थ हैं, जिनकी कृपादृष्टि से ही मनुष्य अमृतरूप मुक्ति को प्राप्त करता है, जिनको न जानना जन्म-मरण का कारण है, उन्हीं अद्वितीय परमात्मा देव के निमित्त हम आहुति समर्पित करते हैं।[यजुर्वेद 25.13]
The Almighty who circulate Air Vital in the organism & grant strength is their Lord. All demigods are HIS subordinates. HIS blissful eye grant elixir like emancipation. Not to know HIM; is the reason behind death & rebirth. We make sacrifice for that unique Almighty.
आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतोऽदब्धासो अपरीतास उद्भिदः।
देवा नो यथा सदमिद्वृधेअसन्नप्रायुवो रक्षितारो दिव दिवे॥
जो यज्ञ कल्याणकारी, सभी ओर से बाधामुक्त, अभीष्ट फल प्रदान करनेवाला हो, ऐसे यज्ञों को हम सभी ओर से प्राप्त करें, जिसके परिणाम स्वरूप समस्त देवतागण आलस्य को त्यागकर प्रतिदिन हमारी उन्नत्ति के निमित्त प्रवृत्त रहें।[यजुर्वेद 25.14]
The Yagy leads to welfare, release from all obstacles and grant desired accomplishments. As a result of it all demigods should reject laziness and devote to our well being-progress.
देवानां भद्रा सुमतिर्ऋजूयतां देवानाꣳ रातिरभि नो निवर्त्तताम्।
देवानां सख्यमुपसेदिमा वयं देवा न आयुः प्रतिरन्तु जीवसे॥
लोक कल्याण में संलग्न, सहज स्वभाव युक्त देवताओं की कल्याणकारिणी सुमति तथा उनके उत्कृष्ट अनुदान हमारे निमित्त सभी प्रकार से अनुकूल हों। देवताओं की मित्रता प्राप्त करके हम सभी सुखी हों। सम्पूर्ण देवगण हमें दीर्घजीवी बनायें।[यजुर्वेद 25.15]
Let the well being-welfare granting virtuous intelligence of the demigods be favourable to us by their excellent contribution. We should become happy by virtue of the demigod's friendship. Let all demigods make us long lived.
तान्पूर्वया निविदा हूमहे वयं भगं मित्रमदितिं दक्षमस्त्रिधम्।
अर्यमणं वरुणꣳसोममश्विना सरस्वती नः सुभगा मयस्करत्॥
सनातन काल में स्वयं उत्पन्न दिव्य वाणी द्वारा हम उन भग, मित्र, अदिति, दक्ष, अर्यमा, वरुण, सोम तथा अश्विनी कुमारों इत्यादि मरण धर्म रहित देवताओं के निमित्त आहुतियाँ समर्पित करते हैं। श्रेष्ठ भाग्य प्रदान करने वाली वाणी की देवी सरस्वती भी हमारा कल्याण करें।[यजुर्वेद 25.16]
By virtue of the the divine sound during the eternity, which emerged itself, we make sacrifices to immortal Bhag, Mitr, Aditi, Aryma, Varun, Som and Ashwani Kumars. Devi Saraswati who produce excellent luck & grant us welfare-well being.
तन्नो वातो मयोभु वातु भेषजं तन्माता पृथिवी तत्पिता द्यौः।
तद् ग्रावाणः सोमसुतो मयोभुवस्तदश्विना शृणुतं धिष्ण्या युवम्॥
हे दोनों अश्विनी कुमारों! आप सबके धारणकर्ता हैं। आपकी कृपा द्वारा वायु देव हमारे निमित्त ओषधि के गुणों से परिपूर्ण सुखदायी प्राणवायु प्रवाहित करें। पृथ्वीमाता व्याधियों से मुक्त करनेवाली वनस्पतियों द्वारा एवं पिता रूप द्युलोक जीवन प्रदान करने वाले तत्त्वों से युक्त जल से सम्पन्न बनायें। सोमाभिषक करने वाले पाषाण (ग्रावा) हमारे निमित्त जीवनी-शक्ति से परिपूर्ण सुखदायी सोम प्रदान करें। आप हमारी अभ्यर्थनाओं को ध्यानपूर्वक सुनें और हमें सम्पूर्ण सुख प्रदान करें।[यजुर्वेद 25.17]
Hey Ashwani Kumar duo! You are the supporter of all. Let Vayu Dev flow-move Air Vital having the comfortable medicinal characters, by virtue of your mercy. Mother earth should use the vegetation which release us from ailments-disease. Fatherly heavens should grant us water to boost our longevity. The rocks used for Somabhishak should grant us Som added with strength for longevity. Listen-respond to our prayers and grant us all sorts of comforts-pleasure.
तमीशानं जगतस्तस्थुषस्पतिं धियञ्जिन्वमवसे हूमहे वयम्।
पूषा नो यथा वेदसामसद् वृधे रक्षिता पायुरेदब्धः स्वस्तये॥
जो देवता स्थावर जंगम- चराचर जगत् के एकमात्र अधिष्ठाता हैं, जिनके द्वारा प्रेरित होकर सभी प्राणी चैतन्य होते हैं, जो अपनी बुद्धि से सबको अपने अधीनस्थ करने वाले हैं, उन परमात्मा को हम आहूत करते हैं। पिता के सदृश पोषण, संरक्षण तथा सहायता करने वाले वे हमारे बुद्धिबल में वृद्धि करके हमें सुखी बनायें।[यजुर्वेद 25.18]
We make sacrifice for the deity who is sole Lord of the whole inertial-static world, who make the organism conscious, who keep all under HIS subordination. Fatherly, nourishing, protecting and helping us should make us comfortable by strengthening our intelligence.(31.08.2025)
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्थ्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥
महान् कीर्ति वाले देवराज इन्द्र हमारा मंगल करें, सारी सृष्टि के ज्ञाता पूषा देवता हमारा कल्याण करें, संकटों के नाशक, पंखों (पक्षों) से युक्त गरुड़ देव हमारा कल्याण करें एवं देवगुरु बृहस्पति हम सबका कल्याण करते हुए हमें सुखी बनायें।[यजुर्वेद 25.19]
Let Devraj Indr possessing great honour resort to our welfare-well being, Pusha Dev who is aware of the entire evolution resort to our welfare, destroyer of the trouble Garud Dev having claws & feathers look to our welfare and Dev Guru Brahaspati too should look to our welfare.
पृषदश्वा मरुतः पृश्निमातरः शुभंयावानो विदथेषु जग्मयः।
अग्निजिह्वा मनवः सूरचक्षसो विश्वे नो देवाऽ अवसागमन्निह॥
बलशाली अश्वों से युक्त अर्थात् शीघ्रता से गमन करने वाले, देवमाता अदिति के पुत्र, सबका कल्याण करने वाले, अग्निरूपी जीभ एवं सूर्य रूपी चक्षु वाले, सर्वज्ञाता मरुत्देवता अपनी विविध विध शक्तियों सहित इस यज्ञस्थल पर पदार्पण करें और हमें सुखी बनायें।[यजुर्वेद 25.20]
Let fast moving Marud Gan son of Dev Mata Aditi, having strong horses, look to the welfare of every one. possessing tongue like fire and eyes like the Sun, arrive at the Yagy site with his various powers and make us happy-comfortable.
भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः।
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवाꣳ सस्तनूभिर्व्यशेमहि देवहितं यदायुः॥
यजमानों के पोषण कर्ता हे देवो! हम सर्वदा उन्हीं वचनों को अपने कर्णों द्वारा श्रवण करें, जो हमारे निमित्त कल्याणकारी हो, चक्षुओं से सर्वदा कल्याणकारी दृश्य का ही अवलोकन करें। हे देव! परिपुष्ट अंगों से सम्पन्न सुदृढ़ शरीर वाले हम आपकी आराधना करते हुए शतायु प्राप्त करें।[यजुर्वेद 25.21]
Nurturer of the Yajmans, hey demigods-deities! We should always listen to those words which are auspicious to us with our ears and look the welfare related scenes. Hey Dev! Having stout body with strong organs, we worship you and attain longevity of hundred years.
शतमिन्नु शरदो अन्ति देवा यत्रा नश्चक्रा जरसं तनूनाम्।
पुत्रासो यत्र पितरो भवंति मा नो मध्या रीरिषतायुर्गन्तोः॥
हे जगत् के अधिपति! हम यजमान पुत्र-पौत्रादि से सम्पन्न होकर जरावस्था पर्यन्त, शतवर्ष तक का पूर्ण जीवन सुखपूर्वक व्यतीत करें। जीवनकाल के मध्य में हम कभी भी मृत्यु को प्राप्त न हों।[यजुर्वेद 25.22]
Hey Lord of the universe! We Yajmans should survive for hundred years till the old age with sons & grand sons comfortably. During our life time we should never face death.
अदितिर्द्यौरदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता स पिता स पुत्रः।
विश्वे देवाऽ अदितिः पञ्चजना अदितिर्जातमदितिर्जनित्वम्॥
अदिति ही द्युलोक है, अदिति ही अन्तरिक्ष है। अदिति ही माता है, वही पिता है तथा वही पुत्र है। अदिति विश्वेदेवा है। अदिति पंचमानव है। किम्बहुना, अदिति ही उत्पन्न सब कुछ है और अदिति ही प्रजननशक्ति है।[यजुर्वेद 25.23]
Aditi constitute heavens & space. Aditi is mother, father and son. Aditi is Vishwe Dev. Aditi is Panch Manav. In fact Aditi is every thing and the power to proginate.
मा नो मित्रो वरुणो अर्यमायुरिन्द्र ऋभुक्षा मरुतः परिख्यन्।
यद्वाजिनो देवजातस्य सप्तेः प्रवक्ष्यामो विदथे वीर्याणि॥
हम यजमान यज्ञ में दिव्य गुणों से युक्त, गतिशील वीर्यवान्, वाजी (बलशाली) देवों के ही ऐश्वर्य का गान करते हैं। अतएव: मित्र देव, वरुण देव अर्थमा देव, आयु, ऋभक्ष, मरुद्गण, इन्द्र देव आदि हमारी निन्दा करते हुए हमारे विमुख न हों बल्कि हमारे अनुकूल रहें।[यजुर्वेद 25.24]
We Yajmans, sing the glory of the demigods-deities who are dynamic, mighty, possess grandeur. Hence, Mitr Dev, Varun Dev, Arthma Dev, Ayu, Ribhaksh, Marud Gan, Indr Dev should not condemn us and remain in our favour-support.
यन्निर्णिजा रेक्णसा प्रावृतस्य रातिं गृभीतां मुखतो नयंति।
सुप्राडजो मेम्यद्विश्वरूप इन्द्रापूष्णोः प्रियमप्येति पाथः॥
स्नान से शुद्ध और धन से ढके हुए अश्व के सम्मुख गृहीत घी, सत्तू और धान्यादि रातिब (घोड़े के लिये भोज्य पदार्थ) लाते हैं, तब पूर्वगामी वाला बकरा तथा अनेक वर्ण और इन्द्र-पूषा का प्रिय भक्ष्य एवं मैं-मैं करने वाला बकरा भी उसे खाने के लिये आगे आते हैं।[यजुर्वेद 25.25]
Food for the horse who has been bathed and loaded with wealth, is brought constituting of ghee, Sattu (roasted gram & barley) and paddy etc. Billy goat having different colours uttering Maen-Maen too come forward to eat it. This constitute the favourite food of Indr Dev and Pusha Dev.
एष छागः पुरो अश्वेन वाजिना पूष्णो भागो नीयते विश्वदेव्यः।
अभिप्रियं यत्पुरोडाशमर्वता त्वष्टेदेनꣳ सौश्रवसाय जिन्वति॥
यह अज जब शक्तिशाली अश्व के सम्मुख लाया जाता है, जो उत्तम पुरुष (यजमान अथवा प्रजापति) इस चंचल प्रकृति के अश्व के साथ अज को भी, सभी को प्रिय लगने वाले पुरोडाश आदि हविष्यान्न का अंश प्रदान करके कीर्ति को प्राप्त करते हैं।[यजुर्वेद 25.26]
The virtuous humans offer Purodash as offerings to strong & stout playful horse and the goat leading to honour-fame.
यद्धविष्यमृतुशो देवयानं त्रिर्मानुषाः पर्यश्वं नयन्ति।
अत्रा पूष्णः प्रथमो भागऽ एति यज्ञं देवेभ्यः प्रतिवेदयन्नजः॥
हविः स्वरूप और ऋतु-ऋतु में देवयान पथ को प्राप्त होने वाले अश्व को तीन मानव होता गण कुशों से जल छिड़ककर पवित्र करते हैं, तब पूषा का प्रथम यज्ञ भाग-भक्ष्य बकरा अपनी वाणी से देवों को यज्ञ की सूचना देता हुआ सम्मुख आता है।[यजुर्वेद 25.27]
Forming Havi (sacrifices, offerings), availing divine path during different seasons the horse is sanctified by sprinkling water over it with Kush, then the billy goat of Pusha Dev who eat the first segment of the Yagy come forward informing the demigods-deities of the Yagy.
होताध्वर्युरावया अग्निमिन्धो ग्रावग्राभऽउत शꣳस्ता सुविप्रः।
तेन यज्ञेन स्वरंकृतेन स्विष्टेन वक्षणा आ पृणध्वम्॥
यज्ञकर्ता, अध्वर्यु, प्रति प्रस्थाता, आग्नीध्र, ग्राव स्तोता, प्रशास्ता, प्रज्ञावान् ब्रह्मा आदि हे ऋत्विग्गणों! आप उस सभी प्रकार से सुसज्जित अश्वमेध यज्ञ से अभीष्ट उद्देश्यों को प्राप्ति कीजिये।[यजुर्वेद 25.28]
Yagy organiser, priest, Prati Prasthata, Agnidhr, Hrav Stota, Prashasta, Pragyavan -enlightened Brahma etc, hey Ritviz Gan! Avail (accomplish all sorts of desires) all sorts of goal with the decorated horse for the Ashw Medh Yagy.
यूपव्रस्का उत ये यूपवाहाश्चषालं ये अश्वयूपाय तक्षति।
ये चार्वते पचनꣳ सम्भरन्त्युतो तेषामभिगूर्त्तिर्न इन्वतु॥
हे ऋत्विग्गणो! यज्ञीय कर्मों में सहायक, लकड़ी को काटकर यूप को निर्मित करने वाले, यूप को यज्ञ स्थल तक पहुँचाने वाले, चषाल (लोहे अथवा लकड़ी) की फिरकी बनाने वाले, घोड़े को बन्धन युक्त करने वाले, खूँटे को बनाने वाले, इन सभी का किया गया प्रयत्न हमारे निमित्त कल्याणकारी हो।[यजुर्वेद 25.29]
Hey Ritviz Gan! All endeavours-efforts pertaining to Yagy :- like cutting wood and erecting Yoop-pole, carrying Yoop to Yagy site, Gear-sprocket preparer, preparer of pegs for tying the horse, tying the horse should be successful.(01.09.2025)
उप प्रागात्सुमन्मेऽधायि मन्म देवानामाशाऽउप वीतपृष्ठः।
अन्वेनं विप्राऽऋषयो मदन्ति देवानां पुष्टे चकृमा सुबन्धुम्॥
अश्वमेध यज्ञ के फलस्वरूप उत्कृष्ट मानवीय फल हमें स्वयं ही उपलब्ध हो। देवों की कामनाओं को पूर्ण करने में सक्षम इस अश्व की अभिलाषा सभी करते हैं। इस अश्व को देवत्व की पुष्टि के निमित्त सखा स्वरूप मानते हैं। सभी विद्वान् ब्राह्मण इसका अनुमोदन करें।[यजुर्वेद 25.30]
पुष्टि :: दृढ़ता, मजबूती, पोषण; endorsement, confirmation.
Excellent outcome-reward of the Yagy should be attained by us, ourselves. Every one is desirous of having this horse who is capable of accomplishing desires of the demigods-deities. We consider this horse like friend for endorsement-confirmation of demigodhood. All enlightened Brahmans should endorse it.
यद्वाजिनो दाम सन्दानमर्वतो या शीर्षण्या रशना रज्जुरस्य।
यद्वा घास्य प्रभृतमास्ये तृणꣳ सर्वा ता ते अपि देवेष्वस्तु॥
इस बलशाली अश्व को वश में करने के निमित्त जो ग्रीवा बन्धन रज्जु है, चंचल चरणों के निमित्त जो बन्धन है, कमर तथा शीश के बन्धन एवं लगाम तथा मुख के घास आदि तृण; सभी देवताओं को समर्पित हों।[यजुर्वेद 25.31]
All means of tying-controlling this strong horse viz cord to tie neck, tie for the playful hoofs, waist & head, rein, grass etc. are offered to demigods-deities
यदश्वस्य क्रविषो मक्षिकाश यद्वा स्वरौ स्वधितौ रिप्तमस्ति।
यद्धस्तयोः शमितुर्यन्नखेषु सर्वा ता ते अपि देवेष्वस्तु॥
अश्व का जो विकृत माँस भाग मक्षिका-मक्खी द्वारा भक्षण किया जाता है, जो तलवार में लगा रह जाता है, जो शमिता के हाथों में एवं जो नाखूनों में लगा रहता है, वह सब भी देवताओं के निमित्त ही अर्पित है।[यजुर्वेद 25.32]
विकृत :: ख़राब, बेडौल, अप्राकृतिक; distorted, deformed.
शमिता :: शांत, शांतिपूर्ण, शांत करने वाली, स्थिरता।
Distorted-waste meat of the horse is eaten by the flies. Flesh struck with the slayer-sacrificer too is meant for the demigods-deities.
यदूवध्यमुदरस्यापवाति य आमस्य क्रविषो गन्धो अस्ति।
सुकृता तच्छमितारः कृण्वंतूत मेधꣳ श्रृतपाकं पचन्तु॥
छोटी आँत में जो अधपके तृणादि हैं और काटने पर बाहर निकलते हैं तथा जो कच्चे मांस की गन्ध है। काटने वाले पुण्यजन उस सबको ठीक करें और साथ ही पकाने वाले इस अश्वमेधीय अश्व मांस को ठीक-ठीक पकायें; न तो गला ही दें और न कच्चा उतारें।[यजुर्वेद 25.33]
Undigested pieces of straw present in the small intestine and smell of the raw meat should be removed by the virtuous. The meat of the horse should be cooked properly, neither leave it uncooked nor melt-dissolve it.
यत्ते गात्रादग्निना पच्यमानादभि शूलं निहतस्यावधावति।
मा तद्भूम्यामाश्रिषन्मा तृणेषु देवेभ्यस्तदुशद्भ्यो रातमस्तु॥
हे अश्व! आपके जो अग्नि द्वारा पचाये जाते हुए अंग शूल के प्रहार द्वारा इधर-उधर उछल कर गिर गये हैं, वे पृथ्वी पर ही न पड़े रहें, तृणों में मिश्रित न हो जायें। वे भी यज्ञ के अंश की इच्छा करने वाले देवताओं का ही आहार बनें।[यजुर्वेद 25.34]
Hey horse! Your pieces of uncooked meat scattered while cutting, should neither be left over the earth nor mixed with straw. They should constitute the food of the demigods desirous of their share in the Yagy.
ये वाजिनं परिपश्यन्ति पक्वं य ईमाहुः सुरभिर्निर्हरेति।
ये चार्वतो माꣳ सभिक्षामुपासतऽ उतो तेषामभिगूर्त्तिर्न इन्वतु॥
जो इस अश्व को पक्व होते हुए देखते हैं तथा जो उसकी सुगन्ध को मनमोहक कहते हैं, जो इस भोजन योग्य अन्न से निर्मित आहार को माँगते हैं, उनका पुरुषार्थ भी हमारे निमित्त फलदायी हो।[यजुर्वेद 25.35]
मनमोहक :: आकर्षक, मनोहारी; gorgeous, attractive, artistical.
Those who view the meat of the horse being cooked & say that its smell is gorgeous-attractive & ask for it; their efforts should be fruitful to us.
यन्नीक्षणं माँस्पचन्या उखाया या पात्राणि यूष्ण आसेचनानि।
ऊष्मण्यापिधाना चरूणामंकाः सूनाः परि भूषन्त्यश्वम्॥
जो उखा पात्र में पक्व किये जाने वाले अश्व मांस रूप पुरोडाश की देख-रेख करते हैं, जो पात्रों को जल द्वारा शोधित करने वाले हैं, पक्व करने की क्रिया में ऊष्मा को अवरुद्ध करने वाला ढक्कन, टुकड़े काटने वाले जो उपकरण हैं, वे सभी इस अश्वमेध यज्ञ को अलंकृत करने वाले हों अर्थात् उन्हें देवताओं के योग्य बनायें।[यजुर्वेद 25.36]
Those who supervise the cooking of the horse meat as Purodash, cleanse the pot with water & the lid of the cooking vessel used to check the outflow of heat, knives used to chop meat-choppers, too be decorated i.e., made useful for the demigods.
मा त्वाग्निर्ध्वनयीद् धूमगन्धिर्मोखा भ्राजन्त्यभि विक्त जघ्रिः।
इष्ट वीतमभिगूर्त्त वषट् कृतं तं देवासः प्रति गृभ्णन्त्यश्वम्॥
हे अश्व! धूम्र की गन्ध वाली अग्नि तुम्हें प्रताड़ित न करे, चमकता हुआ अग्निपात्र उखा तुम्हें उद्विग्न न करे। पकाते समय अग्नि तुम्हें सध्वनि न बनायें अर्थात् पकाते समय ध्वनि न हो। इस प्रकार के धूम्र आदि से विहीन, अच्छी तरह से परिपूर्ण अश्वमेध को देवतागण ग्रहण करते हैं।[यजुर्वेद 25.37]
Hey horse! Fire having smoke should not trouble-torture you. Shinning Ukha pot should not disturb you. While cooking you, no sound should be produced. The demigods accept the smoke free accomplished Ashwmedh Yagy.
निक्रमणं निषदनं विवर्त्तनं यच्च पड्वीशमर्वतः।
यच्च पपौ यच्च घासिं जघास सर्वा ता ते अपि देवेष्वस्तु॥
हे यज्ञीय अश्व! आपका निकलना, बैठना, इधर-उधर पलटना, पीना, खाना आदि सभी प्रक्रियाएँ देवों को प्राप्त हों।[यजुर्वेद 25.38]
इधर-उधर पलटना :: to toss about, to stir around, to fumble.
Hey horse meant for the Yagy! Your actions like coming out, fumbling, eating, drinking etc should be accepted by the demigods.
यदश्वाय वास उपस्तृणन्त्यधीवासं या हिरण्यान्यस्मै।
सन्दानमर्वन्तं पड्वीशं प्रिया देवेष्वा यामयन्ति॥
अश्व को सुसज्जित करने वाला ऊपर का कपड़ा, अलंकार, शीश और चरण को बन्धनयुक्त करने की मेखलाएँ आदि सभी देवों को आह्लादित करनेवाले हो और अश्व सहित ये सभी देवताओं को प्राप्त हों।[यजुर्वेद 25.39]
Cloth used to decorate the horse, decoration, cords used for tying the head and legs should be pleasing for the demigods and received by the demigods long with the horse.
यत्ते सादे महसा शूकृतस्य पार्ष्ण्या वा कशया वा तुतोद।
स्रुचेव ता हविषो अध्वरेषु सर्वा ता ते ब्रह्मणा सूदयामि॥
हे अश्व ! घुड़सवार ने अपने तेज के साथ तुम पर सवारी कस कर, तुम्हारे शू-शू करने पर भी, एड़ी या चाबुक से, सवारी के समय जो पीड़ा दी है, उन सबको स्त्रुवा के द्वारा यज्ञों में हविः के समान मैं मन्त्र के द्वारा दूर करता हूँ।[यजुर्वेद 25.40]
घोड़े की काठी :: saddle.
Hey horse! The rider who tied the saddle over your back, made hash-hush, shu-shu sound to increase your speed, hit you with the ankle or the whip and tortured you while riding, I remove all that pain by the recitation of Mantrs with the Struva like the offerings-oblations in the Yagy.
चतुस्त्रिꣳशद्वाजिनो देवबन्धोर्वङ्कीरश्वस्य स्वधितिः समेति।
अच्छिद्रा गात्रा वयुना कृणोत परुष्यरुरनुघुष्या विशस्त॥
हे ऋत्विग्गणो! धारण करने की क्षमता से युक्त, गतिशील, देवों के प्रिय इस अश्व (यज्ञ) के चौंतीस अंगों को भली प्रकार जानें। हरेक अंग को अपने प्रयत्नों द्वारा दृढ़ करें एवं उसकी कमियों का निवारण करें।[यजुर्वेद 25.41]
Hey Ritviz Gan! Know-identify the 34 organs of the horse Yagy having the capability to support thoroughly. Make all organs strong with your efforts and remove the weaknesses.(02.09.2025)
एकस्त्वष्टुरश्वस्या विशस्ता द्वा यन्तारा भवतस्तथ ऋतुः।
या ते गात्राणामृतुथा कृणोमि ता ता पिण्डानां प्रजुहोम्यग्नौ॥
एक प्रजापति ही अश्व को काटने वाला है और द्यावा-पृथिवी, ये दो उसके नियन्त्रक होते हैं। हे अश्व! मैं अध्वर्यु तुम्हारे जिन-जिन अंगों को काटकर अलग करता हूँ, उन-उन माँस पिण्डों को मैं देवताओं के निमित्त अग्नि में होम कर देता हूँ।[यजुर्वेद 25.42]
Its only Prajapati who chop the horse! Earth & heavens control them. Hey Ashw! I the priest, chop your organs and sacrifice the flesh pieces for the demigods in Agni in the Hawan.
मा त्वा तपत्प्रिय आत्मापियन्तं मा स्वधितिस्तन्व आ तिष्ठिपत्ते।
मा ते गृध्नुरविशस्तातिहाय छिद्रा गात्राण्यसिना मिथू कः॥
हे अश्व! स्वर्ग में जाते हुए तुम्हें तुम्हारा प्रिय शरीर तार्पित न करे और न ही यह तलवार तुम्हारे शरीर के सभी अंगों को काटकर देवों को समर्पित करे। इस कार्य को करते हुए वह रुके नहीं। यह लालची एवं अकुशल शमिता भी शास्त्र सम्मत क्रम को छोड़कर जहाँ-तहाँ से काट-काटकर व्यर्थ न कर दे।[यजुर्वेद 25.43]
Hey horse! Your body should neither trouble you while moving to the heavens nor the sword cut your organs and offer to the demigods-deities. It should not stop accomplishing this job. This greedy and unskilled Shamita (knife-sword) should not cut you hither & thither avoiding the process described in the scriptures.
न वा उ एतन्प्रियसे न रिष्यसि देवाँरइदेषि पथिभिः सुगेभिः।
हरी ते युञ्जा पृषती अभूतामुपास्थाद्वाजी धुरि रासभस्य॥
हे अश्व! आप कभी भी नष्ट नहीं होते तथा न ही आप कभी किसी को नष्ट करते हैं, बल्कि आप सुगमतापूर्वक सरल मार्ग से देवों तक गमन करते हैं। तुम्हारे रथ में इन्द्र के हरी तथा मरुतों के पृषती नामक अश्व संयोजित होंगे। दोनों अश्विनी कुमारों के वाहन रासभ से भी तुम अधिक वेगवान् होगे।[यजुर्वेद 25.44]
Hey horse! You are neither lost-destroyed nor you destroy any one. Instead you comfortably move over the divine path. Horses of Indr Dec named Hari and the Prashati named horses of the Marud Gan should be deployed in your charoite. You would become accelerated as compared to the charoite called Rasabh of the Ashwani Kumars.
सुगव्यं नो वाजी स्वश्व्यं पुꣳसः पुत्राँ2 उत विश्वापुषꣳ रयिम्।
अनागास्त्वं नो अदितिः कृणोतु क्षत्रं नो अश्वो वनताꣳ हविष्मान्॥
देवताओं को प्राप्त करने वाला यह बलशाली अश्व हमें पुत्र-पौत्र, धन-धान्य सर्वश्रेष्ठ अश्वों के रूप में अगाध ऐश्वर्य प्रदान करे। हम निर्धनता, दुष्कर्मों तथा अपराधों से सर्वदा दूर रहे। अश्व की भाँति बलशाली हमारे नागरिक वीर्यवान् हों।[यजुर्वेद 25.45]
The horse who attained demigods-deities should grant us sons & grand sons, food grains & wealth in addition to the grandeur in the shape of horse. We should remain aloof from the poverty, wickedness-viciousness and crime. The mighty subjects-civilians should passionate-mighty, like the horse.
इमा नु कं भुवना सीषधामेन्द्रश्च विश्वे च देवाः। आदित्यैरिन्द्रः सगणो मरुद्भिरस्मभ्यं भेषजा करत्। यं च नस्तन्वं च प्रजां चादित्यैरिन्द्रः सह सीषधाति॥
इस अश्वमेध यज्ञ के द्वारा हम इन लोकों को वश में करते हैं। विश्वेदेव और मरुतों के साथ गणवान् इन्द्र आदित्यों सहित हमारे लिये भैषज्य करे। आदित्यों के साथ इन्द्र यज्ञ, हमारे शरीर और प्रजा को सिद्ध करता हैं।[यजुर्वेद 25.46]
We control the three abodes by virtue of this Ashw Medh Yagy. Let Vishwe Dev and Marud Gan, virtuous Indr Dev and Adity Gan administer medicine for us. Indr Yagy with Adity Gan should support our body and the subjects.
अग्ने त्वं नो अन्तमऽ उत त्राता शिवो भवा वरूथ्यः।
वसुरग्निर्वसुश्रवाऽ अच्छा नक्षि द्युमत्तमꣳ रयिं दाः॥
हमारे समीप स्थित हे अग्नि देव! आप हम यजमानों को प्रकाशमान वैभव प्रदान कर हमारा मंगल करें। अच्छे कर्म में लगे हुए हम यजमानों की दुष्ट आचरण करने वालों तथा हिंसा करने वालों से सुरक्षा करें। हे दीप्तिमान् अग्नि देव! हमारे सहायकों हेतु धन, वैभव तथा सुख प्रदान करें, इसलिए हम आपकी अभ्यर्थना करते हैं।[यजुर्वेद 25.47]
Hey Agni Dev close to us! Grant illuminate grandeur to the Yajmans leading to our welfare-well being. Protect us-the virtuous-righteous Yajmans, from violence and wicked-vicious. Hey illuminated Agni Dev! We pray to you to grant wealth, grandeur and comforts-pleasure to our helpers-associates.
तं त्वा शोचिष्ठ दीदिवः सुम्नाय नूनमीमहे सखिभ्यः।
स नो बोधि श्रुधी हव मुरुष्वा णोऽअघायतः समस्मात्॥
हे अग्नि देव! आप हमारी प्रार्थना सुनकर अपने प्रिय यजमानों का कल्याण करें तथा अत्याचारियों एवं कष्ट देनेवाले से हमारी रक्षा करे।[यजुर्वेद 25.48]अत्याचार :: क्रूरकर्म; torture, atrocity.
Hey Agni Dev! Respond to our prayers and protect our Yajmans with their welfare-well being and protect us from those who torture and inflect atrocity-trouble over us.(03.09.2025)
यजुर्वेद संहिता षड्विंशोऽध्याय :: ऋषि :- याज्ञवल्क्य, लौगाक्षि, गृत्समद, रम्याक्षि, प्रादुराक्षि, कुत्स, वसिष्ठ, नोधा, गौतम, भरद्वाज, वत्स, महीयव, मुद्गल, मेधातिथि, मधुच्छन्दा। देवता :- अग्न्यादि, ईश्वर, इन्द्र, सूर्य, वैश्वानर, वैश्वानरो और अग्नि, अग्नि, संवत्सर, विद्वान्, विद्वांस, सोम; छन्द :- कृति, अष्टि, जगती, त्रिष्टुप्, अनुष्टुप्, बृहती, गायत्री, पंक्ति।
अग्निश्च पृथिवी च सन्नते ते मे सं नमतामदो वायुश्चान्तरिक्षं च सन्नते ते मे सं नमतामदआदित्यश्च द्यौश्च सन्नते ते मे संनमतामद आपश्च वरुणश्च सन्नते ते मे सं नमतामदः। सप्त सꣳसदो अष्टमी भूतसाधनी सकामाँ2॥ अध्वनस्कुरु संज्ञानमस्तु मेऽमुना॥
अग्नि तथा पृथ्वी परस्पर अनुकूलता से रहते हैं। वे दोनों मेरे इस अभीष्ट को मेरे अनुकूल बनायें। पवन तथा नभ आपस में सहयोगपूर्वक रहते हैं, वे दोनों मेरे अभीष्ट को मेरे अनुकूल बनायें। आदित्य तथा स्वर्ग भी आपस में सहयोग पूर्वक रहते हैं, वे दोनों मेरे अभीष्ट को मेरे अनुकूल बनायें। जल तथा वरुण भी परस्पर अनुकूलता से रहते हैं, वे मेरे अभीष्ट को मेरे अनुकूल बनायें। हे देव! आप अग्नि, वायु, सूर्य, अन्तरिक्ष, द्युलोक, जल, वरुण तथा पृथ्वी के आश्रयरूप हों, आप सारे मार्गों, विभिन्न शक्तियों एवं वस्तुओं को अपनी इच्छाओं के अनुरूप बनायें, जिससे वे सभी मेरे अभीष्ट को मेरे अनुकूल बनायें।[यजुर्वेद 26.1]
अनुकूल :: उपयुक्त, योग्य, संगत, मुताबिक; compatible, fit, reconcilable.
Agni and earth remain mutually compatible-reconcilable. They should make my goals-endeavours favourable to me. Air and sky are compatible-reconcilable. Both of them should make my targets-desires favourable to me. Adity & heavens remain compatible-reconcilable to each other. They should make my ambitions favourable to me. Water & Varun are mutually compatible-reconcilable. They should make my goals favourable to me. Hey deity! You are asylum to Agni, Vayu, Sury, space-sky, heavens, water, Varun and earth. Make all roads, powers and materials as per desire & favourable to me.
यथेमां वाचं कल्याणी मावदानि जनेभ्यः। ब्रह्मराजन्याभ्याꣳ शूद्राय चार्याय च स्वाय चारणाय च। प्रियो देवानां दक्षिणायै दातुरिह भूयासमयं मे कामः समृध्यतामुप मादो नमतु॥
जैसे कल्याणकारी इस दिव्य वेदवाणी को हमने मन्त्र द्रष्टा ऋषि, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, प्रिय, अप्रियजनों तथा सारे मनुष्यों के निमित्त उपदेशित किया है, वैसे ही हे मनुष्यो! आप लोग भी उपदेशित करें, ताकि इस जगत् में यज्ञ के निमित्त देवों को दक्षिणा देनेवाले लोग हमसे स्नेह करें। हमारा यह अभीष्ट सफल हो तथा हमारा अमुक कार्य सिद्ध हो जाय।[यजुर्वेद 26.2]
The way we preached this divine sermon-Ved Vani to Mantr Drashta Rishi Gan, Brahman, Kshatriy, Vaeshy, Shudr, dear & opponents and all humans, hey humans! You too preach these, so that the people start loving those who make donations-Dakshina for the Yagy organised for the demigods-deities. Let our targets and motives be achieved.
बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु। यद्दीदयच्छवस ऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्। उपयामगृहीतोऽसि बृहस्पतये त्वैष ते योनिर्वृहस्पतये त्वा॥
हे बहस्पते! जिस रमणीय रत्नादि के लिये वैश्य या स्वामी अत्यन्त स्पृहा करता हैं, जो यजन का हेतु है, जो जन साधारण में अत्यन्त आभावान् है और जो बल को दीपित करता है, हे सत्योत्पन्न! वही विचित्र धन तुम हममें धारित करो। हे ग्रह! तुम उपयाम के द्वारा गृहीत हो। मैं तुम्हें बृहस्पति के लिये ग्रहण करता हूँ। यह तुम्हारा स्थान है। बृहस्पति देव के लिये मैं तुम्हें यहाँ धरता हूँ।[यजुर्वेद 26.3]
स्पृहा :: किसी अच्छे काम, चीज या बात की प्राप्ति अथवा सिद्धि के लिए मन में होने वाली अभिलाषा, इच्छा, उच्चाकांक्षा, उत्कंठा, कामना, लोलुपता; appetency, aspiration, covetousness, too high ambition, craving, eagerness, desire, covetousness.
Hey Brahaspati! The Vaeshy or Lords wish to have-acquire the adorable jewels, which are motives of Yagy, which generate aura-radiance in the masses, which produce strength, hey born out of truth! Establish such amazing wealth in us. Hey Grah! You are acceptable for the Upyam. This is your place. I keep you here for Brahaspati Dev.
इन्द्र गोमन्निहा याहि पिबा सोमꣳ शतक्रतो। विद्यद्भिर्यावभिः सुतम्। उपयामगृहीतोऽसीन्द्राय त्वा गोमत एष ते योनिरिन्द्राय त्वा गोमते॥
हे गायों के पालक देवराज इन्द्र! आप इस यज्ञ में पधारें तथा अच्छी तरह से ग्रावा से सुसंस्कारित हुए सोमरस का सेवन करें। हे सोम! आपको पावन कलश में गोपालक देवराज इन्द्र की प्रीति के निमित्त संगृहीत करते हैं। आपको इस स्थान पर तेजवान् देवराज इन्द्र के निमित्त स्थापित करते हैं।[यजुर्वेद 26.4]
ग्रावा :: चमकता पत्थर, चट्टान; bright stone, shining rocks, pebbles.
Hey nurturer of cows, Devraj Indr! Join this Yagy and drink Somras sanctified with shinning stones. Hey Som! We store you for the sake of Devraj Indr in this pious vessel-pot at this spot.
इन्द्रा याहि वृत्रहन्पिबा सोमꣳ शतक्रतो। गोमद्भिर्गावभिः सुतम्। उपयामगृहीतोऽसीन्द्राय त्वा गोमतꣳ एष ते योनिरिन्द्राय त्वा गोमते॥
हे सौ यज्ञ कर्ता, वृत्रघाती देवेन्द्र! आप इस यज्ञ में पदार्पण करें एवं ग्रावा से भली प्रकार अभिषुत और गाय का दूध मिले हुए इस सोमरस का सेवन करें। हे सोम! आपको पवित्र कलश में गोपालक इन्द्र देव की प्रसन्नता के निमित्त एकत्रित करते हैं। आपको इस स्थान पर तेजस्वी इन्द्र देव की प्रीति के निमित्त प्रतिष्ठित करते हैं।[यजुर्वेद 26.5]
Hey hundred Yagy accomplishing and slayer of Vrata Sur, Indr Dev! Join this Yagy and drink the Somras mixed in cow's milk, extracted with Grava-lustrous stones. Hey Som! We store you in the Kalash-vessel for cows nurturer Devraj Indr's pleasure. We establish you here for the sake of Indr Dev.
ऋतावानं वैश्वानरमृतस्य ज्योतिषस्पतिम्। अजस्त्रं धर्ममीमहे उपयामगृहीतोऽसि वैश्वानराय त्वैष ते योनिर्वैश्वानराय त्वा॥
यज्ञरूप, अविनाशी, तेजराशि रूप, दीप्तिमान्, प्राणिमात्र के शुभचिंतक, जगत् के पथ-प्रदर्शक अग्नि देव की हम उद्गातागण स्तुति करते हैं। हे ग्रह! आप उपयाम-पात्र में ग्रहणीय हों, आपको हम वैश्वानर अग्निदेव की प्रीति के लिए ग्रहण करते हैं। हे ग्रह! यह आपका स्थान है, वैश्वानर अग्निदेव की प्रसन्नता हेतु इसमें प्रतिष्ठित करते हैं।[यजुर्वेद 26.6]
We Udgata Gan worship-pray Agni Dev who is a form of Yagy and is illuminating, shinning-lustrous, well wisher of the humans, guide of the universe. Hey Grah! You have to be stored in Upyam vessel, we accept you for Vaeshwanar Agni Dev. Hey Grah! This is your place, we establish you here for the sake-pleasure of Vaeshwanar Agni Dev.
वैश्वानरस्य सुमतौ स्याम राजा हि कं भुवनानामभिश्रीः। इतो जातो विश्वमिदं विचष्टे वैश्वानरो यतते सूर्येण। उपयामगृहीतोऽसि वैश्वानराय त्वैष ते योनिर्वैश्वानराय त्वा॥
मैं वैश्वानर की सद्भावना पूर्ण श्रेष्ठ बुद्धि में स्थित रहूँ। सम्पूर्ण लोकों के आश्रय रूप ये वैश्वानर निःसन्देह यही धरती पर उत्पन्न हुए हैं। ये सम्पूर्ण जगत् के निरीक्षणकर्ता हैं। सूर्य के सदृश ही वे प्रकाश तथा तेज से युक्त हैं। हे सोम! आप उपयाम पात्र में प्रतिष्ठित हों, वैश्वानर की प्रसन्नता प्राप्ति हेतु हम आपको इसमें ग्रहण करते हैं। वैश्वानर की तुष्टि हेतु हम आपको इसमें स्थापित करते हैं।[यजुर्वेद 26.7]
Let me stay-present in the goodwill and excellent brain of Vaeshwanar. Vaeshwanar, who is the asylum of all abodes has evolved from the earth. He supervise the whole world. He has energy like the Sun and shines likewise. Hey Som! You should be established in the Upyam pot. We accept you for the pleasure and satisfaction of Vaeshwanar and establish you.(04.09.2025)
वैश्वानरो न ऊतय आ प्रयातु परावतः। अग्निरुक्थेन वाहसा। उपयामगृहीतोऽसि वैश्वानराय त्वैष ते योनिर्वैश्वानराय त्वा॥
सारे संसार के हितकारी वैश्वानर अग्नि स्तोम रूप वाहन द्वारा हमारी रक्षा के निमित्त दूर देश से आगमन करें। आप उपयाम पात्र में गृहीत हों। यही धरती आपका उत्पत्ति-स्थान है। वैश्वानर की प्रसन्नता प्राप्ति के लिए हम आपको इसमें ग्रहण करते हैं। वैश्वानर की तुष्टि के निमित्त हम आपको इस स्थान पर प्रतिष्ठित करते हैं।[यजुर्वेद 26.8]
हितकारी :: कल्याण करनेवाला, शुभेच्छु, लाभ पहुँचाने वाला, फ़ायदेमंद, लाभदायक, उपयोगी · स्वास्थ्यक, भलाई करने वाला; beneficial, advantageously.
Vaeshwanar Agni who resort to the welfare of all, in the form of Stom carrier, should come for our protection, from distant place. The earth is the place of your origin. For the pleasure of Vaeshwanar, we accept you. We establish you for the satisfaction of Vaeshwanar.
अग्निऋषिः पवमानः पाञ्चजन्यः पुरोहितः। तमीमहे महागयम्। उपयामगृहीतोऽस्यग्नये त्वा वर्चस एष ते योनिरग्नये त्वा वर्चसे॥
जो अग्नि पाँचों वर्णों-सम्पूर्ण समाज (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र तथा निषाद) को मन्त्र द्रष्टा ऋषियों के समान पवित्र करने वाला पुरोहित है। उन महान्, स्तवनीय अग्नि देव की हम वन्दना करते हैं। आप उपयाम पात्र में स्थापित हों। यही आपका निवास-स्थल है। तेज युक्त अग्निदेव की प्रीति के निमित्त आपको यहाँ स्थापित करते हैं।[यजुर्वेद 26.9]
Agni is the priest who purify-sanctify the five Varn viz Brahman, Kshatriy, Vaeshy, Shudr & Nishad like the Rishi Gan. We pray to the great worshipable Agni Dev. You should be established in the Upyam pot. This is the place of your residence. For the love & affection of aurous-radiant Agni Dev we establish you here.
महाँ2॥ इन्द्रो वज्रहस्तः षोडशी शर्म यच्छतु। हन्तु पाप्मानं योऽस्मान् द्वेष्टि। उपयामगृहीतोऽसि महेन्द्राय त्वैष ते योनिर्महेन्द्राय त्वा॥
जो वज्रधारी, सोलह कलाओं से युक्त तथा महान् हैं, वे इन्द्र देव हमें सुखी बनायें। जो हमसे विद्वेष करते हैं, उन दुराचारियों को विनष्ट करें। देवराज इन्द्र की प्रसन्नता हेतु आप (अग्निदेव) उपयाम पात्र में स्थित हों, हम आपको इस स्थान पर प्रतिष्ठित करते हैं।[यजुर्वेद 26.10]
Vajr wielding Indr Dev possessing the 16 characterises-phases (of moon) should make us comfortable-happy. Destroy the wicked-vicious, who are envious to us. For the pleasure of Devraj Indr, Agni Dev should occupy Upyam pot. We establish you here.
तं वो दस्ममृतीषहं वसोर्मन्दानमन्धसः।
अभि वत्सं न स्वसरेषु धेनव इन्द्रं गीर्भिर्नवामहे॥
हे याजको! सभी प्रकार की सम्पदाओं से युक्त सबको देखने वाले, सबको निवास के योग्य आवास प्रदान करने वाले, अन्न आदि पदार्थों से तृप्त करने वाले उन देवराज इन्द्र की, अलौकिक वाणियों द्वारा हम वैसे ही अभ्यर्थना करते हैं, जैसे नवप्रसूता गौएँ प्रेम पूर्वक रँभाती हुई अपने बछड़ों को अपने समीप बुलाती हैं।[यजुर्वेद 26.11]
अभ्यर्थना :: अनुरोध, विनती, मांग, आधार तत्व-स्थापन, अभियाचना, अनुबंध, इकरार, शपथ दिलाना, सौंगंध दिलाना, कसम खिलाना, अभ्यर्थना, अनुरोध, याचना; postulation, request, adjuration.
Hey Yajak Gan! We request to Devraj Indr who grant all sorts of amenities, residence, food grains etc. with divine voice, in the same manner in which the cow newly attaining mother hood moo for her calf.
यद्वाहिष्ठं तदग्नये बृहदर्च विभावसो। महिषीव त्वद्रयिस्त्वद्वाजाऽ उदीरते॥
हे स्तुतिकर्ताओ (उद्गाता)! आप बृहत् साम से अभिलषित फल प्रदान करने वाले, तेज स्वरूप उन अग्नि देव की स्तुति करें, जो महारानी की भाँति सम्पत्ति तथा पोषणकारी अन्नादि प्रदान करने में सक्षम हैं।[यजुर्वेद 26.12]
Hey Udgata Gan-worshipers! Worship Agni Dev-a form of energy & aura, with Brahat Sam; who yield desired accomplishments & is capable of granting property along with life sustaining-nourishing food grains.
एह्यूषु ब्रवाणि तेऽग्न इत्थेतरा गिरः। एभिर्वर्द्धासऽ इन्दुभिः॥
सोम आदि पोषणकारी रसों से अभिवृद्धि को प्राप्त होने वाले हे अग्नि देव! आप शीघ्र इस यज्ञ-स्थल पर पदार्पण करें। हम भावप्रवण स्तोत्रों द्वारा आपकी अभ्यर्थना करते हैं। आप इस सोमरस का पान करके तृप्त हों।[यजुर्वेद 26.13]
भावप्रवण :: भावुक, भावुकतापूर्ण, संवेदन शीलता वाला; emotional, sentimental.
Hey Agni Dev, increasing the nourishing saps! Come quickly to the Yagy site. We worship you with emotional Strotrs. Drink this Somras and get-become satiated.
ऋतुवस्ते यज्ञं वि तन्वन्तु मासा रक्षन्तु ते हविः।
संवत्सरस्ते यज्ञं दधातु नः प्रजां च परि पातु नः॥
हे देव! समस्त ऋतुएँ यज्ञ को समृद्ध करें अर्थात् यज्ञीय प्रक्रिया के विस्तार में सहायक हों, सभी माह हवि की सुरक्षा करें, संवत्सर यज्ञ को धारण करें, जिससे हमारे पुत्र-पौत्रों का पालन हो सके।[यजुर्वेद 26.14]
पालन :: भरण-पोषण करने की क्रिया, आज्ञा, कर्तव्य आदि का निर्वाह; rearing, compliance.
Hey Dev! Let all season enrich the Yagy. All months should protect the sacrifices-offerings, Sanwatsar should support the Yagy so that our sons and grandsons are grown-reared up.
उपह्वरे गिरीणाꣳ संगमे च नदीनाम्। धिया विप्रो अजायत॥
पहाड़ों की उपत्यकाओं, गिरि-कन्दराओं तथा नदियों के किनारे संगम स्थानों पर सोम उत्पन्न होता है, जिससे मेधावी ब्राह्मण यज्ञ करते हैं।[यजुर्वेद 26.15]
उपत्यका :: तराई, घाटी; valley, vale.
Som is grown up in the valleys of hills-caves, over the banks of rivers and is used by the intelligent Brahmans for the Yagy.
उच्चा ते जातमंधसो दिवि सद्भूम्या ददे। उग्रꣳ शर्म महि श्रवः॥
हे सोम! हम आपके उत्तम रस (अन्न) से सुसंस्कारित, स्वर्ग लोक में निवास करने वाले, प्रशंसा करने योग्य उत्कृष्ट सुख प्रदान करने वाले आश्रय को ग्रहण करते हैं। यह धरती की भाँति अविचल हो।[यजुर्वेद 26.16]
Hey Som! We accept asylum under your comfortable, appreciable, abode in the heavens, having excellent sanctified sap. Let it become immovable like the earth.
स न इन्द्राय यज्यवे वरुणाय मरुद्भयः। वरिवोवित्परि स्त्रव॥
हे सोम! आप कीर्ति वाले धन के ज्ञाता है। आप इन्द्र, वरुण तथा मरुतों की संतुष्टि के निमित्त हमारे यज्ञ में संस्कृत रस के रूप में उपलब्ध हों।[यजुर्वेद 26.17]
Hey Som! You are aware of the wealth which is honourable. You should be available for our Yagy like Indr, Varun and Marud Gan.
एना विश्वान्यर्य आ द्युम्नानि मानुषाणाम्। सिषासन्तो वनामहे॥
हे जगत् के अधिष्ठाता! मानवों को उत्तम धन-सम्पदा प्रदान करें, जिससे श्रद्धा की भावना रखनेवाले मनुष्यों को सुख की प्राप्ति हो।[यजुर्वेद 26.18]
Hey Lord of the universe-Almighty! Grant excellent wealth-prosperity, amenities to the humans, so that the devotees-faithful can attain comforts-pleasure.
अनु वीरैरनु षुष्यास्म गोभिरन्वश्चैरनु सर्वेण पुष्टैः।
अनु द्विपदानु चतुष्पदा वयं देवा नो यज्ञमृतुथा नयन्तु॥
हम पराक्रमी पुत्रादि से युक्त हों। गौओं, अश्वों एवं सभी प्रकार के सेवकों तथा पशुओं से सम्पन्न बनाने हेतु देवता हमारे इस यज्ञ को ऋतुओं के अनुरूप सम्पन्न करें।[यजुर्वेद 26.19]
Our sons-grandson should be invincible. Demigod-deities who enrich us with cows, horses, servants & animals should accomplish the Yagy as per the season.
अग्ने पत्नीरिहा वह देवानामुशतीरुप। त्वष्टारꣳ सोमपीतये॥
हे अग्ने! हवि की अभिलाषा करनेवाली देवताओं की पत्नियों को तथा त्वष्टा देवता को हमारे इस यज्ञ में सोमपान करने हेतु साथ लेकर आगमन करें।[यजुर्वेद 26.20]
Hey Agni! Join our Yagy with the demigods-deities & their wives, Twasta Dev who wish to have oblations-offerings; for drinking Somras.
अभि यज्ञं गृणीहि नो ग्रावो नेष्टः पिब ऋतुना। त्वꣳ हि रत्नधा असि॥
हे क्रतु देवताओं! हमारे इस यज्ञ की स्तुति कीजिये। अनेक पत्नियों वाले हे अग्नि देव तथा हे नेष्टा! (सोमयाग के प्रधान ऋत्विजों में से एक) आप सोमपान कीजिये; क्योंकि आप रत्नों को देने वाले तथा धारण करने वाले हैं।[यजुर्वेद 26.21]
Hey demigods-called Kratu! Pray for Yagy. Hey Agni Dev having many wives and Neshta! Being the chief priests of Som Yagy, you too should drink Somras; since you grant us jewels and wear them.(05.09.2025)
द्रविणोदाः पिपीषति जुहोत प्र च तिष्ठत। नेष्ट्रादृतुभिरिष्यत॥
हे ऋत्विग्गणो! धन प्रदान करने वाले नेष्टा (अग्नि) देवता समयानुसार सोमरस का पान करते हैं, अतः उनके लिये सोम की आहुतियाँ दीजिये। आप लोग भी सोमपान करने की इच्छा से उसे प्राप्त करें। आप यजन करें तथा सम्मान प्राप्त करने के अधिकारी वनें।[यजुर्वेद 26.22]
Hey Ritviz Gan! Wealth awarding Neshtha-Agni Dev timely drink Somras, hence make sacrifices for him. You too should attain him with the desire of drinking Somras. Perform Yagy and become eligible for honours.
तवायꣳ सोमस्त्वमेह्यर्वाङ् शश्वत्तमꣳ सुमना अस्य पाहि।
अस्मिन्यज्ञे बर्हिष्या निषद्या दधिष्वेमं जठरइन्दुमिन्द्र॥
हे वैभवशाली इन्द्र देव! आप हमारे समीप आगमन करें और इस दर्भासन पर विराजमान हों। यह सोम आपके लिए समर्पित है। अतएव प्रसन्न मन से चिरकाल तक इसकी सुरक्षा करें। इस यज्ञ में कुशासन पर विराजमान होकर इस सोमरस को उदर में धारण करें।[यजुर्वेद 26.23]
दर्भासन :: कुश-दर्भ से बना पवित्र आसन। इस पर बैठकर जप, पूजा और उपासना की जाती है, क्योंकि यह सात्विक है और जमीन से निकलने वाली नकारात्मक ऊर्जा को रोकता है, जिससे साधक पूजा का यथेष्ट फल मिलता है।
Hey Indr Dev having grandeur! Come to us and occupy this Darbhasan. This Somras is meant for you. Hence protect it forever. Occupy the Kushasan and drink Somras, in this Yagy.
अमेव नः सुहवा आ हि गन्तन नि बर्हिषि सदतना रणिष्टन।
अथा मदस्व जुजुषाणो अन्धसस्त्वष्टर्देवेभिर्जनिभिः सुमद् गणः॥
हे श्रेष्ठ आवाहन पर ध्यान देने वाली देव पत्नियों! आप हमारे इस यज्ञगृह में अपने गृह के समान पदार्पण करें तथा कुशासन पर प्रसन्नतापूर्वक विराजमान हों। हे त्वष्टा देव! आप देवताओं की पत्नियों सहित हविष्य को ग्रहण करते हुए प्रसन्न एवं तृप्त हो।[यजुर्वेद 26.24]
Hey wives of demigods, caring for the excellent invocation! Come to our house as yours and occupy the Kushasan. Hey Twasta Dev! You should accept the offerings-oblations along with the wives of demigods and become happy and satisfied.
स्वादिष्ठया मदिष्ठया पवस्व सोम धारया। इन्द्राय पातवे सुतः॥
हे सोम देव! आप अपनी सुस्वादिष्ट तथा हर्षप्रद धारा के साथ देवेन्द्र के निमित्त कलश में प्रवाहित हों, क्योंकि आप उन्हीं के पान करने के निमित्त निकाले गये हैं।[यजुर्वेद 26.25]
Hey Som Dev! Flow into to the Kalash with your tasty and gladdening current, since you have been extracted for drinking by Devendr-Indr Dev.
रक्षोहा विश्वचर्षणिरभि योनिमयोहते। द्रोणे सधस्थमासदत्॥
हे दिव्य सोम देव! आप असुरों के संहारक एवं सम्पूर्ण शुभाशुभ के द्रष्टा हैं। आप काष्ठ पात्र एवं लौह निर्मित आयुध (बसुला) द्वारा सुसंस्कारित होकर, द्रोण-कलश में विद्यमान होकर यज्ञ के बीच में स्थित रहें।[यजुर्वेद 26.26]
Hey divine Som Dev! You are the destroyer of demons-giants and watcher-eye witness of auspicious & inauspicious events. Remain present in the Yagy, having been sanctified with wooden vessel and arm-tool made of Iron.
यजुर्वेद संहिता सप्तविंशोऽध्याय :: ऋषि :- अग्नि, प्रस्कण्व प्रजापति, वसिष्ठ, हिरयण्गर्भ, गृत्समद, पुरुमीढ, अजमीढ, अंगिरस, शम्युबार्हस्पत्य, वामदेव, शम्यु, भार्गव; देवता :- अग्नि, सामिधेन्य, विश्वेदेवा, अव्यादय, सूर्य, यज्ञ, वह्नि, वायु, देव्य, इडादयो लिंगोक्ता, त्वष्टा, विद्वांस, इन्द्र, प्रजापति, परमेश्वर; छन्द :- त्रिष्टुप्, पंक्ति, बृहती, जगती, अनुष्टुप्, उष्णिक्, गायत्री, कृति।
समास्त्वाग्नऽऋतवो वर्द्धयन्तु संवत्सराऽऋषयो यानि सत्या।
सं दिव्येन दीदिहि रोचनेन विश्वाऽ आ भाहि प्रदिशश्चतस्त्रः॥
हे अग्नि देव! आपको प्रत्येक मास, प्रत्येक ऋतु में, प्रत्येक संवत्सर में ऋत्विज सत्य वाणी रूप मन्त्रों के द्वारा प्रवृद्ध करते हैं। ऐसे आप अपने अलौकिक तेज के द्वारा प्रज्वलित होते हुए सभी दिशाओं, प्रदिशाओं को आलोकित करें।[यजुर्वेद 27.1]
Hey Agni Dev! The Ritviz Gan boost you in every month, season, Sanwatsar with Mantrs like truth. Illuminate all directions and sub directions, with divine aura-radiance.
सं चेध्यस्वाग्ने प्र च बोधयैनमुच्च तिष्ठ महते सौभगाय।
मा च रिषदुपसत्ता ते अग्ने ब्रह्माणस्ते यशसः सन्तु मान्ये॥
हे अग्नि देव! आप प्रज्वलित होकर इस याजक को प्रेरणा प्रदान करें तथा ऐसे महान् वैभव प्राप्त करने हेतु उद्यम करें। हे अग्नि देवता! आपकी उपासना करने वाला भक्त कभी नष्ट न हो। आपके ऋत्विग्गण तथा याजक आदि सभी भक्त यशस्वी बनें एवं जो आपकी भक्ति न करें, उन्हें कभी भी यश की प्राप्ति न हो सके।[यजुर्वेद 27.2]
Hey Agni Dev! Ignite and inspire the Yajak to make efforts-endeavours to attain great grandeur. The devotee who worship you, should never be destroyed. Your Ritviz and Yajak should become honoured and those who avoid-ignore you, should never become honoured (respected, revered).
त्वामग्ने वृणते ब्राह्मणाऽइमे शिवो अग्ने संवरणे भवा नः।
सपत्नहा नो अभिमातिजिच्च स्वे गये जागृह्यप्रयुच्छन्॥
हे अग्नि देव! ये ब्राह्मण आपकी आराधना हेतु आपका वरण करते हैं, अतएव इन ब्राह्मणों के वरण किये जाने पर आप हमारा हित करने वाले बनें तथा हमारे रिपुओं को विनष्ट करने वाले होकर सभी पर विजय प्राप्त करने वाले एवं अपने घर में हमारी सुरक्षा के निमित्त प्रमाद रहित सावधान होकर जाग्रत् हों।[यजुर्वेद 27.3]
Hey Agni Dev! These Brahmans accept you for worship, hence on being accepted by these Brahmans, resort to our well being-welfare and destroy the enemies, become victorious and remain alert for the protection of our home without ego.
इहैवाग्ने अधि धारया रयिं मा त्वा नि क्रन् पूर्वचितो निकारिणः।
क्षत्रमग्ने सुयममस्तु तुभ्यमुपसत्ता वर्द्धतां ते अनिष्ट्टतः॥
हे अग्नि देव! आप इन याजकों के धनों को प्रवृद्ध करें। अग्नि चयन करने वाले यज्ञ कर्ता आपकी अवज्ञा न करें। क्षत्रिय आपके निमित्त सुख पूर्वक वश में करने योग्य हैं। आपका आराधक विनष्ट न होता हुआ सभी प्रकार की समृद्धि में अधिष्ठित हो।[यजुर्वेद 27.4]
Hey Agni Dev! Increase-boost the wealth of these Yajak Gan. Yagy Karta who picks up fire, should not disobey you. The Kshatriy deserve to be controlled for your pleasure, comfortably. Your worshiper should not be destroyed and attain prosperity-amenities.(06.09.2025)
क्षत्रेणाग्ने स्वायुः सꣳ रभस्व मित्रेणाग्ने मित्रधेये यतस्व।
सजातानां मध्यमस्था एधि राज्ञामग्ने विहव्यो दीदिहीह॥
हे उत्तम गुणवाले अग्निदेव! आप क्षत्रिय याजक के साथ यज्ञ कर्म का प्रारम्भ करें। सूर्य द्वारा सुसंगत होते हुए आप याजक के करने योग्य यज्ञ को पूर्ण करें। हे अग्नि देव! आप समान जन्म वालों के बीच में रहते हैं। शासकों के द्वारा आवाहन किये गये आप हमारे इस यज्ञ में प्रज्वलित हों।[यजुर्वेद 27.5]
Hey Agni Dev with excellent traits! Start the Yagy Karm of Kshatriy Yajak. Become compatible with Sury Dev and accomplish the Yagy. Hey Agni Dev! You reside amongest the people of same origin. On being invoked by the rulers, ignite in our Yagy.
अति निहो अति स्त्रिधोऽत्यचित्तिमत्यरातिमग्ने।
विश्वा ह्यग्ने दुरिता सहस्वाथास्मभ्यꣳ सहवीराꣳ रयिं दाः॥
हे अग्नि देव! आप हिंसकों को, अतिक्रमण करने वालों, कुत्सिताचारियों का अतिक्रमण करने वाले, चंचल चित्त वालों को अपने अधीन करते हुए एवं लोभ करने वालों का अतिक्रमण कर पापों को निराकृत करें। तत्पश्चात् हे अग्नि देव! हमें पराक्रमी पुत्र-पौत्रादि से युक्त उत्तम श्रेणी का धन प्रदान करें।[यजुर्वेद 27.6]
अतिक्रमण :: उल्लंघन, भंग, अपवित्रीकरण, encroachment, infraction, violation, infringement.
Hey Agni Dev! Control the playful-fickle minds of the violent, encroachers, wicked-vulgar and encroach the greedy, relieving us of sins. Thereafter, hey Agni Dev! Grant us best quality wealth along with sons & grandsons.
अनाधृष्यो जातवेदाअनिष्ट्रतो विराडग्ने क्षत्रभृद्दीदिहीह।
विश्वाऽ आशाः प्रमुञ्चन्मानुषीर्भियः शिवोभिरद्य परिपाहि नो वृधे॥
हे जातवेदा अग्नि देव! कभी भी पराजित न होने वाले, सर्वज्ञाता, अच्युत तथा विराट् और सर्वबल सम्पन्न क्षात्र धर्म के पोषण कर्ता आप हमारे इस कर्म में संलग्न हों तथा हमारी सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करें। आप हमारे सभी प्रकार के डरों को दूर करते हुए शान्त भाव से हमारा पालन-पोषण करें तथा हमें सभी प्रकार से समृद्धिशाली बनायें।[यजुर्वेद 27.7]
अच्युत :: अटल, स्थिर, परमात्मा, विष्णु; infallible, imperishable.
Hey Jatveda Agni Dev! Undefeated, all knowing, imperishable and huge, nurturer of all powerful-mighty Kshatr Dharm, involve in our Yagy and accomplish our all desires. Eliminate our all sorts of fears, nourish us and make us prosperous.
बृहस्पते सवितर्बोधयैनꣳ सꣳशितं चित्सन्तराꣳ सꣳशिशाधि।
वर्धयैनं महते सौभगाय विश्वऽ एनमनु मदन्तु देवाः।[यजुर्वेद 27.8]
हे बृहस्पते! हे सर्वप्रेरक सविता देव! इस याजक को कर्म में संलग्न करें। यह याजक शिक्षित है, लेकिन फिर भी इसे आप और अधिक शिक्षित बनायें। महान् सौभाग्य प्रदान करके उसको समृद्धिशाली बनायें। इसके द्वारा किये गये यज्ञ से विश्वेदेव भी तृप्त हों।[यजुर्वेद 27.9]
Hey Brahaspati Dev! Hey all inspiring Savita Dev! Engage this Yajak in Karm-efforts. This Yajak is educated, still you should educate him further. Grant him great luck making him prosperous. Vishwe Dev too be satisfied by virtue of his Yagy Karm.
