#RigVed (सूक्त 8.1-103) #ऋग्वेद

RIG VED (8) ऋग्वेद
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
PtSantoshBhardwaj

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ॐ गं गणपतये नम:। 
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (1) :: ऋषि :- प्रगाथ (घौर), काण्व या मेधातिथि काण्व, देवता :- इन्द्र, छन्द :- बृहती, त्रिष्टुप्।
मा चिदन्यद्वि शंसत सखायो मा रिषण्यत।
इन्द्रमित्स्तोता वृषणं सचा सुते मुहुरुक्था च शंसत
हे मित्रों! इन्द्र देवता के अतिरिक्त दूसरों की स्तुति न करें। हिंसित न होवें। सोमाभिषव होने पर एकत्र होकर अभीष्टवर्षी इन्द्र देव की स्तुति करें। बार-बार उनकी प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 8.1.1]
एकत्र :: इकट्ठे होकर, संचयशील, जोड़, घना; collected, together, congestive.
Hey friends! Do not pray to any one else except Indr Dev. Do not be harmed. After extracting Somras come together and worship desires accomplishing Indr Dev. Pray to him repeatedly.
मा चिदन्यद्वि शंसत सखायो मा रिषण्यत।
इन्द्रमित्स्तोता वृषणं सचा सुते मुहुरुक्था च शंसत
हे मित्रों! इन्द्र देवता के अतिरिक्त दूसरों की स्तुति न करें। हिंसित न होवें। सोमाभिषव होने पर एकत्र होकर अभीष्टवर्षी इन्द्र देव की स्तुति करें। बार-बार उनकी प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 8.1.1]
एकत्र :: इकट्ठे होकर, संचयशील, जोड़, घना; collected, together, congestive.
Hey friends! Do not pray to any one else except Indr Dev. Do not be harmed. After extracting Somras come together and worship desires accomplishing Indr Dev. Pray to him repeatedly.
अवक्रक्षिणं वृषभं यथाजुरं गां न चर्षणीसहम्।
विद्वेषणं संवननोभयङ्करं मंहिष्ठमुभयाविनम्
वृषभ (साँड़) की तरह शत्रुओं के हिंसक, अजर वृषभ की तरह मनुष्यों के विजेता, शत्रुओं के द्वेष्टा, स्तोताओं के भजनीय, दिव्य और पार्थिव धन वाले और दाताओं में श्रेष्ठ इन्द्र देव की स्तुति करें।[ऋग्वेद 8.1.2]
Worship Indr Dev who is excellent amongest donors, like a bull, destroyer of enemies, winner of humans like an immortal bull, envious to enemies, prayed by the Stotas, possessor of divine and material wealth.  
यच्चिद्धि त्वा जना इमे नाना हवन्त ऊतये।
अस्माकं ब्रह्मेदमिन्द्र भूतु तेऽहा विश्वा च वर्धनम्
हे इन्द्र देव! यद्यपि अपनी रक्षा के लिए ये मनुष्य अलग-अलग आपकी स्तुति करते हैं, फिर भी हमारा यह स्तोत्र सदा ही आपका वर्द्धक हैं।[ऋग्वेद 8.1.3]
Hey Indr Dev! Though humans pray to you separately for their safety, yet this Strotr of ours is for your progress-growth. 
वि ततूर्यन्ते मघवन्विपश्चितोऽर्यो विपो जनानाम्।
उप क्रमस्व पुरुरूपमा भर वाजं नेदिष्ठमूतये
हे धनी इन्द्र देव! आपके विद्वान् स्तोता शत्रुओं में भय उत्पन्न करते हुए सदा ही विपत्तियों से बचे रहते हैं। आप हमारे निकट पधारें। तृप्ति के लिए विविध प्रकार के बल प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.1.4]
तृप्ति :: परितोषण, परितुष्टि, परितोष, अति ग्रहण, अजीर्ण, तृप्ति, अति सेवन, अति भोजन; satisfaction, gratification, surfeit.
Hey wealthy Indr Dev! Your enlightened Stota generate fear amongest the enemies and remain safe from troubles. Come close to us. Grant different kinds of strength for our satisfaction-gratification.
महे चन त्वामद्रिवः परा शुल्काय देयाम्।
न सहस्त्राय नायुताय वज्रिवो न शताय शतामघ
हे वज्रधारी इन्द्र देव! आपको महामूल्य में भी मैं नहीं बेच सकता। हे वज्र हस्त! हजार और दस हजार में भी आपको नहीं बेच सकता। असीम धन के लिए भी मैं आपको नहीं बेच सकता।[ऋग्वेद 8.1.5]
Hey Vajr wielding Indr Dev! I can not sell even at the highest price. Hey Vajr holding in the hand! Van not sell for thousands or ten thousands. I can not sell you for infinite wealth.
वस्याँ इन्द्रासि मे पितुरुत भ्रातुरभुञ्जतः।
माता च मे छदयथः समा वसो वसुत्वनाय राधसे
हे इन्द्र देव! आप मेरे पिता से भी अधिक धनी हैं। पालन न करने वाले मेरे भाई से भी आप अधिक धनी हैं। हे निवासी इन्द्र देव! आप मेरी माता के समान हैं। मुझे व्यापक धन के लिए पूजित करें।[ऋग्वेद 8.1.6]
तुम मेरे पिता से या मेरे भाई से, जो स्नेही नहीं है, अधिक प्रिय हो; हे आवास दाता, तुम मेरी माता के तुल्य हो, क्योंकि तुम दोनों ने प्रसिद्धि और धन के कारण मुझे प्रतिष्ठित किया है।
Hey Indr Dev! You are richer than my father. Richer than my brother who do not support-nurturer me. Hey Indr Dev! You are like my mother. Support me for vast wealth.
You are more precious, Hey Indr, than my father or my brother, who is not affectionate; you are giver of dwellings, is equal to my mother, for you both render me distinguished on account of celebrity and riches.
क्वेयथ क्वेदसि पुरुत्रा चिद्धि ते मनः।
अलर्षि युध्म खजकृत्पुरन्दर प्र गायत्रा अगासिषुः
हे इन्द्र देव! आप कहाँ गये हैं? कहाँ हैं? आपका मन नाना दिशाओं में रहता है। युद्धकुशल और युद्धकारी पुरन्दर, आवें। स्तुतिकर्ता आपकी स्तुति करते हैं। आप यज्ञ में पधारें।[ऋग्वेद 8.1.7]
Hey Indr Dev! Where have you gone? Your innerself is busy in various directions. Hey expert in warfare and winner-destroyer of forts! Come. The worshipers pray to you. Join the Yagy.
प्रास्मै गायत्रमर्चत वावातुर्यः पुरंदरः।
याभिः काण्वस्योप बर्हिरासदं यासद्वज्री भिनत्पुरः
इन इन्द्र देव के लिए गाने योग्य गान करें। पुरन्दर (शत्रु पुरी भेदक) इन्द्र देव सबके लिए संभजनीय हैं। जिन ऋचाओं से कण्व पुत्रों के यज्ञ में वज्री होकर इन्द्र देव गये थे और जिन ऋचाओं से शत्रुओं की पुरियों को नष्ट किया, उन्हीं ऋचाओं से उनकी प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 8.1.8]
Sing songs as per Indr Dev's taste. Destroyer of Indr Dev is worshipable for all. Worship him with those Richa-Shloks with which he went to the Yagy of Kavy's sons wielding Vajr and destroyed the cities of the enemies.
ये ते सन्ति दशग्विनः शतिनो ये सहस्रिणः।
अश्वासो ये ते वृषणो रघुद्रुवस्तेभिर्नस्तूयमा गहि
हे इन्द्र देव! आपके जो दस योजन चलने वाले सौ और हजार घोड़े हैं, वे सिंचन करने वाले शीघ्रगामी हैं। इन्हीं अश्वों के द्वारा हमारे पास शीघ्र पधारें।[ऋग्वेद 8.1.9]
Hey Indr Dev! Your hundred and thousand horses which travel ten Yojan, are fast moving and nourishing. Come to us with these horses.
आ त्व१द्य सबर्दुघां हुवे गायत्रवेपसम्।
इन्द्रं धेनुं सुदुधामन्यामिषमुरु धारामरकृतम्
आज दूध देने वाली, प्रशंसनीय वेग वाली और अनायास दुही जाने वाली गौ की मैं स्तुति करता हूँ। इसके अतिरिक्त बहुत धाराओं वाली वाञ्छनीया वृष्टि के स्वरूप यथेष्टकर्ता इन्द्र देव की मैं स्तुति करता हूँ।[ऋग्वेद 8.1.10]
I am worshiping the cow today, which has appreciable speed and yield milk any time. In addition to this I worship Indr Dev who grant rain with many channels.
यत्तुदत् सूर एतशं वकू वातस्य पर्णिना।
वहत्कुत्समार्जुनेयं शतक्रतुस्त्सरद् गन्धर्वमस्तृतम्
जिस समय सूर्य देव ने "एतश" नाम के राजर्षि को कष्ट दिया, उस समय वक्रगामी और वायुवेग से चलने वाले दोनों अश्वों ने अर्जुन पुत्र कुत्स ऋषि को वहन किया। बहुविध कर्मा इन्द्र देव ने भी किरण धारक और अहिंसित सूर्य देव पर छद्म रूप से आक्रमण किया।[ऋग्वेद 8.1.11]
When Sury Dev tortured Etash Rajrishi, at that moment two horses which moved fast like air, over curved path, carried Kuts Rishi the son of Arjun. Performer of several deeds, Indr Dev attacked Sury Dev in disguise.
य ऋते चिदभिश्रिषः पुरा जत्रुभ्य आतृदः।
संधाता संधिं मघवा पुरूवसुरिष्कर्ता विहुतं पुनः
जो इन्द्र देव (संघटन सन्धान) द्रव्य के बिना ही गर्दन से रक्त निकलने के पहले ही जोड़ों को जोड़ देते हैं, वही धनी; बहुधनी; इन्द्र देव छिन्न-भिन्न होने वालों को फिर से जोड़ देते हैं।[ऋग्वेद 8.1.12]
Indr Dev who joins the joints, joins them before the flow of blood. Same wealthy Indr Dev possessor of various wealth joins the organs which were cut. 
मा भूम निष्ट्याइवेन्द्र त्वदरणा इव।
वनानि न प्रजहितान्यद्रिवो दुरोषासो अमन्महि
हे इन्द्र देव! आपकी दया से हम नीच न होने पावें; दुःखी न हों। क्षीण वनों की तरह हम पुत्र-पौत्रादि से रहित न हों। हे वज्रधर इन्द्र देव! हमें दूसरे जला न सकें। घर में निवास करते हुए हम आपकी स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 8.1.13]
Hey Indr Dev! Your mercy should protect us from becoming down trodden and worried. We should not be without sons and grandsons like a weak-poor forest. Hey Vajr wielding Indr Dev! Do not let others burn us. We worship you staying at home.
अमन्महीदनाशवोऽनुग्रासश्च वृत्रहन्।
सकृत्सु ते महता शूर राधसानु स्तोमं मुदीमहि
हे वृत्र घातक इन्द्र देव! शीघ्रता रहित और उग्रता शून्य होकर हम धीरे-धीरे आपकी प्रार्थना करें। हे वीर इन्द्र देव! एक बार हम यथेष्ट धन के साथ हम आपके लिए दिव्य यज्ञ करें।[ऋग्वेद 8.1.14]
Hey slayer of Vratr, Indr Dev! Let us pray you without haste and furiosity. Hey brave Indr Dev! We will organise a divine Yagy with sufficient money.
यदि स्तोमं मम श्रवदस्माकमिन्द्रमिन्दवः।
तिरः पवित्रं ससृवांस आशवो मन्दन्तु तुग्रयावृधः
यदि इन्द्र देव हमारी स्तुति श्रवण करें तो, उसी समय हमारे सोम उन्हें प्रसन्न कर सकते है। वह सोम वक्रभाव से स्थित "दशापवित्र" से पवित्र किये गये हैं और "एक धन" आदि जलों के द्वारा वर्द्धमान हुए हैं; इस लिए सब सोम शीघ्र मदकारी हो गये हैं।[ऋग्वेद 8.1.15]
दशा-पवित्र :: वस्त्र के वे टुकड़े जो श्राद्ध आदि में दान दिये जाते हैं; cloths donated during Shraddh-Manes period.
If Indr Dev respond to our prayer, we can please him with Somras at that time. Somras is purified with pieces of cloth and diluted with consecrated water making it intoxicating quickly.
आ त्व१द्य सधस्तुतिं वावातुः सख्युरा गहि।
उपस्तुतिर्मघोनां प्र त्वावत्वधा ते वश्मि सुष्टुतिम्
हे इन्द्र देव! अपने सेवक स्तोता की अन्यों के साथ की जाती स्तुति की ओर आज आप शीघ्र पधारें। अन्य हवि वालों का स्तोत्र आपके पास पहुचें। इस समय हम भी आपकी सुन्दर स्तुति करना चाहते हैं।[ऋग्वेद 8.1.16]
Hey Indr Dev! Come quickly to our Stuti with the serving-slave Stotas and others. Let the Strotr of others reach making offerings reach you. At present we too want to make beautiful Stuti-prayers.
सोता हि सोममद्रिभिरेमेनमप्सु धावत।
गव्या वस्त्रेव वासयन्त इन्नरो निधुक्षन्वक्षणाभ्यः
हे ऋत्विजों! पत्थरों से सोम का अभिषव करें और इसे जल से धोवें। गोचर्म की तरह मेघों के द्वारा शरीर ढककर वायुदेव नदियों के लिए जल बरसाते हैं।[ऋग्वेद 8.1.17]
Hey Ritviz! Extract Som with stones and wash it with water. Vayu Dev cover the clouds like the skin of cloths and shower rains for the rivers.
अध ज्यो अध वा दिवो बृहतो रोचनादधि।
अया वर्धस्व तन्वा गिरा ममा जाता सुक्रतो पृण
हे इन्द्र देव! पृथ्वी, अन्तरिक्ष अथवा विशाल प्रकाशित प्रदेश से आकर मेरी इस विस्तृत स्तुति द्वारा वर्द्धित होवें। हे सुयज्ञ इन्द्र देव! हमारे यहाँ उत्पन्न मनुष्यों को अभिलषित फल प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.1.18]
Hey Indr Dev! Let the earth, space or the lighted regions grow with my vast Stuti. Hey pious Yagy performer Indr Dev! Accomplish the desired rewards to the humans born her.
इन्द्राय सु मदिन्तमं सोमं सोता वरेण्यम्।
शक्र एणं पीपयद्विश्वया धिया हिन्वानं न वाजयुम्
हे स्तोताओं! इन्द्र देव के लिए आप सबसे अधिक मदकर सोमरस प्रस्तुत करें। इन्द्र देव समस्त क्रियाओं द्वारा प्रसन्नता दायक और अन्नाभिलाषी याजकों की इच्छा को पूर्ण करें।[ऋग्वेद 8.1.19]
Hey Stotas! Present toxicating Somras to Indr Dev. Let Indr Dev accomplish the desire for food grains to the worshipers through various pleasing activities.
मा त्वा सोमस्य गल्दया सदा याचन्नहं गिरा।
भूर्णि मृगं न सवनेषु चुक्क्रुधं क ईशानं न याचिषत्
हे इन्द्र देव! यज्ञों में सोमरस प्रस्तुत करते और स्तुति तथा सदैव प्रार्थना करते हुए मैं आपको क्रोधित न करूँ। आप भरणकर्ता और सिंह की तरह भयंकर हैं। संसार में ऐसा कौन है, जो आपसे याचना नहीं करता?[ऋग्वेद 8.1.20]
Hey Indr Dev! I should not anger you while presenting Somras and worshiping you.  You nurture-nurse us and is furious like a lion. Who will not worship you in this world who request you for favours?(11.03.2024)
मदेनेषितं मदमुग्रमुग्रेण शवसा।
विश्वेषां तरुतारं मदच्युतं मदे हि ष्मा ददाति नः॥
हे उग्र बल वाले इन्द्र देव! मद उत्पन्न करने वाले स्तोता द्वारा प्रस्तुत मदकर सोमरस का पान करें। सोमरस के पान से हर्ष उत्पन्न होने पर ही आप हमें शत्रु विजेता और गर्वध्वंसक पुत्र प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.1.21]
Hey mighty, furious Indr Dev! Drink the rejuvenating-thrilling Somras produced by the Stota. On being happy by drinking Somras grant us son, who can win the enemy and destroy his ego. 
शेवारे वार्या पुरु देवो मर्ताय दाशुषे।
स सुन्वते च स्तुवते च रासते विश्वगूर्तो अरिष्टुतः
इन्द्र देव ही सुख जनक यज्ञ में हव्य देने वाले यजमान को प्रचुर धन देते हैं। वही सोमाभिषव कर्ता और स्तोता को भी धन देते हैं। वे समस्त कार्यों में उद्यत और स्तोताओं के प्रशस्य है।[ऋग्वेद 8.1.23]
Indr Dev grants enough money to the Ritviz who makes offerings in the Yagy producing pleasure. There, he grant money to the Stota and the one who extract Somras. He supports the Stotas who are ready to do all jobs.
एन्द्र याहि मत्स्व चित्रेण देव राधसा।
सरो न प्रास्युदरं सपीतिभिरा सोमेभिरुरु स्फिरम्
हे इन्द्र देव! आप यहाँ पधारें और हमें इच्छित धन देकर हर्षित करें। मरुद्गणों के संग सोमरस का पान करके अपना विस्तीर्ण और वृद्ध उदर सरोवर की तरह पूर्ण करें।[ऋग्वेद 8.1.23]
Hey Indr Dev! You should come here and make us happy by giving desired wealth. Drink Somras along with Marud Gan and fill your belly-stomach like and old pond.
आ त्वा सहस्रमा शतं युक्ता रथे हिरण्यये।
ब्रह्मयुजो हरय इन्द्र केशिनो वहन्तु सोमपीतये
हे इन्द्र देव! शत संख्यक और सहस्र संख्यक अश्व सोमपान के लिए स्वर्णमय रथ पर इन्द्र देव को यहाँ ले आवें। वे अश्व इन्द्र देव से युक्त और लम्बे केश वाले हैं।[ऋग्वेद 8.1.24]
Hey Indr Dev! Let the horses in hundreds & thousands bring you here for drinking Somras, pulling the golden charoite. These horses possess long Mane-hair.
आ त्वा रथे हिरण्यये हरी मयूरशेप्या।
शितिपृष्ठा वहतां मध्वो अन्यसो विवक्षणस्य पीतये
हे इन्द्र देव! स्वेत पृष्ठ और मयूर वर्ण वाले अश्व मधुर स्तुति के योग्य सोमरस को पीने के लिए स्वर्ण के रथ से इन्द्र देव को यहाँ ले आवें।[ऋग्वेद 8.1.25]
Hey Indr Dev! Let the horses with white back possessing the colour of peacock, bring you here in golden charoite for drinking Somras deserving pleasant Stuti-prayer.
पिबा त्व १ स्य गिर्वणः सुतस्य पूर्वपाइव।
परिष्कृतस्य रसिन इयमासुतिश्चारुर्मदाय पत्यते
हे स्तुति योग्य इन्द्र देव! प्रथम सोम माता की तरह इस अभिषुत सोमरस का पान करें। यह परिष्कृत और रस वाला है। यह सोमरस मदकारक और शोभन है। यह मत्तता के लिए ही सम्पन्न किया गया है।[ऋग्वेद 8.1.26]
Hey worship deserving Indr Dev! Drink this Somras like Som Mata first. Its juicy and purified. Its pleasurous and thrilling. Its prepared for making joy-causing intoxication.
य एको अस्ति दंसना महाँ उग्रो अभि व्रतैः।
गमत्स शिप्री न स योषदा गमद्धवं न परि वर्जति
जो इन्द्र देव अपने कर्म द्वारा अकेले सभी को परास्त करते हैं और जो कर्म से विशाल, उम्र और शिप्र वाले हैं, वही इन्द्र देव हमारे पास पधारें। वह पृथक न हों। वह हमारे स्तोत्र के सामने आगमन करें। हमारा परित्याग न करें।[ऋग्वेद 8.1.27]
Let Indr Dev who is huge-gigantic defeats every one with his valour, come to us. He should not alienate. He should come when we recite Strotr. He should never abandon us.
त्वं पुरं चरिष्ण्वं वधैः शुष्णस्य सं पिणक्।
त्वं भा अनु चरो अध द्विता यदिन्द्र हव्यो भुवः
हे इन्द्र देव! आपने शुष्ण असुर के संचरणशील निवास स्थान को वज्र से चूर्ण कर दिया। इसके पश्चात् ही होताओं द्वारा आवाहन योग्य आप दोनों के प्रशंसित हुए।[ऋग्वेद 8.1.28]
Hey Indr Dev! You destroyed-powdered the movable residence of demon Shushn with Vajr. Thereafter, invokable you were praised by the Hotas.
मम त्वा सूर उदिते मम मध्यंदिने दिवः।
मम प्रपित्वे अपिशर्वरे वसवा स्तोमासो अवृत्सत
सूर्योदय होने पर आप मेरे समस्त स्तोत्रों को आवर्तित करें। दिन के मध्य में मेरी स्तुति को आवर्तित करें। दिन के अन्त में मेरे स्तोत्र को आवर्तित करें। रात में भी मेरे स्तुति को आवर्तित करें।[ऋग्वेद 8.1.29]
When the Sun rises you should rhythm my all Strotr. During the mid day you should rhythm my Strotr. At night you should rhythm my Stuti-prayer.
स्तुहि स्तुहीदेते घा ते मंहिष्ठासो मघोनाम्।
निन्दिताश्वः प्रपथी परमज्या मघस्य मेध्यातिथे
हे मेधातिथे! बार-बार मेरी (राजर्षि आसङ्ग की) स्तुति करें। मेरी प्रशंसा करें। धनवानों में हम सबसे अधिक धन देने वाले हैं। मेरी शक्ति से दूसरे के अश्व बनाये गये हैं। मेरा पथ उत्कृष्ट है, मेरा आयुध उत्कृष्ट है।[ऋग्वेद 8.1.30]
Hey Medhatithe! Repeatedly pray to me (Rajrishi Asang). Appreciate me. We possess maximum riches amongest the rich. Other's horses are created out of my power. My path is excellent. My weapons are excellent.
आ यदश्वान्वनन्वतः श्रद्धयाहं रथे रुहम्।
उत वामस्य वसुनश्चिकेतति यो अस्ति याद्वः पशुः
आहार के अन्त में श्रद्धा युक्त होकर मैंने आपके रथ को अश्वों के साथ नियोजित किया। मैं मनोरम दान करना जानता हूँ। मैं यदु वंशोत्पन्न और पशु वाला हूँ।[ऋग्वेद 8.1.31]
After the meals, I deployed the horses in the charoite. I know how to make gracious donations. I was born in Yadu clan and possess cattle-animals.
य ऋज्रा मह्यं मामहे सह त्वचा हिरण्यया।
एष विश्वान्यभ्यस्तु सौभगासङ्गस्य स्वनद्रथः
जिन्होंने (आसङ्ग ने), हिरण्मय चर्मास्तरण के साथ गतिशील धन मुझे (मेध्यातिथि को) प्रदान किया, वह शब्द करने वाले रथ से युक्त होकर शत्रुओं के सम्पूर्ण धन को जीत लेवें।[ऋग्वेद 8.1.32]
He who (Asang) granted me (Medhyatithi) dynamic-liquid wealth with golden leather cover should win the enemies; riding the noisy charoite and win their wealth.
अध प्लायोगिरति दासदन्यानासङ्गो अग्ने दशभिः सहस्त्रैः।
अधोक्षणो दश मह्यं रुशन्तो नळाइव सरसो निरतिष्ठन्॥
हे अग्नि देव! प्लषोग के पुत्र आसङ्ग ने दस हजार गौवों का दान करने से दान में समस्त दाताओं से श्रेष्ठ हो गए। अनन्तर सेचन समर्थ और दीप्तमान् समस्त पशु सरोवर से नल की तरह निकल गये।[ऋग्वेद 8.1.33]
Hey Agni Dev! Asang, the son Palshog donated ten thousand cows and became best amongest the donors. Thereafter, all radiant animals capable of breeding, came out of the pond.
अन्वस्य स्थूरं ददृशे पुरस्तादनस्थ ऊरुरवरम्बमाणः।
शश्वती नार्यभिचक्ष्याह सुभद्रमर्य भोजनं बिभर्षि
आसङ्ग के आगे (गुह्य देश में) "स्थूल" देखा जाता है। वह हड्डी से रहित, विशाल और नीचे की ओर लम्बायमान है। आसङ्ग की शश्वती नाम की स्त्री ने उसे देखकर कहा, 'हे आर्य! खूब उत्तम भोग साधक वस्तु को आप धारित करते हैं।[ऋग्वेद 8.1.33]
Asang possessed stout-strong down ward long pennies, without bone. His wife Sashwati saw it and said that he had excellent organ for sexual enjoyment-intercourse.(12.03.2024)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (2) :: ऋषि :- मेधातिथि काण्व, प्रियमेध व अंगिरस, देवता :- इन्द्र, छन्द :- गायत्री, अनुष्टुप्।
इदं वसो सुतमन्धः पिबा सुपूर्णमुदरम्। अनाभयिन् ररिमा ते
हे वासयिता इन्द्र देव! इस अभिषुत सोमरस का पान करें। आपका उदर पूर्ण हो। हे अकुतोभय इन्द्र देव! आपके लिए यह सोमरस अर्पित है।[ऋग्वेद 8.2.1]
Hey Indr Dev, granter of residence! Drink this extracted Somras to fill your belly-stomach. Hey undaunted Indr Dev! We offer this Somras to you.
नृभिर्धूतः सुतो अश्नैरव्यो वारैः परिपूतः। अश्वो न निक्तो नदीषु
अश्वों को जिस प्रकार जलाशय में नहलाकर स्वच्छ किया जाता है, उसी प्रकार सोमलता को स्वच्छ कर और पाषाण से कूटकर एवं छलनी में छानकर सोमरस निकाला जाता है।[ऋग्वेद 8.2.2]
छलनी :: चलनी, छाननी, झक्की, गप्पी, बकवादी, झरनी, छन्ना, strainer, sieve, strainer.
The way horse is cleaned by bathing him in the pond, similarly Som Lata is cleaned, crushed with stone and sieved to filter Somras.
तं ते यवं यथा गोभिः स्वादुमकर्म श्रीणन्तः। इन्द्र त्वास्मिन्त्सधमादे
हे इन्द्र देव! हमने जौ की तरह उक्त सोमरस आपके लिए क्षीर आदि में मिलाकर स्वादिष्ठ बनाया है। इसलिए हे इन्द्र देव! इस यज्ञ में उसी तरह का सोमरस पीने के लिए मैं आपका आवाहन करता हूँ।[ऋग्वेद 8.2.3]
Hey Indr Dev! We have made Somras tasty by mixing it in pudding-Kheer like barley. Hence, Hey Indr Dev! I invoke you for drinking Somras in this Yagy.
इन्द्र इत्सोमपा एक इन्द्रः सुतपा विश्वायुः। अन्तर्देवान् मर्त्यांश्च
देवताओं और मनुष्यों के बीच इन्द्र देव ही समस्त सोमरस के पान के अधिकारी हैं। अभिषुत सोमरस पीने वाले इन्द्र देव ही सब प्रकार के अन्नों से युक्त हैं।[ऋग्वेद 8.2.4]
Amongest the demigods-deities & humans, only Indr Dev is entitled to drink Somras. Only Indr Dev who drink extracted Somras, possess all kind of food grains.
न यं शुक्रो न दुराशीर्न तृप्रा उरुव्यचसम्। अपस्पृण्वते सुहार्दम्
जिन विस्तृत व्यापक इन्द्र देव को प्रदीप्त सोम अप्रसन्न नहीं करता, दुर्लभ आश्रयण द्रव्य (क्षीरादि) वाला सोम जिन्हें अप्रसन्न नहीं करता और तृप्ति करने वाले अन्य पुरोडाशादि जिन्हें अप्रसन्न नहीं करते, उन इन्द्र देव की हम स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 8.2.5]
अप्रसन्न :: उदास, मलिनमुख, म्लान, अभागा, बदकिस्मत, बेचारा, हतभाग्य, अनुपयुक्त, ख़फ़ा; unhappy, displeased, glum.
We worship vast-huge Indr Dev who is not displeased by radiant Som, possessor of rare aurous Som ingredients like base and Purodas etc. do not make him unhappy.
गोभिर्यदीमन्ये अस्मन्मृगं न व्रा मृगयन्ते। अभित्सरन्ति धेनुभिः
जाल आदि से रोके गये हिरण को जिस प्रकार शिकारी खोजते हैं, उसी प्रकार हमसे दूसरे जो ऋत्विक् और यजमान आदि संस्कृत सोमरस द्वारा इन्द्र देव का अन्वेषण करते हैं और जो स्तुतियों से कुत्सित रूप से इन्द्र देव के पास जाते हैं, वे उनको प्राप्त नहीं कर पाते।[ऋग्वेद 8.2.6]
कुत्सित :: निंदित, अधम, नीच, निंदा, नीच व्यक्ति; sickening, snotty.
The way the hunters search the deer obstructed by net, other Ritviz who wish to approach Indr Dev can not do so since they make efforts with sickening means-Stutis.
त्रय इन्द्रस्य सोमाः सुतासः सन्तु देवस्य। स्वे क्षये सुतपाव् नः
यज्ञ स्थल पर इन्द्र देव के पान के निमित्त स्तोता यजमान तीनों सवनों में निचोड़ हुए सोमरस को तैयार रखें।[ऋग्वेद 8.2.7]
Let the Stotas keep extracted extracted Somras for Indr Dev for drinking, during the the segments of the day.
त्रयः कोशासः श्चोतन्ति तिस्त्रश्चम्व १ः सुपूर्णाः। समाने अधि भार्मन्
ऋत्विकों का एक मात्र भरण करने वाले यज्ञ में तीन प्रकार के कोश सोम का श्रवण करते है। तीन भरी सुचियों से आहुति प्रदान की जाती है।[ऋग्वेद 8.2.8]
आहुति :: होम, बलि जिस को जला दे, बलि, नैवेद्य, हव्य; sacrifice, oblation, holocaust.
एक ही यज्ञ में तीन तरह के कलश सोमरस को धारण करते हैं।
Three types of vessels possess Somras in a Yagy.  Three ladles full of offerings are used to make Ahuti-sacrifices.
शुचिरसि पुरुनिः ष्ठाः क्षीरैर्मध्यत आशीर्तः। दध्ना मन्दिष्ठः शूरस्य
हे सोम देव! आप पवित्र और अनेक पात्रों में अवस्थित हैं और बीच में क्षीर तथा दधि द्वारा मिश्रित हैं। आप वीर इन्द्र देव को ही सबसे अधिक प्रमत्त करें।
क्षीर :: दूध, खीर; latex.
Hey Som Dev! You are present in many pure vessels, mixed with curd and pudding. You should intoxicate brave Indr Dev as compared to others.
इमे त इन्द्र सोमास्तीव्रा अस्मे सुतासः। शुक्रा आशिरं याचन्ते
हे इन्द्र देव! आपके ये सोम तीव्र हैं। हमारे अभिषुत और दीप्त मिश्रण द्रव्य (क्षीरादि) आपकी कामना करते हैं।[ऋग्वेद 8.2.10]
Hey Indr Dev! Your Som is strong. Our extracted and aurous fluid mixtures wish to be consumed by you.
ताँ आशिरं पुरोळाशमिन्द्रेमं सोमं श्रीणीहि। रेवन्तं हि त्वा शृणोमि
हे इन्द्र देव! उन सोमों और मिश्रण द्रव्य को मिलावें। पुरोडाश और सोम को मिलावें। इस सोमरस को पीकर हमें ऐश्वर्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.2.11]
Hey Indr Dev! Mix Som and the fluids. Mix Purodas & Som. Grant us grandeur after drinking this Somras.
हत्सु पीतासो युध्यन्ते दुर्मदासो न सुरायाम्। ऊधर्न नग्ना जरन्ते
जिस प्रकार से सुरा का पान किए जाने पर दुष्ट, मत्तता सुरापायी को प्रमत्त करने के लिए उसके अन्तःकरण में युद्ध करती है, उसी प्रकार, हे इन्द्र देव! पिये हुए सोमरस हृदयों में युद्ध करते हैं। जिस प्रकार दूध से भरे हुए गौ के स्तन की लोग रक्षा करते हैं हैं, हे इंद्र देव! आप सम्पूर्ण हैं, उसी प्रकार प्रार्थना करने वाले आपकी प्रशंसा करते हैं।[ऋग्वेद 8.2.12]
The manner in which the wicked struggle with his heart after drinking wine, similarly hey Indr Dev! Somras purifies the hearts. The way the people protect the udder of cow full of milk, hey Indr Dev! You are Ultimate and appreciate the worshiper.
रेवाँ इद्रेवतः स्तोता स्यात्त्वावतो मघोनः। प्रेदु हरिवः श्रुतस्य
हे हर्यश्व! आप धनवान् हैं। आपका स्तोता भी धनी हैं। आपके तुल्य धनी और प्रसिद्ध पुरुष का स्तोता प्रभु होता है।[ऋग्वेद 8.2.13]
Hey Haryashv! You are rich-wealthy. Your Stota too is rich. The Stota who is patronised by you, become rich and a lord. 
उक्थं चन शस्यमानमगोररिरा चि॑केत। गायत्रं गीयमानम्
इन्द्र देव स्तुति रहित अर्थात् आस्थाहीनों के शत्रु हैं। वह गाया जाता हुआ उक्थ जान सकते हैं। इस समय गाने योग्य गान गाया जाता है।[ऋग्वेद 8.2.14]
Indr dev is an enemy of those who have no faith (in almighty). He can recognise the sung Ukth. The song worthy of singing is sung at this moment. 
मा न इन्द्र पीयत्नवे मा शर्धते परा दाः। शिक्षा शचीवः शचीभिः
हे इन्द्र देव! आप वधिक रिपु के हाथ में मुझे न छोड़ना। अभिषव करने वाले के हाथ में न छोड़ना। हे शक्तिमान् इन्द्रदेव! आप अपने कर्मबल से हमें धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.2.15]
Hey Indr Dev! Do not let me remain under the control of the enemy. Do not let me remain in the hands of one who extracts. Hey mighty Indr Dev! Grant us wealth by virtue of your endeavours.
वयमु त्वा तदिदर्था इन्द्र त्वायन्तः सखायः। कण्वा उक्थेभिर्जरन्ते
हे इन्द्र देव! हम आपके मित्र है। आपकी कामना करते हैं। हमारा प्रयोजन आपकी प्रार्थना करना ही है। हम आपकी स्तुति करते हैं। कण्व गोत्रीय उक्थ द्वारा हम आपकी स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 8.2.16]
Hey Indr Dev! We are your friends. We wish to meet you. Our purpose is to worship you. We pray to you. We the descendents of Kavy worship you with Ukth.
न घेमन्यदा पपन वज्रिन्नपसो नविष्टौ। तवेदु स्तोमं चिकेत
हे वज्रधारी इन्द्र देव! आप कर्मवान् हैं। आपके अभिनव यज्ञ में मैं दूसरा स्तोत्र नहीं उच्चारण करता; केवल आपके स्तोत्र को ही मैं जानता हूँ।[ऋग्वेद 8.2.17]
Hey Vajr wielding Indr Dev! You perform your duties-endeavours. I recite only your Strotr in your Abhinav Yagy, since I know your Strotr only.
इच्छन्ति देवाः सुन्वन्तं न स्वप्नाय स्पृहयन्ति। यन्ति प्रमादमतन्द्राः
सोमाभिषव करने वाले यजमान की इच्छा देवता लोग भी सदैव करते हैं। शयन करते हुए मनुष्यों की वह इच्छा नहीं करते। देवता लोग आलस्य रहित होकर मदकर सोमरस प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 8.2.18]
The demigods-deities too wish to have the Ritviz who extract Somras for them. They do not wish to have the sleeping people-humans. Demigods-deities get Somras free from laziness.
ओ षु प्र याहि वाजेभिर्मा हृणीथा अभ्य १ स्मान्। महाँइव युवजानिः
हे इन्द्र देव! अन्न के साथ हमारे समक्ष उत्तम रूप से पधारें। जिस प्रकार से युवती भार्या पाने पर गुणी व्यक्ति उसके ऊपर क्रोधित नहीं होते, उसी प्रकार से हे इन्द्र देव! आप हमारे प्रति क्रोधित न हों।[ऋग्वेद 8.2.19]
Hey Indr Dev! Come to us with food grains. Hey Indr Dev! The way virtuous people do not become angry over the young wife, you too should not be angry with us.
मो ष्व १ द्य दुर्हणावान्त्सायं करदारे अस्मत्। अश्रीरइव जामाता
हे दुःसहनीय इन्द्र देव! आज आप हमारे पास पधारें। बुलाये जाने पर कुत्सित दामाद के समान सन्ध्याकाल न करें।[ऋग्वेद 8.2.20]
Hey unbearable Indr Dev! Come to our house today. On being invited, do not perform evening prayers with the sickening son in law.
विद्मा ह्यस्य वीरस्य भूरिदावरीं सुमतिम्। त्रिषु जातस्य मनांसि
हम इन वीर इन्द्र देव की बहुत धन देने वाली कल्याण कारिणी अनुग्रह बुद्धि को जानते है। तीनों लोकों में आविर्भूत इन्द्र देव को हम भली-भाँति जानते हैं।[ऋग्वेद 8.2.21]
We are aware of the good intensions of brave Indr Dev who wish to oblige by awarding a lot of wealth. We know Indr Dev who evolved in the three abodes.
आ तू षिञ्च कण्वमन्तं न घा विद्म शवसानात्। यशस्तरं शतमूतेः
हे याजकों! कण्व गोत्रीय स्तोता लोग इन्द्र देव के लिए शीघ्र सोमरस का हवन करें। अत्यधिक बलवान् और प्रभूत रक्षा करने वाले इन्द्र देव की अपेक्षा अधिक यशस्वी किसी दूसरे को हम नहीं जानते।[ऋग्वेद 8.2.22]
यशस्वी :: सुविख्यात, कीर्तिमान्; glorious, celebrated
Hey Ritviz! Stotas of Kavy clan should organise Hawan with Somras quickly for Indr Dev. We do not know one else who is famous (glorious, celebrated( & mightier than Indr Dev, who protect us.
ज्येष्ठेन सोतरिन्द्राय सोमं वीराय शक्राय। भरा पिबन्नर्याय
अभिषव करने वाले हे याजकों! शक्तिशाली और मनुष्यों के हितैषी इन्द्र देव के लिए मुख्यरूप से सोमरस प्रदान करें। जिसका वे प्रसन्न चित्त होकर पान करें।[ऋग्वेद 8.2.23]
Hey Ritviz extracting Somras! Prepare Somras specially for Indr Dev who is a well wisher of humans. He should drink it happily. 
यो वेदिष्ठो अव्यथिष्वश्वावन्तं जरितृभ्यः। वाजं स्तोतृभ्यो गोमन्तम्
जो सुखकर स्तोताओं को अच्छी तरह जानते हैं, वही इन्द्र देव होत्रादि और स्तोता गण को बहुत अश्वों वाला और गौवों वाला अन्न प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 8.2.24]
Indr Dev know the comforting-pleasure generating Stotas well and grants horses & cows in addition to food grains to those Stotas who resort to Hotr-Hawan etc.
पन्यंपन्यमित्सोतार आ धावत मद्याय। सोमं वीराय शूराय
हे अभिषव कारियों! आप लोग मत्त करने योग्य, वीर और शूर इन्द्र देव के लिए स्तुति योग्य सोमरस प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.2.25]
Hey extractors of Somras! Prepare such Somras for brave, mighty Indr Dev; which is trilling and deserve prayers.
पाता वृत्रहा सुतमा घा गमन्नारे अस्मत्। नि यमते शतमूतिः
सोमपान में परायण और वृत्र हन्ता इन्द्र देव! आप हमारे इस यज्ञ में पधारें और हमारे शत्रुओं को हमसे पृथक् करें।[ऋग्वेद 8.2.26]
Hey Indr Dev slayer of Vratr and dedicated to Somras! Come to our Yagy and repel-isolate the enemies from us.
एह हरी ब्रह्मयुजा शग्मा वक्षतः सखायम्। गीर्भिः श्रुतं गिर्वणसम्
स्तोत्र वाले और सुखावह दोनों अश्व इस यज्ञ में स्तुति द्वारा विश्रुत और आश्रय योग्य मित्र इन्द्र देव को यज्ञ मण्डप में ले आवें।[ऋग्वेद 8.2.27]
Let the two horses associated with the Strotr bring shelter granting, famous Indr Dev who deserve friendship to this Yagy, in the Yagy Mandap. 
स्वादवः सोमा आ याहि श्रीताः सोमा आ याहि।
शिप्रिनृषीवः शचीवो नायमच्छा सधमादम्
हे शिरस्त्राण, ऋषि और शक्ति वाले इन्द्र देव! यह स्वादिष्ठ सोमरस है। आप यहाँ पधारें। सारे सोम मिश्रण द्रव्य (क्षीरादि) में मिश्रित हुए हैं। आवें। आप प्रसन्नता प्रिय हैं। स्तोता आपकी ही स्तुति करता है।[ऋग्वेद 8.2.28]
Hey head gear wearing, Rishi and mighty Indr Dev! This Somras is tasty. Come here, Somras has been mixed with juices-extracts. You love pleasure. The Stota worship you.
स्तुतश्च यास्त्वा वर्धन्ति महे राधसे नृम्णाय। इन्द्र कारिणं वृधन्तः
हे इन्द्र देव! वर्द्धन परायण स्तोता लोग और समस्त स्तोत्र, महान् धन और बल की प्राप्ति के लिए आपको बढ़ाते हैं।[ऋग्वेद 8.2.29]
Hey Indr Dev! The Stotas desirous of progress, worship you for all Strotr, great wealth and might.
गिरश्च यास्ते गिर्वाह उक्था च तुभ्यं तानि। सत्रा दधिरे शवांसि
हे स्तुतियों द्वारा वहनीय इन्द्र देव! आपके लिए जो स्तोत्र और उक्थ हैं, वे सब मिलकर आपके बल को धारित करते हैं।[ऋग्वेद 8.2.30]
Hey Indr Dev worshiped with Stutis! The Strotr and Ukth together support your might.(14.03.2024)
एवेदेष तुविकूर्मिर्वाजाँ एको वज्रहस्तः। सनादमृक्तो दयते
हे इन्द्र देव! बहुकर्मा, एक और वज्र पाणि हैं। वे सदैव शत्रुओं के लिए अजेय हैं। वे स्तोता को बल प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 8.2.31]
Hey Indr Dev! You perform various deeds and hold Vajr in your hands. You are invincible for the enemy. You grants strength to the Stota.
हन्ता वृत्रं दक्षिणेनेन्द्रः पुरू पुरुहूतः। महान्महीभिः शचीभिः
इन्द्र देव ने दाहिने हाथ से वृत्रासुर का वध किया। वे अनेक स्थानों में बहुत बार बुलाये गए। वे नाना प्रकार की क्रियाओं द्वारा ही महान हैं।[ऋग्वेद 8.2.32]
Indr Dev killed Vratrasur with his left hand. He was invoked at several places, several times. He is great by virtue of various endeavours under taken-accomplished by him.
यस्मिन्विश्वाश्चर्षणय उत च्यौला ज्रयांसि च। अनु घेन्मन्दी मघोनः
समस्त प्रजा जिन इन्द्र देव के अधीन है और जिन इन्द्र देव में अच्युत बल और अभिनव है, वही इन्द्र देवता यजमानों के अनुमोदक हैं।[ऋग्वेद 8.2.33]
Entire populace is under the control of Indr Dev. possessing infallible
maiden strength. He is approver of the hosts.
एष एतानि चकारेन्द्रो विश्वा योऽति शृण्वे। वाजदावा मघोनाम्॥
इन्द्र देव ने ये समस्त कार्य किए हैं। वे सर्वत्र विश्रुत हैं, वे हवि देने वालों को अन्न प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 8.2.34]
विश्रुत :: सुना हुआ, विख्यात; famous. 
Indr Dev has performed all these deeds. He is famous all around. He grants food grains to those who make offerings.
प्रभर्ता रथं गव्यन्तमपाकाच्चिद्यमवति। इनो वसु स हि वोळ्हा
हे प्रहरणशील इन्द्र देव! जिस गमनशील और गवाभिलाषी स्तोता को अपक्व बुद्धि शत्रु के हाथ से आप बचाते हैं, वह स्तोता स्वामी होकर धन का वाहक होता है।[ऋग्वेद 8.2.35]
प्रहरणशील :: लोकप्रिय, जो फैल सके,  फैलनेवाला; popular, admirable, expanding, expansive.
Hey admirable Indr Dev! The dynamic Stota desirous of cows is saved by you from the idiot-ignorant enemy become owner of wealth.
सनिता विप्रो अर्वद्भिर्हन्ता वृत्रं नृभिः शूरः। सत्योऽविता विधन्तम्
अश्व की सहायता से धनी इन्द्र देव जाने योग्य स्थान पर ही जाते हैं। वे शूरवीर हैं। वे नेता मरुतों की सहायता से वृत्रासुर का वध करते हैं। वे अपने सेवक यजमान के रक्षक और सत्य स्वरूप हैं।[ऋग्वेद 8.2.36]
Wealthy Indr Dev goes to only those places which deserve to be visited, riding horses. He killed Vrata Sur with the help of Marud Gan. He is truthful & protector of his servants, followers.
यजध्वैनं प्रियमेधा इन्द्रं सत्राचा मनसा। यो भूत्सोमैः सत्यमद्वा
हे प्रिय मेध ऋषि! इन्द्र देव के लिए उनमें मन लगाकर यज्ञ करें। सोमरस पाने पर यह प्रसन्न होते हैं। उनका हर्ष निष्फल नहीं होता।[ऋग्वेद 8.2.37]
Hey Priy Medh Rishi! Perform that Yagy for Indr Dev with dedication to him, which is liked by him. He become happy by getting Somras. His happiness yield favourable results-rewards.
गाथश्रवसं सत्पतिं श्रवस्कामं पुरुत्मानम्। कण्वासो गात वाजिनम्
हे कण्व पुत्रों! आप साधुओं के रक्षक, अन्नाभिलाषी, नाना-देशगामी, वेगवान् और सर्वत्र होता हैं, ऐसे इन्द्र देव की स्तुति करें।[ऋग्वेद 8.2.38]
Hey sons of Kavy! Worship Indr Dev who is protector of sages, desirous of food grains, visitors of several countries, dynamic and a Hota every where.
य ऋते चिद्गास्पदेभ्यो दात्सखा नृभ्यः शचीवान्। ये अस्मिन्काममश्रियन्
पदचिह्न न रहने पर भी मित्र और सुकर्मा इन्द्र देव ने नेता देवताओं को पुनः गौवें प्रदान कीं। देवताओं ने भी अभिलषित पदार्थों को इन्द्र देवता से प्राप्त किया।[ऋग्वेद 8.2.39]
Even though foot prints were not visible, Mitr-friend & Sukarma Indr Dev granted cows to the leaders demigods-deities. Demigods-deities too got the desired goods from Indr Dev.
इत्था  धीवन्तमद्रिवः काण्वं मेध्यातिथिम्। मेषो भूतो ३ भि यन्नयः
हे वज्रधारी इन्द्र देव! मेषरूप से सामने जाते हुए आपने इस प्रकार स्तुति करने वाले कण्व पुत्र मेधा तिथि को प्राप्त किया।[ऋग्वेद 8.2.40]
Hey Vajr wielding Indr Dev! You met Medhatithi son of Kavy while coming from front in the form of a sheep.
शिक्षा विभिन्दो अस्मै चत्वार्ययुता ददत्। अष्टा परः सहस्त्रा 
हे विभिन्दु (नामक राजा)! आप दाता हैं। आपने मुझे चालीस सहस्त्र संख्या में धन प्रदान किया। अनन्तर आठ सहस्र की संख्या में धन प्रदान किया।[ऋग्वेद 8.2.41]
Hey Vibhindu-the king! you are a donor. You granted me forty thousand currency. Later more eight thousand were granted.
उत सु त्ये पयोवृधा माकी रणस्य नप्त्या। जनित्वनाय मामहे
प्रख्यात, जलवर्द्धक और सबका निर्माण करने वाले स्तोता के प्रति अनुग्रह शील द्यावा-पृथ्वी की धनोत्पत्ति के लिए हम स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 8.2.42]
We worship to heavens & earth for the grant of wealth to the Stota desirous of wealth who is famous, booster of water and evolving all.(16.03.2024)
हर्यश्व :: दृढ़श्व का पुत्र (कुवलयश्व के तीन शेष पुत्रों में से एक)। उनका निकुंभ नाम का एक पुत्र था।[भागवत पुराण 9.6.23-24]
अनारण्य का पुत्र (त्रसद्दस्यु का पुत्र, जो पुरुकुत्स का पुत्र था)। उनका प्ररुण नाम का एक पुत्र था।[भागवत पुराण 9.7.4]
धृष्टकेतु का पुत्र (सुधृति का पुत्र)। उनका मारू नाम का एक पुत्र था।
[भागवत पुराण 9.13.15]
दक्ष की पत्नी असिक्नी से जन्मे पांच हजार पुत्रों को हर्यश्व के नाम से जाना जाता है।
सौर वंश का एक राजा। उनके बारे में निम्नलिखित जानकारी महाभारत से ली गई है।
अयोध्या एक शक्तिशाली शासक, उसके पास पूरी तरह सुसज्जित सेना थी।[उद्योग पर्व, अध्याय 115.18]
काशी के राजा सुदेव के पिता। वीतहव्य के पुत्रों ने उसे मार डाला।[अनुशासन पर्व, अध्याय 30.10]
दक्ष के उन पुत्रों से है जो उनकी पत्नी वीरिणी से उत्पन्न हुए थे। तदनुसार, जैसा कि ब्रह्मा जी ने देव ऋषि नारद से कहा :- "फिर उनकी पत्नी विरिणी से दक्ष प्रजापति को हर्यश्व नामक पुत्र उत्पन्न हुए। हे ऋषि, वे सभी पुत्र अपने पिता के प्रति समर्पित थे और वैदिक मार्ग का पालन करते थे। उनके अलग-अलग गुण और आचरण नहीं थे। हे प्रिय, दक्ष के पुत्र तपस्या के लिए पश्चिम दिशा में चले गए"।[शिवपुराण 2.2.13]
हर्यश्व कुलपिता दक्ष के पुत्र थे, जिनकी संख्या पाँच हजार थी, जिन्हें उन्होंने पृथ्वी पर निवास करने के उद्देश्य से उत्पन्न किया था। ऋषि नारद ने उन्हें संतान पैदा करने से मना कर दिया और वे स्वयं उन क्षेत्रों में तितर-बितर हो गए और फिर कभी वापस नहीं लौटे।
धृधाश्व का एक पुत्र, और निकुंभ का पिता। 
अनरण्य का एक पुत्र और अरुणा का पिता; पत्नी दृषद्वती।
धृष्टकेतु का एक पुत्र और मनु का पिता। 
प्रमोदा का एक पुत्र।
त्रसदश्व का एक पुत्र; पत्नी दृषद्वती; वसुमाता के पिता। 
पृषदश्व का एक पुत्र और हस्त का पिता।
क्ष का एक पुत्र; पाँच पुत्रों के पिता, प्रसिद्ध पंचाल।
मुद्गला का एक पुत्र; उनके जुड़वाँ बच्चे थे, दिवोदास और अहिल्या।
दक्ष और असि के पाँच हजार पुत्र; जिन्होंने नारद जी की सलाह पर वापस न लौटने का मार्ग अपनाया (और तपस्या रत हो गये)। नारद जी के निर्देशों के अनुसार संपूर्ण पृथ्वी का ज्ञान प्राप्त करने के प्रयास में नष्ट हो गए, लज्जित हुए और वायु के पास गए और उनके साथ एक हो गए और अभी भी लक्ष्यहीन रूप से वहां भटक रहे हैं।[विष्णु-पुराण]
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (3) :: ऋषि :- मेधातिथि काण्व, देवता :- इन्द्र, छन्द :- बृहती, पंक्ति, गायत्री, अनुष्टुप्।
पिबा सुतस्य रसिनो मत्स्वा न इन्द्र गोमतः।
आपिर्नो बोधि सधमाद्यो वृधे ३ स्माँ अवन्तु ते धियः
हे इन्द्र देव! आप हमारे रसवान् और दुग्ध युक्त अभिषुत सोमरस का पान करके तृप्त होवें। आप हमारे साथ में मत्त होने योग्य हैं। मित्र होकर हमें वर्द्धित करने के लिए आप प्रवृद्ध होवें। आपकी बुद्धि हमारी रक्षा करे।[ऋग्वेद 8.3.1]
Hey Indr Dev! you should be satisfied by drinking our juicy Somras added with milk. You should be thrilled-intoxicated with us. Grow us as a friend and you should also be grown. Protect us by virtue of your intelligence.
भूयाम ते सुमतौ वाजिनो वयं मा नः स्तरभिमातये।
अस्माञ्चित्राभिरवतादभिष्टिभिरा नः सुम्नेषु यामय॥
हे इन्द्र देव! आपकी कृपा बुद्धि से प्रेरित होकर हम हवि वाले हों। शत्रु हमें न मार सके। अनेक रक्षणों द्वारा हमारा रक्षण करें। हमें सदैव सुखी करें।[ऋग्वेद 8.3.2]
Hey Indr Dev! We should possess offerings-oblations due to your mercy. The enemy should not be able to kill us. Protect us through various means. We should be always happy.
इमा उ त्वा पुरूवसो गिरो वर्धन्तु या मम।
पावकवर्णाः शुचयो विषश्चितोऽभि स्तोमैरनूषत॥
हे बहु-धनवान् इन्द्र देव! मेरी ये स्तुतिरूपी बातें आपको वर्द्धित करें। अग्नि देव के समान तेजस्वी और विशुद्ध विद्वान् आपकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 8.3.3]
Hey possessor of various kinds of wealth Indr Dev! Let my prayers-Stuti grow you. Enlightened people aurous like Agni Dev worship you.
अयं सहस्त्रमृषिभिः सहस्कृतः समुद्रइव पप्रथे।
सत्यः सो अस्य महिमा गृणे शवो यज्ञेषु विप्रराज्ये॥
ये इन्द्र देव हजारों ऋषियों से बल प्राप्त करके विस्तीर्ण हुए। इनकी यथार्थ प्रख्यात महिमा और बल, यज्ञ में, विप्रों के राज्य में, स्तुत होते हैं।[ऋग्वेद 8.3.4]
विस्तीर्ण :: फैला हुआ, विस्तृत, दूर, महासागर संबंधी, प्रशस्त; प्रचुर, प्रभूत, व्यापक, लंबा-चौड़ा; wide, roomy, expended, ample, wider, commodious, oceanic, extensive, roomy, ample, spacious, vast.
Indr Dev has broadened-expanded by virtue of the strength granted by thousands of Rishis. Their real glory-grandeur, strength is worshiped in the state governed by the Brahmans in the Yagy. 
इन्द्रमिद्देवतातय इन्द्रं प्रयत्यध्वरे।
इन्द्रं समीके वनिनो हवामह इन्द्रं धनस्य सातये॥
यज्ञ के प्रारम्भ में हम इन्द्र देव का आवाहन करते हैं और यज्ञ की समाप्ति में भी इन्हीं का आवाहन करते हैं। हम मत्त होकर धनप्राप्ति के लिए इन्द्र देवता का आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.3.5]
मत्त :: मस्त, लापरवाह, शराबी, मतवाला, मदहोश, प्रमत्त, उन्मत्त, अल्हड़; अविवेकी; giddy, ruttiest, overjoyed, carefree, drunk, intoxicate, lust, pride, maddened, frenzied, enraged, exhilarated, pleased.
We invoke Indr Dev in the beginning of Yagy and completion as well. We become giddy to seek wealth from Indr Dev.
इन्द्रो मह्ना रोदसी पप्रथच्छव इन्द्रः सूर्यमरोचयत्।
इन्द्रे ह विश्वा भुवनानि येमिर इन्द्रे सुवानास इन्दवः
अपने बल की महिमा से इन्द्र देव ने द्यावा-पृथ्वी को विस्तारित किया। इन्द्र देव ने सूर्य देव को दीप्त किया। समस्त भुवन इनके द्वारा नियमित हैं। सोमरस भी इन्हीं को समर्पित है।[ऋग्वेद 8.3.6]
Indr Dev expanded the heavens & earth by virtue of his glory. Indr Dev illuminated the Sun. All abodes have been built by him. Somras is dedicated to him.
अभि त्वा पूर्वपीतय इन्द्र स्तोमेभिरायवः।
समीचीनास ऋभवः समस्वरन् दा गृणन्त पूर्व्यम्
हे इन्द्र देव! स्तोता लोग सभी देवताओं से पहले सोमपान के लिए स्तोत्र द्वारा आपकी स्तुति करते हैं। समीचीन ऋभुगण भली-भाँति आपकी ही स्तुति करते हैं। हे इन्द्र देव! आप प्राचीन हैं। रुद्रों ने आपकी ही स्तुति की है।[ऋग्वेद 8.3.7]
समीचीन :: यथार्थ, ठीक, उचित, वाजिब; appropriate, suitable, expediency.
Hey Indr Dev! The Stotas first offer Somras to you prior to all demigods-deities. Appropriate Ribhu Gan properly worship-pray you. Hey Indr Dev! Rudr Gan too worshiped you.
अस्येदिन्द्रो वावृधे वृष्ण्यं शवो मदे सुतस्य विष्णवि।
अद्या तमस्य महिमानमायवोऽनु ष्टुवन्ति पूर्वथा
अभिषुत सोमरस के पीने से सारे शरीर में मत्तता चढ़ने पर इन्द्र देव इस यजमान का ही वीर्य और बल बढ़ाते हैं। प्राचीन समय के सदृश ही आज भी मनुष्य गण इन्द्र देव के उन्हीं गुणों का वर्णन करते हैं।[ऋग्वेद 8.3.8]
With the drinking of Somras Indr dev is thrilled and increase the might and power of the Ritviz. Presently humans describe these characterices of Indr Dev present in him since ancient times.
तत्त्वा यामि सुवीर्यं तद् ब्रह्म पूर्वचित्तये।
येना यतिभ्यो भृगवे धने हिते येन प्रस्कण्वमाविथ
हे इन्द्र देव! आप शोभन वीर्य वाले हैं। प्रथम लाभ के लिए आपसे मैं उत्तम अन्न की याचना करता हूँ। जिसके द्वारा कर्म रहित लोगों से हितकर धन लेकर आपने भृगु को दिया और जिसके द्वारा प्रस्कण्व की आपने रक्षा की, उसी वीर्य और अन्न को मैं आपसे माँगता हूँ।[ऋग्वेद 8.3.9]
वीर्य :: शुक्राणु, कार्य क्षमता, पौरुष; sperms, vigour & vitality.
Hey Indr Dev! You possess vigour & vitality. I request seek the best food grains from you. I request you that might and food grains which you took from the people who did not resort to work, gave it to Bhragu and protected Praskavy.
येना समुद्रमसृजो महीरपस्तदिन्द्र वृष्णि ते शवः।
सद्यः सो अस्य महिमा न संनशे यं क्षोणीरनुचक्रदे
हे इन्द्र देव! जिस बल के द्वारा आपने समुद्र को यथेष्ट जल दिया, आपका वही बल मनोरथ पूरक है। इसी महिमा का अनुगमन द्युलोक और पृथ्वी लोक करते हैं। उसकी कोई सीमा अर्थात् पारावार नहीं है।[ऋग्वेद 8.3.10]
Hey Indr Dev! Your might which led you to fill the ocean with water accomplish the desires. The heavens & earth follow your grandeur. There is no limit to your might.
शग्धी न इन्द्र यत्त्वा रयिं यामि सुवीर्यम्।
शग्धि वाजाय प्रथमं सिषासते शग्धि स्तोमाय पूर्व्य
हे इन्द्र देव! जिस शोभन वीर्य वाले धन को मैं आपसे माँग रहा हूँ, आप उसे प्रदान करें। भजनाभिलाषी और हवि वाले यजमान को सर्वप्रथम धन प्रदान करें। हे प्राचीन इन्द्र देव! इसके अनन्तर स्तोता को भी धन-धान्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.3.11]
Hey Indr Dev! Grant me the beautiful wealth. Grant money to that host-Ritviz first,  who wish to recite Bhajans-prayers possessing oblations-offerings. Hey ancient Indr Dev! Thereafter, grant wealth & food grains to the Stota as well.
शग्धी नो अस्य यद्ध पौरमाविथ धिय इन्द्र सिषासतः।
शग्धि यथा रुशमं श्यावकं कृपमिन्द्र प्रावः स्वर्णरम्
हे इन्द्र देव! स्तोत्र भजनकारी जिस धन से आपने राजा पुरु के पुत्र की रक्षा की, वही धन यजमान को प्रदान करें। जिस प्रकार रुशम, श्यावक और कृप नामक राजर्षियों की आपने रक्षा की, उसी प्रकार सभी हवि वाले यजमानों की रक्षा करें।[ऋग्वेद 8.3.12]
Hey Indr Dev! Grant that Strotr & reciting money to the Ritviz with which you protected the son of king Puru. The way you protected Rusham, Shyavak and Krap Rishis; protect the Ritviz-host as well, who have offerings of all kinds.
कन्नव्यो अतसीनां तुरो गृणीत मर्त्यः।
न ही न्वस्य महिमानमिन्द्रियं स्वर्गुणन्त आनशुः
सन्तत गमन करने वाली स्तुतियों का प्रेरक कौन अभिनव मनुष्य इन्द्र देव की स्तुति करने की शक्ति रखता है? सुख लभ्य इन्द्र देव की स्तुति करने वाले लोग इन्द्र देव की इन्द्रिय और महिमा को नहीं प्राप्त कर सकते।[ऋग्वेद 8.3.13]
संतत :: सदा, निरंतर; always, continuously.
Which human possess the power to inspire the continuously moving Stutis, to worship-pray, Stuti Indr Dev? Those desirous of pleasure-comforts can not attain the grandeur of Indr Dev.
कदु स्तुवन्त ऋतयन्त देवत ऋषिः को विप्र ओहते।
कदा हवं मघवन्निन्द्र सुन्वतः कदु स्तुवत आ गमः
हे इन्द्र देव! आप देवता हैं। कौन स्तोता आपके लिए यज्ञ सम्पादनाभिलाष की शक्ति रखता है? कौन मेधावी ऋषि आपकी स्तुति को वहन कर सकता है? हे इन्द्र देव! स्तोता के बुलाने पर आप कब उसके समीप आते हैं?[ऋग्वेद 8.3.14]
Hey Indr Dev! You are a deity. Which Stota has the power to execute Yagy for you? Which intelligent Rishi can support your Stuti? Hey Indr Dev! When do you approach the Stata, when he invoke you.
उदु त्ये मधुमत्तमा गिरः स्तोमास ईरते।
सत्राजितो धनसा अक्षितोतयो वाजयन्तो रथा इव
प्रसिद्ध और अतीव मधुर वाक्य तथा स्तोत्र, शत्रु विजयी, धनभाक्, अक्षय रक्षा वाले और अन्नाभिलाषी रथ की तरह कहे जाते हैं।[ऋग्वेद 8.3.15]
Famous, sweet compositions and Strotr, winner of enemy, laden with wealth, imperishable protection and desirous of food grains are termed as charoite of food grains.
कण्वाइव भृगवः सूर्या इव विश्वमिद्धीतमानशुः।
इन्द्रं स्तोमेभिर्महयन्त आयवः प्रियमेधासो अस्वरन्
कण्वों की तरह भृगुओं ने सूर्य किरणों के समान ध्यात और व्याप्त इन्द्र देव को व्याप्त किया। प्रियमेध नाम के मनुष्यों ने इन्द्र देव की पूजा करते हुए स्तोत्र द्वारा इन्द्र देव की ही पूजा की।[ऋग्वेद 8.3.16]
ध्यात :: चिंतित, विचारा हुआ, ध्यान किया हुआ; meditated.
व्याप्त :: परिपूर्ण, पूर्णता, प्राप्ति, जनपूर्ण; full, pervaded.
The Bhragus too meditated & pervaded Indr Dev like the rays of Sun. The humans knows as Priymedh worshiped Indr Dev with Strotr.
चारों ओर या सब जगह फैला हुआ होना। न्याय के अनुसार किसी एक पदार्थ में दूसरे पदार्थ का पूर्ण रूप से मिला या फैला हुआ होना। एक पदार्थ का दूसरे पदार्थ में अथवा उसके साथ सदा पाया जाना।
आठ प्रकार के ऐश्वर्यों में से एक प्रकार का ऐश्वर्य। शेष सात ऐश्वर्य :- अणिमा, लघिमा, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, वशित्व और कामावसायिता।
सार्वजनिक-सर्वव्यापक नियम।
युक्ष्वा हि वृत्रहन्तम हरी इन्द्र परावतः।
अर्वाचीनो मघवन्त्सोमपीतय उग्र ऋष्वेभिरा गहि
हे वृत्रासुर का भली-भाँति वध करने वाले इन्द्र देव! अपने हरिद्वय को रथ में योजित करें। हे धनी इन्द्र देव! आप उग्र हैं। दर्शनीय मरुतों के साथ सोमरस के पान के लिए दूर देश से हमारे अभिमुख (यज्ञ में) पधारें।[ऋग्वेद 8.3.17]
Hey Indr Dev, slayer of Vrata Sur thoroughly! Deploy your horse duo Hari in the charoite. Hey wealthy Indr Dev! You are furious. Come to our Yagy with beautiful Marud Gan to drink Somras.
इमे हि ते कारवो वावशुर्धिया विप्रासो मेधसातये।
स त्वं नो मघवन्निन्द्र गिर्वणो वेनो न शृणुधी हवम्
हे इन्द्र देव! कर्मकर्ता और मेधावी ये यजमान यज्ञ सेवन के लिए आपकी ही स्तुति करते है। हे धनी और स्तुति पात्र इन्द्र देव! आप आतुर कामी पुरुष के समान हमारी स्तुतियों को ग्रहण करें।[ऋग्वेद 8.3.18]
Hey Indr Dev! The intelligent performer Ritviz worship you for joining the Yagy. Hey wealthy and worship deserving Indr Dev! Accept our Stutis like a lascivious person.
निरिन्द्र बृहतीभ्यो वृत्रं धनुभ्यो अस्फुरः।
निरर्बुदस्य मृगयस्य मायिनो निः पर्वतस्य गा आजः
हे इन्द्र देव! महाधनुष के द्वारा आपने वृत्रासुर का वध किया। मायावी अर्बुद और मृगय का आपने विनाश किया। पर्वत से गौवों को निकाला।[ऋग्वेद 8.3.19]
Hey Indr Dev! You killed Vrata Sur with great bow. You eliminated the enchanting Arbud and Mragay. You released the cows from the mountain.
निरग्नयो रुरुचुर्निरु सूर्यो निः सोम इन्द्रियो रसः।
निरन्तरिक्षादधमो महामहिं कृषे तदिन्द्र पौंस्यम्
हे इन्द्र देव! जब आपने अन्तरिक्ष से महान् और हनन शील वृत्रासुर को हटा दिया, तब आपने अपना शौर्य प्रकट किया। उस समय समस्त अग्नि, सूर्य और इन्द्र देव के सेवनीय सोमरस भी चमकने लगे।[ऋग्वेद 8.3.20]
Hey Indr Dev! You demonstrated your might when you removed Vratra Sur from the space. At that moment the Agni, Sun and Som too started shinning.
यं मे दुरिन्द्रो मरुतः पाकस्थामा कौरयाणः।
विश्वेषां त्मना शोभिष्ठमुपेव दिवि धावमानम्
इन्द्र देव और मरुतों ने मुझे जो दिया, कुरुयाण के पुत्र पाकस्थामा ने भी मुझे वही प्रदान किया। वह धन समस्त धनों के बीच स्वर्ग में जाते हुए और प्रभायुक्त सूर्य के समान सुशोभित होता है।[ऋग्वेद 8.3.21]
What was given to me by Indr Dev & Marud Gan was given to me by Kuruyan's son Paksthama as well. That wealth glittered while being taken to heavens like the Sun.
रोहितं मे पाकस्थामा सुधुरं कक्ष्यप्राम्। अदाद्रायो विबोधनम् 
पाकस्थामा ने मुझे लोहित वर्ण, सुन्दर वहन प्रदेश, बन्धन रज्जु पूरक और नाना प्रकार के धनों का प्रापक अश्व भी प्रदान किया।[ऋग्वेद 8.3.22]
Paksthama gave me red coloured horse, with beautiful seat, cord which could and carry various riches.
यस्मा अन्ये दश प्रति धुरं वहन्ति वह्नयः। अस्तं वयो न तुग्रयम्
उस अश्व के दस प्रतिनिधि अश्व मुझे वहन करते हैं। इसी प्रकार अश्वों ने तुग्र पुत्र भुज्यु को भी वहन किया।[ऋग्वेद 8.3.23]
Ten more horses along with that horse carry me. Identical horses carried Bhujyu, the son of Tugr.
आत्मा पितुस्तनूर्वास ओजोदा अभ्यञ्जनम्।
तुरीयमिद्रोहितस्य पाकस्थामानं भोजं दातारमब्रवम्
पाकस्थामा अपने पिता के उपयुक्त पुत्र हैं। वे श्रेष्ठ निवास स्थान और स्पष्ट रूप से बल देने वाले हैं। वे शत्रुओं के हिंसक और रिपुओं का नाश करने वाले हैं। ऐसे लोहितवर्ण के अश्व देने वाले पाकस्थामा की मैं स्तुति करता हूँ।[ऋग्वेद 8.3.24]
Paksthama is a matching-suitable son of his father. They reside at a beautiful place and possess might. They are destroyers of he enemies. I worship-pray Paksthama for giving me red coloured horses.(18.03.2024)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (4) :: ऋषि :- देवातिथि काण्व, देवता :- इन्द्र, पूषा या कुरुंग; छन्द :- अनुष्टुप्, बृहती, उष्णिक्।
यदिन्द्र प्रागपागुदङ् न्यग्वा हूयसे नृभिः।
सिमा पुरू नृषूतो अस्यानवेऽसि प्रशर्ध तुर्वशे
हे इन्द्र देव! यद्यपि आप पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण देशों के रहने वाले स्तोताओं द्वारा आवाहित किए जाते हैं, तथापि आनुक राजा के पुत्र के लिए स्तोताओं द्वारा आप ही आवाहित किये जाते हैं।[ऋग्वेद 8.4.1]
Hey Indr Dev! Though you are invoked by Stotas in the East, West, North & South; yet you are invoked by the Stotas for the son of king Anuk.
यद्वा रुमे रुशमे श्यावके कृप इन्द्र मादयसे सचा।
कण्वासस्त्वा ब्रह्मभिः स्तोमवाहस इन्द्रा यच्छन्त्या गहि
हे इन्द्र देव! यद्यपि आप रुम, रुमश, श्यावक और कृप नामक राजाओं के साथ प्रमत्त हुआ करते हैं, तथापि स्तोत्र वाहक कण्व लोग आपको स्तोत्र प्रदान करते हैं; आप यज्ञार्थ पधारें।[ऋग्वेद 8.4.2]
Hey Indr Dev! Though you used to become thrilled-intoxicated with the kings Rum, Rumash, Syavak and Krap, yet carrier of Strotr Kavy grant you Strotr to you. You should come for the sake of Yagy.
यथा गौरो अपा कृतं तृष्यन्नेत्यवेरिणम्।
आपित्वे नः प्रपित्वे तूयमा गहि कण्वेषु सु सचा पिब
जिस प्रकार गौरवर्ण का हिरण प्यासा होकर जलपूर्ण और तृण शून्य स्थान को जान जाता है, वैसे ही, हे इन्द्रदेव! मित्रता प्राप्त हो जाने पर आप हमारे सम्मुख शीघ्र पधारें। हम कण्व पुत्र हैं। हमारे इस यज्ञ में सोमपान करके तृप्त होवें।[ऋग्वेद 8.4.3]
The way a fair-white coloured deer on being thirsty recognise-identify a place with water and without straw; similarly hey Indr Dev! On being friendly come quickly to us. We are sons of Kavy. You should be satisfied by drinking Somras in our Yagy.
मन्दन्तु त्वा मघवन्निन्द्रेन्दवो राधोदेयाय सुन्वते।
आमुष्या सोममपिबश्चमू सुतं ज्येष्ठं तद्धिषे सहः
हे धनवान् इन्द्र देव! सोमरस अभिषवकर्ता को धन देने के लिए आपको आनन्दित करे। आपने सोमरस का पान किया है। यह सोमरस अभिषवण फलक द्वारा अभिषुत किया गया है; इसलिए यह अतीव प्रशस्य है। इसी के लिए आपने महान् बल को धारित कर रखा है।[ऋग्वेद 8.4.4]
अभिषवण :: सोमरस निचोड़ने का साधन; means extracting Somras.
Hey wealthy Indr Dev! Make the extractor of Somras happy by giving him money. You have drunk Somras. This Somras has been extracted with the help of machine, hence appreciable. You possess great strength by virtue of it.
प्र चक्रे सहसा सहो बभञ्ज मन्युमोजसा।
विश्वे त इन्द्र पृतनायवो यहो नि वृक्षाइव येमिरे
अपने वीर कर्म के द्वारा इन्द्र देव ने शत्रुओं को मर्दन किया। उन्होंने बल के द्वारा उनका क्रोध नष्ट किया। हे महान् इन्द्र देव! समस्त युद्धेच्छु शत्रुओं को आपने वृक्ष की तरह निष्क्रिय कर दिया।[ऋग्वेद 8.4.5]
निष्क्रिय :: बेकार, आलसी, व्यर्थ, निस्र्पयोगी, अकर्मण्य, आलसी, सहनशील, अप्रतिरोधी, अनिवारक, दब्बू; inactive, passive, idle.
By virtue of his valour Indr Dev degraded the enemies. He supressed their anger with his might. Hey great Indr Dev! You made the enemies desirous of war inactive like the tree.
सहस्त्रेणेव सचते यवीयुधा यस्त आनळुपस्तुतिम्।
पुत्रं प्रावर्गं कृणुते सुवीर्ये दाश्नोति नमउक्तिभिः
हे इन्द्र देव! जो आपकी प्रार्थना करता है, वह सहस्र संख्यक वज्रायुध (आपसे) प्राप्त करता है और जो नमस्कार द्वारा हव्य प्रदान करता है, वह शोभन वीर्य वाला और शत्रु विजेता पुत्र प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 8.4.6]
Hey Indr Dev! One who worship you, gets thousands of weapons from you. One who salute you while making offerings become mighty and gets son who can defeat the enemy.
मा भेम मा श्रमिष्मोग्रस्य सख्ये तव।
महत्ते वृष्णो अभिचक्ष्यं कृतं पश्येम तुर्वशं यदुम्
हे इन्द्र देव! आप उग्र हैं। आपकी मित्रता प्राप्त करके हम किसी से नहीं डरेंगे, थकेंगे भी नहीं। आप अभीष्टवर्षक हैं। आपके सत्कार्य प्रशंसनीय हैं। हमने तुर्वश और यदु को भी प्रसन्नता की स्थिति में देखा।[ऋग्वेद 8.4.7]
Hey Indr Dev! You are furious. On being friendly with you, we will not be afraid of any one and will not be tired as well. Your virtuous deeds deserve appreciation. You accomplish desires. We found Turvash and Yadu in a state of happiness.
सव्यामनु स्फिग्यं वावसे वृषा न दानो अस्य रोषति।
मध्वा संपृक्ताः सारघेण धेनवस्तूयमेहि द्रवा पिब
काम वर्षक इन्द्र देव ने अपने बाएँ हाथ से समस्त प्राणियों को आच्छादित किया। हविर्दाता इन्द्र देव को क्रोध नहीं आता। मधु मक्षिका से उत्पन्न मधु द्वारा संस्पृष्ट और प्रसन्नता दाता सोमरस के सम्मुख शीघ्र पधारें। आप उस सोमरस के पास जाएँ और उसका पान करें।[ऋग्वेद 8.4.8]
Desires accomplishing Indr Dev covered all living being with his left hand. Maker of offerings Indr Dev do not get angry. Hey Indr Dev! Come quickly to the Somras extracted with honey and drink it.
अश्वी रथी सुरूप इद् गोमाँ इदिन्द्र ते सखा।
श्वात्रभाजा वयसा सचते सदा चन्द्रो याति सभामुप
हे इन्द्र देव! आपका मित्र ही अश्व वाला, रथ वाला, गौ वाला और रूप वाला मनुष्य है। वह सदैव आपसे शीघ्र धन प्राप्त करता है और प्रसन्नता प्राप्त करते हुए सभा में (गृहादि) जाता है।[ऋग्वेद 8.4.9]
Hey Indr Dev! Your friend possess horses, charoite and cows. He always get money from you and goes to home & meetings happily.
ऋश्यो न तृष्यन्नवपानमा गहि पिबा सोमं वशाँ अनु।
निमेघमानो मघवन्दिवेदिव ओजिष्ठं दधिषे सहः
ऋष्य नामक हिरण की तरह आप पात्र में लाये गये सोमरस के सम्मुख पधारें और इच्छानुसार उसका पान करें। हे धनवान् इन्द्र देव! आप प्रतिदिन वर्षा करते हुए अतीव तेजस्वी बल को धारण करें।[ऋग्वेद 8.4.10]
Come to the vessel containing Somras like the deer called Rashy and drink it as per your desire. He wealthy Indr Dev! Have extremely energetic strength while making rain fall every day.(19.03.2024)
अध्वर्यो द्रावया त्वं सोममिन्द्रः पिपासति।
उप नूनं युयुजे वृषणा हरी आ च जगाम वृत्रहा
हे अध्वर्यु! इन्द्र देव सोमरस पीने की इच्छा करते हैं। आप सोमरस का अभिषव करें। दोनों तरुण अश्व (रथ में) आज नियोजित किए गये हैं। वृत्रघ्न आये हैं।[ऋग्वेद 8.4.11]
Hey priests! Indr Dev desire-wish to drink Somras. Extract Somras. Both young horses have been deployed in the charoite. Slayer of Vratr has come.
स्वयं चित्स मन्यते दाशुरिर्जनो यत्रा सोमस्य तृम्पसि।
इदं ते अन्नं युज्यं समुक्षितं तस्येहि प्र द्रवा पिब
हे इन्द्र देव! जिसके सोमरस से आप सन्तुष्ट होते हैं, वह हव्यदाता स्वयं ही उस बात को जान सकता है। आपके योग्य सोमरस पात्र में तैयार किया गया है। आप पधारें, उसके पास जाएँ और उसका पान करें।[ऋग्वेद 8.4.12]
Hey Indr Dev! One making offerings himself identifies-knows who's Somras will satisfy you. Somras as per your taste has been prepared. Come here and drink Somras.
रथेष्ठायाध्वर्यवः सोममिन्द्राय सोतन।
अधि ब्रध्नस्याद्रयो वि चक्षते सुन्वन्तो दाश्वध्वरम्
हे अध्र्युओं! इन्द्र देव रथ पर हैं। उनके लिए सोमरस प्रस्तुत करें। अभिषव के लिए चर्म पर स्थापित मूल पत्थर के ऊपर पत्थर यजमान के लिए यज्ञ निष्पादक सोमरस का अभिषव करते हुए चारों और शोभा पा रहे हैं।[ऋग्वेद 8.4.13]
अभिषव :: यज्ञादि के समय किया जाने वाला स्नान, यज्ञ, आसवन, काँजी, यज्ञ में स्नान, मद्य खींचना, शराब चुवाना, सोमलता को कुचलकर गारना या निचोड़ना, सोमरस पान, यज्ञ, नहाना, राज्यारोहण, अधिकार प्राप्ति, ख़मीर; religious bathing, ablution preparatory to religious rites.
Hey priests! Indr Dev is riding the charoite. Offer him Somras. Another stone has been placed over the already fixed stone over the leather for crushing & extracting Somras in the Yagy.
उप ब्रध्नं वावाता वृषणा हरी इन्द्रमपसु वक्षतः।
अर्वाञ्चं त्वा सप्तयोऽध्वरश्रियो वहन्तु सवनेदुप
हमारे कर्म में अन्तरिक्ष में विचरण करने वाले और सिंचन में समर्थ हरि नाम के दोनों अश्व इन्द्र देव को ले आवें। हे इन्द्र देव! यज्ञ सेवी और गति शील दोनों अश्व आपको सवनों के समीप ले आवे।[ऋग्वेद 8.4.14]
Let the two horses roaming in the sky for our Yagy Karm, capable of causing rains, bring Indr Dev here. Hey Indr Dev! Let both dynamic horses conforming to Yagy Karm bring you here in the three segments of time.
प्र पूषणं वृणीमहे युज्याय पुरूवसुम्।
स शक्र शिक्ष पुरुहूत नो धिया तुजे राये विमोचन
मित्रता की प्राप्ति के लिए हम बहु धन वाले पूषा देव का वरण करते हैं। हे अनेकों द्वारा आहूत और पाप विमोचक पूषन् देव! अपनी बुद्धि के द्वारा धन की प्राप्ति और शत्रु विनाश के लिए हमें सामर्थ्यवान् बनावें।[ऋग्वेद 8.4.15]
We accept Pusha Dev, possessor of various kind of wealth for friendship. Hey Pusha Dev, worshiped by several people and reliever of sins! Make us capable of earning money with the help of our intelligence and destruction of enemies.
सं नः शिशीहि भुरिजोरिव क्षुरं रास्व रायो विमोचन।
त्वे तन्नः सुवेदमुस्रियं वसु यं त्वं हिनोषि मर्त्यम्
(नाई की) बाँह में रहने वाले छुरे की तरह हमें तीक्ष्ण बुद्धि प्रदान करें। हे पाप विमोचक! हमें धन प्रदान करें। आपका गोधन हमारे लिए सुलभ हों। आप मनुष्यों के लिए यह धन भेजा करते हैं।[ऋग्वेद 8.4.16]
Grant us sharp intelligence like the knife of the barber. Hey reliever of sins! Grant us money. Let your cows be available to us. You keep on sending money for the humans.
वेमि त्वा पूषन्नृञ्जसे वेमि स्तोतव आघृणे।
न तस्य वेम्यरणं हि तद्वसो स्तुषे पज्राय साग्ने
हे पूषन्देव! मैं आपको प्रसाधित करने की इच्छा करता हूँ। हे दीप्तिमान् पूषन्! आपकी स्तुति करने की इच्छा करता हूँ। अन्य देवताओं की स्तुति करने की मैं इच्छा नहीं करता; क्योंकि वे हितकर नहीं हैं। निवास प्रद, स्तोता और साम मन्त्र युक्त पत्र (कक्षीवान्) को अभिलषित धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.4.17]
Hey Pusha Dev! I wish to decorate you. Hey radiant Pusha Dev! I wish to worship you. I do not wish to pray to other demigods-deities since they are not of no use to me. Grant Stota-Kakshiwan desired wealth alongwith residence and Sam Mantr.
परा गावो यवसं कच्चिदाघृणे नित्यं रेक्णो अमर्त्य।
अस्माकं पूषन्नविता शिवो भव मंहिष्ठो वाजसातये
हे दीप्ति वाले और अमर पूषन्देव! किसी समय हमारी गौवें चरने के बाद लौटती हैं। हमारा गौरूप धन नित्य हों। आप हमारे रक्षक और मङ्गलकारी हों। अन्नदान के लिए महान् होवें।[ऋग्वेद 8.4.18]
Hey aurous and immortal Pusha Dev! Our cows are like wealth for us, they graze and return home. You should be our protector and beneficial to us. You should be a great donor of food grains.
स्थूरं राधः शताश्वं कुरुङ्गस्य दिविष्टिषु।
राज्ञस्त्वेषस्य सुभगस्य रातिषु तुर्वशेष्वमन्महि
कुरुङ्ग नाम के दीप्त और सौभाग्यवान् राजा की स्वर्ग प्राप्ति के लिए यज्ञ और दान में मनुष्यों के बीच हमने प्रचुर और सौ अश्वों से युक्त धन को प्राप्त किया।[ऋग्वेद 8.4.19]
We obtained lot of wealth and hundred horses in the Yagy conducted for the aurous & lucky king Kurang, who wished to attain heavens.
धीभिः सातानि काण्वस्य वाजिनः प्रियमेधैरभिद्युभिः।
षष्टिं सहस्त्रानु निर्मजामजे निर्यूथानि गवामृषिः
कण्व पुत्र और हवि वाले मेधातिथि और उनके स्तोताओं द्वारा भजन के योग्य तथा दीप्ति पाये हुए प्रियमेध नाम के ऋषियों द्वारा सेवित एवं अती पवित्र साठ हजार गौवों को कण्वपुत्र मेधातिथि ने सबके अन्त में प्राप्त किया।[ऋग्वेद 8.4.20]
Son of Kavy Medhatithi and other Stotas, worthy of recitation of sacred hymns, attained extremely pure sixty thousand cows after others; used-served by Priymedh Rishis.
वृक्षाश्चिन्मे अभिपित्वे अरारणुः। गां भजन्त मेहनाश्वं भजन्त मेहना 
मेरे धन पाने पर वृक्षों ने भी हर्षध्वनि की, इन्होंने प्रशंसनीय गोधन और अश्वधन प्राप्त किया।[ऋग्वेद 8.4.21]
Even the trees made sound reflecting happiness when I got money, cows and horses.(20.03.2023)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (5) :: ऋषि :- ब्रह्मातिथि, काण्व; देवता :- अश्विनी कुमार, चैद्य, कशु;  छन्द :- गायत्री, बृहती, अनुष्टुप्।
दूरादिहेव यत्सत्यरुणप्सुरशिश्वितत्। वि भानुं विश्वधातनत्
दूर से ही निकट में विद्यमान दिखाई देने वाली और दीप्त रूप वाली देवी उषा जिस समय समस्त पदार्थों को श्वेत वर्ण कर देती हैं, उस समय दीप्ति को अनेक प्रकार से विस्तारित करती हैं।[ऋग्वेद 8.5.1]
Visible from a distance radiant Usha Devi make all materials white coloured and extend aura-luminosity in many ways.
नृवद्दस्त्रा मनोयुजा रथेन पृथुपाजसा। सचेथे अश्विनोषसम्
हे दर्शनीय अश्विनी कुमारों! आप लोग नेतृत्व करने वाले हैं। इच्छा मात्र से ही अश्वों में जोते हुए और प्रचुर अन्न से युक्त रथ से आप लोग देवी उषा के पास पहुँच जाते हैं।[ऋग्वेद 8.5.2]
Hey beautiful Ashwani Kumars! You are leaders. You reach Usha Devi just like the horses deployed in the charoite filled with a lot of food grains, just by desiring.
युवाभ्यां वाजिनीवसू प्रति स्तोमा अदृक्षत। वाचं दूतो यथोहिषे 
हे अन्न युक्त और धन सम्पन्न अश्विनी कुमारों! अपने लिए निर्मित किए गए स्तोत्रों को देखें। जिस प्रकार दूत स्वामी के वचन के लिए प्रार्थना करता है, उसी प्रकार हम आपके लिए प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 8.5.3]
Hey wealthy Ashwani Kumars having food grains! Listen to the Strotr composed for you. The way a messenger prays for the orders from his master we do pray to you.
पुरुप्रिया ण ऊतये पुरुमन्द्रा पुरूवसू। स्तुषे कण्वासो अश्विना
आप बहुतों के प्रिय, अनेकों के आनन्द दाता और बहुत धन वाले हैं। हम कण्व गोत्रज हैं। हम अपनी रक्षा के लिए अश्विनी कुमारों की प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 8.5.4]
You are loved by many, grant pleasure and wealthy. We belong to the Kavy clan. We pray to Ashwani Kumars for our safety.
मंहिष्ठा वाजसातमेषयन्ता शुभस्पती। गन्तारा दाशुषो गृहम्
आप लोग पूज्य हैं। सबसे अधिक अन्न देने वाले हैं। शोभन धन के स्वामी हैं। आप लोग मङ्गलप्रद और हव्य दाता के गृह में जाकर उनका कल्याण करते हैं।[ऋग्वेद 8.5.5]
You are worshipable and possess food grains more than others. You possess beautiful-gracious wealth. You visit the house of the auspicious host making offerings and look to his welfare-benefits.
ता सुदेवाय दाशुषे सुमेधामवितारिणीम्। घृतैर्गव्यूतिमुक्षतम्
उत्तम देवताओं के लिए देने वाले को आप नष्ट न होने वाली बुद्धि तथा गौओं की गोचर भूमि को घृत अथवा जल द्वारा सिंचित करें।[ऋग्वेद 8.5.6]
Grant excellent imperishable intelligence to those who make offerings to demigods-deities and irrigate their land used for grazing by the cows.
आ नः स्तोममुप द्रवत्तूयं श्येनेभिराशुभिः। यातमश्वेभिरश्विना 
हे अश्विनी कुमारों! अश्वों पर आरूढ़ होकर अत्यन्त शीघ्र हमारे स्तोत्र की ओर आवें। इन अश्वों की गति प्रशंसनीय है।[ऋग्वेद 8.5.7]
Hey Ashwani Kumars! Come quickly towards our Strotr riding the horses. The speed thses horses is appreciable-laudable.
येभिस्तिस्त्रः परावतो दिवो विश्वानि रोचना। त्रिरँक्तून्परिदीयथः
हे अश्विनी कुमारों! आप दोनों जिस यान (घोड़े) की सहायता से तीन दिन और तीन रात्रि दीप्ति युक्त स्थानों में भ्रमण करते हैं, उसी वाहन से हमारे इस यज्ञ स्थल में पधारें।[ऋग्वेद 8.5.8]
Hey Ashwani Kumars! Come riding the radiant vehicle over which you travel for three days & nights to our Yagy.
उत नो गोमतीरिष उत सातीरहर्विदा। वि पथः सातये सितम्
आप लोग प्रभात समय में स्तुति के योग्य हैं। हमारे लिए गौ से युक्त अन्न और सम्भोग के योग्य धन प्रदान करें। इन सबके भोग के लिए मार्ग बतावें।[ऋग्वेद 8.5.9]
You deserve worship in the morning. Grant us cows, food grains and wealth. Guide us in the use-consumption of these.
आ नो गोमन्तमश्विना सुवीरं सुरथं रयिम्। वोळ्हमश्वावतीरिषः
हे अश्विनी कुमारों! हमारे लिए गौ, पुत्र, सुन्दर रथ और अश्व से युक्त धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.5.10]
Hey Ashwani Kumars! Grant us cows, beautiful charoite, horses and wealth.
वावृधाना शुभस्पती दस्त्रा हिरण्यवर्तनी। पिबतं सोम्यं मधु॥
शोभन पदार्थों के स्वामी, दर्शनीय हिरण्मय और मार्ग से युक्त हे अश्विनी कुमारों! प्रवृद्ध होकर सोममय मधु का पान करें।[ऋग्वेद 8.5.11]
Hey lord of beautiful-gracious good, having beautiful golden path, Ashwani Kumars! Grow up and drink Somras.
अस्मभ्यं वाजिनीवसू मघवद्भयश्च सप्रथः। छर्दिर्यन्तमदाभ्यम्
हे अन्न और धन से युक्त अश्विनी कुमारों! हम धनवान् हैं। हमें चारों ओर से सुरक्षित विशाल गृह प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.5.12]
Hey Ashwani Kumars possessing food grains and wealth! We are wealthy. Grant us large house protected from all four directions.
नि षु ब्रह्म जनानां याविष्टं तूयमा गतम्। मोष्व१न्याँ उपारतम्
हे अश्विनी कुमारों! आप लोग मनुष्य के स्तोत्र की रक्षा करें। शीघ्र पधारें। दूसरे के पास न जावें।[ऋग्वेद 8.5.13]
Hey Ashwani Kumars! Protect the Strotr of humans. Come quickly. Do not go to other person.
अस्य पिबतमश्विना युवं मदस्य चारुणः। मध्वो रातस्य धिष्ण्या
हे स्तुति योग्य अश्विनी कुमारों! आप हमारा दिया हुआ मदकर, मनोहर और मधुर सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 8.5.14]
Hey Ashwani Kumars qualifying for worship! Drink the intoxicating-trilling lovely, sweet Somras.
अस्मे आ वहतं रयिं शतवन्तं सहस्त्रिणम्। पुरुक्षं विश्वधायसम्
हमारे लिए सौ और हजार प्रकार के एवं अनेक निवासों से युक्त तथा सबका धारण करने में समर्थ धन ले आवें।[ऋग्वेद 8.5.15]
Bring hundred-thousands kinds of wealth, useful for us all others, with many houses.
पुरुत्रा चिद्धि वां नरा विह्वयन्ते मनीषिणः। वाघद्भिरश्विना गतम्
हे अश्विनी कुमारों! मनीषी लोग अनेक देशों में आपका आवाहन करते हैं। अतः आप अपने वाहन द्वारा यज्ञ स्थल पर पधारें।[ऋग्वेद 8.5.16]
Hey Ashwani Kumars! Thoughtful, intelligent people invoke you in many countries, hence come riding your vehicle at the Yagy site. 
जनासो वृक्तबर्हिषो हविष्मन्तो अरङ्कृतः। युवां हवन्ते अश्विना
हे अश्विनी कुमारों! हव्य सम्पन्न और पर्याप्त कार्य करने वाले मनुष्य कुशा का आसन बिछाकर आप दोनों का आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.5.17]
Hey Ashwani Kumars! People rich with offerings performing enough work invoke you laying the Kush Mat.
अस्माकमद्य वामयं स्तोमो वाहिष्ठो अन्तमः। युवाभ्यां भूत्वश्विना
हे अश्विनी कुमारों! हमारा यह स्तोत्र (मन्त्र) सर्वापेक्षा अधिक आप लोगों का वाहक और आपका समीपवर्ती हैं।[ऋग्वेद 8.5.18]
Hey Ashwani Kumars! This Strotr of ours, is your carrier & close to you, as compared to others.
यो ह वां मधुनो दृतिराहितो रथचर्षणे। ततः पिबतमश्विना
हे अश्विनी कुमारों! जो मधुपूर्ण चर्म पात्र मध्य स्थान में रखा हुआ है, उससे मधु का पान करें।[ऋग्वेद 8.5.19]
Hey Ashwani Kumars! Drink honey from the leader bag kept in the middle.
तेन नो वाजिनीवसू पश्वे तोकाय शं गवे। वहतं पीवरीरिषः
हे अन्न से युक्त और धनवान् अश्विनी कुमारों! हमारे पशु, पुत्र और गौवों के लिए उस रथ से प्रवृद्ध अन्न अनायास ले आवें।[ऋग्वेद 8.5.20]
Hey Ashwani Kumars possessing food grains and wealth! Bring food grains for our cattle-animals, son and cows in the charoite, spontaneously.(23.03.2024)
उत नो दिव्या इष उत सिन्धूँरहर्विदा। अप द्वारेव वर्षथः
हे प्रभात काल में जानने योग्य अश्विनी कुमारों! स्वर्गीय और वाञ्छनीय जल की वर्षा आप दोनों समयानुसार करते रहें, जिससे हमें प्रचुर अन्न प्राप्त होता रहे।[ऋग्वेद 8.5.21]
Hey Ashwani Kumars, worth remembering in the morning! You shower desirable heavenly rains as per need enabling us to get enough food grains.
कदा वां तौग्रयो विधत्समुद्रे जहितो नरा। यद्वां रथो विभिष्पतात्
हे अश्विनी कुमारों! समुद्र में फेंके जाने पर तुग्र पुत्र भुज्यु ने स्तुति द्वारा कब आप लोगों की प्रार्थना की? जिससे आपने अपने रथ से वहाँ पहुँचकर उसकी रक्षा की।[ऋग्वेद 8.5.22]
Hey Ashwani Kumars! Son of Tugr, Bhujyu prayed to you on been thrown in the ocean for protection and you reached there in your charoite and saved him.
युवं कण्वाय नासत्यापिरिप्ताय  हम्र्ये। शश्वदूतीर्दशस्यथः
हे नासत्यद्वय! प्रासाद के नीचे असुरों द्वारा बाँधे गये कण्व ऋषि को आप लोगों ने नाना प्रकार से रक्षा प्रदान की।[ऋग्वेद 8.5.23]
Hey Nasaty duo! You protected Kavy Rishi in many ways, when he was tied under the palace by the demons.
ताभिरा यातमूतिभिर्नव्यसीभिः सुशस्तिभिः। यद्वां वृषण्वसू हुवे
हे वर्षण परायण और धन से युक्त अश्विनी कुमारों! जिस समय आप लोगों को मैं बुलाता हूँ, उस समय उसी अभिनव और प्रशस्य रक्षण के साथ आप यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 8.5.24]
Hey ready to cause rains and possessing wealth; Ashwani Kumars! You should arrive here as and when I call-request you for unique protection.
यथा चित्कण्वमावतं प्रियमेधमुपस्तुतम्। अत्रिं शिञ्जारमश्विना
हे अश्विनी कुमारों! आप लोगों ने जिस प्रकार कण्व, प्रियमेध, उपस्तुत और स्तोता अत्रि की रक्षा की, उसी प्रकार हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 8.5.25]
Hey Ashwani Kumars! Protect us the way you protected Kavy, Priymedh, Upstut and Stota Atri.
यथोत कृत्व्ये धनेंऽशुं गोष्वगस्त्यम्। यथा वाजेषु सोभरिम्
धन के लिए अंश, गौवों के लिए अगस्त्य और अन्न के लिए सौभार की जिस प्रकार आपने रक्षा की, उसी प्रकार हमारी भी रक्षा करें।[ऋग्वेद 8.5.26]
The way you protected Ansh for wealth, Agasty for cows and Soubhar for food grains, protect us as well.
एतावद्वां वृषण्वसू अतो वा भूयो अश्विना। गृणन्तः सुम्नमीमहे
हे वर्षणशील और धन सम्पन्न अश्विनी कुमारों! स्तुति करते हुए हम इतना अथवा इससे भी अधिक धन की याचना आपसे करते हैं।[ऋग्वेद 8.5.27]
Hey rain causing wealthy Ashwani Kumars! While worshiping you, we request you for wealth much more than this i.e., we have.
रथं हिरण्यवन्धुरं हिरण्याभीशुमश्विना। आ हि स्थाथो दिविस्पृशम्
हे अश्विनी कुमारों! सुवर्ण निर्मित सारथि स्थान वाले और सुवर्ण मय प्रग्रह (लगाम) वाले रथ पर आरूढ़ होकर पधारें।[ऋग्वेद 8.5.28]
Hey Ashwani Kumars! Come to us riding the charoite having seats and reins made up of gold for the driver.
हिरण्ययी वां रभिरीषा अक्षो हिरण्ययः। उभा चक्रा हिरण्यया
हे अश्विनी कुमारों! आपके प्रापणीय रथ की ईषा (लाङ्गल दण्ड) सुवर्ण की है, अक्ष (चक्र मण्डल) सुवर्ण के हैं और दोनों चक्र भी सुवर्ण के हैं।[ऋग्वेद 8.5.29]
Hey Ashwani Kumars! Your desirable charoite has golden shaft, golden the axle & golden wheels.
तेन नो वाजिनीवसू परावतश्चिदा गतम्। उपेमां सुष्टुतिं मम
हे अन्न और धन वाले अश्विनी कुमारों! हमारे पास इस रथ पर दूर देश से भी हमारे पास पधारें। हमारी इस शोभन स्तुति को श्रवण करें।[ऋग्वेद 8.5.30]
Hey wealthy, food grains possessing, Ashwani Kumars! Come to us riding this charoite to distant places. Listen-respond to our beautiful Stuti-prayer.(24.03.2024)
आ वहेथे पराकात्पूर्वीरश्नन्तावश्विना। इषो दासीरमर्त्या॥
हे अमर अश्विनी कुमारों! दुष्टों की अनेक नगरियों को विनष्ट करते हुए आप लोग यज्ञ स्थल में पधारें।[ऋग्वेद 8.5.31]
Hey immortal Ashwani Kumars! Destroying several cities of the wicked come to the Yagy site.
आ नो द्युम्नैरा श्रवोभिरा राया यातमश्विना। पुरुश्चन्द्रा नासत्या
हे अनेकों के मित्र और सत्य स्वभाव अश्विनी कुमारों! हमारे पास अन्न के साथ आगमन करें, यश के साथ आगमन करें और धन के साथ आगमन करें।[ऋग्वेद 8.5.32]
Hey truthful friend of many Ashwani Kumars! Come to us with food grains, wealth & grandeur.
एह वां प्रुषितप्सवो वयो वहन्तु पर्णिनः। अच्छा स्वध्वरं जनम्
हे अश्विनी कुमारों! स्निग्ध रूप वाले और पक्षियों की तरह शीघ्र गामी अश्व आपको सुन्दर यज्ञ वाले याजक के पास ले जाएँ।[ऋग्वेद 8.5.33]
Hey Ashwani Kumars! Let the fast moving horses with oily looks, fast moving like the birds take you to the Yagy site.
रथं वामनुगायसं य इषा वर्तते सह। न चक्रमभि बाधते
जो रथ अश्व के साथ वर्तमान है और स्तोताओं के द्वारा प्रशंसित है, आपका वह रथ सैन्य समूह को बाधा नहीं पहुँचाता।[ऋग्वेद 8.5.34]
Your charoite present with the horses appreciated by the Stotas do not obstruct the armies.
हिरण्ययेन रथेन द्रवत्पाणिभिरश्चैः। धीजवना नासत्या
हे मन के समान वेगवान् अश्विनी कुमारों! क्षिप्त पद वाले और अश्वों से युक्त हिरण्यम रथ पर चढ़कर यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 8.5.35]
Hey Ashwani Kumars as fast as the innerself! Ride the golden charoite, launched-thrown up, deploying horses, here.
युवं मृगं जागृवांसं स्वदथो वा वृषण्वसू। ता नः पृक्तमिषा रयिम्
हे वर्षण करने वाले धन से युक्त अश्विनी कुमारों! आप लोग सदैव जागरूक और अन्वेषणनीय सोमरस पीने वाले हैं। आप दोनों हमें पोषक अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.5.36]
Hey rains producing, wealthy Ashwani Kumars! You are always alert and drink investigating Somras. Grant us nourishing food grains.
ता मे अश्विना सनीनां विद्यातं नवानाम्।
यथा चिच्चैद्यः कशुः शतमुष्ट्रानां ददत्सहस्त्रा दश गोनाम्
हे अश्विनी कुमारों! आप लोग अभिनव और सम्भजनीय धन को जानें। चेदिवंशीय कशु नाम के राजा ने जिस प्रकार सौ ऊँट और दस हजार गौवें दी थीं; यह भी वे जानें।[ऋग्वेद 8.5.37]
Hey Ashwani Kumars! You should recognise the beautiful and valuable-worshipable wealth. You should know that king Kashu from Chedi clan awarded hundred camels and the thousand cows.
यो मे हिरण्यसंदृशो दश राज्ञो अमंहत।
अधस्पदा इच्वैद्यस्य कृष्टयश्चर्मग्ना अभितो जनाः
जिन कशु राजा ने मेरी सेवा के लिए सुवर्ण के सदृश चमकने वाले दस राजाओं को दिया, उन कशु के पैरों के नीचे समस्त प्रजा रहती है।[ऋग्वेद 8.5.38]
Populace abide King Kashu who gave ten thousand kings shining like the gold to serve me.
माकिरेना पथा गाद्येनेमे यन्ति चेदयः।
अन्यो नेत्सूरिरोहते भूरिदावत्तरो जनः
जिस मार्ग से ये चेदि वंशीय जाते हैं, उससे कोई दूसरा नहीं जा सकता। कशु की अपेक्षा अधिकतर दान परायण और विद्वान् व्यक्ति याजकों के लिए नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 8.5.39]
The path-route followed by Chedi clan kings can not be followed by any other person. None other person can do-perform better than Kashu for the charitable and enlightened Ritviz.(24.03.2024)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (6) :: ऋषि :- वत्स, काण्व; देवता :- इन्द्र, तिरिन्दिर, पार्शव्य; छन्द :- गायत्री। 
महाँ इन्द्रो य ओजसा पर्जन्यो वृष्टिमाँ इव। स्तोमैर्वत्सस्य वावृधे
जो इन्द्र देव पर्जन्य के समान बल में महान् हैं, वह पुत्र-तुल्य स्तोता के स्तोत्र द्वारा वर्द्धित होते हैं।[ऋग्वेद 8.6.1]
Indr Dev is mighty like Parjany Dev. He flourishes by the Strotr of the Stota who is like the son.
प्रजामृतस्य पिप्रतः प्र यद्भरन्त वह्नयः। विप्रा ऋतस्य वाहसा
जिस समय आकाश को पूर्ण करने वाले अश्व यज्ञ की प्रजा इन्द्र देव को वहन करते हैं, उस समय विद्वान् लोग यज्ञ के प्रापक स्तोत्र द्वारा स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 8.6.2]
When the horses fills-completes the sky-space; Indr Dev bears the populace and the enlightened worship with the Strotr leading to attainment of Yagy.
कण्वा इन्द्रं यदक्रत स्तोमैर्यज्ञस्य साधनम्। जामि ब्रुवत आयुधम्
कण्वों ने स्तोत्र द्वारा इन्द्र देव को यज्ञ का साधक बनाया; इसलिए लोग इन्द्रदेव को भ्राता कहते हैं।[ऋग्वेद 8.6.3]
The Kavy made Indr Dev a means to accomplish Yagy, hence the people address him brother.
समस्थ मन्यवे विशो विश्वा नमन्त कृष्टयः। समुद्रायेव सिन्धवः
जिस प्रकार से नदियाँ समुद्र को प्रणाम करती हैं, उसी प्रकार समस्त मानव प्रजा इन्द्रदेव के क्रोध के भय से इनको स्वयं प्रणाम करती है।[ऋग्वेद 8.6.4]
The way the rivers salutes Indr Dev, the populace salutes them due to the fear of Indr Dev's anger.
ओजस्तदस्य तित्विष उभे यत्समवर्तयत्। इन्द्रश्चर्येव रोदसी
जिस बल के द्वारा इन्द्र देव द्यावा-पृथिवी को चमड़े की तरह भली-भाँति रखते हैं, इनका वह बल अत्यन्त तेजस्वी है।[ऋग्वेद 8.6.5]
The might with Indr Dev who maintains the heaven-earth like leather has is very radiant-aurous strength.
वि चिद्-वृत्रस्य दोधतो वज्रेण शतपर्वणा। शिरो बिभेद वृष्णिना
इन्द्र देव ने काँपते हुए वृत्रासुर के मस्तक को सौ धारों वाले (अरे) और पराक्रमशाली वज्र के द्वारा छेद डाला।[ऋग्वेद 8.6.6]
Indr Dev chopped the head of trembling Vratra Sur with the mighty Vajr having hundred sharp points.
इमा अभि प्र णोनुमो विपामग्रेषु धीतयः। अग्नेः शोचिर्न दिद्युतः
स्तोताओं के आगे हम लोग अग्नि की दीप्ति की तरह दीप्यमान इन स्तोत्रों का बार-वार उच्चारण करते हैं।[ऋग्वेद 8.6.7]
We repeatedly chant these Strotrs radiant-aurous like the fire (Agni Dev) in front of Stotas. 
गुहा सतीरुप त्मना प्र यच्छोचन्त धीतयः। कण्वा ऋतस्य धारया
गुफा में वर्तमान जो स्तुतियाँ स्वयमेव इन्द्र देव के पास जाकर दीप्त होती हैं, उन्हें कण्व लोग सोम की धारा से युक्त करें।[ऋग्वेद 8.6.8]
The Stuties-prayers present in the cave automatically become radiant as soon as they reach Indr Dev. Let Kavy bear-support them like flowing Som.
प्र तमिन्द्र नशीमहि रयिं गोमन्तमश्विनम्। प्र ब्रह्म पूर्वचित्तये
हे इन्द्र देव! हम गौ और अश्व से युक्त धन प्राप्त करें और दूसरों के पहले ही ज्ञान बल द्वारा अन्न प्राप्त करें।[ऋग्वेद 8.6.9]
Hey Indr Dev! Let us get wealth associated with cows and horses. We should get food grains prior to others by virtue of learning.
अहमिद्धि पितुष्परि मेधामृतस्य जग्रभ। अहं सूर्य इवाजनि
मैंने ही पिता और सत्य रूप इन्द्र देव की कृपा प्राप्त की। इससे हम सूर्य देव के समान तेज युक्त हो गये।[ऋग्वेद 8.6.10]
I attained the blessing of my father and truthful Indr Dev. We became radiant like Sun.(27.03.2024 aus)
अहं प्रत्नेन मन्मना गिरः शुम्भामि कण्ववत्। येनेन्द्रः शुष्ममिद्दधे
कण्व ऋषि के सदृश में प्रतिदिन स्तोत्र द्वारा वाक्यों को अलंकृत करता हूँ। उन स्तोत्रों द्वारा इन्द्र देव को बल प्राप्त होता है।[ऋग्वेद 8.6.11]
I decorate the sentences with Strotr everyday. These Strotrs grant strength to Indr Dev.
ये त्वामिन्द्र न तुष्टुवुर्ऋषयो ये च तुष्टुवुः। ममेद्वर्धस्व सुष्टुतः
हे इन्द्र देव! जो आपकी स्तुति नहीं करते और जो ऋषि आपकी स्तुति करते हैं, इन दोनों के बीच मेरी स्तुति भली-भाँति परिपुष्ट हों।[ऋग्वेद 8.6.12]
Hey Indr Dev! Let my prayers be strengthened between those who do not worship you as well as those who worship you.
यदस्य मन्युरध्वनीद्वि वृत्रं पर्वशो रुजन्। अपः समुद्रमैरयत्
जिस समय इन्द्र देव के क्रोध ने वृत्रासुर को टुकड़े-टुकड़े करते हुए शब्द किया, उस समय इन्द्र देव ने समुद्र के प्रति वर्षा जल भेज दिया।[ऋग्वेद 8.6.13]
Indr Dev turned Vratra Sur into pieces and diverted the rains to ocean.
नि शुष्ण इन्द्र धर्णसिं वज्रं जघन्थ दस्यवि। वृषा ह्युग्र शृण्विषे
हे इन्द्र देव! आपने शुष्ण नामक राक्षस के प्रति धारण करने योग्य वज्र द्वारा आघात किया और उसका वध करके यशस्वी हो गये।[ऋग्वेद 8.6.14]
यशस्वी :: सुख्यात, कीर्तिमान्; well known, famous, glorious, celebrated.
Hey Indr Dev! You became famous-well known, glorious by killing Shushn with Vajr.
न द्याव इन्द्रमोजसा नान्तरिक्षाणि वज्रिणम्। न विव्यचन्त भूमयः॥ 
द्युलोक और अन्तरिक्ष इन्द्र देव को बल द्वारा व्याप्त नहीं कर सकते और भूलोक भी इन्द्र देव को व्याप्त नहीं कर सकते।[ऋग्वेद 8.6.15]
Heavens and space can not pervade Indr Dev and earth too can not pervade him.
यस्त इन्द्र महीरपः स्तभूयमान आशयत्। नि तं पद्यासु शिश्नथः
हे इन्द्र देव! जिस वृत्रासुर ने आपके महान् जल को अन्तरिक्ष में रोककर व्याप्त कर रखा था, उस वृत्रासुर का आपने गति परायण जल के मध्य में वध किया।[ऋग्वेद 8.6.16]
Hey Indr Dev! You killed Vratra Sur in the middle of flowing waters; who had obstructed the great reservoirs of water in the space.
य इमे रोदसी मही समीची समजग्रभीत्। तमोभिरिन्द्र तं गुहः
जिस वृत्रासुर ने महगती और सङ्गता द्यावा-पृथ्वी को ढक लिया, तब सभी ओर अन्धकार व्याप्त हो गया।[ऋग्वेद 8.6.17]
Vratra Sur covered the earth & heavens simultaneously leading to darkness every where.
य इन्द्र यतयस्त्वा भृगवो ये च तुष्टुवुः। ममेदुग्र श्रुधी हवम्
हे ओजस्वी इन्द्र देव! जो यति अङ्गिरोगण और जो भृगुलोग आपकी स्तुति करते हैं, उन सबमें मेरी प्रार्थना श्रवण करें।[ऋग्वेद 8.6.18]
ओजस्वी :: शक्तिशाली, प्रभावशाली; live, lively.
Hey aurous-radiant Indr Dev! Listen to my prayers amongest prayers of the Angiras and Bhragus.
इमास्त इन्द्र पृश्नयो घृतं दुहत आशिरम्। एनामृतस्य पिप्युषीः
हे इन्द्र देव! आपकी ये यज्ञ प्रक्रिया को आगे बढ़ाने व पोषित करने वाली पृश्नियाँ यह पोषक रस एवं घृत प्रदान करती हैं।[ऋग्वेद 8.6.19]
पृश्नियाँ :: चकत्ते युक्त गायें; spotted cows.
Hey Indr Dev! These, spotted cows, nourishes the Yagy-sacrifice, with their butter-Ghee.
या इन्द्र प्रस्वस्त्वासा गर्भमचक्रिरन्। परि धर्मेव सूर्यम्
हे इन्द्र देव! इन प्रसव करने वाली गौवों ने मुख से आपके द्वारा प्रदत्त अन्न का भक्षण करके सूर्य देव के चारों ओर जल की तरह गर्भ धारण किया।[ऋग्वेद 8.6.20]
Hey Indr Dev! These pregnant cows ate the food granted by you and supported the foetus all around Sury Dev, like water.(28.03.2024 aus)
त्वामिच्छवसस्पते कण्वा उक्थेन वावृधुः। त्वां सुतास इन्दवः
हे बलाधीश इन्द्र देव! उक्थ द्वारा कण्व ऋषि आपको वर्द्धित करते हैं। वे सोमरस प्रदत्त करके आपको प्रसन्न करते हैं।[ऋग्वेद 8.6.21]
Hey lord of power-strength, Indr Dev! Kavy Rishi boost-grow you with Ukth. He make you happy by providing you Somras.
तवेदिन्द्र प्रणीतिषूत प्रशस्तिरद्रिवः। यज्ञो वितन्तसाय्यः
हे वज्रवान् इन्द्र देव! आपके पथ प्रदर्शक बनने पर उत्तम स्तुति और प्रवृद्ध यज्ञ पूर्ण होते है। उनमें आपकी ही प्रार्थना की जाती हैं।[ऋग्वेद 8.6.22]
Hey Vajr wielding Indr Dev! Your excellent guidance leads to best Stuti-prayers and the Yagy are accomplished. There only you are worshiped.
आ न इन्द्र महीमिषं पुरं न दर्षि गोमतीम्। उत प्रजां सुवीर्यम्
हे इन्द्र देव! हमारे लिए महान और गौयुक्त अन्न की रक्षा करें और वीर्यवान् पुत्र आदि प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.6.23]
Hey Indr Dev! Protect our great food grains along with cows and grant us energetic-smart son.
उत त्यदाश्वश्थ्यं यदिन्द्र नाहुषीष्वा। अग्रे विक्षु प्रदीदयत्
हे इन्द्र देव! नहुष राजा की प्रजाओं के सामने शीघ्रगामी और अश्व से युक्त जो बल आपने प्रदान किया, उसी तरह हमें भी प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.6.24]
Hey Indr Dev! The way you provided quick and fast moving horses, possessing strength to king Nahush, in front of his populace, similarly oblige us as well.
अभि व्रजं न तत्निषे सूर उपाकचक्षसम्। यदिन्द्र मृळयासि नः
हे इन्द्र देव! आप प्राज्ञ हैं। इस समय निकट से दर्शनीय गौशाला को पूर्ण कर हमें सुखी करें।[ऋग्वेद 8.6.25]
प्राज्ञ :: बुद्धिमान, चतुर, दक्ष, विद्वान व्यक्ति, चतुर व्यक्ति, prudent, sapient.
Hey Indr Dev! You are well versed and intelligent person. Make our cow shed comfortable-happy & good looking.
यदङ्ग तविषीयस इन्द्र प्रराजसि क्षितीः। महाँ अपार ओजसा
हे इन्द्र देव! बल के समान आचरण करके मनुष्यों के राजा बने तथा बल द्वारा आप महान और अपराजेय हैं।[ऋग्वेद 8.6.26]
Hey Indr Dev! You behaved like Bal and became the king of humans. By virtue of Bal-might (strength, valour, power) you are great & invincible.
तं त्वा हविष्मतीर्विश उप ब्रुवत ऊतये। उरुज्रयसमिन्दुभिः
हे इन्द्र देव! आप बहुत व्यापक हैं। हवि वाले लोग सोमरस द्वारा आपको तृप्त करने के लिए आपके पास आकर स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 8.6.27]
Hey Indr Dev! You are vast and all pervading. Those humans who possess offering as Somras, comes to you and worship you.
उपह्वरे गिरीणां संगथे च नदीनाम्। धिया विप्रो अजायत
पर्वतों के प्रान्त में, नदियों के सङ्गम-स्थल पर, यज्ञ-क्रिया करने पर मेधावी इन्द्र देवता जन्म ग्रहण करते हैं।[ऋग्वेद 8.6.28]
Intelligent Indr Dev get birth in mountainous region where the rivers join, on performing Yagy and related functions.
अतः समुद्रमुद्वतश्चिकित्वाँ अव पश्यति। यतो विपान एजति
हे सर्वव्यापक इन्द्र देव! जो संसार में विहार करते हैं, वही विद्वान इन्द्र देवता ऊद्धर्व लोक से निम्न मुख से समुद्र को देखते हैं।[ऋग्वेद 8.6.29]
Hey all pervading Indr Dev! Those brilliant-enlightened person who reside at the junction of rivers, lower their mouth and visualise the ocean from higher abodes.
आदित्प्रत्नस्य रेतसो ज्योतिष्पश्यन्ति वासरम्। परो यदिध्यते दिवा
द्युलोक के ऊपर जिस समय इन्द्र देवता दीप्ति प्राप्त करते हैं, उसी समय प्राचीन जलदाता इन्द्र देव की निवासप्रद ज्योति का लोग दर्शन करते हैं।[ऋग्वेद 8.6.30]
The humans see the radiance of ancient water granting Indr Dev over the heavens when he acquire aura granting them inhabitation.(28.03.2024aus)
कण्वास इन्द्र ते मतिं विश्वे वर्धन्ति पौंस्यम्। उतो शविष्ठ वृष्ण्यम्
हे इन्द्र देव! समस्त कण्व गण आपकी बुद्धि और बल को बढ़ाते हैं। हे श्रेष्ठ बली! वे आपके वीरकर्म का भी वर्द्धन करते हैं।[ऋग्वेद 8.6.31]
Hey Indr Dev! The Kavy Gan boost your intelligence and strength-power. Hey best mighty! They increase your valour as well.
इमां म इन्द्र सुष्टुतिं जुषस्व प्र सु मामव। उत प्र वर्धया मतिम्
हे इन्द्र देव! आप हमारी इस सुन्दर स्तुति को स्वीकार करें। हमें भली-भाँति बचावें। हमारी बुद्धि को प्रवर्द्धित करें।[ऋग्वेद 8.6.32]
Hey Indr Dev! Accept this beautiful Stuti-prayer of ours. Protect us properly. Enhance our intelligence.
उत ब्रह्मण्या वयं तुभ्यं प्रवृद्ध वज्रिवः। विप्रा अतक्ष्म जीवसे
हे प्रवृद्ध और वज्रधर इन्द्र देव! हम मेधावी हैं। जीवन वृद्धि के लिए हम आपकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 8.6.33]
मेधावी :: ज्ञानी, तीव्र बुद्धिवाला; brilliant, sharp minded, sagacious.
Hey grown up wielder of Vajr Indr Dev! We are sharp minded. We worship you for progress in life.
अभि कण्वा अनूषतापो न प्रवता यतीः। इन्द्रं वनन्वती मतिः
कण्व लोग स्तुति करते हैं। निम्नाभिमुख गमनशील जलों की तरह रमणी स्तुति स्वयं इन्द्र देव के पास पहुँचती है।[ऋग्वेद 8.6.34]
The Kavy Gan worship-pray you. Beautiful Stuti-chants automatically reach you like the downward flowing waters.
इन्द्रमुक्थानि वावृधुः समुद्रमिव सिन्धवः। अनुत्तमन्युमजरम्
जिस प्रकार से नदियाँ समुद्र को बढ़ाती है, उसी प्रकार मन्त्र इन्द्र देव को बढ़ाते हैं। ये अजर हैं। उनके कोप का निवारण कोई नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 8.6.35]
The manner-way in which the rivers boost the ocean, Mantr-chants enhance the might of Indr Dev. He is free from increasing age. There is no solution for his anger.
आ नो याहि परावतो हरिभ्यां हर्यताभ्याम्। इममिन्द्र सुतं पिब
हे इन्द्र देव! सुन्दर रथ पर आरूढ़ होकर दूर देश से हमारे पास पधारें और अभिषुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 8.6.36]
Hey Indr Dev! Ride the beautiful charoite, come to our place-country and drink the Somras extracted by us.
त्वामिद्वृत्रहन्तम जनासो वृक्तबर्हिषः। हवन्ते वाजसातये
हे सबकी अपेक्षा सर्वाधिक शत्रु संहारक इन्द्र देव! जो लोग कुश काटते हैं, वे अन्न प्राप्ति के लिए आपका ही आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.6.37]
Hey slayer of the enemies as compared to others! Those who cut Kush, they invoke you for the sake of food grains.
अनु त्वा रोदसी उभे चक्रं न वर्येतशम्। अनु सुवानास इन्दवः
हे इन्द्र देव! जिस प्रकार रथ चक्र अश्व का अनुगमन करते हैं, उसी प्रकार द्यावा-पृथ्वी आपका अनुगमन करती है। अभिषुत सोमरस भी आपका अनुगमन करते हैं।[ऋग्वेद 8.6.38]
The way the wheels of charoite follow the horses, the heavens-earth follow you. Extracted Somras too follow you.
मन्दस्वा सु स्वर्णर उतेन्द्र शर्यणावति। मत्स्वा विवस्वतो मती
हे इन्द्र देव ! शर्यणा देश (कुरुक्षेत्र के समीप) के तड़ाग के पास समस्त ऋत्विकों के द्वारा आरब्ध यज्ञ में तृप्त होवें। याजकों की स्तुति से प्रसन्न होवें।[ऋग्वेद 8.6.39]
आरब्ध :: आरंभ किया हुआ; incipient.
Hey Indr Dev! Be satisfied with the Yagy performed by the Ritviz near the Sharyna Desh-Kurukshetr pond. Be happy with the prayers of the Ritviz.
वावृधान उप द्यवि वृषा वज्रयरोरवीत्। वृत्रहा सोमपातमः
प्रवृद्ध, काम वर्षक, वज्रवान्, अतीव सोमपाता और वृत्रघ्न इन्द्र देव दिव्य लोक के पास से गर्जना करते है।[ऋग्वेद 8.6.40]
Grown up, desires accomplishing Vajr wielding, drunker of excessive Somras; Indr Dev roar near the divine abodes.(29.03.2024aus)
ऋषिर्हि पूर्वजा अस्येक ईशान ओजसा। इन्द्र चोष्कूयसे वसु
हे इन्द्र देव! आप सबसे पहले उत्पन्न होने वाले ऋषि हैं। अद्वितीय बल द्वारा आप समस्त देवताओं के स्वामी हुए। आप आप हमें प्रचुर धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.6.41]
Hey Indr Dev! You are the sage who took birth, born first. With the un paralleled might you became the lord of demigods-deities. Grant us sufficient wealth-money, riches.
अस्माकं त्वा सुताँ उप वीतपृष्ठा अभि प्रयः। शतं वहन्तु हरयः
प्रशस्त पृष्ठ वाले सौ अश्व, हमारे अभिषुत सोमरस और अन्न के लिए आपको यज्ञ स्थल पर ले आवें।[ऋग्वेद 8.6.42]
Bring hundred horses with smooth-strong back to our Yagy site for extracted Somras and food grains-offerings.
इमां सु पूर्व्या धियं मधोघृतस्य पिप्युषीम्। कण्वा उक्थेन वावृधुः
पूर्व मंत्रों द्वारा कण्व वंशीय ऋषि जलों की वृद्धि करने वाले यज्ञ को संपन्न करते हैं।[ऋग्वेद 8.6.43]
With the help of chants-Mantr recited earlier, Rishis of Kavy clan completes the Yagy for more rains. 
इन्द्रमिद्विमहीनां मेधे वृणीत मर्त्यः। इन्द्रं सनिष्युरूतये
देव गण विशेष रूप से महान् हैं। उनके मध्य इन्द्र देव को ही मनुष्यगण धन की कामना करके रक्षण के लिए वरण करते हैं।[ऋग्वेद 8.6.44]
Demigods-deities are specially great. Out of them they and select-accept only Indr Dev for their protection and wealth.
अर्वाञ्चं त्वा पुरुष्टुत प्रियमेधस्तुता हरी। सोमपेयाय वक्षतः
हे अनेकों द्वारा स्तुत्य इन्द्रदेव! यज्ञप्रिय ऋषियों द्वारा स्तुत्य दो अश्व सोमरस के पान के लिए आपको हमारे समक्ष ले आवें।[ऋग्वेद 8.6.45]
Hey Indr Dev, worshiped by several-many! Two horses Hari, worshiped by the Rishis should bring you to the Yagy adoring-admiring Rishis for drinking Somras. 
शतमहं तिरिन्दिरे सहस्रं पर्शावा ददे। राधांसि याद्वानाम्
यदुओं में परशु के पुत्र तिरिन्दिर से हजारों की संख्या में नाना प्रकार धन-वैभव ग्रहण किया। [ऋग्वेद 8.6.46]
Various-several kinds of grandeur was  accepted from Tirindire, son of Parshu of Yadu clan.
त्रीणि शतान्यर्वतां सहस्त्रा दश गोनाम्। ददुष्पज्राय साम्ग्ने
तिरिन्दिर राजाओं ने पंज्र और साम को तीन सौ अश्व और दस सौ गौवें प्रदान की।[ऋग्वेद 8.6.47]
Tirindire kings granted three hundred horses and ten cows to Panjr and Sam.
