RIG VED ऋग्वेद (10.1-191)

RIG VED (10) ऋग्वेद
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (1) :: ऋषि :- त्रित, आप्त्य;  देवता :- अग्नि; छन्द :- त्रिष्टुप्।
अग्रे बृहन्नुषसामूर्ध्वा अस्थान्निर्जगन्वान्तमसो ज्योतिषागात्। अग्रिभानुना रुशता स्वङ्ग आ जातो विश्वा स‌मान्यप्राः
महान अग्नि देव उषाकाल में प्रज्वलित होकर ज्वाला-रूप से रहते हैं। अग्नि देव अन्धकार से निकलकर अपने तेज से आह्वनीय रूप में आते हैं। शोभन ज्वालावाले और कर्म के लिए उत्पन्न अग्नि देव अपने हिंसक तेज से सारे यज्ञों को प्रकाशित करते हैं।[ऋग्वेद 10.1.1]
Great Agni Dev ignite at dawn-Usha Kal and remain like cinders-flames. Agni Dev comes out of darkness and invoke in his majestic form. Agni Dev evolved for virtuous deeds and beautiful blaze; illuminating the Yagy with his fierce-intense light.
स जातो गर्भो असि रोदस्योरग्ने चारुर्विभृत ओषधीषु।
चित्रः शिशुः परि तमांस्यक्तून्द्र मातृभ्यो अधि कनिक्रदद्गाः
ये अग्नि देव द्यावा पृथिवी के गर्भ में निवास करते हैं। औषधियों अर्थात काष्ठादि से जन्म लेकर सुन्दर स्थानों पर प्रतिष्ठित होते हैं। अन्धकार पर विजय प्राप्त करते हैं और शिशु की तरह शब्द करते हुए माताओं के पास जाते हैं।[ऋग्वेद 10.1.2]
Agni Dev resides in the bomb of heaven & earth. He takes birth from vegetation and wood establishing at beautiful places. He wins darkness and goes to mothers making sound like infants.
विष्णुरित्था परममस्य विद्वाञ्जातो बृहन्नभि पाति तृतीयम्।
आसा यदस्य पयो अक्रत स्वं सचेतसो अभ्यर्चन्त्यत्र
उत्कृष्ट, विद्वान, प्रादुर्भूत, महान और व्यापक अग्निदेव मुझ त्रित ऋषि की रक्षा करें। अग्नि का जल मुख से करके अर्थात इनसे जल की याचना करते-करते यज्ञकर्त्ता, समानमना होकर, अग्नि देव की पूजा करते हैं।[ऋग्वेद 10.1.3]
Let excellent, enlightened, evolved, great and all pervading Agni Dev protect me, Trit Rishi. Agni is worshiped with water by the Yagy performers, with equal devotion, innerself.
अत उ त्वा पितुभृतो जनित्रीरन्नावृधं प्रति चरन्त्यन्नैः।
ता ईं प्रत्येषि पुनरन्यरूपा असि त्वं विक्षु मानुषीषु होता
हे अग्नि देव! सारे संसार के धारक और उत्पादक वनस्पति अन्न वर्धक आपको अन्न के लिए सेवित करते हैं। आप औषधियों (वनस्पतियों) के प्रति शुष्क वनस्पतियों के प्रति दाव रूप होकर जाते हैं। आप मनुष्यों और प्रजाओं में होम-निष्पादक हो।[ऋग्वेद 10.1.4]
Hey Agni Dev! Supporter of universe and productive vegetation, use you for having food grains. You move to vegetation, herbal medicines and dry wood for generating pressure. Let you become the performer of Yagy for the humans and populace.
होतारं चित्ररथमध्वरस्य यज्ञस्यऽयज्ञस्य केतुम् रुशन्तम्।
प्रत्यर्थिं देवस्यदेवस्य मह्ना श्रिया त्व १ ग्निमतिथिं जनानाम्
देवों के आह्वाता, विविध रथवाले, सारे यज्ञों की पताका, श्वेत-वर्ण सारे देवों के अधिपति, इन्द्र देव के पास जाने वाले और याजकों के पूज्य अग्नि देव का, सम्पत्ति प्राप्ति के लिए, हम स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 10.1.5]
We worship Agni Dev revered-honoured by the Ritviz, invoked by demigods-deities, possessing various charoites, flag for all Yagy, lord of all while-fair coloured demigods-deities, approaching Indr Dev; for having property-assets.
स तु वस्त्राण्यध पेशनानि वसानो अग्निर्नाभा पृथिव्याः।
अरुषो जातः पद इळायाः पुरोहितो राजन्यक्षीह देवान्
हे दीप्यमान अग्नि देव! हिरण्य सदृश तेजों और उनके शुक्ल आदि रूपों को धारण करके पृथ्वी की नाभि (उत्तर वेदी) पर उत्पन्न होकर शोभा धारण करके और आह्वनीय स्थान (पूर्व दिशा) में स्थापित होकर इस यज्ञ में इन्द्रादि की पूजा करें।[ऋग्वेद 10.1.6]
Hey illuminated Agni Dev! Possessing golden hue-majesty, fair colours-forms, evolved out of the earth at the North Vedi, having glorious forms, establish in the invoking direction east, worship Indr Dev & other demigods-deities in the Yagy.
आ हि द्यावापृथिवी अग्न उभे सदा पुत्रो न मातरा ततन्थ।
प्र याह्यच्छोशतो यविष्ठाथा वह सहस्येह देवान्
हे अग्नि देव! आप सदा वैसे ही द्यावा-पृथिवी का विस्तार करते हैं, जैसे पुत्र माता-पिता का विस्तार करता है। हे तरुणतम अग्नि देव! आप अभिलाषी व्यक्तियों को लक्ष्य करके जायें। हे बल-पुत्र अग्नि देव! हमारे यज्ञ में इन्द्रादि देवताओं को ले आवें।[ऋग्वेद 10.1.7]
Hey Agni Dev! You always extend-grow heavens & earth similar to the growth of parents by the son. Hey youngest-youthful Agni Dev! Move to the humans who have wishes-desires. Hey Son of Bal, Agni Dev! Bring Indr Dev & other demigods-deities to our Yagy.(17.09.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (2) :: ऋषि :- त्रित, आप्त्य;  देवता :- अग्नि; छन्द :- त्रिष्टुप्।
पिप्रीहि देवाँ उशतो यविष्ठ विद्वाँ ऋतूँऋतुपते यजेह।
ये दैव्या ऋत्विजस्तेभिरग्रे त्वं होतृणामस्यायजिष्ठः
हे युवतम अग्निदेव! स्तोत्राभिलाषी देवगणों को प्रसन्न करें। देव यज्ञ कालों के स्वामी अग्नि देव! यज्ञ समयों को जान करके आप इस यज्ञ में उनकी पूजा करें। हे अग्नि देव! देवों के पुरोहितों के साथ पूजन करें। आप होताओं में श्रेष्ठ हैं।[ऋग्वेद 10.2.1]
Hey youthful Agni Dev! Gladden the demigods-deities desirous of Strotrs. Hey lord of the Dev Yagy Kal-periods, Agni Dev! Recognise the periods of Yagy and worship them in this Yagy. Hey Agni Dev! Worship along with the priests of demigods-deities. You are excellent amongest the hosts.
वेषि होत्रमुत पोत्रं जनानां मन्धातासि द्रविणोदा ऋतावा।
स्वाहा वयं कृणवामा हवींषि देवो देवान्यजत्वग्निरर्हन्
हे अग्नि देव! आप होता, पोता, मेधावी, सत्यनिष्ठ और धनद हैं। हम देवों को हवि दें। दीप्यमान और प्रशस्य अग्नि देव देव-पूजन करें।[ऋग्वेद 10.2.2]
Hey Agni Dev! You are the host-Yagy performer, grandson, truthful and wealthy. Grant oblations to us i.e., demigods-deities. Bright and appreciable Agni Dev should perform worship of deities.
आ देवानामपि पन्थामगन्म यच्छक्नवाम तदनु प्रवोळ्हुम्।
अग्निर्विद्वान्त्स यजात्सेदु होता सो अध्वरान्त्स ऋतून्कल्पयाति
हम देवों के वैदिक मार्ग पर जायें। हम जो कर्म कर सकें, उसकी भली भाँति समाप्ति कर सकें। ज्ञानी अग्नि देव की पूजा करें। मनुष्यों के होम-सम्पादक अग्नि देव यज्ञों और उनके कालों को करें।[ऋग्वेद 10.2.3]
Let us follow the route set by Veds (teaching-preaching of Veds). We should perform the deeds (Yagy Karm, Varnashram Dharm) and accomplish them properly. Let us worship enlightened Agni Dev. Performer of human's Yagy, Agni Dev should accomplish them in all-various segments of the day.
यद्वो वयं प्रमिनाम व्रतानि विदुषां देवा अविदुष्टरासः।
अग्निष्टद्विश्वमा पृणाति विद्वान्येभिर्देवाँ ऋतुभिः कल्पयाति
हे देवों, हम ज्ञान रहित मनुष्यों ने अज्ञानतावश व्रतों को भंग किया है। यह सब जाननेवाले अग्निदेव सारे कर्मों को पूर्ण करें। याग योग्य कालों से अग्नि देवों को कल्पित करते हैं।[ऋग्वेद 10.2.4]
Hey deities, we ignorant humans failed to accomplish the Vrat (decided to hold Yagy but forgot to accomplish them). Let all knowing Agni Dev accomplish them. We remember Agni Dev in the periods meant for the Yagy. 
यत्पाकत्रा मनसा दीनदक्षा न यज्ञस्य मन्वते मर्त्यासः।
अग्निष्टद्धोता क्रतुविद्विजानन्यजिष्ठो देवाँ ऋतुशो यजाति
मनुष्य दुर्बल हैं, उनका मन विशिष्ट ज्ञान से शून्य है। वे जिस यज्ञ कर्म को नहीं जानते, उसको जानने वाले, होम निष्पादक और अतिशय याज्ञिक अग्नि देव उस कर्म से यज्ञ कालों में देव यजन करें।[ऋग्वेद 10.2.5]
Humans are weak and their innerself does not possess the special-specific learning. Let Agni Dev accomplish the Yagy Karm which are not known to the humans, during the periods meant for them.
विश्वेषां ह्यध्वराणामनीकं चित्रं केतुं जनिता त्वा जजान।
स आ यजस्व नृवतीरनु क्षाः स्पार्हा इषः क्षुमतीर्विश्वजन्याः
अग्नि देव समस्त यज्ञों के प्रधान चित्र और पताका स्वरूप आपको ब्रह्मा ने उत्पन्न किया। आप दासादि से युक्त भूमि प्रदान करें। स्पृहणीय, स्तुति मन्त्रादि से युक्त और सर्वहितैषी अन्न देवों को प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.2.6]
Agni Dev is the chief patron of Yagy (Figure-symbol & flag) evolved by Brahma Ji. Grant us land along with slave-workers. Offer-oblations to demigods-deities should be enviable, possessed with Mantr etc., well wisher of all food grains. 
य त्वा द्यावापृथिवी यं त्वापस्त्वष्टा यं त्वा सुजनिमा जजजान।
पन्थामनु प्रविद्वान् पितृयाणं। द्युमदग्ने समिधानो वि भाहि
अग्नि देव द्यावा-पृथ्वी, अन्तरिक्ष इन तीन लोकों ने आपको उत्पन्न किया। शोभन जन्मा ब्रह्मा ने आपको उत्पन्न किया। हे अग्नि देव! आप पितृमार्ग के जानकार और समिध्यमान हैं। आप दीप्ति युक्त होकर विराजते हैं।[ऋग्वेद 10.2.7]
Agni Dev, heaven & earth and the space have been evolved by Brahma Ji. Glorious Brahma Ji evolved you. Hey Agni Dev! You are aware of the Pitr-Manes abode and remain close to them. You establish brightly.(18.09.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (3) :: ऋषि :- त्रित, आप्त्य;  देवता :- अग्नि; छन्द :- त्रिष्टुप्।
इनो राजन्नरतिः समिद्धो रौद्रो दक्षाय सुषुमाँ अदर्शि।
चिकिद्वि भाति भासा बृहतासिक्नीमेति रुशतीमपाजन्
हे दीप्त अग्नि देव! आप सबके स्वामी हैं। हवि लेकर देवों के पास जानेवाले, संदीप्त, शत्रुओं के लिए भयंकर, वनस्पतियों में स्थित और शोभन प्रसव वाले अग्नि देव! यजमानों की धन-वृद्धि के लिए सबके द्वारा देखे जाते हैं। सर्वज्ञ अग्नि देव विभासित होते हैं, महान् तेज के द्वारा देखे जाते हैं। महान् तेज के द्वारा सायंकाल, श्वेतवर्ण दीप्ति से अन्धकार दूर करके जाते हैं।[ऋग्वेद 10.3.1]
Hey bright Agni Dev! You are the lord of everyone. You are the carrier of offerings-oblations to demigods-deities, furious for the enemy, beautifully-gloriously evolving Agni Dev! You are seen by everyone for the growth of the wealth-prosperity of the hosts. All knowing-aware Agni Dev is seen, with great majesty and remove the darkness in the evening.
कृष्णां यदेनीमभि वर्पसा भूञ्जनयन्योषां बृहतः पितुर्जाम्।
ऊर्ध्वं भानुं सूर्यस्य स्तभायन्दिवो वसुभिररतिर्वि भाति
पितृरूप आदित्य से उत्पन्न उषा को प्रकट करते हुए अग्नि देव कृष्ण वर्ण रात्रि को अपने तेज से अभिभूत करते हैं। गमनशील अग्नि देव द्युलोक के निवासदाता अपने तेज से सूर्य देव की दीप्ति को ऊपर रोककर शोभा पाते हैं।[ऋग्वेद 10.3.2]
Evolving Usha from fatherly Adity, Agni Dev mesmerise blackish night with his radiance. Movable Agni Dev grant residence-position (stability) to heavens, covers the aura of Sury Dev over himself, gloriously.
भद्रो भद्रया सचमान आगात्स्वसारं जारो अभ्येति पश्चात्।
सुप्रकेतैद्युभिरग्निर्वितिष्ठन्रुशद्भिर्वर्णैरभि राममस्थात्
कल्याणरूप और भजनीय उषा के द्वारा सेव्यमान अग्नि देव पधारें। शत्रुओं के घातक अग्नि देव अपनी बहन उषा के पास जाते हैं। सुन्दर ज्ञान और दीप्त तेज के साथ वर्त्तमान अग्नि देव श्वेतवर्ण के अपने निवारक तेज के द्वारा कृष्ण वर्ण अन्धकार को नष्ट करके प्रतिष्ठित होते हैं।[ऋग्वेद 10.3.3]
Usable, beneficial & worshipable by Usha, Agni Dev should arrive. Dangerous for the enemy Agni Dev goes to his sister Usha. Fair coloured Agni Dev possessing enlightenment and bright majesty establish by removing darkness with his aura.
अस्य यामासो बृहतो न वग्नूनिन्धाना अग्नेः सख्युः शिवस्य।
ईड्यस्य वृष्णो बृहतः स्वासो भामासो यामन्नक्तवश्चिकित्रे
महान अग्नि देव की दीप्ति किरणें जा रही हैं। ये किरणें स्तोताओं को बाधा नहीं देतीं। मित्र, कल्याणरूप, भक्तों के सुखकर, स्तुत्य, काम-वर्षक, महान् और शोभनमुख अग्नि देव की किरणें अन्धकार को नष्ट करके और तीक्ष्ण होकर, तर्पण के लिए देवों के पास जाती और प्रसिद्ध होती हैं।[ऋग्वेद 10.3.4]
Rays of great Agni Dev are dynamic-moving. These rays do not obstruct the Stotas. Rays of friendly Agni Dev are beneficial, comfortable for the devotees, worshipable, accomplishing desires-wishes, great & glorious, destroy darkness, sharpens, goes to demigods-deities for libation and become famous.
स्वना न यस्य भामासः पवन्ते रोचमानस्य बृहतः सुदिवः।
ज्येष्ठेभिर्यस्तेजिष्ठैः क्रीळुमद्भिर्वर्षिष्ठेभिर्भानुभिर्नक्षति द्याम्
दीप्यमान, महान और शोभन दीप्ति वाले अग्नि देव की किरणें, शब्द करते हुए जाती है। अग्नि देव अतीव प्रशस्त, तेजस्वितम, क्रीड़ाकारी और वृद्धतम अपने तेज से द्युलोक को व्याप्त करते हैं।[ऋग्वेद 10.3.5]
प्रशस्त :: प्रशंसा किया हुआ, प्रशंसा के योग्य, विस्तृत, परिणाहवान; vast, spacious, expansive, praised, nifty, smashing, paved, commended, excellent, wide, expansive, smashing.
Rays of great, glorious radiant Agni Dev move making sound. Agni Dev highly commendable, playful and eldest, pervade the heavens with his majesty.
अस्य शुष्मासो ददृशानपवेर्जेहमानस्य स्वनयन्नियुद्धिः।
प्रत्नेभिर्यो रुशद्भिर्देवतमो वि रेभद्भिररतिर्भाति विभ्वा
दृश्यमान आयुधवाले और देवों के प्रति गमन करनेवाले अग्नि देव की शोषक और वायु युक्त किरणें शब्द कर रही हैं। देवों में मुख्य, गन्ता व्यापक और महान अग्नि देव प्राचीन, चैतवर्ण और शब्दायमान तेज के द्वारा प्रदीप्त होते हैं।[ऋग्वेद 10.3.6]
Rays of visible Agni Dev, absorbing, having air, possessing weapons-arms, move for the demigods-deities. Prominent amongest the deities-demigod, dynamic, vast, great Agni Dev light up with eternal majesty, making sound, having brightness like the month of March-Chaetr.
स आ वक्षि महि न आ च सत्सि दिवस्पृथिव्योररतिर्युवत्योः।
अग्निः सुतुकः सुतुकेभिरश्वे रभस्वद्धी रभस्वाँ एह गम्याः
हे अग्नि देव! हमारे यज्ञ में महान देवों को ले आवें। परस्पर मिलित द्यावा-पृथिवी के मध्य में सूर्य रूप से आने वाले, हे अग्नि देव! हमारे यज्ञ में बैठें। स्तोताओं के द्वारा रसलता से पाये योग्य और वेगवान् अग्नि देव! शब्दायमान और वेगवान घोड़ों के साथ हमारे यज्ञ में पधारें।[ऋग्वेद 10.3.7]
Hey Agni Dev! Bring great demigods-deities to our Yagy. Coming in between the heaven & earth joint together, like the Sury-Sun, hey Agni Dev! Join our Yagy. Attainable by the Stotas from Raslata, dynamic Agni Dev! Come to our Yagy with the fast moving and sound generating-neighing horses to our Yagy.(19.09.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (4) :: ऋषि :- त्रित, आप्त्य;  देवता :- अग्नि; छन्द :- त्रिष्टुप्।
प्र ते यक्षि प्र त इयर्मि मन्म भुवो यथा वन्द्यो नो हवेषु।
धन्वन्निव प्रपा असि त्वमग्न इयक्षव पूरवे प्रत्न राजन्
हे प्राचीन राजा अग्नि देव! आपके लिए मैं हवि देता हूँ। आपके लिए उत्तम स्तुति उच्चारित करता हूँ। आप सबके वन्दनीय हैं। हमारे देवाह्वान में आप पधारते हैं, इसलिए मैं अपको हवि देता हूँ और स्तुति करता हूँ। आप सारे संसार के स्वामी हैं। आप यज्ञाभिलाषी मनुष्य के लिए वैसे ही धन दान करके सुखदाता बनें जैसे मरुस्थल में जल देनेवाला तालाब मुखप्रद होता है।[ऋग्वेद 10.4.1]
Hey eternal lord Agni Dev! I make offerings-oblations to you. I recite your best prayers-Stuti. You are worshipable. You arrive in our invocation of demigods-deities, hence I make offerings to you. You are the master of the universe. You should grant wealth to the person who wish to hold Yagy just like the pond in desert.
यं त्वा जनासो अभि संचरन्ति गाव उष्णमिव व्रजं यविष्ठ।
दूतो देवानामसि मर्त्यानामन्तमन्तर्महाँश्चरसि रोचनेन
हे तरुणतम अग्नि देव! जिस प्रकार ठण्ड से आर्त्त गायें उष्ण गोष्ठ को जाती है, उसी मगर फलप्राप्ति के लिए याजक आपकी सेवा करते हैं। आप देवों और मानवों के दूत हैं। आप पृथ्वी के बीच में हवि लेकर अन्तरिक्ष लोक में संचरण करते हैं।[ऋग्वेद 10.4.2]
Hey youngest Agni Dev! The way the cows are troubled by the cold weather & move towards the heated cow shed, similarly the Ritviz should continue serving you. You are the messenger of demigods-deities and the humans. You carry the oblations from the earth and move to the space-heavens.
शिशुं न त्वा जेन्यं वर्धयन्ती माता बिभर्ति सचनस्यमाना।
धनोरधि प्रवता चांस हर्यञ्जिगीषसे पशुरिवावसृष्टः॥
हे अग्नि देव! पुत्र के समान जयशील माता पृथ्वी, पोषण करके और सम्पर्क की इच्छा करके आपको धारण करती है। आप अभिलाषी अन्तरिक्ष के प्रशस्त मार्ग से यज्ञ में जाते हैं। याज्ञिकों से हवि लेकर आप देवों के पास जाने की इच्छा उसी प्रकार करते हैं, जिस प्रकार विमुक्त पशु गोष्ठ में जाने की इच्छा करते हैं।[ऋग्वेद 10.4.3]
Hey Agni Dev! Victorious mother earth-nature nourish you and desire to have connection-relation with you. You, desirous of Yagy, move through the comfortable route from the space to the Yagy. You wish to carry the oblations from the Yagyik to demigods-deities just like the free animals who wish to move to the shed.
मूरा अमूर न वयं चिकित्वो महित्वमग्ने त्वमग्ने त्वमङ्ग वित्से।
शये वव्रिश्चरति जिह्वयादन्रेरिह्यते युवतिं विश्पतिः सन्
हे मूढ़ता शून्य और चेतनावान अग्नि देव! हम मूर्ख हैं; इसलिए आपकी महिमा को नहीं जानते। अपनी महिमा आप ही जानते हैं। आप वनस्पतियों के साथ रहते हैं। अपनी जिव्हा से हविर्भक्षण करते हुए विचरते हैं। अग्नि देव प्रजावर्ण के अधिपति होकर आहुति का आस्वादन करते हैं।[ऋग्वेद 10.4.4]
Free from idiocy, conscious Agni Dev! We are ignorant-fools, hence we do not know your glory-dignity. You are aware of your glory-might. You live with vegetation. You eat the offerings with your tongue and roam. Agni Dev is the lord of populace and enjoy the oblations.
कूचिञ्जायते सनयासु नव्यो वने तस्थौ पलितो धूमकेतुः।
अस्नातापो वृषभो न प्र वेति सचेतसो यं प्रणयन्त मर्ताः
नवीन अग्नि देव कहीं उत्पन्न होते हैं, वे पुराने वनस्पतियों के ऊपर रहते हैं। पालक, धूमकेतु और श्वेतवर्ण अग्नि देव विपिन में निवास करते हैं। स्नान के बिना शुद्ध अग्नि देव प्यासे वृषभ के समान अरण्य के जल के पास जाते हैं। मनुष्य लोग समानमना होकर अग्नि देव को प्रसन्न करते हैं।[ऋग्वेद 10.4.5]
Agni Dev evolve and depend over the vegetation. Nurturing, comet (Dhumketu) and fair skinned Agni Dev reside in the garden-orchard. Thirsty Agni Dev goes to the ponds in the jungle without bathing. Humans with common-similar feeling- innerself gladden Agni Dev.
तनूत्यजेव तस्करा वनर्मू रशनाभिर्दशभिरभ्यधीताम्।
इयं ते अग्ने नव्यसी मनीषा युक्ष्वा रथं न शुचयद्भिरङ्गैः
हे अग्नि देव! जिस प्रकार वनगामी और धृष्ट दो चोर वन में पथिक को रस्सी से बाँधकर खीचते हैं, उसी प्रकार हमारे दोनों हाथ, दसों अँगुलियों से, यज्ञकाष्ठ से आपको मथते हैं। आपके लिए मैं यह नवीन स्तुति करता हूँ। इसे जानकर सबका प्रकाश करने वाले अपने तेज से अपने को यज्ञ में वैसे ही नियोजित करें, जिस प्रकार अश्वों से रथ को नियोजित किया जाता है।[ऋग्वेद 10.4.6]
धृष्ट :: लज्जारहित, दुस्साहसी, साहित्य, दुस्साहसी, प्रेमिका को खिन्न करने वाला नायक; shameless, audacious, rash, presumptuous, rude, impertinent, presumptuous.
Hey Agni Dev! The way shameless-presumptuous two thieves tie the walker with cords and pull him, similarly our two hands, ten fingers churn the wood meant for Yagy to evolve you. Knowing this all, you illuminate everyone, & is deployed in the Yagy; the way the horses are deployed in the charoite.
ब्रह्म च ते जातवेदो नमश्चयं च गीः सदमिद्वर्धनी भूत्।
रक्षा णो अग्ने तनयानि तोका रक्षोत नस्तन्वो ३ अप्रयुच्छन्
हे ज्ञानी अग्नि देव! आपके लिए हमने यह यज्ञीय द्रव्य दिया और नमस्कार भी किया। यह स्तुति सदा वर्द्धमान हो। आप हमारे पुत्र-पौत्रों की रक्षा करें। सावधान होकर हमारे (समस्त) अंगों की रक्षा करें।[ऋग्वेद 10.4.7]
Hey enlightened Agni Dev! We made the offerings-oblations to you in the Yagy and salute you. Let our Stuti-prayer continue to grow. Protect our sons & grand sons. Protect our organs carefully.(20.09.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (5) :: ऋषि :- त्रित, आप्त्य;  देवता :- अग्नि; छन्द :- त्रिष्टुप्।
एकः समुद्रो धरुणो रयणामस्मद्धृदो भूरिजन्मा वि चष्टे।
सिषक्त्यूधर्निण्योरुपस्थ उत्सस्य मध्ये निहितं पदं वेः
अद्वितीय, समुद्रवत, आधार स्वरूप, धनों के धारक और अनेक प्रकार के जन्म वाले अग्नि देव हमारे अभिलषित हृदयों को जानते हैं। अग्नि देव अन्तरिक्ष के पास वर्त्तमान होकर मेघ का सेवन करते हैं। हे अग्नि देव! मेघ में वर्त्तमान विद्युत के पास प्रस्थान करें।[ऋग्वेद 10.5.1]
Unique, like the ocean, like the basic support, lord of forests and evolving in different manners Agni Dev knows the desires in our heart. Agni Dev enjoy the proximity of clouds establishing himself in space. Hey Agni Dev! Move close to the lightening in the clouds.
समानं नीळं वृषणो वसानाः सं जग्मिरे महिषा अर्वतीभिः।
ऋतस्य पदं कवयो नि पान्ति गुहा नामानि दधिरे पराणि
आहुतियों के सेचक याजक समान रूप से नील अग्नि देव को मन्त्र से आच्छादित करते हुए बड़वावों (घोडियों) वाले हुए। मेधावी लोग जल के वासस्थान अग्नि देव की रक्षा करते स्तुतियों से आराधना करते हैं। वे गूढ़ हृदय में अग्नि देव के प्रधान नामों की स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 10.5.2]
Making offerings the hosts equally ownered the mares reciting Mantr for the bluish Agni Dev. The intelligent worship & protect residence of Agni Dev present in water. They secretly recite the major names of Agni Dev in their heart-silently.
ऋतायिनी मायिनी सं दधाते मित्वा शिशुं जज्ञतुर्वर्धयन्ती।
विश्वस्य नाभिं चरतो ध्रुवस्य कवेश्चित्तन्तुं मनसा वियन्तः
सत्य और कर्म से युक्त द्यावा-पृथ्वी अग्नि देव को धारण करते हैं। द्यावा-पृथ्वी काल परिमाण करके प्रशस्य अग्नि देव को वैसे ही उत्पन्न करते हैं, जैसे माता-पिता पुत्र को उत्पन्न करते हैं। सारे स्थावर, जंगम के नाभिरूप, प्रधान और मेधावी, अग्नि देव के विस्तारक वैश्वानर नामक अग्नि देव को मन से प्राप्त करते हुए हम यजन करते हैं।[ऋग्वेद 10.5.3]
Heaven & earth support Agni Dev by virtue of truth and efforts. Heaven & earth produce Agni Dev in various periods of time the way the parents produce a son. Like the navel of all movable & fixed, head and intelligent Agni Dev in the widening form Vaeshwanar; we recite-worship him from the depth of our hearts.
ऋतस्य हि वर्तनयः सुजातमिषो वाजाय प्रदिवः सचन्ते।
अधीवासं रोदसी वारसाने घृतैरन्नैर्वावृधाते मधूनाम्
यज्ञ के प्रर्वत्तक, कामनाभिलाषी और प्राचीन याजक भली-भाँति उत्पन्न अग्नि देव की बल के लिए सेवा करते हैं। सारे संसार के आच्छादक द्यावा-पृथ्वी ने तीनों लोकों में अग्नि देव विद्युत् और सूर्य के रूप से स्थित अग्नि देव को, मधु, घृत, पुरोडाश आदि से वर्द्धित किया।[ऋग्वेद 10.5.4]
Desirous performer of Yagy ancient-eternal Yagyik, properly evolve Agni Dev for the sake of might. Spreading-covering the entire universe, the heavens & earth established Agni Dev in the three abodes (heaven, earth & nether world) in the form of electricity-lightening and Sury Dev; making offerings of honey, Ghee, Purodas for growing him.
सप्त स्वसृररुषीर्वावशानो विद्वान्मध्व उज्जभारा दृशे कम्।
अन्तर्येमे अन्तरिक्षे पुराजा इच्छन्वव्रिमविदत्पूषणस्य
स्तोताओं के द्वारा स्तुति किये जाते हुए और सबके जानकार अग्नि देव ने शोभन सात भगिनी रूप शिखाओं को मदकर यज्ञ से सरलता पूर्वक समस्त पदार्थों को देखने के लिए ऊपर उठाया। प्राचीन समय में उत्पन्न अग्नि देव ने द्यावा-पृथ्वी के बीच में उन शिखाओं को नियमित किया। याजकों की इच्छा करनेवाले अग्नि देव ने पृथ्वी को वृष्टि स्वरूप रूप प्रदान किया।[ऋग्वेद 10.5.5]
शिखा :: शिखर, चोटी, कलगी, तंबाकू की जटी या पुंगी, चुटिया, शिखा;  crest, crista, pigsty tail.
Agni Dev easily raised the seven glorious sisterly crests upwards to see all objects, on being prayed, in the intoxicating-mesmerising Yagy. Eternal Agni Dev regularised the seven locks between the heaven & earth. To fulfil the wishes of worshipers-Ritviz granted them his form as rains.
सप्त मर्यादाः कवयस्ततक्षुस्तासामेकामिदभ्यंहुरो गात्।
आयोर्ह स्कम्भ उपमस्य  नीळे पथां विसर्गे धरुणेषु तस्थौ
मेधावी लोगों ने सात मर्यादाओं (ब्रह्म हत्या, सुरापान, चोरी, गुरू पत्नी गमन, भ्रूणहत्या, दुष्ट कर्म पुनः-पुनः पापा चरण, सुरापान, पाप करके न कहना उसे छिपाने के लिए झूठ बोलना आदि) को छोड़ दिया है। इनमें से एक का करने वाला भी पापी है। पाप से मनुष्य को रोकने वाले अग्नि देव हैं। अग्नि देव समीपवर्ती मनुष्य के स्थान में सूर्य देव की किरणों के विचरण मार्ग में और जल के मध्य में रहते हैं।[ऋग्वेद 10.5.6]
सात मर्यादा Seven decorum :: ब्रह्म हत्या, सुरापान, चोरी, गुरू पत्नी गमन, भ्रूण हत्या, दुष्ट कर्म पुनः-पुनः पापा चरण, सुरापान, पाप करके न कहना उसे छिपाने के लिए झूठ बोलना।
The intelligent people have avoided advising-saying the seven decorum. If even a single decorum is breached, Agni Dev will obstruct it. Agni Dev stations himself between the rays of Sun and water, nearest to the humans.
असच सच परमे व्योमन्दक्षस्य जन्मन्नदितेरुपस्थे।
अग्निर्ह नः प्रथमजा ऋतस्य पूर्व आयुनि वृषभश्च धेनुः
अग्नि देव सृष्टि के पहले असत और सृष्टि होने पर सत हैं; वे परम धाम में हैं। वे आकाश सूर्य रूप से जन्में हैं। अग्नि देव हमसे पहले उत्पन्न हुए हैं। वे यज्ञ के पहले अवस्थित थे। वे वृषभ भी हैं और गाय भी अर्थात् स्त्री-पुरुष दोनों ही हैं।[ऋग्वेद 10.5.7]
Agni Dev is untrue (non existent) prior to evolution and truth-existent after evolution, being ultimate-eternal abode. He evolved as the Sun in the sky. Agni Dev evolved prior to us. He was present-established in the Yagy. He is bull & cow as well i.e., male & female as well.(21.09.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (6) :: ऋषि :- त्रित, आप्त्य;  देवता :- अग्नि; छन्द :- त्रिष्टुप्।
अयं स यस्य शर्मन्नवोभिरग्नेरेधते जरिताभिष्टौ।
ज्येष्ठेभिर्यो भानुभिर्ऋषूणां पर्येति परिवीतो विभावा
ये वे ही अग्नि देव हैं; यज्ञ के समय जिनके रक्षणों से स्तोता अपने गृह में वृद्धि को प्राप्त होता है। दीप्तिमान् अग्नि देव सूर्य देव की किरणों से प्रशस्त तेज से युक्त होकर सर्वत्र जाते हैं।[ऋग्वेद 10.6.1]
Protection by Agni Dev leads to progress of the Stotas in his house, during Yagy. Illuminated Agni Dev grow by the rays of Sury Dev and move all around.
यो भानुभिर्विभावा विभात्यग्निर्देवेभिर्ऋतावाजस्त्रः।
आ यो विवाय सख्या सखिभ्योऽपरिह्वतो अत्यो न सप्तिः
जो दीप्त अग्नि देव देवों के तेज से दीप्त होते हैं, वे सत्यवान और अहिंसित हैं। अग्नि देव मित्र याजक के लिए मित्रजनोचित कार्य करने के लिए गमनशील घोड़े के समान अथक होकर याजक के पास जाते हैं।[ऋग्वेद 10.6.2]
Those who are illuminated by the majesty of Agni Dev are truthful and non violent. Agni Dev moves-goes to the Ritviz for helping him, like a moving horse untiredly & a friend.
ईशे यो विश्वस्या देववीतेरीशे विश्वायुरुषसो व्युष्टौ।
आ यस्मिन्मना हवींष्यग्नावरिष्टरथः स्कभ्नाति शूषैः
अग्नि देव समस्त यज्ञ के प्रभु हैं। वे सर्वत्र जानेवाले हैं। उषा के उदय-काल से ही हवन के लिए याजकों के ईश्वर हैं। याजक अग्नि देव में मन के अनुकूल हवि प्रदान करते हैं; इसलिए उनका रथ शत्रु-बल से अवध्य होता है।[ऋग्वेद 10.6.3]
Agni Dev is the lord of Yagy. He is the lord of Yagyik during Usha Kal-dawn for the Yagy. The Ritviz make offerings-oblations as per his wish, hence their charoite is safe from the powerful enemy.
शूषेभिर्वृधो जुषाणो अर्कैर्देवाँ अच्छा रघुपत्दा जिगाति।
मन्द्रो होता स जुह्वा ३ यजिष्ठः संमिश्लो अग्रिरा जिघर्ति देवान्
अग्नि देव बल से वर्द्धित और स्तुति से सेवित होकर शीघ्रता के साथ देवगणों के पास जाते हैं। ये स्तुत्य देवों को बुलानेवाले प्रधान यज्ञकर्ता और देवों के द्वारा नियुक्त हैं। वे देवों को हवि प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 10.6.4]
Agni Dev grow by the might and worshiped with Stuti, quickly goes to demigods-deities. He has been appointed as the head Yagy performer by the demigods-deities. He carry offerings to demigods.
तमुस्त्रामिन्द्रं न रेजमानमग्निं गीर्भिर्नमोभिरा कृणुध्वम्।
आ यं विप्रासो मतिभिर्गणन्ति जातवेदसं जुह्वं सहानाम्
हे ऋत्विको! आप भोगों को देने वाले और कम्पनशील, उन अग्नि देव को इन्द्र देव के समान स्तुतियों और हवियों से हमारे सम्मुख करें, जो देवों के बुलानेवाले और ज्ञानी है और जिनका स्तोत्र मेधावी स्तोता लोग सम्मान के साथ करते हैं।[ऋग्वेद 10.6.5]
Hey Ritviz! You grant comforts and vibrating-sensitive. Let Agni Dev who is enlightened & invoke demigods bring Indr Dev to us with Stuties and oblations. His Strotr is recited by the intelligent Stota with due respect-honour.
सं यस्मिन्विश्वा वसूनि जग्मुर्वाजे नाश्वाः सप्तीवन्त एवैः।
अस्मे ऊतीरिन्द्रवाततमा अर्वाचीना अग्न आ कृणुष्व
हे अग्नि देव! जिस प्रकार युद्ध में शीघ्र गमनकारी अश्व जाते हैं, उसी प्रकार ही आपसे संसार के सारे धन प्राप्त होते हैं। हे अग्नि देव! आप इन्द्र देव के सभी रक्षा साधन हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.6.6]
Hey Agni Dev! The way fast moving horses goes to war, similarly all sorts of wealth emanate from you. Hey Agni Dev! Provide all protection means of Indr dev to us.
अधा ह्यग्ने मह्ना निषद्या सद्यो जज्ञानो हव्यो बभूथ।
तं ते देवासो अनु केतमायन्नधावर्धन्त प्रथमास ऊमाः
हे अग्नि देव! आपने जन्म के साथ ही महत्त्व प्राप्त किया और स्थान ग्रहण करने के साथ ही आहुति के योग्य हो गये। इसलिए आपको देखने के साथ देवगण आपके पास गये और आपके प्रदीप्त होने के साथ याजकगण आपमें हवन करने लगे। श्रेष्ठ ऋत्विकगण आपसे रक्षित होकर बढ़ने लगे।[ऋग्वेद 10.6.7]
Hey Agni Dev! You became significant as soon as you evolved and turned capable of accepting oblations. Hence, the demigods-deities came to see you and started Hawan as soon as you turned radiant-blazing. Excellent Ritviz started growing on being protected by you.(22.09.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (7) :: ऋषि :- त्रित, आप्त्य;  देवता :- अग्नि; छन्द :- त्रिष्टुप्।
स्वस्ति नो दिवो अग्ने पृथिव्या विश्वायुर्धेहि यजथाय देव।
सचेमहि तव दस्म प्रकेतैरुरुष्या ण उरुभिर्देव शंसैः
हे दिव्य दशनीय अग्नि देव! आप द्यावा-पृथ्वी से हमारे लिए सब प्रकार का अन्न और कल्याण प्रदान करें। हम याज्ञिक हैं, अपने अनेक प्रशंसनीय रक्षणों से हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 10.7.1]
Hey divine glorious Agni Dev! Grant us all sorts of benefits from the heaven & earth for us. We are Yagyik-performer of Yagy. Protect us with all your appreciable means.
इमा अग्ने मतयस्तुभ्यं जाता गोभिरश्चैंरभि गृणन्ति राधः।
यदा ते मर्तो अनु भोगमानडसो दधानो मतिभिः सुजात
हे अग्नि देव! आपके लिए ये स्तुतियाँ हमारे द्वारा उच्चारित की गई हैं। गौओं और अश्वों के साथ आपने हमें धन दिया है; इसलिए आपकी प्रशंसा की जाती है। जब मनुष्य आपका दिया भोग्य धन प्राप्त करते हैं, तब अपने तेज के द्वारा सबको आच्छादन करनेवाले, शोभन कर्मों के लिए उत्पन्न होनेवाले और हमें धन देवे वाले हे अग्नि देव! आपकी स्तुति की जाती है।[ऋग्वेद 10.7.2]
Hey Agni Dev! We have recited these Stuties for you. You are appreciated for granting us cows, horses and wealth. When the humans receive the comforts granted by you, you being the coverer of every one with your majesty, evolved through glorious endeavours and granting wealth to us, hey Agni Dev! You worshiped.
अग्निं मन्ये पितरमग्निमापिमग्निं भ्रातरं सदमित्सखायम्।
अग्नेरनीकं बृहतः सपर्यं दिवि शुकं यजतं सूर्यस्य
मैं अग्नि देव को ही पिता, बन्धु, भ्राता और चिर मित्र मानता हूँ। मैं महान अग्नि देव के मुख का सेवन वैसे ही करता हूँ, जैसे द्युलोक स्थित पूजनीय और प्रदीप्त सूर्य मण्डल का कोई सेवन करता है।[ऋग्वेद 10.7.3]
Hey Agni Dev! I consider you my father, brother and a bosom friend since ever. I look to the mouth of Agni Dev, the way one looks to the worshipable and aurous Sury Mandal present in the heavens.
सिध्रा अग्ने धियो अस्मे सनुत्रीर्यं त्रायसे दम आ नित्यहोता।
ऋतावा स रोहिदश्वः पुरुक्षुर्चुभिरस्मा अहभिर्वाममस्तु
हे अग्नि देव! हमारी की हुई ये स्तुतियाँ निष्पन्न हुई हैं। नित्य होता, देवों के आह्वाता और हमारे यज्ञगृह में अवस्थित होकर आप जिसकी रक्षा करते हैं, वह आपका सान्निध्य प्राप्त करके याज्ञिक बनें। मैं लोहितवर्ण अश्व और बहुत अन्न प्राप्त करूँ, ताकि प्रदीप्त दिनों में आपको होमीय द्रव्य प्राप्त हो सके।[ऋग्वेद 10.7.4]
Hey Agni Dev! We have completed our Stuties-prayers. You are a regular host, invoker of demigods, presenting-establishing yourself in our Yagy site-House, one protected by you should become a Yagyik in your company. I should get red coloured horse, a lot of food grains so that you get offerings for long during radiant days.
द्युभिर्हितं मित्रमिव प्रयोगं प्रत्नमृत्विजमध्वरस्य जारम्।
बाहुभ्यामग्निमायवोऽजनन्त विक्षु होतारं न्यसादयन्त
दीप्तियुक्त मित्र के समान योजनीय, प्राचीन ऋत्विक और यज्ञ समापक अग्निदेव को याजकों ने बाहुओं से उत्पन्न किया है। मनुष्यों ने देवों के आह्वान और यज्ञ के लिए अग्निदेव को ही निरूपित किया है।[ऋग्वेद 10.7.5]
स्वयं यजस्व दिवि देव देवान् किं ते पाकः कृणवदप्रचेताः।
यथायज ऋतुभिर्देव देवानेवा यजस्व तन्वं सुजात॥
हे दिव्य अग्निदेव। द्युलोक में स्थित देवों का स्वयं यज्ञ करें। अपक्व और निर्बोध मनुष्य आपके बिना क्या करेंगे? हे सुजन्मा देव! जिस प्रकार आप समय-समय पर देवगणों के निमित्त यजन करते हैं, उसी प्रकार इस समय भी करें।[ऋग्वेद 10.7.6]
Hey divine Agni Dev! You yourself conduct the Yagy of demigods-deities in the heavens. What will the immature and ignorant humans do without you? Hey deity with high origin! The way you conduct Yagy for demigods-deities from time to time, similarly we should also do it now, as well.
भवा नो अग्नेऽवितोत गोपा भवा वयस्कृदुत नो वयोधाः।
रास्वा च नः सुमहो हव्यदातिं त्रास्वोत नस्तन्वो ३ अप्रयुच्छन्
हे अग्नि देव! आप हमें दृष्ट और अदृष्ट दुःखों से बचावें। अन्न के कर्त्ता और दाता भी बने। हे सुन्दर पूजनीय अग्नि देव! हवन करने की सामग्री हमें प्रदान करें और हमारे शरीर की रक्षा करें।[ऋग्वेद 10.7.7]
Hey Agni Dev! You should protect us from visible as well as invisible sorrow-pains. You should become creator and donor of food grains. Hey glorious, worshipable Agni Dev! Grant us Hawan Samgri-goods and protect our body.(23.09.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (8) :: ऋषि :- त्रिशिरा, त्वष्टा; देवता :- अग्नि, इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप्।
प्र केतुना बृहता यात्यग्निरा रोदसी वृषभो रोरवीति।
दिविश्चिदन्ताँ उपमाँ उदानळपामुपस्थे महिषो ववर्ध
इस समय अग्नि देव बड़ी पताका लेकर द्यावा-पृथ्वी में जाते हैं। देवों के बुलाने के समय अग्नि देव वृषभ के समान शब्दनाद करते हैं। द्युलोक के अन्त और समीप के प्रदेश में रहकर अग्नि देव व्याप्त करते हैं। जल के भण्डार अन्तरिक्ष में महान् विद्युत होकर अग्नि देव वृद्धि प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 10.8.1]
At this moment-time, Agni Dev goes to the heavens-earth with a long flag. When called by demigods-deities, Agni Dev makes sound-reply like the bull. Agni Dev pervade the heaven from the end and near by places. Water reservoirs present in space turn into lightening and boost the power of Agni Dev.
मुमोद गर्भो वृषभः ककुद्मानस्त्रेमा वत्सः शिमीवाँ अरावीत्।
स देवतात्युद्यतानि कृण्वन्त्स्वेषु क्षयेषु प्रथमो जिगाति
द्यावा-पृथ्वी के बीच कामों के वर्षक और उन्नत तेज वाले अग्नि देव प्रसन्न होते हैं। रात्रि और उषाः काल के वत्स और याज्ञिक कर्म वाले अग्नि देव शब्द करते हैं। अग्नि देव यज्ञ में उत्साह- कर्म करते हुए आह्वानीय आदि स्थानों में रहकर तथा देवगणों में मुख्य होकर जाते हैं।[ऋग्वेद 10.8.2]
वत्स  :: गाय का बछड़ा, वत्स एक उपनाम है जो बरनवाल का एक गोत्र है, भृगु वंश के ब्राह्मणों का एक गोत्र भी है, कुरु वंश की एक शाखा थी, वत्स राज्य के शासक उदयन ने बौद्ध धर्म को राज्य धर्म बनाया था; calf.
Present between the heaven-earth desires accomplishing Agni Dev rise and become happy. Agni Dev perform the Vats & Yagyik Karm of night and dawn making sound. He perform the Yagy Karm enthusiastically, remain at invokable places and move as the head of Demigods-deities.
आ यो मूर्धानं पित्रोररब्ध न्यध्वरे दधिरे सूरो अर्णः।
अस्य पत्मन्नरुषीरश्वबुध्ना ऋतस्य योनौ तन्वो जुषन्त
अग्नि देव मातृ-पितृ रूप द्यावा-पृथ्वी के मस्तक पर अपना तेज विस्तृत करते हैं। सुवीर्य वाले अग्नि देव के गति परायण तेज को याज्ञिक लोग यज्ञ में धारण करते हैं। अग्नि देव के पतन पर शोभायमान, यज्ञ के स्थान में व्याप्त और हवि आदि से युक्त आपके शरीर की सेवा विद्वान लोग करते हैं।[ऋग्वेद 10.8.3]
Agni Dev spread his aura over his parents, heaven-earth and increase his majesty. The Yagyik bear the majesty of fast moving Agni Dev in the Yagy. When glorious Agni Dev pervading the Yagy site, accepting oblations, calm dawn; the intelligent people serve-worship him.
उषउषो हि वसो अग्रमेषि त्वं यमयोरभवो विभावा।
ऋताय सप्त दधिषे पदानि जनयन्मित्रं तन्वे ३ स्वायै
हे प्रशंसनीय अग्नि देव! आप उषाःकाल के पहले ही यज्ञस्थल पर आ जाते हैं। आप परस्पर मिले दिन और रात्रि के दीप्ति कर्ता हैं। अपने शरीर से सूर्य देव को उत्त्पन्न करते हुए यज्ञ के लिए सात स्थानों में बैठते हैं।[ऋग्वेद 10.8.4]
Hey appreciable Agni Dev! You reach the Yagy site prior to dawn-Usha Kal. You are illuminator of day & night joined together. You evolve Sury Dev from your body and occupy seven positions in the Yagy.
भुवश्चक्षुर्मह ऋतस्य गोपा भुवो वरुणो यदृताय वेषि।
भुवो अपां नपाञ्जातवेदो भुवो दूतो यस्य हव्यं जुजोषः
हे अग्नि देव! आप महिमा युक्त यज्ञ अथवा सत्य के नेत्रों के प्रकाशक है, आप यज्ञ के रक्षक है। जिस समय आप यज्ञ के लिए वरुण या आदित्य होकर जाते हैं, उस समय आप ही रक्षक हाते हैं। हे ज्ञानी अग्नि देव! आप जल के पौत्र है। आप जिस याजक की आहुति ग्रहण करते हैं, उसके दूत होते हैं।[ऋग्वेद 10.8.5]
Hey Agni Dev! You are the illuminator & protector of the glorious Yagy and the truth. You become Varun or Adity for the Yagy, being protector. Hey enlightened Agni Dev! You are the grand son of water. You become the messenger-ambassador of the Yagy in which you accept oblations-offerings.
भुवो यज्ञस्य रजसश्च नेता यत्रा नियुद्धिः सचसे शिवाभिः।
दिवि मूर्धानं दधिषे स्वर्षां जिह्वामग्ने हव्यवाहम्
हे अग्नि देव! आप जिस अन्तरिक्ष में कल्याणकर अश्वों वाले वायु देव के साथ मिलते हैं, उसमें आप यज्ञ और जल के नेता होते हैं। आप द्युलोक में प्रधान और सबके भक्ता सूर्य देव को धारित करते हैं। हे अग्नि देव! आप अपनी जिह्वा को हव्या वाहिका बनाते हैं।[ऋग्वेद 10.8.6]
Hey Agni Dev! When you meet Vayu Dev owning beneficial horses, in the space; you become the leader of Yagy & water. You support the leader and devotee Sury Dev. Hey Agni Dev! You make your tongue the carrier of offerings.
अस्य त्रितः ऋतुना वव्रे अन्तरिच्छन्धीतिं पितुरेवैः परस्य।
सचस्यमानः पित्रोरुपस्थे जामि ब्रुवाण आयुधानि वेति
यज्ञ करके त्रित ऋषि ने प्रार्थना की कि, मेरी इच्छा है कि यज्ञ में पिता का ध्यान करके नाना विपत्तियों से रक्षा प्राप्त करूँ। प्रार्थना के कारण पिता-माता के पास सुन्दर वाक्य बोलकर त्रित युद्ध का अस्त्र ले गये।[ऋग्वेद 10.8.7]
Trit Rishi performing Yagy prayed that he should recall his father and seek protection from various troubles. Speaking politely, beautiful words to parents, Trit took the Astr-weapons of war by virtue of prayer.
स पित्र्याण्यायुधानि विद्वानिन्द्रेषित आप्त्यो अभ्ययुध्यत्।
त्रिशीर्षाणं सप्तरश्मिं जघन्वान्त्वाष्ट्रस्य चिन्निः ससृजे त्रितो गाः
आप्त्य के पुत्र त्रित ने इन्द्र देव के द्वारा प्रेरित होकर और अपने पिता के युद्धास्त्रों को लेकर युद्ध किया। सात रस्सियों वाले त्रिशिरा का उन्होंने वध किया और त्वष्टा के पुत्र (विश्व रूप) की गायों का भी हरण कर लिया।[ऋग्वेद 10.8.8]
Inspired by Indr Dev, Trit, son of Apt fought war with his father's weapons. He killed Trishira (having three heads) having seven cords and took away the cows of Vishw Roop, son of Twasta.
भूरीदिन्द्र उदिनक्षन्तमोजोऽवाभिनत् सत्पतिर्मन्यमानम्।
त्वाष्ट्रस्य चिद्विश्वरूपस्य गोनामाचक्राणस्त्रीणि शीर्षा परा वर्क् 
साधुओं के स्वामी इन्द्र देव ने अभिमानी और व्यापक तेज वाले त्वष्टा के पुत्र को विदीर्ण किया। उन्होंने गायों को बुलाते हुए त्वष्टा के पुत्र विश्व रूप के तीनों सिरों को काट डाला।[ऋग्वेद 10.8.9]
Lord of sages Indr Dev, teared the Proudy-egoistic son of Twasta. He called the cows and cut the three heads of Vishw Roop, son of Twasta.(24.09.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (9) :: ऋषि :- त्रिशिरा, त्वष्टा, सिन्धुद्वीप या अम्बरीष; देवता :- जल; छन्द :- गायत्री, अनुष्टुप्।
आपो हि ष्ठा मयोभुवस्ता न ऊर्जे दधातन। महे रणाय चक्षसे
हे जल देव! आप सुख के आधार हैं। आप हमें पराक्रम से युक्त उत्तम कार्य करने के लिए अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.9.1]
Hey deity of water! You are the basis of pleasure. Grant us food grains to perform excellent deeds accompanied with valour.
यो वः शिवतमो रसस्तस्य भाजयतेह नः। उशतीरिव मातरः
हे जल देव! जिस प्रकार मातायें बच्चों को दूध देती हैं. उसी प्रकार आप अपना सुखकर रस हमें  प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.9.2]
Hey deity of water! The way mothers feed their infants with milk, similarly grant us your pleasure producing extract, sap-juice.
तस्मा अरं गमाम वो यस्य क्षयाय जिन्वथ। आपो जनयथा च नः
हे बलदेव! आप जिस पाप के विनाश के लिए हमें प्रसन्न करते हैं, उसके विनाश की इच्छा से हम आपको मस्तक पर शिरोधार्य करते है। आप हमारी वंश वृद्धि करें।[ऋग्वेद 10.9.3]
Hey Bal Dev! The sin for abolishing which you keep us happy, for its destruction we keep you over our head. Grow our clan.
शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शं योरभि स्रवन्तु नः
दिव्य जल हमारे यज्ञ के लिए सुख का विधान करें। वह जल पीने योग्य, कल्याणकारी और सुखकर हो। मस्तक के ऊपर क्षरित होकर रोगों को हमसे दूर करें।[ऋग्वेद 10.9.4]
Let divine water plan comforts for our Yagy. That water should be beneficial and comfortable. On falling over our heads, it should keep away-off diseases form us.
ईशाना वार्याणां क्षयन्तीश्चर्षणीनम्। अपो याचामि भेषजम्
अभिलषित वस्तुओं के ईश्वर जल देव है। वे ही मनुष्यों को निवास देते हैं। हम उस जल से औषधियों में जीवनरस की कामना करते हैं।[ऋग्वेद 10.9.5]
Deity of water is the Lord of desired goods. He grant residence to humans. We expect presence of life supporting sap from that water in the vegetation-herbs.
अप्सु मे सोमो अब्रवीदन्तर्विश्वानि भेषजा। अग्निं च विश्वशंभुवम्
सोम देव कहते हैं कि, जल तत्त्व में समस्त औषधि रस और संसार के लिए सुख दायक अग्नि तत्त्व भी विद्यमान हैं।[ऋग्वेद 10.9.6]
Som Dev says that water possess the sap of all medicines and fire comfortable to the whole universe is present in it. (Water is composed of hydrogen & oxygen. On burning, hydrogen combine with oxygen to produce water).
आपः पृणीत भेषजं वरूथं तन्वे ३ मम। ज्योक्च सूर्य दृशे
हे जलदेव! आप हमारे शरीर की रक्षा करनेवाली औषधियों को पुष्ट करें, ताकि हम बहुत दिनों तक सूर्य देव को देख सकें।[ऋग्वेद 10.9.7]
Hey deity of water! Nourish the medicines-herbs which can strengthen our body, so that we are able the Sun-Sury Dev for long.
इदमापः प्र वहत यत्कि च दुरितं मयि। यद्वाहमभिदुद्रोह यद्वाशेप उतानृतम्
हे जल देव! मेरा जो कुछ दृष्कृत्य है अथवा जो कुछ मैंने हिंसा का कार्य किया है या अभिसंताप किया है अथवा झूठ बोला है, वह सब दूर करके हमें पवित्र बनावें।[ऋग्वेद 10.9.8]
Hey deity of water! Sanctify us by keeping off us from violent deeds committed by us, torturing-teasing or if we had lied 
आपो अद्यान्वचारिषं रसेन समगस्महि। पयस्वानंग्र आ गहि तं मा सं सृज वर्चसा
आज हमने जल का आश्रय प्राप्त किया है और इसके रस से लाभान्वित हुए हैं। हे अग्नि देव! आप जल में स्थित हैं। हमारे समीप आकर हमें तेजस्वी बनावें।[ऋग्वेद 10.9.9]
We have sought asylum under deity of water & benefited from it. Hey Agni Dev! You are present in water. Come close to us and make us majestic.(25.09.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (10) :: ऋषि :- यमी वैवस्वती, यमो वैवस्वत; देवता :- यमी वैवस्वती, यमो वैवस्वती; छन्द :- त्रिष्टुप्।
ओ चित्सखायं सख्या ववृत्यां तिरः पुरू चिदर्णवं जगन्वान्।
पितुर्नपातमा दधीत वेधा अधि क्षमि प्रतरं दीध्यानः
यम और यमी अथवा दिन या रात्रि सदोहर हैं। यमी यम से कहती है, "विस्तृत समुद्र के मध्यद्वीप में आकर इस निर्जन प्रदेश में मैं आपका सहवास अथवा मिलन चाहती हूँ; क्योंकि गर्भावस्था से ही आप मेरे सखा हैं। विधाता ने मन ही मन समझा है कि आपके द्वारा मेरे गर्भ से जो पुत्र उत्पन्न होगा, वह हमारे पिता का एक श्रेष्ठ नाती होगा।[ऋग्वेद 10.10.1]
Yam and Yami are siblings-twins. Yami ask Yam, "I wish to mate-meet with you in the deserted island present in the middle ocean, since you are my friend from the womb. The creator-Brahma has understood my innerself since my son born from you will be our father's excellent maternal grandson".
न ते सखा सख्यं वष्ट्येतत्सलक्ष्मा यद्विषुरूपा भवाति।
महस्पुत्रासो असुरस्य वीरा दिवो धर्तार उर्विया परि ख्यन्
यम का उत्तर-यमी, आपका साथी यम आपके साथ ऐसा सम्पर्क नहीं चाहता; क्योंकि आप सहोदरा भगिनी (बहन) हैं। हमें यह अभीष्ट नहीं असुरों के वीर पुत्र हैं, जो दिव्य लोकादि के धारणकर्ता हैं, वे सर्वत्र भ्रमण करते हैं।[ऋग्वेद 10.10.2]
Yam replied to Yami, "I do not want such relation with you since you are my sister. This is not desirable for us". (This is demonic behaviour). Demons have great sons who are the lord of divine abodes. They roam everywhere.
उशन्ति घा ते अमृतास एतदेकस्य चित्त्यजसं मर्त्यस्य।
नि ते मनो मनसि धाय्यस्मे जन्युः पतिस्तन्व १ मा विविश्याः
यमी का वचन यद्यपि मनुष्य के लिए ऐसा संसर्ग निषिद्ध है; तो भी देवता लोग इच्छापूर्वक ऐसा संसर्ग करते हैं। इसलिए मेरी जैसी इच्छा होती है, वैसा ही आप भी करें। पति रूप में आप ही मेरे लिए सर्वथा उपयुक्त है।[ऋग्वेद 10.10.3]
Yami said, "Though this type of relation is prohibited, yet demigods maintain such relations. Hence, fulfil my desire. You are most suitable for me as a husband".
न यत्पुरा चकृमा कद्ध नूनमृता वदन्तो अनृतं रपेम।
गन्धर्वो अप्स्वप्या च योषा सा नो नाभिः परमं जामि तन्नौ
यम का उत्तर हमने ऐसा कर्म कभी नहीं किया। हम सत्यवक्ता है। कभी मिथ्या कथन नहीं किया है। अन्तरिक्ष में स्थित गन्धर्व अथवा जल के धारक सूर्य देव और अन्तरिक्ष में ही रहनेवाली सूर्य देव की स्त्री सरण्यू हमारे माता-पिता हैं। इसलिए हमें सहोदर बन्धु हैं। ऐसा सम्बन्ध उचित नहीं है।[ऋग्वेद 10.10.4]
Yam replied, "We have never done this. We are truthful and never speak lies. Gandharvs present in the sky or supporter of water Sury Dev and resident of space Sury Dev and Devi Saranyu are our parents. Hence we are siblings. This type of relation is impropriate".
गर्भे नु नौ जनिता दंपती कर्देवस्त्वष्टा सविता विश्वरूपः। 
नकिरस्य प्र मिनन्ति व्रतानि वेद नावस्य पृथिवी उत द्यौः
यमी की उक्ति, "रूपकर्ता, शुभाशुभ-प्रेरक, सर्वात्मक, दिव्य और पिता ब्रह्मा जी ने तो हमें गर्भावस्था में ही दम्पति (पति-पत्नी) बना दिया है। ब्रह्मा जी का कर्म कोई लुप्त नहीं कर सकता। हमारे इस सम्बन्ध को द्यावा-पृथ्वी भी जानते हैं।[ऋग्वेद 10.10.5]
Yami argued that divine creator Brahma Ji inspiring for pious-virtuous made us couple in the womb. Brahma Ji's endeavours never vanish. Heaven & earth too know our this relationship.
को अस्य वेद प्रथमस्याह्नः क ईं ददर्श क इह प्र वोचत्।
बृहन्मित्रस्य वरुणस्य धाम कदु ब्रव आहनो वीच्या नृन्
यमी की उक्ति, "प्रथम दिन की बात कौन जानता है? किसने उसे देखा है? किसने उसको प्रकाशित किया है? मित्र और वरुण देव का यह जो महान् अहोरात्र है, उसके बारे में, हे मोक्ष बन्धन कर्ता यम! आप क्या कहते हैं"।[ऋग्वेद 10.10.6]
Yami argued, "Who is aware of the happenings of the first day? Who has seen that? Who has exposed-revealed that? Hey Yam, prohibiting emancipation, what do you say about the Ahoratr day& night of Mitr & Varun Dev"?
यमस्य मा यम्यं १ काम आगन्त्समाने योनौ सहशेय्याय।
जायेव पत्ये तन्वं रिरिच्यां वि चिहेव रथ्येव चक्रा
जिस प्रकार एक शय्या पर पत्नी पति के पास अपने शरीर को सौंपती है, उसी प्रकार आपके पास हे यम। मैं अपने शरीर को सौंपती हूँ। आप मेरी अभिलाषा पूर्ण करें। आइए, एक स्थान पर दोनों शयन करें। रथ के दोनों चक्कों के समान हम एक कार्य में प्रवृत्त हों।[ऋग्वेद 10.10.7]
The way a wife offer herself to husband over the bed, I surrender my body to you. Accomplish my desire. Let us sleep together at a deserted place and intend to do that like the two wheels of the charoite.
न तिष्ठन्ति न नि मिषन्त्येते देवानां स्पश इह ये चरन्ति।
अन्येन मदाहनो याहि तूयं तेन वि वृह रथ्येव चक्रा
यम की उक्ति, "देवों के जो गुप्तचर है, वे दिन रात भ्रमण करते हैं। उनकी आँखें कभी बन्द नहीं होतीं"। हे दुःख दायिनी यमी! शीघ्र दूसरे के पास जाओ और रथ के चक्कों के समान उसके साथ ऐसा कार्य करें अर्थात् किसी दूसरे को पति के रूप में वरण करें।[ऋग्वेद 10.10.8]
Yam argued, "Spies of the demigods-deities roam throughout the day & night. Their eyes never close". Hey sorrow-pain creating Yami! Quickly go to some one else and do all this with him like the wheels of charoite, accepting him as your husband.
रात्रीभिरस्मा अहभिर्दशस्येत् सूर्यस्य चक्षुर्मुहुरुन्मिमीयात्।
दिवा पृथिव्या मिथुना सबन्यू यमीर्यमस्य बिभृयादजामि
दिन-रात में यम के लिए जो कल्पित भाग है, उसे याजक दें, सूर्य देव का तेज यम के लिए उदित हो। परस्पर संबद्ध दिन द्युलोक और पृथ्वीलोक यम के मित्र हैं। यमी यम! भ्राता के अतिरिक्त अन्य पुरुष का वरण करें।[ऋग्वेद 10.10.9]
The Ritviz should offer the portion of oblations fixed for Yam. Let the majesty-aura of Sury Dev arise for Yam. Mutually related heavens and earth are the friends of Yam. Yam & Yami should opt for someone else for marriage, except brother or sister.
आ घा ता गच्छानुत्तरा युगानि यत्र जामयः कृणवन्नजामि।
उप बर्बुहि वृषभाय बाहुमन्यमिच्छस्व सुभगे पतिं मत्
भविष्य में ऐसा युग आयेगा, जिसमें भगिनियाँ अपने बन्धुत्व विहीन भ्राता को पति बनावेंगी। हे सुन्दरी! मुझे छोड़कर दूसरे को पति बनाओ। वह जिस समय वीर्य-सिंचन करेगा, उस समय उसे बाहुओं में आलिङ्गित करना।[ऋग्वेद 10.10.10]
A time will come in future-Kali Yug when sisters will marry their brothers. Hey beautiful woman! Choose someone else as your husband. Embrace him in your arms while he energise-activate his sperms.
In South cousins marry together. Muslims and Christians too do this.
किं भ्रातासद्यदनाथं भवाति किमु स्वसा यन्निर्ऋतिर्निगच्छात्।
काममूता बहे ३ तद्रपामि तन्वा मे तन्वं १ सं पिपृग्धि
यमी की उक्ति, "वह कैसा भ्राता है, जिसके रहते भगिनी अनाथ हो जाय और वह भगिनी ही क्या है, जिसके रहत भ्राता का दुःख दूर न हो? मैं काम-मूच्छिता होकर अनेकानेक प्रकार से बोल रही हूँ, यह विचार करके भली भाँति मेरा उपभोग करें"।[ऋग्वेद 10.10.11]
Yami argued, "What type of brother you are, leaving-deserting his sister as an orphan, fails to relieve her pain-sorrow? I am speaking all this under the desire for sex. Consider this and utilise me".
न वा उ ते तन्वा तन्वं १ सं पपृच्यां पापमाहुर्यः स्वसारं निगच्छात्।
अन्येन मत्प्रमुदः कल्पयस्व न ते भ्राता सुभगे वष्ट्येतत्
यम की उक्ति, "हे यमी! मैं आपके शरीर से अपने से अपने शरीर को मिलाना नहीं चाहता। जो भ्राता भगिनी का संभोग करता है, उसे लोग पापी कहते हैं। हे सुन्दरी! मुझे छोड़कर अन्य पुरुष के साथ संयुक्त होकर हर्षित हो। मैं आपको कभी स्वीकार नहीं कर सकता"।[ऋग्वेद 10.10.12]
Yam argued, "Hey Yami! I do not want to indulge my body with you. The brother who mate with his siter is a sinner. Hey beautiful woman! Leave me and enjoy with some one else. I will never accept-entertain you".
बतो बतासि यम नव ते मनो हृदयं चाविदाम।
अन्या किल त्वां कक्ष्येव युक्तं परि ष्वजाते लिबुजेव वृक्षम्
यमी का कथन-हाय यम! आप दुर्बल हैं, आपके मन और हृदय को मैं कुछ नहीं समझ सकती। जिस प्रकार रस्सी घोड़े को बाँधती है और जैसे लता वृक्ष का आलिङ्गन करती है, उसी प्रकार अन्य स्त्री आपको अनायास आलिङ्गित करती है; परन्तु मुझे आप नहीं चाहते हैं"।[ऋग्वेद 10.10.13]
Yami stressed, hey Yam! You are weak, I can not understand your mind-heart, innerself. This way horse is tied with cord and a wine-creeper tie with the tree, similarly a woman suddenly embrace a man. But you do not like me".
अन्यमू षु त्वं यम्यन्य उ त्वां परि ष्वजाते लिबुजेव वृक्षम्।
तस्य वा त्वं मन इच्छा स वा तवाधा कृणुष्व संविदं सुभद्राम्
यम का वचन, हे यमी! आप भी अन्य पुरुष का भली-भाँति आलिङ्गन करें। जिस प्रकार लता वृक्ष को वेष्टित करती है, उसी प्रकार अन्य पुरुष आपको आलिङ्गित करें। उसी का मन आप अपनी ओर आकर्षित करें; वह भी आपके मन को आकर्षित करे। अपने सहवास का प्रबन्ध उसी के साथ करें, इसी में मंगलकारी सुखों को प्राप्त करें।[ऋग्वेद 10.10.14]
Yam said, hey Yami! Embrace any other person as per your desire, like a creeper. You should be attracted towards a person who too propose-respond you. Mate with that person and have virtuous-pious pleasure-comforts".(26.09.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (11) :: ऋषि :- आंगिर्हविर्धान; देवता :- अग्नि;  छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
वृषा वृष्णे दुदुहे दोहसा दिवः पयांसि यह्वो अदितेरदाभ्यः।
विश्वं स वेद वरुणो यथा धिया स यज्ञियो यजतु यज्ञियाँ ऋतून्
वर्षक, महान् और अहिंसनीय अग्नि देव ने वर्षक याजक के लिए महान दोहन के द्वारा आकाश से जल को दूहा। सूर्य देव अपनी बुद्धि से सारे संसार को जानते हैं। यज्ञ में प्रयुक्त अग्नि देव की ऋचाओं के अनुरूप अर्चना करें।[ऋग्वेद 10.11.1]
Showering, great and non violent Agni Dev extracted water for the showering Ritviz with great churning of sky-clouds. Sury Dev recognises the universe with his intelligence. Worship Agni Dev as per the verses-Mantrs used in the Yagy.
रपद्गन्धर्वीरप्या च योषणा नदस्य नादे परि पातु मे मनः।
इष्टस्य मध्ये अदितिर्नि धातु नो भ्राता नो ज्येष्ठः प्रथमो वि वोचति
अग्नि देव के गुणों को कहने वाली गन्धर्व की पत्नी और जल से संस्कृत आहुति रुपिणी स्त्री ने अग्नि देव को तृप्त किया। मैं ध्यानावस्थित होकर भली-भाँति स्तुति करता हूँ। अखण्डनीय अग्नि देव हमें यज्ञ के बीच बैठायें। सारे याजकों में मुख्य हमारे ज्येष्ठ भ्राता स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 10.11.2]
Wife of Gandarbh describing the characterises of Agni Dev and the offerings sanctified with water satisfied Agni Dev. I worship meditating carefully. Let continuous Agni Dev make us sit in the Yagy. Significant amongest all Ritviz our elder brother recite Stuti-prayers.
सो चिन्नु भद्रा क्षुमती यशस्वत्युषा उवास मनवे स्वर्वती।
यदीमुशन्तमुशतामनु क्रतुमग्निं होतारं विदथाय जीजनन्
भजनीय, शब्दावली और कीर्तिवाली देवी उषा याजक के लिए, आदित्य वाली होकर तत्काल निकलीं। उसी समय यज्ञ के लिए अग्नि देव को उत्पन्न किया गया। जो यज्ञाभिलाषी है, उन्हीं के प्रति अग्निदेव प्रसन्न होते हैं। अग्नि देव देवगणों को बुलाते हैं।[ऋग्वेद 10.11.3]
Worshipable, glorious Usha Devi appeared with the rise of Sun-Adity immediately. Agni Dev was invoked immediately. Agni Dev pleases with those who are desirous of Yagy (wish to conduct Yagy). Agni Dev invites demigods-deities.
अध त्यं द्रप्सं विभ्वं विचक्षणं विराभरदिषितः श्येनो अध्वरे।
यदी विशो वृणते दस्ममार्या अग्निं होतारमध धीरजायत
बाज पक्षी अग्नि देव से प्रेरित होकर महान्, सूक्ष्म दर्शक, न अधिक कम, न अधिक सोम को ले आया। जिस समय आर्य लोग सामने आने जाने योग्य, दर्शनीय और देवाह्वान कर्ता अग्नि देव की प्रार्थना करते हैं, उस समय यज्ञ की क्रिया उत्पन्न होती है।[ऋग्वेद 10.11.4]
Inspired by Agni Dev falcon brought great, micro visionary, neither less nor excess requisite quantity of Somras. When the Aryans come in front, glorious invokers of demigods-deities worship Agni Dev initiating-beginning the process of Yagy.
सदासि रण्वो यवसेव पुष्यते होत्राभिरग्ने मनुषः स्वध्वरः।
विप्रस्य वा यच्छशमान उक्थ्यं १ वाजं ससवाँ उपयासि भूरिभिः
पशुओं के लिए जिस प्रकार घास रुचिकर होती है, उसी प्रकार ही आप सदा रमणीय हो। हे अग्नि देव! मनुष्यों के हवन से आप भली-भाँति यज्ञ को सम्पन्न करें। स्तोता का स्तोत्र सुनकर और हवीरूप अन्न को प्राप्त करके आप अनेक देवगणों के साथ जाते हैं।[ऋग्वेद 10.11.5]
रमणीय :: आनंदमय, हर्षजनक, आनंदपूर्ण, आनंदित, आनंद देने वाला, मनोरम, रमण योग्य, सुंदर; सुहावना, ललित, सुखद, सुहावना, ख़ुशगवार; delightful, delectable, enjoyable.
The way grass is liked by the animals, similarly you should also be always delightful with the Yagy. Hey Agni Dev! Properly conduct the Yagy of humans with Hawan. You leave after listening the Strotr by the Stota along with the demigods-deities.
उदीरय पितरा जार आ भगमियक्षति हर्यतो हृत्त इष्यति।
विवक्ति वह्निः स्वपस्यते मखस्तविष्यते असुरो वेपते मती
हे अग्नि देव! अपनी ज्वाला को मातृ-पितृ रूप द्यावा-पृथ्वी की ओर उसी प्रकार ही प्रेरित करें, जिस प्रकार नक्षत्र आदि को जीर्ण करने वाले सूर्य देव अपना तेज द्युलोक और भूलोक की ओर प्रेरित करते हैं। यज्ञाभिलाषी देवों के लिए यज्ञकर्ता याजक यज्ञ करने को तैयार है। वह हृदय से व्यग्र है। अग्नि देव स्तुति को वर्द्धित करने की इच्छा करते हैं। प्रधान पुरोहित (ब्रह्मा) भली-भाँति कर्म सम्पन्न करने के लिए उत्सुक हैं। वे स्तोत्र को बढ़ाते हैं। ब्रह्मा नामक प्रधान पुरोहित मन ही मन आशंका करते है कि कदाचित् कोई त्रुटि न रह जाय।[ऋग्वेद 10.11.6]
आशंका :: संदेह, शक, खटका, भय; fear, quandary.
व्यग्र :: चिंतित, उत्कंठित, उत्सुक, आतुर, इच्छुक, उत्कट; anxious, bewildered, anxious, eager.
Hey Agni Dev! Direct your flames towards heaven-earth who are like parents, the way Sury Dev reduce the radiance of constellations and directs his majesty towards heaven-earth. The Ritviz are ready to perform Yagy for the demigods-deities. They are anxious in their innerself-heart. Agni Dev wish to promote the Stuti-prayer. Head priest (Brahma Ji) is eager to perform the Yagy properly. He boosts the Strotr. Purohit-priest named Brahma fear that no mistake takes place.
यस्ते अग्ने सुमतिं मर्तो अक्षत्सहसः सूनो अति स प्र शृण्वे।
इषं दधानो वहमानो अश्चैरा स द्युमाँ अमवान्भूषति द्यून्
हे बल के पुत्र अग्नि देव! अनुग्रहशील याजकगण आपको स्तोत्रों और हवियों से सेवित करते हैं। वह याजक प्रसिद्ध होता है। वह अन्न देता है, घोड़े उसका वहन करते हैं वह दीप्तिशाली और बली है। वह निरन्तर सुखी होता है।[ऋग्वेद 10.11.7]
Hey Agni Dev, son of Bal! Obliging Ritviz nurse you with Strotrs and offerings. The Ritviz who does this become famous. He donate food grains, horse carry him and he is aurous and mighty. He remain comfortable continuously-throughout.
यदग्न एषा समितिर्भवाति देवी देवेषु यजता यजत्र।
रत्ना च यद्विभजासि स्वधारो भागं नो अत्र वसुमन्तं वीतात्॥
हे यजनीय अग्नि देव! जिस समय हम बहुत सारी स्तुतियाँ यजनीय देवों के लिए करते है, उस समय हमें रमणीय वस्तुएँ प्रदान करें। यज्ञीय द्रव्य को ग्रहण करने वाले हे अग्नि देव! उस समय आप हमारे धन का भाग हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.11.8]
Hey worshipable Agni Dev! When we recite many Stuties for the demigods-deities, at that moment grant us enjoyable goods. Hey acceptor of Yagy material, Agni Dev! At that moment grant us our share of wealth to us.
श्रुधी नो अग्ने सदने सधस्थे युवा रथममृतस्य द्रवित्लुम्।
आ नो वह रोदसी देवपुत्रे माकिर्देवानामप भूरिह स्याः
हे अग्नि देव! समस्त देवों के यज्ञगृह में रहकर आप हमारे वचन को श्रवण करें। अमृत बरसाने वाले रथ को योजित करें। देवों के माता-पिता द्यावा-पृथ्वी को हमारे पास ले आवें। आप यही रहें। देवों के पास से न जावें।[ऋग्वेद 10.11.9]
Hey Agni Dev! Listen-respond to our our prayers presenting yourself in the Yagy Grah-site of demigods-deities. Bring the parents of demigods-deities to us and stay with us. Do not turn back with the demigods-deities.(27.09.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (12) :: ऋषि :- आंगिर्हविर्धान; देवता :- अग्नि;  छन्द :- त्रिष्टुप्।
द्यावा ह क्षामा प्रथमे ऋतेनाभिश्रावे भवतः सत्यवाचा।
देवो यन्मर्तान्यजथाय कृण्वन्त्सीदद्धोता प्रत्यङ् स्वमसुं यन्
प्रधान भूत द्यावा-पृथ्वी यज्ञ के समय सबके पहले अग्नि देव का आह्वान करें। हे अग्नि देव! यज्ञ के लिए मनुष्यों को प्रेरित करके और अपनी ज्वाला को धारण करके देवों का आवाहन करने के लिए बैठें।[ऋग्वेद 10.12.1]
Eternal heads heavens & earth should invoke Agni Dev first at the time of Yagy. Hey Agni Dev! Inspire the humans for the Yagy, support your flames and invoke demigods-deities. 
देवो देवान्परिभूॠतेन वहा नो हव्यं प्रथमश्चिकित्वान्।
धूमकेतुः समिधा भाऋजीको मन्द्रो होता नित्यो वाचा यजीयान्
अग्नि देव दिव्य हैं। वे इन्द्रादि देवों के पास जाते हुए यज्ञ के साथ हवि को ले आयें। हे अग्नि देव! आप देवों में मुख्य, सर्वज्ञ, धूमध्वज, समिधा के द्वारा ऊद्धर्वज्वलन, स्तुत, आह्वाता, नित्य और यजमानों के यज्ञकर्ता हैं।[ऋग्वेद 10.12.2]
Agni Dev is a deity. He should carry oblations-offerings while going to Indr Dev & other demigods-deities. Hey Agni Dev! You are senior amongest the demigods-deities, all knowing, form a flag with smoke, ignite the wood meant for the Yagy. worshiped, invoker, omnipresent and performer of Yagy of the hosts.
स्वावृग्देवस्यामृतं यदी गोरतो जातासो धारयन्त उर्वी।
विश्वे देवा अनु तत्ते यजुर्गुर्दुहे यदेनी दिव्यं घृतं वाः
जो अग्नि देव स्वयं जल उत्पन्न करते हैं, उससे उद्भिज्ज उत्पन्न होकर पृथ्वी का रक्षण करते हैं। समस्त देवगण आपके जलदान की प्रशंसा करते हैं। आपकी श्वेत ज्वाला स्वर्ग के घृत रूप वृष्टि वारि का दोहन करती हैं।[ऋग्वेद 10.12.3]
Agni Dev produce water, evolve out of it and protect the earth. All demigods-deities appreciate your donation of water. Your white flames churn the water of the heavens which is like Ghee.
अर्चामि वां वर्धायापो घृतस्नू द्यावाभूमी शृणुतं रोदसी मे।
अहा यद् द्यावोऽ सुनीतिमयन्मध्वा नो अत्र पितरा शिशीताम्
हे अग्नि देव! हमारे यज्ञरूप कर्म को बढ़ावें। वृष्टिजल का वर्षण करने वाले द्यावा-पृथ्वी, मैं आपकी पूजा और स्तुति करता हूँ। हे द्यावा-पृथ्वी! मेरा स्तोत्र श्रवण करें। जिस समय स्तोतागण यज्ञ के समय स्तुति करते हैं, उस समय वृष्टिजल का वर्षण करके हमारी मलिनता को दूर करें।[ऋग्वेद 10.12.4]
मलिनता :: गंदगी, कलंक, अपवित्रीकरण, मालिन्य, भ्रष्टता, मैला करना, मैलापन; filth, filthiness, defilement, clog.
Hey Agni Dev! Boost our efforts for the Yagy. Showering rains, heavens & earth! I worship & recite prayers for you. Hey heavens & earth! Respond to my Strotr. While the Stotas pray during Yagy, produce rains and clean us (remove our filth).
किं स्विन्नो राजा जगृहे कदस्याति व्रतं चकृमा को वि वेद।
मित्रश्चिद्धि ष्मा जुहुराणो देवाञ्छ्लोको न यातामपि वाजो अस्ति
प्रदीप्त अग्नि देव ने क्या हमारी स्तुति और हवि को ग्रहण किया है? क्या हमने उपयुक्त पूजन किया है? कौन जानता है? जिस प्रकार मित्र को बुलाने पर वह आता है, उसी प्रकार ही अग्नि देव भी आ सकते हैं। हमारी यह स्तुति देवों के पास जाए। जो कुछ खाद्य है, वह भी देवताओं के पास जाए।[ऋग्वेद 10.12.5]
Has radiant Agni Dev accepted our Stuti & oblations? Did we perform prayers properly? Who knows this? The way a friend comes on calling, Agni Dev too,  can come. Let our Stuti-prayer reach the demigods-deities. Whatever eatable are there, should also reach demigods-deities.
दुर्मन्त्वत्रामृतस्य नाम सलक्ष्मा यद्विषुरूपा भवाति।
यमस्य यो मनमते सुमन्त्वग्ने तमृष्व पाह्यप्रयुच्छन्
अमर सूर्य देव का अपराध रहित और मधुर रस वाला जल पृथ्वी पर नाना रूप का होता है। सूर्य देव यम के अपराध को क्षमा करते हैं। महान् अग्नि देव क्षमाशील सूर्य देव की रक्षा करते हैं।[ऋग्वेद 10.12.6]
Water constituting of sweet sap from immortal Sury Dev, has numerous forms over the earth. Sury Dev pardon the sins-faults of Yam. Great Agni Dev protect pardoning Sury Dev.
यस्मिन्देवा विदथे मादयन्ते विवस्वतः सदने धारयन्ते।
सूर्ये ज्योतिरदधुर्मास्य १ क्तून्यरि द्योतनिं चरतो अजस्रा
अग्नि देव के उपस्थित रहने पर यज्ञ में देवता लोग प्रसन्न होते और याजक के वेदी रूप स्थान में अपने को स्थापित करते हैं। देवगणों ने सूर्य देव में तेज स्थापित किया और चन्द्रमा में रातों को स्थापित किया। ये दोनों सूर्य देव और चन्द्र देव अनवरत तेजस्विता को धारित किए हुए है।[ऋग्वेद 10.12.7]
Presence of Agni Dev enthuse the demigods-deities in the Yagy and establish themselves over the Yagy Vedi. Demigods granted majesty to Sury Dev and established Moon in the nights. Sury Dev and Chandr Dev are continuously wearing-maintaining the majesty.
यस्मिन्देवा मन्मनि संचरन्त्यपीच्ये ३ न वयमस्य विद्म।
मित्रो नो अत्रादितिरनागान्त्सविता देवो वरुणाय वोचत्
जिन ज्ञान रूप अग्नि देव के उपस्थित रहने पर देवगण अपना कार्य सम्पादित करते हैं, उनका स्वरूप हम नहीं जानते। इस यज्ञ में मित्र, अदिति, सूर्य देव और पापनाशक अग्नि देव हमें पाप रहित करें।[ऋग्वेद 10.12.8]
We are unaware of the identity of Agni Dev a form of enlightenment, in whose presence demigods-deities carryout their endeavours. Let Mitr, Aditi and Sury Dev & Agni Dev make us sinless in this Yagy.
श्रुधी नो अग्ने सदने सधस्थे युक्ष्वा रथममृतस्य द्रवित्नुम्।
आ नो वह रोदसी देवपुत्रे माकिर्देवानामप भूरिह स्याः
हे अग्नि देव! समस्त देवगणों के यज्ञ गृह में रहकर आप हमारे वचन को श्रवण करें। अमृत बरसाने वाले रथ को योजित करें। देवगणों के माता-पिता द्यावा-पृथ्वी को हमारे पास ले आवे। आप यहीं रहें। देवगणों के पास से न जावें।[ऋग्वेद 10.12.9]
Hey Agni Dev! Presenting yourself in the Yagy house of demigods-deities respond to our prayers. Deploy the elixir showering charoite. Bring the parents of demigods-deities heavens & earth, to us.(28.09.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (13) :: ऋषि :- आंगिर्हविर्धान, विवस्वान, आदित्य; देवता :- हविर्धान; छन्द :- त्रिष्टुप्, जगती।
युजे वां ब्रह्म पूर्व्य नमोभिर्वि श्लोक एतु पथ्येव सूरेः।
शृण्वन्तु विश्वे अमृतस्य पुत्रा आ ये धामानि दिव्यानि तस्थुः
हे शकट द्वय! प्राचीन समय में उत्पन्न मंत्र का उच्चारण करके और सोमादि को लादकर पत्नी शीला के अन्त में आप दोनों को ले जाता हूँ। स्तोता की आहुति के समान मेरा स्तोत्र वाक्य देवों के पास जावे। जो देवता व अमर पुत्र दिव्य धाम में रहते हैं, वे सब श्रवण करें।[ऋग्वेद 10.13.1]
Hey Shakat-Cart duo! I recite the ancient Mantr, load you with Som etc. and take them to wife Sheela. Take my words-Strotr to the demigods-deities like the oblations of the Stota. Demigods and immortal sons in divine abodes should listen-respond to me.
यमेइव यतमाने यदैतं प्र वां भरन्मानुषा देवयन्तः।
आ सीदतं स्वमु लोकं विदाने स्वासस्थे भवतमिन्दवे नः॥
जब आप जुड़वे के समान जाते हैं, तब देव पूजक मनुष्य आपके ऊपर भरपूर होम द्रव्य लादते हैं। आप लोग अपने स्थान पर जाकर रहें। हमारे सोम के लिए शोभन स्थान ग्रहण करें।[ऋग्वेद 10.13.2]
When you go like twins-siblings, the humans worshipping deities load you with materials related with Hawan. You should go to your residence. Occupy the beautiful place for our Som.
पञ्च पदानि रुपो अन्वरोहं चतुष्पदीमन्वेमि व्रतेन।
अक्षरेण प्रति मिम एतामृतस्य नाभावधि सं पुनामि
यज्ञ के पाँच (धान, सोम, पशु, पुरोडाश और घृत) उपकरण है, यथायोग्य उनको रखता हूँ। यथा नियम चार त्रिष्टुवादि छन्दों का प्रयोग करता हूँ। ओङ्कार का उच्चारण करके वर्तमान कार्य को सम्पन्न करता हूँ। यज्ञ की नाभि स्वरूप वेदी पर मैं सोम का संशोधन करता हूँ।[ऋग्वेद 10.13.3]
I properly place five Yagy related goods viz paddy-rice, Som, animals, Purodas-Pudding and Ghee. I use the four Chhand viz. Trishtup etc. Recite Om and accomplish the present-current endeavours. I sanctify Som  at the Yagy Vedi. 
देवेभ्यः कमवृणीत मृत्युं प्रजायै कममृतं नावृणीत।
बृहस्पतिं यज्ञमकृण्वत ऋषिं प्रियां यमस्तन्वं१ प्रारिरेचीत्
देवों में से किसे मृत्यु भवन में भेजा जाय? प्रजा में से किसे अमर किया जाय? यज्ञ कर्ता लोग मंत्रपूत यज्ञ का अनुष्ठान करते हैं, जिससे यम हमारे (याजकों के) शरीर को मृत्य मुख में नहीं भेजते।[ऋग्वेद 10.13.4]
Which Deity should be sent to the abode of Yam Dev! From amongest the populace, who has to be granted immortality? Yagy performers organise Mantr Poot Yagy so that Yam Dev do not forward our bodies to death.
सप्त क्षरन्ति शिशवे मरुत्वते पित्रे पुत्रासो अप्यवीवतन्नृतम्।
उभे इदस्योभयस्य राजत उभे यतेते उभयस्य पुष्यतः
स्तोता लोग पितृ स्वरूप और प्रशंसनीय सोम देव के लिए सातों छन्दों का उच्चारण करते है। पुत्र स्वरूप पुरोहित लोग स्तुति करते हैं। दोनों शकट देव और मनुष्य, दोनों के लिए दीप्ति प्राप्त करते हैं, ये दोनों अपने तेज से देवगणों और मनुष्यों को परिपुष्ट करते हैं।[ऋग्वेद 10.13.5]
The Stotas recite the seven Chhand for appreciable Som Dev who is like father. Both Shakat Dev (Deity of Carts-vehicles) and humans obtain radiance. The Cart duo nourish the demigods deities & humans.(29.09.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (14) :: ऋषि :- वैवस्वत, यम; देवता :- यम, लिंगोक्त या पितर श्वानो, अंगिर, पित्रथर्व, भृगु, सोमा; छन्द :- त्रिष्टुप्, अनुष्टुप्, बृहती।
परेयिवांसं प्रवतो महीरनु बहुभ्यः पन्थामनुपस्पशानम्।
वैवस्वतं संगमनं जनानां यमं राजानं हविषा दुवस्य
हे अन्तःकरण व यजमान! आप पितरों के स्वामी यम की पुरोडाश आदि के द्वारा परिचर्चा करें। यम सत्य कर्मानुष्ठाताओं को सुख के देश में ले जाते हैं, वे अनेकों का मार्ग परिष्कृत करते है और उनके पास ही समस्त मानव समुदाय जाता है।[ऋग्वेद 10.14.1]
Hey innerself & host! Serve Yam Dev with Purodas, the lord of Manes. Yam Raj takes the truthful to the abodes having pleasure-comforts. Humans too go to to him through sanctified routes.
यमो नो गातुं प्रथमो विवेद नैषा गव्यूतिरपभर्तवा उ।
यत्रा नः पूर्वे पितरः परेयुरेना जज्ञानाः पथ्या ३ अनु स्वाः
सब में मुख्य यम हमारे शुभाशुभ को जानते हैं। यम के मार्ग का कोई विनाश नहीं कर सकता। जिस मार्ग से हमारे पूर्वज गये हैं, उसी मार्ग से अपने-अपने कर्मानुसार समस्त जीव जायेंगे।[ऋग्वेद 10.14.2]
Senior to all Yam Raj knows our sins & virtues. No one can destroy the routes created by Yam. The routes followed our ancestors have to be adopted by all organism according to their deeds.
मातली कव्यैर्यमो अङ्गिरोभिबृहस्पतिर्ऋकभिर्वावृधानः।
यांश्च देवा वावृधुर्वे च देवान्त्स्वाहान्ये स्वधयान्ये मदन्ति
अपने सारथि (मातली) के प्रभु इन्द्र देव कव्य वाले पितरों की सहायता से बढ़ते हैं। यम अङ्गिरा नामक पितरों की सहायता से बढ़ते हैं और वृहस्पति ऋक्व नामक पितरों की सहायता से बढ़ते हैं। जो देवों की संवर्द्धना करते है और जिनकी संवर्द्धना देवता करते हैं, वे सब बढ़ते है, कोई स्वाहा के द्वारा और कोई स्वधा के द्वारा प्रसन्न होते हैं।[ऋग्वेद 10.14.3]
Indr Dev, lord of his charioteer Matli moves towards the Manes of Kavy or help. Yam grows with the help of the Manes of Angiras; Brahaspati grows due to the Pitr-Manes called Rikv. Those who nourish the Pitr are grown by demigods-deities. They grow in all direction. Some become happy with Swaha and others by Swadha.
इमं यम प्रस्तरमा हि सीदाङ्गिरोभिः पितृभिः संविदानः।
आ त्वा मन्त्राः कविशस्ता वहन्त्वेना राजन् हविषा मादयस्व
हे यम देव! अङ्गिरा नामक पितरों के साथ इस विस्तृत यज्ञविशेष में आकर बैठें। ऋत्विकों के मंत्र आपका आवाहन करते हैं। हे राजन्! इस हवि से संतुष्ट होकर याजक को प्रसन्न करें।[ऋग्वेद 10.14.4]
Hey Yam Dev! Come and sit with Pitr named Angira in the specific Yagy. Mantrs of Ritviz invoke you. Hey lord! Become happy with the oblations of the Ritviz-Yagyik.
  अङ्गिरोभिरा गहि यज्ञियेभिर्यम वैरूपैरिह मादयस्व।
विवस्वन्तं हुवे यः पिता तेऽस्मिन् यज्ञे बर्हिष्या निषद्य
हे यम देव! नाना रूपों वाले याज्ञिक अङ्गिरा लोगों के साथ पधारें और इस यज्ञ में याजक को प्रसन्न करें। आपके विवस्वान् नामक पिता को मैं इस यज्ञ में बुलाता हूँ, वह कुशों पर बैठकर यजमान को प्रसन्न करें।[ऋग्वेद 10.14.5]
Hey Yam Dev! Yagyik in various forms come with Angira and entertain the Ritviz. I invite your father named Vivsvan in the Yagy. Let him occupy the Kush Mates and please the Ritviz.
अङ्गिरसो नः पितरो नवग्वा अथर्वाणो भृगवः सोम्यासः।
तेषां वयं सुमतौ यज्ञियानामपि भद्रे सौमनसे स्याम
अङ्गिरा, अथर्वा और भृगु नामक पितृगण अभी-अभी पधारे हैं। वे सोम के अधिकारी हैं। यज्ञ के योग्य उन पितरों की अनुग्रह बुद्धि में हम रहें। हम उनकी प्रसन्नता प्राप्त कर कल्याणमार्गी बनें।[ऋग्वेद 10.14.6]
Pitr Gan named Angira, Athrva and Bhragu have come just now. They deserve Somras. Let the obliging mind of the Pitr attached with us. We should seek their happiness and follow the path to welfare.
प्रेहि प्रेहि पथिभिः पूर्येभिर्यत्रा नः पूर्वे पितरः परेयुः।
उभा राजाना स्वधया मदन्ता यमं पश्यासि वरुणं च देवम्
जहाँ हमारे प्राचीन पितामह आदि गए हैं, उसी प्राचीन मार्ग से, हे (मृत) पिता! जावें। स्वधा (अमृतान्न) से प्रहृष्टमना राजा यमदेव और वरुणदेव का दर्शन करें।[ऋग्वेद 10.14.7]
प्रहृष्ट :: अत्यंत प्रसन्न, आह्लादित, उठा-खड़ा हुआ जैसे रोम। प्रहष्टाचित्त, प्रहृष्टमना, आनंदित, प्रफुल्ल, प्रह्वृष्टमुख-प्रहृष्टवदन। प्रहृष्ट रूप-जिसे देखने से प्रसन्नता हो, जो प्रसन्न दिखाई दे। प्रहृष्टरोमा-जिसके बाल, रोएँ आदि खड़े हों।
The route-path followed by our ancient grand parents should be followed by our dead-deceased father. Let us see Yam Dev & Varun Dev delighted by Swadha.
सं गच्छस्व पितृभिः सं यमेनेष्टापूर्तेन परमे व्योमन्।
हित्वायावद्यं पुनरस्तमेहि सं गच्छस्व तन्वा सुवर्चाः
हे पिता! अत्कृष्ट स्वर्ग में अपने पितरों के साथ संयुक्त हों। साथ ही अपने धर्मानुष्ठान के फलों से भी मिलें। पाप कर्मों के प्रभाव से मुक्त होकर पुनः गृह में प्रविष्ट हों और तेजस्वी देवरूप को प्राप्त करें।[ऋग्वेद 10.14.8]
Hey father! Join your Manes-Pitr in the heavens. Get the reward of virtuous deeds. Get rid of the sins and enter the house again attaining majestic divine form.
अपेत वीत वि च सर्पतातोऽस्मा एतं पितरो लोकमक्रन्।
अहोभिरद्भिरक्तुभिर्व्यक्तं यमो ददात्यवसानमस्मै
श्मशान घाट पर स्थित पिशाचादि इस स्थान से चले जाएँ, हट जाएँ, दूर हो जाएँ। पितरों ने इस मृत याजक के लिए इस स्थान को बनाया है। यह स्थान दिवसों, जल द्वारा और रात्रि के द्वारा शोभित है। यमदेव ने इस स्थान को मृत व्यक्ति के लिए निहित किया है।[ऋग्वेद 10.14.9]
पिशाच :: शैतान, दानव, शवभोजी प्रेत; vampire, ghoul, Beelzebub, boggard
प्रेत, पिशाचपिशाचों का रिश्ता ईसाई मान्यताओं के वैम्पायर से है। पिशाच उन जीवों को माना गया है जो इंसानों का खून पीकर और उनका मांस खाकर जिंदा रहते हैं। वैसे तो उन्हें मरा हुआ ही माना जाता है, लेकिन यह भी एक मान्यता है कि पिशाच भी इंसानों की तरह एक योनी है। ये लोग जिंदा थे, अपने परिवारों के साथ रहते थे और शिकार करने के लिए जंगलों में जाते थे।
जो व्यक्ति भूखा, प्यासा, संभोगसुख से विरक्त, राग, क्रोध, द्वेष, लोभ, वासना आदि इच्छाएं और भावनाएं लेकर मरा है अवश्य ही वह भूत बनकर भटकता है और जो व्यक्ति दुर्घटना, हत्या, आत्महत्या आदि से मरा है, वह भी भू‍त बनकर भटकता है।
गति और कर्म अनुसार मरने वाले लोगों का विभाजन :- भूत, प्रेत, पिशाच, कूष्मांडा, ब्रह्मराक्षस, वेताल और क्षेत्रपाल। उक्त सभी के उप भाग भी होते हैं। 18 प्रकार के प्रेत होते हैं। भूत सबसे शुरुआती पद है या कहें कि जब कोई आम व्यक्ति मरता है तो सर्वप्रथम भूत ही बनता है।
The Pishach present over the cremation ground should leave it. It has been created by the Pitr for the deceased Ritviz-Yagyik. This place is glorified by the day, water and night. Yam Dev has fixed this spot for the dead.
अति द्रव सारमेयौ श्वानौ चतुरक्षौ शबलौ साधुना पथा।
अथा पितृन्त्सुविदत्राँ उपेहि यमेन ये सधमादं मदन्ति
हे मृत पिता! चार आँखों और विचित्र वर्ण वाले ये दो श्वान हैं। इनके पास से शीघ्र चले जाएँ। जो सुविज्ञ पितः यम के साथ सदैव आमोद के साथ रहते हैं, उत्तम मार्ग से उन्हीं के पास जावें।[ऋग्वेद 10.14.10]
Hey deceased father! Here are two dogs with four eyes and amazing colours. Move to them fast over the best path, to the enlightened who reside with Yam Dev comfortably. 
यौ ते श्वानौ यम रक्षितारौ चतुरक्षौ पथिरक्षी नृचक्षसौ।
ताभ्यामेनं परि देहि राजन्त्स्वस्ति चास्मा अनमीरं च घेहि
हे यम देव! आपके गृह के रक्षक, चार आँखों वाले, मार्ग के रक्षक और मनुष्यों के द्वारा प्रशंसनीय जो दो श्वान हैं, उनसे इस मृत व्यक्ति की रक्षा करें। हे राजन्! इसे कल्याण का भागी और नीरोगी बनावें।[ऋग्वेद 10.14.11]
Hey Yam Dev! Protect deceased from the four eyed dogs protector of your abode and the path, appreciated by the humans. Hey lord! Let him enjoy welfare and freedom from ailments.
उरूणसावसुतृपा उदुम्बलौ यमस्य दूतौ चरतो जनाँ अनु।
तावस्मभ्यं दृशये सूर्याय पुनर्दातामसुमद्येह भद्रम्
लम्बी नाकों वाले, दूसरों का प्राणभक्षण करके तृप्त होने वाले, मनुष्यों को लक्ष्य करके भ्रमण करने वाले और अधिक बल वाले जो दो यमदूत (श्वान) हैं, वे आज यहाँ हमें, सूर्य देव के दर्शन के लिए इस स्थान पर कल्याणकारी प्राण दान देने की कृपा करें।[ऋग्वेद 10.14.12]
The two Yam Doot-dogs, possessing excessive strength, with long nose, satisfied by eating others life force, roaming, targeting the humans, should let us survive till the rise of Sun at this virtuous place.
यमाय सौमं सुनुत यमाय जुहुता हविः। यमं ह यज्ञो गच्छत्यग्निदूतो अरकृतः
हे ऋत्विकों! यम के लिए सोमरस प्रस्तुत करें। यमदेव के लिए हवि का हवन करें। जिस यज्ञ के दूत अग्नि देव है और जिसे नाना द्रव्यों से समन्वित किया गया है, वह यज्ञ यम की ओर जाता है।[ऋग्वेद 10.14.13]
Hey Ritviz! Offer Somras to Yam Dev. Perform Hawan with offerings for Yam Raj. The Yagy in which Agni Dev is the messenger-ambassador having several materials, goes to Yam.
यमाय घृतवद्धविर्जुहोत प्र च तिष्ठत। स नो देवेष्वा यमद्दीर्घमायुः प्र जीवसे
हे ऋत्विकों! आप यमदे व के लिए घृत से युक्त हवि का हवन करें और यम देव की सेवा करें। देवों के मध्य यम देव हमारे दीर्घ जीवन के लिए लम्बी आयु प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.14.14]
Hey Ritviz! Perform Hawan for Yam Dev with Ghee and serve him. Let Yam Dev grant us long life amongest the demigods-deities.
यमाय मधुमत्तमं राज्ञे हव्यं जुहोतन।
इदं नम ऋषिभ्यः पूर्वजेभ्यः पूर्वेभ्यः पथिकृद्भ्यः
हे ऋत्विकों! राजा यम के लिए अत्यन्त मिष्ट हवि का हवन करें। हमसे पहले शोभन मार्ग बनाने वाले ऋत्विकों ने हमें सन्मार्ग की प्रेरणा दी है, उनके लिए हम नमन करते हैं।[ऋग्वेद 10.14.15]
Hey Ritviz! Perform Hawan for Yam Raj with extremely sweet offerings. We salute-bow to the Ritviz following glorious path who inspired us for the pious route.
त्रिकद्रुकेभिः पतति षळुरिकद्धृबृहत्।
त्रिष्टुब्गायत्री छन्दांसि सर्वा ता यम आहिता
यमराज त्रिकद्रुक (ज्योति, गौ और आयु) नामक यज्ञ के अधिकारी हैं। यम छः स्थानों (द्युलोक, भूलोक, जल, उद्भिज्ज, उर्क और सूनृत) में निवास करते हैं। वे विराट् संसार में भमण करते हैं। त्रिष्टुप् गायत्री आदि छन्दों में यमदेव की स्तुति की जाती है।[ऋग्वेद 10.14.16]
Yam Raj is entitled to Trikdruk Yagy (Majesty, cows and longevity). Yam Raj reside at three places :- heavens, earth, water, Udbhijj, Urk and Sunrat. He roam in the vast universe. Trishtup Gayatri and other Chhands-Meters illustrate the worship of Yam Dev.(30.09.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (15) :: ऋषि :- शंखो यामायन; देवता :- पितर; छन्द :- त्रिष्टुप्, जगती।
उदीरतामवर उत्परास उन्मध्यमाः पितरः सोम्यासः।
असुं य ईयुरवृका ऋतज्ञास्ते नोऽवन्तु पितरो हवेषु
उत्तम, मध्यम और अघम आदि तीन श्रेणियों के पितर लोग हमारे प्रति अनुग्रह युक्त होकर होमीय द्रव्य को ग्रहण करें। जो पितर अहिंसक होकर और हमारे धर्मानुष्ठान के प्रति दृष्टि रखकर हमारी प्राण रक्षा करने के लिए आये हैं, वे यज्ञकाल में हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 10.15.1]
Let the Pitr-Manes of three categories viz excellent, average, low; should accept the goods-offerings in the Hawan, obelizing us. The non violent Pitr who have arrived to protect us during the Yagy, keep an eye over our religious endeavours.
इदं पितृभ्यो नमो अस्त्वद्य ये पूर्वासो य उपरास ईयुः।
ये पार्थिवे रजस्या निषत्ता ये वा नूनं सुवृजनासु विक्षु
जो पितर (पितामहादि) आगे और जो (कनिष्ठ भ्राता आदि) पीछे मरे हैं, जो पृथ्वी पर आये हैं, अथवा जो भाग्यशाली लोगों के बीच हैं, उन सबको आज यह नमस्कार है।[ऋग्वेद 10.15.2]
We salute the Pitr-elders and the youngers who died later have come to the earth or those who are present amongest the lucky people.
आहं पितृन्त्सुविदत्राँ अवित्सि नपातं च विक्रमणं च विष्णोः।
बर्हिषदो ये स्वधया सुतस्य भजन्त पित्वस्त इहागमिष्ठाः॥
पितर लोग भली-भाँति परिचित हैं, मैंने उनको पाया है, इस यज्ञ के सम्पादन का उपाय भी मैंने पाया है। जो पितर कुशों पर बैठकर हव्य के साथ सोमरस को ग्रहण करते हैं, वे सब (यहाँ) पधारे हैं।[ऋग्वेद 10.15.3]
Pitr are well acquainted, I have found them and I have got the method to perform the Yagy. The Pitr who accept the offerings along with Somras should come and occupy Kush Mates.
बर्हिषदः पितर ऊत्य १ र्वागिमा वो हव्या चकृमा जुषध्वम्।
त आ गतावस शंतमेनाथा नः शं योररपो दधात
हे कुशों पर बैठने वाले पितरों! इस समय हमें आश्रय प्रदान करें। आप लोगों के लिए ये समस्त द्रव्य प्रस्तुत है, इनका भोग करें। इस समय आवें। हमारी रक्षा करें और हमारा उत्तम मङ्गल करें। हमें कल्याणभागी बनावें। हमें अकल्याण और पाप से दूर करें।[ऋग्वेद 10.15.4]
Hey Manes occupying Kush Mates! Grant us asylum now. All these materials-offerings are presented before you for consumption. Come & protect us. Grant us excellent benefits. Look to our welfare. Keep us off-away from us non welfare and sins.
उपहूताः पितरः सोम्यासो बर्हिष्येषु निधिषु प्रियेषु।
त आ गमन्तु त इह श्रुत्वन्वधि ब्रुवन्तु तेऽवन्त्वस्मान्
कुशों के ऊपर ये समस्त मनोहर द्रव्य रखे हुए हैं। इनका और सोमरस का भोग करने के लिए पितर लोगों को आवाहित किया गया हैं। वे (यहाँ) पधारें, हमारी स्तुति को ग्रहण करें, प्रसन्नता प्रकट करें और हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 10.15.5]
Attractive offerings are kept over the Kush Mates. Manes have been invoked to accept the offerings & Somras. Let them come and accept our Stutis, express pleasure and protect us.
आच्या जानु दक्षिणतो निषद्येमं यज्ञमभि गृणीत विश्वे।
मा हिंसिष्ट पितरः केन चिन्नो यद्व आगः पुरुषता कराम
हे पितरों! आप लोग दक्षिण की ओर घुटने टेककर पृथ्वी पर बैठते हुए इस यज्ञ की प्रशंसा करें। हम मनुष्य हैं; इसलिए हमसे अपराध होना संभव है। परन्तु उसके लिए हमारी हिंसा न करें।[ऋग्वेद 10.15.6]
Hey Pitr Gan! Sit over the earth-ground placing your knees down towards South and appreciate the Yagy. We are humans, hence there is a possibility of mistake. Do not punish us for that.
आसीनासो अरुणीनामुपस्थे रयिं धत्त दाशुषे मर्त्याय।
पुत्रेभ्यः पितरस्तस्य वस्वः प्र यच्छत त इहोर्जं दधात
लोहित शिखा के पास बैठने वाले इन दाताओं को धन प्रदान करें। हे पितरो! उनके पितरों को धन दें और उन्हें इस यज्ञ में उत्साहित करें।[ऋग्वेद 10.15.7]
Grant money to these donors with red cliff-hair lock. Hey Manes! Grant money to their Pitr and encourage them for the Yagy.
ये नः पूर्वे पितरः सोम्यासोऽनूहिरे सोमपीथं वसिष्ठाः।
तेभिर्यमः संरराणो हवींष्युशन्त्रुशद्धिः प्रतिकाममत्तु
जिन सोमपायी प्राचीन पितरों ने उत्तम परिच्छद का धारण करके, यथानियम, सोमरस का पान किया था, वे भी हवि की अभिलाषा करते हैं, यमदेव भी कामना करते हैं। उनके साथ यमदेव सुखी होकर इन होमीय द्रव्यों का यथेष्ट रूप से भोजन करते हैं।[ऋग्वेद 10.15.8]
परिच्छद :: कपड़ा जो किसी वस्तु को ढक या छिपा सके, वस्त्र, पहनावा या पोशाक, राजचिह्न, cloth, royalty sign.
Eternal Pitr-Manes who drink Somras wear the clothing as per rule and expect offerings along with Yam Dev. Yam Dev become happy and enjoy-eat the offerings.
ये तातृषुर्देवत्रा जेहमाना होत्राविदः स्तोमतष्टासो अर्कैः।
आग्ने याहि सुविदत्रेभिरर्वाङ् सत्यैः कव्यैः पितृभिर्घर्मसद्भिः
हे अग्नि देव! जो पितरों का हवन करना जानते थे और अनेक ऋचाओं की रचना करके स्तोत्र प्रस्तुत करते थे ओर जो अपने कर्म के प्रभाव से इस समय देवत्व की प्राप्ति कर चुके है, यदि वे क्षुधा तृष्णा वाले हों तो उन्हें लेकर हमारे पास आवें। वे विशेष परिचित हैं। वे यज्ञ में बैठते हैं। उन पितरों के लिए यह उत्कृष्ट हवि है।[ऋग्वेद 10.15.9]
Hey Agni Dev! The Pitr who knew how to perform Yagy, composed verses-Richa and presented them as Strotr have attained divinity as a result of these deeds. If they feel hungry, let them come to us. They are special acquaintances. They sit in the Yagy. This is an excellent offering for these Manes.
ये सत्यासो हविरदो हविष्पा इन्द्रेण देवैः सरथं दधानाः।
आग्ने याहि सहस्त्रं देववन्दैः परैः पूर्वैः पितृभिर्धर्मसद्धिः
हे अग्नि देव! जो साधु स्वभाव पितर लोग देवगणों के साथ एकत्रित होकर हवि का भक्षण और पान करते हैं और इन्द्र देव के साथ एक रथ पर आरूढ़ होते हैं, उन सब देवाराधक, यज्ञ के अनुष्ठाता, प्राचीन और आधुनिक पितरों के साथ पधारें।[ऋग्वेद 10.15.10]
Hey Agni Dev! Sagely Manes gather with the demigods-deities and consume the offerings and drink Somras, ride the charoite with Indr Dev, they all are worshipers of deities and should come with the eternal & recent Pitr-Manes and those organising the Yagy.
अग्निष्वात्ताः पितर एह गच्छत सदः सदः सदत सुप्रणीतयः।
अत्ता हवींषि प्रयतानि बर्हिष्यथा रयिं सर्ववीरं दधातन
अग्नि देव के द्वारा स्वादित (अग्निष्वात्त नामक) हे पितरों! यहाँ आवें और एक-एक का सब लोग अपने-अपने आसन पर बैठें। हे अभिपूजित पितरो! कुशों पर परोसे हुए शुद्ध हवि का भक्षण करें तथा संतानादि से युक्त ऐश्वर्य एवं साधन हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.15.11]
Tasted by Agni Dev (Agnishvatt Pitr), hey Pitr! Come here and occupy your own-separate seats. Hey worshiped Pitr! Eat the pure offerings served over the Kush Mates. Grant us progeny, grandeur and means.
त्वमग्न ईळितो जातवेदोऽवाड्ढव्यानि सुरभीणि कृत्वी।
प्रादाः पितृभ्यः स्वधया ते अक्षन्नद्धि त्वं देव प्रयता हवींषि
हे समस्त संसार के ज्ञाता अग्नि देव! हमने आपकी स्तुति की है। आपने हवि को सुगन्धित करके पितरों को दे दिया है। पितर लोग "स्वधा" के साथ दिये गये हवि का भक्षण करें। हे देव! आप भी परिश्रम से प्रस्तुत किये गये हवि का भक्षण करें।[ऋग्वेद 10.15.12]
Hey Agni Dev, knowing the whole world! We have worshipped you. You have offered the incenses to the Manes. Let the Pitr Gan eat the offerings with Swadha-wood. Hey Deity! You should also eat the offerings delivered with efforts.
ये चेह पितरो ये च नेह यांश्च विद्म याँ उ च न प्रविद्म।
त्वं वेत्थ यति ते जातवेदः स्वधाभिर्यज्ञं सुकृतं जुषस्व
हे ज्ञानी अग्नि देव! यहाँ जो पितर आए हैं और जो नहीं आए हैं, जिन पितरों को हम जानते हैं और जिन्हें हम नहीं जानते हैं, उन सबको आप जानते हैं। हे पितरों! स्वधा के साथ इस सुसम्पन्न यज्ञ का भोग करें।[ऋग्वेद 10.15.13]
Hey enlightened Agni Dev! You know all Pitr known or unknows to us, those who have arrived or are absent. Hey Pitr Gan! Enjoy-consume the Yagy accomplished auspiciously with Swadha.
ये अग्निदग्धा य अनग्निदग्धा मध्ये दिवः स्वधया मादयन्ते।
तेभिः स्वराळसुनीतिमेतां यथावशं तन्वं कल्पयस्व
हे स्वयं प्रकाश अग्नि देव! जो पितर से जलाये गये हैं और जो नहीं जलाये गये हैं, वे सब स्वर्ग में स्वधा (हवीरूप अंन्न) के साथ आनन्द करते हैं। उनके साथ एकत्रित होकर, आप हमारे पितरों के प्राणाधार शरीर को यथाभिलाषी देवशरीर बनावें।[ऋग्वेद 10.15.14]
Hey self ignited-lighted Agni Dev! The Pitr who were cremated or were nor cremated, should enjoy Swadha in the heavens. Join them and convert their bodies into divine forms.(01.10.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (16) :: ऋषि :- दमनो यामायन; देवता :- अग्नि; छन्द :- त्रिष्टुप्, अनुष्टुप्।
मैनमग्ने वि दहो माभि शोचो मास्य त्वचं चिक्षिपो मा शरीरम्।
यदा  शृतं कृणवो जातवेदो ऽ थेमेनं प्र हिणुतात्पितृभ्यः
हे अग्नि देव! मृत को सर्वाशतः भस्म न करना। इसे क्लेश न देना। इसके शरीर अर्थात् चर्म को छिन्न-भिन्न न करना। हे ज्ञानी अग्नि देव! जिस समय आपकी ज्वाला से इसका शरीर, भली-भाँति, पकता है, उसी समय इसे पितरों के पास भेज देना।[ऋग्वेद 10.16.1]
Hey Agni Dev! Do not turn the dead into ashes completely. Do not torture it. Do not tear its skin. Hey enlightened Agni Dev! Send him to his Pitr-Manes when its backed properly.
शृतं यदा करसि जातवेदो ऽ थेमेनं परि दत्तात्पितृभ्यः।
यदा गच्छात्यसुनीतिमेतामथा देवानां वशनीर्भवाति
हे अग्नि देव! जिस समय इसके शरीर को भली-भाँति जलाना, उसी समय पितरों के पास इसे भेजना। यह जब दोबारा सजीवता प्राप्त करेगा तभी देवों के वश में रहेगा।[ऋग्वेद 10.16.2]
Hey Agni Dev! Roast his body properly and send him to his Pitr-Manes. He will remain under the control of demigods-deities when he acquire life again.
सूर्यं चक्षुर्गच्छतु वातमात्मा द्यां च गच्छ पृथिवीं च धर्मणा।
अपो वा गच्छ यदि तत्र ते हितमोषधीषु प्रति तिष्ठा शरीरैः
हे मृत व्यक्ति! आपका नेत्र सूर्य देव के पास जाए और श्वास वायु में जाए। तुम अपने पुण्य फल से द्युलोक और पृथ्वी लोक में जाओ। यदि जल में जाना चाहते हो तो जल में ही जाओ। आपके शरीर का अवयव वनस्पतियों में रहे।[ऋग्वेद 10.16.3]
Hey diseased! Let your eyes move to Sury Dev and your breaths merge with Vayu Dev. By virtue of your righteous acts you should move to heavens & the earth. If you wish to remain in water, stay there. Let the elements-components of your body remain in vegetation.
अजो भागस्तपसा तं तपस्व तं ते शोचिस्तपतु तं ते अर्चिः।
यास्ते शिवास्तन्वो जातवेदस्ताभिर्वहैनं सुकृतामु लोकम्
इस व्यक्ति का जो अंश जन्म रहित है, सदा रहने वाला है, हे अग्नि देव! आप उसी अंश को अपने ताप से उत्तप्त करें। आपकी उज्ज्वलता आपकी ज्वाला उसे उत्तप्त करे। हे ज्ञानी अग्नि देव! आपकी जो मंगलमयी मूर्तियाँ हैं, उनके द्वारा इस व्यक्ति को पुण्यवान् लोगों के देश में ले आवें।[ऋग्वेद 10.16.4]
उत्तप्त :: अत्यधिक गर्म, ख़ूब तपा हुआ, क्लेशित, पीड़ित, संतप्त; क्रोधित, कुपित, दुःखी; candescent.
Component of this person's body free from rebirth, has to survive for ever, hey Agni Dev! You heat that component with your warmth. Let your brightness & flames candescent him. Hey enlightened Agni Dev! Let your beneficial forms take him to the abodes-land of the virtuous-pious.
अव सृज पुनरग्ने पितृभ्यो यस्त आहुतश्चरति स्वधाभिः।
आयुर्वसान उप वेतु शेषः सं गच्छतां तन्वा जातवेदः
हे ज्ञानी अग्नि देव! जो आपका आहुति स्वरूप होकर यज्ञीय द्रव्य का भोजन करता है, उसे पितरों के पास भेजें। इसका जो भाग अवशिष्ट है, वह जीवन पाकर उठ जाए अर्थात् वह फिर शरीर को प्राप्त करे।[ऋग्वेद 10.16.5]
Hey enlightened Agni Dev! One who become like your offerings-oblations and eat the Yagy materials, be sent to the Manes. Let his remains get life and he should get up i.e., get a body again.
यत्ते कृष्णः शकुन आतुतोद पिपीलः सर्प उत वा श्वापदः।
अग्निष्टद्विश्वादगदं कृणोतु सोमश्च यो ब्राह्मणाँ आविवेश
हे मृत व्यक्ति! आपके शरीर के जिस अंश को काक (कौवे) ने पीड़ा पहुँचाई है अथवा चीटी, साँप वा हिंस्त्र जीव ने जिस अंश को व्यथा दी है, उसे सर्वभुक अग्नि देव नीरोग (व्यथा शून्य) करें। आपके शरीर के अन्दर जो पोषक रसरूप सोम विद्यमान है, वह भी उसे कष्ट मुक्त करे।[ऋग्वेद 10.16.6]
Hey diseased! Let  Agni Dev eating every thing should make the component-organ of your body free from ailments, harmed by the crow, ants, snake or violent animals. Som present in your body for nourishing should also be made painless.
अग्नेर्वर्म परि गोभिर्व्ययस्व सं प्रोणुष्व पीवसा मेदसा च।
नेत्त्वा धृष्णुर्हरसा जर्हृषाणो दधृग्विधक्ष्यन्पर्यङ्ख्याते
हे मृत पुरुष! तुम गोचर्म के साथ अग्नि देव की शिखा स्वरूप कवच को धारण करें। तुम अपने मेद और माँस से आच्छादित होओ। ऐसा होने पर बलपूर्वक और अहंकार के साथ तुमको जलाने को तैयार हुए दुर्द्धर्ष अग्नि देव आपके सर्वांश में व्याप्त नहीं हो सकते।[ऋग्वेद 10.16.7]
Hey dead person! Wear the shield formed by cow's skin and peak of flame. You should be covered with your fat and meat. On doing this furious Agni Dev forcefully with ego, will will not be able to pervade your whole body.
इममग्ने चमसं मा वि जिह्वरः प्रियो देवानामुत सोम्यानाम्।
एष यश्चमसो देवपानस्तस्मिन्देवा अमृता मादयन्ते
हे अग्नि देव! इस चमस को विचलित न करना। यह सोमपायी देवगणों को प्रसन्न करता है। देवगणों के पान करने के लिए जो चमस है, उसे देखकर अमर देवता प्रसन्न होते हैं।[ऋग्वेद 10.16.8]
Hey Agni Dev! Do not disturb this Chamas-spoon. It makes happy the demigods-deities who drink Somras. Immortal deities become happy on seeing this Chamas.
क्रव्यादमग्निं प्र हिणोमि दूरं यमराज्ञो गच्छतु रिप्रवाहः।
इहैवायमितरो जातवेदा देवेभ्यो हव्यं वहतु प्रजानन्
मांस भोजनकर्ता (तीव्र) अग्नि देव को मैं दूर करता हूँ। यह अश्रद्धेय वस्तु का वहन करने वाले हैं। जिन लोगों के राजा यम हैं, उन्हीं के पास अग्नि देव जावें। यहाँ भी एक अग्निदेव हैं। इसी विचार के साथ देवगणों के पास हवि ले जावें।[ऋग्वेद 10.16.9]
I repel meat eating Agni Dev. He carries the Yagy materials. Only those people who are ruled by Yam Raj should go to Agni Dev. Agni Dev is present, here also. Take oblations to demigods with this idea.
यो अग्निः क्रव्यात्प्रविवेश वो गृहमिमं पश्यन्नितरं जातवेदसम्।
तं हरामि पितृयज्ञाय देवं स घर्ममिन्वात्परमे सधस्थे
मांस भोजन कर्ता और चिता वाले अग्नि देव आपके गृह में वास करते हैं, उन्हें मैं दूर करता हूँ। दूसरे ज्ञानी अग्नि देव को मैं पितरों को यज्ञ देने के लिए ग्रहण करता हूँ। ये ही यज्ञ को लेकर परम धाम में गमन करें।[ऋग्वेद 10.16.10]
I repel Agni Dev away, who is a meat eater, having funeral pyre residing in your house. I accept enlightened Agni Dev to grant him to the Manes for performing Yagy. They should carry the Yagy to the Ultimate abode.
यो अग्निः क्रव्यवाहनः पितृन्यक्षदृतावृधः। प्रेदु हव्यानि वोचति देवेभ्यश्च पितृभ्य आ
जो अग्नि देव श्राद्ध के द्रव्य का वहन करते और यज्ञ की उन्नति करते हैं, वे देवगणों और पितरों की आराधना करते और उनके पास होमीय द्रव्य ले जाते हैं।[ऋग्वेद 10.16.11]
Agni Dev carries Shraddh oblations to demigods & Pitr Gan, worship them & promote Yagy. 
उशन्तस्त्वा नि धीमह्युशन्तः समिधीमहि। उशन्नुशत आ वह पितृन्हविषे अत्तवे
हे अग्नि देव! मैं आपको यत्नपूर्वक स्थापित करता हूँ और यत्नपूर्वक ही आपको प्रज्वलित करता हूँ। यज्ञाभिलाषी देवों और पितरों के पास आप यत्न पूर्वक भक्षण के लिए होमीय द्रव्य ले जाते हैं।[ऋग्वेद 10.16.12]
I establish & ignite you by making efforts. You carry the oblations-offerings of the Hawan for eating by the demigods & Manes by making efforts.
यं त्वमग्ने समदहस्तमु निर्वापया पुनः। कियाम्ब्वत्र रोहतु पाकदूर्वा व्यल्कशा
हे अग्नि देव! आपने जिसे जलाया है, उसे बुझाएँ। यहाँ कुछ जल और शाखा-प्रशाखाओं वाली दूर्वा घास उत्पन्न हो।[ऋग्वेद 10.16.13]
Hey Agni Dev! extinguish one burnet by you. Let Durva grass with multiple stems grow here with some water.
शीतिके शीतिकावति ह्लादिके ह्लादिकावति।
मण्डूक्या ३ सु सं गम इमं स्व १ ग्निं हर्षय  
हे देवी पृथ्वी! आप शीतल हो। आप पर कितने ही शीतल वनस्पति है। आप आह्वादिका हो। आप पर अनेक आह्लादक वनस्पति हैं। मेंढक की पत्नी जिससे प्रसन्न हो, ऐसी वर्षा ले आवें। अग्निदेव को प्रसन्न करें।[ऋग्वेद 10.16.14]
Hey goddess earth! You should be cold. You possess several cold vegetation. You should grant us pleasure. You possess comforting vegetation-herbs. Bring such rains which enthral-please the wife of frogs.(02.10.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (17) :: ऋषि :- देवाश्रवा यामायन; देवता :- सरण्यू, पूषा, सरस्वती, जल, सोम; छन्द :- वृहती, त्रिष्टुप, अनुष्टुप्।
त्वष्टा दुहित्रे वहतुं कृणोतीतीदं विश्वं भुवनं समेति।
यमस्य माता पर्युह्यमाना महो जाया विवस्वतो ननाश
त्वष्टा नाम के देव अपनी कन्या सरण्यू का विवाह करने वाले है; इस उपलक्ष में सारा संसार आ गया है। जिस समय यम की माता का विवाह हुआ, उस समय महान् विवस्वान् की स्त्री अदृष्ट हुई।[ऋग्वेद 10.17.1]
Twasta want to marry his daughter Saranyu, whole universe participated in the marriage. When the mother of Yam got married wife of great Vivasvan disappeared.
अपागूहन्नमृतां मर्येभ्यः कृत्वी सवर्णामददुर्विवस्वते।
उताश्विनावभरद्यत्तदासीदजहादु द्वा मिथुना सरण्यूः
अमर सरण्यू को मनुष्यों के पास छिपाया गया। सरण्यू के सदृश एक स्त्री का निर्माण करके विवस्वान् को उसे दिया गया। उस समय अश्व रुपिणी सरण्यू ने अश्विद्वय अर्थात् दो अश्वों को गर्भ में धारण किया और यमज सन्तान को उत्पन्न किया।[ऋग्वेद 10.17.2]
Immortal Saranyu was hidden from the humans. A woman like Saranyu was produced and handed over to Vivasvan. Saranyu adopted the form of a mare and wore two horses in her womb and produced twins.
पूषा त्वेतश्यावयतु प्र विद्वाननष्टपशुर्भुवनस्य गोपाः।
स त्वैतेभ्यः परि ददत्यितृभ्योऽग्निर्देवेभ्यः सुविदत्रियेभ्यः
ज्ञानी, संसार के रक्षक और अविनष्ट पशु पूषा आपको यहाँ से उत्तम लोकों में ले जावें। अग्नि देव आपको धन देने वाले देवगणों और पितरों के पास ले जावें।[ऋग्वेद 10.17.3]
विवेकशील पूषण, जिनके पशु कभी नष्ट नहीं होते, जो समस्त प्राणियों के रक्षक हैं, वे तुम्हें यहाँ से (उत्तम लोक में) ले जाएँ; वे तुम्हें इन पितरों को दे दें तथा अग्नि देव तुम्हें कल्याणकारी देवताओं को दे दें। 
Let enlightened, protector of the universe, Pusha, who's animals are never lost, take you to the excellent abodes. Let Agni Dev hand over you to the Pitr-Manes & demigods-deities.
आयुर्विश्वायुः परि पासति त्वा पूषा त्वा पातु प्रपथे पुरस्तात्।
यत्रासते सुकृतो यत्र ते ययुस्तत्र त्वा देवः सविता दधातु
समस्त संसार के जीवन पूषा देव आपके जीवन की रक्षा करें। वे आपके गन्तव्य स्थान के अग्र भाग में है। वे आपकी रक्षा करें। जहाँ पुण्यवान् हैं, जहाँ वे गये हैं, उसी स्थान पर सविता (पूषा) आपको ले जावें।[ऋग्वेद 10.17.4]
सर्वव्यापी वायु तुम्हारी रक्षा करें, पूषण तुम्हारी रक्षा करें, ताकि तुम श्रेष्ठ मार्ग पर पहले जाओ; दिव्य सविता तुम्हारी रक्षा करें, जहाँ पुण्यात्मा लोग रहते हैं, जहाँ वे चले गए हैं।
Let all pervading Vayu Dev and Pusha Dev protect you, so that you reach your destination. Let divine Savita Dev protect you and take to the place where the virtuous-pious people have gone.
पूषेमा आशा अनु वेद सर्वाः सो अस्माँ अभयतमेन नेषत्।
स्वस्तिदा आघृणिः सर्ववीरोऽप्रयुच्छन्पुर एतु प्रजानन्
पूषा देव समस्त दिशाएँ जानते हैं। वे हमें उसी मार्ग से ले जावें, जिसमें कोई भय न हो। वे कल्याणदाता हैं। उनकी मूर्ति आलोक वेष्टित है। उनके साथ समस्त वीर पुरुष हैं, वे हमें जानते हैं। सावधान होकर वे हमारे सामने आवें।[ऋग्वेद 10.17.5]
Pusha Dev is aware of all direction. He should take over that path over which there is no fear. His figure is covered with aura. He has the brave people with him, who knows us. Let them come to us attentively.
प्रपथे पथामजनिष्ट पूषा प्रपथे दिवः प्रपथे पृथिव्याः।
उभे अभि प्रियतमे सघस्थे आ च परा च चरति प्रजानन्
समस्त मार्गों से श्रेष्ठ मार्ग में पूषा देव ने दर्शन दिया है। उन्होंने स्वर्ग और मृत्यु लोक के श्रेष्ठ मार्ग में दर्शन दिया है। पूषा देव की जो दो प्रेयसियाँ (द्यावा-पृथ्वी) हैं और जो एक साथ रहती है, उनको पूषादेव विशेष समझ करके मनोरंजन करते हैं।[ऋग्वेद 10.17.6]
Pusha Dev has appeared over the best path. He has seen the best path in the heavens & earth. Pusha Dev has two lovers viz heavens & earth, who live together. Pusha Dev considers them important and amuse them.
सरस्वतीं देवयन्तो हवन्ते सरस्वतीमध्वरे तायमाने।
सरस्वतीं सुकृतो अह्वयन्त सरस्वती दाशुषे वार्यं दात्
जो देवों के उद्देश्य से यज्ञ करते हैं, वे देवी सरस्वती की पूजा के लिए आह्वान करते हैं। जिस समय देवता का विस्तार के साथ यज्ञ प्रारम्भ हुआ उस समय पुण्यात्माओं ने देवी सरस्वती को बुलाया। देवी सरस्वती दाता की अभिलाषा को पूर्ण करें।[ऋग्वेद 10.17.7]
Those who conduct Yagy for the demigods-deities invoke Devi Saraswati. Pious-virtuous invoked Devi Saraswati when the demigods-deities extended-joined the Yagy. Let Maa Saraswati accomplished the wishes-desires of the donors. 
सरस्वति या सरथं ययाथ स्वधाभिर्देवि पितृभिर्मदन्ती।
आसद्यास्मिन्बर्हिषि मादयस्वानमीवा इष आ धेह्यस्मे
हे देवी सरस्वती! आप पितरों के साथ एक रथ पर जावें। आप उनके साथ आह्लादपूर्वक सम्पूर्ण यज्ञीय द्रव्य का भोग करें। आवें और इस यज्ञ में आनन्द करें। हमें नीरोगी बनाते हुए अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.17.8]
Hey Devi Saraswati! You ride the charoite of the Manes-Pitr. You should enjoy the whole Yagy oblations-materials. Come and enjoy the Yagy. Make us disease free and grant us food grains.
सरस्वति यां पितरो हवन्ते दक्षिणा यज्ञमभिनक्षमाणाः।
सहस्त्रार्थमिळो अत्र भांग रायस्पोषं यजमानेषु धेहि
हे देवी सरस्वती! पितर लोग दक्षिण पार्श्व में आकर और यज्ञस्थान में विस्तीर्ण होकर आपका आवाहन करते हैं। आप यज्ञकर्ता के लिए बहुमूल्य और विलक्षण धन राशि और प्रचुर अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.17.9]
Hey Devi Saraswati! The Pitr Gan come to the South direction of the Yagy site and invoke you. Grant valuables and amazing wealth in addition to food grains to the Yagy performers.
आपो अस्मान्मातरः शुन्धयन्तु घृतेन नो घृतप्वः पुनन्तु।
विश्वं हि रिप्रं प्रवहन्ति देवीरूदिदाभ्यः शुचिरा पूत एमि
जल मातृ स्वरूप है। वह हमारा शोधन करे। जल घृत प्रवाह से प्रवाहित हो रहा है। उसी घृत के द्वारा वह हमारे मल को दूर करे। जलरूपी देवी समस्त पापों को अपने स्तोत्र में बहा ले जावें। जल में से हम स्वच्छ और पवित्र होकर आते हैं।[ऋग्वेद 10.17.10]
Water is motherly. Let it cleanse us. Water is flowing with the ghee flow. Let it cleanse us with that Ghee. Devi in the form of water should wash away our sins. Let the water make us clean and pious.
द्रप्सश्चस्कन्द प्रथमाँ अनु द्यूनिमं च योनिमनु यश्च पूर्वः।
समानं योनिमनु संचरन्तं द्रप्सं जुहोम्यनु सप्त होत्राः
द्रव्यरूप सोमरस अतीव सुन्दर और दीप्तिशील अंशु से क्षरित होते हैं। इस स्थान पर और इसके पूर्वतन स्थान पर अर्थात आधार पर सोम क्षरित होते हैं। हम सात हवनकर्ता समान रूप से आधार के मध्य में बिहार करने वाले उन द्रव्यरूप सोम का हवन करते हैं।[ऋग्वेद 10.17.11]
सोम पृथ्वी और स्वर्ग (लोक) में ऊपर उठ चुका है, इस दृश्यमान जगत में भी और जो इससे पहले (अस्तित्व में था); मैं सात (कार्यवाहक पुरोहितों) द्वारा किए गए बलिदान के बाद (स्वर्ग और पृथ्वी के) सामान्य क्षेत्र में प्रवाहित होने वाले उस सोम को अर्पित करता हूँ।
Fluid Somras is receding with beautiful and radiant Anshu-Sun. Som reduces at its origin and the present place. We seven performers-Priests residing in the middle of थे earth & heavens Yagy perform Yagy of the Som.
यस्ते द्रप्सः स्कन्दति यस्ते अंशुर्बाहुच्युतो धिषणाया उपस्थात्।
अध्वर्योर्वा परि वा यः पवित्रात्तं ते जुहोमि मनसा वषट्कृतम्
हे सोमदेव! आपका जो द्रव्यात्मक रस क्षरित होता है अथवा आपका जो अंशु (खाल) पुरोहित के हाथ से प्रस्तर फलक के पास गिरता है अथवा जो पवित्र के ऊपर स्थापित हुआ है, उन सबको मन ही मन नमस्कार करते हुए हम हवन करते हैं।[ऋग्वेद 10.17.12]
हे सोम, जो (चमड़े से) छूट जाता है, जो तुम्हारे तंतु (पुजारी के) हाथ से छूट जाते हैं, जो बहुवचन के समीप से या (अध्वर्यु के हाथ से) या (छन्नी से) छूट जाते हैं; मैं उन सबको अपने मन से (अग्नि को) वषट् शब्द से अर्पण करता हूँ। 
Hey Som Dev! Your fluid-Somras is being extracted, which become skinless, falls from the hands of the Priests, I offer them to you i.e., perform Yagy with it.
यस्ते द्रप्सः स्कन्नो यस्ते अंशुरवश्च यः परः स्त्रुचा।
अयं देवो बृहस्पतिः सं तं सिञ्चतु राधसे
आपका जो रस बाहर हुआ है और जो आपका अंशु स्त्रक् नामक पात्र के नीचे गिरा है, दोनों का बृहस्पति देव सेचन करें। इससे हमें धन प्राप्त होगा।[ऋग्वेद 10.17.13]
Your sap which has been extracted and the Sun spoon that falls below the pot, both should be sprinkled with water leading to grant of wealth to us.
पयस्वतीरोषधयः पयस्वन्मामकं वचः। अपां पयस्वदित्ययस्तेन मा सह शुन्धत
वनस्पति दुग्ध के समान रस से परिपूर्ण हैं। हमारा स्तोत्र रसमय दुग्ध के साररस से पूर्ण है। इन समस्त पदार्थों से हमारा संस्कार करें।[ऋग्वेद 10.17.14]
The vegetation is full of sap like the milk. Our Strotr is extract like extract of milk. Sanctify us with these goods.(03.10.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (18) :: ऋषि :- संकुषुक यामायन; देवता :-मृत्यु, धाता, त्वष्टा, पितृमेध या प्रजापति; छन्द :- त्रिष्टुप्, पंक्ति, जगती, अनुष्टुप्।
परं मृत्यो अनु परेहि पन्थां यस्ते स्व इतरो देवयानात्।
चक्षुष्मते शृण्वते ते ब्रवीमि मा नः प्रजां रीरिषो मोत वीरान्
हे मृत्यु देव! आप उस मार्ग से ले जावें, जो देवयान मार्ग से दूसरा है। आप नेत्र वाले हैं और सब कुछ जानते हैं। मैं आपके लिए कहता हूँ। हमारे पुत्र, पौत्रादि को न मारना। वीरों को भी न मारना।[ऋग्वेद 10.18.1]
Hey diety of death! Take us from the route which is other than that of the planes of demigods-deities. You posses eyes and knows every thing. I am asking you not to kill our son and grand sons etc. Do not kill the brave people.
मृत्योः पदं योपयन्तो यदैत द्राघीय आयुः प्रतरं दधानाः।
आप्यायमानाः प्रजया धनेन शुद्धाः पूता भवत यज्ञियासः
मृत व्यक्ति के सम्बन्धियों, पिर्तयान (मृत्यु मार्ग) को छोड़ो। इससे दीर्घ जीवन प्राप्त होगा। हे यज्ञानुष्ठाता यजमानों! आप पुत्र, पौत्र, गौ आदि से युक्त होकर इस जन्म और पूर्व जन्म के पापों से शून्य होकर पवित्र बनें।[ऋग्वेद 10.18.2]
Avoid the path followed by the relatives of the diseased to attain longeity. Hey host of rituals-ceremonies! You should have sons, grandsons, cows; become sinless, pious-virtuous and become free from of the past lives.
इमे जीवा वि मृतैराववृत्रन्नभूद्भद्रा देवहूतिर्नो अद्य।
प्राञ्चो अगाम नृतये हसाय द्राघीय आयुः प्रतरं दधानाः
जीवित मनुष्य मृत व्यक्तियों के पास लौट आवे। आज हमारा पितृमेध यज्ञ कल्याणकारी हो। हमें उत्तम रीति से नर्तन और क्रीड़न के लिए समर्थ हों। हम दीर्घायु प्राप्त करें।[ऋग्वेद 10.18.3]
जो जीवित हैं वे मृतकों से अलग रहें; आज देवताओं का हमारा आह्वान सफल हो। हम लंबे और बेहतर जीवन की कामना करते हुए नृत्य और हंसी की ओर आगे बढ़ें। 
Let the survivors remain away from the diseased. Let our Pitr Medh Yagy become successful. We should be able to dance & play and get long life span.
इमं जीवेभ्यः परिधिं दधामि मैषां नु गादपरो अर्थमेतम्।
शतं जीवन्तु शरदः पुरूचीरन्तमृत्युं दधतां पर्वतेन
पुत्र, पौत्रादि की रक्षा के लिए मृत्यु के सामने रोकने के लिए मैं पाषाण का व्यवधान करता हूँ, ताकि मृत्युमार्ग शीघ्र ने आने पावें। ये सैकड़ों वर्ष ज़ीवित रहें। शिलाखण्ड से मृत्यु को दूर करें।[ऋग्वेद 10.18.4]
I place rocks in the path of death to protect my sons & grand sons so that death do not approach them quickly. They should survive for hundred years. Keep the death away with rocks.
यथाहान्यनुपूर्व भवन्ति यथ ऋतव ऋतुभिर्यन्ति साधु।
यथा न पूर्वमपरो जहात्येवा धातरायूंषि कल्पयैषाम्
जिस प्रकार दिन पर दिन व्यतीत होते हैं, ऋतु के पश्चात ऋतु बीतती है और पूर्वकालीन पितरों के रहते आधुनिक पुत्र आदि नहीं मरते, उसी प्रकार हे धाता! हमारे वंशजों की आयु स्थिर रखें-उनकी मृत्यु न होने पावे।[ऋग्वेद 10.18.5]
The way days pass after days, seasons pass after seasons with the surviving eternal Pitr present day sons do not die, similarly hey God-nurturer keep the age of our descendants stable, they should not die.
आ रोहुतायुर्जरसं वृणाना अनुपूर्वंयतमाना यति ष्ठ।
इह त्वष्टा सुजनिमा सजोषा दीर्घमायुः करति जीवसे वः॥
मृत व्यक्ति के पुत्रादिकों वार्द्धक्य प्राप्त करते हुए आयु में अधिष्ठित रहें। ज्येष्ठ के पश्चात कनिष्ठ के क्रम से आप लोग कार्य में अवस्थित रहें। हे शोभन जन्मा त्वष्टा देव! आप लोगों के साथ इस कर्म में प्रवृत्त हुए आप लोगों की आयु लम्बी करें।[ऋग्वेद 10.18.6]
Let the sons etc. of the diseased progress and attain long age. They should be dedicated to work starting from the eldest to youngest. Hey Twasta of beautiful origin! Increase the longevity of those involved in work (composing Strotr, definitions, images etc.)
इमा नारीरविधवाः सुपत्नीराञ्जनेन सर्पिषा सं विशन्तु।
अनश्रवोऽनमीवाः सुरत्ना आ रोहन्तु जनयो योनिमग्रे
ये सधवा और शोभन पति वाली स्त्रियाँ घृताञ्जन (घी की बत्ती जलाकर बनाया गया काजल) के साथ अपने घरों को जायें। अश्रुरहित, मानसिक रोग रहित और शोभन धन वाली होकर ये स्त्रियाँ सबसे आगे घरों में जावें।[ऋग्वेद 10.18.7]
Woman having surviving beautiful-glorious husband should move to their homes. They should apply eye liner in their eyes. They should not shed tears, have good meatal health-remain free from mental defects and possess wealth. 
उदीर्ष्व नार्यभि जीवलोकं गतासुमेतमुप शेष एहि।
हस्तग्राभस्य दिधिषोस्तवेदं पत्युर्जनित्वमभि सं बभूथ
मृत व्यक्ति की पत्नी पुत्रादि के गृह का विचार करके यहाँ से उठें। यह आपका पति मरा हुआ है। इसके पास आप (व्यर्थ) सोई हुई हो। चलो; क्योंकि पाणिग्रहण और गर्भ धारण कराने वाले पति के साथ आप स्त्री कर्तव्य कर चुकी हो। आपने इसके प्राणगमन का निश्चय कर लिया है; इसलिए घर लौट चलो।[ऋग्वेद 10.18.8]
Wife of the diseased should think of the sons etc. and leave. Hear is your dead husband, you are unnecessarily sleeping with him. Move. You have accomplished the task of bearing progeny in the womb. You have ensured that he is dead and return back to home.
धनुर्हस्तादाददानो मृतस्यास्मे क्षत्राय वर्चसे बलाय।
अत्रैव त्वमिह वयं सुवीरा विश्वाः स्पृधो अभिमातीर्जयेम
अपनी प्रजा के रक्षण, तेज और बल के लिए मैं मृत व्यक्ति के हाथ से धनुष लेकर बोलता हूँ। हे मृतक! आप यहीं पर निवास करें। हम वीर पुत्र वाले हों और समस्त अभिमानी शत्रुओं पर विजय प्राप्त करें।[ऋग्वेद 10.18.9]
For the protection of populace, their aura and strength I take the bow of the diseased and say, hey diseased! Reside over here. Let us have brave sons and attain victory over all enemies.
उप सर्प मातरं भूमिमेतामुरूव्यचसं पृथिवीं सुशेवाम्।
ऊर्णम्रदा युवतिर्दक्षिणावत एसा त्वा पातु निर्ऋतेरूपस्थात्
मृत, मातृ स्वरुपिणी, विस्तीर्ण, सर्वव्यापिनी और सुखदात्री पृथ्वी के पास जावें। यह यौवन से युक्त स्त्री के सदृश आपके लिए राशीकृत मेषलोम के सृदृश कोमलस्पर्शा है। आपने दक्षिणा दी है या यज्ञ किया है। यह पृथ्वी मृत्यु के पास से अस्थिरूप आपकी रक्षा करें।[ऋग्वेद 10.18.10]
The diseased should go the vast, all pervading comfortable motherly earth. This young women is soft like a pile of sheep's wool. You have given money to priests for the Yagy. Let the earth protect your bones after death.
उच्छञ्चस्व पृथिवि मा नि बाधथाः सूपायनास्यै भव सूपवञ्चना।
माता पुत्रं यथा सिचाभ्येनं भूम ऊणुहि
हे देवी पृथ्वी! आप इस मृत को उन्नत रखें। इसे पीड़ा न दें। इसके लिए सुपरिचारिका और सुप्रतिष्ठा होवें। जिस प्रकार माता पुत्र को आँचल से ढँकती है, उसी प्रकार ही, हे भूमि। इस अस्थिरूप मृत को आच्छादित करें।[ऋग्वेद 10.18.11]
Hey Devi Prathvi-earth! Raise the dead body, do not harm it. Take care of it. The way a mother cover her infant with cloth, similarly, hey earth! Cover the bones of dead body.
उच्छुञ्चमाना पृथिवी सु तिष्ठतु सहसेत्रं मित हि श्रयन्ताम्।
ते गृहासो घृतश्चुतो भवन्तु विश्वाहास्मै शरणाः सन्त्वत्र
इसके ऊपर स्तूपाकार होकर पृथ्वी भली-भाँति अवस्थिति हों। हजारों धूलियाँ इसके ऊपर अवस्थित हों। यह भूमि घृत की स्निग्धता के सदृश इसे आश्रय प्रदान करनेवाली होकर सुखदायी हो।[ऋग्वेद 10.18.12]
Let the earth form a conic shape. It should have hundreds of layers of dust. The mud-clay should be lubricated with Ghee, grant asylum and be comfortable.
उते स्तभ्नामि पृथिवीं त्वत्परीमं लोगं निदधन्मो अहं रिषम्।
एतां स्थूणां पितरो धारयन्तु तेऽत्रा यम सादना ते मिनोतु
हे अस्थित कुम्भ! आपके ऊपर पृथ्वी को उत्तम्भित करके रखता हूँ। आपके ऊपर मैं लौष्ट्र अर्पण करता हूँ, ताकि आपके ऊपर मिट्टी जाकर आपको नष्ट न कर सके। इस स्थूणा (खूँटी) को पितर लोग धारण करें। पितृपति यमदेव यहाँ आपके निमित्त निवास स्थल प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.18.13]
Hey pitcher having ashes! I keep clay over you. I cover it with iron powder, so that the mud-clay over you do not destroy you. The Pitr should hold this hook.  Let the deity of Manes Yam Dev, provide you residence.
प्रतीचीने मामहनीष्वाः पर्णमिवा दधुः। प्रतीचीं जग्रभा वाचमश्वं रशनया यथा
हे प्रजापति! जिस प्रकार बाण के मूल में पर्ण (पक्ष) लगाते हैं, उसी प्रकार ही प्रतिपूज्य संवत्सररूप दिन में मुझ संकुसुक ऋषि को समस्त देवगणों ने रखा है। जिस प्रकार शीघ्रगामी अश्व को रस्सी से रोका जाता है, उसी प्रकार ही मेरी पूज्य स्तुति को आप ग्रहण करें।[ऋग्वेद 10.18.14]
Hey Prajapati! The way feather are attached with arrow, similarly I-Rishi Sankusuk has been surrounded me by all demigods-deities during the day like Sanwatsar. The way a fast moving horse is blocked with rope, my Stuti should be accepted by you.(05.10.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (19) :: ऋषि :- मथितो यामायाना, भृदु या वारुणि भार्गव या च्यवन; देवता :- जल या गाव, अग्नि, सोम; छन्द :- अनुष्टुप्, गायत्री।
नि वर्तध्वं मानु गातास्मान्त्सिषक्त रेवतीः।
अग्नीषोमा पुनर्वसू अस्मे धारयतं रयिम्
हे गायों! आप लोग हमारे पास आवें। हमारे अतिरिक्त दूसरे के पास न जावें। हे धनवती गायों! हमें दुग्ध प्रदान करके सेवित करें। बार-बार धन देने वाले अग्निदेव और सोमदेव! आप लोग हमें धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.19.1]
Hey cows! Come to us. Do not go to any one else other than us. Hey wealthy cows! Grant us milk and nurse us. Hey Agni Dev & Som Dev, granting us wealth again and again! Grant us wealth.
पुनरेना नि वर्तय पुनरेना न्या कुरु। इन्द्र एणा नि यच्छत्वग्निरेना उपाजतु॥
इन गायों को बार-बार हमारे सामने करें। इन्हें अपने वश में करें। इन्द्र देव भी इन्हें आपके इन्हें उपयोगी बनावें।[ऋग्वेद 10.19.2]
Let these cows come in front of us repeatedly. Control them. Indr Dev should make them useful.
पुनरेता नि वर्तन्तामस्मिन् पुष्यन्तु गोपतौ।
इहैवाग्ने नि धारयेह तिष्ठतु या रयिः
ये गौवें बार-बार मेरे पास आवें। ये मेरे वश में होकर पुष्ट हों। हे अग्नि देव! इन्हें मेरे पास रखें। यह गोधन मेरे पास रहे।[ऋग्वेद 10.19.3]
Let these cows come to me again & again. They should be under my control and become healthy-nourished. Hey Agni dev! Keep them with me. Let these cows forming wealth should remain with me.
यन्नियानं न्ययनं संज्ञानं यत्परायणम्। आवर्तनं निवर्तनं यो गोपा अपि तं हुवे
मैं गौ सहित गोष्ठ की प्रार्थना करता हूँ। गौओं के गृह आने की प्रार्थना करता हूँ। गौ सम्मेलन की भी प्रार्थना करता हूँ। गोचरण की भी प्रार्थना करता हूँ। चरकर उनके गृह में आने की भी प्रार्थना करता हूँ। गोपाल की भी प्रार्थना करता हूँ।[ऋग्वेद 10.19.4]
I worship the cows shed having cows in it. I pray to them when they reach home. I pray to the cows in groups. I pray at their feet. When they return home after grazing I worship them. I worship Gopal-herd man as well.
य उदानड् व्ययनं य उदानट् परायणम्। आवर्तनं निवर्तनमपि गोपा नि वर्तताम्
जो गोपाल (गायें चराने वाला) चारों ओर गायों की खोज करता है, जो गायों को घर पर ले आता है और जो गायें चराता है, वह कुशलतापूर्वक घर पर लौट आवे।[ऋग्वेद 10.19.5]
The herd man who looks to cows all around, brings the cows back home, graze them, should reach home safely.
आ निवर्त नि वर्तय पुनर्न इन्द्र गा देहि। जीवाभिर्भुनजामहै॥
हे इन्द्र देव! आप हमारी और होवें। गायों को भी हमारी ओर करें। हमें गायें प्रदान करें। हम चिरञ्जीविनी गौवों के दुग्ध का सेवन करें।[ऋग्वेद 10.19.6]
Hey Indr Dev! You should be on our side i.e., favour us. Let the cows be on our side. Grant us cows. Let us drink the milk of long lived cows.
परि वो विश्वतो दध ऊर्जा घृतेन पयसा। ये देवाः के च यज्ञियास्ते रय्या सं सृजन्तु नः
हे देवों! मैं आप लोगों को प्रचुर अन्न, घृत और दुग्धादि निवेदित करता हूँ। फलतः जो यज्ञ योग्य देवता है, वे हमें गोधन प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.19.7]
Hey deities! I offer sufficient food grains, Ghee and milk etc. to you. As a result of it, let the deity of Yagy award us cows.
आ निवर्तन वर्तय नि निवर्तन वर्तय। भूम्याश्चतस्त्रः प्रदिशस्ताभ्य एना नि वर्तय
हे गौवों को चरानेवाले चरवाहों! आप इन गौवों को मेरे पास ले आवें। हे गौवों! आप भी आएँ। हे गोपालों! आप गौवों को वापस लेकर आएँ। गायों लौट आओ। हे सूक्त कर्ता ऋषि! मैं कहाँ से लौटाऊँ? हम कहाँ से लौटें? (उत्तर) चारों दिशाओं से गायों को लौटाओ। हे गायों! आप भी इन दिशाओं से लौट आओ।[ऋग्वेद 10.19.8]
Hey herd man grazing cows! Bring these cows to me. Hey cows! You should also come. Hey Gopals! Bring the cows back. Hey cows come back. Hey Rishi, composing Sukt! From where should I return? From where should we return? Return the cows from four directions. Hey Cows! You should also return from these directions.
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (19) :: ऋषि :- विमद, ऐन्द्र, प्राजापत्य, वसुकृद् या वासुक्र; देवता :- अग्नि; छन्द :- निवृद गायत्री, गायत्री, विराट् गायत्री, त्रिष्टुप्।
भद्रं नो अपि वातय मनः
हे अग्नि देव! हमारे मन को शुद्ध करें, अपने स्तोत्र के योग्य करें।[ऋग्वेद 10.20.1]
Hey Agni dev! Purify-sanctify our innerself. Make us fit for your Strotr.
अग्निमीळे भुजां यविष्ठं शासा मित्रं दुर्धरीतुम्।
यस्य धर्मन्त्स्व १ रेनीः सपर्यन्ति मातरूधः
हवि का भोग करने वाले देव गणों में कनिष्ठ, अतीव युवक, सबके मित्र और दुर्द्धष अग्नि देव की मैं स्तुति करता हूँ। बछड़े गाय के स्तन का आश्रय करके प्राण धारण करते हैं।[ऋग्वेद 10.20.2]
I worship youngest, too young, friend of all and fierce Agni Dev who consume oblations-offerings. The calf survive depending upon the udder of cows for milk.
यमासा कृपनीळं भासाकेतुं वर्धयन्ति। भ्राजते श्रेणिदन्
कर्माधार और ज्वाला रूप अग्नि देव को स्तोतागण वर्द्धित करते हैं। अग्नि देव स्तोताओं को अभीष्ट फल प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 10.20.3]
Basis of all action-activities forming flames Agni Dev grow-prosper the Stota Gan. Agni Dev grant desired rewards to the Stotas.
अर्यो विशां गातुरेति प्र यदानड् दिवो अन्तोन् । कविरभ्रं दीद्यानः
अग्नि देव यजमानों के लिए आश्रयणीय हैं। जिस समय अग्नि देव दीप्त होकर ऊपर उठते हैं, उस समय मेधावी अग्नि देव द्युलोक तक व्याप्त कर लेते हैं। मेघों को भी व्याप्त कर लेते हैं।[ऋग्वेद 10.20.4]
Agni Dev grant asylum to the Ritviz. When intelligent Agni Dev shine and rises up, he pervade the heavens and clouds.
जुषद्धव्या मानुषस्योर्ध्वस्तस्थावृभ्वा यज्ञे। मिन्वन्त्सद्म पुर एति
यजमान के यज्ञ में हवि का सेवन करेन वाले हे अग्नि देव! आप अनेक ज्वालाओं से युक्त होकर ऊपर उठते हैं। अग्नि देव उत्तर वेदी को मापते हुए सामने आते हैं।[ऋग्वेद 10.20.5]
Hey Agni Dev consuming the Havi-offerings in the Yagy of the host!  You accompany many flames and rises up. Agni Dev covers the Uttar Vedi and come in front. 
स हि क्षेमो हविर्यज्ञः श्रुष्टीदस्य गातुरेति। अग्निं देवा वाशीमन्तम्॥
वे ही अग्नि देव सबके पालन के कारण हैं, यज्ञ भी वे ही हैं। पुरोडाश आदि भी है। अग्नि देव देवगणों को बुलाने के लिए जाते हैं।[ऋग्वेद 10.20.6] 
Agni Dev nourishes every one. He is the performer of the Yagy. He forms the Purodash. Agni Dev goes to invite the demigods-deities.
यज्ञासाह दुव इषेऽग्निं पूर्वस्य शेवस्य। अद्रेः सूनुमायुमाहुः
जो अग्नि देव देवगणों को बुलाने वाले हैं, जिन्हें लोग पाषाड़ का पुत्र कहते हैं और जो यज्ञ के धारक हैं, उत्कृष्ट सुख की प्राप्ति के लिए उन्हीं अग्नि देव की सेवा करने की अभिलाषा करता हूँ।[ऋग्वेद 10.20.7]
I wish to serve Agni Dev for excellent pleasure-comforts, who invites the demigods-deities, is called the son of rocks, support the Yagy,
नरो ये के चास्मदा विश्वेत्ते वाम आ स्युः। अग्निं हविषा वर्धन्तः
पुरोडाश आदि के द्वारा अग्नि देव का संवर्द्धन करने वाले जो हमारे पुत्र, पौत्रादि है, वे संभोग योग्य पशु आदि धन में बैठेंगे, ऐसी हम कामना करते हैं।[ऋग्वेद 10.20.8]
Our sons & grandsons who serve Agni Dev with Purodash, will possess the cattle-animals capable of mating-reproducing, as per our desire.
कृष्णः श्वेतोऽरुषो यामो अस्य ब्रध्न ऋज्र इत शोणो यशस्वान्।
हिरण्यरूपं जनिता जजान
अग्नि देव के जाने के लिए जो वृहत् रथ है, वह कृष्णवर्ण, शुभ्रवर्ण सरलगन्ता, रक्तवर्ण और बहुमूल्य या कीर्तिशाली हैं। सुवर्ण के सदृश उज्ज्वल करके विधाता ने उसे निर्मित किया है।[ऋग्वेद 10.20.9]
The charoite for moving Agni Dev is vast, black & white in colour, reddish, valuable and glorious. The Vidhata-creator has built it making it as bright as Gold. 
एवा ते अग्ने विमदो मनीषामूर्जो नपादमृतेभिः सजोषाः।
गिर आ वक्षत्सुमतीरियान इषमूर्ज सुक्षितिं विश्वमाभाः
हे अग्नि देव! आप बल या वनस्पति के पुत्र हैं। आप अमर धन से युक्त हैं। अपनी प्रकृष्ट बुद्धि की इच्छा करने वाले विमद नाम के ऋषि ने आपके लिए ये स्तोत्र कहे हैं। आप इन उत्कृष्ट स्तुतियों को प्राप्त करके विमद को अन्न, बल, शोभन निवास और जो कुछ देने योग्य है, वो सब धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.20.10]
Hey Agni Dev! You are the son of either Bal of Brahaspati. You possess immortal wealth. Rishi Vimad desirous of sharp intelligence, composed these Strotrs for you. Grant food grains, might, beautiful house and all that needed by Vimad Rishi having accepted these Stuties.(06.10.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (21) :: ऋषि :- विमद, ऐन्द्र, प्राजापत्य, वसुकृद्वा या वासुक्र; देवता :- अग्नि; छन्द :- पंक्ति। 
आग्निं न स्ववृक्तिभिर्होतारं त्वा वृणीमहे।
यज्ञाय स्तीर्णबर्हिषे वि वो मदे शीरं  पावकशोचिषं विवक्षसे॥
हम स्वरचित स्तुतियों से देवों के आवाहनकर्ता अग्नि देव को विस्तृत कुश वाले यज्ञ के लिए वरण करते हैं। हे अग्नि देव! आप महान् हैं। वनस्पतियों में रहने वाले और शोधक दीप्ति ज्वाला को विमद ऋषि के लिए प्रेरित करें।[ऋग्वेद 10.21.1]
We accept invoker of demigods-deities Agni Dev with our own compositions-Stuties for the vast-broad Yagy having Kush in it. Hey Agni Dev! You are great. Inspire the purifying flames contained in the vegetation-herbs for Vimad Rishi.
त्वामु ते स्वाभुवः शुम्भन्त्यश्वराधसः।
वेति त्वामुपसेचनी वि वो मद ऋजीतिरग्न आहुतिर्विवक्षसे॥
हे अग्नि देव! दीप्त और व्याप्त धन याजक आपको शोभायमान करते हैं। हे अग्नि देव देव! क्षरणशील और रसल गति आहुति आपके पास तृप्ति के लिए जाती है। आप महान हैं।[ऋग्वेद 10.21.2]
Hey Agni Dev! The Ritviz glorify you wishing aura and lots of wealth. Hey Agni Dev! Offerings reaches you straight to satisfy you. You are great.
त्वे धर्माण आसते जुहूभिः सिश्चतीरिव।
कृष्णा रूपाण्यर्जुना वि वो मदे विश्वा अधि श्रियो धिषे विवक्षसे॥
यज्ञ के धारक ऋत्विक लोग होमपात्रों से उसी प्रकार ही आपकी सेवा करते हैं जिस प्रकार जल पृथ्वी को सींचता है। हे अग्नि देव! देवगणों के मद के लिए आप कृष्णवर्ण ज्वालारूपी और समस्त शोभा को धारण करते हैं। आप महान् हैं।[ऋग्वेद 10.21.3]
The Yagy performers serve you with Hawan vessels similar to the mode of irrigation of earth by water. Hey Agni Dev! You adopt dark mode for the demigods-deity's, ego with glory. You are great.
यमग्ने मन्यसे रयिं सहसावन्नमर्त्य।
तमा नो वाजसातये वि वो मदे यज्ञेषु चित्रमा भरा विवक्षसे
हे अमर और बली अग्नि देव! आप जिस धन को श्रेष्ठ समझते हैं, उस विचित्र धन को अन्न लाभ के लिए हमारे लिए ले आवें। आप समस्त देवगणों की तृप्ति के लिए धन को ले आवें। आप महान् है।[ऋग्वेद 10.21.4]
Hey mighty and immortal Agni Dev! Bring the amazing wealth considered best by you for having food grains for us. Bring wealth for the satisfaction of all demigods-deities. You are great.
अग्निर्जातो अथर्वणा विदद्विश्वानि काव्या।
भुवद्दुतो विवस्वतो वि वो मदे प्रियो यमस्य काम्यो विवक्षसे
अथर्वा ऋषि ने अग्नि देव को उत्पन्न किया। अग्नि देव सब प्रकार के स्तोत्रों को जानते है। हे अग्नि देव! आप देवों के आवाहन के लिए याजक के दूत हैं। अग्नि देव याजक के प्रिय है। हे अग्नि देव! आप कमनीय और महान हैं।[ऋग्वेद 10.21.5]
Athrva Rishi evolved Agni Dev! Agni Dev knows all sorts of Strotr. Hey Agni Dev! You are messenger for invoking demigods-deities. Agni Dev is dear to the Ritviz. Hey Agni Dev! You are desirable & great.
त्वां यज्ञेष्वीळतेऽग्ने प्रयत्यध्वरे।
त्वं वसूनि काम्या वि वो मदे विश्वा दधासि धाशुषे विवक्षसे
हे अग्नि देव! यज्ञ का आरम्भ होने पर ऋत्विक और याजक आपकी स्तुति करते हैं। हे अग्नि देव! आप हविर्दाता विमद के लिए सब प्रकार के धन देते हैं। इसलिए आप महान हैं।[ऋग्वेद 10.21.6]
Hey Agni Dev! Ritviz and Yagyik worship you with the beginning of Yagy. Hey Agni Dev! You grant all sorts of wealth to Vimad Rishi making offerings-oblations. Hence you are great.
त्वां यज्ञेष्वृत्विजं चारुमग्ने नि षेदिरे।
घृतप्रतीकं मनुषो वि वो मदे शुक्र चेतिष्ठमक्षभिर्विवक्षसे
हे अग्नि देव! तृप्ति के लिए होता, रमणी, आहुत से पूर्ण मुखवाले जाज्वल्यमान और व्यापक तेज के कारण आपको ज्ञानी याजकगण यज्ञ में नियमतः स्थापित करते हैं। आप महान है।[ऋग्वेद 10.21.7]
Hey Agni Dev! The enlightened Yagyik establish you for satisfaction, regularly in the Yagy due to your mouth full of offerings, majesty, ignited and vast radiance. You are great.
अग्ने शुक्रेण शोचिषोरु प्रथयसे बृहत्।
अभिक्रन्दन्वृषायसे वि वो मदे गर्भ दधासि जामिषु विवक्षसे
हे अग्नि देव! आप महान हैं। प्रदीप्त तेज से आप प्रसिद्ध होते हैं। आप समय-समय में दर्पित बैल के सदृश शब्दनाद करते हैं। आप भगिनी के समान औषधियों में बीज धारण करते हैं। सोमादि का मद उत्पन्न होने पर आप महान् होते हैं।[ऋग्वेद 10.21.8]
Hey Agni Dev! You are great. You become glorious due to your majesty. You make sound like bull time to time. You grow seeds in the medicines-herbs like a sister. On generation of toxicity in Som etc., you become great.(07.10.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (22) :: ऋषि :- विमद, ऐन्द्र, प्राजापत्य, वसुकृद्वा या वासुक्र; देवता :- इन्द्र; छन्द :- बृहती, अनुष्टुप, त्रिष्टुप्।
कुह श्रुत इन्द्रः कस्मिन्नद्य जने मित्रो न श्रूयत।
ऋषीणां वा यः क्षये गुहा वा चकृैंषे गिरा
इन्द्र देव आज कहाँ प्रख्यात हैं? आज वे मित्र के समान किस व्यक्ति के पास है? इन्द्र देव क्या ऋषियों के आश्रम या किसी गुफा में स्तुत किये जाते हैं?[ऋग्वेद 10.22.1]
Where Indr Dev is famous? With whom is there like a friend? Is Indr Dev worshiped in the Rishi Ashram or a cave?
इह श्रुत इन्द्रो अस्म अद्य स्तवे वञ्यृचीषमः।
मित्रो न यो जनेष्वा यशश्चके असाम्या
आज इस यज्ञ में इन्द्र देव प्रख्यात है। आज हम उनकी स्तुति करते हैं। इन्द्र देव वज्रधर और स्तुत्य हैं। इन्द्र देव स्तोताओं में मित्र के समान असाधारण रूप से कीर्ति करने वाले हैं।[ऋग्वेद 10.22.2]
Indr Dev is famous in this Yagy, today. We worship him. Indr Dev wield Vajr and is worshiped. Indr Dev has extraordinary glory amongest the Stotas like a friend.
महो यस्पतिः शवसो असाम्या महो नृम्णस्य तूतुजिः।
भर्ता वज्रस्य धृष्णोः पिता पुन्नमिव प्रियम्
जो इन्द्र देव बलपति, अनन्तगुण और स्तोताओं के लिए महान अन्न के दाता हैं, वे उसी प्रकार ही इन्द्र देव हमारी रक्षा करें। शत्रुओं का संहार करने वाले वज्र के धारक हैं। जिस प्रकार पिता प्रिय पुत्र की रक्षा करता है, उसी प्रकार इंद्र देव हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 10.22.3]
Indr Dev possess infinite qualities-characterises, grants lots of food grains to the Stotas. Let him protect us. Destroyer of the enemies wield Vajr. The way a father protects his sons, he should protect us.
युजानो अश्वा वातस्य धुनी देवो देवस्य वज्रिवः।
स्यन्ता पथा विरुक्मता सृजानः स्तोष्यध्वनः
हे वज्रधर इन्द्र देव! आप द्योतमान हैं। वायु देव से भी शीघ्र जाने वाले और उचित मार्ग से जाने वाले अपने हरि नामक अश्वों को रथ में नियोजित करके, मार्ग को बनाते हुए सदैव प्रशंसनीय होते हैं।[ऋग्वेद 10.22.4]
Hey Vajr wielding Indr Dev! You are radiant-aurous. Deploy your appreciable horses named Hari, which move faster than Vayu Dev, developing the path, in the charoite.
त्वं त्या चिद्वातस्याश्वागा ऋज्रा त्मना वहध्यै।
ययोर्देवो न मर्यो यन्ता नतिर्विदाय्यः
हे इन्द्र देव! आप स्वयं उन वायु वेग तुल्य और रसलगामी अश्वों को चलाकर हमारे अभिमुख प्रस्तुत होते हैं। देवों में से कोई भी ऐसा नहीं है जो आपके इन दोनों अश्वों का संचालन कर सके। इनके बल को जान सके।[ऋग्वेद 10.22.5]
Hey Indr Dev! You drive your horses which move like air and come to us. None amongest demigods-deities can drive these two horses or identify their strength.
अध ग्मन्तोशना पृच्छते वां कदर्था न आ गृहम्।
आ जग्मथुः पराकाद्दिवश्च ग्मश्च मर्त्यम्
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! जिस समय आप अपने स्थानों को जाने लगे, उस समय भार्गव उशना ने आपसे सम्भाषण किया, आप लोग किस कार्य से इतनी दूर से हमारे पास पधारे हैं। वह केवल आप लोगों का अनुग्रह है।[ऋग्वेद 10.22.6]
Hey Indr Dev & Agni Dev! When you started going to your abodes, Ushna Bhargav asked you, "What for have you come from a distant place"? You have obliged us.
आ न इन्द्र पृक्षसेऽस्माकं ब्रह्मोद्यतम्।
तत्त्वा याचामहेऽवः शुष्णं यद्धन्नमानुषम्
इन्द्र देव! हमने यज्ञ की सामग्री प्रस्तुत की है। आप जब तक तृप्त न हों, तब तक उसका भक्षण करें। हम आपसे अन्न और उसका रक्षण चाहते हैं। आपसे हम उसी प्रकार का बल भी चाहते हैं, जिससे राक्षसों का विनाश हो सके।[ऋग्वेद 10.22.7]
Hey Indr Dev! We have offered you the Yagy materials. Eat them till you feal satisfied. We wish you to grant food grains and their protection. We wish to have strength to kill the demons, from you.
अकर्मा दस्युरभि नो अमन्तुरन्यव्रतो अमानुषः।
त्वं तस्यामित्रहन् वधर्दासस्य दम्भय
हमारे चारों ओर यज्ञ रहित दस्यु दल है। वह कुछ नहीं मानता, श्रुत्यादि कर्मों से रहित है और उसकी प्रकृति आसुरी है। हे शत्रु नाशक इन्द्र देव! इस दस्यु जाति का विनाश करें।[ऋग्वेद 10.22.8]
We are surrounded by dacoits. They do not believe in rituals, virtues, ceremonies their nature is demonic. Hey destroyer enemies Indr Dev! Destroy this breed of demons.(This description matches Muslims.)
त्व न इन्द्र शूर शूरैरुत त्वोतासो बर्हणा।
पुरत्रा ते वि पूर्तयो नवन्त क्षोणयो यथा
हे विक्रान्त इन्द्र देव! आप शूर मरुतों के साथ हमारी रक्षा करें। आपसे रक्षित होकर हम शत्रु विनाश में समर्थ होंगे। जिस प्रकार मनुष्य अपने स्वामी की सेवा के लिए उसे वेष्टित करते हैं, उसी प्रकार ही आपके द्वारा दिये गए प्रचुर पदार्थ स्तोताओं को वेष्टित करते हैं।[ऋग्वेद 10.22.9]
Hey Vikrant Indr Dev! Protect us with along with brave Marud Gan. Under your asylum, we will be able to destroy the enemies. The way a man covers his master, similarly the Stota covers the rich materials granted by you.
त्वं तान् वृत्रहत्ये चोदयो नृन् कार्पाणे शूर वज्रिवः।
गुहा यदी कवीनां विशां नक्षत्र शवसाम्
हे वज्रधर इन्द्र देव! वृत्रासुर के वध के लिए आप प्रसिद्ध मरूतों को उस समय प्रेरित करते हैं, जिस समय आप स्तोता कवियों का नक्षत्र वासी देवों के प्रति सुन्दर स्तोत्र श्रवण करते हैं।[ऋग्वेद 10.22.10]
Hey Vajr wielding Indr Dev! You inspire the Marud Gan, when the Stota listen to the beautiful composition of the poets written in the honour of demigods-deities residing in constellations.
मक्षू ता त इन्द्र दानाप्नस आक्षाणे शूर वज्रिवः।
यद्ध शुष्णस्य दम्भयो जातं विश्वं सयावभिः
हे शूर और वज्रधर इन्द्र देव! दान करना ही आपका कर्म है। युद्धक्षेत्र में बहुत शीघ्र आपका कर्म होता है। आपने मरुतों के साथ शुष्ण के समस्त वंश का विनाश कर डाला।[ऋग्वेद 10.22.11]
Hey brave Vajr wielding Indr Dev! Donation is your prime concern. Your performances in the war are great. You destroyed the whole Shushn clan with the help of Marud Gan.