अमुत्रभूयादध यद्यमस्य बृहस्पते अभिशस्तेरमुञ्चः।
प्रत्यौहतामश्विना मृत्युमस्माद्देवानामग्ने भिषजा शचीभिः॥
हे बृहस्पते! परलोक में जाने के डर से तथा यमराज के डर से एवं इस जन्म तथा पूर्वजन्मों के अभिशाप से हमें मुक्ति प्रदान करें। हे अग्नि देव! देवताओं के चिकित्सक दोनों अश्विनी कुमार अपने उपायों से कल्याणकारी कार्य करने वाले इस याजक को मृत्यु के डर से दूर करें।[यजुर्वेद 27.9]
Hey Brahaspati Dev! Eliminate the fear of going to next birth with the fear of Yam Raj in addition to the curse of the current and previous births. Hey Agni Dev! Let Ashwani Kumars, physicians of the demigods-deities; remove-eliminate the fear of death of this Yajak through welfare means.
उद्वयं तमसस्परि स्वः पश्यन्त उत्तरम्। देवं देवत्रा सूर्यमगन्म ज्योतिरुत्तमम्॥
हे अग्नि देव! हम अन्धकारमय इस लोक से दूर श्रेष्ठ स्वर्ग लोक में प्रतिष्ठित, ज्योति-स्वरूप, दिव्य तेज से परिपूर्ण सूर्य देव को देखते हुए श्रेष्ठ ब्रह्मस्वरूप को प्राप्त हों।[यजुर्वेद 27.10]
Hey Agni Dev! Let us attain the excellent form of Brahm, coming out of the darkness of this abode and establishing in the heavens, illuminated with the divine aura-radiance of Sury Dev.
ऊर्ध्वा अस्य समिधो भवन्त्यूर्ध्वा शुक्रा शोचीꣳष्यग्ग्रेः। द्युमत्तमा सुप्रतीकस्य सूनोः॥
याजकों द्वारा उत्पन्न किये जाने वाले इन उत्तम मुख वाले अग्नि देव की समिधाएँ ऊपर की ओर गमन करने वाली हों एवं शुभ्र आभा वाली उनकी किरणें भी ऊपर की ओर गमन करने वाली हों।[यजुर्वेद 27.11]
The Samidha of this Agni Dev produced by the Yajak Gan, with excellent-beautiful mouth should possess excellent aura and its rays should rise up.
तनूनपादसुरो विश्ववेदा देवो देवेषु देवः। पथो अनक्तु मध्वा घृतेन॥
जलों के पौत्र, अविनाशी, प्राणवान्, सर्वज्ञ, देवों में सबसे प्रकाशमान अग्नि देव मधु और घृत की आहुति के द्वारा यज्ञ के उत्तम पथ को अभिसिंचित करें।[यजुर्वेद 27.12]
अभिसिंचित :: अच्छी तरह सींचा हुआ; convergent
Grand son of waters, immortal-eternal, living, all knowing, most illuminated amongest the demigods-deities Agni Dev should converge the excellent path of the Yagy with the sacrifices of honey and Ghee.
मध्वा यज्ञं नक्षसे प्रीणानो नराशꣳ सो अग्ने। सुकृद्देवः सविता विश्ववारः॥
हे अग्नि देव! देवताओं के आराधक ऋत्विग्गणों द्वारा स्तवनीय, शोभनीय कर्म करने वाले, तेज युक्त सविता देव के समान आप सबके द्वारा वरणीय हैं। आप इस यज्ञ को मधुरता से युक्त घृत के द्वारा व्याप्त करते हैं।[यजुर्वेद 27.13]
Hey Agni Dev! You too should be acceptable like Savita Dev by the Ritviz Gan, the worshipers of demigods-deities. You pervade this Yagy by adding sweetness and Ghee.
अच्छायमेति शवसा घृतेनेडानो वह्निर्नमसा। अग्निꣳ स्त्रुचो अध्वरेषु प्रयत्सु॥
जो अध्वर्यु ज्ञान के द्वारा स्तुति करते हैं एवं यज्ञ कर्मानुष्ठान करते हैं, वह अध्वर्यु घृत एवं हविष्यान्न के साथ यज्ञपात्रों (जुहू) को लेकर अग्नि के समीप पहुँचते हैं।[यजुर्वेद 27.14]
The priests who worship-pray with knowledge and perform the Yagy Karm, reach-approach Agni Dev with Ghee and food grains for offerings, carrying Yagy vessels-Juhu.
स यक्षदस्य महिमानमग्नेः स ईं मन्द्रा सुप्रयसः। वसुश्चेतिष्ठो वसुधातमश्च॥
वह अध्वर्यु यज्ञ कर्म में संलग्न होकर, अति देदीप्यमान, ज्येष्ठ, सम्पदाओं के दाता तथा अन्नवान् अग्नि की अर्चना करता है। वह अध्वर्यु ही प्रसन्नतादायी हवियों से आहुति समर्पित करे।[यजुर्वेद 27.15]
The priest engage in the Yagy Karm and worship the highly illuminated, senior, grantor of prosperity and food grains Agni Dev. Let this priest make sacrifices with offerings which grant pleasure.
द्वारो देवीरन्वस्य विश्वे व्रता ददन्ते अग्नेः। उरुव्यचसो धाम्ना पत्यमानाः॥
प्रभूत अन्तराल वाली और अपने स्थान ग्रहण के द्वारा यज्ञ को ऐश्वर्यशाली बनाने वाली द्वार देवियाँ इस अग्नि के कर्मों को धारण करती हैं अर्थात् राक्षसादि के उपद्रवों से सुरक्षित रखती हैं। विश्वेदेवता भी इनके कर्मों की रक्षा करते हैं।[यजुर्वेद 27.16]
The goddesses of the gates having wide space occupy their position-place and adding grandeur to the Yagy, protect it from the disturbances by demons. Vishwe Dev too protect their endeavours.
ते अस्य योषणे दिव्ये न योना उषासानक्ता। इमं यज्ञमवतामध्वरं नः॥
इस यज्ञ कुण्ड में अग्नि की दो दिव्य देवियाँ उषा (दिन) तथा नक्ता (रात्रि) स्थित हैं। वे दोनों हमारे इस उत्तम यज्ञ की सफलतापूर्वक रक्षा करें एवं कुण्ड के बीच में अग्नि देव के साथ विराजमान हों।[यजुर्वेद 27.17]
Two divine goddess, namely Usha-day & Nakta-night of Agni are present in the Yagy Kund-pit. Let them successfully protect our Yagy and establish themselves with Agni Dev in the pit.(07.09.2025)
दैव्या होताराऽ ऊर्ध्वमध्वरं नोऽग्नेर्जिह्वामभि गृणीतम्। कृणुतं नः स्विष्टिम्॥
दिव्य गुण सम्पन्न दोनों यज्ञकर्ता (होता), अग्नि देव तथा वायु देव हमारे इस यज्ञ को उत्तम प्रकार से सम्पादित करें। हमारी यज्ञाग्नि की ज्वालाएँ ऊपर की ओर गमन करने वाली होकर हमें भी सभी प्रकार से ऊपर की ओर गमन करने के निमित्त प्रेरित करें अर्थात् हमारे यज्ञ को सिद्ध करें।[यजुर्वेद 27.18]
Let the Hota Agni Dev & Vayu Dev having divine traits, accomplish our Yagy in best possible manner. The flames of our Yagy fire should rise up and inspire us to rise up (to heavens) accomplishing the Yagy.
तिस्त्रो देवीर्बर्हिरेदꣳ सदन्त्विडा सरस्वती भारती। मही गृणाना॥
अत्यन्त महिमामयी, स्तवनीय तीनों देवियाँ इडा, सरस्वती तथा भारती यज्ञ स्वरूप में इस कुशासन पर विराजमान हों।[यजुर्वेद 27.19]
Highly glorious, worshipable three Goddesses Ida, Saraswati and Bharti should occupy the Kushasan, as the form of Yagy.
तन्नस्तुरीपमद्भुतं पुरुक्षु त्वष्टा सुवीर्यम्। रायस्पोषं वि ष्यतु नाभिमस्मे॥
त्वष्टा देव उस तीव्र गामी, अलौकिक, विविध विध स्वरूपों में शोभायमान धन-वैभव तथा उत्तम सामर्थ्य को हमें प्रदान करें।[यजुर्वेद 27.20]
Twasta Dev should grant us wealth which is fast moving, divine, having different forms with excellent capability.
वनस्पतेव सृजा रराणस्त्मना देवेषु। अग्निर्हव्यꣳ शमिता सूदयाति॥
हे वनस्पते! आप देवताओं के स्वरूप को धारण करके देवों को हवियों के द्वारा आहुति समर्पित करें। कल्याणकारी अग्नि देवता उन आहुतियों को पवित्र बनाते हैं।[यजुर्वेद 27.21]
Hey Vanaspate! Make offerings to the demigods by assuming the form of demigods-deities. Well wisher Agni Dev make the sacrifices pious.
अग्ने स्वाहा कृणुहि जातवेदऽ इन्द्राय हव्यम्। विश्वे देवा हविरिदं जुषन्ताम्॥
हे सर्वज्ञ, ज्योतिरूप अग्नि देव! हम जो आहुति समर्पित करते हैं उन्हें इन्द्र देव के निमित्त स्वाहा पूर्वक स्वीकार करें। विश्वे देव भी इन आहुतियों का भक्षण करें।[यजुर्वेद 27.22]
All knowing, Agni Dev, possessing the form of light! Accept our sacrifices for Indr Dev by uttering Swaha. Vishwe Dev too should consume these sacrifices.
पीवो अन्ना रयिवृधः सुमेधाः श्वेतः सिषक्ति नियुतामभिश्रीः।
ते वायवे समनसो वि तस्थुर्विश्वेन्नरः स्वपत्यानि चक्रुः॥
अन्नादि से परिपुष्ट हुए, वैभव के संवर्द्धक, श्रेष्ठ बुद्धि वाले, वायु देव का आश्रय ग्रहण करने वाले, उनके सदृश स्वभाव वाले नियुत संज्ञक अश्वों को वायु देव अधिष्ठित करते हैं। वे अश्व वायु देव के निमित्त उपलब्ध रहते हैं। जो यजमान श्रेष्ठ सन्तान आदि को प्राप्त करने के अभिलाषी हैं, वे इसी प्रकार का यज्ञ सम्पन्न करते हैं।[यजुर्वेद 27.23]
अधिष्ठित :: आबाद, नियमित, पर्यवेक्षित; established, settled, inhabited, superintended, regulated, appointed.
Vayu Dev establish the horses which are nourished with food grains etc., having excellent brain, seeking asylum under Vayu Dev. These horses are availble for Vayu Dev. Those Yajman who wish to have excellent progeny should accomplish such Yagy.
राये नु यं जज्ञतू रोदसीमे राये देवी धिषणा धाति देवम्।
अध वायुं नियुतः सश्चतः स्वा उत श्वेतं वसुधितिं निरेके॥
पृथ्वी तथा अन्तरिक्ष ने जिस वायु (प्राण तत्त्व) को धन के निमित्त उत्पन्न किया, उसी वायु को ब्रह्मशक्ति रूप दिव्य वाणी (वाग्देवी) श्रेष्ठ धन के निमित्त धारण करती है। तत्पश्चात् शुद्ध सम्पत्ति को धारण करने वाले वायु (प्राण तत्त्व) का सभी प्राणी ब्रह्माण्ड में रहकर उपभोग करते हैं।[यजुर्वेद 27.24]
The Vayu which is produced by Earth & space, produce Vayu (air Vital) for the wealth & is supported by Vag Devi-divine voice-speech Brahm Shakti for the sake of wealth. Thereafter, pure-pious wealth-property (prosperity) supported by Vayu is utilised by all living beings of the universe.(08.09.2025)
आपो ह यद्बृहतीर्विश्वमायन् गर्भं दधाना जनयन्तीरग्निम्।
ततो देवानाꣳ समवर्त्ततासुरेकः कस्मै देवाय हविषा विधेम॥
सुवर्ण युक्त आभामय अग्नि के तेज को गर्भ में धारण किये हुए महान् जल का भण्डार सबसे पहले धरती पर प्रादुर्भूत हुआ। उस हिरण्यगर्भ द्वारा देवों के प्राण स्वरूप आत्मा की उत्पत्ति हुई। हम हिरण्यगर्भ स्वरूप प्रजापति के निमित्त आहुति समर्पित करते हैं, उनके अतिरिक्त और किसे आहुति समर्पित करें।[यजुर्वेद 27.25]
Initially water reservoir with aurous-golden hue Agni in its womb, appeared over the earth. That Hirany Garbh produced-evolved the soul in the form of demigod's Air Vital. We make sacrifices for Prajapati in the form of Hirany Garbh. Whom else should we offer sacrifices?!
यश्चिदापो महिना पर्यपश्यद्दक्षं दधाना जनयन्तीर्यज्ञम्।
यो देवेष्वधि देव एक आसीत् कस्मै देवाय हविषा विधेम॥
जिस परमात्म शक्ति ने अपनी महिमा से सभी जगह स्थित जल का अवलोकन किया तथा दक्ष प्रजापति के द्वारा यज्ञ कर्म करने वाली प्रजा को पैदा किया, उन सम्पूर्ण देवताओं में उत्तम स्थान प्राप्त प्रजापति देव के निमित्त हम आहुति समर्पित करते हैं।[यजुर्वेद 27.26]
The Ultimate power looked around the water with HIS glory and produced populace through Daksh Prajapati. We offer sacrifices to Prajapati who possess excellent position amongest the demigods-deities.
प्र याभिर्यासि दाश्वाꣳ समच्छा नियुद्धिर्वायविष्टये दुरोणे।
नि नो रयिꣳ सुभोजसं युवस्व नि वीरं गव्यमश्व्यं च राधः॥
हे वायो! यज्ञशाला में हवि समर्पित करने वाले यजमान के निकट आप अपने नियुत नाम वाले अश्वों के द्वारा द्रुतगति से गमन करते हैं, वहाँ से वापस आकर हमें पराक्रमी सन्तान, गाय, अश्व आदि विपुल सम्पदा प्रदान करके समृद्धिशाली बनायें।[यजुर्वेद 27.27]
Hey Vayu! You move fast through the horses having your name-title, near the Yagy Shala, where the Yajman make offerings. Come back from there and grant us chivalric progeny, cows, horses and lots of wealth making us prosperous.
आ नो नियुद्भिः शतिनीभिरध्वरꣳ सहस्रिणीभिरुप याहि यज्ञम्।
वायो अस्मिन्त्सवने मादयस्व यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
हे वायो! आप सैकड़ों-हजारों घोड़ों के द्वारा खींचे जाते हुए अपने वाहन पर विराजमान होकर अर्थात् शीघ्रता पूर्वक हमारे इस यज्ञ में आगमन करें तथा इसके सेवन से स्वयं परितृप्त हों और हमें भी प्रसन्नता प्रदान करें। आप अपने मंगलकारी साधनों के द्वारा सर्वदा हमें संरक्षण प्रदान करें।[यजुर्वेद 27.28]
Hey Vayu! You being pulled by hundreds, thousands of horses riding your charoite come to our Yagy quickly, get satisfied with it and grant us pleasure. Grant protection to us through your beneficial, auspicious means.
नियुत्वान् वायवा गह्ययछꣳ शुक्रो अयामि ते। गन्तासि सुन्वतो गृहम्॥
हे वायो! आप याजक के घर में गमन करने वाले हैं, अतएव नियुत संज्ञक अश्व पर आरोहण करके उस स्थान पर पदार्पण करें। यह शुक्रग्रह आपके निमित्त प्रस्तुत है।[यजुर्वेद 27.29]
Hey Vayu! You move to the house of the Yajak, hence ride the horse named Niyut and move to that place. This Shukr Grah is meant for you.
वायो शुक्रोअयामि ते मध्वो अग्रं दिविष्टिषु। आ याहि सोमपीतये स्पार्हो देव नियुत्वता॥
हे वायो! स्वर्ग फल प्रदायक यज्ञों में रस का सारभूत जो शुक्र ग्रह मुख्य माना जाता है, उस शुक्र ग्रह को आपके निमित्त उपस्थित करते हैं। आप सोमरस का पान करने हेतु अपने नियुत नाम वाले अश्वों द्वारा यहाँ आगमन करें।[यजुर्वेद 27.30]
Hey Vayo! The gist of the Yagy granting-awarding heavens, Shukr Grah is considered to be main. We produce that Shukr Grah before you. You should arrive riding your horses named Niyut and drink Somras.
वायुरग्रेगा यज्ञप्रीः साकं गन्मनसा यज्ञम्। शिवो नियुद्भिः शिवाभिः॥
अग्रगामी, यज्ञ द्वारा परितृत होने वाले कल्याणरूप वायु देवता अपने मंगलकारी नियुत नाम वाले अश्वों द्वारा हमारे यज्ञ में आगमन करें।[यजुर्वेद 27.31]
Remaining forward, worshiped through Yagy, auspicious-beneficial Vayu Dev should come to our Yagy -riding-through the horses named Niyut.
वायो ये ते सहस्त्रिणो रथासस्तेभिरा गहि। नियुत्वान्सोमपीतये॥
हे वायो! आपके हजारों रथ हैं, उनमें नियुत संज्ञक अश्वों को योजित करके सोमरस का पान करने हेतु यहाँ पधारें।[यजुर्वेद 27.32]
Hey Vayo! You have thousands of charoites, deploy the horses named Niyut in them and come for drinking Somras, here.
एकया च दशभिश्च स्वभूते द्वाभ्यामिष्टये विꣳशती च।
तिसृभिश्च वहसे त्रिꣳशता च नियुद्धिर्वायविह ता विमुञ्च॥
हे वायो! आप आत्म रूप समृद्धि वाले हैं। आप एक, दो, तीन, दस, बीस अथवा तीस अश्वों के द्वारा जिन यज्ञीय पात्रों को धारण करते हैं, उन्हें इस यज्ञ में छोड़ दें।[यजुर्वेद 27.33]
Hey Vayu! You possess the prosperity in the form of Soul. The Yagy vessels you support numbered one, two, three, ten, twenty or thirty, should be left here in the Yagy through horses.
तव वायवृतस्पते त्वष्टुर्जामातरद्भुत। अवाꣳ स्या वृणीमहे॥
हे वायो! आप सत्य पालक, त्वष्टा देव के जामाता तथा दिव्य स्वरूप वाले हैं। हम आपकी अनुकम्पा प्राप्त करके अपनी रक्षा तथा पोषण की अभिलाषा करते हैं।[यजुर्वेद 27.34]
Hey Vayo! You nurture truth, is son in law of Twasta and possess divine form. We attain your favour-blessings and wish to have protection and nourishment from you.
अभि त्वा शूर नोनुमोऽदुग्धाऽ इव धेनवः।
ईशानमस्य जगतः स्वर्दृशमीशानमिन्द्र तस्थुषः॥
हे पराक्रमी इन्द्र देव! आप इस जगत् के अधिपति, सब कुछ देखने वाले एवं स्थावर प्राणियों के अधिष्ठाता हैं। हम आपके अभिमुख होकर वैसे ही स्तुति करते हैं, जैसे अदुग्धा गायें बछड़ों के लिये रँभाती हैं।[यजुर्वेद 27.35]
Hey chivalric Indr Dev! You are the Lord of this universe, kook at every thing-event and is the Lord of stationary living beings. We worship-pray to you like the cows unyielding milk, moo for the calves.
न त्वावाँ2॥ अन्यो दिव्यो न पार्थिवो न जातो न जनिष्यते।
अश्वायन्तो मघवन्निन्द्र वाजिनो गव्यन्तस्त्वा हवामहे॥
हे वैभवशाली इन्द्र देव! आपके समान दिव्य देव दूसरा कोई नहीं है, न ही पृथ्वी पर आपके समान कोई मनुष्य उत्पन्न हुआ है, न ही भविष्य में कोई उत्पन्न होगा। अतएव हम अश्वों, गौओं तथा शक्ति की अभिलाषा से आपके निमित्त हवि अर्पित करते हैं।[यजुर्वेद 27.36]
Hey Indr Dev possessing grandeur! No other demigods matches your divinity, there is neither any human comparable to you over the earth, nor will he be evolved. Hence, we make offerings to you with the desire of horses, cows and strength.
त्वामिद्धि हवामहे सातौ वाजस्य कारवः। त्वां वृत्रेष्विन्द्र सत्पतिं नरस्त्वां काष्ठास्वर्वतः॥
सत्य पालक हे देवराज इन्द्र! हम यज्ञ करने वाले ऋत्विग्गण धन-धान्य की प्राप्ति हेतु, रिपुओं को विनष्ट करने के निमित्त, अश्व-लाभ एवं सभी दिशाओं में विजय-प्राप्ति हेतु आपको ही आवाहित करते हैं।[यजुर्वेद 27.37]
Supporter-nurturer of truth, hey Indr Dev! We Ritviz, performer of Yagy, invoke you for wealth, destruction of enemies, horses and victory in all the ten directions.
स त्वं नश्चित्र वज्रहस्त धृष्णुया महः स्तवानो अद्रिवः।
गामश्वꣳ रथ्यमिंद्र सं किर सत्रा वाजं न जिग्युषे॥
हे दिव्य कर्मवाले वज्रपाणि इन्द्रदेव! आप अपने पराक्रम तथा आत्म तेज द्वारा सबके स्तवनीय है। हमें गौ एवं अश्व के साथ रथ प्रदान करें। जैसे संग्राम में विजय प्राप्त करने की इच्छा से अश्वों को अन्नादि देकर सुदृढ़ किया जाता है, वैसे ही हमें भी आप पुष्टि प्रदान करें।[यजुर्वेद 27.38]
Hey performer of divine endeavours, Vajr wielding, Indr Dev! You deserve to be worshiped by virtue of your aura-radiance. Grant us cows and horses along with charoite. The way the horses are fed with food grains etc. to make them fit-strong for the war, you too nourish us.
कया नश्चित्रऽ आ भुवदूती सदावृधः सखा। कया शचिष्ठया वृता॥
विचित्र, सदैव अभिवृद्धि करने वाले, दिव्य गुण युक्त हे इन्द्र देव! किस अभिषव आदि यज्ञीय क्रिया से हर्षित होकर आप सर्वदा हमारे सखा रूप में प्रकट होते हैं?[यजुर्वेद 27.39]
अभिषव :: सोमरस निचोड़ना, शराब खींचना, धार्मिक कृत्यों या संस्कारों से पूर्व किया जाने वाला स्नान या आचमन, स्नान या आचमन, कांजी; extracting Somras, wine etc.
Amazing, always growing, having divine traits-qualities, Indr Dev! Which extract for the Yagy amuses you and invoke you as our friend?
कस्त्वा सत्यो मदानां मꣳ हिष्ठो मत्सदन्ध सः। दृढा चिदारुजे वसु॥
हे धन युक्त देवेन्द्र! सोमरस का कौन सा भाग आपको हर्ष प्रदान करता है, जिस भाग का पान करके प्रसन्न होते हुए आप यजमानों को सुवर्ण आदि धन देते हैं?[यजुर्वेद 27.40]
Hey Davendr possessing wealth! Which segment of Somras amuses you, by drinking which you grant Gold and wealth to the Yajman?
अभी षु णः सखीनामविता जरितृणाम्। शतं भवास्यूतये॥
हे देवेन्द्र! आप सखारूप हम ऋत्विग्गणों के पालन कर्ता हैं। आप हम उपासकों का कार्य सिद्ध करने के लिए अनेकों स्वरूपों को धारणा करते हैं।[यजुर्वेद 27.41]
Hey Davendr! You are the nurturer of the friendly Ritviz. For accomplishing worshipers-our endeavours, you adopt many forms.
यज्ञा यज्ञा वोऽअग्नये गिरा गिरा च दक्षसे।
प्र प्र वयममृतं जातवेदसं प्रियं मित्रं न शꣳसिषम्॥
हे अग्ने! विभिन्न यज्ञों में हम अनेक स्तुतियों के द्वारा अति शक्तिशाली, अविनाशी, सर्वज्ञाता तथा सखारूप सबके प्रिय आप अग्निदेव को वैसे ही अत्यन्त प्रशंसा करते हैं, जैसे प्रिय मित्र की प्रशंसा की जाती है।[यजुर्वेद 27.42]
Hey Agne! We appreciate dear-affectionate you through prayers in various-different Yagy as mighty, immortal, all knowing and friend.
पाहि नो अग्न एकया पाद्युत द्वितीयया।
पाहि गीर्भिस्तिसृभिरूर्जा पते पाहि चतसृभिर्वसो॥
हें अग्नि देव! आप अन्नों के स्वामी तथा उत्क्तम निवास प्रदान करनेवाले हैं। एक लक्षण वाणी द्वारा आप हमारी सुरक्षा करें। दूसरी वाणी द्वारा स्तुति किये जाने पर हमारी सुरक्षा करें। तीन वेद वाणी द्वारा स्तुति किये जाने पर आप हमारी सुरक्षा करें एवं चौथी वाणी से भी हमारी सुरक्षा करें।[यजुर्वेद 27.43]
Hey Agni Dev! You are the Lord of food grains and grant excellent residence. Protect us through voice having one character. With second character of voice worship, protect us. On being worshiped with the third character of Ved Vani protect us and with the fourth character of voice protect us.
ऊर्जा नपातꣳ स हिनाऽयमस्मयुर्दाशेम हव्यदातये।
भुवद्वाजेष्वविता भुववृध उत त्राता तनूनाम्॥
हे अध्वर्यो! आप जलों के नाती अग्नि देव को तृप्त करें। ये अग्नि देव हमसे आहुति की अभिलाषा करते हैं। ये अग्नि देव हमारी आंभिलाषा पूरी करने वाले हैं, अतः हम इन्हें आहुति समर्पित करना चाहते हैं। ये अग्नि देव हमारी पत्नी, पुत्र आदि की सुरक्षा करने वाले हैं। ये हमारे शरीर की सुरक्षा करते हैं कथा। हमारी आकांक्षाओं को पूरा करते है।[यजुर्वेद 27.44]
Hey priests! Satisfy Agni Dev, grand maternal son of water. Agni Dev expect sacrifice from us. Agni Dev accomplish our desires, hence we make sacrifices for him. Agni Dev is the protector of our wife, son etc. He protect our body. He accomplishes our desires.(09.09.2025)
संवत्सरोऽसि परिवेत्सरोऽसीदावत्सरोऽसीद्वत्सरोऽसि वत्सरोऽसि। उषसस्ते कल्पन्तामहोरात्रास्ते कल्पन्तामर्द्धमासास्ते कल्पन्तां मासास्ते कल्पन्तामृतवस्ते कल्पन्ताꣳ संवत्सरस्ते कल्पताम्। प्रेत्या एत्यै सं चाञ्च प्रच सारय। सुपर्णचिदसि तया देवतयाङ्गिरस्वद् ध्रुवः सीद॥
हे अग्नि देव! आप संवत्सर हैं, आप परिवत्सर हैं, आप इदावत्सर हैं, आप इद्वत्सर हैं तथा आप ही वत्सर हैं। इस प्रकार आप पंच संवत्सरमय हैं। आपके उषा आदि एवं दिन-रात आदि अंग रूप काल के अवयव कल्पित हैं। काल के विभिन्न अवयव- मास, पक्ष, ऋतुएँ आदि आपके अवयव हैं। आप गमन तथा आगमन के निमित्त संकोच तथा प्रसार करें। हे अग्नि देव! आप सुपर्ण देवता के द्वारा अनुज्ञात हैं। आप जिस प्रकार अंगिरा के यज्ञ में स्थिर हुए थे, वैसे ही यहाँ मेरे यज्ञ में स्थापित हो जायें।[यजुर्वेद 27.45]
अनुज्ञात :: अनुमति प्राप्त, आदिष्ट, allowed, permission.
Hey Agni Dev! You are Sanvatsar, Parivatsar, Idavatsar, Idwvatsat, and Vatsar. You have Panch Sanvatsar. Your have organs Usha etc. and day & night. Different segments of time viz, month, fortnight, seasons, are your segments, You are the contraction and expansion of departure and arrival. Hey Agni Dev! You have the permission of Suparn Dev. The way Angira established in the Yagy, you should settle in my Yagy.
यजुर्वेद संहिता अथाष्टविंशोऽध्याय :: ऋषि :- प्रजापति, अश्विनी कुमार, सरस्वती, स्वस्त्य आत्रेय; देवता :- इन्द्र, रुद्र, अश्विनी, बृहस्पति, अहोरात्र, अग्नि, वाण्य; छन्द :- त्रिष्टुप्, जगती, पंक्ति, शक्वरी, कृति, अष्टि।
होता यक्षत्समिधेन्द्रिमिडस्पदे नाभा पृथिव्याऽ अधि।
दिवो वर्म्मन्त्समिध्यत ओजिष्ठश्चर्षणीसहां वेत्वाज्यस्य होतर्यज॥
दिव्य होता ने समिधाओं के द्वारा देवराज इन्द्र के लिए यजन किया है। अग्नि देव पृथ्वी पर यज्ञाग्निरूप में, बीच के स्थान अन्तरिक्ष लोक में विद्युत् रूप एवं ऊपर द्युलोक में सूर्य के रूप में प्रकाशमान् होते हैं। उत्तम विजेता तेजवान् इन्द्र देव घृत रूपी हव्य का सेवन करें। हे होता! आप भी उनके लिए यज्ञ करें।[यजुर्वेद 28.1]
Divine Hota performed Yagy with Samidha-wood for Devraj Indr. Agni Dev establishes over earth as Yagyagni, in the space as lightening and as Sury over the heavens. Excellent winner aurous-radiant Indr Dev should consume Havy-offering in the form of Ghee. Hey Hota! You too hold Yagy for him.
होता यक्षत्तनूनपातमूतिभिर्जेतारमपराजितम्।
इन्द्रं देवꣳ स्वर्विदं पथिभिर्मधुमत्तमैर्नराशꣳ सेन तेजसा वेत्वाज्यस्य होतर्यंज॥
अति तेजस्वी, मानवों द्वारा प्रशंसनीय, शरीर के संरक्षक, रिपुओं से पराभूत न होने वाले, शत्रुजेता, अपनों के ज्ञाता, देवराज इन्द्र के निमित्त दिव्य याज्ञिक ने अपनी आनन्दप्रदायक एवं सुस्वादिष्ट हवियों द्वारा यज्ञ किया। इस प्रकार वे घृत युक्त हव्य पत्र का सेवन करें। हे होता! आप भी उनके निमित्त यज्ञ करें।[यजुर्वेद 28.2]
Yagy was conducted for highly aurous, appreciated by the humans, protector of the body, undefeated by the enemies, known to own people Indr Dev, by the divine Yagyik. In this manner use the leaves laced with Ghee. Hey Hota! You too hold Yagy for him.
होता यक्षदिडाभिरिन्द्रमीडितमाजुह्वानममर्त्यम्।
देवो देवैः सवीर्यो वज्रहस्तः पुरन्दरो वेत्वाज्यस्य होतर्यज॥
वेदमन्त्र रूप, वाणी द्वारा स्तुत्य, देवों के आराधक, अविनाशी देवेन्द्र के निमित्त महान् होता ने यज्ञ किया। दिव्य गुणों से युक्त, रिपुओं के नगर-विध्वंसक वज्रपाणि देवराज इन्द्र घृत युक्त हव्य का सेवन करके परितृप्त हों। हे होता! आप भी उनके निमित्त यज्ञ करें।[यजुर्वेद 28.3]
Great divine Hota performed Yagy for immortal Indr Dev, in the form of Ved Mantr, worshiped through speech-voice. Let Devraj Indr possessing divine traits, destroyer of the enemies forts-cities, be satisfied with the offerings laced with Ghee. Hey Hota! You too hold Yagy for him.
होता यक्षद् बर्हिषीन्द्रं निषद्वरं वृषभं नर्यापसम्।
वसुभी रुद्रैरादित्यैः सयुग्भिर्बर्हिरासदद्वेत्वाज्यस्य होतर्यज॥
धन के वर्षक, यज्ञकर्ताओं के शुभचिंतक देवराज इन्द्र को कुशासन पर विराजमान करके याज्ञिकों ने यज्ञ किया। एक जैसे कर्म करने वाले वसुगणों, रुद्रगणों एवं आदित्यगणों सहित कुशासन पर विराजमान होकर वे घृत युक्त हव्य का सेवन करें। हे याज्ञिक! आप भी ऐसा ही यज्ञ करें।[यजुर्वेद 28.4]
Yagyik seated well wisher Devraj Indr showerer of wealth, over the Kushasan and performed Yagy. Vasu Gan, Rudr Gan and Adity Gan who perform similar functions, should occupy the Kushasan and consume the offerings laced-added with Ghee. Hey Yagyik! You too hold Yagy for him.
होता यक्षदोजो न वीर्यꣳ सहो द्वारऽइन्द्रमवर्द्धयन्।
सुप्रायणाऽ अस्मिन् यज्ञे वि श्रयन्तामृतावृधो द्वार इन्द्राय मीढुषे व्यन्त्वाज्यस्य होतर्यज॥
दिव्य होता ने देवराज इन्द्र के लिए यजन किया तथा द्वार के देवता ने उनके भीतर तेज, पराक्रम तथा साहस की वृद्धि की। सुगमतापूर्वक आने-जाने योग्य तथा यज्ञ को समृद्ध करने वाले द्वार कामना वर्धक इन्द्र देव के निमित्त खुल जायँ, वे इस यज्ञ में आकर घृत युक्त हव्य का सेवन करें। हे होता! आप भी यज्ञ करें।[यजुर्वेद 28.5]
Divine Hota conducted Yagy for Devraj Indr, increased the Tej (energy-power), valour and courage in the deity of the gate. The gates meant for easy coming & going and enriching the Yagy, should open for desires accomplishing Indr Dev. He should come and use the offerings added with Ghee. Hey Hota! You too conduct Yagy.(10.09.2025)
होता यक्षदुषे इन्द्रस्य धेनू सुदुघे मातरा मही।
सवातरौ न तेजसा वत्समिन्द्रमवर्द्धतां वीतामाज्यस्य होतर्यज॥
महान् याज्ञिक ने देवराज इन्द्र की माँ के समान, श्रेष्ठ दुग्ध प्रदान करने वाली दो गौओं के सदृश, धरती तथा उषा का यजन किया। तत्पश्चात् उन्होंने तेज के द्वारा देवराज इन्द्र को संवर्द्धित किया। जैसे दो गौएँ एक बछड़े को स्नेह करती हुई उसे दृढ़ बनाती हैं, वैसे ही इन दोनों यज्ञों के प्रभाव से वे घृत युक्त हव्य प्राप्तकर परिपुष्ट हों। हे होता! आप भी इसी हेतु यज्ञ करें।[यजुर्वेद 28.6]
Great Yagyik worshiped two cows which yielded best milk like the mother of Devraj Indr, earth and Devi Usha. Thereafter, he boosted-promoted Devraj Indr with the Tej (strength, might & Power). The way cows make their calves strong with love & affection, similarly Devraj should become strong due to the impact of the two Yagy and Ghee. Hey Hota! You should also hold Yagy for this purpose.
होता यक्षदैव्या होतारा भिवजा सखाया हविषेन्द्रं भिषज्यतः।
कवी देवौ प्रचेतसाविन्द्राय धत्त इन्द्रियं वीतामाज्यस्य होतर्यज॥
महान् दिव्य याज्ञिक ने वैद्य, सखारूप, महान् गुणों से युक्त, श्रेष्ठ ज्ञान से युक्त, देवताओं के वैद्य दोनों अश्विनी कुमारों के लिए यज्ञ किया। वे दोनों देवेन्द्र की चिकित्साकर उनको रोग रहित करते हुए घृत युक्त हव्य का सेवन करें। हे होता! आप भी उसी निमित्त यज्ञ करें।[यजुर्वेद 28.7]
Great divine Yagyik performed Yagy for Ashwani Kumars, the physicians of demigods-deities who are like friends, possess great qualities & excellent knowledge. They both treat Devraj, cure him and drink Ghee. Hey Hota! You should also hold Yagy for this purpose.
होता यक्षत्तिस्त्रो देवीर्न भेषजं त्रयस्त्रिधातवोऽपस इडा सरस्वती भारती महीः। इन्द्रपत्नीर्हविष्मतीर्व्यन्त्वाज्यस्य होतर्यज॥
महान् दिव्य याज्ञिक ने तीनों लोकों में अग्नि, वायु, सूर्य; इन तीनों के धारणकर्ता, शीत, ग्रीष्म, वर्षा एवं वायु आदि की व्यवस्था करने वाले देवराज इन्द्र का पालन करने वाली, ओषधि सम्पन्न आहुति से युक्त इडा, भारती एवं सरस्वती इन तीन देवियों का यजन किया। वे घृत युक्त हव्यपान करके परितृप्त हों। हे होता! आप भी इनके लिए ही यज्ञ करें।[यजुर्वेद 28.8]
Great divine Yagyik performed Yagy with the sacrifices having medicinal herbs for Devraj Indr, who supports-maintain the three abodes, winters, summer, rains & air and worshiped the three goddesses viz Ida, Bharti and Saraswati. Hey Hota! You should also hold Yagy for this purpose.
होता यक्षत्त्वष्टारमिन्द्रं देवं भिषजꣳ सुयजं घृतश्रियम्।
पुरुरूपꣳ सुरेतसं मघोनमिन्द्राय त्वष्टा दधदिन्द्रियाणि वेत्वाज्यस्य होतर्यज॥
परम वैभवशाली, दान-दाता, रोग-शामक, उत्कृष्ट यज्ञकर्ता, स्नेही, धन से युक्त, विभिन्न स्वरूप वाले, उत्तम शक्ति से युक्त त्वष्टा देव का दिव्य होता ने यजन किया। तत्पश्चात् त्वष्टादेव ने देवेन्द्र के निमित्त विविध विध शक्ति को प्रदान किया। वे घृत युक्त हव्य का सेवन करें। हे यज्ञकर्ता! आप भी उन्हीं के लिए यजन करें।[यजुर्वेद 28.9]
विध शक्त :: विद्युत शक्ति; electric power.
The divine Hota conducted divine Yagy for Twasta Dev who has great grandeur, make donations, cure ailments, is excellent Yagy Karta-performer, affectionate, involving wealth, possessing excellent power & might. Thereafter, Twasta Dev granted various electric power to Devendr. Hey Hota! You should also hold Yagy for this purpose.
होता यक्षद्वनस्पतिꣳ शमितारꣳ शतक्रतुं धियो जोष्टारमिन्द्रियम्।
मध्वा समंजन् पथिभिः सुगेभिः स्वदाति यज्ञं मधुना घृतेन वेत्वाज्यस्य होतर्यज॥
दिव्य याज्ञिक शान्ति की स्थापना करने वाले, सत्कर्मा, बुद्धि पूर्वक कर्म करने वाले, देवेन्द्र के शुभचिंतक वनस्पति देव का पूजन किया तथा मधुर घृतादि से युक्त यज्ञ को पूर्ण करके सरल पथों द्वारा देवताओं तक प्रेषित किया। वे देवतागण मधुर घृतयुक्त हव्य का सेवन करें। हे याज्ञिक! आप भी इसी हेतु यज्ञ करें।[यजुर्वेद 28.10]
Divine Yagyik who establish-maintain peace, perform virtuous deeds, perform-make effort intellectually, well wisher of Devendr, worshiped Dev Guru Brahaspati, accomplished the Yagy with sweet Ghee etc and delivered it to demigods-deities. Let the demigods-deities consume the offerings-oblations treated with sweet Ghee. Hey Yagyik! You too accomplish Yagy for this purpose.
होता यक्षदिन्द्रꣳ स्वाहाज्यस्य स्वाहा मेदसः स्वाहा स्तोकानाꣳ स्वाहा स्वाहाकृतीनाꣳ स्वाहा हव्यसूक्तीनाम्। स्वाहा देवाऽ आज्यपा जुषाणा इन्द्रऽ आज्यस्य व्यन्तु होतर्यज॥
होता इन्द्र का यजन करे। घृत के देवों के लिये स्वाहा। मेद के देवों के लिये स्वाहा। मेदबिन्दुओं के लिये स्वाहा। स्वाहा आकृति वाले देवों के लिये स्वाहा। हव्य की सूक्तियों वाले देवों के लिये स्वाहा। प्रसन्न होते हुए घृत पायी देवता घृत पियें। इन्द्र भी घृत पिये। हे होता! आप भी उन्हीं के लिए यज्ञ करें।[यजुर्वेद 28.11]
मेद :: शरीर की वसा या चरबी; fat deposited in the body.
सूक्ति :: एक संक्षिप्त, सारगर्भित और अच्छी उक्ति या कथन, जिसका भाव पल्लवन करने पर बड़ी व्याख्या प्राप्त होती है। ये अक्सर किसी प्रचलित सत्य, व्यक्तिगत अवलोकन या चतुराई पूर्ण विचार को व्यक्त करने वाले छोटे और चुटीले वाक्य होते हैं, जो अल्प शब्दों में गहन अर्थ का बोध कराते हैं; short forms of speech used to elaborate deep meaning.
Let the Hota accomplish Yagy for Indr Dev. Spell Swaha for the deity of Ghee. Spell Swaha for deities of Med-fat Ghee). Spell Swaha for the demigods having image-from of fat. Spell Swaha for the demigods having Sukti-gist of offerings-oblations. Gladdened demigods should drink Ghee. Let Devraj Indr too drink Ghee. Hey Hota! You should conduct Yagy for them.
देवं बर्हिरिन्द्रꣳ सुदेवं देवैर्वीरवत्स्तीर्णं वेद्यामवर्द्धयत्।
वस्तोर्वृतं प्राक्तोर्भृतꣳ राया बर्हिष्मतोऽत्यगाद्वसुवने वसुधेयस्य वेतु यज॥
दिन में काट दिये जाने पर भी रात में वेदी पर विस्तृत होने वाले, वीरों के समान अपने संस्कारों से अतिक्रमण करने वाले, इन्द्र, मरुत् आदि देवताओं की वृद्धि करने वाले बर्हिदेव (कुशादि के अधिपति देवता) घृत युक्त हव्य का पान करें। हे होता! वैभव की प्राप्ति तथा धारण करने के निमित्त आप भी यज्ञ करें।[यजुर्वेद 28.12]
Though cut during the day, yet expend-grow at night over the Vedi, like the brave expanding due to their nature Barhi Dev (deity of Kush & other grasses) should drink Ghee. Hey Hota! For attainment and possessing-containment of grandeur you too accomplish Yagy.
देवीर्द्वार इन्द्रꣳ संघाते वीड्वीर्यामन्नवर्द्धयन्। आ वत्सेन तरुणेन कुमारेण च मीवतापार्वाणꣳ रेणुककाटं नुदन्तां वसुवने वसुधेयस्य व्यन्तु यज॥
सामूहिक रूप से देहली-कपाट (आदि स्वरूपों में व्याप्त) रूप दिव्य शक्तियों ने अपने कर्म द्वारा देवराज इन्द्र को संवर्धित किया। वे इन्द्र देव बाल्यावस्था या तरुणावस्था वाले हानि कारक तत्त्वों को आगे जाने से अवरोधित करें एवं धूलि युक्त मेघों को दूर करें। बछड़ों के साथ उछलते-कूदते चलते हुए तरुण और कुमार जिन कूपों में गिर सकते हों, उन्हें द्वार देवियाँ दूर करें-पाट दें। धन दान और यजमान के घर में धन रखने के लिये द्वार देवियाँ घृत पियें। हे होता! यजन करो।[यजुर्वेद 28.13]
Powers present in the doors and openings together enriched Indr Dev with divine-majestic powers with their efforts. Let Devraj Indr obstruct the harmful elements during childhood and adulthood removing cloud having dust & smoke). Let the goddess of the gates-doors cover the ditches-pits to protect the children from falling in them, while playing with calves. Deities-goddess of the doors-gates should drink Ghee. Hey Hota! Conduct Yagy.
देवी उषासानक्तेन्द्रं यज्ञे प्रयत्यह्वेताम्। दैवीर्विशः प्रायासिष्टाꣳ सुप्रीते सुधिते वसुवने वसुधेयस्य वीतां यज॥
यज्ञ के समय उषा और रात्रि देवियाँ इन्द्र का आवाहन करें। दिव्य प्रजाजन वसु एवं रुद्रादि को प्रेरित करें। उषा और रात्रि संज्ञक वे दोनों देवियाँ यजमान को धन लाभ कराने एवं उसके घर में धन-सम्पदा स्थापित करने के लिये घृत का पान करें। हे होता! आप इसी कामना से यजन करें।[यजुर्वेद 28.14]
Usha and Rati goddess should invoke Indr Dev. Divine populace should inspire Vasu & Rudr Gan. Both deities Usha & Ratri should drink ghee to enrich the Yajman with wealth. Hey Hota! You too accomplish Yagy with the same desire.(11.09.2025)
देवी जोष्ठी वसुधिती देवमिन्द्रमवर्द्धताम्। अयाव्यन्याघा द्वेषाꣳ स्यान्या वक्षद्वसु वार्याणि यजमानाय शिक्षिते वसुवने वसुधेयस्य वीतां यज॥
प्रीति युक्त और धन को धारण करने वाली अहोरात्र की अधिष्ठात्री द्यावा-पृथ्वी देवियाँ इन्द्र को समृद्ध करें। उनमें से एक पाप, द्वेष और दुर्भाग्य को दूर करती है और दूसरी यजमान के लिये भोग योग्य धन को लाती है। वे देवियाँ वेद तत्त्व को जानने वाली हैं। वे दोनों घृत का पान करें। हे होता! आप यजन करें।[यजुर्वेद 28.15]
Affectionate, holding wealth, the deities of fortnight, heavens & earth should make Indr Dev prosper. One of them eliminate sin, envy and bad luck and the other one bring usable-useful wealth for the Yajman. These Goddesses are aware of the gist of Veds. Let both of them drink Ghee. Hey Hota! Perform Yagy.
देवी ऊर्जाहुती दुधे सुदुघे पयसेन्द्रमवर्द्धताम्। इषमूर्जमन्या वक्षत्सग्धिꣳ सपीतिमन्या नवेन पूर्व दयमाने पुराणेन नवमधातामूर्जमूर्जाहुती ऊर्जयमाने वसु वार्याणि यजमानाय शिक्षिते वसुवने वसुधेयस्य वीतां यज॥
ऊर्जा और दुग्ध से युक्त दोनों देवियाँ दूध से इन्द्र का वर्धन करें। उनमें से एक यजमान के लिये अन्न, दधि आदि लाती है और दूसरी उनके लिये भोग योग्य धन लाती हैं। ये वेद तत्त्व को जानने वाली हैं। ये दया युक्त, रस की वृद्धि करने वाली और नवीन अन्न वाली हैं। ये घृत का पान करें। हे होता! आप आहुति दें।[यजुर्वेद 28.16]
Both Goddesses should grow Indr Dev with energy and milk. One of them bring food grains, curd etc for the Yajman and the other one provide useful wealth. They know the gist of Veds. They are merciful, increase juices-saps and have new food grains. Let them drink Ghee. Hey Hota! Make sacrifice.
देवा दैव्या होतारा देवमिन्द्रमवर्द्धताम्। हताघशꣳ सावाभार्ष्टा वसु वार्याणि यजमानाय शिक्षितौ वसुवने वसुधेयस्य वीतां यज॥
पाप कर्म करने वालों को दण्डित करने वाली, दुष्टता का नाश करके देवत्व में वृद्धि करने वाली, दिव्य होता रूप दोनों देवियों ने देवेन्द्र को समृद्ध किया तथा याजक को अभीष्ट धन-वैभव का लाभ प्रदान किया। वे दोनों याजक के निमित्त धनप्राप्ति तथा उसकी स्थिरता के लिए घृत युक्त हव्य का सेवन करें। हे याज्ञिक! आप भी इन्हीं के निमित्त यज्ञ करें।[यजुर्वेद 28.17]
Both Goddesses like the divine Hota, punish the sinners, vanish wickedness, increase divinity prosper Devraj Indr and grant desired wealth-grandeur to the Yajak. Let them drink Ghee for the stability and wealth to the Yajak. Hey Yagyik! You too perform Yagy for them.
देवीस्तिस्त्रस्तिस्त्रो देवीः पतिमिन्द्रमवर्द्धयन्। अस्पृक्षद् भारती दिवꣳ रुद्रैर्यज्ञꣳ सरस्वतीडा वसुमती गृहान्वसुवने वसुधेयस्य व्यन्तु यज॥
भारती, सरस्वती और इडा, ये तीनों देवियाँ देवराज इन्द्र का अभिवर्धन करती हैं। इनमें भारती द्युलोक का स्पर्श करती है, सरस्वती रुद्रों के सहित यज्ञ का स्पर्श करती है। वसुमती इडा गृहों (भूलोक) का स्पर्श करती है। यजमान के घर को धन-धान्य से सम्पन्न करने के लिये तीनों देवियाँ धृत का पान करें। हे होता! आप यज्ञ में आहुति दें।[यजुर्वेद 28.18]
Bharti, Saraswati and Ida, the three Devis flourish Indr Dev. Bharti touches the heavens and Saraswati touch the Yagy along with Rudr Gan. Vasumati Ida touches the earth-homes. Let the three deities drink Ghee for the prosperity, wealth and food grains for the Yajman. Hey Hota! Make sacrifice in the Yagy.
देव इन्द्रो नराशꣳ सस्त्रिवरूथस्त्रिबन्धुरो देवमिन्द्रमवर्द्धयत्। शतेन शितिपृष्ठानामाहितः सहस्त्रेण प्रवर्त्तते मित्रावरुणेदस्य होत्रमर्हतो बृहस्पतिः स्तोत्रमश्विनाध्वर्यवं वसुवने वसुधेयस्य वेतु यज॥
अनेकों द्वारा प्रशंसनीय, तीनों लोकों के अधिपति, ऋक्, यजुः, साम की ऋचाओं से युक्त यज्ञदेव ने इन्द्रदेव को समृद्ध किया। वे श्याम पीठ वाली शोभायमान होते हैं। इस यज्ञ के होता कर्मशील वरुण, स्तोता बृहस्पति एवं अध्वर्यु दोनों अश्विनी कुमार हैं। वे इन्द्र देव यजमान के निमित्त धन की प्राप्ति एवं उसकी स्थिरता हेतु घृत युक्त हव्य का पान करें। हे याज्ञिक! आप भी इसी के निमित्त यज्ञ करें।[यजुर्वेद 28.19]
शोभायमान :: तेजस्वी, शानदार, अजीब, हक्का-बक्का करने वाला, नादकार, तेज़, शीघ्र, कोलाहलमय, सुंदर, सुरूप, मंजु, मंजुल, सुभग; beautiful, stunning, rattling.
Appreciated-applauded by many, Lord of three abodes, possessed with the Rick, Yaju and Sam Vedic Richas the Yagy Dev, prospered-enriched Indr Dev. Those having black back are rattling. The Hota of this Yagy are endeavourous Varu Dev, Stota Brahaspati Dev and priests are Ashwani Kumars. Let Indr Dev drink Ghee for attainment of wealth and stability of the Yajman. Hey Yagyik! You too hold Yagy for this purpose.
देवो देवैर्वनस्पतिर्हिरण्यपर्णो मधुशाखः सुपिप्पलो देवमिन्द्रमवर्द्धयत्। दिवमग्रेणास्पृक्षदान्तरिक्षं पृथिवीमदृꣳ हीद्वसुवने वसुधेयस्य वेतु यज॥
सुवर्ण वर्ण की पत्तियों द्वारा, मधुर शाखाओं द्वारा, सुस्वादु फलों से युक्त वनस्पति देव ने देवताओं के साथ देवराज इन्द्र को तेज प्रदान करके वर्धित किया। वे वनस्पति देव अपने अग्रभाग द्वारा नभ को एवं मूल द्वारा पृथ्वी को छूते हुए विश्व ब्रह्माण्ड में संव्याप्त हैं। वे देवता यजमान के निमित्त धन प्राप्ति तथा उसकी स्थिरता के निमित्त घृत युक्त हव्य पान करें। हे होता! आप भी उन्हीं के लिए यज्ञ करें।[यजुर्वेद 28.20]
Vanaspati Dev along with demigods-deities granted Tej to Devraj Indr and grew him with the leaves of golden hue, sweet branches, tasty fruits. Vanaspati touching the sky with his forward-front region and the earth with his roots, pervade the universe. Let these deities-demigods drink Ghee for the wealth to the Yajman. Hey Hota! You too conduct Yagy for them.
देवं बर्हिर्वारितीनां देवमिन्द्रमवर्द्धयत्। स्वासस्थमिन्द्रेणासन्नमन्या बर्हीꣳष्यभ्यभूद्वसुवने वसुधेयस्य वेतु यज॥
जल के मध्य में प्रकाशित, प्रसन्नतापूर्वक विराजमान, इन्द्र देव के आश्रय युक्त अनुयाज देव ने इन्द्र देव की वृद्धि की। वे नभ में स्थित वस्तुओं को अभिभूत करके याजक को धन प्रदान करने हेतु एवं उसकी स्थिरता के निमित्त घृत युक्त हव्य का सेवन करें। हे होता! आप भी उन्हीं के निमित्त यज्ञ करें।[यजुर्वेद 28.21]
Anuyaj Dev, asylum to Indr Dev, illuminate, established in the waters happily, prospered-grew him. Let him enchant the materials in the sky, grant wealth to the Yajak and drink Ghee for his stability. Hey Hota! You too accomplish Yagy for his sake.
देवो अग्निः स्विष्टकृद्देवमिन्द्रमवर्द्धयत्। स्विष्टं कुर्वन्त्स्विष्टकृत्स्विष्टमद्य करोतु नो वसुवने वसुधेयस्य वेतु यज॥
उत्तम इच्छाओं को पूर्ण करने वाले अग्नि देव ने इन्द्र देव को वर्धित किया। वे आज उत्तम कर्म करते हुए हमारे निमित्त श्रेष्ठ फल प्रदान करें तथा याजक के धन प्राप्ति तथा उसकी स्थिरता के निमित्त घृत युक्त हव्य का पान करें। हे होता! आप भी इसी के निमित्त यज्ञ करें।[यजुर्वेद 28.22]
Agni Dev who accomplish excellent desires grew-prospered Indr Dev. Let him grant excellent rewards while performing excellent deeds and consume offerings added with Ghee for his stability and grant of wealth to the Yajak. Hey Hota! You should also perform Yagy for this cause.
अग्निमद्य होतारमवृणीतायं यजमानः पचन्यक्तीः पचन् पुरोडाशं बधन्निन्द्राय छागम्। सूपस्था अद्य देवो वनस्पतिरभवदिन्द्राय छागेन। अधत्तं मेदस्तः प्रति पचताग्रभीदवी वृधत्पुरोडाशेन। त्वामद्यऽ ऋषे॥
आज तो इस यजमान ने अग्नि को होता वरण किया है। पकाने योग्य सामग्रियों को पकाते हुए, पुरोडाश को पकाते हुए तथा इन्द्र के लिये छाग को बाँधते हुए यह वनस्पति वृपदेव भी यज्ञस्थल में सुष्ठु उपस्थित हुआ है। अश्विनी कुमारों आदि देवताओं ने यजमान के द्वारा प्रदत्त पशुओं के मेद से प्रारम्भ करके सर्वांग तक भक्षण किया। पके हुए शेष अवयवों को भी ग्रहण किया। वे पुरोडाश से वृद्धि को प्राप्त हुए। हे अग्ने! आज आर्षेय ढंग से होता ने तुम्हें ही वरण किया है।[यजुर्वेद 28.23]
सुष्ठु :: अतिशय, अत्यंत, अच्छी तरह, भली भाँति; elegant, in a proper manner.
आर्षेय :: ऋषि से संबंधित या उनसे उत्पन्न, आदरणीय, पूज्य या श्रेष्ठ; related with the Rishis, born out of the Rishi, respected, honoured, excellent, worshipable.
The Yajman has adopted (accepted-selected) Agni Dev, today. Tying the materials for cooking and Purodash, tying goat for Indr Dev, Vanaspati Vrap Dev has appeared at the Yagy site, elegantly. Ashwani Kumars and demigods ate the animals provided by the Yajman with all of their organs starting from fat. They accepted the cooked remains as well. They grew with the Purodash. Hey Agne! The Hota has accepted you today honourably.(12.09.2025)
होता यक्षत्समिधानं महद्यशः सुसमिद्धं वरेण्यमग्निमिन्द्रं वयोधसम्।
गायत्रीं छन्द इन्द्रियं त्र्यविं गां वयो दधद्वेत्वाज्यस्य होतर्यज॥
महान् याज्ञिक ने गायत्री छन्द, शक्ति, इन्द्रिय तथा आयुष्य को इन्द्र में स्थापित किया। देदीप्यमान् यश के द्वारा तेजवान् तथा वरण करने योग्य अग्नि देव की तथा आयु प्रदाता इन्द्र देव की अर्चना करते हैं। प्रयाज देवता इन्द्र के साथ आज्य भाग का पान करें। हे याज्ञिक! आप भी इसी प्रकार का यज्ञ करें।[यजुर्वेद 28.24]
इन्द्रिय :: ज्ञानेन्द्रिय; senses.
आयुष्य :: आयु; lifespan, longevity, age.
Great Yagyik established Gayatri Chhand, Shakti-power, Indriy & Ayushy-longevity in Indr. Shinning glory is used for majestic and adoptable Agni Dev and longevity granting Indr Dev are worshiped. Let Prayaj Dev drink Ajy segment with Indr Dev. Hey Yagyik! You too hold such Yagy.
होता यक्षत्तनूनपातमुद्भिदं यं गर्भमदितिर्दधे शुचिमिन्द्रं वयोधसम्।
उष्णिहं छन्दइन्द्रियं दित्यवाहं गां वयो दधद्वेत्वाज्यस्य होतर्यज॥
महान् याज्ञिक ने उत्तम यज्ञ फलों को प्रकट करने वाले अग्नि देव तथा अन्न प्रदाता अदिति के पुत्र इन्द्र देव का यजन किया। तत्पश्चात् उष्णिक् छन्द युक्त इन्द्रिय, गौ तथा आयुष्य की याजक अथवा इन्द्र में स्थापना हुई। वे आज्य का पान करें। हे होता! आप भी ऐसा ही यज्ञ करें।[यजुर्वेद 28.25]
Great Yagyik performed Yagy for Agni Dev, who grant excellent rewards and food granting Indr Dev son of Aditi. Thereafter, Indriy with Ushnik Chhand, cows and Ayushy were established in the Yajak & Indr Dev. Let them drink Ajy. Hey Hota! You too accomplish such Yagy.
होता यक्षदीडेन्यमीडितं वृत्रहन्तममिडाभिरीड्यꣳ सहः सोममिन्द्रं वयोधसम्।
अनुष्टुभं छन्दइन्द्रियं पञ्चाविं गां वयो दधद्वेत्वाज्यस्य होतर्यज॥
महान् दिव्य याज्ञिक ने स्तुत्य, वृत्रासुर संहारक, ऋषियों द्वारा स्तुत, इडा द्वारा स्तुत, आयु प्रदान करने वाले, सोमपान करके हर्षित होने वाले इन्द्र देव के निमित्त यज्ञ किया। प्रयाज देवता इन्द्रादि के साथ हवि का सेवन करें। हे होता! आप भी ऐसा ही यज्ञ करें।[यजुर्वेद 28.26]
Great Yagyik accomplish Yagy for Indr Dev who is worshipable, worshiped by the Rishis & Ida, is the slayer of Vratra Sur, grant-sanctions longevity, gladden after drinking Somras. Let Prayaj Dev etc consume offerings with Indr Dev. Hey Hota! You too organise such Yagy.
होता यक्षत्सुबर्हिषं पूषण्वन्तममर्त्यꣳ सीदन्तं बर्हिषि प्रियेऽमृतेन्द्रं वयोधसम्।
बृहतीं छन्दइन्द्रियं त्रिवत्सं गां वयो दधद्वेत्वाज्यस्य होतर्यज॥
दिव्य होता ने बृहती, छन्द, इन्द्रिय शक्ति, गौ एवं आयुष्य को धारण करके, पोषण प्रदान करने वाले, मृत्यु से दूर, प्रिय, अविनाशी, पावन आसन पर विराजमान होने वाले, आयु में वृद्धि करने वाले इन्द्र देव के निमित्त यज्ञ किया। प्रयाज देवता इन्द्रादि सहित घृत युक्त हवि का सेवन करें। हे होता! आप भी इसी प्रकार का यज्ञ करें।[यजुर्वेद 28.27]
Divine Hota conducted Yagy for Indr Dev with Brahati Chand, Indriy Shakti, adopting cows and Ayushy, nurturing-nourishing, away from death, affectionate, immortal, occupying pious cushion, increasing longevity. Let Prayaj Dev consume offerings added with Ghee along with Indr Dev. Hey Hota! You should also conduct such Yagy.
होता यक्षद्वयचस्वतीः सुप्रायणाऽ ऋतावृधो द्वारो देवीर्हिरण्ययीर्ब्रह्माणमिन्द्रं वयोधसम्।
पंक्ति छन्द इहेन्द्रियं तुर्यवाहं गां वयो दधद्व्यन्त्वाज्यस्य होतर्यज॥
दिव्य याज्ञिक ने अत्यन्त अवकाश युक्त, गमन वाले, सत्य को संवर्धित करने वाले, सुवर्णमयी द्वार से महान् इन्द्र का यजन किया। प्रयाज देवता पंक्ति छन्द, बल, इन्द्रिय, गौ तथा आयुष्य की स्थापना करें तथा इन्द्रसहित घृत का पान करें। हे होता! आप भी इसी प्रकार का यज्ञ करें।[यजुर्वेद 28.28]
Divine Yagyik perform Yagy for great Indr Dev through the golden gate-door, in the vast space, who is dynamic, truth establishing & growing. Let Prayaj Dev establish Pankti Chhand, Bal-might, Indriy, cows and Ayushy. Hey Hota! You should also conduct such Yagy.
होता यक्षत्सुपेशसा सुशिल्पे बृहती उभे नक्तोषासा न दर्शते विश्वामिन्द्रं वयोधसम्।
त्रिष्टुभं छन्द इहेन्द्रियं पष्ठवाहं गां वयो दधद्वीतामाज्यस्य होतर्यज॥
दिव्य याज्ञिक ने उत्तम स्वरूप वाली, सुनिर्मित, महिमामयी तथा दर्शन करने योग्य नक्त (रात्रि) तथा उषा देवियों द्वारा जगत् के हितकारी तथा आयु प्रदाता इन्द्र देव का पूजन किया। वे नक्त तथा उषा देवियाँ त्रिष्टुप् छन्द, इन्द्रिय शक्ति, भार वहन करनेवाली गौ, आयु आदि को याजक में प्रतिष्ठित करें तथा घृत का पान करें। हे होता! आप भी ऐसा ही यज्ञ करें।[यजुर्वेद 28.29]
Divine Yagyik worshiped beautiful, well developed-formed, glorious, worth- deserve view-watching Nakt-Ratri and Usha Devi, well wisher of the universe longevity granting Indr Dev. Let them establish Nakt & Usha Devi, Trishtup Chhand, Indriy Shakti, load carrying cow, longevity etc in the Yajak. Hey Hota! You should also conduct such Yagy.
होता यक्षत्प्रचेतसा देवानामुत्तमं यशो होतारा दैव्या कवी सयुजेन्द्रं वयोधसम्।
जगतीं छन्द इन्द्रियमनड्वाहं गां वयो दधद्वीतामाज्यस्य होतर्यज॥
महान् दिव्य होता ने जाग्रत् चित्त वाले, दिव्य कीर्तिवान्, सर्वद्रष्टा, परस्पर सख्य भाव से युक्त, दोनों दिव्य याज्ञिकों के साथ आयु प्रदाता इन्द्र का पूजन किया। वे दिव्य याज्ञिक जगती छन्द, इन्द्रिय शक्ति, गौ, आयु आदि की याजक में स्थापना करें तथा घृत का पान करें। हे होता! आप भी इसी प्रकार का पूजन करें।[यजुर्वेद 28.30]
Great divine Hota worshiped conscious, having divine glory-honour, all knowing-viewing, possessing brotherly feelings, longevity granting Indr Dev. The divine Yagyik should establish Jagti Chhand, Indriy Shakti, cows, longevity in the Yajak. Hey Hota! You should also conduct such Yagy.