उदानट् ककुहो दिवमुष्ट्राञ्चतुर्युजो ददत्। श्रवसा याद्वं जनम्॥
तिरिन्दिर राजा ने उन्नत होकर चार सुवर्ण के बोरों से युक्त ऊँटों को देते हुए यदुओं को दास रूप से देते हुए कीर्ति के द्वारा स्वर्ग लोक की प्राप्ति की।[ऋग्वेद 8.6.48]
Tirindire king attained glory and heavens by granting camel loaded with four sacks of gold considering Yadu to be slaves.(30.03.2024ausM)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (7) :: ऋषि :- पुनर्वत्स, काण्व; देवता :- मरुत; छन्द :- गायत्री।
प्र यद्वस्त्रिष्टुभमिषं मरुतो विप्रो अक्षरत्। वि पर्वतेषु राजथ
हे मरुतों! जिस समय विद्वान् व्यक्ति तीनों सवनों में (सोमरूप) प्रशस्त अन्न (अग्नि में) फेंकते हैं, उस समय आप लोग पर्वतों में दिप्ति वाले होते हैं।[ऋग्वेद 8.7.1]
Hey Marud Gan! When the intellectuals-enlightened offer food grains in fire,  you become radiant in the mountains.
यदङ्ग तविषीयवो यामं शुभ्रा अचिध्वम्। नि पर्वता अहासत
हे बलाभिलाषी और शोभन मरुतों! जिस समय आप लोग रथ को अश्व द्वारा जोतते हैं, उस समय पर्वत भी काँपने लगते है।[ऋग्वेद 8.7.2]
शोभन :: ललित,  शोभनीय, पयुक्त, उपयुक्त, स्वच्छ, संगत, शोभा युक्त, शोभा बढ़ाने वाला, पयुक्त जान पड़ने तथा फबनेवाला; graceful, suitable, seemly, decent, nice.
Hey beautiful-graceful Marud Gan desirous of might! When you deploy the horses in the charoite , the mountains start trembling. 
उदीरयन्त वायुभिर्वाश्रासः पृश्निमातरः। धुक्षन्त पिप्युषीमिषम्॥
शब्द कर्ता और पृश्नि के पुत्र मरुद्गण वायुओं के द्वारा मेघादि को ऊपर उठाते और वृद्धिकर अन्न प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 8.7.3]
The Marud Gan, sons of Prashni, producing sound; raise the clouds upward and grant food grains.
वपन्ति मरुतो मिहं प्र वेपयन्ति पर्वतान्। यद्यामं यान्ति वायुभिः
जिस समय मरुद्गण वायुओं के साथ जाते हैं, उस समय वे वर्षा करते हुए पर्वतों को कम्पायमान करते हैं।[ऋग्वेद 8.7.4]
When Marud Gan moves along with the air currents, they produce rains trembling-vibrating the mountains.  
नि यद्यामाय वो गिरिर्नि सिन्धवो विधर्मणे। महे शुष्माय येमिरे
आपके रथ के लिए पर्वतों की गति नियत है तथा नदियाँ भयभीत होकर धीमी गति से बहने लगती हैं।[ऋग्वेद 8.7.5]
The speed of your chariots is fixed for the mountains, the rivers become afraid of you and start flowing.
युष्माँ उ नक्तमूतये युष्मान्दिवा हवामहे। युष्मान्प्रयत्यध्वरे
हम आपको रात्रि में रक्षा के लिए बुलाते हैं, दिन में भी आपको बुलाते हैं और यज्ञ आरम्भ होने पर आपको ही बुलाते हैं।[ऋग्वेद 8.7.6]
We invite-call you at night & during the day for protection, when the Yagy begins.
उदु त्ये अरुणप्सवश्चित्रा यामेभिरीरते। वाश्रा अधि ष्णुना दिवः
वे ही अरुण वर्ण वाले आश्चर्यभूत और शब्दकर्ता मरुद्गण रथ के द्वारा द्युलोक के ऊपर अग्रभाग से जाते हैं।[ऋग्वेद 8.7.7]
Fair coloured, amazing, noise producing charoite of Marud Gan rises to the upper heavens in the forward-front region.
सृजन्ति रश्मिमोजसा पन्थां सूर्याय यातवे। ते भानुभिर्वि तस्थिरे
जो मरुद्गण सूर्य देव के गमन के लिए किरण युक्त मार्ग का सृजन करते हैं तथा उनकी तेजस्वी किरणों को सर्वत्र फैलाते हैं।[ऋग्वेद 8.7.8]
Marud Gan creates path for the movements of the Sun-Sury Dev and spread its radiant rays all around.
इमां मे मरुतो गिरमिमं स्तोममृभुक्षणः। इमं मे वनता हवम्
हे वीर मरुतों! आप अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित हैं। हमारे द्वारा कही गयी स्तुतियों और स्तोत्रों को आप ग्रहण करें।[ऋग्वेद 8.7.9]
Hey brave Marud Gan you possess weapons (Astr-Shastr). Accept our prayers, chants (Mantr & Shloks).
त्रीणि सरांसि पृश्नयो दुदुहे वज्रिणे मधु। उत्सं कवन्धमुद्रिणम्
पृश्नियों ने (मरुतों की माताओं ने) वज्री इन्द्र देव के लिए मधुर सोमरस को उस (निर्झर), कबन्ध (जल) और अद्रि (मेघ); इन तीन सरोवरों से दूहा था।[ऋग्वेद 8.7.10]
Prashnis-mothers of Marud Gan extracted Somras from the three reservoirs (Nirjhar, Kabandh & Adri) for the Vajr wielding Indr Dev.
मरुतो यद्ध वो दिवः सुम्नायन्तो हवामहे। आ तू न उप गन्तन
हे मरुतो! जिस समय अपने सुखाभिलाष के लिए हम स्वर्ग से आपका आवाहन करते है, उस समय शीघ्र ही हमारे पास पधारें।[ऋग्वेद 8.7.11]
Hey Marud Gan! When ever we invoke you with the desire of our pleasure come quickly to us from the heavens.
यूयं हि ष्ठा सुदानवो रुद्रा ऋभुक्षणो दमे। उत प्रचेतसो मदे
हे सुन्दर दान में परायण और महातेजस्वी मरुतों! आप लोग यज्ञ मण्डप में मदकर सोमरस पीने पर उत्तम ज्ञान से युक्त हो जाते हैं।[ऋग्वेद 8.7.12]
Hey graceful-beautiful, inclined to donations, highly radiant-aurous Marud Gan! You become enlightened in the Yagy Shala by drinking Somras.
आ नो रयिं मदच्युतं पुरुक्षु विश्वधायसम्। इयर्ता मरुतो दिवः
हे मरुतों! स्वर्ग से हमारे लिए मदस्त्रावी, बहुनिवासदाता और सबका भरण करने में समर्थ धन ले आवें।[ऋग्वेद 8.7.13]
Hey Marud Gan! Bring to us wealth from the heavens, which can flow-liberate Somras, grant-provide us residence and support all.(31.03.2024ausE)
अधीव यद्गिरीणां यामं शुभ्रा अचिध्वम्। सुवानैर्मन्दध्व इन्दुभिः
हे शुभ्र मरुतों! जिस समय आप लोग पर्वत के ऊपर अपना रथ ले जाते हैं, उस समय अभिषुत सोमरस के बल से आनन्दित होते हैं।[ऋग्वेद 8.7.14]
शुभ्र :: श्वेत, सफ़ेद, उज्ज्वल; white, fair, bright.
Hey fair coloured Marud Gan! When you take your charoite over the mountains you enjoy extracted Somras.
एतावतश्चिदेषां सुम्नं भिक्षेत मर्त्यः। अदाभ्यस्य मन्मभिः
स्तोता स्तोत्रों के द्वारा अहिंसनीय मरुतों के पास अपने श्रेष्ठ सुख के लिए याचना करते है।[ऋग्वेद 8.7.15]
The Stota-worshiper pray to non violent Marud Gan for excellent comforts-pleasure with Stot-chants, sacred hymns. 
द्रप्साइव रोदसी धमन्त्यनु वृष्टिभिः। उत्सं दुहन्तो अक्षितम्
ये मरुद्गण अक्षीण मेघ का दोहन करते हुए जलबिन्दु के सदृश वर्षा द्वारा द्यावा-पृथ्वी को भली-भाँति व्याप्त करते हैं।[ऋग्वेद 8.7.16]
अक्षीण :: अटूट, निरंतर, अक्षीण, स्थायी, स्थिर, दृढ़, अटूट, अक्षय, अक्षीण, सदा भरपूर होनेवाला; impaired, unabated, unceasing.
These Marud Gan extract the unceasing clouds covering-pervading the heavens & earth thoroughly.
उदु स्वानेभिरीरत उद्रथैरुदु वायुभिः। उत्स्तोमैः पृश्निमातरः
पृश्नि के पुत्र मरुद्गण शब्द करते हुए ऊपर जाते हैं। रथ द्वारा, वायु द्वारा और मन्त्र द्वारा ऊपर जाते हैं।[ऋग्वेद 8.7.17]
Sons of Prashni goes up making noise. They lift up through charoite, air and Mantr Shakti.
येनाव तुर्वशं यदुं येन कण्वं धनस्पृतम्। राये सु तस्य धीमहि
जिस रक्षण के द्वारा यदु और तुर्वश की आप लोगों ने रक्षा की और जिसके धनाभिलाषी कण्व ऋषि की रक्षा की, धन के लिए हम उनका ही ध्यान करते हैं।[ऋग्वेद 8.7.18] 
We concentrate-meditate over that protection with which you protected Yadu, Turwash & Kavy who desired wealth.
इमा उ वः सुदानवो घृतं न पिष्युषीरिषः। वर्धान्काण्वस्य मन्मभिः
हे उत्तम दान देने वाले मरुतों! घृत के सदृश शरीर को पुष्ट करने वाले इस अन्न को कण्व गोत्रोत्पन्न मननीय स्तोत्रों द्वारा आप समृद्धवान् होवें।[ऋग्वेद 8.7.19] 
Hey donors of best wealth Marud Gan! You should become prosperous by the nourishing grains like the Ghee, of Kavy clan's meditating Strotrs. 
क्व नूनं सुदानवो मदथा वृक्तबर्हिषः। ब्रह्मा को वः सपर्यति
हे मरुतों! आप दान परायण हैं। आपके लिए कुश काटे गये हैं। इस समय आप लोग कहाँ आनन्दित हो रहे हैं? वह कौन ब्राह्मण आपकी सेवा करता है?[ऋग्वेद 8.7.20]
Hey Marud Gan you are inclined-dedicated to donations. Kush (grass) has been cut for you. Where are you enjoying? Who is the Brahman who serve you?
नहि ष्म यद्ध वः पुरा स्तोमेभिर्वृक्तबर्हिषः। शध्राँ ऋतस्य जिन्वथ
हे प्रवृत्त यज्ञ मरुतों! आप लोग जो पूर्व में ही दूसरों के द्वारा किये गये स्तोत्रों से यज्ञ सम्बन्धी अपने बलों में वृद्धि करें, यह ठीक नहीं है।[ऋग्वेद 8.7.21]
Hey Marud Gan inclined to Yagy! Its not good to boost your strength by virtue of the Strotr related to the Yagy preformed by others in the past.
समु त्ये महतीरपः सं क्षोणी समु सूर्यम्। सं वज्र पर्वशो दधुः
उन मरुतों ने औषधियों के साथ जल को मिलाया, द्यावा-पृथ्वी को उनके स्थानों पर अवस्थित किया और सूर्य को स्थापित किया। उन्होंने वृत्रासुर के प्रत्येक अङ्ग को काटने के लिए वज्र को धारण किया।[ऋग्वेद 8.7.22]
The Marud Gan added medicines with water, established the heavens-earth in their places in addition to the Sun-Sury Dev. They wielded Vajr to cut every organ of Vratra Sur.
वि वृत्रं पर्वशो ययुर्वि पर्वताँ अराजिनः। चक्राणा वृष्णि पौंस्यम्
शक्तिशाली और वीर्य के समान बल बढ़ाने वाले मरुद्गणों ने पर्वत की तरह वृत्रासुर को टुकड़े-टुकड़े कर दिया।[ऋग्वेद 8.7.23]
Mighty and growing like the sperms Marud Gan chopped Vratra Sur like the mountains. 
अनु त्रितस्य युध्यतः शुष्ममावन्नुत क्रतुम्। अन्विन्द्रं वृत्रतूर्ये
मरुद्रण ने योद्धा त्रित के बल की और त्रित के कर्म की रक्षा की और वृत्रवध में इन्द्र देवता की सहायता की।[ऋग्वेद 8.7.24]
Marud Gan helped in boosting warrior Trit's strength and duties and helped Dev Raj Indr in killing Vratra Sur.
विद्युद्धस्ता अभिद्यवः शिप्राः शीर्षन्हिरण्ययीः। शुभ्रा व्यञ्जत श्रिये
आयुध हस्त, दीप्तिमान् और शोभन मरुद्गणों ने शोभा के लिए मस्तक पर सोने का शिरस्त्राण (शिप्र) धारण करते हैं।[ऋग्वेद 8.7.25]
Weapon wielding, radiant and gracious Marud Gan wear golden head gear over their heads.(01.04.2024ausM)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (8) :: ऋषि :- सध्वंस काण्व, देवता :- अश्विनी कुमार; छन्द :- अनुष्टुप्।
आ नो विश्वाभिरूतिभिरश्विना गच्छतं युवम्।
दस्त्रा हिरण्यवर्तनी पिबतं सोम्यं मधु
हे अश्विनी कुमारों! आप लोग दर्शनीय हैं। आपका रथ सुवर्ण का है। समस्त रक्षण साधनों के साथ आगमन करें और सोममय मधु का पान करें।[ऋग्वेद 8.8.1]
Hey Ashwani Kumars! You are gracious. Your chaoite is made of gold. Come with all means of protection and drink Somras mixed with honey.
आ नूनं यातमश्विना रथेन सूर्यत्वचा। भुजी हिरण्यपेशसा कवी गम्भीर-चेतसा
हे अश्विनी कुमारों! आप लोग भोक्ता हैं, हिरण्मय शरीर वाले हैं, क्रान्त कर्मा हैं और प्रशस्त ज्ञान वाले हैं। सूर्य देव के समान कान्ति वाले रथ पर चढ़कर अवश्य हमारे पास पधारें।[ऋग्वेद 8.8.2]
भोक्ता :: भोग करने वाला; enjoyer.
क्रांत :: जिसे कोई वस्तु ऊपर से आकार छेंके हो, जिसे कोई वस्तु ऊपर से छोपे हो, दबा या ढका हुआ, जिस पर आक्रमण हुआ हो, ग्रस्त, आगे बढा हुआ, अतीत, करना, होना, गत, गया हुआ, घोड़ा, पैर, कदम, डग, जाना, गमन, चलना, किसी ग्रह के साथ चंद्र का योग होना।
Hey enlightened Ashwani Kumars! You are enjoyer, having bodies of golden hue. You perform round the clock. Come to us riding the charoite with the hue of Sury Dev.
आ यातं नहुषस्पर्यान्तरिक्षात् सुवृक्तिभिः। पिबाथो अश्विना मधु कण्वानां सवने सुतम्
हे अश्विनी कुमारों! निर्दोष स्तुति द्वारा अन्तरिक्ष से मनुष्य लोक की ओर आवें और कण्व वंशीयों के यज्ञ में अभिषुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 8.8.3]
Hey Ashwani Kumars! Respond to the defect less prayers and come to the abode of humans. Drink the Somras extracted by the descendants  of Kavy clan.
आ नो यातं दिवस्पर्यान्तरिक्षादधप्रिया। पुत्रः कण्वस्य वामिह सुषाव सोम्यं मधु
कण्व ऋषि के पुत्र इस यज्ञ में आपके लिए सोममय मधु का अभिषव करते हैं; इसलिए हे अश्विनी कुमारों! इस लोक के प्रति प्रसन्न होकर आप लोग द्युलोक और अन्तरिक्ष से पधारें।[ऋग्वेद 8.8.4]
Hey Ashwani Kumars! Sons of Kavy Rishi extract Somras in this Yagy for you, hence become happy with this abode and descend to earth from the heavens and space.
आ नो यातमुपश्रुत्यश्विना सोमपीतये। स्वाहां स्तोमस्य वर्धना प्र कवी धीतिभिर्नरा
हे अश्विनी कुमारों! सोमरस का पान करने के लिए हमारे स्तुति वाले इस यज्ञ में आवें। हे वर्द्धक, कवि और नेता अश्विनी कुमारों! अपनी बुद्धि और कर्म से स्तोता को समृद्धशाली बनावें।[ऋग्वेद 8.8.5]
Hey Ashwani Kumars! Respond to our Stuti-prayers & come to our Yagy. Hey progressive, poet and lords make the Stota prosperous with your intelligence and endeavours.
यच्चिद्धि वां पुर ऋषयो जुहूरेऽवसे नरा। आ यातमश्विना गतमुपेमां सुष्टुतिं मम
हे अश्विनी कुमारों! प्राचीन समय में ऋषियों ने जब आपको रक्षा के लिए बुलाया, तब आप आए। इसलिए मेरी इस सुन्दर स्तुति करने पर पुनः पधारें।[ऋग्वेद 8.8.6]
Hey Ashwani Kumars! You responded to the prayers of the Rishis for protection. Respond to my beautiful composition and oblige by invoking here.
दिवश्चिद्रोचनादध्या नो गन्तं स्वर्विदा। धीभिर्वत्सप्रचेतसा स्तोमेभिर्हवनश्रुता
हे सूर्य के ज्ञाता अश्विनी कुमारों! आप लोग द्युलोक और अन्तरिक्ष से हमारे पास आवें। हे स्तोता के प्रति प्रकृष्ट ज्ञान वाले अश्विद्वय! बुद्धि के साथ आप आवें। आह्वान सुनने वाले, हे अश्विनी कुमारों! स्तोत्र के साथ आप पधारें।[ऋग्वेद 8.8.7]
Hey Ashwani Kumars, knowledged about the Sun. Come to us from the heavens and the space. You possess extreme knowledge about the Stota. Respond to our Strotr, invocation. 
किमन्ये पर्यासतेऽस्मत्स्तोमेभिरश्विना। पुत्रः कण्वस्य वामृषिर्गीर्भिर्वत्सो अवीवृधत्॥
मुझ से अतिरिक्त दूसरा कौन स्तोत्र द्वारा अश्विनी कुमारों की उपासना कर सकता है? कण्व के पुत्र वत्स ऋषि स्तुति द्वारा आपको समृद्ध करते हैं।[ऋग्वेद 8.8.8]
Who else other than me can worship Ashwani Kumars? Vats, son of Kavy Rishi enrich-prosper you with his prayers-Stuti.
आ वां विप्र इहावसेऽह्वत्स्तोमेभिरश्विना। अरिप्रा वृत्रहन्तमा ता नो भूतं मयोभुवा
हे अश्विनी कुमारों! इस यज्ञ में स्तोता (विप्र) ने रक्षण के लिए स्तुति द्वारा आपको बुलाया। हे निष्पाप और शत्रु घातकों में श्रेष्ठ अश्विनी कुमारों! आप हमारे लिए सुखदाता होवें।[ऋग्वेद 8.8.9]
 Hey Ashwani Kumars! The Brahman-Stota has invited you in this Yagy with his Stuti. Hey sinless and slayer of the enemies Ashwani Kumars! You should grant us pleasure-comforts.
आ यद्वां योषणा रथमतिष्ठद्वाजिनीवसू। विश्वान्यश्विना युवं प्र धीतान्य गच्छतम्
हे धन और अन्न से युक्त अश्विनी कुमारों! योषित् (सूर्या) आपके रथ पर आरूढ़ हुईं। हे अश्विनी कुमारों! आप लोग समस्त अभिलषित पदार्थ प्राप्त करें।[ऋग्वेद 8.8.10]
योषित् :: नारी, स्त्री; woman.
Hey Ashwani Kumars, possessing wealth & food grains! Surya-woman rode your charoite. Attain all desired commodities.(02.04.2024ausM)
अतः सहस्रनिर्णिजा रथेना यातमश्विना। वत्सो वां मधुमद्वचोऽशंसीत्काव्यः कविः
हे अश्विनी कुमारों! आप लोग जिन लोकों में हों, वहाँ से अनेक रूपों वाले रथ पर आरूढ़ होकर आवें। काव्य और कवि वत्स ऋषि ने मधुमय वाणी में स्तोत्र का गान किया।[ऋग्वेद 8.8.11]
Hey Ashwani Kumars! Where ever (in any abode) you are, come riding the charoite having various colours. Kavy & Kavi Vats Rishi recited Strotr in sweet voice.
पुरुमन्द्रा पुरूवसू मनोतरा रयीणाम्। स्तोमं मे अश्विनाविममभि वह्नी अनूषाताम्
हे बहुमद युक्त धनदाता और जगद्वाहक अश्विनी कुमारों! मेरे इस स्तोत्र की प्रशंसा करें।[ऋग्वेद 8.8.12]
Hey Ashwani Kumars possessing pride of many orders-many fields and supporter of the universe! Appreciate-respond to my Strotr.
आ नो विश्वान्यश्विना धत्तं राधांस्यहृया। कृतं न ऋत्वियावतो मा नो रीरधतं निदे
हे अश्विनी कुमारों! हमारे लिए अलज्जाकारक समस्त धन प्रदान करें। हमें प्रजोत्पादनरूप कर्म वाला करें। हमें निन्दकों के वशीभूत न करें।[ऋग्वेद 8.8.13]
Hey Ashwani Kumars! Grant us such wealth which do not bring shame to us. Grant-help us in such endeavours which can help us in the upliftment of the populace.
यन्नासत्या परावति यद्वा स्थो अध्यम्बरे। अतः सहस्त्रनिर्णिजा रथेना यातमश्विना
हे सत्य स्वभाव वाले अश्विनी कुमारों! आप चाहे दूर रहें अथवा पास में रहें, चाहे जिस स्थान में रहें, हजारों रूपों वाले रथ से आप आगमन करें।[ऋग्वेद 8.8.14]
Hey truthful Ashwani Kumars! Whether far of near, come riding your charoite having thousands of shapes & sizes.
यो वां नासत्यावृषिर्गीर्भिर्वत्सो अवीवृधत्। तस्मै सहस्त्रनिर्णिजमिषं धत्तं घृतश्श्रुतम्
हे नासत्यद्वय! जिन वत्स ऋषि ने स्तुति द्वारा आपको वर्द्धित किया, उनको हजारों रूपों में ऐश्वर्यवान् बनाएँ।[ऋग्वेद 8.8.15]
प्रास्मा ऊर्ज घृतश्चतमश्विना यच्छतं युवम्। यो वां सुम्नाय तुष्टवद्वसू याद्दानुनस्पती
हे अश्विनी कुमारों! उन स्तोता के लिए आप घृत धारा से युक्त और बलिष्ठ अन्न प्रदान करें। हे दानाधिपतियों! इन्होंने आप लोगों के सुख के लिए स्तुति की। यह अपने लिए धन की इच्छा करते हैं।[ऋग्वेद 8.8.16]
Hey Ashwani Kumars! Grant Ghee and food grains to the Stotas. Hey lord of donors! These people worshiped you for comforts-pleasure. They expect money from you.
आ नो गन्तं रिशादसेमं स्तोमं पुरुभुजा। कृतं नः सुश्रियो नरेमा दातमभिष्टये
हे रिपु भक्षक और बहुत हवि के खाने वाले अश्विनी कुमारों! आप लोग हमारी स्तुति की ओर आएँ और हमें शोभन सम्पदा से युक्त करें तथा पार्थिव पदार्थों को प्रदान करने के लिए पधारें।[ऋग्वेद 8.8.17]
Hey enemy eater and eater of lots of offerings Ashwani Kumars! Come-respond to our Stuti and grant us various kinds of wealth constituting of gracious and material goods.
आ वां विश्वाभिरूतिभिः प्रियमेधा अहूषत। राजन्तावध्वराणामश्विना यामहूतिषु
प्रियमेध नामक ऋषि ने देवताओं के आह्वान के समय आपको सभी संरक्षणों के साथ बुलाया, तब आप लोग यज्ञ में शोभायुक्त हुए।[ऋग्वेद 8.8.18]
When Priymedh Rishi invoked you while invoking demigods-deities with all sorts of protection means you too joined it, graced the opportunity.
आ नो गन्तं मयोभुवाश्विना शंभुवा युवम्। यो वां विपन्यू धीतिभिर्गीर्भिर्वत्सो अवीवृधत्
हे सुखदाता, आरोग्यप्रद और स्तुति योग्य अश्विनी कुमारों! जिन वत्स ऋषि ने स्तुति द्वारा आपको वर्द्धित किया, उनके समक्ष पधारें।[ऋग्वेद 8.8.19]
Hey worshipable Ashwani Kumars, granting comforts-pleasure, good health! Invoke in front of Vats Rishi, who boosted you through his Stuti.
याभिः कण्वं मेधातिथिं याभिर्वशं दशव्रजम्। याभिर्गोशर्यमावतं ताभिर्नोऽवतं नरा
जिन रक्षा-साधनों से आपने कण्व, मेघातिथि, वश, दशव्रज और गोशर्य की आपने रक्षा की, हे अश्विनी कुमारों! उन्हीं साधनों से हमारी भी रक्षा करें।[ऋग्वेद 8.8.20]
Hey Ashwani Kumars! Protect us with those protection means with which you protected Kavy, Meghatithi, Vash, Dashvraj and Goshary.
याभिर्नरा त्रसदस्युमावतं कृत्व्ये धने। ताभिः ष्व १ स्माँ अश्विना प्रावतं वाजसातये
हे अश्विनी कुमारों! जिन रक्षणों से प्राप्तव्य धन के लिए आपने त्रसदस्यु की रक्षा की, उन्हीं साधनों के द्वारा हमारे अन्न लाभ के लिए भली-भाँति हमारी भी रक्षा करें।[ऋग्वेद 8.8.21]
Hey Ashwani Kumars! Protect us for gaining food grains, with such means with which you protected Trasdasyu for wealth. 
प्र वां स्तोमाः सुवृक्तयो गिरो वर्धन्त्वश्विना। पुरुत्रा वृत्रहन्तमा ता नो भूतं पुरुस्पृहा
हे बहुरक्षक और शत्रुनाशकों में श्रेष्ठ अश्विनी कुमारों! दोष रहित स्तोत्र और वाक्य आप दोनों को समृद्ध करें। हमारे लिए आप लोग वांछनीय धन प्रदान करने वाले हैं।[ऋग्वेद 8.8.22]
Best amongest the several protectors and destroyer of enemies, hey Ashwani Kumars! Make us prosperous with defect free Strotr and sentences. Grant us desirable wealth.
त्रीणि पदान्यश्विनोराविः सान्ति गुहा परः। कवी ऋतस्य पत्मभिरर्वाग्जी-वेभ्यस्परि
अश्विनी कुमारों का तीन चक्रों वाला रथ अदृश्य (गुहा में) रहकर पीछे प्रकट होता है। हे क्रान्तदर्शी अश्विनी कुमारों! यज्ञ के कारणभूत रथ के द्वारा आप हमारे समक्ष प्रकट होवें।[ऋग्वेद 8.8.23]
क्रान्तदर्शी :: extraordinary, omniscient, adept, timely.
Three wheeled charoite of Ashwani Kumars appears from the cave. Hey omniscient Ashwani Kumars! Invoke before us, riding the charoite to the Yagy.(02.04.2024ausE)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (9) :: ऋषि :- शशकर्ण काण्व; देवता :- अश्विनी कुमार; छन्द :- अनुष्टुप्, बृहती, गायत्री, ककुप्, त्रिष्टुप्, विराट्, जगती।
आ नूनमश्विना युवं वत्सस्य गन्तमवसे।
प्रास्मै यच्छतमवृकं पृथु च्छर्दिर्युयुतं या अरातयः॥
हे अश्विनी कुमारों! वत्स ऋषि की रक्षा के लिए आप लोग अवश्य पधारें। इन ऋषि को बाधा रहित और विस्तीर्ण गृह प्रदान करें। उनके शत्रुओं को दूर भगावें।[ऋग्वेद 8.9.1]
Hey Ashwani Kumars! Come to protect Vats Rishi. Grant him  a large house free from troubles-obstructions. Repel his enemies.
यदन्तरिक्षे यद्दिवि यत्पञ्च मानुषाँ अनु। नृम्णं तद्धत्तमश्विना
हे अश्विनी कुमारों! जो धन अन्तरिक्ष और स्वर्ग में उपलब्ध रहता है और जो पञ्च श्रेणी में है, वही धन हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.9.2]
Hey Ashwani Kumars! Grant us that wealth which is available in the heavens and space, under five categories.
ये वां दंसांस्यश्विना विप्रासः परिमामृशुः। एवेत्काण्वस्य बोधतम्॥
हे अश्विनी कुमारों! जिन विप्र (मेधावी स्तोता) ने आप लोगों के कर्मों (सेवाओं) का बार-बार अनुष्ठान किया, आप उनकी रक्षा करें।[ऋग्वेद 8.9.3]
Hey Ashwani Kumars! Protect those Brahmans, who repeatedly carried out the five services-endeavours pertaining to you and protect them.
अयं वां घर्मो अश्विना स्तोमेन परि षिच्यते।
अयं सोमो मधुमान्वाजिनीवसू येन वृत्रं चिकेतथः
हे अश्विनी कुमारों! आपका धर्म स्तोत्र द्वारा सिंचित किया जाता है। हे अन्न और धन वाले अश्विनीकुमारों! जिस सोम के द्वारा आपने देख लिया, यही वह मधुर सोमरस है।[ऋग्वेद 8.9.4]
Hey Ashwani Kumars! Your duties are nursed-nurtured through Strotr. Hey Ashwani Kumars, possessors of food grains and wealth! The Som seen by is Somras.
यदप्सु यद्वनस्पतौ यदोषधीषु पुरुदंससा कृतम्। तेन माविष्टमश्विना॥
हे विविध कर्मा अश्विनी कुमारों! जल, वनस्पति और औषधियों (लतादि) को आपने रक्षित किया, उसी बल द्वारा हमारी भी रक्षा करें।[ऋग्वेद 8.9.5]
Hey Ashwani Kumars, performers of various deeds! The power-strength with which you protected water, vegetation and medicinal plants, herbs, creepers and vines; protect us as well with that might.
यन्नासत्या भुरण्यथो यद्वा देव भिषज्यथः।
अयं वां वत्सो मतिभिर्न विन्धते हविष्मन्तं हि गच्छथः
हे सत्य स्वभाव वाले अश्विनी कुमारों! आप लोगों ने जगत् का पालन किया और सभी को नीरोगी बनाया। स्तुति से वत्स ऋषि आपको नहीं प्राप्त करते। आप लोग हवि वालों के पास जाते हैं।[ऋग्वेद 8.9.6]
Hey truthful Ashwani Kumars! You supported the whole world and made every one healthy. Vats Rishi does not attain you through Stuti-prayers. You visit those who make offerings.
आ नूनमश्विनोर्ऋषिः स्तोमं चिकेत वामया।
आ सोमं मधुमत्तमं घर्मं सिञ्चादथर्वणि
वत्स ऋषि ने उत्तम बुद्धि के द्वारा अश्विनी कुमारों के स्तोत्र को जाना। वत्स ने अतीव मधुर सोम और धर्म (हविर्विशेष) को अथर्वा द्वारा मथित अग्नि में समर्पित किया।[ऋग्वेद 8.9.7]
Vats Rishi identified Ashwani Kumars with his excellent intelligence. Vats offered very sweet Som and special offerings-termed as Dharm in fire, obtained by rubbing-churning.
आ नूनं रघुवर्तनिं रथं तिष्ठाथो अश्विना। आ वां स्तोमा इमे मम नभो न चुच्यवीरत
हे अश्विनी कुमारों! आप लोग शीघ्रगामी रथ पर आरूढ़ होते हैं। मेरे ये स्तोत्र सूर्यदेव की तरह तेजस्वी होकर आपके सामने जाते हैं।[ऋग्वेद 8.9.8]
Hey Ashwani Kumars! You ride the fast moving charoite. My Strotr become penetrating, aurous like Sury Dev and comes before you. 
यदद्य वां नासत्योक्थैराचुच्युवीमहि। यद्वा वाणीभिरश्विनेवेत्काण्वस्य बोधतम्
हे सत्य स्वभाव वाले अश्विनी कुमारों! आज मन्त्रों द्वारा आपको हम जिस प्रकार ले आते हैं और जिस प्रकार वाणी (स्तोत्र) के द्वारा आपको हम ले आते हैं, उसी प्रकार कण्व पुत्र के स्तोत्रों को जानें।[ऋग्वेद 8.9.9]
Hey truthful Ashwani Kumars! The manner in which we invoke you by our Mantr-chants and recitation of Strotr-sacred hymns, similarly you should know-respond to the Strotrs by the son of Kavy.
यद्वां कक्षीवाँ उत यद्वयश्व ऋषिर्यद्वां दीर्घतमा जुहाव।
पृथी यद्वां वैन्यः सादनेष्वेवेदतो अश्विना चेतयेथाम्॥
हे अश्विनी कुमारों! कक्षीवान् ऋषि ने जिस प्रकार आप दोनों का आवाहन किया और जिस प्रकार व्यश्व तथा दीर्घतमा ऋषियों ने एवं वेन राजा के पुत्र पृथी ने जिस प्रकार यज्ञ गृह में आपका आवाहन किया, उसी प्रकार मैं आपकी स्तुति करता हूँ, मेरे इस स्तोत्र को जाने।[ऋग्वेद 8.9.10]
Hey Ashwani Kumars! The way Kakshiwan Rishi, Vyshrav & Deerghtama Rishis invoked you, king Ven's son Prathu invoked you in his Yagy, I too worship you. Respond to my Strotr.
यातं छर्दिष्या उत नः परस्पा भूतं जगत्या उत नस्तनूपा। वर्तिस्तोकाय तनयाय यातम्
हे अश्विनी कुमारों! आप लोग गृहपालक होकर पधारें। आप लोग अतीव पोषक है। आप संसार और शरीर के पालक बनें। पुत्र और पौत्र के गृह में कल्याण के लिए पधारे।आपका आवाहन किया, उसी प्रकार मैं आपकी स्तुति करता हूँ, मेरे इस स्तोत्र को जाने।[ऋग्वेद 8.9.11]
Hey Ashwani Kumars! You should come as the supporter of the family. You are highly nursing-nurturing. Become the nurturer of the body and the world. Come to the house of my son and grand son for their welfare. The way I invoked you, I worship you with that Stuti-prayer. Respond to my Strotr.
यदिन्द्रेण सरथं याथो अश्विना यद्वा वायुना भवथः समोकसा।
यदादित्येभिर्ऋभुभिः सजोषसा यद्वा विष्णोर्विक्रमणेषु तिष्ठथः 
हे अश्विनी कुमारों! यदि आप लोग इन्द्र देव के साथ एक रथ पर जाते हैं, यदि वायु के साथ एक स्थान वासी है, यदि अदिति के पुत्र ऋतु आदि के साथ प्रसन्न हैं और यदि श्री विष्णु के पादक्षेप के साथ तीनों लोकों में विराजते हैं, तो हमारे समक्ष पधारें। आपका आवाहन किया, उसी प्रकार मैं आपकी स्तुति करता हूँ, मेरे इस स्तोत्र को जाने।[ऋग्वेद 8.9.12]
Hey Ashwani Kumars! If you travel with Indr Dev in the same charoite, live together with Vayu Dev, happy with Aditi's son Ritu, appear with the foot of Bhagwan Shri Hari Vishnu in the three abodes, then invoke in front of us. I am invoking you with that Stuti, respond to my Strotr.(03.04.24ausE)
यदद्याश्विनावहं हुवेय वाजसातये। यत्पृत्सु तुर्वणे सहस्तच्छ्रेष्ठमश्विनोरवः 
जिस समय मैं संग्राम के लिए अश्विनी कुमारों का आवाहन करता हूँ, उस समय वे पधारें। शत्रुओं को मारने में इनका का जो विजयी-रक्षण है, वही श्रेष्ठ है। आपका आवाहन किया, उसी प्रकार मैं आपकी स्तुति करता हूँ, मेरे इस स्तोत्र को जाने।[ऋग्वेद 8.9.13]
When ever I invoke Ashwani Kumars in the war, they should come. Their safety means involving killing of the enemies is superb. I have invoked you and I am worshiping you. Recognise my Strotr.
आ नूनं यातमश्विनेमा हव्यानि वां हिता।
इमे सोमासो अधि तुर्वशे यदाविमे कण्वेषु वामथ
हे अश्विनी कुमारों! ये हव्य आपके लिए ही बनाये गये हैं। आप लोग अवश्य पधारें। यह सोमरस तुर्वश और यदु में वर्तमान है। यह आपके लिए प्रस्तुत है और कण्वपुत्रों को भी यही दिया गया था। आपका आवाहन किया, उसी प्रकार मैं आपकी स्तुति करता हूँ, मेरे इस स्तोत्र को जाने।[ऋग्वेद 8.9.14]
Hey Ashwani Kumars! These oblation-offerings are meant for you. This Somras is common between Turvash and Yadu. Its presented to you. It was offered to Kavy's sons as well. I have invoked you and I am worshiping you. Recognise my Strotr.
यन्नासत्या पराके अर्वाक अस्ति भेषजम्।
तेन नूनं विमदाय प्रचेतसा छर्दिर्वत्साय यच्छतम्
हे नासत्य (सत्य स्वभाव) अश्विनी कुमारों! दूर अथवा निकट में जो औषधियाँ है, उसके साथ, हे प्रकृष्ट ज्ञान वाले अश्विनी कुमारों! विमद के समान वत्स ऋषि को भी प्रदान करें। आपका आवाहन किया, उसी प्रकार मैं आपकी स्तुति करता हूँ, मेरे इस स्तोत्र को जाने।[ऋग्वेद 8.9.15]
Hey Nasaty-truthful duo, Ashwani Kumars! Aware of far or near medicines, hey enlightened Ashwani Kumars! Grant this knowledge to Vatsy Rishi like Vimad as well. I have invoked you and I am worshiping you. Recognise my Strotr.
अभुत्स्यु प्र देव्या साकं वाचाहमश्विनोः। व्यावर्देव्या मतिं वि रातिं मत्र्येभ्यः
हे अश्विनी कुमारों! सम्बन्धी और प्रकाशमान स्तोत्र के साथ मैं जागृत हुआ हूँ। हे प्रकाशमान देवी उषा! मेरी स्तुति से अन्धकार दूर करके मनुष्यों को धन प्रदान करें। आपका आवाहन किया, उसी प्रकार मैं आपकी स्तुति करता हूँ, मेरे इस स्तोत्र को जाने।[ऋग्वेद 8.9.16]
Hey Ashwani Kumars! I awake with the related and illuminated Strotr. Hey luminous Usha Devi! I have invoked you and I am worshiping you. Recognise my Strotr.
प्र बोधयोषो अश्विना प्र देवि सूनृते महि। प्र यज्ञहोतरानुषक्प्र मदाय श्रवो बृहत्
हे उज्ज्वल प्रकाश वाली देवी उषा! आप अश्विनीकुमारों को प्रेरित करें। हे याजकों! आप हर्षित करने वाला हव्य अश्विनी कुमारों को प्रदान करें।आपका आवाहन किया, उसी प्रकार मैं आपकी स्तुति करता हूँ, मेरे इस स्तोत्र को जाने।[ऋग्वेद 8.9.17]
Hey Usha Devi with the brilliant light! Inspire Ashwani Kumars. Hey Ritviz! Provide oblations-offerings to Ashwani Kumars which can please them-make them happy. I have invoked you and I am worshiping you. Recognise my Strotr.
यदुषो यासि भानुना सं सूर्येण रोचसे। आ हायमश्विनो रथो वर्तिर्याति नृपाय्यम्
हे देवी उषा! जिस समय आप दीप्ति के साथ जाती है, उस समय सूर्य देव के समान शोभा पाती हैं। उस समय अश्विनी कुमारों का यह रथ मनुष्यों के पोषणीय यज्ञगृह में प्रवेश करता है।[ऋग्वेद 8.9.18]
Hey Devi Usha! When ever you move with aura, your grandeur matches Sury Dev. At that moment the charoite of Ashwani Kumars enter the nutritious Yagy place of the humans.
यदापीतासो अंशवो गावो न दुह्र ऊधभिः। यद्वा वाणीरनूषत प्र देवयन्तो अश्विना
जिस समय पीतवर्ण सोमलता को गौ के स्तन की तरह दूहा जाता है और जिस समय देवत्व की कामना करने वाले आपकी स्तुति करते हैं, उस समय, हे अश्विनी कुमारों! आप हमारी रक्षा करें। आपका आवाहन किया, उसी प्रकार मैं आपकी स्तुति करता हूँ, मेरे इस स्तोत्र को जाने।[ऋग्वेद 8.9.19]
When yellow coloured Som Lata is extracted like a cow, you are worshiped by the desirous of divinity, at that moment, hey Ashwani Kumars! Protect us. I have invoked you and I am worshiping you. Recognise my Strotr.
प्र द्युम्नाय प्र शवसे प्र नृषाह्याय शर्मणे। प्र दक्षाय प्रचेतसा
हे प्रकृष्ट ज्ञान वाले अश्विनी कुमारों! आप लोग धन के लिए हमारी रक्षा करें। मनुष्यों के उपभोग्य सुख के लिए तथा समृद्धि के लिए हमारी रक्षा करें।आपका आवाहन किया, उसी प्रकार मैं आपकी स्तुति करता हूँ, मेरे इस स्तोत्र को जाने।[ऋग्वेद 8.9.20]
Hey enlightened Ashwani Kumars! Protect us for the wealth. Protect us for pleasure and growth. I have invoked you and I am worshiping you. Recognise my Strotr.
यन्नूनं धीभिरश्विना पितुर्योना निषीदथः। यद्वा सुम्नेभिरुक्थ्या॥
हे अश्विनी कुमारों! यदि आप लोग पितृ तुल्य द्युलोक की गोद में कर्म के साथ बैठे हैं और यदि प्रशंसनीय होकर सुख के साथ निवास करते हैं, तो हमारे समक्ष आवें।[ऋग्वेद 8.9.21]
Hey Ashwani Kumars! You are occupying the lap of heavens which is like father. If you reside with appreciable pleasure-comforts, invoke before us.(04.04,02024ausM)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (10) :: ऋषि :- प्रगाथ काण्व; देवता :- अश्विनी कुमार;  छन्द :- बृहती, अनुष्टुप्, पंक्ति।
यत्स्थो दीर्घप्रसद्मनि यद्वादो रोचने दिवः।
यद्वा समुद्रे अध्याकृते गृहेऽत आ यातमश्विना
हे अश्विनी कुमारों! जिस लोक में प्रशस्त यज्ञ गृह है, यदि उस लोक में रहते हों, यदि उस द्युलोक के दीप्तिमान् प्रदेश में रहते हों और यदि अन्तरिक्ष में निर्मितगृह में निवास करते हों, तो इन सब स्थानों से हमारे निकट अवश्य पधारें।[ऋग्वेद 8.10.1]
प्रशस्त :: प्रशंसा किया हुआ, प्रशंसा योग्य; appreciable, expansive, smashing.
Hey Ashwani Kumars! If you are present in abode which has an appreciable Yagy Grah (house, site, Kund), you live in that area of radiant heavens and if you lie in a house built in the space, then come to us from all these places.
यद्वा यज्ञं मनवे संमिमिक्षथुरेवेत्काण्वस्य बोधतम्।
बृहस्पतिं विश्वान्देवाँ अहं हुव इन्द्राविष्णू अश्विनावाशुहेषसा
हे अश्विनी कुमारों! आप लोगों ने जिस प्रकार मनु के लिए यज्ञ को सिंचित किया, उसी प्रकार कण्व पुत्र के यज्ञ को जानें। मैं बृहस्पति सहित समस्त देवताओं, इन्द्र देव, श्री विष्णु और शीघ्रगामी अश्वों वाले अश्विनी कुमारों का आवाहन करता हूँ।[ऋग्वेद 8.10.2]
Hey Ashwani Kumars! The way you nourished-supported the Yagy by Manu, the same way you should consider-support the Yagy by the son of Kavy. I invoke all deities-demigods along with Dev Guru Brahaspati, Indr Dev, Bhagwan Shri Hari Vishnu and Ashwani Kumars possessing fast running horses.
त्या न्व १ श्विना हुवे सुदंससा गृभे कृता। ययोरस्ति प्र णः सख्यं देवेष्वध्याप्यम्
दोनों अश्विनी कुमार शोभनकर्ता है। वे हमारे आहुतियों को स्वीकार करने के लिए प्रकट हुए हैं। मैं उनका आवाहन करता हूँ। अश्विनी कुमारों की मित्रता देवताओं में उत्कृष्ट और सहज लभ्य है।[ऋग्वेद 8.10.3]
Both Ashwani Kumars have grandeur. They have appeared to accept our oblations. I invoke them. The friendship of Ashwani Kumars is excellent and easily available.
ययोरधि प्र यज्ञा असूरे सन्ति सूरयः।
ता यज्ञस्याध्वरस्य प्रचेतसा स्वधाभिर्या पिबतः सोम्यं मधु
जिन अश्विनी कुमारों के लिए ज्योतिष्टोमादि यज्ञ होते हैं और स्तोत्र रहित देश में भी जिनके स्तोता हैं, वे हिंसा रहित यज्ञ के प्रकृष्ट ज्ञाता हैं। वे स्वधा के साथ सोममय मधुरस का पान करें।[ऋग्वेद 8.10.4]
Ashwani Kumars for whom Yagy like Jyotishtom etc. are conducted and Stotas without Strotr are present at a place, they are appreciably aware of the non violent Yagy. They should drink Somras associated with Swadha.
यदद्याश्विनावपाग्यत्प्राक्स्थो वाजिनीवसू।
यद् द्रुह्यव्यनवि तुर्वशे यदौ हुवे वामथ मा गतम्
हे अन्न और धन वाले अश्विनी कुमारों! इस समय आप लोग पूर्व दिशा अथवा पश्चिम दिशा में हों या द्रुह्य, अनु, तुर्वश और यदु के पास हों, मैं आपका आवाहन करता हूँ, मेरे पास अवश्य पधारें।[ऋग्वेद 8.10.6]
Hey possessors of wealth and food grains, Ashwani Kumars! I invoke you irrespective of your presence either in the east of west or else you are with Druhy, Anu, Turvash and Yadu, you must come to me.
यदन्तरिक्षे पतथः पुरुभुजा यद्वेमे रोदसी अनु।
यद्वा स्वधाभिरधितिष्ठथो रथमत आ यातमश्विना
हे बहुत हवि का भक्षण करने वाले अश्विनी कुमारों! यदि अन्तरिक्ष में जा रहे हों, यदि दिव्य लोक और पृथ्वी लोक में जा रहे हों और अपने तेजोबल से रथ पर बैठ रहे हों, तब भी इन सभी स्थानों से हमारे पास पधारें।[ऋग्वेद 8.10.6]
Hey eaters of a lot of offerings, Ashwani Kumars! Where ever you go in the space, divine abodes, earth or you are riding your charoite with the power of your asceticism, still come to us from all these places.(04.04.2024ausE)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (11) :: ऋषि :- वत्स, काण्व; देवता :- अग्नि; छन्द :-गायत्री, त्रिष्टुप्।
त्वमग्ने व्रतपा असि देव आ मत्र्येष्वा। त्वं यज्ञेष्वीड्यः
हे अग्नि देव! मनुष्यों में आप कर्म रक्षक हैं, इसलिए यज्ञ में आप स्तुत्य हैं।[ऋग्वेद 8.11.1]
Hey Agni Dev! You are the protector of humans efforts; hence you deserve worship.
त्वमसि प्रशस्यो विदथेषु सहन्त्य। अग्ने रथीरध्वराणाम्
हे शत्रु पराजयकारी अग्नि देव! आप यज्ञ में प्रशस्य हैं और यज्ञों के स्वामी हैं।[ऋग्वेद 8.11.2]
Hey Agni Dev! You are the defeater of the enemy, appreciable in the Yagy and the lord of the Yagy.
स त्वमस्मदप द्विषो युयोधि जातवेदः। अदेवीरग्ने अरातीः
हे उत्पन्न पदार्थों के ज्ञाता अग्नि देव! हमारे शत्रुओं को हमसे अलग करें। शत्रु सैन्य को भी हमसे अलग करें।[ऋग्वेद 8.11.3]
Hey Agni Dev, you are aware of the evolved materials! Repel our enemies and their armies away from us. 
अन्ति चित्सन्तमह यज्ञं मर्तस्य रिपोः। नोप वेषि जातवेदः
हे जातवेदा अग्नि देव! समीप रहने पर भी आप शत्रुओं के यज्ञ की कभी कामना नहीं करते अर्थात् वहाँ जाने उस यज्ञ में जाने की इच्छा नहीं करते।[ऋग्वेद 8.11.4]
Hey Jatveda Agni Dev! You do not desire the conduction of Yagy by the enemies even though near them and do not wish to participate in it.
मर्ता अमर्त्यस्य ते भूरि नाम मनामहे। विप्रासो जातवेदसः
हम ब्राह्मण हैं और आप जातवेदा अमर उत्पन्न वस्तु ज्ञाता हैं। हम आपके अविनाशी नाम का चिन्तन (भजन) करते हैं।[ऋग्वेद 8.11.5]
We are Brahmans and you are Jatveda aware of the immortal-imperishable goods. We worship-meditate in your immortal forms
विप्रं विप्रासोऽवसे देवं मर्तास ऊतये। अग्निं गीर्भिर्हवामहे
हम ब्राह्मण और मनुष्य हैं। हम ब्राह्मण अग्नि देव को हव्य के द्वारा प्रसन्न करने के लिए अपनी रक्षा के लिए स्तुति द्वारा बुलाते हैं।[ऋग्वेद 8.11.6]
We are humans & Brahmans. We request and call him making Stuti for our protection-safety making offerings to him to please him.
आ ते वत्सो मनो यमत्परमाच्चित्सधस्थात्। अग्ने त्वांकामया गिरा
हे अग्नि देव! उत्तम वास स्थान से भी वत्स ऋषि आपके मन को खींचते हैं। उनकी स्तुति आपकी कामना करती है।[ऋग्वेद 8.11.7]
Hey Agni Dev! Vats Rishi attract your innerself from his best residence. His Stuti is desirous of you.
पुरुत्रा हि सदृङ्ङसि विशो विश्वा अनु प्रभुः। समत्सु त्वा हवामहे
आप अनेक देशों में समान रूप से द्रष्टा है। फलतः समस्त प्रजा के आप स्वामी हैं। युद्ध में हम आपका आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.11.8]
You weigh every one equally in many countries-abodes. As a result of it you are the lord of whole populace. We invoke you in the war.
समत्स्वग्निमवसे वाजयन्तो हवामहे। वाजेषु चित्रराधसम्
अन्नाभिलाषी होकर युद्ध में रक्षा के लिए हम अग्नि देव का आवाहन करते हैं। संग्राम में अग्निदेव विचित्र धन से युक्त होते हैं।[ऋग्वेद 8.11.9]
We invoke Agni Dev in the war for the sake of food grains. Agni Dev possess amazing wealth during war.
प्रत्नो हि कमीड्यो अध्वरेषु सनाच्च होता नव्यश्च सत्सि।
स्वां चाग्ने तन्वं पिप्रयस्वास्मभ्यं च सौभगमा यजस्व
हे अग्नि देव! आप यज्ञ में पूज्य और सर्वप्राचीन हैं। आप चिरकाल से होता और स्तुत्य है। यज्ञ में बैठते हैं। अपने शरीर को हवि से तृप्त करके हमें भी सौभाग्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.11.10]
Hey Agni Dev! You are worshipable in the Yagy and eternal. You are the host ever since and worshipable. On making offerings to you satisfying you, we are blessed with good luck.(05.04.2024ausE)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (12) :: ऋषि :- पर्वत, काण्व; देवता :- इन्द्र; छन्द :-उष्णिक्।
य इन्द्र सोमपातमो मदः शविष्ठ चेतति। येना हंसि न्य १ त्रिणं तमीमहे
हे इन्द्र देव! आप अत्यधिक सोमरस का पान करने वाले हैं। हे बलवानों में श्रेष्ठ इन्द्र देव! सोमपानजनित मद से प्रसन्न होकर आप अपने कार्यों को भली-भाँति जानते हैं। आप जिस प्रकार सोमजन्य मद से राक्षसों को मारते हैं, उसी प्रकार मद से युक्त होने पर आपसे हम याचना करते हैं।[ऋग्वेद 8.12.1]
Hey Indr Dev! You drink too much Somras. Hey Indr Dev, best amongest the mighty! You perform your duties thrilled by consuming Somras.  The way you kill the demons thrilled by drinking Somras, we request-pray to you, similarly.
येना दशग्वमध्रिगुं वेपयन्तं स्वर्णरम्। येना समुद्रमाविथा तमीमहे
आपने सोम के जिस प्रकार के मद से युक्त होकर अंगिरा गोत्रीय अध्रिगु को और अन्धकार विनाशक तथा सबके नेता सूर्य देव को बचाया और जिस प्रकार मद से युक्त होकर आपने समुद्र को बचाया, उसी प्रकार मद से युक्त होने पर हम आपसे (धन की) याचना करते हैं।[ऋग्वेद 8.12.2]
You protected Angiras descendent Adhrigu under the impact of Somras and protected Sury Dev who remove darkness & you protected the ocean; similarly on being intoxicated we pray to you for wealth.
येन सिन्धुं महीरपो रथाँ इव प्रचोदयः। पन्थामृतस्य यातवे तमीमहे
जिस प्रकार सोमपान जन्य मद के कारण (रथी के) रथ के समान प्रचुर वर्षाजल को आप समुद्र की ओर भेजते हैं, आपके उसी प्रकार के मद से युक्त होने पर हम यागपथ की प्राप्ति के लिए आपसे प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 8.12.3]
The way you you divert enough water towards the ocean after drinking Somras like the charoite of its owner, similarly on being under the influence-exhilaration of Somras we pray to you to attain the route to Yagy.
इमं स्तोममभिष्टये घृतं न पूतमद्रिवः। येना नु सद्य ओजसा ववक्षिथ
हे वज्रधारी इन्द्र देव! जिस स्तोत्र से प्रसन्न होकर आप अपने बल से तत्काल हमारा मनोरथ पूर्ण करते हैं, अभीष्ट प्राप्ति के लिए घृत के समान उसी पवित्र स्तोत्र को जानें व ग्रहण करें।[ऋग्वेद 8.12.4]
Hey Vajr wielder, Indr Dev! The Strotr due to which you immediately accomplish our desires with your power, recognise that Strotr pure-pious like Ghee and accept it.
इमं जुषस्व गिर्वणः समुद्र इव पिन्वते। इन्द्र विश्वाभिरुतिभिर्ववक्षिथ
हे स्तुति द्वारा आराधनीय इन्द्र देव! इस स्तोत्र को ग्रहण करें। यह स्तोत्र समुद्र के समान बढ़ता है। हे इन्द्र देव! उस स्तोत्र से आप सभी रक्षाओं के साथ हमारा कल्याण करें।[ऋग्वेद 8.12.5]
Hey Indr Dev worshipable with Stuti! Accept this Strotr. This Strotr extend like the ocean. Hey Indr Dev! By virtue of that Strotr, resort to our welfare with all sorts of protection means.
यो नो देवः परावतः सखित्वनाय मामहे। दिवो न वृष्टिं प्रथयन्ववक्षिथ
दूर देश से आकर इन्द्र देव ने हमारी मित्रता के लिए धन प्रदान किया। हे इन्द्र देव! द्युलोक का विस्तार करते हुए आप हमें श्रेय देने की इच्छा करते हैं।[ऋग्वेद 8.12.6]
Indr Dev arrived from distant abode and granted us wealth for our friendship. Hey Indr Dev! You desire to grant us credit by extending the heavens.(05.04.2024ausE)
ववक्षुरस्य केतव उत वज्रो गभस्त्योः। यत्सूर्यो न रोदसी अवर्धयत्
जब इन्द्र देव सबके प्रेरक सूर्य देव के समान द्यावा-पृथ्वी को वर्षा आदि से बढ़ाते हैं, तब इन्द्र देव की पताकाएँ और इनके हाथों में अवस्थित वज्र अत्यधिक सुशोभित होते हैं।[ऋग्वेद 8.12.7]
सुशोभित :: अत्यंत शोभायमान्; graceful, adorned.
When Indr Dev grow earth & heaven with rains like the all inspiring Sury Dev; the flags of Indr Dev and the Vajr in his hands look gracious-adorable.
यदि प्रवृद्ध सत्पते सहस्त्रं महिषाँ अघः। आदित्त इन्द्रियं महि प्र वावृधे
हे प्रवृद्ध और अनुष्ठाताओं के रक्षक इन्द्र देव! जिस समय आपने सहस्र संख्यक वृत्रासुरादि असुरों का वध किया, उसके अनन्तर ही आपकी महान् शक्ति और भी बढ़ गयी।[ऋग्वेद 8.12.8]
Hey grown up and protector of the worshipers, Indr Dev! Your might & power boosted soon after killing Vrata Sur and other thousands of demons.
इन्द्रः सूर्यस्य रश्मिभिर्म्यर्शसानमोषति। अग्निर्वनेव सासहिः प्र वावृधे
जिस प्रकार अग्नि वनों को जलाती है, उसी प्रकार इन्द्र देव सूर्य की किरणों के द्वारा बाधा करने वाले शत्रुओं को जलाते हैं। शत्रुओं को दबाने वाले इन्द्र देव समृद्धशाली होतें हैं।[ऋग्वेद 8.12.9]
The way Agni Dev burns the forests, Indr Dev burn the enemies with the Sun rays. Indr Dev is the oppressor-torturer of the enemies.
इयं त ऋत्वियावती धीतिरेति नवीयसी। सपर्यन्ती पुरुप्रिया मिमीत इत्
मेरी यह स्तुति आपके पास जाती है। यह स्तुति वसन्त आदि में किए जाने योग्य यज्ञकार्य वाली, अतीव अभिनव, पूजक और बहुत ही प्रसन्नताकारक है।[ऋग्वेद 8.12.10]
My Stuti-prayer reaches you. This Stuti is meant for the Yagy conducted during spring season is unique-fresh, worshiping and produces happiness.
गर्भो यज्ञस्य देवयुः क्रतुं पुनीत आनुषक्। स्तोमैरिन्द्रस्य वावृधे मिमीत इत्
स्तोता इन्द्र देव के यज्ञ का कर्ता है। वह इन्द्र देव के पीने के लिए अनुषङ्गी सोम को दशा पवित्र से पवित्र करता है। वह स्तोत्र द्वारा इन्द्र देव को वर्द्धित करता है और स्तोत्रों से इनका गुणगान करके उन्हें समृद्धवान् करते हैं।[ऋग्वेद 8.12.11]
अनुषंगी :: संबद्ध, अनिवार्य परिणाम के रूप में आनेवाला; accessory, fringe, subsidiary, ancillary.
Stota is the performer of Yagy of Indr Dev. He purifies the Som for drinking by Indr Dev. He boosts-promote Indr Dev with the Strotr. He make him prosperous-wealthy by the recitation of these Strotr.
सनिर्मित्रस्य पप्रथ इन्द्रः सोमस्य पीतये। प्राची वाशीव सुन्वते मिमीत इत्
यजमानों की स्तुतियों को ग्रहण कर अर्पित किए गए सोमरस का पान करके इन्द्र देव अपने यश की वृद्धि करतें हैं तथा अपने मित्रों को ऐश्वर्य प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 8.12.12]
Indr Dev accepts the Stuties made by the Ritviz, drink the Somras offered to him  and enhance his glory. He grants grandeur to his friends.
यं विप्रा उक्थवाहसोऽभिप्रमन्दुरायवः। घृतं न पिप्य आसन्घृतस्य यत्
ब्राह्मणों अथवा मेधावी और स्तोत्र वाहक मनुष्य जिन इन्द्र देव को भली-भाँति प्रमत्त करते हैं, इन्हीं इन्द्र देव के मुख में घृत के समान यज्ञ का हव्य सिक्त कर उन्हें प्रसन्न करते हैं।[ऋग्वेद 8.12.13]
Brahman and the intelligent humans reciting the Strotr properly, thrill Indr Dev and make him happy by making offerings of Ghee.
उत स्वराजे अदितिः स्तोममिन्द्राय जीजनत्। पुरुप्रशस्तमूतय ऋतस्य यत्
माता अदिति ने स्यवं शोभायमान इन्द्र देव के लिए रक्षा के निमित्त अनेकों के द्वारा प्रशंसित सत्य सम्बन्धी श्रेष्ठ स्तोत्र की रचना की।[ऋग्वेद 8.12.14]
Mata Aditi herself composed several excellent Strotrs truth related, for the protection of Indr Dev which were appreciated by many people.
अभि वह्नय ऊतये ऽ नूषत प्रशस्तये। न देव विव्रता हरी ऋतस्य यत्
यज्ञ वाहक ऋत्विक् लोग रक्षा और प्रशंसा के लिए इन्द्र देव की स्तुति करते हैं। हे इन्द्र देव! इस समय विविध कर्मा हरि नामक दोनों अश्व आपको यज्ञस्थल में ले आवें।[ऋग्वेद 8.12.15]
The Ritviz performing the Yagy pray to Indr Dev for protection & appreciation. Hey Indr Dev! Your horses named Hari performing various deeds should bring you the Yagy house-site.(07.04.2024ausM)
यत्सोममिन्द्र विष्णवि यद्वा घ त्रित आप्त्ये। यद्वा मरुत्सु मन्दसे समिन्दुभिः
हे इन्द्र देव! श्री विष्णु, आप्तत्रित अथवा मरुतों के आने पर दूसरों के यज्ञ में उनके साथ सोमरस पीकर प्रसन्न होने वाले आप हमारे यज्ञ में भी सोमरस का पान करके आनन्दित होवें।[ऋग्वेद 8.12.16]
Hey Indr Dev! On arrival of Shri Hari Vishnu, Aptrit or Marud Gan, you drink Somras with them. Drink Somras in our Yagy as well and enjoy,
यद्वा शक्र परावति समुद्रे अधि मन्दसे। अस्माकमित्सुते रणा समिन्दुभिः
हे इन्द्र देव! यद्यपि दूर देश में द्रवशील सोमरस का पान करके आप प्रसत्र होते हैं। उसी तरह हमारा सोमरस प्रस्तुत होने पर उसके साथ भली-भाँति हर्षित हों।[ऋग्वेद 8.12.17]
Hey Indr Dev! You become happy by drinking Somras at distant places. Enjoy our Somras presented like those places, enjoy & become happy. 
यद्वासि सुन्वतो वृधो यजमानस्य सत्पते। उक्थे वा यस्य रण्यसि समिन्दुभिः
हे सत्य पालक इन्द्र देव! आप सोमाभिषवकर्ता यजमान के वर्द्धक हैं। आप जिस यजमान के उक्थ मन्त्र से प्रसन्न होते हैं, उसके सोमरस से प्रसन्न होवें।[ऋग्वेद 8.12.18]
Hey truthful Indr Dev! You grow the Ritviz who extract Somras. Drink the Somras of that host who's Ukth pleases you. 
देवं देवं वो ऽ वस इन्द्रमिन्द्रं गृणीषणि। अधा यज्ञाय तुर्वणे व्यानशुः
हे ऋत्विकों! आपके रक्षण के लिए जिन इन्द्र देव की मैं स्तुति करता हूँ, उन्हीं इन्द्र देव को मेरी स्तुतियाँ शीघ्र भजन और यज्ञ के लिए व्याप्त करें।[ऋग्वेद 8.12.19] 
Hey Ritviz! Indr Dev, whom I worship for your protection, should be pleased with my Stuti, Bhajan-lyrics and he should pervade the Yagy.
यज्ञेभिर्यज्ञवाहसं सोमेभिः सोमपातमम्। होत्राभिरिन्द्रं वावृधुर्व्यानशुः
हव्य, स्तुति और सोम द्वारा यज्ञ में लाने योग्य और सबसे अधिक सोमरस का पान करने वाले इन्द्र देव को स्तोता लोग समृद्ध कर उनके अनुग्रह को प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 8.12.20] 
अनुग्रह :: दूसरे का दुःख दुर करने की इच्छा, कृपा; grace, favour.
The Stotas please Indr Dev through offerings, Stuti and Som good enough to bring to the Yagy, enrich him and attain his favours.
महीरस्य प्रणीतयः पूर्वीरुत प्रशस्तयः। विश्वा वसूनि दाशुषे व्यानशुः
इन्द्र देव का धन प्रदान प्रचुर है, इनकी कीर्ति बहुत है। वे हव्य दाता यजमान को प्रचुर ऐश्वर्य प्रदत्त करते हैं।[ऋग्वेद 8.12.21]
कीर्ति :: यश, शोहरत, अच्छा नाम, प्रतिष्ठा, खुशी, प्रसिद्धि ख्याति; renown, celebrity.
Indr Dev has plenty of money, good will & he is famous. He award a lot of grandeur to the Ritviz.
इन्द्रं वृत्राय हन्तवे देवासो दधिरे पुरः। इन्द्रं वाणीरनूषता समोजसे
वृत्रासुर के वध के लिए देवताओं ने इन्द्र देव को (स्वामिरूप से) धारण किया। अतः समीचीन बल के लिए हमारी वाणियाँ इन्द्र देव की प्रार्थना करती हैं।[ऋग्वेद 8.12.22]
समीचीन :: यथार्थ, ठीक, उचित, वाजिब; accurate
The demigod-deities accepted Indr Dev as their lord to kill Vrata Sur. We pray Indr Dev for strength & power.
महान्तं महिना वयं स्तोमेभिर्हवनश्रुतम्। अर्कैरभि प्र णोनुमः समोजसे
महिमा में महान और आह्वान श्रवण करने वाले इन्द्र देव की स्तोत्रों द्वारा और पूजा मन्त्र द्वारा समीचीन बल की प्राप्ति के हेतु बार-बार स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 8.12.23]
Great and responding to invocation Indr Dev, is repeatedly worshiped for strength & power with Strotr and Mantr.
न यं विविक्तो रोदसी नान्तरिक्षाणि वज्रिणम्। अमादिदस्य तित्विषे समोजसः
जिन वज्रधर इन्द्र देव को द्युलोक-पृथ्वी और अन्तरिक्ष अपने पास से अलग नहीं कर  सकते, उन्हीं इन्द्र देव के बल से बल लेने के लिए सम्पूर्ण संसार आलोकित होता है।[ऋग्वेद 8.12.24]
Vajr wielding Indr Dev can not be separated from the heavens & earth, since the entire universe is illuminated to seek strength & power from him.
यदिन्द्र पृतनाज्ये देवास्त्वा दधिरे पुरः। आदित्ते हर्यता हरी ववक्षतुः
हे इन्द्र देव! जिस समय संग्राम में देवताओं ने आपको सम्मुख धारित किया, उसी समय कमनीय हरि नामक दो अश्वों ने आपको वहाँ पहुँचाया।[ऋग्वेद 8.12.25]
Hey Indr Dev! When the demigods-deities adopted you as their lord, immediately the horses named Hari took you there. 
यदा वृत्रं नदीवृतं शवसा वज्रिन्नवधीः। आदित्ते हर्यता हरी ववक्षतुः
हे वज्रधारी इन्द्र देव! जिस समय आपने नदियों के जल को रोकने वाले वृत्रासुर को बल के द्वारा मारा, उसी समय कमनीय दो हरि (घोड़े) आपको वहाँ ले आये।[ऋग्वेद 8.12.26]
Hey Vajr wielding Indr Dev! When you killed Vrata Sur with your might who blocked the water of river, your beautiful horse had taken you there.
यदा ते विष्णुरोजसा त्रीणि पदा विचक्रमे। आदित्ते हर्यता हरी ववक्षतुः
जिस समय आपके (अनुज) श्री विष्णु ने अपने तीन पदों से तीनों लोकों को (वामनावतार में) नापा था, उसी समय भी आपको दोनों कमनीय हरि (घोड़े) ले आये थे।[ऋग्वेद 8.12.27]
Your beautiful horses took you to Bhagwan Shri Hari Vishnu, your younger brother; when he covered the three abodes in three steps. 
यदा ते हर्यता हरी वावृधाते दिवेदिवे। आदित्ते विश्वा भुवनानि येमिरे
हे इन्द्र देव! जब आपके दोनों कमनीय हरि (घोड़े) प्रतिदिन समृद्ध हुए उसके बाद ही आपके द्वारा समस्त संसार नियमित होता है।[ऋग्वेद 8.12.28]
Hey Indr Dev! The universe was regulated by you when your beautiful horses turned healthy. 
यदा ते मारुतीर्विशस्तुभ्यमिन्द्र नियेमिरे। आदित्ते विश्वा भुवनानि येमिरे
हे इन्द्र देव! जिस समय आपकी मरुरूप प्रजा समस्त प्राणियों को नियंत्रित करती है, उस समय आप समस्त संसार को नियमित करते हैं।[ऋग्वेद 8.12.29]
Hey Indr Dev! When your populace as Marud Gan, regulate the living beings, you regularise-regulate the entire world.
यदा सूर्यममुं दिवि शुक्रंज्योतिरधारयः। आदित्ते विश्वा भुवनानि येमिरे
हे इन्द्र देव! जिस समय आपने इन निर्मल ज्योति सूर्य देव को द्युलोक में स्थापित किया, इसके पश्चात्त ही आपने सम्पूर्ण लोकों को नियंत्रित किया।[ऋग्वेद 8.12.30] 
Hey Indr Dev! You established pure-pious Sury Dev in the heavens and there after you controlled all abodes.
इमां त इन्द्र सुष्टुतिं विप्र इयर्ति धीतिभिः। जामिं पदेव पिप्रतीं प्राध्वरे
हे इन्द्र देव! जिस प्रकार लोग संसार में अपने भ्राता को उच्च स्थान में ले जाते हैं, उसी प्रकार मेधावी स्तोता इस प्रसन्नतादायक सुन्दर स्तुति को परिचर्या के साथ यज्ञ में आपके पास ले जाते हैं।[ऋग्वेद 8.12.31]
Hey Indr Dev! The way people take their brother to higher positions, intelligent Stotas carry this beautiful, happiness-pleasure generating Stuti to the Yagy site near to you.
यदस्य धामनि प्रिये समीचीनासो अस्वरन्। नाभा यज्ञस्य दोहना प्राध्वरे
स्तोता लोग यज्ञ के मध्य में सोमरस को अभिषुत करते समय इन्द्र देव के प्रिय स्थान यज्ञ मण्डप में एकत्रित होकर उनकी स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 8.12.32]
The Stotas extract Somras in the middle of the Yagy and carry it to his dear spot in the Yagy Mandap and worship him.
सुवीर्य स्वश्यं सुगव्यमिन्द्र दद्धि नः। होतेव पूर्वचित्तये प्राध्वरे
हे इन्द्र देव! उत्तम वीर्य, उत्तम गौ और उत्तम अश्व से युक्त धन हमें प्रदान करें। प्रथम ज्ञान प्राप्ति के लिए मैंने होता के समान बनने के लिए यज्ञ में आपकी प्रार्थना की।[ऋग्वेद 8.12.33]
Hey Indr Dev! Grant us excellent valour, excellent cows and best horses along with wealth. I worshiped you to seek the first lessons to become like Hota in the Yagy.(07.04.2024ausE)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (13) :: ऋषि :- नारद, काण्व; देवता :- इन्द्र; छन्द :- उष्णिक्।
इन्द्रः सुतेषु सोमेषु क्रतुं पुनीत उक्थ्यम्। विदे वृधस्य दक्षसो महान्हि षः
सोमरस का पान करके इन्द्र देव यज्ञकर्ता और स्तोता दोनों को पवित्र करते हैं। यही वर्द्धक-बल की प्राप्ति के लिए महान् हैं।[ऋग्वेद 8.13.1]
Indr Dev purifies-cleanse both the Stota and the performer of the Yagy. He is great for being the booster of strength & power.
स प्रथमे व्योमनि देवानां सदने वृधः। सुपारः सुश्रवस्तमः समप्सुजित्
इन्द्र देव प्रथम विस्तीर्ण व्योम (विशेष रक्षक) देव सदन (स्वर्ग) में यजमानों के वर्द्धक है। वह प्रारम्भ किए हुए कर्म के समापक हैं। अतीव यश से युक्त जलप्राप्ति के लिए वृत्रासुर को जीतते हैं।[ऋग्वेद 8.13.2]
व्योम :: आकाश, अंतरिक्ष, आसमान; ether, welkin.
Indr Dev is the nurturer of the Ritviz in the sky and heavens. He accomplish the job-Yagy begun. Associated with ultimate glory, he over power Vratra Sur for water.
तमह्वे वाजसातय इन्द्रं भराय शुष्मिणम्। भवा नः सुग्ने अन्तमः सखा वृधे
बलवान् इन्द्र देव को मैं बल प्राप्ति कर युद्ध में आवाहित करता हूँ। हे इन्द्र देव! धन के अभिलषित होने पर आप वर्द्धन के लिए हमारे मित्र होवें।[ऋग्वेद 8.13.3]
I invoke mighty Indr Dev in the war after attaining strength. Hey Indr Dev! You should be friendly with us after getting the targeted wealth.
इयं त इन्द्र गिर्वणो रातिः क्षरति सुन्वतः। मन्दानो अस्य बर्हिषो वि राजसि
हे स्तुतियों द्वारा भजनीय इन्द्र देव! आपके लिए सोमाभिषवकर्ता यजमान की दी हुई आहुति जाती है। मत्त होकर आप उस यज्ञ में इस आसन पर विराजें।[ऋग्वेद 8.13.4]
Hey Indr Dev worshipable with chants! Oblations-offerings are made to you by the Ritviz who extract Somras. Being trilled-excited, occupy this seat of the Yagy.
नूनं तदिन्द्र दद्धि नो यत्त्वा सुन्वन्त ईमहे। रयिं नश्चित्रमा भरा स्वर्विदम्
हे इन्द्र देव! सोमाभिषवकर्ता जिस धन की आपसे आशा करते हैं, वह धन आप अवश्य मुझे प्रदान करें। विचित्र और स्वर्ग प्रापक धन भी हमारे लिए ले आवें।[ऋग्वेद 8.13.5]
Hey Indr Dev! Grant me that wealth which is desired by the extractor of Somras. Bring amazing and heavenly wealth for us.(08.04.2024ausM)
स्तोता यत्ते विचर्षणिरति प्रशर्धयद्गिरः। वयाइवानु रोहते जुषन्त यत्
हे इन्द्र देव! जब विद्वान् लोग आपके लिए शत्रुओं की पराजय समर्थ स्तुति करते हैं और जब स्तुतियों से आपको प्रसन्न करते हैं, तब शाखा के समान समस्त गुण आप पर आरोहण करते हैं।[ऋग्वेद 8.13.6]
Hey Indr Dev! When the enlightened people chant Stuti to ascertain defeat to the enemy & they please you with Stutis, then all qualities-virtues takes you over.
प्रत्नवज्जनया गिरः शृणुधी जरितुर्हवम्। मदेमदे ववक्षिथा सुकृत्वने
हे इन्द्र देव! पहले के समान आप स्तोत्र उत्पन्न करें और स्तोता का आह्वान सुनें। जिस समय आप सोमरस के द्वारा प्रमत्त होते हो, उस समय शोभनकार्य करने वाले यजमान को फल प्रदान करते हो।[ऋग्वेद 8.13.7]
Hey Indr Dev! Evolve Strotr like before & respond to the invocation by the Stota. When you are thrilled by Somras, the Ritviz who perform good deeds is rewarded.
क्रीळन्त्यस्य सूनृता आपो न प्रवता यतीः। अया धिया य उच्यते पतिर्दिवः
इन्द्र देव की सत्य वाणी निम्नगामी जल के सदृश विहार करती हैं। स्वर्गपति इन्द्र देव इस स्तुति के द्वारा कीर्तिमान् होते हैं।[ऋग्वेद 8.13.8]
True words of Indr Dev flows like the down ward flowing water. Lord of heavens Indr dev is glorified by this Stuti-prayer.
उतो पतिर्य उच्यते कृष्टीनामेक इद्वशी। नमोवृधैरवस्युभिः सुते रण
वश वाले एक इन्द्र देव ही मनुष्यों के पालक कहे गये हैं। वही इन्द्र देव स्तोत्रों द्वारा वर्द्धकों और रक्षणेच्छुओं के साथ सोमाभिषव में रमण करें।[ऋग्वेद 8.13.9]
The controller Indr Dev is the nurturer of humans. That Indr Dev will drink Somras & enjoy with the desirous of war growing with the Strotrs.
स्तुहि श्रुतं विपश्चितं हरी यस्य प्रसक्षिणा। गन्तारा दाशुषो गृहं नमस्विनः
हे याजकों! आप विद्वान् और विख्यात इन्द्र देव की स्तुति करें। इन्द्र देव के शत्रुजेता दोनों अश्व नमस्कार और हवि वाले के गृह में जाते हैं।[ऋग्वेद 8.13.10]
Hey Ritviz! Worship-pray the enlightened and Indr Dev. Winner horses of Indr Dev goes to the houses which salute-welcome him and make offerings.
तूतुजानो महेमते ऽश्वेभिः पुषितप्सुभिः। आ याहि यज्ञमाशुभिः शमिद्धि ते
आपकी बुद्धि महाफलदायिनी है। आप स्निग्ध हैं। शीघ्रगामी अश्व के साथ यज्ञ में आगमन करें; क्योंकि उस यज्ञ में ही आपका आगमन सभी के लिए लिए हितकारक है।[ऋग्वेद 8.13.11]
स्निग्ध :: स्नेह युक्त, प्रेममय, चिकना; aliphatic, affectionate, balsamic.
Your intelligence grant ultimate rewards. You are affectionate. Arrive riding the horses, since your presence in the Yagy is beneficial for all.
इन्द्र शविष्ठ सत्पते रयिं गृणत्सु धारय। श्रवः सूरिभ्यो अमृतं वसुत्वनम्
हे श्रेष्ठ, बली और साधु रक्षक इन्द्रदेव! हम आपकी स्तुति करते हैं; हमें धन प्रदान करें। स्तोताओं को अविनाशी और व्यापक अक्षय धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.13.12]
Hey excellent, mighty and protector of the sages, Indr Dev! We worship you. Grant us money. Grant lot of imperishable wealth to the Stotas.
हवे त्वा सूर उदिते हवे मध्यन्दिने दिवः। जुषाण इन्द्र सप्तिभिर्न आ गहि
हे इन्द्र देव! सूर्योदय होने पर मैं आपका आवाहन करता हूँ; दिन के मध्य भाग में आपका आवाहन करता हूँ। प्रसन्न होकर गतिशील अश्वों के साथ पधारें।[ऋग्वेद 8.13.13]
Hey Indr Dev! I invoke you at the time of Sun rise & during the day. Be happy and come riding your fast moving horses.
आ तू गहि प्र तु द्रव मत्स्वा सुतस्य गोमतः। तन्तुं तनुष्व पूर्व्य यथा विदे
हे इन्द्र देव! शीघ्र आवें और सोमरस जहाँ है, वहाँ शीघ्र जावें। दुग्ध मिश्रित अभिषुत सोमरस से प्रसन्न होवें। अनन्तर मैं जिस प्रकार जानता हूँ, उसी प्रकार पूर्वकृत विस्तृत यज्ञ को पूर्ण करें।[ऋग्वेद 8.13.14]
Hey Indr Dev! Go to the place where Somras is available. Be happy with the extracted Somras mixed with milk. Accomplish the previously begun Yagy systematically-procedurally, the way I know.
यच्छक्रासि परावति यदर्वावति वृत्रहन्। यद्वा समुद्रे अन्धसो  ऽवितेदसि
हे शक्र और वृत्रघ्न! यदि आप दूर देश में हों, यदि समीप में हों, यदि अन्तरिक्ष में हों, तथापि उन सब स्थानों से आकर और सोमरस का पान करके आप हमारे रक्षक बनें।[ऋग्वेद 8.13.15]
Hey Shakr-Indr Dev, slayer of Vratra Sur! Where ever you are, in the space, far or near, come drink Somras and protect us.
इन्द्रं वर्धन्तु नो गिर इन्द्रं सुतास इन्दवः। इन्द्रे हविष्मतीर्विशो अराणिषुः
हमारी स्तुतियाँ इन्द्र देव को वर्द्धित करती हैं। अभिषुत सोमरस इन्द्र देव को वर्द्धित करता है। हविष्मान् मनुष्य इन्द्र देव के प्रति साधनारत होते हैं।[ऋग्वेद 8.13.16]
Our Stutis flourish Indr Dev. Extracted Somras grow him. People with oblations-offerings keep on worshiping Indr Dev.
तमिद्विप्रा अवस्यवः प्रवत्वतीभिरूतिभिः। इन्द्रं क्षोणीरवर्धयन्वया इव
मेधावी और रक्षाभिलाषी उन इन्द्र देव को ही तृप्त कर आहुतियों द्वारा वर्द्धित करते हैं। पृथ्वी  के समस्त प्राणी इन्द्र देव को वृक्ष शाखा की तरह वर्द्धित करते हैं।[ऋग्वेद 8.13.17]
Intellectuals desirous of safety satisfy Indr Dev with sacrifices. All living beings of the earth grow Indr Dev like the branch of the tree. 
त्रिकद्रुकेषु चेतनं देवासो यज्ञमत्नत। तमिद्वर्धन्तु नो गिरः सदावृधम्
त्रिकद्रुक नामक यज्ञ में देवताओं ने चैतन्यदाता इन्द्र देव का सम्मान किया; हमारी स्तुतियाँ सदावर्द्धक इन्द्र देव को वर्द्धित करें।[ऋग्वेद 8.13.18]
The demigods-deities honoured Indr Dev granting consciousness in the Yagy named Trikdruk. Let our Stutis grow always growing Indr Dev further.
स्तोता यत्ते अनुव्रत उक्थान्मृतुथा दधे। शुचिः पावक उच्यते सो अद्भुतः
हे इन्द्र देव! आपके स्तोता आपके अनुकूल होकर समय-समय पर उक्थों का उच्चारण करते हैं। आप अद्भुत, शुद्ध और पावक होने से स्तुत्य होते हैं।[ऋग्वेद 8.13.19]
अनुकूल :: मेल रखनेवाला, माफिक, व्यक्ति या परिस्थिति जो इच्छा, रुचि या समय के अनुरूप या उपयुक्त हो, किसी प्रकार की कार्य-सिद्धि या उद्देश्य में सहायक होने वाला, मुताबिक़, माफ़िक़, हितकर; suited, favourable.
Hey Indr Dev! Your Stotas always favourable to you, chant Ukth. Being amazing, pure and fiery you are worshipable.  
तदिद्रुद्रस्य चेतति यह्वं प्रत्नेषु धामसु। मनो यत्रा वि तद्दधुर्विचेतसः
जिनके लिए विशिष्ट-ज्ञान वाले व्यक्ति स्तोत्र का उच्चारण करते हैं, वे ही रुद्रपुत्र मरुद्गण अपने प्राचीन स्थानों में स्थित हैं।[ऋग्वेद 8.13.20]
Marud Gan, sons of Rudr are present at the ancient places; for whom the enlightened with specific knowledge recite Strotr.
यदि मे सख्यामावर इमस्य पाह्यन्धसः। येन विश्वा अति द्विषो अतारिम
हे इन्द्र देव! यदि आप मुझे मैत्री प्रदान करें और इस सोमरूपी अन्न का पान करें, तब हमारे समस्त शत्रुओं को पराजित कर सकते हैं।[ऋग्वेद 8.13.21]
Hey Indr Dev! You should be friendly with me and drink this food stuff in the form of Som and defeat our all all enemies.
कदा त इन्द्र गिर्वणः स्तोता भवाति शंतमः। कदा नो गव्ये अश्ये वसौ दधः
हे स्तुति पात्र इन्द्र देव! कब आपका स्तोता अत्यन्त सुखी होगा? आप कब हमें गौ, अश्व और निवास योग्य धन प्रदान करेंगे?[ऋग्वेद 8.13.22]
Hey Stuti-worship deserving Indr Dev! When will your Stota become comfortable? When will you grant wealth to us to have cows, horses and a residence to live?
उत ते सुष्टुता हरी वृषणा वहतो रथम्। अजुर्यस्य मदिन्तमं यमीमहे
हे अजर इन्द्र देव! भली-भाँति स्तुत और काम वर्षक हरि नामक दोनों अश्व आपका रथ हमारे सम्मुख ले आवें। आप अतीव मद से युक्त हैं, हम आपसे याचना करते हैं।[ऋग्वेद 8.13.23]
Hey always youthful Indr Dev! Let your desires accomplishing horses, worshiped thoroughly, named Hari bring your charoite to us. You are highly thrilled and we make request to you. 
तमीमहे पुरुष्टुतं यह्वं प्रत्नाभिरूतिभिः। नि बर्हिषि प्रिये सददध द्विता 
महान और अनेकों द्वारा प्रार्थित उन्हीं इन्द्र देव से तृप्तिकर आहुतियों के द्वारा हम याचना करते हैं। वे प्रसन्नतादायक कुशों पर विराजें। अनन्तर द्विविध (सोम और पुरोडाश) हव्य ग्रहण करें।[ऋग्वेद 8.13.24]
We request-pray great Indr Dev worshiped by many, with satisfying sacrifices. Let him occupy the pleasure giving Kush Mats. Thereafter, he should accept the offerings in the form of Som & Purodas.
वर्धस्वा सु पुरुष्टुत ऋषिष्टुताभिरूतिभिः। धुक्षस्व पिप्युषीमिषमवा च नः
हे बहुतों द्वारा स्तुत इन्द्र देव! आप ऋषियों द्वारा स्तुत्य हैं। अपने रक्षणों के द्वारा हमें वर्द्धित करें और पोषक अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.13.25]
Hey Indr Dev, worshiped by many! You are worshiped by the Rishis. Grow us with protection means and grant us nutritious food grains.
इन्द्र त्वमवितेदसीत्था स्तुवतो अद्रिवः। ऋतादियर्मि ते धियं मनोयुजम्॥
हे वज्रधर इन्द्र देव! इस प्रकार आप स्तोताओं के रक्षक है। सत्यभूत, आपके स्तोत्र से युक्त आपके प्रसन्नतादायक कर्म को मैं प्राप्त करता हूँ।[ऋग्वेद 8.13.26]
Hey Vajr wielding Indr Dev! You are a protector of the Stotas. Hey truthful, I receive the your pleasure giving endeavours, through your Strotr.
इह त्या सधमाद्या युजानः सोमपीतये। हरी इन्द्र प्रतद्वसू अभि स्वर
हे इन्द्र देव! प्रसिद्ध, प्रसन्न और विस्तीर्ण धन देने वाले दोनों अश्चों को रथ में नियोजित करके इस यज्ञ में सोमपान के लिए पधारें।[ऋग्वेद 8.13.27]
Hey Indr Dev! Deploy the famous, happy and lots of wealth granting both horses named Hari in the charoite and join this Yagy to drink Somras.
अभि स्वरन्तु ये तव रुद्रासः सक्षत श्रियम्। उतो मरुत्वतीर्विशो अभि प्रयः
हे इन्द्र देव! आपके जो रुद्र पुत्र मरुद्गण हैं, वे आश्रय योग्य इस यज्ञ में पधारें और मरुतों से युक्त प्रजाएँ भी हमारे हव्य को ग्रहण करें।[ऋग्वेद 8.13.28]
Hey Indr Dev! Rudr Putr Marud Gan, should come to this dependable Yagy and let the populace associated with them, accept our offerings.
इमा अस्य प्रतूर्तयः पदं जुषन्त यद्दिवि। नाभा यज्ञस्य सं दधुर्यथा विदे
इन्द्र देव की ये हिंसक मरुत आदि प्रजाएँ स्वर्ग लोक में जिस स्थान में हैं, उनकी सेवा करते हैं। हम लोग जिस प्रकार धन प्राप्त कर सकें, उसी प्रकार वे यज्ञ के नाभि प्रदेश (उत्तरवेदी) पर विराजते हैं।[ऋग्वेद 8.13.29]
Violent Marud Gan and other populace serve Indr Dev in the heavens. They occupy the central position-Uttar Vedi in the Yagy such that we can get wealth.
यं दीर्घाय चक्षसे प्राचि प्रयत्यध्वरे। मिमीते यज्ञमानुषग्विचक्ष्य
प्राचीन यज्ञगृह में यज्ञ आरम्भ होने पर ये इन्द्र देव द्रष्टव्य फल के लिए यज्ञ को क्रमबद्ध देखकर यज्ञ को सम्पादित करते हैं।[ऋग्वेद 8.13.30]
Indr Dev accomplish the Yagy systematically, in the old Yagy house viewing the desirous rewards-results.
वृषायमिन्द्र ते रथ उतो ते वृषणा हरी। वृषा त्वं शतक्रतो वृषा हवः
हे इन्द्र देव! आपका यह रथ मनोरथपूरक है, आपके ये दोनों अश्व कामवर्षक हैं। हे शतक्रतु इन्द्रदेव! आप अभीष्टवर्षी हैं और आपका आवाहन भी इच्छित फल प्रदान करता हैं।[ऋग्वेद 8.13.31]
Hey Indr Dev! This charoite of yours is desires accomplishing and the horses too accomplish the desires. Hey Shatkratu-performer of  hundred Yagy, Indr Dev! You accomplish the desires. Your invocation leads to fulfilment of desires.
वृषा ग्रावा वृषा मदो वृषा सोमो अयं सुतः। वृषा यज्ञो यमिन्वसि वृषा हवः
सोम को पीसने वाला पत्थर अभीष्टवर्षी है, मत्तता व मनोरथ पूर्ण करने वाला है। यह अभिषुत सोम भी कामवर्षक है। जिस यज्ञ को आप प्राप्त करते हैं, वह भी अभिलषितवर्षक है।आपका आह्वान इच्छित  फल प्रदान करता है।[ऋग्वेद 8.13.32]
The stones which crush the Som accomplish desires and grant thrill-pleasure.  The Yagy you join, too accomplish desires. Your invocation too grant desired rewards.
वृषा त्वा वृषणं हुवे वज्रिञ्चित्राभिरूतिभिः। वावन्ध हि प्रतिष्ठतिं वृषा हवः॥
हे वज्रधारी! आप अभीष्टवर्षक हैं। मैं हवि का सेचनकर्ता हूँ। मैं नानाविध स्तुतियों आपका आवाहन करता हूँ। आप अपने लिए की गई स्तुति को अंगीकार (ग्रहण) करते हैं, इसलिए आपका आह्वान अभीष्ट प्रदान करता है।[ऋग्वेद 8.13.33]
Hey Vajr wielder! You are desires accomplishing. I grow-enrich the offerings. I invoke you trough various prayers-chants. You accept the prayers-Stuti and grant desired rewards.(08.04.2024ausE)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (14) :: ऋषि :- गोषूक्ति, अश्व, सूक्त, काण्व; देवता :- इन्द्र; छन्द :- गायत्री।
यदिन्द्राहं यथा त्वमीशीय वस्व एक इत्। स्तोता मे गोषखा स्यात्
हे इन्द्र देव! जिस प्रकार आप ही केवल धनाधिपति हैं, उसी प्रकार यदि मैं भी ऐश्वर्य युक्त हो जाऊँ, तो मेरे भी स्तोता हो जाएँ।[ऋग्वेद 8.14.1]
Hey Indr Dev! The way you are the only lord of wealth, I too wish to have grandeur and Stotas. 
शिक्षेयमस्मै दित्सेयं शचीपते मनीषिणे। यदहं गोपतिः स्याम्
हे शक्तिमान् इन्द्र देव! यदि आपकी कृपा से मैं गोपति हो जाऊँ, तो इस स्तोता को दान देने की इच्छा करूँगा और प्रार्थित धन भी दूँगा।[ऋग्वेद 8.14.2]
Hey mighty Indr Dev! If I become the lord of cows, I wish to make donations to this Stota and give desired wealth-riches to him.
धेनुष्ट इन्द्र सूनृता यजमानाय सुन्वते। गामश्वं पिप्युषी दुहे
हे इन्द्र देव! आपकी सत्यप्रिय और वर्द्धक स्तुति रूप गौ सोमाभिषव कर्ता को गौ और अश्व प्रदान करती है।[ऋग्वेद 8.14.3]
Hey Indr Dev! Your truthful and growthful Stuti in the form of cow grants cows and horses to the host who extract Somras. 
न ते वर्तास्ति राधस इन्द्र देवो न मर्त्यः। यद्दित्ससि स्तुतो मघम्
हे इन्द्र देव! आप प्रार्थित होकर धन दान करने की इच्छा करते हैं। उस समय आपके धन का निवारक देवता या मनुष्य नहीं है।[ऋग्वेद 8.14.4]
Hey Indr Dev! When you wish to donate money on being worshiped-prayed, there is no one to stop you at that moment, neither demigods-deities not humans.
यज्ञ इन्द्रमवर्धयद्यद्भूमिं व्यवर्तयत्। चक्राण ओपशं दिवि
यज्ञ ने इन्द्र देव को वर्द्धित किया। इसलिए इन्होंने स्वर्ग लोक में मेघ को शयन कराते हुए पृथ्वी को वृष्टिदान से सुस्थिर किया।[ऋग्वेद 8.14.5]
Yagy grow Indr Dev! Indr Dev made the clouds sleep in the heavens and stabilized the earth by making rain fall.
वावृधानस्य ते वयं विश्वा धनानि जिग्युषः। ऊतिमिन्द्रा वृणीमहे
हे इन्द्र देव! आप वर्द्धनशील और शत्रुओं के समस्त ऐश्वर्यों पर विजय प्राप्त करते हैं। तभी हम आपके द्वारा रक्षा प्राप्त करेंगे।[ऋग्वेद 8.14.6]
Hey Indr Dev! You are growing and win the grandeur of the enemy. Then we attain protection under you.
व्य १ न्तरिक्षमतिरन्मदे सोमस्य रोचना। इन्द्रो यदभिनद्वलम्
सोम जन्य मत्तता के होने पर इन्द्र देव ने प्रकाशवान् अन्तरिक्ष को वर्द्धित किया; क्योंकि उन्होंने बली मेघों को भी विदीर्ण कर दिया।[ऋग्वेद 8.14.7]
On being intoxicated-thrilled by the Somras, Indr Dev grew-extended the space since he teared into the mighty clouds.
उद्गा आजदङ्गिरोभ्य आविष्कृण्वन्गुहा सतीः। अर्वाञ्चं नुनुदे वलम्
इन्द्र देव ने गुफा में छिपाई हुई गौवों को प्रकट करके अङ्गिरा लोगों को प्रदान किया और चुराने वाले पणियों के नेता 'बल' असुर को अधोमुख किया।[ऋग्वेद 8.14.8]
Indr Dev released the cows kept in the caves and granted them to Angira defeating the leader of demons Panis called Bal turning his mouth downwards.
इन्द्रेण रोचना दिवो दृळ्हानि वृंहितानि च। स्थिराणि न पराणुदे
इन्द्र देव ने स्वर्ग लोक के नक्षत्रों को बल युक्त और दृढ़ किया। अब नक्षत्रों को उनके स्थानों से कोई भी गिरा नहीं सकता।[ऋग्वेद 8.14.9]
Indr Dev strengthened the constellations and none can destabilise-remove them from their position.
अपामूर्मिर्मदन्निव स्तोम इन्द्राजिरायते। वि ते मदा अराजिषुः
हे इन्द्र देव! समुद्र की लहरों के समान आपकी स्तुतियाँ शीघ्र गमन करती हैं। आपकी प्रमत्तता विशेषरूप से दीप्ति प्राप्त करती है।[ऋग्वेद 8.14.10]
प्रमत्त :: उन्मत्त, मतवाला, मस्त; dizziness, foolhardy, tipsy, inattentive, drunk, intoxicated.
Hey Indr Dev! Your Stutis-prayers moves fast like the waves of ocean. Your dizziness is highlighted specially.
त्वं हि स्तोमवर्धन इन्द्रास्युक्थवर्धनः। स्तोतृणामुत भद्रकृत्
हे इन्द्र देव! आप स्तोत्र द्वारा और उक्थ द्वारा भी वर्द्धनीय हैं। आप ही स्तोताओं का कल्याण करते हैं।[ऋग्वेद 8.14.11]
Hey Indr Dev! Your growth is ensured with Strotr & Ukth. You resort to welfare of the Stotas.
इन्द्रमित्केशिना हरी सोमपेयाय वक्षतः। उप यज्ञं सुराधसम्
केश वाले हरि नाम के दोनों अश्व सोमपान के लिए शोभन दान वाले इन्द्र देव को यज्ञ में लेकर आते हैं।[ऋग्वेद 8.14.12] 
The horse named Hari bearing hair bring Indr Dev, who make glorious donations; to the Yagy site. 
अपां फेनेन नमुचेः शिर इन्द्रोदवर्तयः। विश्वा यदजयः स्पृधः
हे इन्द्र देव! जिस समय आपने समस्त शत्रुओं को जीता, उस समय जल के फेन के द्वारा ही नमुचि के सिर को छिन्न-भिन्न भी किया।[ऋग्वेद 8.14.13]
Hey Indr Dev! When you won all the enemies you divided the head of Namuchi into parts, with the foam of the ocean.
मायाभिरुत्सिसृप्सत इन्द्र द्यामारुरुक्षतः। अव दस्यूँरधूनुथाः
आप माया के द्वारा सर्वत्र फैलने वाले हैं। आपने स्वर्ग लोक में चढ़ने की इच्छा करने वाले शत्रुओं को नीचे गिरा दिया।[ऋग्वेद 8.14.14]
You spread-extend in all directions through enchantment. You throw away the enemies down, who wished to reach heavens.
असुन्वामिन्द्र संसदं विषूचीं व्यनाशयः। सोमपा उत्तरो भवन्
हे इन्द्र देव! सोमपान करने से उत्कृष्टतर होते हुए भी आपने सोमाभिषव से हीन मनुष्यों को परस्पर लड़ाकर आपने विनष्ट कर दिया।[ऋग्वेद 8.14.15]
Hey Indr Dev! You destroyed the depraved enemies by making them fight together, being better by drinking Somras.(09.04.2024ausM)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (15) :: ऋषि :- गोषूक्ति, अश्व, सूक्त, काण्व; देवता :- इन्द्र; छन्द :-उष्णिक्।
तम्वभि प्र गायत पुरुहूतं पुरुष्टुतम्। इन्द्रं गीर्भिस्तविषमा विवासत
अनेकों के द्वारा बुलाये गये और अनेकों के द्वारा स्तव किये गये उन्हीं इन्द्र देव की स्तुति करें। वचनों के द्वारा महान इन्द्र देव की परिचर्या करें।[ऋग्वेद 8.15.1]
Worship Indr Dev who is invoked & worshiped by many people. Serve Indr Dev through chants-Stuties.
यस्य द्विबर्हसो बृहत्सहो दाधार रोदसी। गिरींरज्राँ अपः स्वर्वृषत्वना
दोनों स्थानों में इन्द्र देव का पूजनीय महाबल स्वर्ग और पृथ्वी को धारित करता है। वह शीघ्रगामी मेघ और गमनशील जल को वीर्य द्वारा धारण करते हैं।[ऋग्वेद 8.15.2]
Worshipable might-power of Indr Dev support both the earth and heavens. He support the fast moving clouds and flowing water with his radiance.
स राजसि पुरुष्टुतँ एको वृत्राणि जिघ्नसे। इन्द्र जैत्रा श्रवस्या च यन्तवे॥
हे अनेकों के द्वारा स्तुत्य इन्द्र देव! आप शोभा पाते हैं। जीतने और सुनने योग्य धन को स्वाधीन करने के लिए आप अकेले ही वृत्रादि राक्षसों का वध करते हैं।[ऋग्वेद 8.15.3]
Worshiped by several Indr Dev! You are glorious. To have-release the wealth, you alone kill Vratra Sur and other demons. 
तं ते मदं गृणीमसि वृषणं पृत्सु सासहिम्। उ लोककृलुमद्रिवो हरिश्रियम्॥
हे वज्रधर इन्द्र देव! आपके हर्ष की हम प्रशंसा करते हैं। वह मनोरथ पूरक, संग्राम में शत्रुओं के लिये अभिभव कर्ता, स्थान विधाता और हरी नामक अश्वों के द्वारा सेवनीय है।[ऋग्वेद 8.15.4]
Hey Vajr wielding Indr Dev! We applaud your pleasure-happiness. Its desires accomplishing, destroys the enemy in the war, lord of the place and availed by the horses named Hari in the war.
येन ज्योतींष्यायवे मनवे च विवेदिथ। मन्दानो अस्य बर्हिषो वि राजसि
इन्द्र देव ने जिस मद के द्वारा (आयु और मनु) के लिए सूर्य आदि ज्योतियों को प्रकाशित किया, उसी हर्ष से प्रसन्न होकर आप प्रवृद्ध यज्ञ के कर्ता हुए।[ऋग्वेद 8.15.5]
Indr Dev evolved the illumination (light & energy) for Sun and other celestial objects for Ayu & Manu by virtue the thrill and became the performer of matured Yagy.
तदद्या चित्त उक्थिनोऽनु ष्टुवन्ति पूर्वथा। वृषपत्नीरपो जया दिवेदिवे
हे इन्द्र देव! प्राचीन समय के समान आज भी उक्थ मन्त्रों का उच्चारण करने वाले आपके उस बल की प्रशंसा करते हैं। जिस जल के स्वामी पर्जन्य हैं, उसको आप प्रतिदिन स्वाधीन (मुक्त) करें।[ऋग्वेद 8.15.6]
Hey Indr Dev! Those who chants, Ukth Mantrs like the ancient times appreciate-applaud your might. Release the water every day who's lord is Parjany Dev.
तव त्यदिन्द्रियं बृहत्तव शुष्ममुत क्रतुम्। वज्रं शिशाति धिषणा वरेण्यम्
हे इन्द्र देव! स्तुति आपके उस महान वीर्य को और आपका बल आपके कर्म को और वरणीय वज्र को तीक्ष्ण करते हैं।[ऋग्वेद 8.15.7]
Hey Indr Dev! Your great energy and strength, sharpen your endeavours and Vajr.
तव द्यौरिन्द्र पौंस्यं पृथिवी वर्धति श्रवः। त्वामापः पर्वतासश्च हिन्विरे
हे इन्द्र देव! स्वर्गलोक आपके बल को बढ़ाता है, पृथ्वी आपके यश को वर्द्धित करती है। अन्तरिक्ष और मेघ आपको प्रसन्न करते हैं।[ऋग्वेद 8.15.8]
Hey Indr Dev! Heavens boost your strength and earth enhance your glory, space & clouds make you happy.
त्वां विष्णुबृहन् क्षयो मित्रो गृणाति वरुणः। त्वां शर्धो मदत्यनु मारुतम्॥
हे इन्द्र देव! महान और निवास कारण श्री विष्णु, मित्र और वरुणादि देवता आपकी स्तुति करते हैं। मरुद्गणों के बल से आप प्रसन्न होते हैं।[ऋग्वेद 8.15.9]
Hey Indr Dev! Great abode creators Shri Hari Vishnu, Mitr & Varun Dev along with other demigods-deities worship you. You become happy with the might of Marud Gan.
त्वं वृषा जनानां मंहिष्ठ इन्द्र जज्ञिषे। सत्रा विश्वा स्वपत्यानि दधिषे
आप वर्षक और देवताओं में सर्वापेक्षा महान माने गये हैं। क्योंकि आप सुन्दर पुत्रादि के साथ समस्त धन धारित करते हैं।[ऋग्वेद 8.15.10]
You are considered to be rain showering and great as compared to other demigods-deities, since you support beautiful sons and entire wealth.
सत्रा त्वं पुरुष्टुतँ एको वृत्राणि तोशसे। नान्य इन्द्रात्करणं भूय इन्वति
हे बहुस्तुत्य इन्द्र देव! आप अकेले ही महान् रिपुओं का विनाश करते हैं। आपकी अपेक्षा कोई भी अधिकतर कर्म नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 8.15.11]
Hey Indr Dev, worshiped by many! You alone destroy the enemies. None other than you, can perform multiple jobs.
यदिन्द्र मन्मशस्त्वा नाना हवन्त ऊतये। अस्माकेभिर्नृभिरत्रा स्वर्जय
हे इन्द्र देव! जिस युद्ध में आप रक्षा के लिए स्तोत्रों द्वारा नाना प्रकार से आवाहित होते हैं, उसी युद्ध में हमारे स्तोताओं द्वारा आहूत होकर शत्रुओं को परास्त करें।[ऋग्वेद 8.15.12]
Hey Indr Dev! The war in which you are invoked by many people in different ways, defeat the enemies in that war on being worshiped by our Stotas.
अरं क्षयाय नो महे विश्वा रूपाण्याविशन्। इन्द्रं जैत्राय हर्षया शचीपतिम्
हे याजकों! हमारे महान गृह के लिए पर्याप्त और परिव्याप्त रूप को स्तुति द्वारा व्याप्त करते हुए कर्म पालक इन्द्र देव की जीतने योग्य धन के लिए स्तुति करें।[ऋग्वेद 8.15.13]
Hey Ritviz! Let us worship-pray Indr Dev for the wealth which can be won for our great house by making pervading Stuti.(09.04.2024ausE)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (16) :: ऋषि :- इरिम्बिठि, काण्व; देवता :-इन्द्र; छन्द :- गायत्री।
प्र सम्राजं चर्षणीनामिन्द्रं स्तोता नव्यं गीर्भिः। नरं नृषाहं मंहिष्ठम्
मनुष्यों के सम्राट इन्द्र देव की स्तुति करें; क्योंकि ये स्तुति द्वारा स्तुत्य, नेता, शत्रुओं के अभिषवकर्ता और सर्वापेक्षा दाता हैं।[ऋग्वेद 8.16.1]
Worship-pray lord of humans Indr Dev! He deserve worship, leader, extractor-exploiter of the enemies and a great donor as compared to others.
यस्मिन्नुक्थानि रण्यन्ति विश्वानि च श्रवस्या। अपामवो न समुद्रे॥
जिस प्रकार जल तरङ्गे समुद्र में शोभा पाती हैं, उसी प्रकार सुनने योग्य उक्थ और हविष्मान् अन्न इन्द्र देव में शोभा पाते हैं।[ऋग्वेद 8.16.2]
The way the waves are glorified in the ocean, worth listening Ukth and food grains for oblations are in Indr Dev.
तं सुष्टुत्या विवासे ज्येष्ठराजं भरे कृत्नुम्। महो वाजिनं सनिभ्यः
मैं शोभन स्तुति द्वारा धन प्राप्ति के लिए उन इन्द्र देव की सेवा करता हूँ। इन्द्र देव प्रशस्ततम देवताओं में शोभा पाते हैं। संग्राम में महान कार्य करते हैं। वे शक्तिशाली हैं।[ऋग्वेद 8.16.3]
I service Indr Dev with gracious Stuti-prayer for having wealth. Indr Dev is mentioned in the greatest demigods-deities. He perform great deeds. He is mighty-strong.
यस्यानूना गभीरा मदा उरवस्तरुत्राः। हर्षमन्तः शूरसातौ
हे इन्द्र देव! आपका मद महान, गम्भीर, विस्तीर्ण, रिपुओं का हनन करने वाला और शूरों के युद्ध में प्रसन्नतादायक है।[ऋग्वेद 8.16.4]
Hey Indr Dev! You possess great glory, serious, extended, destroyer of the enemies and grant pleasure in the war of the brave people.
तमिद्धनेषु हितेष्वधिवाकाय हवन्ते। येषामिन्द्रस्ते जयन्ति
धन लाभ होने पर उन्हीं इन्द्र देव को पक्षपात के लिए स्तोता लोग बुलाते हैं। जिनके इन्द्र देव हैं, वह विजय प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 8.16.5]
The Stotas invite Indr Dev when they get wealth. One who is favoured by Indr Dev is bound to get success-victory in the war.
तमिच्चयौलैरार्यन्ति तं कृतेभिश्चर्षणयः। एष इन्द्रो वरिवस्कृत्
बलकर स्तोत्रों द्वारा उन इन्द्र देव को ही ईश्वर बनाया जाता है। कर्म द्वारा मनुष्य उन्हें ईश्वर बनाते हैं। इन्द्र देव ही ऐश्वर्य प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 8.16.6]
Powerful Strotr grant the Godliness to Indr Dev. Humans treat them as God with their endeavours. Its Indr Dev who grant grandeur.
इन्द्रो ब्रह्मेन्द्र ऋषिरिन्द्रः पुरू पुरुहूतः। महान्महीभिः शचीभिः
इन्द्र देव सबसे अधिक ऋषि व बहुतों के द्वारा आहूत हैं। वे महान कार्यों को करने के कारण ही श्रेष्ठ हैं।[ऋग्वेद 8.16.7]
Indr Dev is worshiped by the Rishis and majority of populace. He is great due to his endeavours.
स स्तोम्यः स हव्यः सत्यः सत्वा तुविकूर्मिः। एकश्चित्सन्नभिभूतिः
वे इन्द्र देव प्रार्थना और आह्वान करने के योग्य हैं। ये अति शीघ्रता से कार्य करते हुए अकेले ही शत्रुओं को परास्त कर देते हैं।[ऋग्वेद 8.16.8]
Indr Dev deserve invocation and worship. He acts quickly and defeat the enemy alone.
तमर्केभिस्तं सामभिस्तं गायत्रैश्वर्षणयः। इन्द्रं वर्धन्ति क्षितयः
द्रष्टा और मनुष्य इन्द्र देव को यजुर्वेदीय मन्त्रों द्वारा वर्द्धित करते हैं, साम वेदीय मन्त्रों द्वारा वर्द्धित करते हैं और उक्थ या गायत्री आदि छन्दों से युक्त ऋग्वेदीय मन्त्रों द्वारा वर्द्धित करते हैं।[ऋग्वेद 8.16.9]
Visionaries and humans elevate-grow Indr Dev with the chants of Yajur Ved, Sam Ved, Ukth, Gayatri and Rig Ved  Mantrs.
प्रणेतारं वस्यो अच्छा कर्तारं ज्योतिः समत्सु। सासह्वांसं युधामित्रान्
इन्द्र देव प्रशंसनीय धन के प्रापक, युद्ध में ज्योति के प्रकाशक और आयुध द्वारा शत्रुओं को परास्त करने वाले हैं।[ऋग्वेद 8.16.10]
Indr Dev is the receiver of wealth, like aura-radiance in the war and defeater of the enemies with weapons.
स नः पप्रिः पारयति स्वस्ति नावा पुरुहूतः। इन्द्रो विश्वा अति द्विषः
इन्द्र देव इच्छाओं को पूर्ण करने वाले और बहुतों द्वारा बुलाये गये हैं। ये हमें रक्षा करने के उपायों से अपनी नौका द्वारा समस्त शत्रुओं से पार लगा दें।[ऋग्वेद 8.16.11]
Indr Dev accomplish the desires and is invocated by many people. He will sail our boat across the enemies through his protection means-measures.
स त्वं न इन्द्र वाजेभिर्दशस्या च गातुया च। अच्छा च नः सुम्नं नेषि
हे इन्द्र देव! आप हमें बल द्वारा धन व मार्ग प्रदान करें। हमारे सम्मुख सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.16.12]
Hey Indr dev! Grant us wealth with strength and show us the way; guide us. Let him bring pleasure-comforts to us.(11.04.2024ausM)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (17) :: ऋषि :- इरिम्बिठि, काण्व; देवता :- इन्द्र; छन्द :- गायत्री, बृहती। 
आ याहि सुषुमा हि त इन्द्र सोमं पिबा इमम्। एदं बर्हिः सदो मम
हे इन्द्र देव! आप हमारे इस यज्ञ में पधारें। आपके लिए सोमरस अभिषुत हुआ है। इस सोमरस को पीकर, मेरे इस आसन (कुश) के ऊपर विराजें।[ऋग्वेद 8.17.1]
Hey Indr Dev! Come to our Yagy. Somras has been extracted for you. Drink this Somras and occupy this Kush Mat.
आ त्वा ब्रह्मयुजा हरी वहतामिन्द्र केशिना। उप ब्रह्माणि नः शृणु
हे इन्द्र देव! मन्त्रों द्वारा योजित और केश वाले हरि नाम के अश्व आपको ले आवें। आप इस यज्ञ में आकर हमारे स्तोत्र को श्रवण करें।[ऋग्वेद 8.17.2]
योजित :: मिलाया हुआ, युक्त, जिसकी योजना की गई हो, जोड़ा हुआ, नियम से बद्ध किया हुआ, नियमित, रचा हुआ, बनाया हुआ, रचित, घटित, बनाया हुआ; connected.
Hey Indr Dev! Let the horses named Hari having hairs over the neck, governed through Mantr-chants, bring you here. Come to our Yagy and listen to our Strotr.
ब्रह्माणस्त्वा वयं युजा सोमपामिन्द्र सोमिनः। सुतावन्तो हवामहे
हे इन्द्र देव! हम स्तोता हैं। आपको योग्य स्तोत्र द्वारा बुलाते हैं। हम सोम से युक्त और अभिषुत सोमरस वाले हैं। हम सोमपान के लिए आपको बुलाते हैं।[ऋग्वेद 8.17.3]
Hey Indr Dev! we are Stotas. We invoke you with suitable Strotr. We posses Som and extract Somras. We  invite you drinking Somras.
आ नो याहि सुतावतोऽस्माकं सुष्टुतीरुप। पिबा सु शिप्रिन्नन्धसः
हे इन्द्र देव! हम अभिषुत सोमरस वाले हैं। हमारे समक्ष आवें। हमारी सुन्दर स्तुतियों को श्रवण करें। हे शोभन शिस्त्राण वाले इन्द्रदेव! (यहाँ आकर) सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 8.17.4]
Hey Indr Dev! We possess extracted Somras. Come in front of us. Listen to our beautiful Stuti-compositions, hymns. Hey Indr Dev, wearing beautiful head gear! Come to us and drink Somras. 
आ ते सिञ्चामि कुक्ष्योरनु गात्रा वि धावतु। गृभाय जिह्वया मधु
हे इन्द्र देव! आपके दाहिने और बायें उदर को मैं सोमरस से पूर्ण करता हूँ। वह सोमरस आपके सम्पूर्ण शरीर को व्याप्त करें। मधुर सोम को जीभ से स्वाद लेकर ग्रहण करें।[ऋग्वेद 8.17.5]
Hey Indr Dev! I fill your left and right segments of stomach with Somras. Let this Somras spread in your whole body. Lick Somras and enjoy its taste.
स्वादुष्टे अस्तु संसुदे मधुमान्तन्वे३तव। सोमः शमस्तु ते हृदे
हे इन्द्र देव! सुन्दर दान वाले आपके शरीर के लिए यह माधुर्य से युक्त सोमरस सुस्वादिष्ट है। यह सोमरस आपके हृदय में आनंद उत्पन्न करने वाला है।[ऋग्वेद 8.17.6]
Hey Indr Dev! This tasty & sweet Somras suits your body, making donations. It will generate pleasure in your heart-innerself.
अयमु त्वा विचर्षणे जनीरिवाभि संवृतः। प्र सोम इन्द्र सर्पतु
हे विशेष द्रष्टा इन्द्र देव! स्त्री के समान ढका होकर यह सोमरस आपके पास जावें।[ऋग्वेद 8.17.7]
Hey Indr Dev, with special vision! Let this Somras covered like a woman reach you.
तुविग्रीवो वपोदरः सुबाहुरन्धसो मदे। इन्द्रो वृत्राणि जिघ्नते
विस्तृत कन्धों वाले, स्थूल उदर वाले और सुन्दर भुजा वाले इन्द्र देव अन्न रूप सोम की मत्तता होने पर वृत्रादि शत्रुओं का विनाश करते हैं।[ऋग्वेद 8.17.8]
Indr Dev having broad shoulders, big stomach  and beautiful arms thrilled with the Som in the form of grains destroy the enemies like Vratr.
इन्द्र प्रेहि पुरस्त्वं विश्वस्येशान ओजसा। वृत्राणि वृत्रहञ्जहि
हे वृत्रघ्न इन्द्र देव! जल के कारण आप समस्त संसार के स्वामी होकर हमारे पास गमन करें और शत्रुओं का वध करें।[ऋग्वेद 8.17.9]
Hey slayer of Vratr Indr Dev! On becoming the lord of whole world by virtue of water, come to us and kill the enemies.
दीर्घस्ते अस्त्वङ्कुशो येना वसु प्रयच्छसि। यजमानाय सुन्वते
जिससे आप सोम का अभिषव करने वाले यजमान को धन प्रदान करते हैं, वह आपका आकर्षण करने वाला आयुध अत्यधिक विशाल है।[ऋग्वेद 8.17.10]
Your weapon which is attractive is too large and you grant wealth to the Ritviz who make offering of Som to you.
अयं त इन्द्र सोमो निपूतो अधि बर्हिषि। एहीमस्य द्रवा पिब
हे इन्द्र देव! आपके लिए यह सोम और वेदी पर बिछे हुए कुश के आसन, विशेषरूप से शोधित किए हुए हैं। इस समय इस सोमरस के सम्मुख पधारें तथा शीघ्र ही आकर इसका पान करें।[ऋग्वेद 8.17.11]
Hey Indr Dev! The Som and the Kush Mat spread over the Vedi have been specially purified. Come quickly to this Somras & drink it.
शाचिगो शाचिपूजनायं रणाय ते सुतः। आखण्डल प्र हूयसे
शक्तिशाली, गौओं वाले और प्रसिद्ध तेजवान हे पूज्य इन्द्र देव! आपके सुख के लिए सोमरस अभिषुत हुआ है। हे आखण्डल (शत्रु-खण्डयिता)! उत्कृष्ट स्तुतियों के द्वारा (हम) आपका आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.17.12]
Mighty, possessor of cows and bearer of famous aura, hey revered Indr Dev! This Somras has been extracted for your pleasure. Hey destroyer of the enemies! We invoke you with best Stuties.
यस्ते शृङ्गवृषो नपात् प्रणपात्कुण्डपाय्यः। न्यस्मिन्दध्र आ मनः
हे शृङ्गवृषा नामक ऋषि के पुत्र इन्द्र देव! आपका जो उत्तम रक्षक कुण्डपायी यज्ञ (जिसमें कुण्ड में सोमरस पिया जाता है) है, उसमें ऋषियों ने अपने मन को लगाया है।[ऋग्वेद 8.17.13]
कुंड :: हौज, furrow, pool.
Hey Indr Dev, son of Rishi named Shrang Vrasha! The Rishis have concentrated in your excellent Yagy called Kund Payi (pool of Somras). 
वास्तोष्पते ध्रुवा स्थूणांसत्रं सोम्यानाम्।
द्रप्सो भेत्ता पुरां शश्वतीनामिन्द्रो मुनीनां सखा
हे गृहपति इन्द्र देव! गृहाधार स्तम्भ सुदृढ़ हैं। हम सोम सम्पादक हैं। हमारे कन्धे में रक्षा करने में समर्थ बल हैं। क्षरणशील सोम वाले और अनेक पुरियों को तोड़ने वाले इन्द्र देव ऋषियों के मित्र हों।[ऋग्वेद 8.17.14]
Hey lord of the house, Indr Dev! The main pillar of the house is strong. We extract-produce Som. Let Indr Dev, who posses decaying-fermenting Som and destroyer of several forts be friendly with the Rishis.
पृदाकुसानुर्यजतो गवेषण एकः सन्नभि भूयसः।
भूर्णिमश्वं नयत्तुजा पुरो गृभेन्द्रं सोमस्य पीतये
सर्प के समान उच्च शिर वाले, याग योग्य और गौप्रापक इन्द्र देव अकेले होकर भी अनेक शत्रुओं को परास्त करते हैं। मरणशील स्तोता और व्यापक इन्द्र देव को सोमपान के लिए हमारे सम्मुख ले आते हैं।[ऋग्वेद 8.17.15]
Indr Dev having his head raised like the hood of serpent, suitable-eligible for Yagy, nurturer of cows, defeats enemies though alone. Mortal Stota brings Indr Dev to us for drinking Somras.(11.04.2024ausE)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (18) :: ऋषि :- इरिम्बिठि, काण्व; देवता :- आदित्य, अश्विनी कुमार, अग्नि, सूर्य, वायु; छन्द :- उष्णिक्।
इदं ह नूनमेषां सुम्नं भिक्षेत मर्त्यः। आदित्यानामपूर्व्यं सवीमनि
जिनकी प्राप्ति पहले नहीं की जा सकती, किन्तु आदित्यों के नियन्त्रण में चलने वाले मानव निश्चित रूप से ऐसे सभी सुखों को प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 8.18.1]
The pleasure-comforts which could not availed earlier can be attained by the humans under the control of Adity Gan.
अनर्वाणो ह्येषां पन्था आदित्यानाम्। अदब्धाः सन्ति पायवः सुगेवृधः
इन आदित्यों के मार्ग दूसरों के द्वारा गमन नहीं किए गए और अहिंसित हैं। किन्तु वे पालक मार्ग सुख वर्द्धक है।[ऋग्वेद 8.18.2]
The non violent routes-path followed by the Adity Gan have not been followed by others, but these routes are comfortable.
तत्सु नः सविता भगो वरुणो मित्रो अर्यमा। शर्म यच्छन्तु सप्रथो यदीमहे
हम जिस विस्तीर्ण सुख की कामना करते हैं, उसी सुख को सविता, भग, मित्र, वरुण और अर्यमा हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.18.3]
The vast comforts which we imagine-desires should be granted to by Savita, Bhag, Mitr Varun and Aryma.
देवेभिर्देव्यदितेऽरिष्टभर्मन्ना गहि। स्मत्सूरिभिः पुरुप्रिये सुशर्मभिः
हे देवताओं! अहिंसित-पोषक और बहुतों द्वारा प्रीयमाणा माता अदिति, प्राज्ञ और सुख देने वाले देवताओं के साथ सुन्दर रूप से हमारे निकट आगमन करें।[ऋग्वेद 8.18.4]
प्रीयमाणा :: प्रिय, स्नेही; beloved.
Hey demigods-deities! Mata Aditi loved by many, non violent & caring-nursing, enlightened and comforts granting, should come to us with demigods-deities.
ते हि पुत्रासो अदितेर्विदुर्द्वषांसि योतवे। अंहोश्चिदुरुचक्रयोऽ नेहसः
माता अदिति के वे मित्रादि पुत्र गण द्वेषियों को पृथक करना जानते हैं। विस्तीर्ण कर्मकर्ता और रक्षक लोग हमें पापाचारों से अलग करना जानते हैं।[ऋग्वेद 8.18.5]
Friends and sons of Mata Aditi know how to alienate the envious. Performers of broad-great jobs & protectors know how to alienate us from sinful behaviour 
अदितिर्नो दिवा पशुमदितिर्नक्तमद्वयाः। अदितिः पात्वंहसः सदावृधा
दिन में हमारे पशुओं की रक्षा माता अदिति करें, सदैव एक समान रहने वाली माता अदिति रात्रि में भी हमारे पशुओं की रक्षा करें। सदैव वर्द्धनशील रक्षणों द्वारा हमें पापकर्म से बचावें।[ऋग्वेद 8.18.6]
Let Mata Aditi, always remaining alike-composed, protect our cattle-animals during the day & night. She should protect us with always-ever increasing protection means-measures from sins.
उत स्या नो दिवा मतिरदितिरूत्या गमत्। सा शान्ताति मयस्करदप स्त्रिधः
स्तुति योग्य वे माता अदिति रक्षा के साथ दिन में हमारे पास आवें। वे शान्ति दाता हमें शान्ति प्रदान करते हुए सुख प्रदान करें। वे हमारी बाधाओं को दूर करें।[ऋग्वेद 8.18.7]
Worshipable Mata Aditi should come to us during the day, for our protection. She should grant us peace, tranquillity, solace added with comforts. She should remove our hurdles.
उत त्या दैव्या भिषजा शं नः करतो अश्विना। युयुयातामितो रपो अप स्त्रिधः
प्रख्यात देव चिकित्सक दोनों अश्विनी कुमार हमें सुख प्रदान करें। हमारे पापों को हटाएँ। शत्रुओं को हमसे दूर करें।[ऋग्वेद 8.18.8]
Famous physician-doctor of the demigods-deities Ashwani Kumars, should grant us pleasure. They should remove our sins and repel our enemies.
शमग्निरग्निभिः करच्छं नस्तपतु सूर्यः। शं वातो वात्वरपा अप स्रिध:
नाना गाह्यपत्य आदि अग्नियों के द्वारा अग्नि देवता हमारे रोगों को शान्त करें। सूर्य देव सुख दाता होकर तपें। वायु देव पाप-ताप शून्य होकर बहें। शत्रुओं को हमसे दूर करें।[ऋग्वेद 8.18.9]
Agni Dev should cure our ailments-disease with various forms of Agni-Gahypaty etc. Let Sury Dev shine becoming comfortable. Vayu Dev should blow becoming free from sins and heat. They should keep our enemies away from us.
अपामीवामप स्त्रिधमप सेधत दुर्मतिम्। आदित्यासो युयोतना नो अंहसः
हे आदित्य गण! हमसे रोग और शत्रुओं को भी दूर करें। दुर्गति को दूर करें। हे आदित्य गण! हमें (आप) पापों से सदैव दूर रखे।[ऋग्वेद 8.18.10]
दुर्गति :: दुर्दशा, दरिद्रता; misery, turmoil, misfortune.
Hey Adity Gan! Keep sins, diseases and enemies away from us. Keep off turmoil-misfortune away from us.
युयोता शरुमस्मदाँ आदित्यास उतामतिम्। ऋधग्द्वेषः कृणुत विश्ववेदसः
हे आदित्य गण ! हमसे हिंसकों को अलग करें। दुर्बुद्धि को हमसे दूर करें। हे सर्वज्ञ गादित्यों। शत्रुओं को हमसे पृथक करें।[ऋग्वेद 8.18.11]
Hey all knowing Adity Gan! Isolate the violent, depraved, wicked-notorious & enemies from us. 
तत्सु नः शर्म यच्छतादित्या यन्मुमोचति। एनस्वन्तं चिदेनसः सुदानवः 
हे शोभनदान देने वाले आदित्यों। आप लोगों का ज्ञान पापी स्तोता को भी पाप से मुक्त करता है, आप ऐसा ज्ञान हमें प्रदत्त करें।[ऋग्वेद 8.18.12]
Hey Adity Gan making gracious donations! Your knowledge can free the sinner Stota from sins. Enlighten us with this sort of learning.
यो नः कश्चिद्रिरिक्षति रक्षस्त्वेन मर्त्यः। स्वैः ष एवै रिरिषीष्ट युर्जनः
जो कोई मनुष्य हमें राक्षस भाव से मारना चाहता है, वह मनुष्य हमसे दूर जाकर अपने ही कार्यों से नष्ट हो जाए।[ऋग्वेद 8.18.13]
Any human being who wish to kill us due to his demonic behaviour should go away from us and perish due to his wicked deeds.
