#RIGVED (सूक्त 7.1-104) #ऋग्वेद
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अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं नीराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (1) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रावरुण; देवता :- अग्नि; छन्द :- विराट्, त्रिष्टुप्।
अग्निं नरो दीधितिभिररण्योर्हस्तच्युती जनयन्त प्रशस्तम्।
दूरेदृशं गृहपति मथर्युम्॥
नेता ऋत्विक लोग प्रशस्त दूर से परिलक्षित होने वाले, गृहस्वामी और गतिशील अग्नि देव को दो काष्ठों से हाथों और अँगुलियों के द्वारा उत्पन्न करते हैं।[ऋग्वेद 7.1.1]
The head Ritviz evolve smashing, dynamic fire, which can be seen through a distance, with two woods by hands and fingers.
तमग्निमस्ते वसवो न्यृण्वन्त्सुप्रतिचक्षमवसे कुतश्चित्।
दक्षाय्यो यो दम आस नित्यः॥
जो अग्नि देव गृह में प्रतिदिन पूजनीय हैं, उन्हीं सुदृश्य अग्नि देव को सब प्रकार के भय से मुक्त करने के लिए वसिष्ठगण ने गृह में स्थापित किया।[ऋग्वेद 7.1.2]
Vashishth Gan established daily worshipable, dashing Agni Dev who relieves every one of fear, in the house.
प्रेद्धो अग्ने दीदिहि पुरो नोऽजस्त्रया सूर्म्या यविष्ठ।
त्वां शश्वन्त उप यन्ति वाजाः॥
हे तरुणतम अग्नि देव! भली-भाँति प्रज्वलित होकर सतत ज्वाला के साथ हमारे सामने प्रदीप्त होवें। ये आहुतियाँ निरन्तर आपको प्रदान की जा रही हैं।[ऋग्वेद 7.1.3]
Hey youngest Agni Dev! Having lit properly with continuous flames, shine before us. These offerings are continuously made for you.
प्र ते अग्नयोऽग्निभ्यो वरं निः सुवीरासः शोशुचन्त द्युमन्तः।
यत्रा नरः समासते सुजाताः॥
सुजन्मा नेता या ऋत्विक लोग जिन अग्नि देव के पास बैठते हैं, वह लौकिक अग्नि से अधिक दीप्तिमान, कल्याणवाही, पुत्र-पौत्र प्रद और विशेष रूप से दीप्ति प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 7.1.4]
Well born-Ritviz, sit in front of Agni Dev which is worldly, shining, grants sons & grandsons.
दा नो अग्ने धिया रयिं सुवीरं स्वपत्यं सहस्य प्रशस्तम्।
न यं यावा तरति यातुमावान्॥
हे अभिभव निपुण अग्नि देव! हिंसक शत्रु जिसका अपहरण न कर सके, ऐसी कल्याणकर, पुत्र-पौत्र प्रद और सुन्दर सन्तति से युक्त धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.1.5]
अभिभव :: तिरस्कार, अपयश, पराजय, अनादर, अनहोनी बात, विलक्षण घटना, प्राबल्य, अधिकता; overpowering defeating, insulting.
Expert in over powering the enemy, hey Agni Dev! Grant us such wealth which can not be snatched by the enemy, beneficial, along with beautiful sons & grandsons.
उप यमेति युवतिः सुदक्षं दोषा वस्तोर्हविष्मती घृताची।
उप स्वैनमर मतिर्वसूयुः॥
हव्य युक्ता युवती जुहू कुशल अग्नि के पास दिन और रात में आती है। स्वकीय दीप्ति धनाभिलाषी होकर उसके निकट आती हैं।[ऋग्वेद 7.1.6]
जुहू :: पलाश की लकड़ी का बना हुआ एक प्रकार का अर्ध चंद्राकार यज्ञ-पात्र, पूर्व दिशा; a pot made of Butea wood used in Yagy performances, kept near the Yagy Vedi.
Young woman come to Agni Dev possessing a Butea pot full of offerings, day & night, desirous of wealth.
विश्वा अग्नेऽप दहारातीर्येभिस्तपोभिरदहो जरूथम्।
प्र निस्वरं चातयस्वामी वाम्॥
हे अग्नि देव! जिस तेज से आप कटुभाषी राक्षसों को जलाते हैं, उसी तेज के बल से सारे शत्रुओं को जलावें और उपताप दूर करके रोगों को नष्ट करें।[ऋग्वेद 7.1.7]
कटुभाषी :: कड़वी बात बोलने-कहने वाला, दुर्वचन; rude, scurrilous, harsh.
Hey Agni Dev! The aura with which you burn the demons speaking harsh words, burn all the enemies and remove the diseases with that radiance.
आ यस्ते अग्न इधते अनीकं वसिष्ठ शुक्र दीदिवः पावक।
उतो न एभिः स्तवथैरिह स्याः॥
हे श्रेष्ठ, शुभ्र, दीप्त और पावक अग्नि देव! जो आपको प्रज्वलित करते हैं, उन्हीं के सदृश हमारे इस स्तोत्र से भी प्रसन्न होकर इस यज्ञ में स्थित रहें।[ऋग्वेद 7.1.8]
Hey excellent, bright, radiant and burning, Agni Dev! You should become happy like those who ignite you, become happy with this Strotr and stay in this Yagy.
वि ये ते अग्ने भेजिरे अनीकं मर्ता नरः पित्र्यासः पुरुत्रा।
उतो न एभिः सुमना इह स्याः॥
हे अग्नि देव! जिन पितृ हितैषी और मनुष्यों ने आपके तेज को अनेक देशों में विभक्त किया, उन्हीं के समान हमारे इस स्तोत्र से प्रसन्न होकर इस यज्ञ में निवास करें।[ऋग्वेद 7.1.9]
Hey Agni Dev! You should be happy with us like those who look after the welfare of their parents; become happy with this Strotr and stay in the Yagy.