माकुध्रयक् शूर वस्वीरस्मे भूवन्नभिष्टयः। वयंवयं त आसां सुम्ने स्याम् वज्रिवः
हे शूर इन्द्र देव! हमारी ये महती अभीष्ट कामनाएँ व्यर्थ न होने पावें। हे वज्रधर इन्द्र देव! हमारी सारी लालसाएँ फलवती होकर सुखकारी हों।[ऋग्वेद 10.22.12]
Hey brave Indr Dev! Our great desires should not go waste. Hey Vajr wielding Indr Dev! Let our desires be rewarding and comfort-pleasure granting.
अस्मे ता त इन्द्र सन्तु सत्याहिंसन्तीरुपस्पृशः।
विद्याम यासां भुजो धेनूनां न वज्रिवः
हमारे लिए आपका अनुग्रह हो ताकि हमारी हिंसा न हो। जिस प्रकार लोग गाय के दूध आदि का भोग करते हैं, उसी प्रकार ही हम आपके प्रसाद का फल प्राप्त करें।[ऋग्वेद 10.22.13]
We should be obliged by you so that we remain unharmed. The way the people use cow's milk we should be granted the reward of your Prasad.
अहस्ता यदपदी वर्धत क्षाः शचीभिवेद्यानाम्।
शुष्ण परि प्रदक्षिणिद्विश्वायवे नि शिश्रथः
देवगणों की क्रिया के द्वारा यह पृथ्वी हस्तपाद रहित होकर चारों ओर बढ़ती है। पृथ्वी की प्रदक्षिणा करके और चारों ओर भ्रमण करके आपने शुष्ण नामकं असुर का वध किया।[ऋग्वेद 10.22.14]
Endeavours by the demigods-deities make the earth revolve. You encircled the earth and killed the demon named Shushn.
पिबापिबेदिन्द्र शूर सोमं मा रिषण्यो वसवान वसुः सन्।
उत त्रायस्व गृणतो मघोनो महश्च रायो रेवतस्कृधी नः
हे शूर इन्द्र देव! सोमरस का शीघ्र पान करें। आप धनी हैं। प्रशस्त होकर आप हमारी हिंसा न करें। आप स्तोता यजमान की रक्षा करें और हमें प्रचुर धन से धनवान बनावें।[ऋग्वेद 10.22.15]
Hey brave Indr Dev! Drink Somras quickly. You are wealthy. Do not let us be harmed. Protect the Stota-host and make us rich by granting lots of wealth.(08.10.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (23) :: ऋषि :- विमद ऐन्द्र, प्राजापत्य, वसुकृद्वा वासुक्र;  देवता :- इन्द्र; छन्द :- जगती, त्रिष्टुप् अभिसारिणी।
यजामह इन्द्रं वज्रदक्षिणं हरीणां रथ्यं १ विव्रतनाम्।
प्र श्मश्रु दोधुवदूर्ध्वथा भूद्वि सेनाभिर्दयमानो वि राधसा
जो इन्द्र देव विविध कर्म कुशल और हरिताभ अश्वों को रथ में नियोजित करते है और जिनके दाहिने हाथ में वज्र है, हम उनकी पूजा करते हैं। सोमपान के अनन्तर इन्द्र देव अपने मूँछ, दाढ़ी को हिलाकर विस्तृत सेना और अन्न लेकर विपक्षियों का संहार करने के लिए ऊपर गए या प्रकट हुए।[ऋग्वेद 10.23.1]
Indr Dev holding Vajr in his right hand, expert-skilled in different endeavours, deploy the green coloured horses in the charoite. We worship him. After drinking Somras Indr Dev shack his beard and moustache, invoke with his army and food grains to destroy the opponents.
हरी न्वस्य या वने विदे वस्विन्द्रो मधैर्मघवा वृत्रहा भुवत्।
ऋभुर्वाज ऋभुक्षाः पत्यते शवोऽव क्ष्मौमि दासस्य नाम चित्
इन्द्र देव के हरिताभ दो अश्वों ने वन में उत्तम घास खाई। इन दोनों को लेकर और प्रचुर धन से धनी होकर इन्द्र देव ने वृत्रासुर को नष्ट किया। इन्द्र देव विराट् मूर्ति, बली, दीप्तिशाली और धन के अधिपति हैं। हम दस्यु समुदाय और शत्रुओं का समूल नाश करने के लिए इच्छुक हैं।[ऋग्वेद 10.23.2]
Indr Dev fed his greenish horses with grass in the forest. Then he acquired lots of wealth and killed Vratra Sur. Indr Dev is huge-bulky, mighty, aurous-radiant and lord of wealth. We are desirous of destroying the dacoits and enemies with their entire clan-descendants. 
यदा वज्रं हिरण्यमिदथा रथं हरी यमस्य वहतो वि सूरिभिः।
आ तिष्ठति मघवा सनश्रुत इन्द्रो वाजस्य दीर्घश्रवसस्पतिः॥
जिस समय इन्द्र देव सुवर्णमय वज्र (अपने हाथ में) धारण करते हैं, उस समय वह उसी रथ पर विद्वानों के साथ आरूढ़ होते हैं, जो रथ हरितवर्ण वाले दो अश्वों के साथ जाता है। इन्द्र देव चिर प्रसिद्ध धनी और सर्वजन विदित अन्न राशि के स्वामी हैं।[ऋग्वेद 10.23.3]
When Indr Dev wield golden Vajr in his hand, he is accompanied with enlightened people in the charoite pulled by greenish horses. Indr Dev is rich ever since and lord of food grains stock, known to every one.
सो चिन्नु वृष्टिर्यूथ्या ३ स्वा सचाँ इन्द्रः श्मश्रूणि हरिताभि पुष्णते।
अव वेति सुक्षयं सुते मधूदिद्यूनोति वातो यथा वनम्
जिस प्रकार वर्षा पशुओं के समूह को भिगोती है, उसी प्रकार ही इन्द्र देव हरिताभ सोमरस के द्वारा अपनी मूँछ-दाढ़ी को भिगोते हैं। अनन्तर वह शोभन यज्ञगृह में जाते हैं और वहाँ जो मधुर सोमरस प्रस्तुत होता है, उसे पीकर अपनी मूँछ दाढ़ी को उसी प्रकार हिलाते हैं, जिस प्रकार वायुदेव वन को कम्पायमान करते है।[ऋग्वेद 10.23.4]
The way rains shower drench-sock the animals, similarly Indr Dev sock his beard & moustache in Somras. Thereafter, he moves to the Yagy house, drink the Somras served there and shake his beard & moustache the way the air-Vayu Dev shake the jungle.
यो वाचा विवाचो मृध्रवाचः पुरू सहस्त्राशिवा जघान।
तत्तदिदस्य पौंस्यं गृणीमसि पितेव यस्तविषीं वावृधे शवः॥
शत्रु लोग नाना प्रकार के वचन बोल रहे थे। इन्द्र देव ने अपने वचन से उन्हें शान्त करके हजारों शत्रुओं का संहार कर डाला। जिस प्रकार पिता अन्न देकर पुत्र को बलिष्ठ बनाता है, उसी प्रकार ही वह मनुष्यों को बलिष्ठ बनाते हैं। हम इन्द्र देव की इन शक्तियों का वर्णन करते हैं।[ऋग्वेद 10.23.5]
The enemies were speaking several-various words. Indr Dev calmed them down and destroyed thousands of enemies. The way a father make his son powerful, similarly Indr Dev make the humans strong. We discuss-describe the powers of Indr Dev.
स्तोमं त इन्द्र विमदा अजीजनन्नपूर्व्यं पुरुतमं सुदानवे।
विद्मा ह्यस्य भोजनमिनस्य यदा पशुं न गोपाः करामहे
हे इन्द्र देव! विमद वंशियों ने आपको अतीव प्रतिष्ठित जानकर आपके लिए अति विलक्षण और अति अनुपम स्तुति बनाई। हम जानते हैं कि राजा इन्द्र देव की तृप्ति का साधन क्या है? जिस प्रकार चरवाहा गौ को खाने का लोभ दिखाकर उसे अपने पास बुलाता है, उसी प्रकार ही हम भी इन्द्र देव को आवाहित करते हैं।[ऋग्वेद 10.23.6]
Hey Indr Dev! Vimad clan descendants recognised you as a very glorious-honourable person sand composed unique-amazing Stuti for you. We know how to satisfy Indr Dev. The way a herds man call the cows enticing them with food, we too invoke Indr Dev.
माकिर्न एना सख्या वि यौषुस्तव चेन्द्र विमदस्य च ऋषेः।
विद्मा हि ते प्रमतिं देव जामिवदस्मे ते सन्तु सख्या शिवानि
हे इन्द्र देव! आपके और विमद ऋषि के साथ जो मित्रता का सम्बन्ध है, वह शिथिल न होने पावे। हे देव! जिस प्रकार भाई और बहन के मन में एकता होती है, उसी प्रकार ही आपके मन का ऐक्य हम जानते हैं। हमारे साथ आपका कल्याणकर बन्धुत्व स्थिर रहे।[ऋग्वेद 10.23.7]
Hey Indr Dev! Your friendly relations with Vimad Rishi should never become loose. Hey deity! The way brother and sister have similar thinking-innerself, similarly we recognise the similarly of our minds-innerself. Your beneficial brotherhood with us should persist.(09.10.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (24) :: ऋषि :- विमद ऐन्द्र, प्राजापत्य, वसुकृद्वा वासुक्र; देवता :- इन्द्र, अश्विनी कुमार; छन्द :- पंक्ति, अनुष्टुप्।
इन्द्र सोममिमं पिब मधुमन्तं चमू सुतम्।
अस्मे रयिं नि धारय वि वो मदे सहस्त्रिणं पुरुवसो विवक्षसे
हे इन्द्र देव! प्रस्तर फलकों के ऊपर रगड़े जाने पर यह मधुर सोमरस आपके लिए तैयार है। इसका पान करें। हे प्रचुर धन वाले इन्द्र देव! हमें सहस्त्र संख्यक प्रचुर धन प्रदान करें। विमद के लिए आप महान हैं।[ऋग्वेद 10.24.1]
Hey Indr Dev! Somras has been prepared-extracted for you by rubbing over stones. Drink it. Hey Indr Dev with lots of wealth! Grant us wealth in thousands. You are great for Vimad (Rishi).
त्वां यज्ञेभिरुक्थैरुप हव्येभिरीमहे।
शचीपते शचीनां वि वो मदे श्रेष्ठं नो धेहि वार्य विवक्षसे
हे इन्द्र देव! यज्ञीय सामग्री, स्तुति और होमीय वस्तु के द्वारा हम आपकी आराधना करते है। आप समस्त कर्मों के प्रभु हैं। समस्त कर्म आप सफल करते हैं। अतीव उत्तम और अभिलषित वस्तु हमें प्रदान करें। विमद के लिए आप महान् हैं।[ऋग्वेद 10.24.2]
Hey Indr Dev! We worship you with offerings, material used for Hawan, Stuti-prayers. You are lord of all effort (work, endeavours, deeds, Karm). Its you who make the efforts successful. Grant us best and desired goods. You are great for Vimad.
यस्पतिर्वार्याणामसि रध्रस्य चोदिता।
इन्द्र स्तोतृणामविता वि वो मदे द्विषो नः पाह्यंहसो विवक्षसे
आप विविध अभिलषित वस्तुओं के स्वामी हैं। आप उपासक को उपासना कार्य में प्रेरित करते हैं। आप स्तोताओं के रक्षक हैं। आप हमें शत्रुओं के हाथों से और पापों से बचावें।[ऋग्वेद 10.24.3]
You are the lord of various desired goods. You inspire us to worship. You are the protector of Stotas. Protect us from the enemies and sins.
युवं शका मायाविना समीची निरमन्थतम्।
विमदेन यदीळिता नासत्या निरमन्थतम्
हे कर्मनिष्ठ अश्विनी कुमारों! आपका कार्य अद्भुत है। आप सत्य रूप हैं। जिस समय विमद ऋषि ने आपकी स्तुति की, उस समय काठों में घर्षण करके और दोनों ने एकत्र होकर अग्नि देव का मन्थन किया। पृथक-पृथक नहीं।[ऋग्वेद 10.24.4]
Hey Ashwani Kumars, devoted to work! You performances are amazing. You are truthful. When Vimad Rishi worshiped you; you rubbed wood together and produced fire. 
विश्वे देवा अकृपन्त समीच्योर्निष्पतन्त्योः।
नासत्यावब्रुवन् देवाः पुनरा वहतादिति
हे अश्विनी कुमारों! जिस समय दोनों अरणि (अग्निदेव-मन्थन-काष्ठ) आपके हाथों से संचालित होकर इकट्ठे हुए और अग्नि देव स्फुलिंग बाहर करने लगे उस समय समस्त देवगण आपकी प्रशंसा करने लगे। देवगण अश्विनी कुमारों से कहने लगे लगे, "फिर ऐसा करना"।[ऋग्वेद 10.24.5]
Hey Ashwani Kumars! When you took the two pieces of wood to produce fire the demigods-deities appreciated whole heartedly. They inspired you to repeat performance.
मधुमन्मे परायणं मधुमत्पुनरायनम्।
ता नो देवा देवतया युवं मधुमतस्कृतम्
हे दोनों अश्विनी कुमारों! मेरा बाहर जाना प्रीतिकर हो। मेरा पुनरागमन भी वैसा ही मैं जब जहाँ जाऊँ, प्रीति प्राप्त करूँ। अपनी दिव्य शक्ति के बल से हमें सभी विषयों में सन्तुष्ट करें।[ऋग्वेद 10.24.6]
Hey Ashwani Kumar, duo! Let my outing-roaming increase love & affection. My coming back should yield same result. Satisfy us in all respect with your divine powers.(10.10.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (25) :: ऋषि :- विमद ऐन्द्र, प्राजापत्य, वसुकृद्वा वासुक्र; देवता :- सोम; छन्द :- पंक्ति।
भद्रं नो अपि वातय मनो दक्षमुत क्रतुम्।
अधा ते सख्ये अन्धसो वि वो मदे रणन् गावो न यवसे विवक्षसे
हे सोमदेव! हमारे मन को इस प्रकार उत्तम रूप से प्रेरित करें कि वह निपुण और कर्मनिष्ठ हो। जिस प्रकार गौवें घास में चरने में रत होती है, उसी प्रकार ही स्तोतागण अन्न के प्रति रत होते हैं। विमद ऋषि के लिए आप महान् है।[ऋग्वेद 10.25.1]
Hey Som Dev! Inspire our innerself-minds to make us expert and dedicated to work. The way cows  are busy in grazing grass, the Stota Gan are busy with food grains. You ae great for Vimad Rishi.
हृदिस्पृशस्त आसते विश्वेषु सोम धामसु।
अधा कामा इमे मम वि वो मदे वि तिष्ठन्ते वसूयवो विवक्षसे
हे सोम देव! पुरोहित गण स्तुति के द्वारा आपके चित्त का हरण करके चारों ओर बैठते है। धनप्राप्ति के लिए मेरे मन में नाना प्रकार की कामनाएँ उत्पन्न होती हैं। विमद ऋषि के लिए आप महान हैं।[ऋग्वेद 10.25.2]
Hey Som Dev! The Purohit Gan abduct your innerself sitting around you. Various-several desires-wishes evolve in my innerself for attaining wealth. You are great for Vimad Rishi. 
उत व्रतानि सोम ते प्राहं मिनामि पाक्या।
अधा पितेव सूनवे वि वो मदे मृळा नो अभि चिद्वधाद्विवक्षसे
हे सोम देव! अपनी इस परिणत बुद्धि के द्वारा मैं आपके कार्य का परिमाण करके देखता हूँ। जिस प्रकार पिता पुत्र के प्रति अनुकूल होता है, उसी प्रकार ही आप हमारे अनुकूल होवें। शत्रुओं का संहार करके हमें सुखी करें। विमद ऋषि के लिए आप महान् हैं।[ऋग्वेद 10.25.3]
Hey Som Dev! I visualise the quantum of your work-outcome with my matured intelligence. The way father is favourable to the son, you should be favourable to us, similarly. Destroy the enemies and make us happy. You are great for Vimad Rishi.
समु प्र यन्ति धीतयः सर्गासोऽवताँइव।
क्रतुं नः सोम जीवसे वि वो मदे धारया चमसाँइव विवक्षसे
हे सोम देव! जिस प्रकार कलश जल निकालने के लिए कुएँ के भीतर जाता है, उसी प्रकार ही हमारे समस्त स्तोत्र आपके लिए जाते हैं। हमारी प्राणरक्षा के लिए इस यज्ञ को सुसम्पन्न करें। जिस प्रकार जलपिपासु तीर के पास पानपात्र धारण करता है, उसी प्रकार ही आप हमें धारण करें। आप महान हैं।[ऋग्वेद 10.25.4]
Hey Som Dev! The way a vessel enters the well to draw water, similarly our Strotr come to you. Accomplish this Yagy for the protection of our lives. The way one desirous of drinking water hold his pot near the shore-bank, similarly your should support us. You are great.
तव त्ये सोम शक्तिभिर्निकामासो व्यूण्विरे।
गृत्सस्य धीरास्तवसो वि वो मदे व्रजं गोमन्तमश्विनं विवक्षसे
विविध-फलाभिलाषी समस्त बुद्धिमान व्यक्तियों ने अनेक प्रकार के कार्य करके आपकी स्तुति की, क्योंकि आप महान् और मेधावी है। फलतः आप गौ और अश्व से युक्त पशुओं वाला धन हमें प्रदान करें। आप महान है।[ऋग्वेद 10.25.5]
Intelligent people worshiped you in different way to accomplish their various desires since you are intelligent and great. Hence, grant us wealth accompanied with cows and horses. You are great.
पशुं नः सोम रक्षसि पुरत्रा विष्ठितं जगत्।
समाकृणोषि जीवसे वि वो मदे विश्वा संपश्यन्भुवना विवक्षसे
हे सोम देव! हमारे पशुओं की रक्षा करें और नाना मूर्तियों में स्थित विशाल भुवनों की रक्षा करें। हमारे प्राणधारण के लिए समस्त भुवनों का अन्वेषण करके जीवनोपाय प्रदान करें। विमद ऋषि के लिए आप महान हैं।[ऋग्वेद 10.25.6]
Hey Som Dev! Protect our animals and protect large abodes present in different statues. For us to bear life, analyse all abodes and grant us means to sustain life. You are great for Vimad Rishi. 
त्वं नः सोम विश्वतो गोपा अदाभ्यो भव।
सेध राजन्नप स्त्रिधो वि वो मदे मा नो दुःशंस ईशता विवक्षसे
हे राजा सोम देव! आप सब प्रकार से हमारे लिए रक्षक हों। क्योंकि आप दुर्द्धर्ष हैं। शत्रुओं को दूर कर दें। हमारा निन्दक हमारा कुछ न करने पावें। विमद ऋषि के लिए आप महान् हैं।[ऋग्वेद 10.25.7]
Hey king Som Dev! You should be protective for us by all means. Repel the enemies. Our detractor should not be able to harm us. You are great for Vimad Rishi.
त्वं नः सोम सुकतुर्वयोधेयाय जागृहि।
क्षेत्रवित्तरो मनुषो वि वो मदे द्रुहो नः पाह्यंहसो विवक्षसे॥
पाप अतीव सुन्दर है। आप हमें अन्न देने के लिए सतर्क रहते पाप से भी बचावें। आप महान हैं। हमें भूमि देने के लिए आपके समान कोई नहीं है। अनिष्टकर्ताओं के हाथ से हमारी रक्षा करेंगे[ऋग्वेद 10.25.8]
Sin is too beautiful. While granting us food grains, be alert and save us from sins. You are great. None can compare you in terms of granting us land. Protect us from those who intend to harm us.
त्वं नो वृत्रहन्तमेन्द्रस्येन्दो शिवः सखा।
यत्सीं हवन्ते समिथे वि वो मदे युध्यमानास्तोकसातौ विवक्षसे
जिस समय भयंकर युद्ध उपस्थित होता है और अपनी सन्तानों का उसमें बलिदान करना पड़ता है और जिस समय योद्धा शत्रु चारों ओर से हमें युद्ध के लिए बुलाते हैं, उस समय हे सोम देव! आप इन्द्र देव के सहायक होते हैं। उन्हें विपत्ति से बचाते हैं, क्योंकि आपके समान शत्रु संहारक कोई नहीं है। आप विमद ऋषि के लिए महान् हैं।[ऋग्वेद 10.25.9]
In case of furious battle-war and we have to sacrifice our progeny in it. The warriors call us from all sides for war. Hey Som Dev! You become helping hand to Indr Dev. Protect him from trouble since none other person is as dangerous destroyer as you. You are great for Vimad Rishi.
अयं घ स तुरो मद इन्द्रस्य वर्धत प्रियः।
अयं कक्षीवतो महो वि वो मदे मतिं विप्रस्य वर्धयद्विवक्षसे
सोम समस्त कार्यों में क्षिप्रकारी हैं। वह मदकर और इन्द्र देव के तर्पक हैं। सोम ने महामेधावी कक्षीवान् ऋषि की बुद्धि को बढ़ाया। विमद ऋषि के लिए आप महान है।[ऋग्वेद 10.25.10]
Som makes the innerself-mind unstable & quick in all works-efforts. It causes intoxication and satisfy Indr Dev. Som taught highly intelligent-genius Kakshiwan Rishi.  You are great for Vimad Rishi.
अयं विप्राय दाशुषे वाजाँ इयर्ति गोमतः।
अयं सप्तभ्य आ वरं वि वो मदे प्रान्धं श्रोणं च तारिषाद्विवक्षसे
सोम मेधावी और हवि देनेवाले यजमान को पशु युक्त अन्न प्रदान करते है। यही सोम सातों होताओं को श्रेष्ठ धन प्रदान करते हैं। सोम ने अंधे दीर्घतमा ऋषि को नेत्र ओर लँगड़े परावृज ऋषि को पैर प्रदान किए। विमद ऋषि के लिए आप महान् हैं।[ऋग्वेद 10.25.11]
Som Dev grant animals to intelligent hosts making offerings. Som grants best riches to the seven hosts. Som granted eyes to Deerghtama Rishi and legs to lame Paravrj Rishi. You are great for Vimad Rishi.(11.10.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (26) :: ऋषि :- विमद ऐन्द्र, प्राजापत्य, वसुकृद्वा वासुक्र; देवता :- पूषा; छन्द :- उष्णिक्, अनुष्टुप्।
प्र ह्यच्छा मनीषाः स्पार्हा यन्ति नियुतः। प्र दस्त्रा नियद्रथः पूषा अविश माहिनः॥
अतीव उत्कृष्ट स्तोत्र प्रस्तुत किये गये हैं। उन सबको पूषादेव के प्रति प्रयोग किया जाता है। वे श्रेष्ठ देव सदैव रथ को जोतने वाले हैं। वे आकर यजमान और उनकी पत्नी की  रक्षा करें।[ऋग्वेद 10.26.1]
Extrememly good Strotr have been presented for Pusha Dev. The diety deploy best charoite. He should come and protect the host with his wife.
यस्य त्यन्महित्वं वाताप्यमयं जनः। विप्र आ वंसद्धीतिभिश्चिकेत सुष्टुतीनाम्
मेधावी यजमान पूषा (सूर्य) के मण्डल में जो जल का भण्डार है, उसे यज्ञ के द्वारा पृथ्वी पर ले आवें। पूषादेव यजमान का स्तोत्र श्रवण करते हैं।[ऋग्वेद 10.26.2]
Let intelligent deity Pusha being the water present in the solar system to earth through Yagy. Pusha Dev attend-respond to the Strotr by the host.
स वेद सुष्टुतीनामिन्दुर्न पूषा वृषा। अभि प्सुरः प्रुषायति व्रजं न आ प्रुषायति
पूषा देव सोम के समान रस का सेचन करने वाले हैं। वे उत्तम स्तोत्र सुनते हैं। सुशोभित पूषा जल का सिंचन करते हैं। हमारे गोष्ठ में भी जल का सिंचन करते हैं।[ऋग्वेद 10.26.3]
Pusha Dev too pollinate the sap like Som. He listen to excellent Strotr. Decorated Pusha irrigate water. He irrigate water in our cow shed as well.
मंसीमहि त्वा वयमस्माकं देव पूषन्। मतीनां च साधनं विप्राणां चाधवम्
हे पूषा देव! हम मन ही मन आपका ध्यान करते हैं। आप हमारे स्तोत्र को स्फूर्ति प्रदान करें। आपकी सेवा के लिए पुरोहित गण व्यस्त रहते हैं।[ऋग्वेद 10.26.4]
Hey Pusha Dev! We silently meditate upon you. Grant aura-energy to our Strotr. The Priests remain busy in serving you.
प्रत्यर्धिर्यज्ञानामश्वहयो रथानाम्। ऋषिः स यो मनुर्हितो विप्रस्य यावयत्सखः
पूषा देव यज्ञ के अर्द्धांश के भागी हैं। वे रथ में घोड़े नियोजित कर जाते हैं। वे मनुष्यों के परम हितैषी हैं। वे बुद्धिमान के मित्र हैं। वे उनके शत्रुओं को दूर कर देते हैं।[ऋग्वेद 10.26.5]
Pusha Dev is a fifty percent partner in the Yagy. He deploy horses in the charoiute to go. He is the best well wisher of humans. He repels the enemeies of humans.
आधीषमाणायाः पतिः शुचायाश्च शुचस्य च।
वासोवायोऽवीनामा वासांसि मर्मृजत्
गर्भाधान करने में समर्थ और सुन्दर मूर्ति छागी और छाग आदि पशुओं के प्रभु पूषा हैं। वे ही मेष लोम का वस्त्र बुनते हैं और वे ही वस्त्र धो देते हैं।[ऋग्वेद 10.26.6]
Pusha is the lord of deers capable of impragnation. He weavs the cloth with sheep wool. He washes the cloths as well.
इनो वाजानां पतिरिनः पुष्टीनां सखा। प्र श्मश्रु हर्यतो दूधोद्वि वृथा यो अदाभ्यः
प्रभु पूषा देव अन्न के अधिपति हैं। प्रभु पूषादेव सबके लिए पुष्टिकर हैं। वे ही सौम्यमूर्ति और दुर्द्धर्ष पूषादेव अपने कर्मों में अपने केशों को हिलाते हुए चलते हैं।[ऋग्वेद 10.26.7]
Deity Pusha is the lord of food grains. Pusha Dev nourishes every one. Calm & composed, invincible Pusha Dev shake his hair while moving & performing work. 
आ ते रथस्य पूषन्नजा धुरं ववृत्युः। विश्वस्यार्थिनः सखा सनोजा अनपच्युतः
हे पूषा देव! छाग आपके रथ की धुरी का वहन करने लगे। आप अनेक समय पहले जन्मे थे। आप कभी भी अपने अधिकार से वंचित नहीं हुए। समस्त याचकों की मनोकामना पूर्ण करते हैं।[ऋग्वेद 10.26.8]
Hey Pusha Dev! The deer hold the axcel of your charoite, pull the charoite. You took birth several times before as well. You were never deprived off your rights. You accomplish the desires-0wished of rthe Ritviz.
अस्माकमूर्जा रथं पूषा अविष्टु माहिनः।
भुवद्वाजानां वृध इमं नः शृणवद्धवम्
वे ही महिमामय पूषा देव अपने बल के द्वारा हमारे रथ की रक्षा करें। वे अन्न और बुद्धि हमें प्रदान करें। वे हमारे इस निमंत्रण के अभिप्राय को जानें।[ऋग्वेद 10.26.9]
Let glorious Pusha Dev protect our charoite with his strength-power. He should grant us food grains & intelligence. He should understand the reason of our invitation.(12.10.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (27) :: ऋषि :- वासुक्र ऐन्द्र; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप्।
असत्सु मे जरितः साभिवेगो यत्सुन्वते यजमानाय शिक्षम्।
अनाशीर्दामहमस्मि प्रहन्ता सत्यध्वृतं वृजिनायन्तमाभुम्
(इन्द्र देव की उक्ति) हे भक्त स्तोता! मेरा यह स्वभाव है कि सोमयज्ञ के अनुष्ठाता यजमान को मैं अभिलषित फल प्रदान करता हूँ। जो मुझे होमीय द्रव्य नहीं देता, वह सत्य को नष्ट करता है। जो चारों ओर पाप करता फिरता है, मैं उसका सर्वनाश करता हूँ।[ऋग्वेद 10.27.1]
Indr Dev siad, hey devotee-Stota! Its my nature to accomplish the desires of the performer of Som Yagy. One who fail to offer me Hawan's comomdites; destroy the truth. He keep on spreading sin all around and is vanished by me.
यदीदहं युदये संनयान्यदेवयून् तन्वा ३ शूशुजानान्।
अमा ते तुम्रं वृषभं पचानि तीव्र सुतं पञ्च ऽ दशम् नि षिञ्चम्
(ऋषि का कथन है) जो लोग देवानुष्ठान नहीं करते और केवल अपने उदर का पोषण करते हैं, जिस समय ऐसे लोगों के साथ मैं युद्ध करने जाता हूँ, उस समय हे इन्द्र देव! आपके लिए पुरोहितों के साथ स्थूलकाय वृषभ का पाक करता हूँ। मैं पन्द्रह तिथियों में से प्रत्येक तिथि को सोमरस समर्पित करता हूँ।[ऋग्वेद 10.27.2]
The Rishi said! Those who fail to worship the deities and keep on filling their belly-stomach, at this juncture when I fight with them, hey Indr Dev! I cook a large bodied bull-ox with the help of priests for you. I offer Somras for fifteen days.
नाहं तं वेद य इति ब्रवीत्यदेवयून्त्समरणे जघन्वान्।
यदावाख्यत्समरणमृघावदादिद्ध मे वृषभा प्र ब्रुवन्ति
(इन्द्रदेव की उक्ति है) मैंने ऐसा किसी को भी नहीं देखा, जो यह कहे कि मैंने देवशून्य और देवकर्मशून्य व्यक्तियों का युद्ध में वध किया। जिस समय युद्ध में जाकर मैं उनका संहार करता हूँ, उस समय सभी हमारे वीरतापूर्ण कर्मों का विस्ताररूप से वर्णन करते हैं।[ऋग्वेद 10.27.3]
Indr Dev pleaded, I have not seen any one who can say that I killed those who were non devotees and did not perform rituals pertaining to demigods-deities. When I kill them in the war, everyone describe our bravery in detail.
यदज्ञातेषु वृजनेष्वासं विश्वे सतो मघवानो म आसन्।
जिनामि वेत्क्षेम आ सन्तमाभुं प्र तं क्षिणां पर्वते पादगृह्य
जब मैं युद्ध क्षेत्र में पहुँचता हूँ, उस समय समस्त ऋषि मुझे घेर लेते हैं। प्रजा के मंगल के लिए मैं सर्वत्र विहार करने वाले शत्रुओं का संहार करता हूँ। उनके पैर पकड़कर उन्हें पत्थर के ऊपर फेंक देता हूँ।[ऋग्वेद 10.27.4]
I am surrounded by all the Rishis when I reach the battle field. I roam all around to kill the enemies for the welfare of populace. I hold their legs and strike them over the rocks.
न वा उ मां वृजने वारयन्ते न पर्वतासो यदहं मनस्ये।
मम स्वनात्कृधुकर्णो भयात एवेदनु द्यून्किरणः समेजात्
युद्ध में मुझे पराजित करने वाले कोई नहीं है। यदि मैं चाहूँ तो पर्वत भी मेरा विरोध नहीं कर सकता। जिस समय मैं शब्दनाद करता हूँ, उस समय जिसका कान बधिर है, वह भी डर जाता है और किरणों के स्वामी सूर्यदेव भी प्रतिदिन कम्पायमान होते हैं।[ऋग्वेद 10.27.5]
There is none to defeat me in the war. Even the mountain can not oppose me, if I desire so. When I make Naad, even the deaf become afraid and Sury Dev-lord of rays, too tremble.
दर्शन्नवत्र शृतपाँ अनिन्द्रान्बाहुक्षदः शरवे पत्यमानान्।
घृषुं वा ये निनिदुः सखायमध्यू न्वेषु पवयो ववृत्युः
मैं इन्द्र देव हूँ। मुझे जो लोग नहीं मानते, जो लोग देवगणों के लिए प्रस्तुत सोमरस बलपूर्वक पी जाते हैं और जो भुजाएँ भाँजते हुए हिंसा करने के लिए आते हैं, उनको मैं तत्काल देख लेता हूँ। मैं महान् हूँ, मैं सबका मित्र हूँ। जो लोग मेरी निन्दा करते हैं, उन पर निश्चितरूप से मेरे वज्र का प्रहार होता है।[ऋग्वेद 10.27.6]
I am Indr, king of heavens. Those who not care for me and snatch the Somras meant for the demigods-deities and drink it and are ready to make violence, I immediately observe them-punish them. I am great and friend of all. Those who condemn me, I definitely strike them with Vajr.
अभूर्वौक्षीर्यु १ आयुरानड्दर्षन्नु पूर्वो अपरो नु दर्षत्।
द्वे पवस्ते परि तं न भूतो यो अस्य पारे रजसो विवेष
(ऋषि का कथन है) हे इन्द्र देव! आपने दर्शन दिया, वर्षा भी की। आपने सुदीर्घ आयु प्राप्त की। आपने पहले भी शत्रुओं का विनाश किया; पश्चात् भी किया। इन्द्र देव समस्त संसार के अपरंपार है; सर्वव्यापक द्यावा-पृथ्वी उनको नहीं माप सकते।[ऋग्वेद 10.27.7]
The Rishi pleaded, hey Indr Dev! You invoked and caused rain as well. You attained long life. You have been destroying the enemies and will do it later as well. Indr Dev is beyond limits-bounds. All pervading heavens & earth too can not measure him.
गावो यवं प्रयुता अर्यो अक्षन् ता अपश्यं सहगोपाश्चरन्तीः।
हवा इदर्यो अभितः समायन्कियदासु स्वपतिश्छन्दयाते
(इन्द्रदेव की उक्ति है) अनेक गौवें इकट्ठी होकर जौ खा रही हैं। मैं इन्द्रदेव हूँ, स्वामी के समान मैं गायों की देख-भाल करता हूँ। मैं देखता हूँ कि वह चरवाहों के साथ चर रही है। बुलाने के साथ ही वह गौवें अपने स्वामी के पास पहुँच गई। स्वामी ने गायों से प्रचुर दूध का दोहन कर लिया।[ऋग्वेद 10.27.8]
Indr Dev argued. Many cows are grazing together. I am Indr. I too care for the cows in addition to their owner. I see that they are grazing with their herdsmen. Cows reached their owner on being called. Their owner milked sufficient milk from them.
सं यद्वयं यवसादो जनानामहं यवाद उर्वज्र अन्तः।
अत्रा युक्तोऽवसातारमिच्छादथो अयुक्तं युनजद्ववन्वान्
(ऋषि की व्यापक अनुभूति) संसार में जो तृण खाने वाले हैं, वह हम ही हैं। जो अन्न व यब खाने वाले मनुष्य हैं, वह भी हम ही है। विस्तृत हृदयाकाश में जो अन्तर्यामी ब्रह्म है, वह मैं ही हूँ। हृदयाकाश में रहने वाले इन्द्र देव अपने सेवक को चाहते हैं। योगरहित और अतीव विषयी पुरुष को इन्द्र देव सन्मार्ग में लगाते हैं।[ऋग्वेद 10.27.9]
The Rishi widely experienced, sensed, felt. We are the ones who eat straw. Those who eat food grains and barley, are us. I am all watching Brahm present in the universe-sky. Indr Dev like his workers-servants who stay in his heart. Indr Dev brings lascivious and those who do not have Yog to the right path.
अत्रेदु मे मंससे सत्यमुक्तं द्विपाच यचतुष्पात्संसृजानि।
स्त्रीभिर्यो अत्र वृषणं पृतन्यादयुद्धो अस्य वि भजानि वेदः
(इन्द्र देव का कथन है) मैं यहाँ जो कहता हूँ, वह सत्य है, निश्चय जानो। द्विपद (मनुष्य) और चतुष्पद (पशु) सबकी सृष्टि मैं ही करता हूँ। जो व्यक्ति स्त्रियों के साथ पुरुषों को युद्ध करने के लिए भेजता है, उसका धन बिना युद्ध के ही हरण करके मैं भक्तों को प्रदान करता हूँ।[ऋग्वेद 10.27.10]
Indr Dev said. Be certain, what ever I say here is true. I evolve-create the two legged and four legged. One who sends the women to battle filed, I snatch their wealth and grant it to the devotees.
यस्यानक्षा दुहिता जात्वास कस्तां विद्वाँ अभि मन्याते अन्धाम्।
कतरो मेनिं प्रति तं मुचाते य ईं वहाते वा वरेयात्
जिस किसी भी अन्धी कन्या को कौन बुद्धिमान् आश्रय देगा? जो उसका वहन करता है और जो उसका वरण करता है, उसकी हिंसा कौन करेगा?[ऋग्वेद 10.27.11]
Which intellectual will shelter a blind girl? Who will hurt one who support her, marry her?
कियती योषा मर्यतो वधूयोः परिप्रीता पन्यसा वार्येण।
भद्रा वधूर्भवति यत्सुपेशाः स्वयं सा मित्रं वनुते जने चित्
कितनी ऐसी स्त्रियाँ हैं, जो केवल द्रव्य से ही प्रसन्न होकर स्त्री चाहने वाले पुरुष के ऊपर आसक्त होती है। जो स्त्री भद्र व सभ्य है, जिसका शरीर सुसंगठित है, वह अनेक पुरुषों में से अपने मन के अनुकूल प्रिय पात्र को पति के रूप में स्वीकार करती है।[ऋग्वेद 10.27.12]
There are several women who become happy with the person who offer them money. The gentle woman, cultured with well built-beautiful body, accept a person of her choice as her husband.(13.10.2024)
पत्तो जगार प्रत्यञ्चमत्ति शीर्णा शिरः प्रति दधौ वरूथम्।
आहीन ऊर्ध्वामुपसि क्षिणाति न्यङ्गुत्तानामन्वेति भूमिम्
सूर्य देव अपनी किरणों के द्वारा प्रकाश को फैलाते हैं, अपने मंडल में स्थित प्रकाश का ग्रास करते हैं और अपने मस्तक को ढकने वाले किरणों को लोगों के मस्तक पर फेंकते हैं। ऊपर स्थिर होकर वह अपने पास से प्रकाश फेंकते हैं और नीचे पृथ्वी पर आलोक का विस्तार करते हैं।[ऋग्वेद 10.27.13]
Sury Dev spread light through his rays. He eats away the darkness around him and through the rays from his head to the populace. He remains up and spread the light leading to visibility over earth.
बृहन्नच्छायो अपलाशो अर्वा तस्थौ माता विषितो अत्ति गर्भः।
अन्यस्या वत्सं रिहती मिमाय कया भुवा नि दधे धेनुरुधः
जिस प्रकार पत्र हीन वृक्ष की छाया नहीं रहती, उसी प्रकार ही इन प्रकाण्ड और विचरणशील सूर्य देव की छाया नहीं होती। द्युलोक स्वरूप माता स्थिर होकर बोली, "सूर्य स्वरूप गर्भस्थ शिशु पृथक होकर दुग्ध का पान करते हैं। यह (द्युलोक रुपिणी)" गाय दूसरी गाय (अदिति) के बछड़े को प्रेम के साथ चाटकर स्थापित करती है। इस गाय ने अपने स्तन को रखने का स्थान कहाँ पाया?[ऋग्वेद 10.27.14]
The way a tree with out leaves has no shadow, similarly Sury Dev too do not have shadow. Mother present in the heavens became stable and said, "The child in the womb drinks milk only after taking birth". The heavens as cows lick the calf of another cows mother-Dev Mata Aditi. Where did this mother kept her udder?
सप्त वीरासो अधरादुदायन्नष्टोत्तरात्तात्समजग्मिरन् ते।
नव पश्चातात्स्थिविमन्त आयन् दश प्राक्सानु वि तिरन्त्यश्नः
इन्द्र रूप प्रजापति के शरीर से विश्वामित्र आदि सात ऋषि उत्पन्न हुए। उनके उत्तरी शरीर से बालखिल्य आदि आठ ऋषि उत्पन्न हुए। पीछे से भृगु आदि नौ ऋषि उत्पन्न हुए। अङ्गिरा आदि आगे से उत्पन्न हुए। ये सभी भोजन (यज्ञांश का भक्षण) करते हुए द्युलोक से उत्पन्न क्षेत्रों का सवर्द्धन करने लगे।[ऋग्वेद 10.27.15]
Seven Rishis evolved out of Indr Dev as Prajapati. From his Northern region evolved eight Rishis named Balkhily etc. Thereafter nine Rishis named Bhragu etc. evolved. Angira evolved separately. They all ate the offerings of Yagy and started developing the abodes in the heavens.
दशानामेकं कपिलं समानं तं हिन्वन्ति क्रतवे पार्याय।
गर्भं माता सुधितं वक्षणास्ववेनन्तं तुषयन्ती बिर्भर्ति
दस अङ्गिरा लोगों में एक पिङ्गल वर्ण वाले कपिल ऋषि हैं। उन्हें यज्ञ की साधना के लिए प्रेरित किया गया। सन्तुष्ट होकर माता ने जल में गर्भाधन किया।[ऋग्वेद 10.27.16]
Out of ten Angiras, one with yellow colour is Kapil Rishi. He was inspired to accomplish Yagy. On being satisfied, mother conceived in water.
पीवानं मेषमपचन्त वीरा न्युप्ता अक्षा अनु दीव आसन्।
द्वा धनुं बृहतीमप्स्व १ न्तः पवित्रवन्ता चरतः पुनन्ता
प्रजापति अर्थात् ब्रह्माजी के पुत्र अङ्गिरा लोगों ने मोटे-मोटे मेष (अज) को पाया। पाशा क्रीड़ा स्थान में पाश फेंके गये। इनमें से दो प्रकाण्ड धन लेकर मत्रोच्चारण के द्वारा अपने शरीर को शुद्ध करते-करते जल के मध्य में विचरण करने लगे। [ऋग्वेद 10.27.17]
Prajapati Brahma Ji's Angira got fat sheep. Dices were thrown in the playing place. Out of these two enlightened got wealth, sanctified their body and stated moving-playing in water.
वि क्रोशनासो विष्वञ्च आयन् पचाति नेमो नहि पक्षदर्ध:
अयं मे देवः सविता तदाह द्र्वन्न इद्वनवत्सर्पिरन्नः
चीत्कार करने वाले और नाना गति अङ्गिरा लोग ब्रह्माजी से उत्पन्न हुए। उनमें आधे लोग ब्रह्माजी के लिए हवि का पाक करते हैं और आधे नहीं। इन बातों को सूर्य देव ने मुझ से कहा। काष्ठ एवं घृत का सेवन करने वाले अग्नि देव भी देवगणों के लिए हव्य पकाते हैं।[ऋग्वेद 10.27.18]
Screaming Angiras with various speeds evolved out of Brahma Ji. Out of them half prepared offerings for Brahma Ji and the remaining half did not do so. Sury Dev told me this. Agni Dev cooked offerings for demigods-deities, using wood & Ghee.
अपश्यं ग्रामं वहमानमारादचकया स्वधया वर्तमानम्।
सिषत्क्त्यर्यः प्र युगा जनानां सद्यः शिश्ना प्रमिनानो नवीयान्
अनेक लोग दूर से आते हैं। वे स्वयं सिद्ध आहार के द्वारा प्राण धारण करते हैं। उनके प्रभु दो-दो व्यक्तियों को योजित करते हैं, उनकी अवस्था नई है।  वे तत्काल शत्रुओं का संहार करते हैं।[ऋग्वेद 10.27.19]
Many people come from distant places. They support-sustain life by eating. Their lord support two people as a new plan. They destroy the enemy immediately. 
एतौ मे गावी प्रमरस्य युक्तौ मो षु प्र सोधीर्मुहुरिन्ममन्धि।
आपाश्चिदस्य वि नशन्त्यर्थं सूरश्च मर्क उपरो बभूवान्
मेरा नाम प्रमर या मारक है। मेरे ये दो बैल योजित हुए हैं। इनकी ताड़ना न करें। इसे बार-बार सान्त्वना दें। इनका धन जल में नष्ट होता है। जो वीर गायों का शोधन करना जानता है, वही ऊपर उठता है।[ऋग्वेद 10.27.20]
My name is Pramar or destroyer. I have deployed two bull-oxen. Do not admonish-hurt them. Their wealth is lost in water. The brave person who sanctify-grow the cows rise up-progress.
अयं यो वज्रः पुरुधा विवृत्तोऽवः सूर्यस्य बृहतः पुरीषात्।
श्रव इदेना परो अन्यदस्ति तदव्यथी जरिमाणस्तरन्ति
यह वज्र प्रकाण्ड सूर्यमंडल के नीचे अति घोर वेग से गिरता है। इसके अनन्तर और भी स्थान है। जो स्तोता है, वे अनायास उस स्थान को पार कर जाते हैं।[ऋग्वेद 10.27.21]
Vajr strikes under the solar system with great speed. After this there are many places. There after Stotas crosses every place spontaneously.
वृक्षेवृक्षे नियता मीमय गौस्ततो मीमयद्गौस ततो वयः प्र पतान्पूरुषादः।
अथेदं विश्वं भुवनं मयात इन्द्राय सुन्वदृषये च शिक्षत्
प्रत्येक वृक्ष (काष्ठ निर्मित धनुष) के ऊपर गौ अर्थात गौ के स्नायु से निर्मित प्रत्यञ्चा शब्द करती है। शत्रु भक्षणकारी बाण निकलते हैं। इससे समस्त संसार डरता है। सब लोग इन्द्र देव को सोमरस प्रदान करते हैं। ऋषिगण शिक्षण प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 10.27.22]
Bow prepared with wood has the cord from the body-nerves of the cow. The enemy bring out destructive arrows. Whole world is afraid of them. All people offer Somras to Indr Dev. The Rishi Gan grant education.
देवानां माने प्रथमा अतिष्ठन् कृन्तत्रादेषामुपरा उदायन्।
त्रयस्तपन्ति पृथिवीमनूपा द्वा बृबूकं वहतः पुरीषम्
देवों के सृष्टि काल में प्रथम मेघ देखे गये। इन्द्र देव ने मेघ का छेदन किया, जिससे जल निकला। पर्जन्य, वायु और सूर्य, ये तीन उद्भिज्जों का परिपाक करते हैं। वायु देव और सूर्य देव प्रीतिकर जल का वहन करते हैं।[ऋग्वेद 10.27.23]
Clouds were formed when the demigods-deities evolved. Indr Dev teared through the clouds leading to rain fall. Parjany Dev, Vayu Dev and Sury Dev evolved the organism who comes out of the earth like eggs. Vayu Dev & Sury Dev support lovely water.
सा ते जीवातुरुत तस्य विद्धि मा स्मैतादृगप गूहः समर्ये।
आवि स्वः कृणुते गूहते बुसं स पादुरस्य निर्णिजो न मुच्यते
सूर्य देव ही आपके प्राणाधार हैं। यज्ञ के समय सूर्य देव के उस प्रभाव का वर्णन और स्तवन करें। सूर्य देव ने द्युलोक को प्रकाशित किया। सूर्य देव शोषण करते हैं। वे परिष्कारक हैं। वे अपनी गति का कभी त्याग नहीं करते।[ऋग्वेद 10.27.24]
Sury Dev support life. During the Yagy affect-characterises of Sury Dev be recited. Sury Dev lit heavens. Sury Dev sucks (water etc.) He is a purifier. He never stops moving.(14.10.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (28) :: ऋषि :- इन्द्रस्नुषा वसुक्रपत्नी, ऋषिकाइन्द्र, ऐन्द्र वासुक्र; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप्।
विश्वो ह्य १ न्यो अरिराजगाम ममेदह श्वशुरो ना जगाम।
जक्षीयाद्धाना उत सोमं पपीयात्स्वाशितः पुनरस्तं जगायात्
समस्त देवगण हमारे यज्ञ में आये हैं। केवल मेरे श्वशुर इन्द्र देव नहीं आये। यदि वे आये रहते तो भुना हुआ जौ खाते और सोमपान करते। आहारदि करके पुनः अपने घर लौट जाते।[ऋग्वेद 10.28.1]
All demigods-deities have come to our Yagy. Only my father in law, Indr Dev has not come. Had he come, he would have eaten roasted barley and drink Somras. After having lunch and eatables, he would have returned.
स रोरुवषभस्तिग्मशृङ्गो वर्षान्तस्थौ वरिमन्ना पृथिव्याः।
विश्वेष्वेनं वृजनेषु पामि यो मे कुक्षी सुतसोमः पृणाति
इन्द्र देव का कथन, तीखे सींग वाले बैल के सदृश शब्द करते हुए मैं  पृथ्वी के उन्नत और विस्तीर्ण प्रदेश में रहता हूँ, जो मुझे भरपेट सोमरस पीने को देता है, मैं उसकी रक्षा करता हूँ।[ऋग्वेद 10.28.2]
Indr Dev says that he resides over the elevated places-regions of earth like a bull with sharp horns. He protects those who offer him enough Somras.
अद्रिणा ते मन्दिन इन्द्र तूयान्त्सुन्वन्ति सोमान्पिबसि त्वमेषाम्।
पचन्ति ते वृषभाँ अत्सि तेषां पृक्षेण यन्मघवन्हूयमानः
हे इन्द्र देव! अन्न कामना से जिस समय आपके लिए हवन किया जाता है, उस समय यजमान शीघ्र प्रस्तर-फलकों पर मदकर सोम प्रस्तुत करते हैं। उसका आप पान करते हैं। यजमान बैल पकाते हैं; आप उनका भक्षण करते हैं।[ऋग्वेद 10.28.3]
Hey Indr Dev! When Hawan is performed with the desire of food grains, hosts quickly offer Somras to you over stone panels. You drink it. Hosts cook bull-ox and you eat it.
इदं सु मे जरितरा चिकिद्धि प्रतीपं शापं नद्यो वहन्ति।
लोपाशः सिंहं प्रत्यश्चमत्साः कोष्टा वराहं निरतक्त कक्षात्
हे इन्द्र देव! आप मुझे ऐसी सामर्थ्य प्रदान करें, मेरी इच्छा होने पर नदी का जल विपरीत व दिशा में बहने लगे, तिनका खाने वाला हरिण, सिंह को पराङ्‌मुख करके उसके पीछे-पीछे दौड़े और श्रृंगाल वराह को वन से पलायित कर दे।[ऋग्वेद 10.28.4]
Hey Indr Dev! Grant me such powers that river start flowing in reverse direction, the deer eating straw should chase the lion and the jackal push the pig into forest.
कथा त एतदहमा चिकेतं गृत्सस्य पाकस्तवसो मनीषाम्।
त्वं नो विद्वाँ को ऋतुथा वि वोचो यमर्धं ते मघवन् क्षेम्या धूः॥
मैं अपरिपक्व बुद्धि हूँ। आप प्राचीन और बुद्धिमान् हैं। मेरी शक्ति कहाँ कि मैं आपका स्तोत्र कर सकूँ। किन्तु समय-समय पर आप हमें उपदेश देते हैं, इसलिए आपका स्तोत्र कुछ-कुछ कर सकते हैं।[ऋग्वेद 10.28.5]
I am immature. You are eternal & intelligent. I have no power to recite Strotr for you. Time to time you advise us, so I may recite-compose Strotr for you in segments.
एवा हि मां तवसं वर्धयन्ति दिवश्चिन्मे बृहत उत्तरा धूः।
पुरू सहस्त्रा नि शिशामि साकमशत्रुं हि मा जनिता जजान
इन्द्र देव की उक्ति, मैं प्रचीन हूँ। स्तोता लोग मेरी इस प्रकार की स्तुति करते हैं कि मेरा कार्यभार स्वर्ग से भी बड़ा है। मैं एक ही साथ हजारों शत्रुओं को मार डालता हूँ। मेरे जन्म दाता ने मेरा जन्म ही ऐसा किया है कि मेरा कोई शत्रु नहीं टिक सकता।[ऋग्वेद 10.28.6]
Indr Dev pleaded, "I am eternal. The Stota worship me such that my duties are much more larger than the heavens. I kill thousands of enemies at once. Vidhata (creator Brahma Ji) evolved me such that the enemy can not face me".
एवा हि मां तवसं जजुरुग्रं कर्मन्कर्मन्वृषणमिन्द्र देवाः।
वधीं वृत्रं वज्रेण मन्दसानोऽप व्रजं महिना दाशुषे वम्
हे इन्द्र देव! देवता लोग मुझे आपके ही समान प्राचीन, प्रत्येक कर्म में शूर फल के दाता समझते हैं। आह्लाद के साथ मैंने वज्र के द्वारा वृत्रासुर का वध किया। मैंने अपनी महिमा से दाता को गोधन प्रदान किया।[ऋग्वेद 10.28.7]
Hey Indr Dev! Demigods-deities consider me eternal like you and capable of awarding for bravery. I killed Vratra Sur with Vajr happily. I grant cows to the donors due to my glory.
देवास आयन्परशूरबिभ्रन् वना वृश्चन्तो अभि विद्भिरायन्।
नि सुद्र्वं १ दधतो वक्षणासु यत्रा कृपीटमनु तद्दहन्ति
अपने हाथों में अस्त्र-शस्त्र लेकर देवता लोग आते हैं और वे लोगों के सहयोग से मेघों को विदिर्ण करके जल की वर्षा करते हैं। नदियों में उस सुन्दर जल को गिराते हैं। वे जहाँ मेघजल देखते हैं, उसे जलाकर जल निकाल देते हैं।[ऋग्वेद 10.28.8]
Demigods-deities come with their weapons in their hands and tear the clouds with the help of populace. Let the water fall in rivers. When ever they find water in clouds, shake them and cause rains.
शशः क्षुरं प्रत्यचं जगाराद्रिं लोगेन व्यभेदमारात्।
बहन्तं चिदृहते रन्ययाति वयद्वत्सो वृषभं शूशुवानः
इन्द्र देव के चाहने पर खरगोश भी आते हुए सिंह आदि का सामना करता है और दूर से एक ढेला फेंककर मैं पर्वत को भी तोड़ सकता हूँ। क्षुद्र के वश में महान भी आ जाता है और बछड़ा बढ़कर साँड़ के साथ लड़ने को जाता है।[ऋग्वेद 10.28.9]
The rabbit can face loin if Indr Dev, desire so. He can break mountain from a distance by throwing a lump-clod. Great person can be controlled by the minutest and a calf can fight the bull.
सुपर्ण इत्था नखमा सिषायावरुद्धः परिपदं न सिंहः।
निरुद्धश्चिन्महिषस्तष्र्यावान गोधा तस्मा अयथं कर्षदेतत्
जिस प्रकार पिजड़े में बँधा हुआ सिंह चारों ओर अपना पैर रगड़ता है, उसी प्रकार ही बाज पक्षी अपना नख रगड़ने लगा। इन्द्र देव की इच्छा होने पर यदि महिष तृषातुर होता है, तो उसके लिए गोधा भी पानी ले आता है।[ऋग्वेद 10.28.10]
The way a caged lion rubs his claws over the ground, similarly falcon too rub his nails-claws. With the desire of Indr Dev, buffalo desire to eat straw and iguana brings water for it.
तेभ्यो गोधा अयथं कर्षदेतद्ये ब्रह्मणः प्रतिपीयन्त्यन्नैः।
सिम उक्ष्णोऽवसृष्टाँ अदन्ति स्वयं बलानि तन्वः शृणानाः
जो यज्ञीय अन्न के द्वारा अपना पोषण करते हैं, उनके लिए गोधा अनायास जल ले आता है। वे सब प्रकार के रस से युक्त सोम को पीते और शत्रुओं की देह और बल का विध्वंस कर देते हैं।[ऋग्वेद 10.28.11]
Those who nourish over the food grains offered in the Yagy, get water brought by iguana. They drink Som mixed with all sorts of juices-saps and destroy the body and strength of the enemy.
एते शमीभिः सुशमी अभूवन् ये हिन्विरे तन्व १ः सोम उक्थैः।
नृवद्वदन्नुप नो माहि वाजान् दिवि श्रवो दधिषे नाम वीरः
जिन्होंने सोमरस का यज्ञ करके अपनी देह को पुष्ट किया है, वे "उत्तम कर्मकर्ता" जाकर सुकर्म से युक्त होते हैं। हे इन्द्र देव! आप मनुष्यों के सदृश स्पष्ट वाक्य का उच्चारण करके हमारे लिए अन्न ले आते हैं; क्योंकि दिव्य धाम में आपका "दानवीर" नाम प्रसिद्ध है।[ऋग्वेद 10.28.12]
Those performing excellent deeds nourish their body by performing Somras Yagy, associate with virtuous endeavours. Hey Indr Dev! You pronounce clear words-sentences like the humans and bring food grains for us since you are famous as a donor.(15.10.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (29) :: ऋषि :- ऐन्द्रो वसुक्र; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप्।
वने न वा यो न्यधायि चाकञ्छुचिर्वां स्तोमो भुरणावजीगः।
यस्येदिन्द्रः पुरुदिनेषु होता नृणां नर्यो नृतमः क्षपावान्
हे शीघ्रगामी इन्द्र देव! यह अतिशय निर्मल स्तोत्र आपके लिए जाता है। जिस प्रकार पक्षी भय के साथ चारों ओर देखते-देखते अपने बच्चे को वृक्ष के घोंसले में रखता है, उसी प्रकार ही मैं अपने पावन स्तोत्र स्तोत्र आपको समर्पित करता हू। वे नेताओं के भी नेता हैं। वे मनुष्य के हितैषी हैं। वे रात्रि में सोम का भाग ग्रहण करते हैं।[ऋग्वेद 10.29.1]
Hey fast moving Indr Dev! This extremely pure Strotr is meant for you. The way a bird keep its chicks in the nest looking all around with fear, similarly I am offering my pious Strotr to you. They are the lord of lords. They are the well wishers of humans. They accept their share at night.
प्र ते अस्या उषसः प्रापरस्या नृतौ स्याम नृतमस्य नृणाम्।
अनु त्रिशोकः शतमावहन्नृन्कुत्सेन रथो यो असत्ससवान्
हे इन्द्र देव! आप नेताओं के भी नेता हैं। आज प्रातःकाल और अन्यान्य प्रातःकालों में हम आपकी स्तुति कर उत्तम बनें। आपका स्तोत्र करके त्रिशोक नामक ऋषि आपके साथ एक रथ पर आरूढ़ होते हैं।[ऋग्वेद 10.29.2]
Hey Indr Dev! You are the lord of lords. We should become great by worshiping you today and every following-next morning. Rishi Trishok ride your charoite after reciting your Strotr.
कस्ते मद इन्द्र रन्त्यो भूद्दरो गिरो अभ्यु१ग्रो वि धाव।
कद्वाहो अर्वागुप मा मनीषा आ त्वा शक्यामुपमं राधो अन्त्रैः
हे इन्द्र देव किस प्रकार की मत्तता आपको अतिशय प्रसन्नताकारक है? हमारा स्तोत्र सुनकर महा वेग से आप यज्ञगृह के द्वार की ओर आवें। मैं कब उत्तम वाहन पाऊँगा? आपकी स्तुति से कब मैं अन्न और अर्थ को अपनी ओर खींच सकूँगा।[ऋग्वेद 10.29.3]
Hey Indr Dev! What type of drunkenness (addiction, in toxification) is liked by you. Rush to the door of Yagy Mandap with great speed. When will I be able to carry you as a vehicle? When will I be able to attract food grains and wealth towards me, by worshiping you?
कदु द्युम्नमिन्द्र त्वावतो नृन्कया धिया करसे कन्न आगन्।
मित्रो न सत्य उरुगाय भृत्या अन्ने समस्य यदसन्मनीषाः
हे इन्द्र देव! कब धन होगा? किस स्तोत्र का पाठ करने पर आप मनुष्यों को अपने समान करेंगे? कब जाएँगे? हे कीर्तिशाली इन्द्र देव! आप यथार्थ बन्धु के समान सबका भरण-पोषण करते हैं। स्तवन करने से ही आप भरण-पोषण करते हैं।[ऋग्वेद 10.29.4]
Hey Indr Dev! When will the wealth come? By the recitation of which Strotr will you equalise-make the humans at par with you? Hey glorious Indr Dev! You feed and nourish us like a true brother. You are fed & nourished by worship-prayers.
प्रेरय सूरो अर्थ न पारं ये अस्य कामं जनिधाइव ग्मन्।
गिरश्च ये ते तुविजात पूर्वीर्नर इन्द्र प्रतिशिक्षन्त्यन्नैः
जिस प्रकार पति अपनी पत्नि की कामना पूर्ण करता है, उसी प्रकार ही जो आपकी कामना पूर्ण करता है (इच्छानुरूप यज्ञ करता है), उन्हें यथेष्ट धन प्रदान करें, क्योंकि आप सूर्यदेव के सदृश दाता हैं। हे अनेक रूपधारी! जो लोग चिरप्रचलित स्तुतिवचनों का आपके लिए पाठ करते और अन्न देते हैं, उन्हें धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.29.5]
The way a husband accomplish the wishes-desires of his wife, similarly one who accomplish your wish is granted desired wealth from you, since you are a donor like Sury Dev. Hey possessor of numerous forms! Grant wealth-riches to those who worship you with prevalent Stuties.
मात्रे नु ते सुमिते इन्द्र पूर्वी द्यौर्मज्मना पृथिवी काव्येन।
वराय ते घृतवन्तः सुतासः स्वाद्मन्भवन्तु पीतये मधूनि॥
हे इन्द्र देव! प्राचीन समय से अतीव सुन्दर सृष्टि प्रक्रिया के द्वारा विरचित यह जो द्यावा-पृथ्वी है, वे आपकी माता के सदृश हैं। जो घृत युक्त सोमरस प्रस्तुत किया गया है, उसे पीकर प्रसन्न होवें। मधुर रस से युक्त अन्न आपके लिए सुस्वादु हो।[ऋग्वेद 10.29.6]
Hey Indr Dev! Heavens & earth evolved since ancient times are like your mother. Be happy by drinking the Somras offered to you mixed with Ghee. Food accompanied with sweet saps should be tasty for you.
आ मध्वो अस्मा असिचन्नमत्रमिन्द्राय पूर्णं स हि सत्यराधाः।
स वावृधे वरिमन्ना पृथिव्या अभि कत्वा नर्यः पौंस्यैश्च
इन्द्र देव वस्तुतः धनदाता है; इसलिए इन्द्र देव के लिए पात्र पूर्ण करके मधुर सोमरस प्रदान करें। इन्द्र देव पृथ्वी से भी बड़े हैं। वे मनुष्यों के हितैषी हैं। उनका कार्य और पौरुष विष्मयकारी है।[ऋग्वेद 10.29.7]
In fact Indr Dev is a donor of wealth-riches. Hence, offer a glass full of Somras to him. Indr Dev is bigger than the earth. He is the true well wisher of humans. His deeds and bravery are amazing.
व्यानळिन्द्रः पृतनाः स्वोजा आस्मै यतन्ते सख्याय पूर्वीः।
आ स्मा रथं न पृतनासु तिष्ठ यं भद्रया सुमत्या चोदयासे
शोभन बल वाले इन्द्र देव ने शत्रु सेना को घेर लिया। उत्कृष्ट शत्रु सैनिक इन्द्र देव से मैत्री करने की चेष्टा करते हैं। हे इन्द्र देव! जिस प्रकार संसार के कल्याण के लिए बुद्धिमान् व्यक्ति के समान आप युद्ध के लिए रथ पर आरुढ़ होते हैं, उसी प्रकार ही इस समय भी रथ पर आरुढ़ हों।[ऋग्वेद 10.29.8]
Mighty-glorious Indr Dev has surrounded the enemy army. Excellent soldiers try to be friendly with Indr Dev. Hey Indr Dev! The way you ride the charoite like an intelligent person for the welfare of the world, similarly ride the charoite at this moment as well.(16.01.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (30) :: ऋषि :- क़वष ऐलूष; देवता :- जल या नपात्; छन्द :- त्रिष्टुप्।
प्र देवत्रा ब्रह्मणे गातुरेत्वपो अच्छा मनसो न प्रयुक्ति।
महीं मित्रस्य वरुणस्य धासिं पृथुज्रयसे रीरधा सुवृक्तिम्
मित्र और वरुण देव के लिए उत्तम अन्नरूप सोम को संस्कारित करने वाले हे ऋषियों! आप बलवान् इन्द्र देव के लिए उत्तम स्तुतियों का गान करें। यज्ञकाल में यह सोमरस देवगणों के लिए जल की ओर प्रवाहित होने वाला हो।[ऋग्वेद 10.30.1]
Hey Rishis sanctifying best Som as food grain for Mitr & Varun Dev! Recite best Stuties in the honour of Indr Dev. During the period of Yagy Somras will flow towards for demigods.
अध्वर्यवो हविष्मन्तो हि भूताच्छाप इतोशतीरुशन्तः।
अव याश्चष्टे अरुणः सुपर्णस्तमास्यध्वमूर्मिमद्या सुहस्ताः
हे पुरोहितों! आप हव्य पदार्थों से सम्पन्न रहें। प्रीतियुक्त सुख की कामना करते हुए आप सोम की इच्छा से जल की ओर तत्परता के साथ जावें। लोहित वर्ण पक्षी के समान यह जो सोम नीचे गिरता है, आप उसे सत्कर्मशील हाथों से, तरंगरूप में यज्ञ में समर्पित करें।[ऋग्वेद 10.30.2]
Hey priests! You should have sufficient offerings, Yagy-Hawan related materials. Move towards water with the desire of Som, love & affection accompanied with pleasure. Som having red colour like the birds, drops down, offer it with the hands accompanied with virtuous deeds forming waves in the Yagy.
अध्वर्यवोऽप इता समुद्रमपां नपातं हविषा यजध्वम्।
स वो दददूर्मिमद्या सुपूतं तस्मै सोमं मधुमन्तं सुनोत
हे पुरोहितों! समुद्र के जल में जावें। आपांनपात् देवता को होमीय द्रव्य के द्वारा पूजित करें। आज वे आपको स्वच्छ जल की तरंग प्रदान करें। उनके लिए मधुर सोमरस समर्पित करें।[ऋग्वेद 10.30.3]
Hey priests! Move to the sea waters. Worship Apannpat deity with the Hawan materials. They will produce clear waves. Offer them sweet Somras.
यो अनिध्मो दीदयदप्स्व१न्तर्यं विप्रास ईळते अध्वरेषु।
अपां नपान्मधुमतीरपो दा याभिरिन्द्रो वावृधे वीर्याय
जो काष्ठ जल के भीतर जलते हैं और यज्ञकाल में ब्राह्मण लोग जिनकी स्तुति करते हैं, वे ही आपांनपात् देवात ऐसा सुरस जल प्रदान करें, जिसका पान करके इन्द्र देव बलशाली होकर वीरता प्रकट करें।[ऋग्वेद 10.30.4]
The wood which burns in side waters, is worshiped by Brahmans in the Yagy. Apannpat deity should grant sweet water by drinking which, Indr Dev should become strong and demonstrate his bravery.
याभिः सोमो मोदते हर्षते च कल्याणीभिर्युवतिभिर्न मर्यः।
ता अध्वर्योअर्पा अच्छा परेहि यदासिञ्चा ओषधीभिः पुनीतात्
जिन जलों में मिलकर सोम अतीव विस्मयकारी हो जाते हैं, जिस प्रकार पुरुष सुन्दर युवतियों से मिलने पर आनन्दित होते हैं, उसी प्रकार ही उन जलों के साथ मिलने पर सोम आनन्दित होते हैं। हे पुरोहितों! ऐसे ही जल लाने को जावें। जल लाकर सेचन करने पर सोमलता शोधित होती है।[ऋग्वेद 10.30.5]
Water become amazing on mixing with Som. The way men become happy on meeting beautiful women, water too become happy on mixing Somras in it. Hey priests! Move to have-fetch such waters. Somras irrigated with such waters is sanctified.
एवेद्यूने युवतयो नमन्त यदीमुशन्नुशतीरेत्यच्छ।
सं जानते मनसा सं चिकित्रेऽध्वर्यवो धिषणापश्च देवीः
जिस समय कोई युवा पुरुष प्रेम के साथ प्रेम से पूर्ण युवतियों की ओर जाते हैं, उस समय जिस प्रकार युवतियाँ उस युवा के प्रति अनुकूल होती हैं, उसी प्रकार ही जल सोम के प्रति अनुकूल होते हैं। पुरोहितों और उनके स्तोत्रों से जलस्वरूप देवों का विशेष परिचय है। दोनों अपने-अपने कार्यों की ओर दृष्टि रखते हैं।[ऋग्वेद 10.30.6]
When young lovers move to girls with love & girls become favourable to them, Som should also become favourable to waters. Their deities recognise the priests and their Strotrs. Both of them watch their own duties-responsibilities.
यो वो वृताभ्यो अकृणोदु लोकं यो वो मह्या अभिशस्तेरमुञ्चत्।
तस्मा इन्द्राय मधुमन्तमूर्मिं देवमादनं प्र हिणोतनापः
हे जलदेव! आपके रोके जाने पर जो आपको निकलने के लिए मार्ग देते हैं और जो आपको विषम निरोध को छुड़ाते हैं, उन्हीं इन्द्रदेव के प्रति मधुपूर्ण और देवों के लिए मत्तताजनक तरंग प्रेरित करें।[ऋग्वेद 10.30.7]
Hey deity of water! Indr Dev & demigods-deities who clear the obstacles in the path of moving waters, should be reciprocated by producing exciting-amusing waves for them.
प्रास्मै हिनोन मधुमन्तमूर्मिं गर्भो यो वः सिन्धवो मध्व उत्सः।
घृतपृष्ठमीड्यमध्वरेष्वापो रेवतीः शृणुता हं मे
हे क्षरण शील जल देव! आपके लिए गर्भस्वरूप और मधुर रस से युक्त जो प्रस्त्रवण है, उसकी मधुर तरंग को इन्द्र देव के पास करें। धनशाली जल मेरा आह्वान श्रवण करें। मेरे आह्वान में यज्ञ के लिए घृतदान किया जाता है और आपका स्तोत्र किया जाता है।[ऋग्वेद 10.30.8]
प्रस्रवण :: जल आदि (द्रव पदार्थों) का टपक टपककर या गिर गिरकर बहना, किसी स्थान से निकल निकलकर बहता हुआ पानी, सोता, किसी स्थान से गिरकर बहता हुआ पानी, प्रपात, झरना, निर्झर, तरल पदार्थ के चूने या बहने की अवस्था, क्रिया या भाव, पानी का झरना। सोता, दूध, पसीना, प्रस्वेद, माल्यवान पर्वत।
Hey dissipating water! Let the waves produced by dripping waters from the womb associated with sweet sap, reach Indr Dev. Rich waters should respond to my invocation. In my invocation, Ghee is offered and Strotrs for you are recited.
तं सिन्धवो मत्सरमिन्द्रपानमूर्मिं प्र हेत य उभे इयर्ति।
मदच्युतमौशानं नभोजां परि त्रितन्तुं विचरन्तमुत्सम्
हे जल देव! आपकी जो तरंग इस लोक और परलोक के लिए हितकर होती है, उसी मदकारक तरंग को इन्द्र देव के पान के लिए प्रेरित करें। ऐसी तरंग भेजें, जो मद क्षरण करे, जो कामना बढ़ावे, जिसकी उत्पत्ति आकाश में और जो तीनों लोकों में विचरण करते हुए ऊपर उठ जाती है।[ऋग्वेद 10.30.9]
Hey deity of water! Transfer only those amusing-thrilling waves to Indr Dev which are beneficial in this abode and the next birth-abode. Such waves which release intoxicating materials, increase wishes-desires, evolve in sky and rise up after travelling through the three abodes. 
आवर्वृततीरध नु द्विधारा गोषुयुधो न नियवं चरन्तीः।
ऋषे जनित्रीर्भुवनस्य पत्नीरपो वन्दस्व सवृधः सयोनीः
जो इन्द्र देव जल के लिए युद्ध करते हैं, उनकी आज्ञा से जल नाना धाराओं में बार-बार गिरकर सोम में मिलता है। जल संसार की माता के सदृश और संसार की रक्षिका के समान है। वह सोम के साथ मिलता है, वह आत्मीय है। हे ऋषि ! ऐसे जल की वन्दना करें।[ऋग्वेद 10.30.10]
Indr Dev fight for the release of waters. Water produced in many streams fall into Somras due to his orders. Water is like mother & protector for the universe. It combines with Somras as own well wisher. Hey Rishi! Worship waters. 
हिनोता नो अध्वरं देवयज्या हिनोत ब्रह्म सनये धनानाम्।
ऋतस्य योगे वि ष्यध्वमूधः श्रुष्टीवरीभूर्तनास्मभ्यमापः॥
हे जल देव। देवों के यज्ञ के लिए हमारे यज्ञकार्य में सहायता करें। धनप्राप्ति के लिए हमारे पास पवित्रता प्रेरित करें। यज्ञानुष्ठान के समय अपने दुग्धस्थान का द्वार खोलें। हमारे लिए सुखकर होवे।[ऋग्वेद 10.30.11]
Hey deity of water! Help us in the Yagy performances for demigods-deities. Inspire piousity for us to have riches. Open the gates-valves of milk stores during the period of Yagy. You should be comfortable to us.
आपो रेवतीः क्षयथा हि वस्वः क्रतुं च भद्रं बिभ्रथामृतं च।
रायश्च स्थ स्वपत्यस्य पत्नीः सरस्वती तद्गृणते वयो धात्
हे जल देव! आप धन के प्रभुस्वरूप इस कल्याणमय यज्ञ को सम्पन्न करें और अमृत ले आवें। धन और उत्तम सन्तानों के रक्षक होवें। देवी सरस्वती हम स्तोताओं को श्रेष्ठ धन-सम्पदा प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.30.12]
Hey deity of water! Accomplish this Yagy as the lord of wealth and bring elixir-nectar. We should have excellent progeny and riches. Let Devi Saraswati grant Stotas-us best riches & prosperity.
प्रति यदापो अदृश्रमायतीर्घृतं पयांसि बिभ्रतीर्मधूनि।
अध्वर्युभिर्मनसा संविदाना इन्द्राय सोमं सुषुतं भरन्तीः
मैं देखता था कि हे जलदेव! आप आते समय घृत, दुग्ध और मधु ले आते थे। पुरोहित लोग स्तुति के द्वारा आपसे संभाषण करते थे। उत्तम रूप से प्रस्तुत सोम को आप इन्द्र देव को देते थे।[ऋग्वेद 10.30.13]
Hey deity of water, I saw! You brought Ghee, milk and honey while coming. The priests-Purohits talked to you with Stuties. You offered best Somras to Indr Dev. 
एमा अग्मन्नेवतीर्जीवधन्या अध्वर्यवः सादयता सखायः।
नि बर्हिषि धत्तन सोम्यासोऽपां नप्त्रा संविदानास एनाः
सब प्रकार जल आ रहा है। यह धन का आधार और जीव के लिए हितप्रद है। हे पुरोहित बन्धुओं! जलवृष्टि के अधिष्ठाता देवता के चिर-परिचित हैं। यह सोमरस के अनुकूल हैं। जल को कुशा के ऊपर स्थापित करें।[ऋग्वेद 10.30.14]
Water of all sources is arriving. Its the basis of wealth and beneficial to the living beings. Its favourable to Somras. Hey Purohits brothers-priests! This Somras is favourable. Establish-place water over the Kush.
आग्मन्नाप उशतीर्बर्हिरेदं न्यध्वरे असदन्देवयन्तीः।
अध्वर्यवः सुनुतेन्द्राय सोममभूदु वः सुशका देवयज्या
तत्परता के साथ जल कुश की ओर आता है। देखें, जल देवों के पास जाने के लिए यज्ञस्थान में बैठता है। हे पुरोहितों! इन्द्र देव के लिए सोमरस प्रस्तुत करें। इस समय जल आने से आपकी देवपूजा सुसाध्य हुई है।[ऋग्वेद 10.30.15]
Water comes to the Kush rapidly. Water occupies seat close to demigods-deities in the Yagy Sthan. Hey Purohits! Offer Somras to Indr Dev! Your worship of God has become easy with the arrival of water.(17.10.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (31) :: ऋषि :- कवष ऐलूष; देवता :- विश्वे देव;  छन्द :- त्रिष्टुप्।
आ नो देवानामुप वेतु शंसो विश्वेभिस्तुरैरवसे यजत्रः।
तेभिर्वयं सुषखायो भवेम तरन्तो विश्वा दुरिता स्याम
हमारा स्तोत्र देवों के पास जावे। यज्ञ देवता समस्त शत्रुओं से हमारी रक्षा करें। उन देवों के साथ हमारी मित्रता हो। हम समस्त पापों से छूट जाएँ।[ऋग्वेद 10.31.1]
Let our Strotr reach demigods-deities. Let deity of Yagy protect us from enemeies. We should be friendly with the demigods-deities. Relieved us from all sins.
परि चिन्मर्ते द्रविणं ममन्यादृतस्य पथा नमसा विवासेत्।
उत स्वेन क्रतुना सं वदेत श्रयांसं दक्षं मनसा जगृभ्यात्
मनुष्य सब प्रकार के धन की कामना करे, सत्य मार्ग से पुण्यानुष्ठान में प्रवृत्त हो, अपने कर्म से कल्याण भागी बने और मन में सुख की अनुभूति करे।[ऋग्वेद 10.31.2]
Let humans desire for all sorts of wealth, follow truthfulness, should experience welfare by virtue of virtuous deeds and feel pleasure in their innerself.
अधायि धीतिरससृग्रमंशास्तीर्थे न दस्ममुप यन्त्यूमाः।
अभ्यानश्म सुवितस्य शूषं नवेदसो अमृतानामभूम
यज्ञ कार्य प्रारम्भ किया गया है। समस्त यज्ञीय द्रव्य आवश्यकतानुसार छोटे-बड़े करके रखे गये हैं। वे द्रव्य सुदृश्य और रक्षण के साधन है। अभिषुत सोम का आस्वादन हमने किया है। देवता लोग स्वरूप से ही यह सब जानने वाले है।[ऋग्वेद 10.31.3]
Yagy related has begun. All necessary Yagy materials large & small have been collected. These goods are beautiful and meant for protection. We have tasted extracted Somras. Demigods-deities always knew this.
नित्यश्चाकन्यात्स्वपतिर्दमूना यस्मा उ देवः सविता जजान।
भगो वा गोभिरर्यमेमनज्यात्सो अस्मै चारुश्छदयदुत स्यात्
जिस संसार के सृजेता सविता देव ने जिस यजमान को उत्पन्न किया, ऐश्वर्यो के अधिपति और दानशील अविनाशी प्रजापति उसे उत्तम फल प्रदान करें। भग और अर्यमादेव स्तुतियों के द्वारा प्रसन्न होकर स्नेह युक्त इस (याजक) के प्रति प्रीति युक्त हों और समस्त देवता इस पर सभी प्रकार से अनुग्रह करें।[ऋग्वेद 10.31.4]
Creator of the universe Savita Dev produced the Ritviz. Let lord of grandeur and donor immoertal Prajapati grant best rewards to him. Bhag & Aryma Dev became happy with Stuties. Have affection for the Ritviz and let all demigods-deities grave-favour the Ritviz.
इयं सा भूया उषसामिव क्षा यद्ध क्षुमन्तः शवसा समायन्।
अस्य स्तुतिं जरितुर्भिक्षमाणा आ नः शग्मास उप यन्तु वाजाः
स्तोता के पास स्तोत्र पाने की कामना से जिस समय देवता लोग कोलाहल करके महावेग के साथ पधारते हैं, उस समय प्रातःकाल के समान हमारे लिए पृथ्वी आलोकित होती है।सुखदाता नानाविधः अन्न हमारे पास आवें।[ऋग्वेद 10.31.5]
When the demigods-deities come to the Stota with the desire of Strotr, clamoring with high speed, the earth is illumniated like the morning. Let the grantor of pleasure bring various kinds of food grains.
अस्येदेषा सुमतिः पप्रथानाभवपूर्व्या भूमना गौः।
अस्य सनीळा असुरस्य योनौ समान आ भरणे बिभ्रमाणाः
हमारा स्तोत्र इस समय चिरपरिचित विशाल भाव धारण करके समस्त देवगणों के पास जाने के लिए विस्तृत होता है। हमारे इस यज्ञ में समस्त देवता समान स्थान पर अधिकार करके नानविध शुभ फल देने के लिए पधारें। इससे मैं बलशाली बनूँगा।[ऋग्वेद 10.31.6]
Our Stortr possess well known vast form, to go to the demigods-deities. Let all demigods-deities have equal status and come to grant auspicious rewards. I will become strong by this.
किं स्विद्वनं क उ स वृक्ष आस यतो द्यावापृथिवी निष्टतक्षः।
संतस्थाने अजरे इतऊती अहानि पूर्वीरुषसो जरन्त
वह कौन वन और वह कौन वृक्ष है, जिससे उपादान लेकर इस द्युलोक और भूलोक का निर्माण किया गया है? प्राचीन दिन और उषा जीर्ण हो गये है; परन्तु द्यावा-पृथ्वी परस्पर संयुक्त है, एक भाव में स्थित हैं, न जीर्ण हैं, न पुरातन।[ऋग्वेद 10.31.7]
Which is that forest and the trees the products of which were used to build heavens and earth? Old day and Usha have feeble-weak, but heavens & earth and joined together, having common status, neither torn nor ancient-old.
नैतावदेना परो अन्यदस्त्युक्षा स द्यावापृथिवी बिभर्ति।
त्वचं पवित्रं कृणुत स्वधावान्यदीं सूर्यं न हरितो वहन्ति
द्युलोक और भूलोक ही अन्तिम नहीं हैं; इनके ऊपर भी और कुछ है। वह (ईश्वर) प्रजा को बनाने वाला और द्यावा-पृथ्वी को घारण करने वाला है। वह अन्न का स्वामी है। जिस समय सूर्य के अश्वों ने सूर्य देव का वहन करना प्रारम्भ नहीं किया था, उसी समय उन्होंने अपने शरीर का निमार्ण किया था।[ऋग्वेद 10.31.8]
Heavens & earth are not the end. Above them creator of living beings-populace and the supporter of heavens & earth is present. He is the lord of food grains. When the horses of Sury-Sun did not statrt carrying him; they had built their body.
स्तेगो न क्षामत्येति पृथ्वीं मिहं न वातो वि ह वाति भूम।
मित्रो यत्र वरुणो अज्यमानोऽग्निर्वने न व्यसृष्ट शोकम्॥
किरणधारी सूर्य देव पृथ्वी का अतिक्रम नहीं करते और वायु देव वर्षा को अतीव छिन्न-भिन्न नहीं करते। मित्र तथा वरुण देव प्रकट होकर वन के बीच उत्पन्न अग्नि देव के सदृश चारों ओर प्रकाश को विस्तारित करते हैं।[ऋग्वेद 10.31.9]
Possessor of rays Sury Dev do no cross the earth and Vayu Dev do not diffuse-spread the rains to extreme level. Mitr & Varun Dev invoke-appear in the forest and illuminate all around like Agni Dev.
स्तरीर्यत्सूत सद्यो अज्यमाना व्यथिरवयथीः कृणुत स्वगोपा।
पुत्रो यत्पूर्वः पित्रोर्जनिष्ट शम्यां गौर्जगार यद्ध पृच्छान्
रेतः सेक पाकर जिस प्रकार वृद्धा गाय प्रसव करती है, उसी प्रकार ही अरगति (अग्नि देव मन्थन काष्ठ) अग्नि देव को उत्पन्न करती है। अरणि संसार का क्लेश दूर करती है। जो अरणि की रक्षा करते हैं, उनको कष्ट नहीं होता। अग्नि देव दोनों अरणियों के पुत्र है। उन्होंने प्राचीन समय में अरणिस्वरूप माता-पिता से जन्म ग्रहण किया। यह जो अरणिस्वरूप गाय है, वह शमी वृक्ष (शमी पर उत्पन्न अश्वत्थ वृक्ष) पर जन्म ग्रहण करती है। उसकी खोज की जाती है।[ऋग्वेद 10.31.10]
The way an old cow deliver on receiving sperms, similarly Agni Dev generate fire in the wood. Wood removes the tensions of the universe. Those who protect wood do not have troubles. Agni Dev is the son of wood duo. He got birth in ancient period  from the woods in the form of parents. The cow in the form of wood evolve over the Peeple tree present over Shami tree. Its searched.
उत कण्वं नृषदः पुत्रमाहुरुत श्यावा धनमादत्त वाजी।
प्र कृष्णाय रुशदपिन्वतोधर्ऋतमत्र नकिरस्मा अपीपेत्
कण्व ऋषि को नृषद का पुत्र कहा गया है। अन्नयुक्त और श्यामवर्ण कण्व ने धन ग्रहण किया। उन्हीं श्यामवर्ण कण्व के लिए अग्नि देव ने अपने रोचक रूप को प्रकट किया। अग्नि देव के लिए कण्व के अतिरिक्त किसी ने भी वैसा यज्ञ नहीं किया।[ऋग्वेद 10.31.11]
Kavy Rishi is the son of Nrashad. Kavy with dark skin and possessing food grains accepted wealth. Agni Dev exposed his interesting form for Kavy. None other person except Kavy performed such Yagy for Agni Dev.(18.10.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (32) :: ऋषि :- कवष ऐलूष; देवता :- इन्द्र; छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
प्र सु ग्मन्ता धियसानस्य सक्षणि वरेभिर्वराँ अभि षु प्रसीदतः।
अस्माकमिन्द्र उभयं जुजोषति यत्सोम्यस्यान्धसो बुबोधति
यज्ञकर्ता इन्द्र देव का ध्यान करते हैं। उनकी सेवा ग्रहण करने के लिए इन्द्र देव आपने अश्वों को यज्ञ की ओर प्रेरित करते हैं। हरि नाम के दोनों अश्व विचित्र गति से आ रहे हैं। प्रसन्न मन से यजमान उत्तमोत्तम सामग्री देते हैं। इन्द्र देव भी उत्तम उत्तम वर लेकर आ रहे हैं। जिस समय इन्द्र देव सोमरस और आहारीय द्रव्य का आस्वादन पाते हैं, उस समय हमारे स्तोत्र और होमीय द्रव्य ग्रहण करते हैं।[ऋग्वेद 10.32.1]
Yagy performer concentrate in Indr Dev. To accept their services Indr Dev move-inspire his horses towards the Yagy site. Horses named  Hari come with amazing speed. The Ritviz offer excellent goods. Indr Dev too come best rewards-boons. When Indr Dev taste-enjoy Somras and eatables, he accept our Strotr & offerings.
वीन्द्र यासि दिव्यानि रोचना वि पार्थिवानि रजसा पुरुष्टुत।
ये त्वा वहन्ति मुहुरध्वराँ उप ते सु वन्वन्तु वग्वनाँ अराधसः
हे बहुतों के द्वारा स्तुत्य इन्द्र देव! आप प्रकाश विस्तार करते-करते विभिन्न स्वर्गीय धामों में विचरण करते हैं। आप ज्योति लेकर पृथ्वी पर आगमन किया करते हैं। आपके दो अश्व आपको जो यज्ञ में ले आते हैं, वे हमें धनवान् बनावें; क्योंकि हमारे पास धन नहीं है। धन के लिए ही हम यह सब प्रार्थना, वचन उच्चारित करते हैं।[ऋग्वेद 10.32.2]
Hey Indr Dev worshiped by many people! You roam in different abodes while illuminating them. You visit the earth with light-radiance. Your horse who brings you to the Yagy, should make us rich since we do not possess wealth. We make prayers and recite Strotr for the sake of money.
तदिन्मे छन्त्सद्वपुषो वपुष्टरं पुत्रो यज्जानं पित्रोरधीयति।
जाया पतिं वहति वग्नुना सुमत्युंस इद्भद्रो वहतुः परिष्कृतः
जन्म ग्रहण करके पुत्र पिता से जो धन प्राप्त करता है, वह अतीव चमत्कारी धन है। इन्द्र देव मुझे देने की कामना करे। मधुर वचनों से पत्नी स्वामी को अपने पास बुलाती है। भली-भाँति प्रस्तुत होकर सोमरस उस पुरुषार्थ युक्त के पास जाता है।[ऋग्वेद 10.32.3]
The son gets amazing wealth from his father by virtue of taking birth. Indr Dev should wish to make grants to me. The wife calls her husband with sweet words. Somras reaches the person who is committed to work-endeavours.
तदत्सधस्थमभि चारु दीधय गावो यच्छासन्वहतुं न धेनवः।
माता यन्मन्तुर्यूथस्य पूर्व्याभि वाणस्य सप्तधातुरिज्जनः
स्तुति रुपिणी गौवें जिस स्थान पर मिलती हैं, उस स्थान को अपनी उज्ज्वल प्रभा के द्वारा आलोकित करें। स्तोत्रों की प्राचीन और पूजनीय जो माता (गायत्री) हैं, उनके सात छन्द (सात महाव्याहृतियाँ) उसी स्थान पर है।[ऋग्वेद 10.32.4]
Illuminate with bright aura that place where cows in the form of Stuti meet. Eternal worshipable-honourable Mata Gayatri of the Strotr possessing 7 meters is present there. 
प्र वोऽच्छा रिरिचे देवयुष्पदमेको रुद्रेभिर्याति तुर्वणिः।
जरा वा येष्वमृतेषु दावने परि व ऊमेभ्यः सिञ्चता मधु
देवगणों के पास जो अग्नि देव जाते हैं, वे आपकी भलाई के लिए दिखाई देते हैं। वे अकेले ही रुद्रों के साथ शीघ्र अपने स्थान पर जाते हैं। अमर देवगणों के बल का ह्रास होता है, इसलिए बन्धु-बान्धवों से युक्त होकर इन्द्र देव के लिए यज्ञीय मधु प्रदान करें। तभी ये लोग वर प्रदान करेंगे।[ऋग्वेद 10.32.5]
Agni Dev is seen with the demigods-deities for your welfare. He moves to his place along with the Rudr Gan. Offer Yagy honey along with brothers & relatives to augment the depreciating strength of immortal demigods-deities. Then they will grant boons.
निधीयमानमपगूळ्हमप्सु प्र मे देवानां व्रतपा उवाच।
इन्द्रो विद्वाँ अनु हि त्वा चचक्ष तेनाहमग्ने अनुशिष्ट आगाम्
देवों के लिए जो पुण्यानुष्ठान होता है, विद्वान इन्द्र देव उसकी रक्षा करते हैं। इन्द्र देव ने कहा है कि अग्नि देव जल में निगूढ़रूप से है। हे अग्नि देव! उसी उपदेश के अनुसार मैं आपके पास आया हूँ।[ऋग्वेद 10.32.6]
Enlightened Indr Dev protect the virtuous ceremonies & rituals conducted for the demigods-deities. Indr Dev said that he was present in Agni Dev in the form of water. Hey Agni Dev! I have come to you due to that reason.
अक्षेत्रवित्क्षेत्रविदं ह्यप्राट् स प्रैति क्षेत्रविदानुशिष्टः।
एतद्वै भद्रमनुशासनस्योत स्रुतिं विन्दत्यञ्जसीनाम्
यदि कोई किसी मार्ग को नहीं जानता, तो उसे जो व्यक्ति जानता है, उसी से उसे पूछता है। ज्ञाता व्यक्ति से जानकर वह अभीष्ट स्थान पर पहुँच सकता है। अभिज्ञ के कथनानुसार यदि आप जल को खाजें तो जहाँ जल है, वहाँ पहुँच सकते हैं।[ऋग्वेद 10.32.7]
अभिज्ञ :: जानने वाला, ज्ञाता, कुशल; conscious, acquainted.
A person is unaware of the route to some place, asks one who knows it. He can reach his destination by asking one who knows it. You can find out water with the help of experts.
अद्येदु प्राणीदममन्निमाहापीवृतो अधयन्मातुरूधः।
एमेनमाप जरिमा युवानमहेळन्वसुः सुमना बभूव
आज ही ये (गोवत्सवरूप) अग्नि देव उत्पन्न हुए हैं, कुछ दिनों से क्रमशः वृद्धि प्राप्त कर रहे हैं, माता का स्तनपान कर चुके हैं। युवावस्था के साथ ही वृद्धावस्था आ गई है। वे सरल कर्मा, घनाढ्य और मनःप्रसाद युक्त हैं।[ऋग्वेद 10.32.8]
Agni Dev in the form a calf has evolved and is growing by drinking his mother's milk. Youth has come followed by old age. He is a simple performer having wealth with happiness and peace.
एतानि भद्रा कलश क्रियाम कुरुश्रवण ददतो मघानि।
दान इद्वो मघवान: अस्त्वयं च सोमो हृदि यं बिभर्मि
हे सर्वकला परिपूर्ण और स्तुतियों के श्रोता इन्द्र देव! आप धन प्रदान करते हैं। आपके लिये ये स्तुतियाँ रची गई हैं। हे पूजनीय स्तोतारूप धन वालों! इन्द्र देव आपके लिए ऐश्वर्य दाता हों, जिसे हम अपने हृदय में धारित करें, ऐसा सोमरस भी वे आपको प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.32.9]
Hey listener of the Strotr possessing all arts & skills; Indr Dev! You grant wealth. These Stuties have been composed for you. Hey worshipable wealthy person as Stotas! Let Indr Dev be the grantor of wealth for you. Grant us Somras which can be kept by us in our hearts.(19.10.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (33) :: ऋषि :- कवष ऐलूष; देवता :- विश्वेदेव, इन्द्र, कुरुश्रवण, त्रास, दस्यव, उपमश्रवा मैत्रातिथि; छन्द :- त्रिष्टुप्, बृहती, गायत्री। 
प्र मा युयुज्रे प्रयुजो जनानां वहामि स्म पूषणमन्तरेण।
विश्वे देवासो अध मामरक्षन् दुःशासुरागादिति घोष आसीत्
जो देवता सबको कर्मों में लगाते हैं, उन्होंने मुझे प्रेरित किया। मैंने मार्ग में पूषा का वहन किया। विश्व देवों ने मुझ कवष की रक्षा की। चारों ओर हल्ला मचा कि दुर्द्धर्ष ऋषि आ रहे हैं।[ऋग्वेद 10.33.1]
The demigods-deities who direct everyone to work-endeavours, inspired me. I supported Pusha. Vishw Dev protected Kavash i.e., me. It cluttered all around that Rishi Durddharsh is coming.
  सं मा तपन्यत्यभितः सपत्नीरिव पर्शवः।
नि बाधते अमतिर्नग्नता जसुर्वेर्न वेवीयते मतिः
सपत्नियों के सदृश मेरी पार्श्वास्थियाँ मुझे दुःख देती हैं। दुर्बुद्धि मुझे क्लेश देती है। मैं दीन, हीन और क्षीण हो रहा हूँ। पक्षी के समान मेरा मन चंञ्चल हो रहा है।[ऋग्वेद 10.33.2]
दीन-हीन :: lowly, abject, destitute.
Events in the past haunt-trouble me like wives. Foolishness torture-pain me. I am becoming abject-destitute. My innerself is fickle like the birds.
मूषो न शिश्ना व्यदन्ति माध्यः स्तोतारं ते शतकतो।
सकृत्सु नो मघवन्निन्द्र मृळयाधा पितेव नो भव
हे इन्द्र देव! जिस प्रकार चूहे स्नायु को खाते हैं, उसी प्रकार आपका भक्त होने पर भी मेरी मनोव्यथा मुझे खा रही है। हे धनी इन्द्रदेव! एक बार हमारे ऊपर कृपा कटाक्ष करें। हमारे पितृतुल्य रक्षक बनें।[ऋग्वेद 10.33.3]
Hey Indr Dev! The way the rats eat the nervous system, my metal tension is weakening-destroying me, even though your devotee. Hey wealthy Indr Dev! Have a blissful look at me. Become my protector like a father.
कुरुश्रवणमावृणि राजानं त्रासदस्यवम्। मंहिष्ठं वाघतामृषिः
मैं कवष ऋषि हूँ। मैं त्रसदस्यु के पुत्र कुरुश्रवण राजा के पास याचना करने गया; क्योंकि वे श्रेष्ठ दाता है।[ऋग्वेद 10.33.4]
I am Kavash Rishi. I went to king Kuru Shravan, son of Trasdasyu, since he is an excellent donor.
यस्य मा हरितो रथे तिस्रो वहन्ति साधुया। स्तवै सहस्त्रदक्षिणे
जिस राजा कुरुश्रवण के आरूढ़ होने पर तीन अश्व मुझे वहन करते हैं। उस सहस्रों दक्षिणाएँ देने वाले राजा की स्तुति मैं कवष इस यज्ञ में करता हूँ।[ऋग्वेद 10.33.5]
King Kuru Shravan rides, three horses carry-support me. I, Kavash conduct the Yagy for the Stuti of the king, who granted me thousands of alms.
यस्य प्रस्वादसो गिर उपमश्रवसः पितुः। क्षेत्रं न रण्वमूचुषे
दान देने में अधिक उदार आपके पिता की वाणी अत्यधिक मधुर और रणभूमि में भी प्रसन्नता प्रदान करने वाली है।[ऋग्वेद 10.33.6]
Your father is liberal in donations. His voice is soothing and grants pleasure in the war.
अधि पुत्रोपमश्रवो नपान्मित्रातिथेरिहि। पितुष्टे अस्मि वन्दिता
हे उपम श्रवस! आप मित्रा तिथि के पुत्र हैं। मेरे पास आवें। मैं मित्र तिथि का स्तोता हूँ। शोक न करें। देने योग्य धन मुझे प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.33.7]
Hey Upam Shravas! You are the son of Mitra Tithi. Come to me. I am a Stota of Mitra Tithi. Do not grieve. Grant me money you can spare-give to me.
यदीशीयामृतानामुत वा मर्त्यानाम्। जीवेदिन्मघवा मम
यदि मैं अमर देवों और मरणशील मनुष्यों का स्वामी होता तो धनवान् मित्रातिथि अवश्य जीवित होते।[ऋग्वेद 10.33.8]
Had I been the lord of immortal demigods-deities and the humans, rich Mitra Tithi must have survived.
न देवानामति व्रतं शतात्मा चन जीवति। तथा युजा वि वावृते
एक सौ प्राण रहने पर भी देवों के अभिप्राय के विरुद्ध कोई नहीं जीवित रह सकता। इसी से हमारे सहचरों से हमारा वियोग हुआ करता है।[ऋग्वेद 10.33.9]
None can survive against the wish-desire of the demigods-deities, leading to our separation-departure from friends-relatives, colleagues.(20.10.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (34) :: ऋषि :- कवष ऐलूष, अक्ष या मौजवान्; देवता :- अक्षकृषि, अक्षकितवनिंदा; छन्द :- त्रिष्टुप्, जगती।
यदादीध्ये न दविषाण्येभिः परायद्भ्योऽव हीये सखिभ्यः।
न्युप्ताश्च बभ्रवो वाचमक्रतँ एमीदेषां निष्कृतं जारिणीव
जिस समय मैं इच्छा करता हूँ कि मैं अब नहीं पासा खेलूँगा, उस समय साथी जुआड़ियों के पास से हट जाता हूँ। किन्तु नक्शे पर पीले पासों को देखकर ठहरा नहीं जाता। जिस प्रकार भ्रष्ट स्त्री दूसरे पति के पास जाती है, उसी प्रकार ही मैं भी जुड़ाडियों के घर जाता हूँ।[ऋग्वेद 10.34.5]
I decide not to gamble and keep off from the dices-gamblers. But dices present over the board pull me towards them. The way a corrupt woman goes to other men, I too go the houses of gamblers.
सभामेति कितवः पृच्छमानो जेष्यामीति तन्वा ३ शूशुजानः।
अक्षासो अस्य वि तिरन्ति कामं प्रतिदीव्ने दधत आ कृतानि
जुआड़ी अपनी छाती फुलाकर कूदता हुआ जुए के अड्डे पर आता और कहता है कि मैं जीतूंगा। कभी-कभी पासा जुआड़ी की इच्छा पूरी करता है और कभी विपक्ष के जुआड़ी के चाहता है, वह सब भी पूर्ण हो जाता है।[ऋग्वेद 10.34.6]
The gambler bulges his chest and goes to the gamblers den saying that he will win. Some time dice become favourable to him and some times it goes in favour of the opposite party.
अक्षास इदङ्कुशिनो नितोदिनो निकृत्वानस्तपनास्तापयिष्णवः।
कुमारदेष्णा जयतः पुनर्हणो मध्वा संपृक्ताः कितवस्य बर्हणा
किन्तु कभी-कभी वही पासा बेहाथ हो जाता है। अंकुश के समान चूभता है, बाण के सदृश छेदता है, छुरे के समान काटता है, तप्त पदार्थ के समान संताप देता है। जो जुआड़ी विजयी होता है, उसके लिए पासा पुत्रजन्म के समान आनन्ददाता होता है, मधुरिमा से युक्त होता है और मानो मीठे वचनों से सम्भाषण करता है; किन्तु हारे हुए जुआड़ी को तो प्रायः मार ही डालता है।[ऋग्वेद 10.34.7]
Some times dices become out of control. It leads to piercing of goad and arrow, cuts like the knife and pains like a red hot object. The winner feels as if he has been blessed with the birth of a son and he talks sweetly. The defeated gambler is almost dead.
त्रिपञ्चाशः क्रीळति व्रात एषां देवइव सविता सत्यधर्मा।
उग्रस्य चिन्मन्यवे ना नमन्ते राजा चिदेभ्यो नम इत्कृणोति
तिरेपन पासे नक्शे के ऊपर मिलकर बिहार करते हैं। मानो सत्य स्वरूप सूर्य देव संसार में विचरण करते हैं। कोई कितना बड़ा उग्र क्यों न हो; परन्तु पासा किसी के वश में नहीं आ सकता। राजा तक पासे को नमस्कार करत हैं।[ऋग्वेद 10.34.8]
Fifty thee dices enjoy over the board as if truthful Sury Dev is roaming in the universe. How so ever furious one may be; but the dices do not obey him. Even the kings bow before dices.
नीचा वर्तन्त उपरि स्फुरन्त्यहस्तासो हस्तवन्तं सहन्ते।
दिव्या अङ्गरा इरिणे न्युप्ताः शीताः सन्तो हृदयं निर्दहन्ति
पासे कभी नीचे उतरते है और कभी ऊपर उठते हैं। इनके हाथ नहीं हैं। परन्तु जिनके हाथ हैं, वे इनसे हार जाते हैं। ये श्री सम्पन्न हैं, जलते हुए अंगारे के समान ये नक्शे के ऊपर बैठे हैं। ये छूने में ठंडे हैं; किन्तु हृदय को जलाते हैं।[ऋग्वेद 10.34.9]
Dices goes up & down. They do not possess hands. But one posses them is defeated by them. They have wealth. They occupy the board like burning ambers. Tough cold yet they burn the heart.
जाया तप्यते कितवस्य हीना माता पुत्रस्य चरतः क स्वित्।
ऋणावा बिभ्यद्धनमिच्छमानोऽन्येषामस्तमुप नक्तमेति
जुआड़ी की स्त्री दीन-हीन देश में यातना भोगती रहती हैं, पुत्र कहाँ-कहाँ घूमा करता है-ऐसा सोचकर जुआड़ी की माता व्याकुल रहा करती है। जो जुआड़ी को उधार देता है, वह इस संदेह में रहता है कि मेरा घन फिर मिलेगा या नहीं जुआड़ी, बेचारा दूसरे के घर में रात काटा करता है।[ऋग्वेद 10.34.10]
Gamblers wife faces very tough-difficult times & poverty. His mother is worried about his well being thinking him to be wandering. If the gambler grant loans, he is worried about their recovery. He may have to sleep at others house at night.
स्त्रियं दृष्टाय कितवं ततापान्येषां जायां सुकृतं च योनिम्।
पूर्वाह्ने अश्वान्युयुजे हि ब्रभ्रून्त्सो अग्नेरन्ते वृषलः पपाद
अपनी स्त्री की दशा देखकर जुआड़ी का हृदय फटा करता है। अन्यान्य स्त्रियों का सौभाग्य और सुन्दर अट्टालिका देखकर जुआड़ी को कष्ट होता है। जो जुआड़ी प्रातःकाल घोड़े की सवारी करके आता है, वही संध्या के समय दरिद्र के समान जाड़े से बचने के लिए आग तापता है, (उसके) शरीर पर वस्त्र भी नहीं रहते।[ऋग्वेद 10.34.11]
Heart of the gambler burst due to the pain-sorrow of his wife. He fell sorry by the good luck of other's wives. The gambler who rides a horse in the morning turn into a pauper, without clothes in the evening sitting in front of ambers warming his hands.
यो वः सेनानीर्महतो गणस्य राजा व्रातस्य प्रथमो बभूव।
तस्मै कृणोमि न धना रुणध्मि दशाहं प्राचीस्तदृतं वदामि
हे पासो! आपके समूह में जो प्रधान, सेनापति या राजा के समान है, उसको मैं अपनी दसों अँगुलियाँ जोड़कर प्रणाम करता हूँ। मैं सत्य कहता हूँ कि मैं आप लोगों से धन नहीं चाहता।[ऋग्वेद 10.34.12]
Hey dices! I salute the dices amongest you who are like king, head, commander with folded hands. I truthfully say that I do not want money from you.
अक्षैर्मा दीव्यः कृषिमित्कृषस्व वित्ते रमस्व बहु मन्यमानः।
तत्र गावः कितव तत्र जाया तन्मे वि चष्टे सवितायमर्यः
हे जुआड़ी! कभी जुआ नहीं खेलना, खेती करना। कृषि से जो कुछ लाभ हो, उसी से सन्तुष्ट रहना। अपने को कृतार्थ समझना। इससे स्त्री प्राप्त करेंगे और अनेक गायें भी प्राप्त करेंगे। प्रभु सूर्यदेव ने मुझसे ऐसा कहा है।[ऋग्वेद 10.34.13]
Hey gambler! Never gamble, resort to agriculture. Remain content-satisfied with the income from agriculture. You should feel obliged. This will lead to acquisition of cows and you will get married. Sury Dev said this to me.
मित्रं कृणुध्वं खलु मृळता नो मा नो घोरेण चरताभि धृष्णु।
नि वो नु मन्युर्विशतामरातिरन्यो बभ्रूणां प्रसितौ न्वस्तु
हे पासों! हमें मित्र जानो; हमारा कल्याण करें। हमारे ऊपर अपने दुर्द्धर्ष प्रभाव का प्रयोग न करना। हमारा शत्रु ही आपकी कोपदृष्टि में गिरे। दूसरे तुममें फँसे रहें।[ऋग्वेद 10.34.14]
Hey dices! Consider us as friends and be beneficial to us. Do not show us adverse results. Our enemy should be struck by your anger. Let others-enemies remain struck with you.
Gambling of all sorts, stock-share, horse racing, betting, playing cards, machine games are dangerous and may ruin anyone any time. We should learn from Maha Bharat, sending Pandavs to exile. Do not make purchases with loans. It just lure and put us in trouble. Bitcoin is extremely dangerous.(21.10.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (35) :: ऋषि :- लुशो धानाक; देवता :- विश्वेदेव; छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
अबुध्रमु त्य इन्द्रवन्तो अग्नयो ज्योतिर्भरन्त उषसो व्युष्टिषु।
मही द्यावापृथिवी चेततामपोऽद्या देवानामव आ वृणीमहे॥
अग्नि देव जाग गये। उनके साथ इन्द्र देव हैं। जिस समय प्रभात अन्धकार को विदेश भेजता है, उस समय अग्नि देव आलोक धारण करके जलते हैं। विशाल मूर्ति द्युलोक और भूलोक चैतन्य युक्त होवें। मैं प्रार्थना करता हूँ कि देवता आज हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 10.35.1]
Agni Dev is awake. Indr Dev is with him. When Sun rise remove darkness, Agni Dev spread his aura-radiance. Let the earth & heavens become conscious-awake. Let us pray for protection to the demigods-deities.
आ वृणीमहे मातृन्त्सिन्धून्पर्वताञ्छर्यणावतः।
अनागास्त्वं सूर्यमुषासमीमहे भद्रं सोमः सुवानो अद्या कृणोतु नः
हम प्रार्थना करते हैं कि द्यावा-पृथ्वी हमारी रक्षा करे। जननी के सदृश नदियाँ और कुरुक्षेत्र के निकटस्थ पर्वत हमारी रक्षा करें। सूर्य देव और उषा देवी से यही प्रार्थना है कि हम अपराधी न हों। जो सोम प्रस्तुत किये जाते हैं, वे हमारा मंगल करें।[ऋग्वेद 10.35.2]
We request to the earth & heavens for our protection. Let the rivers like mother and the mountains close to Kuru Kshetr protect us. We pray to Sury Dev and Devi Usha that we do not turn-become culprits. Presented Som should be beneficial to us.
द्यावा नो अद्य पृथिवी अनागसो मही त्रायेतां सुविताय मातरा।
उषा उच्छन्त्यप बाधतामधं स्वस्त्य१ग्निं समिधानमीमहे
द्यावा-पृथ्वी हमारी माता के सदृश हैं। हम इन दोनों महान् देवों के निकट निरपराधी रहें। वे हमें सुख के लिए बचावें। हे उषा देवी! अधिकार का विनाश करके हमारे पापों का मोचन करें। प्रदीप्त अग्नि देव के पास हम कल्याण की भिक्षा माँगते हैं।[ऋग्वेद 10.35.3]
Heavens & earth are like our mother. We should be sinless in the proximity of these two great deities. They should protect us to grant comforts-pleasure. Hey Usha Devi! Destroy darkness and make us sinless. We beg for our welfare to shinning Agni Dev.
इयं न उस्त्रा प्रथमा सुदेव्यं रेवत्सनिभ्यो रेवती व्युच्छतु।
आरे मन्युं दुर्विदत्रस्य धीमहि स्वस्त्य १ ग्निं समिधानमीमहे
धनवती, मुख्या और पापों को दूर भगाने वाली देवी उषा हमें उत्तम धन प्रदान करें। हम उसका भोग करें। हम दुष्टा के क्रोध से दूर रहें। प्रज्वलित अग्नि देव से हम कल्याण की मिक्षा चाहते हैं।[ऋग्वेद 10.35.4]
Wealthy, head and repelling Devi Usha should grant us riches. We should utilise it. We should be spared from the anger of wicked woman. We beg for our welfare to shinning Agni Dev.
प्र याः सिस्स्रते सूर्यस्य रश्मिभिर्योतिर्भरन्तीरुषसो व्युष्टिषु।
भद्रा नो अद्य श्रवसे व्युच्छत स्वस्त्य १ ग्निं समिधानमीमहे
जो उषाएँ सूर्य देव की किरणों के साथ मिलकर और आलोक को धारण करके अन्धकार का विनाश करती है, वे हमें आज अन्न प्रदान करें। प्रज्वलित अग्नि देव से हम कल्याण की भिक्षा माँगते हैं।[ऋग्वेद 10.35.5]
Usha Devi in association with the rays of Sun destroy darkness and ensure light. They should grant us food grains. We beg for welfare to shinning Agni Dev.
अनमीवा उषस आ चरन्तु न उदद्मयो जिहतां ज्योतिषा बृहत्।
आयुक्षातामश्विना तूतुजिं रथं स्वस्त्य १ ग्निं समिधानमीमहे
रोगशून्य उषाएँ हमारे पास पधारें। महान् प्रकाश से युक्त अग्नि देव भी ऊपर उठें। हमारे पास आने के लिए दोनों अश्विनीकुमारन भी क्षिप्रगामी रथ में अपने दोनों घोड़ों को नियोजित करें। प्रदीप्त अग्निदेव से हम कल्याण की भिक्षा माँगते हैं।[ऋग्वेद 10.35.6]
Let Usha free from ailments come to us. Agni Dev possessing great light should also rise. Ashwani Kumars should deploy their horses in the fast moving charoite to come to us. We beg for welfare to shinning Agni Dev.
श्रेष्ठं नो अद्य सवितर्वरेण्यं भागमा सुव स हि रत्नधा असि।
रायो जनित्रों धिषणामुप ब्रुवे स्वस्त्य १ ग्निं समिधानमीमहे
हे सूर्य देव! आज हमें अतीव उत्कृष्ट धन भाग वितरित करें; क्योंकि आप मनोकामना पूर्ण करने वाले हैं। हम वैसे स्तोत्र पढ़ते हैं, जिससे धन उत्पन्न हो सके। प्रज्वलितं अग्नि देव के पास हम कल्याण की भिक्षा माँगते हैं।[ऋग्वेद 10.35.7]
Hey Sury Dev! Grant us excellent wealth since you accomplish desires. We recite such Strotr which grow-evolve wealth. We beg for welfare to shinning Agni Dev.
पिपर्तु मा तदृतस्य प्रवाचनं देवानां यन्मनुष्या ३ अमन्महि।
विश्वा इदुप्ताः स्पळुदेति सूर्यः स्वस्त्य १ ग्निं समिधानमीमहे
देवों के लिए मनुष्य गण जिस यज्ञ कार्य का संकल्प करते हैं, वही मेरी श्री वृद्धि करें। प्रति प्रभात में सूर्य देव समस्त वस्तुओं को स्पष्ट करके उगते हैं। प्रज्वलित अग्नि देव से हम कल्याण की भिक्षा माँगते हैं।[ऋग्वेद 10.35.8]
The resolutions made by the humans for the Yagy of deities should boost my wealth-riches. Sury Dev rises  in the morning making every thing clear-visible. We beg for welfare to shinning Agni Dev.
अद्वेषो अद्य बर्हिषः स्तरीमणि ग्राव्णां योगे मन्मनः साध ईमहे।
आदित्याना शर्मणि स्था भुरण्यसि स्वस्त्य १ ग्निं समिधानमीमहे
यज्ञ के लिए आज कुश बिछाया जाता है। सोम प्रस्तुत करने के लिए दो पत्थर संयोजित किये जाते हैं। हे यजमानों अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए आदित्यगणों के आश्रय में जाओ। यज्ञानुष्ठान से प्रसन्न हुए आदित्य तुम्हें सुख प्रदान करें। प्रदीप्त अग्निदेव से हम कल्याण को भीक्षा माँगते हैं।[ऋग्वेद 10.35.9]
Two stones are used to crush Som. Hey humans seek asylum under Adity Gan for fulfilment of your desires-wishes. Let Adity Gan pleased with the conduction of Yagy grant you pleasure-comforts. We beg for welfare to illuminate-shinning Agni Dev. 
आ नो बर्हिः सधमादे बृहद्दिवि देवाँ ईले सादया सप्त होतृन्।
इन्द्रं मित्र वरुणं सातये भगं स्वस्त्य १ ग्निं समिधानमीमहे
हे अग्नि देव! हमारा यज्ञानुष्ठान हो रहा है। इसमें देवगण इकट्ठे होकर आमोद आह्लाद करते हैं। इस यज्ञ में प्रकाण्ड द्युलोक में रहने वाले देवों को बुलावें, सात होताओं को बुलावे। हे इन्द्र देव! मित्र, वरुण और भग को ले आवें। धनप्राप्ति के लिए मैं सबकी स्तुति करता हूँ। प्रज्वलित अग्नि देव से हम कल्याण की भिक्षा चाहते हैं।[ऋग्वेद 10.35.10]
Hey Agni Dev! We are conducting the Yagy.  Invite the enlightened demigods from the heavens and seven Hotas. Hey Indr Dev! Bring Mitr, Varun & Bhag with you. I pray to you for the sake of riches. Demigods-deities have gathered in it to enjoy. We beg for welfare to illuminate-shinning Agni Dev.
त आदित्या आ गता सर्वतातये वृधे नो यज्ञमवता सजोषसः।
बृहस्पतिं पूषणमश्विना भगं स्वस्त्य १ ग्निं समिधानमीमहे
प्रसिद्ध आदित्यों! आप लोग आवें। इससे सभी विषयों में श्री वृद्धि होगी। हमारी श्री वृद्धि के लिए सब एकत्रित होकर यज्ञ की रक्षा करें। बृहस्पति, पूषा, दोनों अश्विनी कुमार, भग और प्रज्वलित अग्नि देव के पास हम कल्याण की भिक्षा माँगते हैं।[ऋग्वेद 10.35.11]
Hey famous Adity Gan! You should come-join. By doing this our prosperity in all fields will increase. For the growth of our prosperity gather to protect this Yagy. We beg for our welfare to Brahaspati, Pusha, Ashwani Kumars, Bhag and illuminated-shinning Agni Dev.
तन्त्रो देवा यच्छत सुप्रवाचनं छर्दिरादित्याः सुभरं नृपाय्यम्।
पश्वे तोकाय तनयाय जीवसे स्वस्त्य १ निं समिधानमीमहे
हे देवगणों! अपने यज्ञ की सकलता सम्पादित करें। हे आदित्यों! धन से पूर्ण और राजयोग्य गृह हमें प्रदान करें। हम अपने पशु, पुत्र-पौत्र और परमायु आदि समस्त विषयों में प्रज्वलित अग्निदेव के पास कल्याण चाहते हैं।[ऋग्वेद 10.35.12]
Hey deities-demigods! Ensure the success of our Yagy. Hey Adity Gan! Grant us a house good enough for a ruler possessing wealth. We beg for welfare to illuminate-shinning Agni Dev for our cattle-animals, son-grandsons and ultimate longevity-age.
विश्वे अद्य मरुतो विश्व ऊती विश्वे भवन्त्वग्नयः समिद्धाः।
विश्वे नो देवा अवसा गमन्तु विश्वमस्तु द्रविणं वाजो अस्मे
समस्त मरुत हमारा सभी प्रकार से रक्षण करें। समस्त अग्नि प्रदीप्त हों। निखिल देवगण हमारी रक्षा के लिए पधारें। सब प्रकार का अन्न और सम्पत्ति हमें प्राप्त हों।[ऋग्वेद 10.35.13]
All Marud Gan should protect by all means. Let every Agni illuminate. All demigods-deities should arrive to protect us. All sorts of food grains and wealth should be available to us.
यं देवासो ऽ वथ वाजसातौ यं त्रायध्वे यं पिपृथात्यंहः।
यो वो गोपीथे न भयस्य वेद ते स्याम देववीतये तुरासः
हे देव गणों! जिसे आप अन्न देकर बचाते हैं, जिसका त्राण करते हैं, जिसे पापमुक्त करके श्रीवृद्धि से सम्पन्न करते हैं और जो आपके आश्रय में रहकर भय का नाम तक नहीं जानता, देवकार्य के लिए व्यग्र होकर हम वैसे ही व्यक्ति हों।[ऋग्वेद 10.35.14]
Hey demigods-deities! We should become like that person who is protected by you by granting food grains, made sinless, increase his prosperity, under whom there should be no fear to us; who is ready for the performing Deities related matters (Yagy, Hawan, Agni Hotr, prayers, worship).(22.10.2024)

ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (36) :: ऋषि :- लुशो धानाक; देवता :- विश्वेदेव; छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
उषासानक्ता बृहती सुपेशसा द्यावाक्षामा वरुणो मित्रो अर्यमा।
इन्द्रं हुवे आरुतः पर्वताँ अप आदित्यान्द्यावापृथिवी अपः स्वः
उषा, रात्रि, महती और सुसंघटित शरीरा द्यावा-पृथ्वी, वरुण देव, मित्र अर्यमा, इन्द्र देव, मरुद्रण, पर्वतगण, जलगण और आदित्य गण को मैं यज्ञ में बुलाता हूँ। द्यावा-पृथ्वी, अन्तरिक्ष और स्वर्ग को मैं बुलाता हूँ।[ऋग्वेद 10.36.1]
महती :: नारद की वीणा का नाम, बृहती-कँटाई, बनभंटा, कुश द्वीप की एक नदी का नाम जो पारियात्र पर्वत से निकली है, महिमा-महत्व, बड़ाई, योनि का फैल जाना जो एक रोग माना जाता है, वह हिचकी जिससे गर्भस्थान षोड़ित हो और देह में कंप हो, वैश्यों की एक जाति, महती द्वादशी (भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की वह द्वादशी जो श्रवण नक्षत्र में पड़े) ऐसी द्वादशी को व्रत आदि करने का विधान है।
I invite Usha, Ratri-night, Mahti and well built heavens & earth, Varun Dev, Aryma, Indr Dev, Marud Gan, Parwat Gan-mountains, Adity Gan to my Yagy.
द्यौश्च नः पृथिवी च प्रचेतस ऋतावरी रक्षतामंहसो रिषः।
मा दुर्विदत्रा निर्ऋतिर्न ईशत् तद्देवानामवो अद्या वृणीमहे
प्रशस्य चित्ता और यज्ञ की अधिष्ठातृ-स्वरूपा द्यावा-पृथ्वी हमें पाप से बचावें। शत्रुओं के हाथों से उबारें। दुष्ट आशय वाली निर्ऋति (मृत्यु देवता) हमारे ऊपर आधिपत्य न करें। हम देवों से विशिष्ट रक्षा की प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 10.36.2]
निर्ऋति :: देवता, जिन्हें मृत्यु, क्षय और दुःख का प्रतीक माना जाता है।अष्टदिक्पालों (आठ दिशाओं के रक्षक) में से एक है। वह दक्षिण-पश्चिमी कोने का प्रभारी है। एकादश रुद्रों में से एक है। ब्रह्मा जी उनके दादा थे और स्थाणु उनके पिता थे। मंदिरों में उनकी मूर्तियाँ हाथ में तलवार लिए और गधे पर बैठी हुई स्थापित की जाती हैं। अधर्म कहे जाने वाले देव की पत्नी। उनके भय, महाभय और अंतक नामक तीन पुत्र थे। इन राक्षसों को नैऋत्य के नाम से जाना जाता है।
Heaven & earth with happy mood should protect us as the deity of the Yagy. Relieve us from the enemy. Nirshti-deity of death should not over power us. We make this specific with prayer with the demigods-deities.
विश्वस्मान्नो अदितिः पात्वंहसो माता मित्रस्य वरुणस्य रेवतः।
स्वर्वज्ज्योतिरवृकं नशीमहि तद्देवानामवो अद्या वृणीमहे
धनी मित्र और वरुण देव की माता अदिति देवी हमें पापों से बचावें। हम सब प्रकार अविनाशी ज्योति प्राप्त करें। देवों से हम आसाधरण रक्षा की प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 10.36.3]
Aditi mother of wealthy Mitr & Varun Dev should protect us from sins. We should attain immortal aura-radiance. We make this extra ordinary prayer with the demigods-deities.
ग्रावा वदन्नप रक्षांसि सेधतु दुष्ष्वज्यमं निर्ऋतिं विश्वमत्रिणम्।
आदित्यं शर्म मरुतामशीमहि तद्देवानामवो अद्या वृणीमहे
सोम निष्पीड़न के लिए उपयोगी पत्थर शब्द करते हुए राक्षसों को दूर भगावे। दुःस्वप्न, मृत्यु देवी और समस्त शत्रुओं को दूर करे। हम आदित्यों और मरुतों से सुख प्राप्त करें। देवों से हम असाधारण रक्षा की भिक्षा माँगते हैं।[ऋग्वेद 10.36.4]
Som should repel the demigods away making use of the stones used for crushing. Bad dreams-omens, deity of death and all enemies should be repelled. We should gain pleasure-comforts from Adity Gan and Marud Gan. We make this extraordinary begging-request with demigods-deities.
एन्द्रो बर्हिः सीदतु पिन्वतामिळा बृहस्पतिः सामभिऋको अर्चतु।
सुप्रकेतं जीवसे मन्मे धीमहि तद्देवानामवो अद्या वृणीमहे
इन्द्र देव आकर कुश पर ऊपर बैठें। विशेषरूप से स्तुति वाक्य उच्चारित हों। ऋक् और साम के द्वारा बृहस्पति अर्चना करें। हम उत्तमोत्तम और अभिलषणीय वस्तुओं को प्राप्त करके दीर्घजीवी हों। देवों के पास से विशिष्ट रक्षा की हम भिक्षा माँगते हैं।[ऋग्वेद 10.36.5]
Let Indr Dev come and occupy Kush Mate. Specific Stuti should be recited. Worship Brahaspati with Rik & Sam. We should obtain excellent and desired goods-materials and attain longevity. We make this extraordinary begging-request with demigods-deities.
दिविस्पृशं यज्ञमस्माकमश्विना जीराध्वरं कृणुतं सुम्नमिष्टये।
प्राचीनरश्मिमाहुतं घृतेन तद्देवानामवो अद्या वृणीमहे
हे दोनों अश्विनी कुमारों! ऐसा करें कि हमारा यज्ञ देवलोक को छू ले। यज्ञ के सारे विघ्न दूर करें। हमारा मनोरथ सिद्ध करके सुखी करें। जिन अग्निदेव में घृत की आहुति दी जाती है, उनकी ज्वालाएँ देवों के प्रति प्रेरित करें। देवों से हम साधारण रक्षा की प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 10.36.6]
Hey Ashwani Kumar duo! Make efforts such that our Yagy touches the heavens. Let the Yagy remove all sorts of obstacles. Flames of fire-Agni Dev in which offerings are made should inspire the demigods-deities. We make this extraordinary begging-request with demigods-deities.
उप ह्वये सुहवं मारुतं गणं पावकमृष्वं सख्याय शंभुवम्।
रायस्पोषं सौश्रवसाय धीमहि तद्देवानामवो अद्या वृणीमहे
जो मरुद्गण सबको शुद्ध करते हैं, जो देखने में सुन्दर है, जिनसे कल्याण की उत्पत्ति होती है, जो धन को बढ़ाते हैं और जिनका नाम लेने पर मन में आनन्द होता है, उन्हें मैं बुलाता हूँ। विशिष्ट रूप से अन्न की प्राप्ति के लिए मैं उनका ध्यान करता हूँ, हम देवों से असाधारण रक्षा की भिक्षा माँगते हैं।[ऋग्वेद 10.36.7]
I invite Marud Gan who purify-cleanse everyone, looks beautiful, welfare evolves from them, remembering whom gives pleasure. I make specific prayers to them for having food grains. We make this extraordinary begging-request with demigods-deities.
अपां पेरुं जीवधन्यं भरामहे देवाव्यं सुहवमध्वरश्रियम्।
सुरश्मिं सोममिन्द्रियं यमीमहि तद्देवानामवो अद्या वृणीमहे
जो सोम जल से मिलते हैं, जिनसे प्राणी स्वच्छन्दता पाते हैं, जो देवों को परितृप्त करते हैं, जिनका नाम लेने पर आनन्द होता है, जो यज्ञ की शोभा हैं और जिनकी दीप्ति उत्कृष्ट है, उनको हम धारण करते हैं और उनसे हम बल की याचना करते हैं। देवों से हम असाधारण रक्षा की भिक्षा माँगते हैं।[ऋग्वेद 10.36.8]
We establish those (in the Yagy) who are obtained from Som waters, living beings attain liberty, those who satisfy demigods-deities, remembering whom fills the innerself with pleasure, whose aura-radiance is excellent and request them for strength-might. We make this extraordinary begging-request with demigods-deities.
सनेम तत्सुसनिता सनित्वभिर्वयं जीवा जीवपुत्रा अनागसः।
ब्रह्मद्विषो विष्वगेनो भरेरत तद्देवानामवो अद्या वृणीमहे
हम और हमारे पुत्रगण दीर्घजीवी हों। हम अपराधी न हों। पुत्रादि के साथ सोमरस का भाग करके हम पान करें। स्तुति द्रोही सब प्रकार के पापों से परिपूर्ण हों। देवों से हम विशिष्ट रक्षा की भिक्षा माँगते हैं।[ऋग्वेद 10.36.9]
Let us attain long life along with our sons. We should not turn into culprits. We should attain a share in Somras along with our sons etc. Those who go against Stuti should have all sorts of sins. We make this extraordinary begging-request with demigods-deities.
ये स्था मनोर्यज्ञियास्ते शृणोतन यद्वो देवा ईमहे तद्देदातन।
जैत्रं क्रतुं रयिमद्वीरवद्यशस्तद्देवानामवो अद्या वृणीमहे
हे देवगणों! आप लोग मनुष्यों से यज्ञ पाने के योग्य हैं। श्रवण करें, आपसे हम जो माँगते हैं, उसे प्रदान करें, जिससे हम बलवान् हों, ऐसा ज्ञान प्रदान करें। धन, लोकबल और यज्ञ प्रदान करें। देवों से हम असाधारण रक्षा की भिक्षा माँगते हैं।[ऋग्वेद 10.36.10]
Hey demigods-deities! You deserve to have Yagy from the humans. Listen to us and grant us what we request you. Enlighten us so that we be come strong-mighty. We make this extraordinary begging-request with demigods-deities.
महदद्य महतामा वृणीमहेऽवो देवानां बृहतामनर्वणाम्।
यथा वसु वीरजातं नशामहै तद्देवानामवो अद्या वृणीमहे
देवता लोग जिस प्रकार महान्, प्रकाण्ड और अविचलित हैं, हम उनसे उसी प्रकार की विशिष्ट रक्षा की प्रार्थना करते हैं। हम धन और लोकबल प्राप्त करें। देवों से हम विशिष्ट रक्षा की भिक्षा माँगते हैं।[ऋग्वेद 10.36.11]
प्रकांड :: फैला हुआ, प्रख्यात, सुप्रसिद्ध, विशिष्ट, श्रेष्ठ, महत, चमत्कारपूर्ण; colossal, outstanding, eminent.
We request the demigods-deities to grant us ability to become great, unmoved, colossal, outstanding, eminent. Let us attain strength and public support. We make this extraordinary begging-request with demigods-deities.
महो अग्नेः समिधानस्य शर्मण्यनागा मित्रे वरुणे स्वस्तये।
श्रेष्ठे स्याम सवितुः सवीमनि तद्देवानामवो अद्या वृणीमहे
प्रज्वलित अग्नि देव से हम विशिष्ट सुख प्राप्त करें। मित्र और वरुण देव के पास हम निपराधी होकर कल्याण प्राप्त करें। सूर्य देव हमें सर्वोत्कृष्ट शान्तिं प्रदान करें। देवों से हम विशिष्ट रक्षा की भिक्षा माँगते हैं।[ऋग्वेद 10.36.12]
Let us seek specific pleasure-comforts from blazing Agni Dev. We should request for welfare-benefits to Mitr & Varun Dev. Let Sury Dev grant us excellent peace, tranquillity, solace.  We make this extraordinary begging-request with demigods-deities.
ये सवितुः सत्यसवस्य विश्वे मित्रस्य व्रते वरुणस्य देवाः।
ते सौभगं वीरवद्गोमदप्नो दधातन द्रविणं चित्रमस्मे
जो समस्त देवगण सत्य-स्वभाव सूर्य देव, मित्र और वरुण देव के कार्यों में उपस्थित रहते हैं। वे हमें सौभाग्य, लोकबल, गाय और पुण्य कर्म प्रदान करते हुए विविध प्रकार का धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.36.13]
The demigods-deities who remain present in the endeavours of Sury Dev, Mitr and Varun Dev should grant us, good luck, public support, cows, auspicious deeds and various kinds of wealth.
सविता पश्चातात्सविता पुरस्तात्सवितोत्तरात्तात्सविताधरात्तात्।
सविता नः सुवतु सर्व ऽ तातिं सविता नो रासतां दीर्घमायुः
क्या पश्चिम, क्या पूर्व, क्या उत्तर और क्या दक्षिण, सूर्य देव हम सबको सर्वत्र श्री वृद्धि करें। हमें दीर्घायु प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.36.14]
Let Sury Dev grant us wealth-prosperity and long life irrespective of east, west, north, south directions along with long life.(23.10.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (37) :: ऋषि :- अभितपा, सौर्य; देवता :- सूर्य; छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्। 
नमो मित्रस्य वरुणस्य चक्षसे महो देवाय तदृतं सपर्यत।
दूरेदृशे देवजाताय केतवे दिवस्पुत्राय सूर्याय शंसत
हे पुरोहितों! जो सूर्य देव, मित्र और वरुण देव को देखते हैं, जिनकी दीप्ति अतीव उज्ज्वल है, जो दूर से ही सभी वस्तुओं को देखते हैं। जिन्होंने देवों के वंश में जन्म ग्रहण किया, जो समस्त वस्तुओं को स्वच्छ कर देते हैं और आकाश के पुत्र स्वरूप हैं, उन सूर्य देव को नमस्कार करें, पूजा करें और स्तुति करें।[ऋग्वेद 10.37.1]
Hey priests! Salute pray-worship Sury Dev, who looks at Mitr & Varun Dev, possess extreme brightness, looks at all objects from a distance. Who took birth in the dynasty of demigods-deities, purifies-cleanse all things-materials and is like the son of sky. 
सा मा सत्योक्तिः परि पातु विश्वतो द्यावा च यत्र ततनन्नहानि च।
विश्वमन्यन्नि विशते यदेजति विश्वहापो विश्वाहोदेति सूर्यः
वही सत्य वचन है, जिसका अवलम्बन करके आकाश और दिन वर्तमान है, समस्त संसार और प्राणिवृन्द जिस पर आश्रित है, जिसके प्रभाव से प्रतिदिन जल प्रवाहित होता है और सूर्य देव उदित होते हैं। वे सत्य वचन मुझे समस्त विषयों में बचावें।[ऋग्वेद 10.37.2]
It true that the sky and day depend upon Sury Dev, whole universe and living beings depend upon him, water flows due to his majesty. Let these true words protect me from all vicious-wicked things.
न ते अदेवः प्रदिवो नि वासते यदेतशेभिः पतरै रथर्यसि।
प्राचीनमन्यदनु वर्तते रज उदन्येन ज्योतिषा यासि सूर्य
सूर्य देव जिस समय आप वेगशाली घोड़े को रथ में जोतकर आकाश मार्ग से जाते हैं, उस समय कोई भी देव शून्य जीव आपके पास नहीं आ पाता। आपकी वह चिर-परिचित असाधाण ज्योति आपके साथ-साथ जाती हैं-उसी ज्योति को धारण करके आप उदित होते हैं।[ऋग्वेद 10.37.3]
When Sury Dev move through the sky riding his fast moving charoite deploying accelerated horses, no impious living being can come close to him. Hey Sury Dev! Your familiar extraordinary light moves along with you. You rise with this exceptional aura.
येन सूर्य ज्योतिषा बाधसे तमो जगच विश्वमुदियर्षि भानुना।
तेनास्मद्विश्वामनिरामनाहुतिमपामीवामप दुष्ष्वप्न्यं सुव
हे सूर्य देव! जिस ज्योति के द्वारा आप अन्धकार को नष्ट करते हैं और जिस किरण के द्वारा समस्त संसार को प्रकाशित करते हैं, उसके द्वारा आप हमारी सारी दरिद्रता नष्ट करें। हमारा पाप, रोग और दुःख दूर करें।[ऋग्वेद 10.37.4]
Hey Sury Dev! Destroy our poverty with your light and rays with which you illuminate the entire universe. Eliminate our sins, diseases and sorrow-pain. 
विश्वस्य हि प्रेषितो रक्षसि व्रतमहेळयन्नुचरसि स्वधा अनु।
यदद्य त्वा सूर्योपब्रवामहै तं नो देवा अनु मंसीरत क्रतुम्
सूर्य देव आप सरल रूप से सम्पूर्ण संसार के क्रिया-कलाप की रक्षा करने के लिए प्रेरित हुए हैं। आप प्रातःकाल के होम से उदित होते हैं। हे सूर्यदेव! आज हम जिस समय आपके नाम का उच्चारण करते हैं। उस समय देवता लोग हमारे यज्ञ को सफल करें।[ऋग्वेद 10.37.5]
Hey Sury Dev! You are inspired to protect the activities of the whole universe. You rise in the morning. Let the deities make our Yagy successful while we chant-pronounce your names.
तं नो द्यावापृथिवी तन्न आप इन्द्रः शृण्वन्तु मरुतो हवं वचः।
मा शूने भूम सूर्यस्य संदृशि भद्रं जीवन्तो जरणामशीमहि
द्यावा-पृथ्वी, जल, मरुद्गण और इन्द्र देव हमारा आह्वान श्रवण करें। सूर्य देव की कृपादृष्टि रहते हुए हम दुःख के भागी न हों। हम दीर्घजीवी होकर वृद्धावस्था पर्यन्त सौभाग्यशाली रहें।[ऋग्वेद 10.37.6]
Heavens & earth, water, Marud Gan and Indr Dev should respond to our invocation. Under the patronage of Sury Dev we should not have sorrow-pain. We should attain long age and remain lucky through out the old age.
  विश्वाहा त्वा सुमनसः सुचक्षसः प्रजावन्तो अनमीवा अनागसः।
उद्यन्तं त्वा मित्रमहो दिवेदिवे ज्योग्जीवाः प्रति पश्येम सूर्य
हे बन्धुओं के सत्कारकारी सूर्य देव! जिस प्रकार आप दिन-दिन उगते हैं, उसी प्रकार ही हम प्रतिदिन आपका, प्रशस्त मन और प्रशस्त चक्षु से दर्शन करें। प्रत्यह ही हम नीरोग शरीर से सन्तानों से घेरे जाकर और आपके पास किसी दोष से दोषी न होकर आपका दर्शन कर सकें। हम चिरंजीवी होकर आपके दर्शन की प्राप्ति कर सके।[ऋग्वेद 10.37.7]
Hey Sury Dev welcoming the brothers-relatives! The way you rise every day we should see you with our eyes with happy innerself-mood. We should be surrounded by our progeny and see you free from defects. We should have long life and see you.
महि ज्योतिर्बिभ्रतं त्वा विचक्षण भास्वन्तं चक्षुषेचक्षुषे मयः।
आरोहन्तं बृहतः पाजसस्परि वयं जीवाः प्रति पश्येम सूर्य
हे सर्वदर्शक सूर्य देव! आप प्रकाण्ड ज्योति धारण करें। आपकी दीप्ति उज्ज्वल है। सबकी आँखों में आप सुखकर होवें। जिस समय आपकी वह मूर्ति आकाश के ऊपर बढ़ती है, उस समय हम प्रदीप्त शरीर के साथ नित्य उसका दर्शन करें।[ऋग्वेद 10.37.8]
Hey all pervading Sury Dev! You possess sharp light. You aura-radiance is bright. You should be pleasing to the eyes of all. When you rise in the sky we should see you every day, with our shinning body.                     
यस्य ते विश्वा भुवनानि केतुना प्र चेरते नि च विशन्ते अक्तुभिः।
अनागास्त्वेन हरिकेश सूर्याह्राह्रा नो वस्यसावस्यसोदिहि
आपकी जिस उत्तम पताका के साथ सम्पूर्ण संसार प्रकाश पाता है और प्रति रात्रि अन्धकारावृत्त होकर अन्तर्ध्यान होता है, हे पिङ्गलवर्ण केश वाले सूर्य देव! आप उसी उत्तम पताका को लेकर प्रतिदिन उदित होवें। हम भी निर्दोष होकर उसका दर्शन करें।[ऋग्वेद 10.37.9]
Hey Sury Dev with golden hue! You should rise with the flag with which the whole world is illuminated, darkness of night goes away every day. We should see it free from defects & innocent.
शं नो भव चक्षसा शं नो अह्ना शं भानुना शं हिमा शं घृणेन।
यथा शमध्वञ्छमसद्दुरोणे तत्सूर्य द्रविणं धेहि चित्रम्
आपकी दृष्टि हमारा कल्याण करे। आपका दिन और किरण, आपकी शीलता और आपका उत्ताप कल्याणकारी हो। हम घर में ही रहें अथवा मार्ग पर यात्रा करें, वह सदा कल्याणकारी हो। हे सूर्यदेव! हमें विविध सम्पत्तियाँ प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.37.10]
Your vision-looks should always beneficial to us. Your day and rays should cause cooling and heat should be beneficial to us. Weather we are at home or travelling, you should always be beneficial to us. Grant us various types of wealth.
अस्माकं देवा उभयाय जन्मने शर्म यच्छत द्विपदे चतुष्पदे।
अदत्पिबदूर्जयमानमाशितं तदस्मे शं योररपो दधातन
हे देवो! हमारे अधिकार में जो द्विपद और चतुष्टपद है, उन सबको आप सुखी करें। सभी प्राणी आहार करें, पुष्ट और बलिष्ठ हों और हमारे साथ वह सब अटूट स्वाधीनता प्राप्त करें।[ऋग्वेद 10.37.11]
Hey deities! Keep the two legged and four legged with us, happy-comfortable. All living beings should eat, become healthy and strong and attain perpetual freedom.
यद्वो देवाश्चकृम जिह्वया गुरु मनसो वा प्रयुती देवहेळनम्।
अरावा यो नो अभि दुच्छ्रुनायते तस्मिन्तदेनो वसवो नि धेतन
हे धन सम्पन्न देवगणों! कथा द्वारा हो, मानसिक क्रिया द्वारा हो, देवों के पास जो कुछ अपराध का कार्य हम किया करते हैं, उसका पाप आप लोग उस व्यक्ति के ऊपर न्यस्त करें, जो व्यक्ति दान धर्म से विमुख है और जो हमारा अनिष्ट किया करता है।[ऋग्वेद 10.37.12]
Hey wealthy demigods-deities! Let all crimes caused by listening, mental activities, sins be transferred to those who are alienated from donations and Dharm-duties and harming us.(24.10.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (38) :: ऋषि :- इन्द्रो मुष्कवान्; देवता :- इन्द्र; छन्द :- जगती।
अस्मिन्त्र इन्द्र पृत्सुतौ यशस्वति शिमीवति क्रन्दसि प्राव सातये।
यत्र गोषाता धृषितेषु खादिषु विष्वक्पतन्ति दिद्यवो नृषाद्ये
इन्द्र देव यह जो युद्ध है, जिसमें यश मिलता है और प्रहार पर प्रहार चलता है, उसमें आप वीर मद से मत्त होकर उद्घोष करते हैं और शत्रुओं से जीती हुई गायों को सुरक्षित करते हैं। युद्ध में एक और दीप्यमान बाण प्रबल शत्रुओं के ऊपर गिरते हैं, इसे देखकर लोग विस्मित हो जाते हैं।[ऋग्वेद 10.38.1]
Hey Indr Dev! This war boosts your glory, you make ne after another strike, make loud sound Nad-Udghosh, make the cows safe after winning them from the enemies. Shining arrows strike the enemies and the people who see it are amazed.
स नः क्षुमन्तं सदने व्यूर्णहि गोअर्णसं रयिमिन्द्र श्रवाय्यम्।
स्याम ते जयतः शक्र मेदिनो यथा वयमुश्मसि तद्वसो कृधि
फलतः हे इन्द्र देव! प्रचुर धन-धान्य और गायों से हमारा घर भर दें। हे शक्र! आपके विजयी होने पर हम आपके स्नेह के पात्र हों। हम जिस धन की अभिलाषा करते हैं, वह हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.38.2]
As a reulst of it, hey Indr Dev! Fill our home with food grains, riches and cows. Hey Shakr-Indr! We should become your affectionate over your victory. Grant us the riches that we need.
यो नो दास आर्यो वा पुरुष्टुतादेव इन्द्र युधये चिकेतति।
अस्माभिष्टे सुषहाः सन्तु शत्रवस्त्वया वयं तान्वनुयाम संगमे
हे बहुतों के द्वारा स्तुत्य इन्द्र देव! आर्य जाति का हो या दास जाति का हो, जो कोई भी देवशून्य मनुष्य हमारे साथ युद्ध करने की इच्छा करता है, वह अनायास हमसे पराजित हो जाए। आपकी कृपा से हम उन्हें युद्ध में पराजित करें।[ऋग्वेद 10.38.3]
Hey Indr Dev, worshiped by many people! Weather Ary or slave, one who do not pray to the deities, has the desire to fight with us should be defeated instanteneously. We should defeat them in the war by virtue of your blessings.
यो दभ्रेभिर्हव्यो यश्च भूरिभिर्यो अभीके वरिवोविश्रूषाह्ये।
तं विखादे सस्निमद्य श्रुतं नरमर्वाञ्चमिन्द्रमवसे करामहे
जिनकी पूजा अल्प मनुष्य करते है अथवा बहुत मनुष्य करते हैं, जो दुःसाध्य युद्ध में विजयी होकर उत्तमोत्तम वस्तुओं को जीतते हैं, जो युद्ध में स्नान करते हैं और जो सबके यहाँ प्रसिद्ध यशश्वि  होते हैं, आश्रय पाने के लिए हम उन्हीं इन्द्र देव को अपने अनुकूल करते हैं।[ऋग्वेद 10.38.4]
We win favours of Indr Dev, who is worshiped by a few or lots of populace, who wins the tough war, get best goods, bathe during war, attain glory & honour.
स्ववृजं हि त्वामहमिन्द्र शुश्रवानानुदं वृषभ रध्रचोदनम्।
प्र मुञ्चस्व परि कुत्सादिहा गहि किमु त्वावान्मुष्कयोर्बद्ध आसते
हे इन्द्र देव! आप अपने भक्तों को उत्साह से युक्त करते हैं। हमें कौन उत्साहित करेगा? हम जानते हैं कि आप स्वयं अपना बन्धन छेदन करने में समर्थ हैं। फलतः कुत्स के हाथों से हमें छुड़ाएँ और पधारें। आपके समान व्यक्ति क्यों मुष्कद्वय का बन्धन सहता है?[ऋग्वेद 10.38.5]
Hey Indr dev! You encourage your devotees. Who else will encourage us? We are aware you that yourself is capable to breaking the ties. Protect us from Kuts and come here. Who else other than you can bear the onslaught of testicles (sex, lasciviousness)?(25.10.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (39) :: ऋषि :- घोषा काक्षीवती; देवता :- अश्विनी कुमार; छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
यो वां परिज्मा सुवृदश्विना रथो दोषामुषासो हव्यो हविष्मता।
शश्वत्तमासस्तमु वामिदं वयं पितुर्न नाम सुहवं हवामहे
हे अश्विनी कुमारों! आप लोगों का सर्वत्र विचरणशील जो सुघटित रथ है और जिस रथ को उद्देश्य के लिए दिन-रात बुलाना यजमान का कर्तव्य है, हम उसी रथ का क्रमागत नाम लेते हैं-जिस प्रकार पिता का नाम लेने में आनन्द आता है, उसी प्रकार ही इस रथ का भी नाम लेने में।[ऋग्वेद 10.39.1]
Hey Ashwani Kumars! The host is dutiful in invoking your stout-strong charoite which is capable of roaming every where. We sequentially recall it since it gives us pleasure like calling our father.
चोदयतं सूनृताः पिन्वतं धिय उत्पुरंधीरीरयतं तदुश्मसि।
यशसं भागं कृणुतं नो अश्विना सोमं न चारुं मघवत्सु नस्कृतम्
हे अश्विनी कुमारों! आप लोगों का सर्वत्र विचरणशील जो सुघटित रथ है और जिस स्थ को उद्देश्य के लिए दिन-रात बुलाना यजमान का कर्तव्य है, हम उसी रथ का क्रमागत नाम लेते हैं-जिस प्रकार पिता का नाम लेने में आनन्द आता है, उसी प्रकार ही इस रथ का भी नाम लेने में।[ऋग्वेद 10.39.2]
Hey Ashwani Kumars! Its the duty of the host-household to invoke your stout-strong charoite which is capable of roaming every where. We sequentially call it feeling pleasure like calling our father.
अमाजुरश्चिद्भवथो युवं भगोऽ नाशोश्चिदवितारापमस्य चित्।
अन्धस्य चिन्नासत्या कृशस्य चिद्युवामिदाहुर्भिषजा रुतस्य चित्
पितृगृह में एक स्त्री (घोषा) वार्द्धक्य को प्राप्त कर रही थी, आप लोग उसके सौभाग्य स्वरूप वर को ले आये। जिसमें चलने की शक्ति नही है अथवा जो अतीव कमज़ोर है, उसके लिए आप आश्रय रूप हैं। आपको लोग अन्धे, दुर्बल और रोते हुए रोगी का चिकित्सक कहते हैं।[ऋग्वेद 10.39.3]
A women was growing old in her parents house, you brought a lucky husband for her. One who is too weak & fragile, can not walk, you are a support for him. People call you the physician of the blind, weak and weeping patient.
युवं च्यवानं सनयं यथा रथं पुनर्युवानं चरथाय तक्षथुः।
निष्टौग्र्यमूहथुरद्भयस्परि विश्वेत्ता वां सवनेषु प्रवाच्या
जिस प्रकार कोई पुराने रथ को नये रूप से बनाकर उसके द्वारा गतिविधि करता है, उसी प्रकार ही आपने जरा-जीर्ण च्यवन ऋषि को युवा बना दिया। आप लोग ने ही तुग्र पुत्र को जल के ऊपर निरूपद्रव रूप से वहन करके तट पर लगा दिया। यज्ञ के समय आप दोनों के यह सब कार्य विशेष रूप से वर्णन करने के योग्य है।[ऋग्वेद 10.39.4]
The way one repair his old charoite and and use it, similarly your rejuvenated old & fragile Chayvan Rishi. You brought the son of Tugr to to the bank-shore. Your endeavours should be specifically mentioned during the Yagy.
पुराणा वां वीर्या३ प्र ब्रवा जनेऽथो हासथुर्भिषजा मयोभुवा।
ता वां नु नव्याववसे करामहेऽयं नासत्या श्रदरिर्यथा दधत्
आप लोगों के उन सभी विरत्व कार्यों का लोगों के पास मैं वर्णन करती हूँ। इसके अतिरिक्त आप दोनों ही अत्यन्त पटु चिकित्सक हैं। इसीलिए आपका आश्रय पाने की अभिलाषा से मैं आपकी स्तुति करती हूँ। हे सत्य स्वरूप अश्विनी कुमारों! मैं इस प्रकार से स्तुति करती हूँ कि उसका विश्वास यजमान अवश्य करेगा।[ऋग्वेद 10.39.5]
I describe your brave deeds to the people. You are highly expert physicians. I worship to seek asylum under you. Hey truthful Ashwani Kumars! A host will have to believe my prayers.
इयं वामद्धे शृणुतं मे अश्विना पुत्रायेव पितरा मह्यं शिक्षतम्।
अनापिरज्ञा असजात्यामतिः पुरा तस्या अभिसस्तेरव स्मृतम्
हे अश्विनी कुमारों! मैं आप दोनों का आवाहन करती हूँ; श्रवण करें। जिस प्रकार पिता पुत्र को शिक्षा देता है, उसी प्रकार ही मुझे शिक्षा दें। मेरा कोई यथार्थ बन्धु नहीं है, मैं ज्ञान शून्य हूँ। मेरा कुटुम्ब नहीं है, बुद्धि भी नहीं है। मेरी कोई दुर्गति आने के पहले ही दूर करें।[ऋग्वेद 10.39.6]
Hey Ashwani Kumars! I invoke both of you, please respond. The way a father guides his son, you should guide me. I have no brother or family. I do not either knowledge or intelligence. Protect me prior to turmoil.
युवं रथेन विमदाय शुन्ध्युवं न्यूहथुः पुरुमित्रस्य योषणाम्।
युवं हवं वध्रिमत्या अगच्छतं युवं सुषुतिं चक्रथुः पुरंधये
पुरुमित्र राजा की 'शुन्ध्युव' नामक कन्या को आप लोग रथ पर चढ़ा ले गये और विमद के साथ विवाह करा दिया। विघ्रमती ने आप लोगों को बुलाया। उसकी बात सुनकर और उसकी प्रसव वेदना को दूर करके सुख से प्रसव करा दिया।[ऋग्वेद 10.39.7]
You took away daughter of king Purumitr named Shundhyuv in your charoite and got her married with Vimad. Vighrmati invited you. You responded to her and helped her in painless delivery, comfortably.
युवं विप्रस्य जरणामुपेयुषः पुनः कलेरकृणुतं युवद्वयः।
युवं वन्दनमृश्यदाद्दूपथुर्युवं सद्यो विश्पहामेतवे कृथः
कलि नाम का जो स्तोता अत्यन्त वृद्ध हो गया, आप लोगों ने उसे फिर यौवन से युक्त कर दिया।[ऋग्वेद 10.39.8]
You granted youth, resupinated Kali, a Stota who had turned very old.
युवं ह रेभं वृषणा गुहा हितमुदैरयतं ममृवांसमश्विना।
युवमृबीसमुत तप्तमत्रय ओमन्वन्तं चक्रथुः सप्तवध्रये
हे अभीष्ट फलदाता अश्विनी कुमारों! जिस समय रेभ नामक व्यक्ति को शत्रुओं ने मृत प्राय करके गुहा के बीच रख दिया, उस समय आप लोगों ने ही उसे संकट से बचाया। जिस समय अत्रि ऋषि सात बन्धनों में बाँधे जाकर जलते अग्नि कुण्ड में फेंके गये, उस समय आप लोगों ने ही उस अग्नि कुण्ड को बुझाया था।[ऋग्वेद 10.39.9]
Hey Ashwani Kumars accomplishing desired boons-desires! You protected Rebh who was almost dead and kept in the cave, from the enemies and protected him from trouble. When Atri Rishi was tied seven times and thrown into the Agni Kund (fire pit) who extinguished that fire.
युवं श्वेतं पेदवेऽश्विनाश्वं नवभिर्वाजैर्नवती च वाजिनम्।
चकृत्यं ददथुर्द्रावयत्सखं भगं न नृभ्यो हव्यं मयोभुवम्
हे अश्विनी कुमारों! आपने ही पेदु राजा को निन्यानवे अश्वों के साथ एक उत्तम शुभ्रवर्ण का अश्व दिया। वह अश्व विचित्र तेजस्वी था, उसे देखते ही समस्त शत्रु सेना भाग जाती थी, वह मनुष्यों के लिए बहुमूल्य धन था। उसका नाम लेने पर आनन्द प्राप्त होता था और उसे देखने पर मन प्रसन्न होता था।[ऋग्वेद 10.39.10]
Hey Ashwani Kumars! You granted an excellent white horse, along with ninety nine horses to king Pedu. That horse was majestic and the enemy army use to run away just by watching him. Calling his names generated pleasure and innerself too got pleasure just by seeing him.
न तं राजानावदिते कुतश्चन नांहो अश्नोति दुरितं नकिर्भयम्।
यमश्विना सुहवा रुद्रवर्तनी पुरोरथं कृणुथः पल्या सह
हे अक्षय राजाओं! आप दोनों का नाम कीर्तन करने से आनन्द होता है। जिस समय आप रास्ते में जाते हैं, उस समय सब चारों ओर से आपकी स्तुति करते हैं। यदि आप दम्पत्ति को अपने रथ के अगले भाग में चढ़ाकर आश्रय दें तो उन्हें कोई भी पाप, दुर्गति या विपद स्पर्श नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 10.39.11]
Hey imperishable kings-Ashwani Kumars! Recitation of your names grants pleasure. When are on the way, people worship from all sides-directions. If you ride a couple in your charoite, none can inflict them with sin, misery-misfortune and trouble.
आ तेन यातं मनसो जवीयसा रथं यं वामृभवश्चक्रुरश्विना।
यस्य योगे दुहिता जायते दिव उभे अहनी सुदिने विवस्वतः
हे अश्विनी कुमारों! ऋभु नामक देवों ने आपके लिए रथ प्रस्तुत किया। उस रथ के उदय होने पर आकाश की कन्या देवी उषा प्रकट होती है और सूर्य देव से अतीव सुन्दर दिन और रात्रि जन्म लेती है। उसी मन से अधिक वेग वाले रथ पर बैठकर आप लोग पधारें।[ऋग्वेद 10.39.12]
Hey Ashwani Kumars! Demigods named Ribhu brought-presented charoite to you. Appearance of this charoite leads to dawn i.e., Usha Devi present her self leading to a beautiful day fall by virtue of Sury Dev. Come riding the fast moving charoite with the same mind set-attitude.
ता वर्तिर्यातं जयुषा वि पर्वतमपिन्वतं शयवे धेनुमश्विना।
वृकस्य चिद्वर्तिकामन्तरास्याद्युवं शचीभिर्ग्रसिताममुञ्चतम्
हे अश्विनी कुमारों! आप लोग उसी रथ पर चढ़कर पर्वत की ओर जाने वाले मार्ग पर गमन करें और शयु नामक मनुष्य की वृद्ध गायों को फिर दूध वाली बना दें। आपकी ऐसी क्षमता है कि तेंदुए के मुँह में गिरे वर्तिका (चटका) नामक पक्षी को आपने उसके मुँह से निकालकर उसका उद्धार किया।[ऋग्वेद 10.39.13]
Hey Ashwani Kumars! Ride the charoite to the mountain and make the old cows of person named Shyu milch. You are so powerful that you brought out the bird called Vartika-Chatka out of the clutched of leopard and relieved her.
एतं वां स्तोममश्विनावकर्मातक्षाम भृगवो न रथम्।
न्यमृक्षाम योषणां न मर्ये नित्यं न सूनुं तनयं दधानाः
जिस प्रकार भृगु-संतानें रथ बनाती हैं, उसी प्रकार ही, हे अश्विनी कुमारों! आप लोगों के लिए यह रथ प्रस्तुत किया है। जिस प्रकार जमाता को कन्या देने के समय लोग उसे वस्त्राभूषण से अलंकृत करके देते हैं, उसी प्रकार ही हमने इस स्तोत्र को अलंकृत किया है। हमारे पुत्र-पौत्र सदा प्रतिष्ठित रहें।[ऋग्वेद 10.39.14]
Hey Ashwani Kumars! The way the progeny of Bhragu build charoites, similarly we present this charoite to you. The way  a groom present gift-decorations to his bride, we too have decorated this Strotr. Let our sons and grandsons attain glory-reputation.(26.10.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (40) :: ऋषि :- घोषा काक्षीवती; देवता :- अश्विनी कुमार; छन्द :- जगती।
रथं यान्तं कुह को ह वां नरा प्रति द्युमन्तं सुविताय भूषति।
प्रातर्यावाणं विभ्वं विशेविशे वस्तोर्वस्तोर्वहमानं धिया शमि
हे कर्मों के उपदेशक अश्विनी कुमारों! आपका प्रकाण्ड रथ जिस समय प्रातःकाल जाता है और प्रत्येक व्यक्ति के पास धन वहन करके ले जाता है, उस समय अपने यज्ञ की सफलता के लिए कौन यजमान उस उज्ज्वल रथ का स्तोत्र करता है? आपका वह रथ कहाँ है?[ऋग्वेद 10.40.1]
प्रकांड :: प्रख्यात, सुप्रसिद्ध, विशिष्ट, श्रेष्ठ, महत, चमत्कारपूर्ण, फैला हुआ; colossal, outstanding, eminent.
Hey Ashwani Kumars, motivator for Karm-endeavours! Your colossal-eminent charoite carries wealth  to every person in the morning. The Ritviz chant-recite Strotr for this shinning charoite. Where is your charoite?
कुह स्विद्दोषा कुह वस्तोरश्विना कुहाभिपित्वं करतः कुहषतुः।
को वां शयुत्रा विधवेव देवरं मर्यं न योषा कृणुते सधस्थ आ
हे अश्विनी कुमारों! आप लोग दिन ओर रात में कहाँ जाते हैं? कहाँ समय बिताते है? जिस प्रकार विधवा स्त्री शयनकाल में देवर (द्वितीय वर?) का और कामिनी अपने पति का समादर करती है, उसी प्रकार ही यज्ञ में समादर के साथ आपको कौन बुलाता है?[ऋग्वेद 10.40.2]
Hey Ashwani Kumars! Where do you remain during the day & night? Where do you spend your time? The way a widow wait for her brother in law at night and lascivious woman honour her husband, similarly who invite you in the Yagy?
प्रातर्जरेथे जरणेव कापया वस्तोर्वस्तोर्यजता गच्छथो गृहम्।
कस्य ध्वस्त्रा भवथः कस्य वा नरा राजपुत्रेव सवनाव गच्छथः
दो वृद्ध राजाओं के समान आपको जगाने के लिए प्रातःकाल स्तोत्र पाठ किया जाता है। यज्ञ पाने के लिए आप लोग प्रतिदिन किसके घर में जाते हैं? किसका पाप नष्ट करते हैं? हे कर्मों के उपदेशक अश्विनी कुमारों! राजकुमारों के समान आप दोनों किसके यज्ञ में जाते हैं?[ऋग्वेद 10.40.3]
Strotr are recited in the morning to awake you like two old king. Whom do you visit in his house to participate in the Yagy? Whose sins are destroyed by you? Hey advisor of deeds, Ashwani Kumars! In whose Yagy do you participate like princes?
युवां मृगेव वारणा मृगण्यवो दोषा वस्तोर्हविषा नि ह्वयामहे।
युवं होत्रामृतुथा जुह्वते नरेषं जनाय वहथः शुभस्पती
जिस प्रकार व्याघ्र शार्दूल की इच्छा करते है, उसी प्रकार ही यज्ञीय द्रव्य लेकर मैं आपका दिन-रात आवाहन करता हूँ। हे उपदेशक द्वय! यथासमय लोग आप लोगों के लिए होम किया करते हैं। आप लोग भी लोगों के लिए अन्न ले आते हैं; क्योंकि आप कल्याण के अधिपति हैं।[ऋग्वेद 10.40.4]
The way a tiger wish to meet a lion, I keep Yagy Samgri ready and invoke you day and night. Hey preacher duo! You accomplish the Yagy of the populace at the designated time. You bring food grains for the populace, since you are the lord of welfare.
युवां ह घोषा पर्यश्विना यती राज्ञ ऊचे दुहिता पृच्छे वां नरा।
भूतं मे अह्न उत भूतमक्तवेऽश्वावते रथिने शक्तमर्वते
हे अश्विनी कुमारों! मैं राजकुमारी घोषा कक्षीवान् की पुत्री हूँ। मैं चारों ओर घूम-घूमकर आपकी ही कथा कहती हूँ, आप लोगों के विषय में जिज्ञासा करती हूँ। क्या दिन, क्या रात, आप लोगों का ही चिंतन करती हूँ। आप अपने अश्वों से युक्त रथ द्वारा आगमन कर रात-दिन मेरे यहाँ मेरे कल्याण के निमित्त कर्मों में सहायक बनें।[ऋग्वेद 10.40.5]
Hey Ashwani Kumars! I am princess Ghosh, the daughter of king Kakshiwan. I roam all around narrating your stories. I am eager to more about you. I keep thinking about you, day & night. You should ride your charoite deploying the horses  and help in welfare means pertaining to me during the day & night.
युवं कवी ष्ठः पर्यश्विना रथं विशो न कुत्सो जरितुर्नशायथः।
युवोर्ह मक्षा पर्यश्विना मध्वासा भरत निष्कृतं न योषणा
हे अश्विनी कुमारों! आप दोनों रथ पर आरूढ़ हुए हैं। आप लोग कुत्स के सदृश रथ पर आरूढ़ होकर स्तोता के घर जाते हैं। आपके पास इतना अधिक मधु है कि उसे मक्खियाँ मुँह में ग्रहण करती हैं। जिस प्रकार कोई स्त्री व्याभिचार में रत रहती है, उसी प्रकार ही मक्खियाँ आपके मधु को ग्रहण करती हैं।[ऋग्वेद 10.40.6]
Hey Ashwani Kumars! Both of you are present over the charoite. You visit the house of the Stota like Kuts. You have so much honey that the bees hold it in their mouths. The way the women keep involved in adultery, the bees sucks your honey.
युवं ह भुज्युं युवमश्विना वशं युवं शिञ्जारमुशनामुपारथुः।
युवो ररावा परि सख्यमासते युवोरहमवसा सुम्नमा चके
हे अश्विनी कुमारों! आपने भुज्यु नामक व्यक्ति को समुद्र से बचाया। आपने वश राजा, अत्रि ऋषि और उशना का उद्धार किया। जो दाता है वही आपकी मित्रता प्राप्त करता है। आपके आश्रय से जो सुख प्राप्त होता है, मैं उसकी कामना करता हूँ।[ऋग्वेद 10.40.7]
उद्धार :: उबारना, मुक्त करना, ऊपर ले जाना; छुटकारा, दस्तबरदारी, बचाव, छुड़ाना, निस्तार, मुक्ति; deliverance, extrication, releasement, rescue.
Hey Ashwani Kumars! You protected Bhujyu in the ocean. You extricated king Vash, Atri rishi and Ushna. Only the donor attain your friendship. I wish to have the pleasure under your asylum-shelter.
युवं ह कृशं युवमश्विना शयुं युवं विधन्तं विधवामुरुष्यथः।
युवं सनिभ्यः स्तनयन्तमश्विनाप व्रजमूर्णथः सप्तास्यमम्
हे अश्विनी कमारों! आप लोगों ने ही कृश, शयु, अपने परिचारक और विधवा को बचाया। यज्ञकर्ता के लिए आप ही लोग बादलों को फाड़ते हैं, जिससे गतिशील द्वार वाला मेघ, शब्द करते हुए वृष्टि करता है।[ऋग्वेद 10.40.8]
Hey Ashwani Kumars! You protected Krash, Shayu, your servant and a widow. You tear the clouds for the Yagy performer, so that accelerated clouds showers rains making loud sound.
जनिष्ट योषा पतयत्कनीनको वि चारुहन्वीरुधो दंसना अनु।
आस्मै रीयन्ते निवनेव सिन्धवोऽस्मा अले भवति तत्पतित्वनम्
मैं घोषा हूँ। नारी लक्षण प्राप्त करके सौभाग्यवती हुई हूँ। मेरे विवाह के लिए वर आया है। आपने वर्षा की है; इसलिए उसके लिए शस्य आदि भी उत्पन्न हुए हैं। निम्नाभिमुखी होकर नदियाँ इनकी ओर बह रही हैं। ये रोग रहित हैं। सब तरह का सुख भोगने के योग्य इनमें  शक्ति आ गई है।[ऋग्वेद 10.40.9]
I am Ghosha. I possess the characterises of woman and has become lucky. The groom has come for marrying me. You showered rains leading to growth of vegetation. Rivers are flowing in the downward direction. They are free form ailments. They have acquired strength to enjoy all sorts of comforts-pleasure.
जीवं रुदन्ति वि मयन्ते अध्वरे दीर्घामनु प्रसितिं दीधियुर्नरः।
वामं पितृभ्यो व इदं समेरिरे मयः पतिभ्यो जनयः परिष्वजे
हे अश्विनी कुमारों! जो लोग अपनी स्त्री की प्राण रक्षा के लिए रोदन तक करते है, स्त्रियों को यज्ञकार्य में नियुक्त करते हैं। उसका अपनी बाँहों से बहुत देर तक आलिङ्गन करते हैं और सन्तान उत्पन्न करके पितृ यज्ञ में नियुक्त करते हैं। उनकी स्त्रियाँ सुखपूर्वक अलिङ्गन करती है।[ऋग्वेद 10.40.10]
Hey Ashwani Kumars! Those who weep for the sake of their wife's life, depute them in Yagy Kary-deeds, embraces them in their arms for longs, produce progeny and appoint them in the Pitr-Manes Yagy, are embraced by their wife comfortably for long.
न तस्य विद्म तदु षु प्र वोचत युवा ह यद्युवत्याः क्षेति योनिषु।
प्रियोस्त्रियस्य वृषभस्य रेतिनो गृहं गमेमाश्विना तदुश्मसि
हे अश्विनी कुमारों! उनका वैसा सुख मैं नहीं जानती। युवक स्वामी और युवती स्त्री के सहवास-सुख को मुझे भली-भाँति समझा दें। मेरी एकमात्र यही अभिलाषा है कि मैं स्त्री के प्रति अनुरक्त बलिष्ठ स्वामी के गृह में जाऊँ।[ऋग्वेद 10.40.11]
अनुरक्त :: आसक्त, आकृष्ट, प्रेम मत्त, प्रेम सक्तत, मगन, संलग्न, आसक्त, युक्त, भक्त, निष्ठावान, तत्पर, परायण, वफ़ादार; attached, enamoured, devoted.
Hey Ashwani Kumars! I am not aware of the pleasure of that sort. Explain me the relations of young couple. My only desire is that I should go the house of mighty husband who is attached-devoted to me. 
आ वामगन्त्सुमतिर्वाजिनीवसू न्यश्विना हृत्सु कामा अयंसत।
अभूतं गोपा मिथुना शुभस्पती प्रिया अर्यम्णो दुर्यां अशीमहि
हे अन्न और धनवाले अश्विनी कुमारों! आप हमारे प्रति कृपादृष्टि करें। मेरे मन की अभिलाषाएँ पूर्ण करें। आप कल्याण करने वाले हैं। मेरे रक्षक बनें। पति गृह में जाकर हम पति के लिए प्रिय बनें।[ऋग्वेद 10.40.12]
Hey wealthy Ashwani Kumars; possessing food grains! You should be kind to us. Accomplish our desires. You are dedicated-intend to welfare. Become my protector. We should be loved by our husband in their house.
ता मन्दसाना मनुषो दुरोण आ धत्तं रयिं सहवीरं वचस्यवे।
कृतं तीर्थ सुप्रपाणं शुभस्पती स्थाणुं पथेष्ठामप दुर्मतिं हतम्
मैं आपकी स्तुति करती हूँ; इसलिए आप लोग मुझसे सन्तुष्ट होकर मेरे पति के गृह में धन और सन्तति प्रदान करें। हे कल्याण करने वाले अश्विनी कुमारों! मैं जिस तीर्थ (तट) पर जल पीती हूँ, उसे आप सुविधाजनक करें। मेरे पतिगृह में जाने के मार्ग में यदि कोई दुष्ट व्यक्ति विघ्न करे, तो उसे आप विनष्ट करें।[ऋग्वेद 10.40.13]
I worship you. Hence you should grant me wealth and progeny in my husband's house, on been satisfied with me. Hey benefitting Ashwani Kumars! Make that point comfortable in the pilgrimage, where I drink water. Torture the person who create trouble for me, destroy him, while I am going to my husband's house.
क स्विदद्य कतमास्वश्विना विक्षु दस्त्रा मादयेते शुभस्पती।
क ई नि येमे कतमस्य जग्मतुर्विप्रस्य वा यजमानस्य वा गृहम्
हे प्रियदर्शन और कल्याणकर्ता अश्विनी कुमारों! आजकल आप कहाँ, किसके घर में आमोद-प्रमोद करते हैं? कौन आपको बाँधकर रखे हुए है? किस बुद्धिमान् यजमान के घर में आप गये है?[ऋग्वेद 10.40.14]
Hey lovely and beneficial Ashwani Kumars! Where are you now? In who's house do you enjoy? Who has tied you? Which intelligent host has been visited by you?(27.10.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (41) :: ऋषि :- सुहस्त्य, घोष; देवता :- अश्विनी कुमार; छन्द :- जगती।
समानमु त्यं पुरुहूतमुक्थ्यं १ रथं त्रिचक्रं सवना गनिग्मतम्।
परिज्मानं विदथ्यं सुवृक्तिभिर्वयं व्युष्टा उषसो हवामहे
हे अश्विनी कुमारों! आप दोनों के पास एक ही रथ है, जिसे अनेक बुलाते हैं, अनेक स्तुति करते हैं। वह रथ तीन चक्कों के ऊपर यज्ञों में जाता है। वह चारों ओर घूमते हुए यज्ञ को सुसम्पन्न करता है। प्रति दिन प्रातःकाल हम सुन्दर स्तुति से उसी रथ को बुलाते हैं।[ऋग्वेद 10.41.1]
Hey Ashwani Kumars! Both of you have just one charoite, which is invited by several people and they worship-pray to it. Your charoite having three wheels goes up over to the Yagy site. It accomplish the Yagy hovering over it. We every day invite it, worshiping it with beautiful hymns.
प्रातर्युजं नासत्याधि तिष्ठथः प्रातर्यावाणं मधुवाहनं रथम्।
विशो येन गच्छथो यजरीर्नरा कीरेश्चिद्यज्ञं होतृमन्तमश्विना
हे सत्य स्वरूप अश्विनी कुमारों! आपका जो रथ प्रातःकाल नियोजित किया जाता है, प्रातःकाल चलता है और मधु ले जाता है, उसी रथ पर चढ़कर यज्ञकर्ताओं के पास जावें। आपकी जो स्तुति करता है, उसके होतृयुक्त यज्ञ में भी जावें।[ऋग्वेद 10.41.2]
Hey truthful Ashwani Kumars! Ride your charoite which is deployed in the morning & start collecting honey thereby go to the Yagy performers. Visit the Yagy conducted with offerings of the one, who worship you.