समित्तमघमश्नवद्दुःशंसं मर्यं रिपुम्। यो अस्मत्रा दुर्हणावाँ उप द्वयुः
जो दुष्कीर्ति मनुष्य हमें मारने वाला और कपटी है, ऐसा पाप करने वाला और शत्रु अपने पाप से ही स्वयं नष्ट जो जाएँ।[ऋग्वेद 8.18.14]
An infamous sinner and enemy who wish to beat and deceive us, will destroy under the impact of his own sins. 
पाकत्रा स्थन देवा हृत्सु जानीथ मर्त्यम्। उप द्वयुं चाद्वयुं च वसवः
हे निवासदाता आदित्यों! आप परिपक्व ज्ञानी हैं, इसलिए कपटी और कपट न करने वाले; दोनों प्रकार के मनुष्यों को आप भलि-भाँति जानते हैं।[ऋग्वेद 8.18.15]
Hey residence-asylum granting Adity Gan! You are matured and enlightened, hence you know the deceptive and non deceptive person.
आ शर्म पर्वतानामोतापां वृणीमहे। द्यावाक्षामारे अस्मद्रपस्कृतम्
हम पर्वतीय और जलीय सुख का भजन करते हैं। हे द्यावा-पृथ्वी! पाप को हमसे दूर भगावें।[ऋग्वेद 8.18.16]
We worship-appreciate the comforts of mountainous and water related comforts-pleasure. Hey heaven & earth repel the sins away from us.
  ते नो भद्रेण शर्मणा युष्माकं नावा वसवः। अति विश्वानि दुरिता पिपर्तन 
हे वास दाता आदित्यों! अपनी सुन्दर और सुखद नौका में हमें समस्त पापों से पार लगा दें।[ऋग्वेद 8.18.17]
Hey shelter providing Adity Gan! Swim us in your beautiful and comfortable boat across all the sins.
  तुचे तनाय तत्सु नो द्राघीय आयुर्जीवसे। आदित्यासः सुमहसः कृणोतन 
हे आदित्यों! आप शोभन तेज वाले हैं। हमारे पुत्र और पौत्र को दीर्घतम (खूब लम्बी) आयु देने की कृपा करें।[ऋग्वेद 8.18.18]
Hey Adity Gan! You possess beautiful radiance. Grant longest life-longevity to our sons and grand sons.
यज्ञो हीळो वो अन्तर आदित्या अस्ति मृळत। युष्मे इद्वो अपि ष्मसि सजात्ये 
हे आदित्यों! आप जिस यज्ञ में आने की इच्छा कर रहे हैं, हमारा वह यज्ञ आपके पास ही सम्पन्न हो रहा है। आप हमें सुखी करें। आपकी मित्रता प्राप्त करके हम सदैव आपके ही होकर रहेंगे।[ऋग्वेद 8.18.19]
Hey Adity Gan! Our Yagy which you wish to patronise is held close to you. Make us happy. On being granted friendship by you, we will be devoted to you for ever.
बृहद्वरूथं मरुतां देवं त्रातरमश्विना। मित्रमीमहे वरुणं स्वस्तये
हे मरुतों के पालक इन्द्र देव! दोनों अश्विनी कुमारों, मित्र और वरुण देव के निकट प्रौढ़ और शीत, आतप आदि के निवारक गृह को मङ्गल के लिए, हम आपसे माँगते हैं।[ऋग्वेद 8.18.20]
प्रौढ़ :: पूर्णतः बढ़ा हुआ, मध्य अवस्था को प्राप्त; adult, matured.
Hey nurturer of Marud Gan Indr Dev! We wish to have that house which is fully built up, protective from cold-winters and free from troubles-tensions, close to both Ashwani Kumars, Mitr and Varun Dev.
अनेहो मित्रार्यमन्नृवद्वरुण शंस्यम्। त्रिवरूथं मरुतो यन्त नश्छर्दिः
हे मित्र, अर्यमा, वरुण और मरुद्गणों आप लोग हिंसा रहित, पुत्रादि युक्त और स्तुत्य हैं। शीत, आतप और वर्षा से निवारण करने वाला गृह हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.18.21]
Hey Mitr, Aryma, Varun and Marud Gan, you are free from violence, have sons and are worshipable. Grant us a house which is free from cold, heat and rains. 
ये चिद्धि मृत्युबन्धव आदित्या मनवः स्मसि। प्र सू न आयुर्जीवसे तिरेतन
हे आदित्यों! जो मनुष्य मृत्यु के मुख में जाने वाले हैं अर्थात् जिनकी अल्पायु है, उनके जीने के लिए उनकी आयु को बढ़ावें।[ऋग्वेद 8.18.22]
Hey Adity Gan! Prolong the life of those humans who are going to die, who were granted short life span by destiny.(12.04.2024ausM)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (19) :: ऋषि :- सोभरि, काण्व; देवता :- अग्रि, आदित्य;  छन्द :- विराट, उष्णिक्, पंक्ति, बृहती। 
तं गूर्धया स्वर्णरं देवासो देवमरतिं दधन्विरे। देवत्रा हव्यमोहिरे
हे स्तोताओं! प्रख्यात अग्नि देव की स्तुति करें। ये स्वर्ग में हवि ले जाने वाले हैं। ऋत्विक् लोग स्वामी अग्निदेव के पास जाते हैं और देवताओं को पुरोडाशादि प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 8.19.1]
Hey Stotas! Worship-pray famous Agni Dev. He carries the oblations-offerings to heavens. The Ritviz approach Lord Agni Dev and make offerings to demigods-deities. 
विभूतरातिं विप्र चित्रशोचिषमग्निमीळिष्व यन्तुरम्।
अस्य मेधस्य सोम्यस्य सोभरे प्रेमध्वराय पूर्व्यम्
मेधावी सौभरि, प्रभूतदानी, विचित्र तेजस्वी, सोमसाध्य, इस यज्ञ के नियन्ता और पुरातन अग्नि देव की यज्ञ करने के लिए स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 8.19.2]
Intelligent Soubhari, who make ample donations, an amazing ascetic, making efforts for having Som, worship eternal Agni Dev who is the lord-controller of this Yagy.
यजिष्ठं त्वा ववृमहे देवं देवत्रा होतारममर्त्यम्। अस्य यज्ञस्य सुक्रतुम्
हे अग्नि देव! आप याज्ञिकों में श्रेष्ठ, देवताओं में अतिशय दानादि गुण युक्त, होता, अमर और इस यज्ञ के सुन्दर कर्ता हैं। हम आपका भजन करते हैं।[ऋग्वेद 8.19.3]
Hey Agni Dev! You are best amongest the Yagy performers, possessing the quality of making too much donations, immortal and the doer of this Yagy. We recite chants for you.
ऊर्जो नपातं सुभगं सुदीदितिमग्निं श्रेष्ठशोचिषम्।
स नो मित्रस्य वरुणस्य सो अपामा सुम्नं यक्षते दिवि
अन्न के प्रदाता, शोभन धन, सुन्दर प्रकाशक और प्रशस्य तेज वाले अग्नि देव की मैं स्तुति करता हूँ। वे हमारे लिए द्योतमान देव यज्ञ में मित्र और वरुण देव के सुख को लक्ष्य करके और जल देवता के सुख के लिए यज्ञकार्य सम्पन्न करें।[ऋग्वेद 8.19.4]
I worship Agni Dev who grant food grains, possess glorious wealth, shows every thing clearly & posses great aura. Let him target Mitr & Varun Dev for pleasure-comforts in our great Yagy and accomplish the Yagy for the pleasure of the deity of water.
यः समिधा य आहुती यो वेदेन ददाश मर्तो अग्नये। यो नमसा स्वध्वरः
जो मनुष्य समिधा से अग्नि देव की परिचर्या करता है, जो आहुति (आज्यादि से) अग्निदेव की परिचर्या करता है, जो वेदाध्ययन से परिचर्या करता है और जो ज्योतिष्टोम आदि सुन्दर यज्ञों से युक्त होकर नमस्कार से अग्निदेव की परिचर्या करता है। ऐसे मनुष्य श्रेष्ठता को प्राप्त करते हुए सुखों से युक्त हो जाते हैं।[ऋग्वेद 8.19.5]
A person who serve Agni Dev with wood, offerings etc. accomplish Jyotishtom etc. beautiful Yagy and salute him; attains excellence and comforts.
तस्येदर्वन्तो रंहयन्त आशवस्तस्य द्युम्नितमं यशः।
न तमंहो देवकृतं कुतश्चन न मर्त्यकृतं नशत्
उसके ही व्यापक अश्व वेगवान् होते हैं, उसी का यश सबसे अधिक होता है तथा उसे देवकृत और मनुष्य विहित पाप व्याप्त नहीं करते।[ऋग्वेद 8.19.6]
His horses are fast moving, has great glory and the sins conducted by the demigods & humans do not affect him.
स्वग्नयो वो अग्निभिः स्याम सूनो सहस उर्जा पते। सुवीरस्त्वमस्मयुः
हे बल के पुत्र और हवि आदि अन्नों के पति अग्नि देव! हम आपके गार्हपत्यादि अग्नि समूह के द्वारा शोभन अग्नियों से सम्पन्न हों। आप हम मनुष्यों को उत्तम व पराक्रमी पुत्र प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.19.7]
Hey son of Bal, the lord of food grains and offerings, Agni Dev! Let us have Garhpaty and other forms of fire. Grant us excellent and valour possessing sons.
प्रशंसमानो अतिथिर्न मित्रियोऽग्नी रथो न वेद्यः।
त्वे क्षेमासो अपि सन्ति साधवस्त्वं राजा रयीणाम्
प्रशंसक अतिथि के समान अग्नि देव स्तोताओं के हितैषी और रथ के समान फलदाता है। हे अग्नि देव! आपमें समीचीन रक्षण हैं। आप धन के स्वामी हैं।[ऋग्वेद 8.19.8]
समीचीन :: यथार्थ, ठीक, उचित, वाजिब; appropriate, proper, suitable, expediency.
Agni Dev is well wisher of the Stotas like a guest and reward like the charoite. Hey Agni Dev! You have the power to grant proper protection.
सो अद्धा दाश्वध्वरोऽने मर्तः सुभग स प्रशंस्यः। स धीभिरस्तु सनिता
हे शोभन धन अग्ग्रि देव! जो मनुष्य यज्ञ करता है, वह सत्य फल को प्राप्त करता है। आप स्तुति के योग्य हैं। हमारी रक्षा अपने उत्तम ज्ञान द्वारा करें।[ऋग्वेद 8.19.9]
Possessor of beautiful wealth, hey Agni Dev! One who conduct Yagy, attain suitable reward. You are worshipable. Protect us through best means.
यस्य त्वमूर्ध्वा अध्वराव तिष्ठसि क्षयद्वीरः स साधते।
सो अर्वद्भिः सनिता सः विपन्युभिः स शूरैः सनिता कृतम्
हे अग्रि देव! जिस यजमान के यज्ञ को निष्पन्न करने के लिये आप आने के लिए बाध्य होते हैं, वह निवास पुत्रादि से युक्त होकर समस्त कार्यों को सिद्ध कर डालता है। वह अश्चों द्वारा की गई विजय को भोगता है। वह मेधावियों और शूरों के द्वारा पूजनीय होता है।[ऋग्वेद 8.19.10]
Hey Agni Dev! The Ritviz towards whom, you are duty bound, to accomplish has sons and accomplish all his desires-endeavours. He enjoy the victory attained by means of horses. He is worshiped by the intelligent and brave people.
यस्याग्निर्वपुगृहे  स्तोमं चनो दधीत विश्ववार्यः। हव्या वा वेविषद्विषः
संसार के स्वीकरणीय और रूपवान् (दीप्तिमान्) अग्नि देव जिस यजमान के गृह में स्तोत्र और अन्न को धारित करते हैं, उसके हव्य देवताओं को प्राप्त होते हैं।[ऋग्वेद 8.19.11]
The demigods-deities accept the offerings-oblations made by the Ritviz whose Strotr and food grains are supported by Agni Dev.
विप्रस्य वा स्तुवतः सहसो यहो मक्षूतमस्य रातिषु।
अवोदेवमुपरिमर्त्य कृधि वसो विविदुषो वचः
हे बल के पुत्र और वासद अग्नि देव! मेधावी स्तोता के दान में क्षिप्तकर्ता अभिज्ञाता के वचन को देवताओं के नीचे और मनुष्यों के ऊपर स्थापित करें।[ऋग्वेद 8.19.12]
Hey son of Bal and Vasad-dwelling granting Agni Dev! The intelligent Stota who make prompt offerings is below par with the demigods-deities and above the humans.
यो अग्निं हव्यदातिभिर्नमोभिर्वा सुदक्षमाविवासति। गिरा वाजिरशोचिषम्
जो यजमान हव्यदान और नमस्कार द्वारा शोभन बल वाले अग्नि देव की परिचर्या करता है अथवा क्षिप्रगामी तेज वाले अग्नि देव की सेवा करता है, वह समृद्धशाली होता है।[ऋग्वेद 8.19.13]
The Ritviz who serve by making offerings & salutation to possessor of gracious strength and quick mover Agni Dev become prosperous.
समिधा यो निशिती दाशददितिं धामभिरस्य मर्त्यः।
विश्वेत्स धीभिः सुभगो जनाँ अति द्युम्नैरुन तारिषत्
जो मनुष्य इन अग्नि देव के गार्हपत्यादि से अखण्डनीय अग्नि देव की समिधा के द्वारा सेवा करता है, वह कर्मों के द्वारा सौभाग्यवान् होकर द्योतमान् यश के द्वारा जल के समान समस्त मनुष्यों को लाँघ जाता है।[ऋग्वेद 8.19.14]
यश :: ख्याति, प्रसिद्धि, प्रशंसा, महिमा, renown, kudos.
The human who serve Garhpaty etc. form of fire with wood become lucky and become above all humans with renown like the water.
तदग्ने द्युम्नमा भर यत्सासहत्सदने कं चिदत्रिणम्। मन्युं जनस्य दूढ्यः॥
हे अग्नि देव! आप हमें ऐसा तेज प्रदान करें, जिससे यज्ञ में आगमन करने वाले दुष्टों को नियंत्रित किया जा सके और मनुष्य के क्रोध और उसकी आसुरी वृत्ति को दूर किया जा सके।[ऋग्वेद 8.19.15]
Hey Agni Dev! Grant such power with which we can counter-control the wicked coming to Yagy. It should remove the anger and demonic tendencies of the humans.
येन चष्टे वरुणो मित्रो अर्यमा येन नासत्या भगः।
वयं तत्ते शवसा गातुवित्तमा इन्द्रत्वोता विधेमहि
अग्नि देव के जिस तेज के द्वारा वरुण देव, मित्र और अर्यमा ज्योति प्रदान करते है तथा अश्वनी कुमार और भग देवता जिसके द्वारा प्रकाश प्रदान करते हैं, हम बल के द्वारा सबसे अधिक स्तोत्रज्ञ होकर और इन्द्र देव के द्वारा रक्षित होकर, हे अग्नि देव! आपके उसी तेज की उपासना करते हैं।[ऋग्वेद 8.19.16]
The aura of Agni Dev with which Varun Dev, Mitr, Aryma, Ashwani Kumars and Bhag Dev grant-produce light-shine, glow, we worship him being protected by Indr Dev on being the Strotagy above all.
ते घेदग्ने स्वाध्यो ३ ये त्वा विप्र निदधिरे नृचक्षसम्। विप्रासो देव सुक्रतुम्
हे मेधावी और द्युतिमान अग्नि देव! जो मेधावी ऋत्विक् मनुष्यों के साक्षि स्वरूप और सुन्दर कर्म करने वाले आपको धारित करते हैं, वे ही उत्तम ध्यान करने वाले होते हैं।[ऋग्वेद 8.19.17]
साक्षी :: गवाह; testament witness.
Hey intelligence and glowing Agni Dev! The intelligent Ritviz are like testament of humans, performer of gracious deeds have you as deity & make best form of meditation-concentration.
त इद्वेदिं सुभग त आहुतिं ते सोतुं चक्रिरे दिवि।
त इद्वाजेभिर्जिग्युर्महद्धनं ये त्वे कामं न्येरिरे
हे शोभनधन अग्रि देव। वे ही यजमान आपके लिए वेदी प्रस्तुत करते हैं, आहुति देते है, द्योतमान (सौत्य) दिन में सोमाभिषव करने के लिए प्रयत्न करते हैं, ये ही बल के द्वारा यथेष्ठ धन प्राप्त करते हैं और वे ही आपमें अभिलाषा पाते हैं।[ऋग्वेद 8.19.18]
Hey possessor of gracious wealth, Agni Dev! Such Ritviz offer Vedi to you, make offerings, extract Somras during the day, get enough money by force and get their ambitions accomplished.
भद्रो नो अग्ग्रिराहुतो भद्रा रातिः सुभग भद्रो अध्वरः। भद्रा उत प्रशस्तयः
हे आहूत अग्नि देव! हमारे लिए कल्याणकारी हों। हे शोभनधन अग्नि देव! आपका दान हमारे लिए कल्याणकारी हों। यज्ञ कल्याणकारी हों। स्तुतियाँ कल्याणमयी हों।[ऋग्वेद 8.19.19]
Hey worshiped Agni Dev! You should be beneficial to us. Hey possessor of gracious wealth Agni Dev! Your donations to us should be beneficial to us. Yagy should be beneficial to us. Stutis-sacred hymns should be beneficial to us.
भद्रं मनः कृणुष्व वृत्रतूर्ये येना समत्सु सासहः।
अव स्थिरा तनुहि भूरि शर्धतां वनेमा ते अभिष्टिभिः
युद्ध में मन से कल्याणकारी बने। इस मन के द्वारा आप संग्राम में शत्रुओं को परास्त करें। अभिभव करने वाले शत्रुओं के स्थिर और प्रभूत बल को मनोवांछित सुखों से सम्पन्न होकर हम आपकी उपासना कर सके।[ऋग्वेद 8.19.20]
अभिभव :: पराजय, हार, तिरस्कार, अपयश; constraint.
You should be beneficial to us in the war. Defeat the enemy with the innerself in the war. Let us worship you having got-obtained the desired comforts from the constrained enemy's strength.(13.04.2024ausE
ईळे गिरा मनुर्हितं यं देवा दूतमरतिं न्येरिरे। यजिष्ठं हव्यवाहनम्
प्रजापति के द्वारा स्थापित अग्नि देव की मैं पूजा करता हूँ। वह सबसे अधिक यज्ञ करने वाले, हव्य वाहक तथा ईश्वर है और देवताओं के द्वारा दूत बनाकर भेजे जाते हैं।[ऋग्वेद 8.19.21]
I pray to Agni Dev establish by Prajapati. He is the deity who carries offerings and is sent as a messenger by the demigods-deities. 
तिग्मजम्भाय तरुणाय राजते प्रयो गायस्यग्नये।
यः पिंशते सूनृताभिः सुवीर्यमग्निर्घृतेभिराहुतः
तीक्ष्ण लपटों वाले, चिर युवा और शोभित अग्नि देव को लक्ष्य कर हवी रूप अन्न का गायन करें। वे प्रिय और सत्य वचनों से स्तुति तथा घृत द्वारा आहूत होकर स्तोता को शोभन पराक्रम प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 8.19.22]
Make offerings of food grains to always young, gracious Agni Dev with blazing flames. On being worshiped with truthful, sweet talk & ghee, he grants valour-bravery to the Stota-worshiper.
यदी घृतेभिराहुतो वाशीमग्निर्भरत उच्चाव च। असुरइव निर्णिजम्
हे घृत के द्वारा आहूत अग्नि देव! जिस समय ऊपर और नीचे शब्द करते हैं, उस समय असुर सूर्य के समान अपने रूप को प्रकाशित करते हैं।[ऋग्वेद 8.19.23]
Hey Agni dev worshiped with offerings of Ghee! When sound is produced in upper & lower segments of fire, the demons become visible like the Sun light. 
यो हव्यान्यैरयता मनुर्हितो देव आसा सुगन्धिना।
विवासते वार्याणि स्वध्वरो होता देवो अमर्त्यः
मनु प्रजापति के द्वारा स्थापित और प्रकाशक जो अग्नि देव सुगंधि मुख के द्वारा देवताओं के पास हव्य को भेजते हैं, वे ही सुन्दर यज्ञ वाले, देवताओं को बुलाने वाले, दीप्तिमान और अमर अग्निदेव से धन की कामना करते हैं।[ऋग्वेद 8.19.24]
सुगंधि :: गंध, निशान, पता, प्रतिष्ठा, ख़ूशबू, इत्र, सुवास; perfume, scent, fragrance. 
Aurous, immortal  Agni Dev established by Prajapati, who carries offerings through his fragrant mouth to Demigods-deities, makes invitations to demigods-deities bestows upon his adorers desirable riches-wealth.
यदग्रे मर्त्यस्त्वं स्यामहं मित्रमहो अमर्त्यः। सहसः सूनवाहुत॥
हे बल के पुत्र, घृत हुत और अनुकूल दीप्ति वाले अग्नि देव! मैं मरण धर्मा हूँ; आपकी उपासना से मैं आपके समान अमर हो जाऊँ।[ऋग्वेद 8.19.25]
Hey son of Bal, radiant, worshiped with Ghee, Agni Dev! I am perishable. By worshiping you I shall become immortal like you
न त्वा रासीयाभिशस्तये वसो न पापत्वाय सन्त्य।
न मे स्तोतामतीवा न दुर्हितः स्यादग्ने न पापया
हे वासक अग्नि देव! मिध्यापवाद के लिए आपको मैं तिरस्कृत नहीं करूँगा। पाप के लिए आपको तिरस्कृत नहीं करूँगा। मेरा स्तोता अयुक्त वचनों के द्वारा आपकी अवहेलना नहीं करेगा। हे सम्भजनीय अग्रि देव! मेरा शत्रु दुर्बुद्धि न हो। वह पाप बुद्धि द्वारा मुझे बाधित न करे।[ऋग्वेद 8.19.26]
वासक :: सुवासित करनेवाला; flavouring.
तिरस्कृत :: तुच्छ समझने वाला, अपमानित, अनादृत, जिसकी अवज्ञा की गई हो; contemner, discard, ignore, scornful. insult, despise, contempt, scorn.
Hey pleasant smelling Agni dev! I will not discard-ignore you for falsehood, sins. My Stota will not avoid you for unsuitable words. My enemy should not be wicked-vicious. He should not obstruct me with his crookedness.
पितुर्न पुत्रः सुभृतो दुरोण आ देवाँ एतु प्र णो हविः
जिस प्रकार पुत्र पिता के लिए करता है, उसी प्रकार पोषणकर्ता अग्नि देव यज्ञगृह में देवताओं के लिए हमारा हव्य प्रेरित करते हैं।[ऋग्वेद 8.19.27]
The way a father act for his son, nurturer Agni Dev carries our offerings to demigods-deities in the Yagy house.
तवाहमग्न ऊतिभिर्नेदिष्ठाभिः सचेय जोषमा वसो। सदा देवस्य मर्त्यः
हे वासक इन्द्र देव! निकटवर्ती रक्षण के द्वारा मैं मनुष्य सदा आपकी प्रसन्नता से सेवा करूं।[ऋग्वेद 8.19.28]
Hey Indr Dev, with decent smell! Let me always serve you happily, under your protection.
तव क्रत्वा सनेयं तव रातिभिरग्ने तव प्रशस्तिभिः।
त्वामिदाहुः प्रमतिं वसो ममाग्ने हर्षस्व दातवे
हे अग्नि देव! आपके परिचरण के द्वारा मैं आपका भजन करूँगा। हव्य दान के द्वारा और प्रशंसा के द्वारा भजन करूंगा। हे वासक अग्नि देव! आप प्रकृष्ट बुद्धि हैं। लोग आपको मेरा रक्षक कहते हैं। हे अग्नि देव! आप हमें अपनी कृपा का अनुदान देने के निमित्त प्रसन्न हों।[ऋग्वेद 8.19.29]
प्रकृष्ट :: उत्तम, श्रेष्ठ, प्रधान, मुख्य; excellent.
Hey Agni Dev! I will serve and chant your names. I will make offerings and recite your sacred hymns appreciating you. Hey pleasant smelling Agni Dev! You have excellent intelligence. People call you my protector. Hey Agni Dev! You should happy with us giving us support and grants.
प्र सो अग्ने तवोतिभिः सुवीराभिस्तिरते वाजभर्मभिः। यस्य त्वं सख्यमावरः
हे अग्नि देव! आप जिस यजमान से मित्रता करते हैं, वह आपकी वीर और अन्नपूर्ण रक्षा के द्वारा ही बढ़ता है।[ऋग्वेद 8.19.30]
Hey Agni Dev! The Ritviz with whom you are friendly, progress due to the protection granted by you and grant of food grains.
तव द्रप्सो नीलवान्वाश ऋत्विय इन्धानः सिष्णवा ददे।
त्वं महीनामुषसामसि प्रियः क्षपो वस्तुषु राजसि
हे सोम से सिञ्चित, द्रवशील, नीड़वान्, शब्दायमान, वसन्तादि ऋतुओं में उत्पन्न और दीप्तिशाली अग्नि देव! आपके लिए सोम गृहीत होता है। आप विशाल उषाओं के मित्र हैं। रात्रिकाल में आप समस्त वस्तुओं को प्रकाशित करते हैं।[ऋग्वेद 8.19.31]
Hey radiant Agni Dev, nurtured with Som, fluid, possessing shelter, sound making arising in the seasons like spring! Som is stored for you. You are friendly with the Ushas. You illuminate all goods at night.
तमागन्म सोभरयः सहस्त्रमुष्कं स्वभिष्टिमवसे। सम्राजं त्रासदस्यवम्
रक्षण के लिए हम सोभरि लोग अग्नि को प्राप्त हुए हैं। हे अग्नि देव! बहुतेजस्वी, सुन्दर रूप से आने वाले सम्राट् और त्रसदस्यु द्वारा स्तुत्य हैं।[ऋग्वेद 8.19.32]
We people, called Sobhri reached Agni Dev for protection. Hey Agni Dev! You have multiple aura-radiance, gracious looks, arrive like a lord and worshiped by Trasdasyu.
यस्य ते अग्ने अन्ये अग्नय उपक्षितो वयाइव।
विपो न द्युम्ना नि युवे जनानां तव क्षत्राणि वर्धयन्
हे अग्नि देव! अन्य अग्नि (गार्हपत्यादि) वृक्ष की शाखा के सदृश आपके पास रहते हैं। मनुष्यों में मैं आपके बल को स्तुति द्वारा वर्द्धित करते हुए अन्य स्तोताओं के समान यश को प्राप्त करूँगा।[ऋग्वेद 8.19.33]
Hey Agni Dev! Other forms of Agni-fires accompany you like the branch of a tree.  Amongest the humans I will boost-enhance your strength with Stuti and attain glory like other Stotas.
यमादित्यासो अद्रुहः पारं नयथ मर्त्यम्। मघोनां विश्वेषां सुदानवः
हे द्रोह रहित और उत्तम दान वाले आदित्यों! हवि वाले सभी लोगों के बीच जिसे आप पार ले जाते हैं, वही फल प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 8.19.34]
Hey non revolting and excellent donor Adity Gan! One, who is supported by you amongest the people making offerings gets rewards.
यूयं राजानः कं चिच्चर्षणीसहः क्षयन्तं मानुषाँ अनु।
वयं ते वो वरुण मित्रार्यमन्त्स्यामेदृतस्य रथ्यः
हे शोभा संयुक्त और शत्रुओं के अभिभविता आदित्यो। मनुष्यों में घातक शत्रुओं को पराजित करें। वरुण देव, मित्र और अर्थमा, ये ही आपके यज्ञ के नेता होंगे।[ऋग्वेद 8.19.35]
Hey Adity Gan, associated with glory & degrader of the enemies! Defeat the dreaded enemy amongest the humans. Varun Dev, Mitr and Aryma should be leaders-deities of your Yagy
अदान्मे पौरुकुत्स्यः पञ्चाशतं त्रसदस्युर्वधूनाम्। मंहिष्ठो अर्थः सत्पतिः
पुरुकुत्स के पुत्र त्रसदस्यु ने मुझे पचास मित्र प्रदान किए। वे बड़े दानी, आर्य (स्वामी) और स्तोताओं के पालक थे।[ऋग्वेद 8.19.36]
Son of Purukuts Trasdasyu granted me fifty friends. They were great donors, Ary (pious, virtuous, righteous) and nurturer of the Stotas.
उत मे प्रयियोर्वयियोः सुवास्त्त्वा अधि तुग्वनि।
तिसृणां सप्ततीनां श्यावः प्रणेता भुवद्वसुर्दियानां पतिः॥
सुन्दर निवास वाली नदी के किनारे पर श्यामवर्ण बैलों के नेता और पूज्य धन दान के योग्य दो सौ दस गाँवों के स्वामी त्रसदस्यु ने धन और वस्त्रादि प्रदान किए।[ऋग्वेद 8.19.37]
Lord of two hundred & ten villages Trasdasyu, master of black coloured bulls, donated wealth and cloths over the beautiful banks of river.(15.04.2024ausM)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (20) :: ऋषि :- सोभरि, काण्व; देवता :- मरुत; छन्द :- प्रगाथ।
आ गन्ता मा रिषण्यत प्रस्थावानो माप स्थाता समन्यवः। स्थिरा चिन्न मयिष्णवः॥
हे प्रस्थान वाले मरुद्रण! आप आगमन करें। हमें मत मारना। समान तेजस्कर होकर दृढ़ पर्वतों को भी (आप) कम्पायमान् करते हैं। हमें छोड़कर अन्यत्र न जाना।[ऋग्वेद 8.20.1]
Hey migrating Marud Gan! You should come. Do not kill us. Having same strength you tremble rigid-fixed mountains. Do not leave us and go else where. 
वीळुपविभिर्मरुत ऋभुक्षण आ रुद्रासः सुदीतिभिः।
इषा नो अद्या गता पुरुस्पृहो यज्ञमा सोभरीयवः॥
हे प्रकाशमान निवास वाले मरुतो! सुन्दर दीप्ति वाले रथनेमि के रथ से आगमन करें। हे सबके अभिलषणीय मरुतो! सोभरि की अभिलाषा करते हुए अन्न के साथ आज हमारे यज्ञ में पधारें।[ऋग्वेद 8.20.2]
नेमि :: घेरा, पहिए का ढाँचा घेरा या चक्कर, चक्र परिधि, प्रधि, कूएँ के ऊपर चारों ओर बँधा हुआ ऊँचा स्थान या चबूतरा, कुँए की जगत, भूमि स्थित कूप पट्ट, कूएँ की जमवट, प्रांत भाग, किनारे का हिस्सा, कूएँ के किनारे लकड़ी का वह ढाँचा जिस पर रस्सी रखते और जिसमें प्रायः घिरनो लगी रहती है;  outer ring covering the wheel, rim.
Hey Marud Gan residents of illuminated abodes! Arrive with the charoite having beautiful outer wheel of the charoite. Hey Marud Gan accomplishing the desires of every one. Accomplish the desire of Sobhri and come to our Yagy with food grains.
विद्मा हि रुद्रियाणां शुष्ममुग्रं मरुतां शिमीवताम्। विष्णोरेषस्य मीळ्हुषाम्॥
हम कर्मवान् श्री विष्णु और अभिलषणीय जल के सेचक रुद्र पुत्र मरुतो के उग्र बल को भली-भाँति जानते हैं।[ऋग्वेद 8.20.3]
सेचक :: सींचने वाला, तर करनेवाला, छिड़कनेवाला, बादल, मेघ; sprinkler.
We are aware of the might-strength of Shri Hari Vishnu and Marud Gan thoroughly-properly.
वि द्वीपानि पापतन्तिष्ठद्दुच्छ्रुनोभे युजन्त रोदसी।
प्र धन्वान्यैरत शुभ्रखादयो यदेजथ स्वभानवः॥
हे सुन्दर आयुध और दीप्ति वाले मरुतों! आप लोग जिस समय कम्पन करते हैं, उस समय सभी द्वीप धराशायी होने लगते हैं। स्थावर (वृक्षादि) पदार्थ दुःख प्राप्त करते हैं, स्वर्ग और पृथ्वी लोक भी काँप जाते हैं, गमनशील जल ही बहता है।[ऋग्वेद 8.20.4]
Hey Marud Gan with beautiful weapons and radiance! When you tremble-vibrate, all islands-continents start breaking down. Fixed-rigid (stationary) being are pained. Heavens and earth tremble-shake and water start flowing.
अच्युता चिद्वो अज्मन्ना नानदति पर्वतासो वनस्पतिः। भूमिर्यामेषु रेजते॥
हे मरुतों! आपके संग्राम में जाते समय न गिरने वाले मेघ और वनस्पति आदि बार-बार शब्द करते हैं तब पृथ्वी कम्पायमान् होती है।[ऋग्वेद 8.20.5]
Hey Marud Gan! When you go to war clouds and vegetation start making sound repeatedly and earth start trembling.
अमाय वो मरुतो यातवे द्यौर्जिहीत उत्तरा बृहत्।
यत्रा नरो देदिशते तनूष्वा त्वक्षांसि बाह्वोजसः॥
हे मरुतों! आपके बल के गमन के लिए द्युलोक विशाल अन्तरिक्ष को छोड़कर ऊपर चला गया। प्रचुर बल वाले और नेता मरुद्गण अपने शरीर में दीप्त आभरण धारण करते हैं।[ऋग्वेद 8.20.6]
Hey Marud Gan! To let your strength spread, heavens went up in space. Possessor of ample strength and power, leaders Marud Gan decorate their body with aurous-radiant ornaments.
स्वधामनु श्रियं नरो महि त्वेषा अमवन्तो वृषप्सवः। वहन्ते अहुतप्सवः॥
प्रदीप्त, बलवान्, वर्षण रूप, अकुटिल और नेता मरुद्गण हवीरूप अन्न के लिए महती शोभा धारित करते हैं।[ऋग्वेद 8.20.7]
अकुटिल :: सरल, सीधा; plain, simple-minded.
Radiant, mighty, like the rains, leaders, simple minded Marud Gan possess glory for food grains as offerings.
गोभिर्वाणो अज्यते सोभरीणां रथे कोशे हिरण्यये।
गोबन्धवः सुजातास इषे भुजे महान्तो नः स्परसे नु॥
सोभरि आदि ऋषियों के शब्द द्वारा स्वर्णिम रथ के मध्य देश में मरुतों की वीणा बज रही है। गोमातृक, शोभनजन्मा और महानुभाव मरुद्गण हमारे अन्न, भोग और प्रीति को प्रदान करने के लिए यत्नशील हों।[ऋग्वेद 8.20.8]
Veena of Marud Gan is playing in the centre of the golden charoite of Rishis like Sobhari. Born out of glorious origin, like the cows great Marud Gan should be eager to provide food grains, comforts and affection.
प्रति वो वृषदञ्जयो वृष्णे शर्धाय मारुताय भरध्वम्। हव्या वृषप्रयाव्णे॥
हे सोमवर्ष के अध्वर्युओं! वृष्टि दाता मरुतों के बल के लिए हव्य ले आवें। इस बल के द्वारा वे सेचन करने वाले और उत्तम गमन वाले होते हैं।[ऋग्वेद 8.20.9]
Hey priests of Somvarsh! Bring offerings for Marud Gan producing rains. They irrigate and move in decent manner.
वृषणश्वेन मरुतो वृषप्सुना रथेन वृषनाभिना।
आ श्येनासो न पक्षिणो वृथा नरो हव्या नो वीतये गत॥
हे नेता मरुद्गणों! सेचन समर्थ, अश्व से युक्त, वृष्टिदाता के रूप से संयुक्त और वर्षक नाभि से सम्पन्न रथ पर हव्य के पास श्येन पक्षी के समान अनायास यज्ञस्थल में पधारें।[ऋग्वेद 8.20.10]
Hey leaders Marud Gan! Capable of irrigation, possessing horses, rains granting, having hybrid excel of the charoite, come suddenly at the Yagy site like the falcon.(15.04.2024ausE)
समानमञ्ज्येषां वि भ्राजन्ते रुक्मासो अधि बाहुषु। दविद्युतत्पृत्यृष्टयः
उन मरुतों की पहनने की पोशाक एक ही प्रकार की है। प्रदीप्त सुवर्णमय हार उनके गले में विराजित है। बाहुओं में आयुध अतीव प्रकाशित हो रहे हैं।[ऋग्वेद 8.20.11]
Dresses of Marud Gan are alike. Gracious-beautiful golden necklace are there in their necks. Weapons are visible in their hands.
त उग्रासो वृषण उग्रबाहवो नकिष्टनूषु येतिरे।
स्थिरा धन्वान्यायुधा रथेषु वोऽनीकेष्वधि श्रियः
उग्र, वर्षक और उग्र-बाहुओं वाले मरुद्गण अपने शरीर के रक्षण के लिए यत्न नहीं करते। हे मरुतों! आपके रथ पर आयुध और धनुष सुदृढ़ हैं। इसीलिए रणक्षेत्र में शत्रुओं पर आपकी ही विजय होती है।[ऋग्वेद 8.20.12]
Furious, showering Marud Gan possessing strong arms do not try to protect themselves. Hey Marud Gan! Your charoite and weapons are strong. Therefore, you win in the war.
येषामर्णो न सप्रथो नाम त्वेषं शश्वतामेकमिद्भुजे। वयो न पित्र्यं सहः
जल के समान सर्वत्र विस्तीर्ण और दीप्त बहुसंख्यक मरुद्गणों का नाम एक होकर भी पैतृक दीर्घ स्थायी अन्न के समान भोग के लिए यथेष्ट होता है।[ऋग्वेद 8.20.13]
Broad like water and radiant, majority of Marud Gan have common parental name & they utilize the food grains or consumption in long run.
तान्वन्दस्व मरुतस्ताँ उप स्तुहि तेषां हि धुनीनाम्।
अराणां न चरमस्तदेषां दाना मह्ना तदेषाम्
उन मरुतों की हम वन्दना करें। उनके लिए स्तुति करें। आर्य स्वामी के हीन सेवक के समान हम कम्पनोत्पादक मरुतों के हीन सेवक है। उनका दान महिमा से युक्त है।[ऋग्वेद 8.20.14]
Let us worship Marud Gan. We should recite Stuti for them. We are the low grade-category workers of Marud Gan just as the master is a Ary-virtuous person.
सुभगः स व ऊतिष्वास पूर्वासु मरुतो व्युष्टिषु। यो वा नूनमुतासति॥
हे मरुद्गणों! आपका रक्षण पाकर स्तोता व्यतीत हुए दिनों में सुभग हुआ। जो स्तोता है, वह निःसंदेह ही आपका है।[ऋग्वेद 8.20.15]
Hey Marud Gan! The Stota is lucky to have protection-shelter under you. There is no doubt that the Stota belongs to you.
यस्य वा यूयं प्रति वाजिनो नर आ हव्या वीतये गथ।
अभि ष द्युम्नैरुत वाजसातिभिः सुम्मा वो धूतयो नशत्
हे नायक मरुद्गणी। हव्य भक्षण के लिए जिस हविष्मान् यजमान के हव्य के पास (आप) जाते हैं, हे कम्पक मरुद्गणी! वह आपके द्युतिमान् अन्न और अन्न सम्भोग के द्वारा आपके सुख को चारों ओर व्याप्त करता है।[ऋग्वेद 8.20.16]
Hey leaders Marud Gan! The Ritviz whom you visit for accepting offerings of food grains spread your pleasure-comforts all around.
यथा रुद्रस्य सूनवो दिवो वशन्त्यसुरस्य वेधसः। युवानस्तथेदसत्
रुद्र पुत्र, वर्षा जल अथवा बल के कर्ता और नित्य युवा मरुद्राण जिस प्रकार अन्तरिक्ष से आकर हमारी कामना पूर्ण करते है, यह स्तोत्र वैसा ही हैं।[ऋग्वेद 8.20.17]
This Strotr matches the action of Marud Gan who are the sons of Rudr, rain showering and the performers of Bal, always young, arrive from the space and accomplish our desires.
ये चार्हन्ति मरुतः सुदानवः स्मन्मीळ्हुषश्चरन्ति ये।
अतश्चिदा न उप वस्यसा हृदा युवान आ ववृध्वम्
जो सुन्दर तान वाले यजमान मरुतों की पूजा करते हैं और जो इन सेचन कर्ताओं को हव्य द्वारा पूजित करते हैं, हम इन दोनों प्रकार के लोगों के समान हैं। हे वीर मरुतों! आप हमारे पास आकर उदार हृदय से हमें समृद्धि प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.20.18]
The Ritviz worship Marud Gan in beautiful musical notes-tones. One who make offerings to these nurturing-irrigating Marud Gan matches us. Hey brave Marud Gan! Come to us and make us prosperous, liberally.
यून ऊ षु नविष्ठया वृष्णः पावकाँ अभि सोभरे गिरा। गाय गाइव चकृषत्॥
हे सोभरि ऋषिः नित्य युवा, अतीव वृष्टिदाता और पावक मरुद्गण का अतीव अभिनव वाक्यों द्वारा सुन्दर रूप से उसी प्रकार स्तवन करें जिस प्रकार कृषक अपने बैलों की स्तुति करता है।[ऋग्वेद 8.20.19]
Hey Sobhari Rishi, worship Marud Gan with beautiful compositions, who are beautiful always young, showering lots of rains, the way a farmer worship his bulls.
साहा ये सन्ति मुष्टिहेव हव्यो विश्वासु पृत्सु होतृषु।
वृष्णश्चन्द्रान्न सुश्रवस्तमान् गिरा वन्दस्व मरुतो अह
सभी युद्धों में योद्धा लोगों के आह्वान करने पर मरुद्गण अभिभवकर्ता होते हैं। आह्वान के योग्य मल्ल के समान सम्प्रति आह्लादकर, वर्षक तथा अतीव यशस्वी मरुतों की शोभन वाक्यों द्वारा प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 8.20.20]
मल्ल :: कुश्ती लड़ने वाला, पहलवान; एक प्राचीन व्रात्य क्षत्रिय जाति; wrestler.
On being invoked by the warriors in the war Marud Gan leads the enemies to defeat. Worship revered-honoured, rain showering Marud Gan with beautiful compositions-Strotr like the prize winning fighter-wrestler who deserve invocation.
गावश्चिद्या समन्यवः सजात्येन मरुतः सबन्धवः। रिहते ककुभो मिथः
हे समान तेजस्क मरुतों! एक जाति होने के कारण समान मित्र होकर गौवें चारों ओर आपस में एक दूसरे को जीभ से चाटती हैं।[ऋग्वेद 8.20.21]
Hey Marud Gan having similar radiance! Cows of the same breed lick each other from all directions.
मर्तश्चिद्वो नृतवो रुक्मवक्षस उप भ्रातृत्वमायति।
अधि नो गात मरुतः सदा हि व आपित्वमस्ति निध्रुवि
हे नर्तक और वक्षः स्थल में उज्ज्वल आभरण पहनने वाले मरुतों! मनुष्य भी आपसे मैत्री चाहता है; इसलिए हमारे पक्ष से बात करें। धारणीय यज्ञ में आपकी मित्रता सदैव बनी रहे।[ऋग्वेद 8.20.22] 
Hey dancing Marud Gan wearing shinning ornaments in over your chest! The humans want to be friendly with you; hence favour us. Our friendship should prevail in the wearable Yagy.
मरुतो मारुतस्य न आ भेषजस्य वहता सुदानवः। यूयं सखायः सप्तयः
हे सुन्दर दान वाले, गमनशील और मित्र मरुतों! आप पंक्तिबद्ध होकर पवन द्वारा चलते हुए दिव्य औषधियों को लेकर हमारे पास आवें।[ऋग्वेद 8.20.23]
Hey friend & dynamic, Marud Gan, making beautiful donations! You should line up and blow winds to bring divine medicines-herbs to us.
याभिः सिन्धुमवथ याभिस्तूर्वथ याभिर्दशस्यथा क्रिविम्।
मयो नो भूतोतिभिर्मयोभुवः शिवाभिरसचद्विषः
हे मरुतो! जिससे आप समुद्र की रक्षा करते हैं, जिससे यजमान के शत्रु का हिंसा करता है, जिससे आपने तृष्णज को कूप प्रदान किया, हे सुखोत्पादक और शत्रु रहित मरुतों! उसी समस्त प्रकार का कल्याण करने वाली रक्षा के द्वारा हमारे लिए सुख उत्पन्न करें।[ऋग्वेद 8.20.24]
Hey Marud Gan! The manner-way in which you protect the ocean, destroy the enemy of the Ritviz, provide well to the cultivators; provide all sorts of welfare and protective means with pleasure-comforts for us.
यत्सिन्धौ यदसिक्यां यत्समुद्रेषु मरुतः सुबर्हिषः। यत्पर्वतेषु भेषजम्
हे सुन्दर यज्ञ वाले मरुतों! सिन्धु नद, चिनाव, समुद्र और पर्वत में जो औषधियाँ विद्यमान हैं, उन सबको आप जानते हैं।[ऋग्वेद 8.20.25]
Hey performers of beautiful Yagy, Marud Gan! You recognise the medicines-herbs present in the Sindhu & Chinav rivers, the oceans, mountains.
विश्वं पश्यन्तो बिभृथा तनूष्वा तेना नो अधि वोचत।
क्षमा रपो मरुत आतुरस्य न इष्कर्ता विहृतं पुनः
हे मरुतों! आप हमारे शरीर को बलवान् बनावें। हममें से रोगी व्यक्ति के रोगों को दूर करें और जो अंग टूटे हुए हैं, उन अंगों को पुनः ठीक करें।[ऋग्वेद 8.20.26]
Hey Marud Gan! Make our bodies strong! Keep off the diseases-ailments from us and repair our organs.(16.04.2024ausM)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (21) :: ऋषि :- सोभरि, काण्व; देवता :- इन्द्र, चित्र;  छन्द :- प्रगाथ, ककुप्, समा सतोबृहती।
वयमु त्वामपूर्व्य स्थूरं न कच्चिद्भरन्तो ऽ वस्यवः। वाजे चित्रं हवामहे
हे अपूर्व इन्द्र देव! हम आपको गुणी मनुष्य के समान सोमरस से प्रसन्न करके रक्षा प्राप्ति की कामना से युद्ध में विविध रूपधारी आपका आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.21.1]
अपूर्व :: जैसा पहले न हुआ हो, अनूठा, अद्‌भुत, परब्रह्म, पाप-पुण्य; uncommon, never before, curious, remarkable. strange, unique, unprecedented, unparallel, extraordinary.
Hey extraordinary Indr Dev! We make you  happy like a virtuous person offering you Somras & invoke you having various forms-figures in the war for the sake of protection. 
उप त्वा कर्मन्नूतये स नो युवोग्रश्चकाम यो धृषत्।
त्वामिद्ध्यवितारं ववृमहे सखाय इन्द्र सानसिम्
हे इन्द्र देव! अग्निष्टोम आदि यज्ञों की रक्षा के लिए हम आपके पास जाते हैं। इन्द्र देव शत्रुओं के अभिभवकर्ता, युवा और उग्र हैं। वह हमारे सम्मुख पधारें। हम आपके मित्र हैं। है इन्द्र देव! आप भजनीय और रक्षक हैं। हम आपका वरण करते हैं।[ऋग्वेद 8.21.2]
वरण :: चुनना, चुनाव; choice, election.
Hey Indr Dev! We approach you conducting Agnishtom etc. Yagy. Indr dev is furious, young and defeat the enemy. He should invoke before us. We are your friends. Hey Indr Dev! You are worshipable and our protector. We rely upon you.
आ याहीम इन्दवोऽश्वपते गोपत उर्वरापते। सोमं सोमपते पिब 
हे अश्व पति, गोपालक, ऊर्वर भूमि के स्वामी और सोमपति इन्द्र देव! सोमरस को ग्रहण करने के लिए हम आपका आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.21.3]
Hey lord of horses, nurturer of cows, lord of baron lands and the lord of Som, Indr Dev! We invite to drink Somras.
वयं हि त्वा बन्धुमन्तमबन्धवो विप्रास इन्द्र येमिम।
या ते धामानि वृषभ तेभिरा गहि विश्वेभिः सोमपीतये
हम विप्र मित्र हीन हैं। आप मित्र वाले हैं। हम आपसे मित्रता करेंगे। हे काम वर्षक इन्द्र देव! आपका जो शारीरिक तेज है, उनके साथ सोमपान के लिए यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 8.21.4]
We Brahmans have no friends. You have friends. We will have friendship with you. Hey desires fulfilling Indr Dev! Come to drink Somras with your bodily aura-radiance, energy.
सीदन्तस्ते वयो यथा गोश्रीते मधौ मदिरे विवक्षणे। अभि त्वामिन्द्र नोनुमः
हे इन्द्र देव! दुग्धादि मिश्रित, मदकर और स्वर्ग लाभ के कारण आपके सोमरस में हम पक्षियों के सदृश रहकर आपकी ही प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 8.21.5]
Hey Indr Dev! We worship-glorify you presenting our selves like a flock of birds around you, thrilling-exhilarating Somras bestowing heavens mixed with milk.
अच्छा च त्वैना नमसा वदामसि किं मुहुश्चिद्वि दीधयः।
सन्ति कामासो हरिवो ददिष्ट्व स्मो वयं सन्ति नो धियः
हे इन्द्र देव! इस स्तोत्र के साथ आपके सामने आपकी ही स्तुति करेंगे। आप बार-बार क्यों चिन्ता करते हैं? हे हरि अश्वों वाले इन्द्रदेव! हमें पुत्र, पशु आदि की कामना है। आप धनादि के दाता हैं। हमारे कर्म आपके ही पास हैं।[ऋग्वेद 8.21.6]
Hey Indr Dev! We will worship you with this Strotr in front of you. Why do you worry repeatedly? Hey Indr Dev, possessing horses named Hari! We are desirous of having son and cattle-animals. You grant us wealth etc. Our endeavours are associated with you.
नूत्ना इदिन्द्र ते वयमूती अभूम नहि नू ते अद्रिवः। विद्मा पुरा परीणसः
हे इन्द्र देव! आपके रक्षण से हम नवीन ही रहेंगे। हे वज्रधर इन्द्र देव! पहले हम आपको सर्वत्र व्याप्त नहीं जानते थे। इस समय आपको भली-भाँति जानते हैं।[ऋग्वेद 8.21.7]
Hey Indr Dev! Your protection will keep afresh. Hey Vajr wielding Indr Dev! Earlier we did not consider you all pervading, now we know you very well.
विद्मा सखित्वमुत शूर भोज्य १ मा ते ता वज्रिन्नीमहे।
उतो समस्मिन्ना शिशीहि नो वसो वाजे सुशिप्र गोमति
हे बली इन्द्र देव! हम आपकी मैत्री जानते हैं। आपका भोज्य भी जानते हैं। हे वज्री इन्द्र देव! हम आपसे मित्रता और धन माँगते हैं। सबको निवास देने वाले और सुन्दर शिरस्त्राण धारण करने वाले, हे इन्द्र देव! गौ आदि से युक्त समस्त धनों से हमें परिपूर्ण करें।[ऋग्वेद 8.21.8]
भोज्य :: खाए जाने योग्य, खाद्य पदार्थ; edible, eatable.
Hey mighty Indr Dev! We are aware of your friendship. We know what you eat. Hey Vajr wielding Indr Dev! We request friendship along with wealth. Residence awarding, wearing beautiful head gear, hey Indr Dev! Flourish us with all types of wealth & cows.
यो न इदमिदं पुरा प्र वस्य आनिनाय तमु वः स्तुषे। सखाय इन्द्रमूतये
हे मित्र ऋत्विकों और यजमानों! जो इन्द्र देव पूर्व समय में यह सारा धन हमारे लिए ले आये! उन्हीं इन्द्र देव से आपकी रक्षा के लिए मैं स्तुति करता हूँ।[ऋग्वेद 8.21.9]
Hey friendly Ritviz and hosts! I worship Indr Dev and request him for protection having brought all this wealth for me.
हर्यश्वं सत्पतिं चर्षणीसहं स हि ष्मा यो अमन्दत।
आ तु नः स वयति गव्यमश्व्यं स्तोतृभ्यो मघवा शतम्
हरित वर्ण अश्व वाले, सज्जनों के पति, शत्रुओं का मर्दन करने वाले इन्द्र देव की स्तुति वही मनुष्य करता है, जो तृप्त होता है। वे धनी इन्द्र देव सौ गौवें और सौ अश्व हम स्तोताओं को प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.21.10]
One who is satisfied, worship Indr Dev possessing horses named Hari, leader of the gentleman, destroyer of the enemy. Let wealthy Indr Dev grant hundred cows and hundred horses to us the Stotas.(16.04.2024ausE)
त्वया ह स्विद्युजा वयं प्रति श्वसन्तं वृषभ ब्रुवीमहि। संस्थे जनस्य गोमतः 
हे अभीप्सित फलदाता इन्द्र देव! आपको सहायक पाकर गौ युक्त मनुष्यों के साथ युद्ध में अतीव क्रुद्ध शत्रुओं को हम दूर हटा दें।[ऋग्वेद 8.21.11]
अभीप्सित :: वांछित, अभिलाषा; desideratum.
Hey desires accomplishing Indr Dev! We should repel the furious enemy away from us with your support & the assistance of humans possessing cows.
जयेम कारे पुरुहुत कारिणोऽभि तिष्ठेम दूढ्यः।
नृभिर्वृत्रं हन्याम शूशुयाम चावेरिन्द्र प्र णो धियः॥
हे बहुतों के द्वारा बुलाने योग्य इन्द्र देव! हम संग्राम में हिंसकों को जीतेंगे। हम पाप बुद्धियों को हराएँगे। मरुतों की सहायता से हम वृत्रासुर का वध करेंगे। हम अपने कर्म बढ़ाएँगे। हे इन्द्र देव! हमारे समस्त कर्मों की रक्षा करें।[ऋग्वेद 8.21.12]
Hey Indr Dev deserving invitation from many people! We will win the violent in the battle-war. We will defeat the sinners. We will kill Vratra Sur with the help of Marud Gan. We will increase our efforts. Hey Indr Dev! Save-protect our endeavours.
अभ्रातृव्यो अना त्वमनापिरिन्द्र जनुषा सनादसि। युधेदापित्वमिच्छसे
हे इन्द्र देव! जन्मकाल से ही आप शत्रु रहित हैं और चिरकाल से मित्र हीन हैं। जो मित्रता आप चाहते हैं, उसे केवल युद्ध द्वारा ही प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 8.21.13]
Hey Indr Dev! You have no enemy since birth and friendless-kinsman ever since. You can attain desired friendship through war.
नकी रेवन्तं सख्याय विन्दसे पीयन्ति ते सुराश्वः।
यदा कृणोषि नदनुं समूहस्यादित्पितेव हूयसे
हे इन्द्र देव! मित्रता के लिए केवल धनी मनुष्यों को क्यों नहीं आश्रित करते? इसलिए कि अयाज्ञिक मनुष्य सुरा (मद्य) पान करके प्रमत्त हुए आपकी हिंसा करते हैं। जिस समय आप स्तोता को अपना समझकर धनादि प्रदान करते हैं, उस समय वह आपको पिता समझकर आपका आवाहन करता है।[ऋग्वेद 8.21.14]
Hey Indr Dev! Why do not you patronise only rich for friendship? Those who do not perform Yagy, violate you under the impression of wine. When you grant wealth to the Stota considering him to be your own, he invoke you like a father. 
मा ते अमाजुरो यथा मूरास इन्द्र सख्ये त्वावतः। नि षदाम सचा सुते
हे इन्द्र देव! आपके समान देवता के बन्धुत्व से वंचित होकर हम सोमाभिषव रहित न होने पावें। सोमाभिषव होने पर हम एकत्र होकर बैठें।[ऋग्वेद 8.21.15]
Hey Indr Dev! We should not be deprived from the brotherhood of a deity like you and the extraction of Somras. We should join together having extracted Somras.
मा ते गोदत्र निरराम राधस इन्द्र मा ते गृहामहि।
दृळ्हा चिदर्यः प्र मृशाभ्या भर न ते दामान आदभे
हे गौदाता इन्द्र देव! हम आपके हैं। हम धन रहित न होने पावें। हम दूसरे के पास से धन न ग्रहण करें। आप स्वामी है। हमें आप सुदृढ़ धन प्रदान करें। आपके दान की कोई हिंसा नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 8.21.16]
Hey cows donating Indr Dev! We belong to you. We should never be without money. We should not accept money from others. No one can interfere with your charity.
इन्द्रो वा घेदियन्मघं सरस्वती वा सुभगा ददिर्वसु। त्वं वा चित्र दाशुषे
मैं हव्य दाता हूँ। क्या इन्द्र देव ने मुझे यह दान दिया है? अथवा शोभन घना सरस्वती ने दिया है? अथवा हे चित्र (चित्र नामक राजा यजमान) आपने ही दिया है?[ऋग्वेद 8.21.17]
I make oblations-offerings. Has this money being given to me by Indr Dev? Or else glorious-gracious Saraswati Devi has awarded this to me? or else, hey Chitr-the king you have awarded this to me.
चित्र इद्राजा राजका इदन्यके यके सरस्वतीमनु।
पर्जन्यइव ततनद्धि वृष्ट्या सहस्त्रमयुता ददत्
जिस प्रकार मेघ वर्षा द्वारा पृथ्वी को प्रसन्न करते है, उसी प्रकार सरस्वती नदी के तट पर रहने वाले अन्य राजाओं को सहस्त्र और अयुत धन देकर चित्र राजा उन्हें प्रसन्न करते हैं।[ऋग्वेद 8.21.18]
The way the clouds rain and appease the earth, king Chitr grant thousands of cash-currency to other kings, residing over the banks of river Saraswati making them happy.(17.04.2024ausM)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (22) :: ऋषि :- सोभरि, काण्व; देवता :- अश्विनी कुमार; छन्द :- बृहती, सतोबृहती, अनुष्टुप्।
ओ त्यमह्व रथमद्या दंसिष्ठमूतये।
यमश्विना सुहवा रुद्रवर्तनी आ सूर्यायै तस्थथुः
हे दोनों अश्विनी कुमारों! आप सुन्दर आवाहन वाले और स्तूयमान मार्ग वाले हैं। सूर्या को वरण करने के लिए आप लोग जिस रथ पर आरुढ़ हुए हैं, आज रक्षा के लिए उसी दर्शर्नाय रथ का मैं आवाहन करता हूँ।[ऋग्वेद 8.22.1]
Hey Ashwani Kumars! You are praise worthy & deserve invocation. I am invoking that beautiful charoite for my protection which you rode to accept Surya.
पूर्वापुषं सुहवं पुरुस्पृहं भुज्युं वाजेषु पूर्व्यम्।
सचनावन्तं सुमतिभिः सोभरे विद्वेषसमनेहसम्
हे सोमारि ऋषि! कल्याणवाहिनी स्तुतियों के द्वारा इस रथ की स्तुति करें। यह रथ प्राचीन स्तोताओं का पोषक, युद्ध में शोभन आह्वान वाला है। बहुतों के द्वारा अभिलषणीय, सबका रक्षक, युद्ध में अग्रगामी, सबका भजनीय, शत्रुओं का विद्वेषी और पाप रहित है।[ऋग्वेद 8.22.2]
Hey Somari Rishi! Worship this charoite with the Stuties meant for welfare. This charoite nourish-nurture the ancient-eternal Stotas and deserve invocation in the war. Its desired by many, protector of all, presenting in the forward line, worshipable by all, envious to the enemies and sinless.
इह त्या पुरुभूतमा देवा नमोभिरश्विना।
अर्वाचीना स्ववसे करामहे गन्तारा दाशुषो गृहम्
हे शत्रुओं के विजेता, प्रकाशमान और हव्यदाता यजमान के गृहपति अश्विनी कुमारों! इस यज्ञकर्म में रक्षा के लिए नमस्कार द्वारा हम आपका आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.22.3]
Hey winner of the enemies, radiant, lord of host making offerings and master of the house,  Ashwani Kumars!  We are saluting & invoking you for protection during Yagy.
युवो रथस्य परि चक्रमीयत ईर्मान्यद्वामिषण्यति।
अस्माँ अच्छा सुमतिर्वां शुभस्पती आ धेनुरिव धावतु
हे अश्विनी कुमारों! आपके रथ का एक चक्र स्वर्गलोक तक जाता है और दूसरा आपके साथ जाता है। हे समस्त कार्यों के प्रेरक और जल के स्वामी अश्विनी कुमारों! आपकी मंगलमयी बुद्धि गौ के समान हमारे पास आवें।[ऋग्वेद 8.22.4]
Hey Ashwani Kumars! One cycle of your charoite covers the heavens and the other remains with you. Hey inspirer of all deeds and lord of water Ashwani Kumars! Let your intellect leading to our welfare, approach us like a cow.
रथो यो वां त्रिवन्धुरो हिरण्याभीशुरश्विना।
परि द्यावापृथिवी भूषति श्रुतस्तेन नासत्या तगम्   
हे अश्विनी कुमारों! तीन प्रकार के सारथि स्थानों वाला और सुवर्ण की लगाम वाला आपका प्रसिद्ध रथ स्वर्ग और पृथ्वीलोक को अपने प्रकाश से प्रकाशित करता है। हे नासत्यद्वय! आप लोग पूर्वोक्त रथ से पधारें।[ऋग्वेद 8.22.5]
Hey Ashwani Kumars! This famous charoite of yours, has three driving seats for the charioteers and golden reins illuminate the heaven & earth with your light. Hey Nasaty Duo! You should arrive in this charoite.
दशस्यन्ता मनवे पूर्व्यं दिवि यवं वृकेण कर्षथः।
ता वामद्य सुमतिभिः शुभस्पती अश्विना प्र स्तुवीमहि
हे अश्विनी कुमारों! स्वर्ग में स्थित प्राचीन जल को मनु के लिए देकर आपने हल से जौ की खेती की या मनुष्यों को कृषिकार्य की शिक्षा दी। हे जल के पालक अश्विनी कुमारों! आज सुन्दर स्तुतियों द्वारा हम आपकी प्रशंसा करते हैं।[ऋग्वेद 8.22.6]
Hey Ashwani Kumars! You brought the water present in the heavens for Manu and ploughed the earth for sowing barley. Hey protector of waters, Ashwani Kumars! We are praising you with beautiful Stuties.
उप नो वाजिनीवसू यातमृतस्य पथिभिः।
येभिस्तृक्षिं वृषणा त्रासदस्यवं महे क्षत्राय जिन्वथः
हे अन्न और धन देने वाले अश्विनी कुमारों! यज्ञमार्ग से हमारे पास पधारें। हे धन दान करने वाले अश्विनी कुमारों! इसी मार्ग से आपने त्रसदस्यु के पुत्र तृक्षि को प्रचुर धन देकर तृप्त किया।[ऋग्वेद 8.22.7]
Hey food grains & wealth granting Ashwani Kumars! Come to us following the route for Yagy. Hey donator of money Ashwani Kumars! You satisfied Trakshi, son of Trasdasyu awarding him lots of wealth following this path.
अयं वामद्रिभिः सुतः सोमो नरा वृषण्वसू।
आ यातं सोमपीतये पिबतं दाशुषो गृहे
हे नेता और वर्षणशील धन वाले अश्विनी कुमारों! आपके लिए पत्थरों से यह सोम रस अभिषुत हुआ है। सोमपान के लिए यहाँ आएँ और हव्य प्रदाता के घर में सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 8.22.8]
Hey lord and wealth showering Ashwani Kumars! This Somras has been extracted for you crushing with stones. Come here to drink Somras to the house of one making offerings.
आ हि रुहतमश्विना रथे कोशे हिरण्यये वृषण्वसू। युञ्जाथां पीवरीरिषः
हे वर्षणशील धन वाले अश्विनी कुमारों! सुवर्ण के लगाम आदि से युक्त, आयुधों के कोश और रमणशील रथ पर आरूढ़ हों।[ऋग्वेद 8.22.9]
Hey wealth showering Ashwani Kumars! Ride the enjoyable charoite having golden reins; storing weapons.
याभिः पक्थमवथो याभिरध्रिगुं याभिर्बधुं विजोषसम्।
ताभिर्ने मधू तूयमश्विना गतं भिषज्यतं यदातुरम्
जिन रक्षणों से आपने पक्थ राजा की रक्षा की, जिनसे अध्रिगु राजा की रक्षा की और जिनसे बच्नु राजा को सोमपान द्वारा प्रसन्न किया, उन्हीं रक्षणों के साथ अतिशीघ्र हमारे पास आयें और रोगी की चिकित्सा करें।[ऋग्वेद 8.22.10]
Come to us quickly with the protection means with which you protected king Pakth & Adhrigu, pleased king Branchu by drinking Somras.(17.04.2024ausE)
यदध्रिगावो अध्रिगू इदा चिदह्नो अश्विना हवामहे। वयं गीर्भिर्विपन्यवः
हे अश्विनी कुमारों! हम स्वकर्म में शीघ्रताकारी और मेधावी हैं। आप लोग युद्ध में शत्रुओं का वध शीघ्रता से करते हैं। आपको हम इस प्रातःकालीन स्तुति द्वारा बुलाते हैं।[ऋग्वेद 8.22.11]
Hey Ashwani Kumars! We are intelligent and perform our duties quickly. You kill the enemies quickly. We invoke you through this morning Stuti-prayer.
ताभिरा यातं वृषणोप मे हवं विश्वप्सुं विश्ववार्यम्।
इषा मंहिष्ठा पुरुभूतमा नरा याभिः क्रिविं वावृधुस्ताभिरा गतम्
हे वर्षणशील अश्विनी कुमारों! विविधरूप, समस्त देवताओं के द्वारा वरणीय मेरे इस आह्वान के अभिमुख उन समस्त रक्षाओं के साथ पधारें। आप लोग हवि के अभिलाषी, अतीव धनद और युद्ध में अनेकानेक शत्रुओं के नाशक हैं। जिन रक्षणों से आपने जल कुण्डों को वर्द्धित किया, उनके साथ पदार्पण करें।[ऋग्वेद 8.22.12]
Hey rain showering Ashwani Kumars! Possessing different forms, acceptable to the demigods-deities, come with all means of protection due to my invocation. You desires oblations-offerings, possess lots of wealth and destroy many enemies in the war. Come with the protective means with which you filled the water reservoirs
ताविदा चिदहानां तावश्विना वन्दमान उप ब्रुवे। ता ऊ नमोभिरीमहे
उन अश्विनी कुमारों का मैं इस प्रातःकाल में अभिवादन करता हुआ उनकी स्तुति करता हूँ। उन्हीं दोनों के पास बैठकर स्तुति द्वारा धनादि की याचना करता हूँ।[ऋग्वेद 8.22.13]
I salute Ashwani Kumars in the morning and worship them. I sit by their side and request for money.
ताविद्दोषा ता उषसि शुभस्पती ता यामन्नुद्रवर्तनी।
मा नो मर्ताय रिपवे वाजिनीवसू परो रुद्रावति ख्यतम्
वे जलपालक और युद्ध में स्तूयमान् मार्ग हैं। रात्रि, उषाकाल और दिन में सदैव हम अश्विनी कुमारों का आवाहन करते हैं। अन्न और धन से सम्पन्न आप हमें शत्रुओं के अधीन न होने दें।[ऋग्वेद 8.22.14]
Hey protector of water and praise worthy in the war.  We invoke Ashwani Kumars at night, in the morning and during the day. We are enriched with food grains & wealth, do not let us be over powered by the enemies.
आ सुग्म्याय सुग्म्यं प्राता रथेनाश्विना वा सक्षणी। हुवे पितेव सोभरी
हे अश्विनी कुमारों! आप सेचन शील हैं। मैं सुख के योग्य हूँ। प्रातःकाल में मेरे लिए रथ से सुख ले लावें। मैं सोभरि हूँ। अपने पिता के समान ही मैं आपका आवाहन करता हूँ।[ऋग्वेद 8.22.15]
Hey Ashwani Kumars! You are nurturing-nursing. I deserve pleasure-comforts. Bring comfortable goods for me in the morning in your charoite. I am Soubhari. I invoke you like my father.
मनोजवसा वृषणा मदच्युता मक्षु‌ङ्गमाभिरूतिभिः।
आरात्ताच्चिद्भूतमस्मे अवसे पूर्वीभिः पुरुभोजसा
हे मन के समान शीघ्रगामी, धनवर्षक, शत्रुनाशक और अनेकों के रक्षक अश्विनी कुमारों! शीघ्रगामिनी और विविध रक्षाओं के साथ हमारी रक्षा के लिए हमारे पास पधारें।[ऋग्वेद 8.22.16]
Fast moving like the innerself, wealth showering, slayer of the enemy, protectors of many, hey Ashwani Kumars! Come to us for our safety, with various means of protection.
आ नो अश्वावदश्विना वर्तिर्यासिष्टं मधुपातमा नरा। गोमद्दस्त्रा हिरण्यवत्
हे अश्विनी कुमारों! आप दोनों ही मधुर सोमरस को पीने वाले हैं। आप हमारे यज्ञमार्ग को अश्व, गौ और सुवर्ण आदि से युक्त करते हुए हमारे गृह में पधारें।[ऋग्वेद 8.22.17]
Hey Ashwani Kumars! Both of you enjoy sweet Somras. Come to our house enriching the Yagy path with horses, cows and gold etc.
सुप्रावर्गं सुवीर्यं सुष्ठु वार्यमनाधृष्टं रक्षस्विना।
अस्मिन्ना वामायाने वाजिनीवसू विश्वा वामानि धीमहि
जिसका दान सुन्दर है, जिसका वीर्य सुन्दर है, जिसका सुन्दर रूप सबके लिए वरणीय है और जिसे बली पुरुष भी पराजित नहीं कर सकते, ऐसा ही धन हम धारण करते हैं। हे बलयुक्त धनी अश्विनीकुमारों! आपके आने पर ही हम समस्त धन प्राप्त करेंगे।[ऋग्वेद 8.22.18]
We should get such wealth which is good to donate, acceptable to all and beautiful. You can not be defeated by the enemy since you are mighty. Hey powerful Ashwani Kumars! We will accept the wealth only when you arrive.(18.04.2024ausM)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (23) :: ऋषि :- विश्वमना, वैयश्य; देवता :-अम्रि;  छन्द :- उष्णिक्।
ईळिष्वा हि प्रतीव्यं १ यजस्व जातवेदसम्। चरिष्णुधूममगृभीतशोचिषम्
शत्रुओं के विरुद्ध गमन करने वाले अग्निदेव हैं। उन्हीं की स्तुति करें। जिनका धुआँ चारों और फैलता है, जिनकी दीप्ति को कोई पकड़ नहीं सकता और जो जातप्रज्ञ हैं, उन अग्रिदेव की अर्चना करें।[ऋग्वेद 8.23.1]
Agni Dev moves against the enemies. His smoke spreads in all directions. His radiance remain uncaptured. Worship Jatpragy Agni Dev.
दामानं विश्वचर्षणेऽग्रिं विश्वमनो गिरा। उत स्तुषे विष्पर्धसो रथानाम्
सर्वार्थ दर्शक विश्वमना ऋषि, मात्सर्य रहित यजमान के लिए रथादि के दाता अग्नि देव की स्तुति वाक्य द्वारा करें।[ऋग्वेद 8.23.2]
मात्सर्य :: ईर्ष्या, डाह; envy, jealousy.
Vishwmana Rishi capable of viewing all asks the Ritviz to worship Agni Dev and he should be free from envy-jealousy.
येषामाबाध ऋग्मिय इषः पृक्षश्च निग्रभे। उपविदा वह्निर्विन्दते वसु
शत्रुओं के बाधक और ऋचाओं द्वारा अर्चनीय अग्नि देव जिनके अन्न और सोमरस को ग्रहण करते हैं, वे उसे ही धनवान बनाते हैं।[ऋग्वेद 8.23.3]
Agni Dev worshiped with Richa obstruct the enemy and makes the person wealthy, who's food grains and Somras are accepted by him.
उदस्य शोचिरस्थाद्दीदियुषो व्य१जरम्। तपुर्जम्भस्य सुद्युतो गणश्रियः
अतीव दीप्तिमान्, तापदाता, दण्ड सम्पन्न, शोभन दीप्ति वाले और यजमानों के आश्रित अग्नि देव का राज शून्य और अभिनव तेज उठ रहा है।[ऋग्वेद 8.23.4]
Agni Dev appears highly shinning, heat generating, glorious lustrous--radiant, depending upon the Ritviz-hosts.
उदु तिष्ठ स्वध्वर स्तवानो देव्या कृपा। अभिख्या भासा बृहता शुशुक्वनिः
हे शोभन यज्ञ अग्नि देव! सामने विशाल दीप्ति दीपन शील और स्तूयमान आप द्योतमाना ज्वालाओं के साथ उठें।[ऋग्वेद 8.23.5]
Hey gracious Yagy Agni Dev! Rise up with praise worthy large illuminating flames.
अग्ने याहि सुशस्तिभिर्हव्या जुह्वान आनुषक्। यथा दूतो बभूथ हव्यवाहनः 
हे अग्नि देव! आप हव्य वाहक दूत हैं, इसलिए देवताओं को हव्य देते हुए सुन्दर स्तोत्रों के साथ प्रस्थान करें।[ऋग्वेद 8.23.6]
Hey Agni Dev! You are the messenger carrying offerings, hence depart handing over offerings to the demigods-deities.
अग्निं वः पूर्व्य हुवे होतारं चर्षणीनाम्। तमया वाचा गृणे तमु वः स्तुषे
मनुष्यों के होम सम्पादक और पुरातन अग्नि देव का मैं आवाहन करता हूँ। इस सूक्त रूप वचनों द्वारा उन अग्नि देव की मैं प्रशंसा करता हूँ। आपके लिए ही उन अग्नि देव की मैं स्तुति करता हूँ।[ऋग्वेद 8.23.7]
Hey eternal Agni Dev, performing the Yagy of the humans, I invoke you. I appreciate Agni Dev with the recitation of this Sukt-sacred hymn. I worship Agni Dev on behalf of humans.
यज्ञेभिरद्भुतक्रतुं यं कृपा सूदयन्त इत्। मित्रं न जने सुधितमृतावनि
बहुविध प्रज्ञा वाले, मित्र और तृप्त अग्नि देव की कृपा से यज्ञ और सामर्थ्य से यज्ञ वाले यजमान की मनोकामना पूर्ण होती है।[ऋग्वेद 8.23.8]
Agni Dev having multiple intellect, friendly and content, leads to accomplishment of desires of the Ritviz performing Yagy.
ऋतावानमृतायवो यज्ञस्य साधनं गिरा। उपो एनं जुजुषुर्नमसस्पदे
हे यज्ञाभिलाषियों! यज्ञ के साधन और यज्ञ वाले अग्नि देव की हव्य वाले यज्ञ में स्तुति वाक्य द्वारा पूजा करें।[ऋग्वेद 8.23.9]
Hey desirous of Yagy! Worship Agni Dev with Stuti-prayers as the means of Yagy with oblations-offerings.
अच्छा नो अङ्गिरस्तमं यज्ञासो यन्तु संयतः। होता यो अस्ति विश्वा यशस्तमः
हमारे नियत यज्ञ अङ्गिरा वाले अग्नि में अभिमुख जावें। ये मनुष्यों में होम निष्पादक और अतीव यशस्वी हैं।[ऋग्वेद 8.23.10]
Let our Yagy conducted by Angira be directed to Agni Dev. He is glorious amongest the humans and the performer of Yagy.(19.04.2024ausM)
अप तब त्ये अजरेन्धानासो बृहद्धाः। अश्वा इव वृषणस्तविषीयवः
हे अजर अग्नि देव! आपकी दीप्यमान और महान् रश्मियाँ कामवर्षक होकर अश्व के सदृश बल प्रकट करती है।[ऋग्वेद 8.23.11]
Hey immortal Agni Dev! your illuminating and desires fulfilling rays displays -strength-force like horse.
स त्वं न ऊर्जा पते रयिं रास्व सुवीर्यम्। प्राव नस्तोके तनये समत्स्वा
हे अन्नपति अग्नि देव! आप हमें शोभन वीर्य वाला धन प्रदान करें। हमारे पुत्र और पौत्र के पास जो धन है, उसे युद्धकाल में बचावें।[ऋग्वेद 8.23.12]
Hey lord of food grains Agni Dev! Grant us energetic wealth. The wealth with our sons & grand sons should be saved for the period of war.
यद्वा उ विश्पतिः शितः सुप्रीतो मनुषो विशि। विश्वेदग्निः प्रति रक्षांसि सेधति
मनुष्यों के रक्षक और तीक्ष्ण अग्रि देव प्रसन्न होकर सभी मनुष्य गृह में अवस्थित होते हैं, तभी यह समस्त राक्षसों का नाश करते हैं।[ऋग्वेद 8.23.13]
Sharp-penetrating protector Agni Dev, stays in the humans homes happily destroying the demons.
श्रुष्ट्यग्ने नवस्य मे स्तोमस्य वीर विश्पते। नि मायिनस्तपुषा रक्षसो दह
हे वीर और मनुष्य पालक अग्नि देव! हमारी नवीन प्रार्थनाओं को सुनकर मायावी राक्षसों को तापक तेज के द्वारा जलावें।[ऋग्वेद 8.23.14]
Hey brave and sharp-penetrating Agni Dev, nurturer of Humans! Having listened our new prayers burn the demons with your radiance-energy.
न तस्य मायया चन रिपुरीशीत मर्त्यः। यो अग्नये ददाश हव्यदातिभिः
जो मनुष्य हव्यदाता ऋत्विकों के द्वारा अग्नि देव को हव्य प्रदान करता है, उसको मनुष्य शत्रु माया द्वारा भी वश में नहीं कर सकते।[ऋग्वेद 8.23.15]
The human-person who provide offerings through the Ritviz to Agni Dev, can not be enchanted-controlled by the enemies.
व्यश्वस्त्वा वसुविदमुक्षण्युरप्रीणादृषिः। महो राये तमु त्वा समिधीमहि
अपने को धन का वर्षक बनाने की इच्छा से व्यश्व नामक ऋषि ने आपको प्रसन्न किया, क्योंकि आप धन देने वाले हैं। हम भी महान धन के लिए उन अग्नि देव को प्रज्वलित करते हैं।[ऋग्वेद 8.23.16]
Vyshrav Rishi pleased you with the desire to shower wealth, since you grant wealth. We too ignite fire (please Agni Dev) for that great wealth.
उशना काव्यस्त्वा नि होतारमसादयत्। आयजिं त्वा मनवे जातवेदसम्
यज्ञशील और जातप्रज्ञ काव्य (उशना ऋषि) ने मनु के गृह में आपको होता के रूप में स्थापित किया।[ऋग्वेद 8.23.17]
Jatpragy Kavy Rishi making efforts for Yagy established you in the house of Manu as a Hota.
विश्वे हि त्वा सजोषसो देवासो दूतमक्रत। श्रुष्टी देव प्रथमो यज्ञियो भुवः
हे अग्नि देव! समस्त देवताओं ने मिलकर आपको ही दूत नियुक्त किया। हे अग्नि देव! आप देवताओ में प्रमुख हैं। आप उसी समय यज्ञ के योग्य हो गये।[ऋग्वेद 8.23.18]
Hey Agni Dev! All demigods-deities have appointed you as their messenger-ambassador, since you are senior most amongest them and you are qualified for the Yagy.
इमं घा वीरो अमृतं दूतं कृण्वीत मर्त्यः। पावकं कृष्णवर्तनिं विहायसम्
हे मनुष्यों! अमर, पवित्र, धूम्रमार्ग और तेजस्वी, इन अग्नि देव को अपना सन्देश वाहक बनावे।[ऋग्वेद 8.23.19] 
Hey humans! Make immortal, pure, smoky-fuming and radiant Agni Dev your ambassador. 
तं हुवेम यत स्त्रुच: सुभासं शुक्रशोचिषम्। विशामग्निमजरं प्रत्नमीड्यम्
स्रुक ग्रहण करके हम सुन्दर दीप्ति वाले, शुभ्रवर्ण, तेजस्वी, मनुष्यों के लिए स्तवनीय और अजर अग्नि देव का आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.23.20]
We take the Struck and invoke worshipable immortal Agni Dev for the radiant, fair coloured-skinned, aurous humans.
यो अस्मै हव्यदातिभिराहुतिं मर्तोऽविधत्। भरि पोषं स धत्ते वीरवद्यश:
जो मनुष्य हव्यदाता ऋत्विकों के द्वारा अग्नि देव को आहुति देता है, वह प्रचुर पोषक और वीर पुत्र, पौत्रादि से युक्त होकर अन्न प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 8.23.21]
The person who make offerings to Agni Dev through the Ritviz, gets sufficient nutritive food grains, brave sons & grandsons.
प्रथमं जातवेदसमग्निं यज्ञेषु पूर्व्यम्। प्रति स्त्रुगेति नमसा हविष्मती
देवताओं में मुख्य, जातप्रज्ञ और प्राचीन अग्नि देव के पास हव्य युक्त स्रुक नमस्कार के साथ अग्रि देव के पास आता है।[ऋग्वेद 8.23.22]
Ladle-Struck full of offerings obediently-saluting comes to Jatpragy Agni Dev who is prominent-chief amongest the demigods-deities.
आभिर्विधेमाग्नये ज्येष्ठाभिर्व्यश्ववत्। मंहिष्ठाभिर्मतिभिः शुक्रशोचिषे
व्यश्व के समान स्तुति द्वारा प्रशस्यतम, पूज्यतम और शुभ्र दीप्ति से युक्त अग्नि देव की हम प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 8.23.23]
We worship eminent, ultimate worshipable, fair glowing Agni Dev who is like Vyshrav. 
नूनमर्च विहायसे स्तोमेभिः स्थूरयूपवत्। ऋषे वैयश्व दम्यायाग्नये
व्यश्व पुत्र विश्वमना ऋषि, स्थूलयूप नामक ऋषि के सदृश आप यजमान के गृह में उत्पन्न और विशाल अग्नि देव की स्तोत्रों द्वारा पूजा करें।[ऋग्वेद 8.23.24]
Worship with Strotr Agni Dev evolved in the house of the Ritviz like the Vishwman Rishi, son of Vyshrav and Sthulyup Rishi.
अतिथिं मानुषाणां सूनुं वनस्पतीनाम्। विप्रा अग्निमवसे प्रत्नमीळते
मेधावी यजमान मनुष्यों के अतिथि और वनस्पति के पुत्र तथा प्राचीन अग्नि देव की रक्षा के लिए स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 8.23.25]
Intelligent Ritviz pray for the safety of eternal Agni Dev-fire who is guest of humans and son of vegetation (born out of vegetation).
महो विश्वाँ अभि षतो ३भि हव्यानि मानुषा। अग्ने नि षत्सि नमसाधि बर्हिषि
हे अग्नि देव! समस्त प्रधान स्तोताओं के सामने आप कुश के आसन पर विराजमान हों। आप स्तुति के योग्य है। मनुष्य प्रदत्त हव्य को स्वीकार करें।[ऋग्वेद 8.23.26]
Hey Agni Dev! Occupy the Kush Mat like the prominent Stotas. You deserve worship. Accept the offerings made by the humans.
वंस्वा नो वार्या पुरु वंस्व रायः पुरुस्पृहः। सुवीर्यस्य प्रजावतो यशस्वतः
हे अग्नि देव! वरणीय प्रचुर धन हमें प्रदान करें। बहुतों द्वारा अभिलषणीय तथा सुन्दर वीर्य वाले पुत्र, पौत्रादि के साथ कीर्ति से युक्त धन हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.23.27]
Hey Agni Dev! Grant us enough acceptable glorious wealth which is desired by many people along with brave sons and grand sons.
त्वं वरो सुषाम्णेऽग्ने जनाय चोदय। सदा वसो रातिं यविष्ठ शश्वते
आप वरणीय, वासदाता और युवा है। जो सुन्दर सामगान करते हैं, उनको लक्ष्य करके आप सदैव धनादि प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 8.23.28]
You are acceptable, residence granting and young. Those who pray to you with beautiful songs-Sam Gan; are granted wealth-amenities.
त्वं हि सुप्रतूरसि त्वं नो गोमतीरिषः। महो रायः सातिमग्ने अपा वृधि
हे अग्नि देव! आप अतिशयदाता हैं। पशु से युक्त अन्न और महाधन के मध्य देने योग्य धन हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.23.29]
Hey Agni Dev! You grant in lots. Grant us food grains, cattle-animals and ultimate wealth. 
अग्ने त्वं यशा अस्या मित्रावरुणा वह। ऋतावाना सम्राजा पूतदक्षसा
हे अग्नि देव! आप देवताओं में यशस्वी हैं, इसलिए आप सत्यवान्, भली-भाँति विराजमान और पवित्र बल से युक्त मित्र और वरुण देव को इस यज्ञ में ले आवें।[ऋग्वेद 8.23.30]
Hey Agni Dev! You enjoy honour-respect amongest the demigods-deities. Hence, bring truthful, well established, associated with pious strength & power Mitr & Varun Dev in our Yagy. (20.04.2024ausM)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (24) :: ऋषि :- विश्वमना, वैयश्य; देवता :-इन्द्र, वरु, सौषाम्णि; छन्द :- उष्णिक्, अनुष्टुप्। 
सखाय आ शिषामहि ब्रह्मेन्द्राय वज्रिणे। स्तुष ऊ षु वो नृतमाय धृष्णवे
हे मित्र ऋत्विकों! वज्र धारण करने वाले इन्द्र देव के लिए हम इस स्तोत्र को करेंगे। आप लोगों के लिए संग्राम में आयुधों के नेता और शत्रुओं के धर्षक इन्द्र देव के लिए मैं स्तुति करूँगा।[ऋग्वेद 8.24.1]
Hey friendly Ritviz! We will recite this Strotr for Vajr wielding Indr Dev. I will worship Indr Dev, the destroyer of enemies and leader of weapons-Vajr, in the war for you.                                                                             
शवसा ह्यसि श्रुतो वृत्रहत्येन वृत्रहा। मधैर्मघोनो अति शूर दाशसि
हे इन्द्र देव! आप बल के द्वारा विख्यात हैं। वृत्रासुर का वध करने के कारण आप वृत्रहन्ता हुए। आप शूर हैं। धन द्वारा धनवान् व्यक्ति को आप अधिक धन देते हैं।[ऋग्वेद 8.24.2]
Hey Indr Dev! Your valour is famous. You became famous as the killer of Vratr. You are brave. You grant more wealth to the rich.
स नः स्तवान आ भर रयिं चित्रश्रवस्तमम्। निरेके चिद्यो हरिवो वसुर्ददिः 
हे इन्द्र देव! आप हमारे द्वारा स्तुति किए जाने पर नानाविध अन्नों से युक्त धन हमें प्रदान करें। हे अश्व वाले इन्द्र देव! आप निर्गमन समय में ही शत्रुओं के वासदाता और दाता होते हैं।[ऋग्वेद 8.24.3]
निर्गमन :: निकासी, बाहर जाने का रास्ता; issue, issuance.
Hey Indr Dev, having horses named Hari! On being worshiped by us grant us wealth accompanied with various kinds of food grains. With the expulsion of enemies you provide homes and resort to charity.
आ निरेकमुत प्रियमिन्द्र दर्षि जनानाम्। धृषता धृष्णो स्तवमान आ भर
हे इन्द्र देव! हमारे लिए आप धन प्रकाशित करें। शत्रु नाशक स्तूयमान होकर आप धृष्ट मन के साथ वही धन हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.24.4]
Hey Indr Dev! Grant us wealth. Destroy the enemy and become praise worthy and give us their wealth.
न ते सव्यं न दक्षिणं हस्तं वरन्त आमुरः। न परिबाधो हरिवो गविष्टिषु
हे अश्व वाले इन्द्र देव! गौवों के खोजने के समय आपके प्रति योद्धा लोग आपका बाँया और दायाँ हाथ नहीं हटा सकते। प्रतिरोधक वृत्रादि भी आपके हाथों को नहीं हटा सकें, क्योंकि आप अबाधित हैं।[ऋग्वेद 8.24.5]
Hey possessor of horses Indr Dev! When you search the enemies, the warriors fail to dislocate-move either your left or right hand. Repelling-opposing Vratr etc. demons can not obstruct you.
आ त्वा गोभिरिव व्रजं गीर्भिॠणोम्यद्रिवः। आ स्मा कामं जरितुरा मनः पृण
हे वज्रधर इन्द्र देव! स्तुति वचनों के द्वारा मैं आपको प्राप्त करता हूँ। इसी प्रकार से लोग गौओं के साथ गोष्ठ को प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 8.24.6]
Hey Vajr wielding Indr Dev! I invoke you with the Stuti-prayers. Similarly, people get cows and their shed.
विश्वानि विश्वमनसो धिया नो वृत्रहन्तम। उग्र प्रणेतरधि षु वसो गहि
हे इन्द्र देव! आप वृत्रादि के सर्वश्रेष्ठ विनाशक हैं। हे उग्र, वासदाता और नेता इन्द्रदेव! विश्वमना नामक ऋषि के समस्त स्तोत्रों में उपस्थित होवें।[ऋग्वेद 8.24.7]
Hey Indr Dev! You are the best destroyer of demons-enemies like Vratr. Hey furious, home providing leader Indr Dev! Let Rishi Vishwmana be present in all of your Strotrs.
वयं ते अस्य वृत्रहन्विद्याम शूर नव्यसः। वसोः स्पार्हस्य पुरुहूत राधसः
हे वृत्रघ्न, शूर और अनेकों द्वारा बुलाये जाने योग्य इन्द्रदेव! नवीन, स्पृहणीय और सुखादि का साधक धन हम प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.24.8]
स्पृहणीय :: प्राप्त करने योग्य, वांछनीय, स्पृहा के योग्य, चाहने योग्य, ललचाने योग्य; desirable, covetable, coveted, enviable, preferable, admirable.
Hey killer of Vratr, brave and invitation deserving Indr Dev! Grant us new desirable-covetable comforts-pleasure.
इन्द्र यथा ह्यस्ति तेऽपरीतं नृतो शवः। अमृक्ता रातिः पुरुहूत दाशुषे
हे सबको नचाने वाले इन्द्र देव! आपके बल को शत्रु लोग नहीं दबा सकते। बहुतों के द्वारा आवाहित किए जाने पर हव्य दाता को जो आप दान करते हैं, उसे कोई भी नष्ट नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 8.24.9]
Hey Indr Dev, making every one to dance to your tunes! The enemies can not supress your might-valour. On being invoked by several people making oblations-offerings, donations made by you to the them, can not be destroyed by any one.
आ वृषस्व महामह महे नृतम राधसे। दृळ्हश्चिद् दृह्य मघवन्मघत्तये
हे अत्यन्त पूजनीय और नेताओं में श्रेष्ठ इन्द्र देव! महान् धन के लाभ के लिए अपने उदर को सोमरस द्वारा सींचे। हे धनी इन्द्र देवता! धन प्राप्ति के लिए आप सुदृढ़ शत्रु पुरियों को विनष्ट करते हैं।[ऋग्वेद 8.24.10]
Hey extremely adored and excellent amongest the leaders, Indr Dev! Fill your stomach with Somras. Hey wealthy-rich Indr Dev! You destroy the cities-forts of the enemies to collect wealth.(20.04.2024ausE)
नू अन्यत्रा चिदद्रिवस्त्वन्नो जग्मुराशसः। मघवञ्छग्धि तव तन्न ऊतिभिः 
हे वज्रधारी और धनी इन्द्र देव! हम लोगों ने आपसे पहले अन्य देवताओं के निकट अभिलाषाएँ की; (परन्तु सभी निष्फल हुई)। इस समय आप हमें धन और रक्षण प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.24.11]
Hey Vajr wielding and wealthy Indr Dev! Prior to requesting-praying to you we worshiped other demigods-deities but we met failure. Grant us protection & wealth.
नह्य १ ङ्ग नृतो त्वदन्यं विन्दामि राधसे। राये द्युम्नाय शवसे च गिर्वणः
हे नृत्य कराने वाले और स्तोत्र पात्र इन्द्र देव! अन्न प्रकाशक यश और बल के लिए (मैं) आपके अतिरिक्त अन्य किसी देव को नहीं जानता।[ऋग्वेद 8.24.12]
Hey worship deserving Indr Dev, making the people dance! I do not wish to contact-pray to any one else other than you, for food grains, honour and strength.
एन्दुमिन्द्राय सिञ्चत पिबाति सोम्यं मधु। प्र राधसा चोदयाते महित्वना
हे ऋत्विजों! इन्द्र देव के लिए ही आप सोमरस समर्पित करें। वे सोममय मधुरस पिवें। वह अपने महत्व और अन्न के साथ याजकों को विपुल धन प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 8.24.13]
Hey Ritviz! Offer Somras to Indr Dev. Let him drink sweet Somras. He grants food grains and lots of wealth to his worshipers who recognise his significance.
उपो हरीणां पतिं दक्षं पृञ्चन्तमब्रवम्। नूनं श्रुधि स्तुवतो अश्व्यस्य
अश्वों के अधिपति इन्द्र देव की मैं स्तुति करता हूँ। वे अपना वर्द्धक बल दूसरे को देते हैं। स्तोता व्यश्व ऋषि के पुत्र की स्तुति श्रवण करें।[ऋग्वेद 8.24.14]
I worship the lord of horses. He grants his nurturing strength to others. Listen to the Stuti by the Stota Vyshrav Rishi's son.
नह्य १ ङ्ग पुरा चन जज्ञे वीरतरस्त्वत्। नकी राया नैवथा न भन्दना॥
हे इन्द्र देव! प्राचीन समय में आपसे अधिक धनवान्, सामर्थ्यवान्, आश्रयदाता और स्तुति युक्त कोई भी नहीं उत्पन्न हुआ।[ऋग्वेद 8.24.15]
Hey Indr Dev! None other than you was there earlier who was wealthier, capable, protector and worshiped more than you.
एदु मध्वो मदिन्तरं सिञ्च वाध्वर्यो अन्धसः। एवा हि वीरः स्तवते सदावृधः
हे ऋत्विक्! आप मदकर सोमरूप अन्न के अतीव मदकर अंश (सोमरस) को इन्द्र देव को समर्पित करें। इन पराक्रमी और सदा वर्द्धनशील इन्द्र देव की ही लोग स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 8.24.16]
Hey Ritviz! Offer the most effective part of the food grains constituting of Som to Indr Dev. People worship Indr Dev, who is always flouring-growing and has valour.
इन्द्र स्थातर्हरीणां नकिष्टे पूर्व्यस्तुतिम्। उदानंश शवसा न भन्दना
हे हरि नामक अश्वों के स्वामी इन्द्र देव! आपकी पहले की की गई स्तुतियों को कोई बल अथवा धन के कारण प्राप्त नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 8.24.17]
Indr Dev is the master-owner of the horses named Hari. The Stutis made for you can not be attained by anyone by force or through wealth.
तं वो वाजानां पतिमहूमहि श्रवस्यवः। अप्रायुभिर्यज्ञेभिर्वावृधेन्यम्
हम अन्नाभिलाषी होकर जिन यज्ञों में ऋत्विक्ङ्गण प्रमत्त नहीं होते, उन्हीं यज्ञों के द्वारा हम इन्द्र देव का आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.24.18]
We Ritviz Gan do not become intoxicated desiring food grains in the Yagy invoking Indr Dev through them.
एतोन्विन्द्रं स्तवाम सखायः स्तोम्यं नरम्। कृष्टीर्योविश्वा अभ्यस्त्येक इत्
हे मित्र भूत ऋत्विकों! आप शीघ्र पधारें। हम स्तुति योग्य नायक इन्द्र देव की स्तुति करेंगे। यह इन्द्र देव अकेले ही समस्त शत्रु सेना को परास्त करते हैं।[ऋग्वेद 8.24.19]
Hey friendly Ritviz! Come quickly. We will worship Indr Dev who deserve worship. Indr Dev alone can defeat the whole enemy army.
अगोरुधाय गविषे द्युक्षाय दस्म्यं वचः। घृतात्स्वादीयो मधुनश्च वोचत
हे ऋत्विकों! जो इन्द्र देव स्तुति को नहीं रोकते, स्तुति की अभिलाषा करते हैं, उन्हीं दीप्तिशाली इन्द्र देव के लिए घृत और मधु से भी स्वादिष्ट और अत्यन्त मीठे वचनों को कहें।[ऋग्वेद 8.24.20]
Hey Ritviz! Those who do not discontinue-stop the Stuti-worship of Indr Dev should spell tasty sweet words sweeter than honey.
यस्यामितानि वीर्या३न राधः पर्येतवे। ज्योतिर्न विश्वमभ्यस्ति दक्षिणा
जिन इन्द्र देव के वीरकर्म असीम हैं, जिनके धन को शत्रु नहीं पा सकते और जिनका दान ज्योति के समान समस्त स्तोताओं को व्याप्त करता है।[ऋग्वेद 8.24.21]
Valour of Indr Dev is immeasurable-commendable, whose wealth can not be snatched by the enemy and his charity-donations pervade the Stotas like illumination-light.
स्तुहीन्द्रं व्यश्ववदनूर्मिं वाजिनं यमम्। अर्यो गयं मंहमानं वि दाशुषे
उन्हीं न मारने योग्य, बली और स्तोताओं के द्वारा नियन्त्रित इन्द्र देव की व्यश्व ऋषि के सदृश स्तुति करें। इन्द्र देव हव्यदाता को प्रशस्त गृह प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 8.24.22]
Worship mighty Indr Dev who can not be killed; like Vyshrav Rishi. Indr Dev grants beautiful house to the one who makes offerings for him.
एवा नूनमुप स्तुहि वैयश्व दशमं नवम्। सुविद्वांसं चकृत्यं चरणीनाम्
हे व्यश्व के पुत्र विश्वमना! मनुष्य के दसवें प्राण इन्द्र देव हैं; इसलिए अभिनव, विद्वान तथा सदा नमस्कार के योग्य इन्द्र देव की स्तुति करें।[ऋग्वेद 8.24.23]
अभिनव :: बिल्कुल नया, आधुनिक ढंग का; unique, maiden.
Hey Vishwmana, son of Vayshrav! Indr Dev constitute the tenth life force of the humans. Hence worship new look-maiden, enlightened, worship deserving Indr Dev.
वेत्था हि निर्ऋतीनां वज्रहस्त परिवृजम्। अहरहः शुन्ध्युः परिपदामिव
जिस प्रकार सूर्य देव प्रतिदिन पक्षियों का उड़ना जानते हैं, उसी प्रकार, हे वज्र हस्त इन्द्र देव! आप निर्ऋतियों (राक्षसों) को नियंत्रित करना जानते हैं।[ऋग्वेद 8.24.24]
The way-manner in which Sury Dev recognises the flying of birds, Hey Vajr wielding Indr Dev! You control the demons, wicked, vicious.
तदिन्द्राव आ भर येना दंसिष्ठ कृत्वने। द्विता कुत्साय शिश्नथो नि चोदय
हे अतीव दर्शनीय इन्द्र देव! कर्मनिष्ठ यजमान के लिए हमें अपना आश्रय प्रदान करें। कुत्स नामक राजर्षि के लिए आपने दो प्रकार से शत्रुओं का वध किया। हमें वही सुरक्षा प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.24.25]
Hey extremely beautiful-decorated Indr Dev! Grant us asylum for the endeavourous-dedicated Ritviz. You killed the enemies in two ways for the sake of Kuts Raj Rishi. Grant us asylum like wise.
तमु त्वा नूनमीमहे नव्यं दंसिष्ठ सन्यसे। स त्वं नो विश्वा अभिमातीः सक्षणिः
हे अतीव दर्शनीय इन्द्र देव! आप स्तुति योग्य हैं। देने के लिए आपसे हम धन की याचना करते हैं। आप हमारी समस्त शत्रुसेना का संहार करें।[ऋग्वेद 8.24.26] 
Hey highly adorable Indr Dev! You deserve worship. We want wealth from you for giving-donating to others. Destroy our enemy's whole army.
य ऋक्षादंहसो मुचद्यो वार्यात्सप्त सिन्धुषु। वधर्दासस्य तुविनृम्ण नीनमः
जो इन्द्र देव राक्षस विहित पाप से मुक्त करते हैं और जो सिन्धु आदि सात नदियों के तट पर वर्तमान यजमानों के पास धन भेजते हैं, वही आप, हे बहुधनी इन्द्र देव! राक्षस शत्रुओं के वध के लिए अस्त्र नीचे करें।[ऋग्वेद 8.24.27] 
Possessor of multiple wealth Indr Dev who release us from the demonic sins, send money to the Ritviz far away from seven rivers and the ocean, should kill the demons by striking weapons over them down.
यथा वरो सुषाम्णे सनिभ्य आवहो रयिम्। व्यश्वेभ्यः सुभगे वाजिनीवति
वरु राजा ने अपने पितर सुषामा राजा के लिए प्राचीनकाल में याचकों को धन दिया, उसी प्रकार इस समय व्यश्व को भी धन प्रदान करें। हे शोभन धन वाली और अन्न वाली देवी उषा! आप भी धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.24.28]
The way King Varu donated money for the sake of his Manes king Sushama to the desirous, grant money to Vayshrav as well. Possessor of adorable wealth and food grains granting, hey Usha Devi, you should also grant money.
आ नार्यस्य दक्षिणा व्यश्वाँ एतु सोमिनः। स्थूरं च राधः शतवत्सहस्रवत्
मनुष्यों के हितैषी और सोम वाले यजमान (वरु) की दक्षिणा सोम से युक्त व्यश्व पुत्रों को प्राप्त हो। शत-सहस्त्र संख्या वाले ऐश्वर्य भी हमारे पास आवें।[ऋग्वेद 8.24.29] 
The Dakshina-fees of Yajman-host Varu, beneficial for humans,  should be attained by Vayashrav's sons. Grandeur in hundreds & thousands should reach us.
यत् त्वा पृच्छादीजानः कुहया कुहयाकृते। एषो अपश्रितो वलो गोमतीमव तिष्ठति॥
हे देवी उषी! जो आपसे पूछते हैं कि वरु कहाँ रहते हैं, वे अग्र जिज्ञासु हैं। यदि आपसे कोई पूछे कि कहाँ, तो सभी के आश्रय स्थल और शत्रुओं के संहारक यह वरु राजा गोमती नदी के किनारे पर रहते हैं, ऐसा ही कहें।[ऋग्वेद 8.24.30] 
Hey Usha Devi! Those who ask-question you, that where is Varu, are inquisitive. If some one ask you about the where abouts of enemy destroyer king Varu, providing asylum to all; tell him that he is present over the banks of Gomti river.(21.04.2024ausM)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (25) :: ऋषि :- विश्वमना, वैयश्य; देवता :- मित्र, वरुण, विश्वेदेवा;  छन्द :- उष्णिक्।
ता वां विश्वस्य गोपा देवा देवेषु यज्ञिया। ऋतावाना यजसे पूतदक्षसा
हे समस्त संसार के रक्षक मित्र और वरुण देव! देवताओं में आप भजनीय हैं। आप हवि प्रदान करने के लिए यजमान को शक्ति युक्त करें। हे व्यश्व! यज्ञवान और विशुद्ध बल वाले मित्र और वरुण देव का यज्ञ करें।[ऋग्वेद 8.25.1]
Hey protectors of the world Mitr & Varun Dev! You are worshipable amongest the demigods-deities. Provide strength to the host who make offerings to you. Hey Vayshrav! Perform Yagy for the sake of mighty and Yagy performers Mitr & Varun Dev.
मित्रा तना न रथ्या वरुणो यश्च सुक्रतुः। सनात्सुजाता तनया धृतव्रता॥
शोभनकर्मा जो मित्र और वरुण देव धन और रथ वाले हैं, वे बहुत ही समय से सुन्दर जन्मा और माता अदिति के पुत्र और व्रतों को धारण करने वाले हैं।[ऋग्वेद 8.25.2]
Performers of glorious deeds Mitr & Varun Dev, have wealth and charoite. They had a beautiful origin-birth and they support Mata Aditi's sons in addition to the Vrat.
ता माता विश्ववेदसासुर्याय प्रमहसा। मही जजानादितिर्ऋतावरी॥
महती और सत्यवती माता अदिति ने सर्वधनशाली और तेजस्वी उन्हीं मित्र तथा वरुण देव को असुरों के नाश के लिए उत्पन्न किया।[ऋग्वेद 8.25.3]
महती :: महिमा, बड़ाई, बड़ी; great, gigantic, mammoth task.
Truthful & graceful Mata Aditi produced progressing, radiant Mitr & Varun Dev for mammoth tasks of killing the demons.
महान्ता मित्रावरुणा सम्राजा देवावसुरा। ऋतावानावृतमा घोषतो बृहत्॥
महान, सम्राट, बली और सत्यवान मित्र और वरुण देव महान यज्ञ को प्रकाशमान करते हैं।[ऋग्वेद 8.25.4]
Great, emperor, mighty and truthful Mitr & Varun Gan illuminate the great Yagy.
नपाता शवसो महः सूनू दक्षस्य सुक्रतू। सृप्रदानू इषो वास्त्वधि क्षितः॥
महान बल के पौत्र, वेग के पुत्र, सुकर्मा और प्रचुर धन देने वाले मित्र और वरुण देव अन्न के निवास स्थान में रहते हैं।[ऋग्वेद 8.25.5]
Grand sons of Bal, son of Veg, virtuous deeds performing and lots of wealth distributing Mitr & Varun Dev reside in the pockets of food grains. 
सं या दानूनि येमथुर्दिव्याः पार्थिवीरिषः। नभस्वतीरा वां चरन्तु वृष्टयः॥
हे मित्र और वरुण देव! आप लोग धन तथा दिव्य और पृथ्वी पर उत्पन्न अन्न प्रदान करते हैं। जलवती वर्षा आपके अधीन है।[ऋग्वेद 8.25.6]
Hey Mitr & Varun Dev! You distribute-donate wealth, divine goods and food grains grown over the earth. Rain shoers are under your control-dictate.
अधि या बृहतो दिवो 3 भि यूथेव पश्यतः। ऋतावाना सम्राजा नमसे हिता॥
हे मित्र और वरुणदेव। आप सत्यवान, सम्राट और हव्य प्रिय है। आप लोग प्रसन्न करने के लिए देवताओं को उसी प्रकार देखते हैं, जिस प्रकार गोपाल अपनी गौवों को भली-भाँति देखता है।[ऋग्वेद 8.25.7]
Hey Mitr & Varun Dev! You are truthful, emperor and loves the offerings. You perceive the demigods-deities just like the cow herd man properly looks-takes care of his cows
ऋतावाना नि षेदतुः साम्राज्याय सुक्रतू। घृतव्रता क्षत्रिया क्षत्रमाशतुः॥
सत्यवान और सुन्दर कर्मा मित्र और वरुण देव साम्राज्य के लिए स्थापित हों। धृतव्रत और बली (क्षत्रिय) मित्र और वरुणदेव बल को व्याप्त करें।[ऋग्वेद 8.25.8]
Truthful and gracious Mitr & Varun Dev should be establish for ruling-administration. Let Ghratvrat and Bal-Kshatriy expand the might of Mitr & Varun Dev.
अक्ष्णश्चिद्गातुवित्तरानुल्बणेन चक्षसा। नि चिन्मिषन्ता निचिरा नि चिक्यतुः॥
नेत्र होने के प्रथम ही प्राणियों को जानने वाले, सबके प्रेरक और चिरन्तन मित्र तथा  वरुण देव दुःसह तेजोबल से शोभित हुए।[ऋग्वेद 8.25.9]
Mitr & Varun Dev recognise the organism-creatures without opening their eyes and possess the unbearable might-radiance.
उत नो देव्यदितिरुरुष्यतां नासत्या। उरुष्यन्तु मरुतो वृद्धशवसः॥
माता अदिति हमारी रक्षा करें। अश्वि द्वय रक्षा करें। अत्यन्त वेगशाली मरुद्रण रक्षा करें।[ऋग्वेद 8.25.10]
Let Mara Aditi, Ashwani Kumars and accelerated Marud Gan protect us.
ते नो नावमुरुष्यत दिवा नक्तं सुदानवः। अरिष्यन्तो नि पायुभिः सचेमहि॥
हे शोभन दान वाले मरुतो। आप लोग अहिसित हैं। आप लोग दिन-रात हमारी नौका की रक्षा करें। हम आपके पालन से एकत्रित होंगे।[ऋग्वेद 8.25.11]
Hey excellent donor Marud Gan! You are non violent. Protect our boats day & night. We will unite due to your patronization.
मते विष्णवे वयमरिष्यन्तः सुदानवे। श्रुधि स्वयावन्त्सिन्यो पूर्वचित्तये॥
हम अहिंसित होकर हिंसा रहित सुदाता श्रीविष्णु की स्तुति करते हैं। अकेले ही युद्धकर्ता श्रीविष्णु आप स्तोताओं को धन देने वाले हैं। जिसने यज्ञ प्रारम्भ किया, उसकी स्तुति सुनें।[ऋग्वेद 8.25.12]
We worship Shri Hari Vishnu free from violence and with our being violated. Shri Fighter Hari Vishnu alone donates to the Stotas. Hence, listen-respond to the request of one who started-initiated the Yagy.
तद्वार्यं वृणीमहे वरिष्ठं गोपयत्यम्। मित्रो यत्पान्ति वरुणो यदर्यमा
हम श्रेष्ठ, सबके रक्षक और वरणीय धन को आश्रित करते हैं। मित्र, वरुणदेव और अर्यमा इस धन की रक्षा करते हैं।[ऋग्वेद 8.25.13]
आश्रित :: टिका हुआ, सहारा दिया हुआ, dependent, subordinate.
We shelter the excellent. protector of all and acceptable wealth. Mitr, Varun Dev & Aryma protect this wealth.(22.04.2024ausM)
उत नः सिन्धुरपां तन्मरुतस्तदश्विना। इन्द्रो विष्णुर्मीढ्वांसः सजोषसः
हमारे धन की रक्षा मेघ करें; मरुद्गण और अश्विनी कुमार भी रक्षा करें; इन्द्र देव, भगवान् विष्णु और समस्त अभीष्टवर्षक देवता मिलकर रक्षा करें।[ऋग्वेद 8.25.14]
Let our wealth be protected by the clouds-Parjany Dev, Marud Gan, Ashwani Kumars, Indr Dev Bhagwan Shri Hari Vishnu and all demigods-deities together.
ते हि ष्मा वनुषो नरोऽभिमातिं कयस्य चित्। तिग्मं न क्षोदः प्रतिघ्नन्ति भूर्णयः
वे देव पूज्य और नेता हैं। जिस प्रकार वेगशाली जल वृक्ष को उखाड़ फेंकता है, उसी प्रकार वे देवता शीघ्रगामी होकर जिस किसी भी शत्रु के विरुद्ध होते हैं, उसका विनाश कर डालते हैं।[ऋग्वेद 8.25.15]
The deities-demigods are worshiped and leaders. The way water flowing at high speed unroot a tree, the demigods-deities quickly destroy the enemy, on becoming against him.
अयमेक इत्था पुरूरु चष्टे वि विश्पतिः। तस्य व्रतान्यनु वश्चरामसि
संसार के स्वामी मित्र बहुसंख्यक प्रधान द्रव्यों को अपने तेज से इसी प्रकार देखते हैं। मित्र और वरुण देव में से हम आपके लिए मित्र के व्रत को धारित करते हैं।[ऋग्वेद 8.25.16]
Master-lord of the world Mitr controls the major materials with his radiance. Out of Mitr & Varun Dev we adopt the Vrat of Mitr for you. 
अनु पूर्वाण्योक्या साम्राज्यस्य सश्चिम। मित्रस्य व्रता वरुणस्य दीर्घश्रुत्
हम साम्राज्य सम्पन्न वरुण देव के गृह को प्राप्त करेंगे। अतीव प्रसिद्ध मित्र के व्रत को भी प्राप्त करेंगे।[ऋग्वेद 8.25.17]
We will attain the house of emperor Varun Dev in addition to it we will have highly famous Mitr's Vrat.
परि यो रश्मिना दिवोऽन्तान्ममे पृथिव्याः। उभे आ पप्रौ रोदसी महित्वा
जो मित्र स्वर्ग और संसार के अन्त को अपनी रश्मि से प्रकाशित करते हैं, अपनी महिमा से ही इन दोनों को पूर्ण भी करते हैं।[ऋग्वेद 8.25.18]
Mitr illuminate the heaven & world till their end, support them as well with his glory.
उदु ष्य शरणे दिवो ज्योतिरयंस्त सूर्यः। अग्निर्न शुक्रः समिधान आहुतः
सुन्दर वीर्य वाले मित्र और वरुण देव प्रकाशक आदित्य के स्थान (आकाश) में अपनी ज्योति को विस्तारित करते हैं। पश्चात् अग्नि देव के समान शुभ्रवर्ण और सबके द्वारा आहुत होकर अवस्थान करते हैं।[ऋग्वेद 8.25.19]
अवस्थान :: ठहरना, रहना; station, sojourn.
Mitr & Varun Dev having glorious aura extend their radiance through the territory of Adity Gan i.e., the sky. Thereafter, they stay like fair coloured Agni Dev and worshiped.
वचो दीर्घप्रसद्मनीशे वाजस्य गोमतः। ईशे हि पित्वोऽविषस्य दावने
हे याजकों! विस्तृत गृह वाले यज्ञ में मित्र वरुण देव की स्तुति करें। वरुण देव पशु युक्त अन्न के ईश्वर है और महाप्रसन्नता कारक अन्न देने में भी समर्थ हैं।[ऋग्वेद 8.25.20]
Hey Ritviz! Worship Mitr & Varun Gan in the broad Yagy house. Varun Dev is the lord of cattle-animals and food grains. They are capable of granting food grains giving great pleasure.
तत्सूर्यं रोदसी उभे दोषा वस्तोरुप ब्रुवे। भोजेष्वस्माँ अभ्युचरा सदा॥
मैं मित्र और वरुण देव के उस तेज और द्यावा-पृथ्वी की दिन-रात स्तुति करता हूँ। हे वरुण देव! सदैव हमें दाता (दान) के अभिमुख करें।[ऋग्वेद 8.25.20]
अभिमुख :: किसी की ओर मुँह किये हुए, सम्मुख, प्रवृत्त,  तत्पर, उद्यत, संनद्ध, की ओर, तरफ, निकट होना, पहुँचने के करीब होना, अनुकूल, सामने, संमुख, समक्ष, सामने; oriented, face to face.
I worship the radiance of Mitr & Varun Dev along with the heavens & earth, day & night. Hey Varun Dev! Align us face to face with the donor.
ऋज्रमुक्षण्यायने रजतं हरयाणे। रथं युक्तमसनाम सुषामणि
उक्ष गोत्र में उत्पन्न और सुषामा के पुत्र वरु नामक राजा के दान में प्रवृत्त होने पर सरलगामी, रजत के समान और अश्वों से युक्त रथ हमको प्राप्त हुआ। सुषामा के पुत्र का रथ शत्रुओं के जीवन और ऐश्वर्य आदि को नष्ट करता है।[ऋग्वेद 8.25.22]
We obtained a charoite studded with jewels when king Varu, son of Sushama born in Ukash clan,  decided to donate it. The charoite destroys the grandeur and lives of the enemies.
ता मे अश्व्यानां हरीणां नितोशना। उतो नु कृत्व्यानां नृवाहसा
हरित वर्ण अश्वों के संघ में शत्रुओं के लिए अतीव बाधक तथा कुशल व्यक्तियों में मनुष्यों के वाहक दो द्रुतगामी अश्व वरु राजा द्वारा हमें प्राप्त हुए।[ऋग्वेद 8.25.23]
Two green coloured fast moving horses were received by us, out of the lot of horses, creating hindrance for the enemy, carriers of humans from king Varu.
स्मदभीशू कशावन्ता विप्रा नविष्ठया मती। महो वाजिनावर्वन्ता सचासनम्
अभिनव स्तुति द्वारा प्रार्थना करते हुए शोभन रज्जु वाले, चाबुक वाले, सन्तोषक और शीघ्र गमन करने वाले दो अश्वों को मैं प्राप्त करूँ।[ऋग्वेद 8.25.24]
Let me have two satisfying fast moving horses, with beautiful cord and lash by virtue of unique worship-chants.(22.04.2024ausE)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (26) :: ऋषि :- विश्वमना, वैयश्य, व्यश्यौ, आंगिरस; देवता :- अश्विनी कुमार, वायु; छन्द :- उष्णिक्, गायत्री, अनुष्टुप्।
युवोरु षू रथं हुवे सधस्तुत्याय सूरिषु। अतूर्तदक्षा वृषणा वृषण्वसू
हे अहिंसित बलवर्षक और धनशाली अश्विनी कुमारों! आपके बल की कोई हिंसा नहीं कर सकता। स्तोताओं के मध्य आपके एकत्र और शीघ्र जाने के लिए मैं रथ को बुलाता हूँ।[ऋग्वेद 8.26.1]
Hey non violent, mighty, wealthy Ashwani Kumars! None can reduce your power. Let me summon charoite to take you to the Stotas.
युवं वरो सुषाम्णे महे तने नासत्या। अवोभिर्याथो वृषणा वृषण्वसू
हे सत्य स्वरूप, अभिलाषों को पूर्ण करने वाले और धनशाली अश्विनी कुमारों! सुषामा राजा के लिए महाधन देने के निमित्त आप लोग जिस प्रकार आते हैं, उसी प्रकार रक्षा के साथ आगमन करें। हे वरु! आप ऐसी प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 8.26.2]
Hey truthful, desires accomplishing, wealthy Ashwani Kumars! The manner in which you arrive to king Sushama for great wealth, similarly you should come with protection means. Hey Varu! You should pray-request like this.             
ता वामद्य हवामहे हव्येभिर्वाजिनीवसू। पूर्वीरिष इषयन्तावति क्षपः
हे शक्तियुक्त धन और बहुत अन्न वाले अश्विनी कुमारों! आज प्रातःकाल होने पर हम आपको हव्य द्वारा बुलाएँगे।[ऋग्वेद 8.26.3]
Hey Ashwani Kumars associated with strength & power, wealth and lots of food grains! Today, we will invoke you with the help of oblations.
आ वां वाहिष्ठो अश्विना रथो यातु श्रुतो नरा। उप स्तोमान्तुरस्य दर्शथः श्रिये
हे अश्विनी कुमारों! सबसे अधिक वहन करने वाला और आपका प्रसिद्ध रथ आगमन करे। क्षिप्र स्तोता को ऐश्वर्य प्रदान करने के लिए उसकी प्रार्थना श्रवण करें।[ऋग्वेद 8.26.4]
क्षिप्र :: अव्यय, शीघ्र, जल्दी, तुरंत, अस्थिर, चंचल; quick.
Hey Ashwani Kumars! Let your famous charoite capable of carrying greatest loads come here. To grant grandeur to the Stota listen to his prayers-request quickly.
जहूराणा चिदश्विना मन्येथां वृषण्वसू। युवं हि रुद्रा पर्षथो अति द्विषः
हे अभिलाषादाता और धनी अश्विनी कुमारों! कुटिल कार्य करने वाले शत्रुओं को सामने उपस्थित होकर उन्हें पीड़ित करें। आप लोग रुद्र हैं। द्वेष करने वाले शत्रुओं को कष्ट प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.26.5]
कुटिल :: टेढ़ा, छली, चालबाज, रूखा,  भूला हुआ, टेढा, वक्र, हुकनुमा, टेढ़ापन, धोखेबाज़ी; improbity, untruth, crooked, devious, hooked, cynical, devious.
Hey desires accomplishing wealthy Ashwani Kumars! Punish the enemies for their crooked acts. You are Rudr. Torture the enemies who are envious to us.
दस्त्रा हि विश्वमानुषङ्‌मक्षुभिः परिदीयथः। धियं जिन्वा मधुवर्णा शुभस्पती
हे सबके दर्शनीय, कर्म प्रीतिकर, मदकर कान्ति वाले और जलपोषक अश्विनी कुमारों! आप लोग द्रुतगामी अश्वों के द्वारा समस्त यज्ञों पहुँचते हैं।[ऋग्वेद 8.26.6]
Hey attractive, devoted to actions, possessing intoxicating aura, nurturing water, Ashwani Kumars! You reach all Yagy site riding fast moving horses.
उप नो यातमश्विना राया विश्वपुषा सह। मघवाना सुवीरावनपच्युता
हे अश्विनी कुमारों! विश्व पालक धन के साथ हमारे यज्ञ में आवें। आप लोग धनी, शूर और अजेय हैं।[ऋग्वेद 8.26.7]
Hey Ashwani Kumars! Come to us the wealth capable of supporting the world; in our Yagy. You rich, brave and invincible.
आ मे अस्य प्रतीव्य १ मिन्द्रनासत्या गतम्। देवा देवेभिरद्य सचनस्तमा
हे इन्द्र देव और अश्विनी कुमारों! आप लोग अतीव सेव्यमान होकर मेरे यज्ञ में आज देवताओं के साथ पधारें।[ऋग्वेद 8.26.8]
Hey Indr Dev & Ashwani Kumars! Come to the Yagy to be associated with the demigods-deities to be served extremely.
वयं हि वां हवामह उक्षण्यन्तो व्यश्ववत्। सुमतिभिरुप विप्राविहा गतम्
अपने लिए धनदान की प्राप्ति की इच्छा से हम व्यश्व के समान आपका आवाहन करते है। हे मेधावियों! कृपा करके यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 8.26.9]
We invoke you with the desire of money like Vayshrav. Hey intelligent! Kindly come to us. 
अश्विना स्वृषे स्तुहि कुवित्ते श्रवतो हवम्। नेदीयसः कूळयातः पर्णीरुत
व्यश्व ऋषि अश्विनी कुमारों की स्तुति करें। अनेक बार आपका आह्वान सुनते हुए दोनों अश्विनी कुमार समीपवर्ती शत्रुओं और पणियों को नष्ट कर देते हैं।[ऋग्वेद 8.26.10]
Hey Vayshrav Rishi pray to Ashwani Kumars! Many times when you invoke them, they destroy the nearby enemies and Pani- the demons.
वैयश्वस्य श्रुतं नरोतो मे अस्य वेदथः। सजोषसा वरुणो मित्रो अर्यमा
हे अश्विनी कुमारों! वैयश्व ऋषि का आह्वान सुनें। मेरे आवाहन को समझें। वरुणदेव, मित्र और अर्यमा सदैव मिले हुए हैं।[ऋग्वेद 8.26.11]
Hey Ashwani Kumars! Respond to Vayshrav Rishi! Respond-understand my invocation. Varun Dev, Mitr and Aryma always stand  together,
युवादत्तस्य धिष्ण्या युवानीतस्य सूरिभिः। अहरहर्वृषणा मह्यं शिक्षतम्
हे स्तवनीय और अभिलाष प्रद अश्विनी कुमारों! आप लोग स्तोताओं को जो देते हैं और उनके लिए जो ले आते हैं, वह प्रतिदिन मुझे भी प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.26.12]
Hey worshipable and desires accomplishing Ashwani Kumars! What ever you grant to the Stotas and what ever you bring for them; give me as well.
यो वां यज्ञेभिरावृतोऽधिवस्त्रा वधूरिव। सपर्यन्ता शुभे चक्राते अश्विना
जिस प्रकार वधू वस्त्र से ढकी रहती है, उसी प्रकार जो मनुष्य यज्ञ से आवृत्त रहता है, उसकी देख-रेख करते हुए दोनों अश्विनी कुमार उसका मङ्गल करते हैं।[ऋग्वेद 8.26.13]
The way a bride covers herself with cloth, the same way the human who is busy with Yagy is taken care of by Ashwani Kumars & they benefit him.(23.04.2024ausM)
यो वामुरुव्यचस्तमं चिकेतति नृपाय्यम्। वर्तिरश्विना परि यातमस्मयू
हे अश्विनी कुमारों! अतीव व्यापक और देवों के पीने योग्य सोमरस का दान जो मनुष्य करता है, उसी प्रकार ज्ञानी लोग मुझे पाने की इच्छा करके आप मेरे गृह में पधारें।[ऋग्वेद 8.26.14]
Hey Ashwani Kumars! The way the humans make offerings of very extensive Somras for drinking to demigods-deities, you being enlightened visit my house.
अस्मभ्यं सु वृषण्वंसू यातं वर्तिनृपाय्यम्। विषुद्रुहेव यज्ञमूहथुर्गिरा
हे अभिलाषप्रद और धनी अश्विनी कुमारों! आपके के पीने योग्य सोमरस के लिए हमारे गृह में पधारें। शत्रु द्रोही शर के समान स्तुति वाक्य द्वारा यज्ञ पूर्ण करें।[ऋग्वेद 8.26.15]
Hey wealthy and desires accomplishing Ashwani Kumars! Come to our house to drink Somras. Complete the Yagy like the arrow which destroys the enemy.
वाहिष्ठो वां हवानां स्तोमो दूतो हुवन्नरा। युवाभ्यां भूत्वश्विना
हे सबके नेता अश्विनी कुमारों! स्तोत्रों में से स्तुति विशेष आपके पास जाकर आपको बुलावें और प्रसन्न करें।[ऋग्वेद 8.26.16]
Lord of all Ashwani Kumars! Let the special-specific Stuti amongest the Strotr, invite you and make you happy. 
यददो दिवो अर्णव इषो वा मदथो गृहे। श्रुतमिन्मे अमर्त्या
हे अश्विनी कुमारो। घुलोक के (नीचे) इस समुद्र में यदि आप प्रमत्त होएँ अथवा अन्न चाहने वाले यजमान के गृह में यदि मत्त होवें, तो हे अमर द्वय! हमारा यह स्तोत्र श्रवण करें।[ऋग्वेद 8.26.17]
मत्त :: मस्त, लापरवाह, शराबी, मतवाला, मदहोश, प्रमत्त, उन्मत्त, अल्हड़; अविवेकी;  giddy, ruttiest, overjoyed, carefree, drunk, intoxicate, lust, pride, maddened, frenzied, enraged, exhilarated, pleased.
Hey Ashwani Kumars! If you feel happy below the heaven, either in this ocean or become giddy in the house of the Ritviz. Hey immortal duo! Respond-listen to our Strotr.
उत स्या श्वेतयावरी वाहिष्ठा वां नदीनाम्। सिन्धुर्हिरण्यवर्तनिः
नदियों में से स्पन्दनशील और हिरण्यमार्गा श्वेतयावरी (श्वेत जल होकर बहने वाली) नाम की नदी स्तुति द्वारा आपके पास जाती है अथवा आपके रथ को वहन करती है।[ऋग्वेद 8.26.18]
Shwetyavari pulsating river following golden route, come to you through Stuti-prayers.