इमे नरो वृत्रहत्येषु शूरा विश्वा अदेवीरभि सन्तु मायाः।
ये मे धियं पनयन्त प्रशस्ताम्॥
जो मनुष्य मेरे श्रेष्ठ कर्म की स्तुति करते हैं, वही वीर नेता संग्रामों में समस्त आसुरी माया को नष्ट करके विजयी होते हैं।[ऋग्वेद 7.1.10]
Those brave humans who worship-pray my excellent endeavours, destroy the cast-spell of the demons and become victorious.
मा शूने अग्ने नि षदाम नृणां माशेषसोऽवीरता परि त्वा।
प्रजावतीषु दुर्यासु दुर्य॥
हे अग्नि देव! हम शून्य गृह में नहीं रहेंगे; दूसरे के गृह में भी नहीं रहेंगे। हे गृह के हितैषी अग्नि देव! हम पुत्र से हीन-रहित और वीरता से रहित हैं। आपकी प्रार्थना करते हुए हम प्रजा से सम्पन्न गृह में निवास करें।[ऋग्वेद 7.1.11]
Hey Agni Dev! We will do not reside either in an empty house or the house belonging to others. We neither have son nor are we brave. By virtue of your grace; let us reside in a house with other people.
यमश्वी नित्यमुपयाति यज्ञं प्रजावन्तं स्वपत्यं क्षयं नः।
स्वजन्मना शेषसा वावृधानम्॥
जिस यज्ञाश्रय गृह में अश्व वाले अग्नि देव नित्य जाते हैं, हमें वही सेवक आदि से युक्त, सुन्दर सन्तान वाले तथा और सजात पुत्र के द्वारा वर्द्धमान गृह प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.1.12]
Grant us the Yagy house which is visited Agni Dev riding horse, having servants-slaves, beautiful-handsome progeny and prosperity.
पाहि नो अग्ने रक्षसो अजुष्टात्पाहि धूर्तेरररुषो अघायोः।
त्वा युजा पृतनायूँरभि ष्याम्॥
हमें अप्रीतिकर राक्षसों से बचावें। अदाता और पापी हिंसक से बचावें। हम आपकी सहायता से सेना के अभिलाषी व्यक्ति को पराजित करें।[ऋग्वेद 7.1.13]
Protect us from the notorious demons, sinful & violent people who do not donate. Let us defeat the person desirous of having army.
सेदग्निरग्नीरँत्यस्त्वन्यान्यत्र वाजी तनयो वीळुपाणिः।
सहस्रपाथा अक्षरा समेति॥
बलवान, दृढ़हस्त, प्रभूत अन्न वाला हमारा पुत्र क्षय रहित स्तोत्र द्वारा जिस अग्नि देव की सेवा करता है, वही अग्नि देव दूसरे की अग्नि को जाग्रत करें।[ऋग्वेद 7.1.14]
Agni Dev who is served-worshiped with imperishable Strotr by our mighty, strong son, having lots of food grains should ignite fire for others.
सेदग्निर्यो वनुष्यतो निपाति समेद्धारमंहस उरुष्यात्।
सुजातासः परि चरन्ति वीराः॥
जो यज्ञकर्त्ता प्रबोधक को हिंसा और पाप से बचाते हैं और जिनकी सेवा कुलीन वीरगण करते हैं, वही अग्नि देव श्रेष्ठ हैं।[ऋग्वेद 7.1.15]
प्रबोधक :: चेतावनी का, सजग का, शिक्षाप्रद, उपदेशक, शिक्षात्मक, उपदेशपूर्ण; warning, alert, didactic, monitory.
कुलीन :: उत्तम या प्रसिद्ध कुल में उत्पन्न, ख़ानदानी, अभिजात, किसी प्रसिद्ध कुल का व्यक्ति, उत्तम कुल-वंश का वंशज-उत्पन्न व्यक्ति, महान, शानदार, सज्जन, भद्र, अमीर, सज्जन, सौम्य, भद्र, सुशील, मंद, संभ्रान्त; elite, noble, highborn, gentle, descendants of noble-gracious high class family.
Agni Dev, who protects, warn & alert the Yagy performer; is served by the noble brave people.
अयं सो अग्निराहुतः पुरुत्रा यमीशानः समिदिन्थे हविष्मान्।
परि यमेत्यध्वरेषु होता॥
जिन्हें समृद्ध और हविष्मान व्यक्ति भली-भाँति दीप्त करता है और यज्ञ में जिनकी परिक्रमा उन्हीं श्रेष्ठ अग्नि देव को अनेकानेक बार आहुतियाँ प्रदत्त की गयी हैं।[ऋग्वेद 7.1.16]
The prosperous-wealthy person make offerings, shine the fire properly, circumambulate Agni Dev repeatedly in the Yagy.
त्वे अग्न आहवनानि भूरीशानास आ जुहुयाम नित्या।
उभा कृण्वन्तो वहतू मियेधे॥
हे अग्नि देव! धनपति होकर हम आपको लक्ष्य करके नित्य स्तोत्र और उक्थ द्वारा यज्ञ में प्रभूत हव्य प्रदत्त करेंगे।[ऋग्वेद 7.1.17]
उक्थ ::
(1). श्लोक, स्तोत्र, कथन, कथन, उक्ति, स्तोत्र, सूक्ति, साम-विशेष; Strotr, Sukt, spelled, stated, hymns.
(2). भिन्न-भिन्न देवताओं के वैदिक स्तोत्र, प्राण, ऋषभक नाम की अष्टवर्गीय ओषधि; Vaedic Strotr for deities-demigods.
Hey Agni Dev! On becoming rich we will recite Strotr for you everyday and make offerings for demigods-deities in the Yagy.
इमो अग्ने वीततमानि हव्याजस्रो वक्षि देवतातिमच्छ।
प्रति न ईं सुरभीणि व्यन्तु॥
हे अग्नि देव! देवताओं के पास आप सदैव इस अतीव कमनीय हव्य को ले जाएँ और गमन करें। प्रत्येक देवता हमारे इस शोभन हव्य को प्राप्त करने की इच्छा करता है।[ऋग्वेद 7.1.18]
Hey Agni Dev! Carry this extremely beautiful-attractive offering to the demigods-deities. Every demigod-deity desire to have our beautiful offerings.