अध्वर्युं वा मधुपाणिं सुहस्त्यमग्निधं वा घृतदक्षं दमूनसम्।
विप्रस्य वा यत्सवनानि गच्छथोऽत आ यातं मधुपेयमश्विना
हे अश्विनी कुमारों! मैं सुहस्त हूँ। मैं हाथ में मधु लेकर अध्वर्यु का कार्य करता हूँ। मेरे पास पधारें अथवा अग्निध्र नामक जो बली पुरोहित दान करने को उद्यत है, उसके पास पधारें। यद्यपि आप लोग किसी बुद्धिमान व्यक्ति के यज्ञ में जाते हैं, तब भी मधुपान करने के लिए मेरे गृह में पधारें।[ऋग्वेद 10.41.3]
अग्निध्र :: प्रियव्रत के दस पुत्रों में से एक, जो स्वयंभुव मनु के पुत्र थे । स्वयंभुव मनु का सृजन ब्रह्मा जी ने किया था, जिन्हें अज्ञात सर्वव्यापी आदिम सत्ता नारायण ने रचा था। अग्नीध्र को जम्बूद्वीप का स्वामी बनाया गया, जो सात द्वीपों में से एक था।[वराह पुराण 74वां अध्याय]
अग्निध्र वंशावली :- विष्णु के वंशज: विष्णु-ब्रह्मा-मरिचि-कश्यप-विवस्वान्-वैवस्वतमनु-प्रियव्रत-अग्निध्र। वैवस्वत मनु के पुत्र प्रियव्रत ने विश्व कर्मा की पुत्री बर्हिष्मती से विवाह किया। अग्नीध्र उनके दस पुत्रों में से एक था। अन्य नौ पुत्र : इध्मजिह्वा, यज्ञबाहु, महावीर, हिरण्यरेतस, घृतपृष्ट, साव, मेधातिथि, वीतिहोत्र और कवि। प्रियव्रत और बर्हिष्मती की एक पुत्री भी हुई जिसका नाम उर्ज्जस्वती था। शुक्र ने उससे विवाह किया और देवयानी उनकी पुत्री थी। विवाहित जीवन : अग्निध्र ने पूर्वचित्त नामक अप्सरा से विवाह किया। उनके नौ बच्चे हुए : नाभि, किंपुरुष, हरि, इलाव्रत, रम्यक, हिरण्यक, कुरु, भद्राश्व और केतुमाल। इसी कुरु से कुरु वंश की शुरुआत हुई। अग्नीध्र ने जम्बूद्वीप पर लंबे समय तक शासन किया।[देवी भागवत, स्कंध 8]
जब अग्नीध्र जम्बूद्वीप के शासक थे, तब एक बार वे एक गुफा में चले गए और बिना कुछ खाए वहाँ कठोर तप किया। तब ब्रह्मा जी ने उन्हें लुभाने और उनकी तपस्या को विफल करने के लिए एक सुंदर अप्सरा (अप्सरा) भेजी। अग्निध्र प्रलोभन का शिकार हो गए। विप्रचित्ति नाम की उस अप्सरा ने उनकी तपस्या को हिला दिया। उन्होंने उससे विवाह कर लिया।[भागवत, स्कंध 5, अध्याय 2)
अग्निध्र ब्राह्मण के तीन प्रकार के साथियों में से एक को संदर्भित करता है, जो कि ऋत्विजों (ऋत्विक) की चार श्रेणियों में से एक है या वैदिक यज्ञों में भाग लेने वाले पुजारी।[शिवपुराण 2.2.7]
वैदिक यज्ञों में भाग लेने वाले पुजारी (ऋत्विज) सामान्यतः संख्या में चार होते हैं। वे होतृ, अध्वर्यु, उद्गातृ और ब्राह्मण हैं जो क्रमशः चार वेदों- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्व वेद अनुरूप हैं। प्रत्येक पुजारी के तीन साथी या सहायक होते हैं, कुल संख्या सोलह होती है अर्थात होतृ : मैत्रावरुण, अच्छावाक, ग्रैवस्तुत; अध्वर्यु : प्रतिप्रस्थत्र, नेष्टृ, उन्नेत्र; उदगात्र : प्रस्तोत्र, प्रतिहारत्र, सुब्रह्मण्य और ब्राह्मण : ब्राह्मणच्चासिन, अग्निध्र, पोत्र।[आश्वलायन श्रौत सूत्र 4] 
अग्निघ्र भौत्य मनु के पुत्र, एक नदीपुत्र और धिष्णि अग्नि, भौत्य मनु (चौदहवें मनु) के युग के एक ऋषि, स्वायंभुव मनु के एक पुत्र, जम्बूद्वीप के स्वामी, प्रियव्रत और बर्हिष्मती के पुत्र, नाभि के पिता। जम्बूद्वीप के अधिपति, अपने बच्चों की तरह लोगों की रक्षा की। जब ब्रह्मा ने दिव्य कन्या पूर्वचित्ति को भेजा तो उन्होंने संतान हीन होकर तपस्या की, जिसके साथ अग्निध्र ने 1,00,000 वर्षों तक जीवन का आनंद लिया। नौ पुत्रों को जन्म देने के बाद, वह ब्रह्मा के दरबार में वापस चली गई। उसने अपना राज्य अपने बेटों में बाँट दिया और अपनी पत्नी के साथ दूसरे लोक में चले गये।  उसकी मृत्यु के बाद, उसके नौ पुत्रों ने मेरु की नौ बेटियों से विवाह किया। स्वायंभुव मनु के दस पुत्रों में से एक ने स्वायंभुव को बछड़े के रूप में लेकर गौ-पृथ्वी को दुहा। 
कर्दम और प्रियव्रत की पुत्री के दस पुत्रों में से एक।
यज्ञ के लिए 16 ऋत्विकों में से एक,नारायण के हाथों से निर्मित।
अग्निध्र उत्तर देश-विभाग) से संबंधित एक देश को संदर्भित करता है, जो कूर्म विभाग की प्रणाली के अनुसार शतभिषज, पूर्वभाद्रपद और उत्तराभाद्रपद के नक्षत्रों के अंतर्गत वर्गीकृत है।[बृहत्संहिता अध्याय 14]
भारतवर्ष के केंद्र से शुरू होने वाले और पूर्व, दक्षिण-पूर्व, दक्षिण आदि की परिक्रमा करने वाले पृथ्वी के देशों को 3 प्रति विभाग की दर से 27 चंद्र नक्षत्रों के अनुरूप 9 विभागों में विभाजित किया गया है और कृत्तिका से शुरू किया गया है। शतभिषज, पूर्वाभाद्रपद और उत्तराभाद्रपद नक्षत्र उत्तरी भाग का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसमें अग्निघ्र शामिल हैं।
[वराह मिहिर]
ज्योतिष खगोल विज्ञान या वैदिक ज्योतिष :- यह छह वेदांगों (वेदों के साथ अध्ययन किए जाने वाले अतिरिक्त विज्ञान) में से पाँचवाँ है। ज्योतिष का संबंध खगोलीय पिंडों की गतिविधियों के अध्ययन और भविष्यवाणी से है, ताकि अनुष्ठानों और समारोहों के लिए शुभ समय की गणना की जा सके।
Hey Ashwani Kumars! I possess beautiful hands dedicated to pious, virtuous, righteous deeds. I posses honey in my hands performing the job of a priest. Either come to me or Agnidhr-one out of 16 Ritviz, ready for making offerings. Though you visit the Yagy of the intelligent, yet come to me for drinking Somras.(28.10.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (42) :: ऋषि :- कृष्ण, आंगिरस; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप्।
अस्तेव सु प्रतरं लायमस्यन्भूषन्निव प्र भरा स्तोममस्मै।
वाचा विप्रास्तरत वाचमर्यो नि रामय जरितः सोम इन्द्रम्
जिस प्रकार बाण फेंकने वाला धनुर्द्धर अतीव सुन्दर वाण फेंकता है, उसी प्रकार ही आप इन्द्र देव के लिए क्रमागत स्तवन करें। उनके लिए प्राञ्जल और अलंकृत करके स्तुति का प्रयोग करें। हे ब्राह्मणों! आपके साथ जो स्पर्द्धा करता है, ऐसे स्तुति वचन का प्रयोग करें कि वह पराजित हो जाय। हे स्तोता गण! इन्द्र देव को सोमरस की ओर आकृष्ट करें।[ऋग्वेद 10.42.1]
Worship Indr Dev continuously like the anchor who shot arrows one after another. Make pure and decorated prayers devoted to him. Hey Brahmans! Make use of such Stuti so that your competitor is defeated. Hey Stota Gan! Attract Indr Dev to Somras.
दोहेन गामुप शिक्षा सखायं प्र बोधय जरितर्जारमिन्द्रम्।
कोशं न पूर्ण वसुन न्यृष्टमा च्यावय मघदेयाय शूरम्
हे स्तोता! जिस प्रकार गाय को दूहकर लोग अपना प्रयोजन सिद्ध करते है, उसी प्रकार ही मित्र स्वरूप इन्द्र देव से अपने प्रयोजन को सिद्ध करें। स्तुत्य इन्द्र देव को जगावें। जैसे धान्य पूर्ण पात्र को नीचे करके उसका धान्य गिरा देते हैं, उसी प्रकार ही वीर इन्द्र देव कामना सिद्धि के लिए अपने अनुकूल करें।[ऋग्वेद 10.42.2]
Hey Stota! The way people solve their purpose by milking cow, one should solve his purpose with friendly Indr Dev. Awake worshipable Indr Dev. The way rice is thrown down by inverting the pot make Indr Dev favourable for accomplishment.
किमङ्ग त्वा मघवन्भोजमाहुः शिशीहि मा शिशयं त्वा शृणोमि।
प्नस्वति मम धीरस्तु शक्र वसुविदं भगमिन्द्रा भरा नः॥
हे इन्द्र देव! आपको लोग 'भोज' (अभीष्टदाता) क्यों कहते हैं? आप दाता हैं; इसीलिए यह नाम रखा गया है। मैंने सुना है कि आप लोगों को तीक्ष्ण कर देते हैं। मुझे तीक्ष्ण करें। मेरी बुद्धि कर्म में निपुण हो। मेरा ऐसा शुभ करें कि धन उपार्जित किया जा सके।[ऋग्वेद 10.42.3]
Hey Indr dev! People call you Bhoj i.e., one who accomplish desires. You are a donor, hence this name. I have heard that you sharpen the people. Sharpen me as well. My intelligence should have expertise in work. Bless me to earn money.
त्वां जना ममसत्येष्विन्द्र संतस्थाना वि ह्वयन्ते समीके।
अत्रा युजं कृणुते यो हविष्मान्नासुन्वता सख्यं वष्टि शूरः
हे इन्द्र देव! जिस समय लोग युद्ध में जाते हैं; उस समय आपका नाम लेते हैं। इन्द्र देव यजमान के सहायक होते हैं। जो इन्द्र देव के लिए सोमरस प्रस्तुत नहीं करता, उसके साथ इन्द्र देव मित्रता नहीं करते।[ऋग्वेद 10.42.4]
Hey Indr Dev! People remember you when they go for war. Indr Dev is helpful to the Ritviz-hosts. Indr Dev do not enter into friendly relations with one who do not offer him Somras.
धनं न स्पन्द्रं बहुलं यो अस्मै तीव्रान्त्सोमाँ आसुनोति प्रयस्वान्।
तस्मै शत्रून्त्सुतुकान्प्रातरह्नो नि स्वष्ट्रान्युवति हन्ति वृत्रम्
जो अन्नशाली व्यक्ति इन्द्र देव के लिए प्रथम सोमरस प्रस्तुत करता है और गौ, अश्व आदि देने वाले धनाढ्य के सदृश इन्द्रदेव को उदारता के साथ सोमरस अर्पित करता है, उसके सहायक इन्द्र देव होते हैं। उसके बलिष्ठ और अनेक सेनाओं वाले शत्रुओं के रहने पर भी इन्द्र देव शत्रुओं को शीघ्रातिशीघ्र दूर कर देते हैं। इन्द्र देव वृत्रासुर का वध करते हैं।[ऋग्वेद 10.42.5]
A person having food grains who offers Somras to Indr Dev for the first time and the rich having cows, horses offer Somras to Indr Dev liberally, is helped by Indr Dev. Indr Dev quickly repel his mighty enemy having several armies. Indr Dev kills Vratra Sur.
यस्मिन्वयं दधिमा शंसमिन्द्रे यः शिश्राय मघवा काममस्मे।
आराचित्सन्भयतामस्य शत्रुर्व्यस्मै द्युम्ना जन्या नमन्ताम्
हमनें जिन इन्द्र देव की स्तुति की है, वे धनी हैं और उन्होंने हमारी मनोकामनाओं को पूर्ण किया है। इन्द्र देव के पास से शत्रु पलाचित हों। शत्रुओं की सम्पत्ति इन्द्र देव के हाथों में आवे।[ऋग्वेद 10.42.6]
We have worshiped wealthy Indr Dev and he has accomplished our desires. Enemies should fled away from Indr Dev. Let the wealth of the enemy be acquired by Indr Dev.
आराच्छत्रुमप बाधस्व दूरमुग्रो यः शम्बः पुरुहूत तेन।
अस्मे घेहि यवमद्गोमदिन्द्र कृधी धियं जरित्रे वाजरत्नाम्
हे इन्द्र देव! असंख्य मनुष्य आपका आवाहन करते हैं। आपका जो भयानक वज्र है, उससे समीप के शत्रुओं को दूर कर दें। हे इन्द्र देव! मुझे जौ और गाय से युक्त सम्पत्ति प्रदान करें। अपने स्तोता की स्तुति को अन्नरत्न-प्रसविनी करें।[ऋग्वेद 10.42.7]
Hey Indr Dev! Uncountable number of people invoke you. Let your furious Vajr repel the enemy. Hey Indr Dev! Grant me barley, cows and wealth. Make the Stota's Stuti  jewels yielding.
प्र यमन्तर्वृषसवासो अग्मन् तीव्राः सोमा बहुलान्तास इन्द्रम्।
नाह दामानं मघवा नि यंसन्नि सुन्वते वहति भूरि वामम्
हे प्रखर सोमरस! आप अनेक धाराओं में मधुर रस से बरसते हुए जिस इन्द्र देव के शरीर में प्रवेश करते हैं, उस समय इन्द्र देव सोमरस प्रदाता यजमान का विरोध नहीं करते, अपितु प्रचुर मात्रा में सोमरस के प्रस्तुत कर्ता को मनोवांछित सम्पत्ति प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 10.42.8]
प्रखर :: भयंकर, उग्र, क्रूर, क्रुद्ध, चंड, तीव्र, तेज़, स्पष्ट, तीखा, नुकीला, गहन, सघन, प्रचंड, घन; intense, fierce, sharp, intensive.
Hey intense Somras! You enter the body of Indr Dev in many currents-streams. Indr Dev do not oppose the host offering him Somras, instead grant him desired wealth.
उत प्रहामतिदीव्या जयाति कृतं यच्छघ्नी विचिनोति काले।
यो देवकामो न धना रुणद्धि समित्तं राया सृजति स्वधावान्
जिस प्रकार जुआड़ी जिससे हारा है, उसी को जुए के अड्डे पर खोजकर हरा देता है, उसी प्रकार ही अनिष्ट कर्ता को इन्द्र देव परास्त करते हैं। जो देवभक्त देवपूजा में धन व्यय करने में कृपणता नहीं करता, धनी इन्द्र देव उसे ही धनवान् बनाते हैं।[ऋग्वेद 10.42.9]
The way a gambler search the den of the one defeated him and defeat him, Indr dev defeat one who is malefic. Indr Dev make one wealthy who is not miserly in performing God worship.
गोभिष्टरेमामतिं दुरेवां यवेन क्षुधं पुरुहूत विश्वाम्।
वयं राजभिः प्रथमा धनान्यस्माकेन वृजनेना जयेम
गौवों के द्वारा हम दुःख दारिद्र के पार जायें। अनेकों के द्वारा आहूत हे इन्द्र देव! जौ के द्वारा हम क्षुधा की निवृत्त कर सकें। हम राजाओं के साथ-साथ अग्रसर होकर अपने बल के प्रभाव से विशाल सम्पत्ति को जीत सकें।[ऋग्वेद 10.42.10]
Let us sail across poverty and sorrows by virtue of cows. Hey Indr Dev, you are worshiped by many people! We should be able to satisfy our hunger-appetite with barley. We should proceed further with the kings and win huge property due to our strength & power. 
बृहस्पतिर्नः परि पातु पश्चादुतोत्तरस्मादधरादघायोः।
इन्द्रः पुरस्तादुत मध्यतो नः सखा सखिभ्यो वरिवः कृणोतु
पापी शत्रु के हाथ से बृहस्पति हमें पश्चिम, उत्तर और दक्षिण दिशाओं में बचावें। पूर्व दिशा और मध्य भाग में इन्द्र देव हमारी रक्षा करें। इन्द्र देव हमारे मित्र है और हम इनके मित्र है, वे हमारी अभिलाषाओं को पूर्ण करें।[ऋग्वेद 10.42.11]
Let Dev Guru Brahaspati protect us from the sinner enemy, from west, north and south directions. Indr Dev should protect us in the east and centre. Indr Dev is our friend and we are his friends, let him accomplish our wishes-desires.(29.10.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (43) :: ऋषि :- कृष्ण, आंगिरस; देवता :- इन्द्र; छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
अच्छा म इन्द्रं मतयः स्वर्विदः सघ्रीचीर्विश्वा उशतीरनूषत।
परि ष्वजन्ते जनयो यथा पतिं मर्यं न शुन्ध्युं मघवानमूतये
मेरी स्तुतियों ने मिलकर उद्देश्य पूर्वक इन्द्र देव का गुणगान किया। स्तुतियाँ सब प्रकार के लाभ करा सकती है। जिस प्रकार स्त्रियाँ अपने स्वामी का आलिङ्गन करती है, उसी प्रकार ही स्तुतियाँ उन शुद्ध स्वभाव वाले इन्द्र देव का आश्रय पाने के लिए उनका आलिङ्गन करती है।[ऋग्वेद 10.43.1]
My Stuties-prayers purposely, together glorify-praise Indr Dev. Prayers lead to all sorts of benefits. The way a woman embrace her husband, Stuties embrace Indr Dev having simple-pious nature. 
न घा त्वद्रिगप वेति मे मनस्त्वे इत्कामं पुरुहूत शिश्रय।
राजेव दस्म नि षदोऽधि बर्हिष्यस्मिन्त्सु सोमेऽवपानमस्तु ते
हे इन्द्र देव! आपको छोड़कर मेरा मन अन्यत्र नहीं जाता। आपके ही ऊपर मैंने अपनी अभिलाषा स्थापित कर रखी है। जिस प्रकार राजा अपने भवन में बैठता है, उसी प्रकार ही आप लोग कुशों के ऊपर बैठें। इस श्रेष्ठ सोमरस से आपके पान करने की इच्छा की पूर्ति हो।[ऋग्वेद 10.43.2]
Hey Indr Dev! My innerself do not desert you. I have my aspirations-expectations depending upon you. The way a king sits over throne in the palace you should sit over Kush Mat. This excellent Somras will fulfil your need for drinks.
विषूवृदिन्द्रो अमतेरुत क्षुधः स इन्द्रायो मघवा वस्व ईशते।
तस्येदिमे प्रवणे सप्त सिन्धवो वयो वर्धन्ति वृषभस्य शुष्मिणः
दुर्गति और अन्ना भाव से बचाने के लए इन्द्र देव हमारे चारों ओर रहें। धनदाता इन्द्र देव समस्त सम्पत्तियों और धनों के स्वामी हैं। मनोरथवर्षक और तेजस्वी इन्द्र देव के आदेश से ही गंगा आदि सात नदियाँ नीचे की ओर बहकर कृषि की वृद्धि करती हैं।[ऋग्वेद 10.43.3]
दुर्गती :: दुर्दशा, कष्ट, मुसीबत, अभाग्य, दुर्घटना, अभाग्य, विगति, आफ़त, बुरी गति, विपत्ति, दरिद्रता, विपरीत परिस्थिति; catastrophe, misadventure, poverty, anti-adverse situation, misfortune, misery.
Let Indr Dev remain around us to protect us from misery and lack-shortage of food grains. Donor of wealth Indr Dev is the lord of all wealth & prosperity. Maa Ganga and seven rivers flow down to boost agriculture-cultivation; due to the orders of desires accomplishing & majestic Indr Dev.
वयो न वृक्षं सुपलाशमासदन्त्सोमास इन्द्रं मन्दिनश्चमूषदः।
प्रैषामनीकं शवसा दविद्युतद्विदत्स्व १ र्मनवे ज्योतिरार्यम्
जिस प्रकार सुन्दर पत्रों के वृक्ष का आश्रय चिड़ियाँ करती है, उसी प्रकार ही आनन्दवर्षक और पात्र में स्थित सोमरस का इन्द्र देव आश्रय करते हैं। सोमरस के तेज से इन्द्र देव का मुख तेजोमय होता है। इन्द्र देव अपनी सर्वोत्तम तेजस्विता मनुष्यों को प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.43.4]
The way the birds seek asylum under the beautiful leaves of the tree, similarly Indr Dev depend over the Somras in the vessels. Indr Dev's face turn aurous due to the majesty of Somras. Let Indr Dev grant his best majesty to the humans.
कृतं न श्वघ्नी वि चिनोति देवने संवर्गं यन्मघवा सूर्य जयत्।
न तत्ते अन्यो अनु वीर्य शकन्न पुराणो मघवन्नोत नूतनः
जुए के अड्डे पर जिस प्रकार जुआड़ी अपने विजेता को खोजकर परास्त करता है, उसी प्रकार ही इन्द्र देव वृष्टि रोधक सूर्य देव को परास्त करते हैं। हे धनाधिपति इन्द्र देव! कोई भी पुरातन या नवीन मनुष्य आपके पराक्रम की बराबरी करने में समर्थ नहीं है।[ऋग्वेद 10.43.5]
The way a gambler traces the gambler's den and defeat on who won over him, Indr Dev too defeat Sury Dev who prohibit-checks rains. Hey lord of wealth Indr Dev! None ancient or current human can equalise your valour.
विशंविशं मघवा पर्यशायत जनानां धेना अवचाकशषा।
यस्याह शक्रः सवनेषु रण्यति स तीत्रैः सोमैः सहते पृतन्यतः
धनद इन्द्र देव प्रत्येक मनुष्य में रहते हैं। अभीष्टकारी इन्द्र देव सबके स्तोत्र की ओर ध्यान देते हैं। जिसके सोमयज्ञ में इन्द्र देव प्रीति प्राप्त करते हैं, वे प्रखर सोमरस के द्वारा युद्धेच्छु शत्रुओं को परास्त करता है।[ऋग्वेद 10.43.6]
Lord of wealth Indr Dev resides in every human being. Desires accomplishing Indr Dev respond to the Strotr-prayer of every one. One in who's Som Yagy, Indr Dev gets love, Indr Dev defeat his enemies desirous of Somras.
आपो न सिन्धुमभि यत्समक्षरन्त्सोमास इन्द्रं कुल्याइव हृदम्।
वर्धन्ति विप्रा महो अस्य सादने यवं न वृष्टिर्दिव्येन दानुना
जिस प्रकार जल नदी की ओर जाता है और जैसे छोटा-छोटा जल प्रवाह तड़ाग में जाता है, उसी प्रकार ही सोमरस इन्द्र देव में जाता है। यज्ञस्थल में विद्वान लोग उसके तेज को वैसे ही बढ़ा देते हैं, जिस प्रकार स्वर्गीय जलपात के साथ वर्षा जौ की खेती को बढ़ाती है।[ऋग्वेद 10.43.7]
The manner in which water moves to rivers, ponds, similarly Somras goes to Indr Dev. The enlightened-learned boosts glory of Somras like the rain showers from the heavens boosts the growth of barley.
वृषा न क्रुद्धः पतयद्रजःस्वा यो अर्यपत्नीकृणोदिमा अपः।
स सुन्वते मघवा जीरदानवेऽविन्दज्ज्योतिर्मनवे हविष्मते
जिस प्रकार एक बैल क्रोधित होकर दूसरे की ओर दौड़ता है, उसी प्रकार ही इन्द्र देव मेघ के प्रति धावित होकर अपने आश्रित जल को बाहर करते हैं। जो व्यक्ति सोमयज्ञ करता है, उदारता के साथ दान करता है और हवि का संग्रह करता है, उसे धनी इन्द्र देव ज्योति प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 10.43.8]
The way an angry bull runs to another bull, similarly Indr Dev rush to the clouds and release the purified water. One who perform Som Yagy, donate liberally and collect-offerings for the Yagy, is granted divine vision by wealthy Indr Dev. 
उज्जायतां परशुर्योतिषा सह भूया ऋतस्य सुदुघा पुराणवत्।
वि रोचतामरुषो भानुना शुचिः स्व१र्ण शुक्रं शुशुचीत सत्पतिः
इन्द्र देव का वज्र तेज के साथ प्रकट हो। पूर्वकाल के समान ही इस समय भी यज्ञ की कथा हो। स्वयं उज्ज्वल होकर इन्द्र देव प्राञ्जल आलोक को धारण करके शोभा सम्पन्न हों। सज्जनों का पालन करने वाले इन्द्र देव सूर्य देव के सदृश ही शुभ्र ज्योति से प्रकाशित हों।[ऋग्वेद 10.43.9]
Indr Dev's radiance-aura appears with the majesty of Vajr. Story pertaining to this Yagy should be narrated like the ancient period. Let Indr Dev should become aurous and have glory. Nurturing-nursing the gentle men, Indr Dev should shine with white bright light. 
गोभिष्टरेमामतिं दुरेवां यवेन क्षुधं पुरुहूत विश्वाम्।
वयं राजभिः प्रथमा धनान्यस्माकेन वृजनेना जयेम
गौवों के द्वारा हम दुःख दारिद्रय के पार जावें। अनेकों के द्वारा आहूत हे इन्द्र देव! जौ के द्वारा हम क्षुधा की निवृत्ति कर सकें। हम राजाओं के साथ अग्रसर होकर अपने बल के प्रभाव से विशाल सम्पत्ति को जीत सकें।[ऋग्वेद 10.43.10]
We should swim across poverty by virtue of the cows. Hey Indr Dev, worshiped by many! We will be able to satisfy our hunger with barley. We will advance towards the kings and earn huge wealth due to our might.
बृहस्पतिर्नः परि पातु पश्चादुतोत्तरस्मादधरादघायोः।
इन्द्रः पुरस्तादुत मध्यतो नः सखा सखिभ्यो वरिवः कृणोतु
पापी शत्रुओं के हाथ से बृहस्पति देव हमें पश्चिम, उत्तर ओर दक्षिण दिशाओं से बचावें। पूर्व दिशा और मध्य भाग में इन्द्र देव हमारी रक्षा करें। इन्द्र देव हमारे मित्र हैं और हम इनके मित्र है। वे हमारी अभिलाषाओं को पूर्ण करें।[ऋग्वेद 10.43.11]
Let Dev Guru Brahaspati protect us from the sinner enemies in west, north & south. Indr Dev should protect us in the middle and east. Indr Dev is our friend and too are friendly with him. Let him accomplish our desires.(30.10.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (44) :: ऋषि :- कृष्ण, आंगिरस; देवता :- इन्द्र; छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
आ यात्विन्द्रः स्वपतिर्मदाय यो धर्मणा तूतुजानस्तुविष्मान्।
प्रत्वक्षाणो अति विश्वा सहांस्यपारेण महता वृष्ण्येन
जो इन्द्र देव देखने में स्थूलकाय है और जो अपने विपुल तथा दुर्द्धर्ष बल के द्वारा समस्त बलशाली पदार्थों को बलहीन कर देते हैं, वे धनी इन्द्र देव रथ पर आरूढ़ होकर आमोद करने के लिए पधारें।[ऋग्वेद 10.44.1]
Indr Dev is bulky. He make all powerful material weak. Let Indr dev ride his charoite and come for enjoyment-amusement. 
सुष्ठामा रथः सुयमा हरी ते मिम्यक्ष वज्रो नृपते गभस्तौ।
शीभं राजन्त्सुपथा याह्यर्वाङ् वर्धाम ते पपुषो वृष्ण्यानि
हे नरपति इन्द्र देव! आपका रथ सुघटित है। आपके रथ के दोनों अश्व सुशिक्षित हैं और आपके हाथ में वज्र है। हे प्रभु इन्द्र देव! ऐसी मूर्ति को धारण करके सरल मार्ग से नीचे आवें। आपके पान के लिए सोमरस प्रस्तुत है। उसे पिलाकर हम आपका बल और भी बढ़ा देंगे।[ऋग्वेद 10.44.2]
Hey lord of humans, Indr Dev! Your charoite is well built. Your horses named Hari are well trained. You wield Vajr in your hand. Hey lord Indr Dev! Assume this form described by me. Somras is ready for you to drink. Our power-strength will increase by offering it to you.
एन्द्रवाहो नृपतिं वज्रबाहुमुग्रमुग्रासस्तविषास एनम्।
प्रत्वक्षसं वृषभं सत्यशुष्ममेमस्मत्रा सधमादो वहन्तु
जो इन्द्र देव नेताओं के नेता हैं, जिनके हाथ में वज्र है, जो शत्रुओं को दुर्बल कर देते है, जो दुर्द्धर्ष है और जिनका क्रोध कभी व्यर्थ नहीं जाता, उन्हें उनके वाहन बली अश्व मिलकर हमारे पास ले आवें।[ऋग्वेद 10.44.3]
Indr Dev who is the leader of leaders, has Vajr in his hand, make his enemies weak & is furious. His anger never go waste. Let his powerful horses bring him here.
एवा पतिं द्रोणसाचं सचेतसमूर्जः स्कम्भं धरुण आ वृषायसे।
ओजः कृष्व सं गृभाय त्वे अप्यसो यथा केनिपानामिनो वृधे
हे इन्द्र देव! जो सोमरस शरीर को पुष्ट करता है, जो कलश में मिल जाता है और जो बल को संचारित करता है, उस सोम का सिंचन अपने उदर में करें। मेरी बल वृद्धि कर दें और हमें अपना आत्मीय बना लें; क्योंकि आप बुद्धिमानों के श्री-वृद्धि करने वाले प्रभु हैं।[ऋग्वेद 10.44.4]
Hey Indr Dev! Drink Somras which make the body strong  present in the Kalash-vessel and boost power. Increase my strength. and make us your near & dear, since you increase the prosperity of the intelligent. 
गमन्नस्मे वसून्या हि शंसिषं स्वाशिषं भरमा याहि सोमिनः।
त्वमीशिषे सास्मिन्ना सत्सि बर्हिष्यनाधृष्या तव पात्राणि धर्मणा
हे इन्द्र देव! मैं स्तोता हूँ, इसलिए समस्त सम्पत्ति मेरे पास आवे। उत्तमोत्तम कामनाएँ पूर्ण करने के लिए मैंने सोम का संचय करके यज्ञ का आयोजन किया है। पधारो। आप सबके अधिपति हैं। कुश के ऊपर बैठें। आपके पान के लिए जो सोमपात्र सज्जित हुए हैं, किसी की ऐसी शक्ति नहीं कि वह उन्हें बलपूर्वक छीन सके अथवा उसे पी सके।[ऋग्वेद 10.44.5]
Hey Indr Dev! I am a Stota, therefore let all type of wealth come to me. I have organised Som Yagy to accomplish excellent wishes-desires. You are the lord of all. Occupy Kush Mat. Somras has been poured into the glass for drinking by you. None is capable of snatching it from you forcibly and drink it.
पृथक् प्रायन् प्रथमा देवहूतयोऽकृण्वत श्रवस्यानि दुष्टरा।
न ये शेकुर्यज्ञियां नावमारुहमीर्मैव ते न्यविशन्त केपयः
जो लोग प्राचीन समय से ही यज्ञ में देवों को निमन्त्रण देते थे, उन्होंने बड़े-बड़े कार्यों को सम्पादन करके स्वयं सद्गति प्राप्त की। परन्तु जो यज्ञरूप नौका पर नहीं चढ़ सके, वे कुकर्मी हैं, ऋणी हैं और नीच अवस्था में ही दब गये हैं।[ऋग्वेद 10.44.6]
During ancient period people used to invite demigods-deities in the Yagy. They accomplished great deeds and attained emancipation. Those who do not participate in the Yagy are wicked, debtors and depressed in lower states.
एवैवापागपरे सन्तु दूढ्योऽश्वा येषां दुर्यज आयुयुज्रे।
इत्था ये प्रागुपरे सन्ति दावने पुरुणि यत्र वयुनानि भोजना
इस समय में भी जो वैसे दुर्बुद्धि है, वे भी अधोगामी होवें। उनकी कैसी दुर्गति होगी; यह कहना कठिन है। जो लोग पहले से ही यज्ञादि के अवसर पर दान करते हैं, वे ऐसे स्थान पर जाते हैं, जहाँ अतीव चमत्कारिणी भोग सामग्री उपलब्ध है।[ऋग्वेद 10.44.7]
Let all wicked fall in low species-hells. Its difficult to guess their misery-misfortune. Those who donate during the Yagy attain higher abodes-heavens and get amazing pleasure-comforts.
गिरीरज्राञ्जमानाँ अधारयद् द्यौः कन्ददन्तरिक्षाणि कोपयत्।
समीचीने धिषणे वि ष्कभायति वृष्णः पीत्वा मद उक्थानि शंसति
जिस समय इन्द्र देव सोमपान करके मत होते हैं, उस समय वे सर्वत्र संचारी और काँपते मेघों को सुस्थिर करते हैं, आकाश को आन्दोलित कर डालते हैं और वह घहराने लगता हैं। जो द्यावा-पृथ्वी परस्पर संयुक्त हैं, उन्हें उसी अवस्था में रखते हैं और उत्तम वचन कहते हैं।[ऋग्वेद 10.44.8]
When Indr Dev is intoxicated by drinking Somras, he stabilize the clouds spreading all around, enthuse the sky and it become dense, keep the earth & heavens connected-joint and speak excellent words.
इमं बिभर्मि सुकृतं ते अङ्कुशं येनारुजासि मघवञ्छफारुजः।
अस्मिन्त्सु ते सवने अस्त्वोक्यं सुत इष्टौ मघवन्बोध्याभगः
हे धनशाली इन्द्र देव! आपके लिए मैं यह एक सुसंघटित अंकुश हाथ में रखता हूँ। इस अंकुशरूप स्तोत्र से हाथियों को दण्ड देते हुए आप वश में करते हैं। इस सोमयज्ञ में आकर अपना स्थान ग्रहण करें। हमें इस यज्ञ में सौभाग्यशाली बनावें।[ऋग्वेद 10.44.9]
Hey wealthy Indr Dev! I have reserved-kept a finely built goad for you in my hand. This Strotr in the form of goad can control the elephants. Come to this Som Yagy and occupy your seat. Make us fortunate in this Yagy.
गोभिष्टरेमामतिं दुरेवां यवेन क्षुधं पुरुहूत विश्वाम्।
वयं राजभिः प्रथमा धनान्यस्माकेन वृजनेना जयेम
गौवों के द्वारा हम दुःख-दारिद्र के पार जावें। अनेकों के द्वारा आहूत हे इन्द्र देव! जौ के द्वारा हम क्षुधा निवृति कर सकें। हम राजाओं के साथ अग्रसर होकर अपने बल के प्रभाव से विशाल सम्पत्ति को जीत सकें।[ऋग्वेद 10.44.10]
Let the cows swim us across poverty & pain. Worshiped by many, hey Indr Dev! We will satisfy our hunger-appetite by eating barley. We should march forward with the kings and win large properties by virtue of our strength.
बृहस्पतिर्नः परि पातु पश्चादुतोत्तरस्मादधरादघायोः।
इन्द्रः पुरस्तादुत मध्यतो नः सखा सखिभ्यो वरिवः कृणोतु
पापी शत्रुओं के हाथ में हमें बृहस्पति पश्चिम, उत्तर और दक्षिण दिशाओं में बचावें। पूर्व दिशा और मध्य भाग में इन्द्रदेव हमारी रक्षा करें। ये हमारे मित्र हैं और हम उनके मित्र हैं। वे हमारी अभिलाषा को पूर्ण करें।[ऋग्वेद 10.44.11]
Let Brahaspati protect from the sinner enemies in the west, north & south. Indr Dev should protect us in the east and the middle. They are our friends and we are friendly with them. They should accomplish our desires.(31.10.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (45) :: ऋषि :- वत्सप्रिर्भालन्दन; देवता :- अग्नि, छन्द :- त्रिष्टुप्।
दिवस्परि प्रथमं जज्ञे अग्निरस्मद् द्वितीयं परि जातवेदाः।
तृतीयमप्सु नृमणा अजस्त्रमिन्धान एनं जरते स्वाधीः
अग्नि देव ने प्रथम आकाश में विद्युद्रूप से जन्म ग्रहण किया। उनका द्वितीय जन्म जल के बीच में हुआ। मनुष्य हितैषी अग्नि देव निरन्तर प्रज्वलित हैं। ज़ो उत्तम ध्यान करना जानते हैं, वे उनकी स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 10.45.1]
विद्युद्रूप :: बिजली का रूप धारण करना; lightening.[शिव पुराण 2.4.15]
Initially Agni Dev evolved in the sky through lightening. His second birth took place inside water. Well wisher of humans Agni Dev is always ignited. He worship-pray to the person who is aware of excellent meditation.
विद्या ते अग्ने त्रेधा त्रयाणि विद्मा ते धाम विभृता पुरुत्रा।
विद्मा ते नाम परमं गुहा यद्विद्मा त्तमुत्सं यत आजगन्थ
हे अग्नि देव! हम आपकी तीन प्रकार की तीन मूर्तियों को जानते हैं। अनेक स्थलों में आपका जो स्थान है, उसे भी जानते हैं। आपके निगूढ़ नाम को भी हम जानते हैं। जिस उत्पत्ति स्थान में आप आये हैं, उसे भी हम जानते हैं।[ऋग्वेद 10.45.2]
निगूढ़ :: रहस्यपूर्ण अर्थवाला, जो जल्दी समझ में न आए, दुरूह, दुर्बोध, अत्यंत गुप्त, रहस्यपूर्ण; छिपा हुआ; intricate, confidential, esoteric.
Hey Agni Dev! We are aware of your three forms. We are aware of your origin of evolution in various places. We know your secret-intricate names. We know the place of origin from where you have come.
समुद्रे त्वा नृमणा अप्स्व१न्तर्नृचक्षा ईधे दिवो अग्न ऊधन्।
तृतीये त्वा रजसि तस्थिवांसमपामुपस्थे महिषा अवर्धन्
मनुष्यों के हितैषी वरुण देव ने आपको समुद्र के बीच में, जल के भीतर जला रखा है। आकाश के स्तनरूप जो सूर्य देव हैं, उसके बीच में भी आप प्रज्वलित होवें। आप अपने तीसरे स्थान मेघलोक में वर्षा जल में रहते हैं। प्रधान देवता आपका तेज बढ़ाते हैं।[ऋग्वेद 10.45.3]
Varun Dev well wisher of humans, kept you inside the ocean. You should ignite in the sky where Sury Dev is like the udder. You reside in the clouds as your third abode. Main deities increase your majesty.
अक्रन्ददग्निः स्तनयन्निव द्यौः क्षामा रेरिहद्वीरुधः समञ्जन्।
सद्यो जज्ञानो वि हीमिद्धो अख्यदा रोदसी भानुना भात्यन्तः
अग्नि देव का घोरतर शब्द हुआ; मानो आकाश में वज्रपात हो रहा है। अग्नि देव पृथ्वी को चाटते हैं। लता आदि का आलिङ्गन करते हैं। यद्यपि अग्नि देव अभी जन्में हैं तब भी विशेषरूप से प्रजवलित और विस्तृत हुए हैं। द्यावा-पृथ्वी में किरण विस्तार करने से अग्नि देव की शोभा हुई।[ऋग्वेद 10.45.4]
Loudest sound-Naad of Agni Dev has occurred like the fall of Vajr in the sky. Agni Dev lick earth embrace the creepers. Though Agni Dev has taken birth right now yet he is specifically lit. Agni Dev tuned glorious by the extension of his rays.
श्रीणामुदारो धरुणो रयीणां मनीषाणां प्रार्पणः सोमगोपाः।
वसुः सूनुः सहसो अप्सु राजा वि भात्यग्र उषसामिधानः
प्रभात के प्रथम भाग में अग्नि देव प्रज्वलित होते हैं, तो उनकी कैसी शोभा होती है! वे कितनी शोभा प्रकट करते हैं! अग्नि देव अशेष सम्पत्तियों के आधार स्वरूप हैं। वे स्तोत्र वचनों की स्फूर्ति कर देते हैं, सोमरस की रक्षा करते हैं। अग्नि देव धन स्वरूप हैं, वे बल के पुत्र हैं, वे जल के मध्य में रहते हैं।[ऋग्वेद 10.45.5]
Agni Dev ignite during the dawn having lustre. He demonstrate several kinds of grace. Agni Dev protects endless properties. He inspire the Strotr & protect Somras. He is like wealth, son of Bal and reside under water.
वे समस्त पदार्थों को प्रकाशित करते हैं। वे जल के भीतर जन्म ग्रहण करते हैं। जन्म लेते ही उन्होंने द्यावा-पृथ्वी को परिपूर्ण कर दिया। जिस समय पाँच वर्णों ने मनुष्यों के अग्नि के लिए यज्ञ किया, उस समय वे सुघटित मेघ की ओर जाकर और मेघ को फाड़कर जल ले आएँ।[ऋग्वेद 10.45.6]
He illuminate every object. He evolves in water. As soon as he evolved he perfected the heaven & earth. When five Varns-Castes of humans performed Yagy he reached the dense clouds, teared them and brought-caused rain showers.
उशिक्पावको अरतिः सुमेधा मर्तेष्वग्निरमृतो नि धायि।
इयर्ति धूममरुषं भरिभ्रदुच्छुक्रेण शोचिषा द्यामिनक्षन्
अग्नि देव हवि चाहते हैं। वे सबको पवित्र करते हैं। वे चारों ओर जाते है। वे अन्न और वनस्पतियाँ पाकर अमर होते हैं। परन्तु मारने वाले मनुष्यों में रहते हैं। रुचिकर रूप धारण कर वे गति-विधि करते हैं और शुक्ल वर्ण आलोक के द्वारा आका श को परिपूर्ण करते हैं।[ऋग्वेद 10.45.7]
Agni Dev desire offerings. He purify everyone. He moves in four directions. He become immortal having attained food grains and vegetation. He resides amongest the killer humas. He attain interesting forms and conduct his activities. He fills the space with while light.
दृशानो रुक्म उर्विया व्यद्यौहुर्मर्षमायुः श्रिये रुचानः।
अग्निरमृतो अभवद्वयोभिर्यदेनं द्यौर्जनयत्सुरेताः
अग्नि देव देखने में ज्योतिर्मय हैं। उनकी दीप्ति महान है। वे दुर्द्धर्ष दीप्ति के साथ जाते-जाते शोभा सम्पन्न होते हैं। अग्नि देव वनस्पति स्वरूप अन्न पाकर अमर हुए। दिव्य लोक ने अग्नि देव को जन्म दिया। दिव्यलोक (द्यौ) की जन्मदान शक्ति कैसी सुन्दर है![ऋग्वेद 10.45.8]
Agni Dev is radiant-aurous. His brightness is great. He attains glory with invincible brightness. Agni Dev became immortal by having vegetation as food. Divine abodes gave birth to Agni Dev. Power of divine abodes to produce is beautiful-amazing.
यस्ते अद्य कृणवद्भद्रशोचेऽपूपं देव घृतवन्तमग्ने।
प्र तं नय प्रतरं वस्यो अच्छाभि सुम्नं देवभक्तं यविष्ठ
मङ्गलमयी ज्वाला वाले अभिनव हे अग्नि देव! जिस व्यक्ति ने आज आपके लिए घृत युक्त पिष्टक (पुरोडाश) प्रस्तुत किया है, उस उत्कृष्ट व्यक्ति को आप उत्तम उत्तम धन की ओर ले जावें, उस देवभक्त को सुख-स्वाच्छन्द्य की ओर ले जावें।[ऋग्वेद 10.45.9]
Possessor of beautiful beneficial flames, hey Agni Dev! Take the excellent human who offered you Purodas laced with Ghee to the ultimate wealth. Take the devotee of the deities to pleasure-comforts and freedom-liberty.
आ तं भज सौश्रवसेष्वग्न उक्थउक्थ आ भज शस्यमाने।
प्रियः सूर्ये प्रियो अग्ना भवात्युज्जातेन भिनददुज्जनित्वैः
हे अग्नि देव! जब श्रेष्ठ अन्न द्वारा शास्त्रोंक्त क्रिया कलाप पूर्ण होते हैं, उसी समय आप उस याजक को श्रेष्ठ अभीष्ट फल प्रदत्त करते हैं। स्तुति योग्य आप प्रत्येक स्तोत्र में उन्हें अभीष्ट फल प्रदान करें। वे याजक स्तुति कर्ता सूर्य देव और अग्नि देव के प्रीति पात्र हों। पुत्र-पौत्रादि संतानों साथ वे शत्रुओं का संहार करें।[ऋग्वेद 10.45.10]
Hey Agni Dev! You reward the Ritviz with desired boons, when he completes the procedural activities as per scriptures. You reward him by fulfilling his desires with every Strotr, worth worshiping-reciting. These Ritviz should be eligible for the love & affection of Sury Dev & Agni Dev. Let them kill the enemies with the help of their sons & grandsons.
त्वामग्ने यजमाना अनु द्यून्विश्वा वसु दधिरे वार्याणि।
त्वया सह द्रविणमिच्छमाना व्रजं गोमन्तमुशिजो वि वब्रुः
हे अग्नि देव! यजमान लोग प्रतिदिन आपके लिए उत्तमोत्तम नाना प्रकार की वस्तुएँ पूजा में देते हैं। विद्वान् देवों ने आपके साथ एकत्रित होकर धनकामना को पूर्ण करने के लिए गायों से भरे गोष्ठ-द्वार आपके लिए खोल दिया।[ऋग्वेद 10.45.11]
Hey Agni Dev! The hosts offer various kinds of best good-material for prayers. Enlightened demigods-deities gathered and opened the gates of cow shed for you for fulfilling the desire for wealth.
अस्ताव्यग्निर्नरां सुशेवो वैश्वानर ऋषिभिः सोमगोपाः।
अद्वेषे द्यावापृथिवी हुवेम देवा धत्त रयिमस्मे सुवीरम्
मनुष्यों में जिनकी सुन्दर मूर्ति है और जो सोम की रक्षा करते हैं, ऋषियों ने उन्हीं अग्नि देव की स्तुति की। द्वेष शून्य द्यावा-पृथ्वी को हम बुलाते हैं। हे देवगणों! हमें लोकबल और धनबल प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.45.12]
All beautiful person, Rishis who protect Som, worship Agni Dev. We invoke heavens & earth; free from envy. Hey Demigod-deities! Grant us human  and money power.(01.11.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (46) :: ऋषि :- वत्सप्रिर्भालन्दन; देवता :- अग्नि, छन्द :- त्रिष्टुप्।
प्र होता जातो महान्नभोविन्नृषद्वा सीददपामुपस्थे।
दधिर्यो धायि स ते वयांसि यन्ता वसुनि विधये तनूपा:
जो अग्नि देव मनुष्यों में रहते हैं, जो जल में रहते हैं और जो आकाश के ज्ञानी है (क्योंकि आकाश में ही अग्निदेव का जन्म हुआ है); वे गुणों के कारण पूज्य होकर इस समय याजकों के होता हुए हैं। अग्नि देव यज्ञधारक होकर वेदी पर रखे गये हैं। आप उनकी पूजा करते है। वे आपके शरीर के रक्षक होकर आपको अन्न और सम्पत्ति प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 10.46.1]
Agni Dev who live amongest the humans, lives in water, knows about the sky due to his birth in the sky, is worshiped by virtue of his qualities-characterises and is now a Hota for the Ritviz. Agni Dev has occupied the Yagy Vedi. You worship him. He become the protector of your body and grant food  grains and property.
इमं विधन्तो अपां सधस्थे पशुं न नष्टं पदैरनु ग्मन्।
गुहा चतन्तमुशिजो नमोभिरिच्छन्तो धीरा भृगवोऽविन्दन्
जल के मध्य में स्थित अग्नि देव को परिचारक ऋषियों ने चोरों से अपहृत पशु के समान खोजा। ऋषियों में अभिलाषी और पण्डित भृगुवंशियों ने स्तुति करते-करते एकान्त स्थान में स्थित अग्निदेव को प्राप्त किया।[ऋग्वेद 10.46.2]
The serving Rishis traced Agni Dev present in water, like the animals abducted by the thieves. Desirous amongest the Rishis and the Pandit Bhragu clan Rishis attained Agni Dev in solitude, while worshiping.
इमं त्रितो भूर्यविन्ददिच्छन्वैभूवसो मूर्धन्यघ्न्यायाः।
स शेवृधो जात आ हर्येषु नाभिर्युवा भवति रोचनस्य
पाने की इच्छा वाले विभूवस के पुत्र त्रित ऋषि ने इन महान् अग्नि देव को भूमि पर पाया। सुख के वर्द्धक और यजमानगृहों में उत्पन्न युवा अग्नि देव स्वर्ग-फल के नाभि हैं।[ऋग्वेद 10.46.3]
Desirous Vibhuvas's son Trit Rishi attained great Agni Dev over the land. Pleasure-comforts showering young Agni Dev is at the nucleus of the rewards of heavens.
मन्द्रं होतारमुशिजो नमोभिः प्राञ्चं यज्ञं नेतारमध्वराणाम्।
विशामकृण्वन्नरतिं पावकं हव्यवाहं दधतो मानुषेषु
अभिलाषी ऋषियों ने मदकर, होता, आह्वनीय, यजनीय, यज्ञ के प्रापक, गतिशील, शोधक, हविर्वाहक और मनुष्यों में प्रजापति अग्नि देव को स्तुतियों से प्रसन्न किया।[ऋग्वेद 10.46.4]
Desirous Rishis pleased the intoxicating, Hota, invocable, propagator of Yagy, dynamic, purifying, carrier of offerings and Prajapati amongest the humas Agni Dev with Stuties-prayers.
प्र भूर्जयन्तं महां विपोधां मूरा अमूरं पुरां दर्माणम्।
नयन्तो गर्भ वनां धियं धुर्हिरिश्मश्रुं नार्वाणं धनर्चम्
हे स्तोता! आप विजयी, महान् और मेघावियों के धारक अग्नि देव की स्तुति करें। सभी मनुष्य ज्ञानी, पुरियों के ध्वंसक, अरणिगर्भ, स्तुत्य, हरित लोम वाले, ज्वाला से युक्त और प्रीति स्तोत्र अग्नि देव को हवि देकर अपने कर्म पा लेते हैं।[ऋग्वेद 10.46.5]
Hey Stota! Worship victorious, great and supporter of the intellectuals Agni Dev. All humans make offerings to Agni Dev who is enlightened, destroyer of cities, present in the wood, worshipable, possessing greenish aura, constituting of flames and affectionate Strotr, have success in their endeavours.
नि पस्त्यासु त्रितः स्तभूयन्परिवीतो योनौ सीददन्तः।
अतः संगृभ्या विशां दमूना विधर्मणायन्त्रैरीयते नृन्
अग्नि देव की गार्हपत्य आदि तीन मूर्तियाँ है। अग्नि देव यजमान गृहों को स्थिर करने वाले और ज्वालाओं वाले है। वे यज्ञगृह में अपनी वेदी पर बैठते हैं। अग्नि देव प्रजा द्वारा प्रदत हवि आदि लेकर यजमानों के लिए दानेच्छुक होकर और प्रजा के लिए शत्रुओं के दमन के साथ देवों के पास जाते है।[ऋग्वेद 10.46.6]
Agni Dev has three forms like Garhpaty. Agni Dev possess flames and make the houses durable. He sits over the Vedi in the Yagy Grah. Agni Dev carries the offerings made by the populace, willing to have donations for the populace, destroys the enemy and goes to demigods-deities.
अस्याजरासो दमामरित्रा अर्चद्धमासो अग्रयः पावकाः।
श्वितीचयः श्वात्रासो भुरण्यवो वनर्षदो वायवो न सोमाः
इस यजमान के पास अनेक अग्नि देव हैं, जो सब अजर, शत्रुओं के शासक, पूजनीय ज्वालाओं वाले, शोधक, श्वेतवर्ण, क्षिप्रधर्मी, भरणशील, वन में रहने वाले और सोम के समान शीघ्रगामी है।[ऋग्वेद 10.46.7]
This host has several forms of Agni Dev-fire, which are immortal, rules the enemies, have worshipable flames, purifying, white coloured, fastidious, supporting-nourishing and dynamic like Som.
प्र जिह्वया भरते वेपो अग्निः प्र वयुनानि चेतसा पृथिव्याः।
तमायवः शुचयन्तं पावकं मन्द्रं होतारं दधिरे यजिष्ठम्
जो अग्नि देव ज्वाला के द्वारा कर्म को धारण करते हैं और जो पृथ्वी के रक्षण के लिए अनुग्रहपूर्वक स्तोत्र को धारित करते है, गतिशील मनुष्यों उन दीप्त, शोधक, स्तवनीय, आह्वाता और यजनीय अग्नि देव को धारण करते हैं।[ऋग्वेद 10.46.8]
Agni Dev who perform-function by virtue of flames, accept the Strotr by requesting for the protection of earth, whom dynamic human beings worship, is radiant-aurous, purifying, worshipable, invocable and Yagy performing.
द्यावा यमग्निं पृथिवी जनिष्टामापस्त्वष्टा भृगवो यं सहोभिः।
ईळेन्यं प्रथमं मातरिश्वा देवास्ततक्षुर्मनवे यजत्रम्॥
ये वे ही अग्नि देव हैं, जिन्हें द्यावा-पृथ्वी ने जन्म दिया है, जिन्हें जल, त्वष्टा और भृगुओं ने स्तोत्रादि साधनों से प्राप्त किया, जो स्तुत्य हैं ओर जिन्हें मातरिश्वा (वायु) और देवों ने मनुष्यों के यज्ञ को करने के लिए बनाया है।[ऋग्वेद 10.46.9]
He is that Agni Dev who is evolved by heaven & earth, whom Water, Twasta and Bhragus attained through Strotr and Yagy etc. means, is worshipable and who is developed by Matrishwa-Vayu and demigods-deities, created for the Yagy of humans.
यं त्वा देवा दधिरे हव्यवाहं पुरुस्पृहो मानुषोसो यजत्रम्।
स यामन्नग्ने स्तुवते वयो धाः प्र देवयन् यशसः सं हि पूर्वीः
हे अग्नि देव! आप हविर्वाहक हैं। देवों ने आपको धारण किया है। अभिलाषी मनुष्यों ने यज्ञ के लिए आपको धारण किया है। हे अग्नि देव! यज्ञ में मुझ स्तोता को अन्न प्रदान करें। देवों की आराधना करने वाला यजमान आपके कृपा से ही यशस्वी बनता हैं।[ऋग्वेद 10.46.10]
Hey Agni Dev! You are the carrier of offerings-oblations. Demigods-deities have supported-nourished you. Desirous humans accept you for the Yagy. Hey Agni Dev! Grant food grains to me-Stota. Ritviz worshiping the demigods-deities become glorious duet to your blessings-mercy.(02.11.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (47) :: ऋषि :- सप्तगु, आंगिरस; देवता :- इन्द्र, वैकुंट; छन्द :- त्रिष्टुप्।
जगृम्भा ते दक्षिणमिन्द्र हस्तं वसूयवो वसुपते वसूनाम्।
विद्मा हि त्वा गोपतिं शूर गोनामस्मभ्यं चित्रं वृषणं रयिं दाः
हे अनेक धनों के स्वामी इन्द्र देव! हम धनाभिलाषी आपके दाहिने हाथ को पकड़ते हैं। आपको हम अनेक गौओं के स्वामी जानते हैं। फलतः हमें विचित्र और वर्षक धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.47.1] 
Hey lord of wealth, Indr Dev! We desirous of wealth, hold your right hand. We recognise you as the owner of several cows. Shower rain of amazing wealth over us.
स्वायुधं स्ववसं सुनीथं चतुः समुद्रं धरुणं रयीणाम्।
चकृत्यं शंस्यं भूरिवारमस्मभ्यं चित्रं वृषणं रयिं दाः
आपको हम शोभन अस्त्र और शोभन रक्षण वाले, सुन्दर नेत्र वाले, चारों समुद्रों को जल से परिपूर्ण करने वाले, धनधारक, बार-बार स्तुत्य और दुःखों का नाश करने वाला जानते हैं। आप हमें विचित्र और वर्षक धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.47.2]
We recognise you as the one who has beautiful weapons and granting protection, with beautiful eyes, fills the four oceans with water, possessor of wealth, worshipable repeatedly, destroyer of pains & sorrow. Shower rain of amazing wealth over us.
सुब्रह्माणं देववन्तं बृहन्तमुरं गभीरं पृथुबुध्नमिन्द्र।
श्रुतऋषिमुग्रमभिमातिषाहमस्मभ्यं चित्रं वृषणं रयिं दाः
हे इन्द्र देव! आप हमें स्तुति-परायण, देवभक्त, महान, विशाल मूर्ति, गम्भीर, सुप्रतिष्ठित, प्रसिद्ध ज्ञान, तेजस्वी, शत्रु दमन कर्ता, पूज्य और वर्षक पुत्र रूपी धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.47.3]
Hey Indr Dev! Grant us son who is devoted to worship & demigods-deities, great, huge bodied, serious, prestigious, enlightened and famous. destroyer of enemies, revered-honoured as wealth.
सनद्वाजं विप्रवीरं तरुत्रं धनस्मृतं शूशुवांसं सुदक्षम्।
दस्युहनं पूर्भिदमिन्द्र सत्यमस्मभ्यं चित्रं वृषणं रयिं दाः
हे इन्द्र देव! अन्न पाए हुए मेधावी, तारक, धनपूरक, वर्द्धमान, शोभन बल, शत्रु घातक, शत्रु पुरियों के भेदक, सत्यकर्मी, विचित्र और वर्षक पुत्र स्वरूप धन हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.47.4]
Hey Indr Dev! Grant us son who is intelligent, release us from birth & death, growing, destroyer of enemy, penetrating the forts of the enemy, amazing as wealth.
अश्वावन्तं रथिनं वीरवन्तं सहस्रिणं शतिनं वाजमिन्द्र।
भद्रवातं विप्रवीरं स्वर्षामस्मभ्यं चित्रं वृषणं रयिं दाः
हे इन्द्र देव! अश्वयुक्त, रथी, वीर-सम्पन्न, असंख्यक गौओं आदि से युक्त, अन्नवान् कल्याणकारी सेवकों से युक्त, ब्राह्मणों से वेष्टित, सबके लिए सेवक, पूज्य और वर्षक पुत्रस्वरूप धन हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.47.5]
Hey Indr Dev! Grant us son who possess horses, is brave-victorious, has numerous cows, has food grains and beneficial servants-slaves, surrounded by Brahmans, revered-honoured, as wealth.
प्र सप्तगुमृतधीतिं सुमाधां बृहस्पतिं मतिरच्छा जिगाति।
य आङ्गिरसो नमसोपसद्योऽस्मभ्यं चित्रं वृषणं रयिं दाः
सत्य कर्मा, शोभन प्रज्ञ और मन्त्र स्वामी मुझ सप्तगु के पास स्तुति जाती है। में अंगिरा गोत्रोत्प्न्न हूँ। नमस्कार के साथ देवों के पास जाता हूँ। हमारे लिए पूज्य और वर्षक धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.47.6]
Stuti comes to me i.e., Satgu who is truthful, with excellent intelligence & is lord of Mantr. I am born in Angira clan. I go to demigods-deities and salute them. Shower worshipable wealth for us.
वनीवानो मम दूतास इन्द्रं स्तोमाश्चरन्ति सुमतीरियानाः।
हृदिस्पृशो मनसा वच्यमाना अस्मभ्यं चित्रं वृषणं रयिं दाः
मैं जो सब सुन्दर भावों से युक्त स्तुतियाँ तैयार करता हूँ, उनका अन्तःकरण से पाठ करता हूँ। ये स्तुतियाँ श्रोताओं के हृदय को छूती हैं। श्रोतागण दूत के समान इन्द्र देव के निकट प्रार्थना करते हैं। हमें पूज्य और वर्षक धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.47.7]
I compose Stuties showing-reflecting beautiful feelings and recite them with my innerself. These prayers touch the heart of the listeners. Listeners worship Indr Dev like messengers-ambassadors. Shower worshipable wealth for us.
यत्वा यामि दद्धि तन्न इन्द्र बृहन्तं क्षयमसमं जनानाम्।
अभि तद्यावापृथिवी गृणीतामस्मभ्यं चित्रं वृषणं रयिं दाः
मैं जो आपसे माँगता हूँ, वह मुझे प्रदान करें। मुझे एक ऐसा विशाल निवास स्थान दें, जैसा किसी के भी पास न हो। द्यावा-पृथ्वी इस बात का अनुमोदन करें। हमें पूज्य और वर्षक घन प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.47.8]
Grant me what I am asking you. Such me such a large-huge house which is not possessed by any one. Let heaven & earth support this. Shower worshipable wealth for us.(04.11.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (48) :: ऋषि :- इन्द्र, वैकुंट; देवता :- इन्द्र, वैकुंट; छन्द :- जगती।
अहं भुवं वसुनः पूर्व्यस्पतिरहं धनानि सं जयामि शश्वतः।
मां हवन्ते पितरं न जन्तवोऽहं दाशुषे वि भजामि भोजनम्
मैं ही धन का मुख्य स्वामी हूँ। शत्रुधन को जीतने वाला भी मैं ही हूँ। मुझे ही मनुष्य बुलाते हैं। जिस प्रकार पुत्र पिता को धन देते हैं, उसी प्रकार ही मैं भी हविर्दाता यजमान को अन्न प्रदान करता हूँ।[ऋग्वेद 10.48.1]
I am the main lord-deity of wealth. I am the winner of enemy's wealth. Humans call me. The way father gives money to son, I too grant food grains to the Ritviz who make offerings.
अहमिन्द्रो रोधो वक्षो अथर्वणस्त्रियाय गा अजनयमहेरधि।
अहं दस्युभ्यः परि नृभ्णमा ददे गोत्रा शिक्षन् दधीचे मातरिश्वने
मैंने दध्यङ् ऋषि का शिर काट डाला था (क्योंकि दध्यङ् ने इन्द्र देव के मना करने पर भी गोपनीय मधुविद्या को अश्विनी कुमारों को बता दिया था)। कुएँ में गिरे त्रित के उद्धार के लिए मैंने मेघ में जल दिया था। मैने शत्रुओं से धन लिया था। मातरिश्वा के पुत्र दधीचि के लिए बरसने की इच्छा से मैंने जल रक्षक मेघों को मारा था।[ऋग्वेद 10.48.2]
I beheaded Dadhyn Rishi, since in spite of his instructions not to grant Madhu Vidhya to Ashwani Kumars, Dadhyn Rishi passed on this to them. I showered rains to relieve Trit Rishi who had fallen in the well. I took the wealth of the enemies. I agitated the clouds for the sake of Dadhichi, son of Matrishwa.
मह्यं त्वष्टा वज्रमतक्षदायसं मयि देवासोऽवृजन्नपि क्रतम्।
ममानीकं सूर्यस्येव दुष्टरं मामार्यन्ति कृतेन कर्वेन च
त्वष्टा ने मेरे लिए लोहे का वज्र बनाया। मेरे लिए देवता लोग यज्ञ करते हैं। मेरी सेना सूर्य देव के ही समान दुर्गम्य है। वृत्रवधादि करने के कारण मेरे पास सब आते हैं।[ऋग्वेद 10.48.3]
Twasta made Vajr for me. Demigods-deities conduct Yagy for me. My army is in accessible like Sury Dev. Everyone come to me since I killed Vrat etc.
अहमेतं गव्ययमश्यं पशुं पुरीषिणं सायकेना हिरण्ययम्।
पुरू सहस्त्रा नि शिशामि दाशुषे यन्मा सोमास उक्थिनो अमन्दिषुः
जिस समय यजमान मुझे स्तोत्र और सोम के द्वारा तृप्त करते हैं, उस समय मैं शत्रु के गौ, अश्व, हिरण्य और क्षीर आदि से युक्त पशुदल को शस्त्रों से जीतता हूँ और दाता यजमान के शत्रु विनाश के लिए अनेकानेक शस्त्रों को तेज करता हूँ।[ऋग्वेद 10.48.4]
When the hosts-Ritviz satisfy me with Strotr & Som, I win the cows, horses, gold, animals-cattle milk etc. of the enemy with weapons. I sharpen several weapons for destruction of the enemies of the hosts-Ritviz.
अहमिद्धो न परा जिग्य इच्द्धनं न मृत्यवेऽव तस्थे कदा चन।
सोममिन्मा सुन्वन्तो याचता वसु न मे पूरवः सख्ये रिषाथन
मैं सब धनों को स्वामी हूँ। मेरे धन का कोई पराभव नहीं कर सकता। मेरे भक्त कभी मृत्यु के पात्र नहीं होते अथवा मैं मृत्यु के सामने कभी नीचा नहीं होता। हे यजमानो! मनोभिलषित धन मुझसे ही माँगे। हे मनुष्यो। मेरे लिए मित्रता की भावना को कभी नष्ट न होने दो।[ऋग्वेद 10.48.5]
I am the lord of wealth. No one degrade my wealth. My devotees never face death or degrade before death. Hey hosts-Ritviz! Ask for the desired wealth to me. Hey Humans! Never let the friendly relation with me, perish.
अहमेताञ्छश्वसतो द्वाद्वेन्द्रं ये वज्रं युधयेऽकृण्वत।
आह्वयमानाँ अव हन्मनाहनं दृळहा वदन्ननमस्युर्नमस्विनः
जो प्रबल निःश्वास करके, दो-दो करके, अस्रधारक इन्द्र देव के साथ युद्ध करने को प्रस्तुत हुए और जो स्पर्द्धा के साथ मुझे बुलाते थे, कठोर वाक्य कहते हुए उन्हें मैंने ऐसा आघात किया कि वे मर गये। वे ही झुके, मैं किसी के समक्ष झुकने वाला नहीं हूँ।[ऋग्वेद 10.48.6]
Those took deep breath twice and prepared to fight with Indr Dev, who called me for competition, I spoke harsh words and stuck them in such a way that they died. They bent before me not me.
अभी ३ दमेकमेको अस्मि निष्पाळभी द्वा किमु त्रयः करन्ति।
खले न पर्षान् प्रति हन्मि भूरि किं मा निन्दन्ति शत्रवोऽनिन्द्राः
एक शत्रु आवे तो उसे भी हरा सकता हूँ। दो आवें तो उन्हें भी हरा सकता हूँ। यदि तीन ही आवें तो मेरा क्या बिगाड सकते हैं? जिस प्रकार किसान धान मलने के समय अनायास ही पुराने धान्य-स्तम्भों को मल डालता है, उसी प्रकार से ही मैं निष्ठुर शत्रुओं को मार डालता हूँ।[ऋग्वेद 10.48.7]
I can defeat one enemy. If two of them come, I can defeat them as well. Even if they are three, they can't harm-hurt me. The way a farmer rub-thrash the paddy, thrash the old stock as well, I too kill the  dreaded enemies similarly
अहं गुङ्गुभ्यो अतिथिग्वामिष्करमिषं न वृत्रतुरं विक्षु धारयम्।
यत्पर्णयघ्न उत वा करञ्जहे प्राहं महे वृत्रहत्ये अशुश्ववि
मैंने ही गुंगुओं के देश में प्रजा के बीच अतिथिग्व के पुत्र दिवोदास को प्रतिष्ठित किया। वह गुंगुओं के शत्रुओं का संहार करते हैं, विपत्ति का निवारण करते हैं और अन्न के समान उनका पालन करते हैं। पर्णय और करञ्ज नाम के शत्रुओं के वध से युक्त संग्राम में मैं भली-भाँति विख्यात हुआ।[ऋग्वेद 10.48.8]
I established Divodas  son of Atithigav amongest the populace in the land of Gangus. They kill the enemies of Gangus and remove the trouble, nurture-nourish them like grains. I become famous in the war against Parnany and Karanj and killed them.
प्र मे नमी साप्य इषे भुजे भूगवामेषे सख्या कृणुत द्विता।
दिद्युं यदस्य समिथेषु मंहयमादिदेनं शंस्यमुक्थ्यं करम्
मेरे स्तोता सबके लिए आश्रयणीय, अन्नवान और भोगदाता हैं। मेरे स्तोता को लोग गोदाता और मित्र मानते हैं। मैं अपने स्तोता की विजय के लिए युद्ध में शस्त्र ग्रहण करता हूँ। स्तोता को मैं स्तुत्य करता हूँ।[ऋग्वेद 10.48.9]
My Stotas grant asylum, food grains and pleasure-comforts to all. My Stotas grant cows and consider me as a friend. I take weapons in my hands for the victory of my Stotas. 
प्र नेमस्मिन्ददृशे सोमो अन्तर्गोपा नेममाविरस्था कृणोति।
स तिग्मशृङ्गं वृषभं युयुत्सन् द्रुहस्तस्थौ बहुले बद्धो अन्तः
दो में से एक सोमयज्ञ करता है। पालक इन्द्र देव ने उसके लिए वज्र धारण करके उसे श्रीयुक्त बनाया। तीखे तेज से युक्त सोम यज्ञ सम्पादनकर्ता के साथ युद्ध करने को प्रेरित हुए, परन्तु अन्धकार के मध्य में आबद्ध हो गए।[ऋग्वेद 10.48.10]
I perform one Som Yagy out of two. Nourishing Indr Dev wielded Vajr and granted it prosperity. Fierce Som Yagy were inspired for war for the performer of Yagy and got attacked with darkness. 
आदित्यानां वसूनां रुद्रियाणां देवो देवानां न मिनामि धाम।
ते मा भद्राय शवसे ततक्षुरपराजितमस्तृतमषाळ्हम्
इन्द्र देव आदित्यों, वसुओं और रुद्रों के स्थान को नष्ट नहीं करते। मुझ अपराजित, अहिंसित और अनभिभूत को इन देवों ने कल्याण और अन्न के लिए बनाया है।[ऋग्वेद 10.48.11]
Indr Dev do not destroy the establishments of Adity Gan, Vasus and the Rudr. The deities have evolved me, as invincible, unhurt-unharmed, undefeated for welfare and food grains.(04.11.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (49) :: ऋषि :- इन्द्र, वैकुंट; देवता :- इन्द्र; छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
अहं दां गृणते पूर्व्य वस्वहं ब्रह्म कृणवं मह्यं वर्धनम्।
अहं भुवं यजमानस्य बोदितायजनः साक्षि विश्वस्मिन्भरे
स्तोता को मैंने मुख्य धन दिया। यज्ञानुष्ठान मेरे लिए वर्द्धक है। अपने लिए याजक के धन का प्रेरक मैं ही हूँ। अयाज्ञिक को समस्त संग्रामों में पराजित करता हूँ।[ऋग्वेद 10.49.1]
जो मेरी स्तुति करता है, उसे मैं उत्तम धन देता हूँ, मैं अपने लिए पवित्र प्रार्थना को महानता का स्रोत बनाता हूँ, मैं भक्त का साधन हूँ; मैं भक्त की हर लड़ाई में दुश्मन को पराजित करता हूँ।
I granted desired wealth to the Stota. Organisation of Yagy boost my powers. I inspire the Ritviz to prayers and become means-source for him. I defeat the person who is against Yagy in all wars.
मां धुरिन्द्रं नाम देवता दिवश्च ग्मश्चापां च जन्तवः।
अहं हरी वृषणा विव्रता रघु अहं वज्रं शवसे घृष्ण्वा ददे
स्वर्ग के देवता-भूचर और जलचर जन्तु मेरा नाम इन्द्र रखे हुए हैं। युद्ध में जाने के लिए मैं हरितताभ, पौरुषशाली, विविधकर्मा और लघुगामी अश्वों को रथ में नियोजित करता है। धर्षक वज्र को बल के लिए (हाथ में) धारण करता हूँ।[ऋग्वेद 10.49.2]
Living beings of the heavens, earth and water have named me Indr. I deploy the stout, greenish, capable of performing various acts horses named Hari in the charoite while going out for war. I wield the destroyer Vajr in my hand.
अहमत्कं कवये शिश्नथं हथैरहं कुत्समावमाभिरूतिभिः।
अहं शुष्णस्य श्नथिता वधर्यमं न यो रर आर्यं नाम दस्यवे
मैंने उशना ऋषि के मङ्गल के लिए अत्क नामक व्यक्ति को प्रहार के द्वारा ताड़ित किया। मैंने रक्षा के उपयोगी अनेक कार्य करके कुत्स को बचाया। शुष्ण के वध के लिए मैंने वज्र धारण किया। दस्युजाति का नाम मैंने आर्य नहीं रखा।[ऋग्वेद 10.49.3]
I struck the person named Atk for the welfare of Rishi Ushna. I performed various protective means and saved Kuts. I deployed Vajr for the protection of Shushn. I did not name the dacoit clan Ary.
अहं पितेव वेतसूँरभिष्टये तुग्रं कुत्साय स्मदिभं च रन्धयम्।
अहं भुवं यजमानस्य राजनि प्र यद्भरे तुजये न प्रियाधृषे
मैंने पिता के समान वेतसु नाम का देश कृत्स ऋषि के वश में कर दिया। तुम्र और सदिभ को भी कुत्स के वश में कर दिया। मैं यजमान को श्री-सम्पन्न कर देता हूँ। पुत्र समझकर उसे प्रिय वस्तु देता हूँ, जिससे वह दुर्द्धर्ष हो उठे।[ऋग्वेद 10.49.4]
I gave the country Vetsu under the control of Krats Rishi like a father. I handed over Tumr and Sadibh under the control of Kuts. I make the hosts prosperous. I give him desired goods considering him a son, so that he become invincible.
अहं रन्धयं मृगयं श्रुतर्वणे यन्माजिहीत वयुना चनानुषक्।
अहं वेशं नम्रमायवेऽकरमहं सव्याय पड्गृभिमरन्धयम्
मैंने उस समय श्रुतर्वा ऋषि के वश में मृगय असुर को कर दिया, जिस समय उन्होंने मेरी स्तुति की। मैंने वेश को आयु और पड्गृभि को सत्य के वशीभूत कर दिया।[ऋग्वेद 10.49.5]
I put demon Mragy under the clutches-control of Shrutarva Rishi, when he prayed to me. I put-gave Vesh under the control of Ayu & Padgrabhi under the clutches of Saty.
अहं स यो नववास्त्वं बृहद्रथं सं वृत्रेव दासं वृत्रहारुजम्।
यद्वर्धयन्तं प्रथयन्तमानुषग्दूरे पारे रजसो रोचनाकरम्
वृत्रासुर वध के समान ही मैंने नववास्त्व और वृहद्रथ का वध किया। उस समय ये दोनों बर्द्धमान और प्रसिद्ध हो रहे थे। इन्हें मैंने उज्ज्वल संसार से बाहर निकाल दिया।[ऋग्वेद 10.49.6]
I killed Navvastv and Vrahdrath like Vrata Sur. They were becoming prosperous and famous. I moved them out of this bright world.
अहं सूर्यस्य परि याम्याशुभिः प्रैतशेभिर्वहमान ओजसा।
यन्मा सावो मनुष आह निर्णिज ऋधक्वृषे दासं कृत्व्यं हथैः॥
शीघ्रगामी अक्षों के द्वारा ढोये जाने पर मैं अपने तेज से सूर्य देव की चारों ओर प्रदक्षिणा करता हूँ। जिस समय यजमान के सोमाभिषव के लिये मुझे बुलाया जाता है, उस समय शस्त्रों से मारने योग्य शत्रु को दूर करता हूँ।[ऋग्वेद 10.49.6]
I circumambulate Sury Dev with my fast moving horses with my majesty in four directions. When the hosts invite me for Somabhishav, I repel the enemy who deserve to be killed with weapons.
अहं सप्तहा नहषो नहुष्टरः प्राश्रावयं शवसा तुर्वश यदुम्।
अहं न्य१न्यं सहसा सहस्करं नव वाघतो नवतिं च वक्षयम्
मैं सात राजपुरियों को ध्वस्त करने वाला हूँ। मैं सबसे बड़ा बन्धनकर्ता हूँ। बली जानकर मैंने तुर्वश और यदु को प्रसिद्ध किया। मैंने अन्य स्तोताओं को बलिष्ठ बनाया। मैंने 99 नगरों को नष्ट किया।[ऋग्वेद 10.49.8]
I am the destroyer of 7 palaces. I am the biggest trapper. I made Turvash and Yadu famous considering them mighty. I made the Stotas strong. I destroyed the 99 cities.
अहं सप्त स्रवतो धारयं वृषा द्रवित्न्व: पृथिव्यां सीरा अधि।
अहमर्णांसि वि तिरामि सुक्रतुर्युधा विदं मनवे गातुमिष्टये
मैं जल वर्षक हैं। जो सात सिन्धु आदि नदियाँ द्रवरूप से पृथ्वी पर प्रवाहित हो रही हैं, उन सबको मैंने ही यथा स्थान रखा है। मैं शोभन कर्मा हूँ। मैं ही जल वितरण करता हूँ। युद्ध करके मैंने यज्ञकर्ता के लिए मार्ग प्रशस्त कर दिया।[ऋग्वेद 10.49.9]
I cause rains. I have maintained the 7 rivers flowing over the earth. I perform gracious deeds. I distribute water. I fought the war to clear the way for the Yagy performers.
अहं तदासु धारयं यदासु न देवश्चन त्वष्टाधारयद्वशत्।
स्पाईं स्पार्हं गवामूधः सु वक्षणास्वा मधोर्मधु श्वात्र्यं सोममाशिरम्
गाँवों के स्तन में मैंने ऐसा स्पृहणीय, दीप्त और मधुर दुग्ध रखा है, जैसा कोई देवता नहीं रख सकता। वह स्तन नदी के समान दूध का वहन करता है। सोम के साथ मिलाने पर दुग्ध बहुत ही सुखकर हो जाता है।[ऋग्वेद 10.49.10]
स्पृहणीय :: प्राप्त करने योग्य, वांछनीय; coveted, enviable, desirable, preferable. 
I have created such desirable, aurous and sweet milk in the udder of cows, which no other demigod-deity could do. The udder hold milk like the river. On mixing the milk with Somras, this milk become very comfortable-pleasant.
एवा देवाँ इन्द्रो विव्ये नृन् प्र च्यौत्नेन मघवा सत्यराधाः।
विश्वेत्ता ते हरिवः शचीवोऽभि तुरासः स्वयशो गृणन्ति
ऋषि रूप से इन्द्र की उक्ति :- इस प्रकार इन्द्र देव अपने प्रभाव से देवों और मनुष्यों को सौभाग्य सम्पन्न करते हैं। इन्द्र देव के पास धन है; वे ही यथार्थ धनी है। हे विविध कर्मा और अश्व युक्त इन्द्र देव! आपका कार्य आपके अधीन है। अतीव व्यस्त होकर ऋत्विक् गण आपके उन कार्यों की प्रशंसा करते हैं।[ऋग्वेद 10.49.11]
Indr Dev in the form of a Rishi :- Indr Dev makes the demigods-deities and humans lucky with his nature. Indr Dev has wealth. He is in deed wealthy. Hey various deeds performing and horses possessing Indr Dev! You keep your tasks under your control. The Ritviz become too busy and appreciate your deeds.(05.11.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (50) :: ऋषि :- इन्द्र, वैकुंट; देवता :- इन्द्र; छन्द :- जगती, अभिसारिणी त्रिष्टुप्।
प्र वो महे मन्दमानायान्धसोऽर्चा विश्वानराय विश्वाभुवे।
इन्द्रस्य यस्य सुमखं सहो महि श्रवो नृम्णं च रोदसी सपर्यतः
हे स्तोता! आपके महान सोमरस से इन्द्र देव प्रसन्न होते हैं। वे सबके नेता और सबके सृष्टिकर्ता है। उनकी पूजा करें। इन्द्र देव की आश्चर्यजनक शक्ति, विपुल कीर्ति और सुख-सम्पत्ति की समस्त द्युलोक और मनुष्य लोक प्रशंसा करता है।[ऋग्वेद 10.50.1]
Hey Stota! Indr Dev is gladdened by your wonderful Somras. He is the leader of all and evolve life. Worship him. Indr Dev's amazing power, glory, pleasure-comforts are appreciated by the heavens and humans abode.
सो चिन्नु सख्या नर्य इनः स्तुतश्चर्कृत्य इन्द्रो मावते नरे।
विश्वासु धूर्षु वाजकृत्येषु सत्पते वृत्रे वाप्स्व १ भि शूर मन्दसे
इन्द्र देव सबके स्तुत्य और सबके प्रभु है। वे मित्र के समान मनुष्य के हितैषी है। मेरे समान मनुष्य को उनकी सदा सेवा करनी चाहिए। हे वीर और साधुपालक इन्द्र देव! सब प्रकार के बड़े कार्यों और बलसाध्य व्यापार के समय तथा मेघ के वृष्टि प्राप्ति के लिए आपकी स्तुति करनी चाहिए।[ऋग्वेद 10.50.2]
Indr Dev is worshiped by all and is their lord. He is beneficial like a friend. The humans should serve him like me. Hey brave and nurturer of the sages Indr Dev! During all large endeavours, business involving strength-force, obtaining rains from clouds, you have to be worshiped.
के ते नर इन्द्र ये त इषे ये ते सुम्नं सधन्य १ मियक्षान्।
केते वाजायासुर्याय हिन्विरे के अप्सु स्वासूर्वरासु पौंस्ये
हे इन्द्र देव! वे सौभाग्यशाली कौन है, जो तुमसे अन्न, धन और सुख-सम्पदा पाने के अधिकारी है। वे कौन हैं, जो आपको असुरवध-समर्थ बल पाने के लिए सोमरस प्रेरित करते है। वे कौन है, जो अपनी उपजाऊ भूमि में वर्षाजल और पौरुष पाने के लिए सोमरस प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 10.50.3]
Hey Indr Dev! Who are those lucky person who are entitled to have food grains, pleasure-comforts, prosperity from you? Who are those who inspire you to drink Somras & kill demons? Who are those people who offer you Somras to have rain water for irrigation of soil? 
भुवस्त्वमिन्द्र ब्रह्मणा महान्भुवो विश्वेषु सवनषु यज्ञियः।
भुवो नृँश्र्च्यौत्नो विश्वस्मिन् भरे ज्येष्ठश्च मन्त्रो विश्वचर्षणे
हे इन्द्र देव! यज्ञानुष्ठान के द्वारा आप महान हुए हैं। समस्त यज्ञों में आप यज्ञभाग पाने के अधिकारी है। आप समस्त युद्धों में प्रधान-प्रधान शत्रुओं के ध्वंसक हुए हैं। हे अखिल ब्रह्माण्ड दर्शक इन्द्र देव! आप सर्वश्रेष्ठ मन्त्र रूप है।[ऋग्वेद 10.50.4]
Hey Indr Dev! You turned-became great by virtue of performing Yagy. You are entitled to have your share in all Yagy. You turned out to be the destroyer of the main enemies. Hey viewer of the the entire universe, Indr dev! You are the best form of Mantr.
अवा नु कं ज्यायान् यज्ञवनसो महीं त ओमात्रां कृष्टयो विदुः।
असो नु कमजरो वर्धाश्च विश्वेदेता सवना तूतुमा कृषे
आप सर्वश्रेष्ठ है। यजमानों की रक्षा करें। मनुष्य जानते हैं कि आपके पास से महती रक्षा प्राप्त की जाती है। आप अजर होवें, बढ़ें। ऐसा करें कि यह सोमयाग शीघ्र सम्पन्न हो।[ऋग्वेद 10.50.5]
You are excellent. Protect the hosts. Humans are aware that extreme protection can be attained from you. You should be immortal and growing. Make efforts to accomplish the Som Yagy.
एता विश्वा सवना तूतुमा कृषे स्वयं सूनो सहसो यानि दधिषे।
वराय ते पात्रं घर्षणे तना यज्ञो मन्त्रो ब्रह्मोद्यतं वचः
हे बलशाली इन्द्र देव! जिन सोमयज्ञों को आप धारण किये रहते हैं, उनको शीघ्र सम्पन्न होते हैं। आपके पास आश्रय पाने के लिए यह सोमपात्र, यह सम्पत्ति, यह यज्ञ, यह मन्त्र और पवित्र वाक्य उद्यत है।[ऋग्वेद 10.50.6]
Hey mighty Indr Dev! The Som Yagy supported by you are accomplished quickly. You possess this vessel for Somras, wealth, Yagy, Mantr and pious-auspicious words.
ये ते विप्र ब्रह्मकृतः सुते सचा वसूनां च वसुनश्च दावने।
प्र ते सुम्नस्य मनसा पथा भुवन्मदे सुतस्य सोम्यस्यान्धसः
हे मेधावी इन्द्र देव! स्तोत्र निरत स्तोता गण नाना प्रकार का धन पाने की इच्छा से एकत्रित आपके लिए सोम-यज्ञ करते हैं। वे सोमरूप अन्न प्रस्तुत होने के पश्चात् जिस समय आह्वाद प्रारम्भ होता है, उस समय स्तुति रूप साधन से सुख लाभ के अधिकारी होवे।[ऋग्वेद 10.50.7]
Hey intellectual Indr Dev! Stotas dedicated to Strotr join to perform Som Yagy for the sake of wealth. They should be entitled to the pleasure-comforts in the form of Stuti, after serving Som as food grain and beginning of great joy. (05.11.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (51) :: ऋषि :- देवा, अनि सौचीक, देव; देवता :- अग्नि, देवता; छन्द :- त्रिष्टुप्।
चाहत्चदुत्बं स्थविरं तदासीद्येनाविष्टितः प्रविवेशिथापः।
विश्वा अपश्यद्बहुधा ते नये जातवेदस्तन्वो देव एकः॥
अग्नि देव हविर्वहन कार्य में उद्युक्त होकर जल में छिप गये थे। उन्हीं के प्रति देवों उक्ति :- हे अग्नि देव! आप अतीव प्रकाण्ड और स्थूल आच्छादन से वेष्टित होकर जल में स्थित थे। हे ज्ञातप्रज्ञ अग्नि देव! आपके अनेक प्रकार के शरीर को एक देवता ने देखा।[ऋग्वेद 10.51.1]
उद्युक्त :: तत्पर, तैयार, काम में लगा हुआ, संलग्न; ready.
Agni Dev became ready for carrying offerings and hide himself in water. The demigods-deities said about him :- Hey Agni Dev! You have colossal and thick covering over you in water. Hey enlightened-intelligent Agni Dev! A demigod saw your body in various forms.
को मा ददर्श कतमः स देवो यो मे तन्वो बहुधा पर्यपश्यत्।
काह मित्रावरुणा क्षियन्त्यग्नेर्विश्वाः समिधो देवयानीः
अग्नि देव की उक्ति :- मुझे किसने देखा था? वे कौन देवता है? जिन्होंने मेरी नाना प्रकार की देह को देखा था? मित्र और वरुण देव अग्नि देव की वह दीप्त और देवयान साधन देह कहाँ है, कहो तो?[ऋग्वेद 10.51.2]
देवयान :: वह मार्ग जिससे मरने वाला ब्रह्म को पाता है, देवयान और पितृयाण का मतलब है कि ब्रह्मज्ञानी मरने के बाद उत्तरोत्तर प्रकाशमान लोकों में होते हुए ब्रह्मलोक या ब्रह्म की प्राप्ति करते हैं, वहीं, कर्मकांड में लगे लोग धूमरात्रि, कृष्णपक्ष, दक्षिणायन वगैरह उत्तरोत्तर अंधकार की स्थिति में होते हैं और फिर जन्म लेते हैं; the route-practice following which a person attains Brahm.
Agni Dev uttered :- Who saw me? Who are those demigods-deities who saw my different forms? Mitr & Varun Dev, please speak, "where is the radiant body-form which leads to Brahm"?
ऐच्छाम त्वा बहुधा जातवेदः प्रविष्टमग्ने अप्स्वोषधीषु।
तं त्वा यमो अचिकेचित्रभानो दशान्तरुष्यादतिरोचमानम्
देवों की उक्ति :- हे ज्ञातप्रज्ञ अग्नि देव! जल और औषधियों में आप स्थित हैं। आपको हम खोजते हैं। हे विचित्र किरणों वाले अग्नि देव! यम आपको देखकर पहचान गये। यम ने देख कि आप अपने दस स्थानों, तीन भुवन, अग्नि, वायु, आदित्य, जल, औषधि, वनस्पति और प्राणि शरीर से भी अधिक दीप्त हो रहे हैं।[ऋग्वेद 10.51.3]
Deities said :- Hey enlightened-intelligent Agni Dev! You are present in water and medicines. We search-trace you. Hey Agni Dev exhibiting amazing rays! Yam-Dharm Raj recognised you. Dharm Raj saw that you are more aurous-radiant than ten places, three abodes, Vayu, Adity, water, medicines, vegetation and the bodies of living beings.
होत्रादहं वरुण बिभ्यदायं नेदेव मा युनजन्नत्र देवाः।
तस्य मे तन्वो बहुधा निविष्टा एतमर्थं न चिकेताहमग्निः
अग्निदेव की उक्ति :- हे वरुण देव! मैं होता के कार्य में भय पाकर चला आया हूँ। मै चाहता हूँ कि देवगण अब होमकार्य में नियुक्त न करें। इसीलिए मेरी देह नाना स्थानों में गई है। मैं (अग्निदेव) अब ऐसा कार्य नहीं करना चाहता।[ऋग्वेद 10.51.4]
Agni Dev pleaded :- Hey Varun Dev! I have come due to the fear of Hota's work. I wish that deities should not depute me in the works related with Hawan. Therefore, my body has moved to various places. I do not wish to perform such jobs.
एहि मनुर्देवयुर्यज्ञकामो ऽ रंकृत्या तमसि क्षेष्यग्ने।
सुगान्यथः कृणुहि देवयानान् वह हव्यानि सुमनस्यमानः
देवों की उक्ति :- हे अग्नि देव! पधारें। मनुष्य यज्ञाभिलाषी हुआ है। वह यज्ञ का समस्त आयोजन कर चुका है और आप अन्धकार में हैं। देवों से होमीय द्रव्य पाने की इच्छा से सरल मार्ग प्रदान करें। प्रसन्नचित्त होकर हवि का वहन करें।[ऋग्वेद 10.51.5]
Demigods-deities stressed :- Hey Agni Dev! Please come. The humans have intended to perform Yagy and you are in the dark. Grant  simple-easy route for having materials for the Yagy-Hawan from the demigods-deities. Carry the offerings-oblations happily.
अग्नेः पूर्वे भ्रातरो अर्थमेतं रथीवाध्वानमन्वावरीवुः।
तस्माद्भिया वरुण दूरमायं गौरो न क्षेप्नोरविजे ज्यायाः
अग्नि देव की उक्ति :- हे देवगणों! जिस प्रकार रथी दूर मार्ग को जाता है, उसी प्रकार ही मेरे ज्येष्ठ तीन भ्राता (भूपति, भुवनपति और भूतपति) इस कार्य को करते हुए नष्ट हो गये। इसी भय से मैं दूर चला आया हूँ। जिस प्रकार श्वेत हरिण धनुर्द्धारी की प्रत्यंचा से डरता है, उसी प्रकार ही मैं भी डरता हूँ।[ऋग्वेद 10.51.6]
Agni Dev replied :- Hey deities! The way a charioteer moves away form the road, similarly my three elder brothers (Bhu Pati, Bhuwan Pati and Bhut Pati) were destroyed due to this job. I have come away due to this fear. The way a white deer fear the bow & arrow of the hunter, similarly I too feel afraid.
कुर्मस्त आयुरजरं यदग्ने यथा युक्तो जातवेदो न रिष्याः।
अथा वहासि सुमनस्यमानो भागं देवेभ्यो हविषः सुजात
देवों की उक्ति :- हे ज्ञातप्रज्ञ अग्नि देव! हम आपको जरा रहित आयु देते हैं। इससे आप नहीं मरेंगे। हे कल्याण मूर्ति अग्नि देव! प्रसन्नचित होकर देवों के पास यथाभाग हव्य ले जावें।[ऋग्वेद 10.51.7]
Deities pleaded :- Hey enlightened-intelligent Agni Dev! We grant you longevity free from old age. This will make you immortal. Hey Agni Dev devoted to welfare! You should bring the offerings happily to demigods-deities.
प्रयाजान्मे अनुयाजाँश्च केवलानूर्जस्वन्तं हविषो दत्त भागम्।
घृतं चापां पुरुषं चौषधीनामग्नेश्च दीर्घमायुरस्तु देवाः
अग्नि देव की उक्ति :- हे देवगणों! यज्ञ का प्रथम हविर्भाग (प्रयाज) और शेष हविर्भाग (अनुयाज) एवं अतीव विपुल भाग मुझे दें। जल का सार भाग घृत, औषधि से उत्पन्न प्रधान झापा और दीर्घायु प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.51.8]
झापा :: बड़ी टोकरी या दौरी जिससे दही, दूध आदि ढाँके जाते हैं; संकीर्ण मुँह वाली टोकरी; covering for curd, Ghee, medicines etc.
Agni Dev argued :- Hey demigods-deities! Grant me the first segment of the Yagy and a large portion of it to me. Grant me the extract of water i.e., Ghee, covering evolved out of medicines and long age.
तव प्रयाजा अनुयाजाश्च केवल ऊर्जस्वन्तो हविषः सन्तु भागाः।
तवाग्ने यज्ञो ३ यमस्तु सर्वस्तुभ्यं नमन्तां प्रदिशश्चतस्रः
देवों का कथन :- हे अग्नि देव! प्रयाज, अनुयाज, विपुल और असाधारण हविर्भाग आपको मिलेगा। वह समस्त यज्ञ भी आपके लिए समर्पित हैं। चारों दिशायें आपके समक्ष नतमस्तक होकर आपका सम्मान करें।[ऋग्वेद 10.51.9]
Deities replied :- Hey Agni Dev! you will get oblations as per his desire. The Yagy will be devoted to you. Four direction will bow in front of you and honour you.(06.11.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (52) :: ऋषि :- अग्नि सौचीक; देवता :- विश्वेदेव; छन्द :- त्रिष्टुप्, जगती।
विश्वे देवाः शास्तन मा यथेह होता वृतो मनवै यन्निषद्य।
प्र मे ब्रूत भागधेयं यथा वो येन पथा हव्यमा वो वहानि
हे विश्वे देव! आपने मुझे होता के रूप में धारण किया। मैं यहाँ बैठकर जो मन्त्र पढूँगा, उसे कह दें। मेरा भाग कौन है और आप लोगों का भाग कौन है, यह मुझसे कह दें। जिस मार्ग से आपके पास मैं होमीय द्रव्य ले जाऊँगा, वह भी बता दें।[ऋग्वेद 10.52.1]
Hey Vishwe Dev! You have adopted me as a Hota. I will sit here and recite the Mantr described-narrated by you. Tell me which part is mine and which one is yours. Tell me the path-route which I should follow to bring Hawan materials to you.
अहं होता न्यसीदं यजीयान् विश्वे देवा मरुतो मा जुनन्ति।
अहरहरश्विनाध्वर्यवं वां ब्रह्मा समिद्भवति साहुतिर्वाम्
होता होकर मैं यज्ञ करूँगा। इसी से बैठा हुआ हूँ। समस्त देवगणों और मरुद्गणों ने जो इस कार्य में नियुक्त किया है। हे अश्विनी कुमारों! आपको प्रतिदिन अध्वर्यु का कार्य करना होता है। कान्तिमान् सोम स्तोत्र स्वरूप हैं, वही हमारी सोम आहुति आपको समर्पित हो।[ऋग्वेद 10.52.2]
I will perform Yagy as a Hota, that's why I am sitting here. All demigods-deities and Marud Gan have deputed-appointed me for this job. Hey Ashwani Kumars! You have to perform the job of Priest everyday. Glorious Som is a form of Strotr sacrifices of which be offered to you.
अयं यो होता किरु स यमस्य कमप्यूहे यत्समञ्जन्ति देवाः।
अहरहर्जायते मासिमास्यथा देवा दधिरे हव्यवाहम्
होता को क्या करना होता है? होता यजमान के जिस द्रव्य का हवन करते हैं, वह देवों को मिलता है। प्रतिदिन और प्रतिमास होम होता है। उस कार्य में देवों ने अग्नि देव को व्यवाहक नियुक्त किया है।[ऋग्वेद 10.52.3]
What the Stota has to do? The material with which the Hota carries out the Hawan is received by the demigods-deities. Hawan is held everyday and every month. Deities have appointed Agni Dev for that purpose-carrying offerings to deities.
मां देवा दधिरे हव्यवाहमपम्लुक्तं बहु कृच्छ्रा चरन्तम्।
अग्निर्विद्वान्यज्ञं नः कल्पयाति पञ्चयामं त्रिवृतं सप्ततन्तुम्
मैं (अग्नि देव) संसार से लुप्त हो गया था। मैं अनेक प्रकार के कष्ट करता था। मुझे देवों ने हव्य वाहन नियुक्त किया। विद्वान् अग्नि देव हमारे यज्ञ का अयोजन करते हैं। यज्ञ के पाँच मार्ग हैं। उसमें तीन बार सोम का निष्पीड़न (सवनत्रय) किया जाता है और सात छन्दों में स्तवन्  किया जाता है।[ऋग्वेद 10.52.4]
I-Agni Dev had disappeared from the universe. I experienced various pains-tortures. Deities appointed me as the carrier of offerings-oblations. Enlightened Agni Dev organise our Yagy. Som is executed thrice and seven Meter are recited.
आ वो यक्ष्यमृतत्वं सुवीरं यथा वो देवा वरिवः कराणि।
आ  बाह्वोर्वज्रमिन्द्राय धेयामथेमा विश्वाः पृतना जयाति
हे देवगणों! मैं आपकी सेवा करता हूँ। इसलिए आपसे प्रार्थना करता हूँ कि मुझे अमर कर सन्तान दें। मैं इन्द्र देव के दोनों हाथों में वज्र देता हूँ, तभी वह इन समस्त शत्रु सेनाओं को जीतते हैं।[ऋग्वेद 10.52.5]
Hey demigods-deities! I serve you. Hence, I pray to you to grant me immortal progeny. I give Vajr in the hands of Indr Dev, its then that he wins the enemy armies.
त्रीणि शता त्री सहस्त्राण्यग्निं त्रिंशच्च देवा नव चासपर्यन्।
औक्षन्मृतेरस्तृणन्बर्हिरस्मा आदिद्धोतारं न्यसादयन्त
तीन हजार तीन सौ उन्नतालिस देवताओं ने अग्नि देव की सेवा की। अग्नि देव को उन्होंने घृत से अभिषिक्त किया, उनके लिए कुश बिछा दिया और उन्हें होता के रूप में यज्ञ में प्रतिष्ठित किया।[ऋग्वेद 10.52.6]
अभिषिक्त :: जिसका अभिषेक हुआ हो, जिसके ऊपर जल आदि छिड़का गया हो, जो जल आदि से नहलाया गया हो, बाधा शांति के लिये जिस पर मंत्र पढ़कर दूर्वा और कुश से पानी छिडका गया हो, जिस पर विधिपूर्वक जल छिड़ककर किसी अधिकार का भार दिया गया हो, राजपद पर निर्वाचित; anointed, crowned.
Three thousand and three hundred thirty nine demigods-deities served Agni Dev. They anointed Agni Dev with Ghee, Kush Mate was laid for him and he was established as the Hota of the Yagy.(07.11.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (53) :: ऋषि :- देवा, अग्नि सौचीक; देवता :- अग्नि देव; छन्द :- त्रिष्टुप्, जगती।
यमैच्छाम मनसा सो३यमागाद्यज्ञस्य विद्वान् परुषश्चिकित्वान्।
स नो यक्षद्देवताता यजीयान्नि हि षत्सदन्तरः पूर्वी अस्मत्
मन से जिन अग्नि देव की हम कामना करते हैं, वह आ गये है। अग्नि देव यज्ञ को जानते हैं। वह अपने अङ्गों को सम्पूर्ण करते हैं। उनके समान कोई भी यज्ञ कर्ता नहीं है। वे हमारा यजन करें। वे यजनीय देवों के मध्य वेदी पर स्थापित हुए हैं।[ऋग्वेद 10.53.1]
Agni Dev desired by us with our innerself has come-invoked. Agni Dev recognises the Yagy. He completes his organs. There is no person who arrange Yagy other than him. They should organise our Yagy. He is established amongest the demigods-deities between the demigods-deities over the Vedi.
अराधि होता निषदा यजीयानभि प्रयांसि सुधितानि हि ख्यत्।
यजामहै  यज्ञियान् हन्त देवाँ ईळामहा ईड्याँ आज्येन
हे अग्नि देव! आप होता और श्रेष्ठ यज्ञ कर्ता हैं। वेदी पर बैठकर आहुति के योग्य हुए। अग्नि देव भली-भाँति रखें हुए चरु, पुरोडाश आदि को चारों ओर से देख रहे हैं, जिससे यजनीय देवगणों को शीघ्रता से घृताहुति द्वारा संतुष्ट किया जा सके और स्तवनीय देवगणों का स्तोत्र द्वारा स्तवन किया जा सके, यही उनकी मनोकामना है।[ऋग्वेद 10.53.2]
Hey Agni Dev! You are a Hota an excellent Yagy performer. You sat over the Vedi and qualified for sacrifices. Agni Dev is carefully monitoring Charu, Purodas etc. in all directions so that the Demigods-deities may be satisfied with the offerings of Ghee and with recitation of Strotr as per his desire.
साध्वीमकर्देववीतिं नो अद्य यज्ञस्य जिह्वामविदाम गुह्याम्।
स आयुरागात्सुरभिर्वसानो भद्रामकर्देवहूतिं नो अद्य
हम लोगों का देवागमन रूप यज्ञ कार्य हैं, उसे अग्नि देव सुसम्पन्न करें। यज्ञ की जो गूढ़ जिह्वा (अग्नि देव) है, उसे हम पा चुके हैं। अग्नि देव सुरभि होकर और दीर्घायु होकर आये हैं। देवों के आवाहनरूप यज्ञ को अग्नि देव ने पूर्ण किया।[ऋग्वेद 10.53.3]
सुरभि :: सुगंधित, खुशबूदार, सुंदर, मनोरम, सुगंध, खुशबू; sweet fragrance, celestial cow, wish yielding cow, pleasant, brilliant, beautiful, famous, beloved, virtuous, jasmine the earth, having a lovely fragrance.
Let Agni Dev should invoke demigods-deities in the Yagy. We have have Agni Dev as the intricate tongue of the Yagy. Agni Dev has come after acquiring sweet fragrance and longevity. Yagy pertaining to invocation of Demigods-deities has been accomplished by Agni Dev.
तदद्य वाचः प्रथमं मसीय येनासुराँ अभि देवा असाम।
ऊर्जाद उत यज्ञियासः पञ्च जना मम होत्रं जुषध्वम्
जिस वाक्य का उच्चारण करने पर हम असुरों का पराभव कर सकें, उस सर्वश्रेष्ठ वाक्य का हम उच्चारण करें। अन्न भक्षक, यज्ञ योग्य और पञ्चजनों (देव, मनुष्य :- चार वर्ण और पाँचवां निषाद) आप लोग हमारे होमकार्य को स्वीकार करें।[ऋग्वेद 10.53.4]
We should recite the best Mantr with which we can defeat the demons-giants. Let the Panch Jan accept our Hawan related endeavours pertaining to eating of food grains and conduction of Yagy.
पञ्च जना मम होत्रं जुषन्तां गोजाता उत ये यज्ञियासः।
पृथिवी नः पार्थिवात्पात्वंहसोऽन्तरिक्षं दिव्यात्पात्वस्मान्
पञ्चजन (देवादि) मेरे होत्र का सेवन करें। हव्य के लिए उत्पन्न और यज्ञार्ह देवता मेरे होत्र का सेवन करें। पृथ्वी हमें पाप से बचावें। अन्तरिक्ष हमें पाप से बचावें।[ऋग्वेद 10.53.5]
Let Panch Jan participate in our Yagy. The demigods-deities should accept my Hawan. Let earth and space-sky protect us from sins. 
तन्तुं तन्वन्रजसो भानुमन्विहि ज्योतिष्मतः पथो रक्ष धिया कृतान्।
अनुल्बणं वयत जोगुवामपो मनुर्भव जनया दैव्यं जनम्
हे अग्नि देव! यज्ञ का विस्तार करते हुए इस लोक के दीप्त कर्ता सूर्य देव के अनुगामी बनें। सत्कर्म द्वारा जिन ज्योतिर्मय मार्गों (देवयानों) को प्राप्त किया जाता है, उनकी रक्षा करें। वे अग्नि देव स्तोताओं का कार्य निर्दोष करें। हे अग्नि देव ! आप स्तवीय बनें और देवों को यज्ञ की ओर प्रेरित करें।[ऋग्वेद 10.53.6]
Hey Agni Dev! Extend the Yagy and follow Sury Dev who illuminate this abode. Protect the bright paths by performing virtuous, righteous, pious deeds. Let him make the endeavours of the Stotas defectless. Hey Agni Dev! You should be worshipable, inspiring the demigods-deities to Yagy.
अक्षानहो नह्यतनोत सोम्या इष्कृणुध्वं रशना ओत पिंशत।
अष्टावन्धुरं वहताभितो रथं येन देवासो अनयन्नभि प्रियम्
यज्ञागमनेच्छु देवता कहते हैं :- हे सोम योग्य देवगणों! रथ में जोतने योग्य अश्व को रथ में नियोजित करें। अश्व की लगाम साफ करें। अश्व को अलंकृत करें। आठ सारथियों के बैठने योग्य रथों को सूर्य रथ के साथ यज्ञ में ले जावें।[ऋग्वेद 10.53.7]
Deities eager to join the Yagy say :- Hey demigods qualified for Som Yagy! Deploy the horses able to be pull the charoite. Clean the reins of the horses. The charoite capable of sitting 8 charioteers should be taken to the Yagy along with the charoite of Sury Dev.
अश्मन्वती रीयते सं रभध्वमुत्तिष्ठत प्र तरता सखायः।
अत्रा जहाम ये असन्नशेवाः शिवान्वयमुत्तरेमाभि वाजान्
अश्मन्वती नाम की नदी बह रही है। संगठित होकर इसे लाँघ जावें। हे मित्र गण! जो हमारे लिए कष्टप्रद है, उसका हम यही परित्याग करते हैं। नदी को पार करके हम सुख प्रदान करने वाले अन्नों को प्राप्त करेंगे।[ऋग्वेद 10.53.8]
River named Ashmanvati is flowing. Make joint efforts to cross it. Hey friends! One who is painful should be rejected. After crossing the river we will have comfortable food grains.
त्वष्टा माया वेदपसामपस्तमो बिभ्रत्पात्रा देवपानानि शंतमा।
शिशीते नूनं परशुं स्वायसं येन वृश्चादेतशो ब्रह्मणस्पतिः
त्वष्टा पात्र निर्माण करना जानते हैं। उन्होंने देवों के लिए अतीव सुन्दर पान पात्र बनायें है। वे उत्तम लोहे से बनायें गये कुठार को तेज कर रहे हैं। उसी से ब्रह्मणस्पति पात्र बनाने के योग्य काष्ठ को काटते हैं।[ऋग्वेद 10.53.9]
Twasta knows how to make vessels-pots. He has developed beautiful pots for the demigods-deities. He is sharpening the axe made with iron. He use the axe to cut wood for making pot called Brahman Spati.
सतो नूनं कवयः सं शिशीत वाशीभिर्याभिरमृताय तक्षथ।
विद्वांसः पदा गुह्यानि कर्तन येन देवासो अमृतत्वमानशुः
हे मेधावियों! जिन कुठारों से अमृतपान के लिए (अमर होने के लिए) पात्र बनाया करते हो, उन्हें भली-भाँति तेज करें। हे विद्वानों! आप ऐसे गोपनीय वास-स्थान बनाएँ, जिससे देवताओं ने अमरता को प्राप्त किया था।[ऋग्वेद 10.53.10]
Hey intellectuals! Properly sharpen the axe which is used to make the pot for drinking nectar-elixir. Hey enlightened! Make such secret homes due to which the demigods-deities had attained immortality.
गर्भे योषामदधुर्वत्समासन्यपीच्येन मनसोत जिह्वया।
स विश्वाहा सुमना योग्या अभि सिषासनिर्वनते कार इज्जितिम्
मृत गायों में से एक गाय को ऋभुओं ने रखा और उसके मुख में एक बछड़ा भी रखा। उनकी इच्छा देवता बनने की थी। इस कार्य को सम्पन्न करने का उपाय उनका कुठार है। प्रतिदिन ऋभुगण अपने योग्य उत्तमोत्तम स्तोत्र ग्रहण करते हैं। वे अवश्य शत्रु जयकर्ता हैं।[ऋग्वेद 10.53.11]
The Ribhu Gan kept one dead cow with them and kept a calf near its mouth. It desired to become demigod. Axe is used to accomplish this. Ribhu Gan accept best Strotrs for themselves. They are sure to win the enemy.(08.11.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (54) :: ऋषि :- बृहदुक्थ, वामदेव, देवता :-इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप्।
तां सु ते कीर्ति मघवन्महित्वा यत्त्वा भीते रोदसी अह्वयेताम्।
प्रावो देवाँ आतिरो दासमोजः प्रजायै त्वस्यै यदशिक्ष इन्द्र
हे धनी इन्द्र देव! आपकी महती कीर्ति का मैं वर्णन करता हूँ, जिस समय द्यावा-पृथ्वी ने भयभीत होकर आपको बुलाया, उस समय आपने देवों की रक्षा की। दस्युदल का संहार किया और यजमान को बल प्रदान किया।[ऋग्वेद 10.54.1] 
Hey wealthy Inr Dev! I am describing your glory. When heavens & earth called you due to fear, you protected the demigods-deities, destroyed the dacoits and strengthened the Ritviz-hosts.
यदचरस्तन्वा वावृधानो बलानीन्द्र प्रब्रुवाणो जनेषु।
मायेत्सा ते यानि युद्धान्याहुर्नाद्य शत्रु ननु पुरा विवित्से
हे इन्द्र देव! आपने अपने शरीर का बढ़ाकर और अपने समस्त कार्यों की घोषणा कर जिन सब बल साध्य व्यापारों को सम्पन्न किया, वे सब माया मात्र है; आपके समस्त युद्ध में माया व्याप्त है। इस समय तो आपका कोई भी शत्रु नहीं है। क्या पहले था? यह भी सम्भव नहीं।[ऋग्वेद 10.54.2]
Hey Indr Dev! You elongated your body and declared all endeavours which were done by you, were like mirage-cast and all your wars were like cast-mirage, virtual. At present you have no enemy. Did they exist earlier? Is it possible? 
क उ नु ते महिमनः समस्यास्मत्पूर्व ऋषयोऽन्तमापुः।
यन्मातरं च पितरं च साकमजनयथास्तन्व १ः स्वायाः
हे इन्द्र देव! हमसे पहले किसी ऋषि ने आपकी अखिल महिमा का अन्त पाया? आपने अपने ही शरीर से अपने माता-पिता को (द्यावा-पृथ्वी को) एक साथ उत्पन्न किया।[ऋग्वेद 10.54.3]
Hey Indr Dev! Did any Rishi found the end of your vast glory? You produced your parents heavens & earth from your body together.
चत्वारि ते असुर्याणि नामादाभ्यानि महिषस्य सन्ति।
त्वमङ्ग तानि विश्वानि वित्से येभिः कर्माणि मघवञ्चकर्थ
आप महान् हैं। आपके चार असुर घातक और अहिंसनीय शरीर हैं। हे धनी इन्द्र देव! उन्हीं शरीरों से आप अपने बड़े कार्यों को करते हैं।[ऋग्वेद 10.54.4]
You are great. You possess four forms meant for destruction of demons including those unviolent forms. Hey wealthy Indr Dev! You deploy these boy forms for great dees-tasks. 
Indr Dev is a great-glorious forms (majesty विभूति) of the Almighty. The Almighty descend over the earth in four forms.
विभूति  :: प्रताप, महत्व, तेज, गौरव, ऐश्वर्य, बहुत अधिक होने की अवस्था या भाव, बहुतायत, विपुलता, बढ़ती, वृद्धि, धन-धान्य आदि की यथेष्टता, ऐश्वर्य, विभव, धन-संपत्ति दौलत, भगवान् विष्णु का वह ऐश्वर्य जो नित्य या स्थायी माना जाता है, अणिमा, महिमा आदि अलौकिक या दिव्य शक्तियाँ, चिता की वह राख या भस्म जो भगवान् शिव अपने शरीर पर पोतते थे, यज्ञ, होम आदि के बाद बची हुई राख जो शैव लोग माथे पर या शरीर में लगाते हैं, लक्ष्मी, दिव्यास्त्र जो विश्वामित्र ने राम को दिया था, सृष्टि, प्रभुत्व; majestic, manifestations, majesty, greatness, power.
त्वं विश्वा दधिषे केवलानि यान्याविर्या च गुहा वसूनि।
काममिन्मे मघवन्मा वि तारीस्त्वमाज्ञाता त्वमिन्द्रासि दाता
प्रकट और छिपी हुई; दोनों तरह की सम्पत्तियों को आप अपने अधिकार में करते हैं। हे इन्द्र देव! मेरी अभिलाषा पूर्ण करें। आप स्वयं दान करने की आज्ञा करते हैं और स्वयं दान देते हैं।[ऋग्वेद 10.54.5]
Visible and hidden wealth are under your control. Hey Indr Dev! Accomplish my desires. You yourself oder donations and donate as well. 
यो अदधाज्ज्योतिषि ज्योतिरन्तर्यो असृजन्मधुना सं मधूनि।
अघ प्रियं शूषमिन्द्राय मन्म ब्रह्मकृतो बृहदुक्थादवाचि
जिन्होंने ज्योतिर्मय पदार्थों में ज्योति स्थापित की और जिन्होंने मधु देकर सोमरस आदि मधुर वस्तुओं की सृष्टि की, उनके लिए वृहदुक्थ मंत्रों के कर्ता ऋषि ने अतिप्रिय बलवर्द्धक स्तोत्र कहा।[ऋग्वेद 10.54.6]
Vrahdukth Mantr composer Rishi uttered highly strength boosting Strotr for Indr Dev who established illuminiation in foroscent materials, granted Somras and created material goods.(09.11.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (55) :: ऋषि :- बृहदुक्थ, वामदेव, देवता :-इन्द्र, छन्द :- त्रिष्टुप्।
दूरे तन्नाम गुह्यं पराचैर्यत्त्वा भीते अह्वयेतां वयोधै।
उदस्तभ्नाः पृथिवीं द्यामभीके भ्रातुः पुत्रान्मघवन्तित्विषाणः
हे इन्द्र देव! आपका शरीर दूर है। पराङ्मुख होकर मनुष्य उसको छिपाते हैं। जिस समय द्यावा-पृथ्वी उसको अन्न के लिए बुलाते हैं, उस समय आप अपने पास की मेघराशि को प्रदीप्त करते हैं और पृथिवी से आकाश को ऊपर पकड़े रखते हैं।[ऋग्वेद 10.55.1]
Hey Indr dev! Your body is away.  
महत्तन्नाम गुह्यं पुरुस्पृग्येन भूतं जनयो येन भव्यम्।
प्रत्नं जातं ज्योतिर्यदस्य प्रियं प्रियाः समविशन्त पञ्च
आपका विस्तृत स्थानों में व्याप्त गुह्य शरीर (अन्तरिक्ष) अत्यन्त प्रकाण्ड है। उससे आपने भूत और भविष्य को उत्पन्न किया है। जिन ज्योतिर्मय वस्तुओं को उत्पन्न करने की इच्छा हुई, उससे सब प्राचीन वस्तुएँ उत्पन्न हुई; उससे पञ्चजन (चारों वर्ण और निषाद) प्रसन्न हुए।[ऋग्वेद 10.55.2]
Your vast body pervaded over the space is eminant-colossoal. You produced-evolved past and future out of it. The luminous bodies desired by you led to evolution of ancient-eternal objects and the Panch Jan (Brahman, Kshatriy, Vaeshy, Shudr, Nishad) evolved out of it.
आ रोदसी अपृणादोत मध्यं पञ्च देवाँ ऋतुशः सप्तसप्त।
चतुस्त्रिंशता पुरुधा वि चष्टे सरूपेण ज्योतिषा विव्रतेन
इन्द्र देव ने अपने शरीर से द्युलोक, भूलोक और अन्तरिक्ष को पूर्ण किया। हे इन्द्र देव! समय-समय पर पाँच जातियों (देव, मनुष्य, पितर, असुर और राक्षस) और सात तत्त्वों (सात मरुद्गण, सात सूर्य किरण, सात लोक आदि) को अपने प्रदीप्त नानविध कार्यों के द्वारा धारण किया है। वह सब कार्य एक ही भाव से चलते हैं। इस सम्बन्ध में मेरे साथ तैंतीस देवता (आठ वसु, एकादश रुद्र, द्वादश आदित्य, प्रजापति, वषट्कार और विराट्) इन्द्र देव की सहायता करते है।[ऋग्वेद 10.55.3]
Indr Dev completed heaven, earth and the space with his body. Hey Indr Dev! Time to time, 5 castes-Varn, 7 basic components :- 7 Marud Gan, & rays, & abodes etc., supported by virtue of your differnt endeavours-efforts. They all move in unison. 33 demigods-deities (8 Vasu, 11 Rudr, 12 Adity, 2 Ashwani Kumars) in addition to Prajapati, Vashatkar and Virat) help-suppot Indr Dev. 
यदुष औच्छः प्रथमा विभानामजनयो येन पुष्टस्य पुष्टम्।
यत्ते जामित्वमवरं परस्या महन्महत्या असुरत्वमेकम्
हे देवी उषा! नक्षत्रादि आलोकाधारी पदार्थों में आपने सबसे पहले आलोक दिया। जो पुष्ट है, उसको आपने और भी पुष्ट किया। आप ऊपर रहती हैं; किन्तु निम्नस्थ मनुष्यों के साथ आपकी मित्रता है। यह आपका महत्व और एक ही प्रकृष्ट बलत्व है।[ऋग्वेद 10.55.4]
Hey Devi Usha! You produced more lustere as compared to constellations and other luminous objects. You nourished one who is already nourished. You remain on the top but you are friendly with the humans low over the ground. This is your majesty and strength.
विधुं दद्राणं समने बहूनां युवानं सन्तं पलितो जगार।
देवस्य पश्य काव्यं महित्वाद्या ममार सह्यः समान
जिस समय इन्द्र देव युवा रहते हैं, उस समय सब कार्य करते हैं; उन द्रावक के भय से युद्ध में कितने ही शत्रु भागते है; परन्तु अनेक कालों का वृद्ध काल उनका ग्रास कर लेता है। उनकी महत्वजनक क्षमता देखिए कि वे कल जीवित थे, आज मर गये।[ऋग्वेद 10.55.5]
In his youth Indr Dev used to perform all sorts of deeds and the enemy ran away due to his fear. Growing age-Kal has his impact over him as well. He was alive till yesterday but now he is dead.
Indr is the king of demigods and a unit of time, since he has a fixed life span.
शाक्मना शाको अरुणः सुपर्ण आ यो महः शूरः सनादनीळः।
यचिकेत सत्यमित्तन्न मोघं वसु स्पार्हमुत जेतोत दाता
एक सुन्दर पक्षी आ रहा है। उसका बल अद्भूत है, सर्वसमर्थ है। वह महान, विक्रान्त, प्रचीन और बिना घोंसले का है। वह जो करना चाहता है, वह अवश्य ही हो जाता है। वह अभिलषणीय सम्पत्ति को जीतता और उसे स्तोताओं को दे देता है।[ऋग्वेद 10.55.6]
A beautiful bird is arriving. His might-power is amazing & he is capable to doing every thing. Any thing he want to do is accomplished. He wins the desired wealth-property and grant it to the Stotas. 
ऐभिर्ददे वृष्ण्या पौंस्यानि येभिरौक्षत्रहत्याय वज्री।
ये कर्मणः क्रियमाणस्य मह्न ऋतेकर्ममुदजायन्त देवाः
वज्रधर इन्द्र देव ने मरुतों के साथ वर्षक बल को प्राप्त किया। मरुतों के साथ इन्द्र देव ने वर्षा की और वृत्रासुर का वध करके पृथ्वी को अभिषिक्त किया। हे महान् इन्द्र देव! जिस समय आप कार्य करते हैं, उस समय स्वयं मरुद्गण वृष्टि की उत्पत्ति के कार्य में लग जाते हैं।[ऋग्वेद 10.55.7]
Vajr wielding Indr Dev got strength-support from Marud Gan. He produced rains, killed Vratra Sur and crowned-anointed the earth. Hey great Indr Dev! When ever you are engased, Marud Gan, by themselves generate rains.
युजा कर्माणि जनयन्विश्वौजा अशस्तिहा विश्वमनास्तुराषाट्।
पीत्वी सोमस्य दिव आ वृधानः शूरो निर्युधाधमद्दस्यून्
मरुतों की सहायता से इन्द्र देव ये कर्म करते हैं। उनको तेज सर्वगन्ता है। वे राक्षसों को मारते हैं। उनका मन विश्वव्यापी है। वे क्षिप्र विजयी हैं। इन्द्र देव ने आकाश से आकर और सोमपान करके अपने शरीर को बढ़ाया और शस्त्रों से असुरों का वध किया।[ऋग्वेद 10.55.8]
Indr Dev perform such deeds with the help of Marud Gan. His majesty is spreaded all around. His innerself pervades the whole universe. He attains victory quickly. Indr Dev arrived from the sky-space and drunk Somras, extended his body size and killed demons with weapons.(10.11.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (56) :: ऋषि :- बृहदुक्थ, वामदेव, देवता :-विश्वेदेव; छन्द :- त्रिष्टुप्, जगती।
इदं त एकं पर ऊ त एकं तृतीयेन ज्योतिषा सं विशस्व।
संवेशने तन्व १ श्चारुरेधि प्रियो देवानां परमे जनित्रे
अपने मृत पुत्र वाजी से ऋषि कहते हैं :- आपका एक अंश यह अग्नि देव हैं। एक अंश यह वायु हैं। आपका तीसरा अंश ज्योतिर्मय आत्मा है। इन तीन अंशों के द्वारा तुम अग्नि, वायु और सूर्य में प्रवेश करें। अपने शरीर के प्रवेश के समय तुम कल्याणमूर्ति धारण करें और देवों में उन सर्वश्रेष्ठ और पितृ स्वरूप सूर्य के भुवन में प्रिय होओ।[ऋग्वेद 10.56.1]
Rishi told his dead son Vaji :- Agni Dev froms one of your segments. One segment is Vayu. Third segment is aurous soul. Enter the Sun with three segments. At the time enrering Sury Dev, who is excellent and fatherly, adopt beneficail form and become affectionate to Sury Dev in his abode as compared to the other deities-demigods.
तनूष्टे वाजिन्तन्वं १ नयन्ती वाममस्मभ्यं धातु शर्म तुभ्यम्।
ह्रुतो महो धरुणाय देवान्दिवीव ज्योतिः स्वमा मिमीयाः
हे वाजी! पृथ्वी आपके शरीर को ग्रहण करती है। वे हमारे लिए प्रीति जनक हो; आपका भी कल्याण करे तुम स्थानभ्रष्ट न होकर, ज्योति धारण करने के लिए देवों और आकाशस्य सूर्य के साथ अपनी आत्मा को मिला दो।[ऋग्वेद 10.56.2]
Hey Vaji! The earth acccepts your body. They should be affectionate to you and look to your welfare, to gain radiance assilimailate your soul in the demigods-deities and the Sun in the sky.
वाज्यसि वाजिनेना सुवेनीः सुवितः स्तोमं सुवितो दिवं गाः।
सुवितो धर्म प्रथमानु सत्या सुवितो देवान्त्सुवितोऽनु पत्म
हे पुत्र! तुम बल से बली और सुन्दर हो। जिस प्रकार तुमने उत्तम स्तोत्र किया, उसी प्रकार उत्तम स्वर्ग में जाओ। उत्तम धर्म का तुमने अनुष्ठान किया; इसलिए उत्तम फल पाओ। उत्तम देवता और उत्तम सूर्य के साथ मिलो।[ऋग्वेद 10.56.3]
Hey son! You are mighty and beautiful. The way you recited excellent Strotr, in the way you should go to excellent heavens. You followed excellent path and get excellent reward for it. Join excellent demigods-deities and excellent Sun.
महिम्न एषां पितरश्चनेशिरे देवा देवेष्वदधुरपि क्रतुम्।
समविव्यचुरुत यान्यत्विषुरैषां तनूषु नि विविशुः पुनः
हमारे पितरगण देवता के समान महिमा के अधिकारी हुए। उन्होंने देवत्व प्राप्त करके देवों के साथ क्रिया-कलाप किया। जो सब ज्योतिर्मय पदार्थ दीप्ति पाते हैं, वे उनके साथ मिल गये हैं, वे देवगणों के शरीर में पैठ गये हैं।[ऋग्वेद 10.56.4]
Our Pitr Gan-Manes became entitles to the glory like the demigods-deities. They attained Demi Godhood and performed like them. They mixed with the lustrous materials and assimilated with the body of demigods-deities.
सहोभिर्विश्वं परि चक्रमू रजः पूर्वा धामान्यमिता मिमानाः।
तनूषु विश्वा भुवना नि येमिरे प्रासारयन्त पुरुध प्रजा अनु
अपनी शक्ति से वे पितर समस्त ब्रह्माण्ड का भ्रमण कर चुके हैं। जिन सब प्राचीन भुवनों में कोई नहीं जाता, वे वहाँ गये। अपने शरीर से उन्होंने समस्त भुवनों को नाप लिया है। प्रजावृन्द के प्रति नाना प्रकार से अपना प्रभाव विस्तारित किया है।[ऋग्वेद 10.56.5]
The Manes have travelled the whole universe by virtue of their power. They reached those abodes where no one goes and covered-travelled through them. They extended their impact for the sake of the populace. 
द्विधा सूनवो S सुरं स्वर्विदमास्थापयन्त तृतीयेन कर्मणा।
स्वां प्रजां पितरः प्रित्र्यं सह आवरेष्वदधुस्तन्तुमाततम्
सूर्य के पुत्र रूप देवों ने तृतीय कार्य (पुत्रोत्पत्ति रूप) के द्वारा स्वर्गज्ञाता और सर्वज्ञ एवं बलवान् सूर्यदेव को दो प्रकार से स्थापित किया। मेरे पितरगणों ने सन्तानोत्पत्ति करके सन्तानों के शरीर में पैतृक बल स्थापित किया। वे अपना वंशानुगत चिरस्थायी संस्कार स्थापित कर गए हैं।[ऋग्वेद 10.56.6]
The demigods who are like the son of Sury Dev-who is aware of the heavens, established all knowing and mighty Sury Dev in two manners, as their third function i.e., production of son. My Pitr Gan produced progeny and granted them parental strength. They established their ancestral ever lasting characterises.
नावा न क्षोदः प्रदिशः पृथिव्याः स्वस्तिभिरति दुर्गाणि विश्वा।
स्वां प्रजां बृहदुक्थो महित्वावरेष्वदधादा परेषु
जिस प्रकार लोग नौका से जल को पार करते हैं, जिस प्रकार स्थल पर पृथ्वी की भिन्न दिशा का अतिक्रम करते हैं और जिस प्रकार कल्याण के द्वारा समस्त विपदाओं से उद्धार होता है, उसी प्रकार ही वृहदुक्थ ऋषि ने अपनी शक्ति से अपने मृत पुत्र को अग्निदेव आदि पार्थिव पदार्थों और सूर्य आदि दूरवर्ती पदार्थों में मिला दिया।[ऋग्वेद 10.56.7]
The way people cross the river in a boat, the way they follow different directions over the earth, the way they relieve all troubles with welfare-beneficial means, similarly Rishi Vrahdukth immersed his dead son and material perishable goods in Agni Dev and distant Sury Dev.(11.11.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (57) :: ऋषि :- बंधु, श्रुतबन्धु, विप्रबन्धर्गौपायना; देवता :- विश्वेदेव; छन्द :- गायत्री।
मा प्र गाम पथो वयं मा यज्ञादिन्द्र सोमिनः। मान्तः स्थुर्नो अरातयः
हे इन्द्र देव! हम सुपथ से कुपथ में न जावें। हम सोम वाले के गृह से दूर न जावें। हमारे बीच शत्रु न आने पावें।[ऋग्वेद 10.57.1]
Hey Indr Dev! We should not move from right to wrong path (virtues to wickedness). We should not move far away from a house having Som. The enemies should come in between us.
यो यज्ञस्य प्रसाधनस्तन्तुर्देवेष्वाततः। तमाहुतं नशीमहि
जिन अग्नि देव से यज्ञ की सिद्धि होती है और जो पुत्र स्वरूप होकर देवों के पास तक विस्तृत है, उन अग्नि देव का हवन किया जाय और हम उन्हें प्राप्त कर लें।[ऋग्वेद 10.57.2]
The Yagy accomplish due to Agni Dev, who pervades the demigods-deities like a son. We should perform Hawan for his sake and attain him. 
मनो न्वा हुवामहे नाराशंसेन सोमेन। पितृणाम् च मन्मभिः
हम श्रेष्ठ पितरों के द्वारा, प्रशंसित सोम के द्वारा और पितरों को तृप्त करने वाले स्तोत्रों से मन-देवता का आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 10.57.3]
We invoke the deity who controls the innerself with the excellent Pitr Gan, appreciated Som and the Strotr which satisfy-please the Manes.
आ त एतु मनः पुनः क्रत्वे दक्षाय जीवसे। ज्योक् च सूर्य दृशे
हे भ्राता सुबन्धु! आपका मन फिर आवे। कार्य करें, बल प्रकट करें। जीवित रहें और सूर्य देव का दर्शन करें।[ऋग्वेद 10.57.4]
Hey brother Subandhu! Let your innerself be inclined again, work, demonstrate strength-power, survive and see Sur Dev.
पुनर्नः पितरो मनो ददातु दैव्यो जनः। जीवं व्रातं सचेमहि
हमारे पूर्व पुरुष मन को फिरा दें और देवों को फिरा दें। हम प्राण और उसका सब कुछ आनुषङ्गिक प्राप्त करें।[ऋग्वेद 10.57.5]
आनुषंगिक :: सहायक, अनुषंगी, गौण, संपार्श्विक, अनुप्रासंगिक, परिणामी, अनुवर्ती, परिणाम स्वरूप होने वाला, सपिण्ड; incidental, ancillary, collateral, consequential.
Let our ancestors turn our innerself and the demigods-deities. Let us attain life and everything belonging to them.
वयं सोम व्रते तव मनस्तनूषु बिभ्रतः। प्रजावन्तः सचेमहि
हे सोम! हम शरीर में मन को धारण करते हैं। हम सन्तति युक्त होकर आपके कार्य में मिलें।[ऋग्वेद 10.57.6]
Hey Som! We hold the innerself in the body. We should have progeny and mix up with your work.(11.11.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (58) :: ऋषि :- बंधु, श्रुतबन्धु, विप्रबन्धर्गौपायना; देवता :- मन, आवर्तन; छन्द :- अनुष्टुप्। 
यत्ते यमं वैवस्वतं मनो जगाम दूरकम्। तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे॥
विवस्वान् के पुत्र यम के पास, दूर पर, आपका जो मन गया है, उसे हम लौटा लाते है। आप इस संसार में निवास के लिए जी रहे हैं।[ऋग्वेद 10.58.1]
We shall bring back your Man-innerself which has moved away to Yam, Son of Vivasvan. You are surviving in this world to live.
यत्ते दिवं यत्पृथिवीं मनो जगाम दूरकम्। तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे
आपका जो मन अत्यन्त दूर स्वर्ग अथवा पृथ्वी पर चला गया है, उसे हम लौटा लाते हैं। आप संसार में निवास के लिए जीते हैं।[ऋग्वेद 10.58.2]
We are brining back your Man-innerself which has shifted to heavens and earth. You are surviving in this world to live.
यत्ते भूमिं चतुर्भृष्टिं मनो जगाम दूरकम्। तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे
चारों ओर लुढ़क जाने वाला जो आपका मन अतीव दूरदर्शी देश में गया है, उसे हम लौटाते हैं। आप संसार में निवास के लिए जीते हैं।[ऋग्वेद 10.58.3]
We shall bring back your Man which rolls around and has gone to distant place. You are surviving in this world to live.
यत्ते चतस्त्रः प्रदिशो मनो जगाम दूरकम्। तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे
आपका मन जो चारों ओर अतीव दूरस्थ प्रदेश में चला गया है, उसको हम लौटाते हैं। आप संसार में निवास के लिए जीते हैं।[ऋग्वेद 10.58.4]
We shall bring back your Man which has gone to extremely distant place. You are surviving in this world to live.
यत्ते समुद्रमर्णवं मनो जगाम दूरकम्। तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे
आपका मन जो अतीव दूरवर्ती और जल से परिपूर्ण समुद्र में गया है, उसे हम लौटाते है। आप संसार में निवास के लिए जीवित हैं।[ऋग्वेद 10.58.5]
We shall bring back your Man which has gone to extremely distant ocean full of water. You are surviving in this world to live.
यत्ते मरीचीः प्रवतो मनो जगाम दूरकम्। तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे
आपका मन जो चारों ओर विकीर्ण किरण-मंडल में बैठा है, उसे हमें लौटाते हैं। संसार में आप निवास के लिए वर्तमान हैं।[ऋग्वेद 10.58.6]
We shall bring back your Man, which is sitting in the too narrows region of rays, spreaded all over. You are surviving in this world to live.
यत्ते अपो यदोषधीर्ममनो जगाम दूरकम्। तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे
आपका मन जो दूरस्थ जल के भीतर व वृक्षलतादि के मध्य में गया है, उसे हम लौटाते हैं। संसार में निवास के लिए आप विद्यमान हैं।[ऋग्वेद 10.58.7]
We shall return back your Man which is present in the distant water in between the trees and creepers etc. You are surviving in this world to live.
यत्ते सूर्य यदुषसं मनो जगाम दूरकम्। तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे
आपका मन जो दूरवर्ती सूर्य देव और देवी उषा के बीच गया है, उसे हम लौटाते हैं। संसार में निवास के लिए आप विद्यमान हैं।[ऋग्वेद 10.58.8]
We shall return back your Man which has gone to distant Sury Dev & Devi Usha. You are surviving in this world to live.
यत्ते पर्वतान्बृहतो मनो जगाम दूरकम्। तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे
आपका मन जो दूरस्थ पर्वतमालाओं के ऊपर चला गया है, उसे हम लौटाते हैं। संसार में निवास के लिए आप वर्तमान हैं।[ऋग्वेद 10.58.9]
Let us bring back your Man which has gone over the distant mountain range. You are surviving in this world to live.
यत्ते विश्वमिदं जगन्ममनो जगाम दूरकम्। तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय  जीवसे
आपका मन जो इस समस्त विश्व में अतीव दूर चल गया है, उसे हम लौटाते हैं। संसार में निवास के लिए आप हैं।[ऋग्वेद 10.58.10]
Let us bring back your Man which has gone away in this universe. You are surviving in this world to live.
यत्ते पराः परावतो मनो जगाम दूरकम्। तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे
आपका मन जो दूर से भी दूर, उससे दूर किसी स्थान पर चला गया है, उसे हम लौटाते हैं। संसार में निवास के लिए आप जीते हैं।[ऋग्वेद 10.58.11]
Let us bring back your Man which has gone away from the distant place. You are surviving in this world to live.
यत्ते भूतं च भव्यं च मनो जगाम दूरकम्। तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे
आपका मन जो भूत व भविष्यत् किसी दूर स्थान पर चला गया है, उसे हम लौटाते हैं। संसार में निवास के लिए आप जीते हैं।[ऋग्वेद 10.58.12]
Let us bring back your Man which has gone to past or future distant places. You are surviving in this world to live.(12.11.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (59) :: ऋषि :- बंधु, श्रुतबन्धु, विप्रबन्धर्गीपायना; देवता :- निर्ऋति, असुनीति, सोम, पृथ्वी-अंतरिक्ष, पूषा, पृथ्या, स्वस्ति, इन्द्र, द्यावा-पृथ्वी; छन्द :- त्रिष्टप, पंक्ति, पंत्क्त्युत्तरा।
प्र तार्यायुः प्रतरं नवीयः स्थातारेव क्रतुमता रथस्य।
अध च्यवान उत्तवीत्यर्थं परातरं सु निर्ऋतिर्जिहीताम्
जिस प्रकार कर्म कुशल सारथि के होने पर चढ़ा व्यक्ति सुख प्राप्त करता है, उसी प्रकार ही सुबन्धु की परमायु यौवन से युक्त होकर बढ़े। जिसकी आयु का ह्रास होता है, वह अपनी आयु की वृद्धि चाहता है। निर्ऋति (पाप देवता) दूर हों।[ऋग्वेद 10.59.1]
The way a person riding a charoite feel comfortable with the expert, skilled driver-charioteer, similarly the age of Subandhu should increasing with youth. One who's age is reduced, wish to extend his longevity. Let Nirrati-deity of sins keep off.
सामन्नु राये निधिमन्नवन्नं करामहे सु पुरुध श्रवांसि।
ता नो विश्वानि जरिता ममत्तु परातरं सु निर्ऋतिर्जिहीताम्
परमायुः स्वरूप सम्पत्ति पाने के लिए सामगान के साथ हम अन्न और भक्षणीय द्रव्य की राशि एकत्रित करते हैं। हमने निर्ऋति की स्तुति की है। वे समस्त अन्नों के भोजन में प्रीति प्राप्त करें और हमसे दूर चले जाएँ।[ऋग्वेद 10.59.2]
To attain wealth in the form of ultimate age-longevity, we collect food grains and eatable with Sam Gan. We have worshiped Nirrati. Let him have affection-love in all food grains and keep off from us.
अभी ष्व १ र्यः पौंस्यैर्भवेम द्यौर्न भूमिं गिरयो नाज्रान्।
ता नो विश्वानि जरिता चिकेत परातरं सु निर्ऋतिर्जिहीताम्
बल के द्वारा हम शत्रुओं को पराजित कर केंगे। जिस प्रकार पृथ्वी के ऊपर आकाश रहता है, उसी प्रकार ही शत्रुओं के ऊपर स्थान प्राप्त करें। जिस प्रकार मेघ की गति पर्वत के द्वारा रोकी जाती है, उसी प्रकार ही हम शत्रु की गति को रोकें। हमारे स्तोत्र को निर्ऋति श्रवण करें और दूर चलें जाएँ।[ऋग्वेद 10.59.3]
We will be able to defeat the enemy with might. The way the sky remains over the earth, we should have an upper hand over the enemy. The way the movement of clouds is checked by the mountains, we should be able to block the speed-movements of the enemy. Let Nirrati listen to our Strotr and move away from us.
मो षु णः सोम मृत्यवे परा दाः पश्येम नु सूर्यमुचरन्तम्।
द्युभिर्हितो जरिमा सू नो अस्तु परातरं सु निर्ऋतिर्जिहीताम्
हे सोम देव! हमें मृत्यु के हाथ में न देना। हम सूर्य देव का उदय देख सकें। हमारी वृद्धावस्था दिन-दिन सुख से बीते। निर्ऋति दूर हों।[ऋग्वेद 10.59.4]
Hey Som Dev! Do not hand over us to death. We should see the rising Sun. Let our old age become comfortable-full of pleasure. Let Nirrati keep off from us.
असुनीते मनो अस्मासु धारय जीवातवे सु प्र तिरा न आयुः।
रारन्धि नः सूर्यस्य संदृशि घृतेन त्वं तन्वं वर्धयस्व॥
हे असुनीति (प्राण नेत्री) देवी! हमारी ओर मन करें। हम जीवित रहें; इसलिए हमें उत्कृष्ट परमायु प्रदान करें। जहाँ तक सूर्य की दृष्टि है, वहाँ तक हमें रहने दें। हम आपको घृत देते है, उससे अपना शरीर पुष्ट करें।[ऋग्वेद 10.59.5]
Hey Asuniti Devi-deity of life force! Look at us-divert your attention to us. Grant us excellent longevity so that we are able to survive. Allow us to live till that limit up to which the rays of Sun reach. We offer you Ghee, make your body strong-stout. 
असुनीते पुनरस्मासु चक्षुः पुनः प्राणमिह नो धेहि भोगम्।
ज्योक् पश्येम सूर्यमुचरन्तमनुमते मृळया नः स्वस्ति
हे असुनीति! हमें पुनः नेत्र प्रदान करें। फिर हमारे प्राण को हमारे पास उपस्थित करें। हमें भोग करने दें। हम चिरकाल तक सूर्योदय देख सकें। हे अनुमति! जिससे हमारा विनाश न हो, इस प्रकार हमें सुखी करें।[ऋग्वेद 10.59.6]
प्राण :: जीवन, जीवनकाल, जन्म, जीव, जीवनी, आत्मा, जी, मार्मिकता, बड़ा जीवर्नबल, बड़ी जीवन-शक्ति, जीव, व्यक्ति, रूह; life, soul, vitality, life sustaining force.
Hey Asuniti! Grant us eyes again! Thereafter let our life sustaining force remain with us. Allow us to enjoy pleasure. We should be able to see the Sun for  a long time-forever. Hey Anumati! Make us comfortable so that we are not destroyed.
पुनर्नो असुं पृथिवी ददातु पुनर्यौर्देवी पुनरन्तरिक्षम्।
पुनर्नः सोमस्तन्वं ददातु पुनः पूषा पथ्यां ३ या स्वस्तिः
पुनः पृथ्वी हमको प्राण-दान करें। फिर द्युलोक और अन्तरिक्ष हमें प्राण दें। सोम हमें फिर शरीर दें। पूषा हमें ऐसा हितकर वाक्य प्रदान करें जिससे हमारा कल्याण हो।[ऋग्वेद 10.59.7]
Hey earth grant us life again. Thereafter, space-sky and heaven should grant us life. The Som should grant us life. Pusha should spell such words which may lead to our welfare.
शं रोदसी सुबन्धवे यह्वा ऋतस्य मातरा।
भरतामप यद्रपो द्यौः पृथिवि क्षमा रपो मो षु ते किं चनाममत्
महती और मातृ स्वरूपा द्यावा-पृथ्वी सुबन्धु का कल्याण करें। द्युलोक और विस्तृत पृथ्वी समस्त अमङ्गलों को दूर करें। हे सुबन्धु! वे किसी भी प्रकार आपका अनिष्ट न कर सकें।[ऋग्वेद 10.59.8] 
Heavy and motherly heavens-earth should look to the welfare of Subandhu. Vast heavens & earth should remove all obstacles-bad omens. Hey Subandhu! They should not be able create thing undesirable-unlucky.
अव द्वके अव त्रिका दिवश्चरन्ति भेषजा। क्षमा चरिष्ण्वेककं भरतामप यद्रपो। 
द्यौः पृथिवि क्षमा रपो मो षु ते किं चनाममत्
स्वर्ग में जो दो या तीन औषध है, (उनमें दो को अश्विनी कुमार और तीन को सरस्वती व्यवहार में लाती है), उनमें एक पृथ्वी पर विचरण करती है। (फलतः एक ही औषध है)। सो सब सुबन्धु की प्राणरक्षा करें। द्युलोक और विस्तृत पृथ्वी समस्त अमंगलों को दूर करें। हे सुबन्धु! किसी भी प्रकार से आपका अनिष्ट न कर सकें।[ऋग्वेद 10.59.9]
Out of two or three medicines in the heavens two are used by Ashwani Kumars and three are used by Saraswati. Just one remain over the earth. Heaven & earth should keep off all undesirable-bad omens. Hence Subandhu should protect our life. Hey Subandhu! Any thing undesirable should not harm you.
समिन्द्ररेय गामनडाहं य आवहदुशीनराण्या अनः।
भरतामप यद्रपो द्यौः पृथिवि क्षमा रपो मो षु ते किं चनाममत्
हे इन्द्र देव! जो बैल उशीनगर की पत्नी का शकट ले गया था, उसे प्रेरित करें। द्युलोक और विस्तृत पृथ्वी समस्त अमंगलों को दूर करें। हे सुबन्धु! किसी भी प्रकार से आपका अनिष्ट न कर सकें।[ऋग्वेद 10.59.10]
Hey Indr Dev! Inspire the bull who took the wife of Ushi Nagar. Let the heavens & earth remove all obstacles-bad omens. Hey Subandhu! Any thing undesirable should not harm you.(12.11.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (60) :: ऋषि :- बंधु आदि गौपायना, अगस्त्य, यम, सैषा याता, ऋषिका; देवता :- असमाति, इन्द्र, जीव, हस्त;  छन्द :- गायत्री, अनुष्टुप् पंक्ति।
आ जनं त्वेसंदृशं माहीनानामुपस्तुतम्। अगन्म बिभ्रतो नमः॥
असमाति राजा का प्रदेश अतीव उज्ज्वल है। महान् लोग इस देश की प्रशंसा करते हैं। नम्र होकर हम उस देश में प्रविष्ट हुए।[ऋग्वेद 10.60.1]
Land of king Asmati is lustrous. Great people appreciate this country. We entered that country politely.
असमातिं नितोशनं त्वेषं निययिनं रथम्। भजेरथस्य सत्पतिम्॥
शत्रु संहार करने वाले असमाति राजा की मूर्ति अत्यन्त प्रदीप्त है। रथ पर चढ़ने पर जिस प्रकार अनेक अभिप्राय सिद्ध होते हैं, उसी प्रकार ही असमाति राजा के पास जाने से अनेक अभिलाषाएँ पूर्ण होती हैं। उन्होंने भजेरथ राजा के वंश में जन्म लिया है। वे शिष्ट पालक हैं।[ऋग्वेद 10.60.2]
Body of king Asmati is highly lustrous. The way many endeavours are accomplished by riding the charoite, similarly many desires-wishes are fulfilled by approaching king Asmati. He took birth in the family of king Bhajerath. He is the nurturer of gentle, polite-glorious people.
यो जनान् महिषाँ इवातितस्थौ पवीरवान्। उतापवीरवान् युधा॥
वे हाथ में तलवार धारण करें या न करें। उनका ऐसा बल वीर्य है कि जिस प्रकार सिंह जैसों को मार गिराता है, उसी प्रकार ही वे मनुष्यों को मार गिराते हैं।[ऋग्वेद 10.60.3]
Whether he hold sword in the hand or not he kills the humans, his strength is just like the lion who king buffalos.
यस्येक्ष्वाकुरुप व्रते रेवान्मराय्येधते दिवीव पञ्च कृष्टयः॥
धनी और शत्रु संहारक इक्ष्वाकु राजा रक्षाकार्य में नियुक्त हैं। पञ्च (चार वर्ण और निषाद) मनुष्य स्वर्गसुख का भोग करे।[ऋग्वेद 10.60.4]
Wealthy and slayer of the enemy king Ikshvaku was appointed for protection so that Panch Varn-people of 5 castes should enjoy the pleasure-comforts of heavens.
इन्द्र क्षत्रासमातिषु रथप्रोष्ठेषु धारय। दिवीव सूर्य दृशे॥
हे इन्द्र देव! जिस प्रकार सबके दर्शन के लिए आपने आकाश में सूर्य को स्थापित किया, उसी प्रकार ही रथारुढ़ असामित राजा का अनुगामी होने के लिए वीरों को नियुक्त करें।[ऋग्वेद 10.60.5]
Hey Indr Dev! The way Sury Dev is established in the sky to be seen by every one, similarly appoint the warriors to follow king Asmati in his charoite.
अगस्त्यस्य नद्भयः सप्ती युनक्षि रोहिता। पणीन्यकमीरभि विश्वान्राजन्नराधसः॥
हे राजन्! अगस्तय के दौहित्रों या आनन्दी बन्धु आदि के लिए दो लोहित अश्वों को रथ में नियोजित करें। जो सब व्यवसायी नितान्त कृपण हैं, कभी दान नही करते, उन सबको पराजित करें।[ऋग्वेद 10.60.6]
Hey king! Deploy two red coloured-skinned horses in the charoite. These businessmen are very cunning and never resort to donations, defeat them all.
अयं माताय पिताय जीवातुरागमत्। इदं तव प्रसर्पणं सुबन्धवेहि निरिहि॥
जो अग्नि देव आए हैं, वे माता-पिता और प्राण दाता औषध हैं। हे सुबन्धु! आपका यह शरीर है। इसमें आकर स्थापित हों।[ऋग्वेद 10.60.7]
Agni Dev has arrived. He grants life to the parents as a medicine. Hey Subandhu! This body belongs to you. Come and establish yourself in it.
यथा युगं वरत्रया नह्यन्ति धरुणाय कम्।
एवा दाधार ते मनो जीवातवे न मृत्यवे ऽथो अरिष्टतातये॥
जिस प्रकार रथ धारण करने के लिए रज्जु (पाश) से दोनों काष्ठों को बाँधते है, उसी प्रकार ही (अग्नि देव) आपके मन को जीवन शक्ति और आरोग्यता के लिए धारित करते हैं, मृत्यु के लिए नहीं।[ऋग्वेद 10.60.8]
The way the wooden segment of the charoite is tied with cord, similarly Agni Dev ties the innerself with life sustaining force and immunity, not for death.
यथेयं पृथिवी मही दाधारेमान्वनस्पतीन्।
एवा दाधार ते मनो जीवातवे न मृत्यवे ऽथो अरिष्टतातये॥
जिस प्रकार यह विस्तीर्ण पृथ्वी विशाल-विशाल वृक्षों को धारण किये हुए है, उसी प्रकार ही अग्नि देव ने आपके मन को धारण कर रखा है, ताकि आप जीवित और कल्याण स्वरूप रहें और आपकी मृत्यु दूर हो।[ऋग्वेद 10.60.9]
The way this vast earth is holding large trees, similarly Agni Dev is  holding the Man-innerself, so that you survive, remain benefited and keep off death.
यमादहं वैवस्वतात्सुबन्धोर्मन आभरम्। जीवातवे न मृत्यवेऽथो अरिष्टतातये॥
विवस्वान् के पुत्र यमराज से मैंने सुबन्धु का मन अपहृत किया, इससे वे जीवित और कल्याणस्वरूप होंगे और उनकी मृत्यु दूर होगी।[ऋग्वेद 10.60.10]
I abducted the Man-innerself of Subandhu from Yam Raj-the son of Vivasvan, that will keep him alive, benefited and keep off death.
न्य१ग्वातोऽव वाति न्यक्तपति सूर्यः। नीचीनमध्या दुहे न्यग्भवतु ते रपः॥
वायु देव स्वर्ग से नीचे के लोक में बहते हैं, सूर्य देव ऊपर से नीचे तपते हैं। गाय का दूध नीचे दूहा जाता है। उसी प्रकार ही हे सुबन्धु! आपके अमंगल भी नीचे गमन करे।[ऋग्वेद 10.60.11]
अमंगल :: अशुभ, भाग्यहीन, अकल्याण, दुर्भाग्य; portentous, ominous.
Vayu Dev blow from the heaven to the abodes in the lower segment, Sury Dev shine from top to bottom. Cow is milked from the lower side. Similarly, hey Subandhu! Your portentous-ominous will move in lower side.
अयं मे हस्तो भगवानयं मे भगवत्तरः। अयं मे विश्वभेषजोऽयं शिवाभिमर्शनः
मेरा हाथ क्या ही सौभाग्यशाली है! यह अत्यन्त सौभाग्यशाली है। यह हाथ सबके लिए सभी रोगों का निवारणकर्ता है। यह हाथ शुभ और कल्याणकारी है।[ऋग्वेद 10.60.12]
Is my hand auspicious? Its too lucky. This hand eliminate all ailments. This hand is auspicious and beneficial.(13.11.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (61) :: ऋषि :- नाभोनेदिष्ठ मानव; देवता :- विश्वेदेव; छन्द :- त्रिष्टुप्।
इदमित्था रौद्रं गूर्तवचा ब्रह्म ऋत्वा शच्यामन्तराजौ।
क्राणा यदस्य पितरा मंहनेष्ठाः पर्षत्पक्थे अहन्ना सप्त होतृन्
नाभानेदिष्ठ के माता-पिता, भ्राता आदि, विषय-विभाग करते समय नाभानेदिष्ठ को भाग न देकर रुद्र की स्तुति करने लगे, इससे नाभानेदिष्ठ रुद्रस्तवन् करने को उद्यत होकर अङ्गिरा लोगों के यज्ञ में उपस्थित हुए और यज्ञ के छठे दिन में वे लोग जो भूल गये थे, वह सब सात होताओं से कहकर यज्ञ को समाप्त किया।[ऋग्वेद 10.61.1]
Parents of Nabhanedisht, brother etc. did not give his share while distributing the offerings-alms. Nabhanedisht was provoked to begin the worship-prayers of Rudr and presented himself in the Yagy of Angiras. He narrated what they was forgotten on the sixth day to the seven Hotas and accomplished the Yagy.
स इद्दानाय दभ्याय वन्वञ्च्यवनः सूदैरमिमीत वेदिम्।
तूर्वयाणो गूर्तवचस्तमः क्षोदो न रेत इतऊति सिञ्चत्
रुद्र देव स्तोताओं को धन देने के लिए और शत्रुओं को नष्ट करने के लिए उन्हें अस्त्रादि देते हुए वेदी पर जाकर बैठ गये। जिस प्रकार बादल जल बरसाता है, उसी प्रकार ही रुद्र देव उपस्थित होकर वक्तृता देते हुए चारों ओर अपनी क्षमता का प्रदर्शन करने लगे।[ऋग्वेद 10.61.2]
Rudr Dev occupied the Vedi granting wealth-money to the Stotas and weapons to eliminate the enemy. The way clouds shower rains, similarly Rudr Dev lectured and demonstrated his capabilities moving all around in the four directions.
मनो न येषु हवनेषु तिग्मं विपः शच्या वनुथो द्रवन्ता।
आ यः शर्याभिस्तुविनृम्णो अस्याश्रीणीतादिशं गभस्तौ
हे अश्विनी कुमारों! मैं यज्ञ में प्रवृत्त हुआ हूँ। जो अध्वर्यु मेरे हाथ की अँगुलियाँ पकड़कर और विस्तृत हवि का संग्रह करके आपका नाम लेते हुए चरु पाक करता है, उसी स्तोता अध्वगुं का यज्ञीय उद्योग देखकर मन के समान द्रुत वेग से आप लोग यज्ञ में गमन करते हैं।[ऋग्वेद 10.61.3]
Hey Ashwani Kumars! I am intended-inclined to perform Yagy. Those priests who hold my fingers, collect lots of offerings & bake Charu. You should quickly move to the Yagy noticing the endeavours pertaining to Yagy of Stota Adhvangu.
कृष्णा यद्गोष्वरुणीषु सीदद्दिवो नपाताश्विना हुवे वाम्।
वीतं मे यज्ञमा गतं मे अन्नं ववन्वांसा नेषमस्मृतध्रू
जिस समय रात्रि का अन्धकार नष्ट होता है और प्रातःकाल की लाल आभा दिखाई देने लगती है, उस समय, हे द्युलोक पुत्र अश्विनी कुमारों! आपको में बुलाता हूँ। आप हमारे यज्ञ में पधारे। मेरा अन्न ग्रहण करें। दो अश्वों के सदृश निरन्तर हवि का भक्षण करते हुए हमारा अनिष्ठ न करें।[ऋग्वेद 10.61.4]
Hey Ashwani Kumars son of the heavens! When the darkness of night start receding and reddish glow of the morning is appears, I invoke-call you. Join our Yagy. Accept my food grains. Do not harm us eating the offerings-oblations like the two horses.
प्रथिष्ट यस्य वीरकर्ममिष्णदनुष्ठितं नर्यो अपौहत्।
पुनस्तदा वृहति यत्कनाया दुहितुरा अनुभृतमनर्वा
जो प्रजापति का वीर्य पुत्रोत्पादन करने में समर्थ है, वह बढ़कर निकला। प्रजापति ने मनुष्यों के हित के लिए रेत का त्याग किया। अपनी सुन्दर कन्या (उषा) के शरीर में ब्रह्मा या प्रजापति ने उस शुक्र (वीर्य या रेत) को स्थापित किया।[ऋग्वेद 10.61.5]
The sperms of Prajapati capable of producing son were ejected. He ejected the sperms for the benefit of humans. Brahma Ji-Prajapati established the sperms in her beautiful daughter Usha.
मध्या यत्कत्र्वमभवदभीके कामं कृण्वाने पितरि युवत्याम्।
मनानग्रेतो जहतुर्वियन्ता सानौ निषिक्तं सुकृतस्य योनौ
जिस समय पिता युवती कन्या (उषा) के ऊपर पूर्वोक्तरूप से रतिकामी हुए और दोनों का संगम हुआ, उस समय दोनों के परस्पर संगम से अल्प शुक्र का सेक हुआ। सुकर्म के आधार स्वरूप एक उन्नत स्थान में उस शुक्र का सेक हुआ।[ऋग्वेद 10.61.6]
When the father involved in sex with his daughter, they mated. It led to fertilisation. It happened at an elevated place on the basis of virtuous deeds.
पिता यस्त्वां दुहितरमधिष्कन् क्ष्मया रेतः संजग्मानो नि षिञ्चत्।
स्वाध्योऽजनयन् ब्रह्म देवा वास्तोष्पतिं व्रतपां निरतक्षन्
जिस समय पिता ने अपनी कन्या (उषा) के साथ संभोग किया, उस समय पृथ्वी के साथ मिलकर शुक्र का सेक किया। सुकृती देवों ने इससे व्रत रक्षक ब्रह्म (वास्तोष्पति या रुद्र) का निमार्ण किया।[ऋग्वेद 10.61.7]
When the father mated with his daughter, he nurtured the sperms with the help of earth. Demigods-called Sukrati created the protector of Vrat-fasting Brahm (Vastoshpati or Rudr).
स ईं वृषा न फेनमस्यदाजौ स्मदा परैदप दभ्रचेताः।
सरत्पदा न दक्षिणा परावृङ् न ता नु मे पृशन्यो जगृभ्रे
जिस प्रकार इन्द्र देव नमुचि के वधकाल में युद्ध में फेन फेकते हुए आये थे, उसी प्रकार ही मेरे पास से वास्तोष्पति ने प्रतिगमन किया। वे जिस पैर से आये थे, उसी से लौट गये। अङ्गिरा लोगों ने मुझे दक्षिणा स्वरूप जो गौवें दी थी, उन्हें उन्होंने दूर किया। अनायास ग्रहण समर्थ होने पर भी उन्होंने गौवों को नहीं लिया।[ऋग्वेद 10.61.8]
The way Indr Dev arrived spilling oceans foam, similarly Vastoshpati came to me. He returned immediately. They separated the cows given to me by Angiras as Dakshina. In spite of being capable instantaneously, they did not take the cows. 
मक्षू न वह्निः प्रजाया उपब्दिरग्निं न नग्न उप सीददूधः।
सनितेध्मं सनितोत वाजं स धर्ता जज्ञे सहसा यवीयुत्
प्रजा के उत्पीड़क और समान अग्नि देव के दाहक राक्षस आदि सहसा इस यज्ञ में नहीं आ सकते; क्योंकि इस यज्ञ की रक्षा रुद्र देव कर रहे हैं। रात को भी नग्न राक्षस यज्ञीय अग्नि देव के पास नहीं आ सकते। यज्ञ के रक्षक अग्नि देव काठों को लेते हुए और अन्न का वितरण करते हुए आविर्भूत हुए और राक्षसों के साथ युद्ध में प्रवृत्त हुए।[ऋग्वेद 10.61.9]
The demons who torture the populace can not come to the Yagy and close to Agni Dev at once, since Rudr Dev protect the Yagy. Even at night naked demons can not come near Agni Dev monitoring the Yagy. Agni Dev get entangled-involved in the war with demons accepting wood and distributing food grains.(14.11.2024)
मक्षू कनायाः सख्यं नवग्वा ऋतं वदन्त ऋतयुक्तिमग्मन्।
द्विबर्हसो य उप गोपमागुरदक्षिणासो अच्युता दुदुक्षन्
नौ मास तक यज्ञानुष्ठान करते-करते अङ्गिरा लोग गौवें पाया करते हैं। उन्होंने कमनीय स्तुति की सहायता से यज्ञ वचनों का कहते-कहते यज्ञ की समाप्ति की। इहलोक और परलोक, दोनों स्थानों में वृद्धि प्राप्त की और इन्द्र के पास गये। उन्होंने दक्षिणाविहीन यज्ञ (सत्रनामक यज्ञ) करके अविनाशी फल प्राप्त किया।[ऋग्वेद 10.61.10]
Angiras get cows after preparing for Yagy for 9 months. They recited beautiful Stuti-prayers and accomplished the Yagy reciting hymns-Mantrs. They attained growth in the present world (earth) and other world (heavens) with Indr Dev. They performed the Yagy free from Dakshina and attained imperishable rewards-out come.
मधु कनायाः सख्यं नवीयो राधो न रेत ऋतमित्तुरण्यन्।
शुचि यत्ते रेक्ण आयजन्त सबर्दुधाया पय उस्त्रियायाः
अङ्गिरा लोगों ने जिस समय अमृत के समान दूध देने वाली गौवों के उज्ज्वल और पवित्र दूध को यज्ञ में दिया, उस समय सुन्दर स्तोत्रों के द्वारा नई सम्पदा के समान अभिषिक्त वर्षा का जल प्राप्त किया।[ऋग्वेद 10.61.11]
Angiras performed the Yagy with white lustrous milk of the cows which was equivalent to elixir-nectar. It led to evolution of new wealth by the beautiful Strotrs like anointed rains.
पश्वा यत्पश्चा वियुता बुधन्तेति ब्रवीति वक्तरी रराणः।
वसोर्वसुत्वा कारवो ऽ नेहा विश्वं विवेष्टि द्रविणमुप क्षु
ऐसा कहा गया है कि इन्द्र देव यज्ञकर्ता से इतना स्नेह करते हैं कि जिसका पशु खो गया है, उसके जानते या न जानते हुए ही, अतीव धनी, कुशल और निष्पाप पशु को खोज़ लेते हैं।[ऋग्वेद 10.61.12]
Indr Dev is so much affectionate with the Yagy performers that he traces their rich, skilled, sinless animals lost without their knowledge.
तदिन्नवस्य परिषद्वानो अग्मन् पुरू सदन्तो नार्षदं बिभित्सन्।
वि शुष्णस्य संग्रथितमनर्वा विदत्पुरुप्रजातस्य गुहा यत्
सुस्थिर इन्द्र देव जिस समय बहुविस्तारक शुष्ण के निगूढ़ मर्म को खोजकर उसे मारते है अथवा नृषद के पुत्र को विदीर्ण करते हैं, उस समय उनके अनुचर नाना प्रकार से उन्हें घेरकर उनके साथ जाते हैं।[ऋग्वेद 10.61.13]
Warriors of Indr Dev accompany him in various formations, when he spot the weak points in the body of Shushn who extends himself and kill him or destroy the son of Nrashad.
भर्गो ह नामोत यस्य देवाः स्व १ र्ण ये त्रिषधस्थे निषेदुः।
अग्निर्ह नामोत जातवेदाः श्रुधी नो होतऋतस्य होताध्रुक्
जो देवता स्वर्ग के समान यज्ञ-स्थान (कुश) में बैठते हैं, वे अग्नि देव के तेज का नाम 'भर्ग' रखते हैं। अग्नि देव के एक तेज का नाम 'जातवेदा' है। हे होमनिष्पादक अग्नि देव! आपही यज्ञ के होता है। आपही अनुकूल होकर हमारे आह्वान को श्रवण करते हैं।[ऋग्वेद 10.61.14]
अनुकूल :: योग्य, उचित, मुनासिब, शुभ, उपकारक, भाग्यशील, संगत, मुताबिक़, अविस्र्द्ध;
friendly, suited, favourable, compatible.
Those demigods-deities sit over Kush in the Yagy and they name Agni Dev as Bharg. The majesty of Agni Dev has one more name Jatveda. Hey Hawan accomplisher Agni Dev! You are the Hota of the Yagy. You become compatible to us and listen-respond to our invocation.
उत त्या मे रौद्रावर्चिमन्ता नासत्याविन्द्र गूर्तये यजध्यै।
मनुष्वक्तबर्हिषे रराणा मन्दू हितप्रयासा विक्षु यज्यू
हे इन्द्र देव! वे दो दीप्त मूर्ति और रुद्र पुत्र अश्वि द्वय मेरे स्तोत्र और यज्ञ को ग्रहण करें। जिस प्रकार वे मनु के यज्ञ में प्रसन्न होतें हैं, उसी प्रकार ही मेरे यज्ञ में भी प्रसन्न हों। मैंने कुश बिछाया है। प्रजा को धन प्रदान करें और यज्ञ को ग्रहण करें।[ऋग्वेद 10.61.15]
Hey Indr Dev! The radiant sons of Rudr, Ashwani Kumars should accept my Strotr and the Yagy. The way they become happy in the Yagy of Manu, similarly they should be happy with me as well. I have spread Kush Mats. Grant wealth-money to the populace and accept the Yagy.
अयं स्तुतो राजा वन्दि वेधा अपश्च विप्रस्तरति स्वसेतुः।
स कक्षीवन्तं रेजयत्सो अग्निं नेमिं न चक्रमर्वतो रघुद्द्रु
सर्वश्रेष्ठ सोम की स्तुति सब करते हैं, हम भी करते हैं। क्रिया कुशल सोम स्वयं ही सेतु हैं। वे जल को पार करते हैं। जिस प्रकार शीघ्रगामी अश्व चक्कों की परिधि को कँपाते हैं, उसी प्रकार ही कक्षीवान् और अग्नि देव को भी कँपाते हैं।[ऋग्वेद 10.61.16]
Every one including us worship-pray to excellent-best Som. Active Som himself is a bridge and cross the water. The way fast moving-accelerated horses vibrate the axels-wheel rings, similarly they tremble Kakshiwan and Agni Dev.
स द्विबन्धुर्वैतरणो यष्टा सबर्धं धेनुमस्वं दुहध्यै।
सं यन्मित्रावरुणा वृञ्ज उक्थैर्येष्ठेभिरर्यमणं वरूथैः
अग्नि देव लोक, परलोक-दोनों स्थानों के हितैषी हैं। वे तारक और यज्ञकर्ता हैं। जब अमृत के समान दूध देने वाली गाय दूध नही देती, तब उसे प्रसव वती करके वे दुग्धदायिनी बनाते हैं। मित्र, वरुणदेव, अर्यमा को उत्तमोत्तम स्तोत्रों के द्वारा सन्तुष्ट किया जाता है।[ऋग्वेद 10.61.17]
उत्तमोत्तम :: अच्छे से अच्छा, सर्वश्रेष्ठ; transcendental.
Agni Dev is  a well-wisher in the present & next world as well. He is performer of Yagy and lead to release from the world-reincarnations. When the cow yielding milk like the elixir, stop giving milk, he make her pregnant and let her yield milk again. Mitr, Varun Dev, Aryma are satisfied with the best-transcendental Strotrs.
तद्वन्धुः सूरिर्दिवि ते धियंधा नाभानेदिष्ठो रपति प्र वेनन्।
सा नो नाभिः परमास्य वा घाहं तत्पश्चा कतिथश्चिदास
हे स्वर्गस्थ सूर्य देव! मैं आपका मित्र नाभानेदिष्ठ हूँ। आपकी स्तुति करता हूँ। मेरी इच्छा कि मैं गौ प्राप्त करूँ। द्युलोक (स्वर्ग) हमारा और सूर्य देव का उत्तम उत्पत्ति स्थान है। सूर्य देव से मेरा कितने पुरुष का अन्तर ही है?[ऋग्वेद 10.61.18]
Hey Sury Dev present in the heavens! I am your friend Nabhanedisht. I worship you. I wish to have cow. Heaven is the place of my & Sury Dev's evolution. What is the difference between me and Sury Dev in terms of humas.(15.11.2024)
इयं मे नाभिरिह मे सधस्थमिमे मे देवा अयमस्मि सर्वः।
द्विजा अह प्रथमजा ऋतस्येदं धेनुरदुहञ्जायमाना
द्युलोक ही मेरा उत्पत्ति स्थान है; मैं यहीं रहता हूँ। समस्त देवगण या किरणें मेरे अपने है। मैं सबका हूँ। द्विज लोग सत्य रूप ब्रह्मा से प्रथम उत्पन्न हुए हैं। यज्ञ स्वरूपा गौ या माध्यमिकी वाक्  ने उत्पन्न होकर यह सब उत्पन्न किया।[ऋग्वेद 10.61.19]
Heaven is my place of birth-evolution, I live here. All demigods-deities and rays are mine. I belong to all. The Dwij (Brahman, Kshatriy & Vaeshy) evolved out of truthful Brahma Ji first. Cow a form of Yagy or secondary speech evolved all this.
अधासु मन्द्रो अरतिर्विभावाव स्यति द्विवर्तनिर्वनेषाट्।
ऊर्ध्वा यच्चेणिर्न शिशुर्दन्मभू स्थिरं शेवृधं सूत माता
आनन्द के साथ जाकर अग्नि देव चारों ओर अपना स्थान ग्रहण करते हैं। यह उज्ज्वल, इस लोक और परलोक में सहायता और काष्ठों को हराने वाले हैं। उनकी ज्वाला ऊपर उठती। अग्नि देव स्तुत्य है। अग्नि देव की माता अरणि इन सुस्थिर और सुखावह अग्नि देव को शीघ्र उत्पन्न करती है।[ऋग्वेद 10.61.20]
Agni Dev occupy his place with pleasure all around, in four directions. He defeats the woods and help in this world and the next world (birth-rebirth). His flames rise up. Agni Dev is worshipable. Agni Dev's mother wood, evolve comforting and stable Agni Dev.
अधा गाव उपमातिं कनाया अनु श्वान्तस्य कस्य चित्परेयुः।
श्रुधि त्वं सुदविणो नस्त्वं  याळाश्वघ्नस्य वावृधे सूनृताभिः 
उत्तमोत्तम स्तोत्र कहते-कहते मुझ नाभानेदिष्ठ को शान्ति हो गई है। मेरी स्तुतियाँ इन्द्र देव के पास गई हैं। हे धनी अग्नि देव! श्रवण करें। हमारे इन इन्द्र देव का यज्ञ करें। मैं अश्वमेध यज्ञ करने वाले (मनु) का पुत्र हूँ। मेरी स्तुति से आप बढ़ते हैं।[ऋग्वेद 10.61.21]
I Nabhanedisht reciting ultimate Strotr has attained peace (solace, tranquillity). My Stuties approached Indr Dev. Hey wealthy Agni Dev! Listen to me. Let Indr Dev conduct our Yagy. I am the son of Manu who perform Ashwmedh Yagy. My prayers make you progress.
अध त्वमिन्द्र विद्ध्य १ स्मान्महो राये नृपते वज्रबाहुः।
रक्षा च नो मघोनः पाहि सूरीननेहसस्ते हरिवो अभिष्टौ
हे वज्रधर और नरेन्द इन्द्र देव! आप जानें कि हमने प्रचुर धन की कामना की है। हम आपकी स्तुति करते और आपको हवि देते हैं। हमारी रक्षा करें। हे हरि नाम के दो अश्वों वाले इन्द्र देव! आपके पास जाकर हम अपराधी न होवें।[ऋग्वेद 10.61.22]
Vajr holder and king of humans, hey Indr Dev! You should be aware that we wished-desired to have sufficient-ample wealth. We worship you and make offerings. Protect us. Possessor of two horse named Hari, hey Indr Dev! We should not turn into culprits-criminals after coming to you.
अध यद्राजाना गविष्टौ सरत्सरण्युः कारवे जरण्युः।
विप्रः प्रेष्ठः स ह्येषां बभूव परा च वक्षदुत पर्षदेनान्
दीप्त मूर्तिवाले मित्र और वरुण देव, गौ पाने की इच्छा से अङ्गिरा लोग यज्ञ करते थे। सर्वज्ञ नाभानेदिष्ठ स्तोत्राभिलाषी होकर उनके निकट गए। मैंने स्तोत्र किया और यज्ञ को सम्पूर्ण किया। इसीलिए मैं उनका अत्यन्त प्रिय विप्र हुआ हूँ।[ऋग्वेद 10.61.23]
Hey aurous-radiant Mitr & Varun Dev! The Angiras held Yagy with the desire of having cows. All knowing Nabhanedisht approached him with the desire of Strotrs. I recited-composed Strotr and accomplished Yagy. Hence, I am a Brahman dear to him. 
अधा न्वस्य जेन्यस्य पुष्टौ वृथा रेभन्त ईमहे तदू नु।
सरेण्युरस्य सूनुरश्वो विप्रश्चासि श्रवसश्च सातौ
इस समय हम गोधन पाने की इच्छा से अनायास ही स्तुति करते हुए जयशील वरुण देव के पास जाते हैं। शीघ्रगामी अश्व उन वरुण देव के पुत्र है। हे वरुण देव! आप मेधावी और अन्न देने वाले हैं।[ऋग्वेद 10.61.24]
We approach Varun Dev with the desire of cows, reciting prayers, at random. Fast moving horses are the progeny of Varun Dev. Hey Varun Dev! You are intelligent and grant food grains.
युवोर्यदि सख्यायास्मे शर्धाय स्तोमं जुजुषे नमस्वान्।
विश्वत्र यस्मिन्ना गिरः समीचीः पूर्वीव गातुर्दाशत्सूनृतायै॥
हे मित्र और वरुण देव! अन्नवान् पुरोहित स्तुति करते हैं। इसलिए कि आप हमारे प्रति अनुकूल होगे। आपका मित्रता अतीव हितकर है। आपका बन्धुत्व पाने पर समस्त स्थानों में स्तोत्र वाक्य उच्चारित होंगे। जिस प्रकार चिर-परिचित पथ सुखकर होता है, उसी प्रकार ही आपका मित्रता हमारी स्तुतियों को सुखकर करें।[ऋग्वेद 10.61.25]
Hey Mitr & Varun Dev! Priests having food grains perform prayers. Hence, you should be favourable to us. Your friendship is extremely beneficial to us. On having attained your brotherhood Strotrs will be recited every where. The way a well know path is comfortable, your friendship should make our prayers comfortable-pleasant.
