RIG VED ऋग्वेद ( 9.1-114)
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]

ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (1) :: ऋषि :- मधुच्छन्दा, विश्वामित्र; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
स्वादिष्ठया मदिष्ठया पवस्व सोम धारया। इन्द्राय पातवे सुतः॥
हे सोम देव! आप अत्यधिक स्वादिष्ट, हर्षप्रदायक और धाररूप में प्रवाहित होने वाले हैं। आपको इन्द्र देव के पान करने के लिए निचोड़ा गया है।[ऋग्वेद 9.1.1]
Hey Som! You are very tasty, gladdening and flow as a jet. You have been extracted for Indr Dev for drinking.
रक्षोहा विश्वचर्षणिरभि योनिमयोहतम्। गुणा सधस्थमासदत्॥
दुष्टों तथा असुरों के नाशक, मनुष्यों के लिए कल्याणकारी सोम शोधित होकर और कलश में स्थापित होकर यज्ञ स्थल में प्रतिष्ठित हो गए हैं।[ऋग्वेद 9.1.2]
Som has been extracted for the destruction of wicked-vicious and the demons for the benefit of humans, filled in vessels and kept in the Yagy site.
वरिवोधातमो भव मंहिष्ठो वृत्रहन्तमः। पर्षि राधो मघोनाम्॥
हे सोम देव! आप विकाररूप शत्रुओं को नष्ट करने वाले हैं। वृत्रासुर का वध करके आप उसका विशाल धन हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.1.3]
Hey Som Dev! You destroy the enemies in the form of defects. Give us the large wealth of Vratra Sur after killing him.
अभ्यर्ष महानां देवानां वीतिमन्धसा। अभि वाजमुत श्रवः॥
हे सोम देव! आप देवगणों के यज्ञ में अन्न सहित पधारने वाले हैं। आप हमें अन्न और बल प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.1.4]
Hey Som Dev! You arrive in the Yagy of demigods-deities with food grains. Grant us food grains and strength.
त्वामच्छा चरामसि तदिदर्थं दिवेदिवे। इन्दो त्वे न आशसः॥
हे सोम देव! हम विधिपूर्वक नित्य आपकी सेवा करते हैं। हमारी इच्छाएँ सदैव आपको समर्पित रहती हैं।[ऋग्वेद 9.1.5]
Hey Som Dev! We serve you every day methodically. Our wishes are offered to you.
पुनाति ते परिस्रुतं सोमं सूर्यस्य दुहिता। वारेण शश्वता तना॥
हे सोम देव! सूर्य देव की पुत्री देवी उषा आपके पावन रस को (प्रकाशरूप) आवरण से पवित्र करती हैं।[ऋग्वेद 9.1.6]
Hey Som Dev! Daughter of Sury Dev Usha sanctify your pious extract with her cover-cast.
तमीमण्वीः समर्य आ गृभ्णन्ति योषणो दश। स्वसारः पार्ये दिवि॥
सोम को पवित्र करते समय बहनों के समान दसों ऊंगलियाँ सोमवल्ली को पकड़ती हैं।[ऋग्वेद 9.1.7]
While sanctifying Som ten fingers hold Somvalli like sisters.
तमी हिन्वन्त्यग्रुवो धमन्ति बाकुरं दृतिम्। त्रिधातु वारणं मधु॥
दसों ऊँगलियाँ इस तेजस्वी सोमरस को दबाकर निकालती हैं। इस दुःख निवारक मधुर रस में तीन प्रकार के बल विद्यमान हैं।[ऋग्वेद 9.1.8]
Ten fingers extract aurous-energetic Somras by pressing it. This pain relieving extract-sap has three kinds of forces-strength in it.
अभीममध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे॥
जिस प्रकार अहिंसित गौएँ अपने बछड़ों को पुष्ट करने के लिए उन्हें अपना दुग्ध पान कराती हैं, उसी प्रकार सोम इन्द्रदेव को पुष्टि प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 9.1.9]
The way non violent cows feed their calf to nurse them, Somras grant strength-nourishment to Indr Dev.
अस्येदिन्द्रो मदेष्वा विश्वा वृत्राणि जिघ्नते। शूरो मघा च मंहते॥
सोमरस के पान से आनन्दित होकर इन्द्र देव ने शत्रुओं का संहार करके याज्ञिकों को धनादि से युक्त किया।[ऋग्वेद 9.1.10]
Gladdened by drinking Somras, Indr Dev destroyed the enemies and pleased the Ritviz by granting them wealth.(30.06.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (2) :: ऋषि :- मेधातिथि, काण्व; देवता :-पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
पवस्व देववीरति पवित्रं सोम रंह्या। इन्द्रमिन्दो वृषा विश॥
हे सोम! आप तीव्र गति से शोधित होकर देवों की कामना करने वाले हैं। बलयुक्त होकर आप इन्द्र देव की तृप्ति के लिए प्रतिष्ठित होवें।[ऋग्वेद 9.2.1]
Hey Som! You are purified quickly and accomplish the desires of demigods-deities. After gaining strength you should satisfy Indr Dev.
आ वच्यस्व महि प्सरो वृषेन्दो द्युम्नवत्तमः। आ योनिं घर्णसिः सदः॥
हे सोम! आप यशस्वी, दीप्तिमान और कामनापूरक गुणों से युक्त हैं। आप हमें प्रचुर मात्रा में अन्न और बल प्रदान करें और अपने निर्धारित स्थल पर पधारें।[ऋग्वेद 9.2.2]
Hey Som! You are glorious, radiant and possess the ability to accomplish desires. Grant us food grains, might and move to your distinct place.
अधुक्षत प्रियं मधु धारा सुतस्य वेधसः। अपो वसिष्ट सुक्रतुः॥
इच्छा पूर्ण करने वाली शोधित हुई सोमरस की धाराएँ अपने मधुर रस को पात्र में संगृहीत करती हैं। सत्कर्म करने वाले याज्ञिक सोम को जल में मिश्रित करते हैं।[ऋग्वेद 9.2.3]
Desire accomplishing streams of purified Somras store its sweet sap. Ritviz who perform virtuous deeds mix water in Somras.
महान्तं त्वा महीरन्वापो अर्षन्ति सिन्धवः। यग्दोभिर्वासयिष्यसे॥
हे सोम! जिस समय आप गौ के दुग्ध में मिश्रित होते हैं, उस समय महान् जल भी आपकी ओर आकर्षित होते हैं।[ऋग्वेद 9.2.4]
Hey Somras! When you are mixed in cow milk, water is attracted towards you.
समुद्रो अप्सु मामृजे विष्टम्भो धरुणो दिवः। सोमः पवित्रे अस्मयुः॥
देवगणों के लोक को धारित करने वाले, जलों से युक्त, हमारी इच्छा करने वाले सोमरस जल में मिलकर और शोधित होकर हमारे निकट पधारते हैं।[ऋग्वेद 9.2.5]
Supporting the abodes of the demigods-deities, mixed with water, desirous of us Somras reach us on being purified.
अचिक्रदषा हरिर्महान्मित्रो न दर्शतः। सं सूर्येण रोचते॥
मित्र के समान प्रिय, बलदायक, हरिताभ सोमरस निचोड़े जाते समय ध्वनि करता हुआ उसी प्रकार प्रदीप्त होता है जिस प्रकार सूर्य देव प्रकाशित होते हैं।[ऋग्वेद 9.2.6]
हरिताभ :: हरियाली युक्त; हरीतिमा की आभा से युक्त; reflecting-possessing green aura.
Dear like a friend, granting strength, possessing green aura, producing sound while squeezing Somras shines like Sur Dev.
गिरस्त इन्द ओजसा मर्मृज्यन्ते अपस्युवः। याभिर्मदाय शुम्भसे॥
हे सोम! आपकी शक्ति-सामर्थ्य कर्म की प्रेरणा पाने वाले स्तोतागण वेदमन्त्रों का उच्चारण करते हैं, वे स्तुतियाँ आपके बल से ही शुद्ध होती हैं।[ऋग्वेद 9.2.7]
Hey Som! The Stotas who get inspired by your power to perform deeds, recite Mantr of Veds, purify them with your power.
तं त्वा मदाय घृष्वय उ लोककृत्लुमीमहे। तव प्रशस्तयो महीः॥
हे सोम! हम आनन्द की वृद्धि के लिए श्रेष्ठ स्तोत्रों द्वारा आपकी प्रार्थना करते हैं। संसार के कल्याण की इच्छा से आप शत्रुओं का संहार करते हैं।[ऋग्वेद 9.2.8]
Hey Som! We worship-pray you with excellent Strotrs for boosting our joy. You destroy the enemies with the desire of the welfare of the universe.
अस्मभ्यमिन्दविन्द्रयुर्मध्वः पवस्व धारया। पर्जन्यो वृष्टिमाँइव॥
हे सोम! आप मेघों द्वारा जलवर्षा के सदृश हमारे इन्द्रियबल को अपने मधुर रस की धारा से बढ़ाएँ।[ऋग्वेद 9.2.9]
Hey Som! Boost the power of our sense organs and increase the flow of your stream like the rain by clouds.
गोषा इन्दो नृषा अस्यश्वसा वाजसा उत। आत्मा यज्ञस्य पूर्व्यः॥
हे सोम देव! आप यज्ञ के मूल तथा आत्मा के रूप में हमें गौ, अश्व, अन्न और पुत्रादि प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.2.10]
Hey Som Dev! Grant us cows, food grains and sons etc. being the basis & soul of the Yagy.(01.07.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (3) :: ऋषि :- आजीगर्ति, शुनःशेप, कृत्रिम, विश्वामित्र, देवरात; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
एष देवो अमर्त्यः पर्णवीरिव दीयति। अभि द्रोणान्यासदम्॥
अमरतत्व गुण वाले ये सोम गतिमान् पक्षी के सदृश कलश में वेग से प्रविष्ट होते हैं।[ऋग्वेद 9.3.1]Immortality granting Somras flow like speedy bird into the Kalash-vessel.
एष देवो विपा कृतोऽति ह्वरांसि धावति। पवमानो अदाभ्यः॥
शत्रुओं का दमन करने वाले सोम को ऊंगलियों से निचोड़कर शोधित किया गया है।[ऋग्वेद 9.3.2]
Somras destroying the enemies, is extracted by holding & squeezing with fingers.
एष देवो विपन्युभिः पवमान ऋतायुभिः। हरिर्वाजाय मृज्यते॥
इस शोधित किए गए सोमरस को यजमान प्रार्थना द्वारा उसी प्रकार विभूषित करते हैं, जिस प्रकार युद्धोन्मुख अश्वों को भली-प्रकार सुसज्जित किया जाता है।[ऋग्वेद 9.3.3]
The purifies Somras is worship & glorified by the Ritviz, the way the horses are readied for the war.
एष विश्वानि वार्या शूरो यन्निव सत्वभिः। पवमानः सिषासति॥
अपने बल से उत्तम धनों को प्राप्त करते हुए यह सोम उसके समुचित वितरण की इच्छा करता है।[ऋग्वेद 9.3.4]
समुचित :: उचित, ठीक, यथेष्ट, वाज़िब, जो हर तरह से उत्तम हो, योग्य, उपयुक्त, जो पसंद आ जाए; decent, comely, decorous, exact, adequate, condign, right.
Som attains excellent wealth and possess the desire to distribute it adequately-properly.
एष देवो रथर्यति पवमानो दशस्यति। आविष्कृणोति वग्वनुम्॥
ये ध्वनि करते हुए शोधित सोम यज्ञ मण्डप में जाने की इच्छा करते हैं। अपने यजमानों को वह इष्ट पदार्थ प्रदान करने की इच्छा रखते हैं।[ऋग्वेद 9.3.5]
Som wish to go to the Yagy mandap, making sound. He wish to grant desired goods to the Ritviz.
एष विप्रैरभिष्टुतोऽपो देवो वि गाहते। दधद्रत्नानि दाशुषे॥
उत्तम पुरुषों से प्रसंशित ये दिव्य सोम हवि देने वाले को धन-वैभव प्रदान करते हुए जल में मिश्रित होते हैं।[ऋग्वेद 9.3.6]
Divine Somras is mixed with water granting wealth & grandeur to those excellent humans who make offerings.
एष दिवं वि धावति तिरो रजांसि धारया। पवमानः कनिक्रदत्॥
शोधित होकर शब्द करते हुए धार रूप में प्रकट हुए सोम शत्रुओं को जीतकर यज्ञ के प्रभाव से पुनः ऊर्ध्वगति को प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 9.3.7]
Som again attains higher abodes due to the impact of Yagy, when extracted-purified making sound and flowing in a current-stream by winning the enemies.
एष दिवं व्यासरत्तिरो रजांस्यस्मृतः। पवमानः स्वध्वरः॥
शत्रुओं को पराजित करने वाले यह सोम यज्ञ स्थल से दिव्य लोक में गमन करते हैं।[ऋग्वेद 9.3.8]
Som moves to divine abodes from the Yagy site after defeating the enemies.
एष प्रत्लेन जन्मना देवो देवेभ्यः सुतः। हरिः पवित्रे अर्षति॥
सनातन रीति से संस्कारित किया यह हरिताभ सोम प्राचीनकाल से ही देवताओं के लिए छानकर शोधित किया जाता है।[ऋग्वेद 9.3.9]
Som having green aura purified with ancient-eternal means, is filtered for the demigods-deities ever since.
एष उ स्य पुरुव्रतो जज्ञानो जनयन्निषः। धारया पवते सुतः॥
पोषक आहार उत्पन्न करने वाले ये सोमदेव अपने प्रवाह के क्रम में स्वाभाविक रूप से शुद्ध हो जाते हैं।[ऋग्वेद 9.3.10]
Growing nourishing food, Som cleanse itself automatically-naturally.(02.07.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (4) :: ऋषि :- हिरण्यस्तूप, आंगिरस; देवता :-पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
सना च सोम जेषि च पवमान महि श्रवः। अथा नो वस्यसस्कृधि॥
हे पवमान सोमदेव! आप देवशक्तियों को प्राप्त होने वाले हैं। आप हमें शत्रुओं पर विजय प्राप्त कराएँ।[ऋग्वेद 9.4.1]
पवमान :: पवन, वायु, समीर, स्वाहा देवी के गर्भ से उत्पन्न अग्नि के एक पुत्र का नाम, गार्हपत्य अग्नि, चंद्रमा का एक नाम, ज्योतिष्टोम यज्ञ में गाया जाने वाला एक प्रकार का स्तोत्र; being purified or strained, flowing clear, declension.
Hey Pavman Som! You are to attain divine powers. Help win the enemies.
सना ज्योतिः सना स्वर्विश्वा च सोम सौभगा। अथा नो वस्यसस्कृधि॥
हे सोम! आप तेजस्वी है, हमें सुख ओर सौभाग्य प्रदान करते हुए हमारा कल्याण करें।[ऋग्वेद 9.4.2]Hey Som! You are aurous-radiant. Grant us good luck, comforts-pleasure and ensure our welfare.
सना दक्षमुत क्रतुमप सोम मृधो जहि। अथा नो वस्यसस्कृधि॥
हे सोम! आप हमें यज्ञ करने की शक्ति प्रदान करें। शत्रुओं को पराजित करके आप हमारा कल्याण करें।[ऋग्वेद 9.4.3]
Hey Som! Grant us the power to hold Yagy. Ensure our welfare by defeating the enemies.
पवीतारः पुनीतन सोममिन्द्राय पातवे। अथा नो वस्यसस्कृधि॥
हे याजकों! आप सोमरस को शोधित करने वाले हैं। इन्द्र देव के पान के लिए सोमरस को पवित्र करें।[ऋग्वेद 9.4.4]
Hey Ritviz! You are the extractors of Somras. Purify Somras for Indr Dev's drinking.
त्वं सूर्ये न आ भज तव क्रत्वा तवोतिभिः। अथा नो वस्यसस्कृधि॥
हे सोम! आप अपने सत्कर्मों से हमें सूर्य देव की ओर प्रेरित करें, जिससे हमारा श्रेष्ठ हित हो।[ऋग्वेद 9.4.5]
Hey Som! Inspire-divert us towards Sury Dev with your virtuous deeds for our welfare-benefits.
तव क्रत्वा तवोतिभिर्योक्पश्येम सूर्यम्। अथा नो वस्यसस्कृधि॥
हे सोम! आप अपने सज्ञान और संरक्षण से सम्पन्न कर हमें अनेकानेक वर्षों तक सूर्य दर्शन से लाभान्वित करें। आप हमारा मंगल करें।[ऋग्वेद 9.4.6]
Hey Som! Help us benefit for many years with the sight of Sury Dev by granting us enlightenment and asylum.
अभ्यर्ष स्वायुध सोम द्विबर्हसं रयिम्। अथा नो वस्यसस्कृधि॥
हे आयुधकारी सोमदेव! आप हमें दिव्य तथा पार्थिव धनों से सम्पन्न करें, जिससे हम सुख को प्राप्त करें।[ऋग्वेद 9.4.7]
Hey arms wielding Som Dev! Enrich us with divine and material wealth, so that we are able to attain comforts-pleasure.
अभ्य१र्षानपच्युतो रयिं समत्सु सासहिः। अथा नो वस्यसस्कृधि॥
हे सोम देव! आप बलवान हैं। युद्ध में विजयी होने और शत्रुओं को पराजित करने वाले आप स्वयं कलश में स्थापित हों एवं हमारा मंगल करें।[ऋग्वेद 9.4.8]
Hey Som! You are mighty. Establish your self in the Kalash-vessel after the victory in the war by defeating the enemy.
त्वां यज्ञैरवीवृधन्यवमान विधर्मणि। अथा नो वस्यसस्कृधि॥
हे पवित्र सोमदेव! यज्ञ मण्डप पर यजमान अपने उत्तम स्तोत्रों द्वारा आपकी महिमा को बढ़ाते हैं। आप हमारा मंगल करें।[ऋग्वेद 9.4.9]
Hey pure-pious Som Dev! The hosts boost your glory with best Strotrs in the Yagy Mandap. Ensure our welfare.
रयिं नश्चित्रमश्विनमिन्दो विश्वायुमा भर। अथा नो वस्यसस्कृधि॥
हे सोम देव! आप हमें विचित्र वर्ण वाले अश्वों से सम्पन्न और वैभव प्रदान पर्याप्त मात्रा में प्रदान करें, जिससे हम सुख को प्राप्त करें।[ऋग्वेद 9.4.10]
Hey Som Dev! Grant us horses of various species along with prosperity leading to our comforts-pleasure.(03.07.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (5) :: ऋषि :- असित, कश्यप या देवल; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री, अनुष्टुप्।
समिद्धो विश्वतस्पतिः पवमानो वि राजति। प्रीणन्वृषा कनिक्रदत्॥
तेजस्वी, बलशाली, सभी के स्वामी सोम, शब्द करते हुआ पवित्र होते हैं और सबको सन्तुष्ट करते हैं।[ऋग्वेद 9.5.1]
Aurous, mighty lord of all Som, produce sound while cleansing and satisfy all.
तनूनपात्पवमानः शृङ्गे शिशानो अर्षति। अन्तरिक्षेण रारजेत्॥
शरीर को क्षीण न करने वाला यह पवित्र सोमरस अंतरिक्ष में दमकते हुए, उच्च स्थान से तेजस्वी रूप में स्रवित होता है।[ऋग्वेद 9.5.2]
Aurous, pure, shinning Somras flow from high places in the sky-space and do not let body degrade.
ईळेन्यः पवमानो रयिर्वि राजति द्युमान्। मधोर्धाराभिरोजसा॥
यह सोम अपनी पावन धाराओं से शोभित होता है और मनोवांछित फल प्रदान करता है। [ऋग्वेद 9.5.3]
Somras is glorified with its streams and accomplish desires.
बर्हिः प्राचीनमोजसा पवमानः स्तृणन्हरिः। देवेषु देव ईयते॥
शोधित होता हुआ यह हरिताभ सोम देवताओं के सम्मुख बिछे हुए आसन की ओर वेग से जाता है।[ऋग्वेद 9.5.4]
Extracted and purified Somras with green aura, flows with high speed towards the Mats meant for the demigods-deities.
उदातैर्जिहते वृहद्वारो देवीर्हिरण्ययीः। पवमानेन सुष्टुताः॥
उत्तम विधि से पूजित होती हुई स्वर्णिम किरणें अपने पराक्रम से दिव्य सोम के साथ प्रकट होती हैं।[ऋग्वेद 9.5.5]
Rays with golden hue arise with divine Som when worshiped with best procedures.
सुशिल्पे बृहती मही पवमानो वृषण्यति। नक्तोषासा न दर्शते॥
यह सोम महान् गुणों से युक्त, पूज्य दर्शनीय तथा देवी उषा के आगमन की इच्छा करता है। [ऋग्वेद 9.5.6]
Worshipable Som possessing great characterises, has the desire of appearance-arrival of worshipable Usha Devi.
उभा देवा नृचक्षसा होतारा दैव्या हुवे। पवमान इन्द्रो वृषा॥
मानव मात्र के द्रष्टा और होता इन दोनों देवताओं की हम प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 9.5.7]
We worship the demigods-deities who are visionary of humans and Hota.
भारती पवमानस्य सरस्वतीळा मही। इमं नो यज्ञमा गमन्तिस्त्रो देवीः सुपेशसः॥
हमारे इस पवित्र यज्ञ में भारती, सरस्वती और इडा; तीनों देवियाँ पधारें।[ऋग्वेद 9.5.8]
Let three goddesses viz. Bharti, Saraswati and Ida come to our pious Yagy.
त्वष्टारमग्रजां गोपां पुरोयावानमा हुवे। इन्दुरिन्द्रो वृषा हरिः पवमानः प्रजापतिः॥
हम प्रजा पालक त्वष्टा, हरिताभ सोम तथा कामनाओं की पूर्ति करने वाले इन्द्र देव का इस यज्ञ में आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 9.5.9]
We invoke Twasta, Haritabh, Som and desires accomplishing Indr Dev, who nourish-nurture the populace, in our Yagy.
वनस्पतिं पवमान मध्वा समङग्धि धारया।
सहस्रवल्शं हरितं भ्राजमानं हिरण्ययम्॥
हे सोमदेव! आप अपनी हजारों मधुर धाराओं से वनस्पतियों को विकसित करने वाले तथा स्वर्णिम प्रकाशयुक्त हजारों धाराओं से जीव जगत् को सिंचित करने वाले हैं।[ऋग्वेद 9.5.10]
Hey Som Dev! You nurture-nourish the herbs-vegetation with your thousands of streams and the living beings with your light rays possessing golden hue.
विश्वे देवाः स्वाहाकृतिं पवमानस्या गत।
वायुबृहस्पतिः सूर्योऽग्निरिन्द्रः सजोषसः॥
हे वायुदेव, बृहस्पतिदेव, सूर्यदेव, अग्निदेव और इन्द्रदेव! आप सभी इस यज्ञ में पधारें और उत्तम सम्मान प्राप्त करें।[ऋग्वेद 9.5.11]
Hey Vayu Dev, Brahaspati Dev, Sury Dev, Agni Dev and Indr Dev! Invoke in this Yagy and attain highest glory.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (6) :: ऋषि :- असित, कश्यप या देवल; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
मन्द्रया सोम धारया वृषा पवस्व देवयुः। अच्यो वारेष्वस्मयुः॥
हे सोम देव! आप बल देने वाले हैं। देवताओं की कामना करने वाले हम याजकों को संरक्षित करने वाले आप छलनी से आनन्ददायक धारा के रूप में निकलें।[ऋग्वेद 9.6.1]
Hey Som! You grant best strength. You accomplish our desires of invoking demigods-deities granting us asylum, should pass through the sieve as pleasure granting current.
अभि त्यं मद्यं मदमिन्दविन्द्र इति क्षर। अभि वाजिनो अर्वतः॥
हे सोमदेव! आप परमात्मा हैं, इसलिए आनन्ददायक सोम की वर्षा करें और हमें बलशाली अश्व प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.6.2]
Hey Som Dev! You are lord; hence shower pleasure giving Somras granting horses and might to us.
अभि त्यं पूर्व्य मदं सुवानो अर्ष पवित्र आ। अभि वाजमुत श्रवः॥
हे सोमदेव! आप अपने मधुर रस के द्वारा हमारे आनन्द की वृद्धि करें तथा इस यज्ञ में पधार कर हमें अन्न और बल प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.6.3]
Hey Som! Boost our pleasure with your sweet sap, join the Yagy and grant us food grains and strength.
अनु द्रप्सास इन्दव आपो न प्रवतासरन्। पुनाना इन्द्रमाशत॥
शोधित तथा शीघ्रगामी सोमरस जलधाराओं के समान उत्तम मार्ग से इन्द्र देव को प्राप्त हों।[ऋग्वेद 9.6.4]
Let extracted-purified and fast flowing Somras reach Indr Dev through best route.
यमत्यमिव वाजिनं मृजन्ति योषणो दश। वने क्रीळन्तमत्यविम्॥
वनों में उत्पन्न होने वाले, सूर्य देव के समान तेजस्वी सोम को चपल घोड़े के समान दशों ऊंगलियाँ निचोड़ती हैं।[ऋग्वेद 9.6.5]
Som which grow in forests, radiant like Sury Dev; is extracted-squeezed by ten fingers as quick as a horse.
तं गोभिर्वृषणं रसं मदाय देववीतये। सुतं भराय सं सृज॥
देवगणों के लिए बलदायक और हर्षप्रदायक सोमरस को गौ-दुग्ध में मिश्रित करते हैं।[ऋग्वेद 9.6.6]
Somras mixed with cow's milk grant strength and pleasure to demigods-deities.
देवो देवाय धारयेन्द्राय पवते सुतः। पयो यदस्य पीपयत्॥
यह दिव्य सोमरस इन्द्र देव के लिए धारारूप में गिरता है। जो उन्हें पुष्टि प्रदान करता है। [ऋग्वेद 9.6.7]
This divine Somras falls like a stream for Indr Dev and strengthen-nourish him.
आत्मा यज्ञस्य रंह्या सुष्वाणः पवते सुतः। प्रत्नं नि पाति काव्यम्॥
याजकों की मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाले यज्ञ का प्राणरूप सोम वेग से क्षरित होते हुए मन्त्र के प्रभाव से प्रवाहित होता है।[ऋग्वेद 9.6.8]
Yagy which has Somras as the life giving force-vital, accomplishes the desires of Ritviz is affected-energised by the Mantr Shakti.
एवा पुनान इन्द्रयुर्मदं मदिष्ठ वीतये। गुहा चिद्दधिषे गिरः॥
हे आनन्दवर्धक सोमदेव! स्तुतिरूपी वाणी को ग्रहण कर आप इन्द्रदेव के पान करने के उद्देश्य से यज्ञस्थल में प्रतिष्ठित होवें।[ऋग्वेद 9.6.9]
Hey pleasure granting Som! Accept our prayers and get established at the Yagy site for drinking by Indr Dev.(04.07.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (7) :: ऋषि :- असित, कश्यप या देवल; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
असृग्रमिन्दवः पथा धर्मन्नृतस्य सुश्रियः। विदाना अस्य योजनम्॥
हे यशस्वी सोम देव! धर्म कार्यों को सम्पन्न करने वाले यज्ञ में सुसंस्कृत होने वाले याजकों और देवताओं को आप भली प्रकार से जानने वाले हैं।[ऋग्वेद 9.7.1]
Hey glorious Som Dev! You know well the Ritviz and demigods-deities who accomplish the procedures in the Yagy.
प्र धारा मध्वो अग्रियो महीरपो वि गाहते। हविर्हरिष्षु वन्द्यः॥
हवियों में श्रेष्ठ, प्रशंसित, हविरूप सोम जल में मिश्रित होता हुआ मधुर रसधार द्वारा पात्र में जाता है।[ऋग्वेद 9.7.2]
Best amongest the offerings appreciable Somras is mixed with water, flows to the vessel forming a sweet current.
प्र युजो वाचो अग्रियो वृषाव चक्रदद्वने। सद्माभि सत्यो अध्वरः॥
यह अहिंसक सोमरस सत्यरूप और काम्यवर्षक है। यज्ञशाला में यह जल के सहित प्रविष्ट होता है।[ऋग्वेद 9.7.3]
Non violent Somras is truthful and accomplish the desires. It flows in the Yagy Shala mixed with water.
परि यत्काव्या कविर्नृम्णा वसानो अर्षति। स्वर्वाजी सिषासति॥
मनुष्यों में पवित्रता का संचार करने वाले सोम जब प्राथनाओं को स्वीकार करते हैं, तब बलशाली इन्द्र देव यज्ञस्थल में स्वर्ग से पधारते हैं।[ऋग्वेद 9.7.4]
Mighty Indr Dev invoke in the Yagy Mandap from heaven when Som accepts the prayers generating piousity in the humans.
पवमानो अभि स्पृधो विशो राजेव सीदति। यदीमृण्वन्ति वेधसः॥
यज्ञकर्ताओं से प्रेरित हुए सोमदेव राजा के समान प्रजा की सुरक्षा तथा शत्रुओं का संहार करने को उद्यत होते हैं।[ऋग्वेद 9.7.5]
Inspiring the Yagy performers, Som Dev protracts the populace like a king and keep-get ready to destroy the enemies.
अव्यो वारे परि प्रियो हरिर्वनेषु सीदति। रेभो वनुष्यते मती॥
शब्द के साथ पात्र में जाने वाले जल मिश्रित हरिताभ सोम पवित्र हुए ऋत्विजों द्वारा की गई प्रार्थनाओं को स्वीकार करते हैं।[ऋग्वेद 9.7.6]
Greenish Som mixed with water in a vessel, make sound, purified by the Ritviz accept their prayers.
स वायुमिन्द्रमश्विना साकं मदेन गच्छति। रणा यो अस्य धर्मभिः॥
सोम को निकालने और पवित्र करने वाले याजक हर्षप्रदायक सोमदेव के साथ वायु देव, इन्द्र देव और अश्विनी कुमारों का सान्निध्य-लाभ प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 9.7.7]
The Ritviz who extract Somras and purifies it; attains the company of Vayu Dev, Indr Dev and Ashwani Kumars.
आ मित्रावरुणा भगं मध्वः पवन्त ऊर्मयः। विदाना अस्य शक्मभिः॥
मित्र, वरुण देव और भगों के लिए जिस मधुर सोमरस की धारा को ऋषि गण प्रवाहित करते हैं, ऐसे सोम की महिमा से परिचित याजक आनन्द की प्राप्ति करते हैं।[ऋग्वेद 9.7.8]
The acquaintances get pleasure by the glory of Som, the sweet current of which flown by the Rishi Gan for Mitr, Varun Dev and Bhag.
अस्मभ्यं रोदसी रयिं मध्वो वाजस्य सातये। श्रवो वसूनि सं जितम्॥
हे पृथ्वी और आकाश! आप हमें धन-धान्य और वैभव प्रदान करने वाले हैं। आपके द्वारा हम उत्तम पोषक आहार के रूप में सोमरस भी प्राप्त करें।[ऋग्वेद 9.7.9]
Hey earth & heavens! You grant us wealth, food grains and grandeur. Let us attain Somras as an excellent nourishing food.(05.07.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (8) :: ऋषि :- असित, कश्यप या देवल; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
एते सोमा अभि प्रियमिन्द्रस्य काममक्षरन्। वर्धन्तो अस्य वीर्यम्॥
इन्द्र देव के बल को बढ़ाने वाला सोमरस उनके लिए अत्यन्त रुचिकर और इच्छित रसों की वर्षा करता है।[ऋग्वेद 9.8.1]
Somras which boosts the might of Indr Dev, showers extremely tasty desired juices for him.
पुनानासश्चमूषदो गच्छन्तो वायुमश्विना। ते नो धान्तु सुवीर्यम्॥
हे पावन सोम देव! आप वायु देव और अश्विनी कुमारों के साथ मिलकर हमें श्रेष्ठ कर्म करने वाला बल प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.8.2]
Hey pious Som Dev! You should grant us might to perform excellent deeds, along with Vayu Dev and Ashwani Kumars.
इन्द्रस्य सोम राधसे पुनानो हार्दि चोदय। ऋतस्य योनिमासदम्॥
हे सोम देव! आप हमें इन्द्र देव की आराधना के लिए प्रेरित करें। हम देवताओं के अनुकूल यज्ञकर्म हेतु उपस्थित हुए हैं।[ऋग्वेद 9.8.3]
Hey Som Dev! Inspires us to worship Indr Dev. We have come to perform favourable Yagy Karm for the sake of demigods-deities.
मृजन्ति त्वा दश क्षिपो हिन्वन्ति सप्त धीतयः। अनु विप्रा अमादिषुः॥
हे सोमदेव! सात होता और दश ऊंगलियाँ आपकी सेवा करती हैं। विप्र सत्पुरुष आपको स्तुतियों द्वारा प्रसन्न करते हैं।[ऋग्वेद 9.8.4]
Hey Som Dev! Seven Hota and their ten fingers serve you. Honourable Brahmans please you with prayers.
देवेभ्यस्त्वा मदाय कं सृजानमति मेष्यः। सं गोभिर्वासयामसि॥
हे सोम! देवगणों को प्रसन्न करने के लिए हम आपको गौ-दुग्ध में मिलाते हैं।[ऋग्वेद 9.8.5]
Hey Som! We mix you with cow milk to please the demigods-deities.
पुनानः कलशेष्वा वस्त्राण्यरुषो हरिः। परि गव्यान्यव्यत॥
शोधित होकर कलश में स्थापित होने वाले हरिताभ सोम को गौ का दुग्ध धारण कर लेता है।[ऋग्वेद 9.8.6]
Purified Somras with green hue, kept in the vessel, accepts-mixes cow milk.
मघोन आ पवस्व नो जहि विश्वा अप द्विषः। इन्दो सखायमा विश॥
हे सोमदेव! आप शत्रुओं को नष्ट करने वाले व धन प्रदान करने वाले हैं। आप मित्र रूप इन्द्र देव के साथ एकाकार हो जाएँ।[ऋग्वेद 9.8.7]
Hey Som Dev! You destroy the enemy and grant wealth. You should be unified with friendly Indr Dev.
वृष्टिं दिवः परि स्त्रव द्युम्नं पृथिव्या अधि। सहो नः सोम पृत्सु घाः॥
हे सोम देव! आप आकाश से पृथ्वी पर वर्षा करने वाले हैं। संघर्ष की शक्ति प्रदान करने वाले आप पृथ्वी पर पोषक रस उत्पन्न करें।[ऋग्वेद 9.8.8]
Hey Som Dev! You shower rains to earth from the heavens. Produce nourishing juices over the earth, being the producer-booster of energy.
नृचक्षसं त्वा वयमिन्द्रपीतं स्वर्विदम्। भक्षीमहि प्रजामिषम्॥
हे सोम! आप हमें सन्तान, अन्न, बल और सद्ज्ञान प्रदान करने वाले हैं। आप इन्द्र देव के द्वारा पान किए जाते हैं।[ऋग्वेद 9.8.9]
Hey Som! You grant us progeny, food grains, strength and virtuous learning. You are drunk by Indr Dev.(05.07.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (9) :: ऋषि :- असित, कश्यप या देवल; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
परि प्रिया दिवः कविर्वयांसि नप्त्योर्हितः। सुवानो याति कविक्रतुः॥
पृथ्वी और आकाश के मध्य स्थित होकर यह सोम ब्रह्मनिष्ठों के साथ सचेतन मनुष्यों तक पहुँचाया जाता है।[ऋग्वेद 9.9.1]
Som establishes between earth and sky to be supplied to those who are devoted to Brahm and conscious-enlightened people.
प्रप्र क्षयाय पन्यसे जनाय जुष्टो अद्रुहे। वीत्यर्ष चनिष्ठया॥
हे सोम! आप देवताओं के लिए स्तुति करने वाले याजकों के लिए यथेष्ट अन्न वाली धाराओं के साथ पधारें।[ऋग्वेद 9.9.2]
Hey Som! Come with the currents-streams consisting of desired food grains for the Ritviz who worship demigods-deities.
स सूनुर्मातरा शुचिर्जातो जाते अरोचयत्। महान्मही ऋतावृधा॥
पृथ्वी और आकाश का पुत्र रूप सोम यज्ञ का पोषण और संस्कारित करते हुए शोभित होता है।[ऋग्वेद 9.9.3]
Som establishes-glorifies itself to support the Yagy and sanitised like the son of earth & sky.
स सप्त धीतिभिर्हितो नद्यो अजिन्वदद्रुहः या एकमक्षि वावृधुः॥
धारण शक्तियों से सुरक्षित, द्रोह रहित सोम सप्त-नदियों को आनन्दित करता है जो इस क्षीण न होने वाले सोम को वे सप्त-नदियाँ संवर्द्धित करती हैं।[ऋग्वेद 9.9.4]
द्रोह :: अदावत, अनबन, अनरस, अप्रीति, अभ्यागम, अमित्रता, , तनातनी, दुश्मनी, द्वेष, निजाअ, बिगाड़, बैर, मन-मुटाव, मनमुटाव, मनोमालिन्य, रंजिश, रंजीदगी, रिपुता, लाग-डाँट, विद्वेष, विरोध, वैमनस्य, वैमनस्यता, वैर, शत्रुता; disloyalty, malevolence, spite, malignancy, hate, rancour.
Never ceasing Som, protected by divine powers, pleases the seven divine rivers free form malevolence; which in return flourish it.
ता अभि सन्तमस्तृतं महे युवानमा दधुः। इन्दुमिन्द्र तव व्रते॥
हे इन्द्र देव! यज्ञ में देवताओं को अर्पित करने के लिए अहिंसित, बलवान, युवा सोम को वे अपने अन्दर समाहित करती हैं।[ऋग्वेद 9.9.5]
Hey Indr Dev! They (seven divine rivers) assimilate unharmed, mighty, young Som to be offered to demigods-deities in the Yagy in themselves.
अभि वह्निरमर्त्यः सप्त पश्यति वावहिः। क्रिविर्देवीरतर्पयत्॥
सातों प्रवाहों को देखने वाला, यज्ञ-संचालक, हिंसित न किया जाने वाला सोम जल पूर्ण होकर दिव्य प्रवाहों को तृप्ति प्रदान करता है।[ऋग्वेद 9.9.6]
Unharmed, visualising the seven flowing rivers, regulating the Yagy, mixed with water satisfied their divine flow.
अवा कल्पेषु नः पुमस्तमांसि सोम योध्या। तानि पुनान जङ्घनः॥
हे सोम देव! आप प्रत्येक अवसरों पर हमारी सुरक्षा करने वाले हैं। आप युद्ध की इच्छा करने वाले रिपुओं का वध करते हैं।[ऋग्वेद 9.9.7]
Hey Som Dev! You protect us at all occasions. You kill the enemies desirous of war.
नू नव्यसे नवीयसे सूक्ताय साधया पथः। प्रत्नवद्रोचया रुचः॥
हे स्तुत्य सोम देव! आप प्रशंसा के योग्य हैं। सूक्तों को श्रवण करने के लिए आप सनातन रूप में तेजस्वी होते हुए उत्तम मार्ग से पधारें।[ऋग्वेद 9.9.8]
Hey worshiped Som Dev! You deserve appreciation. For listening the Sukt, adopt your eternal form, becoming radiant-aurous arrive through best route.
पवमान महि श्रवो गामश्वं रासि वीरवत्। सना मेधां सना स्वः॥
हे सोम देव! आप अन्न, गौ, अश्व सहित पराक्रमी सन्तान प्रदान करने वाले हैं। हमारे मनोरथ को पूर्ण करने के लिए आप हमें यह सब प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.9.9]
Hey Som Dev! You grant food grains, cows, horses and chivalric progeny. Grant us all these to fulfil our goal-desire.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (10) :: ऋषि :- असित, कश्यप या देवल; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
प्र स्वानासो रथाइवार्वन्तो न श्रवस्यवः। सोमासो राये अक्रमुः॥
जिस सोमरस को अश्वों एवं रथों के समान वेगपूर्वक शोधित किया गया है, वह सोमरस हमें धन-सम्पदा और वैभव प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.10.1]
Let the Somras which has been extracted speedily like the horses and charoites, grant us wealth and grandeur.
हिन्वानासो रथाइव दधन्विरे गभस्त्योः। भरासः कारिणामिव॥
यज्ञ की ओर रथ के सदृश जाने वाले सोमरस को शोधित किया जा रहा है। भारवाहक द्वारा दोनों हाथों में उठाए भार के समान याजकगण सोमरस को धारण करते हैं।[ऋग्वेद 9.10.2]
Somras which moves like the charoites towards the Yagy is extracted. Ritviz establish Somras like the loaders who carry it in their raised hands.
राजानो न प्रशस्तिभिः सोमासो गोभिरञ्जते। यज्ञो न सप्त धातृभिः॥
यज्ञ की प्रतिष्ठा जिस प्रकार राजा और याजकों द्वारा होती है, उसी प्रकार गौ-घृतादि से यह सोम शोधित होता है।[ऋग्वेद 9.10.3]
The way Yagy is glorified by the kings and Ritviz, Somras is purified with the cows Ghee.
परि सुवानास इन्दवो मदाय बर्हणा गिरा। सुता अर्षन्ति धारया॥
अमृत के समान मधुर, ज्ञानर्धक सोमरस निचोड़े जाने के उपरान्त साधकों के द्वारा स्तुतिगान करते हुए छाना जाता है।[ऋग्वेद 9.10.4]
Intelligence boosting Somras as sweet as the nectar-elixir, is filtered after being squeezed by the devotees reciting prayers.
आपानासो विवस्वतो जनन्त उषसो भगम्। सूरा अण्वं वि तन्वते॥
उषाकाल का वह समय बहुत ही भाग्यशाली होता है, जब इन्द्र देव के पान के लिए सोमरस शब्द करता हुआ नीचे आता है।[ऋग्वेद 9.10.5]
The time span of Usha Kal-dawn is very fortunate when Somras flows down making sound to be drunk by Indr Dev.
अप द्वारा मतीनां प्रत्ना ऋण्वन्ति कारवः। वृष्णो हरस आयवः॥
सोमदेव की स्तुति करने वाले याजक प्राचीन यज्ञ द्वारों को उद्घाटित करते हैं।[ऋग्वेद 9.10.6]
The Ritviz who worship-pray Som Dev, open the ancient Yagy doors.
समीचीनास आसते होतारः सप्तजामयः। पदमेकस्य पिप्रतः॥
सात बन्धुओं के समान सोम के स्थान को पूर्ण करने वाले सात होता यज्ञ कर्मानुष्ठान के लिए यज्ञमण्डप में उपस्थित होते हैं।[ऋग्वेद 9.10.7]
Seven Hotas completing the place of Som, present themselves like seven brothers to perform the Yagy procedurally in the Yagy Mandap.
नाभा नाभिं न आ ददे चक्षुश्चित्सूर्ये सचा। कवेरपत्यमा दुहे॥
नेत्र सूर्य देव पर निर्भर हैं। अपने यज्ञ एवं नाभि के लिए कवि के पुत्ररूप में हम सोम का दोहन करते हैं।[ऋग्वेद 9.10.8]
Eyes are dependent over Sury Dev. We extract Som for our Yagy, for Nabhi-nucleus (navel) like the son of Kavi
अभि प्रिया दिवस्पदमध्वर्युभिर्गुहा हितम्। सूरः पश्यति चक्षसा॥
बलशाली इन्द्र देव अपने नेत्रों से दिव्य लोक में प्रिय और अध्वर्युओं द्वारा हृदयस्थ सोम को (अपने नेत्रों से) देखते हैं।[ऋग्वेद 9.10.9]
Mighty Indr Dev see the Som present in his heart, in the divine abodes with his eyes, through the dear and priests.(06.07.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (11) :: ऋषि :- असित, कश्यप या देवल; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
उपास्मैं गायता नरः पवमानायेन्दवे। अभि देवाँ इयक्षते॥
हे उपासकों! देव शक्तियों के लिए उन सोम देव का आवाहन करें। वह शीघ्र पधारेंगे।[ऋग्वेद 9.11.1]
Hey worshipers! Invoke Som Dev for divine powers. He will come soon.
अभि ते मधुना पयोऽथर्वाणो अशिश्रयुः। देवं देवाय देवयु॥
हे सोम देव! देव पुरुषों के लिए आपको देवगणों ने प्रकट किया है। अथर्वा ऋषियों ने आपको गौ-दुग्ध में मिश्रित किया है।[ऋग्वेद 9.11.2]
Hey Som! Demigods-deities have invoked you for divine people. Athrva Rishis have mixed you with cow's milk.
स नः पवस्व शं गवे शं जनाय शमर्वते। शं राजन्नोषधीभ्यः॥
हे सोम! आप औषधियों को पावन करने वाले हैं। शोधित होकर आप हमारी गौवों, अश्वों और सैन्यबल का कल्याण करें।[ऋग्वेद 9.11.3]
Hey Som! You make the medicines pure. On being purified lead to the welfare of cows, horses and ground forces.
बभ्रवे नु स्वतवसेऽरुणाय दिविस्पृशे। सोमाय। गाथमर्चत॥
हे स्तोताओं! आप भूरे रंग के बलशाली, अरुणिमा युक्त, आकाश में रहने वाले सोम की प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 9.11.4]
Hey Stotas! You should worship mighty, radiant-aurous, Som having brown colour, living in the sky.
हस्तच्युतेभिरद्रिभिः सुतं सोमं पुनीतन। मधावा धावता मधु॥
हे ऋत्विजों! आप पाषाणों से अभिषुत सोम को शोधित कर मधुर गौ-दुग्ध के साथ मिश्रित करें।[ऋग्वेद 9.11.5]
Hey Ritviz! Purify the Somras extracted with stones and mix it with cow's milk.
नमसेदुप सीदत दध्नेदभि श्रीणीतन। इन्दुमिन्द्रे दधातन॥
हे ऋत्विजों! इस सोमरस को नमस्कार पूर्वक दही में मिलाकर रखें। दीप्तिमान् इन्द्र देव के पान के लिए इसे अर्पित करें।[ऋग्वेद 9.11.6]
Hey Ritviz! Keep this Somras, mixing it with curd and praying to it. Offer it to radiant Indr Dev for drinking.
अमित्रहा विचर्षणिः पवस्व सोम शं गवे। देवेभ्यो अनुकामकृत्॥
हे दिव्य सोमदेव! शत्रुनाशक, सर्वद्रष्टा, देवताओं के अनुसार कार्य करने वाले आप हमारी गौवों को सुख प्रदान करें।
Hey divine Som Dev! You are the destroyer of the enemy, looks at every thing, works as per desire of the demigods-deities, grant pleasure to our cows.
इन्द्राय सोम पातवे मदाय परि षिच्यसे। मनश्चिन्मनसस्पतिः॥
इन्द्र देव के सेवनार्थ और आनन्द वर्धन के लिए यह सोमरस संस्कारित होकर पात्र में रखा गया है।[ऋग्वेद 9.11.8]
This Somras has been kept in the pot which has been worshiped, for Indr Dev to grant him pleasure.
पवमान सुवीर्यं रयिं सोम रिरीहि नः। इन्दविन्द्रेण नो युजा॥
हे शोधित होने वाले पवित्र सोमदेव! आप तेजस्विता युक्त होकर अपने सहयोगी इन्द्र देव के पास से हमें अभीष्ट धन दिलाएँ।[ऋग्वेद 9.11.9]
Hey purified pious Som Dev! You should be energetic to help us seek desired wealth from Indr Dev, your associate.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (12) :: ऋषि :- असित, कश्यप या देवल; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
सोमा असृग्रमिन्दवः सुता ऋतस्य सादने। इन्द्राय मधुमत्तमाः॥
शोधित तथा मधुर शक्तिशाली सोमरस को यज्ञ में इन्द्र देव के निमित्त प्रस्तुत करते हैं।[ऋग्वेद 9.12.1]
Purified, sweet, Somras granting strength-power is presented to Indr Dev in the Yagy.
अभि विप्रा अनूषत गावो वत्सं न मातरः। इन्द्रं सोमस्य पीतये॥
हे ऋत्विजों! जिस प्रकार गौएँ अपने बछड़ों के लिए व्याकुल हो जाती हैं, उसी प्रकार सोमरस को पीने के लिए आप इन्द्र देव की प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 9.12.2]
Hey Ritviz! The way the cows become restless-uneasy for their calf, similarly ask -request Indr Dev for drinking Somras.
मदच्युत्क्षेति सादने सिन्धोरूर्मा विपश्चित्। सोमो गौरी अधि श्रितः॥
यज्ञ स्थल में प्रतिष्ठित होने वाला सोम आनन्दित करने वाला है। नदी की तरंगों के सदृश यह वाणी को भी तरंगित करता है।[ऋग्वेद 9.12.3]
Established in the Yagy Mandap, Somras grants pleasure. The way waves are created in the river, it stimulate-thrills speech-voice.
दिवो नाभा विचक्षणोऽव्यो वारे महीयते। सोमो यः सुक्रतुः कविः॥
जो अन्तरिक्ष की नाभि के सदृश छन्ने में शुद्ध होकर प्रतिष्ठा को प्राप्त होता है, यह मधुर सोम श्रेष्ठ कर्मा और ज्ञान युक्त है।[ऋग्वेद 9.12.4]
It is established in the navel-nucleus of space on being filtered & attains reputation-honour. This Somras perform excellent deeds and is enlightened.
यः सोमः कलशेष्वाँ अन्तः पवित्र आहितः। तमिन्दुः परि षस्वजे॥
पवित्र होकर कलशों में अवस्थित सोमरस में चन्द्रमा के उत्तम गुण संचारित होते हैं।[ऋग्वेद 9.12.5]
When Somras is purified and kept in the vessel, it acquires the excellent characters of Moon.
प्र वाचमिन्दुरिष्यति समुद्रस्याधि विष्टपि। जिन्वन्कोशं मधुश्श्रुतम्॥
मधुर सोमरस आकाश में प्रवेश कर शब्द करता हुआ कलश को पूर्णतया भर देता है।[ऋग्वेद 9.12.6]
Sweet Somras fills the space in the vessel completely making sound.
नित्यस्तोत्रो वनस्पतिर्धीनामन्तः सबर्दुघः। हिन्वानो मानुषा युगा॥
कर्म करने वाले मनुष्यों की प्रार्थनाओं को ग्रहण करने वाला स्तुत्य, वनों का स्वामी सोम मनुष्यों को एकत्रित होने के लिए प्रेरित करता है।[ऋग्वेद 9.12.7]
The lord of forests-jungles, Som accept the prayers of the humans dedicated to work & inspire them to be assemble-united.
अभि प्रिया दिवस्पदा सोमो हिन्वानो अर्षति। विप्रस्य धारया कविः॥
सोम अन्तरिक्ष से प्रेरित होकर ज्ञानी जनों के द्वारा धारारूप को प्राप्त होकर प्रिय स्थानों में गमन करता है।[ऋग्वेद 9.12.8]
Som move to desired places in the form of stream, on being inspired by the enlightened from space.
आ पवमान धारय रयिं सहस्रवर्चसम्। अस्मे इन्दो स्वाभुवम्॥
हे सोमदेव! आप शुद्ध और पावन हैं। आप हमें हजारों गुणों से युक्त अपने धाम और ऐश्वर्यों का स्वामी बनाएँ।[ऋग्वेद 9.12.9]
Hey Som Dev! You are pure & pious. You should make us the lord of your abode along with grandeur associated with thousands of qualities.(07.07.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (13) :: ऋषि :- असित, कश्यप या देवल; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
सोमः पुनानो अर्षति सहस्त्रधारो अत्यविः। वायोरिन्द्रस्य निष्कृतम्॥
हजारों धाराओं वाला सोम छलनी में शोधित हुआ और इन्द्र देव के पान के लिए श्रेष्ठ पात्र में जाता है।[ऋग्वेद 9.13.1]
Som having thousands of currents, filtered in sieve, kept in best pot, goes to Indr Dev for drinking.
पवमानमवस्यवो विप्रमभि प्र गायत। सुष्वाणं देववीतये॥
हे याजकों! रक्षा की कामना वाले आप सभी को पवित्र करने, हर्ष प्रदान करने और देवताओं के पीने योग्य शुद्ध सोम के लिए प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 9.13.2]
Hey Ritviz! Desirous of protection, pray for pleasure granting, meant for drinking by demigods-deities, pure Somras which purify everyone.
पवन्ते वाजसातये सोमाः सहस्त्रपाजसः। गृणाना देववीतये॥
यज्ञ को सिद्ध करने लिए और अन्न की प्राप्ति के लिए स्तुत्य और देव सदृश सोम को शोधित किया गया है।[ऋग्वेद 9.13.3]
Somras which is worshiped like a deity, has been purified to accomplish the Yagy and attain food grains.
उत नो वाजसातये पवस्व बृहतीरिषः। द्युमदिन्दो सुवीर्यम्॥
हे सोमदेव! आप जीवन संग्राम की सफलता के लिये हमें श्रेष्ठ अन्न प्रदान करें और तेजस्वी एवं बलवान बनायें।[ऋग्वेद 9.13.4]
Hey Som Dev! Grant us best food grains to struggle in life and make us radiant-aurous and mighty.
ते नः सहस्त्रिणं रयिं पवन्तामा सुवीर्यम्। सुवाना देवास इन्दवः॥
यह अभिषुत सोमरस हमें श्रेष्ठ पराक्रम और हजारों प्रकार के धन प्रदान करे।[ऋग्वेद 9.13.5]
Let this extracted Somras grant us best valour-bravery and thousands types of wealth.
अत्या हियाना न हेतृभिरसृग्रं वाजसातये। वि वारमव्यमाशवः॥
युद्ध क्षेत्र में जाने वाले अश्वों के सदृश यह सोम ऋषियों द्वारा हाथों में धारण किया जाता है। [ऋग्वेद 9.13.6]
This Somras is held in the hands by the Rishis like the horses for war field.
वाश्रा अर्षन्तीन्दवोऽभि वत्सं न धेनवः। दधन्विरे गभस्त्योः॥
जिस प्रकार गौएँ बछड़ों की ओर रंभाती हुई जाती हैं, ऋषियों द्वारा हाथों में धारण किया गया सोम, उसी प्रकार शब्द करता हुआ कलशों में प्रवेश करता है।[ऋग्वेद 9.13.7]
The way a cows to its calf mooing, Somras kept by the Rishis in hands enters the vessels maying similar sound.
जुष्ट इन्द्राय मत्सरः पवमान कनिक्रदत्। विश्वा अप द्विषो जहि॥
हे सोम देव! आप इन्द्र देव को तृप्त करने वाले और उन्हें हर्ष प्रदान करने वाले हैं। आप पवित्र होकर शब्द करते हुए सभी शत्रुओं को नष्ट करते हैं।[ऋग्वेद 9.13.8]
Hey Som Dev! You satisfy Indr Dev and grant him pleasure. You become pure and destroy the enemies.
अपघ्नन्तो अराव्णः पवमानाः स्वर्दृशः। योनावृतस्य सीदत॥
हे सोम देव! आप दानहीनों को नष्ट करते हैं। आप अपने तेजस्वी रूप में यज्ञस्थल पर विराजमान होते हैं।[ऋग्वेद 9.13.9]
Hey Som Dev! You destroys those who do not donate. You are present at the Yagy site in your radiant form.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (14) :: ऋषि :- असित, कश्यप या देवल; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
परि प्रासिष्यदत्कविः सिन्धोरूर्मावधि श्रितः। कारं बिभ्रत्पुरुस्पृहम्॥
याजकों का पोषण करने वाला, प्रसन्नतादायक, बुद्धि की वृद्धि करने वाला, नदी के जलों के आश्रित रहने वाला सोमरस पात्रों में स्थिर होता है।[ऋग्वेद 9.14.1]
Somras which nourish the Ritviz, pleasure granting, boosting brain power dependent over the rivers is kept in the vessels undisturbed.
गिरा यदी सबन्धवः पञ्च व्राता अपस्यवः। परिष्कृण्वन्ति धर्णसिम्॥
भातृ भाव से रहने वाले पाँचों वर्णों के लोग यज्ञ कर्म की इच्छा करते हुए सोम को स्तुति द्वारा सुशोभित करते हैं।[ऋग्वेद 9.14.2]
Humans of five Varn (castes) living like brothers, desire for Yagy Karm grace Somras with prayers.
आदस्य शुष्मिणो रसे विश्वे देवा अमत्सत। यदी गोभिर्वसायते॥
गौ दुग्ध मिश्रित, बलवर्धक सोमरस का पान करके सभी देवता अत्यधिक हर्षित होते हैं।[ऋग्वेद 9.14.3]
All deities-demigods become happy by drinking strength increasing Somras mixed with cow's milk.
निरिणानो वि धावति जहच्छर्याणि तान्वा। अत्रा सं जिघ्रते युजा॥
मित्र रूप इन्द्र देव में समाहित होने वाला और छलनी के छिद्रों से निकलने वाला यह सोमरस नीचे की ओर प्रवाहित होता है।[ऋग्वेद 9.14.4]
Friendly Somras is absorbed by Indr Dev in his body, which flows down wards coming out of sieve holes.
नप्तीभिर्यो विवस्वतः शुभ्रो न मामृजे युवा। गाः कृण्वानो न निर्णिजम्॥
उपासना करने वालों की ऊंगलियों से शोधित हुआ सोमरस गौ के दूध में मिश्रित करने पर श्वेत, दीप्तिमान, तरुण अश्व के सदृश तथा दूध जैसा दिखलाई पड़ता है।[ऋग्वेद 9.14.5]
Somras purified by the fingers of the worshipers, mixed with cow's milk appears-become radiant, white, like the young horses and milk.
अति श्रिती तिरश्चता गव्या जिगात्यण्व्या। वग्नुमियर्ति यं विदे॥
सोमरस ऊंगलियों द्वारा दबाए जाने पर गाय के दुग्ध में मिश्रित होने के लिए नीचे की ओर गिरता है पात्र में गिरते हुए ध्वनि करता है।[ऋग्वेद 9.14.6]
On being pressed with fingers, Somras falls down in the pot for mixing in cow's milk.
अभि क्षिपः समग्मत मर्जयन्तीरिषस्पतिम्। पृष्ठा गृभ्णत वाजिनः॥
सोमरस का शोधित करने वाली ऊंगलियाँ आपस में मिलकर बलशाली सोम को पकड़ती और उसे स्वच्छ करती हैं।[ऋग्वेद 9.14.7]
Fingers which purify the Som, together hold the powerful Som and clean it.
परि दिव्यानि ममृशद्विश्वानि सोम पार्थिवा। वसूनि याह्यस्मयुः॥
हे सोम देव! सम्पूर्ण पृथ्वी का ऐश्वर्य लेकर आप हमारे समीप पधारें।[ऋग्वेद 9.14.8]
Hey Som Dev! Come to us with entire grandeur of the earth.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (15) :: ऋषि :- असित, कश्यप या देवल; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
एष धिया यात्यण्व्या शूरो रथेभिराशुभिः। गच्छन्निन्द्रस्य निष्कृतम्॥
ऊंगलियों से निचोड़ा गया शक्तिशाली सोम तीव्र गति से युक्त रथ द्वारा इन्द्र देव के निकट पहुँच जाता है।[ऋग्वेद 9.15.1]
Squeezed with fingers, fast moving-flowing mighty Somras, accompanied with high speed charoite, reaches Indr Dev
एष पुरू धियायते बृहते देवतातये। यत्रामृतास आसते॥
जिस यज्ञस्थल पर देवता निवास करते हैं, यह दिव्य सोम वहाँ असंख्य कर्म पूर्ण करने की इच्छा करता है।[ऋग्वेद 9.15.2]
This divine Som has the desire to perform infinite deeds at the Yagy site, where demigods-deities reside.
एष हितो वि नीयतेऽन्तः शुभावता पथा। यदी तुञ्जन्ति भूर्णयः॥
हविष्यान्न के रूप में प्रयुक्त यह सोम यज्ञ स्थल पर ले जाया जाता है, जहाँ ऋत्विक् गण उसे शुद्ध करके देवगणों को समर्पित करते हैं।[ऋग्वेद 9.15.3]
Som used as an offerings of food grains is taken to the Yagy site, where the Ritviz purifies it and offer to the demigods-deities.
एष शृङ्गाणि दोधुवच्छिशीते यूथ्यो ३ वृषा। नृम्णा दधान ओजसा॥
ऐश्वर्य से युक्त यह सोम अपने बल को प्रदर्शित करता है, जिस प्रकार बलशाली बैल पशुओं के मध्य में अपने बल को प्रकट करता है।[ऋग्वेद 9.15.4]
Accompanied with grandeur this Som demonstrate its might, the way a strong bull demonstrate its strength amongest the animals.
एष रुक्मिभिरीयते वाजी शुभ्रेभिरंशुभिः। पतिः सिन्धूनां भवन्॥
समस्त प्रवाहित रसों का स्वामी, उज्ज्वल रस वाला सोम वेग से प्रवाहित होकर याजकों के निकट गमन करता है।[ऋग्वेद 9.15.5]
Lord of all fluid saps-juices, radiant Som flows with high speed and reaches close to the Ritviz.
एष वसूनि पिब्दना परुषा ययिवाँ अति। अव शादेषु गच्छति॥
अपनी शक्ति से दुष्टों को संतप्त और मर्यादित रखने वाला सोम असुरों का विनाश कर देता है।[ऋग्वेद 9.15.6]
संतप्त :: दुखी, पीड़ित, तपा हुआ; torture, red-hot, tormented, distressed, scorched, agonized, afflicted, agonised.
Som which agonise the wicked & keep them in their limits, destroys the demons-giants.
एतं मृजन्ति मर्ज्यमुप द्रोणेष्वायवः। प्रचक्राणं महीरिषः॥
पोषक रसयुक्त अन्नों से उत्पन्न सोम को ऋषि लोग द्रोण कलशों में स्थापित करते हैं।[ऋग्वेद 9.15.7]
Somras produced from nourishing food grains having juices, is kept by the Rishis in wooden vessels.
एतमु त्यं दश क्षिपो मृजन्ति सप्त धीतयः। स्वायुधं मदिन्तमम्॥
बलवर्धक और आनन्ददायक हरिताभ सोम को सप्त-ऋषि अपनी ऊंगलियों द्वारा निचोड़कर शोधित करते हैं।[ऋग्वेद 9.15.8]
Power booting and pleasure granting greenish Som is squeezed and purified by the Sapt Rishis with their fingers.(08.07.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (16) :: ऋषि :- असित, कश्यप या देवल; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
प्र ते सोतार ओण्यो ३ रसं मदाय घृष्वये। सर्गो न तक्त्येतशः॥
हे सोमदेव! द्युलोक और पृथ्वी लोक के बीच में शत्रु संहार के प्रयोजन से उत्साहित करने के लिए याज्ञिकजन आपके रस को निकालते हैं।[ऋग्वेद 9.16.1]
Hey Som! The Ritviz extract your juice for encouragement to destroy the enemies between the earth and heavens.
क्रत्वा दक्षस्य रथ्यमपो वसानमन्धसागोषामण्वेषु सश्चिम॥
सत्कर्म का बल प्राप्त करने के लिए हमारी दसों ऊंगलियाँ बलवर्धक सोम को गौ के दुग्ध में मिश्रित करती हैं।[ऋग्वेद 9.16.2]
To attain the power of virtues, our ten fingers mix Somras in cow's milk.
अनप्तमप्सु दुष्टरं सोमं पवित्र आ सृज। पुनीहीन्द्राय पातवे॥
हे याजकों! शत्रुओं की पहुँच से बाहर इस जल मिश्रित सोमरस को इन्द्र देव के पान करने हेतु छलनी से छानकर स्वच्छ करें।[ऋग्वेद 9.16.3]
Hey Yagyik-Ritviz! Clean this Somras mixed in water with sieve for drinking by Indr Dev out of reach of the enemies.
प्र पुनानस्य चेतसा सोमः पवित्रे अर्षति। क्रत्वा सधस्थमासदत्॥
जो याज्ञिक सोम को शोधित और पवित्र करने के कर्म में लग जाता है, वही इस सोम को यज्ञस्थल पर स्थापित करता है।[ऋग्वेद 9.16.4]
The Yagyik-Ritviz who engage themselves in purification of Som, carry it to the Yagy site.
प्र त्वा नमोभिरिन्दव इन्द्र सोमा असृक्षत। महे भराय कारिणः॥
हे इन्द्र देव! जो सोम आपको संग्राम में शत्रुओं पर विजय प्राप्त करवाता है, वह आपको विनयपूर्वक प्राप्त होता है।[ऋग्वेद 9.16.5]
Hey Indr Dev! The Som which grant you victory in the war over the enemies is attained with request, politely.
पुनानो रूपे अव्यये विश्वा अर्षन्नभि श्रियः। शूरो न गोषु तिष्ठति॥
शुद्ध किया गया यह सोमरस गौ-दुग्ध में उसी प्रकार मिलाया जाता है, जिस प्रकार शूर पुरुष अश्व के साथ सुशोभित होता है।[ऋग्वेद 9.16.6]
Purified Somras is mixed in the cow's milk just like the brave people accompanied by the horse.
दिवो न सानु पिप्युषी धारा सुतस्य वेधसः। वृथा पवित्रे अर्षति॥
शोधित सोम की पवित्र धारा उसी प्रकार पात्र में गिरती है, जिस प्रकार आकाश की जलधारा पर्वत के शिखर पर गिरती है।[ऋग्वेद 9.16.7]
Current of Somras falls in the pot just like the stream of water which falls over the mountain from the sky.
त्वं सोम विपश्चितं तना पुनान आयुषु। अव्यो वारं वि धावसि॥
हे सोम! जो सदैव आपकी स्तुति करते हैं, उन मनुष्यों को आप संरक्षण प्रदान करते हैं, आप स्वयं शोधन के लिए अनश्वर छननी में वेगपूर्वक जाते हैं।[ऋग्वेद 9.16.8]
Hey Somras! You grant protection to those people who always worship-pray you and move to the immortal sieve with speed for purification-cleaning.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (17) :: ऋषि :- असित, कश्यप या देवल; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
प्र निम्नेनेव सिन्धवो घ्नन्तो वृत्राणि भूर्णयः। सोमा असृग्रमाशवः॥
जिस प्रकार नदियों का प्रवाह नीचे की ओर होता है, उसी प्रकार दुष्टों का संहारक, शीघ्रगामी सोमरस वेगपूर्वक छलनी से नीचे की ओर प्रवाहित होता है।[ऋग्वेद 9.17.1]
The way the river flow in the downward direction, destroyer of the wicked, fast moving Somras passes through the sieve with high speed in lower direction.
अभि सुवानास इन्दवो वृष्टयः पृथिवीमिव। इन्द्रं सोमासो अक्षरन्॥
पवित्र सोमरस भूमि पर होने वाली जलवर्षा के सदृश इन्द्र देव को आच्छादित करता है।[ऋग्वेद 9.17.2]
Pious Somras covers Indr Dev just like the rain showers over the earth.
अत्यूर्मिर्मत्सरो मदः सोमः पवित्रे अर्षति। विघ्नन्रक्षांसि देवयुः॥
बल और हर्ष प्रदान करने वाला सोमरस रिपुओं का संहार करता हुआ देवताओं के लिए छलनी की ओर गमन करता है।[ऋग्वेद 9.17.3]
Somras which grant might and pleasure destroys the enemies and moves for demigods-deities towards the sieve.
आ कलशेषु धावति पवित्रे परि षिच्यते। उक्थैर्यज्ञेषु वर्धते॥
यज्ञ में प्रार्थनाओं द्वारा वृद्धि पाने वाला सोमरस छलनी में छाने जाने पर कलशों में एकत्रित होता है।[ऋग्वेद 9.17.4]
Somras which grows in the Yagy due to prayers, is filtered in the sieve and collected in vessels-pots.
अति त्री सोम रोचना रोहन्न भ्राजसे दिवम्। इष्णन्त्सूर्य न चोदयः॥
तीनों लोकों को लंघन कर स्वर्ग को प्रकाशित करने वाला सोम स्वेच्छा से सूर्य देव को भी प्रेरित करता है।[ऋग्वेद 9.17.5]
Som which pass off the three abodes, illuminate the heavens & inspire Sur Dev willingly.
अभि विप्रा अनूषत मूर्धन्यज्ञस्य कारवः। दधानाश्चक्षसि प्रियम्॥
सोमरस के प्रति प्रीतियुक्त भाव रखने वाले कर्मनिष्ठ याजक यज्ञ मण्डप के मुख्य भाग में बैठकर यज्ञ करते हैं।[ऋग्वेद 9.17.6]
The dedicated worshipers affectionate to Somras, occupy the front row and conduct the Yagy.
तमु त्वा वाजिनं नरो धीभिर्विप्रा अवस्यवः। मृजन्ति देवतातये॥
अपने संरक्षण की कामना वाले विद्वत्जन् अपने कर्म द्वारा अन्न युक्त सोम को यज्ञार्थ शोधित करते हैं।[ऋग्वेद 9.17.7]
The learned-enlightened desirous of asylum-protection make efforts to purify the Som with food grains for the Yagy.
मधोर्धारामनु क्षर तीव्रः सधस्थमासदः। चारुर्ऋताय पीतये॥
हे सोम! आप शोधन स्थल पर मधुर रस की धार के रूप में वेगपूर्वक पात्र में एकत्रित हों। आप यज्ञस्थल पर देवताओं के पान के लिए प्रतिष्ठित होते हैं।[ऋग्वेद 9.17.8]
Hey Som! You should collect with speed in the pot-vessel as a stream of sweet fluid-sap at the place of purification. You should be honoured at the Yagy site for drinking by the demigods-deities.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (18) :: ऋषि :- असित, कश्यप या देवल; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
परि सुवानो गिरिष्ठाः पवित्रे सोमो अक्षाः। मदेषु सर्वधा असि॥
हे सोम। आप सबको हर्ष प्रदान करने वाले हैं। छलनी से क्षरित होने वाला यह सोम पर्वत पर उत्पन्न होता है।[ऋग्वेद 9.18.1]
Hey Som! You gladden everyone. Som which comes out of the sieve grows over the mountain.
त्वं विप्रस्त्वं कविर्मधु प्र जातमन्धसः। मदेषु सर्वधा असि॥
हे सोम! आप पोषक अन्नों से उत्पन्न, दूरद्रष्टा और ज्ञानवान् हैं। आपका हर्षप्रदायक रस सबके द्वारा धारित किया जाता है।[ऋग्वेद 9.18.2]
Hey Som! You grow from the nourishing food grains, is far sighted and enlightened. Your gladdening juice is kept-stored by everyone.
तव विश्वे सजोषसो देवासः पीतिमाशत। मदेषु सर्वधा असि॥
हे सोम! आप हर्ष उत्पन्न करने वाले सभी पदार्थों में स्थित हैं। आप ही सबको धारित करने वाले हैं। समस्त देवगण आपका ही पान करते हैं।[ऋग्वेद 9.18.3]
Hey Som! You are present in all materials which grant pleasure. You support all. All demigods-deities drink you.
आ यो विश्वानि वार्या वसूनि हस्तयोर्दधे। मदेषु सर्वधा असि॥
हे सोम! आप समस्त पदार्थों में आनन्द स्थापित करने वाले तथा अनेकानेक प्रकार के ऐश्वर्य को प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 9.18.4]
Hey Som! You establish pleasure in all materials and attain various kinds of grandeur.
य इमे रोदसी मही सं मातरेव दोहते। मदेषु सर्वधा असि॥
माता के सदृश द्युलोक और पृथ्वी लोक को सुख प्रदान करने वाला सोमरस सभी को शोभित करते हैं।[ऋग्वेद 9.18.5]
Somras which grants comfort-pleasure to the heavens and earth is like a mother & is decorated-graced everyone.
परि यो रोदसी उभे सद्यो वाजेभिरर्षति। मदेषु सर्वधा असि॥
द्युलोक और पृथ्वीलोक को अन्नादि से परिपूर्ण करने वाला सोमरस हर्ष तथा आनन्द प्रदान करने वाला है।[ऋग्वेद 9.18.6]
Somras grant amusement-pleasure by enriching the earth & heavens with food grains.
स शुष्मी कलशेष्वा पुनानो अचिक्रदत्। मदेषु सर्वधा असि॥
शोधित किया गया, बल को बढ़ाने वाला सोम कलश में जाते समय शब्दनाद करता हुआ प्रवाहित होता है। यह पराक्रम और आनन्द प्रदान करता है।[ऋग्वेद 9.18.7]
Purified, energy-power boosting Somras make sound while entering-flowing into the pot. It grants valour and pleasure & amusement.(09.07.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (19) :: ऋषि :- असित, कश्यप या देवल; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
यत्सोम चित्रमुक्थ्यं दिव्यं पार्थिव वसु। तन्नः पुनाने आओ भर॥
हे दिव्य सोमदेव! आप पवित्र एवं पृथ्वी के सभी अद्भुत और दिव्य वैभव हमें प्राप्त कराएँ।[ऋग्वेद 9.19.1]
Hey divine Som Dev! Make us available the pious, amazing and divine grandeur of earth to us.
युवं हि स्थः स्वर्पती इन्द्रश्च सोम गोपती। ईशाना पिप्यतं धियः॥
हे सोम-इन्द्रदेव! आप दोनों गौवों के स्वामी हैं और इस संसार को संरक्षित करते हैं। हमारी बुद्धि को उत्तम मार्ग पर नियोजित करने वाले आप हमारे भाग्य की वृद्धि करें।[ऋग्वेद 9.19.2]
Hey Som Dev & Indr Dev! You both are the lords of cows and protect this universe. Direct our intelligence to excellent path and boost our luck.
वृषा पुनान आयुषु स्तनयन्नधि बर्हिषि। हरिः सन्योनिमासदत्॥
हे हरिताभ सोम देव! सबको पवित्र करने वाले आप शब्द करते हुए अपने स्थान पर स्थित हों।[ऋग्वेद 9.19.3]
पवित्र :: पावन, पुनीत, पुण्य, शुद्ध, विशुद्ध, चोखा, असली, खरा, स्पष्ट; holy, pure, sanctified.
Hey greenish Som Dev! Occupy your seat making every one pious, sanctified.
अवावशन्त धीतयो वृषभस्याधि रेतसि। सूनोर्वत्सस्य मातरः॥
पुत्र प्राप्ति की कामना करने वाली माताओं की तरह धारण करने वाली बलशाली सोम के उत्पादक तेजस् की इच्छा करती है।[ऋग्वेद 9.19.4]
The mothers desirous of producing a son wish to have him like energy-strength producer Som .
कुविषण्यन्तीभ्यः पुनानो गर्भमादधत्। याः शुक्रं दुहते पयः॥
जो पवित्र तेजस्वी पय (जल) का दोहन करती हैं। अन्तरिक्षीय वर्षा की कामना करने वाली में पवित्र होता हुआ यह सोम तेज की स्थापना करता है।[ऋग्वेद 9.19.5]
Som establish aura-energy in her who is pious-sanctified and wish to extract rain water.
उप शिक्षापतस्थुषो भियसमा घेहि शत्रुषु। पवमान विदा रयिम्॥
हे सोमदेव! हमसे दूर रहने वाले मित्रों को आप हमारे निकट ले आवें और हमारे शत्रुओं को भयाक्रान्त कर हमें धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.19.6]
Hey Som Dev bring our friends close to us and give the wealth of our enemies to us by creatin fear in them.
नि शत्रोः सोम वृष्ण्यं नि शुष्मं नि वयस्तिर। दूरे वा सतो अन्ति वा॥
हे सोम! आप दूर अथवा पास के शत्रुओं को नष्ट करने वाले हैं। उनके तेज और अन्न को भी नष्ट करें।[ऋग्वेद 9.19.7]
Hey Som Dev! You destroy the enemies, whether far or near. Destroy their power and food grains as well.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (20) :: ऋषि :- असित, कश्यप या देवल; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
प्र कविर्देववीतयेऽव्यो वारेभिरर्षति। साह्वान्विश्वा अभि स्पृधः॥
उत्तम रीति से संस्कारित किया हुआ यह सोमरस देवताओं को प्रदान किया जाता है। यह विकाररूपी शत्रुओं को विनष्ट करता है।[ऋग्वेद 9.20.1]
विकार :: विकृति, कुरूपता, तोड़ना-मरोड़ना, अव्यवस्था, उपद्रव, अशांति, विशृंखलता; defects, disorder, deformation, conjugation.
Somras sanctified with best methods-means is offered to demigods-deities. It destroys the enemies in the form of defects-disorders.
स हि ष्मा जरितृभ्य आ वाजं सोमन्तमिन्वति। पवमानः सहस्रिणम्॥
स्तोताओं को यह दिव्य सोमरस धनादि प्रदान कर सन्तुष्टि प्रदान करता है।[ऋग्वेद 9.20.2]
Divine Som grants wealth etc. to the Stotas and satisfies them.
परि विश्वानि चेतसा मृशसे पवसे मती। स नः सोम श्रवो विदः॥
हे धनदाता सोम देव! आप हमें मनन योग्य अन्न के भण्डार प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.20.3]
भण्डार :: कोष, ख़जाना, कोठार; stores, store-house, repository.
Hey wealth granting Som Dev! Grant us repository of food grains.
अभ्यर्ष बृहद्यशो मघवद्ध्यो ध्रुवं रयिम्। इषं स्तोतृभ्य आ भर॥
हे सोम देव! आप हवि प्रदान करने वाले यजमानों को महान यश, धन और अन्न प्रदान करें। [ऋग्वेद 9.20.4]
Hey Som Dev! Grant great honour-glory, wealth and food grains to the hosts who make offerings.