मा नो अग्नेऽवीरते परा दा दुर्वाससेऽमतये मा नो अस्यै।
मा नः क्षुधे मा रक्षस ऋतावो मा नो दमे मा वन आ जुहूर्थाः॥
हे अग्नि देव! हमें निःसन्तान न करना। खराब वस्त्र न देना। हमें कुबुद्धि न देना। हमें भूख न देना। हमें राक्षस के हाथ में न देना। हे सत्यवान अग्नि देव! हमें न गृह में मारना, न वन में मारना।[ऋग्वेद 7.1.19]
Hey Agni Dev! Do not deprive us of our progeny, do not give bad-torn cloths, do not make us wicked, vicious or depraved, do not make us hungry or handover us to demons. Hey truthful Agni Dev! Do not kill us either at home or in the jungle-forest.
नू मे ब्रह्माण्यग्न उच्छशाधि त्वं देव मघवद्भ्यः सुषूदः।
रातौ स्यामोभयास आ ते यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
हे अग्नि देव! हमारे अन्न को विशेष रूप से शोधित करें। हे देव! याज्ञिकों को अन्न दें। हम दोनों (स्तोता और यजमान) आपके दान में स्थित रहें। आप हमें सुरक्षित रखते हुए हमारा कल्याण करें।[ऋग्वेद 7.1.20]
Hey Agni Dev! Purify our food grains specifically. Hey deity! Grant food grains to the Ritviz. Let us (Stotas, hosts) be obelized by your charity. Make us secured and look to our welfare.
त्वमग्ने सुहवो रण्वसंदृक्सुदीती सूनो सहसो दिदीहि।
मा त्वे सचा तनये नित्य आ धङ्मा वीरो अस्मन्नर्यो वि दासीत्॥
हे अग्नि देव! आप सुन्दर आवाहन वाले और रमणीय हैं। शोभन दीप्ति साथ प्रज्वलित होवें। आप हमारे पुत्र को दग्ध न करें, उनकी सदैव रक्षा करते हुए उस वीर पुत्र को दीर्घायु प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.1.21]
Hey Agni Dev! You are beautiful and make invocation beautifully. Lit with bright light. Do not burn our son, always protect him granting him a long life.
मा नो अग्ने दुर्भृतये सचैषु देवेद्धेष्वग्निषु प्र वोचः।
मा ते अस्मान्दुर्मतयो भृमाचिद्देवस्य सूनो सहसो नशन्त॥
हे अग्नि देव! आप सहायक बनकर ऋत्विकों द्वारा प्रज्वलित अग्नि गण से कहें कि वे सुख के साथ हमारा भरण-पोषण करें। हे बल के पुत्र अग्नि देव! आपकी दुर्बुद्धि भ्रम से भी हमें व्याप्त न करें।[ऋग्वेद 7.1.22]
Hey Agni Dev! You should become our helper and ask the Agni Gan evolved by the Ritviz to grow-nurture us. Hey the son of Bal, Agni Dev! Your ill will should never harm us even by mistake.
स मर्तो अग्ने स्वनीक रेवानमर्त्ये य आजुहोति हव्यम्।
स देवता वसुवनिं दधाति यं सूरिरर्थी पृच्छमान एति॥
हे सुतेजा और देवात्मा अग्नि देव! जो मनुष्य आपको हव्य प्रदत्त करता है, वही धनवान होता है। जिसके पास धनाभिलाषी स्तोता जानने की इच्छा से जाते हैं, वही अग्नि देव यजमान की रक्षा करते हैं।[ऋग्वेद 7.1.23]
Hey possessor of auspicious energy, soul of the demigods-deities, Agni Dev! The person who make offerings to you become rich. Agni Dev who is visited by the Stota desirous of riches, protects the Ritviz-hosts.
महो नो अग्ने सुवितस्य विद्वारयिं सूरिभ्य आ वहा बृहन्तम्।
येन वयं सहसावन्मदेमाविक्षितास आयुषा सुवीराः॥
हे अग्नि देव! आप हमारे महान् कल्याण वाले कार्य को जानते हैं। हे बल के पुत्र! हम आपके स्तोता है। जिससे हम अक्षय, पूर्णायु और कल्याणकर पुत्र-पौत्रादि से युक्त होकर प्रसन्न रहें, ऐसा महान् धन हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.1.24]
Hey Agni Dev! You know, who looks after our welfare. Hey son of Bal! We are your Stota. Grant us riches which make us immortal, possess complete age, remain happy with sons & grandsons.
नू मे ब्रह्माण्यग्न उच्छशाधि त्वं देव मघवद्भ्यः सुषूदः।
रातौ स्यामोभयास आ ते यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
हे अग्नि देव! आप हमारे अन्न का भली-भाँति शोधन करें। आप याज्ञिकों को अन्न प्रदान करें। हम दोनों (स्तोता और यजमान) आपके दान में रहें। आप हमें सदा कल्याणकारी रक्षण साधनों द्वारा पालित करें।[ऋग्वेद 7.1.25]
Hey Agni Dev! Purify our food grains properly. Grant food grains to the Ritviz. Let us i.e., both Stota & Ritviz remin under you charity-welfare. You should always nourish us with welfare & protective means.(16.11.2023)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (2) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रावरुण; देवता :- आप्री, सूक्त; छन्द :- त्रिष्टुप्।
जुषस्व नः समिधमग्ने अद्य शोचा बृहद्यजतं धूममृण्वन्।
उप स्पृश दिव्यं सानु स्तूपैः सं रश्मिभिस्ततनः सूर्यस्य॥
अग्नि देव आज हमारी समिधा को ग्रहण करें। यज्ञ के योग्य धुआँ देते हुए अतीव दीप्त होवें। तप्त ज्वालामाला से अन्तरिक्ष का तट प्रदेश स्पर्श करें और सूर्य की किरणों के साथ मिल जावें।[ऋग्वेद 7.2.1]
Let Agni Dev accept our wood for Yagy-Hawan. The woods should ignited producing smoke and bright light. Let the hot flames touch the space boundaries and assimilate in the rays of Sun.