स गृणानो अद्भिर्देववानिति सुबन्धुर्नमसा सूक्तैः।
वर्धदुक्थैर्वचोभिरा हि नूनं व्यध्वैति पयस उस्त्रियायाः॥
हे परम मित्र वरुण देव! देवों के साथ उत्तमोत्तम स्तोत्र और नमस्कार प्राप्त करके प्रवृद्ध हो। गौ की दूध की धारा उनके यज्ञ के लिए प्रवाहित हों।[ऋग्वेद 10.61.26]
Hey best friend Varun Dev! Make progress by having ultimate prayers and salutations along with demigods-deities. Milk streams-currents should flow in their Yagy.
त ऊ षु णो महो यजत्रा भूत देवास ऊतये सजोषाः।
ये वाजाँ अनयता वियन्तो ये स्था निचेतारो अमूराः॥
हे देवगण! आप ही यज्ञपान के अधिकारी हैं। हमारी भली-भाँति रक्षा के लिए आप सब मिलें। हे अङ्गिरा लोगों! उद्योगी होकर आपने मुझे अन्न दिया है। आपका मोह विनष्ट हो गया है। इस समय आप गोधन प्राप्त करें।[ऋग्वेद 10.61.27]
Hey deities! Only you are entitled to receive the yield of the Yagy. You should join together properly for our protection. Hey Angiras! You became endeavourous and granted me food grains. Your illusion has been lost. Have cows at this moment.(16.11.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (62) :: ऋषि :- नाभोनेदिष्ठ मानव; देवता :- विश्वेदेव; छन्द :- जगती, अनुष्टुप, बृहती, गायत्री, त्रिष्टुप्।
ये यज्ञेन दक्षिणया समक्ता इन्द्रस्य सख्यममृतत्वमानश।
तेभ्यो भद्रमङ्गिरसो वो अस्तु प्रति गृभ्णीत मानवं सुमेधसः
हे अङ्गिरा लोगों! आप यज्ञीय द्रव्य (हवि आदि) और दक्षिणा से एक साथ इन्द्र देव का बन्धुत्व और अमरत्व प्राप्त कर चुके हैं। आपका कल्याण हो। हे सुधी अङ्गिरा गण! इस समय आप मुझ मनु-पुत्र को ग्रहण करें। मैं भली-भाँति यज्ञ करूँगा।[ऋग्वेद 10.62.1]
Hey Angiras! You have attained brotherhood with Indr Dev and immortality with Yagy materials-offerings and Dakshina. You should be blessed. Hey Sudhi Angira Gan! At this moment accept me-the son of Manu. I will accomplish the Yagy procedurally-methodically, properly.
य उदाजन् पितरो गोमयं वस्वृतेनाभिन्दन् परिवत्सरे वलम्।
दीर्घायुत्वमङ्गिरसो वो अस्तु प्रति गृभ्णीत मानवं सुमेधसः
हे अङ्गिरा गण! आप लोग हमारे पितृ सदृश हैं। आप लोग अपहृत गाय को ले आये थे। आप लोगों ने वर्षभर यज्ञ करके 'बल' नामक असुर को नष्ट किया था। आप लोग दीर्घायु बनें। हे अङ्गिरा गण! इस समय आप मुझ मनु-पुत्र (मानव) को ग्रहण करें। मैं भली-भाँति यज्ञ करूँगा।[ऋग्वेद 10.62.2]
Hey Angiras! You are fatherly to us. You brought back the abducted cow. You performed Yagy for a year and killed the demon named Bal. You should be long lived. Hey Angira Gan! At this moment accept me-the son of Manu. I will accomplish the Yagy procedurally-methodically, properly.
य ऋतेन सूर्यमारोहयन् दिव्यप्रथयन् पृथिवीं मातरं वि।
सुप्रजास्त्वमङ्गिरसो वो अस्तु प्रति गृभ्णीत मानवं सुमेधसः
आप लोगों ने सत्य रूप यज्ञ के द्वारा स्वर्ग लोक में सूर्य देव को स्थापित किया और सबकी निर्मात्री देवी पृथ्वी को प्रसिद्ध किया। आपको सन्तति हो। हे अङ्गिरा गण! इस समय आप मुझ मानव को ग्रहण करें। मैं भली-भाँति यज्ञ करूँगा।[ऋग्वेद 10.62.3]
You established Sury Dev in the heavens-sky by virtue of Saty-truth-a from of Yagy. You made earth famous, the creator of all. You should have progeny. Hey Angira Gan! At this moment accept me a human being & the son of Manu. I will accomplish the Yagy procedurally-methodically, properly.
अयं नाभा वदति वल्गु वो गृहे देवपुत्रा ऋषयस्तच्छृणोतन।
सुब्रह्मण्यमङ्गिरसो वो अस्तु प्रति गृभ्णीत मानवं सुमेधसः
हे देवपुत्र ऋषियों (अङ्गिरा लोगों)! यह नाभानेदिष्ठ आपके यज्ञ में कल्याणकारी वचन कहता है। श्रवण करें। आप लोग शोभन ब्रह्मतेज प्राप्त करें। हे अङ्गिरागण ! इस समय आप मुझ मानव को ग्रहण करें। मैं भली-भाँति यज्ञ करूँगा।[ऋग्वेद 10.62.4]
Hey Angiras-son of deities! This Nabhanedisht speak these words to you leading to welfare. Listen to them. You should possess glorious Brahm Tej-aura, radiance. Hey Sudhi Angira Gan! At this moment accept me-the son of Manu. I will accomplish the Yagy procedurally-methodically, properly.
विरूपास इष्टषयस्त इद्गम्भीरवेपसः। ते अङ्गिरसः सूनवस्ते अग्नेः परि जज्ञिरे
ये ऋषि लोग नानारूप है। अङ्गिरा लोग गम्भीर कर्म वाले हैं। अङ्गिरा लोग अग्नि देव के पुत्र हैं। ये चारों ओर प्रादुर्भूत हुए हैं।[ऋग्वेद 10.62.5]
These Rishis have vivid-various forms. Angiras are serious and resort of labour-endeavours. Angiras are the sons of Agni Dev. They evolved in four directions.
ये अग्नेः परि जज्ञिरे विरूपासो दिवस्परि।
नवग्वो नु दशग्वो अङ्गिरस्तमः सचा देवेषु मंहते
जो विविध रूप अङ्गिरा लोग अग्नि देव के द्वारा द्युलोक में चारों ओर प्रादुर्भूत हुए, उनमें से किसी ने नौ मास तक और किसी ने दस मास तक यज्ञ करने के पश्चात गोधन प्राप्त किया। देवों के साथ अवस्थित अङ्गिरा लोगों में श्रेष्ठ अङ्गिरा मुझे धन देते हैं।[ऋग्वेद 10.62.6]
The Angiras having vivid forms evolved through Agni Dev in the heavens in four directions. They obtained cows after 9-10 months of Yagy. Best Angiras established amongest the demigods-deities and grant me wealth-money, riches.
इन्द्रेण युजा निः सृजन्त वाघतो व्रजं गोमन्तमश्विनम्।
सहस्रं मे ददतो अष्टकर्ण्य १ : श्रवो देवेष्वक्रत
कर्मकर्ता अङ्गिरा लोगों ने इन्द्र देव की सहायता प्राप्त करके अश्वों और गौओं से युक्त गोष्ठ का उद्धार किया। उनके कान लम्बे-लम्बे है। उन्होंने एक हजार गौवें मुझे देकर देवों के लिए यज्ञीय अश्व प्रदान किया।[ऋग्वेद 10.62.7]
Performer Angiras released the shed having cows and horses with the help of Indr Dev. They have long ears. They granted me thousand cows and granted horse for demigods-deities for the Yagy.
प्र नूनं जायतामयं मनुस्तोक्मेव रोहतु। यः सहस्रं शताश्वं सद्यो दानाय मंहते
जल से सींचे हुए बीज के समान कर्म फल युक्त सावर्णि मनु बढ़े। मनु इसी समय सौ अश्व और हजारों गौवें अभी देने को प्रेरित है।[ऋग्वेद 10.62.8]
Sawarni Manu associated with the Karm Fal (reward for industry) grew like the seeds soaked in water. Manu is willing to grant hundred horses and thousand cows at this moment.
न तमश्नोति कश्चन दिव इव सान्वारभम्।
सावर्ण्यस्य दक्षिणा वि सिन्धुरिव पप्रथे
मनु के सदृश कोई भी दान देने में समर्थ नहीं है। स्वर्ग के उच्च प्रदेश के समान वे उन्नत भाव से अवस्थित है। सावर्णि मनु का दान नदी के समान सर्वत्र विस्तृत हैं।[ऋग्वेद 10.62.9]
None is capable of making donation like Manu. They are established like the elevated regions of heavens. Donation of Manu is vast and spreaded like Sawarni river.
उत दासा परिविषे स्मद्दिष्टी गोपरीणसा। यदुस्तुर्वश्च मामहे
हे कल्याण कारक! गौओं से युक्त और दास के सदृश स्थित यदु और तुर्व नामक राजर्षि मनु के भोजन के लिए पशु प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 10.62.10]
Hey welfare causing! Rajarshi Yadu & Turv having cows and slaves grant animals for the food-meals of Manu.
सहस्त्रदा ग्रामणीर्मा रिषन्मनुः सूर्येणास्य यतमानैतु दक्षिणा।
सावर्णेर्देवाः प्र तिरन्त्वायुर्यस्मिन्नश्रान्ता असनाम वाजम्
मनु हजारों गौओं के दाता और मनुष्यों के नेता हैं। उनका कोई अनिष्ट नहीं कर सकता। मनु की दक्षिणा सूर्य देव के साथ तीनों लोकों में प्रसिद्ध है। सावर्णि (सवर्ण पुत्र) मनु की आयु देवता लोग बढ़ावें। समस्त कर्म करने वाले हम अन्न प्राप्त करें।[ऋग्वेद 10.62.11]
Manu is donor of thousands of cows and leader of the humans. None can harm him. Dakshina of Manu is famous in the three abodes along with Sury Dev. Let the demigods-deities increase the age of Sawarni Manu. We performing all functions should have food grains.(18.11.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (63) :: ऋषि :- गय, प्लात; देवता :- विश्वेदेव, पथ्या, स्वस्ति; छन्द :- जगती या त्रिष्टुप्। 
परावतो ये दिधिषन्त आप्यं मनुप्रीतासो जनिमा विवस्वतः।
ययातेर्ये नहुष्यस्य बर्हिषि देवा आसते ते अधि ब्रुवन्तु नः
जो सब देवता दूर देश से आकर मनुष्यों के साथ मित्रता करते है, जो देवता प्रसन्न किये जाने पर विवस्वान् के पुत्र मनु की सन्तानों को धारण करते हैं और जो देवता नहुष पुत्र ययाति राजा के यज्ञ में उपविष्ट होते हैं, वे धनादि-प्रदान के द्वारा हमें सम्मान युक्त करें।[ऋग्वेद 10.63.1]
The demigods-deities who arrive from distant places, on being happy they support Manu-son of Vivasvan and stay in the Yagy of Yayati-son of Nahush, should grant us honour along with wealth etc.
विश्वा हि वो नमस्यानि वन्द्या नामानि देवा उत यज्ञियानि वः।
ये स्थ जाता अदितेरद्भ्यस्परि ये पृथिव्यास्ते म इह श्रुता हवम्
हे देवी! आपके सब नाम नमस्कार के योग्य, स्तुत्य और यज्ञ योग्य हैं। जो देवता माता अदिति, जल व पृथ्वी से उत्पन्न हुए हैं, वे आप लोग मेरे आह्वान को सुनें।[ऋग्वेद 10.63.2]
Hey Devi-goddess! Your all names deserve salutations, worship and the Yagy. The demigods-deities born out of Mother Aditi, water & earth should respond to my invocation.
येभ्यो माता मधुमत्पिन्वते पयः पीयूषं द्यौरदितिरद्रिबर्हाः।
उक्थशुष्मान् वृषभरान्त्स्वप्नसस्ताँ आदित्याँ अनु मदा स्वस्तये
सबको बनाने वाली पृथ्वी जिन देवों के लिए मधुर दुग्ध बहाती हैं और जिनके लिए मेघवान और अविनाशी आकाश अमृत को धारण करता है, उन सब माता अदिति के पुत्र देवों की स्तुति करें। इससे मंगल होगा। उनकी शक्ति प्रशंसनीय है। वे वर्षा को ले आते हैं। उनका कार्य अत्यन्त सुन्दर है।[ऋग्वेद 10.63.3]
Creator of all earth, flow sweetened milk, for whom immortal sky support clouds and elixir, worship all those demigods-deities sons of Maa Aditi. It will lead to auspiciousness. Their powers are praise worthy. They bring rains. Their endeavours-efforts are extremely beautiful.
नृचक्षसो अनिमिषन्तो अर्हणा बृहद्देवासो अमृतत्वमानशुः।
ज्योतीरथा अहिमाया अनागसो दिवो वर्षमानं (वष्र्माणं) वसते स्वस्तये
कर्मनिष्ठ मनुष्यों के बिना पलक गिराये दशंक ने देवगणों के सेवन के लिए व्यापक अमृत्व प्राप्त किया। उनका रथ ज्योतिर्मय है। उनके कार्य में विघ्न नहीं है। वे निष्पाप है। लोगों के मंगल के लिए वे उन्नत देश में रहते हैं।[ऋग्वेद 10.63.4]
Dashank attained immortality without blinking of eye by the humans for the demigods-deities. Their charoite is radiant. Their endeavours are free from interruption. They are sinless. They reside over elevated places for the benefits-welfare of populace.
सम्राजो ये सुवृधो यज्ञमाययुरपरिह्वताः दधिरे दिवि क्षयम्।
ताँ आ विवास नमसा सुवृक्तिभिर्महो आदित्याँ अदितिं स्वस्तये
अपने तेज से विराजमान और सुप्रबुद्ध जो देवगण यज्ञ में आते हैं और जो अहिंसित होकर द्युलोक में रहते हैं, उन सब महान् देवों और अदिति का कल्याण के लिए नमस्कार और शोभन स्तुतियों से सेवन करें।[ऋग्वेद 10.63.5]
Present with their aura, enlightened demigods-deities come to the Yagy and reside unharmed in the heaven. Salute these great demigods-deities & Mata Aditi; along with beautiful Stuties for welfare.
को वः स्तोमं राधति यं जुजोषथ विश्वे देवासो मनुषो यति ष्ठन।
को वोऽध्वरं तुविजाता अरं करद्यो नः पर्षदत्यंहः स्वस्तये
हे देवगणों! मुझें छोड़कर आप लोगों की स्तुति कौन कर सकता है? हे ज्ञाता और सन्तान देने वाले देवगणों! जो यज्ञ पाप से बचाकर कल्याण देता है, मेरे अतिरिक्त उस यज्ञ का आयोजन कौन कर सकता है?[ऋग्वेद 10.63.6]
Hey deities! Who else can recite Stuti for you. Hey enlightened progeny awarding demigods-deities! This Yagy protect from sin and lead to welfare. Who else other than me, can organise this Yagy?
येभ्यो होत्रां प्रथमामायेजे मनुः समिद्धाग्निर्मनसा सप्त होतृभिः।
त आदित्या अभयं शर्म यच्छत सुगा नः कर्त सुपथा स्वस्तये
अग्नि देव को प्रज्वलित करके मनु ने श्रद्धावान् चित्त से सात होताओं के साथ जिन देवगणों को उत्तम होमीय द्रव्य दिया, वे सब देवता हमें अभय दें, सुखी करें। हमें सर्वत्र सुभीता दें और कल्याण करें।[ऋग्वेद 10.63.7]
After igniting fire Manu offered excellent oblations to the demigods-deities for Hawan, with 7 hosts. These demigods-deities should grant us protection and comforts-pleasure. Grant us facilities every where. 
य ईशिरे भुवनस्य प्रचेतसो विश्वस्य स्थातुर्जगतश्च मन्तवः।
ते नः कृतादकृतादेनसस्पर्यद्या देवासः पिपृता स्वस्तये
उत्तम ज्ञानी और सबके ज्ञाता देवता स्थावर संसार और जङ्गम लोक के ईश्वर हैं। वैसे हे देवों! इस समय हमें अतीत और भविष्यत् पापों से बचाकर कल्याण प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.63.8]
Best learned and knowing every one demigods-deities are the Ishwar-God of the rigid-stationary & dynamic abodes. Similarly, hey deities! Protect us the current and future sins leading to our welfare.
भरेष्विन्द्रं सुहवं हवामहें ऽ होमुचं सुकृतं दैव्यं जनम्।
अग्निं मित्रं वरुणं सातये भगं द्यावापृथिवी मरुतः स्वस्तये
हम सब यज्ञों में इन्द्र देव को बुलाते हैं। उन्हें बुलाने में आनन्द आता है। हम देवगणों को बुलाते हैं। वे पाप से छुड़ाते हैं। उनका कार्य सुन्दर है। कल्याण और धन पाने की इच्छा से हम अग्नि देव, मित्र, वरुण देव, भग, द्यावा-पृथ्वी और मरुतों का आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 10.63.9]
Indr Dev is invited in every Yagy. We feel pleasure in inviting him. We invite the demigods-deities. They release us from sins. Their deeds are beautiful-remarkable. With the desire for welfare and wealth we invoke Agni Dev, Mitr, Varun Dev, Bhag, heaven & earth and Marud Gan.
सुत्रामाणं पृथिवीं द्यामनेहसं सुशर्माणमदितिं सुप्रणीतिम्।
दैवीं नावं स्वरित्रामनागसमस्त्रवन्तीमा रुहेमा स्वस्तये
मंगल के लिए हम द्युलोक रुपिणी नौका पर चढ़कर देवत्व प्राप्त करें। इस नौका पर चढ़ने से रक्षण का कोई भय नहीं रहता। यह विस्तृत है। इस पर चढ़ने से सुखी हुआ जाता है। यह अक्षय है। इसका संगठन सुदृढ़ है। इसका आचरण सुन्दर है। यह निष्पाप और अविनश्वर है।[ऋग्वेद 10.63.10]
For welfare we should ride the boat like heaven and attain demigodhood. After riding this boat, there is no fear of safety. Its vast. After riding this we become comfortable. This is imperishable. Its stout and beautiful. This is sinless and imperishable.
विश्वे यजत्रा अधि वोचतोतये त्रायध्वं नो दुरेवाया अभिहुतः।
सत्यया वो देवहूत्वा हुवेम श्नवतो देवा अवसे स्वस्तये
हे यजनीय देवों! रक्षा के लिए हमसे कहें। विनाशक दुर्गति से हमें बचावें। सत्य रूप यज्ञ का  आयोजन करके हम आपको बुलाते हैं। श्रवण करें, रक्षा करें और कल्याण करें।[ऋग्वेद 10.63.11]
Hey worshipable deities! Ask us for protection-safety. Protect us from destruction turmoil and misery. After organising truthful Yagy, we invite you. Listen-respond, protect and benefit us.  
अपामीवामप विश्वामनाहुतिमपारातिं दुर्विदत्रामघायतः।
आरे देवा द्वेषो अस्मद्युयोतनोरु णः शर्म यच्छता स्वस्तये
हे देवों! हमारे रोगों और सब प्रकार की पाप बुद्धि को दूर करें। हमें दानशून्य बुद्धि न दें। दुष्ट की दुर्बुद्धि को दूर करें। हमारे शत्रुओं को अत्यन्त दूर ले जावें। हमें विशिष्ट सुख और कल्याण प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.6.312]
Hey deities! Remove our ailments-diseases and wickedness (sinful intellect). Grant us intellect guiding us to donations. Take our enemies far away. Grant us specific comforts and benefits.
अरिष्टः स मर्तो विश्व एधते प्र प्रजाभिर्जायते धर्मणस्परि।
यमादित्यासो नयथा सुनीतिभिरति विश्वानि दुरिता स्वस्तये
हे माता अदिति के पुत्र देवगणों! आप जिसे उत्तम मार्ग दिखाकर और समस्त पापों से पार करके कल्याण में ले जाते हैं, वैसा कोई भी व्यक्ति श्री वृद्धिशाली होता है। उसका कोई अनिष्ट नहीं होता। वह धर्म-कर्म करता है। उसका वंश बढ़ता है।[ऋग्वेद 10.63.13]
Hey sons of Mata Aditi, demigods! Any one who is guided with the excellent route, by you swim across sins and taken to welfare, increases his prosperity-glory. None can harm him. He resort to virtuous, righteous, pious deeds. His dynasty continues.
यं देवासोऽवथ वाजसातौ यं शूरसाता मरुतो हिते धने।
प्रातर्यावाणं रथमिन्द्र सानसिमरिष्यन्तमा रुहेमा स्वस्तये
हे देवों! अन्न प्राप्ति के लिए आप लोग जिस रथ की रक्षा करते हैं और मरुतों युद्ध के समय संचित धन की प्राप्ति के लिए आप लोग जिस रथ की रक्षा करते हैं, हे इन्द्र देव! उसी प्रातःकाल युद्ध में जाने वाले रथ को प्राप्त करना चाहिए। उसे कोई ध्वस्त नहीं कर सकता। उसी पर चढ़कर हम कल्याणपथ पर अग्रसर हों।[ऋग्वेद 10.63.14]
Hey deities! The charoite which is protected by you for having food grains & Marud Gan protect the charoite for wealth, during war. Hey Indr Dev! Have that charoite for going to war in the morning. It can not be destroyed by anyone. We should ride it and proceed over the welfare-beneficial route.
स्वस्ति नः पथ्यासु धन्वसु स्वस्त्य १ प्सु वृजने स्वर्वति।
स्वस्ति नः पुत्रकृथेषु योनिषु स्वस्ति राये मरुतो दधातन
सुपथ और मरुस्थल दोनों स्थानों में हमारा कल्याण हो। जल और युद्ध, दोनों में हमारा कल्याण हो। उस सेना के बीच हमारा कल्याण हो, जहाँ अस्त्र-शस्त्र फेंके जाते हैं। पुत्रोत्पादक स्त्रीयोनी में हमारा कल्याण हो (अर्थात गर्भ न गिरने पावे) हे देवगणों ! धनप्राप्ति के लिए हमारा मंगल करें।[ऋग्वेद 10.63.15]
Virtuous route or desert, our well being should be there at both the places. Water or war both should be beneficial to us. Our well being should be looked after in the army where weapons-missiles are launched. Our well being should be ensured in the uterus-where the son is evolved-produced, i.e., there should be no abortion. Hey deities! Look to our well being for attaining wealth.
स्वस्तिरिद्धि प्रपथे श्रेष्ठा रेक्णस्वत्यभि या वाममेति।
सा नो अमा सो अरणे नि पातु स्वावेशा भवतु देवगोपा
जो पृथ्वी मार्ग जाने में मंगलमयी है, जो सर्वश्रेष्ठ धन से परिपूर्ण है और जो वरणीय यज्ञस्थान में उपस्थित है, वह गृह और अरण्य, दोनों स्थानों में हमारी रक्षा करे। उसके रक्षक देवगण है। हम सुख से पृथ्वी पर निवास करें।[ऋग्वेद 10.63.16]
The land route which is safe-beneficial for journey and has best wealth, present in the acceptable Yagy, either home or forest, protect us at both these places. Its protectors are demigods-deities. We should reside happily-comfortable over the earth.
एवा प्ळतेः सूनुरवीवृधद्वो विश्व आदित्या अदिते मनीषी।
ईशानासो  नरो अमत्र्येनास्तावि जनो दिव्यो गयेन
हे देवों और माता अदिति! प्राज्ञ प्लुतिपुत्र गय ने इस प्रकार से आप लोगों की संबर्द्धना की। देवगणों की प्रसन्नता से मनुष्य प्रभुत्व पाया करते हैं। गय ने देवगणों की स्तुति की।[ऋग्वेद 10.63.137] 
Hey deities and Mata Aditi! Intelligent Plupti's son Gay promoted-worshiped you in this manner. Dignity-power is obtained over the humans by pleasing demigods-deities. Gay worshiped-prayed to the demigods-deities.(18.11.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (64) :: ऋषि :- गय, प्लात; देवता :- विश्वेदेव; छन्द :- जगती या त्रिष्टुप्।
कथा देवानां कतमस्य यामति सुमन्तु नाम शृण्वतां मनामहे।
को मृळाति कतमो नो मयस्करत्कतम ऊती अभ्या ववर्तति
यज्ञ में देवता लोग हमारा स्तोत्र श्रवण करें। देवगणों में से किस देवता का स्तोत्र किस उपाय से भली भाँति हम बनावें? कौन हमारे ऊपर कृपा करेगा? कौन सुख का विधान करेगा? हमारे रक्षण के लिए कौन हमारे पास आएगा?[ऋग्वेद 10.64.1]
Let the deities-demigods listen to our Strotr. How to compose the Strotr of a specific demigod amongest the demigods-deities? Who will bless us? Who will ensure our pleasure? Who will come to us for protecting us?
क्रतूयन्ति क्रतवो हृत्सु धीतयो वेनन्ति वेनाः पतयन्त्या दिशः।
न मर्डिता विद्यते अन्य एभ्यो देवेषु मे अधि कामा अयंसत 
हमारे अन्तःकरण में निहित प्रज्ञा अग्निहोत्र आदि करने की इच्छा करती है। प्रज्ञा देवों की इच्छा करती है। हमारी अभिलाषाएँ देवों के पास आती है। उनके अतिरिक्त और कोई सुखदाता नहीं है। इन्द्रादि देवों में हमारी अभिलाषाएँ स्थित हैं।[ऋग्वेद 10.64.2]
Intellect in our innerself is desirous of Agni Hotr. Intellect desire for the demigods-deities. Our wished comes to the demigods-deities. None other than them grants pleasure-comforts. Our desires are cantered over the demigods-deities like Indr Dev,
नरा वा शंसं पूषणमगोह्यमग्निं देवेद्धमभ्यर्चसे गिरा।
सूर्यामासा चन्द्रमसा यमं दिवि त्रितं वातमुषसमक्तुमश्विना
धनदान के द्वारा पोषक और दूसरों के द्वारा अगम्य पूषा देवता की स्तुति के द्वारा पूजा करें। देवों में प्रदीप्त अग्नि देव की स्तुति करें। सूर्य, चन्द्र, यम, दिव्यलोकवासी त्रित, वायु, उषा रात्रि और दोनों अश्विनी कुमारों की स्तुति करें।[ऋग्वेद 10.64.3]
Pray to Poshak by donation and Pusha Dev with other offerings-commodities, oblations. Worship illuminated Agni Dev. Worship Sury, Chandr, Yam, Trit a resident of heavens, Vayu, Usha & Ratri and both Ashwani Kumars.
कथा कविस्तुवीरवान् कया गिरा बृहस्पतिर्वावृधते सुवृक्तिभिः।
अज एकपात्सुहवेभिर्ऋकभिरहिः शृणोतु बुध्न्यो ३ हवीमनि
ज्ञानी अग्नि किस प्रकार अनेक स्तोताओं वाले अज होते हैं और किस स्तुति से सम्मानयुक्त होते हैं? शोभन स्तुति से बृहस्पति देवता बढ़ते हैं। अज एकपात् और अहिर्बुध्य नाम के देवता हमारे आह्वान काल में सुरचित स्तवनों का श्रवण करें।[ऋग्वेद 10.64.4]
How enlightened Agni Dev become deity-God with several Stotas and honoured by which Stuti? Glorious Stuti grow-flourish Brahaspati Dev. Let demigods Aj, Ekpat and Ahirbudhy listen-respond to our well composed prayers during the period of invocation.
दक्षस्य वादिते जन्मनि व्रते राजाना मित्रावरुणा विवाससि।
अतूर्तपन्थाः पुरुरथो अर्यमा सप्तहोता विषुरूपेषु जन्मसु
हे अविनश्वर पृथ्वी! सूर्य देव के जन्म के समय आप मित्र और वरुण राजाओं की सेवा करती हो। विशाल रथ पर आरूढ़ होकर सूर्य देव धीरे-धीरे जाते हैं। उनका जन्म नाना मूर्तियों में होता है। उनके आह्वानकर्ता सप्तर्षि हैं।[ऋग्वेद 10.64.5]
Hey immortal Prathvi-earth! You serve the kings Mitr & Varun Dev while Sury Dev evolve. Sury Dev ride a vast charoite and moves slowly. He takes birth in various forms. His invokers are Sapt Rishis.
ते नो अर्वन्तो हवनश्रुतो हवं विश्वे शृण्वन्तु वाजिनो मितद्रवः।
सहस्त्रसा मेधसाताविव त्मना महो ये धनं समिथेषु जभ्रिरे
इन्द्र देव के जो अश्व स्वयं युद्ध के समय शत्रुओं से महान् धन ले आते हैं, जो यज्ञ के समय सदैव ही हजारों प्रकार का धन प्रदान करते हैं और जो सुशिक्षित अश्वों के सदृश परिमित रूप से चरण निक्षेप करते हैं, वे सब हमारा आह्वान श्रवण करें। निमंत्रण ग्रहण करने में वे कभी विरत नहीं होते।[ऋग्वेद 10.64.6]
Let the horses of Indr Dev who bring great wealth during war from the enemies, grant thousands of kinds of wealth during Yagy, they moves ahead as like skilled-trained horses. They never deny after accepting invitation.
प्र वो वायुं रथयुजं पुरंधिं स्तोमैः कृणुध्वं सख्याय पूषणम्।
ते हि देवस्य सवितुः सवीमनि क्रतुं सचन्ते सचितः सचेतसः
हे स्तोताओं! रथ योजक वायुदेव, बहुकर्म कर्ता इन्द्र देव और पूषा की स्तुति करके अपनी मित्रता स्वीकार करावें। वे सब एकमना और अनन्यमना होकर प्रभात काल में यज्ञ में उपस्थित होते हैं।[ऋग्वेद 10.64.7]
Hey Stotas! Let your friendship be accepted by charoite manager Vayu Dev, performer of numerous deeds Indr Dev and Pusha Dev. They together join the Yagy in the morning in unison dedicatedly.
त्रिः सप्त सस्त्रा नद्यो महीरपो वनस्पतीन् पर्वताँ अग्निमूतये।
कृशानुमस्तृन् तिष्यं सधस्थ आ रुद्रं रुद्रेषु रुद्रियं हवामहे
सरस्वती, सरयू, सिन्धु आदि इक्कीस प्रकाण्ड नदियाँ, वनस्पतियों, पर्वतों, अग्नि देव, सोमपालक कृशानु, गन्धर्व, वाण चालक गन्धर्वों, नक्षत्र, हविः प्रात्र रुद्र और रुद्रों में प्रधान रुद्र यज्ञ में रक्षा के लिए हम बुलाते हैं।[ऋग्वेद 10.64.8]
We invite twenty one colossal river like Saraswati, Saryu, Sindhu, vegetation, mountains, Agni Dev, grower of Som Krashanu, Gandarbh, Van-arrow thrower Gandarbhs, offerings deserving Rudr and head-leader of Rudr Gan in the Yagy for protection.
सरस्वती सरयुः सिन्धुरूर्मिभिर्महो महीरवसा यन्तु वक्षणीः।
देवीरापो मातरः सूद यित्न्वो  घृतवत्पयो मधुमन्नो अर्चत
महती और तरङ्ग शालिनी सरस्वती, सरयू, सिन्धु आदि इक्कीस नदियाँ, रक्षण के लिए आवें। जल प्रेरक, मातृभूत ये सब देवियाँ घृत और मधु के समान जल प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.64.9]
Let mighty-majestic waves producing 21 rivers Saraswati, Saryu, Sindhu come for protection. Motherly, inspiring water these goddesses provide water equivalent to honey and Ghee.   
उत माता बृहद्दिवा शृणोतु नस्त्वष्टा देवेभिर्जनिभिः पिता वचः।
ऋभुक्षा वाजो रथस्पतिर्भगो रण्वः शंसः शशमानस्य पातु नः॥
महद्दीप्ति देवमाता हमारा आह्वान श्रवण करें। देवपिता त्वष्टा अपने पुत्र देवों और देवपत्नियों के साथ हमारा वचन श्रवण करें। ऋभुक्षा, इन्द देव, वाज, रथपति भग और स्तुत्य मरुद्गण स्तुति के लिए हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 10.64.10]
Super luminous Dev Mata should respond to our invocation. Father of demigods-Twasta should listen to our words along with his sons, goddess. Ribhuksha, Indr Dev, Vaj, Rath Pati, Bhag and worshipable Marud Gan should protect us for the Stuti.
रण्वः संदृष्टौ पितुमाँइव क्षयो भद्रा रुद्राणां मरुतामुपस्तुतिः।
गोभिः ष्याम यशसो जनेष्वा सदा देवास इळया सचेमहि
अन्न से भरे गृह के समान मरुद्गण देखने में रमणीय है। रुद्रपुत्र मरुतों की स्तुति कल्याण देने वाली होती है। मनुष्यों में हम गोधन से धनी होकर यशस्वी होवें। हे देवों! सदैव हमें अन्न प्राप्त हो।[ऋग्वेद 10.64.11]
Marud Gan are lovely like the store full of food grains. Prayers dedicated to Marud Gan grant blessing-welfare. Amongest the humans we will become wealthy and glorious with the cows as wealth. Hey demigods-deities! We should always have food grains. 
यां मे धियं मरुत इन्द्र देवा अददात वरुण मित्र यूयम्।
तां पीपयत पयसेव धेनुं कुविद्गिरो अधि रथे वहाथ
हे मरुद्गण, इन्द्र देव, देववृन्द, वरुण देव और मित्र! जिस प्रकार गाय दूध से भरी रहती है, उसी प्रकार ही आप लोगों से पाये हुए कर्म का फल सुसम्पन्न करें। हमारे स्तोत्रों को सुनकर और रथ पर चढ़कर आप लोग यज्ञ में पधारें।[ऋग्वेद 10.64.12]
Hey Marud Gan, Indr dev, demigods, Varun Dev and Mitr! The way the cow possess milk similarly you should make fruitful the Karm-endeavours (offerings, oblations) obtained from the humans. Listen-respond to our Strotr, ride the charoite and reach the Yagy.
कुविदङ्ग प्रति यथा चिदस्य नः सजात्यस्य मरुतो बुबोधथ।
नाभा यत्र प्रथमं संनसामहे तत्र जामित्वमदितिर्दधातु नः
हे मरुतो! आप लोगों ने जिस प्रकार पहले अनेकों बार हमारी मित्रता की रक्षा की है, उसी प्रकार ही इस समय भी करें। हम जिस स्थान पर सर्वप्रथम वेदी बनाते है, वहाँ माता अदिति मनुष्यों के साथ हमें मित्रता प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.64.13]
Hey Marud Gan! The way you saved our friendship earlier many times, save it this time as well. The place we prepare Yagy Vedi for the first time, let Mata Aditi award friendship with humans there.
ते हि द्यावापृथिवी मातरा मही देवी देवाञ्जन्मना यज्ञिये इतः।
उभे बिभृत उभयं भरीमभिः पुरू रेतांसि पितृभिश्च सिञ्चतः
सबको बनाने वाले, महान् दीप्तिशील और यज्ञ योग्य द्यावा-पृथ्वी जन्म के साथ ही इन्द्रादि को प्राप्त करते हैं। द्यावा-पृथ्वी नानाविध रक्षणों से देवों और मनुष्यों की रक्षा करते है। पालक देवों के साथ मिलकर द्यावा-पृथ्वी जल को क्षरित करते हैं।[ऋग्वेद 10.64.14]
Creator of all, great luminous, suited for Yagy, heavens and earth attain Indr Dev etc. Heaven and earth protect the humans with various means. Heaven & earth together, along with demigods reduce the water.
वि षा होत्रा विश्वमश्नोति वार्य बृहस्पतिररमतिः पनीयसी।
ग्रावा यत्र मधुषुदुच्यते बृहदवीवशन्त मतिभिर्मनीषिणः
महानों की पालिका, यथेष्ट स्तुति वाली, देवों का स्तोत्र करने वाली और सोमाभिषवः के कारण महान् कही जाने वाली वाणी समस्त स्वीकरणीय धन को व्याप्त करती हैं। स्तोता लोग स्तोत्रों से देवों को यज्ञकामी बनाते हैं।[ऋग्वेद 10.64.15]
Nurturer of great people, worshiped with proper prayers, performing Strotr for the demigods-deities, termed great due to Somabhishav, majestic voice-speech pervade the acceptable wealth. The Stotas become Yagy performers due to Strotrs.
एवा कविस्तुवीरवाँ ऋतज्ञा द्रविणस्युर्द्रविणसश्चकानः।
उक्थेभिरत्र मतिभिश्च विप्रोऽपीपयगयो दिव्यानि जन्म
क्रान्त प्रज्ञ, बहुस्तुति सम्पन्न, यज्ञ ज्ञाता, धनेच्छु और मेधावी गय ऋषि ने प्रचुर धन की कामना करते हुए इस प्रकार के उक्थों (मंत्र विशेष) और स्तवनों से देवगणों की स्तुति की।[ऋग्वेद 10.64.16]
Intelligent Gay Rishi, enlightened with various Stuties, aware of Yagy, desirous of lots of wealth, worshiped demigods-deities with Ukth-specific Mantrs & prayers.
एवा प्लतेः सूनुरवीवृधद्वो विश्व आदित्या अदिते मनीषी।
ईशानासो नरो अमत्र्येनास्तावि जनो दिव्यो गयेन
हे देवगणों और माता अदिति! ज्ञानी प्लुतिपुत्र गय ने इस प्रकार से आप लोगों की संवर्द्धना की। देवों की प्रसन्नता से मनुष्य प्रभुत्व प्राप्त करते हैं। गय ने देवों की स्तुति की।[ऋग्वेद 10.64.17]
Hey demigods-deities & Mata Aditi! Enlightened Pluti's son Gay, worshiped you. Might-glory are attained by the worship of deities. Gay worshiped demigods-deities.(19.11.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (65) :: ऋषि :- वसुकर्ण, वासुक्र; देवता :-विश्वेदेव; छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
अग्निरिन्द्रो वरुणो मित्रो अर्यमा वायुः पूषा सरस्वती सजोषसः।
आदित्या विष्णुर्मरुतः स्वबृहत्सोमो रुद्रो अदितिर्ब्रह्मणस्पतिः
अग्नि देव, इन्द्र देव, वरुण देव, मित्र, अर्यमा, वायु देव, पूषा, सरस्वती, आदित्यगण, श्रीविष्णु, मरुत्, महान्, स्वर्ग, सोम, रुद्र, माता अदिति और ब्रह्मणस्पति मिलकर अपनी महिमा से अन्तरिक्ष को पूरित करते हैं।[ऋग्वेद 10.65.1]
Agni Dev, Indr Dev, Varun Dev, Mitr, Aryma, Vayu Dev, Pusha, Saraswati, Shri Hari Vishnu, Marud Gan, Mahan, Heaven, Som, Rudr, Mata Aditi and Brahman Spati together complement the space-sky with their glory.
इन्द्राग्नी वृत्रहत्येषु सत्पती मिथो हिन्वाना तन्वा ३ समोकसा।
अन्तरिक्षं मह्या पपुरोजसा सोमो घृतश्रीर्महिमानमीरयन्
इन्द्र देव और अग्नि देव शिष्टों के रक्षक हैं। ये युद्ध के समय इकट्ठे होकर अपनी शक्ति से शत्रुओं को पलायित कर देते हैं और प्रकाण्ड आकाश को अपने तेज भर देते हैं। घृतयुक्त सोमरस उनके बल को बढ़ा देता है।[ऋग्वेद 10.65.2]
शिष्ट :: सभ्य, धीर और शांत, विनीत, सुशील, ललित, सजीला, रम्य, सुश्री; elegant, suave, dainty, learned, polite.
Indr Dev and Agni Dev are the protectors of the elegant. They make the enemy flee with their might and fill the sky with their radiance. Somras enriched with Ghee boost their strength.
तेषां हि मह्ना महतामनर्वणां स्तोमाँ इयर्वृतज्ञा ऋतावृधाम्।
ये अप्सवमर्णवं चित्रराधसस्ते नो रासन्तां महये सुमित्र्याः
महत्तम, अविचल और यज्ञवर्द्धक देवगणों के लिए होने वाले यज्ञ में मैं स्तुति करता हूँ। जो सुन्दर बादलों से जल बरसाते हैं, वे ही परम मित्र देवता हमें धन देकर श्रेष्ठ करें।[ऋग्वेद 10.65.3]
महत्तम :: सबसे बड़ा; maximum,  greatest.
I worship greatest, unmoved and grower of Yagy demigods-deities in the Yagy. Those demigods-deities who shower rains with beautiful clouds, should grant us wealth.
स्वर्णरमन्तरिक्षणि रोचना द्यावाभूमी पृथिवीं स्कम्भुरोजसा।
पृक्षाइव महयन्तः सुरातयो देवाः स्तवन्ते मनुषाय सूरयः
उन्हीं देवगणों ने अपनी शक्ति से सबके नायक सूर्य देव, आकाशस्थ ग्रहों, नक्षत्रों, द्युलोक, और पृथ्वी को यथास्थान नियत कर रखा है। धनदाताओं के समान उत्तम दान करके ये देवता मनुष्यों को श्रेष्ठ बनाते हैं। ये मनुष्यों को धन देते हैं; इसीलिए इनकी स्तुति की जाती है।[ऋग्वेद 10.65.4]
The demigods-deities have established the leader of all; Sury Dev, planets, constellations, heavens and the earth in their respective positions. The demigods-deities make best donations like the wealthy people making humans excellent. They grant riches-money to humans and hence they are worshiped-prayed.
मित्राय शिक्ष वरुणाय दाशुषे या सम्राजा मनसा न प्रयुच्छतः।
ययोर्धाम धर्मणा रोचते बृहद्ययोरुभे रोदसी नाधसी वृतौ
मित्र और दाता वरुण देव को होमीय द्रव्य (हवि आदि) प्रदान करें। ये दोनों राजाओं के भी राजा है; ये कभी असावधान नहीं होते, इनका धाम भली-भाँति घृत होकर अत्यन्त प्रकाश कर रहा है। इनके पास याचक के समान द्यावा-पृथ्वी अवस्थित है।[ऋग्वेद 10.65.5]
याचक :: माँगने वाला, प्रार्थी, भिक्षुक, भिखारी, भिक्षुणी, मंगता, मुद्दई, वादी; petitioner, mendicant, beggar, demandant, beggar, solicitor, soliciting.
Make offerings-oblations of Hawan goods to Mitr & Varun Dev. The duo is the king of kings. They are never careless. Their abode is duly lased-greased with Ghee and is illuminated. Heaven & earth are engrossed with them, like one who is asking-soliciting for something.
या गौर्वर्तनिं पर्येति निष्कृतं पयो दुहाना व्रतनीरवारतः।
सा प्रब्रुवाणा वरुणाय दाशुषे देवेभ्यो दाशद्धविषा विवस्वते
जो गौवें स्वयं स्थान यज्ञ में आती है और दूध देते हुए यज्ञ कर्म को सम्पन्न करती है। मेरी इच्छा है कि गौदाता वरुण देव और अन्यान्य देवगणों को होमीय द्रव्य दें और मुझ देव सेवक की रक्षा करें।[ऋग्वेद 10.65.6]
The cows who come to Yagy site of their own provide milk and accomplish Yagy. I wish that the donor of cows Varun Dev and other deities should grant Hawan goods and protect me, a server of the demigods.
दिवक्षसो अग्निजिह्वा ऋतावृध ऋतस्य योनिं विमृशन्त आसते।
द्यां स्कभित्व्य १ प आ चक्रुरोजसा यज्ञं जनित्वी तन्वी ३ नि मामृजुः॥
जो देवता अपने तेज से आकाश को परिपूर्ण करते हैं, अग्नि देव ही जिनकी जीभ है और जो यज्ञ की वृद्धि करते हैं, वे अपना-अपना स्थान समझ कर यज्ञ में बैठते हैं। वे आकाश को धारण करके अपने बल से जल को निकालते हैं और यजनीय हवि को अपने शरीर में रख लेते हैं।[ऋग्वेद 10.65.7]
Agni Dev is the tongue of the demigods-deities who fill the sky-space with their majesty and boost the Yagy, occupy their respective seats in the Yagy. They hold the sky-space and draw water with their might. They hold the offerings-oblations in their body.
These two Shloks explain the Laws of Gravitation.
परिक्षिता पितरा पूर्वजावरी ऋतस्य योना क्षयतः समोकसा।
द्यावापृथिवी वरुणाय सव्रते घृतवत्पयो महिषाय पिन्वतः
द्यावा-पृथ्वी सर्वव्यापक हैं। ये सबके माता-पिता हैं। सबसे पहले उत्पन्न हुए हैं। दोनों का स्थान एक ही है। दोनों ही यज्ञस्थान में निवास करते हैं। दोनों ही एकमना होकर उन पूजनीय वरुण देव को घृतयुक्त दूध देते हैं।[ऋग्वेद 10.65.8]
Heaven & earth pervade the whole space. They are the parents of all. They possess the same position-status. They reside at the Yagy place-site. They grant milk having Ghee to Varun Dev in unison.
पर्जन्यावाता वृषभा पुरीषिणेन्द्रवायू वरुणो मित्रो अर्यमा।
देवाँ आदित्याँ अदितिं हवामहे ये पार्थिवासो दिव्यासो अप्सु ये
मेघ और वायु काम वर्षक हैं। वे जल वाले हैं। इन्द्र देव, वायु देव, वरुण देव, मित्र, अदिति पुत्र देवगणों और माता अदिति को हम बुलाते हैं। जो देवता द्युलोक, भूलोक और जल में उत्पन्न हुए हैं, उनको भी हम बुलाते हैं।[ऋग्वेद 10.65.9]
Clouds & Vayu accomplish desires (boosts sexuality). They have water in them. We invite Indr De, Vayu Dev, Varun Dev, Mitr, sons of Mata Aditi demigods and Mata Aditi. The demigods who evolved in heavens, earth and water too are invited by us.
त्वष्टारं वायुमृभवो य ओहते दैव्या होतारा उषसं स्वस्तये।
बृहस्पतिं वृत्रखादं सुमेधसमिन्द्रियं सोमं धनसा उ ईमहे
हे ऋभुओं! जो सोम आपके मंगल के लिए देवों को बुलाने वाले त्वष्टा और वायु के पास जाते है और जो बृहस्पति और ज्ञानी एवं वृत्रघ्न इन्द्र देव के पास जाते हैं, उन्हीं इन्द्र देव को सन्तुष्ट करने वाले सोम से हम धन माँगते हैं।[ऋग्वेद 10.65.10]
Hey Ribhu Gan! We request money from Som who go to demigods, Twasta, Vayu Dev Brahaspati and enlightened Vratr slayer Indr Dev for your welfare & who satisfy Indr Dev.
ब्रह्म गामश्वं जनयन्त ओषधीर्वनस्पतीन् पृथिवीं पर्वताँ अपः।
सूर्य दिवि रोहयन्तः सुदानव आर्या व्रता विसृजन्तो अधि क्षमि
देवों ने अन्न, गौ, अश्व, वृक्ष, लता, पर्वत और पृथ्वी को उत्पन्न किया और सूर्य देव को आकाश में चढ़ाया। उनका दान अतीव शोभन है, उन्होंने पृथिवी पर उत्तमोत्तम कार्य किए हैं।[ऋग्वेद 10.65.11]
Deities evolved food grains, cows, horses, trees, mountains and earth and raised Sury Dev in the sky. Their donations are glorious. They performed magnificent deeds over the earth.
भुज्युमंहसः पिपृथो निरश्विना श्यावं पुत्रं वध्रिमत्या अजिन्वतम्।
कमद्युवं विमदायोहथुर्युवं विष्णाप्वं १ विश्वकायाव सृजथः
हे अश्विनी कुमारों! आपने भुज्यु को विपत्ति से बचाया। वध्रिमती नामक रमणीय को एक पिङ्गल वर्ण पुत्र दिया, विमद ऋषि को सुन्दरी भार्या दी और विश्वक ऋषि को विष्णाप्व नामक पुत्र दिया।[ऋग्वेद 10.65.12]
Hey Ashwani Kumars! You saved Bhujyu from trouble. Granted a golden hue son to Vardhimati, granted beautiful wife to Rishi Vimad and granted son named Vishnapv to Rishi Vishrvak.
पावीरवी तन्यतुरेकपादजो दिवो धर्ता सिन्धुरापः समुद्रियः।
विश्वे देवासः शृणवन् वचांसि मे सरस्वती सह धीभिः पुरंध्या
आयुध वाली और मधुरा माध्यमिकी वाक्, आकाश धारक अज एकपात्, सिन्धु, आकाशीय जल, विश्वेदेव और अनेक कर्मों तथा ज्ञानों से संयुक्त देवी सरस्वती मेरे वचनों को श्रवण करें।[ऋग्वेद 10.65.13]
Let Madhura Madhymiki Vak, sky holder Aj Ek Pat, Sindhu, water present in the sky, Vishw Dev and goddess  Maa Saraswati accompanied with many endeavours and enlightenment, respond to my prayers.
विश्वे देवाः सह धीभिः पुरंध्या मनोर्यजत्रा अमृता ऋतज्ञाः।
रातिषाचो अभिषाचः स्वर्विदः स्व १ र्गिरो ब्रह्म सूक्तं जुषेरत
अनेक कर्मों और ज्ञानों से युक्त, मनुष्य के यज्ञ में यजनीय, अमर सत्यज्ञाता, हवि को ग्रहण करने वाले, यज्ञ में मिलने वाले और सब कुछ जानने वाले इन्द्रादि देवता हमारी स्तुतियों और उत्तम और निवेदित अन्न को ग्रहण करें।[ऋग्वेद 10.65.14]
Let Indr Dev & other demigods-deities, aware of the truth, knowing every thing, accompanied with many endeavours and enlightenment, respond to my prayers, accept the prayers, excellent offerings-oblations, food grains in the Yagy conducted humans.
देवान्वसिष्ठो अमृतान् ववन्दे ये विश्वा भुवनाभि प्रतस्थुः।
ते नो रासन्तामुरुगायमद्य यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः
वसिष्ठ वंश में उत्पन्न इन ऋषि ने अमर देवगणों की स्तुति की। जो देवता समस्त भुवनों में रहते हैं, वे आज हमें कीर्तिकर अन्न प्रदान करें। हे देवगणों! आप हमें कल्याण के साथ बचाएँ।[ऋग्वेद 10.65.15]
The Rishis born in the Vashishth clan worshiped the immortal demigods-deities. Demigods-deities present in all abodes should grant us glorious-nutritious food grains. Hey demigods-deities! In addition to blessing us, protect us simultaneously.(21.11.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (66) :: ऋषि :- वसुकर्ण, वासुक्र; देवता :-विश्वेदेव; छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
देवान् हुवे बृ॒हत्ऽश्रवसः (बृहच्छ्रवसः) स्वस्तये ज्योतिष्कृतो अध्वरस्य प्रचेतसः।
ये वावृधुः प्रतरं विश्ववदस इन्द्रज्येष्ठासो अमृता ऋतावृधः
जो देवता प्रचुर अन्न वाले, आदित्य तेज के कर्ता प्रकृष्ट ज्ञानी, सर्वधनी, इन्द्र वाले, अमर और यज्ञ से प्रबुद्ध हैं, उनको निर्विघ्न यज्ञ समाप्ति के लिए मैं बुलाता हूँ।[ऋग्वेद 10.66.1]
I invite-invoke the demigods-deities having sufficient food grains, Adity producer of radiance, highly enlightened, having wealth of all sorts, supported by Indr Dev, immortal and Yagy conscious for the accomplishment of the Yagy without any trouble-disturbance
इन्द्रप्रसूता वरुणप्रशिष्टा ये सूर्यस्य ज्योतिषो भागमानशुः।
मरुद्गणे वृजने मन्म धीमहि माघोने यज्ञं जनयन्त सूरयः
इन्द्र देव के द्वारा कार्यों में प्रेरित और वरुण देव के द्वारा अनुमोदित होकर जिन्होंने त्योतिर्मय सूर्य देव के गतिपथ को परिपूर्ण किया, उन्हीं शत्रु संहारक मरुद्‌गणों के स्तोत्र का हम चिन्तन करते हैं। हे विद्वानों! इन्द्र पुत्रों के यज्ञ का आयोजन करें।[ऋग्वेद 10.66.2]
We think of the destroyer Marud Gan inspired by Indr Dev, on being recommended by Varun Dev who completed the path-revolution cycle of Sury Dev. Hey learned-scholars! Organise the Yagy of Indr Dev's sons.
इन्द्रो वसुभिः परि पातु नो गयमादित्यैर्नो अदितिः शर्म यच्छतु।
रुद्रो रुद्रेभिर्देवो मृळयाति नस्त्वष्टा नो ग्राभिः सुविताय जिन्वतु
वसुओं के साथ इन्द्र देव हमारे गृह की रक्षा करें। आदित्यों के साथ माता आदिति हमें सुख प्रदान करें। रुद्र पुत्र मरुतों के साथ रुद्र देव हमें सुखी करें। पत्नी के साथ त्वष्टा हमारा सुख बढ़ावें।[ऋग्वेद 10.66.3]
Let Indr Dev protect out house along with Vasus. Let Mata Aditi grant us pleasure along with the Adity Gan. Let Rudr Dev comfort us along with his sons, Rudr Gan. Twasta should increase our comforts along with his wife.
अदितिर्धावापृथिवी ऋतं महदिन्द्राविष्णू मरुतः स्वबृहत्।
देवाँ आदित्याँ अवसे हवामहे वसून्रुद्रान्त्सवितारं सुदंससम्
माता अदिति, द्यावा-पृथ्वी, महान् सत्य अग्नि देव, इन्द्र देव, श्री विष्णु, मरुद्गण, विशाल हमारी रक्षा करें। स्वर्ग, अदित्यगण, वसुगण, रुद्रगण और उत्तम दाता सूर्य देव का हम आवाहन कर रहे हैं।[ऋग्वेद 10.66.4]
Let Mata Aditi, heaven & earth, great truthful Agni Dev, Indr Dev, Shri Hari Vishnu, Marud Gan and Vishal should protect us. We are invoking Adity Gan, Vasu Gan, Rudr Gan and excellent donor Sury Dev.
सरस्वान् धीभिर्वरुणो धृतव्रतः पूषा विष्णुर्महिमा वायुरश्विना।
ब्रह्मकृतो अमृता विश्ववेदसः शर्म नो यंसन् त्रिवरूथमंहसः
ज्ञानी समुद्र, कर्मनिष्ठ वरुण देव, पूषा, महिमावाले श्रीविष्णु, वायु देव, दोनों अश्विनी कुमारों, स्तोताओं को अन्न देने वाले ज्ञानी, पापियों के नाशक और अमर देवगण तीन खण्डों वाला गृह हमे प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.66.5]
Enlightened Samudr (ocean-sea), dedicated Varun Dev, Pusha, glorious-majestic Shri Hari Vishnu, Vayu Dev, Ashwani Kumars, learned scholars donating food grains, destroyer of the sinner and immortal demigods-deities should provide us  house having three segments.
वृषा यज्ञो वृषणः सन्तु यज्ञिया वृषणो देवा वृषणो हविष्कृतः।
वृषणा द्यावापृथिवी ऋतावरी वृषा पर्जन्यो वृषणो वृषस्तुभः
यज्ञ अभिलषित फल दे। यज्ञीय देवता कामना पूरी करें। देवता हवि आदि जुटाने वाले, यज्ञाधिष्ठात्री द्यावा-पृथ्वी, पर्जन्य और स्तोता सभी हमारी मनोकामना पूर्ण करें।[ऋग्वेद 10.66.6]
The Yagy should yield desired results. The deities arranging offerings-oblations, deity of Yagy heavens & earth,  Parjany Dev and the Stotas, should accomplish our desires. The demigods-deities should accomplish our wishes-desires.
अग्नीषोमा वृषणा वाजसातये पुरुप्रशस्ता वृषणा उप ब्रुवे।
यावीजिरे वृषणो देवयज्यया ता नः शर्म त्रिवरूथं वि यंसतः
अन्न पाने के लिए अभिष्ट दाता अग्नि देव और सोम का मैं स्तोत्र करता हूँ। समस्त संसार उन्हें दाता कहकर प्रशंसित करता है। उन दोनों को ही पुरोहित लोग यज्ञ में पूजित करते हैं। वे हमें तीन खण्डों वाला गृह प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.66.7]
I recite-compose Strotr for having food grains from the desires accomplishing Agni Dev and Som. Whole universe appreciate them as the donor. The Priest-Purohits worship both of them in the Yagy. Let them grant us house having three segments.
धृतव्रताः क्षत्रिया यज्ञनिष्कृतो बृहद्दिवा अध्वराणामभिश्रियः।
अग्निहोतार ऋतसापो अद्रुहोऽपो असृजन्ननु वृत्रतूर्ये
जो कर्तव्य पालन में सदैव तत्पर है, जो बलवान् है, जो यज्ञ को अलंकृत करते हैं, जिनकी दीप्ति महान् है, जो यज्ञ में आते हैं, जिन्हें अग्नि देव बुलाते हैं और जो सत्य पात्र हैं, उन्हीं देवों ने वृत्र युद्ध के समय जल का सृजन किया।[ऋग्वेद 10.66.8]
The mighty demigods-deities who are ready to perform their duty, decorated in the Yagy, possess great aura, come to the Yagy, truthful and are invoked by Agni Dev. They created water while killing Vratr.
द्यावापृथिवी जनयन्नभि व्रताप ओषधीर्वनिनानि यज्ञिया।
अन्तरिक्षं स्व १ रा पप्रूरूतये वशं देवासस्तन्वी ३ नि मामृजुः
अपने कार्य के द्वारा द्यावा-पृथ्वी, जल, वनस्पति और यज्ञोपयोगीं उत्तमोत्तम द्रव्य बनाकर देवगणों ने अपने तेज से आकाश और स्वर्ग को परिपूर्ण कर दिया। उन्होंने यज्ञ के साथ अपने को मिलाकर यज्ञ को अलंकृत किया।[ऋग्वेद 10.66.9]
The demigods-deities, heavens & earth, water, vegetation and excellent goods useful in the Yagy complemented the sky-space and heavens with their majesty. They decorated the Yagy by assimilating them selves in it.
धर्तारो दिव ऋभवः सुहस्ता वातापर्जन्या महिषस्य तन्यतोः।
आप ओषधीः प्र तिरन्तु नो गिरो भगो रातिर्वाजिनो यन्तु मे हवम्
ऋभुओं का हाथ सुन्दर है; वे आकाश के धारक हैं। वायु और मेघ का शब्द महान् होता है। जल और वनस्पति हमारे स्तोत्र को बढ़ावें। धनदाता भग और अर्यमा मेरे यज्ञ में पधारें।[ऋग्वेद 10.66.10]
Hands of Ribhus are beautiful. They hold the sky-space. Vayu-air and clouds make tremendous-great sound. Let water and vegetation grow-boost our Strotr. Wealth granting Bhag and Aryma should join my Yagy.
समुद्रः सिन्धू रजो अन्तरिक्षमज एकपात्तनयित्नुरर्णवः।
अहिर्बुध्न्यः शृणवद्वचांसि मे विश्वे देवास उत सूरयो मम
समुद्र, नदी, धूलिमय पृथ्वी, आकाश, अज, एकपात्, गर्जनशील मेघ और अहिर्बुध्न्य मेरा आह्वान श्रवण करें।[ऋग्वेद 10.66.11]
Let ocean, river-Nadi, earth having dust, sky, Aj, Ekpat, thundering clouds, Ahirbudhany respond to my invocation.
स्याम वो मनवो देववीतये प्राञ्चं नो यज्ञं प्र णयत साधुया।
आदित्या रुद्रा वसवः सुदानव इमा ब्रह्म शस्यमानानि जिन्वत
हे देव! हम मनु की सन्तान है। आपको हम यज्ञ दे सकें। हमारे सदा से प्रचलित यज्ञ को आप भली-भाँति सम्पन्न करें। हे आदित्यों, रुद्रों और वसुओं! आपकी दानशक्ति शोभन है। स्तोत्रों को श्रवण करें।[ऋग्वेद 10.66.13]
Hey deity-God! We are the progeny of Manu. We should be able to offer you Yagy. Accomplish our prevalent Yagy. Hey Adity Gan, Rudr Gan and Vasu Gan! Your donations are gracious-glorious. Listen-respond to the Strotrs.
दैव्या होतारा प्रथमा पुरोहित ऋतस्य पन्थामन्वेमि साधुया।
क्षेत्रस्य पतिं प्रतिवेशमीमहे विश्वान्देवाँ अमृताँ अप्रयुच्छतः
जो दो व्यक्ति देवों को बुलाने वाले हैं और जो सर्वश्रेष्ठ पुरोहित हैं, उन अग्नि देव और आदित्य की हवि से सेवा करता हूँ। मैं निर्विघ्न यज्ञमार्ग को जा रहा हूँ। हमारे पास रहने वाले क्षेत्रपति (देवता) और अमर देवों की आश्रय देने के लिए हम प्रार्थना करते हैं। प्रार्थना पूरी करने को वे तत्पर रहते हैं।[ऋग्वेद 10.66.13]
Those two person Agni Dev & Adity Gan, who are best Purohit-priests, I serve them with offerings-oblations. I am moving towards disturbance free path-route of Yagy. We worship-pray to the Kshetr Pati-immortal demigods for asylum. They are willing-ready to respond to our prayers.
वसिष्ठासः पितृवद्वाचमक्रत देवाँ ईळाना ऋषिवत्स्वस्तये।
प्रीताइव ज्ञातयः काममेत्यास्मे देवासोऽव धूनुता वसु
वसिष्ठ के समान ही वसिष्ठ के वंशजों ने स्तुति की। उन्होंने मङ्गल के लिए वसिष्ठ ऋषि के समान देवपूजा की। हे देवगणों! अपने मित्र के समान आकर सन्तुष्ट मन से अभिष्ट फल प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.66.14]
The descendants of  Vashishth worshiped-prayed like Rishi Vashishth. They worshiped Vashishth for blessings & welfare. Hey demigods-deities! Come like friends and grant desired awards with satisfied innerself.
देवान् वसिष्ठो अमृतान् ववन्दे ये विश्वा भुवनाभि प्रतस्थुः।
ते नो रासन्तामुरुगायमद्य यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः
वसिष्ठ वंशोत्पन्न इन ऋषि ने अमर देवगणों की स्तुति की। जो देवता अपने तेज से समस्त भुवनों में रहते हैं, वे आज हमें कीर्तिकर अन्न प्रदान करनें। हे देवगणों! मङ्गल के लिए आप हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 10.66.15]
The Rishis born in Vashishth clan worshiped immortal demigods-deities. The demigods-deities who live in their radiant-illuminate homes should grant us glorious food grains. Hey demigods-deities! Protect us for welfare.(22.11.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (67) :: ऋषि :- अयास्य, आंगिरस; देवता :-बृहस्पति; छन्द :- त्रिष्टुप्।
इमां धियं सप्तशीण्र्णीं पिता न ऋतप्रजातां बृहतीमविन्दत्।
तुरीयं स्विज्जनयद्विश्वजन्योऽयास्य उक्थमिन्द्राय शंसन्
हमारे पितरों (अङ्गिरा लोगों) ने सात छन्दों वाले विशाल स्तोत्र की रचना की। उसकी सत्य से उत्पत्ति हुई। संसार के हितैषी अयास्य ऋषि ने इन्द्र देव की प्रशंसा करते हुए एक पैर के स्तोत्र को बनाया।[ऋग्वेद 10.67.1]
Our Pitres-Manes (Angiras) composed this vast Strotr constituting of 7 metre. It evolved out of truth. Well wisher of the world Ayasy Rishi appreciated Indr Dev composed Strotr with one leg.
ऋतं शंसन्त ऋजु दीध्याना दिवस्पुत्रासो असुरस्य वीराः।
विप्रं पदमङ्गिरसो दधाना यज्ञस्य धाम प्रथमं मनन्त
अङ्गिरा लोगों ने यज्ञ के सुन्दर स्थान में जाना निश्चित किया। वे सत्यवादी हैं, उनके मन का भाव सरल है, वे स्वर्ग के पुत्र हैं, वे महाबली हैं और बुद्धिमानों के समान आचरण करते हैं।[ऋग्वेद 10.67.2]
Angiras decided to move to a beautiful place for Yagy. He is truthful. His innerself is simple, He is mighty & the son of heavens. He act like intelligent people.
हंसैरिहं सखिभिर्वावदद्भिरश्मन्मयानि नहना व्यस्यन्।
बृहस्पतिरभिकनिक्रदद्गा उत प्रास्तौदुच विद्वाँ अगायत्
हंसों के समान ही बृहस्पति के सहायकों ने कोलाहल करना प्रारम्भ किया। उनकी सहायता से बृहस्पति ने प्रस्तरमय द्वार को खोल दिया। भीतर रोकी गई गौवें चिल्लाने लगीं। वे उत्तमरूप से स्तोत्र और ऊँचे स्वर से गान करने लगे।[ऋग्वेद 10.67.3]
Helpers of Brahaspati started created noise like the swans. Brahaspati opened the doors made up of stones-rocks. Cows held inside started crying. They started singing Strotr in loud voice beautifully.
अवो द्वाभ्यां पर एकया गा गुहा तिष्ठन्तीरनृतस्य सेतौ।
बृहस्पतिस्तमसि ज्योतिरिच्छन्नुदुस्त्रा आकर्वि हि तिस्र आवः
गौवें नीचे एक-एक द्वार के द्वारा और ऊपर दो द्वारों के द्वारा अन्धकार या अधर्म के आलय स्वरूप उस गुफा में छिपाई गई थी। अन्धकार के बीच प्रकाश ले जाने की इच्छा से बृहस्पति ने तीनों द्वारों को खोलकर गौओं को (बाहर) निकाल दिया।[ऋग्वेद 10.67.4]
Cows were held-captivated in the dark cave through one door downwards and two doors upwards. Brahaspati opened the three doors and brought the cows out in the light.
विभिद्या पुरं शयथेमपाचीं निस्त्रीणि साकमुदधेरकृन्तत्।
बृहस्पतिरुषसं सूर्यं गामर्क विवेद स्तनयन्निव द्यौः
रात को चुपचाप शयनकर पुरी के पिछले भाग को तोड़ा और समुद्र तुल्य उस गुफा के तीनों द्वारों को खोल दिया (अथवा उषा, सूर्य और गाय को बाहर कर दिया)। प्रातःकाल उन्होंने पूजनीय सूर्य और गाय को एक साथ देखा। उस समय वह बादल के सदृश वीर हुङ्कार कर रहे थे।[ऋग्वेद 10.67.5]
हुंकार :: ललकारने का शब्द, उग्र और ज़ोर का शब्द; roar.
During the night the back portion-yard of the dark region was demolished, opened the three gates of the ocean like cave and released the cows. In the morning they saw the cows and worshipable Sury Dev. At that moment the brave warriors were roaring like the clouds.
इन्द्रो वलं रक्षितारं दुघानां करेणेव वि चकर्ता रवेण।
स्वेदाञ्जिभिराशिरमिच्छमानोऽरोदयत्पणिमा गा अमुष्णात्
जिस बल से गाय को रोका, उसे इन्द्र देव ने अपनी हुङ्कार से ही छिन्न-भिन्न कर डाला मानों अस्त्र से ही उसे मारा। मरुतों के साथ मिलने की इच्छा से उन्होंने पापी को रुलाया और गायों को प्राप्त किया।[ऋग्वेद 10.67.6]
The force with which cows were blocked, was teared by Indr Dev with his roar like striking with weapons. With the desire to meat Marud Gan, he made the sinners weep and got-released the cows.
स ई सत्येभिः सखिभिः शुचद्भिर्गोधायसं वि धनसैरदर्दः।
ब्रह्मणस्पतिर्वृषभिर्वराहैर्घर्मस्वेदेभिर्द्रविणं व्यानट्
अपने सत्यवादी, दीप्तिमान् और धनदाता सहायकों के साथ उन्होंने गायों को रोकने वाले बल को विदीर्ण किया। वर्षक, जल लाने वाले और प्रदीप्त गमन मरुतों के साथ उन साम स्तोत्र के अधिपति ने गोधन को अधिकृत किया।[ऋग्वेद 10.67.7]
उसने अपने सच्चे तेजस्वी धन-विजेता मित्रों (मरुतों ) के साथ मिलकर गौओं को रोकने वाले को नष्ट कर दिया तथा लाभ देने वाले, इच्छित जल लाने वाले, यज्ञ में आने वाले, आदि देवताओं के साथ ब्रह्माणस्पति ने भी धन अर्जित किया।
He teared the strength holding the cows with his truthful, radiant wealth winner helper-Marud Gan & Brahman Spati. The lord of Sam Strotr, rain showering, water bringing, (Indr Dev) along with radiant Marud Gan consecrate the cows. 
ते सत्येन मनसा गोपतिं गा इयानास इषणयन्त धीभिः।
बृहस्पतिर्मिथोअवद्यपेभिरुदुस्त्रिया असृजत स्वयुग्भिः
मरुतों ने सत्य चेता होकर अपने कर्मों से गायों को प्राप्त करते हुए बृहस्पति को गोपति बनाने की इच्छा की। परस्पर सहायक अपने मरुतों के साथ बृहस्पति ने गायों को बाहर किया।[ऋग्वेद 10.67.8]
Marud Gan became truthful, obtained cows with their endeavours and showed the desire to make Brahaspati the lord of cows. Mutually helpful Marud Gan and Brahaspati brought the cows out.
तं वर्धयन्तो मतिभिः शिवाभिः सिंहमिव नानदतं सधस्थे।
बृहस्पतिं वृषणं शूरसातौ भरेभरे अनु मदेम जिष्णुम्
अन्तरिक्ष में सिंह के सदृश शब्द करने वाले, कामों के वर्षक और विजयी बृहस्पति को बढ़ाने वाले हम मरुत् वीरों के संग्राम में मङ्गलमयी स्तुतियों से उनका स्तोत्र करते हैं।[ऋग्वेद 10.67.9]
We worship Marud Gan who roar like lion in the space, accomplish desires, with welfare related Stuties, promoters of winner Brahaspati reciting his Strotr.
यदा वाजमसनद्विश्वरूपमा द्यामरुक्षदुत्तराणि सद्म।
बृहस्पतिं वृषणं वर्धयन्तो नाना सन्तो बिभ्रतो ज्योतिरासा
जिस समय वह बृहस्पति नाना प्रकार के अन्न का सेवन करते हैं और जिस समय अन्तरिक्ष पर चढ़ते हैं, उस समय वर्षक बृहस्पति की विभिन्न दिशाओं में ज्योति धारण करने वाले देवता अपने मुखारविन्द से स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 10.67.10]
When Brahaspati eat various kinds of food items and ride in the space, demigods possessing radiance in different directions pray-worship rain showering Brahaspati with their mouths. 
सत्यामाशिषं कृणुता वयोधै कीरिं चिद्ध्यवथ स्वेभिरेवैः।
पश्चा मृधो अप भवन्तु विश्वास्तद्रोदसी शृणुतं विश्वमिन्वे
हे देवी! अन्न लाभ के लिए मेरी स्तुति को यथार्थ (सफल) करें। अपने आश्रय से मेरी रक्षा करें। समस्त शत्रुओं को नष्ट करें। संसार को प्रसन्न करने वाले द्यावा-पृथ्वी हमारे वचन को श्रवण करे।[ऋग्वेद 10.67.11]
Hey Devi-Goddess! Make my prayers successful for food grains. Protect me under your asylum and destroy all enemies. Heavens-earth amusing the world should respond-listen to our words.
इन्द्रो मह्ना महतो अर्णवस्य वि मूर्धानमभिनदर्बुदस्य।
अहन्नहिमरिणात्सप्त सिन्धून् देवैर्ध्यावापृथिवी प्रावतं नः
ईश्वर और महिमान्वित बृहस्पति ने महान् जल वाले मेघ का मस्तक काट दिया। उन्होंने जल को रोकने वाले शत्रु का वध किया। गङ्गा आदि नदियों को समुद्र में मिलाया। हे द्यावा-पृथ्वी! देवगणों के साथ हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 10.67.12]
Glorious deity Brahaspati beheaded the cloud having lots of water. He destroyed the enemy blocking water. Assimilated the river Ganga etc. in the ocean. Hey heavens & earth! Protect us along with the demigods-deities.(23.11.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (68) :: ऋषि :- अयास्य, आंगिरस; देवता :-बृहस्पति; छन्द :- त्रिष्टुप्।
उदप्रुतो न वयो रक्षमाणा वावदतो अभ्रियस्येव घोषाः।
गिरिभ्रजो नोर्मयो मदन्तो बृहस्पतिमभ्य१र्का अनावन्
जिस प्रकार जल सेचक कृषक शस्य क्षेत्र से पक्षियों को उड़ाते समय शब्द करते हैं, जिस प्रकार बादलों का गर्जन होता है अथवा जिस प्रकार पर्वत से धक्का लगने पर या मेघ से गिरने पर तरंगें शब्द करती हैं, उसी प्रकार ब्राह्मण गण बृहस्पति देव की सदैव स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 10.68.1]
The Brahmans worship Brahaspati Dev like the farmers who make sound to repel the birds irrigating crops-fields in the greenery or the sound produced by the clouds after striking mountains, lightening.
सं गोभिराङ्गिरसो नक्षमाणो भगइवेदर्यमणं निनाय।
जने मित्रो न दंपती अनक्ति बृहस्पते वाजयाशूरिवाजौ
अङ्गिरा के पुत्र बृहस्पति गुफा में रहने वाली गौओं के पास सूर्य देव का आलोक ले आए। भग देवता के समान उनका तेज व्याप्त हुआ। जिस प्रकार मित्र दम्पत्ति (स्त्री और पुरुष) का मिलन करा देते हैं, उसी प्रकार ही उन्होंने गायों को लोगों के साथ मिला दिया। हे बृहस्पति देव! जिस प्रकार युद्ध में अश्वों को दौड़ाया जाता है, उसी प्रकार ही गौओं को दौड़ाएँ।[ऋग्वेद 10.68.2]
Sons of Angira brought the radiance of Sury Dev in the cave of Brahaspati near the cows. The way relative unite the couple, they united the cows with the people. Hey Brahaspati Dev! The way horses are made to run in the war, similarly make the cows run.
साध्वर्या अतिथिनीरिषिराः स्पार्हाः सुवर्णा अनवद्यरूपाः।
बृहस्पतिः पर्वतेभ्यो वितूर्या निर्गा ऊपे यवमिव स्थिविभ्यः
जिस प्रकार धान की कोठी से जौ बाहर किया जाता है, उसी प्रकार ही बृहस्पति ने गायों को पर्वत से शीघ्र बाहर किया। गौवें मङ्गलरूप दुग्ध देने वाली, सतत गमनशीला, स्पृहणीया, वर्णमनोहरा और प्रशंसनीय मूर्ति थी।[ऋग्वेद 10.68.3]
The way barley is separated from the rice husk, similarly Brahaspati moved the cows out of the mountains. Cows grant blissful-auspicious milk, moves continuously, touchable, have attracting colours and appreciable.
आप्रुषायन्मधुन ऋतस्य योनिमवक्षिपन्नर्क उल्कामिव द्योः।
बृहस्पतिरुद्धरन्नश्मनो गा भूम्या उन्नेव वि त्वचं बिभेद
आकाश में उल्काओं के प्रकट होने के सदृश बृहस्पति देव यज्ञ के उद्भव स्थल में मधुर रसों की वर्षा करते हैं। पृथ्वी की त्वचा को बादलों की बूँदों के समान भेदने वाले बृहस्पति देव ने पर्वतों में से गौओं को मुक्त किया।[ऋग्वेद 10.68.4]
Brahaspati Dev shower sweet juices-saps at the opening of the Yagy like showering meteors in the sky. The way rain drop pierce the soil, Brahaspati Dev released the cows from the mountains.
अप ज्योतिषा तमो अन्तरिक्षादुद्रः शीपालमिव वात आजत्।
बृहस्पतिरनुमृश्या वलस्याभ्रमिव वात आ चक्र आ गाः
जिस प्रकार वायु देव जल से शैवाल को हटाते हैं, उसी प्रकार ही बृहस्पति देव ने आकाश से अन्धकार को दूर किया। जिस प्रकार वायु देव बादलों को फैलाते हैं, उसी प्रकार ही बृहस्पति ने विचार करके 'बल' के गोपन स्थान से गौओं को निकाला।[ऋग्वेद 10.68.5]
शैवाल :: समुद्री काई, घास या सेवार; algae, alga, moss. 
The way Vayu Dev remove algae from water, similarly Brahaspati Dev remove darkness from the sky. The way Vayu Dev spread clouds, Brahaspati Dev bring out the cows from secret chambers of Bal-demon with power.
यदा वहस्य पीयतो जसुं भेद्बृहस्पतिरग्नितपो भिरर्कै:
दद्भिर्न जिह्वा परिविष्टमाददाविर्निर्धरिंकृणोदुत्रियाणाम्
जिस समय हिंसक 'बल' का अस्त्र, बृहस्पति के अग्नि तुल्य प्रतप्त और उज्ज्वल अस्त्रों के द्वारा तोड़ दिया गया उस समय बृहस्पतिदेव ने गोधन पर अधिकार कर लिया। जिस प्रकार दाँतों के द्वारा मुँह में डाले गये पदार्थ का भक्षण जीभ करती है, उसी प्रकार ही पर्वत में गाय चुराने वाले पणियों का वध करके बृहस्पतिदेव ने गौओं को प्राप्त किया।[ऋग्वेद 10.68.6]
When the weapon of violent Bal was broken by Brahaspati's bright-shinning like fire, weapons Brahaspati took the cows in his control. The way the food is engulfed by tongue, brought into the mouth by the teeth, similarly Brahaspati Dev killed the Pani demons who had stolen the cows and got the cows back.
बृहस्पतिरमत हि त्यदासां नाम स्वरीणां सदने गुहा यत्।
आण्डेव भित्त्वा शकुनस्य गर्भमुदुत्रियाः पर्वतस्य त्मनाजत्
जिस समय उस गुफा में गायें शब्द करती थीं, उसी समय बृहस्पति ने समझा कि उसमें गौवें बन्द हैं। जिस प्रकार पक्षी अंडा फोड़कर बच्चे को निकालता है, उसी प्रकार वह भी पर्वत से गायों को निकाल ले आए।[ऋग्वेद 10.68.7]
While the cows in the cave made sound, at that moment Brahaspati realised that cows are enclosed in the cave. The way the birds break the egg and bring out the chicks, similarly he too brought the cows out of the mountain cave.
अश्नापिनद्धं मधु पर्यपश्यन्मत्स्यं न दीन उदनि क्षियन्तम्।
निष्टज्जभार चमसं वृक्षा‌द्ब्रहस्पतिर्विरवेणा विकृत्य
जिस प्रकार थोड़े जल में मत्स्य (व्याकुल) रहते हैं, उसी प्रकार ही बृहस्पति ने पर्वत के बीच बंधी और मधुर के समान अभीष्ट गौओं को देखा। जिस प्रकार वृक्ष से सोम पात्र को निकाला जाता है, उसी प्रकार ही बृहस्पति देव ने पर्वत से गौओं को निकाला।[ऋग्वेद 10.68.8]
The way the fish become rest less in less-little water, similarly Brahaspati saw the desired cows tied in the mountains. The way Som pot is carved out of wood, similarly, Brahaspati Dev brought out the cows from the mountains.
सोषामविन्दत्स स्व १ : सो अग्निं सो अर्केण वि बबाधे तमांसि।
बृहस्पतिर्गोवपुषो वलस्य निर्मज्जानं न पर्वणो जभार
बृहस्पति देव ने गौओं को देखने के लिए उषा को प्राप्त किया। उन्होंने सूर्य देव और अग्नि देव को पाकर उत्तम तेज से अन्धकार को नष्ट किया। गौओं से घिरे 'बल' के पर्वत से उन्होंने गौओं का उसी प्रकार से ही उद्धार किया, जिस प्रकार अस्थि से मज्जा बाहर की जाती है।[ऋग्वेद 10.68.9]
मज्जा :: गूदा, रस, बल, सार, शक्ति, सार, तत्त्व, सारांश, दोस्त, मित्र; marrow, pith, medulla.
Brahaspati Dev attained Usha to see the cows. He had Sury Dev and Agni Dev to remove darkness with bright light. He relieved the cows from the mountain of demon Bal surrounding the cows, just like the marrow is brought out of the bones.
हिमेव पर्णा मुषिता वनानि बृहस्पतिनाकृपयद्वलो गाः। 
अनानुकृत्यमपुनश्चकार यात्सूर्यामासा मिथ उचरातः
जिस प्रकार हिम पद्मपात्रों का हरण करता है, उसी प्रकार ही 'बल' की समस्त गौएँ बृहस्पति देव के द्वारा अपहृत हुई। ऐसा कार्य किसी अन्य के द्वारा किया जाना संभव नहीं। सूर्य और चन्द्र दोनों ही इसका प्रमाण प्रस्तुत करते हैं।[ऋग्वेद 10.68.10]
The way the ice covers the lotus pots, similarly the cows of demon Bal were abducted by Brahaspati Dev. It was not possible for any one else. Both Sury Dev and Chandr Dev produce proof for it.
अभि श्यावं न कृशनेभिरश्वं नक्षत्रेभिः पितरो द्यामपिंशन्।
रात्र्यां तमो अदधुज्र्योतिरहन्बृहस्पतिर्भिनदद्रिं विदद्गाः
पालक देवों ने द्युलोक को नक्षत्रों से उसी प्रकार ही अलंकृत किया, जिस प्रकार श्यामवर्ण के अश्वव को सुवर्णाभूषणों से विभूषित किया जाता है। उन्होने अन्धकार को रात्रि के लिए रखा और ज्योति दिन के लिए। पर्वत को फाड़कर बृहस्पति देव ने गोधन को प्राप्त किया।[ऋग्वेद 10.68.11]
Nursing-nurturing demigods-deities decorated the heavens with constellations similar to the decoration of black skinned horse with golden jewellery. He kept darkness for the night and light for the day. Brahaspati Dev teared the mountains and got the cows.
इदमकर्म नमो अभ्रियाय यः पूर्वीरन्वानोनवीति।
बृहस्पतिः स हि गोभिः सो अश्वैः स वीरेभिः स नृभिर्नो वयो धात्
जिन बृहस्पति देव ने अनेक ऋचाओं को कहा और जो अन्तरिक्ष वासी हो गये, उनको हमने नमस्कार किया। बृहस्पति देव हमें गाय, अश्व, सन्तान, दास और अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.68.12]
Brahaspati Dev who uttered these Richas (verses-meters), went to the space-sky and we saluted him. Let Brahaspati Dev grant us cows, horses, progeny, servants-slaves and food grains.(24.11.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (69) :: ऋषि :- सुमित्रो, वध्यश्व; देवता :- अग्नि; छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
भद्रा अग्नेर्वर्ध्यश्वस्य संदृशो वामी प्रणीतिः सुरणा उपेतयः।
यदीं सुमित्रा विशो अग्र इन्धते घृतेनाहुतो जरते दविद्युतत्
वध्र्यश्र्व ने जिन अग्नि देव को स्थापित किया, उनकी मूर्ति दर्शनीय है। जिस समय हम सुमित्र लोग अग्नि देव को स्थापित करते हैं, उस समय अग्नि देव घृताहुति पाकर उद्दीप्त होते हैं और उनकी हम स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 10.69.1]
Agni Dev established by Vradhyshrv is beautiful. When we Sumitrs establish Agni Dev, Agni Dev is illuminate by having offerings of Ghee and we worship him.
घृतमग्नेर्वध्र्यश्वस्य  वर्धनं घृतम्वस्य मेदनम्।
घृतेनाहुत उर्विया वि पप्रथे सूर्यइव रोचते सर्पिरासुतिः
वध्र्यश्र्व के अग्नि देव घृत द्वारा ही बढ़ें, घृत ही उनका आहार है और वही उनका पोषक है। घृताहुति पाकर अग्नि देव अत्यन्त विस्तृत होते हैं। घृत देने पर अग्नि देव सूर्य के समान प्रदीप्त हो जाते हैं।[ऋग्वेद 10.69.2]
Let Agni Dev of Vradhyshrv grow with Ghee which is his food and it nourishes him as well. Agni Dev turn too broad with the offerings of Ghee. Ghee make Agni Dev glow like Sury Dev.
यत्ते मनुर्यदनीकं सुमित्रः समीधे अग्रे तदिदं नवीयः।
स रेवच्छोच स गिरो जुषस्व स वाजं दर्षि स इह श्रवो धाः
जिस प्रकार मनु आपकी मूर्ति को प्रदीप्त करते हैं, उसी प्रकार ही मैं भी आपको प्रदीप्त करता हूँ। यह रश्मि संघ नया है। आप धनी होकर प्रदीप्त होवें। हमारे स्तोत्र को ग्रहण करें, शत्रुसेना को विदीर्ण करें और यहाँ अन्न स्थापित करें।[ऋग्वेद 10.69.3]
The way Manu glow you, I too glow-illuminate you. This group of rays is new. You should become rich and glorious. Accept our Strotr and destroy the army of the enemy and bring food grains here.
यं त्वा पूर्वमीळितो वाध्र्यश्र्व समीधे अग्ने स इदं जुषस्व।
स नः स्तिपा उत भवा तनूपा दात्रं रक्षस्व यदिदं ते अस्मे
वध्र्यश्र्व ने प्रथम आपको प्रदीप्त किया। आप हमारे गृह और शरीर की रक्षा करें। आपने यह जो कुछ दिया है, सबकी रक्षा करें।[ऋग्वेद 10.69.4]
Initially Vradhyshrv illuminated you. Protect our house and body. Protect what ever has been given to us by you.
भवा द्युम्नी वाध्र्यश्वोत गोपा मा त्वा तारीदभिमातिर्जनानाम्।
शूरइव धृष्णुश्र्च्यवनः सुमित्रः प्र नु वोचं वाध्र्यश्वस्य नाम
हे वध्र्यश्र्व के अग्नि देव! प्रदीप्त होवें। रक्षक बनें। लोगों की हिंसा करने वाले आपको पराजित न कर पावें। वीर के सदृश शत्रु घर्षक और शत्रु नाशक बनें। वध्र्यश्र्व के अग्नि देव के नामों को मैं कहता हूँ।[ऋग्वेद 10.69.5]
Hey Agni Dev of Vradhyshrv! Glow-illuminate. Protect us. Those who harm other people should not be able to defeat you. Become the destroyer and slayer like a brave person.  
समज्रया पर्वत्या ३ वसूनि दासा वृत्राण्यार्या जिगेथ।
शूरइव धृष्णुश्र्च्यवनो जनानां त्वमग्ने पृतनायूँरभि ष्याः
हे अग्नि देव! पर्वत पर उत्पन्न जो धन है, उसे आपने दासों से जीतकर आर्यों को दिया। आप दुर्द्धर्ष वीर के सदृश शत्रुओं का वध करें। जो युद्ध करने आते हैं, उनसे युद्ध करें।[ऋग्वेद 10.69.6]
Hey Agni Dev! You won the wealth over the mountain from the slaves and gave it to the Ary. Destroy-kill the enemies like an invincible brave person.  Fight those who come forward to fight.
दीर्घतन्तुर्बृदुक्षायमग्निः सहस्त्रस्तरीः शतनीथ ऋभ्वा।
द्युमान् द्युमत्सु नृभिर्मृज्यमानः सुमित्रेषु दीदयो देवयत्सु
ये अग्नि देव दीर्घ तन्तु हैं (इनका वंश विस्तृत है)। ये प्रधान दाता हैं। ये हजारों स्थानों को आच्छादित करते हैं। शत संख्यक मार्गों से जाते हैं। ये प्रदीप्तों में महान् प्रदीप्त है। प्रधान पुरोहित लोग इन्हें अलंकृत करते हैं। हे अग्नि देव! देवभक्त सुमित्र वंशियों के गृह में प्रदीप्त होवें।[ऋग्वेद 10.69.7]
The lineage of Agni Dev is vast. He is the main donor. He pervade thousands of places. Moves through hundreds of routes. He is most illuminated amongest the illuminated. Chief Priests have decorated him. Hey Agni Dev! Shine in the homes of the descendants of Sumitr- the devotees of God. 
त्वे धेनुः सुदुघा जातवेदोऽसश्चतेव समना सबर्धुक्।
त्वं नृभिर्दक्षिणावाद्भिरग्ने सुमित्रेभिरिध्यसे देवयद्भिः
हे ज्ञानी अग्नि देव! आपकी गौओं को बहुत सरलता से दूहा जाता है। उनके दोहन में कोई विघ्न-बाधा नहीं है। वह सावधान होकर अमृत रूप दूध देती है। देव भक्त सुमित्र वंशीय प्रमुख व्यक्ति दक्षिणा सम्पन्न होकर आपको प्रज्वलित करते हैं।[ऋग्वेद 10.69.8]
Hey enlightened Agni Dev! Your cows are milked easily. There is no difficulty in milking them. They attentively grant milk equivalent to elixir. Important people of the devotees of God of Sumitr clan, get Dakshina and ignite you.
देवाश्चित्ते अमृता जातवेदो महिमानं वध्र्यश्व प्र वोचन्।
यत्संपृच्छं मानुषीर्विश आयन्त्वं नृभिरजयस्त्वावृधेभिः
हे वध्र्यश्र्व के अग्नि देव! अमर देवता आपकी महिमा का गान करते हैं। जिस समय मनुष्य लोग आपकी महिमा जानने के लिए गए, उस समय आपने सबके नेता और वर्द्धित देवों के साथ कर्म विध्न कारकों को जीत लिया।[ऋग्वेद 10.69.9]
Hey Agni Dev of Vradhyshrv! Immortal demigods-deities sing your glory. When the humans came to know of your glory-majesty, you over powered all disturbances; with their leader and the growing demigods-deities.
पितेव पुत्रमबिभरुपस्थे त्वामग्ने वध्र्यश्वः सपर्यन्।
जुषाणो अस्य समिधं यविष्ठोत अवनोर्वृाधतश्चित्॥ 
हे अग्नि देव! जिस प्रकार पिता पुत्र को गोद में लेकर उसका लालन-पालन करता है, उसी प्रकार ही मेरे पिता ने आपकी सेवा की है। हे युवा अग्नि देव! आपने मेरे पिता से समिधा प्राप्त करके बाधक शत्रुओं का वध किया।[ऋग्वेद 10.69.10]
लालन-पालन :: शिक्षा, तालीम, पालन-पोषण; upbringing, nurture.
Hey Agni Dev! The way a father take his son in his lap and upbringing, nurture him, similarly my father has served you. Hey youthful Agni Dev! You destroyed the enemy after having wood from my father. 
शश्वदग्निर्वध्र्यश्वस्य शत्रून्नृभिर्जिगाय सुतसोमवद्भिः।
समनं चिददहश्चित्रभानोऽव ब्राधन्तमभिनवृधश्चित्
सोमरस प्रस्तुत करने वालों के साथ वध्र्यश्र्व के अग्नि देव शत्रुओं को हमेशा से जीतते आए हैं। हे विभिन्न तेजों वाले अग्नि देव! आपने ध्यान देकर हिंसक को जलाया है। जो हिंसक अधिक बढ़ गये थे, उन्हें अग्नि देव ने मार डाला।[ऋग्वेद 10.69.11]
Agni Dev of Vradhyshrv along with those who serve Somras, have always been winning the enemies. Hey Agni Dev, having vivid aura! You burnt the enemies carefully. You destroyed those violent people who had grown in large numbers. 
अयमग्निर्वध्यश्वस्य वृत्रहा सनकात्प्रेद्धो नमसोपवाक्यः।
स नो अजार्मरुिंत वा विजामीनभि तिष्ठ शर्धतो वाध्यश्व
वध्र्यश्र्व के अग्नि देव शत्रु हन्ता हैं। ये सदैव से प्रज्वलित हैं। ये नमस्कार के योग्य हैं। हे  वध्र्यश्र्व के अग्नि देव! आप हमारे विद्रोही शत्रुओं और विजातीय हिंसकों को पराजित करें।[ऋग्वेद 10.69.12]
Agni Dev of Vradhyshrv is the destroyer of the enemies. He is always ignited. He deserve salutations. Hey Agni Dev of Vradhyshrv! Defeat our revolting enemies and the violent people of other groups-clans.(25.11.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (70) :: ऋषि :- सुमित्र, वध्य्रश्व; देवता :- आप्रिसूक्त; छन्द :- त्रिष्टुप्।
इमां मे अग्ने समिधं जुषस्वेळस्पदे प्रति हर्या घृताचीम्।
वर्ष्मन् पृथिव्याः सुदिनत्वे अह्नामूर्ध्वा भव सुक्रतो देवयज्या
हे अग्नि देव! आप उत्तर वेदी पर हमारे दी गई समिधा को ग्रहण करें और घृत सिंचन की अभिलाषा करें। हे सुप्रज्ञ अग्नि देव! पृथ्वी के उन्नत प्रदेश पर सुदिन के लिए देवयज्ञ के ज्वालाओं के साथ ऊपर उठें।[ऋग्वेद 10.70.1]
Hey Agni dev! Accept the wood by us over Uttar Vedi with the desire of pouring Ghee. Hey enlightened Agni Dev! Rise upwards in the "Dev Yagy" of Sudin at the elevated part of land-earth, with flames.
आ देवानामग्रयावेह यातु नराशंसो विश्वरूपेभिरश्वैः।
ऋतस्य पथा नमसा मियेधो देवेभ्यो देवतमः सुषूदत्
देवों के अग्रगामी और मनुष्यों के द्वारा प्रशंसनीय अग्नि देव नाना वर्णों वाले अश्वों के साथ इस यज्ञ में पधारें। अत्यन्त योग्य और देवों में मुख्य अग्नि देव हवि ग्रहण करें।[ऋग्वेद 10.70.2]
Marching forward amongest the demigods-deities and appreciated by the humans Agni Dev should ride the horses of vivid colour and come to the Yagy. Highly qualified and main amongest the demigods-deities Agni Dev should accept offerings.
शश्वत्तममीळते दूत्याय हविष्मन्तो मनुष्यासो अग्निम्।
वहिष्ठैरश्वै:  सुवृता रथेना देवान् वक्षि नि षदेह होता
हविर्दाता यजमान सनातन अग्नि देव की दूतकर्म के लिए स्तुति करते हैं। वाहक अश्वों और सुन्दर रथ के साथ इन्द्रादि देवों को यज्ञ में ले आवें। होता होकर आप इस यज्ञ में प्रतिष्ठित हों।
[ऋग्वेद 10.70.3]
The hosts making offerings to eternal Agni Dev pray him to function as messenger. Bring the Indr Dev and other demigods-deities with the carrier horses and charoites in the Yagy. You should become Hota and honoured in the Yagy.
वि प्रथतां देवजुष्टं तिरश्चा दीर्घ द्राघ्मा सुरभि भूत्वस्मे।
अहेळता मनसा देव बर्हिरिन्द्रज्येष्ठाँ उशतो यक्षि देवान्
देवों के द्वारा सेवित और टेढ़ा कुश विस्तृत हो अत्यन्त लम्बा हो। हमारा कुश सुरभि हो। हे बर्हि नामक अग्नि देव! प्रसन्नचित से हवि चाहने वाले इन्द्रादि देवगणों का पूजन करें।[ऋग्वेद 10.70.4]
The Kush used by the demigods should be curved-bent, too long and possess sweet fragrance. Hey Agni Dev, named Barhi! Worship Indr Dev & other demigods-deities happily-delightedly.
दिवो वा सानु स्पृशता वरीयः पृथिव्या वा मात्रया वि श्रयध्वम्।
उशतीर्द्वारो   महिना महद्भिर्देवं रथं रथयुर्धारयध्वम्
हे द्वार देवियों! आकाश के उन्नत स्थान का स्पर्श करें या उन्नत होवें। पृथ्वी के समान विस्तृत होवें। देवाभिलाषी और रथकामी होकर आप लोग अपनी महिमा से देवों के द्वारा अधिष्ठित और विहार साधन रथ को धारण करें।[ऋग्वेद 10.70.5]
Hey goddesses of the door-gate! Touch the high altitude of the sky. Become vast-broad like the earth. You should have the desire to meet the demigods and have charoite, occupy the charoite and roam with the grace-glory of demigods-deities.
देवी दिवो दुहितरा सुशिल्पे उषासानक्ता सदतां नि योनौ।
आ वां देवास अती उशन्त उरौ सीदन्तु सुभगे उपस्थे॥
प्रकाशमाना द्युलोक की पुत्री और शोभन रूपा देवी उषा और रात्रि यज्ञ स्थान में विराजमान् हों। हे अभिलाषिणी और शोभन धन देवियों! आपके विस्तृत और समीपस्थ स्थान में हवि की अच्छा वाले देवता विराजमान हों।[ऋग्वेद 10.70.6]
Let glorious Devi Usha, the illuminated daughter of heavens and Ratri, present herself over the Yagy site. Hey desirous and glorious goddesses of wealth! Demigods-deities desirous of offerings, should be present by your side in your vast and nearest place.
ऊर्ध्वो ग्रावा बृहदग्निः समिद्धः प्रिया धामान्यदितेरुपस्थे।
पुरोहितावृत्विजा यज्ञे अस्मिन् विदुष्टरा द्रविणमा यजेथाम्
जिस समय सोमाभिषव के लिए पाषाण उठाया जाता है, जिस समय महान् अग्नि देव समिद्ध होते हैं और जब हवियों को धारण करने वाले पात्र यज्ञस्थल में उपस्थित किए जाते तब हे पुरोहित और ऋत्विक्! आप इस यज्ञ में धनादि प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.70.7]
When stone is raised for the extraction of Somras, great Agni Dev gets woods, pots carrying offerings are brought to the Yagy site, then hey Priest and Ritviz! Grant money for the Yagy.
तिस्रो देवीर्बर्हिरिदं वरीय आ सीदत चकृमा वः स्योनम्।
मनुष्वद्यज्ञं सुधिता हवींषीळा देवी घृतपदी जुषन्त
हे इडा आदि तीन देवियों! इस उन्नत कुशा पर बैठें। आपके लिए इसे हमने बिछाया है। इडा, प्रकाशमना सरस्वती और दीप्त पद ही हमारे यज्ञ में भली-भाँति रखे हुए हवि को ग्रहण करें।[ऋग्वेद 10.70.8]
Hey Id etc. 3 goddesses! Occupy this elevated Kush Mat. We have laid for you. Ida, illuminated Devi Saraswati & Deept Pad; accept the offerings in our Yagy, kept carefully.
देव त्वष्टर्यद्ध चारुत्वमानड्यदङ्गिरसामभवः सचाभूः।
स देवानां पाथ उप प्र विद्वानुशन् यक्षि द्रविणोदः सुरत्नः
हे त्वष्टा देव! आप मङ्गलमय रूप प्राप्त कर चुके हैं। आप अङ्गिरा लोगों के मित्र होवें। हे धन दाता! आप सुन्दर धन वाले हैं। हवि की इच्छा करके आप देवों का भाग जानकर उन्हें अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.70.9]
Hey Twasta Dev! You have attained auspicious form. You should be friendly with Angira etc. Hey wealth donor! You possess beautiful wealth. Having understood your desire for offerings, food grains were offered to demigods-deities.
वनस्पते रशनया नियूया देवानां पाथ उप वक्षि विद्वान्।
स्वदाति देवः कृणवद्धवींष्यवतां द्यावापृथिवी हवं मे
हे वनस्पति से बने यूप काष्ठ! आप जानकार हैं। आप रज्जु के द्वारा बाँधे गए देवों को अन्न दें। वनस्पति देव हवि का स्वाद लें और हमारे दिये गए हवि को देवों को दें। मेरे आह्वान की रक्षा द्यावा-पृथ्वी करें।[ऋग्वेद 10.70.10]
Hey Pole made of vegetation-wood! You are learned. Grant food grains to demigods tied with the cord. Let Vanaspati Dev taste the offerings and forward them to demigods-deities. Heaven & earth should support my invocation.
आग्ने वह वरुणामिष्टये न इन्द्रं दिवो मरुतो अन्तरिक्षात्।
सीदन्तु बर्हिविश्व आ यजत्राः स्वाहा देवा अमृता मादयन्ताम्
हे अग्नि देव! हमारे यज्ञ के लिए द्युलोक और अन्तरिक्ष से इन्द्र देव, वरुण देव और मित्र को ले आवे। यजनीय सब देवता कुश पर विराजें। अमर देवता स्वाहा शब्द से आनन्दित हों।[ऋग्वेद 10.70.11]
Hey Agni Dev! Bring Indr Dev, Varun Dev and Mitr from the heavens and space in our Yagy. Worshipable demigods-deities should occupy Kush Mat. Immortal demigods should be happy with the word Swaha.(26.11.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (71) :: ऋषि :- बृहस्पति, आंगिरस; देवता :-ज्ञान;  छन्द :- त्रिष्टुप्, जगती।
बृहस्पते प्रथमं वाचो अग्रं यत्पैरत नामधेयं दधानाः।
यदेषां श्रेष्ठं यदरिप्रमासीत्प्रेणा तदेषां निहितं गुहाविः
हे बृहस्पति देव! बच्चे सबसे पहले पदार्थो का नाम मात्र जानते हैं। यह उनकी भाषा की पहली सीढ़ी है। इनका जो उत्कृष्ट और निर्दोष ज्ञान (वेदार्थ ज्ञान) गोपनीय है, वह देवी सरस्वती की कृपा से प्रकट होता है।[ऋग्वेद 10.71.1]
Hey Brahaspati Dev! The children initially know the names of objects. Its their first step towards learning. The excellent and defectless knowledge appears by virtue-grace of Maa Bhagwati Saraswati.
सक्तुमिव तितउना पुनन्तो यत्र धीरा मनसा वाचमक्रत।
अत्रा सखायः सख्यानि जानते भद्वैषां लक्ष्मीर्निहिताधि वाचि
जिस प्रकार सूप-छाज से सत्तू को परिष्कृत किया जाता है, उसी प्रकार ही बुद्धिमान् लोग बुद्धिबल से परिष्कृत भाषा को प्रस्तुत करते हैं। उस समय विद्वान्‌ लोग अपने अभ्युदय को जानते है। इनके वचनों में मङ्गलमयी लक्ष्मी निवास करती हैं।[ऋग्वेद 10.71.2]
The way mixture of roasted barley & gram is cleansed by winnowing, similarly the intellectuals make use of refined language. The learned-scholars knows their rise. Maa Lakshmi remain present in their words.
यज्ञेन वाचः पदवीयमायन् तामन्वविन्दन्नृषिषु प्रविष्टाम्।
तामाभृत्या व्यदधुः पुरुत्रा तां सप्त रेभा अभि स नवन्ते
बुद्धिमान् लोग यज्ञ के द्वारा वचन (भाषा) को मार्ग पाते हैं। ऋषियों के अन्तःकरण में जो वाक् (भाषा) थी, उसको उन्होंने प्राप्त किया। उस वाणी (भाषा) को लेकर उन्होंने समस्त मनुष्यों को पढ़ाया। सातों इन्द्र इसी भाषा में स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 10.71.3]
The intelligent people attain language through Yagy. They attained the language present in the innerself-mind of the Rishis. They taught language to the entire human community. All seven Indr worship in this language (Sanskrat).
उत त्वः पश्यन्न ददर्श वाचमुत त्वः श‍ृण्वन्न श‍ृणोत्येनाम्
उतो त्वस्मै तन्वं १ वि सस्त्रे जायेव पत्य उशती सुवासाः
कोई-कोई समझकर या देखकर भी भाषा को नहीं समझते या देखते; कोई उसे सुनकर भी नहीं सुनते। किसी-किसी के पास वाग्देवी स्वयं उसी प्रकार ही प्रकट होती हैं, जिस प्रकार संभोगाभिलाषी पत्नी सुन्दर वस्त्र धारण करके अपने स्वामी के पास अपने शरीर को समर्पित करती है।[ऋग्वेद 10.71.4]
Some people fail to understand-grasp language even by listening, viewing, hearing. Goddesses of speech herself present to some people just like the woman eager to have sex with her husband, offering her body clad in beautiful dress.
उत त्वं सख्ये स्थिरपीतमाहुर्नैनं हिन्वन्त्यपि वाजिनेषु।
अधेन्वा चरति माययैष वाचं शुश्रुवाँ अफलामपुष्पाम्
विद्वान्मण्डली में किसी-किसी की यह प्रतिष्ठा है कि वह उत्तम-भावग्राही है और उसके बिना कोई कार्य नहीं हो सकता (ऐसे लोगों के कारण ही वेदार्थ ज्ञान होता है)। कोई-कोई असार- वाक्य का अभ्यास करते हैं। वे वास्तविक धेनु नहीं हैं, काल्पनिक माया-मात्र धेनु है।[ऋग्वेद 10.71.5]
Amongest the intellectuals some has the reputation of being an excellent acceptor. of the gist. Without them its not possible to perform any job. (Such people provide the real interpretation of Ved). Some people practice useless-meaning less words. That's just illusion-unreal; i.e., they wanders with an illusion that is barren, bearing speech without fruit, without flowers.
यस्तित्याज सचिविदं सखायं न तस्य वाच्यपि भागो अस्ति।
यदीं श‍ृणोत्यलकं श‍ृणोति नहि प्रवेद सुकृतस्य पन्थाम्
जो विद्वान् मित्र को छोड़ देता है, उसकी वाणी से कोई फल नहीं है। वह जो कुछ सुनता है, व्यर्थ ही सुनता है। वह सत्कर्म का मार्ग नहीं जान सकता।[ऋग्वेद 10.71.6]
The words of such intellectuals who desert friends, become useless-fruitless. Whatever is heard by them become meaningless-useless. None knows their virtuous performances. 
अक्षण्वन्तः कर्णवन्तः सखायो मनोजवेष्वसमा बभूवुः।
आदघ्नास उपकक्षास उ त्वे हृदाइव स्नात्वा उ त्वे ददृश्रे
जिन्हें आँखें हैं, कान है, ऐसे मित्र (समानज्ञानी) मन के भाव को (ज्ञान को) प्रकाश करने में असाधारण होते हैं। कोई-कोई मुख तक जल वाले पुष्कर और कोई-कोई कटि-पर्यन्त जलवाले तड़ाग के सदृश होते हैं। कोई-कोई स्नान करने के उपयुक्त गम्भीर हृद्-तालाब के समान होते हैं।[ऋग्वेद 10.71.7]
Those friends with ears & eyes are able to express their thoughts-ideas exceptionally. Some people are like water till the mouth while others are like the pond having water till naval. Some people are like the pond in which one take bath.
Some people have exceptional-in depth knowledge, while others have little or too little. Mere knowledge is not enough, one should be able to understand it.
हृदा तष्टेषु मनसो जवेषु यद्ब्राह्मणाः संयजन्ते सखायः।
अत्राह त्वं वि जोहुर्वेद्याभिरोहब्रह्माणो वि चरन्त्यु त्वे
जिस समय अनेक समान ज्ञानी ब्राह्मण हृदय से मनोगम्य वेदार्थों के गुण-दोष (शास्त्रार्थ) परीक्षण के लिए एकत्रित होते हैं, उस समय किसी-किसी व्यक्ति को कुछ ज्ञान नहीं होता। कोई-कोई स्तोत्रज्ञ (ब्राह्मण) वेदार्थज्ञाता होकर विचरण करते हैं।[ऋग्वेद 10.71.8]
When Brahmans-learned-scholars gather and analyse the quality and defects, some of them have no knowledge at all. There are Brahmans who have in depth knowledge and still they wish to have-acquire more of it. 
इमे ये नाङ्र्वान परश्चरन्ति न ब्राह्मणासो न सुतेकरासः।
त एते वाचमभिपद्य पापया सिरीस्तन्त्रं तन्वते अप्रजज्ञयः
जो व्यक्ति इस लोक में वेदज्ञ ब्राह्मणों के और परलोकीय देवों के साथ (यज्ञादि में) कर्म नहीं करते, जो न तो स्तोता (ऋत्विक्) है, न सोम यज्ञ कर्ता हैं, वे पापाश्रित लौकिक भाषा की शिक्षा के द्वारा मूर्ख व्यक्ति के समान हल जोतने वाले बनकर कृषिरूप बाना बुनते हैं।[ऋग्वेद 10.71.9]
Those people who do not perform like the enlightened Brahmans in this abode and like the demigods-deities in other abodes (heavens etc.); neither they are Ritviz nor performer of Som Yagy, are like the idiot-illiterate ploughing fields.
सर्वे नन्दन्ति यशसागतेन सभासाहेन सख्या सखायः।
किल्बिषस्पृत्पितुषणिर्ह्ये॑षामरं हितो भवति वाजिनाय
जब पुरोहितों की सभा का आश्रय, मित्र वत आहुति (अर्पण) आ जाती है, तो सभी मित्र आनन्दित होते हैं; क्योंकि (सोम), जो अधर्म को दूर करने वाला, जीविका देने वाला है, पात्रों में बहुल होने के कारण, उनकी स्फूर्ति के लिए पर्याप्त है।
सोम मित्र के सदृश कार्य करते हैं, यह सभा में प्रावान्य प्रदान करते हैं। इन्हें प्राप्त करके सब प्रसन्न होते हैं; क्योंकि यश के द्वारा दुर्नाम दूर होता है, अन्न प्राप्ति होती है, बल मिलता है, नाना प्रकार से उपकार होता है।[ऋग्वेद 10.71.10]
Som functions like a friend & makes offerings. Everyone become happy on having him since it leads to honour-fame and removes blots-bad name, grant food grains & strength.
ऋचां त्वः पोषमास्ते पुपुष्वान् गायत्रं त्वो गायति शकरीषु।
ब्रह्मा त्वो वदति जातविद्यां यज्ञस्य मात्रां वि मिमीत उ त्वः
एक जन अनेक ऋचाओं का स्तवन करते हुए यज्ञानुष्ठान में सहायता करते हैं, दूसरे गायत्री छन्द में सामगान करते हैं। ब्रह्मा नामक जो पुरोहित है, वे प्रायश्चितादि की व्याख्या करते हैं। अर्ध्वयु पुरोहित यज्ञ के विभिन्न कार्य करते हैं।[ऋग्वेद 10.71.11]
One person (host-Ritviz) recite Richas-hymns helping in the endeavours pertaining to Yagy and others recite Sam Gan like the hymns of Gayatri. The Purohit-Priest named Brahma describe-discuss atonement-penances. Other Priests perform other Yagy related work.(27.11.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (72) :: ऋषि :- लोक्यो बृहस्पति या बृहस्पति आंगिरस या दाक्षायणी या अदिति; देवता :- देवगण;  छन्द :- अनुष्टप।
देवानां नु वयं जाना प्र वोचाम विपन्यया। उक्थेषु शस्यमानेषु यः पश्यादुत्तरे युगे
हम देवों या आदित्यों के जन्म को स्पष्टरूप से कहते है। आगे आने वाले युग में देवसंघ, यज्ञानुष्ठान होने पर स्तोता को देखेंगे।[ऋग्वेद 10.72.1]
We shall clearly describe the evolution of demigods, Adity Gan. In the following times-Yug group of demigods-deities will see the Stota.
ब्रह्मणस्पतिरेता सं कर्मारइवाधमत्। देवानां पूर्व्य युगेऽ सतः सदजायत
आदि सृष्टि में ब्रह्मण स्पति ने कर्मकार के सदृश देवों को उत्पन्न किया। असत् या अविद्यमान (नाम-रूप विहीन) से सत् (नाम रूप आदि) उत्पन्न हुए।[ऋग्वेद 10.72.2]
सत्-असत् :: सत् :- शाश्वत, नित्य, सुख स्वरूप, आनंद स्वरूप, ज्ञान स्वरूप; असत् :-  नश्वर और दुःख रूप, जो कि भय, चिंता, खिन्नता, राग-द्वेष और क्लेश;  सत् :- Imperishable Almighty & असत् :- Perishable Nature.
During eternal evolution, Brahman Spati evolved the demigods like a producer. Imperishable and perishable goods appeared.
देवानां युगे प्रथमेऽसतः सदजायत। तदाशा अन्वजायन्त तदुत्तानपदस्परि
देवोत्पत्ति के पूर्व समय में असत् से सत् उत्पन्न हुआ। इसके अनन्तर दिशाएँ उत्पन्न हुई और दिशाओं के अनन्तर वृक्ष उत्पन्न हुए।[ऋग्वेद 10.72.3]
Prior to evolution of demigods-deities,  imperishable evolved out of perishable. Thereafter directions appeared followed by trees.
भूर्जज्ञ उत्तानपदो भुव आशा अजायन्त। अदितेर्दक्षो अजायत दक्षाद्वदितिः परि
वृक्षों से पृथ्वी उत्पन्न हुई और पृथ्वी से दिशाएँ उत्पन्न हुईं। अदिति से दक्ष उत्पन्न हुए और दक्ष से अदिति।[ऋग्वेद 10.72.4]
Earth appeared from trees, and direction appeared from earth. Daksh evolved out of Aditi and Aditi out of Daksh.
अदितिर्ह्यजनिष्ट दक्ष या दुहिता तव। तां देवा अन्वजायन्त भद्रा अमृत-बन्धवः
हे दक्ष! आपकी पुत्री अदिति ने देवों को जन्म दिया। देवता स्तुत्य और अमर हैं।[ऋग्वेद 10.72.5]
Hey Daksh! Your daughter produced worshipable and immortal demigods. 
यद्देवा अदः सलिले सुसंरब्धा अतिष्ठत। अत्रा वो नृत्यतामिव तीव्रो रेणुरपायत
देवगण इस सलिल में रहकर महोत्साह प्रकट करने लगे। वे मानो नाचने लगे। इससे दुःसह धूलि उठी।[ऋग्वेद 10.72.6]
सलिल :: जल, जलधि, वारि, उदक, नीर, अप्सरा, तोय, निर्मल; water.
The demigods were enthusiastic and dancing leading to evolution of dust storm.
यद्देवा यतयो यथा भुवनान्यपिन्वत। अत्रा समुद्र आ गूळ्हमा सूर्यमजभर्तन
बादलों के समान देवगणों ने समस्त विश्व संसार को ढक लिया। आकाश में सूर्य देव निगूढ़ थे। देवगणों ने उन्हें प्रकाशित किया।[ऋग्वेद 10.72.7]
निगूढ़ :: जो जल्दी समझ में न आए; दुरूह; दुर्बोध, अत्यंत गुप्त, रहस्यपूर्ण,  छिपा हुआ,  अव्यक्त, अप्रकट; esoteric, undisclosed, secret, confidential, hidden and not obvious at the moment, cryptic.
प्रकट करना :: उधेड़ना, जताना, प्रकाशित करना, फैलाना, खोलना, प्रत्यक्ष करना; आविर्भाव, उद्घाटन, पर्दाफ़ाश; evolution, disclosure, manifestation, divulgation, divulgement, expose, unfold, reveal, evince.
Demigods covered the whole world like clouds. Sury Dev was hidden in the sky. Demigods revealed him.
अष्टौ पुत्रासो अदितेर्ये जातास्तन्व १ स्परि। देवाँ उप प्रैत्सप्तभिः मार्ताण्डमास्यत्
अदिति के आठ पुत्र (मित्र, वरुण, धाता, अर्यमा, अंश, भग, विवस्वान और आदित्य-सूर्य) हुए, जिनमें से सात को लेकर वह देवलोक में गईं और आठवें सूर्य को आकाश में छोड़ दिया।[ऋग्वेद 10.72.8]
Aditi had 8 sons viz. Mitr, Varun, Dhata,  Aryma, Ansh, Bhag, Vivasvan and Adity. She 7 of them to heavens and left the eight Sury Dev in the sky. 
सप्तभिः पुत्रैरदितिरुप प्रैत्पूर्व्य युगम्। प्रजायै मृत्यवे त्वत्पुनर्माताण्डमाभरत्
उत्तम युग में सात पुत्रों को लेकर अदिति चली गईं और जन्म और मृत्यु के लिए सूर्य को आकाश में स्थापित कर दिया।[ऋग्वेद 10.72.9]
During the Yug-era called Uttam, Aditi left with 7 sons and established Sury Dev for birth and death in the sky.(28.11.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (73) :: ऋषि :- गौरिवीति, शाक्त्य; देवता :-इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप्।
जनिष्ठा उग्रः सहसे तुराय मन्द्र ओजिष्ठो बहुहाभिमानः।
अवर्धन्निन्द्रं मरुतश्चिदत्र माता यद्वीरं दधनद्धनिष्ठा
हे इन्द्र देव! जिस समय गर्भधारयित्री इन्द्र की माता ने इनको जन्म दिया, उस समय मरुतों ने महानुभाव इन्द्र को यह कहकर प्रशंसित किया कि आप बल और शत्रु विनाश के लिए जन्में हैं; आप वीर, स्तुत्य, ओजस्वी और अतीव अभिमानी है।[ऋग्वेद 10.73.1]
Hey Indr Dev! When pregnant mother of Marud Gan gave them birth, they appreciated you by saying that you are mighty and born to destroy the enemy. You are brave, worshipable, aurous-majestic and proudy-egoistic.
द्रुहो निषत्ता पृशनी चिदेवैः पुरू शंसेन वावृधुष्ट इन्द्रम्।
अभीवृतेव ता महापदेन ध्वान्तात्प्रपित्वादुदरन्त गर्भाः
गमन शील मरुतों के साथ दाहक इन्द्र देव के पास सेना बैठी हुई है। मरुतों ने प्रचुर स्तोत्र के साथ इन्द्र देव को वर्धित किया। जिस प्रकार गौवें विशाल गोष्ठ के बीच आच्छादित रहती हैं, उसी प्रकार ही गर्भ अर्थात् वर्षाजल व्यापक अन्धकार के बीच से स्वयं बाहर आ गया।[ऋग्वेद 10.73.2]
Army is accompanying dynamic Marud Gan and Indr Dev. Marud Gan grew-nurtured Indr Dev with enough Strotr. The way cows are enclosed in the cow shed, rain waters enclosed in the dark clouds comes out of darkness by themselves.
ऋष्वा ते पादा प्र यज्जिगास्यवर्धन्वाजा उत ये चिदत्र।
त्वमिन्द्र सालावृकान्त्सहस्त्रमासन्दधिषे अश्विना ववृत्याः
हे इन्द्र देव! आपके चरण महान् हैं। जिस समय आप आते हैं, उस समय ऋभु लोग वर्द्धित होते हैं। जो देवता हैं, वो सब वर्द्धित होते हैं। इन्द्र देव आप एक सहस्त्र वृक को मुख में धारण करते हैं। दोनों अश्विनी कुमारों को स्फूर्तिवान् बनाते हैं।[ऋग्वेद 10.73.3]
Hey Indr Dev! Your feet are great. Ribhu Gan grow with your arrival. Demigods too flourish. You hold one thousand wolves in your mouth. You make Ashwani Kumars energetic-smart.
समना तूर्णिरुप यासि यज्ञमा नासत्या सख्याय वक्षि।
वसाव्यामिन्द्र धारयः सहस्त्राश्विना शूर ददतुर्मघानि
इन्द्र देव युद्ध की शीघ्रता होने पर भी आप यज्ञ में जाते हैं। उस समय आप अश्विनी कुमारों के साथ मित्रता करते हैं। हमारे लिए आप हजारों प्रकार का धन धारण करते हैं। अश्विनी कुमार भी हमें धन प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 10.73.4]
Even though ready for the war, Indr Dev joins Yagy. He become friendly with Ashwani Kumars. He possess thousands of kinds of wealth for us. Let Ashwani Kumars too grant us wealth.
मन्दमान ऋतादधि प्रजायै सखिभिरिन्द्र इषिरेभिरर्थम्।
आभिर्हि माया उप दस्युमागान्मिहः प्र तम्रा अवपत्तमांसि॥
यज्ञ में आह्लादित होकर इन्द्र देव गतिशील मरुतों के साथ यजमान को धन प्रदान करते हैं। इन्होंने यजमान के लिए दस्यु की माया को विनष्ट किया। उन्होंने वर्षा की और अन्धकार को विनष्ट कर दिया।[ऋग्वेद 10.73.5]
On being happy in the Yagy Indr Dev granted wealth to the Ritviz along with Marud Gan. He destroyed the cast-illusion by the Dasyu. He showered rains and cleared darkness.
सनामाना चिद् ध्वसयो न्यस्मा अवाहन्निन्द्र उषसो यथानः।
ऋष्वैरगच्छः सखिभिर्निकामैः साकं प्रतिष्ठा हृद्या जघन्थ
इन्द्र देव सब शत्रुओं को समान रूप से नष्ट करते हैं। जिस प्रकार इन्होंने देवी उषा के शकट को नष्ट किया, उसी प्रकार ही शत्रुओं को नष्ट किया। दीप्त, महान् वृत्र वधाभिलाषी और मित्र मरुतों के इन्द्र देव वृत्र वध के लिए गए। हे इन्द्र देव! शत्रुओं के सुन्दर-सुन्दर शरीरों को आपने नष्ट कर दिया।[ऋग्वेद 10.73.6]
Indr Dev equally destroy all enemies. The way he released the cart-vehicle of Goddess Usha, similarly he destroyed the enemies. Desirous of killing Vratr, Indr Dev moved with Marud Gan for killing him. Hey Indr Dev! You destroyed the beautiful bodies of the enemies.
त्वं जघन्थ नमुचिं मखस्युं दासं कृण्वान ऋषये विमायम्।
त्वं चकर्थ मनवे स्योनान्यथो देवत्राञ्जसेव यानान्
हे इन्द्र देव! आपका धन चाहने वाले नमुचि को आपने मार दिया। विघातक नमुचि नामक असुर को मनु ऋषि के पास आपने मायारहित कर दिया। देवों के बीच मनु के लिए आपने मार्ग प्रस्तुत कर दिया। वे मार्ग देवलोक में जाने के लिए सरल हैं।[ऋग्वेद 10.73.7]
Hey Indr Dev! You killed Namuchi who wanted to have-snatch your wealth. You removed the cast the destroyer Namuchi when he approached Rishi Manu. You cleared the way for Manu in between demigods-deities. That route for heavens is easy.
त्वमेतानि पप्रिषे वि नामेशान इन्द्र दधिषे गभस्तौ।
अनु त्वा देवाः शवसा मदन्त्युपरिबुध्नान्वनिनश्चकर्थ
हे इन्द्र देव! आप इस (संसार को) जल या तेज से परिपूर्ण करते हैं। आप सबके स्वमी हैं। आप हाथ में वज्र धारण करते हैं। सभी देवगण बलधारी आपकी स्तुति करते हैं। आपने मेघों का मुँह नीचे कर दिया।[ऋग्वेद 10.73.8]
Hey Indr Dev! You saturate the universe with water. You are the lord of everyone. You wield Vajr in your hand. All mighty demigods worship you. You turned the mouth of clouds down.
चक्रं यदस्याप्स्वा निषत्तमुतो तदस्मै मध्विचच्छद्यात्।
पृथिव्यामतिषितं यदूधः पयो गोष्वदधा ओषधीषु
जल के मध्य में इन्द्र देव का चक्र स्थापित है। वह इनके लिए बादलों का छेदन करता है। हे इन्द्र देव! आपने तृण, लतादि में जो दूध या जल रखा है, वह गौओं के स्तन से अतीव शुभ्र मूर्ति में निकलता है।[ऋग्वेद 10.73.9]
Disc of Indr Dev is established-present between the clouds which tears them. Hey Indr Dev! You have established water in the straw, creepers, comes out of the udder of cows as milk.
अश्वादियायेति यद्वदन्त्योजसो जातमुत मन्य एनम्।
मन्योरियाय हर्येषु तस्थौ यतः प्रजज्ञ इन्द्रो अस्य वेद
कुछ लोग कहते हैं कि इन्द्र देव की उत्पत्ति अश्व या आदित्य से हुई है। परन्तु मैं जानता हूँ कि इनकी उत्पत्ति बल से हुई है। ये क्रोध से उत्पन होकर शत्रुओं की अट्टालिकाओं के ऊपर चढ़ गए। ये कहाँ से उत्पन्न हुए हैं, यह बात वही जानते हैं।[ऋग्वेद 10.73.10]
Its said that Indr Dev evolved either out of horse or Adity. But I know that he evolved out of Bal. He rode the multi-storeyed building of the enemies in a fit of anger. Where from has he evolved, its only he who can answer?
वयः सुपर्णा उप सेदुरिन्द्रं प्रियमेधा ऋषयो नाधमानाः।
अप ध्वान्तमूषुहि पूर्धि चक्षुर्मुमुग्ध्य १ स्मान्निधयेव बद्धान्
गमनशील और भली-भाँति गिरने वाली सूर्य की किरणें इन्द्र देव के पास गई। यज्ञाभिलाषी ऋषि ही पक्षी हैं, जिनकी प्रार्थना इन्द्र देव से थी। हे इन्द्र देव! अन्धकार को नष्ट करें, नेत्र को आलोक से भर दें। हम पाशबद्ध हैं, उससे हमें मुक्त करें।[ऋग्वेद 10.73.11]
Dynamic rays of Sun reached Indr Dev spreading properly-uniformly every where. Rishi desirous of Yagy prayed to Indr Dev as a bird. Hey Indr Dev! Destroy the darkness and fill the eyes with light-aura. We are bonded, release us.(29.11.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (74) :: ऋषि :- गौरिवीति, शाक्त्य; देवता :-इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप्।
वसूनां वा चर्कृष इयक्षन्धिया वा यज्ञैर्वा रोदस्योः।
अर्वन्तो वा ये रयिमन्तः सातौ वनुं वा ये सुश्रुणं सुश्रुतो धुः
धनदान के लिए इन्द्र देव यज्ञ के द्वारा आकृष्ट किए जाते हैं। वे देवों और मनुष्यों के द्वारा आकृष्ट होते हैं। युद्ध में धन का उपार्जन करने वाले अश्व उन्हें आकृष्ट कर रहे हैं। जो यशस्वी व्यक्ति शत्रु संहार करते हैं, वे इन्द्र देव को आकृष्ट कर रहे हैं।[ऋग्वेद 10.74.1]
यशस्वी :: सुख्यात, कीर्तिमान्; famous,  reputable, glorious, celebrated.
For making donations Indr Dev is attractive-invoked through Yagy. He is attracted by humans and demigods. Horses who earn wealth in the Yagy are attracting-invoked him. The celebrated who destroy the enemy attract-invoke Indr Dev.
हव एषामसुरो नक्षत द्यां श्रवस्यता मनसा निंसत क्षाम्।
चक्षाणा यत्र सुविताय देवा द्यौर्न वारेभिः कृणवन्त स्वैः
अंगिरा लोगों के आह्वाननिनाद ने आकाश को पूर्ण कर दिया। इन्द्र देव को और अन्न को चाहने वाले देवगणों ने अनुष्ठाताओं को गौवें दिखाने के लिए पृथ्वी को प्राप्त किया। पृथ्वी पर पणियों के द्वारा अपहृत गौवों को देखते हुए देवगणों ने अपने हित के लिए आकाश में सूर्य देव के सदृश ही अपने उत्तम तेज को प्रकाशित किया।[ऋग्वेद 10.74.2]
Sound of invocation by Angiras filled the sky. Demigods who wanted to invoke Indr Dev and food grains had earth for the people who were making celebrations to show cows. Demigods released their aura-radiant like Sury Dev in the sky, looking for cows abducted by the Pani-demons for their benefit.
इयमेषाममृतानां गीः सर्वताता ये कृपणन्त रत्नम्।
धियं च यज्ञं च साधन्तस्ते नो धान्तु वसव्य १ मसामि
यह अमर देवों की स्तुति की जाती है। वे यज्ञ में नाना उत्तमोत्तम वस्तुएँ प्रदान करते हैं। वे हमारी स्तुति और यज्ञ को सिद्ध करते हुए असाधारण धन प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 10.74.3]
Immortal demigods are worshiped. Various kinds of goods are donated in the Yagy. They accomplished our prayers and Yagy, granting extraordinary wealth.
आ तत्त इन्द्रायवः पनन्ताभि य ऊर्वं गोमन्तं तितृत्सान्।
सकृत्स्वं १ ये पुरुपुत्रां महीं सहस्त्रधारां बृहतीं दुदुक्षन्
हे इन्द्र देव! जो लोग शत्रुओं से गोधन ले लेना चाहते हैं, वे आपकी ही स्तुति करते हैं। यह विशाल पृथ्वी एक बार उत्पन्न हुई है; परन्तु अनेक सन्तानें (शस्य आदि) उत्पत्र करती हैं। ये हजारों धाराओं में सम्पत्तिरूप दुग्ध का प्रदान करती है। जो लोग इस पृथ्वी-धेनू को दूहना चाहते हैं, वे भी इन्द्र देव की ही स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 10.74.4]
Hey Indr Dev! Those who wish to have other's wealth worship you. The vast-large earth appeared once and produced progeny-vegetation. These thousands of streams grant property-prosperity in the form of milk. Those who wish to milch earth in the form of a cow, too worship Indr Dev. 
शचीव इन्द्रमवसे कृणुध्वमनानतं दमयन्तं पृतन्यून्।
ऋभुक्षणं मघवानं सुवृक्तिं भर्ता यो वज्रं नर्यं पुरुक्षुः
हे कर्मनिष्ठ पुरोहितों! कभी भी अवनत न होने वाले, शत्रुओं का दहन करने वाले, महान् धनी, सुन्दर स्तुति वाले और मनुष्य हित के लिए वज्र धारण करने वाले इन्द्र देव की शरण में रक्षा के लिए जाएँ।[ऋग्वेद 10.74.5]
Hey devoted to Karm, Purohits-Priests! Go to Indr Dev for asylum, who never bow down-surrender, burn the enemies, great wealthy, worshiped with beautiful hymns and wield Vajr for the sake of humans. 
यद्वावान पुरुतमं पुराषाळा वृत्रहेन्द्रो नामान्यप्राः।
अचेति प्रासहस्पतिस्तुविष्मान् यदीमुश्मसि कर्तवे करत्तत्
शत्रु पुरी ध्वंसक इन्द्र देव ने जिस समय अत्यन्त प्रवृद्ध शत्रु का संहार किया, उस समय वृत्रष्न होकर उन्होंने जल से पृथ्वी को परिपूर्ण किया। उस समय सबने समझा कि इन्द्र देव अत्यन्त बलवान् और क्षमताशाली हैं। हम जो कुछ चाहते हैं, इन्द्र देव सबको पूर्ण करते हैं।[ऋग्वेद 10.74.6]
Destroyer of enemy cities-forts Indr Dev turned into the slayer of Vratr and filled the earth with water. It was then recognised by all that he is extremely powerful-mighty and capable. Indr Dev accomplish every thing that we desire.(30.11.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (75) :: ऋषि :- सिन्धुक्षित्, प्रियमेध; देवता :-नदी; छन्द :- जगती।
प्र सु व आपो महिमानमुत्तमं कारुर्वोचाति सदने विवस्वतः।
प्र सप्तसप्त त्रेधा हि चक्रमुः प्र सृत्वरीणामति सिन्धुरोजसा॥
हे जल! सेवक यजमान के गृह में आपकी उत्तम महिमा को मैं कहा करता हूँ। नदियाँ सात-सात करके तीन प्रकार (पृथ्वी, आकाश और द्युलोक) से चलीं। सबसे अधिक बहने वाली सिन्धु नदी ही है।[ऋग्वेद 10.75.1]
Hey water! I use to describe your glory in the house of the host. Rivers moved-flow in groups of seven in three abodes. Sindhu flows more than all.
प्र तेऽरदद्वरुणो यातवे पथः सिन्धो यद्वाजाँ अभ्यद्रवस्त्वम्।
भूम्या अधि प्रवता यासि सानुना यदेषामग्रं जगतामिरज्यसि
हे सिन्धु! जिस समय आप शस्यशाली प्रदेश की ओर चलीं, उस समय वरुणदेव ने आपके गमन के लिए विस्तृत मार्ग बना दिया। आप भूमि के ऊपर उत्तम मार्ग से जाती हैं। आप सब नदियों के ऊपर विराजमान हैं।[ऋग्वेद 10.75.2]
Hey Sindhu! When you moved to green land, Varun Dev created vast route for you. You move over the land-earth over excellent-best routes. You reside-rated over all rivers.
दिवि स्वनो यतते भूम्योपर्यनन्तं शुष्ममुदियर्ति भानुना।
अभ्रादिव प्र स्तनयन्ति वृष्टयः सिन्धुर्यदेति वृषभो न रोरुवत्
पृथ्वी से सिन्धु का शब्द उठकर आकाश को गुंजायमान कर देता है। यह महावेग और दीप्त लहरों के साथ जाती है। जिस समय सिन्धु बैल के समान घनघोर शब्द करती हुई आती हैं, उस समय विदित होता है कि आकाश से घोर गर्जन-तर्जन के साथ वर्षा हो रही है।[ऋग्वेद 10.75.3]
Sound generated by Sindhu resonate the heavens. It moves with fast speed and radiant waves. When Sidhu roars like a bull, it looks like thundering of clouds in the sky and raining. 
अभि त्वा सिन्धो शिशुमिन्न मातरो वाश्रा अर्षन्ति पयसेव घेनवः।
राजैद युध्वा नयसि त्वमित्सिचौ यदासामग्रं प्रवतामिनक्षसि
जिस प्रकार शिशु के पास माता जाती है और दुग्धवती गौवें बछड़े के पास जाती है उसी प्रकार ही शब्द करती हुई अन्य नदियाँ सिन्धु के पास जाती है। जिस प्रकार युद्धकर्ता राजा सेना ले जाता है, उसी प्रकार ही आप अपनी सहगामिनी दो नदियों को लेकर आगे-आगे जाती है।[ऋग्वेद 10.75.4]
The way mother goes to the infant and milch cows to the calf, similarly other rivers comes to Sindhu making sound. The way the king leads the army, similarly you move ahead along with two other rivers.
इमं मे गङ्गे यमुने सरस्वति शुतुद्रि स्तोमं सचता परुष्ण्या।
असिक्न्या मरुधे वितस्तयाजीकीये शृणुह्या सुषोमया
हे गंगा, यमुना, सरस्वती, शुतुद्री (सतलुज), परुष्णी (रावी), असिक्नी (चिनाव) के साथ मरुदृधा (चिनाव और झेलम के बीच की या चिनाव की पश्चिम वाली मरुवर्दवन नामक सहायक नदी), वितस्ता (झेलम), सुषोमा (सोहान) और आर्जीकीया (व्यास)! आप लोग मेरे इस स्तोत्र का भाग कर लें और इन स्तोत्रों को सुनें।[ऋग्वेद 10.75.5]
Hey Ganga, Yamuna, Saraswati, Shutudri-Satluj, Parushni-Ravi, Asikni-Chinav along with the rivers flowing between Chinav and Jhelum; tributary Maruvardvan, Vitasta-Jhelum, Sushoma-Sohan and Arjikiya-Vyas! Divide my Strotr and respond to them.
तृष्टामया प्रथमं यातवे सजूः सुसर्वा रसया श्वेत्या त्या।
त्वं सिन्धो कुभया गोमतीं क्रुमुं मेहल्वा सरथं याभिरीयसे
हे सिन्धु! पहले आप तृष्टामा (सिन्धु की पश्चिम सहायक नदी) के साथ चली। पुनः सुसर्तु, रसा और श्वेत्या (ये तीनों सिन्धु की पश्चिमी सहायक नदियाँ हैं) से मिलीं। आप अनु (कुर्रम) और गोमती (गालम) को कुभा (काबुल नदी) और मेहत्नु (सिन्धु की पश्चिमी सहायक नदी) से मिलाती हैं। इन नदियों के साथ आप बहती हैं।[ऋग्वेद 10.75.6]
Hey Sindhu! You moved with tributary Trashtama. Again Susrtu, Rasa and Shwetya (tributaries of Sindhu)  joined you. You connect Anu-Kuram, Gomti-Galam with Kubha-Kabul river, Mehtnu (rivers in the west of Sindhu). You flow along with these rivers.
ऋजीत्येनी रुशती महित्वा परि ज्रयांसि भरते रजांसि।
अदब्धा सिन्धुरपसामपस्तमाश्वा न चित्रा वपुषीव दर्शता
सिन्धु नदी सरलगामिनी, श्वेतवर्णा और प्रदीप्ता हैं। सिन्धु का वेगशाली जल चारों ओर जाता है। नदियों में से सबसे वेगवती सिन्धु ही है। यह घोड़ी के सदृश अद्भुत है और मोटी स्त्री के समान दर्शनीया है।[ऋग्वेद 10.75.7]
Sindhu river moves straight, wearing white colour and radiance. Speeding water of Sindhu move all around. Sindhu is the fastest river amongest all rivers. Its amazing like a mare and looks like a fat woman.
स्वश्वा सिन्धुः सुरथा सुवासा हिरण्ययी सुकृता वाजिनीवती।
ऊर्णावती युवतिः सीलमावत्युताधि वस्ते सुभगा मधुवृधम्
सिन्धु शोभन अश्वों, सुन्दर रथ, सुन्दर वस्त्र, सुवर्णाभरण, सुन्दर सज्जा, अन्न और पशुलोमवाली हैं। सिन्धु नित्य तरुणी और तिनकों वाली है। सौभाग्यवती सिन्धु मधुवर्द्धक पुष्पों से आच्छादित हैं।[ऋग्वेद 10.75.8]
Sindhu possess glorious horses, beautiful charoite, beautiful dress, golden hue, beautiful make up and animal hair. Sindhu is youthful and possess straw. Lucky Sindhu is covered-surrounded by the flowers growing honey.
सुखं रथं युयुजे सिन्धुरश्विनं तेन वाजं सनिषदस्मिन्नाजौ।
महान् ह्यस्य महिमा पनस्यतेऽदब्धस्य स्वयशसो विरप्शिनः
सिन्धु सुखकर और अश्व वाले रथ को नियोजित करती हैं। उसी रथ से वह अन्न प्रदान करें। यज्ञ में सिन्धु के रथ की महिमा गाई जाती है। सिन्धु का रथ अहिंसित, कीर्तिकर और महान् है।[ऋग्वेद 10.75.9]
Sindhu deploy comfortable charoite in which horses have been deployed. Let it grant food grains through that charoite. Glory of Sindhu is sung in the Yagy. Charoite of Sindhu is non violent, glorious and great.(01.12.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (76) :: ऋषि :- सर्प, जरत्सकर्ण, ऐरावत; देवता :- ग्रावाण; छन्द :- जगती।
आ व ऋञ्जस ऊर्जा व्युष्टिष्विन्द्रं मरुतो रोदसी अनक्तन।
उभे यथा नो अहनी सचाभुवा सदः सदो वरिवस्यात उद्भिदा
हे पाषाणों! अन्न वाली देवी उषा के आते ही आपको मैं प्रस्तुत करता हूँ। आप सोम देकर इन्द्र देव, मरुत् और द्यावा-पृथ्वी को अनुकुल करें। ये द्यावा-पृथ्वी एक साथ हम लोगों में से प्रत्येक के गृह में सेवा ग्रहण कर गृहों को धन से परिपूर्ण कर दें।[ऋग्वेद 10.76.1]
प्रस्तुत :: लौटाना, देना, निष्कर्ष निकालना, झुकना, अधीनता स्वीकार करना, सुझाव देना, हार मानना, अनुवाद करना, प्रतिपादन करना, बना देना, क्रिया; to present, render, submit, adduce.
Hey Pashan (Rocks)! With the arrival-appearance of Devi Usha possessor of food grains, I will present you. Seek favours from Indr Dev, Marud Gan, heavens & earth by offering them Somras. Heavens & earth should accept our services-offerings and fill our homes with wealth.
तदु श्रेष्ठं सवनं सुनोतनात्यो न हस्तयतो अद्रिः सोतरि।
विदद्ध्य १ र्यो अभिभूति पौंस्यं महो राये चित्तरुते यदर्वतः
हाथों से पकड़े जाने पर अभिषव प्रस्तर अश्वों के सदृश हो जाते हैं। श्रेष्ठ सोम को आप प्रस्तुत करें। प्रस्तर से सोमाभिषव करने वाला यजमान शत्रुओं को हराने वाला बल प्राप्त करता है। यह अश्व देता है, जिससे यथेष्ट धन प्राप्त होता है।[ऋग्वेद 10.76.2]
अभिषव :: यज्ञादि के समय किया जाने वाला स्नान, आसवन, ख़मीर, काँजी, मद्य खींचना- शराब चुवाना, सोमलता को कुचलकर गारना या निचोड़ना, सोमरस पान, राज्यारोहण, अधिकार, सोमरस निचोड़ने का साधन, आसवन, अभिषवण के योग्य, अभिषवण के लिए प्रस्तुत या प्रस्तावित; religious bathing, ablution preparatory to religious rites, sacrifice, bathing in general, coronation, bath prior to Yagy, process of extracting from fermented vegetation, herbs.
On holding with hands, stones meant for extraction disappear like horses. Present best Som. The hosts who extract Somras with stones attain strength to defeat the enemy. It grants horse, which yield desired wealth.
तदिद्ध्यस्य सवनं विवेरपो यथा पुरा मनवे गातुमश्रेत्।
गोअर्णसि त्वाष्ट्रे अश्वनिर्णिजि प्रेमध्वरेष्वध्वाँ अशिश्रयुः
जिस प्रकार प्राचीन समय में मनु के यज्ञ में सोमरस आया, उसी प्रकार ही इस प्रस्तर के द्वारा निष्पीड़ित सोम जल में प्रवेश करे। गौओं को जल में स्नान कराने, गृह-निमार्ण, शर्य और अश्वों को स्नान कराने के समय यज्ञकाल में इस अविनश्वर सोमरस का आश्रय लिया जाता है।[ऋग्वेद 10.76.3]
शर्य :: वाण, शत्रु, वेदना कारक, जख़्म पैदा करने वाला; arrow, enemy, hurtful, injurious.
The manner in which extracted Somras was brought to Manu's Yagy, similarly mix-add the extracted Somras in water. For bathing the cows in water, house  building, bathing horses, cleansing arrow during the period of Yagy, immortal Somras is used.
अप हत रक्षसो भङ्गुरावतः स्कभायत निर्ऋतिं सेधतामतिम्।
आ नो रयिं सर्ववीरं सुनोतन देवाव्यं भरत श्लोकमद्रयः
हे पाषाणों! भञ्जक राक्षसों को विनष्ट करें। निर्ऋति (पाप देवता) को दूर करें। दुर्बुद्धि को हटावें। सन्तान युक्त धन प्रदान करें। देवों को प्रसन्न करने वाले श्लोक का सम्पादन करें।[ऋग्वेद 10.76.4]
Hey Pashan! Destroy the destructive demons. Repel Nirrati (demigods of sin). Repel the wicked, one with bad intensions. Grant wealth with progeny. Compose the Sloke pleasing the demigods.
दिवश्चिदा वोऽमवत्तरेभ्यो विभ्वना चिदाश्वपस्तरेभ्यः।
वायोश्चिदा सोमर भस्तरेभ्यो ऽ ग्नेश्चिदर्च पितुकृत्तरेभ्यः
जो आकाश से भी तेजस्वी या बली है, जो सुधन्वा के पुत्र विभु से भी शीघ्रकर्मा है, जो वायु से भी सोमाभिषव में वेगशाली हैं और जो अग्नि देव से भी अधिक अन्नदाता है, उन पाषाणों की देवगणों की प्रसन्नता के लिए पूजा करें।[ऋग्वेद 10.76.5]
Worship the rocks for pleasing demigods, which have strength more than the sky, quicker than the fast working Vibhu, son of Sudhanva, dynamic as compared to Vayu Dev in extracting Somras, who grants more food grains as compared to Agni Dev.
भुरन्तु नो यशसः सोत्वन्धसो ग्रावाणो वाचा दिविता दिवित्मता।
नरो यत्र दुहते काम्यं मध्वाघोषयन्तो अभितो मिथस्तुरः
यशस्वी पाषाण हमारे लिए अभिषुत सोम का रस सम्पादित करें। वे स्तोत्र के साथ उज्ज्वल वाक्य के द्वारा उज्ज्वल सोमयाग में हमें स्थापित करें। नेता ऋत्विक लोग स्तोत्र ष्वनि और परस्पर शीघ्रता करते-करते कमनीय सोमरस सोमयज्ञ में दूहते हैं।[ऋग्वेद 10.76.6]
Glorious Pashan-rocks should grant extracted Somras. Establish us in the Som Yagy with the recitation of Strotr having energetic-aurous (encouraging) words. Head Ritviz extract Somras together quickly, chanting Shlok-Mantr in the Som Yagy.
सुन्वन्ति सोमं रथिरासोअद्रयो निरस्य रसं गविषो दुहन्ति ते।
दुहन्त्यूधरुपसेचनाय कं नरो हव्या न मर्जन्त आसभिः
चलित होकर वे पाषाण सोम चुआते हैं। वे स्तोत्र की इच्छा करते हुए अग्नि देव के सेचन दूहते हैं। अभिषवकारी ऋत्विक्गण मुख से शेष सोम का पान करके शुद्धि चलित के लिए सोमरस करते हैं।[ऋग्वेद 10.76.7]
Stones-rocks are moved to extract-crush Som. They extract Somras to offer it to Agni Dev. The low rank Priests drink the left over Somras and clean their mouth.
एते नरः स्वपसो अभूतन य इन्द्राय सुनुथ सोममद्रयः।
वामंवामं वो दिव्याय धाम्ने वसुवसु वः पार्थिवाय सुन्वते
हे नेताओं और पाषाणों! आप शोभन अभिषव के कर्ता होवें। इन्द्र देव के लिए सोमाभिषव करें। दिव्य लोक के लिए आप लोग अद्भुत सम्पत्ति उपस्थित करें। जो कुछ निवास योग्य धन है, उसे यजमान को प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.76.8]
Hey leaders and Pashan-rocks! You should become glorious extractors. Extract Somras for Indr Dev. Present amazing wealth for the heavens. Grant the wealth (house-residence) worth living to the hosts.(02.12.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (77) :: ऋषि :- स्यूमरश्मि, भार्गव; देवता :-मरुत्;  छन्द :- त्रिष्टुप्, जगती।
अभ्रप्रुषो न वाचा प्रुषा वसु हविष्मन्तो न यज्ञा विजानुषः।
सुऽमारुतं न ब्रह्माणमर्हसे गणमस्तोष्येषां न शोभसे
स्तुति से प्रसन्न होकर मरुत्गण मेघनिर्गत वारिबिन्दु के सदृश धन बरसाते हैं। हवि से युक्त यज्ञ के समान संसार की उत्पत्ति के कारण मरुत् है। मरुतों के महान् बल की पूजा वास्तव में मैंने नहीं की है। शोभा के लिए भी मैंने स्तोत्र नहीं किया।[ऋग्वेद 10.77.1]
Pleased with the Stuti, Marud Gan shower wealth like rains from the clouds. Marud Gan are the cause behind the evolution of the world like the Yagy associated with offerings. In fact I did not worship the great power of Marud Gan. I did not recite the Strotr for glory-grace.
श्रिये मर्यासो अञ्जीरकृण्वत सुमारुतं न पूर्वीरति क्षपः।
दिवस्पुत्रास एता न येतिर आदित्यासस्ते अक्रा न वावृधुः
मरुत्गण पूर्व में मनुष्य थे, पीछे पुण्य के द्वारा देवता बन गए। एकत्रित सेना भी मरुतों को पराजित नहीं कर सकती। हमने इनकी स्तुति नहीं की; इसलिए ये द्युलोक के मरुत् अब भी दिखाई नहीं दिए और न ये आक्रमण के लिए बढ़े।[ऋग्वेद 10.77.2]
Initially, Marud Gan were humans, later they became demigods-deities by virtue of virtues, righteousness, piousity. Armies gathered at a place can not defeat Marud Gan. We did not recite Stuti for them, hence these Marud Gan of the heavens neither appeared nor they attacked.
प्र ये दिवः पृथिव्या न बर्हणा त्मना रिरिच्रे अभ्रान्न सूर्यः।
पाजस्वन्तो न वीराः पनस्यवो रिशादसो न मर्या अभिद्यवः
स्वर्ग और पृथ्वी पर ये मरुत् स्वयं बढ़े हैं। जिस प्रकार सूर्य देव बादलों से निकलते हैं; उसी प्रकार ही मरुत् बाहर निकले। ये वीर पुरुषों के समान स्तोत्राभिलाषी होते हैं। शत्रु घातक मनुष्यों के सदृश ये दीप्त होते हैं।[ऋग्वेद 10.77.3]
Marud Gan have grown over the heavens and earth by them selves. They way Sury Dev appear out of the clouds, similarly Marud Gan came out. They are desirous of Strotrs like the brave people. They shine like the humans who destroy the enemy.
युष्माकं बुध्ने अपां न यामनि विथुर्यति न मही श्रथर्यति।
विश्वप्सुर्यज्ञो अर्वागयं सु वः प्रयस्वन्तो न सत्राच आ गत
हे मरुतों! जिस समय आप लोग परस्पर प्रतिघातक और वृष्टिपात करते हैं, उस समय पृथ्वी न तो कातर होती और न ही दुर्बल होती है। आपको हवि दिया प्रदान किया गया है। आप लोग अन्न वाले व्यक्तियों के समान एकत्रित होकर पधारें।[ऋग्वेद 10.77.4]
Hey Marud Gan! You attack mutually, leading to rains. The earth neither become afraid not become weak. Offerings-oblations have been made to you. You should gather like the humans possessing food grains and come to us.
यूयं धूर्षु प्रयुजो न रश्मिभिर्योतिष्मन्तो न भासा व्युष्टिषु।
श्येनासो न स्वयशसो रिशादसः प्रवासो न प्रसितासः परिप्रुषः
रस्सी से रथ में नियोजित अश्वों के सदृश आप लोग गमनशील हैं। आप लोग प्रभातकालीन आलोक के समान प्रकाशवान् हुए। बाज पक्षी के समान आप लोग शत्रुओं को नष्ट करते हैं और अपनी कीर्ति स्वयं उपार्जित करती हैं। पथिकों के सदृश आप लोग चारों ओर जाकर जल बरसाते हैं।[ऋग्वेद 10.77.5]
You are movable like the horses tied-deployed in the charoite with cord. You shine like the radiance of the morning. You destroy the enemy like falcon and gain glory-grace. You shower rains in all directions like wanderers.
प्र यद्वहध्वे मरुतः पराकाद्यूयं महः संवरणस्य वस्वः।
विदानासो वसवो राध्यस्याराचिद्वेषः सनुतर्युयोत
हे मरुतों! आप लोग बहुत दूर से यथेष्ट गुप्त धन ले आते हैं। धन प्राप्त करके आप लोग द्वेषी शत्रुओं को गुप्त रीति से नष्ट करते हैं।[ऋग्वेद 10.77.6]
Hey Marud Gan! You bring desired hidden wealth from distant places. Having attained wealth you destroy the enemies secretly.
य उदृचि यज्ञे अध्वरेष्ठा मरुद्ध्यो न मानुषो ददाशत्।
रेवत्स वयो दधते सुवीरं स देवानामपि गोपीथे अस्तु
जो मनुष्य यज्ञ समाप्ति होने पर यज्ञानुष्ठान करके मरुद्गणों को दान देता है, उसे अन्न, धन और जन की प्राप्ति होती है। वह देवों के साथ सोमपान करता है।[ऋग्वेद 10.77.7]
The human being who make donations-offerings, oblations to Marud Gan after the completion of Yagy and ceremonies-celebrations, attains food grains, wealth and followers (servants, slaves). He drink Somras with the demigods-deities.
ते हि यज्ञेषु यज्ञियास ऊमा आदित्येन नाम्ना शंभविष्ठाः।
ते नोऽवन्तु रथतूर्मनीषां महश्च यामन्नध्वरे चकानाः
मरुद गण यज्ञीय हैं। वे यज्ञ के समय रक्षक हैं। आकाश के जल से माता अदिति सुख प्रदान करती हैं। वह क्षिप्रकारी रथ से आकर हमारी बुद्धि की रक्षा करें। यज्ञ में वे अभीष्ट हविष्यान्न की कामना अर्थात अभिलाषा करते हैं।[ऋग्वेद 10.77.8]
यज्ञीय :: यज्ञ का, यज्ञ में होनेवाला; sacrificial.
Marud Gan are sacrificial, like Yagy. They protect the Yagy. Mata Aditi grant pleasure from the sky water-rains. Let the quick charoite come and protect our intelligence. They are desirous of offerings in the form of food grains.(03.12.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (78) :: ऋषि :- स्यूमरश्मि, भार्गव; देवता :-मरुत्;  छन्द :- त्रिष्टुप्, जगती। 
विप्रासो न मन्मभिः स्वाध्यो देवाव्यो ३ न यज्ञैः स्वप्नसः।
राजानो न चित्राः सुसंदृशः क्षितीनां न मर्या अरेपसः
स्तोत्र परायण मेधावी स्तोताओं के सदृश यज्ञ में मरुद्गण शोभन ध्यान वाले हैं। जिस प्रकार देवों के तर्पक यजमान कर्म में व्यस्त रहते हैं। उसी प्रकार जल प्रदानादि कर्मों में मरुद्गण व्याप्त रहते हैं। मरुद्गण राजाओं के सदृश पूजनीय, दर्शनीय और गृहस्वामी मनुष्यों के सदृश निष्पाप और शोभायमान हैं।[ऋग्वेद 10.78.1]
तर्पक :: घृत-घी, पुरोडाश, तृप्त करनेवाला; one who makes offerings of Ghee, Purodas.
Marud Gan too concentrate in the Yagy like the intelligent Stotas who are devoted to Strotrs. The way the Ritviz keep themselves busy making offerings to the demigods similarly Marud Gan too offer water and perform other rituals. Marud Gan are worshipable like the kings, gracious, glorious sinless like the house hold.
अग्निर्न ये भ्राजसा रुक्मवक्षसो वातासो न स्वयुजः सद्यऊतयः।
प्रज्ञातारो न ज्येष्ठाः सुनीतयः सुशर्माणो न सोमा ऋतं यते
मरुद्गण अग्नि देव के समान तेज से शोभित हैं। उनके वक्ष स्थल में सवर्णालंकार शोमा पाते हैं। वे वायु के सदृश क्षिप्रगन्ता हैं। ज्ञाता ज्ञानियों के समान वे पूज्य हैं। सुन्दर नेत्रों और सुन्दर मुख वाले सोम के समान वे यज्ञ में जाते हैं।[ऋग्वेद 10.78.2] 
Marud Gan  are radiant like Agni Dev. Their chest has ornaments of gold. They are quick moving like the air-Vayu Dev. They are worshipable like the enelightened. Possessing beautiful eyes and face; they visit the Yagy like Som.
वातासो न ये धुनयो जिगत्नवोऽग्नीनां न जिह्वा विरोकिणः।
वर्मण्वन्तो न योधाः शिमीवन्तः पितृणां न शंसाः सुरातयः
मरुद्गण वायु के सदृश शत्रुओं को कँपाने वाले और गतिशील हैं। अग्नि देव की ज्वाला के समान शोभन मुख वाले हैं। कवचधारी योद्धओं के समान वे शौर्य कर्म वाले हैं। पितरों के वचन के समान दानी हैं।[ऋग्वेद 10.78.3]
Marud Gan are accelerated like Vayu Dev and tremble the enemies. Their faces are like the flames of fire-Agni Dev. They perform brave deeds like the warriors wearing shield over the chest. They donate like the Pitr Gan.
रथानां न ये १ राः सनाभयो जिगीवांसो न शूरा अभिद्यवः।
वरेयवो न मर्या घृतप्रुषोऽभिस्वर्तारो अर्कं न सुष्टुभः
मरुद्गण रथ चक्र के डंडों के समान एक नाभि वाले हैं। वे जयशील शूरों के समान दीप्तिशाली हैं। दानेच्छु मनुष्यों के समान वे जल सेचक हैं। सुन्दर स्तोत्र करने वालों के समान वे सुशब्द वाले हैं।[ऋग्वेद 10.78.4]
Marud Gan possess single navel like the poles of the charoite. They are aurous like the victorious brave warriors. They grant water like the humans, desirous of donations. They speak auspicious words like beautiful Strotrs.
अश्वासो न ये ज्येष्ठास आशवो दिधिषवो न रथ्यः सुदानवः।
आपो न निम्नैरुदभिर्जिगत्नवो विश्वरूपा अङ्गिरसो न सामभिः
मरुद्गण अश्वों के सदृश श्रेष्ठ शीघ्रगन्ता हैं। धन वाले रथ स्वामियों के समान वे सुन्दर दान वाले हैं। वे नदियों के सदृश नीचे जल ले जानेवाले हैं। वे अङ्गिरा लोगों के समान सामगाता हैं। वे नाना प्रकार का रूप धारण करते हैं।[ऋग्वेद 10.78.5]
Marud Gan moves fast like the horses. They make gracious-beautiful donation like the wealthy possessor of charoites. They carry water in the down ward direction, like the rivers. The sing Sam like the Angiras. They possess-adopt various forms. 
ग्रावाणो न सूरयः सिन्धुमातर आदर्दिरासो अद्र्यो न विश्वहा।
शिशूला न क्रीळयः सुमातरो महाग्रामो न यामन्नुत त्विषा
वे जलदाता बादलों के समान नदी निर्माता हैं। ध्वंसक वज्र आदि आयुधों के समान वे शत्रुहन्ता हैं। वे वत्सल माताओं के बच्चों के समान क्रीड़ा परायण हैं। वे महान् जनसंघ के समान गमन में दीप्तशाली हैं।[ऋग्वेद 10.78.6]
They generate rivers alike the showering clouds. They are destroyer of the enemies like the Vajr. They are affectionate like the mothers and playful. They are majestic like the movable groups of humans.
उषसां न केतवोऽध्वरश्रियः शुभंयवो नाञ्जिभिर्व्यश्वितन्।
सिन्धवो न ययियो भ्राजदृष्टयः परावतो न योजनानि ममिरे
उषा की किरणों के समान वे यज्ञाश्रयी हैं। कल्याणकामी वरों के समान वे आभरणों से सुशोभित होते हैं। नदियों के समान वे गतिशील हैं। उनके आयुध प्रदीप्त हैं। दूर मार्गवाले पथिकों के समान वे अनेक योजनाओं का अतिक्रम करते हैं। वे मरुद्गण हमारे यज्ञों में पधारें।[ऋग्वेद 10.78.7] 
They are dependent over the Yagy like the rays of Usha. They are decorated with ornaments like the people who are well wishers. They are speeded like rivers. Their weapons are shining. Let Marud Gan come to our Yagy.
सुभागान्नो देवाः कृणुता सुरत्नानस्मान्स्तोतृन्मरुतो वावृधानाः।
अधि स्तोत्रस्य सख्यस्य गात सनाद्धि वो रत्नधेयानि सन्ति
हे देव, मरुद्गणों! स्तुतियों से वर्द्धित होकर आप हम स्तोताओं को धनी और शोभन रत्नवाला बनाएँ। स्तोत्र के सहकारी स्तवन को ग्रहण करें। हमें आप सदैव रत्नदान करते आएँ है।[ऋग्वेद 10.78.8]
Hey deity Marud Gan! You should flourish with Strotr and grant us wealth with jewels. Accept the recitations-hymns with Strotr. You have been granting us jewels ever since.(04.12.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (79) :: ऋषि :- सौचिको  र्न्गि या वैश्वानर या सप्तिवाजंभरो; देवता :- अग्नि; छन्द :- त्रिष्टुप्।
अपश्यमस्य महतो महित्वममर्त्यस्य मर्त्यासु विक्षु।
नाना हनू विभृते सं भरेते असिन्वती बप्सती भूर्यत्तः
मरणशील मनुष्यों में अमर स्वभाव वाले अग्नि देव की महिमा को मैं देखता हूँ। इनके दोनों जबड़े नाना प्रकार के और परिपूर्ण कृति के हैं। ये चर्वण न करके काष्ठादि पदार्थों का भक्षण करते हैं। जबड़े नाना प्रकार के और परिपूर्ण कृति के हैं। ये चर्वण न करके काष्ठादि पदार्थों का भक्षण करते हैं।[ऋग्वेद 10.79.1]
I notice the glory of immortal Agni Dev in the mortal humans. His two jaws possess various forms. In stead of chewing, he swallow the wood and other materials.
गुहा शिरो निहितमृधगक्षी असिन्वन्नत्ति जिह्वया वनानि।
अत्राण्यस्मै पङ्भिः सं भरन्त्युत्तानहस्ता नमसाधि विक्षु
इनका मस्तक गुप्त स्थान में है। इनके नेत्र भिन्न-भिन्न स्थानों (सूर्य और चन्द्रमा) में हैं। ये चवर्ण न करके ज्वाला से काष्ठ को खाते हैं। मनुष्यों में यजमान हाथ उठाते और नमस्कार करते हुए  इनके पास आकर उनका आहार जुटाते हैं।[ऋग्वेद 10.79.2]
His forehead is located at a secret place. His eyes (Sun & Moon) are located at different places. In stead of chewing, he eats the wood by flames. Amongest the humans Ritviz-host raise their hands, salute and come close to him with his eatables.
प्र मातुः प्रतरं गुह्यमिच्छन् कुमारो न वीरुधः सर्पदुर्वीः।
ससं न पकमविदच्छुचन्तं गिरिह्वांस रिप उपस्थे अन्तः
ये अग्नि रूपी बालक अपनी माता पृथ्वी के ऊपर अग्रसर चलते-चलते प्रकाण्ड लताओं का ग्रास करते हैं। उनके छिपे मूल तक का भक्षण करते हैं। पृथ्वी पर जो अकाश को छूने वाले वृक्ष हैं, उन्हें ये पके हुए अन्न के समान पकड़ लेते हैं। इनकी ज्वाला से वृक्ष जल जाते हैं।[ऋग्वेद 10.79.3]
These Childs-infants in the form of Agni-fire walks over their mother earth and engulf the creepers in addition to the hidden roots. They catch the high rise trees over the earth like ripe food grains burning them with their flames.
तद्वामृतं रोदसी प्र ब्रवीमि जायमानो मातरा गर्भो अत्ति।
नाहं देवस्य मर्त्यश्चिकेताग्निरङ्ग विचेताः स प्रचेताः
हे द्यावा-पृथ्वी! मैं आपसे सत्य कहता हूँ, अरणियों से उत्पन्न यह बालक रूप अग्नि देव अपने माता-पिता (दोनों अरणियों व लकड़ियों) का भक्षण करते हैं। मैं मनुष्य हूँ, अतः देवता शनि देव का बर्तन व विषय नहीं जानता। हे वैश्वानर! आप विविध ज्ञान वाले हैं व प्रकृष्ट ज्ञान वाले हैं, यह मैं नहीं जान सकता।[ऋग्वेद 10.79.4]
Hey heavens & earth! I speak the truth, evolved out of woods this Agni Dev as an infant eat their parents (wood). I am a human being. Hence, I do not know how to deal with Shani Dev and his modus operandi. Hey Vaeshwanar! I can not recognise-know that you possess various kind of superior-great knowledge. 
यो अस्मा अन्नं तृष्वा ३ दधात्याज्यैर्घृतैर्जुहोति पुष्यति।
तस्मै सहस्रमक्षभिर्वि चक्षेऽग्ने विश्वतः प्रत्यङसि त्वम्॥
जो यजमान अग्नि देव को शीघ्र अन्न देता हैं, गोघृत या सोमरस से अग्नि में हवन करता है और जो काष्ठादि से इनकी पुष्टि करता है, उसे अग्नि देव अपरिमित ज्वालाओं से देखते हैं। हे अग्नि देव! आप उसके प्रति और हमारे प्रति अनुकूल हों।[ऋग्वेद 10.79.5]
The host who offer food grains to Agni Dev, quickly, hold Hawan with cow's Ghee or Somras and support it with wood, is looked at by Agni Dev with his infinite-unlimited flames. Hey Agni Dev! You should be favourable towards him and us.
किं देवेषु त्यज एनश्चकर्थाग्ने पृच्छामि नु त्वामविद्वान्।
अक्रीळन् क्रीळन हरिरत्तवेऽदन्वि पर्वशश्चकर्त गामिवासिः॥
हे अग्नि देव! क्या आपने देवों के ऊपर क्रोध किया है? न जानकर मैं आप दाहक से पूछता हूँ। कहीं क्रीड़ा करते हुए और क्रीड़ा न करते हुए और हरिताभ अग्नि देव अन्न, काष्ठादि को खाते समय उनको उसी प्रकार ही खण्ड-खण्ड कर डालते हैं, जिस प्रकार खड्ग से गौ को खण्ड-खण्ड किया जाता है।[ऋग्वेद 10.79.6]
Hey Agni Dev! Being unaware, I am asking you that are you angry with the demigods-deities? Playful Agni Dev eat away the greenery and wood turning it into pieces, similar to the manner in which cow is cut into pieces with sword.
विषूचो अश्वान्युयुजे वनेजा ऋजीतिभि रशनाभिर्गुभीतान्।
चक्षदे मित्रो वसुभिः सुजातः समानृधे पर्वभिर्वावृधानः॥
वन में प्रवृद्ध होकर अग्नि देव ने सरल रस्सियों द्वारा बाँध करके कुछ द्रुतगामी अश्वों को रथ में नियोजित किया। अग्नि देव काष्ठ स्वरूप धन पाकर और प्रवृद्ध होकर सबको चूर्ण करते हैं। ये काष्ठ खण्डों से सम्पन्न होकर प्रवर्द्धि होते हैं।[ऋग्वेद 10.79.7]
Agni Dev deployed some fast moving horses in the charoite with cords. Agni Dev gets wealth in the form of wood, grow and power them all. He grows on being enriched by wooden logs.(05.12.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (80) :: ऋषि :- सौचिको र्न्गि या वैश्वानर या सप्तिवाजंभरो; देवता :- अग्नि; छन्द :- त्रिष्टुप्।
अग्निः सप्तिं वाजंभरं ददात्यग्निर्वीरं श्रुत्यं कर्मनिः ष्ठाम्।
अग्नी रोदसी वि चरत्समञ्जन्नग्मिर्नारीं वीरकुक्षिं पुरंधिम्॥
अग्नि देव गतिशील और युद्ध में शत्रुओं को जीतकर अन्न देने वाला अश्व स्तोताओं को देते हैं। वे वीर और यज्ञ प्रेमी पुत्र देते हैं। हे अग्नि देव! आप द्यावा-पृथ्वी को शोभामय करके विचरण करते हैं। अग्नि देव स्त्री को वीर प्रसविनी करते हैं।[ऋग्वेद 10.80.1]
Agni Dev grants accelerated horse which wins the enemies in the war and give food grains to the Stotas. He grants brave son who loves Yagy. Hey Agni Dev! You roam making heavens & earth glorious-beautiful. You impregnate the woman with brave progeny.
अग्नेरप्नसः समिदस्तु भद्राग्निर्मही रोदसी आ विवेश।
अग्निरेकं चोदयत्समत्स्वग्निर्वृत्राणि दयते पुरूणि॥
अग्नि कर्म के लिए उपयोगी समित्काष्ठ कल्याणकर हो। अग्नि देव अपने तेज से द्यावा-पृथ्वी में संव्याप्त हैं। युद्ध में अग्नि देव अपने भक्त को स्वयं सहायक होकर विजयी बनाते हैं। अग्नि देव अनेकानेक शत्रुओं का वध करते हैं।[ऋग्वेद 10.80.2]
Let the Sami wood become beneficial for burning-Agni Karm. Agni Dev pervades the heavens & earth with his energy-aura. Agni Dev makes his devotee a winner in the war. Agni Dev kills numerous enemies.
अग्निर्ह त्यं जरतः कर्णमावाग्निरद्भ्यो निरदहज्जरूथम्।
अग्निरत्रिं धर्म उरुष्यदन्तरग्निर्नृमेधं प्रजयासृजत्सम्॥
अग्नि देव ने प्रसिद्ध जरत्कर्ण नामक ऋषि की रक्षा की। अग्नि देव ने जल से निकाल करके जरूथ नामक राक्षस को जलाया। अग्नि देव ने प्रतप्त कुण्ड में गिरे हुए अत्रि ऋषि का उद्धार किया। अग्नि देव ने नृमेध ऋषि को सन्तान प्रदान की।[ऋग्वेद 10.80.3]
Agni Dev protected famous Jartkarn Rishi. He burnt the demon Jaruth, bringing him out of water. Agni Dev salvaged Atri Rishi who had fallen in lit fire well. Agni Dev granted progeny to Nramedh Rishi. 
अग्निर्दाद्रविणं वीरपेशा अग्निरृषिं यः सहस्त्रा सनोति।  
अग्निर्दिवि हव्यमा ततानाग्नेर्धामानि विभृता पुरुत्रा॥
अग्नि देव ज्वाला रूप धन प्रदान करते हैं। जो ऋषि हजारों गौ वाले हैं, उन्हें मन्त्र द्रष्टा पुत्र देते हैं। यजमानों का दिया हुआ हवि अग्नि देव द्युलोक में पहुँचाते हैं। अग्नि देव के पृथ्वी पर बड़े-बड़े शरीर हैं।[ऋग्वेद 10.80.4]
Agni Dev grants wealth in the form of flames. He grants sons to the Rishi possessing thousands of cows, who can see-penetrate through the Mantr. He transfers the offerings to the demigods from the hosts-Ritviz. Agni Dev has large bodied over the earth.
अग्निमुक्थैर्ऋषयो वि ह्वयन्तेऽग्निं नरो यामनि बाधितासः।
अग्निं वयो अन्तरिक्षे पतन्तोऽग्निः सहस्त्रा परि याति गोनाम्॥
सबसे पहले ऋषि लोग मन्त्रों के द्वारा अग्नि देव को बुलाते हैं। मनुष्य संग्राम में शत्रुओं से बाधित होकर विजय के लिए बुलाते हैं, आकाश में उड़ते हुए पक्षी अग्नि देव को बुलाते है। हजारों गौओं से वेष्टित होकर अग्नि देव जाते हैं।[ऋग्वेद 10.80.5]
वेष्टित :: आच्छादित; ढका हुआ, घेरा हुआ, लपेटा हुआ, रोका हुआ, ऐंठा हुआ; कपड़े, रस्सी आदि से लिपटा या लपेटा हुआ, चारों ओर से घिरा या घेरा हुआ, आच्छादित, ढका हुआ, अवरुद्ध, चारों ओर से घिरा या घेरा हुआ, कपड़े, रस्सी आदि से लिपटा या लपेटा हुआ, रुका या रोका हुआ, पगड़ी, एक प्रकार का रतिबंध, नदी या परकोटे आदि से चारों ओर से घिरा हुआ, रुद्ध, नृत्य की एक मुद्रा, घेरना, लपेटना, एक रतिबंध, पहाड़ी; wrapped, draped, clothed, cloaked, mantled, covered, enveloped.
Initially the Rishis invoke Agni Dev with Mantrs. Humans invoke Agni Dev  in the for victory war on being resisted by the enemy. Birds flying in the sky invoke Agni Dev. Agni Dev moves surrounded by thousands of cows.
अग्निं विश ईळते मानुषीर्या अग्निं मनुषो नहुषो वि जाताः।
अग्निर्गान्धर्वी पथ्यामृतस्याग्नेर्गव्यूतिर्घृत आ निषत्ता॥
मानवी प्रजा अग्नि देव की स्तुति करती है। नहुष वंशीय लोग अग्नि देव की स्तुति करते हैं। गन्धर्वों का यज्ञ मार्ग के लिए हित वचन अग्नि देव सुनते हैं। अग्नि देव का मार्ग घृत में सन्निहित है।[ऋग्वेद 10.80.6]
Human populace worship Agni Dev. Descendants of Nahush worship Agni Dev. Agni Dev responds to the beneficial speech-requests by the Gandarbhs for the Yagy. Route of Agni Dev is laced with Ghee.
अग्नये ब्रह्म ऋभवस्ततक्षुरग्निं महामवोचामा सुवृक्तिम्।
अग्ने प्राव जरितारं यविष्ठाग्ने महि द्रविणमा यजस्व॥
अग्नि देव के लिए मेधावी ऋतुओं ने स्तोत्र बनाया। हमनें भी महान् अग्नि देव की स्तुति श्री हे युवा अग्नि देव! स्तोता की रक्षा करते हुए महान धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.80.7]
Intelligent Ritus compose Strotr for Agni Dev. We too worshiped Agni Dev. Hey youthful Agni Dev! Protect the Stota and grant us great wealth.(05.12.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (81) :: ऋषि :- विश्व कर्मा, भुवन; देवता :- विश्व कर्मा; छन्द :- त्रिष्टुप्, विराड् रूपा
य इमा विश्वा भुवनानि जुह्वदृषिर्होता न्यसीदत्पिता नः।
स आशिषा द्रविणमिच्छमानः प्रथमच्छदवाँ आ विवेश॥
हमारे पिता और होता विश्वकर्मा प्रथम सारे संसार का हवन करने स्वयं भी अग्नि में प्रवेश कर गये। स्तोत्रादि के द्वारा स्वर्ग-धन की कामना करते हुए वे प्रथम सारे जगत् में अग्नि देव आच्छादन करने के पश्चात् समीप के भूतों के साथ स्वयं भी हुत हो गये।[ऋग्वेद 10.81.1]
Our father & Hota Vishw Karma initially performed Hawan of the whole world and entered fire. He desired for the wealth of the heavens with the help of Strotr & other means; covered the whole world with fire and died along with all previous creations.