स्मदेतया सुकीर्त्याश्विना श्वेतया धिया। वहेथे शुभ्रयावाना
हे सुन्दर गमन करने वाले अश्विनी कुमारों! सुन्दर कीर्ति वाली, श्वेतवर्णा और पुष्टिकारिणी श्वेतयावरी नदी को प्रवाहित करें।[ऋग्वेद 8.26.19]
Hey Ashwani Kumars, with dignified movements! Let the glorious, white coloured, nourishing Shwetyavari river flow.
युक्ष्वा हि त्वं रथासहा युवस्व पोष्या वसो। आन्नो वायो मधु पिबास्माकं सवना गहि॥
वायुदेव रथ वहन करने वाले दोनों अश्वों को नियोजित करें। वासदाता, वायुदेव, पोषण के योग्य अश्विनी कुमारों को संग्राम में मिलावें। हे वायुदेव! अनन्तर हमारे मदकर सोमरस का पान करें और तीनों सवनों में आवे।[ऋग्वेद 8.26.20]
Let Vayu Dev deploy the horses in the charoite.  Let residence granting Vayu Dev bring nourishment deserving Ashwani Kumars to the battle field. Hey Vayu Dev! Thereafter, drink our thrilling Somras during the three segments of the day.
तव वायवृतस्पते त्वष्टुर्जामातरद्भुत। अवांस्या वृणीमहे
हे यज्ञपति, त्वष्टा (ब्रह्मा) के जामाता और विचित्र कर्मा वायुदेव! आपका पालन हम प्राप्त कर सकें।[ऋग्वेद 8.26.21]
Hey Yagy Pati, son in law of Twasta and amazing feats performing Vayu Dev! Let us become capable of supporting you.
त्वष्टुर्जामातरं वयमीशानं राय ईमहे। सुतावन्तो वायुं द्युम्ना जनासः
हम त्वष्टा के जामाता और सामर्थ्यवान वायुदेव के समीप सोम अभिषव करके धन माँगते हैं। उनके धन देने से हम धनी होंगे।[ऋग्वेद 8.26.22]
We extract Somras for the capable Vayu Dev, son in law of Twasta and request him for money. We will become wealthy-rich with the money received from him.
वायो याहि शिवा दिवो वहस्वा सुस्व श्यम्। वहस्व महः पृथुपक्षसा रथे
हे वायुदेव! द्युलोक में कल्याण के लिए पधारें। अश्व से युक्त रथ चलावें। आप महान् हैं। बलिष्ठ अश्वों को अपने रथ में नियोजित करें।[ऋग्वेद 8.26.23]
Hey Vayu Dev! Come to heavens for its welfare. Run the charoite with horses. You are great. Deploy strong horses in the charoite.
त्वां हि सुप्सरस्तमं नृषदनेषु हूमहे। ग्रावाणं नाश्वपृष्ठं मंहना
हे वायु देव! आप अतीव सुन्दर रूप वाले हैं। आपके सारे अङ्ग महिमा से व्याप्त हैं। सोमाभिषव के लिए पत्थर के समान यज्ञों में हम आपका आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.26.24]
Hey Vayu Dev! You possess extreme beauty. All your organs are gracious-glorious. We invoke you for the Yagy and extract Somras by crushing Som with stones.
स त्वं नो देव मनसा वायो मन्दानो अग्रियः। कृधि वाजाँ अपो धियः
हे वायुदेव! देवताओं में आप मुख्य हैं। अन्तःकरण से प्रसन्न होकर हमें अन्न, जल और कर्म प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.26.25]
Hey Vayu Dev! You are prominent amongest the demigods-deities. Let your innerself be pleased with us and grant us food grains, water and ability to make efforts.(24/04.2024ausM)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (27) :: ऋषि :- मनु वैवस्वत; देवता :-विश्वेदेवा; छन्द :- प्रगाध।
अग्निरुक्थे पुरोहितो ग्रावाणो बर्हिरध्वरे।
ऋचा यामि मरुतो ब्रह्मणस्पतिं देवाँ अवो वरेण्यम्
इस स्तोत्रात्मक यज्ञ में अग्नि देव सोमाभिषव के लिए प्रस्तर और कुश के अग्रभाग में स्थापित हुए हैं। मरुद्गण, ब्रह्मणस्पति और अन्य देवताओं से स्तुति द्वारा रक्षा की प्राप्ति के लिए मैं प्रार्थना करता हूँ।[ऋग्वेद 8.27.1]
In this Strotr Yagy, Agni Dev has been established in front of the stone and Kush for Somabhishav. I pray to Marud Gan, Brahman Spati and other demigods-deities for protection. 
आ पशुं गासि पृथिवीं वनस्पतीनुषासा नक्तमोषधीः।
विश्वे च नो वसवो विश्ववेदसो धीनां भूत प्रावितारः
हे अग्नि देव! हमारे यज्ञ में पशु के निकट आते हैं। इस पृथ्वी (यज्ञशाला) और वनस्पति के समीप आते हैं। प्रातःकाल तथा रात्रि में सोमाभिषव के लिए प्रस्तर के निकट आते हैं। सर्वज्ञाता विश्वदेव गण हमारे कर्मों की रक्षा करें।[ऋग्वेद 8.27.2]
Hey Agni Dev! Let animals, vegetation, come close in our Yagy. The stones should come close in the morning and night for extraction of Somras. Let Vishw Dev protect our efforts-endeavours.
प्र सू न एत्वध्वरो ३ ग्ना देवेषु पूर्व्यः। आदित्येषु प्र वरुणे धृतव्रते मरुत्सु विश्वभानुषु
प्राचीन यज्ञ अग्नि देव और अन्य देवताओं के पास उत्तमता के साथ जावें एवं आदित्यों, धृतव्रत वरुण देव और तेजस्वी मरुतों के निकट भी जावें।[ऋग्वेद 8.27.3]
उत्तमता :: श्रेष्ठता, प्रधानता; excellence, primness.
Eternal Yagy Agni Dev should move to other demigods-deities with excellence in addition to Adity Gan, Ghratvrat, Varun Dev, Varun Dev and radiant Marud Gan.
विश्वे हि ष्मा मनवे विश्ववेदसो भुवन्वृधे रिशादसः।
अरिष्टेभिः पायुभिर्विश्ववेदसो यन्ता नोऽवृकं छर्दिः॥
बहुधनशाली और शत्रु नाशक विश्वदेव गण मनु की वृद्धि के लिए हों। हे सर्वज्ञाता देवों! अहिसित पालन के साथ हमें बाधा रहित गृह प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.27.4]
Possessor of several kind of wealth and destroyer of enemy Vishw Dev should glow-flourish. Hey all knowing demigods-deities! Grant us a safe house free from disturbances.
आ नो अद्य समनसो गन्ता विश्वे सजोषसः।
ऋचा गिरा मरुतो देव्यदिते सदने पस्त्ये महि
हे विश्वे देवों! स्तोत्रों में समानमना और परस्पर सङ्गत होकर वचन और ऋचा के साथ आज के यज्ञ दिन में हमारे समीप पधारें। मरुतों और महत्त्वपूर्ण माता अदिति हमारे उस गृह (यज्ञ) में विराजमान हों।[ऋग्वेद 8.27.5]
Hey Vishw Dev Gan! Let the Strotr become equitable and come along with themes & Richa while coming to us on the day of Yagy. Let Marud Gan and Mata Aditi should also be present on the day of Yagy.
अभि प्रिया मरुतो या वो अश्वया हव्या मित्र प्रयाथन।
आ बर्हिरिन्द्रो वरुणस्तुरा नर आदित्यासः सदन्तु नः
हे मरुतों! अपने प्रिय अश्वों को इस यज्ञ में भेजें अथवा अश्वों से युक्त होकर पधारें। हे मित्र! हव्य के लिए पधारें। इन्द्रदेव, वरुणदेव और युद्ध में शत्रुवध के लिए क्षिप्रकर्ता तथा नेता आदित्यगण हमारे कुशों पर विराजें।[ऋग्वेद 8.27.6]
क्षिप्रकर्ता :: precipitating factor.
Hey Marud Gan! Send your dear horses to this Yagy. Hey Mitr! Come to have offerings. Slayer of the enemies and precipitating Indr Dev, Varun Dev and Adity Gan should occupy Kush Mats.
वयं वो वृक्तबर्हिषो हितप्रयस आनुषक्।
सुतसोमासो वरुण हवामहे मनुष्वदि द्धाग्नयः
हे वरुण देव! मनु के समान हम सोमाभिषव करके और अग्नि देव को समिद्ध करके हवि को स्थापित और कुश का छेदन करते हुए आपका आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.27.7]
Hey Varun Dev! We invoke you by extracting Somras like Manu and offering wood-Samidha to Agni Dev, piercing Kush.
आ प्र यात मरुतो विष्णो अश्विना पूषन्साकीनया धिया।
इन्द्र आ यातु प्रथमः सनिष्युभिर्वृषा यो वृत्रहा गृणे
मरुद्रण, भगवान् विष्णु, अश्विनी कुमारों और पूषा देव मेरी स्तुति के साथ यज्ञ में पधारें। देवताओं के बीच प्रथम इन्द्र देव भी आवें। इन्द्राभिलाषी स्तोता लोग इन्द्र देव को वृत्रहा भी कहते हैं।[ऋग्वेद 8.27.8]
Let Marud Gan, Bhagwan Shri Hari Vishnu, Pusha Dev and prominent amongest the demigods-deities Indr Dev should also join my Yagy. Desirous of invoking Stotas nick name Indr Dev as Vratraha.
वि नो देवासो अद्गुहोऽच्छिद्रं शर्म यच्छत।
न यद्दूराद्वसवो नू चिदन्तितो वरूथमादधर्षति
हे द्रोह रहित देवों! हमें बाधा रहित गृह प्रदान करें। हे वासदाता देवी! दूर अथवा समीप के देश से आकर कोई कभी वरणीय गृह को नष्ट नहीं करता।[ऋग्वेद 8.27.9]
द्रोह :: दुष्टता, हानिकरता, नुक़सानदेहता, कपट, नमकहरामी, बेवफ़ाई, राज-द्रोहिता, द्वेष, डाह, दुष्ट भाव, बदख़्वाहता; अनिष्ट चाहना, हिंसा; treachery, malignancy, disloyalty, malevolence.
वरणीय :: पूजनीय, पूज्य, श्रेष्ठ, बड़ा, चुनने या ग्रहण करने योग्य, वरण योग्य; eligible, to be applied to or solicited for a boon, to be selected, to ask as a boon, to choose.
Hey Demigod-deities free from disloyalty! Grant us house free from troubles-tortures. Hey Vas Data Devi! None from far or near should be able to destroy the house chosen by us.
अस्ति हि वः सजात्यं रिशादसो देवासो अस्त्याप्यम्।
प्र णः पूर्वस्मै सुविताय वोचत मश्रू सुम्नाय नव्यसे
हे शत्रु भक्षक देवों! आपमें स्वजातिभाव और मित्रभाव हैं। प्रथम अभ्युदय और नवीन धन के लिए शीघ्र और उत्तमता से हमें उपदिष्ट करें।[ऋग्वेद 8.27.10]
उपदिष्ट :: उपदेश दिया हुआ, सिखलाया हुआ, preached.
Hey eaters of the enemy! You possess sense of oneness and friendliness. Guide us for progress and earning money enthusiastically.(25.04.2024ausM)
इदा हि व उपस्तुतिमिदा वामस्य भक्तये।
उप वो विश्ववेदसो नमस्युराँ असृक्ष्यन्यामिव
हे सर्वधनवान् देवों! मैं अन्न की कामना करता हूँ। इस समय किसी से न की गई स्तुति को मैं अभी आपके रमणीय धन की प्राप्ति के लिए करता हूँ।[ऋग्वेद 8.27.11]
Hey wealthy deities! I wish to have food grains. I am chanting this Stuti for you, which has never been sung by others to seek pleasant wealth from you.
उदु ष्य वः सविता सुप्रणीतयोऽस्थादूर्ध्वो  वरेण्यः।
नि द्विपादश्चतुष्पादो अर्थिनो ऽ विश्रन्पतयिष्णवः
हे सुन्दर स्तुति वाले मरुतों! आप लोगों में ऊर्ध्वगामी और सबके सेवनीय सविता देव जब उगते हैं, उस समय मनुष्य, पशु और पक्षी अपने-अपने कार्यों में लग जाते हैं।[ऋग्वेद 8.27.12]
Hey Marud Gan making beautiful Stuti! When Savita Dev rises amongest you, humans, animal and the birds engage in their routine.
देवन्देवं वोऽवसे देवन्देवमभिष्टये।
देवन्देवं हुवेम वाजसातये गृणन्तो देव्या धिया
हम प्रकाशक स्तुति के द्वारा स्तव करते हुए आप लोगों में से दिव्य देवता को कर्म रक्षण के लिए बुलाते हैं। अभीष्ट की प्राप्ति के लिए दीप्तिमान देवताओं का आवाहन करते हैं। अन्न प्राप्ति के लिए दिव्य देवताओं का आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.27.13]
We invoke the aurous deity from amongest you to protect-save our efforts with lovely Stuti. We invoke the demigods-deities for the fulfilment of  our desires. For the sake of food grains we invoke divine deities.
देवासो हि ष्मा मनवे समन्यवो विश्वे साकं सरातयः।
ते नो अद्य ते अपरं तुचे तु नो भवन्तु वरिवोविदः
समान क्रोधी विश्वेदेव गण मनु के लिए धनादि दान के निमित्त एक साथ प्रवृत्त हों। आज और दूसरे दिन; सब दिनों में मेरे लिए और मेरे पुत्र के लिए वरणीय धन के दाता हों।[ऋग्वेद 8.27.14]
Let equally angered Vishw Dev Gan should intend to grant money for donations together. Today & tomorrow, i.e., always they should be ready to grant desired money for me and my son.
प्र वः शंसाम्यद्रुह: संस्थ उपस्तुतीनाम्।
न तं धूर्तिर्वरुण मित्र मर्त्य यो वो धामभ्योऽविधत्
हे अहिंसनीय देवों! स्तोत्र के आधार यज्ञ में आपकी अत्यधिक स्तुति करता हूँ। हे मित्र और वरुणदेव! आपके शरीर के लिए जो हवि धारण करता है, उसे शत्रुओं से बाधा नहीं होती।[ऋग्वेद 8.27.15]
Hey non violent deities! I intensely devote to Strotr in the basic Yagy. Hey Mitr & Varun Dev! One who possess offerings for you, is never troubled by the enemies.
प्र स क्षयं तिरते वि महीरिषो यो वो वराय दाशति।
प्र प्रजाभिर्जायते धर्मणस्पर्यरिष्टः सर्व एधते
हे देवों! जो मनुष्य वरणीय धन के लिए आपको हव्य प्रदान करता है, वह अपना गृह और अन्न बढ़ाता है तथा यज्ञ के द्वारा पुत्रादि से सम्पन्न होता है और सबके द्वारा अहिंसित होकर समृद्धवान् होता है।[ऋग्वेद 8.27.16]
Hey demigods-deities! One who make offerings for desires wealth, increases his property and food grains stoke, has sons etc. by the Yagy, remain unharmed by all and become prosperous.
ऋते स विन्दते युधः सुगेभिर्यात्यध्वनः।
अर्यमा मित्रो वरुणः सरातयो यं त्रायन्ते सजोषसः
वह युद्ध के बिना भी धन प्राप्त करता है, सुन्दर गमन करने वाले अश्वों से मार्ग को अतिक्रम करता है तथा मित्र, वरुण देव और अर्यमा मिलकर और समान दान से युक्त होकर उसकी रक्षा करते हैं।[ऋग्वेद 8.27.17]
He gets wealth without quarrel-war, cover the path riding horses who run beautifully and Mitr, Varun Dev and Aryma together protect him, granting him donations as well.
ज्रे चिदस्मै कृणुथा न्यञ्चनं दुर्गे चिदा सुसरणम्।
एषा चिदस्मादशनिः परो नु सास्त्रेधन्ती वि नश्यतु
हे देवों! अगम्य और दुर्गम्य मार्ग को सुगम करें। यह आयुध किसी की हिंसा न करके विनष्ट हो जावें।[ऋग्वेद 8.27.18]
Hey deities! Make our fit for travel which is unfit and difficult for travel. It should not be destroyed by the attack by any weapon.
यदद्य सूर्य उद्यति प्रियक्षत्रा ऋतं दध।
यन्निमुचि प्रबुधि विश्ववेदसो यद्वा मध्यंदिने दिवः
हे बलप्रिय देवों! सूर्य देव के उदय होने पर आज आप कल्याणवाहक गृह की धारणा करें। हे समस्त धनों से युक्त देवों! सायंकाल धारण करें, प्रातःकाल धारण करें और मध्याह्न काल में मनु के लिए धन धारण करें।[ऋग्वेद 8.27.19]
Hey deities liking might-power! Possess the residence-home prior to Sun rise which leads to welfare. Hey deities possessing all sorts of wealth! Possess it throughout the three segments of the day i.e., morning, noon and evening for Manu.
यद्वाभिपित्वे असुरा ऋतं यते छर्दिर्येम वि दाशुषे।
वयं तद्वो वसवो विश्ववेदस उप स्थेयाम मध्य आ
हे प्राज्ञ देवों! यज्ञ के प्रति आपके लाभ के लिए हवि देने वाले और यज्ञगामी यजमान को यदि आप लोग गृह प्रदान करते हैं तो, हे वासदाता और सर्वधन संयुक्त देवों! हम आपके उसी मंगलकर गृह में आपकी ही पूजा करेंगे।[ऋग्वेद 8.27.20]
Hey enlightened deities! If you grant house to the Ritviz whishing for conducting Yagy, hey home granting deities acting together! We will worship you in that auspicious house.
यदद्य सूर उदिते यन्मध्यंदिन आतुचि।
वामं धत्थ मनवे विश्ववेदसो जुह्वानाय प्रचेतसे
हे सर्वधन सम्पन्न देवताओं! आज सर्योदय होने पर, दोपहर में और सायंकाल में हव्यदाता और प्रकृष्ट ज्ञानी मनु ऋषि को आप श्रेष्ठ ऐश्वर्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.27.21]
Hey rich-wealthy deities! Grant best grandeur to enlightened Manu making offerings to you throughout the morning, noon and evening.
वयं तद्वः सम्राज आ वृणीमहे पुत्रो न बहुपाय्यम्।
अश्याम तदादित्या जुह्वतो हविर्येन वस्योऽनशामहै
हे दीप्तिमान देवों! आपके पुत्रों के सदृश हम बहुत लोगों के भोग के योग्य उसी धन को प्राप्त करेंगे। हे आदित्यों! हम यज्ञ करते हुए इस धन के द्वारा अत्यधिक धनाढ्यता प्राप्त करेंगे।[ऋग्वेद 8.27.22]
Hey radiant deities! Let us have the comforts-pleasure and wealth like your sons. Hey Adity Gan! We will become extremely wealthy  by virtue of conducting this Yagy.(26.04.2024ausM)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (28) :: ऋषि :- मनु वैवस्वत; देवता :-विश्वेदेवा; छन्द :- गायत्री, पुर उष्णिक्।
 ये त्रिंशति त्रयस्परो देवासो बर्हिरासदन्। विदन्नह द्वितासनन्
जो तैतीस कोटि देवता कुशों पर बैठे हैं, वे हमारी भावना को जानें और बार-बार हमें धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.28.1]
कोटि :: श्रेणी, करोड़; categories,   ten million.
The 33 million demigods-deities sitting over the Kush Mats should understand our feeling-desires and grant us wealth again & again.
वरुणो मित्रो अर्यमा स्मद्रातिषाचो अग्नयः। पत्नीवन्तो वषट्कृताः
वरुण देव, मित्र और अर्यमा सुन्दर हव्य देने वाले यजमानों के साथ मिलकर और देवपत्नियों के सहित नानाविध वषट्‌कारों के द्वारा बुलाये जाते हैं।[ऋग्वेद 8.28.2]
वषट् :: इस शब्द का उच्चारण अग्नि में आहुति देते समय यज्ञों में होता है। अंगन्यास और करन्यास में शिखा और मध्यमा के साथ इसका व्यवहार होता है। वषट् और वौषट का मतलब भी वश करना ही होता है।
वषट्कार :: देवताओं के उद्देश्य से किया हुआ यज्ञ, होम, होत्र, तैंतीस वैदिक देवताओं में से एक देवता। स्वाहा, स्वधा और वषट तीनों ही होतृकार है अर्थात होत्री द्वारा बोले गए अकार जिनसे किसी देव, पितृ, मनुष्य को हवि दी जाती है। नमः, स्वाहा, वषट् वौषट्, हुम् और फट् ये 6 शब्द मंत्रों में प्रयोग किये जाते हैं। These are used as suffix or prefix to strength a Mantr. 
Varun Dev, Mitr and Aryma are invited-invoked by the Ritviz along with their wives by using Vashatkar-the prefix and suffix to strength the impact of the Mantr.
ते नो गोपा अपाच्यास्त उदक्त इत्था न्यक्। पुरस्तात्सर्वया विशा
वे वरुणादि देव अपने समस्त रक्षकों के साथ सामने, पीछे, ऊपर और नीचे हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 8.28.3]
Hey Varun and other demigods-deities, protect us along with all of your protectors from all sides-directions. 
यथा वशन्ति देवास्तथेदसत्तदेषां नकिरा मिनत्। अरावा चन मर्त्यः
देवता लोग जैसी इच्छा करते हैं, वैसा ही होता है। देवताओं की कामना को कोई विनष्ट नहीं कर सकता। अदाता मनुष्य (यदि वह हवि देने लगे) की भी कोई हिंसा नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 8.28.4]
Every thing happen as per the desire-dictates of the deities. Demigods desires can not be over ruled by any one. A person who start making offerings can not be harmed by any one.
सप्तानां सप्त ऋष्टयः सप्त द्युम्नान्येषाम्। सप्तो अधि श्रियो धिरे
(इन्द्र देव के अंश रूप) सात मरुतों के सात प्रकार के आयुध हैं, सात प्रकार के आभरण हैं और और सात प्रकार की दीप्तियाँ हैं।[ऋग्वेद 8.28.5]
Seven Marud Gan are laced with seven kinds of weapons, ornaments-decorative and seven kinds of radiations.(26.04.2024ausN)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (29) :: ऋषि :- मनु वैवस्वत, कश्यप मारीच; देवता :- विश्वेदेवा;  छन्द :- द्विपदा विराट्।
बश्नुरेको विषुणः सूनरो युवाञ्यङ्गे हिरण्ययम्
बभ्रुवर्ण (पीले रंग के), सवर्ग, रात्रियों के नायक, युवक और एकाकी सोमदेव हिरण्मय आभरण को प्रकाशित करते हैं।[ऋग्वेद 8.29.1]
सवर्ग :: cadre, class.
Yellowish, lord of the night, all pervading, young and alone Som Dev reflect golden hue-ornaments.
योनिमेक आ ससाद द्योतनोऽन्तर्देवेषु मेधिरः
देवताओं में दीप्यमान्, मेधावी और अकेले अग्नि देव अपना स्थान प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 8.29.2]
Radiant amongest the demigods-deities, intelligent and alone Agni Dev attains his position. 
वाशीमेको बिभर्ति हस्त आयसीमन्तर्देवेषु निध्रुविः
देवताओं के मध्य निश्चल स्थान में वर्तमान त्वष्टा हाथों में लोहे से बने अस्त्र को धारण करते हैं।
[ऋग्वेद 8.29.3]
Twasta wearing iron missiles in his hands remain still amongest the demigods-deities.
वज्रमेको बिभर्ति हस्त आहितं तेन वृत्राणि जिघ्नते
इन्द्र देव अकेले हस्त निहित वज्र धारण करते और वृत्रादि का नाश करते हैं।[ऋग्वेद 8.29.4]
अस्त्र :: हथियार, फेंककर चलाया जाने वाला हथियार; weapons launched with hands, missile.
Indr Dev alone wear Vajr in his hands and destroy the demons-enemies like Vratr etc.
तिग्ममेको बिभर्ति हस्त आयुधं शुचिरुंग्रो जलाषभेषजः
सुखावह भिषक्, पवित्र और उग्र रुद्र देव अपने हाथों में तीखा आयुध पथ धारण करते हैं।[ऋग्वेद 8.29.5]
सुखावह :: सुविधाजनक, सुखकारक, दयालु, आरामदायक; convenient, bland, kindly, comfy, jolly, cosy, conducive, deluxe, bringing pleasure, delighting, felicific.
भिषक :: हकीम, वैद्य; doctor.
Pious and furious, pleasure bringing Rudr Dev hold sharp weapons in his hand.
पथ एकः पीपाय तस्करो यथाँ एष वेद निधीनाम्
एक पूषा देव मार्ग की सुरक्षा करते हैं। वे चोर के समान सबके छिपे हुए धनों (ऐश्वर्यो) को जानते हैं।[ऋग्वेद 8.29.6]
Push Dev protects the way. He know the hidden treasures and grandeur like a thief.
त्रीण्येक उरुगायो वि चक्रमे यत्र देवासो मदन्ति
एक (श्री विष्णु) बहुतों की स्तुति के योग्य हैं। क्योंकि उन्होंने तीन पदों से तीनों लोकों को नाप दिया। इससे सभी देवगण प्रसन्न हुए।[ऋग्वेद 8.29.7]
Shri Hari Vishnu deserve worship from many, since he covered the three abodes in three steps leading to the pleasure of the demigods-deities.
विभि द्वा चक्राते  एकया सह प्र प्रवासेव वसतः
दोनों अश्विनी कुमारों एक स्त्री (सूर्या) के साथ दो प्रवासी पुरुषों के सदृश रहते और अश्व द्वारा गमन करते हैं।[ऋग्वेद 8.29.8]
Both Ashwani Kumars move in their charoite with a woman-Surya, like two migrant men.
सदो द्वा चक्राते उपमा दिवि सम्राजा सर्पिरासुती
अपनी कान्ति के परस्पर उपमेय दो (मित्र और वरुण देव) अतीव दीप्तिशाली और धृतरूप हवि वाले हैं। वे द्युलोक अर्थात् स्वर्गलोक में निवास करते हैं।[ऋग्वेद 8.29.9]
उपमेय :: उपमा दिए जाने योग्य, जिसकी किसी वस्तु से उपमा दी गई हो; simile.
Similar in their radiance-aura Mitr & Varun Dev have extremely bright offerings mixed with Ghee. They reside in the heaven.
अर्चन्त एके महि साम मन्वत तेन सूर्यमरोचयन्
प्रार्थना करने वाले स्तोता लोग महान साममन्त्र का उच्चारण करके सूर्य देव को आलोकित करते हैं।[ऋग्वेद 8.29.10]
Worshiping Stota recite great Sam Mantr and decorate Sury Dev, the Sun.(26.04.2024ausE)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (30) :: ऋषि :- मनु वैवस्वत; देवता :-विश्वेदेवा; छन्द :- गायत्री, पुरउष्णिक्, बृहती, अनुष्टुप्।
नहि वो अस्त्यर्भको देवासो न कुमारकः। विश्वे सतोमहान्त इत्
हे देवों! आप लोगों में कोई बालक नहीं है, कोई कुमार नहीं है। आप सभी महान हैं।[ऋग्वेद 8.30.1]
कुमार :: छोटा बालक, युवक; adolescent.
Hey demigods-deities! None of you is either a child or adolescent-grown up. All of you are great.
इति स्तुतासो असथा रिशादसो ये स्थ त्रयश्च त्रिंशच्व। मनोर्देवा यज्ञियासः
हे शत्रु भक्षक और मनु के यज्ञार्ह देवों! आप लोग तैंतीस कोटि हैं। इसी प्रकार आप लोग सम्मानित किए जाते हैं।[ऋग्वेद 8.30.2]
Hey eater-destroyer of the enemy and helpful to Manu in his Yagy! You are 33 millions in number. This is how you are honoured.
ते नस्त्राध्वं तेऽवत त उ नो अधि वोचत।
मा नः पथः पित्र्यान्मानवादधि दूरं नैष्ट परावतः
हे देवों! आप लोग हमें राक्षसों से बचाकर और धनादि देकर हमारी रक्षा करें। हमें आप से भी भ्रष्ट न करें। लोग भली-भाँति उपदेश देवें। पिता मनु से आये हुए मार्ग से हमें भ्रष्ट न करें; दूरस्थित मार्ग से भी भ्रष्ट न करें।[ऋग्वेद 8.30.3]
Hey deities-demigods! Protect us from the demons and grant us wealth. Do not separate-alienate us from you. Guide us properly. Do not deviate us from the path shown to us by father Manu. Do not distract from a distant goal-path.
ये देवास इह स्थन विश्वे वैश्वानरा उत। अस्मभ्यं शर्म सप्रथो गवेऽश्वाय यच्छत
हे सभी को उत्तम मार्ग की ओर ले जाने वाले देवों! आप हमारे समक्ष उपस्थित होकर  हमें गौवों, अश्वों के साथ नाना प्रकार के ऐश्वर्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.30.4]
Hey demigods-deities, taking us to excellent path! Invoke before us and grant us cows, horses and different-different grandeurs.(26.04.2024ausE)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (31) :: ऋषि :- मनु वैवस्वत; देवता :- यज्ञ और यजमान, दम्पती, दम्पत्याशिष; छन्द :- गायत्री, अनुष्टुप्, पंक्ति।
यो यजाति यजात इत्सुनवच्च पचाति च। ब्रह्मेदिन्द्रस्य चाकनत्
जो यजमान यज्ञ करता है, जो पुनः यज्ञ करता है, वह सोम का अभिषव और पुरोडाशादि का पाक करता है और इन्द्र देव के स्तोत्र की बार-बार कामना करता है।[ऋग्वेद 8.31.1]
The host who conduct Yagy repeatedly, extract Somras and prepare Purodas, repeatedly recite the Strotr devoted to Indr Dev.
पुरोळाशं यो अस्मै सोमं ररत आशिरम्। पादित्तं शक्रो अंहसः
जो यजमान इन्द्र देव को पुरोडाश और दूध मिश्रित सोमरस प्रदान करता है, निश्चय ही उसे पाप से इन्द्र देव बचाते हैं।[ऋग्वेद 8.31.2]
The host who offer Purodas and Somras mixed with milked to Indr Dev is protected by him from sins.                   
तस्य द्युमाँ असद्रथो देवजूतः स शूशुवत्। विश्वा वन्वन्नमित्रिया
देव प्रेरित और प्रकाशमान रथ उसी यजमान का हो जाता है और वह उसके द्वारा शत्रुओं की बाधाओं को नष्ट करके समृद्धवान होता है।[ऋग्वेद 8.31.3]
The host gets the radiant charoite inspired by the divinity and he removes the obstacles-hurdles created by the enemies, becoming rich & prosperous. 
अस्य प्रजावती गृहेऽसश्चन्ती दिवेदिवे। इळा घेनुमती दुहे
पुत्रादियुक्त, विनाश रहित और गौ सहित प्रत्येक अन्न  इस यजमान के गृह में प्राप्त किया जा सकता है।[ऋग्वेद 8.31.4]
Associated with sons, all sorts of indestructible food grains & cows can be obtained by this host, in his house.
या दम्पती समनसा सुनुत आ च धावतः। देवासो नित्ययाशिरा
हे देवों! जो दम्पति एक मन से अभिषव करते हैं, दशापवित्र द्वारा सोम का शोधन करते हैं और मिश्रण द्रव्य के द्वारा सोम को मिलाते हैं।[ऋग्वेद 8.31.5]
दशापवित्र :: वस्त्र के वे टुकड़े जो श्राद्ध आदि में दान दिये जाते हैं; a fringed (of clothing or material) having a decorative border of hanging threads, (of part of a plant or animal) having a natural border or edging of hair or fibres.
Hey demigods-deities! The couple filter Somras with a cloth and add it with mixed fluids.
प्रति प्राशव्याँ इतः सम्यञ्चा बर्हिराशाते। न ता वाजेषु वायतः
वे भोजन के योग्य अन्नादि प्राप्त करते हैं और मिलकर यज्ञ में आते हैं। वे अन्न के लिए अन्यत्र नहीं जाते।[ऋग्वेद 8.31.6]
Such couple get food grains good enough to be used as food and come together in the Yagy; don't have to go else where for food.
न देवानामपि हुतः सुमतिं न जुगुक्षतः। श्रवो बृहद्विवासतः
वे दम्पत्ति देवताओं की उपेक्षा न करते हुए अपने विवेक को नहीं खोते। इसलिए वे महान कीर्ति को प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 8.31.7]
Such couple-pair don't neglect the demigods-deities, do not loose their prudence and hence they attain great honours.
पुत्रिणा ता कुमारिणा विश्वमायुर्व्यश्नुतः। उभा हिरण्यपेशसा
वे पुत्र वाले हैं; कुमार (षोडशवर्षीय) पुत्र वाले हैं। वे सुवर्ण आभूषणों से विभूषित होकर पूर्ण आयु प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 8.31.8]
They have adolescent son. They get complete age decorated with ornaments.
(Longevity :: Sat Yug :- 400 years, Treta Yug :- 300 years, Dwapar Yug :- 200 years Kali Yug :-100 years).
वीतिहोत्रा कृतद्वसू दशस्यन्तामृताय कम्।
समूधो रोमशं हतो देवेषु कृणुतो दुवः
प्रिय यज्ञ वाले इन दम्पती की स्तुति देवताओं की कामना करती है। वे देवताओं को सुखप्रद अन्न प्रदान करते हैं, वे उपयुक्त धन हैं। वे अमरत्व या सन्तति-लाभ के लिए रोमश (पुरुषेन्द्रिय) और ऊध (जननेन्द्रिय) का संयोग करते हैं। वे देवताओं की सेवा करते हैं।[ऋग्वेद 8.31.9]
The Stuti-prayers of such couple performing Yagy desires worship of deities. They possess suitable wealth and offer pleasure giving food grains to demigods-deities. They assimilate-use their genitals for achieving immortality. They serve the demigods-deities.
आ शर्म पर्वतानां वृणीमहे नदीनाम्। आ विष्णोः सचाभुवः
हम पर्वत और नदी के सुख की प्रार्थना करते हैं। देवताओं के साथ श्रीविष्णु के सुख की भी हम प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 8.31.10]
We worship the mountains and rivers for comforts-pleasure. We pray to demigods & Bhagwan Shri Hari Vishnu too, for comforts-pleasure.(27.04.2024ausM)
ऐतु पूषा रयिर्भगः स्वस्ति सर्वधातमः। उरुरध्वा स्वस्तये
धनों के दाता, भजनीय और सबके पोषक पूषा देव रक्षा के साथ उपस्थित हों। उनके आने पर कठिन मार्ग हमारे लिए मङ्गलकारी होगा।[ऋग्वेद 8.31.11]
Let Pusha Dev protector of all, worshipable and nurturer be present. On his arrival difficult terrain-path will become easy for us.
अरमतिरनर्वणो विश्वो देवस्य मनसा। आदित्यानामनेह इत्
शत्रुओं के द्वारा पराजित न होने योग्य और प्रकाशक पूषा देव के समस्त स्तोता श्रद्धा से पर्याप्त स्तुति से युक्त होते हैं। आदित्यों का दान पाप रहित होता है।[ऋग्वेद 8.31.12]
All Stotas full of honour, recite Stuti for radiant Pusha Dev who can not be defeated by the enemy. Donations by Adity Gan are free from sins.
यथा नो मित्रो अर्यमा वरुणः सन्ति गोपाः। सुगा ऋतस्य पन्थाः
मित्र, वरुण देव और अर्यमा जिस प्रकार हमारे रक्षक हैं, उसी प्रकार समस्त यज्ञ मार्ग भी सुगम हों।[ऋग्वेद 8.31.13]
The manner in which Mitr, Varun Dev and Aryma are our protectors, similarly  all  routes to Yagy be easy for us.
अग्निं वः पूर्व्य गिरा देवमीळे वसूनाम्। सपर्यन्तः पुरुप्रियं मित्रं न क्षेत्रसाधसम्
हे देवों! आप लोगों के मुख्य और दीप्तिमान् अग्नि देव की धन की प्राप्ति के लिए स्तुति वचन के द्वारा स्तुति करता हूँ। आपके परिचर्याकर्ता मनुष्य अनेक लोगों के प्रिय होते हैं। वे यज्ञ साधक मित्र के समान अग्नि देव की स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 8.31.14]
Hey demigods-deities! I worship Agni Dev prominent amongest you, for wealth with Stuti. Those humans who serve you are admired by many people. They worship Agni Dev like friend who facilitate the Yagy. 
मक्षू देववतो रथः शूरो वा पृत्सु कासु चित्।
देवानां य इन्मनो यजमान इयक्षत्यभीदयज्वनो भुवत्
देववान व्यक्ति का रथ उसी तरह शीघ्र दुर्ग में प्रवेश करता है, जिस प्रकार शूर किसी सेना के मध्य में प्रवेश करता है। जो यजमान देवों के मन की स्तुति द्वारा पूजा करने की इच्छा करते हैं, वह यज्ञ रहित को पराजित करता है।[ऋग्वेद 8.31.15]
The charoite of a person blessed by the divinity enters the enemy fort quickly like the brave person who penetrate the enemy army. Those who worship the demigods-deities with their innerself-heart defeat the person who do not organise Yagy.
न यजमान रिष्यसि न सुन्वान न देवयो।
देवानां य इन्मनो यजमान इयक्षत्यभीदयज्वनो भुवत्
हे याजकों! आप विनष्ट नहीं होगे। हे सोमाभिषवकारी! आप विनष्ट नहीं होगे। हे देवाभिलाषी! आप नहीं विनष्ट होगे। जो यजमान देवताओं की मन से पूजा करता है, वह यज्ञ रहितों को पराजित करता है।[ऋग्वेद 8.31.16]
Hey Ritviz! you will not perish. Hey extractor of Somras! You will not perish. Hey desirous of invoking demigods-deities! You will not perish. The host-Ritviz who worship demigods-deities with his heart-innerself defeat those who do not conduct Yagy.
नकिष्टं कर्मणा नशन्न प्र योषन्न योषति।
देवानां य इन्मनो यजमान इयक्षत्यभीदयज्वनो भुवत्
जो यजमान देवों के मन का यज्ञ करने की इच्छा करता है, उसे कर्म द्वारा कोई व्याप्त नहीं कर सकता। वह कभी भी अपने स्थान से पृथक् नहीं होता। वह पुत्रादि से भी पृथक् नहीं होता। जो यजमान देवों के मन की स्तुति के द्वारा पूजा करने की इच्छा करता है, वह यज्ञ रहितों को परास्त करता है।[ऋग्वेद 8.31.17]
The Ritviz-host who wish to conduct Yagy as per the liking of the demigods-deities is not troubled the deeds. He never quit his position-seat. He is no separated from his sons etc. The host-Ritviz who worship demigods-deities with his heart-innerself defeat those who do not conduct Yagy.
असदत्र सुवीर्यमुत त्यदाश्वश्वयम्।
देवानां य इन्मनो यजमान इयक्षत्यभीदयज्वनो भुवत्
जो यजमान देवों के मन का यज्ञ करने की इच्छा करता है, उसे सुन्दर वीर्य वाला पुत्र उत्पन्न होता है, अश्वों से युक्त धन भी उसे प्राप्त होता है। जो यजमान देवताओं के मन की स्तुति के द्वारा पूजा करने की इच्छा करता है, वह यज्ञ रहितों को पराजित करता है।[ऋग्वेद 8.31.18]
The Ritviz-host who wish to organise Yagy as per the wishes-desire of demigods-deities, is blessed with an energetic son and wealth associated with horses. The host-Ritviz who worship demigods-deities with his heart-innerself defeat those who do not conduct Yagy.(27.04.2024ausN)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (32) :: ऋषि :- मेधातिथि, काण्व; देवता :-इन्द्र; छन्द :- गायत्री।
प्र कृतान्यृजीषिणः कण्वा इन्द्रस्य गाथया। मदे सोमस्य वोचत
हे कण्व गण! इन्द्र देव की गाथा के द्वारा उनके आनन्दित होने पर आप लोग ऋजीष सोम के कर्मों का गुणगान करें।[ऋग्वेद 8.32.1]
ऋजीष :: सोम का शेष भाग, एक नर्क का नाम, पानी; Seizing, driving away, hastening towards, a frying pan, name of a hell, the residue of Som, water. 
Hey Kavy Gan! You should appreciate the effects-impact of Rijeesh Som after the pleasure of Indr Dev listening to his glory.
यः सृबिन्दमनर्शनिं पिपुं दासमहीशुवम्। वधीदुग्रो रिणन्नपः
जल प्रेरित करते हुए उग्र इन्द्र देव ने सृबिन्द, अनर्शनि, विषु, दास और अहीश शत्रुओं का वध किया।[ऋग्वेद 8.32.2]
Making the water flow furious Indr Dev destroyed-killed the enemies named Srabind, Anarshini, Vishu, Das and Aheesh.
न्यर्बुदस्य विष्टपं वर्माणं बृहतस्तिर। कृषे तदिन्द्र पौंस्यम्
हे इन्द्र देव! मेघ के आबरक स्थान का छेदन करें। इस वीरकर्म को सम्पादित करें।[ऋग्वेद 8.32.3]
Hey Indr Dev! Pierce the rain holding domain of the vast lump-bulky cloud. Carry out this brave deed
प्रति श्रुताय वो धृषत्तूर्णाशं न गिरेरधि। हुवे सुशिप्रमूतये
हे स्तोताओं! जिस प्रकार मेघ से जल की प्रार्थना की जाती है, उसी प्रकार शत्रुओं के दमन कर्ता और शोभन जबड़े वाले इन्द्र देव से आपकी स्तुति सुनने और आपकी रक्षा की मैं प्रार्थना करता हूँ।[ऋग्वेद 8.32.4]
Hey Stotas! The way the request is done for water to the clouds, I appeal-pray to Indr Dev with beautiful jaws for protection by you.
स गोरश्वस्य वि व्रजं मन्दानः सोम्येभ्यः। पुरं न शूर दर्षसि
हे शूर इन्द्र देव! आप प्रसन्न होकर शत्रु नगरी के समान सोम के योग्य स्तोताओं के लिए गौ और अश्व के निवास करने के लिए द्वार खोलते हैं।[ऋग्वेद 8.32.5]
Hey brave Indr Dev! On being happy-exhilarated you open the gates of the enemy cities-forts for cows & horses for the Stotas eligible for Som.
यदि मे रारणः सुत उक्थे वा दधसे चनः। आरादुप स्वधा गहि
हे इन्द्र देव! यदि मेरे अभिषुत सोम अथवा स्तोत्र में अनुरक्त हों और यदि मुझे अन्न देते हों तो दूर देश से अन्न के साथ आप मेरे पास पधारें।[ऋग्वेद 8.32.6]
Hey Indr Dev! If are pleased either with the Som Ras extracted by me or the Strotr recited by me; come to me with food grains from distant places. 
वयं घा ते अपि ष्मसि स्तोतार इन्द्र गिर्वणः। त्वं नो जिन्व सोमपाः
हे स्तुति योग्य इन्द्र देव! हम आपके स्तोता हैं। हे सोमपायी! आप हमें प्रसन्न करते हैं।[ऋग्वेद 8.32.7]
Hey worshipable Indr Dev! We are your worshipers. Hey Som Ras drinking! You make us happy.
उत नः पितुमा भर संरराणो अविक्षितम्। मघवन्भूरि ते वसु
हे धनी इन्द्र देव! प्रसन्न होकर आप हमें अक्षय अन्न प्रदान करें। क्योंकि आपके पास प्रचुर धन है।[ऋग्वेद 8.32.8]
Hey wealthy Indr Dev! Be happy with us and grant lots of food grains. You possess lots of wealth.
उत नो गोमतस्कृधि हिरण्यवतो अश्विनः। इळाभिः सं रभेमहि
आप हमें गौ, अश्व और सुवर्ण से सम्पन्न करें हमें अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.32.9]
Grant us cows, horses, gold and food grains. 
बृबदुक्थं हवामहे सूप्रकरस्नमूतये। साधु कृण्वन्तमवसे
संसार की रक्षा के लिए इन्द्र देव भुजाओं को फैलाते और पालन के लिए अच्छे कार्य करते हैं। वे महान उक्थ वाले हैं। हम इन्द्र देव का आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.32.10]
For the protection of the universe, Indr Dev extend his hands-arm and perform good deeds. He is great. We invoke Indr Dev.
यः संस्थे चिच्छतक्रतुरादों कृणोति वृत्रहा। जरितृभ्यः पुरूवसुः
जो इन्द्र देव संग्राम में बहुकर्मा होते और अनन्तर शत्रुओं का वध करते हैं, जो इन्द्र देव वृत्रासुर को मारने वाले है और प्रार्थना करने वालों को प्रचुर ऐश्वर्य प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 8.32.11]
Indr Dev who killed Vrata Sur perform multiple deeds and thereafter kill enemies. He grant s sufficient grandeur to the worshipers.
स नः शक्रश्चिदा शकद्दानवाँ अन्तराभरः। इन्द्रो विश्वाभिरूतिभिः
वे ही शक्र अर्थात् इन्द्र देव हमें शक्तिशाली करें। इन्द्र देव दानी हैं और वे समस्त रक्षाओं के द्वारा हमारे छिद्रों को परिपूर्ण करते हैं।[ऋग्वेद 8.32.12]
Let Indr Dev make us strong. Indr Dev is a donor and he fills our holes through protection means.
यो रायो ३ वनिर्महान्त्सुपारः सुन्वतः सखा। तमिन्द्रमभि गायत
जो इन्द्र देव धन के रक्षक, सर्वोत्तम, विपत्ति से पार करने वाले और सोमाभिषवकारी के मित्र है, उन्हीं इन्द्र देव की स्तुति करें।[ऋग्वेद 8.32.13]
Worship Indr Dev who is a protector of wealth, excellent, sails us through troubles and a friend of Somras extractors.
आयन्तारं महि स्थिरं पृतनासु श्रवोजितम्। भूरेरीशानमोजसा
इन्द्र देव आने वाले, युद्ध क्षेत्र में अविचल, अन्न के विजेता और बल पूर्वक प्रचुर धन के ईश्वर है।[ऋग्वेद 8.32.14]
Indr Dev arrives, unmoved in the battle field, wins food grains and mighty lord of wealth.
नकिरस्य शचीनां नियन्ता सूनृतानाम्। नकिर्वक्ता न दादिति
इन्द्र देव के शोभन कार्यों का कोई नियामक नहीं है। ये दाता नहीं है, यह कोई नहीं कहता।[ऋग्वेद 8.32.15]
There is no limit of Indr Dev's glorious deeds. None says that he is not a donor.
(27.04.2024ausE)
न नूनं ब्रह्मणामृणं प्राशूनामस्ति सुन्वताम्। न सोमो अप्रता पपे
सोमाभिषवकारी और सोमपायी ब्राह्मणों के पास ऋण नहीं है। प्रचुर धन वाला ही सोमपान है।[ऋग्वेद 8.32.16]
The Brahmans who extract and drink Somras are free from debt. Only a wealthy person drinks Somras.
पन्य इदुप गायत पन्य उक्थानि शंसत। ब्रह्मा कृणोत पन्य इत्
प्रार्थना के योग्य इन्द्र देव के लिए गान करें। स्तुत्य इन्द्र देव के लिए स्तोत्र का उच्चारण करें। स्तुत्य इन्द्रदेव के लिए स्तोत्रों का निर्माण करें।[ऋग्वेद 8.32.17]
Sing for the sake of Indr Dev deserving worship. Recite Strotr in the honour of worshipable Indr Dev.
पन्य आ दर्दिरच्छता सहस्रा वाज्यवृतः। इन्द्रो यो यज्वनो वृधः
स्तुत्य और बली इन्द्र देव ने सैकड़ों और हजारों शत्रुओं का वध किया। वे शत्रुओं के द्वारा अनाच्छादित हैं। वे यज्ञकारी के वर्द्धक हैं।[ऋग्वेद 8.32.18]
Worshipable and mighty Indr Dev killed thousands of enemies. He is not surrounded by the enemies. He make the Yagy performing prosperous.
वि षू चर स्वधा अनु कृष्टीनामन्वाहुवः। इन्द्र पिब सुतानाम्
हे आवाहन के योग्य इन्द्र देव! मनुष्य के हव्य के निकट विचरण करें और अभिषुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 8.32.19]
Indr Dev deserve invocation.  Roam around the offerings of the humans and drink the purified-extracted Somras.
पिब स्वधैनवानामुत यस्तुग्रये सचा। उतायमिन्द्र यस्तव
हे इन्द्र देव! गौ के बदले में खरीदे गये और जल से प्रस्तुत किये गये अपने इस सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 8.32.20]
Hey Indr Dev! Drink your Somras bought by bartering cows and presented with water.
अतीहि मन्युषाविणं सुषुवांसमुपारणे। इमं रातं सुतं पिब
हे इन्द्र देव! क्रोध के साथ अभिषव करने वाले और अनुपयुक्त स्थान में अभिषव करने वाले को लाँधकर चले आवें। हमारे द्वारा प्रदत्त इस अभिषुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 8.32.21]
Hey Indr Dev! Reject the Somras extracted with anger at an unsuitable place and come to us. Drink the Somras extracted by us.
इहि तिस्रः परावत इहि पञ्च जनाँ अति। धेना इन्द्रावचाकशत्
हे इन्द्र देव! हमारी स्तुति को आपने देखा या समझा है। आप दूर देश से हमारे आगे-पीछे और पार्श्व में आवें। आप गन्धर्वों, पितरों, देवताओं, असुरों और राक्षसों को लाँघकर यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 8.32.22]
Hey Indr Dev! You have seen and understood our Stuti-prayer. Come to us from a distant place in our front, back and side. Come to us by avoiding the Gandharv, demigods-deities, demons and the wicked-vicious.
सूर्यो रश्मि यथा सृजा ऽऽ त्वा यच्छन्तु मे गिरः। निम्नमापो न सध्यक्
सूर्य देव जिस प्रकार किरणों को देते हैं, उसी प्रकार धन प्रदान करें। जिस प्रकार नीची भूमि में जल मिलता है, उसी प्रकार मेरी स्तुतियाँ आपके पास पहुँचे।[ऋग्वेद 8.32.23]
The way Sury Dev grants his rays, grant us wealth like wise. The manner in which water is found over low lying land, let my Stuties reach you, similarly.
अध्वर्यवा तु हि षिञ्च सोमं वीराय शिप्रिणे। भरा सुतस्य पीतये
हे अध्वुयों! सुन्दर शिरस्त्राण अथवा जबड़े वाले और वीर इन्द्र देव के लिए शीघ्र सोमरस का सेचन करें। सोमपान के लिए इनका आवाहन करें।[ऋग्वेद 8.32.24]
Hey priests! Quickly present-extract Somras for Indr Dev wearing head gear and possessing wide jaws. Invoke him for drinking Somras.
य उद्मः फलिगं भिनन्नय १ क्सिन्धूँरवासृजत्। यो गोषु पक्वं धारयत्
जिन्होंने जल के लिए मेघ को तितर-बितर किया, जिन्होंने अन्तरिक्ष से जल को नीचे भेजा और जिन्होंने गौवों को पक्व दुग्ध प्रदान किया, वही इन्द्र देव हैं।[ऋग्वेद 8.32.25]
One who shattered the clouds for water, sent the water to earth from space and granted milk to cows is Indr Dev.
अहन्वृत्रमृचीषम और्णवाभमहीशुवम्। हिमेनाविध्यदर्बुदम्
दीप्ति युक्त इन्द्र देव ने वृत्रासुर, और्णवाभ और अहीशुव का वध किया। इन्होंने तुषार जल से मेघ को वेध दिया।[ऋग्वेद 8.32.26]
तुषार :: हवा में मिली हुई भाप जो जमकर श्वेत कणों के रूप में दिखाई देती है, पाला बर्फ़, हिम, बर्फ़ की तरह ठंडा; blight, hoar frost.
Radiant Indr Dev slayed Vratr Sur, Aurnvabh, Ahishuv. He teared the clouds with frost. 
प्र व उग्राय निष्टुरेऽषाळ्हाय प्रसक्षिणे। देवत्तं ब्रह्म गायत
हे उद्गाताओं! उग्र, निष्ठुर, अभिभवकर्ता और बल पूर्वक हरण कर्ता इन्द्र देव के लिए देवों की प्रसन्नता से प्राप्त स्तोत्रों का पाठ करें।[ऋग्वेद 8.32.27]
निष्ठुर :: हृदय हीन, कठोर, दयाभाव से शून्य, कड़ा, निर्दय, बेरहम; inexorable, pitiless, vandal, strict, feeling lees, heartless, ruthless, stonyhearted.
Hey Udgatas! Sing the Strotr received from the demigods-deities for furious, pitiless, defeating and abducting forcefully; Indr Dev.
यो विश्वान्यभि व्रता सोमस्य मदे अन्धसः। इन्द्रो देवेषु चेतति
सोम की मत्तता उत्पन्न होने पर इन्द्र देव देवताओं के पास सभी कर्मों को सूचित करते हैं।[ऋग्वेद 8.32.28]
Indr Dev inform the demigods-deities of all endeavours on being exhilarated.
इह त्या सधमाद्या हरी हिरण्यकेश्या। वोळ्हामभि प्रयो हितम्
वे एक साथ ही प्रमत्त और सुवर्ण केश वाले दोनों हरि नाम के अश्वों को इस यज्ञ में सोमरूप अन्न के अभिमुख इन्द्र देव को ले आवें।[ऋग्वेद 8.32.29]
Bring the exhilarated horses named Hari, having hairs with golden hue, together in front of the food grains in the form of Som to Indr Dev. 
अर्वाञ्चं त्वा पुरुष्टुत प्रियमेधस्तुता हरी। सोमपेयाय वक्षतः॥
हे अनेकों के द्वारा स्तुत्य इन्द्र देव! दोनों अश्विनी कुमारों और प्रियमेध के द्वारा आप प्रशंसित हैं, इसलिए सोमपान के लिए आप यज्ञस्थल के निकट पधारें।[ऋग्वेद 8.32.30]
Worshiped by several, Indr Dev! You are appreciated by Ashwani Kumars and Priymedh, therefore come to the site of Yagy for drinking Somras.(28.04.2024ausM)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (33) :: ऋषि :- मेधातिथि, काण्व; देवता :-इन्द्र; छन्द :- बृहती, गायत्री, अनुष्टुप्।
वयं घ त्वा सुतावन्त आपो न वृक्तबर्हिषः।
पवित्रस्य प्रस्त्रवणेषु वृत्रहन्परि स्तोतार आसते
हे वृत्रघ्न इन्द्र देव! हम लोगों ने सोमाभिषव किया। जल के सदृश हम आपके समक्ष जाते है। पवित्र सोम के प्रसूत होने पर कुश विस्तारित किए हुए याजक गण आपकी उपासना करते हैं।[ऋग्वेद 8.33.1]
प्रसूत :: उत्पन्न, उत्पादक, प्रसव काल में होने वाला एक रोग; delivered.
Hey slayer of Vratr, Indr Dev! We have extracted Somras. We come to you the flowing waters. Having produced Som, the Ritviz occupying Kush Mats, the Ritviz worship you. 
स्वरन्ति त्वा सुते नरो वसो निरेक उक्थिनः।
कदा सुतं तृषाण ओक आ गम इन्द्र स्वब्दीव वंसगः
हे निवास दाता इन्द्र देव! अभिषुत सोम के निर्गत होने पर उक्थ वाले याजक लोग स्तुति करते हैं। सोम के पिपासु होकर बैल के समान शब्द करते हुए यज्ञ स्थल में इन्द्र देव कब आयेंगे?[ऋग्वेद 8.33.2]
निर्गत :: बाहर आया हुआ, निःसृ; being free from any undertaking, issued.
Hey residence granting Indr Dev! Having delivered-issued Som, the Ritviz recite Ukth. Desirous of Somras, when will Indr Dev arrive making sound like a bull at the Yagy site?.
कण्वेभिर्दृष्णवा धृषद्वाजं दर्षि सहस्त्रिणम्।
पिशङ्गरूपं मघवन्विचर्षणे मक्षू गोमन्तमीमहे
हे शत्रुओं के दमनकारी इन्द्र देव! कण्वों के लिए सहस्र संख्यक अन्न प्रदान करें। हे धनी और विशेष द्रष्टा इन्द्र देव! हम धृष्ट, पीले रूप वाले और गोमान अन्न की याचना करते हैं।[ऋग्वेद 8.33.3]
दमनकारी :: दबाने वाला, अत्याचारी, उत्पीड़क, असह्य, सताने वाला; oppressive, repressive, suppressive.
VISIONARY :: thinking about or planning the future with imagination or wisdom, inspired, imaginative, creative, inventive, insightful, ingenious.
धृष्ट :: लज्जारहित, दुस्साहसी, साहित्य, प्रेमिका को खिन्न करनेवाला नायक; rude, impertinent, presumptuous.
Hey suppressor of the enemy Indr Dev! Grant unlimited food grains to Kavy. Hey rich and visionary Indr Dev! We rude-presumptuous people request you for yellowish food grains which can be fed to cows as well.
पाहि गायान्धसो मद इन्द्राय मेध्यातिथे।
यः संमिश्लो हर्योर्यः सुते सचा वज्री रथो हिरण्ययः
हे मेधातिथि! सोमपान करें। जो हरि नामक अश्वों को रथ में नियोजित करते हैं, जो सोम में सहायक है, जो वज्रधर हैं और जिनका रथ सुवर्ण का है, सोमजन्य मत्तता होने पर उन्हीं इन्द्र देव की हम स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 8.33.4]
Hey Medhatithi! Drink Somras. We worship Indr Dev, who is the master of green horses named Hari, wield Vajr, has golden charoite, helpful in Som & exhilarated with Somras.
यः सुषव्यः सुदक्षिण इनो यः सुक्रतुर्गुणे। 
य आकरः सहस्त्रा यः शतामघ इन्द्रो यः पूर्भिदारितः
जिनका बायाँ हाथ सुन्दर है, दाहिना हाथ सुन्दर है, जो ईश्वर, सुन्दर प्रज्ञ और हजारों के कर्ता हैं, जो बहुधन शाली हैं, जो पुरी को तोड़ते हैं और जो यज्ञ में स्थिर हैं, उन्हीं इन्द्र देव की हम स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 8.33.5]
We worship Indr Dev who has beautiful hands, is lord-God, enlightened and accomplisher of desires of thousands of people, destroy the enemy forts-cities and advocate-support Yagy.
यो घृषितो योऽवृतो यो अस्ति श्मश्रुषु श्रितः।
विभूतद्युम्नश्चयवनः पुरुष्टुतः क्रत्वा गौरिव शाकिनः
जो शत्रुओं के नाशक हैं, जो शत्रुओं के द्वारा अन्नच्छादित हैं, युद्ध में जिनके आश्रित हुआ जाता है, जो प्रचुर धन वाले हैं, जो सोमपायी हैं और जो बहुतों के द्वारा प्रार्थित हैं, वे इन्द्र देव स्वकर्म में समर्थ यजमान के लिए दुग्धदायिनी गौ के समान हैं। उन इन्द्रदेव की हम स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 8.33.6]
We worship Indr Dev, who is given lots of food grains by the enemy, who's support is sought in the war, has plenty of wealth, drinks Somras, worshiped by several people, is capable of deliberating his duties and is like a a milch cow for the Ritviz-hosts.
क ईं वेद सुते सचा पिबन्तं कद्वयो दधे।
अयं यः पुरो विभिनत्त्योजसा मन्दानः शिप्रयन्धसः
जो इन्द्र देव सुन्दर जबड़े वाले हैं, जो सोम द्वारा परितृप्त हैं और जो बल से पुरियों को भेदित करते हैं, सोमाभिषव होने पर ऋत्विकों के साथ सोमपायी उन इन्द्र देव को कौन जानता है? कौन उनके लिए अन्न धारण करता है?[ऋग्वेद 8.33.7]
Who knows Indr Dev who has large jaws, drinks Somras with the Ritviz when Somras is extracted, pierce-penetrate into the forts-cities of enemies by virtue of his might, strength, power. Who can hold his food grains?
दाना मृगो न वारणः पुरुत्रा चरथं दधे।
नकिष्ट्वा नि यमदा सुते गमो महाँश्चरस्योजसा॥
जिस प्रकार शत्रुओं की खोज करने वाला हाथी मद जल धारण करता है, उसी प्रकार इन्द्र देव यज्ञ में चरणशील मत्तता धारण करते हैं। हे इन्द्र देव! आपको कोई नियमित नहीं कर सकता। सोमाभिषव के लिए पधारें। महान बल के द्वारा आप सर्वत्र भ्रमण करते हैं।[ऋग्वेद 8.33.8]
The way an elephant looking for the enemies possess toxication water, Indr Dev too become excited-exhilarated in the Yagy organised step by step. Hey Indr Dev! None can control-over power you. Come for extracting-drinking Somras. You roam every where by virtue of your strength.
य उग्रः सन्ननिष्टतः स्थिरो रणाय संस्कृतः।
यदि स्तोतुर्मघवा शृणवद्धवं नेन्द्रो योषत्या गमत्
इन्द्र देव के उग्र होने पर शत्रु भी उन्हें आच्छादित नहीं कर सकते। वे अचल हैं। वे युद्ध के लिए शस्त्रों द्वारा अलंकृत हैं। हे धनी इन्द्र देव! यदि वह याजक का आवाहन सुनते हैं, तब अन्यत्र नहीं जाते, केवल वहीं आते हैं।[ऋग्वेद 8.33.9]
Once Indr Dev is furious, the enemy can not shadow-over power him. He is unmovable-invincible. He is decorated with the weapons of war. Hey wealthy Indr Dev! You respond to the invocation by the worshiper and comes straight.
सत्यमित्था वृषेदसि वृषजूतिर्नोऽवृतः।
वृषा ह्युग्र श्रृण्विषे परावति वृषो अर्वावति श्रुतः
उग्र इन्द्र देव आप वास्तव में ऐसे ही मनोरथवर्षक हैं। आप कामवर्षकों के द्वारा आकृष्ट हों और हमारे शत्रुओं के द्वारा अनाच्छादित हों आप अभीष्टवर्षक कहकर विख्यात हैं। आप दूर और पास में अभीष्टवर्षी कहकर भी विख्यात है।[ऋग्वेद 8.33.10]
Hey furious Indr Dev, you indeed accomplish the desires. You should be free from the enemies and accomplish our desires. You are famous for accomplishing desires all around.(29.04.2024ausM)
वृषणस्ते अभीशवो वृषा कशा हिरण्ययी।
वृषा रथो मघवन्वृषणा हरी वृषा त्वं शतक्रतो
हे धनी इन्द्र देव! आपके अश्व की लगाम के अभीष्टवर्षक है; आपकी सोने की चाबुक अभीष्टवर्षक है, आपके दोनों अश्व अभीष्टदाता हैं और हे शतक्रतु इन्द्रदेव! आप स्वयं अभीष्ट- वर्षक हैं।[ऋग्वेद 8.33.11]
Hey rich Indr Dev! The reins, golden lash of your horses including them selves accomplish the desires. Hey performer of hundred Yagy Indr Dev! You yourself is desires accomplishing.
वृषा सोता सुनोतु ते वृषन्नजीपिन्ना भर।
वृषा दधन्वे वृषणं नदीष्वा तुभ्यं स्थातर्हरीणाम्
हे काम वर्षक इन्द्र देव! आपका सोमाभिषव करने वाला अभीष्टवर्षक होकर सोम का अभिषव करे। सरलगामी इन्द्र देव हमें धन प्रदान करें। हे इन्द्र देव! अश्वों के अभिमुख स्थित और वर्षक आपके लिए जल में सोम का अभिषव करने वाले ने सोम को धारित किया है।[ऋग्वेद 8.33.12]
Hey desires accomplishing Indr Dev! Let the person who extract Somras for you should turn desires accomplishing. Let Indr Dev moving straight grant us money. Hey Indr dev! One present in front of your horses has extracted Somras in water and stored-kept it for you.
एन्द्र याहि पीतये मधु शविष्ठ सोम्यम्।
नायमच्छा मधवा शृणावद्गिरो ब्रह्मोक्था च सुक्रतुः
हे श्रेष्ठ बली इन्द्रदेव! सोमरूप मधुपान के लिए पधारें। बिना आगमन किए धनवान और सुकृती इन्द्र देव स्तुति, स्तोत्र और प्रार्थना को नहीं सुनते।[ऋग्वेद 8.33.13]
बली :: बलशाली, बलवाला, vigorous, robust, stalwart.
VIGOROUS :: done with vigour,  carried out forcefully and energetically, full of physical or mental strength or active force, strong.
Hey excellent & robust-vigorous Indr Dev! Come and drink Somras tasty like honey. Wealthy Indr Dev performing virtuous deeds do not attend to Stuti, Strotr and prayers without reaching at the spot-arriving.
वहन्तु त्वा रथेष्ठामा हरयो रथयुजः।
तिरश्चिदर्यं सवनानि वृत्रहन्नन्येषां या शतक्रतो
हे वृत्रघ्न और बहुप्रज्ञ इन्द्र देव! आप रथस्थ और ईश्वर हैं। रथ में नियोजित किए हुए अश्व दूसरों के यज्ञों का तिरस्कार करके आपको हमारे यज्ञ में ले आवें।[ऋग्वेद 8.33.14]
Hey slayer of Vrat and possessor of multiple disciplines-enlightenment! You are a charioteer and Lord-God. Let the horses deployed in your charoite discard others and bring you to our Yagy.
अस्माकमद्यान्तमं स्तोमं धिष्व महामह।
अस्माकं ते सवना सन्तु शंतमा मदाय द्युक्ष सोमपाः
हे महा पूज्य इन्द्र देव! आज हमारे समीप के सोम को धारित करें। हे दीप्त सोमरस के पीने वाले इन्द्र देव! आपकी मत्तता के लिए हमारे यज्ञ कल्याणकारी हों।[ऋग्वेद 8.33.15]
Hey highly worshiped Indr Dev! Support Somras in our proximity. Hey drinker of aurous-radiant Somras Indr Dev! Your exhilaration should be beneficial to our Yagy.
नहि षस्तव नो मम शास्त्रे अन्यस्य रण्यति। यो अस्मान्वीर आनयत्
वीर इन्द्र देव हमारे नेता हैं। वे मेरे, आपके और दूसरे के शासन में रहना स्वीकार नहीं करते।[ऋग्वेद 8.33.16]
Brave Indr Dev is our leader. He do not follow the rule-dictates of others.  
इन्द्रश्चिद्या तदब्रवीत्त्रिया अशास्यं मनः। उतो अह क्रतुं रघुम्॥
इन्द्र देव का कहना है कि स्त्री के मन पर शासन करना असम्भव है। स्त्री की बुद्धि छोटी होती है।[ऋग्वेद 8.33.17]
Indr Dev says that its impossible to rule the heart-innerself of a women. The woman possess little-narrow intellect.
सप्ती चिद्या मदच्युता मिथुना वहतो रथम्। एवेधूर्वृष्ण उत्तरा॥
सोम के अभिमुख जाने वाले दोनों अश्व इन्द्र  देव के रथ को ले जाते हैं। इसी प्रकार अभीष्ट वर्षक इन्द्र देव का रथ अश्वों की दृष्टि से उत्तम है।[ऋग्वेद 8.33.18]
The horses moving towards Som, pull Indr Dev's charoite. The charoite of Indr Dev is best in respect of the horses.
अधः पश्यस्व मोपरि संतरां पादकौ हर। मा ते कशप्लकौ दृशन्त्री हि ब्रह्मा बभूविथ॥
(इन्द्रदेव ने कहा) प्रायोगि, आप नीचे देखा करें, ऊपर नहीं। (स्त्रियों का यही धर्म है।) पैरों को संकुचित रखें (मिलाये रखें)। इस प्रकार कपड़े पहनें कि आपके कश (ओष्ठ प्रान्त) और प्लक (नारीकटि का निम्न भाग) को कोई देखने न पावें। यह सब इसलिए करो कि आप स्तोता होकर भी शापवश स्त्री बने हो।[ऋग्वेद 8.33.19] 
Indr Dev said hey Prayogi-woman! Look below-downwards, its the  etiquette of women. Keep the legs close. Wear the cloths in such a manner that no one is able to see your body from lips to navel. You should behave-act in such a way you never get birth as a woman.(29.04.2024ausE)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (34) :: ऋषि :- नीपातिथि, काण्व, सहस्र वसुरोचिषोऽङ्गि;  देवता :- इन्द्र; छन्द :- बृहती, गायत्री, अनुष्टुप्।
एन्द्र याहि हरिभिरुप कण्वस्य सुष्टुतिम्।
दिवो अमुष्य शासतो दिवं यय दिवावसो
हे इन्द्र देव! अश्वों के साथ आप कण्वों की सुन्दर स्तुति के अभिमुख आवें। इन्द्र देव द्युलोक पर शासन करते हैं। हे दीप्त हवि वाले इन्द्र देव! आप द्युलोक में प्रस्थान करें।[ऋग्वेद 8.34.1]
Hey Indr Dev! Come with horses & listen to the beautiful Stuti-composition of the Kavy. Indr Dev rules the heavens. Hey Indr Dev with aurous offerings! Move to the heavens.
आ त्वा ग्रावा वदन्निह सोमी घोषेण यच्छतु।
दिवो अमुष्य शासतो दिवं यय दिवावसो
इस यज्ञ में सोमवान अभिषव प्रस्तर शब्द करते हुए ध्वनि के साथ आपको दान करें।  द्युलोक पर शासन करते हैं। हे दीप्त हव्य वाले इन्द्र देव! आप द्युलोक में प्रस्थान करें।[ऋग्वेद 8.34.2]
Let us offer Somras extracted with stones making sound to you. Indr Dev rules the heavens. Hey Indr Dev with aurous offerings! Move to the heavens.
अत्रा वि नेमिरेषामुरां न धूनुते वृकः।
दिवो अमुष्य शासतो दिवं यय दिवावसो
इस यज्ञ में अभिषव पाषाण सोमलता को उसी प्रकार कम्पित करता है, जिस प्रकार तेंदुआ भेड़ को कम्पायमान करता है। इन्द्र देव द्युलोक पर शासन करते हैं। हे दीप्त हव्य वाले इन्द्र देव! आप द्युलोक में प्रस्थान करें।[ऋग्वेद 8.34.3]
The Stones agitate Som Lata similar to the trembling of sheep due to fear of leopard. Indr Dev rules the heavens. Hey Indr Dev with aurous offerings! Move to the heavens.
आ त्वा कण्वा इहावसे हवन्ते वाजसातये।
दिवो अमुष्य शासतो दिवं यय दिवावसो
रक्षण और अन्न प्राप्ति के लिए कण्व लोग इन्द्र देव को इस यज्ञ में आवाहित करते हैं। इन्द्र देव द्युलोक पर शासन करते हैं। हे दीप्त हव्य वाले इन्द्र देव! आप द्युलोक में प्रस्थान करें।[ऋग्वेद 8.34.4]
For the sake of protection and food grains, Kavy invoke Indr Dev in the Yagy. Indr Dev rules the heavens. Hey Indr Dev with aurous offerings! Move to the heavens.
दधामि ते सुतानां वृष्णे न पूर्वपाय्यम्। दिवो अमुष्य शासतो दिवं यय दिवावसो
कामवर्षक वायु को जिस प्रकार पहले सोमरस प्रदान किया जाता है, उसी प्रकर मैं आपको अभिषुत सोमरस प्रदान करूँगा। इन्द्रदेव द्युलोक पर शासन करते हैं। हे दीप्त हव्य वाले इन्द्र देव! आप द्युलोक में प्रस्थान करें।[ऋग्वेद 8.34.5]
The way Somras if offered to desires accomplishing Vayu Dev, I will offer extracted Somras to you. Indr Dev rules the heavens. Hey Indr Dev with aurous offerings! Move to the heavens.
स्मत्पुरंधिर्न आ गहि विश्वतोधीर्न ऊतये।
दिवो अमुष्य शासतो दिवं यय दिवावसो
हे स्वर्ग के कुटुम्बी इन्द्र देव! आप हमारे पास पधारें। हे समस्त संसार के रक्षक इन्द्र देव! हमारे रक्षा के लिए पधारें। इन्द्र देव द्युलोक पर शासन करते हैं। हे दीप्त हव्य वाले इन्द्रदेव! आप द्युलोक में प्रस्थान करें।[ऋग्वेद 8.34.6]
Hey family member of of the heavens Indr Dev! Come to us. Hey protector of the universe Indr Dev! Indr Dev rules the heavens. Hey Indr Dev with aurous offerings! Move to the heavens.
आ नो याहि महेमते सहस्त्रोते शतामघ। दिवो अमुष्य शासतो दिवं यय दिवावसो
हे महाबुद्धिमान् सहस्र रक्षा वाले और प्रचुर धनवाले इन्द्र देव! हमारे पास पधारें। इन्द्रदेव द्युलोक पर शासन करते हैं। हे दीप्त हव्य वाले इन्द्र देव! आप द्युलोक में प्रस्थान करें।[ऋग्वेद 8.34.7]
 Hey Indr Dev possessing Ultimate intelligence and wealth! Come to us. Indr Dev rules the heavens. Hey Indr Dev with aurous offerings! Move to the heavens.
आ त्वा होता मनुर्हितो देवत्रा वक्षदीड्यः। दिवो अमुष्य शासतो दिवं यय दिवावसो
हे इन्द्र देव! देवताओं में प्रार्थित और मनुष्यों के द्वारा गृह में स्थापित होता अग्नि देव आपको वहन करें। इन्द्र देव द्युलोक पर शासन करते हैं। हे दीप्त हव्य वाले इन्द्र देव! आप द्युलोक में प्रस्थान करें।[ऋग्वेद 8.34.8]
Hey Indr Dev! Worshipped amongest the demigods-deities, established by humans in their homes, let host Agni Dev support you. Indr Dev rules the heavens. Hey Indr Dev with aurous offerings! Move to the heavens.
आ त्वा मदच्युता हरी श्येनं पक्षेव वक्षतः। दिवो अमुष्य शासतो दिवं यय दिवावसो
जिस प्रकार श्येन बाज अपने दोनों पंखों को ढोता है, उसी प्रकार मद स्त्रावी दोनों अश्व आपका वहन करते हैं। इन्द्रदेव द्युलोक पर शासन करते हैं। हे दीप्त हव्य वाले इन्द्र देव! आप द्युलोक में प्रस्थान करें।[ऋग्वेद 8.34.9]
The way the falcon carries its feathers, let your horses which releases the toxins bring you here (when the animals under heat, a liquid, serum is released by their body). Indr Dev rules the heavens. Hey Indr Dev with aurous offerings! Move to the heavens.
आ याह्यर्य आ परि स्वाहा सोमस्य पीतये।
दिवो अमुष्य शासतो दिवं यय दिवावसो
हे स्वामी इन्द्र देव! आप चारों ओर से पधारें। आपको पीने के लिए मैं सोम का स्वाहा करता हूँ। इन्द्र देव द्युलोक पर शासन करते हैं। हे दीप्त हव्य वाले इन्द्र देव! आप द्युलोक में प्रस्थान करें।[ऋग्वेद 8.34.10]
Hey lord Indr Dev! Come to us from all directions. I prepare Somras for you. Indr Dev rules the heavens. Hey Indr Dev with aurous offerings! Move to the heavens.(30.04.2024ausE)
आ नो याद्युपश्रुत्युक्थेषु रणया इह।
दिवो अमुष्य शासतो दिवं यय दिवावसो
स्तुतियों का पाठ होने पर आप इस यज्ञ में हमारे समीप आवें और हमें प्रसन्न करें। इन्द्र देव द्युलोक पर शासन करते हैं। हे दीप्त हव्य वाले इन्द्र देव! आप द्युलोक में प्रस्थान करें।[ऋग्वेद 8.34.11]
Arrive to the Yay when the Stutis are in progress and amuse us. Indr Dev rules the heavens. Hey Indr Dev possessing divine offerings! Move to the heavens.
सरूपैरा सु नो गहि संभृतैः संभृताश्वः।
दिवो अमुष्य शासतो दिवं यय दिवावसो
हे पुष्ट अश्व वाले इन्द्र देव! पुष्ट और समान रूप वाले अश्वों के साथ पधारें। इन्द्र देव धुलोक पर शासन करते हैं। हे दीप्त हव्य वाले इन्द्र देव! आप द्युलोक में प्रस्थान करें।[ऋग्वेद 8.34.12]
Hey Indr Dev having stout bodied horses! Come with the stout and identical horses. Indr Dev rules the heavens. Hey Indr Dev possessing divine offerings! Move to heavens.
आ याहि पर्वतेभ्यः समुद्रस्याधि विष्टपः।
दिवो अमुष्य शासतो दिवं ययदिवावसो
आप पर्वतों व अन्तरिक्ष प्रदेश से पधारें। इन्द्र देव द्युलोक पर शासन करते हैं। हे दीप्त हव्य वाले इन्द्र देव! आप द्युलोक में प्रस्थान करें।[ऋग्वेद 8.34.13]
Come from the space and mountains. Indr Dev rules the heavens. Hey Indr Dev possessing divine offerings! Move to the heavens.
आ नो गव्यान्यश्या सहस्त्रा शूर दर्दृहि।
दिवो अमुष्य शासतो दिवं यय दिवावसो
हे शूर इन्द्र देव! आप हमें हजारों गौवें और अश्व प्रदान करें। इन्द्र देव द्युलोक पर शासन करते हैं। हे दीप्त हव्य वाले इन्द्र देव! आप द्युलोक में प्रस्थान करें।[ऋग्वेद 8.34.14]
Hey brave Indr Dev! Grant us thousands of cows and horses. Indr Dev rules the heavens. Hey Indr Dev possessing divine offerings! Move to the heavens.
आ नः सहस्रशो भरायुतानि शतानि च।
दिवो अमुष्य शासतो दिवं यय दिवावसो
हे इन्द्र देव! हमें हजार, दस हजार और सौ अभीष्ट प्रदान दान करें। इन्द्र देव द्युलोक पर शासन करते हैं। हे दीप्त हव्य वाले इन्द्रदेव! आप द्युलोक में प्रस्थान करें।[ऋग्वेद 8.34.15]
Hey Indr Dev! Accomplish our hundred, thousand & ten thousand desires. Indr Dev rules the heavens. Hey Indr Dev possessing divine offerings! Move to the heavens.
आ यदिन्द्रश्च दद्वहे सहस्रं वसुरोचिषः। ओजिष्ठमध्यं पशुम्
हम धन के द्वारा सुशोभित होते हैं। हजारों की संख्या में हम और इन्द्र देव बलवान अश्व और पशु को ग्रहण करते हैं।[ऋग्वेद 8.34.16]
We are honoured with wealth. We and Indr Dev accept thousands of stout horses and animals.
य ऋज्रा वातरंहसोऽरुषासो रघुष्यदः। भ्राजन्ते सूर्या इव 
सरल गामी, वायु के सदृश वेग वाले, रुचिकर और अल्प आर्द्र अश्व सूर्य देव के सदृश आलोकित  होते हैं।[ऋग्वेद 8.34.17]
Fast moving, as fast as the wind, lovely and slightly wet horses appear like the Sun.
पारावतस्य रातिषु द्रवच्चक्रेष्वाशुषु। तिष्ठं वनस्य मध्य आ
जिस समय पारावत ने रथ चक्रों को द्रुतगामी बनाने वाले इन अश्वों को प्रदान किया, उस समय मैं वन के मध्य में पहुँच गया।[ऋग्वेद 8.34.18]
When Paravat used these horses to accelerate the excels of the charoite I had reached the middle of the forest.(01.05.2024ausM)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (35) :: ऋषि :- श्यावाश्व, आत्रेय; देवता :-अश्विनी कुमार;  छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्, पंक्ति।
अग्निनेन्द्रेण वरुणेन विष्णुनादित्यै रुद्रैर्वसुभिः सचाभुवा।
सजोषसा उषसा सूर्येण च सोमं पिबतमश्विना
हे अश्विनी कुमारों! आप लोग अग्निदेव, वरुणदेव, श्री विष्णु, आदित्यगण, रुद्रगण और वसुगण के साथ और देवी उषा और सूर्य देव के साथ मिलकर सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 8.35.1]
Hey Ashwani Kumars! Drink Somras with Agni Dev, Varun Dev, Shri Hari Vishnu, Adity Gan, Rudr Gan Vasu Gan, Devi Usha and Sury Dev.
विश्वाभिर्धीभिर्भुवनेन वाजिना दिवा पृथिव्याद्रिभिः सचा भ्रुवा।
सजोषसा उषसा सूर्येण च सोमं पिबतमश्विना
हे बली अश्विनी कुमारों! आप लोग सम्पूर्ण प्रजा समुदाय, द्युलोक, पृथ्वी लोक और पर्वत के साथ तथा देवी उषा और सूर्य देव के साथ मिलकर सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 8.35.2]
Hey mighty Ashwani Kumars! Drink Somras with the entire populace, heavens, earth, mountains, Devi Usha and Sury Dev.
विश्वैर्देवैस्त्रिभिरेकादशैरिहाद्भिर्मरुद्भिर्भृगुभिः सचाभुवा।
सजोषसा उषसा सूर्येण च सोमं पिबतमश्विना
हे अश्विनी कुमारों! आप लोग इस यज्ञ में भक्षण कर्ता तैंतीस कोटि देवताओं, मरुतों और भृगुओं के साथ तथा देवी उषा और सूर्य देव के साथ मिलकर सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 8.35.3]
Hey Ashwani Kumars! Drink Somras with the eaters i.e., 33 million demigods-deities, Marud Gan, Bhragus, Devi Usha and Sury Dev.
जुषेथां यज्ञं बोधतं हवस्य मे विश्वेह देवौ सवनाव गच्छतम्।
सजोषसा उषसा सूर्येण चेषं नो वोळ्हमश्विना
हे अश्विनी कुमारों! आप लोग यज्ञ का सेवन करें। मेरे आवाहन को श्रवण करें। इस यज्ञ में समस्त सवनों को प्राप्त करें। देवी उषा और सूर्य देव के साथ मिलकर हमारा अन्न ग्रहण करें।[ऋग्वेद 8.35.4]
Hey Ashwani Kumars! Join the Yagy. Listen-respond to my invocation. Attend this Yagy during all the segments of the day. Accept our food grains-offerings along with Devi Usha and Sury Dev.
स्तोमं जुषेथां युवशेव कन्यनां विश्वेह देवौ सवनाव गच्छतम्।
सजोषसा उषसा सूर्येण चेषं नो वोळ्हमश्विना
हे अश्विनी कुमारों! जिस प्रकार युवक कन्याओं की बुलाहट को स्वीकार करते हैं, उसी प्रकार आप लोग इस यज्ञ में स्तोम की सेवा करें। इस यज्ञ में समस्त सवनों को प्राप्त करें। देवी उषा और सूर्य देव के साथ मिलकर हमारा सोमरूप अन्न ग्रहण करें।[ऋग्वेद 8.35.5]
Hey Ashwani Kumars! Service the Stom in this Yagy just like the invitation by the boys to the girls. Attend this Yagy during all the segments of the day. Accept our food grains in the form of Som along with Devi Usha and Sury Dev.
गिरो जुषेथामध्वरं जुषेथां विश्वेह देवौ सवनाव गच्छतम्।
सजोषसा उषसा सूर्येण चेषं नो वोळ्हमश्विना
हे अश्विनी कुमारों! हमारी स्तुति ग्रहण करें। यज्ञ की सेवा करें। इस यज्ञ में समस्त सवनों को प्राप्त करें। देवी उषा और सूर्य देव के साथ मिलकर हमारा अन्न ग्रहण करें।[ऋग्वेद 8.35.6]
Hey Ashwani Kumars accept our prayers-Stuti! Service-participate in the Yagy during all segments of the day. Accept our food grains-offerings along with Devi Usha and Sury Dev.
हारिद्रवेव पतथो वनेदुप सोमं सुतं महिषेवाव गच्छथः।
सजोषसा उषसा सूर्येण च त्रिर्वर्तिर्यातमश्विना
जिस प्रकार दो हारिद्रव पक्षी जल पर गिरते हैं, उसी प्रकार आप लोग इस अभिषुत सोम की ओर गिरें। दो भैंसों के तुल्य सोम को जानें। देवी उषा और सूर्य देव के साथ मिलकर त्रिमागों में जावें।[ऋग्वेद 8.35.7]
The manner in which two Haridrav birds land over water, in the same manner you should be inclined to the extracted Somras. Consider the Som like two buffalos. Move to the three paths jointly with Devi Usha and Sury Dev.
हंसाविव पतथो अध्वगाविव सोमं सुतं महिषेवाव गच्छथः।
सजोषसा उषसा सूर्येण च त्रिर्वर्तिर्यातमश्विना
हे अश्विनी कुमारों! दो हंसों और दो पथिकों के सदृश अभिषुत सोमरस के अभिमुख आवें और दो भैसों के समान सोम को समझें। देवी उषा और सूर्यदेव के साथ मिलकर त्रिमार्ग में गमन करें।[ऋग्वेद 8.35.8]
पथिक :: भटकैया, यात्री, राह-चलता, चलनेवाला; goer, walker, wayfarer, wanderer, wayfarer, peripatetic.
Hey Ashwani Kumars! Come like the two swans and towards the extracted Somras and consider the Som like wo buffalos. Move to the three paths jointly with Devi Usha and Sury Dev.
श्येनाविव पतथो हव्यदातये सोमं सुतं महिषेवाव गच्छथः।
सजोषसा उषसा सूर्येण च त्रिर्वर्तिर्यातमश्विना
हे अश्विनी कुमारों! आप लोग दो श्येन पक्षियों के समान अभिषुत सोमरस की ओर आवें और दो भैसों के समान सोम को जानें। देवी उषा और सूर्य देव के साथ मिलकर त्रिमार्ग में गमन करें।[ऋग्वेद 8.35.9]
Hey Ashwani Kumars! Come towards the extracted Somras like falcons consider it like two buffalos. Move to the triple road jointly with Devi Usha and Sury Dev.
पिबतं च तृप्णुतं चा च गच्छतं प्रजां च धत्तं द्रविणं च धत्तम्।
सजोषसा उषसा सूर्येण चोर्जं नो धत्तमश्विना
हे अश्विनी कुमारों! सोमपान करके तृप्त होवें। आएँ सन्तान व धन प्रदान करें। देवी उषा और सूर्यदेव के साथ मिलकर हमें बल प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.35.10]
Hey Ashwani Kumars! Be satisfied by drinking Somras. Grant sons and wealth on arriving here. Grant us strength jointly with Devi Usha and Sury Dev.
जयतं च प्र स्तुतं च प्र चावतं प्रजां च धत्तं द्रविणं च धत्तम्।
सजोषसा उषसा सूर्येण चोर्ज नो धत्तमश्विना
हे अश्विनी कुमारों! आप शत्रुओं को जीतकर स्तोताओं की प्रशंसा और रक्षा करें उन्हें सन्तान व धन प्रदान करें। देवी उषा और सूर्यदेव के साथ मिलकर हमें बल प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.35.11]
Hey Ashwani Kumars! Win the enemies, appreciate the Stotas and protect them & grant them progeny and wealth. Grant us strength jointly with Devi Usha and Sury Dev.
हतं च शत्रून्यततं च मित्रिणः प्रजां च धत्तं द्रविणं च धत्तम्।
सजोषसा उषसा सूर्येण चोर्ज नो धत्तमश्विना
हे अश्विनी कुमारों! आप लोग शत्रुओं का विनाश करें। मंत्री से युक्त होकर गमन करें। सन्तान व धन प्रदान करें। देवी उषा और सूर्य देव के साथ मिलकर हमें बल प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.35.12]
Hey Ashwani Kumars! Destroy the enemies. Move along with the ministers. Grant us progeny and wealth. Grant us strength jointly with Devi Usha and Sury Dev.
मित्रावरुणवन्ता उत धर्मवन्ता मरुत्वन्ता जरितुर्गच्छथो हवम्।
सजोषसा उषसा सूर्येण चादित्यैर्यातमश्विना
हे अश्विनी कुमारों! आप लोग मित्र, वरुण देव, धर्म और मरुतों से युक्त हैं। आप लोग स्तोता के आवाहन की ओर जावें और देवी उषा सूर्यदेव और आदित्यों के साथ जावें।[ऋग्वेद 8.35.13]
Hey Ashwani Kumars! You are associated with Mitr, Varun Dev, Dharm and Marud Gan. Follow the invocation by the Stota along with Devi Usha, Sury Dev and Adity Gan.
अङ्गिरस्वन्ता उत विष्णुवन्ता मरुत्वन्ता जरितुर्गच्छथो हवम्।
सजोषसा उषसा सूर्येण चादित्यैर्यातमश्विना
हे अश्विनी कुमारों! आप लोग अङ्गिरा, श्रीविष्णु और मरुतों के साथ याजक के आवाहन की ओर जावें तथा देवी उषा सूर्य देव और आदित्यों के साथ जावें।[ऋग्वेद 8.35.14]
Hey Ashwani Kumars! Go to the Ritviz invoking you along with Angira, Marud Gan, Shri Hari Vishnu, Devi Usha and Sury Dev,
ऋभुमन्ता वृषणा वाजवन्ता मरुत्वन्ता जरितुर्गच्छथो हवम्।
सजोषसा सूर्येण उषसा चादित्यैर्यातमश्विना
हे अश्विनी कुमारों! आप लोग ऋभु, कामवर्षक वाज और मरुतों के साथ याजक के आवाहन की ओर जावें और देवी उषा सूर्यदेव तथा आदित्यों के साथ गमन करें।[ऋग्वेद 8.35.15]
Hey Ashwani Kumars! You should move to Ritviz along with Ribhu, desires accomplishing Vaj, Marud Gan, Devi Usha, Sury Dev and Adity Gan.
ब्रह्म जिन्वतमुत जिन्वतं धियो हतं रक्षांसि सेधतममीवाः।
सजोषसा उषसा सूर्येण च सोमं सुन्वतो अश्विना
हे अश्विनी कुमारों! आप लोग स्तोत्र और कर्म को जीतें। राक्षसों पर शासन कर उनका वध करें। देवी उषा और सूर्यदेव के साथ अभिषवकर्ता के सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 8.35.16]
Hey Ashwani Kumars! You should win the Strotr and Karm. Rule the demons and kill them. Drink Somras with Devi Usha, Sury Dev and the extractor of Somras.
क्षत्रं जिन्वतमुत जिन्वतं नृन्हतं रक्षांसि सेधतममीवाः।
सजोषसा उषसा सूर्येण च सोमं सुन्वतो अश्विना
हे अश्विनी कुमारों! आप लोग क्षत्र (बल) और योद्धाओं पर विजय प्राप्त करें। राक्षसों पर शासन करके उनका वध करें। देवी उषा, सूर्यदेव और  सोमाभिषवकारी के साथ सोमपान करें।[ऋग्वेद 8.35.17]
Hey Ashwani Kumars! You should over power-win the Kshtr and warriors. Rule the demons and destroy them. Drink-share Somras with Devi Usha, Sury Dev and the extractor of Somras.
धेनूर्जिन्वतमुत जिन्वतं विशो हतं रक्षांसि सेधतममीवाः।
सजोषसा उषसा सूर्येण च सोमं सुन्वतो अश्विना
हे अश्विनी कुमारों! धेनु (गौ) और विशों (वैश्यों) को जीतें, राक्षसों पर शासन कर उनका वध करें। देवी उषा और सूर्यदेव के साथ सोम के अभिषवकर्ता का सोमपान करें।[ऋग्वेद 8.35.18]
Hey Ashwani Kumars! Command the cows and the Vaeshy, rule the demons and kill them. Drink-share Somras with Devi Usha, Sury Dev and the extractor of Somras.(01.05.2024ausE)
अत्रेरिव शृणुतं पूर्व्यस्तुतिं श्यावाश्वस्य सुन्वतो मदच्युता।
सजोषसा उषसा सूर्येण चाश्विना तिरोअह्नयम्
हे अश्विनी कुमारों! आप लोग शत्रुओं का मद नष्ट करने वाले हैं, आप लोग जिस प्रकार अत्रि की स्तुति को सुनते थे, उसी प्रकार श्यावाश्व की (मेरी) मुख्य स्तुति को श्रवण करें। देवी उषा और सूर्यदेव के साथ मिलकर प्रातःकाल के यज्ञ में सोमपान करें।[ऋग्वेद 8.35.19]
Hey Ashwani Kumars! You destroy the ego-intoxication of the enemy. You responded to the Stuti-prayer by Atri. Listen to my-Shyvashrav's Stuti, similarly. Drink Somras in the morning session of the Yagy along with Devi Usha and Sury Dev.
सर्गां इव सृजतं सुष्टुतीरुप श्यावाश्वस्य सुन्वतो मदच्युता।
सजोषसा उषसा सूर्येण चाश्विना तिरोअह्नयम्
हे अश्विनी कुमारों! श्यावाश्व की दिव्य स्तुति को आभरण के समान धारित करें। देवी उषा और सूर्यदेव के साथ मिलकर प्रातःकाल के यज्ञ में सोमपान करें।[ऋग्वेद 8.35.20]
Hey Ashwani Kumars! Accept-wear the Stuti by Shyvashrav like a cloth-shield. Drink Somras in the morning session of the Yagy along with Devi Usha and Sury Dev.
रश्मींरिव यच्छतमध्वराँ उप श्यावाश्वस्य सुन्वतो मदच्युता।
सजोषसा उषसा सूर्येण चाश्विना तिरोअह्नयम्
हे अश्विनी कुमारों! अश्व लगाम के सदृश श्यावाश्व के यज्ञाभिमुख गमन करें। देवी उषा और सूर्यदेव के साथ मिलकर प्रातःकाल के यज्ञ में सोमपान करें।[ऋग्वेद 8.35.21]
Hey Ashwani Kumars! Move to the Yagy performed-organised by Shyvashrav like the rein of horse. Drink Somras in the morning session of the Yagy along with Devi Usha and Sury Dev.
अर्वाग्रथं नि यच्छतं पिबतं सोम्यं मधु।
आ यातमश्विना गतमवस्युर्वामहं हुवे धत्तं रत्नानि दाशुषे
हे अश्विनी कुमारों! अपना रथ हमारे समक्ष ले आवें, सोमरूप मधु का पान कर यज्ञ में पधारें और सोम के अभिमुख पधारे। रक्षाभिलाषी होकर मैं आपका आवाहन करता हूँ। हव्य देने वाले को रत्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.35.22]
Hey Ashwani Kumars! Bring your charoite in front of us. Come to the Yagy and drink honey in the form of Som. Desirous of protection, I invoke you. Grant jewels to the one who make offerings.
नमोवाके प्रस्थिते अध्वरे नरा विवक्षणस्य पीतये।
आ यातमश्विना गतमवस्युर्वामहं हुवे धत्तं रत्नानि दाशुषे
हे अश्विनी कुमारों! आप लोग नेता हैं। मुझ हवनशील के इस किए जाते हुए नमो वाक्य युक्त यज्ञ में सोमपान के लिए पधारें। सोम के अभिमुख पधारें। मैं रक्षाभिलाषी होकर आपका आवाहन करता हूँ। हव्यदाता को रत्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.35.23]
Hey Ashwani Kumars! You are leaders. I, who resort to Hawan, request you to come in the Yagy, in which syllable Namo is recited and drink Somras. Come in front of Som. Desirous of protection I am invoking you. Grant jewels to the one who make offerings.
स्वाहाकृतस्य तृम्पतं सुतस्य देवावन्धसः।
आ यातमश्विना गतमवस्युर्वामहं हुवे धत्तं रत्नानि दाशुषे
हे अश्विनी कुमारों! आप लोग अभिषुत और स्वाहाकृत सोम से तृप्ति प्राप्त करें। यज्ञ में पधारे, सोम के अभिमुख पधारें। मैं रक्षाभिलाषी होकर आपका आवाहन करता हूँ। आप हव्यदाता को रत्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.35.24]
Hey Ashwani Kumars! You should be satisfied with extracted Somras using Swaha. Join Yagy and come in front of Som. Desirous of protection I am invoking you. Grant jewels to the one who make offerings.(02.05.2024ausM)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (36) :: ऋषि :- श्यावाश्व, आत्रेय; देवता :-इन्द्र; छन्द :- शक्वरी, महापंक्ति। 
अवितासि सुन्वतो वृक्तबर्हिषः पिबा सोमं मदाय कं शतक्रतो।
यं ते भागमधारयन्विश्वाः सेहानः पृतना उरु ज्रयः समप्सुजिन्मरुत्वाँ इन्द्र सत्पते
हे बहुकर्मा इन्द्र देव! सोम का अभिषव करने वाले और कुश का विस्तार करने वाले यजमान के आप रक्षक हैं। हे सज्जनों के स्वामी और मरुतों से युक्त इन्द्र देव! देवताओं ने आपके लिए जो सोम का भाग निश्चित किया है, समस्त शत्रुसेना और प्रचुर वेग को अभिभूत करके और जल के मध्य में जेता होकर मत्त होने के लिए उस सोमभाग का पान करें।[ऋग्वेद 8.36.1]
सज्जन :: भला आदमी, शरीफ़; gentleman, dan.
जेता :: जीतने वाला, विजय करनेवाला, विजयी; winner.
Hey Indr Dev performer of various deeds! You are the protector of the Ritviz who extract Somras and lay down Kush Mats. Hey protector of the gentleman accompanied by the Marud Gan. Indr Dev! Drink your share of Somras fixed by the demigods-deities, to become a winner amongest the enemy armies; presenting yourself in water in an exhilarated state.
प्राव स्तोतारं मघवन्नव त्वां पिबा सोमं मदाय कं शतक्रतो।
यं ते भागमधारयन्विश्वाः सेहानः पृतना उरु ज्रयः समप्सुजिन्मरुत्वाँ इन्द्र सत्पते
हे धनी इन्द्र देव! स्तोता की रक्षा करें। सोमपान के द्वारा अपनी भी रक्षा करें। हे सत्पति और मरुतों से युक्त बहुकर्मा इन्द्र देव! देवताओं ने आपके लिए जो सोमभाग कल्पित किया है, समस्त सेना और बहुवेग को अभिभूत करके और जल के मध्य में विजेता होकर मत्त होने के लिए उस सोमभाग का आप पान करें।[ऋग्वेद 8.36.2]
Hey wealthy Indr Dev! Protect the Stota as well. Protect yourself through Somras. Hey lord of the truthful associated with the Marud Gan! Indr Dev! Drink your share of Somras fixed by the demigods-deities, to become a winner amongest the enemy armies; presenting yourself in water in an exhilarated state.
ऊर्जा देवाँ अवस्योजसा त्वां पिबा सोमं मदाय कं शतक्रतो।
यं ते भागमधारयन्विश्वाः सेहानः पृतना उरु ज्रयः समप्सुजिन्मरुत्वाँ इन्द्र सत्पते
अन्न द्वारा देवताओं की रक्षा कर अपने को बल के द्वारा बचाते हैं। हे सत्पति और मरुतों से युक्त बहुकर्मा इन्द्रदेव! देवताओं ने आपके लिए जो सोमभाग निश्चित किया है, समस्त सेना और बहुवेग को दबाकर और जल के बीच विजयी होकर मत्त होने के लिए उस सोमभाग का आप पान करें।[ऋग्वेद 8.36.3]
You protect the demigods-deities and save your strength. Hey lord of the truthful accompanied with Marud Gan, Indr Dev! Drink your share of Somras, block the enemy's speed-attack and exhilarate yourself presenting water.
जनिता दिवो जनिता पृथिव्याः पिबा सोमं मदाय कं शतक्रतो।
यं ते भागमधारयन्विश्वाः सेहानः पृतना उरु ज्रयः समप्सुजिन्मरुत्वाँ इन्द्र सत्पते
लोक और पृथ्वी लोक के पिता हैं। हे सत्पति और मरुतों से युक्त बहुकर्मा इन्द्रदेव! देवताओं ने जो सोमभाग निश्चित किया है, समस्त शत्रुसेना और बहुवेग को अभिभूत करके तथा जल के मध्य में विजयी होकर मत्त होने के लिए उसी सोमभाग का पान करें।[ऋग्वेद 8.36.4]
You are the lord of the universe and fatherly for the earth. Hey lord of the truthful and a companion of the Marud Gan, Indr Dev!  Drink your share of Somras fixed by the demigods-deities, to become a winner amongest the enemy armies; presenting yourself in water in an exhilarated state.
जनिताश्वानां जनिता गवामसि पिबा सोमं मदाय कं शतक्रतो।
यं ते भागमधारयन्विश्वाः सेहानः पृतना उरु ज्रयः समप्सुजिन्मरुत्वाँ इन्द्र सत्पते
आप अश्वों और गौवों के पिता हैं। हे सत्पति और मरुतों से युक्त बहुकर्मा इन्द्रदेव! आपके लिए देवताओं ने जो सोमभाग परिकल्पित किया है, समस्त शत्रुसेना और बहुवेग को अभिभूत करके तथा जल के मध्य में विजयी होकर मत्त होने के लिए उसी सोमभाग का पान करें।[ऋग्वेद 8.36.5]
You are fatherly for the cows and horse. Hey lord of truthful accompanied with the Marud Gan, performing several deeds-endeavours, Indr Dev!  Drink your share of Somras fixed by the demigods-deities, to become a winner amongest the enemy armies; presenting yourself in water in an exhilarated state.
अत्रीणां स्तोममद्रिवो महस्कृधि पिबा सोमं मदाय कं शतक्रतो।
यं ते भागमधारयन्विश्वाः सेहानः पृतना उरु ज्रयः समप्सुजिन्मरुत्वाँ इन्द्र सत्पते
हे पर्वत वाले इन्द्र देव! अत्रि लोगों का सोम पूजित करें। सत्पति और मरुतों से युक्त बहुकर्मा इन्द्र देव! देवों ने आपके लिए जो सोमभाग परिकल्पित किया है, समस्त शत्रुसेना और बहुवेग को दबाकर तथा जल के मध्य में विजेता बनकर मत्त होने के लिए उसी सोमभाग का पान करें।[ऋग्वेद 8.36.6]
Hey lord of mountains, Indr Dev! Worship the Atris with Som. Drink your share of Somras fixed by the demigods-deities, to become a winner amongest the enemy armies; presenting yourself in water in an exhilarated state.
श्यावाश्वस्य सुन्वतस्तथा शृणु यथाशृणोरत्रेः कर्माणि कृण्वतः।
प्र त्रसदस्युमाविथ त्वमेक इन्श्रृषाह्य इन्द्र ब्रह्माणि वर्धयन्
हे इन्द्र देव! आपने जिस प्रकार यज्ञकर्ता अत्रि ऋषि की स्तुति सुनी थी, उसी प्रकार सोमाभिषवकर्ता श्यावाश्व की स्तुति श्रवण करें। अकेले ही आपने युद्ध में स्तोत्रों को वर्द्धित करते हुए त्रसदस्यु को रक्षित किया।[ऋग्वेद 8.36.7]
Hey Indr Dev! The way you listened the Stuti of Yagy performer Atri, in the same manner respond to Stuti of Shyvashrav performing Yagy. You alone promoted the Strotrs in the war and protected Trasdasyu.(02.05.2024N)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (37) :: ऋषि :- श्यावाश्व, आत्रेय; देवता :-इन्द्र; छन्द :- महापंक्ति, अतिजगती। 
प्रेदं ब्रह्म वृत्रतूर्येष्वाविथ प्र सुन्वतः शचीपत इन्द्र विश्वाभिरूतिभिः।
माध्यन्दिनस्य सवनस्य वृत्रहन्ननेद्य पिबा सोमस्य वज्रिवः
हे यज्ञपति इन्द्र देव! युद्ध में आप समस्त रक्षणों से इस स्तोत्र (ब्राह्मण) की रक्षा करें। सोमाभिषव की भी रक्षा करें। हे अनिन्द्य वज्री और वृत्रघ्न इन्द्र देव! आप माध्यन्दिन सवन में पधार कर सोमपान करें।[ऋग्वेद 8.37.1]
अनिंद्य :: प्रशंसनीय, सुंदर, जो निंदा के योग्य न हो, बेदाग़, उत्तम; blameless, unimpeachable, irreproachable.
Hey lord of Yagy, Indr Dev! Make use of all protection means to protect this Strotr-Brahman. Protect the extraction of Somras. Hey blameless, wielding Vajr and killer of Vrat, Indr Dev! Join us during the middle segment-of the day (noon) to drink Somras.
सेहान उग्र पृतना अभि द्रुहः शचीपत इन्द्र विश्वाभिरूतिभिः।
माध्यन्दिनस्य सवनस्य वृत्रहन्ननेद्य पिबा सोमस्य वज्रिवः
हे कर्मपति और उग्र इन्द्र देव! शत्रु सेनाओं को अभिभूत करके समस्त रक्षाओं के द्वारा स्तोत्र (ब्राह्मण) की रक्षा करें। हे अनिन्दनीय वज्रधर और वृत्रहन्ता इन्द्र देव! आप माध्यन्दिन सवन में पधार कर सोमपान करें।[ऋग्वेद 8.37.2]
Hey lord of efforts, furious Indr Dev! Mesmerise the enemy armies and protect the Strotr- Brahman with all means of protection. Hey blameless, wielding Vajr and killer of Vrat, Indr Dev! Join us during the middle segment-of the day (noon) to drink Somras.
एकराळस्य भुवनस्य राजसि शचीपत इन्द्र विश्वाभिरूतिभिः।
माध्यन्दिनस्य सवनस्य वृत्रहन्ननेद्य पिबा सोमस्य वज्रिवः
हे यज्ञपति इन्द्र देव! आप इस भुवन के एकमात्र राजा होकर और समस्त रक्षाओं से युक्त होकर शोभा पाते हैं। हे अनिन्दनीय वज्रधर और वृत्रघ्न इन्द्र देव! आप माध्यन्दिन सवन में पधार कर सोमपान करें।[ऋग्वेद 8.37.3]
Hey lord of Yagy, Indr Dev! You being the only ruler of the universe, possessing all sorts of protection means, become glorious-gracious. Hey blameless, wielding Vajr and killer of Vrat, Indr Dev! Join us during the middle segment-of the day (noon) to drink Somras.
सस्थावाना यवयसि त्वमेक इच्छचीपत इन्द्र विश्वाभिरूतिभिः।
माध्यन्दिनस्य सवनस्य वृत्रहन्ननेद्य पिबा सोमस्य वज्रिवः
हे यज्ञपति इन्द्रदेव! समान रूप से अवस्थित इस लोकद्वय को आप अलग करते हैं। हे अनिन्दनीय वज्रधर और वृत्रघ्न इन्द्रदेव! आप माध्यन्दिन सवन में पधार कर सोमपान करें।[ऋग्वेद 8.37.4]
Hey lord of Yagy, Indr Dev! Governed identically you demark the heavens & earth. Hey blameless, wielding Vajr and killer of Vrat, Indr Dev! Join us during the middle segment-of the day (noon) to drink Somras.
क्षेमस्य च प्रयुजश्च त्वमीशिषे शचीपत इन्द्र विश्वाभिरूतिभिः।
माध्यन्दिनस्य सवनस्य वृत्रहन्ननेद्य पिबा सोमस्य वज्रिवः
हे यज्ञपति इन्द्रदेव! सभी रक्षाओं से युक्त होकर समस्त संसार, मंगल और प्रयोग के आप ईश्वर हैं। हे अनिन्दनीय, वज्रधर और वृत्रघ्न इन्द्रदेवता! आप माध्यन्दिन सवन में पधार कर सोमपान करें।[ऋग्वेद 8.37.5]
Hey lord of Yagy, Indr Dev! You are the lord of the entire universe, possessing all means of welfare, protection means and utilities. Hey blameless, wielding Vajr and killer of Vrat, Indr Dev! Join us during the middle segment-of the day (noon) to drink Somras.
क्षत्राय त्वमवसि न त्वमाविथ शचीपत इन्द्र विश्वाभिरूतिभिः।
माध्यंदिनस्य सवनस्य वृत्रहन्ननेद्य पिबा सोमस्य वज्रिवः
हे यज्ञपति इन्द्र देव! सभी रक्षाओं से युक्त होकर समस्त संसार, मंगल और प्रयोग के ईश्वर हैं। हे अनिन्दनीय, वज्रधर और वृत्रघ्न इन्द्रदेव! आप माध्यन्दिन सवन में पधार कर सोम- पान करें।[ऋग्वेद 8.37.6]
Hey lord of Yagy, Indr Dev! You are the lord of the entire universe, possessing all means of welfare, protection means and utilities. Hey blameless, wielding Vajr and killer of Vrat, Indr Dev! Join us during the middle segment-of the day (noon) to drink Somras.
श्यावाश्वस्य रेभतस्तथा शृणु यथाशृणोरत्रेः कर्माणि कृण्वतः।
प्र त्रसदस्युमाविथ त्वमेक इन्नृषाह्य इन्द्र क्षत्राणि वर्धयन्
हे इन्द्र देव! आपने जिस प्रकार यज्ञकर्ता अत्रि ऋषि की स्तुति सुनी, उसी प्रकार (मुझ) स्तोता श्यावाश्व की स्तुति को भी सुनें। आपने अकेले ही युद्ध में स्तोत्रों को वर्द्धित करके त्रसदस्यु का अकेले ही रक्षण किया था।[ऋग्वेद 8.37.7]
Hey Indr Dev! The manner in which you listened the Stuti of Yagy performer Atri Rishi, listen-respond to me-Shyavashv as well. You alone boosted the Strotrs in the war and protected Trasdasyu.(02.05.2024ausE)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (38) :: ऋषि :- श्यावाश्व; देवता :- इन्द्राग्नि; छन्द :- गायत्री।
यज्ञस्य हि स्थ ऋत्विजा सस्नी वाजेषु कर्मसु। इन्द्राग्नी तस्य बोधतम्
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! आप लोग पवित्र और ऋत्विक् हैं। युद्धों और कर्मों में मुझ यजमान की स्तुति श्रवण कर पधारें।[ऋग्वेद 8.38.1]
Hey Indr Dev & Agni Dev! You are virtuous and Ritviz. Listen my Stuti-a Ritviz-host in war and actions.
तोशासा रथयावाना वृत्रहणापराजिता। इन्द्राग्नी तस्य बोधतम्
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! आप लोग शत्रु हिंसक रथ के द्वारा गमनशील वृत्रघ्न और अपराजित हैं। आप हमारी प्रार्थना को स्वीकार करें।[ऋग्वेद 8.38.2]
Hey Indr Dev and Agni Dev! You travel by the charoites which destroy the enemies, killed Vrat and undefeated. Accept out prayers.
इदं वां मदिरं मध्वधुक्षन्नद्रिभिर्नरः। इन्द्राग्नी तस्य बोधतम्
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! यज्ञ में ऋत्विजों ने आपके लिए पाषाण के द्वारा इस मदकर मधु (सोमरस) को बनाया है। इसके लिए हमारी प्रार्थना स्वीकार करें।[ऋग्वेद 8.38.3]
Hey Indr Dev and Agni Dev! The Ritviz have extracted exhilarating Somras for you in the Yagy using stones. Accept our prayers for this.
जुषेथां यज्ञमिष्टये सुतं सोमं सधस्तुती। इन्द्राग्नी आ गतं नरा
हे एक साथ ही स्तुत्य और नेता इन्द्र देव तथा अग्नि देव! यज्ञ की सेवा करें। यज्ञ के लिए अभिषुत सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 8.38.4]
Hey Indr Dev and Agni Dev, worshiped together and leaders! Drink extracted Somras for the Yagy.
इमा जुषेथां सवना येभिर्हव्यान्यूहथुः। इन्द्राग्नी आ गतं नरा
हे इन्द्र देव और अग्रि देव! आप लोग नेता है। आप लोग जिसके द्वारा हव्य का वहन करते हैं, उसी सवन की सेवा करें, यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 8.38.5]
Hey Indr Dev and Agni Dev! You are leaders. The segment of the day in which you accept the offerings, come during that segment of the day.
इमां गायत्रवर्तनिं जुषेथां सुष्टुतिं मम। इन्द्राग्नी आ गतं नरा
हे नेता इन्द्र देव और अग्नि देव! हमारी गायत्री छन्द से निर्मित स्तुतियों को आप श्रवण कर हमारे पास पधारें।[ऋग्वेद 8.38.6]
Hey Indr Dev and Agni Dev! Listen to our Stuties Gayatri Chhand and come to us.
प्रातर्यावभिरा गतं देवेभिर्जन्यावसू। इन्द्राग्नी सोमपीतये
हे धन विजयी इन्द्र देव और अग्नि देव! आप लोग प्रातःकाल देवताओं के साथ सोमपान के लिए पधारें।[ऋग्वेद 8.38.7]
Hey winner of wealth Indr Dev and Agni Dev! Invite the demigods-deities for drinking Somras.
श्यावाश्वस्य सुन्वतोऽत्रीणां शृणुतं हवम्। इन्द्राग्नी सोमपीतये
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! सोमपान के लिए लोग सोम का अभिषव करने वाले श्यावाश्व के ऋत्विकों का आवाहन श्रवण करें।[ऋग्वेद 8.38.8]
Hey Indr Dev and Agni Dev! People invoke-invite the Ritviz of Shyvashrav who extracted Somras, for drinking Somras.
एवा वामद्ध ऊतये यथाहुवन्त मेधिराः। इन्द्राग्नी सोमपीतये
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! जिस प्रकार आत्मज्ञानियों ने आपका आवाहन किया; उसी प्रकार मैं अपनी रक्षा के लिए तथा सोमपान करने के लिए लिए आपका आवाहन करता हूँ।[ऋग्वेद 8.38.9]
आत्मज्ञानी :: जो आत्म तत्व को जान गया हो, आत्मा और परमात्मा के संबंध में जानकारी रखने वाला; self realised.
Hey Indr Dev and Agni Dev! The way the the self realised invoke you, I too invoke you for my drinking Somras & my protection.
आहं सरस्वतीवतोरिन्द्राग्न्योरवो वृणे। याभ्यां गायत्रमृच्यते
जिनके लिए साम गान किया जाता है, मैं उन्हीं स्तुति वाले इन्द्र देव और अग्नि देव के पास रक्षण के लिये प्रार्थना करता हूँ।[ऋग्वेद 8.38.10]
Indr Dev and Agni Dev for whom Sam Gan is done, pray for protection.(03.05.2024ausM)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (39) :: ऋषि :- नाभाक, काण्व; देवता :-अग्नि; छन्द :- महापंक्ति। 
अग्निमस्तोष्यृग्मियमग्निमीळा यजध्यै।
अग्निर्देवाँ अनक्तु न उभे हि विदथे कविरन्तश्चरति दूत्यं नभन्तामन्यके समे
मैं ऋक् मन्त्रों के द्वारा अग्नि देव की स्तुति करता हूँ। यज्ञ के लिए स्तुति द्वारा मैं अग्नि देव की स्तुति करता हूँ। हमारे यज्ञ में अग्नि देव हव्य द्वारा देवताओं की पूजा करें। क्रान्तदर्शी अग्नि देव स्वर्ग और पृथ्वी के बीच दूत कर्म करते हैं। ये समस्त शत्रुओं को नष्ट करते हैं।[ऋग्वेद 8.39.1]
I pray to Agni Dev with the help of Rik Mantrs. I worship Agni Dev with the Stuti for Yagy. Let Agni Dev worship demigods-deities with offerings-oblations in our Yagy. Radiant Agni Dev acts as an ambassador between the earth & Heavens. He destroys all enemies. 
न्यग्ने नव्यसा वचस्तनूषु शंसमेषाम्।
न्यराती रराव्णां विश्वा अर्यो अरातीरितो युच्छन्त्वामुरो नभन्तामन्यके समे
हे अग्नि देव! नवीन स्तोत्रों के द्वारा हमारे अङ्कों में जो शत्रुओं की हिंसा है, उसे प्रज्वलित अग्नि देव समस्त शत्रुओं का वध करें। हव्य दाताओं के शत्रुओं को जलावें। अभिगमन वाले समस्त मूर्ख शत्रु यहाँ से चले जावें।[ऋग्वेद 8.39.2]
Hey Agni Dev! Let glowing Agni Dev destroy-burn all enemies with the fire arising in our hearts with new Strotrs. Burn the enemies of those who make offerings. Migrating all idiot-duffer enemies move away from here.
अग्ने मन्मानि तुभ्यं कं घृतं न जुह्व आसनि।
स देवेषु प्र चिकिद्धि त्वं ह्यसि पूर्व्यः शिवो दूतो विवस्वतो नभन्तामन्यके समे
हे अग्नि देव! आपके मुँह में सुखकर घृत के समान स्तोत्र का होम करता हूँ। देवों में आप शत्रुओं का वध करें। हमारी स्तुति को जानें। आप पुरातन हैं, सुखकर हैं और देवताओं के दूत हैं।[ऋग्वेद 8.39.3]
Hey Agni Dev! I perform Hawan in your mouth with the pleasure generating Ghee. Being a deity kill the enemies. Acknowledge our prayers. You are eternal, grant comforts and an ambassador of the demigods-deities.
तत्तदग्निर्वयो दधे यथायथा कृपण्यति।
ऊर्जाहुतिर्वसूनां शं च योश्च मयो दधे विश्वस्यै देवहूत्यै नभन्तामन्यके समे
स्तोता लोग जो-जो अन्न माँगते हैं, अग्नि देव वही-वही अन्न प्रदान करते हैं। अग्नि देव अन्न के द्वारा बुलाएँ जाने पर यजमानों को शान्तिकर और विषयोप योग जन्य सुख प्रदान करते हैं। वह सभी देवताओं के आवाहनों में रहते हैं। अग्नि देव समस्त शत्रुओं का वध करें।[ऋग्वेद 8.39.4]
Agni Dev provide those food grains which are requested-demanded by the Stotas. When invoked by making offerings of food grains by the Ritviz Agni Dev grants comforts generating peace-solace, tranquillity connected with utilities. He is invoked with all the demigods-deities. Let Agni Dev kill all enemies.
स चिकेत सहीयसाग्निश्चित्रेण कर्मणा।
स होता शश्वतीनां दक्षिणाभिरभीवृत इनोति च प्रतीव्यं १ नभन्तामन्यके समे
वे अग्नि देव अभिभव कारक नाना प्रकार के कर्मों के द्वारा जाने जाते हैं। वे सभी देवों के होता है। वे पशुओं से घेरे गये हैं। वे शत्रुओं के सम्मुख गमन करते हैं। अग्नि देव समस्त शत्रुओं का वध करें।[ऋग्वेद 8.39.5]
Agni Dev is known by virtue of various actions connected with destruction. He is the Hota of all demigods-deities. He is surrounded by the animals. He moves in front of the enemies. Let Agni Dev vanish all enemies.
अग्निर्जाता देवानामग्निर्वेद मर्तानामपीच्यम्।
अग्निः स द्रविणोदा अग्निर्द्वारा व्यूर्णते स्वाहुतो नवीयसा नभन्तामन्यके समे
ये अग्नि देव देवताओं का जन्म जानते हैं। ये मनुष्यों की गोपनीयता को जानते हैं। अग्नि देव धनद हैं। वे अभिनव हव्य द्वारा भली-भाँति आहूत होकर धन का द्वार खोलते हैं। अग्नि देव समस्त शत्रुओं का वध करें।[ऋग्वेद 8.39.6]
Agni Dev is aware of the birth-evolution of the demigods-deities. He maintains the secrets of humans. When worshiped with new offerings-oblations he release wealth. Let Agni Dev destroy all enemies.
अग्निर्देवेषु संवसुः स विक्षु यज्ञियास्वा।
स मुदा काव्या पुरु विश्वं भूमेव पुष्यति देवो देवेषु यज्ञियो नभन्तामन्यके समे
अग्नि देव देवताओं में निवास करते हैं। वे यज्ञार्ह प्रजागण में रहते हैं। जिस प्रकार भूमि समस्त संसार का पोषण करती है, उसी प्रकार वे सहर्ष समस्त कार्यों का पोषण करते हैं। अग्नि देव देवताओं में यज्ञ योग्य हैं। वे हमारे समस्त शत्रुओं का वध करें।[ऋग्वेद 8.39.7]
Agni Dev resides amongest the demigods-deities. He resides amongest the populace for the purpose of Yagy. The way the land-clay nourish the whole world, similarly, he happily fulfil all duties-endeavours. Agni Dev is suitable for Yagy amongest the demigods-deities. Let him destroy our enemies.
यो अग्निः सप्तमानुषः श्रितो विश्वेषु सिन्धुषु।
तमागन्म त्रिपस्त्यं मन्धातुर्दस्युहन्तममग्निं यज्ञेषु पूर्व्य नभन्तामन्यके समे
अग्नि देव सात मनुष्यों (सिन्धु आदि सात नदियों के तट वासियों) वाले और सारी नदियों में आश्रित हैं। वे तीन स्थानों (द्यौ, पृथ्वी और अन्तरिक्ष) में रहने वाले हैं। अग्नि देव ने यौवनाश्व के पुत्र मान्धाता के लिए सर्वापेक्षा अधिक दस्युओं का वध किया। वे यज्ञों में मुख्य है। अग्नि देव समस्त शत्रुओं का वध करें।[ऋग्वेद 8.39.8]
Agni Dev is dependent over seven people-humans who reside over sea shore and seven rivers. He resides in three places i.e., the heavens, earth and the space-sky. Agni Dev killed more enemies as compared to Mandhata son of Youvnashrav. He is prominent amongest the Yagy. Let Agni Dev destroy all enemies. 
अग्निस्त्रीणि त्रिधातून्या क्षेति विदथा कविः।
स त्रींरेकादशाँ इह यक्षच्च पिप्रयच्च नो विप्रो दूतः परिष्कृतो नभन्तामन्यके समे
क्रान्तदर्शी अग्नि देव द्यौ आदि तीन प्रकार के तीन स्थानों में निवास करते हैं। अग्नि देव दूत, प्राज्ञ और अलंकृत होकर इस यज्ञ में तैंतीस कोटि देवताओं का यज्ञ करें। हमारी अभिलाषा पूर्ण करें। अग्निदेव समस्त शत्रुओं का वध करें।[ऋग्वेद 8.39.9]
Radiant-aurous Agni Dev resides at three places viz. heavens etc. Let Agni Dev perform-conduct the Yagy of 33 million demigods-deities. Fulfil our desires. Let Agni Dev kill all enemies.
त्वं नो अग्न आयुषु त्वं देवेषु पूर्व्य वस्व एक इरज्यसि।
त्वामापः परिस्रुतः परि यन्ति स्वसेतवो नभन्तामन्यके समे॥
हे प्राचीन अग्नि देव! आप अकेले ही हैं, परन्तु मनुष्यों और देवताओं के ईश्वर हैं। आप सेतु स्वरूप हैं। आपके चारों ओर जल जाता है। अग्नि देव समस्त शत्रुओं का वध करें।[ऋग्वेद 8.39.10]
Hey eternal Agni Dev! You are alone but is the lord of all humans and the demigods-deities. You are like a bridge. You are surrounded by water. Let Agni Dev destroy all enemies.(03.05.2024ausE)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (40) :: ऋषि :- नाभाक, काण्व; देवता :-इन्द्राग्नि;  छन्द :- महापंक्ति, शक्वरी, त्रिष्टुप्। 
इन्द्राग्ग्री युवं सु नः सहन्ता दासथो रयिम्। येन दृळ्हा समत्स्वा वीळु चित्साहिषीमह्यग्निर्वनव वात इन्नभन्तामन्यके समे
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! शत्रुओं को पराजित करते हुए हमें धन प्रदान करें। जिस प्रकार अग्नि देव वायु द्वारा वन को जला देते हैं, उसी प्रकार हम भी उस धन की सहायता से दृढ़ शत्रुओं के बल को दबायेंगे। इन्द्र देव और अग्नि देव समस्त शत्रुओं का वध करें।[ऋग्वेद 8.40.1]
Hey Indr Dev & Agni Dev! Defeat the enemy and give us wealth. We will supress the enemy with the help of the money received from you just like Agni Dev burn the forests with the help of Pawan Dev. Let Indr Dev and Agni Dev destroy all enemies.
नहि वां वव्रयामहेऽथेन्द्रमिद्यजामहे शविष्ठं नृणां नरम्। स नः कदा चिदर्वता गमदा वाजसातये गमदा मेधसातये नभन्तामन्यके समे
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! हम आपसे धन की याचना नहीं करते। सबसे बली और नेताओं के नेता इन्द्र देव का ही यज्ञ करते हैं। इन्द्र देव अभी अश्व पर चढ़कर अन्न प्राप्ति और कभी यज्ञ प्राप्ति के लिए आते हैं। इन्द्र देव और अग्नि देव समस्त शत्रुओं का वध करें।[ऋग्वेद 8.40.2]
Hey Indr Dev & Agni Dev! We do not ask you for money. We perform Yagy for Indr Dev who is mightiest and the lord-leader. Indr Dev rides the horse and come for food grains and Yagy.  Let Indr Dev and Agni Dev destroy all enemies.
ता हि मध्यं भराणामिन्द्राग्नी अधिक्षितः। ता उ कवित्वना कवी पृच्छ्यमाना मरवीयते सं धीतमश्नुतं नरा नभन्तामन्यके समे
वे प्रसिद्ध इन्द्र देव और अग्नि देव युद्ध के बीच में निवास करते हैं। हे नेताओं! क्रान्तकर्मी द्वारा पूछे जाने पर आप ही लोग मित्रता चाहने वाले यजमान के कृतकर्म को व्याप्त करते हैं। इन्द्र देव और अग्नि देव समस्त शत्रुओं का वध करें।[ऋग्वेद 8.40.3]
Famous-glorious Indr Dev & Agni Dev present themselves in the war. Hey leaders! You pervade the religious performances of the Ritviz who desires friendship. Let Indr Dev and Agni Dev destroy all enemies.
अभ्यर्च नभाकवदिन्द्राग्नी यजसा गिरा।
ययोर्विश्वमिदं जगदियं द्यौः पृथिवी मह्यु १ पस्थे बिभृतो वसु नभन्तामन्यके समे
यज्ञ और स्तुति के द्वारा नाभाक ऋषि के समान इन्द्र देव और अग्नि देव की पूजा करें। इन्द्र देव और अग्नि देव में यह समस्त संसार विद्यमान है। इन्हीं इन्द्र देव और अग्नि देव की गोद में महती मही और द्युलोक धन को धारित करते हैं। इन्द्र देव और अग्नि देव समस्त शत्रुओं का वध करें।[ऋग्वेद 8.40.4]
Worship Indr Dev & Agni Dev like Nabhak Rishi through Yagy and Stuti. Entire universe is present-pervaded in Indr Dev and Agni Dev. Great heavens bear the wealth in the lap of Indr Dev and Agni Dev. Let Indr Dev and Agni Dev destroy all enemies.