होता यक्षत्पेशस्वतीस्तिस्त्रो देवीर्हिरण्ययीर्भारतीबृहतीर्महीः पतिमिन्द्रं वयोधसम्।
विराजं छन्द इहेन्द्रियं धेनुं गां न वयो दधद्वयन्त्वाज्यस्य होतर्यज॥
दिव्य याज्ञिक ने उत्तम स्वरूप वाली, स्वर्णमयी, महिमामयी, तेज से युक्त इडा, सरस्वती, भारती, इन तीनों देवियों तथा आयु प्रदाता, पालक इन्द्र देव का पूजन किया। वे विराट् छन्द, इन्द्रिय शक्ति, गौ तथा आयुष्य को याजक में स्थापित करें तथा घृत का पान करें। हे होता! आप भी ऐसा ही यज्ञ करें।[यजुर्वेद 28.31]
Divine Yagyik worshiped beautiful, with golden hue, glorious, possessing Tej Ida, Saraswati, Bharti and the longevity granting Indr Dev. Let them establish Virat Chhand, Indriy Shakti, cows and Ayushy in the Yajak and dink Ghee. Hey Hota! You should also conduct such Yagy.
होता यक्षत्सुरेतसं त्वष्टारं पुष्टिवर्द्धनꣳ रूपाणि बिभ्रतं पृथक् पुष्टिमिन्द्रं वयोधसम्।
द्विपदं छन्द इन्द्रियमुक्षाणं गां न वयो दधद्वेत्वाज्स्य होतर्यज॥
दिव्य याज्ञिक ने उत्तम वीर्य वाले, पुत्रादि पुष्टि के वर्द्धक, अनेक स्वरूप वाले त्वष्टा देवता तथा आयु प्रदाता इन्द्र देव का यजन किया। द्विपदा छन्द, इन्द्रिय शक्ति, वृषभ तथा आयु को याजक में प्रतिष्ठित करते हुए प्रयाज देवता घृत का पान करें। हे होता! आप भी ऐसा ही यज्ञ करें।[यजुर्वेद 28.32]
Divine Yagyik worshiped Twasta Dev with excellent sperms (might & power), nursing the strength of the sons etc., having many forms and longevity granting Indr Dev. Establishing Dwipada Chhand, Indriy Shakti, Vrashabh-bull and longevity in the Yajak, Prayaj Dev should drink Ghee. Hey Hota! You should also conduct such Yagy.(13.09.2025)
होता यक्षद्वनस्पतिꣳ शमितारꣳ शतक्रतुꣳ हिरण्यपर्णमुक्थिनꣳ रशनां बिभ्रतं वशिं भगमिन्द्रं वयोधसम्। ककुभं छन्द इहेन्द्रियं वशां वेहतं गां वयो दधद्वेत्वाज्यस्य होतर्यज॥
दिव्य याज्ञिक ने हवियों के संस्कार कर्ता, बहुकर्म करने वाले, सुवर्णमय पत्र वाले, उक्थ युक्त, अश्व की रज्जु धारण करने वाले और उसे वश में करने वाले मनोहर भजन योग्य अमल्थति देव तथा आयु प्रदाता इन्द्र देव का पूजन किया। प्रयाज देवता ककुभ् छन्द, इन्द्रिय शरिफ, कत्थ्या धेनु तथा आयुष्य को याजक में स्थापित करें एवं घृत का पान करें। हे होता! आप भी ऐसा ही यज्ञ करें।[यजुर्वेद 28.33]
Divine Yagyik worshiped Amltthi Dev who sanctify the offerings-oblations, perform various deeds, has golden leaves, possess Ukth, hold the reins of horse and control it, deserve attractive-enchanting worth singing hymns for him and longevity granting Indr Dev. Let Prayaj Dev establish Kakubh Chhand, Indriy Sharif, Katthya cow and Ayushy in the Yajak and drink Ghee. Hey Hota! You too accomplish such Yagy.
होता यक्षत् स्वाहाकृतीरग्निं गृहपतिं पृथग्वरुणं भेषजं कविं क्षत्रमिन्द्रं नयोधसम्।
अतिच्छन्दसं छन्द इन्द्रियं बृहदृषभं गां वयो दधद्वयन्त्वाज्यस्य होतर्यज॥
दिव्य याज्ञिक ने यज्ञों में गृह के अधिपति, ऋषियों द्वारा वरण करने योग्य ओषधि युक्त गुण वाले, सर्वद्रष्टा, संरक्षक, आयु प्रदाता अग्नि देव, इन्द्र देव तथा प्रयाज देवता का यजन किया। प्रयाजदेवता अतिछन्दस् छन्द, इन्द्रिय शक्ति, पुष्ट गौ तथा आयु को याजक में प्रतिष्ठित करते हुए घृत का पान करें। हे होता! आप भी घृत द्वारा यज्ञ करें।[यजुर्वेद 28.34]
Divine Yagyik worshiped the Lord of House in the Yagy, having the qualities of the medicines which can be used by the Rishis, all knowing, guardian, longevity granting Agni Dev, Indr Dev and Prayaj Dev. Let Prayaj Dev establish Atichhandas Chhand Indriy Shakti, nourished cows and longevity in the Yajak and drink Ghee. Hey Hota! You should also conduct Yagy with Ghee.
देवं बर्हिर्वयोधसं देवमिन्द्रमवर्द्धयत्।
गायत्र्या छन्दसेन्द्रियं चक्षुरिन्द्रे वयो दधद्वसुवने वसुधेयस्य वेतु यज॥
बर्हिदेव ने गायत्री छन्द के प्रभाव से चक्षु, बल, आयु आदि देवराज इन्द्र में प्रतिष्ठित करते हुए आयुदाता इन्द्र देव को यज्ञ हवि द्वारा समृद्ध किया। याजक को धन-सम्पदा प्रदान करने तथा उसे स्थिर बनाने के निमित्त बर्हि देव घृत युक्त हव्य पान करें। हे होता! आप भी इसी प्रकार यजन करें।[यजुर्वेद 28.35]
Barhi Dev established eye power, might, longevity in Devraj Indr by virtue of Gayatri Chhand and enriched longevity granting Indr Dev. Barhi Dev should drink Ghee granting wealth-prosperity to the Yajak and making him stable. Hey Hota! You too involve in such a Yagy.
देवीर्द्वारो वयोधसꣳ शुचिमिन्द्रमवर्द्धयन्।
उष्णिहा छन्दसेन्द्रियं प्राणमिन्द्रे वयो दधद्वसुवने वसुधेयस्य व्यन्तु यज॥
जो द्वार देवियाँ आयु को धारण करने वाली हैं, उन्होंने पवित्र इन्द्र को समृद्ध किया और उष्णिक् छन्द के द्वारा उनकी शक्ति, प्राण तथा आयु को बढ़ाया। वे देवियाँ यजमान को धन प्रदान करने के लिये घृत का पान करें। हे होता! आप आहुति दें।[यजुर्वेद 28.36]
The goddesses who support life, enriched pious Indr Dev, increased his power, Air Vital and longevity with the Ushnik Chhand. These goddesses should drink Ghee to increase the wealth of the Yajman. Hey Hota! Make sacrifice.
देवी उषासानक्ता देवमिन्द्रं वयोधसं देवी देवमवर्द्धताम्।
अनुष्टुभा छन्दसेन्द्रियं बलमिन्द्रे वयो दधद्वसुवने वसुधेयस्य वीतां यज॥
उषा और रात्रि देवियाँ अन्न के अधिष्ठाता इन्द्र देवता को अनुष्टुप छन्द द्वारा शक्ति, बल और आयु से समृद्ध करें। धन दान एवं धन धारण करने के लिये ये देवियाँ घृत का पान करें। हे होता! आप आहुति दें।[यजुर्वेद 28.37]
Let goddesses Usha & Ratri enrich power, might and longevity of Indr Dev; the Lord of food grains with Anushtup Chhand. Let these two deities who make donations of wealth and hold it, drink Ghee. Hey Hota! Make sacrifice.
देवी जोष्ट्री वसुधिती देवमिन्द्रं वयोधसं देवी देवमवर्द्धताम्।
बृहत्या छन्दसेन्द्रियꣳ श्रोत्रमिन्द्रे वयो दधद्वसुवने वसुधेयस्य वीतां यज॥
प्रीति युक्त और धन धारिका दोनों देवियाँ अन्न के अधिष्ठाता देवता इन्द्र को त्रिष्टुप् छन्द के द्वारा शक्ति, दीप्ति तथा आयु से समृद्ध करें। धनदान और यजमान को धन धारण कराने के लिये ये दोनों देवियाँ घृत का पान करें। हे होता! आप आहुति दें।[यजुर्वेद 28.38]
Affectionate and wealth holding two goddesses, enrich Indr Dev with power, aura and longevity, the Lord of food grains with Tristup Chhand. Let these deities drink Ghee for donation of wealth and granting wealth to Yajman. Hey Hota! Make sacrifice.
देवी ऊर्जाहुती दुघे सुदुघे पयसेन्द्रं वयोधसं देवी देवमवर्द्धताम्।
पंक्त्या छन्दसेन्द्रियꣳ शुक्रमिन्द्रे वयो दधद्वसुवने वसुधेयस्य वीतां यज॥
ऊर्जा और दुग्ध से युक्त दोनों देवियाँ दूध से इन्द्र का वर्धन करें। पंक्ति छन्द के द्वारा वे इन्द्र में शक्ति, वीर्य तथा आयुष्य धारित करते हुए वे देवियाँ धनदान एवं धन धारण के लिये घृत का पान करें। हे होता! आप आहुति दें।[यजुर्वेद 28.39]
Two goddesses possessing energy and milk should grow Indr Dev. By using Pankti Chhand they should increase strength, Veery-potency, Ayushy of Indr Dev and drink Ghee. Hey Hota! Make sacrifice.
देवा दैव्या होतारा देवमिन्द्रं वयोधसं देवौ देवमवर्द्धताम्।
त्रिष्टुभा छंदसेन्द्रियं त्विषिमिन्द्रे वयो दधद्वसुवने वसुधेयस्य वीतां यज॥
दोनों दिव्य होताओं ने त्रिष्टुप् छन्द के माध्यम से तेज, इन्द्रिय शक्ति तथा आयु को देवराज इन्द्र में प्रतिष्ठित करते हुए दिव्य जीवन प्रदाता इन्द्र देव को यज्ञ हवि द्वारा समृद्ध किया। याजक को ऐश्वर्य प्रदान करने हेतु तथा उसे स्थिरता प्रदान करने हेतु दोनों दिव्य होता-अनुयाज देवता घृत युक्त हवि का पान करें। हे होता! आप भी इसी प्रकार यजन करें।[यजुर्वेद 28.40]
The two divine Hotas used Tristup Chhand & established Tej, organ power and longevity in Indr Dev, enriching divine longevity granting Indr Dev associated with the Yagy. Granting grandeur to the Yajak and establishing him, the two divine Hotas-Anuyaj Dev drink Ghee. Hey Hota! You too conduct such Yagy.
देवीस्तिस्वस्तिस्त्रो देवीर्वयोधसं पतिमिन्द्रमवर्द्धयन्।
जगत्या छन्दसेन्द्रियꣳ शूषमिन्द्रे वयो दधद्वसुवने वसुधेयस्य व्यन्तु यज॥
भारती, सरस्वती और इडा-इन तीन देवियों ने अन्न के अधिष्ठातृ देवता और देवताओं के स्वामी इन्द्र को जगती छन्द के द्वारा शक्ति, बल एवं आयुष्य से समृद्ध किया। धनदान तथा धन धारण के लिये वे घृत का पान करें। हे होता! आप आहुति दें।[यजुर्वेद 28.41]
Bharti, Saraswati and Ida goddesses, enriched the Lord of food grains and demigods-deities Indr Dev, with power, strength and Ayushy through Jagti Chhand. Let them drink Ghee for donating and holding wealth. Hey Hota! You should make sacrifice.
देवो नराशꣳ सो देवमिन्द्रं वयोधसं देवो देवमवर्द्धयत्।
विराजा छन्दसेन्द्रियꣳ रूपमिन्द्रे वयो दधद्वसुवने वसुधेयस्य वेतु यज॥
देवत्व से युक्त, अनेकों द्वारा प्रशंसनीय यज्ञदेव ने विराट् छन्द के माध्यम से रूप, बल तथा आयु को इन्द्र देव में स्थापित करते हुए, जीवन दाता महान् इन्द्र देव को यज्ञ हवि द्वारा वृद्धि प्रदान की। याजक को ऐश्वर्य प्रदान करने हेतु तथा उसे स्थिरता प्रदान करने हेतु यज्ञदेव घृत युक्त हवि का पान करें। हे होता! आप भी ऐसा ही यजन करें।[यजुर्वेद 28.42]
Appreciable Yagy Dev associated with demigodhood, used Virat Chhand to establish beauty, strength-force and longevity in life granting Indr Dev & granted him growth through Yagy oblations. Let Yagy Dev drink offerings mixed with Ghee to grant grandeur and stability to the Yajak. Hey Hota! You too organise such Yagy.
देवो वनस्पतिर्देवमिन्द्रं वयोधसं देवो देवमवर्द्धयत्।
द्विपदा छन्दसेन्द्रियं भगमिन्द्रे वयो दधद्वसुवने वसुधेयस्य वेतु यज॥
दिव्य गुण सम्पन्न वनस्पति देव ने द्विपाद छन्द के माध्यम से सौभाग्य, इन्द्रिय शक्ति तथा आयुष्य को इन्द्र देव में स्थापित करते हुए जीवनदाता महान् इन्द्र देव को यज्ञ हवि द्वारा समृद्ध किया। याजक को ऐश्वर्य प्रदान करने हेतु तथा उसे स्थिर करने के निमित्त वनस्पति देव घृत युक्त हवि का पान करें। हे होता! आप भी यजन करें।[यजुर्वेद 28.43]
Vanaspati Dev possessing divine powers, used Dwipad Chhand to establish muscle-organ power, Ayushy & good luck in life granting Indr Dev and enriched him with Yagy oblations. Let Vanaspati Dev drink Ghee to grant grandeur and stabilize the Yajak. Hey Hota! You too make sacrifice.
देवं बर्हिर्वारितीनां देवमिन्द्रं वयोधसं देवं देवमवर्द्धयत्।
ककुभा छन्दसेन्द्रियं यश इन्द्रे वयो दधद्वसुवने वसुधेयस्य वेतु यज॥
जल में उत्त्पन्न होने वाली ओषधियों बीच में दीप्तिमान् बर्हि देव ने ककुप् छन्द के माध्यम से यश, इन्द्रिय तथा आयु को देवराज इन्द्र में स्थापित करके श्रेष्ठ आयुदाता इन्द्र देव को यज्ञ-हवि द्वारा वृद्धि प्रदान की। याजक को ऐश्वर्य प्रदान करने हेतु तथा उसे स्थिरता प्रदान करने हेतु बर्हिदेव घृत युक्त हवि का पान करें। हे होता! आप भी यजन करें।[यजुर्वेद 28.44]
Surrounded by the medicine-herbs growing in waters, aurous Barhi Dev established honour-glory, Indriy and longevity in life granting-sustaining Indr Dev and grew him with Yagy oblations. Let Barhi Dev drink Ghee to grant grandeur & stability to the Yajak. Hey Hota! you should also perform Yagy.
देवो अग्निः स्विष्टकृद्देवमिन्द्रं वयोधसं देवो देवमवर्द्धयत्।
अतिच्छन्दसा छन्दसेन्द्रियं क्षत्रमिन्द्रे वयो दधद्वसुवने वसुधेयस्य वेतु यज॥
श्रेष्ठ कर्म करने वाले, दान शील अग्नि देव ने अति छन्दस् छन्द के द्वारा क्षात्र बल, इन्द्रिय तथा आयु को देवेन्द्र में प्रतिष्ठित करके श्रेष्ठ आयुदाता इन्द्र देव को यज्ञ हवि द्वारा वृद्धि प्रदान की। याजक को ऐश्वर्य प्रदान करने हेतु तथा उसे स्थिरता प्रदान करने हेतु अग्नि देव घृत युक्त हवि का पान करें। हे होता! आप भी यजन करें।[यजुर्वेद 28.45]
Performer of excellent deeds, donor Agni Dev established Kshatr Bal, Indriy and longevity in best life-longevity granting Indr Dev and grew him with Yagy oblations. Let Agni Dev drink Ghee and grant grandeur and stability to the Yajak. Hey Hota! You should resort to Yagy.
अग्निमद्य होतारमवृणीतायं यजमानः पचन् पक्तीः पचन् पुरोडाशं बध्नन्निन्द्राय वयोधसे छागम्। सूपस्था अद्य देवो वनस्पतिरभवदिन्द्राय वयोधसे छागेन। अधत्तं मेदस्तः प्रति पचताग्रभीदवीवृधत्पुरोडाशेन त्वामद्य ऋषे॥
आज तो इस यजमान ने अग्नि को होता वरण किया है। पकाने योग्य सामग्रियों को पकाते हुए, पुरोडाश को पकाते हुए तथा इन्द्र के लिये छाग को बाँधते हुए यह वनस्पति यूपदेव भी यज्ञस्थल में सुष्ठु उपस्थित हुआ है। अश्विनी कुमारों आदि देवताओं ने यजमान के द्वारा प्रदत्त पशुओं के मेद से प्रारम्भ करके सर्वांग तक भक्षण किया। पके हुए शेष अवयवों को भी ग्रहण किया। वे पुरोडाश से वृद्धि को प्राप्त हुए। हे अग्ने! आज आर्षेय ढंग से होता ने तुम्हें ही वरण किया है।[यजुर्वेद 28.46]
आर्षेय ढंग :: ऋषियों से संबंधित, ऋषियों द्वारा स्थापित तरीका या विधि। इसका प्रयोग उस परंपरा, नियम या प्रक्रिया के लिए किया जाता है जो किसी ऋषि (द्रष्टा ऋषि या प्राचीन ऋषि) से उत्पन्न हुई हो और जिसे आदरणीय एवं सम्माननीय माना जाता है; related with the sages-Rishis. This is adopted following the principle laid by the ancient Rishis.
Today the Yajman has adopted Agni Dev. Cooking the food materials and Purodash, tying goat for Indr Dev Vanaspati Yup Dev appeared elegantly at the Yagy site. Ashwani Kumars & demigods ate every thing including fat, provided by the Yajman. They accepted the left over food-organs. They attained growth due to Purodash. Hey Agne! The Hota has accepted you honourably following procedure laid by ancient Rishis.(14.09.2025)
यजुर्वेद संहिता अथैकोनत्रिंशोऽध्यायः :: ऋषि :- बृहदुक्यो वामदेव्य, भार्गव जमदग्नि, दीर्घतमा जमदग्नि, मधुच्छन्दा, भरद्वाज; देवता :- अग्नि, मनुष्य, अश्विनी कुमार, सरस्वती, त्वष्टा, सूर्य, यजमान, मनुष्य, वायव, विद्वान्, अन्तरिक्ष, तीन देवियाँ, वागू, वीरा, धनुर्वेदाध्यापक, महावीर, सेनापति, सुवीर, वीर, वादयितारो, वीरा, अग्न्यादय; छन्द :- त्रिष्टुप्, पंक्ति, बृहती, गायत्री, जगती, अनुष्टुप्, अष्टि, शक्वरी, प्रकृति।
समिद्धोअञ्जन् कृदरं मतीनां घृतमग्ने मधुमत् पिन्वमानः।
वाजी वहन्वाजिनं जातवेदो देवानां वक्षि प्रियमा सधस्थम्॥
हे सर्वज्ञाता अग्नि देव! आप भली प्रकार प्रज्वलित होकर बुद्धिमानों के हृदय में स्थित भाव को प्रकट करते हुए मधुरता से युक्त घृत का सेवन कर हर्षित होने एवं अन्नरूप हवि को देवों के निमित्त वहन करते हुए देवों के लिये प्रीति कारक यज्ञ में उन्हें ले आयें।[यजुर्वेद 29.1]
Hey all knowing Agni Dev! Get ignited properly, illustrate the feelings in the heart of intellectuals, drink the Ghee added with sweetness, gladden, carry the offerings in the form of food grains and bring the demigods-deities to the Yagy generating affection-love for them.
घृतेनाञ्जन्त्सं पथो देवयानान् प्रजानन्वाज्यप्येतु देवान्।
अनु त्वा सप्ते प्रदिशः सचन्ताꣳ स्वधामस्मै यजमानाय धेहि॥
यह अश्व यज्ञीय प्रक्रिया को समझता हुआ देवताओं के गमन योग्य पथ को घृत से सींचता हुआ तथा अपने अंगों को घृत से आलिप्त करता हुआ देवताओं को प्राप्त हो। हे अश्व! सभी दिशाओं में विद्यमान प्राणी आपको जाते हुए देखें। आप इस याजक के निमित्त घन धारण करें।[यजुर्वेद 29.2]
Let this horse understand the procedure of the Yagy, sanctify the path suitable for the movements of demigods-deities, cover its body with Ghee and be accepted-attained by the demigods-deities. Hey horse! Let the living beings present in all direction see-watch you moving. Support wealth for this Yajak.
ईड्यश्चासि वन्द्यश्च वाजिन्नाशुश्चासि मेध्यश्च सप्ते।
अग्निष्ट्वा देवैर्वसुभिः सजोषाः प्रीतं वहिं वहतु जातवेदाः॥
हे वाजिन्! आप स्तवनीय तथा अभ्यर्थनीय होकर, शीघ्रतापूर्वक पवित्र हों। गतिमान अश्व! वसु देवताओं से प्रीति करने वाले, सर्वज्ञाता अग्नि देव प्रसन्न होकर आपको देवताओं के समीप ले जायें।[यजुर्वेद 29.3]
वाजिन् :: शक्तिमान घोड़ा-अश्व; mighty horse.
अभ्यर्थना :: अनुरोध, विनती, मांग, याचना; postulation, adjuration.
Hey mighty horse! You should be worshipable, posturable-adjurable and become pious-pure. Hey fast moving horse! Let all knowing Agni Dev having love for Vasu Devs gladden and take you to the demigods.
स्तीर्णं बर्हिः शुष्टरीमा जुषाणोरु पृथु प्रथमानं पृथिव्याम्।
देवेभिर्युक्तमदितिः सजोषाः स्योनं कृण्वाना सुविते दधातु॥
दिव्य ऐश्वयों से परिपूर्ण, सर्व सुलभ तथा सुख प्रदान करने वाली अदिति देवी धरती के व्यापक क्षेत्र में बिछे हुए कुशासन को देवताओं के लिये स्वर्ग लोक में प्रति स्थापित करें।[यजुर्वेद 29.4]
Enriched with grandeurs, available to all, pleasure granting Aditi Dev award-establish the Kushasan laid over the earth to demigods-deities in the heavens.
एता उ वः सुभगा विश्वरूपा वि पक्षोभिः श्रयमाणा उदातैः।
ऋष्वाः सतीः कवषः शुम्भमाना द्वारो देवीः सुप्रायणा भवन्तु॥
हे याजको! ये दिव्य द्वार देवियाँ उत्तम धन से परिपूर्ण, रमणीय, लम्बी आकृति वाले, पंख के सदृश किवाड़ वाले, गमनागमन के निमित्त उपयोगी, खोले जाने पर एवं बन्द किये जाने पर श्रेष्ठ ध्वनि करने वाले, शोभायमान, सुगमता पूर्वक ले जाये जाने योग्य तथा अन्य विशेषताओं से युक्त कपाटों से शोभायमान हों।[यजुर्वेद 29.5]
रमणीय :: आनंदमय, हर्षजनक, मनोरम, सुहावना, ललित, आनंदकर, सुखद, सुहावना, ख़ुशगवार, आनंदपूर्ण, आनंदित, आनंद देनेवाला; enjoyable, delightful, delectable.
Hey Yajak! Let these goddesses of the doors-gates have wealth, delightful, long form, feather like doors, suitable for going out and coming in, making best sound while opening or closing, beautiful, easy to carry, and possessing other specialities be rattling-stunning.
अंतरा मित्रावरुणा चरन्ती मुखं यज्ञानामभि संविदाने।
उषासा वाꣳसुहिरण्ये सुशिल्पे ऋतस्य योनाविह सादयामि॥
स्वर्गलोक तथा भूलोक के मध्य में विचरण करने वाली, सभी यज्ञ सम्बन्धी व्यवहारों के विषय वस्तु को आलोकित करने वाली, उत्तम ज्योति युक्त, दक्ष शिल्पकारों द्वारा निर्मित, हे उषा तथा नक्त देवियों! हम ईश्वर के स्थान के रूप में इस यज्ञ में आपको प्रतिष्ठित करते हैं।[यजुर्वेद 29.6]
Roaming over the earth & heavens, illuminating all dealings-procedures of the Yagy, possessing excellent light, prepared by the skilled-trained arcticians, hey Usha and Nakt goddesses! We establish you in the Yagy, which is like the abode of the Almighty.
प्रथमा वाꣳ सरथिना सुवर्णा देवौ पश्यन्तौ भुवनानि विश्वा।
अपिप्रयं चोदना वां मिमाना होतारा ज्योतिः प्रदिशा दिशन्ता॥
आप दोनों (अग्नि एवं वायु) समान रथ वाले, मनोहर सुवर्ण सदृश वर्ग वाले, सम्पूर्ण लोकों का भली-भाँति अवलोकन करने वाले हैं, आप दोनों ही सभी जनों को अपने-अपने कर्म में संलग्न करते हैं। आप सम्पूर्ण दिशाओं को प्रकाशमान् करने वाले हैं, आप दोनों दिव्य होताओं को हम प्रसन्न करते हैं।[यजुर्वेद 29.7]
Both of you i.e., Agni Dev & Vayu Dev, possess similar attractive charoites looking like gold, looks at all abodes thoroughly, make the populace busy with their work. You illuminate all directions. We make both of you divine Hotas happy.
आदित्यैर्नो भारती वष्टु यज्ञꣳ सरस्वती सह रुद्रैर्न आवीत्।
इडोपहूता वसुभिः सजोषा यज्ञं नो देवीरमृतेषु धत्त॥
देवी भारती आदित्यगणों सहित हमारे यज्ञ को संरक्षण प्रदान करें, वसुगणों तथा रुद्रगणों सहित देवी इडा एवं सरस्वती हमारे यज्ञ को संरक्षण प्रदान करें, हम इन तीनों देवियों को आहूत करते हैं। हे देवियो! आप हमारे यज्ञ को देवताओं में प्रतिष्ठित करें।[यजुर्वेद 29.8]
Devi Bharti along with Adity Gan, Vasu Gan, Rudr Gan, Devi Ida and Devi Saraswati should grant protection to our Yagy. Hey goddesses! Establish our Yagy amongest the demigods-deities.
त्वष्टा वीरं देवकामं जजान त्वष्टुरर्वा जायत आशुरश्वः।
त्वष्टेदं विश्वं भुवनं जजान बहोः कर्त्तारमिह यक्षि होतः॥
दिव्य गुणों की अभिलाषा करने वाली शूरवीर सन्तानों को त्वष्टा देव ने उत्पन्न किया। उन्होंने ही वेगवान् तथा सम्पूर्ण दिशाओं में संव्याप्त होने वाला अश्व (सूर्य) की उत्पत्ति की। हे यजमान! आप अनेक प्रकार के कर्म करने वाले विराट् सम्पूर्ण विश्व के रचयिता, उस परमात्मा का इस स्थान में (यज्ञस्थल में) पूजन करें।[यजुर्वेद 29.9]
Twasta Dev evolved brave-invincible progeny having the desire of divine characters. Its he, who evolved the dynamic, travelling in all directions Horse-Sury. Hey Yajman! Worship-pray the Almighty who perform several deeds who created the vast-huge entire universe.
अश्वो घृतेनत्मन्या समक्त उप देवाँ2॥ ऋतुशः पाथ एतु।
वनस्पतिर्देवलोकं प्रजानन्नग्निना हव्या स्वदितानि वक्षत्॥
घृत से अच्छी तरह से अभिसिंचित हुआ अश्व हवि रूप होकर विधिवत् देवताओं के निकट पहुँचे। देवलोक से भली-भाँति परिचित वनस्पति देव अग्नि के द्वारा स्वीकृत हवि दूसरे देवताओं को प्राप्त करायें।[यजुर्वेद 29.10]
Let the horse thoroughly laced with Ghee as oblation, reach near-close to the demigods-deities, procedurally. Vanaspati Dev well acquainted with heavens should manage to send (make available) offerings accepted by Agni Dev to the demigods-deities.
प्रजापतेस्तपसा वावृधानः सद्यो जातो दधिषे यज्ञमग्ने।
स्वाहाकृतेन हविषा पुरोगा याहि साध्या हविरदन्तु देवाः॥
हे अग्नि देव! प्रजापति की तपःशक्ति से संवर्धित हुए आप अरणि-मन्थन से तत्काल उत्पन्न होकर, यज्ञ को धारण करते हैं। आप स्वाहाकार पूर्वक अर्पित की गयी आहुति द्वारा अग्रगामी होकर पदार्पण करें, जिससे उपासनीय देवता हमारे द्वारा समर्पित की गयी हवियों को स्वीकार करें।[यजुर्वेद 29.11]
Hey Agni Dev! Grown-flourished with the ascetic powers of Prajapati, evolved after churning-rubbing, you support the Yagy. You should move forward by making offering uttering Swaha, so that the worshipped demigods-deities accept our oblations.
यदक्रन्दः प्रथमं जायमान उद्यन्त्समुद्रादुत वा पुरीषात्।
श्येनस्य पक्षा हरिणस्य बाहू उपस्तुत्यं महि जातं ते अर्वन्॥
हे चंचल गति वाले अश्व! जिस प्रकार बाज के पंख वीरता के कारण तथा मृग के पाँव द्रुत गमन के कारण गतिशील होते हैं, उसी प्रकार आप जिस समय प्रथम, समुद्र से प्रकट हुए, उस समय उद्गम स्थल से उत्पन्न होकर आप ध्वनि करने लगे, उसी समय आपकी महिमा स्तुति के योग्य हुई।[यजुर्वेद 29.12]
Hey horse moving playfully! The manner in which the feathers of falcon by virtue of bravery and legs of deer become dynamic due to fast speed, you too when evolved out of the ocean, produced sound and your glory became worshipable-worthwhile.
यमेन दत्तं त्रित एनमायुनगिन्द्र एणं प्रथमोअध्यतिष्ठत्।
गंधर्वो अस्य रशनामगृभ्णात्सूरादश्वं वसवो निरतष्ट॥
वसुगणों ने सूर्य-मण्डप से अश्व को निकाला। तीनों लोकों में विचरण करने वाले वायु ने यम के द्वारा दिये गये अश्व को रथ में योजित किया। सबसे पहले इस अश्व पर देवराज इन्द्र आरूढ़ हुए तथा विश्वावसु गन्धर्व ने इसकी लगाम पकड़ी, ऐसे अश्व की हम स्तुति करते हैं।[यजुर्वेद 29.13]
Vasu Gan brought the horse out of Sury Mandap. Vayu dev who roam in the three abodes deployed the horse in the charoite provided by Yam Dev. We worship the horse who was rode by Devraj first of all and Vishwa Vasu Gandarbh held its reins
असि यमो अस्यादित्यो अर्वन्नसि त्रितो गुह्येन व्रतेन।
असि सोमेन समया विपृक्त आहुस्ते त्रीणि दिवि बन्धनानि॥
हे चंचल गति वाले अश्व! आप यम हैं, आदित्य स्वरूप हैं, अपने गुप्त व्रतों के कारण त्रित में व्याप्त इन्द्र हैं। सोम के संग आप एकाकार हुए हैं। स्वर्ग लोक में जो तीन बन्धन (ऋक्, यजुः, सामरूप) विद्यमान हैं, वह आपके निमित्त बतलाये गये हैं।[यजुर्वेद 29.14]
Hey horse having playful motion! You are Yam Raj and a form of Adity Gan. By virtue of your secret resolutions, you are Indr pervaded in the Trit. The three bonds Trit (Rik, Yaju and Sam) present in the heavens are meant for you.
त्रीणि त आहुर्दिवि बंधनानि त्रीण्यप्सु त्रीण्यन्तः समुद्रे।
उतेव मे वरुणश्छन्स्यर्वन्यत्रा त आहुः परमं जनित्रम्॥
हे चंचल प्रकृत्ति वाले अश्व! आपका श्रेष्ठ उत्पादक सूर्य को बतलाया गया है। दिव्य लोक में आपके तीन बन्धन बताये गये हैं। जल में कृषि, वृष्टि, बीज, ये तीन बन्धन एवं अन्तरिक्ष लोक में मेघ, विद्युत्, अशनि, ये आपके तीन बन्धन बतलाये गये हैं। हे अश्व! वरुण देव आपकी प्रशंसा करते हैं। वे तुम्हारे वायुरूप में परम जन्म को कहते हैं।[यजुर्वेद 29.15]
अशनि :: बिजली, गाज-वज्र, अस्त्र; electricity, weapons,
Hey horse having playful nature! Sury is considered as your best producer. The divine abodes have your three bonds. Agriculture, rains and seeds are the three bonds in waters. In the sky the three bonds are :- clouds, lightening and Vajr. Hey horse! Varun Dev appreciate you. He describe you birth as air-Vayu Dev.(15.09.2025)
इमा ते वाजिन्नवमार्जनानीमा शफानाꣳ सनितुर्निधाना।
अत्रा ते भद्रा रशना अपश्यमृतस्य या अभिरक्षन्ति गोपाः॥
हे वाजिन्! आपके मार्जन साधनों को हम देखते हैं। आपके खुरों से खुदे हुए स्थल के दर्शन करते हैं। यहाँ आपके मंगलकारी रज्जु हैं, जो संरक्षक हैं, जो कि इस ऋत की सुरक्षा करते हैं।[यजुर्वेद 29.16]
मार्जन :: सफ़ाई, भूल, दोष आदि का परिहार; scrubbing.
ऋत :: मुक्ति, मोक्ष, सत्य, उज्ज्वल दीप्त, पूजित; order, truth, natural law, cosmic order, fundamental principle of cosmic order.
Hey Vajin-horse! We watch your means of scrubbing. We see the places scrubbed-dugged by your hoofs. Here your auspicious rein is present, which is your guardian and protect fundamental principle of cosmic order.
आत्मानं ते मनसारादजानामवो दिवा पतयन्तं पतङ्गम्।
शिरो अपश्यं पथिभिः सुगेभिररेणुभिर्जेहमानं पतत्रि॥
हे अश्व! अन्तरिक्ष मार्ग के द्वारा नीचे से सूर्य को प्राप्त होते हुए तुम्हारे जीव को मैंने मन से बहुत दूर देखा है। सुगमन एवं अधूलि मार्गों से गमनशील तुम्हारे शिर को जाते हुए मैंने देखा है।[यजुर्वेद 29.17]
Hey horse! I saw your soul-Air Vital away from the innerself, below the space route which is being accepted-assimilated in the Sun-Sury. I saw your head moving through the tough terrain having no dust.
अत्रा ते रूपमुत्तममपश्यं जिगीषमाणमिष आ पदे गोः।
यदा ते मर्त्ता अनु भोगमानडादिद् ग्रसिष्ठ ओषधीरजीगः॥
हे अश्व! आपका जो उत्कृष्ट स्वरूप यज्ञ की अभिलाषा करने वाला है, उसको हम सूर्य-मण्डल में स्थित देखते हैं। याजक ने जब श्रेष्ठ आहुतियों को आपके लिए अर्पित किया, तत्पश्चात् आपने हव्यरूप ओषधियों को स्वीकार किया।[यजुर्वेद 29.18]
Hey horse! We saw your excellent form which possess the desire of Yagy present in the Sury Mandal. When the Yajak made excellent offerings for you, you accepted them in the form of medicines-herbs.
अनु त्वा रथो अनु मर्यो अर्वन्ननु गावोऽनु भगः कनीनाम्।
अनु व्रातासस्तव सख्यमीयुरनु देवा ममिरे वीर्यं ते॥
हे चंचल प्रकृति वाले अश्व! रथ, मनुष्य, कन्याओं का सौभाग्य एवं गौएँ, ये सब आपका अनुगमन करते हैं। मनुष्यों के समुदाय ने आपकी मित्रता को पाया एवं देवताओं ने आपके पराक्रम के बारे में प्रशंसा की है।[यजुर्वेद 29.19]
Hey horse deployed in the playful charoite! Charoite, humans, luck of girls-virgins and cows follow you. Humans attained your friendship and the demigods-deities appreciated your bravery-valour.
हिरण्यशृङ्गो यो अस्य पादा मनोजवा अवर इन्द्र आसीत्।
देवा इदस्य हविरद्यमायन्यो अर्वन्तं प्रथमो अध्यतिष्ठत्॥
सर्वप्रथम सुवर्ण मुकुट धारण करके अश्व पर आरोहण करने वाले देवराज इन्द्र थे, पर वे भी इसकी महिमा में इससे पीछे ही थे। इस अश्व के पैर लोहे के सदृश तथा मन के समान वेग वाले हैं। देवगणों ने इसके हविरूप भोजन को प्राप्त किया।[यजुर्वेद 29.20]
Indr Dev, having golden crown, riding the horse, too lagged below the glory of this horse. The legs of this horse are like iron and have the speed of innerself-mind. Demigods had it as offering composing-constituting food.
ईर्मान्तासः सिलिकमध्यमासः सꣳशूरणासो दिव्यासो अत्याः।
हꣳ सा इव श्रेणिशो यतन्ते यदाक्षिषुर्दिव्यमज्ममश्वाः॥
जब परिपुष्ट जंघाओं वाला एवं पुष्ट हृदय वाला, मध्य में संकुचित, शक्तिशाली, सूर्य के रथ को खींचने वाला तथा निरन्तर गतिमान यह अश्व पंक्ति बद्ध होकर हंसों के सदृश चलता है, तब यह द्युलोक के पथ में दिव्यता को प्राप्त होता है।[यजुर्वेद 29.21]
परिपुष्ट :: जिसकी वृद्धि पूर्ण रीति से पुष्ट हुई हो, खूब हृष्ट-पुष्ट; fortified, well-fed.
The horse having well fed thighs, nourished heart, thin in the middle, which pulls the charoite of Sury Dev and continuously remain in rows-lines and move like the swan, it attains divinity over the path to heavens.
तव शरीरं पतयिष्णवर्वन्तव चित्तं वातऽइव ध्रजीमान्।
तव श्रृंगाणि विष्ठिता पुरुत्रारण्येषु जर्भुराणा चरन्ति॥
हे चंचल प्रकृति वाले अश्व! आपकी देह ऊर्ध्वगामी तथा मन वायुवत् वेगवान् है। आपकी विशिष्ट प्रकार से विद्यमान दीप्तियाँ जंगल में दावानल के रूप में संव्याप्त है।[यजुर्वेद 29.22]
Hey horse with playful nature! Your body moves up and your innerself is accelerated. You specific shines-radiance pervades like the fire in the jungle-Davanal.
उप प्रागाच्छसनं वाज्यर्वा देवद्रीचा मनसा दीध्यानः।
अजः पुरो नीयते नाभिरस्यानु पश्चात्कवयो यन्ति रेभाः॥
देवगामी मन से ध्यान करता हुआ वेगवान् अश्व विशसन स्थान पर आया। एक बकरा इसके आगे और एक बकरा इसके पीछे-पीछे वध्य भूमि पर लाया जाता है। तदनन्तर इसके पीछे स्तुति कर्ता ऋत्विज चलते हैं।[यजुर्वेद 29.23]
विशसन :: मार ड़ालना, हत्या करना, भागवत के अनुसार एक नरक का नाम, खड़्ग, विनाश, बर्बादी, युद्ध, काटना, चीरना, कठोर व्यवहार; sacrifice.
The fast moving horse reached the place of sacrifice, having innerself immersed in the demigods-deities. It had one goat in front and other goat behind moving to the place of sacrifice. Thereafter, the worshiper Ritviz followed it.
उप प्रागात्परमं यत्सधस्थमर्वां2 अच्छा पितरं मातरं च।
अद्या देवांजुष्टतमो हि गम्या अथा शास्ते दाशुषे वार्याणि॥
यह बलशाली अश्व सर्वोत्तम उच्च स्थान को प्राप्त करके पालनकर्ता तथा अपने आदरणीय माता-पिता से मिलता है। हे यजमान्! आप भी अच्छे गुणों से शोभायमान होते हुए देवत्व को प्राप्त करें। देवगणों से अगाध ऐश्वर्य प्राप्त करें।[यजुर्वेद 29.24]
This mighty horse attain the highest place, meets its growers and honourable parents. Hey Yajman! You too possess virtuous-righteous qualities and attain demigodhood. Have unlimited grandeur from the demigods-deities.
समिद्धोअद्य मनुषो दुरोणे देवो देवान्यजसि जातवेदः।
आ च वह मित्रमहश्चिकित्वान्त्वं दूतः कविरसि प्रचेताः॥
हे मित्र अग्नि देव! आप प्राणिमात्र के शुभचिंतक हैं। आप प्रदीप्त तथा महान् गुणों से युक्त होकर निपुण यजमानों द्वारा निश्चित किये गये यज्ञगृह में देवताओं को आवाहित करें एवं पूजन करें। आप उत्कृष्ट चेतनायुक्त ज्ञानी तथा देवताओं के दूत हैं।[यजुर्वेद 29.25]
Hey friend Agni Dev! You are a well wisher of the living beings. You should be ignited, have great traits-characterises and invite-invoke the demigods-deities in the Yagy Grah decided by the expert Yajman. You are ambassador of the conscious enlightened and the demigods.
तनूनपात्पथ ऋतस्य यानान्मध्वा समञ्जन्स्वदया सुजिह्व।
मन्मानि धीभिरुत यज्ञमृन्धन्देवत्रा च कृणुह्यध्वरं नः॥
हे जलों के पौत्र और सुन्दर जिह्वावाले अग्निदेव! आप देह के संरक्षक तथा उत्कृष्ट वाणी वाले हैं। आप सत्य स्वरूप यज्ञ के पथों को वाड्माधुर्य से अभिसिंचित करते हुए, आहुतियों को स्वीकार करें। विवेक तथा चिन्तनपूर्वक यज्ञ की वृद्धि करें। हमारा यज्ञ इस योग्य बनायें कि वह देवताओं के निकट सरलतापूर्वक पहुँचे।[यजुर्वेद 29.26]
Hey grand son of the waters, having beautiful tongue, Agni Dev! You are protector of the body and has excellent speech-voice. Accept the offerings while anointing (sprinkling, irrigating) the path of the truthful Yagy. Grow-flourish the Yagy with prudence and thoughtfulness. Make our Yagy capable of reaching the demigods-deities, easily.
नराशꣳसस्य महिमानमेषामुपस्तोषामयजतस्य यज्ञैः।
ये सुक्रतवः शुचयो धियन्धाः स्वदंति देवा उभयानि हव्या॥
यज्ञों द्वारा पूजनीय प्रजापति की महिमा का हम गुणगान करते हैं। उत्कृष्ट कर्म करने वाले विवेकवान् देवतागण सोम एवं अन्य दोनों प्रकार की हवियों को ग्रहण करते हैं।[यजुर्वेद 29.27]
We sing the glory of worshipable-revered Prajapati with the Yagy. Prudent demigods-deities devoted to excellent endeavours accept the offerings in the form of Som and other ingredients.
आजुह्वान ईड्यो वंद्यश्चा याह्यग्ने वसुभिः सजोषाः।
त्वं देवानामसि यह्व होता स एनान्यक्षीषितो यजीयान्॥
हे अग्नि देव! आप देवताओं को आहूत करने वाले, स्तवनीय तथा नमनीय हैं। आप वसुओं से प्रीति करनेवाले हैं। आप देवताओं के याज्ञिक हैं, अतएव यहाँ आगमन करके इन देवताओं का पूजन करें।[यजुर्वेद 29.28]
Hey Agni Dev! You invoke the demigods, is worshipable-revered and worth saluting. You have love & affection for the Vasu Gan. You are the Yagyik of the demigods, hence come here and perform-accomplish the Yagy of the demigods-deities.(16.09.2025)
प्राचीनं बर्हिः प्रदिशा पृथिव्या वस्तोरस्या वृज्यते अग्ने अह्नाम्।
व्यु प्रथते वितरं वरीयो देवेभ्यो अदितये स्योनम्॥
यह जो कुशासन बिछाया गया है, यह अतिश्रेष्ठ है। यह देवतागण तथा अदिति के निमित्त सुख पूर्वक विराजमान होने योग्य है। यह कुशासन यज्ञवेदी को आच्छादित करने के निमित्त ही बिछाया जाता है।[यजुर्वेद 29.29]
The Kushasan-cushion laid here is excellent. Its meant to be comfortably occupied by demigods-deities & Aditi. Its meant for covering the Yagy Vedi.
व्यचस्वतीरुर्विया वि श्रयन्तां पतिभ्यो न जनयः शुंभमानाः।
देवीर्द्वारो बृहतीर्विश्वमिन्वा देवेभ्यो भवत सुप्रायणाः॥
महती अवकाश वाली द्वार देवियाँ द्वारों को पूर्ण रूप से खोलें तथा देवताओं के लिये वैसे ही सुगम मार्ग प्रदान करें, जैसे पत्नी पति के लिये सुगम मार्ग प्रदान करती है।[यजुर्वेद 29.30]
The Goddesses of the vast space-sky governing the gates-doors, should open the door for the demigods-deities, just like the wife who opens the easy-comfortable way for the husband.
आ सुष्वयन्ती यजते उपाकेऽउषासानक्ता सदतां नि योनौ।
दिव्ये योषणे बृहती सुरुक्मे अधि श्रियꣳ शुक्रपिशं दधाने॥
आपस में प्रसन्न होती हुई, यज्ञ के निकट दिव्य स्थान वाली, यज्ञ योग्य, महिमामयी, सुन्दर स्वरूप वाली उषा तथा नक्त (रात्रि) देवियाँ यज्ञ स्थल में प्रतिष्ठित हों।[यजुर्वेद 29.31]
Happy mutually, close to the suitable divine Yagy site with,, glorious, beautiful Usha & Nakt-night Goddesses should be established at the Yagy site.
दैव्या होतारा प्रथमा सुवाचा मिमाना यज्ञं मनुषो यजध्यै।
प्रचोदयन्ता विदथेषु कारू प्राचीनं ज्योतिः प्रदिशा दिशन्ता॥
दोनों दिव्य याज्ञिक प्रथम उत्तम वचन वाले आहवनीय को यज्ञ करने की अनुमति देकर मानवों के यज्ञ में ऋत्विग्गण आदि को प्रेरणा प्रदान करने वाले हैं। वे अग्नि और वायु इस यज्ञ में पधारें।[यजुर्वेद 29.32]
Both of the divine Yagyik, grant permission to the first invokable, with excellent word-speech, in the Yagy by the humans, inspire the Ritviz Gan. Let these Agni & Vayu Dev arrive here.
आ नो यज्ञं भारती तूयमेत्विडा मनुष्वदिह चेतयन्ती।
तिस्त्रो देवीर्बर्हिरेदꣳ स्योनꣳ सरस्वती स्वपसः सदन्तु॥
हमारे इस यज्ञ में मनुष्यों को कर्म तथा ज्ञान से अवगत कराने वाली भारती, इडा तथा सरस्वती तीनों देवियाँ आगमन करके इस सुखद कुशासन पर स्थित हों।[यजुर्वेद 29.33]
Let the three goddess viz Bharti, Ida and Saraswati, who aware the humans of endeavours and enlightenment, occupy the comfortable Kushasan in our Yagy.
य इमे द्यावापृथिवी जनित्री रूपैरपिꣳ शद्भुवनानि विश्वा।
तमद्य होतरिषितो यजीयान्देवं त्वष्टारमिह यक्षि विद्वान्॥
हे होता! आप यज्ञ करने वाले एवं अत्यन्त बुद्धिमान् हैं, अतएव आज आप त्वष्टा देव का यजन करें। ये त्वष्टा देवता द्यावा-पृथ्वी तथा दूसरे सभी लोकों को स्वरूप प्रदान करते हैं।[यजुर्वेद 29.34]
Hey Hota! You accomplish the Yagy and is very intelligent, hence you should worship-pray to Twasta Dev who grants shape to heavens, earth and other abodes.
उपावसृज त्मन्या समञ्जन्देवानां पाथ ऋतुथा हवीꣳषि।
वनस्पतिः शमिता देवो अग्निः स्वदन्तु हव्यं मधुना घृतेन॥
हे होता! आप देवगणों के लिए किये जाने वाले यज्ञ की मधुर घृत द्वारा सिक्त करें एवं यज्ञकाल में आहुति समर्पित करें। वनस्पति देव, शमिता देव तथा अग्नि देव उन आहुतिओं को मधुर घृत से स्वादिष्ट बनायें।[यजुर्वेद 29.35]
Hey Hota! You should sock the offerings with sweet Ghee to be offered to the demigods-deities in the Yagy. Let Vanaspati Dev, Shamita Dev and Agni Dev sweeten these offerings with Ghee.
सद्यो जातो व्यमिमीत यज्ञमग्निर्देवानामभवत्पुरोगाः।
अस्य होतुः प्रदिश्यूतस्य वाचि स्वाहाकृतꣳ हविरदन्तु देवाः॥
ये तत्काल उत्पन्न हुए अग्नि देव देवताओं के आगे चलने वाले हैं। ये यज्ञ को परिमित करने वाले, देवताओं का आवाहन करने वाले एवं यज्ञ में विद्यमान रहने वाले हैं। जो हवियाँ इनके मुख में स्वाहाकार के साथ डाली जाती हैं, उन हवियों का देवतागण सेवन करते हैं।[यजुर्वेद 29.36]
Instantaneously evolved Agni Dev march ahead of the demigods-deities. He limits the Yagy, invoke the demigods-deities and remain present in the Yagy. The offerings made in his mouth chanting Swaha, are consumed-eaten by the demigods-deities.
केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे। समुषद्भिरजायथाः॥
हे अग्नि देव! आप ज्ञान रहित मानव को ज्ञान प्रदान करते हैं तथा रूप हीन को रूपवान् बनाते हैं, इस कारण याजक आपको सर्वदा प्रकट करते हैं।[यजुर्वेद 29.37]
Hey Agni Dev! You enlighten the ignorant and grant beauty to the ugly, hence the Yajak always invoke you.
जीमूतस्येव भवति प्रतीकं यद्वर्मी याति समदामुपस्थे।
अनाविद्धया तन्वा जय त्वꣳ स त्वा वर्मणो महिमा पिपर्त्तु॥
जिस समय कवच धारण करके शूरवीर पुरुष युद्ध स्थल की ओर गमन करते हैं, उस समय सेना के मुख रूप मेघ के सदृश होते हैं। अतएव हे कवचधारी वीर! आप शत्रुओं का वध करके, विजयी बनें। कवच की महिमा आपकी रक्षा करे।[यजुर्वेद 29.38]
When the brave warriors move to the battle ground wearing shield, the face-mouth of the army becomes like the clouds. Hence, hey warrior wielding shield! Kill the enemies and become victorious. Let the glory-majesty of the shield protect you.
धन्वना गा धन्वनाजिं जयेम धन्वना तीव्राः समदो जयेम।
धनुः शत्रोरपकामं कृणोति धन्वना सर्वाः प्रदिशो जयेम॥
धनुष के सामर्थ्य द्वारा गौ, राजपथ तथा भयंकर संग्राम में विजय प्राप्त की जाती है। इस धनुष के द्वारा ही शत्रुओं का अनिष्ट होता है। सम्पूर्ण दिशाओं पर विजय इस धनुष के द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है।[यजुर्वेद 29.39]
By virtue of the might-capability of the bow, cows, highway, furious war-battle are won. This bow harm-torture the enemies. All directions can be won with the bow.
वक्ष्यन्तीवेदा गनीगन्ति कर्णं प्रियꣳ सखायं परिषस्वजाना।
योषेव शिंक्ते वितताऽधि धन्वञ्ज्या इयꣳ समने पारयन्ती॥
संग्राम में विजय प्राप्त करने वाली प्रत्यंचा धनुष पर चढ़कर ध्वनि करती तथा बाण रूप मित्र से मिलती है। वह कर्ण तक खिंचती हुई ऐसी लगती है मानों कि कुछ कहना चाहती है।[यजुर्वेद 29.40]
The cord rides the bow, make loud-thunderous sound meeting the friend arrow, leading to victory in the war. Its stretched till the ear as it want to say something.(17.09.2025)
ते आचरन्ती समनेव योषा मातेव पुत्रं बिभृतामुपस्थे।
अप शत्रून् विध्यताꣳ संविदाने आर्त्नी इमे विष्फुरन्ती अमित्रान्॥
समान चित्त वाली स्त्रियों के सदृश आकर धनुष की ये दोनों कोटियाँ (किनारे) संकेत पूर्वक रिपुओं के निमित्त टंकार करने वाली यह धनुष की डोरी मध्य में वैसे ही बाण को धारण करती हैं, जैसे माता पुत्र को धारण करती है। हे धनुष की प्रत्यञ्चा (डोरी)! आप रिपुओं को प्रताड़ित करें।[यजुर्वेद 29.41]
टंकार :: धनुष की ध्वनि, धातु आदि की टन-टन, टनाका; sound produced by bow on being pulled and released.
Two corners of the bow support the cord which produce sound on being pulled and released, warning the enemies, like the two like minded women and the mother who support-nurse the son. Hey cord of the bow! Punish-torture the enemies.
बह्वीनां पिता बहुरस्य पुत्रश्चिश्चाकृणोति समनावगत्य।
इषुधिः संकाः पृतनाश्च सर्वाः पृष्ठे निनद्धो जयति प्रसूतः॥
यह तरकस बहुत से बाणों का पालक अर्थात् पिता है। जिस प्रकार पुत्र अपने पिता के आश्रय में रहते हैं, उसी प्रकार अनेकों बाण इस पिता रूप तरकस के आश्रय में रहते हैं। रणस्थल में उपस्थित होकर यह तरकस बारम्बार चीत्कार करता है एवं आदेश मिलने पर सम्पूर्ण योद्धाओं के गतिस्थान युद्धभूमि में विद्यमान सभी सेनाओं पर विजय प्राप्त करता है।[यजुर्वेद 29.42]
तरकस :: तूणीर; quiver.
This quiver is the nurturer-father of many arrows. The way a son lives under the asylum of father, several arrows live under the protection of the fatherly quiver. This quiver cries several times and on marching orders for the warriors to the war-battle field, attain victory over all armies.
रथे तिष्ठन्नयति वाजिनः पुरो यत्र यत्र कामयते सुषारथिः।
अभीशूनां महिमानं पनायत मनः पश्चादनु यच्छन्ति रश्मयः॥
रथ में विराजमान सारथी अश्व को जहाँ चाहता है, वहीं ले जाता है। वह लगाम भी प्रशंसनीय है, जो पीछे रहकर भी अश्व के मन को अपने नियन्त्रण में रखती है।[यजुर्वेद 29.43]
Charioteer takes the horse to the desired place. Reins deserve appreciation since though behind, keep the horse under control.
तीव्रान् घोषान् कृण्वते वृषपाणयोऽश्वा रथेभिः सह वाजयन्तः।
अवक्रामन्तः प्रपदैरमित्रान् क्षिणन्ति शत्रूँऽरनपव्ययन्तः॥
जो पुरुष अपने हाथ में घोड़े की लगाम पकड़े रहते हैं, वे पुरुष घोर जयघोष करते हैं तथा रथों के संग चलायमान अश्व रिपुओं पर अपने खुरों से आक्रमण करते हैं। वे नष्ट न होने वाले अश्व रिपुओं की हिंसा करने में सक्षम होते हैं।[यजुर्वेद 29.44]
The men who hold the reins of the horse, those who make victorious sound and horses moving with the charoite attack the enemy with their hoofs, such indestructible horses are capable of harming-destroying the enemy.
रथवाहणꣳ हविरस्य नाम यत्रायुधं निहितमस्य वर्म।
तत्रा रथमुप शग्मꣳ सदेम विश्वाहा वयꣳ सुमनस्यमानाः॥
जहाँ इस वीर पुरुष के कवच तथा आयुध रखे रहते हैं, उस वाहन का नाम रथ-वाहन है। अनुकूल बुद्धि से युक्त हम इस सुखकारी रथ को प्रतिष्ठित करते हैं।[यजुर्वेद 29.45]
The vehicle where the shield and arms-weapons of the brave person are kept is known as charoite. This comfortable charoite is established with favourable mind.
स्वादुषꣳ सदः पितरो वयोधाः कृच्छ्रेश्रितः शक्तीवन्तो गभीराः।
चित्रसेना इषुबला अमृध्रा: सतोवीरा उरवो व्रातसाहाः॥
आरामपूर्वक विराजमान रहने वाले, संरक्षक, आयु को धारण करने वाले, सहन शील, सामर्थ्यवान्, गम्भीर, विचित्र सेना युक्त, आयुधों सहित, विशाल तथा रिपुओं के सैन्य दल का सामना करने वाले हमारे श्रेष्ठ रथ रक्षक हों और हम उनके आश्रय में स्थित हों।[यजुर्वेद 29.46]
Let those living comfortably, patron-s guardians, supporting longevity, tolerant, capable, serios, possessing amazing armies, have arms & weapons, capable of facing-repelling the enemy groups; should be our excellent protectors of the charoites and we should remain under their asylum.
ब्राह्मणासः पितरः सोम्यासः शिवे नो द्यावापृथिवी अनेहसा।
पूषा नः पातु दुरितादृतावृधो रक्षा माकिर्नोऽ अघशꣳ स ईशत॥
हे ब्राह्मणो, पितरों और यज्ञ वर्धक सोम सम्पादक! आप हमारी रक्षा करें। पाप शून्य द्युलोक और पृथ्वी लोक हमारे लिये कल्याणकारी हों। पूषा हमें पाप से बचायें। हमारा पापी शत्रु प्रभुत्व न प्राप्त करने पाये।[यजुर्वेद 29.47]
Hey Brahmans Pitr Gan-Manes and producer-extractors of the Som, for accomplishment of the Yagy! Protect us. Sinless heavens and the earth should be beneficial to us. Let Pusha Dev save us from the sins. The sinners should not be able to over power us.
सुपर्णं वस्ते मृगो अस्या दन्तो गोभिः सन्नद्धा पतति प्रसूता।
यत्रा नरः सं च वि च द्रवन्ति तत्रास्मभ्यमिषवः शर्म यꣳसन्॥
जो बाण पक्षी के पंख को धारण करता है, जिसका फलक रिपुओं की खोज करने वाला है, वह बाण तन्तु से बँधा हुआ शत्रुओं पर गिरता है। रणभूमि में जहाँ वीर पुरुष इधर-उधर गमन करते हैं, वहाँ पर यह बाण हमारे निमित्त मंगलकारी बने।[यजुर्वेद 29.48]
The arrow having feather, whose blade search the enemies, should fall over the enemy tied with a filament-fibre. War field where the brave warriors move here or there and this arrow should become auspicious to us.
ऋजीते परि वृंधि नोऽश्मा भवतु नस्तनूः। सोमो अधि ब्रवीतु नोऽदितिः शर्म यच्छतु॥
हे सीधी रेखा मे चलने वाले बाण! आप हमारा त्याग करके, दूसरों पर जाकर गिरें। हमारी देह पाषाण के समान सुदृढ़ हो। सोम देवता हमारी स्तुति का अनुमोदन करें एवं देवमाता अदिति हमारे निमित्त मंगलकारी प्रेरणाओं को प्रेषित करें एवं हमें प्रसन्नता प्रदान करें।[यजुर्वेद 29.49]
Hey arrow moving straight! Spare us and fall over others (enemies). Let our body become tough like the rock. Som Dev should support over prayers and Dev Mata Aditi should make auspicious blessings for us, granting us pleasure-happiness.
आ जंघन्ति सान्वेषां जघनाँ2॥ उप जिघ्नते। अश्वाजनि प्रचेतसोऽश्वान्समत्सु चोदय॥
हे अश्वों के प्रेरक कशा (चाबुक)! आप रणभूमि में वीरता से युक्त चित्त वाले अश्वों को प्रेरित करें। आपके द्वारा ही अश्व पर आरोहण करने वाले वीर पुरुष इन अश्वों के उभरे हुए अंग पर प्रहार करते हैं एवं कटि प्रदेश में चोट करके इन्हें गतिशील करते हैं।[यजुर्वेद 29.50]
Hey whip inspiring the horse! Inspire the horses with bravery in the war. Its you which makes the horse move fast by the rider sitting over the raised back, strickling over its sides.
अहिरिव भोगैः पर्येति बाहुं ज्याया हेतिं परिबाधमानः।
हस्तघ्नो विश्वा वयुनानि विद्वान् पुमान् पुमाꣳ सं परिपातु विश्वतः॥
प्रत्यंचा के आघात को दूर करता हुआ, हाथ की सुरक्षा करने वाला चर्म भुजाओं से उसी प्रकार लिपटता है, जिस प्रकार भुजाओं से सर्प लिपटता है। इस तरह सम्पूर्ण के उपायों के ज्ञाता पराक्रमी पुरुष को वह अच्छी तरह से सुरक्षित रखता है।[यजुर्वेद 29.51]
उपाय :: इलाज, क़दम, पग, डग, चाल, पैड़ी, औषधि, माध्यम, ढंग, धन, युक्ति, प्रकार, चिकित्सा, कष्ट-निवारण; measures, remedy, means, step.
Repelling the strike of the string, leather covering, protecting the hand cling-coil like the snake. It keeps the learned brave man, who know these remedies-safety measures, safe properly.
वनस्पते वीड्वङ्गो हि भूया अस्मत्सखा प्रतरणः सुवीरः।
गोभिः सन्नद्धो असि वीडयस्वास्थाता ते जयतु जेत्वानि॥
वनस्पति काष्ठ द्वारा विनिर्मित रथ दृढ़ अंग वाला बने। यह रथ हमारा मित्र बनकर युद्ध से पार लगाने वाला बने। यह रथ चर्म द्वारा बँधा हुआ, वीरता से परिपूर्ण है। हे रथ! आपका सारथी जीतने योग्य रिपु के धनों को जीत पाने में सक्षम हो।[यजुर्वेद 29.52]
Let the charoite made of wood should be strong-tough. It should become our friend and support us in the war leading to victory. This charoite is tied with leathers and leads to victory. Hey charoite! Your charioteer should be able to win the wealth-riches of the enemies.
दिवः पृथिव्याः पर्योज उद्धृतं वनस्पतिभ्यः पर्याभृतꣳ सहः।
अपामोज्मानं परि गोभिरावृतमिन्द्रस्य वज्रꣳ हविषा रथं यज॥
द्युलोक तथा भूलोक से उद्धृत ओज, वनस्पतियों से प्राप्त किया गया बल तथा जलों का सारभूत तेज रश्मिवत् इन्द्र के वज्र के सदृश सुदृढ़ रथ में निहित है। हे अध्वर्यो! आप हेवि द्वारा इस रथ की पूजा करें।[यजुर्वेद 29.53]
The aura-radiance of the heavens and earth, strength obtained by the vegetation, extract of the Tej-energy as rays, is embedded in the charoite as strong as Devraj Indr's Vajr. Hey priests! You should worship the charoite with offerings.(18.09.2025)
इन्द्रस्य वज्रो मरुतामनीकं मित्रस्य गर्भो वरुणस्य नाभिः।
सेमां नो हव्यदातिं जुषाणो देव रथ प्रति हव्या गृभाय॥
हे दिव्य रथ के अधिष्ठाता देव! आप इन्द्र देव के वज्र के सदृश सुदृढ़ हैं। आप विजय प्रदान करने वाले होने के कारण मरुतों के मुख के सदृश हैं। मित्र देवता के तेज रूप गर्भरूप तथा वरुण की नाभिरूप हैं। ऐसे आप, हमारे द्वारा प्रदान की गयी हवियों को स्वीकार करके उसका भक्षण करें।[यजुर्वेद 29.54]
Hey deity of the divine charoite! You are strong like the Vajr of Indr Dev. You are like Marud Gan, since you grant victory. You are like the Tej-aura of Mitr Dev as womb-foetus and like the navel of Varun Dev. Accept our offerings and eat them.
स दुन्दुभे सजूरिन्द्रेण देवैर्दूराद्दवीयो अप सेध शत्रून्॥
हे दुंदुभे! पृथ्वी तथा आकाश को गुंजरित करें। विभिन्न प्रकार से विद्यमान स्थावर-जंगम संसार आपके विषय में जाने। आप इन्द्र देव तथा दूसरे देवगणों की प्रीति प्राप्त करने के अधिकारी हैं, अतएव हमारे रिपुओं को हमसे बहुत दूर भगा दें।[यजुर्वेद 29.55]
Hey Dundubhi! Reverberate-resonate the earth and sky. Let the fixed (trees etc) and movable living being know about you. You deserve love from Indr Dev and demigods-deities. Repel our enemies.