किं स्विदासीदधिष्ठानमारम्भणं कतमत्स्वित्कथासीत्।
यतो भूमिं जनयन्विश्वकर्मा के द्यामौर्णोन्महिना विश्वचक्षाः॥
सृष्टि-काल में विश्व कर्मा का आश्रय क्या था? विश्व दर्शक देव विश्व कर्मा ने किस स्थान रहकर पृथ्वी को बनाकर आकाश को बनाया?[ऋग्वेद 10.81.2]
What supported Vishw Karma during the period of evolution? Looking at the whole world, where did Vishw Karma stay and created the earth and sky?
विश्वतश्चक्षुरुत विश्वतोमुखो विश्वतोबाहुरुत विश्वतस्पात्।
सं बाहुभ्यां धमति सं स्वैर्घा पतत्रैर्द्यावाभूमी जनयन्देव एकः॥
विश्वकर्मा की आँखें, मुख, बाहें और चरण सभी ओर से हैं। अपनी भुजाओं और पदों से प्रेरण करते वे दिव्य पुरुष द्यावा-भूमि को उत्पन्न करते हैं। वे एक हैं।[ऋग्वेद 10.81.3]
Eyes, mouth, arms-hands and feet of Vishw Karma are present in all directions. Inspiring with his hands and feet this divine person create the heavens & earth. He is unique.
Here the Almighty himself is Vishw Karma.
किं स्विद्वनं क उ स वृक्ष आस यतो द्यावापृथिवी निष्टतक्षुः।
मनीषिणो मनक पृच्छतेदु तद्यदध्यतिष्ठद्भुवनानि धारयन्
वह कौन वन और उसमें कौन-सा वृक्ष है, जिससे सृष्टि-कर्ताओं ने द्यावा-पृथ्वी बनाया? विद्वानों अपने मन से पूछकर देखो कि, किस पदार्थ के ऊपर खड़े होकर ईश्वर सारे विश्व को धारण करते हैं।[ऋग्वेद 10.81.4]
Which is forest or tree by using which the creators created the heavens & earth? Hey enlightened! Ask your innerself to find the object over the Almighty stand and support the universe.
The entire universe is supported by the gravitational force, i.e., mutual attraction amongest them.
या ते धामानि परमाणि यावमा या मध्यमा विश्वकर्मन्नुतेमा।
शिक्षा सखिभयो हविषि स्वधावः स्वयं यजस्व तन्वं वृधानः
हे यज्ञ भाग ग्राही विश्व कर्मा! जो आपके उच्चतम, मध्य या नीचे वाले धाम हैं, उन सभी के बारे में हमें आप मित्र भाव से शिक्षित करें। आप हम सब जीवों को वृद्धि प्रदान करते हुए स्वयं ही उत्तम हविष्यान्न द्वारा यजन करें।[ऋग्वेद 10.81.5]
Hey Vishw Karma, obtaining the offerings, your share, in the Yagy! Explain us about your highest, middle & lowest abodes like a friend. You should nurture us i.e., all living beings and perform Yagy with best Havishyann-offerings in the Yagy.
विश्वकर्मन् हविषा वावृधानः स्वयं यजस्व पृथिवीमुत द्याम्।
मुह्यन्त्वन्ये अभितो जनास इहा स्माकं मघवा सूरिरस्तु
हे विश्व कर्मा! आप द्यावा-पृथ्वी में स्वयं यज्ञ करके अपने आपको पुष्ट किया करते हैं या यज्ञीय हवि से प्रवृद्ध होकर आप द्यावा-पृथ्वी का पूजन करें। हमारे यज्ञ-विरोधी मूर्छित हैं। इस यज्ञ में धनी विश्व कर्मा स्वर्गादि के फल प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.81.6]
Hey Vishw Karma! You should yourself conduct Yagy and nourish the heavens & earth. Our opponent who has been opposing Yagy in unconscious. Let, wealthy Vishw Karma attain the heavens and other rewards through this Yagy.
वाचस्पतिं विश्वकर्माणमूतये मनोजुवं वाजे अद्या हुवेम।
स नो विश्वानि हवनानि जोषद्विश्वंभूरवसे साधुकर्मा
इस यज्ञ में आज उन विश्व कर्मा को रक्षा के लिए हम बुलाते हैं। वे हमारे सारे हवनों का सेवन करें। वे हमारे रक्षण के लिए सुखोत्पादक और साधु कर्म वाले हैं।[ऋग्वेद 10.81.7]
We invoke Vishw Karma in this Yagy for our protection. Let his enjoy all of our Yagy. He generate pleasure & comforts for our protection and is a saintly performer.(06.12.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (82) :: ऋषि :- विश्वकर्मा, भुवन; देवता :- विश्व कर्मा; छन्द :- त्रिष्टुप्।
चक्षुषः पिता मनसा हि धीरो घृतमेने अजनन्नम्नमाने।
यदेदन्ता अददृहन्त पूर्व आदिद्यावापृथिवी अप्रथेताम्
शरीर के उत्पादयिता और अनुपम वीर विश्व कर्मा ने पहले जल को उत्पन्न किया। पश्चात् जल में इधर-उधर चलने वाले द्यावा पृथ्वी को बनाया। द्यावा पृथ्वी के प्राचीन और अन्त्य प्रदेशों को विश्व कर्मा ने दृढ़ किया। तब द्यावा-पृथ्वी प्रसिद्ध हुई।[ऋग्वेद 10.82.1]
Initially producer of body and unparalleled brave, Vishw Karma created water. Thereafter he created heavens & earth movable hither & thither. He strengthened- preserved the lower space (low lying areas) of heavens & earth. Thereafter, heavens & earth became famous.
विश्वकर्मा विमना आद्विहाया धाता विधाता परमोत संदृक्।
तेषामिष्टानि समिषा मदन्ति यत्रा सप्तऋषीन् पर एकमाहुः
विश्वकर्मा का मन बृहत् है, वे स्वयं बृहत् हैं, वे निमार्ण करते हैं, वे सर्वश्रेष्ठ है, वे सब कुछ देखते हैं, सप्तर्षियों के परवर्ती स्थानों को देखते हैं। वहाँ वे अकेले हैं, विद्वान् लोग ऐसा कहते हैं। विद्वानों की अभिलाषाएं अन्न के द्वारा पूर्ण होती हैं।[ऋग्वेद 10.82.2]
Innerself of Vishw Karma is very vast-broad. He himself is vast. He construct-develops and is the best. He looks at every thing. He looks at the abodes of Sapt Rishi. Learned people says that he lives alone. Desires of the enlightened are fulfilled with food grains.
यो नः पिता जनिता यो विधाता धामानि वेद भुवनानि विश्वा।
यो देवानां नामधा एक एव तं संप्रश्नं भुवना यन्त्यन्या
जो विश्वकर्मा हमारे पालक, उत्पादक, संसार के उत्पादक, जो विश्व के सारे धामों को जानते हैं। या जो देवों के तेजः स्थानों को जानते हैं, जो देवों के नाम रखनेवाले और जो एक हैं, समस्त प्राणी उन्हीं देव को प्राप्त करते हैं या उनके विषय में जिज्ञासु होते हैं।[ऋग्वेद 10.82.3]
Vishw Karma who is our nurturer, producer and creator of the universe; knows all abodes in the universe. He is aware of the energy-power sources of the demigods-deities. He names the demigods and is unique. All living beings and those who are inquisitive about HIM, ultimately assimilate in HIM.
After annihilation every things immerse in the Almighty to evolve again.
त आयजन्त द्रविणं समस्मा ऋषयः पूर्वे जरितारो न भूना।
असूर्ते सूर्ते रजसि निषत्ते ये भूतानि समकृण्वन्निमानि
स्थावर जंगमात्मक विश्व के होने पर जिन ऋषियों ने प्राणियों को बनाया या उनको धनादि प्रदान किया, उन्हीं प्राचीन ऋषियों ने स्तोताओं के समान धन-व्यय करके यज्ञानुष्ठान किया।[ऋग्वेद 10.82.4]
The eternal Rishis who created the living beings-organism in the stationary-inertial universe and granted them wealth, spent money to conduct Yagy like the Stotas. 
परो दिवा पर एना पृथिव्या परो देवेभिरसुरैर्यदस्ति।
कं स्विद्गर्भ प्रथमं दंध्र आपो यत्र देवाः समपश्यन्त विश्वे
वह द्युलोक, पृथ्वी, असुरों और देवों का अतिक्रम करके अवस्थित हैं। जल ने ऐसा कौन-सा गर्भ धारण किया है, जहाँ पूर्वकालीन देवगण उस परर्मत्तत्त्व का सम्यक् दर्शन पाते और देवत्व के परमपद को प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 10.82.5]
Heavens & earth have stabilised by deviating the demigods & demons. What type of ovulation has occurred in the water such that eternal demigods-deities have seen-observed the Ultimate and attained divinity?
तमिद्गर्भ प्रथमं दध्र आपो यत्र देवाः समगच्छन्त विश्वे।
अजस्य नाभावध्येकमर्पितं यस्मिन्विश्वानि भुवनानि तस्थुः
उन्हीं विश्वकर्मा को जल ने गर्भ में धारण किया। गर्भ में सारे देवता संगत होते हैं। उस अज की नाभि में ब्रह्माण्ड है। ब्रह्माण्ड में सारे प्राणी रहते हैं।[ऋग्वेद 10.82.6]
Vishw Karma conceived in water where all demigods-deities gather in virtuous-pious company. The universe is present in the navel of the Almighty where all organism-living beings live-survive.
न तं विदाथ य इमा जजानान्यद्युष्माकमन्तरं बभूव।
नीहारेण प्रावृता जल्प्या जासुतृप उक्थशासश्चरन्ति
हे मनुष्यों! समस्त ब्रह्माण्ड की रचना जिन परमात्मा विश्वकर्मा ने की है, उन्हें आप लोग नहीं जानते हैं। सबसे भिन्न होकर भी वह परमतत्त्व सभी के भीतर अवस्थित है। जो मनुष्य अपने प्राणों की सुरक्षा या पोषण की चिन्ता में लगे रहते हैं, वे उस परमात्मा को प्राप्त नहीं कर पाते।[ऋग्वेद 10.82.7]
Hey humans! The Almighty-Vishw Karma has created the universe, unknown to you. That Ultimate exists alone. Those living beings who continue in feeding and protecting them selves; can not attain that Almighty.(07.12.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (83) :: ऋषि :- मन्यु, तापस;  देवता :- मन्यु ; छन्द :- त्रिष्टुप्, जगती।
यस्ते मन्योऽविधद्वज्र सायक सह ओजः पुष्यति विश्वमानुषक्।
साह्याम दासमार्यं त्वया युजा सहस्कृतेन सहसा सहस्वता
हे वज्र सदृश, वाण तुल्य और क्रोधाभिमानी देव मन्यु! जो यजमान आपकी पूजा करता है, वह ओज और बल-दोनों को धारण करता है। आपकी सहायता पाकर हम दास और आर्य शत्रुओं को पराजित करें। आप बल के कर्ता, बल-रूप और महान् बली हैं।[ऋग्वेद 10.83.1]
Hey furious Dev Manyu, like the Vajr, comparable to arrow! The Ritviz who worship you possess aura-radiance and power. Let us defeat the Das & Ary enemies. You are producer of strength, a form of might-power and powerful-mighty.
मन्युरिन्द्रो मन्युरेवास देवो मन्युर्होता वरुणो जातवेदाः।
मन्युं विश ईळते मानुषीर्याः पाहि नो मन्यो तपसा सजोषाः
मन्यु ही इन्द्र देव हैं, देवता हैं, होता हैं, वरुण हैं और जातप्रज्ञ अग्नि देव हैं। समस्त मानवी प्रजा इन्हीं की स्तुति करती है। हे मन्यु! आप हमारे पिता से मिलकर हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 10.83.2]
Manyu is Indr Dev, demigod-deity, host, Varun Dev, Jat Pragy Agni Dev. Entire human populace worship him. Hey Manyu! You should meet our father and protect us.
अभीहि मन्यो तवसस्तवीयान् तपसा युजा वि जहि शत्रून्।
अमित्रहा वृत्रहा दस्युहा च विश्वा वसून्या भरा त्वं नः
हे मन्यु! आप महाबली हैं। पधारें। मेरे पिता को सहायक बनाकर शत्रुओं को ध्वस्त करें। आप शत्रुओं के संहारक, वृत्रघ्न और दस्युओं के हन्ता हैं। हमारे लिए समस्त धन ले आवो।[ऋग्वेद 10.83.3]
Hey Manyu! You possess great strength. Let my father assist you to destroy the enemy. You are the destroyer of enemy, Vratr and the Dasyu. Bring wealth for us. 
त्वं हि मन्यो अभिभूत्योजाः स्वयंभूर्भामो अभिमातिषाहः।
विश्वचर्षणिः सहुरिः सहावानस्मास्वोजः पृतनासु धेहि
हे मन्यु! आप दूसरों को पराजित करनेवाले हैं। आप स्वयम्भू, दीप्तशील शत्रु-जयकारी, चारों ओर देखनेवाले, शत्रुओं का आक्रमण सहनेवाले और बली हैं। हमारी सेनाओं को तेजस्विनी बनावे।[ऋग्वेद 10.83.4]
Hey Manyu! You defeat others. You evolved yourself-automatically, possess aura, winner of the enemy, looks all around, bear the attack by the enemy and mighty. Make our armies energetic-aurous, radiant.
अभागः सन्नप परेतो अस्मि तव क्रत्वा तविषस्य प्रचेतः।
तं त्वा मन्यो अक्रतुर्जिहीळाहं स्वा तनूर्बलदेयाय मेहि
हे उत्तम ज्ञान वाले मन्यु! मैं यज्ञ भाग का आयोजन नहीं कर सका; इसलिए हम आपको पूजित न कर पाएं। आप महान् हैं। हे मन्यु! इस प्रकार आपके यजन में शिथिलता करके इस समय मैं लज्जा का अनुभव कर रहा हूँ। अपने गुण के अनुसार, अपनी इच्छा से मुझे बल प्रदान करने के लिए पधारें।[ऋग्वेद 10.83.5]
Hey enlightened Manyu (having excellent knowledge)! I could not organise Yagy and hence we could not worship you. You are great. Hey Manyu! I am ashamed for laziness-slackness in Yagy. Grant me strength as per your desire-wish. 
अयं ते अस्म्युप मेह्यर्वाङ् प्रतीचीनः सहुरे विश्वधायः।
मन्यो वज्रिन्नभि मामा ववृत्स्व हनाव दस्यूँरुत बोध्यापेः
हे मन्यु! मैं आपके पास पहुँचा हूँ। आप अनुकूल होकर मेरे पास आकर अवतीर्ण होयें।  आप आक्रमण को सह सकते हैं। सबके धारक हैं। हे वज्रधर मन्यु! मेरे पास वृद्धि को प्राप्त होवें। मुझे आत्मीय समझें। ऐसा होने पर मैं दस्युओं का संहार करने में सक्षम हो सकता हूँ।[ऋग्वेद 10.83.6]
Hey Manyu! I have come to you. You become favourable to me. You can bear-tolerate (repel) the attack. Hey Manyu, holding Vajr! Grow near me. Consider me as your close-near & dear. Due to this, I will be able to destroy the Dasyu-dacoits, enemies.
अभि प्रेहि दक्षिणतो भवा मेऽधा वृत्राणि जङ्घनाव भूरि।
जुहोमि ते धरुणं मध्वो अग्रमुभा उपांशु प्रथमा पिबाव
मेरे पास आवें। मेरे दाहिने हाथ की ओर ठहरें। ऐसा होने पर हम दोनों वृत्रों का संहार कर सकेंगे। आपके लिए मैं मधुर और उत्तम सोमरस का हवन करता हूँ। हम दोनों सबसे पहले एकान्त स्थान में सोमपान करें।[ऋग्वेद 10.83.7]
Come to me. Stay by my right side. In this manner we will be able to kill both Vratr (people like Vratra Sur). I conduct Hawan for you with sweet and excellent Somras. We will drink Somras together in isolation.(08.12.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (84) :: ऋषि :- मन्यु, तापस;  देवता :- मन्यु ; छन्द :- त्रिष्टुप्, जगती।
त्वया मन्यो सरथमारुजन्तो हर्षमाणासो धृषिता मरुत्वः।
तिग्मेषव आयुधा संशिशाना अभि प्र यन्तु नरो अग्रिरूपाः
हे मन्यु! आपके साथ एक रथ पर चढ़कर तथा दृष्ट, घृष्ट और तीक्ष्ण बाण वाले आयुधों को तेज कर और अग्नि देव के समान तीक्ष्ण बाहु वाले बनकर मरुत् आदि युद्ध नेता लोग सहायता के लिए युद्ध में जावें।[ऋग्वेद 10.84.1]
दृष्ट :: दीखने वाला; visible.
घृष्ट :: घिसा हुआ, रगड़ा हुआ; haughty, reckless, cheeky, frontless, unblushing.
Hey Manyu! Go to the war field by keeping weapons which are sharp, visible, reckless in the charoite. Sharpen the weapons. Become long armed like Agni Dev. Let Marud Gan and other leaders accompany you.
अग्निरिव मन्यो त्विषितः सहस्व सेनानीर्नः सहुरे हूत एधि।
हत्वाय शत्रून्वि भजस्व वेद ओजो मिमानो वि मृधो नुदस्व
हे मन्यु! अग्नि देव के समान प्रज्वलित होकर शत्रुओं को हरावें। हे सहनशील मन्यु! आपको बुलाया गया है। संग्राम में हमारे सेनापति बनें। शत्रुओं का वध करके उनका धन हमें देवें। हमें बल देकर शत्रुओं को मारे।[ऋग्वेद 10.84.2]
Hey Manyu! Become radiant-inflammable like Agni Dev to defeat the enemy. Hey tolerant Manyu! Become our commander in the battle. Kill the enemies and give their wealth to us. Grant us strength and destroy the enemy.
सहस्व मन्यो अभिमातिमस्मे रुजन् मृणन् प्रमृणन् प्रेहि शत्रून्।
उग्रं ते पाजो नन्वा रुरुध्रे वशी वशं नयस एकज त्वम्
हे मन्यु! हमारा सामना करने वाले शत्रु को हरावें। काटते-काटते और मारते-मारते शत्रुओं के सामने जावें। आपके दुद्धर्ष बल को कौन रोक सकता है? हे एकाकी मन्यु! आप शत्रुओं को वश में ले आते हैं।[ऋग्वेद 10.84.3]
Hey Manyu defeat the enemy who face us. Face the enemy while killing-beating them. Who can face-encounter your invincible power? Hey Manyu remaining alone! You bring the enemy under your control.
एको बहूनामसि मन्यवीळितो विशंविशं युधये सं शिशाधि।
अकृत्तरुक्त्वया युजा वयं द्युमन्तं घोषं विजयाय कृण्महे
हे मन्यु! आपकी स्तुति की जाती है। आप अकेले हैं। युद्ध के लिए प्रत्येक मनुष्य को तीक्षण करें। आपको सहायक पाकर हमारी दीप्ति कभी नष्ट नहीं होगी। विजय-प्राप्ति के लिए हम प्रबल सिंहनाद करते हैं।[ऋग्वेद 10.84.4]
Hey Manyu! You are worshiped. You are alone. Sharpen-prepare, trained every human being for war. Our aura will never be lost by having your help. We make loud roar-war whoop for victory.
विजेषकृदिन्द्रइवानवब्रवो३स्माकं मन्यो अधिपा भवेह।
प्रियं ते नाम सहुरे गृणीमसि विद्मा तमुत्सं यत आबभूथ
हे मन्यु! आप इन्द्र देव के समान विजेता हैं। आपके वचन में निन्दा नहीं रहती। इस यज्ञ में आप हमारे विशिष्ट रक्षक बनें। हे सहनशील मन्यु! आपका प्रिय स्तोत्र हम उच्चारित करते हैं। आप स्तोत्र से प्रवृद्ध होते हैं, आपको हम बलोत्पादक जानते हैं।[ऋग्वेद 10.84.5]

निन्दा :: तिरस्कार, परिवाद, धिक्कार, भला-बुरा, लानत, धिक्कार, शाप, फटकार, गाली, कलंक; condemnation, reproach, damn, reprehension.
Hey Manyu! You are a winner like Indr Dev. You do not condemnation-reproach others. You should become our special protector in this Yagy. You grow with this Strotr. We consider you to be the producer of strength-might.
आभूत्या सहजा वज्र सायक सहो बिभर्म्यभिभूत उत्तरम्।
क्रत्वा नो मन्यो सह मेद्येधि महाधनस्य पुरुहूत संसृजि
हे वज्रतुल्य और शत्रुनाशक मन्यु! शत्रुओं का नाश करना आपका स्वभाव है। हे शत्रु- साभवकारी मन्यु! आप उत्कृष्ट तेज को धारण करते हैं। हे मन्यु! कर्म के साथ आप हमारे लिए बुद्ध में स्निग्ध होवें। आप बहुतों के द्वारा बुलाये गये हैं।[ऋग्वेद 10.84.6]
स्निग्ध :: स्नेही, तेल युक्त, तैलीय, चिकना, स्नेह युक्त, प्रेममय, चिकना, स्नेह युक्त, प्रेम मय; aliphatic, affectionate, balsamic, affectionate, balsamic, lubricated, oily.
Hey destroyer of enemy Manyu, comparable to the Vajr! Its natural for you to kill the enemy. Hey destroyer of enemy! You possess excellent energy-power. Hey Manyu! You should be affectionate with us by virtue of Karm-deeds. You have been invited by many people.
संसृष्टं धनमुभयं समाकृतमस्मभ्यं दत्तां वरुणश्च मन्युः।
भियं दधाना हृदयेषु शत्रवः पराजितासो अप नि लयन्ताम्
हे वरुण देव और मन्यु! जिन शत्रुओं का हृदय भयाक्रांत है, वह आपसे पराजित होकर दूर भाग जाएं। आप शत्रुओं से प्राप्त धनों को हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.84.7]
Hey Varun Dev & Manyu! The enemy who have been over powered by your fear, should be defeated by you and run away. Grant us the booty-wealth won from the enemy.(09.12.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (85) :: ऋषि :- सूर्या, सावित्री; देवता :- सोम, सूर्याविवाह, देवता, सोमार्क, चंद्रमा, नृणां विवाहमंत्रा आशीप्राया, वधूवास, संस्पर्शनन्दा;  छन्द :- अनुष्टुप्, त्रिष्टुप्, जगती, बृहती।
सत्येनोत्तभिता भूमिः सूर्येणोत्तभिता द्यौः।
ऋतेनादित्यास्तिष्ठन्ति दिवि सोमो अधि श्रितः॥
देवों में सत्य रूप ब्रह्मा जी ने पृथ्वी को आकाश में रोक रखा है। सूर्य देव ने द्युलोक को स्तम्भित कर रखा है। देवताओं की शक्तियाँ यज्ञाहुति के आश्रय में रहती हैं। द्युलोक से भी ऊपर सोम अवस्थित हैं।[ऋग्वेद 10.85.1]
Brahma Ji, truthful amongest the demigods-deities has kept earth in the sky. Sury Dev has stunned-stabilised the heavens. Powers of demigods-deities depend over the offerings in the Yagy. Som is stationed over the heavens.
सोमेनादित्या बलिनः सोमेन पृथिवी मही। अथो नक्षत्राणामेषामुपस्थे सोम आहितः॥
सोम से ही इन्द्रादि बली होते हैं। सोम से ही पृथ्वी प्रकाण्ड हुई है। नक्षत्रों के पास सोम रखा गया है।[ऋग्वेद 10.85.2]
Som makes the demigods, including Indr Dev strong-mighty. Earth has become colossal due to Som. Som has been fixed-established near the constellations.
सोमं मन्यते पपिवान् यत्संपिंषन्त्योषधिम्। सोमं यं ब्रह्माणो विदुर्न तस्याश्नाति कश्चन॥
जिस समय वनस्पति-रूप सोम को पीसा जाता है, उस समय लोग समझते हैं कि उन्होंने सोम-पान कर लिया। परन्तु ब्राह्माण लोग जिसे प्रकृत सोम कहते हैं, उसका कोई अयाज्ञिक पान नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 10.85.3]
When Som in the form of vegetation-herb is grinded, people think that they have drunk Somras. But what the Brahmans identify as Prakrat Som can not be drunk by any one, who do not conduct-support Yagy.
आच्छद्विधानैर्गुपितो बार्हतैः सोम रक्षितः।
ग्राव्णामिच्छृण्वन् तिष्ठसि न ते अश्नाति पार्थिवः॥
हे सोम! स्तोता लोग छिपाने की व्यवस्था जानकर आपको गुप्त रखते हैं। आप पाषाण का शब्द सुनते हैं। पृथ्वी का कोई मनुष्य आपका पान नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 10.85.4]
Hey Som! The Stota aware of the hiding you, keep it a secret. You listen to the sound produced by the rocks-stones. None over the earth can drink you.
यत्त्वा देव प्रपिबन्ति तत आ प्यायसे पुनः।
वायुः सोमस्य रक्षिता समानां मास आकृतिः॥
हे देव सोम! आपका पान करने से आपकी वृद्धि होती है, क्षय नहीं। वायुदेव सोम की वैसे ही रक्षा करते हैं, जैसे महीने वर्ष की रक्षा करते हैं। दोनों का स्वरूप एक-सा है।[ऋग्वेद 10.85.5]
Hey deity Som! Drinking you leads to your growth; not decay. Vayu Dev protect Som the way months protect the year. Both these are alike.
रैभ्यासीदनुदेयी नाराशंसी न्योचनी। सूर्याया भद्रमिद्वासो गाथयैति परिष्कृतम्॥
सूर्य पुत्री के विवाह के समय 'रैभी' नाम की ऋचाएं उसकी सखी हुईं। नाराशंसी नाम की ऋचाएं उनकी दासी हुईं। सूर्या का अत्यन्त सुन्दर वस्त्र साम-गान के द्वारा परिष्कृत हुआ।[ऋग्वेद 10.85.6]
Richas named Raebhi became Surya's-daughter of Sury Dev; friends at the time of her marriage. Richas named Narashnsi became her slave. Surya's extremely beautiful clothing was sanctified with Sam Gan.  
चित्तिरा उपबर्हणं चक्षुरा अभ्यञ्जनम्। द्यौर्भूमिः कोश आसीद्यदयात्सूर्या पतिम्॥
जिस समय सूर्या पति-गृह में गई, उस समय चैतन्य-स्वरूप चादर था। नेत्र ही उसका उबटन और द्यावा-पृथ्वी ही उसके कोश थे।[ऋग्वेद 10.85.7]
उबटन :: शरीर की त्वचा को कोमल और स्वच्छ करने के लिए उस पर लगाया जाने वाला हल्दी, चन्दन, सरसों, चिरौंजी, तिल आदि का लेप; cosmetic, unction, rouge.
When Surya reached her husband's house, consciousness became her covering. Eyes became her cosmetic; heaven & earth became her treasures.
स्तोमा आसन्प्रतिधयः कुरीरं छन्द ओपशः। सूर्याया अश्विना वराग्निरासीत्पुरोगवः॥
स्तोत्र ही उसके रथ-चक्र के डंडे थे। कुटिर नामक छन्द रथ का भीतरी भाग था। सूर्या के वर अश्विनीकुमार थे और अग्निदेव अग्रगामी दूत।[ऋग्वेद 10.85.8]
Strotr became the axels of her charoite. Chhand-meter named Kutir became her charoite's inner segment. Ashwani Kumars were her husbands and Agni Dev became the first messenger-ambassador.
सोमो वधूयुरभवदश्विनास्तामुभा वरा। सूर्यां यत्पत्ये शंसन्तीं मनसा सविताददात्॥
सूर्या मन ही मन पति की कामना करती थी। जिस समय सूर्य ने सूर्या को प्रदान किया, उस समय सोम उसके साथ विवाह करने के इच्छुक थे। परन्तु दोनों अश्विनी कुमार ही उसके वर स्वीकृत किये गये।[ऋग्वेद 10.85.9]
Sury was desirous of marriage. When Sury Dev married her, Som was interested in marrying Surya. But Ashwani Kumars were selected for marrying her.
मनो अस्या अन आसीद् द्यौरासीदुत च्छदिः। शुक्रावनडाहावास्तां यदयात्सूर्या गृहम्॥
सूर्या पति के गृह में गई। उसका मन ही उसका शकट था। आकाश ही ओढ़ना था। सर्व और चन्द्रमा उसके रथ-वाहक हए।[ऋग्वेद 10.85.10]
Surya reached her husband's house. Her innerself was her cart-charoite. Sky was the covering over her. Sarv and Chandr Dev became the carriers of her charoite.
ऋक्सामाभ्यामभिहितौ गावौ ते सामनावितः। श्रोत्रं ते चक्रे आस्तां दिवि पन्थाश्चराचरः॥
ऋक् और साम के द्वारा वर्णित दो वृषभ या वृषभ रूप सूर्य-चन्द्र उसके शकट को यहाँ से वहाँ ले जाने वाले हुए। हे सूर्या! दानों कान आपके दो रथ-चक्र हुए। उसके चलने को मार्ग हुआ आकाश।[ऋग्वेद 10.85.11]
Rik and Sam describes the two bulls in the form of Sury & Chandr to carry Sury's cart. Hey Surya! Both ears became the wheels of your charoite. For moving them, space-sky became road.
शुची ते चक्रे यात्या व्यानो अक्ष आहतः। अनो मनस्मयं सूर्यारोहत्प्रयती पतिम्॥
जाने के समय आपके दोनों रथ के पहिये नेत्र हुए या अत्यन्त उज्ज्वल हुए। उस रथ में विस्तृत अक्ष (दोनों पहियों में लगा हुआ मोटा डंडा) हुआ। पति-गृह में जाने के लिए सूर्या मनोरूप शकट पर चढ़ी।[ऋग्वेद 10.85.12]
At the time of departure two wheels of the charoite became very shining-bright. At that moment the charoite had a long pole-axel between the two wheels. For going to her husband's house Surya rode the cart in the form of her innerself.
सूर्याया वहतुः प्रागात्सविता यमवासृजत्। अघासु हन्यन्ते गावोऽर्जुन्योः पर्युह्यते॥
पति-गृह में जाते समय सूर्य ने सूर्या को चादर दिया, वह आगे-आगे चले। मघा नक्षत्र के उदय-काल में चादर के अंग-स्वरूप विदाई में दी गई। गायों को डंडे से हाँका जाता है और अर्जुनी अर्थात पूर्वा-फाल्गुनी और उत्तरा-फाल्गुनी में उस चादर को रथ से ले जाया जाता है।[ऋग्वेद 10.85.13]
While Surya was to move her husband's house, Sury Dev gave her a covering cloth and moved ahead of her. She was bade farewell with the rise of Magha Nakshtr. A covering was granted to her, at farewell. Cows are moved-derived with pole and during Purva & Uttra Falguni Nakshtr that shroud is taken over the charoite.
यदश्विना पृच्छमानावयातं त्रिचक्रेण वहतुं सूर्यायाः।
विश्वे देवा अनु तद्वामजानन् पुत्रः पितराववृणीत पूषा॥
हे दोनों अश्विनी कुमारों! जिस समय आप लोगों ने तीन पहियों वाले रथ पर चढ़कर और सूर्या के विवाह की बात पूछकर उससे विवाह किया, उस समय समस्त देवगणों ने आपके कार्य का समर्थन किया और आपके पुत्र (पूषा) ने आपको वरण किया।[ऋग्वेद 10.85.14]
Hey Ashwani Kumar duo! When you proposed Surya for marriage, riding the charoite having three wheels and married her after her consent, all demigods-deities supported you and your son Pusha accepted you. 
यदयात शुभस्पती वरेयं सूर्यमुप। कैकं चक्रं वामासीत्क देष्ट्राय तस्थथुः॥
हे दोनों अश्विनी कुमारों! जिस समय आप लोग वर होकर सूर्या के पास गये, उस समय आपका चक्र कहाँ था? मार्ग की जिज्ञासा करने के समय आप लोग कहाँ खड़े थे?[ऋग्वेद 10.85.15]
Hey Ashwani Kumar duo! When you became grooms where was your charoite?  Where did you stand for asking the road-path?(10.12.2024)

द्वे ते चक्रे सूर्ये ब्रह्माण ऋतुथा विदुः। अथैकं चक्रं यद्गुहा तदद्धातय इद्विदुः
ब्राह्मण लोग जानते हैं कि समयानुसार चलने वाले आपके दो चक्र (सूर्य-चन्द्रात्मक) प्रख्यात हैं और एक गोपनीय चन्द्र (वर्ष) को विद्वान् लोग समझते हैं।[ऋग्वेद 10.85.16]
Brahmans know that your two cycles moving according to the time are famous. There is one secret cycle of the Moon known to the learned.
सूर्यायै देवेभ्यो मित्राय वरुणाय च। ये भूतस्य प्रचेतस इदं तेभ्योऽकरं नमः॥
सूर्या, देवगण, मित्र और वरुण देव प्राणियों के शुभ चिन्तक हैं। उन्हें मैं नमस्कार करता हूँ।[ऋग्वेद 10.85.17]
Surya, demigods, Mitr & Varun Dev are well wishers of the living beings. I salute them.
पूर्वापरं चरतो माययैतौ शिशू क्रीळन्तौ परि यातो अध्वरम्।
विश्वान्यन्यो भुवनाभिचष्ट ऋतूरन्यो विदधञ्जायते पुनः
ये दोनों शिशु (सूर्य और चन्द्र) अपनी शक्ति से पूर्व-पश्चिम में विचरण करते हैं। ये क्रीड़ा करते हुए यज्ञ में जाते हैं। इनमें से एक चन्द्रमा संसार में ऋतु-व्यवस्था करते हुए अश्व को देखते हैं और दूसरे सूर्य ऋतु-विधान करते हुए बार-बार जन्म लेते हैं (उदय-अस्त होते हैं)।[ऋग्वेद 10.85.18]
Both infants (Sun & moon) move from east to west by virtue of their power. They go to the Yagy while playing. One of them Chandr-Moon manage the seasons cyclically and look at the horse. The other one Sun too manage the seasons and under goes dawn & rise.
नवोनवो भवति जायमानो ऽ ह्रां केतुरुषसामेत्यग्रम्।
भागं देवेभ्यो वि दद्यात्यायन् प्र चन्द्रमास्तिरते दीर्घमायुः
सूर्य दिन के सूचक हैं। प्रति दिन नये होकर वे प्रातःकाल सामने जाते हैं। आकर देवों को यज्ञ-भाग देने की व्यवस्था करते हैं। चन्द्रमा चिर-जीवन देते हैं।[ऋग्वेद 10.85.19]
Sun represents the day. He rises every day afresh and manage the share of demigods-deities in the Yagy. Luna-Moon grants long life.
सुकिंशुकं शल्मलिं विश्वरूपं हिरण्यवर्ण सुवृतं सुचक्रम्।
आ रोह सूर्ये अमृतस्य लोकं स्योनं पत्ये वहतुं कृणुष्व
हे सूर्या! आप अपने पति गृह में जाते समय शोभन पालाश-वृक्ष और शल्मली वृक्ष से निर्मित नानारूप, सुवर्ण वर्ण, उत्तम और शोभन चक्र वाले रथ पर आरूढ़ हों। सुखकर और अमर स्थान में सोम के लिए जाएं।[ऋग्वेद 10.85.20]
Hey Surya! While going to the house of husbands ride the charoite made of Butea and Bombacaceae-cotton wood having golden hue, beautiful wheels, adjustable to several forms. Go to the comfortable-pleasurous & immortal place of Som.
उदीष्र्घातः पतिवती ह्ये ३ षा विश्वावसुं नमसा गीर्भिरीळे।
अन्यामिच्छ पितृषदं व्यक्ता स ते भागो जनुषा तस्य विद्धि॥
हे विश्वासु! यहाँ से उठें; क्योंकि इस कन्या का विवाह हो गया है। मैं नमस्कार और स्तोत्र के द्वारा विश्वावसु की स्तुति करता हूँ। यदि कोई दूसरी कन्या पितृ-गृह में विवाह के योग्य हुई हो, तो उसके पास जावें। वही आपके भाग्य में जन्मी है। उसे ग्रहण करें।[ऋग्वेद 10.85.21]
Hey Vishwasu! Leave this place, since this girls has been married. I salute and recite Strotr in the honour of Vishwa Vasu. If some other girl has matured for marriage; go to her house. Its she, who is made for you by luck, for marrying you. Accept her.
उदीष्र्घातो विश्वावसो नमसेळामहे त्वा। अन्यामिच्छ प्रफर्व्यं १ सं जायां पत्या सृज
हे विश्वावसु! यहाँ से उठें। नमस्कार के द्वारा मैं आपकी पूजा करता हूँ। किसी बृहत् नितम्ब वाली कन्या के पास जाएं और उसे उसके पति के साथ संयुक्त करें।[ऋग्वेद 10.85.22]
Hey Vishwa Vasu! Get up. I salute and worship you. Go to some girl with wide buttocks and let her join her with her husband.
अनृक्षरा ऋजवः सन्तु पन्था येभिः सखायो यन्ति नो वरेयम्।
समर्यमा सं भगो नो निनीयात्सं जास्पत्यं सुयममस्तु देवाः
हे देवों! वह मार्ग सरल और कण्टक-विहीन हो, जिनसे हमारे मित्र लोग कन्या के पिता के पास जाते हैं। अर्यमा और भग देवता हमें भली भाँति ले चलें। पति-पत्नी मिलकर रहें।[ऋग्वेद 10.85.23]
Hey demigods-deities! That road-route through which our friends go to the father of the girl is free from thorns. Let Aryma & Bhag take us carefully. Let husband and wife live together.  
प्र त्वा मुञ्चामि वरुणस्य पाशाद्येन त्वाबध्नात्सविता सुशेवः।
ऋतस्य योनौ सुकृतस्य लोकेऽरिष्टां त्वा सह पत्या दधामि
हे कन्या! सुन्दर शरीर सूर्य देव ने जिस बन्धन से आपको बाँधा, उसी वरुण देव के (सूर्य द्वारा प्रेरित होकर वरुण ही बाँधते हैं) पाश से मैं आपको छुड़ाता हूँ। जो सत्य का आधार है और जो सत्कर्म का निवास है, उसी स्थान पर आपको निर्विघ्न रूप से पति के साथ स्थापित करता हूँ।[ऋग्वेद 10.85.24]
Hey girl! The cord-noose with which Sury Dev ties-knot, Varun Dev to bond-tie with it and I release you. The basis of truth and virtuous place establish you with your husband without any trouble.
प्रेतो मुञ्चामि नामुतः सुबद्धाममुतस्करम्। यथेयमिन्द्र मीढः सुपुत्रा सुभगासति
मैं कन्या को पितृ-कुल से छुड़ाता हूँ, दूसरे स्थान से नहीं। पतिगृह में इसे भलीभाँति स्थापित करता हूँ। हे वर्षक इन्द्रदेव! यह सौभाग्यवती और सुपुत्रवाली हो।[ऋग्वेद 10.85.25]
I detach the girls from her parental clan not from any other place. I establish her properly in her husband's house. Hey rain showering Indr Dev! Let her become lucky and have sons.
पूषा त्वेतो नयतु हस्तगृह्याश्विना त्वा वहतां रथेन।
गृहान् गच्छ गृहपत्नी यथासो वशिनी त्वं विद्यमा वदासि
आपको हाथ में धारण करके पूषा यहाँ से ले जाएं। दोनों अश्विनीकुमारों आपको रथ से ले जाएं। गृह में जाकर गृहिणी बनें। पति के वश में रहकर भृत्यादि का व्यवस्थापन करें।[ऋग्वेद 10.85.26]
Let Pusha bring her here, holding her hands. Both Ashwani Kumars should depart by charoite. She should go to her home and become a house wife. She should remain loyal to her husband and look after servants-slaves, daily routine etc.
इह प्रियं प्रजया ते समृध्यतामस्मिन् गृहे गार्हपत्याय जागृहि।
एना पत्या तन्वं १ सं सृजस्वाधा जिव्री विदथमा वदाथः
इस गृह में सन्तान उत्पन्न करके प्रसन्न होवें। यहाँ सावधान होकर कार्य करना। स्वामी के साथ अपने शरीर को सम्मिलित करें। वृद्धावस्था तक अपने गृह में प्रभुता करें।[ऋग्वेद 10.85.27]
She should be happy in this house by giving birth to progeny. She has to be careful here. She has to assimilate her body with her husband. She should head the home-family till old age.
नीलहोहितं भवति कृत्यासक्तिर्व्यज्यते। एधन्ते अस्या ज्ञातयः पतिर्बन्धेषु बध्यते
पाप-देवता (कृत्या) नील और लोहित वर्ण के हो रहे हैं। इस पर सबद्ध कृत्या को छोड़ा जाता है। तब इस नारी के जातीय लोग बढ़ रहे हैं। इसका पति संसारिक बन्धन में है।[ऋग्वेद 10.85.28]
Deity of sin (Kratya) is turning from blue to blood red (becoming angry-furious). She may be attacked by related Kratya. Then the population of the female start growing. Her husband is bonded with worldly attachments.
परा देहि शामुल्यं ब्रह्मभ्यो वि भजा वसु। कृत्यैषा पद्वती भूत्व्या जाया विशते पतिम्
मलिन वस्त्र का त्याग करें। ब्राह्मणों को धन दें। कृत्या चली गई है। पत्नी-पति में सम्मिलित हो रही है।[ऋग्वेद 10.85.29]
Reject-change the dirty clothes. Grant money to Brahmans. Kratya has departed. The wife is joining her husband.
अश्रीरा तनूर्भवति रुशती पापयामुया। पतिर्यद्वध्वो ३ वाससा स्वमङ्गमभिधित्सते
यदि पति वधू के वस्त्र से अपने शरीर को ढकने की चेष्टा करता है, तो उस पर कृत्या का आक्रमण होता है और उज्ज्वल शरीर भी श्री-भ्रष्ट हो जाता है।[ऋग्वेद 10.85.30]
The husband is attacked by Kratya if the he tries to cover his body by the cloths of the wife and his aura & radiant body; as well as wealth is lost.(11.12.2024)
ये वध्वश्चन्द्रं वहतुं यक्ष्मा यन्ति जनादनु। पुनस्तान् यज्ञिया देवा नयन्तु यत आगताः॥
चन्द्र देव की भाँति आभायुक्त वधू को जो लोग माता-पिता से स्वतः प्राप्त हो जाते हैं, पूजनीय देवगण उन रोगों को उनके स्थान पर गमन करायें।[ऋग्वेद 10.85.31]
Let demigods-deities send the person back to his place, who obtain virtuous wife from her parents, like Chandr Dev.
मा विदन् परिपन्थिनो य आसीदन्ति दंपती। सुगेभिर्दुर्गमतीतामप द्रान्त्वरातयः
जो शत्रुता के लिए इन दम्पती के पास आते हैं, वे विनष्ट हों। दम्पती सुविधा के द्वारा असुविधा को नष्ट कर दें। शत्रु लोग दूर भाग जाएं।[ऋग्वेद 10.85.32]
Those who come to this couple due to enmity should be destroyed. Let the couple reject the inconvenience for the sake of pleasure-comforts. The enemies should run away.
सुमङ्गलीरियं वधूरिमां समेत पश्यत। सौभाग्यमस्यै दत्त्वायाथास्तं वि परेतन॥
यह तमू शोभन कल्याणवाली है। सभी आशीर्वादकर्ता पधारें और इसे देखें। इसे स्वाभी की प्रियपात्री बनने का आशीर्वाद देकर सब लोग अपने-अपने घर चलें जाएं।[ऋग्वेद 10.85.33]
This bride perform virtuous deeds. Let all those who wish to bless her should come and see her. They should bless her to be become sweet heart of her husband and return back.
तृष्टमेतत्कटुकमेतदपाष्ठवद्विषवन्नैतदत्तवे। सूर्या यो ब्रह्मा विद्यात्स इद्वाधूयमर्हति॥
यह वस्त्र दूषित, अग्राह्य, मलिन और विषयुक्त है। यह व्यवहार के योग्य नहीं है। जो ब्राह्मण सूर्या को जानते है, वही यह वस्त्र पा सकते हैं।[ऋग्वेद 10.85.34]
This cloth is contaminated-depraved, unacceptable, dirty and poisonous. This is unfit for use. The Brahman who know Surya can have this cloth.
आशसनं विशसनमथो अधिविकर्तनम्। सूर्यायाः पश्य रूपाणि तानि ब्रह्मा तु शुन्धति
सूर्या की मूर्ति कैसी हैं, देखें। इसका वस्त्र कहीं प्रथम फटा है। कहीं बीच में फटा है और कहीं चारों ओर फटा है। जो ब्रह्मा है, वे ही इसका संशोधन करते हैं।[ऋग्वेद 10.85.35]
How Surya looks like, see? Is her cloth torn? The cloth is torn in the middle and all around. Only he who is Brahma can amend-repair it.
गृभ्णामि ते सौभगत्वाय हस्तं मया पत्या जरदष्टिर्यथासः।
भगो अर्थमा सविता पुरंधिर्मह्यं त्वादुर्गार्हपत्याय देवाः
आपके सौभाग्य के लिए मैं आपका हाथ पकड़ता हूँ। मुझे पति पाकर आप वृद्धावस्था में पहुँचना-यही मेरी प्रार्थना है। भग, अर्यमा और पूषा ने आपको मुझे गृह-धर्म चलाने के लिए दिया है।[ऋग्वेद 10.85.36]
I hold your hand for your good luck. I pray that you should reach old age accepting me as your husband. Bhag, Aryma and Pusha have given you to me for maintaining family life.
तां पूषञ्छिवतमामेरयस्व यस्यां बीजं मनुष्या ३ वपन्ति।
या न ऊरू उशती विश्रयाते यस्यामुशन्तः प्रहराम शेपम्
हे पूषा! जिस नारी के गर्भ में पुरुष बीज बीता है, उसे आप कल्याणी बनाकर भेजें। कामिनी होकर वह अपने उरु-द्वय विस्तारित करेगी और हम कामवश होकर उसमें अपना इन्द्रिय प्रहार करेंगे।[ऋग्वेद 10.85.37]
उरु :: जाँघ, विस्तीर्ण, लंबा चौड़ा, विशाल, बड़ा, श्रेष्ठ, बड़ा, महान्; thighs.
Hey Pusha! Make the women who bear the sperms of the man auspicious. She will open her thighs on being sexy and we will have sex with her under the impact of sexuality.
तुभ्यमग्रे पर्यवहन्त्सूर्यां वहतुना सह। पुनः पतिभ्यो जायां दा अग्ने प्रजया सह
हे अग्नि देव! ओढ़नी के साथ सूर्या को पहले आपके पास ले जाया जाता है। आप सन्तान-रहित वनिता को पति के हाथ में सौंपते हैं।[ऋग्वेद 10.85.38]
Hey Agni Dev! First of all Surya is taken to you covering her head. You hand over the virgin-issueless woman to her husband.
पुनः पत्नीमग्निरदादायुषा सह वर्चसा। दीर्घायुरस्या यः पतिर्जीवाति शरदः शतम्
अग्नि देव ने पुनः सौन्दर्य और परमायु के साथ वनिता को दिया। इसका पति दीर्घायु होकर सौ वर्ष जीवित रहेगा।[ऋग्वेद 10.85.39]
Agni Dev blessed her with beauty and maximum longevity. Let her husband attain long age and complete hundred years.
सोमः प्रथमो विविदे गन्धर्वो विविद उत्तरः। तृतीयो अग्निष्टे पतिस्तुरीयस्ते मनुष्यजाः॥
सोम ने सबसे प्रथम आपको पत्नी-रूप से प्राप्त किया। आपके दूसरे पति गन्धर्व हुए और तीसरे अग्नि देव। मनुष्य-वंशज आपके चौथे पति हैं।[ऋग्वेद 10.85.40]
Som became your first husband, Gandarbh second and Agni Dev is your third husband. Descendants of humans became your fourth husband.(12.12.2024M)
सोमो ददद्गन्धर्वाय गन्धर्वो दददग्नये। रयिं च पुत्राँश्चादादग्निर्मह्यमथो इमाम्
सोम ने उस स्त्री को गन्धर्व को दे दिया, गन्धर्व ने अग्नि देव को दिया और अग्नि देव ने धन-सन्तान सहित मुझे दिया।[ऋग्वेद 10.85.41]
Som awarded that woman to the Gandarbh, Gandarbh then gave her to Agni Dev and after that Agni Dev gave her to me along with progeny.
इहैव स्तं मा वि यौष्टं विश्वमायुर्व्यश्नुतम्। क्रीळन्तौ पुत्रैर्नप्तृभिर्मोदमानौ स्वे गृहे॥
हे वर और वधू! आप दोनों यहीं रहे, परस्पर पृथक् न होवें। नाना प्रकार के खाद्यों का भक्षण करें। अपने गृह में रहकर पुत्र-पौत्रों के साथ आमोद-प्रमोद, आह्लाद और क्रीड़ा करें।[ऋग्वेद 10.85.42]
Hey bride & groom! Stay here and never separate. Eat various kinds of foods-eatables. Stay home with sons & grand sons, enjoy life. Have fun and enjoyment. Be happy, cheerful & playful.
आ नः प्रजां जनयतु प्रजापतिराजरसाय समनक्त्वर्यमा।
अदुर्मङ्गलीः पतिलोकमा विश शं नो भव द्विपदे शं चतुष्पदे
ब्रह्मा या प्रजापति हमें सन्तति दें और अर्यमा बुढ़ापे तक हमें साथ रखें। हे वधू! आप मंगलमयी होकर पति-गृह में ठहरें। हमारे मनुष्यों और पशुओं के लिए कल्याणकारिणी रहें।[ऋग्वेद 10.85.43]
Let Brahma Ji-Prajapati grant us progeny and Aryma should keep us united till old age-till death. Hey bride! You should be auspicious and stay in your husband's house. You should be beneficial to our animals and family members, relations humans.
अघोरचक्षुरपतिघ्न्येधि शिवा पशुभ्यः सुमनाः सुवर्चाः।
वीरसूर्देवकामा स्योना शं नो भव द्विपदे शं चतुष्पदे
आपका नेत्र निर्दोष हो। आप पति के लिए मंगलमयी होवें। पशुओं के लिए मंगलकारिणी होवें। आपका मन प्रफुल्ल हो और आपका सौन्दर्य शुभ्र हो। आप वीर-प्रसविनी और देवों की भक्ता होवें। हमारे मनुष्यों और पशुओं के लिए कल्याणमयी होवें।[ऋग्वेद 10.85.44]
Let your your eyes become defect free. You should be auspicious to your husband. You should be beneficial to the animals. You should be cheerful and maintain your beauty. You become the mother of brave sons and devoted to deities. You should be beneficial for our humans and animals-cattle.
इमां त्वमिन्द्र मीढः सुपुत्रां सुभगां कृणु। दशास्यां पुत्राना धेहि पतिमेकादशं कृधि॥
हे वर्षक इन्द्र देव! इस नारी को उत्तम पुत्र और सौभाग्यवाली करें। इसके गर्भ में इस पुत्र स्थापित करें। पति को लेकर इसे ग्यारह व्यक्तिवाली बनावें।[ऋग्वेद 10.85.45]
Hey rain showering Indr Dev! Let this woman become the mother of excellent sons and become lucky. Establish son in her womb-uterus. Let her have eleven person starting with her husband.
सम्राज्ञी श्वशुरे भव सम्राज्ञी श्वश्वां भव। ननान्दरि सम्राज्ञी भव सम्राज्ञी अधि देवृषु
हे वधू! आप सास, ससुर, ननद और देवरों की साम्राज्ञी बनें और सबके ऊपर प्रभुत्व स्थापित करें।[ऋग्वेद 10.85.46]
Hey bride! Become the queen of hearts of the maternal parents, sister and brother in laws. Establish your supremacy over them.
She has to attain this through love & affection, service, dedication.
समञ्जन्तु विश्वे देवाः समापो हृदयानि नौ। सं मातरिश्वा सं धाता समु देष्ट्री दधातु नौ
समस्त देवगण हम दोनों के हृदयों को मिला दें। जल, वायु, धाता और सरस्वती हम दोनों को संयुक्त करें।[ऋग्वेद 10.85.47]
Let the deities join-connect our hearts. Let Varun Dev-water, Dhata, Vayu Dev and Maa Saraswati join us.(12.12.2024E)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (86) :: ऋषि :- वृषाकपि इन्द्र, इन्द्राणी व इन्द्र; देवता :- इन्द्र; छन्द :- पंक्ति।
वि हि सोतोरसृक्षत नेन्द्रं देवममंसत।
यत्रामददृषाकपिरर्यः पुष्टेषु मत्सखा विश्वस्मादिन्द्र उत्तरः॥
इन्द्र देव ने सोमाभिषव करने के लिए स्तोताओं को कहा। परन्तु उन्होंने इन्द्र की स्तुति नहीं की, वृषाकपि की ही स्तुति की। सोम-प्रवृद्ध यज्ञ में स्वामी वृषाकपि (इन्द्र-पुत्र) मेरे मित्र होकर सोमपान से प्रसन्न हुए। फिर भी इन्द्र देव सबसे श्रेष्ठ हैं।[ऋग्वेद 10.86.1]
Indr Dev asked the Stotas for Somabhishav. They did not worship Indr Dev, instead they worshiped Vrasha Kapi-son of Dev Raj Indr. Swami Vrasha Kapi become friendly with me in the Som Yagy, drunk Somras and became cheerful-happy. Still Indr Dev is the best.
परा हीन्द्र धावसि वृषाकपेरति व्यथिः।
नो अह प्र विन्दस्यन्यत्र सोमपीतये विश्वस्मादिन्द्र उत्तरः
हे इन्द्र देव! आप अत्यन्त चलित होकर वृषाकपि के पास जाते हैं। आप सोमपान के लिए नहीं जाते हैं। इन्द्र देव सर्वश्रेष्ठ हैं।
इन्द्राणी कहती हैं, हे इन्द्र, तुम अत्यन्त क्षुब्ध होकर वृषाकपी की ओर तेजी से जा रहे हो, फिर भी तुम्हें सोम पीने के लिए कोई अन्य स्थान नहीं मिल रहा, इन्द्र सब से ऊपर हैं।[ऋग्वेद 10.86.2]
Hey Indr Dev! You became perturbed and moved to Vrasha Kapi. You do not move for drinking Somras. Indr Dev is the best.
किमयं त्वां वृषाकपिश्चकार हरितो मृगः।
यस्मा इरस्यसीदु न्व १ र्यो वा पुष्टिमद्वसु विश्वस्मादिन्द्र उत्तरः
हे इन्द्र देव! वृषाकपि ने आपका क्या भला किया है कि, आप उदार होकर हरिताभ मृग वृषाकपि को पुष्टिकर धन देते हैं। इन्द्र देव सर्वश्रेष्ठ हैं।[ऋग्वेद 10.86.3]
Hey Indr Dev! How did Vrasha Kapi help you? You nourishing grant wealth to Vrasha Kapi liberally. Indr Dev is the best.
यमिमं त्वं वृषाकपिं प्रियमिन्द्राभिरक्षसि।
श्वा न्वस्य जम्भिषदपि कर्णे वराहयुर्विश्वस्मादिन्द्र उत्तरः
हे इन्द्र देव! आप जिस प्रिय वृषाकपि की रक्षा करते हैं, उनके कान को वराहाभिलाषी श्वान काटे। इन्द्रदेव सर्व श्रेष्ठ हैं।[ऋग्वेद 10.86.4]
Hey Indr Dev! Let the ears of Vrasha Kapi, protected by you, be bitten by dog desirous of pig. Indr Dev is the best.
प्रिया तष्टानि मे कपिर्व्यक्ता व्यदूदुषत्।
शिरो न्वस्य राविषं न सुगं दुष्कृते भुवं विश्वस्मादिन्द्र उत्तरः
इन्द्राणी की उक्ति :- मेरे लिए यजमानों के द्वारा कल्पित प्रिय और घृत युक्त जो सामग्री रखी हुई थी, उसे वृषाकपि ने दूषित कर दिया। मेरी इच्छा है कि मैं इसका सिर काट डालूँ। मैं इस दुष्ट-कर्मा को सुख नहीं दे सकती। इन्द्र देव सर्वश्रेष्ठ हैं।[ऋग्वेद 10.86.5]
Indrani said, "Vrasha Kapi contaminated the material mixed with Ghee, offered to me by the Ritviz. I wish to saver his head. I can not grant comforts this vicious-wicked". Indr Dev is the best. 
न मत्स्त्री सुभसत्तरा न सुयाशुतरा भुवत्।
न मत्प्रतिच्यवीयसी न सक्थ्युद्यमीयसी विश्वस्मादिन्द्र उत्तरः
मुझसे बढ़कर कोई स्त्री सौभाग्यवती नहीं हैं, सुपुत्रवाली भी नहीं है। मुझसे बढ़कर कोई भी स्त्री पुरुष (स्वामी) के पास शरीर को नहीं प्रफुल्ल कर सकती और न ही रति के समय दोनों जाँघों को उठा ही सकती है।[ऋग्वेद 10.86.6]
No woman is luckier than me, even the one having virtuous son. None other than me can cheer the husband, even Rati can not raise his thighs.
उवे अम्ब सुलाभिके यथेवाङ्ग भविष्यति।
भसन्मे अम्ब सक्थि मे शिरो मे वीव हृष्यति विश्वस्मादिन्द्र उत्तरः
वृषाकपि की उक्ति-माता (इन्द्राणी) आपने सुन्दर लाभ किया है। आपका अंग, जंघा, मस्तक आदि आवश्यकतानुसार हो जाएंगे। प्रेमालाप से कोकिलादि पक्षी के समान आप पिता को प्रसन्न करें। इन्द्र देव सर्वश्रेष्ठ हैं।[ऋग्वेद 10.86.7]
Vrasha Kapi told his mother-Indrani, "You have gained beautifully. Let your organs, thighs and forehead become as per need. You should make father-Indr Dev happy like the bird nightingale". Indr Dev is the best.
किं सुबाहो स्वङ्गुरे पृथुष्टो पृथुजाघने।
किं शूरपत्नि नस्त्वमभ्यमीषि वृषाकपिं विश्वस्मादिन्द्र उत्तरः
इन्द्र देव की उक्ति :- सुन्दर भुजाओं, सुन्दर अँगुलियों, लम्बे बालों और मोटी जाँघों वाली तथा वीर-पत्नि इन्द्राणी, आप वृषाकपि पर क्यों क्रुद्ध हो रही हैं? इन्द्र देव सर्वश्रेष्ठ हैं।[ऋग्वेद 10.86.8]
Indr Dev said, "Possessor of long arms, beautiful fingers, long hairs, hey brave Indrani! Why are you angry with Vrasha Kapi"? Indr Dev is the best.
अवीरामिव मामयं शरारुरभि मन्यते।
उताहमस्मि वीरिणीन्द्रपत्नी मरुत्सखा विश्वस्मादिन्द्र उत्तरः
इन्द्राणी का कथन :- यह हिंसक वृषाकपि मुझे पति-पुत्र-विहीना के समान समझता है। परन्तु मैं पति-पुत्र वाली इन्द्र देव की पत्नी हूँ। मेरे सहायक मरुत् गण है। इन्द्र देव सर्वश्रेष्ठ हैं।[ऋग्वेद 10.86.9]
Indrani replied, "This violent Vrasha Kapi consider me to be without husband & son. But I am the wife of Indr Dev having husband and son. Marud Gan are my helpers". Indr Dev is he best.
संहोत्रं स्म पुरा नारी समनंवाव गच्छति।
वेधा ऋतस्य वीरिणीन्द्रपत्नी महीयते विश्वस्मादिन्द्र उत्तरः
जिस समय हवन या युद्ध होता है, उस समय पति और पुत्र वाली इन्द्राणी वहाँ जाती हैं। वे यज्ञ का विधान करने वाली है, उनकी पूजा सब लोग करते हैं। इन्द्र देव सर्वश्रेष्ठ हैं।[ऋग्वेद 10.86.10]
When either Hawan of war takes place, Indrani possessor of husband and son goes there. She is the organiser of Yagy. Populace worship her. Indr Dev is the best.
इन्द्राणीमासु नारिषु सुभगामहमश्रवम्।
ह्यस्या अपरं चन जरसा मरते पतिर्विश्वस्मादिन्द्र उत्तरः
इन्द्र देव की उक्ति :- समस्त स्त्रियों में मैंने इन्द्राणी को सौभाग्यवाली सुना है। अन्यान्य पुरुषों के समान इन्द्राणी के पति को वृद्धावस्था में पड़कर नहीं मरना पड़ता। इन्द्र देव सर्वश्रेष्ठ हैं। [ऋग्वेद 10.86.11]
Indr Dev said, "I consider Indrani to be the luckiest amongest the women. Her husband has not to die like others in the old age". Indr Dev is the best.
नाहमिन्द्राणि रारण सख्युर्वृषाकपेर्ऋते।
यस्येदमप्यं हविः प्रियं देवेषु गच्छति विश्वस्मादिन्द्र उत्तरः
हे इन्द्राणी! अपने हितैषी वृषाकपि के बिना मैं प्रसन्न नहीं रहता। वृषाकपि का ही प्रीतिकर दृव्य (हवि आदि) देवों के पास जाता है। इन्द्र देव सर्वश्रेष्ठ हैं।[ऋग्वेद 10.86.12]
Hey Indrani! I can not become-remain happy without Vrasha Kapi, who is my well wisher. Offerings-oblations dear to Vrasha Kapi, reach demigods-deities. Indr Dev is the best.
वृषाकपायि रेवति सुपुत्र आदु सुस्नुषे।
घसत्त इन्द्र उक्षणः प्रियं काचित्करं हविर्विश्वस्मादिन्द्र उत्तरः
हे वृषाकपि की स्त्री! आप धनशालिनी, उत्तम पुत्रवाली और सुन्दरी पुत्र-वधू हैं। आपके वृषों (साँड़ों) को इन्द्र देव खा जाएं। आपके प्रिय और सुखकर हवि का वे भक्षण करें। इन्द्र देव सर्वश्रेष्ठ है।[ऋग्वेद 10.86.13]
Hey wife of Vrasha Kapi! You are a daughter in law with excellent son & a beautiful daughter in law. Let your bulls be eaten by Indr Dev. Let him eat the dear and pleasure giving offerings made by you. Indr Dev is the best.
उक्ष्णो हि मे पञ्चदश साकं पचन्ति विंशतिम्।
उताहमद्मि पीव इदुभा कुक्षी पृणन्ति मे विश्वस्मादिन्द्र उत्तरः
इन्द्र देव की उक्ति :- मेरे लिए इन्द्राणी के द्वारा प्रेरित याज्ञिक लोग पंद्रह-बीस साँड़ या बैल पकाते हैं। उन्हें खाकर मैं मोटा होता हूँ। मेरी दोनों कुक्षियों को याज्ञिक लोग सोम से भरते हैं। इन्द्रदेव सर्वश्रेष्ठ हैं।[ऋग्वेद 10.86.14]
Indr Dev said, "The Yagyik engaged in the Yagy, cook 15-20 bulls for me, inspired by Indrani. I am becoming fat by eating them. The Yagyik fill both segments of my stomach with Somras". Indr dev is the best.
वृषभो न तिग्मशृङ्गोऽन्तर्यूथेषु रोरुवत्।
मन्थस्त इन्द्र शं हृदे यं ते सुनोति भावयुर्विश्वस्मादिन्द्र उत्तरः
हे इन्द्र देव! जिस प्रकार तीक्ष्ण शृङ्ग वृषभ गोवृन्द में गर्जन करता हुआ रमता है, उसी प्रकार ही आप भी मेरे साथ रमण करें। आपके हृदय के लिए दधि मन्थन शब्द करता हुआ कल्याणकर हों। भावाभिलाषिणी इन्द्राणी जिस सोम का अभिषव करती हैं, वह भी कल्याणकर हैं। इन्द्र देव सर्वश्रेष्ठ हैं।[ऋग्वेद 10.86.15]
Hey Indr Dev! The way the bull with sharp horns mixes up make make loud sound, similarly you should mix up-enjoy with me. The sound of churning curd be beneficial for you. The Somras sipped by desirous Indrani desirous of love. Indr Dev is the best.(13.12.2024)
न सेशे यस्य रम्बतेऽन्तरा सक्थ्या ३ कपृत्। 
सेदीशे यस्य रोमशं निषेदषो विजृम्भते विश्वस्मादिन्द्र उत्तरः॥
इन्द्राणी की उक्ति :- हे इन्द्र देव! वह मनुष्य मैथुन करने में समर्थ नहीं हो सकता, जिसका पुरुषांग दोनों जघनों के बीच लम्बायमान है। वही समर्थ हो सकता है, जिसके बैठने पर लोमयुक्त पुरुषांग बल प्रकाश करता या फैलता है। इन्द्र देव सर्वश्रेष्ठ है।[ऋग्वेद 10.86.16]
A man who's pennies hang between the thighs is incapable of mating. A person who's pennies has hair and erect at the time of sex is capable of mating-sex. Indr Dev is the best.
न सेशे यस्य रोमशं निषेदषो विजम्भते।
सेदीशे यस्य रम्बतेऽन्तरा सक्थ्या ३ कपृद्विश्वस्मादिन्द्र उत्तरः 
उत्तर वह मनुष्य मैथुन करने में समर्थ नहीं हो सकता, जिसके बैठने पर लोमयुक्त पुरुषांग बल प्रकाश करता है। वही समर्थ हो सकता है, जिसका पुरुषांग दोनों जघनों के बीच लम्बायमान हो।[ऋग्वेद 10.86.17]
That man who's pennies do no elongate while sitting can not have sex-mate. Only that man can have sex who's pennies become erect-elongate between the two thighs.
Sexuality reside in the mind of a man. For it erection & elongation of pennies is essential-must. Those people who resort to masturbation or have sex with multiple partners experience impotency, sooner or later in addition to acquiring venereal diseases like aids.
अयमिन्द्र वृषाकपिः परस्वन्तं हतं विदत्।
असिं सूनां नवं चरुमादेधस्यान आचितं विश्वस्मादिन्द्र उत्तरः
हे इन्द्र देव! वृषाकपि धन सहित अपने निमित्त चोर को प्राप्त करें तथा खड्ग, चरु, काष्ठ से परिपूर्ण शकट को ग्रहण करें। निश्चय ही इन्द्र देव सर्वश्रेष्ठ हैं।[ऋग्वेद 10.86.18]
Hey Indr Dev! Let Vrasha Kapi arrest the thief with wealth-booty. He should accept sword, Charu and the cart full of wood. Indr Dev is definitely superior to all-others.
अयमेमि विचाकशद्विचिन्वन् दासमार्यम्।
पिबामि पाकसुत्वनोऽभि धीरमचाकशं विश्वस्मादिन्द्र उत्तरः
मैं (इन्द्र) यजमानों को देखते हुए, आर्यों का अन्वेषण करते हुए और शत्रुओं को दूर करते हुए यज्ञ में आता हूँ। सोमाभिषव करनेवाले और हवि पकानेवाले का सोमरस पीता हूँ। बुद्धिमान को देखता हूँ। इन्द्र देव सर्वश्रेष्ठ है।[ऋग्वेद 10.86.19]
I-Indr come to the Yagy while looking at the Ritviz, analysing-searching the Ary and repelling the enemies. I drink the Somras of those who extract it and cook the offerings. I look at the intellectuals-intelligent. Indr Dev is the best.
धन्व च यत्कृन्तत्रं च कति स्वित्ता वि योजना।
नेदीयसो वृषाकपेऽस्तमेहि गृहाँ उप विश्वस्मादिन्द्र उत्तरः
जल-शून्य मरुदेश और काटने योग्य वन में कितने योजनों का अन्तर है? हे वृषाकपि! पास के गृह में ही आश्रय ग्रहण करें। इन्द्र देव सर्वश्रेष्ठ हैं।[ऋग्वेद 10.86.20]
What is the distance between the desert without population and the forest fit for cutting, in Yojan? Hey Vrasha Kapi! Take asylum in the nearest house. Indr Dev is the best.
पुनरेहि वृषाकपे सुविता कल्पयावहै।
य एष स्वप्ननंशनोऽस्तमेषि पथा पुनर्विश्वस्मादिन्द्र उत्तरः
हे वृषाकपि! आप फिर आवें। आपके लिए हम (इन्द्र और इन्द्राणी) उत्तमोत्तम कर्म करते हैं। स्वप्न नाशक सूर्य देव जिस प्रकार अस्त होते हैं, उसी प्रकार ही आप भी घर में आवें। इन्द्र देव सर्वश्रेष्ठ हैं।[ऋग्वेद 10.86.21] 
Hey Vrasha Kapi! Come again. We both- Indr & Indrani perform excellent deeds. The way Sury Dev-destroyer of dreams set, similarly you should also come back home. Indr Dev is the best.
यदुदञ्चो वृषाकपे गृहमिन्द्राजगन्तन।
क १ स्य पुल्वघो मृगः कमगञ्जनयोपनो विश्वस्मादिन्द्र उत्तरः
हे वृषाकपि और इन्द्र देव! ऊपर मुँह किये हुए आप लोग मेरे गृह में पधारें। बहुभोक्ता और जन-हर्षदाता मृग कहाँ गया? इन्द्र देव सर्वश्रेष्ठ हैं।[ऋग्वेद 10.86.22]
Hey Vrasha Kapi & Indr Dev! Come to my house keeping your mouth up. Where is the omnivorous deer who grant happiness? Indr Dev is the best.
पर्शुर्ह नाम मानवी साकं ससूव विंशतिम्।
भद्रं भल त्यस्या अभूद्यस्या उदरमामयद्विश्वस्मादिन्द्र उत्तरः
इन्द्र के द्वारा छोड़े गये बाण, मनु-पुत्री पर्शु ने बीस पुत्रों को उत्पन्न किया। जिन (पर्शु ) का उदर विशाल हुआ था, उनका सदैव कल्याण हो। इन्द्र देव सर्वश्रेष्ठ हैं।[ऋग्वेद 10.86.23] 
The arrow shot (sperms) by Indr Dev,  led to birth by the daughter of Manu to 20 sons. Parshu with raised stomach should be blessed with welfare. Indr Dev is he best.(14.12.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (87) :: ऋषि :- पायु, भरद्वाज;  देवता :- अग्नि, रशोहा;  छन्द :- त्रिष्टुप्, अनुष्टुप्।
रक्षोहणं वाजिनमा जिघर्मि मित्रं प्रथिष्ठमुप यामि शर्म।
शिशानो अधिः क्रतुभिः समिद्धः स नो दिवा स रिषः पातु नक्तम्
मित्र और स्थूल अग्नि देव का घृत से हवन करता हूँ। राक्षस नाशक, बली, यजमानों के गृह को जाता हूँ। ज्वालाओं को तेज करते हुए अग्नि देव यजमानों के द्वारा प्रज्वलित होते हैं।[ऋग्वेद 10.87.1]
I perform Hawan for the sake of friendly Agni Dev with Ghee. I visit the mighty hosts who destroy the demons. Agni Dev is evolved by the Ritviz making the flames sharp.
अयोदंष्ट्रो अर्चिषा यातुधानानुप स्पृश जातवेद समिद्धः।
आ जिह्वया मूरदेवान् रभस्व क्रव्यादो वृक्व्यपि धत्स्वासन्
हे ज्ञानी अग्नि देव! लौह दन्त (तीक्ष्ण-दन्त) होकर अपनी ज्वाला से राक्षसों को जलावें। मारक राक्षसों को ज्वाला से मारे। माँस-भक्षक राक्षसों को काट करके मुँह में रख लें।[ऋग्वेद 10.87.2]
तीक्ष्ण :: तेज़ नोक वाला, तीव्र बुद्धिवाला, कुशाग्र; चुभनेवाला, तेज, तीव्र, तीखा, तिक्त; sharp, acute, penetrating, pungent.
Hey enlightened Agni Dev! You should have sharp-penetrating teeth to burn the demons with your flames. Kill  the killer demons with your flames. Cut the meat eating demons and put them in your mouth.
उभोभयाविन्नुप धेहि दंष्ट्रा हिंस्रः शिशानोऽवरं परं च।
उतान्तरिक्षे परि याहि राजञ्जम्भैः स  धेह्यभि यातुधानान्
दोनों ओर के दाँतों से युक्त हे अग्नि देव! आप राक्षसों के हिंसक हैं। दोनों ओर के दाँतों को तीक्ष्ण करें, उन्हें असुरों में प्रविष्ट करा दें। हे शोभावान् अग्नि देव! अन्तरिक्षस्थ राक्षसों के पास जावें और दाँढ़ों से राक्षसों को पीस डालें।[ऋग्वेद 10.87.3]
Hey Agni Dev, possessing teeth on both sides! You are violent towards the demons. Sharpen your teeth and penetrate them into the demons. Hey gracious Agni Dev! Go the demons present in the space-sky and grind them with your jaws-teeth.
यज्ञैरिषुः संनममानो अग्ने वाचा शल्याँ अशनिभिर्दिहानः।
ताभिर्विध्य हृदये यातुधानान् प्रतीचो बाहून् प्रति भ‌ध्येषाम्
हे अग्नि देव! आप यज्ञ से और हमारी स्तुति से वाणों को नवाते हुए और उनके अग्र भागों को वज्र-संयुक्त करते हुए राक्षसों के हृदय को छेदें। उनकी भुजाओं को रगड़ डालें।[ऋग्वेद 10.87.4]
Hey Agni Dev! By virtue of our worship and Yagy, bend the arrows and pierce their front-tips into the hearts of the demons.  Rub their arms.
अग्ने त्वचं यातुधानस्य भिन्धि हिंस्त्राशनिर्हरसा हन्त्वेनम्।
प्र पर्वाणि जातवेदः श्रृणीहि क्रव्यात्क्रविष्णुर्वि चिनोतु वृक्णम्
हे धनी अग्नि देव! राक्षसों के चमड़े को काट डालें। हिंसक वज्र उन्हें तेज से मारें। राक्षसों के अंगों को फाड़ें। माँस-भक्षक वृक्र आदि हिंसक पशु माँसाभिलाषी होकर इनके माँस का भक्षण करें।[ऋग्वेद 10.87.5]
Hey wealthy Agni Dev! Cut the leather-skin of the demons. Let violent Vajr kill them with its power. Tear the organs of the demons. Let the meat eater wolf and other beasts-animals desirous of meat should eat their meat.
यत्रेदानीं पश्यसि जातवेदस्तिष्ठन्तमग्न उत्त वा चरन्तम्।
यद्वान्तरिक्षे पथिभिः पतन्तं तमस्ता विध्य शर्वा शिशानः
हे ज्ञानी अग्नि देव। चाहे राक्षस खड़ा रहे, इधर-उधर घूमता रहे, आकाश में रहे अथवा मार्ग में जायें, जहाँ कहीं भी आप उसे देखें, तेज वाणों से उसे छेद डालें।[ऋग्वेद 10.87.6]
Hey enlightened Agni Dev! Whether the demon is stranding or roaming, stay in the sky or the road, look hither or thither, rear it with sharp arrows.
उतालब्धं स्पृणुहि जातवेद आलेभानादृष्टिभिर्यातुधानात्।
अग्ने पूर्वो नि जहि शोशुचान आमादः क्ष्विङ्कास्तमदन्वेनीः
हे ज्ञानी अग्नि देव! आक्रमणकर्ता राक्षस के हाथ से आक्रान्त व्यक्ति को ऋष्टि (दो घारों वाले खड्ग) से बचावें। हे अग्नि देव! उज्ज्वल मूर्त्ति धारण करके सबसे पहले उपक्व माँस खाने वाले को मारें। ये सभी उस राक्षस को खायें।[ऋग्वेद 10.87.7]
Hey enlightened Agni Dev! Protect the attacked people with the sword having two sides. Hey Agni Dev! Adopt the bright form and kill the person who eat cooked meat. Let these demons eat him.
इह प्र ब्रूहि यतमः सो अग्रे यो यातुधानो य इदं कृणोति।
तमा रभस्व समिधा यविष्ठ नृचक्षसश्चक्षुषे रन्धयैनम्
हे तरुण तम अग्नि देव! कहें, कौन राक्षस इस यज्ञ में विघ्न करता है। काष्ठ द्वारा प्रज्वलित होकर और इस राक्षस को मारे। मनुष्यों के ऊपर आप कृपामयी दृष्टि डालते हैं। उसी दृष्टि से इन राक्षसों को मारे।[ऋग्वेद 10.87.8]
Hey youngest Agni Dev! Tell me, who is the demon who obstruct the Yagy? Become blazing with wood and kill this demon. Have mercy-look the humans with grace and kill these demons simultaneously.
तीक्ष्णेनाग्रे चक्षुषा रक्ष यज्ञं प्राञ्चं वसुभ्यः प्र णय प्रचेतः।
हिंस्रं रक्षांस्यधि शोशुचानं मा त्वा दभन्यातुधाना नृचक्षः
हे अग्नि देव! आप तीक्ष्ण तेज से हमारे यज्ञ की रक्षा करें। उत्तम ज्ञान वाले अग्नि देव! इस यज्ञ को धन के अनुकूल करें। मनुष्यों के दर्शक अग्नि देव! आप राक्षस-घातक हों। आपको राक्षस न मारे।[ऋग्वेद 10.87.9]
Hey Agni Dev! Protect our Yagy with sharp acrimonious power. Hey Agni Dev possessing best knowledge! Make this Yagy favourable for wealth. Hey Agni Dev, watching the humans! You should be slayer of the demons. You should not be harmed-killed by the demons.
नृचक्षा रक्षः परि पश्य विक्षु तस्य त्रीणि प्रति शृणीह्यग्रा।
तस्याग्ने पृष्टीर्हरसा शृणीहि त्रेधा मूलं यातुधानस्य वृश्च
हे मनुष्य दर्शक अग्नि देव! मनुष्यों के हिंसक राक्षस को देखें। उसके तीन मस्तकों को काटें। उसके पास के राक्षसों को भी शीघ्र मारें। उसके पैर को तीन प्रकार से काटें अर्थात् उसके तीन पैरों को काट डालें।[ऋग्वेद 10.87.10]
Hey Agni Dev, observing the humans! Look the demons who wish to kill the humans. Cut his three heads. Kill the demons nearby. Cut his three legs.
त्रिर्यातुधानः प्रसिति त एत्वृतं यो अग्ने अनृतेन हन्ति।
तमर्चिषा स्फूर्जयञ्जातवेदः समक्षमेनं गृणते नि वृङ्धि
हे ज्ञानी अग्नि देव! राक्षस आपकी तेज लपटों में तीन बार जाय। जो राक्षस सत्य को असत्य से मारता है, उसे अपने तेज से भस्म कर डालें। मुझ स्तोता के सामने ही इसे छिन्न-छिन्न कर डालें।[ऋग्वेद 10.87.11]
Hey learned Agni Dev! Let the demon be put into your flames thrice. The demon who kill the truth with falsehood be burnt by you. Tear him in front of me-the Stota.
तदग्ने चक्षुः प्रति धेहि रेभे शफारुजं येन पश्यसि यातुधानम्।
अथर्ववज्ज्योतिषा दैव्येन सत्यं धूर्वन्तमचितं न्योष
हे अग्नि देव! गरजने वाले राक्षसों पर अपना वह तेज फेंकें, जिससे खुर के समान नखों से साधुओं के भंजक राक्षसों को देखते हैं। सत्य को असत्य से दबाने वाले राक्षस को अथर्वा ऋषि के समान अपने तेज से भस्म कर डालें।[ऋग्वेद 10.87.12]
Hey Agni Dev! Launch that missile-radiance over the roaring demons, which is comparable to the nails like the hoofs; destroying the demons. Atharva Rishi burnt to ashes the demon who was thrusting upon falsehood over truth.
यदग्ने अद्य मिथुना शपातो यद्वाचस्तृष्टं जनयन्त रेभाः।
मन्योर्मनसः शरव्या ३ जायते या तया विध्य हृदये यातुधानान्
हे अग्नि देव! स्त्री-पुरुष आपस में विवाद कर रहे हैं। स्तोता लोग आपस में कटु कथा कह रहे हैं। फलतः मन में क्रोध उत्पन्न होने पर जो बाण फेंका जाता है, उससे राक्षसों के हृदय को वेध डालें; क्योंकि इन सब कटु कथाओं को कहने वाले राक्षस होते हैं।[ऋग्वेद 10.87.13]
कटुता :: तीक्ष्णता, तीखापन, खटास, अम्लता, खट्टापन, चरपरापन, झल्लाहट, उग्रता; bitterness, acrimony, acerbity, acridity.
Hey Agni Dev! Husband and wife are arguing. The Stotas are using harsh words amongst themselves. As a result of it the furore generated in the innerself, should launch the arrow to tear the hearts of the demons, since those who describe-discuss, generate bitterness. are demons.(15.12.2024)
परा शृणीहि तपसा यातुधानान् पराग्ने रक्षो हरसा शृणीहि।
परार्चिषा मूरदेवाञ्छृणीहि परासुतृपो अभि शोशुचानः
हे अग्नि देव! राक्षसों को अपने तेज से भस्म करें। राक्षस को बल के द्वारा मारें। मारने योग्य राक्षसों को अपने तेज से मारें। मनुष्यों के प्राण लेने वाले राक्षसों का वध करें।[ऋग्वेद 10.87.14]
Hey Agni Dev! Burn the demons with your power. Kill the demon with might. Kill the demons deserving death with your majesty. Kill the demons who kill humans.
पराद्य देवा वृजिनं शृणन्तु प्रत्यगेनं शपथा यन्तु तृष्टाः।
वाचास्तेनं शरव ऋछन्तु मर्मन् विश्वस्यैतु प्रसितिं यातुधानः
आज अग्नि देव आदि देवता पापी राक्षस को नष्ट करें। हमारे दुर्वाक्य इस राक्षस के पास आवे। मिथ्यावादी राक्षस के गर्म के पास बाण जाय। विश्वव्यापी अग्नि देव के बन्धन में असुरों का पतन हो।[ऋग्वेद 10.87.15]
Let Agni Dev and other demigods destroy the sinner demons. Let our curse destroy the demon. Let heated arrows shoot the demons spreading falsehood. Demons should face down fall under the clutches of universe pervading Agni Dev. 
यः पौरुपेयेण क्रविषा समङ्‌क्ते यो अश्व्येन पशुना यातुधानः।
यो अघ्न्याया भरति क्षीरमद्ये तेषां शीर्षाणि हरसापि वृश्च
हे अग्नि देव! जो राक्षस मनुष्य के मांस का संग्रह करता है, जो अश्व आदि पशुओं के माँस का संग्रह करता है और जो अवध्य गाय का दूध चुरा लेता है, ऐसे राक्षस के मस्तक को अपने बल से छिन्न कर डालें।[ऋग्वेद 10.87.16]
Hey Agni Dev! Pierce the head of the demon who collect the flesh of humans, horse and other animals, steal milk of the undestroyable cow with your power. 
संवत्सरीणंपय उस्त्रियायास्तस्य माशीद्यातुधानो नृचक्षः।
पीयूपमग्ने यतमस्तितृप्सात्तं प्रत्यञ्चमर्चिषा विध्य मर्मन्
एक वर्ष तक गाय का दूध संचित होता है, उस दूध का पान राक्षस न करने पावे। हे मनुष्य दर्शक अग्नि देव! जो राक्षस उस अमृत के समान दूध को पीने की चेष्टा करता है, आपके सामने आने पर आप उन्हें ज्वालारूपी तेज से छिन्न-भिन्न कर डालें।[ऋग्वेद 10.87.17]
The demons should not be allowed to drink the cow's milk collected for a year. Hey Agni Dev, watching humans! Tear into pieces the demon who try to drink the milk of the cow which is like nectar-elixir; with your fierce rays and embers.
विषं गवां यातुधानाः पिबन्त्वा वृश्यन्तामदितये दुरेवाः।
परैनान् देवः सविता ददातु परा भागमोषधीनां जयन्ताम्
गायों के जिस दूध को राक्षस पीते हैं, वह उनके लिए वह विष के समान हो जाय। देवमाता अदिति की प्रसन्नता के लिए इन राक्षसों को आप अपने ज्वालारूपी शस्त्रों से काट डाले। इन्हें सूर्य देव उच्छिन्न कर डालें। तृण, लता आदि का जो छोड़ने योग्य असार अंश है, राक्षस उसको ही ग्रहण करें।[ऋग्वेद 10.87.18]
Let the cow's milk drunk by the demons turn into poison for them. To please Dev Mata Aditi, cut these demons with fiery weapons. Let Sury Dev cut them into pieces. The demons should have the remains of left over, useless-waste segment of straw, creepers etc. 
सनादग्ने मृणासि यातुधानान्न त्वा रक्षांसि पृतनासु जिग्युः।
अनु दह सहमूरान् क्रव्यादो मा ते हेत्या मुक्षत दैव्यायाः
हे अग्नि देव! क्रमागत राक्षसों को मार डालें। राक्षस लोग युद्ध में आपको जीत न सकें। कच्चा मांस खाने वाले राक्षसों को जड़ से नष्ट कर डालें। वे आपके दिव्य अस्त्रों से बचने न पावें।[ऋग्वेद 10.87.19]
Hey Agni Dev! Kill the demons sequentially. Demons should not be able to win you. Destroy the raw meat eater demons with their roots. They should not be able to survive the attack-onslaught by your divine weapons.
त्वं नो अग्ने अधरादुदक्तात्त्वं पश्चादुत रक्षा पुरस्तात्।
प्रति ते ते अजरासस्तपिष्ठा अघशंसं शोशुचतो दहन्तु
हे अग्नि देव! आप हमें पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण-चारों ओर से बचावें। आपकी ज्वालाएं अत्यन्त उज्ज्वल, अविनाशी और उत्तप्त हैं। वे पापी राक्षसों को शीघ्र भस्म कर दें।[ऋग्वेद 10.87.20]
Hey Agni Dev! Protect us from east, west, north & south. Your flames, embers should be dazzling, indestructible and super heated. They should roast the sinners at once.
पश्चात्पुरस्तादधरादुदक्तात्कविः काव्येन परि पाहि राजन्।
सखे सखायमजरो जरिम्णेऽग्ने मर्ती अमर्त्यस्त्वं नः
हे दीप्त अग्नि देव! आप कार्य-पटु हैं; इसलिए क्रिया-कौशल से हमें उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम से बचावें। हे मित्र अग्नि देव! मैं आपका मित्र हूँ। आपके पास वृद्धावस्था नहीं आती। मुझे दीर्घ जीवन और जरा प्रदान करें। आप अमर हैं। हम मरणशील हैं। हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 10.87.21]
Hey radiant Agni Dev! You are expert & devoted to your work, hence protect us from north, south, east and west with your manoeuvres. Hey friendly, Agni Dev! I am your friend. Old age does not touch you. Grant me long life and old age. You are immortal. We are perishable. Protect us.
परि त्वाने पुरं वयं विप्रं सहस्य धीमहि। धृषद्वर्णं दिवेदिवे हन्तारं भङ्गुरावताम्॥
हे बल के पुत्र अग्नि देव! आप पूरक, मेधावी, धर्षक और टेढ़े राक्षसों को अनुदिन मारने वाले हैं। आपका हम ध्यान करते हैं।[ऋग्वेद 10.87.22]
Hey Agni Dev, son of Bal! You are complementary, intelligent, destroyer and slayer of wicked demons. We worship-concentrate in you.
विषेण भङ्गुरावतः प्रति ष्प रक्षसो दह। अग्रे तिग्मेन शोचिषा तपुरग्राभिॠष्टिभिः॥
हे अग्नि देव! भञ्जक कर्म करनेवाले राक्षसों को आप अपने व्यापक तेज से जलावें। तपते हुए खड्‌गों से भी उन्हें जलावें।[ऋग्वेद 10.87.23]
Hey Agni Dev! Burn-roast the destroyer demons with your vast heat. Burn them with red hot swords as well.
प्रत्यग्ने मिथुना दह यातुधाना किमीदिना। सं त्वा शिशामि जागृह्यदब्धं विप्र मन्मभिः॥
स्त्री-पुरुष में कहाँ क्या है, इस बात को देखते हुए घूमने वाले राक्षसों को जलावें। हे मेघावी अग्नि देव! आपको कोई मार नहीं सकता। स्तुतियों से मैं आपकी प्रार्थना करता हूँ, आप जाग्रत रहें।[ऋग्वेद 10.87.24]
Burn the demons roaming looking around the bodies of men & women. Hey intelligent Agni Dev! None can kill you. I worship you with the help of Stuties-hymns. You should remain awake.
प्रत्यग्ने हरसा हरः शृणीहि विश्वतः प्रति। यातुधानस्य रक्षसो बलं वि रुज वीर्यम्॥
हे अग्नि देव! आप अपने तेज से राक्षसों के तेज को चारों ओर से नष्ट कर दें। राक्षसों के बल-वीर्य को नष्ट कर डालें।[ऋग्वेद 10.87.25]
Hey Agni Dev! Destroy the power of demons with your heat from four sides. Destroy the might & power of demons.(16.12.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (88) :: ऋषि :- आंगिरस, मूर्धन्वान् या वामदेव; देवता :- सूर्य, वैश्वानर अग्नि; छन्द :- त्रिष्टुप्।
हविष्यान्तमजरं स्वर्विदि दिविस्पृश्याहुतं जुष्टमग्नौ।
तस्य भर्मणे भुवनाय देवा धर्मणे कं स्वधया पप्रथन्त
पीने के योग्य, चिर नूतन और देवों के द्वारा सेविता सोमरस स्वर्गस्थ और आकाशस्पर्शी अग्नि देव में हुत किया गया है। उसी के उत्पादन, परिपूरण और धारण के लिए देवता लोग सुखकर अग्नि देव को वर्द्धित करते हैं।[ऋग्वेद 10.88.1]
हुत :: आहुति के रूप में दिया हुआ, पूर्ण समर्पण किया गया; sacrificed.
Fresh Somras good for drinking, consumed by the demigods-deities, is offered-sacrificed to Agni Dev touching the sky, present in the heavens. Demigods-deities grow, produce, support, maintain Agni Dev. 
गीर्ण भुवनं तमसापगूळहमाविः स्वरभवज्जाते अग्नौ।
तस्य देवाः पृथिवी द्यौरुतापोऽरणयन्त्रोषधीः सख्ये अस्य
अन्धकार भुवन का ग्रास करता है। उसमें भुवन अन्तर्धान होता है। अग्नि देव के प्रकट होने पर सब प्रसन्न होते हैं। देवता, आकाश, जल, वृक्ष आदि सभी सन्तुष्ट होते हैं।[ऋग्वेद 10.88.2]
Darkness covers the building-abode. Building become invisible. With the appearance of Agni Dev everyone become happy. Demigods, sky, water, trees etc all become happy-satisfied.
देवेभिन्र्विपितो यज्ञियेभिरग्रिं   स्तोषाण्यजरं बृहन्तम्।
यो भानुना पृथिवीं द्यामुतेमामाततान रोदसी अन्तरिक्षम्
यज्ञ भाग ग्राही देवों ने मुझे प्रवृत्ति दी है, इसलिए मैं अजर और विशाल अग्नि देव की स्तुति करता हूँ। अग्नि देव ने अपने तेज से पृथ्वी और आकाश के मध्यस्थ स्थान और द्यावा-पृथ्वी को विस्तारित कर दिया है।[ऋग्वेद 10.88.3]
Acceptors of the their share of offerings in the Yagy demigods granted me nature-intention, hence I worship never turning old Agni Dev. Agni Dev extended-filled the earth & heavens with his radiance, heat & light.
यो होतासीत्प्रथमो देवजुष्टो यं समाअत्राज्येना वृणानाः।
स पतत्रीत्वरं स्था जगद्यचछात्रमग्निरकृणोज्जातवेदाः
जो वैश्वानर अग्नि देव देवों के द्वारा सेवित और मुख्य होता हुए और जिन्हें वर चाहने वाले यजमान लोग घृत से युक्त करते हैं, उन्हीं अग्नि देव ने उड़ने वाले पक्षियों, गतिशील सर्प आदि को और स्थावर जङ्गमात्मक जगत को शीघ्र उत्पन्न किया।[ऋग्वेद 10.88.4]
Vaeshwanar Agni Dev served by the demigods deities became main Hota. Desirous of boons the Ritviz offer Ghee to him. Agni Dev produced-evolved the inertial-fixed universe having flying birds, movable serpents quickly.
यज्जातवेदो भुवनस्य मूर्धन्नतिष्ठो अग्ने सह रोचनेन।
तं त्वाहेम मतिभिर्गीर्भिरुक्थै: स यज्ञियो अभवो रोदसिप्राः
हे ज्ञाता अग्नि देव! जो आप त्रिलोक से सिर पर, आदित्य के साथ रहते हैं, उन आपको हम सुन्दर स्तुतियों के द्वारा प्राप्त करते हैं। आप द्यावा पृथ्वी के पूरक और यज्ञ योग्य हैं।[ऋग्वेद 10.88.5]
Hey enlightened Agni Dev! You are present over the three aboded along with Adity-Sun, we perform beautiful Stuties-prayers for you. You supplement the earth & heavens and deserve Yagy-worship.
मूर्धा भुवो भवति नक्तमग्निस्ततः सूर्यो जायते प्रातरुद्यन्।
मायामू तु यज्ञियानामेतामयो यत्तूर्णिश्चरति प्रजानन्
रात्रि-काल में अग्नि देव सारे प्राणियों के मस्तक-स्वरूप होते हैं और प्रातःकाल सूर्यरूप से उदित होते हैं। इन्हें यज्ञ-सम्पादक देवों की प्रज्ञा कहा जाता है। अग्नि देव विचार-पूर्वक सभी स्थानों में शीघ्र शीघ्र विचरण करते हैं।[ऋग्वेद 10.88.6]
Agni Dev is like the head of all living beings during the night and rises in the morning in the form of Sun. He is considered to be the intelligence-thought of demigods-deities performing Yagy. Agni Dev moves every where in premeditated mode quickly.
दृशेन्यो यो महिना समिद्धोऽरोचत दिवियोनिर्विभावा।
तस्मिन्त्रग्नौ सूक्तवाकेन देवा हविर्विश्व आजुहवुस्तनूपाः
जो अग्नि देव विशेषरूप से प्रज्वलित होकर, सुन्दर मूर्ति धारण कर और आकाश में स्थान ग्रहण करके दीप्ति के साथ सुशोभित होते हैं, उन्हीं में शरीर रक्षक समस्त देवताओं ने सूक्त-पाठ करते हुए हवि प्रदान किया।[ऋग्वेद 10.88.7]
Agni Dev specially ignite, possess beautiful form and gloriously establish in the sky. Offerings are made into Agni Dev-protector of the body by all demigods-deities reciting Sukt.
सूक्तवाकं प्रथममादिदग्निमादिद्धविरजनयन्त देवाः।
स एषां यज्ञो अभवत्तनूपास्तं द्यौर्वेद तं पृथिवी तमापः
सबसे पहले देवता लोग 'द्यावा-पृथ्वी' आदि वाक्यों का मन से निरूपण करते हैं। पश्चात् अग्नि देव को उत्पन्न करते हैं, हवि को भी प्रकट करते हैं। अग्नि देव देवगणों के यजनीय हैं। वे शरीर के रक्षक हैं। उन अग्नि देव को द्युलोक, पृथ्वी और अन्तरिक्ष जानते हैं।[ऋग्वेद 10.88.8]
Initially the demigods think of heaven & earth and then produce Agni Dev making offerings. They are the protectors of the body. The earth, heavens and sky-space recognise him.
यं देवासोऽजनयन्ताग्निं यस्मिन्नाजुहवुर्भुवनानि विश्वा।
सो अर्चिषा पृथिवीं द्यामुतेमामृजूयमानो अतपन्महित्वा
जिन अग्नि देव को देवों ने उत्पन्न किया और 'सर्वमेध' नामक यज्ञ में जिनमें सारी वस्तुओं का हवन किया जाता है, वे ही अग्नि देव सरल-गामी होकर अपनी विशाल ज्वालाओं के द्वारा द्यावा-पृथ्वी को तापित करने लगे।[ऋग्वेद 10.88.9]
Agni Dev evolved by the demigods-deities, conduct Yagy Sarv Medh in him with all commodities. Agni Dev moves straight and heat the heavens and earth with his large flames.
स्तोमेन हि दिवि देवासो अग्निमजीजनञ्छक्तिभी रोदसिप्राम्।
तमू अकृण्वन्त्रेधा भुवे कं स ओषधीः पचति विश्वरूपाः
द्यावा-पृथ्वी को परिपूर्ण करने वाले अग्नि देव को देवलोक में देवों ने अपनी शक्ति से केवल स्तुति के द्वारा उत्पन्न किया। उन सुखावह अग्नि देव को उन्होंने तीन भावों (पृथ्वी, अन्तरिक्ष और द्यौ) से बनाया। वे ही अग्नि देव औषधि, ब्रीहि-चावल आदि सब वस्तुओं को परिपक्व अवस्था प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 10.88.10]
Demigods-deities evolved Agni Dev with their power to supplement the earth & heavens by virtue of Stuti. They created comfortable Agni Dev with three divisions i.e., earth, space-sky and heavens. Agni Dev grants medicines, rice and other goods in mature-ripe stare.(17.12.2024)
यदेदेनमदधुर्यज्ञियासो दिवि देवाः सूर्यमादितेयम्।
यदा चरिष्णू मिथुनावभूतामादित्यापश्यन्भुवनानि विश्वा
यज्ञ-योग्य देवों ने जिस समय इन अग्नि देव और माता अदिति के पुत्र सूर्य देव को आकाश में स्थापित किया। उस समय वे दोनों युग्म-रूप होकर विचरण करने लगे। इसके बाद ही वे सम्पूर्ण लोकों को देखते हैं।[ऋग्वेद 10.88.11]
Since when Demigods-deities deserving Yagy-worship established Agni Dev and Sury Dev son of Mata Aditi in the sky,  they together roam. Its only after this that they watch the all abodes.
विश्वस्मा अग्निं भुवनाय देवा वैश्वानरं केतुमह्नामकृण्वन्।
आ यस्ततानोषसो विभातीरपो ऊर्णोति तमो अर्चिषा यन्
मनुष्य-हितैषी अग्नि देव को सारे संसार के लिए देवों ने दिन की पताका माना है। वे अग्नि देव विशिष्ट दीप्ति वाले प्रभात को विस्तृत करते हैं और जाते हुए अपनी ज्वाला से सारे अन्धकार को विनष्ट करते हैं।[ऋग्वेद 10.88.12]
Well wisher of the whole world Agni Dev has been considered to be the flag-indicator of the day, by the demigods-deities. Agni Dev spread his radiance during morning, at dawn and remove darkness with his flames.
वैश्वानरं कवयो यज्ञियासोऽग्निं देवा अजनयन्नजुर्यम्।
नक्षत्रं प्रत्नममिनचरिष्णु यक्षस्याध्यक्षं तविषं बृहन्तम्
मेधावी और यज्ञ-योग्य देवों ने अजर सूर्यात्मक (वैश्वानर) अग्नि देव को उत्पन्न किया। जिस समय अग्नि देव स्थूल और विराट् होते हैं, उस समय आकाश में चिरकाल से विहरण शील नक्षत्र को देवों के सामने ही निष्यभावी बना देते हैं।[ऋग्वेद 10.88.13]
Intelligent demigods-deities deserving Yagy-prayers, created immortal Vaeshwanar Agni Dev. As soon as Agni Dev become fat and large, the constellations present in the space make him ineffective in front of the demigods-deities.
वैश्वानरं विश्वहा दीदिवांस मन्त्रैरग्निं कविमच्छा वदामः।
यो महिम्न परिबभूवोर्वी उतावस्तादुत देवः परस्तात्
सर्वदा दीप्त, क्रान्तप्रज्ञ और विश्व-हितैषी अग्नि देव की मन्त्रों से हम स्तुति करते हैं। वैश्वानर अग्नि देव अपनी महिमा से द्यावा-पृथ्वी को परिभूत करते हैं। अग्नि देव नीचे-ऊपर तपते हैं।[ऋग्वेद 10.88.14]
क्रान्तप्रज्ञ :: भूत, भविष्य एवं वर्तमान को जानने वाला, त्रिकालदर्शी; one who knows the past, present & future.
परिभूत :: हारा या हराया हुआ, पराजित; जिसका अनादर या अपमान किया गया हो, तिरस्कृत, अपमानित, जिसका परिभव हुआ हो, तिरस्कृत; conquered, slighted, overpowered, disregarded.
We worship always shinning Agni Dev who is aware of the past, present & future and is the well wisher of the whole world; with Mantrs. Vaeshwanar Agni Dev over power the heavens & earth with his grace-glory. Agni Dev keep on heating up & down.
द्वे सुती अश्रृणवं पितृणामहं देवानामुत मर्त्यानाम्।
ताभ्यामिदं विश्वमेजत्समेति यदन्तरा पितरं मातरं च
पितरों, देवों और मनुष्यों के दो मार्गों (देवयान और पितृयान) को मैंने सुना है। यह सारा संसार अग्रसर होते-होते उन्हीं मार्गों को प्राप्त करता है अर्थात् जो माता-पिता के बीच जन्मा हुआ है, उसके लिए इन दोनों के अतिरिक्त कोई गति नहीं है।[ऋग्वेद 10.88.15]
I have heard of the two routes-path of the Pitr-Manes, demigods-deities and the humans. Ultimately the whole world attain these two paths. One is born out of mother & father, has no other route other than this.
देवयान और पितृयान :: ये आत्मा के उच्च लोकों की यात्रा के मार्ग हैं। 
देवयान, देवताओं के लोक का मार्ग है। शुक्ल पक्ष को देवयान मार्ग कहा जाता है। अथर्ववेद से वेद के विद्वानों के मार्ग पर चलकर मोक्ष प्राप्त करना देवयान मार्ग कहलाता है। ज्ञानोपार्जन करने वाले भले व्यक्ति मृत्यु के बाद देवयान द्वारा सर्वोच्च पद प्राप्त करते हैं।  
पितृयान, पूर्वजों के लोक का मार्ग है। कृष्ण पक्ष को पितृयान मार्ग कहा जाता है। जो लोग पितरों के मार्ग से जाते हैं, उन्हें अपने द्वारा किए गए कर्मों और अन्य पुण्य कर्मों के फल क्षीण होने पर वापस लौटना पड़ता है। वह मार्ग जिससे मरने वाला ब्रह्म को पाता है, देवयान और पितृयाण का मतलब है कि ब्रह्मज्ञानी मरने के बाद उत्तरोत्तर प्रकाशमान लोकों में होते हुए ब्रह्मलोक या ब्रह्म की प्राप्ति करते हैं, वहीं, कर्मकांड में लगे लोग धूमरात्रि, कृष्णपक्ष, दक्षिणायन वगैरह उत्तरोत्तर अंधकार की स्थिति में होते हैं और फिर जन्म लेते हैं; the route-practice following which a person attains Brahm.
द्वे समीची बिभृतश्चरन्तं शीर्षतो जातं मनसा विमृष्टम्।
स प्रत्यङ् विश्वा भुवनानि तस्थावप्रयुच्छन्र्भ्रातरणि जमानः
जो सूर्य के मस्तक से उत्पन्न हुए हैं, जिन्हें स्तुतियों से परिपुष्ट किया जाता है और जो जब विचरण करते हैं, तब उन्हें द्यावा-पृथ्वी धारण करते हैं, वे रक्षक कभी अपने कर्म में शिथिलता नहीं करते, दीप्त होते-होते सारे जगत् में सुख से रहते हैं।[ऋग्वेद 10.88.16]
The protectors who have evolved from the head of Sury Dev and are nourished with Stuties, are supported by heaves and earth when they move; never become sluggish-slow in their endeavours, remain comfortably in the whole world while shinning.
यत्रा वदेते अवरः परश्च यज्ञन्योः कतरो नौ वि वेद।
आ शेकुरित्सधमादं सखायो नक्षन्त यज्ञं क इदं वि वोचत्
जिस समय पार्थिव अग्नि और मध्यम अग्नि या वायु आपस में विवाद करते हैं कि हम दोनों में यज्ञ को कौन जानता है, उस समय बन्धु ऋत्विक यज्ञ करते हैं। परन्तु उनमें से कोई भी इस विवाद का निर्णय नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 10.88.17]
विवाद :: झगड़ा, मतभेद, तकरार, विचार, झमेला, तकरार, तर्क, कलह, शास्रार्थ; controversy, dispute, argue, quarrel,  contention.
When material Agni and medium Agni argue mutually that who amongest them knows the Yagy, at that moment the brotherly Ritviz perform Yagy. None of them can resolve this dispute.
कत्यग्नयः कति सूर्यासः कत्युषासः कत्यु स्विदापः।
नोपस्पिजं वः पितरो वदामि पृच्छामि वः कवयो विद्मने कम्
हे पितरों! मैं आप लोगों से तर्क-वितर्क की बातें नहीं करता, केवल भली भाँति जानने के लिए जिज्ञासा करता हूँ कि अग्नि देव कितने है? सूर्य कितने हैं? उषाएं कितनी हैं? और जल-देवियाँ कितनी हैं?[ऋग्वेद 10.88.18]
Hey Pitr Gan-Manes! I do not indulge in argument-debate with you. I just want to know how many Agni Dev, Sury Dev, Ushas and goddess of water are their.
यावन्मात्रमुषसो न प्रतीकं सुपर्ण्यो ३ वसते मातरिश्वः।
तावद्दधात्युप यज्ञमायन् ब्राह्मणो होतुरवरो निषीदन्
हे वायु देव! जब तक रातें उषा के मुंह का ढकना नहीं हटा देती हैं, तभी तक निम्नस्थ पार्थिव अग्नि देव आकर यज्ञ के पास स्थान ग्रहण करते हैं, वे ही होता हैं और वे ही स्तोता हैं।[ऋग्वेद 10.88.19]
पार्थिव :: पृथ्वी से संबंध रखने वाला, पृथ्वी से उत्पन्न, काया, देह, शरीर, पृथ्वी से उत्पन्न पदार्थ; terrestrial, earth born.
Hey Vayu Dev! By the time; the night do not cover Usha, lowest level material Agni Dev comes to the Yagy and occupy his seat in the Yagy, since he is Hota & Stota.(18.12.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (89) :: ऋषि :- रेणु, विश्वामित्र; देवता :- इन्द्र, इन्द्रसोमा; छन्द :- त्रिष्टुप्।
इन्द्रं स्तवा नृतमं यस्य मह्ना विबबाधे रोचना वि ज्मो अन्तान्।
आ यः पप्रौ चर्षणीधृद्वरोभिः प्र सिन्धुभ्यो रिरिचानो महित्वा
हे स्तोता गण! नेताओं में श्रेष्ठ इन्द्र देव की स्तुति करें। इन्द्र देव की महिमा सबके तेज को अभिभूत कर देती है। वे मनुष्यों को धारण करते हैं। उनकी महिमा समुद्र से भी अधिक है। उनका तेज सारे संसार को परिपूर्ण करता है।[ऋग्वेद 10.89.1]
Hey Stota Gan! Worship the excellent leader Indr Dev. Glory of Indr Dev mesmerise-overcome the majesty of all. He support the humans. His majesty-dignity is higher than the ocean. His aura-radiance fills the entire universe. 
स सूर्यः पर्युरू वरांस्येन्द्रो ववृत्याद्रथ्येव चक्रा।
अतिष्ठन्तमपस्यं १ न सर्गं कृष्णा तमांसि त्विष्या जघान
वीर्यशाली इन्द्र देव अपने समस्त तेज को वैसे ही चारों ओर घुमाते हैं, जैसे रथी चक्र को घुमाता है। काला अन्धकार एक स्थायी और अदृश्य सृष्टि के समान है। इन्द्र देव अपनी ज्योति से उसे नष्ट करते हैं।[ऋग्वेद 10.89.2]
Mighty Indr Dev turn his radiance in all direction like the charioteer who turn his charoite. Black darkness is like the stationary invisible nature-creation. Indr Dev dispel it with his luminosity.
समानमस्मा अनपावृदर्च क्ष्मया दिवो असमं ब्रह्म नव्यम्।
वि यः पृष्ठेव जनिमान्यर्य इन्द्रश्चिकाय न सखायमीषे
हे स्तोता गण! मेरे साथ मिलकर उन इन्द्र देव के लिए एक ऐसे नये स्तोत्र का उच्चारण करें, जो निकृष्ट न हो और जो द्यावा-पृथ्वी के अनुरूप हो। वे यज्ञ में उच्चारित स्तुतियों को पाने के लिए जैसे इच्छुक होते हैं, वैसे ही शत्रुओं के देखने के लिए भी व्यस्त होते हैं। वे अनिष्ट के लिए बन्धु को नहीं चाहते।[ऋग्वेद 10.89.3]
Hey Stota Gan! Recite the new Strotr devoted to Indr Dev along with me, which should not abject-abominable and favourable to the heavens & earth. The way he is ready to have-seek the Stuti-prayers in the Yagy, similarly he is busy identifying-watching the enemy. He do not want the brothers to be harmed.
इन्द्राय गिरो अनिशितसर्गा अपः प्रेरयं सगरस्य बुध्नात्।
यो अक्षेणेव चक्रिया शचीभिर्विष्वक्तस्तम्भ पृथिवीमत द्याम्॥
अकातर भाव से इन्द्र देव की स्तुति की गई। आकाश के मस्तक से मैं जल लाया है। जिस प्रकार धुरी के द्वारा चक्र चलता है, उसी प्रकार ही इन्द्र देव अपने कर्मों के द्वारा द्यावा-पृथ्वी को रोके हुए है।[ऋग्वेद 10.89.4]
Indr Dev has been worshiped fearlessly. I have brought water from the aura of the sky. The way the charoite move due to excel, similarly Indr Dev is holding the heaven & earth due to his efforts.
आपान्तमन्युस्तृपलप्रभर्मा धुनिः शिमीवाच्छरुमाँ ऋजीषी।
सोमो विश्वान्यतमा वनानि नार्वागिन्द्रं प्रतिमानानि देभुः
जिनका पान करने से मन में तेज उत्पत्र होता है, जो शीघ्र प्रहार करने वाले हैं, जो वीरता के साथ सत्रुओं को कंपाते है और जो अस्त्र-शस्त्रधारी और गतिशील है, वे ही सोम वनों को बढ़ाते हैं, परन्तु बढ़े हुए वन भी इन्द्र देव की बराबरी नहीं कर सकते और न इन्द्र देव के भाव की लघुता ही कर सकते हैं।[ऋग्वेद 10.89.5]
Som which boosts energy in the innerself, which strike quickly, tremble the enemy with bravery and dynamic-speed like the weapons, grows-supports the forests but the increased-enhanced jungles too can neither match Indr Dev nor lower his dignity.  
न यस्य द्यावापृथिवी न धन्व नान्तरिक्षं नाद्रयः सोमो अक्षाः।
यदस्य मन्दुरधिनीयमानः शृणाति वीळु रुजति स्थिराणि
घावा-पृथ्वी, मरुस्थल, आकाश और पर्वत जिन इन्द्र देव की बराबरी नहीं कर सकते, उनके लिए सोमरस क्षरित होता है। जिस समय शत्रुओं के ऊपर इनका क्रोध होता है, उस समय ये दृढ़ता से मारते हैं, स्थिर पदाथों को तोड़ डालते हैं।[ऋग्वेद 10.89.6]
Somras is extracted for Indr Dev, heaven-earth, deserts, sky and mountains can not equalise him. When he is angry, he kill the enemies with firmness-determination and destroy the rigid objects.
जघान वृत्रं स्वधितिर्वनेव रुरोज पुरो अरदन्न सिन्धून्।
बिभेद गिरिं नवमिन्त्र कुम्भमा गा इन्द्रो अकृणुत स्वयुग्भिः
जिस प्रकार फरसा वन को काटता है, उसी प्रकार ही इन्द्र देव ने वृत्रासुर का वध किया। शत्रु-नगरी को ध्वत किया। वृष्टि-जल से नदियों को मार्ग दिया और कच्चे घड़े के समान मेघ को भंग किया। इन्द्र देव ने अपने सहायक मरुतगणों के साथ जल को हमारे सम्मुख किया।[ऋग्वेद 10.89.7]
The way axe cuts the jungles, similarly Indr dev killed Vratra Sur. Destroyed enemy's forts & cities. He granted way to rivers carrying rain water and destroyed the clouds like an unbacked pitcher. Indr Dev brought water to us with the help of his helper Marud Gan.
त्वं ह त्यदृणया इन्द्र धीरोऽसिर्न पर्व वृजिना शृणासि।
प्र ये मित्रस्य वरुणस्य धाम युजं न जना मिनन्ति मित्रम्
हे इन्द्र देव! आप धीर हैं, आप स्तोताओं को ऋण मुक्त करते हैं। जिस प्रकार खड्ग गाँठों को काटता है, उसी प्रकार ही आप स्तोताओं के उपद्रव को नष्ट करते हैं। जो सब मूर्ख व्यक्ति वरुण और मित्र के बन्धु के समान धारक कर्म का विनाश करते हैं, उनका वध भी इन्द्र देव करते हैं।[ऋग्वेद 10.89.8]
Hey Indr Dev!  You are patient. You clear the debt of the Stotas. The way sword cuts the knots, similarly you calm down all troubles-disturbances. Indr Dev kill those idiots who unknowingly destroys the endeavours-efforts of Mitr & Varun Dev.
प्र ये मित्रं प्रार्यमणं दुरेवाः प्र संगिरः प्र वरुणं मिनन्ति।
न्य १ मित्रेषु वद्यमिन्द्र तुम्रं वृषन् वृषाणमरुषं शिशीहि
जो दुष्ट व्यक्ति मित्र, अर्यमा, वरुण और मरुतों से द्वेष करते हैं, हे वर्षक इन्द्र देव! उनका वध करने के लिए आप गन्ता या शब्दकर्ता, वर्षक और प्रदीप्त वज्र को तेज करें।[ऋग्वेद 10.89.9]
Hey rain showering Indr Dev! Sharpen Vajr for killing the wicked-vicious who has grudge-enmity with Mitr, Varun Dev, Marud Gan.(19.12.2024)
इन्द्रो दिव इन्द्र ईशे पृथिव्या इन्द्रो अपामिन्द्र इत्पर्वतानाम्।
इन्द्रो वृधामिन्द्र इन्मेधिराणामिन्द्रः क्षेमे योगे हव्य इन्द्रः
स्वर्ग, पृथ्वी, जल, पर्वत आदि सब पर इन्द्र देव का आधिपत्य है। बली और बुद्धिमान व्यक्तियों पर इन्हीं का अधिपत्य है। नई वस्तुएँ पाने के लिए और प्राप्त वस्तुओं की रक्षा के लिए इन्द्र देव की प्रार्थना करनी चाहिए।[ऋग्वेद 10.89.10]
आधिपत्य :: प्रभुता, स्वामित्व, शासन, प्रभुत्व, अधिकार; hegemony, lordship, suzerainty, mastery.
Heavens, earth, water, mountains etc. every thing is under the control of Indr Dev. Mighty and intellectuals too are under his control. To have new goods and protection of own goods Indr Dev should be  worshiped.
प्राक्तुभ्य इन्द्रः प्र वृधो अहभ्यः प्रान्तरिक्षात्प्र समुद्रस्य धासेः।
प्र वातस्य प्रथसः प्र ज्यो अन्नात्प्र सिन्धुभ्यो रिरिचे प्र क्षितिभ्यः
रात्रि, दिन, आकाश, जलधारक सागर, विशाल वायु, पृथ्वी की सीमा, नदी, मनुष्य आदि से इन्द्र देव बड़े है। ये सबका अतिक्रम किए हुए हैं।[ऋग्वेद 10.89.11]
Indr Dev is larger-greater than the night, day, sky-space. ocean, vast-wide earth, rivers, humans. He has encroached upon all of them.
आ प्र शोशुचत्या उषसो न केतुरसिन्ऱ्या ते वर्ततामिन्द्र हेतिः।
अश्येव विध्य दिव सृजानस्तपिष्ठेन हेषसा द्रोघमित्रान्
हे इन्द्र देव! आपका आयुध टूटने योग्य नहीं है। ज्योतिर्मयी देवी उषा की पताका किरण के सदृश आपका आयुध शत्रुओं के ऊपर गिरे। जिस प्रकार आकाश से वज्र गिरकर वृक्षों को नष्ट करता है, उसी प्रकार ही आप अनिष्टकारी शत्रुओं को अतीव उत्तप्त और गर्जनकारी अस्त्र में छेदे।[ऋग्वेद 10.89.11]
Hey Indr Dev! Your weapons are not meant to break. Let your weapons fall over the enemy like the rays of Usha-dawn. The way Vajr destroy the tree on falling over them from the sky, similarly you should destroy the invincible enemies with your weapons generating thunderous sound.
अन्वह मासा अन्विद्वनान्यन्वोषधीरनु पर्वतासः।
अन्विन्द्रं रोदसी वावशाने अन्वापो अजिहत जायमानम्
उत्पन्न होने के साथ इन्द्र देव के पीछे-पीछे मास, वन, वनस्पति, पर्वत अनुगमन करते है। कांतिमान आकाश, पृथ्वी और जल ये सभी इन्द्र देव का अनुगमन करते हैं।[ऋग्वेद 10.89.13]
After evolution months (solar system, solar & lunar months), forests, mountains follow Indr Dev. Bright sky, earth and water too follow him.
कर्हि स्वित्सा त इन्द्र चेत्यासदघस्य यद्भिनदो रक्ष एषत्।
मित्रकुवो यच्छसने न गावः पृथिव्या आपृगमुया शयन्ते
हे इन्द्र देव! जिस अस्त्र को फेंक कर आपने पापी राक्षस को काटा, वह फेंकने योग्य इस अस्त्र से निहत होकर मित्र द्वेषी राक्षस लोग पृथ्वी पर गिरकर अनन्त निद्रा में सो जाते हैं।[ऋग्वेद 10.89.14]
Hey Indr Dev! The sinner demons envious of the friends are killed when you launch missile-weapon over them.
शत्रूयन्तो अभि ये नस्ततस्त्रे महि व्राधन्त ओगणास इन्द्र।
अन्धेनामित्रास्तमसा सचन्तां सुज्योतिषो अक्तवस्ताँ अभि ष्यु:
जिन राक्षसों ने शत्रुता करते-करते और अत्यन्त पीड़ा पहुँचाते-पहुँचाते हमें घेर लिया; हे इन्द्रदेव। वे गूढ़ अन्धकार में गिरें, उजियाली रात भी उनके लिए अन्धकारमयी रात्रि सिद्ध हो।[ऋग्वेद 10.89.15]
Hey Indr Dev! The demons who surrounded us teasing with enmity should fall into the deep darkness and bright nights should also be like dark nights for them.
पुरूणि हि त्वा सवना जनानां ब्रह्माणि मन्दन् गृणतामृषीणाम्।
इमामाघोषन्नवसा सहूतिं तिरो विश्वाँ अर्चतो याह्यर्वाङ्
यजमान आपके लिए नाना प्रकार के यज्ञों का अनुष्ठान करते हैं। स्तोता ऋषियों के मन्त्र आपको आह्लादित करते हैं। सब मिलकर आपका जो आवाहन करते हैं, उसे कहें। पूजकों के ऊपर प्रसन्न होकर उनके पास पधारें।[ऋग्वेद 10.89.16]
The hosts hold various kinds of Yagy rituals-rites for you. The Mantrs of Stota Rishis thrill-please you. Respond to the invocation by all, together. Be happy with the worshipers and come to them.
एवा ते वयमिन्द्र भुञ्जतीनां विद्याम सुमतीनां नवानाम्।
विद्याम वस्तोरवसा गृणन्तो विश्वामित्रा उत त इन्द्र नूनम्
हे इन्द्र देव! आपके स्तोत्र हमारी रक्षा करते हैं, हम नये-नये और उत्तम स्तोत्र प्राप्त करें। हम विश्वामित्र की सन्तति हैं। रक्षण के लिए आपकी स्तुति करते हैं। हम नाना प्रकार के पदार्थ प्राप्त करें।[ऋग्वेद 10.89.17]
Hey Indr Dev! Your Strotrs protect us. Let us have excellent new Strotrs. We are the progeny of Vishwa Mitr. We worship you for protection. Let us have various kinds of goods.
शुनं हुवेय मघवानमिन्द्रमस्मिन् भरे नृतमं वाजसातौ।
शृण्वन्तमुग्रमूतये समत्सु घ्नन्तं वृत्राणि संजितं धनानाम्
उन स्थूलकाय और धनी इन्द्र देव को हम बुलाते हैं। युद्ध समय में जिस समय अन्न आदि बाँटे आदि बाँटे जाएंगे, उस समय वही प्रधान रूप से रक्षा करते हैं। युद्ध में अपने पक्ष की रक्षा के लिये उग्र मूर्ति धारण करके शत्रुओं का वध करते हैं, वृत्रों का वध करते हैं और समस्त धन जीतते हैं।[ऋग्वेद 10.89.18]
We invoke huge, fat-heavy and wealthy Indr Dev. During the war when food grains etc. are distributed he protect as the leader. He turn furious-violent during the war and kills the enemies, Vratr etc. and wins whole wealth.(20.12.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (90) :: ऋषि :- नारायण; देवता :- पुरुष; छन्द :- अनुष्टुप्, त्रिष्टुप्।
सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्त्रपात्। स भूमिं विश्वतो वृत्वात्यतिष्ठदशाङ्गुलम्
विराट् पुरुष (ईश्वर) सहस्त्र (अनन्त) शिरों, अनन्त चक्षुओं और अनन्त चरणों वाले हैं। वे भूमि (ब्रह्माण्ड-गोलक) को चारों से व्याप्त करके और दशअंगुलि परिमाण अधिक होकर अर्थात ब्रह्माण्ड से बाहर भी व्याप्त होकर अवस्थित है।[ऋग्वेद 10.90.1]
Virat Purush (Maha Vishnu, Son of Bhagwan Shri Krashn & Radha Ji) possess thousands heads, infinite eyes and infinite feet. He pervades the earth from all sided, become a bit more-larger i.e., ten fingers and establish himself out side the universe.
पुरुष एवेदं सर्वं यद्भूतं यच भव्यम्। उतामृतत्वस्येशानो यदन्नेनातिरोहति
जो कुछ हुआ है और जो कुछ होने वाला है, वह सब ईश्वर (पुरुष) ही हैं। वे देवत्व के स्वामी है; क्योंकि प्राणियों के भोग्य के निमित्त अपनी कारणावस्था को छोड़कर जगदवस्था को प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 10.90.2]
What ever has happened and what is going to happen is the Purush-God himself. HE is the lord of divinity since HE attain material-physical form for the sake of living beings.
एतावानस्य महिमातो ज्यायाँश्च पूरुषः। पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि
यह सारा ब्रह्माण्ड उनकी महिमा है, वे तो स्वयं अपनी महिमा से भी बड़े हैं। इन पुरुषों का एक पाद (अंश) ही यह ब्रह्माण्ड है, इनके अविनाशी तीन पाद तो दिव्य लोक में हैं।[ऋग्वेद 10.90.3]
This universe is HIS glory-manifestation and HE himself is larger than HIS majesty. HIS just one component constitutes the universe. HIS three feet stay in divine abodes.
त्रिपादूर्ध्व उदैत्पुरुषः पादोऽस्येहाभवत् पुनः।
ततो विष्वङ् व्यक्रामत्साशनानशने अभि
तीन पादों वाले पुरुष ऊपर (दिव्य-धाम में) उठे और उनका एक पाद यहाँ रहे। अनन्तर वे भोजन-सहित और भोजन-रहित (चेतन और अचेतन) वस्तुओं में विविध रूपों से व्याप्त हुए।[ऋग्वेद 10.90.4]
The Purush with three feet raised up in the divine abodes and his one foot remain here. Thereafter, he pervaded the materials with food & without food (conscious & unconscious) in various-different forms.
तस्माद्विराळजायत विराजो अधि पूरुषः। स जातो अत्यरिच्यत पश्चाद्भूमिमथो पुरः
उन आदि पुरुषों से विराट् (ब्रह्माण्ड-देह) उत्पन्न हुआ और ब्रह्माण्ड-देह का आश्रय करके जीव-रूप से पुरुष उत्पन्न हुए। वे देव-मनुष्यादि-रूप हुए। उन्होंने भूमि बनाई और जीवों के शरीर बनाए।[ऋग्वेद 10.90.5]
That eternal being evolved the vast universe and with the support of this universe HE created the organism. HE assumed the human and divine (demigods-deities) forms. HE generated the earth and granted bodies to the living beings.
यत्पुरुषेण हविषा देवा यज्ञमतन्वत। वसन्तो अस्यासीदाज्यं ग्रीष्म इध्मः शरद्धविः
जिस समय पुरुष-रूप मानस हवि से देवों ने मानसिक यज्ञ किया, उस समयः यज्ञ में। वसन्त-रूप घृत हुआ, ग्रीष्म-स्वरूप काष्ठ हुआ और शरद् हव्य-रूप से कल्पित हुआ।[ऋग्वेद 10.90.6]
When the offerings in the form of humans were made demigods-deities conducted mental Yagy and HE remained present in the Yagy. Spring season adopted the form of Ghee, summer turned into wood and the winter adopted the form of offerings.
तं यज्ञं बर्हिषि प्रौक्षन् पुरुषं जातमग्रतः। तेन देवा अयजन्त साध्या ऋषयश्च ये
जो सबसे प्रथम उत्पन्न हुए, उन्हीं (यज्ञ-साधक पुरुष) को यज्ञीय पशु रूप से मानस यज्ञ में दिया गया। उन पुरुष के द्वारा देवों, साध्यों (प्रजापति आदि) और ऋषियों ने यज्ञ किया।[ऋग्वेद 10.90.7]
One who evolved first was granted as the animal (The Purush to perform Yagy) for mental Yagy. By virtue of that Purush the demigods-deities, Sadhy Gan and the Rishis performed Yagy. 
तस्माद्यज्ञात् सर्वहुतः संभृतं पृषदाज्यम्।
पशून् ताँश्चक्रे वायव्यानारण्यान्ग्राम्याश्च ग्राम्याश्च ये
जिस यज्ञ में सर्वात्मक पुरुष का हवन होता है, उस मानस यज्ञ से दधि-मिश्रित घृत आदि उत्पन्न हुए। उससे वायु देवता वाले वन्य (हरिण आदि) और ग्राम्य (कुक्कुर आदि) पशु उत्पन्न हुए।[ऋग्वेद 10.90.8]
The mental Yagy in which the Purush was the main deity, Ghee mixed with curd evolved. Out of it Vayu Dev and other forest animals-deer etc. and country-village animals cook etc. evolved.(21.12.2024)
तस्माद्यज्ञात् सर्वहुत ऋचः सामानि जज्ञिरे। छन्दांसि जज्ञिरे तस्माद्यजुस्तस्मादजायत
सर्वात्मक पुरुष के होम से युक्त उस यज्ञ से ऋक और साम उत्पन्न हुए। उससे गायत्री आदि छन्द उत्पन्न हुए और उसी से यजुः की भी उत्पत्ति हुई।[ऋग्वेद 10.90.9]
सर्वात्मक :: सर्वव्यापी, सर्वभूत, जगदीश्वर, परमेश्वर; omnipresent.
Rak & Sam evolved from the Hawan-Yagy associated with omnipresent Purush Maha Virat, Maha Vishnu. Gayatri etc. Chhand and Yaju too evolved out of HIM. 
तस्मादश्वा अजायन्त ये के चोभयादतः। गावो ह जज्ञिरे तस्मात् तस्माज्जाता अजावयः
उस यज्ञ से अश्व और अन्य नीचे-ऊपर दाँतों वाले पशु उत्पन्न हुए गौ, अज और मेष भी उत्पन्न हुए।[ऋग्वेद 10.90.10]
This Yagy led to the evolution of horses animals having jaws (upper & lower teeth), cows, goat and sheep.
यत्पुरुषं व्यदधुः कतिधा व्यकल्पयन्। मुखं किमस्य कौ बाहू का ऊरू पादा उच्येते
जो विराट् पुरुष उत्पन्न किये गये, वे कितने प्रकारों से उत्पन्न किए गये? इनके मुख, दो हाथ, दो उरु और दो चरण कौन हुए?[ऋग्वेद 10.90.11]
How many forms of Virat Purush evolved out of HIM? They had mouth, two hands, two (thighs) legs and two feet.
ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद्वाहू राजन्यः कृतः। ऊरू तदस्य यद्वैश्यः पद्भ्यां शूद्रो अजायत
इनका मुख ब्राह्मण हुआ, दोनों बाहुओं से क्षत्रिय बनाया गया, दोनों उरुओं (जघनों) से वैश्य हुआ और पैरों से शूद्र उत्पन्न हुआ।[ऋग्वेद 10.90.12]
Brahmans evolve from HIS mouth, Kshatriy out of arms, Vaeshy from the thighs and the Shudr evolved from the feet.
जातश्चक्षोः सूर्यो अजायत। मुखादिन्द्रश्चाग्निश्च चन्द्रमा मनसो प्राणाद्वायुरजायत
पुरुष के मन से चन्द्रमा, नेत्र से सूर्य, मुख से इन्द्र और अग्नि देव तथा प्राण से वायु उत्पन्न हुए।[ऋग्वेद 10.90.13]
Out of the innerself of Purus evolved Moon, Sun from the eyes, Indr & Agni Dev from the mouth and out of Pran-life sustaining force Vayu Dev evolved.
नाभ्या आसीदन्तरिक्षं शीर्णो द्यौः समवर्तत।
पद्भ्यां भूमिर्दिशः श्रोतात्तथा लोकाँ अकल्पयन्
पुरुष की नाभि से अन्तरिक्ष, शिर से द्यौ (स्वर्ग), चरणों से भूमि, श्रोत्र से दिशाएं आदि भुवन बनाये गये।[ऋग्वेद 10.90.14]
श्रोत्र :: कान, श्रोत्रिय कर्म; ear.
Space-sky evolved from the naval of the Purush, out of head evolved the heavens, from feet the earth, directions evolved out of HIS ears and all other abodes.
सप्तास्यासन् परिधयस्त्रिः सप्त समिधः कृताः।
देवा यद्यज्ञं तन्वाना अबध्नन् पुरुषं पशुम्
प्रजापति के प्रणादि-रूप देवों ने मानसिक यज्ञ के सम्पादन काल में जिस समय पुरुष रूप पशु को बाँधा, उस समय सात परिधियाँ (ऐष्टिक और आहवनीय की तीन और उत्तर वेदी की और वैदिको जन्म एक आदित्य-आदत छन्द) बनाई गई और इक्कीस लोक और आदित्य काष्ठ या समिधायें बनाई गई।
देवों ने जिस समय काल्पनिक यज्ञ का विस्तार करते हुए विराट्‌ पुरुष को बलि पशु के रूप में बाँधा, उस समय यज्ञ की सात परिधियाँ और इक्कीस समिधाएं बनाई गई।[ऋग्वेद 10.90.15]
परिधीय :: अकेंद्री; peripheral, acentric.
When Purush in the form of imaginary-assumed animal was tied in the mental Yagy by the demigods, the soul of the Praja Pati; seven peripheral-acentric boundaries-enclosers and 21 wooden logs for offerings were prepared.
अनेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्।
ते ह नाकं महिमानः सचन्त पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः
देवों ने यह यज्ञ (मानसिक संकल्प) के द्वारा जो यज्ञ किया या पुरुष का पूजन किया, उससे ‌जगतरूप विकारों के धारक और मुख्य धर्म हुए। जिस स्वर्ग में प्राचीन साध्य (देवजाति-विशेष) और देवता है, उसे उपासक महात्मा लोग पाते हैं।[ऋग्वेद 10.90.16]
The demigods performed the imaginary Yagy by assumption i.e., worshiped the Purush, led to the appearance of several Dharm (duties, endeavours). The heavens occupied by the specific demigods i.e., Sadhy Gan is attained by the worshiper sages-Mahatma.(22.12.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (91) :: ऋषि :- अरुण चैतहव्य; देवता :- अग्नि; छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
सं जागृवद्भिर्जरमाण इध्यते दमे दमूना इषयन्त्रिळस्पदे।
विश्वस्य होता हविषो वरेण्यो विधुर्भिभावा सुषखा सखीयते
हे अग्नि देव! जागरणशील स्तोता लोग आपकी स्तुति करते हैं। दानमना अग्नि देव उत्तर वेदी पर बैठकर अन्न लाभ के लिए सारे हवि के होता होते हैं, वे वरणीय, व्यापक, दीप्तिमान् और शोभन मित्र हैं। वे मित्रता की अभिलाषा करते हुए भली-भाँति प्रज्वलित होते हैं।[ऋग्वेद 10.91.1]
Hey Agni Dev! Awake Stotas worship you. Donation making Agni Dev occupy the Uttar Vedi and become the Hota for gain of food grains. He is acceptable, vast, shinning and gracious friend. He shine-illuminate wishing for friendship.
स दर्शतश्रीरतिथिगृहेगृहे वनेवने शिश्रिये तकवीरिव।
जनंजनं जन्यो नाति मन्यते विश आ क्षेति विश्यो ३ विशंविशम्
अग्नि देव सुशोभन और अतिथि हैं। वे यजमानों के गृहों और वनों में रहते हैं। मनुष्य हितैषी अग्नि देव किसी को नहीं छोड़ते। वे प्रजाहितैषी हैं। वे मनुष्यों सारी प्रजा के गृह में रहते हैं।[ऋग्वेद 10.91.2]
Agni Dev is glorious and a guest. He reside in the homes of the Ritviz and forests. Well wisher of humans, Agni Dev never desert any one. He is a well wisher of he populace. He reside in the homes of entire human population.
सुदक्षो दक्षैः क्रतुनासि सुक्रतुरग्ने कविः काव्येनासि विश्ववित्।
वसुर्वसूनां क्षयसि त्वमेक इद् द्यावा च यानि पृथिवी च पुष्यतः
हे अग्नि देव! आप बलों से भी बली हैं, आप कम से कम शोभन-कर्मा और क्रान्त कर्म से मेधावी है। आप सर्वज्ञ और धनों के स्थापक हैं। आप अकेले रहते हैं। द्यावा-पृथ्वी जिन धनों का संवर्द्धन करते हैं, उनके भी आप स्वामी हैं।[ऋग्वेद 10.91.3]
Hey Agni Dev! You are mightier than the mighty. You are intelligent and perform glorious deeds. You are aware of every thing and establish-create wealth. You remain alone. You are the lord of the wealth accumulated by the heaven & earth.
प्रजानन्नग्ने तव योनिमृत्वियमिळास्यास्पदे घृतवन्तमासदः।
आ ते चिकित्र उषसामिवेतयोऽरेपसः सूर्यस्येव रश्मयः
यज्ञ वेदी के ऊपर यथा समय घृत-युक्त निवास स्थान बनाया जाता है। हे अग्नि देव! आप उसे पहचान कर बैठें। आपकी ज्वालाएँ प्रभात की आभा अथवा सूर्य की किरणों के समान विमल देखी जाती है।[ऋग्वेद 10.91.4]
Hey Agni Dev! Your residence is prepared over the Yagy Vedi with Ghee. You should recognise and occupy it. Your flames look like the glow of dawn and beautiful like the Sun rays.
तव श्रियो वर्ष्यसयेव विद्युतश्चित्राश्चिकित्र उषसां न केतवः।
यदोषधीरभिसृष्टो वनानि च परि स्वयं चिनुषे अन्नमास्ये
आपकी विचित्र शिखाएं जल-वर्षक मेघ से निकली। बिजली अथवा प्रभात की आगमन- सूचिका आभाओं के समान देखी जाती है। उस समय आप मानों बन्धन से मुक्त होकर वन और काष्ठ को खोजते हैं। यह सब आपके मुख का अन्न है।[ऋग्वेद 10.91.5]
Your amazing branched-lightening appeared from the rain clouds. With the lightening or the dawn glow appears. At that moment you seem to become free from bonds and look for forests and wood. All this like food for you.
तमोषधीर्दधिरे गर्भमृत्वियं तमापो अग्निं जनयन्त मातरः।
तमित्समानं वनिनश्च वीरुधोऽन्तर्वतीश्च च सुवते च विश्वहा
औषधियाँ अग्नि देव को यथासमय गर्भ-स्वरूप धारण करती हैं और माता के समान जल उन्हें जन्म देता है। वन-स्थित लताएं गर्भवती होकर बराबर उन्हें एक भाव से जन्माती है।[ऋग्वेद 10.91.6]
Medicines support Agni Dev like the foetus and the water give him birth like a mother. Creepers present in the forests-jungles become pregnant and produce him in the same manner.
वातोपधूत इषितो वशाँ अनु तृषु यदन्ना वेविषद्वितिष्ठसे।
आ ते यतन्ते रध्यो ३ यथा पृथक्छर्धांस्यग्ने  अजराणि धक्षतः
हे अग्नि देव! आप वायु के द्वारा कम्पित होकर संचालित होते हैं एवं सुन्दर वनस्पतियों में पैठ कर रहते हैं। हे अग्नि देव! जिस समय आप जलाने को तैयार होते हैं, उस समय रथारुढ़ योद्वाओं के समान आपकी प्रबल और अक्षप्य शिखाएं अलग-अलग होकर बल को प्रकाशित करती हैं।[ऋग्वेद 10.91.7]
Hey Agni Dev! You tremble while moving due to Vayu-air and penetrate the beautiful herbs-vegetation and live there. When you are ready to burn, your mighty and strong flames  appear separately like the warriors riding the charoite.(23.12.2024)
मेधाकारं विदथस्य प्रसाधनमग्रिं होतारं परिभूतमं मतिम्।
तमिदर्थे हविष्या समानमित्तमिन्महे वृणते नान्यं त्वत्
हे अग्नि देव! आप लोगों को मेधावी बनाने वाले, यज्ञ के सिद्धि दाता, होम निष्पादक, अतीव विराट और ज्ञानी है। हवि कम या अधिक मात्रा में दिया जाय, अग्नि देव को ही सदा उसे स्वीकार करना पड़ता है-अन्य किसी को भी नहीं।[ऋग्वेद 10.91.8]
Hey Agni Dev! You make the people enlightened, accomplish desires pertaining to the Yagy, conduct Yagy, extremely huge-vast and enlightened. Agni Dev always adjust when the offerings are less or more, none other else.
त्वामिदत्र वृणते त्वायवो होतारमग्ने विदथेषु वेधसः।
यद्देवयन्तो दधति प्रयांसि ते हविष्यन्तो मनवो वृक्त्त बर्हिषः 
हे अग्नि देव! यजमान लोग यज्ञ के समय आपको पाने की अभिलाषा करके होता के रूप में आपका ही वरण करते हैं। उस समय देवभक्त मनुष्य लोग कुश का छेदन करके और शिलाकार आपके लिए हवि देते हैं।[ऋग्वेद 10.91.9]
Hey Agni Dev! The Ritviz accept you as the Hota in the Yagy with the desire to have you. The worshipers-devotees of deities pierce the Durva grass and make offerings to you in the form of rock-statues.
तवाग्रे होत्रं तव पोत्रमृत्त्वियं तव नेष्ट्रं त्वमग्निदृतायतः।
तव प्रशास्त्रं त्वमध्वरीयसि ब्रह्मा चासि गृहपतिश्च नो दमे
हे अग्नि देव! यथासमय आपको ही होता और पोता का कार्य करना पड़ता है। यज्ञ कर्ता के लिए आप ही नेष्टा और अग्नि देव हैं। आप प्रशास्ता अध्वर्यु और ब्रह्मा का कार्य करते हैं। आप हमारे गृह के स्वामी हैं।[ऋग्वेद 10.91.10]
नेष्टा :: अध्वर्यु के सहायक ऋत्विक् को नेष्टा कहते हैं, सोम यज्ञ में प्रधान ऋत्विकों में से एक ऋत्विक् जो कि क्रम में 16 वें ऋत्विक् हैं, त्वष्टा देवता; chief priest conducting the Yagy,  one assisting the head priest or the host in rituals. 
Hey Agni Dev! Often you have to perform the duties of Hota and Pota. You are Neshta and Agni Dev. You function as Brahma or chief Priest. You are the lord of our home.
यस्तुभ्यमग्ने अमृताय मर्त्यः समिधा दाशदुत वा हविष्कृति।
तस्य होता भवसि यासि दूत्य ९ मुप ब्रूषे यजस्यध्वरीयसि
हे अग्नि देव! जो मनुष्य आपको अमर जानकर समिधा और हवि देता है, उसके आप होता होते हैं। उसके लिए आप देवों के पास दूत-कर्म करते हैं, देवों को निमन्त्रित करते हैं, देशानुष्ठान करते हैं और अध्वर्यु का कार्य करते हैं।[ऋग्वेद 10.91.11]
Hey Agni Dev! You become the Hota of the person who make offerings and add wood considering you as immortal. You perform the function of messenger for demigods, invite-invoke demigods-deities, perform rituals and acts as chief Priest. 
इमा अस्मै मतयो वाचो अस्पदाँ ऋचो गिरः सुष्टुतयः समग्मत।
वसूयवो बसते जातवेदसे वृद्धासु चिद्वर्धनो यासु चाकनत्
अग्नि देव के लिए यह सारा ध्यान, वेद-वाक्य और स्तोत्र किए जाते है। ज्ञानी अग्नि देव वासक हैं। अर्थाभिलाष से ये सारे स्तोत्र उनमें जाकर मिलते हैं। श्री-वृद्धि करने वाले अग्नि देव स्तोत्रों की वृद्धि होने पर हर्षित होते हैं।[ऋग्वेद 10.91.12]
Meditation, recitation of Veds-Strotr is done for Agni Dev. The Strotr immerse in him for the sake of wealth. Agni Dev become happy due to the Strotrs increasing wealth.  
इमां प्रत्नाय सुष्ठुतिं नवीयसी वोचेयमस्मा उशते शृणोतु नः।
भूया अन्तरा हृद्यस्य निस्पृशे जायेव पत्य उशती सुवासाः
स्रोत्राभिलाषी उन प्राचीन अग्नि देव के लिए मैं अत्यन्त नवीन और सुन्दर स्तोत्र कहता हूँ। वे श्रवण करें। जिस प्रकार प्रणय-परवशा स्त्री सुन्दर वस्त्र पहनकर पति के हृदय-देश में अपनी देह को मिलाती है, उसी प्रकार ही हम अग्नि देव को हृदय के बीच में धारण करते हैं।[ऋग्वेद 10.91.13]
I compose and recite new beautiful Strotr for eternal Agni Dev to fulfil his desire. He should listen-respond to it. The way a beautiful women under the influence of love, wear beautiful cloths and immerse herself into the heart of her husband, we too born Agni Dev in our hearts.
यस्मिन्त्रश्वास ऋषभास उक्षणो वशा मेषा अवसृष्टास आहुताः।
कीलालपे सोमपृष्ठाय वेधसे हृदा मतिं जनये चारुमग्नये
जिस अग्नि में घोड़ों, बली वृषों और पुरुष-हीन मेषों की, अश्वमेध यज्ञ में, आहृति दी जाती है, जो जल पीते हैं, जिनके ऊपर सोम निवास करते है और जो यज्ञानुष्ठाता है, उन अग्नि देव के लिए हृदय से मैं कल्याणकरी स्तुति बनाता हूँ।[ऋग्वेद 10.91.14]
I compose beneficial Stuti for Agni Dev through the depth of my heart, in whom offerings of horses, bulls, sheep, are made in Ashwmedh Yagy, over whom stay Som and is the organiser of Yagy.
अहाव्यग्ने हविरास्ये ते स्रुचीव घृतं चम्वीव सोमः।
वाजसनिं रयिमस्मे सुवीरं प्रशस्तं घेहि यशसं बृहन्तम्
जिस प्रकार स्रुक में घृत रखा जाता है और जिस प्रकार चमस में सोमरस रखा जाता है, उसी प्रकार ही हे अग्नि देव! आपके मुँह में हवि, पुरोडाश आदि का हवन किया जाता है। आप मुझे अन्न, अर्थ, उत्कृष्ट पुत्र, पौत्र आदि और विपुल यश प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.91.15]
The way Ghee is kept in the ladle-spoon, Somras is stored in the Kalash, similarly hey Agni Dev! Offerings are made, Purodas-pudding is poured into your mouth while performing Hawan. Grant me food grains, wealth, excellent sons, grand son and glory-majesty.(24.12.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (92) :: ऋषि :- शर्यात, मानव; देवता :-विश्वेदेव; छन्द :- जगती।
यज्ञस्य वो रथ्यं विश्पतिं विशां होतारमक्तोरतिथिं विभावसुम्।
शोचञ्छुष्कासु हरिणीषु जर्भुरषा केतुर्यजतो द्यामशायत
हे देवो! आप यज्ञ के नेता, मनुष्यों के स्वामी, होता, रात्रि के अतिथि और विविध दीप्ति-धन वाले अग्नि देव की अर्चना करें। शुष्क काष्ठों को जलाने वाले और हरे काठों में टेढ़े जाने वाले, काम वर्षक, यज्ञ की पताका और यजनीय अग्नि देव आकाश में शयन करते हैं।[ऋग्वेद 10.92.1]
Hey deities! You should worship the lord of Yagy and the humans, guest during the night, possessor of vivid wealth, Agni Dev. Burner of dry wood, mover through the green bent-uneven wood-trees, flag-mast of the Yagy and worshipable Agni Dev reside in the sky.
इममञ्जस्यामुभये अकृण्वत धर्माणमग्निं विदथस्य साधनम्।
अक्तुं न यह्नमुषसः पुरोहितं तनूनपातमरुषस्य निंसते
रक्षक और धर्म-धारक अग्नि देव को देवों और मनुष्यों ने यज्ञ साधक बनाया। वे महान् पुरोहित और शोभन वायु के पुत्र हैं। उषायें उन्हें सूर्य के समान स्पर्श करती हैं।[ऋग्वेद 10.92.2]
Protector and supporter of Dharm (religion, duty), Agni Dev has been evolved by the demigods-deities and the humans for the Yagy. He is great priest and son of glorious Vayu Dev. Devi Usha touch him like the Sun.
बलस्य नीथा वि पणेश्च मन्महे वया अस्य प्रहुता आसुरत्तवे।
यदा घोरासो अमृतत्वमाशतादिज्जनस्य दैव्यस्य चर्किरन्
स्तुत्य अग्नि देव जो मार्ग दिखा देते हैं, वहीं प्रकृत है। हम जिनका हवन करते हैं, उनका के भोजन करें। जिस समय उनकी प्रबल शिखाएं दीप्तिशील हुई, उस समय देवों के लिए फेंकी जाने लगी।[ऋग्वेद 10.92.3]
The path shown by worshipable Agni Dev is natural-has to be followed. When his strong flames became illuminous, the goods-material used in the Hawan were consumed-eaten by him and were throw-sent toward the (passed on to) demigods-deities. 
ऋतस्य हि प्रसितिर्द्यौंरुरु व्यचो नमो मह्य १ रमतिः पनीयसी।
इन्द्रो मित्रो वरुणः सं चिकित्रिरे ऽ थो भगः सविता पूतदक्षसः
विस्तृत द्यौ, विस्तीर्ण भवन, व्याप्त अन्तरिक्ष, स्तुत्य और असीम पृथ्वी यज्ञीय अग्नि देव को नमस्कार करते हैं। हे इन्द्र देव! मित्र, वरुण, भग, सविता आदि पवित्र बल वाले देवता आविर्भूत होते हैं।[ऋग्वेद 10.92.4]
आविर्भूत :: उत्पन्न, सामने आया हुआ, अवतरित, प्रकाशित, प्रकटित; evolved, appeared, invoked, illuminated. 
आविर्भाव :: उत्पन्न, अभिव्यक्त, प्रकटित, अवतीर्ण, उदय, अवतरण, जन्म, प्रकट होना सामने आया हुआ; emerged.
Vast heavens, abodes, sky-space, worshipable earth salute-pray to Agni Dev. Hey Indr Dev! Mitr, Varun, Bhag, Savita etc. pious mighty deities evolve.
प्र रुद्रेण ययिना यन्ति सिन्धवस्तिरो महीमरमतिं दद्यन्विरे।
येभिः परिज्मा परियन्नुरु ज्रयो वि रोरुवज्जठरे विश्वमुक्षते
वेगशाली मरुतों की सहायता पाकर नदियाँ बहती हैं और भूमि को ढेंकती हैं। सर्वत्र विवरण करने वाले इन्द्र सर्वत्र जाकर मरुतों की सहायता से आकाश में गर्जना करते हैं और महावेग से संसार में जल बरसाते हैं।[ऋग्वेद 10.92.5]
Fast flowing rivers cover the earth with the help of Marud Gan. Roaming all around Indr Dev, roar in the sky with the help of Marud Gan and downpour over the earth.
क्राणा रुद्रा मरुतो विश्वकृष्टयो दिवः श्येनासो असुरस्य नीळयः।
तेभिश्चष्टे इरुणो मित्रो अर्यमेन्द्रो देवेभिरर्वशेभिरर्वशः
जिस समय मरुत् लोग कार्यारम्भ करते हैं, उस समय संसार को खींच लेते हैं। वे आकाश के श्येन पक्षी और मेघ के आश्रयभूत है। वरुण, मित्र, अर्यमा और अश्वारोही इन्द्र देव अश्वारुढ मरूतों के साथ ये सारी बातें देखते हैं।[ऋग्वेद 10.92.6]
When Marud Gan make efforts, they pull the universe. They support the falcon and clouds in the sky. Varun, Mitr, Aryma and horse rider Indr Dev see the activities of Marud Gan riding horse.
इन्द्रे भुजं शशमानास आशत सूरो दृशीके वृषणश्च पौंस्ये।
प्र ये न्वस्यार्हणा ततक्षिरे युजं वज्रं नृषदनेषु कारवः
स्तोता लोग इन्द्र देव से रक्षण, सूर्य देव से दृष्टि-शक्ति और वर्षक इन्द्र देव से पौरुष पाते है। जो स्तोता उत्कृष्ट रूप से इन्द्र देव की पूजा प्रस्तुत करते हैं, वे यज्ञ-काल में इन्द्र देव के वज्र को सहायक पाते हैं।[ऋग्वेद 10.92.7]
The Stotas get protection & valour from Indr Dev, visibility-eye sight from Sury Dev. The Stotas worship Indr Dev in best possible manner and find his Vajr by their side for help.(25.12.2024)
सूरश्चिदा हरितो अस्य रीरमदिन्द्रादा कश्चिद्भयते तवीयसः।
भीमस्य वृष्णो जठरादभिश्वसो दिवेदिवे सहुरिः स्तन्नबाधितः
इन्द्र देव के भय से सूर्य देव भी अपने अश्वों को चलाते और मार्ग में जाने के समय सबको प्रसन्न करते हैं। उन इन्द्र देव से कौन डरता? वे भयानक और वारि-वर्षक है। वे आकाश में शब्द करते हैं। शत्रुओं को हराने वाली वज्र ध्वनि उन्हीं के भय से प्रति दिन प्रकट होती रहती है।[ऋग्वेद 10.92.8]
By virtue of the fear of Indr Dev, Sury Dev move his horses and make everyone happy. Who is afraid of Indr Dev? He is furious and causes rains. He make loud sound-thunder in the sky. The Vajr causes fear in the enemies everyday due to his fear.
स्तोमं वो अद्य रुद्राय शिकसे क्षयद्वीराय नमसा दिदिष्टन।
येभिः शिवः स्ववाँ एवयावभिर्दिवः सिषक्ति स्वयशा निकामभिः
आज उन्हीं कर्म-कुशल और रुद्रदेव को नमस्कार तथा अनेक स्तोत्र अर्पित करें। वे शत्रुओं का विनाश करते हैं, वे अश्वारुढ़ और उत्साही मरुतों की सहायता पाकर और आकाश में जल-सिंचन करके मङ्गलजनक होते हैं और अपनी कीर्त्ति का विस्तार करते हैं।[ऋग्वेद 10.92.9]
Offer many Strotr to expert-skilled Indr Dev & salute Rudr Dev. He destroys the enemies, rides horse, helped by enthusiastic Marud Gan, generate water in the sky, become beneficial and extend his glory-majesty.
ते हि प्रजाया अभरन्त वि श्रवो बृहस्पतिवृषभः सोमजामयः।
यज्ञैरथर्वा प्रथमो वि धारयद्देवा दक्षैर्भृगवः सं चिकित्रिरे
बृहस्पति और सोमाभिलाषी अन्य देवताओं ने प्रजावृन्द के लिए अन्न का संचय किया। अथर्वा ऋषि ने सबसे पहले यज्ञ के द्वारा देवों को सन्तुष्ट किया। देवता लोग और भृगुवंशधर भोग बल प्रकट करते उस यज्ञ में गये और यज्ञ को जाना।[ऋग्वेद 10.92.10]
Brahaspati and other demigods-deities desirous of Somras stored food grains for the populace. Atharva Rishi initially satisfied the demigods-deities by virtue of Yagy. Demigods and the decedents of Bhragu exhibited their might, joined the Yagy and understood it.
ते हि द्यावापृथिवी भूरिरेतसा नराशंसश्चतुरङ्गो यमोऽदितिः।
देवस्त्वष्टा द्रविणोदा भुक्षणः प्र रोदसी मरुतो विष्णुरर्हिरे॥
नराशंस नामक यज्ञ में चार अग्नि स्थापित किये गये। बहु वृष्टि वर्षक द्यावा-पृथ्वी यम, अदिति, धनद त्वष्टा ऋभु लोगों, रुद्र की स्त्री, मरुतों और विष्णु ने यज्ञ में स्तोत्र प्राप्त किया।[ऋग्वेद 10.92.11]
Four Agni were established in the Yagy named Narashansh. Causing excessive rains heavens & earth, Yam, Aditi, Dhanad Twasta, wife of Rudr, Marud Gan and Vishnu had the Strotr in the Yagy.
उत स्य न उशिजामुर्विया कविरहिः शृणोतु बुध्न्यो ३ हवीपनि।
सूर्यामार विचरन्ता दिविक्षिता धिया शमीनहुवी अस्य बोधतम्
अभिलाषी होकर हम लोग जो विशाल-विशाल स्तोत्र करते हैं, यज्ञ के समय आकाशवासी अहिर्बुध्न्य वह सब श्रवण करें। आकाश में घूमने वाले सूर्य देव और इन्द्र देव आप लोग आकाश में रहकर अन्तःकरण से यही स्तोत्र श्रवण करें।[ऋग्वेद 10.92.12]
We become desirous-expectant, recite large-long Strotr. At the time-occasion of Yagy let Ahirbudhany listen-respond to the Strotr. Sury Dev & Indr Dev roaming-revolving in the sky should listen-respond to this Strotr in their innerself.
प्र नः पूषा चरथं विश्वदेव्यो ऽ पां नपादवतु वायुरिष्टये।
आत्मानं वस्यो अनि वातमर्चत तदश्विना सुहवा यामनि श्रुतम्
समस्त देवों के हितैषी और जल के वंशज पूषा देव हमारे पशु इत्यादि की रक्षा करें। यज्ञ के लिए वायु देव भी रक्षा करें। धन के लिए आत्म-स्वरूप वायु देव की स्तुति करें। हे दोनों अश्विनी कुमारों! आपका आव्हान करने से कल्याण होता है। मार्ग में जाने के लिए आप वह स्तोत्र श्रवण करें।[ऋग्वेद 10.92.13]
Let well wisher of demigods-deities, descendants of water, Pusha Dev protect our animals etc. Vayu Dev should also protect-shield the Yagy. Worship Vayu Dev in the form of Soul. Hey Ashwani Kumar, duo! Your invocation is beneficial. For going to the road-path listen that Strotr.
विशामासामभयानामधिक्षितं गीर्भिरु स्वयशसं गृणीमसि।
ग्राभिर्विश्वा भिरदितिमनर्वणमक्तोर्युवानं नृमणा अधा पतिम्
जो समस्त प्रजा को अभय देने के स्वामी हैं, जो अपनी कीर्ति का स्वयं उपार्जन करते हैं, उनकी हम स्तुति करते हैं। देव पत्नियों के साथ अविचल माता अदिति और रात्रि-पति चन्द्र की हम स्तुति करते हैं। वे मनुष्यों पर अनुग्रह करते हैं।[ऋग्वेद 10.92.14]
We worship the lord of the whole populace granting protection and attain glory by himself. We worship Mata Aditi & Chandr Dev-Moon lord of night, along with the wives of demigods-deities. He favour the humans.
रेभदत्र जनुषा पूर्वी अङ्गिरा ग्रावाण ऊर्ध्वा अभि चक्षुरध्वरम्।
येभिर्विहानया अभवद्विचक्षणः पाथः सुमेकं स्वदितिर्वनन्वति
ज्येष्ठ अङ्गिरा ऋषि इस यज्ञ में स्तुति करते हैं। प्रस्तर ऊपर उठकर यज्ञीय सोम प्रस्तुत करते हैं। सोमरस को पीकर वृद्धिशाली इन्द्र देव हर्षित हुए, उन इन्द्र देव का वज्र आकाश मार्ग से अन्न उत्पन्न करने वाले जल को प्रकट करें।[ऋग्वेद 10.92.15]
Senior-elder Angira Rishi make prayers in this Yagy. Raise rock and present Somras for the Yagy. Let Vajr of Indr Dev present water through the sky for growing food grains, when Indr Dev become happy by drinking Somras.(26.12.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (93) :: ऋषि :- तान्व, पार्थ्य; देवता :- विश्वेदेव;  छन्द :- पंक्ति, अनुष्टुप्, न्यूङ्कुसारिणी बृहती।
महि द्यावापृथिवी भूतमुर्वी नारी यह्नी न रोदसी सदं नः।
तेभिर्नः पातं सहा एभिर्नः पातं शूषणि
हे द्यावा-पृथ्वी! आप लोग अतीव विस्तृत होवें। विशाल-मूर्ति होकर आप लोग स्त्री समान हमारे गृह में पधारें। इन रक्षणों से हमें शत्रुओं से बचावें। इन कार्यों के द्वारा हमें शत्रुओं से भली-भाँति संरक्षित करें।[ऋग्वेद 10.93.1]
Hey heaven & earth! You should become vast. On being large, come to our house like a woman. Protect us from the enemy with weapons. Through these means protect us properly from the enemies.
यज्ञेयज्ञे स मर्त्यो देवान्त्सपर्यति। यः सुम्मैर्दीर्घश्रुत्तम आविवासात्येनान्
जो मनुष्य सभी यज्ञों में देवों की सेवा करता है और जो अनेक शास्त्रों का श्रोता सुखकर हवि के द्वारा देवों की सेवा करता है। (वहीं प्रकृत देव-सेवक है।)[ऋग्वेद 10.93.2]
The human being who serve the demigods-deities in all Yagy & the listener of all scriptures serve them with pleasant offerings is the real devotee.
विश्वेषामिरज्यवो देवानां वार्महः। विश्वे हि विश्वमहसो विश्वे यज्ञेषु यज्ञियाः
देवता लोग सबके प्रभु है। उनका दान महान् हैं, वे सब प्रकार के बलों से बली है। वे सब यज्ञों के समय यज्ञ-भाग पाते हैं।[ऋग्वेद 10.93.3]
Deities are the lords of all. Their donation is great and they are mightier than all. They obtain equal share in all Yagy.
ते घा राजानो अमृतस्य मन्द्रा अर्यमा मित्रो वरुणः परिज्मा।
कद्रुद्रो नृणां स्तुतो मरुतः पूषणो भगः
जिन रुद्र-पुत्रों की स्तुति करने पर मनुष्यों को सुख मिलता है ये अर्यमा, मित्र, सर्वज्ञ वरुण और भग अमृत के राजा, स्तुत्य और पुष्टि-कर्ता है।[ऋग्वेद 10.93.4]
The sons of Rudr Aryma, Mitr, all knowing Varun and Bhag; who grant pleasure-comforts to the humans are the lords of nectar-elixir, worshipable and nourishing-nurturing.
उत नो नक्तमयां वृषण्वसू सूर्यामासा सदनाय सधन्या।
सचा यत्साद्येषामहिर्बुध्नेषु बुध्न्यः
जिस समय अहिर्बुध्न्य जल के साथ एकत्रित होकर बैठते हैं, उस समय सूर्य और चन्द्रमा एकत्र बैठकर दिन-रात जल-स्वरूप धन का वर्षण करते हैं।[ऋग्वेद 10.93.5]
When the Ahirbudhany sit together with water, at that moment Sun & Moon together sit day & night and shower wealth in the form of water.
उत नो देवावश्विना शुभस्पती धामभिर्मित्रावरुणा उरुष्यताम्।
महः स राय एषतेऽति धन्वेव दुरिता
हे कल्याण के अधिपति दोनों अश्विनी कुमारों! मित्र और वरुण अपने शरीर से या तेज से हमारी रक्षा करें। इनके द्वारा रक्षित यजमान बहुत धन पाता है और मरुभूमि के समान दुर्गति से पार पाता है।[ऋग्वेद 10.93.6]
दुर्गति :: बुरी गति, बुरा हाल, ज़िल्लत,स्वलोक-परलोक में दुर्दशा, नरक, दुर्गत, दरिद्रता; misery, misadventure.
Hey lord of welfare Ashwani Kumar duo! Let Mitr and Varun protect us through their might. Host protected by them gets lots of riches and crosses the misery-misadventure equivalent to the desert.
उत नो रुद्रा चिन्मृळतामश्विना विश्वे देवासो रथस्पतिर्भगः।
ऋभुर्वाज ऋभुक्षणः परिज्मा विश्ववेदसः
हम स्तुति करते हैं रुद्र पुत्र वायु, अश्वि द्वय, समस्त देवता, रथारुढ़ पूषा, ऋभु, अन्नवान् भग, सर्वत्रगामी इन्द्र देव, वाज, सर्वज्ञाता ऋभुक्षणआदि हमें सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.93.7]
We pray that Vayu son of Rudr, Ashwani Kumar duo, all demigods-deities, charoite riding Pusha, Ribhu, possessor food grains Bhag, mover in all direction Indr Dev, Vaj and all knowing Ribhukshan grant us pleasure-comforts.
ऋभुर्ऋभुक्षा ऋभुर्विधतो मद आ ते हरी जूजुवानस्य वाजिना।
दुष्टरं यस्य साम चिदृद्यग्यज्ञो न मानुषः
महान् इन्द्र देव यज्ञ के द्वारा प्रभायुक्त होते हैं। हे इन्द्र देव! जिस समय आप वेगशाली रथ की योजना करते हैं, उस समय यज्ञकर्ता भी आनन्द पाते हैं। इन्द्र देव के लिए जो सोम का पान होता है, वह असाधारण है। उनके लिए जो यज्ञानुष्ठान होता है, वह मनुष्य के लिए साध्य नहीं है।[ऋग्वेद 10.93.8]
Great Indr Dev get aura by virtue of Yagy. Hey Indr Dev! The Yagy performers get happiness when you ride the high speed charoite. Somras served to Indr Dev is extraordinary. Yagy performed by Indr Dev is not possible for the humans to perform.
कृधी नो अह्रयो देव सवितः स च स्तुषे मघोनाम्।
सहो न इन्द्रो वह्निभिर्येषां चर्षणीनां चक्रं रश्मिं न योयुवे
हे प्रेरक सविता देव! आप हमें लज्जित न करें। आप धनी यजमानों के ऋत्विकों के द्वारा स्तुत होते हैं। इन्द्र देव हमारे बल-रूप हैं। उन्होंने इन मनुष्यों के यज्ञ में आने के लिए अपने उज्ज्वल रथ-चक्र में मानों वायुदेव को जोता, तब वे महावेग से पधारे।[ऋग्वेद 10.93.9]
Hey inspiring Savita! Do not shame us. You are worshiped by the Ritviz of wealthy hosts. Indr Dev is symbol of our power. He arrived in the Yagy with great speed as if he had deployed Vayu Dev in his bright-illuminated charoite.
ऐषु द्यावापृथिवी धातं महदस्मे वीरेषु विश्वचर्षणि श्रवः।
पृक्षं वाजस्य सातये पृक्षं रायोत तुर्वणे
हे द्यावा-पृथ्वी! आप लोग हमारे पुत्रादि को प्रभूत अन्न प्रदान करें। वह अन्न लोगों के लिए यथेष्ट हो, बलकर हो, धन-लाभ और विपत्ति से परित्राण पाने के लिए उपयोगी हो।[ऋग्वेद 10.93.10]
Hey heaven & earth! Grant our sons and others, sufficient food grains. That food grain should be proper-desired, strength increasing and useful in over coming trouble.(27.12.2024)
एतं शंसमिन्द्रास्मयुष्टं कूचित्सन्तं सहसावन्नभिष्टये सदा पाह्यभिष्टये।
मेदतां वेदता वसो
हे इन्द्र देव। जिस समय आप हमारे पास आने की इच्छा करते हैं, उस समय स्तोता जहाँ कहीं भी रहे, यज्ञ करते समय उनकी रक्षा करें। हे धनद! आपकी जो स्तुति करता है, उसके अभिप्राय को आप श्रवण करें।[ऋग्वेद 10.93.11]
Hey Indr Dev! When you wish to visit us, at that moment protect the Stota while conducting the Yagy, irrespective of his location. Hey Dhanad! Respond to the purpose (fulfil his desire-wish) of the person worshiping you.
एतं मे स्तोमं तना न सूर्ये द्युतद्यामानं वावृधन्त नृणाम्।
संवननं नाश्र्व्यं तष्टेवानपच्युतम्
मेरा यह विस्तृत स्तोत्र दीप्ति के साथ सूर्य देव के लिए जाता है और मनुष्यों की श्री बढ़ाता है। जिस प्रकार बढ़ई अश्व के खींचने योग्य सुदृढ़ रथ बनाता है, उसी प्रकार ही मैंने इसे बनाया है।[ऋग्वेद 10.93.12]
My long Strotr moves to Sury Dev with radiance and increase the glory-wealth of humans. The way a carpenter makes strong charoite to be pulled by the horse, I have composed it.
वावर्त येषां राया युक्तैषां हिरण्ययी। नेमधिता न पीस्या वृथेव विष्टान्ता
जिसके पास हम धन की इच्छा करते हैं, उनके लिए हम अत्यन्त उत्तम स्तोत्र का बार-बार पारायण करते हैं। जिस प्रकार युद्ध के सैनिक बार-बार अग्रसर होते हैं या जैसे घटीचक्र श्रेणी बद्ध होकर आगे-पीछे चलता है, हमारे स्तोत्र भी वैसे ही हैं।[ऋग्वेद 10.93.13]
घटीचक्र :: कम होने की क्रिया, recession cycle, decline cycle.
We compose & recite excellent Strotr in front of the person from whom we expect money. The way the soldiers move forward or backward in the war or recession cycle appears, our Strotr too follow the trend.
प्र तद्दु: शीमे पृथवाने वेने प्र रामे वोचमसुरे मघवत्सु।
ये युक्त्वाय पञ्च शतास्मयु पथा विश्राव्येषाम्
जिस प्रकार समस्त देवता पाँच सौ रथों में घोड़े जोतकर यज्ञ में जाने के लिए मार्ग में जाते है, उसी प्रकार ही उनके प्रशंसा-युक्त स्तोत्र का पाठ मैंने दुःशीम, पृथवान् वेन और बली राम आदि धनपति राजाओं के समीप किया है।[ऋग्वेद 10.93.14]
The way all demigods-deities deploy horses in five hundred horses charoites to join the Yagy, similarly I have recited the Strotr in their praise-glory in front of wealthy kings named Dusheem, Prathvan Ven mighty Ram.
अधीन्वत्र सप्ततिं च सप्त च।
सद्यो दिदिष्ट तान्वः सद्यो दिदिष्ट पार्थ्यः सद्यो दिदिष्ट मायवः
उन राजाओं से तान्व, पार्थ्य और मायव आदि ऋषियों ने शीघ्र ही सतहत्तर गौओं की कामना की।[ऋग्वेद 10.93.15]
Rishis named Tan, Parthy and Mayav etc. requested those kings for seventy seven cows.(28.12.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (94) :: ऋषि :- अर्बुद, काद्रवेय, सर्प; देवता :- ग्रावाण;  छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
प्रैते वदन्तु प्र वयं वदाम ग्रावभ्यो वाचं वदता वदद्भयः।
यदद्रयः पर्वताः साकमाशवः श्लोकं घोषं भरथेन्द्राय सोमिनः
प्रस्तर अभिषव शब्द करें। हम यजमान उन प्रस्तरों की स्तुति करते हैं। हे ऋत्विकों! आप लोग स्तोत्र पाठ करें। आदरणीय और दृढ़ प्रस्तर, इन्द्र देव के लिए सोमाभिषव का शब्द करें। हे सोम वालों! आप सोम से तृप्त होवें।[ऋग्वेद 10.94.1]
Let the stones make sound while extraction of Somras. We Hosts worship those stones. Hey Ritviz! Recite glorious Strotr. Let worshipable and strong stones extract Somras for Indr Dev. Hey possessors of Somras! You should be satisfied with Som.
एते वदन्ति शतवत्सहस्रवदभि क्रदन्ति हरितेभिरासभिः।
विष्टी ग्रावाणः सुकृतः सुकृत्यया होतुश्चित्पूर्वे हविरद्यमाशत
ये पत्थर सौ या हजारों व्यक्तियों के समान शब्द करते हैं। ये सोम संसर्ग से हरित वर्ण मुखों से देवों को बुलाते हैं। शोभनकर्मा ये पत्थर यज्ञ को पाकर देवाह्वान करने वाले अग्नि देव के पूर्व ही भक्षणीय हवि को प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 10.94.2]
These pebbles make sound like hundreds or thousands of people. They call the demigods-deities with greenish mouths. These glorious pebbles-stones having been present in the Yagy, get eatable offerings prior to Agni Dev. 
एते वदन्त्यविदन्नना मधु न्यूङ्खयन्ते अधि पक आमिषि।
वृक्षस्य शाखामरुणस्य बप्सतस्ते सुभर्वा वृषभाः प्रेमराविषः
नये या लाल रंग की शाखा को खाते हुए शोभन भोजन वाले वृषभों के समान ये प्रस्तर शब्द करते हैं। जिस प्रकार मांस भक्षण करने वाले मांस के पकने पर आनन्द-ध्वनि करते हैं, उसी प्रकार ये भी शब्द करते हैं।[ऋग्वेद 10.94.3]
These stones make sound like the bulls who eat new or reddish twigs. The way meat eaters make pleasurous sound when the meat is cooked, similarly they make sound. 
बृहद्वदन्ति मदिरेण मन्दिनेन्द्रं क्रोशन्तोऽविदन्नना मधु।
संरभ्या धीरा स्वभिरनर्तिषुराघोषयन्तः पृथिवीमुपब्दिभिः
मदकर और निचोड़े जाते हुए सोम से ये प्रस्तर इन्द्र देव को बुलाते हुए विशाल शब्द करते है। इन्होंने मुख से मदकर सोम को प्राप्त किया। ये अभिषव कार्य में लगकर और धीर होकर अपने शब्दों से पृथ्वी को भरते हुए भगिनी-स्वरूप अँगुलियों के साथ हर्षित होकर नाचते हैं।[ऋग्वेद 10.94.4]
These stones make loud sound while extracting intoxicating Somras inviting Indr Dev. He consumed the intoxicating Somras with his mouth. These stones busy in extraction dance with happiness covering the earth with their sound.
सुपर्णा वाचमक्रतोप द्यव्याखरे कृष्णा इषिरा अनर्तिषुः।
न्य १  ङ्नियन्त्युपरस्य निष्कृतं पुरू रेतो दधिरे सूर्यश्वितः
प्रस्तरों का शब्द सुनकर विदित होता है कि आकाश में पक्षी शब्द करते हैं। ये मृगों के स्थान में गमनशील कृष्ण-सार मृगों के समान गति-शील होकर नाच रहे हैं। निष्पीड़ित सोमरस को ये प्रस्तर नीचे गिराते हैं, मानो सूर्य के समान श्वेत वर्ण जल धारण करते हैं।[ऋग्वेद 10.94.5]
The sound generated by the sound is like the sound made by birds in the sky. They dance like the running black buck. Extracted Somras fall over the ground like acquiring white coloured water like the Sun.
उग्राइव प्रवहन्तः समायमुः साकं युक्ता वृषणो बिभ्रतो धुरः।
यच्छसन्तो जग्रसाना अराविषुः शृण्व एषां प्रोथथो अर्वतामिव
जिस प्रकार बली अश्व परस्पर मिलकर और रथ की धुरी को धारण करके रथ ले जाते और शरीर को बढ़ाते हैं, उसी प्रकार ही ये प्रस्तर भी आयत होकर सोमरस को बरसाते हैं। ये  सोम का ग्रास करते-करते श्वास के साथ शब्द करते हैं। अश्वों के समान इनके मुख से निकले शब्द को मैं सुनता हूँ।[ऋग्वेद 10.94.6]
They way strong horses together support the axel of the charoite and move ahead, similarly these stones shower Somras in unison. The make sound like breathing, while consuming Som. I hear the sound created by them, like the horses.