प्र ब्रह्माणि नभाकवदिन्द्राग्निभ्यामिरज्यत। या सप्तबुध्नमर्णवं जिह्मबारमपोर्णत इन्द्र ईशान ओजसा नभन्तामन्यके समे
नाभाक ऋषि के सदृश इन्द्र देव और अग्नि देव के लिए स्तुति प्रेरित करते हैं। ये इन्द्र देव और अग्नि देव सप्त मूल वाले हैं और अवरुद्ध द्वार वाले समुद्र को तेज के द्वारा आच्छादित करते है। इन्द्र देव अपने बल द्वारा ईश्वर कहे जाते हैं। इन्द्र देव और अग्नि देव समस्त शत्रुओं का वध करें।[ऋग्वेद 8.40.5]
We are inspired to worship Indr Dev & Agni Dev like Nabhak Rishi. Agni Dev and Indr Dev possess seven roots-sources. They pervade the ocean with blocked openings with their energy-strength. Indr Dev is titled God by virtue of his power. Let Indr Dev and Agni Dev destroy all enemies.
अपि वृश्च पुराणवद् व्रततेरिव गुष्पितमोजो दासस्य दम्भय।
वयं तदस्य संभृतं वस्विन्द्रेण वि भजेमहि नभन्तामन्यके समे
हे इन्द्र देव! प्राचीन मनुष्य जिस प्रकार लता की शाखा को काटता है, उसी प्रकार आप समस्त शत्रुओं का विनाश करें। दास नामक शत्रु के बल का विनाश करें। हम इन्द्र देव की कृपा से दास के उस एकत्रित धन का विभाजन कर लेंगे। इन्द्र देव और अग्नि देव समस्त शत्रुओं का वध करें।[ऋग्वेद 8.40.6]
Hey Indr Dev! The manner in which the earlier humans used to cut the branches of trees, you should destroy the enemies. Destroy the power of enemy called Das. We will collect the wealth of Das with the help of Indr Dev. Let Indr Dev and Agni Dev destroy all enemies.
यदिन्द्राग्नी जना इमे विह्वयन्ते तना गिरा। अस्मकेभिर्नृभिर्वयं सासह्याम पृतन्यतो वनुयाम वनुष्यतो नभन्तामन्यके समे 
ये जो सब मनुष्य धन और स्तुति के द्वारा इन्द्र देव और अग्नि देव का आवाहन करते है, उनमें ससैन्य हम अपने मनुष्यों की सहायता से शत्रुओं को पराजित करेगें और स्तुति करने वाले शत्रुओं को ग्रहण करेंगे।[ऋग्वेद 8.40.7]
We belonging to those who invoke Indr Dev and Agni Dev with offerings of money and Stutis, will defeat the enemies with the help of our armed people and armies and shelter those enemies who surrender and wish to be pardoned i.e., seek asylum.
 या नु श्वेताववो दिव उच्चरात उप द्युभिः। इन्द्राग्न्योरनु व्रतमुहाना यन्ति सिन्धवो यान्त्सीं बन्धादमुञ्चतां नभन्तामन्यके समे
जो श्वेत वर्ण इन्द्र देव और अग्नि देव नीचे से दीप्ति द्वारा द्यौ के ऊपर जाते हैं, उन्हीं के लिए हवि का वहन करते हुए यजमान कर्मानुष्ठान करते हैं। उन्होंने ही प्रख्यात सिन्धु आदि नदियों को बन्धन से मुक्त किया। इन्द्रदेव और अग्निदेव समस्त शत्रुओं का वध करें।[ऋग्वेद 8.40.8]
Fair skinned Indr Dev and Agni Dev rises to heavens with radiance and the Ritviz perform rituals for them with the oblations-offerings. They released the famous Sindhu and other rivers. Let Indr Dev and Agni Dev destroy all enemies.
पूर्वीष्ट इन्द्रोपमातयः पूर्वीरुत प्रशस्तयः सूनो हिन्वस्य हरिवः।
वस्वो वीरस्यापृचो या नु साधन्त नो धियो नभन्तामन्यके समे
हरि नामक अश्व वाले, वज्रधर और प्रेरक हे इन्द्र देव! आप प्रीतिकर, वीर और धनी हैं। आपके लिए उपमान की अनेक वस्तुएँ हैं। आपकी अनेक प्राचीन प्रशस्तियाँ भी हैं। ये प्रशस्तियाँ हमारी बुद्धि को सिद्ध करें। अग्नि देव और इन्द्र देव समस्त शत्रुओं का वध करें।[ऋग्वेद 8.40.9]
Possessor of horses named Hari, wielding Vajr and inspiring Indr Dev! You are brave and rich. Let Indr Dev and Agni Dev destroy all enemies. You have several ancient commendations. Let this commendations guide us. Let Indr Dev and Agni Dev destroy all enemies.
तं शिशीता सुवृक्तिभिस्त्वेषं सत्वानमृग्मियम्। उतो नु चिद्य ओजसा शुष्णस्याण्डानि भेदति जेषत्स्वर्वतीरपो नभन्तामन्यके समे
हे स्तोताओं! दीप्त, धनपात्र और ऋक् मंत्र के योग्य इन्द्र देव को उत्तम स्तुति द्वारा सेवित करें। जो इन्द्र देव शुष्ण नामक असुर के पुत्रों को मारते हैं, वही स्वर्गीय जल को जीतते हैं। इन्द्र देव और अग्नि देव समस्त शत्रुओं का वध करें।[ऋग्वेद 8.40.10]
Hey Stotas! Let us serve aurous-radiant, wealthy Indr Dev with Rik Mantr and excellent Stutis. Indr Dev who kills the demon Shushn wins the heavenly waters.  Let Indr Dev and Agni Dev destroy all enemies.
तं शिशीता स्वध्वरं सत्यं सत्वानमृत्वियम्। उतो नु चिद्य ओहत आण्डा  शुष्णस्य भेदत्यजैः स्वर्वतीरपो नभन्तामन्यके समे
हे स्तोताओं! सुन्दर यज्ञ वाले, अविनाशी, घनी और याग योग्य इन्द्र देव को स्तुति के द्वारा वर्धित करें। जो इन्द्र देव यज्ञ के अभिमुख जाते हैं, वे शुष्म के पुत्रों को मारते और स्वर्गीय जल को जीतते हैं। इन्द्र देव और अग्नि देव समस्त शत्रुओं का वध करें।[ऋग्वेद 8.40.11]
Hey Stotas! Let us grow-support wealthy, immortal, worship deserving Indr Dev conducting beautiful Yagy. Indr Dev moves forward to the Yagy, kills the sons of Shushn and win the divine waters. Let Indr Dev and Agni Dev destroy all enemies.
एवेन्द्राग्निभ्यां पितृवन्नवीयो मन्धातृवदङ्गिरस्वदवाचि।
त्रिधातुना शर्मणा पातमस्मान् वयं स्याम पतयो रयीणाम्
मैंने अपने पिता मान्धाता और अङ्गिरा ऋषि के समान इन्द्र देव और अग्नि देव के लिए नवीन स्तुतियों का पाठ किया। वे तीन पर्वों वाले गृह द्वारा हमारा पालन करें और हमें ऐश्वर्य युक्त बनावें।[ऋग्वेद 8.40.12]
I have recited new Stutis for for Indr Dev and Agni Dev like my father Mandhata and Angira Rishi. Let them nurturer us in a house having three floors and make us rich i.e., grant us grandeur.(04.05.2024ausM)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (41) :: ऋषि :- नाभाक, काण्व; देवता :-वरुण; छन्द :- महापंक्ति।
अस्मा ऊ षु प्रभूतये वरुणाय मरुद्भ्योऽर्चा विदुष्टरेभ्यः।
यो धीता मानुषाणां पश्चो गाइव रक्षति नभन्तामन्यके समे
हे स्तोताओं! प्रचुर धन की प्राप्ति के लिए इन वरुण देव और अतिशय विद्वान् मरुतों के निमित्त स्तुति करते हैं। कर्म द्वारा वरुण देव मनुष्यों के पशुओं की गौवों के सदृश रक्षा करते हैं। वे हमारे समस्त शत्रुओं का वध करें।[ऋग्वेद 8.41.1]
Hey Stotas! We worship Varun Dev and highly enlightened Marud Gan for the sake of money. Varun Dev protects the animals of humans like cows with his actions. Let him kill our enemies.
तमू षु समना गिरा पितृणां च मन्मभिः। नाभाकस्य प्रशस्तिभिर्यः
सिन्धूनामुपोदये सप्तस्वसा स मध्यमा नभन्तामन्यके समे
सुन्दर स्तुतियों के द्वारा मैं उन वरुण देव की स्तुति करता हूँ। स्तोत्रों के द्वारा पितरों की स्तुति करता हूँ। नाभाक ऋषि की स्तुतियों के द्वारा स्तुति करता हूँ। वे नदियों के पास उद्गत होते हैं। उनकी सात बहनें हैं। वे मध्यम हैं। वे हमारे समस्त शत्रुओं का वध करें।[ऋग्वेद 8.41.2]
I worship-pray Varun Dev through beautiful Stutis. I pray to the Manes with Strotrs. I use the Stutis of Nabhak Rishi to pray. He arise close to the rivers. He has seven sisters. He is a mediocre. Let him kill our enemies.
स क्षपः परि षस्वजे न्यु१स्त्रो मायया दधे स विश्वं परि दर्शतः।
तस्य वेनीरनु व्रतमुषस्तिस्त्रो अवर्धयन्नभन्तामन्यके समे
वरुण देव रात्रियों का आलिङ्गन करते हैं। वे दर्शनीय हैं। वे ऊपर गमन करते हुए माया व कर्म के द्वारा समस्त संसार को धारित करते हैं। उनके कर्माभिलाषी मनुष्य तीन उषाओं को वर्द्धित करते हैं। वे हमारे समस्त शत्रुओं का वध करें।[ऋग्वेद 8.41.3]
आलिंगन :: गले लगाना, प्रेमालिंगन, पकड़; clasp, embrace, clasp, hug. 
Varun Dev embrace the nights. He is beautiful-gracious. While rising up, he support the universe with his actions and enchantment. Humans desirous of his actions promote the three Ushas. Let him kill our enemies.
यः ककुभो निधारयः पृथिव्यामधि दर्शतः।
स माता पूर्व्यं पदं तद्वरुणस्य सप्त्यं हि गोपाइ वेर्यो नभन्तामन्यके समे
जो वरुण देव पृथ्वी के ऊपर सभी दिशाओं को धारित करते हैं, वे दर्शनीय निर्माता हैं। प्राचीन स्थानों के स्वामी वरुण देव हैं। वही ईश्वर होकर हमारी गौओं की रक्षा करते हैं। वे हमारे समस्त शत्रुओं का वध करें।[ऋग्वेद 8.41.4]
धारित :: धारण किया हुआ,  सँभाला हुआ, अपने ऊपर लिया हुआ; held, support.
Varun Dev, who hold the ten directions over the earth is a gracious builder. He is the lord of eternal-ancient places. He protect our cows as the God. Let him kill all of our enemies. 
यो धर्ता भुवनानां य उत्राणामपीच्या ३वेद नामानि गुह्या। स कविः काव्या पुरु रूपं द्यौरिव पुष्यति नभन्तामन्यके समे
जो वरुण देव लोकों के धारक और रश्मियों के अन्तर्हित तथा गुहा में निहित नामों को जानते हैं, वे ही वरुण देव प्राज्ञ होकर अनेक कवि कर्मों का द्युलोक के समान पोषण करते हैं। वे हमारे समस्त शत्रुओं का वध करें।[ऋग्वेद 8.41.5]
अन्तर्हित :: अप्रकट, प्रछन्न, अव्यत,अंदर समाहित, निहित, गूढ़, जो अदृश्य हो, अंतर्धान, गायब; latent, tacit, under lying.
Varun Dev who hold the abodes and knows the names tacit-latent & the ones present in the caves rays; hold the heavens equally and nourish them. Let him destroy our enemies.
यस्मिन्विश्वानि काव्या चक्रे नाभिरिव श्रिता। त्रितं जूती सपर्यंत व्रजे गावो न संयुजे युजे अश्वाँ अयुक्षत नभन्तामन्यके समे
समस्त कवि कर्म, चक्र की नाभि के समान, जिन वरुण देव का आश्रय किए हुए हैं, उन्हीं स्थानत्रय वाले वरुण देव की शीघ्र परिचर्या करें। जिस प्रकार गोशाला में गौवें जाती हैं, उसी प्रकार हमें पराजित करने के लिए युद्ध में शत्रु लोग अश्व को नियोजित करते हैं। वे हमारे समस्त शत्रुओं का वध करें।[ऋग्वेद 8.41.6]
DOMAIN :: ज्ञानक्षेत्र, जागीर; manor, estate, holding, grant.
All actions are dependent over Varun Dev, occupying three domains like the excel-nucleus of the wheel,  he should act quickly. The way cows go to the cow shed, similarly, the enemy organise the horses in the war. Let Varun Dev slay our enemies.
य आस्वत्क आशये विश्वा जातान्येषाम्। परि धामानि मर्मृशद्वरुणस्य पुरो गये विश्वे देवा अनु व्रतं नभन्तामन्यके समे
वरुण देव सभी दिशाओं को व्याप्त किये हुए हैं। वे शत्रुओं के चारों ओर फैले हुए नगरों का विनाश करते हैं। इन्हीं के रथ के सम्मुख सभी देवता कर्मानुष्ठान करते हैं। वे हमारे समस्त शत्रुओं का वध करें।[ऋग्वेद 8.41.7]
Varun Dev pervades all the directions. He destroy the forts-cities of the enemies spreaded all around. All demigods-deities perform rituals in front of his charoite. He should kill our all enemies.
स समुद्रो अपीच्यस्तुरो द्यामिव रोहति नि यदासु यजुर्दथे।
स माया अर्चिना पदास्तृणान्नाकमारुहन्नभन्तामन्यके समे
समुद्र स्वरूप वह वरुण देव अन्तर्हित होकर शीघ्र ही सूर्य देव के समान स्वर्गारोहण करते और चारों दिशाओं में प्रजा को दान देते हैं। वे द्युतिमान् पद के द्वारा माया को विनष्ट करते हुए स्वर्ग में गमन करते हैं। वे हमारे समस्त शत्रुओं का वध करें।[ऋग्वेद 8.41.8]
Varun Dev in the form of ocean moves like Sury Dev to the heavens and donate to the populace in all four directions. He destroys the enchantment with his radiance. Let him destroy all our enemies.
यस्य श्वेता विचक्षणा तिस्रो भूमीरधिक्षितः। त्रिरुत्तराणि पप्रतुर्वरुणस्य धुवं सदः स सप्तानामिरज्यति नभन्तामन्यके समे
अन्तरिक्ष में रहने वाले जिन वरुण देव के शुभ्रवर्ण और विलक्षण तीन तेज तीनों भुवनों में प्रसिद्ध हैं, उन वरुण देव का स्थान अविचल है। वे सातों सिन्धु आदि नदियों के अधीश्वर हैं। वे हमारे समस्त शत्रुओं का वध करें।[ऋग्वेद 8.41.9]
The radiance of Varun Dev residing in the space, is famous in the three abodes. The position of Varun Dev is fixed. He is the lord of the sever rivers and the seven seas. Let him destroy all of our enemies. 
यः श्वेताँ अधिनिर्णिजश्चक्रे कृष्णाँ अनु व्रता। स धाम पूर्व्य ममे यः स्कम्भेन वि रोदसी अजो न द्यामधारयन्नभन्तामन्यके समे
जो दिन में अपनी किरणों को शुभ्र वर्ण और रात में कृष्ण वर्ण करते हैं, उन्हीं वरुण देव ने अपने कर्म के लिए द्युलोक और अन्तरिक्ष लोक का निर्माण किया। जिस प्रकार सूर्यदेव द्युलोक को धारित करते हैं, उसी प्रकार वरुणदेव ने अन्तरिक्ष के द्वारा द्यावा-पृथ्वी को धारित किया है। वे हमारे समस्त शत्रुओं का वध करें।[ऋग्वेद 8.41.10]
Varun Dev who makes his rays fair-white during the day and black at night, has created the space as his abode for actions. The way the Sun hold the heavens, similarly Varun Dev hold the heavens and earth. Let him destroy all of our enemies.(07.05.2024)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (42) :: ऋषि :- नाभाक, काण्व, अर्चनाना या आत्रेय; देवता :- वरुण, अश्विनी कुमार;  छन्द :- त्रिष्टुप्, अनुष्टुप्।
अस्तभ्नाद् द्यामसुरो विश्ववेदा अमिमीत वरिमाणं पृथिव्याः।
आसीदद्विश्वा भुवनानि सम्राड् विश्वेत्तानि वरुणस्य व्रतानि
सर्वज्ञ और बली वरुण देव ने द्युलोक को स्थापित किया और पृथ्वी को विस्तारित किया। समस्त भुवनों के सम्राट् होकर पदासीन हुए, वरुण देव के ऐसे अनेक कार्य हैं।[ऋग्वेद 8.42.1]
All knowing & mighty Varun Dev established the heavens and expanded the earth. He became the emperor of all abodes. This is how Varun Dev acted.
एवा वन्दस्व वरुणं बृहन्तं नमस्या धीरममृतस्य गोपाम्।
स नः शर्म त्रिवरूथं वि यंसत्पातं नो द्यावापृथिवी उपस्थे
हे स्तोताओं! इस प्रकार बृहत् वरुण देव की वन्दना कर अमृत के रक्षण और वीर वरुण देव को नमस्कार करें। वरुण देव हमें तीन खण्डों का आवास दें। हम उनकी गोद में रहते है। द्यावा पृथ्वी हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 8.42.2]
Hey Stotas! Let us worship-salute vast & brave Varun Dev protector of Nectar-ambrosia. Let him grant us residence in three segments. We reside in his lap. Let the heavens & earth protect us.
इमां धियं शिक्षमाणस्य देव क्रतुं दक्षं वरुण सं शिशाधि।
ययाति विश्वा दुरिता तरेम सुतर्माणमधि नावं रुहेम
हे दिव्य वरुण देव! कर्मानुष्ठान करने वाले मेरे कर्म, प्रज्ञान और बल को श्रेष्ठ करें। जिसके द्वारा हम समस्त दुष्कर्मों को लाँघ सकें, ऐसी सरलता से पार ले जाने वाली नौका पर हम सवार हों।[ऋग्वेद 8.42.3]
Hey divine Varun Dev! Make  me the best with respect to endeavours, knowledge and strength. We should ride such a boat which can sail us through the world and our sins-misdeeds easily.
आ वां ग्रावाणो अश्विना धीभिर्विप्रा अचुच्यवुः।
नासत्या सोमपीतये नभन्तामन्यके समे
हे सत्य स्वरूप अश्विनी कुमारों! प्राज्ञ ऋत्विक् और अभिषव के समस्त पाषाण, सोमपान के लिए अपने-अपने कार्यों द्वारा आपके सम्मुख जाते हैं। हे अश्विनी कुमारों! आप समस्त शत्रुओं का वध करें।[ऋग्वेद 8.42.4]
Hey truthful Ashwani Kumars! Enlightened Ritviz and the stones for rushing Som are taken to you & they come to you for drinking Somras. Hey Ashwani Kumars! Kill the enemies.
यथा वामत्रिरश्विना गीर्भिर्विप्रो अजोहवीत्।
नासत्या सोमपीतये नभन्तामन्यके समे
हे नासत्य अश्विनी कुमारों! प्राज्ञ अत्रि ने जिस प्रकार स्तुति द्वारा सोमपान के लिए आपका आवाहन किया, उसी प्रकार मैं भी आवाहन करता हूँ। हे अश्विनी कुमारों! समस्त शत्रुओं का वध करें।[ऋग्वेद 8.42.5]
Hey Nasaty Ashwani Kumars! They way enlightened Atri Rishi invoked you for drinking Somras with the Stuti-prayer, I too Invoke you. Hey Ashwani Kumars! Kill our all enemies.
#RigVed (सूक्त 8.1-103) #ऋग्वेद
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PtSantoshBhardwaj
एवा वामह्व ऊतये यथाहुवन्त मेधिराः। नासत्या सोमपीतये नभन्तामन्यके समे
हे नासत्य द्वय! विद्वानों ने जिस प्रकार सोमपान के लिए आपका आवाहन किया, उसी प्रकार मैं भी रक्षा के लिए आपका आवाहन करता हूँ। हे अश्विनी कुमारों! समस्त शत्रुओं का वध करें।[ऋग्वेद 8.42.6]
Hey Nasaty duo! The manner in which the enlightened invoked you, I too invoke you for protection. Hey Ashwani Kumars! Kill all the enemies.(07.05.2024)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (43) :: ऋषि :- विरूप, आंगिरस; देवता :-अग्नि; छन्द :- गायत्री।
इमे विप्रस्य वेधसोऽग्नेरस्तृतयज्वनः। गिरः स्तोमास ईरते
हमारे ये स्तोता अग्नि देव के लिए स्तुति करते हैं। ये अग्नि देव मेधावी और विधाता हैं वे कभी यजमानों की हिंसा नहीं करते।[ऋग्वेद 8.43.1]
Our Stotas worship-Stuti Agni Dev. Agni is intelligent and lord-God and never harm the hosts-Ritviz.
अस्मै ते प्रतिहर्यते जातवेदो विचर्षणे। अग्ने जनामि सुष्टुतिम्
जातधन और विशेष दर्शक अग्नि देव आप दान देने वाले हैं, इसलिए आपके लिए दिव्य स्तुति का पाठ करता हूँ।[ऋग्वेद 8.43.2]
Hey Jatveda and illuminating Agni Dev make donations. I am performing divine Stuti-prayers.
आरोकाइव घेदह तिग्मा अग्ने तव त्विषः। दद्धिर्वनानि बप्सति
हे अग्नि देव! आपकी तेज ज्वालाएँ आरोचमान पशुओं के सदृश दाँतों के द्वारा वनों का भक्षण करती है।[ऋग्वेद 8.43.3]
आरोचमान :: क्रोध रहित; free from anger.
Hey Agni Dev! Your high flames eat the forests like the animals without teeth.
भक्षण हरयो धूमकेतवो वातजूता उप द्यवि। यतन्ते वृथगग्नयः
हरण शील, वायु प्रेरित और धूम ध्वज वाले अग्नि देव अन्तरिक्ष में अलग-अलग जाते हैं।[ऋग्वेद 8.43.4]
Abducting, inspired by air without fumes-smoke Agni moves separately through the space.
एते त्ये वृथगग्नय इद्धासः समदृक्षत। उषसामिव केतवः
अलग-अलग समिद्ध ये अग्नि देव होताओं के द्वारा देवी उषा की लालिमा रूपी पताका के समान दिखाई दे रहे हैं।[ऋग्वेद 8.43.5]
Agni Dev appears like the flag like the reddish Usha Devi produced with different kinds of wood.
कृष्णा रजांसि पत्सुतः प्रयाणे जातवेदसः। अग्निर्यद्रोधति क्षमि
जातप्रज्ञ अग्नि देव जिस समय पृथ्वी पर शुष्क काष्ठ का आश्रय करते हैं, उस समय अग्नि देव के प्रस्थान काल में रजकण भी काली हो जाती हैं।[ऋग्वेद 8.43.6]
When Jatpragy Agni Dev in departing phase takes shelter under the dried wood the dust particles appear black.
धासिं कृण्वान ओषधीर्बप्सदग्निर्न वायति। पुनर्यन्तरुणीरपि
अग्नि देव औषधियों को अन्न समझकर और उन्हें खाकर शान्त नहीं होते। वे युवा औषधियों में विद्यमान रहते हैं।[ऋग्वेद 8.43.7]
Agni Dev does not become quite by eating-consuming the medicinal plants like food grains. He remain present in the young medicinal plants.
जिह्वाभिरह नन्नमदर्चिषा जञ्जणाभवन्। अग्निर्वनेषु रोचते
अग्नि देव अपनी जिह्वा के द्वारा वनस्पतियों का भक्षण कर तेज के द्वारा प्रज्वलित होकर वन में शाभित होते हैं।[ऋग्वेद 8.43.8]
Agni Dev consumes the vegetation with his tongue and illuminate in the forest.
अप्स्वग्ने सधिष्टव सौषधीरनु रुध्यसे। गर्भे सञ्जायसे पुनः
अग्नि देव जल के मध्य आपके प्रवेश का स्थान है। आप औषधियों को रोकते और पुनः उन्हीं के गर्भ में जन्म ग्रहण करते हैं।[ऋग्वेद 8.43.9]
Hey Agni Dev! Your entry point is located in middle of water. You destroy the vegetation and then again grow-evolve in them.
उदग्ने तव तद् घृतादर्ची रोचत आहुतम्। निंसानं जुह्वो ३ मुखे
हे अग्नि देव! घृत द्वारा आहूत स्रुक के मुँख को आप जीभ से चाटते हैं। तब आपकी शिखा शोभा पाती है।[ऋग्वेद 8.43.10]
Hey Agni Dev! When you lick the spoon-Struck (wooden ladle) with your tongue your hair lock appear gracious.(08.05.2024)
उक्षान्नाय वशान्नाय सोमपृष्ठाय वेधसे। स्तोमैर्विधेमाग्नये
जो हव्य भक्षण के योग्य है और जिनका अन्न अभिलषणीय है, उन्हीं सोमपृष्ठ और अभीष्ट विधाता अग्नि देव की हम स्तोत्रों द्वारा प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 8.43.11]
We worship desires accomplishing Agni Dev with shining back, who consumes the offerings-oblations along with food grains with Strotr.
उत त्वा नमसा वयं होतर्वरेण्यक्रतो। अग्ने समिद्भिरीमहे
देवताओं को बुलाने वाले और वरणीय प्रज्ञ हे अग्नि देव! नमस्कार और समिधा प्रदान करके आपसे हम याचना करते हैं।[ऋग्वेद 8.43.12]
Hey enlightened & acceptable Agni Dev, invoking demigods-deities! Salutations. We offer wood and make requests-prayers to you.
उत त्वा भृगुवच्छुचे मनुष्वदग्न आहुत। अङ्गिरस्वद्धवामहे
शुद्ध और आहूत अग्नि देव हम आपका भृगु और मनु के समान आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.43.13]
Hey pure-pious and worshiped Agni Dev, we invoke you like Bhragu and Manu. 
त्वं ह्यग्ने अग्निना विप्रो विप्रेण सन्त्सता। सखा सख्या समिध्यसे
हे अग्नि देव! आप ब्राह्मण, साधु और मित्र हैं। आप ब्राह्मण, साधु और मित्र अग्नि देव की सहायता से प्रदीप्त होते हैं।[ऋग्वेद 8.43.14]
Hey Agni Dev! You are Brahman, sages and a friend. Brahmans, sages and the friends shine by virtue of Agni Dev.
स त्वं विप्राय दाशुषे रयिं देहि सहस्रिणम्। अग्ने वीरवतीमिषम्
हे अग्नि देव! आप हव्य दाता मेधावी को हजारों की संख्या में धन और वीर पुत्रादि से युक्त अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.43.15]
Hey Agni Dev! Grant thousands of brave sons and wealth to the intelligent person making offerings to you.
अग्ने भ्रातः सहस्कृत रोहिदश्व शुचिव्रत। इमं स्तोमं जुषस्व मे
यजमानों के भ्रातृभूत, बल के द्वारा उत्पादित, रोहित नामक अश्व वाले और शुद्ध कर्मा अग्नि देव हमारे स्तोत्रों को ग्रहण करें।[ऋग्वेद 8.43.16]
Brotherly to the Ritviz, produced with force, possessing horses named Rohit and performing pure-pious deeds hey Agni Dev, accept our Strotrs.
उत त्वाग्ने मम स्तुतो वाश्राय प्रतिहर्यते। गोष्ठं गाव इवाशत
हे अग्नि देव! हमारी स्तुतियाँ आपके पास जा रही हैं। उसी प्रकार गौवें उत्सुक होकर और बोलते हुए बछड़ों के लिए गौशाला में जाती हैं।[ऋग्वेद 8.43.17]
उत्सुक :: अत्यधिक इच्छुक, बेचैन; curious, anxious.
Hey Agni Dev! Our Stutis are reaching you. Similarly the anxious cows reach the cow shed to their calf making sound.
तुभ्यं ता अङ्गिरस्तम विश्वाः सुक्षितयः पृथक्। अग्ने कामाय येमिरे
हे अग्नि देव! आप अंगिराओं में श्रेष्ठ हैं। समस्त प्रजाएँ अभिलषित सिद्धि के लिए आपकी उपासना करती हैं।[ऋग्वेद 8.43.18]
Hey Agni Dev! You are the best amongest the Angiras. All populace worship you for the desired accomplishments.
अग्निं धीभिर्मनीषिणो मेधिरासो विपश्चितः। अद्मसद्याय हिन्विरे
मनीषी, प्राज्ञ और मेधावी लोग, अन्न प्राप्ति के लिए अग्नि देव को प्रसन्न करते हैं।[ऋग्वेद 8.43.19]
Thoughtful, enlightened and intelligent people please Agni dev for food grains.
तं त्वामज्मेषु वाजिनं तन्वाना अग्ने अध्वरम्। वह्नि होतारमीळते
हे अग्नि देव! आप बलवान, हव्य वाहक, होता और सर्व प्रसिद्ध हैं। जो स्तोता गृह में यज्ञ का विस्तार करते हैं, वे आपकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 8.43.20]
Hey Agni Dev! You are mighty, carrier of offerings, host and famous every where. The Stots who perform Yagy-Hawan at their house, worship you.
पुरुत्रा हि सदृङ्ङासि विशो विश्वा अनु प्रभुः। समत्सु त्वा हवामहे
हे अग्नि देव! आप प्रभु और सर्वत्र सभी प्राणियों के लिए समदर्शी हैं, इसलिए हम संग्राम में आपका आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.43.21]
Hey Agni Dev! You are lord and equanimous to all organisms. Hence, we invoke you in the war.  
तमीळिष्व य आहुतोऽग्निर्विभ्राजते घृतैः। इमं नः शृणवद्धवम्
घृत द्वारा आहुति प्राप्त कर अग्नि देव शोभा पाते हैं। जो अग्नि देव हमारे आवाहन को सुनते है, उन्हीं की स्तुति करें।[ऋग्वेद 8.43.22]
Worshiped with Ghee Agni Dev become glorious-gracious. We invoke Agni Dev, who respond to our prayers.
तं त्वा वयं हवामहे शृण्वन्तं जातवेदसम्। अग्ने घ्नन्तमप द्विषः
हे अग्नि देव! आप जातधन, शत्रु हिंसक और हमारा आवाहन सुनने वाले हैं, इसलिए हम आपका आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.43.23]
Hey Agni Dev! You are Jatdhan, destroyer of the enemy and respond to our invocation. Hence we invoke you.
विशां राजानमद्भुतमध्यक्षं धर्मणामिमम्। अग्निमीळे स उ श्रवत्
मनुष्यों के ईश्वर, महान् और कर्मों के अध्यक्ष इन अग्निदेव की मैं स्तुति करता हूँ। वे हमारी स्तुति श्रवण करें।[ऋग्वेद 8.43.24]
I worship great Agni Dev who is the lord of the humans and actions. Let him respond to our prayers.
अग्निं विश्वायुवेपसं मर्यं न वाजिनं हितम्। सप्ति न वाजयामसि
सर्वत्रगामी बल वाले, शक्तिशाली और मनुष्यों के समान हितकर अग्नि देव को अश्व के समान हम बलशाली करेंगे।[ऋग्वेद 8.43.25]
We will make Agni Dev who moves every where, strong and is favourable-beneficial to humans alike, mighty like a horse.(09.05.2024)
घ्नन्मृध्राण्यप द्विषो दहन्र रक्षांसि विश्वहा। अग्ने तिग्मेन दीदिहि
हे अग्रि देव! आप हिंसकों को मारकर और राक्षसों को जलाकर तीक्ष्ण तेज के द्वारा प्रकाशित होते है।[ऋग्वेद 8.43.26]
Hey Agni Dev! You kill the violent, burn the demons and then illuminate with sharp radiance.
यं त्वा जनास इन्धते मनुष्वदङ्गिरस्तम। अग्ने स बोधि मे वचः
हे अङ्गिरा लोगों में श्रेष्ठ अग्नि देव! मनुष्य गण आपको मनु के सदृश प्रज्वलित करते हैं। आप उन्हीं के समान मेरी स्तुति को समझें।[ऋग्वेद 8.43.27]
प्रज्वलित :: झुलसाने वाला, जला हुआ; lit up, ignited, blazed, burning.
Hey Agni Dev best amongest Angiras! The humans lit you up like Manu. Accept my Stuti just like him. 
यदग्ने दिविजा अस्यप्सुजा वा सहस्कृत। तं त्वा गीर्भिर्हवामहे
हे अग्नि देव! आप स्वर्गीय और अन्तरिक्ष जन्य बल के द्वारा सहसा उत्पन्न किये गये हैं। आपका स्तुति द्वारा हम आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.43.28] 
Hey Agni Dev! You evolved suddenly by the heavenly and space forces. We welcome you with Stuti.
तुभ्यं घेत्ते जना इमे विश्वाः सुक्षितयः पृथक्। धासिं हिन्वन्त्यत्तवे
ये सब लोग और समस्त प्रजा आपको खाने के लिए पृथक-पृथक हवीरूप अन्न प्रदान करती हैं।[ऋग्वेद 8.43.29]
All these people along with the entire populace offer you food grains for eating.
ते घेदग्ने स्वाध्यो ऽ हा विश्वा नृचक्षसः। तारन्तः स्याम दुर्गहा
हे अग्नि देव! आपके लिए ही हम सत्कर्मी और सर्वदर्शी होकर समस्त दुर्गम स्थानों को पार कर जायेंगे।[ऋग्वेद 8.43.30]
सर्वदर्शी :: सब कुछ देखने वाला; omniscient.
Hey Agni Dev! We will become virtuous & omniscient and cross the difficult terrain.
अग्निं मन्द्रं पुरुप्रियं शीरं पावकशोचिषम्। हृद्भिर्मन्द्रेभिरीमहे
अग्नि देव प्रसन्न, बहुप्रिय, यज्ञ में शयनशील और पवित्र तेज से युक्त हैं। हम हर्ष युक्त स्तोत्रों द्वारा उनसे याचना करते हैं।[ऋग्वेद 8.43.31]
Agni is happy, loved-liked by many, present in the Yagy, associated with pious aura. We worship him happily with Strotrs.
स त्वमग्ने विभावसुः सृजन्त्सूर्यो न रश्मिभिः। शर्धन्तमांसि जिघ्नसे
हे अग्नि देव! आप दीप्ति रोचक हैं। आप सूर्यदेव के सदृश किरणों के द्वारा बल का विस्तार करते हुए अन्धकार को नष्ट करते हैं।[ऋग्वेद 8.43.32]
रोचक :: दिलचस्प, आनंददायक, चित्ताकर्षक, चित्तरंजक, सुहावना, तीव्र, तीक्ष्ण, रंगीन, सेक्रय, ओजस्वी, विचित्र, अलबेला; interesting, fancy, lively.
Hey Agni Dev! You aura is interesting. You extend your might like Sury Dev and remove darkness.
तत्ते सहस्व ईमहे दात्रं यन्नोपदस्यति। त्वदग्ने वार्यं वसु
हे बली अग्नि देव! आपका जो दान योग्य और वरणीय धन है, वह कभी भी क्षीण नहीं होता। हम आपसे उसी धन की याचना करते हैं।[ऋग्वेद 8.43.33]
Hey mighty Agni Dev! Your charitable and acceptable wealth never reduces. We request you for that wealth.(10.05.2024)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (44) :: ऋषि :- विरूप, आंगिरस; देवता :-अग्नि; छन्द :- गायत्री।
समिधाग्निं दुवस्यत घृतैर्बोधयतातिथिम्। आस्मिन् हव्या जुहोतन
हे ऋत्विकों! अतिथि के सदृश अग्नि देव की हव्य द्वारा सेवा करें। हव्य द्वारा जगावें, अग्नि में आहुति प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.44.1]
Hey Ritviz! Serve Agni Dev with offerings like a guest. Make offerings in the fire to ignite it.
अग्ने स्तोमं जुषस्व मे वर्धस्वानेन मन्मना। प्रति सूक्तानि हर्य नः
हे अग्नि देव! हमारे स्तोत्रो को ग्रहण करें। इस मनोहर स्तोत्र द्वारा समृद्धवान् हों। आप हमारे स्तोत्रों की कामना करें।[ऋग्वेद 8.44.2]
Hey Agni Dev! Accept-respond to our Strotr. Let us become wealthy due to this beautiful-gracious Strotr. You should welcome our Strotr.
अग्निं दूतं पुरो दधे हव्यवाहमुप ब्रुवे। देवाँ आ सादयादिह
देवताओं के दूत और हव्य वाहक अग्नि देव को मैं अपने सामने स्थापित करता हूँ। उनकी स्तुति करता हूँ। वे यज्ञ में देवताओं को बुलावें।[ऋग्वेद 8.44.3]
I establish Agni Dev who is ambassador and carrier of offerings to demigods-deities and worship them. Invite-invoke them in the Yagy.
उत्ते बृहन्तो अर्चयः समिधानस्य दीदिवः। अग्ने शुक्रास ईरते
हे दीप्त अग्नि देव! आपके प्रज्वलित होने पर आपकी महती और उज्ज्वल ज्वालाएँ ऊपर उठती हैं।[ऋग्वेद 8.44.4]
Hey illuminated-radiant Agni Dev! Your flames rise up on being ignited.
उप त्वा जुह्वो ३ मम घृताचीर्यन्तु हर्यत। अग्ने हव्या जुषस्व नः
हे अभिलाषी अग्नि देव! हमारी घृत देने वाली सुक् आपके पास जावें। आप हमारे हव्य का सेवन करें।[ऋग्वेद 8.44.5]
Hey desirous Agni Dev! Let us bring our ladle full of Ghee to you. Use our offerings.
मन्द्रं होतारमृत्विजं चित्रभानुं विभावसुम्। अग्निमीळे स उ श्रवत्
मैं प्रसन्न होता, ऋत्विक्, विलक्षण दीप्ति और दीप्तिधन अग्नि देव की स्तुति करता हूँ। वे मेरी स्तुति को श्रवण करें।[ऋग्वेद 8.44.6]
I worship Agni Dev who is a happy Hota having amazing radiance. He should attend to my Stuti-prayer.
प्रत्न हांतारमाड्यं जुष्टमग्निं मान कविक्रतुम्। अध्वराणामभिश्रियम्
अग्नि देव प्राचीन, होता, स्तुति योग्य, प्रीत, कवि, कार्यकर्ता और यज्ञ में आश्रित हैं। उनकी मैं स्तुति करता हूँ।[ऋग्वेद 8.44.7]
Agni Dev is ancient-eternal Hota, worship deserving, Kavi, a worker depending upon Yagy. I worship him.
जुषाणो अङ्गिरस्तमेमा हव्यान्यानुषक्। अग्ने यज्ञं नय ऋतुथा
हे अङ्गिरा लोगों में श्रेष्ठ अग्निदेव! क्रमशः इन हव्यों का सेवन करें। समय-समय पर यज्ञ को सुसम्पन्न करें।[ऋग्वेद 8.44.8]
Excellent amongest the Angira, hey Agni Dev! Consume these offerings sequentially. Hold Yagy from time to time.
समिधान उ सन्त्य शुक्रशोच इहा वह। चिकित्वान् दैव्यं जनम्
हे भजन शील और उज्ज्वल दीप्ति वाले अग्नि देव! आप प्रज्वलित होते ही देवजनों को हमारे इस यज्ञ में ले आवें।[ऋग्वेद 8.44.9]
Hey worshipable  Agni Dev with rising flames! As soon you are ignited bring the demigods-deities to our Yagy.
विप्रं होतारमद्रुहं धूमकेतुं विभावसुम्। यज्ञानां केतुमीमहे
हे अग्नि देव! मेधावी, होता, द्रोह रहित, धूमध्वज, विभावसु और यज्ञ के पताका रूप हैं। उनसे हम अभीष्ट की याचना करते हैं।[ऋग्वेद 8.44.10]
द्रोह :: नमकहरामी; disloyalty, malignancy, sedition, treasonous, black lag, animosity, spite.
Hey Agni Dev! You are intelligent Hota, forming flag with smoke, free from envy, animosity-spite. We request for the accomplishment of desires.(11.05.2024) 
अग्ने नि पाहि नस्त्वं प्रति ष्म देव रीषतः। भिन्धि द्वेषः सहस्कृत
हे बल के द्वारा उत्पादित अग्नि देव! हम हिंसकों की रक्षा करें और (हमारे) शत्रुओं का नाश करें।[ऋग्वेद 8.44.11]
Hey Agni Dev, produced by Bal-strength! Destroy our enemies and protect us from those who wish to harm us.
अग्निः प्रत्नेन मन्मना शुम्भानस्तन्वं१स्वाम्। कविर्विप्रेण वावृधे
क्रान्तकर्मा अग्नि देव प्राचीन और मनोरम स्तोत्रों के द्वारा अपने शरीर को सुशोभित करके ब्राह्मणों के साथ बढ़ते हैं।[ऋग्वेद 8.44.12]
क्रान्त :: जिसे कोई वस्तु ऊपर से आकर फ़ैके हो, जिसे कोई वस्तु ऊपर से थोपे हो, दबा या ढका हुआ, जिस पर आक्रमण हुआ हो, घोडा, पैर, कदम, डग, जाना, गमन, चलना, किसी ग्रह के साथ चंद्र का योग होना; moving, dynamic.
Dynamic radiant Agni Dev decorate his body with the attractive Strotr and grow with the Brahmans.
ऊर्जो नपातमा हुवेऽग्निं पावकशोचिषम्। अस्मिन्यज्ञे स्वध्वरे
अन्न के पुत्र और पवित्र दीप्ति वाले अग्नि देव को इस हिंसा रहित यज्ञ में आवाहित करता हूँ।[ऋग्वेद 8.44.13]
I invoke pious, aurous Agni Dev, son of seeds in the Yagy which is free from violence. 
स नो मित्रमहस्त्वमग्ने शुक्रेण शोचिषा। देवैरा सत्सि बर्हिषि
हे मित्रों के पूजनीय अग्नि देव! आप देवताओं के साथ उज्ज्वल तेज के साथ यज्ञ में स्थापित हों।[ऋग्वेद 8.44.14]
Hey Agni Dev, worshiped by the friends! You should be established in the Yagy with brightness along with the demigods-deities.
यो अग्निं तन्वो३दमे देवं मर्तः सपर्यति। तस्मा इद्दीदयद्वसु
जो मनुष्य अपने गृह में धन प्राप्ति के लिए अग्नि की सेवा करता है उसे अग्नि देव धन प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 8.44.15]
The person who establish Agni Dev in his house for the sake of wealth-riches is granted wealth by him.
अग्निर्मूर्धा दिवः ककुत्पतिः पृथिव्या अयम्। अपां रेतांसि जिन्वति
देवताओं के मस्तक, द्युलोक के ककुद् और पृथ्वी के स्वामी अग्नि देव जल के वीर्य स्वरूप प्राणियों को प्रसन्न करते हैं।[ऋग्वेद 8.44.16]
ककुद् :: चोटी, शिखर, राजचिह्न, उत्तम; umbo, umbones.
Forehead of demigods-deities, peak of heavens and the Lord of earth Agni Dev makes the living happy like the extract-nectar of water.
उदग्ने शुचयस्तव शुक्रा भ्राजन्त ईरते। तव ज्योतींष्यर्चयः
हे अग्नि देव! आपकी निर्मल, शुभ्रवर्ण और दीप्त प्रभाएँ आपके तेज को विस्तारित करती हैं.[ऋग्वेद 8.44.17]
प्रभा :: प्रकाश, दीप्ति, किरण; effulgence, blaze, rays.
Hey Agni Dev! Your pure, white and radiant rays expand your energy-aura.
ईशिषे वार्यस्य हि दात्रस्याग्ने स्वर्पतिः। स्तोता स्यां तव शर्मणि
हे अग्नि देव! आप स्वर्ग के स्वामी हैं, वरणीय और दान योग्य धन के ईश्वर हैं। मैं आपका स्तोता हूँ। सुख प्राप्ति के लिए मैं आपका सेवक बनूँ। [ऋग्वेद 8.44.18]
Hey Agni Dev! You are the Lord of heavens, acceptable and the God of  wealth meant for donation. I am your worshiper. Let me serve you for the sake of comforts-pleasure.
त्वामग्ने मनीषिणस्त्वां हिन्वन्ति चित्तिभिः। त्वां वर्धन्तु नो गिरः
हे अग्नि देव! मनीषी लोग आपकी स्तुति करते हैं। आपको ही कर्म के द्वारा प्रसन्न करते हैं। हमारी स्तुतियाँ आपको वर्द्धित करें।[ऋग्वेद 8.44.19]
Hey Agni Dev! The intelligent-thoughtful people worship you. You are pleased with efforts. Let our Stuti-prayers flourish you.
अदब्धस्य स्वधावतो दूतस्य रेभतः सदा। अग्नेः सख्यं वृणीमहे
हे अग्नि देव! आप हिंसा रहित, बली, देवताओं के दूत और स्तोता हैं। हम सदैव आपकी मित्रता के लिए प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 8.44.20]
Hey Agni dev! You are free from violence, mighty, messenger of the demigods-deities and a host-Stota. We always look to you for friendship.
अग्निः शुचिव्रततमः शुचिर्विप्रः शुचिः कविः। शुची रोचत आहुतः
अग्नि देव अतीव शुद्ध कर्मा, पवित्र, मेधावी और विद्वान् हैं। वे पवित्र और आहूत होकर शोभा पाते हैं।[ऋग्वेद 8.44.21]
Agni Dev is pious, enlightened & perform extremely pure-clean deeds. He become graceful on being pure & worshiped.
उत त्वा धीतयो मम गिरो वर्धन्तु विश्वहा। अग्ने सख्यस्य बोधि नः
हे अग्नि देव! मेरे कर्म और स्तुतियाँ सदैव आपको वर्द्धित करें। हमारे मित्र भाव को आप सदैव समझें।[ऋग्वेद 8.44.22]
Hey Agni Dev! Let my efforts and Stuti-prayers always grow you. You should recognise our friendship.
यदग्ने स्यामहं त्वं त्वं वा घा स्या अहम् । स्युष्टे सत्या इहाशिषः
हे अग्नि देव! यदि मैं अत्यधिक धनवान् हो जाऊँ; तो भी आप मेरे ही रहेंगे और मैं भी आपका ही रहूँगा। आपका आशीर्वाद हमारे जीवन काल में फलित हों।[ऋग्वेद 8.44.23] 
Hey Agni Dev! Even if I become extremely rich I will remain yours and you too will remain mine. Let your blessings become effective in our life time.
वसुर्वसुपतिर्हि कमस्यग्ने विभावसुः। स्याम ते सुमतावपि 
हे अग्नि देव! आप वासप्रद, धन के स्वामी और दीप्तिमान् हैं। हम आपकी कृपा प्राप्त करें।[ऋग्वेद 8.44.24]
Hey Agni Dev! You grant us living space & is lord of wealth and illuminating. Let have your blessings. 
अग्ने धृतव्रताय ते समुद्रायेव सिन्धवः। गिरो वाश्रास ईरते
हे अग्नि देव! आप सत्कर्मा हैं। मेरी शब्द वाली स्तुतियाँ उसी प्रकार आपके पास पहुँचती जिस प्रकार नदियाँ समुद्र की ओर जाती हैं।[ऋग्वेद 8.44.25]
Hey Agni dev! You perform virtuous, pure-pious deeds. Let my Stutis reach you, the way the rivers reach the ocean.
युवानं विश्पतिं कविं विश्वादं पुरुवेपसम्। अग्निं शुम्भामि मन्मभिः
अग्नि देव युवा, संसार के स्वामी, विद्वान्, सर्वभक्षक और बहुकर्मा हैं। उन्हें स्तुतियों के द्वारा मैं समृद्ध करता हूँ।[ऋग्वेद 8.44.26]
Agni Dev is youthful, lord of the universe, enlightened, eat every thing and perform several functions. I enrich, make him prosperous him through my Stuties-prayers.
यज्ञानां रथ्ये वयं तिग्मजम्भाय वीळवे। स्तोमैरिषेमाग्नये
यज्ञ के नेता, तीखी ज्वाला वाले और बलवान अग्नि देव के लिए हम स्तोत्रों के द्वारा स्तुति करने की इच्छा करते हैं।[ऋग्वेद 8.44.27]
We wish to Stuti-pray to the leader of the Yagy possessing sharp flames and mighty Agni Dev with Strotrs.
अयमग्ने त्वे अपि जरिता भूतु सन्त्य। तस्मै पावक मृळय
शोषक और भजनीय हे अग्नि देव! हमारा स्तोता आपमें आसक्त हैं। उन्हें सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.44.28]
आसक्त :: लगा हुआ, प्रेम करनेवाला, अनुरक्त; enamoured, indulgent.
Hey absorbing and worshipable Agni Dev! Our Stota is enamoured with you. Grant him comfort.
धीरो ह्यस्यद्मसद्विप्रो न जागृविः सदा। अग्ने दीदयसि द्यवि
हे अग्नि देव! आप धैर्यवान् है, हव्यदान के लिए बैठे हुए मेधावी के समान आप सदैव जागरूक होकर अन्तरिक्ष मैं प्रदीप्त होते हैं।[ऋग्वेद 8.44.29] 
Hey Agni Dev! You are patient & alert, shine in the space like the intelligent person ready to make offerings.
पुराग्ने दुरितेभ्यः पुरा मृध्रेभ्यः कवे। प्र ण आयुर्वसो तिर
हे वासदाता और कवि अग्नि देव! पापियों और हिंसकों के हाथों से हमें बचाकर हमारी आयु की वृद्धि करें।[ऋग्वेद 8.44.30]
Hey sheltering and Kavi Agni Dev! boost our age by protecting us from the sinners and violent.(11.05.2024)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (45) :: ऋषि :- त्रिशोक, काण्व; देवता :- इन्द्र, इन्द्राग्नि; छन्द :- गायत्री।
आ घा ये अग्निमिन्धते स्तृणन्ति बर्हिरानुषक्। येषामिन्द्रो युवा सखा
जो ऋषि भली-भाँति अग्नि देव को प्रज्वलित करते हैं, जिनके मित्र युवा इन्द्र देव हैं, वे आपस में मिलकर कुश बिछाते हैं।[ऋग्वेद 8.45.1]
The Rishis friendly with Indr Dev who ignite fire (Agni Dev) properly, together spread the Kush Mats.
बृहन्निदिध्म एषां भूरि शस्तं पृथुः स्वरुः। येषामिन्द्रो युवा सखा
इन ऋषियों की समिधायें महती है। इनका स्तोत्र प्रचुर है। इनका स्वरूप महान् है। युवा इन्द्र देव इनके मित्र हैं।[ऋग्वेद 8.45.2]
महती :: महिमा, बड़ाई; intense, dense, eminent, distinguished, palatial, gross, great, grand, thick, huge, big, high, large.
प्रचुर :: विपुल, बहुत अधिक, भरा-पूरा, पूर्ण; abundant,  copious.
The woods for Yagy of these Rishis are distinguished. Their Strotr are abundant. Their exposure is great. Young Indr Dev is their friend.
अयुद्ध इद्युधा वृतं शूर आजति सत्वभिः। येषामिन्द्रो युवा सखा
कौन अयोद्धा व्यक्ति शत्रुओं के द्वारा वेष्टित होकर और अपने बल से बलवान होकर शत्रुओं को पराजित करने में समर्थ होता है।[ऋग्वेद 8.45.3]
वेष्टित :: आच्छादित; ढका हुआ, घेरा हुआ, लपेटा हुआ, रोका हुआ, ऐंठा हुआ; कपड़े, रस्सी आदि से लिपटा या लपेटा हुआ, चारों ओर से घिरा या घेरा हुआ, आच्छादित, ढका हुआ, अवरुद्ध; covered, enveloped.
Which non warrior (common Man) surrounded by the enemy is capable of defeating the enemy with his own strength-power?!
आ बुन्दं वृत्रहा ददे जातः पृच्छद्वि मातरम्। क उग्राः के ह शृण्विरे
उत्पन्न होकर इन्द्र देव ने बाण धारण किया और अपनी माता अदिति से पूछा कि "संसार में कौन-कौन उग्र बल वाले हैं"?[ऋग्वेद 8.45.4]
On being evolved-birth, Indr Dev wielded arrow and asked his mother Aditi, " Which living being are violent-furious and mighty"?
प्रति त्वा शवसी वदद् गिरावप्सो न योधिषत्। यस्ते शत्रुत्वमाचके
बलवती माता ने उत्तर दिया, "जो तुमसे शत्रुता करना चाहता है, वह पर्वत में दर्शनीय हाथी के समान भ्रमण करता है"।[ऋग्वेद 8.45.5]
Mighty mother Aditi answered that, any one who wish to be friendly with you roams like a gracious elephant.
उत त्वं मघवञ्छृणु यस्ते वष्टि ववक्षि तत्। यद्वीळयासि वीळु तत्
हे धनी इन्द्र देव! आप हमारी स्तुति को श्रवण करें। स्तोता आपसे जो चाहता है, उसे आप वह प्रदान करते हैं। आप जिसे दृढ़ करते हैं, वह दृढ़ होता है।[ऋग्वेद 8.45.6]
Hey wealthy Indr Dev! Respond to our Stuti. You accomplish the desires of the Stota. One become strong as per your wish.
यदाजिं यात्याजिकृदिन्द्रः स्वश्वयुरुप। रथीतमो रथीनाम्
युद्ध करने वाले इन्द्र देव जिस समय सुन्दर अश्व की इच्छा से युद्ध में जाते हैं, उस समय वे रथियों में प्रधान रथी होते हैं।[ऋग्वेद 8.45.7]
Indr Dev become the chief amongest the charioteers in the war when he deploy the beautiful horses in his charoite.
वि षु विश्वा अभियुजो वज्रिन्विष्वग्यथा वृह। भवा नः सुश्रवस्तमः
हे वज्र धर इन्द्र देव! जिससे समस्त अभिकांक्षिणी प्रजा समृद्धि को प्राप्त हो, इस प्रकार आप प्रवृद्ध होवें। हमारी लिए आप सबसे अधिक अन्न वाले बने रहें।[ऋग्वेद 8.45.8]
Hey Vajr wielding Indr Dev! You should make efforts to make your populace prosperous having expectations from you. You should be the possessor of greatest food grain stock.
अस्माकं सु रथं पुर इन्द्रः कृणोतु सातये। न यं धूर्वन्ति धूर्तयः
जिन इन्द्र देव की हिंसा हिंसक नहीं कर सकते, वे ही इन्द्र देव हमें अभीष्ट (वर) प्रदान करने देने के लिए सम्मुख सुन्दर रथ स्थापित हों।[ऋग्वेद 8.45.9]
Indr Dev, who can not be harmed by the violent, should ride the charoite for granting us desired boons. 
वृज्याम ते परि द्विषोऽरं ते शक्र दावने। गमेमेदिन्द्र गोमतः
हे इन्द्र देव! हम आपके शत्रुओं के निकट उपस्थित न हों। जिस समय आप प्रचुर गौ वाले होवें, उस समय अभीष्ट प्रदान करने वाले आपके ही पास, हम उपस्थित रहें।[ऋग्वेद 8.45.10]
Hey Indr Dev! We should not be present around your enemies. We should be present near you, when you have lots of cows and you are willing to accomplish our desires.
शनैश्चिद्यन्तो अद्रिवोऽश्वावन्तः शतग्विनः। विवक्षणा अनेहसः
हे वज्रधर इन्द्र देव! धीरे-धीरे जाते हुए हम अश्व वाले, बहुत धन से युक्त, विलक्षण और पाप रहित बने रहें।[ऋग्वेद 8.45.11]
Hey Vajr wielding Indr Dev! Moving slowly, we should become amazing, sinless, possessors of horses & lots of riches.
ऊर्ध्वा हि ते दिवेदिवे सहस्त्रा सूनृता शता। जरितृभ्यो विमंहते
हे इन्द्र देव! यजमान आपके स्तोताओं के लिए प्रतिदिन सौ और हजारों उत्तम और प्रिय वस्तु प्रदान करता है।[ऋग्वेद 8.45.12]
Hey Indr Dev! The hosts-Ritviz grant hundreds & thousands of desirable goods to your Stotas.
विद्मा हि त्वा धनञ्जयमिन्द्र दृळ्हा चिदारुजम्। आदारिणं यथा गयम्
हे इन्द्र देव! हम आपको धनञ्जय, पराक्रमशाली शत्रुओं के मंथनकर्ता, धनापहारक और गृह के समान उपद्रवों से रक्षा करने वाले मानते हैं।[ऋग्वेद 8.45.13]
Hey Indr Dev! We consider you to be the possessor of wealth, destroyer of the enemies, snatcher of the enemy's wealth and protector from disturbances.
ककुहं चित्त्वा कवे मन्दन्तु धृष्णविन्दवः। आ त्वा पणिं यदीमहे
हे कवि और धर्षक इन्द्र देव! आप वणिक् हैं। आपके पास जिस समय हम अभीष्ट की प्रार्थना करते हैं, उस समय सोमरस आपको मत करे। आप श्रेष्ठ होवें।[ऋग्वेद 8.45.14]
EXALTED ::  ऊंचा, उच्च, उन्नत; elevated, high, exalted, towering, tall, dignified, superior, tall, exalted, elevated, towering, skyey, improved, elevated, high, developed, sublime.
Hey Kavi-wise and dignified Indr Dev! You are a businessman. Let Somras exhilarate you when we request you for the accomplishment of our desires. You should we excellent.
यस्ते रेवाँ अदाशुरिः प्रममर्ष मघत्तये। तस्य नो वेद आ भर
हे इन्द्र देव! जो मनुष्य धनी होकर दान नहीं करता और जो धनदाता आपसे वैमनस्य करता है, उसका धन हमें प्रदत्त करें।[ऋग्वेद 8.45.15]
Hey Indr Dev! Grant us the wealth of a person who do not donate in spite of being rich & is envious to you though rich.(12.05.2024)
इम उ त्वा वि चक्षते सखाय इन्द्र सोमिनः। पुष्टावन्तो यथा पशुम्
हे इन्द्र देव! जिस प्रकार लोग घास लाकर पशु को देखते हैं, उसी प्रकार हमारे ये मित्र सोमाभिषव करके आपको देखते रहते हैं।[ऋग्वेद 8.45.16]
Hey Indr Dev! The way people bring grass for the cow and look at it, our friends too look at you for offering you Somras after extracting it.
उत त्वाबधिरं वयं श्रुत्कर्णं सन्तमूतये। दूरादिह हवामहे
हे इन्द्र देव! आप बहरे नहीं हैं। आपका कान श्रवण करने वाला है; इसलिए रक्षा के लिए हम इस यज्ञ में आपका दूर से आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.45.17]
Hey Indr Dev! You are not deaf. Your ears listen and hence we invoke you in this Yagy for protection through a distance.
यच्छुश्रूया इमं हवं दुर्मर्ष चक्रिया उत। भवेरापिर्ने अन्तमः॥
हे इन्द्र देव! हमारे इस आवाहन को श्रवण कर और अपने बल द्वारा शत्रुओं का नाश करें। आप हमारी समीपतम मित्र बनें।[ऋग्वेद 8.45.18]
Hey Indr Dev! Respond to our invocation & destroy the enemies with your might. You should be our closest friend.
यच्चिद्धि ते अपि व्यथिर्जगन्वांसो अमन्महि। गोदा इदिन्द्र बोधि नः
हे इन्द्र देव! जब हम दरिद्रता के द्वारा पीड़ित होकर आपके पास जायेंगे और आपकी स्तुति करेंगे, तब हमें गौ प्रदान करने के लिए जागृत करना।[ऋग्वेद 8.45.19]
पीड़ित :: व्यथित, असंतुष्ट, दुखित, आर्त, क्लेशित, पर्याक्रान्त; victim, afflicted, infested, aggrieved.
Hey Indr Dev! Stressed-aggrieved by poverty when we will come to you and worship you; grant us cows.
आ त्वा रम्भं न जिव्रयो ररम्भा शवसस्पते। उश्मसि त्वा सधस्थ आ
हे बलपति! हम क्षीण होकर दण्ड के सदृश आपको प्राप्त करेंगे। यज्ञ में हम आपकी कामना करते हैं।[ऋग्वेद 8.45.20]
Hey lord of strength! We will attain you on being crushed-weakened. We expect you in the Yagy.
स्तोत्रमिन्द्राय गायत पुरुनृम्णाय सत्वने। नकिर्यं वृण्वते युधि
प्रचुर धनी और दानशील इन्द्र देव के लिए स्तोत्रों का पाठ करें। युद्ध में उन्हें कोई पराजित नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 8.45.21]
दानशील :: उदार, उदारचेता, स्वार्थहीन, शिष्ट, दानी, दानार्थ, दयावान; charitable, free handed, liberal.
Recite-chant Strotr for wealthy and charitable-liberal Indr Dev. None can defeat him in the war.
अभि त्वा वृषभा सुते सुतं सृजामि पीतये। तृम्पा व्यश्नुही मदम्
हे बली इन्द्र देव! सोम के अभिषुत होने पर उसी अभिषुत सोमरस को पीने के लिए मैं आपको देता हूँ। आप तृप्त होवें। मदकर सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 8.45.22]
Hey mighty Indr Dev! I extract Somras and offer it to you for drinking. You should be content-satisfied with it. Drink exhilarating Somras.
मा त्वा मूरा अविष्यवो मोपहस्वान आ दभन्। माकीं ब्रह्मद्विषो वनः
हे इन्द्र देव! अज्ञानी मनुष्य रक्षाभिलाषी होकर आपको न मारें। वे आपको देखकर न हँसें। ब्राह्मण द्वेषियों को आप कभी भी आश्रय प्रदान न करें।[ऋग्वेद 8.45.20]
Hey Indr Dev! The ignorant should neither attack you not laugh at you. Never shelter those who are envious to the Brahmans.
इह त्वा गोपरीणसा महे मदन्तु राधसे। सरो गौरो यथा पिब
हे इन्द्र देव! इस यज्ञ में महाधन की प्राप्ति के लिए मनुष्य दुग्धादि से मिले सोमपान से मत्त हों। गौरवर्ण का हिरण जिस प्रकार जलाशय में जल पीता है, उसी प्रकार आप सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 8.45.24]
Hey Indr Dev! Let the people exhilarate with the Somras mixed with milk in this Yagy for getting Ultimate wealth. The way a fair coloured deer drink water in the pond, you should also drink Somras, similarly.
या वृत्रहा परावति सना नवा च चुच्युवे। ता संसत्सु प्र वोचत
हे वृत्रघ्न इन्द्र देव! आपने दूर देश में जो नया और पुराना धन प्रदत्त किया, उसकी व्याख्या आप यज्ञ गृह में करें।[ऋग्वेद 8.45.25]
Hey slayer of Vratr, Indr Dev! Elaborate the donation made by you in distant places in the form of new or old money-currency in this Yagy house.
अपिबत् कद्रुवः सुतमिन्द्रः सहस्त्रबाह्वे। अत्रादेदिष्ट पौंस्यम्
हे इन्द्र देव! आपने रुद्र ऋषि के अभिषुत सोमरस का पान किया और सहस्त्र बाहु नामक शत्रु का विनाश भी किया। उस समय इन्द्र देव का वीर्य अतीव दीप्तमान् हुआ।[ऋग्वेद 8.45.26]
Hey Indr Dev! You drunk Somras extracted by Rudr Rishi and killed the enemy named Shastr Bahu. At that moment Indr Dev appeared aurous-glorious.
सत्यं तत्तुर्वशे यदौ विदानो अह्नवाय्यम्। व्यानट् तुर्वणे शमि
तुर्वश और यदु नामक राजाओं के प्रसिद्ध कर्म को आपने सत्य समझकर उनके लिए युद्ध में अह्नवाय नामक रिपु का वध कर दिया।[ऋग्वेद 8.45.27]
You recognised the truthful acts of kings Turvash & Yadu, fought for them killing the enemy named Ahnvay.
तरणिं वो जनानां त्रदं वाजस्य गोमतः। समानमु प्र शंसिषम्
हे स्तोताओं! आपके पुत्रादि के तारक, शत्रु नाशक, गौ विशिष्ट, अन्न दाता और साधारण इन्द्र देव की मैं स्तुति करता हूँ।[ऋग्वेद 8.45.28]
Hey Stotas! I worship Indr Dev who relieved your sons, destroyed the enemies, had cows & granted food grains.
ऋभुक्षणं न वर्तव उक्थेषु तुग्र्यावृधम्। इन्द्रं सोमे सचा सुते
जलवर्द्धक और महान इन्द्र देव की धन प्राप्ति के लिए सोमाभिषव होने पर स्तोत्रों के उच्चारण काल में मैं उनकी स्तुति करता हूँ।[ऋग्वेद 8.45.29]
I worship Indr Dev who enhance water, during the period of recitation-enchanting Strotr for having wealth after completion of extraction of Somras.
यः कृन्तदिद्वि योन्यं त्रिशोकाय गिरिं पृथुम्। गोभ्यो गातुं निरेतवे
जिन इन्द्र देव ने जल निर्गमन के लिए द्वार रूप और विस्तृत मेघों को त्रिशोक ऋषि के लिए विदीर्ण किया उन्होंने ही जल को बहने के लिए मार्ग बनाया।[ऋग्वेद 8.45.30]
Indr Dev teared the clouds for flow of water for Trishok Rishi.(13.05.2024E)
यद्दधिषे मनस्यसि मन्दानः प्रेदियक्षसि। मा तत्करिन्द्र मृळय
हे इन्द्र देव! प्रसन्न होकर जो आप धारण करते हैं, जो पूजते हैं, जो दान करते हैं, वो सब हमारे लिए क्यों नहीं करते? हमें समृद्धवान् बनावें।[ऋग्वेद 8.45.31]
धारण :: प्रतिधारण, ग्रहण, प्रतिकूल कब्ज़ा; holding, keeping, maintaining, preserving, (as a vow, a memory), carrying wearing, taking, assuming, acquiring, assume, retention, assumption, hostile possession.
Hey Indr Dev! Why do not you do all that which you support-hold, worship or donate on being happy-pleased? Make us prosperous.
दभ्रं चिद्धि त्वावतः कृतं शृण्वे अधि क्षमि। जिगात्विन्द्र ते मनः
हे इन्द्र देव! आपके समान थोड़ा भी कर्म करने पर मनुष्य पृथ्वी में प्रसिद्ध हो जाता है। इसलिए आप हमारे ऊपर कृपा करें।[ऋग्वेद 8.45.32] 
Hey Indr Dev! Your slightest support make a human being famous over the earth. Therefore have mercy upon us.
तवेदु ताः सुकीर्तयोऽसन्नुत प्रशस्तयः। यदिन्द्र मृळयासि नः 
हे इन्द्र देव! आप जिनके द्वारा हमें सुखी करते हैं, वे आपकी प्रसिद्धियाँ और स्तुतियाँ आपकी हैं।[ऋग्वेद 8.45.33]
Hey Indr Dev! With whatever means you make us comfortable, famous or worship-prayers belong to you.
मा न एकस्मिन्नागसि मा द्वयोरुत त्रिषु। वधीर्मा शूर भूरिषु
हे इन्द्र देव! एक अपराध करने पर हमें न मारना, दो-तीन अथवा बहुत अपराध करने पर भी हमें न मारना।[ऋग्वेद 8.45.34]
Hey Indr Dev! Pardon us. Do not kill us even if we commit crime or annoy you repeatedly.
बिभया हि त्वावत उग्रादभिप्रभङ्गिणः। दस्मादहमृतीषहः
हे इन्द्र देव! आपके समान उग्र शत्रुओं को मारने वाले पापियों के विनाशक और शत्रुओं की हिंसा को सहने वाले देवता से मैं भयभीत न होऊँ।[ऋग्वेद 8.45.35]
Hey Indr Dev! I should not be afraid of any demigods-deity like you who destroy the sinners and furious enemies who are like you.
मा सख्युः शूनमा विदे मा पुत्रस्य प्रभूवसो। आवृत्वद्भूतु ते मनः
हे प्रचुर धन वाले इन्द्र देव! आपके मित्र की समृद्धि की बात को निवेदित करता हूँ, उसके पुत्र की कथा को निवेदित करता हूँ। आपका मन मुझमें सदैव के लिए आकृष्ट हो जावें।[ऋग्वेद 8.45.36]
Hey Indr Dev possessor of ample wealth! Let me describe the prosperity of your friend and the story of his son. Your innerself should always be inclined-attacked towards me.
को नु मर्या अमिथितः सखा सखायमब्रवीत्। जहा को अस्मदीषते
हे मनुष्यों! इन्द्र देव के अतिरिक्त कौन अद्वेष्टा मित्र प्रश्न करने के पूर्व ही मित्र को कह सकता हूँ कि मैंने किसको मारा है? कौन हमसे भयभीत होकर दूर भागता है?[ऋग्वेद 8.45.37]
अद्वेष्टा :: द्वेष या वैर न करने वाला, द्वेष-रहित; unenvious.
Hey Humans! Who else except Indr Dev can say that he has killed someone without being questioned by an unenvious friend. Who runs away from us?
एवारे वृषभा सुतेऽसिन्वन्भूर्यावयः। श्वघ्नीव निवता चरन्
हे बल शाली इन्द्र देव! जिस प्रकार शिकारी अपने शिकार को प्राप्त करता है, उसी प्रकार सोम को सुसंस्कृत करने वाले एवार को आपने प्रचुर धन प्रदान किया।[ऋग्वेद 8.45.38]
शिकार :: शहीद, मुहरा, विपत्ति-ग्रस्त, खाद्य, मुहरा, खेदा, लूट का माल; victim, hunt, prey.
Hey mighty Indr Dev! The way a hunter catches-kills his prey, similarly you grant sufficient money to one who prepare (extract, filter, crush) Somras for you.
आ त एता वचोयुजा हरी गृभ्णे सुमद्रथा। यदीं ब्रह्मभ्य इद्ददः
सुन्दर रथ वाले और मन्त्रों के द्वारा नियोजित किए जाने वाले इन दोनों हरि नामक अश्वों को मै आहूत करता हूँ। आपने ब्राह्मणों को ही यह धन प्रदान किया हैं।[ऋग्वेद 8.45.39]
I worship the horses named Hari deployed in the gracious charoite of Indr Dev propelled through Mantr Shakti. You made these donations to Brahmans.
भिन्धि विश्वा अप द्विषः परि बाधो जही मृधः। वसु स्पाईं तदा भर
हे इन्द्र देव! आप हमारे समस्त शत्रुओं का विनाश करके हमसे दूर हटावें और उनका धन व ऐश्वर्य हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.45.40]
Hey Indr Dev! Destroy our enemies and repel them away from us granting their grandeur and wealth to us.
यद्वीळाविन्द्र यत्स्थिरे यत्पर्शाने पराभृतम्। वसु स्पाईं तदा भर
हे इन्द्र देव! दृढ़ स्थान पर आपने जो धन रखा है, स्थिर स्थान में जो धन रखा है और सन्दिग्ध स्थान में जो धन रखा है, वह अभिलषणीय धन ले आवें।[ऋग्वेद 8.45.41]
Hey Indr Dev! Bring that wealth which is hidden in a tough terrain or hidden place. 
यस्य ते विश्वमानुषो भूरेर्दत्तस्य वेदति। वसु स्पाईं तदा भर
हे इन्द्र देव! आपके द्वारा दिए हुए वैभव को सभी लोग उचित रूप से जानते हैं। उस वांछित ऐश्वर्य को हमें उचित मात्रा में प्रदत्त करें।[ऋग्वेद 8.45.42]
Hey Indr Dev! We recognise the grandeur granted by you and want it to be given to us in sufficient quantity.(14.05.2024E)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (46) :: ऋषि :- वश, अश्वय; देवता :- इन्द्र, कानीत, पृथुश्रवा, वायु; छन्द :- गायत्री, उष्णिक्, बृहती, अनुष्टुप्, पंक्ति, जगती।
त्वावतः पुरुवसो वयमिन्द्र प्रणेतः। स्मसि स्थातर्हरीणाम्
हे बहुधनी और कर्मप्रापक इन्द्र देव! आपके सदृश पुरुष के ही हम आत्मीय हैं। आप हरि नाम के अश्वों के अधिष्ठाता है।[ऋग्वेद 8.46.1]
Hey Indr Dev possessing multiple assets and accomplishing desires! We are closely related to a person like you. You are the master of horses named Hari.
त्वां हि सत्यमद्रिवो विद्म दातारमिषाम्। विद्म दातारं रयीणाम्
हे वज्रधर इन्द्र देव! आपको हम अन्न दाता मानते हैं। धनदाता भी मानते हैं।[ऋग्वेद 8.46.2]
Hey wielder of Vajr Indr Dev! We consider you as the donor of food grains and wealth.
आ यस्य ते महिमानं शतमूते शतक्रतो। गीर्भिर्गुणन्ति कारवः
हे असीम रक्षणों और बहु कर्मों वाले इन्द्र देव! आपकी महिमा को स्तोता लोग स्तुति द्वारा वर्णित करते हैं।[ऋग्वेद 8.46.3]
Hey protector through several means and performing several deeds, Indr Dev! The Stotas recite-chant your grandeur through Stutis.
सुनीथो घा स मर्यो यं मरुतो यमर्यमा। मित्रः पान्त्यद्रुहः
द्रोह रहित मरुद्गण जिनकी रक्षा करते हैं और अर्यमा तथा मित्र जिनकी रक्षा करते हैं, वही मनुष्य सुन्दर यज्ञ वाला होता है।[ऋग्वेद 8.46.4]
One protected by Marud Gan, Aryma and Mitr is able to perform beautiful Yagy.
दधानो गोमदश्ववत्सुवीर्यमादित्यजूत एधते। सदा राया पुरुस्पृहा
आदित्य द्वारा अनुगृहीत यजमान गौ और अश्व वाला होकर तथा सुन्दर वीर्य से युक्त होकर सदा वृद्धि करता है। वह बहु संख्यक और अभिलषणीय धन के द्वारा वृद्धि को प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 8.46.5]
The Ritviz-host obliged by Adity Gan become mighty possessor of horses and cows leading to progress. He progresses by having multiple assets and desired wealth.
तमिन्द्रं दानमीमहे शवसानमभीर्वम्। ईशानं राय ईमहे
बल का प्रयोग करने वाले, निर्भय तथा सभी के स्वामी उन प्रख्यात इन्द्र देव से हम धन की याचना करते हैं।[ऋग्वेद 8.46.6]
We request wealth from famous Indr Dev who is mighty, fearless and lord of all.
तस्मिन्हि सन्त्यूतयो विश्वा अभीरवः सचा।
तमा वहन्तु सप्तयः पुरूवसुं मदाय हरयः सुतम्
सर्वत्रगामी, निर्भय और सहायक मरुद्रूप सेना इन्द्र देव की ही है। गतिपरायण हरि अश्व हर्ष के लिए बहुधन दाता इन्द्र देव को अभिषुत सोमरस के निकट ले आते हैं।[ऋग्वेद 8.46.7]
Indr Dev is the lord of dynamic fearless army constituting of Marud Gan etc. Dynamic horses named Hari bring multiple donor Indr Dev to the place where Somras is extracted.
यस्ते मदो वरेण्यो य इन्द्र वृत्रहन्तमः। य आददिः स्व१नृभिर्यः पृतनासु दुष्टरः
हे इन्द्र देव! आपका जो मद वरण के योग्य है, जिसके द्वारा युद्ध में आप शत्रुओं का शीघ्रता से वध करते हैं, जिसके द्वारा शत्रुओं के पास से धन ग्रहण करते हैं और युद्ध में किसी के द्वारा पराजित नहीं हो सकते।[ऋग्वेद 8.46.8]
Hey Indr Dev! Your might & power with which you destroy the enemy quickly, take away their wealth make you victorious in the war.(14.05.2024E)
यो दुष्टरो विश्वरार श्रवाय्यो वाजेष्वस्ति तरुता।
स नः शविष्ठ सवना वसो गहि गमेम गोमति व्रजे॥
सर्व वरेण्य, युद्ध में दुर्धर्ष, शत्रुओं के पारगामी, सर्वत्र विख्यात, सर्वापेक्षा बली और वासप्रदाता इन्द्र देव अपने उसी मद और हर्ष के साथ हमारे यज्ञ में पधारें, जिससे हम गोयुक्त गोष्ठ में प्रवेश करें।[ऋग्वेद 8.46.9]
सर्ववरेण्य :: पूजनीय, जिसकी कामना की जाए, सर्वोच्च, वांछनीय, उत्कृष्ट, सर्वश्रेष्ठ, केसर, भगवा, acceptable-worshipable to all.
Let Indr Dev worshiped by all, invincible, winner of the enemies in the war, famous every where, mightier than others and providing homes to us should visit our Yagy so that we can enter a cow shed having cows.
गव्यो षु णो यथा पुराश्वयोत रश्नया। वरिवस्य महामह
हे महाधनी इन्द्र देव! गौप्राप्ति, अश्व लाभ और रथ संप्राप्ति की हमारी इच्छा होने पर पहले की ही तरह हमें वह सब प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.46.10]
Hey too wealthy Indr Dev! Grant us cows, horses and charoite as usual.
नहि ते शूर राधसोऽन्तं विन्दामि सत्रा। 
दशस्या नो मघवन्नू चिदद्रिवो धियो वाजेभिराविथ
हे शूर इन्द्र देव! वास्तव में मैं आपके धन की सीमा नहीं जानता। हे धनी और वज्री इन्द्र देव! हमें शीघ्र धन प्रदान करें। अन्न द्वारा हमारे कर्म की रक्षा करें।[ऋग्वेद 8.46.11]
Hey brave Indr Dev! In deed, I am unaware of the limits of your wealth. Hey Vajr wielding and wealthy Indr Dev! Give us money quickly. Protect us by giving us food grains.
य ऋष्वः श्रावयत्सखा विश्वेत्स वेद जनिमा पुरुष्टुतः।
तं विश्वे मानुषा युगेन्द्रं हवन्ते तविषं यतस्रुचः
जो इन्द्र देव दर्शनीय हैं, जिनके मित्र ऋत्विक गण हैं, जो बहुतों के द्वारा प्रार्थित हैं, वे संसार के समस्त प्राणियों को जानते हैं, सभी मनुष्य हव्य ग्रहण करके सदा उन्हीं बलवान इन्द्र देव का आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.46.12]
All human beings make offerings and worship gracious Indr Dev; invoke him for him being friendly with the Ritviz, worshiped by several & known to all living beings in the universe.
स नो वाजेष्वविता पुरूवसुः। पुरःस्थातामघवा वृत्रहा भुवत्
वे ही प्रचुर धन वाले, मघवा और वृत्रहन्ता इन्द्र देव रणक्षेत्र में हमारे रक्षक और अग्रवर्ती हों।[ऋग्वेद 8.46.13]
Wealthy Indr Dev, Maghva and  slayer of Vratr should be our protector in the war in the forward line of action-attack.
अभि वो वीरमन्धसो मदेषु गाय गिरा महा विचेतसम्।
इन्द्रं नाम श्रुत्यं शाकिनं वचो यथा
हे स्तोताओं! आप लोगों के हित के लिए सोमजात मत्तता उत्पन्न होने पर वीर शत्रुओं की अवनति करने वाले, विशिष्ट प्रज्ञा वाले, सर्वत्र प्रसिद्ध और शक्तिशाली इन्द्र देव की आपकी जैसी वाक्य स्फूर्ति हो, उनके अनुकूल महती स्तुति द्वारा उनकी स्तुति करें।[ऋग्वेद 8.46.14]
Hey Stotas! Worship Indr Dev with the Stuti which pleases and exhilarating him to to down grade the enemies. He is mighty, famous, has specific enlightened. Let him possess smartness while talking, like you. 
देदी रेक्णस्तन्वे ददिर्वसु ददिर्वाजेषु पुरुहूत वाजिनम्। नूनमथ
हे इन्द्र देव! आप मेरे शरीर के लिए इसी समय धन प्रदान करें। युद्धों में अन्नवान धन के दाता बने। हे बहुतों द्वारा आहूत इन्द्र देव! मेरे पुत्रों को धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.46.15]
Hey Indr Dev! Grant money for my body at once. Become the donor of food grains during war. Hey Indr Dev, worshiped by many! Grant money-riches to my sons.
विश्वेषामिरज्यन्तं वसूनां सासह्वांसं चिदस्य वर्पसः। कृपयतो नूनमत्यथ
समस्त धनों के स्वामी और बाधक तथा युद्ध में कम्पनकर्ता शत्रुओं को पराजित करने वाले इन्द्र देव की स्तुति करें। वह शीघ्र धन प्रदान करेंगे।[ऋग्वेद 8.46.16]
Worship Indr Dev who obstruct, defeat & tremble the enemy in thew war. He will quicky grant us money. 
महः सु वो अरमिषे स्तवामहे मीळ्हुषे अरङ्गमाय जग्मये।
यज्ञेभिर्गीर्भिर्विश्वमनुषां मरुतामियक्षसि गाये त्वा नमसा गिरा
हे इन्द्र देव! आप महान् हैं। मैं आपके आगमन की कामना करता हूँ। आप गमनशील है, सम्पूर्ण गामी और सेचक हैं। यज्ञ और स्तुति द्वारा हम आपकी प्रार्थना करते हैं। आप मरुतों के नेता हैं। समस्त मनुष्यों के ईश्वर हैं। मैं नमस्कार और स्तुति द्वारा आपका ही गुणगान करता हूँ।[ऋग्वेद 8.46.17]
Hey Indr Dev! You are great. I wish to invoke you. You are dynamic capable to visiting every where and water providing. We worship you by means of Yagy and Stuti-prayers. You are the leader of Marud Gan and lord of all humans. I sing songs in your glory with salutations and Stuti.
ये पातयन्ते अज्मभिर्गिरीणां स्नुभिरेषाम्। यज्ञं महिष्वणीनां  सुम्नं तुविष्वणीनां प्राध्वरे
जो मरुत मेघों के प्राचीन और बलकर जल के साथ जाते हैं, उन्हीं बहुत ध्वनि वाले मरुतों के लिए हम यज्ञ करेंगे और उस यज्ञ में महाध्वनि वाले मरुद्रण हमें जो सुख दे सकेंगे, उसे हम प्राप्त करेंगे।[ऋग्वेद 8.46.18]
We will perform Yagy for ancient-eternal Marud Gan generating tremendous sound, who advance with the clouds & strong water currents. We will accept the comforts-pleasure granted by Marud Gan in that Yagy.
प्रभङ्ग दुर्मतीनामिन्द्र शविष्ठा भर। रयिमस्मभ्यं युज्यं चोदयन्मते ज्येष्ठं चोदयन्मते
आप दुष्ट बुद्धियों के विनाशक हैं। आपके समीप हम याचना करते हैं। हे अतीव बली इन्द्र देव! हमारे लिए योग्य धन ले आवें। आपकी बुद्धि सदा धन प्रेरण में तत्पर रहती है। हे देव! हमें उत्तम धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.46.19]
You are the destroyer of the wicked-vicious. We make requests to you. Hey extremely powerful Indr Dev! Give us money suited to us. Your mind is always looking to donate money. Hey Dev! Grant us excellent wealth.
सनितः सुसनितरुग्र चित्र चेतिष्ठ सूनृत।
प्रासहा सम्राट् सहुरिं सहन्तं भुज्युं वाजेषु पूर्व्यम्
हे दाता, उग्र, विचित्र, प्रिय, सत्यवक्ता, शत्रुपराभवकर्ता और सबके स्वामी इन्द्र देव! आप शत्रुओं को पराजित करने वाले, भोग योग्य तथा प्रवृद्ध धन संग्राम में हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.46.20]
Hey donor, furious, amazing, dear, truthful, defeater of the enemy and the lord of all of us, Indr Dev! You defeat the enemy. Grant us useful, lots of wealth in the war.
आ स एतु य ईवदाँ अदेवः पूर्तमाददे।
यथा चिद्वशो अश्व्यः पृथुश्रवसि कानीते ३ स्या व्युष्याददे
अश्व के पुत्र जिन वश ने कन्या के पुत्र (कानीत) पृथुश्रवा राजा से प्रातःकाल धन प्राप्त किया था; इसलिए देव रहित वश के पूर्ण धन ग्रहण कर लेने के कारण वश यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 8.46.21]
Son of Ashw, Vash accepted money for his daughter's son from king Prathushrawa in the morning, hence Vash unsupported by the demigods-deities, should come here having obtained whole money.
षष्टिं सहस्त्राश्वयस्यायुतासनमुष्ट्रानां विंशतिं शता।
दश श्यावीनां शता दश त्र्यरुषीणां दश  गवां सहस्रा॥
वश ने कहा, मैंने साठ हजार और अयुत (दस सहस्र) अश्वों को प्राप्त किया और बीस सौ ऊँटों को काले रंग की दस सौ घोड़ियों को प्राप्त किया। तीन स्थानों में शुभ्र रंग वाली दस हजार गायों को प्राप्त किया।[ऋग्वेद 8.46.22]
Vash said, "I received sixty thousand horses, two thousand camels and one thousand black mare. I got ten thousand white coloured cows at three places.(15.05.2024E)

दश श्यावा ऋधद्रयो वीतवारास आशवः। मश्रा नेमिं नि वावृतुः
दस कृष्णवर्ण अश्व रथनेमि वहन करते हैं। वे अतीव वेग और बल वाले तथा रिपुओं का नाश करने वाले हैं।[ऋग्वेद 8.46.23]
रथनेमि :: रथ की परिधि; rim or circumference of a chariots-wheel.
Ten black coloured horses pull the wheels of the charoite. They are very strong, run very fast and destroy the enemy.
दानासः पृथुश्रवसः कानीतस्य सुराधसः।
रथं हिरण्ययं ददन्मंहिष्ठ सूरिरभूद्वर्षिष्ठमकृत श्रवः
उत्कृष्ट धन वाले कन्या पुत्र पृथुश्रवा का यही दान है। उन्होंने सुवर्ण का रथ दिया; अतीव दाता और प्राज्ञ हैं। इसके पश्चात् उन्होंने अत्यन्त प्रवृद्ध कीर्ति प्राप्त की।[ऋग्वेद 8.46.24]
This is the donation by the possessor of excellent wealth, daughter's son Prathushrawa. He donated golden charoite and is enlightened. Thereafter, he attained great name & fame. 
आ नो वायो महे तने याहि मखाय पाजसे।
वयं हि ते चकृमा भूरि दावने सद्यश्चिन्महि दावने
हे वायुदेव! महान धन और पूजनीय बल के लिए हमारे समीप पधारें। आप प्रचुर देने वाले हैं। हम आपकी स्तुति करते हैं। आप महान् धन के दाता हैं। आपके आने के साथ ही हम आपकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 8.46.25]
Hey Vayu Dev! Come close to us with great wealth and might. You make lots of donations. We worship you. You are great donor of wealth. As soon as you arrive we begin praying you.
यो अश्वेभिर्वहते वस्त उस्त्रास्त्रिः सप्त सप्ततीनाम्।
एभिः सोमेभिः सोम सुद्धि: सोमपा दानाय शुक्रपूतपाः
सोमपाता, दीप्त और पवित्र सोमरस के पानकर्ता वायुदेव जो पृथुश्रवा के अश्वों के साथ आते हैं, गृह में निवास करते हैं और त्रिगुणित सप्त सप्तति गौवों के साथ जाते हैं, वे ही आपको सोमरस देने के लिए सोम संयुक्त हुए हैं और अभिषवकर्ताओं के साथ मिले हैं।[ऋग्वेद 8.46.26]
Radiant Vayu Dev who drinks Somras come with Prathushrawa's horses & reside in the house. He comes with three times into seven times, seventy cows. He joins you and those who extract Somras, for offering you Somras.
यो म इमं चिदु त्मनामन्दच्चित्रं दावने।
अरट्वे अक्षे नहुषे सुकृत्वनि सुकृत्तराय सुक्रतुः
जो पृथुश्रवा मेरे लिए ये गौ, अश्व आदि देने के लिए हैं, ऐसा विचार कर प्रसन्न हुए, उन शोभनकर्मा राजा पृथुश्रवा ने अपने कर्माध्यक्ष अष्टव, अक्ष, नहुष और सुकृत्व को प्रेरित किया।[ऋग्वेद 8.46.27]
Prathushrawa became happy  after deciding to give me cows and horses. He inspired his senior eight ministers, along with Aksh, Nahush and Sukratv.
उचथ्ये ३ वपुषि यः स्वराळुत वायो घृतस्नाः।
अश्वेषितं रजेषितं शुनेषितं प्राज्म तदिदं नु तत्
हे वायु देव! जो उचथ्य और वपु नाम के राजाओं से भी अधिक साम्राज्य करते हैं, उन घृत के समान शुद्ध राजा ने घोड़ों, ऊँटों और कुत्तों को प्रेरित जो अन्न प्रदान किया, वह यही है। यह आपका ही अनुग्रह है।[ऋग्वेद 8.46.28]
The king virtuous-pure like Ghee with the empire larger than Uchthy and Vapu, inspired the horses, camels and dogs. Here is the food grain granted by him. Hey Vayu Dev! This is due to your obligation-kindness.
अध प्रियमिषिराय षष्टिं सहस्त्रासनम्। अश्वानामिन्न वृष्णाम्
इस समय ऐश्वर्य प्रदत्त करने वाले उन राजा के अनुग्रह से सेचन करने वाले अश्व के समान साठ हजार प्रिय गौवों को भी मैंने प्राप्त किया।[ऋग्वेद 8.46.29]
I too received sixty thousand cows by virtue of the grace of that king granting grandeur; rearing horses.
गावो न यूथमुप यन्ति वध्रय उप मा यन्ति वध्रय:
जिस प्रकार गौवें अपने झुण्ड में जाती है, उसी प्रकार ही पृथुश्रवा के दिये हुए बैल मेरे समीप आते हैं।[ऋग्वेद 8.46.30]
The way cows move in there herd, the bulls given to me Prathushrawa come to me.
अध यच्चारथे गणे शतमुष्ट्राँ अचिक्रदत्। अध श्वित्लेषु विंशतिं शता
जिस समय ऊँट वन के लिए भेजे गये, उस समय वे एक सौ ऊँट और सफेद रंग वाली गौवों में दो हजार गौवें दान में प्रदान कीं।[ऋग्वेद 8.46.31]
When the camels were sent to the forests, one hundred of camels and two thousand cows were donated.
शतं दासे बल्बूथे विप्रस्तरुक्ष आ ददे।
ते ते वायविमे जना मदन्तीन्द्रगोपा मदन्ति देवगोपाः
मैं ब्राहाण हूँ। मैं गौ और अश्व का रक्षक हूँ। बलबूथ नामक दास के समीप से मैंने सौ गौ और अश्व पाये। हे वायुदेव! ये सब आपके अधीन हैं। वे स्तोता लोग इन्द्र देव और देवताओं के द्वारा रक्षित होकर आनन्दित होते हैं।[ऋग्वेद 8.46.32]
I am a Brahman. I am the protector-caretaker of cows & horses. I got hundred cows and horses from a slave named Balbuth. Hey Vayu Dev! All these are governed by you. The Stotas become happy on being protected by Indr Dev and the demigods-deities.
अध स्या योषणा मही प्रतीची वशमश्व्यम्। अधिरुक्मा वि नीयते॥
इस समय वह स्वर्ण के आभूषणों से विभूषित, पूजनीय और राजा पृथुश्रवा के दान के साथ दी गई कन्या को अश्व के पुत्र वश के सम्मुख पहुँचाते हैं।[ऋग्वेद 8.46.33]
The daughter of worshipable Prathushrawa decorated with gold ornaments is taken to the son of Ashw named Vash.(16.05.2024E)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (47) :: ऋषि :- त्रित, आप्त्य; देवता :- आदित्य और उषा; छन्द :- महापंक्ति।
महि वो महतामवो वरुण मित्र दाशुषे।
यमादित्या अभि द्रुहो रक्षथा नेमघं नशदनेहसो व ऊतयः सुऊतयो व ऊतयः॥
हे मित्र और वरुण देव! हवि देने वाले यजमान के लिए जो आपका रक्षण है, वह महान् है। शत्रुओं के हाथ से आप जिस यजमान को बचाते हैं, उसे पाप नहीं छू सकता। आप लोगों की रक्षा करने पर उपद्रव नहीं करते। आपका रक्षण शोभनीय है।[ऋग्वेद 8.47.1]
उपद्रव :: दुर्घटना, ऊधम, किसी रोग के बीच में होनेवाला दूसरा विकार, दंगा; riots, fray, dustup, kick-up, deuce, disturbance, disorder, riot, wantonness, stir deuce.
Hey Mitr & Varun! your protection to the Ritviz is great. The Ritviz protected from the enemy is sinless. Your great protection stops disturbances of all types.
विदा देवा अघानामादित्यासो अपाकृतिम्।
पक्षा वयो यथोपरि व्य१स्मे शर्म यच्छतानेहसो व ऊतयः सुऊतयो व ऊतयः
हे आदित्यों! आप लोग दुःख का निवारण करना जानते हैं। जिस प्रकार चिड़ियाँ अपने बच्चों पर पंख फैलाती है, उसी प्रकार आप हमें सुख प्रदान करें। आप लोगों की रक्षा होने पर उपद्रव नहीं होता। आपका रक्षण शोभन रक्षण है।[ऋग्वेद 8.47.2]
Hey Adity Gan! You know the remedy for sorrow-pain. Protect us like the birds who cover their babies with their feather and grant us pleasure. Your great protection stops disturbances of all types.
व्य१स्मे अधि शर्म तत्पक्षा वयो न यन्तन।
विश्वानि विश्ववेदसो वरूथ्या मनामहेऽनेहसो व ऊतयः सुऊतयो व ऊतयः
पक्षियों के पक्ष के समान आप लोगों के पास जो सुख है, उसे हमें प्रदान करें। हे सर्वधनी आदित्यों! समस्त गृह के उपयुक्त धन आपसे हम माँगते हैं। आपके रक्षण करने पर उपद्रव नहीं होता। आपकी रक्षा ही सुरक्षा है।[ऋग्वेद 8.47.3]
Grant us comforts like the feather of birds. Hey wealthy Adity Gan! We ask you for the money suitable-sufficient for home. Your great protection stops disturbances of all types.
यस्मा अरासत क्षयं जीवातुं च प्रचेतसः।
मनोर्विश्वस्य घेदिम आदित्या राय ईशतेऽनेहसो व ऊतयः सुऊतयो व ऊतयः
उत्तम चेता आदित्यगण जिनको गृह और जीवन के उपयुक्त अन्न प्रदान करते हैं, इसीलिए ये समस्त मनुष्यों के धन के स्वामी हो जाते हैं। आपकी रक्षा में उपद्रव नहीं होता। आपकी रक्षा शोभन रक्षा है।[ऋग्वेद 8.47.4]
चेता :: चेतावनी देना, सजग करना, सचेत करना, धकेलना, ढकेलना, हिलाना, उत्तेजित करना, धीरे से आगे बढना, आगाह करना, चेतन करना, चेताना, धिक्कारना, ताड़ना देना; alert, caution, admonish, jog.
One who is granted home and food  grains suitable for home by the alert Adity Gan,  become the lord of wealth of all humans. Your great protection stops disturbances of all types.
परि णो वृणजन्नघा दुर्गाणि रथ्यो यथा।
स्यामेदिन्द्रस्य शर्मण्यादित्याना मुतावस्यनेहसो व ऊतयः सुऊतयो व ऊतयः
रथ वहन करने वाले अश्व जिस प्रकार दुर्गम रास्तों का परित्याग कर देते हैं, उसी प्रकार हम पाप का परित्याग कर देंगे। हम इन्द्र देव का सुख और आदित्य का रक्षण प्राप्त करेंगे। आपकी रक्षा होने पर उपद्रव नहीं होता। आपकी रक्षा हमारी सुरक्षा है।[ऋग्वेद 8.47.5]
The way the charoite reject the tough terrain we will reject sins. We will attain comforts-pleasures from Indr Dev and protection from Adity Gan. In case of your protection there is no disturbances. Your protection keep us safe.
परिह्वृतेदना जनो युष्मादत्तस्य वायति।
देवा अदभ्रमाश वो यमादित्या अहेतनानेहसो व ऊतयः सुऊतयो व ऊतयः
क्लेश के द्वारा ही मनुष्य आपका धन प्राप्त करते हैं। हे देवताओं! आप लोग शीघ्र गमन करने वाले हैं। आप लोग जिस यजमान को प्राप्त करते हैं, वह अधिक धन प्राप्त करता है। आपकी रक्षा होने पर उपद्रव नहीं होता। आपकी रक्षा हमारी सुरक्षा है।[ऋग्वेद 8.47.6]
Humans get wealth through labour. Hey demigods!  You move quickly. The Ritviz blessed by you gets more wealth. In case of your protection there is no disturbances. Your protection keep us safe.
न तं तिग्मं चन त्यजो न द्रासदभि तं गुरु।
यस्मा उ शर्म सप्रथ आदित्यासो अराध्वमनेहसो व ऊतयः सुऊतयो व ऊतयः
हे आदित्यों! जिसे आप विस्तृत सुख प्रदान करते हैं, वह व्यक्ति टेढ़ा होने पर भी क्रोध से निर्विध्न रहता है। उसके पास अपरिहार्य दुःख भी नहीं जाता। आपकी रक्षा होने पर उपद्रव नहीं होता। आपकी रक्षा ही हमारी सुरक्षा है।[ऋग्वेद 8.47.7]
टेढ़ा :: चक्करदार, लहरदार, कपटी, साँप की तरह, धूर्त, चालाक, झुका हुआ, ढालू, ढालवां, तिरछा; crooked, serpentine, sloping, sinuous.
Hey Adity Gan! One granted comforts-pleasure by you remain free from anger in spite being crooked. Pain-sorrow do not trouble him. In case of your protection there is no disturbances. Your protection keep us safe.
युष्मे देवा अपि ष्मसि युध्यन्तइव वर्मसु।
यूयं महो न एनसो यूयमर्भादुरुष्यतानेहसो व ऊतयः सुऊतयो व ऊतयः
हे आदित्यों! हम आपके आश्रय में ही रहेंगे। क्योंकि योद्धा लोग कवच के आश्रय में रहते हैं। आप हमें महान् अनिष्ट और अल्प अनिष्ट से बचावें। आपकी रक्षा होने पर उपद्रव नहीं होता। आपकी रक्षा ही हमारी सुरक्षा है।[ऋग्वेद 8.47.8]
अनिष्ट :: अवांछित, अशुभ, अहित, अमंगल; unwelcome, forbidding
Hey Adity Gan! We will remain under asylum granted by you. The warriors wear shield. Protect us from unseen troubles. In case of your protection there is no disturbances. Your protection keep us safe.
अदितिर्न उरुष्यत्वदितिः शर्म यच्छतु।
माता मित्रस्य रेवतोऽर्यम्णो वरुणस्य चानेहसो व ऊतयः सुऊतयो व ऊतयः
माता अदिति हमारी रक्षा करें; अदिति हमें सुख प्रदान करें। वे धनवती हैं और मित्र, वरुणदेव और अर्यमा की माता है। आपकी रक्षा करने पर उपद्रव नहीं होता। आपकी रक्षा ही हमारी सुरक्षा है।[ऋग्वेद 8.47.9]
Let Dev Mata Aditi protect us and grant pleasure. She is wealthy and the mother of Mitr, Varun Dev and Aryma. In case of your protection there is no trouble-disturbances. Your protection keep us safe.
यद्देवाः शर्म शरणं यद्भद्रं यदनातुरम्।
त्रिधातु यद्वरूथ्यं १ तदस्मासु वि यन्तनानेहसो व ऊतयः सुऊतयो व ऊतयः
हे आदित्यों! आप लोग हमें शरण के योग्य, सेवन के योग्य, रोग रहित, त्रिगुण युक्त और गृह के योग्य सुख प्रदान करें। आपकी रक्षा करने पर उपद्रव नहीं होता। आपकी रक्षा ही हमारी सुरक्षा है।[ऋग्वेद 8.47.10]
Hey Adity Gan! Grant us a comfortable house which can protect us, keep us healthy, associated with three characterises of nature. In case of your protection there is no trouble-disturbances. Your protection keep us safe.
आदित्या अव हि ख्यताधि कूलादिव स्पशः।
सुतीर्थमर्वतो यथानु नो नेषथा सुगमनेहसो व ऊतयः सुऊतयो व ऊतयः
हे आदित्यों! जिस प्रकार मनुष्य नदी के किनारे से नीचे के पदार्थों को देखता है, उसी प्रकार आप ऊपर से नीचे स्थित हमें देखें। जिस प्रकार अश्व को अच्छे घाट पर ले जाया जाता है, उसी प्रकार हमें सन्मार्ग की ओर ले जावें। आपकी रक्षा करने पर उपद्रव नहीं होता। आपकी रक्षा ही हमारी सुरक्षा है।[ऋग्वेद 8.47.11]
घाट :: बाँध, सेतुबंध, तटबंध; jetty, pier, wharf.
Hey Adity Gan! The way a man looks the materials present in the river from its bank, you too look at us from upside. The way a horse is taken to a good-safe bank-wharf of river take us to virtuous way. Under your protection there is no tension. Your asylum grants us safety.
नेह भद्रं रक्षस्विने नावयै नोपया उत।
गवे च भद्रं धेनवे वीराय च श्रवस्यतेऽनेहसो व ऊतयः सुऊतयो व ऊतयः
हे आदित्यों! इस संसार में हमारे हिंसक और बलवान् व्यक्ति को सुख न मिले। गौवों और अन्नाभिलाषी वीर पुरुष को सुख प्राप्त होता हैं। आपकी रक्षा करने पर उपद्रव नहीं होता। आपकी रक्षा ही हमारी सुरक्षा है।[ऋग्वेद 8.47.12]
Hey Adity Gan! One who is violent & torture us should not get happiness-pleasure. Pleasure is granted to the brave desirous of food grains & cows. On being protected by you we become safe.
यदाविर्यदपीच्यं १ देवासो अस्ति दुष्कृतम्।
त्रिते तद्विश्वमाप्त्य आरे अस्मद्दधात नानेहसो व ऊतयः सुऊतयो व ऊतयः
हे आदित्य देवों! जो पाप प्रकट हुआ और जो पाप छिपा हुआ है, उनमें से मुझ आप्त्यत्रित को एक भी न हों। इन पापों को दूर रक्खें। आपकी रक्षा करने पर उपद्रव नहीं होता। आपकी रक्षा ही हमारी सुरक्षा है।[ऋग्वेद 8.47.13]
Hey Adity Gan! Sins of all sort, whether hidden of disclosed should not trouble-harm me. Keep me off sins. On being protection by you we remain safe.
यच्च गोषु दुष्वप्न्यं यच्चास्मे दुहितर्दिवः।
त्रिताय तद्विभावर्याप्त्याय परा वहानेहसो व ऊतयः सुऊतयो व ऊतयः
हे स्वर्ग की पुत्री देवी उषा! हमारी गौवों में जो पीड़ा है और हमारा जो दुःस्वप्न है, हे विभावरी! वह सब आप्त्यत्रित के लिए दूर कर दें। आपकी रक्षा करने पर उपद्रव नहीं होता। आपकी रक्षा ही हमारी सुरक्षा है।[ऋग्वेद 8.47.14]
पीड़ा :: तकलीफ़, वेदना, दर्द; suffering, anguish.
Hey daughter of heavens, Usha! Suffering-pain to our cows is like bad dream for us. Hey Vibhavari! Keep off the three types of troubles-troubles. On being protection by you, we remain safe.
निष्कं वा घा कृणवते स्रजं वा दुहितर्दिवः।
त्रिते दुष्ष्वप्न्यं सर्वमाप्त्ये परि दद्मस्यनेहसो व ऊतयः सुऊतयो व ऊतयः
हे स्वर्ग की पुत्री देवी उषा! स्वर्णकार अथवा मालाकार में जो दुःस्वप्र है, वह आप्त्यत्रित के पास से दूर हों। आपके द्वारा रक्षा करने पर दुःस्वप्न नहीं होता। आपकी रक्षा ही हमारी सुरक्षा है।[ऋग्वेद 8.47.15]
Hey daughter of heavens, Usha! Let the three kinds of troubles, bad dreams should be transferred to the gold smith of the one who make garlands. On being protection by you, we remain safe.
तदन्नाय तदपसे तं भागमुपसेदुषे।
त्रिताय च द्विताय चोषो दुष्वप्न्यं वहानेहसो व ऊतयः सुऊतयो व ऊतयः
स्वप्न में अन्न पाने पर आप्त्यत्रित से, दुःस्वप्न से उत्पन्न कष्ट को दूर करें। आपके द्वारा रक्षा होने पर उपद्रव नहीं होता। आपकी रक्षा ही हमारी सुरक्षा है।[ऋग्वेद 8.47.16]
On receiving food grains-food in dreams, the pain caused by bad dreams should be removed. On being protection by you, we remain safe.
One who get-eat food stuff, food grains in dreams in early morning is informed of bad health or trouble. 
Please refer to :: DREAM ANALYSIS शुभाशुभ स्वप्न विचार
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यथा कलां यथा शफं यथ ऋणं संनयामसि।
एवा दुष्वप्न्यं सर्वमाप्त्ये सं नयामस्यनेहसो व ऊतयः सुऊतयो व ऊतयः॥
जिस प्रकार यज्ञ में दान देने के लिए पशु के हृदय, खुर, सींग आदि सब क्रमानुसार विलुप्त अथवा दत्त होते हैं, जिस प्रकार ऋण को क्रमशः दिया जाता है, उसी प्रकार हम आप्त्यत्रित के समस्त दुःस्वप्न को क्रमशः दूर हटावें।[ऋग्वेद 8.47.17]
The manner in which the animal's organs viz. heart, horns, hoofs goes off-removed in donation during Yagy sequentially, the debt is serviced, the three types of bad dreams should be eliminated sequentially in the same manner.
अजैष्माद्यासनाम चाभूमानागसो वयम्।
उषो यस्माद्दुष्वप्न्यादभैष्माप तदुच्छत्वने ऊतयः सुऊतयो व ऊतयः
हे देवी उषा! आज हम विजयी होकर सुख प्राप्त करेंगे, आज हम पाप रहित होंगे। हम दुःस्वप्न से डर गये; इसलिए वह भय दूर करें। आपकी रक्षा करने पर उपद्रव नहीं होता। आपकी रक्षा ही हमारी सुरक्षा है।[ऋग्वेद 8.47.18]
Hey Usha Devi! We will be victorious, sinless, free from bad-inauspicious dreams and fear; under your asylum.(17.05.2024E)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (48) :: ऋषि :- प्रगाथ, काण्व; देवता :- सोम; छन्द :- त्रिष्टुप्, जगती।
स्वादोरभक्षि वयसः सुमेधाः स्वाध्यो वरिवोवित्तरस्य।
विश्वे यं देवा उत मर्त्यासो मधु ब्रुवन्तो अभि संचरन्ति
मैं सुन्दर प्रज्ञा, अध्ययन और कर्म से युक्त हूँ। मैं अतीव पूजित और स्वादु अन्न का आस्वाद ग्रहण कर सकूँ। विश्वे देव गण और मनुष्य इस अन्न को मनोहर कहकर इसी को प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 8.48.1]
I am enlightened and possess intellect, studious and perform my duties. Let me enjoy pious and tasty food grains. Vishwe Dev Gan and humans call it attractive and get it.
अन्तश्च प्रागा अदितिर्भवास्यवयाता हरसो दैव्यस्य।
इन्दविन्द्रस्य सख्यं जुषाणाः श्रौष्टीव धुरमनु राय ऋध्याः
हे सोम! आप हृदय या यज्ञगृह के मध्य में गमन करते हैं। आप अदिति हैं। आप देवताओं के क्रोध को शांत करते हैं। हे इन्दु (सोम)! इन्द्र देव की मैत्री प्राप्त करके आप उसी प्रकार शीघ्र आकर हमारे धन का वहन करें, जिस प्रकार अश्व भार का वहन करता है।[ऋग्वेद 8.48.2]
Hey Som! Be establish in the centre of the Yagy house. You are Aditi. You calm down the fury of demigods-deities. Hey Indu-Som! Be friendly with Indr Dev, come quickly and carry our wealth just the way a horse carry his load.
अपाम सोमममृता अभूमागन्म ज्योतिरविदाम देवान्।
किं नूनमस्मान्कृणवदरातिः किमु धूर्तिरमृत मर्त्यस्य
हे अमर सोम! हम आपको पीकर अमर होंगे। पश्चात् द्युतिमान् स्वर्ग में जाएँगे और देवताओं को जानेंगे। शत्रु हमारा क्या करेगा? मैं मनुष्य हूँ। हिंसक मेरा क्या करेगा?[ऋग्वेद 8.48.3]
Hey immortal Som! We will drink you and become immortal. Thereafter, we will go to heavens and meet-recognise the radiant demigods-deities. The enemy will not be able to harm us. I am a human being. How will the violent harm me.
शं नो भव हृद आ पीत इन्दो पितेव सोम सूनवे सुशेवः।
सखेव सख्य उरुशंस धीरः प्र ण आयुर्जीवसे सोम तारीः
हे सोम! जिस प्रकार पिता पुत्र के लिए सुखकर होता है, उसी प्रकार पीने पर आप हृदय के लिए सुखकर होवें। हे अनेकों द्वारा प्रशंसित सोम ! आप बुद्धिमान् हैं। हम लोगों के जीवन के लिए आयु की वृद्धि करें।[ऋग्वेद 8.48.4]
Hey Som! The way a father amuses his son, similarly we should be happy after drinking you. You are appreciated by many people. You are intelligent. Boost our age for further survival. 
इमे मा पीता यशस उरुष्यवो रथं न गावः समनाह पर्वसु।
ते मा रक्षन्तु विस्रसश्चरित्रादुत मा स्त्रामाद्यवयन्त्विन्दवः
पीये जाने पर कीर्तिकर और रक्षणेच्छु सोम मुझे उसी प्रकार प्रत्येक अङ्ग से कर्म में बाँधे, जिस प्रकार पशु रथ की गाँठों में नियोजित किए जाते हैं। सोम मुझे चरित्र भ्रष्टता से बचाकर व्याधियों से मुक्त करें।[ऋग्वेद 8.48.5]
After drinking famous-glorious and desirous of war Som, should tie me over his heart the way animal are deployed in the knots of the charoite. Som should protect me from becoming characterless and eliminate my diseases-ailments.
अग्निं न मा मथितं सं दिदीपः प्र चक्षय कृणुहि वस्यसो नः।
अथा हि ते मद आ सोम मन्ये रेवाँ इव प्र चरा पुष्टिमच्छ
हे सोम! पीये जाने पर मथित अग्नि के समान मुझे दीप्त करें। मुझे विशेष रूप से देखें और मुझे अत्यन्त धनवान बनावें। हे सोम! इस समय मैं आपकी प्रसन्नता के लिए स्तुति करता हूँ, इसलिए आप धनवान होकर पुष्टि प्राप्त करें।[ऋग्वेद 8.48.6]
पुष्ट :: प्रबल, मज़बूत, दबंग, बलवान, तगड़ा, हट्टा-कट्टा; robust, athletic, sturdy.
Hey Som! After drinking, shine me like the churned fire. Look at me especially and make me rich. Hey Som! At this moment I am praying you for your pleasure-happiness so that you become rich and  robust-sturdy.
इषिरेण ते मनसा सुतस्य भक्षीमहि पित्र्यस्येव रायः।
सोम राजन् प्रण आयूंषि तारीरहानीव सूर्यो वासराणि
इच्छुक मन से पैतृक धन के समान अभिषुत सोमरस का हम पान करेंगे। हे राजा सोम ! आप हमारी आयु बढ़ावें जिस प्रकार सूर्य देव दिनों को बढ़ाते हैं।[ऋग्वेद 8.48.7]
We will willingly drink extracted Somras like ancestral wealth. Hey king Som! Increase our age-longevity just like Sun which increases every day.. 
सोम राजन्मृळया नः स्वस्ति तव स्मसि व्रत्या ३ स्तस्य विद्धि।
अलर्ति दक्ष उत मन्युरिन्दो मा नो अर्यो अनुकामं परा दाः
हे राजा सोम! अविनाश के लिए हमें सुखी करें। हम व्रतशील हैं; हम आपके ही है। आप हमें जानें। हे इन्द्र देव! हमारा शत्रु वर्द्धित होकर जा रहा है। क्रोध भी जा रहा है। इन दोनों के दण्ड से हमारा उद्धार करें।[ऋग्वेद 8.48.8]
Hey king Som! Please-comfort us for being immortal. We observe fast & belong to you. You should recognise us. Hey Indr Dev! Our enemy is gaining strength. Anger is over powering us. Protect-relieve us from the punishment of both of these.
त्वं हि नस्तन्वः सोम गोपा गात्रेगात्रे निषसत्था नृचक्षाः।
यत्ते वयं प्रमिनाम व्रतानि स नो मृळ सुषखा देव वस्यः
हे सोम! आप हमारे शरीर के रक्षक हैं। आप कर्म के नेताओं के द्रष्टा हो। इसलिए आप सब अङ्गों में निवास करते हैं। यद्यपि हम आपके कर्मों में विघ्न करते हैं, तो भी हे देव! आप उत्कृष्ट अन्न वाले और उत्तम मित्र होकर हमें सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.48.9]
Hey Som! You are the protector of body. You are the lord of  observers of the actions-deeds. Hence, you reside in all organs. Though, we create disturbance in your endeavours, yet you grant us best food grains, become friendly and grant us pleasure.
ऋदूदरेण सख्या सचेय यो मा न रिष्येद्धर्यश्व पीतः।
अयं यः सोमो न्यधाय्यस्मे तस्मा इन्द्रं प्रतिरमेम्यायुः
हे सोम! आप उदर मैं कष्ट उत्पन्न न करना। आप मित्र हैं। मैं आपके साथ मिलूँगा। पीये जाने पर सोमरस मुझे न मारे। हे हरि अश्वों वाले इन्द्रदेव! यह जो सोम मुझ में निहित हुआ है; उसी के लिए चिरकाल तक जठर में रहने की प्रार्थना करता हूँ।[ऋग्वेद 8.48.10]
Hey Som! Do not create pain in my stomach. You are a friend. I will meet you. Som should not kill me in case I drink it. Hey Indr Dev, possessor of the horses named Hari! This Som has been absorbed by me & I wish to held it in my stomach for ever.
अप त्या अस्थुरनिरा अमीवा निरत्रसन्तमिषीचीरभैषुः।
आ सोमो अस्माँ अरुहद्विहाया अगन्म यत्र प्रतिरन्त आयुः
असाध्य और सुदृढ़ पीड़ाएँ दूर हों। ये सब पीड़ाएँ बलवती होकर हमें भली-भाँति कम्पित करती हैं। महान् सोमरस हमारे पास आया है। इसका पान करने से आयु बढती है। हम मानव हैं। हम इसके पास जायेंगे।[ऋग्वेद 8.48.11]
Let incurable and tough troubles-ailments ease. All sorts of troubles tremble-shake on being strong. Great Somras has come to us. Longevity increases by drinking it. We are humans. We will approach it.
यो न इन्दुः पितरो हृत्सु पीतोऽमर्यो मौं आविवेश।
तस्मै सोमाय हविषा विधेम मृळीके अस्य सुमतौ स्याम
हे पितरों! पीये जाने पर जो सोम अमर होकर हम मनुष्यों के हृदय में प्रवेश करता है, हम हव्य द्वारा उसी सोम की सेवा करते हैं। इस सोम की सुबुद्धि और कृपा हम प्राप्त करें।[ऋग्वेद 8.48.12]
Hey Pitr Gan-Manes! On drinking, Somras turn immortal and penetrate our hearts. We serve Somras with offerings. Let this Som oblige us, through its good intellect and kindness.
त्वं सोम पितृभिः संविदानोऽनु द्यावापृथिवी आ ततन्थ।
तस्मै त इन्दो हविषा विधेम वयं स्याम पतयो रयीणाम्
हे सोम! आप पितरों के साथ मिलकर द्यावा-पृथ्वी को विस्तृत करते हैं। हे सोम! हवि के द्वारा हम आपकी सेवा करते हैं। हम धनवान् होंगे।[ऋग्वेद 8.48.13]
विस्तृत :: व्यापक, विस्तृत, लंबा-चौड़ा, सविस्तार, ब्योरेवार, तफ़सील, जटिल, सुसंपन्न;  detailed, extensive, elaborate.
Hey Som! You join the Pitr Gan and extend-broaden the heavens & earth. Hey Som! We serve you through offerings. We will become rich.
त्रातारो देवा अधि वोचता नो मा नो निद्रा ईशत मोत जल्पिः।
वयं सोमस्य विश्वह प्रियासः सुवीरासो विदथमा वदेम
हे त्राता देवों! हमसे मीठे वचन कहें। स्वप्न हमें वशीभूत न करे। निन्दक हमारी निन्दा न करें। हम सदा सोम के प्रिय हों, ताकि सुन्दर स्तोत्र वाले होकर स्तोत्रों का उच्चारण करें।[ऋग्वेद 8.48.14]
त्राता :: रक्षक, बचाने वाला, रक्षा करनेवाला, शरण देनेवाला; protector, saviour.
निन्दक :: अपमानकारी, अपवादी, उपहासात्मक, मुँहफट, बुराई करने वाला, मानव द्वेषी; चुगलखोर, आक्षेपक, निन्दोपाख्यान लेखक, उपहासात्मक; detractor, slanderer, cynical, cynic, backbiter, denigrator, satirist, satirical.
निन्दा :: कलंक, परिवाद, लानत, शाप, गाली, बुराई करना, लानत, फटकार, तिरस्कार, परिवाद, भला-बुरा कहना, धिक्कार; blasphemy, reproach, damn, reprehension, taunt, decry. 
Hey savoir demigods-deities! Speak pleasing soothing words to us. Do not enchant us in the dreams. The cynic should not reproach us. We should be dear to Som, have beautiful Strotr and recite Strotrs.
त्वं नः सोम विश्वतो वयोधास्त्वं स्वर्विदा विशा नृचक्षाः।
त्वं न इन्द ऊतिभिः सजोषाः पाहि पश्चातादुत वा पुरस्तात्
हे सोम! आप चारों ओर से हमारे अन्नदाता व स्वर्गदाता और सर्वदर्शी हैं। आप हमारे अन्दर प्रविष्ट हों। हे सोम! आप प्रसन्नता के साथ रक्षण को लेकर पीछे और सामने हमारी रक्षा करें।
Hey Som! You are provider of food grains, heavens and see every thing. You should enter our body. Hey Som! You should protect from front and back; happily.(19.05.2024)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (49) :: ऋषि :- प्रस्कण्व, काण्व; देवता :- अग्नि देव;  छन्द :- प्रगाधा।
अभि प्र वः सुराधसमिन्द्रमर्च यथा विदे।
यो जरितृभ्यो मघवा पुरूवसुः सहस्त्रेणेव शिक्षति
हे अग्नि देव! अन्य अग्नि गणों के साथ पधारें। आपको होता मानकर हम वरण करते हैं।अध्वर्युओं के द्वारा नियता और हवि वाली यजनीय श्रेष्ठ आपको कुश पर बैठाकर अलंकृत करें।[ऋग्वेद 8.49.1]
नियता :: नियत, निश्चित; दिया हुआ, निर्धारित; फैसला किया; आवंटित; स्थिर, अपरिवर्तनीय, अपरिवर्तनशील, मकसद,  इरादा, दृढ़ निश्चय करना, ध्यान केंद्रित रखना।
Hey Agni Dev! Come with other Agni Gan. We recognise-accept you as a Hota. The priests should concentrate upon you, make offerings and decorate-honour you by offering Kush Mates to you.
शतानीकेव प्र जिगाति धृष्णुया हन्ति वृत्राणि दाशुषे।
गिरेरिव प्र रसा अस्य पिन्विरे दत्राणि पुरुभोजसः
बल के पुत्र और अङ्गिरा लोगों में अन्यतम, हे अग्नि देव! यज्ञ में आपको प्राप्त करने के लिए स्रुक दी जाती है। हे अन्न रक्षक बल के पुत्र! प्रदीप्त ज्वाला वाले और प्राचीन अग्नि देव की हम यज्ञ में प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 8.49.2]
Unique amongest the son of Bal and Angiras, hey Agni Dev! Struk-ladle, spoon is used to have you. Hey son of food protector Bal! We worship radiant eternal-ancient Agni Dev in the Yagy.
आ त्वा सुतास इन्दवो मदा य इन्द्र गिर्वणः।
आपो न वज्रिन्नन्वोक्यं १ सरः पृणन्ति शूर राधसे
हे अग्नि देव! आप मेधावी, फलों के विधाता, पावक, होता और होम सम्पादक हैं। हे दीप्त अग्नि देव! आप आमोदनीय और सवर्वोच्च यजनीय हैं। यज्ञ में ब्राह्मण लोग मनन मन्त्र द्वारा आपकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 8.49.3]
Hey Agni Dev! You are intelligent, lord of the fruits, fire, Hota, performer of the Yagy. Hey radiant Agni Dev! You grant pleasure and the ultimate worshipable. The Brahmans worship you chanting Mantr.
अनेहसं प्रतरणं विवक्षणं मध्वः स्वादिष्ठमीं पिब।
आ यथा मन्दसानः किरासि प्र क्षुद्रेव त्मना धृषत्
हे युवतम और नित्य अग्नि देव! मैं द्रोह रहित हूँ। देवता लोग मेरी कामना करते हैं। हवि भक्षण के लिए उन्हें यहाँ ले आवें। हे वासदाता अग्नि देव! सुन्दर रीति जावें। स्तुतियों द्वारा निहित होकर प्रसन्नता प्राप्त करें।[ऋग्वेद 8.49.4]
Hey youthful and eternal Agni Dev! I am free from distraction. Demigods-deities desire me. Please bring them here for eating offerings. Hey residence granting Agni Dev! Adopt beautiful means. Be happy on being worshiped with Stutis.
आ नः स्तोममुप द्रवद्धियानो अश्वो न सोतृभिः।
यं ते स्वधावन्त्स्वदयन्ति धेनव इन्द्र कण्वेषु रातयः
हे अग्नि देव! आप रक्षक, सत्य स्वरूप, विद्वान और सर्वतः विस्तृत हैं। हे समिध्यमान और दीप्त अग्नि देव! ब्राह्मण स्तोतागण आपकी परिचर्या करते हैं।[ऋग्वेद 8.49.5]
Hey Agni Dev! You are a protector, truthful, enlightened and pervade all places. Hey radiant Agni Dev present in the wood-Samidha! Brahman Stotas serve you.
उग्रं न वीरं नमसोप सेदिम विभूतिमक्षितावसुम्।
उद्रीव वज्रिन्नवतो न सिञ्चते क्षरन्तीन्द्र धीतयः
हे अतीव पवित्र अग्नि देव! दीप्त होवें और प्रदीप्त करें। प्रजा और स्तोता को सुख प्रदान करें। आप महान् हैं। मेरे स्तोता लोग देव प्रदत्त सुख प्राप्त करें। वे शत्रुओं पर विजय प्राप्त करें और सुन्दर अग्नि से युक्त हों।[ऋग्वेद 8.49.6]
Hey extremely pious Agni Dev! Lit up and shine. Grant comforts-pleasure to my Stotas and the populace. Let my Stotas attain heavenly pleasure. They should be victorious over the enemy and possess beautiful Agni-fire.
यद्ध नूनं यद्वा यज्ञे यद्वा पृथिव्यामधि।
अतो नो यज्ञमाशुभिर्महेमत उग्र उग्रेभिरा गहि
अग्नि देव और मित्रों के पूजक, पृथ्वी के सूखे काठ को आप जिस प्रकार प्रज्वलित करते है, उसी प्रकार हमारे विरोधी और हमारी दुर्बुद्धि चाहने वाले को जलावें।[ऋग्वेद 8.49.7]
Hey Agni Dev, worshiped by the friends! The way you burn the dry wood over the earth, burn our opponents and wicked-vicious.
अजिरासो हरयो ये त आशवो वाताइव प्रसक्षिणः।
येभिरपत्यं मनुषः परीयसे येभिर्विश्वं स्वर्दृशे
हे अग्नि देव! हमें हिंसक और बलवान् मनुष्य के वश में न करना। हमारा अनिष्ट चाहने बाले के वश में हमें न करना। हे युवा अग्नि देव! अहिंसक, उद्धारक और सुखकारी रक्षणों से हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 8.49.8]
उद्धार :: उबारना, मुक्त करना, ऊपर ले जाना; छुटकारा, दस्तबरदारी, बचाव, छुड़ाना, निस्तार, मुक्ति; deliverance, extrication, releasement, rescue.
Hey Agni dev! Do not let us fall under the control-trap of the violent and strong -wicked person. Do not let us come under the clutches of those desiring to harm us. He Agni Dev! Protect us through non violent, comfortable and rescue means.
एतावतस्त ईमह इन्द्र सुम्नस्य गोमतः।
यथा प्रावो मघवन्मेध्यातिथिं यथा नीपातिथिं धने
हे अग्नि देव! हमें एक ऋक् के द्वारा और दूसरे ऋक् के द्वारा बचावें। हे बली अग्नि देव! हमें तीन ऋकों के द्वारा बचावें। हे वासदाता अग्नि देव! हमें चार वाक्यों के द्वारा बचावें।[ऋग्वेद 8.49.9]
ऋक् :: ऋचा, वेद मंत्र, स्तुति, स्तोत्र, पूजा, कांति, प्रभा।
Hey Agni Dev! Protect us with one & another Rik. Hey mighty Agni Dev! Protect us with three Rik. Hey home granting Agni Dev! Protect through four sentences-syllables.
यथा कण्वे मघवन्त्रसदस्यवि यथा पक्थे दशव्रजे।
यथा गोशर्ये असनोॠजिश्वनीन्द्र गोमद्धिरण्यवत्
समस्त राक्षसों और अदाता से हमें बचावें। युद्ध में हमारी रक्षा करें। आप निकटवर्ती और मित्र हैं। यज्ञ और समृद्धि के लिए हम आपका आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.49.10]
Protect us from all demons-giants and non donor. Protect us in the war. You are our close friend and relation. We invoke you for Yagy and prosperity.(20.05.2024M)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (50) :: ऋषि :- पुष्टिगु, काण्व; देवता :- इन्द्र; छन्द :-प्रगाधा।
प्र सु श्रुतं सुराधसमर्चा शक्रमभिष्टये।
यः सुन्वते स्तुवते काम्यं वसु सहस्त्रेणेव मंहते
हे स्तोताओं! जो इन्द्र देव सोमरस के लिए यज्ञ और स्तुति करने वालों को हजारों प्रकार का धन प्रदान करते हैं। उन बलवान्, धनवान् और कीर्ति युक्त इन्द्र देव की वांछित संपत्ति प्राप्ति के निमित्त आप प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 8.50.1]
Hey Stotas! Worship-pray for mighty, wealthy and glorious Indr Dev who grant thousands of kinds of riches to those who extract Somras, perform Yagy and Stuti.