त्वं राजेव सुव्रतो गिरः सोमा विवेशिथ। पुनानो वह्ने अद्भुत॥
हे सोम देव! आप राजा के सदृश अपने याजकों की श्रेष्ठ प्रार्थनाओं को स्वीकार करें।[ऋग्वेद 9.20.5]
Hey Som Dev! Accept the excellent prayers by the Ritviz like a king.
स वह्निरप्सु दुष्टरो मृज्यमानो गभस्त्योः। सोमश्चमूषु सीदति॥
यज्ञ को पूर्णता प्रदान करने वाला, हथेलियों द्वारा मथकर शोधित हुआ जल मिश्रित सोमरस पात्र में एकत्रित होता है।[ऋग्वेद 9.20.6]
Somras extracted by rubbing it between the palms and mixed with water accomplish the Yagy.
क्रीळुर्मखो न मंहयुः पवित्रं सोम गच्छसि। दधत्स्तोत्रे सुवीर्यम्॥
हे सोमदेव! यज्ञ में दी जाने वाली आहुतियों के सदृश आप सदैव देने की इच्छा करते हुए स्तुति करने वालों को यश, धन और शौर्य प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 9.20.7]
Hey Som Dev! You always possess the desire of giving glory-honour, wealth and valour like the offerings in the Yagy to the worshipers.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (21) :: ऋषि :- असित, कश्यप या देवल; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
एते धावन्तीन्दवः सोमा इन्द्राय घृष्वयः। मत्सरासः स्वर्विदः॥
सभी लोकों का पालन करने वाला हर्ष प्रदायक सोमरस ज्ञान तथा युद्ध के लिए प्रेरणा देने के लिए इन्द्र देव की ओर गमन करता है।[ऋग्वेद 9.21.1]
Nurturer of all abodes, gladdening, Somras moves to Indr Dev & inspire him for enlightenment and war.
प्रवृण्वन्तो अभियुजः सुष्वये वरिवोविदः। स्वयं स्तोत्रे वयस्कृतः॥
स्तुति करने वाले याजकों को धन-धान्य से सम्पन्न करने वाला सोम अभिषुत करने वालों को उपयोगी अन्न-धन और संरक्षण प्रदान करता है।[ऋग्वेद 9.21.2]
Som grants useful food grains, wealth to the worshipers and wealth, food grains and asylum to those who extract it.
वृथा क्रीळन्त इन्दवः सधस्थमभ्येकमित्। सिन्धोरूर्मा व्यक्षरन्॥
नदी के जल में क्रीड़ा करने के समान यह सोमरस पात्र में जाकर एकत्रित होता है।[ऋग्वेद 9.21.3]
Somras is collected-stored in the vessel like paying in the river.
एते विश्वानि वार्या पवमानास आशत। हिता न सप्तयो रथे॥
रथ में नियोजित अश्व के समान यह शोधित सोमरस स्वीकार करने योग्य अभीष्ट धन प्रदान करता है।[ऋग्वेद 9.21.4]
This sanctified Somras grants acceptable-desired wealth like the horses deployed in the charoite.
आस्मिन्पिशङ्गमिन्दवो दधाता वेनमादिशे। यो अस्मभ्यमरावा॥
हे सोमदेव! जो याजक सत्कर्मों के लिए धन का दान देता है, उसे आप हर प्रकार का दान प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 9.21.5]
Hey Som Dev! The Ritviz who grants wealth-money for virtuous deeds is donated all sorts of goods by you.
ऋभुर्न रथ्यं नवं दधाता केतमादिशे। शुक्राः पवध्वमर्णसा॥
हे सोमदेव! जिस प्रकार रथ वहन करने के लिए सारथी को नियुक्त किया जाता है, उसी प्रकार हम यज्ञ कार्य के लिए आपको नियुक्त करते हैं। यह सोम जल में मिश्रित होकर क्षरित होता है।[ऋग्वेद 9.21.6]
Hey Som Dev! The way a charioteer is appointed to run the charoite, we appoint you for conducting the Yagy. Som do not destroy-decay on being mixed in water.
एत उ त्ये अवीवशन्काष्ठां वाजिनो अक्रत। सतः प्रासाविषुर्मतिम्॥
यज्ञ की कामना करने वाला बलवान सोम यज्ञस्थल पर प्रतिष्ठित होता है। वह याज्ञिक को यज्ञ के लिए प्रेरित करता है।[ऋग्वेद 9.21.7]
Mighty Som desirous of Yagy is established. He inspires the Yagyik to perform Yagy.(10.07.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (22) :: ऋषि :- असित, कश्यप या देवल; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
एते सोमास आशवो रथाइव प्र वाजिनः। सर्गाः सृष्टा अहेषत॥
रथ में नियोजित अश्व जिस प्रकार से ध्वनि करते हैं, उसी प्रकार शोधित सोमरस नीचे की ओर तीव्र गति से गमन करता है।[ऋग्वेद 9.22.1]
Purified Somras flow downwards with high speed like the sound created by the horses deployed in the charoite.
एते वाताइवोरवः पर्जन्यस्येव वृष्टयः। अग्नेरिव भ्रमा वृथा॥
यह सोम जलवर्षा के सदृश अथवा अग्नि की लपटों के तुल्य वायुवेग से आगमन करता है।[ऋग्वेद 9.22.2]
This Som move like the rain waters or the flames of fire with the speed of air.
एते पूता विपश्चितः सोमासो दध्याशिरः। विपा व्यानशुर्धियः॥
यज्ञकर्म के लिए इस शोधित सोमरस को ज्ञानवर्धक दही में मिलाया जाता है।[ऋग्वेद 9.22.3]
Purified Somras is mixed in curd which boosts knowledge for the Yagy Karm.
एते मृष्टा अमर्त्याः ससृवांसो न शश्रमुः। इयक्षन्तः पथो रजः॥
यह पवित्र और अमृत के सदृश सोमरस शोधित होकर वेग के साथ कलश की ओर जाता है। उसे कोई बाधित नहीं करता।[ऋग्वेद 9.22.4]
This sanctified Somras which is like the elixir-nectar flows into the vessel without being obstructed.
एते पृष्ठानि रोदसोर्विप्रयन्तो व्यानशुः। उतेदमुत्तमं रजः॥
संसार को धारित करने वाला यह सोमरस स्वर्ग में भी प्राप्त होता है। इन्द्रियों को पुष्ट करने वाले रस का धारक यह कर्म से युक्त होता है।[ऋग्वेद 9.22.5]
This Somras which support the universe is available in the heaven as well. It nourish the sense organs and require effort.
तन्तुं तन्वानमुत्तममनु प्रवत आशत। उतेदमुत्तमाय्यम्॥
यज्ञ को विस्तारित करने वाले उत्कृष्ट सोम को नदियों के जल में मिलाया जाता है।[ऋग्वेद 9.22.6]
Excellent Somras which extend the Yagy is added in river water.
त्वं सोम पणिभ्य आ वसु गव्यानि धारयः। ततं तन्तुमचिक्रदः॥
हे सोमदेव! आप पणिजनों से दूध, दही और घृतादि प्राप्त कर यज्ञस्थल में प्रतिष्ठित करते हैं। इस यज्ञ को पूर्ण कर आप इसकी कीर्ति का विस्तार करें।[ऋग्वेद 9.22.7]
Hey Som Dev! You accept milk, curd and Ghee etc. before entering the Yagy site from the Panis. Complete-accomplish the Yagy and add to its glory.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (23) :: ऋषि :- असित, कश्यप या देवल; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
सोमा असृग्रमाशवो मधोर्मदस्य धारया। अभि विश्वानि काव्या॥
स्तोतागण श्रेष्ठ स्तोत्रों से स्तुतियाँ करते हुए मधुर रस की धारा के रूप में सोमरस का निर्माण करते हैं।[ऋग्वेद 9.23.1]
Stotas recite the best Stutis to prepare Somras in the form of a sweet stream-current.
अनु प्रत्नास आयवः पदं नवीयो अक्रमुः। रुचे जनन्त सूर्यम्॥
पुरातन आवागमनशील सोम नए-नए पद प्राप्त करता हुआ सूर्य देव को प्रकाशमान करता है।[ऋग्वेद 9.23.2]
Eternal-ancient Som gradually scale new heights-peaks & illuminate Sury Dev.
आ पवमान नो भरार्यो अदाशुषो गयम्। कृधि प्रजावतीरिषः॥
हे सोमदेव! शत्रुओं के समान दान न देने वालों का धन और अन्न आप हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.23.3]
Hey Som Dev! Give us the wealth and food grains of those who do not donate like the enemies.
अभि सोमास आयवः पवन्ते मद्यं मदम्। अभि कोशं मधुश्चतम्॥
आनन्द प्रदान करने वाला सोमरस मधुस्त्रावी रसों का सिंचन करता है। इस सोमरस को पात्र में एकत्रित किया जाता है।[ऋग्वेद 9.23.4]
Gladdening Somras generate the saps-juices which produce honey. This Somras is collected in pots.
सोमो अर्षति धर्णसिर्दधान इन्द्रियं रसम्। सुवीरों अभिशस्तिपाः॥
पीड़ा का नाश करने वाला, इन्द्रियों की शक्ति को बढ़ाने वाला, धारणाशक्ति से युक्त, बलशाली सोमरस पात्र में एकत्रित होता है।[ऋग्वेद 9.23.5]
Pain removing, sense organs strengthening, associated with retentive power, mighty Somras is collected in vessels.
इन्द्राय सोम पवसे देवेभ्यः सधमाद्यः। इन्दो वाजं सिषाससि॥
हे सोम! आप यज्ञ के उपयुक्त हैं। इन्द्रादि देवताओं के लिए आपके रस को निकाला जाता है। आप हमें अन्नादि से युक्त करें।[ऋग्वेद 9.23.6]
Hey Som! You suit Yagy. Somras is extracted for Indr Dev and other demigods-deities. Grant us food grains.
अस्य पीत्वा मदानामिन्द्रो वृत्राण्यप्रति। जघान जघनच नु॥
बलशाली इन्द्र देव ने हर्ष प्रदान करने वाले सोमरस का पान करके अपने उत्साह की वृद्धि की तथा चारों ओर से घेरने वाले शत्रुओं को नष्ट किया। अब भी वह ऐसा ही करते हैं।[ऋग्वेद 9.23.7]
Mighty Indr dev drunk gladdening Somras, boosted his enthusiasm and destroyed the enemies surrounding from four direction. Still he does it.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (24) :: ऋषि :- असित, कश्यप या देवल; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
प्र सोमासो अधन्विषुः पवमानास इन्दवः। श्रीणाना अप्सु मृञ्जत॥
दीप्त होकर दुग्ध आदि में मिश्रित होने वाला सोम जल के साथ नीचे रखे पात्र में एकत्रित हो रहा है।[ऋग्वेद 9.24.1]
On being illuminated, Somras mixes with milk & water and collects in the pot kept below.
अभि गावो अधन्विषुरापो न प्रवता यतीः। पुनाना इन्द्रमाशत॥
शोधित सोमरस नीचे पात्र में जाकर एकत्रित हो रहा है। देवताओं के राजा इन्द्रदेव इस सोमरस का पान करते हैं।[ऋग्वेद 9.24.2]
Purified Somras is collected in the pot kept below. King of demigods-deities Indr Dev drink it.
प्र पवमान धन्वसि सोमेन्द्राय पातवे। नृभिर्यतो वि नीयसे॥
सोमरस को शोधित करके याजक यज्ञवेदी पर पहुँचाते हैं। वह पावन सोमरस इन्द्रदेव के उत्साह में वृद्धि करता है।[ऋग्वेद 9.24.3]
The Ritviz purifies Somras and carry it to Yagy Vedi. This pious Somras generate enthusiasm in Indr Dev.
त्वं सोम नृमादनः पवस्व चर्षणीसहे। सस्निर्यो अनुमाद्यः॥
ऋत्विजों के द्वारा धारण किया गया, पवित्र एवं सुसंस्कृत सोमरस मनुष्यों के आनन्द की वृद्धि करता है।[ऋग्वेद 9.24.4]
Supported by the Ritviz, pious-pure and sanctified Somras boosts pleasure in the humans.
इन्दो यदद्रिभिः सुतः पवित्रं परिधावसि। अरमिन्द्रस्य धाम्ने॥
हे सोम! पत्थरों द्वारा कूचलकर निकालने के बाद आपको छन्ने द्वारा शोधित किया जाता है, तब आप इन्द्र देव के पीने योग्य होते हैं।[ऋग्वेद 9.24.5]
Hey Som! You are crushed with stones and squeezed through sieve making you fit-suitable for drinking by Indr Dev.
पवस्व वृत्रहन्तमोक्थेभिरनुमाद्यः। शुचिः पावको अद्भुतः॥
हे सोमदेव! पवित्र, शत्रुओं का विनाश करने वाले एवं अद्भुत गुण वाले, उत्तम वचनों द्वारा आपकी स्तुति की जाती है।[ऋग्वेद 9.24.6]
Hey Som Dev! You are worshiped by the pious, destructor of the enemies, having amazing power and excellent words.
शुचिः पावक उच्यते सोमः सुतस्य मध्वः। देवावीरघशंसहा॥
देवताओं को प्रसन्नता प्रदान करने वाला एवं दुष्टों का विनाश करने वाला सोमरस शोधित, सुसंस्कृत और पवित्र है।[ऋग्वेद 9.24.7]
Somras which grant pleasure to demigods-deities and is the destructor of the enemies is extracted, sanctified and pious.(11.07.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (25) :: ऋषि :- दृलहच्युत, अगस्त्य; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
पवस्व दक्षसाधनो देवेभ्यः पीतये हरे। मरुभ्यो वायवे मदः॥
हे हरित वर्ण के सोम! मरुद्गण, वायुदेव और अन्य देवताओं के लिए कलश में एकत्रित होने वाले आप बलवर्द्धक तथा पाप नाशक हैं।[ऋग्वेद 9.25.1]
Hey Som with green hue! You being collected in Kalash-pot for Marud Gan, Vayu Dev and other demigods-deities, is energetic (boost strength) and destroyer of sins.
पवमान धिया हितो३भि योनिं कनिक्रदत्। धर्मणा वायुमा विश॥
हे सोम! आप शब्द करते हुए अपने स्थान की ओर गमन करें। अपने स्वाभाविक गुणों से वायु देव के साथ संयुक्त होकर आप कलश में प्रतिष्ठित हों।[ऋग्वेद 9.25.2]
Hey Som! Make sound while moving to your destination. You should assimilate with Vayu Dev and establish-stored in the Kalash.
सं देवैः शोभते वृषा कविर्योनावधि प्रियः। वृत्रहा देववीतमः॥
बल और ज्ञान से युक्त, सबको प्रिय, अभीष्टवर्द्धक एवं वृत्रहन्ता सोमरस देवताओं की कामना वाला होकर सुशोभित हुआ है।[ऋग्वेद 9.25.3]
Possessing might and knowledge, loved by all, desires accomplishing, killer of Vratr is glorified; being desirable to demigods-deities.
विश्वा रूपाण्याविशन्पुनानो याति हर्यतः। यत्रामृतास आसते॥
यह पवित्र सोमरस सभी रूपों में प्रविष्ट होकर जहाँ देवगण निवास करते हैं, उनके पास सुशोभित होकर जाता है।[ऋग्वेद 9.25.4]
This pious Somras establish itself near the demigods-deities at their abodes acquiring all forms.
अरुषो जनयन् गिरः सोमः पवत आयुषक् । इन्द्रं गच्छन् कविक्रतुः॥
यह मेधावी और तेजस्वी सोमरस शब्दनाद करता हुआ गिरता है तथा इन्द्र देव के पास जाता है।[ऋग्वेद 9.25.5]
This intelligent and energetic Somras falls making sound and moves to Indr Dev.
आ पवस्व मदिन्तम पवित्रं धारया कवे। अर्कस्य योनिमासदम्॥
हे सोम देव! आप आनन्द प्रदान करने वाले कान्तिमान हैं। पूजा के योग्य इन्द्र देव के आश्रय को प्राप्त करने के लिए आप धारारूप से शोधित होकर पवित्र बनें।[ऋग्वेद 9.25.6]
Hey Som Dev! You are gladdening and aurous. Establish yourself as a stream for worshipable Indr Dev; on being purified and sanctified.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (26) :: ऋषि :- इध्मवाह, ढाईच्युत; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
तममृक्षन्त वाजिनमुपस्थे अदितेरधि। विप्रासो अण्व्या धिया॥
मेधावीजन अपनी स्तुतियों और ऊँगलियों से उस बलशाली सोम को माता अदिति की गोद में उत्तम विधि से पवित्र बनाते हैं।[ऋग्वेद 9.26.1]
The intelligentsia make mighty Som pious using best procedure, in the lap of Mata Aditi reciting Stuties with their fingers.
तं गावो अभ्यनूषत सहस्रधारमक्षितम्। इन्दुं धर्तारमा दिवः॥
उत्तम स्तोत्रों द्वारा हम उन सोम की प्रार्थना करते हैं, जो सूर्य आदि लोकों को धारण करते हुए हजारों धाराओं से स्रावित होते हैं।[ऋग्वेद 9.26.2]
We worship Som with best Strotrs, who support the Sun and other abodes, flowing in thousands of streams.
तं वेधां मेधयाह्यन्यवमानमधि द्यवि। धर्णसिं भूरिधायसम्॥
सभी के आधार, सबके धारणकर्ता और सबके आश्रयदाता उस सोमदेव को हम स्वर्ग के समीप उच्च स्थान पर प्रतिष्ठित करते हैं।[ऋग्वेद 9.26.3]
We establish Som Dev in a higher place in heavens, who support and grant asylum to all.
तमह्यन्भुरिजोधिया संवसानं विवस्वतः। पतिं वाचो अदाभ्यम्॥
वाणी के अधिष्ठाता, अविनाशी सोम को याज्ञिकजन अपने हाथों में धारण करके यज्ञ स्थल पर पहुँचाते हैं।[ऋग्वेद 9.26.4]
The deity of speech, immortal Som is kept in the hands by the Yagyik to carry to Yagy site.
तं सानावधि जामयो हरिं हिन्वन्त्यद्रिभिः। हर्यतं भूरिचक्षसम्॥
प्रीति पूर्वक इन्द्र देव के निकट जाने वाला ज्ञानी तथा तेजस्वी सोम शोधित होता हुआ शब्दनाद करता है।[ऋग्वेद 9.26.5]
Enlightened & aurous Som moves to Indr Dev with love, being purified and making sound.
तं त्वा हिन्वन्ति वेधसः पवमान गिरावृधम्। इन्दविन्द्राय मत्सरम्॥
हे हर्ष प्रदायक सोम! आप धारारूप से शोधित और पवित्र होते हुए पूजनीय देवताओं के आश्रय को प्राप्त करें।[ऋग्वेद 9.26.6]
Hey gladdening Som! Flowing like a stream, purified and sanctified, attain patronage-asylum under the demigods-deities.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (27) :: ऋषि :- नृमेध, आंगिरस; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
एष कविरभिष्टुतः पवित्रे अधि तोशते। पुनानो घ्नन्नप स्त्रिधः॥
शान्ति प्रदान करने वाला यह सोमरस निष्पन्न होने पर विकार नाशक हो जाता है। कवियों और ज्ञानियों द्वारा इसकी प्रार्थना की जाती है।[ऋग्वेद 9.27.1]
Peace granting Somras become destroyer of deformities on being sanctified. Its worshiped by the poets and enlightened.
एष इन्द्राय वायवे स्वर्जित्परि षिच्यते। पवित्रे दक्षसाधनः॥
यह दिव्य तथा बलदायक सोमरस अन्तरिक्ष से छनकर इन्द्र देव और वायु देव के निमित्त नीचे आता है।[ऋग्वेद 9.27.2]
This divine and strength generating Somras come for Indr Dev and Vayu Dev from the sky-space after filtration.
एष नृभिर्वि नीयते दिवो मूर्धा वृषा सुतः। सोमो वनेषु विश्ववित्॥
सुंदर पात्रों में रखा जाने वाला अभिषुत सोमरस स्वर्ग के उच्च भाग से वर्षण शील, सभी को जानने वाला तथा अग्रणी मनुष्यों द्वारा यज्ञ में लाया जाता है।[ऋग्वेद 9.27.3]
Extracted Somras, aware of all, kept in beautiful vessels, is brought from the higher region of heavens having rains; is brought to the Yagy site by the leading humans.
एष गव्युरचिक्रदत्पवमानो हिरण्ययुः। इन्दुः सत्राजिदस्तृतः॥
द्युलोक में स्थित, बल प्रदान करने वाला, रसरूप, संसार को जानने वाला सोमरस, मनुष्यों द्वारा यज्ञ में प्रयुक्त किया जाता है।[ऋग्वेद 9.27.4]
Established in the heavens, strength granting, juicy-sap, aware of the universe, Somras is used by the humans in the Yagy.
एष सूर्येण हासते पवमानो अधि द्यवि। पवित्रे मत्सरो मदः॥
यह पवित्र सोमरस आनन्द प्रदान करने वाला तथा हर्ष प्रदान करने वाला है। सूर्य देव के द्वारा स्वर्ग की शोधक छलनी में स्थापित किया जाता है।[ऋग्वेद 9.27.5]
This pure Somras is exhilarating & gladdening. Its placed in the purifying sieve of the heavens by Sur Dev.
एष शुष्म्यसिष्यददन्तरिक्षे वृषा हरिः। पुनान इन्दुरिन्द्रमा॥
विकार नाशक हरित वर्ण का सोमरस अन्तरिक्ष से नीचे आता हुआ और पवित्र होता हुआ इन्द्र देव को प्रदान किया जाता है।[ऋग्वेद 9.27.6]
Destroyer of deformities, possessing green hue, Somras comes down from the space and given to Indr Dev being sanctified.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (28) :: ऋषि :- प्रियमेध, आंगिरस; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
एष वाजी हितो नृभिर्विश्वविन्मनसस्पतिः। अव्यो वारं वि धावति॥
सर्वज्ञाता, मन का स्वामी, बलशाली सोमरस याज्ञिकों द्वारा शोधित होकर कलश में प्रतिष्ठित होता है।[ऋग्वेद 9.28.1]
Aware of all, lord of innerself, mighty Somras is sanctified by the Yagyik and kept is the Kalash.
एषः पवित्रे अक्षरत्सोमो देवेभ्यः सुतः। विश्वा धामान्याविशन्॥
देवों के लिए निष्पन्न होने वाला सोमरस देवों के शरीर में ही व्याप्त होने के लिए आगमन करता है।[ऋग्वेद 9.28.2]
Extracted for the demigods-deities Somras arrive & assimilate in their body.
एष देवः शुभायतेऽधि योनावमर्त्यः। वृत्रहा देववीतमः॥
देवप्रिय, अभीष्टवर्षक, अविनाशी देवताओं की वृद्धि करने वाला शत्रुओं का संहार करने वाला सोम कलश में शोभायमान होता है।[ऋग्वेद 9.28.3]
Loved by the immortal demigods-deities, desires accomplishing, growing them and destroyer of the enemies, Som is glorified in the Kalash.
एष वृषा कनिक्रदद्दशभिर्जामिभिर्यतः। अभि द्रोणानि धावति॥
दसों ऊँगलियों द्वारा निचोड़ा गया, अत्यन्त बलवर्धक, सोम शब्दनाद करता हुआ कलश में गिरता है।[ऋग्वेद 9.28.4]
Squeezed by the ten fingers, highly power boosting Som, make sound while falling in the Kalash.
एष सूर्यमरोचयत्पवमानो विचर्षणिः। विश्वा धामानि विश्ववित्॥
समस्त संसार में सबको जानने और देखने वाला सोमरस सूर्य देव के साथ यज्ञों को भी प्रकाशमान करता है।[ऋग्वेद 9.28.5]
Aware of the whole universe, viewing every one, Somras illuminate the Yagy along with Sury Dev.
एष शुष्म्यदाभ्यः सोमः पुनानो अर्षति। देवावीरघशंसहा॥
देवताओं के रक्षक, दुष्टों के संहारक और कभी नष्ट न होने वाले शोधित हुए बलयुक्त सोम कलश में प्रविष्ट होते है।[ऋग्वेद 9.28.6]
Protector of the demigods-deities, destroyer of the wicked, immortal, mighty Som enters the Kalash.(12.07.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (29) :: ऋषि :- नृमेध, आंगिरस; देवता :-पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
प्रास्य धारा अक्षरन्वृष्णः सुतस्यौजसा। देवाँ अनु प्रभूषतः॥
सोमरस की प्रभावशाली धाराएँ देवों को अनुकूल बनाने के लिए वेगपूर्वक पात्र में एकत्रित होने लग गईं।[ऋग्वेद 9.29.1]
Currents-streams of Somras started flowing with speed in stored in vessel to make the demigods-deities favourable.
सप्तिं मृजन्ति वेधसो गृणन्तः कारवो गिरा। ज्योतिर्जज्ञानमुक्थ्यम्॥
देदीप्यमान, स्तुत्य अश्व के समान वेगवान् सोम को मेधावी अध्वर्युगण अपनी वाणीरूप स्तुतियों द्वारा पवित्र करते हैं।[ऋग्वेद 9.29.2]
Radiant, worshipable like fast moving horses Som is sanctified by the intelligent priests with the recitation of Stuties-prayers.
सुषहा सोम तानि ते पुनानाय प्रभूवसो। वर्धा समुद्रमुक्थ्यम्॥
हे पवित्र होने वाले सोम! जल जिस प्रकार सागर को पूर्ण करता है, उसी प्रकार आप इस पात्र को पूर्ण करें।[ऋग्वेद 9.29.3]
Hey Som prepared to be sanctified! The way water filles the ocean, you should fill this vessel.
विश्वा वसूनि संजयन्पवस्व सोम धारया। इनु द्वेषांसि सध्यक्॥
हे स्तुत्य सोम! समस्त शत्रुओं को दूर करने वाले आप समस्त ऐश्वर्यों को अधीन करते हुए धारारूप में क्षरित होवें।[ऋग्वेद 9.29.4]
Hey worshiped Som! Repelling all enemies, bring all grandeurs under your control, flow in the form of a stream.
रक्षा सु नो अररुषः स्वनात्समस्य कस्य चित्। निदो यत्र मुमुच्महे॥
हे सोम! आप दान न देने वाले मनुष्यों और निन्दा करने वालों से हमें सुरक्षित करें। शत्रुओं से भी हमें मुक्त करें।[ऋग्वेद 9.29.5]
Hey Som! Protect us from those who do not donate and lampoon others. Release us from the enemies.
एन्दो पार्थिवं रयिं दिव्यं पवस्व धारया। द्युमन्तं शुष्ममा भर॥
हे सोम! आप अपना तेजयुक्त बल प्रदान करते हुए पृथ्वी पर अपनी धारा से रस प्रवाहित करते हुए हमें अनेक प्रकार के ऐश्वर्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.29.6]
Hey Som! Grant us many kinds of grandeur flowing your currents over the earth strengthening with your radiant power.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (30) :: ऋषि :- विन्दु, आंगिरस; देवता :-पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
प्र धारा अस्य शुष्मिणो वृथा पवित्रे अक्षरन्। पुनानो वाचमिष्यति॥
स्तुतियों को श्रवण करती हुई दिव्य सोमरस की धाराएँ छलनी से पवित्र होने के लिए प्रवाहित होती हैं।[ऋग्वेद 9.30.1]
Currents of divine Somras attending-responding to the Stuties flow through the sieve.
इन्दुर्हियानः सोतृभिर्मृज्यमानः कनिक्रदत्। इयर्ति वग्नुमिन्द्रियम्॥
याज्ञिकों द्वारा प्रेरित किया गया सोमरस शोधित होते हुए शब्दनाद करता है एवं उपासकों को यज्ञकर्म के लिए प्रेरित करता है।[ऋग्वेद 9.30.2]
Inspired by the Yagyik Somras produce sound while purification and inspire the worshipers to perform Yagy.
आ नः शुष्मं नृषाह्यं वीरवन्तं पुरुस्पृहम्। पवस्व सोम धारया॥
हे सोमदेव! पवित्र धाराओं से प्रवाहित होते हुए आप शत्रुओं का नाश करने वाला, शौर्यवर्द्धक तथा सभी के द्वारा पूज्य बल हमें प्रदत्त करें।[ऋग्वेद 9.30.3]
Hey Som! Grant us valour to be worshiped by all; to eliminate the enemies while flowing in pious currents.
प्र सोमो अति धारया पवमानो असिष्यदत्। अभि द्रोणान्यासदम्॥
यह पवित्र और शोधित सोमरस पात्र में स्थापित होने के लिए धारारूप में प्रवाहित होता है।[ऋग्वेद 9.30.4]
This pure-pious, sanctified Somras flows in a current to be kept in the pot.
अप्सु त्वा मधुमत्तमं हरिं हिन्वन्त्यद्रिभिः। इन्दविन्द्राय पीतये॥
हरिताभ, अति मधुर, जल में मिश्रित, सोमरस को पत्थरों से कूटकर तैयार करते हैं। उसे इन्द्र देव को पीने के लिए प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 9.30.5]
Sweet Somras having green hue, is crushed with stones, mixed in water & is offered to Indr Dev for drinking.
सुनोता मधुमत्तमं सोममिन्द्राय वज्रिणे। चारुं शर्धाय मत्सरम्॥
हे यज्ञकर्ताओं! वज्रधारी इन्द्र देव के बल की वृद्धि के लिए आप आनन्दायी तथा अत्यन्त मधुर सोमरस को निकालो।[ऋग्वेद 9.30.6]
Hey Yagy performers! Extract highly sweet Somras for boosting the might-power of Vajr wielding Indr Dev.(14.07.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (31) :: ऋषि :- गौतम, राहूगण; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
प्र सोमासः स्वाध्य १ : पवमानासो अक्रमुः। रयिं कृण्वन्ति चेतनम्॥
यह शोधित सोमरस ज्ञान तथा स्फूर्ति प्रदान करने वाला व उत्तम धनों अर्थात् ऐश्वर्यों को प्रदान करता है।[ऋग्वेद 9.31.1]
स्फूर्ति :: धीरे धीरे हिलना, फड़कना, स्फुरण (विचार आदि मन में उदय होना), काव्य की प्रेरणा, कवि कर्म की उद्भूति या प्रेरणा, कोई काम करने के लिये मन में उत्पन्न होने वाली हलकी उत्तेजना, फुरती; pep, go, perkiness, agility, spirit.
Purified Somras grant knowledge, agility, spirit, best wealth and Grandeur.
दिवस्पृथिव्या अधि भवेन्दो द्युम्नवर्धनः। भवा वाजानां पतिः॥
हे सोम देव! आप धन और बल के संरक्षक तथा आकाश और पृथ्वी को प्रदीप्त करने वाले धनों की वृद्धि करते हैं।[ऋग्वेद 9.31.2]
Hey Som Dev! You are the protector & booster of wealth, booster of strength, illuminate the earth and the heavens.
तुभ्यं वाता अभिप्रियस्तुभ्यमर्षन्ति सिन्धवः। सोम वर्धन्ति ते महः॥
हे सोम देव! वायुदेव आपको तृप्त करते हुए, नदियाँ आपका अनुगमन करती हुई आपकी महत्ता को विस्तारित करती हैं।[ऋग्वेद 9.31.3]
Hey Som Dev! Vayu Dev saturate-satisfy you, rivers follow you boosting your glory-significance.
आ प्यायस्व समेतु ते विश्वतः सोम। वृष्ण्यम्भवा वाजस्य संगथे॥
हे सोम देव! आपको सभी ओर से बल की प्राप्ति हो, संग्राम के समय भी आप हमें अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.31.4]
Hey Som Dev! You should attain strength from all sides. Grant us food grains during war as well.
तुभ्यं गावो घृतं पयो बभ्रो दुदले अक्षितम्। वषिष्ठे अधि सानवि॥
हे सोम देव! आप उच्च्च स्थान पर रहने वाले, गौवें कभी न घटने वाला दुग्ध और घृत प्रदान करती हैं।[ऋग्वेद 9.31.5]
Hey Som Dev! You occupy high altitude, grant never ending-diminishing milk and Ghee.
स्वायुधस्य ते सतो भुवनस्य पते वयम्। इन्दो सखित्वमुश्मसि॥
हे सोम देव! आप उत्तम भुवनों के अधिष्ठाता हैं। हम श्रेष्ठ अस्त्रों से युक्त होकर आपसे मित्रता की कामना करते हैं।[ऋग्वेद 9.31.6]
Hey Som Dev! You are the deity of the best buildings-houses. Accompanied with best weapons we request for your friendship.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (32) :: ऋषि :- श्यावाश्च, आत्रेय; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
प्र सोमासो मदच्युतः श्रवसे नो मघोनः। सुता विदथे अक्रमुः॥
आनन्द प्रदान करने वाला शोधित सोमरस हमारे यज्ञस्थल पर पधार कर अन्न और ऐश्वर्य प्रदान करता है।[ऋग्वेद 9.32.1]
Let exhilarating sanctified Somras come to the Yagy site and grant us food grains & grandeur.
आर्दी त्रितस्य योषणो हरिं हिन्वन्त्यद्रिभिः। इन्दुमिन्द्राय पीतये॥
हरिताभ सोमरस को याजक अपनी ऊँगलियों से निचोड़कर इन्द्र देव के पीने योग्य बनाते हैं।[ऋग्वेद 9.32.2]
The Ritviz squeeze Somras with their fingers having green hue and make it drinkable-fit for Indr Dev.
आर्दी हंसो यथा गणं विश्वस्यावीवशन्मतिम्। अत्यो न गोभिरज्यते॥
हंस जिस प्रकार अपने समूह में जाता है, उसी गति के साथ यह वेगवान सोमरस विवेकी मनुष्यों की बुद्धि को प्रभावित करने हेतु उनके निकट गमन करता है।[ऋग्वेद 9.32.3]
The way the swan flock together, similarly Somras moves fast towards the prudent humans for affecting their mind.
उभे सोमावचाकशन्मृगो न तक्तो अर्षसि। सीदन्नृतस्य योनिमा॥
हे सोम देव! आप द्युलोक और पृथ्वी लोक को देखते हुए हरिण के समान तेजस्वी होकर यज्ञस्थल पर प्रतिष्ठित होते हैं।[ऋग्वेद 9.32.4]
Hey Som Dev! You establish yourself at the Yagy site, while looking at the earth & heavens like an aurous deer.
अभि गावो अनूषत योषा जारमिव प्रियम्। अगन्नाजिं यथा हितम्॥
हे सोम देव! स्त्री जिस प्रकार अपने प्रियतम की प्रार्थना करती है अथवा युद्ध में जाने वाले योद्धाओं की स्तुति की जाती है, उसी प्रकार मन्त्रों द्वारा हम आपकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 9.32.5]
Hey Indr Dev! The way a woman request her husband or the warriors are prayed while going to war, we too worship you with Mantr.
अस्मे धेहि द्युमद्यशो मघवद्भयश्च मह्यं च। सनिं मेधामुत श्रवः॥
हे सोमदेव! आप हमें तेजस्वी बनाने वाला अन्न और ऋत्विजों को धन, बुद्धि एवं यश प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.32.6]
Hey Som Dev! Grant us food grains which can boost our energy & wealth to the Ritviz along with intelligence and glory.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (33) :: ऋषि :- असित, कश्यप या देवल; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
प्र सोमासो विपश्चितोऽपां न यन्त्यूर्मयः। वनानि महिषाइव॥
जैसे वृद्ध हरिण वन में जाता है, उसी के तुल्य यह सोमरस जल की लहरों की भाँति सोमपात्रों में गमन करता है।[ऋग्वेद 9.33.1]
The way an aged deer goes to the forest, similarly this Somras moves to the pots kept for it, like the waves in water.
अभि द्रोणानि बभ्रवः शुक्रा ऋतस्य धारया। वाजं गोमन्तमक्षरन्॥
भूरे रंग का यह सोमरस गौ-दुग्ध रूपी अन्न तथा जल की धारा के साथ कलश में स्थापित होता है।[ऋग्वेद 9.33.2]This brownish Somras is kept in the Kalash like the cows milk in the form of food grains and stream of water.
सुता इन्द्राय वायवे वरुणाय मरुद्धयः। सोमा अर्षन्ति विष्णवे॥
इन्द्र देव, वायु देव, वरुण देव, मरुद्गण और श्री हरी विष्णु आदि देवों को यह निष्पन्न सोमरस प्राप्त हो है। [ऋग्वेद 9.33.3]
Let this extracted Somras be available to Indr Dev, Vayu Dev, Marud Gan and Shri Hari Vishnu.
तिस्रो वाच उदीरते गावो मिमन्ति धेनवः। हरिरेति कनिक्रदत्॥
जब मंत्र युक्त तीन प्रकार की स्तुतियाँ कही जाती हैं, जब गौवें शब्द करती हैं, तब हरित वर्ण का सोम तीव्र ध्वनि करता हुआ अवतरित होता है।[ऋग्वेद 9.33.4]
When three Stuties are made with the Mantr, cows moo, then green hue possessing Somras appear with high speed.
अभि ब्रह्मीरनूषत यह्वीर्ऋ तस्य मातरः। मर्मृज्यन्ते दिवः शिशुम्॥
द्युलोक से उत्पन्न हुए सोमरस को शोधित करते समय महान् याज्ञिकों द्वारा परमार्थ परायण बनने की प्रेरणा देने वाली ऋचाएँ उच्चारित की जाती हैं।[ऋग्वेद 9.33.5]
Richas are recited by the great Yagyik to inspire for devotion to other's welfare for sanctifying the Somras produced in the heavens.
रायः समुद्रांश्चतुरोऽस्मभ्यं सोम विश्वतः। आ पवस्व सहस्रिणः॥
हे सोमदेव! धनों से युक्त हजारों समुद्रों को हमें प्राप्त कराने के लिए आप तीव्र गति से प्रवाहित होते हैं।[ऋग्वेद 9.33.6]
Hey Som! You flow with high speed to make us avail the thousands of seas having wealth.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (34) :: ऋषि :- त्रित, आदय; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
प्र सुवानो धारया तनेन्दुर्हिन्वानो अर्षति। रुजदृळ्हा व्योजसा॥
कूटे गया सोमरस व्यापक बलों से युक्त होकर धारारूप पात्र में एकत्रित होता है। वह अपने बल से शत्रुओं के सुदृढ़ किलों को तहस-नहस कर देता है।[ऋग्वेद 9.34.1]
Crushed Somras acquire strengths & flow towards the vessel for collection. It destroys the forts of the enemies with its might.
सुत इन्द्राय वायवे वरुणाय मरुद्भयः। सोमो अर्षति विष्णवे॥
इन्द्र देव, वरुण देव, वायु देव, मरुद्गण और श्री हरी विष्णु आदि देवों के लिए अभिषुत सोमरस पात्र में एकत्रित होता है।[ऋग्वेद 9.34.2]
Extracted Somras is collected in the pot for Indr Dev, Varun Dev, Marud Gan and Shri Hari Vishnu.
वृषाणं वृषभिर्यतं सुन्वन्ति सोममद्रिभिः। दुहन्ति शक्मना पयः॥
पत्थरों द्वारा सोमरस को कूटने वाले अध्वर्युगण अपने कर्म के द्वारा सोमरस रूप दुग्ध का दोहन करते हैं।[ऋग्वेद 9.34.3]
The priests, crush Som with stones & extract Somras like the milk, with their efforts.
भुवत्त्रितस्य मर्यो भुवदिन्द्राय मत्सरः। सं रूपैरज्यते हरिः॥
त्रित ऋषि द्वारा शोधित हरिताभ सोमरस गौ-दुग्ध के साथ मिलाकर इन्द्र देव को प्रदान किया जाता है।[ऋग्वेद 9.34.4]
Greenish Somras extracted by Trit Rishi is mixed with cow's milk and offered to Indr Dev.
अभीमृतस्य विष्टपं दुहते पृश्निमातरः। चारु प्रियतमं हविः॥
यज्ञ के आश्रय रूप श्रेष्ठ सोमरस का पृश्नि पुत्र मरुद्गण अपने बल से रस निकालते हैं।[ऋग्वेद 9.34.5]
Excellent Somras supporting the Yagy, is extracted by the Marud Gan, sons of Prashni with their might
समेनमह्रुता इमा गिरो अर्षन्ति सस्रुतः। धेनूर्वाश्रो अवीवशत्॥
गौवें जिस प्रकार अपने बछड़े के पास जाने की इच्छा करती हैं, उसी प्रकार हमारी स्तुतियाँ सोमरस के पास जाने की कामना करती हैं।[ऋग्वेद 9.34.6]
The way cows wish to go to their calf, similarly our Stuties too wish to meet Somras.(15.07.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (35) :: ऋषि :- प्रभूवसुरांगिरस; देवता :-पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
आ नः पवस्व धारया पवमान रयिं पृथुम्। यया ज्योतिर्विदासि नः॥
हे सोम! आप जिस धारा से हमें तेज प्रदान करते हैं, आप अपने रस के साथ हमें पर्याप्त धन भी प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.35.1]
Hey Som! Grant us sufficient wealth as well along with juice-sap with your stream which provide us energy-aura.
इन्दो समुद्रमीङखय पवस्व विश्वमेजय। रायो घर्ता न ओजसा॥
हे सोम! आप शत्रुओं को भयभित करने एवं हमें धन प्रदान करने वाले हैं। आप अपने रस में जल को मिश्रित होने के लिए प्रेरित करें।[ऋग्वेद 9.35.2]
Hey Som! You terrorise the enemies and grant us wealth. Inspire your juice to mix with water.
त्वया वीरेण वीरवोऽभि ष्याम पृतन्यतः। क्षरा णो अभि वार्यम् ॥
हे सोम देव! आप हमें वीरता प्रदर्शित करने वाला धन प्रदान करें और आप जैसे वीर सहयोगी के साथ रहकर हम शत्रुसेना पर आक्रमण करेंगे।[ऋग्वेद 9.35.3]
Hey Som Dev! Grant us the wealth which make us demonstrate our bravery. We will attack the enemy with an associate like you.
प्र वाजमिन्दुरिष्यति सिषासन्वाजसा ऋषिः। व्रता विदान आयुधा॥
सबको देखने वाला, कर्म का ज्ञाता सोम आयुधों को अपने निकट रखता है तथा यजमान के आश्रित होता हुआ अन्नादि प्रेषित करता है।[ऋग्वेद 9.35.4]
Som which looks at every one, aware of Karm-efforts, keep the weapons with him, depend upon the hosts; send food grains to them.
तं गीर्भिर्वाचमीङखयं पुनानं वासयामसि। सोमं जनस्य गोपतिम्॥
हम उत्तम प्रार्थनाओं द्वारा उस सोम देव की स्तुति करते हैं, जो पवित्र बनाने वाला, मनुष्यों और गौवों की रक्षा करने वाला है।[ऋग्वेद 9.35.5]
We worship Som Dev with best prayers. He sanctifies and protect the cows of humans.
विश्वो यस्य व्रते जनो दाधार धर्मणस्पतेः। पुनानस्य प्रभूवसोः॥
सोमयज्ञ में सभी याजकों का मन लगा रहता है। शोधित सोमरस धर्म और धनों से युक्त है।[ऋग्वेद 9.35.6]
The innerself of the Yagyik is involved in the Som Yagy. Purified Somras is accompanied with Dharm and wealth.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (36) :: ऋषि :- प्रभूवसुरांगिरस; देवता :-पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
असर्जि रथ्यो यथा पवित्रे चम्वोः सुतः। कार्म्मन्वाजी न्यक्रमीत्॥
नियन्त्रित रथ के अश्वों की तरह निचोड़ा गया सोमरस पात्रों में सावधानी पूर्वक भरा जाता है। वह बलवान सोमरस देवताओं के तुल्य अपनी ओर आकर्षित करने में समर्थ है।[ऋग्वेद 9.36.1]Somras is squeezed in the vessels like the controlled horses, carefully. Its capable of attracting like the mighty demigods-deities.
स वह्निः सोम जागृविः पवस्व देववीरति। अभि कोशं मधुश्चतम्॥
हे सोम! आप बल और यश से युक्त है। मधुरता से युक्त हुए आप छलनी से छनते हुए गिरते हैं।[ऋग्वेद 9.36.2]
Hey Som! You are associated with might & glory. Associated with sweetness, you fall out of the sieve.
स नो ज्योतींषि पूर्व्य पवमान वि रोचय। क्रत्वे दक्षाय नो हिनु॥
हे सोमदेव! आप यज्ञकर्म के लिए बल प्रदान करने हैं। आप हमारे तेज की वृद्धि करें।[ऋग्वेद 9.36.3]Hey Som Dev! You grant strength for the Yagy Karm. Boost our energy.
शुम्भमान ऋतायुभिर्मुज्यमानो गभस्त्योः। पवते वारे अव्यये॥
यज्ञ करने वाले याज्ञिकों द्वारा शोधित सोमरस भेड़ के बालों की छलनी से छाना जाता है। [ऋग्वेद 9.36.4]
Purified Somras is filtered with the sieve made of sheep hair by the Yagyik conducting Yagy.
स विश्वा दाशुषे वसु सोमो दिव्यानि पार्थिवा। पवतामान्तरिक्ष्या॥
पृथ्वी और आकाश एवं अन्तरिक्ष का सम्पूर्ण वैभव यह सोमरस याज्ञिकों को प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.36.5]
Let this Somras grant the entire grandeur of the earth and sky to the Yagyik.
आ दिवस्पृष्ठमश्वयुर्गव्ययुः सोम रोहसि। वीरयुः शवसस्पते॥
हे सोमदेव! आप स्तोताओं को गौ, अश्व और वीर पुत्र देने की इच्छा करते हुए द्युलोक के ऊपर स्थित होते हैं।[ऋग्वेद 9.36.6]
Hey Som Dev! You are established over the heavens with the desire of granting cows, horses and brave sons to the Stotas.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (37) :: ऋषि :- राहूगण, आंगिरस; देवता :-पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
स सुतः पीतये वृषा सोमः पवित्रे अर्षति। विघ्नन्रक्षांसि देवयुः॥
गुणों से युक्त और अभीष्ट वर्षक यह सोमरस विकारों को नष्ट करता हुआ छलनी से गिरता है। इसे इन्द्र देव के लिए तैयार किया गया है।[ऋग्वेद 9.37.1]
Full of good qualities, accomplishing desires; the Somras destroys the defects falling out of the sieve. Its prepared for Indr Dev.
स पवित्रे विचक्षणो हरिरर्षति धर्णसिः। अभि योनिं कनिक्रदत्॥
पापियों का संहार करने वाला हरिताभ सोमरस छलनी द्वारा स्वच्छ होकर नाद करता हुआ कलश में प्रवेश करता है।[ऋग्वेद 9.37.2]
Destroyer of the sinners, greenish Somras is purified with the sieve and falls into the Kalash producing sound.
स वाजी रोचना दिवः पवमानो वि धावति। रक्षोहा वारमव्ययम्॥
यह क्षरणशील सोमरस द्युलोक में प्रकाशित होता हुआ शोधित होकर छलनी द्वारा शोधित होता है।[ऋग्वेद 9.37.3]
क्षरण :: क्षय, विनाश, टपकना, चूना, फूट निकलना, क्षीण होना, रिसना; corrosion, ambrosia, dripping, distillatory, leak.
Illuminate Somras dripping from the heavens, filters passing through the sieve.
स त्रितस्याधि सानवि पवमानो अरोजयत्। जामिभिः सूर्य सह॥
ऋषि त्रित के यज्ञ में संस्कारित हुआ यह सोमरस अपने महान तेज से सूर्य देव को प्रकाशित करता है।[ऋग्वेद 9.37.4]
Sanctified in the Yagy by Trit Rishi this Somras illuminate Sury Dev with its great aura.
स वृत्रहा वृषा सुतो वरिवोविददाभ्यः। सोमो वाजमिवासरत्॥
शत्रुओं का नाश करने वाला, बल की वृद्धि करने वाला, धन देने वाला सोमरस निचोड़कर निकाला गया। वह अश्व के वेग के समान कलश में प्रविष्ट होता है।[ऋग्वेद 9.37.5]
Destroyer of the enemy, booster of strength, wealth granting Somras has been squeezed. It runs into the Kalash with the speed of horse.
स देवः कविनषितो ३ भि द्रोणानि धावति। इन्दुरिन्द्राय मंहना॥
स्वर्ग में प्रकाशवान वह सोम याज्ञिकों के द्वारा प्रभावित होकर इन्द्रादि देवों की महत्ता बढ़ाने के लिए वेग पूर्वक कलश में प्रवेश करता है।[ऋग्वेद 9.37.6]
Lighted in the heavens Somras is influenced by the Yagyik and enters the Kalsh to boost the glory of Indr Dev and other demigods-deities.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (38) :: ऋषि :- आंण्गिठ; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
एष उ स्य वृषा रथोऽव्यो वारेभिरर्षति। गच्छन्वाजं सहस्रिणम्॥
कामना युक्त अन्न प्रदान करने वाला यह सोमरस रथ के समान वेगवान् हुआ कलश में छलनी के द्वारा छाना जाता है।[ऋग्वेद 9.38.1]
This Somras which grants food grains accompanied with wishes, enters the Kalsh with high speed like a charoite & is filtered in the sieve.
एतं त्रितस्य योषणो हरिं हिन्वन्त्यद्रिभिः। इन्दुमिन्द्राय पीतये॥
हरिताभ सोम त्रित ऋषि की अँगुलियों द्वारा इन्द्र देव के लिए निचोड़ा गया है।[ऋग्वेद 9.38.2]
Somras with green hue is squeezed with ten fingers by Trit Rishi for Indr Dev,
एतं त्यं हरितो दश मर्मृज्यन्ते अपस्युवः। याभिर्मदाय शुम्भते॥
इन्द्र देव को प्रसन्न करने के लिए यज्ञार्थ दस अँगुलियाँ इस सोमरस को शोधित करती हैं।[ऋग्वेद 9.38.3]
Ten fingers purify this Somras for the purpose of Yagy and appeasing Indr Dev.
एष स्य मानुषीष्वा श्येनो न विक्षु सीदति। गच्छञ्जारो न योषितम्॥
जिस प्रकार बाज पक्षी अपने शिकार के लिए और प्रेमी अपनी प्रेमिका के लिए वेगपूर्वक जाता है, उसी प्रकार यह सोमरस मनुष्यों के बीच शीघ्रता से पहुँचकर प्रतिष्ठित होता है।[ऋग्वेद 9.38.4]
प्रेमिका :: सखी, सहेली, प्रेमी, महबूब, आशिक़, उपस्री, यार, उपपति, अवैध प्रेमी; girlfriend, lover, paramour.
The way a falcon moves with great speed for the hunt and the lover quickly reaches his paramour, this Somras quickly reaches the humans and is glorified.
एष स्य मद्यो रसोऽव चष्टे दिवः शिशुः। य इन्दुर्वारमाविशत्॥
सबका द्रष्टा, छलनी द्वारा शोधित हुआ यह सोमरस आनन्द को बढ़ाने के लिए द्युलोक में उत्पन्न हुआ है।[ऋग्वेद 9.38.5]
Looking at every one, sanctified with a sieve, this gladdening Somras has evolved in the heavens.
एष स्य पीतये सुतो हरिरर्षति धर्णसिः। क्रन्दन्योनिमभि प्रियम्॥
देवों के पीने के लिए इस अविनाशी सोमरस को तैयार किया गया है। यह ध्वनि करता हुआ अपने प्रिय निवास स्थान कलश में प्रवेश करता है।[ऋग्वेद 9.38.6]
This immortal-imperishable has been prepared for demigods deities to drink. It enters its dear palace the Kalash making sound.(16.07.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (39) :: ऋषि :- बृहन्मति, आंगिरस; देवता :-पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
आशुरर्ष बृहन्मते परि प्रियेण धाम्ना। यत्र देवा इति ब्रवन्॥
देवों के आवास की ओर मैं गमन करता हूँ; यह कहता हुआ सोमरस देवों के शरीर में रमण करने को उद्यत होता है।[ऋग्वेद 9.39.1]
Somras gets ready to enter the body of the demigods-deities, saying-stating that its moving towards their abode.
परिष्कृण्वन्ननिष्कृतं जनाय यातयन्निषः। वृष्टिं दिवः परि स्त्रव॥
हे सोम देव! आप सभी को शुद्ध करते हुए मनुष्यों के लिए अन्नादि की उत्पत्ति करने हेतु आकाश से जल की वर्षा करें।[ऋग्वेद 9.39.2]
Hey Som Dev! Purifying everyone, rain waters from the sky for the humans to produce food grains etc.
सुत एति पवित्र आ त्विषिं दधान ओजसा। विचक्षाणो विरोचयन्॥
सभी को देखने और प्रकाशित करने वाला सोमरस अन्तरिक्ष से प्राकृतिक छलनी द्वारा छनता हुआ तीव्रगति से अवतरित होता है।[ऋग्वेद 9.39.3]
Somras which looks at everyone and illuminate them; comes down from the space with great speed, filtered through natural sieve.
अयं स यो दिवस्परि रघुयामा पवित्र आ। सिन्धोरूर्मा व्यक्षरत्॥
आकाश में तीव्र गति से विचरण करने वाला, पवित्र किया जाता हुआ सोमरस समुद्र की लहरों को प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 9.39.4]
Moving with high speed in the sky-space, purified Somras meets the waves of ocean.
आविर्वासन्परावतो अथो अर्वावतः सुतः। इन्द्राय सिच्यते मधु॥
तैयार किया हुआ यह सोमरस दूर एवं समीप से पवित्र करके इन्द्र देव को समर्पित किया जाता है।[ऋग्वेद 9.39.5]
Ready to drink Somras is offered to Indr Dev from far & near, after sanctifying it.
समीचीना अमूषत हरि हिन्वन्त्यद्रिभिः। योनावृतस्य सीदत॥
यज्ञ स्थल पर प्रतिष्ठित पत्थरों द्वारा कूटकर निकाले गए ताजे हरे रंग वाले सोमरस को शोधित करते समय एक स्थान पर एकत्रित साधक प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 9.39.6]
The worshiper assembles at a point & extract greenish Somras by crushing it with stones at the site of Yagy.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (40) :: ऋषि :- बृहन्मति, आंगिरस; देवता :-पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
पुनानो अक्रमीदभि विश्वा मृधो विचर्षणिः। शुम्भन्ति विप्रं धीतिभिः॥
सभी शत्रुओं का शमन करने वाले पवित्र सोमरस की विद्वान लोग दिव्य स्तोत्रों द्वारा प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 9.40.1]
SUPPRESS :: दबाना, रोकना, कुचलना; clamp, stifle, depress, press, compress, squeeze, stop, clog, inhibit, prevent, fend, intercept, throttle, scrunch, suppress, quell, grind, jam.
The learned-scholars pray to pious Somras which supress-crush the enemies, with divine Strotrs.
आ योनिमरुणो रुहद्गमदिन्द्रं वृषा सुतः। ध्रुवे सदसि सीदति॥
विधिवत् तैयार किया गया अरुण वर्ण का सोमरस कलश में स्थिर होता है। वह कामनाओं को पूरा करने वाले इन्द्र देव को प्राप्त होता है।[ऋग्वेद 9.40.2]
Methodically prepared golden coloured Somras is kept in the Kalash. It is obtained by Indr Dev who accomplish desires.
नू नो रयिं महामिन्दोऽस्मभ्यं सोम विश्वतः। आ पवस्व सहस्रिणम्॥
हे सोम देव! शान्ति प्रदान करने वाले आप हमें हजारों प्रकार के ऐश्वर्य सभी ओर से हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.40.3]
Hey Som Dev! You grant peace-solace. Grant us thousands of kinds of grandeur from all sides.
विश्वा सोम पवमान द्युम्नानीन्दवा भर। विदाः सहस्रिणीरिषः॥
हे सोमदेव! आप हमें हर प्रकार के धन प्रदान करने वाले हैं। हमें हजारों प्रकार के धनों से युक्त करें।[ऋग्वेद 9.40.4]
Hey Som Dev! You are one who grant us all sorts of wealth. Grant us thousands of kinds of wealth.
स नः पुनान आ भर रयिं स्तोत्रे सुवीर्यम्। जरितुर्वर्धया गिरः॥
हे सोम! आप शोधित होते हुए पराक्रमी बनाने वाला श्रेष्ठ धन हम सभी प्रार्थना करने वालों को प्रदान करें और स्तुति करने वालों की स्तुतियों को विस्तारित करें।[ऋग्वेद 9.40.5]
Hey Som! Grant us best wealth to make all of us worshipers mighty; while being sanitized, comprehending the Stuties of the Stotas.
पुनान इन्दवा भर सोम द्विबर्हसं रयिम्। वृषन्निन्दो न उक्थ्यम्॥
हे सोमदेव! शुद्धता को प्राप्त हुए आप हमें द्युलोक और पृथ्वी लोक के धनों से युक्त करें।[ऋग्वेद 9.40.6]
Hey Som Dev! Grant us the wealth of the earth & heavens while attain purity.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (41) :: ऋषि :- मेधातिथि, काण्व; देवता :-पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
प्र ये गावो न भूर्णयस्त्वेषा अयासो अक्रमुः। घ्नन्तः कृष्णामप त्वचम्॥
हे स्तोताओं! असुरों का संहार कर भ्रमण करने वाले जल के सदृश तेज युक्त निष्पन्न सोम देव की आप उत्तम प्रकार से प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 9.41.1]
Hey Stotas! Worship in best possible manner, aurous-radiant Som Dev who travel after destroying-finish the demons.
सुवितस्य मनामहेऽति सेतुं दुराव्यम्। साह्वांसो दस्युमव्रतम्॥
हे सोम देव! आप निंदनीय कर्मों को करने वाले शत्रुओं का दमन और असह्य बंधनों को दूर करने वाले हैं। हम आपकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 9.41.2]
Hey Som Dev! You destroy those who perform vicious-wicked deeds, crush the enemies and remove-cut the intolerable ties-bonds. We worship you.
शृण्वे वृष्टेरिव स्वनः पवमानस्य शुष्मिणः। चरन्ति विद्युतो दिवि॥
जिस तेजस्वी सोम की किरणें आकाश में चारों ओर उपस्थित होती हैं, वह निष्पन्न किए जाते समय वर्षा के समय होने वाली जल की ध्वनि के सदृश सुमधुर शब्द करता है।[ऋग्वेद 9.41.3]
Bright Som the rays of which are present all over the sky, make pleasant sound like the rain waters on being accomplished-carried out.
आ पवस्व महीमिषं गोमदिन्दो हिरण्यवत्। अश्वावद्वाजवत्सुतः॥
हे पात्र में स्थित सोम! आप हमें अन्न, धन, पुत्र-पौत्र, गौ, अश्व और सुवर्णादि प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.41.4]
Hey Som present in the pot! Grant us food grains, wealth, sons & grandsons, horses and gold etc.
स पवस्व विचर्षण आ मही रोदसी पृण। उषाः सूर्यो न रश्मिभिः॥
सूर्य देव के सदृश अपनी स्वर्णिम किरणों द्वारा उषा काल के पश्चात् यह सोमरस संसार को प्रकाशित करता है तथा अपने पवित्र रस से धरती और आकाश को व्याप्त करता है।[ऋग्वेद 9.41.5]
Somras illuminate the world like golden rays of Sur Dev after the day break-Usha Kal and pervade the earth and sky with its pious sap-extract.
परि णः शर्मयन्त्या धारया सोम विश्वतः। सरा रसेव विष्टपम्॥
हे सोम! जिस प्रकार नदियाँ अपने जल से पृथ्वी को परिपूर्ण करती हैं, उसी प्रकार आप अपनी मंगलकारी धाराओं द्वारा हमें पूर्ण करें।[ऋग्वेद 9.41.6]
परिपूर्ण :: व्याप्त, जनपूर्ण, भरा हुआ, भरपूर; perfect, full, replete.
The way rivers replete the earth with their water, let your beneficial currents replete us.(17.07.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (42) :: ऋषि :- मेधातिथि, काण्व; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
जनयन्रोचना दिवो जनयन्नप्सु सूर्यम्। वसानो गा अपो हरिः॥
हरिताभ सोम द्युलोक में सूर्य देव को और आकाश में नक्षत्रों को स्थित करके गौ, पृथ्वी और जल को प्रभावित करता है।[ऋग्वेद 9.42.1]
Som with greenish hue affects Sun in heavens and establish the constellations in the sky affecting the cows, earth and water.
एष प्रत्नेन मन्मना देवो देवेभ्यस्परि। धारया पवते सुतः॥
देवगणों के लिए धारारूप में प्रवाहित होने वाला सोमरस स्तुतियों द्वारा प्रवाहित होता है।[ऋग्वेद 9.42.2]Somras flowing in streams for the demigods-deities flow by the Stuties.
वावृधानाय तूर्वये पवन्ते वाजसातये। सोमाः सहस्रपाजसः॥
हजारों प्रकार के बल की वृद्धि तथा अन्न लाभ के उद्देश्य के लिए यह सोमरस निचोड़ा जाता है।[ऋग्वेद 9.42.3]
Somras is squeezed for boosting thousands types of power and gaining food grains.
दुहानः प्रत्नमित्ययः पवित्रे परि षिच्यते। क्रन्दन् देवाँ अजीजनत्॥
छलनी द्वारा छाना और पात्र में निचोड़ा गया यह सोमरस यज्ञ में देवगणों को आवाहित करता है।[ऋग्वेद 9.42.4]
Somras is filtered with sieve and squeezed in vessels, invokes demigods-deities in the Yagy.
अभि विश्वानि वार्याभि देवाँ ऋतावृधः। सोमः पुनानो अर्षति॥
यह सोमरस शोधित होता हुआ अपने धनों के साथ यज्ञ की वृद्धि करने वाले देवगणों के अभिमुख होता है।[ऋग्वेद 9.42.5]
While purified Somras, increases wealth, boosts the Yagy & faces the demigods-deities.
गोमन्नः सोम वीरवदश्वावद्वाजवत्सुतः। पवस्व बृहतीरिषः॥
हे सोम देव! आप हमें गौ, वीर पुत्र, अश्व, बल, अन्न और धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.42.6]
Hey Som Dev! Grant us cows, brave son, horses, food grains and wealth.(18.07.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (43) :: ऋषि :- मेधातिथि, काण्व; देवता :-पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
यो अत्यइव मृज्यते गोभिर्मदाय हर्यतः। तं गीर्भिर्वासयामसि॥
जिस आनन्द प्रदायक सोम को प्रार्थनाओं द्वारा यज्ञस्थल पर प्रतिष्ठित किया जाता है, वह गतिमान सोमरस गौ-दुग्ध में मिश्रित कर शोधित किया जाता है।[ऋग्वेद 9.43.1]
Gladdening Som established at the Yagy site with prayers, is mixed with cow's milk and sanctified.
तं नो विश्वा अवस्युवो गिरः शुम्भन्ति पूर्वथा। इन्दुमिन्द्राय पीतये॥
प्राचीन स्तुतियों की तरह हर प्रकार से रक्षा करने वाली स्तुतियाँ उस सोमरस को सुशोभित करते हुए इन्द्र देव के लिए निर्मित की जाती हैं।[ऋग्वेद 9.43.2]
All sorts of Stuties are evolved like the ancient Stuties glorifying Somras; are composed for Indr Dev.
पुनानो याति हर्यतः सोमो गीर्भिः परिष्कृतः। विप्रस्य मेध्यातिथेः॥
स्तुतियों से निष्पन्न हुआ शोधित सोमरस ज्ञानवान मेधातिथि के यज्ञ में पहुँचता है।[ऋग्वेद 9.43.3]
Sanctified with Stuties, purified Somras is taken to enlightened Medhatithi's Yagy.
पवमान विदा रयियस्मभ्यं सोम सुश्रियम्। इन्दो सहस्रवर्चसम्॥
हे सोमदेव! आप पवित्र और तेजस्वी हैं। आप हजारों प्रकार के उत्तम धन हमें प्रदान करें। [ऋग्वेद 9.43.4]
Hey Som Dev! you are pious and aurous. Grant us thousands of excellent wealth.
इन्दुरत्यो न वाजसृत्कनिक्रन्ति पवित्र आ। यदक्षारति देवयुः॥
संग्राम में जाते हुए अश्वों के सदृश यह सोमरस देवगणों के समीप जाने की इच्छा से शब्दनाद करता हुआ छलनी में जाता है।[ऋग्वेद 9.43.5]
Somras passes through the sieve making sound, like the horses going to battle field, with the desire of approaching Demigods-deities.
पवस्व वाजसातये विप्रस्य गृणतो वृधे। सोम रास्व सुवीर्यम्॥
हे सोम! प्रार्थना करने वाले ब्राह्मणों की वृद्धि और अन्न एवं बल के लिए आप प्रवाहित होते हैं।
Hey Somras! You flow for the growth of worshiping Brahmans and granting them food grains & mighty.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (44) :: ऋषि :- अयास्य, आंगिरस; देवता :-पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
प्र ण इन्दो महे तन ऊर्मि न बिभ्रदर्षसि। अभि देवाँ अयास्यः॥
हे धनदाता सोम देव! आपको प्राप्त करने वाले अयास्य ऋषि पूजनादि के लिए देवगणों की ओर जाते हैं।[ऋग्वेद 9.44.1]
Hey wealth granting Som Dev! Ayasy Rishi who attained you, goes to demigods-deities for worship them.
मती जुष्टो धिया हितः सोमो हिन्वे परावति। विप्रस्य धारया कविः॥
ज्ञानीजनों की श्रेष्ठ प्रार्थनाओं से प्रवृद्ध हुआ यह सोमरस अपनी धाराओं के साथ यज्ञ में दूर-दूर तक के स्थानों में गमन करता है।[ऋग्वेद 9.44.2]
Enriched with the best prayers of the enlightened, Somras goes to distant places with its currents in the Yagy.
अयं देवेषु जागृविः सुत एति पवित्र आ। सोमो याति विचर्षणिः॥
सबको देखने तथा सदैव जाग्रत रहने वाला यह सोमरस छलनी द्वारा छनकर देवगणों की ओर गमन करता है।[ऋग्वेद 9.44.3]
Looking all and always awake Somras filtered through the sieve moves to the demigods-deities.
स नः पवस्व वाजयुश्चक्राणश्चारुमध्वरम्। बर्हिष्माँ आ विवासति॥
हे सोम देव! आप ऋत्विजों और हम सभी के लिए अन्नरूप रस प्रदान करने वाले हैं। हमारे अहिंसात्मक यज्ञ को उत्तम विधि से पूर्ण करें।[ऋग्वेद 9.44.4]
Hey Som Dev! You provide food grains to the Ritviz and us. Accomplish our Yagy free from violence with best procedures.
स नो भगाय वायवे विप्रवीरः सदावृधः। सोमो देवेष्वा यमत्॥
ज्ञानीजनों द्वारा प्रेरित वह सोमरस सदैव संवर्धित होकर वायुवत देवत्व प्रदान करने वाला ऐश्वर्य हमें प्रदान करे।[ऋग्वेद 9.44.5]
Inspired by the enlightened, Somras should grow continuously and grant us the grandeur which led to Vayu Dev divinity.
स नो अद्य वसुत्तये क्रतुविद्गातुवित्तमः। वाजं जेषि श्रवो बृहत्॥
हे सोम देव! आप कर्मानुसार प्राप्त होने वाले मार्गों के ज्ञाता हैं। आप हमारे लिए श्रेष्ठ कर्म करते हुए अन्न और धन को अपने वशीभूत करें।[ऋग्वेद 9.44.6]
Hey Som Dev! You are aware of the routes attained according to the efforts. Perform great endeavours for us controlling food grains and wealth.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (45) :: ऋषि :- अयास्य, आंगिरस; देवता :-पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
स पवस्व मदाय कं नृचक्षा देववीतये। इन्दविन्द्राय पीतये॥
हे सोमदेव! आप मनुष्यों के द्रष्टा हैं। इन्द्र देव आदि देवगणों की आनन्द की वृद्धि के लिए और उनके पीने के लिए आप अपने रस को निष्पादित करें।[ऋग्वेद 9.45.1]
Hey Som! You visualize the humans. Produce your extract for drinking by Indr Dev and demigods-deities.
स नो अर्षाभि दूत्यं१ त्वमिन्द्राय तोशसे। देवान्त्सखिभ्य आ वरम्॥
इन्द्र देव द्वारा पीए जाने वाले हे सोमरस! आप देवगणों और मित्रों के लिए भी अपना रस प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.45.2]
Hey Somras, drunk by Indr Dev! Grant your sap for demigods-deities and friends.
उत त्वामरुणं वयं गोभिरञ्ज्मो मदाय कम्। वि नो राये दुरो वृधि॥
हम अरुणाभ सोमरस को आनन्द वृद्धि तथा सुख प्राप्ति के लिए गौ-दुग्ध में मिश्रित करते है। हे सोम देव। आप हमें श्रेष्ठ मार्ग द्वारा धन की प्राप्ति करावें।[ऋग्वेद 9.45.3]
WE mix Somras with golden hue in cow's milk for boosting pleasure. Hey Som Dev! Grant us wealth through the best means.
अत्यू पवित्रमक्रमीद्वाजी धुरं न यामनि। इन्दुर्देवेषु पत्यते॥
जिस प्रकार अश्व धुरे को मार्ग पर गतिशील करता है, उसी प्रकार शोधन यन्त्र को पार करके सोमरस देवगणों तक पहुँचता है।[ऋग्वेद 9.45.4]
The way a horse crosses the axles and progress over its path, the Somras clears the purification plant and reaches demigods-deities.
समी सखायो अस्वरन्वने क्रीळन्तमत्यविम्। इन्दुं नावा अनूषत॥
छलनी में छनकर शोधित हुए सोमरस की मित्रभाव वाले यजमान यज्ञ स्थल में प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 9.45.5]
Friendly people worship Somras cleaned in the sieve at the site of Yagy.
तया पवस्व धारया यया पीतो विचक्षसे। इन्दो स्तोत्रे सुवीर्यम्॥
हे सोमदेव! आप जिस धारा से पान करने पर स्तोताओं को उत्तम बल प्रदान करते हैं, उसी धारा के रूप में आप क्षरित हों।[ऋग्वेद 9.45.6]
Hey Som! The current with which you grant best strength, proceed liquifying with that.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (46) :: ऋषि :- अयास्य, आंगिरस; देवता :-पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
असृग्रन्देववीतयेऽत्यासः कृत्व्याइव। क्षरन्तः पर्वतावृधः॥
पर्वत में उत्पन्न हुआ रसरूप सोम क्षरित होता हुआ देवगणों के समीप जाने के लिए वेगवान अश्वों के समान पात्र में गमन करता है।[ऋग्वेद 9.46.1]
Gown in the mountains Som in the form of fluid kept in vessels, proceed towards the demigods-deities like the fast moving horses.
परिष्कृतास इन्दवो योषेव पित्र्यावती। वायुं सोमाः असृक्षत॥
जिस प्रकार पिता के द्वारा अलंकारों से विभूषित होकर पुत्री पति के समीप जाती है, उसी प्रकार तेजस्वी सोमरस वायुदेव के पास जाता है।[ऋग्वेद 9.46.2]
The way a daughter decorated with ornaments by her father goes to her husband, energetic Somras goes to Vayu Dev.
एते सोमास इन्दवः प्रयस्वन्तश्चमू सुताः। इन्द्रं वर्धन्ति कर्मभिः॥
यह तेजस्वी सोमरस अन्न के साथ मिलकर अपने यज्ञीय कार्यों से इन्द्र देव के बल को बढ़ाता है।[ऋग्वेद 9.46.3]
Aurous-energetic Somras mixed with food grains, boost the might of Indr Dev due to its Yagy related uses.
आ धावता सुहस्त्यः शुक्रा गृभ्णीत मन्थिना। गोभिः श्रीणीत मत्सरम्॥
हे याज्ञिकों! हमारे पास आगमन करें और मथानी द्वारा मथकर इस बलशाली सोमरस को गाय के दूध में मिश्रित करें।[ऋग्वेद 9.46.4]
Hey Yagyik! Come to us, churn powerful Somras with churner and mix it in cow's milk.
स पवस्व धनंजय प्रयन्ता राधसो महः। अस्मभ्यं सोम गातुवित्॥
हे सोम देव! आप शत्रुओं के धनों को जीतने वाले हैं। आप हमें उत्तम धन प्रदान करने वाला श्रेष्ठ मार्ग दर्शन प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.46.5]
Hey Som Dev! You are winner of the wealth of the enemy. Guide us to attain excellent wealth through the best route-means.
एतं मृजन्ति मर्ज्य पवमानं दश क्षिपः। इन्द्राय मत्सरं मदम्॥
इन्द्र देव को देने के लिए दसों अँगुलियाँ हर्षकारी और क्षरण धर्मा सोमरस को छलनी से शोधित करती हैं।[ऋग्वेद 9.46.6]
Leaking Somras is squeezed and sieved with ten fingers for giving it to Indr Dev.(19.07.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (47) :: ऋषि :- कवि, भार्गव; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
अया सोमः सुकृत्यया महश्चिदभ्यवर्धत। मन्दान उषायते॥
हे सोम देव! आप श्रेष्ठ कर्मों के द्वारा समनित होकर महान् बनते हैं और आनन्द प्रदान करके शक्ति बढ़ाते हैं।[ऋग्वेद 9.47.1]
Hey Som Dev! You become great by virtue of your excellent endeavours, attain pleasure and increase power.
कृतानीदस्य कत्वी चेतन्ते दस्युतर्हणा। ऋणा च धृष्णुश्चयते॥
यह सोमरस शत्रुओं का संहार करता है और धैर्यपूर्वक ऋत्विजों के ऋण को भी दूर करता है।[ऋग्वेद 9.47.2]
Somras destroy the enemies and remove the debt of Ritviz with patience.
आत्सोम इन्द्रियो रसो वज्रः सहस्त्रसा भुवत्। उक्थं यदस्य जायते॥
इन्द्र देव के स्तोत्र का पाठ करते समय उनका प्रिय सोमरस हजारों प्रकार का पौष्टिक अन्न प्रदान करता है।[ऋग्वेद 9.47.3]
Somras grants thousands of kinds of nourishing food grains while reciting the Strotr devoted to Indr Dev.
स्वयं कविर्विधर्तरि विप्राय रत्नमिच्छति। यदी मर्मृज्यते धियः॥
कवि के सदृश यह सोमरस ऊंगलियों द्वारा शुद्ध होते समय ज्ञानीजनों को धन प्रदान करने की कामना करता है।[ऋग्वेद 9.47.4]
Somras wish to grant wealth to the enlightened while being squeezed with fingers like the Kavi.
सिषासतू रयीणां वाजेष्वर्वतामिव। भरेषु जिग्युषामसि॥
हे सोमदेव! जिस प्रकार संग्राम में गमन करने वाले अश्वों को तृण आदि देकर प्रसन्न किया जाता है, उसी प्रकार युद्धभूमि में विजय प्राप्ति की कामना करने वालों को आप धन प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 9.47.5]
Hey Som Dev! The way horses are made happy by offerings them straw, during the war; you grant wealth to those who wish to gain victory in the war.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (48) :: ऋषि :- कवि, भार्गव; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
तं त्वा नृम्णानि बिभ्रतं सधस्थेषु महो दिवः। चारुं सुकृत्ययेमहे॥
हे सोम देव! आप स्वर्ग में निवास करने वाले, अनेक धनों से युक्त हैं। हम यज्ञ के माध्यम आपको प्राप्त करने की कामना करते हैं।[ऋग्वेद 9.48.1]
Hey Som Dev! A resident of heavens, you possess various kinds of wealth. We wish to attain you through the Yagy.
संवृक्तधृष्णुमुक्थ्यं महामहिव्रतं मदम्। शतं पुरो रुरुक्षणिम्॥
हे सोम देव! आप शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाले, श्रेष्ठ कर्म करने वाले, आनन्दप्रदायक और शत्रुओं के सैकड़ों नगरों को ध्वस्त करने वाले हैं। हम धन के लिए आपकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 9.48.2]
Hey Som Dev! You win the enemies, destroys hundreds of their forts, perform excellent deeds & grant pleasure-gladdening. We pray to you for wealth.
अतस्त्वा रयिमभि राजानं सुक्रतो दिवः। सुपर्णो अव्यथिर्भरत्॥
हे सोम देव! आप उत्तमोत्तम कार्यों के अधिष्ठाता, धनवान् और कष्ट एवं पीड़ा को महत्व देने वाले पक्षीराज गरुड़ आपको द्युलोक से पृथ्वीलोक पर ले आए।[ऋग्वेद 9.48.3]
Hey Som Dev! You are the deity of the ultimate-excellent deeds, wealthy. Let the Lord of birds wealthy, pain & sorrow causing Garud Ji bring you from the heavens to earth.
विश्वस्मा इस्त्वर्दृशे साधारणं रजस्तुरम्। गोपामृतस्य विर्भरत्॥
यज्ञ रक्षक, जल का प्रेरक, स्वयं प्रकाशित, देवगणों के बलों को सुगमता से प्राप्त होने वाला यह दिव्य सोमरस समस्त आकाश को संव्याप्त कर लेता है।[ऋग्वेद 9.48.4]
Protector of Yagy, water inspiring, self illuminated, easily available to the demigods-deities divine Somras pervade the sky-space.