आ क्रन्दय बलमोजो न आधा निष्टनिहि दुरिता बाधमानः।
अप प्रोथ दुन्दुभे दुच्छुना इत इन्द्रस्य मुष्टिरसि वीडयस्व॥
हे दुंदुभे! आप तुमुल ध्वनि करें, जिसे सुनकर रिपुओं की सेना क्रन्दन करने लगे। आप हमारे भीतर ओज तथा बल की वृद्धि करें। हमारे पापों को दूर करें अर्थात् हमारे दुःखों का निवारण करें। कुकुरादि के सदृश पुष्ट रिपुओं को हमारे पास से दूर हटायें। आप इन्द्र देव की मुष्टि के सदृश हैं, हमको सभी प्रकार से दृढ़ करें।[यजुर्वेद 29.56]
तुमुल ध्वनि :: कोलाहल भरी, भयंकर और शोर गुल वाली ध्वनिआवाज़; loud outcry, uproar, cacophony.
Hey Dundubhi! Make tumultuous sound-cacophony such that the enemy army start crying. Increase our inner strength and aura-radiance. Remove our sins and sorrow. Repel the strong-nourished, stout enemies away from us. You are like the fist of Indr Dev. Make us strong in every manner.
आमूरज प्रत्यावर्त्तयेमाः केतुमद्दुन्दुभिर्वावदीत्ति।
समश्वपर्णाश्चरन्ति नो नरोऽस्माकमिन्द्र रथिनो जयन्तु॥
हे इन्द्र देव! आप रिपुओं के सैन्य दल को सभी ओर से दूर हटायें। यह दुन्दुभि भयंकर ध्वनि कर रही है, अतएव हमारी सेना विजयी बनकर वापस आये। हमारे तीव्र गामी अश्वों के साथ वीर सारथी विचरण करते हैं, वे सभी प्रकार से विजयी बनें।[यजुर्वेद 29.57]
Hey Indr Dev! Remove the armies of the enemy from all sides. The Dundubhi is making tumultuous sound, hence our armies should be victorious. Riders roam with the fast running horses. Let them become victorious in every possible manner.
आग्नेयः कृष्णग्रीवः सारस्वती मेषी बभ्रुः सौम्यः पौष्णः श्यामः शितिपृष्ठो बार्हस्पत्यः शिल्पो वैश्वदेव ऐन्द्रोऽरुणो मारुतः कल्माष ऐन्द्राग्नः सꣳहितोऽधोरामः सावित्रो वारुणः कृष्ण एकशितिपात् पेत्वः॥
कृष्ण ग्रीवा वाले पशु अग्नि देवता से सम्बन्धित हैं, मेषी देवी सरस्वती से सम्बन्धित है, पिंगल वर्ण वाले पशु सोम देव से सम्बन्धित हैं, कृष्णवर्ण के पशु पूषादेव से सम्बन्धित हैं, श्यामपृष्ठ के पशु बृहस्पति देव से सम्बन्धित हैं, चितकबरे पशु विश्वे देवा से सम्बन्धित हैं, अरुण वर्ण के पशु इन्द्र देव से सम्बन्धित हैं, कल्मष वर्ण के मरुद्गण से सम्बन्धित हैं, सुदृढ़ अंग वाले पशु इन्द्राग्नि से सम्बन्धित हैं, अधोभाग श्वेतवर्ण के पशु सूर्य देव से सम्बन्धित हैं तथा वह पशु जिसका एक पैर श्वेतवर्ण का एवं सम्पूर्ण अंग कृष्णवर्ण का है, वह वरुण देव से सम्बन्धित है।[यजुर्वेद 29.58]
पिङ्गल :: भूरापन लिये हुए पीला या लाल, ताँबे के रंग का, भैरव राग का एक पुत्र, ताँबे और जस्ते के मेल से बनी हुई एक मिश्र धातु, एक खनिज पदार्थ जो लगभग पीले रंग का होता है, वर्षा और वसन्त ऋतु में सुरीली ध्वनि में बोलने वाला एक पक्षी, पीला-भूरा; nut brown, hazelnut, an alloy with yellow, red and grey tinge.
कल्मष वर्ण :: रंग-बिरंगा, मटमैला; filth, stain.
Animals with black neck are related to Agni Dev, Mesh-sheep is related with Devi Saraswati, animals with nut brown colour are related with Som Dev, animals with black back are related to Brahaspati Dev, spotted-piebald coloured animals are related with Vishwe Dev, reddish-brown colour-dawn-coloured animals are related to Indr Dev, filth or stained colour is related to Marud Gan, animals with strong-stout organs are related to Indragni, animals who's upper portion is white are related to Sury Dev, those animals who's on leg is white and the other is black are related to Varun Dev,
अग्नयेऽनीकवते रोहिताञ्जिरनड्वानधोरामौ सावित्रौ पौष्णौ रजतनाभी वैश्वदेवौ पिशङ्गौ तूपरौ मारुतः कल्माषऽ आग्नेयः कृष्णोऽजः सारस्वती मेषी वारुणः पेत्वः॥
लाल चिह्नों वाला वृषभ ज्वाला वाले अग्नि से, नीचे स्थान में श्वेत वर्ण-वाले दो पशु सर्वप्रेरक सविता देव से, नाभि स्थान में चाँदी की भाँति शुक्ल वर्ण वाले दो पशु पूषा देवता से, पीत वर्ण के श्रृंगहीन दो पशु विश्वेदेवा देवता से, चितकबरे वर्ण का पशु मरुद्देवों से, कृष्ण वर्ण का अज अग्नि देवता से, मेषी देवी सरस्वती से एवं गतिमान् पतनोन्मुख पशु वरुण देवता से सम्बन्धित हैं।[यजुर्वेद 29.59]
Bull-ox with red marks is related to the blazing fire-Agni, two animals with while lower parts are related to all inspiring Savita Dev, two animals with silver coloured navel having white colour are related to Pusha Dev, yellow coloured animals without horns are related with Vishwe Dev, spotted animals are related to Marud Gan, black coloured goat is related to Agni Dev, sheep with Devi Saraswati and moving animals with lowered neck are related to Varun Dev.
अग्नये गायत्राय त्रिवृते राथन्तरायाष्टाकपालइन्द्राय त्रैष्टुभाय पञ्चदशाय बार्हतायैकादशकपालो विश्वेभ्यो देवेभ्यो जागतेभ्यः सप्तदशेभ्यो वैरूपेभ्यो द्वादशकपालो मित्रावरुणाभ्यामानुष्टुभाभ्यामेकविꣳशाभ्यां वैराजाभ्यां पयस्या बृहस्पतये पांक्ताय त्रिणवाय शाक्वराय चरुः सवित्र औष्णिहाय त्रयस्त्रिꣳशाय रैवताय द्वादशकपालः प्राजापत्यश्चरुरदित्यै विष्णुपल्यै चरुरग्नये वैश्वानराय द्वादशकपालोऽनुमत्या अष्टा कपालः॥
अग्निदेव गायत्री छन्द, त्रिवृत् स्तोम, रथन्तर साम द्वारा स्तवनीय हैं; आठ कपालों में संस्कृत पुरोडाश (हवि) उन अग्नि देव के निमित्त है। इन्द्र देव त्रिष्टुप् छन्द, पंचदश स्तोम, बृहत्साम द्वारा स्तवनीय हैं; एकादश कपाल में संस्कृत हवि उन देवराज इन्द्र के निमित्त है। विश्वेदेव जगती छन्द, सप्तदश स्तोम, वैरूपसाम द्वारा स्तवनीय हैं; द्वादश कपाल में सुसंस्कृत हवि उन विश्वेदेवों के निमित्त है। मित्र और वरुण देव अनुष्टुप् छन्द, एकविंश स्तोम तथा वैराज साम द्वारा स्तवनीय हैं; दूध से बना हुआ चरु उन मित्रावरुण के निमित्तं है। बृहस्पति देव पंक्ति छन्द, त्रिणव स्तोम, शाक्वर साम द्वारा स्तवनीय हैं; यह चरु उन बृहस्पतिदेव के निमित्त है। सविता देव उष्णिक् छन्द, त्रयस्त्रिंश स्तोम, रैवत साम द्वारा स्तवनीय हैं; द्वादश कपालों में सुसंस्कृत पुरोडाश (हवि) उन सर्वप्रेरक सविता देव के लिए है। प्रजापति देवता के लिए चरु, विष्णुदेव की पत्नी अदिति के लिए भी चरु, वैश्वानर अग्निदेव के लिए द्वादश कपाल में सुसंस्कृत पुरोडाश हवि तथा अनुमति देवता के लिए आठ कपालों में सुसंस्कृत पुरोडाश तैयार करना चाहिए।[यजुर्वेद 29.60]
Agni Dev is worshiped with Gayatri Chhand, Rathantar Sam and Purodash sanctified in eight skulls are meant for Agni Dev. Indr Dev is worshiped with Trishtup Chhand, Panchdash Stom, Brahatsam and the offerings sanctified in eleven skulls are meant for Indr Dev. Vishwe Devs are worshiped with Jagti Chhand, Saptdash Stom and oblations sanctified in twelve skulls. Mitr & Varun Dev are worshiped with Anushtup Chhand and Ekvinsh & Vaeraj Stom, Charu made with milk is meant for them. Brahaspati Dev is worshiped with Pankti Chhand, Trinav Stom & Shakkar Sam and a Charu is meant for him. Savita Dev is worshiped with Ushnik Chhand and Traystrinsh Stom & Raewat Sam, Purodash sanctified in twelve skulls is for all inspiring Savita Dev. Charu is meant for Prajapati Dev and the wife of Vishnu Dev's Aditi. For Vaeshwanar Agni Dev Purodash in twelve skulls is sanctified. Purodash for Anumati Dev should be sanctified in eight skulls.(19.09.2025)
यजुर्वेद संहिता त्रिंशोऽध्यायः :: ऋषि :- नारायण, मेधातिथि, विश्वामित्र, श्यालाश्व; देवता-सविता, परमेश्वर, विद्वांस, विद्वान्, ईश्वर, राजेश्वरी; छन्द :- त्रिष्टुप्, गायत्री, शक्वरी, अष्टि, कृति, धृति, जगती।
देव सवितः प्र सुव यज्ञं प्र सुव यज्ञपतिं भगाय।
दिव्यो गंधर्वः केतपूः केतं नः पुनातु वाचस्पतिर्वाचं नः स्वदतु॥
हे सविता देव! सभी को आप यज्ञ कर्म करने हेतु प्रेरित करें। यज्ञीय कर्मों को सम्पादित करने वालों को धन-वैभव से परिपूर्ण करके अच्छे कर्म की तरफ प्रेरित करें। हे सविता देव! आप दिव्य ज्ञान की रक्षा करने वाले, वाणी के अधिष्ठाता हमारे ज्ञान में शुद्धता को संचरित करें एवं हमारी वाणी को मधुरता से युक्त बनायें।[यजुर्वेद 30.1]
Hey Savita Dev! Inspire every one to accomplish Yagy. Grant wealth-riches to the performers of Yagy and inspire them for virtuous, righteous, pious, auspicious endeavours. Hey Savita Dev! You are the protector of divine knowledge, deity of speech should purify our knowledge and make our speech-voice sweet.
तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्॥
हम उन सर्वप्रेरक सविता देव के तेज का ध्यान करते हैं, जो सबके द्वारा वरणीय, सभी पापों के नाशक तथा सत्य, ज्ञान, आनन्द आदि तेज के पुंज हैं। वे हमारी बुद्धियों को सत्कर्मों के लिए प्रेरित करें।[यजुर्वेद 30.2]
पुंज :: पिंड, ढेर, बड़ी संख्या, घटा, beam, mass, sockdolager.
We recall-meditate the Tej-aura of all inspiring Savita Dev, who is acceptable to all, destroy all sins and is the beam-source of truth, enlightenment, bliss etc. Let him inspire our minds towards virtues.
विश्वानि देव सवितुर्दुरितानि परा सुव। यद्भद्रं तन्न आ सुव॥
हे सविता देव! हमारे सम्पूर्ण पापों को हमसे दूर करें। जो हमारे निमित्त मंगलकारी हो, उसे हमारे लिए प्रेरित करें।[यजुर्वेद 30.3]
Hey Savita Dev! Keep off our sins away from us. Inspire-motivate with what is auspicious to us.
विभक्तारꣳ हवामहे वसोश्चित्रस्य राधसः। सवितारं नृचक्षेसम्॥
हम दिव्य ऐश्वर्य के धारक, कर्मों के अनुसार सबके लिये धन को विभाजित करके प्रदान करने वाले, मनुष्यों के कर्मों को भली-भाँति देखने वाले, सभी को प्रेरित करने वाले सविता देव का हम आवाहन करते हैं।[यजुर्वेद 30.4]
We should become the holder of divine grandeur, should distribute the wealth acquired as per deeds, look-examine at the deeds of humans carefully; invoke Savita Dev who inspire everyone.
ब्रह्मणे ब्राह्मणं क्षत्राय राजन्यं मरुद्भ्यो वैश्यं तपसे शूद्रं तमसे तस्करं नारकाय वीरहणं पाप्मने क्लीब माक्रयाया अयोगूं कामाय पुँश्चलूमतिक्रुष्टाय मागधम्॥
पुरुषमेध याग के यूपों में; ब्रह्मा के लिये ब्राह्मण को, राजा के लिये क्षत्रिय को, मरुतों के लिये वैश्य को, सेवा कार्य के लिये शूद्र को, अन्धकार के लिये तस्कर को, नरक के लिये नष्टाग्नि को, पाप के लिये नपुंसक को, क्रय-विक्रय के लिये खनिज को, काम के लिये व्यभिचारी को, अतिक्रुष्ट के लिये मागध को यूप में बाँधे।[यजुर्वेद 30.5]
अतिक्रुष्ट :: बहुत रोना, अत्यधिक चिल्लाना; weeping-shouting too much.
Brahmans for Brahma, Kshatriy for king, Vaeshy for Marud Gan, Shudr for service, Taskar-smuggler for darkness, Nashtagni for hell, eunuch-impotent for sin, minerals for sale-purchase, lascivious for sex, Magadh for too much weeping-shouting are tied with the Yup in the Pur
नृत्ताय सूतं गीताय शैलूषं धर्माय सभाचरं नरिष्ठायै भीमलं नर्माय रेभꣳ हसाय कारिमानन्दाय स्त्रीषखं प्रमदे कुमारीपुत्रं मेधायै रथकारं धैर्याय तक्षाणम्॥
नृत्य के निमित्त सूत (क्षत्रिय से ब्राह्मणी में उत्पन्न) को, गीत के निमित्त शैलूष (नट) को, धर्म के निमित्त सभासद् को, नरिष्ठा के निमित्त भयंकर रूप वाले भील को, नर्म के निमित्त रेभ (शब्दकर्ता) को, हस के निमित्त सेवक (काम करनेवाले) को, आनन्द के निमित्त स्त्रियों और मित्रों को, प्रमदा के निमित्त कन्या के पुत्र को, मेधा के निमित्त रथ बनाने वाले को, धैर्य के निमित्त तक्षा (बढ़ई) को यूप में बाँधे।[यजुर्वेद 30.6]
नट :: कलाबाज़, करतबी, (लोगों के मनोरंजन के लिए) शरीर को प्रकार से मोड़ने वाला मनुष्य, तने हुए रस्से पर नाचने वाला, नाटक खेलने वाला व्यक्ति, अभिनेता, खेल-तमाशा दिखाने वाली एक जाति; contortionist, acrobat, posture-maker, rope dancer-walker, roper, equilibrist, rope drive, distortionist.
नरिष्ठा :: वैदिक सभा, एक ऐसा प्रस्ताव या निर्णय जिसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता, यानी जिसे तोड़ा न जा सके; a proposal which cannot be rejected.
For the purpose of dancing Soot (one born out of Brahmani by the Kshatriy), for singing Shaelush (acrobat), for Dharm a counsellor, for Narishtha a Beel-tribal with furious face (shape-form), for soft Rebh (sound producer), for Has servant, for pleasure women & friends, for Pramda-intoxicated virgin's son, for intellect charoite produce-maker, for patience carpenter should be tied with the Yup-central pole in the Yagy.
तपसे कौलालं मायायै कर्मारꣳ रूपाय मणिकारꣳ शुभे वपꣳ शरव्याया इषुकारꣳ हेत्यै धनुष्कारं कर्मणे ज्याकारं दिष्टाय रज्जुसर्ज मृत्यवे मृगयु मन्तकाय श्वनिनम्॥
तप के निमित्त कुम्भकार को, माया के निमित्त कर्मार (लोहार) को, रूप के निमित्त मणिकार को, शुभ के निमित्त बोने वाले को, लक्ष्य को बेधने के निमित्त बाण बनाने वाले को, प्रक्षेपण आयुधों के निमित्त धनुष्कार को, कर्म के निमित्त प्रत्यंचा (डोरी) बनाने वाले को, दिष्ट के निमित्त धनुष की डोरी बनाने वाले को, मृत्यु के निमित्त बधिक एवं यम देव के निमित्त श्वानों को पकड़ने वाले को यूप में बाँधे।[यजुर्वेद 30.7]
For ascetics earthen pot maker, for enchantment an iron smith, for beauty a gold smith, for auspiciousness a Sower, for target arrow maker, for launching missiles an archer, for endeavours bow string maker, for death a killer (butcher-hunter) and for Yam Dev tie dog catchers with the Yup-central pole in the Yagy.
नदीभ्यः पौञ्जिष्ठ मृक्षीकाभ्यो नैषादं पुरुषव्याघ्राय दुर्मदं गंधर्वाप्सरोभ्यो व्रात्यं प्रयुग्भ्य उन्मत्तꣳ सर्पदेवजनेभ्योप्रतिपदमयेभ्यः कितव मीर्यताया अकितवं पिशाचेभ्यो विदलकारीं यातुधानेभ्यः कण्टकीकारीम्॥
नदियों के निमित्त अन्त्यज को, रीछ इत्यादि जंगल में विचरने वालों के निमित्त निषादों (जंगल वासियों) को, व्याघ्र के सदृश आक्रमणकारी पुरुष के निमित्त उन्मत्त को, अप्सराओं तथा गन्धर्वों के निमित्त संस्कार न हुए व्यक्ति को, प्रयुगों-प्रयोग करने वालों के निमित्त उन्मत्त को, साँपों के निमित्त पंगु (लंगड़े) को, देवताओं एवं मानवों के निमित्त पासों के खेल (द्यूत क्रीडा, जूआ) में कुशल को, प्रगति के प्रयत्नों के छल कपट से मुक्त सज्जनों के निमित्त द्यूत क्रीडा रहित व्यक्ति को, पिशाच (प्रकृति वालों) के निमित्त भेद नीति उत्पन्न कर देने वालों को, यातुधानों (मार्ग में लूटपाट करनेवालों) के निमित्त बाधा उत्पन्न कर देने वालों को यूप में बाँधे।[यजुर्वेद 30.8]
अंत्यज :: शूद्र; outcaste, untouchable, scheduled caste.
For rivers outcaste, for beer those roaming in jungles Nishad-tribals, for an attacker like tiger intoxicated, nymphs & Gandarbhs a person who is not sanctified, for users frenetic, for snakes a lame, for demigods & humans a person expert in gamble, for progressing virtuous a person who do not gamble, for those with demonic tendencies-nature diplomate-politicians, for the looters tie the obstructors over the Yup- central pole of the Yagy.
संधये जारं गेहायोपपतिमात्र्र्यै परिवित्तं निर्ऋत्यै परिविविदानमराद्धया एदिधिषुः पतिं निष्कृत्यै पेशस्कारी संज्ञानाय स्मरकारींꣳ प्रकामोन्द्यायोपसदं वर्णायानुरुधं बलायोपदाम्॥
सन्धा के लिये जार को, गेहा के लिये उपपति को, आर्ति के लिये परिवित्त को, निर्ऋति के लिये बड़े के न विवाहे जाने पर भी विवाह कर लेने वाले छोटे को, अपराध्या के लिये अविवाहित बड़ी कन्या को छोड़कर छोटी विवाहिता के पति को, निष्कृति के लिये रूपकरी (पेशस्कारीम्-शृङ्गार विशेष से रूप करने हारी व्यभिचारिणी) को, संज्ञान के लिये स्मरकारी को, प्रकामोद्य (प्रपद्यवाद हिन्दी साहित्य की एक प्रयोगवादी शाखा) के लिये उपसद को, वर्ण के लिये अनुरुध (स्वीकार के लिए प्रवृत्त हुए) को तथा बल के लिये उपदा को यूप में बाँधे।[यजुर्वेद 30.9]
गेहा :: घर, मकान या निवास स्थान; house, home.
आर्ति :: पीड़ा, कष्ट, रोग, दुख, व्यथा, विनाश, बुराई, और धनुष की कोर; torture, pain, sorrow, disease-ailment.
परिवित्त :: एक ऐसा पुरुष जिसका छोटा भाई उससे पहले विवाह कर ले; a person who's marry first-prior to his elder brother.
अपराध्या :: छोटी बहन बड़ी बहन से पहले शादी करे; younger sister may prior to her elder sister.
निष्कृति :: छुटकारा, मुक्ति; उपेक्षा, तिरस्कार, प्रायश्चित के लिए प्रवृत्त हुई (पेशस्कारीम्) शृङ्गार विशेष से रूप करने वाली व्यभिचारिणी को, उत्तम काम देव को जगाने के अर्थ-हेतु प्रवृत्त हुई (स्मरकारीम्) कामदेव को चेतन कराने वाली दूती; release, freedom, avoidance, rejection.
उपसद :: पास जाना, सेवा करना, उपहार, दान, drawing near-close, serving, giving gift-donations.
For evening illicit, for house illicitly relate person as second husband, for pain-torture a person who marry prior to his elder brother, a guilty younger sister who marry prior to her elder sister, for release a voluptuous-lascivious women, for noticing reminder, for Prakamodh drawing near, for Varn Anurudh, for Bal tie Upda to the Yup.(21.09.2025)
उत्सादेभ्यः कुब्जं प्रमुदे वामनं द्वार्थ्यः स्रामꣳ स्वप्नायान्धमधर्माय बधिरं पवित्राय भिषजं प्रज्ञानाय नक्षत्रदर्श माशिक्षायै प्रश्निनमुपशिक्षाया अभिप्रश्निनं मर्यादायै प्रश्नविवाकम्॥
उत्सादन (शत्रु संहार) के निमित्त कुब्जे (टेढ़े अंग वाले) को, प्रमुद के निमित्त वामन (बौने व्यक्ति) को, द्वारों के निमित्त सदा आँसू भरी आँखों वाले की, सपने हेतु नेत्र हीन को, अधर्म के निमित्त बधिर (कर्णेन्द्रिय हीन) को, पवित्रता के निमित्त वैद्य को, विशेष प्रकार के ज्ञान के निमित्त खगोलविद् (ज्योतिषी) को, सम्पूर्ण शिक्षा प्राप्त करने के निमित्त शकुन आदि, अनेकों प्रश्न करने वाले को, शिक्षा के अभ्यास हेतु जिज्ञासु व्यक्ति को एवं न्याय व्यवस्था के निमित्त प्रश्न का उत्तर देनेवाले को यूप में बाँधे।[यजुर्वेद 30.10]
प्रमुद :: आनंदित, प्रसन्न होना; to become happy.
शकुन :: शुभ-अशुभ भविष्य का पूर्वाभास देने वाले संकेत या घटनाएँ; premotion regarding events of future i.,e. in advance.
जिज्ञासु :: कुतूहली, निराला; curious, inquisitive, inquisitorial.
For the destruction of the enemy one with uneven organs, to be happy dwarf, for the doors-gates one who's eyes are full of tears, for dreams blind, for wickedness-viciousness deaf, for piousity Vaedy-physician, for specific knowledge astrologer-astronomer, for complete education premotion, for education the inquisitive and for law & legislature one who answers questions should be tied with the Yup.
अर्मेभ्यो हस्तिपं जवायाश्वपं पुष्ट्यै गोपालं वीर्यायाविपालं तेजसेऽजपालमिरायै कीनाशं कीलालाय सुराकारं भद्राय गृहपꣳ श्रेयसे वित्तधमाध्यक्ष्यायानुक्षत्तारम्॥
भारी सवारियों को ढोने हेतु हस्ति पालक को, शीघ्र गति हेतु अश्व पालक को, पुष्टि हेतु गौ पालक को, वीर्य के निमित्त मेषपालक को, तेज के निमित्त बकरी पालक को, अन्न को वर्द्धित करने हेतु कृषक को, सुरा के लिये मद्य बनाने वाले को, सुख तथा कल्याण की वृद्धि करने के निमित्त घर के पालक को, श्रेय के निमित्त धन-धारक को एवं अध्यक्षता हेतु निरीक्षक को यूप में बाँधे।[यजुर्वेद 30.11]
श्रेय :: धन्यवाद, तारीफ़, उत्तम, श्रेष्ठ होना, कल्याण या शुभ होना; credit, auspicious, good fortune, merit, virtue, credit for, virtues.
For carrying heavy loads elephant rearer-grower, for fast moving horse growers, for nourishment cow breeders-growers, for sperms-strength sheep growers, for Tej goat breeders-growers, for food grains growing peasants-farmers, for wine liquor extractors, for comforts and welfare house care taker-owners, for credit one who possess wealth and for chairmanship-dominance the inspector should be tied with the Yup.
भायै दार्वाहारं प्रभाया अग्न्येधं ब्रध्नस्य विष्टपायाभिषेक्तारं वर्षिष्ठाय नाकाय परिवेष्टारं देवलोकाय पेशितारं मनुष्यलोकाय प्रकरितारꣳ सर्वेभ्यो लोकेभ्य उपसेक्तारमव ऋत्यै वधायोपमन्थितारं मेधाय वासः पल्पूलीं प्रकामाय रजयित्रीम्॥
अग्नि के निमित्त लकड़हारे को, प्रभा (प्रकाश) के निमित्त अग्नि की वृद्धि करने वाले को, सूर्य लोक के निमित्त अभिषेक करने वाले को, श्रेष्ठ स्वर्ग के निमित्त परिवेषण कर्ता को, देवलोक के निमित्त पेशितार को, मनुष्य लोक के निमित्त विक्षेप्ता को, समस्त लोकों के निमित्त उपसेचन कर्ता को, अवऋति वध के निमित्त उपमन्थिता को, मेधा के निमित्त धोबी को तथा प्रकाम के निमित्त रंगरेजिन को यूप में बाँधे।[यजुर्वेद 30.12]
पेशितार :: विद्या के अवयवों को जानने वाले; one knows various organs-branches of education-learning.
अवऋति :: विरुद्ध प्राप्ति जिस में हो उस (वधाय) मारने के लिए प्रवृत्त हुए; ready to kill opponents-opposers.
उपमन्थिता :: ताड़नादि से पीड़ा देने वाले दुष्ट; the wicked who tortures.
प्रकाम :: जितना आवश्यक हो, उतना, यथेष्ट, इच्छा, कामना, तृषित; according to need, sufficient.
For fire wood cutter, for light fire igniter, for Sury Lok one who perform ablution, for excellent heavens one who knows-is a researcher, for the abode of demigods one who knows various branches of learning, for humans the deflector, for all abodes one who inoculate, for one who is ready to kill wicked-torturer, for intelligence washer man, for desires the dyer should be tied with the Yup.
ऋतये स्तेनहृदयं वैरहत्याय पिशुनं विविक्त्यै क्षत्तारमौपद्रष्ट्यायानुक्षत्तारं बलायानुचरं भूम्ने परिष्कन्दं प्रियाय प्रियवादिनमरिष्ट्या अश्वसादꣳ स्वर्गाय लोकाय भागदुधं वर्षिष्ठाय नाकाय परिवेष्टारम्॥
ऋति के निमित्त स्तेन हृदय को, वैर हत्या के निमित्त पिशुन को, विविक्ति के निमित्त क्षत्ता को, औपद्रष्ट्या के निमित्त अनुक्षत्ता को, बल के निमित्त अनुचर को, भूम्ना के निमित्त पकिष्कन्द को, प्रिय के निमित्त प्रियवादी को, अरिष्टि के निमित्त अश्ववार को, स्वर्गलोक के निमित्त भागदुध (विभाग प्रदान करने वाले) को और श्रेष्ठ नायक के निमित्त परिवेष्टा को यूप में बाँधे।[यजुर्वेद 30.13]
ऋति :: समृद्धि, मंगल, कल्याण, prosperity, welfare, well being.
स्तेन :: चोर, तस्कर; thief. smuggler.
पिशुन :: नीच, चुगलखोर, गर्भिणी स्त्रियों को बाधा पहुँचाने वाला प्रेत, लड़ाई कराने वाला व्यक्ति; depraved, backbiter, slander, talebearer, telltale.
विविक्त :: discrete.
क्षत्ता :: द्वारपाल या दरबान, मछली, नियोग करने वाला पुरुष, दासी पुत्र (महाभारत में विदुर जी का उल्लेख भी क्षत्ता के रूप में किया गया है), कोचवान या सारथी और रथ चलाने वाला व्यक्ति; charoite driver, a person born from a man other than husband due to mutual consent.
अनुक्षत्ता ::आज्ञाकारी द्वारपाल या सारथी या वह व्यक्ति जो किसी का अनुसरण करता हो; charioteer, obedient, gate man.
उपद्रष्टा :: निरीक्षण करने वाला,साक्षी, गवाह; witness.
भूम्ना :: पृथ्वी, भूमि, जमीन का कोई टुकड़ा, यह एक प्राणी या जीव के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है और यह बहुलता या संख्या का भी संकेत दे सकता है; earth, plot, living being.
परिष्कंदं :: भूमि पर गिरने वाले को; one who falls over earth.
परिवेष्टा :: किसी वस्तु का परिवेषण या संलग्न करने वाला या उसे घेरने वाला; one who surround some thing.
For prosperity a thief, for murder of due to anonymity a depraved, for discrete a person born due to pregnancy by a person other than husband by mutual consent, for witness a charioteer, for strength a servant, for land one who falls over earth, for dear-affectionate one who loves, for ill effects a horse rider, for heavens one who grant share-segment, for great leader one who surrounds something, should be tied with the Yup.(22.09.2025)
मन्यवेयस्तापं क्रोधाय निसरं योगाय योक्तारꣳ शोकायाभिसर्त्तारं क्षेमाय विमोक्तारमुत्कूलनिकूलेभ्यस्त्रिष्ठिनं वपुषे मानस्कृतꣳ शीलायाञ्जनीकारीं निर्ऋत्यै कोशकारीं यमायासूम्॥
लोहे को तपाने वाले को मन्यु के निमित्त, तपे हुए लोहे को पीटने वाले को क्रोध के निमित्त, योग के निमित्त योगी को, शोक के निमित्त अभिसर्ता (सम्मुख आने वाले) को, क्षेम के निमित्त विमोक्ता को, उत्कूलनिकूलों के निमित्त शीतवान् को, वपुष् के निमित्त मानकारी को, शील के निमित्त अंजनविद्याकर्मी (काजल बनानेवाली) को, निर्ऋति के निमित्त कोशकारिणी (खड्ग आदि की म्यान को बनानेवाली) को तथा यम के निमित्त वन्ध्या को यूप में बाँधे।[यजुर्वेद 30.14]
क्रोध लोहे को भी ताप देने वाला होता है, क्रोध की शांति हेतु जग को निस्सार समझने वाले की नियुक्ति करनी चाहिए, योग के लिए योगी को नियुक्त करना चाहिए, शोक के लिए सांत्वना देने वाले को नियुक्त करना चाहिए, संरक्षण के लिए मुक्ति दाता को नियुक्त करना चाहिए, उतार-चढाव हेतु ऊँच-नीच में दक्ष को, शरीर हेतु मनोनुकूल आचरण करने वाले को, शालीनता हेतु आँख शुद्ध करने वाले को, नियुक्त किया जाना चाहिए। विपत्ति हेतु संचय नीति को यम-नियम आदि हेतु असूया (ईर्ष्या रहित) को नियुक्त किया जाना चाहिए।
Anger heats up iron. For peace of anger, one should appoint a person who considers the world to be useless. Yogis should be appointed for performing Yog. A consolation worker should be appointed for the bereavement. A liberator should be appointed for protection, a skilled person who goes up and down, a person who behaves accordingly for the body, an eye cleanser for decency. Accumulation policy for adversity should be appointed as a member of Asuya (without jealousy) for Yemeniam etc. should be tied over the Yup in the Yagy.
मन्यु :: स्त्रोत्र, कर्म, याग, कोप, क्रोध, जुनून, रोष, तीव्र इच्छा, एक देवता, दुख, शोक, संकट, अभिमान, शक्तिशाली या तेज व्यक्ति; endeavour, anger, pain, sorrow.
क्षेम :: कुशल मंगल, सुख; well being, safety.
विमोक्ता :: मुक्त करने वाला या छुड़ाने वाला; who releases.
उत्कूलनिकूल :: किनारे से कभी नीचे और कभी ऊपर होकर बहने वाला; which close near the bank some time close and sometimes far.
यमाय यमसूमथर्वभ्योऽवतोकाꣳ संवत्सराय पर्यायिणीं परिवत्सरायाविजातामिदावत्सरायातीत्वरीमिद्वत्सरायातिष्कद्वरीं वत्सराय विजर्जराꣳ संवत्सराय पलिक्नीमृभुभ्योऽजिनसन्धꣳ साध्येभ्यश्चर्मम्नम्॥
यम के निमित्त जुड़वा पुत्रों को उत्पन्न करने वाली स्त्री को, अथर्वों के निमित्त अवतोका (संतानहीन) को, संवत्सर के निमित्त पर्यायिणी को, परिवत्सर के निमित्त अविजाता (अप्रसूता) को, इदावत्सर के निमित्त अतीत्वरी (अत्यन्त कुलटा) को, इदवत्सर के निमित्त प्रदर रोगिणी को, वत्सर के निमित्त शिथिल शरीर वाली को, संवत्सर के निमित्त श्वेत केशोंवाली को, ऋभुओं के निमित्त चर्मकार को और साध्यों के निमित्त मोची को यूप में बाँधे।[यजुर्वेद 30.15]
पर्यायिणी :: पुत्र-कन्या उत्पन्न करने वाली होता है, जो कि क्रम से संतान उत्पन्न करती है, ऐसी महिला जो लगातार बच्चे पैदा करती है; a woman who give birth to son & girl.
अप्रसूता :: वंध्या स्त्री, बाँझ; barrenness.
कुलटा :: व्यभिचारिणी, दुराचारिणी, अनेक पुरुषों से संबंध रखनेवाली स्त्री; drab, prostitute, highly immoral woman, wretched woman.
The woman who give birth to twins of Yam, for Athrvs a issueless woman, for Sanwatsar a woman who produce sons & daughter, for Parivatsar a barrenness, for Idavatsar highly immoral woman, for Id Vatsar a woman suffering from leucorrhoea, for Vatsar a woman with loose body, for Sanvatsar a woman with white hair, for Ribhus a Chamar (one who works with leather) should be tied with the Yup in the Yagy.
सरोभ्यो धैवरमुपस्थावराभ्यो दाशं वैशन्ताभ्यो वैन्दं नड्वलाभ्यः शौष्कलं पाराय मार्गारमवाराय कैवर्तं तीर्थेभ्य आन्दं विषमेभ्यो मैनालꣳ स्वनेभ्यः पर्णकं गुहाभ्यः किरातꣳ सानुभ्यो जम्भकं पर्वतेभ्यः किम्पूरुषम्॥
जलाशय के निमित्त केवटों को, उपस्थावरों के निमित्त धीवरों को, वैशन्तों के निमित्त निषाद को, नड्वलों के निमित्त मत्स्यजीवी को, पार जाने के निमित्त पथ के ज्ञाता को, अवार के निमित्त कैवर्त को, तीर्थ के निमित्त बाँधने वाले को, विषम के निमित्त जाल द्वारा मछली पकड़ने वाले को, स्वनों के निमित्त भील को, गुफाओं के निमित्त किरात को, सानुओं के निमित्त जंगल में हिंसा करने वालों को तथा पहाड़ों के निमित्त किम्पुरुष को यूप में बाँधे।[यजुर्वेद 30.16]
केवट :: नाविक, मल्लाह; boat's man.
स्थावर :: निश्चल, अचल, गतिहीन, स्थायी, स्थावर; stationary, immobile.
किम्पुरुष :: प्राचीन मनुष्य जाति या मनुष्य-जैसे प्राणी शामिल हैं, जिन्हें कभी-कभी किन्नर के समान माना जाता है।
For water bodies Kewat-a boat's man, for partially movable Dheemar (a caste related to water carriers), for Vaeshant Nishad, for Nadval those who survive over the fish, for going across ( the road, river) a knowledged, for Avar a Kaevart, for odd those who catch fish in a net, tying for the sake of pilgrimage, for Swan Bheel, for caves Kirat, for Sanu those who are violent in the jungles, and Kimpurush for the mountains should be tied with the Yup during Yagy.(23.09.2025)
बीभत्सायै पौल्कसं वर्णाय हिरण्यकारं तुलायै वाणिजं पश्चादोषाय ग्लाविनं विश्वेभ्यो भूतेभ्यः सिध्मलं भूत्यै जागरणमभूत्यै स्वपनमात्र्यै जनवादिनं व्यूद्धया अपगल्भ सꣳशराय प्रच्छिदम्॥
वीभत्स (घृणित-धमकाने वाला) कार्यों के निमित्त पौल्कस को, रमणीय आकृति प्रदान करने के निमित्त सुवर्णकार को, तुला के निमित्त वणिक् को, पश्चात्ताप के निमित्त मेह रोग से ग्लानि वाले रोगी को, समस्त प्राणियों हेतु किलास रोग वाले को, भूति के निमित्त जागते रहने वाले को, अभूति के निमित्त सदैव निद्रालीन रहने वाले को, आर्ति के निमित्त स्पष्ट वक्ता को, व्यर्द्धि के निमित्त अप्रगल्भ को तथा बाण चलाने के निमित्त लक्ष्यवेध में प्रवीण को यूप में बाँधे।[यजुर्वेद 30.17]
वीभत्स :: घिनौना, घृणास्पद, भयानक, विकराल, भयावह, भयावना; disgusting, loathsome, ghastly, loathful.
पौल्कस :: भंगी का पुत्र, sweeper's son.
भूति :: धन, संपत्ति, वैभव (जैसे राज्य श्री), भस्म या राख, उत्पत्ति या जन्म, वृद्धि या बहुलता, और अणिमा आदि आठ सिद्धियाँ। लक्ष्मी, विष्णु और शिव का एक रूप; grandeur.
अभूति :: अस्तित्वहीनता, अविद्यमानता, अशक्तता, शक्तिहीनता, निर्धनता, गरीबी, विपत्ति, बर्बादी, विनाश; misery, wretchedness, non-existence, calamity, or want of power.
आर्ति :: कष्ट, पीड़ा, दुःख; pain torture, sorrow.
व्यृद्ध्यै :: संपत् के बिगाड़ने; one who spoil-destroy property-prosperity.
प्रगल्भता :: चतुरता, प्रतिभा; fecundity, profundity, intensity, vigour, loudness, potency.
अपगल्भम् :: प्रगल्भता रहित; without profundity.
For ghastly deeds tie the sweeper's son, for amusing nature a gold smith, for balance traders, for repentance a diabetic feeling guilty, for all living beings one suffering from Leprosy-Hansen's disease, for grandeur awakened, for misery sleepy-lazy, for torture a plane-clear speaker, for destroyer of property one with profundity, for shooting arrow an expert should be tied with the Yup in the Yagy.
अक्षराजाय कितवं कृतायादिनवदर्श त्रेतायै कल्पिनं द्वापरायाधिकल्पिनमास्कन्दाय सभास्थाणुं मृत्यवे गोव्यच्छमन्तकाय गोघातं क्षुधे यो गां विकृन्तन्तं भिक्षमाण उपतिष्ठति दुष्कृताय चरकाचार्यं पाप्मने सैलगम्॥
अक्षराज के निमित्त पाँसे खेलने में चतुर पुरुष को, कृत के निमित्त प्रारम्भ में ही दोष देने वाले को, त्रेता के निमित्त प्रबन्धक को, द्वापर के निमित्त अति कल्पना वाले को, आस्कन्द (अच्छे प्रकार सुखाने के निमित्त) स्थिर सभासद् को, मृत्यु के निमित्त गौ को प्रताड़ित करने वाले को, अन्तक-नाश के निमित्त गौ-हिंसक को, भूख के निमित्त गौ की हिंसा करके भिक्षा माँगने वाले को, दुष्कर्म को दूर करने के निमित्त चलते-फिरते रहने वाले आचार्यों एवं पापकर्म करने वालों के निमित्त दुष्टता पूर्वक दण्ड देने वालों को यूप में बाँधे।[यजुर्वेद 30.18]
अक्षराज :: सभी का राजा, विश्व का राजा। यह नाम महान नेतृत्व, अधिकार और शाश्वत शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है, जो एक राजा की भूमिका और महत्व को दर्शाता है; mighty emperor.
आस्कंद :: अच्छे प्रकार सुखाने, अश्वगंधा-असंगध; Withania somnifera plant.
For emperor an expert in gambling, one who point out defects in the begging of the endeavours, for Treta Yug manager, for Dwapar Yug highly-extremely imaginative person, for drying properly a counsellor, for death one who torture cows, for destroyer one who acts violently with the cows, for hunger one who is violent with the cows and begs, for removing sinner-wicked an Achary-teacher who walks long distances and for sins he wicked those who torture should be tied with the Yup in the Yagy.(24.09.2025)
प्रतिश्रुत्काया अर्तनं घोषाय भषमन्ताय बहुवादिनमनन्ताय मूकꣳ शब्दायाडम्बराघातं महसे वीणावादं क्रोशाय तूणवध्ममवरस्पराय शंखध्मं वनाय वनपमन्यतोऽरण्याय दावपम्॥
प्रतिश्रुत्काय के निमित्त अर्तन (दुःखी) को, घोष के निमित्त भष (अपनी प्रशंसा करने वाले) को, अन्त के निमित्त बहुवादी (अधिक बोलनेवाले) को, अनन्त के निमित्त मूक (गूँगे) को, शब्द के निमित्त कोलाहल करने वाले को, महस के निमित्त वीणा बजाने वाले को, क्रोश के निमित्त बाँस से बने वाद्य विशेष को बजाने वाले को, अवरस्पर के निमित्त शंख बजाने वाले को, वन के निमित्त वनपालक को तथा अरण्य के निमित्त दावपाल को यूप में बाँधे।[यजुर्वेद 30.19]
प्रतिश्रुति :: प्रतिज्ञा, प्रतिध्वनि, गूँज; vow, reverberating sound, echo.
घोष :: गूँज, आवाज़, reverberating loud sounds.
कोलाहल :: शोर, धूम, हुल्लड़, उपद्रव, ऊधम, गुलगपाड़ा, कुहराम; noise, clamour, uproar, cacophony.
महस :: अनुभव की गई वस्तु या किसी प्रक्रिया के बाद होने वाले अनुभव; reaction after feeling.
क्रोश :: कोसना; चिल्लाना, चीख, कोलाहल; रोना, रुदन; shouting, weeping, cursing, clamour.
अवरस्पर :: सब से पिछला; hindermost, foremost, inverted.
For vow a pained, for loudness one who appreciate himself, for end one who speak too much, for infinity a dumb, for word a person who make uproar, for reaction after feeling of a Veena players, for weeping, shouting etc. a person who play instruments made of bamboo, a person in the end one who plays conch, for forest forest rangers and for jungles-lonely places tie a Davpal with the Yup in the Yagy.
नर्माय पुँश्चलूꣳ हसाय कारिं यादसे शाबल्यां ग्रामण्यं गणकमभिक्रोशकं तान्महसे वीणावादं पाणिघ्नं तूणवध्मं तान्नृत्तायानन्दाय तलवम्॥
दुष्ट स्त्री के निमित्त को व्यभिचारी को, हँस के निमित्त चाकर को, यादस् के निमित्त शाबली को, ग्रामाधिप-ज्योतिषी-निन्दक को महस् के निमित्त, वीणा वादक (वीणा बजाने वाले)-पाणिघ्न (हाथ से ताल देनेवाले) तूणवध्म (बाँस से बने वाद्य विशेष को बजाने वाले) को नृत्त के निमित्त तथा आनन्द के निमित्त मुख से वाद्य बजाने वाले को यूप में बाँधे।[यजुर्वेद 30.20]
व्यभिचारी :: adulterer, womanizer, libertine.
चाकर :: नौकर, सेवक, नौकरानी, भृत्य, लोक-सेवक, वेटर, बायरा, परोसने वाला; servant, waiter, menial.
यादस् :: स्मृति, याद रखना, पानी, नदी और मनोरथ; memory, remembering, river, desire, aim.
For a wicked woman an adulterous, for swan a servant, for memory a Shabli, village head astrologer or detractor for reactions after feeling, for Veena player a person who clap side by side with music, player of musical instruments made of bamboo for dancing a person who plays music with mouth for pleasure should be tied with the Yup in the Yagy.
अग्नये पीवानं पृथिव्यै पीठसर्पिणं वायवे चाण्डालमन्तरिक्षाय वꣳ शनति दिवे खलतिꣳ सूर्याय हर्यक्षं नक्षत्रेभ्यः किर्मिरं चन्द्रमसे किलासमह्ने शुक्लं पिंगाक्षꣳ रात्र्यै कृष्णं पिङ्गाक्षम्॥
अग्नि के निमित्त अत्यन्त स्थूल पदार्थों को, पृथ्वी के निमित्त सरककर चलने वाले पंगु को, वायु के निमित्त चाण्डाल पुरुष को, अन्तरिक्ष के निमित्त बाँस के ऊपर कलाबाज दिखाने वाले को, स्वर्गलोक के निमित्त खल्वाट (गंजे) को, सूर्य के निमित्त हरित नेत्रवा को, नक्षत्रों के निमित्त चित कबरे रंग वाले को, चन्द्रमा के निमित्त चर्म रोग वाले को, दिवस के निमित्त श्वेत वर्ण के पीले नेत्र वालों को एवं रात्रि के निमित्त कृष्णवर्ण के पीले चक्षुवालो को यूप में बाँधे।[यजुर्वेद 30.21]
For fire too heavy-fat objects-materials, for earth creeping lame, Chandal for air-Vayu, for space-sky jugglers-acrobats playing over cord tied over bamboos, for heavens a bald person, for Sun greenish Netrva-blind, for constellations a spotted person-animal, for Moon a person suffering from skin disease, for day one with fair colour having yellowish eyes, for night one with black skin and yellowish eyes should be tied with the Yup in the Yagy.
अथैतानष्टौ विरूपाना लभतेऽतिदीर्घ चातिह्रस्वं चातिस्थूलं चातिकृशं चातिशुक्लं चातिकृष्णं चातिकुल्वं चातिलोमशं च। अशूद्रा अब्राह्मणास्ते प्राजापत्याः। मागधः पुंश्चली कितवः क्लीबोऽशूद्रा अब्राह्मणास्ते प्राजापत्याः॥
इस तरह ऊपर कहे गये एवं इन आठों :- अत्यन्त दीर्घ, अत्यन्त छोटा, अत्यन्त स्थूल, अत्यन्त कृश, अत्यन्त श्वेत, अत्यन्त कृष्ण, रोम रहित तथा अत्यन्त रोम वाले को एवं इन चार प्रकार के-मागध (चाटुकार) पुंश्चली (दुराचारिणी), कितव (जुआरी) तथा क्लीब (नपुंसक), इस प्रकार के अब्राह्मणों तथा अशूद्रों को प्रजापति के निमित्त यूप में बाँधे।[यजुर्वेद 30.22]
चाटुकारिता :: चापलूसी, ख़ुशामद, क़दमबोसी, मक्खन बाज़ी, sycophancy, toadyism, buttressing.
In this manner those eight described earlier-above :- too long, too short, too thick, extremely thin, extremely fair-white, one without bristles, one with too much hair and these four who praise unduly-sycophancy i.e., buttressing, a characterless woman, gambler, eunuch, tie the non Brahmans and Non Shudr with the Yup for Prajapati in the Yagy.(25.09.2025)
यजुर्वेद संहिता एकत्रिंशोऽध्यायः :: ऋषि :- नारायण, उत्तरनारायण; देवता :- पुरुष, ईशान, स्रष्टा, स्रष्टेश्वर, आदित्य, सूर्य, विश्वेदेवा; छन्द :- अनुष्टुप्, त्रिष्टुप्।
सहस्त्रशीर्षा पुरुषः सहस्त्राक्षः सहस्त्रपात्। स भूमिꣳ सर्वतः स्पृत्वात्यतिष्ठद्दशांगुलम्॥
परब्रह्म परमात्मा सहस्त्रों सिर, आँख और पैरों वाले हैं, वे सब ओर भूमि को व्याप्त करके भी जगत-प्रपंचों से दस अंगुल दूर ही स्थित रहते हैं।[यजुर्वेद 31.1]
Par Brahm Parmeshwar has thousands of heads, eyes and les. HE pervades the entire earth from all sides and still maintain a distance of ten fingers (about ten cm) from worldly affairs.
पुरुष एवेदꣳ सर्वं यद्भूतं यच्च भाव्यम्। उतामृतत्वस्येशानो यदन्नेनातिरोहति॥
परब्रह्म परमात्मा (पुरुष) ही इस सम्पूर्ण जगत् में व्याप्त हैं। जो भूतकाल में था और जो भविष्य में होगा-वह पुरुष ही है। वह अमृतत्व का भी स्वामी है और वही जीव एवं उसके शरीर का भी स्वामी है।[यजुर्वेद 31.2]
The Almighty-Purush has pervaded the whole universe. Who existed in the past and who will exist in future is the Purush-God. HE is the Lord of elixir-immortality and body of the organism-living being.
एतावानस्य महिमातो ज्यायाँश्च पूरुषः। पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि॥
इस पुरुष की महिमा इतनी है और वह पुरुष इससे भी अधिक महिमावान् है। यह समस्त भूत इसका चतुर्थांश मात्र है। इसका तीन चौथाई अमृतस्वरूप है और वह द्युलोक में है।[यजुर्वेद 31.3]
The Glory of the Purush-Almighty is greater than HIM SELF i.e., God. Everything-event in the past is just one fourth of HIS glory and the three fourth constitute the elixir-immortality and HE is in the heavens.
त्रिपादूर्ध्व उदैत्पुरुषः पादोऽस्येहाभवत्पुनः।
ततो विष्वङ् व्यक्रामत् साशनानशनेअभि॥
वह जो तीन चौथाई पुरुष था, वह संसार से स्पर्श रहित ब्रह्मरूप होने के कारण ऊर्ध्व को चला गया और फिर इसका चतुर्थांश मात्र इस ब्रह्माण्ड में प्रपंच रूप में परिणत हुआ, अपनी उस पूर्णावस्था से वह परमात्मा (पुरुष) अपने चतुर्थांश के द्वारा सर्वत्र परिव्याप्त हुआ।[यजुर्वेद 31.4]
The three fourth of the Purush remained free from touch of the universe and being a form of the Brahm it raised vertically. The rest one fourth appeared as the activities of the world. In its complete form that Purush pervades all places with HIS one fourth segment.
ततो विराडजायत विराजो अधि पूरुषः। स जातो अत्यरिच्यत पश्चाद्भूमिमथो पुरः॥
उस परमात्म पुरुष से विराट् उत्पन्न हुआ अर्थात् ब्रह्माण्ड रूपी शरीर उत्पन्न हुआ। उस विराट् शरीर से एक और पुरुष उत्पन्न हुआ, जो इस ब्रह्माण्ड रूपी शरीर का देहाभिमानी हुआ। विराट् पुरुष के अतिरिक्त देव, तिर्यक् मनुष्य आदि की सृष्टि हुई। उसके बाद भूमि की सृष्टि हुई। भूमि के अनन्तर जीवों के निवास स्थानों का सृजन हुआ।[यजुर्वेद 31.5]
Virat Purush appeared out of the Almighty i.e., the universe constituted of HIS body. Another Purush appeared out of that Virat Purush who constituted the body as universe. Other than the Virat Purush another Dev, Tiryak Human evolved. Thereafter, the earth evolved. After the evolution of earth places for the living beings were created.
तस्माद्यज्ञात्सर्वहुतः सम्भृतं पृषदाज्यम्। पशूस्ताँश्चक्रे वायव्यानारण्या ग्राम्याश्च ये॥
उस यज्ञ पुरुष से दधि, घृत आदि भोज्य पदार्थ सम्पादित हुए। तब उसने वायु देवता सम्बन्धी प्रधान पशुओं को बनाया, जो ग्राम्य (गाँवों में रहनेवाले) एवं आरण्य (जंगल में रहनेवाले)- दोनों हैं।[यजुर्वेद 31.6]
Out of the Yagy Purush curd, ghee and other eatables were produced. Thereafter, HE produced main animals related to Vayu Dev who had to live in the village and the forests i.e., both places.
तस्माद्यज्ञात्सर्वहुतऋचः सामानि जज्ञिरे। छन्दाꣳसि जज्ञिरे तस्माद्यजुस्तस्मादजायत॥
उस विराट् यज्ञपुरुष के द्वारा ऋग्वेद तथा सामवेद प्रकट हुए। उसी के द्वारा यजुर्वेद तथा अथर्ववेद का प्रकटीकरण हुआ अर्थात् वेद मन्त्रों की उत्पत्ति हुई।[यजुर्वेद 31.7]
Rig Ved and Sam Ved appeared out of that Virat Yagy Purush. Out of HIM the Yajur Ved and Athrv Ved appeared and the Ved Mantrs evolved.
तस्मादश्वा अजायन्त ये के चोभयादतः। गावो ह जज्ञिरे तस्मात्तस्माज्जाता अजावयः॥
उस विराट् यज्ञ पुरुष के द्वारा ही दोनों ओर दाँत वाले अश्व उत्पन्न हुए। उसी से गाएँ उत्पन्न हुईं तथा उसी से बकरियों एवं भेड़ आदि की उत्पत्ति भी हुई।[यजुर्वेद 31.8]
By virtue of that Virat Yagy Purush horses evolved having teeth on both sides. Cows, goats and sheep too evolved out of HIM.
तं यज्ञं बर्हिषि प्रोक्षन् पुरुषं जातमग्रतः। तेन देवा अयजन्त साध्या ऋषयश्च ये॥
उस प्रथम उत्पन्न पुरुष को यज्ञार्थ दर्भों से प्रोक्षित किया; उससे देवों, साध्यगणों और ऋषियों ने यजन किया।[यजुर्वेद 31.9]
Water was sprinkled over the Purus who evolved first with Kush grass and demigods, Sadhy Gan and Rishi Gan worshiped HIM.
यत्पुरुषं व्यदधुः कतिधा व्यकल्पयन्। मुखं किमस्यासीत्किं बाहू किमूरू पादा उच्येते॥
जिस पुरुष की ऋषियों ने कल्पना की, कितने प्रकार से उन्होंने उसको कल्पित किया? उसका मुख क्या था? इसकी भुजाएँ क्या थीं? इसकी जंघाएँ क्या थीं? उसके पैर किसे कहे जाते हैं?[यजुर्वेद 31.10]
In how many ways the Rishi Gan imagined the form of the Purush? What was the constitution of his mouth, arms-hands thighs and legs?
ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद् बाहू राजन्यः कृतः।
ऊरू तदस्य यद्वैश्यः पदभ्या शूद्रो अजायत॥
ब्राह्मण इस प्रजापति का मुख, क्षत्रिय बाहु, वैश्य जंघा तथा शूद्र चरण रूप हुए।[यजुर्वेद 31.11]
Brahman formed the mouth of Prajapati, Kshatriy constituted HIS arms-hands, Vaeshy were HIS thighs and Shudr constituted HIS feet.
चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यो अजायत। श्रोत्राद्वायुश्च प्राणश्च मुखादग्निरजायत॥
चन्द्रमा उस पुरुष के मन से उत्पन्न हुआ, नेत्रों से सूर्य उत्पन्न हुए। उसके कानों से वायु और प्राण उत्पन्न हुए तथा मुख से अग्नि उत्पन्न हुई।[यजुर्वेद 31.12]
Moon appeared out of HIS innerself and the Sun evolved out of HIS eyes. Vayu-air and Air Vital appeared out of HIS ears & the Agni-fire appeared out of His mouth.
नाभ्या आसीदन्तरिक्षꣳ शीर्णो द्यौः समवर्तत।
पद्धयां भूमिर्दिशः ओत्रात्तथा लोकाँ2॥ अकल्पयन्॥
उन विराट् पुरुष के नाभि से अन्तरिक्ष, शीश से द्युलोक, चरण से धरती, कर्ण से सम्पूर्ण दिशाओं की उत्पत्ति हुई। ऐसे ही उसी पुरुष से लोकों की कल्पना की गयी।[यजुर्वेद 31.13]
Out of the navel of Virat Purush space-sky evolved, head produced heavens, feet evolved the earth, ears produced all directions. All abodes were imagined over these lines to have evolved out of the Virat Purush.
यत्पुरुषेण हविषा देवा यज्ञमतन्वत। वसन्तोऽस्यासीदाज्यं ग्रीष्म इध्मः शरद्धविः॥
जब उस पुरुष रूपी हवि से देवों ने यज्ञ रूप सृष्टि को विस्तारित किया था, तब वसन्त ऋतु इस यज्ञ में घृत, ग्रीष्म ऋतु ईंधन और शरऋतु हवि थी।[यजुर्वेद 31.14]
When the demigods performed Yagy with the oblations-offerings in the form of that Purush evolution extended; Spring evolved out of the Ghee in the Yagy, Summer from the fuel and the winters evolved from the offerings.
सप्तास्यासन् परिधयस्त्रिः सप्त समिधः कृताः।
देवा यद्यज्ञं तन्वाना अबध्नन् पुरुषं पशुम्॥
जिस समय देवों ने मानस-यज्ञ किया, तो उन्होंने विराट् पुरुष को ही यज्ञ पशु के रूप में भावित किया। उस समय क्षीरसागर आदि सात समुद्र उस यज्ञ की परिधि हुए अर्थात् भारतवर्ष में वे यज्ञ हुए। गायत्री, अति जगती और कृती, ये सात-सात छन्दों वाले तीनों छन्द वर्ग उसमें समिधा हुए।[यजुर्वेद 31.15]
तीन प्रकार के छन्द वर्ग :- मात्रिक छंद, वार्णिक छंद और मुक्त छंद, जिनमें मात्रिक छंद मात्राओं की गणना पर आधारित होते हैं, वार्णिक छंद वर्णों की गणना पर और मुक्त छंद बिना किसी निश्चित नियम के स्वछंद होते हैं। इसके अलावा, मात्राओं या वर्णों की संख्या के आधार पर छंदों को सम (सभी पंक्तियों में समान संख्या), अर्धसम (कुछ पंक्तियों में समान संख्या) और विषम (पंक्ति दर पंक्ति बदलती संख्या) में भी वर्गीकृत किया जाता है।
When the demigods performed Mental Yagy, they considered the Virat Purush as the Yagy animal. Seven seas formed the outer boundaries of the Yagy in the Ksheer Sagar-ocean i.e., Bharat Varsh. Gayatri, Ati Jagti and Krati having seven Chhands and three types of Chhand Varg.
यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्।
ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः॥
मानस-यज्ञ के द्वारा देव गणों ने यज्ञ रूप प्रजापति का यजन किया तथा वे धर्म को धारण करने वालों में सर्वश्रेष्ठ हुए। उन महात्माओं ने उस यजन के द्वारा स्वर्ग प्राप्त किया था, जहाँ पूर्वकाल में साध्य और देवगण रहते थे।[यजुर्वेद 31.16]
Demigods worshiped the Prajapati constituting the Yagy through Mental Yagy and became best amongest those who adopted the Dharm. These great sages attained the heavens by virtue of worship-Yagy, where the Sadhy Gan and demigods lived prior to them.
अद्भ्यः सम्भृतः पृथिव्यै रसाच्च विश्वकर्मणः समवर्तताग्रे।
तस्य त्वष्टा विदधद्रूपमेति तन्मर्त्यस्य देवत्वमाजानमग्रे॥
वह आदि पुरुष पृथ्वी आदि की सृष्टि अपने प्रेम के कारण जल आदि से परिपूर्ण होकर पहले ही छा गया। उगता हुआ सूर्य जो प्रधान देवता है, उस पुरुष का ही रूप धारण करता है।[यजुर्वेद 31.17]
The Adi (since ever, for ever) Purush pervaded over the earth etc. constituting the entire evolution accomplished with water due to HIS love. Rising Sun, the chief deity assume the form of that Purush.
वेदाहमेतं पुरुषं महान्तमादित्यवर्णं तमसः परस्तात्।
तमेव विदित्वाऽतिमृत्युमेति नान्यः पंथा विद्यतेऽयनाय॥
मैं अज्ञान रूपी अन्धकार से परे आदित्य संज्ञा वाले उस सर्वश्रेष्ठ पुरुष को जानता हूँ। केवल उसे जानकर ही मृत्यु का अतिक्रमण हो सकता है, उसके अतिरिक्त दूसरा कोई मार्ग नहीं है।[यजुर्वेद 31.18]
I know the best Purush termed Adity away from the darkness as ignorance. Only after knowing HIM the death can be conquered. There is no way other than this.
प्रजापतिश्चरति गर्भे अन्तरजायमानो बहुधा वि जायते।
तस्य योनिं परि पश्यन्ति धीरास्तस्मिन्ह तस्थुर्भुवनानि विश्वा॥
वह परमात्मा हृदय में विराजमान है, अजन्मा होकर भी वह अनेक प्रकार से अवतार लेता है धैर्यवान् पुरुष ही उसके स्वरूप का दर्शन कर पाते हैं। सम्पूर्ण प्राणि जगत् उसी में अन्त रहित है।[यजुर्वेद 31.19]
Almighty is present in the heart. Though free from birth yet HE assumes many Avtars-forms, shapes and sizes, Only those with patience can see HIM. Entire group of living beings is embedded in HIM.
यो देवेभ्य आतपति यो देवानां पुरोहितः। पूर्वी यो देवेभ्यो जातो नमो रुचाय ब्राह्मये॥
जो सूर्य रूप से देवताओं के लिये प्रकाशमान होता है और जो देवताओं का पुरोहित, जो देवताओं से पहले उत्पन्न है, उस सूर्यरूप दैदीप्यमान परब्रह्म परमात्मा को नमस्कार है।[यजुर्वेद 31.20]
The Par Brahm Parmeshwar-Almighty, HE who illuminate for the demigods as Sun, is the Purohit-priest, HE who appear prior to the demigods, is saluted established as illuminated Sun.
रुचं ब्राह्यं जनयन्तो देवा अग्रे तदब्रुवन्। यस्त्वैवं ब्राह्मणो विद्यात्तस्य देवा असन्वशे॥
उस शोभायमान आदि पुरुष परमात्मा की स्तुति करते हुए देवता कहते हैं; जो ब्राह्मण तुम्हारे स्वरूप को जानता है, देवता उसके वश में रहते हैं।[यजुर्वेद 31.21]
The demigods say while worshipping that rattling-beautiful Almighty that the Brahman who knows true form of the Almighty, they remain under his control.
श्रीश्च ते लक्ष्मीश्च पत्न्यावहोरात्रे पार्श्वे नक्षत्राणि रूपमश्विनौ व्यात्तम्।
इष्णन्निषाणामुं म इषाण सर्वलोकं म इषाण॥
हे परब्रह्म परमात्मा! श्री और लक्ष्मी तुम्हारी पत्नियाँ है दिन तथा रात तुम्हारे दोनों पार्श्वभाग है, अश्विनीकुमार तुम्हारा रूप है, द्यु लोक और पृथ्वी लोक तुम्हारा मुख है।[यजुर्वेद 31.22]
Hey Par Brahm Parmeshwar! Shree and Lakshmi are your two wives, day & night constitute your two sides parts, Ashwani Kumars are your form and heavens and earth are your mouth.(26.09.2025)
यजुर्वेद संहिता द्वात्रिंत्रिंशोऽध्यायः :: ऋषि :- ऋषि :- स्वयंभु ब्रह्म, मेधाकाम, श्रीकाम; देवता :- परमात्मा, हिरण्यगर्भ परमात्मा, आत्मा, परमेश्वर, विद्वान्, इन्द्र, परमेश्वर; छन्द :- अनुष्टुप्, पंक्ति, त्रिष्टुप्, जगती, गायत्री, बृहती।
तदेवाग्निस्तदादित्यस्तद्वायुस्तदु चन्द्रमाः। तदेव शुक्रं तद् ब्रह्म ता आपः स प्रजापतिः॥
वह ब्रह्म ही अग्नि है, वही सूर्य है, वही वायु है, वही चन्द्रमा है, वही शुक्र है, वही जल है और वही प्रजापति है।[यजुर्वेद 32.1]
The Brahm-Almighty is Agni-fire, Sury-Sun, Vayu-air, Chand-Moon, Shukr-Venus, Jal-Water and Prajapati.