नराशंसस्य महिमानमेषामुप स्तोषाम यजतस्य यज्ञैः।
ये सुक्रतवः शुचयो धियंधाः स्वदन्ति देवा उभयानि हव्या॥
जो सुकर्मा, शुचि और कर्मों के धारक देवतागण सौमिक और हवि संस्थादि; दोनों का भक्षण करते हैं, उनके मध्य में हम स्तोत्र द्वारा यजनीय और नर प्रशस्य अग्नि देव की महिमा की स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 7.2.2]
शुचि :: शुद्ध, पवित्र, साफ़, स्वच्छ; pious, clean, clear.
सौमिक :: सुन्दर, अग्नि के समान शक्तिशाली; beautiful, mighty like fire.
We worship glorious Agni Dev with Strotr, who is admired by the humans & the demigods who perform pious endeavours-rites & consume the offerings.
ईळेन्यं वो असुरं सुदक्षमन्तर्दूतं रोदसी सत्यवाचम्।
मनुष्वदग्निं मनुना समिद्धं समध्वराय सदमिन्महेम॥
हे यजमानों! आप स्तुति योग्य, असुर, सुदक्ष, द्यावा-पृथिवी के बीच दूत, सत्य वक्ता, मनुष्य की तरह मनु द्वारा समिद्ध अग्नि देवता की सदैव पूजा करें।[ऋग्वेद 7.2.3]
Hey hosts! Always worship Agni Dev who acts as an expert, truthful, expert messenger between the earth & heavens like Manu, who worshiped him as humans.
सपर्यवो भरमाणा अभिज्ञु प्र वृञ्जते नमसा बर्हिरग्नौ।
आजुह्वाना घृतपृष्ठं पृषद्वदध्वर्यवो हविषा मर्जयध्वम्॥
सेवाभिलाषी लोग घुटने टेककर पात्रपूर्ण करते हुए अग्नि देव को हव्य के साथ बर्हिदान करते हैं। हे अध्वर्युओं! घृतपृष्ठ और स्थूल बिन्दु से युक्त बर्हि हवन करते हुए उसे प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.2.4]
Humans desirous of serving, bend over their knees, fill the pot with offerings and offer it to Agni Dev. Hey priests! Offer the pot covered with Ghee while performing Hawan.
स्वाध्यो ३ वि दुरो देवयन्तोऽशिश्रयू रथयुर्देवताता।
पूर्वी शिशुं न मातरा रिहाणे समग्रुवो न समनेष्वञ्जन्॥
सुकर्मा, देवाभिलाषी और रथेच्छुक लोगों ने यज्ञ का आश्रय लिया। जैसे गायें बछड़ों को चाटती हैं, वैसे ही चाटने वाले और पूर्वाभिलाषी (जुहू और उपभृति) को अध्वर्युगण नदी की तरह यज्ञ में सिक्त करते हैं।[ऋग्वेद 7.2.5]
सिक्त :: सींचा हुआ, गीला; moistened, soaked.
People performing pious deeds, desirous of invoking demigods-deities and requesting for charoite perform Yagy. The manner in which the cows lick the calf, the priests soak the Butea pot in the river in the Yagy.
उत योषणे दिव्ये मही न उषासानक्ता सुदुघेव धेनुः।
बर्हिषदा पुरुहूते मघोनी आ यज्ञिये सुविताय श्रयेताम्॥
युवती, दिव्या, महती, कुशों पर बैठी हुई, बहुस्तुता, धनवती और यज्ञार्हा अहोरात्रि, कामदुधा गौ की तरह कल्याण के लिए हमें आश्रय प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.2.6]
अहोरात्र :: every night.
Grant us asylum like the Kam Dhenu, who is young, radiant, sitting over the Kush grass, worshiped by many, wealthy & desirous of Yagy whole night.
विप्रा यज्ञेषु मानुषेषु कारू मन्ये वां जातवेदसा यजध्यै।
ऊर्ध्वं नो अध्वरं कृतं हवेषु ता देवेषु वनथो वार्याणि॥
हे विप्र और जातघन तथा मनुष्यों के यज्ञ में कर्मकर्ता! यज्ञ करने के लिए मैं आपकी स्तुति करता हूँ। स्तुति पूर्ण हो जाने पर हमारे अकुटिल यज्ञ को देवताओं तक पहुँचायें। देवगण प्रसन्न होकर हमें धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.2.7]
Hey Brahman and performer of Yagy! I worship-pray you for the Yagy. On completion of worship carry our Yagy to the demigods-deities. Let the demigods-deities became happy with us and grant us wealth.
आ भारती भारतीभिः सजोषा इळा देवैर्मनुष्येभिरग्निः।
सरस्वती सारस्वतेभिरर्वाक् तिस्रो देवीर्बर्हिरेदं सदन्तु॥
भारती गण (सूर्य सम्बन्धियों) के साथ भारती पधारें। देवताओं और मनुष्यों के साथ इला भी आवें। सारस्वतों के साथ सरस्वती आवें। ये तीनों देवियाँ आकर इन कुश के आसन पर विराजित हों।[ऋग्वेद 7.2.8]
Let Bharti invoke along with Bharti Gan. Let Ila come along with demigods-deities and humans. Let Saraswati come with the Saraswat. Let these three deities come and occupy the Kush mats.
तन्नस्तुरीपमध पोषयित्नु देव त्वष्टर्वि रराणः स्यस्व।
यतो वीरः कर्मण्यः सुदक्षो युक्तग्रावा जायते देवकामः॥
हे अग्नि रूप त्वष्टा देव! जिससे वीर, कर्मकुशल, बलशाली, सोमाभिषव के लिए प्रस्तर हस्त और देवाभिलाषी पुत्र उत्पन्न हो सकें, आप प्रसन्न होकर हमें वैसा ही रक्षा कुशल और परिकारी वीर्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.2.9]
Hey Twasta Dev a replica of Agni Dev! Grant us sons who are brave, expert in protection & performing duties, mighty, capable of extracting Somras by crushing with stones.