शतानीका हेतयो अस्य दुष्टरा इन्द्रस्य समिषो महीः।
गिरिर्न भुज्मा मघवत्सु पिन्वते यदीं सुता अमन्दिषुः
जब सुसंस्कृत सोमरस उन इन्द्र देव को आनन्दित करता है, तब वे सम्पादाओं के स्वामियों को पर्वत के सदृश विशाल पदार्थों का भण्डार प्रदत्त कर उन्हें प्रसन्न करते हैं। उनके पास अच्छी प्रकार से फेके जाने वाले सैकड़ों अस्त्र-शस्त्र हैं।[ऋग्वेद 8.50.2]
When nicely extracted and treated Somras fill Indr Dev with joy, he award desired material forming huge mountains making the Stotas happy. He has several kinds of Astr-Shastr, missiles which can be launched.
यदीं सुतास इन्दवोऽभि प्रियममन्दिषुः।
आपो न धायि सवनं म आ वसो दुघाइवोप दाशुषे
हे आश्रय दाता इन्द्र देव! अभिषुत सोमरस ने जब आपको आनन्दित किया, तब आपने हम आहुति प्रदान करने वालों के यज्ञ कर्म को दुग्ध देने वाली गौ और जल के समान सभी को कीर्ति देने वाला बनाया।[ऋग्वेद 8.50.3]
Hey asylum granting Indr Dev! When extracted Somras exhilarated you, then you granted us, the people making offerings; milk yielding cows and made us glorious like water.
अनेहसं वो हवमानमूतये मध्वः क्षरन्ति धीतयः।
आ त्वा वसो हवमानास इन्दव उप स्तोत्रेषु दधिरे
हे याचकों! अपनी सुरक्षा के लिए आप उन इन्द्र देव के निमित्त सोमरस अभिषुत करते है, जो अत्यन्त सराहनीय व शत्रुओं के द्वारा अजेय है। हे सबके आश्रयदाता इन्द्र देव! यज्ञ मण्डप पर स्तोत्रादि का उच्चारण किए जाने के समय आपको सोमरस प्रस्तुत किया जाता है।[ऋग्वेद 8.50.4]
याचक :: माँगने वाला, प्रार्थी, भिक्षुक, भिखारी; mendicant, beggar.
Hey alms seekers! You extract Somras for Indr Dev who deserve appreciation and invincible for the enemy for your safety. Hey protector of all, Indr Dev! You are offered Somras in the Yagy mandap during recitation of Strotr.
आ नः सोमे स्वध्वर इयानो अत्यो न तोशते।
यं ते स्वदावन्त्स्वदन्ति गूर्तयः पौरे छन्दयसे हवम्
हे इन्द्र देव! आप हमारी स्तुतियों की अभिलाषा करते हैं, वे स्तुतियाँ आपको प्रसन्न करती है। अश्व के सदृश वेगपूर्वक गमन करते हुए आप हमारे यज्ञ में पधाकर शत्रुओं को नष्ट करें।[ऋग्वेद 8.50.5]
Hey Indr Dev! You expect prayers from us since they please you. Moving fast like the horse, you come here to our Yagy and destroy the enemies.
प्र वीरमुग्रं विविचिं धनस्पृतं विभूतिं राधसो महः।
उद्रीव वज्रिन्नवतो वसुत्वना सदा पीपेथ दाशुषे
हे वज्रधारी इन्द्र देव! आप अति पराक्रमी और विविध प्रकार के ऐश्वर्यों से युक्त हैं। हम आपके प्रचुर ऐश्वर्य की याचना करते हैं। आप जल से युक्त सरोवर के समान हवि देने वाले यजमानों को सन्तुष्टि प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 8.50.6]
Hey Indr Dev wielding Vajr! You a great warrior and possess various kinds of grandeur. We request-pray you for grandeur. You satisfy the Ritviz making offerings like the water reservoir.
यद्ध नूनं परावति यद्वा पृथिव्यां दिवि।
युजान इन्द्र हरिभिर्महेमत ऋष्व ऋष्वेभिरा गहि
हे मेधावी इन्द्र देव! आप द्युलोक अर्थात् स्वर्ग में विद्यमान हो, भूलोक अर्थात् पृथ्वीलोक अथवा दूर या निकट जहाँ कहीं भी हों, अपने बलशाली अश्वों को (रथ में) नियोजित करके हमारे समीप शीघ्र ही पधारें।[ऋग्वेद 8.50.7]
Hey intelligent Indr Dev! Where ever you are viz. the heavens, earth whether far of near, deploying your strong horses in the charoite; come to us quickly. 
रथिरासो हरयो ये ते अस्रिध ओजो वातस्य पिप्रति।
येभिर्नि दस्युं मनुषो निघोषयो येभिः स्वः परीयसे
हे इन्द्र देव! आपके रथ में नियोजित होने वाले अश्व बाधाओं से मुक्त हों। आप उनके द्वारा रिपुओं को प्रताणित करते हैं और स्वर्गलोक में चारों ओर गमन करते हैं। आपके अस्त्र वायु में व्याप्त ओज को आत्मसात् करने में सक्षम हैं।[ऋग्वेद 8.50.8]
Hey Indr Dev! Let your horses deployed in the charoite be free from obstructions. You punish the enemies through them and move around in the heavens. Your Astr-missiles are capable of absorbing the energy present in the air.
एतावतस्ते वसो विद्याम शूर नव्यसः।
यथा प्राव एतशं कृत्व्ये धने यथा वशं दशव्रजे
सबको निवास प्रदत्त करने वाले शूरवीर हे इन्द्र देव! हम आपको भली-भाँति जानते हैं (क्योंकि) आप ऐश्वर्यवान और प्रार्थनीय हैं। आपने ऐश्वर्य के लिए एतश और दशव्रज ऋषि को संरक्षण प्रदान किया।[ऋग्वेद 8.50.9]
Hey brave Indr Dev, granting residence to all! We know you very well, since you are worshipable and have grandeur. You provided asylum for grandeur to Etash and Dashvraj Rishi.
यथा कण्वे मघवन्मेधे अध्वरे दीर्घनीथे दमूनसि।
यथा गोशर्ये असिषासो अद्रिवो मयि गोत्रं हरिश्रियम्
हे वज्रधारी इन्द्र देव! जिस प्रकार आपने यज्ञमण्डप में कण्व ऋषि, दीर्घनीथ और गोशर्य का संरक्षण किया था, उसी प्रकार अश्वों द्वारा आगमन करके हमें सुरक्षित करें।[ऋग्वेद 8.50.10]
Hey Vajr wielding Indr Dev! The way you protected Kavy Rishi, Eighteenth and Goshry in the Yagy Mandap, similarly come riding horses and protect us.(20.05.2024E)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (51) :: ऋषि :- श्रुष्टिगु, काण्व; देवता :- इन्द्र; छन्द :- प्रगाथ।
यथा मनौ सांवरणौ सोममिन्द्रापिबः सुतम्।
नीपातिथौ मघवन्मेध्यातिथौ पुष्टिगौ श्रुष्टिगौ सचा
हे धनवान इन्द्र देव! आपने जिस प्रकार सावर्णि मनु के यज्ञ में अभिषुत सोमरस का पान किया था, उसी प्रकार बलवान गौओं से युक्त मिधातिथि, निपातिथि, पुष्टिगु और श्रृष्टिंगु आदि ऋषियों के यज्ञ में भी सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 8.51.1]
Hey wealthy Indr Dev! Drink Somras in the Yagy of Midhatithi, Nipatithi, Pustigu and Shrashtigu accompanied with cows; the way in which you drunk it in the Yagy of Savrni Manu.
पार्षद्वाणः प्रस्कण्वं समसादयच्छयानं जिव्रिमुद्धितम्।
सहस्त्राण्यसिषासद् गवामृषिस्त्वोतो दस्यवे वृकः
हे इन्द्र देव! उच्च स्थान में शयन करने वाले ऋषि प्रस्कण्व को जब पार्षद्वाण के ऊपर स्थित किया गया, उस समय आपने उसको संरक्षित करके सहस्रों गौवों की रक्षा की थी।[ऋग्वेद 8.51.2]
Hey Indr Dev! You protected Rishi Praskavy sleeping at high altitude, along with his thousands of cows from Parshdwan. 
य उक्थेभिर्न विन्धते चिकिद्य ऋषिचोदनः।
इन्द्रं तमच्छा वद नव्यस्या मत्यरिष्यन्तं न भोजसे
स्तोत्रों के द्वारा सभी के ज्ञाता और ऋषियों के प्रेरक इन्द्र देव के निमित्त स्तुति करें और उनसे दिव्य पोषण की कामना करें।[ऋग्वेद 8.51.3]
Let the Rishis knowing all, worship-Stuti their inspirer Indr Dev, with Strotrs and request for divine nourishment.
यस्मा अर्क सप्तशीर्षाणमानृचुस्त्रिधातुमुत्तमे पदे।
स त्वि १ मा विश्वा भुवनानि चिक्रददादिज्जनिष्ट पौंस्यम्
इन्द्र देव ने सभी लोकों का सृजन करके अपनी शक्ति को प्रकट किया। उनके लिए स्तोतागणों ने सप्तशीर्ष तथा तीन धारक क्षमताओं से युक्त स्तोत्रों का उच्चारण किया।[ऋग्वेद 8.51.4]
Indr Dev created all abodes and evolved them with his strength-power. The Stota Gan recited the Strotr Saptsheersh involving three holding capabilities.
यो नो दाता वसूनामिन्द्रं तं हूमहे वयम्।
विद्मा ह्यस्य सुमतिं नवीयसीं गमेम गोमति व्रजे
ऐश्वर्य प्रदान करने वाले इन्द्र देव को हम अपनी सहायता के लिए आहूत करते हैं। हे इन्द्र देव! हमें श्रेष्ठ गौवों से सम्पन्न गौशाला प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.51.5]
We invoke Indr Dev who grant grandeur for our help. Hey Indr Dev! Give us excellent cows with cow shed.
यस्मै त्वं वसो दानाय शिक्षसि स रायस्पोषमश्नुते।
तं त्वा वयं मघवन्निन्द्र गिर्वणः सुतावन्तो हवामहे
हे सबको आश्रय प्रदान करने वाले इन्द्र देव! आप जिस व्यक्ति को दान देने का उपदेश देते हैं, वह व्यक्ति ऐश्वर्य से पोषित होता है। हे ऐश्वर्यवान और प्रार्थनीय इन्द्र देव! हम याजकगण अपनी सहायता के लिए आपका आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.51.6]
Hey Indr Dev granting asylum to all! A person advised by you to donate is accomplished with grandeur (has grandeur). Hey worshipable Indr Dev possessing grandeur! We the Ritviz invoke you for our help.
कदा चन स्तरीरसि नेन्द्र सश्चसि दाशुषे।
उपोपेन्नु मघवन्भूय इन्नु ते दानं देवस्य पृच्यते
हे इन्द्र देव! कभी भी आप सृष्टि को विखंडित नहीं करते, आप देवता हैं, अतः याजक के सहयोगी बनें। आपका दान बारंबार आता है जो अधिक ही प्राप्त होता है।[ऋग्वेद 8.51.7]
Hey Indr Dev! You never destroy evolution. Being a deity-demigod help the person seeking alms-help. Your donation reaches us again and again and is more than our requirement-need.
प्र यो ननक्षे अभ्योजसा क्रिविं वधैः शुष्णं निघोषयन्।
यदेदस्तम्भीत्प्रथयन्त्रमूं दिवमादिज्जनिष्ट पार्थिवः
अपनी बल और शक्ति द्वारा स्वर्ग को रोकने वाले शुष्ण नामक राक्षस का अपने आयुधों द्वारा संहार किया, उन्होंने ही पृथ्वी के समस्त पदार्थों को उत्पन्न किया।[ऋग्वेद 8.51.8]
You killed the demons called Shushn with your weapons, who obstructed heaven with his might and power. Indr Dev generated all materials over the earth.
यस्यायं विश्व आर्यो दासः शेवधिपा अरिः।
तिरश्चिदर्ये रुशमे पवीरवि तुभ्येत् सो अज्यते रयिः
समस्त आर्य और दास जिसके धन की रक्षा करने वाले हैं, जो रुशम के लिए पवीर की तरह अनुकूल होते है, वे इन्द्र देव आपके लिए गुप्त धन प्रदान करने वाले होते हैं।[ऋग्वेद 8.51.9]
रुशम :: उत्तराधिकारी, अगली पीढ़ी; descendants. 
The person who's wealth is protected by all Ary and Das-slaves is favourable to the descendants and Paver. Indr Dev make-grant secret wealth-donations to you.
तुरण्यवो मधुमन्तं घृतश्श्रुतं विप्रासो अर्कमानृचुः।
अस्मे रयिः पप्रथे वृष्ण्यं शवोऽस्मे सुवानास इन्दवः
ब्राह्मण लोग मधुर घृत सिक्त पूजनीय मन्त्रों का उच्चारण करते हैं। इससे हमारे लिए धन, पराक्रम और सोमरस की सिद्धि होती है।[ऋग्वेद 8.51.10]
The Brahmans recite pious Mantrs. It leads to availability of wealth, valour and Somras for us.(21.05.2024)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (52) :: ऋषि :- आयु, काण्व; देवता :- इन्द्र; छन्द :- प्रगाथ।
यथा मनौ विवस्वति सोमं शक्रापिबः सुतम्।
यथा त्रिते छन्द इन्द्र जुजोषस्यायौ मादयसे सचा॥
हे इन्द्र देव! जिस प्रकार आपने विवस्वान मनु द्वारा दिये गए सोमरस का पान किया, त्रित के छंदों को श्रवण किया, उसी प्रकार आप आयु ऋषि के साथ आसीन होकर प्रसन्न होवें।[ऋग्वेद 8.52.1]
Hey Indr Dev! The way you drunk Somras offered by Vivasvan Manu, heard the Chhand by Trit; similarly you should accompany Ayu Rishi and become happy.
पृषध्रे मेध्ये मातृरिश्वनीन्द्र सुवाने अमन्दथाः।
यथा सोमं दशशिप्रे दशोण्ये स्यूमरश्मावृजूनसि
हे इन्द्र देव! जिस प्रकार आप मेध्य, दशशिप्र, पृषभ्र तथा मातरिश्वा द्वारा दिए गए सोमरस को पीकर प्रसन्न हुए, उसी प्रकार आप स्यूम रश्मि, ऋजूनस और दशोण्य ऋषियों के यज्ञ में सोमरस का पान कर प्रसन्न होवें।[ऋग्वेद 8.52.2]
Hey Indr Dev! The way you became happy by drinking Somras offered by Medhy, Dashshipr, Prashbhr and Matrishrva, in the same way you should be happy with Syum Rashmi, Rijunas and Dashony Rishis by drinking Somras in the Yagy.
य उक्था केवला दधे यः सोमं धृषितापिबत्।
यस्मै विष्णुस्त्रीणि पदा विचक्रम उप मित्रस्य धर्मभिः
उक्थों को स्वीकार और शत्रुओं का वध करने वाले इन्द्र देव ने सोमरस का पान किया। जिसके निमित्त श्री विष्णु ने मित्र के समान कर्तव्य के लिए त्रिपदों से समस्त लोकों को नाप लिया था।[ऋग्वेद 8.52.3]
To accept the Ukth and kill the enemies Indr Dev drunk Somras. Bhagwan Shri Hari Vishnu covered the three abodes for him like a friend in just three steps.
यस्य त्वमिन्द्र स्तोमेषु चाकनो वाजे वाजिञ्छतक्रतो।
तं त्वा वयं सुदुघामिव गोदुहो जुहूमसि श्रवस्यवः
हे शक्ति शाली शतकर्मा इन्द्र देव! आप यज्ञ में स्तोताओं द्वारा की गई स्तुतियों से प्रसन्न होते हैं। जिस प्रकार ग्वाला गौवों को चारा देकर संतुष्ट करता है, उसी प्रकार हम अन्न की इच्छा वाले यजमान आहुतियाँ देकर आपको प्रसन्न करते हैं।[ऋग्वेद 8.52.4]
Hey mighty Indr Dev performing hundred Yagy! You become happy with the Stuties done by the Stotas in the Yagy. The way a cow herd satisfies the cows by offering them fodder, we the Ritviz desirous of food grains make offerings to please you.
यो नो दाता स नः पिता महाँ उग्र ईशानकृत्।
अयामन्नुग्रो मघवा पुरूवसुर्गोरश्वस्य प्र दातु नः
पिता के सदृश इन्द्र देव हमें ऐश्वर्य प्रदान करने वाले हैं। वह युद्धभूमि से पलायित न होने वाले बलवान् योद्धा हैं। बहुतों को आश्रय प्रदान करने वाले इन्द्र देव हमें गौ और अश्वादि प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.52.5]
Indr Dev grants us grandeur like a father. He is a mighty warrior who do not run away from the battle-war field. Indr Dev who grants asylum to many, should give us cows and horses.
यस्मै त्वं वसो दानाय मंहसे स रायस्पोषमिन्वति।
वसूयवो वसुपतिं शतक्रतुं स्तोमैरिन्द्रं हवामहे
हे इन्द्र देव! आप जिस मनुष्य को दान देने की इच्छा करते हैं, वही मनुष्य धनादि से युक्त होकर आपका संरक्षण प्राप्त करता है। धन की इच्छा करने वाले स्तोता स्तोत्रों से आपका आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.52.6]
Hey Indr Dev! When you desire to make donations to a person, he get wealth etc. and get protection from you. The Stota desirous of wealth invoke you with Strotr.
कदा चन प्र युच्छस्युभे नि पासि जन्मनी।
तुरीयादित्य हवनं त इन्द्रियमा तस्थावमृतं दिवि
हे इन्द्र देव! आप दो प्रकार से जन्म लेने वाले हैं, आप सदैव जागरूक रहते हैं। हे आदित्य! आप जगत् के पालक हैं। शरीर में इन्द्रियाँ आपकी प्रतीक हैं। अविनाशी द्युलोक में आपका आवाहन किया जाता है।[ऋग्वेद 8.52.7]
Hey Indr Dev! You are always vigilant and get birth in two ways. Hey fourth Adity, Indr! You nourish the universe. Sense organs in the body represent you. You are invoked in the imperishable heavens.
यस्मै त्वं मघवन्निन्द्र गिर्वणः शिक्षो शिक्षसि दाशुषे।
अस्माकं गिर उत सुष्टुतिं वसो कण्ववच्छृणुधी हवम्
हे स्तवनीय, धनवान और आश्रयदाता इन्द्र देव! आप हविदाता को धन प्रदान करने वाले हैं। हम भी धन के लिए आपकी स्तुति करते हैं। कण्व ऋषि की स्तुतियों को आपने जिस प्रकार श्रवण किया, उसी प्रकार आप हमारी स्तुतियों को भी श्रवण करें।[ऋग्वेद 8.52.8]
Hey worshipable, wealthy and asylum granting Indr Dev! You give riches to one who make offerings. We too worship you for wealth. The way you responded to the prayers of Kavy Rishi respond to our prayers as well.
अस्तावि मन्म पूर्व्य ब्रह्मेन्द्राय वोचत।
पूर्वीऋ॒तस्य बृहतीरनूषत स्तोतुर्मेधा असृक्षत
हे ऋषियों! इन्द्र देव के लिए आप सनातन कंठस्थ स्तोत्रों का पाठ करें। पूर्व यज्ञों में बृहती छंद में सामगान किया था। इससे स्तोताओं की मेधा की वृद्धि होती है।[ऋग्वेद 8.52.9]
Hey Rishis! Recite the eternal Strotr memorised by you for Indr Dev. In earlier Yagy Samgan was sung in Brahati Chhand.
समिन्द्रो रायो बृहतीरधूनुत सं क्षोणी समु सूर्यम्।
सं शुक्रासः शुचयः सं गवाशिरः सोमा इन्द्रममन्दिषुः
जिन इन्द्र देव ने आकाश, पृथ्वी, सूर्य देव तथा संपदाओं का सृजन किया, उन्हें गो दुग्ध युक्त तेजस्वी एवं शुद्ध सोमरस ने हर्षित किया।[ऋग्वेद 8.52.10]
Indr Dev who created the sky, earth, Sury Dev and worldly goods-material was pleased by the energetic Somras mixed with milk.(22.05.2024)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (53) :: ऋषि :- मेध्य, काण्व; देवता :- इन्द्र; छन्द :- प्रगाथ।
उपमं त्वा मघोनाञ्जयेष्ठञ्च वृषभाणाम्।
पूर्भित्तमं मघवन्निन्द्र गोविदमीशानं राय ईमहे
हे इन्द्र देव! आप धनवानों तथा बलवानों में सर्वोत्तम हैं। आप शत्रुओं की पुरियों को ध्वस्त करने वालें हैं। गौएँ आदि प्रदान करने वाले आप सभी के स्वामी हैं। हम भी आपसे ऐश्वर्य की याचना करते हैं।[ऋग्वेद 8.53.1]
Hey Indr Dev! You are best amongest the wealthy and mighty. You are the destroyer of the forts-cities of the enemies. You are the lord of all; granting cows. We too expect grandeur for you.
य आयुं कुत्समतिथिग्वमर्दयो वावृधानो दिवेदिवे।
तं त्वा वयं हर्यश्वं शतक्रतुं वाजयन्तो हवामहे
जिस इन्द्र देव ने आयु, अतिथिग्व और कुत्स को नित्य सामर्थ्य प्रदान कर महान बनाया, बल को प्राप्त करने की इच्छा वाले हम उस शतकर्मा, हरिसंज्ञक अश्वों वाले इन्द्र देव का आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.53.2]
Indr Dev granted greatness & routine-daily capability to Ayu, Atithigav, Kuts. We desirous of strength, invoke Indr Dev who performed hundred Yagy, possess horses named Hari.
आ नो विश्वेषां रसं मध्वः सिञ्चन्त्वद्रयः।
ये परावति सुन्विरे जनेष्वा ये अर्वावतीन्दवः
दूर या निकट के प्रदेशों में जिस सोम की प्रतिष्ठा है, उसे हम सबके लिए पत्थर से कूटकर निकालें।[ऋग्वेद 8.53.3]
Somras, which is famous in far and near places should be extracted for all of us by crushing it with stones. 
विश्वा द्वेषांसि जहि चाव चा कृधि विश्वे सन्वन्त्वा वसु।
शीष्टेषु चित्ते मदिरासो अंशवो यत्रा सोमस्य तृम्पसि
हे इन्द्र देव! जिस स्थान पर सोमरस के पान से आप संतुष्ट होते हैं, वहाँ के शत्रुओं को नष्ट करके अपने उपासकों की रक्षा करते हैं। यह सोमरस आपको हर्ष प्रदान करे, जिससे प्रसन्न होकर आप सोमरस तैयार करने वाले उपासक को धनादि से युक्त करें।[ऋग्वेद 8.53.4] 
Hey Indr Dev! You protect the worshipers by destroying their enemies at the place where you are offered Somras. Let this Somras grant you pleasure and the worshiper be given wealth etc. on being happy with him.
इन्द्र नेदीय एदिहि मितमेधाभिरूतिभिः।
आ शंतम शंतमाभिरभिष्टिभिरा स्वापे स्वापिभिः
हे इन्द्र देव! आप शांति प्रदान करने वाले हैं तथा मेधावी व संरक्षण की इच्छा करने वालों के साथ आगमन करते हैं। आप सुख प्रदायक कामनाओं के साथ श्रेष्ठ बंधुओं के सहित हमारे समीप पधारे।[ऋग्वेद 8.53.5]
Hey Indr Dev! You grant peace, tranquillity, solace and arrive to the intelligent desirous of protection-support. Come to us with the wish to grant excellent desires with excellent brothers.
आजितुरं सत्पतिं विश्वचर्षणिं कृधि प्रजास्वाभगम्।
प्र सू तिरा शचीभिर्ये त उक्थिनः क्रतुं पुनत आनुषक्
हे इन्द्र देव! आप सत्पात्रों के पालक एवं मनुष्यों का हितसाधन करने वाले मनुष्यों में व्याप्त युद्धों को जीतने वाले हैं। आप अपनी स्तुति करने वालों को धनादि प्रदान करके अपनी सामर्थ्य से उन्हें समृद्ध बनाएँ तथा उनके यज्ञादि कार्यों को संपादित करें।[ऋग्वेद 8.53.6]
Hey Indr Dev! You are the nurturer of the pious-virtuous humans and help them win the battle haunting-troubling them. Grant you worshipers wealth, prosperity and accomplish their Yagy and related deeds.
यस्ते साधिष्ठोऽवसे ते स्याम भरेषु ते।
वयं होत्राभिरुत देवहूतिभिः ससवांसो मनामहे
हे इन्द्र देव! हम अपनी रक्षा के निमित्त आपका आवाहन करते हैं। युद्धभूमि में हम आपके आश्रय में रहें। अन्न की कामना करने वाले हम आपकी स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 8.53.7]
Hey Indr Dev! We invoke you for our protection. Remain with us in the battle. Desirous of food grains, we worship you. 
अहं हि ते हरिवो ब्रह्म वाजयुराजिं यामि सदोतिभिः।
त्वामिदेव तममे समश्वयुर्गव्युरग्रे मथीनाम्
हे इन्द्र देव! आप पराक्रमियों में सर्वश्रेष्ठ व अश्वों के स्वामी हैं। गौवों, अश्वों तथा अन्नादि की कामना करने वाले हम यजमान आपके द्वारा संरक्षण प्राप्त कर भीषण युद्ध में भी चले जाते हैं।[ऋग्वेद 8.53.8]
भीषण :: भयानक, डरावना, विकट, बहुत बुरा; gruelling, gruesome.
Hey Indr Dev! You are the best amongest amongest the industrious and the lord of horses. Desirous of cows, horses and food grains etc. we the Ritviz attain your asylum and proceed to dangerous gruelling, gruesome war.(23.05.2024)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (54) :: ऋषि :- मातरिश्वा, काण्व; देवता :-इन्द्र, विश्वेदेवा; छन्द :- प्रगाथ।
एतत्त इन्द्र वीर्य गीर्भिर्गुणन्ति कारवः।
ते स्तोभन्त ऊर्जमावन्धृतश्चुतं पौरासो नक्षन्धीतिभिः
हे इन्द्र देव! स्तुतियों द्वारा आपसे अन्न तथा घृत प्रदान करने वाली गौएँ प्राप्त करने वाले हम स्तोता आपके सामर्थ्य का वर्णन करते हैं।[ऋग्वेद 8.54.1]
Hey Indr Dev! We the Stotas, who get food grains and cows providing Ghee from you by making Stuties, describe your capability, might-power.
नक्षन्त इन्द्रमवसे सुकृत्यया येषां सुतेषु मन्दसे।
यथा संवर्ते अमदो यथा कृश एवास्मे इन्द्र मत्स्व
हे इन्द्र देव! जिनके सोमयागों द्वारा आप हर्षित होते हैं, वह अपनी सुरक्षा के निमित्त अपने सत्कमों द्वारा आपको ग्रहण करते हैं। हमारे यज्ञ में आप उसी प्रकार प्रसन्न हों, जिस प्रकार आप संवर्त और कुश ऋषि के यज्ञ में प्रसन्न हुए।[ऋग्वेद 8.54.2]
Hey Indr Dev! Those people who please you by conducting Som Yagy; have you with their virtuous deeds-endeavours for their safety. You should be happy in our Yagy like Yagy of Sanvart and Kush Rishi.
आ नो विश्वे सजोषसो देवासो गन्तनोप नः।
वसवो रुद्रा अवसे न आ गमञ्छृण्वन्तु मरुतो हवम्
मित्र भाव से स्थित रहने वाले सभी देवता हमारे निकट आवें। मरुद्गण हमारी स्तुतियों को श्रवण करें तथा वसु और रुद्रदेव हमारी सुरक्षा करने के लिए हमारे निकट पधारें।[ऋग्वेद 8.54.3]
All friendly demigods-deities should come close to us. Marud Gan should respond to our prayers-Stuties and Vasu & Rudr Gan should come close to us for our safety.
पूषा विष्णुर्हवनं मे सरस्वत्यवन्तु सप्त सिन्धवः।
आपो वातः पर्वतासो वनस्पतिः शृणोतु पृथिवी हवम्
श्री विष्णु, सरस्वती देवी, पूषा तथा सप्त सरिताएँ हमारे यज्ञ की सुरक्षा करें। वनस्पति, जल, वायु, पर्वत और धरित्रि हमारी स्तुतियों को श्रवण करें।[ऋग्वेद 8.54.4]
Let Bhagwan Shri Hari Vishnu, Devi Saraswati, Pusha and seven rivers protect our Yagy. Vanaspati-vegetation, Jal-water, Vayu-air, Parwat-mountains and Dharitri-earth listen-respond to our Stuties.
यदिन्द्र राधो अस्ति ते माघोनं मघवत्तम।
तेन नो बोधि सधमाद्यो वृधे भगो दानाय वृत्रहन्
हे स्तुत्य, धनवान् एवं वृत्रहन्ता इन्द्र देव! आप अपने श्रेष्ठ धनों के सहित प्रसन्न होकर धन देने के लिए हमारे समीप पधारें।[ऋग्वेद 8.54.5]
Hey worshipable, wealthy and slayer of Vratr Indr Dev! Come to us to grant best riches to us happily.
आजिपते नृपते त्वमिन्द्धि नो वाज आ वक्षि सुक्रतो।
वीती होत्राभिरुत देववीतिभिः ससवांसो वि शृण्विरे
हे इन्द्र देव! आप प्रजाजनों का पोषण करने वाले हैं। युद्धभूमि में आप हमारा रक्षण करने वाले हैं। देवताओं का पूजन करने वाले यजमान अन्नप्राप्ति की कामना से आपकी स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 8.54.6]
Hey Indr Dev! You are the nurturer of populace. You protect us in the battle field. The Ritviz who worship demigods-deities worship-pray to you for the sake of food grains. 
सन्ति ह्य १ र्य आशिष इन्द्र आयुर्जनानाम्।
अस्मान्नक्षस्व मघवन्नुपावसे धुक्षस्व पिप्युषीमिषम्
हे इन्द्र देव! मनुष्यों का जीवन और धन आपके आश्रित हैं। पोषक अन्न प्रदान करने वाले आप संरक्षण प्रदान करने के निमित्त हमें सदैव अपने निकट रखें।[ऋग्वेद 8.54.7]
Hey Indr Dev! life and wealth of the humans is dependent upon you. You the provider of nourishing food grains and asylum should remain close to us.
वयं त इन्द्र स्तोमेभिर्विधेम त्वमस्माकं शतक्रतो।
महि स्थूरं शशयं राधो अह्नयं प्रस्कण्वाय नि तोशय
हे शतकर्मा इन्द्र देव! आप हमारे और हम आपके हैं। स्त्रोत्रों द्वारा हम आपकी स्तुति करते हैं। आप मुझ प्रस्कण्व ऋषि को ऐसी सम्पत्ति प्रदान करें, जो महान्, निन्दा रहित तथा सदैव अक्षुण्ण हो।[ऋग्वेद 8.54.8] 
अक्षुण्ण :: अखंडित, समूचा, अविजित; intact.
Hey performer of hundred Yagy, Indr Dev! You and us belong to each other mutually. We worship you with Strotr. You should grant me i.e., Praskavy Rishi such wealth which should be great, free form reproach and intact.(23.05.2024)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (55) :: ऋषि :- कृश, काण्व; देवता :-प्रस्कण्व; छन्द :- गायत्री, अनुष्टुप्।
भूरीदिन्द्रस्य वीर्यं १ व्यख्यमभ्यायति। राधस्ते दस्यवे वृक
हे इन्द्र देव! आप राक्षसों को नष्ट करने वाले हैं। आपका उत्तम शौर्य चारों ओर प्रकाशित हो रहा है। हमें आपका ऐश्वर्य प्राप्त हो।[ऋग्वेद 8.55.1]
Hey Indr Dev! You are the destroyer of demons. Your excellent glory-fame is spreading all around, Let us have your grandeur.
शतं श्वेतास उक्षणो दिवि तारो न रोचन्ते। मह्ना दिवं न तस्तभुः
हे इन्द्र देव! आप अपनी सामर्थ्य से दिव्य लोक को धारण करने वाले हैं। आपके द्वारा सैकड़ों श्वेत वृषभ आकाश में तारों के सदृश शोभायमान हो रहे हैं।[ऋग्वेद 8.55.2]
Hey Indr Dev! You support the divine abodes with your power. Hundreds of white bulls are shinning in the sky like stars.
शतं वेणूञ्छतं शुनः शतं चर्माणि म्लातानि।
शतं मे बल्बजस्तुका अरुषीणां चतुः शतम्॥
कृश ऋषि को उन इन्द्र देव ने सैकड़ों श्वान, वेणु (बाँस की वंशी, मुरली), मुलायम त्वचा, कुशा के गट्ठर और लाल रंग के चार सौ अश्व प्रदान किए।[ऋग्वेद 8.55.3]
Indr Dev granted hundreds of dogs, Venu-bamboo flute, soft skins, loads-bundles of Kush grass and red coloured four hundred horses.
सुदेवाः स्थ काण्वायना वयोवयो विचरन्तः। अश्वासो न चङ्क्रमत
हे कण्व वंशियों! आकाश में आप पक्षियों की भाँति और भूमि पर अश्वों के समान विचरण करते हुए देवताओं के समान दिव्य बनें।[ऋग्वेद 8.55.4]
Hey descendants of Kavy Rishi! You should become like birds in the sky, over the land become like horses and become divine like demigods-deities.
आदित्साप्तस्य चर्किरन्नानूनस्य महि श्रवः।
श्यावीरतिध्वसन्पथश्चक्षुषा चन संनशे
हे स्तोताओं! महान् कीर्ति वाले, सप्त लोकों के अधिष्ठाता इन्द्र देव की प्रार्थना करें। श्याम वर्ण के मार्ग को पार करते हुए आप उन्हें अपने नेत्रों से देख सकते हैं।[ऋग्वेद 8.55.5]
Hey Stotas! Worship the lord of seven abodes Indr Dev, possessor of great glory. You can see him with your eyes while crossing black road.(24.05.2024)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (56) :: ऋषि :- पृषघ्र, काण्व; देवता :- इन्द्र, अग्नि, सूर्य; छन्द :- गायत्री, पंक्ति।
प्रति ते दस्यवे वृक राधो अदर्यह्रयम्। द्यौर्न प्रथिना शवः
हे इन्द्र देव! रिपुओं के निमित्त आप व्याघ्र का रूप धारण करते हैं। आपका पवित्र धन उन शत्रुओं से सर्वथा विपरीत प्रतीत होता है। आपका बल आकाश के सदृश महान है।[ऋग्वेद 8.56.1]
Hey Indr Dev! You adopt the form of a tiger for the enemies. Your pious wealth is totally opposite of that of the enemies. Your strength great like the sky.
दश मह्यं पौतक्रतः सहस्त्रा दस्यवे वृकः। नित्याद्रायो अमंहत
हे उत्तम कर्मा इन्द्र देव! हमारे लिए आपने दस हजार शत्रुओं का वध कर दिया तथा आपने उनके अविनाशी धनों को हमें प्रदान किया।[ऋग्वेद 8.56.2]
Hey Indr Dev performing excellent deeds! You killed our ten thousand enemies and gave their imperishable wealth to us.
शतं मे गर्दभानां शतमूर्णावतीनाम्। शतं दासाँ अति स्रजः
हे इन्द्र देव! आपने हम पृषध्र को सैकड़ों भेड़ें, गधे और सेवक प्रदान किए।[ऋग्वेद 8.56.3]
Hey Indr Dev! You gave to us (Prashdhra Rishi) hundreds of sheep, donkeys and servants.
तत्रो अपि प्राणीयत पूतक्रतायै व्यक्ता। अश्वानामिन्न यूथ्याम्
अश्वों के समूह के सदृश इन्द्र देव श्रेष्ठ बुद्धि से युक्त मनुष्यों को ही धन प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 8.56.4]
Indr Dev grant riches and herds of horses to those humans who possess excellent intelligence. 
अचेत्यग्निश्चिकितुर्हव्यवाट् स सुमद्रथः।
अग्निः शुक्रेण शोचिषा बृहत्सूरो अरोचत दिवि सूर्यो अरोचत
रथ के सदृश देवताओं के समीप हवियों को ले जाने वाले मेधावी अग्नि देव प्रकट हुए। जब वे अपने उज्वल आलोक से धरती पर प्रकाशित होते हैं, तब द्युलोक में सूर्य देव भी चमकने लगते हैं।[ऋग्वेद 8.56.5]
Intelligence Agni Dev appeared carrying offerings to demigods-deities like a charoite. When he illuminates over the earth, Sury Dev too started shinning.(24.05.2024)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (57) :: ऋषि :- मेध्य, काण्व; देवता :- अश्विनी कुमार; छन्द :- त्रिष्टुप्।
युवं देवा क्रतुना पूर्येण युक्ता रथेन तविषं यजत्रा।
आगच्छतं नासत्या शचीभिरिदं तृतीयं सवनं पिबाथः
हे अश्विनी कुमारों! सत्य का पालन करने वाले आप अपने सामर्थ्य से रथारूढ़ होकर यज्ञस्थल पर आगमन करें एवं अपने दिव्य कार्यों से युक्त होकर दिन के तीसरे भाग में सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 8.57.1]
Hey truthful Ashwani Kumars! Ride the charoite with your power, arrive at the Yagy site, perform your divine task and drink Somras in the third segment of the day-evening.
युवां देवास्त्रय एकादशासः सत्याः सत्यस्य ददृशे पुरस्तात्।
अस्माकं यज्ञं सवनं जुषाणा पातं सोममश्विना दीद्यग्नी
हे अश्विनी कुमारों! आप अग्नि के समान तेज युक्त हैं। आपके साथ सत्य पालक तैंतीस कोटि देवताओं का समूह हैं। हमारे यज्ञ में पधार कर आप सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 8.57.2]
Hey Ashwani Kumars! You possess energy-aura like Agni Dev. The group of thirty million truthful demigods is with you. Come to our Yagy and drink Somras.
पनाय्यं तदश्विना कृतं वां वृषभो दिवो रजसः पृथिव्याः।
सहस्रं शंसा उत ये गविष्टौ सर्वां इत्ताँ उप याता पिबध्यै
हे अश्विनी कुमारों! आकाश, पृथ्वी और अंतरिक्ष में जल वृष्टि करने वाला आपका कार्य अत्यन्त सराहनीय है। आप सहस्रों स्तुति करने वालों, गौ सेवकों और यज्ञीय कर्म करने वालों के निवेदन पर सोमरस का पान करने के लिए यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 8.57.3]
Hey Ashwani Kumars! Your endeavour pertaining to rains in the sky, earth and space deserve appreciation. Arrive here responding to the prayer, worship-Stuti of thousands of worshipers, cow servers and the ones devoted to Yagy related work.
अयं वां भागो निहितो यजत्रेमा गिरो नासत्योप यातम्।
पिबतं सोमं मधुमन्तमस्मे प्र दाश्वांसमवतं शचीभिः
हे यजनीय अश्विनी कुमारों! हमारे निकट आगमन कर आप स्तुतियों को सुने। सोमरस का यह भाग आपके निमित्त रखा हुआ है। हवि देने वाले को रक्षित करने वाले आप उसके हितार्थ सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 8.57.4]
Hey worshipable Ashwani Kumars! Come close to us & respond to our prayers-requests. Your share of Somras has been reserved. You will drink Somras for the welfare-protection of those who make offerings. (24.05.2024)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (58) :: ऋषि :- मेध्य, काण्व; देवता :- विश्वेदेव या ऋत्विज; छन्द-त्रिष्टुप्।
यमृत्विजो बहुधा कल्पयन्तः सचेतसो यज्ञमिमं वहन्ति।
यो अनूचानो ब्राह्मणो युक्त आसीत्का स्वित्तत्र यजमानस्य संवित्
यज्ञ कर्म के द्वारा मेधावी स्तोताओं ने देवताओं का सामीप्य प्राप्त किया। जो ज्ञानी ब्राह्मण उस यज्ञ में नियुक्त किए गए थे, इस विषय में उनका ज्ञान कैसा था?[ऋग्वेद 8.58.1]
The intelligent Stotas became close (attained proximity) to the demigods-deities by performing Yagy. What was the level of knowledge-enlightenment pertaining to Yagy Karm of the Brahmans, who were deployed in the Yagy?
एक एवाग्निर्बहुधा समिद्ध एकः सूर्यो विश्वमनु प्रभूतः।
एकैवोषाः सर्वमिदं वि भात्येकं वा इदं वि बभूव सर्वम्
विविध रूपों में एक ही अग्नि देव प्रज्वलित होते हैं तथा एक ही सूर्य देव समस्त पदार्थों में व्याप्त होकर विविध रूपों में दृष्टिगोचर होते हैं। देवी उषा भी अकेली ही समस्त जगत् को प्रकाशित करती हैं। ये सब एक मिलकर वस्तुतः एक ही हैं।[ऋग्वेद 8.58.2]
Agni Dev appears in different forms simultaneously. Sury Dev-Sun pervade all material goods in the universe and appear in different forms. Devi Usha too illuminate the whole world. In fact, they are the different form of one entity.
ज्योतिष्मन्तं केतुमन्तं त्रिचक्रं सुखं रथं सुषदं भूरिवारम्।
चित्रामघा यस्य योगेऽधिजज्ञे तं वां हुवे अति रिक्तं पिबध्यै
हम उन अग्नि देव का आवाहन करते हैं जो प्रदीप्त, सर्वज्ञ तथा सुखकारी हैं। तीनों लोकों में भ्रमण करने वाले उन अग्नि देव के द्वारा हम धन और ऐश्वर्य प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 8.58.3]
We invoke Agni Dev who is illuminated, all knowing and comfortable. We attain grandeur and wealth from Agni Dev who travels in the three abodes.(25.05.2024M)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (59) :: ऋषि :- सुपर्ण, काण्व; देवता :- इन्द्र, वरुण; छन्द :- जगती।
इमानि वां भागधेयानि सिस्रत इन्द्रावरुणा प्र महे सुतेषु वाम्।
यज्ञेयज्ञे ह सवना भुरण्यथो यत्सुन्वते यजमानाय शिक्षथः
हे इन्द्र देव और वरुण देव! आप सोमाभिषव करने वाले यजमानों को धन प्रदान करते हैं। सोमरस को ग्रहण करने के लिए आप सभी यज्ञों में पधारते हैं। सोमरस अभिषुत करने के बाद हम आपका आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.59.1]
Hey Indr Dev & Varun Dev! You give money to those Ritviz-hosts who extract Somras. You arrive in every Yagy to get Somras. We invoke you after extracting Somras.
निष्षिध्वरीरोषधीराप आस्तामिन्द्रावरुणा महिमानमाशत।
या सिस्स्रतू रजसः पारे अध्वनो ययोः शत्रुर्नकिरादेव ओहते
हे इन्द्र देव और वरुण देव! आप अंतरिक्ष को पार करने करने वाले मार्ग से गमन करते हैं। कोई भी द्रोह करने वाला मनुष्य आपसे द्रोह करने में समर्थ नहीं हो सकता। आपकी महिमा से समस्त जल औषधीय गुणों से युक्त होता है।[ऋग्वेद 8.59.2]
द्रोह :: दुष्टता, हानिकरता, नुक़सान देहता, कपट, द्वेष, डाह, दुष्ट भाव, बदख़्वाहता, नमकहरामी, बेवफ़ाई, राज-द्रोहिता; treachery, malignancy, disloyalty, malevolence.
Hey Indr Dev & Varun Dev! You travel trough the road over which you can cross the space. No treacherous human being can go against you. Your glory enriches the the water with medicines. 
सत्यं तदिन्द्रावरुणा कृशस्य वां मध्व ऊर्मिं दुहते सप्त वाणीः।
ताभिर्दाश्वांसमवतं शुभस्पती यो वामदब्धो अभि पाति चित्तिभिः
हे इन्द्र देव व वरुण देव! सप्त छंदों वाली ऋचाओं का गान करके कृश ऋषि का सोमरस आपके लिए तैयार किया जाता है। मन से जो यजमान अपने संरक्षण हेतु आपकी स्तुति करता है, आप उस हवि देने वाले यजमान को संरक्षण प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 8.59.3]
Hey Indr Dev & Varun Dev! Recitation of the Richas having six Chhand by Rishi Krash prepares Somras for you. You grant protection to that Ritviz who make offerings to you & worship you from the depth his heart. 
घृतप्रुषः सौम्या जीरदानवः सप्त स्वसारः सदन ऋतस्य।
या ह वामिन्द्रावरुणा घृतश्चुतस्ताभिर्धत्तं यजमानाय शिक्षतम्
हे इन्द्र देव और वरुण देव! यज्ञ मंडप में विद्यमान रहने वाली सात छंदों वाली ऋचाएँ सौम्यता से प्रवाहित होती हुई घृत की धाराओं से आपका सिंचन करती हैं। उन्हें ग्रहण कर आप याजकों को ऐश्वर्य प्रदान करें तथा उन्हें उच्च पदों पर स्थापित करें।[ऋग्वेद 8.59.4]
Hey Indr Dev & Varun Dev! Richas composed of six Chhand present in the Yagy Mandap flow smoothly and nourish you with flowing Ghee. Accept it and grant grander to the Ritviz elevating them to high positions-posts.
अवोचाम महते सौभगाय सत्यं त्वेषाभ्यां महिमानमिन्द्रियम्।
अस्मान्त्स्विन्द्रावरुणा घृतश्चुतस्त्रिभिः साप्तेभिरवतं शुभस्पती
हे बलों के स्वामी इन्द्रदेव! हम सौभाग्य प्राप्त करने के लिए आपकी महानता का गुणगान करते हैं। घृत धाराओं से सिंचित करने वाले हम याजकों को वे इक्कीस प्रकार से रक्षित करें।[ऋग्वेद 8.59.5]
Hey lord of strength-mighty & power Indr Dev! We describe your glory to attain good luck. Protect us who nurse you with the flowing streams of Ghee, with twenty means. 
 इन्द्रावरुणा यदृषिभ्यो मनीषां वाचो मतिं श्रुतमदत्तमग्रे।
यानि स्थानान्यसृजन्त धीरा यज्ञं तन्वानास्तपसाभ्यपश्यम्
हे इन्द्र देव और वरुण देव! पुरातन ऋषियों को आपने जो ज्ञान, वाणी, विवेक तथा विचार प्रदान किया, उसकी सहायता से उन्होंने जिन यज्ञमंडपों का सृजन किया, उसको हम अपनी तपश्चर्या द्वारा प्राप्त करें।[ऋग्वेद 8.59.6]
Hey Indr Dev & Varun Dev! Enlightenment, speech, prudence and ideas granted to ancient-eternal Rishis and the Yagy Mandaps built by them should be available to us through our dedicated service. 
इन्द्रावरुणा सौमनसमदृप्तं रायस्पोषं यजमानेषु धत्तम्।
प्रजां पुष्टिं भूतिमस्मासु धतं दीर्घायुत्वाय प्र तिरतं न आयुः
हे इन्द्र देव और वरुण देव! अहंकार से रहित, सौम्यता तथा पोषण देने वाले धन उन यजमानों को प्रदान करें, जो आपकी प्रार्थना करता है। हमारी आयु की वृद्धि करने वाले आप हमें उत्तम संतान, पुष्टि और धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.59.7]
सौम्यता :: विनम्रता, शिष्टता, सुजनता, भद्रता, कोमलता, दयालुता, सभ्यता, शिष्टता, भद्रता;  mildness, gentleness, placidity, urbanity.
Hey Indr Dev & Varun Dev! Grant such wealth which is free from ego, gentleness and nourishment to those who worship you. Prolong our age and grant us excellent sons, nourishment and wealth.(25.05.2024E)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (60) :: ऋषि :- भर्ग, प्रगाथ; देवता :- अग्नि; छन्द :- बृहती, पंक्ति। 
अग्न आ याह्यग्निभिर्होतारं त्वा वृणीमहे।
आ त्वामनक्तु प्रयता हविष्मती यजिष्ठं बर्हिरासदे
हे अग्नि देव! आप देवताओं को बुलाने वाले हैं। हमारी प्रार्थना सुनकर अपनी अग्नियों के साथ आप यहाँ पधारे। अध्वर्यु द्वारा प्रदत्त आसन पर आपको प्रतिष्ठित किए जाने पर हम आपका पूजन करें।[ऋग्वेद 8.60.1]
Hey Agni Dev! You invoke the demigods-deities. Listening-responding to our prayers, arrive here along with other Agnis-fires. After occupying the seat offered to you by the priest, we should worship you.
अच्छा हि त्वा सहसः सूनो अङ्गिरः स्रुचश्चरन्त्यध्वरे।
ऊर्जो नपातं घृतकेशमीमहेऽग्निं यज्ञेषु पूर्व्यम्
हे बलोत्पन्न अग्नि देव! अंगिरा श्रेष्ठ, बल का ह्रास रोकने वाले, अभीष्टदाता, तेजस्वी, ज्वालाओं से युक्त, सर्वत्र गमनशील, आप तक हवि पहुँचाने के लिए हविपात्र सक्रिय है। हम यज्ञस्थल पर आपकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 8.60.2]
Hey Agni Dev, produced by Bal! Best Angira, deaccelerating loss of strength, desires accomplishing, radiant, accompanied with flames, capable of roaming every where; pot of offerings is ready to hand you over. We worship you at the Yagy site-Mandap.
अग्ने कविर्वेधा असि होता पावक यक्ष्यः।
मन्द्रो यजिष्ठो अध्वरेष्वीड्यो विप्रेभिः शुक्र मन्मभिः
हे अग्नि देव! आप सबको शोधित करने वाले, पूजनीय, हर्ष प्रदान करने वाले, महान और तेजस्वी हैं। आप ज्ञानियों द्वारा की जाने वाली स्तुतियों से प्रसन्न होते हैं।[ऋग्वेद 8.60.3]
Hey Agni Dev! You cleanse all, worshipable, grant pleasure, great and aurous-radiant. You become happy by prayers-Stuties of the enlightened.
अद्रोघमा वहोशतो यविष्ठ्य देवाँ अजस्त्र वीतये।
अभि प्रयांसि सुधिता वसो गहि मन्दस्व धीतिभिर्हितः
हे बलशाली अग्नि देव! आप सबको आश्रय प्रदान करने वाले हैं। हमारी हवियों का सेवन करने के लिए देवताओं को आप यज्ञस्थल पर लेकर आगमन करें। हमारे द्वारा प्रदान की गई हवि को आप ग्रहण करें। हमारी स्तुतियों द्वारा आप आनन्दित हों।[ऋग्वेद 8.60.4]
Hey mighty Agni Dev! You grant asylum to all. Come to the Yagy site along with the demigods-deities to accept our offerings. Accept our offerings. You should be pleased by our prayers-Stuties.
त्वमित्सप्रथा अस्यग्ने त्रातॠतस्कविः।
त्वां विप्रासः समिधान दीदिव आ विवासन्ति वेधसः
हे अग्नि देव! आप हमें संरक्षण प्रदान करने वाले, विद्वान्, प्रदीप्त और विस्तृत हैं। स्तुति करने वाले यजमान सुंदर मंत्रों से आपकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 8.60.5]
Hey Agni Dev! You grant us protection, illuminated, enlightened and vast-broad. Ritviz worshiping you pray to you with beautiful Mantrs-Chants.
शोचा शोचिष्ठ दीदिहि विशे मयो रास्व स्तोत्रे महाँ असि।
देवानां शर्मन् मम सन्तु सूरयः शत्रूषाहः स्वग्नयः
देवताओं में श्रेष्ठ हे प्रज्वलित अग्नि देव! उत्तम प्रकार से प्रदीप्त होकर आप मनुष्यों को सुख प्रदान करें और शत्रुओं के संहार करें।[ऋग्वेद 8.60.6]
Excellent amongest the demigods-deities, hey illuminating Agni Dev! Ignite in the best way and grant comfort-pleasure to the humans and destroy their enemies.
यथा चिवृद्धमतसमग्ने सञ्जूर्वसि क्षमि।
एवा दह मित्रमहो यो अस्म ध्रुग्दुर्मन्मा कश्च वेनति
हे मित्र पूजक अग्नि देव! जिस प्रकार आप सूखी लकड़ी को भस्म करते हैं, उसी प्रकार आप हमारे उन विद्रोहियों तथा दुर्बुद्धि ग्रस्त लोगों को जलाकर नष्ट करें, जो हमारे पतन की कामना करते हैं।[ऋग्वेद 8.60.7]
Hey worshiper of the friend, Agni Dev! Burn our detractors, wicked-vicious who think of our down fall; like you burn the dry wood.
मा नो मर्ताय रिपवे रक्षस्विने माघशंसाय रीरधः।
अस्त्रेधद्भिस्तरणिभिर्यविष्ठ्य शिवेभिः पाहि पायुभिः
हे बलशाली अग्नि देव! आप हिंसा रहित तथा विपत्तियों से पार लगाने वाले हैं। अपने रक्षा साधनों से आप हमें संरक्षित करें तथा शत्रुओं, पापियों एवं दुष्कर्म का उपदेश देने वाले मनुष्यों के अधीनस्थ करके दुःख न प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.60.8]
दुष्कर्म :: अपराध, दुराचार, तुच्छ जुर्म, पाप, कुकर्म; rape, misdemeanour, misdeed, misdemeanour.
Hey mighty Agni Dev! You are non violent and swim us across troubles-difficulties. Protect us with your safety means. Do not put us under the control of enemies, sinners and those advising misdemeanour; paining us.
पाहि नो अग्न एकया पाद्यु१त द्वितीयया।
पाहि गीर्भिस्तिसृभिरूर्जाम्पते पाहि चतसृभिर्वसो
हे अग्नि देव! आप प्रथम स्तुति से हमारी रक्षा करें, द्वितीय स्तुति से आप हमें अभय प्रदान करें तथा तृतीय स्तुति से भी संरक्षण प्रदान करें। हे उर्जाओं के स्वामी! आप चतुर्थ स्तुति से हम सबका पालन करें।[ऋग्वेद 8.60.9]
Hey Agni Dev! Grant us asylum with the first prayer, with second prayer assure us of freedom from fear and with the third prayer grant us protection. Hey lord of energies! With he fourth prayer nurture-nourish all of us.
पाहि विश्वस्माद्रक्षसो अराव्णः प्र स्म वाजेषु नोऽव।
त्वामिद्धि नेदिष्ठं देवतातय आपिं नक्षामहे वृधे
हे अग्नि देव! आप युद्धभूमि में सभी असुरों तथा दान न करने वाले शत्रुओं से हमारी सुरक्षा करें। पूजित करने तथा संपदा प्राप्त करने के लिए हम समीपस्थ मित्र के रूप में आपका वरण करते हैं।[ऋग्वेद 8.60.10]
Hey Agni Dev! Protect us from the demons and the enemies who do not donate, in the war. For worshiping and getting wealth we include-accept you as a close friend.
आ नो अग्ने वयोवृधं रयिं पावक शंस्यम्।
रास्वा च न उपमाते पुरुस्पृहं सुनीती स्वयशस्तरम्
हे पवित्र करने वाले अग्नि देव! आप सदैव धन की वृद्धि करते हैं। आप हमें प्रसन्नतादायक धन प्रदान करे, जो उत्तम नीतिमार्ग से प्राप्त हुआ हो, वह धन हमारे लिए यशदायी हो।[ऋग्वेद 8.60.11]
Hey purifying Agni Dev! You always increase-boost the wealth. Grant us such wealth which is attained through best policies-means and it should bring us honour.
येन वंसाम पृतनासु शर्धतस्तरन्तो अर्य आदिशः।
स त्वं नो वर्ध प्रयसा शचीवसो जिन्वा धियो वसुविदः
हे अग्नि देव! आप हमें धन और अन्न से समृद्ध करने वाले हैं। आप हमें सद्बुद्धि प्रदान करें। रणभूमि में पराक्रम दिखाने वाले हम अस्त्रों द्वारा आक्रमण करके, रिपुओं को लांघकर उनका विनाश कर सकें।[ऋग्वेद 8.60.12]
Hey Agni Dev! You make us prosperous with wealth and food grains. Grant us virtuous thoughts-ideas. We should destroy the enemy in the war with missiles and demonstrate our valour-bravery.
शिशानो वृषभो यथाग्निः शृङ्गे दविध्वत्।
तिग्मा अस्य हनवो न प्रतिधृषे सुजम्भः सहसो यहुः
जिस प्रकार बैल अपने सींगों को नुकीला करने के लिए अपने सिर को घुमाता है, उसी प्रकार अपनी लपटों को अग्नि देव घुमाते हैं, अग्निदेव के तीखे हथियारों को रोकने में कोई सक्षम नहीं है। वे बल के पुत्र और सुंदर दाँत वाले हैं।[ऋग्वेद 8.60.13]
The way a bull move its head to sharpen its horns, Agni Dev rotate his flames. None is capable of obstructing the sharp weapons of Agni Dev. He is the son Bal and has beautiful teeth.
नहि ते अग्ने वृषभ प्रतिधृषे जम्भासो यद्वितिष्ठसे।
स त्वं नो होतः सुहुतं हविष्कृधि वंस्वा नो वार्या पुरु
हे वृष्टि कारक अग्नि देव! आप यज्ञ को संपादित करने वाले हैं। आपकी लपटों को कोई रोक नहीं सकता, क्योंकि आप अपनी लपटों की अनेक प्रकार से वृद्धि करते हैं। आप हमारी आहुतियों को ग्रहण करके हमें उत्तम धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.60.14]
Hey rain causing Agni Dev! You accomplish the Yagy. None can block your flames, since you boost-propagate your flames in many ways. Accept our offerings and grant us best riches.
शेषे वनेषु मात्रोः सं त्वा मर्तास इन्धते।
अतन्द्रो हव्या वहसि हविष्कृत आदिद्देवेषु राजसि
हे अग्नि देव! आप वनों में, माता के गर्भ में तथा भूमि में अदृश्य रूप से व्याप्त हैं। यजमान आपको समिधाओं द्वारा प्रज्वलित करते हैं। आप होताओं की हवि को देवताओं तक पहुँचाते हैं तथा उनके मध्य सुशोभित होते हैं।[ऋग्वेद 8.60.15]
Hey Agni Dev! You are hidden-pervaded in the forests, mother's womb and the earth. The Ritviz ignite you with the wood. You transfer the offerings of the Hotas to demigods-deities and remain amidst them.
स्वप्त होतारस्तमिदीलते त्वा ऽग्ने सुत्यजमह्रयम्।
भिनत्स्यद्रिं तपसा वि शोचिषा प्राग्ने तिष्ठ जनां अति
हवि धारण कर देवताओं तक पहुँचाने वाले हे दानी अग्नि देव। आप भली-भाँति प्रज्वलित होते हैं। सात याजक आपकी प्रार्थना करते है। आप अपनी तपः शक्ति से मेघों को विदीर्ण करते हैं।[ऋग्वेद 8.60.16]
Hey Agni Dev, accepting offerings and transferring them to the demigods-deities! You are ignited properly. Seven Ritviz worship-pray to you. You tear the clouds with the power of your asceticism.
अग्निमग्निं वो अध्रिगुं हुवेम वृक्तबर्हिषः।
अग्नि हितप्रयसः शश्वतीष्वा ऽऽ होतारं चर्षणीनाम्
हे याजकों! हम पवित्र कुशासन बिछाकर अग्निदेव का आपके लिए आवाहन करते हैं। वे अग्नि देव यजमानों के लाभार्थ आहुति धारण करते हैं।[ऋग्वेद 8.60.17]
Hey Yagy performers! We lay pure-pious Kush Mate for Agni Dev and invoke him. Agni Dev support-carry the offerings for the welfare of the Ritviz.
केतेन शर्मन् त्सचते सुषामण्यग्ने तुभ्यं चिकित्वना।
इषण्यया नः पुरुरूपमा भर वाजं नेदिष्ठमूतये
हे अग्नि देव! हर्ष प्रदायक, सुंदर साम वाले यज्ञों में ज्ञानी यजमान आपकी स्तुति करते है। अनेक प्रकार के धनों को प्रदान करने के लिए आप हमारे निकट पधारें।[ऋग्वेद 8.60.18]
Hey Agni Dev! Enlightened Ritviz recite the chants of Sam for you. Come to us to give various types of wealth.
अग्ने जरितर्विश्पतिस्तेपानो देव रक्षसः।
अप्रोषिवान् गृहपतिर्महां असि दिवस्पायुर्दुरोणयुः
हे अग्नि देव! आप आसुरी प्रवृत्ति के लोगों को संतप्त करने वाले हैं। आप मनुष्यों का रक्षण और पोषण करने वाले हैं। गृहस्वामियों के गृहों में आप सदैव स्थित रहते हैं।[ऋग्वेद 8.60.19]
Hey Agni Dev! You torture those who possess demonic tendencies. You nourish and protect the humans. You are always present in the homes of the owners.
मा नो रक्ष आ वेशीदाघृणिवासो मा यातुर्यातुमावताम्।
परोगव्यूत्यनिरामप क्षुधमग्ने सेध रक्षस्विनः
हे अग्नि देव! हमारे अन्दर असुर, कष्टदायक बीमारियाँ तथा पिशाचों की पीड़ा प्रवेश न कर पाए। निर्धनता और राक्षसों को आप हमारे पास न आने दें।[ऋग्वेद 8.60.20]
Hey Agni Dev! Do not let the demons, painful ailments and tortures by vampires in our stomach. Do not allow poverty and demons come close to us.(26.05.2024M)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (61) :: ऋषि :- भर्ग, प्रगाथ; देवता :- इन्द्र;  छन्द :- बृहती, पंक्ति।
उभयं शृणवच्च न इन्द्रो अर्वागिदं वचः।
सत्राच्या मघवा सोमपीतये धिया शविष्ठ आ गमत्
हे इन्द्र देव! दोनों प्रकार की स्तुतियों को आप हमारे निकट आकर श्रवण करें। हमारी स्तुतियों से प्रसन्न होकर आप सोमपान के लिए यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 8.61.1]
Hey Indr Dev! Listen to both types of Stuties-prayers, by coming to us. On being happy with our Stuties, come to drink Somras.
तं हि स्वराजं वृषभं तमोजसे धिषणे निष्टतक्षतुः।
उतोपमानां प्रथमो नि षीदसि सोमकामं हि ते मनः
आकाश और पृथ्वी ने वृष्टि कर्ता इन्द्र देव को बल के लिए संस्कारित किया। देवताओं में प्रमुख हे इन्द्रदेव! सोमपान की इच्छा से यज्ञवेदी पर विराजमान होते हैं।[ऋग्वेद 8.61.2]
Sky-space and earth have cultured the strength of Indr Dev. Hey Indr Dev head of all demigods! Occupy your seat near the Yagy Vedi for drinking Somras.
आ वृषस्व पुरूवसो सुतस्येन्द्रान्धसः।
विद्मा हि त्वा हरिवः पृत्सु सासहिमधृष्टं चिद्दधृष्वणिम्
हे इन्द्र देव! आप सोमरूप अन्न की वृष्टि करें। रणक्षेत्र में आप अश्वों से युक्त होकर शत्रुओं को पराजित करने वाले हैं। हमें मालूम है कि आप स्वयं पराजित न होकर औरों को नष्ट करने वाले हैं।[ऋग्वेद 8.61.3]
Hey Indr Dev! Shower those grains which are like Som. You deploy the horses and defeat the enemy in the battle field. We are aware that you remain undefeated and destroy others.
अप्रामिसत्य मघवन्तथेदसदिन्द्र क्रत्वा यथा वशः।
सनेम वाजं तव शिप्रिन्नवसा मक्षु चिद्यन्तो अद्रिवः
हे सत्यवादी, धनवान् इन्द्र देव! हम जिस कर्म की इच्छा आपसे करते हैं, वह पूर्ण हो जाता है। वज्र और मुकुट से शोभित हे इन्द्र देव! हम आपके द्वारा संरक्षित होकर सदैव विजयी होते हुए अन्नादि प्राप्त करें।[ऋग्वेद 8.61.4]
Hey truthful and wealthy Indr Dev! Our desires are accomplished by you. Hey Indr Dev decorated with Vajr and crown! On being protected by you we should be winners and get food grains etc.
शग्ध्यू षु शचीपत इन्द्र विश्वाभिरूतिभिः।
भगं न हि त्वा यशसं वसुविदमनु शूर चरामसि
हे वीर इन्द्र देव! आप सभी प्रकार के रक्षा साधनों के द्वारा हमें अभीष्ट फल प्रदान करते है। आप सौभाग्युक्त धन प्रदान करने वाले हैं। हम आपकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 8.61.5]
Hey brave Indr Dev! You grant desired rewards to us with all protection means. You grant auspicious wealth. We worship you.
पौरो अश्वस्य पुरुकृद्गवामस्युत्सो देव हिरण्ययः।
नकिर्हि दानं परिमर्धिषत्त्वे यद्यद्यामि तदा भर
हे इन्द्र देव! आप गौवों और अश्वों की वृद्धि करने वाले हैं। आप संपदाओं के स्रोत हैं। आपके अनुदानों को विस्मृत करने की सामर्थ्य किसी में नहीं है। अतः आप हमारी इच्छित कामनाओं की पूर्ति करें।[ऋग्वेद 8.61.6]
Hey Indr Dev! You increase the number of cows and horses. You are source of wealth. None can forget donations granted by you. Accomplish our desires.
त्वं  ह्योहि चेरवे विदा भगं वसुत्तये।
उद्वावृषस्व मघवन्गविष्टय उदिन्द्राश्वमिष्टये
हे धनवान इन्द्र देव! हम उत्तम आचरण से युक्त होकर आपकी प्रार्थना करते हैं। आप गौ, अश्व तथा उत्तम धनप्राप्ति की हमारी इच्छा को पूर्ण करें।[ऋग्वेद 8.61.7]
Hey wealthy Indr Dev! We worship you associated with excellent character-behaviour. Accomplish our desire for excellent cows, horses and wealth.
त्वं पुरू सहस्राणि शतानि च यूथा दानाय मंहसे।
आ पुरंदरं चकृम विप्रवचस इन्द्रं गायन्तोऽवसे
हे इन्द्र देव! आप हवि प्रदान करने वाले यजमानों को सैकड़ों-हजारों गौवों के समूह देने की सामर्थ्य से युक्त है। आप शत्रुओं के नगरों को विनष्ट करने में समर्थ हैं। हम अपनी रक्षा हेतु आपका आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.61.8]
Hey Indr Dev! You are capable of granting hundreds & thousands of cows to those who make offering to you. You are capable of destroying enemies cities. We invoke you for our protection.
अविप्रो वा यदविधद्विप्रो वेन्द्र ते वचः।
स प्र ममन्दत्त्वाया शतक्रतो प्राचामन्यो अहंसन
हे शतकर्मा इन्द्र देव! कोई भी व्यक्ति चाहे वो ज्ञानी हो या मूर्ख, यदि आपकी प्रार्थना करता है, तो वह आपकी कृपा से हर्षित होता है।[ऋग्वेद 8.61.9]
Hey hundred Yagy performing Indr Dev! Any one enlightened or idiot become happy on praying you due to your mercy-kindness.
उग्रबाहुम्रेक्षकृत्वा पुरंदरो यदि मे शृणवद्धवम्।
वसूयवो वसुपतिं शतक्रतुं स्तोमैरिन्द्रं हवामहे
हे शतकर्मा इन्द्र देव! आप विशाल भुजाओं वाले, शत्रुओं के संहारक, ऐश्वर्य के स्वामी और शत्रुओं की पुरियों को नष्ट करने वाले हैं। धन की इच्छा करने वाले हम यजमान स्तुतियों द्वारा आपका आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.61.10]
Hey performer of hundred Yagy, Indr Dev! You are destroyer of enemy and their forts-cities, possessor of grandeur having large arms. We invoke you with the desire of wealth by the recitation of Stuties.
न पापासो मनामहे नारायासो न जल्हवः।
यदिन्न्विन्द्रं वृषणं सचा सुते सखायं कृणवामहै
इन्द्र देव को यज्ञ कार्य से हीन, अग्नि रहित, निर्धन और अब्रह्मचारी हम नहीं मानते। हम बलशाली इन्द्र देव को सोमयज्ञ में अपना मित्र बनाते हैं।[ऋग्वेद 8.61.11]
We do not consider Indr Dev without Yagy performances, without Agni-fire, poor and in celibate. We become friendly with mighty-powerful Indr Dev in Som Yagy.
उग्रं युयुज्म पृतनासु सासहिमृणकातिमदाभ्यम्।
वेदा भृमं चित्सनिता रथीतमो वाजिनं यमिदू नशत्
जिनकी प्रार्थना ऋण के समान फलदायक है, जो असंख्य अश्वों और रथों के स्वामी और उनके ज्ञाता हैं, जो सदैव यजमानों के बीच में स्थित रहते हैं। ऐसे साहसी, धनी, अजेय और वीर इन्द्र देव को हम यज्ञस्थल पर प्रतिष्ठित करते हैं।[ऋग्वेद 8.61.12]
Brave, daring invincible, Indr Dev, whose prayers are never without rewards, who possess unaccounted horses and charoites, knows them all and remain amidst the Ritviz is established by us at the Yagy site.
यत इन्द्र भयामहे ततो नो अभयं कृधि।
मघवञ्छग्धि तव तन्न ऊतिभिर्वि द्विषो वि मृधो जहि
हे सामर्थ्यवान, धनवान इन्द्र देव! आप हमें सभी प्रकार के भयों से मुक्त करते हुए अपने बल द्वारा हमारे शत्रुओं एवं हिंसक प्रवृत्ति वालों को नष्ट कर हमें सुरक्षित करें।[ऋग्वेद 8.61.13]
Hey capable, wealthy Indr Dev! Make us free from all kinds of fear and safe by destroying enemies and violent people.
त्वं हि राधस्पते राधसो महः क्षयस्यासि विधतः।
तं त्वा वयं मघवन्निन्द्र गिर्वणः सुतावन्तो हवामहे
हे स्तुत्य इन्द्र देव! हमें देने के लिए आप असंख्य धनों को धारित करते हैं। शोधित सोमरस का आस्वादन करने के लिए हम याजकगण आपको बुलाते हैं।[ऋग्वेद 8.61.14]
Hey worshiped Indr Dev! You possess unlimited wealth for giving us. We invite you for drinking purified Somras.
इन्द्रः स्पळुत वृत्रहा परस्पा नो वरेण्यः।
स नो रक्षिषच्चरमं स मध्यमं स पश्चात्पातु नः पुरः
हे इन्द्र देव! आप वृत्रहन्ता और सज्जन मनष्यों का पोषण करने वाले हैं। हमारे वरणीय होकर आप हमारी श्रेष्ठतम व मध्यम प्रवृत्तियों को संरक्षण प्रदान करें तथा आगे और पीछे, सब ओर से हमारा रक्षण करें।[ऋग्वेद 8.61.15]
Hey Indr Dev! You are the slayer of Vratr and nurturer of gentle. Protect our excellent and average tendencies and protect us from all sides, having being accepted-worshiped by us.
त्वं नः पश्चादधरादुत्तरात्पुर इन्द्र नि पाहि विश्वतः।
आरे अस्मत्कृणुहि दैव्यं भयमारे हेतीरदेवीः
हे इन्द्र देव! आप हमें असुरों और देवताओं के भय से रहित करें तथा ऊपर-नीचे, आगे- पीछे, सभी ओर से हमारी सुरक्षा करें।[ऋग्वेद 8.61.16]
Hey Indr Dev! Make us fearless from demons and demigods, protecting us from all sides.
अद्याद्या श्वःश्व इन्द्र त्रास्व परे च नः।
विश्वा च नो जरितॄन्त्सत्पते अहा दिवा नक्तं च रक्षिषः
हे सज्जनों के पालक इन्द्र देव! वर्तमान और भविष्य में हमें आपका संरक्षण प्राप्त हो। आप सर्वदा दिन और रात हम याजकों के रक्षक बने रहें।[ऋग्वेद 8.61.17]
Hey nurturer of the gentlemen, Indr Dev! Let us have your protection at present and in future. You remain our protector throughout the day & night.
प्रभङ्गी शूरो मघवा तुवीमघः संमिश्लो वीर्याय कम्।
उभा ते बाहू वृषणा शतक्रतो नि या वज्रं मिमिक्षतुः
हे इन्द्र देव! सबमें व्याप्त होने वाले आप ऐश्वर्यों से युक्त हैं। आपकी दोनों भुजाएँ वज्र को धारण करने में समर्थ हैं। अपने पराक्रम से आप शत्रुओं की सामर्थ्य को चूर-चूर कर देते हैं। [ऋग्वेद 8.61.18]
Hey Indr Dev! You pervade each & every one possessing all sorts of grandeur. Your arms are capable of wielding Vajr. You destroy the enemy with your strength.(26.05.2024E)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (62) :: ऋषि :- प्रगाथ, काण्व; देवता :- इन्द्र; छन्द :- बृहती, पंक्ति।
प्रो अस्मा उपस्तुतिं भरता यज्जुजोषति।
उक्थैरिन्द्रस्य माहिनं वयो वर्धन्ति सोमिनो भद्रा इन्द्रस्य रातयः
हे इन्द्र देव की स्तुति करने वाले स्तोताओं! आप उनके सोमरूप अन्न को अपने स्तोत्रों द्वारा समृद्ध करें। उनके द्वारा दिया गया दान सदैव हितकारी होता है।[ऋग्वेद 8.62.1]
Hey Stotas worshiping Indr Dev! Enrich the grains in the form of Som with your Strotrs. Donations-charity by him is always beneficial.
अयुजो असमो नृभिरेकः कृष्टीरयास्यः।
पूर्वीरति प्र वावृधे विश्वा जातान्योजसा भद्रा इन्द्रस्य रातयः
अपने ओज से सभी प्राणियों तथा प्राचीन लोगों को समृद्ध करने वाले इन्द्र देव सभी देवताओं में मुख्य, श्रेष्ठ तथा अनश्वर हैं। उनका धन कल्याणकारी है।[ऋग्वेद 8.62.2]
Indr Dev who enrich all living beings and ancient people is immortal, best amongest the demigods-deities and their leader. His wealth is beneficial.
अहितेन चिदर्वता जीरदानुः सिषासति।
प्रवाच्यमिन्द्र तत्तव वीर्याणि करिष्यतो भद्रा इन्द्रस्य रातयः
हे शीघ्रगामी अश्वों द्वारा गमन के इच्छुक दानवीर इन्द्र देव! वीरता प्रकट करने वाला आपका कार्य अत्यंत सराहनीय है और आपका ऐश्वर्य हित करने वाला है।[ऋग्वेद 8.62.3]
Hey Indr Dev desirous of making charity, wish to travel over fast moving horses! Your deeds showing bravery deserve appreciation. Your grandeur is meant for helping others.
आ याहि कृणवाम त इन्द्र ब्रह्माणि वर्धना।
येभिः शविष्ठ चाकनो भद्रमिह श्रवस्यते भद्रा इन्द्रस्य रातयः
हे इन्द्र देव! हम स्तोत्रों का गान कर आपके तेज की वृद्धि करते हैं। आप यहाँ आगमन करें तथा यश की इच्छा करने वाले यजमानों का कल्याण करें। क्योंकि आपका ऐश्वर्य हितकारी है।[ऋग्वेद 8.62.4]
Hey Indr Dev! We boost-increase your energy-aura with the recitation of Strotrs. Come here and benefit the Ritviz desirous of name-fame, glory. Your grandeur is always beneficial for them.
धृषतश्चिद्धृषन्मनः कृणोषीन्द्र यत्त्वम्।
तीनैः सोमैः सपर्यतो नमोभिः प्रतिभूषतो भद्रा इन्द्रस्य रातयः
जो याजक अभिषुत सोमरस समर्पित कर नमस्कार पूर्वक आपका सत्कार करते हैं, आप उन्हें उच्च मनोबल प्रदान करते हैं। आपका ऐश्वर्य सभी के लिए हितकारी होता है।[ऋग्वेद 8.62.5]
You boost the mental power of the Ritviz who offer you Somras saluting you. Your grandeur helps others.
अव चष्ट ऋचीषमोऽवताँइव मानुषः।
जुष्टी दक्षस्य सोमिनः सखायं कृणुते युजं भद्रा इन्द्रस्य रातयः
हे इन्द्र देव! हमारी स्तुतियों से प्रसन्न होकर आप हमें उसी प्रकार देखते हैं, जिस प्रकार मनुष्य प्यास से व्याकुल होकर जल-सरोवर की ओर देखता है। सोम अभिषव करने वालों से आप मित्रता करते हैं। आपका ऐश्वर्य कल्याणकारी है।[ऋग्वेद 8.62.6]
Hey Indr Dev! On being happy with our Stuties you at us like the thirsty person looking at the water reservoir. Your grandeur is helpful.
विश्वे त इन्द्र वीर्यं देवा अनु क्रतुं ददुः।
भुवो विश्वस्य गोपतिः पुरुष्टुत भद्रा इन्द्रस्य रातयः
मेधा को प्राप्त करने वाले, हे इन्द्र देव! सभी देवता आपका अनुगमन करते हैं। आप सभी भुवनों और गौवों के स्वामी हैं। आपका दान कल्याण करने वाला है।[ऋग्वेद 8.62.7]
Hey Indr Dev attaining intelligence! All demigods-deities follow you. You are the lord of all abodes and the cows. Donations by you are beneficial.
गृणे तदिन्द्र ते शव उपमं देवतातये।
यद्धंसि वृत्रमोजसा शचीपते भद्रा इन्द्रस्य रातयः
हे शचीपते इन्द्र देव। हम अपने निकट संपन्न होने वाले यज्ञ में आपकी स्तुति करते हैं। आपने अपनी सामर्थ्य से वृत्रासुर का संहार किया। आपका दान कल्याणकारी है।[ऋग्वेद 8.62.8]
Hey husband of Devi Shachi, Indr Dev! We worship you in the Yagy carried out near us. You destroyed Vratr with your capability. Your donations are beneficial-helping.
समनेव वपुष्यतः कृणवन्मानुषा युगा।
विदे तदिन्द्रश्चेतनमध श्रुतो भद्रा इन्द्रस्य रातयः
समान विचार वाली पत्नी जिस प्रकार अपने पति को वश में कर लेती है, उसी प्रकार सभी जीवों तथा संवत्सर को इन्द्र देव अपने अधीनस्थ कर लेते हैं। उनका दान कल्याण करने वाला है।[ऋग्वेद 8.62.9]
The way a woman control her husband, similarly Indr Dev control all the living beings and the Sanvatsar. His donations are helping.
उज्जातमिन्द्र ते शव उत्त्वामुत्तव क्रतुम्।
भूरिगो भूरि वावृधुर्मघवन्तव शर्मणि भद्रा इन्द्रस्य रातयः
हे धनवान इन्द्र देव! असंख्य गौवों से युक्त याजक आपके द्वारा प्रदान किए गए सुख का उपभोग करते हैं। वे आपके बल और कर्म की वृद्धि करते हुए समृद्धवान् होते हैं। आपका दान कल्याण करने वाला है।[ऋग्वेद 8.62.10]
Hey wealthy Indr Dev! The Ritviz having many cows enjoy the comforts  awarded by you. They become prosperous boosting your strength and endeavours. Your donations always help.
अहं च त्वं च वृत्रहन्त्सं युज्याव सनिभ्य आ।
अरातीवा चिदद्रिवोऽनु नौ शूर मंसते भद्रा इन्द्रस्य रातयः
हे वज्रधारी इन्द्र देव! आप वृत्रासुर का वध करने वाले हैं। ऐश्वर्य की प्राप्ति करने के लिए हम आपको समर्पित हो जाएँ। हे शूरवीर इन्द्र देव! दान न देने वाले भी आपके ऐश्वर्य की प्रशंसा करते हैं। आपका दान कल्याण करने वाला है।[ऋग्वेद 8.62.11]
Hey Vajr wielding Indr Dev! You killed Vratra Sur. We will devote ourselves to you for the sake of grandeur. Hey great warrior Indr Dev! Those who do not accept donations, too appreciate your grandeur. Your donations are beneficial.  
सत्यमिद्वा उ तं वयमिन्द्रं स्तवाम नानृतम्।
महाँ असुन्वतो वधो भूरि ज्योतींषि सुन्वतो भद्रा इन्द्रस्य रातयः
हम सत्य हृदय से इन्द्र देव की स्तुति करते हैं। सोम परिष्कृत न करने वाले मनुष्य को वह नष्ट कर देते हैं तथा अभिषव करने वालों के लिए उनका दान हितकारी होता है।[ऋग्वेद 8.62.12]
We worship Indr Dev with pure-truthful heart. He eliminate those who do not purify Somras and his donations to Somras extractors are beneficial.(27.05.2024E)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (63) :: ऋषि :- प्रगाथ, काण्व; देवता :- इन्द्र, देवगण; छन्द :- गायत्री, अनुष्टुप्, त्रिष्टुप्।
स पूर्व्यो महानां वेनः क्रतुभिरानजे। यस्य द्वारा मनुष्पिता देवेषु धिय आनजे
देवताओं में स्थित पिता मनु ने इन्द्र देव द्वारा बुद्धि प्राप्त की। वे इन्द्र देव उत्तम यजमानों की हवि की कामना करते हुए यज्ञ में पहुँचते हैं।[ऋग्वेद 8.63.1]
Manu present-established amongest the demigods-deities attained intelligence (enlightenment) from Indr Dev. Indr Dev reached the Yagy desirous of offerings by the best Ritviz.
दिवो मानं नोत्सदन्त्सोमपृष्ठासो अद्रयः। उक्था ब्रह्म च शंस्या
सोम को अभिषव करने वाले पाषाण और सराहनीय स्तोत्र कभी भी इन्द्र देव का त्याग न करें। जिन्होंने दिव्यलोक का सृजन किया है।[ऋग्वेद 8.63.2]
The stones used for extracting Som and appreciable Strotr should never desert Indr Dev who evolved-created divine heavens.
स विद्वाँ अङ्गिरोभ्य इन्द्रो गा अवृणोदप। स्तुषे तदस्य पौंस्यम्
मेधावी इन्द्र देव ने अंगिरा ऋषि के लिए गौवों की उत्पत्ति की, इसलिए हम उन इन्द्र देव के पराक्रम की प्रशंसा करते हैं।[ऋग्वेद 8.63.3]
Intelligent Indr Dev created cows for Angira and hence we appreciate him for this excellent deed.
स प्रत्नथा कविवृध इन्द्रो वाकस्य वक्षणिः।
शिवो अर्कस्य होमन्यस्मत्रा गन्त्ववसे॥
बुद्धिमानों की बुद्धि की वृद्धि करने वाले इन्द्र देव स्तुति करने वालों के सुख को बढ़ाते हैं। हमारी रक्षा के लिए सोमयाग करते समय वह यज्ञशाला में पधारें।[ऋग्वेद 8.63.4]
Indr Dev boosts the intelligence of the intellectual and increase the comforts-pleasure of those who worship him. Come to the Yagy Shala for our protection while performing Somyag.
आदू नु ते अनु क्रतुं स्वाहा वरस्य यज्यवः। श्वात्रमर्का अनू षतेन्द्र गोत्रस्य दावने
हे इन्द्र देव! स्वाहा उच्चारण के साथ यज्ञकर्म को पूर्ण करने तथा स्तुति करने वाले यजमान धन प्राप्ति के लिए आपके कृत्यों का वर्णन करते हैं।[ऋग्वेद 8.63.5]
Hey Indr Dev! The Priests worshiping-praying you while accomplishing Yagy enchant Swaha and describe your deeds for having wealth.
इन्द्रे विश्वानि वीर्या कृतानि कर्वानि च। यमर्का अध्वरं विदुः
स्तुति करने वाले स्तोता इन्द्र देव को हिंसा रहित मानते हैं। सभी पराक्रमी कार्य इन्द्र देव के अन्दर समाहित हैं।[ऋग्वेद 8.63.6]
The Stota who worship Indr Dev consider him to be non violent. All courageous deeds are included-present in Indr Dev.
यत्पाञ्चजन्यया विशेन्द्रे घोषा असृक्षत। अस्तृणाद्वर्हणा विपो३र्यो मानस्य स क्षयः
परस्पर मिलकर जब पाँच प्रजाएँ इन्द्र देव की प्रार्थना करती हैं, तब वे इन्द्र देव अपने पराक्रम से शत्रुओं का संहार करते हैं। ऐसे महान इन्द्र देव हम ब्राह्मणों द्वारा सम्मान प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 8.63.7]
When five communities together worship-pray to Indr Dev, then he destroy their enemies. Indr Dev with such a greatness is honoured by the Brahmans.
  इयमु ते अनुष्टुतिश्चकृषे तानि पौंस्या। प्रावश्चक्रस्य वर्तनिम्
हे इन्द्र देव! आपने जो पराक्रम का कार्य किया, उसके लिए हम आपकी स्तुति करते हैं। आप उस मार्ग की रक्षा करें, जिस पर हमारा रथ गमन करे।[ऋग्वेद 8.63.8]
Hey Indr Dev! We worship-pray your for the bravery-valour you have exhibited. Protect that path over which over charoite moves.
अस्य वृष्णो व्योदन उरु क्रमिष्ट जीवसे। यवं न पश्व आ ददे
मनुष्य भी पशुओं के समान उन इन्द्र देव से जौ, अन्नादि प्राप्त करके जीवित रहने के लिए उत्कृष्ट कर्म करते हैं।[ऋग्वेद 8.63.9]
Humans too perform great-excellent deeds like the animals; for having barley and other food grains from Dev Raj Indr. 
तद्दधाना अवस्यवो युष्माभिर्दक्षपितरः। स्याम मरुत्वतो वृधे
हे याजकों! सुरक्षा की कामना करने वाले हम यजमान इन्द्र देव के यश की वृद्धि करते हुए आप सबके सहयोग से धन-धान्य से परिपूर्ण हो जायें।[ऋग्वेद 8.63.10]
Hey worshipers! Let us become rich with the desire of protection; boosting the glory-honour of Indr Dev, as a host.
ळृत्वियाय धाम्न ऋकभिः शूर नोनुमः। जेषामेन्द्र त्वया युजा
हे शौर्यवान इन्द्र देव! आप परम तेजस्वी यज्ञों के निमित्त सत्कर्म करने वाले हैं। सहायता हमें सदैव विजय दिलाने वाली सिद्ध हों।[ऋग्वेद 8.63.11]
शौर्य :: मन में अपने धर्म को पालन की तत्परता, धर्म युद्ध में जो कि परिस्थितिवश प्राप्त हुआ है, में बगैर इच्छा, विचार, स्वार्थ के शामिल होना शौर्य है।
शौर्य :: वीरता, शौर्य, बहादुरी, दिलेरी, बहादुरी, मजबूती, बलिष्‍ठता, निर्भीकता, वीर्य; gallantry, hardihood, doughtiness. 
शौर्यवान :: बहादुर, दिलेर; valiant, chivalrous.
Hey valiant Indr Dev! You are performer of great Yagy. You should always help us to win.
अस्मे रुद्रा मेहना पर्वतासो वृत्रहत्ये भरहूतौ सजोषाः।
यः शंसते स्तुवते धायि पज्र इन्द्रज्येष्ठा अस्माँ अवन्तु देवाः
बलशाली तथा वृत्रहन्ता इन्द्र देव समस्त देवताओं में बड़े हैं। वह अपने स्तोताओं के निकट आगमन करते हैं। वृष्टि कारक मेघों द्वारा रुद्रों के साथ रणक्षेत्र में वे हमारा संरक्षण करें।[ऋग्वेद 8.63.12]
Hey mighty killer of Vratr, Indr Dev; you are elder than all demigods-deities.  Come close to all Stotas. Protect us with the rain showering clouds along with the Rudr Gan.(29.05.2024E)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (64) :: ऋषि :- प्रगाथ, काण्व; देवता :- इन्द्र; छन्द :- गायत्री।
उत्त्वा मन्दन्तु स्तोमाः कृणुष्व राधो अद्रिवः। अव ब्रह्मद्विषो जहि
हे वज्रधारी इन्द्र देव! हमारी स्तुतियाँ आपके आनंद की वृद्धि करें। आप हमें धन प्रदान करें और स्तोत्रादि से ईर्ष्या रखने वालों को विनष्ट करें।[ऋग्वेद 8.64.1]
Hey Vajr wielding Indr Dev! Let our prayers make you happy. Grant us wealth and destroy those who envy Stuti, Strotr, Yagy etc.
पदा पर्णीरराधसो नि बाधस्व महाँ असि। नहि त्वा कश्चन प्रति 
हे महान इन्द्र देव! आप यज्ञादि कर्म न करने वाले कृपणों को पीड़ित करें। आप महान है। आपके समान शक्ति किसी में नहीं है।[ऋग्वेद 8.64.2]
Hey great Indr Dev! Punish the misers who do not perform Yagy and related ceremonies. None is as powerful as you are.
त्वमीशिषे सुतानामिन्द्र त्वमसुतानाम्। त्वं राजा जनानाम्
हे इन्द्र देव! आप रसयुक्त सोम पदार्थ तथा निषिद्ध पदार्थों के स्वामी और सभी प्राणियों के राजा हैं।[ऋग्वेद 8.64.3]
Hey Indr Dev! You are the lord of juicy material like Som, prohibited-banned goods and all living beings.
एहि प्रेहि क्षयो दिव्या ३ घोषञ्चर्षणीनाम्। ओभे पृणासि रोदसी
यज्ञस्थल पर आगमन और उद्घोष करते हुए स्वर्ग की ओर गमन करने वाले, हे इन्द्र देव! आप जलवृष्टि द्वारा पृथ्वी और आकाश को तृप्त करते हैं।[ऋग्वेद 8.64.4]
उद्घोष :: ऊँची आवाज़ में कहना, घोषणा; proclamation, callido.
Hey Indr Dev, you come to the Yagy site and make loud sound while reaching heavens. You satisfy the earth & heavens with rains.
त्यं चित्पर्वतं गिरिं शतवन्तं सहस्रिणम्। वि स्तोतृभ्यो रुरोजिथ
हे इन्द्र देव! आप सैकड़ों-हजारों मेघों को पर्वत के समान वज्र द्वारा विदीर्ण करने वाले हैं। हम स्तोताओं का आप मंगल करें।[ऋग्वेद 8.64.5]
Hey Indr Dev! You tear into hundreds-thousands of clouds like the destruction of mountains with Vajr. Let us benefit the Stotas.
वयमु त्वा दिवा सुते वयं नक्तं हवामहे। अस्माकं काममा पृण
हमारी इच्छाओं को पूर्ण करने वाले हे इन्द्र देव! सोमाभिषव करते समय हम अपनी सहायता के लिए आपका आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.64.6]
Hey Indr Dev, accomplishing our desires. We invoke you at the time of Somabhishav for our help. 
क स्य वृषभो युवा तुविग्रीवो अनानतः। ब्रह्मा कस्तं सपर्यति
युवा, सशक्त ग्रीवा वाले, किसी के सामने न झुकने वाले वे देवराज इन्द्र देव इस समय कहाँ हैं? कौन साधक उनको पूजित करता है?[ऋग्वेद 8.64.7]
Where is young, possessing powerful neck, unbending before any one Dev Raj Indr? Which desirous-seeker worship him?
कस्य स्वित्सवनं वृषा जुजुष्वाँ अव गच्छति। इन्द्रं क उ स्विदा चके
किस मनुष्य के यज्ञ की आहुतियों को ग्रहण करने के लिए इन्द्र देव आते हैं तथा किस याजक को उन इन्द्र देव के विषय में ज्ञान है?[ऋग्वेद 8.64.8]
For accepting whose offerings in the Yagy Indr Dev arrives. Which Yagy performer is aware of him?
कं ते दाना असक्षत वृत्रहन्कं सुवीर्या। उक्थे क उ स्विदन्तमः
हे वृत्र हन्ता इन्द्र देव! आप किस मनुष्य को धनयुक्त करते हैं और किस मनुष्य को बल प्रदान करते हैं तथा किस मनुष्य के समीप यज्ञ में आसीन होते हैं?[ऋग्वेद 8.64.9]
Hey killer of Vratr, Indr Dev! Whom do you enrich with wealth, whom do you grant might & power and with whom do you sit in the Yagy.
अयं ते मानुषे जने सोमः पूरुषु सूयते। तस्येहि प्र द्रवा पिब
हे इन्द्र देव! हम आपके लिए ही सोम निचोड़ते हैं। आप यथाशीघ्र आगमन कर सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 8.64.10]
Hey Indr Dev! We extract Somras nearby you. You should come as fast as you can, to drink Somras.
अयं ते शर्यणावति सुषोमायामधि प्रियः। आर्जीकीये मदिन्तमः
हे इन्द्र देव! शर्यणावत्, सुषोमा एवं आर्जीकीया में तैयार अथवा उपलब्ध, यह सोमरस आपको आनन्दित करने वाला हो।[ऋग्वेद 8.64.11]
शर्यणावत् :: शर्यण नामक जनपद के पास का एक प्राचीन सरोवर, तीर्थ।
सुषोमा :: एक नदी।[भागवत]
आर्जीकीया :: गंगा, यमुना, सरस्वती, सतलुज, परुष्णी, मरुद्वधा और आर्जीकीया सात नदियाँ।[वेद]
Hey Indr Dev! This Somras prepared in Sharynavat, Sushoma and Arjikiya will please-thrill you.
तमद्य राधसे महे चारुं मदाय घृष्वये। एहीमिन्द्र द्रवा पिब
हे इन्द्र देव! आप रिपुओं का संहार करने एवं हमें प्रचुर धन प्रदान करने के लिए शीघ्रतापूर्वक यहाँ पधार कर सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 8.64.12]
Hey Indr Dev! Destroy the enemies, grant us lots of wealth and come quickly here to drink Somras.(30.05.2024E)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (65) :: ऋषि :- प्रगाथ, काण्व; देवता :- इन्द्र; छन्द :- गायत्री।
यदिन्द्र प्रागपागुदङ्न्यग्वा हूयसे नृभिः। आ याहि तूयमाशुभिः
हे इन्द्र देव! यज्ञादि श्रेष्ठ कर्मों में निरत साधनों द्वारा सभी दिशाओं में आपको आवाहित किया जाता है। आप अतिशीघ्र अपने दौड़ने वाले अश्वों द्वारा पधारें।[ऋग्वेद 8.65.1]
Hey Indr Dev! You are invoked in all directions in the great deeds like Yagy. Come riding fast running horses.
यद्वा प्रस्रवणे दिवो मादयासे स्वर्णरे। यद्वा समुद्रे अन्धसः
हे इन्द्र देव! आप दिव्यलोक की अमृतरूपी धाराओं, अंतरिक्ष की रसधाराओं तथा पृथ्वी पर यज्ञादि के समय प्रवाहित होने वाली सोमरस की धाराओं से पुष्ट एवं हर्षित होते हैं।[ऋग्वेद 8.65.2]
Hey Indr Dev! You become healthy & happy by the streams of elixir in the divine abodes, currents of saps in the space and the flowing Somras at the time of Yagy etc. functions-celebrations.
आ त्वा गीर्भिर्महापुरुं हुवे गामिव भोजसे। इन्द्र सोमस्य पीतये
हे इन्द्र देव! जिस प्रकार गौवों को चारा देने के लिए बुलाया जाता है, उसी प्रकार हम अपनी स्तुतियों के द्वारा सोमरस के पान के लिए आपका आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.65.3]
Hey Indr Dev! The way cows are called for eating fodder, we invite you for drinking Somras with our Stuties.
आ त इन्द्र महिमानं हरयो देव ते महः। रथे वहन्तु बिभ्रतः
महान महिमा से युक्त हे इन्द्र देव! आपके रथ में नियोजित अश्व आपको लेकर यज्ञ स्थल पर पधारें।[ऋग्वेद 8.65.4]
Hey Indr Dev, possessing great glory! Let the horses deployed in your charoite bring you to the Yagy site.
इन्द्र गृणीष उ स्तुषे महाँ उग्र ईशानकृत्। एहि नः सुतं पिब॥
हे इन्द्रदेव! आप सबके स्वामी और अत्यंत पराक्रमी हैं। हम स्तुतियों द्वारा आपको प्रवृद्ध करते हैं। आप हमारे समीप आकर सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 8.65.5]
Hey Indr dev! You are the lord of every one and extremely mighty. We grow-flourish with our Stuties. Come close to us to drink Somras.
सुतावन्तस्त्वा वयं प्रयस्वन्तो हवामहे। इदं नो बर्हिरासदे
हे इन्द्र देव! हविरूप अन्न से युक्त हम सोम अभिषव करने वाले याजक कुशासन पर आसीन होने के लिए आपका आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.65.6]
Hey Indr Dev! We, the extractors of Som mixed with grains, invoke to for occupying the Kush Mat. 
यच्चिद्धि शश्वतामसीन्द्र साधारणस्त्वम्। तं त्वा वयं हवामहे
हे इन्द्र देव! आप अनेकों यजमानों के लिए सामान्यतः उपलब्ध रहते हैं, इसी कारण हम आपका आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.65.7]
Hey Indr Dev! You are available to hundreds of hosts-Ritviz, hence we invoke you.
इदं ते सोम्यं मध्वधुक्षन्नद्रिभिर्नरः। जुषाण इन्द्र तत्पिब
हे इन्द्रदेव! हम आपके लिए पत्थरों द्वारा कूट और पीसकर सोमरस तैयार करते हैं। आप हर्षित होकर उस सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 8.65.8]
Hey Indr Dev! We crush Som with stones and grind it to extract Somras for you. Enjoy Somras happily. 
विश्वाँ अर्यो विपश्चितोऽति ख्यस्तूयमा गहि। अस्मे धेहि श्रवो बृहत्
हे महान् इन्द्रदेव! आप शीघ्र पधारें और (मार्ग के) समस्त स्तोताओं को पार करके हमें ऐश्वर्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.65.9]
Hey great Indr Dev! Come quickly rejecting the Stotas over the way and grant grandeur to us.
दाता मे पृषतीनां राजा हिरण्यवीनाम्। मा देवा मघवा रिषत्॥
हे सुवर्ण और गौवों के स्वामी इन्द्र देव! आप हमें धन प्रदान करते हैं। हे देवताओं! उन इन्द्रदेव को कोई बाधा न पहुँचाए।[ऋग्वेद 8.65.10]
Hey lord of gold and cows, Indr Dev! You grant us wealth. Hey demigods-deities! None should obstruct Indr Dev.
सहस्त्रे पृषतीनामधिश्चन्द्रं बृहत्पृथु। शुक्रं हिरण्यमा ददे
हे इन्द्र देव! आपके द्वारा प्रदत्त हर्ष प्रदान करने वाले हजारों गौवों के रूप में उत्तम, प्रचुर तथा तेजपूर्ण धन को हम ग्रहण करते हैं।[ऋग्वेद 8.65.11]
Hey Indr Dev! We accept thousands of excellent cows and lots of wealth granted by you making us happy.
नपातो दुर्गहस्य मे सहस्त्रेण सुहस्त्रेण सुराधसः। श्रवो देवेष्वक्रत॥
हम अरक्षित तथा संकट ग्रस्त हैं। हमारे सम्बन्धीजन हजारों प्रकार के धनों के स्वामी हों और देवताओं के बीच में यश की प्राप्ति करें।[ऋग्वेद 8.65.12]
We are unprotected-unsafe and troubled. Let our relatives have thousands of kinds of wealth and have glory-fame amongest the demigods-deities.(31.05.2024E)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (66) :: ऋषि :- कलि, प्रगाथ; देवता :- इन्द्र; छन्द :- बृहती, पंक्ति, अनुष्टुप्।
तरोभिर्वो विदद्वसुमिन्द्रं सबाध ऊतये।
बृहद्गायन्तः सुतसोमे अध्वरे हुवे भरं न कारिणम्॥
अपनी सहायता के लिए हम इन्द्र देव का आवाहन उसी प्रकार करते हैं, जिस प्रकार बालक अपने हितैषी अभिभावक को पुकारता है। हे ऋत्विजों! आप अपनी सुरक्षा के निमित्त सोमयज्ञ में धन देने वाले अश्वों से युक्त इन्द्र देव की स्तुति करें।[ऋग्वेद 8.66.1]
We call Indr Dev for our help like a child who call his guardian. Hey Ritviz! Worship Indr Dev granting money accompanied with the horses for protection in the Som Yagy.
न यं दुध्रा वरन्ते न स्थिरा मुरो मदे सुशिप्रमन्धसः।
य आदृत्या शशमानाय सुन्वते दाता जरित्र उक्थ्यम्॥
कोई भी राक्षस सुंदर जबड़े वाले इन्द्र देव को पराजित नहीं कर सकता। सोमरस के पान से आनन्दित होने वाले इन्द्र देव की हम प्रार्थना करते हैं। वह अपने याजकों को उत्तम धन प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 8.66.2]
No demon-giant can defeat Indr Dev who possess beautiful jaws. We worship Indr Dev who become happy by drinking Somras. He grants best riches to his worshipers.
यः शक्रो मृक्षो अश्थ्यो यो वा कीजो हिरण्ययः।
स ऊर्वस्य रेजयत्यपावृतिमिन्द्रो गव्यस्य वृत्रहा
अत्यधिक बलशाली, धनी, अश्वों से युक्त, अद्भुत, वृत्ररूपी शत्रुओं के संहारक इन्द्र देव गौवों आदि के समूह को वश में करने वालों को वे भय से प्रकम्पित कर देते हैं।[ऋग्वेद 8.66.3]
Extremely powerful, wealthy, possessing horses, amazing, killer of demons in the form of Vratr Indr Dev tremble the people with fear who abduct cows.
निखातं चिद्यः पुरुसंभृतं वसूदिद्वपति दाशुषे।
वज्री सुशिप्रो हर्यश्व इत्करदिन्द्रः क्रत्वा यथा वशत्॥
वज्र और मुकुटादि को धारण करने वाले इन्द्र देव इच्छानुसार कार्य को करने में सक्षम, उत्तम अश्वों से युक्त हैं। वे संगृहित किए गए धनों को दानी याजकों के निमित्त बाहर निकालते हैं।[ऋग्वेद 8.66.4]
Wielding Vajr and crown, Indr Dev having best horses, is capable of performing jobs. He release the stored wealth for donating to the Ritviz.
यद्वावन्थ पुरुष्टुत पुरा चिच्छूर नृणाम्।
वयं तत्त इन्द्र सं भरामसि यज्ञमुक्थं तुरं वचः॥
हे इन्द्र देव! हम आपके सम्मुख यज्ञों, ऋचाओं और स्तुतियों को समर्पित करते हैं। आपने अपने प्राचीन याजकों से जो इच्छा की थी, हम उसकी पूर्ति करते हैं।[ऋग्वेद 8.66.5]
Hey Indr Dev! We offer Stuties, Richas in front of you in the Yagy. We will accomplish the desire your earlier Ritviz made with you.
सचा सोमेषु पुरुहूत वज्रिवो मदाय द्युक्ष सोमपाः।
त्वमिन्द्धि ब्रह्मकृते काम्यं वसु देष्ठः सुन्वते भुवः॥
हे वज्रधारी इन्द्र देव! आप अनेकों के द्वारा आवाहित किए जाते हैं। सोमरस का पान करने वाले आप स्वर्ग के स्वामी हैं। सोमाभिषव करने वाले यजमानों को आप इच्छित ऐश्वर्य प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 8.66.6]
Hey Vajr wielding Indr Dev! You are invoked by many. Desirous of drinking Somras, you are the lord of heavens. You grant desired grandeur to the hosts who extract Somras for you.
वयमेनमिदा ह्योऽपीपेमेह वज्रिणम्।
तस्मा उ अद्य समना सुतं भरा नूनं भूषत श्रुते
हमने इन्द्र देव को सोमरस का पान कराकर कल तृप्त किया था। इस यज्ञ में भी हम उन्हें सोम अर्पित करते हैं। हे स्तोताओं! आप उत्तम स्तोत्रों का गान करके इन्द्र देव को अलंकृत करें।[ऋग्वेद 8.66.7]
We satisfied Indr Dev by offering Somras to him, yesterday. We will offer Somras to him in this Yagy as well. Hey Stotas! Recite excellent-best Strotr to honour Indr Dev.
वृकश्चिदस्य वारण उरामथिरा वयुनेषु भूषति।
सेमं नः स्तोमं जुजुषाण आ गहीन्द्र प्र चित्रया धिया
हमारी स्तुतियों को ग्रहण करते हुए हमें उत्कृष्ट चिंतन, संयुक्त मेधा शक्ति प्रदान करने वाले इन्द्र देव का भेड़िए जैसा क्रूर शत्रु भी अहित नहीं सकता।[ऋग्वेद 8.66.8]
Cruel enemy like a wolf can not harm Indr Dev, who grant us excellent intellect and ability to think.
कदू न्व १ स्याकृतमिन्द्रस्यास्ति पौंस्यम्।
केनो नु कं श्रोमतेन न शुश्रुवे जनुषः परि वृत्रहा
कोई भी ऐसा पराक्रम नहीं, जिसे इन्द्र देव ने नहीं किया। कौन है, जिसने इन्द्र देव के पराक्रम को नहीं सुना? वृत्रासुर का संहार करने वाले इन्द्र देव बचपन से ही विख्यात हैं।[ऋग्वेद 8.66.9]
There is not of valour-bravery which has not been accomplished by Indr Dev. Who has not hear of the bravery of Indr Dev? Slayer of Vratr is famous since his childhood.
कदू महीरधृष्टा अस्य तविषीः कदु वृत्रघ्नो अस्तृतम्।
इन्द्रो विश्वान्बेकनाटाँ अहर्दृश उत क्रत्वा पर्णरिंभि
अपने बल, पराक्रम और सामर्थ्य से उन इन्द्र देव ने रिपुओं का कब संहार नहीं किया? उनका शत्रु वृत्रासुर उनके द्वारा कब अबध्य रहा? जिसे इन्द्र देव मारना चाहते हैं, उसे भला कौन बचा सकता है? वे अपने कर्मों के द्वारा समस्त लोभियों और कृपणों को नष्ट कर देते हैं।[ऋग्वेद 8.66.10]
When did Indr Dev not not destroy the enemy with his might, power and capability? When was his enemy Vratr remain unhurt? Who can survive targeted by Indr Dev? He destroy all greedy and misers. 
वयं घा ते अपूर्येन्द्र ब्रह्माणि वृत्रहन्।
पुरूतमासः पुरुहूत वज्रिवो भृतिं न प्र भरामसि
हे वृत्र हन्ता इन्द्र देव! आप बहुतों द्वारा आवाहित किए जाते हैं। अभिनव स्तोत्रों के द्वारा हे वज्रधारक! हम सेवकों की भाँति आपकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 8.66.11]
Hey slayer of Vratr Indr Dev! You are invoked by many. Hey wielder of Vajr, Indr Dev we worship you with newly composed Strotr-sacred hymns. We pray to you like servants.
पूर्वीश्चिद्धि त्वे तुविकूर्मिन्नाशसो हवन्त हन्द्रातयः।
तिरश्चिदर्यः सवना वसो गहि विष्ठ श्रुधि में हवम्
हे इन्द्र देव! आप अनेकों श्रेष्ठ कर्मों को करने वाले हैं। आप संरक्षित साधनों से युक्त है, इसलिए हम आपका आवाहन करते हैं। हे आश्रयदाता इन्द्र देव! हमारी स्तुतियों को श्रवण कर आप शत्रुओं के सभी सवनों को लांघकर हमारे यज्ञ में पधारें।[ऋग्वेद 8.66.12]
Hey Indr Dev! You are the performer of excellent deeds-endeavours. You posses the means of protection and hence we invoke you. Hey asylum granting Indr Dev! Respond to our prayers and come in our Yagy during all segments of the day.
वयं घा ते त्वे इद्विन्द्र विप्रा अपि ष्मसि।
नहि त्वदन्यः पुरुहूत कश्चन मघवन्नस्ति मर्डिता
अनेकों द्वारा आवाहित किए गए हे इन्द्र देव! हम यजमान सदैव आपकी ही शरण में रहें। आपके अतिरिक्त हमें कोई अन्य सुख प्रदान करने वाला दिखाई नहीं देता।[ऋग्वेद 8.66.13]
Invoked by many, hey Indr Dev! We the hosts-Ritviz always depend upon you for protection-asylum. None other than you, can grant us comforts, pleasure.
त्वं नो अस्या अमतेरुत क्षुधो ऽ भिशस्तेरव स्पृधि।
त्वं न ऊती तव चित्रया धिया शिक्षा शचिष्ठ गातुवित्
हे बलशाली इन्द्र देव! आप सत्य मार्ग के ज्ञाता है। आप हमें दरिद्रता तथा क्षुधा के अभिशाप से मुक्त करें। अपने अद्भुत कर्म और रक्षा साधनों द्वारा आप हमें अभीष्ट फल प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.66.14]
Hey mighty Indr Dev! You are aware of the truthful path. Release us from the curse of poverty and hunger. Grant us desired accomplishment with your amazing deeds and protection means.
सोम इद्वः सुतो अस्तु कलयो मा बिभीतन।
अपेदेष ध्वस्मायति स्वयं धैषो अपायति
हे कलि वंशियों! आपके द्वारा निर्मित किया गया सोमरस इन्द्र देव को प्राप्त हो। आप भयभीत न हों, क्योंकि हिंसा करने वाले लोग स्वयं दूर भाग रहे हैं।[ऋग्वेद 8.66.15]
Hey descendants of Kali! Let the Somras extracted by you reach Indr Dev. Do not be afraid since the violent people are on the run.(01.06.2024E)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (67) :: ऋषि :- मत्स्य, साम्मद, मित्र, वरुण, अर्यमा, बहव या मत्स्य, जाल, नदी;  देवता :- आदित्य, अदिति;  छन्द :- गायत्री।
त्यान्नु क्षत्रियाँ अव आदित्यान्याचिषामहे। सुमृळीकाँ अभिष्टये 
शत्रुओं के आक्रमणों से बचाने वाले तथा उत्तम सुख प्रदान करने वाले एवं क्षात्रकर्म वाले आदित्यगणों से हम अपनी सुरक्षा तथा अभीष्ट की पूर्ति के निमित्त याचना करते हैं।[ऋग्वेद 8.67.1]
We pray to Adity Gan who protect us from the attacks of the enemy, grant comforts-pleasure and perform the duties of the Kshatriy, for our safety and accomplishment of desires. 
मित्रो नो अत्यंहतिं वरुणः पर्षदर्यमा। आदित्यासो यथा विदुः
सभी कठिन कार्यों के ज्ञाता मित्र, वरुण, अर्यमा तथा सभी आदित्य हमें पाप पूर्ण कर्मों से बचाएँ।[ऋग्वेद 8.67.2]
Let Adity Gan named Mitr, Varun, Aryma and others aware of all difficult tasks, protect us from sinful acts.
तेषां हि चित्रमुक्थ्यं वरूथमस्ति दाशुषे। आदित्यानामरंकृते
उन आदित्यों के पास वरण करने योग्य और प्रशंसा करने योग्य प्रचुर ऐश्वर्य है। वे हवि प्रदान करने वाले बलशाली याजकों को महान् ऐश्वर्य प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 8.67.3]
The Adity Gan have acceptable & appreciable ample grandeur. They grant great grandeur to the mighty Ritviz making offerings.
महि वो महतामवो वरुण मित्रार्यमन्। अवांस्या वृणीमहे
हे वरुण देव, मित्र और अर्यमा देवों! हम आपसे सुरक्षा की कामना करते हैं, क्योंकि आप और आपकी सुरक्षा प्रक्रिया दोनों ही महान् हैं।[ऋग्वेद 8.67.4]
Hey Varun Dev, Mitr & Aryma demigods-deities! We request you for protection, since you and actions are great.
जीवान्नो अभि धेतनादित्यासः पुरा हथात्। कद्ध स्थ हवनश्रुतः
हे आदित्यों! हमारी स्तुतियों को श्रवण करने वाले आप जहाँ भी हों, हमारी मृत्यु से पूर्व यथाशीघ्र पधारें।[ऋग्वेद 8.67.5]
Hey Adity Gan! Responding to our prayers, where ever you, are reach prior to our death.
यद्वः श्रान्ताय सुन्वते वरूथमस्ति यच्छर्दिः। तेना नो अधि वोचत
हे देव! सोमयाग करने वाले साधकों को आप जो धन और आवास प्रदान करते हैं, उससे हमें भी संपन्न करें।[ऋग्वेद 8.67.6]
Hey Dev! Make us rich with the wealth and residence which provide to the practitioners of Som Yagy.
अस्ति देवा अंहोरुर्वस्ति रत्नमनागसः। आदित्या अद्भुतैनसः
पापकर्म करने वाला निश्चय ही पापी होता है, जबकि सत्कर्म करने वालों का पुण्य बहुत रमणीक होता है। हे आदित्यगण! आप हमें पापों से मुक्त करें और हमारे निमित्त सन्मार्ग के पथ को प्रशस्त करें।[ऋग्वेद 8.67.7]
A person performing sinful deeds is a sinner while the virtues of one performing auspicious-righteous deeds are delightful. Hey Adity Gan! Relieve us of sins and pave the way to austerity.
मा नः सेतुः सिषेदयं महे वृणक्तु नस्परि। इन्द्र इद्धि श्रुतो वशी
ये इन्द्र देव सभी को वशीभूत करने वाले हैं। वह महान कार्य में विघ्न न डालकर हमें समस्त बंधनों से सर्वथा मुक्त करें।[ऋग्वेद 8.67.8]
Indr Dev mesmerise every one. He should release from all bonds-ties without interfering in great endeavours.
मा नो मृचा रिपूणां वृजिनानामविष्यवः। देवा अभि प्र मृक्षत॥
हे रक्षाकारी देवों! हिंसाकारी शत्रुओं का हिंसक कार्य हमें संतप्त न करे। आप हमें उन हिंसक शत्रुओं के पाश में जकड़ने न दें।[ऋग्वेद 8.67.9]
Hey protecting Devs! The violent deeds of the enemies should not harm us. Do not let us tied in cords by the violent enemies.
उत त्वामदिते मह्यहं देव्युप ब्रुवे। सुमृळीकामभिष्टये
हे माता अदिति! आप उत्तम सुख प्रदान करने वाली हैं। अपनी कामनाओं की पूर्ति के लिए हम आपकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 8.67.10]
Hey Mata Aditi! You grant excellent comforts. We pray to you for the accomplishment of our deeds.
पर्षि दीने गभीर आं उग्रपुत्रे जिघांसतः। माकिस्तोकस्य नो रिषत्
हे पराक्रमी संतानों से सम्पन्न माता अदिति! हिंसा करने वाले लोग किसी भी अच्छी बुरी परिस्थिति में हमारी संतानों का वध न करें।[ऋग्वेद 8.67.11]
Hey Mata Aditi having valorous progeny! The violent people should not harm our progeny under any circumstances.
सनेहो न उरुव्रज उरूचि वि प्रसर्तवे। कृधि तोकाय जीवसे
हे आदित्यों! हिंसा रहित, उत्तम गमन करने योग्य हमारे मार्ग पर हर प्रकार से सुरक्षित होवें। हमारी सन्तानों को आप दीर्घायु प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.67.12]
Hey Adity Gan! We should be safe over the best way for travelling by all means and our progeny should attain long life.
ये मूर्धानः क्षितीनामदब्धासः स्वयशसः। व्रता रक्षन्ते अद्रुहः
हे यशस्वी आदित्यों! आप प्रमाद और विद्रोह रहित होकर हम मनुष्यों के कर्मों को संरक्षण प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 8.67.13]
Hey honourable-famed Adity Gan! You free from  intoxication and contempt granting protection to our endeavours-actions. 
ते न आस्रो वृकाणामादित्यासो मुमोचत। स्तेनं वद्धमिवाद्रिते
हे माता अदिति और आदित्य गणों! चोरों की भाँति छल से बाँधे गए हम लोगों को आप हिंसक लोगों के मुँखों से बचावें तथा हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 8.67.14]
Hey Mata Aditi & Adity Gan! Protect us from the violent people, being tied through deception by the thieves.
अपो षु ण इयं शरुरादित्या अप दुर्मतिः। अस्मदेत्वजघ्नुषी 
हे आदित्य गण! हमारी हिंसा करने वाले साधन हमसे दूर चले जाएँ तथा दुर्बुद्धि भी हमसे दूर हो जाए।[ऋग्वेद 8.67.15]
Hey Adity Gan! Let the means of harming us & the wicked-vicious keep off from us.
शश्वद्धि वः सुदानव आदित्या ऊतिभिर्वयम्। पुरा नूनं बुभुज्महे
हे आदित्यों! आप भली प्रकार दान देते हैं। आपके सुरक्षा-साधनों से संरक्षित होकर हम सदैव उत्तम सुखों का सेवन करते रहें।[ऋग्वेद 8.67.16]
Hey Adity Gan! You make donations properly. We enjoy the best comforts being protected with best means of protection.
शश्वन्तं हि प्रचेतसः प्रतियन्ततं चिदेनसः। देवाः कृणुथ जीवसे
हे विद्वान देवों! जो क्रूरकर्मा हमारा वध करना चाहता है, उसे हमसे दूर कर हमें दीर्घायुष्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.67.17]
Hey learned-enlightened demigods-deities! Grant us long life keeping us away from those who wish to kill us.
तत् सु नो नव्यं सन्यस आदित्या यन्मुमोचति। बन्धाद्वद्धमिवादिते
हे माता अदिति और आदित्य गणों! जिस प्रकार बंधे हुए व्यक्ति को आप बंधन से मुक्त करते है, उसी प्रकार आपका बल हमें भी बंधन से मुक्त करे। आपका वह बल स्तुति के योग्य है।[ऋग्वेद 8.67.18]
Hey Mata Aditi and Adity Gan! The way you release a tied person from bonds, release us as well from ties with your force. Your might and power deserve worship.
नास्माकमस्ति तद्व तर आदित्यासो अतिष्कदे। यूयमस्मभ्यं मृलत
हे आदित्य गणों! आपके समान हम वेगवान नहीं हैं, आपका वेग हमें संकट से मुक्त कर सकता है, अतः आप हमें सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.67.19]
Hey Adity Gan! None is more dynamic than you. Your speed can release us from troubles, hence grant us comforts-pleasure.
मा नो हेतिर्विवस्वत आदित्याः कृत्रिमा शरुः। पुरा नु जरसो वधीत्
हे आदित्यों! यम के मारक आयुध हमको वृद्धावस्था से पूर्व विनष्ट न करें।[ऋग्वेद 8.67.20]
Hey Adity Gan! The killing weapons of Yam-Dharm Raj should not kill prior of old age.
वि षु द्वेषे व्यंहतिमादित्यासो वि संहितम्। विष्वग्वि वृहता रपः
हे आदित्यों! आप विरोधियों और पापियों तथा उनके समूहों का विनाश करके, पापों को सभी स्थानों से दूर करें।[ऋग्वेद 8.67.21]
Hey Adity Gan! Destroy the opponents and sinners in groups removing-displacing sins from all abodes-places.(03.06.2024E)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (68) :: ऋषि :- प्रियमेध, आंगिरस;  देवता :-इन्द्र, ऋक्षाश्वमेध, दान; छन्द :- अनुष्टुप्, शंकुमती।
आ त्वा रथं यथोतये सुम्नाय वर्तयामसि। तुविकूर्मिमृतीषहमिन्द्र शविष्ठ सत्पते
हे पराक्रमी एवं बलशाली इन्द्र देव! शत्रुओं को पराजित करने वाले आप यजमानों के पोषक हैं। अपनी सुरक्षा तथा सुख के निमित्त गतिशील रथ के समान हम आपको यज्ञ स्थल पर ले जाते हैं।[ऋग्वेद 8.68.1]
Hey chivalric and mighty Indr Dev! You defeat the enemy and protect-nourish the hosts-Ritviz. We accompany you with your speedy charoite to the Yagy site for comforts and protection.
तुविशुष्म तुविक्रतो शचीवो विश्वया मते। आ पप्राथ महित्वना
हे पराक्रमी, मेधावी, यजनीय एवं बहुकर्मा इन्द्र देव! आप समस्त प्रकार की महिमा से युक्त होकर सम्पूर्ण संसार में व्याप्त रहते हैं।[ऋग्वेद 8.68.2]
Hey chivalric, intelligent, worshipable and mighty Indr Dev performing several deeds! You possess all sorts of grandeur and pervade the whole world.
यस्य ते महिना महः परि ज्मायन्तमीयतुः। हस्ता वज्र हिरण्ययम्
हे इन्द्र देव! आपके विशाल हाथ चारों ओर व्यापक ओर गतिशील हैं। आप स्वर्ण युक्त वज्र को धारण करने वाले हैं।[ऋग्वेद 8.68.3]
Hey Indr Dev! Your large hands move in the four directions with speed. You wield Vajr possessing gold.
विश्वानरस्य वस्पतिमनानतस्य शवसः। एवैश्च चर्षणीनामूती हुवे रथानाम्
हे मरुतों! युद्ध में सैनिकों पर होने वाले आक्रमण के समय रथों के संरक्षण के निमित्त हम शत्रु सैनिकों पर आक्रमण करने वाले, शत्रुओं को पराजित करने वाले बलशाली इन्द्र देव आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.68.4]
Hey Marud Gan! We invoke mighty Indr Dev who defeat the enemy; for the protection of soldiers & charoite in the war who are attacked by the enemy.
अभिष्टये सदावृधं स्वर्मीळ्हेषु यं नरः। नाना हवन्त ऊतये
युद्ध में अपनी सुरक्षा के लिए जिस इन्द्र देव का सभी मनुष्य आवाहन करते हैं, सतत् प्रवृद्ध इन्द्र देव को अपने संरक्षण हेतु हम भी आवाहित करते हैं।[ऋग्वेद 8.68.5]
All humans invoke Indr Dev for their protection in the war. We too invoke continuously growing Indr Dev for our continuous protection.
परोमात्रमृचीषममिन्द्रमुग्रं सुराधसम्। ईशानं चिद्वसूनाम्
अत्यधिक शौर्यवान, संपत्तिवान्, स्तुतियों के इच्छुक और देव स्वामी इन्द्र देव को अपनी रक्षा के लिए आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.68.6]
We invoke highly potential-valorous, wealthy, desirous of Stutis and the lord of demigods-deities Indr Dev for our safety!
तंतमिद्राधसे मह इन्द्रं चोदामि पीतये। यः पूर्व्यामनुष्टुतिमीशे कृष्टीनां नृतुः
स्तोताओं की पुरातन स्तुतियों को श्रवण करने वाले, सबके नायक इन्द्र देव है। हम श्रेष्ठ सम्पत्ति की प्राप्ति के लिए उनका आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.68.7]
Indr Dev is the listener of the ancient prayers by the Stotas, leader-lord of all. We invoke him for obtaining best wealth.
न यस्य ते शवसान सख्यमानंश मर्त्यः। नकिः शवांसि ते नशत्
हे बलशाली इन्द्र देव! कोई भी मनुष्य आपकी मित्रता और सामर्थ्य की प्रतिद्वन्दित कर सकता।[ऋग्वेद 8.68.8]
Hey mighty Indr Dev! No human being can rival your friendship and potential.
त्वोतासस्त्वा युजाप्सु सूर्ये महद्धनम्। जयेम पृत्सु वज्रिवः
हे वज्र धारण करने वाले इन्द्र देव! आपका संरक्षण तथा आपकी कृपा प्राप्त करके हम सूयोंदय काल के यज्ञ को संपन्न करें। हम युद्धों में विजयी होकर प्रचुर सम्पत्ति प्राप्त करें।[ऋग्वेद 8.68.9]
Hey Indr Dev wielding Vajr! Having attained your protection and mercy we will conduct the Yagy in the morning. We will win the wars and attain lots of wealth.
तं त्वा यज्ञे जये भिरीमहे तं गीर्भिर्गिर्वणस्तम। इन्द्र यथा चिदाविथ वाजेषु पुरुमाय्यम्
हे इन्द्र देव! हम यज्ञों तथा प्रार्थनाओं द्वारा आपका आवाहन करते हैं, जिससे युद्ध में आप हमें संरक्षण प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.68.10]
Hey Indr dev! We invoke you through Yagy and prayers so that you provide us asylum-protection in the war.
यस्य ते स्वादु सख्यं स्वाद्वी प्रणीतिरद्रिवः। यज्ञो वितन्तसाय्यः
हे वज्रधारी इन्द्र देव! आपका मित्रभाव अति मधुर है। सभी लोग आपके निमित्त यजन करते हैं।[ऋग्वेद 8.68.11]
Hey Vajr wielding Indr Dev! Your friendship is very gladdening. All people conduct Yagy for you.
उरु णस्तन्वे तन उरु क्षयाय नस्कृधि। उरु णो सन्धि जीवसे
हे इन्द्र देव! आप हमारी सन्तानों के लिए विपुल धन, आवास के लिए उत्तम भवन तथा जीवन के लिए दीर्घायुष्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.68.12]
Hey Indr Dev! Grant lots of wealth, best house for living and long life to our progeny-sons.
उरुं नृभ्य उरुं गव उरुं रथाय पन्थाम्। देववीतिं मनामहे
हे इन्द्र देव! हम अपने परिजनों के लिए आपसे प्रचुर धन, गौवों के निमित्त विस्तृत स्थान तथा रथों के निमित्त बृहद् मार्ग की कामना करते हैं और इसलिए आपकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 8.68.13]
Hey Indr Dev! We request lots of wealth, shade for cows, broad & comfortable roads for our charoites
उप मा षड् द्वाद्वा नरः सोमस्य हर्ष्या। तिष्ठन्ति स्वादुरातयः
सोमरस के पान से प्रसन्न होकर उपभोग्य धन से संपन्न हुए छः नायक दो-दो के जोड़ी में हमारे ओर आगमन करते हैं।[ऋग्वेद 8.68.14]
On been satisfied by drinking Somras, having acquired usable wealth, six leaders in group of two come-march towards us.