अधा हिन्वान इन्द्रियं ज्यायो महित्वमानशे। अभिष्टिकृद्विचर्षणिः॥
अत्यन्त प्रभावशाली तथा ज्ञान युक्त यह सोमरस शोधित होकर अपनी क्षमताओं की वृद्धि कर अत्यन्त श्रेष्ठ बन जाता है।[ऋग्वेद 9.48.5]
Highly effective and possessed with knowledge Somras boosts its own capabilities and become extremely excellent.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (49) :: ऋषि :- कवि, भार्गव; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
पवस्व वृष्टिमा सु नोऽपामूर्मिं दिवस्परि। अयक्ष्मा बृहतीरिषः॥
हे दिव्य सोम देव! आप जल को तरंगित करने वाले व हंमारे लिए आकाश से जल की वर्षा करने वाले आप हमें रोग नाशक अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.49.1]
Hey divine Som Dev! You create waves in water and rain water for us from the sky. Grant us the food grains which can destroy diseases.
तया पवस्व धारया यया गाव इहागमन्। जन्यास उप नो गृहम्॥
हे सोम! आपकी धारा के प्रभाव से शत्रुओं के देशों में उत्पन्न हुई गौएँ हमें प्राप्त होवें।[ऋग्वेद 9.49.2]
Hey Som! Let the cows produced in the enemy countries be obtained by us as an effect-result of your currents.
घृतं पवस्व धारया यज्ञेषु देववीतमः। अस्मभ्यं वृष्टिमा पव॥
हे सोम देव! यज्ञ में देवताओं की प्रार्थनाओं से प्रवृद्ध हुए आप धाररूप जल की वृष्टि करें।[ऋग्वेद 9.49.3]
Hey Som Dev! Enriched-nourished by the prayers of the demigods-deities in the Yagy, cause rains having currents.
स न ऊर्जे व्य१व्ययं पवित्रं धाव धारया। देवासः शृणवन् हि कम्॥
हमें अन्न प्रदान करने के लिए छलनी से धाररूप में छनकर कलश में प्रविष्ट होने वाले हे सोम! देवता आपका सुमधुर शब्द श्रवण कर हर्षित होवें।[ऋग्वेद 9.49.4]
Food granting to us, filtered in currents through the sieve, entering vessels, hey Som! Let the demigods-deities gladden hearing your sweet sound.
पवमानो असिष्यदद्रक्षांस्यपजङ्घनत्। प्रत्नवद्रोचयन्त्रुचः॥
हे सोम! आप शत्रुओं का संहार करने वाली अपनी दीप्ति की वृद्धि करते हुए कलश में स्त्रवित होते हैं।[ऋग्वेद 9.49.5]
Hey Som! You flow in the vessels increasing your aura which destroys the enemy.(20.07.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (50) :: ऋषि :- उचथ्य, आंगिरस; देवता :-पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
उत्ते शुष्मास ईरते सिन्धोरूर्मेरिव स्वनः। वाणस्य चोदया पविम्॥
हे सोम! छोड़े गए बाण के तुल्य आप शब्द करते हैं। आपके प्रवाहित होने से समुद्र की तरंगों जैसी ध्वनियाँ उत्पन्न होती हैं।[ऋग्वेद 9.50.1]
Hey Somras! You produce sound of the arrow shot. Your flow create sound like the waves of ocean.
प्रसवे त उदीरते तिस्स्रो वाचो मखस्युवः। यदव्य एषि सानवि॥
हे सोम! याजक साम मन्त्रों से आपका गान करते हैं। आप संस्कारित होने के लिए उच्चासन पर प्रतिष्ठित होवें।[ऋग्वेद 9.50.2]
Hey Somras! The Yajak-Ritviz sing your glory with the Mantr of Sam. Occupy an elevated seat for purification.
अव्यो वारे परि प्रियं हरिं हिन्वन्त्यद्रिभिः। पवमानं मधुश्चतम्॥
ऋत्विक गण पत्थरों से कूटे गए हरिताभ सुन्दर और मधुर सोमरस को छन्ने से छानते हैं।[ऋग्वेद 9.50.3]
The Ritviz filter the Som crushed with stone bearing greenish hue and sweetness.
आ पवस्व मदिन्तम पवित्रं धारया कवे। अर्कस्य योनिमासदम्॥
हे सोम! आप इन्द्र देव को शान्त करने के लिए छलनी में से निर्मल धारा के रूप में प्रवाहित होवें।[ऋग्वेद 9.50.4]
Hey Somras! Flow through the sieve for cleaning as a current to calm Indr Dev.
स पवस्व मदिन्तम गोभिरञ्जानो अक्तुभिः। इन्दविन्द्राय पीतये॥
हे सोम! आप गौ के पुष्टिकारक दुग्धादि के मिश्रण में छनकर इन्द्र देव के पान करने योग्य बने।[ऋग्वेद 9.50.5]
Hey Somras! Get mixed with the nourishing cow's milk and filtered to be ready for drinking by Indr Dev.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (51) :: ऋषि :- उचथ्य, आंगिरस; देवता :-पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
अध्वयो अद्रिभिः सुतं सोमं पवित्र आ सृज। पुनीहीन्द्राय पातवे॥
हे अध्वर्युओं! इन्द्र देव के पीने योग्य बनाने के लिए पाषाणों से कूटे और निचोड़े गए सोमरस को छानकर पात्र में ले आवें।[ऋग्वेद 9.51.1]
Hey priests! Bring the Somras crushed with stones, squeezed and filtered for drinking by Indr Dev.
दिवः पीयूषमुत्तमं सोममिन्द्राय वज्रिणे। सुनोता मधुमत्तमम्॥
हे याज्ञिकों! द्युलोक के अमृत के समान अधिक मधुर सोमरस को वज्रधारी इन्द्र देव को प्रदान करने के लिए अभिषिक्त करें।[ऋग्वेद 9.51.2]
अभिषिक्त :: जिसका अभिषेक हुआ हो, राजपद पर नियुक्त, अधिकार प्राप्त, अनुष्ठानपूर्वक अभिमंत्रित, सींचा हुआ, सिंचित; crown.
Hey Yagyik! The sweet Somras like elixir-nectar crowned in the heavens, should be offered to Vajr wielding Indr Dev.
तव त्य इन्दो अन्धसो देवा मधोर्व्यश्नते। पवमानस्य मरुतः॥
हे सोम! आपके आनन्द वर्द्धक मधुर अन्न रूप रस का इन्द्र देव (देवगण) और मरुद्गण सेवन करते हैं।[ऋग्वेद 9.51.3]
Hey Somras! You gladdening sweet sap like the food grains is consumed by Indr Dev & Marud Gan.
त्वं हि सोम वर्धयन्त्सुतो मदाय भूर्णये। वृषन्त्स्तोतारमूतये॥
हे सोम! आप अभिषुत होकर देवताओं को आनन्द प्रदान करने, उनके अभीष्ट को पूर्ण करने और संरक्षण प्रदान करने में सहायक होते हैं।[ऋग्वेद 9.51.4]
Hey Somras! On being extracted you grant pleasure to the demigods-deities, help them in accomplishing their endeavours and granting asylum.
अभ्यर्ष विचक्षण पवित्रं धारया सुतः। अभि वाजमुत श्रवः॥
हे सोम! आप सबको देखने और जानने वाले हैं। छलनी में धारारूप में निचोड़ा गया आपका मधुर रस हमें अन्न और कीर्ति प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.51.5]
Hey Somras! You see every one and know them. Let the sap squeezed through the sieve flowing like a current should grant us food grains and glory.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (52) :: ऋषि :- उचथ्य, आंगिरस; देवता :-पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
परि द्युक्षः सनद्रयिर्भरद्वाजं नो अन्धसा। सुवानो अर्ष पवित्र आ॥
हे सोम! आप छलनी द्वारा शोधित होते हुए आगमन करें और हमें बल एवं अन्न से परिपूर्ण करें।[ऋग्वेद 9.52.1]
Hey Somras! Come after being filtered through the sieve, grant us strength and sufficient food grains.
तव प्रत्लेभिरध्वभिरव्यो वारे परि प्रियः। सहस्रधारो यात्तना॥
हे सोम! आपका हजारों धाराओं से गमनशील मधुर रस छलनी के द्वारा नीचे की ओर प्रवाहित होता है।[ऋग्वेद 9.52.2]
Hey Somras! Your sap flows out of the sieve in thousands of currents in the down ward direction.
चरुर्न यस्तमीङ्खयेन्दो न दानमीङ्खय। वधैर्वधस्नवीङ्खय॥
हे सोम! पत्थरों द्वारा कूटे जाने पर आप प्रवाहित होते हैं, अतः पत्थरों द्वारा कूटे जाने से अपने रसरूप से प्रकट हों। हे सोमदेव! आप चरु के समान जो खाद्य है, उसे हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.52.3]
Hey Somras! You flow after being crushed with stones. Hey Som Dev! Grant us the eatables like Charu.
नि शुष्ममिन्दवेषां पुरुहूत जनानाम्। यो अस्माँ आदिदेशति॥
हे सोमदेव! आप स्तुति के योग्य हैं। आपकी बलवृद्धि की प्रेरणा हमारे लिए हितकारी हैं।[ऋग्वेद 9.52.4]
Hey Som Dev! You deserve worship. Your inspiration to us for boosting intelligence & strength is beneficial to us.
शतं न इन्द ऊतिभिः सहस्रं वा शुचीनाम्। पवस्व मंहयद्रयिः॥
हे सोमदेव! हजारों प्रकार से शुद्ध होकर संरक्षण से युक्त धन प्रदान करने वाला रस निकालें।[ऋग्वेद 9.52.5]
Hey Som Dev! Release the sap purified through hundreds of means, granting asylum and wealth.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (53) :: ऋषि :- अवत्सार, कश्यप; देवता :-पवमान, सोम; छन्द :- गांयत्री।
उत्ते शुष्मासो अस्थू रक्षो भिन्दन्तो अद्रिवः। नुदस्व याः परिस्पृधः॥
हे सोम! आपको पाषाणों से कूटकर उत्पन्न किया जाता है। आपका बल विकाररूपी राक्षसों को नष्ट करता है। आप हमें शत्रुओं से युद्ध करने की शक्ति प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.53.1]
Hey Somras! You are produced by crushing with stones. Your strength destroy the defects in the form of demons. Grant us strength to fight the enemy in the war.
अया निजघ्निरोजसा रथसङ्गे धने हिते। स्तवा अबिभ्युषा हृदा॥
हे सोम देव! आप शत्रुओं का नाश करने वाले हैं। हम भय रहित होकर शत्रुओं द्वारा रथों में ले जाते हुए धनों को प्राप्त करने के लिए आपका आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 9.53.2]
Hey Som Dev! You are the destroyer of the enemy. Fearlessly we invoke you for the wealth carried by the enemy in chariots.
अस्य व्रतानि नाधृषे पवमानस्य दूढ्या। रुज यस्त्वा पृतन्यति॥
हे सोम देव! कोई भी राक्षस आपका सामना नहीं कर सकता। अनेक असुर आपके साथ युद्ध करना चाहते हैं, आप उन सभी का नाश करें।[ऋग्वेद 9.53.3]
Hey Som Dev! No demons can face-counter you. Destroy the several demons who wish to fight with you.
तं हिन्वन्ति मदच्युतं हरिं नदीषु वाजिनम्। इन्दुमिन्द्राय मत्सरम्॥
ऋत्विक गण बल और उत्साह की वृद्धि करने वाले, हर्षप्रदायक, हरिताभ सोमरस को जल के माध्यम से इन्द्र देव के लिए प्रेरित करते हैं।[ऋग्वेद 9.53.4]
The Ritviz send the greenish Somras granting might and encouragement, mixed with water to Indr Dev.(22.07.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (54) :: ऋषि :- अवत्सार, कश्यप; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गांयत्री।
अस्य प्रत्नामनु द्युतं शुकं दुदुह्रे अह्रयः। पयः सहस्त्रसामृषिम्॥
याजकगण प्राचीनकाल से दुहे जाने वाले सोम के रस का दोहन करते हैं। सबको देखने वाला सोमरस हजारों प्रकार का धन प्रदान करता है।[ऋग्वेद 9.54.1]
The Ritviz extract Som since ancient periods. Somras visualising every one grants thousands of kinds of wealth.
अयं सूर्यइवोपदृगयं सरांसि धावति। सप्त प्रवत आ दिवम्॥
देवलोक तक सप्तधाराओं के रूप में प्रवाहित, सूर्य देव के सदृश सभी लोकों का द्रष्टा सोमरस जलपात्रों में शोधित किया जाता है।[ऋग्वेद 9.54.2]
Somras flowing in seven streams till the heavens, looks at all abodes like Sury Dev; is purified in water vessels.
अयं विश्वानि तिष्ठति पुनानो भुवनोपरि। सोमो देवो न सूर्यः॥
यह पवित्र और निष्पन्न सोमरस सूर्य देव के सदृश सभी लोकों के ऊपर प्रकाशित होता है।[ऋग्वेद 9.54.3]
Pious and extracted Somras illuminate over all abodes like Sur Dev.
परि णो देववीतये वाजँ अर्षसि गोमतः। पुनान इन्दविन्द्रयुः॥
हे सोम! शोधित होकर आप इन्द्रदेव के समीप जाने की इच्छा करते हैं और देवगणों के निमित्त गौ तथा हर प्रकार का अन्न प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 9.54.4]
Hey Som! On being extracted you wish to reach Indr Dev and grant cows and all sorts of food grains to demigods-deities.(23.07.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (55) :: ऋषि :- अवत्सार, कश्यप; देवता :-पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
यवंयवं नो अन्धसा पुष्टंपुष्टं परि स्त्रव। सोम विश्वा च सौभगा॥
हे धन प्रदान करने वाले सोम देव! आप पोषक रस को अन्न एवं वनस्पतियों के साथ हमें प्रदत्त करें।[ऋग्वेद 9.55.1]
Hey wealth awarding Som Dev! Give the nourishing sap to us along with food grains and vegetation.
इन्दो यथा तव स्तवो यथा ते जातमन्धसः। नि बर्हिषि प्रिये सदः॥
हे सोम देव! आप देवताओं को प्राप्त होते हैं। याजक जिस हर्ष से आपकी प्रार्थना करते हैं, आप यज्ञशाला में आसन ग्रहण कर उसी प्रकार प्रसन्न होवें।[ऋग्वेद 9.55.2]
Hey Som Dev! You are achieved by the demigods-deities. The way the Ritviz worship you gladly, you too should be pleased like that and accept the seat in the Yagy Shala.
उत नो गोविदश्ववित्पवस्व सोमान्धसा। मभूतमेभिरहभिः॥
हे सोम देव! आप हमें गौ, अश्व, अन्न के रूप में प्रचुर धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.55.3]
Hey Som Dev! Grant us cows, horses, food grains and sufficient wealth.
यो जिनाति न जीयते हन्ति शत्रुमभीत्य। स पवस्व सहस्त्रजित्॥
हे सोम देव! आप शत्रुओं पर विजय करने वाले व अपनी पवित्रता से असुरों को नष्ट करते हैं और कभी पराजित नहीं होते।[ऋग्वेद 9.55.4]
Hey Som Dev! You attain victory over the enemies, destroy the demons with your piousness and never defeated.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (56) :: ऋषि :- अवत्सार, कश्यप; देवता :-पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
परि सोम ऋतं बृहदाशुः पवित्रे अर्षति। विघ्नन्रक्षांसि देवयुः॥
देवगणों के निकट तीव्रता से जाने वाला सोमरस शोधित होकर शत्रुओं का नाश करता है और हमें श्रेष्ठ धन प्रदान करता है।[ऋग्वेद 9.56.1]
Fast moving towards the demigods-deities, Somras destroy the enemies on being purified and grant us best wealth.
यत्सोमो वाजमर्षति शतं धारा अपस्युवः। इन्द्रस्य सख्यमांविशन्॥
सोमरस की सैकड़ों धाराएँ जब यज्ञ की कामना से इन्द्र देव से मित्र भाव स्थापित करती हैं, तब सोमरस के द्वारा ही हमें अन्नादि का लाभ होता है।[ऋग्वेद 9.56.2]
When hundreds of streams of Somras establish friendly relations with Indr Dev with the desire of Yagy, it helps us in gaining food grains etc.
अभि त्वा योषणो दश जारं न कन्यानषत। मज्यसे सोम सातये॥
अपने प्रियतम को आमन्त्रित करने वाली अर्थात जिस तरह स्त्री अपने प्रियतम को बुलाती है, उसी प्रकार दसों अँगुलियाँ सोमरस को पकड़ती और शुद्ध करती हैं।[ऋग्वेद 9.56.3]
Ten fingers hold and purify Somras like the woman who invite-call her lover close to her.
त्वमिन्द्राय विष्णवे स्वादुरिन्दो परि स्त्रव। नॄन्त्स्तोतॄन्पाह्यंहसः॥
हे सुमधुर रस वाले सोम देव! आप श्रीविष्णु और इन्द्र देव के लिए मधुर रस की उत्पन्न करें और अपने याजकों को पापों से मुक्त करें।[ऋग्वेद 9.56.4]
Hey Som Dev possessing sweet sap-juice! Produce sweet juice for Shri Hari Vishnu and Indr Dev, releasing us from our sins.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (57) :: ऋषि :- अवत्सार, कश्यप; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
प्र ते धारा असश्चतो दिवो न यन्ति वृष्टयः। अच्छा वाजं सहस्रिणम्॥
हे सोमदेव! आकाश से होने वाली जल वर्षा के सदृश आपकी धाराएँ पृथ्वी पर अन्न की वृष्टि करती हैं।[ऋग्वेद 9.57.1]
Hey Som Dev! You streams nourish the food grains over the earth like the rain showers from the sky.
अभि प्रियाणि काव्या विश्वा चक्षाणो अर्षति। हरिस्तुञ्जान आयुधा॥
देवताओं के प्रिय कर्मों को देखने वाला हरिताभ सोमरस शत्रुओं पर अस्त्रों द्वारा आक्रमण कर पराजित करता हुआ आगे की ओर बढ़ता है।[ऋग्वेद 9.57.2]
Looking after the dear endeavours of demigods-deities, greenish Somras attack the enemies with weapons and move forward.
स मर्मृजान आयुभिरिभो राजेव सुव्रतः। श्येनो न वंसु षीदति॥
बाज पक्षी के सदृश वेग पूर्वक जल में मिश्रित होने वाला सोमरस ऋषियों द्वारा शुद्ध होकर राजा के समान तेजस्वी और भय रहित दिखाई देता है।[ऋग्वेद 9.57.3]
Somras moving fast like falcon, mixed in water is purified by the Rishis and looks fearless and aurous like the king.
स नो विश्वा दिवो वसूतो पृथिव्या अधि। पुनान इन्दवा भर॥
हे पवित्र सोम देव! आप द्युलोक और पृथ्वीलोक एवं समस्त संसार में व्याप्त होकर हमें समस्त प्रकार की सम्पदाएँ प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.57.4]
Hey pious Som Dev! Pervade the earth, heavens & the universe granting us all sorts of wealth-amenities.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (58) :: ऋषि :- अवत्सार, कश्यप; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
तरत्स मन्दी धावति धारा सुतस्यान्धसः। तरत्स मन्दी धावति॥
आनन्द प्रदान करने वाली सोमरस की धाराएँ निकृष्ट संस्कारों से रहित तथा याजकों को ऊर्ध्वगति प्रदान करने वाली हैं।[ऋग्वेद 9.58.1]
निकृष्ट :: बुरा, अधम, नीच, तुच्छ, अशिष्ट, असभ्य, ग्राम्य, हतोत्साह, अप्रिय, भद्दा, अतिदुष्ट, mean, abject, abominable, arrant.
Gladdening currents of Somras grant higher abodes to the mean without virtues and the Ritviz.
उत्रा वेद वसूनां मर्तस्य देव्यवसः। तरत्स मन्दी धावति॥
धनों को सिंचित करने वाली सोमरस की धाराएँ प्रकाश से युक्त और मनुष्यों की रक्षक हैं। वेग के साथ प्रवाहित होने वाली ये धाराएँ आनन्द प्रदान करने वाली हैं।[ऋग्वेद 9.58.2]
Streams of Somras accumulating wealth are illuminated and protector of humans. Fast flowing, these currents are gladdening.
ध्वस्त्रयोः पुरुषन्त्योरा सहस्त्राणि दद्महे। तरत्स मन्दी धावति॥
ध्वत्र और पुरुषन्ति से हम अपार वैभव प्राप्त करें। आनन्दप्रद ऐसा (सोमरस) अतिवेग से प्रवाहित होता है।[ऋग्वेद 9.58.3]
वैभव :: भव्य, तेज, प्रताप, शान, चमक, आडंबर, ठाट-बाट, महिमा, गौरव, बड़ाई, राज-पाट; grandeur, splendour, majesty, pomp.
Let us attain endless wealth & grandeur from Dhavtr and Purushanti. Gladdening Somras flow with fast speed.
आ ययोस्त्रिंशतं तना सहस्त्राणि च दद्महे। तरत्स मन्दी धावति॥
हम जिससे तीस हजार वस्त्र प्राप्त करते हैं, वह आनन्द प्रदान करने वाला सोमरस तीव्रगति से संचारित होता है।[ऋग्वेद 9.58.4]
We attain thirty thousand cloths from fast moving gladdening Somras.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (59) :: ऋषि :- अवत्सार, कश्यप; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
पवस्व गोजिदश्वजिद्विश्वजित्सोम रण्यजित्। प्रजावद्रत्नमा भर॥
हे सोम! आप गौवों और अश्वों को जीतने वाले हैं। हमें प्रजा सहित धनयुक्त बनाने के लिए प्रवाहित होवें।[ऋग्वेद 9.59.1]
Hey Som! You are the winner of cows and horses. Flow to make us wealthy along with populace.
पवस्वाद्भयो अदाभ्यः पवस्वौषधीभ्यः। पवस्व धिषणाभ्यः॥
हे सोम! आप जल में मिश्रित होने के लिए अपना रस प्रदान करें। हमारी बुद्धि को कुशाग्र और औषधियों की वृद्धि के लिए आप हमें अपना रस प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.59.2]
Hey Som grant your sap for mixing in water, growth of medicines & making our intelligence sharp.
त्वं सोम पवमानो विश्वानि दुरिता तर। कविः सीद नि बर्हिषि॥
हे शोधित सोम! सभी राक्षसों को (हमसे) दूर करते हुए ज्ञानवान होकर उत्तम आसन पर विराजमान होवें।[ऋग्वेद 9.59.3]
Hey purified Som! Repel the demons away from us and occupy best seat on becoming enlightened-learned.
पवमान स्वर्विदो जायमानोऽभवो महान्। इन्दो विश्वाँ अभीदसि॥
हे सोम देव! आप अपने याजकों को उत्तम फल प्रदान करने वाले व समस्त शत्रुओं को दूर करने के लिए आप वृद्धि को प्राप्त होते हैं।[ऋग्वेद 9.59.4]
Hey Som Dev! You grant best rewards to the Ritviz, repel the enemies and attain growth.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (60) :: ऋषि :- अवत्सार, कश्यप; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
प्र गायत्रेण गायत पवमानं विचर्षणिम्। इन्दुं सहस्रचक्षसम्॥
हे याजकों! हजारों प्रकार से सबको देखने वाले सोमरस को शोधित करते समय स्तोतागण गायत्री छंद से उनकी स्तुति करते रहें।[ऋग्वेद 9.60.1]
Hey Yagyik! The Stotas should continue recitation of Gayatri Chhand looking at all everyone in thousands of ways while purifying Somras.
तं त्वा सहस्रचक्षसमथो सहस्त्रभर्णसम्। अति वारमपाविषुः॥
हे सोम! आप सभी प्रकार के अवरोधों को पार करके प्रवाहित हों। हजारों नेत्रों से युक्त आप हजारों का पालन करते हैं।[ऋग्वेद 9.60.2]
Hey Som! Flow over powering all hurdles. Possessing thousands of eyes you support thousands of people.
अति वारान्पवमानो असिष्यदत्कलशाँ अभि धावति। इन्द्रस्य हार्धाविशन्॥
पवित्र सोमरस छलनी द्वारा क्षरित और शोधित होकर तीव्रगति से कलश में स्थापित होता है। इसके पश्चात् वह इन्द्र देव के हृदय में प्रवेश करता है।[ऋग्वेद 9.60.3]
Pious Somras is filtered through the sieve and flow into the vessel with high speed, thereafter its consumed by Indr Dev.
इन्द्रस्य सोम राधसे शं पवस्व विचर्षणे। प्रजावद्रेत आ भर॥
हे विश्व के द्रष्टा सोमदेव! इन्द्र देव की प्रसन्नता के लिए आप शान्तिदायक रस प्रदान करें और हमें पराक्रमी सन्तान की प्राप्ति कराएँ।[ऋग्वेद 9.60.4]
Hey looker of the universe, Som Dev! Award peace giving sap for the happiness of Indr Dev and grant us brave progeny.(24.07.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (61) :: ऋषि :- अमहीयु, आंगिरस; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
अया वीती परि स्रव यस्त इन्दो मदेष्वा। अवाहन्नवतीर्नव॥
हे सोमदेव! इन्द्र देव के लिए कलश में प्रतिष्ठित होने वाला आपका पवित्र रस रक्षक्षेत्र में शत्रुओं के नगरों को नष्ट करने वाले इन्द्रदेव के बल की वृद्धि करता है।[ऋग्वेद 9.61.1]
Hey Som! Your pious sap-juice kept in the Kalash is pious and help Indr Dev in the war field by boosting his might to destroy the cities of the enemies.
पुरः सद्य इत्थाधिये दिवोदासाय शम्बरम्। अध त्यं तुर्वशं यदुम्॥
सोमरस का पान करके इन्द्र देव ने यज्ञकर्ता दिवोदास के लिए शंबरासुर नामक असुर का वध किया तथा तुर्वश और यदु को वशीभूत किया।[ऋग्वेद 9.61.2]
Indr Dev drunk Somras, killed demon Shambrasur and over powered Turvash and Yadu.
परि णो अश्वमश्वविद्गोमदिन्दो हिरण्यवत्। क्षरा सहस्रिणीरिषः॥
हे सोमदेव! आप हमें गौ, अश्व, सुवर्ण आदि धन और पोषक अन्नादि प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.61.3]
Hey Som Dev! Grant us cows, horses, wealth like gold food grains for nourishment.
पवमानस्य ते वयं पवित्रमभ्युन्दतः। सखित्वमा वृणीमहे॥
हे सोम देव! परिष्कृत और शोधित होने वाले, हम मित्ररूप में आपसे सहयोग पाने की कामना करते हैं।[ऋग्वेद 9.61.4]
परिष्कृत :: कृतक, विवेकी, गूढ़, सुविज्ञ, शुद्ध; refined, sophisticated.
Hey Som Dev! Refined and purified, we expect cooperation from you like a friend.
ये ते पवित्रमूर्मयोऽभिक्षरन्ति धारया। तेभिर्नः सोम मृळय॥
हे सोम! आपकी जो धाराएँ छलनी में छनकर शोधित हो रही हैं, आप उनके द्वारा हमें सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.61.5]
Hey Som! Grant us pleasure through your currents filtered in the sieve.
स नः पुनान आ भर रयिं वीरवतीमिषम्। ईशानः सोम विश्वतः॥
हे संसार के स्वामी सोमदेव! आप शोधित होने के उपरान्त हमें धन-सम्पदा और संतति से युक्त करें।[ऋग्वेद 9.61.6]
Hey lord of the universe Som! On being purified grant us wealth, property and progeny.
एतमु त्यं दश क्षिपो मृजन्ति सिन्धुमातरम्। समादित्येभिरख्यत॥
सिन्धु आदि नदी जिनकी माता है, ऐसे सोम को शोधित करने में दसों ऊंगलियाँ सहायक बनती हैं। तब वह सोम आदित्यों के पास गमन करता है।[ऋग्वेद 9.61.7]
The Som who has Sindhu and other rivers as his mothers is purified with ten fingers and goes to Adity Gan.
समिन्द्रेणोत वायुना सुत एति पवित्र आ। सं सूर्यस्य रश्मिभिः॥
हे सोम! आप सूर्य की किरणों द्वारा प्रकाशित तथा पात्र में स्थित होकर इन्द्र देव और वायु देव को प्राप्त होते हैं।[ऋग्वेद 9.61.8]
Hey Som! You are illuminated by the rays of Sun, kept in the vessels and obtained by Indr Dev and Vayu Dev.
स नो भगाय वायवे पूष्णे पवस्व मधुमान्। चारुर्मित्रे वरुणे च॥
हे मधुररस से युक्त सोम! हमारे यज्ञ में भग, वायु देव, देवी पूषा, मित्र और वरुण देव के लिए आप शुद्ध हों।[ऋग्वेद 9.61.9]
Hey Som, mixed with sweet juices! You should be purified in our Yagy for Bhag, Vayu Dev, Devi Pusha, Mitr & Varun Dev.
उचा ते जातमन्धसो दिवि षद्भूम्या ददे। उग्रं शर्म महि श्रवः॥
हे सोम! आपके रस की उत्पत्ति स्वर्ग में हुई है। वहाँ प्राप्त होने वाले मंगलकारी सुख ओर पोषक अन्न हम पृथ्वी लोक में प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 9.61.10]
Hey Som! Your extract has evolved in the heaven. Beneficial comforts-pleasures and nourishing food grains are obtained by us over the earth, availble in the heavens.
एना विश्वान्यर्य आ द्युम्नानि मानुषाणाम्। सिषासन्तो वनमाहे॥
हम सोम की सहायता से अपने सब सुखों को प्राप्त करते हैं। हम उसके श्रेष्ठ उपयोग की कामना करते हैं।[ऋग्वेद 9.61.11]
We attain all comforts with the help of Som. We wish to put it to best uses.
स न इन्द्राय यज्यवे वरुणाय मरुद्भयः। वरिवोवित्परि स्रव॥
हे सोम! आप यज्ञ में इन्द्रदेव, मरुद्गण तथा वरुणदेव के लिए भली प्रकार शोधित होने वाले हैं, आप हमें धनादि से युक्त करें।[ऋग्वेद 9.61.12]
Hey Som! You are properly purified in the Yagy for Indr Dev, Marud Gan & Varun Dev. Grant us wealth, prosperity etc.
उपो षु जातमप्तुरं गोभिर्भङ्गं परिष्कृतम्। इन्दुं देवा अयासिषुः॥
जल और गौ-दुग्ध में मिश्रित हुआ यह सोमरस देवगणों को तृप्ति प्रदान करने वाला और शत्रुओं का नाश करने वाला है।[ऋग्वेद 9.61.13]
Mixed with water and cows milk, this Somras grant satisfaction to the demigods-deities and destroy the enemies.
तमिद्वर्धन्तु नो गिरो वत्सं संशिश्वरीरिव। य इद्रस्य हृदंसनिः॥
हमारे स्तोत्रों द्वारा प्रवृद्ध होने वाला सोमरस इन्द्र देव के हृदय में रमण करता है। पयस्विनी माताएँ जिस प्रकार अपने शिशु की कामना करती हैं, उसी प्रकार हमारी स्तुतियाँ सोम की यशवृद्धि की कामना करती हैं।[ऋग्वेद 9.61.14]
Grown up by our Strotrs Somras exhilarate Indr Dev. The way expecting mothers desire for their kids, our Stuties wish for the fame-glory of Som.
अर्षा णः सोम शं गवे धुक्षस्व पिप्युषीमिषम्। वर्धा समुद्रमुक्थ्यम्॥
हे स्तुत्य सोम! जल में मिलकर पवित्र पात्र में स्थिर होने वाले आप हमारी गौओं को सुख प्रदान करें तथा हमारे गृह को अन्नादि से युक्त करें।[ऋग्वेद 9.61.15]
Hey worshipable Som! On falling in water, staying in pious pots; grant comforts to our cows and fill our house with food grains etc.(25.07.2024)
पवमानो अजीजनद्दिवश्चत्रं न तन्यतुम्। ज्योतिर्वैश्वानरं बृहत्॥
इस सोमरस ने द्युलोक में स्थित सभी को प्रकाशित और महान वैश्वानर अग्नि देव की ज्योति को विद्युत के सदृश उत्पन्न किया।[ऋग्वेद 9.61.16]
Somras has illuminated all in the heavens & produced the aura of Vaeshwanar Agni Dev like lightening.
पवमानस्य ते रसो मदो राजन्नदुच्छुनः। वि वारमव्यमर्षति॥
हे पवित्र और सुशोभित होने वाले सोम! आपका हर्षप्रदायक ओर हिंसारहित रस छलनी से छनकर गमन करता है।[ऋग्वेद 9.61.17]
Hey pious and decorated Somras! Your gladdening and non violent juice moves after filtration in the sieve.
पवमान रसस्तव दक्षो वि राजति द्युमान्। ज्योतिर्विश्वं स्वर्द्दशे॥
हे सोम! आपका पवित्र, बलदायक और तेजस्वी रस सुशोभित हुआ है। सम्पूर्ण संसार में आपकी किरणें आलोकित हो रही हैं।[ऋग्वेद 9.61.18]
Hey Som! Your pious, mighty and radiant juice is glorified. Your rays are spreading all over the universe.
यस्ते मदो वरेण्यस्तेना पवस्वान्धसा। देवावीरघशंसहा॥
हे सोम! आपका हर्षित करने वाला रस देवताओं को आकर्षित करने वाला और शत्रुओं का नाश करने वाला है। आप अपने पोषक रस के साथ कलश में प्रतिष्ठित हों।[ऋग्वेद 9.61.19]
Hey Som! your gladdening juice attracts the demigods-deities and destroys the enemies. You should be established in the Kalash with your nourishing sap-juice.
जघ्निर्वृत्रममित्रियं सस्निर्वाजं दिवेदिवे। गोषा उ अश्वसा असि॥
हे सोम देव! आप अश्वों और गौरूपी धन की वृद्धि करने वाले हैं। अहित करने वाले वृत्रासुर को नष्ट करते और सदैव संघर्षशील रहते हैं।[ऋग्वेद 9.61.20]
Hey Som Dev! You increase the number of horses and cows as wealth. You always struggle while destroying harming Vratra Sur.
संमिश्लो अरुषो भव सूपस्थाभिर्न धेनुभिः। सीदञ्छ्येनो न योनिमा॥
हे सोम देव! बाज पक्षी अपने घोसले में जिस प्रकार शोभायमान होता है, आप उसी प्रकार गौओं के साथ संयुक्त होकर तेजस्वी बनते हैं।[ऋग्वेद 9.61.21]
Hey Som Dev! The way Falcon is glorified in his nest you become radiant in the company of cows.
स पवस्व य आविथेन्द्रं वृत्राय हन्तवे। वव्रिवांसं महीरपः॥
हे सोम! आप जलप्रवाह को बाधित करने वाले वृत्रासुर के संहारक इन्द्र देव को उत्साहित करने वाले हैं। आप छलनी से छनकर तीव्र धारा के साथ कलश में छनते जाएँ।[ऋग्वेद 9.61.22]
Hey Som! You encouraged Indr Dev who relinquished Vratra Sur who blocked water. You should be filtered in the sieve with high speed while entering the Kalash.
सुवीरासो वयं धना जयेम सोम मीढः। पुनानो वर्ध नो गिरः॥
हे सोम देव! आप हमारी स्तुतियों को विस्तारित करने वाले हैं। हम पराक्रमी होकर शत्रुओं के धनों पर विजय प्राप्त करें।[ऋग्वेद 9.61.23]
Hey Som Dev! You extend-spread-our Stuties-prayers. We should become mighty and win the wealth of the enemies.
त्वोतासस्तवावसा स्याम वन्वन्त आमुरः। सोम व्रतेषु जागृहि॥
हे सोम देव! हम आपकी सुरक्षा में रहते हुए शत्रुओं का वध करें। हम व्रतशील बनकर जाग्रत रहें।[ऋग्वेद 9.61.24]
Hey Som Dev! We should destroy the enemies under your protection. We should devoted and awake.
अपघ्नन्पवते मृधोऽप सोमो अराव्णः। गच्छन्निन्द्रस्य निष्कृतम्॥
यह सोम दान न देने वाले शत्रुओं का संहार करता है और इन्द्र देव के निकट जाता हुआ क्षरित होता है।[ऋग्वेद 9.61.25]
Som destroys those who do not donate and become weak-erode while reaching Indr Dev.
महो नो राय आ भर पवमान जही मृधः। रास्वेन्दो वीरवद्यशः॥
हे पावन सोम देव! आप हमारे शत्रुओं का संहार करने वाले हैं। हमें धन, पुत्र और यश से युक्त करें।[ऋग्वेद 9.61.26]
Hey pious Som Dev! You are the destroyer of the enemies. Grant us wealth, son and name, fame, glory.
न त्वा शतं चन हुतो राधो दित्सन्तमा मिनन्। यत्पुनानो मखस्यसे॥
हे सोमदेव ! यज्ञकर्ता आपसे धन प्राप्ति की कामना करते हैं। आपके दान को सैकड़ों शत्रु भी बाधित नहीं कर सकते।[ऋग्वेद 9.61.27]
पवस्वेन्दो वृषा सुतः कृधी नो यशसो जने। विश्वा अप द्विषो जहि॥
हे सोम देव! आप हमारे यश और बल की वृद्धि करने वाले हैं। हमारे शत्रुओं का नाश करने वाले आप हमें यशस्वी बनावें।[ऋग्वेद 9.61.28]
Hey Som Dev! You boost our name, fame, glory and strength. Be glorious by destroying our enemies.
अस्यं ते सख्ये वयं तवेन्दो द्युम्न उत्तमे। सासह्याम पृतन्यतः॥
हे सोम देव! हम इस यज्ञ में आपकी मित्रता को प्राप्त करेंगे और तब हम अन्न द्वारा बलवान होकर यज्ञ की इच्छा वाले आपके शत्रुओं का संहार करेंगे।[ऋग्वेद 9.61.29]
Hey Som Dev! We will become friends in this Yagy and become mighty by having food grains and destroyer of your enemies.
या ते भीमान्यायुधा तिग्मानि सन्ति धूर्वणे। रक्षा समस्य नो निदः॥
हे सोम देव! आप अपने तीक्ष्ण आयुधों के द्वारा शत्रुओं का नाश करने वाले हैं। आप हमें निन्दा करने वाले और शत्रुओं द्वारा संतप्त होने से बचावें।[ऋग्वेद 9.61.30]
Hey Som Dev! You destroy he enemies with your sharp weapons. Protect us from the reprover and enemies.(26.07.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (62) :: ऋषि :- जगदग्नि, भार्गव; देवता :-पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
एते असृग्रमिन्दवस्तिरः पवित्रमाशवः। विश्वान्यभि सौभगा॥
यह सोमरस छलनी की ओर द्रुत गति के साथ गमन करता है और ऋषियों द्वारा शोधित किए जाने पर सौभाग्य प्रदान करता है।[ऋग्वेद 9.62.1]
Somras passes through the sieve with high speed and grant good luck on being purified-sanctified by the sages.
विघ्नन्तो दुरिता पुरु सुगा तोकाय वाजिनः। तना कृण्वन्तो अर्वते॥
बलप्रदायक और पापनाशक यह सोमरस हमारे और हमारे पुत्र-पौत्रों के लिए पशु आदि धन प्राप्त करने वाले मार्ग को स्वयं बनाता है।[ऋग्वेद 9.62.2]
Sanctifying Somras grant strength, make sinless and generate means to provide our son and grand sons with animals, wealth.
कृण्वन्तो वरिवो गवेऽभ्यर्षन्ति सुष्टुतिम्। इळामस्मभ्यं संयतम्॥
हे सोम देव! आप हमारी प्रार्थनाओं को ग्रहण करने वाले हैं। हमें और हमारी गौवों को पौष्टिक अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.62.3]
Hey Som Dev! You accept our prayers. Grant nourishing food grains to us & our cows.
असाव्यंशुर्मदायाप्सु दक्षो गिरिष्ठाः। श्येनो न योनिमासदत्॥
आनन्द वृद्धि के लिए निचोड़ा गया और जल के संयोग से व्यापक हुआ यह सोम पर्वतों में उत्पन्न होता है। यह बाज पक्षी के सदृश अपने निश्चित स्थान पर स्थित है।[ऋग्वेद 9.62.4]
Som squeezed for pleasure & mixed with water, grows over the mountains. It occupies its own fixed place like a falcon.
शुभ्रमन्धो देववातमप्सु धूतो नृभिः सुतः। स्वदन्ति गावः पयोभिः॥
याजकों द्वारा अभिषुत, देवों का श्रेष्ठ आहार, जलमिश्रित पवित्र सोमरस को गौवें अपना दूध मिलाकर उसे अधिक स्वादिष्ट बना रही हैं।[ऋग्वेद 9.62.5]
The cows are making pious Somras extracted by the Ritviz, mixed in water is ambrosia for the demigods-deities; make it more tasty by mixing their milk in it
आदीमश्वं न हेतारोऽशूशुभन्नमृताय। मध्वो रसं सधमादे॥
अश्व की भाँति स्फूर्तिवान सोम को याजकगण अमरत्व प्राप्ति की कामना से उसे यज्ञ मण्डप पर स्थापित करते हैं।[ऋग्वेद 9.62.6]
स्फूर्ति :: फुरती, तेज़ी; energy, quick, vitality.
The Ritviz establish the Somras which is as quick as the horse, in the Yagy Mandap with the desire of attaining immortality.
यास्ते धारा मधुश्चतोऽसृग्रमिन्द ऊतये। ताभिः पवित्रमासदः॥
हे सोम! आप अपनी मधुर रस की धाराओं से सभी को संरक्षण देने वाले हैं।आप उन धाराओं के साथ शोधित और पवित्र होते हैं।[ऋग्वेद 9.62.7]
Hey Som! You grant asylum with your sweet currents. You are cleansed & sanctified with these streams.
सो अषेन्द्राय पीतये तिरो रोमाण्यव्यया। सीदन् योना वनेष्वा॥
हे सोम! आप भेड़ के बालों से बनी छलनी द्वारा शुद्ध होते हैं। यज्ञमण्डप में प्रतिष्ठित होकर आप इन्द्र देव के पीने योग्य होवें।[ऋग्वेद 9.62.8]
Hey Som! You are filtered through the sieve made of sheep hair. Be established in the Yagy Mandap and ready to be drunk by Indr Dev.
त्वमिन्दो परि स्त्रव स्वादिष्ठो अङ्गिरोभ्यः। वरिवोविद्धृतं पयः॥
हे सोम देव! अंगिरादि ऋषियों लिए आप घृत और दुग्ध युक्त पौष्टिक आहार प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.62.9]
Hey Som Dev! Provide nourishing food to Angira and other Rishis, having Ghee and milk in it.
अयं विचर्षणिर्हितः पवमानः स चेतति। हिन्वान आप्यं बृहत्॥
यह सोमरस पात्र में स्थित होकर शोधित हुआ है और जल के साथ मिलकर प्रचुर अन्न प्रदान करता हुआ यशस्वी होता है।[ऋग्वेद 9.62.10]
Somras is purified and mixed with water in the vessel, granting sufficient food grains and become glorified-famous.
एष वृषा वृषव्रतः पवमानो अशस्तिहा। करद्वसूनि दाशुषे॥
श्रेष्ठ कर्म करने वालों को धन प्रदान करने वाला और कामनाओं की पूर्ति करने वाला यह सोमरस शत्रुओं का नाशक है।[ऋग्वेद 9.62.11]
Desires accomplishing Somras grants wealth to the virtuous and destroys the enemies.
आ पवस्व सहस्रिणं रयिं गोमन्तमश्विनम्। पुरुश्चन्द्रं पुरुस्पृहम्॥
हे सोम देव! गौवों और अश्वों से युक्त, अनेकों के द्वारा कामना योग्य हजारों प्रकार का तेजस्वी धन हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.62.12]
Hey Som Dev! Grant us thousands of kinds of aurous wealth, having cows, horses etc. desired by many people.
एष स्य परि षिच्यते मर्मृज्यमान आयभिः। उरुगायः कविक्रतुः॥
निकाला गया वह सोम जो याजकों के द्वारा शोधित किया जाता है, बुद्धिपूर्वक कर्म करने वाला और अनेकों प्रकार से स्तुत्य होता है।[ऋग्वेद 9.62.13]
Extracted Somras sanctified by the Ritviz, leads to use of intelligence and worshiped in several ways.
सहस्त्रोतिः शतामघो विमानो रजसः कविः। इन्द्राय पवते मदः॥
विश्व द्रष्टा, क्रांतकर्मा और हर्षप्रदायक सोम इन्द्र देव के लिए शोधित किया जाता है।[ऋग्वेद 9.62.14]
Som looking at the whole world, performing great deeds & gladdening is sanctified for Indr Dev.
गिरा जात इह स्तुत इन्दुरिन्द्राय धीयते। वियोना वसताविव॥
पक्षी जिस प्रकार अपने घोसले की ओर जाता है, उसी प्रकार श्रेष्ठ वाणी द्वारा स्तुत्य होता हुआ यह सोमरस इन्द्रदेव के पास जाता है।[ऋग्वेद 9.62.15]
The way a bird goes to its net, Somras worshiped with great voice-speech reaches Indr Dev.
पवमानः सुतो नृभिः सोमो वाजमिवासरत्। चमूषु शक्मनासदम्॥
योद्धा के संग्राम में जाने के सदृश याजकों द्वारा निकाला और शोधित किया गया सोमरस अपने वेग द्वारा पात्र में गमन करता है।[ऋग्वेद 9.62.16]
Somras extracted by the Ritviz goes to its vessel like the soldiers going to war with high speed.
तं त्रिपृष्ठे त्रिवन्दधुरे रथे युञ्जन्ति यातवे। ऋषीणां सप्त धीतिभिः॥
ऋत्विक्ङ्गण तीन सवनों (प्रातः, मध्याह्न, सायंकाल) में, तीन वेदों (ऋक्, यजु, साम) और सात छंदों के द्वारा स्तुति करते हुए सोमरस के साथ देवताओं के निकट गमन करते हैं।[ऋग्वेद 9.62.17]
छंद :: कविता, पद्य, लंबी लाठी, लकड़ी की सीढ़ी का डंडा; stanza, verse, stave, stanza.
The Ritviz Gan goes to demigods-deities during the three segments of the day :- morning, noon, evening; reciting the three Ved :- Rik, Yaju and Sam & seven stanza along with Somras.
तं सोतारो धनस्पृतमाशुं वाजाय यातवे। हरिं हिनोत वाजिनम्॥
हे याजकों! आप सोमरस को शोधित करने वाले हैं। संग्राम में ले जाने वाले अश्वों को जिस प्रकार सुसज्जित किया जाता है, उसी प्रकार हरिताभ सोम को यज्ञ के निमित्त अलंकृत किया जाता है।[ऋग्वेद 9.62.18]
Hey Ritviz! You purify the Somras. The way the horses are decorated for taking them to the war, greenish Somras too is decorated.
आविशन्कलशं सुतो विश्वा अर्षन्नभि श्रियः। शूरो न गोषु तिष्ठति॥
कलश में प्रवेश करता हुआ यह सोमरस अत्यन्त सुशोभित होता है। वीर पुरुष जिस प्रकार गौओं की सुरक्षा करते हैं, उसी प्रकार वह हरिताभ सोम को भी संरक्षित करता है। वह सोम निर्भय होकर कलश में वास करता है।[ऋग्वेद 9.62.19]
Somras entering the Kalash is glorified. The way a brave person protect the cows, he protects the greenish Somras as well. Somras reside in the vessel freely.
आ त इन्दो मदाय कं पयो दुहन्त्यायवः। देवा देवेभ्यो मधु॥
इन्द्र देव आदि देवों के लिए हे सोम! ऋत्विक्ङ्गण आपके मधुर रस का दोहन करते हैं।[ऋग्वेद 9.62.20]
Hey Somras, meant for Indr Dev and other demigods-deities! The Ritviz extract your sweet sap-juice.
आ नः सोमं पवित्र आ सृजता मधुमत्तमम्। देवेभ्यो देवश्रुत्तमम्॥
हे याजको! देवों को अतिप्रिय और मधुर सोमरस को शोधित करने के लिए छलनी से छाने।[ऋग्वेद 9.62.21]
Hey Ritviz! Filter Somras, extremely liked by the demigods-deities, for purifying in the sieve.(28.07.2024)
एते सोमा असृक्षत गृणानाः श्रवसे महे। मदिन्तमस्य धारया॥
प्रार्थनाओं के साथ हमें उत्तम बल प्रदान करने के लिए यह सोम वेगवती धारा के साथ पात्र में गमन करता है।[ऋग्वेद 9.62.22]
Somras moves in a strong current into the vessel to grant us excellent strength at the time of prayers.
अभि गव्यानि वीतये नृम्णा पुनानो अंर्षसि। सनद्वाजः परि स्त्रव॥
हे सोम! आप देवों के लिए गौ-दुग्ध में मिलकर अन्न प्रदान करते हुए पात्र में एकत्रित होवें।[ऋग्वेद 9.62.23]
Hey Som! You should mix with cow's milk granting us food grains and collect in a vessel for the demigods-deities.
उत नो गोमतीरिषो विश्वा अर्ष परिष्टुभः। गृणानो जमदग्निना॥
हे सोम देव! आप जगदग्नि ऋषि द्वारा की गई प्रार्थना से प्रवृद्ध होकर हमें गौवों के सहित सभी पोषक अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.62.24]
Hey Som Dev! You should grow by virtue of the prayers by Rishi Jamdagni and grant us cows along with all nourishing food grains.
पवस्व वाचो अग्रियः सोम चित्राभिरूतिभिः। अभि विश्वानि काव्या॥
हे सोम देव! आप सर्वश्रेष्ठ हैं। अपने रक्षा-साधनों के साथ हमारी वाणी में प्रविष्ट हों और सभी काव्य-स्तुतियों में भी संचरित हों।[ऋग्वेद 9.62.25]
Hey Som Dev! You are best. Enter our voice with all your protection means and penetrate all poetic prayers.
त्वं समुद्रिया अपोऽग्रियो वाच ईरयन्। पवस्व विश्वमेजय॥
हे सोम देव! आप अग्रणी होकर और हमारी स्तुतियों को श्रवण कर प्रसन्न हों और आकाश के जल को (वर्षा के लिए) आवाहित करें।[ऋग्वेद 9.62.26]
Hey Som Dev! You should remain forward, listen to our prayers and become happy inviting rains from the sky.
तुभ्येमा भुवना कवे महिग्ने सोम तस्थिरे। तुभ्यमर्षन्ति सिन्धवः॥
हे सोम देव! आपकी महिमा से ही यह लोक स्थित है। नदियाँ भी आपके मनोनुकूल ही चलती हैं।[ऋग्वेद 9.62.27]
Hey Som Dev! This abode is established due to your glory. Rivers flow as per your desire.
प्र ते दिवो न वृष्टयो धारा यन्त्यसश्चतः। अभि शुक्रामुपस्तिरम्॥
हे सोम! आपकी प्रवाहित होने वाली रस की धाराएँ आकाश से होने वाली वर्षा के सदृश छलनी से शोधित होते हुए गमन करती हैं।[ऋग्वेद 9.62.28]
Hey Som! Your flowing streams of sap move like the rain from the sky purifying through the sieve.
इन्द्रायेन्दुं पुनीतनोग्रं दक्षाय साधनम्। ईशानं वीतिराधसम्॥
हे याजकों! वेगवान, जल वृद्धि के साधन, धनवान, बलशाली सोम को इन्द्र देव के निमित्त प्रस्तुत करें।
Hey Ritviz! Offer fast moving, means for increasing water, mighty Somras to Indr Dev
पवमान ऋतः कविः सोमः पवित्रमासदत्। दधत्स्तोत्रे सुवीर्यम्॥
यह तेज प्रदायक, पवमान, सत्यरूप, मेधावी सोम स्तोत्रों को तेजस्विता प्रदान करता है।[ऋग्वेद 9.62.30]
This energy granting Pavman, a form of truth, intelligent Som grant aura to Strotrs.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (63) :: ऋषि :- निध्रुवि, कश्यप; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
आ पवस्व सहस्रिणं रयिं सोम सुवीर्यम्। अस्मे श्रवांसि धारय॥
हे सोम देव! आप हजारों प्रकार के बलों से युक्त हैं। हमें श्रेष्ठ धन और अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.63.1]
Hey Som Dev! You possess thousands of kinds of power-strength. Grant us best wealth and food grains.
इषमूर्जं च पिन्वस इन्द्राय मत्सरिन्तमः। चमूष्वा नि षीदसि॥
हे आनन्द प्रदान करने वाले सोमदेव। आप इन्द्र देव के लिए अन्न और बल की वृद्धि करते हुए यज्ञस्थल में विराजे।[ऋग्वेद 9.63.2]
Hey gladdening Som Dev! Come to the Yagy increasing food grains and might of Indr Dev.
सुत इन्द्राय विष्णवे सोमः कलशे अक्षरत्। मधुमाँ अस्तु वायवे॥
शोधित हुआ सोमरस इन्द्र देव, श्री भगवान् विष्णु और वायु देव के लिए कलश में प्रतिष्ठित होता है।[ऋग्वेद 9.63.3]
Sanctified Somras is collected in the Kalash for Indr Dev, Bhagwan Shri Hari Vishnu and Vayu Dev.
एते असृग्रमाशवोऽति ह्वरांसि बभ्रवः। सोमा ऋतस्य धारया॥
द्रुत गामी, भूरे रंग का सोमरस जल धाराओं के साथ गमन करता है।[ऋग्वेद 9.63.4]
Fast moving grey coloured Somras, moves with water streams.
इन्द्रं वर्धन्तो अप्तुरः कृण्वन्तो विश्वमार्यम्। अपघ्नन्तो अराव्णः॥
इन्द्र देव के यश की वृद्धि करने वाला यह सोमरस प्रजा को अच्छे कर्म की ओर प्रेरित करता है, दान न देने वाले लोगों को मारता और संसार को श्रेष्ठ बनाता है।[ऋग्वेद 9.63.5]
Somras which boosts the glory of Indr Dev, inspire the populace for virtuous deeds, kills those who do not donate and makes the universe excellent.
सुता अनु स्वमा रजोऽभ्यर्षन्ति बभ्रवः। इन्द्रं गच्छन्त इन्दवः॥
यह निष्पन्न सोमरस अपने स्थान को प्राप्त करने के लिए इन्द्र देव की ओर गमन करता है।[ऋग्वेद 9.63.6]
Extracted Somras moves towards Indr Dev to seek its position.
अया पवस्व धारया यया सूर्यमरोचयः। हिन्वानो मानुषीरपः॥
मनुष्यों के लिए जलरसों की वृद्धि करने वाला सोमरस सूर्य देव को प्रकाशित करने के साथ ही श्रेष्ठ धाराओं के साथ गतिमान होता है।[ऋग्वेद 9.63.7]
Somras increases juices-water for the humans, illuminate Sury Dev and flow in high moving currents.
अयुक्त सूर एतशं पवमानो मनावधि। अन्तरिक्षेण यातवे॥
मनुष्यों के हित के लिए अन्तरिक्ष में गतिमान होने के लिए यह सोम सूर्य देव के अश्वों को नियोजित करता है।[ऋग्वेद 9.63.8]
Som controls the horses of Sury Dev in the space while speeding-accelerating for the welfare of humans.
उत त्या हरितो दश सूरो अयुक्त यातवे। इन्दुरिन्द्र इति ब्रुवन्॥
इन्द्र देव के नामों का उच्चारण करते हुए हरिताभ सोम अश्वों को सूर्य रथ की भाँति दसों दिशाओं में जाने के लिए नियोजित करता है।[ऋग्वेद 9.63.9]
Reciting the names of Indr Dev, greenish Som directs the horses deployed in the Sur Dev's charoite in ten directions.
परीतो वायवे सुतं गिर इन्द्राय मत्सरम्। अव्यो वारेषु सिञ्चत॥
हे याजकों! वायुदेव और इन्द्रदेव के लिए आनन्दप्रदायी सोमरस को छलनी से छानकर शोधित करें।[ऋग्वेद 9.63.10]
Hey Ritviz! Sanctify the gladdening Somras filtering it in the sieve for Indr Dev and Vayu Dev.
पवमान विदा रयिमस्मभ्यं सोम दुष्टरम्। यो दूणाशो वनुष्यता॥
हे सोम देव! शत्रुओं के लिए जो दुर्लभ हो, जिसे दुष्ट भी नष्ट न कर सकें, आप ऐसा धन हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.63.11]
Hey Som Dev! Grant us the wealth which is scarce for the enemies and which can not be destroyed by the wicked.
अभ्यर्ष सहस्रिणं रयिं गोमन्तमश्विनम्। अभि वाजमुत श्रवः॥
हे सोम देव! आप गौवों और अश्वों से युक्त हजारों प्रकार का धन, बल और अन्न हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.63.12]
Hey Som Dev! Grant us thousands of kinds of wealth constituting of cows, horses, might and food grains.
सोमो देवो न सूर्योऽद्रिभिः पवते सुतः। दधानः कलशे रसम्॥
अद्रि (पत्थरों) से निकाले गए देवताओं के सदृश तेजस्वी सोमरस को कलश में स्थापित किया जाता है।[ऋग्वेद 9.63.13]
Somras extracted with stones by crushing, is kept in the aurous-radiant Kalash like the demigods-deities.(29.07.2024)
एते धामान्यार्या शुक्रा ऋतस्य धारया। वाजं गोमन्तमक्षरन्॥
यह परिष्कृत सोमरस यजमानों के गृहों में पशुधन तथा अन्नरूप में प्रवाहित होता है।[ऋग्वेद 9.63.14]
Purified Somras flow in the homes of hosts like animals and food grains.
सुता इन्द्राय वज्रिणे सोमासो दध्याशिरः। पवित्रमत्यक्षरन्॥
बने हुए सोमरस को दही के साथ मिलाकर वज्रधारी इन्द्र देव को अर्पित किया जाता है।[ऋग्वेद 9.63.15]
Ready to consume Somras is mixed with curd and offered to Vajr wielding Indr Dev.
प्र सोम मधुमत्तमो राये अर्ष पवित्र आ। मदो यो देववीतमः॥
हे सोम! आपके मधुर रस की कामना सभी देवगण करते हैं, आप उस रस को हमें धन लाभ कराने के लिए प्रवाहित करें।[ऋग्वेद 9.63.16]
Hey Som! Deities-demigods are desirous of your sweet sap, flow it to us for gaining wealth.
तमी मृजन्त्यायवो हरिं नदीषु वाजिनम्। इन्दुमिन्द्राय मत्सरम्॥
इन्द्र देव को प्रसन्न करने वाला हरिताभ सोमरस को ऋत्विक्ङ्गण नदी के जल में मिलाकर शुद्ध और बलशाली बनाते हैं।[ऋग्वेद 9.63.17]
Somras with greenish hue which keep Indr Dev amused, is mixed with river water sanctified and made even more powerful.
आ पवस्व हिरण्यवदश्वावत्सोम वीरवत्। वाजं गोमन्तमा भर॥
हे सोम! आप हमें सुवर्ण आदि धन, अश्व, पराक्रमी सन्तान, गौ-दुग्ध से युक्त अन्न और ऐश्वर्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.63.18]
Hey Som Dev! Grant us wealth like gold etc. horses, mighty progeny, grandeur and food grains along with cow's milk.
परि वाजे न वाजयुमव्यो वारेषु सिञ्चत। इन्द्राय मधुमत्तमम्॥
हे याजकों! यज्ञ की कामना करने वाला यह सोमरस अत्यन्त मधुर हैं। आप इसको इन्द्र देव के लिए छलनी में शोधित करने के लिए डालें।[ऋग्वेद 9.63.19]
Hey Ritviz! Somras desirous of Yagy is very sweet. Pour it in the sieve for filtration, for Indr Dev.
कविं मृजन्दित मर्ज्य धीभिर्विप्रा अवस्यवः। वृषा कनिक्रदर्षति॥
रक्षा की इच्छा करने वाले ऋत्विक्रगण अपनी अँगलियों द्वारा सोमरस को शोधित करते है। वह बल वर्द्धक सोमरस शब्दनाद करता हुआ पात्र में एकत्रित होता है।[ऋग्वेद 9.63.20]
Ritviz desirous of protection squeeze Somras with their ten fingers. This strength stimulating Somras collect in the vessel making sound.
वृषणं धीभिरप्तुरं सोममृतस्य धारया। मती विप्राः समस्वरन्॥
जल के साथ धारारूप में मिश्रित होने वाले सोमरस को विद्वान लोग अपनी बुद्धि के अनुसार प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 9.63.21]
The enlightened, appreciate Somras mixed with water and flowing like a stream, as per their intellect.
पवस्व देवायुषगिन्द्रं गच्छतु ते मदः। वायुमा रोह धर्मणा॥
हे सोम देव। आपका हर्षकारी रस आपकी कामना करने वाले इन्द्र देव की ओर जाता है। आप दिव्यरूप से वायुदेव में मिल जाएँ।[ऋग्वेद 9.63.22]
Hey Somras! Your gladdening juice-sap move to Indr Dev who is desirous of you. You should assimilate in divine form with Vayu Dev.
पवमान नि तोशसे रयिं सोम श्रवाय्यम्। प्रियः समुद्रमा विश॥
हे पवित्र सोम देव। धन के लिए आप दुष्टों को दंडित करते हैं। हम यज्ञ कलश में आपका आवाहन करते है।[ऋग्वेद 9.63.23]
Hey pious Som Dev! You punish the wicked for wealth. We invoke you in the Yagy Kalash.
अपघ्नन्पवसे मृघः क्रतुवित्सोम मत्सरः। नुदस्वादेवयुं जनम्॥
हे सोम देव! आनन्द प्रदान करने वाले आप ऋत् (यज्ञ) के ज्ञाता हैं। देवताओं से इर्ष्या करने वाले असुरों को आप धन से रहित कर दें।[ऋग्वेद 9.63.24]
Hey Som Dev! You are enlightened pertaining to gladdening Yagy. Make the demons envious to demigods-deities wealthless.
पवमाना असृक्षत सोमाः शुक्रास इन्दवः। अभि विश्वानि काव्या॥
शुभ्र ज्योतिर्मय पवित्रता को प्राप्त होने वाला सोमरस वेद मन्त्रों की स्तुतियों के साथ क्षरित होता है।[ऋग्वेद 9.63.25]
White coloured aurous Somras gains purity and extract with the recitation of the Stuties of Ved Mantr.
पवमानास आशवः शुभ्रा असृग्रमिन्दवः। घ्नन्तो विश्वा अप द्विषः॥
शत्रुरूपी विकारों का शमन करता हुआ यह पवमान, उज्ज्वल सोम तीव्र गति से सुपात्र में स्थिर होता है।[ऋग्वेद 9.63.26]
Fair coloured Pavman Somras destroys the defects and collects in the virtuous-eligible person with high speed.
पवमाना दिवस्पर्यन्तरिक्षादसृक्षत। पृथिव्या अधि सानवि॥
शोधित सोम पृथ्वी के ऊँचे भाग में आकाश से यह किरणों और अन्तरिक्ष की वृष्टि के समान प्रकट होता है।[ऋग्वेद 9.63.27]
Purified-sanctified Som appear from an elevated place over the earth and as rays in the sky while it appears in the space as rains.
पुनानः सोम धारयेन्दो विश्वा अप स्त्रिधः। जहि रक्षांसि सुक्रतो॥
हे सोम! हमारे समस्त शत्रुओं को पराजित करते हुए आप उन्हें हमसे दूर करें और स्वयं धारारूप से शोधित होकर पवित्र बनें।[ऋग्वेद 9.63.28]
Hey Som! Defeat all of our enemies, repel them away from us and you should flow like stream and become pure.
अपघ्नन्त्सोम रक्षसोऽभ्यर्ष कनिकदत्। द्युमन्तं शुष्ममुत्तमम्॥
हे सोमदेव! आप राक्षसों को नष्ट करते हुए आप शब्दनाद करें और हमें श्रेष्ठ तेजस्वी बल प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.63.29]
Hey Som Dev! Destroy the demons, produce loud sound and grant us great strength.
अस्मे वसूनि धारय सोम दिव्यानि पार्थिवा। इन्दो विश्वानि वार्या॥
हे सोमदेव! आप आकाश और पृथ्वी में उत्पन्न हुए सभी धनों को हमें प्रदत्त करें।[ऋग्वेद 9.63.30]
Hey Som Dev! Grant us all sorts of wealth produced in the sky and earth.(30.07.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (64) :: ऋषि :- कश्यप, मरीच; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
वृषा सोम द्युमाँ असि वृषा देव वृषव्रतः। वृषा धर्माणि दधिषे॥
हे सोमदेव! आप तेजस्वी और पराक्रमी है। बल वृद्धि की सामर्थ्य से युक्त आप सदैव अपने कर्मों को धारण किए रहते हैं।[ऋग्वेद 9.64.1]
Hey Som Dev! You are majestic and mighty. You possess the capacity of boosting strength and your possess the endeavours.
वृष्णस्ते वृष्ण्यं शवो वृषा वनं वृषा मदः। सत्यं वृषन्वृषेदसि॥
हे सोम! आपका बल अभीष्ट की वर्षा करने वाला है। आपके अवयव और रस भी वर्षाकारी है। आप सभी प्रकार से वर्षणशील हैं।[ऋग्वेद 9.64.2]
Hey Som! Your power accomplish the desires-wishes. Your components and juices too lead to showers. You are showering in all aspects.
अश्वो न चक्रदो वृषा सं गा इन्दो समर्वतः। वि नो राये दुरो वृधि॥
पशुधन की वृद्धि करने वाले हे बलवान सोम देव! आप हमें धनादि से परिपूर्ण करें।[ऋग्वेद 9.64.3]
Hey mighty Som Dev, you increase the animals! Grant us sufficient wealth etc.
असृक्षत प्र वाजिनो गव्या सोमासो अश्वया। शुक्रासो वीरयाशवः॥
गौवों, अश्वों और वीर पुत्रों की कामना करने वालों के द्वारा अभिषुत किया गया यह सोमरस बल एवं स्फूर्ति की वृद्धि करने वाला है।[ऋग्वेद 9.64.4]
Somras extracted by the desirous of cows, horses and brave sons grants strength and vitality.
शुम्भमाना ऋतायुभिर्मृज्यमाना गभस्त्योः। पवन्ते वारे अव्यये॥
याजकों द्वारा अपने हाथों से तैयार किया गया शोभायमान सोमरस छलनी द्वारा शोधित कया जाता है।[ऋग्वेद 9.64.5]
Somras extracted by the Ritviz with their hands is filtered with sieve.
ते विश्वा दाशुषे वसु सोमा दिव्यानि पार्थिवा। पवन्तामान्तरिक्ष्या॥
हविदाता यजमान के लिए यह सोमरस दिव्य, पार्थिव और द्युलोक के समस्त धनों की वर्षा करें।[ऋग्वेद 9.64.6]
Somras showers divine, material and heaven's wealth for the hosts who make offerings.
पवमानस्य विश्ववित्प्र ते सर्गा असृक्षत। सूर्यस्येव न रश्मयः॥
सोम की पवित्र होती हुई धाराएँ सूर्य की किरणों की तरह तीव्र गति से नीचे की ओर आगमन करती हैं।[ऋग्वेद 9.64.7]
Streams of purified Somras come down with high speed like the Sun rays.
केतुं कृण्वन्दिवस्परि विश्वा रूपाभ्यर्षसि। समुद्रः सोम पिन्वसे॥
हे सोम देव! अन्तरिक्ष में ज्ञान-चेतना के रूप में संव्याप्त होकर होकर आप हमें जल के माध्यम से विभिन्न प्रकार का वैभव प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 9.64.8]
Hey Som Dev! You grant us various kinds of grandeur by pervading in the space as enlightenment & consciousness through water.
हिन्वानो वाचमिष्यसि पवमान विधर्मणि। अक्रान्देवो न सूर्यः॥
हे सोम! सूर्यदेव की किरणों की तुल्य प्रकाशमान् होंने वाले आप प्रार्थनाओं के साथ पवित्र होते हुए ध्वनिपूर्वक पात्र में स्थिर हो रहे हैं।[ऋग्वेद 9.64.9]
Hey Som! You are collecting in the vessel making sound with prayers illuminated like the Sun rays.
इन्दुः पविष्ट चेतनः प्रियः कवीनां मती। सृजदश्वं रथीरिव॥
जिस प्रकार रथी अश्वों को प्रेरित करता है, उसी प्रकार यह चेतना युक्त सोम सूक्ष्म दर्शियों की बुद्धि के द्वारा तरंगित होता है।[ऋग्वेद 9.64.10]
The way the charioteer inspire the horses, the same way conscious Som vibrate the intellect of minute observers.
ऊर्मिर्यस्ते पवित्र आ देवावीः पर्यक्षरत्। सीदन्नृतस्य योनिमा॥
हे सोम! आपकी जो धारा देवगणों को तृप्त करने वाली है, वह छलनी में प्रवाहित होते हुए यज्ञस्थल में प्रतिष्ठित होती है।[ऋग्वेद 9.64.11]
Hey Som! Your currents which satisfy demigods-deities flow through the sieve and establish at the Yagy site.
स नो अर्ष पवित्र आ मदो यो देववीतमः। इन्दविन्द्राय पीतये॥
हे सोमदेव! देवगणों का अतिप्रिय तथा आनन्दायी जो सोमरस है, वह इन्द्र देव के पीने के लिए छलनी से प्रवाहित होता है।[ऋग्वेद 9.64.12]
Hey Som Dev! Gladdening Somras very much liked by the demigods-deities is passed through the sieve for drinking by Indr Dev.
इषे पवस्व धारया मृज्यमानो मनीषिभिः। इन्दो रुचाभि गा इहि॥
हे सोम! आप ज्ञानी ऋत्विजों के द्वारा परिष्कृत होते हुए पोषक रस के लिए धारा के रूप में शुद्ध हों और गाय के दूध के साथ मिलकर प्रकाशित हों।[ऋग्वेद 9.64.13]
Hey Som! You should be extracted by learned Ritviz and sanctified like the flowing & nourishing current mixed with cow's milk.
पुनानो वरिवस्कृध्यूर्ज जनाय गिर्वणः। हरे सृजान आशिरम्॥
हे हरिताभ सोमदेव! दुग्ध में मिलकर शोधित होने वाले आप याजकों को अन्नादि से परिपूर्ण करें।[ऋग्वेद 9.64.14]
Hey greenish Som! Purified by mixing with milk, you should enrich the Ritviz with food grains etc.
पुनानो देववीतय इन्द्रस्य याहि निष्कृतम्। द्युतानो वाजिभिर्यतः॥
हे सोम! आप याजकों द्वारा लाए जाने पर यज्ञ के लिए निष्पन्न हों और इन्द्र देव के लिए गमन करें।[ऋग्वेद 9.64.15]
Hey Som! You should be extracted and purified by bringing to the Yagy and move for Indr Dev.(31.07.2024)
प्र हिन्वानास इन्दवोऽच्छा समुद्रमाशवः। धिया जूता असृक्षत॥
अन्तरिक्ष में स्थित वेगवान सोम अँगुलियों के द्वारा दबाने से रस प्रदान करता है।[ऋग्वेद 9.64.16]
High speed Som established in the space yield juice-sap on being pressed with fingers.
मर्मृजानास आयवो वृथा समुद्रमिन्दवः। अग्मन्नृतस्य योनिमा॥
गतिमान सोमरस शोधित होकर सहज ही अन्तरिक्ष से यज्ञस्थल की ओर गमन करता है।[ऋग्वेद 9.64.17]
Moving Somras on being sanctified in space moves to Yagy site from space.
परि णो याह्यस्मयुर्विश्वा वसून्योजसा। पाहि नः शर्म वीरवत्॥
हे सोम देव! हमारे यज्ञ में गमन करने की इच्छा वाले आप अपनी सामर्थ्य से सम्पूर्ण धन और हमारे संतति से युक्त गृहों का संरक्षण करें।[ऋग्वेद 9.64.18]
Hey Som Dev! Having the desire to visit our Yagy place, grant all wealth as per your capacity to our progeny and protect them along with their houses.
मिमाति वह्निरेतशः पदं युजान ऋक्वभिः। प्र यत्समुद्र आहितः॥
हे सोम! जब याजकों द्वारा यज्ञ में आपको आवाहित किया जाता है, तब जल में मिश्रित होते समय आप शब्दनाद करते हैं।[ऋग्वेद 9.64.19]
Hey Som! When you are invoked in the Yagy you create loud sound on being mixed with water.
आ यद्योनिं हिरण्ययमाशुर्ऋतस्य सीदति। जहात्यप्रचेतसः॥
वेगवान सोम जब यज्ञ के स्वर्णिम स्थान पर प्रतिष्ठित होता है, तब वह याजकों के अज्ञान को दूर करता है।[ऋग्वेद 9.64.20]
When fast moving Som is established over the golden seat in the Yagy, it removes the ignorance of the Ritviz.
अभि वेना अनूषतेयक्षन्ति प्रचेतसः। मज्जन्त्यविचेतसः॥
उत्तम बुद्धि वाले स्तोता सोमदेव के यजन की कामना करते हैं और कुबुद्धि वाले नरक को प्राप्त होते हैं।[ऋग्वेद 9.64.21]
Stota with excellent intelligence wish to worship Som Dev while the wicked-vicious attain hell.
इन्द्रायेन्दो मरुत्वते पवस्व मधुमत्तमः। ऋतस्य योनिमासदम्॥
हे मधुर सोम! आप इन्द्र देव और मरुद्गणों के लिए यज्ञस्थल में स्थित कलश में प्रविष्ट हों।
[ऋग्वेद 9.64.22]
Hey sweet Som! Enter the vessels kept for Indr Dev and Marud Gan at the Yagy site.
तं त्वा विप्रा वचोविदः परिष्कृण्वन्ति वेधसः। सं त्वा मृजन्यायवः॥
हे सोम! कर्म करने वाला स्तोता भली प्रकार सुसंस्कृत करने के पश्चात् आपको स्तुतियों द्वारा प्रवृद्ध करते हैं।[ऋग्वेद 9.64.23]
Hey Som! Endeavour Stota sanctify you thoroughly and make you grow with Stuties-prayers.
रसं ते मित्रो अर्यमा पिबन्ति वरुणः कवे। पवमानस्य मरुतः॥
हे सोम! पवित्रता से युक्त आपके रस को मित्र, वरुण देव, अर्यमा और मरुद्गण सेवन करें।[ऋग्वेद 9.64.24]
Hey Som! Let Mitr, Varun Dev, Aryma and Marud Gan drink your pious sap-juice.
त्वं सोम विपश्चितं पुनानो वाचमिष्यसि। इन्दो सहस्त्रभर्णसम्॥
हे सोम! आप शोधित होते समय हजारों प्रकार के पवित्र स्तोत्रों को प्रेरित करते हैं।[ऋग्वेद 9.64.25]
Hey Som! While sanctifying you inspire thousands of kinds of pious Strotr.
उतो सहस्त्रभर्णसं वाचं सोम मखस्युवम्। पुनान इन्दवा भर॥
हे सोमदेव! आप हमें हजारों प्रकार के यज्ञों में स्तोत्रों का गायन करने की प्रेरणा दें।[ऋग्वेद 9.64.26]
Hey Som Dev! Inspire us to recite-sing thousands of kind of Strotrs in the Yagy.
पुनान इन्दवेषा पुरुहूत जनानाम्। प्रियः समुद्रमा विश॥
हे सोम! इन लोकों के प्रिय आप अनेक प्रकार की स्तुतियों से पवित्र होते हुए जल में मिश्रित हों।[ऋग्वेद 9.64.27]
Hey Som! Popular in these (earth, heaven) abodes you should mix with water while sanctified with many types of Stuties.
दविद्युतत्या रुचा परिष्टोभन्त्या कृपा। सोमाः शुक्रा गवाशिरः॥
कान्तिमान्, तेजस्वी, शब्द युक्त धारा से पवित्र हुए सोम को गौ-दुग्ध में मिलाकर तैयार किया जाता है।[ऋग्वेद 9.64.28]
Illuminated, majestic Somras is prepared by mixing it with cow's milk, in a stream making sound.
हिन्वानो हेतृभिर्यत आ वाजं वाज्यक्रमीत्। सीदन्तो वनुषो यथा॥
जिस प्रकार रणभूमि में योद्धा घूमते हैं, उसी प्रकार याजकों द्वारा प्रशंसित, बलवर्द्धक, सबका हितकारी, संस्कारित सोम यज्ञभूमि में सम्मानित होता है।[ऋग्वेद 9.64.29]
The way warriors roam in the battle field, appreciated by the Ritviz, appreciable, strength increasing benefitting all Som is glorified in the battle field.
ऋधक्सोम स्वस्तये संजग्मानो दिवः कविः। पवस्व सूर्यो दृशे॥
हे ज्ञानयुक्त सोम देव! आप तेजस्वी सूर्य देव के सदृश दिव्य आभायुक्त होकर सभी के कल्याण के लिए संस्कारित हों।[ऋग्वेद 9.64.30]
Hey enlightened Som Dev! You should be cultured for the benefit of all, possessing aura like the majestic Sury Dev.(01.08.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (65) :: ऋषि :- भृगु, वारुणि, जमदग्नि या भार्गव; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
हिन्वन्ति सूरमुस्त्रयः स्वसारो जामयस्पतिम्। महामिन्दुं महीयुवः॥
हे सोम! सभी स्थानों में गमनशील एक ही स्थान पर उत्पन्न यह अँगुली रूप दस स्त्रियाँ आप महान बलशाली को शोधन के लिए प्रेरित करती हैं।[ऋग्वेद 9.65.1]
Hey mighty Som! Ten fingers like the women, which evolved at the same place inspire you for sanctification.