वनस्पतेऽव सृजोप देवानग्निर्हविः शमिता सूदयाति।
सेदु होता सत्यतरो यजाति यथा देवानां जनिमानि वेद॥
हे अग्निरूप वनस्पति! देवताओं को समीप ले आवें। पशु के संस्कारक अग्नि देव वनस्पति देवताओं के लिए हव्य प्रदान करें। वे अग्निदेव ही देवगणों को बुलाने वाला सत्यनिष्ठ यज्ञ करें, क्योंकि वे ही देवताओं की उत्पत्ति के ज्ञाता हैं।[ऋग्वेद 7.2.10]
Hey replica of fire vegetation, Agni Dev! Bring demigods-deities come close to us. Agni Dev preparing animals for the Yagy prepare offerings for the vegetation demigods. Let Agni Dev conduct truthful Yagy for invoking demigods-deities since he is aware of their evolution.
आ याह्यग्ने समिधानो अर्वाङ् इन्द्रेण देवैः सरथं तुरेभिः।
बर्हिर्न आस्तामदितिः सुपुत्रा स्वाहा देवा अमृता मादयन्ताम्॥
हे अग्नि देव! आप प्रदिप्त होकर इन्द्र देव और शीघ्रगामी देवताओं के साथ एक रथ पर आरूढ़ होकर हमारे समक्ष पधारें। सुपुत्र युक्ता माता अदिति हमारे कुश के आसन पर विराजें। नित्य देवगण अग्निरूप स्वाहाकार वाले होकर तृप्ति प्राप्त करें।[ऋग्वेद 7.2.11]
Hey Agni Dev! On being lit, ride the fast moving charoite alongwith Indr Dev & demigods-deities and come to us. Let Mata Aditi the mother of able sons, occupy the Kush Mat. The demigods-deities become replica of Agni Dev and become content-satisfied with the offerings.(17.11.2023)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (3) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रावरुण; देवता :- अग्नि, सूक्त; छन्द :- त्रिष्टुप्।
अग्निं वो देवमग्निभिः सजोषा यजिष्ठं दूतमध्वरे कृणुध्वम्।
यो मर्त्येषु निध्रुविर्ऋतावा तपुर्मूर्धा घृतान्नः पावकः॥
हे देवताओं! जो अग्नि देव मनुष्यों में स्थिर भाव से रहते हैं, जो यज्ञवान, तापक, तेजशाली, धृतान्न सम्पन्न और शोधक हैं, जो याज्ञिकों में श्रेष्ठ हैं और अन्य अग्नि समूह के साथ मिलित होते है, उन्हीं अग्नि देवता को यज्ञ में आप दूत बनावें।[ऋग्वेद 7.3.1]
Hey demigods-deities! Agni Dev who remain calm & quite amongest the humans, is devoted to Yagy, is hot, has food grains with Ghee, is excellent amongest the Yagy performers, combines with other fire groups deserve to be the messenger.
प्रोथदश्वो न यवसेऽविष्यन्यदा महः संवरणाद्व्यस्थात्।
आदस्य वातो अनु वाति शोचिरध स्म ते व्रजनं कृष्णमस्ति॥
अग्नि देव जिस समय अश्व की तरह घास का भक्षण और शब्द करते हुए महान निरोध के साथ वृक्षों में दारुरूप अग्नि अवस्थित रहते हैं, उस समय उनकी दीप्ति प्रवाहित होती है। इसके अनन्तर इनका मार्ग काला हो जाता है।[ऋग्वेद 7.3.2]
Agni Dev makes sound like the horse who makes sound while eating grass, remain present in th trees and glow brightly. Thereafter, his path become black-dark
उद्यस्य ते नवजातस्य वृष्णोऽग्ने चरन्त्यजरा इधानाः।
अच्छा द्यामरुषो धूम एति सं दूतो अग्न ईयसे हि देवान्॥
हे अग्नि देव! आपकी नवजात और वर्षक आपकी जो अजर ज्वाला प्रज्वलित होकर ऊपर उठती हैं, उसका रोचक धूम द्युलोक में जाता है और वहाँ जाकर देवताओं को तुष्ट (प्रसन्न ) करता है।[ऋग्वेद 7.3.3]
Hey Agni Dev! Your newly evolved flame rise up and its smoke reaches the heavens where it grants satisfaction-happiness to the demigods-deities.
वि यस्य ते पृथिव्यां पाजो अश्रेत्तृषु यदन्ना समवृक्त जम्भैः।
सेनेव सृष्टा प्रसितिष्ट एति यवं न दस्म जुह्वा विवेक्षि॥
हे अग्नि देव! जिस समय आप दाँतों से काष्ठादि अन्नों का भक्षण करते हैं, उस समय आपका तेज पृथ्वी में मिल जाता है। सेना की तरह विमुक्त होकर आपकी ज्वाला जाती है। अग्नि देव आप अपनी ज्वाला से जौ की तरह काष्ठ आदि का भक्षण करते हैं।[ऋग्वेद 7.3.4]
Hey Agni Dev! When you catch hold the woods with your teeth and eat them, your energy assimilate in the earth. Your flames are free like the army. You eat the wood like barley with your flames.
तमिद्दोषा तमुषसि यविष्ठमग्निमत्यं न मर्जयन्त नरः।
निशिशाना अतिथिमस्य योनौ दीदाय शोचिराहुतस्य वृष्णः॥
तरुण अतिथि की तरह पूज्य अग्नि देव की उनके स्थान पर रात और दिन में पूजा करते हुए मनुष्य सदागामी अश्व की तरह इनकी उपासना या अर्चना करते हैं। आहूत और अभीष्टवर्षी अग्निदेव की शिखा प्रदीप्त होती है।[ऋग्वेद 7.3.5]
Agni Dev is worshiped day & night like a young guest and the humans dynamic horses. On being worshiped & evolved, the flames of Agni Dev who accomplish desires, glow.
सुसंदृक्ते स्वनीक प्रतीकं वि यद्रुक्मो न रोचस उपाके।
दिवो न ते तन्यतुरेति शुष्मश्चित्रो न सूरः प्रति चक्षि भानुम्॥
हे सुन्दर तेज वाले अग्नि देव! जिस समय आप सूर्य की तरह समीप में देदीप्यमान होते हैं, उस समय आपका रूप दर्शनीय हो जाता है। अन्तरिक्ष से आपका तेज बिजली की तरह निकलता है। दर्शनीय सूर्य देव के सदृश आप भी स्वयं अपना प्रकाश करते हैं।[ऋग्वेद 7.3.6]
दर्शनीय :: प्रसिद्ध, मशहूर; beautiful, scenic, notable.