दशावनिभ्यो दशकक्ष्येभ्यो दशयोक्त्रेभ्यो दशयोजनेभ्यः।
दशाभीशुभ्यो अर्चताजरेभ्यो दश धुरो दश युक्ता वहद्भयः
दस अंगुलियों से आबद्ध, दस प्रकार के कर्मों के प्रकाशक, दस अश्वों के तुल्य, सोम के साथ संयोजित, दस प्रकार के कर्मों के निर्वाहक, संचालन कर्ता, दस प्रकार की शक्तियों से युक्त होकर अभिषवण कार्य को वहन करने वाले पाषाणों की महिमा का गुणगान करें।[ऋग्वेद 10.94.7]
Praise the glory of the stones like the ten fingers, ten endeavours-efforts, ten horses, connected with Som, performing ten jobs, controlling, having ten powers while extracting Somras.
ते अद्रयो दशयन्त्रास आशवस्तेषामाधानं पर्येति हर्यतम्।
त ऊ सुतस्य सोम्यस्यान्धसोंऽशोः पीयूषं प्रथमस्य भेजिरे
ये प्रस्तर दस अँगुलियों को बन्धन की रस्सी के समान पाकर शीघ्र-शीघ्र कार्य करते है। इनके द्वारा उत्पादित सोमरस हरितवर्ण होकर आ रहा है। सोम के टुकड़े कूटे जाकर और स्वरूप धारण करके अमृतरस निकालते हैं। सोम का प्रथम खण्ड ये ही पाते हैं।[ऋग्वेद 10.94.8]
These stones function like the ten fingers tied with the cord quickly. Somras produced by them is greenish in colour. Som on being crushed become like nectar-elixir. They get just the first segment of Som.(28.12.2024)
ते सोमादो हरी इन्द्रस्य निंसतें ऽ शुं दुहन्तो अध्यासते गवि।
तेभिर्दुग्धं पपिवान्त्सोम्यं मध्विन्द्रो वर्धते प्रथते वृषायते॥
वे पत्थर सोम का भक्षण करके इन्द्र देव के दो अश्वों को चूमते हैं अर्थात् इन्द्र देव रथ के पास जाते हैं। डाँठ अंशु से रस निकलकर गौ चर्म के ऊपर जाता है। ये पत्थर सोम से जो मधुर रस निकालते हैं, उसका पान करके इन्द्र देव वृद्धि को प्राप्त होते हैं अर्थात् बैल के समान बल प्रकट करते हैं।[ऋग्वेद 10.94.9]
These stones consume-eat Som and move closer to the wheels of Indr Dev's charoite. Sirup is extracted out of the stalk and move over cow's skin. Somras thus extracted with stones is consumed by Indr Dev granting him strength.
वृषा वो अंशुर्न किला रिषाथनेळावन्तः सदमित्स्थनाशिताः।
रैवत्येव महसा चारवः स्थन यस्य ग्रावाणो अजुषध्वमध्वरम्
हे प्रस्तरों! सोम का अंशु, खण्ड या डाँठ आपको रस प्रदान करेगा; आप निराश न हों। आप जिनके यज्ञ में रहते हैं, वे सदैव अन्न और भोजन वाले होते हैं और सदैव धनी सोन के समान उज्ज्वल तेज से युक्त होते हैं।[ऋग्वेद 10.94.10]
Hey stones! Do not be disappointed-disheartened, Som stalk will yield juice-sap. Your presence in the Yagy ensure food grains and food for the Yagy organisers. You always possess aura-shine like the wealthy people.
तृदिला अतृदिलासो अद्र्योऽश्रमणा अशृथिता अमृत्यवः।
अनातुरा अजराः स्थामविष्णवः सुपीवसो अतृषिता अतृष्णजः
आप स्वयं निराश न होकर दूसरे को निराश करने वाले है। आपको परिश्रम, शिथिलता, मृत्यु, जरा, रोग, तृष्णा और स्पृहा नहीं हैं। आप मोटे हैं। आप लोग फेंकने और बटोरने में बहुत निपुण हैं।[ऋग्वेद 10.94.11]
तृष्णा :: प्यास, निर्जन, निर्जन स्थान, लालसा, तड़प, उत्कंठा, तमन्ना, तीव्र इच्छा; craving, thirst, extreme-acute desire, longing. 
स्पृहा :: किसी अच्छे काम, चीज या बात की प्राप्ति अथवा सिद्धि के लिए मन में होने वाली अभिलाषा, इच्छा या कामना, उच्चाकांक्षा, उत्कंठा, कामना, लोलुपता; appetency, aspiration, covetousness, too high ambition, craving, eagerness, desire, covetousness.
शिथिलता :: ढीलापन, sag, laxity.
Instead of being disappointed you dishearten others. You are free from labour, laxity, death, disease, old age, longing & covetousness. You are fat-thick. You are experts in launching and collection.
ध्रुवा एव वः पितरो युगेयुगे क्षेमकामासः सदसो न युञ्जते।
अजुर्यासो हरिषाचो हरिद्रव आ द्यां रवेण पृथिवीमशुश्रवुः
आपके पूर्वज युग-युगान्तरों से स्थिर हैं, पूर्णाभिलाष हैं और किसी भी कारण से अपना स्थान नहीं छोड़ते। वे अजर और हरे वृक्ष से युक्त हैं। हरे वर्ण के होकर पक्षियों के कलरव के द्वारा द्यावा-पृथ्वी को पूर्ण करते हैं।[ऋग्वेद 10.94.12]
Your ancestors are rigid-fixed for Yug & Yugantars, have accomplished their desires and never leave their place-position. They never become old and have green trees. They turn greenish and supplement the heavens & earth.
तदिद्वदन्त्यद्रयो विमोचने यामन्नञ्जस्पाइव घेदुपब्दिभिः।
वपन्तो बीजमिव धान्याकृतः पृञ्चन्ति सोमं न मिनन्ति बप्सतः
जिस प्रकार रथारोही लोग रथ चलाने के साथ पर रथ चलाकर ध्वनि प्रकट करते हैं, उसी प्रकार ही ये पत्थर सोमरस को उत्पन्न करने के समय शब्द करते हैं। जिस प्रकार धान्य बोने वाले धान्य बोते हैं, उसी प्रकार ही ये सोमरस फैलाते हैं। ये खाकर उसे नष्ट नहीं करते। [ऋग्वेद 10.94.13]
The way a charoite rider generate sound by driving it, similarly these stones make noise while producing Somras. The way the agriculturists spread rice for sowing, these stones too spread-spill Somras. They do not eat and destroy Som.
सुते अध्वरे अधि वाचमक्रता क्रीळयो न मातरं तुदन्तः।
वि षू मुञ्चा सुधुवुणे मनीषां वि वर्तन्तामद्रयश्चायमानाः
जिस प्रकार क्रीड़ाशील बालक क्रीड़ास्थल पर अपनी माता को ठेलकर किलकारियां मारते हैं। उसी प्रकार सोमाभिषव होने पर पाषाण शब्द करते हैं, इन पाषाणों की स्तुति करें।[ऋग्वेद 10.94.14]
किलकारी :: वह गंभीर और अस्पष्ट स्वर जिसे लोग आनंद के समय मुँह से निकालते हैं, हर्षध्वनि; squeal scream.
The way a child push his mother and squeal, similarly these stones produce sound while extracting Somras. Worship these stones.(30.12.2024)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (95) :: ऋषि :- पुरुरवा ऐल, उर्वशी ऋषिका; देवता :- उर्वशी पुरुरवा; छन्द :- त्रिष्टुप्।
हये जाये मनसा तिष्ठ घोरे वचांसि मिश्रा कृणवावहै नु।
न नौ मन्त्रा अनुदितास एते मयस्करन् परतरे चनाहन्॥
पुरुरवा की उक्ति :- हे निष्ठुर पत्नी! अनुरागी चित्त से ठहरें हम लोग शीघ्र कथनोपकथन करें। इस समय यदि हम दोनों में बातें नहीं हों तो आने वाले दिनों में सुख नहीं होगा।[ऋग्वेद 10.95.1]
निष्ठुर :: कठोर, अनमनीय, अनाराध्य, बेरहम, क्रूर, निर्मम, निर्दय, ruthless, inexorable, pitiless.
अनुरागी :: प्यार, स्नेह, लगाव, भक्ति, जुनून, शाश्वत प्रेम,भक्ति; passionate.
Pururva said-pleaded, Hey ruthless woman-wife! We should talk-discuss over the matter since we have deeply attached innerself. If we do not discuss it now, it will lead to displeasure later.
 किमेता वाचा कृणवा तवाहं प्राक्रमिषमुषसामग्रियेत।
पुरुरवः पुनरस्तं परेहि दरापना वातवाहमस्मि॥
उर्वशी की उक्ति :- केवल बात-चीत से क्या होगा? प्रथम उषा के समान आपके पास से मैं चली आ रही हूँ। हे पुरुरवा! आप अपने घर लौट जायें।  मैं वायु के समान दुष्प्राप्य हूँ।[ऋग्वेद 10.95.2]
Urvashi said :- Mere conversation is not enough. I am coming like first Usha-dawn. Hey Pururva! You return home. I am un available (difficult to control) like air.
इषुर्न श्रिय इषुधेरसना गोषाः शतसा न रंहिः।
अवीरे क्रती वि दविद्युतन्नोरा मायु चितयन्त धुनयः
पुरुरवा का कथन :- आपके विरह के कारण मेरे तुणीर से वाण नहीं निकलता, विजय-श्री नहीं मिलती और युद्ध में जाकर मैं अपरिमित गायों को नहीं ला सकता। राज-कार्य वीर- विहीन हो गया है। इसकी कोई शोभा नहीं है। युद्ध में शत्रुओं को कम्पित करने वाला मैं सिंह गर्जना नहीं कर पाता।[ऋग्वेद 10.95.3]
विरह :: वियोग, जुदाई, अभाव; separation, parting.
Pururva said :- Separation from you obstruct me from shooting arrow, victory eludes me, I fail to bring the uncounted-numerous cows won by me in the war. Governance of the state eludes bravery. It has lost glory-grace. I am unable to roar like a lion, though the enemy used to shiver-tremble due to my fear. 
सा वसु दधती श्वशुराय वय उषो यदि वष्ट्यन्तिगृहात्।
अस्तं ननक्षे यस्मिञ्चाकन्दिवा नक्तं श्नथिता वैतसेन
उर्वशी का कथन :- हे उषा! यदि उर्वशी श्वसुर को भोजन-सामग्री देने की इच्छा करती, तो सन्निहित गृह से पति के शयन-गृह में जाती और दिन-रात स्वामी के पास रमण-सुख भोगती।[ऋग्वेद 10.95.4]
रमण :: रम जाना, लीन होना, तल्लीन होना, तन-मन को आनंदित करने का उपक्रम, क्रीड़ा, विलास, मैथुन, सहवास, संभोग; pleasure, passion, sexual behaviour.
Urvashi said :- Hey Usha! Had Urvashi desired to serve food-eatable to father in law, she would have gone to her husband's bed room and enjoyed throughout the day and night.
त्रिः स्म माह्न: श्नथयो वैतसेनोत स्म मेऽव्यत्यै पृणासि।
पुरूरवोऽनु ते जेतमायं राजा मे वीर तन्व १ स्तदासीः
हे पुरुरवा! आप दिन में मुझे तीन बार पुरुष-दण्ड से ताड़ित करते थे। किसी सपत्नी के साथ मेरी प्रतिद्वन्द्विता नहीं थी। मुझे ही आप नियमित रूप से सन्तुष्ट करते थे। आपके गृह मैं आई। आप मेरे वीर राजा हुए। आप मेरे समस्त सुखों के विधायक हुए।[ऋग्वेद 10.95.5]
Hey Pururva! You used to indulge in sex with me, thrice a day. I had no rival. You satisfied me regularly. I came to your house. You became a victorious king. You provided all sorts of comforts-pleasure to me.
या सुजूर्णिः श्रेणिः सुम्नआपि र्ह्रदेचक्षुर्न ग्रन्थिनी चरण्युः।
ता अञ्जयोऽरूणयो सस्त्रु: श्रिये गावो न धेनवोऽ नवन्त
पुरुरवा की उक्ति :- सुजूर्णि, श्रेणि, सुम्न, आपि, हृदेचक्षु, ग्रन्थिनी, चरण्यू आदि जो महिलायें या अप्सराएं थीं; आपके आने के बाद वे सब मेरे पास वेश-भूषा करके नहीं आती। गृह में जाते समय जिस प्रकार गायें शब्द करती हैं, उसी प्रकार शब्द करके वे सब अब मेरे में नहीं आती।[ऋग्वेद 10.95.6]
Pururva said :- The women & nymphs named Sujurni, Shreni, Sumn, Api, Hradechkshu, Granthini, Charnyu etc. do not come to me in makeup. They do not make sound like the sound made by cows, while entering house. 
समस्मिञ्जायमान आसत ग्ना उतेमवर्धन्नद्य १ः स्वगूर्ताः।
महे यत्त्वा पुरूरवो राणायावर्धयन् दस्युहत्याय देवाः
उर्वशी की उक्ति :- जिस समय पुरुरवा ने जन्म ग्रहण किया, उस समय देव-पत्नियाँ देखने आईं। अपनी शक्ति से बहने वाली नदियों ने भी उनकी संवर्द्धना की। हे पुरुरवा! आपको संग्राम में रिपुओं के वध के लिए देवताओं ने सामर्थ्य शक्ति से सम्पन्न किया।[ऋग्वेद 10.95.7]
Urvashi said :- Hey Pururva! When you took birth wives of demigods-deities came to see you. The rivers flowing due to their own might, too enhanced-boosted you. You were strengthened by the demigods-deities to kill the enemies in the war.
सचा यदासु जहतीष्वत्कममानुषीषु मानुषो निषेवे।
अप स्म मत्तरसन्ती न ज्युस्ता अत्रसत्रथस्पृशो नाश्वाः
पुरुरवा का कथन :- जिस समय मनुष्य होकर पुरुरवा अप्सराओं की ओर अग्रसर हुए, उस समय वे अपना रूप छोड़कर अन्तर्धान हो गईं। जिस प्रकार भय से हरिणी भागती है अथवा जिस प्रकार रथ में नियोजित हुए अश्व भागते हैं, उसी प्रकार ही वे चली गई।[ऋग्वेद 10.95.8]
Pururva said :- When I got attracted towards the nymphs, they disappeared. The way a  she deer runs due to fear or the horses deployed in the charoite run, similarly they ran away.
यदासु मर्ती अमृतासु निस्पृक्सं क्षोणीभिः क्रतुभिर्न पृ॒ङ्क्ते
ता आतयो न तन्वः शुम्भत स्वा अश्वासो न क्रीळयो दन्दशानाः
जिस समय पुरुरवा मनुष्य होकर देवलोक वासिनी अप्सराओं के साथ बातें करने और उनका शरीर छूने को आगे बढ़े, उस समय वे लुप्त हो गई-अपने शरीर को नहीं दिखाया- क्रीड़ाशील अश्वों के समान भाग गई।[ऋग्वेद 10.95.9]
When Pururva, a human being moved to talk or touch the body of nymphs of heavens, they just disappeared like playful horses.(31.12.2024)
विद्युन्न या पतन्ती दविद्योद्भरन्ती मे अप्या काम्यानि।
जनिष्टो अपो नर्वः सुजातः प्रोर्वशी तिरत दीर्घमायुः
जिस उर्वशी ने आकाश से पतनशील विद्युत् के समान शुभ्रता धारण की और मेरे सारे मनोरथों को पूर्ण किया, उसके गर्भ से मनुष्य का औरस सुन्दर पुत्र जन्मा। उर्वशी उसे दीर्घायु प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.95.10]
Urvashi attained brightness like lightening and accomplished-fulfilled all my endeavours and gave birth to my son. Let she grant him long life.
जज्ञिष इत्था गोपीथ्याय हि दधाथ तत्पुरूरवो म ओजः।
अशासं त्वा विदुषी सस्मिन्नहन्न म आशृणोः किमभुग्वदासि
उर्वशी का कथन :- हे पुरुरवा! पृथ्वी की रक्षा के लिए आपने पुत्र को जन्म दिया, मेरे गर्भ में वीर्य-पात किया, मैंने आपसे बारबार कहा है कि क्या होने से मैं आपके पास नहीं रहूँगी; क्योंकि मैं यह बात जानती थी। परन्तु मेरी बात आपने नहीं सुनी। इस समय पृथ्वी पालन-कार्य को छोड़कर क्यों व्यर्थ की बातें करते हो?[ऋग्वेद 10.95.11]
Urvashi said :- Hey Pururva! You produced son for the nourishment-nurture of the earth (living beings). You inseminated me. I repeatedly told you that I will not adhere to you, live with you, since I knew it. You did not listen to me. You are making useless talk in stead of governing-ruling the earth.
कदा सूनुः पितरं जात इच्छाचक्रन्नाश्रु वर्तयद्विजानन्।
को दंपती समनसा वि यूयोदध यदग्निः श्वशुरेषु दीदयत्
पुरुरवा की उक्ति :- कब आपका पुत्र मुझे चाहेगा? यदि वह मेरे पास आवे, तो क्या वह नहीं रोवेगा? आँसू नहीं गिरावेगा? परस्पर प्रेम से सम्पन्न स्त्री-पुरुष में विच्छेदन करने की किसकी इच्छा होगी? आपके जैसा तेजस्वी पुत्र कब आपके श्वसुर के गृह को अलौकिक करेगा? [ऋग्वेद 10.95.12]
Pururva said :- When will your son love me? Will he weep on coming to me? Will he shed tears? Who would like to break the mutual love-bond between husband & wife? When will your majestic-glorious son illuminate-shine your father in laws house?
प्रति ब्रणाणि वर्तयते अश्रु चक्रन्न क्रन्ददाध्ये शिवायै।
प्र तत्ते हिनवा यत्ते अस्मे परेह्यस्तं नहि मूर मापः
उर्वशी का कथन :- मैं आपकी बात का उत्तर देती हूँ। आपके पास पुत्र जाकर अश्रु पात नहीं करेगा। मैं उसके कल्याण की कामना करूँगी। आपके पुत्र को मैं आपके पास भेज दूँगी। मूर्ख अपने घर को लौट जाओ। अब मुझे नहीं प्राप्त कर सकोगे।[ऋग्वेद 10.95.13]
Urvashi said :- I am relying-answering you. Your son will not shed tears on meeting you. I will wish his good luck. I will send your son to you. Idiot! Go to your home. Now, you will not meet me.
सुदेवो अद्य प्रपतेदनावृत्परावतं परमां गन्तवा उ।
अधा शयीत निर्ऋतेरुपस्थे ऽ धैनं वृका रभसासो अद्युः
पुरुरवा की उक्ति :- आपका प्रेमी पति (मैं) आज गिर पड़ा-फिर कभी नहीं उठा। वह बहुत दूर चला गया। वह निर्ऋति (दुर्गति) में मर जाएं। उसे वृक (भेड़िया) आदि खा जाएं।[ऋग्वेद 10.95.14]
Pururva said :- Your lover has fallen down, not to stand up again. He has gone apart-away. He will die due to misfortune. Wolves will eat him.
पुरूरवो मा मृथा मा प्र पप्तो मा त्वा वृकासो अशिवास उ क्षन्।
न वै स्त्रैणानि सख्यानि सन्ति सालावृकाणां हृदयान्येता
उर्वशी की उक्ति :- हे पुरुरवा! आप मृत्यु की कामना न करें। यहाँ न गिरें। आपको वृक आदि न खाएं। स्त्रियों का प्रेम या मैत्री स्थायी नहीं होती। स्त्रियों और वृकों (भेड़ियों) का हृदय एक समान होता है।[ऋग्वेद 10.95.15]
Urvashi said :- Hey Pururva! Do not think of dying. Do not fall here. Wolves should not eat you. Women's love is not permanent. Heart of women and wolves is alike.
यद्विरूपाचरं मत्र्येष्ववसं रात्रीः शरदश्चतस्रः।
घृतस्य स्तोकं सकृदह्न आश्नां तादेवेदं तातृपाणा चरामि
मैं नाना प्रकार के रूपों में मनुष्यों में घूमी हुई हूँ। मैंने मनुष्यों में चार वर्ष रात्रि-वास किया है। दिन में एक बार कुछ घृत पान करके क्षुधा-निवृत्ति करते हुए मैंने भ्रमण किया है।[ऋग्वेद 10.95.16]
I roamed with humans in various forms. I have lived with men for four years during night. I used to drink Ghee once during the day to satisfy hunger and roamed.
अन्तरिक्षप्रां रजसो विमानीमुप शिक्षाम्युर्वशीं वसिष्ठः।
उप त्वा रातिः सुकृतस्य तिष्ठान्नि वर्तस्व हृदयं तप्यते मे
पुरुरवा का कथन :- अन्तरिक्ष को पूर्ण करने वाली और जल को बनाने वाली उर्वशी को वशिष्ठ वश में ले आते हैं। शुभ कर्म दाता पुरुरवा आपके पास रहे। मेरा हृदय बल रहा है, इसलिए हे उर्वशी! लौट आवें।[ऋग्वेद 10.95.17]
Pururva said :- Pervading the space-sky, producer of water Urvashi is controlled by Rishi Vashishth. Allow Pururva granting auspicious results to live with you. My heart is becoming stronger. Hence hey Urvashi! Come back.
इति त्वा देवा इम आहुरैळ यथेमेतद्भवसि मृत्युबन्धुः।
प्रजा ते देवान् हविषा यजाति स्वर्ग उ त्वमपि मादयासे
उर्वशी की उक्ति :- हे इला-पुत्र पुरुरवा! ये समस्त देवता आपसे कह रहे हैं कि, आप मृत्यु पर विजय प्राप्त करेंगे, हवि से देवों की पूजा करेंगे और स्वर्ग में जाकर आमोद-आह्लाद करेंगे।[ऋग्वेद 10.95.18]
Urvashi said :- Hey Pururva, son of Ila! All these demigods-deities are saying that you will win death, worship them with offerings and enjoy in heavens.
Urvashi is a nymph. Nar Rishi produced her from his left thigh, when Devraj Indr tried to disturb his Tapasya-ascetics. She was a bitch in her earlier birth and was liberated by the queen on her request by awarding the rewards of her austerities. Prior to this birth she was the characterless daughter of a Brahman.
इला को अपने लिंग परिवर्तन के लिए जाना जाता है। पुरुष रूप में इन्हें इला या सुद्युम्न के नाम से जाना जाता है, जबकि महिला रूप में इन्हें इला कहा जाता है। इला को चंद्रवंशी वंश की प्रमुख जननी माना जाता है।
King Sudhyumn entered the prohibited forest of Mata Parwati having the boon that a male who entered it will become woman. There she produce Pururva son of Buddh-Mercury.(01.01.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (96) :: ऋषि :- वरु, आंगिरस या सर्वहरि ऐन्द्र; देवता :- हरी; छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
प्र ते महे विदथे शंसिषं हरी प्र ते वन्वे वनुषो हर्यतं मदम्।
घृतं न यो हरिभिश्चारु सेचत आ त्वा विशन्तु हरिवर्पसं गिरः
हे इन्द्र देव! इस महायज्ञ में आपके दोनों अश्वों की मैंने स्तुति की। आप शत्रु-हिंसक है। आप भली-भाँति मत्त (मस्त) होवें, मैं यही प्रार्थना करता हूँ। हरित-वर्ण अश्व आकर घृत के समान सुन्दर जल गिरावें। आप शुभ्र है। आपके पास मेरे स्तोत्र जावें।[ऋग्वेद 10.96.1]
Hey Indr Dev! I have worshiped your horses (named Hari) in this great Yagy. You are slayer-destroyer of the enemy. You should be thoroughly giddy, this is what I pray. Let green (Hari) coloured horses come and drop water equivalent to Ghee. You are fair. Let my Strotrs reach you.
हरिं हि योनिमभि ये समस्वरन् हिन्वन्तो हरी दिव्यं यथा सदः।
आ यं पृणन्ति हरिभिर्न धेनव इन्द्राय शूषं हरिवन्तमर्चत
हे स्तोताओं! आप लोगों ने इन्द्र देव को यज्ञ में बुलाया है और यज्ञ-गृह की ओर इन्द्र देव के दोनों अश्वों को लाये है। अश्वों के साथ इन्द्र देव के बल-वीर्य की स्तुति करें। देखें, जिस प्रकार गायें दूध देती है, उसी प्रकार ही इन्द्र को हरिताभ सोमरस के द्वारा तृप्त करें।[ऋग्वेद 10.96.2]
Hey Stotas! You have invited Indr Dev in the Yagy and he has brought his horse duo to the Yagy Grah. Pray to Indr Dev's might along with the horses. Satisfy Indr Dev with greenish Somras like the milch cows.
सो अस्य वज्रो हरितो य आयसो हरिर्निकामो हरिरा गभस्त्योः।
द्युम्नी सुशिप्रो हरिमन्युसायक इन्द्रे नि रूपा हरिता मिमिक्षिरे
इन्द्र देव का लोहे का वज्र है, वह हरित-वर्ण और सुन्दर है। वह शत्रु-नाशक है और दोनों हाथों में धारण किया जाता है। इन्द्र देव धनी हैं, सुगठित जबड़ों वाले हैं और वाण के द्वारा क्रोध के साथ शत्रुओं का संहार करते हैं। हरिताभ सोमरस के द्वारा इन्द्र देव को अभिषिक्त किया जा रहा है।[ऋग्वेद 10.96.3]
Greenish, beautiful Vajr of Indr Dev is made of Iron. Its destroyer of the enemy and wielded-held in both hands. Indr Dev is wealthy-rich, has well built jaws and he kills the enemies with his arrows furiously. Indr Dev is crowned-anointed with Greenish Somras.
दिवि न केतुरधि धायि हर्यतो विव्यचद्वज्रो हरितो न रंह्या।
तुददहिं हरिशिप्रो य आयसः सहस्रशोका अभवद्धरिंभरः
आकाश में सूर्य देव के समान उज्ज्वल वज्र घृत हुआ मानों उसने अपने वेग से सारी दिशाओं को व्याप्त कर दिया। सुगठित जबड़ों से युक्त और सोमरस पीने वाले इन्द्र देव ने लौहमय वज्र के द्वारा वृत्रासुर को मारने के समय असीम दीप्ति प्राप्त की।[ऋग्वेद 10.96.4]
Shinning Vajr got activated in the sky like the Sun and pervaded all directions. Indr Dev with well built jaws, drinking Somras, got unlimited aura-energy to kill Vratr Sur with Vajr. 
त्वंत्वमहर्यथा उपस्तुतः पूर्वेभिरिन्द्र हरिकेश यजभिः।
त्वं हर्यसि तव विश्वमुक्थ्य १ मसामि राधो हरिजात हर्यतम्
हे हरित केशों वाले इन्द्र देव! पूर्वकालीन यजमान आपकी स्तुति करते थे और आप यज्ञ में आते थे। आप हरित होवे। हे इन्द्र देव! आपका सब प्रकार का अन्न प्रशंसा के योग्य है, (आप) निरूपम और उज्ज्वल है।[ऋग्वेद 10.96.5]
निरुपम :: अतुलनीय, बेजोड़; unique, unparallel, with match-competitor.
Hey Indr Dev having greenish hair! Earlier the hosts worshiped you and you joined the Yagy. Hey Indr Dev! All sorts of your food grains deserve appreciation. You are fair and unique.
ता वज्रिणं मन्दिनं स्तोभ्यं मद इन्द्रं रथे वहतो हर्यता हरी।
पुरुण्यस्मै सवनानि हर्यत इन्द्राय सोमा हरयो दधन्विरे
स्तुत्य और वज्रधर इन्द्र देव जिस समय सोमरस के पान के आमोद में प्रवृत्त होते हैं, उस समय दो कमनीय अश्व रथ में जोते जाकर उन्हें वहन करते हैं। कान्त इन्द्र देव के लिए अनेक बार सोमरस अभिषुत किया जाता है।[ऋग्वेद 10.96.6]
When worshipable, Vajr wielding Indr Dev drink Somras for amusement, two attractive horses are deployed in the charoite to carry him. Somras is extracted for tired Indr Dev.
अरं कामाय हरयो दधन्विरे स्थिराय हिन्वन् हरयो हरी तुरा।
अर्वाद्धिर्यो हरिभिर्जोषमीयते सो अस्य कामं हरिवन्तमानशे
अविचल इन्द्र देव के लिए यथेष्ट सोमरस रखा गया है। वही सोमरस इन्द्र देव के अश्वों को यज्ञ की ओर वेग से लाता है। हरित-वर्ण अश्व जिस रथ को युद्ध में ले जाते हैं, वही रथ इस रमणीय सोमयज्ञ में आकर अधिष्ठित हुआ है।[ऋग्वेद 10.96.7]
Sufficient Somras was kept for unmoved Indr Dev. This Somras brings Indr Dev by the horses to the Yagy with speed. The charoite pulled-driven to the war, by the Green coloured horses is established in this Som Yagy.
हरिश्मशारुर्हरिकेश आयसस्तुरस्पेये यो हरिपा अवर्धत।
अर्वद्धिर्यो हरिभिर्वाजिनीवसुरति विश्वा दुरिता पारिषद्धरी
इन्द्र देव का दाढ़ी-मूँछ हरित या उज्ज्वल है। वे लोहे के समान दृढ़काय हैं। वे सोमरस पीते हैं। शीघ्र-शीघ्र सोमपान करके अपने शरीर को विकसित करते हैं। उनकी सम्पत्ति यज्ञ है। हरितवर्ण के अश्व उन्हें यज्ञ में ले जाते हैं। वे दो अश्वों पर आरुढ़ होकर समस्त विपदाओं को हर लेते हैं।[ऋग्वेद 10.96.8]
Indr Dev's beard and moustaches are green and bright-shinning. He is strong like Iron. He frequently drink Somras and grow his body. Yagy is his property. Greenish horses take him to the Yagy. He removes all troubles after riding the two horses.
 स्त्रुवेव यस्य हरिणी विपेततुः शिप्रे वाजाय हरिणी दविध्वतः।
प्र यत्कृते चमसे मर्मृजद्धरी पीत्वा मदस्य हर्यतस्यान्धसः
इन्द्र देव के दो हरित या उज्ज्वल नेत्र स्रुवा नामक यज्ञ-प्रात्र के समान यज्ञ में लगे। वे अन्न-भक्षण करने के लिए अपने दोनों हरित या उज्ज्वल जबड़े कँपाते हैं। परिष्कृत चमस के बीच जो कमनीय सोमरस था, उसे पीकर वे अपने दो अश्वों के शरीर को परिष्कृत करते हैं।[ऋग्वेद 10.96.9]
Indr Dev's green bright eyes are devoted to the Yagy like the Yagy vessel. He moves his green jaws for eating food grains. The bodies of the horses are refined by drinking the refined, desirable Somras kept in the refined spoon.(04.01.2025)
उत स्म सद्म हर्यतस्य पस्त्यो३रत्यो न वाजं हरिवाँ अचिक्रदत्।
मही चिद्धि धिषणाहर्यदोजसा बृहद्वयो दधिषे हर्यतश्चिदा
हरित या कमनीय इन्द्र देव का आवास-स्थान द्यावा-पृथ्वी पर ही है। वे रथ पर आरूढ़ हैं। हे उज्ज्वल इन्द्र देव! आप अपनी शक्ति से प्रचुर अन्न प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 10.96.10]
Residence-abode of greenish or attractive Indr Dev is over the heavens-earth. He ride the charoite. Hey radiant-aurous Indr Dev! You grant sufficient food grains with your power.
आ रोदसी हर्यमाणो महित्वा नव्यंनव्यं हर्यसि मन्म नु प्रियम्।
प्र पस्त्ययसुर हर्यतं गोराविष्कृधि हरये सूर्याय
हे इन्द्र देव! आप अपनी महिमा के द्वारा द्यावा-पृथ्वी को व्याप्त करें। नित्य नये और प्रिय स्तोत्र प्राप्त करें। हे असुर (बली) इन्द्र देव! गायों के उत्कृष्ट स्थान को जल हरण कर्ता सूर्य देव के पास प्रकट करें।[ऋग्वेद 10.96.11]
Hey Indr Dev! Pervade the heavens-earth with your majesty. Attain new and dear Strotr everyday. Hey mighty Indr Dev! Reveal excellent cow shed to water evaporating Sury Dev.
आ त्वा हर्यन्तं प्रयुजो जनानां रथे वहन्तु हरिशिप्रमिन्द्र।
पिबा यथा प्रति भृतस्य मध्वो हर्यन्यज्ञं सधमादे दशोणिम्
हे हरित वर्ण के जबड़ों वाले इन्द्र देव! आपके अश्व रथ में जोते जाकर आपको मनुष्य  के यज्ञ में ले आवें। आपके लिए जो मधुर सोमरस प्रस्तुत हुआ है उसका पान करें। जो सोम दस अँगुलियों से प्रस्तुत होकर यज्ञ का उपकरण-स्वरूप हुआ, युद्ध के समय आप उसे पीने की इच्छा करें।[ऋग्वेद 10.96.12] 
Hey Indr Dev, having greenish jaws! Let your horses be deployed to take you to the Yagy performed by humans. Sweet Somras reserved for you should be sipped by you. You should be desirous of drinking Somras presented with ten fingers to be used as a tool for the war.
अपाः पूर्वेषां हरिवः सुतानामथो इदं सवनं केवलं ते।
ममद्धि सोमं मधुमन्तमिन्द्र सत्रा वृषञ्जठर आ वृषस्व
हे अश्व वाले इन्द्र देव! पहले (प्रातः सवन में) जो सोम प्रस्तुत हुआ, उसका आपने पान किया। इस समय (माध्यन्दिन सवन में) जो प्रस्तुत हुआ है, वह केवल आपके लिए। हे इन्द्र देव! इस मधुर सोमरस का आस्वादन करें। हे प्रचुर वृष्टि-कर्ता इन्द्र देव! आप अपने उदर को सोमरस से परिपूर्ण करें।[ऋग्वेद 10.96.13]
Hey master of horses, Indr Dev! You drunk Somras presented in the morning. Somras for the mid day is meant for you. Hey Indr Dev! Taste-enjoy the sweet Somras. Hey Indr Dev, producing sufficient rains! Fill your stomach with Somras.(05.01.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (97) :: ऋषि :- आथर्वगण, भिषग; देवता :- ओषधय; छन्द :- अनुष्टुप्।
या ओषधीः पूर्वा जाता देवेभ्यस्त्रियुगं पुरा। मनै नु बभ्रूणामहं शतं धामानि सप्त च
पूर्व समय में, तीन युगों (सत्ययुग, त्रेतायुग और द्वापरयुग या वसन्त, वर्षा और शरद्) में, जो औषधियाँ प्राचीन देवों ने बनाई, वे सब पिङ्गल-वर्ण औषधियाँ एक सौ सात स्थानों में विद्यमान है, मैं ऐसा जानता हूँ।[ऋग्वेद 10.97.1]
The yellow coloured medicines-herbs grown by the demigods-deities during ancient times in the three Yug (Saty, Treta, Dwapar) or spring, rainy, winter seasons; are still present in one hundred seven places, this is what I know.
शतं वो अम्ब धामानि सहस्त्रमुत वो रुहः। अधा शतक्रत्वो यूयमिमं मे अगदं कृत
हे मातृ-रूप औषधियों! आपका जन्म असीम है और आपका प्ररोहण अपरिमित हैं। आप सौ कर्मोंवाली है। आप मुझे आरोग्यता प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.97.2]
ओषधीः प्रति मोदध्वं पुष्पवतीः प्रसूवरीः। अश्वाइव सजित्वरीर्वीरुधः पारयिष्ण्वः
हे मातृ रूप औषधियो! आप फूल और फल वाली हों। आप रोगी के प्रति सन्तुष्ट होवें। आप अश्वों के समान रोगों के लिए जयशील हो और पुरुषों को रोग से मुक्त करने वाली हों।[ऋग्वेद 10.97.3]
Hey motherly medicines (herbs)! You should bear flowers & fruits and cure the patient. You should win over the ailments like the horses and cure the humans from diseases.
ओषधीरिति मातरस्तद्बो देवीरुप ब्रुवे। सनेयमश्वं गां वास आत्मानं तव पूरुष॥
हे दीप्तिशाली औषधियों! आप मातृ-रूप हैं। आपके सामने मैं स्वीकार करता हूँ। हे पुरुष चिकित्सक! गौ, अश्व, वस्त्र और अपने को मैं आपके निमित्त अर्पित करता हूँ।[ऋग्वेद 10.97.4]
Hey lustrous herbs-medicines! You are like mother. I  accept this before you. Hey male physician! I offer cows, horses, cloths and myself to you.
अश्वत्थे वो निषदनं पर्णे वो वसतिष्कृता। गोभाज इत्किलासथ यत्सनवथ पूरुषम्॥
हे औषधियों! आपका अश्वत्थ वृक्ष और पलाश वृक्ष पर निवास स्थान है। जिस समय आप लोग रोगी के ऊपर अनुग्रह करती हैं, उस समय आपको गायें देना उचित है, आप विशिष्ट कृतज्ञता की पात्र हैं।[ऋग्वेद 10.97.5]
Hey medicinal herbs! You reside over the Peeple-fig and butea tree. When you oblige the patent, granting cows to you is justified and you deserve special thanks.
यत्रौषधीः समग्मत राजानः समिताविव। विप्रः स उच्यते भिषग्रक्षोहामीवचातनः
जिस प्रकार राजागण युद्ध में एकत्रित हो जाते हैं, उसी प्रकार जिसके पास औषधियाँ हैं या जो उन्हें जानता है, उसी बुद्धिमान् भिषक् को चिकित्सक कहा जाता है। वह रोगों का विनाशकर्ता है।[ऋग्वेद 10.97.6]
The way the kings assemble in the war, similarly I know the people who own medicines. Such intelligent person is knows as Bhishak (Vaidya-doctor). He cures the ailments-diseases.
अश्वावतीं सोमावतीमूर्जयन्तीमुदोजसम्। आवित्सि सर्वा ओषधीरस्मा अरिष्टतातये
इसे निरोग करने के लिए मैं अश्ववती, सोमवती, ऊर्जयन्ती, उदोजस आदि औषधियों को जानता हूँ।[ऋग्वेद 10.97.7]
I am aware the herbs like Ashwvati, Somwati, Urjyanti, Udojas etc. which cures living beings. 
उच्छुष्मा ओषधीनां गावो गोष्ठादिवेरते। धनं सनिष्यन्तीनामात्मानं तव पूरुष
हे रोगी! जिस प्रकार गोष्ठ से गायें बाहर होती हैं, उसी प्रकार ही औषधियों से उनका गुण बाहर होता है। ये औषधियाँ आपको स्वास्थ्य-धन देंगी।[ऋग्वेद 10.97.8]
Hey patient! The way cows come out of the shed, similarly the qualities-extract of the medicines is released. These herbal medicines will cure you granting good health.
इष्कृतिर्नाम वो माताथो यूयं स्थ निष्कृतीः। सीराः पतत्रिणीः स्थन यदामयति निष्कृथ
हे औषधियों! आपकी माता का नाम इष्कृति (नीरोग करने वाली) है। आप लोग भी रोगों को दूर करेनवाली है। जो कुछ शरीर को पीड़ा देता है, उसे आप लोग वेग से बाहर निकाल दें। आप रोगी को नीरोगी बनाती हैं।[ऋग्वेद 10.97.9]
Hey medicines! Your mother's name is Ishkrati (granting good health). You too remove ailments. You quickly remove the aches-pains from the body. You make a person free from diseases i.e., healthy.
अति विश्वाः परिष्ठाः स्तेनइव व्रजमक्रमुः। ओषधीः प्राचुच्यवुर्यत्किं च तन्वो ३ रपः
जिस प्रकार कोई चोर गोष्ठ को लांघकर जाता है, उसी प्रकार ही विश्व व्यापी और सर्वज्ञ औषधियाँ रोगों को लंघन करती हैं। शरीर में जो पीड़ा होती है, उसे औषधियाँ दूर करती हैं।[ऋग्वेद 10.97.10]
The way a thief crosses the boundary, herbs pervading the universe and all knowing; remove the ailment from the body.
यदिमा वाजयन्नहमोषधीर्हस्त आदधे। आत्मा यक्ष्मस्य नश्यति पुरा जीवगृभो यथा
जब भी मैं इन सब औषधियों को हाथ में ग्रहण करता हूँ और रोगी की दुर्बलता दूर करता हूँ, तभी रोग की आत्मा वैसे ही मर जाती है, जैसे मृत्यु से जीव मर जाता है।[ऋग्वेद 10.97.11]
Whenever I hold the medicine in hand, I remove the weakness killing the disease at once, like a living being-organism dies.
यस्यौषधीः प्रसर्पथाङ्गमङ्गं परुष्परुः। ततो यक्ष्मं वि बाधध्व उग्रो मध्यमशीरिव
हे औषधियों! जिस प्रकार बली और मध्यस्थ व्यक्ति सबको अधीन करते है, उसी प्रकार ही, हे औषधियों! आप लोग जिसके अङ्ग-प्रत्यङ्ग और ग्रन्थि-ग्रन्थि उसके शारीरिक रोगों को समूल विनष्ट कर देती हैं।[ऋग्वेद 10.97.12]
Hey medicines! The way a mediator and mighty person control everyone, you destroy the ailments from all segments of the body.(05.01.2025)
साकं यक्ष्म प्र पत चाषेण किकिदीविना। साकं वातस्य ध्राज्या साकं नश्य निहाकया
नील कण्ठ और किकिदीवि (श्येन) पक्षी जैसे द्रुत वेग से उड़ जाते है अथवा जैसे वायु वेग से बहता है या जैसे गोधा (गोह) दौड़ती है, वैसे ही हे रोग! आप भी शीघ्र दूर होंगे।[ऋग्वेद 10.97.13]
Hey disease-ailment!  You should run away either like the Neel Kanth (bird) and falcon or the air, Monitor lizard.
अन्या वो अन्यामवत्वन्यान्यस्या उपावत। ताः सर्वाः संविदाना इदं में प्रावता वचः
हे औषधियों! आप लोगों में एक औषधि दूसरी के पास जाए और दूसरी तीसरी के पास जाए। इस प्रकार संसार की सारी औषधियाँ एकमत होकर मेरी प्रार्थना की रक्षा करें।[ऋग्वेद 10.97.14]
Hey herbal medicines! Let the medicines pass from one to another. In this manner all medicines should collectively protect me.
याः फलिनीर्या अफला अपुष्पा याश्च पुष्पिणीः। बृहस्पतिप्रसूतास्ता नो मुञ्चन्वंहसः
फलवती और फलशून्या तथा पुष्पवती और पुष्पशून्यां औषधियाँ, बृहस्पति के द्वारा उत्पादित होकर, हमें पाप से बचावें।[ऋग्वेद 10.97.15]
Whether with flowers, fruits or without them should be produced by Brahaspati and protect us from diseases (outcome of sins).
मुञ्चन्तु मा शपथ्या ३ दथो वरुण्यादुत। अथो यमस्य पड्वीशात् सर्वस्माद्देवकिल्बिषात्
शपथ से उत्पन्न पाप से मुझे औषधियाँ बचावें। वरुण के पाश और यम की बेड़ी से भी बचावें। देवगणों के पाश से भी बचावें।[ऋग्वेद 10.97.16]
Let the medicines protect me from the outcome-sins of oath, Varun Dev's noose or Varun Dev's snare and Yam Raj's shackles.
अवपतन्तीरवदन् दिव ओषधस्यपरि। यं जीमश्नवामहै न स रिष्याति पूरुषः
स्वर्ग से नीचे आते समय औषधियों ने कहा था कि हम जिस प्राणी पर अनुग्रह करती हैं, उसका कोई अनिष्ट नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 10.97.17]
While descending from the heavens Herbal medicines said that the one-living being obliged by us, can not be troubled by any one.
या ओषधीः सोमराज्ञीर्बह्वीः शतविचक्षणाः। तासां त्वमस्युत्तमारं कामाय शं हृदे
जिन औषधियों का राजा सोम है और जो औषधियाँ असीम उपकार करती हैं, हे औषधि! उनमें आप श्रेष्ठ हैं, आप वासना को पूर्ण करके हृदय को सुखी करने में समर्थ है।[ऋग्वेद 10.97.18]
The medicines who's lord is Som, which grant unlimited beneficence, are the best. They are capable of satisfying sexual desires, granting pleasure.
या ओषधीः सोमराज्ञीर्विष्ठिताः पृथिवीमनु। बृहस्पतिप्रसूता अस्यै सं दत्त वीर्यम्
जिन औषधियों का राजा सोम है और जो पृथ्वी के नाना स्थानों में अधिष्ठित हैं, वे ही बृहस्पति के द्वारा उत्पादित औषधियाँ इस रोगी को बल दें अथवा इस उपस्थित ओषधि को वीर्यवती करें।[ऋग्वेद 10.97.19]
Potential medicines present at various locations over the earth, headed by Som, produced by Brahaspati should grant strength to the patient.
मा वो रिषत्खनिता यस्मै चाहं खनामि वः। द्विपचतुष्पदस्माकं सर्वमस्त्वनातुरम्॥
हे औषधियों! मैं आपको खोदकर निकालने वाला हूँ। मुझे नष्ट न करें। जिसके लिए खोदता हूँ, वह भी नष्ट न हो। हमारी जो द्विपद और चतुष्पद आदि सम्पत्तियाँ हैं, वे (सदैव) नीरोग रहें।[ऋग्वेद 10.97.20]
Hey medicines I am going to dig you. Do not destroy me. One for whom I am going to dig should also be protected. Our two and four legged living beings should also remain free from ailments-diseases.
याश्चेदमुपशृण्वन्ति याश्च दूरं परागताः। सर्वाः संगत्य वीरुधोऽस्यै सं दत्त वीर्यम्
जो औषधियाँ मेरा यह स्तोत्र सुनती हैं और जो अत्यन्त दूरी पर हैं (इसीलिए स्तोत्र नहीं सुना है), वे सब इकट्ठी होकर इस औषधि को वीर्यवती करें।[ऋग्वेद 10.97.21]
The medicines which listen my Strotr or the ones which are distant should together make this medicine potential.
ओषधयः सं वदन्ते सोमेन सह राज्ञा। यस्मै कृणोति ब्राह्मणस्तं राजन् पारयामसि
औषधियाँ सोम राजा के साथ यह कथोप-कथन करती हैं। हे राजन्! जिसकी चिकित्सा स्तोता करते हैं, उसे ही हम बचाते हैं।[ऋग्वेद 10.97.22]
Herbal medicines enter into dialogue with Lord Som. Hey Lord! We are able to save one is treated by the Stota.
त्वमुत्तमास्योषधे तव वृक्षा उपस्तयः।
उपस्तिरस्तु सो ३ ऽ स्माकं यो अस्माँ अभिदासति
हे औषधि, आप श्रेष्ठ हैं। जितने वृक्ष हैं, सब आपसे हीन है। जो हमारा अनिष्ट-चिन्तन करता है, वह भी हमारे वशीभूत रहें।[ऋग्वेद 10.97.23]
Hey medicine, you are the best. The trees do not possess you. One who has ill will grudge against us should remain under our control.(06.01.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (98) :: ऋषि :- देवापि, राष्टिषेण; देवता :- देवगण; छन्द :- त्रिष्टुप्।
बृहस्पते प्रति मे देवतामिहि मित्रो वा यद्वरुणो वासि पूषा।
आदित्यैर्वा यद्वसुभिर्मरुत्वान्त्स पर्जन्यं शंतनवे वृषाय
हे बृहस्पति देव! आप मेरे लिए प्रत्येक देवता के पास जावें। आप मित्र, वरुण, पूषा, वसुगणों और मरुद्गणों के साथ आप शान्ति के विस्तार के लिए जल की वर्षा करें।[ऋग्वेद 10.98.1]
Hey Brahaspati Dev! You should visit every demigod-deity for me. You should negotiate for peace and rains with Mitr, Varun, Pusha, Vasu Gan, Marud Gan.
आ देवो दूतो अजिरश्चिकित्वान् त्वद्देवापे अभि मामगच्छत्।
प्रतीचीनः प्रति मामा ववृत्स्व दधामि ते द्युमतीं वाचमासन्
हे देवापि! कोई एक ज्ञानी और शीघ्रगामी देवता दूत होकर आपके यहाँ से मेरे पास आवें। हे बृहस्पति देव! हमारे पति अभिमुख होकर हमारी ओर आवें। आपके सेवनार्थ हम तेजस्वी स्तोत्रों को समर्पित करते हैं।[ऋग्वेद 10.98.2]
Hey Devapi! Let some enlightened and dynamic demigod-deity come to us as a messenger. Hey Brahaspati Dev! Our husbands should come forward towards us. We offer majestic Strotr for worshiping-serving you. 
अस्मे घेहि द्युमतीं वाचमासन् बृहस्पते अनमीवामिषिराम्।
यया वृष्टिं शंतनवे वनाव दिवो द्रप्सो मधुमाँ आ विवेश
हे बृहस्पति देव! हमारे मुख में आप एक ऐसा शुभ्र स्तोत्र डाल दें, जिसमें अस्पष्टता न हो और भली-भाँति स्फूर्ति हो, उसके द्वारा हम शन्तनु के लिए वृष्टि को उपस्थित करें। मधु युक्त रस आकाश से आवे।[ऋग्वेद 10.98.3]
Hey Brahaspati Dev! Pour-insert some bright Strotr in our mouth, which is clear and energetic. By virtue of that we should invoke Shantanu for rains. Let sap mixed with honey drop down from the sky-space.
आ नो द्रप्सा मधुमन्तो विशन्त्विन्द्र देह्यधिरथं सहस्त्रम्।
नि षीद होत्रमृतुथा यजस्व देवान् देवापे हविषा सपर्य
मधु-युक्त रस (वृष्टि-वारी) हमारे लिए आवे। हे इन्द्र देव! रथ के ऊपर रखकर विस्तृत धन प्रदान करें। हे देवापि! इस होम-कार्य में आकर बैठे। यथाकाल देवों का पूजन करें और होमीय द्रव्य देकर सन्तुष्ट करें।[ऋग्वेद 10.98.4]
Let water-rains mixed with honey shower for us. Hey Indr Dev! Grant us lots of wealth storing it over the charoite. Hey Devapi! Sit for the Yagy. Worship demigods at fixed time and satisfy them with offerings for the Hawan. 
आर्ष्टिषेणो होत्रमृषिर्निषीदन् देवापिर्देवसुमतिं चिकित्वान्।
स उत्तरस्मादधरं समुद्रमपो दिव्या असृजद्वर्ष्या अभि
आर्ष्टिषेण के पुत्र देवापि ऋषि जो स्तुति ज्ञाता हैं, वे यज्ञकृत्य के लिए विराजित हैं। वे ऊपर के समुद्र (अन्तरिक्ष) से नीचे के पार्थिव समुद्र में वृष्टि-जल प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.98.5]
Devapi Rishi son of Ashtirshen is a scholar of Stuti. He is present for the Yagy. Let him shower rains for the ocean.
अस्मिन्त्समुद्रे अध्युत्तरस्मिन्नापो देवेभिर्निवृता अतिष्ठन्।
ता अद्रवन्नार्ष्टिषेणेन सृष्टा देवापिना प्रेषिता मृक्षिणीषु
अन्तरिक्ष को देवों ने आकाश में ढककर रखा है। आर्ष्टिषेण के पुत्र देवापि ने इस जल को संचालित किया। उस समय स्वच्छ भूमि पर जल बहने लगा।[ऋग्वेद 10.98.6]
The demigods-deities have covered the sky with clouds. Devapi son of Ashtirshen showered it and clean-pure water started flowing over the land.
यद्देवापिः शंतनवे पुरोहितो होत्राय वृतः कृपयन्नदीधेत्।
देवश्रुतं वृष्टिवनिं रराणो बृहस्पतिर्वाचमस्मा अयच्छत्
जिस समय शन्तनु के पुरोहित देवापि (कौरव) ने होम करने के लिए उद्यत होकर जलोत्पादक देव स्तोत्र को निरूपित किया, उस समय सन्तुष्ट होकर बृहस्पति देव ने उनके मन में स्तोत्र को उदय कर दिया।[ऋग्वेद 10.98.7]
निरूपित :: चित्रित; denote, delineated.
When Devapi got ready for Yagy-Hawan as the Priest of Shantanu and out lined-thought of the Strotr for production of water, Dev Guru Brahaspati arose the Strotr in his mind-innerself.
यं त्वा देवापिः शुशुचानो अग्न आर्ष्टिषणो मनुष्यः समीधे।
विश्वेभिर्देवैरनुमद्यमानः प्र पर्जन्यमीरया वृष्टिमन्तम्
हे अग्नि देव! आर्ष्टिषेण के पुत्र देवापि नामक मनुष्य ने कमनीय होकर आपको प्रज्वलित किया। देवों का सहयोग पाकर आप जलवर्षक मेघ को प्रज्वलित करें।[ऋग्वेद 10.98.8]
Hey Agni Dev! Devapi son of Ashtirshen became desirous and ignited you. With the cooperation of the deities-demigods you should generated the rain clouds.
त्वां पूर्व ऋषयो गीर्भिरायन् त्वामध्वरेषु पुरुहूत विश्वे।
सहस्त्राण्यधिरथान्यस्मे आ नो यज्ञं रोहिदश्वोप याहि
हे अग्नि देव! पूर्व के ऋषि लोग स्तुतियों के साथ आपके पास पधारें। बहुतों के द्वारा आहूत हे अग्निदेव! इस समय के सब यजमान यज्ञों में स्तुतियों के साथ आपके पास जाते है। रथ के साथ हजारों पदार्थ शन्तनु राजा ने दक्षिणा में दिए। रोहित नामक अश्व वाले हे अग्नि देव! आप पधारें।[ऋग्वेद 10.98.9]
Hey Agni Dev! The Rishi Gan of the past turned to you with Stuties. Hey Agni Dev worshiped by many! The Ritviz-hosts move to the Yagy with Stuties. Thousands of gifts (Dakshina) were granted to Shantanu along with charoite. Hey Agni Dev, having horses named Rohit! You should come.
एतान्यग्न नवतिर्नव त्वे आहुतान्यधिरथा सहस्त्रा।
तेभिर्वर्धस्व तन्वः शूर पूर्वीर्दिवो नो वृष्टिमिषितो रिरीहि
हे अग्नि देव! रथों के साथ हजारों पदार्थ आपमें आहूति-रूप में दिए गए हैं। उनसे आप अपने शरीर को विशाल करें। स्वर्ग लोक से हमारे लिए वर्षा करें।[ऋग्वेद 10.98.10]
Hey Agni Dev! Thousands of goods have been granted to you as offerings. You should enlarge you body. Shower rains from the heavens for us.
एतान्यग्ने नवतिं सहस्त्रा सं प्र यच्छ वृष्ण इन्द्राय भागम्।
विद्वान् पथ ऋतुशो देवयानानप्यौलानं दिवि देवेषु धेहि
हे अग्नि देव! नब्बे हजार आहूतियों में से जलवृष्टि करने वाले इन्द्र देव की प्रसन्नता के लिए उन्हें उनका आधा भाग प्रदान करें। सारे देवयानों को जानने वाले आप यथा समय कौरव शन्तनु को देवों के बीच स्थापित करें।[ऋग्वेद 10.98.11]
Hey Agni Dev! Grant half of the ninety thousands of offerings to Indr Dev for his pleasure and rains. You are aware of all the routes of heavens. Establish Kaurav Shantnu amongest the demigods-deities.
अग्रे बाधस्व वि मृधो वि दुर्गहापामीवामप रक्षांसि सेध।
अस्मात्समुद्राब्दृहतो दिवो नोऽयां भूमानमुप नः सृजेह
हे अग्नि देव! शत्रुओं की दुर्गम पुरियों को नष्ट करें। रोग और राक्षसों को दूर भगायें। इस संसार में महान् अन्तरिक्ष से असीम जल ले आवें।[ऋग्वेद 10.98.12]
Hey Agni Dev! Destroy the cities-forts of the enemy. Repel the ailments-diseases and demons. Bring unlimited water from the space-sky to the world.
देवापि :: देवताओं का मित्र; friend of demigods-deities.
देवापि पुरुवंशी हस्तिनापुर नरेश प्रतीप के ज्येष्ठ पुत्र थे।  देवापि परम धर्मपरायण थे और उन्होंने अपने तपोबल से ब्राह्मण्य प्राप्त किया। वे अब भी योगी वेश में सुमेरु पर्वत के निकट रहते हैं। कलियुग की समाप्ति पर ये फिर सतयुग में चंद्रवंश की स्थापना करेंगे। इनके छोटे भाई को गद्दी दी गई तो राज्य में 12 वर्ष की अनावृष्टि हुई। देवापि उस समय तपस्या में लगे थे और ब्राह्मणों के कहने पर जब इन्हें राज्य सौंपा गया तो छोटे भाई शान्तनु से कहकर इन्होंने यज्ञ कराया और स्वयं उनके पुरोहित बने। ऐसा करने पर खूब वर्षा हुई।[महाभारत]
(07.01.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (99) :: ऋषि :- वभ्रो, बैखानस; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप्।
के नश्चित्रमिषण्यसि चिकित्वान् पृथुग्मानं वाश्रं वावृधध्यै।
कत्तस्य दातु शवसो व्युष्टौ तक्षद्वज्रं वृत्रतुरमपिन्वत्
हे इन्द्र देव! आप जानकर हमें विचित्र सम्पत्ति देते हैं। वह सम्पत्ति बढ़ती है, वह प्रशंसनीय है और वह हमें बढ़ाती है। इन्द्र देव के बल की वृद्धि के लिए हमें क्या देना होगा? उनके लिए वृत्र-हिंसक बनाया गया है। उन्होंने वृष्टि-वर्षण किया।[ऋग्वेद 10.99.1]
Hey Indr Dev! You knowing grant us amazing wealth to us. Its appreciable, increases our property-prosperity and grows us. What has to be given by us to increase the strength of Indr Dev? Vrat killer has been built for him. He showered rains.
स हि द्युता विद्युता वेति साम पृथु योनिमसुरत्वा ससाद।
स सनीळेभिः प्रसहानो अस्य भ्रातुर्न ऋते सप्तथस्य मायाः
इन्द्र देव विद्युत् नामक आयुध से युक्त होकर यज्ञ में सामगान के लिए जाते हैं। वे बल पूर्वक अनेक स्थानों पर अधिकार कर लेते हैं। वे समान-स्थान में रहने वाले मरुतों के साथ शत्रुओं को हराते हैं। वे आदित्यों के सप्तम भ्राता हैं। उनको त्याग करके कोई कार्य नहीं हो सकता।[ऋग्वेद 10.99.2]
Indr Dev wield lightening as weapon while going for Sam Gan in the Yagy. He occupy various places forcibly. He defeats the enemies at various places with the help of Marud Gan. He is the seventh brother of Adity Gan. None can function after discarding him.
स वाजं यातापदुष्पदा यन्त्स्वर्षाता परि षदत्सनिष्यन्।
अनर्वा यच्छतदुरस्य वेदो घ्नञ्छिश्नदेवाँ अभि वर्पसा भूत्
वे सुन्दर गति से जाकर युद्ध-क्षेत्र में अवस्थित होते हैं। वे अविचल होकर सौ दरवाजों वाली शत्रुपुरी से धन ले आते हैं और इन्द्रिय-परायण दुरात्माओं को अपने तेज से पराजित करते हैं।[ऋग्वेद 10.99.3]
He moves with fast speed for the war zone. He remain unnerved and bring wealth from the cities-forts having hundred gates. He defeats the sinners-wicked with his majesty devoted to themselves-senses (lust, pleasure) only.
स यह्वयो ३ ऽवनीर्गोष्वर्वा जुहोति प्रधन्यासु सस्त्रि:।
अपादो यत्र युज्यासोऽरथा द्रोण्यश्वास ईरते घृतं वाः
वे मेघों की ओर जाकर और मेघ में भ्रमण करके उर्वरा भूमि पर बहुत जल गिराते हैं। उन सब जल वाले स्थानों पर अनेक छोटी-छोटी नदियाँ एकत्र होकर घृत के समान जल को बहाती हैं। उनके न चरण हैं, न रथ है और न डोंगी (द्रोणि) हैं।[ऋग्वेद 10.99.4]
He moves through the clouds and shower rains into fertile land. Several river tributaries moves the water like Ghee. They do not possess charoite, legs or boat.
स रुद्रेभिरशस्तवार ऋभ्वा हित्वी गयमारेअवद्य आगात्।
वम्रस्य मन्ये मिथुना विवव्री अन्नमभीत्यारोदन्यन्मुषायन्
हे इन्द्र देव! बिना प्रार्थना के ही मनोरथ को पूर्ण करते हैं। वे प्रकाण्ड हैं। उनके पास दुर्नाम नहीं जाता। वे अपने स्थान से रुद्र-पुत्र मरुतों के साथ यहाँ पधारें। मुझ वम्र के माता-पिता का क्लेश चला गया। क्योंकि मैंने शत्रु-धन का हरण कर लिया है और शत्रुओं को रुलाया है।[ऋग्वेद 10.99.5]
Hey Indr Dev! You accomplish desires-wishes without being asked-requested. You are enlightened. Wicked person can not approach you. My sorrow-pain of loosing parents was lost, since I snatched the wealth of the enemy and made them cry.
स इद्दासं तुवीरर्वे पतिर्दन् षळक्षं त्रिशीर्षाणं दमन्यत्।
अस्य त्रितो न्वोजसा वृधानो विपा वराहमयोअग्रया हन्
प्रभु इन्द्र देव ने कोलाहल करने वाले दासों पर शासन किया। उन्होंने तीन कपालों और छः आँखों वाले विश्वरूप (त्वष्टा के पुत्र) को मारा। इन्द्र देव के तेज से तेजस्वी होकर त्रित ने लोहे के समान तीखे नखों वाले अँगुलियों से वराह का वध किया।[ऋग्वेद 10.99.6]
Lord Indr Dev rules the slaves making loud noise-sound. He killed the son of Twasta having three three heads and six eyes. Trit killed the boar-pig with his sharp nails as sharp as iron, by virtue of Indr Dev's majesty-power.
स द्रुह्वणे मनुष ऊर्ध्वसान आ साविषदर्शसानाय शरुम्।
स नृतमो नहुषोऽस्मत्सुजातः पुरोऽभिनदर्हन् दस्युहत्ये
उनके किसी भक्त को यदि शत्रु लोग युद्ध के लिए बुलाते हैं, तो वे दर्प के साथ शरीर को फुलाकर शत्रु-वध करने के लिए उत्तम अस्त्र प्रदान करते हैं। वे मनुष्यों के सर्व श्रेष्ठ नेता है। दस्यु-विनाश के समय मान्य इन्द्र देव ने अनेक शत्रु-पुरियों को ध्वस्त कर दिया।[ऋग्वेद 10.99.7]
If his devotees invoke him on being asked-forced by the  enemy into war, he inflate his body with pride and grant them excellent weapons. He is best leader of the humas. At the occasion of destruction of the dacoits-enemy, Indr Dev demolished the forts of the enemy. 
सो अभ्रियो न यवस उदन्यन् क्षयाय गातुं विदन्नो अस्मे।
उप यत्सीददिन्दुं शरीरैः श्येनोऽयोपाष्टिर्हन्ति दस्यून्
वे मेघ-समुदाय के समान तृणमयी भूमि पर जल गिराते हैं। उन्होंने हमारे निवास का मार्ग बताया। वे अपने शरीर के सारे अंगों में सोम को गिराकर श्येन पक्षी के समान लोहे के सदृश तीक्ष्ण और दृढ़पृष्ठ से दस्युओं का वध करते हैं।[ऋग्वेद 10.99.8]
He showers rains over the land having straw, like the clouds. He directed them towards our residence. He kills the enemy by drenching his body with Somras like the falcon with strong & sharp claws, as strong as iron, having strong back.
स व्राधतः शवसानेभिरस्य कुत्साय शुष्णं कृपणे परादात्।
अयं कविमनयच्छस्यमानमत्कं यो अस्य सनितोत नृणाम्
वे पराक्रमी शत्रुओं को दृढ़ अस्त्र के द्वारा भगा देते हैं। उन्होंने कुत्स नामक व्यक्ति का स्तोत्र सुनकर शुष्ण नामक असुर का भेदन किया। उन्होंने स्तोता और कवि उशना के विरोधियों को वश में किया। वे उशना और दूसरों को दान देते हैं।[ऋग्वेद 10.99.9]
He repelled the brave-chivalric enemies with his strong weapons. He responded to the Strotr of Kuts and killed the demon named Shushn. He controlled the opponents of Stota & Kavi Ushna. He donate to Ushna and others.
अयं दशस्यन्नर्येभिरस्य दस्मो देवेभिर्वरुणो न मायी।
अयं कनीन ऋतुपा अवेद्यमिमीताररुं यश्चतुष्यात्
मनुष्य-हितैषी मरुतों के साथ धनेप्सु होकर इन्द्र देव ने धन भेजा। वे वरुण के समान अपने तेज से सुन्दर और शक्तिमान् हैं। वे रमणीय मूर्ति हैं। उन्हें सभी यथा समय रक्षक जानते है। उन्होंने चार पैरों वाले शत्रुओं को मार गिराया।[ऋग्वेद 10.99.10]
रमणीय :: आनंदमय, हर्षजनक, आनंदपूर्ण, आनंदित, आनंद देनेवाला, मनोरम, सुहावना, ललित, आनंदकर, सुखद, सुहावना, ख़ुशगवार; enjoyable, delightful, delectable.
Indr Dev granted wealth to Marud Gan, the well wisher of humans. He is mighty and glorious like Varun Dev. He is delightful. Every one recognise him as a at all times protected. He repelled the four legged enemies.
अस्य स्तोमेभिरौशिज ऋजिश्वा व्रजं दरयषभेण पिप्रोः।
सुत्वा यद्यजतो दीदयद्गीः पुर इयानो अभि वर्पसा भूत्
उशिज् के पुत्र ऋजिश्वा ने इन्द्र देव की स्तुति करके वज्र के द्वारा पिप्रु के गोष्ठ को विदीर्ण कर दिया। जिस समय ऋजिश्वा ने सोम को प्रस्तुत करके यज्ञ में स्तोत्र किया, उस समय आकर इन्द्र देव ने शत्रु-पुरियों को विनष्ट किया।[ऋग्वेद 10.99.11]
Rijishrwa son of Ushij worshiped Indr Dev and destroyed the cow shed of Pipru with Vajr. When Rijishrwa offered Som in the Yagy and recited Strotr, Indr Dev arrived and destroyed the forts of the enemies.
एवा महो असुर वक्षथाय वभ्रकः पड्भिरुप सर्पदिन्द्रम्।
स इयानः करति स्वस्तिमस्मा इषमूर्जं सुक्षितिं विश्वमाभाः
हे बली (असुर) इन्द्र देव! मैं वम्र आपको बहुत हवि देने की इच्छा से पैदल चलकर आपके पास आया हूँ। आप मेरा मंगल करें। अन्न, बल और उत्तम गृह आदि सारी वस्तुएँ प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.99.12]
Hey mighty Indr Dev! I Vamr, have walked to make offerings to you. Resort to my welfare. Grant food grains, strength and excellent home etc to me.(08.01.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (100) :: ऋषि :- दुवस्यु, वान्दन; देवता :- विश्वेदेव; छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
इन्द्र दृह्य मघवन्त्वावदिद्भुज इह स्तुतः सुतपा बोधि नो वृधे।
देवेभिर्नः सविता प्रावतु श्रुतमा सर्वतातिमदिति वृणीमहे
हे धनी इन्द्र देव! अपने समान बली शत्रु-सैन्य का वध करें। स्तोत्र को ग्रहण करें और सोमरस को पीकर हमारी रक्षा के लिए पधारें। हमारी श्री वृद्धि करें। अन्य देवों के साथ सविता देव हमारे विख्यात यज्ञ की रक्षा करें। हम सर्वग्राहिणी माता अदिति की प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 10.100.1]
Hey wealthy Indr Dev! Kill the enemy army as mighty as you. Accept the Strotr, drink Somras and come our safety. Increase our wealth-prosperity. Let Savita Dev protect our Yagy along with other demigods-deities. We worship universal Mata Aditi.
भराय सु भरत भागमृत्वियं प्र वायवे शुचिपे क्रन्ददिष्टये।
गौरस्य यः पयसः पीतिमानश आ सर्वतातिमदितिं वृणीमहे
युद्ध के लिए उपस्थित ऋतु के अनुकूल यज्ञ भाग वायु को दें। वे विशुद्ध सोमरस का पान करते हैं। हम सर्वग्राहिणी माता अदिति देवी की प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 10.100.2]
Grant a portion of offerings to Vayu Dev as per the season. He drinks pure Somras. We worship universal Mata Aditi.
आ नो देवः सविता साविषद्वय ऋजूयते यजमानाय सुन्वते।
यथा देवान् प्रतिभूषेम पाकवदा सर्वतातिमदितिं वृणीमहे
हमारी सफ़लता चाहने वाले और अभिषव-कर्ता यजमान को सविता देव अन्न प्रदान करें, ताकि उस परिपक्व अन्न से देवों की पूजा की जा सके। सर्वग्राहिणी माता अदिति देवी की हम प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 10.100.3]
Let Savita Dev grant food grains to the extractor host desirous of our success, so that the ripe food grains can be used for worshiping demigods-deities. We worship universal Mata Aditi.
इन्द्रो अस्मे सुमना अस्तु विश्वहा राजा सोमः सुवितस्याध्येतु नः।
यथायथा मित्राधितानि संदधुरा सर्वतातिमदितिं वृणीमहे
इन्द्र देव प्रतिदिन हमारे ऊपर प्रसन्न रहें। हमारे यज्ञ में सोम राजा अधिष्ठान करें। बन्धुओं के आयोजन के अनुसार उक्त कर्म सम्पन्न हो। सर्वग्राहिणी माता अदिति की हम प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 10.100.4]
Indr Dev should remain happy with us every day. Let Lord Som preside our Yagy. Let us this Yagy be organised as per the directive-desire of brothers-relatives. We worship universal Mata Aditi.
इन्द्र उक्थेन शवसा परुर्दधे बृहस्पते प्रतरीतास्यायुषः।
यज्ञो मनुः प्रमतिर्नः पिता हि कमा सर्वतातिमदितिं वृणीमहे
इन्द्र देव स्तुत्य बल से हमारे यज्ञ की रक्षा करते हैं। हे बृहस्पति देव! आप परमायु प्रदान किया करते हैं। यज्ञ ही हमारी गति, मति, रक्षक और सुख है। सर्वग्राहिणी माता अदिति की हम प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 10.100.1]
Indr Dev protect us with worshipable-respected might. Hey Brahaspati Dev! You grant ultimate age (during Kali Yug its 100 years) to us. Yagy is our way of life-endeavour, intelligence, safety and comfort. We worship universal Mata Aditi, affectionate to all.
इन्द्रस्य नु सुकृतं दैव्यं सहोऽग्निगृहे जरिता मेधिरः कविः।
यज्ञश्च भूद्विदथे चारुरन्तम आ सर्वतातिमदितिं वृणीमहे
देवगणों की शक्ति को इन्द्र देव ने ही विनिर्मित किया है। गृह स्थित अग्नि देव देवों की स्तुति करते, यज्ञ करते और कार्य का निर्वाह करते हैं। वे यज्ञ के समय पूज्य और रमणीय तथा हम लोगों के अपने हैं। सर्व-ग्राहिणी माता अदिति देवी की हम प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 10.100.6]
Indr Dev rebuilt the might-power, strength of demigods-deities. We worship Agni Dev at our home and accomplish our duties-work. We worship universal Mata Aditi, affectionate to all.
न वो गुहा चकृम भूरि दुष्कृतं नाविष्ट्यं वसवो देवहेळनम्।
माकिर्ने देवा अनृतस्य वर्पस आ सर्वतातिमदितिं वृणीमहे
हे वसुओं! आपके परोक्ष में हमनें कोई विशेष अपराध नहीं किया। आपके सामने भी हमने ऐसा कोई कार्य नहीं किया, जो देवों के क्रोध का कारण बनें। हे देवगणों! हमें मिथ्या नहीं करना। सर्वग्राहिणी माता अदितिदेवी की हम प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 10.100.7]
Hey Vasu Gan! We have not committed-made any offence visibly against you. We did nothing in front of you which could subject us to the anger-fury of demigods-deities. Hey demigods-deities! Do not prove us wrong. We worship universal Mata Aditi, affectionate to all.
अपामीवां सविता साविषन्न्य १ ग्वरीय इदप सेधन्त्वद्रयः।
ग्रावा यत्र मधुषुदुच्यते बृहदा सर्वतातिमदितिं वृणीमहे
जहाँ मधु के समान सोमरस प्रस्तुत किया जाता और अन्तर अभिषव-प्रस्तर को भली भाँति स्तुत किया जाता है, वहाँ का रोग सविता देव हटाते हैं और पर्वत वहाँ का गुरुतर अनर्थ दूर करते हैं। सर्वग्राहिणी माता अदिति देवी की हम प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 10.100.8]
Savita Dev remove the ailments-disease where Honey is served like Somras and the stones used for extraction are properly prayed and the mountains repel-remove grave misfortune-misery. We worship universal Mata Aditi, affectionate to all.
ऊर्ध्वो ग्रावा वसवोऽस्तु सोतारि विश्वा द्वेषांसि सनुतर्युयोत।
स नो देवः सविता पायुरीड्य आ सर्वतातिमदितिं वृणीमहे
हे वसुओं! सोम को प्रस्तुत करने का प्रस्तर ऊपर उठे। तब तक आप लोग शत्रुओं को अव्यक्त भाव से अलग-अलग करें। सविता देव रक्षा करने वाले हैं। उनका स्तोत्र करना चाहिए। सर्वग्राहिणी माता अदितिदेवी की हम प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 10.100.9]
Hey Vasu Gan! Let the stone presenting-extracting Som rise. By then you should separate-alienate the enemies without making any expression. Savita Dev is a protector. One should recite his Strotr. We worship universal Mata Aditi, affectionate to all.
ऊर्जं गावो यवसे पीवो अत्तन ऋतस्य याः सदने कोशे अङ्ध्वे
तनूरेव तन्वो अस्तु भेषजमा सर्वतातिमदितिं वृणीमहे
हे गायों! आप लोग गोचर भूमि पर विचरण करके बलशाली बनें। यज्ञ में आप लोग दुध-पात्र में दूध देती है। आपका दूध सोमरस के औषध के समान है। सर्वग्राहिणी माता अदिति देवी की हम प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 10.100.10]
Hey cows! You should graze in the grazing ground and become strong. You grant milk for the Yagy, in milking vessel. Your milk is medicinal like Somras. We worship universal Mata Aditi, affectionate to all.
क्रतुप्रावा जरिता शश्वतामव इन्द्र इद्भद्रा सुतावताम्।
पूर्णमूधर्दिव्यं यस्य सिक्तय आ सर्वतातिमदितिं वृणीमहे
इन्द्र देव यज्ञ को पूर्ण करते हैं, सबको जरा-युक्त करते हैं। वे युवक और सोमयज्ञ करने वाले की रक्षा करते हैं और उत्तम स्तोत्र पाकर अनुकूल होते हैं। उनके पान के लिए उद्धत द्रोण- कलश सोमरस से परिपूर्ण है। सर्वग्राहिणी माता अदिति देवी की हम प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 10.100.11]
Indr Dev accomplish the Yagy and make everyone old. He protect the young and those who conduct Som Yagy becoming favourable on receiving excellent Strotr. Kalash is full of Somras for him. We worship universal Mata Aditi, affectionate to all.
चित्रस्ते भानुः क्रतुप्रा अभिष्टिः सन्ति स्पृधो जरणिप्रा अधृष्टाः।
रजिष्ठया रज्या पश्व आ गोस्तूतूर्षति पर्यग्रं दुवस्युः
हे इन्द्र देव! आपका प्रकाश आश्चर्यजनक है। वह प्रकाश कर्म-पूरक है। उसकी प्रार्थना करनी चाहिए। आपका दुर्द्धर्ष कार्य सारे स्तोताओं की मनोकामना पूर्ण करता है। इसीलिए द्युवस्यु ऋषि अतीव सरल रज्जु (रस्सी) के द्वारा गाय का अग्रभाग शीघ्र खींचते हैं।[ऋग्वेद 10.100.12]
Hey Indr Dev! Your radiance-aura is wonderful. It accomplish endeavours-efforts. It should be worshiped. Your invincible actions accomplish the desires of the Stotas. Hence, Dyuvasyu Rishi pull the front of cow with  very simple-light cord.(09.01.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (101) :: ऋषि :- बुध, सौम्य; देवता :- विश्वेदेव या ऋत्विज, छन्द :- त्रिष्टुप्, गायत्री, बृहती, जगती।
उद्बुध्यध्वं समनसः सखायः समग्निमिन्ध्वं बहवः सनीळाः।
दधिक्रामग्निमुषसं च देवीमिन्द्रावतोऽवसे नि ह्वये वः
हे मित्र ऋत्विको! एक समान मन होकर जागें। अनेक लोग एक स्थान वासी होकर अग्नि देव को प्रज्वलित करें। मैं दधिक्रा, देवी उषा, अग्नि देव और इन्द्र देव का रक्षण के लिए आवाहन करता हूँ।[ऋग्वेद 10.101.1]
Hey Ritviz friends! Let us wake us with similar-identical innerself, mind. Let many people gather together and ignite fire (Agni Dev). I invoke Dadhikra, Usha Devi, Agni Dev and Indr Dev for protection.
मन्द्रा कृणुध्वं धिय आ तनुध्वं नावमरित्रपरणीं कृणुध्वम्।
इष्कृणुध्वमायुधारं कृणुध्वं प्राञ्चं यज्ञं प्र णयता सखायः
हे मित्रों! मदकर स्तोत्र करें। कर्षण (जोताई) आदि कर्मों का विस्तार करें। हल दण्ड- रूपिणी और पार लगाने वाली नौका प्रस्तुत करें। हल के फाल को तेज और सुशोभित करें। हे मित्रों! उत्तम यज्ञ का अनुष्ठान करें।[ऋग्वेद 10.101.2]
Hey friends! Recite-compose intoxicating Strotr. Extend the works related with ploughing. Bring the boat having a handle like the plough. Make the ploughshare sharp. Hey friends! Organise excellent Yagy.
युनक्त सीरा वि युगा तनुध्वं कृते योनौ वपतेह बीजम्।
गिरा च श्रुष्टिः सभरा असन्नो नेदीय इत्सृण्यः पकमेयात्
हे ऋत्विकों! हल योजित करें। युगों (जुआठों) को विस्तृत करें। यहाँ जो क्षेत्र प्रस्तुत किया गया है, उसमें बीज बोएं। हमारी स्तुतियों के साथ हमें अन्न से परिपूर्ण करें। हँसुए (सृणि) पास के पके धान्य में गिरे।[ऋग्वेद 10.101.3]
Hey  Ritviz! Deploy-harness the plough ughs. Open the yokes. Sow seeds in this vast area. Enrich us with our Stuties. Cut the ripe paddy with sickle.
सीरा युञ्जन्ति कवयो युगा वि तन्वते पृथक्। धीरा देवेषु सुम्नया
लाङ्गल (हल) जोते जाते हैं। कर्म-कर्ता लोग जुआठों (युगों) को अलग करते हैं और बुद्धिमान् लोग सुन्दर स्तोत्र का उच्चारण करते हैं।[ऋग्वेद 10.101.4]
Multiple ploughs are harness-deployed. Workers separate the yokes. Let wise-intelligent people recite beautiful Strotr.
निराहावान् कृणोतन सं वरत्रा दधातन।
सिञ्चामहा अवतमुद्रिणं वयं सुषेकमनुपक्षितम्
पशुओं के जलपान-स्थान को निर्मित करें। वरत्रा (चर्म-रज्जु) को योजित करें। अधिक, अक्षय और सेचक-समर्थ गड्ढे से जल लेकर हम सींचते हैं।[ऋग्वेद 10.101.5]
Develop the shed for the cattle. Make use of the hide-animal skin. We draw water from hole-deep well. 
इष्कृताहावमवतं सुवरत्रं सुषेचनम्। उद्रिणं सिञ्चे अक्षितम्
पशुओं का जलपान-स्थान प्रस्तुत हुआ है। अधिक, अक्षय और जल-पूर्ण गड्ढे में सुन्दर चर्म-रज्जु है। बड़ी सरलता से जल-सेचन किया जाता है। इससे जल लेकर सेचन करें।[ऋग्वेद 10.101.6]
Food has been served to the cattle. Beautiful animal skin is there in the deep well-pit. Water is drawn easily. Use this water for irrigation.
प्रीणीताश्वान् हितं जयाथ स्वस्तिवाहं रथमित्कृणुध्वम्।
द्रोणाहावमवतमश्मचक्रमंसत्रकोशं सिञ्चता नृपाणम्
अश्वों या व्यापक बैलों को परितृप्त करें। खेत में रखे हुए धान्य को लेवें। सरलता से धान्य ढोनेवाले रथ को प्रस्तुत करें। पशुओं का यह जल-पूर्ण जलाधार एक द्रोण होगा। इसमें पत्थर का बनाया हुआ चक्र स्थित है। मनुष्यों के पीने योग्य जलपात्र कूप की आकृति का बनेगा। इसे जल से परिपूर्ण करें।[ऋग्वेद 10.101.7]
Satiate the horses or bulls-oxen. Collect the paddy kept in the field. Bring the cart for loading rice-paddy. A large vessel will be used for drinking of water for the cattle. It has a wheel made of stone. A well will be built for drinking water for humans. Fill it with water.
व्रजं कृणुध्वं स हि वो नृपाणो वर्म सीव्यध्वं बहुला पृथूनि।
पुरः कृणुध्वमायसीरधृष्टा मा वः सुस्त्रोचमसो दृहता तम्
गोष्ठ (गायों के रहने का स्थान) प्रस्तुत करें। वह स्थान ही मनुष्यों के जलपान के लिए उपयुक्त है। अनेक विशालकाय कवचों को तैयार करें। दृढ़तर लौहमय पात्र प्रस्तुत करें और चमस को दृढ़ करें, ताकि इससे जल न चू सके।[ऋग्वेद 10.101.8]
Ready a large shed for the cows. It should be useful to humans for breakfast. Make large shield. Use strongest iron for it. Keep the vessel-Chams ready such that it does not leak.
आ वो धियं यज्ञियां वर्त ऊतये देवा देवीं यजतां यज्ञियामिह।
सा नो दुहीयद्यवसेव गत्वी सहस्त्रधारा पयसा मही गौः
हे देवों या ऋत्विकों! मैं आपके ध्यान को प्रवृत्त करता हूँ, ताकि आप रक्षा करें। वह ध्यान यज्ञोपयोगी है, वही आपको यज्ञ-भाग देता है। जिस प्रकार घास खाकर गायें हजारों धाराओं से दूध देती हैं, उसी प्रकार ही वह ध्यान हमारी अभिलाषा पूर्ण करें।[ऋग्वेद 10.101.9]
Hey deities & Ritviz! I divert your brain-attention so that you are saved. This diversion is useful for the Yagy and it grant you the share of the Yagy offerings. The ways cows eat grass and yield milk through thousands of udders, similarly your attention should accomplish our desires.
आ तू षिञ्च हरिमीं द्रोरुपस्थे वाशीभिस्तक्षताश्मन्मयीभिः।
परि ष्वजध्वं दश कक्ष्याभिरुभे धुरौ प्रति वह्नि युनक्त
लकड़ी के पात्र में रखे हुए हरिताभ सोम को सिंचित करें। प्रस्तर कुठारों से पात्र प्रस्तुत करें। दस अँगुलियों के द्वारा पात्र को वेष्टित करके धारण करें। वाहक पशुओं को रथ की दोनों घुराओं में नियोजित करें।[ऋग्वेद 10.101.10]
Store-extract greenish Somras in a wooden pot. Prepare the pot with axe. Hold the pot with ten fingers. Deploy the load carrying animals with the axels of the charoite.
उभे धुरौ वह्निरापिब्दमानोऽन्तर्योनेव चरति द्विजानिः।
वनस्पतिं वन आस्थापयध्वं नि षू दधिध्वमखनन्त उत्सम्
रथ की दोनों धुराओं को शब्दायमान करके रथ वाहक पशु उसी प्रकार ही विचरण करता है, जिस प्रकार दो स्त्रियों का स्वामी रति-क्रीड़ा करता है। लकड़ी से शकट को काठ के आधार पर रखें, भलीभाँतिः संस्थापित करें ताकि शकट आधार-शून्य न होने पावे।[ऋग्वेद 10.101.11]
The axel of the charoite make such sound which is like the conversation between the two wives and husband during intimacy. Hold the cart over a wooden base properly so that it remain stable.
कपृन्नरः कपृथमुद्दधातन चोदयत खुदत वाजसातये।
निष्टिग्यः यः पुत्रमा च्यावयोतय इन्द्रं सबाध इह सोमपीतये
हे कर्माध्यक्षों! इन्द्र देव सुख देनेवाले हैं। इन्हें सुखमय सोमरस प्रदान करें। अन्न देने के लिए इन्हें प्रेरित करें, अनुरुद्ध करें। इन्द्र देव माता अदिति के पुत्र हैं। आप सब लोगों को पीड़ा का भय है। फलतः रक्षण के लिए इन्हें यहाँ बुलावें, ताकि यह सोमपान करें।[ऋग्वेद 10.101.12]
Hey heads of specific department-lords of specific functions! Provide comforting Somras. Inspire them to grant food grains. Indr Dev is the the son of Mata Aditi. You all fear pain, hence invoke him for protection so that he can drink Somras.(10.01.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (102) :: ऋषि :- मुद्गल भार्य्यश्व;  देवता :- द्रुघण या इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप्, बृहती।
प्र ते रथं मिथूकृतमिन्द्रोऽवतु धृष्णुया। अस्मिन्नाजौ पुरुहूत श्रवाय्ये धनभक्षेषु नोऽव
हे मुद्गल! युद्ध में जिस समय आपका रथ असहाय होता है, उस समय दुर्द्धर्ष इन्द्र देव उसकी रक्षा करें। हे इन्द्र देव! इस प्रसिद्ध युद्ध में धनोपार्जन के समय आप हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 10.102.1]
Hey Mudgal! Let invincible Indr Dec come to your rescue-help in war when your charoite is helpless-out of order. Hey Indr Dev! Protect us in this famous war for the earning of wealth.
उत्स्म वातो वहति वासो अस्या अधिरथं यदजयत्सहस्रम्।
रथीरभून्मुगलानी गविष्टौ भरे कृतं व्यचेदिन्द्रसेना
जिस समय रथ पर चढ़कर मुद्गल की पत्नी (मुद्गालानी) हजारों गायों को जीतने वाली हुई, उस समय उनके वस्त्र का संचालन वायु देव ने किया। गायों के जीतने के समय मुद्गल पत्नि रथी हुई। इन्द्र सेना नाम की वह मुद्गलानी युद्ध के समय शत्रुओं के हाथ से गायों को ले आई।[ऋग्वेद 10.102.2]
When the wife of Mudgal was ready to win thousands of cows, Vayu Dev handled-operated her clothing. She rode the charoite to win cows. Mudglani named Indr Sena, won the cows and snatched the cows from the enemy in the war.
अन्तर्यच्छ जिघांसतो वज्रमिन्द्राभिदासतः।
दासस्य वा मघवन्नार्यस्य वा सनुतर्यवया वधम्॥
हे इन्द्र देव! अनिष्टकर्ता और मारने को तैयार शत्रुओं के ऊपर वज्र से प्रहार करें। दास जातीय (अनार्य) हो या आर्य जातीय हो, शत्रु का गूढ़ रूप से वध करें।[ऋग्वेद 10.102.3]
अनिष्ट :: अशुभ, अहित, अमंगल; unwelcome, forbidding, untoward, calamitous, disadvantageous, baneful, objectionable, undesirable.
Hey Indr Dev! Strike the Vajr over the calamitous enemy ready to harm us. Whether Ary or Anary enemy, destroy both, secretly.
उद्गो हृदमपिबज्जर्ह्यषाणः कूटं स्म वृंहदभिमातिमेति।
प्र मुष्कभारः श्रव इच्छमानोऽजिरं बाहू अभरत्सिषासन्
यह वृषभ महानन्द के साथ जल पी चुका। अपनी सींग से मिट्टी के ढेर को खोदकर वह शत्रु की ओर दौड़ा। उसका अण्डकोष लम्बायमान है। आहार की इच्छा से वह दोनों सींगों को तेज करके शीघ्र आ रहा है।[ऋग्वेद 10.102.4]
This bull drunk water with Maha Nand. It dugged clay with its horns and run after the enemy. Its testicles are long. It comes with high speed with the desire of food.
न्यक्रन्दयन्नुपयन्त एनममेहयन् वृषभं मध्य आजेः।
तेन सूभर्वं शतवत्सहस्रं गवां मुद्गलः प्रधने जिगाय
मनुष्यों ने इस वृषभ के पास जाकर उसे गरजाया और युद्ध के बीच उससे मूत्र  त्याग कराया। इससे मुद्गल ने उत्तम और आहार-पटु सैकड़ों-सहस्त्रों गायों को जीता।[ऋग्वेद 10.102.5]
Humans provoked the bull to roar and made him reject urine & stools (excreta) during the war. It led to the winning of hundreds-thousands of cows by Mudgal.
ककर्दवे वृषभो युक्त आसीदवावचीत्सारथिरस्य केशी।
दुधेयुक्तस्य द्रवतः सहानस ऋच्छन्ति ष्मा निष्पदो मुद्गलानीम्
शत्रु-हिंसा के लिए वृषभ योजित किया गया। उसकी रस्सी को धारण करनेवाली सारथि मुद्गलानी गरजने लगी। रथ में जोते गए उस वृष को पकड़कर रखा नहीं गया। वह शकट लेकर दौड़ा। सेनाएं मुगलानी के पीछे-पीछे चलीं।[ऋग्वेद 10.102.6]
Bull was deployed to kill the enemy. Mudgalani driving the charoite, holding his reins-cord started roaring. Bull deployed in the charoite was not held-obstructed. It run with the cart-charoite. Armies followed Mudgalani.
उत प्रधिमुदहन्नस्य विद्वानुपायुनग्वंसगमत्र शिक्षन्।
इन्द्र उदावत्पतिमघ्न्यानामरंहत पद्याभिः ककुद्मान्
बैल बड़ी निपुणता से उन्होंने रथ में विद्वान् मुद्गल ने रथ-चक्र बैल को जोता। गायों के पति उस वृष को इन्द्र देव ने बचाया। वह वृष बड़े वेग से मार्ग पर चला।[ऋग्वेद 10.102.7]
Bull was deployed in the charoite in a professional-expert manner. Indr Dev protected that bull, the husband of the cows. That bull moved with high speed over the way.
शुनमष्ट्राव्यचरत्कपर्दी वरत्रायां दार्वानह्यमानः।
नृम्णानि कृण्वन् बहवे जनाय गाः पस्पशानस्तविषीरधत्त
चाबुक और रस्सी (कपर्द) वाला चर्मरज्जु (वरत्रा) के द्वारा रथाङ्ग को बाँधते हुए भली-भाँति विचरण करने लगा। अनेक लोगों के धन का उद्धार करने लगा। अनेकानेक गायों को घर ले आया।[ऋग्वेद 10.102.8]
Charoite was thoroughly tied with lash and leather cord and moved properly. Bull led to the liberation of wealth of many people and brought several cows home.
इमं तं पश्य वृषभस्य युञ्जं काष्ठाया मध्ये द्रुघणं शयानम्।
येन जिगाय शतवत्सहस्रं गवां मुद्गलः पृतनाज्येषु
युद्ध-सीमा में जो मुद्गल गिरा हुआ है, उसने उस वृष का साथ दिया। इसके द्वारा मुद्गल ने सैकड़ों और हजारों गायों को जीता।[ऋग्वेद 10.102.9]
Mudgal present at the boundary-war line helped the bull. It led to winning of hundreds & thousands of cows by Mudgal.
आरे अघा को न्वि१त्था ददर्श यं युञ्जन्ति तम्वा स्थापयन्ति।
नास्मै तृणं नोदकमा भरन्त्युत्तरो धुरो वहति प्रदेदिशत्
किसी ने अत्यन्त दूर देश या समीप में कभी ऐसा देखा है? जो रथ में नियोजित किया जाता है, वही उस पर प्रहरण के लिए बैठाया जाता है। इसे घास और जल नहीं दिया गया है; तो भी यह रथ-धुरा का भार ढो रहा है। यह प्रभु को विजयी भी करता है।[ऋग्वेद 10.102.10]
प्रहरण :: हरना-हरण करना या छीनना, अस्त्र, युद्ध, प्रहार या वार, मारना या आघात पहुँचाना, फेंकना, हटाना या दूर करना, स्त्रियों की सवारी के लिए एक तरह का परदे वाला रथ, गाड़ी में बैठने की जगह; snatching, weapon.
Has anyone seen this in a distant country or nearby? The bull which is deployed in the charoite is made to attack-strike. Even though its not offered grass & water, still its pulling the axel-cart, charoite. It grants victory to the lord.
परिवृक्तेव पतिविद्यमानट् पीप्याना कूचक्रेणेव सिञ्चन्।
एषैष्या चिद्रथ्या जयेम सुमङ्गलं सिनवदस्तु सातम्
पति-वियुक्ता स्त्री के समान मुद्गलानी ने शक्ति प्रदर्शित करके पति के धन को ग्रहण किया। उन्होंने मानों बादलों के समान बाण-वर्षण किया। ऐसे सारथि के द्वारा हम जय प्राप्त करें। हमें अन्नादि प्राप्त हो।[ऋग्वेद 10.102.11]
वियुक्त :: जो संयुक्त न हो, जिसकी जुदाई हो गई हो, विछुड़ा हुआ, वियोग प्राप्त, जुदा, अलग, पृथक्, रहित, हीन, वंचित; divorced, separated, away form husband.
Away from her husband, Mudglani accepted her husband's wealth. She showered arrows like clouds. We attain victory due to such charioteer. Let us have food grains etc.
त्वं विश्वस्य जगतश्चक्षुरिन्द्रासि चक्षुषः।
वृषा यदाजिं वृषणा सिषाससि चोदयन् वघ्रिणा युजा
हे इन्द्र देव! आप समस्त संसार के नेत्र स्वरूप हैं। जिन्हें नेत्र है, उनके भी आप नेत्र हैं। आप जल-वर्षक हैं। आप युद्ध में दो अश्वों को रस्सी से एक साथ बाँध करके प्रेरित करते हुए विजयश्री उपलब्ध करते हैं तथा धन प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 10.102.12]
Hey Indr Dev! You are like the eye of the universe. You are eyes for those who possess eyes. You tie-deploy the two horses in the war together and grant-assure victory as well as wealth.(11.01.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (103) :: ऋषि :- प्रतिरथ, ऐन्द्र; देवता :- इन्द्र, बृहस्पति, अप्वा देवी या मरुत; छन्द :- त्रिष्टुप्, अनुष्टुप्।
आशुः शिशानो वृषभो न भीमो घनाघनः क्षोभणश्चर्षणीनाम्।
संक्रन्दनोऽनिमिष एकवीरः शतं सेना अजयत्साकमिन्द्रः
इन्द्र देव सर्वव्यापी शत्रुओं के लिए तीक्ष्ण, वृषभ के समान भयंकर, शत्रु हन्ता तथा मनुष्यों को विचलित करने वाले हैं। मनुष्य त्रस्त होते हैं। वे शत्रुओं को रुलाते और सदा चारों ओर दृष्टि रखने वाले हैं। उन्होंने एकत्र विराट् सेना को जीता है।[ऋग्वेद 10.103.1]
तीक्ष्ण :: चुभनेवाला, तेज, तीव्र, तीखा, तिक्त; तेज़ नोक वाला, तीव्र बुद्धि वाला, कुशाग्र; sharp-pointed,  sharp, acute, penetrating, pungent.
त्रस्त :: भयभीत, आक्रांत;  fed up, affected.
Indr Dev is sharp-penetrating, furious like the bull, slayer of the enemies and disturbing for the humans. Humans are tortured. He make the enemy weep and keep an eye all around. He won a large army.
संक्रन्दनेनानिमिषेण जिष्णुना युत्कारेण दुश्यवनेन धृष्णुना।
तदिन्द्रेण जयत तत्सहध्वं यधो नर इषहस्तेन वष्पा
हे योद्धा मनुष्यों! इन्द्र देव को सहायक पाकर विजयी बनें। शत्रुओं को पराजित करें। वे शत्रुओं को रुलाते और सदा चारों ओर दृष्टि रखते हैं। वे युद्ध करके विजयी बनते हैं। उन्हें कोई भी स्थान-भ्रष्ट नहीं कर सकता। वे दुद्धर्ष हैं। उनके हाथों में बाण है। वे जल बरसाते हैं।[ऋग्वेद 10.103.2]
Hey human warriors! Become victorious having been assisted by Indr Dev. Defeat the enemy. He make the enemy weep and keep an eye all around. None can destabilise-distract  him. He is victorious in the war. He is invincible. He possess arrows in his hands. He shower rains.
स इषुहस्तैः स निषङ्गिभिर्वशी संस्रष्टा स युध इन्द्रो गणेन।
संसृष्टजित्सोमपा बाहुशर्यु १ ग्रधन्वा प्रतिहिताभिरस्ता
बाण और तुणीर वाले उनके संग में रहते हैं। वे सबको वश में करते हैं। युद्धकाल में वे विशाल शत्रुओं के साथ युद्ध करते हैं। जो उनके सामने जाता है, उसे वे जीत लेते हैं। वे सोमपान करते हैं। उनका भुजबल विलक्षण है और भयावह हैं। उसी धनुष से बाण छोड़कर वे शत्रुओं को पराजित करते हैं।[ऋग्वेद 10.103.3]
Possessor of arrows and quiver are with him. He keep all in his control. He fight large armies of the enemy during the war. He win who so ever confront him. He drink Somras. He possess amazing power in the hands and is furious. He shot arrows with his bow defeating the enemies.
बृहस्पते परि दीया रथेन रक्षोहामित्राँ अपबाधमानः।
प्रभञ्जन्त्सेनाः प्रमृणो युधा जयन्नस्माकमेध्यविता रथानाम्
हे बृहस्पति देव! राक्षसों का वध कर, शत्रुओं को दुःख पहुँचाकर और रथ पर चढ़कर पधारें। शत्रु-सेना को ध्वस्त करें, विपक्ष के योद्धाओं को मार डालें, विजयी बनें और हमारे रथों की रक्षा करें।[ऋग्वेद 10.103.4]
Hey Brahaspati Dev! Kill the enemies, torture them, ride the charoite and come here. Destroy the enemy army, kill the opponent warriors in the war and protect our charoites.
बलविज्ञायः स्थविरः प्रवीरः सहस्वान् वाजी सहमान उग्रः।
अभिवीरो अभिसत्वा सहोजा जैत्रमिन्द्र रथमा तिष्ठ गोवित्
हे इन्द्र देव! आप शत्रु-बल-ज्ञाता, अनन्त काल के प्राचीन, उत्कृष्ट वीर, तेजस्वी, वेगशाली, भयंकर और विपक्ष-विजयी हैं। वीरों के प्रति दौड़ें और प्राणियों के प्रति दौड़ें। आप बल के पुत्र-स्वरूप हैं। आप गायों को जीतने के लिए जयशील रथ पर आरुढ़ हों।[ऋग्वेद 10.103.5]
Hey Indr Dev! You know the strength of the enemy; ancient-eternal, excellent warrior, majestic, dynamic and winner of the enemy. Run for the sake of brave and living beings. You are like the son of Bal. Ride the winning charoite to win the cows.
गोत्रभिदं वज्रबाहुं जयन्तमज्म प्रमृणन्तमोजसा।
इमं सजाता अनु वीरयध्वमिन्द्रं सखायो अनु सं रभध्वम्
इन्द्र देव बादलों को फाड़ने वाले, गायों को प्राप्त करने वाले हैं। उनके हाथों में वज्र है। वे अस्थिर शत्रु-सैन्य को अपने तेज से जीतते और मारते हैं। हे अपने वीरो! इन्हें आगे करके वीरता दिखाओ। हे मित्र लोगों! इनके अनुकूल होकर पराक्रम प्रदर्शित करें।[ऋग्वेद 10.103.6]
Indr Dev tears the clouds and attain the cows. He wield Vajr in his hand. He destroy the unstable enemy army with his majesty. Hey our warriors! Keep him in front and show your power. Hey friends! Become favourable to him and demonstrate your worth (capability, might).
अभि गोत्राणि सहसा गाहमानोऽदयो वीरः शतमन्युरिन्द्रः।
दुश्र्च्यवनः पृतनाषाळयुध्यो ३ऽस्माकं सेना अवतु प्र युत्सु
सौ यज्ञ करने वाले और वीर इन्द्र देव मेघों की ओर दौड़ते हैं। वे निर्दयी और बली है। वे कभी स्थान-भ्रष्ट नहीं होते। वे शत्रुओं की सेनाओं को हराते हैं। उनके साथ कोई युद्ध नहीं कर सकता। युद्धस्थल में वे हमारी सेनाओं को बचावें।[ऋग्वेद 10.103.7]
Performer of hundred Yagy, Indr Dev run towards the clouds. He is ruthless and mighty. He does nor appear displaced from his abode. He defeat enemy armies. None can fight against him. Let him save our armies in the war.
इन्द्र आसां नेता बृहस्पतिर्दक्षिणा यज्ञः पुर एतु सोमः।
देवसेनानामभिभञ्जतीनां जयन्तीनां मरुतो यन्त्वग्रम्
इन्द्र देव उन सब सेनाओं के सेनापति हैं। बृहस्पति उन सेनाओं की दाहिनी ओर रहें। यज्ञोपयोगी सोमदेव उनके आगे रहें। मरुद्गण शत्रु-भयकर्ती और विजयिनी देव-सेनाओं के आगे-आगे जाएं।[ऋग्वेद 10.103.8]
Indr Dev is the commander of these armies. Useful Som Dev should remain in the front. Let Marud Gan march ahead of divine army terrifying-terrorising the enemy.
इन्द्रस्य वृष्णो वरुणस्य राज्ञ आदित्यानां मरुतां शर्ध उग्रम्।
महामनसां भुवनच्यवानां घोषो देवानां जयतामुदस्थात्
हे वारि-वर्षक इन्द्र देव! राजा वरुण, आदित्य गण और मरुद्गण की शक्ति अत्यन्त भयानक है। महानुभाव देवगण जिस समय भुवन को कँपाकर विजयी होने लगे, उस समय कोलाहल उपस्थित हो गया।[ऋग्वेद 10.103.9]
कोलाहल :: शोर, हल्ला; clamour, uproar
Hey rain showering Indr Dev! Lord Varun Dev, Adity Dev and Marud Gan are extremely furious. When the demigods-deities became victorious trembling the abode-earth, it generated clamour-uproar.
उद्धर्षय मघवन्नायुधान्युत्सत्वनां मामकानां मनांसि।
उत्रहन् वाजिनां वाजिनान्युद्रथानां जयतां यन्तु घोषाः
हे इन्द्र देव! अस्त्र-शस्त्र प्रस्तुत करें। हमारे अनुचरों के मन को उत्साहित करें। हे वृत्रध्न इन्द्र देव! अश्वों का बल बढ़े। जयशील रथ की निर्घोष ध्वनि उठे।[ऋग्वेद 10.103.10]
निर्घोष :: घोष रहित, घोर शब्द, आवाज़; fulmination, thunderless.
Hey Indr Dev! Demonstrate your weapons. Encourage the innerself of our followers-warriors. Hey slayer of Vratr Indr Dev1 Let the strength of the horses increase & the sound of winner charoites reduce i.e., become thunderless.
अस्माकमिन्द्रः समृतेषु ध्वजेष्वस्माकंया इषवस्ता जयन्तु।
अस्माकं वीरा उत्तरे भवन्त्वस्माँ उ देवा अवता हवेषु
जिस समय पताका फहराई जाती है, उस समय इन्द्र देव हमारी ही ओर रहते हैं हमारे बाण विजयी हों। हमारे वीर श्रेष्ठ हों। हे देवों! युद्ध में हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 10.103.11]
When the flag is hoisted, Indr Dev remain on our side and our arrows become victorious. Let our warriors be excellent. Hey demigods-deities! Protect us during the war.
अमीषां चित्तं प्रतिलोभयन्ती गृहाणाङ्गान्यप्वे परेहि।
अभि प्रेहि निर्दह हृत्सु शोकैरन्येनामित्रास्तमसा सचन्ताम्
हे अप्वा नामक पाप-देवता! आप चले जाएं और उन शत्रुओं के मन को प्रलुब्ध करें। उनके शरीरों में प्रवेश करें। उनकी ओर जाएं। शोक के द्वार उनके हृदय में दाह उत्पन्न करें। शत्रु लोग अन्धकारमयी रजनी में एकत्रित हों।[ऋग्वेद 10.103.12]
Hey deity of sins, Apva! You move towards the enemy; enter their innerself and the body of the enemies. Produce sorrow-pain in their heart, burning them. Let the enemies gather in the night, full of darkness.
प्रेता जयता नर इन्द्रो वः शर्म यच्छतु। उग्रा वः सन्तु बाहवोऽनाधृष्या यथासथ
हे मनुष्यों, अग्रसर होवें। विजयी होवें। इन्द्र देव आपको सुखी करें। आप लोग जैसे दुर्द्धर्ष है, वैसी ही भयंकर आपकी भुजाएं हों।[ऋग्वेद 10.103.13]
Hey humans, march forward and become victorious. Indr Dev should grant you pleasure. Your arms should be invincible like you.(12.01.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (104) :: ऋषि :- अष्टक, विश्वामित्र; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप्।
असावि सोमः पुरुहूत तुभ्यं हरिभ्यां यज्ञमुप याहि तूयम्।
तुभ्यं गिरो विप्रवीरा इयाना दधन्विर इन्द्र पिबा सुतस्य
बहुतों के द्वारा आहूत हे इन्द्र देव! आपके लिए सोमरस अभिषुत हुआ है। दोनों अश्वों के द्वारा शीघ्र ही यज्ञ में पधारें। प्रधान-प्रधान स्तोताओं ने आपके लिए स्तोत्र पाठ करके यह सोमरस दिया है। हे इन्द्रदेव! इस सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 10.104.1]
Hey Indr Dev, worshiped by many! Somras has been extracted for you. Come riding both horses. This Somras has been presented by the head Stotas. Hey Indr Dev! Drink this Somras.
अप्सु धूतस्य हरिवः पिबेह नृभिः सुतस्य जठरं पृणस्व।
मिमिक्षुर्यमद्रय इन्द्र तुभ्यं तेभिर्वर्धस्व मदमुक्थवाहः
हरि नामक अश्वों के स्वामी हे इन्द्र देव! कर्मकर्ता जिसे प्रस्तुत और जल में परिष्कृत करके ले आए हैं, उसी सोम का पान करें। उदर भरें। आपके लिए पाषाणों ने जो सेचन किया है, उसके द्वारा मत्त होवें और अपनी स्तुतियों को ग्रहण करें।[ऋग्वेद 10.104.2]
Master of horses named Hari, hey Indr Dev! Drink the Somras refined by those who extracted & refined it. Fill your belly with it. You should be gladdened with the Somras extracted with stones and accept our Stuties.
प्रोग्रां पीतिं वृष्ण इयर्मि सत्यां प्रयै सुतस्य हर्यश्व तुभ्यम्।
इन्द्र धेनाभिरिह मादयस्व धीभिर्विश्वाभिः शच्या गृणानः
हरि नामक अश्वों के प्रभु हे इन्द्र देव! सोम अभिषुत (प्रस्तुत) हुआ है। आप वर्षक हैं, आपके यज्ञागमन की सम्भावना देखकर आपके पीने के लिए सोमरस प्रेरित करता हूँ। हे इन्द्र देव! उत्तमोत्तम स्त्रोत पाकर आमोद करें। विविध कार्य करें। नाना प्रकार के स्तोत्रों से आप परितृप्त हों।[ऋग्वेद 10.104.3]
Hey lord of horses named Hari, hey Indr Dev! Somras has been extracted. You are the showerer of rains. I prepare Somras with the expectation-desire of serving it to you. Hey Indr Dev! Enjoy with the excellent Strotrs. Perform various-different jobs. You should be satisfied with various Strotrs.
ऊती शचीवस्तव वीर्येण वयो दधाना उशिज ऋतज्ञाः।
प्रजावदिन्द्र मनुषो तस्थुर्गुणन्तः सधमाद्यासः
हे क्षमताशाली इन्द्र देव! उशिज् वंश वाले यज्ञ करना जानते हैं। जो लोग आपका आश्रय पाकर आपके प्रभाव से अन्न लाभ करके और सन्तान प्राप्ति करके यजमान के घर में रह गए, वे सब आनन्द-निमग्न होकर आपकी स्तुति करने लगे।[ऋग्वेद 10.104.4]
Hey capable Indr Dev! Descendants of Ushij dynasty know how to perform Yagy. Those who got food grains from you and had progeny remained in the house of the host and started worshiping you with happiness.
प्रणीतिभिष्टे हर्यश्व सुष्टोः सुषुम्नस्य पुरुरुचो जनासः।
मंहिष्ठामूतिं वितिरे दधानाः स्तोतार इन्द्र तव सूनृताभिः॥
हरि नाम अश्वों के स्वामी, हे इन्द्र देव! आपका स्तोत्र सुन्दर है। आपका धन आश्चर्यजनक है और आपकी उज्ज्वलता अत्यन्त है। आप जो कुछ सुन्दर और यथार्थ स्तोत्र बना चुके हैं अथवा धनादि प्रदान कर चुके हैं, उनसे आपकी स्तुति करके अनेकों ने आत्म-रक्षा की हैं और दूसरों की भी रक्षा की है।[ऋग्वेद 10.104.5]
Hey lord of horses named Hari, hey Indr Dev! Your Strotr is beautiful. Your wealth is amazing and extremely lustrous. The realistic Strotr composed by you or the wealth donated by you has protected many people including others. 
उप ब्रह्माणि हरिवो हरिभ्यां सोमस्य याहि पीतये सुतस्य।
इन्द्र त्वा यज्ञः क्षममाणमानङ् दाश्वाँ अस्यध्वरस्य प्रकेतः
हरियों के प्रभु, हे इन्द्र देव! जो सोम अभिषुत किया गया है, उसे पीने के लिए हरि नाम के दोनों अश्वों के द्वारा सारे यज्ञों में आप पधारते हैं। आप शक्तिशाली हैं। आपको ही यज्ञ प्राप्त करते हैं। यज्ञीय विषय को समझ कर आप दान करते हैं।[ऋग्वेद 10.104.6]
Hey lord of Hari, Indr Dev! You invoke to drink the Somras extracted with the horses named Hari, in all Yagy. You are mighty. The Yagy ultimately belong to you. You understands the theme of the Yagy and donate accordingly.
सहस्रवाजमभिमातिषाहं सुतेरणं मघवानं सुवृक्तिम्।
उप भूषन्ति गिरो अप्रतीतमिन्द्रं नमस्या जरितुः पनन्त
जिसके पास असीम अन्न है, जो शत्रुओं को पराजित करते हैं, जो सोम से प्रसन्न होते है, जिनका स्तोत्र करने पर आनन्द मिलता है और जिनके विपक्ष में कोई नहीं जा सकता, उन्हें स्तोत्र विभूषित करते है और स्तोताओं के प्रणाम उनकी पूजा करते हैं।[ऋग्वेद 10.104.7]
He who has uncounted-unlimited wealth, defeats the enemy, become happy with Somras, grant pleasure due to Strotr, can not be opposed by anyone; is glorified with Strotr and the Stotas worship him.
सप्तापो देवीः सुरणा अमृक्ता याभिः सिन्धुमतर इन्द्र पूर्भित्।
नवतिं स्त्रोत्या नव च स्रवन्तीर्देवेभ्यो गातुं मनुषे च विन्दः
हे इन्द्र देव! रमणीय और अमित गतिवाली गङ्गा आदि सात नदियों के द्वारा आपने शत्रु पुरियों को नष्ट करके सिन्धु को (सागर को) बढ़ाया। आपने देवों और मुनष्यों के उपकार के लिए निन्यानबे नदियों का मार्ग परिष्कृत किया।[ऋग्वेद 10.104.8]
Hey Indr Dev! Delightful, with unlimited speed Ganga and seven rivers you destroyed the cities-forts of the enemies and extended-widened the ocean. You refined-purified ninety nine river for the welfare of humans and the demigods-deities.
अपो महीरभिशस्तेरमुञ्चोऽजाोगरास्वधि देव एकः।
इन्द्र यास्त्वं वृत्रतूर्ये चकर्थ ताभिर्विश्वायुस्तन्वं पुपुष्याः
आपने जल का आवरण खोल दिया। आप जल लाने को अकेले ही प्रस्तुत हुए। हे इन्द्र देव! वृत्र-वध के उपलक्ष में आपने जो कार्य किए, उनके द्वारा समस्त संसार के शरीर का पोषण किया।[ऋग्वेद 10.104.9]
उपलक्ष्य :: वह विचार जिसे पूरा करने के लिए कोई काम किया जाए, उद्देश्य, निमित्त, दृष्टि, ख़ुशी में कोई कार्य करना; to celebration, salvo, token. on account of.
You unwrapped the cover-shield of water. You alone moved to bring water. Hey Indr Dev! To celebrate the killing of Vratr, you performed for the benefit-nurture of the whole world.
वीरेण्यः क्रतुरिन्द्रः सुशस्तिरुतापि धेना पुरुहूतमीट्टे।
आर्दयत्रमकृणोदु लोकं ससाहे शक्रः पृतना अभिष्टिः
हे इन्द्र देव! आप महावीर और क्रिया-कुशल हैं। आपका स्तोत्र करने पर आनन्द होता है। उत्तम स्तोत्र उदित होकर आपकी पूजा करता है। आपने वृत्रासुर का वध किया, संसार को बनाया, शक्तिशाली होकर शत्रु-पराभव किया और शत्रु-सेना के प्रतिकूल गए।[ऋग्वेद 10.104.10]
Hey Indr Dev! You are mighty and expert in performing jobs. Recitation of your Strotr grants pleasure. Excellent Strotr were for your worship. You slayed Vratr Sur, evolved the universe, defeated the mighty enemy and acted against the enemy army.
शुनं हुवेम मघवानमिन्द्रमस्मिन्भरे नृतमं वाजसातौ।
शृण्वन्तमुग्रमूतये समत्सु घ्नन्तं वृत्राणि संजितं धनानाम्
स्थूलकाय और धनी इन्द्र देव का आवाहन करते हैं। युद्ध के समय जबकि अन्नादि को बाँटा जाएगा, तब इन्द्र देव ही प्रधानतया अध्यक्षता करेंगे। अपने पक्ष की रक्षा के लिए वे युद्ध में उग्र मूर्ति धारण करते, शत्रुओं को मारते, वृत्रों का नाश करते और धन जीतते हैं।[ऋग्वेद 10.104.11]
Bulky and wealthy Indr Dev is invoked. Indr Dev will preside while distributing food grains etc. during war. He become furious for the protection of his side, kills the enemy-Vratr and win wealth.(13.01.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (105) :: ऋषि :- कुत्स, दुर्मित्र या सुमित्र; देवता :- इन्द्र; छन्द :- गायत्री, उष्णिक्, पिपीलिकमध्या, त्रिष्टुप्। 
कदा वसो स्तोत्रं हर्यत आव श्मशा रुधद्वाः। दीर्घ सुतं वाताप्याय
हे इन्द्र देव! आप स्तुतियों से प्रसन्न होने वाले हैं। जिस प्रकार नहर निकालने के लिए जल रोका जाता है, उसी प्रकार तैयार किया हुआ सोमरस प्रदान करने के लिए आपको कब रोके?[ऋग्वेद 10.105.1]
Hey Indr Dev! You become happy-pleased with Stuties. The way water is stored for a canal (by constructing a dam), similarly how long should we keep Somras for you?
हरी यस्य सुयुजा विव्रता वेरर्वन्तानु शेपा। उभा रजी न केशिना पतिर्दन्
उनके दो अश्व सुशिक्षित हैं। वे अनेक कार्य करते हैं। वे दोनों शुभ्र और केश वाले हैं। उनके स्वामी इन्द्र देव दान करने के लिए पधारें।[ऋग्वेद 10.105.2]
Two horses-Hari of Indr Dev are trained. They perform several functions. They are bright and have hair. Let their master Indr Dev arrive here to make donations.
अप योरिन्द्रः पापज आ मर्तो न शश्रमाणो बिभीवान्। शुभे यद्युयुजे तविषीवान्
शोभा के लिए जिस समय बली इन्द्र देव ने अश्वों को रथ में नियोजित किया, उस समय सारे पाप दूर हुए और सभी मनुष्य सुखी हुए।[ऋग्वेद 10.105.3]
When Indr Dev deployed the horses for glory, all sins vanished and humans became happy-comfortable.
सचायोरिन्द्रश्चकैंष आँ उपानसः सपर्यन्। नदयोर्विव्रतयोः शूर इन्द्रः
मनुष्यों से पूजा पाकर इन्द्र देव ने समस्त धनों को एकत्रित कर डाला। वे नाना कार्य करने वाले और शब्दायान दो अश्वों को चलाने लगे।[ऋग्वेद 10.105.4]
Having been worshiped by the humans Indr Dev collected his whole wealth. He moved his two horses which performed various functions, making sound-neigh.
अधि यस्तस्थौ केशवन्ता व्यचस्वन्ता न पुष्ट्यै। वनोति शिप्राभ्यां शिप्रिणीवान्
केश वाले और विशाल दोनों अश्वों पर आरुढ़ होकर अपनी देह की पुष्टि के लिए इन्द्र देव अपने सुघटित दोनों जबड़ों को चलाते हुए आहार माँगने लगे।[ऋग्वेद 10.105.5]
Riding the horses with hair, Indr Dev moved his jaws asking food for nourishing his body.
प्रास्तौदृष्वौजा ऋष्वेभिस्ततक्ष शूरः शवसा। ऋभुर्न क्रतुभिर्मातरिश्वा
इन्द्र देव की शक्ति अतीव सुन्दर है। वे सुशोभन हैं। वे मरुतों के साथ यजमान को साधुवाद करते हैं। वे अन्तरिक्ष में रहते हैं। जिस प्रकार ऋभुओं ने कर्म-कौशल से रथ आदि का निर्माण किया, उसी प्रकार ही वीर इन्द्र देव ने अपने बल से अनेक वीर-कार्य किए।[ऋग्वेद 10.105.6]
Indr Dev's strength is majestic. He is glorious. He thank the hosts along with the Marud Gan. The way Ribhu Gan constructed the charoite, Indr Dev did several brave deeds with his might.
वज्रं यश्चक्रे सुहनाय दस्यवे हिरीमशो हिरीमान्। अरुतहनुरद्भुतं न रजः
दस्यु का वध करने के लिए उन्होंने वज्र प्रस्तुत किया। उनके श्मश्रु (दाढ़ी-मूँछ) हरित वर्ण हैं। उनके अश्व भी हरित वर्ण हैं। उनके जबड़े सुन्दर हैं। वे आकाश के समान विशाल हैं।[ऋग्वेद 10.105.7]
For killing killing the Dasyu (Anary, dacoits) he wielded Vajr. His beard and moustache are green coloured.  He is vast-gigantic like the sky.
अव नो वृजिना शिशीह्यृ॒चा वनेमानृचः। नाब्रह्मा यज्ञ ऋधग्जोषति त्वे
हे इन्द्र देव! हमारे समस्त पापों को नष्ट करें। हम ऋचाओं के प्रभाव से ऋकशून्य व्यक्तियों का वध कर सके। जिस यज्ञ में स्तुति का संसर्ग नहीं है, वह कभी भी स्तोत्र वाले यज्ञ के समान आपको प्रीतिप्रद नहीं होता।[ऋग्वेद 10.105.8]
Hey Indr Dev! Vanish all of our sins. We should be empowered to kill the people without Rik by the power of Richas. The Yagy without the impact of Stuti is not acceptable to you.
ऊर्ध्वा यत्ते त्रेतिनी भूद्यज्ञस्य धूर्षु सद्मन्। सजूर्नावं स्वयशसं सचायोः
हे इन्द्र देव! जिस समय आपकी ज्वालाएं यज्ञ स्थल में ऋत्विजों द्वारा प्रदीप्त हुईं, उस समय आप यजमानों के साथ प्रसन्न होकर सबको प्रेरित करके यशस्वी नौका पर आरूढ़ होते हैं।[ऋग्वेद 10.105.9]
Hey Indr Dev! When flames were produced by the Ritviz at the Yagy site, you turned happy and inspired all, along with the hosts and rode the glorious boat.
श्रिये ते पृश्निरुपसेचनी भूच्चिये दर्विररेपाः। यया स्वे पात्रे सिञ्चस उत्
हे इन्द्र देव! दूधवाली गाय आपके मङ्गल के लिए हो। जिस पात्र के द्वारा आप अपने पात्र में मधु ले लेते हैं, वह दर्वी (पात्र-विशेष) निर्मल और कल्याणकर हों।[ऋग्वेद 10.105.10]
Hey Indr Dev! Let the milch cow be beneficial to you. The vessel in which you have honey should be clean and beneficial.
शतं वा यदसुर्य प्रति त्वा सुमित्र इत्थास्तौदुर्मित्र इत्थास्तौत्आ।
आवो यद्युहत्ये कुत्सपुत्रं प्रावो यद्दस्युहत्ये कुत्सवत्सम्
हे बली इन्द्र देव! आपके लिए इस प्रकार से सुमित्र ने एक सौ स्तोत्रों का पाठ किया। दुर्मित्र ने भी आपकी स्तुति की; क्योंकि आपने दस्युवध के समय कुत्स-पुत्र को संरक्षण प्रदान किया।[ऋग्वेद 10.105.11]
Hey mighty Indr Dev! In this manner Sumitr recited hundred Strotr. Dumitr too prayed-worshiped you, since you granted protection to the son of Kuts after killing the Dasyu.(14.01.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (106) :: ऋषि :- भूतांश या कश्यप; देवता :- अश्विनी कुमार; छन्द :- त्रिष्टुप्।
उभा उ नूनं तदिदर्थयेथे वि तन्वाथे धियो वस्त्रापसेव।
सध्रीचीना यातवे प्रेमजीगः सुदिनेव पृक्ष आ तंसयेथे
हे दोनों अश्विनी कुमारो! आप दोनों हमारी आहुति के अभिलाषी हो रहे हैं। जैसे-जैसे तन्तुवाय वस्त्र का विस्तार करता है, वैसे ही आप लोग हमारे स्तोत्र का विस्तार कर देते हैं। यह यजमान यह कहकर भली-भाँति आप लोगों की स्तुति करता है कि आप लोग एक साथ आते है। चन्द्र-सूर्य के समान आप लोग खाद्य द्रव्य को आलोकित करके कल्याणकारी बनाते हैं।[ऋग्वेद 10.106.1]
Hey Ashwani Kumard duo! You have been desirous of the offerings by us. The way a weever extends the thread, similarly you extend-prolong our Strotr. The host properly worship you saying that you come together. 
उष्टारेव फर्वरेषु श्रयेथे प्रायोगेव श्वात्र्या शासुरेथः।
दूतेव हि ष्ठो यशसा जनेषु माप स्थिातं महिषेवावनात्
जिस प्रकार दो बैल गोचर भूमि में विचरण करते हैं, उसी प्रकार आप लोग यज्ञ दान-समर्थ व्यक्ति के पास जाते हैं। रथ में जोते दो वृषों या अश्वों के समान धन-दान के लिए आप लोग स्तोता के पास आया करते हैं। दूत के समान आप लोग यशस्वी बनें। जिस प्रकार दो महिष जल-पान-स्थान से नहीं हटते, उसी प्रकार ही आप लोग भी सोमपान करने से न हटें।[ऋग्वेद 10.106.2]
The way the oxen-bulls roam in the grass land, you too go to the person capable of holding Yagy and making donations. You come to the Stota just like the bulls or horse deployed in the charoite. Become glorious like a messenger. The way the buffalo do not leave the place of drinking water, you too should not alienate from drinking Somras.
साकंयुजा शकुनस्येव पक्षा पश्वेव चित्रा यजुरा गमिष्टम्।
अग्निरिव देवयोर्दीदिवांसा परिज्मानेव यजथः पुरुत्रा
जिस प्रकार पक्षी के दो पंख आपस में मिले रहते हैं, उसी प्रकार ही आप लोग भी परस्पर मिले हुए हैं। दो अद्भुत पशुओं के समान इस यज्ञ में आये हैं। यज्ञ करने वाले आप लोग अग्नि देव के समान दीप्तिशाली हैं। सर्वत्र विहारी दो पुरोहितों के समान आप लोग नाना स्थानों में देव-पूजा किया करते हैं।[ऋग्वेद 10.106.3]
The way the two feathers of the birds are joined-touch together, you too are connected with each other. You have come to the Yagy like amazing animals. Performer of Yagy, you are lustrous like Agni Dev. Roaming like the Purohits-priests every where, you perform prayers at different places.
आपी वो अस्मे पितरेव पुत्रोग्रेव रुचा नृपतीव तुर्यै।
इर्येव पुष्ट्यै किरणेव भुज्यै श्रुष्टीवानेव हवमा गमिष्टम्
जिस प्रकार माता-पिता पुत्र के प्रति आशक्त रहते है, उसी प्रकार ही आप लोग हमारे प्रति होवें। आप लोग अग्नि देव और सूर्य देव के समान दीप्तिशील होवें, राजा के समान क्षिप्रकारी होवें, धनी व्यक्ति के समान उपकारी होवें और सूर्य-किरणों के समान आलोक देते हुए लोगों के सुख-भोग के अनुकूल होवें। *सुखी मनुष्य के समान इस यज्ञ में पधारें।[ऋग्वेद 10.106.4]
क्षिप्र :: तेज, जल्द, चंचल, शीघ्र, जल्दी, तत्क्षण, तुरंत; quick instantaneous. 
The way the parents are attached with the progeny, in the same manner you should be inclined towards us. You should be lustrous like Sury Dev and Agni Dev, ephemeral-quick like the king, well wisher like the wealthy person, radiant-aurous like the rays of light and favourable to the humans granting them pleasure. Join this Yagy like a happy person.
अर्थागमो नित्यमरोगिता च प्रिया च भार्या प्रियवादिनी च।
वश्यश्च पुत्रोऽर्थकरी च विद्या षड् जीवलोकस्य सुखानि राजन्॥
इस जीव लोक के छ: *सुख हैं :- (1). धन की प्राप्ति, (2). सदा स्वस्थ रहना, (3). प्रिय भार्या, (4). प्रिय बोलने वाली भार्या, (5). वश में रहने वाले पुत्र और (6). मनोरथ पूर्ण कराने वाली विद्या अर्थात्  इन छ: से संसार में सुख उपलब्ध होता है।[विदुर नीति 94]
These are six worldly pleasures :-  (1).  accumulation of wealth-worldly possessions, (2). good health-not to fall ill, (3). lovely wife, (4). the wife who speaks descent words, (5). the son who is obedient  & (6). the education which helps in attaining desired.
वंसगेव पूषर्या शिम्बाता मित्रेव ऋता शतरा शातपन्ता।
वाजेवोचा वयसा घर्येष्ठा मेषेवेषा सपर्या ३ पुरीषा
हे अश्विनी कुमारो! सुन्दर गति वाले दो वृषों के समान आप लोग हृष्ट-पुष्ट और सुदृश्य हों तथा मित्र और वरुण के समान आप लोग यथार्थ दर्शी, वदान्य और दुःख-ह्लास पूर्वक, स्तुति प्राप्त करते हैं। दो अश्वों के समान आप लोग खाकर मोटे-तगड़े हो गये हो। आप लोग प्रकाशमय आकाश में रहते हैं। भेड़ों के समान आप लोग यथेष्ट भोजनादि करके सुघटित अङ्ग-प्रत्यङ्गो से सम्पन्न हुए है।[ऋग्वेद 10.106.5]
वदान्य :: उदार, मधुरभाषी, अतिशय दाता, अपनी बात से दूसरों को संतुष्ट करने वाला, वाक्पटु, स्पष्ट; liberal, sweet spoken, donor, satisfying others with own talk, clear.
Hey Ashwani Kumars! Let you become strong & healthy like the two bulls and analytic, visualiser of the truth like Mitr & Varun Dev. You should pacify others with your argument, soothing words and accept prayers whether having sorrow of happiness. You turn fat like horses by eating. You reside in the radiant sky. Your body organs are well built by having sufficient-desired food like the sheep.
सृण्येव जर्भरी तुर्फरीतू नैतोशेव तुर्फरी पर्फरीका।
उदन्यजेव जेमना मदेरू ता मे जराय्वजरं मरायु
हे अश्विनी कुमारो! हाथी को रोकने वाले ओर मारने वाले अंकुशों के समान आप लोग रोकने वाले या भरण करने वाले और हन्ता है। हन्ता के समान आप लोग शत्रुओं के मारने वाले है, इसीलिए आप लोगों को शत्रु-विदारक अथवा यजमान-पालक कहा गया है। आप लोग ऐसे निर्मल है, मानों जल में उत्पन्न हुए हैं; आप लोग बली और विजयी हैं। मेरे मरण शील शरीर को पुनः यौवन प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.106.6]
हंता :: हत्यारा, संहारक; killer, destroyer.
Hey Ashwani Kumars! You block the elephant, move-direct it with goad & grant food. You kill like a killer of the enemy. You are knowns as a slayer of the enemy and supporter-nurturer of the Ritviz. You are clean as if born-evolved out of water. You are victorious and mighty. Grant youth to my body which is bound to parish.
 पज्रेव चर्चरं जारं मरायु क्षद्मेवार्थे॑षु तर्तरीथ उग्रा।
ऋभू नापत्खरमज्रा खरज्जुर्वायुर्न पर्फरत्क्षयद्रयीणाम्
हे तीव्र बली अश्विनी कुमारो! जिस प्रकार दीर्घ चरण वाला व्यक्ति दूसरे को जल से पार कर देता है उसी प्रकार ही आप लोग मेरी मरण-धर्मशील देह को विपत्ति से पार करके अभिलषित विषय में ले चलें। ऋभु के समान आपने अत्यन्त संस्कृत रथ प्राप्त किया है। वह शीघ्रगामी रथ वायु के समान उड़कर शत्रु का धन ले आया है।[ऋग्वेद 10.106.7]
Hey dynamic, mighty Ashwani Kumars! The way a person with long legs helps other person cross water, similarly carry my body, which is to be dead-perish out of trouble and take it in the desired direction. You have attained a well build-best charoite like the Ribhu. This fast moving charoite flew like air and bring the brought the wealth of the enemy.
घर्मेव मधु जठरे सनेरू भगेविता तुर्फरी फारिवारम्।
पतरेव चचरा चन्द्रनिर्णिछुमनऋङ्गा मनन्या ३ न जग्मी
हे अश्विनी कुमारो! महावीर के समान आप लोग अपने पेट में घृत गिरा लें। आप लोग धन के रक्षक और अस्त्र लेकर शत्रुओं के वध कर्ता हैं। आप लोग पक्षी के समान सुन्दर और सर्वत्र विहारी हैं। इच्छा करने के साथ ही आप लोग भूषित होते हैं और स्तोत्र के लिए यज्ञ में पधारते हैं।[ऋग्वेद 10.106.8]
महावीर :: बहुत बड़ा वीर, योद्धा; great warrior.
Hey Ashwani Kumars! Drink Ghee like great warrior. You are protectors of wealth and ready to kill the enemy with weapons. You are beautiful like birds and roam every where. You are decorated-worshiped as per your desire and arrive at the Yagy for the Strotr.
बृहन्तेव गम्भरेषु प्रतिष्ठां पादेव गाधं तरते विदाथः।
कर्णेव शासुरनु हि स्मराथोंऽ शेव नो भजतं चित्रमप्नः
जिस प्रकार लम्बे पैर रहने पर, गम्भीर जल के पार होने के समय आश्रय मिलता है, उसी प्रकार ही आप लोग आश्रय प्रदान करें। आप लोग दोनों कानों के समान स्तोता की स्तुति को ध्यान से सुनते हैं। दो यज्ञाङ्गों के समान हमारे इस विचित्र यज्ञ में पधारें।[ऋग्वेद 10.106.9]
The way  one gets asylum with long legs crossing through the water, you too grant asylum. You listen to the Stota like the ears. Join our amazing Yagy like the segments of the Yagy.
आरङ्गरेव मध्वेरयेथे सारघेव गवि नीचीनबारे।
कीनारेव स्वेदमासिष्विदाना क्षामेवोर्जा सूयवसात् सचेथे
जिस प्रकार बोलने वाली दो मधुमक्खियाँ मधु के छाते में मधु का सेचन करती हैं, उसी प्रकार ही आप लोग गाय के स्तन में मधुतुल्य दुग्ध का संचार कर दें। जिस प्रकार श्रमजीवी श्रम करके पसीने से तर हो जाता है, उसी प्रकार ही आप लोग भी स्वेदवाले होकर जल-सेचन करें। जिस प्रकार दुर्बल गाय गोचर भूमि में जाकर अपना आहार पाती है, उसी प्रकार ही आप लोग भी यज्ञ में आकर आहार पाते हैं।[ऋग्वेद 10.106.10]
The way the honey bee collect honey in honey comb, similarly make the milk comparable to honey, flow through the udder of the cows. The way a labourer sweats, you too have sweat and irrigate with water. The way a weak cow gets its food in the grass land, you too join the Yagy and food.
ऋध्याम स्तोमं सनुयाम वाजमा नो मन्त्रं सरथेहोप यातम्।
यशो न पकं मधु गोष्वन्तरा भूतांशो अश्विनोः काममप्राः
हम स्तोत्र का विस्तार करते हैं और आहार का वितरण करते है; इसलिए आप लोग एक रथ पर चढ़कर हमारे यज्ञ में पधारें। गाय के स्तन में सुमिष्ट आहार के समान दुग्ध है। भूतांश ऋषि ने यह स्तोत्र करके दोनों अश्विनी कुमारो का मनोरथ परिपूर्ण किया।[ऋग्वेद 10.106.11]
We extend the Strotr and distribute food, hence ride the charoite and join the Yagy. Cow udder has milk like sweet food. Bhutansh Rishi dedicated this Strotr to Ashwani Kumars.(15.01.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (107) :: ऋषि :- दिव्य, आंगिरस, दक्षिणा या प्राजापत्य; देवता :- दक्षिणा या उसका दाता; छन्द :- त्रिष्टुप्, जगती।
आविरभून्महि माघोनमेषां विश्वं जीवं तमसो निरमोचि।
महि ज्योतिः पितृभिर्दत्तमागादुरुः पन्था दक्षिणाया अदर्शि
इन यजमानों के यज्ञ निर्वाह के लिए सूर्य रूपी इन्द्र देव का विपुल तेज प्रकट हुआ। सारे प्राणी अन्धकार से बाहर आये। पितरों के द्वारा दी गई ज्योति उपस्थित हुई। दक्षिणा देने की प्रस्तर पद्धति उपस्थित हुई।[ऋग्वेद 10.107.1]
Aura-radiance of Indr Dev appeared in the form of Sun for conduction of the Yagy by the Ritviz. All creatures came out of darkness. Light granted by the Manes-Pitre appeared. Policy for granting Dakshina-fee to priests evolved-framed.
उचा दिवि दक्षिणावन्तो अस्थुर्य अश्वदाः सहते सूर्येण। 
हिरण्यदा अमृतत्वं भजन्ते वासोदाः सोम प्र तिरन्त आयुः
जो लोग दक्षिणां देते हैं, वे स्वर्ग में उच्च आसन पाते हैं। अश्व दाता सूर्य देव के साथ एकत्रित होते है। सुवर्णदाता अमरता पाते हैं। वस्त्र दाता लोग सोम के पास जाते हैं। सभी दीर्घायु होते हैं।[ऋग्वेद 10.107.2]
Those who grant-award fees-Dakshina attain high positions in the heavens. Those who grant horses get place with Sury Dev (Sury Lok). Donors of gold attain immortality. Distributors of cloths reach Som. They all attain long life.
दैवी पूर्तिर्दक्षिणा देवयज्या न कवारिभ्यो नहि ते पृणन्ति।
अथा नरः प्रयतदक्षिणासोऽवद्यभिया बहवः पृणन्ति
दक्षिणा के द्वारा पुण्य कर्म की पूर्णता प्राप्त की जाती है- यह देव-पूजा का अङ्ग-स्वरूप है। जिनका आचरण खराब है, उनका कार्य देवता लोग पूर्ण नहीं करते। जो लोग पवित्र दक्षिणा देते हैं, निन्दा से डरते हैं, वे अपने कर्म को पूर्ण करते हैं।[ऋग्वेद 10.107.3]
Perfection in pious-virtuous deeds is  attained through Dakshina. Its a par of deity worship. Deities do not accomplish the endeavours of those with bad character, behaviour, wickedness, viciousness. Those who make pious-pious Dakshina, fear reproach; complete-accomplish their job-efforts (aims, objectives).
As a matter of fact Indians avoid paying fees-Dakshina to the Palmist, Vaedy in general. They consider its free consultation. As a result of it they get adverse-shocking results. One one must follow the dictates of Bhavishy Puran.
शतधारं वायुमर्कं स्वर्विदं नृचक्षसस्ते अभि चक्षते हविः।
ये पृणान्ति प्र च यच्छन्ति संगमे ते दक्षिणां दुहते सप्तमातरम्
जो वायु सैकड़ों मार्गों से बहता है, उसके लिए आकाश, सूर्य तथा अन्यान्य मनुष्य हितैषी देवों के लिए होमीय द्रव्य (हवि) दिया जाता है। जो लोग देवों को तृप्त करते और दान देते हैं, उनका मनोरथ दक्षिणा पूर्ण करती है। यह दक्षिणा पाने के अधिकारी सात पुरोहित विद्यमान हैं।[ऋग्वेद 10.107.4]
Offerings are made to Vayu Dev-who roam-travel through hundreds of routes, sky, Sun and various demigods who are well wishers of humans. The desires of those who satisfy the demigods-deities and make donations are accomplished by the Dakshina. Seven priests deserve such Dakshina (performing Yagy, Hawan, Agni Hotr).
दक्षिणावान् प्रथमो हूत एति दक्षिणावान् ग्रामणीरग्रमेति।
तमेव मन्ये नृपतिं जनानां यः प्रथमो दक्षिणामाविवाय
दाता को सबसे पहले बुलाया जाता है। वे ग्रामाध्यक्ष होते हैं और सबके आगे-आगे जाते हैं। जो सबसे पहले दक्षिणा देते है, उन्हें मैं सबका राजा जानता हूँ।[ऋग्वेद 10.107.5]
Donor is called first. He is generally the village head and walk ahead of others. One who make Dakshina first, is considered to be a king by me.
तमेव ऋषिं तमु ब्रह्माणमाहुर्यज्ञन्यं सामगामुक्थशासम्।
स शुक्रस्य तन्वो वेद तिस्त्रो यः प्रथमो दक्षिणया रराधः
जो सर्व-प्रथम दक्षिणा देकर पुरोहित को प्रसन्न करते है, वे ही ऋषि और ब्रह्मा कहे जाते हैं, वे ही यज्ञ के अध्यक्ष, सामगाता और स्तोता कहे जाते हैं। वे अग्नि देव की तीनों मूर्तियों को जानते हैं।[ऋग्वेद 10.107.6]
Those who give Dakshina to the Purohit-priest first of all are called Rishi and Brahma. They were called presider of the Yagy, Samgata and Stota. They are aware of the three forms of Agni Dev.
दक्षिणाश्वं दक्षिणा गां ददाति दक्षिणा चन्द्रमुत यद्धिरण्यम्।
दक्षिणान्नं वनुते यो न आत्मा दक्षिणां वर्म कृणुते विजानन्
दक्षिणा में अश्व, गाय और मन को प्रसन्न करने वाला सोना देती है। हमारा आत्म-स्वरूप जो आहार है, वह भी दक्षिणा से पाया जाता है। विद्वान् व्यक्ति दक्षिणा का देह-रक्षक कवच के समान व्यवहार करते हैं।[ऋग्वेद 10.107.7]
Horses, cows and gold are awarded as Dakshina granting happiness in the innerself. The food too is a form of Dakshina. Learned-scholars consider Dakshina as a means to protect the body.
न भोजा मम्रर्न न्यर्थमीयुर्न रिष्यन्ति न व्यथन्ते ह भोजाः।
इदं यद्विश्वं भुवनं स्वश्चैतर्सं दक्षिणैभ्यो ददाति
दान देने वालों की मृत्यु नहीं होती वे देवता हो जाते हैं। वे दरिद्र नहीं होते-वे क्लेश, व्यथा या दुःख भी नहीं पाते। इस पृथ्वी या स्वर्ग में जो कुछ है, वह सब उन्हें दक्षिणा से प्राप्त होता है।[ऋग्वेद 10.107.8]
क्लेश :: दुःख, पीड़ा, चिंता, संताप; tribulation, distress.
Donors or those who grant Dakshina do not die, they become demigods. They do not become poor, do not get tribulation, distress, tortures. Everything over the earth or heavens is obtained by them as Dakshina.
Its "give and take". Do good, have good. 
भोजा जिग्युः सुरभिं योनिमग्रे भोजा जिग्युर्वध्वं १ या सुवासाः।
भोजाजिग्युरन्तः पेयं सुराया भोजा जिग्युर्ये अहूताः प्रयन्ति
घृत, दूध देने वाली गाय को तो दाता लोग सबसे पहले पाते हैं। वे सुन्दर परिच्छ वाली नवोढ़ा स्त्री पाते हैं। वे सुरा (मदिरा का सार) (क्या सोम?) पाते हैं। दान दाता लोग छल से आक्रमण करने वाले शत्रुओं पर भी विजय प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 10.107.9]
छल :: धोखा, कपट, बहाना; deceit, stealth.
The donors attain milk, Ghee yielding cow, first of all. They have a wife with beautiful back. They will get the extract of wine-Sura. Donors attain victory over those who attack them through deceit.
भोजायाश्वं सं मृजन्त्याशुं भोजायास्ते कन्या ३ शुम्भमाना।
भोस्येदं पुष्करिणीव वेश्म परिष्कृतं देवमानेव चित्रम्
दाता को शीघ्रगन्ता अश्व अलंकृत करके दिया जाता है। उसके लिए सुन्दरी स्त्री उपस्थित रहती है। पुष्करणी के समान निर्मल और देवालय के समान मनोरथ गृह दाता के लिए ही विद्यमान है।[ऋग्वेद 10.107.10]
Donor is granted fast moving horse decorated horse. Beautiful woman is present for him. As pure-clean as Pushkarni and Devalay-Temple; accomplishments are granted to the  donor of house.
भोजमश्वाः सुष्ठुवाहो वहन्ति सुवृद्रथो वर्तते दक्षिणायाः।
भोजं देवासोऽवता भरेषु भोजः शत्रून्त्समनीकेषु जेता
सुन्दर वहन कर्ता अश्व, दाता को ले जाते हैं। उसी के लिए सुघटित रथ विद्यमान है। युद्ध के समय देवता लोग दान देनेवाले की रक्षा करते हैं। दान देने वाला युद्ध में शत्रुओं को जीतता है।[ऋग्वेद 10.107.11]
Beautiful carrier horses take the donor to his desired place. Beautifully built charoite is ready for him. The donor win the enemy in the war.(16.01.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (108) :: ऋषि :- दविगण, असुर, सरमा, देवता :- सरमा, देवशुनी ऋषिका, पठायो; छन्द :- त्रिष्टुप्।
किमिच्छन्ती सरमा प्रेदमानड् दूरे ह्यध्वा जगुरिः पराचैः।
कास्मेहितिः का परितक्म्यासीत्कथं रसाया अतरः पयांसि॥
पणियों की उक्ति :- हे सरमा! आप क्या किसी प्रार्थना के लिए यहाँ आई हैं? यह मार्ग तो बहुत दूर का है। इस मार्ग पर आते समय पीछे की ओर दृष्टि फेरने पर नहीं आना हो सकता। हमारे पास ऐसी कौन-सी वस्तु है, जिसके लिए आप आई हैं? कितनी रातों में आई है? नदी के जल को पार कैसे किया?[ऋग्वेद 10.108.1]
Panis asked Sarma, "Have you come here for some prayer-request"? This path is distant. Had you turn back wards, you might not come here! For what have you come to us? How many nights did you spent over it? How did you cross the river waters?
इन्द्रस्य दूतीरिषिता चरामि मह इच्छन्ती पणयो निधीन्वः।
अतिष्कदो भियसा तन्न आवत्तथा रसाया अतरं पयांसि
सरमा की उक्ति :- हे पणि गण! इन्द्र दूती होकर मैं आई हूँ। आपने जो गोधन एकत्रित किया है, उसे ग्रहण करने की मेरी इच्छा है। जल ने मुझे बचाया है। जल से भय तो हुआ था; किन्तु पीछे उसे लाँघकर मैं चली आई। इस प्रकार मैं नदी के पार चली आई।[ऋग्वेद 10.108.3]
Sarma replied :- Hey Panis, I have come as a messenger of Indr Dev. I wish to have the wealth in the form of cows which you possess. I became fearful due to waters in the river, but I crossed it. 
कीदृङिन्द्रः सरमे का दृशीका यस्येदं दूतीरसरः पराकात्।
आ च गच्छान्मित्रमेना दधामाथा गवां गोपतिर्नो भवाति
पणियों की उक्ति :- हे सरमा! जिन इन्द्र देव की दूती बनकर आप इतनी दूर से आई हैं, वे इन्द्र देव कैसे हैं? उनका कितना पराक्रम है? उनकी कैसी सेना है? इन्द्र देव आवें। उन्हें हम मित्र मानने को प्रस्तुत हैं। वही हमारी गौओं को लेकर उनके संरक्षक बनें।[ऋग्वेद 10.108.3]
Panis asked :- Hey Sarma! How is Indr Dev, whom you are representing as an ambassador? What about his bravery? How is his army? Let Indr Dev, come. We are ready to be friendly with him. Let him take our cows and become their guardian.
नाहं तं वेद दभ्यं दभत्स यस्येदं दूतीरसरं पराकात्।
न तं गूहन्ति स्त्रवतो गभीरा हता इन्द्रेण पणयः शयध्वे
सरमा की उक्ति :- जिन इन्द्र देव की दूती बनकर मैं दूर देश से आई हूँ, उन्हें कोई पराजित नहीं कर सकता। वे ही सबको हराते हैं। गहन गम्भीर नदियाँ भी उनकी गति को रोकने में समर्थ नहीं हैं। हे पणियों! आपको निश्चय ही इन्द्र देव मारकर (पृथ्वी पर) सुला देंगे।[ऋग्वेद 10.108.4]
Sarma answered:- Hey Panis! Indr Dev, whom I am representing can not be defeated by any one. He defeats everyone. Deep-dense rivers are unable to stop him. Hey Panis! Indr Dev will definitely kill you and lay over the earth-ground.
इमा गावः सरमे या ऐच्छः परि दिवो अन्तान्त्सुभगे पतन्ती।
कस्त एना अव सृजादयुध्व्युतास्माकमायुधा सन्ति तिग्मा
पणियों की उक्ति :- हे सुन्दरी सरमा! आप स्वर्ग की शेष सीमा पार से आ रही हैं। इसलिए इन गायों में से जिन-जिनको चाहो, हम आपको दे सकते हैं। बिना युद्ध के कौन आपको गायें देता? हमारे पास भी अनेक तीक्ष्ण आयुध हैं।[ऋग्वेद 10.108.5]
Panis replied:- Hey beautiful Sarma! You are coming across the boarders of heavens. Hence, choose the cows which you wish to acquire. Who else will give you cows without war-fight? We too have sharp weapons.
असेन्या वः पणयो वचांस्यनिषव्यास्तन्वः सन्तु पापीः।
अधृष्टो व एतवा अस्तु पन्था बृहस्पतिर्व उभया न मृळात्
सरमा इन्द्र की कुतिया की उक्ति :- आपकी बातें सैनिकों के योग्य नहीं हैं। आपके शरीरों में पाप है। यह शरीर कहीं इन्द्र देव के बाणों का लक्ष्य न हो जायें। आपके यहाँ यह जो आने का मार्ग है, इस पर देवता लोग कहीं आक्रमण न कर बैठें। मुझे सन्देह है कि पीछे बृहस्पतिदेव आपको क्लेश देंगे- यदि आप गायें नहीं देंगे, तो आपदायें सन्निकट है।[ऋग्वेद 10.108.6]
Sarma, bitch of Indr Dev pleaded :- Your words do not suit warriors. Your body is full of sin. Do not let your bodies become the target of Indr Dev's arrows. I fear that the demigods-deities may attack the path-way you use. Brahaspati Dev may torture you if refuse to grant cows and troubles will follow-come close to use.
अयं निधिः सरमे अद्रिबुध्नो गोभिरश्वेभिर्वसुभिर्वसुभिर्न्यृष्टः।
रक्षन्ति तं पणयो ये सुगोपा रेकु पदमलकमा जगन्थ
पणियों की उक्ति :- हे सरमा! हमारी सम्पत्ति पर्वतों के द्वारा सुरक्षित है। गायों, अश्वों और अन्यान्य धनों परिपूर्ण है। रक्षा-कार्य में समर्थ पणि लोग इस सम्पत्ति की रख वाली करते है। गौओं की ध्वनि श्रवण कर आपका यहाँ पर आना व्यर्थ ही हुआ है।[ऋग्वेद 10.108.7]
Panis pleaded :- Hey Sarma! Our assets-property is protected by the mountains. It full of cows, horses and several other kind of wealth. Panis trained-skilled in protection, guard it. For arrival hear due to the sound of cows is useless.
एह गमनृषयः सोमशिता अयास्यो अङ्गिरसो नवग्वाः।
त एतमूर्वं वि भजन्त गोनामथैतद्वचः पणयो वमन्नित्
सरमा की उक्ति :- अङ्गिरस अयास्य ऋषि और नवगुण सोमपान से प्रमत्त होकर यहाँ पधारेंगे और इन सारी गायों का भाग करके इन्हें ले जोयेंगे। हे पणियों! उस समय आपका मद अर्थात् अहंकार चूर-चूर हो जाएगा।[ऋग्वेद 10.108.8]
Sarma stressed :- Angiras Ayasy Rishi will come here gladdened-intoxicated with newly extracted Somras and take all these cows from here. Hey Panis! It will lead to destruction of your ego.
एवा च त्वं सरम आजगन्थ प्रबाधिता सहसा दैव्येन।
स्वसारं त्वा कृणवै मा पुनर्गा अप ते गवां सुभगे भजाम
पणिगण की उक्ति :- हे सरमा! डरकर देवों ने आपको यहाँ भेजा है; इसीलिए आप आई है। आपको हम बहन-स्वरूप समझते हैं। आप अब नहीं लौटना। हे सुन्दरी! हम गोधन का भाग देते हैं।[ऋग्वेद 10.108.9]
Panis said :- Hey Sarma! Demigods-deities have sent you here due to fear. We consider you as our sister. Do not return. Hey beauty! We grant you our cows.
नाहं वेद भ्रातृत्वं नो स्वसृत्वमिन्द्रो विदुरङ्गिरसश्च घोराः।
गोकामा मे अच्छदयन्यदायमपात इत पणयो वरीयः
सरमा की उक्ति :- मैं भाई और बहन की कथा नहीं समझ सकती। इन्द्र देव और पराक्रमी अङ्गिरों वंशीय जानते हैं कि गौओं को पाने के लिए मुझे उन्होंने रक्षा-पूर्वक भेजा है। मैं उनका आश्रय पाकर आई हूँ। हे पणियों! यहाँ से बहुत दूर भाग जाओ।[ऋग्वेद 10.108.10]
Sarma said :- I do not understand-recognise the relation of brother & sister. Indr Dev knows invincible Angiras and thus they have deputed me under protection to get the cows. I am under their asylum. Hey Panis! Run away from here to distant places.
दूरमित पणयो वरीय उद्गावो यन्तु मिनतीर्ऋतेन।
बृहस्पतिर्या अविन्दन्निगूळ्हाः सोमो ग्रावाण ऋषयश्च विप्राः॥
हे पणियों! यहाँ से बहुत दूर भाग जाओ। गौएं कष्ट पा रही हैं। वे धर्म के आश्रय में इस पर्वत से लौट चलें। बृहस्पति, सोम, सोमाभिषवकर्ता पत्थर, ऋषि और मेधावी लोग इस गुप्त स्थान में स्थित गायों की बात जान गए हैं।[ऋग्वेद 10.108.11]
Hey Panis run away from here to far away places. The cows are facing trouble. Let them return from here under the protection of Dharm-virtues. Brahaspati, Som, Som extractor stones, Rishi Gan and enlightened people have identified this secret place and the miserable condition of cows.(17.01.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (109) :: ऋषि :- जुहू, ब्रह्मजाया, ऊर्ध्वनाभा या ब्रह्म; देवता :- विश्वेदेव; छन्द :- त्रिष्टुप्, अनुष्टुप्।
तेऽवदन्प्रथमा ब्रह्मकिल्बिषेऽकूपारः सलिलो मातरिश्वा।
वीळुहरास्तप उग्रो मयोभूरापो देवीः प्रथमजा ऋतेन
जिस समय बृहस्पति ने अपनी पत्नी जुहू का त्याग कर दिया, इस प्रकार ब्रह्म-किल्विष प्राप्त किया, उस समय सूर्य देव, शीघ्रगामी वायु देव, प्रज्वलित अग्नि देव, सुखकर सोम, जल के अधिष्ठाता देवता वरुण और सत्य स्वरूप प्रजापति की अन्य सन्ततियों ने प्रायश्चित कराया।[ऋग्वेद 10.109.1]
ब्रह्म किल्विष :: ब्रह्म विषयक पाप; sins related to Brahm.
When Brahaspati doubted and deserted (divorced) his wife Juhu (mother of Jews-यहूदी), he attracted sins pertaining to Brahm, then Sury Dev, fast moving Vayu Dev, blazing Agni Dev, comfortable Som, deity of water Varun Dev and truthful Prajapati's other progeny,  performed atonement-penances measures-procedures.
सोमो राजा प्रथमो ब्रह्मजायां पुनः प्रायच्छदहृणीयमानः।
अन्वर्तिता वरुणो मित्र आसीदग्निर्होता हस्तगृह्या निनाय
लज्जा का परित्याग करके राजा सोम ने पवित्र-चरित्रा स्त्री को सबसे पहले बृहस्पति देव को दिया। मित्र और वरुण देव ने इसका अनुमोदन किया। होम निष्पादक अग्नि देव हाथ से पकड़कर पत्नी को ले आये।[ऋग्वेद 10.109.2]
Lord Som gave virtuous-pious wife to Brahaspati Dev, back; rejecting shyness. Mitr & Varun Dev supported this. Yagy-Hawan performer Agni Dev held the hand of wife (Juhu) and gave her to Brahaspati.
हस्तेनैव ग्राह्य आधिरस्या ब्रह्मजायेयमिति चेदवोचन्।
न दूताय प्रो तस्थ एषा तथा राष्ट्र गुपितं क्षत्रियस्य
"इन पत्नी की देह को हाथ से छूना चाहिए,ये यथाविधि विवाहित पत्नी हैं"। ऐसा सबने कहा। इन्हें खोजने के लिए जो दूत भेजा गया, उसके प्रति ये अनासक्त रहीं। जिस प्रकार राजा बली का राज्य सुरक्षित रहता है, उसी प्रकार ही इनका सतीत्व सुरक्षित रहा।[ऋग्वेद 10.109.3]
Everyone said that touch her with hand, she is married wife, following all rites-procedures. She did not incline-attracted to the messenger who was sent to trace her. The way the kingdom of king Bahu Bali is protected (by Bhagwan Shri Hari Vishnu), similarly her chastity remained intact.
देवा एतस्यामवदन्त पूर्वे सप्तऋषस्यस्तपसे ये निषेदुः।
भीमा जाया ब्राह्मणस्योपनीता दुर्धां दधाति परमे व्योमन्
तपस्या में प्रवृत्त सप्तर्षियों और प्राचीन देवों ने इन पत्नी की बात कही है। ये अत्यन्त शुद्ध-चरित्र है। इन्होंने बृहस्पति से विवाह किया है तपस्या और सच्चरित्रा से निकृष्ट पदार्थ भी उत्तम स्थान में स्थापित हो सकता है।[ऋग्वेद 10.109.4]
Sapt Rishi Gan and eternal deities described her character. They said that she possess high moral character. She has married to Brahaspati. By virtue of austerity-Tapasya and good moral character worst material (person) can attain revered-high dignified position.
ब्रह्मचारी चरति वेविषद्विषः स देवानां भवत्येकमङ्गम्।
तेन जायामन्वविन्दद्बृहस्पतिः सोमेन नीतां जुह्वं १ न देवाः
स्त्री के अभाव में बृहस्पति देव बह्मचर्य के नियम का पालन करते हैं। वे समस्त देवगणों के साथ एकात्मा होकर उनके अङ्ग-विशेष हो गए। जिस प्रकार उन्होंने प्रथम सोम के हाथ से पत्नी को पाया उसी प्रकार ही इस समय भी उन्होंने पुनः जुहू नाम की पत्नी को प्राप्त किया।[ऋग्वेद 10.109.5]
In the absence of wife Brahaspati Dev followed chastity and austerities. He united with demigods-deities and became one of their special organ-team. The way he got his wife Tara back from Som-Moon, similarly he got Juhu back.
पुनर्वै देवा अददुः पुनर्मनुष्या उत। राजानः सत्यं कृण्वाना ब्रह्मजायां पुनर्ददुः
देवगणों और मनुष्यों ने पुनः बृहस्पति देव को उनकी पत्नी समर्पित की। सत्य स्वरूप राजाओं ने भी दुबारा संकल्पपूर्वक चरित्रवान पत्नी को उन्हें प्रदत्त किया।[ऋग्वेद 10.109.6]
Dev Gan and the humans dedicated his wife back to Brahaspati Dev. Truthful kings too offered the pious-virtuous wife back following marriage rites.
पुनर्दाय ब्रह्मजायां कृत्वी देरैर्निकिल्बिषम्। ऊर्ज पृथिव्या भक्त्वायोरुगायमुपासते
शुद्ध-चरित्रा पत्नी को फिर लाकर देवगणों ने बृहस्पति देव को निष्पाप किया। अनन्तर पृथ्वी का सर्वश्रेष्ठ अन्न विभक्त करके सभी सुख से अवस्थान करने लगे।[ऋग्वेद 10.109.7]
The demigods-deities brought back his high moral character possessing wife and turned Brahaspati Dev sinless.  Thereafter, they obtained the best food grains from the earth and lived comfortably.(18.01.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (110) :: ऋषि :- जमदग्नि, भार्गव या राम; देवता :- आप्री सूक्त; छन्द :- त्रिष्टुप्।
समिद्धो अद्य मनुषो दुरोणे देवो देवान्यजसि जातवेदः।
आ च वह मित्रमहश्चिकित्वान्त्वं दूतः कविरसि प्रचेताः
हे ज्ञानी अग्नि देव! आप मनुष्यों के गृह में आज समिद्ध होकर अपने देवता और अन्याय देवों की पूजा करें। आपका मित्र आपकी पूजा करता है। यह जानकर आप देवों को ले आवें; क्योंकि आप उत्तम बुद्धि से युक्त और क्रिया-कुशल दूत हैं।[ऋग्वेद 10.110.1]
Hey enlightened Agni Dev! You should have-consume woods in the house of the hosts-humans and worship other demigods-deities. Your friend worship you. Aware of this, bring the demigods-deities with you since you posses excellent intelligence and is a skilled ambassador. 
देवान्तनूनपात्पथ ऋतस्य यानान्मध्वा समञ्जन्स्वदया सुजिह्न।
मन्मानि धीभिरुत यज्ञमृन्धन् देवत्रा च कृणुह्यध्वरप नः
हे तनूनपात् (अग्नि देव)! यज्ञ-गमन के जो पथ (हवि आदि) हैं, उन्हें मधु-मिश्रित करके अपनी सुन्दर शिखा से स्वाद लें। सुन्दर भावों के द्वारा स्तोत्रों और यज्ञ को समृद्ध करें, हमारे यज्ञ को देव-भोग्य कर दें।[ऋग्वेद 10.110.2]
Hey Agni Dev (Tanunpat)! Lick the offerings with your tongue (beautiful flame) mixed with honey used in the Yagy. Glorify-enrich the Strotr having beautiful feelings and make our Yagy suitable for the demigods-deities.
आजुह्वान ईड्यो वन्द्यश्चा याह्यग्मै वसुभिः सजोषाः।
त्वं देवानामसि यह्व होता स एनान्यक्षीषितो यजीयान्
हे अग्नि देव! आप देवगणों को बुलाने वाले, प्रार्थनीय और प्रणाम के योग्य हैं। वसुओं के साथ पधारें। हे महान् पुरुष! आप देवों के होता हैं। आपको प्रेरित किया जाता है। आपके सदृश कोई यज्ञ नहीं कर सकता। आप इन समस्त देवगणों के लिए यज्ञ करें।[ऋग्वेद 10.110.3]
Hey Agni Dev! You invite-invoke the demigods-deities and deserve salutations. Come with Vasu Gan. Hey great person! You are the Hota of demigods-deities. You are inspired. None can perform the Yagy like you. Perform Yagy for all these demigods-deities.
प्राचीनं बर्हिः प्रदिशा पृथिव्या वस्तोरस्या वृज्यते अग्रे अह्नाम्।
व्यु प्रथते वितरं वरीयो देवेभ्यो अदितये स्योनम्
पूर्वाह्न में वेदी को ढँकने के लिए, कुश को पूर्वमुख करके बिछाया जाता है। वह परम सुन्दर कुश और विस्तृत किया जाता है। उस पर माता अदिति और अन्य देवता लोग सुख से बैठते है।[ऋग्वेद 10.110.4]
Kush is laid facing east in the after noon to cover the Vedi. That extremely beautiful Kush is broadened-flattened. Mata Aditi and other demigods sit over it comfortably.
व्यचस्वतीरुर्विया वि श्रयन्तां पतिभ्यो न जनयः शुम्भमानाः।
देवीर्द्वारो बृहतीर्विश्वमिन्वा देवेभ्यो भवत सुप्रायणाः
जिस प्रकार स्त्रियाँ वेश-भूषा करके पतियों के पास अपने शरीर को प्रकट करती हैं, इसी प्रकार ही इन सब सुनिर्मित द्वारों की अभिमानिनी देवियाँ पृथक हो जाएं, विस्तृत रूप से बन जाएं। हे द्वार-देवियों! देवता सरलता से जा सकें, इस प्रकार खुल जाएं।[ऋग्वेद 10.110.5]
The way the women present themselves after vesture (make up and decorating themselves), similarly the egoistic goddess of these self made-evolved gates should separate themselves and widen. Hey goddess-deity of the gate! Open in such a manner that the demigods-deities are able to move freely.
आ सुष्वयन्ती यजते उपाके उषासानक्ता सदतां नि योनौ।
दिव्ये योषणे बृहती गुरुक्मे अधि श्रियं शुक्रपिशं दधाने
उषा देवी और रात्रि देवी लोगों के लिए सुषुप्ति से उत्पन्न सुख उत्पन्न करें। वे यज्ञ-भाग में अधिकारिणी हैं। वे परस्पर मिलकर यज्ञ-स्थान में बैठें। वे दिव्य-लोकवासिनी स्त्री के समान अत्यन्त गुणवती, परम शोभा से युक्त और उज्ज्वल श्री धारण करने वाली हैं।[ऋग्वेद 10.110.6]
Let Usha Devi and Ratri Devi produce pleasure after the sleep. They are entitled for their share in Yagy. Let them sit together at the Yagy site. They are like the divine women of excellent characterises glorious and have lustrous wealth.
दैव्या होतारा प्रथमा सुवाचा मिमाना यज्ञं मनुषो यजध्यै।
प्रचोदयन्ता विदथेषु कारू प्राचीनं ज्योतिः प्रदिशा दिशन्ता
दोनों देव-होता (अग्निदेव और आदित्यदेव) ही प्रथम उत्तम वाक्यों से स्तोत्र करते हैं। मनुष्य के यज्ञ के लिए अनुष्ठान-कार्य का निमार्ण कर देते हैं। वे पुरोहितों को विभिन्न अनुष्ठानों में प्रेरित करते हैं। वे क्रिया-कुशल हैं और पूर्व दिशा के प्रकाश को उत्पन्न करते हैं।[ऋग्वेद 10.110.7]
Both deities Hota Agni Dev & Adity Dev begin with the Strotr. They begin with the rites-rituals. They inspire the Purohits-priests for the rituals, ceremonies. They are expert-skilled in holding Yagy-Hawan and evolve the light in the east.
आ नो यज्ञं भारती तूयमेत्विळा मनुष्वदिह चेतयन्ती।
तिस्स्रो देवीर्बर्हिरेदं स्योनं सरस्वती स्वपसः सदन्तु
भारती देवी (सूर्य-दीप्ति) हमारे यज्ञ में शीघ्र पधारें। इला देवी इस यज्ञ की बात का स्मरण करके मनुष्य के समान आगमन करें। ये दोनों और सरस्वती देवी, ये तीन चमत्कार कार्यकारिणी देवियों सामने के सुखावह आसन पर आकर विराजमान हों।[ऋग्वेद 10.110.8]
Let Bharti Devi (lustre of Sun) come to our Yagy. Ila Devi should recall this Yagy and come to the humans. Let miracle performing these two goddesses and Saraswati Devi,  come and occupy the comfortable seats.
य इमे द्यावापृथिवी जनित्री रूपैरपिंशद्भुवनानि विश्वा।
तमद्य होतरिणिती यजीयान् देवं त्वष्टारमिह यक्षि विद्वान्
घावा-पृथ्वी देवों की मातृ-स्वरूपिणी हैं। हे होता! जिन देवताओं ने उन दोनों को उत्पन्न करके सारे संसार में नाना प्रकार के प्राणियों की सृष्टि की, उन्हीं त्वष्टा देव की आज आप पूजा करें। आपके पास अन्न है, आप विद्वान हैं और आपके समान दूसरा कोई यज्ञ नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 10.110.9]
Heavens & earth are like the mother for the demigods-deities. Hey Hota! Worship Twasta and various demigods who created-evolved the universe & living beings. You are scholars and have food grains. None other can perform Yagy like you.
उपावसृज त्मन्या समञ्जन् देवानां पाथ ऋतुथा हवींषि।
वनस्पतिः शमिता देवो अग्निः स्वदन्तु हव्यं मधुना घृतेन
यूप (यज्ञ में पशुओं के बाँधने के काष्ठ, खम्बा), आप स्वयं यथा समय, देवगणों के लिए अन्न और अन्यान्य होमीय द्रव्य लाकर निवेदित करें। वनस्पति, शमिता नामक देव और अग्नि, मधु और घृत के साथ होमीय द्रव्य का आस्वादन करें।[ऋग्वेद 10.110.10]
Hey Yup (wooden pillar-mast used for tying animals in the Yagy)! You yourself timely offer food grains for demigods and other Home-Hawan materials. Let Vanaspati, Shamita and Agni Dev taste the Yagy offerings having Ghee and honey.
सद्यो जातो व्यमिमीत यज्ञमग्निर्देवानामभवत्पुरोगाः।
अस्य होतुः प्रदिश्यृतस्य वाचि स्वाहाकृतं हविरदन्तु देवाः
जन्म के साथ ही अग्नि देव ने यज्ञ-निर्माण किया और देवों के अग्रगामी दूत हुए। अग्निदेव स्वरूप होता मन्त्र पाठ करें। यज्ञोपयोगी देव वाक्य उच्चारित हों। स्वाहा के साथ जो होमीय द्रव्य (अग्नि कुण्ड में) दिया जाता है, उसका भक्षण देवता करते हैं।[ऋग्वेद 10.110.11]
With his evolution-birth Agni Dev conceptualised-evolved Yagy and became the fast moving ambassador of the demigods-deities. Pronounce-recite the Mantr-Shloks. The offerings in the fire pit are eaten by the demigods with the recitation of Swaha.(19.01.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (111) :: ऋषि :- अष्टादंष्ट्र, वैरूप; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप्।
मनीषिणः प्र भरध्वं मनीषां यथायथा मतयः सन्ति नृणाम्।
इन्द्रं सत्यैरेरयामा कृतेभिः स हि वीरो गिर्वणस्युर्विदानः
हे स्तोताओं! आपकी बुद्धि का उदय जैसे-जैसे होता है, वैसे-वैसे आप लोग स्तोत्र पाठ करें। सत्कर्मानुष्ठान करके इन्द्र देव को बुलाया जाय; क्योंकि वीर इन्द्र देव स्तोत्र जानने पर स्तोताओं से प्रीति करते हैं।[ऋग्वेद 10.111.1]
Hey Stotas! With the evolution of intelligence you should recite Strotr. Indr Dev should be invoked for preforming truthful ceremonies (Yagy, Hawan, Agni Hotr etc.), since Indr Dev after listening the Strotr develop affection with the Stotas.
ऋतस्य हि सदसो धीतिरद्यौत्सं गाष्र्टेयो वृषभो गोभिरानट्।
उदतिष्ठत्तविषेणा रवेण महान्ति चित्सं विव्याचा रजांसि
जल का आधार (अन्तरिक्ष) धारण करने वाले इन्द्र देव प्रकाशित होते हैं। अल्प वयस्क गाय के गर्भ से उत्पन्न वृष जिस प्रकार गायों के साथ मिलता है, उसी प्रकार ही इन्द्र देव सर्वव्यापी होते हैं। विलक्षण कोलाहल के साथ ये प्रकट होते हैं। वे बृहत्-बृहत् जलराशि बनाते हैं।[ऋग्वेद 10.111.2]
Indr Dev who is supporter of water-sky, shines. The way a bull born out of an unmatured cow joins the cow herd, Indr Dev appears pervading all places, similarly.
इन्द्रः किल श्रुत्या अस्य वेद स हि जिष्णुः पथिकृत्सूर्याय।
आन्मेनां कृण्वन्नच्युतो भुवद्गोः पतिर्दिवः सनजा अप्रतीतः
इस स्तोत्र का श्रवण इन्द्र देव ही जानते हैं, वे जयशील हैं। उन्होंने सूर्य देव का मार्ग बना दिया। अविचल इन्द्र देव ने सेना को प्रकट किया। वे गायों के सत्त्वाधिकारी और स्वर्ग के प्रभु हुए। वे चिरन्तन हैं। उनके विरोध में कोई नहीं जा सकता।[ऋग्वेद 10.111.3]
Invincible Indr Dev listen-knows this Strotr. He developed the route for Sury Dev. Unnerved Indr Dev manifested the army. He became the truthful lord of cows and the heavens. He is eternal-for ever. None can oppose him.
इन्द्रो मह्ना महतो अर्णवस्य व्रतामिनादङ्गिरोभिर्गुणानः।
पुरूणि चिन्नि तताना रजांसि दाधार यो धरुणं सत्यताता
अङ्गिरा की सन्ततियों ने जिस समय स्तोत्र किया, उस समय इन्द्र देव ने अपनी महिमा से विशाल मेघ का कार्य नष्ट किया। उन्होंने बहुत अधिक जल बनाया। उन्होंने सत्य-रूप द्युलोक में बल धारण किया।[ऋग्वेद 10.111.4]
When the progeny-descendants of Angira recited the Strotr, Indr Dev teared the large cloud, producing lots of water. He acquired strength-might in the truthful (a from of truth) heavens.
इन्द्रो दिवः प्रतिमानं पृथिव्या विश्वा वेद सवना हन्ति शुष्णम्।
महीं चिद्यामातनोसूर्येण चास्कम्भ चित्कम्भनेन स्कभीयान्
एक ओर इन्द्र देव हैं और दूसरी ओर द्यावा-पृथ्वी हैं, दोनों के सदृश इन्द्र देव हैं। वे सारे सोम यज्ञों की बातें जानते हैं। वे ताप नष्ट करते हैं। सूर्य देव के द्वारा उन्होंने प्रकाण्ड आकाश को सुसज्जित किया। वे धारण करने में पटु हैं। मानों खम्भे के द्वारा उन्होंने आकाश को ऊपर धारण कर रखा है।[ऋग्वेद 10.111.5]
Indr Dev is on one side and on the other side heavens-earth and Indr Dev is like both. He knows all Sam Yagy. He destroy the heat. He has decorated studded the whole sky with Sury Dev. He is expert in support. It appears as if he has supported the sky upwards over poles.
वज्रेण हि वृत्रहा वृत्रमस्तरदेवस्य शूसुवानस्य मायाः।
वि धृष्णो अत्र धृषता जघन्थाथाभवो मघव् भाह्वोजाः
हे इन्द्र देव! आप वृत्रघ्न है, वज्र से वृत्रासुर का वध किया। जिस समय विरोधी वृत्र बढ़ रहा था, उस समय दुर्द्धर्ष आपने वज्र-द्वारा उसकी सारी माया को नष्ट कर डाला। हे बली इन्द्र देव! इसके अनन्तर आप बहुत बल से बली हुए।[ऋग्वेद 10.111.6]
Hey Indr Dev! You killed Vratr with your Vajr. When Vratr was flourishing, you being invincible, killed him with with your Vajr and destroyed his mesmerisation, cast-charlatanry. Hey mighty Indr dev! Thereafter, you became very powerful. 