पवमान रुचारुचा देवो देवेभ्यस्परि। विश्वा वसून्या विश॥
हे सोम! आपको देवताओं के निमित्त तैयार किया गया है। आप सब प्रकार का धन हमें प्रदत्त करते हैं।[ऋग्वेद 9.65.2]
Hey Som! You have been extracted for the demigods-deities. You grant us all sorts of wealth.
आ पवमान सुष्टुतिं वृष्टिं देवेभ्यो दुवः। इषे पवस्व संयतम्॥
हे सोम देव! आप देवताओं को प्रसन्न करने के लिए सुन्दर स्तोत्रों से युक्त वर्षा करते हुए हमें अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.65.3]
Hey Som Dev! Shower rains with beautiful Strotr to appease the demigods-deities and grant us food grains.
वृषा ह्यसि भानुना द्युमन्तं त्वा हवामहे। पवमान स्वाध्यः॥
हे सोम देव! सभी को एक समान दृष्टि से देखने वाले आप अत्यन्त तेजस्वी हैं। हम इस यज्ञ में आपका आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 9.65.4]
Hey majestic Som Dev! You look (weigh) at every one equally. We invoke you in our Yagy.
आ पवस्व सुवीर्यं मन्दमानः स्वायुध। इहो ष्विन्दवा गहि॥
हे आयुधशाली सोम देव! हमें श्रेष्ठ पराक्रम के सामर्थ्य से युक्त करें और हमारे यज्ञ में पधारें।[ऋग्वेद 9.65.5]
Hey weapons wielding Som Dev! Associate us with excellent valour-might and come to our Yagy.
यदद्धिः परिषिच्यसे मृज्यमानो गभस्त्योः। द्रुणा सधस्थमश्नुषे॥
हे सोम! ऋत्विजों द्वारा दोनों हाथों से शोधित होने वाले आप जल में मिलने के पश्चात आपको कलश में स्थापित किया जाता है।[ऋग्वेद 9.65.6]
Hey Som! You are sanctified with both hands and kept in the vessel after mixing with water.
प्र सोमाय व्यश्ववत्पवमानाय गायत। महे सहस्रचक्षसे॥
हे याजकों! जिस तरह सोमदेव के लिए व्यश्व ऋषि ने प्रार्थना की थी, उसी प्रकार हजारों नेत्रों वाले सोमदेव की आप भी प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 9.65.7]
Hey Ritviz! Worship thousands eyes possessing Som Dev like Vyashrav Rishi.
यस्य वर्णं मधुश्चुतं हरिं हिन्वन्त्यद्रिभिः। इन्दुमिन्द्राय पीतये॥
पत्थरों से कूटकर हरिताभ सोम का रस निकाला जाता है, उन शत्रुओं का नाश करने वाले सोमरस को इन्द्र देव के लिए समर्पित किया जाता है।[ऋग्वेद 9.65.8]
Greenish Somras is extracted by crushing it with stones and offered to Indr Dev, the destroyer of enemies.
तस्य ते वाजिनो वयं विश्वा धनानि जिग्युषः। सखित्वमा वृणीमहे॥
हे सोमदेव! हम आपसे मित्रता की कामना करते हैं। आप सभी प्रकार के धनों पर विजय प्राप्त करने वाले हैं।[ऋग्वेद 9.65.9]
Hey Som Dev! We wish to be friendly with you. You are the winner of all sorts of wealth.
वृषा पवस्व धारया मरुत्वते च मत्सरः। विश्वा दधान ओजसा॥
हे सोम! आप वेगपूर्ण धारा से कलश में प्रवेश करें और इन्द्र देव और मरुद्गणों को आनन्द प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.65.10]
Hey Som! enter the vessel in a stream and grant pleasure to Indr Dev and Marud Gan.
तं त्वा धर्तारमोण्यो ३ः पवमान स्वर्दृशम्। हिन्वे वाजेषु वाजिनम्॥
हे सोम देव! आप द्युलोक और पृथ्वीलोक का संरक्षण करते हैं। हम अन्न, बल और युद्ध के लिए आपको प्रेरित करते हैं।[ऋग्वेद 9.65.11]
Hey Som Dev! You provide protection to heavens and earth. We inspire you for food grains, might and war.
अया चित्तो विपानया हरिः पवस्व धारया। युजं वाजेषु चोदय॥
हे सोम! हमारी अँगुलियों द्वारा परिष्कृत होकर आप कलश में गमन करें। इन्द्र देव को युद्ध के लिए प्रेरित करने वाले आप हरिताभ से युक्त हैं तथा इन्द्र देव को प्रसन्न करते हैं।[ऋग्वेद 9.65.12]
Hey greenish Som! Enter the Kalash on being sanctified with fingers. You inspire Indr Dev for war and gladden him.
आ न इन्दो महीमिषं पवस्व विश्वदर्शतः। अस्मभ्यं सोम गातुवित्॥
हे सोम देव! आप प्रचुर अन्न प्रदान करने वाले हैं। हम सबके मार्गदर्शक हैं।[ऋग्वेद 9.65.13]
Hey Som Dev! You grant sufficient food grains and guide us.
आ कलशा अनूषतेन्दो धाराभिरोजसा। एन्द्रस्य पीतये विश॥
हे सोम! रस से परिपूर्ण आपके कलशों की हम प्रार्थना करते हैं। इन्द्र देव के पीने के लिए आप इन कलशों में गमन करें।[ऋग्वेद 9.65.14]
Hey Som! We worship your Kalash. Enter these Kalash for Indr Dev to drink you.
यस्य ते मद्यं रसं तीव्र दुहन्त्यद्रिभिः। स पवस्वाभिमातिहा॥
हे सोम! आपके अत्यन्त हर्षकारी वेगवान् रस का दोहन अद्रि (पत्थर) करते हैं। वह रस शत्रुनाशक होकर स्रवित होता है।[ऋग्वेद 9.65.15]
Hey Som! Your gladdening dynamic sap-juice is extracted with stones. It flow for the destruction of the enemy.(02.08.2024)
राजा मेधाभिरीयते पवमानो मनावधि। अन्तरिक्षेण यातवे॥
यज्ञ के अन्तर्गत यह पवमान राजा मेधाओं से गतिमान होता हुआ अंतरिक्ष से (यज्ञकलश) में जाने के लिए समर्थ होता है।[ऋग्वेद 9.65.16]
During the Yagy Pawman is accelerated by the intellectuals making it capable of moving from the space to the Yagy Kalash.
आ न इन्दो शतग्विनं गवां पोषं स्वश्यम्। वहा भगत्तिमूतये॥
हे सोम देव! आप सौभाग्य प्रदान करने वाले हैं। सैकड़ों गौवों और अश्वों को प्राप्त करने और उनका पोषण करने में समर्थ सौभाग्य हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.65.17]
Hey Som Dev! You grant good luck. Grant us good luck accompanied with hundreds of cows and horse and capability of nursing them.
आ नः सोम सहो जुवो रूपं न वर्चसे भर। सुष्वाणो देववीतये॥
हे सोम! आप देवगणों के पीने के लिए शोधित हों और हमें ऐसा बल प्रदान करें, जिससे हमारे तेज की वृद्धि हो।[ऋग्वेद 9.65.18]
Hey Som! You should be sanctified for drinking by the demigods-deities granting us might to boost our majesty.
अर्षा सोम द्युमत्तमोऽभि द्रोणानि रोरुवत्। सीदञ्छ्येनो न योनिमा॥
हे सोम! आप शोधित होते हुए और ध्वनिनाद करते हुए पात्र में स्थित होते हैं। आप तपोवन में होने वाले इस यज्ञ में पधारें।[ऋग्वेद 9.65.19]
Hey Som! You occupy the vessel while purifying; making sound. Invoke in the Yagy conducted in the Tapo Van-ascetic site in the forest.
अप्सा इन्द्राय वायवे वरुणाय मरुभ्यः। सोमो अर्षति विष्णवे॥
जल में मिश्रित होने वाला सोमरस इन्द्र देव, वायु देव, मरुत और श्री विष्णु आदि की तृप्ति के लिए कलश में स्थिर हों।[ऋग्वेद 9.65.20]
Let the Somras to be mixed in water occupy Kalash for the satisfaction of Indr Dev, Vayu Dev, Marud Gan and Shri Hari Vishnu.
इषं तोकाय नो दधदस्मभ्यं सोम विश्वतः। आ पवस्व सहस्रिणम्॥
हे सोमदेव! आप हमारी सन्तानों के लिए हजारों प्रकार का अन्न, धन और वैभव सभी ओर से लाकर प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.65.21]
Hey Som Dev! Grant us thousands of kind of food grains, wealth and grandeur for our progeny.
ये सोमासः परावति ये अर्वावति सुन्विरे। ये वादः शर्यणावति॥
निकट अथवा दूर से निष्पन्न होने वाला सोम शर्यणावत सरोवर के निकट उत्पन्न होकर संस्कारित होता है। वह हमारे लिए इष्ट प्रदायक हो।[ऋग्वेद 9.65.22]
निष्पन्न :: भली-भाँति पूरा किया हुआ, जन्मा हुआ, उत्पन्न; carried out, finished, accomplished.
Som grown far or near the Shrynavat Sarovar-reservoir, is sanctified and accomplish our desires-wishes.
अ आर्जीकेषु कृत्वसु ये मध्ये पस्त्यानाम्। ये वा जनेषु पञ्चसु॥
जो सोम आर्जीक देश में, कर्म करने वालों के देशों में नदियों के किनारे या पञ्चजनों के बीच में उत्पन्न होता और शोधित किया जाता है, वह हमें सुख प्रदान करे।[ऋग्वेद 9.65.23]
Som grown up & sanctified-purified in the Arjeek Desh-countries over the banks of rivers or the Panch Jan, should grant us pleasure.
ते नो वृष्टिं दिवस्परि पवन्तामा सुवीर्यम्। सुवाना देवास इन्दवः॥
निष्पादित, दीप्तिमान्, दिव्य सोम हमें द्युलोक से वृष्टि और उत्तम बलयुक्त पोषक अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.65.24]
Accomplished, illuminated divine Som should grant us rains and excellent strength increasing nourishing food grains from the heavens.
पवते हर्यतो हरिर्गुणानो जमदग्निना। हिन्वानो गोरधि त्वचि॥
देवगणों की इच्छा करने वाला हरिताभ सोम जगदग्नि ऋषि द्वारा स्तुत्य होकर पात्र में स्थित होता है।[ऋग्वेद 9.65.25]
Greenish Somras desired by the demigods-deities is worshiped by Jamdagni Rishi and established in the pot.
प्र शुक्रासो वयोजुवो हिन्वानासो न सप्तयः। श्रीणाना अप्सु मृञ्जत॥
जल के साथ मिले हुए सोमरस को गतिमान अश्वों के समान जल से ही पवित्र किया जाता है।[ऋग्वेद 9.65.26]
Somras mixed with water is sanctified with water like the accelerated horses.
तं त्वा सुतेष्वाभुवो हिन्विरे देवतातये। स पवस्वानया रुचा॥
उस सोमरस को याजकगण देवगणों को देने के लिए प्रेरित करते हैं। हे निष्पन्न सोम! आप देवताओं के लिए सुशोभित हों।[ऋग्वेद 9.65.27]
The Ritviz wish to inspire Somras being offered to demigods-deities. Hey accomplished Somras! You should be glorified for the demigods-deities.
आ ते दक्षं मयोभुवं वह्निमद्या वृणीमहे। पान्तमा पुरुस्पृहम्॥
हे सोम देव! हम यज्ञ करने वाले आपके रक्षक अभिलषणीय और सुखकारी बल की यज्ञमण्डप में कामना करते हैं।[ऋग्वेद 9.65.28]
Hey Som Dev! We the performers of Yagy wish to have your protection and comfortable might in the Yagy Mandap.
आ मन्द्रमा वरेण्यमा विप्रमा मनीषिणम्। पान्तमा पुरुस्पृहम्॥
आनन्द को बढ़ाने वाले, श्रेष्ठ, विद्वान्, संरक्षक और सबके द्वारा प्रशंसनीय हे सोमदेव। हम सब आपकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 9.65.29]
Hey excellent, enlightened & guardian Som Dev, appreciated by every one! You increase the pleasure. We all worship you.
आ रयिमा सुचेतुनमा सुक्रतो तनूष्वा। पान्तमा पुरुस्पृहम्॥
हे सोम देव! आप हमारे पुत्रों को बुद्धि और धनों से युक्त करें। आप सभी के रक्षक और अनेकों के द्वारा कामना किए जाते हैं। हम आपकी वन्दना करते हैं।[ऋग्वेद 9.65.30]
Hey Som Dev! Enrich our sons with intelligence and wealth. You are the protector of all and desired by many. We worship you.(03.08.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (66) :: ऋषि :- शतं वैखानस; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- गायत्री।
पवस्व विश्वचर्षणेऽभि विश्वानि काव्या। सखा सखिभ्य ईड्यः॥
हे सोम! हम सभी मित्र के समान श्रेष्ठ स्तोत्रों से आपकी प्रार्थना करते हैं। हमारी प्रार्थना से प्रसन्न होकर आप हमें श्रेष्ठ रस प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.66.1]
Hey Som! We all worship you like a friend with best Strotr. He happy with our prayers and grant us best sap-juice.
ताभ्यां विश्वस्य राजसि ये पवमान धामनी। प्रतीची सोम तस्थतुः॥
(सम्पूर्ण) संसार को प्रकाशित अथवा नियन्त्रित करने वाला यह सोम पश्चिम में स्थित होता है।[ऋग्वेद 9.66.2]
Som which either illuminate or control the entire universe, is located in the west.
परि धामानि यानि ते त्वं सोमासि विश्वतः। पवमान ऋतुभिः कवे॥
हे सोम देव! आपका तेज सभी ओर व्याप्त है। आप अपने उस तेज से सब ऋतुओं में व्याप्त होकर सुशोभित होते हैं।[ऋग्वेद 9.66.3]
Hey Som Dev! Your majesty is pervaded in all directions. You are glorified by pervading all seasons.
पवस्व जनयन्निषोऽभि विश्वानि वार्या। सखा सखिभ्य ऊतये॥
हे सोम देव! आप सभी के मित्र हैं, इसलिए आप उत्तम धन और अन्न अपने मित्र की रक्षा के लिए प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.66.4]
Hey Som Dev! You are friendly with every one, hence provide best wealth and food grains for the protection of your friend.
तव शुक्रासो अर्चयो दिवस्पृष्ठे वि तन्वते। पवित्रं सोम धामभिः॥
हे सोम देव! आपकी कान्तिमान् किरणें भूमि के पृष्ठ भाग में जल की वृद्धि करती हैं।[ऋग्वेद 9.66.5]
Hey Som Dev! Your brilliant rays increase the quantum of water in the upper layer of the earth.
तवेम सप्त सिन्धवः सोम सिस्रते। तुभ्यं धावन्ति धेनवः॥
हे सोम देव! सातों नदियाँ आपकी आज्ञा से प्रवाहित होती हैं। गौएँ दुग्ध से परिपूर्ण करने के लिए आपके पास आगमन करती हैं।[ऋग्वेद 9.66.6]
Hey Som Dev! Seven river flow due to your order-desire. Cows come to you for fulfilling the need of milk.
प्र सोम याहि धारया सुत इन्द्राय मत्सरः। दधानो अक्षिति श्रवः॥
हे सोम! इन्द्र देव को प्रसन्न करने के लिए आप धारारूप से उनके पास पहुँचे।[ऋग्वेद 9.66.7]
Hey Som! You approached Indr Dev to appease him as a stream.
समु त्वा धीभिरस्वरन् हिन्वतीः सप्त जामयः। विप्रमाजा विवस्वतः॥
हे विद्वान सोम देव ! सप्त-होताओं ने देवगणों की सेवा करने वाले याजकों के यज्ञ में आपकी प्रार्थना की थी।[ऋग्वेद 9.66.8]
Hey enlightened Som Dev! The seven hosts worshiped you in the Yagy by the Ritviz serving the demigods-deities.
मृजन्ति त्वा समग्रुवोऽव्ये जीरावधि ष्वाणि। रेभो यदज्यसे वने॥
हे सोम! भेड़ के बालों से बनी छलनी से शोधित करते समय हम अँगुलियों द्वारा आपको पवित्र करते हैं। शोधित होते हुए आप शब्दनाद करते हुए जल में मिलाए जाते हैं।[ऋग्वेद 9.66.9]
Hey Som! We purify you while filtering you in the sieve made of sheep hair with our fingers. You are mixed with water while purification making sound.
पवमानस्य ते कवे वाजिन्त्सर्गा असृक्षत। अर्वन्तो न श्रवस्यवः॥
हे सोम! शोधित होते समय आपकी धारा द्रुतगामी अश्व के समान वेगवान होती हैं।[ऋग्वेद 9.66.10]
Hey Som! While purifying your stream is accelerated like a fast moving horse.
अच्छा कोशं मधुश्र्चुतमसृग्रं वारे अव्यये। अवावसन्त धीतयः॥
हम मधुर सोमरस को कलश में छानते हैं। हमारी अँगुलियाँ बार-बार उसे शोधित करती हैं।[ऋग्वेद 9.66.11]
We filter sweet Somras in the Kalash. Our fingers purify it again & again.
अच्छा समुद्रमिन्दवोऽस्तं गावो न धेनवः। अग्मन्नृतस्य योनिमा॥
कलश में छाना गया सोमरस यज्ञस्थल में उसी प्रकार पाया जाता है, जिस प्रकार दुधारू गौएँ अपने गौशाला में जाती हैं।[ऋग्वेद 9.66.12]
Somras filtered in the Kalash is found at the Yagy site like the milch cows which move to the cow shed.
प्र ण इन्दो महे रण आपो अर्षन्ति सिन्धवः। यद्गोभिर्वासयिष्यसे॥
हे सोम! हमारे महान् यज्ञ में आपको रस में मिलाने के लिए नदियों का जल लाया जाता है। फिर उसमें गौ-दुग्ध को मिलाया जाता है।[ऋग्वेद 9.66.13]
Hey Som! River water is brought in our great Yagy to mix with you followed by mixing cow's milk.
अस्य ते सख्ये वयमियक्षन्तस्त्वोतयः। इन्दो सखित्वमुश्मसि॥
हे सोम देव! हम आपके मित्रता को प्राप्त करने वाले कार्य में लगकर आपके रक्षात्मक- साधनों और मित्रभाव की कामना करते हैं।[ऋग्वेद 9.66.14]
Hey Som Dev! We make endeavours to attain your friendship; protection means and friendly gestures.
आ पवस्व गविष्टये महे सोम नृचक्षसे। एन्द्रस्य जठरे विश॥
हे सोम! आप गौवों का रक्षण करने वाले हैं। इन्द्र देव के लिए प्रवाहित होकर आप उनके उदर में प्रवेश करें।[ऋग्वेद 9.66.15]
Hey Som! You protect the cows. Flow into the stomach of Indr Dev.(04.08.2024)
महाँ असि सोम ज्येष्ठ उग्राणामिन्द ओजिष्ठः। युध्वा सञ्छश्वज्जिगेथ॥
हे सोम देव! आप शत्रुओं पर सदैव विजय प्राप्त करने वाले व वीरों में श्रेष्ठ और महान हैं।[ऋग्वेद 9.66.16]
Hey Som Dev! You are a great excellent warrior who attain victory over the enemies.
य उग्रेभ्यश्चिदोजीयाञ्छरेभ्यश्चिञ्छूरतरः। भूरिदाभ्यश्चिन्मंहीयान्॥
हे सोम देव! बलवानों में अत्यधिक बलवान, वीरों में परम वीर और दानियों में अधिक दान देने वाला है।[ऋग्वेद 9.66.17]
Hey Som Dev! You are bravest amongst the brave, most courageous amongest the courageous and amongst the donor one who donate the most.
त्वं सोम सूर एषस्तोकस्य साता तनूनाम्। वृणीमहे सख्याय वृणीमहे युज्याय॥
हे अन्न देने वाले सोम देव! आप पुत्र-पौत्रों को देने वाले हैं, इसलिए मित्रता की कामना करते हुए हम आपका वरण करते हैं।[ऋग्वेद 9.66.18]
Hey food grains granting Som Dev! You award sons & grandsons, hence we wish to have friendship with you accepting you side by side.
अग्र आयूंषि पवस आ सुवोर्जमिषं च नः। आरे बाधस्व दुच्छुनाम्॥
हे अग्नि देव! आप दीर्घायु प्रदान करने वाले हमें अन्न और बल से परिपूर्ण करें। श्वानवृत्ति वाले शत्रुओं को आप हमसे दूर करें।[ऋग्वेद 9.66.19]
Hey Agni Dev! You award us long age, food grains and strength. Keep the enemies of dog's mentality away from us.
अग्निर्ऋषिः पवमानः पाञ्चजन्यः पुरोहितः। तमीमहे महागयम्॥
पञ्चजनों का हित चाहने वाले और सब कुछ देखने वाले अग्नि देव जिन्हें ऋत्विजों ने यज्ञ के लिए सबसे पहले स्थापित किया है, हम उन अग्नि देव की स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 9.66.20]
Agni Dev who look at every thing, wish welfare of Panch Jan. Ritviz established him first for the Yagy. We worship Agni Dev.
अग्ने पवस्व स्वपा अस्मे वर्चः सुवीर्यम्। दधद्रयिं मयि पोषम्॥
हे अग्नि देव! आप श्रेष्ठ कर्म को करने की प्रेरणा देने वाले हैं। आप हमें तेज और पराक्रम से युक्त बल प्रदान करें और हमें धन और अन्न से परिपूर्ण करें।[ऋग्वेद 9.66.21]
Hey Agni Dev! You inspire us of excellent deeds. Grant us might, majesty and grant us sufficient wealth and food grains.
पवमानो अति स्त्रिधोऽभ्यर्षति सुष्टुतिम्। सूरो न विश्वदर्शतः॥
सूर्य देव के समान सबको देखने वाले सोम देव शत्रुओं को लाँघकर दूर जाते हैं। वह प्रार्थनाओं द्वारा शोभित होते हैं।[ऋग्वेद 9.66.22]
Som Dev watches every one like Sury Dev and crosses the enemies while moving away. Let him be glorified with our prayers-Stuties.
स मर्मृजान आयुभिः प्रयस्वान्प्रयसे हितः। इन्दुरत्यो विचक्षणः॥
तेजयुक्त और शोधित सोमरस देवगणों के निकट जाने की इच्छा से यज्ञ में अर्पित किया जाता है।[ऋग्वेद 9.66.23]
Majestic and sanctified Somras is offered in the Yagy with the desire of reaching the demigods-deities.
पवमान ऋतं बृहच्छुक्रं ज्योतिरजीजनत्। कृष्णा तमांसि जङ्घनत्॥
पवित्र करने वाला सोमरस अपने तेजयुक्त प्रकाश को प्रकट करता और अपने प्रकाश से अन्धकार को विनष्ट करता है।[ऋग्वेद 9.66.24]
Sanctifying Somras illuminate with its light eliminating darkness.
पवमानस्य जङघ्नतो हरेश्चन्द्रा असृक्षत। जीरा अजिरशोचिषः॥
अन्धकार का नाश करने वाला हरिताभ सोम क्षरणशील है। उसकी आह्लादकारी धारा तीव्रगति से प्रवाहित होती हैं।[ऋग्वेद 9.66.25]
Greenish Somras eliminating darkness erodes. Its gladdening stream moves fast.
पवमानो रथीतमः शुभ्रेभिः शुभ्रशस्तमः। हरिश्चन्द्रो मरुद्गणः॥
हरिताभ सोम मरुद्गणों की सहायता से पुष्ट होता हुआ सबको हर्षित करता है।[ऋग्वेद 9.66.26]
Greenish Som nourishes with the help of Marud Gan and gladdens every one.
पवमानो व्यश्नवद्रश्मिभिर्वाजसातमः। दधत्स्तोत्रे सुवीर्यम्॥
हे सोम देव! विभिन्न प्रकार के अन्न और सामर्थ्य प्रदान करने वाले आप अपने स्तोताओं को श्रेष्ठ पुत्र प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 9.66.27]
Hey Som Dev! You are capable of granting all sorts of food grains. Grant excellent son to your Stotas.
प्र सुवान इन्दुरक्षाः पवित्रमत्यव्ययम्। पुनान इन्दुरिन्द्रमा॥
अभिषुत हुआ सोम भेड़ के बालों से बनी छलनी द्वारा शोधित होकर इन्द्र देव की ओर गमन करता है।[ऋग्वेद 9.66.28]
Extracted Somras filtered through the sieve made of sheep hair moves towards Indr Dev.
एष सोमो अधि त्वचि गवां क्रीळत्यद्रिभिः। इन्द्रं मदाय जोहुवत्॥
भूमि के पृष्ठ भाग पर पत्थरों द्वारा कूटा जाता सोम प्रसन्न होता हुआ इन्द्र देव का आवाहन करता है।[ऋग्वेद 9.66.29]
Som invoke Indr Dev happily, while its crushed with stones over the ground.
यस्य ते द्युम्नवत्पयः पवमानाभृतं दिवः। तेन नो मृळ जीवसे॥
हे सोम! आपका दिव्य रस देवगणों के लोक में चारों ओर व्याप्त है। उस रस द्वारा आप हमें दीर्घायु प्रदान करते हुए हमें सुखी बनाएँ।[ऋग्वेद 9.66.30]
Hey Som! Your divine sap-juice pervades the abode of demigods-deities in all directions. Grant that sap to us along with long life and comforts.(05.08.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (67) :: ऋषि :- भरद्वाज, कश्यप, अत्रि, विश्वामित्र, जगदग्नि, वशिष्ठ; देवता :- पवमान, सोम, अग्नि, सविता, विश्वेदेवा; छन्द :- गायत्री, अनुष्टुप्, उष्णिक्।
त्वं सोमासि धारयुर्मन्द्र ओजिष्ठो अध्वरे। पवस्व मंहयद्रयिः॥
हे धनदाता सोम! इस यज्ञ में आप अपनी धाराओं को ऐश्वर्य से युक्त करें। आप शोधित होकर कलश में प्रवेश करें।[ऋग्वेद 9.67.1]
Hey wealth granting Som! Fill your streams with grandeur in this Yagy. On being purified-sanctified enter the Kalash.
त्वं सुतो नृमादनो दधन्वान्मत्सरिन्तमः। इन्द्राय सूरिरन्धसा॥
हे सोम! आप याजकों को धन और अन्न प्रदान करने वाले हैं। आपका रस उनको प्रसन्न करता है। इन्द्र देव को भी आप आनन्दयुक्त अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.67.2]
Hey Som! you grant wealth & food grains to the Ritviz. You sap-juice gladden them. Grant pleasing food grains to Indr Dev, too.
त्वं सुष्वाणो अद्रिभिरभ्यर्ष कनिक्रदत्। द्युमन्तं शुष्ममुत्तमम्॥
हे सोम! पत्थरों से कूटकर निकाला गया आपका रस हमें पौष्टिक अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.67.3]
Hey Som! Let your sap obtained by crushing with stones provide us with nourishing food grains.
इन्दुर्हिन्वानो अर्षति तिरो वाराण्यव्यया। हरिर्वाजमचिक्रदत्॥
छलनी द्वारा नीचे की ओर प्रवाहित किया हुआ हरिताभ सोमरस शब्दनाद करता हुआ कलश में एकत्रित होता है।[ऋग्वेद 9.67.4]
Greenish Somras filtered in the sieve flowing down ward & entering into the Kalash make loud sound.
इन्दो व्यव्यमर्षसि वि श्रवांसि वि सौभगा। वि वाजान्त्सोम गोमतः॥
हे सोम! आप छलनी द्वारा शोधित किए गए हैं। गौवों से युक्त बल और हविष्यान्न ग्रहण करते हुए आप अनेक प्रकार का सौभाग्य प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 9.67.5]
Hey Som! You attain good luck on being filtered with sieve attain strength from the cows and accept offerings.
आ न इन्दो शतग्विनं रयिं गोमन्तमश्विनम्। भरा सोम सहस्त्रिणम्॥
हे सोम देव! आप हमें सैकड़ों गौवों और अश्वों से युक्त हजारों प्रकार का धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.67.6]
Hey Som Dev! Grant us hundred of cows & horses along with thousands of kinds of wealth.
पवमानास इन्दवस्तिरः पवित्रमाशवः। इन्द्रं यामेभिराशत॥
द्रुतगामी सोमरस छलनी द्वारा शोधित होकर इन्द्र देव को प्राप्त होता है।[ऋग्वेद 9.67.7]
Fast moving Somras filtered in a sieve is obtained by Indr Dev.
ककुहः सोम्यो रस इन्दुरिन्द्राय पूर्व्यः। आयुः पवत आयवे॥
इन्द्र देव के लिए गमन करने वाला सोमरस सोम नामक वनस्पति से निकाला गया है।[ऋग्वेद 9.67.8]
Somras reaching Indr Dev is obtained from the herb named Som.
हिन्वन्ति सूरमुस्त्रयः पवमानं मधुश्चतम्। अभि गिरा समस्वरन्॥
अँगुलियाँ मधुर रस प्रदान करने वाले सोम को विस्तृत करती हैं। याजकगण उस समय सोमरस के लिए प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 9.67.9]
Fingers spread Som granting sweet sap. Ritviz worship Somras at that moment.
अविता नो अजाश्वः पूषा यामनियामनि। आ भक्षत्कन्यासु नः॥
अज जिनका वाहन है, ऐसे पूषादेव प्रत्येक पवित्र स्थान पर हमारा संरक्षण करें। आप हमें मनोवांछित सुलक्षणी कन्याएँ प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.67.10]
सुलक्षण :: सद्गुण, लोकप्रियता; fortunate, lucky, auspicious omens, good characterises.
Let Pusha Dev who's vehicle is a goat, grant us protection at a pious place. Grant us beautiful daughters-girls with desirable characterises.
अयं सोमः कपर्दिने घृतं न पवते मधु। आ भक्षत्कन्यासु नः॥
मुकुटधारी पूषादेव के लिए यह सोम घृत के समान मधुर रस प्रदान करता है। वह हमें श्रेष्ठ कन्याएँ प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.67.11]
Som provides sweet sap like the Ghee to crowned Pusha Dev. Let him grant us excellent daughters-girls.
अयं त आघृणे सुतो घृतं न पवते शुचि। आ भक्षत्कन्यासु नः॥
हे पूषा देव! शुद्ध घृत के सदृश निष्पन्न यह सोम आपके लिए प्रवाहित होता है और हमें श्रेष्ठ कन्याएँ प्रदान करता है।[ऋग्वेद 9.67.12]
Hey Push Dev! This Som pure like Ghee flows towards you and grant us excellent daughters.
वाचो जन्तुः कवीनां पवस्व सोम धारया। देवेषु रत्नधा असि॥
हे सोम! देवगणों को रत्न और धन से परिपूर्ण करने वाले आप हमें धारारूप में अपना मधुर रस प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.67.13]
Hey Som! You grant jewels and wealth to the demigods-deities. Provide us your sweet sap in flowing current.
आ कलशेषु धावति श्येनो वर्म वि गाहते। अभि द्रोणा कनिक्रदत्॥
शब्दनाद करता हुआ सोमरस उसी प्रकार कलश में प्रवेश करता है, जिस प्रकार बाज पक्षी अपने घोंसले में प्रवेश करता है।[ऋग्वेद 9.67.14]
Somras enters Kalash making loud sound like the falcon entering its nest.
परि प्र सोम ते रसोऽसर्जि कलशे सुतः। श्येनो न तक्तो अर्षति॥
हे सोम! आपका रस बाज पक्षी के सदृश सभी ओर गमनशील है। यह चमस पात्रों में वृद्धि को प्राप्त होता है।[ऋग्वेद 9.67.15]
Hey Som! Your sap moves like the falcon. Its increased in the Chamas-wooden vessels.
पवस्व सोम मन्दयन्निन्द्राय मधुमत्तमः॥
हे सोमदेव! आप इन्द्र देव को प्रसन्न करने के लिए मधुर रस प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 9.67.16]
Hey Som Dev! You grant sweet juice to Indr Dev for pleasing him.(06.08.2024)
असृग्रन् देववीतये वाजयन्तो रथाइव॥
याजक निष्पन्न और अन्न युक्त सोमरस को देवगणों के लिए अर्पित करते हैं। रथ के सदृश यह सोम शत्रुओं के धनों को भी जीत लेता है।[ऋग्वेद 9.67.17]
Ritviz offer the purified Somras along with food grains to the demigods-deities. Som win the wealth of the enemy like a charoite.
ते सुतासो मदिन्तमाः शुक्रा वायुमसृक्षत॥
वायु के सदृश शब्दनाद करने वाला सोमरस अत्यधिक तेजयुक्त और हर्ष प्रदान करने वाला है।[ऋग्वेद 9.67.18]
Majestic Somras gladdens and make loud sound like the air.
ग्राव्णा तुन्नो अभिष्ठतः पवित्रं सोम गच्छसि। दधत्स्तोत्रे सुवीर्यम्॥
हे सोम! पाषाणों द्वारा कूटकर निकाला गया आपका रस पवित्र होने के लिए प्रवाहित होता है। स्तुति करने वालों को वह बलवान् बनाता है।[ऋग्वेद 9.67.19]
Hey Som! Somras extracted by crushing with stones flow to be cleaned. It makes the worshiper.
एष तुन्नो अभिष्टुतः पवित्रमति गाहते। रक्षोहा वारमव्ययम्॥
राक्षसों का नाश करने वाला यह अविनाशी सोमरस छलनी में छाना जाता है।[ऋग्वेद 9.67.20]
Destroyer of demons immortal Somras is filtered in the sieve.
यदन्ति यच दूरके भयं विन्दति मामिह। पवमान वि तज्जहि॥
हे सोमदेव! जो भय हमारे निकट या हमसे दूर है और जो यहाँ व्याप्त है, आप उस भय का नाश करें।[ऋग्वेद 9.67.21]
Hey Som Dev! Vanish the fear far or near or that pervades the surroundings.
पवमानः सो अद्य नः पवित्रेण विचर्षणिः। यः पोता स पुनातु नः॥
सबको देखने वाला सोम प्रवाहित होता है। शोधित होते हुए यह हमें भी पवित्र बनाए।[ऋग्वेद 9.67.22]
Flowing Somras watches everyone. Let it make us pious-virtuous while being sanctified.
यत्ते पवित्रमर्चिष्यग्ने विततमन्तरा। ब्रह्म तेन पुनीहि नः॥
हे अग्निदेव ! आपके अन्दर जो पवित्र करने वाला तेज है, आप उससे हमारे ज्ञान की वृद्धि करें।[ऋग्वेद 9.67.23]
यत्ते पवित्रमर्चिवदग्ने तेन पुनीहि नः। ब्रह्मसवैः पुनीहि नः॥
हे अग्नि देव! जो तेज आपको पवित्र करने वाला है, उस स्तोत्र रूपी तेज के द्वारा आप हमें पवित्र बनाएँ।[ऋग्वेद 9.67.24]
Hey Agni Dev! Make us pious-virtuous with the magnificence which makes you pious.
उभाभ्यां देव सवितः पवित्रेण सवेन च। मां पुनीहि विश्वतः॥
तेजस्वी सविता देव का तेज शोधित और पवित्र करने वाला है। उसके द्वारा आप हमें पवित्रता प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.67.25]
Radiance of magnificent Savita Dev is sanctifying. You should grant us piousity with that.
त्रिभिष्टं देव सवितर्वर्षिष्ठैः सोम धामभिः। अग्ने दक्षैः पुनीहि नः॥
हे सविता देव, अग्नि देव और सोम देव! आप तीनों अपने तेजों के द्वारा हमें पवित्र करें।[ऋग्वेद 9.67.26]
Hey Savita Dev, Agni Dev and Som Dev! Make us pious with your magnificence.
पुनन्तु मां देवजनाः पुनन्तु वसवो धिया।
विश्वे देवाः पुनीत मा जातवेदः पुनीहि मा॥
इन्द्र देव, वसु, अग्नि देव और अन्य सभी देवता हमें पवित्रता प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.67.27]
Let Indr Dev, Vasu Gan, Agni Dev and other demigods-deities grant us piousity.
प्र प्यायस्व प्र स्यन्दस्व सोम विश्वेभिरंशुभिः। देवेभ्य उत्तमं हविः॥
हे सोम देव! हमारी वृद्धि करने के लिए आप हमें सभी प्रकार के वो हविष्यान्न प्रदान करें, जो देवताओं को प्रदान किए जाते हैं।[ऋग्वेद 9.67.28]
Hey Som Dev! Grant us all sorts food grains offered to demigods-deities for our growth.
उप प्रियं पनिप्नतं युवानमाहुतीवृधम्। अगन्म बिभ्रतो नमः॥
हे अग्नि देव! आप आहुतियों के द्वारा वृद्धि को प्राप्त होते हैं। हम नमस्कार करते हुए उनके समीप जाते हैं।[ऋग्वेद 9.67.29]
Hey Agni Dev! You flourish by virtue of offerings. We come close to you making salutations.
अलाय्यस्य परशुर्ननाश तमा पवस्व देव सोम। आखुं चिदेव देव सोम॥
हे सोम! शत्रुओं के सभी शस्त्र नष्ट हो जाएँ। आप अपना रस प्रदान करते हुए हमारे शत्रुओं का नाश करें।[ऋग्वेद 9.67.30]
Hey Som! Let all weapons of the enemy vanish. Destroy the enemies while granting us your sap-juice.
यः पावमानीरध्येत्यृषिभिः संभृतं रसम्। सर्वं स पूतमश्नाति स्वदितं मातरिश्वना॥
ऋषियों द्वारा संगृहीत पवित्र करने वाले वेद के सारभूत सूक्तों का पाठ करने वाले याजक यज्ञ के प्रभाव से वायुदेव द्वारा शुद्ध किए गए अन्न का सेवन कर पवित्रता को प्राप्त होते हैं।[ऋग्वेद 9.67.31]
The Ritviz attain piousity by utilising the food grains purified by Vayu Dev by virtue of the recitation of Sukt in the form of extracts collected by the Rishis.
पावमानीर्यो अध्येत्यृषिभिः संभृतं रसम्। तस्मै सरस्वती दुहे क्षीरं सर्पिर्मधूदकम्॥
जो याजक ऋषियों द्वारा प्रणीत वेद मन्त्रों का अध्ययन करता है, उसे दूध, घृत, मधु आदि तत्वों को देवी सरस्वती स्वयं प्रदान करती है।[ऋग्वेद 9.67.32]
The Ritviz who learn the Mantrs composed by the Rishis is granted milk, ghee, honey etc. by Devi Saraswati.(07.08.024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (68) :: ऋषि :- वत्सपि, भालन्दन; देवता :-पवमान, सोम; छन्द :- जगती, त्रिष्टुप।
प्र देवमच्छा मधुमन्त इन्दवेऽसिष्यदन्त गाव आ न धेनवः।
बर्हिषदो वचनावन्त ऊधभिः परिस्रुतमुस्त्रिया निर्णिजं धिरे॥
जिस प्रकार दूध देने वाली गौएँ अपने बछड़ों के लिए दूध प्रवाहित करती हैं, उसी प्रकार मधुर सोमरस देवताओं के लिए प्रवाहित होकर पात्र में गमन करता है। यज्ञ स्थल पर एकत्रित गाएँ शब्द करती हुई इन्द्र देव के लिए प्रकट करने वाले भाग में परिश्रुत सारतत्व (दुग्ध) को धारण करती हैं।[ऋग्वेद 9.68.1]
परिश्रुत :: लोकप्रिय, यश; popular, name-fame, glory.
The cows flow their milk their calf, sweet Somras flow into the vessel for the demigods-deities. Cows gathered at the Yagy site making sound and produce milk for Indr Dev.
स रोरुवदभि पूर्वा अचिक्रददुपारुहः श्रथयन्त्स्वादते हरिः।
तिरः पवित्रं परियन्नुरु ज्रयो नि शर्याणि दद्यते देव आ वरम्॥
आनन्द प्रदान करने वाला हरिताभ सोम प्रार्थनाओं का श्रवण करते हुए शत्रुओं का नाश करता है और ध्वनि करता हुआ दिव्यता और पवित्रता को धारण करता है।[ऋग्वेद 9.68.2]
Gladdening greenish Som listen-attend to the prayers, destroys the enemy, make sound and attain divinity & piousity.
वि यो ममे यम्या संयती मदः साकंवृधा पयसा पिन्वदक्षिता।
मही अपारे रजसी विवेविददभिव्रजन्नक्षितं पाज अ ददे॥
कभी क्षीण न होने वाला, सबको प्रसन्न करने वाला, द्युलोक और पृथ्वी लोक का ज्ञाता सोम बल को धारण करते हुए प्रवाहित होता है।[ऋग्वेद 9.68.3]
Never eroding, gladdening all, aware of the heavens and the earth; Som flow acquiring strength.
स मातरा विचरन्वाजयन्नपः प्र मेधिरः स्वधया पिन्वते पदम्।
अंशुर्यवेन पिपिशे यतो नृभिः सं जामिभिर्नसते रक्षते शिरः॥
माता-पिता रूपी पृथ्वी लोक और द्यु लोक में भ्रमण करने और जलों को प्रेरित करने वाला सोम अपने बल की वृद्धि करता हैं। जौ आदि अन्नों से परिपुष्ट होता है। यह सोम याजकों के साथ अँगुलियों के सदृश परस्पर मिलकर रहते हुए उन्हें संरक्षण प्रदान करता है।[ऋग्वेद 9.68.4]
Som increases its strength roaming in the earth & heavens like its mother and father. It nourish by virtue of barley and other food grains. It grants protection to the Ritviz accompanying like the ten fingers.
सं दक्षेण मनसा जायते कविर्ऋतस्य गर्भो निहितो यमा परः।
यूना ह सन्ता प्रथमं वि जज्ञतुर्गहा हितं जनिम नेममुद्यतम्॥
यज्ञ का गर्भरूप सोम उच्चस्थल पर निवास करता है और बलशाली मन में अच्छी प्रकार स्थित हुआ गुहृय स्थल पर रहता हुआ सूर्योदय काल में प्रकट होता है।[ऋग्वेद 9.68.5]
गुहृय स्थल :: गुप्त स्थान; secret place, cavity site.
Like the womb of the Yagy Som acquire a high place-altitude, reside in the mighty innerself at a secret place and appear at the time of Sun rise.
मन्द्रस्य रुपं विविदुर्मनीषिणः श्येनो यदन्धो अभरत्परावतः।
तं मर्जयन्त सुवृधं नदीष्वाँ उशन्तमंशं परियन्तमृग्मियम्॥
नदियों के जल में मिलकर श्रेष्ठ विधि से परिष्कृत और विस्तृत होकर देवताओं के निकट जाने की इच्छा से यह सोम उनकी ओर गमन करता है। बाज पक्षी द्वारा दूरस्थ स्थान से लाए गए इस सोमरूपी अन्न के स्वरूप को मेधावीजन भली प्रकार से जानते हैं।[ऋग्वेद 9.68.6]
Som mixes with the river water sanctified with excellent procedures flow to the demigods-deities in large quantum. The intelligent recognise this Som as a form of food grain brought from distant places by falcon.
त्वां मृजन्ति दश योषणः सुतं सोम ऋषिभिर्मतिभिर्धातिभिर्हितम्।
अव्यो वारेभिरुत देवहूतिभिर्नृभिर्यतो वाजमा दर्षि सातये॥
ऋषियों ने विवेकपूर्वक इस सोमरस को यज्ञस्थल में स्थापित किया। हमारी दसों अँगुलियाँ इस सोमरस को निचोड़ती हैं। देव स्तुति करने वाले ऋत्विजों ने इसे भेड़ के बालों की छलनी से छानकर कलश में स्थित किया। यह सोम दान के लिए अन्न प्रदान करता है।[ऋग्वेद 9.68.7]
Rishis prudently establish Somras at the Yagy site. Ten fingers squeeze Somras. Worshipers of demigods-deities filter it with sheep hair and fill in the Kalash. Som grant food grains for donations.
परिप्रयन्तं वय्यं सुषंसदं सोमं मनीषा अभ्यनूषत स्तुभः।
यो धारया मधुमाँ ऊर्मिणा दिव इयर्ति वाचं रयिषाळमर्त्यः॥
शत्रुओं के धनों को जीतने वाले इस सोमरस की याजकगण प्रार्थना करते हैं। यज्ञ में पात्रों में स्थित होने वाला यह सोमरस देवगणों की इच्छा करने वाला, बल के साथ धारारूप में द्युलोक से आता है।[ऋग्वेद 9.68.8]
The Ritviz worship Somras which win the wealth of the enemies. Filled in the vessels of the Yagy, Somras is desirous of the demigods-deities & flow into the heavens as mighty stream.
अयं दिव इयर्ति विश्वमा रजः सोमः पुनानः कलशेषु सीदति।
अद्भिर्गोभिर्मुज्यते अद्रिभिः सुतः पुनान इन्दुर्वरिवो विदप्रियम्॥
यज्ञस्थलों पर कलशों में विराजमान होने वाला परिष्कृत सोमरस द्युलोक से पृथ्वी लोक पर जल की वर्षा करता है। पत्थरों द्वारा कूटकर तैयार किया गया सोमरस शुद्ध होने पर याजकों को धन प्रदान करता है।[ऋग्वेद 9.68.9]
Sanctified Somras kept in the Kalash at the Yagy site shower rains over the heavens and the earth. Prepared by crushing with stones, Somras grants wealth to the Ritviz on being purified.
एवा नःसोम परिषिच्यमानो वयो दधचित्रतमं पवस्व।
अद्वेषे द्यावापृथिवी हुवेम देवा धत्त रयिमस्मे सुवीरम्॥
हे सोम! जल और दुग्ध से मिश्रित हुए आप विविध प्रकार का अन्न हमें प्रदान करें। हम द्युलोक और पृथ्वीलोक का आवाहन करते हैं। ये हमें पराक्रमी पुत्र-पौत्र और श्रेष्ठ धनों से युक्त करे।[ऋग्वेद 9.68.10]
Hey Som Dev! Mixed with water and milk grant us various kinds of food grains. We invoke the heavens and earth to grant us mighty sons, grandsons and wealth.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (69) :: ऋषि :- हिरण्यस्तूप, आंगिरस; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- जगति, त्रिष्टुप्।
इषुर्न धन्वन् प्रति धीयते मतिर्वत्सो न मातुरुप सर्च्यूधनि।
उरुधारेव दुहे अग्र आयत्यस्य व्रतेष्वपि सोम इष्यते॥
जिस प्रकार धनुष पर बाण चढ़ाया जाता है अथवा माता की गोद में जिस प्रकार पुत्र बैठता है, उसी प्रकार हम इन्द्र देव की प्रार्थना करते हैं, जिस प्रकार दूध देने वाली गौवें सबको अपना दुग्ध प्रदान करती है, उसी प्रकार हम इन्द्र देव के लिए सोमरस अर्पित करते हैं।[ऋग्वेद 9.69.1]
The way an arrow is loaded over the bow, son sits in the lap of mother, similarly we pray to Indr Dev. The way the milch cows grant their milk similarly we offer Somras to Indr Dev.
उपो मतिः पृच्यते सिच्यतेमधु मन्द्राजनी चोदते अन्तरासनि।
पवमानः संतनिः प्रघ्नतामिव मधुमान्द्रप्सः परि वारमर्षति॥
अत्यन्त आनन्द प्रदान करने वाला मधुर सोमरस इन्द्र देव के लिए सिंचित किया गया है। ऋत्विजों द्वारा निकाला गया यह सोमरस शत्रु पर चलाए जाने वाले बाणों के सदृश अनेकानेक बार शोधित किया जाता है।[ऋग्वेद 9.69.2]
Extreme pleasure granting Somras has been extracted for Indr Dev. Somras is extracted by the Ritviz many times like the arrows shot over the enemy.
अव्ये वधूयुः पवते परि त्वचि श्रथ्नीते नप्तीरदितेर्ऋतं यते।
हरिरक्रान् यजतः संयतो मदो नृम्णा शिशानो महिषो न शोभते॥
यह सोमरस वधू की कामना करने वाले के समान अनश्वर त्वचा पर स्त्रवित होता है। अदिति की संतति रूप में यह सोम याजक को यज्ञकर्म करने के लिए प्रेरित करता है। ऋत्विजों को प्रसन्न करने वाला गतिशील सोम शत्रु की सामर्थ्य को अपने बल और तेज से घटाता हुआ वीरों की तरह शोभित होता है।[ऋग्वेद 9.69.3]
स्त्रवित :: चुआया हुआ, बहाया हुआ; secreted.
Somras is secreted over the skin of the person desirous of wife. Like the son of Aditi, Somras inspire the Ritviz to conduct Yagy. Gladdening the Ritviz dynamic Som reduces the capability of the enemy by its strength, majesty and is glorified.(08.08.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (69) :: ऋषि :- हिरण्यस्तूप, आंगिरस; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- जगति, त्रिष्टुप्।
उक्षा मिमाति प्रति यन्ति धेनवो देवस्य देवीरुप यन्ति निष्कृतम्।
अत्यक्रमीदर्जुनं वारमव्ययमत्कं न निक्तं परि सोमो अव्यत॥
जिस प्रकार पवित्र स्थल पर देवगण गमन करते हैं, उसी प्रकार वहाँ शब्दनाद करते हुए उज्ज्वल सोम की दिव्य वाणी द्वारा प्रार्थना की जाती है। वह सोम पवित्र होता हुआ दिव्य गुणों को धारण कर लेता है।[ऋग्वेद 9.69.4]
The holy place where demigods-deities move, bright Som is worshiped there loudly in divine voice. Som while being sanctified acquires divine characterises.
अमृक्तेन रुशता वाससा हरिरमर्त्यो निर्णिजानः परि व्यत।
दिवस्पृष्ठं बर्हणा निर्णिजे कृतोपस्तरणं चम्वोर्नभस्मयम्॥
जल के साथ मिश्रित होने पर यह अविनाशी और हरिताभ सोम पवित्र हो जाता है। उज्ज्वल, शुद्ध और तेजस्विता से युक्त यह सोम सर्वत्र व्याप्त है। द्युलोक के पृष्ठ भाग पर स्थित सूर्य देव को तेज प्रदान करता हुआ यह पृथ्वी लोक और आकाश को भी प्रकाशित करता है।[ऋग्वेद 9.69.5]
On mixing with water immortal greenish Som is sanctified. Majestic, holy, pure-pious Som pervades every where. Present over the surface of heavens it awards brightness to Sury Dev illuminating the earth and sky as well.
सूर्यस्येव रश्मयो द्रावयित्नवो मत्सरासः प्रसुपः साकमीरते।
तन्तुं ततं परि सर्गास आशवो नेन्द्रादृते पवते धाम किं चन॥
इन्द्र देव के अतिरिक्त किसी अन्य को प्राप्त न होने वाली दिव्य सोमरस की धाराएँ सूर्य की किरणों के समान प्रेरणादायी, आनन्दवर्द्धक और शोधित हैं। वह छन्ने से गमन करती हुई व्याप्त होती हैं।[ऋग्वेद 9.69.6]
Streams of divine Somras not available to anyone except Indr Dev; are inspiring, gladdening and sanctified. They move through the filter while pervading.
सिन्धोरिव प्रवणे निम्न आशवो वृषच्युता मदासो गातुमाशत।
शं नो निवेशे द्विपदे चतुष्पदेऽस्मे वाजाः सोम तिष्ठन्तु कृष्टयः॥
नदी के प्रवाह के सदृश इन्द्र देव के निकट जाने की इच्छा करने वाला आनन्द प्रदान करने वाला सोमरस ऋत्विजों द्वारा निकाला गया है। हे सोम देव! आप हम मनुष्यों और हमारे पशुओं को संरक्षित करने वाले हैं। आप हमें धन-धान्य और पुत्र-पौत्रादि प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.69.7]
Gladdening Somras desirous of moving close to Indr Dev is extracted by the Ritviz. Hey Som Dev! You are the protector of our animals along with us. Grant us wealth, food grains, sons & grand sons.
आ नः पवस्व वसुमद्धिरण्यवदश्वावद्गोमद्यवत्सुवीर्यम्।
यूयं हि सोम पितरो मम स्थन दिवो मूर्धानः प्रस्थिता वयस्कृतः॥
हे सोम देव! द्युलोक के ऊँचे शिखरों पर विराजमान आप हमारे पिता हैं, आप अन्नदाता है, इसलिए हमें अश्वों, गौवों, श्रेष्ठ पराक्रम और सुवर्ण आदि से युक्त धन-धान्य प्रदान करे।[ऋग्वेद 9.69.8]
Hey Som Dev! Present over the high cliffs of heavens you are our father granting us food grains. Hence, award us horses, cows, valour, wealth associated with gold and food grains.
एते सोमाः पवमानास इन्द्रं रथाइव प्र ययुः सातिमच्छ।
सुताः पवित्रमति यन्त्यव्यं हित्वी वत्रिं हरितो वृष्टिमच्छ॥
सोमरस शोधित होकर इन्द्र देव की ओर उसी प्रकार जाता है, जिस प्रकार शत्रुओं का धन प्राप्त करने के लिए रथ उनकी ओर गमन करता है। वृद्धावस्था का शमन करने वाले बलों के साथ सुखों की वर्षा करने वाला और कभी नष्ट न होने वाला यह सोमरस शोधित होने के लिए छलनी द्वारा गमन करता है।[ऋग्वेद 9.69.9]
Purified Somras moves to Indr Dev in a the manner, in which charoite moves to get the wealth of the enemy. Immortal Somras reducing old age, shower pleasure-comforts and strength, moves through the sieve for filtration.
इन्दविन्द्राय बृहते पवस्व सुमृळीको अनवद्यो रिशादाः।
भरा चन्द्राणि गृणते वसूनि देवैर्ध्यावापृथिवी प्रावतं नः॥
हे सोम! महान इन्द्र देव के लिए आप रस प्रदान करें। आप उत्तम सुख प्रदायक, अनिन्दनीय और शत्रुनाशक हैं। स्तोताओं को पर्याप्त अन्न प्रदान करें। हे पृथ्वी और द्युलोक! आप हमें धन-ऐश्वर्य से सम्पन्न करें।[ऋग्वेद 9.69.10]
Hey Som! Let great Indr Dev provide your sap-juice to us. You provide excellent comforts, uncondemnable and destroyer of the enemy. Hey earth and heavens! Grant us wealth & grandeur.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (70) :: ऋषि :- रेणु, विश्वामित्र; देवता :-पवमान, सोम; छन्द :- जगति, त्रिष्टुप्।
त्रिरस्मै सप्त धेनवो दुदुहे सत्यामाशिरं पूर्ये व्योमनि।
चत्वार्यन्या भुवनानि निर्णिजे चारूणि चक्रे यदृतैरवर्धत॥
आकाश में बादलों द्वारा वर्षा के सदृश इक्कीस गौएँ सोम को दुग्ध प्रदान करती हैं, तब यज्ञ में प्रवृद्ध हुए सोम चार सुन्दर लोकों का निर्माण करते हैं।[ऋग्वेद 9.70.1]
Twenty one cows provide milk to Som like the rain by the clouds in the sky. Then, Som Dev dedicated to the Yagy create four beautiful abodes.
स भिक्षमाणो अमृतस्य चारुण उभे द्यावा काव्येना वि शश्रथे।
तेजिष्ठा अपो मंहना परि व्यत यदी देवस्य श्रवसा सदो विदुः॥
ऋषिगण जब देवगणों के स्थान को यज्ञ की हवि से युक्त करते हैं, तब जल की कामना करने वालों की प्रार्थनाओं से प्रभावित हुए सोम द्युलोक और पृथ्वीलोक को जलों से परिपूर्ण कर देते हैं।[ऋग्वेद 9.70.2]
When Rishi Gan associate the residence-abode of demigods-deities with the offerings of Yagy, then Som Dev enrich heavens and earth with water answering the prayers of those who wish to have water.
ते अस्य सन्तु केतवोऽमृत्यवोऽदाभ्यासो जनुषी उभे अनु।
येभिर्वृम्णा च देव्या च पुनत आदिद्राजानं मनना अगृभ्णत॥
जिसका कभी विनाश न हो ऐसे सोमरस की किरणें सभी प्राणियों को संरक्षित करती हैं। देवगणों को अन्नादि से युक्त करने वाले राजा सोम की प्रार्थना की जाती है।[ऋग्वेद 9.70.3]
Rays of immortal Somras protect all organism. King Som is worshiped for granting food grains etc. to the demigods-deities.
स मृज्यमानो दशभिः सुकर्मभिः प्र मध्यमासु मातृषु प्रमे सचा।
व्रतानि पानो अमृतस्य चारुण उभे नृचक्षा अनु पश्यते विशौ॥
समस्त लोकों के ज्ञाता इस सोम को दसों अँगुलियों द्वारा शोधित किया जाता है। यज्ञस्थल के मध्य में यह माता के सदृश प्रतिष्ठित होता है। सबको देखने वाला यह सोम सदैव नियमों का पालन करते हुए श्रेष्ठ जल की वर्षा करता है।[ऋग्वेद 9.70.4]
Ten fingers purify Som aware of all abodes. Its established like a mother at the site of Yagy. Looking at everyone, this Som showers best water following all rules-regulation, laws.
स मर्मृजान इन्द्रियाय धायस ओभे अन्ता रोदंसी हर्षते हितः।
वृषा शुष्मेण बाधते वि दुर्मतीरादेदिशानः शर्यहेव शुरुधः॥
शत्रुओं की सेनाओं की हिंसा करने के उद्देश्य से अनेकानेक बार शत्रुओं को आवाहित करने वाला सोम अपने पराक्रम से उनको नष्ट करता है। द्युलोक और पृथ्वी लोक के बीच में स्थित हुआ यह सोम सबके धारक इन्द्र देव के बल की वृद्धि के लिए छलनी द्वारा शोधित होता हुआ अत्यन्त प्रसन्न होता है।[ऋग्वेद 9.70.5]
Som invoke the enemy armies of enemies again and again for destroying them with his might. Present between the heavens and the earth Som boosts the majesty of Indr Dev, who support everyone; being filtered through the sieve.(09.08.2024)
स मातरा न ददृशान उस्त्रियो नानददेति मरुतामिव स्वनः।
जानन्नृतं प्रथमं यत्स्वर्णरं प्रशस्तये कमवृणीत सुक्रतुः॥
जिस प्रकार बछड़ा गौ को देखकर शब्द करता है अथवा मरुद्गण गमन करते हुए शब्द करते हैं, उसी प्रकार शब्द करता हुआ सोम मातृवत् द्युलोक और पृथ्वी लोक के पास जाता है। जल को मनुष्यों का कल्याण करने वाला जानकर यह सोम स्वयं को जल में मिश्रित करता हुआ याजकों को प्राप्त होता है।[ऋग्वेद 9.70.6]
The way calf make sound on seeing the cow or the Marud Gan make sound while moving, Som create such sound when it goes to heavens or earth who are like its mother. For the welfare of humans Som dissolves itself in water having recognised water beneficial to humans.
रुवति भीमो वृषभस्तविष्यया शृङ्गे शिशानो हरिणी विचक्षणः।
आ योनिं सोमः सुकृतं नि षीदति गव्ययी त्वग्भवति निर्णिगव्ययी॥
अपने बल की वृद्धि की इच्छा से बैल दोनों सींगों को तीक्ष्ण करता हुआ गर्जन करता है और यज्ञादि श्रेष्ठ कार्यों में स्थित होता है। इसका माध्यम निश्चितरूप से अविनाशी गौ की त्वचा अथवा पृथ्वी की सतह होती है।[ऋग्वेद 9.70.7]
The bull sharpen its horns with the desire of boosting its power-strength and is establishes in Yagy related excellent jobs. Its medium is certainly the surface of earth or immortal cow's skin.
शुचिः पुनानस्तन्वमरेपसमव्ये हरिर्व्यधाविष्ट सानवि।
जुष्टो मित्राय वरुणाय वायवे त्रिधातु मधु क्रियते सुकर्मभिः॥
शरीर को पवित्र करने वाला निष्पाप, शुद्ध, हरिताभ अविनाशी सोम उच्च होकर छन्नों में स्थित होता है। यह सोमरस याज्ञिकों द्वारा मित्र, वरुण देव, वायुदेव आदि देव गणों के लिए अर्पित किया जाता है।[ऋग्वेद 9.70.8]
Purifier of body, sinless, sanctified, greenish immortal Som acquire high level; establishing itself in the filters. The Yagyik offer this Somras to Mitr, Varun Dev, Vayu Dev and other demigods-deities.
पवस्व सोम देववीतये वृषेन्द्रस्य हार्दि सोमधानमा विश।
पुरा नो बाधाद्दुरिताति पारय क्षेत्रविद्धि दिश आहा विपृच्छते॥
हे बलशाली सोम! देवगणों को अपना रस प्रदान करने वाले इन्द्र देव के लिए आप उनके पात्र में स्थित होते हैं। हमें कष्ट देने वाले पापियों से हमारी रक्षा करें। आप जिस प्रकार पथिकों का मार्गदर्शन करते हैं, उसी प्रकार आप श्रेष्ठ कर्मों के लिए हमारा मार्गदर्शन करें।[ऋग्वेद 9.70.9]
Hey mighty Som! You provide your juice-sap to demigods-deities occupying the vessel of Indr Dev. Protect us from the sinner who harm us. The way you guide the walkers, same way show us the right track for performing excellent jobs.
हितो न सप्तिरभि वाजमर्षेन्द्रस्येन्दो जठरमा पवस्व।
नावा न सिन्धुमति विद्वाञ्छूरो न युध्यन्नव नो निदः स्पः॥
हे सोम! आप कलश में प्रतिष्ठित हों। युद्ध में जाने वाले प्रेरक अश्वों के सदृश आप कलश में गमन करें। इसके पश्चात् आप इन्द्र देव के उदर में जाकर उन्हें तृप्त करें। जिस प्रकार नाविक नौका द्वारा नदी को पार करता है, उसी प्रकार आप दुःखों से हमें पार करें और मेधावी शूरवीर की भाँति युद्ध करते हुए हमारे शत्रुओं का संहार कर हमें सुरक्षित करें।[ऋग्वेद 9.70.10]
Hey Som! Establish in the vessel. Move into the vessel like the horses going to battle field. Thereafter, you enter the stomach of Indr Dev and satisfy him. The way a boatsman cross the river, similarly move us across the pain-sorrow. Like an intelligent warrior destroy our enemies and protect us.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (71) :: ऋषि :- ऋषिभ, विश्वामित्र; देवता :-पवमान, सोम; छन्द :- जगति, त्रिष्टुप्।
आ दक्षिणा सृज्यते शुष्भ्या ३ सदं वेति द्रुहो रक्षसः पाति जागृविः।
हरिरोपशं कृणुते नभस्पय उपस्तिरे चम्वो ३र्ब्रह्म निर्णिजे॥
अपने नियत स्थान पर स्थित बल प्रदान करने वाला सोम जागृत रहने वाले याजकों को दृष्ट असुरों से सुरक्षित करता है। द्युलोक और पृथ्वीलोक के मध्य यह सोम सूर्यदेव को प्रकाशित करता है और आकाश से होने वाली वर्षा में हरितताभ सोम प्रविष्ट होता है। यज्ञ में याजकगण इसकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 9.71.1]
Present at its fixed place, strength granting Som protect the Ritviz from visible demons. Between the heavens and earth Som illuminate Sury Dev and greenish Som enters the rains showers falling from the sky. Ritviz worship it in the Yagy.
प्र कृष्टिहेव शूष एति रोरुवदसुर्यं १ वर्णं नि रिणीते अस्य तम्।
जहाति वव्रिं पितुरेति निष्कृतमुपप्रुतं कृणुते निर्णिजं तना॥
शत्रुओं का नाश करने वाले वीर के समान शब्दनाद करता हुआ सोम अपने असुर नाशक बल को प्रकट करता है एवं वृद्धावस्था को दूर कर युवावस्था प्रदान करता है। यह द्रवरूप में छन्ने द्वारा छनकर और शोधित होकर पिता के सदृश प्रकट होता है।[ऋग्वेद 9.71.2]
Som produces sound like the warrior who destroy the enemies & demonstrate its strength for killing the demons. It remove the old age granting youth. In fluid state its filtered and appears like a father on being sanctified.
अद्रिभिः सुतः पवते गभस्त्योर्वृषायते नभसा वेपते मती।
स मोदते नसते साधते गिरा नेनिक्ते अप्सु यजते परीमणि॥
हाथों द्वारा पत्थरों से कूटकर निकाला गया सोमरस यज्ञपात्र में प्रवेश करता है। यह बल से युक्त और प्रार्थनाओं से प्रसन्न होता हुआ आकाश में सर्वत्र गमन करता है। जल में मिश्रित शोधित सोमरस पात्र में एकत्रित होकर याजकों की मनोकामनाओं को पूर्ण करते हुए यज्ञ में प्रतिष्ठित होता है।[ऋग्वेद 9.71.3]
Extracted by crushing with hands Somras enters the Yagy vessel. Possessed with strength, gladdened with prayers it move all over the sky. Purified Somras mixed in water accomplish the wishes of Ritviz & is established in the Yagy.
परि द्युक्षं सहसः पर्वतावृधं मध्वः सिञ्चन्ति हर्म्यस्य सक्षणिम्।
आ यस्मिन्गावः सुहुताद ऊधनि मूर्धग्रेणन्त्यग्रियं वरीमभिः॥
यह मधुर और बलशाली सोम उच्च शिखर में रहने वाले शत्रुओं के नगरों को नष्ट करने वाले इन्द्र देव को तृप्त करता है। हविष्यान्न का भक्षण करने वाली गौवों के दुग्ध में मिश्रित होकर इन्द्र देव को प्राप्त होता है।[ऋग्वेद 9.71.4]
Sweet and mighty Som satisfies Indr Dev who destroys the forts-cities of enemies living over the high cliffs. It is mixed with the milk of the cows who eat the offerings and reaches Indr Dev.
समी रथं न भुरिजोरहेषत दश स्वसारो अदितेरुपस्थ आ।
जिगादुप ज्रयति गोरपीच्यं पदं यदस्य मतुथा अजीजनन्॥
जिस प्रकार दोनों भुजाएँ रथ को चलाने के लिए प्रेरित करती हैं, उसी प्रकार दसों अँगुलियाँ सोम को यज्ञस्थल की ओर यज्ञकर्म के लिए प्रेरित करती हैं। याजकों की प्रार्थनाओं से प्रकट हुआ यह सोमरस गौ के दुग्ध में मिलकर पात्र में एकत्रित होता है।[ऋग्वेद 9.71.5]
The way both arms inspire the charoite to move, similarly ten fingers inspire Som to move to Yagy site and perform Yagy Karm. Somras appears by virtue of the prayers of Ritviz mixes with cow milk and collected in a pot.
श्येनो न योनिं सदनं धिया कृतं हिरण्ययमासदं देव एषति।
ए रिणन्ति बर्हिषि प्रियं गिराश्वो न देवाँ अप्येति यज्ञियः॥
बाज पक्षी के अपने निवास में जाने के सदृश यह तेजस्वी सोम याजक द्वारा प्रार्थना किए जाने पर सुवर्ण के आसन पर विराजमान होता है। जिस प्रकार अश्व देवताओं के निकट जाता है, उसी प्रकार सोम यज्ञ स्थल की ओर जाता है। याजक इसकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 9.71.6]
Like the falcon who move to its nest, majestic Som occupy the golden throne due to the prayers of Ritviz. The way horse goes close to the demigods-deities, similarly Som move to the Yagy site. The Ritviz worship it.
परा व्यक्तो अरुषो दिवः कविर्वृषा त्रिपृष्ठो अनविष्ट गा अभि।
सहस्रणीतिर्यतिः परायती रेभो न पूर्वीरुषसो वि राजति॥
गौ-दुग्ध अथवा वाणी से संयुक्त हुआ, तीनों लोकों में व्याप्त तेजस्वी, मेधावी और बलयुक्त सोम सूर्यदेव के सदृश आकाश में दूर तक स्पष्टरूप से दिखाई देता है। हजारों नेत्रों से युक्त, यज्ञपात्र में एकत्रित होने वाला, प्रार्थनाओं के सदृश शब्दनाद करता हुआ यह सोमरस उषाकाल के पूर्व भी प्रकाशित होता है।[ऋग्वेद 9.71.7]
Majestic, intelligent and mighty Som mixed in cow's milk or associated with speech, pervaded in the three abodes, appears like Sury Dev in the sky and is clearly visible from a distant place. Possessing thousands of eyes, collectible in the Yagy vessel, making sound like prayers Somras appears prior to Dawn-Usha Kal.
त्वेषं रूपं कृणुते वर्णो अस्य स यत्राशयत्समृता सेधति त्रिधः।
अप्सा याति स्वधया दैव्यं जनं सं सुष्टुती नसते सं गोअग्रया॥
शत्रुओं का विनाश करने वाले सोम को उज्ज्वल किरणें तेजस्वी रूप प्रदान करती हैं। जल के साथ मिलकर यह सोम हविरूप में देवगणों के उपासकों को प्राप्त होता है और गौवों, हव्यों अथवा रश्मियों के अग्रभाग से संयुक्त होता है। इसी सोम की याजकों द्वारा प्रार्थना की जाती है।[ऋग्वेद 9.71.8]
Bright rays grant majestic form to Som the destroyer of the enemies. Mixed in water, its available to the worshipers of demigods-deities. It accompanied with the frontal of cows, offerings or the rays. Som is worshiped by the Ritviz.
उक्षेव यूथा परियन्नरावीदधि त्विषीरधित सूर्यस्य।
दिव्यः सुपर्णोऽव चक्षत क्षां सोमः परि ऋतुना पश्यते जाः॥
जिस प्रकार गौवों के झुण्ड को देखकर बैल शब्दनाद करता है, उसी प्रकार आकाश में उत्पन्न सोम पृथ्वी को देखता हुआ चारों ओर सूर्यदेव के समान तेज फैलाता है। यज्ञस्थल में स्थित याजकों का यह निरीक्षण करता है।[ऋग्वेद 9.71.9]
The way a bull create sound seeing the band of cows, similarly Som evolved in the sky looks around, watches the earth, spread light like Sury Dev. It observes the Ritviz at the Yagy Sthal-site.(10.08.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (72) :: ऋषि :- हरिमन्त, आंगिरस; देवता :-पवमान, सोम; छन्द :- जगति।
हरिं मृजन्त्यरुषो न युज्यते सं धेनुभिः कलशे सोमो अज्यते।
उद्वाचमीरयति हिन्वते मती पुरुष्टुतस्य कति चित्परिप्रियः॥
याजकों को धनादि प्रदान करने वाला तेजस्वी, स्तुत्य, शोधित एवं हरिताभ सोम गौ दुग्ध में मिलकर जब कलश में स्थापित होता है; तब तीव्र शब्दनाद करता है। उस समय याजकों द्वारा उसकी प्रार्थनाएँ की जाती हैं।[ऋग्वेद 9.72.1]
When majestic, sanctified, worshipable, greenish Somras is mixed with cow milk & is put in the Kalash, it make loud sound. Ritviz pray to it at this moment.
साकं वदन्ति बहवो मनीषिण इन्द्रस्य सोमं जठरे यदादुहुः।
यदी मृजन्ति सुगभस्तयो नरः सनीळाभिर्दशभिः काम्यं मधु॥
ऋत्विक्लोग अपनी दसों अँगुलियों से इन्द्र देव के जठर में सोम को निष्पादित करते हैं। जब मधुर सोमरस को शोधित किया जाता है, तब ऋषियों द्वारा एक साथ मंत्रों का उच्चारण किया जाता है।[ऋग्वेद 9.72.2]
The Ritviz use their ten fingers to extract Som for Indr Dev to drink. The Rishis together chant Mantr while sweet Somras is sanctified.
अरममाणो अत्येति गा अभि सूर्यस्य प्रियं दुहितुस्तिरो रवम्।
अन्वस्मै जोषमभरद्विनंगृसः सं द्वयीभिः स्वसृभिः क्षेति जामिभिः॥
देवगणों को प्रसन्न करने वाला यह सोम अन्यत्र रमण न करते हुए गौ दुग्ध में गमन करता है। उषाकाल में यह सोम प्रार्थनाओं के अतिरिक्त अन्य ध्वनि को दूर करता है। दोनों हाथों की अँगुलियों से यह सोम संगति करता है। याजकगण इस सोम के लिए प्रार्थनाओं का उच्चारण करते हैं।[ऋग्वेद 9.72.3]
Somras gladdening demigods-deities do not move else where, it moves into Cow's milk. In the morning, Usha Kal-dawn, Som repel other sounds except prayers. It maintain unison with ten fingers of the two hands. Ritviz chant prayers for Somras.
नृधूतो अद्रिषुतो बर्हिषि प्रियः पतिर्गवां प्रदिव इन्दुर्ऋत्वियः।
पुरंधिवान्मनुषो यज्ञसाधनः शुचिर्धिया पवते सोम इन्द्र ते॥
हे इन्द्र देव! यज्ञ का साधनरूप यह सोम यजमानों द्वारा आपके प्रिय यज्ञस्थल में शोधित होता है। पत्थरों द्वारा कूटकर निकाला गया और गौ-दुग्ध के साथ मिश्रित किया गया यह सोमरस अनादिकाल से ही देवताओं का प्रिय रहा है।[ऋग्वेद 9.72.4]
Hey Indr Dev! A means of Yagy Som is sanctified at the Yagy site by the hosts. Somras extracted by crushing with stones and mixed with cow milk is dear to the demigods-deities ever since.
नृबाहुभ्यां चोदितो धारया सुतोऽनुष्वधं पवते सोम इन्द्र ते।
आप्राः क्रतून्त्समजैरध्वरे मतीर्वेर्न द्रुषचम्भो ३ रासदद्धरिः॥
वृक्षों पर रहने वाले पक्षियों की समान हरिताभ यह सोम पात्र में स्थिर रहता है। हे इन्द्र देव! धारा के रूप में अपना रस प्रदान करने वाला यह सोम आपके बल की वृद्धि के लिए याजकों
की भुजाओं से प्रेरित होकर यज्ञस्थल में निष्पन्न होता है। हिंसा रहित सोमयज्ञ में सोमरस का पान करके आप शत्रुओं पर विजय प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 9.72.5]
Somras remain cantered in the pot like the birds residing over the tree. Hey Indr Dev! Som which grant its sap flowing in streams boost your strength and extracted by the arms of the
अंशुं दुहन्ति स्तनयन्तमक्षितं कविं कवयोऽपसो मनीषिणः।
समी गावो मतयो यन्ति संयत ऋतस्य योना सदने पुनर्भुवः॥
बुद्धिमान्, दूरदर्शी और मेधावी याजकगण कभी क्षीण न होने वाले, शब्दनाद करने वाले, ज्ञानवर्धक सोम का रस निकालते हैं। बार-बार प्रसूत होने वाली गौएँ उत्तम प्रार्थनाओं से सुसंगत होकर यज्ञ को सम्पन्न करती हैं।[ऋग्वेद 9.72.6]
Intelligent, far sighted Ritviz extracted never receding-reducing, sound producing enlightening Somras. Repeatedly pregnant cows accomplish the Yagy in unison with prayers.
नाभा पृथिव्या धरुणो महो दिवो ३ऽपामूर्मो सिन्धुष्वन्तरुक्षितः।
इन्द्रस्य वज्रो वृषभो विभूवसुः सोमो हृदे पवते चारु मत्सरः॥
इन्द्र देव के वज्र के सदृश बलशाली, ऐश्वर्य से युक्त, आकाश को धारण करने वाला, पृथ्वी की ऊँचाइयों पर स्थित, श्रेष्ठ और आनन्दित करने वाला सोम मन को प्रसन्न करने के लिए रस प्रदान करता है। धन सम्पन्न सोम अभीष्ट प्रदान करने वाला है।[ऋग्वेद 9.72.7]
Mighty like the Vajr of Indr Dev, possessing grandeur, holding the sky, established over the heights of the earth, excellent and gladdening Som provide sap for pleasing the innerself. Som possessing wealth accomplish wishes-desires.
स तू पवस्व परि पार्थिवं रजः स्तोत्रे शिक्षन्नाधून्वते च सुक्रतो।
मा नो निर्भाग्वसुनः सादनस्पृशो रयिं पिशङ्ग बहुलं वसीमहि॥
हे सोम! आप पृथ्वी को देखते हुए अपना रस प्रदान करें। स्तोताओं को धन-धान्य से युक्त करें। हमें पर्याप्त साधन प्रदान करें और हम सदैव धन और स्वर्णादि से युक्त रहें।[ऋग्वेद 9.72.8]
Hey Som! Look at the earth while providing your sap. Accomplish the Stotas with wealth and food grains. Grant us sufficient means and we should have wealth and gold etc.