Hey possessor of beautiful radiance Agni Dev! You become beautiful-scenic when you shine like the Sun nearby. Your aura appear like the lightening from the space. You possess your light like Sury Dev-Sun.
यथा वः स्वाहाग्नये दाशेम परीळाभिर्धृतवद्भिश्च हव्यैः।
तेभिर्नो अग्ने अमितैर्महोभिः शतं पूर्भिरायसीभिर्नि पाहि॥
हे अग्नि देव! जिस प्रकार हम लोग गव्य और घृत युक्त हव्य के द्वारा आपको हवि प्रदान करते हैं, हे अग्नि देव! आप भी उसी प्रकार असीम तेजोबल के द्वारा अपरिमित लौहमय अथवा सुवर्णमय पुरियों द्वारा हमारी रक्षा करते हैं।[ऋग्वेद 7.3.7]
गव्य :: गौ से प्राप्त होने वाले पदार्थ दूध, दही, घी, गोबर, गोमूत्र; Cow products :- milk, curd, Ghee, dung and urine.
Hey Agni Dev! When we make offerings for you made of cow products mixed with Ghee, you protect us with your unlimited energy from the unlimited abodes (of demons) made of Iron & Gold.
या वा ते सन्ति दाशुषे अधृष्टा गिरो वा याभिर्नृवतीरुरुष्याः।
ताभिर्नः सूनो सहसो नि पाहि स्मत्सूरीञ्जरितॄञ्जातवेदः॥
हे बल पुत्र और जात धन अग्नि देव! आप दानशील हैं, आपकी जो शिखाएँ हैं और जिन वाक्यों द्वारा पुत्रवान प्रजागण की आप रक्षा करते हैं, इन दोनों से हमारी रक्षा करें। प्रशस्त और हव्यदाता स्तोताओं की रक्षा करें।[ऋग्वेद 7.3.8]
Hey Agni Dev, son of Bal! You are a donor. Your flames protect the populace having sons, protect us as well. Protect the worthy Stotas making offerings.
निर्यत्पूतेव स्वधितिः शुचिर्गात्स्वया कृपा तन्वा रोचमानः।
आ यो मात्रोरुशेन्यो जनिष्ट देवयज्याय सुक्रतुः पावकः॥
जिस समय विशुद्ध अग्निदेव अपने शरीर द्वारा कृपा वश और रोचक होकर तीक्ष्ण फरसे की तरह काष्ठ से निकलते हैं, उस समय वे यज्ञ के योग्य होते हैं। सुन्दर, सुकृती और शोधक अग्नि देव मातृरूप दो काष्ठों से उत्पन्न हुए हैं।[ऋग्वेद 7.3.9]
When Agni Dev evolves out of his body from the sharp Farsa (a kind of weapon-axe) due to mercy, he is worshipable. Beautifully shaped Agni Dev evolves out of two pieces of motherly wood by rubbing them.
एता नो अग्ने सौभगा दिदीह्यपि क्रतुं सुचेतसं वतेम।
विश्वा स्तोतृभ्यो गृणते च सन्तु यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
हे अग्नि देव! हमें यही सुन्दर धन प्रदान करें। हम याज्ञिक और विशुद्धान्तकरण पुत्र प्राप्त कर सकें। समस्त धन हम उद्गाताओं और स्तोताओं को प्राप्त है। आप सभी प्रकार से हम सभी का कल्याण करें।[ऋग्वेद 7.3.10]
Hey Agni Dev! Grant us glorious wealth here. Let us have sons devoted to Yagy with pure-pious innerself. All sorts of wealth is available to us-the Stotas & Udgatas i.e., the singers of Sam Ved. Resort to our welfare-benefits in all manners.(18.11.2023)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (4) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रावरुण; देवता :- अग्नि; छन्द :- पंक्ति, त्रिष्टुप्।
प्र वः शुक्राय भानवे भरध्वं हव्यं मतिं चाग्नये सुपूतम्।
यो दैव्यानि मानुषा जनूंष्यन्तर्विश्वानि विद्मना जिगाति॥
हे याजकों! आप शुभ्र और दीप्त अग्नि देव को शुद्ध हव्य और स्तुति प्रदान करें। अग्नि देव देवताओं और मनुष्यों के समस्त पदार्थों के मध्य बुद्धि द्वारा गमन करते हैं।[ऋग्वेद 7.4.1]
शुभ्र :: सफ़ेद, गोरा, उजला, धवल, शुद्ध, उज्ज्वल, चमकदार, स्पष्ट, उजला, उज्ज्वल, दीप्तिमान, चमकीला, प्रकाशमान, किरणें फैलानेवाला; white, bright, radiant.
Hey Ritviz! Provide pure offerings and Stuti to bright & radiant Agni Dev. Agni Dev pervades all materials of demigods-deities & humans through intelligence.
स गृत्सो अग्निस्तरुणश्चिदस्तु यतो यविष्ठो अजनिष्ट मातुः।
सं यो वना युवते शुचिदन् भूरी चिदन्ना सिमिदत्ति सद्यः॥
दो काष्ठों (अरणिद्वय) से युवा होकर, अग्नि देव उत्पन्न हुए। इसलिए वही मेधावी अग्नि देव युवा बनें। प्रज्वलित शिखाओं वाले अग्नि देव वनों को जलाते और क्षणमात्र में ही यथेष्ट अन्न का भक्षण करने में सामर्थ्यवान हो जाते हैं।[ऋग्वेद 7.4.2]
मेधावी :: ज्ञानी, तीव्र बुद्धिवाला; brilliant, sagacious.
Youthful Agni Dev evolved out of two woods. He became brilliant-sagacious. He become capable of burning forests with shining flames and consumer of food grains in few moments.