सचन्त यदुषसः सूर्येण चित्रामस्य केतवो रामविन्दन्।
आ यन्नक्षत्र दघ्शे दिवो पुनर्यतो नकिरद्धा नु वेद
न जिस समय उषा देवियाँ सूर्यदेव से मिलीं; उस समय सूर्य देव की किरणों ने नानावर्णों की शोभा धारण की। अनन्तर जिस समय आकाश में नक्षत्र दिखाई दिया, उस समय कोई भी मार्ग गामी सूर्य देव की किरणों का मर्म समझ नहीं पाते। वास्तविकता यही है।[ऋग्वेद 10.111.7]
Sury Dev's rays acquired various colours, when Usha met him. With the appearance of constellation, none could understand the gist of the rays of Sun, following any route. This is reality.
दूरं किल प्रथमा जग्मुरासामिन्द्रस्य याः प्रसवे सखुरापः।
क स्विदग्रं क बुध्न आसामापो मध्यं क वो नूनमन्तः
इन्द्र की आज्ञा से जो जल बहने लगा, वह प्रथम जल बहुत दूर गया। जल का अग्रभाग कहाँ है? हे इन्द्र देव! आप वृत्रश्न है-वज्र से वृत्रासुर का वध किया। जिस समय विरोधी वृत्र बढ़ रहा था, उस समय दुर्द्धर्ष आपने वज्र-द्वारा उसकी सारी माया को नष्ट कर डाला। हे बली इन्द्र देव। इसके अनन्तर आप बहुत बल से बली हुए।[ऋग्वेद 10.111.8]
The flowing went to distant place following Indr dev's orders. Where is front segment of water? Hey Indr Dev! You are the slayer of Vratr, with Vajr. When Vratr was flourishing, you being invincible, killed him with with your Vajr and destroyed his mesmerisation, cast-charlatanry. Hey mighty Indr dev! Thereafter, you became very powerful.
सृज : सिन्धूँ  हिना जग्रसानाँ आदिदेताः प्र विवित्रे जवेन।
मुमुक्षमाणा उत या मुमुच्चेऽधेदेता न रमन्ते नितिक्ताः
हे इन्द्र देव! जिस समय वृत्रासुर जल को ग्रास कर रहा था, उस समय आपने जल का मोचन किया। उसी समय जल वेग के साथ सर्वत्र दौड़ा। जिस समय इन्द्र देव ने अपनी इच्छा से जल को मुक्त किया, उस समय वह विशुद्ध जल स्थिर नहीं रह सका।[ऋग्वेद 10.111.9]
Hey Indr Dev! When Vratr was engulfing water, you released it. Water spreaded in all directions. Pure water could not maintain its stability, when Indr Dev released it, out of his own will.
सध्रीचीः सिन्धुमुशतीरिवायन्त्सनाज्जार आरितः पूर्भिदासाम्।
अस्तमा ते पार्थिवा वसून्यस्मे जग्मुः सूनृता इन्द्र पूर्वीः
आपस में साथ-साथ प्रवाहित होने वाली नदियाँ कामातुरा स्त्रियों के समान सागर की ओर जाती हैं। शत्रु पुर ध्वंसक और शत्रु जर्जर कर्ता इन्द्र देव सदैव ही समस्त जलों के प्रभु हैं। हे इन्द्र देव! हमारी पृथ्वी पर स्थित नाना यज्ञ-सामग्री और चिराभ्यस्त अनेक प्रीतिप्रद स्तोत्र आपके पास जाएं।[ऋग्वेद 10.111.10]
Flowing side by side, rivers move towards the ocean like lascivious women. Destroyer of the enemy forts and ruining them, Indr Dev is the lord of whole water. Hey Indr Dev! Let various Yagy related goods, eternal Strotr practiced ever since meet you.(20.01.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (112) :: ऋषि :- वैरूप, नभ प्रभेदन; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप्।
इन्द्र पिब प्रतिकामं सुतस्य प्रातः सावस्तव हि पूर्वपीतिः।
हर्षस्व हन्तवे शूर शत्रूनुक्थेभिष्टे वीर्या ३ प्र ब्रवाम
हे इन्द्र देव! सोम प्रस्तुत हुआ है। जितना चाहो, पियो। जो सोम प्रातः काल प्रस्तुत होता है, वह सबसे पहले आपके पान के योग्य है। हे वीर इन्द्र देव! शत्रु-वध के लिए उत्साह-युक्त होवें। हम मन्त्रों के द्वारा आपके वीरत्व की प्रशंसा करते हैं।[ऋग्वेद 10.112.1]
Hey Indr Dev! Somras is ready, drink as much as you can. Somras extracted in the morning is suitable for drinking by you. Hey brave Indr Dev! You should be enthusiastic for killing the enemy. We praise you with the Mantrs.
यस्ते रथो मनसो जवीयानेन्द्र तेन सोमपेयाय याहि।
तूयमा ते हरयः प्र द्रवन्तु येभिर्यासि वृषभिर्मन्दमानः
हे इन्द्र देव! आपका रथ मन से भी अधिक शीघ्रगामी है। उसी रथ पर आरूढ़ होकर सोमपान के लिए पधारें। जिन अश्वों की सहायता से आप आनन्द के साथ जाते हैं, वे हरि नामक अश्व शीघ्र दौड़ें।[ऋग्वेद 10.112.2]
Your charoite runs faster than the mind. Ride it and come for drinking Somras. The horses named Hari with whom you enjoy, get pleasure should run fast.
हरित्वता वर्चसा सूर्यस्य श्रेष्ठै रूपैस्तन्वं स्पर्शयस्व।
अस्माभिरिन्द्र सखिभिर्बुवानः सध्रीचीनो मादयस्वा निषद्य
हे इन्द्र देव! हरित-वर्ण तेज के द्वारा और सूर्य देव की अपेक्षा भी श्रेष्ठतर नाना शोभाओं के द्वारा अपने शरीर को विभूषित करें। हम मित्रता के साथ आपको बुलाते हैं। हमारे साथ बैठकर सोम-पान से प्रमत्त होवें।[ऋग्वेद 10.112.3]
Hey Indr dev! Decorate your body with the greenish aura which is much better as compared to the Sun rays. We invite you as a friend. Enjoy Somras with us and become gladdened, intoxicated, inebriated.
यस्य त्यत्ते महिमानं मदेष्विमे मही रोदसी नाविविक्ताम्।
तदोक आ हरिभिरिन्द्र युक्तैः प्रियेभिर्याहि प्रियमन्नमच्छ
सोम-पान से मत्त होने पर जो आपकी महिमा होती है, उसे ये द्यावा-पृथ्वी धारण नहीं कर सकती। हे इन्द्र देव! अपने स्नेह-पात्रों अश्वों को जोतकर सुस्वादु यज्ञ-सामग्री की ओर यजमान के गृह में पधारें।[ऋग्वेद 10.112.4]
Heavens & earth can not support your glory after drinking Somras and becoming inebriated. Hey Indr Dev! Deploy your favourite, affectionate horses and move towards the tasty Yagy offerings in the house of the Ritviz.
यस्य शश्वत्पपिवाँ इन्द्र शत्रूननानुकृत्या रण्या चकर्थ।
स ते पुरंधिं तविषीमियर्ति स ते मदाय सुत इन्द्र सोमः
हे इन्द्र देव! जिसका प्रतिदिन सोम-पान करके आपने अत्यन्त बल दिखाते हुए शत्रुओं का वध किया, वही यजमान आपके लिए उत्तम स्तोत्र प्रेरित कर रहा है। आपके मनोरंजन के लिए सोमरस प्रस्तुत किया गया है।[ऋग्वेद 10.112.5]
Hey Indr Dev! The Ritviz & hosts who's Somras was drunk by you to kill the enemy with extreme strength-might are reciting best Strotrs for you. Somras is being presented for your fun & frolic.
इदं ते पात्रं सनवित्तमिन्द्र पिबा सोममेना शतक्रतो।
पूर्ण आहावो मदिरस्य मध्वो यं विश्व इदभिहर्यन्ति देवाः
सौ यज्ञ करने वाले हे इन्द्र देव! इस सोम-पात्र को आप सदैव प्राप्त करते हैं, इसका पान करें। जिसे देवता चाहते हैं, उसी मधु-तुल्य और मत्तता कारक सोम के पात्र को परिपूर्ण कर दिया गया है।[ऋग्वेद 10.112.6]
Hey performer of hundred Yagy, Indr Dev! You always have this Somras, drink it. The vessel containing Somras comparable to honey causing toxicity has been filled.
वि हि त्वामिंन्द्र पुरुधा जनासो हितप्रयसो वृषभ ह्वयन्ते।
अस्माकं ते मधुमत्तमानीमा भुवन्त्सवना तेषु हर्य
हे इन्द्र देव! अन्न संग्रह करके आपको अनेक लोग नाना स्थानों में सोम-पान के लिए निमन्त्रित करते हैं। परन्तु हमारा प्रस्तुत किया गया सोम आपको सबसे मधुर हो, इसी में आपकी रुचि उत्पन्न हो।[ऋग्वेद 10.112.7]
Hey Indr Dev! You collect-store food grains and many people invite you, at various places for drinking Somras. Let our Somras be sweetest as compared to others and you should be interested in drinking our Somras.
प्र त इन्द्र पूर्व्याणि प्र नून वीर्या वोचं प्रथमा कृतानि।
सतीनमन्युरश्रथायो अर्दि सुवेदनामकृणोब्रह्मणे गाम्
हे इन्द्र देव! पूर्वकाल में सबसे आगे आपने जो वीरत्व दिखाया, उसकी मैं प्रशंसा करता हूँ। जल के लिए आपने मेघ को फाड़ा और स्तोता के लिए गाय की प्राप्ति सुलभ कर दी।[ऋग्वेद 10.112.8]
Hey Indr Dev! I appreciate the bravery displayed-shown by you in earlier-previous times. You teared the clouds for water-rains and made cow availble for the Stota.
नि षु सीद गणपते गणेषु त्वामाहुर्विप्रतमं कवीनाम्।
न ऋते त्वत्क्रियते कि चनारे महामर्क मघवाञ्चित्रमर्च
बहुतों के अधिपति हे इन्द्र देव! स्तोताओं के बीच में बैठें। क्रिया-कुशल व्यक्तियों में आपको लोग सर्वपेक्षा बुद्धिमान् कहते हैं। समीप या दूर में आपके अतिरिक्त कोई अनुष्ठान नहीं होता। हे धनी इन्द्र देव! हमारी ऋचाओं को विस्तारित और नाना-रूप कर दें।[ऋग्वेद 10.112.9]
Hey lord of several, Indr Dev! Sit amongest the Stotas. People call you most intelligent amongest intelligencia, skilled-expert people. Whether far or near, no rituals-Yagy etc. take place without you. Hey wealthy Indr Dev! Expend our Richas and give them various forms. 
अभिख्या नो मघवन्नाधमानान्त्सखे बोधि वसुपते सखीनाम्।
रणं कृधि रण- कृत्सत्यशुष्माभक्ते चिदा भजा राये अस्मान्
हे धनी इन्द्र देव! हम आपके याचक हैं। हमें तेजस्वी बनावें। हे धनाधिपति और मित्र इन्द्र देव! यह जानें कि हम आपके मित्र हैं। हे युद्धकर्ता इन्द्र देव! आपकी शक्ति ही यथार्थ है। जहाँ धन-प्राप्ति की कोई सम्भावना नहीं होता, वहाँ भी आप हमें धन-भागी बनावें।[ऋग्वेद 10.112.10]
Hey wealthy Indr Dev! We are your solicitors. Make us glorious. Hey wealthy and friendly Indr Dev! Hey warrior Indr Dev! Make your power realistic. Make us partners in the wealth where there is no chance for us.(22.01.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (113) :: ऋषि :- शतप्रभेदन, वैरूप; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप्, जगती।
तमस्य द्यावापृथिवी सचेतसा विश्वेभिर्दैवैरनु शुष्ममावताम्।
यदैत्कृण्वानो महिमानमिन्द्रियं पीत्वी सोमस्य क्रतुमाँ अवर्धत
अन्यान्य देवों के साथ द्यावा-पृथ्वी मनोयोग पूर्वक इन्द्र देव के बल की रक्षा करें, जबकि वह वीरता प्राप्त करते-करते अपनी उपयुक्त महिमा को प्राप्त हुए, तब सोम-पान करते-करते अनेक कार्यों का सम्पादन करके वृद्धिंगत हुए।[ऋग्वेद 10.113.1]
Let heavens & earth protect the might-power of Indr Dev along with other demigods-deities. He should grow while gaining bravery, drinking Somras, performing his multiple duties.
तमस्य विष्णुर्महिमानमोजसांशुं दधन्वान्मधुनो वि रप्शते।
देवेभिरिन्द्रो मघवा सयावभिर्वृत्रं जघन्वाँ अभवद्वरेण्यः
श्री हरी विष्णु ने मधुर सोमलता-खण्ड को भेजकर इन्द्र देव की उस महिमा की उत्साह के साथ घोषणा की। धनी इन्द्र देव सहयोगी देवों के साथ एकत्रित होकर और वृत्रासुर का वध करके सर्वश्रेष्ठ हुए।[ऋग्वेद 10.113.2]
Shri Hari Vishnu sent a section-segment of Som Lata to Indr Dev and announced his glory enthusiastically. Wealthy Indr Dev became best-excellent by killing Vratra Sur collectively with the help of demigods-deities.
वृत्रेण यदहिना बिभ्रदायुधा समस्थिथा युधये शंसमाविदे।
विश्वे ते अत्र मरुतः सह त्मनावर्धन्नुग्र महिमानमिन्द्रियम्
उग्रतेजा इन्द्र जिस समय आप स्तुत की इच्छा से अस्त्र-शस्त्र धारण करके दुर्द्धर्ष वृत्रासुर के साथ युद्ध करने के लिए आगे बढ़े, उस समय समस्त मरुद्गणों ने आपकी महिमा बढ़ा दी और स्वयं भी वे वृद्धि को प्राप्त हुए।[ऋग्वेद 10.113.3]
When Indr Dev possessing furious energy proceeded to kill invincible Vratra Sur, wielding weapons, Marud Gan boosted his glory and they themselves attained glory-growth.
जज्ञान एव व्यबाधत स्पृधः प्रापश्यद्वीरो अभि पौंस्यं रणम्।
अवृश्चदद्रिमव सस्यदः सृजदस्तभ्नान्नाकं स्वपस्यया पृथुम्
जन्म के साथ ही इन्द्र देव ने शत्रुओं का दमन किया। उन्होंने युद्ध का विचार करके अपने पौरुष की वृद्धि की ओर ध्यान दिया। उन्होंने वृत्रासुर का छेदन किया, मनुष्यों को मुक्त कराया और उत्तम उद्योग करके विस्तृत स्वर्गलोग को स्थिर किया।[ऋग्वेद 10.113.4]
Indr Dev repressed-supressed the enemies as soon as he got birth. He decided-considered war and increased his valour-might. He killed Vratra Sur and released humans, making efforts to stabilize the heavens.
आदिन्द्रः सत्रा तविषीरपत्यत वरीयो द्यावापृथिवी अबाधत।
अवाभरद्धृषितो वज्रमायसं शेवं मित्राय वरुणाय दाशुषे
विशाल-विशाल सेनाओं की ओर इन्द्र देव एकाएक दौड़े। अपनी विशिष्ट महिमा से उन्होंने द्यावा-पृथ्वी को अपने वशीभूत कर लिया। जो वज्र दान परायण वरुण देव और मित्र के सुख का जनक है, इन्द्र देव ने उसी लौहमय वज्र को दुर्द्धर्ष रूप से धारण किया।[ऋग्वेद 10.113.5]
Suddenly Indr Dev run towards the vast armies. He controlled the heavens and earth due to his special power-glory. Indr Dev wielded invincible Vajr made of iron, which makes Varun Dev a donor and Mitr a friend.
इन्द्रस्यात्र तविषीभ्यो विरप्शिन ऋघायतो अरंहयन्त मन्यवे।
वृत्रं यदुग्रो व्यवृश्चदोजसापो बिभ्रतं तमसा परीवृतम्
इन्द्र देव नाना प्रकार के शब्द करते हुए शत्रुओं का वध कर रहे थे। उनके बल-पराक्रम की घोषणा करने के लिए जल निर्गत हुआ। वृत्रासुर ने अन्धकार से घिरकर जल को धारण कर लिया; परन्तु तीक्ष्ण तेज वाले इन्द्र देव ने बल पूर्वक वृत्रासुर को काट डाला।[ऋग्वेद 10.113.6]
Indr Dev was killing enemies making multiple sounds. Water was released announcing his might and valour. Vratra Sur shrouded himself under darkness, holding water but Indr Dev cut him into pieces with sharp weapons.
या वीर्याणि प्रथमानि कर्त्वा महित्वेभिर्यतमानौ समीयतुः।
ध्वान्तं तमोऽव दध्वसे हत इन्द्रो मह्ना पूर्वहूतावपत्यत
आपस में होड़ करके इन्द्र देव और वृत्रासुर पहले-पहले अपनी-अपनी वीरता दिखाकर महाक्रोध के साथ युद्ध करने लगे। वृत्रासुर के विनाश के अनन्तर घना अन्धकार विनष्ट हुआ। इन्द्र देव की महिमा ही ऐसी है कि वीरों की नाम-गणना के समय के समय सबसे पहले इन्हीं का ही नाम लिया जाता है।[ऋग्वेद 10.113.7]
Indr Dev & Vratra Sur demonstrated their bravery-might due to rivalry and fought with great furiosity, together. After the death of Vratra Sur darkness was removed.  Indr Dev's name is uttered-announced prior to enumerating the brave people.
विश्वे देवासो अध वृष्ण्यानि तेऽवर्दयन्त्सोमव्रत्या वचस्यया।
रद्धं वृत्रमहिमिन्द्रस्य हन्मनाग्निर्न जम्भैस्तृष्वन्नमावयत्
हे इन्द्र देव! सोमरस और स्तोत्र के द्वारा देवगणों ने आपकी संवर्द्धना की। इन्द्र देव ने दुर्द्धर्ष वृत्रासुर का वध कर डाला। इससे शीघ्र ही लोगों को अन्न प्राप्ति हुई। जिस प्रकार अग्नि देव अपनी शिखा के द्वारा जलाने योग्य वस्तु का भक्षण करते हैं, उसी प्रकार ही लोग दाँतों से अन्न चबाने लगे।[ऋग्वेद 10.113.8]
Hey Indr Dev! The demigods-deities grew-promoted you with Somras and Strotr. Indr Dev killed invincible Vratra Sur. It led to gain of food grains by the people. The way Agni Dev eat the combustible materials with his flames similarly people started chewing the food grains with their teeth.
भूरि दक्षेभिर्वचनेभिर्ऋकभिः सख्येभिः सख्यानि प्र वोचत।
इन्द्रो धुनिं च चुमुरिं च दम्भयञ्छ्रद्धामनस्या शृणुते दभीतये
हे स्तोताओं! इन्द्र देव ने जो मित्रता के कार्य किये हैं, उनकी प्रशंसा, उत्तमोत्तम वाक्यों और बन्धुजनोचित छन्दों के द्वारा करें। इन्द्र देव ने धुनि और चुमुरि नामक असुरों का वध किया और विश्वासी मन से दभीति राजा की प्रार्थना श्रवण की।[ऋग्वेद 10.113.9]
Hey Stotas! Appreciate the endeavours of Indr Dev with decent words and Chhand-Mitres. Indr Dev killed demons named Dhuni and Chumuri and responded to the prayers by king Dabhiti with confidence.
त्वं पुरूण्या भरा स्वश्र्व्या येभिर्मंसै निवचनानि शंसन्।
सुगेभिर्विश्वा दुरिता तरेम विदो षु ण उर्विया गाधमद्य
हे इन्द्र देव! मैंने जो स्तोत्र के समय में प्रचुर सम्पत्ति और उत्तमोत्तम अश्वों की अभिलाषा की थी, वह सब प्रदान करें। मैं पाप का लंघनकर कल्याण को प्राप्त करूँ। आज हम जिन स्तोत्रों की रचना कर रहे हैं, आप उन्हें प्रसन्नतापूर्वक अंगीकार करें।[ऋग्वेद 10.113.10]
Hey Indr Dev! Grant me lots of property and best horses and all that for which I prayed to you while reciting the Strotr. Let me win over the sins and resort to welfare. Accept the Strotrs composed by us today.(23.01.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (114) :: ऋषि :- वैरूप, सध्रि, धर्म या तापस; देवता :- विश्वेदेव; छन्द :- त्रिष्टुप्, जगती।
घर्मा समन्ता त्रिवृतं व्यापतुस्तयोर्जुष्टिं मातरिश्वा जगाम।
दिवस्पयो दिधिषाणा अवेषन्विदुर्देवाः सहसामानमर्कम्
सूर्य देव और अग्नि देव नामक प्रदीप्त देवता चारों ओर जाकर त्रिभुवन व्यापी हुए। मातरिश्वा (अन्तिरक्ष-स्थित वायु देव) ने उनकी प्रसन्नता प्राप्त की। जिस समय देवों ने साम-मन्त्र और सूर्य देव को प्राप्त किया, उस समय उन लोगों ने त्रिभुवन की रक्षा के लिए आकाशीय जल की रचना की।[ऋग्वेद 10.114.1]
Illuminated Sury Dev & Agni Dev pervaded the three abodes (heavens, earth and nether world). They became happy with Matrishwa-Vayu Dev, present in the space. The demigods-deities, the receivers of Sam Mantr and Sury Dev, produced water for the defence of the three abodes.
तिस्त्रो देष्ट्राय निर्ऋतीरुपासते दीर्घश्रुतो वि हि जानन्ति वह्नयः।
तासां नि चिक्युः कवयो निदानं परेषु या गुह्येषु व्रतेषु
याज्ञिक लोग यज्ञ के समय तीन निऋतियों-आहुति (अग्नि देव, सूर्य देव और वायु देव) की उपासना करते हैं। इसके अनन्तर यशस्वी अग्नि देवों का परिचय देवों से होता है। विद्वान् लोग आदि का मूल कारण जानते हैं। वे परम गोपनीय व्रत में रहते हैं।[ऋग्वेद 10.114.2]
निऋति :: तीन लोक, पृथ्वी, मध्य-वायु और स्वर्ग; या उन लोकों की अध्यक्षता करने वाले तीन देवता (अग्नि देव, सूर्य देव और वायु देव)।
The Yagyik worship the three Nirtis (Agni Dev, Sury Dev and Vayu Dev). Thereafter, Glorious Agni Dev is introduced with the demigods-deities. The learned knows the root cause behind this. They maintain highly secret-confidential Vrat (resolve, dedication, vow).
चतुष्कपर्दा युवतिः सुपेशा घृतप्रतीका वयुनानि वस्ते।
तस्यां सुपर्णा वृषणा नि र्षेदतुर्यत्र देवा दधिरे भागधेयम्
एक युवती (यज्ञ-देवी) है। उसके चार कोने है। उसकी मूर्ति सुन्दर और (घृत के कारण) स्निग्ध है। वह उत्तमोत्तम वस्त्र (यज्ञ-सामग्री) धारण करती है। दो पक्षी (यजमान और पुरोहित) उस पर बैठते हैं। वहाँ देवता लोग अपना-अपना भाग पाते हैं।[ऋग्वेद 10.114.3]
Yagy Devi is a young goddess having four dimensions. Her status-idol is beautiful and laced with Ghee. She is adorned best cloths. Two birds viz the Ritviz and Purohit-priest sit over it. There, the demigods-deities receive their share.
एकः सुपर्णः स समुद्रमा विवेश स इदं विश्वं भुवनं वि चष्टे।
तं पाकेन मनसापश्यमन्तितस्तं माता रेळ्हि स उ रेळिह मातरम्
एक पक्षी (प्राण वायु) समुद्र (ब्रह्माण्ड) में प्रविष्ट होता है। वह सारे विश्व को देखता है। परिपक्व बुद्धि के द्वारा मैंने उसको देखा है। वह निकट-वर्तिनी माता (वाक्) का आस्वादन करता है और माता भी उसका आस्वादन करती है।[ऋग्वेद 10.114.4]
A bird (Pran Vayu-air vital) enters the ocean-universe. He looks at the whole world. I saw him with matured intelligence. It remain close to the mother and she reciprocates.
सुपर्णं विप्राः कवयो वचोभिरेकं सन्तं कल्पयन्ति।
छन्दांसि च दधतो अध्वरेषु ग्रहान्त्सोमस्य मिमते द्रादश
पक्षी (परमात्मा) एक है; परन्तु क्रान्तदर्शी विद्वान लोग उसकी अनेक प्रकार से कल्पना करते हैं। वे यज्ञ-काल में नाना प्रकार के छन्दों का उच्चारण करते हैं और बारह (उपांशु, अन्तर्याम आदि) सोम-पात्र स्थापित करते हैं।[ऋग्वेद 10.114.5]
Bird-the Supreme Lord, Almighty is one. The intellectuals-visionaries perceive HIM is several forms. They recite several kinds-forms of Chhands-Metre during the Yagy period and twelve Som vessels (Upanshu, Antaryam) are established.
षट्त्रिंशाँश्च चतुरः कल्पयन्तश्छन्दांसि च दधत आद्वादशम्।
यज्ञं विमाय कवयो मनीष ऋक्सामाभ्यां प्र रथं वर्तयन्ति॥
विद्वान लोग चालीस प्रकार के सोम-पात्र स्थापित करके या छन्द उच्चारण करते हैं और बारह प्रकार के छन्द कहते या सोम-पात्र रखते हैं। इस प्रकार वह बुद्धि-पूर्वक अनुष्ठान करके ऋक् और सोम के द्वारा यज्ञ रथ चलाते हैं।[ऋग्वेद 10.114.6]
The scholars-learned establish forty kinds of Som vessels and recite twelve kinds of meter. In this manner they organise the rituals and move the Yagy chariot-process through their intellect due to Rik & Sam.
चतुर्दशान्ये महिमानो अस्य तं धीरा वाचा प्र णयन्ति सप्त।
आप्नानं तीर्थं क इह प्र वोचद्यद्येन पथा प्रपिबन्ते सुतस्य
इस यज्ञ (परमात्मा) की चौदह भुवन हैं। सात होता आदि शास्त्र वाक्य के द्वारा यज्ञ सम्पादन करते हैं। यज्ञ-मार्ग में उपस्थित होकर देवता लोग सोमरस का पान करते हैं। उस विश्व व्यापी यज्ञ-मार्ग का वर्णन करने में इस लोक में कौन समर्थवान है?[ऋग्वेद 10.114.7]
This Yagy-the Almighty has fourteen abodes-dimensions. Seven Hota conduct the Yagy with the directives of the scriptures. During this process of Yagy, the demigods present themselves and drink Somras. Who is capable of describing the process-methodology of the vast Yagy pervading the universe?
सहस्त्रधा पञ्चदशान्युक्था यावद्यावापृथिवी तावदित्तत्।
सहस्त्रधा महिमानः सहस्त्रं यावद्ब्रह्म विष्ठितं तावती वाक्
पहन्द्र हजार उक्थ मन्त्र हैं। द्यावा-पृथ्वी के समान ही उक्थ भी बृहत् हैं। स्तोत्र की महिमा हजारों प्रकार की हैं। जिस प्रकार स्तोत्र असीम है, उसी प्रकार ही वाक्य भी।[ऋग्वेद 10.114.8]
Fifteen thousand Ukth Mantr are there. Ukth is vast like the heavens & earth. The glory of Strotr is in thousands. The Strotr is unlimited-infinite, similarly the stanza-sentence is also infinite. 
कश्छन्दसां योगमा वेद धीरः को धिष्ण्यां प्रति वाचं पपाद।
कमृत्विजामष्टमं शूरमाहुर्हरी इन्द्रस्य नि चिकायं कः स्वित्
कौन ऐसे पण्डित हैं जो सारे छन्दों की बात जानते हैं? किसने मूल-वाक्य को समझा है? कौन ऐसे प्रधान पुरुष है, जो सातों पुरोहितों के ऊपर अष्टम हो सकें? इन्द्र देव के हरि वर्ण के अश्वों को किसने देखा या समझा है?[ऋग्वेद 10.114.9]
Who is the enlightened who is aware of all meters? Who understand the theme behind the speech-sentence? Who are the supreme lord who can be placed over the seven Priests? Who has seen and understood the green coloured horses of Indr Dev?
भूम्या अन्तं पर्येके चरन्ति रथस्य धूर्ष युक्तासो अस्थुः।
श्रमस्य दायं वि भजन्त्येभ्यो यदा यमो भवति हयें हितः
कुछ अश्व पृथ्वी की शेष सीमा तक विचरण करते हैं और कुछ रथ की धुरा में ही जोते रहते हैं। जिस समय सारथि रथ के ऊपर रहता है, उस समय परिश्रम दूर करने के लिए अश्वों को उपयुक्त आहार दिया जाता है।[ऋग्वेद 10.114.10]
Some horses roam till the remaining boundary-limit of the earth and are some deployed in the charoite. When the charioteer is the charoite, the horses are fed with suitable food to relieve them.(23.01.2025E)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (115) :: ऋषि :- उपस्तुत, बार्ष्टिहव्य; देवता :- अग्नि;  छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्, शक्वरी।
चित्र इच्छिशोस्तरुणस्य वक्षथो न यो मातरावप्येति धातवे।
अनूधा यदि जीजनदधा च नु ववक्ष सद्यो महि दूत्यं १ चरन्
इन नवीन बालक अग्नि देव का क्या अद्भुत प्रभाव है। दूध पीने के लिए यह बालक माता-पिता के पास नहीं जाता। इसके पान के लिए स्तन-दुग्ध नहीं है; परन्तु यह बालक प्रादुर्भूत हुआ है। जन्म के साथ ही इस बालक ने कठिन दूत-कार्य का भार ग्रहण करके उसका निर्वाह किया।[ऋग्वेद 10.115.1]
The impact of nascent-new, infant Agni Dev is wonderful, amazing. This child do not go mother for drinking milk. No milk is there in the nipple for him, since he has evolved himself-without a mother. Since his birth he carried out the difficult job of a messenger.
अग्निर्ह नाम धायि दन्नपस्तमः सं यो वना युवते भस्मना दता।
अभिप्रमुरा जुह्वा स्वध्वर इनो न प्रोथमानो यवसे वृषा
जो नाना प्रकार के कार्य करने वाले और दान देने वाले हैं, ऐसे अग्नि देव का आधान किया गया। ये ज्योति रूप दाँतों से बल द्वारा लोगों का भक्षण करते हैं। जुहू नामक उच्च पात्र में इन्द्र देव को यज्ञ-भाग दिया गया। जिस प्रकार हृष्ट-पुष्ट और बली वृष घास खाता है, उसी प्रकार ही ये यज्ञ-भाग का भक्षण करते हैं।[ऋग्वेद 10.115.2]
Agni Dev who perform several functions and is a donor has been invoked. He eats the people with his teeth in the form of fire. Indr Dev's share of offerings in the Yagy the has been granted in a high pot named Juhu. The way a healthy bull eats grass, similarly they eat their share of offerings in the Yagy.
तं वो विं न द्रुषदं देवमन्धस इन्दुं प्रोथन्तं प्रवपन्तमर्णवम्।
आसा वह्निं न शोचिषा विरप्शिनं महिव्रतं न सरजन्तमध्वनः
पक्षी के समान अग्नि देव वृक्ष (अरणि) का आश्रय करते हैं। वे प्रदीप्त अन्न के दाता हैं। वे शब्द करते हुए वन को जलाते है, जल धारण करते हैं, मुख के द्वारा हव्य का वहन करते हैं और आलोक के द्वारा महान् होते हैं। उनका कार्य महान् है। अपने मार्ग को वे रक्तवर्ण कर देते हैं। हे स्तोताओ! उन अग्निदेव की स्तुति करें।[ऋग्वेद 10.115.3]
Agni Dev depend upon the trees like the birds. He grants shining food grains. He burn the jungle making sound, support the water carry offerings in the mouth and become great due to lustre. His endeavours are great. Hey Stotas! Worship Agni Dev. 
वि यस्य ते ज्रयसानस्याजर धक्षोर्न वाताः परि सन्त्यच्युताः।
आ रण्वासो युयुधयो न सत्वनं त्रितं नशन्त प्र शिषन्त इष्टये
हे अजर अग्नि देव! जिस समय आप दाह करते हैं, उस समय वायुदेव आकर आपके चारों ओर ठहरते हैं और अविचलित पुरोहित लोग यज्ञ के अवसर पर स्तुति करते हुए आपको घेरकर खड़े हो जाते हैं। उस समय आप तीन मूर्त्तियाँ धारण करते हैं, बल प्रकाशित करते हैं, इधर-उधर जाते हैं। पुरोहित लोग योद्धाओं के समान कोलाहल करने लगते हैं।[ऋग्वेद 10.115.4]
Hey immortal Agni Dev! When you burn the wood, Vayu Dev surround you and the unmoved Purohits-priests make prayers-Stutis, surrounding you. You appear in three form at that moment, demonstrate power and move around. The Purohits make sound like warriors.
स इदग्निः कण्वतमः कण्वसखार्यः परस्यान्तरस्य तरुषः।
अग्निः पातु गृणतो अग्निः सूरीनग्निर्ददातु तेषामवो नः
वे अग्नि देव ही सबसे अधिक शब्द करने वाले हैं। जो सशब्द स्तोत्र करते हैं, उनके आप मित्र हैं। वे प्रभु हैं और समीपस्थ शत्रु का विनाश करने वाले हैं। अग्नि देव स्तोताओं के और विद्वानों के रक्षक हैं। वे उन्हे और हमें आश्रय प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 10.115.5]
Its Agni Dev makes lots of sound. You are a friend of those who recite Strotr. He is a lord and destroy the nearby enemy. He is a protector of the Stotas and the enlightened-scholars. He grant asylum to them and us.
वाजिन्तमाय सह्यसे सुपित्र्य तृषु च्यवानो अनु जातवेदसे।
अनुद्रे चिद्यो धृषता वरं सते महिन्तमाय धन्वनेदविष्यते
हे शोभन पिता वाले अग्नि देव! आपके सदृश अन्न वाला कोई भी नहीं है। आप बली और सर्वश्रेष्ठ हैं तथा विपत्ति के समय धनुष धारण करके रक्षा करते हैं। उन ज्ञानी अग्नि देव को उत्साह के साथ यज्ञ-सामग्री प्रदान करें और शीघ्र स्तुति करने को प्रस्तुत होवें।[ऋग्वेद 10.115.6]
विपत्ति :: आपदा, विपत्ति, आफ़त, दैवी प्रकोप, उत्पात, अमंगल, गज़ब, दैवी प्रकोष, व्यसन, मुसीबत, उत्पात, व्यसन, कष्ट; disaster, calamity, disaster, fatality. 
Hey Agni Dev son of a glorious father! There is none other than you with food grains. You are mighty, excellent and wield bow & arrow during trouble-disaster for protection. Get ready for Stuti quickly and making offerings to Agni with Yagy related materials.
एवाग्निर्मर्तेः सह सूरिभिर्वसुः ष्टवे सहसः सूनरो नृभिः।
मित्रासो न ये सुधिता ऋतायवो द्यावो न द्युम्नैरभि सन्ति मानुषान्
ज्ञाता और कार्य-कर्ता मनुष्य अग्नि देव की स्तुति करते हुए उन्हें सम्पत्ति और बल पुत्र कहते हैं। यज्ञानुष्ठान करने वाले मित्र के समान अग्नि-कृपा में तृप्ति प्राप्त करते हैं। वे ज्योतिर्मय ग्रह, नक्षत्र आदि के समान अपने तेज से शत्रु-मनुष्यों को पराजित करते हैं।[ऋग्वेद 10.115.7]
Learned and executive humans worship Agni Dev calling him the son of wealth and might. Performers of Yagy-Hawan friends, find satisfaction in the blessings-mercy of Agni Dev. He defeats the enemy of humans like the shining planets, constellations with his radiance. 
ऊर्जा नपात्सहसावन्निति त्वोपस्तुतस्य वन्दते वृषा वाक्।
त्वां स्तोषामत्वया सुवीरा द्राघीय आयुः प्रतरं दधानाः
बल के पुत्र और शक्तिशाली हे अग्नि देव! मेरा नाम 'उपस्तुत' है। मेरा वर्षक स्तोत्र आपकी स्तुति करता है। हम आपकी स्तुति करते हैं, आपकी दया से हम दीर्घायु हों और सन्तान प्राप्त करें।[ऋग्वेद 10.115.8]
Mighty son of Bal, hey Agni Dev! My name is Upstut. My Varshak Strotr worship you. We worship you. We should survive for long due to your mercy-kindness and get progeny.
इति त्वाग्ने वृष्टिहव्यस्य पुत्रा उपस्तुतास ऋषयोऽवोचन्। ताँश्च पाहि गृणतश्च सूरीन् वषडषळित्यूर्ध्वासो अनक्षन्नमो नम इत्यूर्ध्वासो अनक्षन्
वृष्टि हव्य नामक ऋषि के पुत्र 'उपस्तुत' आदि ने आपकी स्तुति की। उनकी और स्तोता विद्वानों की रक्षा करें। उन्होने 'वषट्' मन्त्र और 'नमोनमः' वाक्य से आपकी स्तुति की।[ऋग्वेद 10.115.9]
Upstut son of Vrashti Havy Rishi, etc worshiped you. Protect them and the Stota scholars. They worshiped you with Vasht and Namo Namh Mantrs.(24.01.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (116) :: ऋषि :- अग्नियुत या स्थौरोग्नियूपो; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप्।
पिबा सोमं महत इन्द्रियाय पिबा वृत्राय हन्तवे शविष्ठ।
पिब राये शवसे हूयमानः पिब मध्वस्तृपदिन्द्रा वृषस्व
बलियों में अग्रगण्य हे इन्द्र देव! प्रचुर बल की प्राप्ति के लिए और वृत्रासुर के वध के लिए सोम-पान करें। अन्न और धन के लिए आपको बुलाया जाता है। सोम-पान करें। मधुतुल्य सोम का पान करें और तृप्त होकर वारि-वर्षण करें।[ऋग्वेद 10.116.1]
प्रचुर :: विपुल, बहुत अधिक, भरा-पूरा, अधिक, पर्याप्त, पूर्ण, अधिकता, विपुलता; plenitude, flux, enormous, generous, abundant, ample, affluent, fertile, luxurious, plentiful, exuberant, voluminous, copious, galore, luxuriant, riotous, profuse, rococo, bounteous, lavish, great, fair, superabundant, deluxe, abounding, rich, common, bountiful, large, full, unsparing, unstinted, plenty, copious.
Hey Indr Dev, leading the mighty! For ample-abundant strength and killing Vratra Sur drink Somras. You have been invoked for wealth and food grains. Drink Somras comparable to honey and shower rains on being satisfied.
अस्य पिब क्षुमतः प्रस्थितस्येन्द्र सोमस्य वरमा सुतस्य।
स्वस्तिदा मनसा मादयस्वार्वाचीनो रेवते सौभगाय
हे इन्द्र देव! यह सोम प्रस्तुत है। इसके साथ खाद्य द्रव्य है। सोम क्षरित हो रहा है। इसके सार भाग का पान करें। कल्याण करें, मन ही मन आनन्द प्राप्त करें तथा धन और सौभाग्य देने के लिए अग्रसर होवें।[ऋग्वेद 10.116.2]
Hey Indr Dev! Somras has been presented to you with eatables. Som is being extracted. Accept it extract. Perform welfare and be gladdened and move forward to grant wealth and auspicious luck.
ममत्तु त्वा दिव्यः सोम इन्द्र ममत्तु यः सूयते पार्थिवेषु।
ममत्तु येन वरिरश्चकर्थ ममत्तु येन निरिणासि शत्रून्
हे इन्द्र देव! आपको स्वर्गीय सोम मत्त करे। पृथिवीस्थ मनुष्यों के मध्य जो प्रस्तुत हुआ है, वह भी आपको मत्त करे। जिससे आप धन प्रदान करें, वही सोम मत्त करे। जिसके द्वारा शत्रुओं का वध करते हैं, वह भी मत्त करे।[ऋग्वेद 10.116.3]
Hey Indr Dev! Let Somras from the heaven gladden you. Somras presented over the earth too gladden you and the one which lead to murder the enemy too gladden you.
आ द्विबर्हा अमिनो यात्विन्द्रो वृषा हरिभ्यां परिषिक्तमन्धः।
गव्या सुतस्य प्रभृतस्य मध्वः सत्रा खेदामरुशहा वृषस्व
इन्द्र देव इस लोक और परलोक में दृढ़, सर्वत्र गन्ता और वृष्टिदाता हैं। हमने सोम-रूप आहारीय द्रव्य का चारों ओर सिञ्चन किया है। दोनों अश्वों के द्वारा इन्द्र देव उसके पास जाएं। हे शत्रु-घातक इन्द्र देव! मधु-तुल्य सोम गोचर्म के ऊपर परिशोधित करके पात्र में परिपूर्ण रखा हुआ है। वृष के समान बल का प्रकाश करके यज्ञ के शत्रुओं का विनाश करें।[ऋग्वेद 10.116.4]
Indr Dev is strong-strict, free to move every where and shower rains. We stored eatables in the form of Som all around. Go to Indr Dev riding the two horses. Hey slayer of the enemy Indr Dev! Somras as good honey has been kept over the cow skin after purifying-sanctifying it. Have the strength like the bull and kill the enemy of the Yagy.
नि तिग्मानि भ्राशयन् भ्राश्यान्यव स्थिरा तनुहि यातुजूनाम्।
उग्राय ते सहो बलं ददामि प्रतीत्या शत्रून् विगदेषु वृश्च
हे इन्द्र देव! तीक्ष्ण शस्त्रों को दिखाते हुए राक्षसों को भूमिशायी करें। आपकी मूर्ति भयंकर है। आपको बल और उत्साह बढ़ानेवाला सोम हम प्रदान करते हैं। उस सोमरस का पान करके अपनी सामर्थ्य द्वारा युद्ध में शत्रुओं पर प्रहार करके आप उन्हें विनष्ट कर डालें।[ऋग्वेद 10.116.5]
Hey Indr Dev! demonstrate the might of sharp weapons and slay the enemy. You are furious. We provide Somras which grant you power-strength and enthusiasm. Drink that Somras, strike-hit the enemy and destroy them.
व्य १ इन्द्र तनुहि श्रवांस्योजः स्थिरेव धन्वनोऽभिमातीः।
अस्मद्यग्वावृधानः सहोभिरनिभृष्टस्तन्वं वावृधस्व
हे प्रभु इन्द्र देव! अन्न का विस्तार करें, शत्रुओं के ऊपर अपना अभिलषित प्रभाव और धनुष फैलावे। हमारे अनुकुल होकर बढ़ें। शत्रुओं से पराजय प्राप्त न करके अपने बल से शरीर को बढ़ावें।[ऋग्वेद 10.116.6]
Hey lord Indr Dev! Grow the food grains, express your desired power and the impact of bow favouring us. Remain undefeated and extend your body due to strength.
इदं हविर्मघवन् तुभ्यं रातं प्रति सम्राळहृणानो गृभाय।
तुभ्यं सुतो मघवन् तुभ्यं पको ३ द्धीन्द्र पिब च प्रस्थितस्य
हे धनी इन्द्र देव! इस यज्ञ-सामग्री को आपके लिए हम अर्पित करते हैं। हे सम्राट् इन्द्र देव! क्रोध न करके इसे ग्रहण करें। हे धनी इन्द्र देव! सोम प्रस्तुत हुआ है। आपके लिए खाद्य पकाया गया है। यह सारा द्रव्य आपके पास जाता है, इसे पियें और खाएं।[ऋग्वेद 10.116.7]
Hey Indr Dev! We offer you this Yagy related material-oblations. Hey Lord Indr Dev! Do not be angry and accept this. Hey wealthy Indr Dev! Som has been presented for you. Food has been cooked for you. Let this whole fluid-food come to you and you just consume it.
अद्धीदिन्द्र प्रस्थितेमा हवींषि चनो दधिष्व पचतोत सोमम्।
प्रयस्वन्तः प्रति हर्यामसि त्वा सत्याः सन्तु यजमानस्य कामाः
हे इन्द्र देव! यह समस्त यज्ञ-सामग्री आपके पास जाती है। जो आहारीय द्रव्य पकाया गया है और जो सोम है, उन दोनों का ही भक्षण करें। अन्न लेकर हम आपको भोजन के लिए आमन्त्रित करते हैं। यजमानों के मन की वासनाएं सफल हों।[ऋग्वेद 10.116.8]
Hey Indr Dev! Let this whole Yagy oblations reach you. Eat the food cooked for you and drink Somras. We prepare-cook food and invite for eating. Let the desires of the Ritviz-hosts be accomplished
प्रेन्द्राग्निभ्यां सुवचस्यामियम्रि सिन्धाविव प्रेरयं नावमर्कैः।
अयाइव परि चरन्ति देवा ये अस्मभ्यं धनदा उद्भिदश्च
अग्नि देव और इन्द्र देव के लिए सुरक्षित स्तुति मैं प्रेरित करता हूँ। जिस प्रकार नदी में नाव भेजी जाती है, उसी प्रकार ही पूजनीय मन्त्रों से मैंनें स्तुति प्रेरित की। पुरोहितों के समान देवता लोग परिचर्या करते हैं। वे हमारे शत्रुओं का विनाश करने के लिए हमें धन प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 10.116.9]
I recite the Stuti for Agni Dev & Indr Dev. The way boat is sent to the river similarly I recite the Stuti worshipable-auspicious, virtuous Mantr. The demigods perform the rituals-ceremonies like the Purohits-priests. They grant us wealth for the destruction of the enemy.(25.01.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (117) :: ऋषि :- भिक्षु, आंगिरस; देवता :-धन, अन्न, दान; छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
न वा उ देवाः क्षुधमिद्वधं ददुरुताशितमुप गच्छन्ति मृत्यवः।
उतो रयिः पृणतो नोप दस्यत्युतापृणन् मर्डितारं न विन्दते
देवों ने क्षुधा (भूख) की जो सृष्टि की है, वह प्राण-नाशिनी है। परन्तु आहार करने पर भी तो प्राण को मृत्यु से मुक्ति नहीं मिलती। तो भी दाता का धन कम नहीं होता। अदाता को कोई सुखी नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 10.117.1]
प्राण :: जीवन दायिनी शक्ति; vitality, soul, breath, spirit, life. 
Demigods created hunger which leads to death. However, inspite of food sprit-life is not free from death. Wealth of donor does not recede. A person who not donate can not be comfortable. 
य आध्राय चकमानाय पित्वोऽ न्रवान्त्सन्नफितायोपजग्मुषे।
स्थिरं मनः कृणुते सेवते पुरोतो चित्स मर्डितारं न विदन्ते
जिस समय कोई भूखा मनुष्य भीख माँगने को उपस्थित होता है, अन्न की याचना करता है, उस समय जो अन्नवाला होकर भी हृदय को निष्ठुर रखता और सामने ही भोजन करता है, उसे कोई सुखदाता नहीं मिल सकता।[ऋग्वेद 10.117.2]
As and when a hungry person ask for alms-begs for food grains, a ruth-heartless person though has food grains, but keep food in front of him only; can not have comforts-pleasure.
स इद्भोजो यो गृहवे ददात्यन्नकामाय चरते कृशाय।
अरमस्मै भवति यामहूता उतापरीषु कृणुते सखायम्॥
अन्न की इच्छा से किसी दुर्बल व्यक्ति के भिक्षा माँगने पर जो अन्न-दान करता है, वही दाता है। उसे सम्पूर्ण यज्ञ-फल मिलता है और वह शत्रुओं में भी मित्र पा लेता है।[ऋग्वेद 10.117.3]
One who grant food grains to the weak-fragile beggar, is a donor. He attains the reward of a complete Yagy and has friend amongest the enemies.
न स सखा यो न ददाति सख्ये सचाभुवे सचमानाय पित्वः।
अपास्मात्प्रेयान्न तदोको अस्ति पृणन्तमन्यमरणं चिदिच्छेत्
अपना मित्र पास आता है और मित्र होकर भी जो व्यक्ति उसे अन्नदान नहीं करता, वह मित्र कहलाने योग्य नहीं है। उसके पास से चला जाना ही उचित है। उसका गृह गृह ही नहीं है। उस समय किसी धनी दाता के यहाँ जाना ही उचित है।[ऋग्वेद 10.117.4]
A person who do not grant food grains to a friend who has come to him for to it, do not deserve to be called a friend. Its better to leave-desert him. His house is not a home. At that moment its better to approach a wealthy donor.
पृणीयादिन्नाधमानाय तव्यान् द्राघीयांसमनु पश्येत पन्थाम्।
ओ हि वर्तन्ते रथ्येव चक्रान्यमन्यमुप तिष्ठन्त रायः
याचक को अवश्य धन देना चाहिए। दाता को अत्यन्त पुण्य-पथ मिलता है। जिस प्रकार रथ-चक्र नीचे-ऊपर घूमता है, उसी प्रकार ही धन भी कभी किसी के पास रहता है और कभी दूसरे के पास चला जाता है-कभी एक स्थान पर स्थिर नहीं रहता।[ऋग्वेद 10.117.5]
Money must be given to the beggar. The donor attains imperishable rewards for it. The way a wheel moves up and down, the wealth do not stay with any person. It moves from one to another. Wealth is not stationary.
मोघमन्नं विन्दते अप्रचेताः सत्यं ब्रवीमि वध इत्स तस्य।
नार्यमणं पुष्यति नो सखायं केवलाघो भवति केवलादी
जिसका मन उदार नहीं है, उसका भोजन करना व्यर्थ है। उसका भोजन उसकी मृत्यु के समान है। जो न तो देवता को देता है और न मित्र को देता है और स्वयं भोजन करता है, वह केवल पाप का ही भक्षण करता है।[ऋग्वेद 10.117.6]
Its useless for a person to eat, who's innerself is not liberal. His hunger is like death. One who do not give to either a friend or demigods and eats by himself, just eat sins.
कृषन्नित्फाल आशितं कृणोति यन्नध्वानमप वृङ्क्ते चरित्रैः।
वदन् ब्रह्मावदतो वनीयान् पृणन्नापिरपृणन्तमभि ष्यात्
कृषि-कार्य करके हल अन्न प्रस्तुत करता है। वह अपने मार्ग से जाकर अपने कर्म के द्वारा अन्न उत्पादन करता है। जिस प्रकार विद्वान पुरोहितों मूर्ख से श्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार ही दाता सदा अदाता के ऊपर रहता है।[ऋग्वेद 10.117.7]
The plough generate food grains by performing agriculture. It moves over its path and produce food grains. The way a learned priest-Purohit is better than a duffer-idiot, similarly a donor is superior to one who do not donate.
एकपाद्भूयो द्विपदो वि चक्रमे द्विपात्त्रिपादमभ्येति पश्चात्।
चतुष्पादेति द्विपदामभिस्वरे संपश्यन् पक्तीरुपतिष्ठमानः
जिसके पास एक अंश सम्पत्ति है, वह दो अंश सम्पत्ति के अधिकारी की याचना करता है, जिसके पास दो अंश है, वह तीन वाले के पास जाता है और जिसे चार अंश प्राप्त है, वह उसके अधिक वाले के पास जाता है। इसी प्रकार श्रेणी बँधी हुई है। अल्प धनी अधिक धनी की उपासना करता है।[ऋग्वेद 10.117.8]
Its sequential to ask one who has two parts of wealth as compared to one who just has one. A person with less wealth worship one who has more money.
समौ चिद्धस्तौ न समं विविष्टः संमातरा चिन्न समं दुहाते।
यमयोश्चिन्न समा वीर्याणि ज्ञाती चित्सन्तौ न समं पृणीतः
हम लोग के दोनों हाथ समान रूपवाले है; परन्तु धारण करने की शक्ति समान नहीं है। एक माता से उत्पन्न होकर दो गायें एक समान दुग्ध नहीं देती। दो भ्राता होने पर भी उनका पराक्रम विभिन्न प्रकार का होता है। एक वंश की सन्तान होकर भी दो व्यक्ति समान दाता नहीं होते।[ऋग्वेद 10.117.9]
Our two hands are alike but the capacity to hold, is not the same. Two cows born out a mother, do not yield equal milk. The valour of wo brothers is different. Born in the same clan, two people are not equal donors.(26.01.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (118) :: ऋषि :- उरक्षय, आमहीयव; देवता :- अग्नि, रक्षोहा; छन्द :- गायत्री।
अग्ने हंसि न्य१त्रिणं दीद्यन् मर्येष्वा। स्वे क्षये शुचिव्रत
हे पवित्र व्रत वाले अग्नि देव! मनुष्यों के बीच आप अपने स्थान में प्रदीप्त होवें और शत्रुओं का वध करें।[ऋग्वेद 10.118.1]
Hey Agni Dev with pious motive! You should be lustrous amongest the humans at your own place and kill the enemy.
उत्तिष्ठसि स्वाहुतो घृतानि प्रति मोदसे। यत्त्वा स्रुचः समस्थिरन्
स्रुक नाम का यज्ञ-पात्र आपके लिए उठाया गया है। आपको उत्तम आहुति दी गई है। आप उत्तम घृत के प्रति रुचि करें।[ऋग्वेद 10.118.2]
The Yagy vessel named Struk has been raised for you. Best offerings-oblations have been made to you. You should have taste-interest for Ghee.
स आहुतो वि रोचतेऽग्निरीळेन्यो गिरा। स्रुचा प्रतीकमज्यते
अग्निदेव को बुलाया गया है। वे वाक्य के द्वारा स्तुत्य हैं। वे प्रदीप्त होते हैं। सभी देवों के पहले उन्हें स्रुक के द्वारा घृत-युक्त किया जाता है।[ऋग्वेद 10.118.3]
Agni Dev has been invoked. He is worshiped with sentence (Strotr, stanza, hymns, Mantr, Shlok). He shines. Offerings are made to him prior to demigods with Struk.
घृतेनाग्निः समज्यते मधुप्रतीक आहुतः। रोचमानो विभावसुः
अग्नि में आहुति दी गई। उनकी देह घृतमय हुई। वे दीप्तमान् और समृद्ध प्रकाश से युक्त हुए। वे घृताक्त हुए।[ऋग्वेद 10.118.4]
Offerings have been made in the fire-Agni. Its is laced with Ghee. Its lustrous and has become radiant.
जरमाणः समिध्यसे देवेभ्यो हव्यवाहन। तं त्वां हवन्त मर्त्याः
हे अग्नि देव! आप देवों के पास हवि ले जाया करते हैं। स्तोत्र करने पर आप प्रज्वलित होते है। आपका मनुष्य आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 10.118.5]
Hey Agni Dev! You carry offerings to the demigods-deities. You shine when Strotr is recited. Humans invoke you.
तं मर्ता अमर्त्यं घृतेनाग्निं सपर्यत। अदाभ्यं गृहपतिम्
हे मरण-शील मनुष्यों! अग्नि देव अमर, दुर्द्धष और गृह के स्वामी हैं। घृत-द्वारा उनकी पूजा करें। [ऋग्वेद 10.118.6]
Hey mortal-perishable humans! Agni Dev is immortal-eternal, invincible and lord of the house. Pray him with Ghee.
अदाभ्येन शोचिषाग्ने रक्षस्त्वं दह। गोपा ऋतस्य दीदिहि
हे अग्नि देव! प्रचण्ड तेज के द्वारा आप राक्षसों को जलावें। यज्ञ के रक्षक होकर दीप्ति धारण करें।[ऋग्वेद 10.118.7]
Hey Agni Dev! Burn the demons with fierce flames. Become protector of the Yagy and possess aura.
स त्वमग्ने प्रतीकेन प्रत्योष यातुधान्यः। उरुक्षयेषु दीद्यत्
हे अग्नि देव! अपने स्वाभाव-सिद्ध तेज के द्वारा राक्षसियों को जलावें। अपने प्रशस्त स्थानों पर रहकर दीप्ति धारण करें।[ऋग्वेद 10.118.8]
Hey Agni Dev! Burn the demons with your natural heat. Stay at your designated places and have aura-radiant.
तं त्वा गीर्भिरुरुक्षया हव्यवाहं समीधिरे। यजिष्ठं मानुषे जने॥
मनुष्यों में आप सर्वश्रेष्ठ यज्ञ-कर्ता है। आपका निवास-स्थान अद्भभुत है। आप हव्य वाहक है। आपको स्तुति के साथ प्रज्वलित किया जाता है।[ऋग्वेद 10.118.9]
You are the best Yagy performer amongest the humans. Your abode is amazing. You are  the carrier of offerings-oblations to the demigods. You are ignited while reciting prayers-Stuti.(26.01.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (119) :: ऋषि :- लव ऐन्द्र; देवता :- आत्मा (इन्द्र); छन्द :- गायत्री।
इति वा इति मे मनो गामश्वं सनुयामिति। कुवित्सोमस्याषामिति
मेरी इच्छा है कि, मैं गौ, अश्व आदि का दान करूँ। मैंने कई बार सोम-पान किया है।[ऋग्वेद 10.119.1]
I wish to donate cows, horses etc. I have drunk Somras many times.
प्र वाताइव दोधत उन्मा पीता अयंसत। कुवित्सोमस्यापामिति
जिस प्रकार वायु देव वृक्ष को कँपाते और ऊपर उठाते हैं, उसी प्रकार ही मेरी ओर स्तुति जाती है। मैंने अनेक बार सोमरस पिया है।[ऋग्वेद 10.119.2]
The way Vayu Dev tremble the trees and lift them upwards, similarly my Stuti rises up. I have drunk Somras many times.
उन्मा पीता अयंसत रथमश्वाइवाशवः। कुवित्सोमस्यापामिति
जिस प्रकार शीघ्रगामी अश्व रथ को ऊपर उठाये रखता है, उसी प्रकार ही सोमरस, पीये जाने पर, मुझे ऊपर उठा रखा है। मैंने अनेक बार सोम-पान किया है।[ऋग्वेद 10.119.3]
The way fast moving horses raise the charoite, similarly the Somras keep me in high spirits. I have drunk Somras many times.
उप मा मतिरस्थित वाश्रा पुत्रमिव प्रियम्। कुवित्सोमस्यापामिति
जिस प्रकार गाय हम्बा (रम्भाना) कहती हुई बछड़े के प्रति दौड़ती है, उसी प्रकार ही मेरी ओर स्तुति जाती है। मैंने अनेक बार सोमरस पिया है।[ऋग्वेद 10.119.4]
The way the cow run behind the calf mooing, similarly my Stuti is performed. I have drunk Somras many times.
अहं तष्टेव वन्धुरं पर्यचामि हृदा मतिम्। कुवित्सोमस्यापामिति
जिस प्रकार त्वष्टा रथ के ऊपर के भाग (सारथि स्थान) को बनाते हैं, उसी प्रकार ही मैं भी स्तोता के मन में स्तोत्र का उदय कर देता हूँ। मैंने अनेक बार सोमरस पिया है।[ऋग्वेद 10.119.5]
The way Twasta makes the upper segment for the charioteer I too raise the Strotr in the innerself of the Stota. I have drunk Somras many times.
नहि मे अक्षिपचनाच्छान्त्सुः पञ्च कृष्टयः। कुवित्सोमस्यापामिति
पञ्चजन (चार वर्ण और निषाद) मेरी दृष्टि से ओझल नहीं हो सकते। मैंने अनेक बार सोम-पान किया है।[ऋग्वेद 10.119.6]
The four Varns and fifth Varn Nishad can not disappear from my sight. I have drunk Somras many times.
नहि मे रोदसी उभे अन्यं पक्षं चन प्रति। कुवित्सोमस्यापामिति
द्यावा-पृथ्वी दोनों मेरे एक पार्श्व के समान भी नहीं है। मैंने अनेक बार सोमरस पिया है।[ऋग्वेद 10.119.7]
Heaven & earth together do not form-compose even one side of me. I have drunk Somras many times.
अभि द्यां महिना भुवमभी३ मां पृथिवीं महीम्। कुवित्सोमस्यापामिति
मेरी महिमा स्वर्ग और विशाल पृथ्वी को लॉघती है। मैंने अनेक बार सोमरस पिया है।[ऋग्वेद 10.119.8]
My glory crosses the heavens and the vast earth. I have drunk Somras many times.
हन्ताहं पृथिवीमिमां नि दधानीह वेह वा। कुवित्सोमस्यापामिति
मेरी इतनी शक्ति है कि यदि कहो तो इस धरित्री को एक स्थान से दूसरे स्थान में ले जाकर रख सकता हूँ। मैंने अनेक बार सोम-पान किया है।[ऋग्वेद 10.119.9]
I am so much powerful that I can move the earth else where. I have drunk Somras many times.
ओषमित्पृथिवीमहं जङ्घनानीह वेह वा। कुवित्सोमस्यापामिति
इस पृथ्वी को मैं जला सकता हूँ। जिस स्थान को कहो, मैं उसे विनष्ट कर सकता हूँ। मैंने अनेक बार सोम-पान किया है।[ऋग्वेद 10.119.10]
I can burn the earth and destroy the place you ask. I have drunk Somras many times.
दिवि मे अन्यः पक्षो  ३धो अन्यमचीकृषम्। कुवित्सोमस्यापामिति
मेरा एक पार्श्व आकाश में है और एक पार्श्व पृथ्वी पर है। मैंने अनेक बार सोम-पान किया है।[ऋग्वेद 10.119.11]
The sky-space constitute my one side and the earth constitute the other. I have drunk Somras many times.
अहमस्मि महामहोऽभिनभ्यमुदीषितः। कुवित्सोमस्यापामिति
मैं महान् से भी महान् हूँ। मैं आकाश की ओर हूँ। मैंने अनेक बार सोम-पान किया है।[ऋग्वेद 10.119.12]
I am greater than the greatest. I am inclined-deviated towards the sky. I have drunk Somras many times.
गृहो याम्यरंकृतो देवेभ्यो हव्यवाहनः। कुवित्सोमस्यापामिति
मेरी स्तुति की जाती है, मैं देवों के पास हव्य ले जाता हूँ और स्वयं हव्य ग्रहण करके चला जाता हूँ। मैंने अनेक बार सोम-पान किया है।[ऋग्वेद 10.119.13]
I am worshiped. I carry offerings-oblations to the demigods-deities and leave after accepting offerings. I have drunk Somras many times.(27.01.2025)

ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (120) :: ऋषि :- बृहद्दिव, आथर्वण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप्।
तदिदास भुवनेषु ज्येष्ठं यतो जज्ञ उग्रस्त्वेषनृम्णः।
सद्यो जज्ञानो नि रिणाति शत्रूननु यं विश्वे मदन्त्यूमाः
जिनसे ज्योतिर्मय सूर्यदेव उत्पन्न हुए हैं, वे ही सबसे श्रेष्ठ हैं, उनके पहले कोई नहीं जन्मा। जन्म के साथ ही वे शत्रु-विनाश करते हैं। सभी देवता उनका अभिनन्दन करते हैं।[ऋग्वेद 10.120.1]
ONE, from whom Sury Dev has evolved, is the best of all, none evolved prior to him. He destroy the enemy as soon as he take birth. All demigods-deities salute-welcome him.
वावृधानः शवसा भूर्योजाः शत्रुर्दासाय भियसं दधाति।
अव्यनच व्यनच सस्नि सं ते नवन्त प्रभृता मदेषु
अतीव तेजस्वी और शत्रु-हन्ता हे इन्द्र देव! विशिष्ट बल से युक्त होकर दासों के हृदय में भय उत्पन्न कर देते हैं। हे इन्द्र देव! समस्त प्राणियों को आप सोम-पान के आनन्द से सुखी करते और उनका शोधन करते हैं। तब वे आपकी स्तुति करते है।[ऋग्वेद 10.120.2]
Hey Indr Dev, possessor of extreme aura-radiance! Having possessed specific powers, you fill the hearts-innerself of slaves-Dasyu with fear. Hey Indr Dev! You fill the living beings with pleasure after drinking Somras. They all worship-pray to you.
त्वे क्रतुमपि वृञ्जन्ति विश्वे द्विर्यदेते त्रिर्भवन्त्यूमाः।
स्वादोः स्वादीयः स्वादुना सृजा समदः सु मधु मधुनाभि योधीः
जिस समय देवों को तृप्त करने वाले यजमान विवाह करते और (जिस समय) सन्तान उत्पन्न करते हैं, उस समय वे आपके ऊपर सारा यज्ञ-कार्य समाप्त करते हैं। हे इन्द्र देव! जो सुस्वादु हैं, उसमें उससे भी अधिक सुस्वादु वस्तु आप मिला दें। इस अद्भुत मधु के साथ और मधु मिला दें अर्थात् सौभाग्य से ऊपर सौभाग्य कर दें।[ऋग्वेद 10.120.3]
When the Ritviz & hosts satisfy the demigods-deities and marry, produce progeny, they accomplish the Yagy by virtue of your support. Hey Indr Dev! Add the tastiest material in tasty materials. Add more honey in this amazing honey, it means that add good luck to luck.
इति चिद्धि त्वा धना जयन्तं मदेमदे अनुमदन्ति विप्राः।
ओजीयो धृष्णो स्थिरमा तनुष्व मा त्वा दभन्यातुधाना दुरेवाः
हे इन्द्र देव! जिस समय आप सोमपान से मत्त होकर धन जीतते हैं, उस समय स्तोता लोग भी साथ ही साथ सोम-पान से मद-मत्त होते हैं। हे अजेय इन्द्र देव! अटल तेज दिखावें। दुःसाहसिक राक्षस आपको पराजित न कर सकें।[ऋग्वेद 10.120.4]
दुस्साहस :: temerity, rashness effort, adventurer, effrontery, audacity, chutzpah, recklessness.
Hey Indr Dev! When you rejoice after drinking Somras and win wealth, the Stota too rejoice drinking Somras. Hey invincible, Indr dev1 Demonstrate your aura-power & might. Reckless demons should not defeat you.
त्वया वयं शाशद्महे रणेषु प्रपश्यन्तो युधेन्यानि भूरि।
चोदयामि त आयुधा वचोभिः सं ते शिशामि ब्रह्मणा वयांसि
हे इन्द्र देव! आपकी सहायता से हम समर-भूमि में शत्रु-जय करते हैं। मैं युद्ध करने योग्य अनेक शत्रुओं का साक्षात् करता हूँ। स्तुति करते हुए आपके अस्त्र-शस्त्र को मैं उत्साहित करता हूँ। मन्त्रों के द्वारा मैं आपके तेज को तीक्ष्ण कर देता हूँ।[ऋग्वेद 10.120.5]
Hey Indr Dev! We attain victory in the war by virtue of your support-help. I become face to face with many enemies in the war. I worship and encourage your weapons. I sharpen your might by virtue of Mantr Shakti.
स्तुषेय्यं पुरुवर्पसमृभ्वमिनतममाप्त्यमाप्त्यानाम्।
आ दर्षते शवसा सप्त दानून् प्र साक्षते प्रतिमानानि भूरि
स्तुत्य, नाना मूर्तियों वाले, विलक्षण दीप्ति से युक्त, अनुपम प्रभु और श्रेष्ठ आत्मीय इन्द्र देव की मैं स्तुति करता हूँ। वे अपनी शक्ति से वृत्र, नमुचि, कुयव आदि सात दानवों का विनाश करनेवाले और अनेक असुरों को पराजित करनेवाले हैं।[ऋग्वेद 10.120.6]
आत्मीय :: अपना, स्नेह-संबंधी; affinity, congeniality. 
आत्मीयता  :: cordiality, subjectivity, intimacy, lineament.
I worship cordial-worshipable Indr Dev possessing various forms & amazing aura. He destroyed the seven demons, Vratr, Namuchi, Kuyav etc. and defeat several other demons. 
नि तद्दधिषेऽवरं परं च यस्मिन्नाविथावसा दुरोणे।
आ मातरा स्थापयसे जिगत्नू अत इनोषि कर्वरा पुरूणि॥
हे इन्द्र देव! आप जिस गृह मैं हवी रूप अन्न से तृप्त होते हैं, उसमें दिव्य और पार्थिव धन देते हैं। जिस समय सारे भूतों को बनाने वाले द्यौ और पृथ्वी चञ्चल होती है, उस समय आप ही उन्हें सुस्थिर करते हैं। उस अवसर पर आपको अनेक कार्य करने पड़ते हैं।[ऋग्वेद 10.120.7]
चञ्चल :: फुर्तीला, तेज, चञ्चल, शोख, ढीठ; playful, volatile, fickle, voluble, perk.
Hey Indr Dev! The house in which you are satisfied with offerings, you fill it with divine and material wealth. When the earth and heaven which generated all in the past, become fickle-playful, you stabilize them. You have to make various efforts-endeavours at that event-moment.
इमा ब्रह्म बृहद्दिवो विवक्तीन्द्राय शूषमग्रियः स्वर्षाः।
महो गोत्रस्य क्षयति स्वराजो दुरश्च विश्वा अवृणोदप स्वाः
ऋषि-श्रेष्ठ और स्वर्गाभिलाषी बृहद्दिव, इन्द्रदेव के लिए यह सब प्रसन्नताकारक वेद-मन्त्र पढ़ रहे हैं। वह प्रदीप्त इन्द्र देव विशाल पर्वत को हटाते और शत्रु के सारे द्वारों को खोलते हैं।[ऋग्वेद 10.120.8]
Desirous of the heavens, best amongest the Rishis Brahddiv, is reciting the Ved Mantrs; which pleases Indr Dev. Lustrous Indr Dev move the large mountain and open all doors-gates of the enemy.
एवा महान् बृहद्दिवो अथर्वावोचत्स्वां तन्व १ मिन्द्रमेव।
स्वसारो मातरिभ्वरीररिप्रा हिन्वन्ति च शवसा वर्धयन्ति च॥
अथर्वा के पुत्र और महाबुद्धि बृहद्दिव ने इन्द्रदेव के लिए अपनी स्तुति का पाठ किया। पृथ्वी पर निर्मल-नदियाँ जल बहाती और अन्न के द्वारा लोगों का कल्याण करती हैं।[ऋग्वेद 10.120.9]
Son of Athrva, Brahddiv having great intellect, recited Stuti for Indr Dev. Earth and pure rivers move-flow water and resort to welfare of the humans.(27.01.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (121) :: ऋषि :- हिरण्यगर्भ, प्रजापति; देवता :- प्रजापति;  छन्द :- त्रिष्टुप्।
हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत्।
स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम
सबसे पहले केवल परमात्मा या हिरण्यगर्भ थे। उत्पन्न होने पर वे सारे प्राणियों के अद्वितीय अधीश्वर थे। उन्होंने इस पृथ्वी और आकाश को अपने-अपने स्थानों में स्थापित किया। उन 'क-कृष्ण' नाम वाले प्रजापति देवता की हम हवि के द्वारा पूजा करेंगे या हम हव्य के द्वारा किन देवता की पूजा करें?[ऋग्वेद 10.121.1]
हिरण्यगर्भ आदिकाल से विद्यमान थे, जब उनका प्रादुर्भाव-अवतार हुआ, तब वे सृजित प्राणियों के एकमात्र स्वामी थे। उन्होंने इस पृथ्वी और स्वर्ग को धारण किया।  हम दिव्य कृष्ण को आहुति देकर उनकी पूजा करें।
Initially it was only the Almighty-Hirany Garbh. HE appeared and became the unique Lord of all living beings. HE established the earth and sky in their respective positions-orbits. We worship, deity named KA'क' Prajapati or demigods with offerings-oblations
य आत्मदा बलदा यस्य विश्व उपासते प्रशिषं यस्य देवाः।
यस्य छायामृतं यस्य मृत्युः कस्मै देवाय हविषा विधेम
जिन प्रजापति ने जीवात्मा को दिया है, बल दिया है, जिनकी आज्ञा समस्त देवता मानते है, जिनकी छाया अमृत रूपिणी है और जिनके वश में मृत्यु है, उन 'क' नाम वाले आदि।[ऋग्वेद 10.121.2]
Its the Prajapati termed KA'क', who granted Jivatma-Soul and strength, who's dictates are followed by all demigods, who's shadow is like nectar-elixir, who controls the death.
यः प्राणतो निमिषतो महित्वैक इद्राजा जगतो बभूव।
य ईशे अस्य द्विपदश्चतुष्पदः कस्मै देवाय हविषा विधेम
जो अपनी महिमा से दर्शनेन्द्रिय और गति शक्ति वाले जीवों के अद्वितीय राजा हुए और जो इन द्विपदों और चतुष्पदों के प्रभु हैं, उन 'क' नाम वाले आदि।[ऋग्वेद 10.121.3]
HE the glorious termed KA'क', became the unique king of visible and dynamic, two hooped or four hooped living beings.
यस्येमे हिमवन्तो महित्वा यस्य समुद्रं रसया सहाहुः।
यस्येमाः प्रदिशो यस्य बाहू कस्मै देवाय हविषा विधेम
जिनकी महिमा से ये सब हिमाच्छन्न पर्वत उत्पन्न हुए, जिनकी सृष्टि यह ससागरा धरित्री कही जाती है और जिनकी भुजाएं ये सारी दिशाएँ हैं, उन 'क' नाम आदि।[ऋग्वेद 10.121.4]
HE termed KA'क', who's nature created the mountains clad with snow-ice over the earth having oceans and has arms in all directions.
येन द्यौरुग्रा पृथिवी च दृळ्हा येन स्वः स्तभितं येन नाकः।
यो अन्तरिक्षे रजसो विमानः कस्मै देवाय हविषा विधेम
जिन्होंने इस उन्नत आकाश और पृथ्वी को अपने-अपने स्थानों पर दृढ़ रूप से स्थापित किया, जिन्होंने स्वर्ग और आदित्य को रोक रखा और जो अन्तरिक्ष में जल के निर्माता हैं, उन 'क' नाम आदि।[ऋग्वेद 10.121.5]
HE termed KA'क', who established the raised sky and earth rigidly, held heavens and Adity-Sun and is the creator of space and water.
यं क्रन्दसी अवसा तस्तभाने अभ्यैक्षेतां मनसा रेजमाने।
यत्राधि सूर उदितो विभाति कस्मै देवाय हविषा विधेम
जिनके द्वारा स्वर्ग और पृथ्वी शब्दायमान होकर, स्तम्भित और उल्लसित हुए और दीप्तीशील स्वर्ग और पृथ्वी ने जिन्हें महिमान्वित समझा था तथा जिनके आश्रय से सूर्य देव उगते और प्रकाश करते हैं, उन 'क' नाम आदि।[ऋग्वेद 10.121.6]
स्तम्भित :: अवरुद्ध, जड़ीकृत; stunned, frozen.
HE who is termed KA'क', glorified, provided sound, illuminated, stunned heavens & earth, enthused them, patronised the Sun to rise and illuminating.
आपो ह यहृहतीर्विश्वमायन् गर्भं दधाना जनयन्तीरग्निम्।
ततो देवानां समवर्ततासुरेकः कस्मै देवाय हविषा विधेम
प्रचुर जल सारे भुवन को आच्छन्न किए हुए था। जल ने गर्भ धारण करके अग्नि देव या आकाश आदि सबको उत्पन्न किया। इससे देवों के प्राण वायु उत्पन्न हुए उन 'क' नाम आदि।[ऋग्वेद 10.121.7]
HE who is termed KA'क', produced air vital in demigods-deities; provided water in all abodes and the water conceived to produce Agni Dev and the sky-space.
यश्चिदापो महिना पर्यपश्यद्दक्षं दधाना जनयन्तीर्यज्ञम्।
यो देवेष्वधि देव एक आसीत्कस्मै देवाय हविषा विधेम
जल धारण करके जिस समय जल ने अग्नि देव को उत्पन्न किया, उस समय जिन्होंने अपनी महिमा से उस जल के ऊपर चारों ओर निरीक्षण किया तथा जो देवों में अद्वितीय देवता हुए, उन 'क' नाम आदि।[ऋग्वेद 10.121.8]
HE who is termed KA'क', invoked as an unique deity when water conceived and evolved Agni Dev, inspected all around establishing himself over water by virtue of his glory.
मा नो हिंसिज्जनिता यः पृथिव्या यो वा दिवं सत्यधर्मा जजान।
यश्चापश्चन्द्रा बृहतीर्जजान कस्मै देवाय हविषा विधेम
जो पृथ्वी के जन्मदाता है, जिनकी धारण क्षमता सत्य है, जिन्होंने आकाश को जन्म दिया और जिन्होंने आनन्द-वर्द्धक एवं प्रचुर परमाण में जल उत्पन्न किया, वे हमें न मारें। उन 'क' नाम आदि।[ऋग्वेद 10.121.9]
HE who is termed KA'क', evolved earth and sky and produced water in sufficient quantity with his truthful capacity-power, should not destroy us.
प्रजापते न त्वदेतान्यन्यो विश्वा जातानि परि ता बभूव।
यत्कामास्ते जुहुमस्तन्नो अस्तु वयं स्याम पतयो रयीणाम्
हे प्रजापति! आपके अतिरिक्त और कोई इन समस्त उत्पन्न वस्तुओं को अधीन करके नहीं रख सकता। जिस अभिलाषा से हम आपका हवन करते हैं, वह हमें प्राप्त हो ताकि हम धनाधिपति होवें।[ऋग्वेद 10.121.10]
Hey Prajapati, termed KA'क-कृष्ण'! None other than you can produce and control all these. We should attain, what we wish to have by conducting Hawan devoted to you and we should become wealthy.(28.01.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (122) :: ऋषि :- चित्रमहा, वसिष्ठ; देवता :-अग्नि; छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
वसुं न चित्रमहसं गृणीषे वामं शेवमतिथिमद्विषेण्यम्।
स रासते शुरुधो विश्वधाय सोऽग्निर्होता गृहपतिः सुवीर्यम्
अग्नि देव का तेज विचित्र है। वे सूर्य देव के समान हैं। वे रमणीय, सुखकर और प्रेम पात्र अतिथि के सदृश हैं। उनकी मैं स्तुति करता हूँ। जो अग्नि देव दूध के द्वारा संसार को धारण करते और क्लेश को दूर करते हैं, वे गौ और उत्तम बल देते हैं। वे होता और गृहस्वामी हैं।[ऋग्वेद 10.122.1]
Radiance of Agni Dev is amazing. He is like Sury Dev. He is delightful, comfortable and loved like a guest. I pray to him. Agni Dev support the universe with milk and remove all troubles-distress. He grants cows and best power. He is Hota and lord of the house.
जुषाणो अग्ने प्रति हर्य मे वचो विश्वानि विद्वान् वयुनानि सुक्रतो।
घृतनिर्णिग्ब्रह्मणे गातुमेरय तव देवा अजनयन्ननु व्रतम्
हे अग्नि देव! आप सन्तुष्ट होकर मेरे स्तोत्र के प्रति कामना करें। उत्तम कर्म करने वाले अग्नि देव जो कुछ जानने योग्य हैं, वह सब आप जानते हैं। घृत की आहुति पाकर आप स्तोता को साम-गान के लिए कहें। आपका कार्य देखने के अन्नतर देवता लोग अपना-अपना कार्य करते हैं।[ऋग्वेद 10.122.2]
Hey Agni Dev! You should be satisfied and wish to have my Strotr. Performer of excellent deeds Agni Dev knows all that has to be knows. Having received the offerings of Ghee ask the Stota for Sam Gan. While you watch, the demigods-deities perform their duties.
सप्त धामानि परियन्नमर्यो दाशद्दाशुषे सुकृते मामहस्व।
सुवीरेण रयिणाग्ने स्वाभुवा यस्त आनट् समिधा तं जुषस्व
हे अग्नि देव! आप अमर हैं। आप सर्वत्र जाते हैं। उत्तम कार्यकर्ता दाता को दान करें, पूजा ग्रहण करें। यज्ञ-काष्ठ के द्वारा जो आपकी संवर्द्धना करता है, उसे उत्तमोत्तम सम्पत्ति और सन्तान प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.122.3]
Hey Agni Dev! You are immortal. You visit all places. Accept prayers and donate to best donors. Grant best property and progeny to one who offer Yagy wood to you.
यज्ञस्य केतुं प्रथमं पुरोहितं हविष्मन्त ईळते सप्त वाजिनम्।
शृण्वन्तमग्निं घृतपृष्ठमुक्षणं पृणन्तं देवं पृणते सुवीर्यम्
याज्ञिक सामग्री से युक्त यजमान सात अश्वों या पृथिव्यादि लोंको के स्वामी अग्नि देव की स्तुति करते हैं। अग्नि देव यज्ञ के केतु और सर्वश्रेष्ठ पुरोहित हैं। वे घृताहुति प्राप्त करके और कामना सुनकर अभिलषित फल देते हैं और दाता को उत्तम बल प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 10.122.4]
The Ritviz worship Agni Dev, the lord of seven horses and abodes like earth. He grant boons and excellent strength to the donor who offer ghee etc., after listening his desires-wishes.
त्वं दूतः प्रथमो वरेण्यः स हूयमानो अमृताय मत्स्व।
त्वां मर्जयन् मरुतो दाशुषो गृहे त्वां स्तोमेभिर्भृगवो वि रुरुचुः
हे अग्नि देव! आप सर्वश्रेष्ठ और अग्रण्य दूत हैं। अमरता प्राप्त करने के लिए आप ही बुलाये जाते हैं। आप आनन्ददाता हैं। दाता के गृह में मरुद्गण आपको सुशोभित करते हैं। भार्गव लोग स्तुति के द्वारा आपकी उज्ज्वलता बढ़ाते हैं।[ऋग्वेद 10.122.5]
Hey Agni Dev! You are the best messenger-ambassador. You are invoked for attaining immortality. You grant pleasure-comforts. Marud Gan glorify-decorate you in the house of the donor. Bhargav clan boost your brightness by making Stuti-prayers.
इषं दुहन्त्सुदुघां विश्वधायसं यज्ञप्रिये यजमानाय सुक्रतो।
अग्ने घृतस्नुस्त्रिर्ऋतानि दीद्यद्वर्तिर्यज्ञं परियन्त्सुक्रतूयसे
हे अग्नि देव! आपका कर्म अद्भुत है। जो यजमान यज्ञानुष्ठान में रत रहता है, उसके लिए आप यज्ञरूपिणी, यथेष्ट-दुग्धदात्री और विश्व पालिका गाय से यज्ञ-फल दूह डालें। घृताहुति प्राप्त करके आप पृथ्वी आदि तीनों स्थानों को प्रकाशमय करते हैं। आप यज्ञ-गृह में सर्वत्र है। सर्वत्र जाते हैं। सृकृती का जो आवरण है, वह आपमें दिखाई देता है।[ऋग्वेद 10.122.6]
Hey Agni Dev! Your deeds are amazing. You milk the cows forming Yagy, who nurture the universe and provide sufficient milk. You accept offerings like Ghee and illuminate the three abodes. You are present every where in the Yagy house. You roam every where. Auspicious creations are visible in you.
त्वामिदस्या उषसो व्युष्टिषु दूतं कृण्वाना अयजन्त मानुषाः।
त्वां देवा महयाय्याय वावृधुराज्यमग्ने निमृजन्तो अध्वरे
उषा का समय अर्थात् उषा के प्रकट होने पर यजमान लोग आपको दूत-स्वरूप समझकर यज्ञ करते हैं। हे अग्नि देव! देवता लोग भी आपको घृत के द्वारा प्रदीप्त करके पूजा करने के लिए संवर्द्धित करते हैं।[ऋग्वेद 10.122.7]
The Ritviz resort to Yagy at the dawn-Usha Kal considering you an ambassador. Hey Agni Dev! Demigods-deities too ignite you with Ghee and grow you for worship-prayers.
नि त्वा वसिष्ठा अह्वन्त वाजिनं गृणन्तो अग्ने विदथेषु वेधसः।
रायस्पोषं यजमानेषु धारय यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
हे अग्नि देव! यज्ञों में वसिष्ठ-पुत्र अनुष्ठान प्रारम्भ करके और आपको अन्नयुक्त करके आपका आवाहन करने लगे। यजमानों के गृहों में प्रभूत धन रखें। आप लोग हमें सदा कल्याण के द्वारा बचावें।[ऋग्वेद 10.122.8]
Hey Agni Dev! Progeny of Vashishth clan started the celebrations of Yagy, offered you food grains and invoked you. Place sufficient wealth in the houses of the hosts. Always protect us and grant us asylum.(29.01.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (123) :: ऋषि :- वेन, भार्गव; देवता :- वेन;  छन्द :- त्रिष्टुप्।
अयं वेनश्चोदयत्पृश्निगर्भा ज्योतिर्जरायू रजसो विमाने।
इममपां संगमे सूर्यस्य शिशुं न विप्रा मतिभी रिहन्ति
वेन नामक देवता ज्योति के द्वारा परिवेष्टित हैं। वे जल-निर्माता आकाश के मध्य में सूर्य-किरणों के सन्तान-स्वरूप जल को पृथ्वी पर गिराते हैं। जिस समय सूर्य देव के साथ जल का मिलन होता है, उस समय बुद्धिमान् स्तोता लोग उन वेन देवता को बालक के समान नाना मीठे वचनों से सन्तुष्ट करते हैं।[ऋग्वेद 10.123.1]
परिवेष्टित :: चारों तरफ से घिरा हुआ; surrounded, circumambient.
Demigod Ven is surrounded by light. He showers rain like the Sun rays, over the earth; placed in the sky producing water. When Sury Dev combine with water intelligent Stota satisfy Ven with sweet words like a child.
समुद्रादूर्मिमुदियर्ति वेनो नभोजाः पृष्ठं हर्यतस्य दर्शि।
ऋतस्य सानावधि विष्टपि भ्राट् समानं योनिमभ्यनूषत व्राः
वेन अन्तरिक्ष से जल-माला प्रेरित करते हैं। आकाश में उज्ज्वल मूर्ति वेन का पृष्ठदेश दिखाई दिया। जल के उन्नत स्थान आकाश में वेन दीप्ति पाते हैं। उनके पार्षदों ने सबके उत्पत्ति-स्थान आकाश को प्रतिध्वनित किया।[ऋग्वेद 10.123.2]
Ven inspire cycles of water from the space-sky. Shinning back of Ven is seen in the sky. Ven illuminate in high altitude place of water. His councillors resonate the sky where all living beings evolved.
समानं पूर्वीरभि वावशानास्तिष्ठन्वत्सस्य मातरः सनीळाः।
ऋतस्य सानावधि चक्रमाणा रिहन्ति मध्वो अमृतस्य वाणीः
वेन के साथ जल आकाश में रहता है। वह वत्सरूपी विद्युत् की माता है। वह अपने सहवासी वेन के साथ शब्द करने लगा। जल के उत्पत्ति-स्थान आकाश में मधु तुल्य वृष्टि जल का शब्द उत्पन्न होकर वेन की संवर्द्धना करने लगा।[ऋग्वेद 10.123.3]
Water is present in the sky with Ven. Lightening originate in the sky like the son of water and remain with Ven making thunderous sound. Water comparable to honey, evolved and and grew Ven, making sound.
जानन्तो रूपमकृपन्त विप्रा मृगस्य घोषं महिषस्य हि ग्मन्।
ऋतेन यन्तो अधि सिन्धुमस्थुर्विद्गन्गन्धर्वो अमृतानि नाम
बुद्धिमान् स्तोताओं ने प्रकाण्ड महिष के समान वेन का शब्द सुना। इससे उन लोगों ने समझकर उनके रूप की कल्पना की। उन्होंने वेन का यजन करके नदी के समान प्रचुर जल प्राप्त किया। गन्धर्वरूपी वेन जल के प्रभु हैं।[ऋग्वेद 10.123.4]
महिष :: भैंसा, शास्त्रानुसार अभिषिक्त राजा, सम्राट; buffalo, coronated king, emperor.
Intelligent Stotas heard the words of Ven like a coronated king. These people understood this sound and conceptualised his form. They worshiped Ven and obtained sufficient water, like the river. Ven in the form of Gandharv is the deity of water.
अप्सरा जारमुपसिष्मियाणा योषा बिभर्ति परमे व्योमन्।
चरप्रियस्य योनिषु प्रियः सन्त्सीदत्पक्षे हिरण्यये स वेनः
विद्युत् एक अप्सरा है और वेन उसके पति है। विद्युत् ने वेन को देखकर मन्द मुस्कान करते हुए उनका आलिङ्गन किया। वेन प्रेमी नायक के समान प्रेयसी विद्युत् की रति-कामना पूर्ण करके सुवर्णमय पक्ष या मेघ में सो गये।[ऋग्वेद 10.123.5]
Lightening is a nymph and Ven is her husband. Lightening embraced Ven smiling softly. Ven acted as a lover hero and satisfied the sexual desire of Lightening and slept in the golden coloured clouds.
नाके सुपर्णमुप यत्पतन्तं हृदा वेनन्तो अभ्यचक्षत त्वा।
हिरण्यपक्षं वरुणस्य दूतं यमस्य योनौ शकुनं भुरण्युम्॥
हे वेन! आप स्वर्ग में उड़नेवाले पक्षी के समान है। आपके दोनों पंख स्वर्णमय हैं। आप स्वर्ग लोक, शासक वरुण देव के दूत हैं। आप संसार के भरण पोषणकारी पक्षी के समान है। आपका सब दर्शन करते हैं और अन्तःकरण में आपके प्रति प्रीति धारण करते हैं।[ऋग्वेद 10.123.6]
Hey Ven! You are like a bird flying in the sky. Both of your feathers are golden. You are the ambassador of heavens and Varun Dev. You are like the bird who provide nourishment to the universe. Everyone invoke-see you and possess love & affection for you.
ऊर्ध्वो गन्धर्वो अधि नाके अस्थात्प्रत्यङ् चित्रा बिभ्रदस्यायुधानि।
वसानो अत्कं सुरभिं दृशे कं स्व१र्ण नाम जनत प्रियाणि
वे गन्धर्व-रूपी स्वर्ग के उन्नत प्रदेश में उन्नत भाव से रहते हैं। वे चारों ओर विचित्र अस्त्र-शस्त्र धारण किये हुए हैं। वे अपनी अत्यन्त सुन्दर मूर्ति का आच्छादन किये हुए हैं अन्तर्हित होकर वे अभिलषित वृष्टि-वारि उन्पन्न करते हैं।[ऋग्वेद 10.123.7]
He resides over the elevated regions of heavens having the form of Gandarbh. He possess weapons in all directions. He is covering his extremely beautiful image and shower desired rains keeping himself hidden.
द्रप्स समुद्रमभि यज्जिगाति पश्यन् गृध्रस्य चक्षसा विधर्मन्।
भानुः शुक्रेण शोचिषा चकानस्तृतीये चक्रे रजसि प्रियाणि
वेन जल वाले हैं। वे अपने कर्म के साधन-काल में गृध्र के समान दूरदर्शक चक्षु के द्वारा देखते हुए अन्तरिक्ष की ओर जाते हैं। वे शुभ्र-वर्ण आलोक के द्वारा प्रदीप्त होते हैं। प्रदीप्त होकर तृतीय लोक आकाश में ऊपरी भाग से सर्व-लोक वाञ्छित जल की सृष्टि करते हैं।[ऋग्वेद 10.123.8]
Ven posses water. During his endeavours he looks like the vultures with his eyes which can view long distances in the space. He illuminate with bright light. He generate desired rains placing-positioning himself in the upper segment of the heavens.(30.01.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (124) :: ऋषि :- अग्नि, वरुण, सोम; देवता :- अग्नि, अग्नेरात्मा, वरुण, सोम, इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप्, जगती।
इमं नो अग्न उप यज्ञमेहि पञ्चयामं त्रिवृतं सप्ततन्तुम्।
असो हव्यवाळुत नः पुरोगा ज्योगेव दीर्घ तम आशयिष्ठाः
हे अग्नि देव! हमारे इस यज्ञ के ऋत्विक्, यजमान आदि पाँच व्यक्ति नियामक या अध्यक्ष है। इनका अनुष्ठान तीन प्रकार (सवन-त्रय) से होता है। इसके अनुष्ठाता होता आदि सात है। इस यज्ञ की ओर पधारें। आप ही हमारे हविवाहिक और अग्रगामी दूत हैं।[ऋग्वेद 10.124.1]
Hey Agni Dev! Five people including Priest-Ritviz and the host preside our Yagy. Its procedure-ceremony involve three steps. Their are seven organisers as its Hota. Join this Yagy. You are carrier of offerings-oblations and messenger of our Yagy.
अदेवाद्देवः प्रचता गुहा यन् प्रपश्यमानो अमृतत्वमेमि।
शिवं यत्सन्तमशिवो जहामि स्वात्सख्यादरणीं नाभिमेमि
अग्नि देव का कथन :- देवगण मेरी प्रार्थना करते हैं; इसलिए मैं दीप्तिहीन और अव्यक्त अवस्था से दीप्तिवाली अवस्था को प्राप्त करके चारों ओर निरीक्षण करते हुए अमरता पाता हूँ। जिस समय यज्ञ निरूपद्रव के साथ सम्पन्न होता है, उस समय मैं अदृष्ट होता और यज्ञ को छोड़ देता हूँ। चिर सखा और उत्पत्ति-स्थान अरणि में चला जाता हूँ।[ऋग्वेद 10.124.2]
निरूपद्रव :: निर्दोष, निष्कपट, बेगुनाह, पाप रहित, भला, सरल, साधु, अहानिकर; non guilty, blot free, spotless.
Agni Dev said that the demigods-deities worship me. Hence, I attain immortality in illuminated state, surveying all around. When this spotless Yagy is performed I become invisible deserting the Yagy. I go to Arni-the wood, my eternal associate and place of evolution, used in the Yagy.
पश्यन्नन्यस्या अतिथिं वयाया ऋतस्य धाम वि मिमे पुरूणि।
शंसामि पित्रे असुराय शेवमयज्ञियाद्यज्ञियं भागमेमि
पृथ्वी के अतिरिक्त जो आकाश गमन-मार्ग है, उसके अतिथि सूर्य देव की वार्षिक गति के अनुसार मैं भिन्न-भिन्न ऋतुओं में यज्ञानुष्ठान करता हूँ। बली देवता पितृ स्वरूप हैं। उनके सुख के लिए मैं स्तुति करता हूँ। यज्ञ के अयोग्य और अपवित्र स्थान से मैं यज्ञ के उपयुक्त स्थान में जाता हूँ।[ऋग्वेद 10.124.3]
I conduct Yagy-ceremonies in different seasons according to the speed of Sun-Sury Dev in the orbit of earth. Demigod Bali is like my father. I pray for his pleasure-comforts. I move to the place which is suitable for the Yagy rejecting impure, dirty-polluted sites. 
बह्वीः समा अकरमन्तरस्मिन्निन्द्रं वृणानः पितरं जहामि।
अग्निः सोमो वरुणस्ते च्यवन्ते पर्यावर्द्राष्ट्रं तदवाम्यायन्
इस यज्ञ-स्थान में मैंने अनेक वर्ष व्यतीत किए। यहाँ इन्द्र देव का वरण करते हुए अपने पिता अरणि से निकलता हूँ। मेरे प्रकट न होने पर सोम देव, वरुण देव आदि का पतन हो जाता है और राष्ट्र-विप्लव हो जाता है। उस समय आकर मैं रक्षा करता हूँ।[ऋग्वेद 10.124.4]
I have spent many years at this Yagy site. I choose-select Indr Dev and evolve out of wood. In case I do not evolve Som Dev, Varun Dev etc. will face down fall and the country faces turmoil-revolution. Then I invoke and protect them.
निर्माया उ त्ये असुरा अभूवन् त्वं च मा वरुण कामयासे।
ऋतेन राजन्ननृतं विविञ्चन् मम राष्ट्रस्याधिपत्यमेहि
मेरे आते ही असुर लोग असमर्थ हो जाते हैं। हे वरुण देव! आप भी मेरी प्रार्थना करें। हे परमात्मन! सत्य से मिथ्या को अलग करके मेरे राज्य का अधिपत्य ग्रहण करें।[ऋग्वेद 10.124.5]
As soon as I invoke, the demons become incapable. Hey Varun Dev! You too should worship me. Hey Almighty! Remove falsehood from my state and become its Lord-ruler.
इदं स्वरिदमिदास वाममयं प्रकाश उर्व १ न्तरिक्षम्।
हनाव वृत्रं निरेहि सोम हरिष्टा सन्तं हविषा यजाम
अग्नि देव या वरुण देव की उक्ति :- हे सोम देव! यह देखो स्वर्ग है। यह अत्यन्त रमणीय है। यह प्रकाश देखें। यह विस्तृत आकाश है। हे सोम देव! आप प्रकट होवें। वृत्रासुर का वध किया जाय। आप होमीय द्रव्य हैं। अन्यान्य हवनी द्रव्यों के द्वारा हम आपकी पूजा करते हैं।[ऋग्वेद 10.124.6]
Utterances of either Agni dev or Varun Dev :- Hey Som Dev! Here is heaven. Its very delightful-enjoyable. Look at this light. This is the vast sky-space. Hey Som Dev! Invoke here. Let Vratra Sur be killed. You form-constitute the Yagy material. We worship with many materials.
कविः कवित्वा दिवि रूपमासजदप्रभूती वरुणो निरपः सृजत्।
क्षेमं कृण्वाना जनयो न सिन्धवस्ता अस्य वर्णं शुचयो भरिभ्रति
क्रान्तदर्शी मित्र देव ने क्रिया-कौशल के द्वारा स्वर्ग में अपने तेज को व्याप्त किया। वरुण देव ने थोड़े ही यत्न से मेघ से जल को निकाला। सारे जल नदियाँ बनकर संसार का मंगल करते हैं। वे सब निर्मल नदियाँ वरुण देव की पत्नी के समान वरुण देव का शुभ्र तेज धारण करती हैं।[ऋग्वेद 10.124.7]
क्रान्तदर्शी :: जो किसी विषय में गहन और यथार्थवादी दृष्टिकोण रखता है; one who has realistic opinion and views, extraordinary, omniscient, adept, timely.
Omniscient Mitr Dev pervaded the heavens with his aura-radiance. Varun Dev yielded water from clouds with little effort. Water from various sources lead to betterment of the universe. All pure rivers have aura-bright appearance like the wife of Varun Dev.
ता अस्य ज्येष्ठमिन्द्रियं सचन्ते ता ईमा क्षेति स्वधया मदन्तीः।
ता ईं विशो न राजानं वृणाना बीभत्सुवो अप वृत्रादतिष्ठन्
सब जल देवता वरुण देव का सर्वश्रेष्ठ तेज प्राप्त करते हैं। उन्हीं के समान वे होमीय द्रव्य पाकर आनन्दित होते हैं। अपनी पत्नी के समान वरुणदेव उनके पास जाते हैं, जिस प्रकार प्रजा भय पाकर राजा को आश्रय करती है, उसी प्रकार ही जलदेव भय के कारण वरुणदेव का आश्रय प्राप्त करके वृत्र के पास से भागते हैं।[ऋग्वेद 10.124.8]
Every one attain the excellent energy of Varun Dev. They too become happy-amused on receiving the Yagy offerings-oblations. Varun Dev approach them along with his wife. The way populace seek asylum from the king on being afraid, fearful Jal Dev run away from Vratra Sur on being protected-supported by Varun Dev. 
बीभत्सूनां सयुजं हंसमाहुरपां दिव्यानां सख्ये चरन्तम्।
अनुष्टुभमनु चर्चुर्यमाणमिन्द्रं नि चिक्युः कवयो मनीषा
उन सब भीत और दिव्य जल देव के मित्र होकर जो उनकी हितैषिता करते हैं, उन्हें 'हंस' सूर्य देव अथवा इन्द्र देव कहा जाता है। वे स्तुत्य हैं। वे जल के पीछे-पीछे जाते हैं। विद्वान भाग बुद्धि-बल से उन्हें इन्द्र देव कहकर स्थिर किए हुए हैं।[ऋग्वेद 10.124.9]
The fearful and divine Jal Dev become friendly and look for their benefit-welfare. They are termed-titled Hans Sury Dev or Indr Dev. They follow water. The enlightened are supporting Indr Dev by virtue of their intellect and might.(31.01.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (125) :: ऋषि :- वागाम्भृणी; देवता :- आत्मा; छन्द :- त्रिष्टुप्, जगती।
अहं रुद्रेभिर्वसुभिश्चराम्यहमादित्यैरुत विश्वदेवैः।
अहं मित्रावरुणोभा बिभर्म्यहमिन्द्राग्नि अहंश्विनोभा
वाग्देवी की उक्ति :- मैं रुद्रों और वसुओं के साथ विचरण करती हूँ। मैं आदित्यों और देव गणों के साथ रहती हूँ। मैं मित्र और वरुण देव को धारण करती हूँ। मैं इन्द्र देव, अग्नि देव और दोनों अश्विनी कुमारों का अवलम्बन करती हूँ।[ऋग्वेद 10.125.1]
Vag Devi said :- I roam with Rudr Gan and Vasu Gan. I live with Adity Gan and demigods. I support Mitr and Varun Dev. I support Indr Dev, Agni Dev and Ashwani Kumars.                     
अहं सोममाहनसं बिभर्म्यहं त्वष्टारमुत पूषणं भगम्।
अहं दधामि द्रविणं हविष्मते सुप्राव्ये ३ यजमानाय सुन्वते॥
जो सोम प्रस्तर से पीसे जाकर उत्पन्न होते हैं, उन्हें मैं ही धारण करती हूँ। मैं त्वष्टा, पूषा और भग को धारण करती हूँ। जो यजमान यज्ञ-सामग्री का आयोजन करके और सोमरस प्रस्तुत करके देवों को भली भाँति सन्तुष्ट करता है, उसे मैं ही धन प्रदान करती हूँ।[ऋग्वेद 10.125.2]
Som who evolve by crushing with stones is supported by me. I support Twasta, Pusha and Bhag. The Ritviz-host who organise-arrange Yagy materials properly and satisfy the demigods by presenting Somras to them, is granted wealth by me.
अहं राष्ट्री संगमनी वसूनां चिकितुषी प्रथमा यज्ञियानाम्।
तां मा देवा व्यदधुः पुरुत्रा भूरिस्थात्रां भूर्यावेशयन्तीम्
मैं राज्य की अधीश्वरी हूँ और धन देने वाली हूँ। मैं ज्ञानवती हूँ और यज्ञोपयोगी वस्तुओं में श्रेष्ठ हूँ। देवों ने मुझे नाना स्थानों में रखा है। मेरा आश्रय-स्थान विशाल है। मैं सब प्राणियों में आविष्ट हूँ।[ऋग्वेद 10.125.3]
I am the goddess of the kingdom and grant wealth. I am enlightened and best amongest the useful commodities. Demigods have kept me at various places. My place of shelter-asylum is vast. I am embedded in all living beings.
Embedded :: अंतर्निहित; present.
मया सो अन्नमत्ति यो विपश्यति यः प्राणिति य ईं शृणोत्युक्तम्।
अमन्तवो मां त उप क्षियन्ति श्रुधि श्रुत श्रद्धिवं ते वदामि
जो प्राण धारण करता, देखता, सुनता और अन्न-भोग करता है, वह मेरी सहायता से ही यह सब कार्य करता है। जो मुझे नहीं मानते, वे नष्ट हो जाते हैं। हे विज्ञ! श्रवण करें। मैं जो कहती हूँ, वह श्रद्धेय है।[ऋग्वेद 10.125.4]
One who has air vital, see, listen and consume food grains-stuff, does it with my help. Those who do not recognise me are destroyed. Hey learned! Listen to me. What I say deserve to be honoured.
अहमेव स्वयमिदं वदामि जुष्टं देवेभिरुत मानुषेभिः।
यं कामये तंतमुग्रं कृणोमि तं ब्रह्माणं तमृषिं तं सुमेधाम्
देवता और मनुष्य जिसकी शरण में जाते हैं, उसको मैं ही उपदेश देती हूँ। मैं जिसे चाहूँ, उसे बली, स्तोता, ऋषि अथवा बुद्धिमान कर सकती हूँ।[ऋग्वेद 10.125.5]
I advise the person under whom demigods and humans seek shelter. I can make the person powerful, Stota, Rishi or intellectual as per my wish-desire.
अहं रुद्राय धनुरा तनोमि ब्रह्मद्विषे शरवे हन्तवा उ।
अहं जनाय समदं कृणोम्यहं द्यावापृथिवी आ विवेश
जिस समय इन्द्र देव स्तोत्र-द्रोही शत्रु का वध करने को उद्यत होते है, उस समय उनके धनुष का विस्तार करती हूँ। मनुष्य के लिए मैं ही युद्ध करती हूँ मैं द्यावा पृथ्वी में व्याप्त हूँ।[ऋग्वेद 10.125.6]
I expand the bow of Indr Dev when he become ready to vanish the person against Strotr. I fight for the humans and pervade the heaven & earth.
अहं सुवे पितरमस्य मूर्धन्मम योनिरप्स्व१न्तः समुद्रे।
ततो वि तिष्ठे भुवनानु विश्वोतामूं द्यां वर्म्मणोप स्पृशामि
मैं पिता हूँ। मैंने आकाश को उत्पन्न किया। वह आकाश इस संसार का मस्तक है। समुद्र के जल में मेरा स्थान है। उसी स्थान से मैं सारे संसार में विस्तृत होती हूँ। मैं अपनी उन्नत देह से इस द्युलोक का स्पर्श करती हूँ।[ऋग्वेद 10.125.7]
I am father. I have produced the sky. Sky forms the head of this universe. I reside in the water of ocean. I touch the heavens with my elevated-high rising body. 
अहमेव वातइव प्र वाम्यारभमाणा भुवनानि विश्वा।
परो दिवा पर एना पृथिव्यैतावती महिना सं बभूव
मैं ही भुवन निर्माण करते-करते वायु के समान बहती हूँ। मेरी महिमा इतनी बड़ी है कि मैं द्यावा-पृथ्वी का अतिक्रम कर चुकी हूँ।[ऋग्वेद 10.125.8]
I blow like air while developing the abode. My glory is so great that it has extended the heavens and earth.(01.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (126) :: ऋषि :- कुल्मल, बर्हिष, शैलूष, अहोमुग्व, वामदेव; देवता :- विश्वे देव, छन्द :- बृहती, त्रिष्टुप्।
न तमंहो न दुरितं देवासो अष्ट मर्त्यम्।
सजोषसो यमर्यमा मित्रो नयन्ति वरुणो अति द्विषः
अर्यमा, मित्र और वरुण देव जिसे शत्रुओं के हाथ से बचा देते हैं, हे देवों! कोई भी अमंगल और कोई भी पाप उस पर आक्रमण नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 10.126.1]
Hey demigods-deities! One who is protected by Aryma, Mitr and Varun Dev from the enemies, can not be attacked by any sin.
तद्धि वयं वृणीमहे वरुण मित्रार्यमन्। येना निरंहसो यूयं पाथ नेथा च मर्त्यमति द्विषः
हे वरुण देव, मित्र और अर्यमा! हम आपसे प्रार्थना करते हैं कि मनुष्य को पाप और शत्रुओं के हाथों से बचावें।[ऋग्वेद 10.126.2]
Hey Varun Dev, Mitr and Aryma! We pray-request you to protect the humans from sin and enemies.
ते नूनं नोऽयमूतये वरुणो मित्रो अर्यमा।
नयिष्ठा उ नो नेषाणि पर्पिष्ठा उ नः पर्षण्यति द्विषः
वरुण देव, मित्र और अर्यमा निश्चय ही हमारी रक्षा करेंगे। हे वरुण आदि देवों! हमें ले चलें, पार करें और शत्रुओं के हाथ से परित्राण करें।[ऋग्वेद 10.126.3]
परित्राण :: पूर्ण रक्षा, पूरा बचाव; protection.
Varun Dev, Mitr and Aryma will surely-definitely protect us. Hey Varun and other demigods! Take us and protect us from the enemies.
यूयं विश्वं परि पाथ वरुणो मित्रो अर्यमा।
युष्माकं शर्मणि प्रिये स्याम सुप्रणीतयोऽति द्विषः
हे वरुण देव, मित्र और अर्यमा! आप लोग संसार की रक्षा और नेता का कार्य भली भाँति करते हैं। आप लोगों के द्वारा हम शत्रुओं के हाथ से रक्षा पाकर आपके पास सुन्दर सुख पावे।[ऋग्वेद 10.126.4]
Hey Varun Dev, Mitr and Aryma! You perform the duty of protection of the universe as a leader properly. We attain pleasure-comforts on being protected by you.
आदित्यासो अति स्त्रिधो वरुणो मित्रो अर्यमा।
उग्रं मरुद्धी रुद्रं हुवेमेन्द्रमप्रिं स्वस्तयेऽति द्विषः
सूर्य देव, वरुण देव, मित्र और अर्यमा शत्रुओं के हाथ से बचावें। शत्रु से परित्राण पाकर कल्याणप्राप्ति के लिए हम उग्र मूर्त्ति रुद्र, मरुद्गण, इन्द्र देव और अग्नि देव का आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 10.126.5]
Let Sury Dev, Varun Dev and Aryma protect us from the enemies. Having got protection we invoke furious Rudr, Marud Gan, Indr dev and Agni Dev.
नेतार ऊ षु णस्तिरो वरुणो मित्रो अर्यमा।
अति विश्वानि दुरिता राजानश्चर्षणी नामति द्विषः
वरुण देव, मित्र और अर्यमा मार्ग दिखाकर ले जाने में अत्यन्त निपुण हैं। ये पाप को नष्ट कर देते हैं। मनुष्यों के स्वामी ये सभी देवता सारे पापों और शत्रुओं के हाथों से हमें बचावें।[ऋग्वेद 10.126.6]
Varun Dev, Mitr and Aryma are highly expert in showing the way-guiding. They destroy-vanish our sins. Lord of humans, these demigods-deities should protect us from the sins and enemies.
शुनमस्मभ्यमूतये वरुणो मित्रो अर्यमा।
शर्म यच्छन्तु सप्रथ आदित्यासो यदीमहे अति द्विषः
वरुण देव, मित्र और अर्यमा रक्षा के साथ हमें सुखी करें। हम जो सुख चाहते हैं, प्रचुर परिमाण में आदित्यगण हमें वही सुख प्रदान करें और शत्रुओं के हाथों से बचावें।[ऋग्वेद 10.126.7]
Let Varun Dev, Mitr and Aryma protect us and grant us pleasure-comforts. Let Adity Gan grant us sufficient pleasure and comforts in addition to protection from the enemy.
यथा ह त्यद्वसवो गौर्यं चित्पदि षिताममुञ्चता यजत्राः।
एवो ष्व १ स्मन्मुञ्चता व्यंहः प्र तार्यग्ने प्रतंरं न आयुः॥
जिस समय शुभ्रवर्ण गौ का पैर बाँधा गया, उस समय यज्ञ भाग-भागी वसु लोगों ने बन्धन छुड़ा दिया। उसी प्रकार ही हमें पाप से बचावें। हे अग्नि देव! हमें उत्तम आयु प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.126.8]
Vasu Gan having stake in the Yagy, released the white coloured cow when her legs were tied. Similarly protect us from the sins. Hey Agni Dev! Grant us excellent age.
One must pray to God to have Parmayu-Ultimate longevity i.e., 100 years, free from sins, ailments-diseases, from the impact of old age, during this era-epoch called Kali Yug.(01.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (127) :: ऋषि :- कुशिक, सौभरि, रात्रि या भरद्वाज; देवता :- रात्रि; छन्द :- गायत्री।
रात्री व्यख्यदायती पुरुत्रा देव्य १ क्षभिः। विश्वा अधि श्रियोऽधित
आती हुई रात्रि देवी चारों ओर विस्तृत हुई। उन्होंने नक्षत्रों के द्वारा निःशेष शोभा पाई।[ऋग्वेद 10.127.1] 
Falling night surrounded the entire area-earth. She was decorated-glorified by the constellations.
ओर्वप्रा अमर्त्या निवतो देव्यु १ द्वतः। ज्योतिषा बाधते तमः
दीप्ति शालिनी रात्रि देवी ने अतीव विस्तार प्राप्त किया। जो नीचे रहते हैं और जो ऊपर रहते हैं, उन सबको वे आच्छन्न करने वाली हैं। प्रकाश के द्वारा उन्होंने अन्धकार को नष्ट किया।[ऋग्वेद 10.127.2]
Illuminated night got extreme extension spreaded widely. She covers every one whether he live below or up. She covers every thing. Darkness is vanished by light.
निरु स्वसारमस्कृतोषसं देव्यायती। अपेदु हासते तमः
रात्रि ने आकर देवी उषा को अपनी भगिनी के समान परिग्रहण किया, उन्होंने अन्धकार को दूर किया।[ऋग्वेद 10.127.3]
Night fell and accepted Usha as her sister. They eliminated darkness.
सा नो अद्य यस्या वयं नि ते यामन्नविक्ष्महि। वृक्षे न वसतिं वयः
जिस प्रकार चिड़िया वृक्ष पर रहती हैं, उसी प्रकार ही जिसके आने पर हम सोये थे, वे रात्रि देवी हमारे लिए शुभकरी हों।[ऋग्वेद 10.127.4]
The manner in which a bird resides over the tree, similarly we slept over her arrival and let she become auspicious for us.
नि ग्रामासो अविक्षत नि पद्वनतो नि पक्षिणः। नि श्येनासश्चिदर्थिनः
सब गाँव निस्तब्ध हैं; पादचारी, पक्षी और शीघ्रगामी श्येन आदि निस्तब्ध होकर सो गये।[ऋग्वेद 10.127.5]
All villages are free from sound-i.e., silent. Legged living beings, birds and fast moving falcon too have slept.
यावया वृक्यं १ वृकं यवय स्तेनमूर्म्ये। अथा नः सुतरा भव
हे रात्रि! वृक और वृकी को हमसे अलग कर दें। चोर को दूर ले जाऐं। हमारे लिए आप विशेष रीति से शुभकरी होवें।[ऋग्वेद 10.127.6]
Hey nighty-Ratri Devi! Separate-isolate the wolf and she wolf from us. You should be auspicious to us in special manner.
उप मा पेपिशत्तमः कृष्णं व्यक्तमस्थित। उष ऋणेव यातय
कृष्ण वर्ण का अन्धकार दिखाई दे रहा है। मेरे पास तक सब ढक गया है उषादेवी जैसे मेरे ऋण का परिशोध कर ऋण को हटा देती हैं, वैसे ही अन्धकार को नष्ट करें।[ऋग्वेद 10.127.7]
Darkness of black colour has landed-fallen. Every thing close to me has shrouded. The way Usha eliminate the debt over me, darkness too do that.
उप ते गाइवाकरं वृणीष्व दुहितर्दिवः। रात्रि स्तोमं न जिग्युषे
हे आकाश की कन्या रात्रि! आप जाती हैं। गौ के समान आपको यह स्तोत्र मैं अर्पित करता हूँ। इसे ग्रहण करें।[ऋग्वेद 10.127.1] 
Hey daughter of sky, Ratri Devi! You depart. I am presenting this Strotr for you like a cow. Accept this.(02.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (128) :: ऋषि :- विहृय, अंगिरस; देवता :-विश्वेदेव; छन्द :- त्रिष्टुप्, जगती।
ममाग्रे वर्ची विहवेष्वस्तु वयं त्वेन्धानास्तन्वं पुषेम।
हृं नमन्तां प्रदिशश्चतत्रस्त्वयाध्यक्षेण पृतना जयेम
हे अग्नि देव! युद्ध के समय मेरे तेज का उदय हो। आपको प्रज्वलित करके हम अपनी देह की पुष्टि करते हैं। मेरे पास चारों दिशाएं अवनत हों। आपको स्वामी पाकर हम शत्रुओं को जीते।[ऋग्वेद 10.128.1]
Hey Agni Dev! Let my energy-strength rise at the time of war. We nourish our body by igniting you. Let the four directions bow before me. Having you as a lord, we will win the enemies.
मम देवा विहवे सन्तु सर्व इन्द्रवन्तो मरुतो विष्णुरग्निः।
ममान्तरिक्षमुरुलोकमस्तु महृं वातः पवतां कामे अस्मिन्
इन्द्रादि देवता, मरुद्गण, विष्णु देव और अग्नि देव युद्ध के समय मेरे पक्ष में रहें। आकाश के समान विस्तीर्ण भुवन मेरे पक्ष में हों। मेरी कामना पर वायुदेव मेरे अनुकूल होकर मुझे पवित्र करें।[ऋग्वेद 10.128.2]
Let Indr Dev and other demigods, Marud Gan, Agni Dev and Bhagwan Shri Hari Vishnu favour me during the war. Vast abodes should also favour me like the sky. Vayu Dev should become favourable to me as per my wish and make me pure-pious.
मयि देवा द्रविणमा यजन्तां मय्याशीरस्तु मयि देवहूतिः।
दैव्या होतारो वनुषन्त पूर्वेऽरिष्टाः स्याम तन्वा सुवीराः
मेरे यज्ञ से प्रसन्न होकर देवता लोग मुझे धन दें। मैं आशीर्वाद प्राप्त करूँ। प्राचीन समय में जिन्होंने देवों के लिए होम किया, वे अनुकूल हों। मेरा शरीर निरूपद्रव हो। सन्तान उत्पन्न हों।[ऋग्वेद 10.128.3]
The demigods-deities should be pleased with me due to my Yagy and grant me wealth. Let me have blessings. Those who conducted Yagy during ancient periods should also be favourable to me. My body should be free from all troubles. Let me have progeny.
मह्यं यजन्तु मम यानि हव्याकूतिः सत्या मनसो मे अस्तु।
एनो मा नि गां कतमचनाहं विश्वे देवासो अधि वोचता नः
मेरी यज्ञ-सामग्री मेरे लिए देवों को अर्पित हो। मेरा मनोरथ सिद्ध हो। मैं किसी पाप में लिप्त न होऊँ। निखिल देवता हमें यह आशीर्वाद प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.128.4]
निखिल :: अखिल, सारा, समस्त, विश्वव्यापी, सम्पूर्ण, पूर्ण, अपूर्णता रहित; complete,  whole, flawless, entire, universal.
Let my Yagy materials should be offered to demigods-deities for my sake. My desires-wishes should be accomplished. I should not be involved any sin-vices. All deities should bless us.
देवी षळुर्वीरुरु नः कृणोत विश्वे देवास इह वीरयध्वम्।
मा हास्महि प्रजया मा तनूभिर्मा रधाम द्विषते सोम् राजन्
छः देवियाँ (द्यौ, पृथ्वी, दिन, रात्रि, जल और औषधि) हमारी वृद्धि करें। हे देवगणों! हमें ऐश्वर्य प्राप्त हो। हमारी संतति और शरीरों का अमंगल न हो। हे राजा सोम! हम विद्वेषी शत्रुओं से कभी पराजित न हों।[ऋग्वेद 10.128.5]
Six Goddesses viz. heavens, earth, day, night, water and medicines should grow us. Hey demigods-deities! We should attain grandeur. Our progeny and bodies should not face inauspiciousness. Hey king Som! We should not be defeated by the kings envious to us.
अग्रे मन्युं प्रतिनुदन् परेषामदब्धो गोपाः परि पाहि नस्त्वम्।
प्रत्यञ्चो यन्तु निगुतः पुनस्ते ३ मैषां चित्तं प्रबुधां वि नेशत्
हे अग्नि देव! शत्रुओं का क्रोध विफल कर हमारे रक्षक बनें और दुर्द्धर्ष होकर हमारी सब प्रकार से रक्षा करें। शत्रु लोग व्यर्थ-मनोरथ होकर लौट जाएं। यदि शत्रु बुद्धिमान् भी हों, तो भी उनकी बुद्धि लुप्त हो जाय।[ऋग्वेद 10.128.6]
Hey Agni Dev! Defeat the anger of the enemies, protect us in all possible manner by becoming invincible. The enemy should return empty handed due to failure of their motive-aim. If the enemy is intelligent, he should loose his intellect.
धाता धातृणां भुवनस्य यस्पतिर्देवं त्रातारमभिमातिषाहम्।
इमं यज्ञमश्विनोभा बृहस्पतिर्देवाः पान्तु यजमानं न्यर्थात्
जो सृष्टि-कर्ताओं के भी सृष्टि-कर्ता हैं, जो भुवन के अधीश्वर हैं, जो रक्षक और शत्रु-विजेता हैं। उनकी मैं स्तुति करता हूँ। दोनों अश्विनी कुमारों, बृहस्पतिदेव तथा अन्यान्य देवता इस यज्ञ की रक्षा करें। यजमान की क्रिया निरर्थक न हो।[ऋग्वेद 10.128.7]
I worship the lord of lords, the creator of creators, deity of the abode and is protector and winner of the enemy. Both Ashwani Kumars, Brahaspati Dev and other demigods-deities should protect the Yagy. The efforts of the Ritviz should be fruitful.
उरुव्यचा नो महिषः शर्म यंसदस्मिन् हवे पुरुहूतः पुरुक्षुः।
स नः प्रजायै हर्यश्व मृळयेन्द्र मा नो रीरिषो मा परा दाः
जो अतीव विस्तृत तेज के अधिकारी हैं, जो महान् हैं, जो सबसे पहले बुलाये जाते हैं और जो विविध स्थानों में रहते हैं, वे ही इन्द्र देव इस यज्ञ में हमें सुखी करें। हे हरित-वर्ण अश्व के स्वामी इन्द्र देव! हमें सुखी करें सन्तान से युक्त करें। हमारा अनिष्ट न करें। हमारे प्रतिकूल न होवें।[ऋग्वेद 10.128.8]
Indr Dev who is entitled for the vast aura-radiance, is great, is invoked first and present at various places; should make us comfortable in this Yagy. Hey lord of greenish horses, Indr Dev! Make us comfortable-peaceful and grant us progeny. He should neither harm us nor go against us. 
ये नः सपत्ना अप ते भवन्त्विन्द्राग्निभ्यामव बाधामहे तान्।
वसवो रुद्रा आदित्या उपरिस्पृशं मोग्रं चेत्तारमधिराजमक्रन्
जो हमारे शत्रु हैं, वे हमसे दूर हों। इन्द्र देव और अग्नि देव की सहायता से हम उन पर विजय प्राप्त करें। वसुगण, रुद्रगण और अदित्यगण मुझे सर्वश्रेष्ठ, दुर्द्धर्ष, बुद्धिमान और अधिपति बनावें।[ऋग्वेद 10.128.9]
Our enemies should remain away from us. We should attain victory over them with the help of Indr Dev and Agni Dev. Vasu Gan, Rudr Gan and Adity Gan should make me best, invincible, intelligent and over lord.(03.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (129) :: ऋषि :- प्रजापति, परमेष्ठी; देवता :- भाववृत्त; छन्द :- त्रिष्टुप्।
नासदासीन्नो सदासीत्तदानीं नासीद्रजो नो व्योमा परो यत्।
किमावरीवः कुह कस्य शर्मन्नम्भः किमासीद्गहनं गभीरम्
उस समय या प्रलयकाल में असत् नहीं था। जो सत् (जीवात्मा आदि) है, वह भी नहीं था। पृथ्वी भी नहीं थी और आकाश तथा आकाश में विद्यमान सातों भुवन भी नहीं थे। आवरण (ब्रह्माण्ड) भी कहाँ था? किसका कहाँ स्थान था? क्या दुर्गम और गंभीर जल उस समय था?[ऋग्वेद 10.129.1]
During annihilation-vast devastation, both pious & impious, Sat & Asat were absent. The living being too was not there. Neither earth nor sky and the seven abodes were there. Universe too was absent. Was water present then!?
Prior to evolution nothing was present. It was only the Almighty who existed everywhere. No air, no water, so sky. It was full of darkness after vast devastation-annihilation. It was all quit. Universe, Solar System, Earth, Heaven and Nether world too did not exist.
The space is filled with energy. The Almighty is  formless, shapeless, figure less at this stage. The energy fuses into mass and the Almighty appears as Shri Krashn.
Devastation & annihilation are cyclic and intermediate in nature like the 108 beads of a rosary. All living being assimilate-merge in Brahma Ji to evolve in next Kalp.
न मृत्युरासीदमृतं न तर्हि न रात्र्या अह्न आसीत्प्रकेतः।
आनीदवातं स्वधया तदेकं तस्माद्धान्यन्न परः किं चनास
उस समय मृत्यु नहीं थी, अमरता भी नहीं थी, रात और दिन का भेद भी नहीं था। वायु-शून्य और आत्मावलम्बन से श्वास-प्रश्वास युक्त केवल एक ब्रह्म थे। उनके अतिरिक्त और कुछ भी नहीं था।[ऋग्वेद 10.129.2]
Neither death nor immortality were there. No distinction between day & night existed. Only Brahm existed by virtu of his own self, possessing inhalation and exhalation. Nothing other than HIM existed.
That was the occasion when neither death or immortality existed. It was neither day nor night. In the absence of air, the Brahm exited depending over the soul, inhaling & exhaling air. It was just the Brahm, Almighty-God who prevailed, WHO has neither beginning, not end. HE is since ever for ever. HE evolves by HIMSELF. HE is the only one WHO perpetuate none else, nothing else.
तम आसीत्तमसा गूळ्हमग्रेऽप्रकेतं सलिलं सर्वमा इदम्।
तुच्छ्येनाभ्वपिहितं यदासीत्तपसस्तन्महिनाजायतैकम्
सृष्टि के प्रथम अन्धकार (या माया-रूपी अज्ञान) से अन्धकार (या जगत्कारण) ढका हुआ था। सभी अज्ञात और सब जलमय (या अविभक्त) था। अविद्यमान वस्तु के द्वारा वह सर्वव्यापी आच्छन्न था। तपस्या के प्रभाव से वही एक तत्त्व उत्पन्न हुआ।[ऋग्वेद 10.129.3]
Prior to evolution it was only darkness (ignorance, enchantment). Everything was undistinguished-undifferentiated in water. It was pervaded by non entity. The unique-Brahm appeared by virtue of ascetics.
Prior to evolution it was dark all around. Nothing was known. It was water all around. The Brahm was shrouded with the non existent-unknown matter. HE existed due to the Tap-ascetics.
The Brahm-Almighty was present in pure energy-unrevealed form i.e., HE was formless.
कामस्तदग्रे समवर्तताधि मनसो रेतः प्रथमं यदासीत्।
सतो बन्धुमसति निरविन्दन् हृदि प्रतीष्या कवयो मनीषा
सर्व-प्रथम परमात्मा के मन में काम (सृष्टि की इच्छा) उत्पन्न हुआ। उससे सर्व प्रथम बीज (उत्पत्ति कारण) निकला। बुद्धिमानों ने विद्यमान बुद्धि के द्वारा अपने अन्तःकरण में विचार करके अविद्यमान वस्तु से वस्तु का उत्पत्ति-स्थान निरूपित किया।[ऋग्वेद 10.129.4]
Wish-desire to evolve-create generated in the Almighty. Initially, the seed, the reason appeared. The enlightened-intellectuals analysed through innerself, how non entity created-generated the material form and the abode.
The Brahm desired to evolve-create at first, which led to the appearance of the seed (egg-golden shell, Hirany Garbh). The learned-scholars, Pandits applied their mind-intelligence & postulated-imagined the evolution of matter which was  invisible (masked, shrouded).
तिरश्चीनो विततो रश्मिरेषामधः स्विदासी ३ दुपरि स्विदासी ३ त्।
रेतोधा आसन्महिमान आसन्स्वधा अवस्तात्प्रयतिः परस्तात्
बीज-धारक पुरुष उत्पन्न हुए। महिमायें उत्पन्न हुई। उनका कार्य-कलाप दोनों पाश्चों (नीचे और ऊपर) विस्तृत हुआ। नीचे स्वधा (अन्न) रहा और ऊपर प्रयति (भोक्ता) अवस्थित हुआ।[ऋग्वेद 10.129.5]
प्रयति :: संयम, प्रयत्न, प्रयास, इरादा; offering, oblation, gift, endeavour, intention, attempt.
The Purush-God possessing the seed evolved-appeared. HIS endeavours expanded-extended on both sides, up & down. Under HIM appeared the wood-food grains and on the top of it appeared the user.
It led to the appearance of the Purush-Brahm which held the seed (egg, shell), followed by HIS glory-characterises. The lower level was acquired by own-self power & the top level was acquired by effort-to create.
को अद्धा वेद क इह प्र वोचत्कुत आजाता कुत इयं विसृष्टिः।
अर्वाग्देवा अस्य विसर्जनेनाथा को वेद यत आबभूव
प्रकृत तत्त्व को कौन जानता है? कौन उसका वर्णन करे? यह सृष्टि किस उपादान कारण से हुई? किस निमित्त कारण से विविध सृष्टियाँ हुईं? देवता लोग इन सृष्टियों के अनन्तर उत्पन्न हुए है। कहाँ से सृष्टि हुई, यह कौन जानता है?[ऋग्वेद 10.129.6]
Who knows the gist of nature? Who has to describe it? What made the evolution? For what, the evolution of living beings took place? The demigods-deities have evolved during the process of evolution. Who knows from whom the evolution occurred?
If no one is aware of the basics (root case) of evolution then who can elaborate it. What is the exact reason of evolution?! The demigods-deities appeared only after the evolution, then who knows how evolution took place?!
इयं विसृष्टिर्यत आबभूव यदि वा दधे यदि वा न।
यो अस्याध्यक्षः परमे व्योमन्त्सो अङ्ग वेद यदि वा न वेद
ये नाना सृष्टियाँ कहाँ से हुई, किसने सृष्टियाँ की और किसने नहीं कीं, यह सब वे ही जानें, जो इनके स्वामी परम धाम में निवास करते हैं। हो सकता है कि वे भी यह सब नहीं जानते हों।[ऋग्वेद 10.129.7]
Its only the Almighty who reside in HIS Ultimate abode, knows where these evolutions-creations took place and who created them. Its possible that HE too may not be aware of it.
How these creation were made-came into existence, who did that, only one who knows all this is the Almighty HIMSELF and HE is the master of all creations-evolution. HE resides in divine abode. HE is fully aware of all this. Its equally possible that HE too may be ignorant.(04.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (130) :: ऋषि :- यज्ञ, प्रजापति; देवता :- भाववृत्त; छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
यो यज्ञो विश्वतस्तन्तुभिस्तत एकशतं देवकर्मेभिरायतः।
इमे वयन्ति पितरो य आययुः प्र वयाप वयेत्यासते तते
चारों ओर सूत्र-विस्तार के द्वारा यज्ञ रूप वस्त्र बुना जाता है। देवों के लिए बहुसंख्यक अनुष्ठानों के द्वारा इसका विस्तार किया गया है। यज्ञ में जो पितर लोग आये हैं, वे बुन रहे हैं। 'लम्बा बुनों, चौड़ा बुनों' कहते हुए वे वस्त्र-चयन का कार्य करते हैं।[ऋग्वेद 10.130.1]
The Yagy is weaved all around like a cloth. Multiple ritual-rites, ceremonies are held to extend it. The Manes-Pitr, who joined the Yagy were weaving asking to make it broad-vast and choose the clothing.
पुमाँ एनं तनुत उत्कृणत्ति पुमान्वि तत्ने अदि नाके अस्मिन्।
इमे मयूखा उप सेदुरू सदः सामानि चक्क्रुस्तसराण्योतवे
एक वस्त्र को लम्बा करते हैं और दूसरे चौड़ाई के लिए उसे पसार रहे हैं। यह स्वर्ग तक विस्तारित हो रहा है। ये सब तेजः पुञ्ज देवता यज्ञ-गृह में बैठे हैं। इस कार्य में साम मन्त्रों का ताना-बाना बनाया जाता है।[ऋग्वेद 10.130.2]
One cloth is elongated and the other is broadened. Its extending till heavens. Aurous-radiant demigods-deities are sitting in the Yagy house. In this process the Mantrs from Sam Ved are used to weave horizontal & vertical threads, i.e., length and width, cross weaving.
कासीत्प्रमा प्रतिमा किं निदानमाज्यं किमासीत्परिधिः क आसीत्।
छन्दः किमासीत्प्रउगं किमुक्थं यद्देवा देवमयजन्त विश्वे
जिस समय देवों ने प्रजापति का यज्ञ किया, उस समय यज्ञ की सीमा क्या थीं ? देवमूर्ति क्या थी? संकल्प क्या था? घृत क्या था? यज्ञ की (पलाश आदि की) तीन परिधियाँ (माप) क्या थीं? छन्द और उक्थ क्या थे ?[ऋग्वेद 10.130.3]
What were the limits of the Yagy performed by Prajapati? Which image-idol of the Almighty-deity was there? What was the  motive-aim, target? What were the three dimensions of Butea wood? Which Chhand & Ukth were recited?
अग्नर्गायत्र्यभवत् सयुग्वोष्णिहया सविता सं बभूव।
अनुष्टुभा सोम उक्थैर्महस्वान् बृहस्पतेर्वृहती वाचमावत्
गायत्री छन्द अग्नि देव का सहायक हुआ और उष्णिक् सविता देव का। सोम अनुष्टुप् छन्द के और तेजस्वी सूर्य उक्थ छन्द के साथ मिले। बृहती छन्द ने बृहस्पति-वाक्य का आश्रय किया।[ऋग्वेद 10.130.4]
Gayatri Chhand became helpful for Agni Dev and Ushnik for Savita Dev. Som met Anushtap Chhand and Ukth met aurous Sury. Brahaspati Chhand took help of Brahaspati Vaky.
विराण्मित्रावरुणयोरभिश्रीरिन्द्रस्य त्रिष्टुबिह भागो अह्नः।
विश्वान् देवाञ्जगत्या विवेश तेन चाक्लृप्र ऋषयो मनुष्याः
विराट् छन्द मित्र और वरुण के आश्रित हुआ। इन्द्र देव और दिन के सोम के भाग में त्रिष्टुप् पड़ा। जगती छन्द ने अन्य देवों का आश्रय किया। इस प्रकार ऋषियों और मनुष्यों ने यज्ञ किया।[ऋग्वेद 10.130.5]
Virat Chhand depended over Mitr & Varun. Trishtup Chhand was shared by Indr Dev & Som during the day. Jagti Chhand took the shelter under other demigods-deities. In this manner the Rishis and humans conducted the Yagy. 
चाक्लृप्रे तेन ऋषयो मनुष्या यज्ञे जाते पितरो नः पुराणे।
पश्यन् मन्ये मनसा चक्षसा तान् य इमं यज्ञमयजन्त पूर्वे
प्राचीन समय में यज्ञ उत्पन्न होने पर हमारे पूर्व पुरुष ऋषियों और मनुष्यों ने उक्त नियम के अनुसार अनुष्ठान सम्पन्न किया। जिन्होंने प्राचीन समय में यज्ञानुष्ठान किया था, मुझे प्रतीत होता है कि, मैं उन्हें मनश्चक्षु से देख रहा हूँ।[ऋग्वेद 10.130.6]
During ancient times the ancient Rishis and humans performed the Yagy (rites, rituals, ceremonies) with these rules. It seems that I am watching those who performed the Yagy through the eyes of my innerself.
सहस्तोमाः सहछन्दस आवृतः सहप्रमा ऋषयः सप्त दैव्याः।
पूर्वेषां पन्थामनुदृश्य धीरा अन्वालेभिरे रथ्यो ३ न रश्मीन्
सात दिव्य ऋषियों ने स्तोत्रों और छन्दों का संग्रह करके पुनः पुनः अनुष्ठान किया और यज्ञ का परिमाण स्थिर किया। जिस प्रकार सारथि अश्व की लगाम हाथ में पकड़ते हैं, उसी प्रकार ही विद्वान् ऋषियों ने पूर्व पुरुषों की प्रथा के प्रति दृष्टि रखकर यज्ञानुष्ठान किया।[ऋग्वेद 10.130.7]
Seven divine Rishis performed the Yagy again and again by consolidating the Strotr & Chhands and stabilized the quantum of Yagy. The manner in which the charioteer hold the reins, the enlightened Rishis followed the traditions of the ancient humans, while performing Yagy.(04.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (131) :: ऋषि :- सुकीर्ति, काक्षीवत्; देवता :- इन्द्र, अश्विनी कुमार; छन्द :- त्रिष्टुप्, अनुष्टुप्।
अप प्राच इन्द्र विश्वाँ अमित्रानपापाचो अभिभूते नुदस्व।
अपोदीचो अप शूराधराच उरौ यथा तव शर्मन् मदेम
हे शत्रु-विजेता इन्द्र देव! सामने और पीछे, उत्तर और दक्षिण में जो सब शत्रु हैं उन्हें दूर करें। हे वीर! आपके पास विशिष्ट सुख की प्राप्ति करके हम आनन्दित होवें।[ऋग्वेद 10.131.1]
Hey enemy winner Indr Dev! Repel the enemy in front, behind, North or South. Hey brave! We should relish having attained specific pleasure from you.
One should himself make efforts to repel, defeat and destroy the enemy instead of depending over the demigods-deities or the God. Bhagwan Shri Krashn has said that vanish the enemy irrespective of the relation. Prayers and worship should continue. Asylum, protection shelter under God may be sought but you have intelligence & two hands. Struggle and destroy those who torture, pain, insult, rape you.
कुविदङ्ग यवमन्तो यवं चिद्यथा दान्त्यनुपूर्व वियूय।
इहेहैषां कृणुहि भोजनानि ये बर्हिषो नमोवृक्तिं न जग्मुः
जिसके खेत में यव (जौ) होता है, वे अलग-अलग करके क्रमशः उसे, अनेक बार काटते हैं, वैसे ही हे इन्द्र देव! जो यज्ञ में 'नमः' नहीं करते अथवा जो पुण्यानुष्ठान से विरत हैं, उनकी भोजन-सामग्री को अभी नष्ट कर दें।[ऋग्वेद 10.131.2]
Indr Dev should destroy those who do not either salute the deities in the Yagy or keep away from pious, virtuous acts, like the farmers who sow and cut the barley crop.
नहि स्थूर्युतुथा यातमस्ति नोत श्रवो विविदे संगमेषु।
गव्यन्त इन्द्रं सख्याय विप्रा अश्वायन्तो वृषणं वाजयन्तः
जिस शकट में एक ही चन्द्र है, वह कभी भी नियत स्थान पर नहीं उपस्थित हो सकता। युद्ध के समय उससे अन्न-लाभ नहीं हो सकता, जो लोग गौ, अश्व, आदि की इच्छा करते हैं, बुद्धिमान इन्द्र देव की मित्रता के लिए लालायित रहते हैं। [ऋग्वेद 10.131.3]
The cart having just one Moon, (light) can not reach its destination. One desirous of food grains during war can not have cows, horses etc. The intelligent always wish to be friendly with Indr Dev.
युवं सुराममश्विना नमुचावासुरे सचा। विपिपाना शुभस्पती इन्द्रं कर्मस्वावतम्
हे कल्याण मूर्ति दोनों अश्विनी कुमारो! जिस समय नमुचि के साथ इन्द्र देव का युद्ध हुआ, उस समय आप दोनों ने मिलकर दिव्य सोमरस का पान करके इन्द्र देव के कार्य में उनकी रक्षा की।[ऋग्वेद 10.131.4]
Hey Ashwani Kumars performing welfare! When Indr Dev indulged in war with Namuchi, you drunk Somras and helped him.
पुत्रमिव पितरावश्विनोभेन्द्रावथुः काव्यैर्देसनाभिः।
यत्सुरामं व्यपिबः शचीभिः सरस्वती त्वा मघवन्नभिष्णक्
हे दोनों अश्विनी कुमारो! जिस प्रकार माता-पिता पुत्र की रक्षा करते हैं, उसी प्रकार ही आप लोगों ने सुन्दर सोम का पान करके अपनी क्षमता और अद्भुत कार्यों के द्वारा इन्द्र देव की रक्षा की। तब देवी सरस्वती भी आपके अनुकूल हुई।[ऋग्वेद 10.131.5]
Hey Ashwani Kumars! The way a father protect his son, you too drunk Somras and protected Indr Dev as per your capabilities. Mata Saraswati became favourable to you, then.
इन्द्रः सुत्रामा स्ववाँ अवोभिः सुमृळीको भवतु विश्ववेदाः।
बा धतां द्वेषो अभयं कृणोतु सुवीर्यस्य पतयः स्याम
भली-भाँति से संरक्षण प्रदान करने वाले, सामर्थ्य से युक्त वे इन्द्र देव हमें संरक्षण प्रदान करे। वे सर्वज्ञ परमेश्वर हमारे शत्रुओं के संहारक हों। हममें निर्भीकता उत्पन्न करें, जिससे हम उत्तम बलों के स्वामी बनें।[ऋग्वेद 10.131.6]
Let the protector Indr Dev grant us asylum by virtue of his might. Hey all pervading Almighty! Destroy our enemies. Generate fearlessness in us so that we posses excellent might & power.
तस्य वयं सुमतौ यज्ञियस्यापि भद्रे सौमनसे स्याम।
स सुत्रामा स्ववाँ इन्द्रो अस्मे आराचिद् द्वेषः सनुतर्युयोतु
यज्ञीय पुरुष की उत्तम बुद्धि में हम वास करें। कल्याणकारी श्रेष्ठ मन से भी हम युक्त हो। श्रेष्ठ संरक्षक और ऐश्वर्यवान इन्द्र देव हमारे पास और दूर छुपे हुए सभी शत्रुओं को सदा के लिए (हमसे) दूर करें।[ऋग्वेद 10.131.7]
We should remain in the innerself of the Yagy Purush. We should possess excellent innerself devoted to welfare. Guardian and glorious Indr Dev should repel our hidden or enemies from us.(05.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (132) :: ऋषि :- शकपूत, नृमेध; देवता :- मित्र, वरुण द्यौ, भूमि, अश्विनी कुमार; छन्द :- बृहती, पंक्ति, विराड्या, न्यंकु-सारिणी।
ईजानमिद् द्यौर्मूर्तावसुरीजानं भूमिरभि प्रभूषणि।
ईजानं देवावश्विनावभि सुम्नैरवर्धताम्
जो यज्ञ करता है, उसी के लिए आकाश (द्यौ) धन रखता है। पृथ्वी भी उसे ही श्री सम्पन्न करती हैं। यज्ञकर्ता को ही अश्विद्वय नाना सुख-सामग्री देकर सन्तुष्ट करते हैं।[ऋग्वेद 10.132.1]
Sky heavens grant wealth to one who perform-conduct Yagy. The earth make him rich. Ashwani Kumars grant various comforts-pleasure to the Yagy doer.
ता वां मित्रावरुणा धारयत्क्षिती सुषुम्नेषितत्वता यजामसि।
युवोः क्राणाय सख्यैरभि ष्याम रक्षसः
हे मित्र और वरुण देव! आप पृथ्वी को धारण किये हुए हो। उत्तम सुख-सामग्री के लिए हम आप दोनों की पूजा करते हैं। यजमान के प्रति आप लोगों का जो मित्रता का व्यवहार होता है, उसके प्रभाव से हम शत्रुओं पर विजय प्राप्त करें।[ऋग्वेद 10.132.2]
Hey Mitr and Varun Dev! You are supporting the earth. We worship you for best comforting materials. We should attain victory over the enemy by virtue of your friendly behaviour with the host-Ritviz.
अघा चिन्नु यद्दिधिषामहे वामभि प्रियं रेक्णः पत्यमानाः।
दद्वाँ वा यत्पुष्यति रेक्णः सम्वारन्नकिरस्य मघानि
हे मित्र और वरुण देव! जिस समय आपके लिए हम यज्ञ-सामग्री का आयोजन करते हैं, उसी समय हम प्रिय धन के पास उपस्थित होते हैं। यज्ञ-दाता जो धन पाता है, उसे कोई नष्ट नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 10.132.3]
Hey Mitr and Varun Dev! As and when we arrange Yagy offerings-material, wealth dear to us comes to us. The wealth obtained by the donor in the Yagy can not be destroyed by any one.
असावन्यो असुर सूयत द्यौस्त्वं विश्वेषां वरुणासि राजा।
मूर्धा रथस्य चाकन्नैतावर्तनसान्तकध्रुक्
हे बली (असुर) मित्र! आकाश से उत्पन्न सूर्य देव आप से भिन्न हैं। हे वरुण देव! आप सबके राजा है। आपके रथ का मस्तक इधर ही आ रहा है। हिंसकों के विनाशक इस यज्ञ का कोई भी अनिष्ट नहीं हो सकता।[ऋग्वेद 10.132.4]
अनिष्ट :: अवांछित, अहित, अमंगल; untoward, calamitous, disadvantageous, baneful, objectionable, undesirable.
Hey Bali (demon) Mitr! Sury Dev evolved in the Akash is different from you. Hey Varun Dev! You are the Lord of all. The front of your charoite is arriving towards us. None can harm this Yagy which destroy the violent.
अस्मिन्त्स्वे ३ तच्छकपूत एनो हिते मित्रे निगतान् हन्ति वीरान्।
अवोर्वा यद्धात्तनूष्ववः प्रियासु यज्ञियास्वर्वा
मुझ शकपूत का पाप नीच स्वभाव शत्रुओं को नष्ट करता है; क्योंकि मित्र देव मेरे हितैषी हैं। मित्र देवता उपस्थित होकर शरीर की रक्षा करें। उत्तमोत्तम यज्ञ-सामग्री की भी वे रक्षा करें।[ऋग्वेद 10.132.5]
Sin present in my body-Shakpoot should destroy the enemies having wicked-vicious nature. Let Mitr Dev invoke and save my body. Let him protect the excellent Yagy materials (offerings, oblations, wood etc.)
युवोर्हि मातादितिर्विचेतसा द्यौर्न भूमिः पयसा पुपूतनि।
अव प्रिया दिदिष्टन सूरो निनिक्त रश्मिभिः
हे विशिष्ट ज्ञानी मित्र और वरुण देव! आपकी माता अदिति हैं। द्यावा-पृथ्वी को जल से परिष्कृत करें। निम्न लोक में उत्तमोत्तम सामग्री दें। सूर्य देव अपनी किरणों के द्वारा सारे भुवनों को पवित्र करें।[ऋग्वेद 10.132.6]
Hey Mitr & Varun Dev possessing specific-special knowledge! Aditi is your mother. Saturate the heavens & earth with water. Provide best materials in lower abodes. Let Sury Dev purify all abodes with his rays.
युवं ह्यम्नराजावसीदतं तिष्ठद्रथं न धूर्षदं वनर्षदम्।
ता नः कणूकयन्तीर्नृमेधस्तत्रे अंहसः सुमेधस्तत्रे अंहसः
अपने कर्म के बल से आप दोनों राजा हुए। आपका जो रथ वन में विहार करता है, वह इस समय अश्वों के वहन-स्थान में रहे। सब शत्रु क्रोध के साथ चित्कार करते हैं। बुद्धिमान नृमेघ ऋषि विपत्ति से उद्धार पा चुके हैं।[ऋग्वेद 10.132.7]
You have become king by virtue of your Karm-endeavours. Your charoite which roam in the forests should be present in shed of horses. All enemies cry with anger. Intelligent Rishi Nramedh has over come trouble.(06.02.2025)

ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (133) :: ऋषि :- सुदा, पैजबन; देवता :- इन्द्र; छन्द :- शक्वरी, पंक्ति, त्रिष्टुप्।
प्रो ष्वस्मै पुरोरथमिन्द्राय शूषमर्चत। अभीके चिदु लोककृत्संगे समत्सु वृत्रहास्माकं बोधि चोदिता नभन्तामन्यकेषां ज्याका अधि धन्वसु
इन्द्र देव की जो सेना उनके रथ के सामने है, उसकी भली-भाँति पूजा करें। युद्ध के समय जब शत्रु पास आकर युद्ध करता है, तब इन्द्र देव पलायन नहीं करते, वृत्रासुर का वध कर डालते है। हमारे प्रभु इन्द्र देव हमारी चिन्ता करें। शत्रुओं के धनुष की प्रत्यंचा टूट जाए, हम यही कामना करते हैं।[ऋग्वेद 10.133.1]
Properly worship the army of Indr Dev in front of his charoite. When the enemy comes close to fight; Indr Dev do not retreat and kill Vratra Sur. Our Lord Indr Dev take our care. We wish that the cord of enemy be broken.
त्वं सिन्धूँरवासृजोऽधराचो अहन्नहिम्। अशत्रुरिन्द्र जज्ञिषे विश्वं पुष्यसि वार्य तं त्वा परि ष्वजामहे। नभन्तामन्यकेषां ज्याका अधि धन्वसु
नीचे बहने वाली जल-राशि को आप ही ने मुक्त किया। आपने ही मेघ या वृत्रासुर का वध किया। हे इन्द्र देव! आप अजेय और शत्रु के लिए अवध्य होकर जन्में हैं। आप विश्व-पालक हैं। आपको सर्वश्रेष्ठ जानकर हम पास में आये हैं। शत्रुओं के धनुष की प्रत्यंचा टूट जाए, हम यही कामना करते हैं।[ऋग्वेद 10.133.2]
Water flowing down ward was released by you. It was you who killed Medh or Vratra Sur. Hey Indr Dev! You are invincible and born not to be killed by the enemy. You nurture the universe. We have approached you knowing that you are the best. We wish that the cord of enemy be broken.
वि षु विश्वा अरातयोऽर्यो नशन्त नो धियः। अस्तासि शत्रवे वधं यो न इन्द्र जिघांसति या ते रातिर्ददिर्वसु नभन्तामन्यकेषां ज्याका अधि धन्वसु
अदाता शत्रु दृष्टि-पथ से दूर हों। हमारी स्तुतियाँ चलती रहें। हे इन्द्र देव! हमारे वध की इच्छा करने वाले शत्रुओं का वध करें। आपकी दानशीलता हमें धन प्रदान करें। शत्रुओं के धनुष की प्रत्यंचा टूट जाए, हम यही कामना करते हैं।[ऋग्वेद 10.133.3]
Non donor enemies should keep off the visible path. Let our Stuties continue. Hey Indr Dev! Kill the enemies who wish to kill us. Let your tendency to donate grant us wealth. We wish that the cord of enemy be broken.
यो न इन्द्राभितो जनो वृकायुरादिदेशति। अधस्पदं तर्मी कृधि विबाधो असि सासहिर्नभन्तामन्यकेषां ज्याका अधि धन्वसु
हे इन्द्र देव! भेड़ियों के समान आचरण करने वाले जो लोग हमारे चारों ओर घूमते हैं, उन्हें धराशायी करें। आप शत्रुओं को हरानेवाले और उन्हें पीड़ा पहुँचाने वाले हैं। शत्रुओं के धनुष की प्रत्यंचा टूट जाए, हम यही कामना करते हैं।[ऋग्वेद 10.133.4]
Hey Indr Dev! Fell down the enemies who move around us like wolves. You defeat and torture the enemies. We wish that the cord of enemies be broken.
यो न इन्द्राभिदासति सनाभिर्यश्च निष्ट्यः। अव तस्य बलं तिर महीव द्यौरध त्मना नभन्तामन्यकेषां ज्याका अधि धन्वसु
हमारे निकृष्ट, समान-जन्मा और अनिष्ट कर्म करने वाले शत्रुओं के बल को वैसे ही नीचा दिखावें, जिस प्रकार विशाल आकाश हमारी वस्तुओं को नीचा दिखाता है। शत्रुओं के धनुष की प्रत्यंचा टूट जाए, हम यही कामना करते हैं।[ऋग्वेद 10.133.5]
Degrade strength of our wicked enemies born alike, the way the vast sky degrade our commodities. We wish that the cord of enemy be broken.
वयमिन्द्र त्वायवः सखित्वमा रभामहे। ऋतस्य नः पथा नयाति विश्वानि दुरिता नभन्तामन्यकेषां ज्याका अधि धन्वसु
हे इन्द्र देव! हम आपके अनुगामी हैं। आपके बन्धुत्व के उपयुक्त कार्य के लिए हम उद्योग करते हैं। पुण्य कर्म के मार्ग से हमें ले चलो। हम सारे पापों के पार जायें। शत्रुओं के धनुष की प्रत्यंचा टूट जाए।[ऋग्वेद 10.133.6]
Hey Indr Dev! We are your followers. We make efforts for your brotherhood. Guide us towards the virtuous path. Let us sail across all sins. We wish that the cord of enemy be broken. 
अस्मभ्यं सु त्वमिन्द्र तां शिक्ष या दोहते प्रति वरं जरित्रे।
अच्छिद्रोध्नी पीपयद्यथा नः सहस्त्रधारा पयसा मही गौः
हे इन्द्र देव! हमें आप वह विद्या बतावें, जिसके प्रभाव से स्तोता का मनोरथ पूर्ण हो। पृथ्वी स्वरूपा यह गौ विशाल स्तन वाली होकर और हजारों धाराओं से दूध गिराकर हमें परितृप्त करे।[ऋग्वेद 10.133.7]
Hey Indr Dev! Grant us that learning by virtue of which the wishes-desires of the Stota are fulfilled. Let the cow in the form of earth that has large udder, flow milk in thousands of streams and satisfy us.(06.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (134) :: ऋषि :- मान्धाता, यौवनाश्व, गोधा, ऋषिका; देवता :- इन्द्र; छन्द :- पंक्ति।
उभे यदिन्द्र रोदसी आपप्राथोषाइव। महान्तं त्वा महीनं सम्राजं चर्षणीनां देवा जनित्र्यजीजनद्भद्रा जनित्र्यजीजनत्
हे इन्द्र देव! आप देवी उषा के समान द्यावा-पृथ्वी को अपने तेज से परिपूर्ण करते हैं। आप महान् हैं। आप मनुष्यों के स्वामी हैं। आपकी कल्याणमयी माता ने आपको उत्पन्न किया है।[ऋग्वेद 10.134.1]
Hey Indr Dev! You fill the earth with your radiance like Usha. You are great. You are the Lord of humans. Your auspicious mother resorting to welfare has given you birth.
अव स्म दुर्हणायतो मर्तस्य तनुहि स्थिरम्। अधस्पदं तमीं कृधि यो अस्माँ आदिदेशति देवी जनित्र्यजीजनद्भद्रा जनित्र्यजीजनत्
जो दुरात्मा हमारा वध करना चाहता है, उसके अधिक बली रहने पर भी आप उसके बल को कम कर देते हैं। जो हमारा अनिष्ट चाहता है, उसे आप धराशायी करते हैं। आपकी कल्याणमयी माता ने आपको उत्पन्न किया है।[ऋग्वेद 10.134.2]
The wicked-vicious who wish to kill us faces reduction in his strength, though mighty, you reduce his power-mighty. You vanish one who want-wish to harm us. Your auspicious mother resorting to welfare has given you birth.
अव त्या वृहतीरिषो विश्वश्चन्द्रा अमित्रहन्। शचीभिः शक्र धूनुहीन्द्र विश्वाभिरूतिभिर्देवी जनित्र्यजीजनद्भद्रा जनित्र्यजीजनत्
शक्तिशाली और शत्रु संहारी हे इन्द्र देव! सबको आनन्दित करने वाले उस प्रचुर अन्न को अपनी क्षमता से आप हमारी ओर प्रेरित करें। साथ ही सब प्रकार से हमारी रक्षा करें। कल्याणमय माता ने आपको उत्पन्न किया है।[ऋग्वेद 10.134.3]
Mighty and slayer of the enemy, hey Indr Dev! Divert the sufficient food grains toward us & protect us. Your auspicious mother resorting to welfare has given you birth. 
अव यत्त्वं शतक्रतविन्द्र विश्वानि धूनुषे। रयिं न सुन्वते सचा सहस्रिणीभिरूतिभिर्देवी जनित्र्यजीजनद्भद्रा जनित्र्यजीजनत्
हे शतक्रतु इन्द्र देव! आप जिस समय नाना प्रकार के अन्न प्रेरित करेंगे, उस समय सोम यज्ञ कर्ता यजमान को असीम प्रकार से बचाएंगे और धन प्रदान करेंगे। कल्याणमयी माता ने आपको उत्पन्न किया है।[ऋग्वेद 10.134.4]
Hey performer of hundred Yagy, Indr Dev! When you forward different food grains, the performers of Som Yagy, you will protect the host-Ritviz and grant him wealth. Your auspicious mother resorting to welfare has given you birth.
अव स्वेदाइवाभितो विष्वक्पतन्तु दिद्यवः। दूर्वायाइव तन्तवो व्य १ स्मदेतु दुर्मतिर्देवी जनित्र्यजीजनद्भद्रा जनित्र्यजीजनत्
स्वेद (पसीने) के समान इन्द्र देव के शस्त्र चारों ओर गिरें। दूब के प्रतान के समान आयुध सर्व-व्यापी हों। हमारी दुर्बुद्धि दूर हो। कल्याणमयी माता ने आपको उत्पन्न किया है।[ऋग्वेद 10.134.5]
Your weapons should fall all around (over the enemy), like sweat. Your weapons should pervade the whole area. Remove over defective innerself-mind. Your auspicious mother resorting to welfare has given you birth.
दीर्घ ह्यङ्कुशं यथा शक्तिं बिभर्षि मन्तुमः। पूर्वेण मघवन्पदाजो वयां यथा यमो देवी जनित्र्यजीजनद्भद्रा जनित्र्यजीजनत्
हे ज्ञानी और धनी इन्द्र देव! विशाल अंकुश के समान 'शक्ति' नामक अस्त्र को आप धारण करते हैं। जिस प्रकार छाग अपने चरणों से वृक्ष की शाखा को खींचता है, वैसे ही आप उस 'शक्ति' के द्वारा शत्रुओं को खींचकर गिराते हैं। कल्याणमयी माता ने आपको उत्पन्न किया है।[ऋग्वेद 10.134.6]
Hey enlightened and wealthy Indr Dev! You wield the weapon named Shakti like a goad. The way a goat nourish the tree with his foot-hoofs, you pull the enemy and fell him down with your weapon Shakti. Your auspicious mother resorting to welfare has given you birth.
नकिर्देवा मिनीमसि नकिरा योपयामसि मन्त्रश्श्रुत्यं चरामसि। पक्षेभिरपिकक्षेभिरत्राभि सं रभामहे
हे देवों! आपके विषय में हम कोई भी त्रुटि नहीं करते, किसी भी कर्म में शैथिल्य या औदास्य नहीं करते। मन्त्र और श्रुति के अनुसार हम आचरण करते हैं। दोनों हाथों से इकट्ठी यज्ञ-सामग्री लेकर इस यज्ञ-कर्म का हम सम्पादन करते हैं।[ऋग्वेद 10.134.7]
Hey deities! We never commit mistakes, pertaining to you. We do not take liberty-slow down or show disinterest in any endeavour. We act according to Mantr and Shruti. We possess the Yagy Samgri-offerings in both hands and conduct the Yagy.(07.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (135) :: ऋषि :- कुमार यामायन; देवता :- यम; छन्द :- अनुष्टुप्।
यस्मिन्वृक्षे सुपलाशे देवैः संपिबते यमः। अत्रा नो विश्पतिः पिता पुराणाँ अनु वेनति
सुन्दर पात्रों के द्वारा शोभित जिस वृक्ष पर देवों के साथ यमदेव पान करते हैं, हमारे नरपति पिता की इच्छा है कि मैं उसी वृक्ष पर जाकर पूर्वजों का सहायक बनूँ।[ऋग्वेद 10.135.1]
My father wish that I should become helpful to the Manes-ancestors over the tree decorated with beautiful vessels, over which Yam Dev drink-breakfast along with demigods-deities.
पुराणाँ अनुवेनन्तं चरन्तं पापयामुया। असूयन्नभ्यचाकशं तस्मा अस्पृहयं पुनः॥
निर्दय होकर मेरे पिता की 'पूर्व पुरुषों का साथी' बनने की बात पर मैंने इनके प्रति विरक्ति से भरा दृष्टिपात किया। विरक्ति को छोड़कर अब मैं अनुरक्त हुआ हूँ।[ऋग्वेद 10.135.2]
I looked at my father with disenchantment, when he wanted me to become the associate of the ancestors. I have lost disenchantment and become attacked again.
यं कुमार नवं रथमचक्रं मनसाकृणोः। एकेषं विश्वतः प्राञ्चमपश्यन्नधि तिष्ठसि
यम की उक्ति :- हे नचिकेत कुमार! आपने ऐसा अभिनव रथ चाहा था, जिसमें चक्र न हो और जिसकी ईषा (दण्ड) एक ही हो तथा जो सर्वत्र जाने वाला हो। बिना समझे ही आप उस रथ पर आरूढ़ हुए हैं।[ऋग्वेद 10.135.3]
Yam Raj said :- Hey Nachiketa! You desired such a unique charoite, which has no wheels and has just one Isha-support and is capable of moving all around. You did not think and rode that charoite-vehicle.
यं कुमार प्रावर्तयो रथं विप्रेभ्यस्परि। तं सामानु प्रावर्तत समितो नाव्याहितम्
हे कुमार! बुद्धिशाली बन्धु-बान्धवों को छोड़कर आपने उस रथ को चलाया। वह आपके पिता के सान्त्वनापूर्ण उपदेश वचन के अनुसार चला। वह उपदेश के लिए नौका और आश्रय हुआ। उस नौका पर संस्थापित होकर यह रथ यहाँ से चला गया।[ऋग्वेद 10.135.4]
Hey Kumar! You left the friends and relatives and drove that charoite. It moved answering-following to your father's words-dictates. It became boat & support for listening Sermon. That charoite moves having boarded the boat.
कः कुमारमजनयद्रथं को निरवर्तयत्। कः स्वित्तदद्य नो ब्रूयादनुदेयी यथाभवत्
इस बालक का जन्मदाता कौन है? किसने इस रथ को भेजा है? जिससे यह बालक यम के द्वारा जीव लोक में प्रत्यर्पित होगा, उस बात को आज हमसे कौन कहेगा?[ऋग्वेद 10.135.5]
Who gave birth to this child? Who sent this charoite? Who will narrate-tell the story of having been transferred this child to the abode of humans.
यथाभवदनुदेयी ततो अग्रमजायत। पुरस्ताद्बुध्न आततः पश्चान्निरयणं कृतम्
जिससे यम के द्वारा बालक जीवलोक में प्रत्यर्पित होगा, वह बात पहले ही कह दी गई। पहले पिता के उपदेश का मूल अंश प्रकट हुआ, पीछे प्रत्यागमन का उपाय कहा गया।[ऋग्वेद 10.135.6]
The reason by virtue of which this child will be back over the earth, has been said. Initially his father's wish was narrated and later his repatriation was described.
इदं यमस्य सादनं देवमानं यदुच्यते। इयमस्य धम्यते नाळीरियं गीर्भिः परिष्कृतः
यही यम का निवास-स्थान है। लोग कहते हैं कि यह देवों के द्वारा निर्मित्त हुआ है। यहाँ यम की प्रसन्नता के लिए वेणु (वाद्य) बजाकर स्तुतियों से यम को भूषित किया जाता है।[ऋग्वेद 10.135.7]
This is the abode of Yam (Dharm Raj). People say that it has created by the demigods. Here Yam is decorated by playing Venu for his happiness-pleasure.(07.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (136) :: ऋषि :- मुनि, वातरशन; देवता :- केशिन; छन्द :- अनुष्टुप्।
केश्य१ग्निं केशी विषं केशी बिभर्ति रोदसी। केशी विश्वं स्वर्दृशे केशीदं ज्योतिरुच्यते
हे केशी (सूर्य) अग्नि देव! आप जल और द्यावा-पृथ्वी को धारण करते हैं। केशी ही सारे संसार को प्रकाश के द्वारा दर्शनीय बनाते हैं। इस ज्योति को ही केशी कहा जाता है।[ऋग्वेद 10.136.1]
Hey Keshi-Sun! You support the water, heavens & earth. Keshi award light to the universe and make it visible. This light is named Keshi.
मुनयो वातरशनाः पिशङ्गा वसते मला। वातस्यानु ध्राजिं यन्ति यद्देवासो अविक्षत
वातरसन के वंशज मुनि लोग पीले वल्कल पहनते हैं। वे देवत्व प्राप्त करके वायु की गति का अनुगमन करते हैं।[ऋग्वेद 10.136.2]
Muni of Vatarsan clan wear yellow coloured cloths-cortex. They attain demigodhood and follow the speed of air.
उन्मदिता मौनेयेन वाताँ आ तस्थिमा वयम्। शरीरेदस्माकं यूयं मतीसो अभि पश्यथ॥
सारे लौकिक व्यवहारों के विसर्जन से हम उन्मत्त (परमहंस) हो गये। हम वायु के ऊपर चढ़ गये। आप लोग केवल हमारा शरीर देखते हैं, हमारी प्रकृत आत्मा तो वायुरूपी हो गई है।[ऋग्वेद 10.136.3]
परमहंस :: वह व्यक्ति जो सभी क्षेत्रों में जागृत है; a revered spiritual leader known for his deep wisdom and compassion.
We have become spiritual having discharged our worldly duties. We rode the air. You just see our body; our soul has become like the air.
अन्तरिक्षेण पतति विश्वा रूपावचाकशत्। मुनिर्देवस्यदेवस्य सौकृत्याय सखा हितः
मुनि लोग आकाश में उड़ सकते और सारे पदार्थों को देख सकते हैं। जहाँ कहीं भी जितने देवता हैं, वे सबके प्रिय मित्र हैं। वे सत्कर्म के लिए ही जीते हैं।[ऋग्वेद 10.136.4]
The Muni can fly in the air and see everything-material in the world. They are dear to all demigods, irrespective of their location. They survive for the sake of auspicious-virtuous, righteous deeds.
वातस्याश्वो वायोः सखाथो देवेषितो मुनिः। उभौ समुद्रावा क्षेति यश्च पूर्व उतापरः
मुनि लोग वायु मार्ग पर घूमने के लिए अश्व-स्वरूप हैं। वे वायु के सहचर हैं। देवता उनको पाने की इच्छा करते हैं। वे पूर्व और पश्चिम के दोनों समुद्रों में निवास करते हैं।[ऋग्वेद 10.136.5]
Munis adopt the form of horse, to roam in the air. They are companions of air-Vayu Dev. Demigods wish-desire to have them. They reside in east & west, on both sides of the ocean.
अप्सरसां गन्धर्वाणां मृगाणां चरणे चरन्। केशी केतस्य विद्वान्त्सखा स्वादुर्मदिन्तमः
केशी देवता अप्सराओं, गन्धर्वों और हिरणों में विचरण करते हैं। वे सारे ज्ञातव्य विषयों को जानते हैं। वे रस के उत्पादक और आनन्द देने वाले मित्र हैं।[ऋग्वेद 10.136.6]
Demigods named Keshi roam amongest the nymphs, Gandharvs and the deer. They know the subjects to be known. They are the producers of juices-saps and are friends granting pleasure.
वायुरस्मा उपामन्थत्पिनष्टि स्मा कुनंनमा। केशी विषस्य पात्रेण यद्रुद्रेणापिबत्सह॥
जिस समय केशी रुद्र के साथ जल-पान करते हैं, उस समय वायु देव उस जल को जीवित कर देते हैं और कठिन माध्यमिकी वाक् को भंग कर देते हैं।[ऋग्वेद 10.136.7]
When Keshi drink water with Rudr, Vayu Dev make the water living and destroy the intervening tough-loud sound.(08.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (137) :: ऋषि :- सप्त ऋषि; देवता :- विश्वेदेवा; छन्द :- अनुष्टुप्।
उत देवा अवहितं देवा उन्नयथा पुनः। उतागश्चक्कुषं देवा देवा जीवयथा पुनः
हे देवों। मुझ पापी को ऊपर उठावें। मुझ अपराधी को अपराध से बचावें। हे देवों! मुझे चिरंजीवी बनावें।[ऋग्वेद 10.137.1]
Hey deities! Raise-elevate me-a sinner. Protect me-a criminal from crime. Hey deities! Make me long lived.
द्वाविमौ वातौ वात आ सिन्धोरा परावतः। दक्ष ते अन्य आ वातु परान्यो वातु यद्रषः
समुद्र पर्यन्त-समुद्र से भी दूरवर्ती स्थान तक दो वायु बहते हैं, एक वायु आप (स्तोता) का बलाधान करे और दूसरा आपके पापध्वंस के लिए बहे।[ऋग्वेद 10.137.2]
Two types of air flow till the ocean and distant places. Let one of them generate strength in the Stota and the other destroy the sins.
आ वात वाहि भेषजं वि वात वाहि यद्रषः। त्वं हि विश्वभेषजो देवानां दूत ईयसे॥
हे वायु देव! आप इस ओर प्रवाहित होकर औषध ले आवें और जो अहितकर है, उसे यहाँ से बहा ले जावें। आप संसार के औषधरूप हैं। आप देव-दूत होकर जाते हैं।[ऋग्वेद 10.137.3]
Hey Vayu Dev! Flow in this direction bringing medicines and take away what is harmful. You are like medicine for the universe.
आ त्वागमं शंतातिभिरथो अरिष्टतातिभिः। दक्षं ते भद्रामाभार्षं परा यक्ष्मं सुवामि ते
हे यजमान! आपके लिए सुखकर और अहिंसाकर रक्षणों के साथ मैं आया हूँ। आपके उत्तम बलाधान का कार्य भी मैंने किया है। इस समय आपके रोग को मैं दूर कर देता हूँ।[ऋग्वेद 10.137.4]
Hey host! I have come to you with the non violent means granting comforts-pleasure. I have made provision for excellent strength in you. I am removing your ailments right now.
त्रायन्तामिह देवास्त्रायतां मरुतां गणः। त्रायन्तां विश्वा भूतानि यथायमरपा असत्
इस समय देवता, मरुद्रण और चराचर रक्षा करें। यह व्यक्ति नीरोगी हो।[ऋग्वेद 10.137.5]
चराचर :: जड़ और चेतन, स्थावर और जंगम, संसार; संसार के सभी प्राणी; pasture, movable and immovable, animate and inanimate, the entire creation.
Let demigods, Marud Gan and the entire creation protect us. Let this person become free from illness.
आप इद्वा उ भेषजीरापो अमीवचातनीः। आप सर्वस्य भेषजीस्तास्ते कृण्वन्तु भेषजम्
जल ही औषध, रोग शान्ति का कारण और सारे रोगों के लिए भेषज है। आपके लिए वही जल औषध-विधान करे।[ऋग्वेद 10.13761]
Water is medicine, remove ailments and acts as medicine for all kinds of diseases. Let this medicine in the form of water be prescribed for you.
हस्ताभ्यां दशशाखाभ्यां जिह्वा वाचः पुरोगवी।
अनामयित्लुभ्यां त्वा ताभ्यां त्वोप स्पृशामसि
दोनों हाथों में दस अँगुलियाँ हैं। वचन के आगे-आगे जिह्वा चलती है। रोग शान्ति के लिए दोनों हाथों से मैं आपका स्पर्श करता हूँ।[ऋग्वेद 10.137.7]
Two hands have ten fingers. Tongue moves ahead of words. To calm down the illness, I touch you with both hands.(08.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (138) :: ऋषि :- अंग, औरव; देवता :- इन्द्र; छन्द :- जगती।
तव त्य इन्द्र सख्येषु वह्नय ऋतं मन्वाना व्यदर्दिरुर्बलम्।
यत्रा दशस्यन्नुषसो गिणान्नपः कुत्साय मन्मन्नह्यश्च दंसयः
हे इन्द्र देव! आपके लिए बन्धुत्व करने को यज्ञ कर्ताओं ने यज्ञ सामग्री ले जाकर और यज्ञ करके बल (राक्षस) को मार डाला। उस समय स्तोत्र किया गया। आपने कुत्स को प्रभात आलोक दिया, जल को छोड़ा और वृत्रासुर के सारे कर्मों को ध्वस्त किया।[ऋग्वेद 10.138.1]
Hey Indr Dev! For the sake of your brotherhood, the Yagy performers killed the demon by using Yagy offerings-materials in the Yagy. You granted the radiance of morning to Kuts, released water and destroyed all endeavours of Vratra Sur.
अवासृजः प्रस्वः श्वञ्चयो गिरीनुदाज उस्त्रा अपिबो मधु प्रियम्।
अवर्धयो वनिनो अस्य दंससा शुशोच सूर्य ऋतजातया गिरा
हे इन्द्र देव! आपने जननी के समान जल को छोड़ा, पर्वतों को विचलित किया। गायों हॉककर ले गये, मीठा सोम पिया और वन के वृक्षों को वृष्टि के द्वारा वर्द्धित किया। यज्ञोपयोगी स्तुति-वचनों से इन्द्र देव की स्तुति हुई। इन्द्र देव के कर्म से सूर्यदेव दीप्तिशाली हुए।[ऋग्वेद 10.138.2] 
Hey Indr Dev! You released water like a mother, moved the mountains. You derived-took away the cows. Drunk sweet Som and grew the trees in the forest with rains. Indr Dev was worshiped with the Stuti, prayers Mantr-Shloks. Sury Dev brightened due to the efforts of Indr Dev.
वि सूर्यो मध्ये अमुचद्रथं दिवो विदद्दासाय प्रतिमानमार्यः।
दृळ्हानि पिप्रोरसुरस्य गायिन इन्द्रो व्यास्यचकृवाँ ऋजिश्वना
आकाश में सूर्य देव ने अपने रथ को चला दिया। उन्होंने देखा कि आर्य लोग दासों से पराजित नहीं होते। इन्द्र देव ने ऋजिश्वा के साथ मित्रता करके पिप्रु नामक मायावी असुर बल-वीर्य को नष्ट कर दिया।[ऋग्वेद 10.138.3]
मायावी :: हाथ न आने वाला, टाल-मटोल वाला, कपटी, धूर्त, धोखे से भरा हुआ; elusive, deceptive, illusory.
Sury Dev moved his charoite in the sky. He observed that the Ary are defeated by the Dasyu-dacoities (Anary). Indr Dev entered into friendship with Rijishrwa and destroyed illusive demon Pipu with his might-valour.