ऋज्राविन्द्रोतआ ददे हरी ऋक्षस्य सूनवि। आश्वमेधस्य रोहिता
ऋक्ष के पुत्र से दो हरित वर्ण वाले अश्वमेध के पुत्र से दो, रोहित वर्ण वाले और इन्द्रोत नामक राजपुत्र से दो सरलतापूर्वक गमन करने वाले अश्वों को हमने प्राप्त किया।[ऋग्वेद 8.68.15]
We obtained two green coloured horses from the son of Raksh & Ashwmedh's son and easily moving red coloured horses from the princes named Indrot.
सुरथां आतिथिग्वे स्वभीशूराक्षै। आश्वमेधे सुपेशसः
अतिथिग्व के पुत्र से उत्तम रथ युक्त ऋक्ष पुत्र से सुंदर लगाम युक्त तथा अश्व मेध के पुत्र से सुंदर रूप वाले अश्व हमें प्राप्त हुए।[ऋग्वेद 8.68.16]
We got charoite deployed with horses from Atithigavy, horses having reins from Raksh and beautiful horses from Ashwmedh.
वलश्वां आतिथिग्व इन्द्रोते वधूमतः। सचा पूतक्रतो सनम्
अतिथिग्व पुत्र इन्द्रोत के पावन कर्मानुष्ठान यज्ञ में मादा रहित छः अश्वों को एक साथ हमने प्राप्त किया।[ऋग्वेद 8.68.17]
We got six horses without mare from the Indrot, the son of Atithigavy in the pious rituals-celebrations in the Yagy.
ऐषु चेतदृषण्वत्यन्तर्ऋज्रेष्वरुषी। स्वभीशुः कशावती
सरलता से चलने वाले अश्वों के बीच में बलशाली एवं तेजस्वी तथा लगाम से युक्त घोड़ी भी दिखाई दे रही है।[ऋग्वेद 8.68.18]
A mare bearing reins was seen amongest the strong horses moving easily, amongest the horses.
न युष्मे वाजबन्धवो निनित्सुश्चन मर्त्यः। अवद्यमधि दीधरत् 
हे बंधुओं! निंदक व्यक्ति भी आपकी निंदा करने में समर्थ नहीं हो सकता, क्योंकि आप अन्न दान करते हैं।[ऋग्वेद 8.68.19]
Hey brothers! A cynic-back biter too can not condemn-censure you;  since you donate food grains.(04.06.2024E)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (69) :: ऋषि :- प्रियमेध, आंगिरस;  देवता :-इन्द्र, विश्वेदेवा, वरुण। छन्द :- अनुष्टुप्, उष्णिक्, गायत्री, पंक्ति, बृहती।
प्रप्र वस्त्रिष्टुभमिषं मन्दद्वीरायेन्दवे। धिया वो मेधसातये पुरंध्या विवासति
हे अध्वर्युओं! इन्द्र देव के लिए तीन स्तोत्रों से तैयार हविष्यान्न प्रदान करें। यज्ञ का सम्पादन करने के लिए विवेक पूर्वक किए गए उत्तम कर्मों का इच्छित फल प्रदान करके इन्द्र देव अपने यजमानों को प्रसन्न करते हैं।[ऋग्वेद 8.69.1]
Hey priests! Make offerings (food grains) to Indr Dev with three Strotrs. Indr Dev please-gladdens the hosts who conduct the Yagy prudently granting them desired rewards-accomplishments.
नदं व ओदतीनां नदं योयुवतीनाम्। पतिं वो अघ्न्यानां धेनूनामिषुध्यसि
हम यजमानों के लिए उषा और चंद्र किरणों को उत्पन्न करने वाले गोपालक इन्द्र देव का आवाहन करते हैं, क्योंकि वे गौ दुग्ध को पोषक अन्न के रूप में प्राप्त करने की इच्छा करते हैं।[ऋग्वेद 8.69.2]
We invoke Indr Dev the nurturer of cows and producer of the rays of Usha and Moon, for the sake of hosts-Ritviz, since they are desirous of having cows milk for nourishing them.
ता अस्य सूददोहसः सोमं श्रीणन्ति पृश्नयः। जन्मन्देवानां विशस्त्रिष्वा रोचने दिवः
सूर्य देव के उदय होने पर जो गौएँ देवताओं के उत्पत्ति स्थान स्वर्ग से तीनों सवनों में विपुल दुग्ध प्रदान करती हैं, वो इन्द्र देव के लिए अपने दुग्ध को सोमरस में मिलाती हैं।[ऋग्वेद 8.69.3]
The cows produce lots of milk during the three segments of the day in the heavens at Sun rise and mix milk in Somras for serving to Indr Dev.
अभि प्र गोपतिं गिरेन्द्रमर्च यथा विदे। सूनुं सत्यस्य सत्पतिम्
हे यजमानों! इन्द्र देव को उनके बल का आभास दिलाने के लिए गो-पालक, सत्यनिष्ठ सज्जनों के संरक्षक, यज्ञ के पुत्र रूप इन्द्र देव की ऋचाओं के साथ प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 8.69.4]
Hey hosts! To realise his powers cows owners worship Indr Dev as the son of Yagy, protector-guardian of the gentle, with the Richas. 
आ हरयः ससृज्रिरेऽरुषीरधि बर्हिषि। यत्राभि संनवामहे
यज्ञ मंडप में हम जिन इन्द्र देव की स्तुति करते हैं, उत्तम अश्व उन्हें यज्ञ स्थल पर ले आवें।[ऋग्वेद 8.69.5]
Let excellent horses bring Indr Dev to the Yagy site worshiped by us in the Yagy Mandap.
इन्द्राय गाव आशिरं दुदुहे वज्रिणे मधु। यत्सीमुपह्वरे विदत्
जब यज्ञ स्थल के पास ही इन्द्र देव मधुर सोमरस का पान करते हैं, तब गौएँ वज्र हस्त इन्द्र देव के लिए मधुर दुग्ध प्रदान करती हैं।[ऋग्वेद 8.69.6]
When Vajr wielding Indr Dev drink Somras at the Yagy site cows provide sweet milk for him..
उद्यद्ब्रध्नस्य विष्टपं गृहमिन्द्रश्च गन्वहि। मध्वः पीत्वा सचेवहि त्रिः सप्त सख्युः पदे
सूर्य लोक में जब हम इन्द्र देव के साथ गमन करें, तब सूर्य देव के इक्कीस स्थानों में मधुर सोमरस का पान करके एक-दूसरे से मिलें।[ऋग्वेद 8.69.7]
When we move in Sury Lok-abode with Indr Dev, then we should meet twenty one times drinking sweet Somras.
अर्चत प्रार्चत प्रियमेधासो अर्चत। अर्चन्तु पुत्रका उत पुरं न धृष्णवर्चत
हे प्रियमेध के वंशजों! शत्रुओं को पराजित करने, संतान एवं यजमानों की इच्छाओं को पूर्ण करने वाले यज्ञप्रिय इन्द्रदेव का आप पूजन करें।[ऋग्वेद 8.69.8]
Hey descendants of Priymedh! Worship Indr Dev admiring Yagy, who defeat the enemies and accomplish your desires along with the desires of progeny.
अव स्वराति गर्गरो गोधा परि सनिष्वणत्। पिङ्गा परि चनिष्कददिन्द्राय ब्रह्मोद्यतम्
रण वाद्यों से स्वर निकल रहे हैं, गोधा सब ओर शब्द कर रहे हैं। पिंगा की ध्वनि सभी ओर सुनाई पड़ रही है। ऐसे में इन्द्र देव के लिए स्तोत्रों का उच्चारण करें।[ऋग्वेद 8.69.9]
Music instruments in the war are played, Godha is making sound-noise. Sound of Pinga is heard every where. At this moment recite Strotr for Indr Dev.
आ यत्पतन्त्येन्यः सुदुघा अनपस्फुरः। अपस्फुरं गृभायत सोममिन्द्राय पातवे
जिस समय उज्ज्वल जल से नदियाँ प्रवाहित होती हैं, उस समय इन्द्र देव के पान के लिए उत्तम गुणों से युक्त मधुर सोमरस लेकर उपस्थित हों।[ऋग्वेद 8.69.10]
Present Somras having excellent properties-qualities for Indr Dev to drink; when water flow in the clean rivers. 
अपादिन्द्रो अपादग्निर्विश्वेदेवा अमत्सत। 
वरुण इदि क्षयत् तमापो अभ्यनूषत वत्सं संशिश्वरीरिव
सोमरस के पान द्वारा अग्नि देव, इन्द्र देव आदि सभी देवता हर्षित हुए। वरुण देव भी वहाँ उपस्थित हैं। गौएँ अपने बछड़ों की प्राप्ति के लिए जिस प्रकार शब्द करती हैं, उसी प्रकार हमारे स्तोत्र वरुण देव की प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 8.69.11]
All demigods-deities including Agni Dev, Indr Dev became happy  by drinking Somras. Varun dev too presented himself there. The way the cows produce sound for their calf our Strotr worship-pray Varun Dev similarly.
सुदेवो असि वरुण यस्य ते सप्त सिन्धवः। अनुक्षरनित काकुदं सूर्यं सुषिरामिव
हे वरुण देव! सूर्य देव की ओर उज्ज्वल किरणें जिस प्रकार गमन करती हैं, उसी प्रकार आपके प्रभाव से सप्त नदियाँ समुद्र की ओर प्रवाहित होती हैं।[ऋग्वेद 8.69.12]
Hey Varun Dev! The way the bright rays of sun move, the rivers move to the ocean-Sapt Sindhu due to your impact.
यो व्यतींरफाणयत् सुयुक्तां उप दाशुषे। तक्वो नेता तदिद्वपुरुपमा यो अमुच्यत
जो इन्द्र देव अपने तीव्र गति वाले अश्वों को रथ में नियोजित कर हवि समर्पित करने वाले याजकों के पास जाते हैं, वह यज्ञ में प्रतिष्ठित स्थान को प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 8.69.13]
Indr Dev who deploy high speed-fast running horses in his charoite to reach the Ritviz conducting Yagy and making offerings; attains glory in the Yagy.
अतीदु शक्रः ओहत इन्द्रो विश्वा अति द्विषः।
भिनत् कनीत ओदनं पच्यमानं परो गिरा
ये इन्द्र देव (नाना प्रकार के) बलों से युक्त और सुंदर हैं। वे समस्त शत्रुओं और स्तुतियों से भी परे हैं। वे जल से युक्त मेघों को नष्ट कर डालते हैं।[ऋग्वेद 8.69.14]
Indr Dev is beautiful & associated with various kids of strength, might-power. He is above the enemies and Stuties. He destroys the clouds causing rains.
अर्भको न कुमारको ऽधि तिष्ठन् रव रथम्।
स पक्षन्महिषं मृगं पित्रे मात्रे विभुक्रतुम्
अनेकानेक कार्यों को पूर्ण करने वाले एवं मेघों को जलवृष्टि हेतु प्रेरित करने वाले इन्द्र देव अपने बलशाली शरीर से नवीन रथ पर आरूढ़ होते हैं।[ऋग्वेद 8.69.15]
Indr Dev who accomplish many deeds-endeavours inspire-motivate the clouds to rain, riding his strong body in a new charoite.
आ तू सुशिप्र दंपते रथं तिष्ठ हिरण्ययम्।
अध द्युक्षं सचेवहि सहस्त्रपादमरुषं स्वस्तिगामनेहसम्
हे सुंदर आकृति वाले इन्द्र देव! जब हजारों किरणों से प्रकाशित, द्रुतगामी और स्वर्णिम रथ पर आप भली प्रकार आरूढ़ हों, तब हम आपसे भेंट करेंगे।[ऋग्वेद 8.69.16]
Hey Indr Dev possessing well built up body! When you ride your fast moving golden charoite properly displaying thousands of rays, meet us as well.
तं घेमित्था नमस्विन उप स्वराजमासते।
अर्थं चिदस्य सुधितं यदेतव आवर्तयन्ति दावने
इन्द्र देव की स्तुति करने वाले यजमान ही उत्तम संपदा तथा मेधा शक्ति को प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 8.69.17]
The Ritviz-hosts who worship Indr Dev get best wealth-property and intelligence.
अनु प्रत्नस्यौकसः प्रियमेधास एषाम्।
पूर्वामनु प्रयतिं वृक्तबर्हिषो हितप्रयस आशत
कुश-आसन फैलाने वाले और यज्ञों में हवि रूप अन्न प्रदान करने वाले प्रियमेघ ऋषि की संतानों ने इन्द्र देव के प्राचीन स्थान (स्वर्गलोक) को प्राप्त किया।[ऋग्वेद 8.69.18]
The progeny of Priymedh Rishi who used to spread Kush Mats and made offerings in the form of food grains attained heavens, the abode of Indr Dev.(05.06.2024)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (70) :: ऋषि :- पुरुहन्मा, आंगिरस; देवता :-इन्द्र;  छन्द :- बृहती, पंक्ति, उष्णिक्, अनुष्टुप्। 
यो राजा चर्षणीनां याता रथेभिरध्रिगुः।
विश्वासां तरुता पृतनानां ज्येष्ठो यो वृत्रहा गृणे
सभी मनुष्यों के राजा, शत्रु सेना के विनाशक, वेगवान्, वृत्रासुर के संहारक इन्द्र देव की हम स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 8.70.1]
We worship-pray Indr Dev, the king of all humans, destroyer of enemy armies, dynamic & killer of Vratra Sur.
इन्द्रं तं शुम्भ पुरुहन्मन्नवसे यस्य द्विता विधर्तरि।
हस्ताय वज्रः प्रति धायि दर्शतो महो दिवे न सूर्यः
हे यजमानों! अपनी रक्षा के लिए आप इन्द्र देव की स्तुति करें। वह उम्र और उदार दोनों प्रकार के स्वभाव से युक्त हैं। हाथ में वज्र धारण करने वाले वे, इन्द्र देव सूर्यदेव के सदृश तेजस्वी हैं।[ऋग्वेद 8.70.2]
Hey Ritviz! Worship Indr Dev for your safety-protection. His nature is elderly & liberal. Wielding Vajr in the hands, he is aurous-radiant like Sury Dev.
नकिष्टं कर्मणा नशद्यश्चकार सदावृधम्।
इन्द्रं न यज्ञैर्विश्वगूर्तमृभ्वसमधृष्टं धृष्ण्वोजसम्
स्तुति योग्य, बलों से युक्त, समृद्धशाली, अजेय, शत्रुओं का नाश करने वाले इन्द्र देव को जो यजमान यज्ञकर्म द्वारा अपने अनुकूल कर लेता है, उसके कर्मों को कोई नष्ट नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 8.70.3]
The host-Ritviz who seek-attains favours of worshipable, invincible, destroyer of the enemies Indr Dev, through the Yagy; his efforts can not be vanished by any one.
अषाळ्हमुग्रं पृतनासु सासहिं यस्मिन्महीरुरुज्ज्रयः।
सं धेनवो जायमाने अनोनवुर्भावः क्षामो अनोनवुः
पृथ्वी-आकाश और वेगवती गौएँ भी जिन इन्द्र देव के समक्ष नत मस्तक होती हैं, उन उग्र, शत्रुजेता और शौर्यवान् इन्द्र देव की हम प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 8.70.4]
We worship furious, winner of the enemy and brave Indr Dev before whom the earth, space-sky, dynamic cows bow.
यद्याव इन्द्र ते शतं भूमीरुत स्युः।
न त्वा वज्रिन्त्सहस्रं सूर्या अनु न जातमष्ट रोदसी
हे इन्द्र देव! सैकड़ों आकाश और भूमियाँ तथा हजारों सूर्य भी आपकी समानता नहीं कर सकते। आकाश और पृथ्वी में कोई भी आपकी समानता करने वाला नहीं है।[ऋग्वेद 8.70.5]
Hey Indr Dev! Hundred of skies, earths and thousands of Sun can not be compared-equated with you. Neither earth nor sky is equivalent to you.
आ पप्राथ महिना वृष्ण्या वृषन्विश्वा शविष्ठ शवसा।
अस्माँ अव मघवन्गोमति व्रजे वज्रिञ्चित्राभिरूतिभिः
हे बलवान्, धनवान्, वज्रधारी इन्द्र देव! आप अपनी सामर्थ्यशक्ति से सभी की कामनाओं की पूर्ण करने वाले हैं, हमारी गौवों की रक्षा करें।[ऋग्वेद 8.70.6]
Hey mighty, wealthy, Vajr wielding Indr Dev! You accomplish the desires of every one with your capability-power. Protect our cows.
न सीमदेव आपदिषं दीर्घायो मर्त्यः।
एतग्वा चिद्य एतशा युयोजते हरी इन्द्रो युयोजते
हे अविनाशी इन्द्र देव! जो शुभ्रवर्ण वाले दो अश्वों को अपने साथ जोड़ता है, उसके साथ इन्द्र देव के हरित अश्व भी स्वतः ही जुड़ जाते हैं।[ऋग्वेद 8.70.7]
Hey immortal Indr Dev! Your green horses automatically join any one's two white horses.
तं वो महो महाय्यमिन्द्रं दानाय सक्षणिम्।
यो गाधेषु य आरणेषु हव्यो वाजेष्वस्ति हव्यः
हे यजमानों! जो इन्द्र देव मित्र भाव से आश्रय स्थलों तथा युद्धों में आवाहित किए जाते है, धन और ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए आप उनकी प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 8.70.8]
Hey Ritviz! Worship Indr Dev who is invoked for shelter and battles; for wealth & grandeur.
उदु  षु णो वसो महे मृशस्व शूर राधसे।
उदू षु महौ मघवन्मघत्तय उदिन्द्र श्रवसे महे
हे इन्द्र देव! आप हमें धन-सम्पदा प्राप्त करने के लिए प्रेरित करें। आपकी कृपा से हम उत्तम अन्नादि ग्रहण करने में सक्षम हों।[ऋग्वेद 8.70.9]
Hey Indr Dev! Inspire us for wealth & property. Let us become capable of accepting best food grains by virtue of your mercy-kindness.
त्वं न इन्द्र ऋततयुस्त्वानिदो नि तृम्पसि।
मध्ये वसिष्व तुविनृणोर्वोर्नि दासं शिश्नथो हथैः
हे पराक्रमी इन्द्र देव! आप यज्ञ का संरक्षण करने वाले व यज्ञनिंदकों के धन को अपहृत कर हमें तृप्ति प्रदान करें। अपने आयुधों द्वारा दस्युओं का वध कर आप हमें उत्तम आवास प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.70.10]
निन्दक :: अपमानकारी, अपवादी, उपहासात्मक, मुँहफट, बुराई करने वाला, मानव द्वेषी, चुगलखोर, आक्षेपक, निन्दोपाख्यान लेखक, उपहासात्मक; निंदा करने वाला, दूसरों के दोष या बुराई कहने वाला; cynic, satirist, slanderer, defamer, libellers, traducer, vilifier, detractor, slanderer, cynical, backbiter, denigrator, satirist, satirical.
Hey valorous Indr Dev! You are a protector of the Yagy. Snatch-abduct the wealth of those who detract Yagy. Kill the dacoits with your weapons and provide us best residence.
अन्यव्रतममानुषमयज्वानमदेवयुम्।
अव स्वः सखा दुधुवीत पर्वतः सुघ्नाय दस्यु पर्वतः
देवताओं के निंदक, मानवता से रहित अयाज्ञिकों और धर्म से विमुख रहने वालों को पर्वत ऋषि स्वर्ग से निकालते है। इस प्रकार के दुष्टों और अधर्मियों को पर्वत ऋषि संहार करने वाले योद्धाओं को सौंप देते हैं।[ऋग्वेद 8.70.11]
Parwat Rishi expel the detractors of demigods-deities, those who do not conduct Yagy & irreligious from the heavens. He hand over such wicked & irreligious people to the warriors for destruction-killing.
त्वं न इन्द्रासां हस्ते शविष्ठ दावने।
धानानां न स गृभायास्मयुर्द्धिः सं गृभायास्मयुः
हे इन्द्र देव! याजकगण जिस प्रकार भुने हुए जौ को हाथ में लेते हैं, उसी प्रकार आप हमारे लिए अपने हाथ में दान की गौवों को लें। आप हमारी इच्छाओं को पूर्ण करने में समर्थ हैं।[ऋग्वेद 8.70.12]
Hey Indr Dev! The way the Ritviz keep roasted barley in their hands, keep cows ready for donation to us with your hands. You are capable of accomplishing our desires.
  सखायः क्रतुमिच्छत कथा राधाम शरस्य। उपस्तुतिं भोजः सूरियों अह्नयः
हे मित्रों! जो पराक्रम प्रकट करने की इच्छा से शत्रुओं का संहार करते हैं, हम उन इन्द्र देव की किस प्रकार प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 8.70.13]
Hey friends! We worship Indr Dev, who destroys the enemies with his valour & bravery.
भूरिभिः समह ऋषिभिर्बर्हिष्मदृभि स्तविष्यसे।
यदित्थमेकमेकमिच्छर वत्सान् पराददः
हे इन्द्र देव! आप वंदनीय व शत्रु विनाशक हैं। जब बछड़ों सहित आप हमें गौ प्रदान करते हैं, तब अनेकानेक ऋषि तथा यज्ञ करने वाले आपकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 8.70.14]
Hey Indr Dev! You are worshipable and destroyer of the enemy. When you donate cows to us having calves, many Rishis and those performing Yagy worship-pray to you.
कर्णगृह्या मघवा शौरदेव्यो वत्स नस्त्रिभ्य आनयत्। अजां सूरिर्न धातवे
हे धनवान इन्द्र देव! जिस प्रकार बुद्धिमान् बकरी का स्वामी उसका कान पकड़कर लाता है, उसी प्रकार आप पराक्रम से प्राप्त होने वाली दिव्य गौवों को हमारे लिए ले आवें।[ऋग्वेद 8.70.15]
Hey wealthy Indr Dev!  The way an intelligent goat owner brings back his goats by holding their ears, bring divine cows to us with your valour for us.(06.06.2024)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (71) :: ऋषि :- सुदीति, पुरुमीलहा, आंगिरस, अन्यान्य;  देवता :- अग्नि; छन्द :- गायत्री, बृहती। 
त्वं नो अग्ने महोभिः पाहि विश्वस्या अरातेः। उत द्विषो मर्त्यस्य
हे अग्नि देव! संसार के द्वेषी व्यक्तियों एवं शत्रुओं से आप हमारी रक्षा करें। कठिन परिस्थितियों में भी आप हमें धैर्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.71.1]
Hey Agni Dev! Protect us from all the envious and enemies in the world. Grant us patience during difficult-tough times.
नहि मन्युः पौरुषेय ईशे हि वः प्रियजात। त्वमिदसि क्षपावान्
हे अग्नि देव! आप रात्रि में भी प्रदीप्त होने वाले हैं। किसी भी पापी का आक्रोश आपके याजकों पर शासन नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 8.71.2]
आक्रोश :: कर्कश स्वर में की जानेवाली भर्त्सना, रोषपूर्ण भावना; upsurge, resentment, anger, malediction.
Hey Agni Dev! You glow-illuminate at night as well. Malediction of a sinner can not rule your Ritviz.
स नो विश्वेभिर्देवेभिरूर्जी नपाद्भद्रशोचे। रयिं देहि विश्ववारम्
हे अग्नि देव! समस्त देवों के साथ आप हमें वरणीय धन प्रदान करें, (क्योंकि) शक्ति को क्षीण न होने देने वाले आप मंगलकारी आलोक से युक्त हैं।[ऋग्वेद 8.71.3]
Hey Agni Dev! You along with all demigods-deities, grant us suitable-acceptable wealth, since you are accompanied with never fading beneficial aura.
न तमग्ने अरातयो मर्तं युवन्त रायः। यं त्रायसे दाश्वांसम्
हे अग्नि देव! जिन हविदाता याजकों को आप संरक्षित करते हैं, उन्हें कोई भी पापी मनुष्य धनादि से हीन नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 8.71.4]
Hey Agni Dev! The Ritviz-hosts making offerings, who are protected by you, can not be deprived of their wealth.
यं त्वं विप्र मेधसातावग्ने हिनोषि धनाय। स तवोती गोषु गन्ता
हे अग्नि देव! आप जिन हवि प्रदान करने वाले मनुष्यों को धन प्राप्त करने के लिए यज्ञ कर्म में प्रेरित करते हैं, वे आपके संरक्षण में गौ आदि से संपन्न होते हैं।[ऋग्वेद 8.71.5]
Hey Agni Dev! The humans making offerings, inspired you to get money for the Yagy, are benefited with cows under your protection-guardianship.
त्वं रयिं पुरुवीरमग्ने दाशुषे मर्ताय। प्र णो नय वस्यो अच्छ
हे अग्नि देव! आप आहुतियाँ देने वालों को योद्धाओं से युक्त उत्तम ऐश्वर्य प्रदान करते है, वैसा ही धन आप हमें भी प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.71.6]
Hey Agni Dev! The best grandeur granted by you those who make offerings along with warriors to us as well, with wealth.
उरुष्या णो मा परा दा अघायते जातवेदः। दुराध्ये मर्ताय
हे अग्नि देव! आप हमें संरक्षण प्रदान करें। आप हमें पापी तथा हिंसक मनुष्यों के अधीन न होने दें।[ऋग्वेद 8.71.7]
Hey Agni Dev! Grant us protection. Do not let us be over powered by the sinners and violent people.
अग्ने माकिष्टे देवस्य रातिमदेवो युयोत। त्वमीशिषे वसूनाम्
हे अग्नि देव! आप ही समस्त धनों के स्वामी हैं। कोई भी दुराचारी व्यक्ति आपके द्वारा प्रदत्त दान से हमें वंचित न करे।[ऋग्वेद 8.71.8]
Hey Agni Dev! You are the lord of all wealth. No lascivious-sinner, bad character can deprive us of the donations made by you, to us.
स नो वस्व उप मास्यूर्जो नपान्माहिनस्य। सखे वसो जरितृभ्यः
बहुतों को आश्रय प्रदान करने वाले हे बल के पुत्र अग्नि देव! हम स्तुति करने वालों को आप महानता से सम्पन्न श्रेष्ठ ऐश्वर्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.71.9]
Hey son of Bal granting asylum to several people! Grant best grandeur accompanied with greatness to us; the people who worship you.
अच्छा नः शीरशोचिषं गिरो यन्तु दर्शतम्।
इच्छा यज्ञासो नभसा पुरूवसुं पुरुप्रशस्तमृतये
हमारी प्रार्थनाएँ भली-प्रकार से प्रदीप्त, सुशोभित और दर्शनीय अग्नि देव के समीप सहजता से गमन करें। हमारी रक्षा के लिए घृतयुक्त हवियों से सम्पन्न यज्ञ, प्रचुर संपदा से युक्त और अति प्रशंसनीय अग्नि देव को प्राप्त हों।[ऋग्वेद 8.71.10]
Let our worship-prayers reach radiant, beautiful Agni Dev easily. Let offerings enriched with Ghee in the Yagy reach appreciable-laudable Agni Dev possessing lots of wealth
अग्नि सूनुं सहसो जातवेदसं दानाय वार्याणाम्।
द्वितो यो भूदमृतो  मत्र्येष्वा होता मन्द्रतमो विशि
दान की इच्छा से हम जातवेदा अग्नि देव का आवाहन करते हैं। दो रूपों वाले अग्निदेव मरणधर्मी मनुष्यों में होता तथा अविनाशी देवताओं के लिए आनंदरूप हैं।[ऋग्वेद 8.71.11]
We invoke Jatveda Agni Dev with the desire of donations-charity. Agni Dev in two forms is host for the mortal humans and gladdening for the immortal demigods-deities.
अग्नि वो देवयज्या ऽग्नि प्रयत्यध्वरे।
अग्निं धीषु प्रथममग्निमर्वत्यग्नि क्षैत्राय साधसे
ये याजको! यज्ञ के लिए हम अग्निदेव की स्तुति करते हैं। यज्ञाग्नि के प्रदीप्त होने पर सभी विवेकपूर्ण कार्यों में संलग्न रहते हुए तथा क्षेत्रीय लाभ हेतु सर्वप्रथम उन अग्नि देव की प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 8.71.12]
Hey Ritviz! We worship-pray Agni Dev for the Yagy. With the illumination-ignition of the fire in the Yagy, we continue in our efforts-endeavours for local benefits and worship-pray Agni Dev, first of all.
अग्निरिषां सख्ये ददातु न ईशे यो वार्याणाम्।
अग्नि तोके तनये शश्वदीमहे वसुं सन्तं तनूपाम्
सभी का पालन करने वाले अविनाशी अग्नि देव सभी के भीतर निवास करते हैं। वह श्रेष्ठ धनों के स्वामी और हमारे मित्र हैं। अपनी संतान के लिए हम उनसे धन और अन्न की कामना करते हैं।[ऋग्वेद 8.71.13]
Nurturer of all, immortal Agni Dev resides in the body of all. He is the lord of best wealth and our friend. We pray to him for wealth and food grains for our progeny. 
अग्निमीलिष्वावसे गाथाभिः शशीरशोचिषम्।
अग्नि राये पुरुमीलह श्रुतं नरो ऽग्नि सुदीतये छर्दिः
हे स्तोताओं! आप विकराल ज्वालाओं वाले अग्निदेव की स्तुति करो। उद्‌गातागण धन तथा उत्तम प्रकाशयुक्त आवास के लिए उन अग्नि देव की स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 8.71.14]
विकराल :: भयानक, विकराल, वीभत्स, भयावह, भयावना; horrible, ghastly.
उद्गाता ::  उच्च स्वर से गाने वाला। सोम यज्ञों के अवसर पर साम या स्तुति मंत्रों को उद्गाता गाते हैं। इसके लिए उपुयक्त मंत्रों का संग्रह साम संहिता में किया गया है। ये ऋचाएँ ऋग्वेद से ही यहाँ संगृहीत की गई हैं और इन्ही ऋचाओं के ऊपर साम का गायन किया जाता है।
साम गायन की पद्धति शास्त्रीय है। साम निम्न पाँच अंगों में विभक्त है :- प्रस्ताव, उद्गीथ, प्रतिहार, उपद्रव तथा निधन।
इनमें उद्गीथ तथा निधन के गायन का कार्य उद्गाता के अधीन होता है और प्रस्ताव तथा प्रतिहार के गाने का काम क्रमश: प्रस्तोता' तथा प्रतिहर्ता नामक ऋत्विजों के अधीन रहता है जो उद्गाता के सहायक माने जाते हैं। मुख्यतया चार प्रकार गायन :- (1). ग्रामे-गेय गान, (प्रकृति गान यो वेय गाथ); (2). अरण्य गान; (3). ऊह गान तथा (4). ऊह्य गान।
इन समग्र गानों से पूर्ण परिचय रखना उद्गाता के लिए नितांत आवश्यक होता है।
Hey Stotas! Worship Agni Dev having horrible flames. Udgata Gan worship Agni Dev for wealth and illuminated house.
अग्नि द्वेषो योतवै नौ गृणीमस्यग्नि शं योश्च दातवे।
विश्वासु विश्ववितेव हव्यो भुवद्वस्तुॠषूणाम्
वह अग्नि देव राजा के तुल्य समस्त प्रजाओं के संरक्षक तथा ऋषियों को आवास प्रदान करने वाले हैं। हम शत्रुओं को दूर हटाने और अभय एवं आनंद प्राप्ति के लिए उनकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 8.71.15]
Agni Dev protect & nurturer the populace and Rishis like a king and grant residence. We worship him to repel away the enemies & fear and attainment of pleasure.(07.06.2024)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (72) :: ऋषि :- हर्यत, प्रगाथ; देवता :- अग्नि या आहुति;  छन्द :- गायत्री।
हविष्कृणुध्वमा गमदध्वर्युर्वनते पुनः। विद्वाँ अस्य प्रशासनम्
हे स्तोताओं! अग्नि देव प्रकट हो गए हैं। अब आप आहुतियाँ प्रदान करें, ये याजक आहुतियाँ प्रदान करने में प्रवीण है, बार-बार आहुतियाँ प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 8.72.1]
Hey Stotas! Agni Dev has appeared-evolved. Make offerings, these Ritviz are expert in making offerings & are repeatedly making offerings.
नि तिग्ममभ्यं १ शुं सीदद्धोता मनावधि। जुषाणो अस्य सख्यम्
जो याजकगण तीक्ष्ण ज्वालाओं वाले अग्नि देव के निकट विराजमान् होते हैं, उनका सम्बन्ध अग्नि देव से मित्र भाव जैसा हो जाता है।[ऋग्वेद 8.72.2]
Those Ritviz who remain close to the fierce flames of fire become friendly with Agni Dev.
अन्तरिच्छन्ति तं जने रुद्रं परो मनीषया। गृभ्णन्ति जिह्वया ससम्
उपासक लोग रुद्र देव के समान अग्नि देव को प्रतिष्ठित करने की आकांक्षा करते हैं। वे स्तुति द्वारा उस सुप्त अग्नि देव को प्रदीप्त करते हैं।[ऋग्वेद 8.72.3]
The worshiper desire of establishing Agni Dev like Rudr Dev. They ignite the sleeping fire with Stuti.
जाम्यतीतपे धनुर्वयोधा अरुहद्वनम्। दृषदं जिह्वयावधीत्
अन्न प्रदान करने वाले अग्नि देव सबको लांघते तथा प्रदीप्त होकर अंतरिक्ष का अतिक्रमण करते हैं। वे वनों और जलों पर भी आरूढ़ हो जाते हैं और अपनी जिव्हा से मेघों को विदीर्ण कर देते हैं।[ऋग्वेद 8.72.4]
Agni Dev who grant food grains illuminate, cross everyone and passes through the space. He rides the forests and water bodies as well and tear the clouds with his tongue.
चरन्वत्सो रुशन्निह निदातारं न विन्दते। वेति स्तोतव अम्ब्यम्
जाज्वल्यमान हुए अग्नि देव चंचल बालक के समान स्तुति करने वाले याजकों की इच्छा करते हैं। कोई भी निंदा करने वाला मनुष्य उनको प्राप्त नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 8.72.5]
चञ्चल :: बेचैन, सक्रिय,  शरारती, जीवंत; जो बराबर गतिशील हो, हिलने-डुलने वाला, अस्थिर; खिलाड़ी, चपल, चुलबुला, अस्थिर, चपल; fickle. playful, active, voluble, perk, volatile, always changing.
Illuminated Agni Dev desire of the prayers by the Ritviz like a playful child. Any person who condemn him can never attain him.
उतो न्वस्य यन्महदश्वावद्योजनं बृहत्। दामा रथस्य ददृशे
अग्नि देव के विशाल रथ में अश्व नियोजित है। उस रथ की लगाम दिखने लगी है।[ऋग्वेद 8.72.6]
Horses have been deployed in the large charoite of Agni Dev. The reins in the charoite are visible.
दुहन्ति सप्तैकामुप द्वा पञ्च सृजतः। तीर्थे सिन्धोरधि स्वरे
सिंधु तट पर, स्वप्रकाशित तीर्थ में, साथ मिलकर एक का दोहन करते हैं। उनमें से दो, पाँच को प्रेरित करते हैं।[ऋग्वेद 8.72.7]
Over the bank of Sindhu river in the self illuminate pilgrim site, seven people milk one cow while the two people direct the five.
आ दशभिर्विवस्वत इन्द्रः कोशमचुच्यवीत्। खेदया त्रिवृता दिवः
दस विवस्वतों तथा त्रिविध दीप्तियों के द्वारा अग्नि देव दिव्य कोष को विदीर्ण कर देते हैं।[ऋग्वेद 8.72.8]
कोष :: थैली या आवरण जैसी रचना अण्डकोश, बीजकोश, रक्तकोष, सँचित धन, खजाना, कोषागार,  धन को रखने का स्थान, कुछ रखने का स्थान; store, treasure.
With ten Vivasvats and tree illuminated flames Agni Dev tear the divine store-treasure.
परि त्रिधातुरध्वरं जूर्णिरति नवीयसी। मध्वा होतारो अञ्जते
तीन रंगों वाले वेगवान् अग्निदेव अपनी जिह्वा द्वारा यज्ञ की ओर गमन करते हैं। होतागण उन्हें घृत की हवियों से सिंचित करते हैं।[ऋग्वेद 8.72.8]
Dynamic-fast moving Agni Dev having three colours, moves towards the Yagy with his tongue. The Hota Gan grow-nourish him with offerings of Ghee.
सिञ्चन्ति रमसावतमुच्चाचक्रं परिज्मानम्। नीचीनबास्मक्षितम्
ऊर्ध्व में जिसका चक्र है। चारों ओर से नीचे झुकता हुआ जिसका निचला द्वार क्षीण नहीं है, यज्ञकर्ता उनको घृत की हवियों से सिंचित करते हैं।[ऋग्वेद 8.72.10]
His cycle-wheel is place in the upper direction. Its lower door is inclined from the four directions; is not weak. The Ritviz nourish him with the offerings of Ghee.
अभ्यारमिदद्रयो निषिक्तं पुष्करे मधु। अवतस्य विसर्जने
अग्नि देव का विसर्जन करने वाले सम्मानित अध्वर्युगण यज्ञ के समीप पधारकर मधुर सोमरस को इन्द्र देव के लिए स्थापित करते हैं।[ऋग्वेद 8.72.11]
The priests extinguishing fire come close to the Yagy site and offer sweet Somras to Indr Dev.
गाव उपावतावतं महीं यज्ञस्य रप्सुदा। उभा कर्णा हिरण्यया
यज्ञीय रूप प्रदान करने वाली सूर्य देव की किरणें पृथ्वी पर यज्ञ के निमित्त आवें। उनके दोनों कर्ण सोने और चाँदी के हैं।[ऋग्वेद 8.72.12]
Let the rays of Sun in the form of Yagy reach the earth for Yagy. Their both ears are composed of gold and silver.
आ सुते सिञ्चत श्रियं रोदस्योरभिश्रियम्। रसा नधीत वृषभम्
हे अध्वर्यो! आकाश और पृथ्वी में देदीप्यमान दुग्ध से सोम का मिश्रण करो। (क्योंकि) वह दुग्ध बलशाली सोम को आत्मसात् कर लेता है।[ऋग्वेद 8.72.13]
Hey priests! Mix the Somras with milk in the shining sky and the earth, since Somras absorbs-mixes milk.
ते जानत स्वमोक्यं सं वत्सामो न मातृभिः। मिथो नसन्त जामिभिः
अपने स्थानों को गौएँ भली प्रकार से जानती हैं। जिस प्रकार बछड़ा भीड़ में से भी अपनी माताओं के समीप चला जाता हैं, उसी प्रकार ये गौएँ भी अपने मित्रों के पास चली जाती हैं।[ऋग्वेद 8.72.14]
The cows recognise many places. The way a calf reach its mother in the crowd, the cows too reach their friends.
उप स्त्रक्वेषु बप्सतः कृण्वते धरुणं दिवि। इन्द्रे अग्ना नमः स्वः
भक्षण करने वाली ज्वालाओं से प्राप्त अन्न और दुग्ध को इन्द्र देव तथा अग्नि देव यज्ञ द्वारा आकाश में विस्तारित कर देते हैं। उन इन्द्र देव और अग्नि देव को सभी दुग्ध प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 8.72.15]
Indr Dev and Agni Dev extend (distribute, spread) the food grains and milk by virtue of Yagy with their engulfing flames. Every one offer milk to Indr Dev and Agni Dev.
अधुक्षत् पिप्युषीमिषमूर्जं सप्तमदीमरिः सूर्यस्थ सप्त रश्मिभिः
वायु देव ने सूर्य देव की सात किरणों से पुष्ट हुए अन्न तथा रस का दोहन सप्त पद वाली वाणी के संयोग से किया।[ऋग्वेद 8.72.16]
Vayu Dev fused-mixed the food grains and saps-juices nourished by the seven rays of the Sun with the sound-speech.
सामस्य मित्रावरुणोदिता सूर आ ददे। तदातुरस्य भेषजम्
हे मित्र और वरुण देव! सूर्योदय के समय बलदायक सोमरस को हम प्राप्त करते हैं, क्योंकि वह रोगियों के लिए औषधिरूप है।[ऋग्वेद 8.72.18]
Hey Mitr & Varun Dev! We receive the Somras granting strength at the time Sun rise since its medicine for the patients.
उतो न्वस्य यत पदं हर्यतस्य निधान्यम्। परि द्यां जिह्वायातनत्॥
अपने निर्धारित स्थान पर प्रकाशवान् हुए अग्नि देव विराजमान होकर अपनी ज्वालाओं को अंतरिक्ष में फैलाते हैं।[ऋग्वेद 8.72.19]
Agni Dev establishes himself at his fixed place and spread his flames in the sky-space.(08.06.2024)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (73) :: ऋषि :- गोपवन, आत्रेय या सप्तवध्रि; देवता :- अश्विनी कुमार;  छन्द :- गायत्री।
उदीराथामृतायते युञ्जाथामश्विना रथम्। अन्ति षद्भूतु वामवः
हे अश्विनी कुमारों! आप अपने रथ को नियोजित कर सुगम मार्गों से गमन करते हुए पधारे। आपके रक्षा-साधन सदैव हमारे पास रहें।[ऋग्वेद 8.73.1]
Hey Ashwani Kumars! Organise your charoite and arrive here passing through comfortable routes. Let all your protection means be available to us.
निमिषश्चिज्जवीयसा रथेना यातमश्विना। अन्ति षद्भूतु वामवः
हे अश्विनी कुमारो! आप तीव्र गति से चलने वाले रथ द्वारा आगमन करने वाले हैं। आपके रक्षा-साधन सदैव हमारे निकट रहें।[ऋग्वेद 8.73.2]
Hey Ashwani Kumars! You are arrive through fast moving charoite. Let all your protection means be close to us.
उप स्तृणीतमत्रये हिमेन घर्ममश्विना। अन्ति षद्भूतु वामवः
हे अश्विनी कुमारो। अग्नि देव की ज्वलनशीलता को आप अत्रि ऋषि के निमित्त बर्फ द्वारा रोके। आपके रक्षा-साधन सदैव हमारे निकट रहें।[ऋग्वेद 8.73.3]
Hey Ashwani Kumars! Reduce the burning capacity towards Atri Rishi with the help of ice.  Let all your protection means be close to us.
कुह स्थः कुह जग्मथुः कुह श्येनेव पेतथुः। अन्ति षद्भूतु वामवः
हे अश्विनी कुमारों! आप कहाँ निवास करते हैं? आप किस स्थान पर गए थे? श्येन पक्षी के समान आप कहाँ से आ रहे है? आपके रक्षा-साधन सदैव हमारे पास रहें।[ऋग्वेद 8.73.4]
Hey Ashwani Kumars! Where do you live! Where did you go! Where have you come from like a falcon!  Let all your protection means be close to us.
यदद्य कर्हि कर्हि चिच्छुश्रूयातमिमं हवम्। अन्ति षद्भूतु वामवः
हे अश्विनी कुमारों! आप चाहें जहाँ हों, हमारी पुकार को आप कब और कहाँ सुनेंगे? आपके रक्षा-साधन सदैव हमारे पास रहें।[ऋग्वेद 8.73.5]
Hey Ashwani Kumars! Respond to our call, where ever you are. When & where will you listen-attend to our call? You should remain close to us with your safety means.
अश्विना यामहूतमा नेदिष्ठं याम्याप्यम्। अन्ति षद्भूतु वामवः
आवाहनीय अश्विनी कुमारों को हम अपना मित्र जानकर उनके निकट जाते हैं। उनके रक्षा- साधन सदैव हमारे निकट रहें।[ऋग्वेद 8.73.6]
We consider invocable Ashwani Kumars our friends and that's why we visit them. Let their safety means remain close to us.
अवन्तमत्रये गृहं कृणुतं युवमश्विना। अन्ति षद्भूतु वामवः
हे अश्विनी कुमारों! अत्रि ऋषि के निमित्त आपने संरक्षण युक्त आवास विनिर्मित किया था, इसलिए आपके रक्षा-साधन सदैव हमारे निकट रहें।[ऋग्वेद 8.73.7]
Hey Ashwani Kumars! You built a house for Atri Rishi with all your protection means. Hence, remain close to us with all of your safety means.
वरेथे अग्निमातपो वदते वल्ग्वत्रये। अन्ति षद्भूतु वामवः
हे अश्विनी कुमारो! श्रेष्ठ वाणी से आपके निमित्त स्तोत्र उच्चारित करने वाले अत्रि ऋषि को आप अग्नि देव की ज्वलनशीलता से सुरक्षित करें। आपके रक्षा-साधन सदैव हमारे निकट रहें।[ऋग्वेद 8.73.8]
Hey Ashwani Kumars! Protect Atri Rishi from the combustibility of Agni Dev with the recitation of Strotr in your excellent voice. Remain close to us with all of your safety means.
प्र सप्तवध्रिराशसा धारामग्नेरशायत। अन्ति षद्भूतु वामवः
हे अश्विनी कुमारो! सप्तवध्रि को नियोजित करने वाले सूर्य देव ने आशा युक्त स्तोत्रों से प्रेरित होकर अग्नि ज्वालाओं को मंजूषा से बाहर कर पृथ्वी पर फैला दिया। आपके रक्षा-साधन सदैव हमारे निकट रहें।[ऋग्वेद 8.73.9]
सप्तवध्रि :: सात बेड़ियों में जकड़ा हुआ, एक अत्रेय का नाम; fettered with seven thongs (भागवत पुराण). 
Hey Ashwani Kumars! Sury Dev, who managed Saptvadhri, spread the fire flames bringing them out of boxes-chambers all over the earth with the help of hopeful Strotrs. Remain close to us with all of your safety means.
इहा गतं वृषण्वसू शृणुतं म इमं हवम्। अन्ति षद्भुतु वामवः
हे अश्विनी कुमारो! आप धन की वर्षा करने वाले हैं। हमारी स्तुतियों को श्रवण कर आप हमारे समीप पधारें। आपके रक्षा-साधन सदैव हमारे निकट रहें।[ऋग्वेद 8.73.10]
Hey Ashwani Kumars! You shower wealth. Listen to our Stuti-prayers and come close to us. Remain in our neighbourhood-close to us with all of your safety means.
किमिदं वां पुराणवज्ज्रतोरिव शस्यते। अन्ति षद्भूतु वामवः
हे अश्विनी कुमारों! वृद्ध पुरुषों की भाँति आपको बार-बार आवाहित करना पड़ता है। आपके रक्षा-साधन सदैव हमारे निकट रहें।[ऋग्वेद 8.73.11]
Hey Ashwani Kumars! We have to invoke your again & again like old-aged people. Remain close to us with all of your safety means.
समानं वां सजात्यं समानो बन्धुरश्विना। अन्ति षद्भूतु वामवः॥
हे अश्विनी कुमारो! आपका पारस्परिक सम्बन्ध पुरातन है और आप परस्पर सम्बन्धी हैं आपके रक्षा-साधन सदैव हमारे निकट रहें।[ऋग्वेद 8.73.12]Hey Ashwani Kumars! Your relationship is common and you have a common kinsman. Let you protection means stay close to us.
यो वां रजांस्यश्विना रथो वियाति रोदसी। अन्ति षद्भूतु वामवः
हे अश्विनी कुमारो! आपका रथ पृथ्वी, आकाश तथा अन्य सभी लोकों को लांघकर गमन करता है। आपके रक्षा-साधन सदैव हमारे पास रहें।[ऋग्वेद 8.73.13]
Hey Ashwani Kumars! Your charoite move crossing the earth, sky and all abodes. Let you protection means stay close to us.
आ नो गव्येभिरश्व्यैः सहस्त्रैरुप गच्छतम्। अन्ति षद्भूतु वामवः
हे अश्विनी कुमारो! हजारों अश्वों तथा गौवों के समूह के साथ हमारे निकट पधारें। आपके रक्षा-साधन सदैव हमारे पास रहें।[ऋग्वेद 8.73.14]
Hey Ashwani Kumars! Come to us with thousands of horses & cows. Let you protection means stay close to us.
मा नो गव्येभिरश्व्यैः सहस्त्रेभिरति ख्यतम्। अन्ति षद्भूतु वामवः॥
हे अश्विनी कुमारो! हजारों अश्वों तथा गौवों के समूह से आप हमें वंचित न करें। आपके रक्षा-साधन सदैव हमारे निकट रहें।[ऋग्वेद 8.73.15]
Hey Ashwani Kumars! Do not deprive us of the bands of horses & cows. Let you protection means stay close to us.
अरुणप्सुरुषा अभूदकर्योतिर्ऋतावरी। अन्ति षद्भूतु वामवः
हे अश्विनी कुमारो! प्रातः अरुणोदय के समय आकाश लालिमायुक्त हो गया है और यज्ञों के साथ आलोक प्रसारित होने वाला है। आपके रक्षा-साधन सदैव हमारे निकट रहें।[ऋग्वेद 8.73.16]
Hey Ashwani Kumars! The sky appear red in the morning and with the Yagy the aura start spreading. Let you protection means stay close to us.
अश्विना सु विचाकशवृक्षं परशुमां इव। अन्ति षद्भूतु वामवः
हे अश्विनी कुमारों! जिस प्रकार कुल्हाड़ी से मनुष्य वृक्षों को काट डालते हैं उसी प्रकार ज्योतिर्मान सर्य देव अंधकार को नष्ट करके उदित हो रहे हैं। आपके रक्षा-साधन सदैव हमारे निकट रहें।[ऋग्वेद 8.73.17]
Hey Ashwani Kumars! The way the axe fell-cut the trees, aurous Sury Dev destroy the darkness and rise. Let you protection means stay close to us.
पुरं न धृष्णवा रुज कृष्णया बाधितो विशा। अन्ति पद्भूतु वामवः
हे अश्विनी कुमारो! इन्द्रदेव ने जिस प्रकार दुष्कर्मियों के नगरों को ध्वस्त किया उसी प्रकार आप भी पाप कर्म वालों को नष्ट करें। आपके रक्षा-साधन सदैव हमारे निकट रहें।[ऋग्वेद 8.73.18]
Hey Ashwani Kumars! The way Indr Dev destroyed the forts-cities of the wicked you too destroy, those who involve in sins. Let you protection means stay close to us.(09.06.2024)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (74) :: ऋषि :- गोपवन, आत्रेय; देवता :- अग्नि या आर्क्षः श्रुतर्वा; छन्द :- अनुष्टुप्, गायत्री।
विशोविशो वो अतिथिं वाजयन्तः पुरुप्रियम्।
अग्निं वो दुर्यं वचः स्तुषे शूषस्य मन्मभिः
हे यजमानों! अन्न और बल की इच्छा करने वाले आप पूजनीय अग्नि देव की स्तुति करें। हम ऋत्विक्ङ्गण भी इन्हीं अग्नि देव की सुखदायक स्तोत्रों द्वारा स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 8.74.1]
Hey hosts! You being desirous of food grains and mighty, worship Agni Dev. We Ritviz too worship Agni Dev with pleasure generating Strotrs.
यं जनासो हविष्मन्तो मित्रं न सर्पिरासुतिम्। प्रशंसन्ति प्रशस्तिभिः
जिन अग्नि देव को घृत की आहुति अर्पित की जाती है, उन अग्नि देव की हविर्दान और वैदिक स्तोत्रों द्वारा स्तुति की जाती है।[ऋग्वेद 8.74.2]
Offerings of Ghee are made to Agni Dev and he is worshiped using Vedic Strotrs.
पन्यांसं जातवेदसं यो देवतात्युद्यता। हव्यान्यैरयद्दिवि
सबको जानने वाले, स्तुति योग्य अग्नि देव की हम प्रशंसा करते हैं। वह अग्नि देव यज्ञ में दी गई हवि को देवलोक तक पहुँचाने में सहायक हैं।[ऋग्वेद 8.74.3]
We appreciate worship deserving  Agni Dev. He is helpful in carrying offerings in the Yagy to heavens.
आगन्म वृत्रहन्तमं ज्येष्ठमग्निमानवम्। यस्य श्रुतर्वा बृहन्नार्थो अनीक एधते
अग्नि देव की जिन प्रचंड ज्वालाओं ने ऋक्ष पुत्र श्रुतर्वा की वृद्धि की, उस वृत्र संहारक और मनुष्यों के हितैषी देवता की हम स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 8.74.4]
Fierce flames of Agni Dev grew Shrutarva, son of Riksh. We worship the demigods-deities helpful to the humans, who killed Vratr.
अमृतं जातवेदसं तिरस्तमांसि दर्शतम्। घृताहवनमीड्यम्
सभी पदार्थों का ज्ञाता तथा अंधकार का शमन कर प्रदर्शित होने वाले अग्नि देव अविनाशी हैं। उन्हें घृत की आहुतियाँ देते हुए हम उनकी स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 8.74.5]
Aware of all materials, Agni Dev is immortal and destroys darkness. We pray to him while making offerings of Ghee.
सबाधो यं जना इमे३ग्निं हव्येभिरीळते। जुह्वानासो यतस्रुचः
अभीष्ट फल वाले यजमान अपने यज्ञों में स्त्रुवा पात्र को लेकर जिस अग्नि देव को आहुतियाँ प्रदान करते हैं, हम उनकी स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 8.74.6]
We the Ritviz, desirous of accomplishments worship Agni Dev who is offered Ghee with ladles in the Yagy.
इयं ते नव्यसी मतिरग्ने अधाय्यस्मदा।
मन्द्र सुजात सुक्रतोऽमूर दस्मातिथे
हे अग्नि देव! आप अतिथि के समान वंदनीय, दर्शनीय, प्रज्ञावान्, प्रसन्नतादायक और अच्छे कर्म करने वाले हैं। प्रशंसा योग्य आपकी बुद्धि हमारे अन्दर स्थापित हो।[ऋग्वेद 8.74.7]
Hey Agni Dev! You are worshipable like the guest, beautiful, enlightened pleasure granting and devoted to virtuous, righteous, auspicious deeds. Let your appreciable intelligence be present in us.
सा ते अग्ने शंतमा चनिष्ठा भवतु प्रिया। तया वर्धस्व सुष्टुतः
हे अग्नि देव! हमारे द्वारा संपन्न की गई स्तुतियाँ आपके लिए प्रसन्नादायक, अन्न प्रदायक तथा प्रिय हों। उसे ग्रहण करके आप समृद्ध हों।[ऋग्वेद 8.74.8]
Hey Agni Dev! Let the worship-prayers made by to you generate happiness, food grains granting and be lovely. You should become prosperous-flourish by accepting them.
सा द्युम्नैर्द्युम्निनी बृहदुपोप श्रवसि श्रवः। दधीत वृत्रतूर्ये
हे अग्नि देव! हमारी स्तुतियों को श्रवण करके आप हमें ऐसा बल प्रदान करें, जिससे हम रणक्षेत्र में शत्रुओं को पराजित कर यश को अर्जित करें।[ऋग्वेद 8.74.9]
Hey Agni Dev! Listen to our prayers and grant us such strength with which we are able to defeat the enemy in battle field and attain name & fame-glory.
अश्विमिद्गां रथप्रां त्वेषमिन्द्रं न सत्पतिम्।
यस्य श्रवांसि तूवथ पन्यंपन्यं च कृष्टयः
अपने बल के द्वारा जो अग्नि देव मनुष्यों को उत्तम सम्पदा तथा अन्न प्रदान करते हैं, उन सत्पुरुषों का पालन करने वाले अग्नि देव को पूजित किया जाता है। वह गौवों, अश्वों, रणवीरों, साक्षात् इन्द्रदेव के सदृश है।[ऋग्वेद 8.74.10]
Agni Dev who grant excellent wealth and food grains to virtuous humans, is worshiped. He is like Indr Dev being protector of cows, horses and the warriors in the battle field.
यं त्वा गोपवनों गिरा चनिष्ठग्ने अंगिरः। स पावक श्रुधी हवम्
गोपवन की स्तुति को सुनकर प्रकट हुए, सूक्ष्म रूप से विद्यमान, सबको पावन करने वाले अग्नि देव हमारी स्तुतियों को भी ध्यानपूर्वक श्रवण करें।[ऋग्वेद 8.74.11]
Agni Dev evolved-appeared responding to the Stuti-prayers by Gopvan. Let Agni Dev present in micro form, purifying all, should carefully respond to our prayers.
यं त्वा जनास ईलते सबाधो वाजमातये। स बोधि वृत्रतूर्ये
हे अग्नि देव! सामर्थ्य प्राप्त करने के निमित्त विपत्ति ग्रस्त लोग आपकी स्तुति करते हैं। रिपुओं का संहार करने के लिए आप सदैव चैतन्य रहते हैं।[ऋग्वेद 8.74.12]
Hey Agni Dev! Those in trouble, worship you to attain strength-capability. Destroyer of the enemies you, always remain alert-conscious.
अहं हुवान आर्श्वे श्रुतर्वणि मदच्युति। 
शर्धांसीव स्तुकाविनां मृक्षा शीर्षा चतुर्णाम्
ऋक्ष के पुत्र श्रुतर्वा शत्रुओं के अभिमान को चूर करने वाले हैं। उनके यज्ञ में हमने चार अश्वों के शिर को भेड़ों के बालों के समान साफ किया।[ऋग्वेद 8.74.13]
Shrutarva son of Riksh is destroyer of enemies ago. We cleared-cleaned the heads of four horses like that of sheep in his Yagy.
मां चत्वार आशवः शविष्ठस्य द्रवित्नवः।
सुरथासो अभि प्रयो वक्षन् वयो न तुग्रयम्
तुग्र पुत्र भुज्यु को जिस प्रकार अश्विनी कुमारों की चार नौकाओं ने उनके लक्ष्य तक पहुँचाया था, उसी प्रकार श्रुतर्वा के चार तीव्रगामी अश्व उनके रथ में नियोजित होकर हमें गंतव्य स्थल तक पहुँचाते हैं।[ऋग्वेद 8.74.14]
The way Ashwani Kumars carried Tugr's son Bhujyu in four boats to his destination, similarly four fast moving horses deployed in the charoite  of Shrutarva take us to our destination.
सत्यमित् त्वा महेनदि मरुष्व्यव देदिशम्।
नेमापो अश्वदातरः शविष्ठादस्ति मर्त्यः
हे महान् सरिता परुष्णि तथा जल समूह! हम आपसे निवेदन करते हैं कि इस शक्तिशाली श्रुतर्वा से उत्तम अश्वों का दान करने वाला कोई अन्य नहीं है।[ऋग्वेद 8.74.15]
Hey great river-stream Parushni and water reservoirs! We inform you that none other Shrutarva donate excellent horses.(10.06.2024)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (75) :: ऋषि :- विरूप, आंगिरस; देवता :-अग्नि; छन्द :- गायत्री।
युक्ष्वा हि देवहूतमाँ अश्वाँ अग्ने रथीरिव। नि होता पूर्व्यः सदः
हे अग्नि देव! देवताओं को आवाहित करने वाले अश्वों को सारथी के समान अपने रथ में नियोजित करें, प्रथम होता होने के कारण आप हमारे यज्ञानुष्ठान में प्रतिष्ठित हों।[ऋग्वेद 8.75.1]
Hey Agni Dev! You being the invoker of the demigods-deities, deploy the horses in the charoite like a charioteer and join our Yagy as the first host.
उत नो देव देवाँ अच्छा वोचो विदुष्टरः। श्रद्विश्वा वार्या कृधि
हे अग्नि देव! वरणीय हव्य को सार्थक रूप प्रदान करें। आप हमें देवताओं के बीच सर्वश्रेष्ठ के रूप में प्रतिष्ठित करें।[ऋग्वेद 8.75.2]
Hey Agni Dev! Make the offering acceptable. You should present us to the demigods-deities as best.
त्वं ह यद्यविष्ठ्य सहसः सूनवाहुत। ऋतावा यज्ञियो भुवः
हे अग्नि देव! सत्य का पालन करने वाले आप बल के पुत्र है। हवियों द्वारा प्रज्वलित होने वाले आप सभी के द्वारा पूजित किए जाते हैं।[ऋग्वेद 8.75.3]
Hey Agni Dev! Follower of truth, you are the son of Bal. Having been ignited-evolved you are worshiped by all.
अयमग्निः सहस्रिणो वाजस्य शतिनस्पतिः। मूर्धा कवी रयीणाम्
मेधावी अग्नि देव सैकड़ों-हजारों प्रकार के अन्नों तथा धनों के सर्वोच्च अधिष्ठाता है।[ऋग्वेद 8.75.4]
Intelligent Agni Dev is the highest deity of hundreds-thousands of kinds of food grains
तं नेमिमृभवो यथा नमस्व सहूतिभिः। नेदीयो यज्ञमङ्गिरः
हे अग्नि देव! कुशल शिल्पकार जिस प्रकार रथ की नेमि को बनाते हैं, उसी प्रकार देवताओं के साथ आप भी उपस्थित होकर इमारे यज्ञों को उत्तम बनावें।[ऋग्वेद 8.75.5]
Hey Agni Dev! The way a craftsman make the axel of the charoite, similarly make our Yagy excellent, by presenting yourself along with the demigods-deities, in it.
तस्मै नूनमभिद्यवे वाचा विरूप नित्यया। वृष्णे चोदस्व सुष्टुतिम्
हे महर्षि विरूप! बलवान् और प्रखर तेज से युक्त अग्नि देव की आप अपने अमृत वचनों से स्तुति करें।[ऋग्वेद 8.75.6]
प्रखर :: तीक्ष्ण, तेज, उग्र, प्रचंड; fierce, sharp.
Hey Maharshi Virup! Worship mighty Agni Dev having sharp radiations with your nectar-elixir like words.
कमु ष्विदस्य सेनया ऽ ग्नेरपाकचक्षसः। पणिं गोषु स्तरामहे
इस विशाल नेत्र वाले अग्नि देव की ज्वाला से हम गौवों को प्राप्त करने के निमित्त किस पणि का हनन करेंगे?[ऋग्वेद 8.75.7]
Which Pani-demon has to be destroyed by us for attaining cows from wide eyed Agni Dev?
मा नो देवानां विशः प्रश्नातीरिवोस्त्राः। कृशं न हासुरघ्न्याः
जिस प्रकार दूध देने वाली गौएँ अपने दुर्बल बछड़े को कभी नहीं छोड़ती, हे अग्नि देव! उसी प्रकार आप भी हमारा परित्याग न करें, क्योंकि हम देवताओं की संतान है।[ऋग्वेद 8.75.8]
Hey Agni Dev! The way the milch cows never desert its weak calf, similarly never reject us, since we are the progeny of demigods-deities.
मा नः समस्य ढूढ्यः परिद्वेषसो अंहतिः। ऊर्मिर्न नावमा वधीत्
जिस प्रकार सागर की लहरें नौका को बाधित करती हैं, उसी प्रकार सभी विद्वेषियों की दुर्बुद्धि हमें बाधित न करे।[ऋग्वेद 8.75.9]
The way the waves-tides in the ocean trouble-obstruct the boat, similarly, the wickedness of envious-opponents should not harm-obstruct us.
नमस्ते अग्न ओजसे गृणन्ति देव कृष्टयः। अमैरमित्रमर्दय
हे अग्नि देव। दिव्य क्षमता से युक्त व अहित करने वालों का संहार करें। सभी याजकगण बल प्राप्ति के लिए आपको नमस्कार करते हैं।[ऋग्वेद 8.75.10]
Hey Agni Dev! Destroy those who are equipped with divine powers troubling-obstructing us. All Ritviz salute you for having strength.
कुवित् सु नो गविष्टये ऽग्ने संवेषिषो रयिम्। उरुकृदुरु णस्कृधि
हे अग्नि देव! आप हमें विपुल धन प्रदान करें, जिससे हम गौवों की प्राप्ति करें। आप हमें उन्नत करते हुए हमें समृद्धशाली बनावें।[ऋग्वेद 8.75.11]
Hey Agni Dev! Grant us lots of money to buy cows. Make us progress and prosperous.
मा नो अस्मिन् महाधने परा वर्भारभृद्यथा। संवर्ग सं रयिं जय
हे अग्नि देव! आप थककर या ऊबकर युद्ध में हमारा परित्याग न करें। हमारे लिए आप रिपुओं के धनों को जीतें।[ऋग्वेद 8.75.12]
Hey Agni Dev! Never reject-alienate us in the war on being bored or tired. Win the wealth of our enemies for us.
अन्यमस्मद्भिया इयमग्ने सिषक्तु दुच्छुना। वर्धा नो अमवच्छवः
हे अग्नि देव! आपका पीड़ित करने वाला बल हमें छोड़कर, दूसरों को पीड़ित करे। आप हमारी शक्ति और वेग की वृद्धि करें।[ऋग्वेद 8.75.13]
Hey Agni Dev! Let your torturing strength avoid-ignore us and trouble others. Increase our strength and speed.
यस्याजुषन्नमस्विनः शमीमदुर्मखस्य वा। तं घेदग्निर्वृधावति
अग्नि देव स्तोताओं तथा यज्ञ करने वालों के त्रुटि पूर्ण यज्ञ कर्मों को भी स्वीकार कर लेते है, उनकी बढ़ने वाली सम्पत्ति को संरक्षण प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 8.75.14]
Agni Dev pardon the Yagy Karm of the Stotas who commit procedural mistakes, accept their Yagy having defects & protect their increasing property.
परस्या अधि संवतो ऽवरां अभ्यां नर। यत्राहमस्मि तां अव
हे अग्नि देव! आप शत्रु सेना की जगह पर हमारी सेना को विजयी बनाएँ। जिस सेना के बीच में हम स्थित हैं, आप उसकी सुरक्षा करें।[ऋग्वेद 8.75.15]
Hey Agni Dev! Make our army win in stead of the enemies. Protect that army in which we are present.
विद्मा हि ते पुरा वयमग्ने पितुर्यथावसः। अधा ते सुम्नमीमहे
हे अग्नि देव। जिस प्रकार अपने संरक्षक पिता के सुख की कामना पुत्र करते हैं, उसी प्रकार हे रक्षक! प्राचीन काल से प्राप्त आपके सुख को हम जानते हैं और उसी सुख की इच्छा करते हैं।[ऋग्वेद 8.75.16]
Hey Agni Dev! The way a guardian wish for the comforts-pleasure of his son, similarly hey Protector! We desire to have the comforts and pleasure you have from ancient times.(11.06.2024)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (76) :: ऋषि :- कुरुसुति, काण्व; देवता :-इन्द्र;  छन्द :- गायत्री। 
इमं नु मायिनं हुव इन्द्रमीशानमोजसा। मरुत्वन्तं न वृञ्जसे
जो इन्द्र देव अपने विवेकपूर्ण सामर्थ्य से सबको नियंत्रित करते हैं, उस मरुत्वान् इन्द्र देव का हम शत्रुओं के संहार के निमित्त आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.76.1]
We invoke Indr Dev who control all with his prudence to destroys the enemy with the help of Marud Gan.
अयमिन्द्रो मरुत्सखा वि वृत्रस्याभिनच्छिरः। वज्रेण शतपर्वणा
मरुङ्गणों के साथ मिलकर उन इन्द्र देव ने सैकड़ों गाँठों वाले वज्र का प्रहार करके वृत्रासुर के सिर को विदिर्ण कर दिया।[ऋग्वेद 8.76.2]
विदीर्ण :: टूटा हुआ, निहत; laciniated.
Indr Dev struck the head of Vrata Sur with Vajr having hundreds of lumps and laciniated his head with the help of Marud Gan.
वावृधानो मरुत्सखेन्द्रो वि वृत्रमैरयत्। सृजन्त्समुद्रिया अपः
इन्द्र देव ने मरुतों की सहायता से वृत्रासुर का संहार करके अंतरिक्ष में स्थित जलों को प्रवाहित कर दिया।[ऋग्वेद 8.76.3]
Indr Dev killed Vrata Sur with the help of Marud Gan and released the water present in the space.
अयं ह येन वा इदं स्वर्मरुत्वता जितम्। इन्द्रेण सोमपीतये
इन्द्र देव ने मरुतों के सहयोग से सोमपान करने के लिए स्वर्ग को भी जीत लिया।[ऋग्वेद 8.76.4]
Indr Dev won the heaven with the help of Marud Gan for drinking Somras.
मरुत्वन्तमृजीषिणमोजस्वन्तं विरप्शिनम्। इन्द्रं गीर्भिर्हवामहे
अत्यधिक ओजस्वी एवं महान इन्द्र देव का हम अपनी स्तुतियों के द्वारा आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.76.5]
We invoke extremely aurous-radiant and great Indr Dev with our Stuties.
इन्द्रं प्रत्नेन मन्मना मरुत्वन्तं हवामहे। अस्य सोमस्य पीतये
उन मरुत्वान इन्द्र देव का हम अपनी पुरातन स्तुतियों द्वारा सोमपान के लिए आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.76.6]
We invoke Indr Dev along along with Marud Gan with ancient Stuties for drinking Somras.
मरुत्वां इन्द्र मीढ्वः पिबा सोय शतक्रतो। अस्मिन् यज्ञे पुरूष्टुत
हे मरुत्वान इन्द्र देव! आनंद की वर्षा करने वाले आप सैकड़ों यज्ञादि कर्म करने वाले हे, अतः इस यज्ञ में पधारकर आप सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 8.76.7]
Hey Indr Dev accompanied with Marud Gan! You shower amusement and perform hundred of deeds alike Yagy Karm, hence come to this Yagy and drink Somras.
तुभ्येदिन्द्र मरुत्वते सुताः सोमासो अद्रिवः। हृदा हूयनत उक्थिनः
हे वज्र धारक मरुत्वान इन्द्र देव! स्तुति करने वाले जिन यजमानों ने आपके लिए सोमरस को शोधित किया है, वे हृदय से आपका आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.76.8]
Hey Vajr wielding Indr Dev accompanied with the Marud Gan! The Ritviz-hosts who extracted Somras for you invoke you, with their heart-innerself.
पिबेदिन्द्र मरुत्सखा सुतं सोमं दिविष्टिषु। वज्रं शिशान ओजसा
हे मरुतों के मित्र इन्द्र देव! आप हमारे स्वर्ग प्रदायक यज्ञों में सोमरस का पान करके बल द्वारा वज्र की धार को तीक्ष्ण बनाएँ।[ऋग्वेद 8.76.9]
Hey friend of Marud Gan, Indr Dev! You join our Yagy granting heavens, drink Somras and sharpen Vajr.
उत्तिष्ठन्नोजसा संह पीत्वी शिप्रे अवेपयः। सोममिन्द्र चमू सुतम्
हे इन्द्र देव! पात्र में रखे हुए सोमरस को ग्रहण कर तथा बलशाली होकर उठे और अपनी ठुड्डी को कंपित करे।[ऋग्वेद 8.76.10]
Hey Indr Dev! Accept the Somras kept in the vessel, become strong, rise and move your chin.
अनु त्वा रोदसी उभे क्रक्षमाणमकृपेताम्। इन्द्र यदस्युहाभवः
शत्रुओं के प्रति स्पर्धा का भाव रखने वाले हे इन्द्र देव! आपके द्वारा शत्रुओं का वध किए जाने पर द्युलोक और पृथ्वी लोक दोनों ही प्रसन्न होते हैं।[ऋग्वेद 8.76.11]
Hey Indr Dev having rivalry with the enemies! Both earth and heavens become happy when you kill the enemies.
वाचमष्टापदीमहं नवस्त्रक्तिमृतस्पृशम्। इन्द्रात् परि तन्वं ममे
हे इन्द्र देव! सत्य की वृद्धि करने वाली, नवीन कल्पनाओं वाली और आठ पदों वाली, आपकी हम छोटी-सी स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 8.76.12]
Hey Indr Dev! We worship you with newly composed short Stuties having eight tenets growing truthfulness.(12.06.2024)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (77) :: ऋषि :- कुरुसुति, काण्व; देवता :-इन्द्र;  छन्द :- गायत्री, बृहती, सतोबृहती।
जज्ञानो नु शतक्रतुर्वि पृच्छदिति मातरम्। क उग्राः के ह श्रृण्विरे
सैकड़ों कर्म वाले इन्द्र देव ने उत्पन्न होते ही अपनी माता से पूछा कि कौन-कौन प्रसिद्ध और पराक्रमी योद्धा है?[ऋग्वेद 8.77.1]
Indr Dev performing hundreds of deeds asked his mother soon after his birth that who are the famous chivalric warriors?
आदीं शवस्यब्रवीदौर्णवाभमहीशुवम्। ते पुत्र सन्तु निष्टुरः 
माता ने उत्तर दिया,  हे वत्स! और्णवाभ तथा अहीशुव नामक राक्षस हैं, जिनका वध आपके द्वारा किया जाना चाहिए।[ऋग्वेद 8.77.2]
Matra Aditi replied, hey Vats-son! Ournvabh and Ahibhuv are the two demons to be killed by you.
समित्तान्वृत्रहाखिदत्खे अराँइव खेदया। प्रवृद्धो दस्युहाभवत्
उसके बाद वृत्रहन्ता इन्द्र देव ने रथ में अरों को बाँधने के समान उन राक्षसों को रस्सी से कसकर बाँध दिया तथा उन्हें मारकर अपना विस्तार किया।[ऋग्वेद 8.77.3]
There after killer of Vratr, tightly tied the demons like the axel of the charoite with cords, killed them and  extended himself.
एकया प्रतिधापिबत्साकं सरांसि त्रिंशतम्। इन्द्रः सोमस्य काणुका
उन इन्द्र देव ने तीन पात्रों में भरे सोमरस का एक साथ पान कर लिया।[ऋग्वेद 8.77.4]
Indr Dev drunk the Somras kept in three vessels, at once.
अभि गन्धर्वमतृणदबुध्नेषु रजः स्वा। इन्द्रो ब्रह्मभ्य इवृधे
विद्वानों को उन इन्द्र देव ने समृद्ध करने के लिए आकाश में स्थित आधार रहित मेघों को विदीर्ण किया।[ऋग्वेद 8.77.5]
To make the enlightened-learned prosperous, Indr Dev teared the clouds in the sky.
निराविध्यद्गिरिभ्य आ धारयत्पकमोदनम्। इन्द्रो बुन्दं स्वाततम्
अपने अस्त्रों से मेघों को विदीर्ण करके इन्द्र देव ने जलों को प्रवाहित किया। इस प्रकार पृथ्वी ने परिपक्व अन्न धारण किया।[ऋग्वेद 8.77.6]
Indr Dev released the water from the clouds with his weapons. In this way the earth grew-had ripe food grains.
शतब्रघ्न इषुस्तव सहस्त्रपर्ण एक इत्। यमिन्द्र चकृषे युजम्
हे इन्द्र देव! जिसमें सैकड़ों फल और सहस्रों पंख हैं, वह धनुष में नियोजित होने वाला आपका एक ही बाण है।[ऋग्वेद 8.77.7]
Hey Indr Dev! Your unique arrow possess hundreds of sharp points and feathers, deployed over the bow.
तेन स्तोतुभ्य आ भर नृभ्यो नारिभ्यो अत्तवे। सद्यो जात ऋभुष्ठिर
हे इन्द्र देव! शीघ्र ही प्रकट होकर आप उस बाण की सहायता से पुरुषों, स्त्रियों तथा प्रार्थना करने वालों के लिए प्रचुर अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.77.8]
Hey Indr Dev! You quickly invoke and grant sufficient food grains to the male, female worshiping you, with the help of that arrow.
एता च्यौत्नानि ते कृता वर्षिष्ठानि परीणसा। हृदा वीद्वधारयः
हे इन्द्र देव! आपने जिस विशाल एवं विस्तृत पर्वतों का निर्माण किया है, आप उन्हें स्थित रूप से धारण करते हैं।[ऋग्वेद 8.77.9]
Hey Indr Dev! You widely support the huge, vast-broad mountains created by you.
विश्वेत् ता विष्णुराभरदुरुक्रमस्त्वेषितः।
शतं महिषान् क्षीरपाकमोदनं वराहमिन्द्र एमुषम्
हे इन्द्र देव! आपसे प्रेरित होकर बलशाली श्री विष्णु सैकड़ों सामर्थ्यवान बैल, जल मेघ, परिपक्व क्षीर और समस्त पदाथों को प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 8.77.10]
Hey Indr Dev! On being inspired by you, Shri Hari Vishnu grant hundreds of capable bulls, water bearing clouds, cooked pudding-Kheer and all sorts of necessary materials-goods.
तुविक्षं ते सुकृतं सूमयं धनुः साधुर्बुन्दो हिरण्ययः।
उभा ते बाहू रण्या सुसंस्कृत ऋदूपे चिदृदूवृधा
हे इन्द्र देव! आपकी भुजाएँ सुन्दर और यज्ञ की वृद्धि करने वाली हैं। आपका बाण सुवर्ण से बना हुआ है। आपके धनुष अनेकों बाणों को छोड़ने वाले हैं।[ऋग्वेद 8.77.11]
Hey Indr Dev! Your arms are beautiful and increase-boost the Yagy. Your arrow is made of gold. Your bow is capable of launching several arrows.(12.06.2024)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (78) :: ऋषि :- कुरुसुति, काण्व; देवता :-इन्द्र;  छन्द :- गायत्री, बृहती।
पुरोळाशं नो अन्धस इन्द्र सहस्रमा भर। शता च शूर गोनाम्
हे इन्द्र देव! सैकड़ों गौवों के झुंड, सोमरस तथा श्रेष्ठ आहार के रूप में आप सहस्रों पुरोडाश हमारे लिए प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.78.1]
झुंड :: पशु समूह, रेवड़, गल्ला, भीड़, रेवड़, गरोह, दल, जमघट; cluster, herd, swarm, drove.
Hey Indr Dev! Grant us hundreds herds of cows, Somras and best food stuff in the form of hundreds of Purodas.
आ नो भर व्यञ्जनं गामश्वमभ्यञ्जनम्। सचा मना हिरण्यया
हे इन्द्र देव! आप हमें सुसंस्कृत व्यंजन, गौ, अश्व, वृषभ और सुंदर सुवर्ण के आभूषण प्रदान करे।[ऋग्वेद 8.78.2]
Hey Indr Dev! Give us pious-virtuous food stuff, cows, horses, bulls and beautiful golden ornaments.
उत न कर्णशोभना पुरूणि धृष्णवा भर। त्वं हि शृण्विषे वसो
हे इन्द्र देव! अत्यंत उदार ओर धनों से युक्त आप हमें अनेक प्रकार के कुंडल आदि आभूषण प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.78.3]
Hey Indr Dev! Grant us liberally, wealth, ear rings and other ornaments.
नकीं वृधीक इन्द्र ते न सुषा न सुदा उत। नान्यस्त्वच्छूर वाघतः
हे शूरवीर इन्द्र देव! आप सभी को धनादि प्रदान करने वाले हैं। आपके अलावा कोई और श्रेष्ठ दाता ऋत्विजों का नायक नहीं है।[ऋग्वेद 8.78.4]
Hey brave Indr Dev! You grant wealth etc. to everyone. No other excellent donor, except you is the leader of Ritviz.
नकीमिन्द्रो निकर्तवे न शक्रः परिशक्तवे। विश्वं शृणोति पश्यति
वह बलशाली इन्द्र देव किसी से परास्त नहीं होते, न ही उन्हें कोई नष्ट कर सकता है। वे समस्त पदार्थों को देखने-सुनने वाले हैं।[ऋग्वेद 8.78.5]
Mighty Indr Dev is neither defeated by anyone nor any weapon can destroy him. He sees each & every material.
स मन्युं मर्त्यानामदब्धो नि चिकीषते। पुरा निदश्चिकीषते
इन्द्र देव किसी भी मनुष्य के द्वारा पराजित न होने वाले, दुष्कर्मियों के आवेश को निन्दा करने से पहले ही शान्त कर देते हैं।[ऋग्वेद 8.78.6]
आवेश ::  प्रवेश, व्याप्ति, संचार, पैठ, चित्त की प्रेरणा, उद्दीप्त मनोवेग, अंतःप्रेरणा दबा लेना; charge, huff.
Indr Dev who can not be defeated by anyone silences the huff of the wicked, prior to condemnation. 
क्रत्व इत्पूर्णमुदरं तुरस्यास्ति विधतः। वृत्रघ्नः सोमपाव्नः
वृत्रासुर का वध करने वाले इन्द्र देव सोमरस का पान करते हैं। मनुष्यों की इच्छाओं को तत्काल पूर्ण करने वाले इन्द्र देव का उदर सदैव सोमरस से परिपूर्ण रहता है।[ऋग्वेद 8.78.7]
Slayer of Vrata Sur drinks Somras. Stomach of desires accomplishing Indr Dev, is always full with Somras.
त्वे वसूनि संगता विश्वा च सोम सौभगा। सुदात्वपरिह्वता 
कपट आदि से रहित हे इन्द्र देव! आप सभी धनों के स्वामी हैं और समस्त सौभाग्य आप में निहित हैं।[ऋग्वेद 8.78.8]
Free from deception, hey Indr Dev! You are lord of all wealth and good luck-fortune is vested in you.
त्वामिद्यवमुर्मम कामो गव्युर्हिरण्ययुः। त्वामश्युरेषति
हे इन्द्र देव! अन्न, सुवर्ण, गौ तथा अश्वों की कामना करने वाला हमारा मन सदैव आपकी ही स्तुति करता है।[ऋग्वेद 8.78.9]
Hey Indr Dev! Our innerself desirous of food grains, gold, cows and horses always worship you.
तवेदिन्द्राहमाशसा हस्ते दात्रं चना ददे।
दिनस्य वा मघवन् त्संभृतस्य वा पूर्धि यवस्य काशिना
हे इन्द्र देव! आप ऐश्वर्य युक्त हैं। हम इस दरांती को आपके ही आश्रय में ग्रहण करतेहैं। आप हमारे द्वारा तैयार किये गये जौ की मुट्ठी द्वारा हमारे भण्डारों को परिपूर्ण करें।[ऋग्वेद 8.78.10]
Hey Indr Dev! You possess grandeur. We accept this sickle under your protection. Fill our stores by the fistful barley cultivated-harvested by us.(13.06.2024)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (79) :: ऋषि :- कृत्नु, भार्गव; देवता :- सोम;  छन्द :- गायत्री, अनुष्टुप्।
अयं कृत्नुरगृभीतो विश्वजिदुद्धिदित्सोमः। ऋषिर्विप्रः काव्येन
कर्मवान्, विजेता, दूसरों के द्वारा अग्रहणीय और विश्वजित् तथा उ‌द्भिद नामक सोमयज्ञों को संपन्न करने वाले हैं। मेधावी ऋषि के काव्यों द्वारा ये स्तुत्य हैं।[ऋग्वेद 8.79.1]
Endeavourous, winner-victorious, unacceptable to others, winner of the universe and performer of Yagy like Udibhd, Medhavi Rishi is worshipable by the Kavy.
अभ्यूर्णोति यन्नग्नं भिषक्ति विश्वं यत्तुरम्। प्रेमन्धः ख्यन्निः श्रोणो भूत् 
रोगियों के सभी रोगों का शमन करने वाले हे सोमदेव! वस्त्र विहीनों को आप आच्छादित करते हैं। लंगड़ों को गति व नेत्रहिनों को दृष्टि प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 8.79.2]
Destroyer of all diseases-ailments of the ill-diseased, hey Som Dev! You provide clothing to those who are without it. You grant movability to the lame and visibility to the blind.
त्वं सोम तनूकृद्ध्यो द्वेषोभ्योऽन्यकृतेभ्यः। उरु यन्तासि वरूथम्
हे सोम देव! आप शरीर को दुर्बल बनाने वाले रोगरूपी रिपुओं से संरक्षित करने के लिए श्रेष्ठ कवच के सदृश हैं।[ऋग्वेद 8.79.3]
Hey Som Dev! You are the best shield protecting against the enemies (germs, virous, bacteria, algae) making the body weak.
त्वं चित्ती तव दक्षैर्दिव आ पृथिव्या ऋजीषिन्। यावीरघस्य चिद्वेषः
हे ऋजीषवान् सोम देव! आप अपने बल और बुद्धि द्वारा हमारा सर्वनाश करने वाले रिपुओं को द्यावा-पृथ्वी से दूर पलायित करें।[ऋग्वेद 8.79.4]
ऋजीष :: लोहे का तसला, सोमलता छानने के बाद बची हुई सीठी; waste after extracting Somras.
Hey possessor of Rijish, Som Dev! Expel the enemies who are bent upon destroying us, from the earth and heavens with your intellect.
अर्थिनो यन्ति चेदर्थं गच्छानिद्ददुषो रातिम्। ववृज्युस्तृष्यतः कामम्
धन की कामना करने वाले धनदाता के समीप जाकर अपनी आकांक्षाओं की पूर्ति कर लेते हैं।[ऋग्वेद 8.79.5]
Desirous of wealth, reach the donor and accomplish their desires.
विदद्यत्पूर्व्य नष्टमुदीमृतायुमीरयत्। प्रेमायुस्तारीदतीर्णम्
अपनी नष्ट हुई पुरातन संपदा को पुनः प्राप्त कर लेने वाले व्यक्ति का धन उसे यज्ञ के लिए प्रेरित करता है। तभी उसे दीर्घायु की प्राप्ति होती है।[ऋग्वेद 8.79.6]
The wealth of one who attain his ancestral property is inspired to perform Yagy and he get longevity.
सुशेवो नो मृलवाकुरदृरदृप्तक्रतुरवातः। भवा नः सोम शं हृदे
हे सोम देव! आप हमारे हृदय के लिए आनंद तथा उन्माद को दूर करने वाले हों। हमारे वातादि दोषों को दूर कर आप हमें शान्ति प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.79.7]
Hey Som Dev! Let you become one who generate pleasure in our hearts and destroy the frenzy. Remove our ailments like gastric and grant us peace, solace, tranquillity. 
मा नः सोम सं वीविजो मा वि बीभिषथा राजन्। मा नो हार्दि त्विषा वधीः
हे सोम देव! आप अपने तेज से हमें प्रकम्पित और भयभीत न करे। हमारे अंतःकरण को पीड़ित न होने दें।[ऋग्वेद 8.79.8]
Hey Som Dev! Do not tremble-trouble and fear us, with your radiance. Do not trouble-agitate our innerself.
अव यत् स्वे सधस्थे देवानां दुर्मतीरीक्षे। राजन्नप द्विषः सेध मीढ्‌वो अप त्रिधः सेध
हे सोम देव! हमारा गृह देवों के शाप से ग्रसित न हो। हमारे हिंसा करने वाले रिपुओं को आप हमसे दूर भगाएँ।[ऋग्वेद 8.79.9]
Hey Som Dev! Our home should not be cursed by the demigods-deities.  Repel the enemies who harm us.
Som Dev is the deity of medicines.(13.06.2024)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (80) :: ऋषि :- एकधूनौधस; देवता :- इन्द्र, देवगण; छन्द :- गायत्री, त्रिष्टुप्।
नहह्य १ न्यं बळाकरं मर्डितारं शतक्रतो। त्वं न इन्द्र मृळय
हे शतक्रतो इन्द्र देव! आप हमें सुख प्रदान करें, क्योंकि आपके अतिरिक्त हमने किसी अन्य को सुख प्रदान करने वाला नहीं माना।[ऋग्वेद 8.80.1]
Hey Shatkrat Indr Dev! Grant us pleasure-comforts, since we do not consider any one other than you; capable of granting pleasure.
यो नः शश्वत्पुराविथामृध्रो वाजसातये। स त्वं न इन्द्र मृळय
हे इन्द्र देव! सबसे पहले आपने अन्न प्राप्ति के लिए हमें संरक्षित किया। अब आप हमें नाना प्रकार के सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.80.2]
Hey Indr Dev! You protected for granting food grains. Now, grant us various kinds of comforts.
किमङ्ग रध्रचोदनः सुन्वानस्यावितेदसि। कुवित्स्विन्द्र णः शकः
हे इन्द्र देव! आप धनदाताओं को प्रेरित करने वाले हैं। आप हमें प्रचुर ऐश्वर्य प्रदान करें। आप यज्ञ करने वालों को संरक्षित करते हैं।[ऋग्वेद 8.80.3]
Hey Indr Dev! You inspire the donors for granting wealth. Give us lots of grandeur. You protect those who conduct Yagy.
इन्द्र प्र णो रथमव पश्चाच्चित्सन्तमद्रिवः। पुरस्तादेनं मे कृधि
हे वज्रधारक इन्द्र देव! हमारा जो रथ पीछे रह गया है, उसकी सुरक्षा करते हुए उसे आगे ले आयें।[ऋग्वेद 8.80.4]
Hey Vajr wielding Indr Dev! Our charoite has left behind, bring it in front while protecting it.
हन्तो नु किमाससे प्रथमं नो रथं कृधि। उपमं वाजयु श्रवः
हे शत्रु संहारक इन्द्र देव! आप किसलिए मौन बैठे है? हमारे रथ को आप सबसे आगे कर दें, क्योंकि बल प्रदान करने वाला अन्न आपके पास है।[ऋग्वेद 8.80.5]
Hey destroyer of the enemy, Indr Dev! Why are you sitting quietly? Move our charoite in front since you possess the food grains which provide strength.
अवा नो वाजयुं रथं सुकरं ते किमित्यरि। अस्मान्त्सु जिग्युषस्कृधि
हे इन्द्र देव! आपके लिए सभी कार्य हर प्रकार से सरल हैं। अन्न युक्त हमारे रथ को आप संरक्षित करें एवं हमें युद्ध में विजयी बनावें।[ऋग्वेद 8.80.6]
Hey Indr Dev! Every deed is simple for you. Protect our charoite bearing food grains and make us win in the war.
इन्द्र दृह्यस्व पूरसि भद्रा त एति निष्कृतम्। यं धीऋत्वियावती
हे समृद्धिशाली इन्द्र देव! आप कामनाओं की पूर्ण करने वाले हैं। आप ही यज्ञकर्मों को संपादित करने वाले हैं। आपके द्वारा किए गए सत्कर्मों की ओर हमारी हितकारी स्तुतियाँ गमन करती हैं।[ऋग्वेद 8.80.7]
Hey prosperous Indr Dev! You accomplish desires. Its you who accomplish our Yagy. Our beneficial Stutis are directed towards your virtuous endeavours.
मा सीमवद्य आ भागुर्वी काष्ठा हितं धनम्। अपावृक्ता अरत्नयः 
अप्रिय शत्रु हमारे निकट न आवें। विराट् युद्धभूमि में विद्यमान धनों को इन्द्र देव निंदकों में वितरित न करें।[ऋग्वेद 8.80.8]
अप्रिय :: भद्दा, निकृष्ट, नापसन्द, अरूचिकर, रेतीला, किसकिसा; unpleasant, abominable, gritty, disliked. 
Enemy disliked by us should not move close to us. Wealth present in the war field should not be distributed amongest the slanderers by Indr Dev.
तुरीयं नाम यज्ञियं यदा करस्तदुश्मसि। आदित् पतिर्न ओहसे
हे इन्द्र देव! आप हमारी रक्षा और पालन करने वाले हैं। हम आपके यज्ञ सम्बन्धी चतुर्थ नाम की कामना करते हैं, जिसे आपने स्वयं निर्धारित किया है।[ऋग्वेद 8.80.9]
Hey Indr Dev! You are our protector and nurturer. We wish to give you fourth name related with the Yagy, which has been chosen by you yourself.
अवीवृधद्वौ अमृता अमन्दीदेकद्दूर्देवा उत याश्च देवीः।
तस्मा उ राधः कृणुत प्रशस्तं प्रातर्मक्षु धियावसुर्ज गम्यात्
हे देवियों और देवताओं! प्रार्थना पूर्वक सोमरस समर्पित करके एकद्दू ऋषि आपको प्रसन्न करते हुए आपकी महानता की वृद्धि करते हैं। आप हमें उत्तम धन प्रदान करें। कर्म प्रेरक इन्द्र देव उषा काल में ही पधारें।[ऋग्वेद 8.80.10]
Hey demigods-deities and goddesses! Ekdadu Rishi offer Somras to you making prayers boosting your greatness. Grant us best wealth. Let Indr Dev inspiring us for Karm-endeavours invoke at the time of Sun rise.(14.06.2024)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (81) :: ऋषि :- कुसीदी, काण्व; देवता :-इन्द्र;  छन्द :- गायत्री।
आ तू न इन्द्र क्षुमन्तं चि त्रं ग्राभं सं गृभाय। महाहस्ती दक्षिणेन
महान् भुजाओं वाले हे इन्द्र देव! आप हमें दाहिने हाथ से न्यायोपार्जित, प्रशंसनीय धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.81.1]
Hey Indr Dev with-possessing long arms! Grant us appreciable wealth with your right hand earned through judicious means.
विद्मा हि त्वा तुविकूर्मिं तुविदेष्णं तुवीमघम्। तुविमात्रमवोभिः
हे इन्द्र देव! आप पराक्रम प्रकट करने वाले, बहुत से दान वाले, असीमित धन वाले तथा महती रक्षाओं वाले हैं। हम आपके इसी रूप को जानते हैं।[ऋग्वेद 8.81.2]
पराक्रम :: शौर्य, सामर्थ्य, बल; might, valour, power.
Hey Indr Dev! You exhibit great valour, make many donations, possess infinite wealth and possess great means of protections. We recognise you just like this.
नहि त्वा शूर देवा न मर्तासो दित्सन्तम्। भीमं न गां वारयन्ते
बलशाली वृषभ के समान हे पराक्रमी इन्द्र देव! कोई भी देवता या मनुष्य आपको दान देने से नहीं रोक सकता।[ऋग्वेद 8.81.3]
Hey Indr Dev having valour-might like a bull! No demigod-deity can not stop you from making donations.
एतो न्विन्द्रं स्तवामेशानं वस्वः स्वराजम्। न राधसा मर्धिषन्नः
हे स्तोताओं! ऐश्वर्य के स्वामी और स्वयं प्रकाशित होने वाले इन्द्र देव की हम यहाँ उपस्थित होकर प्रार्थना करें, जिससे ऐश्वर्य के क्षेत्र में हमारी प्रतिद्वन्द्विता करने वाला कोई अन्य न रहे।[ऋग्वेद 8.81.4]
Hey Stotas! We should assemble here and worship self illuminated Indr Dev, the lord of grandeur so that no other competitor is there in the field of grandeur.
प्र स्तोषदुप गासिषच्छ्रवत्साम गीयमानम्। अभि राधसा जुगुरत्
हे स्तोताओं! वे इन्द्र देव आपकी प्रार्थना की प्रशंसा करें, छंदों को जाने और सामगान का श्रवण करें तथा धन सम्पन्न होते हुए हमारे ऊपर अनुकम्पा करें।[ऋग्वेद 8.81.5]
Hey Stotas! Let Indr Dev listen-respond to our prayers, recognise the Chhand, hear the Sam Gan and oblige us by granting wealth-money.
आ नो भर दक्षिणेनाभि सव्येन प्र मृश। इन्द्र मा नो वसोर्निर्भाक्॥
हे इन्द्र देव! हमें धन से वंचित न रखते हुए आप अपने दोनों हाथों से हमें ऐश्वर्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.81.6]
Hey Indr Dev! Do not deprive us of wealth extend grandeur to us with your both hands.
उप क्रमस्वा भर धृषता धृष्णो जनानाम्। अदाशूष्टरस्य वेदः॥
हे रिपु संहारक इन्द्र देव! आप ऐश्वर्य प्राप्ति के लिए गमन करें। अपने बल द्वारा स्वार्थी मनुष्यों के ऐश्वर्य का अपहरण करके हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.81.7]
Hey destroyer of the enemy, Indr Dev! Move for attainment of grandeur. Snatch the grandeur of the selfish with your power and grant it to us.
इन्द्र य उ नु ते अस्ति वाजो विप्रेभिः सनित्वः। अस्माभिः सु तं सनुहि॥
हे इन्द्र देव! ब्राह्मणों के बीच में वितरित करने योग्य जो आपकी संपदा है, उसे हमारे बीच में बाँटे।[ऋग्वेद 8.81.8]
Hey Indr Dev! Grant the your wealth fit for distributing amongest the Brahmans, to us.
सद्योजुवस्ते वाजा अस्मभ्यं विश्वश्चन्द्राः। वशैश्च मधू जरन्ते
हे इन्द्र देव! आपका धन तत्काल प्राप्त होने वाला तथा शान्ति प्रदत्त करने वाला है। आप वह धन अपने अधीनस्थ रहने वाले के साथ हमें भी प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.81.9]
Hey Indr Dev! Your wealth is attained instantaneously and grant peace-solace, tranquillity. Grant-share that wealth under you, to us as well.(14.06.2024)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (82) :: ऋषि :- कुसीदी, काण्व; देवता :-इन्द्र;  छन्द :- गायत्री।
आ प्र द्रव परावतोऽर्वावतश्च वृत्रहन्। मध्वः प्रति प्रभर्मणि
हे वृत्र संहारक इन्द्र देव! आप दूर-समीप जहाँ भी हों, सोमरस का पान करने के लिए हमारे यज्ञ मण्डप पर अवश्य पधारें।[ऋग्वेद 8.82.1]
Hey slayer of Vrata Sur, Indr Dev! Whether far or near, join us in our Yagy Mandap to drink Somras.
तीव्राः सोमास आ गहि सुतासो मादयिष्णवः। पिबा दधृग्यथोचिषे
हे इन्द्र देव! आनंद देने वाला सोम अभिषुत किया गया है, आप इस सोम रस का पान करने के लिए शीघ्रता से यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 8.82.2]
Indr Dev! Gladdening Somras has been extracted. Come quickly to drink it.
इषा मन्दस्वादु तेऽरं वराय मन्यवे। भुवत्त इन्द्र शं हृदे
हे इन्द्र देव! आप सोमरूप अन्न से आनन्दित होने वाले हैं। वह सोम आपके हृदय को प्रसन्न करने वाला, शत्रुओं को पलायित करने वाले क्रोध को उत्पन्न करने वाला हो।[ऋग्वेद 8.82.3]
Hey Indr Dev! You enjoy the food grains in the form of Som. That Som thrills-gladden your heart and generate anger in you to repel the enemy.
आ त्वशत्रवा गहि न्यु१क्थानि च हूयसे। उपमे रोचने दिवः
हे इन्द्र देव! आप शत्रुओं से रहित व तेजसंपन्न हैं। आप यज्ञों में प्रार्थना किए जाते है, इसलिए आप स्वर्गलोक से यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 8.82.4]
Hey Indr Dev! You lack enemies and possess energy-radiance. You are worshiped in the Yagy, hence come here from the heavens.
तुभ्यायमद्रिभिः सुतो गोभिः श्रीतो मदाय कम्। प्र सोम इन्द्र हूयते
हे इन्द्र देव! आपको प्रसन्न करने के लिए पत्थरों द्वारा कूटकर अभिषुत किए गए सोमरस को गौदुग्ध में मिलाकर आपकी प्रसन्नता के लिए आपको प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 8.82.5]
Hey Indr Dev! We offer you Somras mixed with milk, extracted by crushing it with stones to please-gladden you.
इन्द्र श्रुधि सु मे हवमस्मे सुतस्य गोमतः। वि पीतिं तृप्तिमश्नुहि
हे इन्द्र देव! आप हमारे आवाहन का भली प्रकार श्रवण करें और हमारे द्वारा प्रदान किए गए गौदुग्ध मिश्रित सोमरस का पान करके आप प्रसन्न हों।[ऋग्वेद 8.82.6]
Hey Indr Dev! Carefully listen to our invocation and accept the Somras mixed with milk to be happy.
य इन्द्र चमसेष्वा सोमश्चमूषु ते सुतः। पिबेदस्य त्वमीशिषे
हे इन्द्र देव! चमस पात्रों में शुद्ध सोमरस भरकर रखा गया है। आप इस दिव्य सोमरस को पीकर प्रसन्न हों।[ऋग्वेद 8.82.7]
Hey Indr Dev! Pure Somras has been kept in Chamas vessels. Be happy by drinking this divine Somras.
यो अप्सु चन्द्रमाइव सोमश्चमूषु ददृशे। पिबेदस्य त्वमीशिषे
हे इन्द्र देव! जल में दिखाई देने वाले चन्द्रमा के समान ग्रहों में स्थित सोमरस के आप ही स्वामी हैं, इसलिए आप इसका पान करें।[ऋग्वेद 8.82.8]
Hey Indr Dev! You are the lord of Somras present in the planets, like the Moon which is reflected in water. Hence drink it.
यं ते श्येनः पदाभरत्तिरो रजांस्यस्मृतम्। पिबेदस्य त्वमीशिषे
हे इन्द्र देव! श्येन पक्षी आपके लिए अस्पृष्ट सोमरस को स्वर्ग से लाया है, अतः आप दोनों सवनों में इस सोमरस का पान कर प्रसन्न हों।[ऋग्वेद 8.82.9]
अस्पृष्ट :: जिसे छुआ न गया हो, अछूता; untouched, intact.
Hey Indr Dev! Falcon has brought this untouched Somras from the heaven, hence drink it in both the segments of the day.(15.06.2024)

ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (83) :: ऋषि :- कुसीदी, काण्व; देवता :-विश्वेदेवा; छन्द :- गायत्री।
देवानामिदवो महत्तदा वृणीमहे वयम्। वृष्णामस्मभ्यमूतये
हे देवताओं! अपनी सुरक्षा के निमित्त हम आपके महान् संरक्षण की प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 8.83.1]
Hey demigods-deities! We request you for our protection-patronage.
ते नः सन्तु युजः सदा वरुणो मित्रो अर्यमा। वृधासश्च प्रचेतसः
धन की वृद्धि करने वाले मित्र, वरुण देव और अर्यमा आदि देवता सदैव हमारी सहायता करें।
Protector of wealth Mitr, Varun Dev and Aryma should always help-support us.
 अति नो विष्पिता पुरु नौभिरपो न पर्षथ। यूयमृतस्य रथ्यः
हे देवताओं! आप यज्ञों में सदैव आगे रहते हैं। नदियों को जिस प्रकार नावों द्वारा पार किया जाता है, उसी प्रकार आप हमें विपत्तियों से पार लगावें।[ऋग्वेद 8.83.3]
विपत्ति :: आपदा, विपत्ति, आफ़त, दैवी प्रकोप, मुसीबत, उत्पात, अमंगल; calamity, disaster. 
He demigods-deities! You always remain forward in the Yagy. The way river is crossed in boats, similarly you should pull us across the troubles-calamities.
वामं नो अस्त्वर्यमन्वामं वरुण शंस्यम्। वामं ह्यावृणीमहे
हम वरुण देव और अर्यमा से धन की प्रार्थना करते हैं। उनके द्वारा हमें उत्तम धनों की प्राप्ति हो।[ऋग्वेद 8.83.4]
We request wealth from Varun Dev and Aryma. Let us have the excellent wealth granted by them. 
वामस्य हि प्रचेतस ईशानासो रिशादसः। नेमादित्या अघस्य यत्
हे मेधावी देवताओं! शत्रुओं का संहार करने वाले आप उत्तम धनों के स्वामी हैं। हे आदित्यों! आप दुष्टकर्मियों का धन को हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.83.6]
Hey intelligent demigods-deities! Destroyer of the enemies, you are the lord of excellent wealth. Hey Adity Gan! Give the wealth of the wicked-vicious to us.
वयमिद्वः सुदानवः क्षियन्तो यान्तो अध्वन्ना। देवा वृधाय हूमहे
हे देवताओं! हम घर में हों या मार्ग में हों, अपनी उन्नति के लिए सदैव आपका ही आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.83.6]
Hey demigods-deities! Weather at home or in the way, we invoke you for progress.
अधि न इन्द्रैषां विष्णो सजात्यानाम्। इता मरुतो अश्विना
हे इन्द्र देव, मरुत्, श्री विष्णु और अश्विनी कुमारों! आप हमें श्रेष्ठ धन प्रदान कर सर्वश्रेष्ठ बनावें।[ऋग्वेद 8.83.7]
Hey Indr Dev, Marud Gan, Shri Hari Vishnu and Ashwani Kumars! Grant us excellent wealth and make us best. 
प्र भ्रातृत्वं सुदानवोऽध द्विता समान्या। मातुर्गर्भे भरामहे
हे देवताओं! माता के गर्भ में तथा भ्रातृभाव सहित दो प्रकार से रहने वाले हम स्तोता सदैव आपका ही वर्णन करते हैं।[ऋग्वेद 8.83.8]
Hey demigods-deities! Residing in the womb of the mother & having brotherhood, we the Stotas always glorify you. 
यूयं हि ष्ठा सुदानव इन्द्रज्येष्ठा अभिद्यवः। अधा चिद्व उत ब्रुवे
हे श्रेष्ठ दानी देवताओं! आप सभी ओज से युक्त हैं। आप इन्द्र देव को अपने से ज्येष्ठ मानते हैं, इसलिए हम आपकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 8.83.9]
Hey excellent donor demigods-deities! You consider Indr Dev elder than you, hence we worship you.(15.06.2024)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (84) :: ऋषि :- उशना, काव्य; देवता :- अग्नि; छन्द :- गायत्री।
प्रेष्ठं वो अतिथिं स्तुषे मित्रमिव प्रियम्। अग्निं रथं न वेद्यम्॥
हे अग्नि देव! आप यजमानों के मनोरथ को पूर्ण करने वाले, सब पर कृपा करने वाले तथा मित्र के समान व्यवहार करने वाले हैं, क्योंकि आप हमारी स्तुतियों से प्रसन्न होते हैं।[ऋग्वेद 8.84.1]
Hey Agni Dev! You accomplish the desires of the hosts, takes mercy over all, behaves like friend since you become happy with our prayers-Stuti.
कविमिव प्रचेतसं यं देवासो अध द्विता। नि मर्येष्वादधुः 
मेधावियों के समान देवताओं ने अग्नि देव को दोनों रूपों में मनुष्यों के बीच में स्थापित किया। [ऋग्वेद 8.84.2]
The demigods-deities established Agni Dev amongest the humans like enlightened-intelligent in both forms.
त्वं यविष्ठ दाशुषो नॄँ: पाहि शृणुधी गिरः। रक्षा तोकमुत त्मना
हे युवा अग्नि देव! हम अपने पुत्रों की रक्षा के लिए आपकी प्रार्थना करते हैं। आप उनकी रक्षा करें।[ऋग्वेद 8.84.3]
Hey young Agni Dev! We pray to you for the safety of our sons. You should protect them.
कया ते अग्ने अङ्गिर ऊर्जा नपादुपस्तुतिम्। वराय देव मन्यवे
हे अग्नि देव! आप शत्रुओं को पीड़ित करने वाले हैं। हम किस स्तोत्र से आपकी प्रार्थना करें? [ऋग्वेद 8.84.4]
Hey Agni Dev! You torture the enemies. With which Strotr should we worship-pray to you?
दाशेम कस्य मनसा यज्ञस्य सहसो यहो। कदु वोच इदं नमः 
हे अग्नि देव! यजमान के यज्ञीय कर्म द्वारा हम आपको हवि अर्पित करते हैं। ये हवि आपको प्राप्त हों, इसके लिए हम आपकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 8.84.5]
Hey Agni Dev! We make offerings to you through the Yagy. We pray so that the offerings reach you.
अधा त्वं हि नस्करो विश्वा अस्मभ्यं सुक्षितीः। वाजद्रविणसो गिरः 
हे अग्नि देव! हम अपनी स्तुतियों के प्रभाव से श्रेष्ठ स्थानों के स्वामी तथा अन्न और धन-धान्य से युक्त हो जाएँ।[ऋग्वेद 8.84.6]
Hey Agni Dev! We should become the owner of excellent places, food grains and wealth with the impact-affect of our Stuties.
कस्य नूनं परीणसो धियो जिन्वसि दंपते। गोषाता यस्य ते गिरः
हे अग्नि देव! आप किस प्रकार की स्तुतियों से प्रसन्न होते हैं। आपकी किस स्तुति से हमें ज्ञान का साक्षात्कार हो सकता है।[ऋग्वेद 8.84.7]
Hey Agni Dev! What type of Stuties-prayers please-appease you? Which Stuti of yours will award enlightenment?
तं मर्जयन्त सुक्रतुं पुरोयावानमाजिषु। स्वेषु क्षयेषु वाजिनम्
युद्ध में शत्रुओं का संहार करने वाले, सत्कर्मी और बलशाली अग्नि देव को लोग अपने घरों में स्थापित करके उनकी उपासना करते हैं।[ऋग्वेद 8.84.8]
We establish virtuous, mighty Agni Dev, the destroyer of the enemies in our in our homes and worship him.
क्षेति क्षेमेभिः साधुभिर्नकिर्यं घ्नन्ति हन्ति यः। अग्ने सुवीर एधते
हे अग्नि देव! आपके द्वारा संरक्षित हुए यजमान का कोई भी शत्रु अहित नहीं कर सकता। वह अपने रिपुओं का संहार करते हुए हुए पुत्र-पौत्रों के साथ (नाना प्रकार के) सुखों को प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 8.84.9]
Hey Agni Dev! Enemy can not hurt-harm the host-Ritviz protected by you. He destroys his enemies and attain comforts-pleasure along with his sons and grant sons.(17.06.2024M)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (85) :: ऋषि :- कृष्ण, आंगिरस; देवता :-अश्विनी कुमार; छन्द :- गायत्री। 
आ मे हवं नासत्याश्विना गच्छतं युवम् । मध्वः सोमस्य पीतये
हे अश्विनी कुमारों! आप हमारे आवाहन को श्रवण करें और सोमरस के पान के लिए पधारें। [ऋग्वेद 8.85.1]
Hey Ashwani Kumars! Listen to our invocation and come to drink Somras.
इमं मे स्तोममश्विनेमं मे शृणुतं हवम्। मध्वः सोमस्य पीतये
हे अश्विनी कुमारों! मधुर सोमरस का पान करने के लिए आप हमारे आह्वान तथा स्तोत्रों को श्रवण करें।[ऋग्वेद 8.85.2]
Hey Ashwani Kumars! Listen to our Strotr & invocation to drink sweet Somras.
अयं वां कृष्णो अश्विना हवते वाजिनीवसू। मध्वः सोमस्य पीतये
हे अश्विनी कुमारों! आप अन्न रूप धन से युक्त है। हम कृष्ण ऋषि मधुर सोम रसपान के लिए आपका आवाहन करते हैं।
Hey Ashwani Kumars! You possess wealth in the form of food grains. We Krashn Rishi invite you to drink sweet Somras.
शृणुतं जरितुर्हवं कृष्णस्य स्तुवतो नरा। मध्वः सोमस्य पीतये
हे अश्विनी कुमारों! स्तुति करने वाले हम कृष्ण ऋषि के आवाहन को आप मधुर सोम रसपान के लिए सुनें।[ऋग्वेद 8.85.4]
Hy Ashwani Kumars! Listen to us the Krashn Rishi worshiping and invoking you to drink sweet Somras. 
छर्दिर्यन्तमदाभ्यं विप्राय स्तुवते नरा। मध्वः सोमस्य पीतये
हे अश्विनी कुमारों! मधुर सोमपान के लिए आप विद्वान् स्तोताओं को कभी नष्ट न होने वाला आवास प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.85.5]
Hey Ashwani Kumars! Drink Somras and grant imperishable residence to enlightened Stotas.
गच्छतं दाशुषो गृहमित्था स्तुवतो अश्विना। मध्वः सोमस्य पीतये 
हे अश्विनी कुमारों! आप हविदाता यजमान के गृह में सोमपान के लिए पधारें।[ऋग्वेद 8.85.6]
Hey Ashwani Kumars! Come to the house the Ritviz making offerings, to drink Somras.
युञ्जाथां रासभं रथे वीडङ्गे वृषण्वसू। मध्वः सोमस्य पीतये
हे अश्विनी कुमारों! आप धन की वर्षा करने वाले हैं। सोमरस के पान के लिए अपने सुदृढ़ रथ में अश्वों को नियोजित करें।[ऋग्वेद 8.85.7]
Hey Ashwani Kumars! You shower wealth. Deploy horses in your strong charoite to drink Somras.
त्रिवन्धुरेण त्रिवृता रथेना यातमश्विना। मध्वः सोमस्य पीतये
हे अश्विनी कुमारों! आप तीन फलकों वाले रथ द्वारा मधुर सोमपान के लिए पधारें।[ऋग्वेद 8.85.8]
Hey Ashwani Kumars! Arrive riding in the charoite having three segments to drink Somras.
नू मे गिरो नासत्याश्विना प्रावतं युवम्। मध्वः सोमस्य पीतये
हे अश्विनी कुमारों! हमारी स्तुतियों को श्रवण करते हुए आप मधुर सोमपान के लिए पधारें।[ऋग्वेद 8.85.9]
Hey Ashwani Kumars! Listen to our Stuties and come to drink sweet Somras.(17.06.2024E)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (86) :: ऋषि :- कृष्ण, आंगिरस, विश्वक या कार्षिण;  देवता :- अश्विनी कुमार; छन्द :- जगती।
उभा हि दस्त्रा भिषजा मयोभुवोभा दक्षस्य वचसो बभूवथुः।
ता वां विश्वको हवते तनूकृथे मा नो वि यौष्टं सख्या मुमोचतम्
हे अश्विनी कुमारों! आप स्तुति के योग्य हैं। अपने शरीर की सुरक्षा के लिए हम विश्वक ऋषि आपका आवाहन करते हैं। आप हमें अपनी मित्रता से वंचित न करते हुए हमारे कष्टों को दूर करें।[ऋग्वेद 8.86.1]
Hey Ashwani Kumars! You deserve our prayers. We Vishwak Rishi invoke you for the protection of our bodies. Do not be unfriendly with us and remove our troubles.
कथा नूनं वां विमना उप स्तवद्युवं धियं ददथुर्वस्यइष्टये।
ता वां विश्वको हवते तनूकृथे मा नो वि यौष्टं सख्या मुमोचतम्
हे अश्विनी कुमारों! विमना ऋषि के पुरातनकाल में आपकी किस प्रकार की स्तुति की गई थी? उत्तम ऐश्वर्य प्राप्त करने के लिए आपने विमना को विवेक प्रदान किया है। अपने संरक्षण हेतु हम विश्वक ऋषि आपका आवाहन करते हैं। हमारे कष्टों को दूर करते हुए आप हमें अपनी मित्रता से वंचित न करें।[ऋग्वेद 8.86.2]
Hey Ashwani Kumars! How were you worshiped during the ancient period of Vimna Rishi? You granted prudence to Vimna for attaining best grandeur. We Vimna Rishi invoke you for our protection-safety. Do not be unfriendly with us and remove our troubles.
युवं हि ष्मा पुरुभुजेममेधतुं विष्णाप्वे ददथुर्वस्यइष्टये।
ता वां विश्वको हवते तनूकृथे मा नो वि यौष्टं सख्या मुमोचतम्
हे अश्विनी कुमारों! श्री विष्णु आदि के अभीष्ट के लिए आपने उन्हें ऐश्वर्य प्रदान किया था। अपने संरक्षण हेतु हम विश्वक ऋषि आपका आवाहन करते हैं। हमारे कष्टों को दूर करते हुए आप हमें अपनी मित्रता से वंचित न करें।[ऋग्वेद 8.86.3]
Hey Ashwani Kumars! You granted desired grandeur to Shri Hari Vishnu. We Vimna Rishi invoke you for our protection-safety. Do not be unfriendly with us and remove our troubles.
उत त्यं वीरं धनसामृजीषिणं दूरे चित्सन्तमवसे हवामहे।
यस्य स्वादिष्ठा सुमतिः पितुर्यथा मा नो वि यौष्टं सख्या मुमोचतम्
हे अश्विनी कुमारों! आप धन का दान तथा सोमरस का पान करने वाले हैं। पिता के सदृश आप हमारा पालन करने वाले हैं। हम दूर देश में रहने पर भी अपनी रक्षा के लिए आपका आवाहन करते हैं। हमारे कष्टों को दूर करते हुए आप हमें अपनी मित्रता से वंचित न करें।[ऋग्वेद 8.86.4]
Hey Ashwani Kumars! You donated money and drink Somras. Nurture us like a father. We invoke residing in a distant place. Do not be unfriendly with us and remove our troubles.
ऋतेन देवः सविता शमायत ऋतस्य शृङ्गमुर्विया वि पप्रथे।
ऋतं सासाह महि चित्पृतन्यतो मा नो वि यौष्टं सख्या मुमोचतम्
ऋत के द्वारा आदित्य अपनी रश्मियों को बटोरते हैं और ऋत के द्वारा वे पुनः अपनी रश्मियों को फैलाते हैं। विशाल सेनाओं से युक्त शत्रुओं को वे परास्त करते हैं। हमारे कष्टों को दूर करते हुए आप हमें अपनी मित्रता से वंचित न करें।[ऋग्वेद 8.86.5]
ऋत :: जगत की व्यवस्था। इसे प्रकृति का नियम भी कहा गया है। सूर्य, चन्द्रमा, तारे, दिन-रात आदि इसी नियम द्वारा संचालित हैं। ऋत सही सनातन प्राकृतिक व्यवस्था और संतुलन के सिद्धांत को कहते हैं, यानि वह तत्त्व जो पूरे संसार और ब्रह्माण्ड को धार्मिक स्थिति में रखे या लाए; regulating the universe. Whole planetary system function under this system. Gravitational force keep the whole Galaxy, stars, tail stars, solar system, planets, moons tied together. 
The Adity expand and contract their rays with Rit-the cycles of nature. They defeat the enemies with large armies. Do not be unfriendly with us and remove our troubles.(17.06.2024E)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (87) :: ऋषि :- कृष्ण, आंगिरस, वसिष्ठ या द्युम्नीक, प्रियमेध, आंगिरस; देवता :- अश्विनी कुमार;  छन्द :- बृहती, समा सतोबृहती। 
द्युम्नी वां स्तोमो अश्विना क्रिविर्न सेक आ गतम्।
मध्वः सुतस्य स दिवि प्रियो नरा पातं गौराविवेरिणे
हे अश्विनी कुमारों! जिस प्रकार वर्षा ऋतु में कुंड जल से परिपूर्ण रहते हैं, उसी प्रकार आप हमारी प्रार्थनाओं से परिपूर्ण होकर पधारें। जिस प्रकार हिरण जलकुंड में पानी पीते हैं, उसी प्रकार आप द्युम्नीक ऋषि द्वारा शोधित किए गए आनन्ददायक सोमरस का पान करें। [ऋग्वेद 8.87.1]
परिपूर्ण :: जो हर तरह से पूर्ण हो; full, replete.
Hey Ashwani  Kumars! The way the reservoirs are filled with water, similarly you should be replete with our prayers and come to us. The way the deer go to drink water in the water reservoir-pond, similarly you should drink the exhilarating Somras extracted by Dyumnik Rishi.
पिबतं घर्म मधुमन्तमश्विना बर्हिः सीदतं नरा।
ता मन्दसाना मनुषो दुरोण आ नि पातं वेदसा वयः
हे अश्विनी कुमारों! आप हम यजमानों के यज्ञ में कुश-आसन पर आसीन हों। आप मधुर सोमरस का पान कर प्रसन्न हों। हवियों द्वारा प्रवृद्ध होकर आप हमें संरक्षण प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.87.2]
Hey Ashwani Kumars! You should occupy the Kush Mats in our-Ritviz's Yagy. Be happy by drinking sweetened Somras. Enriched-grown up by the offerings grant us asylum.
आ वां विश्वाभिरूतिभिः प्रियमेधा अहूषत।
ता वर्तिर्यातमुप वृक्तबर्हिषो जुष्टं यज्ञं दिविष्टिषु
हे अश्विनी कुमारों! हम प्रियमेध ऋषि सभी रक्षण-साधनों सहित आपका आवाहन करते है। हमारे यज्ञ में कुश-आसनों पर विराजमान होकर आप हमारी आहुतियों को ग्रहण करें।[ऋग्वेद 8.87.3]
Hey Ashwani Kumars! We, Priymedh Rishi invoke you with all means of protection. Occupy the Kush Mats in our Yagy and accept our offerings.
  पिबतं सोमं मधुमन्तमश्विना बर्हिः सीदतं सुमत्।
ता वावृधाना उप सुष्टुतिं दिवो गन्तं गौराविवेरिणम्
हे अश्विनी कुमारों! जिस प्रकार हिरण जलाशय के समीप जाते हैं, उसी प्रकार आप हमारी स्तुतियों से तृप्त हों। आप दिव्यलोक से पधारकर सुख देने वाले कुश-आसन को ग्रहण करें और मधुर सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 8.87.4]
Hey Ashwani Kumars! The way the deer goes to the pond, you should be satisfied with our Stuties. Come from the divine abodes, occupy the comfortable Kush Mats and drink sweet Somras.
आ नूनं यातमश्विनाश्वेभिः पुषितप्सुभिः।
दस्त्रा हिरण्यवर्तनी शुभस्पती पातं सोममृतावृधा
हे अश्विनी कुमारों! आप रिपुओं का संहार करने वाले, स्वर्णिम रथ से युक्त हैं। यज्ञ की वृद्धि करने वाले आप अपने तेजस्वी अश्वों द्वारा पधारकर सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 8.87.5]
Hey Ashwani Kumars! You are the destroyer of the enemy and possess-ride golden charoite. You boost the Yagy, so come riding your energetic horses and drink Somras.
वयं हि वां हवामहे विपन्यवो विप्रासो वाजसातये।
ता वल्गू दस्त्रा पुरुदंससा धियाश्विना श्रुष्ट्या गतम्
हे अश्विनी कुमारों! प्रार्थना करने वाले विप्रगण अन्न वितरण के लिए आपका आवाहन करते हैं। आप नाना प्रकार के कर्म करने वाले और शत्रुओं के विनाशक हैं। आप यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 8.87.6]
Hey Ashwani Kumars! The worshiping Brahmans invoke you for distribution of food grains. You resort to various endeavours and destroy the enemies. Invoke-come here.(17.06.2024E)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (88) :: ऋषि :- नोधा, गौतम; देवता :- इन्द्र; छन्द :- बृहती, समा सतोबृहती।
तं वो दस्ममृतीषहं वसोर्मन्दानमन्धसः।
अभि वत्सं न स्वसरेषु धेनव इन्द्रं गीर्भिर्नवामहे
जिस प्रकार गौशाला में अपने बछड़ों के पास जाने के लिए गौवें उल्लसित रहती हैं, उसी प्रकार शत्रुओं से रक्षा करने वाले, सोमपान से तृप्त होने वाले इन्द्र देव की हम प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 8.88.1]
The manner-way in which the cows become happy when their calf enter the cow shed, similarly the protector from the enemy, exhilarated by drinking Somras Indr Dev is worshiped by us.   
द्युक्षं सुदानुं तविषीभिरावृतं गिरिं न पुरुभोजसम्।
क्षुमन्तं वाजं शतिनं सहस्रिणं मधू गोमन्तमीमहे
स्वर्ग में निवास करने वाले, बलशाली, दानशील इन्द्र देव से हम सब प्रकार के धन, पोषक अन्न और सैकड़ों गौवों की कामना करते हैं।[ऋग्वेद 8.88.2]
We expect-pray all sorts of wealth, nourishing food grains and hundreds of cows from the resident of the heaven, mighty, donor Indr Dev. 
न त्वा बृहन्तो अद्रयो वरन्त इन्द्र वीळवः।
यद्दित्ससि स्तुवते मावते वसु नकिष्टदा मिनाति ते
हे इन्द्र देव! आप कभी विचलित न होने तथा पर्वत के समान स्थिर रहने वाले हैं। आपके द्वारा प्रदान किया धन हम यजमानों को निरन्तर प्राप्त होता रहे।[ऋग्वेद 8.88.3]
Hey Indr Dev! You are never disturbed and remain unmoved-unnerved like a mountain. Let the wealth granted to us-the Ritviz by you continue flowing. 
योद्धासि क्रत्वा शवसोत दंसना विश्वा जाताभि मज्मना।
आ त्वायमर्क ऊतये ववर्तति यं गोतमा अजीजनन्
हे इन्द्र देव! आप समस्त जीवों को नियन्त्रित करने वाले हैं। अपने संरक्षण के लिए हम आपका नित्य आवाहन करते हैं। आपको गौतम वंशियों ने उत्पन्न किया है।[ऋग्वेद 8.88.4]
Hey Indr Dev! You control all the living beings. We continue invoking you for our protection. You were evolved by the Gautom clan-descendants.
प्र हि रिरिक्ष ओजसा दिवो अन्तेभ्यस्परि।
न त्वा विव्याच रज इन्द्र पार्थिवमनु स्वधां ववक्षिथ
हे इन्द्र देव! स्वर्ग से भी दूर स्थित आप आकाश से भी अधिक विशाल हैं। भू-मण्डल का तेज भी आपको व्याप्त नहीं कर सकता। आप हमें तृप्ति प्रदायक अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.88.5]
Hey Indr Dev! Away from the heaven, you are larger than the sky-space. Energy of the earth can not pervade you. Grant us the food grains which can satisfy us.
नकिः परिष्टिर्मघवन्मघस्य ते यद्दाशुषे दशस्यसि।
अस्माकं बोध्युचथस्य चोदिता मंहिष्ठो वाजसातये
हे इन्द्र देव! आप श्रेष्ठ दाता हैं, आप अपने यजमानों को धन प्रदान करते हैं। आपके दान को कोई भी रोक नहीं सकता। आप हमारे स्तोत्रों के ज्ञाता भी हैं।[ऋग्वेद 8.88.6]
Hey Indr Dev! You are the best donor. You grant wealth to the hosts-Ritviz. None can stop your from charity. You are aware of our Strotrs.(18.06.2024)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (89) :: ऋषि :- नृमेध, पुरुमेधा या आंगिरस; देवता :- इन्द्र; छन्द :- अनुष्टुप्, बृहती।
बृहदिन्द्राय गायत मरुतो वृत्रहंतमम्।
येन ज्योतिरजनयन्नृतावृधो देवं देवाय जागृवि
हे मरुतों! आप यज्ञ की वृद्धि करने वाले हैं। देवताओं ने जिस सोम के द्वारा इन्द्र देव को सूर्य रूप से ज्योतिर्मान किया, रिपुओं का संहार करने वाले उस बृहत् सोम का समस्त देवता इन्द्र देव के लिए गान करें।[ऋग्वेद 8.89.1]
Hey Marud Gan! You lead to Yagy's progress. Indr Dev whom the demigods-deities established as Sury with Som, sing Brahat Sam for him, the destroyer of enemies.
अपाधमदभिशस्तीरशस्तिहाथेन्द्रो द्युम्न्याभवत्।
देवास्त इन्द्र सख्याय येमिरे बृहद्भानो मरुद्गण
हे मरुद्गण! वे इन्द्र देव सभी हिंसक शत्रुओं तथा पापियों का संहार करने वाले हैं, इसी कारण वे ओजस्वी हुए। हे इन्द्र देव! समस्त देवता आपकी मित्रता के लिए आपके समीप पहुँचते हैं।[ऋग्वेद 8.89.2]
Hey Marud Gan! Indr Dev is the destroyer of all violent enemies and the sinners; that's why he became radiant-aurous. Hey Indr Dev! All demigods-deities approach-reach you for your friendship.