आ तू न इन्दो शतदात्वश्व्यं सहस्त्रदातु पशुमद्धिरण्यवत्।
उप मास्व बृहती रेवतीरिषोऽधि स्तोत्रस्य पवमान नो गहि॥
हे सोमदेव! आप हमें हजारों प्रकार का सुख प्रदान करने वाला, अश्वों से युक्त, हजारों प्रकार के दान के योग्य ऐश्वर्य शीघ्र ही प्रदान करें। हे सोम देव! आप हमारी प्रार्थनाओं को श्रवण करने के लिए पधारें और हमें पशुओं तथा स्वर्ण से युक्त महान धन-धान्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.72.9]
Hey Som Dev! Grant us thousands of kinds of comforts-pleasure, grandeur with horses, capability for thousands of donations-charity. Hey Som Dev! Come to listen-respond to our prayers and grant us animals, great wealth along with food grains.(11.08.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (73) :: ऋषि :- पवित्र, आंगिरस; देवता :-पवमान, सोम; छन्द :-जगति।
स्रक्वे द्रप्सस्य धमतः समस्वरन्नृतस्य योना समरन्त नाभयः।
त्रीन्त्स मूर्ध्नो असुरश्चक्र आरभे सत्यस्य नावः सुकृतमपीपरन्॥
यज्ञ पात्र में यह सोमरस यज्ञ के उत्पत्ति स्थल से शब्दनाद करता हुआ प्रकट होता है। मनुष्यों के उपभोग के लिए यह सोम तीनों लोकों से कार्य प्रारम्भ करता है। सत्य की नाव के सदृश इस सोम की चार स्तुतियाँ याजकों को अभीष्ट फल प्रदान करने वाली होती है।[ऋग्वेद 9.73.1]
Somras appears in the Yagy Patr-pot at the Yagy site. It initiate the endeavours for the humans in three abodes. Four Stuties of Som function at the boat of truth, granting the desired rewards-accomplishment.
सम्यक् सम्यञ्चो महिषा अहेषत सिन्धोरूर्मावधि वेना अवीविपन्।
मोर्धाराभिर्जनयन्तो अर्कमित्प्रियामिन्द्रस्य तन्वमवीवृधन्॥
ऋत्विक् गण एकत्रित होकर सोमरस को जल में मिलाते हैं। वे स्तोत्रों के द्वारा इन्द्र देव के प्रिय यज्ञ को सोम की धाराओं से पुष्ट करते हैं।[ऋग्वेद 9.73.2]
Ritvij gather together and add water to Somras. They enhance-promote the Yagy loved by Indr Dev with the streams of Somras and while chanting Mantrs-Strotrs.
पवित्रवन्तः परि वाचमासते पितैषां प्रत्नो अभि रक्षति व्रतम्।
महः समुद्रं वरुणस्तिरो दधे धीरा इच्छेकुर्धरुणेष्वारभम्॥
इस पवित्र सोम की सदैव स्तुति की जाती है। आदिपिता ये सोमदेव अपने व्रतों का निर्वाह करते हुए महान् अंतरिक्ष को अपने तेज से आवृत कर देते हैं। ज्ञानी याजक उन्हें धारणशील जल में मिश्रित करते हैं।[ऋग्वेद 9.73.3]
Pious Som is always worshiped. Eternal father Som Dev continue with his endeavours and filling-pervading the space with his majesty. Enlightened Ritviz support Somras by mixing it in water.
सहस्त्रधारेऽव ते समस्वरन्दिवो नाके मधुजिह्वा असश्चतः।
अस्य स्पशो न नि मिषन्ति भूर्णयः पदेपदे पाशिनः सन्ति सेतवः॥
सोम की हजारों जलधाराओं से युक्त किरणें अन्तरिक्ष से पृथ्वी पर आ रही हैं। ये मधुरता से युक्त सोम-रश्मियाँ द्युलोक से ऊपर रहती हैं। ये सोम-रश्मियाँ प्रत्येक स्थान पर दुष्टों को कष्ट पहुँचाती हैं।[ऋग्वेद 9.73.4]
Rays accompanied with thousands of streams of Somras come from space to the earth. These rays accompanied with sweetness remain above the heavens and harm the wicked.
पितुर्मातुरध्या ये समस्वरन्नृचा शोचन्तः संदहन्तो अव्रतान्।
इन्द्रद्विष्टामप धमन्ति मायया त्वचमसिक्नीं भूमनो दिवस्परि॥
सोम की किरणें द्युलोक और पृथ्वीलोक में उत्पन्न होकर याजकों की प्रार्थनाओं से प्रदीप्त होती हैं और ये कुकर्मियों को पूरी तरह से नष्ट करती हैं। जिनके इन्द्र देव द्वेष करते हैं, ये किरणें उन राक्षसों को पृथ्वी और आकाश से पलायित कर देती हैं।[ऋग्वेद 9.73.5]
Rays of Som arise in the heavens & earth are brightened by the prayers of the Ritviz and destroy the wicked-vicious fully. These rays remove-expel the people envied by Indr Dev.
प्रत्नान्मानादध्या ये समस्वरछ्लोकयन्त्रासो रभसस्य मन्तवः।
अपानक्षासो बधिरा अहासत ऋतस्य पन्थां न तरन्ति दुष्कृतः॥
प्रार्थना के योग्य सोम की किरणें अति वेग के साथ अन्तरिक्ष से प्रवाहित होती हैं। इन किरणों को दृष्टिहीन और अज्ञानी लोग नहीं देख सकते।[ऋग्वेद 9.73.6]
Worshipable rays of Som flow through the space, at very high speed. These rays are not visible to ignorant and blind.
सहस्रधारे वितते पवित्र आ वाचं पुनन्ति कवयो मनीषिणः।
रुद्रास एषामिषिरासो अद्रुहः स्पशः स्वञ्चः सुदृशो नृचक्षसः॥
रुद्रपुत्र मरुत् के सदृश यह सोम सुन्दर, स्तुत्य, द्रोह रहित, सर्वद्रष्टा, सुकर्मा और शत्रुओं से भली-भाँति युद्ध करने वाला है। इसका मधुर रस हजारों धाराओं से नीचे की ओर प्रवाहित होता है। ज्ञानी लोग इसे शोधित करते समय प्रार्थनाओं द्वारा पवित्र बनाते हैं।[ऋग्वेद 9.73.7]
द्रोह रहित :: द्वेष शून्य; without malice, gall-less.
Worshipable, beautiful, without malice, looking at every one, virtuous and fighter with the enemies Som is like the Marud Gan, son of Rudr. Its sweet sap flows in the down ward direction in thousands of streams. Enlightened people sanctify it with prayers while purifying it.
ऋतस्य गोपा न दभाय सुक्रतुस्त्री ष पवित्रा हृद्य१न्तरा दधे।
विद्वान्त्स विश्वा भुवनाभि पश्यत्यवाजुष्टान् विध्यति कते अव्रतान्॥
पापियों, दुष्कर्मियों और यज्ञ न करने वालों को सोम दंडित करता है। श्रेष्ठकर्मा, यज्ञरक्षक यह सोम किसी भी ज्ञानीजन को कष्ट नहीं देता। यह सोम अग्नि देव, वायु देव और सूर्य देव के तेज को धारण करता है।[ऋग्वेद 9.73.8]
Som punishes the sinner, wicked-vicious and those who do not perform Yagy. Devoted virtuous deeds, protector of Yagy Som never harm the enlightened-learned people. Som support Agni Dev, Vayu Dev and Sury Dev.
ऋतस्य तन्तुर्विततः पवित्र आ जिह्वाया अग्रे वरुणस्य मायया।
धीराश्चित्तत्समिनक्षन्त आशतात्रा कर्तमव पदात्यप्रभुः॥
यह सोम यज्ञ और पवित्रता को विस्तारित करने वाला है। वह अपनी शक्ति से वरुण देव के अग्रभाग में स्थित है। ज्ञानीजन उसे प्राप्त करते और उपयोग करते हैं। जबकि अकर्मण्य लोग उसे प्राप्त नहीं कर पाते और पतन के मार्ग पर जाते हैं।[ऋग्वेद 9.73.9]
अकर्मण्य :: रूढ़ि-प्रिय, आलसी, निष्क्रिय, निष्क्रय, बेकार, आलसी, व्यर्थ, अनुपयोगी; indolent, mandarin, idle.
Som extend Yagy and piousness. Its located in the frontal of Varun Dev with its might. The learned have it and use it. The indolent fail to achieve it and faces down fall.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (74) :: ऋषि :- कक्षीवान्, आंगिरस; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- जगति, त्रिष्टुप्।
शिशुर्न जातोऽव चक्रदद्वने स्व१र्यद्वाज्यरुषः सिषासति।
दिवो रेतसा सचते पयोवृधा तमीमहे सुमती शर्म सप्रथः॥
पैदा हुए बालक के रोने के समान नीचे की ओर प्रवाहित होने वाला सोम का प्रवाह शब्द करता है। द्युलोक में स्थित दिव्य सोम औषधियों आदि के माध्यम से जल में मिलकर तेजस्वी होता है और अश्व के सदृश वेगवान् सोम यज्ञकर्म के द्वारा स्वर्ग में जाने की इच्छा करता है। श्रेष्ठ बुद्धि वाले याजकगण अपनी प्रार्थनाओं द्वारा उसे वर्द्धित करते हैं।[ऋग्वेद 9.74.1]
The sound created by Som flowing in the down ward direction is like an infant. Som present in the heavens mixes with the herbs and water to become majestic. It desires to go fast like horse through the Yagy Karm to heavens. Ritviz with high level of intelligence grow it with their prayers.
दिवो यः स्कम्भो धरुणः स्वातत आपूर्णो अंशुः पर्येति विश्वतः।
सेमे मही रोदसी यक्षदावृता समीचीने दाधार समिषः कविः॥
द्युलोक को स्थिर करने वाला, सर्वत्र व्याप्त, जगत् का धारणकर्ता सोम द्युलोक और पृथ्वीलोक में अन्न, जल और बल की वृद्धि करता है एवं द्युलोक और पृथ्वीलोक को संयुक्त रूप से धारण करते हुए सभी प्रकार का अन्न धारण करता है।[ऋग्वेद 9.74.2]
Som making the heavens stable, pervaded every where, support the universe, boosts the bonding between the earth & heavens supporting them together, increases food grains, water, might and support all sorts of food grains.
महि प्सरः सुकृतं सोम्यं मधूर्वी गव्यूतिरदितेर्ऋतं यते।
ईशे यो वृष्टेरित उस्त्रियो वृषापां नेता य इतऊतिऋग्मियः॥
इन्द्र देव प्रिय सोम यज्ञ कर्म में प्रयुक्त होते हैं। जल की वर्षा करने वाले, यज्ञनायक और गौवों के हितैषी इन्द्र देव पृथ्वी के विस्तृत मार्ग पर आगमन करते हैं और सोमयज्ञ में उपस्थित होकर अत्यन्त प्रसन्न होते हैं।[ऋग्वेद 9.74.3]
Loved by Indr Dev, Som is used in the Yagy. Rain showering, leader of the Yagy, well wisher of the cows arrive over the broad road of the earth and gladdens by participating in the Yagy.
आत्मन्वन्नभो दुह्यते घृतं पय ऋतस्य नाभिरमृतं वि जायते।
समीचीनाः सुदानवः प्रीणन्ति तं नरो हितमव मेहन्ति पेरवः॥
आकाश से घृत और दुग्ध के समान साररूप (सोम) दुहा जता है। ऋत की नाभि से अमृतरूप सोम उत्पन्न होता है। एक साथ मिलजुल कर यज्ञकर्ता उस सोम को अपनी प्रार्थनाओं के द्वारा प्रसन्न करते है। सबकी रक्षा करने वाला यह सोम हितकारी पदार्थों की वर्षा करता है।[ऋग्वेद 9.74.4]
ऋत RIT :: जगत की व्यवस्था, प्राकृत नियम भी कहा गया है। सूर्य, चन्द्रमा, तारे, दिन, रात आदि इसी नियम द्वारा संचालित हैं।
Som is extracted from the sky like Ghee and milk. It evolves from the naval of Rit like elixir. Together the Ritviz Yagy performers gladden Som with prayers. Protecting all, Som shower useful materials.
अरावीदंशुः सचमान ऊर्मिणा देवाव्यं १ मनुषे पिन्वति त्वचम्।
दधाति गर्भमदितेरुपस्थ आ येन तोकं च तनयं च धामहे॥
मनुष्यों का हितैषी और देवताओं का संरक्षण करने वाला सोम जल में मिलने पर शब्दनाद करता है। पृथ्वी पर स्थित औषधियों द्वारा यह उत्पन्न होता है। इसके द्वारा हम अपनी सुरक्षा करने में समर्थ होते हैं और अपनी संतति को व्याधियों से मुक्त करते हैं।[ऋग्वेद 9.74.5]
Well wisher of humans, protector of demigods-deities, Som mixes with water making sound. Herbs-medicines evolve over the earth from it. We became capable of our protection by virtue of it and relieve our progeny from the ailments, diseases.
सहस्त्रधारेऽव ता असश्चतस्तृतीये सन्तु रजसि प्रजावतीः।
चतस्रो नाभो निहिता अवो दिवो हविर्भरन्त्यमृतं घृतश्चुतः॥
हजारों धाराओं के रूप में द्युलोक से आगमन करने वाला सोम पृथ्वी लोक पर स्त्रवित होकर प्रजा का सहायक बनता है। सोम के चार प्रकार के प्रवाह द्युलोक से स्त्रवित होते हैं। यह घृत (ओजस्) प्रदत्त करने वाला सोमरस रक्षण शक्ति से युक्त अमरत्व प्रदान करने वाला और हविष्यान्न रूप है।[ऋग्वेद 9.74.6]
Coming from the heavens in thousands of streams Som evolve over the earth and help the populace. Four kinds of flow of Som are seen over the earth. It grants majesty, protection power, immortality and is a form of offerings in the Yagy.
श्वेतं रुपं कृणुते यत्सिषासति सोमो मीढाँ असुरो वेद भूमनः।
धिया शमी सचते सेमभि प्रवद्दिवस्कवन्धमव दर्षदुद्रिणम्॥
कामनाओं को पूर्ण करने वाला, अनेक प्रकार के धनों को देने वाला, श्वेत दिखाई पड़ने वाला यह सोम द्युलोक की इच्छा से यज्ञ में प्रतिष्ठित होता है। बुद्धिपूर्वक किए गए श्रेष्ठ कार्यों को पूर्ण करने वाला सोम बादलों को (बरसने के लिए) नीचे भेजता है।[ऋग्वेद 9.74.7]
Accomplishing desires, granting all sorts of wealth, white coloured Som is established in the Yagy due to the desire of heavens. It forward the clouds to rain over the earth to accomplish the excellent deeds intelligently.
अध श्वेतं कलशं गोभिरक्तं कार्म्मन्ना वाज्यक्रमीत् ससवान्।
आ हिन्विरे मनसा देवयन्तः कक्षीवते शतहिमाय गोनाम्॥
रणभूमि में प्रस्थान करने वाले अश्व के सदृश सोमरस श्वेत वर्ण की गौ के दुग्ध में मिश्रित होकर कलश में प्रतिष्ठित होता है। जिस प्रकार कक्षीवान् ऋषि द्वारा सैकड़ों प्रकार की स्तुतियाँ करने पर गौएँ प्रदान की गईं, उसी प्रकार देवगणों को प्राप्त करने वाले याजकों के द्वारा उन सोमदेव की मन से, श्रेष्ठ विधियों द्वारा प्रार्थना की जाती हैं।[ऋग्वेद 9.74.8]
Somras mixes in the milk of white coloured cow, like the horse going to battle field establishing in the Kalash. The way Kakshiwan Rishi got hundreds of cows on making prayers, similarly the Ritviz who have attained demigods-deities; worship Som with their innerself with best methods-procedures.
अद्धिः सोम पपृचानस्य ते रसोऽव्यो वारं वि पवमान धावति।
स मृज्यमानः कविभिर्मदिन्तम स्वदस्वेन्द्राय पवमान पीतये॥
हे सोम! जल में मिलाया जाने वाला आपका रस ऊन (भेड़ के बालों से बनी) की छलनी के द्वारा छाना जाता है। हे आनन्ददायी सोमदेव! याजकों द्वारा परिष्कृत रस को इन्द्र देव के पान के लिए प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.74.9]
Hey Som! Your sap-juice mixed in water is filtered through the sieve made of sheep hair. Hey gladdening Som Dev! Offer the sanctified Somras to Indr Dev for drinking.(13.08.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (75) :: ऋषि :- कवि, भार्गव; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- जगति।
अभि प्रियाणि पवते चनोहितो नामानि यह्वो अधि येषु वर्धते।
आ सूर्यस्य बृहतो बृहन्नधि रथं विष्वञ्चमरुहद्विचक्षणः॥
सूर्य देव के रथ पर आरूढ़ होकर यह सोम संसार द्रष्टा बन जाता है। वह प्रिय जल के साथ संयुक्त होकर अन्नों के लिए हितकारी बनकर विस्तार पाता एवं प्रवाहित होता है।[ऋग्वेद 9.75.1]
Som rides the charoite of Sury Dev and looks at the whole world. It combines with water, become beneficial to the food grains-crops, extends and flow.
ऋतस्य जिह्वा पवते मधु प्रियं वक्ता पतिर्थियो अस्या अदाभ्यः।
दधाति पुत्रः पित्रोरपीच्यं १ नाम तृतीयमधि रोचने दिवः॥
हिंसा न करने वाला और शब्द युक्त सोम यज्ञ का जिह्वा रूप है। अपने मधुर और प्रिय रस को क्षरित करने वाला सोम निष्पीड़ित होने पर पुत्र, पिता के लिए अज्ञात तीसरा नाम धारण करके द्युलोक में प्रकाशित होता है।[ऋग्वेद 9.75.2]
पीड़ित :: व्यथित, असंतुष्ट, दुखित, आर्त, दुःखित, क्लेशित, पर्याक्रान्त; victim, infested, aggrieved.
Non violent Som makes sound and is like the tongue of the Yagy. It reduces its sweet and dear sap; assume third name for the son and father on being free from victimisation.
अव द्युतानः कलशाँ अचिक्रदन्नृभिर्येमानः कोश आ हिरण्यये।
अभीमृतस्य दोहना अनूषताधि त्रिपृष्ठ उषसो वि राजति॥
उस तेजयुक्त सोम की प्रार्थना की जाती है, जो ऋषियों द्वारा स्वर्ण कलश में शोधित होकर प्रवेश करते हुए शब्दनाद करता है। यह सोम तीनों संध्याओं (प्रातः, मध्याह्न, सायं) में प्रकाशित होता है।[ऋग्वेद 9.75.3]
The majestic Som which enters the Kalsh making sound on being sanctified, is worshiped. It illuminates during the three prayers viz morning, noon and evening.
अद्रिभिः सुतो मतिभिनोहितः प्ररोचयन्रोदसी मातरा शुचिः।
रोमाण्यव्या समया वि धावति मोर्घारा पिन्वमाना दिवेदिवे॥
विद्वानों ने पत्थरों से कूटकर निकाले गए परिष्कृत सोमरस को अन्न रूप में रखा। यह सोमरस द्यावा और पृथ्वी रूपी माताओं को तेजस्वी बनाता है। यह सोम प्रतिदिन मधुर धाराओं को पवित्र बनाता है।[ऋग्वेद 9.75.4]
The learned people smashed & extracted sanctified Somras and preserved it, like a food grain. Som grant majesty to the heavens and the earth like its mothers. It purifies its sweet streams.
परि सोम प्र धन्वा स्वस्तये नृभिः पुनानो अभि वासयाशिरम्।
ये ते मदा आहनसो विहायसस्तेभिरिन्द्रं चोदय दातवे मघम्॥
हे सोम! याज्ञिकों द्वारा परिष्कृत हुए आप गौ-दुग्ध में मिश्रित होकर रहते हैं। आप हमारा मंगल करने के लिए हमारे निकट आगमन करें। आपका रस बलवर्धक, आनन्ददायक और शत्रुनाशक है। आप इन शक्तियों के साथ धन प्रदान करने के लिए इन्द्र देव को प्रेरित करें।[ऋग्वेद 9.75.5]
Hey Som! You reside after being mixed in cow's milk and purified by the Yagyik. Come close to us for our welfare. Your sap increase strength, gladdens and destroys the enemy. Inspire Indr Dev to grant us wealth along with these powers.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (76) :: ऋषि :- कवि, भार्गव; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- जगति।
धर्ता दिवः पवते कृत्व्यो रसो दक्षो देवानामनुमाद्यो नृभिः।
हरिः सृजानो अत्यो न सत्वभिर्वृथा पाजांसि कृणुते नदीष्वा॥
सभी के द्वारा धारित किया जाने वाला सोम द्युलोक से आगमन करता है। स्तोताओं द्वारा शोधित हुए सोम की सभी प्रशंसा करते हैं। बल और वेग से युक्त अश्व के समान यह निष्पन्न सोमरस सहजता से ही अपने आप नदी में मिल जाता है।[ऋग्वेद 9.76.1]
Purified for everyone, Som arrives from the heavens. Every one praise Som purified by the Stotas. Possessing strength and speed like horse, extracted Somras dissolves in river of its own.
शूरो न धत्त आयुधा गभस्त्योः स्व१ः सिषासन्रथिरो गविष्टिषु।
इन्द्रस्य शुष्ममारयन्नपस्युभिरिन्दुर्हिन्वानो अज्यते मनीषिभिः॥
हाथों में शस्त्र धारण किए हुए योद्धाओं के सदृश अश्वारूढ़, गौवों के रक्षक, वीरों का एवं इंद्र देव का बल बढ़ाते हुए यह दिव्य सोम ऋत्विजों द्वारा प्रेरित होकर गौ-दुग्ध में मिश्रित शोधित हुए सोम की सभी प्रशंसा करते हैं। बल और वेग से युक्त अश्व के समान यह निष्पन्न सोमरस सहजता से ही अपने आप नदी में मिल जाता है।[ऋग्वेद 9.76.2]
Everyone praise divine sanctified Som, inspired by the Ritviz, mixed in cow's milk like the warriors holding weapons in their arms, riding horses, protector of cows, boosting the might of warriors and Indr Dev.
इन्द्रस्य सोम पवमान ऊर्मिणा तविष्यमाणो जठरेष्वा विश।
प्र णः पिन्व विद्युदभ्रेव रोदसी धिया न वाजाँ उप मासि शश्वतः॥
हे सोम! आप महान् शक्तिशाली बनकर इन्द्र देव के उदर में प्रवेश करें। बादलों को बरसने के लिए प्रेरित करती विद्युत् के समान आप आकाश और पृथ्वी को फलदायी बनाएँ। कर्म करते हुए, कर्म के माध्यम से आप हमारे लिए अक्षय, पोषकतायुक्त अन्न प्रदान करे।[ऋग्वेद 9.76.3]
Hey Som! Acquire great strength and enter the stomach of Indr Dev. Make the sky and earth fruitful like lightening, inspiring the clouds to rain. Resort to endeavours, provide immortal and nourishing food grains to us through efforts.
विश्वस्य राजा पवते स्वर्दृश ऋतस्य धीतिमृषिषाळवीवशत्।
यः सूर्यस्यासिरेण मृज्यते पिता मतीनामसमष्टकाव्यः॥
ऋषियों द्वारा स्तुत्य और समस्त संसार का अधिष्ठाता सोम सबको देखने वाले इन्द्र देव के कर्म को प्रशंसित करता है। सूर्य की किरणों से शोधित किया जाने वाला सोम प्रार्थना करने वाले याजकों को संरक्षण प्रदान करता है।[ऋग्वेद 9.76.4]
Worshiped by the Ritviz, supporting the entire universe Som, glorifies the efforts of Indr Dev. On being prayed by the Yagyik, Som clarified by the rays of Sun, grant them protection.
वृषेव यूथा परि कोशमर्षस्यपामुपस्थे वृषभः कनिक्रदत्।
स इन्द्राय पवसे मत्सरिन्तमो यथा जेषाम समिथे त्वोतयः॥
कलश में सोमरस उसी प्रकार प्रविष्ट होता है, जिस प्रकार बैल अपने समूह में जाता है। जलयुक्त मेघ आकाश में जिस प्रकार गर्जना करते हैं, उसी प्रकार की ध्वनि करता हुआ सोमरस यज्ञपात्र में प्रवेश करता है। आनन्ददायक यह सोमरस इन्द्र देव के लिए शोधित होता है। हे सोम देव! आप संग्राम में हमारी रक्षा करें, जिससे हम विजय प्राप्त करें।[ऋग्वेद 9.76.5]
Somras enters the Kalash just like bull entering its herd. The way clouds rattle in the sky, Somras enters the Yagy Patr-Kalash making sound. Gladdening Somras is sanctified for Indr Dev. Hey Som Dev! Protect us in the war so that we achieve victory.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (77) :: ऋषि :- कवि, भार्गव; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- जगति।
एष प्र कोशे मधुमाँ अचिक्रददिन्द्रस्य वज्रो वपुषो वपुष्टरः।
अभीमृतस्य सुदुघा घृतश्चतो वाश्रा अर्षन्ति पयसेव घेनवः॥
इन्द्र देव के वज्र के सदृश बलशाली, सुन्दरतम बीजों को अंकुरित करने वाला, गौ के घृतयुक्त, दुग्ध की धारा के समान शब्दनाद करता हुआ सोम कलश में प्रविष्ट होता है।[ऋग्वेद 9.77.1]
Mighty like the Vajr of Indr Dev, sprouting the beautiful seeds, laced with cow's Ghee, making sound like the current of milk, Som enters the Kalash.
स पूर्व्यः पवते यं दिवस्परि श्येनो मथायदिषितस्तिरो रजः।
स मध्व आ युवते वेविजान इत्कृशानोरस्तुर्मनसाह बिभ्युषा॥
समस्त बाधाओं को पार कर बाज पक्षी के द्वारा द्युलोक से पृथ्वी लोक पर लाया गया सोम गौ दुग्ध में मिलाया जाता है। जिस प्रकार भयभीत प्राणी किसी की शरण चाहते हैं, उसी प्रकार दुरूपयोग के भय से यह सोम यज्ञ में स्थित रहता है।[ऋग्वेद 9.77.2]
Som brought from the heavens by the falcon is mixed with cow's milk. The way fearful organism seek protection under someone, Som establish-stay in the Yagy due to the fear of misuse.
ते नः पूर्वास उपरास इन्दवो महे वाजाय धन्वन्तु गोमते।
ईक्षेण्यासो अह्यो ३ न चारवो ब्रह्मब्रह्म ये जुजुषुर्हविर्हविः॥
हव्य सेवन करने वाला यह सोमरस सभी प्रकार की स्तुतियों से रमणीय एवं सुन्दर है। सभी के ऊपर विद्यमान यह सोमरस अपने लक्ष्य को प्राप्त करता है। महान् सोमरस गाय के दूध से युक्त अन्न हमें प्रदान करे।[ऋग्वेद 9.77.3]
Consuming the offerings, Somras become delightful and beautiful. Remaining at the top of everyone, Somras attain its target. Let great Somras grant us food grains like cow's milk.
अयं नो विद्वान् वनवद्वनुष्यत इन्दुः सत्राचा मनसा पुरुष्टुतः।
इनस्य यः सदने गर्भमादधे गवामुरुब्जमभ्यर्षति व्रजम्॥
हिंसा करने वाले शत्रुओं का वध करने वाला सोम यज्ञ स्थल की अग्नि में, औषधियों के गर्भ, गौ दुग्ध और जल में मिलकर रहता है। उस सोम की सत्य मन से प्रार्थना की जाती है।[ऋग्वेद 9.77.4]
Som live mixed with cow's milk and water, reside in the womb of medicines and the fire of Yagy site, destroys the violent enemies. Som is worshiped through the true innerself.
चक्रिर्दिवः पवते कृत्व्यो रसो महाँ अदब्धो वरुणो हुरुग्यते।
असावि मित्रो वृजनेषु यज्ञियोऽत्यो न यूथे वृषयुः कनिक्रदत्॥
सभी का जन्मदाता, कर्मवान्, रस और रूप से युक्त, पापियों का नाश करने वाला, यह अविनाशी सोम अँगुलियों द्वारा निचोड़ा जाता है। शत्रुओं से सुरक्षा प्रदान करने वाला, वेगवान् अश्व के सदृश, यज्ञ का साधन यह सोम शब्दनाद करता हुआ कलश में प्रवेश करता है।[ऋग्वेद 9.77.5]
Evolving everyone, endeavourous, possessing sap-juice and shape, destroyer of sinners, immortal Som is squeezed with fingers. Accomplisher of Yagy Som enters the Kalash making sound, granting protection from the enemies, like a fast moving horse.(15.08.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (78) :: ऋषि :- कवि, भार्गव; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- जगति।
प्र राजा वाचं जनयन्नसिष्यददयो वसानो अभि गा इयक्षति।
गृम्णाति रिप्रमविरस्य तान्वा शुद्धो देवानामुप याति निष्कृतम्॥
यह राजा सोम शब्दनाद करता हुआ जल में मिश्रित होकर प्रार्थनाओं को ग्रहण कर रस प्रदान करता है। यह सोम भेड़ के बालों की छलनी में छनकर और शोधित होकर देवताओं के निकट गमन करता है।[ऋग्वेद 9.78.1]
King Som, make loud sound and accept prayers while mixing with water and providing sap-juice. Its filtered in sheep hair sieve and move close to the demigods-deities.
इन्द्राय सोम परि षिच्यसे नृभिर्नृचक्षा ऊर्मिः कविरज्यसे वने।
पूर्वीर्हि ते स्रुतयः सन्ति यातवे सहस्त्रमश्वा हरयश्चमूषदः॥
हे सोम! इन्द्र देव के लिए यज्ञकर्ताओं द्वारा आपका रस निकाला जाता है। याजक आपको जल में मिलाते हैं। आप यज्ञ का हव्यरूप हैं। आपके क्षरण के लिए सहस्रों छिद्र हैं तथा हजारों रश्मियाँ हैं।[ऋग्वेद 9.78.2]
The Yagyik extract your sap for the sake Indr Dev. Ritviz mix it in water. You are like the offerings for Yagy. You have hundreds of holes for reducing mass and thousands of rays are emitted by you.
समुद्रिया अप्सरसो मनीषिणमासीना अन्तरभि सोममक्षरन्।
ता ईं हिन्वन्ति हर्म्यस्य सक्षणिं याचन्ते सुम्नं पवमानमक्षितम्॥
आकाश में विद्यमान वह सोम जल में मिलने के लिए आगमन करता है। यज्ञ स्थल पर रखे पात्रों में जाने के लिए जल उसे प्रेरित करता है। इस पवित्र सोम से याजक सुख की कामना करते हैं।[ऋग्वेद 9.78.3]
Som present in the sky arrive to be mixed in water. Its inspired by the water to move to the pots kept at the Yagy site. The Ritviz pray to this pious Som for comforts.
गोजिन्नः सोमो रथजिद्धिरण्यजित्स्वर्जिदब्जित्पवते सहस्त्रजित्।
यं देवासश्चक्रिरे पीतये मदं स्वादिष्ठं द्रप्समरुणं मयोभुवम्॥
गौवों, रथों, सुवर्ण, जलों और धनों को हमारे लिए जीतने वाले सोमरस को शोधित किया जाता है। इस अरुणाभ रसरूपी सोम को देवगणों के निमित्त आनन्द बढ़ाने के लिए, सुख की वृद्धि के लिए बनाया गया है।[ऋग्वेद 9.78.4]
Somras is sanctified for us as it won cows, charoites, water and wealth. Somras having golden hue has been evolved for boosting the pleasure-comforts for demigods-deities.
एतानि सोम पवमानो अस्मयुः सत्यानि कृण्वन् द्रविणान्यर्षसि।
जहि शत्रुमन्तिके दूरके च य उर्वीं गव्यूतिमभयं च नस्कृधि॥
हे सोम! आप हमें सत्य मार्ग से आकर धनादि से युक्त करें। हमारी सहायता करने वाला यह सोम शोधित होकर, जो शत्रु हमारे निकट अथवा हमसे दूर हैं, हमारी सुरक्षा के लिए उन्हें पराजित करके हमारा संरक्षण करते हुए हमें विस्तीर्ण मार्गों में निर्भयता प्रदान करे।[ऋग्वेद 9.78.5]
Hey Som! Come to us through the truth path, granting us wealth. Som sanctified for our protection defeating our enemies far or near granting us fearlessness over vast routes.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (79) :: ऋषि :- कवि, भार्गव; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- जगति।
अचोदसो नो धन्वन्त्विन्दवः प्र सुवानसो बृहद्दिवेषु हरयः।
वि च नशन्न इषो अरातयोऽर्यो नशन्त सनिषन्त नो धियः॥
हरिताभ सोम वृष्टिकारक है। कभी उत्तेजित न होने वाला यह सोम हमें अपना रस प्रदान करे। हमारे अन्न को नष्ट करने वाले शत्रु स्वयं नष्ट हो जाएँ। इन प्रार्थनाओं के माध्यम से हमारी भावनाएँ देवगणों को प्राप्त हों।[ऋग्वेद 9.79.1]
Greenish Som cause rains. Som grant us its sap and do not excite. Let the enemies who destroy our food grains, destroy themselves. Let our sentiments reach the demigods-deities through these prayers.
प्र णो धन्वन्त्विन्दवो मदच्युतो धना वा येभिरर्वतो जुनीमसि।
तिरो मर्तस्य कस्य चित्परिह्वतिं वयं धनानि विश्वधा भरेमहि॥
आनन्द की वृद्धि करने वाला सोमरस धनों को लेकर आगमन करे। उस बलवान् सोम के द्वारा बल को प्राप्त कर हम सभी बाधाओं को दूर कर शत्रुओं से युद्ध करने में समर्थ हों और अनेक प्रकार के धनों की प्राप्ति करें।[ऋग्वेद 9.79.2]
Let the gladdening Somras arrive with wealth. We should be able to cross all hurdles with the help of mighty Som and defeat the enemies in war attaining several types of wealth.
उत स्वस्या अरात्या अरिर्हि ष उतान्यस्या अरात्या वृको हि षः।
धन्वन्न तृष्णा समरीत ताँ अभि सोम जहि पवमान दुराध्यः॥
हे सोम देव! मरु प्रदेश में जल के लिए व्याकुल लोग जिस प्रकार जल की ओर जाते है, उसी प्रकार आप शत्रुओं की ओर जाते हैं और अपने एवं दूसरों के शत्रुओं का नाश करते हैं।[ऋग्वेद 9.79.3]
Hey Som Dev! The manner in which the thirsty moves towards water in desert, you move to the enemies and destroy own as well other's enemies.
दिवि ते नाभा परमो य आददे पृथिव्यास्ते रुरुहुः सानवि क्षिपः।
अद्रयस्त्वा बप्सति गोरधि त्वच्य १ प्सु त्वा हस्तैर्दुहुर्मनीषिणः॥
हे सोम! पृथ्वी के ऊँचे स्थान पर वृद्धि को प्राप्त करने वाला और हविरूप अन्न ग्रहण करने वाला आपका अंश द्युलोक में सर्वोपरि रहता हैं। विद्वत्जनों द्वारा पत्थरों से कूटकर आपका रस निकाला जाता है और उसे हाथों से जल में मिलाकर भूमि के पृष्ठ भाग पर स्थापित किया जाता है।[ऋग्वेद 9.79.4]
Hey Som! Your segment staying at high locations, accepted as offerings and above all in the heavens. The learned crush you with stones and extract juice, mixed it with water with hands and established over the surface of earth.
एवा त इन्दो सुभ्वं सुपेशसं रसं तुञ्जन्ति प्रथमा अभिश्रियः।
निदंनिदं पवमान नि तारिष आविस्ते शुष्मो भवतु प्रियो मदः॥
हे सोम! आप हमारे शत्रुओं का संहार करने वाले है। यज्ञ के विस्तृत स्थल पर याजकगण एकत्रित होकर आपके आनन्द प्रदान करने वाले, बलदायक एवं उज्ज्वल रस को निकालते हैं।[ऋग्वेद 9.79.5]
Hey Som! You are destroyer of the enemies. The Ritviz collect at the broad Yagy site and extract your gladdening, mighty bright sap.(16.08.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (80) :: ऋषि :- वसु, भारद्वाज; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- जगति।
सोमस्य धारा पवते नृचक्षस ऋतेन देवान् हवते दिवस्परि।
बृहस्पते रवथेना वि दिद्युते समुद्रासो न सवनानि विव्यचुः॥
यज्ञ के द्वारा देवताओं को सुख प्रदान करने वाला, याजकों का द्रष्टा सोम अपनी धाराओं से क्षरित हो रहा है। जिस प्रकार पृथ्वी पर समुद्र व्याप्त है, उसी प्रकार यज्ञ में सोमरस व्याप्त है। स्वर्ग में स्थित इस सोम को बृहस्पति अपनी स्तुतियों द्वारा प्रकाशित करते हैं।[ऋग्वेद 9.80.1]
Visionary of Yagyik Som is granting pleasure to demigods-deities with its reducing streams. The way ocean pervade the earth Somras pervade the Yagy. Brahaspati present in the heaven illuminate Som with his prayers-Stuties.
यं त्वा वाजिन्न घ्न्या अभ्यनूषतायोहतं योनिमा रोहसि द्युमान्।
मघोनामायुः प्रतिरन् महि श्रव इन्द्राय सोम पवसे वृषा मदः॥
हे सोम! याजकों को अन्न, बल, सुख और आयु प्रदान करने वाले जब स्तोत्रों द्वारा अविनाशी वाणियों से आपकी प्रार्थना की जाती है, तब आप दीप्त और सुसंस्कारित होकर तेजस्वी होकर यज्ञ स्थल पर प्रतिष्ठित होते हैं।[ऋग्वेद 9.80.2]
Hey Som! When the Ritviz pray to you for food grains, strength, comforts and longevity with Strotrs in immortal voice, you illuminate, become majestic, sanctifies and establish at the Yagy site.
एन्द्रस्य कुक्षा पवते मदिन्तम ऊर्ज वसानः श्रवसे सुमङ्गलः।
प्रत्यङ स विश्वा भुवनाभि पप्रथे क्रीळन् हरिरत्यः स्यन्दते वृषा॥
समस्त जगत् में व्याप्त होने वाला हरिताभ सोम बलशाली और चपल अश्व के सदृश यज्ञस्थल पर क्रीड़ा करता है। इन्द्र देव की प्रसन्नता के लिए इसे निचोड़ा जाता है। यह सोमरस सभी भुवनों को प्रकाशित करते हुए उनका उत्तमरूप से कल्याण करता है।[ऋग्वेद 9.80.3]
Greenish Som pervading the whole universe play at the Yagy site like a powerful horse. Its squeezed for the happiness of Indr Dev. Then, Somras illuminate all abodes leading to their excellent welfare.
तं त्वा देवेभ्यो मधुमत्तमं नरः सहस्त्रधारं दुहते दश क्षिपः।
नृभिः सोम प्रच्युतो ग्रावभिः सुतो विश्वान् देवाँ आ पवस्वा सहस्रजित्॥
याजक अपनी दसों अँगुलियों के द्वारा हजारों धाराओं वाले मधुर सोमरस को देवताओं के लिए निचोड़ते हैं। हे सोम! पत्थरों से कूटकर याजकों द्वारा निकाले गए आप इन्द्रादि देवगणों को हजारों प्रकार से विजय दिलाने वाला रस प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.80.4]
Yagyik squeeze sweet Somras with ten fingers for the demigods-deities possessing thousands of streams. Hey Som! Grant juice extracted by crushing you with stones for the victory of demigods-deities in thousands of ways.
तं त्वा हस्तिनो मधुमन्तमद्रिभिर्दुहन्त्यप्सु वृषभं दश क्षिपः।
इन्द्रं सोम मादयन् दैव्यं जनं सिन्धोरिवोर्मिः पवमानो अर्षसि॥
इन्द्रादि देवगणों को हर्ष प्रदान करने वाला यह सोम समुद्र की लहरों की तरह पवित्र होकर प्रवाहित होता है। श्रेष्ठ बाहुओं वाले याजक पत्थरों से कूटकर निचोड़े गए सोमरस को अपनी दसों अँगुलियों द्वारा जल में मिश्रित करते हैं।[ऋग्वेद 9.80.5]
Somras flow like the waves of ocean on being sanctified, granting pleasure to Indr dev and other deities. Somras crushed with stones best hands, squeezed with ten fingers and is mixed in water.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (81) :: ऋषि :- वसु, भरद्वाज; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- जगति, त्रिष्टुप्।
प्र सोमस्य पवोमानस्योर्मय इन्द्रस्य यन्ति जठरं सुपेशसः।
दध्ना यदीमुन्नीता यशसा गवां दानाय शूरमुदमन्दिषुः सुताः॥
शोधित सोमरस की सुन्दर धाराएँ इन्द्र देव के उदर में प्रवेश कर रही हैं। गौ के दही के साथ जब इस सोमरस को मिलाया जाता है, तब हर्षित होकर इन्द्र देव अपने याजकों की कामनाओं को पूर्ण करते हैं।[ऋग्वेद 9.81.1]
Streams of purified Somras enter the stomach of Indr Dev. When its served to Indr Dev by mixing in curd, happily he fulfil the desires of the Ritviz.
अच्छा हि सोमः कलशाँ असिष्यददत्यो न वोळ्हा रघुवर्तनिर्वृषा।
अथा देवानामुभयस्य जन्मनो विद्वाँ अश्नोत्यमुत इतश्च यत्॥
जिस प्रकार रथ को खींचने वाला अश्व तेज गति से जाता है, उसी प्रकार उत्तम विधि द्वारा यह सोमरस कलशों में स्थापित होता है। कामनाओं को पूर्ण करने वाला यह बलशाली सोम द्युलोक पृथ्वीलोक में व्याप्त मनुष्यों और देवगणों को आनन्द प्रदान करने वाला है।[ऋग्वेद 9.81.2]
The way a horse pulling the charoite moves with fast speed, Somras is similarly filled in the Kalash with best methods. Accomplishing desires this powerful Som gladdens the demigods & humans pervading the heavens & earth.
आ नः सोम पवमानः किरा वस्विन्दो भव मघवा राधसो महः।
शिक्षा वयोधो वसवे सु चेतुना मा नो गयमारे अस्मत्परा सिचः॥
हे सोम देव! आप हमें प्रचुर धन और अन्नादि प्रदान करें। आप हमारे लिए मंगलकारी ज्ञानयुक्त धन प्राप्त कराएँ। वह धन हमसे कभी भी दूर न हो।[ऋग्वेद 9.81.3]
Hey Som Dev! Grant us sufficient food grains and wealth etc. Grant us wealth associated with enlightenment-learning. Do not let the wealth depart us.
आ नः पूषा पवमानः सुरातयो मित्रो गच्छन्तु वरुणः सजोषसः।
बृहस्पतिर्मरुतो वायुरश्विना त्वष्टा सविता सुयमा सरस्वती॥
पोषणकारी पूषादेव, मित्र, वरुणदेव, बृहस्पतिदेव, मरुत्, वायुदेव, अश्विनीकुमारों, त्वष्टा, सविता और सरस्वती देवी आदि हमारे यज्ञगृह में हमारे पास पधारें।[ऋग्वेद 9.81.4]
Let nourishing Pusha Dev, Mitr, Varun Dev, Marud Gan, Vayu Dev, Ashwani Kumars, Twasta, Savita and Devi Saraswati come to us, in our Yagy house.
उभे द्यावापृथिवी विश्वमिन्वे अर्यमा देवो अदितिर्विधाता।
भगो नृशंस उर्व१न्तरिक्षं विश्वे देवाः पवमानं जुषन्त॥
सर्वव्यापी द्युलोक और पृथ्वीलोक, अर्यमादेव, प्रकृतिदेवी, विधातादेव, भग और मनुष्यों द्वारा प्रशंसित यह विशाल अन्तरिक्ष आदि सभी देव-समुदाय इस सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 9.81.5]
Let all pervading heavens & earth, Aryma Dev, Prakrati Devi, Vidhata Dev, Bhag and humans, vast space and demigods-deities drink this Somras.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (82) :: ऋषि :- वसु, भरद्वाज; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- जगति, त्रिष्टुप्।
असावि सोमा अरुषो वृषा हरी राजेव दस्मो अभि गा अचिक्रदत्।
पुनानो वारं पर्येत्यव्ययं श्येना न योनिं घृतवन्तमासदम्॥
राजा के सदृश बलवान और ओजस्विता से युक्त हरिताभ सोम गौ दुग्ध में मिश्रित होकर शब्दनाद करता हुआ पवित्र होकर छलनी द्वारा शोधित किया जाता है। जलयुक्त पात्र में वह सोम बाज पक्षी के सदृश गमन करता है।[ऋग्वेद 9.82.1]
Mighty like a king, majestic, greenish Som is filtered through a sieve, mixed with cow's milk when it make loud sound. Som move like falcon in a pot full of water.
कविर्वेधस्या पर्येषि माहिनमत्यो न मृष्टो अभि वाजमर्षसि।
अपसेधन्दुरिता सोम मृळय घृतं वसानः परि यासि निर्णिजम्॥
हे सोम! यज्ञ की इच्छा से जल से युक्त आप छन्ने में शोधित होकर, रण में प्रस्थान करने वाले अश्व के सदृश वेगपूर्वक स्थिर होते हैं। हे सोम देव! आप हमें पापों से मुक्त करते हुए सुखी करें।[ऋग्वेद 9.82.2]
Hey Som! With the desire of Yagy, you possess water, filtered and establish like a horse moving to war field. Hey Som Dev! Relieve us from sins and grant us comforts.
पर्जन्यः पिता महिषस्य पर्णिनो नाभा पृथिव्या गिरिषु क्षयं दधे।
स्वसार आपो अभि गा उतासरन्त्सं ग्रावभिर्नसते वीते अध्वरे॥
सोम के उत्पत्तिकारक जल की वर्षा करने वाले बादल ही हैं। पृथ्वी के नाभिस्थान पर अवस्थित पर्वतों पर सोम निवास करता है। वह गौ दुग्ध, जल और प्रार्थनाओं को प्राप्त कर यज्ञस्थल में स्थित होता है।[ऋग्वेद 9.82.3]
The clouds rain to evolve Som. Som reside over the naval of the earth. It accepts cow's milk, water and prayers to settle over the Yagy site.
जायेव पत्यावधि शेव मंहसे पज्राया गर्भ शृणुहि ब्रवीमि ते।
अन्तर्वाणीषु प्र चरा सु जीवसेऽनिन्द्यो वृजने सोम जागृहि॥
जिस प्रकार पत्नी अपने पति को सुख प्रदान करती है, उसी प्रकार याजक को सोम सुख प्रदान करता है। हे पर्जन्य पुत्र सोमदेव! आप हमारे जीवन के लिए उत्पन्न होते हैं। हे स्तुत्य सोम देव! हम जीवन भर सुखी रहें। हमारी प्रार्थनाओं को ग्रहण करने वाले आप हमारे शत्रुओं पर सदैव दृष्टि रखें।[ऋग्वेद 9.82.4]
The way a wife comfort her husband, the Ritviz grant pleasure to Som. Hey Som, son of Parjany! You evolve for our life. Hey worshipable Som Dev! We should be comfortable throughout the life. Responding to our prayers keep an eye over our enemies.
यथा पूवेभ्यः शतसा अमृध्रः सहस्त्रसाः पर्यया वाजमिन्दो।
एवा पवस्व सुविताय नव्यसे तव व्रतमन्वापः सचन्ते॥
हे सोम! जिस प्रकार ऋषियों ने हजारों प्रकार का धन दिया, उसी प्रकार का धन आप हमें भी प्रदान करें और ज्ञान की प्यास बुझाने वाले याजकगणों को आप अपना सुखदायी रस प्रदान करें। आपका व्रत यज्ञीय कर्म के अनुरूप पूर्ण हों।[ऋग्वेद 9.82.5]
Hey Som! The way the Rishis granted thousands of kinds of wealth, similarly you grant us wealth and gladdening juice to the Ritviz who want to acquire knowledge. Let your efforts be according to the Yagy Karm.(17.08.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (83) :: ऋषि :- पवित्र, आंगिरस; देवता :-पवमान, सोम; छन्द :- जगति।
पवित्रं ते विततं ब्रह्मणस्पते प्रभुर्गात्राणि पर्येषि विश्वतः।
अतप्ततनूर्न तदामो वि अश्नुते शृतास इद्वहन्तस्तत्समाशत॥
हे सोम देव! आपकी पवित्र दीप्ति सर्वत्र विद्यमान है। आप स्तोत्ररूपी मन्त्रों के स्वामी हैं। आप जैसे बलशाली का जो पान करता है, आप उसकी शरीर में बल की वृद्धि करते हैं। विद्वान याजक ही आपके तेज को धारण करने में समर्थ होते हैं। यज्ञहीन याजक आपके तेज को प्राप्त नहीं कर सकते।[ऋग्वेद 9.83.1]
Hey Som Dev! Your pious majesty pervades every where. You are the lord of Mantr Shakti. You increase-boost the strength of one who drinks Somras. Only enlightened are capable of bearing your majesty. A person who is not devoted to Yagy can never attain your majesty.
तपोष्पवित्रं विततं दिवस्पदे शोचन्तो अस्य तन्तवो व्यस्थिरन्।
अवन्त्यस्य पवीतारमाशवो दिवस्पृष्ठमधि तिष्ठन्ति चेतसा॥
सोम के पवित्र अंग शत्रुओं को संताप देने के लिए द्युलोक में फैले हैं। इसकी उज्ज्वल किरणें आकाश के पृष्ठ भाग पर स्थित हैं। शीघ्र गमन करने वाला सोमरस याज्ञिकों को संरक्षित करता है।[ऋग्वेद 9.83.2]
Pious organs of Som are spreaded over the heavens to tease-torture the enemy. Its bright rays are present over the frontal of the sky. Fast moving Somras protects the Yagyik.
अरूरुचदुषसः पृश्विरग्रिय उक्षा बिभर्ति भुवनानि वाजयुः।
मायाविनो ममिरे अस्य मायया नृचक्षसः पितरो गर्भमा दधुः॥
यह सोम ही सूर्यरूप में प्रकाशित होकर वृष्टिकारक हुआ, यह सोम प्राणिमात्र को जल के द्वारा पोषक अन्न प्रदान करता है। यह सोम ही संसार का निर्माण करने वाला है। इस सोम की प्रेरणा से ही देवगणों ने मनुष्यों के लिए औषधियों में गुणों को स्थापित किया।[ऋग्वेद 9.83.3]
Som illuminate as the Sun leading to rain fall. It grant nourishment to living beings through food grains. It develops the universe. Deities have developed the medicinal properties for humans by virtue of inspiration of Som.
गन्धर्व इत्था पदमस्य रक्षति पाति देवानां जनिमान्यद्भुतः।
गृभ्णाति रिपुं निधया निधापतिः सुकृत्तमा मधुनो भक्षमाशत॥
सोम को सत्यरूप सूर्यदेव संरक्षित करते हैं। शत्रुओं को पाश में बाँधने वाला जो सोम देवगणों के अनुयायियों की रक्षा करता है, श्रेष्ठ यज्ञीय कर्म करने वाले ही इस सोम के मधुर रस को प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 9.83.4]
Truthful Sury Dev protects Som. Som ties the enemies in cords protecting the followers of demigods. Only those who perform excellent Yagy Karm, can have Somras.
हविर्हविष्मो महि सद्म दैव्यं नभो वसानः परि यास्यध्वरम्।
राजा पवित्ररथो वाजमारुहः सहस्त्रभृष्टिर्जयसि श्रवो बृहत्॥
जिस प्रकार रथ पर आरूढ़ राजा संग्राम से अन्नों को जीतकर लाता है, उसी प्रकार जल में मिलकर सोम पवित्र जल के साथ यज्ञस्थल में प्रतिष्ठित होता है।[ऋग्वेद 9.83.5]
The way a kings riding the charoite win food grains in the war, similarly Som mixed in water is established at the Yagy site.(18.08.2024M)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (84) :: ऋषि :- प्रजापति, वाच्य; देवता :-पवमान, सोम; छन्द :- जगति।
पवस्व देवमादनो विचर्षणिरप्सा इन्द्राय वरुणाय वायवे।
कृधी नो अद्य वरिवः स्वस्तिमदुरुक्षितौ गृणीहि दैव्यं जनम्॥
हे सोम! आप सबको देखने और जलधाराओं को प्रवाहित करने वाले इन्द्र देव, वरुण देव एवं वायु देव आदि देवगणों को अपना रस प्रदान कर प्रसन्न करें। हमें धनादि प्रदान करने वाला सोम याजकों के लिए देवगणों को इस भूमि पर सुखी बनावे।[ऋग्वेद 9.84.1]
Hey Som! Grant your sap to Indr Dev, Varun Dev, Vayu Dev and demigods-deities who keep watching everyone and maintain the flow of water streams. Let Som who grant us wealth etc. make the demigods-deities happy over this land, for the Yagyik.
आ यस्तस्थौ भुवनान्यमर्यो विश्वानि सोमः परि तान्यर्षति।
कृण्वन्त्संचृतं विचृतमभिष्टय इन्दुः सिषक्त्युषसं न सूर्यः॥
कभी नष्ट न होने वाला सोम समस्त लोकों में व्याप्त है, वह देवगणों के उपासकों को संरक्षण प्रदान कर उनके कुविचारों को दूर करता हुआ उनमें प्रवेश करता है। जिस प्रकार उषा के साथ सूर्यदेव रहते हैं, उसी प्रकार कामनाओं की पूर्ति करने वाला सोम यज्ञ में रहता है।[ऋग्वेद 9.84.2]
Never loosing-immortal Som pervade all abodes. It grants protection to the worshipers of demigods-deities and enter them releasing wicked ideas. The way Usha accompany Sury Dev, desires accomplishing Som remain with Yagy.
आ यो गोभिः सृज्यत ओषधीष्वा देवानां सुम्न इषयन्नुपावसुः।
आ विद्युता पवते धारया सुत इन्द्रं सोमो मादयन्दैव्यं जनम्॥
इन्द्रादि देवगणों को प्रसन्न करने वाला धारा के रूप में अपना रस प्रदान करता हुआ सोम गौ दुग्ध के साथ औषधियों में मिलाया जाता है। देवगणों को प्राप्त करने की इच्छा से यह सोम शत्रुओं को पराजित करके उनके धनों को प्राप्त करने में समर्थ होता है।[ऋग्वेद 9.84.3]
Gladdening the demigods-deities Som flow its sap in the form a stream is mixed with cow's milk and medicines. Som possess the desires of meeting the demigods-deities is capable of defeating the enemies and obtain their wealth.
एष स्य सोमः पवते सहस्त्रजिद्धिन्वानो वाचमिषिरामुषर्बुधम्।
इन्दुः समुद्रमुदियर्ति वायुभिरेन्द्रस्य हार्दि कलशेषु सीदति॥
याजकों को स्तुति के लिए प्रेरित करने वाला यह रसयुक्त सोम हजारों प्रकार के ऐश्वयों पर विजय प्राप्त करता है। यह उषा के समय में जाग्रत होने की प्रेरणा देता है और वायु के द्वारा प्रवृद्ध हुआ हजारों धाराओं के साथ आगमन करता हुआ इन्द्र देव के लिए कलश में स्थापित होता है।[ऋग्वेद 9.84.4]
Som possessing sap-juice inspire the Yagyik for worship win thousands of grandeur. It inspire to wake up with Usha & enriched by Vayu Dev arrive for Indr Dev and is collected in the Kalash.
अभि त्यं गावः पयसा पयोवृधं सोमं श्रीणन्ति मतिभिः स्वर्विदम्।
धनंजयः पवते कृत्व्यो रसो विप्रः कविः काव्येना स्वर्चनाः॥
ज्ञानवर्द्धक स्तुतियों के साथ गौएँ अपने दुग्ध में सोम को मिलाती हैं। शत्रुओं के धनों को जीतने वाला सोम स्तुत्य होने पर पौष्टिक अन्न से युक्त रस प्रदान करता है।[ऋग्वेद 9.84.5]
Cows add Somras in their milk with enlightening Stuties. Winner of the enemies wealth Som grant juice along with nourishing food grains.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (85) :: ऋषि :- वेन, भार्गव; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- जगति, त्रिष्टुप्।
इन्द्राय सोम सुषुतः परि स्त्रवापीमीवा भवतु रक्षसा सह।
मा ते रसस्य मत्सत द्वयाविनो द्रविणस्वन्त इह सन्त्विन्दवः॥
हे सोम! इन्द्र देव के पीने के लिए प्रवाहित होने वाले राक्षस और रोग दोनों ही आपके प्रभाव से नष्ट हो जाएँ। कपट करने वाले पापी आपको प्राप्त न कर पावें। आपके रस का पान करने वाले पापी किसी प्रकार का सुख प्राप्त न करें।[ऋग्वेद 9.85.1]
Hey Som! You flow for Indr Dev. Let the demons and ailments destroy due to your impact. Do not let the deceptive people have you. The sinners consuming you should not get any sort of comfort.
अस्मान्त्समर्ये पवमान चोदय दक्षो देवानामसि हि प्रियो मदः।
जहि शत्रूँरभ्या भन्दनायतः पिबेन्द्र सोममव नो मृधो जहि॥
हे पवमान सोमदेव! हमारे शत्रुओं पर विजयी होने वाले, हमें युद्ध के लिए प्रेरित करने वाले, आप देवताओं को आनन्दित करने वाले हैं। हम आपकी प्रार्थना करते हैं। हे इन्द्र देव! आप सोमरस का पान करके हमारे शत्रुओं को पराजित करें।[ऋग्वेद 9.85.2]
Hey Pawman Som Dev! You help us win the enemy, inspire us for the war and gladden the demigods-deities. We worship you. Hey Indr Dev! Drink Somras and destroy our enemies.
अदब्ध इन्दो पवसे मदिन्तम आत्मेन्द्रस्य भवसि धासिरुत्तमः।
अभि स्वरन्ति बहवो मनीषिणो राजानमस्य भुवनस्य निंसते॥
संसार के स्वामी सोम देव की विद्वत्जन स्तुति करते हैं। ज्ञानी लोग इन भुवनों के राजा सोम की स्तुति करते हैं। हिंसा रहित यह सोम इन्द्र देव के लिए अपना आनन्दप्रदायक रस प्रदान करता है।[ऋग्वेद 9.85.3]
The enlightened worship the lord of universe Som Dev. The scholars-learned worship Som, the king of these abodes. Non violent Som grant gladdening sap for Indr Dev.
सहस्रणीथः शतधारो अद्भुत इन्द्रायेन्दुः पवते काम्यं मधु।
जयन्क्षेत्रमभ्यर्षा जयन्नप उरुं नो गातुं कृणु सोम मीढः॥
हे सोम! आप अनगिनत धाराओं से स्रवित होकर इन्द्र देव के लिए अपना दिव्य रस प्रदान करते हैं। रणक्षेत्र में विजेता होकर आगे बढ़ते हुए आप बादलों के सदृश सुखों की वर्षा करें और हमारे लिए खेत और जलों पर अधिकार करते हुए हमारे गमन योग्य मार्ग को विस्तृत करें।[ऋग्वेद 9.85.4]
Hey Som! You grant your divine sap to Indr Dev, flowing in numerous streams. Winning the battle field you should shower comforts for us like rainclouds, occupy the water bodies, make our fields and walkable path broad-large.
कनिक्रदत्कलशे गोभिरज्यसे व्य१व्ययं समया वारमर्षसि।
मर्मृज्यमानो अत्यो न सानसिरिन्द्रस्य सोम जठरे समक्षरः॥
हे सोम! आप गौ दुग्ध में मिलकर शब्दनाद करते हुए और ऊन की बनी छलनी से गमन करते हुए कलश में स्थापित होते हैं। अश्व के सदृश परिष्कृत होकर आप इन्द्र देव के उदर को सिंचित करते हैं।[ऋग्वेद 9.85.5]
Hey Som! You are collected in the Kalash after being filtered in woollen sieve, mixed with cow's milk, making loud sound. On being refined like a horse you fill the belly of Indr Dev.
स्वादुः पवस्व दिव्याय जन्मने स्वादुरिन्द्राय सुहवीतुनाम्ने।
स्वादुर्मित्राय वरुणाय वायवे बृहस्पतये मधुमाँ अदाभ्यः॥
हे सोम! आप दिव्यता प्राप्त करने वाले देवगणों के लिए अपना मधुर रस प्रदान करें। पुण्यशील इन्द्र देव के लिए सुस्वादु रस प्रदान करें। मित्र, वरुण देव, वायु देव और बृहस्पति देव आदि के लिए अमृत के सदृश मधुर रस प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.85.6]
Hey Som! Grant your sweet sap to demigods-deities to attain divinity. Grant your tasty sap to Indr Dev. Grant nectar-elixir like sweet sap to Mitr, Varun Dev, Vayu Dev and Brahaspati Dev.
अत्यं मृजन्ति कलशे दश क्षिपः प्र विप्राणां मतयो वाच ईरते।
पवमाना अभ्यर्षन्ति सुष्टुतिमेन्द्रं विशन्ति मदिरास इन्दवः॥
दसों अँगुलियों से शोधित और कलश में स्थित सोमरस की याजकगण प्रार्थना करते हैं। पवित्र सोमरस उन प्रार्थनाओं को सुनता है। इसी सोमरस का पान करके इन्द्र देव प्रसन्न होते हैं।[ऋग्वेद 9.85.7]
The Ritviz worship Somras sanctified with ten fingers & kept in the Kalash. Pious Som listen to their prayers. Indr Dev gladden by drinking this Somras.
पवमानो अभ्यर्षा सुवीर्यमुर्वीं गव्यूतिं महि शर्म सप्रथः।
माकिर्ने अस्य परिषूतिरीशतेन्दो जयेम त्वया धनंधनम्॥
हे पवित्र, श्रेष्ठ, पराक्रमी और महान् सोम! आप हमारे लिए सुख प्रदान करने वाला विस्तृत मार्ग दिखाएँ। आपके संरक्षण में रहकर हम सभी प्रकार का धन प्राप्त करें। कोई हिंसाकारी इस धन को छीनने न पाए।[ऋग्वेद 9.85.8]
Hey pious, excellent, magnificent great Som! Show us broad path for granting us all kinds of pleasure-comforts. Let us attain all sorts of wealth under your patronage. Do not let a violent person snatch this wealth.
अधि द्यामस्थाषभो विचक्षणोऽरूरुचद्वि दिवो रोचना कविः।
राजा पवित्रमत्येति रोरुवद्दिवः पीयूषं दुहते नृचक्षसः॥
बलवान् और सर्वद्रष्टा सोम द्युलोक में स्थित होकर अपने तेज से नक्षत्रादि को प्रकाशित करते हैं। अमृत के सदृश अपना रस प्रदान करने वाले इस सोम को देवताओं ने यज्ञ स्थल पर अलग-अलग निष्पन्न किया। छलनी से शोधित होते समय शब्दनाद करता हुआ यह पात्र में एकत्रित होता है।[ऋग्वेद 9.85.9]
Mighty and watching all, Som stay in the heavens and illuminate the constellations with his majesty. The demigods-deities extracted the nectar-elixir like Somras at the Yagy site, separately. Its filtered & collected in the pot making loud sound.
दिवो नाके मधुजिह्वा असश्चतो वेना दुहन्त्युक्षणं गिरिष्ठाम्।
अप्सु द्रप्सं वावृधानं समुद्र आ सिन्धोरूर्मा मधुमन्तं पवित्र आ॥
अपनी जिल्ह्वा द्वारा मधुर वचन बोलने वाले ऋषिगण पर्वतों पर निवास करने वाले, जल द्वारा बढ़ने वाले मधुर सोमरस को सागर की लहरों में मिलाकर पवित्र करते हैं।[ऋग्वेद 9.85.10]
The Rishi Gan residing over the mountains speaking sweet words, increasing its quantum, purify the sweet Somras mixing it with ocean water.
नाके सुपर्णमुपपप्तिवांसं गिरो वेनानामकृपन्त पूर्वीः।
शिशुं रिहन्ति मतयः पनिप्नतं हिरण्ययं शकुनं क्षामणि स्थाम्॥
विद्वत्जन आदिकाल से स्वर्ग में उत्पन्न सोम की प्रार्थना करते आए हैं। स्वर्ण जैसा उज्ज्वल, बलशाली, शब्द युक्त, बालक के समान संस्कारी सोम यज्ञस्थल में स्थापित होकर स्तुतियाँ प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 9.85.11]
The scholars have been worshiping Som evolved in the heaven, ever since. Bright like gold, mighty, making sound, innocent like an infant, virtuous Som is established at the Yagy site and listen to the Stuties.
ऊध्वों गन्धर्वो अधि नाके अस्थाद्विश्वा रुपा प्रतिचक्षाणो अस्य।
भानुः शुक्रेण शोचिषा व्यद्यौत्यारूरुचद्रोदसी मातरा शुचिः॥
सूर्य की किरणों को धारित करने वाला सोम द्युलोक के ऊपर ऊँचे स्थान में रहकर सूर्य देव के अनेकानेक रूपों को देखता है। सूर्य देव तेजस्वी प्रकाश से चमकते हैं। माता के तुल्य द्युलोक और पृथ्वीलोक को तेजस्वी सूर्यदेव प्रकाशित करते हैं।[ऋग्वेद 9.85.12]
Bearer of the Sun rays, Som stationed at a high altitude, watch Sury Dev in multiple forms. Sury Dev shine with bright light. Sury Dev illuminate the motherly heavens & the earth.(18.08.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (86) :: ऋषि :- अकृष्टा माषा, सिकता निवावरी, पृश्नि, अजा, थापा,जान, कृत्समद, शनिका; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- जगति।
प्र त आशवः पवमान धीजवो मदा अर्षन्ति रघुजाइव त्मना।
दिव्याः सुपर्णा मधुमन्त इन्दवो मदिन्तमासः परि कोशमासते॥
हे सोम! तेज चलने वाले अश्व के सदृश आपका आनन्ददायी रस व्यापक मन के वेग से प्रवाहित हो रहा है। दिव्य तेज और ज्ञान से युक्त यह मधुर सोमरस प्रसन्न होकर कलश में प्रविष्ट होता है।[ऋग्वेद 9.86.1]
Hey Som! Your gladdening juice, fast moving like a horse, flow with the speed of innerself. Sweet Somras possessing divine majesty and enlightenment, gladden and enter the Kalash.
प्र ते मदासो मदिरास आशवोऽसृक्षत रथ्यासो यथा पृथक्।
धेनुर्न वत्सं पयसाभि वज्रिणमिन्द्रमिन्दवो मधुमन्त ऊर्मयः॥
जिस प्रकार गौएँ अपने दुग्ध से बछड़ों को तृप्त करती हैं, उसी प्रकार गतिमान् रथ में जुड़े अश्वों के समान धारारूप में प्रवाहित होने वाला सोमरस वज्रधारी इन्द्र देव को तृप्त करता है।[ऋग्वेद 9.86.2]
The way cows satisfy their calf, similarly Somras flowing in streams, horses deployed in the accelerated charoite, satisfy Vajr wielding Indr Dev.
अत्यो न हियानो अभि वाजमर्ष स्वर्वित्कोशं दिवो अद्रिमातरम्।
वृषा पवित्रे अधि सानो अव्यये सोमः पुनान इन्द्रियाय धायसे॥
युद्ध में प्रस्थान करने वाले अश्व के सदृश यह सोम गमन करता है और द्युलोक में स्थित बादलों द्वारा जलसंचय करने के समान पात्र में स्थापित होता है। यह वर्षणशील सोम इन्द्र देव के लिए छलनी से शोधित होता है।[ऋग्वेद 9.86.3]
Som moves like the horse going to battle field and establish in the pot like water collecting clouds present in the heavens. Showering Som is purified in the sieve for Indr Dev.
प्र त आश्विनीः पवमान धीजुवो दिव्या असृग्रन् पयसा धरीमणि।
प्रान्तऋषयः स्थाविरीरसृक्षत ये त्वा मृजन्त्यृषिषाण वेधसः॥
वाणी प्रवाह के समान सोम के दिव्य रस की धाराएँ कलश में गिरती हैं। उस सोम को निष्पन्न करने वाले विद्वान ऋषिगण उसे ऊपर से धारारूप में पात्र में डालते हैं।[ऋग्वेद 9.86.4]
Streams of divine Som fall in the pot like the flow of words. The enlightened Rishi Gan pour Somras extracted by them in the pot like a current.
विश्वा धामानि विश्वचक्ष ऋभ्वसः प्रभोस्ते सतः परि यन्ति केतवः।
व्यानशिः पवसे सोम धर्मभिः पतिर्विश्वस्य भुवनस्य राजसि॥
हे सोम! संसार के अधिष्ठाता के रूप में सुशोभित होने वाले आप विधि अनुसार शोधित होते हैं। आपकी कभी विनाश न होने वाली किरणों का प्रकाश चारों ओर व्याप्त है।[ऋग्वेद 9.86.5]
Hey Som! You are glorified like the lord-head of the universe and sanctified as per procedures. Your immortal-imperishable rays pervade all around.
उभयतः पवमानस्य रश्मयो ध्रुवस्य सतः परि यन्ति केतवः।
यदी पवित्रे अधि मृज्यते हरिः सत्ता नियौना कलशेषु सीदति॥
हरिताभ पवित्र सोम पात्रों में स्थिर होता है। चारों ओर व्याप्त उसकी किरणें प्रकाश को फैलाती हुई सभी को उज्ज्वल करती हैं।[ऋग्वेद 9.86.6]
Greenish virtuous Somras is kept in the pots. Rays of Som pervading in four directions brighten-illuminate every one.
यज्ञस्य केतुः पवते स्वध्वरः सोमो देवानामुप याति निष्कृतम्।
सहस्त्रधारः परि कोशमर्षति वृषा पवित्रमत्येति रोरुवत्॥
यज्ञ को प्रकाशित करने वाला यज्ञकर्ता याजक सोम को निचोड़कर देवगणों को उसका रस प्रदान करता है। शब्दनाद करता और हजारों धाराओं से शोधित हुआ यह पवित्र सोम पात्रों में प्रवेश करता है।[ऋग्वेद 9.86.7]
The performer of Yagy-Ritviz squeeze Som and give it to demigods-deities. Pious Som enters the pots making loud sound in thousands of currents.
राजा समुद्रं नद्यो३ विगाहतेऽपामूर्मिं सचते सिन्धुषु श्रितः।
अध्यस्थात्सानु पवमानो अव्ययं नाभा पृथिव्या धरुणो महो दिवः॥
यह राजा सोम जल में उसी प्रकार मिलता है, जिस प्रकार नदियाँ समुद्र में मिल जाती हैं। द्युलोक को धारण करने और पृथ्वीलोक के नाभिरूप में निवास करने वाला सोमरस छलनी
में छनकर पवित्र होता है।[ऋग्वेद 9.86.8]
King Som mixes with water like the rivers immersing in the ocean. Supporting the heavens, residing in the navel of the earth its sanctified by filtering in sieve.
दिवो न सानु स्तनयन्नचिक्रदद् द्यौश्च यस्य पृथिवी च धर्मभिः।
इन्द्रस्य सख्यं पवते विवेविदत्सोमः पुनानः कलशेषु सीदति॥
अपने बल द्वारा द्युलोक और पृथ्वी लोक को धारण करने वाला सोम स्वर्ग के उच्चासन की इच्छा करता हुआ एवं इन्द्र देव की मित्रता चाहते हुए शब्दनाद करता है। उस सोम का मधुर रस छलनी द्वारा छनकर कलश में प्रतिष्ठित होता है।[ऋग्वेद 9.86.9]
Supporting the heavens and earth Som desire high place-position in the heaven and make loud sound expecting the friendship of Indr Dev. Sweet extract of Som is filtered in the sieve and collected in the Kalash.
ज्योतिर्यज्ञस्य पवते मधु प्रियं पिता देवानां जनिता विभूवसुः।
दधाति रत्नं स्वधयोरपीच्यं मदिन्तमो मत्सर इन्द्रियो रसः॥
हे ऐश्वर्यवान् सोमदेव! देवगणों के यज्ञों के पालक आप ही हैं। आपका रस देवताओं को अत्यन्त प्रिय है। अन्तरिक्ष और भूलोक के गुप्त वैभव को याजकों के लिए प्रदान करते है; क्योंकि आप इन्द्र देव के अत्यन्त प्रिय हैं।[ऋग्वेद 9.86.10]
वैभव :: महिमा, शान, प्रमुखता, समृद्धि, शक्ति, श्रेष्ठता, ऐश्वर्य, धन-दौलत, सुख-शांति; majesty, regalia, pomp, magnificence, splendour, assets, glory, property.
Hey grandeur possessing Som! You are the nurturer of the Yagy of demigods-deities. Your sap-juice is loved by the deities. You grant the hidden grandeur of space-heavens & earth to the Ritviz-worshipers, since your are very dear to Indr Dev.
अभिक्रन्दन् कलशं वाज्यर्षति पतिर्दिवः शतधारो विचक्षणः।
हरिर्मित्रस्य सदनेषु सीदति मर्मृजानोऽविभिः सिन्धुभिर्वृषा॥
हजारों धाराओं द्वारा शोधित, ज्ञानी, बलवान, हरिताभ सोम शब्दनाद करता हुआ कलश में स्थापित होता है। जल मिश्रित एवं छलनी द्वारा शोधित सोमरस इच्छापूर्ति के लिए यज्ञपात्र में प्रतिष्ठित होता है।[ऋग्वेद 9.86.11]
Sanctified in thousands of currents, enlightened, mighty greenish Som make loud sound while collecting in the Kalash. For the fulfilment of desires Somras mixed in water is kept in the Yagy pot.(20.08.2024)
अग्रे सिन्धूनां पवमानो अर्षत्यग्रे वाचो अग्रियो गोषु गच्छति।
अग्रे वाजस्य भजते महाधनं स्वायुधः सोतृभिः पूयते वृषा॥
हे सोम! याजकों द्वारा शोधित किए जाने वाले जल में मिलने से पूर्व शोधित होने के लिए और स्तुतियों को प्राप्त करने के लिए आपको पूज्यभाव से आमन्त्रित किया जाता है। श्रेष्ठ आयुधों से युक्त शौर्य के लिए गौवों को संरक्षण प्रदान करते हुए आप प्रवाहित होते हुए ऐश्वर्य प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 9.86.12]
Hey Som! You are worshiped with honour-respect prior to sanctification, initiating Stuties, mixing in water meant. While flowing you grant grandeur accompanied with best weapons and valour to provide protection to cows.
अयं मतवाञ्छकुनो यथा हितोऽव्ये ससार पवमान ऊर्मिणा।
तव क्रत्वा रोदसी अन्तरा कवे शुचिर्धिया पवते सोम इन्द्र ते॥
यज्ञस्थल पर प्रतिष्ठित हुए हे स्तुत्य सोम! बाज पक्षी जिस प्रकार द्रुतगामी होता है, उसी प्रकार छलनी द्वारा आप पात्र में जाते हैं। हे इन्द्रदेव! आपके सुकर्मों से ही द्युलोक और पृथ्वीलोक के मध्य यह पवित्र सोम प्रार्थनाओं के साथ शोधित होता है।[ऋग्वेद 9.86.13]
Established at the Yagy site, hey Som! The way falcon moves fast, similarly you move out of the sieve with great speed. Hey Indr Dev! By virtue of your virtuous deeds pious Som is sanctified between the heavens and earth with prayers.
द्रापिं वसानो यजतो दिविस्पृशमन्तरिक्षप्रा भुवनेष्वर्पितः।
स्वर्जज्ञानो नभसाभ्यक्रमीत्प्रत्नस्य पितरमा विवासति॥
स्वर्ग को स्पर्श करने वाले रक्षा कवच को धारण करने वाले सोम अपने प्रकाश से अन्तरिक्ष को भर देते हैं। सुख प्रदान करने वाला यह सोम आकाश मार्ग से जल के साथ संचरित होकर (यज्ञस्थल) में आगमन करता है। इस प्रकार यह जल उत्पन्न करने वाले देवगणों की सेवा करता है।[ऋग्वेद 9.86.14]
Som wearing the protection shield touching heavens, fill the space with its light. Pleasure granting Som travels through the space with water, arrive at the Yagy site, and serve the demigods-deities.
सो अस्य विशे महि शर्म यच्छति यो अस्य धाम प्रथमं व्यानशे।
पदं यदस्य परमे व्योमन्यतो विश्वा अभि सं याति संयतः॥
इन्द्र देव के शरीर में सर्वप्रथम प्रविष्ट होने वाला सोम उन्हें सुख प्रदान करते हुए तृप्ति प्रदान करता है। स्वर्ग में निवास करने वाले इस सोम से आनन्दित होकर इन्द्र देव सभी संग्रामों में जाते हैं।[ऋग्वेद 9.86.15]
Somras enters the body of Indr Dev and grant him satisfaction along with pleasure.
Gladdened by the resident of heavens Som, Indr Dev goes to all wars-battles.
प्रो अयासीदिन्दुरिन्द्रस्य निष्कृतं सखा सख्युर्न प्र भिनाति संगिरम्।
मर्यइव युवतिभिः समर्षति सोमः कलशे शतयाम्ना पथा॥
इन्द्र देव के उदर में पहुँचने वाला सोम उनको कोई दुःख नहीं देता। जिस प्रकार युवा पुरुष स्त्रियों के साथ घुल-मिलकर रहता है, उसी प्रकार यह सोम जल में मिलकर छलनी के हजारों छिद्रों से निकलकर कलश में प्रवेश करता है।[ऋग्वेद 9.86.16]
Som entering Indr Dev's stomach do not trouble-harm him. The way a young man mixes with the women, Som mixed in water, filtered through thousands of holes in the sieve and enters the Kalash.