अनाधृष्टानि धृषितो व्यास्यन्निधीं रदेवाँ अमृणदयास्यः।
मासेव सूर्यो वसु पुर्यमा ददे गृणानः शत्रूँरशृणाद्विरुक्मता
दुर्द्धर्ष इन्द्र देव ने दुर्द्धर्ष शुत्रु-सेना को नष्ट कर डाला। उन्होंने देव-शून्य को सम्पत्ति को ध्वस्त कर डाला। जिस प्रकार सूर्य देव मास-विशेष में भूमिरस को खींचते हैं, उसी प्रकार उन्होंने शत्रु-पुरी-स्थित धन को हर लिया। स्तोत्र ग्रहण करते-करते उन्होंने प्रदीप्त अस्त्र (वज्र) के द्वारा शत्रुओं को नष्ट किया।[ऋग्वेद 10.138.4]
Invincible Indr Dev destroyed the invincible army of the enemy. He destroyed the property-wealth without the deity. The way Sun sucks the extract-juices, saps from the earth in specific, particular months, he snatched the wealth of the enemy cities. While accepting the Strotr he destroyed the enemies with his Vajr.
अयुद्धसेनो विभ्वा विभिन्दता दाशत्रहा तुज्यानि तेजते।
इन्द्रस्य वज्रादबिभेदभिश्नथः प्राक्रामच्छुध्यूरजहादुषा अनः
इन्द्र देव की सेना के साथ कोई युद्ध नहीं कर सकता। वह सर्वगन्ता और विदारक वज्र के द्वारा वृत्र का निपात करके आयुध पर शान चढ़ाते हैं। विदारक इन्द्र देव के वज्र से शत्रु लोग भयभीत होते हैं। सर्व-शोधक इन्द्र देव चलने लगे। देवी उषा ने अपना शकट चला दिया।[ऋग्वेद 10.138.5]
None can face-fight the army of Indr Dev. He sharpened his weapon, torturous Vajr while killing Vratra Sur and moves-roams every where. Enemy are afraid of his destroyer Vajr. Purifier of every thing, every one Indr Dev started moving. Devi Usha started her cart.
एता त्या त श्रुत्यानि केवला यदेक एकमकृणोरयज्ञम्।
मासां विधानमदधा अधि द्यवि त्वया विभिन्नं भरति प्रधिं पिता
हे इन्द्र देव! यह सब वीरत्व का कार्य आपका ही सुना जाता है। अकेले ही आपने यज्ञ-विघ्नकर्ता और प्रधान असुर को मारा। आपने आकाश के ऊपर चन्द्रमा के जाने-आने की व्यवस्था की। जिस समय वृत्र सूर्य देव के रथ-चक्र को भंग करता है, उस समय सबके पिता द्युलोक, आपके ही द्वारा उस चक्र को धारण कराते हैं।[ऋग्वेद 10.138.6]
Hey Indr Dev! All this description of bravery pertaining to you is heard.  You alone killed the major distractor-disturbing demon. You made provision for the movement of Moon, in the sky. When Vratra Sur broke the wheel of Sur Dev's charoite, at that moment the progenitor of all heavens; supported the charoite due to you.(09.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (139) :: ऋषि :- विश्वावसु, देवगन्धर्व; देवता :- सविता, आत्मा; छन्द :- त्रिष्टुप्।
सूर्यरश्मिर्हरिकेशः पुरस्तात्सविता ज्योतिरुदयाँ अजस्त्रम्।
तस्य पूषा प्रसवे याति विद्वान्त्संपश्यन्विश्वा भुवनानि गोपाः
सविता देव (सूर्योदय के प्रथम काल के अभिमानी देवता) सूर्य देव किरण वाले और उज्ज्वल केश वाले हैं। वे पूर्व की ओर क्रमागत आलोक का उदय किया करते हैं। उनका जन्म होने पर पूषा अग्रसर होते हैं। वे ज्ञानी हैं। वे सारे संसार को देखते और बचाते हैं।[ऋग्वेद 10.139.1]
Egoistic deity of the first segment of the day (Sury Dev) has bright rays and hairs. He rises in the east. With his onset Pusha Dev proceed further. He is enlightened, looks over the whole universe and protect it.
नृचक्षा एष दिवो मध्य आस्त आपप्रिवान्रोदसी अन्तरिक्षम्।
स विश्वाचीरभि चष्टे घृताचीरन्तरा पूर्वमपरं च केतुम्
ये मनुष्य के प्रति कृपा दृष्टि करके आकाश के मध्य में रहते और द्यावा-पृथ्वी तथा मध्य स्थित आकाश को आलोक से परिपूर्ण करते हैं। वे सारी दिशाओं और कोनों को प्रकाशित करते हैं। वे पूर्व भाग, परभाग, मध्य भाग और प्रान्त भाग को प्रकाशित करते हैं।[ऋग्वेद 10.139.2]
कृपा :: regard, grace, favour, obligation, condescension, pleasure, favour, mercy, blessing, benevolence.
They grace-favour the humans staying in the sky, between the heavens and the earth lighting them up. They illuminate all directions and corners. They illuminate east portion, other segments and the upper segments.
रायो बुध्नः संगमनो वसूनां विश्वा रूपाभि चष्टे शचीभिः।
देवइव सविता सत्यधर्मेन्द्रो न तस्थौ समरे धनानाम्
सूर्य देव धन के मूल-रूप हैं, सम्पत्ति के मिलन-स्थान हैं। वे अपनी क्षमता से द्रष्टव्य पदार्थ को प्रकाशित करते हैं। सविता देवता के समान वे जो कुछ करते हैं, वह सफल होता है। जहाँ सारा धन एकत्र मिलता है; वहाँ वे इन्द्र देव के समान दण्डायमान हुए।[ऋग्वेद 10.139.4]
Sury Dev is at the root of wealth and juncture of prosperity-property. He shine the materials. His efforts like Savita Dev are successful. They stand erect like Indr Dev, where whole wealth is available.
विश्वावसुं सोम गन्धर्वमापो ददृशुषीस्तदृतेना व्यायन्।
तदन्ववैदिन्द्रो रारहाण आसां परि सूर्यस्य परिधीरपश्यत्
हे सोम देव! जिस समय सस्मित जल ने विश्वावसु गन्धर्व को देखा उस समय पुण्य कर्म प्रभाव से वह विलक्षण रीति से निकला। जल प्रेरक इन्द्र देव उक्त वृत्तान्त को जान गये। उन्होंने चारों ओर सूर्यमण्डल का निरीक्षण किया।[ऋग्वेद 10.139.4]
Hey Som Dev! When smiling Vishrwavasu Gandarbh, looked at water, it turned out to be amazing by virtue of his virtuous-pious deeds. Indr Dev inspiring water, knew about it event. He inspected-watched the whole Solar system.
विश्वावसुरभि तन्नो गृणातु दिव्यो गन्धर्वो रजसो विमानः।
यद्वा घा सत्यमुत यन्त्र विद्म घियो हिन्वानो धिय इन्नो अव्याः
देवलोक वासी और जल के सृष्टि-कर्ता गन्धर्व विश्वावसु यह सब विषय हमें बतावें। जो यथार्थ और जो हमें अज्ञात है, उसमें वे हमारी चिन्ता को प्रवर्तित करें।[ऋग्वेद 10.139.5]
Let the residents of heavens and producer of water Gandharv Vishrwavasu explain- elaborate this to us. He should indicate our worry about the real and unknown. 
सस्निमविन्दचरणे नदीनामषावृणोद्दुरो अश्मव्रजानाम्।
प्रासां गन्धर्वो अमृतानि वोचदिन्द्रो दक्षं परि जानादहीनाम्
नदियों के चरण-देश में इन्द्र देव ने एक मेघ को देखा। उन्होंने प्रस्तरमय द्वार का उद्घाटन कर दिया। गन्धर्व ने इन सारी नदियों के जल की बात कही। इन्द्र देव भली-भाँति मेघों की शक्ति को जानते हैं।[ऋग्वेद 10.139.6]
Indr Dev viewed a cloud in the region of water. He opened-inaugurated the rock-stone gate. Gandarbh described the matter pertaining to the river waters. Indr Dev is aware of the power of clouds.(10.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (140) :: ऋषि :- अग्नि, पावक; देवता :- इन्द्र; छन्द :- सतोबृहती, पंक्ति, उपरिष्टज्ज्योति।
अग्ने तव श्रवो वयो महि भ्राजन्ते अर्चयो विभावसो।
बृहद्भानो शवसा वाजमुक्थ्यं १ दधासि दाशुषे कवे
हे अग्नि देव! आपके पास प्रशंसनीय अन्न हैं, आपकी ज्वालाएं विचित्र दीप्ति पाती हैं। दीप्ति ही आपकी सम्पत्ति है। आपकी दीप्ति प्रकाण्ड है। आप क्रिया-कुशल हैं। आप दाता को उत्तम अन्न और बल प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 10.140.1]
विचित्र :: रंग बिरंगा, अजीब, अनोखा, विलक्षण, चितला, बहुरंगा, रंग-बिरंगा; bizarre, quaint, weird, pied.
Hey Agni Dev! You possess appreciable food grains. Your flames have weird-amazing shine. Your glow is colossal. You are expert-skilled in working. You grant best food grains and strength to the donor.
पावकवर्चाः शुक्रवर्चा अनुनऽवर्चा उदियर्षि भानुना।
पुत्रो मातरा विचरन्नुपावसि पृणक्षि रोदसी उभे
हे अग्नि देव! जिस समय आप दीप्ति के साथ उदित होते हैं, उस समय आपका तेज सबको विशुद्ध करता हैं। ये शुक्ल वर्ण धारण करके बृहत् हो जाते हैं। हे अग्नि देव! आप द्यावा-पृथ्वी को छूते हैं। आप पुत्र है, वे माता हैं। इसीलिए आप क्रीड़ा करते हुए उनका आलिङ्गन करते हैं।[ऋग्वेद 10.140.2]
Hey Agni Dev! when you appear with your radiance, your aura purifies every one. You extend with while glow. Hey Agni dev! You touch the heavens & earth. You are son and they are mother. Hence you embrace them playfully.
ऊर्जा नपाज्जातवेदः सुशस्तिभिर्मन्दस्व धीतिभिर्हितः।
त्वे इषः सं दधुर्भूरिवर्पसश्चित्रोतयो वामजाताः
हे तेज के पुत्र ज्ञानी अग्नि देव! उत्तम स्तोत्र के पठन के साथ आपको स्थापित किया गया है। आनन्द करें। आपके ही ऊपर नानाविध और नाना रूपों की यज्ञ-सामग्री हुत हुई हैं।[ऋग्वेद 10.140.3]
Hey enlightened son of Tej-aura, Agni Dev! You have been established with the recitation of excellent Strotr. Various kinds of offerings have been showered over you.
इरज्यन्नग्ने प्रथयस्व जन्तुभिरस्मे रायो अमर्त्य।
स दर्शतस्य वपुषो वि राजसि पृणक्षि सानसिं क्रतुम्
हे अमर अग्नि देव! नवोत्पन्न किरण-मण्डल से सुशोभित होकर हमारे पास धन-विस्तारित करें। आप सुन्दर मूर्ति से विभूषित हैं, आप सर्वफलद यज्ञ का स्पर्श करते हैं।[ऋग्वेद 10.140.4]
Hey immortal Agni Dev! Glorified with new radiance-rays extend our wealth.  You possess beautiful form. You touch the Yagy capable of grant all sorts of amenities-rewards.
इष्कर्तारमध्वरस्य प्रचेतसं क्षयन्तं राधसो महः।
रातिं वामस्य सुभगां महीमिषं दधासि सानसिं रयिम्॥
हे अग्नि देव! यज्ञ को संस्कारित, सुशोभित करने वाले सर्वज्ञ, असंख्य धन के अधिपति, धन प्रदाता आप ही है। हम आपकी आराधना करते हैं। आप हमें उत्तम धन और सौभाग्ययुक्त प्रचुर अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.140.5]
Hey Agni Dev! You sanctify the Yagy & all knowing, lord of infinite wealth and wealth granter. We worship you. Grant us excellent wealth and food grains associated with good luck.
ऋतावानं महिषं विश्वदर्शतमग्निं सुम्नाय दधिरे पुरो जनाः।
श्रुत्कर्णं सप्रथस्तमं त्वा गिरा दैव्यं मानुषा युगा
यज्ञोपयोगी, सर्वदर्शक और विशाल अग्नि देव का मनुष्यों ने सुख के लिए आधान किया। आपका कान सब कुछ सुनता है। आपके समान विस्तृत कुछ भी नहीं है। आप देवलोकवासी हैं। सभी मनुष्य, यजमान पति-पत्नी, आपकी स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 10.140.6]
Vast-huge Agni Dev useful in the Yagy, looking at everyone, has been evolved for the welfare of humans. You ears listen every thing. None is as vast as you. You are a resident of the heaven. All humans, Ritviz, hosts and husband, wife worship-pray to you.(11.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (141) :: ऋषि :- अग्नि, तापस; देवता :- विश्वेदेवा;  छन्द :- अनुष्टुप्।
अग्ने अच्छा वदेह नः प्रत्यङ् नः सुमना भव। प्र नो यच्छ विशस्यते धनदा असि नस्त्वम्
हे अग्नि देव! उपयुक्त उपदेश दें। हमारे प्रति अनुकूल और प्रसन्न होवें। हे नरपति! आप धनद हैं; इसलिए हमें ज्ञान प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.141.1]
Hey Agni Dev! Guide us appropriately. You should be happy favourable to us. Hey Lord of Humans! You are wealthy, enlighten us.
प्र नो यच्छत्वर्यमा प्र भगः प्र बृहस्पतिः। प्र देवाः प्रोत सूनृता रायो देवी ददातु नः
अर्यमा, भग, बृहस्पति, अन्य देवता और सत्यप्रिय तथा वाक्यमयी सरस्वती देवी आदि हमें दान करें।[ऋग्वेद 10.141.2]
Let Aryma, Bhag, Brahaspati, other demigods-deities, truthful Devi Saraswati deity of speech, should grant us donations.
सोमं राजानमवसेऽग्निं गीर्भिर्हवामहे। आदित्यान्विष्णुं सूर्यं ब्रह्माणं च बृहस्पतिम्
अपनी रक्षा के लिए हम राजा सोम, अग्नि देव, सूर्य देव, आदित्य गण, विष्णु देव, बृहस्पति और प्रजापति का आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 10.141.3]
We invoke king Som, Agni Dev, Sury Dev, Adity Gan, Vishnu Dev, Brahaspati and Prajapati for our protection.
इन्द्रवायू बृहस्पतिं सुहवेह हवामहे। यथा नः सर्व इज्जनः संगत्यां सुमना असत्
हे इन्द्र देव! वायु और बृहस्पति को बुलाने से आनन्द होता है। इन्हें हम बुलाते हैं। धन-प्राप्ति के लिए सब हमारे प्रति प्रसन्न हों।[ऋग्वेद 10.141.4]
Hey Indr Dev! Invocation of Vayu Dev and Brahaspati grant us pleasure, hence we invite them. We all should be happy with you for having wealth.
अर्यमणं बृहस्पतिमिन्द्रं दानाय चोदय। वातं विष्णुं सरस्वतीं सवितारं च वाजिनम्
हे स्तोताओं! अर्यमा, बृहस्पति, इन्द्र देव, वायु देव, भगवान्  विष्णु, देवी सरस्वती और सविता देव की दान के लिए प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 10.141.5]
Hey Stotas! Worship Aryma, Indr Dev, Vayu Dev, Bhagwan Shri Hari Vishnu, Devi Saraswati and Savita for receiving donations.
त्वं नो अग्ने अग्निभिर्ब्रह्म यज्ञे च वर्दय। त्वं नो देवतातये रायो दानाय चोदय
हे अग्नि देव! आप अन्यान्य अग्नियों के साथ एक होकर हमारे स्तोत्र और यज्ञ की श्री-वृद्धि करें। हमारे यज्ञ के लिए आप दाताओं को धन-दान के लिए अनुरोध करें।[ऋग्वेद 10.141.6]
Hey Agni Dev! You should increase the glory of our Yagy in association with your various forms. Request wealth for our Yagy to the donors.(11.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (142) :: ऋषि :- शङ्ग-शङ्र्गा; देवता :- अग्नि; छन्द :- त्रिष्टुप्, जगती, अनुष्टुप्।
अयमग्रे जरिता त्वे अभूदपि सहसः सूनो नह्य १ न्यदस्त्याप्यम्।
भद्रं हि शर्म त्रिवरूथमस्ति त आरे हिंसानामप दिद्युमा कृधि
हे अग्नि देव! यह जरिता आपके स्तोता हुए हैं। बल के पुत्र अग्नि देव आपके समान दूसरा कोई आत्मीय नहीं है। आपका वास स्थान सुन्दर है, जिसके तीन प्रकोष्ठ हैं। हम आपके उत्ताप से दग्ध होते हैं; इसलिए अपनी उज्ज्वल ज्वाला हमसे दूर ले जाएं।[ऋग्वेद 10.142.1]
Hey Agni Dev, son of Bal! This Jarita is your Stota. We do not have any other intimate other than you.  Your residence is beautiful with three chambers. We are burnt by your heat, hence keep away your flames from us.
प्रवत्ते अग्ने जनिमा पितूयतः साचीव विश्वा भुवना न्यूञ्जसे।
प्र सप्तयः प्र सनिषन्त नो धियः पुरश्चरन्ति पशुपाइव त्मना
हे अग्नि देव! जिस समय आप अन्न-कामना से उत्पन्न होते हैं, उस समय आपका प्रकटन क्या ही सुन्दर होता है। मित्र के समान आप सारे भुवनों को विभूषित करते हैं। इधर-उधर जाने वाली आपकी शिखाओं ने हमारे स्तव का उदय कर दिया है। पशु-पालक के समान वे आगे-आगे जाती हैं।[ऋग्वेद 10.142.2]
स्तव :: प्रशंसा, स्तुति; appreciation, prayers, praise.
Hey Agni Dev! Your appearance with the desire for food grains is beautiful. You illuminate all abodes like a friend. Your flames moving hither & thither have arisen our prayers. You move back and froth like a animal husbandry, dairy owners.
उत वा उ परि वृणक्षि बप्सद्वहोरग्न उलपस्य स्वधावः।
उत खिल्या उर्वराणां भवन्ति मा ते हेतिं तविषीं चुक्रुधाम
हे दीप्तिशाली अग्नि देव! दाह करते समय आप अनेक तृणों को स्वयं छोड़ देते हैं। आप धान्य से भरी भूमि को धान्य शून्य कर देते हैं। हम आपकी प्रबल शिखा के कोप में न गिरें।[ऋग्वेद 10.142.3]
Hey shining Agni Dev! You neglect many straw pieces while burning. You destroy the paddy crop. We should not be attacked by your strong currents-flames.
यदुद्वतो निवतो यासि बप्सत्पृथगेषि प्रगर्धिनीव सेना।
यदा ते वातो अनुवाति शोचिर्वप्तेव श्मश्रु वपसि स भूम
जिस समय आप ऊपर-नीचे वृक्ष आदि को जलाते हैं, उस समय लूटने वाली सेना के समान अलग-अलग जाते हैं। जिस समय आपके पीछे वायु देव बहते हैं, उस समय आप वैसे ही असीम प्रदेश का मुण्डन कर देते हैं, जैसे नाई लोगों के दाढ़ी-मूँछ मूड़ते हैं।[ऋग्वेद 10.142.4]
When you burn the tree from to to bottom, you are isolated like a looting army. When Vayu Dev follows you, you make vast tract of land baron, like the barber shaving beard and moustache.
प्रत्यस्य श्रेणयो ददृश्र एकं नियानं बहवो रथासः।
बाहू यदग्ने अनुमर्मृजानो न्यङ्ङत्तानामन्वेषि भूमिम्
अग्नि देव की अनेक शिखाएं देखी जाती हैं। इनका गन्तव्य स्थान एक ही है; किन्तु रथ अनेक हैं। हे अग्नि देव! आप बाहुओं (ज्वालाओं) से सारे वन को जलाते हुए और नम्र होकर ऊँची भूमि पर चढ़ते हैं।[ऋग्वेद 10.142.5]
Many branches of Agni Dev are seen. Though his destination is one, he possess many charoites. Hey Agni Dev! You burn the forests with your blazing flames and rise over the elevated land becoming soft-weak.
उत्ते शुष्मा जिहतामुत्ते अर्चिरुत्ते अग्ने शशमानस्य वाजाः।
उच्छञ्चस्व नि नम वर्धमान आ त्वाद्य विश्वे वसवः सदन्तु
हे अग्नि देव! आपकी स्तुति की जाती है। आपके तेज, शिखा और बल-विक्रम का उदय हो। बुद्धि प्राप्त करें। ऊपर गमन करें और नीचे उतर जाएं। आपको सारे वासयिता देवता प्राप्त करें।[ऋग्वेद 10.142.6]
Hey Agni Dev! You are worshiped. Let your might and sharpness rise. Seek intelligence. Rise up and come down. Let all resident demigods-deities attain you.
अपामिदं न्ययनं समुद्रस्य निवेशनम्। अन्यं कृणुष्वेतः पन्थां तेन याहि वशाँ अनु॥
यह स्थान जल का आधार है। इस स्थान पर समुद्र अवस्थित है। हे अग्नि देव! आप अन्य स्थान ग्रहण करें। उसी पथ से यथेच्छ गमन करें।[ऋग्वेद 10.142.7]
This place supports water. Ocean is located here. Hey Agni Dev! Move to other place. You should move to the desired place from there only.
आयने ते परायणे दूर्वा रोहन्तु पुष्पिणीः। हृदाश्च पुण्डरीकाणि समुद्रस्य गृहा इमे॥
हे अग्नि देव! आपके आगमन और प्रत्यागमन पर फलों वाली दूबें बढ़ें। यहाँ कुआँ है, श्वेत पद्म है और समुद्र की अवस्थिति है।[ऋग्वेद 10.142.8]
Hey Agni Dev! Let Durva grass with your arrival and departure. A well, while lotus and ocean exist here.(11.02.2025)
 ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (143) :: ऋषि :- अत्रि, सांख्य; देवता :- अश्विनी कुमार; छन्द :- अनुष्टुप्।
त्यं चिदत्रिमृतजुरमर्थमश्वं न यातवे। कक्षीवन्तं यदी पुना रथं न कृणुथो नवम्
हे दोनों अश्विनी कुमारो! यज्ञ करके अत्रि ऋषि वृद्ध हो गये। उन्हें आप लोगों ने ऐसा बना दिया कि, वे घोड़े के समान गन्तव्य स्थान को चले गये। कक्षीवान् ऋषि को आप लोगों ने वैसे ही नवयौवन प्रदान किया, जैसे जीर्ण रथ को नया किया जाता है।[ऋग्वेद 10.143.1]
Hey Ashwani Kumar duo! Atri Rishi had become old. You treated him and he returned to his destination like a horse. You granted youth to Kakshiwan Rishi as well and he rejuvenated.
त्यं चिदश्वं न वाजिनमरेणवो यमत्नत। दृळ्हं ग्रन्थिं न वि ष्यतमत्रिं यविष्ठमा रजः
प्रबल पराक्रमी शत्रुओं ने शीघ्रगामी अश्वों के समान अत्रि ऋषि को बाँध रखा था। जैसे सुदृढ़ गाँठ को खोला जाता है, वैसे ही आपने अत्रि को छोड़ दिया। वे तरुण पुरुष के समान पृथ्वी की ओर चले गये।[ऋग्वेद 10.143.2]
Mighty, invincible enemies had tied Atri Rishi, like fast moving horses. The way a strong-tough knot is opened, you released Atri Rishi and he moved towards the earth like a young man.
नरा दंसिष्ठावत्रये शुभ्रा सिषासतं धियः। अथा हि वां दिवो नरा पुनः स्तोमो न विशसे
हे शुभ्रवर्ण और सुन्दर नायक द्वय! अत्रि ऋषि को बुद्धि देने की इच्छा करें। हे स्वर्ग के नायक द्वय! ऐसा होने पर मैं पुनः स्तुति कर सकता हूँ।[ऋग्वेद 10.143.3]
Hey fair skinned beautiful leader duo! You should wish to grant intelligence to Atri Rishi. Hey leader duo of the heavens. As and when it happen, I will worship-pray to you again.
चिते तद्वां सुराधसा रातिः सुमतिरश्विना। आ यन्नः सदने पृथौ समने पर्षथो नरा
हे उत्तम अन्न वाले अश्विनी द्वय और नायक द्वय! जब आपने हमारे गृह में महान् समारोह के साथ यज्ञारम्भ होने पर रक्षा की, तब हम समझते है कि हमारे दान और हमारे स्तोत्र को आपने जाना है।[ऋग्वेद 10.143.4]
Hey possessor of food grains, Ashwani Kumar and leader duo! When you protected us on celebrating the beginning of Yagy in our house then we think that you recognised our donations and Strotr.
युवं भुज्युं समुद्र आ रजसः पार ईङ्खितम्। यातमच्छा पतत्रिभिर्नासत्या सातये कृतम्
भुज्यु नामक व्यक्ति समुद्र में गिरकर तरङ्गों के ऊपर आन्दोलित हो रहे थे। आप लोग पक्ष वाली नौका लेकर समुद्र में गये। हे सत्य रूप दोनों अश्विनी कुमारो! आपने पुनः भुज्यु का उद्धार करके यज्ञानुष्ठान के योग्य बना दिया।[ऋग्वेद 10.143.5]
आंदोलित :: हिलता डुलता हुआ झोके खाता हुआ; कंपन युक्त, हलचल से भरा, झुलाया हुआ; nervous, agitated. 
When a person named Bhujyu, became nervous on falling in the ocean waves-currents, you carried a boat with sails-mast to the ocean. Hey Ashwani Kumar duo! You rescued Bhujyu and made him capable of performing Yagy.
आ वां सुम्नैः शंयूइव मंहिष्ठा विश्ववेदसा। समस्मे भूषतं नरोत्सं न पिप्युषीरिषः
हे सर्वज्ञ नायकद्वय! भाग्यवान् लोगों के समान आप लोग दाता होकर धन के साथ हमारे पास आवें। जिस प्रकार दूध बढ़कर गाय के (चारों) स्तन को भर देता है, उसी प्रकार ही आप हमे धन से परिपूर्ण करें।[ऋग्वेद 10.143.6]
Hey enlightened leader duo! You should come to us like lucky donors with wealth. The way milk fills the udder of the cow, you should grant us sufficient-enough wealth.(12.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (144) :: ऋषि :- सुपर्ण, तार्क्ष्य पुत्र, ऊर्ध्वकृशन या यामायन; देवता :- इन्द्र; छन्द :- गायत्री, बृहती, पंक्ति।
अयं हि ते अमर्त्य इन्दुरत्यो न पत्यते। दक्षो विश्वायुर्वेधसे
हे इन्द्र देव! आप सृष्टिकर्ता हैं। आपके लिए यह अमृत के समान सोमरस अश्व के समान दौड़ता है। यह बलाधार और जीवन-स्वरूप है।[ऋग्वेद 10.144.1]
Hey Indr Dev! You are the creator of life. This Somras, comparable to elixir-nectar move like a horse. Its the basis of strength and a form of life.
अयमोस्मासुकाव्य ऋभुर्वज्रो दास्वतते। अयं बिभर्म्यूर्ध्वकृशनं मदमृभुर्न कृत्व्यं मदम्
दान देने वाले इन्द्र देव का उज्ज्वल वज्र हमारी स्तुति के योग्य है। इन्द्र देव ऊर्ध्वकृशन नामक स्तोता का पालन करते हैं। जिस प्रकार ऋभु देव यज्ञ कर्ता का पालन करते हैं, उसी प्रकार ही ये पालन करते हैं।[ऋग्वेद 10.144.2]
Hey donor Indr Dev, your bright Vajr deserve worship. Indr Dev support the Stota named Urdhvkrashn. The way Ribhu Dev nourish the Yagy performer, similarly he too support the Yagy doer.
घृषुः श्येनाय कृत्वन आसु स्वासु वंसगः। अव दीधेदहीशुवः
दीप्त इन्द्र देव अपनी यजमान-स्वरूप प्रजा के पास भली-भाँति गति-विधि करते हैं। मुझ सुपर्ण श्येन ऋषि की उन्होंने वंश वृद्धि की है।[ऋग्वेद 10.144.3]
Aurous Indr Dev take proper-suitable action pertaining to the populace like hosts-Ritviz. He promoted-boosted the clan of Suparn Shyen Rishi i.e., me.
यं सुपर्णः परावतः श्येनस्य पुत्र आभरत्। शतचक्रं यो३ह्यो वर्तनिः
श्येन तार्थ्य के पुत्र सुपर्ण अत्यन्त दूर देश से सोम ले आएं। वह निखिल कर्मों के लिए उपयोगी है। वह वृत्र की उत्साह-वृद्धि करता है।[ऋग्वेद 10.144.4]
निखिल :: अखिल, सारा, समस्त, विश्वव्यापी, सम्पूर्ण, पूर्ण, अपूर्णता रहित, universal, complete,  whole, flawless, entire.
Let Suparn, son of Tarthy bring Som from a distant place. Its useful in universal endeavours. It encourages Vratr.
यं ते श्येनश्चारुमवृकं पदाभरदरुणं मानमन्धसः।
एना वयो वि तार्यायुर्जीवस एना जागार बन्धुता
वह रक्त वर्ण अन्य का सृष्टि-कर्त्ता देखने के सुन्दर और दूसरों के द्वारा नष्ट न करने योग्य है। उसे अपने चरण से श्येन ले आएं। हे इन्द्र देव! सोम के लिए अन्न, परमायु और जीवन दे। सोम के लिए हमारे साथ मित्रता करें।[ऋग्वेद 10.144.5]
That reddish & beautiful, producer of others-different, deserve to be destroyed by others. Let Shyen-falcon bring him in his claws. Hey Indr Dev! Grant food grains, ultimate age and life to Som. We should be friendly with Som.
एवा तदिन्द्र इन्दुना देवेषु चिद्धारयाते महि त्यजः।
क्रत्वा वयो वि तार्यायुः सुक्रतो क्रत्वायमस्मदा सुतः
सोमरस का पान करके इन्द्र देव देवगणों और हम लोगों की भली भाँति विशेष रूप से रक्षा करते हैं। हे उत्तम कर्म वाले इन्द्र देव! यज्ञ के लिए हमें अन्न और परमायु प्रदान करें। यज्ञ के लिए यह सोम हमारे द्वारा प्रस्तुत हुआ है।[ऋग्वेद 10.144.6]
After consuming Somras, Indr Dev protect demigods-deities and us properly. Hey performer of excellent deeds-ventures, Indr Dev! Grant us sufficient food grains and Ultimate life span. This Somras has been presented by us for the Yagy.(12.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (145) :: ऋषि :- इन्द्राणी, देवता :- उपनिषत्, सपत्नी बंधन; छन्द :- अनुष्टुप्, पंक्ति।
इमां खनाभ्योषधिं वीरुधं बलवत्तमाम्। यया सपत्नीं बाधते यया संविन्दते पतिम्
मैं इस सबसे शक्तिशाली औषधीय लता को खोदता हूँ, जिसके द्वारा (एक पत्नी) अपनी प्रतिद्वंद्वी पत्नी को नष्ट कर देती है, जिसके द्वारा वह अपने पति को सुरक्षित रखती है।"[ऋग्वेद 10.145.1]
I dig out this strong medicine in the form of a creeper, by using which a wife can destroys her competitor to gain favours of her husband.
उत्तानपर्णे सुभगे देवजूते सहस्वति। सपत्नीं मे परा धम पतिं मे केवलं कुरु
हे औषधि! आपके पत्ते उन्नत-मुख हैं। आप स्वामी के लिए प्रिय होने का उपाय हैं। देवों ने आपकी सृष्टि की है। आपका तेज अतीव तीव्र है। आप मेरी सपत्नी को दूर कर दें। मेरे स्वामी मेरे वशीभूत रहें, ऐसा आप कर दें।[ऋग्वेद 10.145.2]
Hey medicine! Your leaves are vertical-raised. You function as a means to gain favour of the husband. Demigods-deities have produced you. You are extremely strong, fast working. Repel my competitor wife. Let my husband remain under my control.
उत्तराहमुत्तर उत्तरेदुत्तराभ्यः। अथा सपत्नी या ममाधरा साधराभ्यः
हे औषधि! आप प्रधान हैं, मैं भी प्रधान होऊँ। मेरी सपत्नी नीच से भी नीच हो जाय।[ऋग्वेद 10.145.4]
Hey medicine! You are head-supreme and I too want to become head-preside. Let my competitor wife have lowest level.
नह्यस्या नाम गृभ्णामि नो अस्मिन्नमते जने। परामेव परावतं सपत्नीं गमयामसि
मैं सपत्नी का नाम तक नहीं लेती। सपत्नी सबके लिए अप्रिय है। मैं उसे दूर से भी दूर भेज देती हूँ।[ऋग्वेद 10.145.4]
I do not name my competitor wife. A competitor wife is disliked by everyone. I wish to send her to farthest destination.
अहमस्मि सहमानाथ त्वमसि सासहिः। उभे सहस्वती भूत्वी सपत्नीं मे सहाव है
हे औषधि! आप शक्ति-सम्पन्न और विलक्षण हैं, मेरी क्षमता भी विचित्र है। आवें, हम दोनों शक्ति-सम्पन्ना होकर सपत्नी को हीन-बल कर दें।[ऋग्वेद 10.145.5]
Hey medicine! You power is amazing and my capability too is weird. Let us join hands and neutralise the competitor wife.
उष तेऽधां सहमानामभि त्वाधां सहीयसा।
मामनु प्र ते मनो वत्सं गौरिव धावतु पथा वारिव धावतु
हे पति देव! इस शक्ति-सम्पन्न औषधि को मैंने आपके सिरहाने रख दिया। शक्ति-सम्पन्न उपाधान (तकिया) आपके सिरहाने देने को मैंने दिया। जिस प्रकार गाय बछड़े के लिए दौड़ती है और जल नीचे की ओर दौड़ता है, उसी प्रकार ही आपका मन मेरी ओर दौड़े।[ऋग्वेद 10.145.6]
Hey husband! I have kept this powerful medicine under your pillow. The way a cow run to save her calf, your innerself-mind, heart should be inclined towards me.(13.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (146) :: ऋषि :- देवमुनि रैरम्मद; देवता :- अरण्यानी; छन्द :- अनुष्टुप्।
अरण्यान्यरण्यान्यसौ या प्रेव नश्यसि। कथा ग्रामं न पृच्छसि न त्वा भीरिव विन्दती ३
हे अरण्यानी! आप देखते-देखते अन्तर्धान हो जाते, इतनी दूर चले जाते हैं कि दिखाई नहीं देते। आप क्यों नहीं गाँव में जाने का मार्ग पूछते? अकेले रहने में आपको भय नहीं लगता।[ऋग्वेद 10.146.1]
Hey Aranyani! You disappear while I look at you. Why do not ask the road to village? Do not you experience fear (afraid) alone?
वृषारवाय वदते यदुपावति चिचिकः। आघाटिभिरिवं धावयन्नरण्यानिर्महीयते
कोई जन्तु वृष के समान बोलता है और कोई 'चीची' करके मानो उसका उत्तर देता है, मानों ये वीणा के पर्दे-पढ़ें में शब्द करके अरण्यानी का यशगान करते हैं।[ऋग्वेद 10.146.2]
Some living being sound like a bull and the other answer chinichin-chirping as if these words are read under the cover of Veena, describing the glory of isolation. 
उत गावइवादन्त्युत वेश्मेव दृश्यते। उतो अरण्यानिः सायं शकटीरिव सर्जति
विदित होता है कि इस विपिन में कहीं गौएं चरती हैं और कहीं लता, गुल्म आदि का गृह दिखाई देता है। सन्ध्याकाल में वन से कितने ही शकट निकल रहे हैं।[ऋग्वेद 10.146.3]
I appears as if cows are grazing in this forest, creepers, flowers etc look like home. In the evening many carts come out of the jungle.
गामङ्गैष आ ह्वयति दार्वङ्गैषो अपावधीत्। वसन्नरण्यान्यां सायमक्रुक्षदिति मन्यते
एक व्यक्ति गाय को बुला रहा है और एक काठ काट रहा है। अरण्यानी में जो व्यक्ति रहता है, वह रात को शब्द सुनता है।[ऋग्वेद 10.146.4]
A man is calling the cow and the other is cutting wood. One who lives alone-in isolation, in the forest hear sounds at night.
न वा अरण्यानिर्हन्त्यन्यश्चेन्नाभिगच्छति। स्वादोः फलस्य जग्ध्वाय यथाकामं नि पद्यते
अरण्यानी किसी का प्राण-वध नहीं करती। यदि व्याघ्र, चोर आदि नहीं आवें, तो कोई भय नहीं। वन में स्वादिष्ट फल खा-खाकर भली-भाँति काल-क्षेप किया जा सकता है।[ऋग्वेद 10.146.5]
Aranyani never kill any one. If the tiger or thief are not there, there is no fear. One can easily pass time in the jungle by eating tasty fruits.
Ancient Saints, Rishis used to perform ascetics-Tapasya in isolation, in the forests or caves in the mountains.
आञ्जनगन्धिं सुरभिं बह्वन्नामकृषीवलाम्। प्राहं मृगाणां मातरमरण्यानिमशंसिषम्
मृगनाभि (कस्तूरी) के समान अरण्यानी का सौरभ है। वहाँ आहार भी है। वहाँ प्रथम कृषि का आभाव रहता है। वह हरिणों की मातृरूपिणी है। इस प्रकार मैंने अरण्यानी की स्तुति की।[ऋग्वेद 10.146.6]
सौरभ :: सुगंध, महक; odour, fragrance.
Aranyani possess fragrance like the Kasturi deer. There is enough food but no agriculture. Its like a mother for the deer. I worshiped Aranyani in this manner.(14.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (147) :: ऋषि :- सुवेदा, शैरीषि; देवता :- इन्द्र; छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।
श्रत्ते दधामि प्रथमाय मन्यवे ऽ हन्यत्रं नर्यं विवेरपः।
उभे यत्त्वा भवतो रोदसी अनु रेजते शुष्मात्पृथिवी चिदद्रिवः
हे इन्द्र देव! आपके क्रोध को मैं प्रधान समझता हूँ। आपने वृत्रासुर का वध किया और लोक-कल्याण के लिए वृष्टि बनाई। द्यावा-पृथ्वी आपके ही अधीन हैं। हे वज्रधर इन्द्र देव! आपके प्रभाव से यह पृथ्वी काँपती है।[ऋग्वेद 10.147.1]
Hey Indr Dev! I give weightage to your anger. You killed Vratra Sur and generated rains for the welfare of the universe. Heavens & earth are governed by you. Hey Vajr wielding Indr Dev! The earth trembles due to your impact. 
त्वं मायाभिरनवद्य मायिनं श्रवस्यता मनसा वृत्रमर्दयः।
त्वामिन्नरो वृणते गविष्टषु त्वां विश्वासु हव्यास्विष्टिषु
हे इन्द्र देव! आप प्रशंसनीय हैं। अन्न-सृष्टि करने का संकल्प करके आपने अपनी शक्ति से मायावी वृत्रासुर को व्यथा पहुँचाई। गो की कामना करके मनुष्य आपसे याचना करते हैं। समस्त यज्ञों और हवन के समय आपकी ही प्रार्थना की जाती है।[ऋग्वेद 10.147.2]
संकल्प :: प्रस्ताव, समाधान, प्रण, स्थिरता, चित्त की दृढ़ता, ठानना; resolution, resolve, determination.
Hey Indr Dev! You are appreciable. You determined to create food grains and tortured Vratra Sur due to your might. Humans wish to have cows and pray-request you for them.
ऐषु चाकन्धि पुरुहूत सूरिषु वृधासो ये मघवन्नानशुर्मघम्।
अर्चन्ति तोके तनये परिष्टिषु मेघसाता वाजिनमह्रये धने
हे धनी और पुरुहूत इन्द्र देव! इन विद्वानों के पास प्रादुर्भुत होवें। आपकी कृपा से ये श्री-वृद्धिशाली और धनी हुए हैं। पुत्र-पौत्रों, अन्यान्य अभिलषित वस्तुओं और विशिष्ट धन पाने के लिए ये लोग यज्ञारम्भ करके आपकी ही पूजा करते हैं।[ऋग्वेद 10.147.3]
पुरुहूत :: जिसका आह्वान बहुतों ने किया हो, जिसकी बहुत से लोगों ने स्तुति की हो; invoked or worshiped by many people.
प्रादुर्भूत :: जिसका प्रादुर्भाव हुआ हो, प्रकट हुआ हो, सामने आया हुआ, उत्पन्न, जन्मा हुआ, उत्पादित, विकसित; उद्भेद, प्रारंभ, नया उगाव, दौरा; outbreak, advent, evolved, born, appeared, rarefied,  visitation.
Hey wealthy Indr Dev, worshiped by many! Appear before the intellectuals-learned. Its your mercy that they have become wealthy, prosperous. Desire of sons and grand sons, various goods and specific wealth they worship you before the beginning of Yagy.
स इन्नु रायः सुभृतस्य चाकनन्मदं यो अस्य रंह्यं चिकेतति।
त्वावृधो मघवन्दाश्वध्वरो मधू स वाजं भरते धना नृभिः॥
जो व्यक्ति इन्द्र देव को सोम-पान जन्य आनन्द प्रदान करना जानता है, वही यथेष्ट धन के लिए प्रार्थना करता है। हे धनी इन्द्र देव! आप जिस यज्ञ दाता की श्री वृद्धि करते हैं, वह शीघ्र ही अपने सेवकों के द्वारा धन और अन्न से परिपूर्ण हो जाता है।[ऋग्वेद 10.147.4]
One who grant pleasure like drinking Somras to Indr Dev become eligible for sufficient-desired wealth. Hey wealthy Indr Dev! The organiser of Yagy helped by you, quickly become rich and has food grains.
त्वं शर्धाय महिना गृणान उरु कृधि मघवञ्छग्धि रायः।
त्वं नो मित्रो वरुणो न मायी पित्वो न दस्म दयसे विभक्ता
बल पाने के लिए विशिष्ट रीति से आपकी स्तुति की जाती है। आप बहुत बल और धन प्रदान करें। हे प्रिय दर्शन इन्द्र देव! आप मित्र और वरुणदेव के समान अलौकिक ज्ञान के अधिकारी हैं। आप हमें समस्त अन्न का भाग करके दिया करते हैं।[ऋग्वेद 10.147.5]
You are worshiped with specific procedure to have strength. Grant lots of wealth and strength to us. Hey beautiful-attractive Indr Dev! You are entitle for divine enlightenment like Mitr and Varun Dev.  You grant us a share of food grains.(14.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (148) :: ऋषि :- पृथु, वेन; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप्।
सुष्वाणास इन्द्र स्तुमसि त्वा ससवांसश्च तुविनृम्ण वाजम्।
आ नो भर सुवितं यस्य चाकन्त्मना तना सनुयाम त्वोताः
हे प्रभूत धन वाले इन्द्र देव! हम लोग सोम और अन्न का आयोजन करके आपकी स्तुति करते हैं। जो सम्पत्ति आपके मन के अनुकूल हैं, उसे हमें प्रचुर परिमाण में दें। आपके आश्रय से हम लोग अपने उद्योग में ही धन प्राप्त करें।[ऋग्वेद 10.148.1]
Hey Indr Dev possessor of abundant wealth! We pray to you after arranging Som and food grains. Grant us the wealth which is as per your liking-taste, in sufficient quantity. Let us earn money under your asylum with our own efforts-labour.
ऋष्वस्त्वमिन्द्र शूर जातो दासीर्विशः सूर्येण सह्याः।
गुहा हितं गुह्यं गूळ्हमप्सु बिभृमसि प्रस्रवणे न सोमम्
हे वीर और प्रिय दर्शन इन्द्र देव! आप जन्म-ग्रहण करने के साथ ही, सूर्य-मूर्ति के द्वारा दास-जातीय प्रजा को हराते हैं। जो गुफा में छिपा हुआ है या जल में निगूढ़ है, उसे भी पराजित करते हैं। जलवृष्टि होने पर हम आपके लिए सोमयाग सम्पन्न करेंगे।[ऋग्वेद 10.148.2]
Hey brave and beautiful, Indr Dev! You defeat the Dasyu-dacoities clan in the form of Sun, soon after your birth-evolution. You defeat the one who is hidden under water or in a cave. We will organise Sam Yagy with the onset of rains.
अर्यो वा गिरो अभ्यर्च विद्वानृषीणां विप्रः सुमतिं चकानः।
ते स्याम ये रणयन्त सोमैरेनोत तुभ्यं रथोळ्ह भक्षैः
हे इन्द्र देव! आप विद्वान् प्रभु, मेधावी और ऋषियों की स्तुति की कामना करने वाले हैं। आप स्तोत्रों का अनुमोदन करें। सोमरस के द्वारा हमने आपकी स्नेह भावना को अर्चित किया है। इसलिए हम आपके अन्तरङ्ग हैं। हे रथारुढ़ इन्द्र देव! यह सब आहारीय द्रव्य आपको निवेदित है।[ऋग्वेद 10.148.3]
Hey Indr Dev! You are enlightened, intelligent and desirous of Stuti by the Rishis. Approve the Strotrs. We have achieved your favour-good will through Somras. Hence, we are close-intimate to you. Hey Indr Dev, riding the charoite! We are offerings these eatable to you.
इमा ब्रह्मेन्द्र तुभ्यं शंसि दा नृभ्यो नृणां शूर शवः।
तेभिर्भव सक्रतुर्येषु चाकन्नुत त्रायस्व गृणत उत स्तीन्
हे इन्द्र देव! यह सब प्रधान-प्रधान स्तोत्र आपके लिए पठित है। हे वीर! जो प्रधान से भी प्रधान है, उन्हें अन्न प्रदान करें। आप जिन्हें स्नेह करते हैं, वे आपके लिए यज्ञ करें। जो स्तोत्र करने को एकत्रित हुए है, उनकी रक्षा करें।[ऋग्वेद 10.148.4]
Hey Indr Dev! These prime Strotrs are recited for you. Hey brave! Grant food grains to those who are (important person) head of heads. Those who are affectionate, should conduct Yagy for you. Protect the complied Strotrs.
श्रुधी हवमिन्द्र शूर पृथ्या उत स्तवसे वेन्यस्यार्कैः।
आ यस्ते योनिं घृतवन्तमस्वारूर्मिर्न निम्नैर्द्रवयन्त वकाः
हे वीर इन्द्र देव! मैं (पृथु) आपको बुलाता हूँ। मेरा अह्वान सुनें। वेन-पुत्र पृथु के स्तोत्र के द्वारा आपकी स्तुति की जाती है। वेन-पुत्र ने घृत-युक्त यज्ञ-गृह में आकर आपकी स्तुति की। जिस प्रकार धाराएं नीचे की ओर दौड़ती हैं, उसी प्रकार ही अन्यान्य स्तोता भी दौड़ रहे हैं।[ऋग्वेद 10.148.5]
Hey brave Indr Dev! I, Prathu invoke you. Respond to my invocation. You are worshiped-prayed with the Strotr composed by Prathu, son of Ven. The way currents-streams run downwards, many Strotrs moves towards you.(15.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (149) :: ऋषि :- अर्चन्, हिरण्यस्तूप; देवता :- सविता; छन्द :- त्रिष्टुप्।
सविता यन्त्रैः पृथिवीमरम्णादस्कम्भने सविता द्यामदंहत्।
अश्वमिवाधुक्षद्धनिमन्तरिक्षमतूर्ते बद्धं सविता समुद्रम्
नाना (वृष्टि-दान आदि) यन्त्रों से सविता देव ने पृथ्वी को सुस्थिर रखा। उन्होंने बिना अवलम्बन के स्वर्ग लोक को दृढ़ रूप से बाँध रखा है। आकाश में समुद्र के समान मेघराशि अवस्थित है। मेघराशि अश्वों के समान गात्र कम्पित करती है। यह निरूप द्रव स्थान में बद्ध है। इसी से सविता देव जल निकालते हैं।[ऋग्वेद 10.149.1]
गात्र :: देह, शरीर; body, physique.
Earth has been stabilized (kept in its orbit round the Sun, Solar system) with the help of various machines-means like rains. The heavens have been fixed in its position without any support (gravitation force keeps the abodes, planets in their position in the universe). Clouds are present in the sky like the ocean. The clouds agitate the body like the horses. This formative material (plasma, ether) is bound-unmoved. Savita Dev obtain water from this.
यत्रा समुद्रः स्कभितो व्यौनदपां नपात्सविता तस्य वेद।
अतो भूरत आ उत्थितं रजोऽतो द्यावापृथिवी अप्रथेताम्
जिस स्थान पर रहकर समुद्र के समान मेघ राशि पृथ्वी को आर्द्र करती है, उस स्थान को जल-पुत्र सविता देव जानते हैं। सविता देव से ही पृथ्वी, आकाश और द्यावा-पृथ्वी विस्तीर्ण हुए हैं।[ऋग्वेद 10.149.2]
Savita Dev, born out of water is aware of the ocean like place, which wet-moist the earth. Its Savita Dev from whom the earth, sky and the heavens have got-attained extension.
पश्चेदमन्यदभवद्यजत्रममर्त्यस्य भुवनस्य भूना।
सुपर्णो अङ्ग सवितुर्गरुत्मान्पूर्वो जातः स उ अस्यानु धर्म
अमर-स्वगोंत्पन्न सोमदेव के द्वारा जिन देवों का यज्ञ होता है, वे सविता से पीछे उत्पन्न हुए हैं। सुन्दर पक्ष वाले गरुड़ सविता देव से प्रथम उत्पन्न हुए। सविता की धारण-क्रिया (सोम हरण-कर्म) का अनुसरण करके वे अवस्थित हैं।[ऋग्वेद 10.149.3]
Immortal Som Dev who evolved in the heavens and perform the Yagy for the demigods-deities, evolved after Savita. Garud Ji having beautiful feathers, too evolved prior to Savita Dev. They stabilised-established by following the procedure of obtaining Som.
गावइव ग्रामं यूयुधिरिवाश्वान्वाश्रेव वत्सं सुमना दुहाना।
पतिरिव जायामभि नो न्येतु धर्ता दिवः सविता विश्ववारः
सबके द्वारा प्रार्थनीय सविता देव स्वर्ग के धारण-कर्ता हैं। वे हमारे पास उसी उत्सुकता के साथ आते हैं, जिस उत्सुकता से गाय गाँव की ओर जाती है, योद्धा अश्व की ओर जाता है, नवप्रसूता गौ प्रसन्नमना होकर दूध देने को बछड़े की ओर जाती है और जैसे स्त्री स्वामी की ओर जाती है।[ऋग्वेद 10.149.4]
Worshiped by all, Savita Dev support-hold the heavens. They come to us curiously. similar to the manner in which the cow moves towards the village, the warrior goes to the horse, a cow which newly become mother, moves for feeding the calf and a woman goes to her husband.
हिरण्यस्तूपः सवितर्यथा त्वाङ्गिरसो जुह्वे वाजे अस्मिन्।
एवा त्वार्चन्नवसे वन्दमानः सोमस्येवांशुं प्रति जागराहम्
हे सविता! अङ्गिरोवंशीय मेरे पिता (हिरण्यस्तूप) इस यज्ञ में आपका आवाहन करते थे। मैं भी आपसे आश्रय-प्राप्ति के निमित्त वन्दना करते-करते आपकी सेवा के लिए उसी प्रकार सतर्क हूँ, जिस प्रकार यजमान सोमलता की रक्षा के लिए सतर्क रहता है।[ऋग्वेद 10.149.5]
Hey Savita! My father Hiranystup, born in the Agni clan used to invoke you in the Yagy. I am vigilant while worshiping-praying you, similar to manner a Ritviz-host is alert protecting Som Lata.(15.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (150) :: ऋषि :- मूलीक, वसिष्ठ; देवता :-अग्नि; छन्द :- बृहती, उपरिष्टज्ज्योति, जगती।
समिद्धश्चित्समिध्यसे देवेभ्यो हव्यवाहन।
आदित्यै रुदैर्वसुभिर्न आ गहि मृळीकाय न आ गहि
हे अग्नि देव! आप देवों के पास हव्य ले जाया करते हैं। आपको प्रज्वलित किया गया है, आप प्रदीप्त हुए है। अदित्यों, वसुओं और रुद्रों के साथ हमारे यज्ञ में पधारें। हमारे कल्याण के लिए आवें।[ऋग्वेद 10.150.1]
Hey Agni Dev! You carry oblations to the demigods-deities. You have been ignited and you are illuminating. Come to our Yagy with Adity Gan, Vasu Gan and Rudr Gan. Come for our welfare.
इमं यज्ञमिदं वचो जुजुषाण उपागहि।
मर्तासस्त्वा समिधान हवामहे मृळीकाय हवामहे
यह यज्ञ और यह स्तव है। ग्रहण करें। पास आवें। हे प्रदीप्त अग्नि देव! हम मनुष्य आपको बुलाते हैं, सुख के लिए ही बुलाते हैं।[ऋग्वेद 10.150.2]
स्तव :: प्रशंसा, स्तुति; praise.
Come to us and accept the Yagy & praises. Hey Illuminated Agni Dev! We humans, invoke you for pleasure & comforts.
त्वामु जातवेदसं विश्ववारं गृणे धिया।
अग्ने देवाँ आ वह नः प्रियव्रतान् मृळीकाय प्रियव्रतान्
आप ज्ञानी और सबके द्वारा प्रार्थित हैं। मैं आपको स्तुति-वचनों से स्तुत करता हूँ। अग्नि जिनका कार्य सुखकर है, उन देवगणों को साथ लेकर पधारें, सुख के लिए आवें।[ऋग्वेद 10.150.3]
You are enlightened and worshiped. I am worshiping you. Let Agni Dev who grant pleasure should come with the demigods-deities for comforts.
अग्निर्देवो देवानामभवत्पुरोहितोऽग्निं मनुष्या३ ऋषयः समीधिरे।
अग्निं महो धनसातावहं हुवे मृळीकं धनसातये
हे अग्नि देव! आप देवगणों के पुरोहित हुए हैं। मनुष्यों और ऋषियों ने आपको प्रज्वलित किया है। मैं प्रचुर धन की प्राप्ति के लिए आपका आवाहन करता हूँ। कल्याणकारी सुख प्राप्ति के लिए हम आपकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 10.150.4]
Hey Agni Dev! You have become the Purohit-priest of the demigods-deities. Humans & Rishis have ignited you. I invoke you for grant of abundant-lots of wealth. We worship you with the desire of comforts. 
अग्निरत्रिं भरद्वाजं गविष्ठिरं प्रावन्न कण्वं त्रसदस्युमाहवे।
अग्निं वसिष्ठो हवते पुरोहितो मृळीकाय पुरोहितः
युद्ध के समय अग्नि देव ने अत्रि, भरद्वाज, गधिष्ठिर, कण्व और त्रसदस्यु आदि ऋषियों की भली-भाँति रक्षा की। पुरोहित वसिष्ठ अग्नि देव को बुलाते हैं, सुख के लिए उनका आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 10.150.5]
Agni Dev properly protected Atri, Bhardwaj, Gadhisthar, Kavy and Trasdasyu etc. during the war. Priest Vashishth invoke Agni Dev for pleasure-comforts.(16.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (151) :: ऋषि :- श्रद्धा, कामायनी; देवता :-श्रद्धा; छन्द :- अनुष्टुप्।
श्रद्धयाग्निः समिध्यते श्रद्धया हूयते हविः। श्रद्धां भगस्य मूर्धनि वचसा वेदयामसि
श्रद्धा के द्वारा अग्नि देव प्रज्वलित होते हैं और श्रद्धा के द्वारा ही यज्ञ-सामग्री की आहुति दी जाती है। श्रद्धा समत्ति के मस्तक के ऊपर रहती है। यह सब मैं स्पष्ट रूप से कहती हूँ।[ऋग्वेद 10.151.1]
Agni Dev is ignited and sacrifices are made with honour. Honour is above the wealth, this is what I say clearly.
प्रियं श्रद्धे ददतः प्रिय श्रद्धे दिदासतः। प्रियं भोजेषु यजस्विदं म उदितं कृधि
हे श्रद्धा! आप दाता को अभीष्ट फल प्रदान करें। जो दान करने की इच्छा करता है, उसे भी अभीष्ट फल दें। हे श्रद्धा! मेरे भोगार्थियों और याज्ञिकों को प्रार्थित फल प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.151.2]
Hey honour! Grant suitable reward to the donor. You grant desired reward to the donor. Hey Shraddha-honour! Grant desired rewards to my users and the Yagyik.
यथा देवा असुरेषु श्रद्धामुग्रेषु चक्रिरे। एवं भोजेषु यजस्वस्माकमुदितं कृधि
इन्द्रादि ने बली असुरों के लिए यह विश्वास किया कि, इनका वध करना ही चाहिए। हे श्रद्धा! भोक्ताओं और याज्ञिकों को प्रार्थित फल प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.151.3]
भोक्ता :: भोग करने वाला, भोगने-शासन करने वाला; enjoyer, user, consumer,  occupant, occupier.
Indr Dev and other demigods-deities believed-decided that they should kill the demons including Bali. Hey Shraddha! You grant desired boons-rewards to the Bhokta-consumers, enjoyer and Yagyik.
श्रद्धां देवा यजमाना वायुगोपा उपासते। श्रद्धां हृदय्य १ याकूत्या श्रद्धया विन्दते वसु
देवता और मनुष्य वायु को रक्षक पाकर श्रद्धा की उपासना करते हैं। मन में कोई संकल्प होने पर लोग श्रद्धा की शरण में जाते हैं। श्रद्धा के कारण मनुष्य धन पाता है।[ऋग्वेद 10.151.4]
Demigods and humans worship Shraddha having recognised Vayu Dev as their protector. People to Shraddha as son as they decide something in their innerself. 
श्रद्धां प्रातर्हवामहे श्रद्धां मध्यंदिनं परि। श्रद्धां सूर्यस्य निम्नुचि श्रद्धे श्रद्धापयेह नः
हम लोग प्रातः काल, मध्याह्न और सूर्यास्त के समय श्रद्धा को ही बुलाते हैं। श्रद्धा हमें इस संसार में श्रद्धावान् करें।[ऋग्वेद 10.151.5]
We invoke Shraddha during the morning, noon and Sun set. Let Shraddha make us honourable in the world.(16.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (152) :: ऋषि :- शास, भरद्वाज; देवता :- इन्द्र; छन्द :- अनुष्टुप्।
शास इत्था महाँ अस्यमित्रखादो अद्भुतः। न यस्य हन्यते सखा न जीयते कदा चन
मैं इस प्रकार इन्द्र देव की स्तुति करता हूँ। हे इन्द्र देव! आप महान् शत्रु-भक्षक और अद्भुत है। आपके मित्र की न तो मृत्यु होती है, न ही पराजय।[ऋग्वेद 10.152.1]
I worship Indr Dev in the following manner. Hey Indr Dev! You are great and destroyer of the enemy. Your friend will neither die nor defeated.
स्वस्तिदा विशस्पतिर्वृत्रहा विमृधो वशी। वृषेन्द्रः पुर एतु नः सोमपा अभयंकरः
इन्द्र देव कल्याणदाता, प्रजाधिपति, वृत्रघ्न, युद्धकर्ता, शत्रुवश कर्ता, काम वर्षक, सोमपाता और अभय दाता हैं। वे हमारे समक्ष पधारें।[ऋग्वेद 10.152.2]
Indr Dev is a well wisher, Lord of the populace, slayer of Vratra Sur, fighter, controls the enemy, accomplish desires, drink Somras and grant protection. Let him invoke before us.
वि रक्षो वि मृधो जहि वि वृत्रस्य हनू रुज। वि मन्युमिन्द्र वृत्रहन्नमित्रस्याभिदासतः
हे वृत्रघ्न इन्द्र देव! राक्षसों और शत्रुओं का वध करें। वृत्र के दोनों जबड़ों को तोड़ डालें। अनिष्टकारी शत्रुओं का क्रोध नष्ट करें।[ऋग्वेद 10.152.3]
Hey slayer of Vratra Sur, Indr Dev! Kill the demons and enemies. Smash-break both jaws of Vratra Sur. Destroy the anger of the harmful enemies.
वि न इन्द्र मृधो जहि नीचा यच्छ पृतन्यतः। यो अस्माँ अभिदासत्यधरं गमया तमः
इन्द्र देव, हमारे शत्रुओं का वध करें। युद्ध करने वाले शत्रुओं के बल को क्षीण करें। जो हमें निकृष्ट करता है, उसे जघन्य अन्धकार में डाल दें।[ऋग्वेद 10.152.4]
Indr Dev should destroy our enemies. Reduce the power-strength of the enemies during the war. Put those in worst possible darkness-hell, who torture-pain us.
अपेन्द्र द्विषतो मनोऽप जिज्यासत्तले वधम्। वि मन्योः शर्म यच्छ वरीयो यवया वधम्॥
हे इन्द्र देव! शत्रु का मन नष्ट कर दें। जो हमें जराजीर्ण करना चाहता है, उसके प्रति सांघातिक अस्त्र का प्रयोग करें। शत्रु के क्रोध से बचावें। उत्तम सुख प्रदान करें। शत्रु के संघातिक अस्त्र को नष्ट कर दें।[ऋग्वेद 10.152.5]
जराजीर्ण :: बुढ़ापे के कारण दुर्बल, बुड्ढा-वृद्ध; weaken, dilapidated.
Hey Indr Dev! Destroy the mental capability of our enemy. Use dreaded weapons against those who wish to weaken us. Protect us from the fury of the enemy. Grant us excellent comforts-pleasure. Destroy the dreaded weapons of the enemy.(165.02.205)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (153) :: ऋषि :- इन्द्र माताएं, देवशामय; देवता :- इन्द्र;  छन्द :- गायत्री।
ईङ्खयन्तीरपस्युव इन्द्रं जातमुपासते। भेजानासः सुवीर्यम्
क्रिया-परायणा इन्द्र देव की माताएं प्रादुर्भूत इन्द्र देव के पास जाकर उनकी सेवा करती हैं और उनसे उत्कृष्ट धन प्राप्त करती हैं।[ऋग्वेद 10.153.1]
Skilled-expert mothers of Indr Dev serve him when he evolve and get excellent wealth-affluence.
त्वमिन्द्र बलादधि सहसो जात ओजसः। त्वं वृषन्वृषेदसि
हे वर्द्धक इन्द्र देव! आपने बल-वीर्य और तेज से जन्म ग्रहण किया है। आप अभिलाषा की पूर्ति करते हैं।[ऋग्वेद 10.153.2]
Hey grower Indr Dev! You got birth with might and aura. You accomplish desires-wishes.
त्वमिन्द्रासि वृत्रहा व्य १ न्तरिक्षमतिरः। उद् द्यामस्तभ्ना ओजसा
हे इन्द्र देव! आप वृत्रघ्न हैं और आपने आकाश को विस्तारित किया है। आपने अपनी शक्ति के द्वारा स्वर्ग को ऊँचा कर रखा है।[ऋग्वेद 10.153.3]
Hey Indr Dev! You are the slayer of Vratra Sur. You extend the sky and keep the heavens elevated.
त्वमिन्द्र सजोषसमर्क बिभर्षि बाह्वोः। वज्रं शिशान ओजसा
हे इन्द्र देव! आपके मित्र सूर्य देव हैं। आपने उन्हें दोनों हाथों से धारण कर रखा है। आप बलपूर्वक वज्र पर सान चढ़ाते हैं।[ऋग्वेद 10.153.4]
Hey Indr Dev! You have supported Sury Dev, your friend with your both hands. You sharpen Vajr.
त्वमिन्द्राभिभूरसि विश्वा जातान्योजसा। स विश्वा भुव आभवः
हे इन्द्र देव! आप प्राणियों को अपने तेज से अभिभूत करते हैं। आप सारे स्थानों को अक्रान्त किए हुए हैं।[ऋग्वेद 10.153.5]
Hey Indr Dev! You mesmerise-enchant the living beings with your aura. You pervade all abodes.(17.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (154) :: ऋषि :- यमी; देवता :- भावधुत; छन्द :- अनुष्टुप्।
सोम एकेभ्यः पवते घृतमेक उपासते। येभ्यो मधु प्रधावति ताँश्चिदेवापि गच्छतात्
किन्हीं पितरों के लिए सोमरस क्षरित होता है। कोई-कोई घृत का सेवन करते हैं। जिन पितरों के लिए मधुर स्तोत्र बहा करता है, हे प्रेत! आप उनके पास जाएं।[ऋग्वेद 10.154.1]
Somras is extracted for the Manes-Pitr. Some of them consume Ghee. Hey Pret-diseased you go to those Pitr-Manes who recite sweet-dear Strotr.
तपसा ये अनाधृष्यास्तपसा ये स्वर्ययुः। तषो ये चक्रिरे महस्ताँश्चिदेवापि गच्छतात्॥
जो तपस्या के बल से दुर्द्धर्ष हुए है, जो तपस्या के बल से स्वर्ग गये हैं और जिन्होंने कठिन तपस्या की है, हे प्रेत! आप उन लोगों के पास जाएं।[ऋग्वेद 10.154.2]
Hey Pret! Go to those who became invincible due to tough ascetics-Tapasya and reached  heavens.
ये युध्यन्ते प्रधनेषु शूरासो ये तनूत्यजः। ये वा सहस्त्रदक्षिणास्ताँश्चिदेवापि गच्छतात्
जो युद्ध-स्थल में युद्ध करते हैं, जिन्होंने शरीर की माया छोड़ दी अथवा जो बहुत दक्षिणा देते हैं, हे प्रेत! आप उनके पास जाएं।[ऋग्वेद 10.154.3]
Hey Pret! You move to those who rejected the allurements due to body or those who make big donations and fight in the war.
ये चित्पूर्व ऋतसाप ऋतावान ऋतावृधः। पितृन्तपस्वतो यम ताँश्चिदेवापि गच्छतात्
पुण्यकर्म करके जो सब प्राचीन व्यक्ति पुण्यवान् हुए हैं, जो पुण्य की स्तोत्र-वृद्धि कर चुके हैं और जिन्होंने तपस्या की है, हे यम! यह प्रेत उन्हीं के पास जाएं।[ऋग्वेद 10.154.4]
Hey Yam! Let this Pret go to those people who have performed pious-virtuous deeds, have enriched the virtuous Strotr & had become virtuous.
सहस्रणीथाः कवयो ये गोपायन्ति सूर्यम्। ऋषीन् तपस्वतो यम तपोजाँ अपि गच्छतात्
जिन बुद्धिमानों ने हजारों प्रकार सत्कर्मों की पद्धति प्रदर्शित की है, जो सूर्य देव की रक्षा करते हैं और जिन्होने तपस्या के बल से उत्पन्न होकर तपस्या की है, हे यम! यह प्रेत उन्हीं ऋषियों के पास जाएं।[ऋग्वेद 10.154.5]
Hey Yam! Let this Pret go to those intelligent Rishis who demonstrated thousands of procedures-means pertaining to virtuous-righteous deeds, protect Sury Dev, evolved by virtue of Tapasya and and did Tapasya-ascetics.(17.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (155) :: ऋषि :- शिरिम्बिठ, भरद्वाज; देवता :- अलक्ष्मी, ब्राह्मणस्पति, विश्वेदेव; छन्द :- अनुष्टुप्।
अरायि काणे विकटे गिरिं गच्छ सदान्वे। शिरीम्बिठस्य सत्वभिस्तेभिष्टा चातयामसि
हे अलक्ष्मी! (लक्ष्मी की बड़ी बहन) आप दान-विरोधिनी, सदा कुत्सित शब्द करने वाली, विकट आकृतिवाली और सदा क्रोध करने वाली हैं। आप पर्वत पर आवें। मैं ऐसा उपाय करता हूँ, जिससे आपको अवश्य दूर करूँगा।[ऋग्वेद 10.155.1]
Hey Alakshmi (elder sister of Lakshmi)! You oppose donations-charity, use foul language-words, has furious form and always remain angry. Do not come over the mountain. I am making endeavours to repel you.
चत्तो इतश्चत्तामुतः सर्वा भ्रूणान्यारुषी। अराय्यं ब्रह्मणस्पते तीक्ष्णशृङ्गोदृषन्निहि
हे अलक्ष्मी! आप वृक्ष, लता, शस्य आदि का अंकुर नष्ट करके दुर्भिक्ष ले आती हैं। उसे मैं इस लोक और उस लोक से दूर करता हूँ। तीक्ष्ण तेज वाले ब्रह्मणस्पति दान-विरोधिनी इस अलक्ष्मी को यहाँ से दूर करके आवें।[ऋग्वेद 10.155.2]
अंकुर :: अँखुआ, कली; seedling, sprout.
Hey Alakshmi! You destroy trees, creepers, greenery and the sprout brining famine. Let me remove her from this and other abodes. Let Brahmanspati repel away this Alakshmi, opponent of donations with their sharp-radiance.
अदो यद्दारु प्लवते सिन्धोः पारे अपूरुषम्। तदा रभस्व दुर्हणो तेन गच्छ परस्तरम्
यह जो एक काठ समुद्र-तीर के पास बहता है, उसका कोई कर्ता नहीं है। हे विकट आकृतिवाली अलक्ष्मी! उसके ऊपर चढ़कर समुद्र के दूसरे पार जाएं।[ऋग्वेद 10.155.3]
विकट :: दुर्जेय, भयंकर, घोर, जटिल, उलझा हुआ, पेचीदा, गिरहदार, गांठदार, उलझा हुआ, यौगिक; formidable, knotty, inextricable.
This piece of wood which is flowing over water has no one to own. Hey inextricable Alakshmi with furious form! Ride this and swim across the ocean.
यद्ध प्राचीरजगन्तोरो मण्डूरधाणिकीः। हता इन्द्रस्य शत्रवः सर्वे बुद्बुदयाशवः
हे हिंसामयी और कुत्सित शब्दोंवाली अलक्ष्मियों! जिस समय तत्पर होकर आप लोग प्रकृष्ट गमन से चली गईं, उस समय इन्द्र देव के सब शत्रु जल-बुद्बुद के समान विलीन हो गये।[ऋग्वेद 10.155.4]
Hey violent and user of foul words Alakshmi! As soon as you left, all enemies of enemies disappeared like water bubbles.
परीमे गामनेषत पर्यग्निमहृषत। देवेष्वक्रत श्रवः क इमाँ आ दधर्षति॥
इन लोगों ने गायों का उद्धार किया, इन्होंने अग्नि देव को विभिन्न स्थानों में स्थापित किया और देवों को अन्न दिया। इन पर आक्रमण करने की किसकी शक्ति है?[ऋग्वेद 10.155.5]
These people rescued the cows, established Agni Dev and granted food grains to demigods-deities. Who dare attack them?(17.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (156) :: ऋषि :- केतु, अग्नि; देवता :- अग्नि; छन्द :- गायत्री।
अग्निं हिन्वन्तु नो धियः सप्तिमाशुमिवाजिषु। तेन जेष्म धनंधनम्
जिस प्रकार घुड़ दौड़ के स्थान में शीघ्र गामी घोड़े को दौड़ाया जाता है, उसी प्रकार ही हमारे स्तोत्र अग्नि देव को दौड़ा रहे हैं। उनके प्रसाद से हम सभी ऐश्वर्यों के विजेता हों।[ऋग्वेद 10.156.1]
They way a fast running horse is made to participate in a race, our Strotrs make Agni Dev run. Let us attain all grandeur by virtue of his blessings.
यया गा आकरामहे सेनयाग्ने तवोत्या। तां नो हिन्व मघत्तये
हे अग्नि देव! जिस प्रकार आपसे आश्रय पाकर हम गायों को प्राप्त करते हैं। उसी प्रकार ही आप अपनी सहायता देने वाली सेना के समान हमें रक्षा प्रदान करें, जिससे हम धन-लाभ करें।[ऋग्वेद 10.156.2]
Hey Agni Dev! The way we get cows under your asylum, similarly army granting help should grant us protection, to help us gain wealth.
आग्ने स्थूरं रयिं भर पृथु गोमन्तमश्विनम्। अङ्घि खं वर्तया पणिम्
हे अग्नि देव! बहुसंख्यक गायों और अश्वों और अश्वों के साथ धन प्रदान करें। आकाश को वृष्टि-जल से अभिषिक्त करें। वणिक् का वाणिज्य-कर्म प्रवर्तित करें।[ऋग्वेद 10.156.3]
Hey Agni Dev! Grant us cows & horses along with wealth. Anoint the sky with water. Flourish the business of the traders.
अग्ने नक्षत्रमजरमा सूर्यं रोहयो दिवि। दधज्ज्योतिर्जनेभ्यः
हे अग्नि देव! जो सूर्य देव सदैव चलते हैं, जो अजर है और जो लोगों को ज्योति देते हैं, उन्हें आकाश में आप अवस्थित किए हुए हैं।[ऋग्वेद 10.156.4]
Hey Agni Dev! You have located-established Sury Dev, who is immortal & grant us vision, in the sky.
अग्ने केतुर्विशामसि प्रेष्ठः श्रेष्ठ उपस्थसत्। बोधा स्तोत्रे वयो दधत्
हे अग्नि देव! आप प्रजा वर्ग के ज्ञापक हैं, प्रियतम हैं, श्रेष्ठ हैं। आप यज्ञ-गृह में बैठें, स्तोत्र श्रवण करें और अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.156.5]
Hey Agni Dev! You are excellent, dearest and acknowledge the populace. Sit in the Yagy, listen the Strotr and grant us food grains.(18.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (157) :: ऋषि :- भुवन आपन्य, साधन भौवन; देवता :- विश्वेदेव; छन्द :- त्रिष्टुप्।
इमा नु कं भुवना सषिधामेन्द्रश्च विश्वे च देवाः
ये समस्त प्राणी हमें सुख प्रदान करें। इन्द्र देव और सारे देवगण भी इस अर्थ को सिद्ध करें।[ऋग्वेद 10.157.1]
Let all these organism grant us pleasure. Let Indr Dev and all demigods accomplish-prove this.
यज्ञं च नस्तन्वं च प्रजां चादित्यैरिन्द्रः सह चीक्लपाति
इन्द्र देव और अदित्यगण हमारे यज्ञ, देह और पुत्र-पौत्र देवता भी इस सुख को सिद्ध करें।[ऋग्वेद 10.157.2]
Let Indr Dev and Adity Gan, our Yagy, body, son & grant sons along with demigods accomplish our pleasure-comforts.
आदित्यैरिन्द्रः सगणो मरुद्भिरस्माकं भूत्वविता तनूनाम्
इन्द्र देव आदित्यों और मरुद्गणों के साथ पधारकर हमारे शरीरों को सुरक्षा प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.157.3]
Let Indr Dev grant protection to our bodies by coming along with Adity Gan and Marud Gan.
हत्वाय देवा असुरान् यदायन् देवा देवत्वमभिरक्षमाणाः
जिस समय देवता लोग वृत्रादि असुरों का वध करके लौटें, उस समय उनके अमरत्व की रक्षा हुई।[ऋग्वेद 10.157.4]
When the demigods returned after slaying demons like Vratra Sur, their immortality was maintained.
प्रत्यञ्चमर्कमनयञ्छचीभिरादित्स्वधामिषिरां पर्यपश्यन्
नाना कार्यों के द्वारा स्तुति को देवों के निकट भेजा गया। अनन्तर आकाश से वृष्टि-पतन देखा गया।[ऋग्वेद 10.157.5]
Through various endeavours-efforts Stuti was sent near the demigods-deities; following which rain fall occurred.(18.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (158) :: ऋषि :- चक्षु, सूर्य; देवता :- सूर्य; छन्द :- गायत्री, स्वराट्।
सूर्यो नो दिवस्पातु वातो अन्तरिक्षात्। अग्निर्नः पार्थिवेभ्यः
स्वर्गीय उपद्रव से सूर्य देव, आकाश के उपद्रव से वायु देव और पृथ्वी के उपद्रव से अग्नि देव हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 10.158.1]
उपद्रव :: विकार, अव्यवस्था, अशांति, विशृंखलता, दुक्की,  शैतान, दो, पिशाच, ताश की दुक्की, अशांति, बाधा; deuce, disturbance, disorder, nuisance.
Let Sury Dev protect us from the disturbances of heavens, Vayu Dev from the nuisance of sky and Agni Dev from the deuce-disorder of the earth.
जोषा सवितर्यस्य ते हरः शतं सवाँ अर्हति। पाहि नो दिद्युतः पतन्त्याः
हे सविता! हमारी पूजा ग्रहण करें। आपके तेज के लिए सौ यज्ञों का अनुष्ठान करना चाहिए। शत्रुओं के जो उज्ज्वल आयुध आकर गिरते हैं, उनसे हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 10.158.2]
Hey Savita! Accept our prayers. Hundred Yagy should be organised for your brilliance. Protect us from the shinning weapons of the enemies.
चक्षुर्नो देवः सविता चक्षुर्न उत पर्वतः। चक्षुर्धाता दधातु नः
सविता देव हमें ज्योति दें, पर्वत विधाता हमें चक्षु प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.158.3]
Let Savita Dev grant us power to see-vision, mountains and the creator Brahma Ji grant us eyes.
चक्षुनों धेहि चक्षुषे चक्षुर्विख्यै तनूभ्यः। सं चेदं वि च पश्येम
हमारे नेत्र को दर्शन-शक्ति प्रदान करें। सारी वस्तुएँ भली-भाँति दिखाई देने के लिए हमें चक्षु दें जिससे हम सारी वस्तुओं को संगृहीत रूप से देख सकें।[ऋग्वेद 10.158.4]
Grant power to see to our eyes. Grant us eyes to see every thing clearly so that all collected goods are seen by us.
सुसंदृशं त्वा वयं प्रति पश्येम सूर्य। वि पश्येम नृचक्षसः॥
हे सूर्य देव! हम आपको भली-भाँति देख सकें। मनुष्य जिसे देख सकते हैं, उसे हम विशेष रूप से देख सकें।[ऋग्वेद 10.158.5]
Hey Sury Dev! We should be able to see your clearly. We should be able to see those things-events which are seen by humans.(18.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (159) :: ऋषि :- शची, पौलोमी; देवता :- शची; छन्द :- अनुष्टुप्।
उदसौ सूर्यो अगादुदयं मामको भगः। अहं तद्विद्वला पतिमभ्यसाक्षि विषासहिः
सूर्योदय मेरा भाग्योदय है। मैं यह समझ चुकी हूँ। मेरे पास सारी सपत्नियाँ परास्त हैं। मैंने स्वामी को वश में कर लिया है।[ऋग्वेद 10.159.1]
I have understood that Sun rise is the rise of my Luck. I have defeated my co wives. My husband is under my control.
अहं केतुरहं मूर्धाहमुग्रा विवाचनी। ममेदनु क्रतुं पतिः सेहानाया उपाचरेत्
मैं ही केतु और मस्तक हूँ। प्रबल होकर मैं स्वामी के मुँह से मीठा वचन सुनती हूँ। मुझे सर्वश्रेष्ठ जानकर मेरे स्वामी मेरे कार्य का अनुमोदन करते हैं, मेरे मत के अनुसार ही चलते हैं।[ऋग्वेद 10.159.2]
I am Ketu (dragon tail) and forehead. On become strong I listen to the sweet words of my husband. Considering me as the best, my husband support-follow me.
मम पुत्राः शत्रुहणोऽथो मे दुहिता विराट्। उताहमस्मि संजया पत्यौ मे श्लोक उत्तमः
मेरे पुत्र बली हैं। मेरी ही कन्या सर्वश्रेष्ठ शोभा से शोभित हैं। मैं सबको जीतती हूँ। स्वामी के पास मेरा ही नाम आदरणीय है।[ऋग्वेद 10.159.3]
My son is Bali. My daughter is decorated in best way. I win everyone. My name is revered for my husband.
येनेन्द्रो हविषा कृत्व्यभवद् द्युम्न्युत्तमः। इदं तदक्रि देवा असपत्ना किलाभुवम्
जिस यज्ञ को करके इन्द्र देव बली और श्रेष्ठ हुए हैं, हे देवगणों, मैंने वही (यज्ञ) किया है। इससे मेरे समस्त शत्रु नष्ट हो गए हैं।[ऋग्वेद 10.159.4]
Hey demigods-deities! I performed the Yagy by performing which Indr Dev became excellent and mighty. It destroyed my enemies.
असपत्ना सपत्नघ्नी जयन्त्यभिभूवरी। आवृक्षमन्यासां वर्ची राधो अस्थेयसामिव
मेरा शत्रु जीवित नहीं रहता। मैं शत्रुओं का वध कर डालती हूँ। उन्हें जीतती, परास्त करती हूँ। जिस प्रकार चञ्चल बुद्धि वालों की सम्पत्ति दूसरे ले जाते हैं, उसी प्रकार ही मैं अन्य स्त्रियों का तेज उड़ा देती हूँ।[ऋग्वेद 10.159.5]
My enemy do not survive. I kill the enemies. I win them, defeat them. The way fickle mind drew away-repel from wealth, similarly I repel other women.
समजैषमिमा अहं सपत्नीरभिभूवरी। यथाहमस्य वीरस्य विराजानि जनस्य च
मैं सब सपत्नियों को जीतती हूँ, परास्त करती हूँ। इसीलिए मैं इन वीर इन्द्र देव के ऊपर प्रभुत्व करती हूँ, कुटुम्बियों के ऊपर भी प्रभुत्व करती हूँ।[ऋग्वेद 10.159.6]
I win over the cowives, defeat them. That's why I rule over Indr Dev and dominate members of family.(19.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (160) :: ऋषि :- पूरणो, विश्वामित्र; देवता :-इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप्।
तीव्रस्याभिवयसो अस्य पाहि सर्वरथा वि हरी इह मुञ्च।
इन्द्र मा त्वा यजमानासो अन्ये नि रीरमन् तुभ्यमिमे सुतासः
यह सोमरस अत्यन्त तीव्र बनाया गया है। इसके साथ आहारीय सामग्री है, (आप) पान करें। अपने रथ-वाहक दो अश्वों को इधर लाने के लिए छोड़ दें। हे इन्द्र देव! अन्य यजमान आपको सन्तुष्ट नहीं कर सके। आपके ही लिए यह सब सोमरस प्रस्तुत किया गया है।[ऋग्वेद 10.160.1]
This Somras is very strong. It has eatables as well, eat them. Relieve-release the horses pulling your charoite, for coming here. Hey Indr Dev! Other hosts-Ritviz could not satisfy you. This whole lot of Somras is presented for you.
तुभ्यं सुतास्तुभ्यमु सोत्वासस्त्वां गिरः श्वात्र्या आ ह्वयन्ति।
इन्द्रेदमद्य सवन जुषाणो विश्वस्य विद्वाँ इह पाहि सोमम्
जो सोम प्रस्तुत हुआ है या होगा, वह आपके लिए ही है। यह सब स्तोत्र उच्चारित होकर आपको बुलाते हैं। हे इन्द्र देव! हमारा यह यज्ञ ग्रहण करें। आप सब चाहते हैं, यहीं सोम-पान करें।[ऋग्वेद 10.160.2]
Somras served or is yet to be served, is meant for you. These Strotrs on being recited invite you. Hey Indr Dev! Accept our Yagy. We want you to drink Somras here.
य उशता मनसा सोममस्मै सर्वहृदा देवकामः सुनोति।
न गा इन्द्रस्तस्य परा ददाति प्रशस्तमिचारुमस्मै कृणोति
जो व्यक्ति तल्लीन मन से, अकपट भाव से, प्रीति-युक्त अन्तःकरण से और देव-भक्ति के साथ इन्द्र देव के लिए सोमरस प्रस्तुत करता है उसकी गौएं ये नष्ट नहीं करते, अतीव सुन्दर और प्रशस्त मङ्गल उसे प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 10.160.3]
तल्लीन :: मगन, लीन, शोषित, मशगूल, परायण; engrossed, immersed, absorbed.
Cows of a person who offer Somras with deeply absorbed mind, without cunningness, affectionate innerself and devotion to Indr Dev; are not lost and he is granted auspicious favours.
अनुस्पष्टो भवत्येषो अस्य यो अस्मै रेवान्न सुनोति सोमम्।
निररत्नौ मघवा तं दधाति ब्रह्माद्विषो हन्त्यनानुदिष्टः
जो धनी व्यक्ति इनके लिए सोमरस प्रस्तुत करता है, इन्द्र देव उसके दृष्टि-गोचर होते हैं। ये आकर उसका हाथ पकड़ते हैं। जो पुण्य-कर्मों के द्वेषी हैं, उन्हें इन्द्र देव बिना किसी के कहे-सुने विनष्ट करते हैं।[ऋग्वेद 10.160.4]
The wealthy person offering Somras to Indr Dev can see him. He comes and hold his hand destroying the envious of virtuous deeds, without being asked.
अश्वायन्तो गव्यन्तो वाजयन्तो हवामहे त्वोपगन्तवा उ।
आभूषन्तस्ते सुमतौ नवायां वयमिन्द्र त्वा शुनं हुवेम
हे इन्द्र देव! गौ, अश्व और अन्न की इच्छा से हम आपके आगमन की प्रार्थना करते हैं। आपके लिए यह अभिनव और उत्तम स्तोत्र बनाकर और आपको सुखकर जानकर हम आपका आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 10.160.5]
Hey Indr Dev! We invoke you with the desire for cows, horses and food grains. We compose unique Strotr for you and invoke you considering comfortable.(19.02.2025)

ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (161) :: ऋषि :- यक्ष्मनाश, प्रजापति; देवता :- इन्द्राग्नि, राजयक्ष्मा; छन्द :- त्रिष्टुप्।
मुञ्चामि त्वा हविषा जीवनाय कमज्ञातयक्ष्मादुत राजयक्ष्मात्।
ग्राहिर्जग्राह यदि वै तदेनं तस्या इन्द्राग्नी प्र मुमुक्तमेनम्
हे रोगी! यज्ञ-सामग्री के द्वारा मैं आपको अज्ञात यक्ष्मा रोग और राज्यक्ष्मा से छुड़ाता हूँ, इससे आपके जीवन की रक्षा होगी। यदि कोई पाप-ग्रह इस रोगी को घेरे हुए हैं, तो हे इन्द्र देव और अग्निदेव! इसे उसके हाथ से छुड़ावें।[ऋग्वेद 10.161.1]
Hey diseased! I relieve you from unknows Tuberculosis for the protection of your life. If some sinner Planet (inauspicious-cruel planet), has controlled the patient, let Indr Dev and Agni Dev relieve him.
यदि क्षितायुर्यदि वा परेतो यदि मृत्योरन्तिकं नीत एव।
तमा हरामि निर्ऋतेरुपस्थादस्पार्षमेनं शतशारदाय
यदि इस रोगी की आयु का क्षय हो रहा है, यदि यह इस लोक से गया हुआ-सा है और यदि यह मृत्यु के पास गया हुआ है, तो भी मैं मृत्यु-देवता निऋति के पास से उसे लौटा ला सकता हूँ। मैंने इसे इस प्रकार स्पर्श किया है कि, यह सौ वर्ष जीवित रहेगा।[ऋग्वेद 10.161.2]
If the patient's age is reducing, appears to have left this abode, I can bring him from back from the deity of death, Nirati. I have touched him in such a manner that he will survive for hundred years.
सहस्त्राक्षेण शतशारदेन शतायुषा हविषाहार्षमेनम्।
शतं यथेमं शरदो नयातीन्द्रो विश्वस्य दुरितस्य पारम्
मैंने यह जो आहुति दी है, उसके एक हजार नेत्र सौ वर्ष की परमायु और आयु देते है। ऐसी आहुति के द्वारा मैं रोगी को लौटा लाया हूँ। सारे पापों से छुडाकर इन्द्र देव इसे सौ वर्ष जीवित रखें।[ऋग्वेद 10.161.3]
One thousand eyes of my sacrifice, grants ultimate age to the diseased. I bring back the patient with such sacrifice. Let Indr Dev remove all his sins and keep him alive for hundred years.
शतं जीव शरदो वर्धमानः शतं हेमन्ताञ्छतमु वसन्तान्।
शतमिन्द्राग्नी सविता बृहस्पतिः शतायुषा हविषेमं पुनर्दुः
हे रोगी! आप एक सौ शरत् सुख से एक सौ हेमन्त और एक सौ वसन्त तक जीवित रहें। हे इन्द्र देव! हे अग्नि देव! सविता देव और बृहस्पति देव हव्य-द्वारा तृप्त होकर इसे सौ वर्ष की आयु प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.161.4]
Hey patient! You should enjoy-survive hundred winters and spring seasons. Hey Indr Dev & Agni Dev! Let Savita Dev and Brahaspati Dev be satisfied with oblations and grant you an age of hundred years.
आहार्षं त्वाविदं त्वां पुनरागाः पुनर्नव। सर्वाङ्ग सर्व ते चक्षुः सर्वमायुश्च तेऽविदम्
हे रोगी! आपको मैंने पाया है, आपको लौटा लाया हूँ। आप पुनः नवीन होकर आए हैं। आपके समस्त अङ्गों, चक्षुओं और समस्त परमायु को मैंने प्राप्त किया है।[ऋग्वेद 10.161.5]
Hey patient! I got you and brought you back. You have achieved a new lease of life. I have got all  organs, eyes and Ultimate age for you.(19.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (162) :: ऋषि :- रक्षोहा, ब्राह्म; देवता :- रक्षोहा; छन्द :- अनुष्टुप्।
ब्रह्मणाग्निः संविदानो रक्षोहा बाधतामितः। अमीवा यस्ते गर्भ दुर्णामा योनिमाशये॥
स्तोत्र के साथ एक मत होकर राक्षस वधकर्ता अग्नि देव यहाँ से समस्त बाधायें, उपद्रव और रोग दूर कर दें, जिनके द्वारा, हे नारी! आपकी योनि आक्रान्त हुई है।[ऋग्वेद 10.162.1]
Hey woman! Let Agni Dev slayer of demons who invaded your genitals, remove all obstacles, disturbances and ailments-diseases agreeing with the Strotr. 
यस्ते गर्भममीवा दुर्णामा योनिमाशये। अग्निष्टं ब्रह्मणा सह निष्क्रव्यादमनीनशत्
हे नारी! जो मांसाहारी राक्षस, रोग या उपद्रव आपकी योनि को आक्रान्त करते हैं, हे राक्षस हन्ता अग्नि देव! स्तोत्र के साथ एकमत होकर उन सबका (आप) विनाश करें।[ऋग्वेद 10.162.2]
Hey woman! Let slayer of meat eater demons who inflict your genitals with diseases or disturbances be destroyed by Agni Dev agreeing with the Strotr.
यस्ते हन्ति पतयन्तं निषत्स्तुं यः सरीसृपम्। जातं यस्ते जिघांसति तमितो नाशयामसि
हे नारी! पुरुष के वीर्य-पात के समय, गर्भ में शुक्र-स्थिति के समय, (तीन मास के अनन्तर) गर्भ के गमन के समय अथवा (दस मास के अनन्तर) जन्म के समय जो आपके गर्भ को नष्ट करने की इच्छा करता है, उसे हम यहाँ से दूर कर देते हैं।[ऋग्वेद 10.162.3]
Hey woman! We expel-repel the person-demons who wish to destroy your embryo soon after insertion of sperms in the ovary, presence of sperms in the uterus, nurture of the foetus at the time of birth.
यस्त ऊरू विहरत्यन्तरा दंपती शये। योनिं यो अन्तरारेळ्हि तमितो नाशयामसि॥
गर्भ नष्ट करने के लिए जो आपके दोनों जघनों को फैला देता है, इसी उद्देश्य से जो स्त्री-पुरुष के बीच में सोता है अथवा जो योनी के मध्य पतित पुरुष-शुक्र को चाट जाता है, उसे हम यहाँ से दूर कर देते हैं।[ऋग्वेद 10.162.4]
One who expand your thighs to destroy the embryo-foetus, comes in between the woman and the male or licks the sperms of the man fallen in the genitals-uterus, is expelled by us.
यस्त्वा भ्राता पतिर्भूत्वा जारो भूत्वा निपद्यते।
प्रजां यस्ते जिघांसति तमितो नाशयामसि
हे नारी! जो आपका भाई, पति और उपपति (जार) बनकर आपके पास जाता है और आपकी सन्तति को नष्ट करने की इच्छा करता है, उसे हम यहाँ से दूर करते हैं।[ऋग्वेद 10.162.5]
उपपति :: प्रेमिका, उपस्री, यार, अवैध प्रेमी; a person having illicit relations, innamorato, paramour, lover, sweetheart.
Hey woman! We move away the person who wish to destroy your progeny as a brother, husband or paramour.
यस्त्वा स्वप्नेन तमसा मोहयित्वा निपद्यते। प्रजां यस्ते जिघांसति तमितो नाशयामसि
जो स्वप्नावस्था और निद्रावस्था में आपको मुग्ध करके आपके पास जाता है और जो आपकी सन्तति नष्ट करने की इच्छा करता है, उसे हम यहाँ से दूर करते हैं।[ऋग्वेद 10.162.6]
We chase away the person who comes to you in the dreams or sleep, to enchant with the desire of destroying your progeny.(20.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (163) :: ऋषि :- विवृहा, काश्यप; देवता :-यक्ष्मनाशन;  छन्द :- अनुष्टुप्।
अक्षीभ्यां ते नासिकाभ्यां कर्णाभ्यां छुबुकादधि।
यक्ष्मं शीर्षण्यं मस्तिष्काज्जिह्वाया वि वृहामि ते
आपके दोनों नेत्रों, दोनों कानों, दोनों नासारन्ध्रों, चिबुक, शिर, मस्तिष्क और जिव्हा से मैं यक्ष्मा (रोग) को दूर करता हूँ।[ऋग्वेद 10.163.1]
I treat your eyes, ears, nostrils, chin, head, brain-mind and the tongue and remove the ailments-diseases.
ग्रीवाभ्यस्त उष्णिहाभ्यः कीकसाभ्यो अनूक्यात्।
यक्ष्मं दोषण्य १ मंसाध्यां बाहुभ्यां वि वृहामि ते
आपकी ग्रीवा की धमनियों, स्नायु, अस्थि-सन्धि, दोनों भुजाओं, दोनों हाथों और दोनो स्कन्धों से मैं रोग को दूर करता हूँ।[ऋग्वेद 10.163.2]
स्नायु :: अस्थि-मांस संयोजक शिरा या नस, स्नायु, रज्जु की हड्‍डी में बदलने की प्रक्रिया से बने हुए दृढ़ भाग, मांस पेशी, पुठ्ठा; muscle.
I remove the ailments affecting your blood carrier (arteries and veins), nerves, joints of bones, shoulder, hands.
आन्त्रेभ्यस्ते गुदाभ्यो वनिष्ठोहृदयादधि।
यक्ष्मं मतस्नाभ्यां यक्नः प्लाशिभ्यो वि वृहामि ते
आपकी अन्न नाड़ी, क्षुद्र नाड़ी, बृह द्दण्ड, हृदय स्थान, मूत्राशय, यकृत और अन्यान्य मांस-पिण्डों से मैं रोग को दूर करता हूँ।[ऋग्वेद 10.163.3]
I banish-vanish,  diseases from your pulse, heart, anus & pennies, liver, abdomen,  kidneys, muscles, viscera etc.
ऊरुभ्यां ते अष्ठीवर्द्धयां पाणिभ्यां प्रपदाभ्याम्।
यक्ष्मं श्रोणिभ्यां भासदाद्धंससो वि वृहामि ते
आपके दो उरुओं, दो जानुओं, दो गुल्मों, दो पाद-प्रान्तों, दो नितम्बों, कटिदेश और मलद्वार से मैं व्याधि को दूर करता हूँ।[ऋग्वेद 10.163.4]
I remove-eliminate diseases from your thighs, knees, heels, toes, loins, buttocks-hips, anus, private parts i.e., genitals.
मेहदाद्वनंकरणाल्लोमभ्यस्ते नखेभ्यः। यक्ष्मं सर्वस्मादात्मनस्तमिदं वि वृहामि ते
मूत्रोत्सर्ग करने वाले पुरुषाङ्ग, लोम और नख आपके सर्वाङ्ग शरीर से मैं रोग को दूर करता हूँ।[ऋग्वेद 10.163.5]
I remove the diseases from all over your body like pennies, hair, nails.
अङ्गादङ्गाल्लोम्रोलोम्रो जातं पर्वणिपर्वणि। यक्ष्मं सर्वस्मादात्मनस्तमिदं वि वृहामि ते
प्रत्येक अङ्ग, प्रत्येक लोम, शरीर के प्रत्येक सन्धि-स्थान और आपके सर्वाङ्ग स्थान में जहाँ कहीं भी रोग उत्पन्न हुआ है, वहाँ से मैं रोग को दूर करता हूँ।[ऋग्वेद 10.163.6]
I cure-treat all segments, organs, systems of your body.(20.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (164) :: ऋषि :- प्रचेता, आंगिरस; देवता :- दुःस्वप्ननाशन; छन्द :- अनुष्टुप्, त्रिष्टुप्, पंक्ति।
अपेहि मनसस्पतेऽप क्राम परश्वर। परो निर्ऋत्या आ चक्ष्व बहुधा जीवतो मनः
हे दुःस्वप्नदेव! आपने मन पर अधिकारी कर लिया है। हट जावें, भाग जावें, दूर जाकर विचरण करें। अत्यन्त दूर में जो निऋति देवता है, उनसे जाकर कहें कि, जीवित व्यक्ति के मनोरथ विशाल होते हैं; इसलिए वे मनोरथ-भङ्ग करती हैं।[ऋग्वेद 10.164.1]
Hey deity causing bas dreams! You have controlled my innerself. Leave-desert it, roam far away. Tell distant Nirati Dev that the targets-ambitions of the alive humans are great, so they are spoiled.
भद्रं वै वरं वृणते भद्रं युञ्जन्ति दक्षिणम्। भद्रं वैवस्वते चक्षुर्बहुत्रा जीवतो मनः
जीवित व्यक्ति के मनोरथ विशाल होते हैं, वे उत्तम काम्य वस्तु की कामना करते हैं, उत्तम और सुन्दर फल पाने की कामना करते हैं। यम कल्याणमय नेत्र से देखते हैं।[ऋग्वेद 10.164.2]
Ambitions of a living person are high, they wish to have beautiful things, excellent out come-results. Yam look over them for welfare.
यदाशसा निः शसाभिशसोपारिम जाग्रतो यत्स्वपन्तः।
अग्निर्विश्वान्यप दुष्कृतान्यजुष्टान्यारे अस्मद्दधातु
आशा के समय, आशा-भङ्ग के समय, आशा सफल होने के समय जाग्रत् अवस्था और निद्रावस्था में जो हम पाप कर्म करते हैं, उन सब क्लेशकर पापों को अग्नि देव हमारे पास से दूर ले जावें।[ऋग्वेद 10.164.3]
Let Agni Dev relieve us of the sins committed while making wishes-desires, failure-unsuccess of hopes in either awake of sleep state.
यदिन्द्र ब्रह्मणस्पतेऽभिद्रोहं चरामसि। प्रचेता न आङ्गिरसो द्विषतां पात्वंहस:॥
हे इन्द्र देव और ब्रह्मण स्पति! हमने जो पाप किया है, अङ्गिरा के पुत्र प्रचेता उस शत्रु-कृत अमङ्गल से हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 10.164.4]
अमंगल :: अशुभ, अहितकारी, भाग्यहीन, अकल्याण, दुर्भाग्य; portentous, ominous, inauspicious, calamity, evil, unlucky, ill-omen, disastrous, misfortune.
Hey Indr Dev and Brahman Spati Dev! Pracheta, son of Angira should protect us from our sins and the ominous caused by the enemy.
अजैष्माद्यासनाम चाभूमानागसो वयम्।
जाग्रत्स्वप्नः संकल्पः पापो यं द्विष्मस्तं स ऋच्छतु यो नो द्वेष्टि तमृच्छतु
आज हम विजयी हुए हैं, प्राप्त करने योग्य वैभव को प्राप्त कर लिया है और हम अपराध मुक्त हुए हैं। जाग्रत् अवस्था और निद्रावस्था में अथवा सङ्कल्प जन्य जो पाप हुआ है, वह हमारे द्वेषी शत्रु के पास जाए, जिससे हम द्वेष करते हैं, उसी के पास जाए।[ऋग्वेद 10.164.5]
We have won today, have attained splendour & glory and become free from crime. The sins committed by us during awaken or sleeping state, or through our resolutions should move to our envious enemy or those envious to us.(20.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (165) :: ऋषि :- कपोत, निर्ऋत; देवता :-विश्वेदेव; छन्द :- त्रिष्टुप्।
देवाः कपोत इषितो यदिच्छन्दूतो निर्ऋत्या इदमाजगाम।
तस्मा अर्चाम कृणवाम निष्कृतिं शं नो अस्तु द्विपदे शं चतुष्पदे
हे देवगणों! यह कपोत निर्ऋति के द्वारा प्रेरित दूत है। क्लेश देने के लिए हमारे घर में आया है। उसकी हम पूजा करते हैं। यह अमङ्गल हम दूर करते हैं। हमारे दास, दासी और गौ, अश्व आदि अमङ्गलग्रस्त न हों।[ऋग्वेद 10.165.1]
Hey demigods-deities! This pigeon is the ambassador of Nirati. It has come to our house to create disturbance-nuisance. We worship him.  We removes-repel this inauspiciousness from us. Our slave-servants, cows and horses should not be gripped by inauspiciousness.
शिवः कपोत इषितो नो अस्त्वनागा देवाः शकुनो गृहेषु।
अग्निर्हि विप्रो जुषतां हविर्नः परि हेतिः पक्षिणी नो वृणक्तु
हे देवगणों! जो कपोत हमारे घर में भेजा गया है, वह हमारे लिए शुभकर हो। हमारा कोई अमङ्गल न करे। बुद्धिमान और हमारे आत्मीय अग्नि देव हमारा हव्य ग्रहण करें। आपकी कृपादृष्टि से यह पंखों वाला पक्षी हमसे दूर ही रहे।[ऋग्वेद 10.165.2]
आत्मीय :: अपना, स्नेह-संबंधी, भाई-चारे का, सजाति, संबंधी, उचित, माकूल, मुनासिब, योग्य; cognate, kindred, proper, affinity, congeniality. 
Hey demigods-deities! The pigeon sent to house should be auspicious to us. It should not harm us. Intelligent and cognate Agni Dev should accept our offerings-oblations. Due to favour this feathers bird should keep off from us.
हेतिः पक्षिणी न दभात्यस्माष्ट्र्यां  पदं कृणुते अग्निधाने।
शं नो गोभ्यश्च पुरुषेभ्यश्चास्तु मा नो हिंसीदिह देवाः कपोतः
पक्षधारी और अस्त्र स्वरूप या हनन हेतु कपोत हमारा वध न करे। जिस व्यापक स्थान में अग्नि देव संस्थापित हुए हैं, उसी स्थान पर यह बैठे। हमारी गायों और मनुष्यों का मङ्गल हो। हे देवगणो! हमें यहाँ कपोत न मारे।[ऋग्वेद 10.165.3]
मङ्गल :: शूभद, कल्याणकारी, संपन्न, धन-धान्यादि से युक्त, शुभ लक्षणों से युक्त, अच्छे लक्षण वाला; favourable, auspicious.
This weapon in the form of pigeon should not kill us. It should occupy the place where Agni Dev has been established. Our cows and humans should be favourable -auspicious to us. Hey demigods-deities! Do not let this pigeon kill us.
यदुलूको वदति मोघमेतद्यत्कपोतः पदमग्नौ कृणोति।
यस्य दूतः प्रहित एष एतत्तस्मै यमाय नमो अस्तु मृत्यवे
यह उलूक जो अमङ्गल ध्वनि करता है, वह मिथ्या हो। कपोत अग्नि देव स्थान में बैठता है। जिनका दूत बनकर यह आया है, उन मृत्यु स्वरूप यम को नमस्कार है।[ऋग्वेद 10.165.4]
Let the inauspicious sound created by the owl should be false. Pigeon occupy the place for Agni Dev. We salute Yam who is like death and who's messenger-ambassador this pigeon is.
ऋचा कपोतं नुदत प्रणोदमिषं मदन्तः परि गां नयध्वम्।
संयोपयन्तो दुरितानि विश्वा हित्वा न ऊर्जं प्र पतात्पतिष्ठः
हे देवगणों, यह कपोत भगा देने योग्य है। इसे मन्त्र के द्वारा भगा दें। अमङ्गल का विनाश करके आनन्द के साथ गाय को उसकी आहार सामग्री की ओर ले चलें। यह कपोत अतीव वेग से उड़ता है। यह हमारा अन्न छोड़कर दूसरे स्थान पर उड़कर गमन करे।[ऋग्वेद 10.165.5]
Hey demigods, this pigeon should be fled. Repel him with Mantr. Destroy the inauspiciousness and move the cows to eatables-food happily. The pigeon should fly with high speed. He should spare our food and move to some other place.(21.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (166) :: ऋषि :- ऋषभ वैराज या ऋषभ शक्वर; देवता :- सपत्नघ्न; छन्द :- अनुष्टुप्, पंक्ति।
ऋषभं मा समानानां सपत्नानां विषासहिम्। हन्तारं शत्रूणां कृधि विराजं गोपतिं गवाम्
इन्द्र देव ऐसा करें कि, मैं समकक्ष व्यक्तियों में श्रेष्ठ होऊँ, शत्रुओं को पराजित करूँ, विपक्षियों का वध करूँ और सर्वश्रेष्ठ होकर मैं अशेष गोधन का अधिकारी बनूँ।[ऋग्वेद 10.166.1]
Let Indr Dev make endeavours that I become best amongest the people equivalent to me, defeat the enemies, kill the opponents and become the master of cows by becoming best.
अहमस्मि सपत्नहेन्द्रइवारिष्टो अक्षतः। अधः सपत्ना मे पदोरिमे सर्वे अभिष्ठिताः
मैं शत्रु-ध्वंसक हूँ, मुझे कोई हिंसित या आहत नहीं कर सकता। समस्त शत्रुओं को हम पैरों से कुचल दें।[ऋग्वेद 10.166.2]
I am destroyer of the enemy, non can strike or hurt me. Let us crush the enemy with our feet.
अत्रैव वोऽपि नह्याम्युभे आर्लीइव ज्यया। वाचस्पते नि षेधेमान्यथा मदधरं वदान्
हे शत्रुओं! जिस प्रकार धनुष के दोनों प्रान्तों को ज्या से बाँधा जाता है। उसी प्रकार ही आपको मैं इस स्थान में बाँधता हूँ। हे वाचस्पति! इन्हें मना कर दें कि, ये मेरी बात न कह सकें।[ऋग्वेद 10.166.3]
Hey enemies! The way the two ends of the bow are tied with chord, similarly I tie you with this place. Hey Vachaspati! Ask them not to say-reveal what I have said.
अभिभूरहमागमं विश्वकर्मेण धाम्ना। आ वश्चित्तमा वो व्रतमा वोऽहं समितिं ददे
मेरा तेज कर्म के लिए ही उपयुक्त है, उसी तेज को लेकर मैं शत्रुओं को पराजित करने के लिए आया हूँ। हे शत्रुओं! मैं आपके मन, कार्य और मिलन का अपहरण कर लेता हूँ।[ऋग्वेद 10.166.4]
My radiance is as per the deeds and I have to defeat the enemy with that radiance. Hey enemies! I abduct the combination of your innerself, work.
योगक्षेमं व आदायाहं भूयासमुत्तम आ वो मूर्धानमक्रमीम्।
अधस्पदान्म मण्डूकाइवोदकान्मण्डूका उदकादिव
आपकी उपार्जन-योग्यता का अपहरण करके मैं आपकी अपेक्षा श्रेष्ठ हुआ हूँ, आपके मस्तक पर उठ गया हूँ। जिस प्रकार जल में मेंढ़क बोलते हैं, उसी प्रकार ही आप लोग मेरे पैरों के नीचे चीत्कार करते हैं।[ऋग्वेद 10.166.5]
I abducted the ability earned-attained by you and became better than you, rising over your forehead. The way the frogs croak, you cry under my feet.(22.02.1025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (167) :: ऋषि :- विश्वामित्र, जगदग्नि; देवता :- इन्द्र, सोम, वरुण, बृहस्पति, अनुमतिमघवत्, धाता, विधातार; छन्द :- जगती।
तुभ्येदमिन्द्र परि षिच्यते मधु त्वं सुतस्य कलशस्य राजसि।
त्वं रयिं पुरुवीरामु नस्कृधि त्वं तपः परितप्याजयः स्वः
हे इन्द्र देव! यह मधुतुल्य सोमरस आपके लिए तैयार किया गया है। यह जो सोमीय कलश प्रस्तुत किया जाता है, उसके प्रभु आप ही हैं। हमें आप प्रचुर धन और विशाल पुत्रादि दें। तपस्या करके आपने स्वर्ग को जीत लिया है।[ऋग्वेद 10.167.1]
Hey Indr Dev! This Somras comparable to honey, has been prepared for you. This Kalash-vessel containing Somras has been offered to you, you being the Lord of it. Grant us enough-sufficient wealth and sons etc. You resorted to ascetics-Tapasya and won the heavens.   
स्वर्जितं महि मन्दानमन्धसो हवामहे परि शुक्रं सुताँ उप।
इमं नो यज्ञमिह बोध्या गहि स्पृधो जयन्तं मघवानमीमहे॥
जो इन्द्र देव स्वर्ग-विजयी हुए है और जो सोम-स्वरूप आहार पाने पर विशिष्ट रीति में आमोद करते हैं। उन्हीं इन्द्र देव को प्रस्तुत सोम-रस के निकट आने के लिए आवाहित करते हैं। हमारे इस यज्ञ को जानें। पधारें, शत्रु-विजयी इन्द्र देव के पास हम शरणापन्न हुए हैं।[ऋग्वेद 10.167.2]
आमोद :: खुशी, प्रसन्नता, महक, सुगंधि; merriment, amusement.
Indr Dev who has become the winner of heavens and make specific endeavours to have Somras, demonstrating his pleasure. We invoke Indr Dev to enjoy Somras-come close to it. Preside our Yagy. Come, we have sought asylum under enemy winner Indr Dev.
सोमस्य राज्ञो वरुणस्य धर्मणि बृहस्पतेरनुमत्या उ शर्मणि।
तवाहमद्य मघवन्नुपस्तुतौ धातर्विधातः कलशाँ अभक्षयम्
सोम देव और राजा वरुण देव के यज्ञ तथा बृहस्पति और अनुमति की शरण या यज्ञगृह में वर्तमान में, हे इन्द्र देव! आपके स्तोत्र में प्रवृत्त हुआ हूँ। हे धाता और विधाता! आपकी आज्ञा से मैंने कलशस्थ सोमरस का पान किया है।[ऋग्वेद 10.167.3]
Hey Indr Dev! I am attracted towards your Strotr, in the Yagy with the permission of Som Dev, king Varun Dev and Brahaspati. Hey Dhata & Vidhata! I have drunk Somras kept in the Kalash with your permission.
प्रसूतो भक्षमकरं चरावपि स्तोमं चेमं प्रथमः सूरिरुन्मृजे।
सुते सातेन यद्यागमं वां प्रति विश्वामित्रजमदग्नी दमे
हे इन्द्र देव! आपके द्वारा प्रेरित होकर मैंने चरु के साथ अन्यान्य आहारीय द्रव्य प्रस्तुत किए हैं। सबसे पहले स्तोता होकर मैं इस स्तोत्र का उच्चारण करता हूँ। (इन्द्र की उक्ति)-हे राजर्षि विश्वामित्र और महर्षि जमदग्नि! सोम प्रस्तुत होने पर मैं जिस समय धन लेकर गृह में आता हूँ, उस समय आप लोग भली-भाँति स्तुति करें।[ऋग्वेद 10.167.4]
Hey Indr Dev! Inspired by you I have presented many eatables in addition to Charu. I become Stota and recite this Strotr. Indr Dev said, Hey Rajrishi Vishwamitr and Jamdagni! When I bring wealth in the house on been presented Somras, you should properly perform Stuti-prayers.(22.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (168) :: ऋषि :- अनिल, वातायन; देवता :- वायु; छन्द :- त्रिष्टुप्।
वातस्य नु महिमानं रथस्य रुजन्नेति स्तनयन्नस्य घोषः।
दिविस्पृग्यात्यरुणानि कृण्वन्नुतो एति पृथिव्या रेणुमस्यन्
जो वायु रथ के समान वेग से दौड़ते हैं, उनकी महिमा का मैं वर्णन करता हूँ। इसका शब्द वज्र के समान है। यह वृक्षादि को तोड़ते-तोड़ते आते हैं। ये चारों ओर रक्त वर्ण करके और आकाश-पथ का अवलम्बन करके जाते हैं। वे पृथ्वी की धूलि को बिखेर करके जाते हैं।[ऋग्वेद 10.168.1]
I describe the glory of those who run like the Charoite of Vayu. It sounds like Vajr. He come destroying the trees. He create reddishness all around and follow the path in the sky. He spread dust of he earth.
सं प्रेरते अनु वातस्य विष्ठा ऐनं गच्छन्ति समनं न योषाः।
ताभिः सयुक्सरथं देव ईयतेऽस्य विश्वस्य भुवनस्य राजा
वायु की गति से पर्वतादि पर्यन्त कम्पित हो जाते हैं। जिस प्रकार घोड़ियाँ युद्ध में जाती है, उसी प्रकार ही पर्वतादि वायु की ओर जाते हैं। वायुदेव घोड़ियों की सहायता पाकर और रथ पर चढ़कर समस्त भुवन के राजा के समान जाते हैं।[ऋग्वेद 10.168.2]
Mountains tremble due to the speed of Vayu-air. The way mare goes to the war, mountains etc. face Vayu. Vayu Dev attain the help of mares, ride the charoite and goes to the king of all abodes.
अन्तरिक्षे पथिभिरीयमानो न नि विशते कतमचनाहः।
अपां सखा प्रथमजा ऋतावा क्क स्विज्जातः कुत आ बभूव
आकाश में गति-विधि करने के समय किसी भी दिन स्थिर होकर नहीं बैठते। ये जल के मित्र हैं, जल के आगे उत्पन्न होते हैं और ये सत्य-स्वभाव हैं। ये कहाँ जन्में हैं? कहाँ से आये हैं?[ऋग्वेद 10.168.3]
While activating in the sky he do not become idle or rigid-stationary. He is a friend of water, evolve before water and is truthful by nature. Where did he get birth? Where from has he come?
आत्मा देवानां भुवनस्य गर्भो यथावशं चरति देव एषः।
घोषा इदस्य शृण्विरे न रूपं तस्मै वाताय हविषा विधेम
वायुदेव देवगणों के आत्म-स्वरूप और भुवनों के सन्तान-स्वरूप हैं। ये यथेच्छ विहार करते हैं। इनका शब्द ही नाना प्रकार से सुना जाता है, इनका रूप प्रत्यक्ष नहीं होता। हवि के साथ हम वायुदेव की पूजा करते हैं।[ऋग्वेद 10.168.4]
Vayu Dev is like the soul of demigods-deities and is like the progeny of the abodes. He move freely as per his wish. Only his sound is heard in various forms. His form-physique is not visible-seen. We worship Vayu Dev with oblations-offerings.(22.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (169) :: ऋषि :- शबर, कक्षीवंत; देवता :- गाव; छन्द :- त्रिष्टुप्।
मयोभूर्वातो अभि वोतूस्त्र ऊर्जस्वतीरोषधीरा रिशन्ताम्।
पीवस्वतीर्जीवधन्याः पिबन्त्ववसाय पद्वते रुद्र मृळ
सुख देने वाली वायु गायों की ओर प्रवाहित हों। गौएं बलकारक ओषधियों, तृण, पत्रादि का आस्वादन करें। प्रभूत और प्राण-परितृप्तिकर जल ये पियें। हे रुद्र देव! चरण-युक्त और अन्न-स्वरूप गौओं को स्वच्छन्दता से रखें अर्थात् उन्हें सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.169.1]
Let comfortable air blow towards the cows. Cow should eat-enjoy healthy straw, leaves, herbs etc. They should drink ample-abundant thirst quenching water. Hey Rudr Dev! Grant comfort-pleasure to the cows.
याः सरूपा विरूपा एकरुपा यासामग्निरिष्टया नामानि वेद।
या अङ्गिरसस्तपसेह चक्रुस्ताभ्यः पर्जन्य महि शर्म यच्छ
कभी गौएं समान वर्ण होती हैं, कभी विभिन्न वर्णों की और कभी सर्वाङ्ग एक वर्ण की। यज्ञ में अग्नि देव उनको जानते हैं। अङ्गिरा की सन्तानों ने तपस्या के द्वारा उनको पृथ्वी पर बनाया। हे पर्जन्य देव! उन गौओं को सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.169.2]
Cows have different colours. Agni Dev is recognised-worshiped in the Yagy. Descendent of Angira produced cows over the earth by virtue of their ascetics-Tapasya. Hey Parjany Dev! Grant comfort to the cows.
या देवेषु तन्व १ मैरयन्त यासां सोमो विश्वा रूपाणि वेद।
ता अस्मभ्यं पयसा पिन्वमानाः प्रजावतीरिन्द्र गोष्ठे रिरीहि
गौएं अपने शरीर को देवगणों के यज्ञ के लिए दिया करती हैं। सोम उनकी अशेष आहुतियों को जानते हैं। हे इन्द्र देव! उन्हें दूध से परिपूर्ण करके और सन्तान-संयुक्त बनाकर हमारे लिए गोष्ठ में भेज दें।[ऋग्वेद 10.169.3]
Cows use to sacrifice their body for the sake of Yagy. Som is aware of their remaining sacrifices. Hey Indr Dev! Grant them enough milk, progeny and sent them to our cow shed.
प्रजापतिर्मह्यमेता राणो विश्वैर्देवैः पितृभिः संविदानः।
शिवाः सतीरुप नो गोष्ठमाकस्तासां वयं प्रजया सं सदेम
देवगणों और पितरों से परामर्श करके प्रजापति ने मुझे इन गायों को दिया। इन सब गायों को कल्याण-युक्त करके वे हमारे गोष्ठ में रखते हैं, ताकि हम गायों की सन्तति प्राप्त कर सकें।[ऋग्वेद 10.169.4]
Prajapati awarded me these cows by consulting demigods and Pitr Gan-Manes. He associate welfare with these cows and keep in our cow shed so that we can have the progeny of these cows.(23.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (170) :: ऋषि :- विभ्राट्, सौर्य; देवता :- सूर्य। छन्द :- जगती, पंक्ति।
विभ्राड् बृहत्पिबतु सोम्यं मध्वायुर्दधद्यज्ञपतावविहुतम्।
वातजूतो यो अभिरक्षति त्मना प्रजाः पुरुधा वि राजति
अत्यन्त दीप्ति वाले सूर्य देव मधु-तुल्य सोमरस का पान करें और यज्ञानुष्ठाता व्यक्ति को उत्तम आयु प्रदान करें। वे वायु देव के द्वारा प्रेरित होकर प्रजावर्ग की स्वयं रक्षा करते हैं, प्रजावर्ग का पोषण करते और विविध प्रकार की शोभा पाते हैं।[ऋग्वेद 10.170.1]
Let Sury Dev possessor of extreme shine-aura drink Somras comparable to honey and grant excellent age to the performer of Yagy. Being inspired by Vayu Dev protect, nurture the populace and is glorified in various means.
विभाड् बृहत्सुभृतं वाजसातमं धर्मन् दिवो धरुणे सत्यमर्पितम्।
अमित्रहा वृत्रहा दस्युहंतमं ज्योतिर्जज्ञे असुरहा सपत्नहा
सूर्य रूप और प्रकाशमय पदार्थ उदित हो रहा है। यह प्रकाण्ड, दीप्तिशाली भली-भाँति संस्थापित और सर्वोत्कृष्ट अन्नदाता हैं। यह आकाश के ऊपर संस्थापित होकर आकाश को आश्रित किए हुए है। ये शत्रुहन्ता, वृत्र-वधकर्ता, असुरों के घातक और विपक्षियों के संहारक है।[ऋग्वेद 10.170.2]
Material body in the form of Sun is rising. Its colossal, shinning, established properly and is the best provider of food grains. He is established in the sky and grant asylum to sky. He is the slayer of enemy, slayer of Vratr, destroyer of the demons and the opponents.
इदं श्रेष्ठं ज्योतिषां ज्योतिरुत्तमं विश्वजिद्धनजिदुच्यते बृहत्।
विश्वभ्राड भ्राजो महि सूर्यो दृश उरु पप्रथे सह ओजो अच्युतम्
सूर्य देव समस्त ज्योतिर्मय पदार्थों में श्रेष्ठ और अग्रण्य हैं। ये विश्वजित और धनजित हैं। ये प्रकाण्ड, दीप्तिशाली और समस्त वस्तुओं को आलोक से युक्त करने वाले हैं। वृष्टि की सुविधा के लिए ये विस्तारित हुए हैं। ये बल-स्वरूप और अविचल तेज वाले हैं।[ऋग्वेद 10.170.3]
अविचल :: नियमित, दृढ़, संतुलित, साबित, धीर, स्थिर, स्तब्ध, अचल, निस्तब्ध, अडिग, अटल, गतिहीन; unmoving, motionless, unfaltering, steady.
Sury Dev is best amongest all shining-illuminated objects and ahead of them. He is the winner of the universe and wealth. He is colossal and illuminate all objects. He extended for generating rains. He is a form of might and possess steady radiance.
विभ्राजञ्ज्योतिषा स्व१रगच्छो रोचनं दिवः। येनेमा विश्वा भुवनान्याभृता विश्वदेव्यावता
हे सूर्य देव! आप ज्योति से प्रकाशमय होकर आकाश के उज्ज्वल स्थान में गए है। आपका प्रताप सारे कर्मों का सहायक है, समस्त (श्रौत और स्मार्त) यज्ञों के अनुकूल और सारे भुवनों को पुष्टि देनेवाला है।[ऋग्वेद 10.170.4]
Hey Sury Dev! You got illuminated and attained bright place in the space. Your splendour-glory is helpful in all endeavours-efforts and favourable to the Yagy (Shroutr and Smart) and nourish all abodes.(23.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (171) :: ऋषि :- इटो, भार्गव; देवता :- इन्द्र; छन्द :- गायत्री।
त्वं त्यमिटतो रथमिन्द्र प्रावः सुतावतः। अशृणोः सोमिनो हवम्
हे इन्द्र देव! जिस समय इट ऋषि ने सोमरस प्रस्तुत किया, उस समय आपने उनके रथ की रक्षा की, सोमयुक्त उन इट ऋषि की आपने पुकार श्रवण की।[ऋग्वेद 10.171.1]
Hey Indr Dev! When It Rishi offered you Somras, you protected his charoite and responded to his call.
त्वं मखस्य दोधतः शिरोऽव त्वचो भरः। अगच्छः सोमिनो गृहम्
यज्ञ कम्पित हो गया, धनुर्धारी यज्ञ का मस्तक शरीर से आपने अलग कर दिया। सोमवाले इट ऋषि के गृह में आप पधारें।[ऋग्वेद 10.171.2]
The Yagy trembled, you beheaded the Yagy wielding bow. Come to the house of It Rishi possessing Somras.
त्वं त्यमिन्द्र मर्त्यमास्त्रबुन्धाय वेन्यम्। मुहुः श्रथना मनस्यवे
हे इन्द्र देव! अस्त्र बुध्न के पुत्र ने बार-बार आपकी स्तुति की; इसलिए आपने वेन पुत्र पृथु को उनके वशीभूत कर दिया।[ऋग्वेद 10.171.3]
वशीभूत :: मातहत, अधीन किया हुआ, नरम किया हुआ, व्यसनी, लीन; subjugated, subdued, addicted.
Hey Indr Dev! Bughn, son of Astr repeatedly prayed to you, therefore you granted control (subjugated) of Prathu son of Ven to him.
त्वं त्यमिन्द्र सूर्यं पश्चा सन्तं पुरस्कृधि। देवानां चित्तिरो वशम्
हे इन्द्र देव! जिस समय रम्य मूर्ति सूर्य देव पश्चिम की ओर जाते हैं, उस समय देवगण भी नहीं जानते कि, वे कहाँ गये? आप फिर उन सूर्यदेव को पूर्व की ओर ले आते हैं।[ऋग्वेद 10.171.4]
रम्य :: रमणीय; elegant, amusing.
Hey Indr Dev! When elegant Sury Dev moves to west Demigods fail to identify his location. You bring back Sury Dev to the East.(23.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (172) :: ऋषि :- संवर्त, ओगिरस; देवता :- उषा, छन्द :- विराट्।)
आ याहि वनसा सह गावः सचन्त वर्तनिं यदूधभिः
चमत्कारित तेज के द्वारा आप पधारें। परिपूर्ण स्तन के साथ गायें मार्ग में रहती है।[ऋग्वेद 10.172.1]
Arrive here with amazing aura-radiance. Cows are present over the path with udders full of milk.
आ याहि वस्व्या धिया मंहिष्ठो जारयन्मखः सुदानुभिः
हे देवी उषा! उत्तम स्तोत्र ग्रहण करने के लिए आप पधारें। यज्ञकर्त्ता उत्तम दान-सामग्री लेकर श्रेष्ठ दातृत्व के साथ यज्ञ-सम्पादित करता है।[ऋग्वेद 10.172.2]
Hey Usha Devi! Come to accept excellent Strotr. Yagy performer has excellent goods for donation.
पितुभृतो न तन्तुमित्सुदानवः प्रति दध्मो यजामसि
अन्न-संग्रह करके हम उत्तमोत्तम वस्तुओं का दान करने को उद्यत हैं। सूत्र के समान इस यज्ञ का हम विस्तार करते हैं। आपको हम यज्ञ देते हैं।[ऋग्वेद 10.172.3]
Having stored food grains, we intend to donate best goods. We extend this Yagy like Sutr-thread.
उषा अप स्वसुस्तमः सं वर्तयति वर्तनिं सुजातता
देवी उषा ने अपनी बहन रात्रि का अन्धकार दूर किया। उत्तम रूप से वृद्धि प्राप्त करके रथ को संचालित किया।[ऋग्वेद 10.172.4]
Devi Usha remove the darkness of her sister Ratri-night. Having attained growth through best method-means you navigated the charoite.(24.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (173) :: ऋषि :- ध्रुव, आंगिरस; देवता :- राजा; छन्द :- अनुष्टुप्।
आ त्वाहार्षमन्तरेधि ध्रुवस्तिष्ठाविचाचलिः।
विशस्त्वा सर्वा वाञ्छन्तु मा त्वद्राष्ट्रमधि भ्रशत्
हे राजन! मैंने आपको राष्ट्र का स्वामी बनाया। आप इस देश के प्रभु बनें। अटल, अविचल और स्थिर होकर रहें। प्रजा आपकी अभिलाषा पूर्ण करें। आपका राजत्व नष्ट न होने पावे।[ऋग्वेद 10.173.1]
Hey king! I made you the Lord of the nation. Become the Lord of this country. Remain unmoved, firm determined. The populace should fulfil your desire. Your kingship should survive.
इहैवैधि माप च्योष्ठाः पर्वतइवाविचाचलिः। इन्द्रइवेह ध्रुवस्तिष्ठेह राष्ट्रमु धारय
आप यहीं पर्वत के समान अविचल होकर रहें। राज्यच्युत न होवें। इन्द्र देव के समान निश्चल होकर यहाँ रहें। यहाँ राज्य को धारण करें।[ऋग्वेद 10.173.2]
You should remain firm-determined like a mountain. You should not loose your kingdom. Remain firm like Indr Dev. Rule the country.
इममिन्द्रो अदीधरद् ध्रुवं ध्रुवेण हविषा। तस्मै सोमो अधि ब्रवत्तस्मा उ ब्रह्मणस्पतिः
अक्षय्य होमीय द्रव्य पाकर इन्द्र देव ने इस नवाभिषिक्त राजा को आश्रय प्रदान किया। ब्रह्मणस्पति ने आशीर्वाद दिया।[ऋग्वेद 10.173.3]
Having attained imperishable goods for the Yagy Indr Dev granted asylum to the king. Brahman Spati blessed him.
ध्रुवा द्यौर्भुवा पृथिवी ध्रुवासः पर्वता इमे। ध्रुवं विश्वमिदं जगद् धुवो राजा विशामयम्
जिस प्रकार आकाश, पृथ्वी, समस्त पर्वत और सारा विश्व निश्चल है, उसी प्रकार ही यह राजा भी प्रजावर्ग के बीच में स्थिर रहें।[ऋग्वेद 10.173.4]
The way sky, earth, all mountains and this whole universe is immovable, similarly this kind should maintain his position amongest the populace.
Each and every object viz. Sun, Moon, planets, constellations, stars are moving, maintaining position and fixed distance between them. Both attraction and repulsion acts, simultaneously.
ध्रुवं ते राजा वरुणो ध्रुवं देवो बृहस्पतिः। ध्रुवं त इन्द्रश्चाग्निश्च राष्ट्रं धारयतां ध्रुवम्॥
वरुण राजा आपके राज्य को अविचल करें, वृहस्पति देव अविचल करें, इन्द्र देव और अग्नि देव भी इसे अविचल रूप से धारण करें।[ऋग्वेद 10.173.5]
Varun Dev should make his empire secure, Brahaspati Dev should make it undisturbed and Indr Dev along with Agni Dev should support it.  
ध्रुवं ध्रुवेण हविषाभि सोमं मृशामसि। अथो त इन्द्रः केवलीर्विशो बलिहृतस्करत्॥
ध्रुव हवि से हम सोमदेव को प्रसन्न करते हैं, वे हमें स्थिरता प्रदत्त करें। हे राजन्! इन्द्र देव प्रजा को मात्र आपके लिए बलि देने वाली बनाएं।[ऋग्वेद 10.173.6]
We please Som Dev with Dhruv Havi-oblations. Let him grant us stability. Hey King! Indr Dev should make the population to make offerings to you only.(24.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (174) :: ऋषि :- अभीवर्त, आंगिरस;  देवता :- राजा;  छन्द :- अनुष्टुप्।
अभीवर्तेन हविषा येनेन्द्रो अभिवावृते। तेनास्मान् ब्रह्मणस्पतेऽभि राष्ट्राय वर्तय
यज्ञ-सामग्री लेकर देवगणों के निकट गमन करना होगा। यज्ञ-सामग्री पाकर इन्द्र देव अनुकूल हुए हैं। हे ब्रह्मण स्पति! ऐसी यज्ञ-सामग्री के साथ हमने यज्ञ किया है; इसलिए हमें राज्य-प्राप्ति के लिए प्रवृत्त करें।[ऋग्वेद 10.174.1]
We have to move close to demigods with Yagy related goods. Having received the Yagy goods, Indr Dev became favourable.
अभिवृत्य सपत्नानभि या नो अरातयः। अभि पृतन्यन्तं तिष्ठाभि यो न इरस्यति
जो विपक्षी है, जो हमारे हिंसक शत्रु हैं, जो सेना लेकर युद्ध करने को आते हैं और जो हमसे द्वेष करते हैं, हे राजन्! उनको पराजित करें।[ऋग्वेद 10.174.2]
Hey king! Defeat those who oppose us, are our violent enemies, come with army to fight with us and envy us.
अभि त्वा देवः सविताभि सोमो अवीवृतत्। अभि त्वा विश्वा भूतान्यभीवर्तो यथाससि
सविता देव आपके प्रति अनुकूल हुए हैं। सोमदेव अनुकूल हुए हैं और समस्त प्राणी आपके अनुकूल हुए हैं। इस प्रकार आपने सबके पास आश्रय पाया है।[ऋग्वेद 10.174.3]
Let Savita Dev become favourable to you. Som Dev and all living beings haves become favourable. In this manner your have obtained asylum-support of all.
येनेन्द्रो हविषा कृत्व्यभवद् द्युम्न्युत्तमः। इदं तदक्रि देवा असपत्नः किलाभुवम्
हे देवगणों! जिस यज्ञ-सामग्री के द्वारा इन्द्र देव कर्म-कर्ता, अन्नवान और उत्तम हुए हैं, उसी से मैंने भी यज्ञ किया है, इसी से मैं शत्रु रहित हुआ हूँ।[ऋग्वेद 10.174.4]
Hey demigods-deities! The Yagy goods which led Indr Dev, Yagy performers to have attained food grains and became best, I too performed Yagy and became free from enemies.
असपत्नः सपत्नहाभिराष्ट्रो विषासहिः। यथाहमेषां भूतानां विराजानि जनस्य च
मेरे शत्रु नहीं हैं। मैंने शत्रुओं का वध कर दिया है। मैं राज्य का प्रभु और विपक्ष-निवारण में समर्थ हुआ हूँ। मैं समस्त प्राणियों और मंत्री आदि का अधीश्वर हुआ हूँ।[ऋग्वेद 10.174.5]
I have no enemies. I have killed the enemies. I have become the lord of the nation and over powered my enemies-foes. I have become the lord of all living beings, ministers etc.(24.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (175) :: ऋषि :- ऊर्ध्वाग्रावा, सर्प, आर्बुदि; देवता :- ग्रावाण; छन्द :- गायत्री।
प्र वो ग्रावाणः सविता देवः सुवतु धर्मणा। धूर्षु युज्यध्वं सुनुत
हे प्रस्तरो! सविता देव अपनी शक्ति के द्वारा आपको सोमरस प्रस्तुत करने को नियुक्त करें। आप अपने कर्म में नियुक्त होवें और सोम प्रस्तुत करें।[ऋग्वेद 10.175.1]
Hey rocks-stones! Let Savita Dev appoint you for serving Somras by virtue of his strength. You should take over the job and serve Somras.
ग्रावाणो अप दुच्छुनामप सेधत दुर्मतिम्। उस्त्राः कर्तन भेषजम्
हे प्रस्तरो! दुःख-कारण को दूर करें। दूर्मति को दूर करें। गायों को हमारे लिए आषध-स्वरूप बनावें।[ऋग्वेद 10.175.2]
Hey rocks-stones! Remove reason behind the pain sorrow. Make the cows like medicine for us. 
ग्रावाण उपरेष्वा महीयन्ते सजोषसः। वृष्णे दधतो वृष्ण्यम्
आपस में मिलकर प्रस्तर एक विस्तृत की चारों ओर शोभा पा रहे हैं। रस-वर्षक सोम के प्रति वे प्रस्तर अपने बल का प्रयोग करते हैं।[ऋग्वेद 10.175.3]
The rocks together are becoming glorious. The stones use force towards Som for extracting juice-sap.
ग्रावाणः सविता नु वो देवः सुवतु धर्मणा। यजमानाय सुन्वते
हे प्रस्तरो! सविता देव सोमयज्ञ कर्त्ता यजमान के लिए आपको सोम प्रस्तुत करने के लिए नियुक्त करें।[ऋग्वेद 10.175.4]
Hey stones! Let Savita Dev appoint you for serving Somras of the Yagy performer Ritviz-host.(25.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (176) :: ऋषि :- सुनुरार्भव; देवता :- ऋभुगण, अग्नि; छन्द :- अनुष्टुप्, गायत्री।
प्र सूनव ऋभूणां बृहन्नवन्त वृजना। क्षामा ये विश्वधायसोऽश्नन् धेनुं न मातरम्
ऋभु लोग घोर युद्ध करने के लिए निकलें। जिस प्रकार बछड़े अपनी माता गाय को घेरकर खड़े हो जाते हैं; उसी प्रकार ही वे संसार को धारण करने के लिए पृथ्वी के चारों ओर संव्याप्त हो गए।[ऋग्वेद 10.176.1]
Let Ribhu Gan march for the fierce battle. The way the calves surround their mother cow, similarly they support the earth from all sides and surround it. 
प्र देवं देव्या धिया भरता जातवेदसम्। हव्या नो वक्षदानुषक्
ज्ञानी अग्नि देव को देव-योग्य स्त्रोत के द्वारा प्रसन्न करें। वह यथा नियम हमारे हव्य को वहन करें।[ऋग्वेद 10.176.2]
Enlightened Agni Dev be pleased with Strotr suitable for the demigods-deities. He should bear the oblations as per rule.
अयमु ष्य प्र देवयुर्होता यज्ञाय नीयते। रथो न योरभीवृतो घृणीवाञ्चेतति त्मना
यह वही अग्नि देव हैं, जो देवों के निकट जाते हैं। यह होता हैं। यज्ञ के लिए इनकी स्थापना की जाती है। रथ के समान यह हव्य का वहन करते हैं। यह पुरोहित-यजमानों के द्वारा घिरे हुए हैं। यह किरण युक्त है। यह स्वयं यज्ञ पूर्ण करना जानते हैं।[ऋग्वेद 10.176.3]
He is the same Agni Dev who goes near the demigods-deities. He is being established for the sake of Yagy. He is surrounded by the Purohits. It posses rays. He himself knows how to perform Yagy.
अयमग्निरुरुष्यत्यमृतादिव जन्मनः। सहसश्चित् सहीयान् देवो जीवातवे कृतः
अग्निदेव रक्षा करते हैं। इनकी उत्पत्ति अमृत के सदृश है। यह बलवान की अपेक्षा भी बली हैं। परमायुर्वृद्धि के लिए यह उत्पादित हुए हैं।[ऋग्वेद 10.176.4]
Agni Dev protect. His evolution is like nectar-elixir. He is mightier than the strong-powerful. He is evolved for enhancement of longevity-Ultimate age.(25.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (177) :: ऋषि :- पतंग, प्राजापत्य; देवता :- मायाभेद; छन्द :- त्रिष्टुप्, जगती।
पतङ्गमक्तमसुरस्य मायया हृदा पश्यन्ति मनसा विपश्चितः।
समुद्रे अन्तः कवयो वि चक्षते मरीचीनां पदमिच्छन्ति वेधसः॥
मन में विचार करके मानस चक्षु से विद्वानों ने एक पतंग (जीवात्मा) को देखा कि उसे आसुरी माया आक्रान्त कर चुकी है। विद्वानों ने कहा कि यह समुद्र के बीच घटित हो रहा है। वे (विद्वान लोग) विधाता की किरणों में जाने की इच्छा करते हैं।[ऋग्वेद 10.177.1]
The enlightened thought and saw a soul-Patang insect, under the impact of demonic tendencies. The scholars said that it was happening under the ocean. These learned people wish to know the God's desire (God's aura).
पतङ्गो वाचं मनसा बिभर्ति तां गन्धर्वोऽवदद्गर्भे अन्तः।
तां द्योतमानां स्वर्यं मनीषामृतस्य पदे कवयो नि पान्ति
पतंग मन ही मन वचन को धारण करता है। गर्भ के मध्य में ही उसे गन्धर्व ने वह वाक्य सिखाया। वह वाणी दिव्य, स्वर्ग-सुख देनेवाली और वृद्धि की अधीश्वरी है। सत्य-मार्ग में विद्वान लोग उस वाणी की रक्षा करते हैं।[ऋग्वेद 10.177.2]
Patang (Soul) follow the divine words in his innerself. During the growth in the bomb, a Gandarbh taught him this. The divine sound grant him the pleasure-comforts of the heavens and is the deity-Goddess of growth. The enlightened protect that divine sound over the way of truth.
अपश्यं गोपामनिपद्यमानमा च परा च पथिभिश्चरन्तम्।
स सध्रीचीः स विषूचीर्वसान आ वरीवर्ति भुवनेष्वन्तः
मैंने देखा गोपालक (जीवात्मा) का कभी पतन (विनाश) नहीं होता। वह कभी समीप और दूर, नाना मार्गों में भ्रमण करता है। वह कभी अनेक वस्त्र एकत्र ही पहनता है और कभी पृथक-पृथक पहनता है। इस प्रकार वह संसार में बार-बार आता-जाता है।[ऋग्वेद 10.177.3]
I saw that the Gopalak ((soul) never face down fall. It travels over different routes; some time near and some times far. It some times wear single dress and some times wear different dresses. It comes to the world several times.
Soul is a component of the God. It appear in different forms-species i.e., 84,00,000, has several incarnations, till it finally merge with the God.(25.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (178) :: ऋषि :- अरिष्टनेमि, तार्थ्य; देवता :- तार्थ्य; छन्द :- त्रिष्टुप्।
त्यमू षु वाजिनं देवजूतं सहावानं तरुतारं रथानाम्।
अरिष्टनेमिं पृतनाजमाशुं स्वस्तये तार्थ्यमिहा हुवेम
जो ताक्ष्य पक्षी (गरुड़) बली है, सोम लाने के लिए जिसे देवगणों ने भेजा था, जो विपक्ष-विजयी और शत्रुओं के रथों का जयी है, जिसके रथ का कोई विध्वंस नहीं कर सकता और जो सेनाओं को युद्ध में प्रेरित करता है, उसी को हम मंगल-कामना से बुलाते हैं।[ऋग्वेद 10.178.1]
We invoke Takshy-Garud Ji for well wishes, who was sent by the demigods to bring Som, who over power-wins the charoites of the enemies, whose charoite can not be destroyed  by any one and who inspite-motivate the armies in the war.
Garud Ji is the carrier of Bhagwan Shri Hari Vishnu. He is a bird. Hymns (Strotr, Shloks, Mantrs) of Sam Ved are heard when he move his feathers.
इन्द्रस्येव रातिमाजोहुवानाः स्वस्तये नावमिमा रुहेम।
उर्वी न पृथ्वी बहुले गभीरे मा वामैतो मा परेतौ रिषाम
हम ताक्ष्य  पक्षी की दान-शक्ति को बुलाते हैं। जिस प्रकार हम इन्द्र देव की दान शक्ति का आह्वान करते हैं, उसी प्रकार ही आह्वान करते है। मंगल के लिए हम इस दान शक्ति का विपत्ति से पार पाने के निमित्त नौका के समान आश्रय करते हैं। हे द्यावा-पृथ्वी! आप विशाल, बृहत्, सर्वव्यापक और गंभीर हैं। जाने या आने के समय हम मृत्यु को प्राप्त न हों।[ऋग्वेद 10.178.2]
We invoke Takshy's power to donate. The way we invoke the donating power of Indr Dev, similarly we invoke his power. We use his capability to donate for auspiciousness, during distress, like a boat. Hey heavens-earth! You are vast-huge, wide, pervading all space-places and are serious. We should not die while coming or leaving.
सद्यश्चिद्यः शवसा पञ्च कृष्टीः सूर्यइव ज्योतिषापस्ततान।
सहस्त्रसाः शतसा अस्य रंहिर्न स्मा वरन्ते युवतिं न शर्याम्
जिस प्रकार अपने तेज के द्वारा सूर्य देव वृष्टि-वारि का विस्तार करते हैं, उसी प्रकार ही तार्घ्य पक्षी ने अति शीघ्र चार वर्णों और निषाद को ऐश्वर्य से परिपूर्ण कर दिया। गरुड़ देव की गति शत और सहस्र धनों की दात्री है। जिस प्रकार बाण के लक्ष्य में संलग्न होने पर उसमें कोई बाधा नहीं दे सकता, उसी प्रकार ही तार्थ्य के आगमन में कोई बाधा नहीं दे सकता।[ऋग्वेद 10.178.3]
The way Sury Dev extend the rains-waters, similarly Takshy accomplished the four Varns and Nishad with grandeur. Garud Ji grants-donate hundreds and thousands kinds of wealth. The way none can disturb while arrow is shot over the target, similarly Takshy-Garud Ji can not be obstructed from coming here.(26.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (179) :: ऋषि :- शिवर, उशीनर, प्रतर्दन, काशिराज, वसुमना, रोहिदश्वा; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप्, अनुष्टुप्।
उत्तिष्ठताव पश्यतेन्द्रस्य भागमृत्वियम्। यदि श्रातो जुहोतन यद्यश्रातो ममत्तन
हे पुरोहितों उठें। इन्द्र देव के समयोचित भाग के लिए उद्योग करें। यदि वह पकाया जा चुका है, तो होम करें और यदि अभी अपक्व है, तो उत्साहपूर्वक पाक करें।[ऋग्वेद 10.179.1]
Hey Purohits-Priests, get up. Make endeavours for the share of Indr Dev, timely. If it has been baked, start the Hawan and if its unbaked, bake it enthusiastically.
श्रातं हविरो ष्विन्द्र प्र याहि जगाम सूरो अध्वनो विमध्यम्।
परि त्वासते निधिभिः सखायः कुलपा न व्राजपतिं चरन्तम्
हे इन्द्र देव! हव्य-पाक हो चुका है। समीप में आवें। सूर्य देव अपने प्रतिदिन के कुछ कम अर्धमार्ग में पहुँच चुके हैं। जिस प्रकार कुल रक्षक पुत्र इतस्ततः विचरण करने वाले गृहपति की प्रतीक्षा करते हैं, उसी प्रकार ही मित्रगण विविध यज्ञ सामग्री लेकर आपकी प्रतीक्षा करते हैं।[ऋग्वेद 10.179.2]
Hey Indr Dev! Offerings have been baked-cooked, come close. Sury Dev has travelled through his slightly less than half path. The way protector of the clan son wait for the host, similarly the friends wait for you with various Yagy goods
श्रातं मन्य ऊनि श्रातमग्नौ सुश्रातं मन्ये तदृतं नवीयः।
माध्यंदिनस्य सवनस्य दध्नः पिबेन्द्र वज्रिन् पुरुकृज्जुषाणः
पहले गाय के स्तन में दुग्ध का पाक होता है, पुनः मुझे विदित है कि वह अग्नि में पकाया जाकर अत्युत्तम पाक की अवस्था को प्राप्त होता और अतीव पवित्र तथा नवीन रूप धारण करता है। हे बहुधन-वितरणकर्ता और वज्रधर इन्द्र देव! दोपहर के यज्ञ में आपको जो 'दधिघर्माख्य हवि' का अर्पण किया जाता है, उस हवि का आस्था के साथ आप पान करें।[ऋग्वेद 10.179.3]
Milk is purified in the udder of the cow and then its heated over fire leading to extreme purity. Hey distributor-donor of several kinds of wealth Indr Dev! Eat the offerings made to you during noon prepared with curd.(26.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (180) :: ऋषि :- जय, ऐन्द्र; देवता :- इन्द्र;  छन्द :- त्रिष्टुप्।
प्र ससाहिषे पुरुहूत शत्रूञ्ज्येष्ठस्ते शुष्म इह रातिरस्तु।
इन्द्रा भर दक्षिणेना वसूनि पतिः सिन्धूनामसि रेवतीनाम्
बहुतों के द्वारा आहूत हे इन्द्र देव! आप विपक्षियों का पराभव करते हैं। आपका तेज सर्वश्रेष्ठ है। यहाँ आपका दान प्रवृत्त हो। हे इन्द्र देव! आप दाहिने हाथ से धन प्रदान करें। आप धनस्त्रोत के स्वामी हैं।[ऋग्वेद 10.180.1]
Hey Indr Dev, worshiped by many! You defeat the opponents. Your aura is better than others-excellent. You should intend to donate. Hey Indr Dev! Donate with your right hand. You are the Lord of wealth.
मृगो न भीमः कुचरो गिरिष्ठाः परावत आ जगन्था परस्याः।
सृकं संशाय पविमिन्द्र तिग्मं वि शत्रून् ताळ्हि वि मृधो नुदस्व
जिस प्रकार पर्वतवासी और कुत्सित चरणवाला पशु घोराकृति होता है, उसी प्रकार ही भयंकर मूर्ति में आप अति दूरवर्ती स्वर्गधाम से पधारें। स्वर्ग और तीक्ष्ण वज्र पर सान चढ़ाकर शत्रुओं का वध करें और विपक्षियों को दूर करें।[ऋग्वेद 10.180.2]
The way an animal residing over mountains with ugly feet has furious form, you too should have furious form and come from the heaven. Sharpen your weapons and Vajr, kill the enemies and repel the opponents.
इन्द्र क्षत्रमभि वाममोजोऽजायथा वृषभ चर्षणीनाम्।
अपानुदो जनममिन्त्र ऽ यन्तमुरुं देवेभ्यो अकृणोरु लोकम्॥
इन्द्र देव आप ऐसे दिव्य तेज को लेकर जन्में हैं, जिसके द्वारा दूसरे के अत्याचार का निवारण करते हैं। आप मनुष्यों की कामना को पूर्ण करते हो और शत्रुता करने वाले लोगों को ताड़ित करते हैं। आपने देवगणों के लिये संसार की रचना की है।[ऋग्वेद 10.180.3]
Hey Indr Dev you are born with divine aura with which you eliminate the tortures of others. You accomplish the desires of humans threaten-torture those who become enemy. You created the universe for demigods-deities.(26.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (181) :: ऋषि :- प्रथ वासिष्ठ, सप्रथ भारद्वाज, धर्म, सौर्य;  देवता :- विश्वेदेव; छन्द :- त्रिष्टुप्।
प्रथश्च यस्य सप्रथश्च नामानुष्टुभस्य हविषो हविर्यत्।
धातुद्युतानात्सवितुश्च विष्णो रथंतरमा जभारा वसिष्ठः
जिन (वसिष्ठ) के वंशज प्रथ हैं और जिन (भरद्वाज) के वंशीय सप्रथ हैं, उनमें से वसिष्ठ धाता, दीप्त सविता और श्रीविष्णु के पास से रथन्तर (साम-मन्त्र) ले आएं। वह अनुष्टुप् छन्द वाला और धर्म नामक हवि को शुद्ध करने वाला है।[ऋग्वेद 10.181.1]
रथंतर :: एक सामण था जो ब्रह्मा का रूप धारण करके उनके दरबार में उनकी पूजा करता था, इस सामण में बेहोशी के दौरे ठीक करने की शक्ति थी, वशिष्ठ जी ने इसी सामण से देवराज इंद्र को होश में लाये थे। रथंतर अग्नि का पुत्र था जिसे पंचजन्य कहा जाता था, उन्हें ताराशहर भी कहा जाता था, रथंतर जयदेव और ब्रह्मा का पुत्र था। रथंतर एक मंत्रशरीर था। यह अलग-अलग वर्णन मन्वतर भेद से है। 
Prath descendant of Vashishth, Saprath descendant of Bhardwaj, out of them Vashishth should bring Dhata, aurous Savita and Shri Hari Vishnu Sam Mantr. It has the Chhand Anushtap and capable of purifying oblation termed Dharm.
अविन्दन् ते अतिहितं यदासीद्यज्ञस्य धाम परमं गुहा यत्।
धातुद्युतानात्सवितुश्च विष्णोर्भरद्वाजो बृहदा चक्रे अग्नेः
जिस अति निगूढ़ 'बृहत्' (सोम-मन्त्र) के द्वारा यज्ञानुष्ठान होता है और जो तिरोहित था, उसे सविता आदि ने पाया। धाता, दीप्त सविता, श्रीविष्णु और अग्नि देव के पास से भरद्वाज 'बृहत्' को ले आये।[ऋग्वेद 10.181.2]
तिरोहित :: छिपा हुआ, अदृश्य, ग़ायब, प्रच्छन्न, छादित, तिरोभूत, चादर लगाया हुआ, ढका हुआ; disappeared, vanished,  disappeared, covered.
Savita Dev achieved the highly intricate, covered Brahat (Som Mantr) through organising Yagy. Bhardwaj brought Brahat from Dhata, illuminated Savita, Shri Hari Vishnu and Agni dev.
तेऽविन्दमनसा दीध्याना यजुः ष्कन्नं प्रथमं देवयानम्।
धातुर्युतानात्सवितुश्च विष्णोरा सूर्यादभरन् घर्ममेते
अभिषेक क्रिया, निष्पादक 'धर्म' (यजुर्वेदीय मन्त्र) यज्ञ कार्य में प्रधान रूप से उपयोगी है; धाता आदि देवगणों ने उसका मन ही मन ध्यान करके उसे प्राप्त किया। पुरोहित गण, धाता, श्री विष्णु और सूर्य देव के पास से 'धर्म' को ले आये हैं।[ऋग्वेद 10.181.3]
अभिषेक :: जल छिड़कना, राजा के सिंहासनारोहण का अनुष्ठान; consecration, ablution.
निष्पादन :: कार्यान्वयन, अमल में लाना, फाँसीं, प्राण दण्ड, पालन, कार्य, पालन करना, करना; execution, performance, perform.
Consecration and execution of Dharm (Mantr from Yajur Ved) and mainly useful in the Yagy related jobs. Dhata and other demigods meditated & attained him. Purohits-Priests, Dhata Shri Hari Vishnu brought Dharm from Sury Dev.(28.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (182) :: ऋषि :- तमुर्मूर्धा, बार्हस्पत्य; देवता :- बृहस्पति; छन्द :- त्रिष्टुप्।
बृहस्पतिर्नयतु दुर्गहा तिरः पुनर्नेषदघशंसाय मन्म।
क्षिपदशस्तिमप दुर्मतिं हन्नथा करद्यजमानाय शं योः
बृहस्पति देव दुर्गति को नष्ट करें, पाप-नाश के लिए स्तुति की स्फूर्त्ति कर दें, अमंगल को नष्ट कर दें और दुर्मत्ति को दूर कर दें। वह यजमान के रोग का नाश कर दें और भय को हर ले जायें।[ऋग्वेद 10.182.1]
दुर्गति :: दुर्दशा, दरिद्रता; misery, misadventure, turmoil, misfortune.
स्फूर्त्ति :: फुरती, तेज़ी, स्फुरण; vitality, agility, quickness.
Let Brahaspati Dev vanish inauspiciousness, misery, negative thoughts-ideas & fil the Stuti with agility. Let him destroy the ailments of the Ritviz-hosts and remove fear.
नराशंसो नोऽवतु प्रयाजे शं नो अस्त्वनुयाजो हवेषु।
क्षिपदशस्तिमप दुर्मतिं हन्नथा करद्यजमानाय शं योः
प्रयाज में नाराशंस नामक अग्निदेव हमारी रक्षा करें, अनुयाज में भी वह हमारा मंगल करें। अमंगल को नष्ट कर दें और दुर्मति को दूर कर दें। वह यजमान के रोग का नाश कर दें और भय को हर ले जायें।[ऋग्वेद 10.182.2]
तपुमूर्धा तपतु रक्षसो ये ब्रह्मद्विषः शरवे हन्तवा उ।
क्षिपदशस्तिमप दुर्मतिं हृन्त्रथा करद्यजमानाय शं योः
स्तोत्र-द्वेषी राक्षसों को प्रतप्त-शिरा बृहस्पति जलावें। ऐसा होने पर हिंसक मर जायगा। वह अमंगल को नष्ट कर दें और दुर्मति को दूर कर दें। वह यजमान के रोग का नाश कर दे और भय को हर ले जायें।[ऋग्वेद 10.182.3]
Let Brahaspati Dev burn the demons who are envious to Strotr. If it happens the violent will die. He should destroy inauspiciousness and wickedness. He should destroy the diseases of Ritviz-hosts and remove fear.(28.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (183) :: ऋषि :- प्रजावान्, प्रजापति; देवता :- यजमान, यजमानपत्नी, होत्राशिष; छन्द :- त्रिष्टुप्।
अपश्यं त्वा मनसा चेकितानं तपसो जातं तपसो विभूतम्।
इह प्रजामिह रयि रराणः प्र जायस्व प्रजया पुत्रकाम
हे यजमान! मैंने मनरूपी चक्षु से आपको देखा। आप ज्ञानी हैं, तपस्या से उत्पन्न होकर तपस्या के द्वारा श्री-वृद्धि प्राप्त की है। यहाँ पुत्रादि और धन प्राप्त करके प्रसन्न होवें। पुत्र ही आपकी कामना है; इसलिये पुत्र ही उत्पन्न करें।[ऋग्वेद 10.183.1]
Hey Yajman-host! I saw you with the eyes of my innerself (mind & heart). You are enlightened-learned, evolved out of ascetics & have attained grandeur due to ascetics. Be happy having got sons and wealth. You wish to have sons, hence proginate sons.
अपश्यं त्वा मनसा दीध्यानां स्वायां तनू ऋत्व्ये नाधमानाम्।
उप मामुचा युवतिर्बभूयाः प्र जायस्व प्रजया पुत्रकामे
हे पत्नी! मैने मनरूपी चक्षु से देखा कि आपकी मूर्ति उज्ज्वल है। आप यथासमय अपने शरीर में गर्भाधान की कामना करती हैं। आपने पुत्र की इच्छा की है। मेरे पास आकार आप युवा हो जाओ। आप पुत्र उत्पन्न करें।[ऋग्वेद 10.183.2]
Hey wife! I saw you with the eyes of my innerself that your image is bright. You desire to conceive as per your wish at due time. You wish to have son. Come near me and become young. Produce son.
अहं गर्भमदधामोषधीष्वहं विश्वेषु भुवनेष्वन्तः।
अहं प्रजा अजनयं पृथिव्यामहं जनिभ्यो अपरीषु पुत्रान्
मैं होता हूँ। मैं वृक्षादि में गर्भाधान का कारण हूँ। मैं ही अन्य प्राणियों में भी गर्भाधान करता हूँ। मैं पृथ्वी पर प्रजा उत्पन्न करता हूँ। अन्य स्त्रियों में भी मैं पुत्र उत्पन्न करने वाला हूँ, यज्ञ करके सब में पुत्र उत्पन्न कर सकता हूँ।[ऋग्वेद 10.183.3]
I am the Yagy performer. I am behind pregnancy of the trees etc. I impregnate the other living beings. I produce populace over the earth. I produce sons in other women. I can produce sons in other all by performing Yagy.(28.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (184) :: ऋषि :- त्वष्टा, गर्भकर्त्ता या विष्णु, प्रजापति; देवता :- विष्णु, त्वष्टा प्रजापति, धातार, सिनीवाली, सरस्वती, अश्विनी कुमार; छन्द :- अनुष्टुप्।
विष्णुर्योनिं कल्पयतु त्वष्टा रूपाणि पिंशतु।
आ सिञ्चतु प्रजापतिर्धाता गर्भ दधातु ते
स्त्री के वरांग को श्रीविष्णु गर्भाधान के उपयुक्त कर दें, त्वष्टा स्त्री-पुरुष के अभिवयञ्जक चिह्नों का अवयव कर दें, प्रजापति वीर्य-पात में सहायक हों और धाता आपके गर्भ को धारण करें।[ऋग्वेद 10.184.1]
Let Shri Hari Vishnu make the ovary suitable to be conceived. Twasta should fuse organs of male & female (intercourse). Prajapati should help in falling-spraying of sperms in the ovary. Let Dhata support the embryo.
गर्भ धेहि सिनीवालि गर्भ धेहि सरस्वति। गर्भ ते अश्विनौ देवावा धत्तां पुष्करस्रजा
हे सिनी वाली! गर्भ धारण करें। हे सरस्वती! आप भी गर्भ का धारण (रक्षण) करे। स्वर्णमय कमल का आभूषण धारण करने वाले दोनों अश्विनी कुमार आपका गर्भ उत्पादित करें।[ऋग्वेद 10.184.2]
Hey Sini Wali! Get conceived. Hey Saraswati! Protect the embryo. Ashwani Kumars wearing golden ornaments, should produce your zygote-embryo.
हिरण्ययी अरणी यं निर्मन्थतो अश्विना । तं ते गर्भ हवामहे दशमे मासि सूतवे
हे पत्नी! आपकी गर्भस्थ सन्तान के लिए दोनों अश्विनी कुमार जो सुवर्ण निर्मित दो अरणियों का घर्षण किये हुए हैं, दसवें मास में प्रसव होने के लिए आपकी उसी गर्भस्थ संतान को हम बुला रहे हैं।[ऋग्वेद 10.184.3]
Hey wife! Ashwani Kumars are rubbing the wood covered with gold for the sake of your foetus-infant in the womb. We are calling your infant in the womb for delivery-birth in the tenth month.(28.02.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (185) :: ऋषि :- सत्यधृति, वारुणि; देवता :- आदित्य (स्वस्त्यन); छन्द :- गायत्री।
महि त्रीणामवोऽस्तु द्युक्षं मित्रस्यायार्यम्णः। दुराधर्षं वरुणस्य
हम मित्र, अर्यमा और वरुण देव का सतेज, दुर्द्धर्ष और महान आश्रय प्राप्त करें।[ऋग्वेद 10.185.1]
Let us attain asylum under Mitr, Aryma and Varun Dev with their might-aura, invincible and great powers.
नहि तेषाममा चन नाध्वसु वारणेषु। ईशे रिपुरधशंसः
गृह, पथ और दुर्गम स्थान में उन तीनों के आश्रित व्यक्तियों के ऊपर किसी द्वेष करने वाले शत्रु की चाल काम नहीं करती।[ऋग्वेद 10.185.2]
A person under their asylum remain unaffected by envious in the house, path and difficult terrain.
यस्मै पुत्रासो अदितेः प्र जीवसे मर्त्याय। ज्योतिर्यच्छन्त्यजस्त्रम्
ये तीनों अदिति-पुत्र जिसे निरन्तर ज्योति देते हैं, उसकी जीवन-रक्षा होती है और उस पर किसी शत्रु की नहीं चलती।[ऋग्वेद 10.185.3]
A person who is continuously receiving-aura radiance from these three sons of Aditi, is protected-his life is saved and from the wickedness of the enemy.(01.03.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (186) :: ऋषि :- वातायन, उलो; देवता :- वायु; छन्द :- गायत्री।
वात आ वातु भेषजं शंभु मयोभु नो हृदे। प्र ण आयूँषि तारिषत्
औषध के समान होकर वायुदेव हमारे हृदय के लिए पधारें। वह कल्याणकर और सुखकर हो। वह आयु का विस्तार करें।[ऋग्वेद 10.186.1]
Let Vayu Dev evolve in our hearts like a medicine. He should be a well wisher and comfortable. He should elongate our longevity.
उत वात पितासि न उत भ्रातोत नः सखा। स नो जीवातवे कृधि
हे वायु देव! आप हमारे पिता, भाई और मित्र हैं। आप हमारे जीवन के लिए कल्याणकारी औषधियाँ पहुंचावें।[ऋग्वेद 10.186.2]
Hey Vayu Dev! You are our father, brother and friend. Bring useful, welfare related medicines to us.
यददो वात ते गृहे ३ मृतस्य निधिर्हितः। ततो नो देहि जीवसे॥
हे वायु देव! आपके गृह में यह जो अमृत की निधि स्थापित है, उससे हमारे जीवन के लिए अमृत प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.186.3]
Hey Vayu Dev! The wealth in the form of elixir-nectar established in your house should grant elixir to us.(01.03.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (187) :: ऋषि :- अग्नि, वत्स; देवता :- अग्नि; छन्द :- गायत्री।
प्राग्नये वाचमीरय वृषभाय क्षितीनाम्। सः नः पर्षदति द्विषः
हे मनुष्यों! मनुष्यों के कामवर्षक अग्नि देव के लिये स्तुति प्रेरित करें। वह हमें शत्रु के हाथ से बचावें।[ऋग्वेद 10.187.1]
Hey humans! Recite prayers for Agni Dev, who accomplish your desires. He should protect us from the enemies.
यः परस्याः परावतस्तिरो धन्वातिरोचते। स नः पर्षदति द्विषः
अग्नि देव अत्यन्त दूर देश से आकाश को पार करके आये हैं। वह हमें शत्रु के हाथ से बचावें।[ऋग्वेद 10.187.2]
Agni Dev has invoked-arrived from a distant place, having crossed the sky-space. He should protect us from the enemies.
यो रक्षांसि निजूर्वति वृषा शुक्रेण शोचिषा। सः नः पर्षदति द्विषः
वृष्टि-वर्षक अग्नि देव उज्ज्वल, शिखा के द्वारा राक्षसों का वध करते हैं। वह हमें शत्रु के हाथ से बचावें।[ऋग्वेद 10.187.3]
Rain showering Agni Dev kill the demons with his flames. He should save from the enemies. 
यो विश्वाभि विपश्यति भुवना सं च पश्यति। सः नः पर्षदति द्विषः
वह सारे भुवनों का अलग-अलग रूप से निरीक्षण करते हैं, मिलित भाव से भी पर्यवेक्षण करते हैं। वह हमें शत्रु के हाथ से बचावें।[ऋग्वेद 10.187.4]
He supervise all abodes separately and jointly observe them. He should save from the enemies. 
यो अस्य पारे रजसः शुक्रो अग्निरजायत। सः नः पर्षदति द्विषः
उन अग्नि देव ने द्युलोक अर्थात् स्वर्ग के उस पार में उज्ज्वल मूर्ति में जन्म ग्रहण किया, वह हमें शत्रु के हाथ से बचावें।[ऋग्वेद 10.187.5]
Agni Dev who took birth on the other side of heavens as a bright figure-idol, should save from the enemies.(01.03.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (188) :: ऋषि :- अग्नि, श्येन; देवता :- जात वेदाग्नि; छन्द :- गायत्री।
प्र नूनं जातवेदसमश्वं हिनोत वाजिनम्। इदं नो बर्हिरासदे
हे पुरोहित-यजमानों! ज्ञानी अग्नि देव को प्रज्वलित करें। वह चतुर्दिग्व्यापी और अन्नवान है, वह आकर कुश पर बैठे।[ऋग्वेद 10.188.1]
Hey Purohit-Hosts! Ignite enlightened Agni Dev. He pervades the four directions and possess food grains. He should come and occupy the seat.
Agni Dev is synonym to fire.
अस्य प्र जातवेदसो विप्रवीरस्य मीळ्हुषः। महीमियर्मि सुष्टुचिम्
बुद्धिमान् यजमान अग्नि देव के पुत्र हैं। अग्नि देव वृष्टि-वारि का सेचन करते हैं। इनके लिए मैं विस्तृत और शोभन स्तुति प्रेरित करता हूँ।[ऋग्वेद 10.188.2]
Intelligent hosts are the sons of Agni Dev. Agni Dev generate rains and water. Hence I offer vast and beautiful-glorious Stuti-prayer.
या रुचो जातवेदसो देवत्रा हव्यवाहनीः। ताभिर्नो यज्ञमिन्वतु
अग्नि देव अपनी काली, कराली आदि रुचिकर शिखाओं के द्वारा देव गणों के पास हवि ले जाते हैं। वह उनके साथ हमारे यज्ञ में पधारें।[ऋग्वेद 10.188.3]
कराली :: भीषण रूप वाली स्त्री; a furious woman.
Agni Dev carry oblations with his black, furious flames to demigods-deities. He should join our Yagy along with them.(02.03.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (189) :: ऋषि :- सार्पराज्ञी; देवता :- आत्मा या सूर्य; छन्द :- गायत्री।
आयं गौः पृत्निरक्रमीदसदन्मातरं पुरः। पितरं च प्रयन्त्स्वः
गति परायण और तेजस्वी सूर्य देव उदयाचल को प्राप्त करके अपनी माता पूर्व दिशा का आलिंगन करते हैं। अनन्तर वह अपने पिता आकाश की ओर जाते हैं।[ऋग्वेद 10.189.1]
Devoted to motion, radiant Sury Dev embraces his mother in the east. Thereafter, he moves to his father sky.
अन्तश्चरति रोचनास्य प्राणादपानती। व्यख्यन्महिषो दिवम्
इनकी देह में दीप्ति विचरण करती है। वह दीप्ति इनके प्राण के बीच से निकल कर आ रही है। महान् होकर इन्होंने आकाश को व्याप्त किया।[ऋग्वेद 10.189.2]
His body is filled with aura-radiance. That aura comes through his life form-breath, vital. He became great and pervaded the sky.
त्रिंशद्धाम वि राजति वाक्पतङ्गाय धीयते। प्रति वस्तोरह द्युभिः
सूर्य देव के तीस स्थान (मुहूर्त-दो खण्ड) शोभा पाते हैं। गति-परायण सूर्य देव के लिये स्तुति उच्चारित की जा रही है। वह प्रतिदिन अपनी किरणों से विभूषित होते हैं।[ऋग्वेद 10.189.3]
Thirty divisions of Sury Dev (Muhurt, two segments) are glorified. Prayers are recited for Sury Dev, devoted to movement.(02.03.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (190) :: ऋषि :- अघमर्षण, मधुच्छन्द; देवता :- भाववृत्त; छन्द :- अनुष्टप्।
ऋतं च सत्यं चाभीद्धात्तपसोऽध्यजायत। ततो रात्र्यजायत ततः समुद्रो अर्णवः॥
प्रज्वलित तपस्या से यज्ञ और सत्य उत्पन्न हुए। अनन्तर दिन रात्रि उत्पन्न हुए और इसके अनन्तर जल से पूर्ण समुद्र की उत्पत्ति हुई।[ऋग्वेद 10.190.1]
Dedicate ascetics-Tapasya led to the evolution of Yagy & truth. Thereafter, day & night appeared, followed by the formation of ocean.
समुद्रादर्णवादधि संवत्सरो अजायत। अहोरात्राणि विदधद्विश्वस्य मिषतो वशी॥
सारे संसार के वह स्वामी हैं। जल-पूर्ण समुद्र से संवत्सर उत्पन्न हुआ। ईश्वर दिन-रात्रि को बनाते हैं। निमिष आदि वाले सारे संसार के वह स्वामी हैं।[ऋग्वेद 10.190.2]
HE is the lord of the whole universe. Sanvatsar evolved out of the ocean full of water. The Almighty frame the day & night. HE is lord of whole universe having Nimish ( time unit equivalent to blink of eye).
सूर्याचन्द्रमसौ धाता यथापूर्वमकत्पयत्। दिवं च पृथिवीं चान्तरिक्षमथो स्वः
पूर्व काल के अनुसार ही ईश्वर ने सूर्य, चन्द्रमा, सुखकर स्वर्ग, पृथ्वी और अन्तरिक्ष का निर्माण किया।[ऋग्वेद 10.190.3]
The Almighty created the Sury, Moon-Chandr, comfortable heavens, earth and the space-sky as it used to be before.(02.03.2025)
ऋग्वेद संहिता, दशम मण्डल सूक्त (191) :: ऋषि :- संवनन, आंगिरस; देवता :- अग्नि, संज्ञा; छन्द :- अनुष्टुप, त्रिष्टुप्।
संसमिद्युवसे वृषन्नग्ने विश्वान्यर्य आ। इळस्पदे समिध्यसे स नो वसून्या भर
हे अग्नि देव! आप कामवर्षक और प्रभु हैं। आप विशेष रूप से प्राणियों में मिश्रित हैं। आप यज्ञ-वेदी पर प्रज्वलित होते हैं। हमें धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 10.191.1]
Hey Agni Dev! You accomplish the desire and is a Lord ( a fraction of God). You are especially mixed up with the living beings. You are ignited over the Yagy Vedi (Yagy site). Grant us money-wealth.
सं गच्छध्वं सं वदध्वं सं वो मनांसि जानताम्। देवा भागं यथा पूर्वे संजानाना उपासते
हे स्तोताओं। आप परस्पर मिल-जुलकर चलें, एक साथ होकर स्तोत्र उच्चारित करें और आप लोगों का मन एक-सा हो। जिस प्रकार प्राचीन देवता एकमत होकर अपना हविर्भाग स्वीकार करते है, उसी प्रकार ही आप लोग भी एक-मत होकर धनादि ग्रहण करें।[ऋग्वेद 10.191.2]
Hey Stotas! You should work together, in unison. Recite the Strotr together. Your innerself is alike. The way the eternal demigods accept the offerings in unison, you too should accept the wealth in unison. 
समानो मन्त्रः समितिः समानी समानं मनः सह चित्तमेषाम्।
समानं मन्त्रमभि मन्त्रये वः समानेन वो हविषा जुहोमि
इन पुरोहितों की स्तुति एक-सी हो, इनका आगमन एक साथ हो और इनके मन (अन्तःकरण) तथा चित्त (विचारजन्य ज्ञान) एकविध हों। पुरोहितों, मैं आपको एक ही मन्त्र से मन्त्रित (संस्कृत) करता हूँ और आपका साधारण हवि से हवन करता हूँ।[ऋग्वेद 10.191.3]
The prayers of these Purohits-Priests should be alike. Their movements too should be alike. Their innerself and thoughts-ideas should be alike. I am sanctising the Purohits with one Mantr and perform Hawan with normal offerings-oblations.
समानी व आकूतिः समाना हृदयानि वः। समानमस्तु वो मनो यथा वः सुसहासति
हे यजमान और पुरोहितों! आपके हृदय एक समान हों, आपके मन एक जैसे हों, संकल्प एक जैसे हों, जिससे आप संगठित होकर अपने सभी कार्य परिपूर्ण कर सकें।[ऋग्वेद 10.191.4]
Hey Yajman and Purohits! Your innerself, hearts, resolutions should be alike. You should  be able to accomplish all your endeavours unitedly.(02.03.2025)
ऋग्वेद का अंग्रेजी अनुवाद आज 02.03.2025 को ईश्वर की महती अनुकम्पा से पूरा हुआ। गणपति, माँ सरस्वती, भगवान् वेदव्यास और देवगुरु बृहस्पति का अनुग्रह हमें जन्म-जन्मांतरों तक प्राप्त होता रहे। 
मैं इसे अपने माता-पिता को समर्पित करता हूँ। मेरे पुत्र प्रशान्त और पत्नी श्री मति मिथिलेश का सहयोग विशेष रूप से वर्णनीय है।
I have successfully accomplished the translation of Rig Ved today i.e., 02.03.2025 by the grace of Almighty. Let the blessing of Ganpati, Maa Saraswati, Bhagwan Ved Vyas and Dev Guru Brahaspati remain with us, in following incarnations.
I devote this treatise to my parents Pt. Shri Vidya Bhushan Bhardwaj and mother Shri Mati Dharm Vati Bhardwaj. I am indebted to my son Prashant and wife Shri Mati Mithilesh without who's cooperation I could not have accomplished this feat.

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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)
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