अस्य देवस्य संसद्यनीके यं मर्तासः श्येतं जगृभ्रे।
नि यो गृभं पौरुषेयीमुवोच दुरोकमग्निरायवे शुशोच॥
मनुष्य जिन तेजस्वी अग्नि देव को मुख्य स्थान में प्रतिष्ठित करते हैं और जो पुरुषों द्वारा गृहीत वस्तु की सेवा करते हैं, वही मनुष्यों के लिए शत्रुओं की दुःसेव्य रूप से दीप्ति प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 7.4.3]
दुःसेव्य :: जिसे सम्भलना मुश्किल-कठिन हो; difficult to be managed, intractable.
Agni Dev who is established by the humans at the prime location and serve the desired materials to humans attain brightness from the intractable enemy.
अयं कविरकविषु प्रचेता मर्तेष्वग्निरमृतो नि धायि।
स मा नो अत्र जुहुरः सहस्वः सदा त्वे सुमनसः स्याम॥
कवि, प्रकाशक और अमर अग्नि देव अज्ञानी मनुष्यों के बीच स्थित हैं। हे अग्नि देव! हम आप हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 7.4.4]
Poet, lit and immortal Agni Dev is present amongest the humans. Hey Agni Dev! protect us.
आ यो योनि देवकृतं ससाद क्रत्वा ह्य१ग्निरमृताँ अतारीत्।
तमोषधीश्च वनिनश्च गर्भं भूमिश्च विश्वधायसं बिभर्ति॥
अग्नि देव ने प्रज्ञा द्वारा देवताओं को तारा है; इसलिए वे देवताओं के स्थान पर विराजते हैं। औषधियाँ, वृक्ष, धारक और गर्भ में वर्तमान अग्नि देव को धारण करते हैं; पृथ्वी भी अग्नि देव को धारण करती है।[ऋग्वेद 7.4.5]
Agni Dev protected the demigods-deities through his intelligence-enlightenment, hence he is present at their residence. The earth, medicines, trees and the womb bear Agni Dev.
ईशे ह्य१ग्निरमृतस्य भूरेरीशे रायः सुवीर्यस्य दातोः।
मा त्वा वयं सहसावन्नवीरा माप्सवः परि षदाम मादुवः॥
अग्नि देव अधिक अमृत देने में समर्थ हैं; सुन्दर अमृत देने में समर्थ हैं। हे बली अग्नि देव! हम पुत्रादि से रहित होकर न बैठें; रूप रहित होकर न बैठें; सेवा रहित होकर भी न बैठें।[ऋग्वेद 7.4.6]
Agni Dev is capable of producing more & beautiful elixir-nectar. Hey Mighty Agni Dev! We should not sit idle without sons, beauty and service.
परिषद्यं ह्यरणस्य रेक्णो नित्यस्य रायः पतयः स्याम।
न शेषो अग्ने अन्यजातमस्त्यचेतानस्य मा पथो वि दुक्षः॥
ऋण रहित व्यक्ति के पास यथेष्ट रहता है। इसलिए हम नित्य धन के स्वामी हों। हे अग्नि देव! हमारी सन्तान अन्यजात (अनौरस) न हो। वे मूर्ख के मार्ग का अनुसरण न करे।[ऋग्वेद 7.4.7]
अनौरस :: हरामी, नाज़ायज; bastard, illegitimate son, non jurying, unmourning, forsworn.
A loan free person has sufficient for himself. Hence we should have wealth-money. Hey Agni Dev! We should not have illegitimate sons. They should not follow the idiots-duffers.
नाह ग्रभायारणः सुशेवोऽन्योदर्यो मनसा मन्तवा उ।
अधा चिदोकः पुनरित्स एत्या नो वाज्यभीषाळेतु नव्यः॥
अन्यजात (दत्तक पुत्र) सुखावह होने पर भी उसे पुत्र कहकर ग्रहण नहीं किया जा सकता या नहीं समझा जा सकता; क्योंकि वह फिर अपने ही स्थान पर जा पहुँचता है, इसलिए अन्नवान, शत्रुहन्ता और नवजात शिशु हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.4.8]
Adopted son can not grant comforts-pleasure since he goes back to his real parents. Hence, grant us a newly born son, who has food grains & is a slayer of the enemy.
त्वमग्ने वनुष्यतो नि पाहि त्वमु नः सहसावन्नवद्यात्।
सं त्वा ध्वस्मन्वदभ्येतु पाथः सं रयिः स्पृहयाय्यः सहस्त्री॥
हे अग्नि देव! आप हमें हिंसकों से बचावें। हे बली अग्नि देव! आप हमें पापों से बचावें। निर्दोष अन्न आपके पास जावें। अभिलषणीय हजारों प्रकार के धन हमें प्राप्त हों।[ऋग्वेद 7.4.9]
Hey Agni Dev! Protect us from the violent. Hey mighty Agni Dev! Protect us from sins. Let pure-pious food grains reach you. We should attain desired thousands kind of riches-wealth.
एता नो अग्ने सौभगा दिदीह्यपि क्रतुं सुचेतसं वतेम।
विश्वा स्तोतृभ्यो गृणते च सन्तु यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
हे अग्नि देव! हमें यही सुन्दर धन प्राप्त हों। हमें यज्ञ सेवी और विशुद्धान्त: करण पुत्र प्राप्त हों। हम स्तोताओं को समस्त प्रकार का धन प्राप्त हों। आप लोग सदा हमें कल्याणकारी कार्य के द्वारा पालित करें।[ऋग्वेद 7.4.10]
Hey Agni Dev! We should have this beautiful wealth. We should have Yagy performing son with pure innerself. Let us-the Stotas have all sorts of riches. You should nurse us for performing welfare-services.(20.11.2023)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (5) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रावरुण; देवता :- वैश्वानर; छन्द :- त्रिष्टुप।
प्राग्नये तवसे भरध्वं गिरं दिवो अरतये पृथिव्याः।
यो विश्वेषाममृतानामुपस्थे वैश्वानरो वावृधे जागृवद्भिः॥
जो वैश्वानर अग्नि देव यज्ञ में जागृत हुए समस्त देवताओं के साथ वृद्धि प्राप्त करते हैं, उन्हीं और अन्तरिक्ष तथा पृथ्वी पर गति शील अग्नि देव को लक्ष्य कर स्तुति करें।[ऋग्वेद 7.5.1]
Vaeshwanar Agni Dev grow along with the demigods-deities awakened in the Yagy. Let us worship-pray dynamic Agni Dev over the space-sky and the earth.