प्र वो धियो मन्द्रयुवो विपन्युवः पनस्युवः संवसनेष्वक्रमुः।
सोमं मनीषा अभ्युनूषत स्तुभोऽभि धेनवः पयसेमशिश्रयुः॥
हे सोम! आपके याजक जब यज्ञस्थल पर यज्ञ करते हैं, तब मननशील याजकगण तरंगित होकर आपकी प्रार्थना करते हैं, उस समय गौएँ दुग्ध के साथ आपको संयुक्त करती है।[ऋग्वेद 9.86.17]
Hey Som! When your Ritviz accomplish Yagy at the Yagy site, the thoughtful Ritviz worship you under emotions. You are mixed in cow's mix at that moment.
आ नः सोम संयतं पिप्युषीमिषमिन्दो पवस्व पवमानो अस्रिधम्।
या नो दोहते त्रिरहन्नसश्चुषी क्षुमद्वाजवन्मधुमत्सुवीर्यम्॥
हे पवित्र सोम देव! आप दिन के तीनों सवनों में प्रयुक्त जो अन्न प्रसंशित, बलवर्द्धक, मधुर और उत्तम पुत्र प्रदान करने वाला है, हमारे उस पोषक अन्न को आप अपनी तरंगों से शुद्ध करें।[ऋग्वेद 9.86.18]
Hey pious Som Dev! Purify our nourishing appreciable, strength boosting, sweet and excellent sons granting food grains with your waves; used during the three segments of the day.
वृषा मतीनां पवते विचक्षणः सोमो अह्नः प्रतरीतोषसो दिवः।
क्राणा सिन्धूनां कलशाँ अवीवशदिन्द्रस्य हार्धाविशन्मनीषिभिः॥
सूर्यदेव के बल से युक्त, याजकगणों की कामनाओं को पूर्ण करने वाला यह सोम छलनी द्वारा छाना जाता है। नदियों के जलों में मिलकर, उद्गाताओं द्वारा शोधित यह सोमरस इन्द्र देव के उदर में जाने की इच्छा से पात्र में स्थित होता है।[ऋग्वेद 9.86.19]
Som accompanied with the strength of Sury Dev, accomplish the desires of Ritviz and is filtered through the sieve. Somras mixed in river water, purified by those who recite Mantr in loud voice, possess the desire of reaching Indr Dev's stomach.
मनीषिभिः पवते पूर्व्यः कविनृभिर्यतः परि कोशाँ अचिक्रदत्।
त्रितस्य नाम जनयन्मधु क्षरदिन्द्रस्य वायोः सख्याय कर्तवे॥
याजकों द्वारा कलश में एकत्रित किया गया शोधित सोमरस तीनों लोकों में पूजित इन्द्र देव की ख्याति बढ़ाता हुआ और उनको तृप्त करने के लिए वायु देव के साथ शब्दनाद करता हुआ प्रवाहित होता है।[ऋग्वेद 9.86.20]
Sanctified and worshiped Somras collected in the Kalash boost the glory of Indr Dev in three abodes, satisfy him and flow making loud sound with Vayu Dev.(21.08.2024)
अयं पुनान उषसो वि रोचयदयं सिन्धुभ्यो अभवदु लोककृत्।
अयं त्रिः सप्त दुदुहान आशिरं सोमो हदे पवते चारु मत्सरः॥
उषा देवी को प्रकाशित करने वाला यह पवित्र सोम नदियों को वृद्धि करने वाला और हृदय में प्रवेश करने के लिए इक्कीस घटकों को पुष्ट करता हुआ प्रवाहित होता है।[ऋग्वेद 9.86.21]
घटक :: अवयव, अंश, भाग, मतदाता, निर्वाचक व्यक्ति, प्रतिनिधि, जासूस, आढ़ती; components, ingredient, constituent, agent.
पुष्ट :: मोटा ताजा एवं बलवान, बलिष्ठ, जिसमें कोई कोर–कसर न हो, पक्का; athletic, robust.
Pious Som illuminate Usha Devi, boosts rivers and enters the heart making twenty one components strong.
पवस्व सोम दिव्येषु धामसु सृजान इन्दो कलशे पवित्र आ।
सीदन्निन्नन्द्रस्य जठरे कनिक्रदन्नृभिर्यतः सूर्यमारोहयो दिवि॥
हे सोम! यज्ञस्थल में आप अपना दिव्य रस प्रवाहित करें। कलश में एकत्र हुआ यह पवित्र सोम इन्द्र देव के उदर में शब्दनाद करता हुआ जाता है। याजकों द्वारा यज्ञ में प्रतिष्ठित इस सोम को द्युलोक में स्थित सूर्य देव को अर्पित किया जाता है।[ऋग्वेद 9.86.22]
Hey Som! Flow your divine sap. Somras kept in the Kalash make loud sound while entering the stomach of Indr Dev. Established in the Yagy by the Yagyik, Somras is offered to Sury Dev in the heaven.
अद्रिभिः सुतः पवसे पवित्र आँ इन्दविन्द्रस्य जठरेष्वविशन्।
त्वं नृचक्षा अभवो विचक्षण सोम गोत्रमङ्गिरोभ्योऽ वृणोरप॥
पत्थरों द्वारा कूटकर निकाला गया शोधित सोमरस इन्द्र देव के उदर में प्रविष्ट होता है। सबको देखने वाले हे सोम! अंगिराओं के लिए गौवों की रक्षा करने वाला रस आप अपने निकट रखते हैं।[ऋग्वेद 9.86.23]
Extracted by crushing with stones Somras enters the stomach of Indr Dev. Visualising all, Hey Som! You keep sap protecting the cows of Angiras, close to you.
त्वां सोम पवमानं स्वाध्योऽनु विप्रासो अमदन्नवस्यवः।
त्वां सुपर्ण आभरद्दिवस्परीन्दो विश्वाभिर्मतिभिः परिष्कृतम्॥
हे पवित्र सोम! विद्वान याजक अपनी रक्षा की कामना से आपकी स्तुतियाँ करते हैं। आप स्तुतियों द्वारा हर्षित होते हैं। बाज पक्षी आपको स्वर्ग से लेकर आया है।[ऋग्वेद 9.86.24]
Hey pious Som! Learned Yajak-Ritviz worship you with Stuties for their protection. You become happy by the Stuties. Falcon has brought you from the heavens.
अव्ये पुनानं परि वार ऊर्मिणा हरिं नवन्ते अभि सप्त धेनवः।
अपामुपस्थे अध्यायवः कविमृतस्य योना महिषा अहेषत॥
ऊन की छलनी के द्वारा शोधित हुए हरिताभ सोम को सप्त नदियाँ प्राप्त करती हैं। जल में विद्यमान ज्ञानवर्द्धक सोम को मनीषीगण यज्ञस्थल में जाने के लिए प्रेरित करते हैं।[ऋग्वेद 9.86.25]
Greenish Som filtered in woollen sieves is obtained by the rivers. Enlightenment generating Som present in water, inspire the intellectuals to move to the Yagy site.
इन्दुः पुनानो अति गाहते मृधो विश्वानि कृण्वन्सुपथानि यज्यवे।
गाः कृण्वानो निर्णिजं हर्यतः कविरत्यो न क्रीळन् परि वारमर्षति॥
शत्रुओं का दमन करने वाला यह शोधित सोमरस याजकों के लिए उत्तम मार्ग निर्मित करता है। यह सोम गौवों के समान अपने स्वरूप को पवित्र बनाकर सुशोभित होता है और अश्व के समान क्रीड़ा करता हुआ पात्रों में प्रतिष्ठित होता है।[ऋग्वेद 9.86.26]
Destroyer of the enemies, sanctified Som prepare excellent road (path-way to enlightenment) for the Ritviz. Som makes its form pious like the cows and become playful like the horse entering the pots.
असश्चतः शतधारा अभिश्रियो हरिं नवन्तेऽव ता उदन्युवः।
क्षिपो मृजन्ति परि गोभिरावृतं तृतीये पृष्ठे अधि रोचने दिवः॥
हजारों धाराओं से प्रवाहित होने वाले हरिताभ सोम के चारों ओर सूर्य की किरणें विद्यमान रहती है। मंत्रयुक्त दिव्य वाणियाँ सोमरस को शुद्ध करती हैं। यह सोम द्युलोक के तीसरे स्थान पर प्रितिष्ठित होता है।[ऋग्वेद 9.86.27]
Rays of Sun remain present around greenish Som flowing in thousands of streams. Divine sound with Mantr Shakti purify the Somras. Som is present at the third level of heavens.
तवेमाः प्रजा दिव्यस्य रेतसस्त्वं विश्वस्य भुवनस्य राजसि।
अथेदं विश्वं पवमान ते वशे त्वमिन्दो प्रथमो धामधा असि॥
हे सोमदेव! आप समस्त संसार के अधिष्ठाता हैं और सभी लोकों के स्वामी हैं। आपके बल से ही समस्त मनुष्यों की उत्पत्ति हुई है। हे सोमदेव! आप ही संसार के धारणकर्ता हैं।[ऋग्वेद 9.86.28]
Hey Som Dev! You are the head of the universe and lord of all abodes. Your power has evolved the humans. You support the world.
त्वं समुद्रो असि विश्ववित्कवे तवेमाः पञ्च प्रदिशो विधर्मणि।
त्वं द्यां च पृथिवीं चाति जभ्रिषे तव ज्योतींषि पवमान सूर्यः॥
हे सर्वज्ञ सोमदेव! आप द्युलोक और पृथ्वीलोक के जलों को धारण करने वाले सभी दिशाओं में विद्यमान हैं। हे सोमदेव ! सूर्यदेव आपके तेज की वृद्धि करते हैं।[ऋग्वेद 9.86.29]
Hey all knowing Som Dev! You are present in all the directions holding water in the heavens and earth. Sury Dev, increase your majesty.
त्वं पवित्रे रजसो विधर्मणि देवेभ्यः सोम पवमान पूयसे।
त्वामुशिजः प्रथमा अगृभ्णत तुभ्येमा विश्वा भवनानि येमिरे॥
हे सोम! आपको छलनी द्वारा शोधित किया जाता है। मेधावी उपासक देवगणों के लिए आपको धारण करते हैं। आपके बल से ही सभी लोक स्थिर हैं।[ऋग्वेद 9.86.30]
Hey Som! Your are cleaned through a sieve, Demigods-deities support you for the intelligent worshipers. All abodes are stable by virtue of your strength-power.(22.08.2024)
प्र रेभ एत्यति वारमव्ययं वृणा वनेष्वव चक्रदद्धरिः।
सं धीतयो वावशाना अनूषत शिशुं रिहन्ति मतयः पनिम्नतम्॥
हरिताभ बलशाली सोम शब्दनाद करता हुआ जल में मिश्रित होता है और ऊन की छलनी द्वारा शोधित किया जाता है। याजक इस सोम की उत्तम प्रकार से प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 9.86.31]
Greenish mighty Som mixed with water making sound & is filtered through woollen sieve. Ritviz pray to Som in best possible manner.
स सूर्यस्य रश्मिभिः परि व्यत तन्तुं तन्वानस्त्रिवृतं यथा विदे।
नयन्नृतस्य प्रशिषो नवीयसीः पतिर्जनीनामुप याति निष्कृतम्॥
सूर्य की रश्मियों को आत्मसात् कर तीनों सवनों में यज्ञ की वृद्धि करने वाला सोम इच्छाओं को पूर्ण करता है। शोधित हुआ यह सोमरस पात्र में गिरता हुआ सबको जानता हुआ सर्वश्रेष्ठ पद पर प्रतिष्ठित होता है।[ऋग्वेद 9.86.32]
Som assimilate rays of Sun during the three segments of the day, boosting the Yagy and accomplishing desires. Somras falls into the pot recognising everyone and acquiring the best possible designation.
राजा सिन्धूनां पवते पतिर्दिव ऋतस्य याति पथिभिः कनिक्रदत्।
सहस्त्रधारः परि षिच्यते हरिः पुनानो वाचं जनयन्नुपावसुः॥
हजारों धाराओं से शब्दनाद करता हुआ यज्ञीय मार्गों से पात्रों में विराजित होने वाला हरिताभ सोम द्युलोक और जल का स्वामी है। यज्ञ में रहने की इच्छा वाला यह सोम प्रार्थनाओं द्वारा पात्र में गमन करता है।[ऋग्वेद 9.86.33]
Making sound having thousands of streams-currents, collected in the Yagy pots in the path of Yagy, greenish Som is the lord of heavens and the water. It moves to the pots on making prayers.
पवमान मह्यर्णो वि धावसि सूरो न चित्रो अव्ययानि पव्यया।
गभस्तिपूतो नृभिरद्रिभिः सुतो महे वाजाय धन्याय धन्वसि॥
हे सोम! आप रस की वर्षा करने वाले सूर्यदेव के सदृश पूजनीय हैं और ऊन की छलनी द्वारा पात्रों में गमन करते हैं। याजकों द्वारा पत्थरों से कूटकर निकाला गया सोमरस धन की प्राप्ति के लिए बड़े-बड़े युद्धों में प्रस्थान करता है।[ऋग्वेद 9.86.34]
Hey Som! You shower sap and is worshipable like the Sun. You are filtered in woollen sieve prior to moving into pots. Yagyik extract Somras by crushing with stones for gaining wealth, which further moves to big wars.
इषमूर्जं पवमानाभ्यर्षसि श्येना न वंसु कलशेषु सीदसि।
इन्द्राय मद्वा मद्यो मदः सुतो दिवो विष्टम्भ उपमो विचक्षणः॥
हे सोम! आप अन्न और बल की वृद्धि करने वाले हैं। बाज पक्षी जिस प्रकार अपने निवास स्थान पर रहता है, उसी प्रकार आप कलशों में रहते हैं। द्युलोक को धारित करने वाला यह सोम सर्वद्रष्ट है। यह सोमरस इन्द्र देव को आनन्द एवं उत्साह प्रदान करता है।[ऋग्वेद 9.86.35]
Hey Som! You increase food grains, and strength. The way a falcon reside in its nest, you reside in the Kalash. Supporter of heaven Som is visible to every one. It grants pleasure & enthusiasm to Indr Dev.
सप्त स्वसारो अभि मातरः शिशुं नवं जज्ञानं जेन्यं विपश्चितम्।
अपां गन्धर्वं दिव्यं नृचक्षसं सोमं विश्वस्य भुवनस्य राजसे॥
सभी लोकों पर शासन करने की इच्छा से देवगणों और मनुष्यों को देखने वाले जलमिश्रित सोम को यज्ञ में ऊँचे स्थान पर प्रतिष्ठित किया जाता है। सातों नदियाँ बालक के पास माता के जाने के सदृश इसके पास जाने के लिए गमन करती हैं।[ऋग्वेद 9.86.36]
With the desire of ruling all abodes viewer of heavens and humans, Som mixed in water is established at the highest place. Seven rivers move to it, like a child moves to his mother.
ईशान इमा भुवनानि वीयसे युजान इन्दो हरितः सुपर्ण्यः।
तास्ते क्षरन्तु मधुमद्धतं पयस्तव व्रते सोम तिष्ठन्तु कृष्टयः॥
हरिताभ वेगवान् अश्वों द्वारा सभी लोकों में व्याप्त, संसार के स्वामी हे तेजस्वी सूर्य रूप सोम! आपका रस जलधाराओं में स्थिर रहे और आपसे प्रेरित होकर याजकगण सत्कर्म में निरत रहें।[ऋग्वेद 9.86.37]
Hey lord of universe, like the majestic Sun, greenish Som you are established in all abodes by the accelerated horses! Let your sap-juice be stable in streams and the Ritviz should be inspired to be devoted to virtuous deeds.
त्वं नृचक्षा असि सोम विश्वतः पवमान वृषभ ता वि धावसि।
स नः पवस्व वसुमद्धिरण्यवद्वयं स्याम भुवनेषु जीवसे॥
हे बलप्रदायक और शोधित सोम! सभी में व्याप्त होने वाले आप हमारे निकट पधारें। आपकी कृपा से हम धन-सम्पदा से युक्त होकर सुखमय जीवन व्यतीत करें।[ऋग्वेद 9.86.38]
Hey strength granting and sanctified Som! Pervading all, you should come to us & be dissolved in every one. Let us have wealth and enjoy comfortable life due to your mercy.
गोवित्पवस्व वसुविद्धिरण्यविद्रेतोधा इन्दो भुवनेष्वर्पितः।
त्वं सुवीरो असि सोम विश्ववित्तं त्वा विप्रा उप गिरेम आसते॥
गो-दुग्ध में मिश्रित होने वाले हे सोम! आप स्वर्ण-सम्पदा से युक्त, पराक्रमी, सभी भुवनों में व्याप्त हैं। आप पवित्र हैं। आप सर्वज्ञ, शूरवीर एवं उत्तम मार्ग में ले जाने वाले हैं। सभी ऋत्विक्रगण आपकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 9.86.39]
Hey Som, mixed in cow's milk! You possess gold and wealth, valour & pervade all abodes. You are pious-pure. You are aware of everything, brave and lead us to excellent path. All Ritviz worship you.
उन्मध्व ऊर्मिर्वनना अतिष्ठिपदपो वसानो महिषो वि गाहते।
राजा पवित्ररथो वाजमारुहत्सहस्त्रभृष्टिर्जयति श्रवो बृहत्॥
जब जल में मिश्रित होकर सोम कलश में जाता है, तब उसकी मधुर धाराएँ शब्दनाद करती हैं। रथारूढ़ सोम जब युद्ध में जाता है, तब हजारों प्रकार का अन्न जीत लेता है।[ऋग्वेद 9.86.40]
When you enter the Kalash, your sweet streams on being mixed with water make loud sound. When Som ride horse and go to the battle field wins thousands of kinds of food grains.(23.08.2024)
स भन्दना उदियर्ति प्रजावतीर्विश्वायुर्विश्वाः सुभरा अहर्दिवि।
ब्रह्म प्रजावद्रयिमश्वपस्त्यं पीत इन्दविन्द्रमस्मभ्यं याचतात्॥
यह सोमदेव सुख प्रदान करने वाले व प्रजाओं के स्वामी हैं। स्तुतियाँ इन्हें प्रवृद्ध करती हैं। हे सोम! इन्द्र देव के द्वारा पान किए जाने पर आप हमें गृहादि से युक्त ऐश्वर्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.86.41]
Som Dev grant pleasure and is the lord of populace. Hey Som! On being drunk by Indr Dev you grant us grandeur along with house.
सो अग्रे अह्नां हरिर्हर्यतो मदः प्र चेतसा चेतयते अनु द्युभिः।
द्वा जना यातयन्नन्तरीयते नरा च शंसं दैव्यं च धर्तरि॥
याजकगणों की प्रातः कालीन प्रार्थनाओं के द्वारा यह सोम जाना जाता है, द्युलोक और पृथ्वीलोक के मध्य में स्थापित होता है तथा मनुष्यों और देवगणों को कर्मों में प्रेरित करता है।[ऋग्वेद 9.86.42]
Som is recognised through the morning prayers by Ritviz Gan. Established between heavens and earth, it inspire demigods-seities and humans to perform.
अञ्जते व्यञ्जते समञ्जते क्रतुं रिहन्ति मधुनाभ्यञ्जते।
सिन्धोरुच्छ्वासे पतयन्तमुक्षणं हिरण्यपावाः पशुमासु गृभ्णते॥
याजक गौ के दुग्ध में सोमरस को मिश्रित करते हैं। देवगण इस मधुर सोम का आस्वादन करते हैं। जिस प्रकार जल में जाकर पशु शुद्ध होते हैं, उसी प्रकार जल में मिलाकर सोम को शोधित किया जाता है।[ऋग्वेद 9.86.43]
Yagyik mix Somras in cow's milk. Demigods-deities enjoy this sweet Som. The way the animal are cleansed by entering in water, similarly Som is sanctified by mixing with water.
विपश्चिते पवमानाय गायत मही न धारात्यन्धो अर्षति।
अहिर्न जूर्णामति सर्पति त्वचमत्यो न क्रीळन्नसरषा हरिः॥
हे ऋत्विजों! आप पवित्र और शोधित सोम की प्रार्थना करें। यह सोम तीव्र धारा के सदृश अन्न प्रदत्त करता है। सर्प द्वारा केंचुली बदलने के समान यह अपनी पुरानी त्वचा का त्याग करता है। हरिताभ सोम अश्व के सदृश खेल करता हुआ कलश पात्र में स्थापित होता है।[ऋग्वेद 9.86.44]
Hey Ritviz! Worship pure and sanctified Som. Som grants food grains like the fast stream. It changes its skin like the old skin by the snake. Greenish Som enter Kalash like the playful horse.
अग्रेगो राजाप्यस्तविष्यते विमानो अह्नां भुवनेष्वर्पितः।
हरिघृतस्नुः सुदृशीको अर्णवो ज्योतीरथः पवते राय ओक्यः॥
सुन्दर, दर्शनीय, जल में निवास करने वाला, ज्योति के समान हरिताभ रथारूढ़ सोम धनागार स्वरूप है। यह राजा सोम जल में मिलकर प्रसन्न होता है।[ऋग्वेद 9.86.45]
Beautiful, presentable, resident of water, like rays of light, Som riding the charoite is like the treasure-wealth chest. King Som become happy by mixing in water.
असर्जि स्कम्भो दिव उद्यतो मदः परि त्रिधातुर्भुवनान्यर्षति।
अंशुं रिहन्ति मतयः पनिप्नतं गिरा यदि निर्णिजमृग्मिणो ययुः॥
आकाश को आधार प्रदान करने वाले सोम का रस निकाला जाता है। तीन कलशों में यह सोम स्थित रहता है। शब्दनाद करने वाले इस मेधावी सोम की ज्ञानी स्तोता प्रार्थना करते हैं और याजकगण स्तुतियों के द्वारा इस तेजस्वी सोम को प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 9.86.46]
The Som which grant stability to the sky is extracted for sap-juice. Its kept in three Kalash. The enlightened Stotas worship intelligent Som. The Yagyik attain this majestic Som by worship
प्र ते धारा अत्यण्वानि मेष्यः पुनानस्य संयतो यन्ति रंहयः।
यद्गोभिरिन्दो चम्वोः समज्यस आ सुवानः सोम कलशेषु सीदसि॥
हे सोम! जब आपको शोधित किया जाता है, तब आपकी प्रकाशमान् धाराएँ शब्दनाद एवं छन्ने को पार करती हुई गमन करती हैं। हे सोम! जल के साथ आपको पात्र में मिलाया जाता है, उस समय आप कलशों में प्रतिष्ठित होते हैं।
[ऋग्वेद 9.86.47]
Hey Som! When you are sanctified, your lightened-illuminated streams make sound while passing through the filter. Hey Som! You are mixed in water in the pot & established in the Kalash.
पवस्व सो क्रतुविन्न उक्थ्योऽव्यो वारे परि घाव मधु प्रियम्।
जहि विश्वान्रक्षस इन्दो अत्रिणो बृहद्वदेम विदथे सुवीराः॥
आप सभी कर्मों के ज्ञाता एवं प्रशंसा के योग्य हैं। इसलिए यज्ञ में आपका सिंचन किया जाता है। उसे प्रदान करने के निमित्त आप छलनी द्वारा प्रवाहित होते हैं। हे सोम देव! हमारे शत्रुओं का संहार करने वाले आप हमारे यज्ञ में पधारें। हम आपकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 9.86.48]
You know all deeds-efforts and deserve appreciation. You are watered in the Yagy. You pass through the sieve. Hey Som, destroyer of our enemies! Come to our Yagy responding to our prayers.(24.08.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (87) :: ऋषि :- उशना, काव्य; देवता :- पवमान, सोम; छन्द-त्रिष्टुप्।
प्र तु द्रव परि कोशं नि षीद नृभिः पुनानो अभि वाजमर्ष।
अश्वं न त्वा वाजिनं मर्जयन्तोऽच्छा बर्ही रशनाभिर्नयन्ति॥
हे सोम! याजकों द्वारा शोधित किए गए आप पात्र में स्थित हो तथा याजक को अन्न प्रदान करें। बलशाली अश्व के सदृश याजक आपको यज्ञस्थल पर ले जाते हैं।[ऋग्वेद 9.87.1]
Hey Som! Be established in the pot after being sanctified & grant food grains to the Yagyik. The Yagyik carry you to the Yagy site like a mighty horse.
स्वायुधः पवते देव इन्दुरशस्तिहा वृजनं रक्षमाणः।
पिता देवानां जनिता सुदक्षो विष्टम्भो दिवो धरुणः पृथिव्याः॥
उत्तम अस्त्र-शस्त्रों से संपन्न, शत्रुनाशक, विघ्नों को दूर कर उनसे संरक्षित करने वाला, पालन करने वाला, दिव्यता का विकास करने वाला, उत्तम बलवान दिव्य सोम को शोधित किया जाता है।[ऋग्वेद 9.87.2]
Possessing excellent arm & ammunition, destroyer of enemy, destroyer of obstacles, nurturer, developer of divinity, excellent mighty Som is sanctified.
ऋषिर्विप्रः पुरएता जनानामृभुर्धीर उशना काव्येन।
स चिद्विवेद निहितं यदासामपीच्य १ गुह्य नाम गौनाम्॥
गौवों में गुप्त रहने वाले सोम को प्रयत्नपूर्वक प्राप्त करने वाले उशना ऋषि परम मेधावी, धैर्यवान तथा नेतृत्व प्रदान करने वाले हैं।[ऋग्वेद 9.87.3]
Highly intelligent Rishi Ushna, patient and a leader, make efforts to attain Som who reside amongest the cows secretly.
एष स्य ते मधुमाँ इन्द्र सोमो वृषा वृष्णे परि पवित्रे अक्षाः।
सहस्त्रसाः शतसा भूरिदावा शश्वत्तमं बर्हिरा वाज्यस्थात्॥
हे इन्द्र देव! यह बलवर्धक सोम आपके लिए छन्ने में शोधित हुआ है। सैकड़ों और हजारों प्रकार का ऐश्वर्य प्रदान करने वाला यह बलशाली सोम यज्ञ में जाकर स्थित हो जाता है।[ऋग्वेद 9.87.4]
Hey Indr Dev! Strength increasing Som has seen sanctified for you with filter. Som granting hundreds & thousands kinds of grandeur establish in the Yagy.
एते सोमा अभि गव्या सहस्त्रा महे वाजायामृताय श्रवांसि।
पवित्रेभिः पवमाना असृग्रञ्छ्रवस्यवो न पृतनाजो अत्याः॥
जिस प्रकार शत्रुओं को जीतने वाले अश्व आगे बढ़ते हैं, उसी प्रकार गौ-गुग्ध में मिश्रित सोम छलनी से शोधित हो रहा है। अमृत तुल्य यह सोमरस बल के लिए अर्पित किया जा रहा है।[ऋग्वेद 9.87.5]
The way horse winning the enemies advance, similarly Som mixed in cow's milk pass though the sieve. Somras comparable to nectar-elixir is offered for the sake of might.
परि हि ष्मा पुरुहूतो जनानां विश्वासरद्धोजना पूयमानः।
अथा भर श्येनभृत प्रयांसि रयिं तुञ्जानो अभि वाजमर्ष॥
विद्वानों द्वारा परिष्कृत होने तथा यज्ञस्थल पर आगमन करने वाला सोम यजमानों को सभी प्रकार का अन्न प्रदान करता है। बाज पक्षी द्वारा लाए गए हे सोम! आप हमें रसरूप अन्न और धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.87.6]
On being sanctified by the scholars Som arriving at the Yagy site grant all sorts of food grains to the Ritviz. Hey Som brought by the falcon! Grant us food grains and wealth in the form of juice-sap.
एष सुवानः परि सोमः पवित्रे सर्गो न सृष्टो अदधावदर्वा।
तिग्मे शिशानो महिषो न शृङ्गे गा गव्यन्नभि शूरो न सत्वा॥
बन्धन से मुक्त हुआ अश्व जिस प्रकार दौड़ता है, उस प्रकार निष्पन्न सोम छन्ने की ओर जाता है। भैंसे द्वारा अपने सींगों को तीक्ष्ण बनाने के समान यह सोमरस गौ से संयुक्त होने की अभिलाषा से अपने निर्धारित स्थान पर जाता है।[ऋग्वेद 9.87.7]
The way a horse run after being released, sanctified Som move to the filter-sieve. Somras moves towards the cows like the buffalo who wish to make his horns sharp.
एषा ययौ परमादन्तरद्रेः कूचित्सतीरूर्वे गा विवेद।
दिवो न विद्युत्स्तनयन्त्यभैः सोमस्य ते पवत इन्द्र धारा॥
पर्वतों (मेघों) आदि से निकलकर प्रवाहित होने वाली सोमरस की धारा अन्य प्रदेशों से होती हुई गौवों को प्राप्त करती है। बादलों से प्रेरित होकर द्युलोक से विद्युत जैसी ध्वनि करती हुई सोमरस की धाराएँ इन्द्र देव के लिए प्रवाहित होती हैं।[ऋग्वेद 9.87.8]
Stream of Somras comes out of the mountains or clouds and reach cows, passing through various places. Inspired by the clouds, streams of Somras make sound like lightening and move towards Indr Dev.
उत स्म राशिं परि यासि गोनामिन्द्रेण सोम सरथं पुनानः।
पूर्वीरिषो बृहतीर्जीरदानो शिक्षा शचीवस्तव ता उपष्टुत्॥
हे सोम! आप इन्द्र देव के साथ शोधित रूप में रथ पर बैठकर जाते हैं। हे अन्नवान सोम! आप हमें धन और अन्न प्रदान करें। हम आपकी स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 9.87.9]
Hey Som! You occupy the charoite of Indr Dev in sanctified form and sit with him. Hey possessor of food grains Som! Grant us wealth & food grains. We worship-pray to you.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (88) :: ऋषि :- उशना, काव्य; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- त्रिष्टुप्।
अयं सोम इन्द्र तुभ्यं सुन्वे तुभ्यं पवते त्वमस्य पाहि।
त्वं ह यं चकृषे त्वं ववृष इन्द्रं मदाय युज्याय सोमम्॥
हे इन्द्र देव! आप जिस सोमरस का पान करने वाले हैं, वह आपके लिए निकाला जाता है। आप ही इसके उत्पादक हैं, इसलिए इस सोमरस को ग्रहण करें।[ऋग्वेद 9.88.1]
Hey Indr Dev! Som which you drink is extracted for you. Since you are its producer, accept it.
स ईं रथो न भुरिषाळयोजि महः पुरूणि सातये वसूनि।
आदीं विश्वा नहुष्याणि जाता स्वर्षाता वन ऊर्ध्वा नवन्त॥
जिस प्रकार रथ अधिक भार ग्रहण करता है, उसी प्रकार से ही यह महिमावान् सोम प्रचुर भार वहन करने वाला है। धन और ऐश्वर्य प्रदान करने वाले सोम को रथ के समान ही जोड़ा जाता है। युद्ध करने वाले योद्धा शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए इस सोम को रणक्षेत्र में ले जाते हैं।[ऋग्वेद 9.88.2]
The way a charoite carry more load, glorious Som carry sufficient load. Som granting wealth & grandeur is deployed with the charoite. Som is taken to war to win the enemy warriors.
वायुर्न यो नियुत्वाँ इष्टयामा नासत्येव हव आ शंभविष्ठः।
विश्ववारो द्रविणोदाइव त्मन्पूषेव धीजवनोऽसि सोम॥
वायुदेव की भाँति स्वेच्छा से गमन करने वाले सोम वेगवान अश्वों के चालक हैं। यह उसी प्रकार आगमन करते हैं, जिस प्रकार आवाहन करते ही अश्विनी कुमारों का आगमन होता है। हे धनदाता सोमदेव! आप पूषादेव के समान मनवेग से यज्ञस्थल पर पधारें।[ऋग्वेद 9.88.3]
Som is the drier of fast moving horses, who move freely like Vayu Dev. It moves just like Ashwani Kumars who arrive as soon as they are invoked. Hey wealth granting Som Dev! Come to the Yagy with speed of mind like Pusha Dev at the Yagy site.
इन्द्रो न यो महा कर्माणि चक्रिर्हन्ता वृत्राणामसि सोम पूर्भित्।
पैद्वो न हि त्वमहिनाम्नां हन्ता विश्वस्यासि सोम दस्योः॥
हे सोम देव! आप इन्द्रदेव के समान महान कर्म करने वाले और दुर्विचारों को शत्रुओं की भाँति नष्ट करने वाले हैं। आप शत्रुओं के नगरों को ध्वस्त करते हुए उनका संहार करते है। आप अश्व के समान अहि का भी संहार करें।[ऋग्वेद 9.88.4]
Hey Som Dev! You perform great deeds like Indr Dev and destroy the wicked thoughts-ideas like the enemy. You destroy the forts of the enemies while killing them. You should kill Ahi a demon, in the form of horse.
अग्निर्न यो वन आ सृज्यमानो वृथा पाजांसि कृणुते नदीषु।
जनो न युध्वा महत उपब्दिरियर्ति सोमः पवमान ऊर्मिम्॥
सोम वन में उत्पन्न होकर वन में उत्पन्न अग्नि देव द्वारा बल प्रदर्शन के सदृश अपनी शक्ति को प्रदर्शित करता है। रस की धाराओं को प्रेरित करने वाला वह निष्पन्न सोम वीर योद्धा के समान शत्रुओं का संहार करता है।[ऋग्वेद 9.88.5]
Som grow in the forest and exhibit-demonstrate its powers like Agni Dev. Inspiring the streams of sap-juice, extracted Som kills the enemies like brave warriors.
एते सोमा अति वाराण्यव्या दिव्या न कोशासो अभ्रवर्षाः।
वृथा समुद्रं सिन्धवो न नीचीः सुतासो अभि कलशाँ असृग्रन्॥
जलवृष्टि द्वारा जलों से पूर्ण नदियाँ जिस प्रकार सागर के पास जाती हैं, उसी प्रकार जल में मिला हुआ यह सोम दिव्य पात्रों में जाता है। यह अविनाशी सोम ऊन की छलनी से शोधित किया जाता है।[ऋग्वेद 9.88.6]
The way river full of water move to the ocean through rain fall, similarly Som mixed in water goes to divine pots. Immortal Som is filtered in woollen sieve.
शुष्मी शर्धो न मारुतं पवस्वानभिशस्ता दिव्या यथा विट्।
आपो न मक्षू सुमतिर्भवा नः सहस्त्राप्साः पृतनाषाण्न यज्ञः॥
हे बलशाली सोम! आप वायु देव के समान हमें बल प्रदान करें। युद्ध में विजय प्राप्त करने वाले इन्द्र देव के समान यज्ञ में पूजित होने वाले आप जल में प्रवाहित होकर हमें सुन्दर बुद्धि प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.88.7]
Hey mighty Som! Grant us strength like Vayu Dev. You being worshiped like Indr Dev, flow in water and grant us beautiful intelligence.
राज्ञो नु ते वरुणस्य व्रतानि बृहद्गभीरं तव सोम धाम।
शुचिष्टमसि प्रियो न मित्रो दक्षाय्यो अर्यमेवासि सोम॥
हे सोमदेव! आप श्रेष्ठ राजा हैं तथा महान्, तेजस्वी और गंभीर हैं। आप मित्र देवता के समान पवित्र हैं और अर्यमा के समान पूज्य हैं। हम सदैव आपके नियमों का पालन करते हैं।[ऋग्वेद 9.88.8]
Hey Som Dev! You are an excellent great king, great, majestic and serious. You are pure like Mitr dev and worshipable like Aryma. We always obey the laws-rules made by you.(25.08.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (89) :: ऋषि :- काव्य, काव्य; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- त्रिष्टुप्।
प्रो स्य वह्निः पथ्याभिरस्यान् दिवो न वृष्टिः पवमानो अक्षाः।
सहस्त्रधारो असदन्य १ स्मे मातुरुपस्थे वन आ च सोमः॥
यह सोम आकाश से होने वाली (जल) वर्षा के समान प्रवाहित होता है। अनेक मार्गों से आगमन करने वाला यह सोम विभिन्न धाराओं के रूप में हमें प्राप्त होता है।[ऋग्वेद 9.89.1]
Som flows like the rain from the sky. Arriving through many routes, Som is available to us in many streams.
राजा सिन्धूनामवसिष्ट वास ऋतस्य नावमारुहद्रजिष्ठाम्।
अप्सु द्रप्सो वावृधे श्येनजूतो दुह ई पिता दुह ईं पितुर्जाम्॥
गौ दुग्ध में मिश्रित होने वाला सोम जलों का राजा अथवा पयस्विनी गौवों का स्वामी है। बाज पक्षी द्वारा लाया गया सोम सत्यरूपी नौका द्वारा गमन करता है। द्युलोक से उत्पन्न हुए सोमरस को याज्ञिक निकालते हैं।[ऋग्वेद 9.89.2]
Som mixed in cows milk is the lord of water and milch cows. Brought by falcon, Som rides the boat in the form of truth. The Yagyik extract Somras grown in heavens.
सिंहं नसन्त मध्वो अयासं हरिमरुषं दिवो अस्य पतिम्।
शूरो युत्सु प्रथमः पृच्छते गा अस्य चक्षसा परि पात्युक्षा॥
जलों के प्रेरक, शत्रुहन्ता, प्रकाशक, हरिताभ सोमरस को याजक अपने अधीन करते हैं। यह सोम रणभूमि में प्रमुख वीर और देवगणों में श्रेष्ठ होकर पणियों द्वारा अपहृत गौवों के मार्ग को जानने की इच्छा करता है। इस सोमरस के बल से ही इन्द्रदेव सभी को संरक्षण प्रदान करते है।[ऋग्वेद 9.89.3]
The Yajak controls the greenish Som inspiring water, killer of enemy, illuminator. On becoming best amongest the warriors in battle field & the demigods desires to identify the route followed by the Pani-demons, who abducted the cows. Its due to Somras that Indr Dev grants asylum to everyone.
मधुपृष्ठं घोरमयासमश्वं रथे युञ्जन्त्युरुचक्र ऋष्वम्।
स्वसार ईं जामयो मर्जयन्ति सनाभयो वाजिनमूर्जयन्ति॥
उत्तम पीठ वाला, सुन्दर, गमनशील, मधुर, सोम कर्म में भयंकर है। यज्ञरूपी रथ में इस सोम को अश्व के समान नियोजित करते हैं। दसों अंगुलियाँ इसका मार्जन करती हैं। अध्वर्युगण इसके बल की वृद्धि करते हैं।[ऋग्वेद 9.89.4]
भयंकर :: उग्र, क्रूर, प्रखर, क्रुद्ध, चंड, घोर, महिमामय, घिनौना, डरावना, बड़ा भद्दा, ख़ौफ़नाक; terrifying, fierce, awful, hideous.
Possessor of best back, dynamic and performing furious jobs, Som is terrifying. Som is deployed as a horse in the Yagy which in the form of a charoite. Ten fingers scrub it. The priests increase tis strength.
चतस्र ईं घृतदुहः सचन्ते समाने अन्तर्धरुणे निषत्ताः।
ता ईमर्षन्ति नमसा पुनानास्ता ई विश्वतः परि षन्ति पूर्वीः॥
घृत का दोहन करने वाली चार गौएँ सोम से संयुक्त होतीं, उसके आश्रय में रहतीं तथा उसे प्राप्त करती हैं। ऐसी अनेक पावन गौएँ अपने दुग्ध द्वारा शोधन करने के निमित्त सोमरस को सभी ओर से आच्छादित करती हैं।[ऋग्वेद 9.89.5]
Four cows churning Ghee are associated with Som, remain in its protection and attain it. Many such pious cows cover Somras from all sides to purify it with their milk.
विष्टम्भो दिवो धरुणः पृथिव्या विश्वा उत क्षितयो हस्ते अस्य।
असत्त उत्सो गृणते नियुत्वान्मध्वो अंशुः पवत इन्द्रियाय॥
यह सोम द्युलोक और पृथ्वीलोक का आधार है। सभी मनुष्य सोम के ही हाथ में हैं। इन्द्र देव को प्रदान करने के लिए मधुर और उत्साहवर्द्धक सोम की प्रार्थना की जाती हैं। हे सोमदेव! आप (समस्त) शक्तियों के स्वामी हैं।[ऋग्वेद 9.89.6]
Som forms the basis of heavens and the earth. All humans are controlled by Som. Sweet and encouraging Som is offered to Indr Dev and is worshiped. Hey Som Dev! You are the lord of all powers.
वन्वन्नवातो अभि देववीतिमिन्द्राय सोम वृत्रहा पवस्व।
शग्धि महः पुरुश्चन्द्रस्य रायः सुवीर्यस्य पतयः स्याम॥
हे सोम! आप अजेय हैं, यज्ञस्थल पर जाकर वृत्र का संहार करने वाले इन्द्र देव के लिए आप अपना रस प्रदान करें। आप हमें उत्तम पराक्रम, श्रेष्ठ बल और ऐश्वर्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.89.7]
Hey Som! You are invincible, grant your sap to Indr Dev at the Yagy site to enable him to kill Vratr. Grant us excellent valour, might and grandeur.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (90) :: ऋषि :- वसिष्ठ, मित्र, वरुण; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- त्रिष्टुप्।
प्र हिन्वानो जनिता रोदस्यो रथो न वाजं सनिष्यन्नयासीत्।
इन्द्रं गच्छन्नायुधा संशिशानो विश्वा वसु हस्तयोरादधानः॥
द्युलोक और पृथ्वीलोक को परिपूर्ण करने वाला यह सोम याज्ञिकों द्वारा प्रेरित होकर रथ के समान अन्नों को वहन करता है। इन्द्र देव को प्राप्त होने वाला यह सोम संसार में समस्त वैभवों को लेकर हमारे निकट पधारे।[ऋग्वेद 9.90.1]
Som inspired by the Yagyik, support all food grains in the charoite meant for the heavens & earth. Som available to Indr Dev should bring all sorts of grandeur to us.
अभि त्रिपृष्ठं वृषणं वयोधामाङ्गुषाणामवारशन्त वाणीः।
वना वसानो वरुणो न सिन्धून्वि रत्नधा दयते वार्याणि॥
याजकों की वाणियाँ वरुण देव के समान जलों को आच्छादित करने वाले सोम की तीव्र स्वर में प्रार्थना करती हैं। यह सोम अपने स्तोताओं को रत्नादि से युक्त करता है। इसलिए तीनों सवनों में सोम की प्रार्थना की जाती हैं।[ऋग्वेद 9.90.2]
Voices of the Yajak cover the water like Varun Dev and pray to Som in loud voice. Som grants jewels to the Stotas. Hence, Som is worshiped during the three segments of the day.
शूरग्रामः सर्ववीरः सहावाञ्जेता पवस्व सनिता धनानि।
तिग्मायुधः क्षिप्रधन्वा समत्स्वषाळ्हः साह्वान्पृतनासु शत्रून्॥
हे सोम देव! आप स्तुति करने वालों को धन प्रदान करने वाले व वीरों से युक्त हैं। आप तीक्ष्ण आयुधों वाले, शीघ्रगामी, युद्धकला में दक्ष तथा शत्रुओं का संहार करने वाले हैं।[ऋग्वेद 9.90.3]
Hey Som Dev! You grant wealth to those who worship you has brave people with you. You expert-skilled in war fare, fast moving, destroy the enemies with sharp weapons.
उरुगव्यूतिरभयानि कृण्वन्त्समीचीने आ पवस्वा पुरंधी।
अपः सिषासन्नुषसः स्व १ र्गाः सं चिक्रदो महो अस्मभ्यं वाजान्॥
हे सोम देव! आप अपने याजकों को निर्भय बनाने के लिए विस्तृत मार्ग से आगमन कर घुलोक और पृथ्वीलोक को जोड़ने वाले हैं। जल, उषा, सूर्य की किरणें और गौवों द्वारा पोषित आप शब्दनाद करते हुए हमें प्रचुर धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.90.4]
Hey Som Dev! You make the Yajak fearless, come through vast path connecting the heavens and earth. Nourished-grown by water, Usha, rays of Sun; make loud sound. Grant us sufficient wealth.
मत्सि सोम वरुणं मत्सि मित्रं मत्सीन्द्रमिन्दो पवमान विष्णुम्।
मत्सि शर्धो मारुतं मत्सि देवान्मत्सि महामिन्द्रमिन्दो मदाय॥
हे पवमान सोम देव! आप वरुण देव, मित्र देव, इन्द्र देव, श्री विष्णु, मरुत् आदि सभी देवगणों को आनन्दित करते हैं। आनन्दित सभी देवता आपकी ही प्रशंसा करते हैं।[ऋग्वेद 9.90.5]
Hey Pawman Som Dev! You gladden Varun Dev, Mitr Dev, Indr Dev, Shri Hari Vishnu, Marud Gan etc. demigods. Gladdened demigods appreciate you.
एवा राजेव क्रतुमाँ अमेन विश्वा घनिघ्नहुरिता पवस्व।
इन्दो सूक्ताय वचसे क्यो घा यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
हे सोमदेव! यज्ञ करने वाले राजा आपकी प्रार्थना करते हैं। दुष्टों का विनाश करने वाले आप अपना मधुर रस और अन्न प्रदान करते हुए अपने मंगलकारी रक्षा-साधनों से हमारी रक्षा करें। हम उत्तम स्तोत्रों से आपकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 9.90.6]
Hey Som Dev! The king performing Yagy worship-pray to you. You destroy the wicked, grant sweet sap and food grains and protect us with welfare-beneficial means. We worship you with excellent Strotrs.(26.08.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (91) :: ऋषि :- कश्यप, मारीच; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- त्रिष्टुप्।
असर्जि वका रथ्ये यथाजौ धिया मनोता प्रथमो मनीषी।
दश स्वसारो अधि सानो अव्येऽजन्ति वहिं सदनान्यच्छ॥
जिस प्रकार रणभूमि से लौटने वाले अश्व को जल से स्नान कराया जाता है, उसी प्रकार शब्द करने वाले प्रिय सोम को यज्ञकर्म में प्रेरित किया जाता है। बहनों के सदृश दसों अंगुलियाँ छलनी के द्वारा सोम को अपने स्थान की ओर प्रेरित करती हैं।[ऋग्वेद 9.91.1]
The way the horse who return from the battle field is bathed, similarly dear Som making sound is inspired for Yagy Karm. Ten fingers motivate Som like sisters to move to its place through the sieve.
वीती जनस्य दिव्यस्य कव्यैरधि सुवानो नहुष्येभिरिन्दुः।
प्र यो नृभिरमृतो मत्येभिर्मर्मृजानोऽविभिर्गोभिरद्धिः॥
देवगणों के पान के लिए गमन करने वाला अविनाशी सोम को याजकों द्वारा शोधित किया जाता है। यह सोम छलनी द्वारा शोधित होकर तथा गौ-दुग्ध में मिश्रित होकर यज्ञस्थल पहुँचता है।[ऋग्वेद 9.91.2]
Dynamic immortal Som is sanctified for drinking by the demigods-deities. It is filtered through the sieve, mixed with cow's milk and then goes to the Yagy site.
वृषा वृष्णे रोरुवदंशुरस्मै पवमानो रुशदीर्ते पयो गोः।
सहस्रमृका पथिभिर्वचोविदध्वस्मभिः सूरो अण्वं वि याति॥
जल की वर्षा करने वाले इन्द्र देव के लिए अपने तेज को प्रकट करने वाला सोम शब्द करता हुआ शोधित होता है। गौ दुग्ध के साथ उसे मिलाया जाता है। हिंसा रहित और पराक्रमी सोम हजारों छिद्रों वाली छलनी से शुद्ध किया जाता है।[ऋग्वेद 9.91.3]
Majestic Som is sanctified making sound for rain showering Indr Dev. Its mixed with cow's milk. Non violent chivalric Som is purified in the sieve having thousands of holes.
रुजा दृळ्हा चिद्रक्षसः सदांसि पुनान इन्द ऊर्णुहि वि वाजान्।
वृश्चोपरिष्टात्तुजता वधेन ये अन्ति दूरादुपनायमेषाम्॥
हे सोम देव! आप राक्षसों के किलों को ध्वस्त करने वाले हैं। आप उनके अन्न और बल को भी नष्ट करें। जो राक्षस दूर से, निकट अथवा ऊपर से आगमन करते हैं, आप उन सभी को नष्ट कर दें।[ऋग्वेद 9.91.4]
Hey Som Dev! You are the destroyer of the forts of demons. Destroy their food grains and strength. Destroy the demons who come from far, near or the sky.
स प्रत्नवन्नव्यसे विश्ववार सूक्ताय पथः कृणुहि प्राचः।
ये दुष्षहासो वनुषा बृहन्तस्ताँस्ते अश्याम पुरुकृत्पुरुक्षो॥
सभी के स्तुत्य हे सोम देव! आप हमारे पुराने और नये सूक्तों को भी ग्रहण करें। आपका बल शत्रुओं के लिए अजेय और असह्य है। हम आपके उस शत्रुनाशक बल को आपसे प्राप्त करें।[ऋग्वेद 9.91.5]
Worshiped by all, hey Som Dev! Accept our new and old Sukt. Your might is invincible and unbearable for the enemy. Let us get that unbearable strength from you.
एवा पुनानो अपः स्वर्गा अस्मभ्यं तोका तनयानि भूरि।
शं नः क्षेत्रमुरु ज्योतीषि सोम ज्योङनः सूर्य दृशये रिरीहि॥
हे पवित्र सोम! शोधित होकर आप हमें सुवर्ण, गौएं, पुत्र, जल और सुख प्रदान करें। आप अन्तरिक्ष में स्थित नक्षत्रों की वृद्धि करें। हम चिरकाल तक सूर्यदेव के दर्शन करने में सक्षम हों।[ऋग्वेद 9.91.6]
Hey pious Som Dev! Grant us cows, son, water and comforts on being sanctified. Increase the constellations in the space. Let us become capable of seeing Sury Dev forever.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (92) :: ऋषि :- कश्यप, मारीच; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- त्रिष्टुप्।
परि सुवानो हरिरंशुः पवित्रे रथो न सर्जि सनये हियानः।
आपच्छ्लोकमिन्द्रियं पूयमानः प्रति देवाँ अजुषत प्रयोभिः॥
छन्ने द्वारा आगमन करता एवं पावन होता हुआ हरिताभ सोम स्तुतियों को सुनता है। वह हव्य रूप में इन्द्र देव आदि देवगणों की प्रसन्नता के लिए उनकी ओर गमन करता है।[ऋग्वेद 9.92.1]
Som listen to the Stuties while coming out of filter, being purified. It moves to Indr Dev and demigod-deities to gladden them as offering.
अच्छा नृचक्षा असरत्पवित्रे नाम दधानः कविरस्य योनौ।
सीदन् होतेव सदने चमूषूपेमग्मन्नृषयः सप्त विप्राः॥
जल में मिश्रित सोम जिस प्रकार छलनी में शोधित होता है, उसी प्रकार सबको देखने वाला सोम होता के समान यज्ञ में प्रतिष्ठित होता है। सात ज्ञानवान् याजक ऋषि स्तोत्रों को उच्चारण करते हुए सोम के पास बैठते हैं।[ऋग्वेद 9.92.2]
The way Som mixed in water look at everyone while being filtered in the sieve, similarly it is dignified-glorified in the Yagy. Seven learned Yagyik recite Strotrs and sit near Som.
प्र सुमेधा गातुविद्विश्वदेवः सोमः पुनानः सद एति नित्यम्।
भुवद्भिश्वेषु काव्येषु रन्तानु जनान्यतते पञ्च धीरः॥
उत्तम मार्गों को जानने वाला, उज्ज्वल, विद्वान, निष्पन्न सोम कलश में स्थापित होता है। स्तोत्रों को ग्रहण करने वाला यह धैर्यवान सोम पंचभूतों के अनुकूल होकर उनकी उन्नति का मार्ग बनाता है।[ऋग्वेद 9.92.3]
Aware of the best paths, illuminated, learned, extracted Som occupy the Kalash. Accepting the Strotrs, patient Som become favourable to the Panch Bhut and paves the way for their progress.
तव त्ये सोम पवमान निण्ये विश्वे देवास्त्रय एकादशासः।
दश स्वधाभिरधि सानो अव्ये मृजन्ति त्वा नद्यः सप्त यह्वीः॥
हे पवमान सोम! द्युलोक में तैंतीस कोटि देवता आपको अनश्वर शोधन प्रक्रिया द्वारा दसों अंगुलियों से शोधित करते हैं। सात विशाल धाराएँ जल के द्वारा आपका मार्जन करती हैं।[ऋग्वेद 9.92.4]
मार्जन :: साफ़ करना, धोना; wash, cleanse, wipe.
Hey Pawman Som! 33 crore demigods purify you with their immortal fingers in the heavens. Seven great streams cleanse you with water.
तन्नु सत्यं पवमानस्यास्तु यत्र विश्वे कारवः संनसन्त।
ज्योतिर्यदह्ने अकृणोदु लोकं प्रावन्मनुं दस्यवे करभीकम्॥
परस्पर साथ रहकर याजकगण जिस स्थान पर स्तुति करने की इच्छा करते हैं, वे ही इस पवमान सत्यरूप सोम का निवास स्थान होता है। दिन को प्रकाशित करने वाली जो सूर्यरूप सोम की ज्योति है, वह मनुष्यों को संरक्षित करती है। दस्युओं व दुष्टों के लिए सोम अपने तेज को विनाशक बनाता है।[ऋग्वेद 9.92.5]
The place where the Yagyik together mutually desire to worship-Stuti is the residence of Pawman truthful Som. The light of Som in the form of Sun protects the humans. The majesty of Som destroys the dacoits and the wicked.
परि सद्मेव पशुमान्ति होता राजा न सत्यः समितीरियानः।
सोमः पुनानः कलशाँ अयासीत्सीदन्मृगो न महिषो वनेषु॥
जिस प्रकार देवगणों का आवाहन करने वाले ऋत्विज यज्ञशाला में जाते हैं तथा सत्यकर्मी राजा जिस प्रकार रणभूमि में जाता है। भैंसा जिस प्रकार जल में प्रवेश करता है, उसी प्रकार यह क्षरणशील सोम कलशों में जाता है।[ऋग्वेद 9.92.6]
The way the Ritviz goes to Yagy Shala to invoke demigods, truthful king goes to battle field and male buffalo enters water, similarly reducing-receding Som enters the Kalash.(27.08.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (93) :: ऋषि :- नोधा, गौतम; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- त्रिष्टुप्।
साकमुक्षो मर्जयन्त स्वसारो दश धीरस्य धीतयो धनुत्रीः।
हरिः पर्यद्रवज्जाः सूर्यस्य द्रोणं ननक्षे अत्यो न वाजी॥
दसों अंगुलियाँ पराक्रमी सोमरस को पवित्र करती हैं, ये दस अंगुलियाँ वीर्यवान सोम को हिलाती और ग्रहण करती हैं। वेगवान् अश्व के समान यह हरिताभ सोम सभी दिशाओं में जाता हुआ कलश में स्थित होता है।[ऋग्वेद 9.93.1]
Ten fingers sanctify mighty Som, shake it and accept it. Moving like a fast moving horse greenish Som moves in all directions and ultimately settle in the Kalash.
सं मातृभिर्न शिशुर्वावशानो वृषा दधन्वे पुरुवारो अद्भिः।
मर्यो न योषामभि निष्कृतं यन्त्सं गच्छते कलश उस्त्रियाभिः॥
जिस प्रकार बालक माता से और पुरुष स्त्री से मिलता है, उसी प्रकार देवगणों की मनोकामना करने वाला, बलशाली तथा वरणीय सोम जल में मिलाकर धारण किया जाता है। संस्कार किए जाने वाले स्थान में पुनः गौ दुग्धादि से मिश्रित होकर अपने आश्रय स्थल कलश में प्रवेश करता है।[ऋग्वेद 9.93.2]
The way a child meets his mother & a husband meets his wife, similarly mighty & eligible Som desirous of meeting demigods-deities is mixed with water and held. After been sanctified it is mixed in cow's milk and held at its own place i.e., Kalash.
उत प्र पिप्य ऊधरघ्न्याया इन्दुर्धाराभिः सचते सुमेधाः।
मूर्धानं गावः पयसा चमूष्वभि श्रीणन्ति वसुभिर्न निक्तैः॥
जिन पोषक वनस्पतियों का गौएँ भक्षण करती हैं, उनमें बसा हुआ सोम उनके थनों को दुग्ध से परिपूर्ण करता है तथा दुग्ध की धाराओं में मिलाया जाता है। वस्त्रों द्वारा शरीर को ढाँपने के समान कलश में स्थित सोम को गौएँ अपने दुग्ध से आच्छादित करती हैं।[ऋग्वेद 9.93.3]
The nourishing vegetation eaten by the cows and Som present in them fills their udder with milk and then mixed in the streams of cow's milk. The cows cover Som present in the Kalash like the cloth covers the body.
स नो देवेभिः पवमान रदेन्दो रयिमश्विनं वावशानः।
रथिरायतामुशती पुरंधिरस्मद्र्य १ गा दावने वसूनाम्॥
हे सोम देव! आप मनोकामनाओं की पूर्ति करते हुए अश्वों से युक्त दैवी धन हमें प्रदान करें। आप महारथियों द्वारा धारण की जाने वाली मति हमें प्रदान करें, जिससे हम अपने धन को श्रेष्ठ कार्यों में प्रयुक्त कर सकें।[ऋग्वेद 9.93.4]
Hey Som Dev! Accomplish our desires and grant us divine wealth along with horses. Grant us the intelligence possessed by the stalwarts in the army so that we can properly-judiciously use our money.
नू नो रयिमुप मास्व नृवन्तं पुनानो वाताप्यं विश्वश्चन्द्रम्।
प्र वन्दितुरिन्दो तार्यायुः प्रातर्मक्षू धियावसुर्जगम्यात्॥
हे सोम देव! आप याजकों को दीर्घायु प्रदान करने वाले हैं। आप हमें संतति युक्त धन प्रदान करने वाला होकर हमारे यज्ञ में शीघ्र पधारें।[ऋग्वेद 9.93.5]
Hey Som Dev! You grant long age to the Ritviz. You should grant us progeny-son and wealth and join our Yagy quickly.(28.08.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (94) :: ऋषि :- कण्व, घोर; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- त्रिष्टुप्।
अधि यदस्मिन्वाजिनीव शुभः स्पर्धन्ते धियः सूर्ये न विशः।
अपो वृणानः पवते कवीयन्त्रजं न पशुवर्धनाय मन्म॥
जब यह सोम सूर्य देव की किरणों के समान उन्नत होता है, तब इसे अश्व के समान सुसज्जित करते हैं। उस समय परस्पर स्पर्धा करने वाली अंगुलियाँ सोम को सुसंस्कृत करती है। पशुओं के विचरण स्थल की भाँति यह सोम क्रांतदर्शी के तुल्य कलश में संचरित होता है।[ऋग्वेद 9.94.1]
When Som is raised like Sury Dev, its decorated like the horse. Ten fingers sanctify Som competing with each other. Illuminated Som moves-roam in the Kalash like the animals in grazing-open field.
द्विता व्यूर्वन्नमृतस्य धाम स्वर्विदे भुवनानि प्रथन्त।
धियः पिन्वानाः स्वसरे न गाव ऋतायन्तिरभि वावश्र इन्दुम्॥
जो सोम जल के धारण करने वाले अन्तरिक्ष को अपने तेज से आच्छादित करता है, उसके लिए सभी भुवन विस्तृत हो जाते हैं। उस समय यज्ञ की इच्छा करने वाली याजकों की वाणियाँ सोम की उसी प्रकार प्रार्थना करती हैं, जिस प्रकार से गौशाला में गौएँ ध्वनि (शब्द) करती है।[ऋग्वेद 9.94.2]
Som which support the space with its aura, leads to extension of all abodes. At that moment the Yagyik pray to Som like the cows mooing in the cow shed.
परि यत्कविः काव्या भरते शूरो न रथो भुवनानि विश्वा।
देवेषु यशो मर्ताय भूषन्दक्षाय रायः पुरुभूषु नव्यः॥
जिस प्रकार युद्ध में शूरवीरों के लिए रथ आभूषण की तरह होता है, उसी प्रकार दैवी धन मनुष्यों को विभूषित करता है। जिस समय मेधावी सोम स्तोत्रों को सुनता है, उस समय यज्ञों में धन की वृद्धि होती है।[ऋग्वेद 9.94.3]
The manner in which the charoite is like an ornament for the brave warriors in the battle field, in the way way divine wealth decorate the humans. When intelligent Som listen to the Strotr, wealth start increasing in the Yagy.
श्रिये जातः श्रिय आ निरियाय श्रियं वयो जरितृभ्यो दधाति।
श्रियं वसाना अमृतत्वमायन्भवन्ति सत्या समिथा मितद्रौ॥
यज्ञ में सोम की प्रार्थना धन की वृद्धि और समृद्धि के लिए की जाती है। यह सोम याजकों को दीर्घायु और अन्न प्रदान करता है। सोम की प्रार्थना करने वाले याजक अमरत्व को प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 9.94.4]
Som is worshiped in the Yagy for boosting wealth and prosperity. Som grants long age and food grains to the Ritviz. The Ritviz who worship Som attain immortality.
इषमूर्जमभ्य१र्षाश्वं गामुरु ज्योतिः कृणुहि मत्सि देवान्।
विश्वानि हि सुषहा तानि तुभ्यं पवमान बाधसे सोम शत्रून्॥
हे सोम देव! आप हमें अन्न और बल की वृद्धि करने वाला रस प्रदान करें। आप हमें गौ, अश्व और प्रकाश देने वाली सूर्य की रश्मियाँ प्रदान कर समस्त असुरों को पराजित करने वाले शत्रुओं पर विजय प्राप्त करके देवगणों को प्रसन्न करें।[ऋग्वेद 9.94.5]
Hey Som Dev! Grant us food grains and the sap which increases strength. Grant us cows, horses and illuminating rays of Sun & destroy the demons-giants who defeat all enemies pleasing the demigods-deities.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (95) :: ऋषि :- प्रस्कण्व, कण्व; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- त्रिष्टुप्।
कनिक्रन्ति हरिरा सृज्यमानः सीदन्वनस्य जठरे पुनानः।
नृभिर्यतः कृणुते निर्णिजं गा अतो मतीर्जनयत स्वधाभिः॥
मनुष्यों द्वारा शोधित किया जाता हुआ हरिताभ सोम अपने यथार्थ रूप को प्राप्त होता है। लकड़ी के पात्र में गौ दुग्ध मिश्रित यह सोमरस शब्द करता हुआ प्रवेश करता है। हवि अर्पित करते हुए याजक इसी की स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 9.95.1]
Greenish Som sanctified by the humans, attain its real status-form. Somras mixed with cow's milk enters the wooden pot making sound. The Ritviz recall worship Som while making offerings.
हरिः सृजानः पथ्यामृतस्येयर्ति वाचमरितेव नावम्।
देवो देवानां गुह्यानि नामाविष्कृणोति बर्हिषि प्रवाचे॥
जिस प्रकार नाविक नाव को चलाता है, उसी प्रकार शोधित हरिताभ सोम यज्ञ का मार्गदर्शन करने वाले स्तोत्रों को प्रेरित करता है और तेजस्वी सोम के गुप्त नामों का गुणगान करता है।[ऋग्वेद 9.95.2]
The way a boatsman row the boat, similarly greenish Som inspire the Strotr which guide the Yagy and describe-praise the secret names of majestic Som.
अपामिवेदूर्मयस्तर्तुराणाः प्र मनीषा ईरते सोममच्छ।
नमस्यन्तीरुप च यन्ति सं चा च विशन्त्युशतीरुशन्तम्॥
जल की तरंगों के सदृश याजकगण शीघ्रता से स्तुतियों को सोम की ओर प्रेषित करते हैं। सोम की इच्छा करने वाली स्तुतियाँ सोम के निकट गमन करती हैं और उसी में मिल जाती हैं।[ऋग्वेद 9.95.3]
The Ritviz quickly move towards Som like the waves in water. Stuties-prayers desirous of Som, move to it and merge in him.
तं मर्मृजानं महिषं न सानावंशं दुहन्त्युक्षणं गिरिष्ठाम्।
तं वावशानं मतयः सचन्ते त्रितो बिभर्ति वरुणं समुद्रे॥
भैंस को दूहने के समान पर्वत पर उत्पन्न हुए सोम का याजकगण दोहन करते हैं। तीनों लोकों में व्याप्त शत्रु नाशक इस सोम को अन्तरिक्ष धारण करता है। याजकों द्वारा इसी सोम की प्रार्थना की जाती है।[ऋग्वेद 9.95.4]
The Yagyik extract Som grown over the mountain like milking the buffalo. The space support Som destroyer of the enemies pervading the three abodes. The Ritviz worship this Som.
इष्यन्वाचमुपवक्तेव होतुः पुनान इन्दो वि ष्या मनीषाम्।
इन्द्रश्च यत्क्षयथः सौभगाय सुवीर्यस्य पतयः स्याम॥
जिस प्रकार स्तोत्रों का प्रेरक स्तोताओं को यज्ञ के निमित्त प्रेरित करता है, हे शोधित सोमरस! उसी प्रकार आप हमें यज्ञ के लिए प्रेरित करें। जब आप इन्द्र देव के साथ रहते हैं, हम श्रेष्ठ पराक्रमी होने का सौभाग्य प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 9.95.5]
The way one who inspire the Strotrs, inspire the Stotas for the Yagy, hey sanctified Som! Inspire us like that, for the Yagy. When you accompany Indr Dev, we have the opportunity of becoming excellent brave-mighty.(29.08.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (96) :: ऋषि :- दिवोदस, प्रतर्दन; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- त्रिष्टुप्।
प्र सेनानीः शूरो अग्रे रथानां गव्यन्नेति हर्षते अस्य सेना।
भद्रान्कृण्वन्निन्द्रहवान्त्सखिभ्य आ सोमो वस्त्रा रभसानि दत्ते॥
रथों के आगे चलने वाले वीर शत्रुओं की गौओं को प्राप्त करने की कामना करते हैं। उनके इस कार्य से सेना हर्षित होती है। इन्द्र देव द्वारा आवाहित किए जाने पर यह सोम मित्ररूप याजकों के लिए तेजस्विता को धारण कर उनका कल्याण करता है।[ऋग्वेद 9.96.1]
Warriors moving ahead of the charoites have the desire of capturing the cows owned by the enemy. The army become happy by this act. On being invoked by Indr Dev, Som become majestic for the friendly Ritviz.
समस्य हरिं हरयो मृजन्त्यश्वहयैरनिशतं नमोभिः।
आ तिष्ठति रथमिन्द्रस्य सखा विद्वाँ एना सुमतिं यात्यच्छ॥
मित्र इन्द्र देव के साथ यज्ञ का साधनरूप जो सोम स्तोताओं के पास जाता है, वह रथरूपी पात्र में स्तुतियों द्वारा आनन्दित होता है। याजकगण उस हरिताभ सोम को शोधित करते हैं।[ऋग्वेद 9.96.2]
Som acts as a means for the Yagy and goes to the Ritviz with friendly Indr Dev, become happy in the charoite as a pot with the Stuties. The Ritviz-Yagyik extract the greenish Som.
स नो देव देवताते पवस्व महे सोम प्सरस इन्द्रपानः।
कृण्वन्नपो वर्षयन्द्यामुतेमामुरोरा नो वरिवस्या पुनानः॥
हे सोम! आप इन्द्र देव के लिए प्रवाहित होते हैं। इस यज्ञ में आगमन करके आप हमें धन व ऐश्वर्य प्रदान करें। द्युलोक और पृथ्वी लोक का सिंचन करने वाले आप जल के कारणरूप है। अन्तरिक्ष से आकर शोधित होकर आप हमें ऐश्वर्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.96.3]
Hey Som! You flow for Indr Dev. Come to the Yagy and grant us wealth and grandeur. You nurture-irrigate the heavens and earth since you are causative (form water) for water. Come from the space, get sanctified and grant us grandeur.
अजीतयेऽ हतये पवस्व स्वस्तये सर्वतातये बृहते।
तदुशन्ति विश्व इमे सखायस्तदहं वश्मि पवमान सोम॥
हे सोम! आप कभी पराजित न होने वाले, शत्रु-विजयी, मनुष्यों को पीड़ित न होने देने के लिए सुख की वृद्धि तथा यज्ञों की संम्पन्नता के निमित्त आप हमें अपना रस प्रदान करें। हे पवित्र सोम! हम और हमारे सभी मित्र आपसे यही कामना करते हैं।[ऋग्वेद 9.96.4]
Hey Som! You can not be defeated, win the enemy, grant us sap-Somras for enhancement of pleasure-comforts and conduction of Yagy, protect the humans from torture-evil. Hey pious Som! We along with our friends request you this.
सोमः पवते जनिता मतीनां जनिता दिवो जनिता पृथिव्याः।
जनिताग्नेजनिता सूर्यस्य जनितेन्द्रस्य जनितोत विष्णोः॥
द्युलोक, पृथ्वी लोक, अग्नि देव, सूर्य देव, इन्द्र देव, श्री विष्णु और मेधा शक्ति की वृद्धि करने वाला तथा प्रवाहित होने वाला सोम शोधित किया जा रहा है।[ऋग्वेद 9.96.5]
Flowing Som which increase the powers-might of heavens, earth, Agni Dev, Sury Dev, Shri Hari Vishnu and intelligence is sanctified.
ब्रह्मा देवानां पदवीः कवीनामृषिर्विप्राणां महिषो मृगाणाम्।
श्येनो गृध्राणां स्वधितिर्वनानां सोमः पवित्रमत्येति रेभन्॥
शब्दनाद के साथ कलश में प्रवेश करने वाला, देवगणों, कवियों, विप्रगणों, पशुओं, पक्षियों तथा हिंसा करने वालों में विभिन्न रूपों में समव्याप्त दिव्य सोम संस्कारित होते हुए पवित्र होता है।[ऋग्वेद 9.96.6]
Entering the Kalash making sound, equally pervading demigods-deities, poets, Brahmans, animals, birds and the violent; divine Som is sanctified-purified in different forms.
प्रावीविपद्वाच ऊर्मिं न सिन्धुर्गिरः सोमः पवमानो मनीषाः।
अन्तः पश्यन्वृजनेमावराण्या तिष्ठति वृषभे गोषु जानन्॥
नदी की तरंगों के सदृश प्रवाहित होने वाला यह सोम आनन्दित होकर ध्वनि करता है। नेत्रों से छिपी हुई इस गोपनीय शक्ति का ज्ञाता सोम कभी क्षीण न होने वाले बल को प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 9.96.7]
Som flowing like the waves in the river, make sound generating pleasure. Present in the eyes, its aware of the secret power and never reducing strength.
स मत्सरः पृत्सु वन्वन्नवातः सहस्त्ररेता अभि वाजमर्ष।
इन्द्रायेन्दो पवमानो मनीष्यं १ शोरूर्मिमीरय गा इषण्यन्॥
हे सोम! आप युद्ध में शत्रुओं पर आक्रमण कर उनको नष्ट करने वाले सूर्य देव के समान तेजस्वी और हजारों बलों से युक्त हैं। शोधित हुआ यह सोम इन्द्र देव के लिए स्तुतियों को प्रेरित करता हुआ गौ दुग्ध में मिलकर प्रवाहित होता है।[ऋग्वेद 9.96.8]
Hey Som! You become majestic like the Sun, having thousands types of power in the war attacking & destroying the enemy. Purified Som inspire the Stuties for Indr Dev, flowing mixed with cow's milk.
परि प्रियः कलशे देववात इन्द्राय सोमा रण्यो मदाय।
सहस्त्रधारः शतवाज इन्दुर्वाजी न सप्तिः समना जिगाति॥
यह प्रिय और दर्शनीय सोम देवताओं को आनन्दित करने के लिए कलश में प्रवेश करता है। हजारों धाराओं और बलों से क्षरित होने वाला यह सोम युद्ध में जाने वाले अश्वों के समान कलश में प्रविष्ट होता है।[ऋग्वेद 9.96.9]
Loved & beautiful Som gladden the demigods-deities, prior to entering the Kalash. It enters the Kalash, being reduced in thousands of streams, like the horses going to war.
स पूर्व्यो वसुविज्जायमानो मृजानो अप्सु दुदुहाहो अद्रौ।
अभिशस्तिपा भुवनस्य राजा विदद्गातुं ब्रह्मणे पूयमानः॥
सभी लोकों का स्वामी सोम पत्थरों द्वारा कूटा, जल में मिश्रित किया गया, यज्ञ में लाया जाता है। शत्रुओं से रक्षण करने वाला यह सोम यज्ञीय मार्ग को प्रशस्त करता है।[ऋग्वेद 9.96.10]
Lord of all abodes, Som is crushed with stones, mixed in water and brought to the Yagy. Generating protection from the enemy, Som paves the way for the Yagy.
त्वया हि नः पितरः सोम पूर्वे कर्माणि चक्रुः पवमान धीराः।
वन्वन्नवातः परिर्धरिपोर्ण वीरोभिरश्वैर्मघवा भवा नः॥
हे सोमदेव! हमारे कर्म करने वाले पूर्वज पूर्वकाल से ही आपकी सहायता द्वारा यज्ञीय कर्म करते रहे हैं। तेज चलने वाले अश्वों को आप शत्रुओं को नष्ट करने के लिए प्रेरित करते हैं। हमे धन व ऐश्वर्य से युक्त करने वाले आप शत्रुओं को हमसे दूर करें।[ऋग्वेद 9.96.11]
Hey Som Dev! Our endeavourous ancestors have been accomplish the Yagy Karm with your help. You encourage the fast moving horses to destroy the enemy. Grant us wealth and grandeur keeping off-away the enemy from us.
यथापवथा मनवे वयोधा अमित्रहा वरिवोविद्धविष्मान्।
एवा पवस्व द्रविणं दधान इन्द्रे सं तिष्ठ जनयायुधानि॥
हे सोम देव! जिस प्रकार आपने याजकों को शत्रु-विनाशक धन और हविरूप अन्न प्रदान किया, उसी प्रकार हमें भी अन्न और धन से युक्त करें और इन्द्र देव के निमित्त आयुधों का निर्माण करें।[ऋग्वेद 9.96.12]
Hey Som Dev! The way you provided wealth and food grains for offerings to the Ritviz, similarly grant food grains and wealth to us and construct weapons for Indr Dev.(30.08.2024)
पवस्व सोम मधुमाँ ऋतावापो वसानो अधि सानो अव्ये।
अव द्रोणानि घृतवान्ति सीद मदिन्तमो मत्सर इन्द्रपानः॥
हे मधुर सोम! आप जल में मिलकर ऊँचे स्थान पर स्थित होकर और छलनी से छनकर पवित्र होते हैं। इसके पश्चात् ही इन्द्र देव के पान के योग्य हर्ष-प्रदायक सोम जलयुक्त कलश में पहुँचकर स्थित रहता है।[ऋग्वेद 9.96.13]
Hey sweet Som! You stay at an high altitude mixed in water and get filtered through sieve. Thereafter, you become drinkable and pleasure granting to Indr Dev, get mixed with water and stay in the Kalash.
वृष्टिं दिवः शतधारः पवस्व सहस्त्रसा वाजयुर्देववीतौ।
सं सिन्धुभिः कलशे वावशानः समुस्त्रियाभिः प्रतिरन्न आयुः॥
हे सोम! आप असंख्य धाराओं में गिरने वाले सहस्रों प्रकार का धन तथा अन्न देने की कामना से जल में मिश्रित होकर यज्ञमण्डप पर आगमन कर हमें दीर्घायु प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.96.14]
You fall in numerous currents with the desire of granting hundreds types of wealth & food grains; come to the Yagy Mandap & ensure our long life.
एष स्य सोमो मतिभिः पुनानोऽत्यो न वाजी तरतीदरातीः।
पयो न दुग्धमदितेरिषिरमुर्विव गातुः सुयमो न वोळ्हा॥
गौ दुग्ध के समान पवित्र, मनस्वी याजकों द्वारा शोधित किया गया सोम वेगवान अश्वों के समान शत्रुओं को लांघकर अपने लक्ष्य पर पहुँचता है। यह सोम सुखदायी है।[ऋग्वेद 9.96.15]
Pure like the cow's milk, sanctified by the thoughtful Yagyik, Som crosses the enemies like speedy horses and reach its target-goal. Som is comfortable.
स्वायुधः सोतृभिः पूयमानोऽभ्यर्ष गुह्यं चारु नाम।
अभि वाजं सप्तिरिव श्रवस्याभि वायुमभि गा देव सोम॥
श्रेष्ठ उत्तम यज्ञीय साधनों से युक्त, याजकों द्वारा परिषुत सोम अपने सुन्दर और तेजोमय स्वरूप को प्राप्त होता है। अश्व के समान सर्वत्र गमनशील हे सोम देव! आप हमें अन्न प्रदान करें, गौ-दुग्ध प्रदान करें तथा प्राणवान् बनाएं।[ऋग्वेद 9.96.16]
Associated with excellent means of Yagy, sanctified by the Yagyik; Som attain his beautiful and majestic form. Hey Som Dev roaming like the horse, every where! Grant us food grains, cow's milk and make us lively.