सर्वे निमेषा जज्ञिरे विद्युतः पुरुषादधि। नैनमूर्ध्वं न तिर्यञ्च न मध्ये परिजग्रभत्॥
उस विशेष रूप से प्रकाशमान परब्रह्म परमात्मा से ही निमेष, त्रुटि, काष्ठा आदि कालविशेष उत्पन्न हुए। वही सबका जनक है। उसे ऊर्ध्व, तिर्यक् या मध्य में ग्रहण नहीं किया जा सकता। वह नेत्रों का विषय नहीं है।[यजुर्वेद 32.2]
Out of the Ultimately illuminated Almighty the units of Nimesh, Truti, Kashtha have evolved. HE is the father of all. HE can not be perceived vertically, inclined-twisted or middle. HE is not the subject of eyes.
न तस्य प्रतिमा अस्ति यस्य नाम महद्यशः।
हिरण्यगर्भ इत्येष मा मा हिꣳसीदित्येषा यस्मान्न जात इत्येषः॥
जिस परमात्मा का नाम 'महायश' है, उसका कोई प्रतिमान नहीं है। हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे (यजु.25.10, यः प्राणतो (यजु.25.11), यस्ये मे (यजु.35.12), य आत्मदा (यजु.25.13), मा मा हि सी ज्जनिता (यजु.12.102) यस्मान्न जातः (यजु.8.36), इन्द्रश्च सम्राड् (यजु.8.37); इन मन्त्रों में उसी परब्रह्म परमात्मा का प्रतिपादन किया गया है।[यजुर्वेद 32.3]
The Almighty has been named Maha Yash-Ultimate glory. Different Mantrs of Yajur Ved describe the glory of Par Brahm Parmeshwar.
एषो ह देवः प्रदिशोऽनु सर्वाः पूर्वी ह जातः स उ गर्भे अन्तः।
स एव जातः स जनिष्यमाणः प्रत्यङ् जनास्तिष्ठति सर्वतो मुखः॥
यह परमात्मा ही सम्पूर्ण दिशाओं को व्याप्त करके स्थित है। वही सर्वप्रथम उत्पन्न हुआ है। गर्भ में, जन्म लेने वाले में और जन्मे हुए में सबमें वही व्याप्त है। हे मनुष्यो! वह चारों ओर मुखवाला, चारो ओर आँख, सिर, ग्रीवा, हाथ और पैर से युक्त अर्थात् अचिन्त्य शक्ति सम्पन्न है।[यजुर्वेद 32.4]
The Almighty is pervading all directions. HE evolved-appeared first. HE pervade the womb-foetus, those who are going to born and those who have taken birth. Hey humans! HE possess mouths in four directions, has eyes in all directions, has head, hands and legs i.e., HE possess strength, might, power beyond imagination.
यस्माज्जातं न पुरा किंं च नैव य आबभूव भुवनानि विश्वा।
प्रजापतिः प्रजया सꣳरराणस्त्रीणि ज्योतीꣳषि सचते स षोडशी॥
उस परब्रह्म परमात्मा से पूर्व कुछ भी उत्पन्न नहीं हुआ है, वही प्रजापति संज्ञा से समस्त भुवनों और प्राणियों को उत्पन्न करता है और रमण करता है। वह षोडश अवयव वाला प्रजापति सूर्य, चन्द्रमा और अग्निरूपी तीन ज्योतियों की रचना करता है और उनमें व्याप्त होता है।[यजुर्वेद 32.5]
Nothing evolved prior to that Almighty. HE creates all abodes and living beings, by the name & title of Prajapati. HE having sixteen components generate the three forms of fire viz Sury, Chandr and Agni and pervade them.
येन द्यौरुग्रा पृथिवी च दृढा येन स्वः स्तभितं येन नाकः।
योऽअंतरिक्षे रजसो विमानः कस्मै देवाय हविषा विधेम॥
जिस परब्रह्म परमात्मा के द्वारा द्युलोक को वृष्टिदायी बनाया गया, जिसके द्वारा यह पृथ्वी स्थिर की गयी, जिसने आदित्य मण्डल को स्तम्भित किया, जिसने स्वर्गलोक को स्तम्भित किया, जिसने आकाश में जल की वृष्टिरूप बादलों का निर्माण किया, उसे छोड़कर किस देवता को हवि प्रदान करें अर्थात् उसी को हवि प्रदान करना चाहिये।[यजुर्वेद 32.6]
The Almighty who made heavens to cause rains-showers, who made the earth move-revolve in fixed orbit, who stabilized the Adity Mandal-solar system, who stabilised the heavens, who created clouds in the sky for rains, the offerings-oblations should be made to HIM only, none other than HIM.
यं क्रन्दसी अवसा तस्तभाने अभ्यैक्षेतां मनसा रेजमाने।
यत्राधि सूर उदितो विभाति कस्मै देवाय हविषा विधेम। आपो ह यबृहतीर्यश्चिदापः॥
यह क्रन्दनशीला द्यावा-पृथ्वी वृष्टि-अन्नादि से जगत् की रक्षा करती है, फिर भी यह अपनी रक्षा के लिये जिस परमात्मा पुरुष का मुख जोहती है। द्यावा-पृथ्वी के मध्य उदित हुआ सूर्य जिसके प्रभाव से अधिक शोभायमान होता है, उसे छोड़कर किस देवता को हवि प्रदान करें अर्थात् उसी परब्रह्म परमात्मा को हवि प्रदान करना चाहिये। 'आपो ह यद्वृहतीः' (यजु.27.25) और 'यश्चिदापः' (यजु.27.26); इन दो मन्त्रों से उसी परमात्मा की महिमा का वर्णन हुआ है।[यजुर्वेद 32.7]
क्रंदन :: विलाप करना, रोना, आह्वान, ललकारना; crying.
The heaven and earth protect the universe with rains and food grains, still they look for their safety to the Almighty i.e., cry and call HIM. Sun which rises between the heaven and earth and is glorified due to whom, who else should be offered oblation other than HIM. HIS glory has been described in the Mantrs of Yajur Ved.
वैनस्तत्पश्यन्निहितं गुहा सद्यत्र विश्वं भवत्येकनीडम्।
तस्मिन्निदꣳ सं च वि चैति सर्वꣳ स ओतः प्रोतश्च विभूः प्रजासु॥
वेदान्त के रहस्यों को जानने वाले विद्वान् दुर्जेय ब्रह्म को बुद्धि गुहा में स्थित देखते हैं। जिस ब्रह्म में यह सम्पूर्ण विश्व आश्रय ग्रहण करता है, संहारकाल में उसी ब्रह्म में समस्त प्राणी लय हो जाते हैं और सृष्टि काल में उसी से उत्पन्न होते हैं। वह परमात्मा प्रजाओं के शरीर में उसी तरह ओत-प्रोत है, जैसे वस्त्र में तन्तु।[यजुर्वेद 32.8]
दुर्जेय :: विकट, भयंकर, घोर; formidable.
The enlightened who knows the secrets of Vedant (Ultimate gist of Veds) finds the formidable Brahm in his intelligence. The Brahm in whom the whole universe seek asylum and all living being dissolve-assimilate in HIM at the time of annihilation, reappear-again evolve at the time of evolution. That Almighty is present in the living beings just like the thread-fibre in the cloth.
प्र तद्वोचेदमृतं नु विद्वान् गंधर्वो धाम बिभृतं गुहा सत्।
त्रीणि पदानि निहिता गुहास्य यस्तानि वेद स पितुः पितासत्॥
उस अमृत स्वरूप शाश्वत ब्रह्म को वेदविद् विद्वान् तत्त्वतः जानने का प्रयास करते हैं। वह ब्रह्म तेजोधाम और बुद्धि में समाया हुआ है। उस ब्रह्म के तीन भाग गुहा में स्थित हैं, उन तीन भागों को जो जानता है, वह अपने अज्ञानी पिता का भी पिता होगा।[यजुर्वेद 32.9]
The enlightened well versed with the Veds try to decode that Brahm who is like elixir-nectar. That Brahm is absorbed in the source of the Tej and the intelligence. That Brahm is present in the three cavities. One who knows-identifies these will be the father of his ignorant father.
स नो बन्धुर्जनिता स विधाता धामानि वेद भुवनानि विश्वा।
यत्र देवा अमृतमानशानास्तृतीये धामन्नध्यैरयन्त॥
वह हमारा बन्धु है। वह हमारा जनक है। वही विधाता है, वह समस्त लोकों के प्राणियों और स्थानों को जानता है, जिस अमृतमय परब्रह्म में अग्नि आदि देवता तीसरे धामरूप स्वर्ग में स्वेच्छया विहार करते हैं।[यजुर्वेद 32.10]
HE is our brother, father, Vidhata, know all the living beings and places of all abodes. Demigods like Agni reside in that elixir-nectar like Par Brahm heavens as the third abode willingly-out of their own desire.(27.09.2025)
परीत्य भूतानि परीत्य लोकान् परीत्य सर्वाः प्रदिशो दिशश्च।
उपस्थाय प्रथमजामृतस्यात्मनात्मानमभि सं विवेश॥
समस्त प्राणियों को ब्रह्मरूप जानकर, समस्त लोकों को ब्रह्मरूप जानकर, समस्त दिशाओं-विदिशाओं को ब्रह्मरूप जानकर सर्वप्रथम उत्पन्न वेदत्रयी द्वारा यज्ञादि कर्म करने चाहिये।[यजुर्वेद 32.11]
Having understood all organism, abodes, directions, sub directions as the form of Brahm, Yagy and related Karm-efforts, endeavours should be carried according to Ved Trayi (Rig, Yaju, Sam).
परि द्यावापृथिवी सद्य इत्वा परि लोकान् परि दिशः परि स्वः।
ऋतस्य तन्तुं विततं विवृत्य तदपश्यत्तदभवत्तदासीत्॥
वह परब्रह्म परमात्मा द्युलोक और पृथ्वी का अतिक्रमण कर, समस्त लोकों का अतिक्रमण कर और स्वर्ग का भी अतिक्रमणकर स्थित है। यज्ञ का विस्तार और उसका सम्पादन करके उसने उसे देखा और वही हो गया।[यजुर्वेद 32.12]
The Par Brahm Parmeshwar, the Almighty exists beyond the limits of heavens, earth, all abodes. The Yagy was extended and accomplished.
सदसस्पतिमद्भुतं प्रियमिन्द्रस्य काम्यम्। सनिं मेधामयासिषꣳ स्वाहा॥
यज्ञों के पालक, अचिन्त्य शक्ति-सम्पन्न, इन्द्र के मित्र, अन्न-धन की कामना को पूर्ण करने वाले, मेधा (उचित-अनुचित का निर्णय करने वाली बुद्धि) प्रदान करने वाले अग्नि देव को मैं आहुति समर्पित करता हूँ।[यजुर्वेद 32.13]
I make sacrifices to the friend of Indr Dev, those who support Yagy, possessor of power beyond limits, intelligence deciding right-wrong, and Agni Dev.
यां मेधां देवगणाः पितरश्चोपासते। तया मामद्य मेधयाग्ने मेधाविनं कुरु स्वाहा॥
हे अग्नि देव! जिस मेधा की देवगण तथा पितरगण पूजा करते हैं, उसी पवित्र मेधा से मुझे मेधावी बनाओ, यह आपके लिये आहुति है।[यजुर्वेद 32.14]
Hey Agni Dev! Make me intelligent through the pious intelligence, which is worshiped by the demigods, Manes-Pitr Gan. This sacrifice is for you.
मेधां मे वरुणो ददातु मेधामग्निः प्रजापतिः।
मेधामिन्द्रश्च वायुश्च मेधां धाता ददातु मे स्वाहा॥
मुझे वरुण देवता मेधा प्रदान करें। अग्नि मुझे मेधा दें और प्रजापति भी मुझे मेधा दें। इन्द्र और वायु मुझे मेधा दें। धाता भी मुझे मेधा दें। यह आप सबके लिये आहुति है।[यजुर्वेद 32.15]
इदं मे ब्रह्म च क्षत्रं चोभे श्रियमश्रुताम्। मयि देवा दधतु श्रियमुत्तमां तस्यै ते स्वाहा॥
ब्राह्मण और क्षत्रिय, ये दोनों वर्ण मेरी इस मेधारूपी श्री का आस्वादन करें। देवगण इस सर्वोत्तमा श्री-मेधा को मुझे प्रदान करें। हे देवस्वरूपिणी मेधे! तुम्हारे लिये यह आहुति है।[यजुर्वेद 32.16]
Let the Brahman & Kshatriy Varn, enjoy my glory-Shree as intelligence. Let demigods grant me best Shree-Medha, intelligence. Hey Medha in the form of demigods-goddesses! Thus sacrifice is for you.(28.09.2025)
यजुर्वेद संहिता त्रयस्त्रिंशोऽध्यायः :: ऋषि :- वत्सप्री, विश्वरूप, गोतम, कुत्स, विश्वामित्र, भरद्वाज, मेधातिथि, पराशर, विश्ववारा, वसिष्ठ, प्रस्कण्व, लुशोधानक, पुरुमीढ और अजमीढ, सुनीति, सुचीक, त्रिशोक, मधुच्छन्दा, अगस्त्य, विभ्राट्, गौरी, विति, श्रुतकक्ष और सुकक्ष, जमदग्नि, नृमेध, हिरण्य-स्तूप, कुत्सीदि, प्रतिक्षत्र, वत्सार, प्रगाथ, कूर्म, लुश, सुहोत्र, वामदेव, ऋजिश्च, कुशिक, देवल, दक्ष प्रजापति, बृहद्दिव, तापस, कण्व, त्रित, मनु, मेध; देवता :- अग्नय, अग्नि, विद्वांस, विश्वेदेवा, सविता, इन्द्र, इन्द्र-वायु, वेन, सूर्य, विद्वान्, वायु, वरुण, महेन्द्र, मित्रा-वरुण, अश्विनी कुमार, वैश्वानर, इन्द्राग्नि, सोम, आदित्य, अध्वर्यु, इन्द्र और मरुत्; छन्द :- पंक्ति, गायत्री, त्रिष्टुप्, अनुष्टुप्, बृहती, जगती।
अस्याजरासो दमामरित्राऽअर्चद्धूमासो अग्नयः पावकाः।
श्वितीचयः श्वात्रासो भुरण्यवो वनर्षदो वायवो न सोमाः॥
इस याजक की अग्नियाँ जरा रहित तथा यज्ञ गृहों की सुरक्षा करने वाली हैं, ये पूजनीय, देदीप्यमान, सुसंस्कृत, शुभ्र ऐश्वर्य सम्पन्न, फल प्रदायिनी, प्रजाओं को पोषण देने वाली, जंगल की लकड़ियों में संव्याप्त, वायु के सदृश प्राण प्रदान करने वाली तथा याजक की इच्छाओं की पूर्ति करने वाली हैं।[यजुर्वेद 33.1]
The Agni-fire produced by the Yajak are free from aging and protect the Yagy Grah, worshipable, cultured, bright, has grandeur, grant reward, nourish the subjects, pervade the jungle wood, grant-establish Air Vital like the air and fulfil the desires of the Yajak.
हरयो धूमकेतवो वातजूता उप द्यवि। यतन्ते वृथगग्नयः॥
हरित वर्ण वाली, धूम्ररूप पताका वाली, वायु द्वारा संवर्धित होने वाली ये अग्नियाँ द्युलोक में जाने के लिए लगातार प्रयास करती रहती हैं।[यजुर्वेद 33.2]
The greenish fires forming smoke, nourished by air, make efforts to reach heavens continuously.
यजा नो मित्रावरुणा यज देवाँ2॥ ऋतं बृहत्। अग्ने यक्षि स्वं दमम्॥
हे अग्नि देव! आप हमारे लिये मित्रा-वरुण देवताओं एवं अन्य देवगणों के निमित्त यज्ञ करें। साथ ही अपने यज्ञ गृह को यज्ञ-सम्बन्धी शुभ कर्मों से युक्त करो।[यजुर्वेद 33.3]
Hey Agni Dev! Perform Yagy for Mitra-Varun and other demigods. Let the Yagy Grah be sanctified-established with Yagy related virtuous deeds.
युक्ष्वा हि देवहूतमाँ2 अश्वाँ2 अग्ने रथीरिव। नि होता पूर्व्यः सदः॥
हे अग्नि देव! आप देवताओं का आवाहन करने में अत्यन्त कुशल हैं। आप अपने अश्वों को श्रेष्ठ सारथी की भाँति शीघ्रता से रथ में योजित करें। होता बनकर आप हमारे इस यज्ञानुष्ठान-यज्ञ स्थल में पूर्व दिशा में विराजित हों।[यजुर्वेद 33.4]
Hey Agni Dev! You are well versed with invocation of the demigods-deities. Deploy your horses like a charioteer. Become a Hota and establish yourself in the east of our Yagy Sthal.
द्वे विरूपे चरतः स्वर्थे अन्यान्या वत्समुपधापयेते।
हरिरन्यस्यां भवति स्वधावाञ्छुक्रो अन्यस्यां ददृशे सुवर्चाः॥
परस्पर पृथक्-पृथक् रूप वाली दो कन्याओं के सदृश रात तथा दिन अपने श्रेष्ठ कर्मों में संलग्न विभिन्न प्रकार से विचरते हैं। उनमें से एक कृष्णवर्ण रात्रि से स्वधावान् पुत्र चन्द्र पैदा हुए तथा दूसरे दिन के द्वारा श्रेष्ठ तेजस्विता से युक्त पुत्र सूर्य उत्पन्न हुए ऐसा माना जाता है।[यजुर्वेद 33.5]
स्वधावान् :: प्रशंसनीय गुणों वाला, शक्ति से युक्त; having appreciable qualities, possess might, power.
Day & night devoted to different excellent functions roam like two sisters. Night having black colour gave birth to excellent son Chandr-Moon having might & power with appreciable qualities. The day produced Sun with excellent shine.
अयमिह प्रथमो धायि धातृभिर्होता यजिष्ठो अध्वरेष्वीड्यः।
यमप्नवानो भृगवो विरुरुचुर्वनेषु चित्रं विभ्वं विशे विशे॥
यह आहवनीय अग्नि, देवों का आवाहन करने वाले, श्रेष्ठ यज्ञ करने वाले तथा सोम यागादि में ऋत्विजों द्वारा स्तुत्य, अग्न्याधान करने वाले पुरोहितों द्वारा यज्ञ में स्थापित की गयी है। सर्वव्यापी तथा विलक्षण अग्नि को यजमान के उपकार के लिए अप्नवान् आदि भृगुवंशीय मुनियों ने जंगलों में प्रज्वलित किया है।[यजुर्वेद 33.6]
Invocable Agni, invoke the demigods, worshiped by the Ritviz and excellent Yagy and Yagy like Som Yagy, accomplishers is established by the priests in the Yagy. All pervading, amazing fire-Agni is established-lit by the Bhragu clan in the forests.
त्रीणि शता त्री सहस्त्राण्यग्निं त्रिशच्च देवा नव चाऽसपर्यन्।
औक्षन् घृतैरस्तृणन् बर्हिरस्मा आदिद्धोतारं न्यसादयन्त॥
तीन हजार, तीन सौ, तीस तथा नौ अर्थात् तैंतीस सौ उनतालीस वसु आदि देवगण अग्निदेव की उपासना करते हैं। वे आज्याहुति के द्वारा अग्नि देव को प्रदीप्त करते हैं, अग्नि देव हेतु कुशासन को बिछाते हैं। तत्पश्चात् उन अग्नि देव को यज्ञ कर्ता के रूप से वेदी में प्रतिष्ठित करते हैं।[यजुर्वेद 33.7]
3,339 Vasu & demigods worship Agni Dev. They lit it with offerings of Ghee and lay Kushasan for Agni Dev. Thereafter, Agni Dev is established in the Vedi as the accomplisher of the Yagy.
मूर्द्धानं दिवो अरतिं पृथिव्या वैश्वानरमृत आ जातमग्निम्।
कविꣳ सम्राजमतिथिं जनानामासन्ना पात्रं जनयन्त देवाः॥
आकाश के मूर्द्धा सदृश, पृथ्वी को व्याप्त करने वाले, यज्ञ में उत्पन्न वैश्वानर अग्नि को जो त्रिकालज्ञ, मूर्धन्य, तेजस्वी, उत्तम गुणों से प्रकाशमान हैं, उन सम्माननीय अतिथि रूप यज्ञाग्नि को याजक अरणियों द्वारा प्रकट करते हैं।[यजुर्वेद 33.8]
मूर्धन्य :: बहुत बड़ा या अच्छा हो; too good, great.
Vaeshwanar Agni who is like the great-vast sky-space, pervade the earth invoke-appear in the Yagy, aware of the three dimensions of time (present, past, future), bright, has excellent qualities is produced with wood by the Yajak as an honourable guest.
अग्निर्वृत्राणि जङ्घनद्रविणस्युर्विपन्यया। समिद्धः शुक्र आहुतः॥
यज्ञ वेदी में आवाहनीय, शुभ्र तेज सम्पन्न, प्रज्वलित अग्नि देव, हविष्यान्न रूप धन की अभिलाषा करते हुए विभिन्न प्रकार की आहुतियों द्वारा पापों को नष्ट करते हैं।[यजुर्वेद 33.9]
Invoked in the Yagy Vedi, having bright light, ignited fire-Agni, desirous of offerings of food grains, vanish sins with several kinds of sacrifices.
विश्वेभिः सोम्यं मध्वग्न इन्द्रेण वायुना। पिबा मित्रस्य धामभिः॥
हे अग्नि देव! मित्र देव के तेज से परिपूर्ण इन्द्र देव, वायु देव एवं सम्पूर्ण देव गणों सहित आप सोम रूप मधु का सेवन करें।[यजुर्वेद 33.10]
Hey Agni Dev! Accomplished with the Tej of Mitr Dev, Indr Dev, Vayu Dev and all demigods & you should drink honey in the form of Som.
आ यदिषे नृपतिं तेज आनट् शुचि रेतो निषिक्तं द्यौरभीके।
अग्निः शर्द्धमनवद्यं युवानꣳ स्वाध्यं जनयत्सूदयच्च॥
जब अग्नि में आहुति दी जाती है तो वह जगत् के बीज रूप जल की सृष्टि करता है, मेघरूप में होकर वह वर्षा करता है। वही जल वर्षा के रूप में आकाश से धरती पर गिरकर धरती को सिक्त करता है।[यजुर्वेद 33.11]
सिक्त :: moisten-soak.
When sacrifices are made in fire, it leads to formation of clouds & rain showers. This water falls over the earth and moisten-soak it.
अग्ने शर्द्ध महते सौभगाय तव द्युम्नान्युत्तमानि सन्तु।
सं जास्पत्यꣳ सुयममा कृणुष्व शत्रूयतामभि तिष्ठा महाꣳसि॥
हे अग्नि देव! महान् सौभाग्य के लिए आप बलों का प्रादुर्भाव करें अर्थात् जल की वृष्टि करें। आप उत्तम कीर्तिमान् होकर दीप्तिमान् हों। श्रेष्ठ याजक और उसकी पत्नी को परस्पर प्रीतियुक्त करें तथा जो हमसे शत्रुता की भावना रखे, आप उनका पराभव करें।[यजुर्वेद 33.12]
Hey Agni Dev! For great auspicious luck activate your powers for rain showers. You should be glorious and illuminated. Excellent Yajak should have mutual love for his wife and those who have enmity with us should be defeated.
त्वाꣳ हि मन्द्रतममर्कशोकैर्ववृमहे महि नः श्रोष्यग्ने।
इन्द्रं न त्वा शवसा देवता वायुं पृणन्ति राधसा नृतमाः॥
हे अग्नि देव! आप अति गम्भीर हैं, ऐसे आपको सूर्य देव के सदृश तेज युक्त मन्त्रों से हम वरण करते हैं। आप हमारे महान् शक्ति वाले स्तोत्र को ध्यान पूर्वक सुनें। आप मानवों में श्रेष्ठ, दिव्य गुणयुक्त हैं। आप देवेन्द्र की भाँति बल और वायुदेव के समान धन प्रदान करने वाले हैं। आपकी प्रसन्नता के लिये हम हविरूप अन्न से आहुति देते हैं।[यजुर्वेद 33.13]
Hey Agni Dev! You are extremely serious. We accept-adopt you with the Mantrs which are like Sury Dev. Listen carefully our Strotr possessing great powers. You are excellent amongest the humans possessing divine radiance-aura. You are mighty like Indr Dev and grant wealth like Vayu Dev. We make sacrifices for your pleasure with the food grains as offerings.
त्वे अग्ने स्वाहुत प्रियासः सन्तु सूरयः। यन्तारो ये मघवानो जनानामूर्वान्दयन्त गोनाम्॥
हे श्रेष्ठ प्रकार से आहवनीय अग्नि देव! मानवों में से जो इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करने वाले विद्वान् पुरुष आपके लिए गौ के दूध, दही, घी आदि से परिपूर्ण हविष्यान्न समर्पित करते हैं, वे तेजवान् पुरुष आपके प्रीतियोग्य होते हैं।[यजुर्वेद 33.14]
hey Agni Dev invoked in best possible manner! Amongest the humans who have over powered the senses, grant offerings saturated with cow's milk, curd, Ghee; such energetic people deserve your love & affection.
श्रुधि श्रुत्कर्ण वह्निभिर्देवैरग्ने सयावभिः।
आ सीदन्तु बर्हिषि मित्रो अर्यमा प्रातर्यावाणो अध्वरम्॥
हे अग्नि देव! आप याजकों द्वारा की गयी स्तुतियों को सुनने वाले तथा हवि वाहक हैं। आप देवताओं के साथ हमारे यज्ञकर्म में स्तोत्रों को सुनें तथा मित्रदेव, अर्यमा देव एवं प्रातः सवन में हवि को ग्रहण करने वाले देवताओं के साथ कुशासन पर विराजमान हों।[यजुर्वेद 33.15]
Hey Agni Dev! You respond to the prayers of the Yajak and carry the offerings. Respond to our Strotr in the Yagy Karm and occupy the Kushasan along with Mitr Dev, Aryma Dev and demigods who accept the offerings in the first segment of the day.
विश्वेषामदितिर्यज्ञियानां विश्वेषामतिथिर्मानुषाणाम्।
अग्निर्देवानामव आवृणानः सुमृडीको भवतु जातवेदाः॥
समस्त यज्ञार्ह देवताओं के बीच अखण्ड रूप में तथा सभी मानवों के बीच में अतिथि के समान पूज्य जातवेदा अग्नि देव देवताओं को हविष्य समर्पित करते हुए हमें श्रेष्ठ सुख प्रदान करने वाले बनें।[यजुर्वेद 33.16]
Hey Jat Veda Agni Dev worshiped like guest amongest the humans for the purpose of Yagy & amongest the demigods making offerings. Grant us best comforts-pleasure.
महो अग्नेः समिधानस्य शर्मण्यनागा मित्रे वरुणे स्वस्तये।
श्रेष्ठे स्याम सवितुः सवीमनि तद्देवानामवो अद्या वृणीमहे॥
सर्वप्रेरक सविता देव की अनुज्ञा में हम देवताओं के संरक्षण का वरण करते हैं। हम पूजनीय तथा प्रज्वलित अग्नि देव के अवलम्बन को प्राप्त करते हुए मित्रा-वरुण देवों के बीच में निरपराध होकर सदैव कल्याण को प्राप्त करें।[यजुर्वेद 33.17]
We seek asylum under all inspiring Savita Dev, due to the directives of demigods. We should be sinless amongest Mitra-Varun Dev, depending upon ignited worshipable Agni Dev always attain welfare-well being.(29.09.2025)
आपश्चित्पिप्युस्तर्यो न गावो नक्षन्नृतं जरितारस्तइन्द्र।
याहि वायुर्न नियुतो नो अच्छा त्वꣳहि धीभिर्दयसे वि वाजान्॥
हे देवराज इन्द्र! ऋत्विज् गण आपके यज्ञ को व्याप्त करते हैं तथा सोम में वैसे ही वृद्धि करते हैं, जैसे हरी घास कमजोर गायों की पुष्टि करती है। अपने वायु के समान वेगवान् अश्वों को योजित करके आप हमारे निकट पधारें। आप ही स्तुतियों से प्रसन्न होकर हमें अन्नादि प्रदान करते हैं।[यजुर्वेद 33.18]
Hey Devraj Indr! Ritviz Gan pervade your Yagy and increase Som in the same manner as the cows are nourished by eating green grass. Deploy your horses which are accelerated like the air and come to us. On being gladdened with Stuties you grant us food grains etc.
गाव उपावतावतं मही यज्ञस्य रप्सुदा। उभा कर्णा हिरण्यया॥
हे गायों! आप हमारी रक्षा करें। स्वर्ण के कुण्डल धारण किये हुए यज्ञ की आधार भूता हे द्यावा-पृथ्वी देवी! आप हमारी रक्षा करें।[यजुर्वेद 33.19]
Hey cows! Protect us. Wearing golden ear rings forming the basis of Yagy, hey deity of heavens & earth! Protect us.
यदद्य सूर उदिते नागा मित्रो अर्यमा। सुवाति सविता भगः॥
आज सूर्य के उदित होने पर पाप रहित मित्र देवता, अर्यमा देव, भग देव तथा सर्वप्रेरक सविता देव हमें उत्तम कर्मों में प्रेरित करें।[यजुर्वेद 33.20]
Let sinless Mitr, Aryma, Bhag and all inspiring Savita Dev encourage us for virtuous, righteous, pious deeds on Sun rise.
आ सुते सिञ्चत श्रियꣳ रोदस्योरभिश्रियम्। रसा दधीत वृषभम्। तं प्रत्नथायं वेनः॥
हे ऋत्विज्ञगण! श्री, द्युलोक और पृथ्वी लोक की शोभा से सम्पन्न सोमरस को पात्रों में भरो, यह सोम नदी के किनारे उत्पन्न होता है, फिर इसका संस्कार होता है। हे सोम! पूर्वकाल की भाँति अन्यान्य ऋषियों के समान ही तुम यज्ञ में आकर कुशासन पर बैठते हो।[यजुर्वेद 33.21]
Hey Ritviz Gan! Fill the Somras which grows over the banks of rivers, in vessels which possess the glory of Shree, heavens and earth. Its sanctified later. Hey Som! You too occupy the Kushasan in the Yagy like the Rishi Gan of the ancient times.
आतिष्ठन्तं परि विश्वे अभूषञ्छ्रियो वसानश्चरति स्वरोचिः।
महत्तदृष्णो असुरस्य नामा विश्वरूपोअमृतानि तस्थौ॥
सम्पूर्ण देवताओं ने संग्रहीत होकर जिस देवता की स्थापना की, चारों ओर आच्छादित करके खड़े होकर स्तुति आदि की है, ऐसे देवराज इन्द्र अत्यन्त तेजयुक्त वैभवों से शोभायमान होकर विचरण करते हैं। जगत् स्वरूप वे देवेन्द्र जल को वर्षा हेतु प्रेरित करते हैं। वे देवेन्द्र ही राक्षसों के संहारक हैं तथा महान् यशस्वी हैं, वही इन्द्र देव अमृत तुल्य सोमरस का सेवन करके चिरकाल पर्यन्त उसी प्रतिष्ठा पर विराजमान होते हैं।[यजुर्वेद 33.22]
All demigods-deities gathered and established the deity-Indr Dev, worshiped-performed his Stuti. Devraj Indr roam accompanied with Tej and Glory. Indr Dev inspire-encourage water to produce rain fall. Majestic Devendr is the slayer of demons. Indr Dev consume Somras comparable to elixir-nectar (ambrosia) and continue with the title-reputation as Devraj.
प्र वो महे मन्दमाना यान्धसोऽर्चा विश्वानराय विश्वाभुवे।
इन्द्रस्य यस्य सुमखꣳ सहो महि श्रवो नृम्णं च रोदसी सपर्यतः॥
हे ऋत्विज्ञ गणो! जगत् के उत्पादक, मानवों के निमित्त अन्न प्रदान करने वाले, महान् ऐश्वर्य प्रदायक उन देवेन्द्र की आराधना करें, जिनको पृथ्वी तथा आकाश भी श्रेष्ठ यज्ञ, युद्ध बल, महान् कीर्ति तथा ऐश्वर्य आदि पदार्थों को प्रदान करके पूजते हैं।[यजुर्वेद 33.23]
Hey Ritviz Gan! Worship Indr Dev who produced universe, grant food grains to humans, possess great glory-majesty. He is worshipped by earth, sky, great Yagy, strength of the war, great fame & glory etc and materials are offered to him.
बृहन्निदिध्म एषां भूरि शस्तं पृथुः स्वरुः। येषामिन्द्रो युवा सखा॥
जिनके सखा अत्यन्त तेजस्वी, अति व्यापक, रिपुओं को संतप्त करने वाले, सामर्थ्यवान् तथा विशाल खड्ग धारण करने वाले महान् इन्द्र देव हैं, वे ही अत्यन्त प्रशंसनीय होते हैं। ऐसे इन्द्र देव की हम उपासना करते हैं।[यजुर्वेद 33.24]
One whose colleague Indr Dev is highly aurous, highly pervaded, torture the enemies, has capability-might, wield large sword, are highly applauded-appreciated. We worship Indr Dev possessing these qualities.
इन्द्रेहि मत्स्यन्धसो विश्वेभिः सोमपर्वभिः। महाँ 2॥ अभिष्टिरोजसा॥
हे देवराज इन्द्र! आप ओज से युक्त, अति श्रेष्ठ तथा पूज्य हैं। आप यहाँ यज्ञस्थल पर पदार्पण करें एवं सभी सोम के पर्वों से उपलब्ध हुए रस तथा हविष्य द्वारा परितृप्त हों।[यजुर्वेद 33.25]
Hey Dev Raj Indr! You are associated with Tej-aura, excellence and worshiped. Come to the Yagy site and become satisfied with all forms of Somras and oblations-offerings.
इन्द्रो वृत्रमवृणोच्छर्द्धनीतिः प्र मायिनाममिनाद्वर्पणीतिः।
अहन् व्यꣳ समुशधग्वनेष्वाविर्धेनाऽ अकृणोद्राम्याणम्॥
महाशक्तिशाली, नीति में निपुण, परधन हारी चोरों को प्रताड़ित करने वाले देवराज इन्द्र ने मायावी वृत्रासुर का वध करके उसे जल में फेंक दिया। यजमान उन इन्द्र देव के प्रकट होने के लिये स्तुति करते हैं।[यजुर्वेद 33.26]
Highly powerful, expert in policy matters-diplomacy, punishing those who snatch other's wealth, Indr Dev killed elusive-enchanter Vratra Sur and threw his body in water. Yajman pray, perform Stuti for his appearance.
कुतस्त्वमिन्द्र माहिनः सन्नेको यासि सत्पते किं त इत्था। सं पृच्छसे समराणः शुभानैर्वोचेस्तन्नो हरिवो यत्ते अस्मे। महाँ 2॥ इन्द्रो य ओजसा कदा चन स्तरीरसि। कदा चन प्र युच्छसि॥
हे सत्याधिपति देवेन्द्र! आप असहाय की भाँति अकेले कहाँ जाते हैं? हे महिमावान्! आप जहाँ जाते हैं, वहाँ जाने का आपका अभिप्राय क्या है? समान रूप से जाते हुए आप पूछे जाते हैं कि हे हरित वर्ण अश्व वाले इन्द्र देव! हमसे गमन का कारण कहें; क्योंकि हम आपके ही हैं। हे महान् इन्द्र देव! आप अपने तेज से न कभी हिंसा करते हैं तथा न ही कभी विनोद करते हैं।[यजुर्वेद 33.27]
Hey lord of truth Devendr! Where are you going like a helpless? Hey glorious! What is the purpose of your visit? When you move in an ordinary manner, hey lord of greenish horses Indr Dev you are questioned? Narrate the reason of your movement, since we belong to you. Hey great Indr Dev! You never indulge in violence with your Tej-radiance and do not involve in humour.
आ तत्त इन्द्रायवः पनन्ताभि य ऊर्वं गोमन्तं तितृत्सान्।
सकृत्स्वं ये पुरुपुत्रां महीꣳ सहस्त्रधारां बृहतीं दुदुक्षन्॥
हे देवराज इन्द्र! जो मनुष्य गायों की इच्छा रखते हैं, वे तुम्हारी स्तुति करते हैं। जो पृथ्वी की इच्छा करते हैं, वे भी तुम्हारी स्तुति करते हैं अर्थात् ब्राह्मण और क्षत्रिय तुम्हारी ही स्तुति करते हैं।[यजुर्वेद 33.28]
Hey Devraj Indr! Those who wish to have cows, desire land, worship you, it means that only Brahmans and Kshatriy worship you.
इमां ते धियं प्र भरे महो महीमस्य स्तोत्रे धिषणा यत्त आनजे।
तमुत्सवे च प्रसवे च सासहिमिन्द्रं देवासः शवसामदन्ननु॥
हे श्रेष्ठ देवेन्द्र! आपकी श्रेष्ठ मेधा को हम धारण करते हैं। आपकी अर्चना करने में संलग्न बुद्धि आपकी सामर्थ्य को प्रकट करती है। हम अपने उत्सव तथा प्रसवकाल में दुःख देने वाले रिपुओं को दबाने वाले इन्द्र देव की स्तुति करते हैं।[यजुर्वेद 33.29]
Hey superb Devendr! We hold-accept your excellent intellect. Mind-brain indulged in your worship reflect-demonstrate your capability-power. We worship Indr Dev who repress the enemies during celebrations-festivals and period of pregnancy.
विभ्राङ् बृहत्पिबतु सोम्यं मध्वायुर्दधद्यज्ञ पतावविहृतम्।
वातजूतो यो अभिरक्षति त्मना प्रजाः पुपोष पुरुधा वि राजति॥
जो महान् दीप्तिमान् सूर्य प्रजा की रक्षा तथा पालन-पोषण करता है और अनेक प्रकार से शोभा पाता है, वह यजमान को अखण्ड आयु प्रदान करते हुए मधुर सोमरस का पान करे। वह सूर्य वायु की प्रेरणा से भ्रमण करता है।[यजुर्वेद 33.30]
Great illuminate Sun protect and nourish the populace and is graced in various manners. Let him grant longevity to the Yajman and drink Somras. That Sun revolve inspired by air-Vayu.(30.09.2025)
उदु त्यं जातवेदसं देवं वहन्ति केतवः। दृशे विश्वाय सूर्यꣳ स्वाहा॥
विश्व की दर्शन क्रिया सम्पादित करने के लिये अग्नि-ज्वाला स्वरूप उदीयमान सूर्य देव को ब्राह्म ज्योतियाँ ऊपर उठाये रखती हैं।[यजुर्वेद 33.31]
Brahm Jyoti keep up rising Sun-Sury Dev like the blazing ambers of Agni-fire for the visibility in the universe.
येना पावक चक्षसा भुरण्यन्तं जनाँ2॥ अनु। त्वं वरुण पश्यसि॥
हे पावक रूप एवं करुण रूप सूर्य! तुम जिस दृष्टि से ऊर्ध्वगमन करने वालों को देखते हो, उसी कृपा दृष्टि से समस्त प्राणियों को देखो।[यजुर्वेद 33.32]
करुण :: करुणा युक्त; tender.
Hey tender Sun in the form of fire! View the living beings with tenderness, similar to watching those who rise up.
दैव्यावध्वर्यु आगतꣳ रथेन सूर्यत्वचा। मध्वा यज्ञꣳ समञ्जाथे।
तं प्रत्नथायं वेनश्चित्रं देवानाम्॥
हे दिव्य अध्वर्यु आश्विनी कुमारो! आप भी सूर्य की जैसी कान्ति वाले रथ में आयें और हविष्य से यज्ञ को साम्पूर्ण करें। उसे ही जिसे ज्योतिष्मानों में अग्रणी चन्द्र देव ने प्राचीन विधि से बनाया है।[यजुर्वेद 33.33]
ज्योतिष्मान् :: ज्योतिवाला, प्रकाशमान; illuminated.
अग्रणी :: आगे होना, अग्रसर होना, आगे बढ़ना; leading, leader, lead.
Hey divine priests Ashwani Kumars! Come riding the charoite having radiance like the Sun, which has been made shining like the Moon, leading the lustrous objects and accomplish the Yagy with oblations.
आ न इडाभिर्विदथे सुशस्ति विश्वानरः सविता देव एतु।
अपि यथा युवानो मत्सथा नो विश्व जगदभिपित्वे मनीषा॥
हे सर्वप्रेरक सविता देव! आप हम सभी प्राणियों के शुभचिन्तक हैं। आप हमारे उस यज्ञगृह में पदार्पण करें, जो उत्तम अन्न से सम्पन्न एवं प्रशंसनीय है। हे अविनाशी देवगणों! आप यहाँ आकर परितृप्त हों और इस सृष्टि को अपनी मेधा द्वारा परितृप्त करें।[यजुर्वेद 33.34]
Hey Savita Dev, inspiring all! You are the well wisher of all living beings, including us. Come to our Yagy house which has best food grains and deserve praise. Hey immortal demigods-deities! You should be satiated-satisfied here and satiate the universe with your mental vigour.
यदद्य कच्च वृत्रहन्नुदगा अभि सूर्य। सर्वं तदिन्द्र ते वशे॥
हे वृत्रहन्ता इन्द्र! हे ऐश्वर्यवान् सूर्य! आज तुम जहाँ कहीं भी उदीयमान हो, वे सभी प्रदेश आपके अधीन हों।[यजुर्वेद 33.35]
Hey slayer of Vratr Indr! Hey glorious Sury! All place where you appear should be under your control.
तरणिर्विश्वदर्शतो ज्योतिष्कृदसि सूर्य। विश्वमाभासि रोचनम्॥
हे सूर्य! तुम प्रकाश करने वाले हो। अग्नि, विद्युत्, नक्षत्र, चन्द्रमा, ग्रहों और तारों में तुम्हारा ही प्रकाश है। सबके लिये दर्शनीय, हे विश्व के प्रकाशक सूर्य! इस प्रकाशमान् विश्व को आप ही प्रकाशित करते हो।[यजुर्वेद 33.36]
दर्शनीय :: प्रसिद्ध, मशहूर; scenic, notable.
Hey Sury! You illuminate every thing. Fire, electricity, constellations, Moon, planets and the stars have your light. Hey scenic Sun, lighting the whole world! Its you who illuminate the universe.
तत्सूर्यस्य देवत्वं तन्महित्वं मध्या कर्तोर्विततꣳ सं जभार।
यदेदयुक्त हरितः सधस्थादाद्रात्री वासस्तनुते सिमस्मै॥
सूर्य का देवत्व और उनकी महिमा यह है कि वे किसी भी कार्य करने वाले को कार्य की समाप्ति के मध्य में ही रोक दिया करते हैं। जब ये सूर्य देव अपनी किरणों को पृथ्वी मण्डल से हटा लेते हैं तो रात्रि सबके लिये अन्धकार रूपी वस्त्र का आवरण फैला देती है।[यजुर्वेद 33.37]
सूर्य का देवत्व और महिमा अंतरिक्ष में फैल गई है। जब यह अश्वों को अपने स्थान से छोड़ता है, तो रात उसके लिए अपना वस्त्र फैलाती है।
Demigodhood and glory of Sun has pervaded the space. As soon as the horses his charoite move forward, night falls.
तन्मित्रस्य वरुणस्याभिचक्षे सूर्यो रूपं कृणुते द्योरुपस्थे।
अनन्तमन्यद्रुशदस्व पाजः कृष्णमन्यद्धरितः सं भरन्ति॥
घुलोक में ये सूर्य देवता मित्र और वरुण का रूप धारणकर सबको देखते हैं। वे मित्र रूप से पुण्यात्माओं पर कृपा करते हैं और वरुण रूप से पापियों का नाश करते हैं। इनका एक देदीप्यमानरूप है और एक कृष्णवर्ण का दूसरा रूप है, जिसका रसहारिणी किरणें वहन करती हैं।[यजुर्वेद 33.38]
कृपा :: अनुग्रह, दया, दयालुता, रहम करना, रहमत, सहानुभूति, करुणा, क्षमा, तरस खाना, सदयता; courtesy, mercy, graciousness, compassion.
Sury Dev assume the form of Mitr & Varun in the heavens and see every one. He show mercy over the virtuous souls as Mitr and destroy the sinners as Varun. His one form is bright and the other is dark, which is born by the rays which sucks sap.
Rays of Sun evaporate water and suck sap from the plants-vegetation.
बण्महाँ2 असि सूर्य बडादित्य महाँ 2॥ असि। महस्ते सतो महिमा पनस्यतेऽद्धा देव महाँ2॥ असि॥
हे सूर्य रूप परमात्मन्! आप सत्य ही महान् हैं। आदित्य! आप सत्य ही महान् हैं। महान् और सद्रूप होने के कारण आपकी महिमा गायी जाती है। आप सत्य ही महान् हैं।[यजुर्वेद 33.39]
सद्रूप :: सुंदर शरीर वाला, सुडौल आकार वाला या अच्छे आचरण वाला सज्जन व्यक्ति, शारीरिक रूप से सुंदर या नैतिक रूप से अच्छा; one who is beautiful, handsome has high character & moral.
Hey Almighty in the form of Sun (Sury Narayan)! You are really great. Hey Adity! Being great and majestic, having beautiful, handsome has high character & moral) your glory is sung. You are really great.
बट् सूर्य श्रवसा महाँ2॥ असि सत्रा देव महाँ2॥ असि। मह्ना देवानामसुर्यः पुरोहितो विभु ज्योतिरदाभ्यम्॥
हे सूर्य! आप सत्य ही यश से महान् हैं। आप देवताओं मध्य श्रेष्ठ हैं। आप देवों के हितकारी एवं अग्रणी हैं और व्यापक तथा अदम्य ज्योतिवाले हैं।[यजुर्वेद 33.40]
अदम्य :: जो दबाया न जा सके; प्रबल, प्रचंड; indomitable, untamed.
Hey Sury! You are great by virtue of truth. You are best amongest the demigods-deities. You are well wisher of demigods and remain ahead. You radiance is vast and indomitable.
श्रायन्त इव सूर्यं विश्वेदिन्द्रस्य भक्षत।
वसूनि जाते जनमान ओजसा प्रति भागं न दीधिम॥
जिन सूर्य का आश्रय लेकर किरणें इन्द्र की सम्पूर्ण वृष्टि-सम्पत्ति का भक्षण करती हैं और फिर उनकी वर्षा करने के समय यथाभाग उत्पन्न करती हैं, उन सूर्य को हम हृदय में पुत्रों और दायें भाग की भाँति धारण करते हैं।[यजुर्वेद 33.41]
Rays of Sun eat away the rain shower by Indr Dev and cause rain again as usual. We possess Sun in our heart like sons and the right side.
अद्या देवा उदिता सूर्यस्य निरꣳहसः पिपृता निरवद्यात्।
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिंधुः पृथिवी उत द्यौः॥
हे देवो! आज का सूर्योदय हमारे पाप और दोष को दूर करे तथा मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु, पृथ्वी और स्वर्ग सभी मेरी इस वाणी का अनुमोदन करें।[यजुर्वेद 33.42]
Hey demigods! Let the Sun rise eliminate our sins and defects-weaknesses today. Mitr, Varun, Aditi, Sindhu, earth and heavens should support my words.
आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च।
हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्॥
सबके प्रेरक सूर्य देव स्वर्णिम रथ में विराजमान होकर अन्धकार-पूर्ण अन्तरिक्ष-पथ में विचरण करते हुए देवों और मानवों को उनके कार्यों में लगाते हुए लोकों को देखते हुए चले आ रहे हैं।[यजुर्वेद 33.43]
Inspiring all, Sury Dev ride the golden charoite, revolve-move over the dark path in the space, engage the humans and demigods in their work and look at every abodes while coming.(01.10.2025)
प्र वावृजे सुप्रया बर्हिरषामा विश्वपतीव वीरिट इयाते।
विशामक्तोरुषसः पूर्वहूतौ वायुः पूषा स्वस्तये नियुत्वान्॥
सभी प्राणियों के हितार्थ 'नियुत' संज्ञा वाले अश्वओं से युक्त वाहन में आरोहण करने वाले वायु देव तथा पूषा देव, रात्रि के अन्त में उषा काल के पहले मानवों द्वारा आवाहित किये जाने पर अन्तरिक्ष लोक से वैसे ही आगमन करते हैं, जैसे दो राजा अपने गणों के साथ आगमन कर रहे हों। इन दोनों देवताओं हेतु यज्ञस्थल में श्रेष्ठ प्रकार से कुशासन बिछाए जाते हैं।[यजुर्वेद 33.44]
नियुत :: दस लाख, वायु के घोड़े; one million, horses of Vayu Dev.
For the welfare-benefit of all living beings, Vayu Dev and Pusha Dev ride the horses named Niyut and appear on being invoked by humans at dawn-Usha like the two kings coming with their subjects-Gan. Best Kushasan are laid for both these demigods at the Yagy Sthal-site.
इन्द्रवायू बृहस्पतिं मित्राग्निं पूषणं भगम्। आदित्यान्मारुतं गणम्॥
यज्ञ स्थल में हम इन्द्र देव, वायु देव, बृहस्पति देव, मित्र देव, अग्नि देव, पूषा देव, भग देव, आदित्य गण तथा मरुद्गणों को आहूत करते हैं।[यजुर्वेद 33.45]
We invoke Indr Dev, Vayu Dev, Brahaspati Dev, Mitr Dev, Agni Dev, Pusha Dev, Bhag Dev, Adity Gan and Marud Gan at the Yagy site.
वरुणः प्राविता भुवन्मित्रो विश्वाभिरूतिभिः। करतां नः सुराधसः॥
वरुण देव तथा मित्र देव अपनी सम्पूर्ण सामर्थ्य शक्ति के द्वारा हमारी हर प्रकार से सुरक्षा करें तथा हमें महान् धन-सम्पदा प्रदान करके समृद्धिशाली बनायें।[यजुर्वेद 33.46]
Varun Dev & Mitr Dev should protect us with their full capability-power, in all possible manner and enrich-prosper us with great wealth.
अधि न इन्द्रैषां विष्णो सजात्यानाम्। इता मरुतो अश्विना।
तं प्रत्नथायं वेनो ये देवास आ न इडाभिर्विश्वेभिः सोम्यं मध्वो मासश्चर्षणीधृतः॥
हे देवराज इन्द्र! हे भगवान् विष्णु! हे मरुत देवता! हे दोनों अश्विनी कुमारों। आप सब हमारे सजातीय मानवों के बीच में पधारें। आप हमारी सभी प्रकार से रक्षा करने वाले बने एवं हमें धारण करने वाले बनें।[यजुर्वेद 33.47]
Hey Devraj Indr! Hey Bhagwan Shri Hari Vishnu! Hey Ashwani Kumars! Come amongest the people of our clan-caste. You should support and protect us in every possible manner.
अग्नऽइन्द्र वरुण मित्र देवाः शर्द्धः प्र यन्त मारुतोत विष्णो।
उभा नासत्या रुद्रो अधग्ना: पूषा भगः सरस्वती जुषन्त॥
हे अग्नि देव, देवराज इन्द्र, वरुण देव, मित्र देव, मरुद्गण तथा विष्णु देव! आप सभी हमें सामर्थ्यवान् बनायें। दोनों अश्विनी कुमार, रुद्र, देवताओं की पत्नियाँ, पूषा देव, भग देव एवं देवी सरस्वती हमारे द्वारा समर्पित की गयी आहुतियों को प्राप्त करें।[यजुर्वेद 33.48]
Hey Agni Dev, Devraj Indr, Varun Dev, Mitr Dev, Marud Gan and Bhagwan Shri Hari Vishnu! All of you should make us capable. Let Both Ashwani Kumars, Rudr, wives of demigods, Pusha Dev, Bhag Dev and Devi Saraswati accept our sacrifices.
इन्द्राग्नी मित्रावरुणादितिꣳ स्वः पृथिवीं द्यां मरुतः पर्वताँ2॥
अपः। हुवे विष्णुं पूषणं ब्रह्मणस्पतिं भगं नु शꣳसꣳ सवितारमूतये॥
इन्द्र, अग्नि, मित्र, वरुण, अदिति, पृथ्वी, स्वर्गलोक, आदित्य, मरुत, पर्वत समूह, जल, विष्णु, पूषा, ब्रह्मणस्पति, भग और सभी को प्रेरित करने वाले सविता आदि देवताओं को हम अपनी रक्षा के लिये आहूत करते हैं। वे यहाँ शीघ्रता पूर्वक पदार्पण करें तथा हमें संरक्षण प्रदान करें।[यजुर्वेद 33.49]
We invoke Indr, Agni, Mitr, Varun, Aditi, earth, heavens, Adity, Marut, Mountains, water, Vishnu, Pusha, Brahmanspati, Bhag and all inspiring Savita etc demigods-deities for our protection. They should come here quickly and grant us asylum.
अस्मे रुद्रा मेहना पर्वतासो वृत्रहत्ये भरहूतौ सजोषाः।
यः शꣳसते स्तुवते धायि पत्र इन्द्रज्येष्ठाऽअस्माँ2॥ अवन्तु देवाः॥
जो स्तुति करता है, स्तोत्रों का उच्चारण करता है, संगृहीत धन से हवियों को अर्पित करता है, उस याजक के निमित्त तथा हमारे हेतु धन तथा अन्न आदि की वृष्टि करने वाले रुद्र देव एवं वृत्रा सुर संहारक, पर्वतों के हनन कर्ता, युद्ध क्षेत्र में सहायक, देवताओं में श्रेष्ठ पद प्राप्त इन्द्र देव आदि हमारी सुरक्षा करें।[यजुर्वेद 33.50]
One who worship-pray (Stuti), make sacrifices through the accumulated wealth, for that Yajak and our wealth, food grains showering Rudr Deva and Indr Dev slayer of Vratra Sur, having the best-highest designation amongest the demigods-deities, should protect us.
अर्वाञ्चो अद्या भवता यजत्रा आ वो हार्दि भयमानो व्ययेयम्।
त्राध्वं नो देवा निजुरो वृकस्य त्राध्वं कर्त्तादवपदो यजत्राः॥
हे यजनीय देवताओ! आप होताओं के रक्षक हैं। अतः आप हमारे निकट आगमन करें, जिससे हम आतंकित होता हृदय में स्नेहभाव की अनुभूति कर सकें। अति हिंसक भेड़ियों के समान घोर पाप से हमें मुक्ति प्रदान करें तथा पापरूप कुकर्मों से हमारी रक्षा करें।[यजुर्वेद 33.51]
Hey worshipable demigods-deities! You are protector of Hotas. Hence, come near us, so that we the terrorised Hota experience affection in our hearts. Relieve us from the sins like too violent wolf and protect us from the deeds like sins.
विश्वे अद्य मरुतो विश्व ऊती विश्वे भवन्त्वग्नयः समिद्धाः।
विश्वे नो देवा अवसागमन्तु विश्वमस्तु द्रविणं वाजो अस्मे॥
हमारे इस यज्ञ में आज सभी मरुद्गण पधारें। रुद्र, आदित्य आदि सभी देवतागण तृप्तिहेतु पधारें। सम्पूर्ण देवतागण हमें संरक्षण प्रदान करने के उद्देश्य से आगमन करें। सभी गार्हपत्यादि अग्नियाँ भली-भाँति प्रज्वलित हो जायँ एवं हमें सभी प्रकार के धन-धान्य, गाय, भूमि, स्वर्ण आदि प्रदान करके समृद्धिशाली बनायें।[यजुर्वेद 33.52]
Let all Marud Gan join our Yagy today. Rudr, Adity and all demigods should come for satisfaction-satiation. Invoke to grant us protection. Let all forms of Garh Paty Agni should ignite-blaze properly. Make us prosperous with money, wealth, cows, land, gold etc.
विश्वे देवाः शृणुतेमꣳ हवं मे ये अंतरिक्षे य उप द्यविष्ठ।
ये अग्निजिह्वा उत वा यजत्रा आसद्यास्मिन् बर्हिषि मादयध्वम्॥
हे विश्वेदेवों! जो अन्तरिक्ष लोक में विद्यमान हैं, जो स्वर्गलोक में विद्यमान हैं, जो स्वर्गलोक के निकट स्थित हैं तथा जो यजनीय हैं, ऐसे सृष्टि के सभी देवता हमारे द्वारा आहूत किये जाने पर यहाँ आकर कुशासन पर आरूढ़ हों तथा हम जो आहुतियाँ समर्पित करते हैं, उसे ग्रहण करके परितृप्त हों।[यजुर्वेद 33.53]
Hey Vishwe Dev! Let demigods-deities of the evolution-universe present in the space, heavens, abodes close to heavens should, on invoked by us should occupy Kushasan, accept our sacrifices and become satisfied-satiated.
देवेभ्यो हि प्रथमं यज्ञियेभ्योऽमृतत्वꣳ सुवसि भागमुत्तमम्।
आदिद्दामानꣳ सवितर्व्यणुषेऽनूचीना जीविता मानुषेभ्यः॥
हे सर्वप्रेरक सविता देव! उदित होने के समय आप यजनीय देवताओं को अमृतमय सारतत्त्वों का श्रेष्ठ भाग प्रदान करने वाले हैं, उदय होने के पश्चात् आप प्रकाशमान् किरणों को विस्तारित करते हैं तथा प्राणियों को यज्ञीय कर्म के लिये प्रेरित करते हैं।[यजुर्वेद 33.54]
Hey all inspiring Savita Dev! You award the excellent gist of elixir-nectar to worshipable demigods-deities; after rising you extend the rays of light and inspire the living beings-humans for endeavours like Yagy.
प्र वायुमच्छा बृहती मनीषा बृहद्रयिं विश्ववारꣳ रथप्राम्।
द्युतद्यामा नियुतः पत्यमानः कविः कविमियक्षसि प्रयज्यो॥
हे यजनशील अध्वर्युगण! आप ज्ञानी, मेधा से युक्त, यज्ञ सम्बन्धी कार्यों में नियुक्त किये गये हैं। आप तेजस्वी, अश्व द्वारा गमन करने वाले, महान् धन वाले, सब में व्याप्त, क्रान्तदर्शी वायु देव की श्रेष्ठ मेधा द्वारा स्तुति करें।[यजुर्वेद 33.55]
क्रांतदर्शी :: ऐसा व्यक्ति जिसके पास दूरदृष्टि या अलौकिक दृष्टि हो, जो तीनों कालों :- भूत, वर्तमान और भविष्य को देख सके, सर्वज्ञ; one blessed with insight, intuition to see the events of present, past a& future.
Hey priest busy with Yagy! You being enlightened, possess intellect and have been assigned the Yagy related jobs. You should worship Vayu Dev blesses with intuition-insight, aura, roam over horse, has great-plenty of wealth, pervading everyone.(02.10.2025)
इन्द्रवायू इमे सुता उप प्रयोभिरा गतम्। इन्दवो वामुशन्ति हि।
उपयामगृहीतोऽसि वायव इन्द्रवायुभ्यां त्वा। एष ते योनिः सजोषोभ्यां त्वा॥
हे इन्द्र देव तथा वायु देव! आपके निमित्त यह सोमरस सुसंस्कारित किया गया है, आप इस सोमरस के सेवनार्थ शीघ्रता से यहाँ आगमन करें। ये सोम देव आपको प्रीतिपात्र बनना चाहते हैं। हे सोमरस! तुम उपयाम पात्र के द्वारा ग्रहण किये गये हो। वायु तथा इन्द्र के लिये मैं तुम्हें ग्रहण करता हूँ।[यजुर्वेद 33.56]
Hey Indr Dev & Vayu Dev! Somras has been sanctified for you, come quickly for drinking it. Som Dev wish you to make you his affectionate. Hey Somras! You have been stored in Upyam Patr-pot. I accept you for Vayu & Indr.
मित्रꣳ हुवे पूतदक्षं वरुणं च रिशादसम्। धियं घृताचीꣳ साधन्ता॥
पवित्र करने में कुशल मित्र देव तथा पापों का नाश करने वाले वरुण देव को हम हवि ग्रहण करने के लिये वे दोनों हमारी बुद्धि में यज्ञ की प्रेरणा करें।[यजुर्वेद 33.57]
Expert in making pious Mitr Dev & Varun Dev who remove sins should accept our offerings and inspire us to accomplish Yagy.
दस्त्रा युवाकवः सुता नासत्या वृक्तबर्हिषः। आयातꣳ रुद्रवर्त्तनी। तं प्रत्नथायं वेनः॥
हे रुद्र देव के सदृश गतिमान्, दर्शन करने योग्य दोनों अश्विनी कुमारो! आप यहाँ पधारें तथा बिछी हुई कुशाओं पर आसीन हों एवं जो सोमरस रखा गया है, उसका पान करके परितृप्त हों।[यजुर्वेद 33.58]
Hey Ashwani Kumars as fast as Rudr Dev and worth seeing (visit, view)! Please come here, occupy the Kushasan drink Somras kept here and become satiated-satisfied.
विदद्यदी सरमा रुग्णमद्रेर्महि पाथः पूर्व्यꣳ सध्यक्कः।
अग्रं नयत्सु पद्यक्षराणामच्छा रवं प्रथमा जानती गात्॥
श्रेष्ठ पदों में युक्त, अकार आदि मन्त्राक्षर रूप में स्फुरित दिव्य वाणी, परम सत्य अमृत तत्त्वों को उपदेशित कर हमारी वृद्धि करती है। इस दिव्य वाणी के द्वारा शोभायमान ज्ञानी यज्ञस्थल में प्रस्तर खण्डों द्वारा सुसंस्कारित सोमरस का पान करें।[यजुर्वेद 33.59]
Divine voice best amongest stanzas, in the form of Mantr Akshar like Akar, advice gist of Ultimate truth, grow us. Intellectuals-enlightened glorifies with this voice-speech should sanctify the stone pieces and drink Somras at the Yagy Sthal-site.
नहि स्पशमविदन्नन्यमस्माद्वैश्वानरात्पुरऽएतारमग्नेः।
एमेनमवृधन्नमृता अमर्त्यं वैश्वानरं क्षैत्रजित्याय देवाः॥
देवताओं ने इस जगत् के शुभचिंतक अग्नि देव से पृथक्, सभी कर्मों में अग्रणी अन्य किसी को भी नहीं जाना। इसीलिये देवताओं ने इन वैश्वानर का वर्धन किया। उन्होंने इन अग्नि देव के अविनाशी स्वरूप से परिचित होकर जगत् के शुभचिंतक वैश्वानर अग्नि (प्राणियों में विद्यमान) को याजक द्वारा प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने हेतु प्रज्वलित किया।[यजुर्वेद 33.60]
Demigods did not consider-recognise any one else except Agni Dev, who resort to welfare-well being of the universe and is forward in all endeavours (efforts (actions). Hence, the demigods described him as Vaeshwanar. They recognised the immortal form of Agni Dev and ignited well wisher Vaeshwanar (present in all living beings) for the success of the Yajak in every field.
उग्रा विघनिना मृधऽइन्द्राग्नी हवामहे। ता नो मृडातऽ ईदृशे॥
हम उग्र स्वभाव वालों और हिंसकों को मारने वाले इन्द्र तथा अग्नि देव का आवाहन करते हैं। वे हमें सुखी करें।[यजुर्वेद 33.61]
We invoke Indr Dev & Agni Dev for killing the furious and violent. They should grant us comforts-pleasure.
उपास्मै गायता नरः पवमानायेन्दवे। अभि देवाँ2॥ इयक्षते॥
हे ऋत्विज्ञगणो! छन्ने से छनकर शोधित होने वाले, द्रोण कलश में अविचल रहने वाले, देवताओं के यजन की अभिलाषा करने वाले एवं शोधित हुए सोमरस और अग्नि देव के निमित्त आप स्तुतियों का गान करें।[यजुर्वेद 33.62]
Hey Ritviz Gan! Sing Stuties in the glory of Agni Dev & Somras, which is filtered, sanctified and kept undisturbed in Dron Kalash, desirous of the invocation of demigods.
ये त्वाहिहत्ये मघवन्नवर्द्धन्ये शाम्बरे हरिवो ये गविष्टौ।
ये त्वा नूनमनुमदन्ति विप्राः पिबेन्द्र सोमꣳ सगणो मरुद्भिः॥
हे वैभवशाली इन्द्र देव! जिन बुद्धिमान् मरुद्गणों ने आपको अहि नामक रिपु (वृत्रासुर) का वध करने में तथा शम्बरासुर को नष्ट करने में अग्रसर किया एवं जिन्होंने गौओं को पणियों से छुड़ाकर लाते हुए आपकी अर्चना की, वे मरुद्गण सदैव आपकी आज्ञा का अनुमोदन करते हैं। हे हरित वर्ण अश्व वाले देवेन्द्र! आप उन मरुद्गणों सहित सोमरस का पान करें।[यजुर्वेद 33.63]
Hey Indr Dev possessing grandeur! The intelligent Marud Gan who helped you in killing the enemy named Ahi-Vratra Sur and Shamba Sur, helped you in the release of cows from the Panis-demons and prayed while carrying out this deed, always follow you-carry out your orders. Hey master of greenish horses, Devendr! Drink Somras with them.