प्र व इन्द्राय बृहते मरुतो ब्रह्मार्चत।
वृत्रं हनति वृत्रहा शतक्रतुर्वज्रेण शतपर्वणा
हे मरुद्गण! वे शतकर्मा इन्द्रदेव सैकड़ों पर्वो वाले वज्र से वृत्रासुर को मारने वाले हैं। इसलिए महान इन्द्रदेव के लिए स्तुतियाँ अर्पित करें।[ऋग्वेद 8.89.3]
Hey Marud Gan! Indr Dev who accomplished hundreds of Yagy is the slayer of Vratr with Vajr which has hundred of sharp points. Hence, offer prayers to great Indr Dev.
अभि प्र भर धृषता धृषन्मनः श्रवश्चित्ते असबृहत्।
अर्षन्त्वापो जवसा वि मातरो हनो वृत्रं जया स्वः
हे इन्द्र देव! आप श्रेष्ठ अन्नों के स्वामी हैं। आप हमें अपने मन द्वारा सुंदर अन्न प्रदान करें तथा हमारे मातृभूत जलधारा को वेग से प्रवाहित करें। हे इन्द्र देव! जलों को जीतने वाले आप वृत्रासुर का संहार करें।[ऋग्वेद 8.89.4]
Hey Indr Dev! You are he lord of excellent grains. Grant us nourishing food grains and allow the motherly stream to flow with high speed. Hey Indr Dev! You won the water reservoirs and killed Vrata Sur.
यज्जायथा अपूर्व्य मघवन्वृत्रहत्याय। तत्पृथिवीमप्रथयस्तदस्तभ्ना उत द्याम् 
हे ऐश्वर्यवान इन्द्र देव! वृत्रासुर के संहार के लिए प्रकट होकर आपने स्वर्ग को स्थिर तथा पृथ्वी को विस्तीर्ण किया।[ऋग्वेद 8.89.5]
विस्तीर्ण :: जो दूर तक फैला हुआ हो,  विस्तृत, विशाल; huge, long, vast, broad.
Hey Indr Dev possessing grandeur! You evolved for destroying Vrata Sur, made the earth stable and vast-vide.
तत्ते यज्ञो अजायत तदर्क उत हस्कृतिः। तद्विश्वमभिभूरसि यञ्जातं यच्च जन्त्वम्
हे इन्द्र देव! यज्ञकर्मों की उत्पत्ति आपके प्राकट्य होने पर ही हुई है और दिवसों के नियामक सूर्यदेव स्थापित हुए। उत्पन्न हुए अथवा आगे उत्पन्न होने वाले सभी प्राणी आपके व्याप्त हैं।[ऋग्वेद 8.89.6]
Hey Indr Dev! Yagy and related deeds took place when you evolved and Sury Dev who forms & regulate the days, too was established. Present and those who will take birth in future, living beings are pervaded by you.
आमासु पकमैरय आ सूर्यं रोहयो दिवि।
घर्मं न सामन्तपता सुवृक्तिभिर्जुष्टं गिर्वणसे बृहत्
हे इन्द्र देव! आपने गौ के अपरिपक्व दुग्ध को परिपक्व किया तथा आकाश में सूर्य देव को स्थित किया। जिस प्रकार यज्ञकर्ता अग्नि को प्रदीप्त करता है, उसी प्रकार हम प्रार्थनाओं के द्वारा इन्द्र देव को प्रसन्न करते हैं।[ऋग्वेद 8.89.7]
अपरिपक्व :: अविकसित, अपक्व, अधकचरा, अधूरा, अपूर्ण, कच्चा; immature, unripe.
Hey Indr Dev! You made the cow's milk mature and stabilised the Sun in the space-sky. The way a Yagy performer ignite the fire we make Indr Dev happy with prayers.(18.06.2024E)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (90) :: ऋषि :- नृमेध, पुरुमेधा या आंगिरस; देवता :- इन्द्र; छन्द :- बृहती, सतोबृहती। 
आ नो विश्वासु हव्य इन्द्रः समत्सु भूषतु।
उप ब्रह्माणि सवनानि वृत्रहा परमज्या ऋचीषमः
हे वृत्रहन्ता इन्द्र देव! रणक्षेत्र में रक्षा के लिए आपका आवाहन किया जाता है। धनुष की उत्तम प्रत्यंचा के समान उत्तम मन्त्रों से आपका स्तवन किया जाता है। हमारे (तीनों) सवनों एवं स्तोत्रों को आप सुशोभित करें।[ऋग्वेद 8.90.1]
Hey slayer of Vratr, Indr Dev! You are invoked in the battle field for protection. You are worshiped by the best cord of the bow and best Mantr. Beautify the three segments of the day and Strotrs.
त्वं दाता प्रथमो राधसामस्यसि सत्य ईशानकृत्।
तुविद्युम्नस्य युज्या वृणीमहे पुत्रस्य शवसो महः
हे धनवान इन्द्र देव! आप धन को देने वाले हैं। हम आपसे श्रेष्ठ तथा पराक्रमी सन्तानों की प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 8.90.2]
Hey wealthy Indr Dev! You grant us wealth. We request-pray to you excellent and mighty sons.
ब्रह्मा त इन्द्र गिर्वणः क्रियन्ते अनतिद्भुता।
इमा जुषस्व हर्यश्व योजनेन्द्र या ते अमन्महि
हे रथारूढ़ इन्द्र देव! आप हमारे सत्यरूप स्तोत्रों द्वारा सुसंगत होकर उनको ग्रहण करें तथा अन्यों द्वारा उच्चारित मंत्रों का भी सेवन करें।[ऋग्वेद 8.90.3]
Hey Indr Dev riding charoite! Accept our truthful Strotr and listen to other Mantrs as well.
त्वं हि सत्यो मघवन्ननानतो वृत्रा भूरि न्यूञ्जसे।
स त्वं शविष्ठ वज्रहस्त दाशुषेऽर्वाञ्चं रयिमा कृधि
हे इन्द्र देव! अनेकों असुरों का संहार करने वाले आप यथार्थरूप में किसी के अधीन न होने वाले है, आप वज्रधारक और बलशाली हैं। आप आहुति प्रदान करने वाले यजमानों को ऐश्वर्य प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 8.90.4]
Hey Indr Dev! You are mighty, wield Vajr, destroy the demons and cannot be over powered by any one. You grant grandeur to the Ritviz, who make offerings.
त्वमिन्द्र यशा अस्यृजीषी शवसस्पते।
त्वं वृत्राणि हंस्यप्रतीन्येक इदनुत्ता चर्षणीधृता
हे इन्द्र देव! आप सोमरस का पान करने वाले हैं। आप अत्यधिक बलवान् और शत्रुओं को बिना किसी सहयोग के नष्ट करने में समर्थ हैं।[ऋग्वेद 8.90.5]
Hey Indr Dev! You drink Somras. You are mighty and capable of destroying the enemies without the help of any one.
तमु त्वा नूनमसुर प्रचेतसं राधो भागमिवेमहे।
महीव कृत्तिः शरणा त इन्द्र प्र ते सुम्ना नो अश्नवन्
हे इन्द्र देव! जिस प्रकार पुत्र अपने पिता से धन का भाग माँगता है, उसी प्रकार हम आपसे उत्तम धन अर्थात् श्रेष्ठ ऐश्वर्य की याचना करते हैं। आप सभी को आश्रय प्रदान करने वाले हैं। आपके उत्तम सुख हमें प्राप्त हों।[ऋग्वेद 8.90.6]
Hey Indr Dev! The way a son ask his father to share his wealth with him, similarly we request best grandeur from you. You grant asylum to everyone. Let your best comforts be availble to us.(18.06.2024E)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (91) :: ऋषि :- आत्रेयी, अपाला; देवता :-इन्द्र;  छन्द :- अनुष्टुप्, पंक्ति।
कन्या वारवायती सोममपि स्रुताविदत्।
अस्तं भरन्त्यब्रवीदिन्द्राय सुनवै त्वा शक्राय सुनवै त्वा
स्नान द्वारा पवित्र होने के लिए कन्या मार्ग में सोम को प्राप्त करती है और घर लौटती हुई सोम से कहती है कि आपको मैं इन्द्र देव और शक्र के लिए प्रयुक्त करूँगी।[ऋग्वेद 8.91.1]
The girl become pure-pious after bathing, meets Som and says to Som that I will use you for Indr Dev and Shakr.
असौ य एषि वीरको गृहंगृहं विचाकशत्।
इमं जम्भसुतं पिब धानावन्तं करम्भिणमपूपवन्तमुक्थिनम्
हे वीर इन्द्र देव! आप प्रकाशित होकर प्रत्येक गृह में गमन करते हैं। धानावंत, करंभ और अपूतवन्त इस निष्पादित सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 8.91.2]
Hey brave Indr Dev! You move to house after being radiant. Let Dhanavant, Karnbh and Aputvant drink this extracted Somras.
आ चन त्वा चिकित्सामोऽधि चन त्वा नेमसि।
शनैरिव शनकैरिवेन्द्रायेन्दो परि स्त्रव
हे इन्द्र देव! हम आपको समझने में सामर्थ्यवान नहीं हैं, किन्तु समझने के इच्छुक अवश्य हैं। हे सोम देव! आप इन्द्र देव के लिए धीरे-धीरे प्रवाहित हों।[ऋग्वेद 8.91.3]
Hey Indr Dev! We are unable to understand you, but desire to do so. Hey Som Dev! You should flow slowly for Indr Dev.
कुविच्छकत्कुवित्करत्कुविन्नो वस्यसस्करत्।
कुवित्पतिद्विषो यतीरिन्द्रेण संगमामहै
हमने अनेक प्रकार से समर्थ, सक्रिय और साधन सम्पन्न करने वाले इन्द्र देव की अपने स्वामी की रुष्टता के कारण भ्रमण करते हुए उपासना की है। वह हमें नाना प्रकार के सामर्थ्य, सक्रियता और साधन सम्पन्न बनावें।[ऋग्वेद 8.91.4]
We worship capable, active and resourceful Indr Dev due to the the irritability-anger of our master. Let him make us resourceful, active and capable.
इमानि त्रीणि विष्टपा तानीन्द्र वि रोहय। शिरस्ततस्योर्वरामादिदं म उपोदरे
हे इन्द्र देव! आप हमारे पिता का मस्तक, उर्वरा (भूमि) तथा हमारे उदर; इन तीन स्थलों को विशेष प्रयोजनों के लिए श्रेष्ठ या उपजाऊ बनाएँ।[ऋग्वेद 8.91.5]
Hey Indr Dev! Make the forehead of our father, fertile land and the stomach excellent for specific purposes.
असौ च या न उर्वरादिमां तन्वं मम। अथो ततस्य यच्छिरः सर्वा ता रोमशा कृधि
आप हमारे इस उर्वर भूमि, केश रहित मस्तक और हमारे शरीर की वृद्धि करने के लिए उन्हें रोम से युक्त करें।[ऋग्वेद 8.91.6]
You should cover-make this infertile land, forehead without hair and the growth of our body with hair. Make our land, head and body grow-fertile.
खे रथस्य खेऽनसः खे युगस्य शतक्रतो।
अपालामिन्द्र त्रिष्पूत्व्यकृणोः सूर्यत्वचम्
उन शतक्रतु इन्द्र देव ने रथ, अनस और दोनों को जोड़ने वाले युग, इन तीनों स्थानों अथवा छिद्रों से अपाला को पवित्र करके उसकी त्वचा को सूर्य देव के तेज से युक्त कर दिया।[ऋग्वेद 8.91.7]
Shatkratu (performer of hundred Yagy) Indr Dev joined the charoite and its yokes making the woman named Apala pure & energised her skin with the aura of Sun.(18.06.2024)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (92) :: ऋषि :- श्रुतकक्ष, सुकक्ष या आंगिरस; देवता :- इन्द्र;  छन्द :- अनुष्टुप्, गायत्री।
पान्तमा वो अन्धस इन्द्रमभि प्र गायत। विश्वासाहं शतक्रतुं मंहिष्ठं चर्षणीनाम्
हे यजमानों! आप सैकड़ों प्रकार के यज्ञादि कर्म करने वाले, शत्रु संहारक, सोमपायी इन्द्र देव की उत्तम स्तोत्रों द्वारा प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 8.92.1]
Hey hosts! Worship Indr Dev the destroyer of the enemy, drinker of Somras; with hundred of Yagy related deeds & excellent Strotrs.
पुरुहूतं पुरुष्टुतं गाथान्यं सनश्रुतम्। इन्द्र इति ब्रवीतन
हे ऋत्विजों! संरक्षण के लिए आवाहन किए जाने वाले, अनेकों द्वारा स्तुत्य सनातन इन्द्र देव की प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 8.92.2]
Hey Ritviz! Worship eternal Indr Dev, who is invoked for protection & prayed by several people. 
इन्द्र इन्नो महानां दाता वाजानां नृतुः। महाँ अभिज्ञवा यमत्
अन्न-धन से परिपूर्ण करने वाले, सभी को गति प्रदान करने वाले इन्द्र देव हमारे समक्ष प्रकट हों और हमें ऐश्वर्य युक्त करें।[ऋग्वेद 8.92.3]
Indr Dev who make every one self sufficient in wealth and food grains should invoke in front of us and grant us grandeur.
अपादु शिप्र्यन्धसः सुदक्षस्य प्रहोषिणः। इन्दोरिन्द्रो यवाशिरः
हे इन्द्र देव! आपने यज्ञ में हवि देने वाले के द्वारा समर्पित जौ के आटे और दुग्ध मिश्रित सोमरस रूपी हविष्यान्न को ग्रहण किया।[ऋग्वेद 8.92.4]
Hey Indr Dev! You accepted the offerings of barley flour and Somras mixed with milk.
तम्वभि प्रार्चतेन्द्रं सोमस्य पीतये। तदिद्ध्यस्य वर्धनम्
उन इन्द्र देव की सोमपान के लिए प्रार्थना करें। यह सोमरस उनको समृद्धि प्रदान करता है।[ऋग्वेद 8.92.5]
Request Indr dev for drinking Somras. This Somras grant him prosperity.
अस्य पीत्वा मदानां देवो देवस्यौजसा। विश्वाभि भुवना भुवत्
सभी लोकों को नियन्त्रित करने वाले इन्द्र देव सोमरस का सेवन कर अपने ओज को प्रकाशित करते हैं।[ऋग्वेद 8.92.6]
Indr Dev who controls all the abodes, drinks Somras and strengthens-liberate  his aura-radiance.
त्यमु वः सत्रासाहं विश्वासु गीर्ध्वायतम्। आ च्यावयस्यूतये
हे स्तोताओं! अपनी वाणी द्वारा उच्चारित उत्तम स्तुतियों से इन्द्र देव का आवाहन करें।[ऋग्वेद 8.92.7]
Hey Stotas! Recite beautiful Stuties to invoke Indr Dev.
युध्मं सन्तमनर्वाणं सोमपामनपच्युतम्। नरमवार्यक्रतुम्
अपनी सहायता के लिए हम इन्द्र देव का आवाहन करते हैं, जो रणक्षेत्र में रिपुओं पर विजय पाने वाले, सोमरस का पान करने वाले और सबके नायक हैं।[ऋग्वेद 8.92.8]
We invoke Indr Dev, who wins the enemies in the war, drinks Somras and is the leader of all; for our help. 
शिक्षा ण इन्द्र राय आ पुरु विद्वाँ ऋचीषम। अवा नः पार्ये धने
हे धनदाता इन्द्र देव! शत्रु से जीते गए धन द्वारा आप हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 8.92.9]
Hey Indr Dev, granting wealth! Protect us with the wealth won from the enemy.
अतश्चिदिन्द्र ण उपा याहि शतवाजया। इषा सहस्रवाजया 
हे इन्द्र देव! आप स्वर्ग लोक से हजारों गुना अन्न और जलों के सहित हमारे यज्ञ में पधारने की कृपा करें।[ऋग्वेद 8.92.10]
Hey Indr Dev! Come to our Yagy from the heavens with thousands times of food grains and water.
अयाम धीवतो धियोऽर्वद्भिः शक्र गोदरे। जयेम पृत्सु वज्रिवः
हे इन्द्र देव! आप वज्र धारण करने वाले व पर्वतों को नष्ट करने वाले हैं, आपके द्वारा प्रदत्त अश्वों से हम युद्ध में विजय श्री का वरण करें।[ऋग्वेद 8.92.11]
Hey Indr Dev! You wield Vajr and destroy the mountains. Let us win the war riding the horses granted by you.
वयमु त्वा शतक्रतो गावो न यवसेष्वा। उक्थेषु रणयामसि
हे इन्द्र देव! जिस प्रकार ग्वाला जौ आदि से अपनी गौवों को हर्षित करता है, उसी प्रकार हम अपने स्तोत्रों द्वारा आपको प्रसन्न करते हैं।[ऋग्वेद 8.92.12]
Hey Indr Dev! The way a cow herd makes his cows happy, we gladden you with our Strotrs.
विश्वा हि मर्त्यत्वनानुकामा शतक्रतो। अगन्म वज्रिन्नाशसः
हे इन्द्र देव! जिस प्रकार समस्त मानव अपने अभीष्ट को पूर्ण करना चाहते हैं, इसी प्रकार हम भी आपसे ऐश्वर्य की आकांक्षा करते हैं।[ऋग्वेद 8.92.13]
Hey Indr Dev! The way the humans want to get their desires accomplished by you, we too wish to have grandeur.
त्वे सु पुत्र शवसोऽवृत्रन्कामकातयः। न त्वामिन्द्राति रिच्यते
हे इन्द्र देव! धन की कामना करने वाला पुरुष आपकी ही कामना करता है, क्योंकि आपसे श्रेष्ठ कोई भी नहीं है।[ऋग्वेद 8.92.14]
Hey Indr Dev! A person desirous of wealth worship you since no other person is better than you.
स नो वृषन्त्सनिष्ठया सं घोरया द्रविल्वा। धियाविड्डि पुरंध्या
हे इन्द्र देव! आप शत्रुओं के लिए विकराल और सत्पुरुषों के लिए धन देने वाले हैं। आप अपनी उत्तम बुद्धि द्वारा हमारा संरक्षण करें।[ऋग्वेद 8.92.15]
Hey Indr Dev! You are furious for the enemy and grant wealth to the virtuous. Protect us through your excellent intellect-brain power.
यस्ते नूनं शतक्रतविन्द्र द्युग्म्नितमो मदः। तेन नूनं मदे मदेः
हे इन्द्र देव! यह सोमरस आपके लिए तैयार किया गया है। इसका सेवन कर आप तृप्त हों और हमें धनादि प्रदान कर आनन्दित करें।[ऋग्वेद 8.92.16]
Hey Indr Dev! This Somras has been extracted-prepared for you. Be satisfied with it and make us happy by granting wealth etc.
यस्ते चित्रश्रवस्तमो य इन्द्र वृत्रहन्तमः। य ओजोदातमो मदः
हे इन्द्रदेव! अद्भुत, आनन्ददायक, ओजस्वी, वृत्रासुर का वध करने वाला है, उस सोम को हमने आपके लिए अभिषुत किया है।[ऋग्वेद 8.92.17]
Hey Indr Dev! You are amazing, gladdening, aurous-radiant and slayer of Vratra Sur. We have extracted Somras for you.
विद्या हि यस्ते अद्रिवस्त्वादत्तः सत्य सोमपाः। विश्वासु दस्म कृष्टिषु॥
हे इन्द्रदेव! आप सोमरस का पान करने वाले हैं। आपने जो ऐश्वर्य सभी मनुष्यों को प्रदान किया है, वह हमें भी ज्ञात हैं।[ऋग्वेद 8.92.18]
Hey Indr Dev! You enjoy Somras. We are aware of the grandeur granted by you to all humans.
इन्द्राय मद्वने सुतं परि ष्टोभन्तु नो गिरः। अर्कमर्चन्तु कारवः
इन्द्र देव के निमित्त निचोड़े गए दिव्य सोमरस की हम स्तोता गण स्तुतियों द्वारा प्रशंसा करते हैं।[ऋग्वेद 8.92.19]
We the Stotas appreciate the divine Somras with Stuties extracted by Indr Dev.
यस्मिन्विश्वा अधि श्रियो रणन्ति सप्त संसदः। इन्द्रं सुते हवामहे
यज्ञ के सप्त ऋषियों ने जिन इन्द्र देव की प्रार्थना की, हम उन कान्तिमान इन्द्र देव का सोमयज्ञ में आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.92.20]
We invoke aurous Indr Dev in the Som Yagy who was worshiped by the Sapt Rishis in the Yagy.
त्रिकद्रुकेषु चेतनं देवासो यज्ञमत्नत। तमिद्वर्धन्तु नो गिरः
देवगण तीन चरणों में सम्पन्न होने वाले यज्ञ का विस्तार करते हैं। ऋत्विक्गण उस यज्ञ की प्रशंसा करते हैं।[ऋग्वेद 8.92.21]
The demigods-deities extend the Yagy conducted in three stages. The Ritviz appreciate that Yagy.
आ त्वा विशन्त्विन्दवः समुद्रमिव सिन्धवः। न त्वामिन्द्राति रिच्यते
हे इन्द्र देव! सोमरस आपके भीतर उसी प्रकार प्रविष्ट होता है, जिस प्रकार नदियाँ सागर में मिल जाती हैं।[ऋग्वेद 8.92.22]
Hey Indr Dev! Somras merge-immerse in your body just like the rivers which merge with the ocean.
विव्यक्थ महिना वृषन्भक्षं सोमस्य जागृवे। य इन्द्र जठरेषु ते
हे इन्द्र देव! आप सोमपान के लिए सभी स्थानों पर स्थित रहते हैं। आपके उदर में गया सोम भी प्रशंसा के योग्य हैं।[ऋग्वेद 8.92.23]
Hey Indr Dev! You remain present at all places to drink Somras. Somras absorbed in your too is appreciable.
अरं त इन्द्र कुक्षये सोमो भवतु वृत्रहन्। अरं धामभ्य इन्दवः
हे इन्द्र देव! आप हमारे द्वारा समर्पित सोमरस को प्राप्त करें। आपके साथ ही यह सोमरस अन्य देवताओं के लिए भी पर्याप्त हो।[ऋग्वेद 8.92.24]
Hey Indr Dev! Accept the Somras offered by us. Let this Somras be available to other demigods-deities as well.
अरमश्वाय गायति श्रुतकक्षो अरं गवे। अरमिन्द्रस्य धाग्ने
गौवों, अश्वों और इन्द्र देव के आवास की प्राप्ति के लिए श्रुतकक्ष ऋषि स्तोत्रों का गान करते हैं।[ऋग्वेद 8.92.25]
Shrutkaksh Rishi recite Strotr for the availability of residence for cows, horses and Indr Dev.
अरं हि ष्मा सुतेषु णः सोमेष्विन्द्र भूषसि। अरं ते शक्र दावने
हे धनदाता इन्द्र देव! हमारे द्वारा अभिषुत सोमरस को आप विभूषित करें। यह सोमरस आपके लिए पर्याप्त है।[ऋग्वेद 8.92.26]
Hey donor of wealth Indr Dev! Let the Somras extracted by us glorify you. This Somras is enough-sufficient for you.
पराकात्ताचिदद्रिवस्त्वां नक्षन्त नो गिरः। अरं गमाम ते वयम्
हे इन्द्र देव! दूर रहते हुए भी हमारी स्तुतियाँ आपके पास पहुँचती हैं। हम आपके ऐश्वर्य को प्रचुर परिमाण में ग्रहण करें।[ऋग्वेद 8.92.27]
Hey Indr Dev! Though away, yet our Stuties reach you. Let us get your grandeur in great quantity-quantum. 
एवा ह्यसि वीरयुरेवा शूर उत स्थिरः। एवा ते राध्यं मनः
हे वीर इन्द्र देव! आप रणभूमि में शत्रुओं को पराजित करने वाले तथा युद्धस्थल पर सदैव अडिग रहने वाले हैं, आपका मन प्रशंसा के योग्य है।[ऋग्वेद 8.92.28]
Hey brave Indr Dev! You defeat the enemy in the war and remain unnerved at the war site. Your innerself deserve appreciation. 
एवा रातिस्तुवीमघ विश्वेभिर्धायि धातृभिः। अधा चिदिन्द्र मे सचा
हे ऐश्वर्यवान इन्द्रदेव! आपके द्वारा प्रदत्त साधन सभी याजक प्राप्त करते हैं। आप हमें ऐश्वर्यवान बनाकर हमें समृद्ध करें।[ऋग्वेद 8.92.29]
Hey grandeur possessing Indr Dev! All hosts-Ritviz attain the means provided by you.  Grant us grandeur and make us prosperous.
मो षु ब्रह्मेव तन्द्रयुर्भुवो वाजानां पते। मत्स्वा सुतस्य गोमतः
हे इन्द्र देव! आप अन्न और बल से युक्त हैं। आप गौ-दुग्ध मिश्रित सोमरस का पान करके प्रसन्न हों। आप आलस्य करने वाले ब्राह्मण के समान निष्क्रिय न रहें।[ऋग्वेद 8.92.30]
Hey Indr Dev! you have food grains and might. You should be happy by drinking Somras mixed with milk. Do not be lazy like an inactive Brahman.  
मा न इन्द्राभ्या३दिशः सूरो अक्तुष्वा यमन्। त्वा युजा वनेम तत्॥
हे इन्द्र देव! शस्त्र द्वारा आघात करने वाले राक्षस हमारे समीप न आवें। वे आपके प्रभाव से ही नष्ट हो जाएँ।[ऋग्वेद 8.92.31]
Hey Indr Dev! The demons should not come close to us who strike with weapons. They should be destroyed by your impact.
त्वयेदिन्द्र युजा वयं प्रति ब्रुवीमहि स्पृधः। त्वमस्माकं तव स्मसि
हे इन्द्र देव! आप हमारे और हम आपके हैं। आपकी सहायता से हम शत्रुओं का सामना कर सकेंगे।[ऋग्वेद 8.92.32]
Hey Indr Dev! You and us mutually belong to each other. We shall be able to repel-face the enemy with your help.
त्वामिद्धि त्वायवोऽनुनोनुवतश्चरान्। सखाय इन्द्र कारवः
हे मित्ररूप इन्द्र देव! हम स्तोता सदैव आपकी कामना करने वाले हैं और बार-बार आपकी प्रार्थना करके आपको प्रवृद्ध करते हैं।[ऋग्वेद 8.92.33] 
Hey friendly Indr Dev! We Stotas always desire of you and grow you by repeated prayers-Stuties.(20.06.2024)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (93) :: ऋषि :- सुकक्ष, आंगिरस; देवता :-इन्द्र और इन्द्रऋभु; छन्द :- गायत्री।
उद्देदभि श्रुतामधं वृषभं नर्यापसम्। अस्तारमेषि सूर्य
हे इन्द्र देव! आप मनुष्यों के हितैषी और सूर्यरूप में प्रकाशित होने वाले हैं एवं धनवान्, बलवान् शत्रुओं पर शस्त्रों से आघात करने वाले हैं।[ऋग्वेद 8.93.1]
Hey Indr Dev! You are well wisher of humans and shine like the Sun. You strike the wealthy & mighty enemies with weapons.
नव यो नवतिं पुरो बिभेद बाह्वोजसा। अहिं च वृत्रहावधीत्
अपने बल से शत्रुओं के निन्यानबे निवास केन्द्रों को तोड़ने वाले और वृत्रासुर का वध करने वाले इन्द्र देव हमें अभीष्ट धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.93.2]
Destroyer of the ninety nine forts-cities of the enemies and slayer of Vrata Sur  with his strength, Indr Dev should grant us desired wealth.
स न इन्द्रः शिवः सखाश्वावद्गोमद्यवमत्। उरुधारेव दोहते
हे इन्द्र देव! हमारे लिए आप गौ, अश्व और जौ आदि से सम्पन्न धन का पयस्विनी गौवों की भाँति दोहन करें।[ऋग्वेद 8.93.3]
Hey Indr Dev! Have wealth composing of cows, horses, barley like a milk yielding cow for us.
यदद्य कच वृत्रहन्नुदगा अभि सूर्य। सर्वं तदिन्द्र ते वशे
हे वृत्र संहारक इन्द्र देव! आप सूर्यरूप में उदित हुए हैं। जो भी आपसे प्रकाशित हुआ, वह सब आपके अधीन हैं।[ऋग्वेद 8.93.4]
Hey Destroyer of Vrata Sur, Indr Dev! You arise like the Sun. Every thing visible is under you.
यद्वा प्रवृद्ध सत्पते न मरा इति मन्यसे। उतो तत्सत्यमित्तव
हे इन्द्र देव! आप स्वयं को अविनाशी मानते हैं। आपका यह मानना वास्तव में सत्य ही है।[ऋग्वेद 8.93.5]
Hey Indr Dev! You consider yourself to be immortal, which is true.
ये सोमासः परावति ये अर्वावति सुन्विरे। सर्वास्ताँ इन्द्र गच्छसि
हे इन्द्र देव! आप दूर और पास के उन सभी स्थानों पर जाते हैं, जहाँ सोम को अभिषुत किया जाता है।[ऋग्वेद 8.93.6]
Hey Indr Dev! You visit every place whether far or near, where Somras is extracted.
तमिन्द्रं वाजयामसि महे वृत्राय हन्तवे। स वृषा वृषभो भुवत्
हे इन्द्र देव! आप धन-धान्य से पूर्ण करने वाले हैं, वृत्रासुर के संहारक हैं। सभी आपकी प्रशंसा करते हैं।[ऋग्वेद 8.93.7]
Hey Indr dev! You enrich us with wealth and food grains and destroyer of Vratra Sur. Everyone appreciate you.
इन्द्रः स दामने कृत ओजिष्ठः स मदे हितः। द्युम्नी श्लोकी स सोम्यः
सोमपान करने वाले इन्द्र देव उत्तम दान प्रदान करते हैं। वह प्रशंसनीय कार्यों को परिपूर्ण करते हैं।[ऋग्वेद 8.93.8]
Drinker of Somras Indr Dev, make best donations. He accomplish the appreciable deeds.
गिरा वज्रो न संभृतः सबलो अनपच्युतः। ववक्ष ऋष्वो अस्तृतः
याजकों को धन देने की इच्छा करने वाले इन्द्र देव वज्र धारक, बलवान्, अपराजेय और प्रार्थनाओं द्वारा प्रसन्न होने वाले हैं।[ऋग्वेद 8.93.9]
Desirous of granting money to the Ritviz, Indr Dev wield Vajr, is mighty, invincible and become happy with prayers.
दुर्गे चिन्नः सुगं कृधि गृणान इन्द्र गिर्वणः। त्वं च मघवन्वशः
हे इन्द्र देव! जब आप हम पर कृपा करते हैं, तब हमें दुर्गम स्थलों तक सरलता से पहुँचने योग्य बना देते हैं।[ऋग्वेद 8.93.10]
Hey Indr Dev! You make us reach difficult places easily with your mercy.
यस्य ते नू चिदादिशं न मिनन्ति स्वराज्यम्। न देवो नाध्रिगुर्जनः
हे इन्द्र देव! आपकी आज्ञा तथा आपके अनुशासन का उल्लंघन कोई भी देवता अथवा अग्रणी मनुष्य नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 8.93.11]
Hey Indr Dev! No demigod-deity or leading human being can disobey your order.
अधा ते अप्रतिष्कुतं देवी शुष्मं सपर्यतः। उभे सुशिप्र रोदसी
हे इन्द्र देव! स्वर्ग लोक और पृथ्वी लोक दोनों ही आपके अदम्य सामर्थ्य की उपासना करते हैं।[ऋग्वेद 8.93.12]
अदम्य :: जो दबाया न जा सके, प्रबल, प्रचंड; indomitable, untamed.
Hey Indr Dev! Both earth & heaven worship your indomitable capability.
त्वमेतदधारयः कृष्णासु रोहिणीषु च। परुष्णीषु रुशत्पयः
हे इन्द्र देव! आपने अनेक वर्णों वाली गौवों में देदिप्यमान् श्वेत दुग्ध को स्थापित किया। आपका यह कार्य अत्यन्त अद्भुत है।[ऋग्वेद 8.93.13]
Hey Indr Dev! You generated white divine milk in the cows of different species.
वि यदहेरध त्विषो विश्वे देवासो अक्रमुः। विदन्मृगस्य ताँ अमः
जब सभी देवता अहि नामक राक्षस से भयभीत होकर पलायित हो गए, तब आपने ही उसका वध किया।[ऋग्वेद 8.93.14]
When all demons run away due to the fear of demon Ahi, you killed him.
आदु मे निवरो भुवत्रहादिष्ट पौंस्यम्। अजातशत्रुरस्तृतः
हमारे शत्रुओं का संहार करके इन्द्र देव शत्रु विहीन और अपराजेय हो गए।[ऋग्वेद 8.93.15]
After destroying our enemies Indr Dev became free from enemies & invincible.
श्रुतं वो वृत्रहन्तमं प्र शर्धं चर्षणीनाम्। आ शुषे राधसे महे
हे ऋत्विजों! हम वृत्रहन्ता, बलशाली, हितैषी इन्द्रदेव की प्रार्थना करके आपके लिए धन को प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 8.93.16]
Hey Ritviz! We worship killer of Vratra Sur, mighty and helpful Indr Dev and ask him to grant money to you.
अया धिया च गव्यया पुरुणामन्पुरुष्टुत। यत्सोमेसोम आभवः
हे इन्द्र देव! आपके अनेकानेक नाम है। जिस भी सोमयज्ञ में आप पधारते हैं, वहाँ गौवों की कामना वाली बुद्धि से हम आपकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 8.93.17]
Hey Indr Dev! You have several names. We worship you in the Som Yagy visited by you with the wish-desire for the cows.(21.06.2024)
बोधिन्मना इदस्तु नो वृत्रहा भूर्यासुतिः। शृणोतु शक्र आशिषम्
वृत्रासुर का संहार करने वाले, युद्ध में शत्रुओं को पराजित करने वाले इन्द्र देव के लिए सोमरस तैयार किया जाता है, हम उनकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 8.93.18]
We worship Indr Dev who killed Vratra Sur and destroyed the enemies in the war and prepare Somras for him. 
कया त्वं न ऊत्याभि प्र मन्दसे वृषन्। कया स्तोतृभ्य आ भर
हे इन्द्र देव! आप किस साधन से रक्षा करते हुए हमें अत्यधिक हर्ष प्रदान करते हैं? आप किस सामर्थ्य से हम स्तोताओं को सम्पन्न बनाएँगे?[ऋग्वेद 8.93.19]
Hey Indr Dev! Through which means you protect & grant us happiness? With which capability will you make us-the Stotas, prosperous?
कस्य वृषा सुते सचा नियुत्वान्वृषभो रणत्। वृत्रहा सोमपीतये
हे वृत्रहंता इन्द्र देव! आप समस्त कामनाओं की पूर्ति करने वाले हैं। किस यजमान के सोमयज्ञ में सम्मिलित होकर आप प्रसन्न होंगे?[ऋग्वेद 8.93.20]
Hey slayer of Vratra Sur, Indr Dev! You accomplish all desires. In which Ritviz-host's Som Yagy will you participate and become happy?
अभी षु णस्त्वं रयिं मन्दसानः सहस्रिणम्। प्रयन्ता बोधि दाशुषे
हे इन्द्र देव! आप हमें हजारों प्रकार के ऐश्वर्य प्रदान करें। हविदाताओं की स्तुतियों को आप ध्यान से श्रवण करें।[ऋग्वेद 8.93.21]
Hey Indr Dev! Grant us thousands kinds of grandeur. Listen-respond to the Stuties of those make offerings carefully.
पत्नीवन्तः सुता इम उशन्तो यन्ति वीतये। अपां जग्मिर्निचुम्पुणः
इस जल युक्त सोम को शोधित किया गया है। इन्द्र देव की कामना करता हुआ यह सोमरस उनकी ओर प्रवाहित होता है। इसका पान कर इन्द्र देव आनन्दित होते हैं।[ऋग्वेद 8.93.22]
This Som mixed with water has been purified. Som Ras desirous of Indr Dev, flows towards him. Indr Dev gladdens after drinking it.
इष्टा होत्रा असृक्षतेन्द्रं वृधासो अध्वरे। अच्छावभृथमोजसा
इन्द्र देव की प्रशंसा करने तथा यज्ञ की वृद्धि करने वाले होता यज्ञ की समाप्ति पर इन्द्र देव का विसर्जन करते हैं।[ऋग्वेद 8.93.23]
Indr Dev is appreciated and on completion of Yagy and is bade farewell.
इह त्या सधमाद्या हरी हिरण्यकेश्या। वोळ्हामभि प्रयो हितम्
इन्द्र देव के सुनहरे केशों वाले अश्व इनको सोमरूप अन्न की ओर ले आएँ।[ऋग्वेद 8.93.24]
Let the golden coloured hair of Indr Dev drive him to the food grains in the form of Som.
तुभ्यं सोमाः सुता इमे स्तीर्णं बर्हिर्विभावसो। स्तोतृभ्य इन्द्रमा वह
हे अग्नि देव! आपके लिए यह सोमरस शोधित हुआ है। पावन कुश-आसन बिछाए गए हैं। स्तोताओं के लिए आप इन्द्र देव का आवाहन करें।[ऋग्वेद 8.93.25]
Hey Agni Dev! This Somras has been extracted for you. Pure Kush Mates have been laid. Invoke Indr Dev for the Stotas.
आ ते दक्षं वि रोचना दधद्रत्ना वि दाशुषे। स्तोतृभ्य इन्द्रमर्चत
हे यजमानों! आप इन्द्र देव की प्रार्थना करें, जिससे वह हविप्रदाता स्तोताओं को शक्ति और रत्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.93.26]
Hey Ritviz! Worship Indr Dev so that he grant strength and jewels to the Stotas making offerings.
आ ते दधामीन्द्रियमुक्था विश्वा शतक्रतो। स्तोतृभ्य इन्द्र मृळय
हे शतक्रतो इन्द्र देव! हम आपके लिए बलवर्धक समस्त स्तोत्रों को उच्चारित करते हैं। आप अपने स्तोता को सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.93.27]
Hey hundred Yagy performing Indr Dev! We recite the Strotr which boosts your strength, might & power. Grant pleasure to your Stota.
भद्रंभद्रं न आ भरेषमूर्जं शतक्रतो। यदिन्द्र मृळयासि नः
हे शतक्रतो इन्द्र देव! आप हमें सुखकारी अन्न, बल और धन प्रदान करें, क्योंकि आप ही हमें सुख प्रदान करने वाले हैं।[ऋग्वेद 8.93.28]
Hey hundred Yagy performing Indr Dev! Grant us comfortable food grains, strength and wealth, since its only you who grant us pleasure.
स नो विश्वान्या भर सुवितानि शतक्रतो। यदिन्द्र मृळयासि नः
हे शतक्रतो इन्द्र देव! यदि आप हमें सुख प्रदान करने की इच्छा करते हैं, तो हमें सभी ऐश्वर्यों से परिपूर्ण करें।[ऋग्वेद 8.93.29]
Hey hundred Yagy performing Indr Dev! If you wish-desire to grant us comfort, grant us all sorts of grandeur.
त्वामित्रहन्तम सुतावन्तो हवामहे। यदिन्द्र मृळयासि नः
हे शत्रुनाशक इन्द्र देव! सोम अभिषव करने वाले जो याजकगण आपका आवाहन करते हैं, आप उन्हें सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.93.30]
Hey slayer of the enemy Indr Dev! The hosts-Ritviz who extract Somras invoke you. Grant them comfort.
उप नो हरिभिः सुतं याहि मदानां पते। उप नो हरिभिः सुतम्
हे इन्द्र देव! आप अपने श्रेष्ठ अश्वों द्वारा हमारे सोमयज्ञ में बार-बार पधारें।[ऋग्वेद 8.93.31]
Hey Indr Dev! You join our Som Yagy repeatedly riding your excellent horses.
द्वित यो वृत्रहन्तमो विद इन्द्रः शतक्रतुः। उप नो हरिभिः सुतम्
जो इन्द्र देव वृत्रहन्ता और शतक्रतुः इन दो नामों से विख्यात हैं, अपने अश्वों से हमारे द्वारा अभिषुत सोमरस के निकट पधारें।[ऋग्वेद 8.93.32]
Indr Dev famous with two names viz Vratr Hanta and Shatkrtu come to Somras extracted by us riding his horses.
त्वं हि वृत्रहन्नेषां पाता सोमानामसि। उप नो हरिभिः सुतम्
हे इन्द्र देव! सोमरस के सेवन की इच्छा से आप हमारे यज्ञ में अश्वों के माध्यम से पधारें।[ऋग्वेद 8.93.33]
Hey Indr Dev! Come to our Yagy riding your horses with the desire of drinking Somras.
इन्द्र इषे ददातु न ऋभुक्षणमृभुं रयिम्। वाजी ददातु वाजिनम्
शक्ति सम्पन्न इन्द्र देव हमें श्रेष्ठ धनों से सदैव परिपूर्ण करें। वह अन्नादि प्रदान कर हमें बल आदि से सम्पन्न करें।[ऋग्वेद 8.93.34]
Let mighty Indr Dev grant us best wealth. You should grant us food grains etc. in addition to strength.(22.06.2024)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (94) :: ऋषि :- बिंदु, पूतदक्ष या आंगिरस; देवता :- मरुत;  छन्द :- गायत्री।
गौर्धयति मरुतां श्रवस्युर्माता मघोनाम्। युक्ता वह्नी रथानाम्
धनसम्पन्न मरुतों की माता गौ, अन्नादि उत्पन्न करने की कामना से अपने पुत्रों को सोमरूप दुग्ध का पान कराती हैं। वे मरुद्गणों को रथ में नियोजित करती हैं।[ऋग्वेद 8.94.1]
Wealthy Marud Gan's mother cow feed her sons with the milk like Som. She deploys the Marud Gan in the charoite.
यस्या देवा उपस्थे व्रता विश्वे धारयन्ते। सूर्यामासा दृशे कम्
समस्त देवगण गौ-माता के समीप रहकर अपने व्रतों का विधिवत् निर्वाह करते हैं। सूर्य और चन्द्रमा भी इनके निकट रहकर सभी लोकों को आलोकित करते हैं।[ऋग्वेद 8.94.2]
All demigods-deities present themselves near Gau Mata and perform their Vrat methodically. Sury & Chandr remain close to them and shine-illuminate all abodes.
तत्सु नो विश्वे अर्य आ सदा गृणन्ति कारवः। मरुतः सोमपीतये
हे मरुतो! समस्त स्तोतागण आपकी स्तुति करते हैं। आप सोमपान के लिए यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 8.94.3]
Hey Marud Gan! All Stotas Gan worship you. Come here for drinking Somras.
अस्ति सोमो अयं सुतः पिबन्त्यस्य मरुतः। उत स्वराजो अश्विना
हमारे द्वारा शोधित सोमरस का पान कर मरुद्गण और दोनों अश्विनी कुमार प्रसन्न होते हैं।[ऋग्वेद 8.94.4]
Marud Gan and Ashwani Kumars drink the Somras extracted by us and become happy.
पिबन्ति मित्रो अर्यमा तना पूतस्य वरुणः। त्रिषधस्थस्य जावतः
तीन पात्रों में स्थित शोधित सोमरस का मित्र, अर्यमा और वरुण देव पान करते हैं।[ऋग्वेद 8.94.5]
Mitr, Aryma and Varun Dev drink the extracted-purified Somras available in three vessels.
उतो न्वस्य जोषमाँ इन्द्रः सुतस्य गोमतः। प्रातर्होतेव मत्सति
उषाकाल में यज्ञ करने वाले होता के सदृश इन्द्र देव भी दुग्ध मिश्रित सोमरस का पान करते हैं।[ऋग्वेद 8.94.6]
At dawn-Usha Kal Indr Dev drink the Somras mixed with milk like a Hota performing Yagy.
कदत्विषन्त सूरयस्तिर आपइव स्त्रिधः। अर्षन्ति पूतदक्षसः
विद्वान् मरुद्गण वक्र गति द्वारा कब उत्पन्न होंगे और कब शत्रुओं का संहार करेंगे? बल प्राप्त करने के लिए वे मरुद्गण कब हमारे यज्ञ में पधारेंगे?[ऋग्वेद 8.94.7]
When will learned Marud Gan evolve with cur vial speed and destroy the enemies? When will Marud Gan come to our Yagy to seek strength?
कद्वो अद्य महानां देवानामवो वृणे। त्मना च दस्मवर्चसाम्
हे प्रकाशमान् मरुतों! हम स्तोतागण अपनी सुरक्षा के लिए कब आपकी प्रार्थना करें?[ऋग्वेद 8.94.8]
Hey radiant Marud Gan! When should the we-the Stota Gan pray to you for our protection?
आ ये विश्वा पार्थिवानि पप्रथत्रोचना दिवः। मरुतः सोमपीतये
पृथ्वी और आकाश के सभी पदार्थों की वृद्धि जिन मरुद्गणों ने की है, हम उन वीरों को सोमपान के लिए आहूत करते हैं।[ऋग्वेद 8.94.9]
We invoke the brave Marud Gan, who have increased all materials over the earth & heavens; for drinking Somras.
त्यान्नु पूतदक्षसो दिवो वो मरुतो हुवे। अस्य सोमस्य पीतये
हे मरुद्गण! आप तेज और बल से युक्त है। हम सोमरस पीने के लिए आपका आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.94.10]
Hey Marud Gan! You possess strength & energy. We invoke you for drinking Somras.
त्यान्नु ये वि रोदसी तस्तभुर्मरुतो हुवे। अस्य सोमस्य पीतये
जिन मरुद्गणों ने पृथ्वी और आकाश को आधार प्रदान किया है, उनका हम सोमरस पीने के लिए आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.94.11]
We invoke Marud Gan for drinking Somras, who have provided base to the earth and heaven.
त्यं नु मारुतं गणं गिरिष्ठां वृषणं हुवे। अस्य सोमस्य पीतये
बलों से युक्त, पर्वतों पर निवास करने वाले मरुद्गणों के समूहों को सोमरस पान करने के लिए हम आहूत करते हैं।[ऋग्वेद 8.94.12]
We invoke Marud Gan for drinking Somras who possess might & power and reside over the mountains.(22.06.2024)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (95) :: ऋषि :- तिरश्ची, आंगिरस; देवता :-इन्द्र;  छन्द :- अनुष्टुप्।
आ त्वा गिरो रथीरिवास्थुः सुतेषु गिर्वणः। अभि त्वा समनूषतेन्द्र वत्सं न मातरः
हे इन्द्र देव! रथ पर आरूढ़ होकर सुरक्षित पहुँचने वाले योद्धा के समान तथा बछड़े के पास शीघ्र पहुँचने वाली गौ के सदृश सोमयाग में हमारी स्तुतियाँ आप तक पहुँचती हैं। आप सभी के द्वारा स्तुत्य हैं।[ऋग्वेद 8.95.1]
Hey Ind r Dev! Our Stuties reach you like the warrior riding the charoite safely and the cow who reaches its calf quickly, in the Som Yagy. You are worshiped by all.
आ त्वा शुक्रा अचुच्यवुः सुतास इन्द्र गिर्वणः।
पिबा त्व१स्यान्धस इन्द्र विश्वासु ते हितम्
हे इन्द्र देव! समस्त दिशाओं में सोमरस विद्यमान है। शोधित सोमरस आपके निकट जाए और आप उस अन्नरूप सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 8.95.2]
Hey Indr Dev! Somras is available in all directions. Let the extracted Somras reach you and you drink it like the food stuff.
पिबा सोमं मदाय कमिन्द्र श्येनाभृतं सुतम्। त्वं हि शश्वतीनां पती राजा विशामसि
श्येन पक्षी रूपिणी देवी इस सोमरस को स्वर्ग से ले आई थीं। समस्त देवताओं और मरुतों के स्वामी हे इन्द्रदेव! आप उत्साहित होकर इस सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 8.95.3]
The Devi bearing the form of falcon had brought this Somras from the heaven. Hey lord of all demigods-deities and Marud Gan, Indr Dev! Drink this Somras enthusiastically.
श्रुधी हवं तिरश्र्च्या इन्द्र यस्त्वा सपर्यति। सुवीर्यस्य गोमतो रायस्पूर्धि महाँ असि
हे इन्द्र देव! आप तिरश्ची ऋषि के स्तोत्रों का श्रवण करने वाले हैं। आप हमें उत्तम बल, गौवें और ऐश्वर्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.95.4]
Hey Indr Dev! You listen to the Strotrs by Tirshchi Rishi. Grant us best strength, cows and grandeur.
इन्द्र यस्ते नवीयसीं गिरं मन्द्रामजीजनत्।
चिकित्विन्मनसं धियं प्रत्नामृतस्य पिप्युषीम्
हे इन्द्र देव! जो साधक आपकी प्रार्थना करता है, उन्हें आप सनातन यज्ञ से वृद्धि को प्राप्त हुई तथा मन को पवित्र करने वाली बुद्धि प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.95.5]
Hey Indr Dev! Grant the growing intelligence purifying the innerself, obtained by the eternal Yagy to the practitioner who worship you.
तमु ष्टवाम यं गिर इन्द्रमुक्थानि वावृधुः। पुरूण्यस्य पौंस्या सिषासन्तो वनामहे
मन्त्रों और स्तोत्रों द्वारा जिन इन्द्र देव की महिमा गायी जाती है, उन महान पराक्रमी इन्द्र देव की हम भक्ति-भाव से प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 8.95.6]
We worship great mighty Indr Dev whose glory is sung with Mantr & Strotr with reverence.
एतो न्विन्द्रं स्तवाम शुद्धं शुद्धेन साम्ना। शुध्दैरुक्थैर्वावृध्वांसं शुद्ध आशीर्वान्ममत्तु॥
हे इन्द्र देव! आप शीघ्र पधारें। शुद्ध रूप से उच्चारित साम और यजुर्मन्त्रों द्वारा हम आपकी प्रार्थना करते हैं। बलवर्धक मन्त्रों द्वारा शोधित किया गया गौ-दुग्ध मिश्रित सोमरस आपको आनन्द प्रदान करे।[ऋग्वेद 8.95.7]
Hey Indr Dev! Come quickly. We worship you with the Sam and Yajur Mantr pronounced correctly. Somras mixed with milk produced with the help of strength augmenting Mantr will gladden you.
इन्द्र शुद्धो न आ गहि शुद्धः शुद्धाभिरूतिभिः।
शुद्धो रयिं नि धारय शुद्धो ममद्धि सोम्यः
हे इन्द्र देव! आप हमारे पास पधारें। आप पवित्र होकर पवित्र साधनों सहित पधारें। पवित्र होकर ही हमें ऐश्वर्य प्रदान करें। पवित्र होकर (इस) सोमरस का पान करके आनन्दित हों।[ऋग्वेद 8.95.8]
Hey Indr dev! Come to us. Become pure-cleansed and come with purifying means. Grant us grandeur on becoming pure. Drink this Somras on being purified and enjoy it.
इन्द्र शुद्धो हि नो रयिं शुद्धो रत्नानि दाशुषे।
शुद्धो वृत्राणि जिघ्नसे शुद्धो वाजं सिषाससि
हे इन्द्र देव! आप पवित्र हैं और हमें ऐश्वर्य प्रदान करने वाले हैं। आप हमारे कार्यों में आने वाली बाधाओं को दूर करें। ऐश्वर्य प्रदान करने में समर्थ आप हमारे मन्त्रों से शुद्धता को प्राप्त होकर शत्रुओं को विनष्ट करें।[ऋग्वेद 8.95.9]
Hey Indr Dev! You are pure granting us grandeur. Remove all obstacles in our efforts-path. You being capable of granting grandeur attain purity with our Mantr and destroy the enemy.(23.06.2024)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (96) :: ऋषि :- तिरश्ची, आंगिरस, द्युत या मरुत्; देवता:- इन्द्र, इन्द्रामरुत्, इन्द्राबृहस्पति;  छन्द :- त्रिष्टुप्, विराट्।
अस्मा उषास आतिरन्त याममिन्द्राय नक्तमूर्याः सुवाचः।
अस्मा आपो मातरः सप्त तस्थुर्नृभ्यस्तराय सिन्धवः सुपाराः
जिन इन्द्र देव के लिए रात्रि के चतुर्थ प्रहर में श्रेष्ठ वाणी से प्रार्थनाएँ की जाती हैं, उन इन्द्र देव के भय से उषाओं ने अपनी गति को तीव्र किया है। इन्द्र देव के लिए ही जलपूर्ण नदियाँ प्रवाहित होती हैं तथा सिन्धु (समुद्र) मनुष्यों के लिए सरलता से पार करने योग्य हो जाती हैं।[ऋग्वेद 8.96.1]
The Usha become fast due to fear of Indr Dev, for whom prayers are conducted in the fourth segment of night in melodious best voice. The rivers full of water flow for the sake of Indr Dev and the ocean become easy to be crossed by the humans.
अतिविद्धा विथुरेणा चिदस्त्रा त्रिः सप्त सानु संहिता गिरीणाम्।
न तद्देवो न मर्त्यस्तुतुर्याद्यानि प्रवृद्धो वृषभश्चकार
इन्द्र देव ने बिना किसी की सहायता से अपने वज्र द्वारा पर्वतों के इक्कीस शिखरों को नष्ट कर दिया। उन समृद्धशाली और शक्तिशाली इन्द्र देव जिस पराक्रम को प्रकट किया, उसे कोई भी मनुष्य या देवता नहीं कर सकते।[ऋग्वेद 8.96.2]
Indr Dev destroyed 21 mountains peaks-cliffs without the help of any one with his Vajr. The valour demonstrated by prosperous and mighty Indr Dev can not be exhibited by either demigods-deities or humans.
इन्द्रस्य वज्र आयसो निमिश्ल इन्द्रस्य बाह्वोर्भूयिष्ठमोजः।
शीर्षन्निन्द्रस्य क्रतवो निरेक आसन्नेषन्त श्रुत्या उपाके
संग्राम में जाने के समय इन्द्र देव अपने मस्तक पर मुकुट और बलिष्ठ हाथों में कठोर वज्र को धारण करते हैं। सभी उनकी आज्ञाओं को मानने से लिए विद्यमान रहते हैं।[ऋग्वेद 8.96.3]
Indr Dev wear the crown over his head and wield hard Vajr in his strong powerful hands. Every one remain present to follow his orders.
मन्ये त्वा यज्ञियं यज्ञियानां मन्ये त्वा च्यवनमच्युतानाम्।
मन्ये त्वा सत्वनामिन्द्र केतुं मन्ये त्वा वृषभं चर्षणीनाम्
हे इन्द्र देव! आप वज्र के प्रहार से पर्वतों को विदीर्ण करने वाले, यज्ञ में पूजनीय हैं। आप सबसे अधिक बुद्धिमान हैं, हम ऐसा मानते हैं।[ऋग्वेद 8.96.4]
विदीर्ण :: चीर-फाड़ करना, टूटा हुआ, निहत; कटा-फटा, झालरदार; torn apart, laciniated, fissured, teared-torn, cloven, cleft.
Hey Indr Dev! You break the mountains by striking Vajr and is worshiped in the Yagy. We consider you to be most intelligent.
आ यद्वज्रं बाह्वोरिन्द्र धत्से मदच्युतमहये हन्तवा उ।
प्र पर्वता अनवन्त प्र गावः प्र ब्रह्माणो अभिनक्षन्त इन्द्रम्
हे इन्द्र देव! मदोन्मत्त असुर अहि का संहार करने के लिए जब आप अपने वज्र को उठाते है, तब आपके सामने पर्वत, मेघ और जल शब्द करते हैं और विद्वत्जन आपकी स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 8.96.5]
Hey Indr Dev! When you raise Vajr for destroying Ahi, a demon; mountains, clouds and water start making noise-sound and the learned start praying you.
तमु ष्टवाम य इमा जजान विश्वा जातान्यवराण्यस्मात्।
इन्द्रेण मित्रं दिधिषेम गीर्भिरुपो नमोभिर्वृषभं विशेम
समस्त प्राणियों की रचना करने वाले इन्द्र देव के पश्चात् ही संसार की उत्पत्ति हुईं। हम अपनी प्रार्थनाओं द्वारा उन इन्द्र देव को अपना मित्र बनाते हैं और नमस्कार करते हुए उन शक्तिशाली देव के समीप बैठते हैं।[ऋग्वेद 8.96.6]
The universe evolved after Indr Dev who evolve the living beings. We make him our friend through prayers and sit by side of the mighty deity saluting him.
वृत्रस्य त्वा श्वसथादीषमाणा विश्वे देवा अजहुर्ये सखायः।
मरुद्भिरिन्द्र सख्यं ते अस्त्वथेमा विश्वाः पृतना जयासि
हे इन्द्र देव! आपके सहायक देवगण वृत्रासुर के भय से भयभीत होकर पलायित हो गए। तब मरुद्गणों की सहायता से आपने शत्रुओं को उनकी सेनाओं सहित पराजित किया।[ऋग्वेद 8.96.7]
Hey Indr Dev! When your helpers ran away due to the fear of Vratra Sur, you defeated the enemy & their armies with the help of Marud Gan.
त्रिः षष्टिस्त्वा मरुतो वावृधाना उस्त्राइव राशयो यज्ञियासः।
उप त्वेमः कृधि नो भागधेयं शुष्मं त एना हविषा विधेम
हे इन्द्र देव! तिरसठ मरुतों ने बैलों के समान एकत्रित होकर आपको समृद्ध किया, इसलिए आप उपास्य हो गए। आपके आश्रय में हम ऐश्वर्य को प्राप्त करें। हम भी सोम की आहुतियाँ समर्पित करके आपकी शक्ति को बढ़ाते हैं।[ऋग्वेद 8.96.8]
Hey Indr Dev! Sixty three Marud Gan joined together and made you prosperous making you worshipable. Let us get grandeur under your patronage. We make offerings of Som and make you strong.
तिग्ममायुधं मरुतामनीकं कस्त इन्द्र प्रति वज्रं दधर्ष।
अनायुधासो असुरा अदेवाश्चक्रेण ताँ अप वप ऋजीषिन्
हे सोमवान् इन्द्र देव! देवताओं का विरोध करने वाले राक्षसों को आप अपने चक्र के द्वारा नष्ट कर देते हैं। तीक्ष्ण आयुध, वज्र और मरुतों से सम्पन्न आपकी सेना का कौन शत्रु प्रतिरोध कर सकता है?[ऋग्वेद 8.96.9]
Hey possessor of Som, Indr Dev! You destroy the demon who oppose the demigods-deities with your disc. Who can oppose your army constituting of Marud Gan wielding sharp weapons & Vajr.
मह उग्राय तवसे सुवृक्तिं प्रेरय शिवतमाय पश्वः।
गिर्वाहसे गिर इन्द्राय पूर्वीर्धेहि तन्वे कुविदङ्ग वेदत्
हे याजकों! पशुओं को प्राप्त करने के निमित्त उन पराक्रमी इन्द्र देव की प्रार्थना करें। जिससे वे हमारी सन्तान के लिए प्रचुर धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.96.10]
Hey Ritviz! Worship Indr Dev to have animals. Let him grant enough wealth for our progeny.
उक्थवाहसे विभ्वे मनीषां द्रुणा न पारमीरया नदीनाम्।
नि स्पृश धिया तन्वि श्रुतस्य जुष्टतरस्य कुविदङ्ग वेदत्
हे याजकों! नाविकों द्वारा नदी पार कराने के समान आप अपनी प्रार्थनाओं को इन्द्र देव के लिए प्रेषित करें। वे इन्द्र देव हमें और हमारी सन्तानों को ऐश्वर्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.96.11]
Hey Ritviz! Direct your prayers towards Indr Dev to sail across the river by the boatsmen. Let Indr Dev grant grandeur to our progeny.
तद्विविड्ढि यत्त इन्द्रो जुजोषत्स्तुहि सुष्टुतिं नमसा विवास।
उप भूष जरितर्मा रुवण्यः श्रावया वाचं कुविदङ्ग वेदत्
हे याजकों! आप इन्द्र देव की इच्छा के अनुरूप उनकी प्रार्थना करें एवं अपनी दरिद्रता के लिए विलाप न कर पवित्र मन से उनका स्तवन करें। वह आपको प्रचुर ऐश्वर्य प्रदान करेंगे।[ऋग्वेद 8.96.12]
Hey Ritviz! Worship with pure heart-innerself Indr Dev without crying over your poverty. He will provide you sufficient grandeur.
अव द्रप्सो अंशुमतीमतिष्ठदियानः कृष्णो दशभिः सहस्त्रैः।
आवत्तमिन्द्रः शच्या धमन्तमप स्नेहितीर्नृमणा अधत्त
अंशुमती नदी के किनारे विराजमान अपने दस हजार सैनिकों के साथ आक्रमण करने वाले कृष्णासुर पर प्रत्याक्रमण करके इन्द्र देव ने उसकी सेना को पराजित कर दिया।[ऋग्वेद 8.96.13]
Indr Dev countered Krashasur over the bank of Anshumati river who had attacked with ten thousand soldiers and defeated him.
द्रप्समपश्यं विषुणे चरन्तमुपह्वरे नद्यो अंशुमत्याः।
नभो न कृष्णमवतस्थिवांसमिष्यामि वो वृषणो युध्यताजौ
उस समय इन्द्रदेव ने कहा, "मैंने अंशुमती नदी के किनारे गुफाओं में भ्रमण करते हुए कृष्णासुर को देख लिया है"। हे बलशाली मरुतों! मैं आपकी सहायता की कामना करता हूँ। आप युद्ध में उसका संहार करें।[ऋग्वेद 8.96.14] 
At that moment Indr Dev said, "I have seen Krashnasur roaming in the caves of Anshumati river". Hey mighty Marud Gan! I seek-desire your help. Destroy him in the war.
अध द्रप्सो अंशुमत्या उपस्थेऽधारयत्तन्वं तित्विषाणः।
विशो अदेवीरभ्या ३ चरन्तीर्बृहस्पतिना युजेन्द्रः ससाहे
अंशुमती नदी के किनारे कृष्णासुर तेजस्वी होकर रहता है। इन्द्र देव ने बृहस्पतिदेव की सहायता से सभी ओर से आक्रमण के लिए बढ़ती हुई सेनाओं को पराजित कर दिया।[ऋग्वेद 8.96.15]
तेजस्वी :: शानदार, शोभायमान, उग्र, प्रज्वलित, तीक्ष्ण, उत्सुक, कलहप्रिय, अजीब, हक्का-बक्का करने वाला, नादकार, तेज़, शीघ्र, कोलाहलमय; majestic, stunning, rattling, fiery.
Krashnasur lives over the banks of Anshumati river majestically. Indr Dev defeated his armies with the help of Dev Guru Brahaspati, attacking him from all sides.
त्वं ह त्यत्सप्तभ्यो जायमानोऽशत्रुभ्यो अभवः शत्रुरिन्द्र।
गूळ्हे द्यावापृथिवी अन्वविन्दो विभुमद्ध्यो भुवनेभ्यो रणं धाः
हे इन्द्र देव! वृत्रादि सात राक्षसों के उत्पन्न होते ही आप उनके शत्रु हो गए। आपने अन्धकार से आकाश और पृथ्वी को प्रकाशित किया तथा इन लोकों को भली-भाँति स्थिर करके सुन्दर बना दिया।[ऋग्वेद 8.96.16]
Hey Indr Dev! Seven demons including Vratra Sur,  became your enemy soon after their birth. You illuminated the earth and sky, made these abodes beautiful, stable and well managed-organised.
त्वं ह त्यदप्रतिमानमोजो वज्रेण वज्रिन्धृषितो जघन्थ।
त्वं शुष्णस्यावातिरो वधत्रैस्त्वं गा इन्द्र शच्येदविन्दः
हे इन्द्र देव! आप शत्रुओं का दमन करने वाले हैं। आपने बलशाली शुष्णासुर को अपने वज्र से मार डाला तथा राजर्षि कुत्स के लिए शुष्णासुर को अस्त्रों द्वारा काट डाला और अपनी शक्ति से गौवों को उत्पन्न किया।[ऋग्वेद 8.96.17]
Hey Indr Dev! You supress the enemies. You killed Shushnasur with the Vajr and cut him with weapons for Raj Rishi Kuts and evolved cows with your power.
त्वं ह त्यषभ चर्षणीनां घनो वृत्राणां तविषो बभूथ।
त्वं सिन्धूरसृजस्तस्तभानान् त्वमपो अजयो दासपत्नीः
हे इन्द्र देव! उन रिपुओं का संहार करके ही आप बलशाली हुए हैं। आपने ही अवरुद्ध नदियों को प्रवाहित किया और दस्युओं द्वारा नियन्त्रित किए हुए जलों को अपने अधिकार में किया।[ऋग्वेद 8.96.18]
Hey Indr Dev! You became mighty by killing those enemies. You made the blocked rivers flow and took waters bodies under your control regulated by the dacoits.
स सुक्रतू रणिता यः सुतेष्वनुत्तमन्युर्यो अहेव रेवान्।
य एक इन्नर्यपांसि कर्ता स वृत्रहा प्रतीदन्यमाहुः
सत्कर्म करने वाले इन्द्र देव सोमरस का पान करके आनन्दित होते हैं और वे अकेले ही मनुष्यों के युद्धों में वृत्रासुर और अन्य शत्रुओं का अपने पराक्रम द्वारा संहार करते हैं। वे दिन के सदृश ऐश्वर्यवान् हैं और उनके आवेशों को सहने का सामर्थ्य किसी में भी नहीं है।[ऋग्वेद 8.96.19]
Performer of virtuous deeds Indr Dev become happy by drinking Somras and kill Vratra Sur and other enemies with his valour alone. He posses grandeur like the day and none can oppose-block his charge.
स वृत्रहेन्द्रश्चर्षणीधृत्तं सुष्टुत्या हव्यं हुवेम।
स प्राविता मघवा नोऽधिवक्ता स वाजस्य श्रवस्यस्य दाता
वह वृत्रासुर के संहारक और मनुष्यों के पालक आवाहनीय इन्द्र देव को हम अपनी स्तुतियों द्वारा आहूत करते हैं। ऐश्वर्यवान इन्द्र देव हमारा रक्षण करते हुए हमें यश प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 8.96.20]
Killer of Vratra Sur and nurturer of humans is invoked by us with our Stuties-prayers. Grandeur possessing Indr Dev protect us and grant us glory.
स वृत्रहेन्द्र ऋभुक्षाः सद्यो जज्ञानो हव्यो बभूव।
कृण्वन्नपांसि नर्या पुरूणि सोमो न पीतो हव्यः सखिभ्यः
वृत्रासुर का वध करने वाले इन्द्र देव आवाहन के योग्य हैं। अनेकों मनुष्यों के लिए मंगलकारी कर्मों को करते हुए, वे इन्द्र देव सोमरस का पान करते हैं।[ऋग्वेद 8.96.21]
Killer of Vratra Sur Indr Dev deserve invocation. Performing welfare and pious-virtuous deeds for several humans Indr Dev drink Somras.(24.06.2024)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (97) :: ऋषि :- रेभ, कश्यप; देवता :- इन्द्र; छन्द :- बृहती, त्रिष्टुप्, जगती।
या इन्द्र भुज आभरः स्वाँ असुरेभ्यः।
स्तोतारमिन्मघवन्नस्य वर्धय ये च त्वे वृक्तबर्हिषः
हे इन्द्र देव! आप राक्षसों को जीतकर लाए गए धन से स्तोताओं का संरक्षण करें और आवाहन करने वालों की वृद्धि करें।[ऋग्वेद 8.97.1]
Hey Indr Dev! Protect the Stotas with the money you have brought by winning demons and increase the number of those who invoke you.
यमिन्द्र दधिषे त्वमश्वं गां भागव्ययम्।
यजमाने सुन्वति दक्षिणावति तस्मिन्तं धेहि मा पणौ
हे इन्द्र देव! आप अविनाशी हैं अर्थात् आपका विनाश कभी नहीं हो सकता। आपके पास जो गौएँ, अश्व और ऐश्वर्य विद्यमान है, उसे आप सोमाभिषवकर्ता एवं दक्षिणा प्रदान करने वाले याजक को प्रदान करें। आप उसे किसी कृपण या सूदखोर को प्रदान न करें।[ऋग्वेद 8.97.2]
Hey Indr Dev! You are immortal-imperishable. Grant your cows, horses & grandeur to the Ritviz who extract Somras and make donations. Do not give it to misers and those who charge interest over money.
य इन्द्र सस्त्यव्रतोऽनुष्वापमदेवयुः।
स्वैः ष एवैर्मुमुरत्योष्यं रयिं सनुतर्धेहि तं ततः
हे इन्द्र देव! कुमार्ग पर चलने वाला जो व्यक्ति यज्ञादि कर्म नहीं करता, वह स्वयं अपने वैभव को नष्ट करता है। आप उसे कर्म से रहित स्थान में स्थापित करें।[ऋग्वेद 8.97.3]
Hey Indr Dev! A person fallowing the route of wickedness, who do not perform Yagy and other related deeds, destroys his own grandeur. Establish him at such a place where no actions-endeavours, efforts are done.
यच्छक्रासि परावति यदर्वावति वृत्रहन्।
अतस्त्वा गीर्भिद्युगदिन्द्र केशिभिः सुतावाँ आ विवासति
हे वृत्रासुर के संहारक इन्द्र देव! हम सोमयज्ञ में अश्वों के समान वेगवान स्तुतियों से आपका आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.97.4]
Hey Indr Dev, slayer of Vratra Sur! We invoke you in the Som Yagy with the Stuties, as fast as the horses.
यद्वासि रोचने दिवः समुद्रस्याधि विष्टपि।
यत्पार्थिवे सदने वृत्रहन्तम यदन्तरिक्ष आ गहि
हे इन्द्र देव! आप सूर्यमंडल के आलोकित स्थान में निवास करते हैं। आप पृथ्वी, अन्तरिक्ष अथवा समुद्र में जहाँ भी हों, वहाँ से हमारे समीप पधारें।[ऋग्वेद 8.97.5]
Hey Indr Dev! You reside at a illuminated place in the solar system. Come to us where ever you are, the earth, space or the ocean.
स नः सोमेषु सोमपाः सुतेषु शवसस्पते।
मादयस्व राधसा सूनृतावतेन्द्र राया परीणसा
हे बलवान इन्द्र देव! आप सोमरस का पान करने वाले हैं। सोम अभिषुत होने पर आप हमें मधुर वचनों से युक्त प्रचुर धन प्रदान करके हर्षित करें।[ऋग्वेद 8.97.6]
Hey mighty Indr Dev! You drink Somras. Gladden us with sweet words when the Somras has been extracted for you and grant us sufficient wealth.
मा न इन्द्र परा वृणग्भवा नः सधमाद्यः।
त्वं न ऊती त्वमिन्न आप्यं मा न इन्द्र परा वृणक्
हे इन्द्र देव! आप हमारे रक्षक और मित्र हैं। आप हमारे इस यज्ञ में पधारें। आप कभी भी हमारा परित्याग न करें।[ऋग्वेद 8.97.7]
Hey Indr Dev! you are our protector and friend. Come to our Yagy. Never desert us.
अस्मे इन्द्र सचा सुते नि षदा पीतये मधु।
कृधी जरित्रे मघवन्नवो महदस्मे इन्द्र सचा सुते
हे इन्द्र देव! आप सोमरस का पान करने के लिए हमारे यज्ञमण्डप में आकर कुश-आसन पर विराजमान हों और अपने स्तोताओं को संरक्षण प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.97.8]
Hey Indr Dev! Come to our Yagy Mandap and occupy the Kush Mate to drink Somras granting protection to your Stotas.
न त्वा देवास आशत न मर्त्यासो अद्रिवः।
विश्वा जातानि शवसाभिभूरसि न त्वा देवास आशत
हे वज्रधारी इन्द्र देव! कोई भी देवता या मनुष्य आपकी समानता नहीं कर सकता। अपने बल से आप समस्त प्राणियों का पराभव करने वाले हैं।[ऋग्वेद 8.97.9]
Hey Vajr wielding Indr Dev! Neither demigods-deities nor humans can face you. You defeat all living beings with your strength.
विश्वाः पृतना अभिभूतरं नरं सजूस्ततक्षुरिन्द्रं जजनुश्च राजसे।
क्रत्वा वरिष्ठं वर आमुरिमुतोग्रमोजिष्ठं तवसं तरस्विनम्
यज्ञ में परस्पर मिलकर ऋत्विक्गण आयुधधारी इन्द्र देव को (मन्त्रों द्वारा) प्रकट करते है और शत्रु हन्ता, उग्र, महिमाशाली इन्द्रदेव की प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 8.97.10]
The Ritviz jointly invoke Indr Dev with the Mantr Shakti and worship slayer of the enemies, furious and glorious Indr Dev.
समीं रेभासो अस्वरन्निन्द्रं सोमस्य पीतये।
स्वर्पतिं यदीं वृधे धृतव्रतो ह्योजसा समूतिभिः
सोमरस के पान के लिए रेभादि ऋषियों ने इन्द्र देव का आवाहन किया। स्तोतागण जब स्वर्ग के स्वामी, बल एवं धन से युक्त इन्द्र देव की प्रार्थना करते हैं तब वह इन्द्र देव ओज और बल द्वारा उन्हें प्राप्त होते हैं।[ऋग्वेद 8.97.11]
Rishi Rebh along with other Rishis invoked Indr Dev to drink Somras. When the Stotas worship radiant Indr Dev the lord of heavens, possessed with might & wealth come to them.
नेमिं नमन्ति चक्षसा मेषं विप्रा अभिस्वरा।
सुदीतयो वो अद्रुहोऽपि कर्णे तरस्विनः समृकभिः
हे स्तोताओं! विद्वान रेभ वाणी द्वारा इन्द्र देव को नमस्कार करते हैं। आप इन्द्र देव के कर्णो को प्रिय लगने वाले मन्त्रों से उनकी प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 8.97.12]
Hey Stotas! Learned Rebh Rishi say Namaskar-salute to Indr Dev. Pray to him with the Mantrs which please the ears.
तमिन्द्रं जोहवीमि मघवानमुग्रं सत्रा दधानमप्रतिष्कुतं शवांसि।
मंहिष्ठो गीर्भिरा च यज्ञियो ववर्तद्राये नो विश्वा सुपथा कृणोतु वज्री
हम अपनी रक्षा के लिए इन्द्र देव का आवाहन करते है। सभी महान् यज्ञों में पूजनीय इन्द्र देव की स्तोत्रों द्वारा प्रार्थना की जाती है। वह वज्रधारी हमारे प्रगति के मार्गों को सरल करें।[ऋग्वेद 8.97.13]
We invoke Indr Dev for our protection. Worshipable Indr Dev is prayed in the great Yagy with Strotr. Let the Vajr wielding make our paths-endeavours easy-simple.
त्वं पुर इन्द्र चिकिदेना व्योजसा शविष्ठ शक्र नाशयध्यै।
त्वद्विश्वानि भुवनानि वज्रिन् द्यावा रेजेते पृथिवी च भीषा
हे इन्द्र देव! आप अपने तेज से शत्रुओं की समस्त पुरियों को ध्वस्त करना जानते हैं। हे वज्रधारी इन्द्र देव! आपके भय से पृथ्वी और आकाश आदि सभी लोक प्रकम्पित होते हैं।[ऋग्वेद 8.97.14]
Hey Indr Dev! You know how to destroy the cities-forts of the enemies with your power. Hey Vajr wielding Indr Dev! Earth, heavens and all abodes tremble with your fear. 
तन्म ऋतमिन्द्र शूर चित्र पात्वपो न वज्रिन् दुरिताति पर्षि भूरि।
कदा न इन्द्र राय आ दशस्येर्विश्वप्स्न्यस्य स्पृहयाय्यस्य राजन्
हे वज्रधारी इन्द्र देव! आप अपने सत्य से हमारा संरक्षण करें। जल से पार लगाने वाले नाविक के सदृश आप हमें पापों और विपत्तियों से पार लगावें और आप हमें विविध रूपों वाले वांच्छित ऐश्वर्य कब प्रदान करेंगे।[ऋग्वेद 8.97.15]
Hey Vajr wielding Indr Dev! Protect us with the truth. Sail us through the sins & troubles like the boats man. When will you grant us desired grandeur of different kinds?(25.06.2024)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (98) :: ऋषि :- नृमेध, आंगिरस;  देवता :- इन्द्र;  छन्द :- उष्णिक्।
इन्द्राय ताम गायत विप्राय बृहते बृहत्। धर्मकृते विपश्चिते पनस्यवे
हे उद्गाताओं! मेधावी, महान्, स्तुत्य इन्द्र देव के लिए आप बृहत्साम का गायन करें।[ऋग्वेद 8.98.1]
Hey Udgatas! Sing Brahatsam for intelligent, great worshipable Indr Dev.
बृहत्साम ::
त्वमिदधि हवामहे सातौ वाजस्य कारव:
त्वां वृत्रेष्विन्द्र सत्पतिं नरस्त्त्वां काष्ठास्वर्वतः॥
हे इंद्र रुप परमेश्वर! हम स्तोता अन्न वृद्धि के लिए आपका ही आह्वान करते हैं। विवेकशील मनुष्य भी शत्रुओं की शत्रुता से आक्रान्त होने पर, जब सब प्रयत्न करके भी हारने लगते हैं तो आपको ही पुकारते हैं।
Hey Almighty, in the form of Indr Dev! We invoke you for the growth of food grains. When the prudent people start loosing at the hands of the enemies bent upon enmity, they call you.
स त्वं नश्चित्र वज्रहस्त धृष्णुया महस्तवानो अद्रिव:
गामश्वं रथ्यमिन्द्र् सं किर सत्रा वाजं न जिग्युषे॥
हे अतुल पराक्रमी! हाथ में विचित्र वज्र धारण करने वाले, स्वयं के तेज से प्रकाशित इंद्र रूप परमेश्वर! आप हमें गोधन, रथ योग्य कुशल अश्व, अन्न तथा ऐश्वर्य प्रदान करें।
Hey mighty possessing infinite power! You wield Vajr in your hand and shine with your own aura as Indr Dev. Grant us cows, skilled horses to drive the charoite, food grains and grandeur.
  त्वमिन्द्राभिभूरसि त्वं सूर्यमरोचयः। विश्वकर्मा विश्वदेवो महाँ असि
हे इन्द्र देव! रिपुओं को पराजित करने वाले आप सूर्य देव को अपने तेज से प्रकाशित करते हैं। सबको प्रकाश देने वाले आप संसार के रचयिता हैं।[ऋग्वेद 8.98.2]
Hey Indr Dev! You defeat the enemies and illuminate the Sun with your aura. You evolved the universe and grant light to every one. 
विभ्राजञ्ज्योतिषा स्व१रगच्छो रोचनं दिवः। देवास्त इन्द्र सख्याय येमिरे
हे इन्द्र देव! आप अपने तेज से सूर्य देव को प्रकाशित करते हैं। सभी देवता आपसे मित्रता की कामना करते हैं। आप यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 8.98.3]
Hey Indr Dev! You illuminate the Sun with your aura. All demigods-deities are desirous of friendship with you.
एन्द्र नो गधि प्रियः सत्राजिदगोह्यः। गिरिर्न विश्वतस्पृथुः पतिर्दिवः 
हे इन्द्र देव! आप शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाले व अपराजेय हैं अर्थात् आपको कोई भी पराजित नहीं कर सकता। आप पर्वत के समान विशाल स्वर्ग के स्वामी हैं। आपको हम हर्षित करे।[ऋग्वेद 8.98.4]
Hey Indr Dev! You are the winner of the enemies and invincible. None can defeat you. You are like a large mountain and own the heaven. Let us make you happy.
अभि हि सत्य सोमपा उभे बभूथ रोदसी। इन्द्रासि सुन्वतो वृधः पतिर्दिवः
हे स्वर्ग के स्वामी, सोमपायी इन्द्र देव! आकाश और पृथ्वी आपके अधीनस्थ हैं। आप सोमयाग कर्ताओं को उन्नति प्रदान करने वाले हैं।[ऋग्वेद 8.98.5]
Hey Lord of the heavens, drinker of Somras, Indr Dev! Sky and earth are under your control. You ensure progress of those who perform Som Yagy.
त्वं हि शश्वतीनामिन्द्र दर्ता पुरामसि। हन्ता दस्योर्मनोवृधः पतिर्दिवः
हे इन्द्र देव! आप अविनाशी व शत्रुओं की पुरियों को नष्ट करने वाले हैं। आप द्युलोक के स्वामी व अज्ञानता के अन्धकार को नष्ट करने वाले और मनुष्यों के मनोबल की वृद्धि करने वाले हैं।[ऋग्वेद 8.98.6]
Hey Indr Dev! You are immortal and destroyer of the cities-forts of the enemies. You are the lord of heaven and remove the cast of ignorance and boost the moral of the humans.
अधा हीन्द्र गिर्वण उप त्वा कामान्महः ससृज्महे। उदेव यन्त उदभिः
हे इन्द्र देव! बड़ी-बड़ी आकांक्षाएँ लेकर हम उसी प्रकार आपकी ओर आते हैं, जिस प्रकार नदी आदि का जल समुद्र की ओर प्रवाहित होता है।[ऋग्वेद 8.98.7]
Hey Indr Dev! We come to you with high hopes like the river which moves towards the ocean.
वार्ण त्वा यव्याभिर्वर्धन्ति शूर ब्रह्माणि। वावृध्वांसं चिदद्रिवो दिवेदिवे
हे वीर और वज्रधारी इन्द्र देव! नदियाँ जिस प्रकार समुद्र की वृद्धि करती हैं, उसी प्रकार हमारी स्तुतियाँ आपके तेज को बढ़ाती हैं।[ऋग्वेद 8.98.8]
Hey brave, Vajr wielding Indr Dev! The way the rivers boost the ocean our Stuties boost your energy-strength.
युञ्जन्ति हरी इषीरस्य गायोगै रथ उरुगे। इन्द्रवाहा वचोयुजा॥
इन्द्र देव के विशाल रथ में संकेत मात्र से ही जुड़ जाने वाले दोनों अश्व याजकों के स्तोत्रों से सरलता से ही रथ में नियोजित हो जाते हैं।[ऋग्वेद 8.98.9]
The two horses deploy themselves in the large charoite of Indr Dev by the recitation of the Strotr by the Ritviz, easily.
त्वं न इन्द्रा भरँ ओजो नृम्णं शतक्रतो विचर्षणे। आ वीरं पृतनाषहम्
हे मेधावी इन्द्र देव! आप यज्ञादि कार्यों को सम्पादित करने वाले हैं। आप हमें बल और धन से परिपूर्ण करें और शत्रुओं को जितने वाला पुत्र भी प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.98.10]
Hey intelligent-brilliant Indr Dev! You perform the Yagy and its related deeds. Support us with strength and wealth. Grant us sons who can win the enemies.
त्वं हि नः पिता वसो त्वं माता शतक्रतो बभूविथ। अधा ते सुम्नमीमहे
शताधिक कर्म करने वाले, सभी के आश्रय दाता हे इन्द्र देव! आप पिता-सदृश पालन करने और माता तुल्य धारण करने वाले हैं। हम सुखप्राप्ति के लिए आपका आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.98.11]
Hey performer of more than hundred deeds-Yagy, granting asylum to everyone, Indr Dev! You nurture like a father and support like the mother. We invoke you for attainment of pleasure-comforts.
त्वां शुष्मिन्पुरुहूत वाजयन्तमुप ब्रुवे शतक्रतो। स नो रास्व सुवीर्यम्
हे इन्द्र देव! आप बलशाली हैं और अनेकों द्वारा स्तुत्य हैं। हम तेजस्वी बल और ऐश्वर्य की कामना से आपकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 8.98.12]
Hey Indr Dev, you are mighty and worshiped by many people! We pray to you with the desire of strength and grandeur.(26.06.2024)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (99) :: ऋषि :- नृमेध, आंगिरस;  देवता :- इन्द्र;  छन्द :- विषमाबृहती, समाबृहती।
त्वामिदा ह्यो नरोऽपीप्यन्वज्रिन्भूर्णयः।
स इन्द्र स्तोमवाहसामिह श्रुध्युप स्वसरमा गहि
हे वज्रधारी इन्द्र देव! आप याजकों द्वारा समर्पित सोमरस का पान करते हैं। ऋषियों द्वारा उच्चारित प्रार्थनाओं का श्रवण करते हुए आप यज्ञस्थल पर पधारें।[ऋग्वेद 8.99.1]
Hey Indr Dev wielding Vajr! You drink the Somras offered by the Ritviz. Keep listening to the prayers recited by the Rishis, while coming to the Yagy Mandap.
मत्स्वा सुशिप्र हरिवस्तदीमहे त्वे आ भूषन्ति वेधसः।
तव श्रवांस्युपमान्युक्थ्या सुतेष्विन्द्र गिर्वणः
हे स्तुत्य इन्द्र देव! उपासना करने वाले आपके लिए सोम अभिषुत करते हैं। आप सोमरस के पान से तृप्त होवें। सोमरस के पश्चात् आपको हविष्यान्न भी अर्पित किया जाता है।[ऋग्वेद 8.99.2]
Hey worshipable Indr Dev! Worshipers extract Somras for you. Be satisfied by drinking Somras. After serving Somras, offerings of food grains will be made to you.
श्रायन्तइव सूर्यं विश्वेदिन्द्रस्य भक्षत।
वसूनि जाते जनमान ओजसा प्रति भागं न दीधिम
सूर्य देव के आश्रय में रहने वाली रश्मियों के समान ही इन्द्र देव सम्पूर्ण संसार को आश्रय प्रदान करते हैं। हम इन्द्र देव के सभी प्रकार के धनों को पैतृक सम्पत्ति के सदृश प्राप्त करें।[ऋग्वेद 8.99.3]
Indr Dev grant asylum to the entire world like the rays of Sun under his protection. Let us gain all sorts of wealth from Indr Dev like paternal property.
अनर्शरातिं वसुदामुप स्तुहि भद्रा इन्द्रस्य रातयः।
सो अस्य कामं विधतो न रोषति मनो दानाय चोदयन्
हे स्तोताओं! आप इन्द्र देव की प्रार्थना करें, क्योंकि जब इन्द्र देव अपने मन के अनुरूप फल देने की इच्छा करते हैं तो याजकों की इच्छाओं को कभी भी नष्ट नहीं होने देते।[ऋग्वेद 8.99.4]
Hey Stotas! Worship Indr Dev, since when Indr Dev desire of accomplishing the desires of the Ritviz as per his innerself, he do not let them vanish i.e., fulfil them.
त्वमिन्द्र प्रतूर्तिष्वभि विश्वा असि स्पृधः।
अशस्तिहा जनिता विश्वतूरसि त्वं तूर्य तरुष्यतः
हे इन्द्र देव! युद्ध में शत्रुओं को पराजित करने वाले, सबकी उत्पत्ति करने वाले और यज्ञीय कर्म न करने वालों एवं असुरों के आप विनाशक हैं।[ऋग्वेद 8.99.5]
Hey Indr Dev! You defeat the enemies in war-battle, evolve all and destroy the demons who do not perform Yagy.
अनु ते शुष्मं तुरयन्तमीयतुः क्षोणी शिशुं न मातरा।
विश्वास्ते स्पृधः श्नथयन्त मन्यवे वृत्रं यदिन्द्र तूर्वसि
हे इन्द्र देव! शिशु की सुरक्षा में तत्पर रहने वाले माता-पिता के सदृश आकाश और पृथ्वी आपके शत्रु संहारक बलों का अनुगमन करते हैं। जब आप वृत्रासुर का संहार करते हैं, तब आपके क्रोध के समक्ष समस्त शत्रुसेना भयभीत हो जाती है।[ऋग्वेद 8.99.6]
Hey Indr Dev! Earth and sky follow your strength to destroy the enemies like the parents ready to protect their infant child. When you Vratra Sur, the entire army of the enemy start trembling due to your anger-fear.
इत ऊती वो अजरं प्रहेतारमप्रहितम्।
आशुं जेतारं हेतारं रथीतममतूर्त तुग्र्यावृधम्
हे याजकों! अपनी सुरक्षा के लिए आप शत्रु संहारक, उत्तम रथी, जलवृष्टि करने वाले व अविनाशी इन्द्र देव का आवाहन करें।[ऋग्वेद 8.99.7]
Hey Ritviz! Invoke immortal, destroyer of the enemy, excellent charioteer,  rain showering Indr Dev for your safety.
इष्कर्तारमनिष्कृतं सहस्कृतं शतमूतिं शतक्रतुम्।
समानमिन्द्रमवसे हवामहे वसवानं वसूजुवम्
सैकड़ों यज्ञादि सत्कर्म करने वाले, नाना प्रकार के संरक्षण प्रदान करने वाले, संसार को आच्छादित करने वाले एवं ऐश्वर्य प्रदान करने वाले इन्द्र देव का अपनी रक्षा के लिए (हम) आदाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.99.8]
We invoke Indr Dev who perform hundreds of Yagy & related deeds, protect us through various modes, shield the universe and grant us grandeur; for our protection.(26.06.2024)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (100) :: ऋषि :- नेम, भार्गव, इन्द्र; देवता :-इन्द्र;  छन्द :- इन्द्र, त्रिष्टुप्, जगती, अनुष्टुप्।
अयं त एमि तन्वा पुरस्ताद्विश्वे देवा अभि मा यन्ति पश्चात्।
यदा मह्यं दीधरो भागमिन्द्रादिन्मया कृणवो वीर्याणि
हे इन्द्र देव! हम शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए आपके आगे-आगे चलते हैं और समस्त देवता हमारे पीछे-पीछे चलते हैं। आप हमें धन, पराक्रम और यश प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.100.1]
Hey Indr Dev! We march forward-ahead of you for victory in the war over the enemies and all demigods-deities follow us. Grant us wealth, might and glory. 
दधामि ते मधुनो भक्षमग्रे हितस्ते भागः सुतो अस्तु सोमः।
असश्च त्वं दक्षिणतः सखा मेऽधा वृत्राणि जङ्घनाव भूरि
हे इन्द्र देव! आपके लिए रखा हुआ यह शोधित सोमरस आपके हृदय में व्याप्त हो। आप हमारे मित्र रूप होकर दाएँ हाथ के सदृश रहें, जिससे हम और आप मिलकर अनेकों शत्रुओं का संहार कर सकें।[ऋग्वेद 8.100.2]
Hey Indr Dev! Let this purified Somras satisfy your innerself. You should be over our right hand like a friend so that we along with you can destroy many enemies.
प्र सु स्तोमं भरत वाजयन्त इन्द्राय सत्यं यदि सत्यमस्ति।
नेन्द्रो अस्तीति नेम उत्व आह क ई ददर्श कमभि ष्टवाम
हे मनुष्यों! यदि वास्तव में इन्द्र देव शक्तिशाली हैं, तो उनकी प्रार्थना करें। नेम ऋषि कहते हैं कि इन्द्र देव नाम का कोई भी नहीं है। यदि हैं, तो किसने उन्हें देखा है? यदि इन्द्र देव नहीं है, तो हम किसकी प्रार्थना करें?[ऋग्वेद 8.100.3]
Hey humans! If Indr Dev is really mighty, worship-pray to him. Nemi Rishi says there is none by the name of Indr Dev. If he is there, who has seen him? If Indr Dev is not there, whom should be worship-pray?
अयमस्मि जरितः पश्य मेह विश्वा जातान्यभ्यस्मि मह्ना। 
ऋतस्य मा प्रदिशो वर्धयन्त्यादर्दिरो भुवना दर्दरीमि
हे स्तुति करने वालो! मैं (इन्द्रदेव) आपके समीप हूँ, आप हमें देखें। मैं सभी जीवों को पराजित करने वाला हूँ। सत्य की दिशाएँ मुझे समृद्ध करती हैं। मैं रिपुओं को पराजित करने तथा समस्त लोकों का निवारण करने वाला हूँ।[ऋग्वेद 8.100.4]
Hey worshipers! I-Indr Dev, is close to you, look at me. I defeat all living beings. Truthful directions nourish-grow me. I defeat the enemies and make all abodes trouble free.
आ यन्मा वेना अरुहन्नृतस्यँ एकमासीनं हर्यतस्य पृष्ठे।
मनश्चिन्मे हृद आ प्रत्यवोचदचिक्रदञ्छिशुमन्तः सखायः
जब यज्ञ की कामना करने वालों ने मुझे अकेले ही यज्ञ के मध्य में स्थापित कर दिया, तब उन लोगों के मन ने मेरे हृदय से कहा कि हम संततिवान, सखारूप आपका आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.100.5]
When the people desirous of Yagy established me at the centre of the Yagy, their heart told me that they invoked me like parents & friends.
विश्वेत्ता ते सवनेषु प्रवाच्या या चकर्थ मघवन्निन्द्र सुन्वते।
पारावतं यत्पुरुसंभृतं वस्वपावृणोः शरभाय ऋषिबन्धवे
हे इन्द्र देव! आपने अपने सखारूप ऋषि शरभ के लिए पारावत के प्रचुर ऐश्वर्य को अपने अधिकार में कर लिया और सोम अभिषव करने वालों को आपने वह धन प्रदान कर दिया। इस प्रकार आपके समस्त कार्य सराहनीय हैं।[ऋग्वेद 8.100.6]
प्रचुर :: अधिक, पर्याप्त, विपुल, भरापूरा, पूर्ण; plenitude, flux, enormous, generous, abundant, ample, affluent, fertile, luxurious, plentiful, exuberant, voluminous, copious, galore, luxuriant, riotous, profuse, rococo, bounteous, lavish, great, fair, superabundant, deluxe, abounding, rich, common, bountiful, large, full, unsparing, unstinted, plenty.
Hey Indr Dev! You took the abundant grandeur of Paravat under your control and granted that wealth to the extractors of Somras. Your whole operation deserve appreciation.
प्र नूनं धावता पृथङ्नेह यो वो अवावरीत्।
नि षीं वृत्रस्य मर्मणि वज्रमिन्द्रो अपीपतत्
हे पराक्रमियों! वृत्रासुर पर इन्द्रदेव ने अपने वज्र से प्रहार किया, इसलिए आप शत्रुओं पर आक्रमण करें, क्योंकि अब कोई भी ऐसा योद्धा नहीं है, जो आपको अवरुद्ध कर सके।[ऋग्वेद 8.100.7]
Hey mighty people! Indr Dev attacked Vratra Sur with Vajr, hence you attack the enemy and there is no enemy warrior to obstruct you, now.
मनोजवा अयमान आयसीमतरत्पुरम्।
दिवं सुपर्णो गत्वाय सोमं वज्रिण आभरत्
हे गरुड़! मन की गति से चलने वाले आप लौह नगरों को लांघते हुए स्वर्ग में गए और वज्रधारण करने वाले (इन्द्रदेव) के लिए सोमरस ले आए।[ऋग्वेद 8.100.8]
Hey Garud (vehicle of Bhagwan Shri Hari Vishnu)! You drove with the speed of mind, crossed the forts-cities built in the sky with iron, reached heavens and delivered Somras to Indr Dev.
समुद्रे अन्तः शयत उद्गा वज्रो अभीवृतः। भरन्त्यस्मै संयतः पुरः प्रस्त्रवणा बलिम्
उन इन्द्र देव का वज्र जलों से आच्छादित हुआ सागर के बीच में विद्यमान रहता है। युद्धेच्छुक शत्रु उस वज्र के लिए अपने प्राण त्यागते हैं।[ऋग्वेद 8.100.9]
Vajr of Indr Dev is established in the ocean covered with water. Enemies desirous of war loose their life for Vajr.
यद्वाग्वदन्त्यविचेतनानि राष्ट्री देवानां निषसाद मन्द्रा।
चतस्त्र ऊर्ज दुदुहे पयांसि क स्विदस्याः परमं जगाम
विद्वानों को हर्षित करने वाली वाणी जब यज्ञों में व्याप्त होती है, तब चारों दिशाओं में अन्न और जल का दोहन होता है। वह दिव्य वाणी किस स्थान से उत्पन्न हुई, यह ज्ञात नहीं है।[ऋग्वेद 8.100.10]
When the voice granting pleasure to the enlightened pervade the Yagy, food grains and water are extracted in all directions. None knows where from this divine voice appeared.
देवीं वाचमजनयन्त देवास्तां विश्वरूपाः पशवो वदन्ति।
सा नो मन्द्रेषमूर्ज दुहाना धेनुर्वागस्मानुप सुष्टुतैतु
जिस ओजस्वी वाणी को देवताओं ने प्रकट किया, अनेक प्रकार के पशु उच्चारण करते हैं। अन्न और बल प्रदान करने वाली तथा गौ के समान हर्षित करने वाली वह दिव्य वाणी हमारे द्वारा स्तुत होती हुई हमारे समीप आएँ।[ऋग्वेद 8.100.11]
ओजस्वी :: उज्ज्वल; aurous, radiant.
The aurous-thrilling voice was evolved by the demigods-deities. Different types of animal create sound. Let this divine sound-voice generating food grains, strength & pleasure like the cows, reach us, to be worshiped by us.
सखे विष्णो वितरं वि क्रमस्व द्यौर्देहि लोकं वज्राय विष्कभे।
हनाव वृत्रं रिणचाव सिन्धूनिन्द्रस्य यन्तु प्रसवे विसृष्टाः
हे मित्र श्री विष्णु देव! आप अपने शौर्य को प्रकट करें। आप हमारे वज्र के गमन के लिए विस्तृत स्थान प्रदान करें। हे श्री विष्णु! हम और आप परस्पर मिलकर वृत्रासुर का संहार कर जलों को प्रवाहित करें। वे जल बाधा मुक्त होकर इन्द्र देव की आज्ञा से प्रवाहित हों।[ऋग्वेद 8.100.12]
Hey friendly Shri Hari Vishnu! Expose your might. Grant broad place for the movement of our Vajr. Hey Shri Hari Vishnu! We along with you will kill Vratra Sur and allow the water to flow. Let water flow unrestricted by the order of Indr Dev.(27.06.2024)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (101) :: ऋषि :- जमदग्रि, भार्गव; देवता :-मित्रा-वरुणौ, मित्रावरुणादित्याश, आदित्य, अश्विनी कुमार, वायु, सूर्यप्रभा, पवमान या गौ; छन्द :- बृहती, पंक्ति, गायत्री, त्रिष्टुप्।
ऋधगित्था स मर्त्यः शशमे देवतातये।
यो नूनं मित्रावरुणावभिष्टय आचक्रे हव्यदातये
अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए जो याजक मित्र और वरुण देव को आहुति प्रदान करता है, वही वास्तविक रूप में देवताओं को प्रसन्न करने के लिए आहुति प्रदान करता है।[ऋग्वेद 8.101.1]
The Ritviz who make offerings to Mitr & Varun Dev for the accomplishment of their desires, in reality make offerings to demigods-deities to appease the them.
वर्षिष्ठक्षत्रा उरुचक्षसा नरा राजाना दीर्घश्रुत्तमा।
ता बाहुता न दंसना रथर्यतः साकं सूर्यस्य रश्मिभिः
अनेक बलों से युक्त, नायक, दूरद्रष्टा, मेधावी मित्र और वरुण देव अपनी भुजाओं के सदृश सूर्य रश्मियों के साथ यज्ञ कर्म में पधारते हैं।[ऋग्वेद 8.101.2]
Accompanied with many powers, leaders, far sighted, intelligent Mitr & Varun Dev come with the Sun rays comparable to their arms, in the Yagy.
प्र यो वां मित्रावरुणाजिरो दूतो अद्रवत्। अयः शीर्षा मदेरघुः
हे मित्र और वरुण देव! दूत रूप में जो याजक आपके निकट आगमन करते हैं, वो अपने शीश पर स्वर्ण आदि धारण कर हर्षकारी धन प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 8.101.3]
Hey Mitr & Varun Dev! The Ritviz who come close to you as an ambassador are crowned with gold over their head and get wealth causing pleasure. 
न यः संपृच्छे न पुनर्हवीतवे न संवादाय रमते।
तस्मान्नो अद्य समृतेरुरुष्यतं बाहुभ्यां न उरुष्यतम्
हे मित्र और वरुण देव! जो पूछने पर, बुलाए जाने पर और कहने पर भी हर्षित नहीं होते, ऐसे शत्रुओं के साथ आप युद्ध में अपने बाहुबल से हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 8.101.4]
Hey Mitr & Varun Dev! Protect us from the enemies who do not become happy on being called, invited or being asked with your might-muscle power.
प्र मित्राय प्रार्यम्णे सचथ्यमृतावसो।
वरूथ्यं वरुणे छन्द्यं वचः स्तोत्रं राजसु गायत
हे स्तोताओं! मित्र, वरुण देव और अर्यमा देव के यज्ञ मण्डप में प्रतिष्ठित हो जाने के बाद स्तोत्रों से उनकी प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 8.101.5]
Hey Stotas! Worship Mitr, Varun Dev and Aryma Dev when they are established in the Yagy Mandap with Strotrs.
ते हिन्विरे अरुणं जेन्यं वस्वेकं पुत्रं तिसृणाम्।
ते धामान्यमृता मर्त्यानामदब्धा अभि चक्षते
हे मित्र और वरुण देव! आप तीनों लोकों के एक मात्र पुत्र सूर्य देव को उदित होने के लिए प्रेरित करते हैं। आलस्य रहित अविनाशी देवगण मनुष्यों के स्थानों का निरीक्षण करते हैं।[ऋग्वेद 8.101.6]
Hey Mitr & Varun Dev! You inspire the only son of the three abodes, Sury Dev to rise. Free from laziness immortal demigods-deities inspect the humans abode-places of residence.
आ मे वचांस्युद्यता द्युमत्तमानि कर्त्वा ।
उभा यातं नासत्या सजोषसा प्रति हव्यानि वीतये
हे अश्विनी कुमारों! आप सत्य का पालन करने वाले हैं। हमारे द्वारा उच्चारित की गई वाणी के पास हवियों के सेवन के लिए पधारें।[ऋग्वेद 8.101.7]
Hey Ashwani Kumars! You abide by the truth. Come to our recitation to accept the offerings.
रातिं यद्वामरक्षसं हवामहे युवाभ्यां वाजिनीवसू।
प्राचीं होत्रां प्रतिरन्तावितं नरा गृणाना जमदग्निना
हे अश्विनी कुमारों! आप जमदग्नि ऋषि से स्तुत्य होकर उनकी प्राचीन स्तुतियों को समृद्ध करते हुए आप दोनों पधारें।[ऋग्वेद 8.101.8]
Hey Ashwani Kumars! On being worshiped by Jamdagni Rishi come here and enrich his old-eternal Stuties.
आ नो यज्ञं दिविस्पृशं वायो याहि सुमन्मभिः।
अन्तः पवित्र उपरि श्रीणानो३यं शुक्रो अयामि ते
हे वायु देव! हम अभिषुत सोमरस आपको समर्पित करते हैं। स्वर्ग लोक का स्पर्श करने वाले हमारे इस यज्ञ में श्रेष्ठ स्तोत्रों के समीप आप पधारें।[ऋग्वेद 8.101.9]
Hey Vayu Dev! We offer you you extracted Somras. Join this Yagy touching the heavens with the best Strotrs.
वेत्यध्वर्युः पथिभी रजिष्ठैः प्रति हव्यानि वीतये।
अधा नियुत्व उभयस्य नः पिब शुचिं सोमं गवाशिरम्
हे वायु देव! आपके सेवन के लिए हम आहुतियों को सरल मार्ग से ले जाते हैं। आप गौ-दुग्ध मिश्रित सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 8.101.10]
Hey Vayu Dev! You carry the offering for utilisation through simple-easy route. Drink the Somras mixed with cow's milk.
बण्महाँ असि सूर्य बळादित्य महाँ असि।
महस्ते सतो महिमा पनस्यतेऽद्धा देव महाँ असि
हे इन्द्र देव! आप तेजस्वी और बलशाली हैं। आपकी महानता का हम सदैव गुणगान करते हैं।[ऋग्वेद 8.101.11]
Hey Indr Dev! You are aurous and mighty. We always praise your greatness.
बट् सूर्य श्रवसा महाँ असि सत्रा देव महाँ असि।
मह्ना देवानामसुर्यः पुरोहितो विभु ज्योतिरदाभ्यम्
हे सूर्य देव! आप अन्धकार रूपी राक्षसों को नष्ट करने वाले व पुरोहित के समान देवों का नेतृत्व करने वाले हैं। आपका अविनाशी तेज सम्पूर्ण संसार में व्याप्त है।[ऋग्वेद 8.101.12]
Hey Sury Dev! You destroy the demons who are in the form of darkness and lead the demigods-deities like a Priest. Your imperishable radiance is pervaded in the whole universe.
इयं या नीच्यर्किणी रूपा रोहिण्या कृता। चित्रेव प्रत्यदर्यायत्यन्तर्दशसु बाहुषु
दशों दिशाओं से आगमन करने वाली, गौ के सदृश दर्शनीय उषा देवी सूर्य देव के तेज से उत्पन्न हुई हैं।[ऋग्वेद 8.101.13]
Usha Devi who travels in all ten directions, appearing like a cow have evolved from the aura-radiance of Sury Dev.
प्रजा ह तिस्स्रो अत्यायमीयुर्यन्या अर्कमभितो विविश्रे।
बृहद्ध तस्थौ भुवनेष्वन्तः पवमानो हरित आ विवेश
तीनों लोकों में स्थित प्रजाएँ सूर्य देव के आश्रित हैं। वह सूर्यदेव समस्त लोकों में व्याप्त हैं और वायुदेव भी सभी दिशाओं में समाविष्ट हो रहे हैं।[ऋग्वेद 8.101.14]
Populace present in the three abodes is totally dependent over Sury Dev. Sury Dev pervaded the three abodes and Vayu Dev too assimilate in the ten directions.
माता रुद्राणां दुहिता वसूनां स्वसादित्यानाममृतस्य नाभिः।
प्र नु वोचं चिकितुषे जनाय मा गामनागामदितिं वधिष्ट
हम विद्वत् गण लोगों से यही कहते हैं कि गौएँ रुद्रों की माता, वसुओं की पुत्री, आदित्यों की बहन तथा अमृत की मूल हैं। आप उनकी हिंसा न करें।[ऋग्वेद 8.101.15]
We ask the learned people that cow are the mother of Rudr Gan, daughters of Vasus, sister of Adity Gan and the basis of elixir-nectar. Do not harm them.
वचोविदं वाचमुदीरयन्तीं विश्वाभिर्धीभिरुपतिष्ठमानाम्।
देवीं देवेभ्यः पर्येयुषीं गामा मावृक्त मर्यो दध्रचेताः
जो वाणी को प्रेरणा प्रदत्त करती हैं, सभी को देवत्व प्रदान करती हैं, हर प्रकार से जो वर्णित की जाती हैं और हमारी ओर आती हैं, इस प्रकार की गौरूपिणी देवी को हीन बुद्धि वाले मनुष्य ही त्यागते हैं।[ऋग्वेद 8.101.16]
Only the ignorant & wicked reject the goddess in the form of cow who comes to us, grants divinity, leadership, inspire the voice and described in this manner.
Those who eat beef-cow's meat deserve to put in lower species and hells.(28.06.2024M)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (102) :: ऋषि :- भार्गव, प्रयोग, अग्नि, बार्हस्पत्य या पावका, सहस, पुत्रौ, गृहपति, यविष्ठौ उससे अन्य; देवता :- अग्नि; छन्द :-गायत्री।
त्वमग्ने बृहद्वयो दधासि देव दाशुषे। कविर्गृहपतिर्युवा
हे मेधावी और युवा अग्नि देव! आहुति देने वाले याजक को आप प्रचुर अन्न प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 8.102.1]
Hey intelligent and young Agni Dev! You grant enough food grains to the Ritviz who make offerings.
स न ईळानया सह देवाँ अग्ने दुवस्युवा। चिकिद्विभानवा वह 
हे अग्नि देव! हमारे आवाहन को श्रवण कर आप समस्त देवों के साथ यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 8.102.2]
Hey Agni Dev! Respond to our invocation and come along with all demigods-deities.
त्वया ह स्विद्युजा वयं चोदिष्ठेन यविष्ठ्य। अभि ष्मो वाजसातये
हे अग्नि देव! आप समस्त देवताओं को सन्मार्ग में प्रेरित करने वाले हैं। हम आपके सहयोग से शत्रुओं को पराजित कर धन-धान्य को प्राप्त करें।[ऋग्वेद 8.102.3]
Hey Agni Dev! You inspire all demigods-deities. Let us defeat the enemies with your cooperation and get wealth & food grains from there. 
और्वभृगुवच्छुचिमप्नवानवदा हुवे। अग्निं समुद्रवाससम्
और्व, भृगु और अप्नवान् ऋषियों के सदृश हम भी सागर में स्थित अग्निदेव की स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 8.102.4]
We too worship Agni Dev present in the ocean like Rishi Orv, Bhragu and Apnvan.
हुवे वातस्वनं कविं पर्जन्यक्रन्धं सहः। अग्निं समुद्रवाससम्
मेघों के सदृश गर्जनशील, सागर में शयन करने वाले और वायु देव के समान शब्द करने बल शाली एवं मेधावी इन्द्र देव का हम आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.102.5]
We invoke mighty & intelligent Indr Dev who sleep in the ocean makes sound like Vayu Dev, rattle-thunder like the clouds.
आ सवं सवितुर्यथा भगस्येव भुजिं हुवे। अग्रिं समुद्रवाससम्
सूर्य देव के उदय होने के सदृश तथा भग के भोग के समान हम सागर में शयन करने वाले अग्नि देव का आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 8.102.6]
We invoke Agni Dev who rises like the Sury Dev and make offerings like Rishi Bhag; sleeping in the ocean.
अग्निं वो वृधन्तमध्वराणां पुरूतमम्। अच्छा नप्त्रे सहस्वते
हे ऋत्विजों! यज्ञों में सहायता करने वाले, सबके हितैषी, बलशाली अग्नि देव का सान्निध्य प्राप्त करो।[ऋग्वेद 8.102.7]
Hey Ritviz! Attain proximity with mighty Agni Dev who help in the Yagy & benefit all.
अयं यथा न आभुवत्त्वष्टा रूपेव तक्ष्या। अस्य क्रत्वा यशस्वतः
विश्वकर्मा (बढ़ई) द्वारा काष्ठ को स्वरूप प्रदान करने के सदृश हम अग्नि देव के कर्मों से यशस्वी होते हैं और श्रेष्ठ स्वरूप को प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 8.102.8]
We become glorious with the endeavours of Agni Dev like Vishw Karma; who shape the wood.
अयं विश्वा अभि श्रियोऽग्निर्देवेषु पत्यते। आ वाजैरुप नो गमत्
सभी प्रकार के ऐश्वर्य को प्रदान करने वाले अग्नि देव हमारे समीप अन्न-धन के सहित पधारें।[ऋग्वेद 8.102.9]
Let Agni Dev who grants all sorts of grandeur, come to us with food grains and wealth
विश्वेषामिह स्तुहि होतॄणां यशस्तमम्। अग्निं यज्ञेषु पूर्व्यम्
हे स्तोताओं! सभी होताओं में यशस्वी, यज्ञों में प्रमुख अग्नि देव की यज्ञमण्डप में आप प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 8.102.10]
Hey Stotas! Worship Agni Dev who is significant amongest all Hotas, in the Yagy Mandap. 
शीरं पावकशोचिषं ज्येष्ठो यो दमेष्वा। दीदाय दीर्घश्रुत्तमः
देवताओं में श्रेष्ठ और याजकों के गृह में प्रदीप्त होने वाले पवित्र ज्योतिरूप अग्नि देव की हम प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 8.102.11]
We worship Agni Dev who is best amongest the demigods-deities, illuminating the houses of the Ritviz.
तमर्वन्तं न सानसिं गृणीहि विप्र शुष्मिणम्। मित्रं न यातयञ्जनम्॥
हे स्तोताओं! मित्र के समान हर्षित करने वाले, बलवान्, अश्वों के समान सेवा करने वाले तथा रिपुओं का संहार करने वाले उन अग्नि देव की प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 8.102.12]
Hey Stotas! Let us worship Agni Dev who is mighty, serves the horses, destroys the enemies and gladden the friends.
उप त्वा जामयो गिरो देदिशतीर्हविष्कृतः। वायोरनीके अस्थिरन्
हे अग्नि देव! यजमान की प्रार्थनाएँ आपका गुणगान करती हैं। वे यजमान वायु देव के सहयोग से आपको प्रज्वलित करते हैं।[ऋग्वेद 8.102.13]
Hey Agni Dev! Prayers of the Ritviz appreciate-describe you. The Ritviz ignite you like Vayu Dev.
यस्य त्रिधात्ववृतं बर्हिस्तस्थावसन्दिनम्। आपश्चिन्नि दधा पदम्
जिन अग्नि देव के चारों ओर तीन मेखलाएँ बँधी हुई हैं तथा जिनके चारों ओर विभिन्न लोक स्थित हैं, उन (अग्नि देव के) साथ जल भी स्थिर पद प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 8.102.14]
मेखला :: waistbands.
Agni Dev who is tied with three waistbands, surrounded by the different abodes, water should also attain fixed position like him.
पदं देवस्य मीळ्हुषोऽनाधृष्टाभिरूतिभिः। भद्रा सूर्यइवोपदृक्
तेजस्वी अग्नि देव का दर्शन सूर्य दर्शन के समान मंगलकारी है। उनका स्थान शत्रुओं की बाधाओं से रहित एवं सुरक्षित है।[ऋग्वेद 8.102.15]
Vision of Agni Dev is beneficial like Sury Dev. His position is free and safe from obstacles and the enemies.
अग्ने घृतस्य धीतिभिस्तेपानो देव शोचिषा। आ देवान्वक्षि यक्षि च
हे अग्नि देव! आप घृत द्वारा प्रज्वलित और वृद्धिकारक होते हुए अपनी लपटों द्वारा देवों का आवाहन व उनका यजन करें।[ऋग्वेद 8.102.16]
Hey Agni Dev! You ignite & grow with Ghee and invoke demigods-deities along with worshiping them.
तं त्वाजनन्त मातरः कविं देवासो अङ्गिरः। हव्यवाहममर्त्यम्
हे मेधावी और अविनाशी अग्नि देव! आप हवियों को ग्रहण करने वाले हैं। सभी देवों ने माता के सदृश आपको उत्पन्न किया है।[ऋग्वेद 8.102.17]
Hey intelligent and imperishable Agni Dev! You accept the offerings. All demigods-deities have evolved you like a mother.
प्रचेतसं त्वा कवेऽग्ने दूतं वरेण्यम्। हव्यवाहं नि षेदिरे
हे मेधावी और अविनाशी अग्नि देव! आप आहुतियों को वहन करने और वरण करने वाले हैं। आपको सभी देवता सम्मानपूर्वक प्रतिष्ठित (प्रज्वलित) करते हैं।[ऋग्वेद 8.102.18]
Hey intelligent and imperishable Agni Dev! You accept and carry the offerings to demigods-deities. All demigods-deities ignite you respectfully.
नहि मे अस्त्यघ्न्या न स्वधितिर्वनन्वति। अथैतादृग्भरामि ते
हे अग्नि देव! हमारे पास दुग्ध प्रदान करने वाली गौ नहीं है और न ही समिधाओं को काटने वाली कुल्हाड़ी है, फिर भी अपने कल्याण के लिए हम आपका पोषण करते हैं।[ऋग्वेद 8.102.19]
Hey Agni Dev! Neither we have milch cows nor we have axe to cut wood. Still we nourish you for our welfare.
यदग्ने कानि कानि चिदा ते दारूणि दध्मसि। ता जुषस्व यविष्ठ्य
हे सामर्थ्यवान अग्नि देव! जो भी समिधाएँ आपके लिए समर्पित की जाएँ, वे सभी घृताहुतियों के समान ही आपको परमप्रिय हों। आप उन सभी को प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार (ग्रहण) करें।[ऋग्वेद 8.102.20]
Hey capable Agni Dev! Let all wood offered to you be dear by you like the offerings of Ghee. Accept all of them happily.
यदत्त्युपजिह्विका यद्वम्रो अतिसर्पति। सर्वं तदस्तु ते घृतम्
हे अग्नि देव! जिस लकड़ी में दीमक लगी होती है अथवा जो लकड़ी जलने से रह जाती है, वह आपको घृत के समान प्रिय हो।[ऋग्वेद 8.102.21]
Hey Agni Dev! Let wood eaten by the termite and the left wood too, be dear to you like the Ghee. 
अग्निमिन्धानो मनसा धियं सचेत मर्त्यः। अग्निमीधे विवस्वभिः
श्रद्धावान याजक अग्नि देव को भली-प्रकार प्रज्वलित करते हैं और सूर्योदय के साथ ही अग्निहोत्र की व्यवस्था करते हैं अथवा यह कहा जाय कि सूर्योदय के साथ ही अग्नि में आहुतियाँ देकर उन्हें प्रवृद्ध करते हैं।[ऋग्वेद 8.102.22]
Honourable Ritviz ignite Agni Dev properly and make arrangements for Agni Hotr before Sunrise.
Offerings are made in fire with the Sunrise.(28.06.2024E)
ऋग्वेद संहिता, अष्टम मण्डल सूक्त (103) :: ऋषि :- सोभरि, काण्व; देवता :- अग्रि, अग्ग्रामरुत; छन्द :- बृहती, सतोबृहती, ककुप्, अनुष्टुप्।
अदर्शि गातुवित्तमो यस्मिन्व्रतान्यादधुः।
उपो षु जातमार्यस्य वर्धनमग्निं नक्षन्त नो गिरः
धर्मपथों के ज्ञाता अग्नि देव प्रकट हो गये हैं, जिनके माध्यम से यज्ञ के नियम भी पूर्ण किए जाते हैं। उत्तम मार्ग से प्रकट हुए सज्जनों की उन्नति के आधार अग्नि देव हमारी प्रार्थनाएँ स्वीकार करें।[ऋग्वेद 8.103.1]
Agni Dev, well versed with scriptures (Dharm Granth) has evolved. Laws pertaining to Yagy are completed in consultation with him. Let Agni Dev accept our prayers for the progress of the gentlemen evolved through excellent route.
प्र दैवोदासो अग्निर्देवाँ अच्छा न मज्मना।
अनु मातरं पृथिवीं वि वावृते तस्थौ नाकस्य सानवि
दिवोदास के लिए पृथ्वी पर प्रकट हुए अग्नि देव अपने यज्ञीय कर्मों के परिणाम स्वरूप स्वर्ग के अधिकारी बने।[ऋग्वेद 8.103.2]
Agni Dev evolved for Divo Das over the earth and became entitled to heavens by virtue of his Yagy related deeds.
यस्माद्रेजन्त कृष्टयश्चकृत्यानि कृण्वतः।
सहस्त्रसां मेघसाताविव त्मनाग्निं धीभिः सपर्यत
हे मनुष्यों! यह अग्नि देव हजारों प्रकार के ऐश्वर्य प्रदान करने वाले हैं। जो मनुष्य कर्महीन होते हैं, वे कर्मवानों के अधीनस्थ रहते हैं। आप हजारों ऐश्वर्य प्रदत्त करने वाले अग्नि देव की सेवा करो।[ऋग्वेद 8.103.3]
Hey humans! Agni Dev grants thousands kinds of grandeur. Humans who do not wish to work remain under the control of those who are ready to work. Serve Agni Dev who grant thousands of kinds of grandeur.
प्र यं राये निनीषसि मर्तो यस्ते वसो दाशत्।
स वीरं धत्ते अग्न उक्थशंसिनं त्मना सहस्त्रपोषिणम्
हे अग्नि देव! जो याजक धन प्राप्ति के लिए आपको आहुति देते हैं, वे वीर पुत्र को उत्पन्न करने में समर्थ तथा हजारों लोगों का पालन-पोषण करने में समर्थ होते हैं।[ऋग्वेद 8.103.4]
Hey Agni Dev! The Ritviz who make offerings to you for wealth, become capable of producing brave sons and supporting thousands of people.
स दृलहे चिदभि तृणत्ति वाजमर्वता स धत्ते अक्षिति श्रवः।
त्वे देवत्रा सदा पुरूवसो विश्वा वामानि धीमहि
हे अग्नि देव! जो याजक आपकी प्रार्थना करते हैं, वे बलशाली शत्रुओं के सुदृढ़ किलों में स्थित अन्न को अपने अश्वों द्वारा नष्ट करके महान् कीर्ति अर्जित करते हैं और आपको आहुति देने वाले नाना प्रकार के ऐश्वर्यों को प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 8.103.5]
Hey Agni Dev! Those Ritviz who worship you; destroy the strong forts of the enemies along with their food grains by their horses earning great honours. They get various kinds of grandeurs.
यो विश्वा दयते वसु होता मन्द्रो जनानाम्।
मधोर्न पात्रा प्रथमान्यस्मै प्र स्तोमा यन्त्यग्नये
हे अग्नि देव! आप हमें अन्न-धन और वैभव प्रदान कर प्रसन्न करें। हम आपकी प्रार्थना करते हैं और आपको पात्र में स्थित सोमरस प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 8.103.6]
Hey Agni Dev! Gladden us by granting us food grains, wealth and grandeur. We offer you Somras in vessel worshiping you. 
अश्वं न गीर्भी रथ्यं सुदानवो मर्मृज्यन्ते देवयवः।
उभे तोके तनये दस्म विश्पते पर्षि राधो मघोनाम्
हे अग्नि देव! रथ में नियोजित किए अश्वों के रथवाहक के समान याजक आपकी प्रार्थना करते है। हे दानदाता! आप धनवानों का धन प्राप्त कर यजमानों के पुत्र-पौत्रादि को उससे सम्पन्न करें।[ऋग्वेद 8.103.7]
Hey Agni Dev! The Ritviz pray to you like the charioteers who deploy horses in the charoite. Hey donor! Receive money form the wealthy and grant it to the sons-grandsons of the Ritviz making them prosperous.
प्र मंहिष्ठाय गायत ऋताव्ने बृहते शुक्रशोचिषे। उपस्तुतासो अग्नये
हे स्तोता गण! अपनी प्रार्थनाओं द्वारा आप अग्नि देव की स्तुति करें। वह सबके रक्षक अग्नि देव सत्य और यज्ञ के पालक तथा अति तेजस्वी हैं।[ऋग्वेद 8.103.8]
Hey Stota Gan! Worship Agni Dev with your Stutis-prayers. Protector of all, truthful, accomplisher of the Yagy Agni Dev is highly radiant-aurous.
आ वंसते मघवा वीरवद्यशः समिद्धो द्युम्न्याहुतः।
कुविन्नो अस्य सुमतिर्नवीयस्यच्छा वाजेभिरागमत्
हे अग्नि देव! आप आवाहन किए जाने पर प्रज्वलित होकर अन्न और धन प्रदान करते हैं। इन अग्नि देव की अनुकूलता हमें प्रचुर मात्रा में धन-धान्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 8.103.9]
Hey Agni Dev! On being invoked you ignite and grant food grains and wealth. Favours of Agni Dev have granted us sufficient food grains and wealth.
प्रेष्ठमु प्रियाणां स्तुह्यासावातिथिम्। अग्रिं रथानां यमम्
हे स्तोताओं! जो अग्निदेव आत्मीयजनों में सबसे अधिक पूजनीय, अतिथि स्वरूप तथा समस्त रथों का नियन्त्रण करने वाले हैं, उन अग्निदेव की आप प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 8.103.10]
Hey Stotas! Agni Dev who is most revered-worshipable amongest the near & dear, like a guest, controls all charoites. Pry to him.
उदिता यो निदिता वेदिता वस्वा यज्ञियो ववर्तति।
दुष्टरा यस्य प्रवणे नोर्मयो धिया वाजं सिषासतः
विद्वान तथा स्तुत्य अग्नि देव सभी प्रकट अथवा गुप्त धनों को प्रदान करते हैं। उनकी लपटें अधोगामी सागर की तरंगों के समान बड़ी विकराल हैं। उन अग्निदेव की आप प्रार्थना करें।[ऋग्वेद 8.103.11]
Enlightened, worshiped Agni Dev grants all visible and secret wealth. His flames are furious like the waves of ocean. Worship him.
मा नो हृणीतामतिथिर्वसुरग्निः पुरुप्रशस्त एषः। यः सुहोता स्वध्वरः
देवों को आवाहित करने वाले, धन प्रदान करने वाले एवं अनेक मनुष्यों द्वारा प्रार्थनीय अग्नि देव को यज्ञ से दूर न ले जाएँ। वह हमारे प्रिय और अतिथि के समान आगमन करने वाले हैं।[ऋग्वेद 8.103.12]
Do not take away Agni Dev, who is invoked by the demigods-deities, grants wealth, worshiped by several humans. He arrives-invokes, is dear to us and our guest.
मो ते रिषन् ये अच्छोक्तिभिर्वसोऽग्ने केभिश्चिदेवैः।
कीरिश्चिद्धि त्वामीट्टे दूत्याय रातहव्यः स्वध्वरः
हे अग्नि देव! जो यजमान अपनी उत्तम वाणियों तथा श्रेष्ठ साधनों के द्वारा आपकी प्रार्थना करते हैं, वे कभी दुःखी नहीं होते। यज्ञ में आहुति प्रदान करने वाले यजमान आपकी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 8.103.13]
Hey Agni Dev! The Ritviz who worship you in excellent voice with best means are never pained-troubled. Ritviz making offerings in the Yagy pray to you. 
आग्ने याहि मरुत्सखा रुद्रेभिः सोमपीतये। सोभर्या उप सुष्टुतिं मादयस्व स्वर्णर॥
हे अग्नि देव! आप हमारे यज्ञस्थल पर सोमरस के पान के लिए अपने मित्र मरुतों के पाथ पधारें। हे अग्निदेव! मुझ सोभरि ऋषि की प्रार्थनाओं को ग्रहण करके आप प्रसन्न हों।[ऋग्वेद 8.103.14]
Hey Agni Dev! Arrive at the Yagy site with your friends Marud Gan to drink Somras. Accept my-Soubhari Rishi prayers and become happy.
परम पिता परब्रह्म परमेश्वर की असीम कृपा से आज 29.06.2024, दिन शनिवार को नोयडा में, ऋग्वेद के अध्याय 8 का अंग्रेजी अनुवाद पूरा हुआ। गणपति, माँ भगवती सरस्वती भगवान् वेदव्यास की कृपा से इसका संपादन हुआ। 
इसे मैं अपने पितृगणों, परदादा-परदादी, दादा-दादी, अम्मा-पिताजी को समर्पित करता हूँ। 
यह कार्य मेरे पुत्र प्रशान्त भारद्वाज की प्रेरणा और प्रोत्साहन और मेरी पत्नी श्री मति मिथिलेश भारद्वाज के निरन्तर सहयोगवश संपन्न हुआ।
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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)
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