शिशुं जज्ञानं हर्यतं मृजन्ति शुम्भन्ति वह्निं मरुतो गणेन।
कविर्गीभिः काव्येना कविः सन्त्सोमः पवित्रमत्येति रेभन्॥
मरुद्गण जिस सोम को शोधित करते हैं, वह नवजात शिशु के सदृश सभी को हर्षित करने वाला है। शब्द करता हुआ, स्तुतियों द्वारा पवित्र होने वाला यह सोम सातों गुणों से युक्त है।[ऋग्वेद 9.96.17]
Som sanctified by the Marud Gan make everyone happy like an infant. Making sound, purified by the Stuties, Som possess seven qualities.
ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्रणीथः पदवी कवीनाम्।
तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्॥
यह सोम यज्ञ में सदैव विद्यमान रहने वाला, स्तुतियों से सुशोभित, द्युलोक में रहने वाले इन्द्र देव को प्रकट करने तथा तेजस्वी बनाने वाला, ऋषित्व प्रदान करने वाला, ऋषियों के समान मनस्वी, ज्ञानवर्धक और महान् है।[ऋग्वेद 9.96.18]
Som always remain present in the Yagy, decorated by the Stuties, invoke and make Indr Dev a resident of heavens majestic, grant status of Rishi, itself thoughtful like the Rishis, boosting knowledge and great.
चमूषच्छ्येनः शकुनो विभृत्वा गोविन्दुर्द्रप्स आयुधानि बिभ्रत्।
अपामूर्मिं सचमानः समुद्रं तुरीयं धाम महिषो विवक्ति॥
समुद्र की लहरों के समान प्रवाहित होने वाला और गौ-दुग्ध में मिश्रित किया गया, बल और सामर्थ्य से युक्त, प्रशंसनीय सोम चारों लोकों में स्थित होता है।[ऋग्वेद 9.96.19]
Flowing like the waves of ocean, mixed with cow's milk, possessing strength, might and capability, appreciable Som remain present in four abodes.
मर्यो न शभ्रस्तन्वं मृजानोऽत्यो न सृत्वा सनये धनानाम्।
वृषेव यूथा परि कोशमर्षन्कनिक्रदच्चम्वो३रा विवेश॥
कलश में स्थापित होने वाला यह सोमरस शरीर को सुशोभित करने वाले अलंकारों के समान, बैल की भाँति शब्द करने के समान तथा वेगवान् अश्वों और धन के इच्छुक याजकों के सदृश है।[ऋग्वेद 9.96.20]
Somras established in the Kalash, decorating the body with ornaments, makes sound like a bull, speedy like the horse and is like the Yagyik desirous of wealth.
पवस्वेन्दो पवमानो महोभिः कनिक्रदत्परि वाराण्यर्ष।
कालञ्चम्वो३रा विश पूयमान इन्दं ते रसो मदिरो ममत्तु॥
हे सोम! ऋत्विजों द्वारा निष्पन्न होकर शब्दनाद करते हुए आप कलश में स्थित हों अर्थात् क्रीड़ा करते हुए आप यज्ञपात्र में प्रवेश करें। आपका आनन्ददायक रस इन्द्र देव को आनन्दित करे।[ऋग्वेद 9.96.21]
Hey Som! Extracted by the Ritviz, stay in the Kalash making sound i.e., enter the Yagy pots playfully. Your gladdening sap should please Indr Dev.
प्रास्य धारा बृहतीरसृग्रन्नक्तो गोभिः कलशाँ आ विवेश।
साम कृण्वन्त्सामन्यो विपश्चित्कन्दन्नेत्यभि सख्युर्न जामिम्॥
सामगान करने वाले मेधावी याजक मैत्रीभाव से सोम की प्रार्थना करते हैं। इसकी विशाल धाराएँ गौ-दुग्ध में मिश्रित होकर कलशों में प्रवेश करती हैं।[ऋग्वेद 9.96.22]
Intelligent singers of Samgan, worship Som with the attitude of a friend. Large currents of Somras get mixed in cow's milk and enter the Kalash.
अपघ्नन्नेषि पवमान शत्रून् प्रियां न जारो अभिगीत इन्दुः।
सीदन्वनेषु शकुनो न पत्वा सोमः पुनानः कलशेषु सत्ता॥
जिस प्रकार पुरुष अपनी स्त्री के पास तथा पक्षी अपने घोंसले में जाता है, उसी प्रकार पवित्र और निष्पन्न सोम शत्रुओं का संहार करके जल में मिश्रित हुआ कलशों में प्रविष्ट होता है।[ऋग्वेद 9.96.23]
The way a man goes to his wife and the birds go to their nest, similarly pious Som destroy the enemy and enter the Kalash mixed with water.
आ ते रुचः पवमानस्य सोम योषेव यन्ति सुदुघाः सुधाराः।
हरिरानीतः पुरुवारो अप्स्वचिक्रदत्कलशे देवयूनाम्॥
हे पवमान सोम! आपकी किरणें उत्तम स्त्रियों एवं उत्तम दुग्ध की धाराओं के समान प्रकट होती हैं। यह हरिताभ सोम बहुत बार जल में, देवगणों के कलश में शब्दनाद करता हुआ प्रवेश करता है।[ऋग्वेद 9.96.24]
Hey Pawman Som! Your excellent rays appear like best women and the currents of cow's milk. Greenish Som mixes with water and enter the Kalash of demigods-deities making loud sound Naad.(31.08.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (97) :: ऋषि :- मैत्रावरुणिर्वासिष्ठ, इन्द्रप्रमति वासिष्ठ, वृषगणो वासिष्ठ, मन्युर्वासिष्ठ, उपमन्युर्वासिष्ठ, व्याघ्रपाद्वासिष्ठ, शक्तिर्वासिष्ठ, कर्णश्रुद्वासिष्ठ, मृलीकोवासिष्ठ, वसुक्रावासिष्ठ, पराशार, शाक्त्य, आंगिरस, कुत्स; देवता :-पवमान, सोम; छन्द :- त्रिष्टुप्।
अस्य प्रेषा हेमना पूयमानो देवो देवेभिः समपृक्त रसम्।
सुतः पवित्रं पर्येति रेभन् मितेव सद्म पशुमान्ति होता॥
ऋत्विकगण जिस प्रकार यजमान के यज्ञ में गमन करते हैं, उसी प्रकार निष्पन्न हुआ सोमरस प्रवाहित होकर छन्ने में गमन करता है। शुद्ध और पवित्र हुआ यह दिव्य सोम देवगणों को अपने रस से तृप्त करता है।[ऋग्वेद 9.97.1]
The way the Ritviz move to the Yagy of the host, extracted Somras passes through the filter-sieve. Pure & pious divine Som satisfy the demigods-deities with its sap.
भद्रा वस्त्रा समन्या३ वसानो महान् कविर्नवचनानि शंसन्।
आ वच्यस्व चम्वोः पूयमानो विचक्षणो जागृविर्देववीतौ॥
हे सोम! आप सभी को चैतन्य होकर देखने वाले, मंगलकारी, तेज के धारक, वीर के समान पराक्रमी, महान्, विद्वान और सबके द्वारा स्तुत्य हैं। आप पवित्र होकर यज्ञशाला के पात्रों में गमन करते हैं।[ऋग्वेद 9.97.2]
Hey Som! You are beneficial, view everyone consciously, majestic, mighty like the brave, great enlightened and worshipable by all. You move to the pots-Kalash of the Yagy Shala after being sanctified.
समु प्रियो मृज्यते सानो अव्ये यशस्तरो यशसां क्षैतो अस्मे।
अभि स्वर धन्वा पूयमानो यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
यह सोम तृप्तिदायक, आनन्ददायक, यशस्वी, पार्थिव और भूमि में प्रकट होकर छन्ने द्वारा शोधित होता है। हे सोम देव! आप अपने मंगलकारी रक्षा-साधनों से शब्दनाद करते हुए हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 9.97.3]
Som is satisfying, comforting, glorious, material, comes out of the earth and is filtered in the sieve. Hey Som Dev! Protect us with auspicious means making loud sound-Naad.
प्र गायताभ्यर्चाम देवान्त्सोमं हिनोत महते धनाय।
स्वादुः पवाते अति वारमव्यमा सीदाति कलशं देवयुर्नः॥
धन एवं ऐश्वर्य की इच्छा करने वाले हम देवगणों की प्रार्थना से सोमरस को प्रेरित करते हैं। हे स्तोताओं! मधुर और तेजयुक्त छन्ने द्वारा शुद्ध होकर पात्र में सोमरस स्थापित होता है।[ऋग्वेद 9.97.4]
We worship demigods with the desire of wealth and grandeur and inspire Somras. Hey Stotas! Sweet & majestic Somras is filled in the pot after sanctifying.
इन्दुर्देवानाभुप सख्यमायन्त्सहस्रधारः पवते मदाय।
नृभिः स्तवानो अनु धाम पूर्वमगन्निन्द्रं महते सौभगाय॥
अपने सनातन स्वरूप को प्राप्त करता हुआ, ऋत्विजों द्वारा स्तुत्य सोम इन्द्र देव के निकट आगमन कर सौभाग्यशाली बनता है और देवगणों की मित्रता की कामना से सहस्रों धाराओं के रूप में प्रवाहित होता है।[ऋग्वेद 9.97.5]
Worshiped by the Ritviz, Som attain its eternal form, comes close to Indr Dev making itself lucky and flow in thousands of streams with the desire of friendship with the demigods-deities.
स्तोत्रे राये हरिरर्षा पुनान इन्द्रं मदो गच्छतु ते भराय।
देवैर्याहि सरथं राधो अच्छा यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
स्तोत्रों को ग्रहण करने वाला हरिताभ सोम शोधित होकर धन प्रदान करने के लिए आगमन करे। युद्ध में प्रवृत्त होने वाले इन्द्र देव को इसका मधुर रस प्राप्त हो। धन एवं ऐश्वर्य प्रदान करने वाला सोम देवताओं के साथ एक ही रथ पर आरूढ़ होकर उत्तम साधनों से हमारी सुरक्षा करे।[ऋग्वेद 9.97.6]
Acceptor the Strotrs, greenish Som should come to grant wealth. Let its sweet sap be available to Indr Dev busy with war. Som should ride the same charoite with the demigods-deities and protect us with best means.
प्र काव्यमुशनेव ब्रुवाणो देवो देवानां जनिमा विवक्ति।
महिव्रतः शचिबन्धुः पावकः पदा वराहो अभ्येति रेभन्॥
ऋषि उशना के सदृश स्तोत्रों का पाठ करने वाले ऋषि इन स्तोत्र मन्त्रों के रचनाकार हैं। वे इन्द्र देव की उत्पत्ति को जानने वाले हैं। तेजस्वी, व्रती और पावन करने वाला सोम शब्दनाद करता हुआ पात्र में प्रवाहित होता है।[ऋग्वेद 9.97.7]
The Rishi who recite the Strotrs like Rishi Ushna is the composer of these Mantrs. He are aware of the origin of Indr Dev. Majestic, dedicated, sanctifying Som enters the pot making sound-Naad.
प्र हंसासस्तृपलं मन्युमच्छामादस्तं वृषगणा अयासुः।
आङगूष्यं १ पवमानं सखायो दुर्मर्षं साकं प्र वदन्ति वाणम्॥
सर्वसुलभ, अजेय यह पवमान सोम स्तुतियों के योग्य और दुर्धर्ष है। विवेकशील, धीर और वीर पुरुष शत्रुओं द्वारा पीड़ित होने पर शत्रुनाशक सोम के यज्ञस्थल पर पहुँचते हैं। स्तोतागण इनके प्रति श्रेष्ठ वाद्यों के सहित स्तुतियों का गान करते हैं।[ऋग्वेद 9.97.8]
Available to all, invincible Pawman Som deserve prayers and is unbeatable. Prudent, patient and brave person on being tortured by the enemies reach the Yagy Sthal to Som for asylum. Stotas recite best prayers along with best musical instruments in his honour.
स रंहत उरुगायस्य जूतिं वृथा क्रीळन्तं मिमते न गावः।
परीणसं कृणुते तिग्मशृङ्गो दिवा हरिर्ददृशे नक्तमृज्रः॥
यह सोम शीघ्र गति वाला, बहुतों द्वारा स्तुत्य और सहज रूप से क्रीड़ा करने वाला है। अन्य कोई इसकी समानता नहीं कर सकता। विभिन्न प्रकार के तेजों से युक्त यह सोम सौम्य आभायुक्त और हरे रंग के प्रकाश वाला है।[ऋग्वेद 9.97.9]
सौम्य :: प्रिय, उदार, क्षमाशील, प्रशम्य; gentle, benign, kindly, placable.
Som is fast moving, worshiped by several and playful. It has no parallel. Possessor of several majestic, aura gentle Som has greenish light.
इन्दुर्वाजी पवते गोन्योघा इन्द्रे सोमः सह इन्वन्मदाय।
हन्ति रक्षो बाधते पर्यरातीर्वरिवः कृण्वन् वृजनस्य राजा॥
होताओं को धन प्रदान करने वाला, इन्द्र देव के बल की वृद्धि करने वाला, बलों का स्वामी सोम आनन्द वृद्धि के लिए पात्र में छाना जाता है और शत्रुओं को भागने पर विवश करने वाला यह सोम राक्षसों को नष्ट करता है।[ऋग्वेद 9.97.10]
Lord of strength Som, grant wealth to Hotas, boosts the power of Indr Dev and is filtered for gladdening-pleasure in a pot. It compel the enemies to flee and destroy the demons.
अध धारया मध्वा पृचानस्तिरो रोम पवते अद्रिदुग्धः।
इन्दुरिन्द्रस्य सख्यं जुषाणो देवो देवस्य मत्सरो मदाय॥
पत्थरों द्वारा कूटा गया, आनन्ददायक, तेजस्विता से युक्त, मधुर धार से पावनता को प्राप्त होने वाला सोम इन्द्र देव के आश्रय की इच्छा करने वाला, उनको तृप्ति प्रदान करते हुए उनके उत्साह की वृद्धि करता है।[ऋग्वेद 9.97.11]
तेजस्विता :: प्रभाव पूर्णता, निर्भीकता, साहस या उत्साह; brilliance, vigorousness, high spirit.
उत्साह :: याद दिलाने की क्रिया, बढ़ावा, उकसावा, जोश, उमंग, राग, जोश, धुन, सरगर्मी; excitement, enthusiasm, zeal, prompting.
Crushed with stones, gladdening, possessing brilliance, attaining piousness with its sweet stream-current fulfil the desire of Indr Dev for asylum, grant him satisfaction and increase his enthusiasm-excitement.
अभि प्रियाणि पवते पुनानो देवो देवान्त्स्वेन रसेन पृञ्चन्।
इन्दुर्धर्माण्युतुथा वसानो दश क्षिपो अव्यत सानो अव्ये॥
अपने मधुर रस से देवगणों को प्रसन्न करने वाला तथा ऋतुओं को धारण करने वाला सोम अपने मधुर रस से देवताओं को तृप्ति प्रदान करता है। अँगुलियों द्वारा वह छन्ने में प्रवेश करता है।[ऋग्वेद 9.97.12]
Som bear the seasons, please & satisfy demigods-deities with its sap & enters the sieve-filter with the fingers.(01.09.2024)
वृषा शोणो अभिकत्रिदद्गा नदयन्नेति पृथिवीमुत द्याम्।
इन्द्रस्येव वग्नुरा शृण्व आजौ प्रचेतयन्नर्षति वाचमेमाम्॥
द्युलोक और पृथ्वीलोक को व्यापित करने वाला सोम वृषभ के समान ध्वनि करता है। रणक्षेत्र में भी सोम का शब्द इन्द्र देव के समान गूँजता है। हमारी स्तुतियों को ग्रहण करने वाला सोम अपनी गर्जना से ही अपनी उपस्थिति का ज्ञान करा देता है।[ऋग्वेद 9.97.13]
Som pervading the heavens and earth make sound like a bull. Sound of Som resonate in the war like Indr Dev. Som make us feel of his presence by his loud-thundering sound.
रसाय्यः पयसा पिन्वमान ईरयन्नेषि मधुमन्तमंशुम्।
पवमानः संतनिमेषि कृण्वन्निन्द्राय सोम परिषिच्यमानः॥
हे सोम! आप जल में मिलकर, धाररूप में इन्द्र देव को प्राप्त होते हैं, आपका मधुर रस गौ-दुग्ध में मिश्रित होने के पश्चात् अत्यंत सुस्वादु हो जाता है।[ऋग्वेद 9.97.14]
Hey Som! You attain Indr Dev by mixing in water like a current. Your juice become very tasty by mixing in cow's milk.
एवा पवस्व मदिरो मदायोदग्राभस्य नमयन् वधस्नैः।
परि वर्णं भरमाणो रुशन्तं गव्युर्नो अर्ष परि सोम सिक्तः॥
हे सोम! आप जलवृष्टि के लिए मेघों को प्रेरित करते हुए आनन्दित करते हैं। जल में मिश्रित होकर क्षेत वर्ण धारण करने वाले आप गौ दुग्ध में मिश्रित होकर हमारे लिए स्रवित हों।[ऋग्वेद 9.97.15]
Hey Som! You gladden inspiring the clouds for rains. You should be secreted by mixing in water and acquiring white colour.
जुष्टी न इन्दो सुपथा सुगान्युरौ पवस्व वरिवांसि कृण्वन्।
घनेव विष्वग्दुरितानि विघ्नन्नधि ष्णुना धन्व सानो अव्ये॥
हे सोम! हमारी स्तुतियों से आनन्दित होने वाले आप असुरों के अस्त्रों को नष्ट करके छन्ने से धारा रूप में प्रवाहित हो। हमारे यज्ञमार्ग को सुगमता प्रदान करते हुए कलश में प्रवेश करें।[ऋग्वेद 9.97.16]
Gladdened by our Stuties-prayers, you should pass through the sieve-filter as a current. Make our Yagy path easy and enter the Kalash.
वृष्टिं नो अर्ष दिव्यां जिगत्लुमिळावतीं शंगयी जीरदानुम्।
स्तुकेव वीता धन्वा विचिन्वन्बन्धूरिमा अवाँ इन्दो वायून्॥
हे सोम! आप हमारे लिए सुखदायक, जीवनदायक, द्युलोक से आगमन करने वाली अन्न युक्त वृष्टि करें। पृथ्वी पर चलने वाली वायु से संतति के समान सम्बन्ध बनाते हुए हम उसे प्राप्त करें।[ऋग्वेद 9.97.17]
Hey Som! Shower pleasing, nurturing rains for us coming from heavens, associated with food grains. Let us attain the air beginning from earth establishing relations like progeny.
ग्रन्थिं न वि ष्य ग्रथितं पुनान ऋजुं च गातुं वृजिनं च सोम।
अत्यो न क्रदो हरिरा सृजानो मर्यो देव धन्व पत्स्यावान्॥
हे सोम! ग्रंथि खोलने के सदृश आप हमें पापों से मुक्ति दिलाएँ तथा हमारे मार्ग को सरल बनाते हुए हमें बल प्रदान करें। हे हरिताभ सोम! शत्रुओं का संहार करने वाले आप शोधित होते समय शब्दनाद करते हुए कलश में स्थापित होते हैं।[ऋग्वेद 9.97.18]
Hey Som! Release us from sins like opening up knots, make our path easy and grant us strength. Hey greenish Som! Destroyer of the enemy, make loud sound being sanctified and entering the Kalash.
जुष्टो मदाय देवतात इन्दो परि ष्णुना धन्व सानो अव्ये।
सहस्त्रधारः सुरभिरदब्धः परि स्त्रव वाजसातौ नृषये॥
हे सोम! अनश्वर छलनी पर प्रवाहित होकर आप आनन्दवर्द्धक स्वरूप प्राप्त करते हुए शोधित हों। हिंसा रहित एवं सहस्त्रों धाराओं में प्रवाहित होने वाले आप संग्राम में जाने वाले वीरों को अन्नादि प्रदान करने के लिए प्रवाहित हों।[ऋग्वेद 9.97.19]
Hey Som! You should be filtered passing through immortal sieve increasing pleasure. Flow in thousands of streams free from violence, like the soldiers going to battle field granting food grains etc.
अरश्मानो येऽरथा अयुक्ता अत्यासो न ससृजानास आजौ।
एते शुक्रासो धन्वन्ति सोमा देवासस्ताँ उप याता पिबध्यै॥
जिस प्रकार रथ में नियोजित किया गया अश्व तेजगति से अपने लक्ष्य की ओर गमन करता है, उसी प्रकार शोधित सोमरस कलशों में शीघ्रता से गमन करता है। उस सोमरस का पान करने के लिए देवगण यज्ञमण्डप में आगमन करते हैं।[ऋग्वेद 9.97.20]
The way a horse deployed in the charoite moves towards its destination, sanctified Somras moves towards the Kalash quickly. The demigods-deities comes to Yagy Mandap to drink Somras.
एवा न इन्दो अभि देववीतिं परि स्रव नभो अर्णश्चमूषु।
सोमो अस्मभ्यं काम्यं बृहन्तं रयिं ददातु वीरवन्तमुग्रम्॥
हे सोम देव! आप हमारे यज्ञ के कलशों को द्युलोक के जल से परिपूर्ण करने वाले हैं। आप हमें धन और संतति प्रदान करने वाला रस प्रदत्त करें।[ऋग्वेद 9.97.21]
Hey Som Dev! You fill our Yagy Kalsh with the water form the heavens, grant us wealth, progeny and Somras.
तक्षद्यदी मनसो वेनतो वाग्ज्येष्ठस्य वा धर्मणि क्षोरनीके।
आदीमायन्वरमा वावशाना जुष्टं पतिं कलशे गाव इन्दुम्॥
अन्तःकरण से की जाने वाली स्तुति के शब्द जिस तरह मुखारविन्द से उच्चारित होते है, उसी प्रकार कलश में स्थित उत्तम, सेवनीय सोम की कामना करने वाले को गौरूपी धन प्राप्त होता है।[ऋग्वेद 9.97.22]
The way Stuti is recited with the innerself, similarly one who desire of excellent, consumable Somras present in the Kalash, gets wealth in the form of cows.
प्र दानुदो दिव्यो दानुपिन्व ऋतमृताय पवते सुमेधाः।
धर्मा भुवजन्यस्य राज प्र रश्मिभिर्दशभिर्भारि भूम॥
इन्द्र देव के लिए अपना रस प्रदान करने वाला सोम दाताओं को धन एवं ऐश्वर्य प्रदान करता है। दसों अंगुलियाँ बल धारक सोम को अभिषुत करती हैं।[ऋग्वेद 9.97.23]
Som grant its sap to Indr Dev, grants wealth & grandeur to the donors. Ten fingers extract Som possessing strength.
पवित्रेभिः पवमानो नृचक्षा राजा देवानामुत मर्त्यानाम्।
द्विता भुवद्रयिपती रयीणामृतं भरत्सुभृतं चार्विन्दुः॥
देवताओं और मनुष्यों का स्वामी यह पवित्र, निष्पन्न और सुन्दर सोम जलों को धारण करता हुआ सभी में विद्यमान रहता है।[ऋग्वेद 9.97.24]
Lord of humans and demigods, pious, extracted and lovely Som supporting water remain present in everyone.
अर्वांइव श्रवसे सातिमच्छेन्द्रस्य वायोरभि वीतिमर्ष।
स नः सहस्त्रा बृहतीरिषो दा भवा सोम द्रविणोवित्पुनानः॥
हे सोम! जिस प्रकार अश्व रणभूमि में जाते हैं, उसी प्रकार आप इन्द्रदेव एवं वायुदेव के पान हेतु तथा हमें अन्न और धन का लाभ देने के लिए प्रवाहित हों। आप शोधित होकर हमें सभी प्रकार का ऐश्वर्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.97.25]
Hey Som! The way a horse goes to the battle field, similarly you should flow for drinking by Indr Dev & Vayu Dev and granting us food grains & wealth. You should be sanctified and grant us grandeur.
देवाव्यो न परिषिच्यमानाः क्षयं सुवीरं धन्वन्तु सोमाः।
आयज्यवः सुमतिं विश्ववारा होतारो न दिवियजो मन्द्रतमाः॥
जल मिश्रित पात्र में स्थित रहने तथा देवगणों को तृप्त करने वाला सोम हमें पुत्र और गृह प्रदान करे। हे सोमदेव! आप यज्ञीय कर्म करने वाले, द्युलोक में स्थित देवगणों के लिए आहुति देने वालों के समान आनन्द प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.97.26]
Let Som mixed in water, residing in the pot, satisfying the demigods-deities grant us son and house. Hey Som Dev! You should gladden Demigods residing in the heaven and those performing Yagy Karm, like those making offerings.
एवा देव देवताते पवस्व महे सोम प्सरसे देवपानः।
महश्चिद्धि ष्मसि हिताः समर्ये कृधि सुष्ठाने रोदसी पुनानः॥
हे सोम देव! आप इस दैवी यज्ञ में देवगणों के पान योग्य अपना सोमरस प्रदान करें। वे देवता आपकी प्रेरणा से युद्ध में शत्रुओं को पराजित करें। आप सुसंस्कृत होकर द्युलोक और पृथ्वीलोक को आश्रय योग्य बनाएँ।[ऋग्वेद 9.97.27]
Hey Som Dev! Grant Somras suited to demigods-deities for drinking in the divine Yagy. Let the demigods defeat the enemies due to your inspiration. You should attain asylum in heavens and the earth after being sanctified.
अश्वो न क्रदो वृषभिर्युजानः सिंहो न भीमो मनसो जवीयान्।
अर्वाचीनैः पथिभिर्ये रजिष्ठ आ पवस्व सौमनसं न इन्द्रो॥
सिंह के सदृश भयंकर, मन के समान गतिमान् तथा अश्व के समान शब्दनाद करने वाला सोम ऋत्विजों द्वारा एकत्र किया गया है। वह सुगम मार्गों के द्वारा हमें अपना रस प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.97.28]
Furious like the lion, quick like the innerself and making sound like the horse; Som has been collected by the Ritviz. Let it grant us its juice through easy means.
शतं धारा देवजाता असृग्रन् त्यहस्रमेनाः कवयो मृजन्ति।
इन्दो सनिश्रृं दिव सा पवस्व पुरएतासि महतो धनस्य॥
हे सोमदेव! आप देवगणों के लिए ही उत्पन्न होते हैं। हजारों ऋत्विज आपकी सैकड़ों धाराओं को पवित्र बनाते हैं। आप महान् धनों के दाता होकर हमें स्वर्ग के गोपनीय धनों को प्राप्त कराएँ।[ऋग्वेद 9.97.29]
Hey Som! You evolve for the demigods-deities. Thousands of Ritviz sanctify your hundred of streams. You should become a great donor granting us heavenly secret wealth.
दिवो न सर्गा अससृग्रमह्वां राजा न मित्रं प्र मिनाति धीरः।
पितुर्न पुत्रः क्रतुभिर्यतान आ पवस्व विशे अस्य अजीतिम्॥
सूर्य देव की रश्मियों के समान ही सोम की धाराएँ प्रवाहित होती हैं। मित्र के समान यह राजा सोम किसी को भी संतप्त नहीं करता। कर्मवान् पुत्र के समान मनुष्यों को उन्नतिशील बनाने वाला सोमरस हमें प्राप्त हो।[ऋग्वेद 9.97.30]
Streams of Somras flow like the rays of Sury Dev. Friendly king Som never torture any one like a king. Let us have Somras which make the humans progress like a dedicated, laborious son.(02.09.2024)
प्र ते धारा मधुमतीरसृग्रनृ वारानृ यत् पूतो अत्येष्यव्यान्।
पवमान पवसे धाम गोनां जज्ञानः सूर्यमपिन्वो अर्कैः॥
हे सोम! जब आप अनश्वर छन्ने से पार निकलते हैं, तब आपकी मधुर धाराएँ प्रकट होती है। गौ दुग्ध के समान क्षरित होने वाले आप अपने पावन तेज से आकाश को परिपूर्ण करते हैं।[ऋग्वेद 9.97.31]
Hey Som! when you pass through imperishable filter, your sweet branches-streams appear. You recede like the cow's milk illuminating the sky with your pious majesty.
कनिक्रददनु पन्थाम २तस्य शुक्रो वि मास्यमृतस्य धाम।
स इन्द्राय पवसे मत्सरवान् हिन्वानो वाचं मतिभिः कवीनाम्॥
ध्वनि पूर्वक यज्ञमार्ग की ओर गमन करने वाला सोम यज्ञ-स्थल को अपने तेज से प्रकाशित करता है। विद्वत्जनों की स्तुतियों को श्रवण करने वाला सोम इन्द्र देव को अपना रस प्रदान करता है।[ऋग्वेद 9.97.32]
Som moves over the path of Yagy making sound and illuminating the Yagy site. Som listen Stuties of the learned-scholars and grant its sap to Indr Dev.
दिव्यः सुपर्णोऽव चक्षि सोम पिन्वन् धाराः कर्मणा देववीतौ।
एन्दो विश कलशं सोमधानं क्रन्दान्निहि सूर्यस्योप रश्मिम्॥
हे सोम! आप द्युलोक में उत्पन्न होनेवाले श्रेष्ठ पत्तों से युक्त हैं। देवयज्ञ में आपकी धाराएँ कलश की ओर प्रवेश करती हैं। आप अपने शब्द द्वारा सूर्यदेव की रश्मियों को आत्मसात् करें।[ऋग्वेद 9.97.33]
Hey Som! You are accompanied with the leaves grown in the heavens. Your streams enter the Kalash in the Dev Yagy. Acquire the Sun rays with your sound.
तिस्रो वाच ईरयति प्र वह्निर्ऋतस्य धीतिं ब्रह्मणो मनीषाम्।
गाव यन्ति गोपतिं पृच्छमानाः सोमं यन्ति मतयो वावशानाः॥
बैल के समीप जाने वाली गौवों के सदृश श्रेष्ठ सुख की कामना करने वाले सोम के पास जाते हैं। सत्य को धारण करने वाले ऋत्विज तीनों वेदों के मन्त्रों द्वारा सोम की प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 9.97.34]
Person desirous of excellent pleasure goes to Som like the cows who goes to the bull. Truthful Ritviz worship Som with the Mantrs of three Veds.
सोमं गावो धेनवो वावशानाः सोमं विप्रा मतिभिः पृच्छमानाः।
सोमः सुतः पूयते अज्यमानः सोमे अर्कास्त्रिष्टुभः सं नवन्ते॥
पात्रों में गमन करने वाले निष्पन्न सोम की मेधावीजन अपनी बुद्धियों द्वारा त्रिष्टुप् छन्दात्मक मन्त्र से प्रार्थना करते हैं। सोम की इच्छा करने वाली गौएँ अपने दुग्ध द्वारा उसका सिंचन करती हैं।[ऋग्वेद 9.97.35]
छंद :: संस्कृत में सामान्यतः लय को बताने के लिये छन्द शब्द का प्रयोग किया गया है। विशिष्ट अर्थों या गीत में वर्णों की संख्या और स्थान से सम्बंधित नियमों को छ्न्द कहते हैं जिनसे काव्य में लय और रंजकता आती है। छोटी-बड़ी ध्वनियाँ, लघु-गुरु उच्चारणों के क्रमों में, मात्रा बताती हैं और जब किसी काव्य रचना में ये एक व्यवस्था के साथ सामंजस्य प्राप्त करती हैं, तब उसे एक शास्त्रीय नाम दे दिया जाता है और लघु-गुरु मात्राओं के अनुसार वर्णों की यह व्यवस्था एक विशिष्ट नाम वाला छन्द कहलाने लगती है, जैसे चौपाई, दोहा, आर्या, इन्द्र्वज्रा, गायत्री छन्द इत्यादि। इस प्रकार की व्यवस्था में मात्रा अथवा वर्णों की संख्या, विराम, गति, लय तथा तुक आदि के नियमों को भी निर्धारित किया गया है जिनका पालन कवि को करता है; prosody, stave, metre, means, scansion, strophe, stanza.
Intellectuals worship extracted Som moving to the vessels with Trishtup compositions called metre-stanza. Cows desirous of Som nurture it with their milk.
एवा नः सोम परिषिच्यमान आ पवस्व पूयमानः स्वस्ति।
इन्द्रमा विश बृहता रवेण वर्धया वाचं जनया पुरंधिम्॥
हे सोम! आप हमारा मंगल करने के लिए जल में मिलकर और शब्दनाद करते हुए शोधित हों तथा आनन्दपूर्वक इन्द्रदेव को तृप्ति प्रदान करें। सबको सद्बुद्धि प्रदान करने वाले आप हमारी स्तुतियों को ग्रहण करें।[ऋग्वेद 9.97.36]
Hey Som! For our welfare you should be sanctified by mixing in water and grant pleasure to Indr Dev. Grantor of virtuous intellect to every one, accept our Stuties.
आ जागृविर्विप्र ऋता मतीनां सोमः पुनानो असदच्चमूषु।
सपन्ति यं मिथुनासो निकामा अध्वर्यवो रथिरासः सुहस्ताः॥
उत्तम कर्म करने वाले, देहधारी, मन की आकांक्षाओं को पूर्ण करने वाले उपासक, चैतन्य, सत्य स्तुतियों के ज्ञाता सोम को शोधित करके पात्र में एकत्रित करके सुरक्षित रखते हैं।[ऋग्वेद 9.97.37]
Performers of virtuous deeds, possessing body, worshiper fulfilling the desires of innerself, conscious and aware of truthful Stuties the scholars keep sanctified Som in vessels at safe places.
स पुनाना अप सूरे न धातो मे अप्रा रोदसी वि ष आवः।
प्रिया विद्यस्य प्रियसास ऊती स तू धनं कारिणे न प्र संयत्॥
अपनी महिमा द्वारा द्युलोक और पृथ्वी लोक को व्याप्त करने वाला शोधित सोमरस इन्द्र देव के पास जाता है। इस सोम की रसयुक्त धाराएँ हमें संरक्षित करतीं तथा हमें धन एवं ऐश्वर्य से परिपूर्ण करती हैं।[ऋग्वेद 9.97.38]
Pervading the heavens and the earth, glorious sanctified Somras goes to Indr Dev. Streams of Somras-juice protect us and grant us wealth and grandeur.
स वर्धिता वर्धनः पूयमानः सोमो मीढ्वां अभि ना ज्योतिषावीत्।
येना नः पूर्वे पितरः पदज्ञा स्वर्विदो अभि गा अद्रिमुष्णन्॥
कामनाओं की वर्षा करने वाला, देवताओं की वृद्धि करने वाला, मेधावान् और निष्पन्न सोम् अपने तेज द्वारा हमारा रक्षण करे। मन्त्रों के ज्ञाता, आत्मज्ञान से युक्त, विभिन्न चरणों वाले हमारे पूर्वज पर्वत में छिपी हुई गौवों को प्राप्त करें।[ऋग्वेद 9.97.39]
Showering desires, nurturing the demigods-deities, intelligent, sanctified Som should protect us with his majesty. Scholars of Mantrs, self realised and in various stages our ancestors should get the cows hidden in the mountains.
अक्रान् त्समुद्रः प्रथमे विधर्मञ्जनयन् प्रजा भुवनस्य राजा।
वृषा पविऋे अधि सानो अव्ये बृहत् सोमो वावृधे सुवान इन्दुः॥
जल और बलों से युक्त, सभी लोकों का स्वामी सोम याजकों को उत्साहित करते हुए उन्नत बनाते हुए वृद्धि को प्राप्त होता है।[ऋग्वेद 9.97.40]
Possessed with water and might, lord of all abodes Som encourage the Yagyik upgrade and help them in progress.
महत् तत् सोमो महिषश्चकाराऽपां यद्गर्भोऽवृणीत देवान्।
अदधादिन्द्रे पवमान ओजोऽजनयत्सूर्ये ज्योतिरिन्दुः॥
इन्द्र देव के लिए बल को धारित करने वाला तथा जलों के द्वारा उत्पन्न होने वाला सोम सूर्य देव को तेज प्रदान करता है। इस सोम के द्वारा अनेक प्रशंसनीय कार्य संपादित होते हैं।[ऋग्वेद 9.97.41]
Supporter of Indr Dev's might, evolved out of water Som, grant brilliance to Sury Dev. Som perform many appreciable deeds.
मत्सि वायुमिष्टये राधसे स मत्सि मित्रावरुणा पूयमानः।
मत्सि शर्धो मारुतं मत्सि देवान् मत्सि द्यावापृथिवी देव सोम॥
हे सोमदेव! हमें अन्न और धन की प्राप्ति कराने के लिए आप वायु को हर्षित करें। शोधित किये गए आप मित्र और वरुण देव को, मरुत् की सामर्थों को, द्युलोक और पृथ्वी लोक को आनन्दित करें।[ऋग्वेद 9.97.42]
Hey Som Dev! You gladden Vayu Dev to grant us food grains and wealth. Having sanctified, gladden Mitr, Varun Dev, Marud Gan, heavens and the earth.
ऋजुः पवस्व वृजिनस्य हन्ता ऽपामींवां वाधमानो मृधश्च।
अभिश्रीणन् पयः पयसाभि गोनामिन्द्रस्य त्वं तव वयं सखायः॥
हे सोम! आप रोगों का शमन करने वाले और पापियों तथा शत्रुओं को नष्ट करने वाले हैं। आप हमें अपना रस प्रदान करें। आप इन्द्र देव के तथा हम आपके मित्र हैं। अपने क्षरणशील रस को दूध में मिश्रित करते हुए आप पात्र में स्थित हों।[ऋग्वेद 9.97.43]
Hey Som! You destroy all ailments-diseases, sinners and the enemies. Grant your sap to us. You are friendly with Indr Dev and us. Stay in the pot mixing your receding sap in milk.
मध्वः सूदं पवस्व वस्व उत्सं वीरं च न आ पवस्वा भगं च।
स्वदस्वेन्द्राय पवमान इन्दो रयिं च न आ पस्वा समुद्रात्॥
हे निष्पन्न सोम! आप हमें मधुरतायुक्त अन्न और धन प्रदान करें। आप हमें सन्तानरूपी धन भी प्रदान करें। आप इन्द्रदेव के लिए रस प्रदान करते हुए हमें भी अंतरिक्ष से धन प्रदान करने वाला रस प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.97.44]
Hey extracted Som! Grant us sweetened food grains and wealth. Grant us wealth in the form of progeny. Grant sap to Indr Dev and sap to us which can to grant us wealth from the heavens.
सोमः सुतो धारयात्यो न हित्वा सिन्धुर्न निम्नमभि वाज्यक्षाः।
आ योनिं वन्यमसदृ पुमानः समिन्दुर्गोभिरसरतृ समद्भिः॥
अश्व के सदृश तेज गति से धारारूप में प्रवाहित होने वाला सोमरस नीचे रखे कलश में नदी के समान प्रवेश करता है। निष्पन्न सोम वनों की योनि में स्थित होता है। जल में शोधित किया जाने वाला यह सोम गौदुग्ध में मिश्रित किया जाता है।[ऋग्वेद 9.97.45]
Flowing in fast stream like a horse, Som is collected in the Kalash kept at low level, like the river. Extracted Som is present in the navel of the forests. Sanctified in water, Som is mixed in cow's milk.(03.09.2024)
एष स्य ते पवत इन्द्र सोमश्चमूषु धीर उशते तवस्वान्।
स्वर्चक्षा रथिरः सत्यशुष्मः कामो न यो देवयतामसर्जि॥
हे इन्द्रदेव! आपकी इच्छा करने वाला यह सोम सबको देखने वाला, उत्तम रथी, बलवान् और धैर्यवान् है। ऋत्विजों द्वारा इच्छित यह सोम द्रुतगामी होकर कलशों में प्रवेश करता है।[ऋग्वेद 9.97.46]
Hey Indr Dev! Som desirous of you, is excellent charioteer, patient and watches everyone. Desired by the Ritviz, Som enters the Kalash with fast speed.
एष प्रत्नेन वयसा पुनानस्तिरो वर्षांसि दुहितुर्दधानः।
वसानः शर्म त्रिवरुथमप्सु होतेव याति समनेषु रेभन्॥
अनादिकाल से ही धारा रूप में प्रवाहित होने वाला सोम शीत, उष्ण तथा जलवर्षा का शमन करने वाले यज्ञ में शब्दनाद करता हुआ स्थापित होता है। इसे हविष्यान्न के साथ शोधित किया जाता है।[ऋग्वेद 9.97.47]
Flowing ever since, as a stream Som is established during winters, summers and rains making loud sound-Naad in the Yagy. Its sanctified with offerings.
नू नस्त्वं रथिरो देव सोम परि स्रव चम्वोः पूयमानः।
अप्सु वादिष्ठो मधुमां तावा देवो न यः सविता सत्यमन्मा॥
हे सोम! देवगणों के सदृश सत्य रूप स्तुतियों का श्रवण कर अपना सुस्वादु तथा मधुर रस प्रदान करने वाले आप रथारूढ़ होकर, जल में मिश्रित रस के रूप में शोधित होते हुए यज्ञपात्र में स्थापित हों।[ऋग्वेद 9.97.48]
Hey Som! Truthful like the demigods-deities, listening-responding to the Stuties-prayers, riding the charoite, mixed in water as a sap & sanctified, establish in the Yagy pot.
अभि वायुं वीत्यर्षा गृणानो भि मित्रावरुणा पूयमानः।
अभी नरं धीजवनं रथेष्ठमभीन्द्रं वृषणं वज्रबाहुम्॥
हे सोम देव! आप पवित्र होकर वायुदेव, मित्र और अश्विनी कुमारों के निकट आगमन करें तथा वज्र के समान बलिष्ठ भुजाओं वाले इन्द्र देव के पास जाएँ।[ऋग्वेद 9.97.49]
Hey Som Dev! Come near Vayu Dev, Mitr and Ashwani Kumars and go to Indr Dev wielding Vajr in his strong hands.
अभि वस्त्रा सुवसनान्यर्षाऽभि धेनूः सुदुधाः पूयमानः।
अभि चन्द्रा भर्तवे नो हिरण्या ऽभ्यश्वानृ रथिनो देव सोम॥
हे सोम देव! आप हमें उत्तम वस्त्र, तेजस्वी स्वर्ण तथा धनादि प्रदान करने वाले हैं। आप हमें रथ में नियोजित होने वाले अश्व प्रदान करें तथा नवप्रसूता दुधारू गौएँ भी प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.97.50]
Hey Som Dev! You have arrived to grant us best clothing, majestic gold and wealth. Grant us the horses for deploying in the charoite and newly pregnant cows.
अभी नो अर्षः दिव्या वसून्यभि विश्वा पार्थिवा पूयमनः।
अभि येन द्रविणमश्नवामा ऽ भ्यार्षेयं जमदग्निवन्नः॥
हे सोम देव! जगदग्नि आदि ऋषियों के सदृश हमें धन तथा पार्थिव ऐश्वर्य प्रदान करें। आप हमें निष्पन्न होकर श्रेष्ठ धनों के सदुपयोग करने की सामर्थ्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.97.51]
Hey Som Dev! Grant us material grandeur and wealth like Rishi Jamdagni etc. On being extracted grant us the capability to use best wealth.
अया पवा पवस्वैना वसूनि मांश्चत्व इन्दो सरसि प्र धन्व।
ब्रध्नश्चिदन्र वातो न जूतः परुमेधश्चिति तकवे नरं दात्॥
हे सोम! आप अपनी पवित्र धाराओं से ऐश्वर्यों की वृष्टि करें। सूर्य देव द्वारा वायु देव को प्रवाहित करने के समान आप वसतीवरी नामक कलश में प्रवाहित होकर बुद्धिशाली इन्द्र देव को प्राप्त हों तथा हमें सुसन्तति प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.97.52]
Hey Som! Shower pious grandeurs with your pious streams. Blowing Vayu Dev through Sury Dev, you should flow into the Kalash named Vastivari, reach Indr Dev and grant us virtuous progeny.
उत न एना पवया पवस्वाऽधि श्रुते श्रवाय्यस्य तीर्थे।
षष्टिं सहस्त्रा नैगुतो वसूनि वृक्षं न पक्वं धूनवद्रणाय॥
हे सभी के आश्रयदाता सोम! हमारे इस यज्ञ में आप धारारूप में आगमन करें। शत्रुओं को नष्ट करने वाले आप पेड़ों से मिलने वाले पके फलों की भाँति साठ हजार धन युद्ध में विजय हेतु हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.97.53]
Asylum granting to everyone, hey Som! Come to our Yagy as a stream. Grant us sixty thousand wealth, like the ripe fruits of trees, destroying the enemy for victory in the war.
महीमे अस्य वृषनाम शूषे मांश्चत्वे वा पृशने वा वधन्ने।
अस्वापयनिनगुतः स्नेहयच्चाऽपामित्रां अपाचितो अचेतः॥
हे कर्मवान् सोम देव! आप पापियों का अन्त करने वाले तथा साधकों पर सुखों की वृष्टि करने वाले हैं। जो गुप्तरूप से हानि पहुँचाने वाले हैं उन शत्रुओं को बलहीन करके आप उन्हें नष्ट करें तथा यज्ञ न करने वाले शत्रुरूपी लोगों को यहाँ से पलायित करें।[ऋग्वेद 9.97.54]
Hey endeavourous Som Dev! You are the destroyer of sinners and shower comforts over the worshipers. Destroy the secret enemies who harm us and repel-flee the people like enemies, who do not perform Yagy.
सं त्री पवित्रा विततान्येष्यन्वेकं धावसि पूयमानः।
असि भगो असि दात्रस्य दाता ऽसि मघवा मघवद्रभ्य इन्द्रो॥
हे सोम! आप तीन विशाल छलनियों द्वारा छनकर कलश में प्रवेश करते हैं। आप ऐश्वर्यवान है, दान योग्य धन के दाता और धनवानों के भी धनपति हैं।[ऋग्वेद 9.97.55]
Hey Som! You pass through three large sieves and then enter the Kalash. You possess grandeur, are a donor of wealth and rich amongest the rich-wealthy.
एष विश्वविदत् पवते मनीषी सोमो विश्वस्य भुवनस्य राजा।
द्रप्सां ईरयन् विदथेष्विन्दुर्वि वारमव्यं समयाति याति॥
सर्वज्ञ ज्ञानी, सभी के ज्ञाता और सभी भुवनों के राजा ये सोम अनश्वर छलनी में दोनों ओर से प्रवाहित होते हुए सभी यज्ञों को रस प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 9.97.56]
Knowing all-every thing, knowing everyone, lord of all abodes Som passes thought the imperishable sieve from both sides and grant sap for all Yagy.
इन्दुं रिहन्ति महिषा अदब्धाः पदे रेभन्ति कवयो न गृध्राः।
हिन्वन्ति धीरो दशभिः क्षिपाभिः समंजते रूपमपां रसेन॥
दसों अंगुलियों द्वारा इस सोम को जल में मिश्रित करते हुए मेधावी ऋत्विज ज्ञानियों के सदृश उसकी प्रार्थना करते हैं। महान् ऋषिगण इस अविनाशी सोमरस का स्वाद लेते हैं।[ऋग्वेद 9.97.57]
Intelligent Ritviz worship Som like the scholars while mixing it in water with ten fingers. Great Rishi Gan enjoy immortal Somras.
त्वया वयं पवमानेन सोम भरे कृतं वि चिनुयाम शश्वत्।
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः॥
हे सोम देव! आप संसार को पवित्र करने वाले हैं। अपने जीवनकाल में हम आपकी सहायता से ही उत्तम कर्म करने में समर्थ होते हैं। माता अदिति, मित्र, वरुणदेव, पृथ्वी, सागर तथा द्युलोक हमें यशोभागी बनाएं।[ऋग्वेद 9.97.58]
Hey Som Dev! You sanctify the universe. Let us become capable of doing excellent jobs in our life time, due to your help. Let Mata Aditi, Mitr, Varu Dev, earth, ocean and heavens make us glorious.(04.09.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (98) :: ऋषि :- अम्बरीष, वार्षागिर, ऋजिश्वा, भरद्वाज; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- अनुष्टुप्, बृहति।
अभि नो वाजसातमं रयिमर्ष पुरुस्पृहम्।
इन्दो सहस्त्रभर्णस तुविद्युम्नं विभ्वासहम्॥
अनेकानेक लोगों द्वारा कामना किए जाने योग्य, हजारों का पोषण करने तथा बलों की वृद्धि करने वाला यह तेजस्वी सोमरस हमें धन और संतति प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.98.1]
Majestic Som deserve to be desired by several people, nurturing thousands of people & booster of strength should grant us wealth and progeny.
परि ष्य सुवानो अव्ययं रथे न वर्माव्यत।
इन्दुरभि द्रुणा हितो हियानो धाराभिरक्षाः॥
जिस प्रकार कवच से युक्त पुरुष रथ में आरूढ़ होता है, उसी प्रकार प्रकार स्तुत्य सोम कलश से डालने पर धारारूप में प्रवाहित होता है।[ऋग्वेद 9.98.2]
The way a man wearing shield-armour ride the charoite; similarly worshiped Som flow in current prior to pouring in the Kalash.
परि ष्य सुवानो अक्षा इन्दुरव्ये मदच्युतः।
धारा य ऊर्ध्वा अध्वरे भ्राजा नैति गव्ययुः॥
अपने तेज से युक्त सोमरस देवगणों की प्रेरणा से हर्ष के निमित्त छन्ने में गमन करता है। याजकों को आनन्दित करने के लिए यह प्राकृतिक ढंग से शोधित होता है।[ऋग्वेद 9.98.3]
Somras having radiance passes through the sieve due to the inspiration by demigods-deities. Its naturally sanctified to gladden the Yagyik.
स हि त्वं देव शश्वते वसु मर्ताय दाशुषे।
इन्दो सहस्रिणं रयिं शतात्मानं विवाससि॥
हे सोमदेव! आप उत्तम कार्यों के लिए दानदाता मनुष्यों को सैकड़ों प्रकार का धन प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 9.98.4]
Hey Som Dev! You grant donor humans, hundreds of kind of wealth, for virtuous jobs.
वयं ते अस्य वृत्रहन्वसो वस्वछ पुरुस्पृहः।
नि नेदिष्ठतमा इषः स्याम सुम्नस्याध्रिगो॥
सभी के आश्रयदाता, सभी का पोषण करने वाले तथा सबके द्वारा सराहनीय हे सोमदेव! आपके द्वारा हम बहुसंख्यक पुत्रादि से युक्त सुन्दर ऐश्वर्य प्राप्त करें।[ऋग्वेद 9.98.5]
Asylum and nourishment granting to all and appreciable, hey Som Dev! We should have numerous sons etc. with glorious grandeur.
द्विर्यं पञ्च स्वयशसं स्वासारो अद्रिसंहतम्।
प्रियमिन्द्रस्य काम्यं प्रस्नापयन्त्यूर्मिणम्॥
पत्थरों द्वारा कूटकर निष्पन्न, कीर्तिवान्, सबके इष्ट और इन्द्र देव के प्रिय सोम को दसों अंगुलियाँ भली प्रकार शोधित कर जल में मिश्रित करती हैं।[ऋग्वेद 9.98.6]
Extracted by crushing with stones, glorious, lord of all and dear-affectionate to Indr Dev Som is sanctified with ten fingers and mixed in water.
परि त्यं हर्यतं हरिं बभुं पुनन्ति वारेण।
यो देवान्विश्वाँ इत्परि मदेन सह गच्छति॥
जल में मिश्रत कर हरे और भूरे वर्ण के सोम को पवित्र बनाया जाता है। यह सोम इन्द्र देव आदि देवगणों को हर्ष प्रदान करने के लिए उनके पास जाता है।[ऋग्वेद 9.98.7]
Som having green and grey colours is sanctified by mixing in water. This Som goes to Indr Dev and demigods-deities to gladden them.
अस्य वो ह्यवसा पान्तो दक्षसाधनम्।
यः सूरिषु श्रवो बृहद्दधे स्व१र्ण हर्यतः॥
हे देवगणों! सभी को संरक्षित करने वाले इस बलशाली सोम का आप पान करें। यह सोम रस ज्ञानीजनों को सूर्यदेव के सदृश तेजयुक्त करता है।[ऋग्वेद 9.98.8]
Hey demigods-deities! Drink this mighty Som which grant asylum to all. Somras grant radiance like Sury Dev to learned-scholars and make them majestic.
स वां यज्ञेषु मानवी इन्दुर्जनिष्ट रोदसी।
देवो देवी गिरिष्ठा अस्त्रेधन्तं तुविष्वणि॥
हे द्युलोक और पृथ्वी लोक! यज्ञों में मनुष्यों का हितकारी तथा तेजस्वी सोमरस उत्पन्न किया जाता है। यह तेजस्वी सोमरस पर्वत के उच्च शिखरों में रहता है। इसे यज्ञ में याजक निर्मित करते हैं।[ऋग्वेद 9.98.9]
Hey heavens & the earth! Majestic Som is produced in the Yagy for the benefit of humans by the Yagyik. This radiant Somras resides over the cliffs of mountains.
इन्द्राय सोम पातवे वृत्रघ्न परि षिच्यसे।
नरे च दक्षिणावते देवाय सदनासदे॥
हे सोम! शत्रुओं को नष्ट करने वाले इन्द्र देव के पान हेतु, यज्ञ में ऋत्विजों को दक्षिणा देने वाले वीर के लिए और यज्ञ करने वाले यजमानों के लिए आप पात्र में प्रवाहित होकर स्थिर हों।[ऋग्वेद 9.98.10]
Hey Som! You should flow into the vessel for drinking by Indr Dev who destroys the enemies, the braves who grant doles-Dakshina to the Ritviz in the Yagy and the hosts who perform Yagy.
ते प्रत्नासो व्युष्टिषु सोमाः पवित्रे अक्षरन्।
अपप्रोथन्तः सनुतर्दुरश्चितः प्रातस्ताँ अप्रचेतसः॥
प्रातःकाल अज्ञानी अर्थात् जिसे ज्ञान न हो ऐसे छिपे हुए चोर को जो सोम पलायित कर देता है, उस सनातन सोम को ब्राह्ममुहूर्त में ही शोधित करके पवित्र बनाते हैं।[ऋग्वेद 9.98.11]
Ignorant & thieves repel eternal Som which is sanctified in the early morning (Brahm Muhurt).
तं सखायः पुरोरुचं यूयं वयं च सूरयः।
अश्याम वाजगन्ध्यं सनेम वाजपस्त्यम्॥
हे मित्रों! हम और आप शौर्यवान, पुष्टिकारक, श्रेष्ठ, सुगंधयुक्त, सामर्थ्य एवं बल की वृद्धि करने वाले सोमरस को प्राप्त करें।[ऋग्वेद 9.98.12]
Hey friends! Let us have brave, nourishing, excellent, scented, capable and strength increasing Somras.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (99) :: ऋषि :- रेभसूनु, कश्यप; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- बृहती, अनुष्टुप्।
आ हर्यताय धृष्ण्वे धनुस्तन्वन्ति पौस्यम्।
शुक्रां वयन्त्यसुराय निर्णिजं विपामग्रे महीयुवः॥
धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने के समान ऋत्विकगण उद्देश्य प्राप्ति के लिए विद्वान देवताओं के समक्ष प्राण शक्ति की वृद्धि के लिए वाणी के द्वारा उस तेजस्वी सोम का विस्तार करते हैं।[ऋग्वेद 9.99.1]
The Ritviz extend majestic Som to attain their goal, in front of learned demigods-deities with their voice, like putting the string over the bow.
अध क्षपा परिष्कृतो वाजाँ अभि प्र गाहते।
यदी विवस्वतो धियो हरिं हिन्वन्ति यातवे॥
साधकों की अंगुलियाँ हरिताभ सोम को कलश में गमन करने के लिए प्रेरित करती हैं। रात्रि की समाप्ति पर उषाकाल में जलमिश्रित परिष्कृत सोमरस पौष्टिकता प्रदान करता है।[ऋग्वेद 9.99.2]
Ten fingers of the practitioners inspire greenish Som to move into the Kalash. After the elapse of night, in the morning at dawn-Usha, Somras mixed in water grants nourishment.
तमस्य मर्जयामसि मदो य इन्द्रपातमः।
यं गाव आसभिर्दधुः पुरा नूनं च सूरयः॥
इन्द्र देव द्वारा पान किए जाने वाले आनन्ददायक और परिष्कृत सोमरस को हम सुशोभित करते हैं। पूर्व के समान ही आज भी गौएँ और साधकगण यज्ञ में इस सोमरस का पान करते हैं।[ऋग्वेद 9.99.3]
We glorify sanctified, gladdening Somras for drinking by Indr Dev. Like before, even today, the cows and seekers drink Somras in the Yagy.
तं गाथया पुराण्या पुनानमभ्यनूषत।
उतो कृपन्त धीतयो देवानां नाम बिभ्रतीः॥
प्रचलित स्तोत्रों से याजकगण उस पवित्र सोमरस की स्तुति करते हैं। देवताओं के लिए दसों अंगुलियाँ सोमरस को हविरूप में तैयार करती हैं।[ऋग्वेद 9.99.4]
The Yagyik worship pious Somras with prevalent-popular Strotrs. Ten fingers prepare Somras for the deities-demigods as offerings.
तमुक्षमाणमव्यये वारे पुनन्ति धर्णसिम्।
दूतं न पूर्वचित्तय आ शासते मनीषिणः॥
सभी के धारण करने योग्य, दुग्ध द्वारा सिंचित सोमरस छलनी से शोधित एवं पवित्र किया जाता है। ज्ञानप्राप्ति की कामना से ज्ञानीजन दूत के समान उस सोम की प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 9.99.5]
To be possessed by everyone, Somras mixed in cows milk, is purified and sanctified with sieve. The scholars worship Somras for attaining knowledge like an ambassador.
स पुनानो मदिन्तमः सोमश्चमूषु सीदति।
पशौ न रेत आदधत्पतिर्वचस्यते धियः॥
सभी के द्वारा प्रार्थित, बुद्धियों क अधिष्ठाता, आनन्दित करने वाला सोमरस ऋत्विजों द्वारा पात्र में स्थापित किया जाता है।[ऋग्वेद 9.99.6]
Worshiped by everyone, deity of the intelligence, gladdening Somras is kept in the vessel by the Ritviz.
स मृज्यते सुकर्मभिर्देवो देवेभ्यः सुतः।
विदे यदासु संददिर्महीरपो वि गाहते॥
श्रेष्ठ कर्मवान् याजकों के द्वारा देवों के निमित्त निकाला गया सोमरस जल में मिश्रित होकर शोधित किया जाता है।[ऋग्वेद 9.99.7]
Somras mixed in water, is extracted & purified by the virtuous devoted Yagyik for the demigods-deities.
सुत इन्दो पवित्र आ नृभिर्यतो वि नीयसे।
इन्द्राय मत्सरिन्तमश्चमूष्वा नि षीदसि॥
हे सोम! आपका निकाला गया अति विशाल और अत्यंत आनन्ददायक रस इन्द्र देव के पीने हेतु याजकों द्वारा छलनी में शोधित और कलश में स्थापित किया जाता है।[ऋग्वेद 9.99.8]
Hey Som! Your gladdening extract-Somras in large quantum-quantity is purified with sieve & established in the Kalash for drinking by Indr Dev.(05.09.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (100) :: ऋषि :- रेभसूनु, कश्यप; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- अनुष्टुप्।
अभी नवन्ते अद्रुहः प्रियमिन्द्रस्य काम्यम्।
वत्सं न पूर्व आयुनि जातं रिहन्ति मातरः॥
जिस प्रकार गौएँ अपने बछड़ों को चाटती हैं, उसी प्रकार इन्द्र देव का प्रिय, कभी विद्रोह न करने वाला जल सबके द्वारा चाहने योग्य सोम में मिलता है।[ऋग्वेद 9.100.1]
The way the cows lick their calf, similarly water dear to Indr Dev never goes against him meets Som & is liked by everyone.
पुनान इन्दवा भर सोम द्विबर्हसं रयिम्।
त्वं वसूनि पुष्यसि विश्वानि दाशुषो गृहे॥
हे तेजस्वी सोम देव! आप पवित्र होकर दोनों लोकों वाला दिव्य धन हमें प्रदान करें। आप यजमान के गृह में स्थित होकर उसे अनेक प्रकार के ऐश्वर्यों से युक्त करें।[ऋग्वेद 9.100.2]
Hey majestic Som Dev! On being sanctified, grant us the divine wealth of two abodes. Stay in the house of the host and grant him all sorts of grandeur.
त्वं धियं मनोयुजं सृजा वृष्टिं न तन्यतुः।
त्वं वसूनि पार्थिवा दिव्या च सोम पुष्यसि॥
हे सोम देव! जलवृष्टि करने वाले बादलों के समान आप हमारे मन को श्रेष्ठ बनाने वाली बुद्धि प्रदान करें। आप द्युलोक और पृथ्वीलोक के धनों की वृद्धि करने वाले हैं।[ऋग्वेद 9.100.3]
Hey Som Dev! Grant us best intellect to make our innerself excellent like the rain clouds. You boost the wealth of heavens and the earth.
परि ते जिग्युषो यथा धारा सुतस्य धावति।
रंहमाणा व्य१व्ययं वारं वाजीव सानसिः॥
आपका (हाथों से) निचोड़ा गया पान करने योग्य रस द्रुतगामी अश्व के सदृश छलनी पर धारा रूप में प्रवाहित होता है।[ऋग्वेद 9.100.4]
Your sap-juice squeezed with the hands, good for drinking, moves like a fast moving horse through the sieve in a current.
क्रत्वे दक्षाय नः कवे पवस्व सोम धारया।
इन्द्राय पातवे सुतो मित्राय वरुणाय च॥
हे मेधावी सोम! इन्द्र, वरुण तथा मित्र देवों के पान हेतु निकाला किया गया आपका रस हमें बुद्धिमान और बलशाली बनाने के लिए धारारूप में प्रवाहित होते हुए पवित्र बने।[ऋग्वेद 9.100.5]
Hey intelligent Som! Your sap-juice extracted for drinking by Indr Dev, Varun Dev and Mitr should be sanctified & flow like a stream to make us intelligent, strong.
पवस्व वाजसातमः पवित्रे धारया सुतः।
इन्द्राय सोम विष्णवे देवेभ्यो मधुमत्तमः॥
रसरूप में शोधित होने वाले हे सोम! आप अपनी मधुर पोषक धारा से इन्द्र देव, श्री विष्णु आदि देवों की तृप्ति के लिए पवित्र होकर सुपात्र में स्थिर हों।[ऋग्वेद 9.100.6]
Hey Som, sanctified in the form of juice! Stay in the vessel for the satisfaction of Indr Dev, Shri Hari Vishnu and the demigods-deities.
त्वां रिहन्ति मातरो हरिं पवित्रे अद्रुहः।
वत्सं जातं न धेनवः पवमान विधर्मणि॥
हे हरिताभ सोम! जिस प्रकार गौएँ अपने बछड़े को जिह्वा से चाटती है, उसी प्रकार परस्पर रहने वाली अंगुलियाँ आपको निचोड़ती और शोधित करती हैं।[ऋग्वेद 9.100.7]
Hey greenish Som! The manner in which the cows lick their calf, finger together squeeze you and sanctify.
पवमान महि श्रवश्चित्रेभिर्यासि रश्मिभिः।
शर्धन् तमांसि जिघ्नसे विश्वानि दाशुषो गृहे॥
हे पवित्र सोमदेव! आप याजकों के घरों में जाकर अपने पराक्रम से सम्पूर्ण अन्धकार का शमन करते हैं। आप अपनी सुन्दर किरणों के साथ सर्वत्र जाते हुए महान यशस्वी बनते हैं।[ऋग्वेद 9.100.8]
Hey pious Som Dev! You go the houses of Yagyik and remove the entire darkness. You move all around with your beautiful rays and become glorious.
त्वं द्यां च महिव्रत पृथिवीं चाति जभ्रिषे।
प्रति द्रापिममुञ्चथाः पवमान महित्वना॥
हे पावन सोमदेव! आप पृथ्वी के आकार को भलीभाँति से धारित करते हैं। आप अपनी महिमा से कवचादि को भी धारण करते हैं।[ऋग्वेद 9.100.9]
Hey pious Som Dev! You are aware of the shape & size of the earth, properly. You wear shield-armour with your glory.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (101) :: ऋषि :- अंधीगु, श्यावाश्व, ययाति, नाहुष, नहुषो मानव, मनु सांवरण, विश्वामित्र, वाच्या प्रजापति; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :-अनुष्टुप, गायत्री।
पुरोजिती वो अन्धसः सुताथ मादयित्नवे।
अप श्वानं श्नथिष्टन सखायो दीर्घजिह्वयम्॥
हे मित्रो! आप उस लम्बी जीभ वाले श्वान को दूर भगावें, जो आनन्द प्रदान करने वाले सोमरस के पास जाने की इच्छा करता है।[ऋग्वेद 9.101.1]
Hey friends! Repel-drive off the dog with long tongue, desirous of pleasure and reaching Somras.
यो धारया पावकया परिप्रस्यन्दते सुतः। इन्दुरश्वो न कृत्व्यः॥
यज्ञ को पूर्णता प्रदान करने वाला शोधित सोमरस, तेज गति से दौड़ने वाले अश्व के सदृश वेग के साथ पात्र में गिरता है।[ऋग्वेद 9.101.2]
Purified Somras grant completion to the Yagy and fall in the pot like a fast moving horse, with high speed.
तं दुरोषमभी नरः सोमं विश्वाच्या धिया। यज्ञं हिन्वन्त्यद्रिभिः॥
हे ऋत्विजों! आप पापी दुष्टों को नष्ट करने वाले तथा यज्ञ की सम्पूर्णता के लिए सोम को पाषाणों से कूटकर उसका रस निकालें।[ऋग्वेद 9.101.3]
Hey Ritviz! Crush the Som with stones for the completion of Yagy and destruction of the wicked-vicious.
सुतासो मधुमत्तमाः सोमा इन्द्राय मन्दिनः।
पवित्रवन्तो अक्षरन्देवान्गच्छन्तु वो मदाः॥
मधुर तथा हर्ष प्रदान करने वाला यह सोमरस इन्द्र देव के लिए तैयार होता है। हे सोम! आपका आनन्दित करने वाला रस देवगणों की ओर गमन करें।[ऋग्वेद 9.101.4]
Sweet & gladdening Somras is prepared for Indr Dev. Hey Som! Let your gladdening juice move towards demigods-deities to grant them pleasure.
इन्दुरिन्द्राय पवत इति देवासो अनुवन्।
वाचस्पतिर्मखस्यते विश्वस्येशान ओजसा॥
ज्ञान रक्षक, समर्थवान, यज्ञ में प्रयुक्त इन्द्र देव के लिए शोधित होने वाला सोमररस शब्दनाद करता हुआ स्तोताओं द्वारा पूजित होता है।[ऋग्वेद 9.101.5]
Protector of knowledge, capable, used in the Yagy, Somras sanctified for Indr Dev create sound-Naad and is worshiped-prayed by the Stotas.
सहस्त्रधारः पवते समुद्रो वाचमीङखयः।
सोमः पती रयीणां सखेन्द्रस्य दिवेदिवे॥
प्रतिदिन सहस्त्रों धाराओं से कलश में शोधित होने वाला सोमरस अपने बल से ही संसार का स्वामी और स्तोत्रों का रक्षक तथा इन्द्र देव का मित्र है।[ऋग्वेद 9.101.6]
Every day Somras is purified in hundred of streams in the Kalash; is the lord of the universe due to its own strength & power, protector of the Strotrs and is friend of Indr Dev.
अयं पूषा रयिर्भगः सोमः पुनानो अर्षति।
पतिर्विश्वस्य भूमनो व्यख्यद्रोदसी उभे॥
छन्ने से नीचे की ओर गमन करने वाला यह सोम अत्यन्त सेवनीय और तीव्रगति से प्रवाहित होने वाला है। सभी जीवों का पालक यह सोम अपने तेज से द्युलोक और पृथ्वीलोक को प्रकाशित करता है।[ऋग्वेद 9.101.7]
Coming down from the sieve, Somras is highly consumable-useful and flow with high speed. Nurturer of all living beings, Som illuminate the heavens and earth with its majesty.
समु प्रिया अनूषत मदाय घृष्वयः।
सोमासः कृण्वते पथः पवमानास इन्दवः॥
हे सोम देव! आनन्दप्राप्ति के लिए प्रेम और स्पर्धा प्रदर्शित करने वाली वाणियाँ आपकी स्तुति करती हैं। शोधित और ऐश्वर्यवान सोमरस भी आनन्द के लिए संचारित होता है।[ऋग्वेद 9.101.8]
Hey Som Dev! For the sake of pleasure, voices demonstrating love and competition worship you. Sanctified and glorious Somras move-flow for the sake of pleasure.(06.09.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (101) :: ऋषि :- अंधीगु, श्यावाश्व, ययाति, नाहुष, नहुषो मानव, मनु सांवरण, विश्वामित्र, वाच्या प्रजापति; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :-अनुष्टुप, गायत्री।
य ओजिष्ठस्तमा भर पवमान श्रवाय्यम्। यः पञ्च चर्षणीरभि रयिं येन वनामहै॥
बल प्रदान करने वाला, प्रशंसा योग्य, भरपूर मात्रा में अपना रस हमें प्रदान करने वाला सोमरस समाज के पांचों वर्णों को प्राप्त होता है।[ऋग्वेद 9.101.9]
Strength granting, appreciable, granting its sap-juice in sufficient quantity Somras is attained b y the five Varn.
(In general only four Varn are recognised. Fifth Varn is Nishad. In addition to this sixth Varn is Kayasth, decedents of Chitr Gupt. Four Varns evolved from Brahma Ji.)
सोमाः पवन्त इन्दवोऽस्मभ्यं गातुवित्तमाः।
मित्राः सुवाना अरेपसः स्वाध्यः स्वर्विदः॥
मन को एकाग्रचित्त करने वाला, आत्मविद्, श्रेष्ठ मार्गों का ज्ञाता, मित्ररूप एवं पापरहित सोमरस हमारे लिए शुद्ध किया जाता है।[ऋग्वेद 9.101.10]
Somras which grants concentration of mind, recognising the innerself, aware of the best paths, friendly and sinless is sanctified.
सुष्वाणासो व्यद्रिभिश्चिताना गोरधि त्वचि।
इषमस्मभ्यमभितः समस्वरन्वसुविदः॥
धन प्रदान करने वाला, पाषाणों द्वारा पीसे जाने वाला तथा पृथ्वी के ऊपर निवास करने वाला सोमरस सदैव धन एवं ऐश्वर्य प्रदान करता है।[ऋग्वेद 9.101.11]
Wealth granting, crushed by stones, residing over the earth, Somras always grants wealth and grandeur.
एते पूता विपश्चितः सोमासो दध्याशिरः।
सूर्यासो न दर्शतासो जिगत्नवो ध्रुवा घृते॥
सूर्यदेव के समान तेजोमय, पावन, अद्भुत, दहीयुक्त कलश में स्थित सोम जल में मिलता हुआ शब्दनाद करता है।[ऋग्वेद 9.101.12]
Majestic like Sury Dev, pious, amazing, having curd, placed in the Kalash; Som generate sound-Naad.
प्र सुन्वानस्यान्धसो मर्ती न वृत तद्वचः। अप श्वानमराधसं हता मखं न भृगवः॥
सोम के शोधन कर्म में बाधक श्वानों के शब्द न सुनें। हे स्तोताओं! भृगु ऋषियों ने जिस प्रकार मख नाम के दानव को हटा दिया था, उसी प्रकार आप श्वानों को यज्ञस्थल से हटावें।[ऋग्वेद 9.101.13]
Do not listen to the barking of the dogs while sanctifying Som. Hey Stotas! The way Bhragu Rishi removed demon Makh, similarly remove the dogs from the Yagy site.
One must not permit either cows or dogs near the Yagy site and kitchen. Feed cows and dogs away from home.
आ जामिरत्वे अव्यत भुजे न पुत्र ओण्योः।
सरज्जारो न योषणां वरो न योनिमासदम्॥
जिस प्रकार जार स्त्री की ओर एवं वर कन्या की ओर उन्मुख होता है, उसी प्रकार भ्राता समान प्रिय सोमरस माता-पिता की भुजाओं में रक्षित पुत्र के समान छन्ने से प्रवाहित होकर कलश में प्रविष्ट होता है।[ऋग्वेद 9.101.14]
The way a woman with illicit relations and the groom looks to the bride, similarly brotherly Somras protected by parents in their arms; passes through the sieve and enter Kalash.
स वीरो दक्षसाधनो वि यस्तस्तम्भ रोदसी।
हरिः पवित्रे अव्यत वेधा न योनिमासदम्॥
स्वर्ग और पृथ्वी को अपने तेज से व्याप्त करने वाला, पौष्टिक तत्वों से युक्त, बलों को सिद्ध करने वाला सशक्त एवं हरिताभ सोम यजमान के घर में प्रविष्ट होने के तुल्य छन्ने द्वारा छनकर कलश में प्रवेश करता है।[ऋग्वेद 9.101.15]
Pervading heavens & earth, possessing nourishing elements, accomplishing strength, mighty and greenish Som enter the Kalash like entering the house of the host passing through the sieve.
अव्यो वारेभिः पवते सोमो गव्ये अधि त्वचि।
कनिक्रददृषा हरिरिन्द्रस्याभ्येति निष्कृतम्॥
शब्दनाद करता हुआ इन्द्र देव के पास जाने वाला तथा भूमि के पृष्ठ भाग पर स्थापित यह बलशाली सोम ऊन की छलनी द्वारा छाना जाता है।[ऋग्वेद 9.101.16]
Mighty Somras creating Naad, going to Indr Dev, present over the surface of earth is filtered through woollen sieve.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (102) :: ऋषि :- आप्त्य, आदय; देवता :-पवमान, सोम; छन्द :- उष्णिक्।
क्राणा शिशुर्महीनां हिन्वन्नृतस्य दीधितिम्। विश्वा परि प्रिया भुवदध द्विता॥
यह सोम, यज्ञकर्ता तथा महान जल का पुत्र है। यह यज्ञ को प्रकाशित करने वाले अपने रस को प्रेरित करता है। यह सभी आहुतियों में व्याप्त होता हुआ द्युलोक और पृथ्वीलोक में स्थित होता है।[ऋग्वेद 9.102.1]
Som is son of Yagy performing, great water. It illuminate the Yagy and inspire its juice. It pervades all offerings and stay over the heavens & earth.
उप त्रितस्य पाष्यो ३रभक्त यद्गुहा पदम्। यज्ञस्य सप्त धामभिरध प्रियम्॥
त्रित ऋषि की गुफा में होने वाले यज्ञ में अभिषुत हुए सोम की ऋषियों ने गायत्री आदि सात छन्दों से प्रार्थना की।[ऋग्वेद 9.102.2]
The Rishis worshiped Som with Gayatri Mantr and six Mitres, sanctified in the Yagy held in the cave of Trit Rishi.
त्रीणि त्रितस्य धारया पृष्ठेष्वेरया रयिम्। मिमीते अस्य योजना वि सुक्रतुः॥
त्रित के तीनों सवनों में व्याप्त हे दिव्य सोम! आप अपनी रसधारा से इन्द्र देव को प्रेरित करें। उत्तम याजक इन्द्र देव का उत्तम स्तोत्रों से स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 9.102.3]
Pervading the three segments of the day for Trit Rishi, hey divine Som! Inspire Indr Dev with your juice current. Best Yagyik worship Indr Dev with best Strotrs.
जज्ञानं सप्त मातरो वेधामशासत श्रिये। अयं ध्रुवो रयीणां चिकेत यत्॥
सात धाराओं से युक्त सोम की धनप्राप्ति की इच्छा वाले यजमान सात छन्दों से स्तुति करते हैं। यह सोम धन-सम्पदाओं को भली-भाँति से जानने वाला है।[ऋग्वेद 9.102.4]
Possessing seven streams, Som is worshiped by the hosts desirous of wealth, with seven Mitres. Som is well versed with wealth-property.
अस्य व्रते सजोषसो विश्वे देवासो अद्रुहः। स्पार्हा भवन्ति रन्तयो जुषन्त यत्॥
प्रसन्न रहने वाले तथा सभी से प्रेम करने वाले देवगण जब सोमरस का पान करते हैं तब (यज्ञादि) कर्म में रत एक-दूसरे से द्रोह न करने वाले देवगण संगठित होते हैं।[ऋग्वेद 9.102.5]
When the happy and loving others demigods-deities drink Somras, they remain busy with Yagy, remain united and never go against each other.
यमी गर्भमृतावृधो दृशे चारुमजीजनन्। कविं मंहिष्ठमध्वरे पुरुस्पृहम्॥
यज्ञ की वृद्धि करने वाले मेधावी, पूज्य कामनाओं की वर्षा करने वाले सोम को याजकों ने यज्ञस्थल पर स्थापित किया है।[ऋग्वेद 9.102.6]
The intelligent and promotor of Yagy, Yagyik establish Som fulfilling virtuous desires, at the Yagy site.
समीचीने अभि त्मना यह्वी ऋतस्य मातरा। तन्वाना यज्ञमानुषग्यदञ्जते॥
जब यज्ञ को सम्पन्न अथवा उसकी वृद्धि करने वाले याजक उसे जल में मिलाते हैं, तब सोमरस स्वयं महान् यज्ञ के निर्माता द्युलोक और पृथ्वीलोक की ओर जाता है।[ऋग्वेद 9.102.7]
When either Yagy performing or Yagy promoting Yagyik mix Somras in water, it itself goes to the Yagy evolving heavens and the earth.