जनिष्ठा उग्रः सहसे तुराय मन्द्रऽओजिष्ठो बहुलाभिमानः।
अवर्धन्निन्द्रं मरुतश्चिदत्र माता यद्वीरं दधनद्धनिष्ठा॥
हे देवेन्द्र! आप अत्यन्त उग्र, प्रसन्नता में वृद्धि करने वाले, तेजस्वी, अत्यन्त स्वाभिमानी, द्रुत गामी, साहसी रूप में उत्पन्न हुए हैं। यहाँ वृत्रासुर के संहार के समय मरुतों ने आपकी अर्चना कर आपको उत्साहित किया, उसी कार्य की सिद्धि के लिए माता अदिति ने आपको गर्भ में धारण किया।[यजुर्वेद 33.64]
Hey Devendr! You are too furious, boost pleasure, energetic, egoistic, fast moving and born as daring-adventurous. Demigods encouraged you at the occasion of Vratra Sur killing and Marud Gan worshiped you. Mother Aditi carried you in her womb for the accomplishment of this job.
आ तू न इन्द्र वृत्रहन्नस्माकमर्द्धमागहि। महान्महीभिरूतिभिः॥
हे वृत्रासुर संहारक इन्द्र देव! आप हमारे पक्ष में आयें। हमारे दिये अर्घ्य को स्वीकार करें। आप रक्षा करनेवालों में महान् हैं।[यजुर्वेद 33.65]
अर्घ्य :: देवताओं के सम्मान में चढ़ावा-भेंट; libation, a respectful offering, offering water to the Sun.
Hey Vratra Sur destroyer Indr Dev! Come to our fold. Accept our libation. You are great amongest protectors.
त्वमिन्द्र प्रतृर्त्तिष्वभि विश्वा असि स्पृधः।
अशस्तिहा जनिता विश्वतूरसि त्वं तूर्य तरुष्यतः॥
हे इन्द्र देव! आप संग्राम क्षेत्र में युद्ध के निमित्त तत्पर रिपुओं के सैन्य दल को परास्त करने वाले हो, आप सुख के उत्पत्ति कर्ता हैं, दुष्टों के संहारक हैं तथा सभी रिपुओं को विनष्ट करने वाले हैं। आप हमारे प्रति हिंसक व्यवहार रखने वाले रिपुओं को नष्ट कर डालें।[यजुर्वेद 33.66]
Hey Indr Dev! You defeat the enemy armies bent upon fight-war in the battle field. You produce comforts-pleasure, destroy wicked-vicious and the enemies. Destroy the enemies who act against us violently.
अनु ते शुष्मं तुरयन्तमीयतुः क्षोणी शिशुं न मातरा।
विश्वास्ते स्पृधः श्रथयन्त मन्यवे वृत्रं यदिन्द्र तूर्वसि॥
हे देवेन्द्र! रिपुओं पर त्वरित गति से आक्रमण करने वाले आपके बल की पृथ्वी तथा आकाश वैसे ही प्रशंसा करते हैं, जैसे माता और पिता अपने वत्स को मान देते हैं। जिस समय आप वृत्रासुर का मर्दन करते हैं, उस समय सभी रिपुओं की सेनाएँ आपके क्रोध के डर से शिथिल हो जाती हैं।[यजुर्वेद 33.67]
वत्स :: बछड़ा, बेटा, शिशु, वर्ष, वत्स महाजनपद जिसकी राजधानी कौशाम्बी थी, ब्राह्मणों का एक गोत्र-वंश जो भृगु गोत्र से संबंधित है।
Hey Devendr! Earth & sky appreciate your strength of attacking enemy with high speed just like the mother & father recognise their son-progeny. You attack the enemies with fast speed. When you destroyed Vratra Sur, all armies of the enemy turned stand still due to fear.
यज्ञो देवानां प्रत्येति सुम्नमादित्यासो भवता मृडयन्तः।
आवोऽर्वाची सुमतिर्ववृत्यादꣳ होश्चिद्या वरिवोवित्तरासत्। आदित्येभ्यस्त्वा॥
सोमरस को दही में मिलाते हुए बोले :- देवों के सुख के लिए यज्ञ किया जाता है, अतः हे आदित्यगण! आप हमें सुख प्रदान करें। हे देवताओं! आपकी कृपापूर्ण बुद्धि हमारी और बनी रहे। आपकी अनुग्रह पूर्ण बुद्धि पापी की धनी न बनायें। हे सोमरस! मैं आदित्यों के लिये ही तुम्हें दही में मिलाता हूँ।[यजुर्वेद 33.68]
Mix curd in Somras and say, "The Yagy is performed for the pleasure of demigods, hey Adity Gan! Grant us comforts". Hey Demigods! Your blissful-favourable intelligence should remain in our favour. Your favourable mind should not enrich the sinners. Hey Somras! I mix you in curd for the Adity Gan.(03.10.2025)
अदब्धेभिः सवितः पायुभिष्ट्वꣳ शिवेभिरद्य परिपाहि नो गयम्।
हिरण्यजिह्व: सुविताय नव्यसे रक्षा माकिर्नोअघशꣳ स ईशत॥
हे सर्वप्रेरक सविता देव! आप स्वर्णमयी जिह्वा वाले हैं, आप मंगलकारी रक्षाकारी संसाधनों से हमारे घर एवं धन की सुरक्षा करें, जिससे हिंसक प्रवृत्ति के दुष्ट हम पर अपना आधिपत्य स्थापित न कर सकें।[यजुर्वेद 33.69]
Hey all inspiring Savita Dev! You have a golden tongue. Protect our house & wealth with auspicious means so that the violent wicked fails to over power-control (rule) us.
प्र वीरया शुचयो दद्रिरे मामध्वर्युभिर्मधुमन्तः सुतासः।
वह वायो नियुतो याह्यच्छा पिबा सुतस्यान्धसो मदाय॥
हे याजक दम्पति! आप दोनों अध्वर्युओं द्वारा पत्थरों से कूटकर सुसंस्कारित हुए पावन सोम को तैयार करें। हे वायो! आप अपने अश्वों को योजित कर रथ को लेकर आयें तथा यज्ञ के निकट आगमन करके हर्ष-प्राप्ति हेतु शोधित सोमरस का पान करें और तृप्त हों।[यजुर्वेद 33.70]
Hey Yajak couple! Both of you prepare the pious Som crushed with stones and sanctified by the priests. Hey Vayu Dev! Deploy your charoite with horses and come close to the Yagy to drink sanctified Somras and become happy & satiated-satisfied.
गावऽउपावतावतं मही यज्ञस्य रप्सुदा। उभा कर्णा हिरण्यया॥
हे गायों! आप हमारी रक्षा करें। स्वर्ण के कुण्डल धारण किये हुए यज्ञ की आधारभूता हे द्यावा-पृथ्वी देवी! आप हमारी रक्षा करें।[यजुर्वेद 33.71]
Hey cows! Protect us. Wearing golden rings hey fundamental of the Yagy, hey heaven-earth goddess! Protect us.
काव्ययोराजानेषु क्रत्वा दक्षस्य दुरोणे। रिशादसा सधस्थ आ॥
ज्ञानी जनों के शुभ चिंतक हे मित्रा-वरुण देव! यज्ञ सम्बन्धी उत्कृष्ट कर्म करने में कुशलता प्राप्त आप दोनों इस यजमान के यज्ञस्थल में सोमरस का सेवन तथा यज्ञकर्म को सम्पादित करने हेतु पधारें।[यजुर्वेद 33.72]
Hey well wisher of the enlightened-learned, Mitra-Varun Dev! Expert in performing Yagy related deeds, both of you come to the Yagy site, to accomplish the Yagy and drink Somras at this site of the Yajman.
दैव्यावध्वर्यू आ गतꣳ रथेन सूर्यत्वचा। मध्वा यज्ञꣳ समञ्जाथे। तं प्रत्नथायं वेनः॥
हे दिव्य अध्वर्यु अश्विनी कुमारो! आप भी सूर्य की जैसी कान्ति वाले रथ में आयें और हविष्य से यज्ञ को सम्पूर्ण करें। उसे ही जिसे ज्योतिष्मानों में अग्रणी चन्द्र देव ने प्राचीन विधि से बनाया है।[यजुर्वेद 33.73]
Hey divine priests Ashwani Kumars! Come riding the charoite with the shine of Sun and accomplish the Yagy with oblations. It has been prepared by Chandr Dev forward amongest the constellations with ancient procedure-methos.
तिरश्चीनो विततो रश्मिरेषामधः स्विदासी दुपरिस्विदासीत्।
रेतोधा आसन्महिमान आसन्त्स्वधा अवस्तात्प्रयतिः परस्तात्॥
सुसंस्कारित होने वाले सोम की किरणों का आलोक तिरछा होकर अत्यन्त दूर तक विस्तारित हुआ है। वह नीचे की ओर भी विद्यमान है तथा ऊपर की ओर भी विद्यमान है। ये किरणें वीर्य अर्थात् सृजन करने की सामर्थ्य को धारण करने वाली हैं तथा व्यापनशील महात्म्यवाली (सामर्थ्यशाली) हैं। जगत् को धारण करने वाला कार्य तथा आत्मा को प्रेरित करने का कार्य अति विशाल है।[यजुर्वेद 33.74]
The inclined rays emitted by Som are spreaded over a vast region. They are present up & down. These rays are capable of producing sperms-potential and have vast capability. The endeavours which support the universe and inspire soul are too large-huge.
आ रोदसी अपूणदा स्वर्महज्जातं यदेनमपसो अधारयन्।
सो अध्वराय परिणीयते कविरत्यो न वाजसातये चनोहितः॥
जब वैश्वानर अग्निदेव की उत्पत्ति हुई अर्थात् याजक ने यज्ञस्थल में उन्हें स्थापित किया तो उन्होंने धरती तथा आकाश एवं विस्तीर्ण अन्तरिक्ष को प्रकाश से संव्याप्त कर दिया। वे क्रान्तदर्शी वैश्वानर अग्नि देव हमारे निमित्त कल्याणकारी यज्ञ हेतु सभी ओर से उसी प्रकार वरण किये जाते हैं, जिस प्रकार अश्व अन्न प्राप्त करने के लिए सब ओर विचरण करता है।[यजुर्वेद 33.75]
When Vaeshwanar Agni Das established at the Yagy site, he pervaded the earth, sky and vast space with light. Vaeshwanar Agni Dev who can look through present, past & future accept the beneficial Yagy for us in the same manner as the horse move all around-in all direction for having food grains.
उक्थेभिर्वृत्रहन्तमा या मन्दाना चिदा गिरा। आंगूषैराविवासतः॥
वृत्रा सुर संहारक, सोमरस से तृप्त इन्द्र देव तथा अग्नि देव की श्रेष्ठ स्तोत्रों एवं उक्थों से यजमान सम्यक् रूप से स्तुति करते हैं।[यजुर्वेद 33.76]
The Yajman worship Vratra Sur slayer, satiated with Somras Indr Dev & Agni Dev with best Strotrs & Ukth in their true-real form.
उप नः सूनवो गिरः शृण्वन्त्वमृतस्य ये। सुमृडीका भवन्तु नः॥
जो अमृत पुत्र देवता हैं, वे हमारी स्तुतियों को सुनें। वे हमें सुख देने वाले हों।[यजुर्वेद 33.77]
Hey son of elixir-nectar demigods-deities respond-listen to our prayers. They should grant us comforts-pleasure.
ब्रह्माणि मे मतयः शꣳसुतासः शुष्मइयर्ति प्रभृतो मे अद्रिः।
आ शासते प्रति हर्यन्त्युक्थेमा हरी वहतस्ता नोऽ अच्छ॥
इन्द्र मरुत से कहते हैं, हे मरुत! स्तुतियाँ और हवियाँ मुझे प्रसन्न करती हैं। सोम मुझे बल देता है। शत्रुओं का शोषण करने वाला मेरा वज्र सदा लक्ष्य के प्रति गतिमान होता है। इसीलिये यजमान मेरे आगमन की प्रार्थना करते हैं। ये मेरे हरे रंग के घोड़े मुझे यज्ञ स्थल की ओर ही ले जा रहे हैं।[यजुर्वेद 33.78]
Indr says to Marud Gan, hey Marud Gan! Worship and offerings gladden me. Som grants me strength. My Vajr is always accelerated & eager to destroy the enemies. hence the Yajman pray to me to approach them. My green horses are carrying me to the Yagy site.
अनुत्तमा ते मघवन्नकिर्नु न त्वाँवा2 अस्ति देवता विदानः।
न जायमानो नशते न जातो यानि करिष्या कृणुहि प्रवृद्ध॥
हे वैभवशाली इन्द्र देव! कोई पदार्थ ऐसा नहीं है, जो आपके द्वारा संचलित न हो, आपके समान दूसरा कोई ज्ञानी देव नहीं है। अर्थात् आपसे श्रेष्ठ कोई नहीं है। हे संवर्धित देवता! आपके समान न कोई उत्पन्न हुआ है और न ही कोई होने वाला है। आपने जिन कर्मों को किया है, उन्हें दूसरा कोई भी नहीं कर सका, न कोई कर सकता है और न ही कोई और कर पायेगा।[यजुर्वेद 33.79]
Hey Indr Dev possessor of grandeur! There is no material which is not moved by you. Not other demigod-deity is as enlightened as you are. None is better than you. Hey enhanced deity! None like you has evolved nor any one like you is ging to evolve. The deeds accomplished by you could not be done by any one nor any one else will be able to carry them out.
तदिदास भुवनेषु ज्येष्ठं यतो जज्ञऽउग्रस्त्वेषनृम्णः।
सद्यो जज्ञानो नि रिणाति शत्रूननु यं विश्वे महदन्त्यूमाः॥
समस्त लोकों में वही ब्रह्म सर्वश्रेष्ठ था, जिससे कि इस उग्र स्वभाव और तेजस्वी इन्द्र की उत्पत्ति हुई। यह इन्द्र शत्रुओं को समाप्त करता है। इस इन्द्र के अनुयायी होकर ही सारे देवता आनन्द लाभ करते हैं।[यजुर्वेद 33.80]
Its the Brahm who was supreme in all abodes who evolved furious Indr Dev. Indr terminate the enemies. All demigods deities become followers of this Indr and attain pleasure. (04.10.2025)
इमा उ त्वा पुरुवसो गिरो वर्द्धन्तु या मम।
पावकवर्णाः शुचयो विपश्चितोऽभि स्तोमैरनूषत॥
हे अगाध धन-सम्पदा के धनी आदित्य! हमारी वाणी रूप स्तुतियाँ निश्चित रूप से आपके ऐश्वर्य में अभिवृद्धि करें। तुम्हारे तेजस्वी स्वरूप के ज्ञाता विद्वान् स्तोत्रों द्वारा तुम्हारी सभी प्रकार से स्तुति करते हैं।[यजुर्वेद 33.81]
Hey Adity, possessor of infinite wealth! To be certain, let our prayers-Stuti increase your grandeur. The enlightened-learned aware of your majestic form worship you through Strotrs in all possible manners.
यस्यायं विश्वऽआर्यो दासः शेवधिपा अरिः।
तिरश्चिदर्ये रुशमे पवीरवि तुभ्येत्सोअज्यते रयिः॥
हे आदित्य देव! सभी उत्कृष्ट मनुष्य आपके सेवक हैं, वे सभी आप द्वारा रक्षा प्राप्त करने के योग्य हैं तथा अदानशील व्यक्ति आपके शत्रु के समान हैं। उनके द्वारा भूमि में छुपाया हुआ धन भी आपके लिये ही है न कि उन कृपणों के लिये।[यजुर्वेद 33.82]
Hey Adity Dev! All excellent humans are your servants, they deserve protection from you and those who do not donate are like your enemies. Money hidden in the soil-earth by them is for you not the misers.
अयꣳ सहस्त्रमृषिभिः सहस्कृतः समुद्रऽइव पप्रथे।
सत्यः सो अस्य महिमा गृणे शवो यज्ञेषु विप्रराज्ये॥
ऋषि-मुनियों की स्तुति के द्वारा बलवान् बनाये गये आदित्य रूपी इन्द्र समुद्र की भाँति विस्तृत हैं। इन तेजस्वी देव के बल का माहात्म्य सत्य है। यज्ञकर्म में ब्राह्मण राजा के समान स्वतन्त्र होता है। स्तोत्र उसका शस्त्र होता है। उस स्तोत्र से आदित्यरूप इन्द्र को बलवान् बनाता है अर्थात् उनकी स्तुति करता है।[यजुर्वेद 33.83]
Indr Dev strengthened by the Rishi-Munis through Stutis in the form of Adity, is vast like the ocean. The strength of this majestic deity is true. Accomplish Yagy Karm, the Brahman is free like a king. Strotr is his weapon. He strengthen Indr Dev through that Strotr by worshiping him,
अदब्धेभिः सवितः पायुभिष्ट्वꣳ शिवेभिरद्य परि पाहि नो गयम्।
हिरण्यजिह्वः सुविताय नव्यसे रक्षा माकिर्नो अघशꣳस ईशत्॥
हे सर्वप्रेरक सविता देव! आप स्वर्णमयी जिह्वावाले हैं, आप मंगलकारी रक्षाकारी संसाधनों से हमारे घर एवं धन की सुरक्षा करें, जिससे हिंसक प्रवृत्ति के दुष्ट हम पर अपना आधिपत्य स्थापित न कर सकें।[यजुर्वेद 33.84]
Hey Savita Dev, inspiring all! You have a golden tongue. Let your auspicious protection means, protect our house and wealth, so that the violent-wicked are unable to takeover-become owner of that.
आ नो यज्ञं दिविस्पृशं वायो याहि सुमन्मभिः।
अन्तः पवित्र उपरि श्रीणानोऽयꣳ शुक्रो अयामि ते॥
हे वायो! आप हमारे स्वर्गस्पर्शी यज्ञ में पधारें। पात्र के अन्दर विद्यमान, दशपवित्र के ऊपर डालकर शुद्ध किया गया, दुग्धादि से विमिश्रित तथा वीर्यप्रद यह सोमरस तुम्हारे लिये उपस्थित किया जा रहा है।[यजुर्वेद 33.85]
दशपवित्र :: a fringed filtering cloth,
Hey Vayu Dev! Come to our Yagy touching heavens. This Somras sanctified by putting Dash Pavitr-a fringed filtering cloth, over the Somras kept in the vessel, is mixed with milk etc, capable of increasing potential-sperms, is presented to you.
इन्द्रवायू सुसन्दृशा सुहवेह हवामहे।
यथा नः सर्व इज्जनो ऽनमीवः संगमे सुमना असत्॥
यहाँ इस यज्ञ में श्रेष्ठ स्वरूप का दर्शन कराने वाले, श्रेष्ठ रीति से आवाहनीय इन्द्र देव तथा वायुदेव को हम आहूत करते हैं, जिससे कि हमारे पुत्र-पौत्रादि लोग आरोग्यता को प्राप्त करके परस्पर प्रीति युक्त बनें।[यजुर्वेद 33.86]
आरोग्यता :: उत्तम स्वास्थ्य; immunity, health, fitness or sturdiness.
Invoke Indr Dev & Vayu Dev who make Yagy visible-useful in best possible manner, so that our sons, grandsons attain immunity and become mutually affectionate.
ऋधगित्था स मर्त्यः शशमे देवतातये। यो नूनं मित्रावरुणावभिष्टय आचक्रे हव्यदातये॥
जो मनुष्य मनोवांछित धन के लाभ को प्राप्त करने हेतु एवं हविदान हेतु मित्रा वरुण देवों को आवाहित करते हैं, वे मनुष्य अवश्य ही समृद्धि को प्राप्त करते हैं।[यजुर्वेद 33.87]
Those people who invoke Mitr-Varun Dev for having desired wealth, must become prosperous.
आ यातमुप भूषतं मध्वः पिबतमश्विना।
दुग्धं पयो वृषणा जेन्यावसू मा नो मर्धिष्टमा गतम्॥
हे अश्विनी कुमारों! आप दोनों हमारे इस यज्ञ में आयें और कुशासन को और भी अधिक सुशोभित करें। यहाँ आकर सोमरसों का पान करें। हे वर्षणशील देवताओं तथा धनाधिपति! आप हमें दुग्धादि पेय पदार्थों से परिपूर्ण करते हुए यहाँ पधारें। हमें हिंसित न करें।[यजुर्वेद 33.88]
Hey Ashwani Kumars! Both of you join our Yagy and grace our Kushasan. Drink Somras here. Hey wealthy deities causing rains! Come here & grant us sufficient drinks like milk. Do not harm us.
प्रैतु ब्रह्मणस्पतिः प्र देव्येतु सूनृता। अच्छा वीरं नर्यं पंक्तिराधसं देवा यज्ञं नयन्तु नः॥
ब्रह्मणस्पति हिरण्यगर्भ हमारे अभिमुख होकर इस यज्ञ में पधारें। प्रिय सत्य स्वरूप अलौकिक वाणीरूपा सुनृता देवी भी यहाँ पधारें। मानवों के हितैषी देवगण हमारे।[यजुर्वेद 33.89]
Let Brahmanspati Hiranygarbh become face to face-join us in the Yagy. Devi Sunrata in the form of voice should also come. Demigods beneficial to humans should also come.
चन्द्रमाऽअप्स्वन्तरा सुवर्णों धावते दिवि।
रयिं पिशङ्गं बहुलं पुरुस्पृहꣳ हरिरेति कनिक्रदत्॥
यह जो चन्द्रमा है वह सोमरूपी है अर्थात् वह मध्य में रसरूप है। अग्नि आहुति पाकर गरुड़ की आकृति होकर शीघ्रतापूर्वक द्युलोक को जाता है और ध्वनि करता हुआ पीत-हरित वर्ण का होकर जलवाही मेघ बनकर आकाश में संचरण करता है।[यजुर्वेद 33.90]
Chandr-Moon is a form of Som i.e., it has sap in the middle. Agni on being ignited attain the form of Garud and goes to heavens quickly. It make sound attain yellowish-greenish colour, become carrier of clouds and roam in the sky.
The attack by Russia over Ukraine and the 3H under Iran over Israel, has resulted forming of tremendous smoke clouds in the sky-space; which is resulting in untimely rains, flood, havoc all over the world in addition of natural calamities.
देवं देवं वोऽवसे देवं देवमभिष्टये। देवं देवꣳ हुवेम वाजसातये गृणन्तो देव्या धिया॥
हे यजमानो! तुम्हारी रक्षा के लिये और तुम्हें अन्न प्राप्त कराने के लिये हम अपनी दिव्य बुद्धि से प्रत्येक देवता की स्तुति करके उसका आवाहन करते हैं।[यजुर्वेद 33.91]
Hey Yajman! We use our divine intelligence for your protection and making food grains a availble to you and resort to Stuti of each demigods for invocation.
दिवि पृष्टो अरोचताग्निर्वैश्वानरो बृहन्।
क्ष्मया वृधान ओजसा चनोहितो ज्योतिषा बाधते तमः॥
महान् और आदित्य रूपी अग्नि देव स्वर्ग लोक के पृष्ठ में प्रकाशित होते हैं। पृथ्वीलोक में मानवों द्वारा प्रदान की गयी आहुतियों से संवर्धित होकर अपने तेज से अन्नादि में वृद्धिकर मानवों को परिपुष्ट करते हैं तथा अपनी ज्योति से अन्धकार को विनष्ट करते हैं।[यजुर्वेद 33.92]
Great Agni Dev in the form of Adity is illuminated over the front of heavens. On being supported-grown by the humans by their sacrifices Agni Dev remove darkness, increase production of food grains by his radiance.
इन्द्राग्नी अपादियं पूर्वागात्पद्वतीभ्यः।
हित्वी शिरो जिह्वया वावदच्चरत्त्रिꣳ शत्पदा न्यक्रमीत्॥
हे इन्द्र और अग्निदेव। यह उषा पाँव रहित हैं, लेकिन फिर भी यह पाँव वाले प्राणियों से पहले आ जाती है। यह उषा शीश रहित है, लेकिन फिर भी यह प्राणियों के शिरों को निद्रात्याग के लिये प्रेरित करती है। वह जिह्वा रहित होते हुए भी प्राणियों की वाशक्ति से शब्द करती हुई अग्रसर होती है तथा तीस पदों (मुहूर्ती) को एक दिन में ही लाँघकर अग्रसर हो जाती है।[यजुर्वेद 33.93]
Hey Indr Dev & Agni Dev! Usha has no legs, yet it appear prior to the living beings having legs. Usha is headless, yet it inspire the minds of living beings to wake up. It has no tongue yet it proceed further by the capability to speech of the living beings. It jumps thirty Pad-Muhurt in a day and proceed further in a day.
देवासो हि ष्मा मनवे समन्यवो विश्वे साकꣳसरातयः।
ते नो अद्य ते अपरं तुचे तु नो भवन्तु वरिवोविदः॥
वे सभी समान मन वाले, दानी, अत्यन्त शक्ति शाली विश्वे देवा, सम्यक् रूप से हमारे निमित्त आज धनादि प्रदान करके हमें समृद्ध करें। वे भविष्यकाल में भी हमारी सन्तानों को धन-सम्पदा प्रदान करने वाले हों।[यजुर्वेद 33.94]
सम्यक् :: समुदाय, समूह, पूरा, सब, समस्त, उचित, उपयुक्त, पूरी तरह से, अच्छी तरह, भली-भाँति; proper.
Vishwe Devs having same innerself-mentality, donors, extremely powerful, should grant us wealth and make us prosper, properly. In future too they should grant wealth & prosperity to our progeny.
अपाधमदभिशस्तीरशस्तिहाथेन्द्रो द्युम्न्याभवत्।
देवास्त इन्द्र सख्याय येमिरे बृहद्भानो मरुद्गण॥
देवराज इन्द्र दुष्ट लोगों को पीड़ा पहुँचाते हैं, हिंसक प्रवृत्ति के रिपुओं का वध करते हैं तथा अनादि वैभवों को प्रदान करके समृद्धिशाली बनाने वाले हैं। हे देवेन्द्र! हे अग्निदेव ! हे मरुतों! हे बृहद्भानो! वसु, रुद्र, आदित्य आदि सम्पूर्ण देवतागण आपके सख्य भाव को प्राप्त करने हेतु प्रयत्नशील हैं।[यजुर्वेद 33.95]
Devraj Indr torture the wicked-vicious, kills the violent and enrich with grandeur, wealth & prosperity etc. Hey devendr! Hey agni Dev! Hey Brahbhdano! Vasu, rudr, Adity and all demigods make efforts to attain your friendship
प्र वऽइन्द्राय बृहते मरुतो ब्रह्मार्चत। वृत्रꣳ हनति वृत्रहा शतक्रतुर्वप्रेण शतपर्वणा॥
हे मरुद्गणो! आप लोग महिमा मय देवराज इन्द्र के निमित्त सामगान रूप वेदमन्त्रों का पाठ करें। वे वृत्रासुर संहारक तथा बहुकर्मा इन्द्र देव शत ग्रंथि वाले वज्र द्वारा वृत्र का वध करते हैं।[यजुर्वेद 33.96]
Hey Marud Gan! You should recite Samgan Ved Mantrs for glorious Indr Dev. He is slayer of Vratra Sur, accomplish many deeds and destroyed Vratr with Vajr having hundred spokes.
अस्येदिन्द्रो वावृधे वृष्ण्यꣳ शवो मदे सुतस्य विष्णवि।
अद्या तमस्य महिमानमायवोऽनुष्टुवन्ति पूर्वथा। इमा उ त्वा । यस्यायमयꣳ सहस्त्रमूर्ध्व ऊ घुणः॥
हे इन्द्र देव तथा विष्णु देव! आप सोमरस का पान करके प्रसन्न हों और याजक की शक्ति तथा वीर्य को संवर्धित करें। वे याजक प्राचीन कालीन ऋत्विजों के सदृश उन देवराज इन्द्र के माहात्म्य का वर्णन करते हैं अर्थात् उनकी महिमा की स्तुति करते हैं।[यजुर्वेद 33.97]
Hey Indr Dev & Vishnu Dev! Gladden by drinking Somras. Increase the power and potential of the Yajak. These Yajak describe the glory of Devraj Indr like the ancient Ritviz.(05.10.2025)
यजुर्वेद संहिता चतुस्त्रिंशोऽध्यायः :: ऋषि :- शिवसंकल्प, अगस्त्य, गृत्समद, अंगिरस, देवश्रय-देववात, भारत, नौधा, गोतम, प्रस्कण्व, कुत्स, हिरण्यस्तूप, वसिष्ठ, सुहोत्र, ऋजिश्वा, मेधातिथि, भरद्वाज, विहव्य, प्राजापत्यो यज्ञ, दक्ष, कूर्म, कण्व; देवता :- मन, अन्न, अनुमति, सिनीवाली, सरस्वती, अग्नि, इन्द्र, सोम, सविता, अश्विनीकुमार, सूर्य, रात्रि, उषा, अग्न्यादि लिंगोक्तदेवता, भग, भगवान्, उषा, पूषा, विष्णु, द्यावापृथिवी, लिंगोक्ता, मरुत, ऋषय, हिरण्यगण, आदित्य, ब्रह्मणस्पति; छन्द :- त्रिष्टुप्, उष्णिक्, अनुष्टुप्, पंक्ति, जगती, गायत्री, बृहती, शक्वरी।
यज्जाग्रतो दूरमुदैति दैवं तदु सुप्तस्य तथैवैति।
दूरंगमं ज्योतिषां ज्योतिरेकं तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु॥
दिव्य शक्ति सम्पन्न जो जागते हुए पुरुष का मन दूर चला जाता है और सोते हुए पुरुष का वैसे ही निकट आ जाता है, जो परमात्मा के साक्षात्कार का प्रधान साधन है; जो भूत, भविष्य, वर्तमान, संनिकृष्ट एवं व्यवहित पदार्थों का एकमात्र ज्ञाता है तथा जो विषयों का ज्ञान प्राप्त करने वाले श्रोत्र आदि इन्द्रियों का एकमात्र प्रकाशक और प्रवर्तक है, मेरा वह मन कल्याणकारी भगवत्सम्बन्धी संकल्प से युक्त हो।[यजुर्वेद 34.1]
Innerself (mind & heart) of a person with divine powers which drags-drifts away when awake, come near while sleeping, constitute the main element of Almighty's invocation, is aware of past, present, future, close-near used goods, is the only witness of passions, lasciviousness, demonstrate the knowledge of listen-heard and organs should be connected with the enlightenment pertaining to well being concerned with the determination of the Almighty.
येन कर्माण्यपसो मनीषिणो यज्ञे कृण्वन्ति विदथेषु धीराः।
यदपूर्वं यक्षमन्तः प्रजानां तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु॥
कर्म निष्ठ एवं धीर विद्वान् जिसके द्वारा यज्ञीय पदार्थों का ज्ञान प्राप्त करके यज्ञ में कर्मों का विस्तार करते हैं, जो इन्द्रियों का पूर्वज अथवा आत्मस्वरूप है, जो पूज्य है और समस्त प्रजा के हृदय में निवास करता है, मेरा वह मन कल्याणकारी भगवत्सम्बन्धी संकल्प से युक्त हो।[यजुर्वेद 34.2]
Devoted to duties, patient scholars attain the Yagy related goods and accomplish the Yagy, who is the ancestor-forefather of the senses i.e., eternal and self-soul, is worshipable resides in the hearts of entire populace; should align my mind & heart -innerself with the resolves pertaining to the Almighty.
यत्प्रज्ञानमुत चेतो धृतिश्च यज्योतिरन्तरमृतं प्रजासु।
यस्मान्नऋते किं चन कर्म क्रियते तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु॥
जो विशेष प्रकार के ज्ञान का कारण है, जो सामान्य ज्ञान का कारण है, जो धैर्यरूप है, जो समस्त प्रजा के हृदय में रहकर उनकी समस्त इन्द्रियों को प्रकाशित करता है, जो स्थूल शरीर की मृत्यु होने पर भी अमर रहता है और जिसके बिना कोई भी कर्म नहीं किया जा सकता, मेरा वह मन कल्याणकारी भगवत्सम्बन्धी संकल्प से युक्त हो।[यजुर्वेद 34.3]
Who is the cause behind all specific and general knowledge, form patience, resides in the hearts of the populace-subjects, illuminate their senses, who survives even after the death of the material body i.e., is immortal, with out which nothing can be done-accomplished, should align my mind & heart-innerself with the resolves pertaining to the Almighty.
येनेदं भूतं भुवनं भविष्यत्परिगृहीतममृतेन सर्वम्।
येन यज्ञस्तायते सप्तहोता तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु॥
जिस अमृत स्वरूप मन के द्वारा भूत, वर्तमान, भविष्य त्सम्बन्धी सभी वस्तुएँ ग्रहण की जाती हैं तथा जिसके द्वारा सात होता वाला अग्निष्टोम यज्ञ सम्पन्न होता है, मेरा वह मन कल्याणकारी भगवत्सम्बन्धी संकल्प से युक्त हो।[यजुर्वेद 34.4]
My mind in a form of nectar-elixir which accept all goods pertaining to past, present & future accompanied with the resolve of devotion to the Almighty, due to which Agnishtom Yagy is accomplished by the seven Hota.
यस्मिन्नृचः साम यजूꣳषि यस्मिन् प्रतिष्ठिता रथनाभाविवाराः।
यस्मिꣳश्चित्तꣳ सर्वमोतं प्रजानां तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु॥
जिस मन में, रथ चक्र की नाभि में अरों के समान त्रग्वेद और सामवेद प्रतिष्ठित हैं तथा जिसमें यजुर्वेद प्रतिष्ठित है, जिसमें प्रजा का सब पदार्थों से सम्बन्ध रखने वाला सम्पूर्ण ज्ञान ओत प्रोत है, मेरा वह मन कल्याणकारी भगवत्सम्बन्धी संकल्प से युक्त हो।[यजुर्वेद 34.5]
My innerself (mind & heart) in which the Rig Ved & Sam Ved are present in the form of spokes of the wheel of charoite, is established in the Yajur Ved, which has the entire knowledge of the materials-requirements of the populace, should be inclined to the beneficial resolve pertaining to the God.
सुषारथिरश्वानिव यन्मनुष्यान्नेनीयतेऽभीशुभिर्वाजिन इव।
हृत्प्रतिष्ठं यदजिरं जविष्ठं तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु॥
श्रेष्ठ सारथी जैसे घोड़ों का संचालन और रास के द्वारा घोड़ों का नियन्त्रण करता है, वैसे ही जो प्राणियों का संचालन तथा नियन्त्रण करने वाला है, जो हृदय में रहता है, जो कभी बूढ़ा नहीं होता और जो अत्यन्त वेगवान् है, मेरा वह मन कल्याणकारी भगवत्सम्बन्धी संकल्प से युक्त हो।[यजुर्वेद 34.6]
My mind should be devoted to the beneficial resolve of the Almighty, like the charioteer who control the horses with the reins; similarly He who resides in the heart, never grow old, possess high speed.
पितुं नु स्तोषं महो धर्माणं तविषीम्। यस्य त्रितो व्योजसा वृत्रं विपर्वमर्दयत्॥
तेज और बल के धारक अन्न की मैं स्तुति करता हूँ, जिस अन्न के प्रभाव से इन्द्र ने वृत्रासुर के टुकड़े-टुकड़े करके उसे काट डाला था।[यजुर्वेद 34.7]
I worship the holder of Tej-energy and strength of food grains, by the impact of which Indr Dev chopped Vratra Sur into pieces.
अन्विदनुमते त्वं मन्यासै शं च नस्कृधि। क्रत्वे दक्षाय नो हिनु प्र ण आयूꣳषि तारिषः॥
हे अनुमते! आप हमारे मनोरथों का अनुमोदन तथा हमारा कल्याण करें। कर्म और बल के लिये आप हमें प्रेरित करें और हमारी आयु की वृद्धि करें।[यजुर्वेद 34.8]
Hey Anumati Dev! Support our desires-ambitions and resort to our welfare. Inspire us for efforts-endeavours and increase our age.
अनु नोऽद्यानुमतिर्यज्ञं देवेषु मन्यताम्। अग्निश्च हव्यवाहनो भवतं दाशुषे मयः॥
हे अनुमते! आप आज हमारे यज्ञ को देवताओं तक प्रेषित करें। हवि-वाहक अग्निदेव भी हमारे यज्ञ को देवों के निकट भेजें। अनुमति देव तथा अग्नि देव हविष्य प्रदान करने वाले याजक के निमित्त आनन्दप्रद सिद्ध हों।[यजुर्वेद 34.9]
Hey Anumati Dev! Propagate-move our Yagy to demigods-deities. Carrier of oblations Agni Dev should also move our offerings to the demigods-deities. Anumati Dev & Agni Dev should prove to be happiness-pleasure granting to the Yajak who who make offerings.
सिनीवालि पृथुष्टके या देवानामसि स्वसा। जुषस्व हव्यमाहुतं प्रजां देवि दिदिड्ढि नः॥
बड़े जुड़े वाली समस्त प्रजाओं की पालनकों, हे सिनी वाली देवि! आप देवगणों की भगिनी हैं, ऐसी आप हमारे द्वारा विशिष्ट प्रकार से प्रदान किये गये आहुति रूप हविष्यान को प्रेम पूर्वक स्वीकार करें। हे दिव्यगुणों से युक्त देवि1 आप हमें संतान की प्राप्ति करायें।[यजुर्वेद 34.10]
जुड़ा :: bun of hair at the back of woman's head, fastened into a round shape.
Hey Sini Vali Devi, having a large bun of hair! You are the sister of the demigods. Accept food grains offered specifically as in the form of sacrifice with love. Hey Goddess possessing divine traits-characterises. Grant us progeny.
पंच नद्यः सरस्वतीमपि यन्ति सस्त्रोतसः। सरस्वती तु पञ्चधा सो देशेऽभवत्सरित्॥
समान स्रोत प्रवाह वाली पाँच नदियाँ महा नदी सरस्वती से सुसंगत होती हैं, वे पाँचों सरस्वती से मिलकर एक ही नाम वाली बन गयी है अर्थात् उन सबका सरस्वती में विलय हो गया है।[यजुर्वेद 34.11]
Five streams from from the same origin become Maha Nadi (great river) Saraswati.(06.10.2025)
त्वमग्ने प्रथमो अंगिराऋषिर्देवो देवानामभवः शिवः सखा।
तव व्रते कवयो विद्यनापसोऽजायन्त मरुतो भ्राजदृष्टयः॥
हे अग्नि देव! आप ही सर्वप्रथम उत्पन्न होने वाले अंगिरा ऋषि हैं। आप ही सर्व प्रथम देवता हैं और देवताओं के कल्याणकारी मित्र हैं। क्रान्तदर्शी, समस्त कर्मों का ज्ञान रखने वाले और ऋष्टि नामक आयुध को धारण करने वाले मरुत देवता आपके मित्र हैं।[यजुर्वेद 34.12]
Hey Agni Dev! You are Angira Rishi who evolved first of all. You are the first demigod and a friend of demigods. You are capable of seeing present, past & future, possess the knowledge of every thing, wield the weapon named as Rishti and Marud Gan are your friends.
त्वं नो अग्ने तव देव पायुभिर्मघोनो रक्ष तन्वश्च वन्द्य।
त्राता तोकस्य तनये गवामस्यनिमेषꣳ रक्षमाणस्तव व्रते॥
हे अग्नि देव! आप स्तवनीय हैं। आप प्रकाशमान हैं। जो धनिक याजक आपके व्रत में संलग्न हैं, उन्हें संरक्षण प्रदान करें तथा हमारे शरीर की रक्षा करें। आप इस पुत्र रूप याजक की सन्तान तथा गौ आदि पशुओं की भी रक्षा करें।[यजुर्वेद 34.13]
Hey Agni Dev! You are worshipable. You are lustrous-bright. Grant asylum to the rich engaged in resolve-fasting, protect our body. Protect the progeny, cows & animals of this Yajak as a son.
उत्तानायामव भरा चिकित्वान्त्सद्यः प्रवीता वृषणं जजान।
अरुषस्तूपो रुशदस्य पाज इडायास्पुत्रो वयुनेऽजनिष्ट॥
हे बुद्धिमान अध्वर्यु! तुम इस उत्तान रखी हुई लकड़ी पर लाकर अग्नि रखो। अरणी द्वारा अग्नि को उत्पन्न करो। अरणि-मन्थन द्वारा उत्पन्न अग्नि लाल रंग की ज्वालाओं वाला होता है, यह अत्यन्त प्रकाशमान होता है।[यजुर्वेद 34.14]
उत्तानायाम्-उत्तान :: विस्तार में, उत्कर्षता के साथ विस्तीर्ण, vast, excellent, spreaded over.
Hey intelligent priest! Keep fire over this excellent wood spreaded-kept here. Produce fire by rubbing wood, through friction. Fire produced by rubbing wood has red colour and possess extreme light.
इडायास्त्वा पदे वयं नाभा पृथिव्या अधि। जातवेदो निधीमह्यग्ने हव्याय वोढवे॥
हे जातवेदा अग्नि देव! धरती के नाभि-स्थल उत्तर वेदी के बीच में हवि वहन करने के निमित्त हम आपकी स्थापना करते हैं।[यजुर्वेद 34.15]
Hey Jat Ved Agni Dev! We help you at the naval-Sthal, Uttar Vedi for supporting offerings.
प्र मन्महे शवसानाय शूषमाङ्गूषं गिर्वणसे अङ्गिरस्वत्।
सुवृक्तिभिः स्तुवत ऋग्मियायार्चामार्कं नरे विश्रुताय॥
बल प्रदान करने वाले त्रिवृतादि स्तोम को हम जानते हैं तथा बल की इच्छा वाले, कीर्ति प्राप्त करने के योग्य, मन्त्रों के द्वारा स्तवनीय, विख्यात एवं मानव रूप इन्द्र देव की अंगिरा के सदृश हम अर्चना करते हैं।[यजुर्वेद 34.16]
We know the Trivratadi Stom which grant strength. We worship famous Indr Dev in the form-grab of a human being, who wish to have might-power, fame is prayed with Mantrs like Angira Rishi.
प्र वो महे महि नमो भरध्वमाङ्गुष्यꣳ शवसानाय साम।
येना नः पूर्वे पितरः पदज्ञाऽ अर्चन्तो अङ्गिरसोगा अविन्दन्॥
हे ऋत्विग्गणो! आप महिमावान् इन्द्र देव के निमित्त महान् अन्न और सोम को समर्पित करें तथा सामरूप स्तुति करें। उसी अन्न के द्वारा तथा साम के द्वारा हमारे आत्मरूप पूर्वजों (पितरों) ने भी अर्चना की थी, तत्पश्चात् उन्हें गायों की प्राप्ति हुई।[यजुर्वेद 34.17]
Hey Ritviz Gan! Offer great-best food brains and Som and worship Indr Dev as Sam. The Manes-Pitr in the form of soul, too worshiped with the same food grains and they obtained cows.
इच्छन्ति त्वा सोम्यासः सखायः सुन्वन्ति सोमं दधति प्रयाꣳसि।
तितिक्षन्ते अभिशस्तिं जनानामिन्द्र त्वदा कश्चन हि प्रकेतः॥
हे देवराज इन्द्र! चाहे जिस भी प्रकार का विशिष्ट श्रेष्ठ ज्ञान हो सब आपके द्वारा ही उपलब्ध होते हैं। सोम को अभिषुत करने वाले सखा रूप विप्रजन आपकी ही अभिलाषा करते हैं। वे मानवों द्वारा कहे जानेवाले दुर्वचनों को सहन करते हुए भी सोम को अभिषुत करते हैं तथा अन्न को धारण करते हैं।[यजुर्वेद 34.18]
Hey Devraj Indr! Every specific knowledge is attained through you. The friendly Brahmans who wish to have extracted-sanctified Somras wish to have you. They tolerate the abuses of the humans, extract Somras and support food grains.
न ते दूरे परमा चिद्रजाꣳ स्या तु प्र याहि हरिवो हरिभ्याम्।
स्थिराय वृष्णे सवना कृतेमा युक्ता ग्रावाणः समिधाने अग्नौ॥
हरि नामक अश्वों से सम्पन्न हे देवेन्द्र! अग्नि देव के प्रज्वलित होने की अवस्था में, सौहार्द्र के निमित्त ये प्रातःकालीन यज्ञ अर्थात् सवन किये जा रहे हैं। इन अभिषवण प्रस्तरों को आपके हेतु प्रस्तुत किया गया है, अतः आप यहाँ अपने अश्वों सहित पदार्पण करें; क्योंकि अत्यन्त दूरस्थ स्थान भी आपके लिये अधिक दूर नहीं है।[यजुर्वेद 34.19]
Hey Indr Dev, lord of greenish horses names Hari! Yagy is carried in the first segment of the day after igniting fire-Agni Dev for mutual love & affection. These stones used to crush Som & extract Somras, are meant for you. Come here riding your horses. This distant place is not for you.
अषाढं युत्सु पृतनासु पप्रिꣳ स्वर्षामप्सां वृजनस्य गोपाम्।
भरेषुजाꣳ सुक्षितिꣳ सुश्रवसं जयन्तं त्वामनु मदेम सोम॥
हे सोम! युद्धों में पराजित न होने वाले, रिपुओं को जीतने वाले, सेनाओं के पालनकर्ता, जल प्रदाता, बल के संरक्षक, युद्धों के विजेता, उत्तम निवास स्थान से युक्त एवं यशस्वी आपके जयशील स्वरूप से हम हर्षित होते हैं।[यजुर्वेद 34.20]
Hey Som! Never defeated in the battle, winner of enemies, maintainer-supporter of armies, protector of strength, possessing excellent housing, victorious, gracious and glorious grant us pleasure.
सोमो धेनुꣳ सोमो अर्वन्तमाशुꣳ सोमो वीरं कर्मण्यं ददाति।
सादन्यं विदथ्यꣳ सभेयं पितृश्रवणं यो ददाशदस्मे॥
जो याजक सोम देवता के निमित्त हवि अर्पित करते हैं, उन्हें ये सोम दुग्ध प्रदान करने वाली धेनु देते हैं। ये सोम अत्यन्त वेगवान् अश्व प्रदान करते हैं एवं वही सोम कर्म में निपुण, सद्गृही, यज्ञ कर्म में पारंगत, सभा के योग्य तथा पिता की आज्ञा का पालन करने वाले पराक्रमी पुत्र प्रदान करनेवाले हैं।[यजुर्वेद 34.21]
The Yajak who make offerings for Som Dev is granted milch cow by him. Som grants fast moving horses. Som grant expert in deeds-endeavours, expert in accomplishing Yagy, gentle, suitable for council, obedient to father invincible son.(08.10.2025)
त्वमिमा ओषधीः सोम विश्वास्त्वमपो अजनयस्त्वं गाः।
त्वमा ततन्थोर्वन्तरिक्षं त्वं ज्योतिषा वि तमो ववर्थ॥
हे सोम! आप इन सभी ओषधियों को उत्पन्न करने वाले हैं। आपने ही जलों तथा धेनुओं को प्रादुर्भूत किया है। आपने ही विस्तृत अन्तरिक्ष लोक को विस्तारित किया है एवं ज्योति के द्वारा तमिस्त्रा (अन्धकार) को दूर किया है।[यजुर्वेद 34.22]
प्रादुर्भूत :: प्रकट हुआ, उत्पन्न; evolved, produced, appear.
Hey Som! You are the producer of all these medicines (herbs, medicinal plants). You evolved water and cows. You further extended-expended the sky-space and removed darkness with light.
देवेन नो मनसा देव सोम रायो भागꣳ सहसावन्नभि युध्य।
मा त्वा तनदीशिषे वीर्यस्योभयेभ्यः प्र चिकित्सा गविष्टौ॥
हे सोम! आप दिव्य शक्तियों से युक्त मन वाले हैं। हे बलवान् सोमदेव! हमें अपने उत्तम धन से अल्प भाग प्रदान करने की कृपा करें। आप जो दान हमें देना चाहते हैं, उस दान को हमें देने से आपको कोई रोक न सके। आप बल-वीर्य के अधिष्ठाता हैं। आप दोनों लोकों में हमारे सुख के लिए प्रयत्न करें।[यजुर्वेद 34.23]
Hey Som! Your innerself-mind possess divine powers. Hey mighty Som Dev! Grant a bit of your excellent wealth to us. None should stop you from making donation to us. You are the Lord-deity of strength-potential. Make efforts for comforts-pleasure for us in both abodes (heavens & earth).
अष्टौ व्यख्यत्ककुभः पृथिव्यास्त्रीधन्व योजना सप्त सिंधून्।
हिरण्याक्षः सविता देव आगाद्दधद्रत्ना दाशुषे वार्याणि॥
हिरण्य दृष्टि (सुवर्णमयी रश्मियों) वाले सविता देव, हविष्यान्न प्रदान करने वाले याजक के निमित्त उत्कृष्ट रत्नों को प्रदान करने के निमित्त यहाँ आगमन करें, वही सविता देव धरती की आठों दिशाओं, तीनों लोकों, सात समुद्रों एवं अनेक योजन भूमि को प्रकाशित करते हुए उदय होते हैं।[यजुर्वेद 34.24]
Savita Dev with golden vision-light, grantor of offerings-oblations, excellent gems-jewels should arrive here, illuminate all eight directions of earth, seven seas three abodes and illuminate hundreds of Yojan of land while arising.
हिरण्यपाणिः सविता विचर्षणिरुभे द्यावापृथिवी अंतरीयते।
अपामीवां बाधते वेति सूर्यमभि कृष्णेन रजसा द्यामृणोति॥
विशिष्ट रूप से प्रजाओं को देखने वाला, सुनहली किरणों से शोभायमान, सर्व-उत्पादक सविता देव आप पृथ्वी-आकाश के बीच में गति करते हैं। वही सूर्य देव अपने उदय से रोग आदि को नष्ट कर देते हैं। उनके अस्ताचलगामी होने पर अन्धकार स्वर्ग लोक को संव्याप्त कर लेता है।[यजुर्वेद 34.25]
Savita Dev looks at the populace specifically, with golden rays, glorious, producer of all, move between the earth and sky. Same Sury-Savita Dev destroys the diseases by arising. With the Sun set heavens are covered with darkness.
हिरण्यहस्तो असुरः सुनीथः सुमृडीकः स्ववाँ यात्वर्वाङ्।
अपसेधन्क्षसो यातुधानानस्थाद्देवः प्रतिदोषं गृणानः॥
सुनहली किरणों रूपी हाथ वाले, असु (प्राण) से सम्पन्न, उत्तम स्तोत्रों वाले, सुख प्रदान करने वाले, वैभव शाली सविता देव सभी प्रकार के दोषों को भली-भाँति देखते हुए राक्षस आदि को विनष्ट करते हुए उदीयमान होते हैं, ऐसे सविता देव हमारे अभिमुख हों।[यजुर्वेद 34.26]
Possessing the rays as hands, possessing Air Vital, with excellent Strotrs, granting comfort-pleasure, glorious Savita Dev watches all sorts of defects destroys the demons-giants, rises up. Let him be before us.(09.10.2025)
ये ते पंथाः सवितः पूर्व्यासोऽरेणवः सुकृताअंतरिक्षे।
तेभिर्नो अद्य पथिभिः सुगेभी रक्षा च नो अधि च ब्रूहि देव॥
हे सविता देव! आपके जो सभी मार्ग प्राचीन काल से रेणु शून्य (धूल रहित) तथा विधातु द्वारा विनिर्मित अन्तरिक्ष में देदीप्यमान हैं, उस सुगम मार्ग द्वारा आप हमारे यज्ञ में पधारें और हमारी रक्षा करें तथा हे देव! यह कहें कि हम आपके ही हैं।[यजुर्वेद 34.27]
विधातु :: रचना, सृजन करना, असार (धातुओं का); creation, metallic.
Hey Savita Dev! From ancient times all of your routes are free from dust particles, shinning-illuminous shinning like metals. We should be fortunate enough to walk over these paths safely. Follow that path and join our Yagy. Hey Dev! Please say that we belong to you.
उभा पिबतमश्विनोभा नः शर्म यच्छतम्। अविद्रियाभिरूतिभिः॥
हे दोनों अश्विनी कुमारों! आप दोनों यहाँ आकर सोमरस का पान करें तथा हमें सुख-शान्ति प्रदान करें। अपनी अमोघ रक्षण शक्ति द्वारा हमें सुरक्षित करें।[यजुर्वेद 34.28]
अमोघ :: अचूक, अव्यर्थ, अव्यर्थता; unfailing, effectual.
Hey Ashwani Kumar duo! Come here, drink Somras and grant us peace & pleasure. Protect us with your unfailing, effectual power.
अप्नस्वतीमश्विना वाचमस्मे कृतं नो दस्त्रा वृषणा मनीषाम्।
अद्यूत्येऽवसे निह्वये वां वृधे च नो भवतं वाजसातौ॥
हे दर्शन करने योग्य, दिव्य शक्तियों से युक्त दोनों अश्विनी कुमारों! आप दोनों हमारी वाणी तथा मेधा को श्रेष्ठ कर्मों में योजित करें। हम ऋत्विग्गण श्रेष्ठ मार्ग से प्राप्त होने वाले अन्न के निमित्त आप दोनों को आहूत करते हैं। आप दोनों ही हमारे यज्ञ में हमारी अभिवृद्धि करने वाले बनें। हमें द्यूतक्रीडा से विरत रहें।[यजुर्वेद 34.29]
Hey Ashwani Kumars duo having divine power, worth seeing! Combine our best endeavours with intelligence and speech. We the Ritviz, invoke you for having food grains obtained through the best route-source. Both of you should become grower of our Yagy. We should not indulge in gambling.
द्युभिरक्तुभिः परिपातमस्मानरिष्टेभिरश्विना सौभगेभिः।
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिंधुः पृथिवीउत द्यौः॥
हे दोनों अश्विनी कुमारों! हिंसा रहित और सुगम उपायों द्वारा आप हमारी दिन-रात रक्षा करें। मित्र देव, वरुण देव, अदिति माता, सिन्धु, द्यावा-पृथिवी भी हमारी रक्षा करें।[यजुर्वेद 34.30]
Hey Ashwani Kumars! Protect us through out the day & night through non violent means. Mitr Dev, Varun Dev, Mata Aditi, Sindhu-ocean, heavens & earth too should also protect us.
आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च।
हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्॥
रात्रि के अन्धकार पूर्ण लोक से आते हुए, देवताओं और मनुष्यों को उनके कर्मों में लगाते हुए तथा लोकों को देखते हुए, सूर्य देव अपने स्वर्णमय रथ पर बैठकर आते हैं।[यजुर्वेद 34.31]
Sury Dev ride his golden charoite and see the abodes full of darkness of night, engaging the demigods & humans and their daily chores.
आ रात्रि पार्थिवꣳ रजः पितुरप्रायि धामभिः।
दिवः सदाꣳसि बृहती वि तिष्ठस आ त्वेषं वर्तते तमः॥
हे रात्रि देवि! आप पृथ्वी लोक को एवं अन्तरिक्ष लोक के स्थानों को सब ओर से पूर्ण करती हैं। आप श्रेष्ठ स्वर्ग लोक के स्थलों को व्याप्त करने वाली हैं। हे महिमामयी! आपके द्वारा ही घनघोर अन्धकार चारों ओर संव्याप्त हो जाता है।[यजुर्वेद 34.32]
Hey deity of night-Ratri! You shroud the earth and space-sky with darkness. You pervade the excellent heavens from all sides. Hey glorious! Its due to you that extreme darkness engulf all places.
उषस्तच्चित्रमाभरास्मभ्यं वाजिनीवति। येन तोकं च तनयं च धामहे॥
हे अन्न दायिनी उषा देवि! आप हमें अद्भुत तथा श्रेष्ठ ऐश्वर्य प्रदान करें, जिसके द्वारा हम अपनी सन्तानों का अच्छी तरह से भरण-पोषण कर सकें।[यजुर्वेद 34.33]
Hey Usha Dev, granting us food grains! Grant us amazing and excellent grandeur so that we are able to nourish-bring up, our children in best possible manner.
प्रातरग्निं प्रातरिन्द्रꣳ हवामहे प्रातर्मित्रावरुणा प्रातरश्विना।
प्रातर्भगं पूषणं ब्रह्मणस्पतिं प्रातः सोममुत रुद्रꣳ हुवेम॥
प्रातःकाल में यज्ञाग्नि के रूप में हम अग्नि देव को आहूत करते हैं। प्रातःकाल में ही यज्ञ की सफलता के लिए देवराज इन्द्र, मित्रा-वरुण देव, अश्विद्वय, भगदेव, पूषा देव, ब्रह्मणस्पति, सोमदेव तथा रुद्रदेव को आहूत करते हैं।[यजुर्वेद 34.34]
We invoke Agni Dev in the morning as the Yagy fire. We invoke Devraj Indr, Mitra-Varun Dev, Ashwani Kumars duo, Bhag Dev, Pusha Dev, Brahmanspati, Som Dev and Rudr Dev in the morning, for the success of the Yagy.
प्रातर्जितं भगमुग्रꣳ हुवेम वयं पुत्रमदितेर्यो विधर्त्ता।
आध्राश्चिद्यं मन्यमानस्तुश्चिद्राजा चिद्यं भगं भक्षीत्याह॥
प्रातःकाल हम अदिति के पुत्र, जेता, उग्र स्वभाव और विशेष रूप से धारण करने वाले भगदेव आह्वान करते हैं। बुभुक्षित भी जिसे सम्मान देते हुए 'उदय होओ' ऐसा कहता है, रोगी भी और राजा भी जिसे 'उदय होओ' ऐसा कहता है।[यजुर्वेद 34.35]
बुभुक्षित :: प्रत्यय, जिसे भूख लगी हो, भूखा, क्षुधित; suffix. hungry.
We invoke in the morning Aditi's son, Jeta, furious Bhag Dev adopting specific shapes-sizes whom the hungry says respectfully "rise", patient and king too says "rise-get up".
भग प्रणेतर्भग सत्यराधो भगेमां धियमुदवा ददन्नः।
भग प्र नो जनय गोभिरश्वैर्भग प्र नृभिर्तृवन्तः स्याम॥
हे श्रेष्ठ पथ-प्रदर्शक भगदेव! आप अविनाशी धन प्राप्त करने के साधन हैं। हमें श्रेष्ठ मेधा प्रदान करके हमारी रक्षा करें। हे भगदेव! हमें धेनु तथा अश्वादि प्रदान करके समृद्धिशाली बनायें। हे भगदेव! हमें अनेक पुत्र और सेवक प्रदान करें।[यजुर्वेद 34.36]
Hey Bhag Dev, showing us the path, guiding us! You are the means-source of immortal wealth. Grant us best intelligence and protect us. Enrich us, make us prosperous with cows, horses. Grant us many sons and servants.
उतेदानीं भगवन्तः स्यामोत प्रपित्व उत मध्ये अह्नाम्।
उतोदिता मघवन्त्सूर्यस्य वयं देवानाꣳ सुमतौ स्याम॥
हे भग देव! हम वर्तमान में धनवान् हों। सूर्यास्त और दिन के मध्य में हम धनवान् हों। हे इन्द्र देव! हम सूर्योदय के समय धनवान् हों। हमें सदा सुमति प्रदान करें।[यजुर्वेद 34.37]
Hey Bhag Dev! We should be rich currently. We should be rich during the evening & day. Hey Indr Dev. We should be rich at the time of Sun rise. Award us virtuous, righteous, pious mind-brain.
भग एव भगवाँ2। अस्तु देवास्तेन वयं भगवन्तः स्याम।
तं त्वा भग सर्व इज्जोहवीति स नो भग पुर एता भवेह॥
हे देवता गण! सभी प्रकार की धन-सम्पदाओं के अधिष्ठाता भग देवता की कृपा से हम भी सम्पूर्ण ऐश्वयों से युक्त हों। हे भग (वैभवशाली)! समस्त मानव आपको आहूत करते हैं। हे ऐश्वर्याधिपति! ऐसे प्रसिद्ध आप हमारे आगे चलने वाले होकर सभी कार्यों को सफल करें।[यजुर्वेद 34.38]
Hey demigods-deities! Deity-Lord of all sorts of riches-wealth Bag Dev bless us with all sorts of grandeur. Hey Bhag Dev! All human beings invoke you. Hey Lord-deity of grandeur! Lead us and accomplish our all endeavours.(10.10.2025)
समध्वरायोषसोऽ नमन्त दधिक्रावेव शुचये पदाय।
अर्वाचीनं वसुविदं भगं नो रथमिवाश्वा वाजिन आ वहन्तु॥
उषाकाल में देवताओं के हर्ष के निमित्त उत्तम यज्ञादि कर्म पूर्ण होते हैं, जिस प्रकार समुद्री घोड़े अपने पवित्र पाँव बढ़ाने हेतु एवं वेगवान् अश्व रथ वहन करने के निमित्त तत्पर होते हैं, उसी प्रकार भग देव उत्तम प्रकार के वैभवों को हमें प्रदान करके समृद्धिशाली बनायें।[यजुर्वेद 34.39]
During Usha Kal-dawn, excellent Yagy and other virtuous deeds are accomplished for the happiness of demigods-deities. The way the ocean horses move their legs to forward to carry the charoite, similarly Bhag Dev should proceed to grant us best prosperity-opulence.
अश्वावतीर्गोमतीर्न उषासो वीरवतीः सदमुच्छन्तु भद्राः।
घृतं दुहाना विश्वतः प्रपीता यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
अश्वों, धेनुओं, पराक्रमी सन्ततियों को देने वाली, कल्याण स्वरूपा उषा देवी हमारे लिये प्रकट हों। ओसजल को क्षरित करती हुई और सर्वथा प्रवृद्धा हे उषा देवियों! आप हमारा कल्याण करें और हमारी सुरक्षा करें।[यजुर्वेद 34.40]
प्रवृद्ध :: तलवार के 32 हाथों में से एक जिसे प्रसृत भी कहते हैं, इनमें तलवार की नोक से शत्रु का शरीर छू भर जाता है, अयोध्या के राजा रघु का एक पुत्र जो गुरु के शाप से 12 वर्ष के लिये राक्षस हो गया था।
प्रवृद्धा :: बहुत अधिक बढ़ा हुआ, विकसित या परिपक्व, विस्तृत, फैला हुआ, सूजा हुआ या गहरा; highly -grown up developed.
Well wisher-beneficial Usha Devi who grant excellent horses cows, invincible-brave progeny, should appear. Removing the dew, highly developed-grown up Usha Devis! Resort to our welfare-benefits and protect us.
पूषन्तव व्रते वयं न रिष्येम कदा चन। स्तोतारस्त ऽइह स्मसि॥
हे पूषा देव! आपके व्रतानुशासन में संलग्न हमारा कभी भी नाश न हों। यहाँ हम यज्ञानुष्ठानों में आपकी स्तुति करते हैं।[यजुर्वेद 34.41]
Hey Pusha Dev! Being devoted to your resolve-Vrat etc., we should never perish. We worship you during Yagy, rituals and virtuous deeds.
पथस्पथः परिपतिं वचस्या कामेन कृतो अभ्यानडर्कम्।
स नो रासच्छुरुधश्चन्द्राग्रा धियं धियꣳ सीषधाति प्र पूषा॥
श्रेष्ठ स्तोत्रों के द्वारा अभ्यर्थनीय पूषा देव हमें सत्य पथ पर चलने के निमित्त प्रेरित करते हैं, वही हमें प्रसन्नतादायी तथा सन्ताप को नष्ट करने वाले साधनों को प्रदान करने वाले हैं। वे हमारी मेधा को उत्तम कर्मों में लगायें।[यजुर्वेद 34.42]
अभ्यर्थना :: अनुरोध, विनती, मांग, याचना; postulation, adjuration.
Worshiped with best Strotr-prayers, worshipable Pusha Dev inspire us to follow truthful route-path. He is the one who grant us pleasure, remove pain-sorrow. Let him guide-indulge our brain in excellent endeavours-efforts.
त्रीणि पदा वि चक्रमे विष्णुर्गोपा अदाभ्यः। अतो धर्माणि धारयन्॥
सर्व व्यापी, सबकी रक्षा करने वाले, तथा अमर विष्णु देव तीनों भुवनों को विशिष्ट रूप से निर्मित करते एवं चलाते हैं और अपनी त्रिविध शक्तियों द्वारा सम्पूर्ण सृष्टि को धारण करते हैं।[यजुर्वेद 34.43]
All pervading, protecting all immortal Bhagwan Shri Hari Vishnu, specifically created the three abodes and manage them. With his three dimensional powers he support the entire universe.