क्रत्वा शुक्रेभिरक्षभिऋणोरप व्रजं दिवः। हिन्वन्नृतस्य दीधितिं प्राध्वरे॥
हे सोम! आप अहिंसित यज्ञ में सत्य के धारक को अपने रस से सिंचित करने वाले व अपने तेज से द्युलोक और पृथ्वीलोक के अन्धकार को नष्ट करते हैं।[ऋग्वेद 9.102.8]
Hey Som! Truthful, you support the non violent Yagy, nourish it with Somras and remove the darkness from the heavens and the earth.(07.09.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (103) :: ऋषि :- द्वित, आप्त्य; देवता-पवमान, सोम; छन्द :- उष्णिक्।
प्र पुनानाय वेधसे सोमाय वच उद्यतम्। भृतिं न भरा मतिभिर्जुजोषते॥
हे स्तोतागण ! जिस प्रकार पिता अपने पुत्र के लिए प्रयत्न करता है, उसी प्रकार आप पावन, स्तुति से आनन्दित होने वाले, मेधावी सोम के लिए मन्त्ररूप स्तुतियों का गान करें।[ऋग्वेद 9.103.1]
Hey Stota Gan! The way a father makes efforts for his son, similarly you gladdened by the pious Stuties, recite Stuties in the form of Mantr for intelligent Som.
परि वाराण्यव्यया गोभिरञ्जानो अर्षति। त्री षधस्था पुनानः कृणुते हरिः॥
परिष्कृत होता हुआ हरिताभ सोमरस तीन स्थानों पर स्थापित होता है। गौ-दुग्ध से मिश्रित सोमरस अनश्वर छलनी की ओर गमन करता है।[ऋग्वेद 9.103.2]
While being sanctified greenish Somras is stored at three places. Somras mixed in cow's milk moves to indestructible sieve.
परि कोशं मधुश्श्रुतमव्यये वारे अर्षति। अभि वाणीऋषीणां सप्त नूषत॥
श्रेष्ठ ऋषियों की सात पदों वाली वाणियाँ जिस सोम की स्तुति करती हैं, वो पावन सोम अपने मधुर रस को छन्ने से क्षरित करता है।[ऋग्वेद 9.103.3]
The voice of excellent sages-rishis recite Stuties of which Som, that Som reduce its sweet sap with filter-sieve.
परि णेता मतीनां विश्वदेवो अदाभ्यः। सोमः पुनानश्चम्वोर्विशद्धरिः॥
देवताओं के प्रिय सोम को पत्थरों से कूटकर रस निकाला जाता है। उत्तम मार्ग पर गमन करने वाले हरिताभ सोम की ओर गमन करते हैं।[ऋग्वेद 9.103.4]
Somras loved by the demigods-deities is extracted by crushing with stones. It move towards the best route followed by greenish Som.
परि दैवीरनु स्वधा इन्द्रेण याहि सरथम्। पुनानो वाघद्वाघद्भिरमर्त्यः॥
हे सोम! आप ऋत्विजों द्वारा शोधित होकर याजकों को धन और ऐश्वर्य प्रदान करते हैं। अविनाशी तथा स्तोताओं द्वारा स्तुत्य सोम इन्द्र देव के साथ रथ पर बैठकर गमन करते हैं।[ऋग्वेद 9.103.5]
Hey Som! on being sanctified you grant wealth & grandeur to the Yagyik. Immortal Som worshiped by the Stotas rides the charoite with Indr Dev for moving.
परि सप्तिर्न वाजयुर्देवो देवेभ्यः सुतः। व्यानशिः पवमानो वि धावति॥
पवित्र, तेजयुक्त, बलयुक्त तथा समस्त संसार में व्याप्त, द्रुतगामी अश्व के समान चारों ओर प्रवाहित होने वाला सोमरस देवगणों के लिए निकालकर पात्र में स्थापित किया गया है।[ऋग्वेद 9.103.6]
Pious, majestic, mighty pervading the whole world, moving like fast moving horses, flowing in all direction Somras is extracted by demigods-deities and stored in the vessel.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (104) :: ऋषि :- पर्वत, नारद, काण्व, शिखण्डि या कश्यप, अवप्सरस; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- उष्णिक्।
सखाय आ नि षीदत पुनानाय प्र गायत। शिशुं न यज्ञैः परि भूषत श्रिये॥
हे ऋत्विजों! आप आकर बैठें और सोम को शोधित करते हुए उनका स्तवन करें। जिस प्रकार शिशु को वस्त्राभूषण से सजाते हैं, उसी प्रकार यज्ञ के साधनों से हम सोमरस को सुशोभित करें।[ऋग्वेद 9.104.1]
Hey Ritviz! Come, sit and worship Som while being sanctified. The way an infant is decorated with cloths & ornaments, similarly we decorate Somras with the Yagy means.
समी वत्सं न मातृभिः सृजता गयसाधनम्। देवाव्यं १ मदमभि द्विशवसम्॥
हे ऋत्विजों! जिस प्रकार बालक अपनी माता से मिलकर रहता है, उसी प्रकार गृहसाधक, हर्षप्रदायक, बलों से युक्त, गुणवान सोम को आप जल में मिश्रित करें।[ऋग्वेद 9.104.2]
Hey Ritviz! The way an infant clings with his mother, similarly the house hold should mix gladdening, possessing might & qualities Som in water.
पुनाता दक्षसाधनं यथा शर्धाय वीतये। यथा मित्राय वरुणाय शंतमः॥
इस बलशाली सोम को शोधित करें। छन्ने द्वारा प्रवाहित हुआ यह सोम मित्र और वरुण देव को सुख प्रदान करने वाला है।[ऋग्वेद 9.104.3]
Purify this strong Som. Purified in sieve-filter, this Som grant pleasure to Mitr & Varun Dev.
अस्मभ्यं त्वा वसुविदमभि वाणीरनूषत। गोभिष्टे वर्णमभि वासयामसि॥
हे धनदाता सोम! हम आपके रस को गौ-दुग्ध में मिश्रित करते हैं तथा हमारी वाणी आपका स्तवन करती है। आपका धन हमें प्राप्त हों।[ऋग्वेद 9.104.4]
Hey wealth granting Som! We mix your sap in cow's milk and our voice recite prayers for you. Let have wealth from you.
स नो मदानां पत इन्दो देवप्सरा असि। सखेव सख्ये गातुवित्तमो भव॥
हे तेजस्वी स्वरूप वाले, आनन्द के अधिष्ठाता सोम देव! जिस प्रकार मित्र अपने मित्र के मार्ग को प्रशस्त करता है, उसी प्रकार आप भी हमारे मार्ग को प्रशस्त करें।[ऋग्वेद 9.104.5]
Hey deity of pleasure, possessing majestic form, Som Dev! The way a friend clears the path for his friend, you should also clear our way.
सनेमि कृध्य १ स्मदा रक्षसं कं चिदत्रिणम्। अपादेवं द्वयुमंहो युयोधि नः॥
हे सोम देव! आप हमें अपना मित्र बनावें। जो हमसे छल करने वाले हैं तथा जो हमें नष्ट करने वाले मायावी (असुर) हैं, आप उनका वध कर हमें पापों से मुक्त करें। ,[ऋग्वेद 9.104.6]
Hey Som! Make us your friend. Kill those who deceive us and the demons who destroy us and make us sinless.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (105) :: ऋषि :- पर्वत, नारद, कण्व; देवता :-पवमान, सोम; छन्द :- उष्णिक्।
तं वः सखायो मदाय पुनानमभि गायत। शिशुं न यज्ञैः स्वदयन्त गूर्तिभिः॥
माता-पिता जिस प्रकार अपने बालक को अलंकृत करते हैं, उसी प्रकार हे मित्रों! यज्ञों और स्तुतियों से आप इस आनन्ददायक सोमरस को गाह्य बनावें।[ऋग्वेद 9.105.1]
The way the parents decorate their child, similarly, hey friends! Make this gladdening Somras acceptable with Yagy and Stuties.
सं वत्सइव मातृभिरिन्दुर्हिन्वानो अज्यते। देवावीर्मदो मतिभिः परिष्कृतः॥
शिशु को माता द्वारा जल से स्वच्छ करने के समान सोम को जल के द्वारा शोधित किया जाता है। सबको रक्षित करने वाले, हर्ष प्रदायक, स्तुतियों से प्रवृद्ध और ऋत्विजों के प्रेरक सोमरस को देवगण जल में मिश्रित करते हैं।[ऋग्वेद 9.105.2]
Som is cleansed with water like the mother who bathe her infant with water. Demigods-deities mix Somras in water which protect & gladden all, promoted with Stuties, inspire the Ritviz.
अयं दक्षाय साधनोऽयं शर्धाय वीतये। अयं देवेभ्यो मधुमत्तमः सुतः॥
बल की वृद्धि के लिए यज्ञ के साधनरूप, मधुर सोमरस को देवगणों के पीने के लिए विधिवत निकालते हैं। वे बलों को प्राप्त करने लिए इस सोमरस का पान करते हैं।[ऋग्वेद 9.105.3]
Demigods-deities extract sweet Somras procedurally for increasing strength, as a means for the Yagy. They drink Somras to boost their power.
गोमन्न इन्दो अश्ववत्सुतः सुदक्ष धन्व। शुचिं ते वर्णमधि गोषु दीधरम्॥
हे बलशाली, निष्पन्न सोमदेव! हम आपको गौ-दुग्ध में मिलाकर पवित्र करते हैं। आप हमें गौवों और अश्वों से युक्त धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.105.4]
Hey mighty, extracted Somras! We sanctify you by mixing in cow's milk. Grant us wealth consisting-constituting of cows & horses.
स नो हरीणां पत इन्दो देवप्सरस्तमः। सखेव सख्ये नर्यो रुचे भव॥
मनुष्यों का हित करने वाले, प्रकाश के पुंज हे हरिताभ सोम देव! आप हमें तेजयुक्त करें। एक मित्र द्वारा दूसरे को सहयोग देने के समान ही आपका व्यवहार हमारे प्रति हो।[ऋग्वेद 9.105.5]
Benefiting the humans, source of light, hey greenish Som Dev! Make us majestic. Our behaviour-mutual understanding should be like friends.
सनेमि त्वमस्मदाँ अदेवं कं चिदत्रिणम्। साह्वाँ इन्दो परि बाधो अप द्वयुम्॥
हे सोम देव! आप हमें पुरातन सुख प्रदत्त करें तथा जो रिपु हमारे सुख में बाधा पहुँचाएँ, उन्हें नष्ट करे। जो मायावी असुर भीतर से हमारा अहित करें, उन्हें भी आप दूर भगा दें।[ऋग्वेद 9.105.6]
Hey Som Dev! Grant us eternal pleasure-Parmanand and destroy the enemy who create obstacles in our comforts. Repel-repulse the demons who harm from inside.(08.09.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (106) :: ऋषि :- अग्नि, चाक्षुष, चक्षु, मानव, मनुराष्सव; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- उष्णिक्।
इन्द्रमच्छ सुता इमे वृषणं यन्तु हरयः। श्रुष्टी जातास इन्दवः स्वर्विदः॥
सबकी इच्छाओं को जानने वाला, अन्तःकरण के ज्ञान की वृद्धि करने वाला, हरिताभ सोम कामनाओं की वर्षा करने वाले पराक्रमी सोम की ओर जाता है।[ऋग्वेद 9.106.1]
Greenish Som aware of the desires of everyone, boosting the knowledge of innerself moves towards mighty Som who shower desires.
अयं भराय सानसिरिन्द्राय पवते सुतः। सोमो जैत्रस्य चेतति यथा विदे॥
इन्द्र देव के लिए तैयार किया जाने वाला यह सोम युद्ध के समय सेवन किया जाता है। युद्ध में विजय प्राप्ति के लिए गमन करने वाले इन्द्र देव को यह सोम शक्ति प्रदान करता है।[ऋग्वेद 9.106.2]
Som prepared by Indr Dev is consumed at the time of war. It grants strength to Indr Dev marching for victory in the war.
अस्येदिन्द्रो मदेष्वा ग्राभं गृभ्णीत सानसिम्। वज्रं च वृषणं भरत्समप्सुजित्॥
सबके द्वारा कामना किए गए धनुष को धारण करने वाले इन्द्र देव सोमपान से उत्साहित होकर जलों पर विजय प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 9.106.3]
Indr Dev encouraged by drinking Somras wield the bow desired by everyone and attain victory over waters.
प्र धन्वा सोम जागृविरिन्द्रायेन्दो परि स्रव। द्युमन्तं शुष्ममा भरा स्वर्विदम्॥
हे सोम! हमें तेज, ज्ञान और बल से युक्त करने वाले आप इन्द्र देव के लिए कलश में प्रवाहित होते हैं।[ऋग्वेद 9.106.4]
Hey Som! You grant us majesty, learning, might and flow into the Kalash for Indr Dev.
इन्द्राय वृषणं मदं पवस्व विश्वदर्शतः। सहस्रयामा पथिकृद्विचक्षणः॥
हे सोम! आप सभी को देखने वाले, मेधावी, हजारों मार्गों के ज्ञाता और सबके निर्माता हैं। इन्द्र देव के लिए बलशाली तथा आनन्ददायक रस प्रदान करने वाले हैं।
Hey Som! You look at everyone, is intelligent, knows thousands of routes-roads and develop all. You provide strengthening and gladdening sap for Indr Dev.
अस्मभ्यं गातुवित्तमो देवेभ्यो मधुमत्तमः। सहस्रं याहि पथिभिः कनिक्रदत्॥
हे देवताओं के प्रिय सोम देव! आप हजारों मार्गों से प्रवाहित होकर शब्दनाद करते हुए हमारे लिए उत्तम मार्गों को प्रशस्त करते हैं।[ऋग्वेद 9.106.6]
Hey Som Dev, dear to demigods-deities! You pass through thousands of roads and clear the way for us, making loud sounds-Naad.
पवस्व देववीतय इन्दो धाराभिरोजसा। आ कलशं मधुमान्त्सोम नः सदः॥
देवताओं के पीने के लिए वेगपूर्वक धाराओं के साथ कलश में प्रवाहित होने वाले हे आनन्ददायक सोम! आप प्रसन्नतापूर्वक हमारे इस कलश में आकर स्थित हों।[ऋग्वेद 9.106.7]
Hey gladdening Som you flow into the Kalash to be drunk by demigods-deities. Come & stay in our Kalash happily.
तव द्रप्सा उदप्रुत इन्द्रं मदाय वावृधुः। त्वां देवासो अमृताय कं पपुः॥
हे सोम! जल में मिलकर प्रवाहित होने वाला आपका रस इन्द्र देव के लिए वृद्धिकारक है। अमरत्व की प्राप्ति के लिए इन्द्र देव आदि पान करते हैं।[ऋग्वेद 9.106.8]
Hey Som your juice-sap mixed in water flows to cause Indr Dev's growth. Indr Dev and others drink it to attain immortality.
आ नः सुतास इन्दवः पुनाना धावता रयिम्। वृष्टिद्यावो रीत्यापः स्वर्विदः॥
आकाश से जलवर्षा करने वाले हे सोम! आप अपने शोधित होने वाले रस सहित हमें ऐश्वर्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.106.9]
Hey Som showring rain from the sky! Grant us your sanctified sap and grandeur.
सोमः पुनान ऊर्मिणाव्यो वारं वि धावति। अग्रे वाचः पवमानः कनिक्रदत्॥
आपका पावन और निष्पन्न होने वाला सोमरस स्तुति के उपरान्त अविनाशी छलनी में अत्यधिक वेग के साथ प्रवाहित होता है।[ऋग्वेद 9.106.10]
Your pious extracted sap-Somras flow through immortal sieve with high speed.
धीभिर्हिन्वन्ति वाजिनं वने क्रीळन्तमत्यविम्। अभि त्रिपृष्ठं मतयः समस्वरन्॥
ऋषियों की स्तुतियों से प्रवृद्ध हुआ सोमरस जल मिश्रित होकर छन्ने द्वारा छाना जाता है। अन्तरिक्ष, वनस्पति एवं जीव-जगत् में विद्यमान इस सोम की ज्ञानीजन वन्दना करते हैं।[ऋग्वेद 9.106.11]
Boosted by the Stuties of Rishis Somras mixed in water is filtered in the sieve. Enlightened people worship Som present-pervading space, vegetation and the living world.
असर्जि कलशाँ अभि मीळ्हे सप्तिर्न वाजयुः। पुनानो वाचं जनयन्नसिष्यदत्॥
जिस प्रकार रणभूमि में जाने वाला अश्व ध्वनि करता है, उसी प्रकार अन्नादि से युक्त, जल में मिश्रित होने वाला, सुसंस्कृत सोम तीव्र वेग से पात्रों में पहुँचता है।[ऋग्वेद 9.106.12]
The way a horse going to battle field neigh loudly, similarly sanctified Som mixed with water & food grains etc., moves with speed into the pots.
पवते हर्यतो हरिरति ह्वरांसि रंह्या। अभ्यर्षन्त्स्तोतृभ्यो वीरवद्यशः॥
अपने अशुद्ध भाग को शुद्ध करने वाला हरिताभ सोम वेगपूर्वक छलनी द्वारा कलश में प्रविष्ट होता है। यह अपने स्तोताओं को धन, संतति और यश प्रदान करता है।[ऋग्वेद 9.106.13]
Greenish Som cleansing its impure segment, passes thought the sieve with high speed. It grants its Stotas wealth, progeny and glory.
अया पवस्व देवयुर्मधोर्धारा असृक्षत। रेभन्पवित्रं पर्येषि विश्वतः॥
देवगणों की कामना करने वाला सोम निष्पन्न होकर शब्दनाद करता हुआ धारारूप में प्रवाहित होता है।[ऋग्वेद 9.106.14]
Extracted Som desirous of demigods-deities, flows in currents, making loud sound-Naad.(09.09.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (107) :: ऋषि :- सप्तऋषि; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- बृहती, द्विपदा विराट, प्रगाथ।
परीतो षिञ्चता सुतं सोमो य उत्तमं हविः।
दधन्वाँ यो नर्यो अप्स्व१न्तरा सुषाव सोममद्रिभिः॥
यह सोम मानवों का हितकारी है, क्योंकि देवताओं के लिए हविरूप सोम को ऋषियों ने पत्थरों से कूटकर, शोधित तथा जल मिश्रित किया है।[ऋग्वेद 9.107.1]
Som is beneficial for humans, since it has been crushed by the Rishis with stones, sanctified, mixed in water for the demigods-deities as an offering.
नूनं पुनानोऽविभिः परि स्त्रवादब्धः सुरभिंतरः।
सुते चित्त्वाप्सु मदामो अन्धसा श्रीणन्तो गोभिरुत्तरम्॥
देवताओं के लिए हविरूप सोम को ऋषियों ने पत्थरों से कूटकर, शोधित तथा जल मिश्रित किया। यह सोम मानवों का हितकारी है।[ऋग्वेद 9.107.2]
Som has been crushed with stones as an offering by the Rishis, sanctified & mixed with water. Som is useful for the humans.
परि सुवानश्चक्षसे देवमादनः क्रतुरिन्दर्विचक्षणः॥
हे सोम! आपको छलनी द्वारा छानकर, अन्न एवं गौ-दुग्ध के साथ मिश्रित किया जाता है। इसके बाद आपको जल में मिलाकर सेवन योग्य बनाया जाता है।[ऋग्वेद 9.107.3]
Hey Som! You are filtered through the sieve, mixed with food grains and cow's milk. Thereafter, you are mixed in water and made useful for consumption.
पुनानः सोम धारयापो वसानो अर्षसि।
आ रत्नधा योनिमृतस्य सीदस्युत्सो देव हिरण्ययः॥
हे स्वर्णिम एवं दीप्ति युक्त सोम! शोधन क्रम में जल से संयुक्त होकर अविरल धारा के रूप में प्रवाहित होते हुए आप यज्ञ पात्र में प्रतिष्ठित होते हैं।[ऋग्वेद 9.107.4]
Hey majestic Som with golden hue! You flow into the Yagy pot after purification and mixing in water.
दुहान ऊधर्दिव्यं मधु प्रियं प्रत्नं सधस्थमासदत्।
आपृच्छ्यं धरुणं वाज्यर्षति नृभिर्भूतो विचक्षणः॥
यजमानों द्वारा शोधित किया गया मधुर सोमरस यज्ञवेदी पर स्थापित होता है। यह यज्ञ करने वाले याजकों को प्राप्त होता है।[ऋग्वेद 9.107.5]
Somras purified by the hosts is kept at the Yagy Vedi. Yagyik performing Yagy, get it.
पुनानः सोम जागृविरव्यो वारे परि प्रियः।
त्वं विप्रों अभवोऽङ्गिरस्तमो मध्वा यज्ञं मिमिक्ष नः॥
अंगिरा आदि ऋषियों का अग्रगन्ता, प्रिय तथा पावन सोम छलनी द्वारा छनकर नीचे गिरता है। वह अपने मधुर रस से हमारे यज्ञ को सिंचित करता है।[ऋग्वेद 9.107.6]
Pious Som marching ahead of Angira Rishis, is filtered through the sieve and fall down wards. It nourish our Yagy with its sweet sap.
सोमो मीढान्पवते गातुवित्तम ऋषिर्विप्रो विचक्षणः।
त्वं कविरभवो देववीतम आ सूर्य रोहयो दिवि॥
कामनाओं की वर्षा करने वाला, सबका मार्गदर्शक, अत्यन्त मेधावी, आनन्ददायक सोम देवगणों को अत्यन्त प्रिय है। यह सूर्यदेव को प्रकाशित करने वाला है।[ऋग्वेद 9.107.7]
Showering desires, showing way to everyone, highly intelligent, gladdening Som is very dear to the demigods-deities. It makes Sury Dev shine.
सोम उ षुवाणः सोतृभिरधि ष्णुभिरवीनाम्।
अश्वयेव हरिता याति धारया मन्द्रया याति धारया॥
ऋत्विजों द्वारा हरिताभ आनन्ददायक सोम शोधित होता हुआ अपनी पावन धारारूप में नीचे पात्र में जाता है।[ऋग्वेद 9.107.8]
Greenish gladdening Som on being purified by the Ritviz moves down into the pot forming a pious current.
अनूपे गोमान्गोभिरक्षाः सोमो दुग्धाभिरक्षाः।
समुद्रं न संवरणान्यग्मन्मन्दी मदाय तोशते॥
आनन्दित करने वाला यह उज्ज्वल सोमरस गौ-दुग्ध में मिलाया जाता है। जिस प्रकार नदियाँ समुद्र के समीप पहुँचती और स्थिर होती हैं, उसी प्रकार यह सोमरस पात्र में जाकर स्थिर होता है।[ऋग्वेद 9.107.9]
Gladdening illuminating Somras is mixed in cow's milk. The way the rivers are directed towards the ocean, Somras goes to the pot and stay there.
आ सोम सुवानो अद्रिभिस्तिरो वाराण्यव्यया।
जनो न पुरि चम्वोर्विशद्धरिः सदो वनेषु दधिषे॥
सोम पत्थरों से कूटकर यह सोमरस छलनी द्वारा पात्र में छाना जाता है। मनुष्य जिस प्रकार नगर में प्रवेश करता है, उसी प्रकार हरिताभ सोम लकड़ी के पात्र में प्रवेश करता है।[ऋग्वेद 9.107.10]
Som is crushed with stones and Somras is filtered through the sieve. The way a man enters a city, greenish Somras enters the wooden vessel.
सा मामृजे तिरो अण्वानि मेष्यो मीळहे सप्तिर्न वाजयुः।
अनुमाद्यः पवमानो मनीषिभिः सोमो विप्रेभिर्ऋकभिः॥
अश्व के समान बलशाली, पावनता को प्राप्त होने वाला, मेधावियों की स्तुतियों द्वारा प्रशंसित हुआ सोमरस ऋषियों द्वारा ऊन के छन्ने में छाना जाता है।[ऋग्वेद 9.107.11]
Mighty like a horse, attained piousness, appreciated by the intellectuals, Somras is filtered through the woollen sieve by the Rishis.
प्र सोम देववीतये सिन्धुर्न पिप्ये अर्णसा।
अंशोः पयसा मदिरो न जागृविरच्छा कोशं मधुश्चतम्॥
इस सोम को जल में मिलाकर देवगणों को पीने के लिए अर्पित किया जाता है। वह अपने मधुर रस सहित पात्र को प्राप्त होता है।[ऋग्वेद 9.107.12]
Somras mixed in water is offered to demigods-deities for drinking. Som acquires pot with its sweet sap.
आ हर्यतो अर्जुने अत्के अव्यत प्रियः सूनुर्न मर्ज्यः।
तर्मी हिन्वन्त्यपसो यथा रथं नदीष्वा गभस्त्योः॥
यह सोम शिशु के सदृश संस्कारित किया जाता है। जिस प्रकार द्रुतमार्गी रथ युद्ध में जाता है, उसी प्रकार हाथों द्वारा शोधित किया गया सोमरस जलपात्र में जाता है।[ऋग्वेद 9.107.13]
Som is sanctified like an infant. The way fast moving charoite goes to battle field, Somras goes to water pot.
अभि सोमास आयवः पवन्ते मद्यं मदम्।
समुद्रस्याधि विष्टपि मनीषिणो मत्सरासः स्वर्विदः॥
आनन्द और ज्ञान का प्रदाता, मनुष्यों का हित साधन करने वाला, नीचे की ओर प्रवाहित सोम जल के पात्र में पवित्र होकर एकत्रित होता है।[ऋग्वेद 9.107.14]
Grantor of pleasure and knowledge, accomplishing the welfare of humans, Som flows down wards and collected in a pot on being purified.
तरत्समुद्रं पवमान ऊर्मिणा राजा देव ऋतं बृहत्।
अर्षन्मित्रस्य वरुणस्य धर्मणा प्र हिन्वान ऋतं बृहत्॥
विशाल समुद्र में यह दिव्य और शोधित सोम मित्र और वरुण देव को अर्पित किए जाने के लिए स्थापित किया जाता है।[ऋग्वेद 9.107.15]
Divine, sanctified Som is stored to be offered to Mitr & Varun Dev in vast ocean.
नृभिर्येमानो हर्यतो विचक्षणो राजा देवः समुद्रियः॥
ऋत्विजों द्वारा शोधित सबका प्रेमपात्र, विशेष ज्ञानवर्धक, राजा दिव्य सोम, इन्द्रदेव के निमित्त शोधित होकर जल में मिलता है।[ऋग्वेद 9.107.16]
Sanctified by the Ritviz, loved by all, increasing special knowledge, king divine Som is mixed in water for consumption by Indr Dev.
इन्द्राय पवते मदः सोमो मरुत्वते सुतः।
सहस्रधारो अत्यव्यमर्षति तमी मृजन्त्यायवः॥
आनन्द प्रदायक, निष्पन्न सोम मरुत्वान इन्द्र देव के लिए हजारों धाराओं के रूप में छलनी द्वारा छनकर पवित्र होता है। ऋत्विक गण स्तोत्र मन्त्रों द्वारा इसका शोधन करते हैं।[ऋग्वेद 9.107.17]
Gladdening, sanctified Som extracted by Indr Dev with Marud Gan, passes through the sieve in hundreds of currents. The Ritviz purify it with the Strotrs & Mantrs.
पुनानश्चमू जनयन्मतिं कविः सोमो देवेषु रण्यति।
अपो वसानः परि गोभिरुत्तरः सीदन्वनेष्वव्यत॥
जलपात्र के ऊपर छलनी द्वारा शोधित होता हुआ सोम इन्द्र देव की ओर गमन करता है। जल मिश्रित यह सोम गौ-दुग्ध में मिलकर लकड़ी के पात्र में स्थित होता है।[ऋग्वेद 9.107.18]
Som purified over the water container through the sieve moves towards Indr Dev. Somras mixed with water and cow's milk is stored in wooden pots.
तवाहं सोम रारण सख्य इन्दो दिवेदिवे।
पुरूणि बभ्रो नि चरन्ति मामव परिधीँरति ताँ इहि॥
हे सोम देव! जो पापी हमें कष्ट देते हैं, आप उनको समाप्त करें, क्योंकि आप हमारे मित्र हैं। हम आपकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 9.107.19]
Hey Som Dev! Destroy the sinners who torture-tease us; since you are our friend. We worship-pray you.
उताहं नक्तमुत सोम ते दिवा सख्याय बभ्र ऊधनि।
घृणा तपन्तमति सूर्यं परः शकुनाइव पप्तिम॥
हे सोमदेव! हम रात-दिन आपकी निकटता की कामना करते हैं। हम आपको सूर्यरूप में चमकता देखने की इच्छा करते हैं। आप पक्षी के समान सदैव गतिशील रहते हैं।[ऋग्वेद 9.107.20]
Hey Som Dev! We desire to be close to you throughout the day & night. We wish to see you shinning like Sury Dev. You are always moving-dynamic like the birds.(10.09.2024)
मृज्यमानः सुहस्त्य समुद्रे वाचमिन्वसि।
रयिं पिशङ्ग बहुलं पुरुस्पृहं पवमानाभ्यर्षसि॥
हे सोम! उत्तम हाथों द्वारा निकाले गए आप शुद्ध हुए, शब्द करते हुए कलश में प्रवाहित होते हैं तथा अपने स्तोताओं को सुवर्णादि धन प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 9.107.21]
Hey Som! Extracted with excellent hands, you are sanctified, flow into the Kalash making sound-Naad, granting wealth in the form of gold etc. to your Stotas-worshipers.
मृजानो वारे पवमानो अव्यये वृषाव चक्रदो वने।
देवानां सोम पवमान निष्कृतं गोभिरञ्जानो अर्षसि॥
हे सोम! पवित्र छन्ने से छनकर, वेग के साथ जल में मिश्रित होने वाले देवगणों के लिए आपको गौ-दुग्ध में मिलाया तथा पावन पात्र में एकत्रित किया जाता है।[ऋग्वेद 9.107.22]
Hey Som! You are filtered through pious sieve, mixed with speed in water for the demigods-deities, mixed in cow's milk and collected in pure vessels.
पवस्व वाजसातयेऽभि विश्वानि काव्या।
त्वं समुद्रं प्रथमो वि धारयो देवेभ्यः सोम मत्सरः॥
अन्न आदि से युक्त, पावन यज्ञ में प्रतिष्ठित होने वाले हे सोम देव! आप विशेष गुणों से युक्त देवगणों को आनन्द देने वाले हैं।[ऋग्वेद 9.107.23]
Hey Som Dev, possessing food grains, you are established in the pious Yagy! You possess specific qualities and gladden demigods-deities.
स तू पवस्व परि पार्थिवं रजो दिव्या च सोम धर्मभिः।
त्वां विप्रासो मतिभिर्विचक्षण शुभ्रं हिन्वन्ति धीतिभिः॥
शुभ्रवर्ण वाले, हे सबके द्रष्टा सोम! बुद्धिमान स्तोतागण अपनी अंगुलियों द्वारा आपको निचोड़ते हैं। द्युलोक और पृथ्वीलोक को अपनी धारक शक्ति के साथ पवित्र बनावें।[ऋग्वेद 9.107.24]
Hey fair coloured, looking at everyone, Som! Intelligent Stota Gan squeeze you with their fingers. Make heavens and earth pious with your supporting power.
पवमाना असृक्षत पवित्रमति धारया।
मरुत्वन्तो मत्सरा इन्द्रिया हया मेधामभि प्रयांसि च॥
इन्द्र देव का प्रिय, मरुत गणों का मित्र, हर्ष प्रदाता, अन्नादि से युक्त तथा यज्ञ में प्रयुक्त होने वाला सोम शोधित होने के लिए छन्ने द्वारा नीचे गमन करता है।[ऋग्वेद 9.107.25]
Som dear to Indr Dev, friend of Marud Gan, gladdening, possessing food grains etc., used in the Yagy, moves down through the sieve.
अपो वसानः परि कोशमर्षतीन्दुर्हियानः सोतृभिः।
जनयञ्ज्योतिर्मन्दना अवीवशद्गाः कृण्वानो न निर्णिजम्॥
शोधित हुआ, जल मिश्रित यह सोमरस कलश में एकत्रित होता है। प्रकाश को उत्पन्न करने वाला यह सोम गौ-दुग्ध से आच्छादित होकर स्तुति की कामना करता हुआ अपने विशुद्ध रूप को प्रदर्शित करता है।[ऋग्वेद 9.107.26]
Sanctified, mixed in water, Somras is collected in the Kalash. Emitting light, Som is covered with cow's milk, desire for Stuti and demonstrate its vast exposure.(11.09.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (108) :: ऋषि :- गौरिवीति, शाक्त्य, शक्तिर्वासिष्ठ, उरुरांगिरस, त्रऋजिश्व, भारद्वाज, ऊर्धसद्मा आंगिरस, कृतयशा आंगिरस, ऋणञ्चय, राजर्षि :- देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- काकुभ, प्रगाथ, यवमध्या, गायत्री।
पवस्व मधुमत्तम इन्द्राय सोम क्रतुवित्तमो मदः। महि द्युक्षतमो मदः॥
हे सोम देव! इन्द्र देव को आनन्दित करने वाले आप अत्यन्त महान, उत्तम तेजस्वी और आनन्द की वृद्धि करने वाले हैं।[ऋग्वेद 9.108.1]
Hey Som Dev! Gladdening Indr Dev, you are very great, excellent majestic and boosts pleasure.
यस्य ते पीत्वा वृषभो वृषायतेऽस्य पीता स्वर्विदः।
स सुप्रकेतो अभ्यक्रमीदिषोऽच्छा वाजं नैतशः॥
हे सोम! रणक्षेत्र में विजयी अश्वों की भाँति शीघ्रता से शत्रुओं के धनों को जीतने वाले इन्द्र देव आपका पान करके ही बलशाली हुए हैं। आत्मज्ञान से युक्त मनुष्य भी आपका मान करके प्रसन्न होते हैं।[ऋग्वेद 9.108.2]
Hey Som! Indr Dev winner the wealth of the enemies like victorious horses became powerful by drinking Somras. Self realised humans become happy by honouring you.
त्वं ह्य १ ङ्ग दैव्या पवमान जनिमानि द्युमत्तमः। अमृतत्वाय घाषयः॥
हे पवमान सोम देव! दिव्य और तेजस्वी जन्मों के ज्ञाता आप देवताओं के लिए अमृतत्व को प्रकट करने वाले हैं।[ऋग्वेद 9.108.3]
प्रकट करने वाले :: who manifest, who reveal.
Hey Pawman Som Dev! Aware of the divine and majestic births, you manifested elixir-nectar for the demigods.
येना नवग्वो दध्यङङपोर्णते येन विप्रास आपिरे।
देवानां सुम्ने अमृतस्य चारुणो येन श्रवांस्यानशुः॥
जिस सोम की सहायता से दध्यङ् ऋषि ने गौओं के मार्ग को उद्घाटित किया और ब्राह्मणों ने उन्हें प्राप्त किया तथा जिसके सहयोग से देवगणों के हर्षित होने पर ऋत्विजों ने अमृतरूपी अन्न को प्राप्त किया, वह सोम देवताओं को अमृतत्व प्रदान करता है।[ऋग्वेद 9.108.4]
Som with whose help Dadhyn Rishi opened the path of cows, Brahmns got them, on being happy demigods-deities, Ritviz got food grains; that Som Dev granted immortality to demigods-deities.
एष स्य धारया सुतोऽव्यो वारेभिः पवते मदिन्तमः। क्रीळन्नूर्मिरपामिव॥
जल की तरंगों के समान क्रीड़ा करता हुआ यह सोम बालों की छलनी से छाना जाता है।[ऋग्वेद 9.108.5]
Playing like the ocean waves, Somras is filtered through hair sieve.
य उस्त्रिया अप्या अन्तरश्मनो निर्गा अकृन्तदोजसा।
अभि व्रजं तनिषे गव्यमश्र्व्यं वर्मीव धृष्णवा रुज॥
आकाश में स्थित बादलों के भीतर जल को अपने बल से छिन्न-भिन्न करने वाला सोम, गौओं और अश्वों को सब ओर से घेरता है तथा कवच युक्त वीरों के समान रिपुओं को नष्ट करता है।[ऋग्वेद 9.108.6]
Som who spread-tear water present in the clouds with his might, surround cows and horses from all sides; destroy the enemies like the brave people wearing shield.
आ सोता परि षिञ्चताश्वं न स्तोममप्तुरं रजस्तुरम्। वनक्रक्षमुदप्रुतम्॥
हे स्तोताओं! स्तुति योग्य, अश्व के समान गतिशील, जल के समान प्रवाहमान, प्रकाश- किरणों के समान गमनशील, जलयुक्त सोम के रस को निष्पन्न करें।[ऋग्वेद 9.108.7]
Hey Stotas! Extract the juice of Som, who is fast like the horse, flow like the water, movable like the rays of light; having water in it.
सहस्त्रधारं वृषभं पयोवृधं प्रियं देवाय जन्मने।
ऋतेन य ऋतजातो विवावृधे राजा देव ऋतं बृहत्॥
सुख की वर्षा करने वाले, अनेक धाराओं से सिंचित, गौ-दुग्ध मिश्रित सोम को देवगणों के लिए पवित्र करें। जल से प्रकट होनेवाला तथा वृद्धि को प्राप्त हुआ सोम दिव्य गुणों से युक्त है।[ऋग्वेद 9.108.8]
Purify Som mixed in cows milk, nourished by several streams, showering pleasure, for the demigods-deities. Evolved out of water, growing Som has divine qualities.
अभि द्युम्नं बृहद्यश इषस्पते दिदीहि देव देवयुः। वि कोशं मध्यमं युव॥
देवगणों को प्राप्त होने वाले, हे उज्ज्वल सोम! अन्नों के स्वामी आप पात्र को अपने रस से परिपूर्ण करते हुए हमें परम तेज तथा दिव्य यश प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.108.9]
Attained by the demigods-deities, hey illuminated Som! Lord of food grains, filling the pot with your sap grant us highly majestic and divine glory to us.
आ वच्यस्व सुदक्ष चम्वोः सुतो विशों वह्निर्न विश्पतिः।
वृष्टिं दिवः पवस्व रीतिमपां जिन्वा गविष्टये धियः॥
हे सोम देव! आकाश से जलवृष्टि करने वाले, राजा के समान सबका पालन करने वाले आप याजकों की बुद्धियों को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करें तथा यज्ञादि कर्मों को सम्पन्न करते हुए पात्र में स्थित हों।[ऋग्वेद 9.108.10]
Hey Som! Showering rain from the sky, nurturing like a king inspiring the mind of the worshiper to virtuous path and accomplishing the Yagy related jobs-Karm, stabilize in the pot.
एतमु त्यं मदच्युतं सहस्त्रधारं वृषभं दिवो दुहुः। विश्वा वसूनि बिभ्रतम्॥
हजारों धाराओं सहित (यज्ञपात्र में) टपकने वाले, आनन्ददायक, बलशाली, धनपति तथा तेजस्वी सोमरस का ऋत्विकगण दोहन करते हैं।[ऋग्वेद 9.108.11]
The Ritviz extract Somras which drops into the Yagy pot in thousands of streams, gladdening, wealthy and majestic.
वृषा वि जज्ञे जनयन्नमर्त्यः प्रतपञ्ज्योतिषा तमः।
स सुष्टुतः कविभिर्निर्णिजं एथे त्रिधात्वस्य दंससा॥
यज्ञ के तीनों सवनों में सोम के द्वारा ही समस्त कर्म सिद्ध होते हैं। सोम की स्तुति करते हुए जो विद्वान् उसे गौ-दुग्ध में मिलाते हैं, उनके द्वारा ही इच्छाओं की वृद्धि करने वाले, अमरता के गुरु, अन्धकारनाशक और ध्वनि करने वाले सोम के अविनाशी रूप को जाना जाता है।[ऋग्वेद 9.108.12]
All Yagy deeds in the Yagy are accomplished by Som during the three segments of the day. Worshiping Som the learned-scholars mix it in cows milk, recognise it as accomplisher of desires, Guru of immortality, destroyer of darkness and generating sound-Naad & is recognised as immortal.
स सुन्वे यो वसूनां यो रायामानेता य इळानाम्। सोमा यः सुक्षितीनाम्॥
ऋन्विजों ने सम्पत्ति, दुग्धादि पदार्थ, भूमि तथा उत्तम संतान प्रदान करने वाले उस सोम के रस का दोहन किया।[ऋग्वेद 9.108.13]
The Ritviz extracted the juice of Som granting property, milk etc., land and excellent progeny.
यस्य न इन्द्रः पिबाद्यस्य मरुतो यस्य वार्यमणा भगः।
आ येन मित्रावरुणा करामह एन्द्रमवसे महे॥
जिस सोमरस का पान इन्द्र देव, मरुत्, अर्यमा और भग आदि देवता करते हैं, मित्र, वरुण देव तथा इन्द्र देव को जिस सोम को संरक्षित करने के लिए आवाहित करते हैं, उसी सोम का अभिषवण करते हैं।[ऋग्वेद 9.108.14]
Somras which is drunk by Indr Dev, Marud Gan, Aryma and Bhag etc. and the demigods are invited to protect & extract it.
इन्दाय सोम पातवे नृभिर्यतः स्वायुधो मदिन्तमः। पवस्व मधुमत्तमः॥
हे मधुर, आनन्ददायक सोम! आप उत्तम शस्त्रादि से युक्त इन्द्र देव के द्वारा पान किए जाने के लिए प्रवाहित हों।[ऋग्वेद 9.108.15]
Hey sweet gladdening Som! Flow for drinking by Indr Dev, wielding best weapons etc.
इन्द्रस्य हार्दि सोमधानमा विश समुद्रमिव सिन्धवः।
जुष्टो मित्राय वरुणाय वायवे दिवो विष्टम्भ उत्तमः॥
हे सोम! जिस प्रकार सभी नदियाँ समुद्र में प्रवेश करती हैं। उसी प्रकार आप इन्द्र देव के हृदयरूपी कलश में प्रविष्ट हों। आप मित्र, वरुण देव, वायु देव और इन्द्र देव के निमित्त स्नेहयुक्त रस प्रवाहित करें।[ऋग्वेद 9.108.16]
Hey Som! The way the river enter the ocean, similarly you should enter the heart of Indr Dev like a Kalash. Flow affectionate sap for Mitr, Varun Dev, Vayu Dev and Indr Dev.(12.09.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (109) :: ऋषि :- अग्नि, धिष्ण्य, ऐश्वर्य; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- द्विपदा विराट।
परि प्र धन्वेन्द्राय सोम स्वादुर्मित्राय पूष्णे भगाय॥
हे सोम! इन्द्र देव, मित्र, देवी पूषा और भग के लिए आप अत्यन्त वेग के साथ प्रवाहित हों।[ऋग्वेद 9.109.1]
Hey Som! You flow for Indr Dev, Mitr, Devi Pusha and Bhag at very high speed.
इन्द्रस्ते सोम सुतस्य पेयाः क्रत्वे दक्षाय विश्वे च देवाः॥
हे सोम! आपका रस उत्तम ज्ञान तथा बल प्रदान करने वाला है। इन्द्र देव आदि सभी देवगण आपके शाधित रस का पान करते हैं।[ऋग्वेद 9.109.2]
Hey Som! Your sap-Somras grant excellent knowledge an strength. Indr Dev and all demigods-deities drink it.
एवामृताय महे क्षयाय स शुक्रो अर्ष दिव्यः पीयूषः॥
हे उज्ज्वल और दिव्य सोम! समस्त देवता आपके पान हेतु प्रकट हुए हैं। आप गतिशील होते हुए अमरत्व को प्राप्त होते हैं।[ऋग्वेद 9.109.3]
Hey bright and divine Som! All demigods-deiies have pervaded to drink your sap-Somras. You attain immortality while moving fast.
पवस्व सोम महान्त्समुद्रः पिता देवानां विश्वाभि धाम॥
हे सोम! सभी का पालन करने वाले तथा अपने महान रस को प्रवाहित करने वाले आप देवताओं के आवासरूपी पात्रों में स्थित होते हैं।[ऋग्वेद 9.109.4]
Hey Som! You nurture all, flow your sap and establish in the vessels like the residence of demigods-deities.
शुक्रः पवस्व देवेभ्यः सोम दिवे पृथिव्यै शं च प्रजायै॥
हे उज्ज्वल सोम! द्युलोक और पृथ्वीलोक तथा सभी प्राणियों को सुख प्रदान करने वाले आप देवताओं के लिए प्रवाहित हों।[ऋग्वेद 9.109.5]
Hey bright Som! Granting pleasure to the living beings of heavens and earth, flow for the demigods-deities.
दिवो धर्तासि शुक्रः पीयूषः सत्ये विधर्मन्वाजी पवस्व॥
हे बलवान सोम! आप तेजस्वी पेय और दिव्य गुणों के धारक हैं। आप सत्य रूप यज्ञकर्मों के बीच क्षरित होते हैं।[ऋग्वेद 9.109.6]
Hey mightySom! You possess divine drink and divine qualities-traits. You recede berween the Yagy Karm in the form of truth.
पवस्व सोम द्युम्नी सुधारो महामवीनामनु पूर्व्यः॥
हे श्रेष्ठ, उज्ज्वल सोम! आप छन्ने द्वारा गमन करके सुंदर धाराओं वाला होते हुए पात्र में स्वतः प्रवाहित होते हैं।[ऋग्वेद 9.109.7]
Hey excellent, bright Som! You automatically flow through the sieve forming beautiful currents.
नृभिर्येमानो जज्ञानः। पूतः क्षरद्विश्वानि मन्द्रः स्वर्वित्॥
वह सोम याजकों द्वारा निचोड़कर पवित्र, आनन्दमय तथा सर्वज्ञ रूप में प्रकट किया गया है। वह हमें अनेकानेक प्रकार के ऐश्वर्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.109.8]
Som is extracted by the Yagyik in pious, gladdening and is omniscient. Let it grant us many types of grandeur.
इन्दुः पुनानः प्रजामुराणः करद्विश्वानि द्रविणानि नः॥
हमें प्रजा युक्त ऐश्वर्य प्रदान करने वाला तेजस्वी और पवित्र सोम रस ऊन की छलनी द्वारा छाना गया है।[ऋग्वेद 9.109.9]
Majestic & pious Som granting us grandeur, is filtered through the sieve made of wool.
पवस्व सोम क्रत्वे दक्षायाश्वो न निक्तो वाजी धनाय॥
हे सोम! आप अश्व के समान बलशाली हैं, बल और धन प्रदान करने के लिए पात्र में स्थिर होते हैं।[ऋग्वेद 9.109.10]
Hey Som! You are powerful like horse, grant wealth and strength to us and is stored in the pot.
तं ते सोतारो रसं मदाय पुनन्ति सोमं महे द्युम्नाय॥
हे सोम! ऋत्विक गण आनन्द वृद्धि के लिए आपके रस को निष्पन्न करते हैं। आप हमें दिव्य और तेजस्वी ज्ञान प्रदान करें।[ऋग्वेद 9.109.11]
Hey Som! The Ritviz extract your sap for the sake of pleasure. Grant us divine and majestic learning.
शिशुं जज्ञानं हरि मृजन्ति पवित्रे सोमं देवेभ्य इन्दुम्॥
हरिताभ सोम नवजात शिशु को स्वच्छ करने के समान देवगणों के लिए छन्ने से शोधित होता है।[ऋग्वेद 9.109.12]
Greenish Som is sanctified like cleaning the infant for the demigods-deities and is filtered through the sieve.
इन्दुः पविष्ट चारुर्मदायापामुपस्थे कविर्भगाय॥
धन और ऐश्वर्य प्राप्ति के लिए यह मेधावी सोम जल में मिश्रित किया जाता है।[ऋग्वेद 9.109.13]
For getting wealth & grandeur, intelligent Som is mixed in water.
बिभर्ति चार्विन्द्रस्य नाम येन विश्वानि वृत्रा जघान॥
यह सोम उस मंगलकारी शरीर को धारण करता है, जिस शरीर के द्वारा इन्द्र देव ने समस्त पापी राक्षसों का संहार किया था।[ऋग्वेद 9.109.14]
Som acquire that beneficial body-form, through which Indr Dev destroyed all sinner demons.
पिबन्त्यस्य विश्वे देवासो गोभिः श्रीतस्य नृभिः सुतस्य॥
याजकों द्वारा निचोड़कर निकाले गए गौ दुग्ध मिश्रित सोम का सभी देवगण हर्ष के साथ पान करते हैं।[ऋग्वेद 9.109.15]
Somras extracted by the Yagyik, mixed in cow's milk, is drunk by the demigods-deities happily.
प्र सुवानो अक्षाः सहस्रधारस्तिरः पवित्रं वि वारमव्यम्॥
अनेक धाराओं वाला यह शोधित सोमरस ऊन के छन्ने द्वारा प्रवाहित होता है।[ऋग्वेद 9.109.16]
Having several streams, sanctified Somras flow through the woollen filter.
स वाज्यक्षाः सहस्ररेता अद्भिर्मृजानो गोभिः श्रीणानः॥
बलशाली, जल द्वारा शोधित गौ दुग्ध आदि से मिश्रित वह सोम छनता हुआ पात्र में गमन करता है।[ऋग्वेद 9.109.17]
Mighty, purified with water, mixed in cow's milk etc., Som is filtered and moves into the vessel.
प्र सोम याहीन्द्रस्य कुक्षा नृभिर्येमानो अद्रिभिः सुतः॥
हे सोम! ऋत्विजों द्वारा पत्थरों से कूटकर निष्पादित तथा विधिपूर्वक पवित्र किए गए आप इन्द्र देव के उदर में प्रविष्ट हों।[ऋग्वेद 9.109.18]
Hey Som! Extracted by crushing with stones, purified methodically; enter the stomach of Indr Dev.
असर्जि वाजी तिरः पवित्रमिन्द्राय सोमः सहस्रधारः॥
हजारों धाराओं से प्रवाहित होने वाला, बल और ज्ञान से युक्त तथा छलनी द्वारा छाना गया सोमरस इन्द्र देव के निमित्त तैयार किया जाता है।[ऋग्वेद 9.109.19]
Flowing in thousands of streams, possessing strength and knowledge; Somras is filtered in the sieve for Indr Dev.
अञ्जन्त्येनं मध्वो रसेनेन्द्राय वृष्ण इन्दुं मदाय॥
सुख की वर्षा करने वाले सोमरस को ऋत्विक्गण इन्द्र देव को हर्षित करने के लिए गौ दुग्ध में मिलाते हैं।[ऋग्वेद 9.109.20]
The Ritviz mix Somras showering pleasure, in cow's milk for gladdening Indr Dev.
देवेभ्यस्त्वा वृथा पाजसेऽपो वसानं हरिं मृजन्ति॥
हे सोम! याजकगण देवताओं के लिए आपके जल मिश्रित हरिताभ सोम को शोधित करते हैं।[ऋग्वेद 9.109.21]
Hey Som! Ritviz sanctify greenish Somras mixed in water for the demigods-deities.
इन्दुरिन्द्राय तोशते नि तोशते श्रीणन्नुग्रो रिणन्नपः॥
जल में मिलाया हुआ यह सोम इन्द्र देव को बल प्रदान करता है। इन्द्र देव के पान हेतु इस सोमरस को भलीभाँति शोधित किया जाता है।[ऋग्वेद 9.109.22]
Mixed in water, Somras grants strength to Indr Dev. Somras is sanctified carefully for consumption by Indr Dev.(13.09.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (110) :: ऋषि :- व्यरुण, त्रैवृष्ण, त्रसदस्यु, पौरुकुत्स्य; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- अनुष्टुप्, बृहती, विराट्।
पर्यू षु प्र धन्व वाजसातये परि वृत्राणि सक्षणिः। द्विषस्तरध्या ऋणया न ईयसे॥
हे सोम देव! आप हमें ऋण से मुक्त करने वाले तथा शत्रुओं का पराभव करने के लिए उन पर आक्रमण करने वाले हैं। आप अन्न प्राप्ति के लिए गमन करते हैं।[ऋग्वेद 9.110.1]
Hey Som Dev! You relieve us from debt, attack the enemy & defeat them. You move for acquiring food grains.
अनु हि त्वा सुतं सोम मदामसि महे समर्यराज्ये।
वाजाँ अभि पवमान प्र गाहसे॥
हे निष्पन्न सोम! राजा की रक्षा के लिए बलों से युक्त होकर शत्रु की सेना से युद्ध करने के लिए प्रस्थान करने वाले हम रस निचोड़ने के पश्चात आपकी अर्चना करते हैं।[ऋग्वेद 9.110.2]
Hey extracted Som! We extract your juice, worship you & have forces to fight the enemy to protect the king.
अजीजनो हि पवमान सूर्यं विधारे शक्मना पयः। गोजीरया रंहमाणः पुरंध्या॥
हे सोमदेव! नाना प्रकार के ज्ञानों से युक्त, अत्यन्त वेग वाले, जल के आश्रय स्थान, अन्तरिक्ष और पृथ्वी लोक में आपने किरणों द्वारा सूर्य देव को प्रकाशित किया है।[ऋग्वेद 9.110.3]
Hey Som Dev! Having knowledge of different faculties, possessing high speed, sheltering water, you illuminate the space, earth and Sury Dev with your rays.
अजीजनो अमृत मत्र्येष्वाँ ऋतस्य धर्मन्नमृतस्य चारुणः।
सदासरो वाजमच्छा सनिष्यदत्॥
हे सोम देव! देवगणों की सेवा तथा अन्न-धन के लिए सक्रिय रहने वाले आपने सत्य एवं मंगलकारी अमृतत्व को धारण कर अन्तरिक्ष में सूर्य देव को मानवों के लिए प्रादर्भत किया।[ऋग्वेद 9.110.4]
Hey Som Dev! You remain ready to serve the demigods-deities, remain active for food grains & wealth, you support truth & beneficial elixir, evolved Sury Dev in the space, for the humans.
अभ्यभि हि श्रवसा ततर्दिथोत्सं न कं चिञ्जनपानमक्षितम्।
शर्याभिर्न भरमाणो गभस्त्योः॥
हे सोम देव! जिस प्रकार हाथों द्वारा मनुष्यों के पीने के लिए जलाशय का निर्माण किया जाता है, उसी प्रकार आप अपने याजकों को अन्न-धन प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 9.110.5]
Hey Som Dev! The way water reservoir is dug for the humans, similarly you grant food grains & wealth to your worshipers.
आदीं के चित्पश्यमानास आप्यं वसुरुचो दिव्या अभ्यनूषत।
वारं न देवः सविता व्यूर्णते॥
सभी को प्रकाश देने वाले सूर्य देव जब तक अन्धकार को नष्ट नहीं कर देते, तब तक स्वर्ग में उत्पन्न वसुरुच नामक पुरुष मित्र रूप इन्द्र देव की प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 9.110.6]
Vasuruch named male evolved in the heaven, worship friendly Indr Dev, by the time illuminating everyone, Sury Dev do not destroy darkness.
त्वे सोम प्रथमा वृक्तबर्हिषो महे वाजाय श्रवसे धियं दधुः।
स त्वं नो वीर वीर्याय चोदय॥
हे सोम देव! हमें युद्ध कुशल बनाने वाले याजकों ने महान बल और अन्न के लिए अपनी बुद्धियों को आपके आश्रित किया है।[ऋग्वेद 9.110.7]
Hey Som Dev! The Yagyik who trained us in war fare, diverted our brains towards you, for great strength and food grains.
दिवः पीयूषं पूर्व्य यदुक्थ्यं महो गाहाद्दिव आ निरधुक्षत।
इन्द्रमभि जायमानं समस्वरन्॥
अमृत के तुल्य यह स्तुत्य सोमरस सबसे पहले द्युलोक से प्रकट होता है। इसके पश्चात इन्द्र देव के समक्ष याजकगण सोम की सस्वर स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 9.110.8]
Comparable to elixir worshipable at first Somras evolve in the heavens. Thereafter, Ritviz recite prayer devoted to Somras, rhythmically.
अध यदिमे पवमान रोदसी इमा च विश्वा भुवनाभि मज्मना।
यूथे न निष्ठा वृषभो वि तिष्ठसे॥
जिस प्रकार गौओं के समूह में बैल स्थित रहता है, हे निष्पन्न सोम! उसी प्रकार आप द्युलोक और पृथ्वी लोक तथा समस्त प्राणियों के बीच में विद्यमान रहते हैं।[ऋग्वेद 9.110.9]
Hey extracted Som! The way the bull live amongest the herd of cows, similarly you remain present between all living beings of the heavens & earth.
सोमः पुनानो अव्यये वारे शिशुर्न क्रीळन्पवमानो अक्षाः।
सहस्त्रधारः शतवाज इन्दुः॥
यह सोम अतीव सामर्थ्य वाला हजारों धाराओं से छलनी में प्रवाहित होता हुआ शिशु के समान क्रीड़ा करता है और तेजस्वी रूप में कलश में पहुँचता है।[ऋग्वेद 9.110.10]
Som having extreme capability passes through the sieve in thousands of streams, play like an infant and carries its majestic form in the Kalash.
एष पुनानो मधुमाँ ऋतावेन्द्रायेन्दुः पवते स्वादुरूर्मिः।
वोजसनिर्वारिवोविद्वयोधाः॥
इन्द्र देव के लिए अन्न, धन और आयु प्रदत्त करता हुआ मधुर, सुखद, सत्य युक्त पावन सोम मधुर धाराओं के रूप में प्रवाहित होता है।[ऋग्वेद 9.110.11]
Granting food grains, wealth and longevity to Indr Dev, sweet, comfortable, truthful pious-virtuous Som flow in sweet streams.
स पवस्व सहमानः पृतन्यून्त्सेधन्रक्षांस्यप दुर्गहाणि।
स्वायुधः सासह्वान्त्सोम शत्रून्॥
हे सोम! आप युद्ध की कामना करने वाले शत्रुओं का पराभव करने तथा कठिनता से अधिकार में आने वाले असुरों का संहार करने वाले श्रेष्ठ आयुधों से युक्त होकर शत्रुओं को नष्ट करते हुए प्रवाहित हों।[ऋग्वेद 9.110.12]
Hey Som! You should flow to destroy the enemies desirous of war, defeating them, destroying the difficult to control demons, possessing best arms-weapons.(14.09.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (111) :: ऋषि :- अनानत, पारुच्छेपि; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- अत्यष्टि।
अया रुचा हरिण्या पुनानो विश्वा द्वेषांसि तरति स्वयुग्वभिः सद्वेषां स्वयुग्वभिः। धारा सुतस्य रोचते पुनानो अरुषो हरिः। विश्वा यद्रूपा परियात्यृकभिः सप्तास्येभिर्ऋक्वभिः॥
शोधित हरिताभ सोमरस शत्रुओं को उसी प्रकार नष्ट करता है, जिस प्रकार अन्धकार को सूर्यदेव विनष्ट कर देते हैं। इसका उज्ज्वल सप्तरंगी प्रकाश शोभित होता है तथा इसकी धाराएँ तेज और स्तोत्रों से वृद्धि को प्राप्त होती हैं।[ऋग्वेद 9.111.1]
शोभित :: शोभा से युक्त, सुंदर, सजा हुआ; lovely, decorated, graced, adorned, beautiful.
Sanctified greenish Somras destroy the enemies, the way darkness is removed by Sury Dev. Its bright light having seven colours is adorned and its fast streams-currents attain majesty and growth by Strotrs.
त्वं त्यत्पणीनां विदो वसु सं मातृभिर्मर्जयसि स्व आ दम ऋतस्य धीतिभिर्दमे। परावतो
न साम तद्यत्रा रणन्ति धीतयः। त्रिधातुभिररुषीभिर्वयो दधे रोचमानो वयो दधे॥
हे सोम देव! यज्ञ के आधारभूत यज्ञ से यज्ञस्थल में आप भली प्रकार सुसंस्कृत होते है। आपने प्रणियों द्वारा अपहृत गौवों को प्राप्त किया। यज्ञस्थल से गूंजने वाले ऋत्विजों के सामगान दूर से ही सुनाई पड़ते हैं। हे प्रकाशमान सोम! आप अपने याजकों को अन्नादि से सम्पन्न करते हैं।[ऋग्वेद 9.111.2]
सुसंस्कृत :: निर्मल किया हुआ, सिद्ध किया हुआ, संस्कार किया हुआ, सुधारा हुआ, चमकाया हुआ; cultured, refined.
Hey Som Dev! You are refined at the basic Yagy site-Sthal. You recovered-obtained the captured cows from Panis-demons. Sam Gan recited by the Ritviz is heard from a distance. Hey illuminated Som! You enrich the Yagyik with food grains.
पूर्वामनु प्रदिशं याति येकितत्सं रश्मिभिर्यतते दर्शतो रथो दैव्यो दर्शतो रथः। अग्मन्नुक्थानि पौंस्येन्द्रं जैत्राय हर्षयन्। वज्रश्च यद्भवथो अनपच्युता समत्स्वनपच्युता॥
सबके ज्ञाता हे सोम देव! पूर्व दिशा में जब आप गमन करते हैं, तब आपका दिव्य रथ सूर्य रश्मियों से तेजस्वी दिखाई देता है। स्तोताओं के स्तोत्र इन्द्र देव को प्राप्त होकर उन्हें हर्षित करते हैं तथा उसमें विजय का उत्साह भरते हैं, जिनके प्रभाव से इन्द्र देव वज्र प्राप्त करते हैं। हे इन्द्र देव! आप सोम के सहयोग से प्रवृद्ध होकर युद्ध में सदैव विजय प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 9.111.3]
Knowing everyone, hey Som Dev! When you move in the east, your divine charoite appears majestic by the rays of Sun. The Strotrs of Stotas gladden Indr Dev, fills him with vigour-encouragement and Indr Dev obtain-wield Vajr as a result of it. Hey Indr Dev! You win the battle with the help of Som Dev, grown up-encouraged by him.
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (112) :: ऋषि :- शिशु, आंगिरस; देवता :- पवमान, सोम; छन्द :- पंक्ति।
नानानं वा उ नो धियो वि व्रतानि जनानाम्। तक्षा रिष्टं रुतं भिषग्ब्रह्मा सुन्वन्तमिच्छतीन्द्रायेन्दो परि स्रव॥
जिस प्रकार बढ़ई काष्ठ के कार्य की इच्छा करता है, ब्राह्मण यजमान की इच्छा करता है, वैद्य रोगी की इच्छा करता है; विभिन्न कर्म करने वाले हम उसी प्रकार आपकी इच्छा करते हैं। हे सोम! आप इन्द्र देव के लिए प्रवाहित हों।[ऋग्वेद 9.112.1]
The way a carpenter wish to have wood, Brahman desire for the host, Vaedy-physician looks for patients, similarly we wish to have you. Hey Som! You should flow for Indr Dev.
जरतीभिरोषधीभिः पर्णेभिः शकुनानाम्।
कार्मारो अश्मभिद्युभिर्हिरण्यवन्तमिच्छतीन्द्रायेन्दो परि स्त्रव॥
जिस प्रकार पक्षियों के पंख, तीक्ष्ण शिलाखंड तथा पुरानी परिपक्व काष्ठ से बाण बनाने वाले शिल्पी धनी व्यक्ति की कामना करते हैं, उसी प्रकार हम सोम के प्रवाहित होने की कामना करते हैं। यह सोम देवताओं के लिए प्रवाहित होता है।[ऋग्वेद 9.112.2]
The way feathers of birds, sharp rocks and old solid-ripe wood are desired by the arrow maker wishing to attract buyers-wealthy person, similarly we wish Somras to flow. Somras flows for demigods-deities.
कारुरहं ततो भिषगुपलप्रक्षिणी नना।
नानाधियो वसूयवोऽनु गाइव तस्थिमेन्द्रायेन्दो परि स्रव॥
हम उत्तम शिल्पों का सम्पादन करने वाले हैं। हमारे पिता और पुत्र चिकित्सक है। हमारी माता और पुत्री जौ पीसने का कार्य करती है। हम सभी विभिन्न कार्य करने वाले हैं। जिस प्रकार ग्वाला गाँवों की सेवा करता है, हे सोम ! उसी प्रकार हम आपकी सेवा करते हैं। आप इन्द्र देव के लिए प्रवाहित हों।[ऋग्वेद 9.112.3]
We welcome excellent craftsmen-artisans. Our father and sons are Vaedy-doctors. Our mother & daughter grind barley. We do all sorts of work. The way a herds man serve the cows, hey Som! We serve you like that. You should flow towards Indr Dev.
अश्वो वोळहा सुखं रथं हसनामुपमन्त्रिणः।
शेपो रोमण्वन्तौ भेदौ वारिन्मण्डूक इच्छतीन्द्रायेन्दो परि स्रव॥
जिस प्रकार भार ढोने वाले अश्व उत्तम रथ की कामना करते हैं, मित्र हास परिहास की इच्छा करते है अथवा कामातुर व्यक्ति स्त्री की इच्छा करते हैं और मेढक जलमय सरोवर की कामना करता है, उसी प्रकार हे सोम! हम आपकी कामना करते हैं। आप इन्द्र देव के निमित्त प्रवाहित हो।[ऋग्वेद 9.112.4]
The way a horse carrying load desire to have excellent charoite, friends desire amusement or a lascivious man wish to have woman and frog desire for ponds, similarly, hey So! We wish to have you. You should flow for Indr Dev.(15.09.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (113) :: ऋषि :- कश्यप, मारीच; देवता :-पवमान, सोम; छन्द :- पंक्ति।
शर्यणावति सोममिन्द्रः पिबतु वृत्रहा।
बलं दधान आत्मनि करिष्यन्वीर्यं महदिन्द्रायेन्दो परि स्त्रव॥
महान पराक्रमशील, बलशाली, वृत्रहन्ता इन्द्र देव अपनी सामर्थ्य से शर्यणावत तड़ाग (तालाब) में स्थित सोम का पान करें। हे सोम! आप इन्द्र देव के निमित्त धारा रूप में प्रवाहित हों।[ऋग्वेद 9.113.1]
Let mighty, slayer of Vratr, Indr Dev, possessing great valour, drink Somras in the pond named Shrynavat due to his power. Hey Som! Flow in a stream for the sake of Indr Dev.
आ पवस्व दिशां पत आर्जीकात्सोम मीढः।
ऋतवाकेन सत्येन श्रद्धया तपसा सुत इन्द्रायेन्दो परि स्रव॥
हे सोम! मनोकामनाओं को पूर्ण करने तथा समस्त दिशाओं के अधिपति आप आर्जीक देश से प्रवाहित हों। सत्य के पालक ऋत्विजों ने पवित्र स्तोत्रों, श्रद्धा तथा तप से युक्त होकर आपका यजन किया है। हे तेजोमय सोमदेव ! आप इन्द्रदेव के लिए प्रवाहित हों।[ऋग्वेद 9.113.2]
Hey Som! Accomplisher of all desires, lord of all directions, flow through the land called Arjeek. Truthful Ritviz worship you with their pious Strotrs, devotion and ascetics. Hey majestic Som! Flow for Indr Dev.
पर्जन्यवृद्धं महिषं तं सूर्यस्य दुहिताभरत्।
तं गन्धर्वाः प्रत्यगृभ्णन्तं सोमे रसमादधुरिन्द्रायेन्दो परि स्रव॥
सूर्य देव की पुत्री देवी उषा अन्तरिक्ष के जल से विस्तृत हुए सोम को स्वर्ग से यहाँ लाई। वसुओं ने उसे ग्रहण करके सोमवल्ली में स्थापित किया। हे सोम! आप इन्द्र देव की प्रसन्नता के लिए प्रवाहित हों।[ऋग्वेद 9.113.3]
Usha, daughter of Sury Dev brought Som from the heavens, widened by the water in space. Vasus-demigods accepted it and established it in the creeper called Som Valli. Hey Som! Flow for gladdening Indr Dev.
ऋतं वदन्नृतद्युम्न सत्य वदन्त्सत्यकर्मन्।
श्रद्धां वदन्त्सोम राजन्धात्रा सोम परिष्कृतन्द्रायेन्दो परि स्त्रव॥
वह सोम सत्य कान्ति से युक्त तथा सत्य कर्म का कारक है। हे तेजस्वी सोम! आप यज्ञ के स्वामी एवं अमृतरूप हैं। सत्य वाणी से युक्त आप याजकों द्वारा शोधित होकर इन्द्र देव के लिए रस प्रवाहित करें।[ऋग्वेद 9.113.4]
Som possess truthful aura and induce, inspire-motivate true deeds. Hey majestic Som! You are the lord of Yagy and alike nectar-elixir. Possessing truth words, sanctified by the Yagyik flow for Indr Dev.
सत्यमुग्रस्य बृहतः सं स्त्रवन्ति संस्त्रवाः।
सं यन्ति रसिनो रसाः पुनानो ब्रह्मणा हर इन्द्रायेन्दो परि स्त्रव॥
सत्य के पालक महान सोमरस की धाराएँ समान रूप से प्रवाहित हो रही हैं। हे हरिताभ सोम! ब्रह्म परायणों के द्वारा शोधित होकर आप इन्द्र देव के निमित्त प्रवाहित हों।[ऋग्वेद 9.113.5]
Followers of truth great Somras is flowing in equal currents. Hey greenish Som! Sanctified by devotees of Brahm, you should flow for Indr Dev.
यत्र ब्रह्मा पवमान छन्दस्यां ३ वाचं वदन्।
ग्राव्णा सोमे महीयते सोमेनानन्दं जनयन्निन्द्रायेन्दो परि स्त्रव॥
जहाँ सप्त छंदों में निर्मित स्तोत्र उच्चारित किए जाते हैं, हे सोम! जहाँ पत्थरों द्वारा कूटकर आपका रस निकाला जाता है, जहाँ सोमाभिषव से प्रसन्न देवताओं को स्तोत्रों द्वारा पूजित किया जाता है, वहाँ आप इन्द्र देव के लिए अपना रस प्रवाहित करें।[ऋग्वेद 9.113.6]
Hey Som! Flow for Indr Dev where Strotr constituting of seven Chhand are recited, your juice is extract, demigods-deities are worshiped through Somabhishav with Strotrs.
यत्र ज्योतिरजस्रं यस्मिल्लोके स्वर्हितम्।
तस्मिन्मां धेहि पवमानामृते लोके अक्षित इन्द्रायेन्दो परि स्रव॥
हे सोम! जिस लोक में सूर्य देव के अखंड तेज का सुख प्राप्त होता है, उस मृत्यु रहित एवं विनाश रहित लोक में आप हमें देखें। हे सोम! आप इन्द्र देव के निमित्त प्रवाहित हों।[ऋग्वेद 9.113.7]
Hey Som! Look at us in the abode where comfort of unbreakable radiance of Sury Dev is available, is indestructible & free from death. Hey Som! Flow for the sake of Indr Dev.
यत्र राजा वैवस्वतो यत्रावरोधनं दिवः।
यत्रामूर्यह्वतीरापस्तत्र माममृतं कृधीन्द्रायेन्दो परि स्रव॥
जिस लोक का राजा विवस्वान का पुत्र है, जहाँ स्वर्ग का द्वार है और जहाँ मन्दाकिनी आदि नदियाँ प्रवाहित होती हैं, वहाँ हे सोम! आप हमें अमरता प्रदान करें तथा आप इन्द्र देव के निमित्त प्रवाहित हों।[ऋग्वेद 9.113.8]
The abode where the son of Vivasvan is present, door of heavens is there and Mandakini river flow, there hey Som! Grant us immortality and flow for the sake of Indr Dev.
यत्रानुकामं चरणं त्रिनाके त्रिदिवे दिवः।
लोका यत्र ज्योतिष्मन्तस्तत्र माममृतं कृधीन्द्रायेन्दो परि स्रव॥
हे सोम! इन्द्र देव के लिए धारारूप में गमन करने वाले आप हमें उस लोक में स्थान प्रदान करें, जहाँ की प्रजा तेजयुक्त है, जहाँ ऊर्ध्वलोक में सूर्यदेव अपनी इच्छानुसार गतिशील हैं।[ऋग्वेद 9.113.9]
Hey Som! Flow for the sake of Indr Dev and and let us achieve the abode in which the populace is aurous-majestic.
यत्र कामा निकामाश्च यत्र ब्रध्नस्य विष्टपम्।
स्वधा च यत्र तृप्तिश्च तत्र माममृतं कृधीन्द्रायेन्दो परि स्रव॥
जहाँ सब प्रकार की अभिलाषाएँ पूर्ण हों, जहाँ सुख प्रदाता तृप्तिकारक अन्न स्थित है, जहाँ प्रतापी सूर्य देव का स्थान है, आप हमें अमरत्व प्रदान करें, हे सोम! आप इन्द्र देव के निमित्त प्रवाहित हों।[ऋग्वेद 9.113.10]
Hey Som! Where all wishes-desires are met, satisfying food grains are available, is the abode of majestic Sury Dev, grant us immortality, there. Hey Som! Flow for Indr Dev.
यत्रानन्दाश्च मोदाश्च मुदः प्रमुद आसते।
कामस्य यत्राप्ताः कामास्तत्र माममृतं कृधीन्द्रायेन्दो परि स्रव॥
हे सोम! जिस लोक में ऋषि आदि आनन्द से रहते हैं, जहाँ धन-सम्पदा का भण्डार है, जहाँ मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं, वहाँ आप हमें अमरत्व प्रदान करें। आप इन्द्रदेव के लिए प्रवाहित हों।[ऋग्वेद 9.113.11]
Hey Som! The abode in which the Rishis live with pleasure-comfortably, lots of wealth is present, wishes-desires are fulfilled, there you grant us immortality. You should flow for Indr Dev.(16.09.2024)
ऋग्वेद संहिता, नवम मण्डल सूक्त (114) :: ऋषि :- कश्यप, मारीच; देवता :-पवमान, सोम; छन्द :- पंक्ति।
य इन्दोः पवमानस्यानु धामान्यक्रमीत्।
तमाहुः सुप्रजा इति यस्ते सोमाविधन्मन इन्द्रायेन्दो परि स्रव॥
जो पवित्र तेजस्वी सोम के कार्यों का अनुगमन करता है तथा उसके चित्त के अनुकूल आचरण करता है, वह उत्तम गृहस्वामी तथा श्रेष्ठ संतति से युक्त होता है। हे तेजस्वी सोम! आप इन्द्र देव के लिए प्रवाहित हों।[ऋग्वेद 9.114.1]
One who follows the endeavours-deeds of majestic Som and works according to his innerself-mood, that excellent owner of house is blessed with best progeny. Hey majestic Som! Flow for Indr Dev.
ऋषे मन्वकृतां स्तोमैः कश्यपोद्वर्धयन्गिरः।
सोमं नमस्य राजानं यो जज्ञे वीरुधां पतितिरिन्द्रायेन्दो परि स्त्रव॥
हे मन्त्रों के द्रष्टा कश्यप ऋषे! आप उस सोम की पूजा करें, जो वनस्पतियों का रक्षक है, जो स्तुतियुक्त वाणी से वृद्धि पाता है। हे सोम! आप इन्द्र देव के लिए प्रवाहित हों।[ऋग्वेद 9.114.2]
Hey seer of Mantrs, Rishi Kashyap! Worship Som, who protects vegetation and grow through the speech accompanied with Stuties. Hey Som! Flow for Indr Dev.
सप्त दिशो नानासूर्याः सप्त होतार ऋत्विजः।
देवा आदित्या ये सप्त तेभिः सोमामि रक्ष न इन्द्रायेन्दो परि स्रव॥
सूर्य देव को आश्रय प्रदान करने वाली सात दिशाओं, सात याजकों तथा सात आदित्यों के साथ हे सोम देव! आप हमें संरक्षण प्रदान करें। हे सोम!आप इन्द्र देव के लिए प्रवाहित हों।[ऋग्वेद 9.114.3]
Hey Som Dev! Grant us asylum along with the seen directions protecting Sury Dev, seven Yagyik and seven Adity Gan. Hey Som! Flow for Indr Dev.
यत्ते राजञ्छृतं हविस्तेन सोमाभि रक्ष नः।
अरातीवा मा नस्तारीन्मो च नः किं चनाममदिन्द्रायेन्दो परि स्रव॥
हे राजा सोम देव! आपके लिए जिस हविष्यान्न को तैयार किया गया है, उसके द्वारा आप हमारा पोषण करें। कोई भी शत्रु हमारी हिंसा न करे तथा हमारी किसी भी वस्तु का कोई शत्रु अपहरण न कर सके। हे सोम! आप इन्द्र देव के लिए प्रवाहित हों।[ऋग्वेद 9.113.4]
Hey Som Dev! Nourish us with the offerings prepared for you. They should neither be able to harm us not snatch our belongings. Hey Som! Flow for Indr Dev.
परम पिता परब्रह्म परमेश्वर की असीम कृपा से आज 17.09.2024, दिन मंगलवार को नोयडा में, ऋग्वेद के अध्याय 9 का अंग्रेजी अनुवाद पूरा हुआ। गणपति, माँ भगवती सरस्वती भगवान् वेदव्यास की कृपा से इसका संपादन हुआ।
इसे मैं अपने पितृगणों, परदादा-परदादी, दादा-दादी, अम्मा-पिताजी को समर्पित करता हूँ। यह कार्य मेरे पुत्र प्रशान्त भारद्वाज की प्रेरणा और प्रोत्साहन और मेरी पत्नी श्री मति मिथिलेश भारद्वाज के निरन्तर सहयोग से संपन्न हुआ।
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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)
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