तद्विप्रासो विपन्यवो जागृवाꣳसः समिन्धते। विष्णोर्यत्परमं पदम्॥
ब्रह्मनिष्ठ जीवन व्यतीत करने वाले, निष्काम कर्म करने वाले, कर्मों में आलस्य न करने वाले साधक भगवान् विष्णु के सर्वश्रेष्ठ परमधाम को प्राप्त करने के अधिकारी होते हैं।[यजुर्वेद 34.44]
Those devoted to Brahm, function without motive-selfishness, free from laziness are qualified for the Ultimate abode of Bhagwan Shri Hari Vishnu.
घृतवती भुवनानामभिश्रियोर्वी पृथ्वी मधुदुधे सुपेशसा।
द्यावापृथिवी वरुणस्य धर्मणा विष्कम्भिते अजरे भूरिरेतसा॥
जल युक्त, समस्त प्राणियों को आश्रय प्रदान करने वाली विशाल पृथ्वी मधुर रस को दुहने में सक्षम है। द्यावा-पृथिवी श्रेष्ठ स्वरूप वाली, जरा रहित, बीजरूप एवं वरुण देव की सामर्थ्य शक्ति द्वारा सुदृढ़ हुई है।[यजुर्वेद 34.45]
Possessing water, offering shelter to all living beings-organism, too vast earth is capable of extracting sweet saps. Heaven-earth with best form-shape, free from aging-old age, is in the form of seeds and compacted, strengthened by virtue of Varun Dev's powers.
ये नः सपत्ना अप ते भवन्त्विन्द्राग्निभ्यामव बाधामहे तान्।
वसवो रुद्रा आदित्या उपरिस्पृशं मोग्रं चेत्तारमधिराजमक्रन्॥
हमारे रिपु वीर्य हीन होकर पराभव को प्राप्त करें। हम ऐसे रिपुओं को इन्द्राग्नि के बल द्वारा विनष्ट करते हैं। वसुगण, रुद्रगण तथा आदित्यगण हमें उच्चासन पर स्थित करें तथा उत्तम वस्तुओं का ज्ञाता एवं सभी वैभवों का अधिपति बनायें।[यजुर्वेद 34.46]
Let our enemies become incapable, incompetent, potential less and be defeated. We destroy the enemies with the Indragni's power-strength. Let Vasu Gan, Rudr Gan and Adity Gan establish us over high position-seat (throne), make us expert in excellent materials-goods and the lord of all sorts of grandeur.
आ नासत्या त्रिभिरेकादशैरिह देवेभिर्यातं मधुपेयमश्विना।
प्रायुस्तारिष्टं नी रपाꣳसि मृक्षतꣳ सेधतं द्वेषो भवतꣳ सचा भुवा॥
हे दोनों अश्विनी कुमारों! आप तैंतीस देवगणों के साथ हमारे यज्ञ में मधुर रस का पान करने के उद्देश्य से पधारें। हमें दीर्घायु प्रदान करें तथा पापों का समूल नाश करें। जो हमसे द्वेष करते हैं, उन्हें विनष्ट करें तथा सभी प्रकार की स्थिति में हमारे सहायक सिद्ध हों।[यजुर्वेद 34.47]
Hey Ashwani Kumars! Come to our Yagy to drink the sweet saps-juices with 33 demigods. Grant us long life and remove our sins completely (ensure that we do not indulge in sins in any of our rebirths). Destroy those who are envious to us and become helpful to us in all eventualities-conditions.
एष वः स्तोमो मरुत इयं गीर्मान्दार्यस्य मान्यस्य कारोः।
एषा यासीष्ट तन्वे वयां विद्यामेषं वृजनं जीरदानुम्॥
हे मरुद्गण! सम्माननीय, फल प्रदान करने वाले स्तोम तथा सत्य-प्रिय वाणी रूप याजक की स्तुतियाँ आपके निमित्त समर्पित हैं। आप वर्षा के निमित्त आवाहित है। हे मरुद्गण! बाल-युवा और वृद्धा अवस्था को शरीर के दृढ़ करने के लिये यहाँ आओ। आप वर्षा, अन्न और बल हमें प्रदान करें।[यजुर्वेद 34.48]
Hey Marud Gan! Stuties by Yajak, honourable rewarding Stom and truthful speech-words are offered to you. You are invoked for rains. Hey Marud Gan! Come here to strengthen our childhood, youth and old age. Grant us food grains strength and rains.
सहस्तोमाः सहच्छन्दस आवृतः सहप्रमा ऋषयः सप्त दैव्याः।
पूर्वेषां पन्थामनुदृश्य धीराअन्वालेभिरे रथ्यो न रश्मीन्॥
स्तोम तथा त्रिष्टुप् छन्दों के साथ, कर्म में संलग्न, शब्द में संलग्न, दिव्य मेधा वाले, दिव्य सप्तर्षियों (भरद्वाज, कश्यप, गौतम, अत्रिं, विश्वामित्र, जमदग्नि और वसिष्ठ) ने पूर्वजन्मा ऋषियों के पथ का अवलोकन करके सृष्टि यज्ञ का सम्पादन किया, जिस प्रकार इष्ट स्थल पर जाने की इच्छा वाले सारथी लगाम द्वारा अश्वों को ले जाते हैं।[यजुर्वेद 34.49]
7 Sages-Rishis viz Bhardwaj, Kashyap, Gautom, Atri, Vishwa Mitr, Jamdagni and Vashishth; inspected the path-mode of the ancient-eternal Rishis with Stom, Trishtup Chhand, engaged in work-deeds & word-writing, speech, having divine intelligence similar to the charioteers desirous of taking the horses to desired destination with reins.
आयुष्यं वर्चस्यꣳ रायस्पोषमौद्भिदम्। इदꣳ हिरण्यं वर्चस्व जैत्राया विशतादु माम्॥
यह आयु में वृद्धि करने वाला, तेज प्रदान करने वाला, धन रूप, पुष्टि-वर्धक, खान से उत्पन्न, तेज को प्रकाशित करने वाला सुवर्ण विजय के निमित्त मुझे प्राप्त हो।[यजुर्वेद 34.50]
Let the gold extracted from the quarry-mine, which increase age, grant Tej-energy, in the form of wealth, be available to me for victory.
न तद्रक्षाꣳ सि न पिशाचास्तरन्ति देवानामोजः प्रथमजꣳ ह्येतत्।
यो बिभर्ति दाक्षायणꣳ हिरण्यꣳ स देवेषु कृणुते दीर्घमायुः स मनुष्येषु कृणुते दीर्घमायुः॥
उस सुवर्ण को राक्षस नहीं लाँघ पाते, पिशाचादि विनष्ट नहीं कर पाते, यह देवों का प्रथम उत्पन्न हुआ तेज है। अतएव जो आभूषण के रूप में सुवर्ण को पहनता है, वह चिरकाल तक जीवित रहता है। स्वर्ग लोक में भी वह दीर्घ काल तक वास करता है।[यजुर्वेद 34.51]
The demons are unable to cross that gold, Dracula-Pishach are unable to destroy it, which is the Tej-aura of the demigods evolved first. Hence one who wear gold in ornaments remain alive for long. He reside in heavens for long.
यदाबध्नन्दाक्षायणा हिरण्य शतानीकाय सु शतशारदायायुष्माञ्जरदष्टिर्यथासम्॥
सुन्दर मन वाले दक्ष वंशोत्पन्न ब्राह्मणों ने जिस सुवर्ण से राजा शतानीक को बाँधा था, उस सुवर्ण को हम शतायु प्राप्त करने के निमित्त बाँधते हैं, जिससे हम दीर्घकाल तक जीवित रहें तथा वृद्धावस्था की आयु पर्यन्त स्थित रहें।[यजुर्वेद 34.52]
The Gold with which Brahmans having with beautiful heart & mind, born in Daksh clan, tied king Shataneek for attaining an age of hundred years and remain intact till old age, we too tie our selves.
Gold has the property of destroying germs, virus, fungus, microbes, thus one is supposed to wear it as chain etc. etc.
उत नोऽहिर्बुध्न्यः शृणोत्वजएकपात्पृथिवी समुद्रः।
विश्वेदेवाऋतावृधो हुवानाः स्तुता मंत्राः कविशस्ता अवन्तु॥
अहिर्बुध्न्य देवता, अजैकपात्, धरती, सागर तथा समस्त देवतागण हमारी याचना को ध्यानपूर्वक सुनें। सत्य को बढ़ाने वाले, मन्त्रों द्वारा स्तवनीय, बुद्धिमान् लोगों के द्वारा पूजनीय एवं हमारे द्वारा बुलाये जाने वाले सम्पूर्ण देवता गण हमारे संरक्षक सिद्ध हों।[यजुर्वेद 34.53]
Ahirbundhany deity, Ajaekpat, Dharti-earth, Sagar-ocean, all demigods-deities should listen-respond to our prayers carefully. Promoters of truth, worshiped with Mantrs by the intelligent people and the demigods-deities invoked by us should be our patron-protectors.
इमा गिर आदित्येभ्यो घृतस्नूः सनाद्राजभ्यो जुह्वा जुहोमि।
शृणोतु मित्रो अर्यमा भगो नस्तुविजातो वरुणो दक्षो अꣳशः॥
यह घृत को छोड़ने वाली स्तुति, बुद्धि रूप जुहू (वाणियों को जुह्वा ग्रहण के साधन से) द्वारा चिरकाल से दीप्तिमान् आदित्य गणों के निमित्त अर्पित हैं। मित्र देव, अर्यमा देव, भग देव, त्वष्टा देव, वरुण देव, दक्ष, अंश देवता भी हमारी स्तुति रूप वाणी को सुनें।[यजुर्वेद 34.54]
This prayer for releasing Ghee, illuminated intelligence form Juhu (Juvha means of acceptance), is offered to Adity Gan. Let Mitr Dev, Aryma Dev, Bhag Dev, Twasta Dev, Varun Dev, Daksh, Ansh Dev should respond to our voice forming Stuti-prayer, request.
सप्तऋषयः प्रतिहिताः शरीरे सप्त रक्षन्ति सदमप्रमादम्।
सप्तापः स्वपतो लोकमीयुस्तत्र जागृतो अस्वप्नजौ सत्रसदौ च देवौ॥
त्वक्, चक्षु, श्रवण, रसना, घ्राण, मन, बुद्धि लक्षण वाले सप्तर्षि (प्राण) सदैव प्रमाद रहित रहते हुए शरीर की रक्षा करते हैं। ये सातों सुप्तावस्था में शरीर धारियों के आत्मा में लीन हो जाते हैं। उस काल में भी प्राणियों के प्राण-अपान जाग्रत् रहते हैं।[यजुर्वेद 34.55]
त्वक् :: त्वचा, छिलका, और पेड़ की छाल शामिल हैं. यह पाँच ज्ञानेन्द्रियों में से एक भी है, जो स्पर्श का अनुभव कराती है; skin.
Skin, eyes, ears, tongue, smelling-nostrils, innerself (mind & heart) and intelligence form the seven sages, which protect the body without being egoistic. During sleep they resolve-rest in the soul. During that period Air Vital and gas to be rejected, remain alert.
उत्तिष्ठ ब्रह्मणस्पते देवयन्तस्त्वेमहे।
उप प्र यन्तु मरुतः सुदानव इन्द्र प्राशूर्भवा सचा॥
हे ब्रह्मण स्पते! आप जाग्रत् हों। जिससे हम देवताओं की इच्छा करते हुए आपके आगमन की याचना करें। उत्तम दान प्रदाता मरुद्गण के साथ आप पधारें। हे इन्द्र देव! आप भी उनके संग इस यज्ञ में आगमन हेतु शीघ्रतापूर्वक तत्पर हो जायँ।[यजुर्वेद 34.56]
Hey Brahman Spatye! Be alert-conscious, so that we can invoke you, while having the desire of visit by the demigods. Come with Marud Gan who grant best donations. Hey Indr Dev! You should be ready to accompany them in the Yagy quickly.
प्र नूनं ब्रह्मणस्पतिर्मन्त्रं वदत्युक्थ्यम्।
यस्मिन्निन्द्रो वरुणो मित्रो अर्यमा देवा ओकाꣳ सि चक्रिरे॥
ब्रह्मण स्पति स्तवनीय मन्त्रों का प्रकृष्ट रूप से उच्चारण हमसे कराते हैं। उन मन्त्रों में इन्द्र देव, वरुण देव, मित्र देव तथा अर्यमा देव निवास करते हैं।[यजुर्वेद 34.57]
Brahman Spati make us recite the worship Mantrs in their excellent form. Indr Dev, Varun Dev, Mitr Dev, Aryma Dev reside in these Mantrs.
ब्रह्मणस्पते त्वमस्य यन्ता सूक्तस्य बोधि तनयं च जिन्व। विश्वं तद् यदवन्ति देवा बृहद्वदेम विदथे सुवीराः। यऽइमा विश्वा विश्वकर्मा यो पितान्नपतेऽन्नस्य नो देहि॥
हे ब्रह्मण स्पते! आप ही इस जगत् के नियन्ता हैं। अतः आप हमारे द्वारा की जाने वाली प्रार्थनाओं (सूक्तों) को सुनें और हमारी सन्तानों पर अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखें। देवता जिस कल्याण को परिपुष्ट करते हैं, वह कल्याण हमें प्राप्त हो। कल्याणरूप पुत्र वाले हो हम इस यज्ञ में महिमा को प्राप्त हों, ऐसा करें।[यजुर्वेद 34.58]
कृपा दृष्टि :: दया या अनुग्रह की नजर, जिसमें किसी व्यक्ति या ईश्वर द्वारा दूसरे पर दयालुता दिखाई जाती है, यह किसी के प्रति सहानुभूतिपूर्ण और सहायक नजरिया है, जो उपकार या सहायता के रूप में प्रकट होता है; benevolent glance, kind look, favour.
Hey Brahman Spatye! You regulate this universe, hence respond to our prayers, and have benevolent-merciful glance, kind look over our progeny. Welfare-benefits approved by the demigods-deities should be available-granted to us. On being blessed with benevolence, we should have sons and attain glory in the Yagy.(11.01.2025)
यजुर्वेद संहिता पञ्चत्रिंशोऽध्यायः :: ऋषि :- आदित्य अथवा देवगण, संकसुक, सुचीक, शुनःशेप, वैखानस, भरद्वाज, शिरिम्बिठ, दमन, मेधतिथि; देवता :- पितर, सविता, वायुसवितारौ, प्रजापति, यम, विश्वेदेवा, आप, कृषीवला, सूर्य, ईश्वर, अग्नि, इन्द्र, जातवेदा, पृथ्वी; छन्द :- गायत्री, उष्णिक्, अनुष्टुप, बृहती, त्रिष्टुप्।
अपेतो यन्तु पणयोऽसुम्ना देवपीयवः। अस्य लोकः सुतावतः।
द्युभिरहोभिरक्तुभिर्व्यक्तं यमो ददात्ववसानमस्मै॥
इस स्थान से असुखकारी और देव हिंसक असुर चले जायें। यह स्थान देवताओं के निमित्त सोमरस प्रदान करने वाले यजमान के लिये है। प्रत्येक ऋतु और दिन-रात्रि में सुखकर यह स्थान यम इस यजमान को दें।[यजुर्वेद 35.1]
Unpleasant and torturous demons, violent to the demigods should move away. This place is meant for the Yajman who provide Somras to demigods-deities. Let Yam-Dharm Raj grant this comfortable place to the Yajman in all seasons, day & night.
सविता ते शरीरेभ्यः पृथिव्याँल्लोकमिच्छतु। तस्मै युज्यन्तामुस्त्रियाः॥
हे यजमान! सूर्य देवता तुम्हारे शरीर को पृथ्वी में स्थान दें। वह स्थान वृषभ आदि पशुओं से संस्कारित हो।[यजुर्वेद 35.2]
Hey Yajman! Let Sury Dev grant a place over the earth to your body. That place should be sanctified with bulls and other animals.
वायुः पुनातु सविता पुनात्वग्नेर्भाजसा सूर्यस्य वर्चसा। वि मुच्यन्तामुस्त्रियाः॥
बैलों को हल से संयुक्त कर कहे, वायु देवता इस स्थान को पवित्र करें। सूर्य देवता इस स्थान को पवित्र करें। अग्नि के तेज और सूर्य के प्रकाश से यह स्थान पवित्र हो। (अब इस स्थान पर चार बार हल चलाकर कहे) बैलों को हल से वियुक्त कर दो।[यजुर्वेद 35.3]
Deploy the oxen-bulls to the plough and request Vayu Dev to cleanse this place. Sury Dev should purify this place. Agni's Tej and Sun light should make this place pious. Plough this place four times and release the bulls.
अश्वत्थे वो निषदनं पर्णे वो वसतिष्कृता। गोभाज इत्किलासथ यत्सनवथ पूरुषम्॥
संस्कारित भूमि में मृत की अस्थियों को रखकर कहें, हे औषधियों! अश्वत्थ और पलाश वृक्ष पर तुम्हारा निवास है। तुम इस यजमान की रक्षा करो।[यजुर्वेद 35.4]
Place the bones-skeleton of the dead and say, hey herbs-medicines! Let Peeple (holy fig) and Plash should be your residence. Protect this Yajman.
सविता ते शरीराणि मातुरुपस्थ आवपतु। तस्मै पृथिवि शं भव॥
हे यजमान! सूर्य देवता तुम्हारी अस्थियों को पृथ्वी माता की गोद में रखें। हे पृथ्वी! तुम इसे शान्ति प्रदान करो।[यजुर्वेद 35.5]
Hey Yajman! Let Sury Dev keep your boons-ashes in the mother earth's lap. Hey earth! Grant peace to him-dead.
प्रजापतौ त्वा देवतायामुपोदके लोके नि दधाम्यसौ। अप नः शोशुचदघम्॥
हे मृतक! आपको जल के निकट वर्ती पावन स्थल में प्रजापति देव के निमित्त स्थापित करता हूँ। वे प्रजापति देव हमारे सभी पापों को नष्ट करें।[यजुर्वेद 35.6]
Hey dead-deceased! I establish you near the water body at a pious place for Prajapati Dev. Let Prajapati Dev make us sinless.
परं मृत्यो अनु परेहि पन्थां यस्ते अन्य इतरो देवयानात्।
चक्षुष्मते शृण्वते ते ब्रवीमि मा नः प्रजाꣳ रीरिषो मोत वीरान्॥
हे मृत्यो! तुम्हारा पथ देवयान पथ से पृथक् पितृयान वाला है, अतएव आप पराङ्मुख होकर पुनः वापस चले जायें। हे नेत्रों और कानों से सम्पन्न मृत्यो! मैं तुझसे कहता हूँ कि तू मेरी वंश-परम्परा और मेरे पुत्रों की हिंसा न कर।[यजुर्वेद 35.7]
Hey dead-deceased! Your route-path is different from Devyan, its Pitryan, hence move back. Hey dead possessed with eyes and ears! I am requesting you not to harm my clan and my sons.
शं वातः शꣳ हि ते घृणिः शं ते भवन्त्विष्टकाः।
शं ते भवन्त्वग्नयः पार्थिवासो मा त्वाभि शूशुचन्॥
हे मृतक! वायु देवता आपके निमित्त कल्याणकारी बनें। सूर्य तुम्हें शान्ति प्रदान करने वाले हों। ये ईंटें तुम्हें शान्ति प्रदान करने वाली हों। पार्थिव अग्नियाँ तुम्हें शान्ति प्रदान करने वाली हों। ये तुम्हें तापित न करें।[यजुर्वेद 35.8]
Hey dead-deceased! Let Vayu Dev become beneficial to you. Let Sury Dev grant you peace. These bricks should grant you peace. Fires should grant you peace, without heating you.
कल्पन्तां ते दिशस्तुभ्यमापः शिवतमास्तुभ्यं भवन्तु सिन्धवः।
अन्तरिक्षꣳ शिवं तुभ्यं कल्पन्तां ते दिशः सर्वाः॥
हे मृतक! दिशाएँ तुम्हारे निमित्त कल्याणकारी हों, जल तुम्हारे निमित्त कल्याणकारी हो, सभी समुद्र तुम्हारे निमित्त कल्याणकारी हों, अन्तरिक्ष तथा सभी दिशाएँ तुम्हारे निमित्त सुखकारी बनें।[यजुर्वेद 35.9]
Hey deceased-dead! All directions, water, all seas, space-sky, should be beneficial to you. Directions should grant you comfort-pleasure.
अश्मन्वती रीयते सꣳरभध्वमुत्तिष्ठत प्र तरता सखायः।
अत्रा जहीमोऽशिवा ये ऽअसञ्छिवान्वयमुत्तरेमाभि वाजान्॥
हे मित्र! यह पत्थरों से युक्त सरिता प्रवाहित हो रही है, आप इसे लाँधकर पार जाने के निमित्त प्रयास रत रहें, खड़े होकर इस नदी के पार जायें। इस नदी में जो पीड़ा दायी तथा बाधा उत्पन्न करने वाले पदार्थ हैं, उन्हें दूर करते हैं। कल्याणकारी अन्नों को इस नदी से उपलब्ध करें।[यजुर्वेद 35.10]
Hey Mitr-friend! This river having stones is flowing, make efforts to cross it, stand and cross the river. Let us remove the obstructing-torturous and painful object in the river. Attain beneficial food grains out of this river.
अपाघमप किल्बिषमप कृत्यामपो रपः। अपामार्ग त्वमस्मदप दुःष्वप्यꣳ सुव॥
हे बुरे कर्मों को नष्ट करने वाले अपामार्ग-रोगों को दूर करने वाली जड़ी-बूटी! आप हमारे मानसिक पापों का नाश करें। यश को नष्ट करने वाले शरीर में स्थित पापों का नाश करें। दूसरे पुरुषों द्वारा किये गये अभिचार की क्रिया को तथा वाणी द्वारा हुए पापों को एवं बुरे सपनों के दुःख रूप फल को भी हमसे दूर करें।[यजुर्वेद 35.11]
अभिचार :: अनुष्ठान, बुरे काम के लिए मंत्र का प्रयोग, झाड़-फूँक, जादू टोना; incantation.
Hey Apamarg-herbal medicien, Jadi Buti-herbs, removing bad-wicked deeds! Remove our sins performed mentally. Remove the sins in the body which destroy the honour. Repel the sins, incantations of other people, the speech-voice and outcome-impact of bad dreams.
सुमित्रिया न आप ओषधयः सन्तु दुर्मित्रियास्तस्मै सन्तु योऽस्मान् द्वेष्टि यं च वयं द्विष्मः॥
जल तथा ओषधियाँ हमारे निमित्त मित्र की भाँति कल्याणकारी हों। जो हमसे द्वेष करते हैं तथा हम जिनसे द्वेष करते हैं, उनके निमित्त जल तथा ओषधियाँ शत्रु के रूप में विनाशकारी सिद्ध हों।[यजुर्वेद 35.12]
द्वेष :: द्रोह, डाह, दुष्ट भाव, घृणा, नफ़रत, बदख़्वाहता, ग़ुस्सा, क्रोध, ईर्षा; grudge, malice, hatred, malevolence.
Let water and medicines should be beneficial to our friend for our sake. Medicines and water should be destroying-destructive for those who are envious to us or with whom we have malevolence.(14.10.2025)
अनड्वाहमन्वारभामहे सौरभेयꣳ स्वस्तये। सन इन्द्र इव देवेभ्यो वह्निः सन्तारणो भव॥
हे सुरभी पुत्र सौरभेय (वृषभ)! हम अपने कल्याण के लिये तुम्हारी पूँछ का स्पर्श करते हैं। तुम हमारे तारक और दुःखों के नाशक होओ, जैसे कि इन्द्र देवों के तारक हैं। हे अग्नि! तुम हवि का वहन करो।[यजुर्वेद 35.13]
Hey son of Surbhi (divine cow) oxen-bull! We touch your tail for our welfare. You should sail us through the ocean in the form of world, destroy our sins just like Indr Dev who sail demigods smoothly. Hey Agni Dev! Accept the offerings.
उद्वयं तमसस्परि स्वः पश्यन्त उत्तरम्। देवं देवत्रा सूर्यमगन्म ज्योतिरुत्तमम्॥
हम सब इस घोर अन्धकारमय लोक से बाहर निकलें और उत्कृष्ट स्वर्ग लोक का दर्शन करें। देवलोक में सूर्य का दर्शनकर उन ज्योति ब्रह्म को प्राप्त करें।[यजुर्वेद 35.14]
Let us move out of this abode full of acute darkness and view excellent heavens. We should see Sury Dev in the heavens and get Brahm Jyoti-divine light from him.
इमं जीवेभ्यः परिधिं दधामि मैषां नु गादपरो अर्थमेतम्।
शतं जीवन्तु शरदः पुरूचीरन्तर्मुत्युं दधतां पर्वतेन॥
अध्वर्यु का कथन, हम प्राणियों के निमित्त इस परिधि को स्थापित करते हैं। इन प्राणियों के मध्य कोई भी अपनी पूर्ण आयु से पूर्व गमन न करे बल्कि एक शतक तक स्वस्थ और सुखी रहे। इस पर्वत के मध्य ये प्राणी मृत्यु को छिपाने वाले हों।[यजुर्वेद 35.15]
The priest says, we mark this circumference-boundary for the living beings-organism. None should depart-die prior to covering full life span i.e., 100 years. We should be healthy and have pleasure throughout the life. These living being present in between this mountain, should hide-repel death.
अग्नऽआयूषिꣳपवस आ सुवोर्जमिषं च नः। आरे बाधस्व दुच्छुनाम्॥
दीर्घायुष्य प्रदायक, यज्ञादि कर्म सम्पन्न कराने वाले हे अग्नि देव! आप हमें पोषक अन्न तथा दुग्ध आदि रस प्रदान करें। हमसे द्वेष करने वाले दुष्टों के कार्यों में बाधा उत्पन्न कीजिये।[यजुर्वेद 35.16]
Hey Agni Dev granting long life and accomplishing Yagy related endeavours! Grant us nourishing food and saps like milk. Obstruct the wicked, envious to us and retrain-refrain them.
आयुष्मानग्ने हविषा वृधानो घृतप्रतीको घृतयोनिरेधि।
घृतं पीत्वा मधु चारु गव्यं पितेव पुत्रमभि रक्षतादिमान्त्स्वाहा॥
हे अग्नि देव! आप आहुतियों द्वारा संवर्धित होने वाले, घृत युक्त मुख वाले, घृत के द्वारा प्रकट होने वाले तथा श्रेष्ठ हैं। आप गाय के माधुर्य युक्त तथा श्रेष्ठ घृत का सेवन करके इन प्राणियों की वैसे ही सुरक्षा करें, जिस प्रकार पिता पुत्र की रक्षा करता है। यह आहुति आपके लिए निवेदित है।[यजुर्वेद 35.17]
Hey Agni Dev! You grow with the offerings, has mouth laced with Ghee, evolve with Ghee and excellent. You should consume the sweet excellent Ghee of cow and protect the living beings like the father who protect-save his son. This sacrifice is for you.
परीमे गामनेषत पर्यग्निमहृषत। देवेष्वक्रत श्रवः क इमाँ2॥ आ दधर्षति॥
यजमानों ने गौ और अग्नि की उपासना की तथा ऋत्विजों ने दक्षिणा रूप धन प्राप्त किया। इन्हें भला कौन पराजित कर सकता है!?[यजुर्वेद 35.18]
Yajman worshiped cows and fire-Agni Dev and the Ritviz obtained Dakshina-donations as fee. Who can defeat them.
क्रव्यादमग्निं प्र हिणोमि दूरं यमराज्यं गच्छतु रिप्रवाहः।
इहैवायमितरो जातवेदा देवेभ्यो हव्यं वहतु प्रजानन्॥
हम क्रव्यादि अग्नि को दूर करने वाले हैं। वह यमलोक में गमन करे। क्रव्याद से भिन्न वह जातवेदा अग्नि अपने सामर्थ्य से हमारे गृह में देवताओं के निमित्त हवि प्रेषित करनेवाला हो।[यजुर्वेद 35.19]
क्रव्याद :: मांस खाने वाला, वह जो मांस खाता हो, जैसे, राक्षस, गिद्ध, सिंह आदि, वह आग जिससे शव जलाया जाता है, चिता की आग, कच्चा मांस खाने वाला; fire of cremation ground in which dead body is burnt.
We repel the Agni termed Kray etc. It should move to Yam Lok. Different from Kravadi Agni Jatveda Agni, it should bring offerings for demigods.
वह वपां जातवेदः पितृभ्यो यत्रैनान्वेत्थ निहितान् पराके।
मेदसः कुल्या उप तान्त्रवन्तु सत्या एषामाशिषः सं नमन्ताꣳ स्वाहा॥
हे अग्नि देव! आप पितर गणों के निमित्त हवि के सार भाग को वहन करें; क्योंकि आप दूर देश में रहने वाले इन पितर गणों से परिचित हैं। उनके संरक्षण हेतु जल-प्रवाह भी स्रवित हों। उनके द्वारा दिये गये आशीर्वाद भली-भाँति पूर्ण हों। उन पितर गणों के लिए यह आहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 35.20]
Hey Agni Dev! Carry the gist-extract of the offerings for the Pitr Gan-Manes, since you are aware-known to the distant Manes. For their protection flow water streams as well. Blessing by them should be materialised. This sacrifice is for those Manes.
स्योना पृथिवि नो भवानृक्षरा निवेशनी। यच्छा नः शर्म सप्रथाः। अप नः शोशुचदघम्॥
हे पृथ्वी! आप हमारे निमित्त सुख कारी, कण्टक हीन तथा पीड़ित न करने वाले और निवासयोग्य हों। आप सम्यक् प्रकार से विस्तारित होकर हमें सुख पूर्ण आश्रय प्रदान करें। आप हमारे पाप कर्म को जलाकर राख कर दें।[यजुर्वेद 35.21]
Hey earth! You should be comfortable to us, free from thorns, non torturing and good enough for living-surviving. You should expand equally and grant us asylum full of comforts-pleasure. Burn-abolish our sins into ashes.
अस्मात्त्वमधि जातोऽसि त्वदयं जायतां पुनः। असौ स्वर्गीय लोकाय स्वाहा॥
हे अग्नि देव! आप यहाँ इस याजक के द्वारा प्रकट होते हैं। यह याजक आपकी कृपा से अन्नादि युक्त धन को प्राप्त करने वाला बने। यह याजक स्वर्ग को प्राप्त करने हेतु तथा लोक कल्याण हेतु यज्ञ कर्म का सम्पादन करे। यह आहुति आपके लिये समर्पित है।[यजुर्वेद 35.22]
Hey Agni Dev! You are evolved by this Yajak here. This Yajak should become wealthy and have food grains etc. This Yajak should accomplish Yagy for attaining heavens and public welfare. This sacrifice is for you.((15.10.2025)
यजुर्वेद संहिता षट्त्रिंशोऽध्यायः :: ऋषि :- दध्यंगाधर्वण, विश्वामित्र, वामदेव, मेधातिथि, सिंधुद्वीप, लोपामुद्रा; देवता :- अग्नि, बृहस्पति, सविता, इन्द्र, मित्रादि लिंगोक्ता, वातादि लिंगोक्ता, आप, पृथ्वी, ईश्वर, सोम, सूर्य; छन्द :- पंक्ति, बृहती, गायत्री, अनुष्टुप, शक्वरी, जगती, उष्णिक्।
ऋचं वाचं प्र पद्ये मनो यजुः प्र पद्ये साम प्राणं प्र पद्ये
चक्षुः श्रोत्रं प्र पद्ये। वागोजः सहौजो मयि प्राणापानौ॥
मैं ऋक्-रूप वाणी की, यजुः रूप मन की, प्राण रूप साम की और चक्षु तथा श्रोत्रेन्द्रिय की शरण लेता हूँ। जिससे वाणी-बल, शारीरिक बल एवं प्राण तथा अपान मुझ में (स्थिर रूप से) रहें।[यजुर्वेद 36.1]
I seek asylum under the text-speech of Rik's, Yaju's form innerself, Sam's form Air Vital and eyes and ears (viewing and listening), so that strength of speech, physical strength Pran & Apan remain stable in me i.e., balanced is maintained.
यन्मे छिद्रं चक्षुषो हृदयस्य मनसो वातितृण्णं बृहस्पतिर्मे तद्दधातु।
शं नो भवतु भुवनस्य यस्पतिः॥
मेरे चक्षु की, हृदय की तथा मन की जो न्यूनता (दौर्बल्य) है, उसको देवगुरु (बृहस्पति) दूर करें। जो परमात्मा समस्त ब्रह्माण्ड का स्वामी है, वह मेरे लिये सुख स्वरूप हो।[यजुर्वेद 36.2]
Let Dev Guru Brahaspati remove the weakness of my eyes, heart and innerself. The Almighty Lord of the universe should be comfortable-blissful to me.
भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्॥
आदित्य मण्डल स्थित सर्वान्तर्यामी पर ब्रह्म स्वरूप सवितृ देव के उस वरणीय (वरण योग्य) स्वरूप का हम ध्यान करते हैं, जो सवितृ देव हमारी बुद्धि को सत्कर्म की ओर प्रेरित करते हैं।[यजुर्वेद 36.3]
We concentrate in the all viewing Savita Dev as the Par Brahm Parmeshwar, present in the Adity Mandal, who inspire-direct our mind into virtuous, righteous, pious deeds-endeavours.
कया नश्चित्र आ भुवदूती सदावृधः सखा। कया शचिष्ठया वृता॥
सर्वदा वर्द्धनशील एवं आश्चर्य स्वरूप हे इन्द्र! तुम किस तर्पण, किस प्रीति अथवा किस यज्ञकर्म से हमारे सहायक हो सकते हो?[यजुर्वेद 36.1]
तर्पण :: मृतात्माओं को जल अर्पित करना, देवताओं या पूर्वजों को जल या अन्य पदार्थ अर्पित करना, जो मुक्त करता है या बचाता है; gratification (किसी इच्छा को पूरा करना या संतोष देना), offering of water to deceased ancestors.
Always growing & amazing hey Indr! Which means :- gratification, love-affection or Yagy Karm can make you helpful to us?
कस्त्वा सत्यो मदानां मꣳ हिष्ठो मत्सदन्धसः। दृढा चिदारुजे वसु॥
हे परमेश्वर! सोमरूप अन्न का वह कौन-सा भाग है, जो कि मादक हवियों में श्रेष्ठ है और जो आपको विशेष सन्तुष्ट करता है। आपकी जिस प्रसन्नता में जो भक्त दृढ़ता से रहते हैं, उन्हें आप धन (विभाग करके) प्रदान करते हैं।[यजुर्वेद 36.5]
Hey Almighty! Which portion of Som as food grains is best amongest the intoxicant-toxic oblations, that satisfies you. You grant that wealth to the devotee in which he remain devoted rigidly-strongly, pleasing you.
अभी षु णः सखीनामविता जरितॄणाम्। शतं भवास्यूतिभिः॥
हे इन्द्र! जो तुम्हारी मित्र रूप में स्तुति करते हैं, तुम उन भक्तों की रक्षा के लिये अनन्त रूप धारण करते हो।[यजुर्वेद 36.6]
Hey Indr! Those who worship you as friend, are protected you, adopting infinite forms-Avtars.
कया त्वं न ऊत्याभि प्र मन्द्रसे वृषन्। कया स्तोतृभ्य आ भर॥
हे इन्द्र! तुम किस स्तुति रूप हविर्दान से तृप्त होकर हमें आनन्दित करते हो तथा किस स्तुति कर्ता यजमान को धन देते हो?[यजुर्वेद 36.7]
Hey Indr! Which oblation-offerings in the form of Stuti-prayers satisfies-satiate you and you grant us pleasure. Which Stuti make you grant, wealth to the Yajman?
इन्द्रो विश्वस्य राजति। शन्नो अस्तु द्विपदे शं चतुष्पदे॥
जो परमेश्वर समस्त संसार के स्वामी हैं अथवा जो सूर्य समस्त संसार के प्रकाशक हैं, वह सूर्य हमारे द्विपद अर्थात् पुत्रादिकों के लिये तथा चतुष्पद अर्थात् गौ आदि पशुओं के लिये कल्याणकारी हों।[यजुर्वेद 36.8]
The Almighty who is the Lord of the universe; alternatively the Sun which shines the world, should become beneficial to us-two legged and the cows & animals, four legged.
शन्नो मित्रः शं वरुणः शन्नो भवत्वर्यमा। शन्न इन्द्रो बृहस्पतिः शन्नो विष्णुरुरुक्रमः॥
मित्र, वरुण, अर्यमा, इन्द्र, बृहस्पति और विष्णु ये सभी देवगण हमारे लिये कल्याणकारी हों।[यजुर्वेद 36.9]
Mitr, Varun, Aryma, Indr, Brahaspati and Shri Hari Vishnu, these demigods-deities should be beneficial to us.
शन्नो वातः पवताꣳ शन्नस्तपतु सूर्यः। शन्नः कनिक्रदद्देवः पर्जन्यो अभिवर्षतु॥
हमारे लिये वायु, सूर्य और वरुण कल्याणकारी हों अर्थात् वायु सुख स्वरूप बहे, सूर्य सुखप्रद किरणों का प्रसार करें और वरुण सुवृष्टि प्रदान करें।[यजुर्वेद 36.10]
Vayu, Sury and Varun should be beneficial to us. Blowing air should grant us comfort, Sun should grant us comfort by extending his rays and Varun Dev should grant sufficient rains.
अहानि शं भवन्तु नः शꣳरात्रीः प्रतिधीयताम्। शन्न इन्द्राग्नी भवतामवोभिः शन्न इन्द्रावरुणा रातहव्या। शन्न इन्द्रापूषणा वाजसातौ शमिन्द्रासोमा सुविताय शं योः॥
हमारे लिये दिन और रात्रि सुख स्वरूप हों तथा इन्द्राग्नी, इन्द्र-वरुण, इन्द्र-पूषा और इन्द्र -सोम, ये सभी देवता हमारे लिये कल्याणकारी हों एवं हमारे रोग तथा भय को दूरकर सुखकारी हों।[यजुर्वेद 36.11]
For us day & night should be comfortable. Indragni, Indr-Varun, Indr-Pusha and Indr-Som should be beneficial to us. They should be beneficial to us and remove our diseases and fear.
शन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शं योरभि स्रवन्तु नः॥
प्रकाशमान जल हमारे अभिषेक अथवा अभीष्ट-सिद्धि के लिये सुखकर हो तथा हमारे रोग और भय का नाशक हो।[यजुर्वेद 36.12]
Aurous-radiant water should be comfortable to our ablution-anointment & accomplishment. Our fears and diseases should be lost-removed.
स्योना पृथिवि नो भवानृक्षरा निवेशनी। यच्छा नः शर्म सप्रथाः॥
हे पृथिवी! तुम कण्टकहीन होओ अर्थात् अकण्टकरूप पृथिवी में निवास स्थान देकर हमें अपनी शरण में लो।[यजुर्वेद 36.13]
Hey earth! You should be free form thorns-troubles and grant us place to live.
आपो हि ष्ठा मयोभुवस्ता न ऊर्जे दधातन। महे रणाय चक्षसे॥
हे जल समूह! तुम स्नान-पानादि के कारण, सुख के देने वाले रस स्थापक हो और तुम अत्यन्त रमणीय एवं दर्शनीय हो।[यजुर्वेद 36.14]
रमणीय :: सुखद, सुहावना, ख़ुशगवार, आनंदमय, हर्षजनक, आनंदपूर्ण, आनंदित, मनोरम, सुहावना, ललित, आनंदकर, आनंद देने वाला; delightful, delectable, enjoyable.Hey water bodies-pools! You grant comforts-pleasure due to drinking and bathing. You form a pol of fluid, very attractive, beautiful, delightful, delectable, enjoyable.(16.10.2025)
यो वः शिवतमो रसस्तस्य भाजयतेह नः। उशतीरिव मातरः॥
हे जल समूह! तुम्हारा जो सुखकारी शान्तमय रस है, उस रस का हमें भी भागी बनाओ। जिस प्रकार प्रेम से माता अपने बालकों को स्तन द्वारा दुग्धपान कराती हैं, उसी प्रकार हमें भी जल प्रदानकर अमृतरूपी मधुरस का पान कराओ।[यजुर्वेद 36.15]
Hey water bodies-pools! Share your calm, (peaceful, quite) fluid-water with us. The way a mother feed her breast milk to the children with love-affection, similarly you too make us drink the sweet nectar like water.
तस्मा अरं गमाम वो यस्य क्षयाय जिन्वथ। आपो जनयथा च नः॥
हे जल समूह! तुम सर्वदा समस्त लोकों में गमनशील हो; क्योंकि तुम्हारे ही निवास से ब्रह्मा से लेकर तिनका तक सम्पूर्ण जगत् जीवित है। अतः हमें भी अपने मधुर जल द्वारा प्रजोत्पादन के समर्थ करो।[यजुर्वेद 36.16]
प्रजोत्पादन :: संतान उत्पन्न करना या प्रजनन करना; procreating, raising-bringing up up of progeny reproduction.
Hey water bodies-pools! You always keep roaming in all abodes, since everyone starting from Brahma Ji to a straw, are alive due to you. Hence, make us capable of reproduction with your sweet water.
द्यौः शांतिरन्तरिक्षꣳ शांतिः पृथिवी शांतिरापः शांतिरोषधयः शांतिः। वनस्पतयः शांतिर्विश्वेदेवाः शांतिर्ब्रह्म शांतिः सर्वꣳशांतिः शांतिरेव शांतिः सा मा शांतिरेधि॥
द्युलोक (स्वर्गलोक) रूपा शान्ति, अन्तरिक्ष (आकाश) रूपा शान्ति, पृथिवी रूपा शान्ति, जलरूपा शान्ति, औषधरूपा शान्ति, वनस्पति रूपा शान्ति, विश्व देव रूपा शान्ति, ब्रह्म (वेद)-रूपा शान्ति, समस्त संसार रूपा शान्ति और जो स्वभावतः शान्ति है, वह शान्ति हमें प्राप्त हो।[यजुर्वेद 36.17]
Peace, tranquillity like heavens, space-sky, earth, water, medicines, vegetation, Vishwe Dev, Brahm, whole universe and nature should be available to us.
दृते दृꣳह मा मित्रस्य मा चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षन्ताम्।
मित्रस्याहं चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षे। मित्रस्य चक्षुषा समीक्षामहे॥
हे परमेश्वर (हे महावीर)! तुम हमारी वृद्धावस्था के कारण निर्बल शरीर होने पर हमें बलवान् बनाओ। समस्त प्राणी हमको मित्र की दृष्टि से देखे और हम भी उन्हें मित्र की दृष्टि से देखें। परस्पर में मैत्री भाव होने से हम लोग सबको मित्र की दृष्टि से देखेंगे।[यजुर्वेद 36.18]
Hey Parmeshwar-Mahaveer! Make our weak body due to old age strong, granting us strength. Let all organism-living beings treat us friendly and we too should reciprocate them. Mutual friendship will enable to look at every one like a friend.
दृते दृꣳह मा। ज्योक्ते संदृशि जीव्यासं ज्योक्ते संदृशि जीव्यासम्॥
हे भगवन् (हे वीर)! हमें दृढ़ करो। हम तुम्हारे दर्शन से दीर्घजीवी होंगे, हम तुम्हारे दर्शन से दीर्घजीवी होंगे।[यजुर्वेद 36.19]
Hey mighty-Almighty! Make us strong. We will become long lived by viewing you. Let us become long lived due to your invocation.
नमस्ते हरसे शोचिषे नमस्ते अस्त्वर्चिषे।
अन्याँस्ते अस्मत्तपन्तु हेतयः पावको अस्मभ्यधंꣳ शिवो भव॥
हे अग्ने! तुम्हारे तेज को नमस्कार है। समस्त रसों के संशोधन करने वाले तुम्हारे तेज को नमस्कार है। समस्त पदार्थों में प्रकाश करने वाले तम्हारे तेज को नमस्कार है। तुम्हारी ज्वाला हमारे विरोधियों के लिये क्लेश देने वाली हो और हमारे लिये शान्त अर्थात कल्याण देनेवाली हो।[यजुर्वेद 36.20]
Hey Agne! We salute your Tej-radiance. You cleanse all fluids. We salute you aura which lighten every object. Your blaze-fire should be torturous to the opponents and beneficial to us.
नमस्तेअस्तु विद्युते नमस्ते स्तनयित्नवे। नमस्ते भगवन्नस्तु यतः स्वः समीहसे॥
हे भगवन् (महावीर)! विद्युत् स्वरूप तुमको नमस्कार है। स्तनयित्नु-स्वरूप अर्थात् मेघ स्वरूप तुमको नमस्कार है। जिस कारण तुम स्वर्ग जाने की चेष्टा करते हो, तदर्थ तुमको नमस्कार है।[यजुर्वेद 36.21]
Hey Almighty-powerful! We salute you in the form of lightening-electricity. We salute you in form of udder i.e., clouds. The reason due to which you approach heavens, is saluted by us.
यतो यतः समीहसे ततो नो अभयं कुरु। शं नः कुरु प्रजाभ्योऽभयं नः पशुभ्यः॥
हे परमेश्वर (महावीर)! तुम जिन दुश्चरित्रों को हमसे हटाकर सर्वदा उपकार की चेष्टा करते हो, उनसे हमें भय मुक्त करो। तुम हमारी सन्तानों को सुख दो और हमारे पशुओं को भी भयमुक्त करो।[यजुर्वेद 36.22]
Hey Almighty! Make us fearless by removing the wicked-vicious away from us. Grant pleasure-comforts to our progeny and make our animals fearless.
सुमित्रिया न आप ओषधयः सन्तु दुर्मित्रियास्तस्मै सन्तु। योऽस्मान्द्वेष्टि यं च वयं द्विष्मः॥
हे परमेश्वर! जल और औषधियाँ हमारे लिये अच्छे मित्र की तरह अवस्थित हों। जो हमसे द्वेष करते हैं अथवा हम जिनसे शत्रुता करते हैं, ऐसे हम दोनों (उभय पक्ष) के लिये जल और औषधियाँ सुख रूपेण अवस्थित हों।[यजुर्वेद 36.24]
Hey Parmeshwar! Water and medicines should be available to us like good friends. Both of us friends and foe should be benefitted with water & medicines.
तच्चक्षुर्देवहितं पुरस्ताच्छुक्रमुच्चरत्। पश्येम शरदः शतं जीवेम शरदः शतꣳ शृणुयाम शरदः शतं प्र ब्रवाम शरदः शतमदीनाः स्याम शरदः शतं भूयश्च शरदः शतात्॥
देवताओं के हितकारी अथवा प्रिय परमेश्वर का जो चक्षुभूत सूर्य का तेज पूर्व दिशा में होता है, वह हमें जीवन पर्यन्त अव्याहत चक्षु सम्पन्न रखे, जिससे हम उन्हें भली भाँति देख सकें। हम सौ वर्ष पर्यन्त जीयें, सौ वर्ष पर्यन्त सुनें और सौ वर्ष पर्यन्त बोलें। हम सौ वर्ष पर्यन्त दैन्य होकर न रहें अर्थात् हमें कभी किसी से कुछ माँगना न पड़े। हम सौ वर्ष से भी अधिक जीवित रहें।[यजुर्वेद 36.24]
Beneficial to demigods, aura-radiance of Sury-Sun like the eyes of the Almighty in the east, should keep us possess eyes, so that we are able to see them properly. We should live, hear-listen, speak for hundred years. You should survive without begging-receiving donations for hundred years. We should be alive for more than hundred years.(17.10.2025)
यजुर्वेद संहिता सप्तत्रिंशोऽध्यायः :: ऋषि :- दध्यंगाधर्वण, श्यावाश, कण्व, दीर्घतमा, अथर्वण; देवता :- सविता, द्यावापृथिवी, यज्ञ, ईश्वर, विद्वान, विद्वांस, पृथिवी, अग्नि; छन्द :-उष्णिक्, जगती, गायत्री, पंक्ति, अष्टि, धृति, शक्वरी, कृत्ति, त्रिष्टुप्, अनुष्टुप्, बृहती।
देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्याम्। आ ददे नारिरसि॥
मिट्टी खोदने के लिये गूलर की लकड़ी से बनी अब्रि (खुरपी grub hook) को लेकर बोले, हे अत्रे! सर्वप्रेरक सविता देव के अनुशासन में रहकर अश्विनी कुमारों की भुजाओं एवं पूषा देव के दोनों हस्तों द्वारा हम आपको अंगीकार करते हैं। आप हमारे शत्रु न हों।[यजुर्वेद 37.1]
अब्रि :: खुरपी; grub hook.
गूलर की लकड़ी :: sycamore wood
Hold the grub hook made of sycamore wood in the hand and say, "Hey Atre-Atri! We accept you by remaining under the discipline of all inspiring Savita Dev, holding the hands of Ashwani Kumars and Push Dev. You should not be our enemy.
युञ्जते मन उत युञ्जते धियो विप्रा विप्रस्य बृहतो विपश्चितः।
वि होत्रा दधे वयुनाविदेक इन्मही देवस्य सवितुः परिष्टुतिः॥
महान्, सर्वज्ञ, वेदों का भली-भाँति अध्ययन करने वाले ऋत्विग्गण, सांसारिक विषयों से मन को हटाकर यज्ञ कार्य की पूर्णता के विषय में विचार करते हैं। सम्पूर्ण प्राणियों के साक्षी भूत, प्रेरणा देने वाले, सर्वदा श्रेष्ठ स्तुतियों से प्रशंसित सविता देव को अनुकूल करने के लिए यह आहुति प्रदान की जाती है।[यजुर्वेद 37.2]
Great, all knowing, Ritviz Gan who study and understand the Veds, deviate the mind-innerself from worldly affairs think of the accomplishment of Yagy. Looking to all living beings-organism, honoured-revered with excellent Stuties-prayers, this sacrifice is made for Savita Dev to make him favourable.
देवी द्यावापृथिवी मखस्य वामद्य शिरो राध्यासं देवयजने पृथिव्याः।
मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे॥
खोदी हुई मिट्टी को हाथ में लेकर बोले, हे प्रकाशमान द्यावापृथिवी देवियो! इस यज्ञ स्थल पर तुम्हारे अंशभूत मिट्टी तथा जल को ग्रहण करके हम यज्ञ सम्पन्न करते हैं। हे मृत्पिण्ड (मिट्टी के ढेले)! हम तुझे यज्ञशाला में यज्ञवेदी के पास रखते हैं।[यजुर्वेद 37.3]
Hold the digged clay in hands and say, hey illuminated goddesses heavens & earth! We accomplish the Yagy by accepting clay & water at the Yagy site. Hey clay-earth clod! We establish you near the Yagy Vedi in the Yagy Shala.
देव्यो वम्ग्र्यो भूतस्य प्रथमजा मखस्य वोऽद्य शिरो राध्यासं देवयजने पृथिव्याः।
मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे॥
दीमक की बाँबी की मिट्टी हाथ में लेकर बोले, हे दीमक देवियो! सर्वप्रथम उत्पन्न हुई पृथ्वी के सम्बन्ध से तुम भी प्राणियों से पहले उत्पन्न हुई हो। हम तुम्हारी मिट्टी के द्वारा इस यज्ञ में यज्ञ के शिरोभूत महावीर घर को हम बनायेंगे। हे दीमक की बाँबी की मिट्टी! यज्ञ के शिरोभूत (अग्नि को त्रिलोक का शिरोभूत कहा गया है) महावीर घर के निर्माण के लिये मैं तुम्हें ग्रहण करता हैं।[यजुर्वेद 37.4]
दीमक की बाँबी :: termite mound.
Hold the clay from termite mould in the hands and say, hey termite goddesses! By virtue of your relationship with earth, you evolved prior to other living beings. By making use of your clay we will make a house for the Almighty in the Yagy. Hey clay of the termite mould! I accept you for the home of the Almighty in the Yagy.
इयत्यग्र आसीन्मखस्य तेऽद्य शिरो राध्यासं देवयजने पृथिव्याः।
मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे॥
यह पृथ्वी आदिकाल में बहुत ही छोटी थी। हे पृथ्वी! तुम्हारे द्वारा आज मैं यज्ञ के शिरोभूत महावीर घट को बनाऊँगा। (वराह द्वारा खोदी गयी मिट्टी को हाथ में लेकर बोले) हे मिट्टी! मैं तुम्हें यज्ञ के लिये ग्रहण करता हूँ, महावीर घट (कलश या घड़ा) के लिये मैं तुम्हें ग्रहण करता हूँ।[यजुर्वेद 37.5]
This earth was too small during the ancient period. Hey earth! I will construct a Mahavir Ghat-pitcher for the Yagy. Keep the clay digged by hog in the hands and say, hey earth! I accept you for the Yagy. I accept you for the Almighty pitcher.
इन्द्रस्यौज स्थ मखस्य वोऽद्य शिरो राध्यासं देवयजने पृथिव्याः। मखाय त्वा मखस्य त्वा शीष्णें। मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे। मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे॥
पूतीक नामक तृण विशेष को मौन होकर कृष्ण मृग चर्म पर रखकर बोले, हे पूतीक! तुम इन्द्र के ओज से उत्पन्न हुए हो। तुम्हारे द्वारा आज मैं यज्ञ के शिरोभूत महावीर घट को बनाऊँगा। यज्ञ के लिये मैं तुम्हें ग्रहण करता हूँ, महावीर घट के लिये मैं तुम्हें ग्रहण करता हूँ। (कृष्णमूग चर्म पर रखी हुई यज्ञ सम्बन्धित सभी वस्तुओं को स्पर्श कर बोले) हे यज्ञ ! सम्बन्धी वस्तुओं यज्ञ तथा महावीर घट के लिये मैं तुम्हें स्पर्श करता हूँ।[यजुर्वेद 37.6]
Keep the straw named Puteek silently over the skin of black buke and say, hey Puteek! You evolved out of the aura of Indr Dev. I will make Almighty pitcher for you. I accept you for the Yagy. Touch the goods placed of the black buke skin related to Yagy and say, hey Yagy! I touch you for the Yagy related goods & the Maha Veer Ghat.
प्रैतु ब्रह्मणस्पतिः प्र देव्ये तु सूनृता। अच्छा वीरं नयं पंक्तिराधसं देवा यज्ञं नयन्तु नः। मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे। मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे। मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे॥
ब्रह्मणस्पति देव इस यज्ञस्थल में पदार्पण करें। सत्यवाणी रूप द्यावा-पृथ्वी यहाँ श्रेष्ठ स्थान पर विराजमान हों। शक्तिशाली, सभी के हितैषी, प्रजाओं को अनुशासन पालन कराने में सक्षम देवतागण इस यज्ञ को सफलता प्रदान करें। (दीमक की बॉबी की मिट्टी, वराह द्वारा खोदी गई मिट्टी तथा पूतीक नामक तृण विशेष को बकरी के दूध में सानकर बोले) हे महावीर घट को बनाना में प्रयुक्त वस्तुओं! यज्ञ और महावीर घट निर्माण करने के लिये मैं तुम्हें आपस में मिलाता हूँ। हे महावीर घट! यज्ञ के शिरोभूत यज्ञ देवता के लिये मैं तुम्हें बनाता हूँ।[यजुर्वेद 37.7]
Let Brahman Spati Dev come to this Yagy. Heaven & earth should be established over here, like the truthful speech at the best place. Let mighty-powerful demigods-deities, capable of disciplining the subjects and beneficial-well wisher of all, grant success to Yagy. Sock the clay mud from termite hill, digged by pig and the Puteek named straw in goat milk and say, hey goods used for preparing Mahaveer Ghat-pitcher! I mix you for making Mahaveer Ghat. Hey Mahaveer Ghat! I make you for the supreme deity of the Yagy.(18.10.2025)
मखस्य शिरोऽसि। मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे। मखस्य शिरोऽसि। मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे। मखस्य शिरोऽसि। मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे। मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्णै। मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे॥
हे प्रथम महावीर घट! आप यज्ञ के शीर्ष हैं और यज्ञ के लिए है, (महावीर घट का स्पर्श करके बोले) यज्ञ के लिये और यज्ञ के शिरोभूत यज्ञ देवता के लिये मैं तुम्हारा स्पर्श करता हूँ। हे द्वितीय महावीर घट! आप यज्ञ के शीर्ष हैं, यज्ञ के लिये और यज्ञ के शिरोभूत यज्ञ देवता के लिये मैं तुम्हारा स्पर्श करता हूँ। हे तृतीय महावीर घट! आप यज्ञ के शीर्ष हैं, यज्ञ के लिये और यज्ञ के शिरोभूत यज्ञ देवता के लिये मैं तुम्हारा स्पर्श हूँ (तीनों महावीर घटों को रगड़कर चिकना करते हुए बोले) हे महावीर घटों! यज्ञ के लिये और यज्ञ के शिरोभूत यज्ञ देवता के लिये मैं तुम्हें चिकना करता हूँ।[यजुर्वेद 37.8]
Hey first pitcher named Mahaveer! You are at the top of Yagy and meant for the Yagy. Touch the pitcher and say, I touch you for the main deity of the Yagy. Hey second piture! You are at the top of Yagy and meant for the Yagy. Touch the pitcher and say, I touch you for the main deity of the Yagy. Hey third Mahaveer piture! You are at the top of Yagy and meant for the Yagy. Touch the pitcher and say, I touch you for the main deity of the Yagy. Rub the three pitchers and smoothen their surface. Hey Mahaveer pitchers! I grind-smooth you for the chief deity of the Yagy.
अश्वस्य त्वा वृष्णः शक्ना धूपयामि देवयजने पृथिव्याः। मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे। अश्वस्य त्वा वृष्णः शक्ना धूपयामि देवयजने पृथिव्याः॥ मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे। अश्वस्य त्वा वृष्णः शक्ना धूपयामि देवयजने पृथिव्याः। मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे। मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे। मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे। मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे॥
हे महावीर घट! यज्ञ के घोड़े के लीद से मैं तुम्हें धूपित करता हूँ। हे महावीर घट! यज्ञ तथा यज्ञ के शिरोभूत यज्ञ देवता के लिये मैं धूपित करता हूँ। यज्ञीय अश्व की लीद से मैं तुम्हें देव यजन स्थान पर धूपित करता हूँ। (इसी प्रकार दूसरे तथा तीसरे महावीर घट को भी धूपित करते हुए बोले) हे महावीर घट! यज्ञ तथा यज्ञ के शिरोभूत यज्ञ देवता के लिये मैं धूपित करता हूँ।[यजुर्वेद 37.9]
धूपित :: धूप आदि जलाकर सुगंधित किया हुआ; producing smoke with incense stick of Dhoop Batti.
धूप :: देव पूजन में या सुगंध के लिये कपूर, आग, गुग्गुल, आदि गंध द्रव्यों को जलाकर उठाया हुआ धुआँ, सुगंधित धूम, गंध द्रव्य जिसे जलाने से सुगंधित धुआँ उठता और फैलता है ।
Hey Mahaveer Ghat-pitcher! I blow horse dung smoke towards you. Hey Mahaveer pitcher! I produce incense smoke for the Yagy pitcher at the Yagy site. Similarly produce smoke for the third pitcher. Hey Mahaveer pitcher! I blow incense smoke towards you and the chief deity of the Yagy.
ऋजवे त्वा साधवे त्वा सुक्षित्यै त्वा। मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे।
मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे। मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे॥
(धूपित घटों को आग पर से उतार कर बोले) हे प्रथम महावीर घट! सूर्य देवता के लिये मैं तुम्हें आग पर से उठाता हूँ। हे द्वितीय महावीर घट! वर्षा द्वारा सभी कार्यों का साधन करने वाले वायु देवता के लिये मैं तुम्हें आग पर से उठाता हूँ। हे तृतीय महावीर घट! हमारी निवास भूता पृथ्वी देवी के लिये मैं तुम्हें आग पर से उठाता हूँ। हे महावीर घटों! यज्ञ तथा यज्ञ देवता के लिये मैं तुम्हें बकरी के दूध से सींचता हूँ।[यजुर्वेद 37.10]
Remove the pitchers from fire and say, hey first pitcher! I remove you from fire for the Sun. Hey second pitcher! I remove you fire for Vayu Dev who support all efforts through rains. Hey third pitcher! I lift you from the fire for the sake of earth-land of our house. Hey Mahaveer Pitchers! I soak you in goat milk for the sake of Yagy and its deity.
यमाय त्वा मखाय त्वा सूर्यस्य त्वा तपसे। देवस्त्वा सविता मध्वानक्तु पृथिव्याः सꣳ स्पृशस्पाहि। अर्चिरसि शोचिरसि तपोऽसि॥
महावीर घट का तीन बार जल से प्रोक्षण करके बोले, हे महावीर घट! यम, यज्ञ और सूर्य के तप के लिये मैं तुम्हें जल से पवित्र करता हूँ। घट पर घी का आलेपन करके बोले- हे महावीर घट! सविता देवता तुम्हें मधुर घृत से आलिप्त करें। (आँवाँ में बालू के नीचे सौ रत्ती चाँदी गाड़ कर बोले, हे रजत! तुम अग्नि से पृथ्वी के स्पर्श को बचाओ। (आवाँ में तीन महावीर घटों को पकने के लिये रखकर और आग लगाकर बोले) हे ताप देवता! तुम चन्द्रमा की किरण की भाँति हो, तुम अग्नि के तेज की भाँति हो, तुम सूर्य के ताप के समान हो।[यजुर्वेद 37.11]
Sprinkle water over the Mahaveer Ghat thrice and say, hey Mahaveer Pitcher! I sanctify you with pious water for Yam, Yagy and Sury. Lace pitcher with Ghee and say, hey Mahaveer Ghat! Let Savita Dev lace you with Ghee. Put hundred Ratti (weight measure) silver in the kiln for backing pitchers and say, protect the earth from the heat of fire. Put the three pitchers in kiln for backing and hey deity of heat, you are like the Moon rays, radiance of fire and the heat of Sun.
अनाधृष्टा पुरस्तादग्नेराधिपत्य आयुर्मे दाः। पुत्रवती दक्षिणतइन्द्रस्याधिपत्ये प्रजां मे दाः। सुषदा पश्चाद्देवस्य सविताधिपत्ये चक्षुर्मे दाः। आश्रुतिरुत्तरतो धातुराधिपत्ये रायस्पोषं मे दाः। विधृतिरु॒परिष्टाद् बृहस्पतेराधि॑पत्यऽओजो मे दाः॥
(महावीर घटों को आँवाँ से निकालकर यजमान बोले) हे पृथ्वी देवी! पूर्व दिशा में तुम अग्नि के आधिपत्य में रहकर राक्षसादि के द्वारा सर्वथा अनाधृष्टा बनी रहती हो। वह तुम मुझे आयुष्य प्रदान करो। दक्षिण दिशा में इन्द्र के आधिपत्य में विद्यमान तुम हे पृथ्वी! पुत्रवती हो। तुम मुझे सन्तान दो। पश्चिम दिशा में सविता के आधिपत्य में विद्यमान तुम सुख के साथ आश्रयणीया हो। तुम मुझे दर्शन शक्ति प्रदान करो। उत्तर में धाता के आधिपत्य में विद्यमान तुम ऋत्विजों के आश्श्रयण का यजनीय प्रदेश हो। तुम मुझे धन की समृद्धि प्रदान करो। ऊर्ध्वस्थ प्रदेश में बृहस्पति देव के आधिपत्य में विद्यमान तुम विशेष रूप से सबको धारण करने वाली विधृति संज्ञिका हो। तुम मुझे ओज दो। (महावीर से दक्षिण भूमि पर यजमान अपना उलटा हाथ धरता है।) हे महावीर घट से दक्षिण की और स्थित भूमे! तुम मुझे नाशक सर्व राक्षसादि से बचाओ। (उत्तर की ओर हाथ रखकर) हे उत्तर भूमे! तुम मनु का वहन करने वाली हो।[यजुर्वेद 37.12]
अनाधृष्ट :: जो जीतने योग्य न हो, अजेय; जो नियंत्रित या अधीन हो, अनियंत्रित; अक्षुण्य; invincible.
Yajman should bring the Mahaveer Ghat out of the kiln and say, hey goddess-deity earth! You remain invincible from the demons. Grant me long life. Hey earth under the control of Indr Dev in the South direction! You should have a son. Grant me a son. In the west you depend over Savita Dev with comforts & pleasure. Grant me power to see-invocation. In the north direction you are under the control of Ritviz's place for Yagy. In the elevated regions you are under the command of Brahaspati Dev and support everyone. Grant me aura-radiance. The Yajman should keep hand down. Hey Mahaveer Ghat kept in the South direction! Protect me from destructive demons like Sarv. Keep the hand in North direction and say hey land in the North! You support Manu.
स्वाहा मरुद्भिः परि श्रीयस्व दिवः सꣳ स्पृशस्पाहि। मधु मधु मधु॥
हे महावीर घट! तुम्हारे लिये आहुति समर्पित है, हमारी इस हवि को मरुद्गण धारण करें। (प्रत्येक महावीर घट में सौ-सौ रत्ती स्वर्ण रखकर बोले) हे स्वर्ण शतमान! तुम मुझे द्युलोक का स्पर्श करने वाले राक्षसों से बचाओ। (कृष्णामृग चर्म के पंखे से हवा करते हुए बोले) प्राण-अपान-व्यान को क्रमशः एक-एक महावीर घट में रखता हूँ।[यजुर्वेद 37.13]
hey Mahaveer Ghat! This sacrifice is for you & let Marud Gan support our offerings. Keep hundred Ratti each Gold and say, hey Gold! Protect me from the demons who touch heavens. Blow the fan made of black buke skin and say, I keep Pran, Apan, Vyan respectively in one each Mahaveer Ghat.
गर्भो देवानां पिता मतीनां पतिः प्रजानाम्। सं देवो देवेन सवित्रा गत सꣳ सूर्येण रोचते॥
(महावीर घट को स्थापित कर बोले) तुम देवताओं गर्भ अर्थात् उन्हें धारण करने वाले हो, तुम बुद्धि प्रवर्तक-प्रजाओं के पालक हो। महावीर घट सूर्य देवता के साथ एकीभाव को प्राप्त हो गया है, वह अब सूर्य के ही साथ शोभित हो रहा है।[यजुर्वेद 37.14]
Establish Mahaveer Ghat and say, you are the uterus of the demigods i.e., you support them. You grant intelligence and support the subjects-populace. Mahaveer Ghat has attain parity with the deity Sun and its now shinning like Sun.
समग्निरग्निना गत सं दैवेन सवित्रा सꣳ सूर्येणारोचिष्ट।
स्वाहा समग्निस्तपसा गत सꣳ दैव्येन सवित्रा सꣳ सूर्येणारूरुचत॥
जो महावीर घट अग्नि के साथ एकीभाव को प्राप्त हुआ; सविता देव के साथ संगत हुआ और सूर्य के साथ शोभित हुआ। स्वाहाकार धर्म सूर्य के तेज के साथ, सविता देव के साथ और सूर्य के साथ वह संगत होता हुआ प्रकाशित होता है।[यजुर्वेद 37.15]
The Mahaveer Ghat which attained parity with the fire, joined Savita Dev and shined with the Sun. Dharm become of the size of Swaha and shine with the aura-radiance of Savita Dev, and Sury Dev.(19.10.2025)
धर्त्ता दिवो वि भाति तपसस्पृथिव्यां धर्त्ता देवो देवानाममर्त्यस्तपोजाः।
वाचमस्मे नि यच्छ देवायुवम्॥
यह महावीर घट द्युलोक का तथा किरणों का धारण करने वाला है और स्वयं अमत्यं देवता है। सूर्य से उत्पन्न यह देव हमें वाणी की शक्ति प्रदान करे।[यजुर्वेद 37.16]
This Mahaveer Ghat support the heavens and rays of light and in itself, its Amantyan Dev. Let this Dev evolved out of Sury grant us power to speak.
अपश्यं गोपामनिपद्यमानमा च परा च पथिभिश्चरन्तम्।
स सध्रीचीः स विषूचीर्वसान आ वरीवर्त्ति भुवनेष्वन्तः॥
यह महावीर घट सूर्य स्वरूप है, मैंने इसे आकाश से गिरते नहीं देखा है। साथ ही मैंने उसे सम्पूर्ण अन्तरिक्ष में भ्रमण करते देखा है, वह किरणों को धारण किये हुए तीनों लोकों में सर्वत्र विचरण करता है।[यजुर्वेद 37.17]
This Mahaveer Ghat is like the Sun, I have not seen it falling from the sky. I have seen it revolving in the sky. It roams in the three abodes supporting the rays.
विश्वासां भुवां पते विश्वस्य मनसस्पते विश्वस्य वचसस्पते सर्वस्य वचसस्पते। देवश्रुत्त्वं देव घर्म देवो देवान् पाह्यत्र प्रावीरनु वां देववीतये। मधु माध्वीभ्यां मधु माधूचीभ्याम्॥
हे समस्त पृथ्वी के स्वामी, हे सबके मन के स्वामी, सबके वाणी के स्वामी, हे महावीर घट! तुम देवता होकर यज्ञ में देवों की रक्षा करो। हे दोनों अश्विनी कुमारों! यज्ञ में दध्यङ् अथर्वा ने मधुविद्या के ज्ञान के लिये मधु ब्राह्मण को सम्प्राप्त होने वाले तथा मधु विद्या को पूजने वाले जिन तुम दोनों को मधुविद्या का ज्ञान दिया था, तुम दोनों उनके भी रक्षक होओ।[यजुर्वेद 37.18]
Hey lord of the whole earth, hey lord of the innerself of all, lord of the voice of everyone, hey Mahaveer Ghat! You become a deity-Lord and protect the demigods in the Yagy. Hey Ashwani Kumars, duo! Dadyan Athrva granted Madhu Vidya Gyan to the Brahman named Madhu, become the protector of the grantor and acceptor of Madhu Vidya, who worship it and whom you granted this knowledge.
हृदे त्वा मनसे त्वा दिवे त्वा सूर्याय त्वा। ऊर्ध्वा अध्वरं दिवि देवेषु धेहि॥
हे महावीर घट! हृदय और मन की शुद्धि के लिये मैं तुम्हारी स्तुति करता हूँ। हे महावीर घट! द्युलोक और सूर्यलोक की प्राप्ति के लिये मैं तुम्हारा स्तवन करता हूँ। (उर्ध्वमुख करके बोले) हे महावीर घट! तुम हमारे यज्ञ को द्युलोक में स्थित देवताओं में धारित करो।[यजुर्वेद 37.19]
Hey Mahaveer Ghat! I worship you for the purity of heart & mind-innerself. I worship you for the attainment of heavens and Sury Lok-abode. Raise the mouth up and say, hey Mahaveer Ghat! Support our Yagy in the heaven amongest the demigods.
पिता नोऽसि पिता नो बोधि नमस्ते अस्तु मा मा हिꣳसीः। त्वष्टमन्तस्त्वा सपेम पुत्रान् पशून् मयि धेहि प्रजामस्मासु धेह्यरिष्टाहꣳ सह पत्या भूयासम्॥
हे महावीर घट! आप हमारे पिता के सदृश पालनकर्ता हैं, आप अपने को हमारा पिता समझें। हम आपको नमस्कार करते हैं। आप हमारी कभी हिंसा न करें। (यजमान-पत्नी महावीर घट को देखकर बोले) हे महावीर घट! पुत्रों और गायों आदि पशुओं को तुम मुझे प्रदान करो। मैं अपने पति के साथ सुखपूर्वक रहूँ।[यजुर्वेद 37.20]
Hey Mahaveer Ghat! You support us like a father, consider yourself our father. We salute you. Hey Mahaveer Ghat! Never harm us. Yajman's wife should look at Mahaveer Ghat and say, hey Mahaveer Ghat! Grant me sons, cows and other animals, bless me to live with husband comfortably.
अहः केतुना जुषताꣳ सुज्योतिर्योतिषा स्वाहा।
रात्रिः केतुना जुषताꣳ सुज्योतिर्योतिषा स्वाहा॥
घृत की दो आहुतियाँ देते हुए बोले, स्वज्योति द्वारा ज्योतिर्मान् कर्म युक्त दिन सूर्य के साथ हवि का सेवन करे। आपके लिये यह आहुति समर्पित है। अपनी ही शुभ ज्योति द्वारा ज्योतिर्मती रात्रि कर्मयुक्त होकर अग्नि के साथ इस हवि का सेवन करे। आपके लिये यह आहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 37.21]
Make sacrifices of Ghee and say, consume the oblations-offerings with your own aura and the radiant deeds during the day with the Sun. This sacrifice is for you. During radiant night get involved in efforts and consume the offerings with Agni. This sacrifice is for you.(20.10.2025)
यजुर्वेद संहिता अथाष्टत्रिंशोऽध्यायः :: ऋषि :-अथर्वण, दीर्घतमा, मेधातिथि, प्रस्कण्व; देवता :- सविता, सरस्वती, पूषा, वाक्, अश्विनीकुमार, वात, इन्द्र, वायु, यज्ञ, द्यावापृथिवी, पूषा आदि लिंगोक्तादेवता, रुद्रादि, अग्नि, आप, ईश्वर; छन्द :- त्रिष्टुप्, गायत्री, बृहती, पंक्ति, जगती, अष्टि, अनुष्टुप्, उष्णिक्।
देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्याम्। आ ददेऽदित्यै रास्नासि॥
गाय की रस्सी पकड़कर बोले, हे रज्जु (रस्सी)! हम आपको सर्वप्रेरक सविता देव द्वारा प्रेरित होकर, अश्विद्वय की भुजाओं तथा पूषा देवता के हस्तों द्वारा ग्रहण करते हैं। आप अदिति रूप धेनु की मेखला हैं।[यजुर्वेद 38.1]
मेखला :: क्षेत्र, पेटी, पट्टा, कमरबन्द, करधनी, कटिसूत्र, कमरबन्द, परिखा; belt, girdle, waistband.
Hold the cord-rope of the cow and say, hey cord! On being inspired by all inspiring Savita Dev, accept you with the arms of Ashwani Kumars and Pusha Dev. You are the waistband of cow in the form of Aditi.
इड एह्यदित एहि सरस्वत्येहि। असावेह्यसावेह्यसावेहि॥
हे इडे! हे अदिति! हे सरस्वती! आप दुग्ध प्रदान करने के लिये यहाँ पधारें। हे धवले! यहाँ आओ।[यजुर्वेद 38.2]
Hey Ide! Hey Aditi! Hey Saraswati! Come here for yielding milk. hey Dhavle-white! come here.
अदित्यै रास्नासीन्द्राण्या उष्णीषः पूषासि घर्माय दीष्व॥
गाय के पिछले पैरों पर रस्सी बाँधकर बोले, हे रज्जु (रस्सी)! आप अदिति रूपिणी धेनु की मेखलारूप हैं, इन्द्राणी की पगड़ी हैं। बछड़े को छोड़ते हुए बोले, हे गोवत्स! आप पूषा देवता हो, तुम कुछ दूध घर्म के लिये शेष छोड़ दो।[यजुर्वेद 38.3]
Tie the hind legs of cow and say, hey cord! You are the waist band of the cow which is like Aditi and cap of Indrani. Release the calf and say, hey calf! You are Pusha Dev! Leave behind some milk for Dharm.
अश्विभ्यां पिन्वस्व सरस्वत्यै पिन्वस्वेन्द्राय पिन्वस्व।
स्वाहेन्द्रवत् स्वाहेन्द्रवत् स्वाहेन्द्रवत्॥
गाय को दुहते हुए बोले, हे गाय! तुम दोनों अश्विनी कुमारों के लिये दूध दो, सरस्वती के लिये दूध दो, इन्द्र के लिये दूध दो, एक धार बाहर दुहते हुए बोले, यह इन्द्र देवता के लिये आहुति है।[यजुर्वेद 38.4]
Say while milking the cow, hey cow! Grant milk for Ashwani Kumars duo, Saraswati, Indr Dev. Milking one nipple say, this is the sacrifice for Indr Dev.
यस्ते स्तनः शशयो यो मयोभूर्यो रत्नधा वसुविद्यः सुदत्रः।
येन विश्वा पुष्यसि वार्याणि सरस्वति तमिह धातवेकः। उर्वन्तरिक्षमन्वेमि॥
हे सरस्वति (गौ)! तुम्हारा जो स्तन सुप्त-सा है, जो सुख प्रदान करने वाला है, जो रत्नों को धारण करने वाला है, जो धन प्रदान करने वाला है, जो सुन्दर वस्तुओं के देने वाला है, जिसे तुम सब धनों का पोषण करते हो। हे सरस्वति! अपने उसी स्तन को हमारे पीने लिये प्रदान करें, मैं स्वर्ग लोक को प्राप्त करूँ।[यजुर्वेद 38.5]
Hey Sarsvati-cow! Your nipple is like silent, grant pleasure, adore jewels, grant wealth & beautiful goods, you nourish all sorts of wealth. Hey Sarsvati! Allow that nipple for us to drink milk, leading to attainment of heavens by me.
गायत्रं छन्दोऽसि त्रैष्टुभं छन्दोऽसि द्यावापृथिवीभ्यां त्वा परि गृह्णाम्यन्तरिक्षेणोपयच्छामि। इन्द्राश्विना मधुनः सारघस्य घर्म पात वसवो यजत वाट्। स्वाहा सूर्यस्य रश्मये वृष्टिवनये॥
यजुर्गायत्री के परीशास देवता होते हैं, उनको सम्बोधित करके बोले, हे प्रथम परिशास देवता! आप गायत्री छन्द हैं। हे द्वितीय परिशास देवता! आप त्रिटुप् छन्द हैं। हे घर्म! मैं तुम्हें संड़सी के द्वारा पकड़ता हूँ, हे इन्द्र और अश्विनी कुमारो! सरघा नामक मक्खी के द्वारा उत्पन्न इस मधु का पान करो। हे वसुओ! तुम्हारे दूध की आहुति है, तुम सूर्य की वर्षा करने वाली किरण को प्रदान करो।[यजुर्वेद 38.6]
Address the Parishas Dev of Yajur Gayatri, hey first Parishas Dev! You are Gayatri Chhand. Hey second Parishas Dev! You are Tristup Chhand. Hey Dharm! I hold you with tongs. Hey Indr & Ashwani Kumars! Drink the honey produce by honey bee named Sargha. Hey Vasu Gan! Milk sacrifice is for you, grant the rays of Sun which cause rains.
समुद्राय त्वा वाताय स्वाहा सरिराय त्वा वाताय स्वाहा। अनाधृष्याय त्वा वाताय स्वाहाप्रतिधृष्याय त्वा वाताय स्वाहा। अवस्यवे त्वा वाताय स्वाहाऽअशिमिदाय त्वा वाताय स्वाहा॥
समुद्र रूप वायु के लिये यह आहुति है, साथ गति करने वाले वायु के निमित्त आहुति है, रक्षण करनेवाली वायु के निमित्त आहुति है, कष्टों निवारण करनेवाली वायु के निमित्त यह आहुति है।[यजुर्वेद 38.7]
These sacrifices are for the air-Vayu which is like ocean, air blowing together, air granting protection, air removing pains-torture respectively.
इन्द्राय त्वा वसुमते रुद्रवते स्वाहेन्द्राय त्वादित्यवते स्वाहेन्द्राय त्वाभिमातिघ्ने स्वाहा। सवित्रे त्व ऋभुमते विभुमते वाजवते स्वाहा बृहस्पतये त्वा विश्वदेव्यावते स्वाहा॥
वसुओं और रुद्रों के साथ इन्द्र के लिये यह आहुति है, आदित्य के साथ इन्द्र के लिये यह आहुति है, ऋभदेवता के साथ सविता-देवता के लिये आहुति है, विश्वेदेवों के साथ बृहस्पति के लिये यह आहुति है।[यजुर्वेद 38.8]
These sacrifices are for Vasu, Rudr Gan & Indr, Adity & Indr, Ribhu & Savita Dev, Vishwe Dev & Brahaspati respectively.
यमाय त्वांगिरस्वते पितृमते स्वाहा। स्वाहा घर्माय स्वाहा घर्मः पित्रे॥
अंगिरा और पितर देवताओं के साथ यम के लिये यह आहुति है, घर्म के लिये यह आहुति है, पितरों के लिये यह आहुति है।[यजुर्वेद 38.9]
These sacrifices are for Angira, Pitr Dev & Yam, Dharm and Manes respectively.
विश्वा आशा दक्षिणसद्विश्वान्देवानयाडिह। स्वाहाकृतस्य घर्मस्य मधोः पिबतमश्विना॥
इस यज्ञ स्थान में दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बैठे हुए याज्ञिकों ने, सम्पूर्ण दिशाओं में निवास करने वाले सभी देवगणों के लिये आहुति दी है। अतएव हे दोनों अश्विनी कुमारो! आप यहाँ इस यज्ञ में निवेदित मधु का हवि रूप में सेवन करें।[यजुर्वेद 38.10]
The Yagyik occupying the Yagy Sthal, facing South, made sacrifices for the demigods residing in all directions. Hence, hey Ashwani Kumars! Consume the honey offered in this Yagy as oblation.
दिवि धा इमं यज्ञमिमं यज्ञं दिवि धाः। स्वाहाग्नये यज्ञियाय शं यजुर्थ्यः॥
हे होताओ! तुम इस यज्ञ को द्युलोक में धारित करो, इस यज्ञ को द्युलोक में धारित करो। हवनीय अग्नि के यह आहुति है, इस यजन हमें सुख की प्राप्ति हो।[यजुर्वेद 38.11]
Hey Hotas! Support this Yagy in the heavens. This sacrifice for Agni of the Hawan. Let this Yagy grant us pleasure-comforts.(21.10.2025)
अश्विना घर्म पातꣳ हार्द्वानमहर्दिवाभिरूतिभिः। तंत्रायिणे नमो द्यावापृथिवीभ्याम्॥
हे अश्विनी कुमारो! आप अपने रक्षण सामर्थ्यों द्वारा हृदय को प्रिय लगने वाले यज्ञ को दिन-रात संरक्षण प्रदान करो। घर्मस्थ मधु का पान करो, कालचक्र के निर्माता आदित्य देवता के लिये नमस्कार है। द्युलोक और पृथ्वी लोक के लिये नमस्कार है।[यजुर्वेद 38.12]
घर्मस्थ :: गर्म; warmest.
Hey Ashwani Kumars! Grant protection to the Yagy which is dear to the heart, with your protection means throughout the day & night. Drink the warm Honey. Salutation for the Adity Gan who frame the time period. Salutation to earth & heavens.
अपातामश्विना घर्ममनु द्यावापृथिवी अम साताम्। इहैव रातयः सन्तु॥
हे दोनों अश्विनी कुमारो! घर्म में स्थित पय पान करो, द्युलोक और पृथ्वी लोक हमारे इस कृत्य की प्रशंसा करें। इन्द्र हमें धन-सम्पत्ति का दान दें।[यजुर्वेद 38.13]
पय :: दूध, दुग्ध, जल, पानी; drink.
Hey Ashwani Kumar duo! Drink the warm milk. Let the earth & heavens appreciate our endeavour-efforts. Indr Dev should grant us wealth and property.
इषे पिन्वस्वोर्जे पिन्वस्व ब्रह्मणे पिन्वस्व क्षत्राय पिन्वस्व द्यावापृथिवीभ्यां पिन्वस्व। धर्मासि सुधर्माऽमेन्यस्मे नृम्णानि धारय ब्रह्म धारय क्षत्रं धारय विशं धारय॥
हे यज्ञदेव! अन्न की अभिवृद्धि एवं शक्ति तथा वीर्य के निमित्त सम्पूर्ण प्रजा को आप परिपुष्ट करें। ब्राह्मणत्व एवं क्षत्रियत्व की अभिवृद्धि के निमित्त प्रजा को परिपुष्ट करें। स्वर्गलोक तथा भूलोक को विस्तारित करने के निमित्त प्रजा को परिपुष्ट बनाएँ। हे परमात्मन्! आप श्रेष्ठ विधि से सम्पूर्ण प्रजा तथा राज्य को धारण करने में सक्षम हैं। आप अहिंसनीय हैं। मानवों के निमित्त शुभकारी धन हमें प्रदान करें। आप हमें ब्राह्मणत्व, क्षत्रियत्व एवं व्यापार की सामर्थ्य प्रदान करें।[यजुर्वेद 38.14]
Hey Yagy Dev! Nourish the subjects-populace by increasing the food grains, power and potential. Nourish the subjects for strengthening of Brahmantv & Kshatratv. Nourish the subjects for the extension-strengthening of earth and heavens. Hey Almighty! You are capable of supporting the entire populace and the state. Grant the capability of Brahmantv, Kshatratv and business.
स्वाहा पूष्णे शरसे स्वाहा ग्रावभ्यः स्वाहा प्रतिरवेभ्यः। स्वाहा पितृभ्य ऽऊर्ध्वबर्हिभ्र्यो घर्मपावभ्यः स्वाहा द्यावापृथिवीभ्याꣳ स्वाहा विश्वेभ्यो देवेभ्यः॥
स्नेही पूषा देव के निमित्त, प्राणों के निमित्त, शब्दायमान् प्राणियों के निमित्त, सोम पान करने वालों के निमित्त, धर्म को पावन करने वाले पितर गणों के निमित्त, स्वर्ग लोक के निमित्त, भूलोक के निमित्त एवं समस्त देवगणों के निमित्त ये आहुतियाँ अर्पित की जा रही हैं।[यजुर्वेद 38.15]
Sacrifices are made for loving Pusha Dev, Air Vital, living being which speak, those who drink Somras, Pitr Gan who make the Dharm pure-pious, heavens, earth and all demigods-deities.
स्वाहा रुद्राय रुद्रहूतये स्वाहा सं ज्योतिषा ज्योतिः। अहः केतुना जुषताꣳ सुज्योतिर्योतिषा स्वाहा। रात्रिः केतुना जुषताꣳ सुज्योतिर्योतिषा स्वाहा। मधु हुतमिन्द्रतमे अग्नावश्याम ते देव घर्म नमस्ते अस्तु मा मा हिꣳसीः॥
असुरों के विनाशक रुद्रदेव के निमित्त यह हवि निवेदित है। ज्योति से ज्योति सुसंगत होकर अच्छी तरह प्रदीप्त हो, इसके निमित्त यह आहुति समर्पित है। दिन तथा सूर्य अपने तेज से सुसंगत हो, इसके निमित्त यह आहुति निवेदित है। रात्रि अग्नि से युक्त हो, तेज अपने तेज से युक्त हो, इसके निमित्त यह हवि अर्पित है। हे दिव्य गुण सम्पन्न परमात्मा! आप तेजवान् अग्नि में अर्पित की गयी मधुरता से युक्त आहुति को ग्रहण करें तथा हमारी रक्षा करें, हिंसा न करें।[यजुर्वेद 38.16]
This sacrifice for the destroyer of demons. This sacrifice is for strengthening of light impact in addition to other lights. This sacrifice for the aura of Sury and earth to make them complementary. Night should be associated with the Agni-fire, hence this sacrifice is for it. Aura should mix with aura, so this sacrifice. Hey Almighty with aura-radiance! Accept the offerings in Agni, protect us and do not harm.
अभीमं महिमा दिवं विप्रो बभूव सप्रथाः। उत श्रवसा पृथिवीꣳ सꣳ सीदस्व महाँ2 ॥ असि रोचस्व देववीतमः। वि धूममग्ने अरुषं मियेध्य सृज प्रशस्त दर्शतम्॥
हे अग्ने! आपकी विस्तारित महिमा स्वर्गलोक तथा भूलोक में संव्याप्त है। आप समस्त देवताओं को परितृप्त करने की सामर्थ्य से युक्त हैं। आप हमारे यज्ञ में अच्छी तरह से विराजित होकर प्रदीप्त हों। हे यजनीय, श्रेष्ठ अग्निदेव! आप अपने लाल वर्ण से युक्त, दर्शन करने योग्य धुएँ को विस्तारित करें, आप देवताओं को अत्यन्त प्रिय हैं आप प्रकाशमान हों।[यजुर्वेद 38.17]
Hey Agne! Your extended glory pervade the heavens & earth. You have the capability to satisfy all demigods-deities. Occupy the Yagy and glow properly. Hey worshipable Agni Dev! Spread the red smoke fit for viewing; being loved by the demigods-deities. You should become illuminated.
या ते घर्म दिव्या शुग्या गायत्र्याꣳ हविर्धाने। सा त आ प्यायतान्निष्ट्यायतां तस्यै ते स्वाहा। या ते घर्मान्तरिक्षे शुग्या त्रिष्टुब्भ्याग्नीधे। सात आ प्यायतान्त्रिष्ट्यायतां तस्यै ते स्वाहा। या ते घर्म पृथिव्याꣳ शुग्या जगत्याꣳ सदस्या। सा त आ प्यायतान्त्रिष्ट्यायतां तस्यै ते स्वाहा॥
हे अग्ने! तुम्हारी जो प्रभा द्युलोक में है, जो गायत्री छन्द में है और जो यज्ञशाला में है-तुम्हारी वह प्रभा बढ़े, तुम्हारी उस प्रभा के निमित्त आहुति समर्पित है। हे अग्नि देव! तुम्हारी जो ज्योति अन्तरिक्ष में विराजमान है, तुम्हारी जो ज्योति त्रिष्टुप् छन्द में विद्यमान है और जो अग्नीध्रगृह में विद्यमान है, तुम्हारी वह ज्योति बढ़े और स्थिर होवे, तुम्हारी उस ज्योति के निमित्त यह आहुति समर्पित है। हे अग्निदेव! तुम्हारी जो ज्योति पृथ्वी में है, जो ज्योति जगती छन्द में है और जो यज्ञगृह में विद्यमान है। तुम्हारी वह ज्योति बढ़े और दृढ़ बने, तुम्हारे उस ज्योति के लिये आहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 38.18]
Hey Agne! Your aura-radiance in the heavens, Gayatri Chhand, Yagy Shala should increase, hence this sacrifice for you. Hey Agni Dev! Your light in space, Trishtup Chhand, Agnidhr Grah should stabilise and increase, so this sacrifice for you. Hey Agni Dev! Your light in earth, Jagti Chhand, Yagy Grah should increase-strengthen, and therefore this sacrifice for you.
क्षत्रस्य त्वा परस्पाय ब्रह्मणस्तन्वं पाहि।
विशस्त्वा धर्मणा वयमनु क्रामाम सुविताय नव्यसे॥
हे परमात्मन्! वीर्यवान् क्षत्रियों एवं विद्वान् ब्राह्मणों के देह में स्थित शक्तियों को आप रक्षित करें। प्रजा को धर्म पथ पर अग्रसर करके श्रेष्ठ पदार्थों को प्राप्त कराने, उत्तम पथ पर गमन कराने तथा कर्तव्यों के पालन के निमित्त हम आपका अनुकरण करते हैं।[यजुर्वेद 38.19]
Hey Almighty! Protect-strengthen the potential-strength in the Kshatriy, Brahmans.
Direct the populace over the Dharm Path (virtues, righteousness, piousness), grant excellent materials, excellent route-path and for accomplishment of duties we follow you.(22.10.2025)
चतुः स्त्रक्तिर्नाभिर्ऋतस्य सप्रथाः स नो विश्वायुः सप्रथाः स नः सर्वायुः सप्रथाः।
अप द्वेषो अप ह्वरोऽन्यव्रतस्य सश्चिम॥
हे परमात्मन्! आप चारों दिशाओं में संव्याप्त तथा यज्ञ की नाभि के केन्द्र हैं। अत्यन्त विस्तारित कीर्ति वाले होकर पूर्ण आयु तक हमारी सुरक्षा करें। सुविस्तृत कीर्ति वाले आप हमारे कल्याण के निमित्त लम्बी आयु प्रदान करें। विद्वेषी, कुटिल रिपुओं से एवं से हमें विमुक्त करे। हम अहैतुक अनुकम्पा करने वाले आपकी अर्चना करते रहें। हम आप परमात्मा का सायुज्य प्राप्त करे।[यजुर्वेद 38.20]
कुटिल :: छली, चालबाज, भूला हुआ, हुकनुमा, टेढ़ा, कपटी, धोखेबाज़, भूला हुआ, टेढा, वक्र, रूखा, बेईमान, कपटी; double-faced, improbity, untruth, crooked, hooked, cynical, devious.
अहैतुक :: बिना किसी कारण, वजह या उद्देश्य के, निःस्वार्थ और निराधार, ऐसे कार्य या भावना जिसमें कोई छिपा हुआ स्वार्थ या लाभ की उम्मीद न हो; causeless, gratuitous, unprovoked.
सायुज्य :: एक में मिल जाना, एकरूपता, सादृश्य (ईश्वरीय सायुज्य); intimate union, absorption or communion, especially in a spiritual or religious context.
Hey Almighty! You pervade the four directions and form the nucleus-core of the Yagy. With expanded-extended honour protect us. Having vide glory-honour grant us long life for our welfare. Free-release us from the envious and the cynical. We the gratuitous-unprovoked worshipers should continue praying you. We should assimilate in you.
घर्मेतत्ते पुरीषं तेन वर्द्धस्व चा च प्यायस्व। वर्द्धिषीमहि च वयमा च प्यासिषीमहि॥
हे यज्ञ देव! आप श्रेष्ठ वैभवशाली तथा सामर्थ्यशाली हैं। आपकी समृद्धि में और भी अधिक वृद्धि हो। इस तरह आप पूर्णरूपेण समृद्धशाली बनें। हम लोग भी उत्कृष्ट धन तथा उत्कृष्ट पदार्थों से परितृप्त होकर पूर्णरूप से वृद्धि को प्राप्त हों।[यजुर्वेद 38.21]
Hey Yagy Dev! You possess best grandeur and capability-strength. Your prosperity should increase further. In this manner you should become prosperous. We too should get excellent wealth & goods, be satisfied and have all round development-growth.
अचिकद्दवृषा हरिर्महान्मित्रो न दर्शतः। सꣳ सूर्येण दिद्युतदुदधिर्निधिः॥
हे यज्ञ प्रभो! आप मेघों के समान सुख वर्षक, प्रजाओं के कष्टों को दूर करने वाले, सखा सदृश प्रेम प्रदान करने वाले तथा सबको देखने वाले हैं। आप सूर्य के सदृश अपने तेज द्वारा प्रकाशमान् होने वाले, सागर की भाँति गम्भीर, सुख के खजाने हैं।[यजुर्वेद 38.22]
Hey Lord of Yagy! You should grant pleasure-comforts like the clouds, remove the trouble of the populace-subjects, affectionate like friend and look alike everyone. You should shine like the Sun with your aura-radiance, tranquil-quite like the ocean and treasure of pleasure-comforts.
सुमित्रिया न आप ओषधयः सन्तु दुर्मित्रियास्तस्मै सन्तु योऽस्मान् द्वेष्टि यं च वयं द्विष्मः॥
जल तथा औषधियाँ हम सबके निमित्त हितकारी हों। जो हम सबसे द्वेष करता है तथा जिनसे हम सभी द्वेष करते हैं, उनके निमित्त आप कष्ट कारक सिद्ध हों।[यजुर्वेद 38.23]
Let water and medicines should be beneficial to all of us. You should be torturous-painful to those who are envious-against us or we are against them.
उद्वयं तमसस्परि स्वः पश्यन्त उत्तरम्। देवं देवत्रा सूर्यमगन्म ज्योतिरुत्तमम्॥
हम अन्धकार लोक से दूर श्रेष्ठ परमात्म ज्योति को देखते हुए, परब्रह्म को ही प्राप्त होते हैं।[यजुर्वेद 38.24]
We attain the Par Brahm Parmeshwar away from darkness looking-staring at HIS excellent aura-radiance.
एधोऽस्येधिषीमहि। समिदसि तेजोऽसि तेजो मयि धेहि॥
यजमान एक समिधा को आहवनीय अग्नि में डालते हुए बोले, अग्नि देव को समर्पित होने वाले हे काष्ठ! आप समिधा हैं। आप अग्नि की वृद्धि करने वाली हैं, आपकी कृपा से हम वृद्धि को प्राप्त हों। आप प्रदीप्त काष्ठ के समान प्रकाशमान तेज स्वरूप हैं, अतएव हमें भी तेजस्विता प्रदान करें।[यजुर्वेद 38.25]
तेजस्विता :: प्रभाव पूर्णता, निर्भीकता, साहस-उत्साह; brilliance, high spirit, vigorousness.
Yajman should put a piece of wood in the invoking fire-Agni and say, hey wood offered to Agni Dev! You are Samidha-wood for the Yagy. You grow fire. By virtue of your mercy-blessing we should attain progress. You possess aura like the ignited wood hence grant us brilliance.
यावती द्यावापृथिवी यावच्च सप्त सिंधवो वितस्थिरे।
तावन्तमिन्द्र ते ग्रहमूर्जा गृह्णाम्यक्षितं मयि गृह्णाम्यक्षितम्॥
दही से भरे हुए घर्म पात्र को लेकर बोले, हे इन्द्र! जहाँ तक स्वर्ग लोक तथा पृथ्वी लोक विस्तारित है तथा जहाँ तक सातों सागर एवं विभिन्न दिशाएँ विस्तारित हैं, वहाँ तक के विस्तृत क्षेत्र में हम सभी प्राणी आपकी ऊर्जा ग्रहण करते हैं। इसके निमित्त अक्षुण्ण क्षमता भी आपसे प्राप्त करते हैं।[यजुर्वेद 38.26]
अक्षुण्ण :: बिना टूटा हुआ, संपूर्ण, या क्षतिग्रस्त न हुआ हो; intact.
Hold the warm pot full of curd and say, hey Indr! Let all living beings-organism continue attaining brilliance till the heavens, earth, seven seas and different directions. For this we should have intact capability.
मयि त्यदिन्द्रियं बृहन्मयि दक्षो मयि क्रतुः।
घर्मस्त्रिशुग्विराजति विराजा ज्योतिषा सह ब्रह्मणा तेजसा सह॥
ऋत्विक् और यजमान घर्म पात्र में स्थित दही का प्राशन हुए बोले, जो परमात्मा अग्नि, विद्युत् एवं सूर्य इन तीनों के समान तेजवान् होकर श्रेष्ठ प्रकाश, विभिन्न तेज एवं ब्रह्म तेज से संयुक्त होकर शोभायमान होते हैं, वे हमें महाशक्तिशाली बनाएँ, हमें श्रेष्ठ संकल्प शक्ति तथा कुशलता प्रदान करें।[यजुर्वेद 38.27]
प्राशन :: भोजन करना; eat & drink.
Ritviz and the Yajman should say while drinking the curd in warm vessel; the Almighty who is illuminated like Agni, electricity and Sun should have best aura, Brahm Tej and make us highly capable-strong, grant us power to have firmness-determination and skill-ability.
पयसो रेत आऽभृतं तस्य दोहमशीमद्युत्तरामुत्तराꣳ समाम्। त्विषः संवृक् क्रत्वे दक्षस्य ते सुषुम्णस्य ते सुषुम्णाग्निहुतः। इन्द्रपीतस्य प्रजापतिभक्षितस्य मधुमत उपहूत उपहूतस्य भक्षयामि॥
दूध का सार रूप दही जो इस घर्म पात्र में भरा है, उसका हम बराबर भोग करते रहें अर्थात् हमें दूध, दही की प्राप्ति होती रहे। हे कान्ति स्वरूप दधि! हे घर्म! अग्नि में हवन से बचे हुए, इन्द्र तथा प्रजापति द्वारा भक्षित, माधुर्य युक्त दधि का मैं प्राशन करता हूँ।[यजुर्वेद 38.28]
We should continue using the curd the extract of milk stored in this warm vessel again & again. Hey curd like brilliance-aura! Hey warmth! I drink the sweetened curd left over after Hawan in Agni by Indr Dev, Prajapati after consumption. (23.10.2025)
यजुर्वेद संहिता अथैकोनचत्वारिंशो :: ऋषि :- दध्यङ् आथर्वण, परमेष्ठी प्रजापति अथवा साध्य; देवता :- मान्त्रवार्णिक्य, यजमान आशीर्वाद, श्री, प्रायश्चित्त देवता सवितादि, मरुद्गण, अग्नि; छन्द :- पंक्ति, अनुष्टुप, बृहती, कृति, धृति, गायत्री, अष्टि, त्रिष्टुप्।
स्वाहा प्राणेभ्यः साधिपतिकेभ्यः।
पृथिव्यै स्वाहाग्नये स्वाहान्तरिक्षाय स्वाहा वायवे स्वाहा दिवे स्वाहा सूर्याय स्वाहा॥
अधिपति देवता सहित हिरण्य गर्भ के साथ वर्तमान प्राणों के लिये स्वाहा, पृथ्वी के लिये स्वाहा, अग्नि के लिये स्वाहा, अन्तरिक्ष के लिये स्वाहा, वायु के लिये स्वाहा, द्युलोक के लिये स्वाहा और सूर्य देवता के लिये स्वाहा है।[यजुर्वेद 39.1]
Make sacrifices uttering Swaha as suffix for Adhipati Dev, Hirany Garbh with the present Air Vital, earth, Agni, space-sky, Vayu Dev, heavens, Sury Dev, respectively.
दिग्भ्यः स्वाहा चन्द्राय स्वाहा नक्षत्रेभ्यः स्वाहाद्भ्यः स्वाहा वरुणाय स्वाहा।
नाभ्यै स्वाहा पूताय स्वाहा॥
दिशाओं के लिये स्वाहा, चन्द्रमा के लिये स्वाहा, नक्षत्रों के लिये स्वाहा, जल के लिये स्वाहा, वरुण के लिये स्वाहा, नाभि के लिये स्वाहा और पवित्र करने वाले देवता के लिये स्वाहा है।[यजुर्वेद 39.2]
Make sacrifices uttering Swaha for directions, Moon, Constellations, water, Varan Dev, Navel and demigods-deities connected to austerities, respectively
वाचे स्वाहा प्राणाय स्वाहा प्राणाय स्वाहा। चक्षुषे स्वाहा
चक्षुषे स्वाहा। श्रोत्राय स्वाहा श्रोत्राय स्वाहा॥
वाणी के लिये स्वाहा है, प्राणों के लिये स्वाहा है, प्राणों के लिये स्वाहा है, नेत्रों के लिये स्वाहा है, कानों के लिये स्वाहा है, कानों के लिये स्वाहा है।[यजुर्वेद 39.3]
Make sacrifices uttering Swaha as suffix for speech-voice, Air Vital, eyes, ears, respectively, repeating it twice.
मनसः काममाकृतिं वाचः सत्यमशीय।
पशूनाꣳ रूपमन्नस्य रसो यशः श्रीः श्रयतां मयि स्वाहा॥
मन की आकांक्षाएँ पूर्ण हो एवं वाणी को सत्य वचन कहने की सामर्थ्य प्राप्त हो इसके निमित्त यह आहुति निवेदित है। पशुधन से गृह की शोभा में वृद्धि हो इसके निमित्त यह आहुति समर्पित है। अन्न की सुस्वादुता, यश एवं लक्ष्मी की प्राप्ति हो इसके निमित्त यह आहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 39.4]
This sacrifice is made for accomplishment of desires and voice to speak truthful words. This sacrifice is made for increase of animals in the house. This sacrifice is made for making food tasty, glory and blessings o Lakshmi Devi i.e., goddess of wealth.
प्रजापतिः सम्भ्रियमाणः सम्राट् सम्भृतो वैश्वदेवः सꣳ सन्नो घर्मः प्रवृक्तस्तेज उद्यत आश्विनः पयस्यानीयमाने पौष्णो विष्यन्दमाने मारुतः क्लथन्। मैत्रः शरसि सन्ताय्यमाने वायव्यो ह्रियमाण आग्नेयो हूयमानो वाग्घुतः॥
यज्ञ-सम्बन्धी प्रयोगों द्वारा परिपुष्ट होते हुए प्रजापति के निमित्त, सम्राट् (प्रायश्चित्त देवता) के निमित्त, ज्ञानियों द्वारा सम्मान प्राप्त करने योग्य विश्वे देवा के निमित्त, उच्च आसन प्राप्त करने वाले घर्म के निमित्त, उन्नत पद पर देदीप्यमान तेज के निमित्त, जल से सिक्त होने वाले दोनों अश्विनी कुमारों के निमित्त, धरती के हितैषी पूषा देवता के निमित्त, शत्रुओं के संहारक मरुत् देवता के निमित्त, कृषि सम्बन्धी संसाधनों को विस्तारित करने वाले मित्र देव के निमित्त, रणभूमि में गमनशील वायु देवता के निमित्त, आहुतियों का भक्षण करने वाले अग्नि देवता के निमित्त एवं वाणी के देवता के निमित्त ये आहुतियाँ समर्पित की जा रही हैं।[यजुर्वेद 39.5]
These sacrifices are made for Prajapati for nourishing the Yagy related efforts-jobs, for Samrat-deity of penance, Vishwe Dev who deserve to be honoured by the enlightened, those who attain high positions for Dharm, Tej (energy-aura) at high rank, altitude-position, for Ashwani Kumars to be anointed with water, Pusha Dev well wisher of earth, destroyer of enemy Marud Gan, Mitr Dev for agriculture related endeavours, Vayu Dev for roaming in war field, for Agni Dev who eats offerings, and deity of speech, respectively.
सविता प्रथमेऽहन्नग्निद्वितीये वायुस्तृतीय आदित्यश्चतुर्थे चन्द्रमाः पञ्चमऋतुः षष्ठे मरुतः सप्तमे बृहस्पतिरष्टमे। मित्रो नवमे वरुणो दशम इन्द्र एकादशे विश्वेदेवा द्वादशे॥
पहले दिन सविता देव के निमित्त आहुति समर्पित है। दूसरे दिन अग्नि देवता के निमित्त आहुति समर्पित है। तृतीय दिवस वायुदे वता के निमित्त आहुति समर्पित है। चतुर्थ दिवस आदित्य देव के निमित्त आहुति समर्पित है। पाँचवें दिन चन्द्र देव के निमित्त आहुति समर्पित है। छठे दिन ऋतुओं के निमित्त आहुति समर्पित हैं। सातवें दिन मरुत् देवता के निमित्त आहुति समर्पित है। आठवें दिन बृहस्पति देवता के निमित्त आहुति समर्पित है। नौवें दिन मित्र देवता के निमित्त आहुति समर्पित है। दसवें दिन वरुण देवता के निमित्त आहुति समर्पित है। ग्यारहवें दिन इन्द्र देव के निमित्त आहुति समर्पित है। बारहवें दिन विश्वेदेवता के निमित्त आहुति समर्पित करते हैं।[यजुर्वेद 39.6]
Sacrifice is made for Savita on first day, second day for Agni Dev, third day Vayu Dev, forth day Adity Gan, fifth day Moon, sixth day seasons, seventh day Marud Gan, eighth day Brahaspati Dev, ninth day Mitr Dev, tenth day Varun Dev, eleventh day Indr Dev and the twelfth day Vishwe Dev, respectively.
उग्रश्च भीमश्च ध्वान्तश्च धुनिश्च। सासह्वाँश्चाभियुग्वा च विक्षिपः स्वाहा॥
उग्र, भीम, ध्वान्त, धुनि, अभियुग्वा विक्षिप, और निष्कम्प, ये सात मरुत् है, इनके लिये आहुतियाँ समर्पित है।[यजुर्वेद 39.7]
उग्र (तीव्र स्वभाव वाला), भीम (भयकारी), ध्वान्त (अंधेरे को प्राप्त), धुनि (काँपता), विक्षिप (विक्षेप), निष्कम्प (सासह्वान्), धुनि (अन्धकार को प्राप्त)।
Sacrifices are made for the seven Marud Gan namely Ugr, Bheem, Dhvant, Dhuni, Abhiyugva, Viskhip & Nishkamp.(24.10.2025)
अग्निꣳ हृदयेनाशनिꣳ हृदयाग्रेण पशुपतिं कृत्स्नहृदयेन भवं यक्ना। शर्वं मतस्नाभ्यामीशानं मन्युना महादेवमन्तः पर्शव्येनोग्रं देवं वनिष्ठुना वसिष्ठहनुः शिङ्गीनि कोश्याभ्याम्॥
अश्वमेध यज्ञ के अश्व के हृदय के द्वारा अग्नि देवता को प्रसन्न करते हैं। हृदय के अग्र भाग द्वारा अशनि देवता को प्रसन्न करते हैं। सम्पूर्ण हृदय के द्वारा पशुपति देवता को प्रसन्न करते हैं। यकृत द्वारा भव देवता को प्रसन्न करते हैं। हृदयास्थि विशेष द्वारा शर्व देवता को प्रसन्न करते हैं। मन्यु के द्वारा ईशान देवता को प्रसन्न करते हैं। पार्श्व अस्थि के मांस द्वारा महादेव को प्रसन्न करते हैं। बड़ी आँत के द्वारा उग्र देवता को प्रसन्न करते हैं। हनु से वसिष्ठ को तथा हृदय-कोशों से शिंगी देवता को प्रसन्न करते हैं।[यजुर्वेद 39.8]
Agni Dev is pleased with the horse of Ashwmedh Yagy. Ashani Dev is please with the front segment of heart. Whole heart is devoted to Pashupati Dev for pleasing gladdening him. Liver is used to please Bhav Dev. Specific cartilaginous segment over-around the heart is used to please Sarv Dev. Manyu is to please Ishan Dev. Flash of the side bones please Maha Dev. Large intestine pleases Ugr Dev. Hanu- chin pleases Vashishth and heart chambers pleases the Shingi Dev.
उग्र ल्लोहितेन मित्रꣳ सौव्रत्येन रुद्रं दौव्रत्येनेन्द्रं प्रक्रीडेन मरुतो बलेन साध्यान् प्रमुदा। भवस्य कण्ठ्यꣳ रुद्रस्यान्तः पार्श्व्य महादेवस्य यकृच्छर्वस्य वनिष्ठुः पशुपतेः पुरीतत्॥
अश्व के लोहित के द्वारा उग्र देवता को प्रसन्न करते हैं। उसके शुभ कार्यों मित्र देवता को प्रसन्न करते है। उसके दुष्कर्मों द्वारा सह देवता को प्रसन करते हैं। उसकी क्रीडा द्वारा इंद्र देव को प्रसन्न करते हैं। उसके बल द्वारा मरुद् गणों को प्रसन करते हैं।। उसके कण्ठ मांस के द्वारा साध्य देवताओं को प्रसन करते हैं। उसकी पसलियों के अन्दर के मांस द्वारा रुद्र देवता को प्रसन्न करते हैं। यकृत के द्वारा महादेव को प्रसन्न करते हैं। बड़ी आंत के द्वारा शर्व देवता को प्रसन्न करते हैं। हृदय से आच्छिदत नाड़ी के द्वारा पशुपति देवता को प्रसन्न करती हैं।[यजुर्वेद 39.9]
लोहित :: रक्त; blood.
Blood of horse is used to please Ugr Dev. With its auspicious deeds Mitr Dev is pleased. Its wicked-bad deeds pleases Sah Dev. Its playfulness is to please Indr Dev. Its might is used to please Marud Gan. Sadhy Dev are pleased with the meat of its neck. Rudr Dev is please with the meat of its ribs. Mahadev is pleased with its liver. Large intestine is used to please Sharv Dev. Nerve covered by the heart, is used to please Pashupati Dev.
लोमभ्यः स्वाहा लोमभ्यः स्वाहा त्वचे स्वाहा त्वचे स्वाहा लोहिताव्य स्वाहा लोहिताव्य स्वाहा मेदोभ्यः स्वाहा मेदोभ्यः स्वाहा। माꣳसेभ्यः स्वाहा माꣳसेभ्यः स्वाहा स्नावभ्यः स्वाहा स्नावभ्यः स्वाहास्थभ्यः स्वास्थभ्यः स्वाहा मन्जभ्यः स्वाहा मन्जभ्यः स्वाहा। रेतसे स्वाहा पायवे स्वाहा॥
अश्व के लोमों के निमित्त आहुति समर्पित है, लोमों के निमित्त आहुति समर्पित है। त्वचा के निमित्त आहुति समर्पित है। त्वचा के निमित्त आहुति समर्पित है। लोहित के निमित्त आहुति समर्पित है, लोहित के निमित्त आहुति समर्पित है। मेद के निमित्त आहुति समर्पित है, मेद के निमित्त आहुति समर्पित है। माँस के निमित्त आहुति समर्पित है, माँस के निमित्त आहुति समर्पित है। स्नायुओं के निमित्त आहुति समर्पित है, स्नायुओं के निमित्त के निमित्त आहुति समर्पित है। अस्थियों के निमित्त आहुति समर्पित है, अस्थियों के निमित्त आहूति समर्पित है। मज्जा के निमित्त आहुति समर्पित है, के निमित्त आहुति समर्पित है। वीर्य के निमित्त आहुति समर्पित है। गुदा रूप अवयव के निमित्त आहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 39.10]
Two sacrifices each made for the hair, skin, blood, fat, flash, muscles, bones-ribs, marrow, sperms and the anus of the horse, respectively.
आयासाय स्वाहा प्रायासाय स्वाहा संयासाय स्वाहा वियासाय स्वाहोद्यासाय स्वाहा। शुचे स्वाहा शोचते स्वाहा शोचमानाय स्वाहा शोकाय स्वाहा॥
आयास देवता के निमित्त आहुति समर्पित है। प्रायास देवता के निमित्त आहुति समर्पित है। संयास देवता के निमित्त आहुति समर्पित है। वियास देवता के निमित्त आहुति समर्पित है। उद्यास देवता के निमित्त आहुति समर्पित है। शुच्देवता के निमित्त आहुति समर्पित है। शोच देवता के निमित्त आहुति समर्पित है। शोचमान देवता के निमित्त आहुति समर्पित है। शोक देवता के निमित्त आहुति समर्पित है[यजुर्वेद 39.11]
Two sacrifice are made for Ayas Dev, Prayas Dev, Sanyas Dev, Viyas, Udhas Dev, Shuch Dev, Shochman Dev, Shok Dev respectively.
तप्यते वाहा तप्यते स्वाहा तप्यमानाय स्वाहा तप्ताय स्वाहा धर्माय स्वाहा।
निष्कृत्यै स्वाहा प्रायश्चित्यै स्वाहा भेषजाय स्वाहा॥
तप के निमित्त आहुति समर्पित है, तप के निमित्त आहुति समर्पित है। तम्यमान के निमित्त आहुति समर्पित है। तप्त के निमित्त आहुति समर्पित है। घर्म (यज्ञ विशेष) के निमित्त आहुति समर्पित है। निष्कृति के निमित्त आहुति समर्पित है। प्रायश्चित्त के निमित्त आहुति समर्पित है। भेषज के निमित्त आहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 39.12]
Sacrifices are made for Tap, Tamyman, Tapt, Gharm, Nishkarti, Prayashchit, Bheshaj respectively.
यमाय स्वाहान्तकाय स्वाहा मृत्यवे स्वाहा। ब्रह्मणे स्वाहा ब्रह्महत्यायै स्वाहा विश्वेभ्यो देवेभ्यः स्वाहा द्यावापृथिवीभ्याधं स्वाहा॥
यम देवता के निमित्त आहुति समर्पित है। अन्तक के निमित्त आहुति समर्पित है। मृत्यु के निमित्त आहुति समर्पित है। ब्रह्म के निमित्त आहुति समर्पित है। ब्रह्महत्या के निमित्त आहुति समर्पित है। विश्वेदेवों के निमित्त आहुति समर्पित है। द्युलोक तथा पृथ्वी के निमित्त आहुति समर्पित है।[यजुर्वेद 39.13]
Sacrifices are made for Yam Dev, Anatak-end, Mratyu-death, Brahm, Brahm Hatya-murder, Vishwe Dev, heavens and earth respectively.(25.10.2025)
यजुर्वेद संहिता चत्वारिंशोऽध्यायः :: ऋषि :- दध्यङ् आथर्वण, ब्रह्मा, अगस्त्य; देवता :- आत्मा, परमात्मा, अग्नि; छन्द :- अनुष्टुप्, जगती, उष्णिक्, त्रिष्टुप्।
ईशा वास्यमिदꣳ सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्।
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्य स्विद्धनम्॥
इस संसार में जो कुछ भी जड़ अथवा चेतन है, वह सब ईश्वर द्वारा आवृत तथा आच्छादित है। उन ईश्वर द्वारा दिये गये पदार्थों का त्याग पूर्वक ही उपभोग करो। किसी के धन का लालच मत करो।[यजुर्वेद 40.1]
Everything in this universe, whether inertial-static or dynamic-movable is pervaded by the God. Utilize these commodities granted by the God just like rejection. Do not crave for other's wealth-money.
कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतꣳ समाः।
एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे॥
यहाँ इस संसार में अग्निहोत्रादि कर्म सौ वर्ष पर्यन्त जीवित रहने की कामना करें। इस तरह जीने की इच्छा करने वाले तुझ मनुष्य के अग्नि होत्रादि कर्म के अतिरिक्त अन्य कोई मार्ग नहीं है, जिससे तू अशुभ कर्मों में लिप्त न हो।[यजुर्वेद 40.2]
Desire-crave for performance Yagy-Hawan and to survive for hundred years. One who wish to live for hundred years must resort to accomplishment of Agni Hotr etc. Do not indulge in wicked-vicious, sinful acts.
असुर्या नाम ते लोका अन्धेन तमसावृताः।
ताँस्ते प्रेत्यापि गच्छन्ति ये के चात्महनो जनाः॥
अपनी अन्तरात्मा की अवहेलना करके जो अनुचित करते हैं, वे अज्ञानी मरने पर घोर अन्धकार से ढके हुए 'असूर्य' नामक लोक को जाते हैं।[यजुर्वेद 40.3]
Those ignorant who avoid-discard the voice of their innerself and indulge in sins, viciousness, violent activities are subjected to the hells named Asury full of darkness.
अनेजदेकं मनसो जवीयो नैनद्देवाऽआप्नुवन्पूर्वमर्शत्।
तद्धावतोऽन्यानत्येति तिष्ठत्तस्मिन्नपो मातरिश्वा दधाति॥
जो ब्रह्म अपनी अवस्था में सर्वदा स्थिर, एकाकी, मन से भी अधिक वेगवान् है, उसे इन्द्रियाँ नहीं जान सकतीं; क्योंकि यह उनसे भी आगे विद्यमान है। वह स्थिर होते हुए भी त्वरित गति से गमन करते हुए अन्यों का अतिक्रमण करता है। उन आत्मतत्त्व के द्वारा ही वायुदेव समस्त प्राणियों को धारण करते हैं।[यजुर्वेद 40.4]
The Brahm who is stationary in HIS state, alone, faster than the mind-brain, can not be understood-recognised through the senses, since HE is present much beyond their reach. Though rigid yet HE surpass-others with accelerated speed. That gist of the soul leads to supporting all living beings by Vayu Dev.
तदेजति तन्नैजति तद्दूरे तद्वन्तिके। तदन्तरस्य सर्वस्य तदु सर्वस्यास्य बाह्यतः॥
वह परमात्म तत्त्व गतिशील भी है तथा अविचल भी है। वह दूर-से-दूर भी है तथा पास-से-पास भी है। वह इस सम्पूर्ण जड़-चेतन सृष्टि के भीतर विद्यमान है एवं सबके बाहर भी है।[यजुर्वेद 40.5]
That gist-extract of the Almighty-God is both dynamic and inertial. HE is far and near as well. HE pervades the static and conscious world within and outside.
यस्तु सर्वाणि भूतान्यात्मन्नेवानुपश्यति। सर्वभूतेषु चात्मानं ततो न वि चिकित्सति॥
जो मनुष्य समस्त प्राणियों (जड़ चेतन जगत्) को इस परमात्म तत्त्व में ही विद्यमान देखता है एवं समस्त भूतों के भीतर इस आत्म तत्त्व के समाये रहने की अनुभूति करता है, तब वह सार्वात्म्य दर्शन के कारण ही किसी से घृणा नहीं करता।[यजुर्वेद 40.6]
सार्वात्म्य :: सर्वव्यापी आत्मा; universal soul.
That human being who look at the living beings via the extract of soul, experiences all past-eternal and do not hate any one by virtue of this universal soul-God.
यस्मिन्त्सर्वाणि भूतान्यात्मैवाभूद्विजानतः। तत्र को मोहः कः शोक एकत्वमनुपश्यतः॥
जब मनुष्य यह जान लेता है कि यह परमात्म तत्त्व ही सभी प्राणियों के रूप में प्रादुर्भूत हुआ है, तो उस एकात्म स्वरूप की अनुभूति की अवस्था में मोह और शोक कहाँ टिक सकते हैं?[यजुर्वेद 40.7]
When a person understand that the Almighty has appeared in the form of living beings he experiences unification with God leading to loss of attachment & sorrow.
स पर्यगाच्छुक्रमकायमव्रणमस्नाविरꣳ शुद्धमपापविद्धम्। कविर्मनीषी परिभूः स्वयम्भूर्याथातथ्यतोऽर्थान् व्यदधाच्छाश्वतीभ्यः समाभ्यः॥
वह परमात्मा सर्वव्यापी है, ज्योतिष्मान् है। वह शरीर रहित, नाड़ी रहित तथा छिद्र (ब्रण) रहित है। वह निर्मल एवं पापरहित है। वह कवि (क्रान्तदर्शी-सर्वद्रष्टा), मनीषी (मन पर राज्य करनेवाला अर्थात् सर्वज्ञ), सब पर विजय प्राप्त करनेवाला एवं स्वयम्भू है। उसने अनादिकाल से ही सभी प्रजापतियों के निमित्त यथोचित साधनों की व्यवस्था बना रखी है।[यजुर्वेद 40.8]
That Almighty pervade every thing. HE is aurous-radiant. HE is free from body, nerves, holes. He is pure-pious and sinless. HE watches everyone, every thing, every event, rules the innerself (mind & heart), wins all and evolve HIMSELF out of HIS own will. HE establish the tradition since very beginning of Prajapati to organise all means.
अन्धन्तमः प्र विशन्ति येऽसम्भूतिमुपासते। ततो भूय इव ते तमो य उ सम्भूत्याꣳ रताः॥
जो मनुष्य अविद्या अर्थात् आत्मज्ञान से रहित कर्म में लीन रहते हैं, वे अविद्या रूप गहन अन्धकार से घिर जाते हैं तथा जो केवल विद्या यानी देवता ज्ञान में ही रत रहते हैं, वे उससे भी अधिक अज्ञान में फँस जाते हैं।[यजुर्वेद 40.9]
One who is ignorant, indulge in deeds without self realisation sinks too deep in the ocean of darkness. Those who remain attached with the knowledge of demigods-deities only; sinks in much deeper ignorance.
अन्यदेवाहुः सम्भवादन्यदाहुरसम्भवात्। इति शुश्रुम धीराणां ये नस्तद्विचचक्षिरे॥
जिन देवपुरुषों ने हमारे निमित्त (इन विषयों को) विशेष रूप से बतलाया है, उन धीर पुरुषों से हमने सुना है कि सम्भूति का प्रभाव कुछ और है तथा असम्भूति का प्रभाव उससे भिन्न है।[यजुर्वेद 40.10]
संभूति ::अलौकिक शक्ति, divine power.
असम्भूति ::अस्तित्वहीनता, संभूति का अभाव, बार-बार जन्म न लेना; lack of existence.
We learn from those divine beings who explained these subjects for us specifically, that lack of existence is different from it.(26.10.2025)
सम्भूतिं च विनाशं च यस्तद्वेदोभयꣳ सह। विनाशेन मृत्युं तीर्खा सम्भूत्यामृतमश्नुते॥
विद्या (देवता ज्ञान) से देव लोक तथा अविद्या (आत्मज्ञान रहित कर्म) से पितृ लोक की प्राप्ति होती है, ऐसा हमने बुद्धिमान् पुरुषों से सुना है अर्थात् दोनों का फल अलग-अलग होता है; ऐसी व्यवस्था है।[यजुर्वेद 40.11]
Enlightenment grants Divine abodes, ignorance leads to Pitr Lok as per the intelligentsia. Impact-outcome of these two is different.
अन्धं तमः प्र विशन्ति येऽविद्यामुपासते। ततो भूय इव ते तमो य उ विद्यायाꣳ रताः॥
जो मनुष्य केवल अविद्या (देवता ज्ञान) की पूजा करते हैं, वे घोर अन्धकार में घिर जाते हैं तथा जो ज्ञानयुक्त होकर सकाम पूजा करते हैं, वे भी वैसे ही अन्धकार में फैस जाते हैं।[यजुर्वेद 40.12]
Those who worship ignorance fall in utter darkness; the learned-scholars who worship with motive-desires too lead to absolute darkness.
अन्यदेवाहुर्विद्याया अन्यदाहुरविद्यायाः। इति शुश्रुम धीराणां ये नस्तद्विचचक्षिरे॥
जिन बुद्धिमान् पुरुषों ने हमारे निमित्त विद्या और अविद्या को विशेष रूप से बतलाया है, हमने उन धीर पुरुषों से सुना है कि विद्या का प्रभाव भिन्न है तथा अविद्या का प्रभाव उससे भिन्न है।[यजुर्वेद 40.13]
The great people who described the Vidhya-enlightenment and Avidhya-ignorance (illiteracy, lack of knowledge) to us specially and we listened from those patient people that impact of these two is different.
विद्यां चाविद्यां च यस्तद्वेदोभयꣳ सह। अविद्यया मृत्युं तीर्वा विद्ययामृतश्नुते॥
इसी कारण जो विद्या (देवता ज्ञान) एवं अविद्या (अग्निहोत्रादि कर्म ज्ञान) दोनों के बारे में एक साथ जानकारी प्राप्त करता है, वह अविद्या के प्रभाव से मृत्यु को लाँघ करके विद्या द्वारा अमृतत्व की प्राप्ति करता है।[यजुर्वेद 40.14]
One who acquire these two simultaneously, attains the impact of elixir-immortality by crossing over death due to Avidhya.
वायुरनिलममृतमथेदं भस्मान्तꣳ शरीरम्। ओ३म् क्रतो स्मर क्लिबे स्मर कृत स्मर॥
यह जीवन वायु-अग्नि आदि पञ्चभूतों (आकाश-sapce, वायु-air, अग्नि-fire, जल-water और पृथ्वी-earth) एवं अमृत (सनातन आत्मा) के सुसंगत होने से बना है। देह तो अन्त में समाप्त ही हो जाती है अर्थात् अग्नि में जलकर भस्मीभूत हो जाती है। अतः हे संकल्पकर्ता मन! तुम परमात्मा का ध्यान करो, अपनी शक्ति का ध्यान करो तथा जो कर्म कर चुके हो, उनका ध्यान करो।[यजुर्वेद 40.15]
The life is formed by virtue of Vayu, Agni and the five basic ingredients called Panch Bhoot; eternal soul-elixir. In the end the body is burnt off. Hey innerself adapt to resolutions! Concentrate in the Almighty, your strength and the endeavours you have accomplished.
अग्ने नय सुपथा राये अस्मान्विश्वानि देव वयुनानि विद्वान्।
युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो भूयिष्ठां ते नम उक्तिं विधेम॥
हे अग्नि देव! आप हमारे समस्त कर्मों के ज्ञाता हैं, अतः हमें उत्कृष्ट पथ (सन्मार्ग) से कर्मफल भोग के लिये ले चलो। हे देव! आप कर्म पथों के उत्तम ज्ञाता हैं। हमें विभिन्न पापों से दूर करें। हम साष्टांगः नमस्कार करते हुए आपसे विनय करते हैं।[यजुर्वेद 40.16]
Hey Agni Dev! You are aware of our deeds, hence direct us to excellent path i.e., consumption-utilisation. Hey Dev! You know the best path. Keep us off sins. We request you politely prostrating before you.
हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम्।
योऽसावादित्ये पुरुषः सोऽसावहम्। ॐ खं ब्रह्म॥
आदित्य मण्डल में स्थित सत्य रूप ब्रह्म का मुख ज्योतिर्मय पात्र से ढँका हुआ है। उस आवरण के हटने से ज्ञात होता है कि आदित्य-रूप में जो यह प्रत्यक्ष रूप से पुरुष विद्यमान है, वह आत्मरूप में ही हूँ। आकाशरूप में ब्रह्म ही व्याप्त है।[यजुर्वेद 40.17]
Brahm a form of truth established in the Adity Mandal, is covered with radiant pot. On removing the lid-cover, it become clear that its me, as soul. Brahm pervades in the form of sky-space.
परब्रह्म परमेश्वर, माता भगवती सरस्वती, गणपति भगवान् वेद व्यास की असीम कृपा से आज दिनाँक 27 अक्तूबर 2025 को यजुर्वेद संहिता का अँग्रेजी अनुवाद पूर्ण हुआ। यह मेरे परिवार :- धर्मपत्नी श्रीमती मिथिलेश भारद्वाज, पुत्र प्रशान्त, पुत्र वधु, वेदा और विराज को समर्पित है।मेरे फेसबुक-Facebook, WhatsApp, लिंक्डिनीन-LinkedIn hindutv.wordpress.com santoshvedshakti.blogspot.com और X के पाठकों को कोटि-कोटि धन्यवाद।
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