पृष्टो दिवि धाय्यग्निः पृथिव्यां नेता सिन्धूनां वृषभः स्तियानाम्।
स मानुषीरिभि विशो वि भाति वैश्वानरो वावृधानो वरेण॥
जो नदियों के नेता, जल वर्षक और पूजित अग्नि देव अन्तरिक्ष और पृथ्वी पर स्थापित हुए हैं, वही वैश्वानर अग्नि देव हव्य द्वारा वर्द्धित होकर मनुष्यों के बीच प्रकाशित हैं।[ऋग्वेद 7.5.2]
Lord of rivers, rain causing and worshipped Agni Dev is present-established in the space-sky and the earth. Vaeshwanar Agni Dev is worshipped and grow by virtue of offerings amongest the humans.
त्वद्भिया विश आयन्नसिक्नीरसमना जहतीर्भोजनानि।
वैश्वानर पूरवे शोशुचानः पुरो यदग्ने दरयन्नदीदेः॥
हे वैश्वानर अग्नि देव! जिस समय आप पुरु के पास दीप्त होकर उनके शत्रुओं की पुरियों को विदीर्ण कर प्रज्वलित हुए, उस समय आपके भय से असित वर्ण प्रजा, परस्पर असमान होकर भोजन का परित्याग करके आई।[ऋग्वेद 7.5.3]
Hey Vaeshwanar Agni Dev! When you ignite near Puru, you destroy the cities-forts of the enemies, the dark complexioned races become afraid, differentiated and reject the food.
तव त्रिधातु पृथिवी उत द्यौर्वैश्वानर व्रतमग्ने सचन्त।
त्वं भासा रोदसी आ ततन्थाजस्त्रेण शोचिषा शोशुचानः॥
हे वैश्वानर अग्नि देव! अन्तरिक्ष, पृथ्वी और द्युलोक आपके लिए प्रीतिजनक कार्य करते हैं। आप सतत प्रकाश द्वारा विभासित होकर अपनी ज्वाला से द्यावा-पृथ्वी को विस्तृत करते हैं।[ऋग्वेद 7.5.4]
Hey Vaeshwanar Agni Dev! Space, earth and heavens work affectionately for you. You enhance the earth & heavens with your flames.
त्वामने हरितो वावशाना गिरः सचन्ते धुनयो घृताचीः।
पति कृष्टीनां रथ्यं रयीणां वैश्वानरमुषसां केतुमह्नाम्॥
हे वैश्वानर अग्नि देव! आप मनुष्यों के स्वामी, धन के नेता और उषा तथा दिन के महान केतु स्वरूप हैं। अश्व गण कामना करके आपकी सेवा करते हैं। पापनाशक और घृतयुक्त वाक्य आपकी सेवा करते हैं।[ऋग्वेद 7.5.5]
Hey Vaeshwanar Agni Dev! You are the lord of humans, leader of the wealth and causative of Usha and the day. The horses desire and serve you. Words which destroy the sins and laced with Ghee.
त्वे असुर्यं १ वसवो न्यृण्वन्क्रतुं हि ते मित्रमहो जुषन्त।
त्वं दस्यूँरोकसो अग्न आज उरु ज्योतिर्जनयन्नार्याय॥
हे मित्रों के पूजयिता अग्नि देव! वसुओं ने आप में बल स्थापित किया; आपके कर्म की सेवा की। आर्य (कर्मनिष्ठ) के लिए अधिक तेज उत्पन्न करते हुए दस्युओं को उनके स्थानों से भगा दिया।[ऋग्वेद 7.5.6]
Hey Agni Dev worshipped by the friends! Vasus established their strength and served you. You produce glow for the Aryans-devoted to endeavours and destabilised the dacoits from their native place.
स जायमानः परमे व्योमन्वायुर्न पाथः परि पासि सद्यः।
त्वं भुवना जनयन्नभि क्रन्नपत्याय जातवेदो दशस्यन्॥
आप दूरस्थ अन्तरिक्ष में सूर्य रूप से प्रकट होकर वायु देव की तरह सबसे पहले सदैव सोमरस का पान करते हैं। हे जातधन अग्नि देव! जल उत्पन्न करते हुए अपत्य की तरह पालनीय व्यक्ति को अभिलाषाएँ देते हुए विद्युतरूप से गर्जन करते हैं।[ऋग्वेद 7.5.7]
You appear at a distant place in the sky as Sun and drink Somras like Vayu Dev first of all. Hey Jatdhan Agni Dev! While producing rains you accomplish the desires of those who are nursed like progeny and make thunderous sound.
तामग्ने अस्मे इषमेरयस्व वैश्वानर द्युमतीं जातवेदः।
यया राधः पिन्वसि विश्ववार पृथु श्रवो दाशुषे मर्त्याय॥
हे सबके वरणीय अग्नि देव! जिस अन्न के द्वारा आप धन की रक्षा करते हैं और हव्यदाता मनुष्य के विस्तृत यश की रक्षा करते हैं, हमें आप वही दीप्तिमान अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.5.8]
Hey Agni Dev worshiped by all! Grant those food grains with which you protect the wealth of the humans who make offerings protecting their honour.
तं नो अग्ने मघवद्भयः पुरुक्षं रयिं नि वाजं श्रुत्यं युवस्व।
वैश्वानर महि नः शर्म यच्छ रुद्रेभिरग्ने वसुभिः सजोषाः॥
हे अग्नि देव! हम हविर्दाताओं को प्रभूत अन्न, धन और श्रवणीय बल प्रदान करें। हे वैश्वानर अग्नि देव! आप रुद्रों और वसुओं के साथ हमें महान सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.5.9]
Hey Agni Dev! Grant sufficient food grains, wealth and might to us, the humans, who make offerings to you. Grant great comforts-pleasure to us the Rudr Gan & Vasu Gan.(21.11.2023)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (6) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रावरुण; देवता :- वैश्वानर; छन्द :- त्रिष्टुप।
प्र सम्राजो असुरस्य प्रशस्ति पुंसः कृष्टीनामनुमाद्यस्य।
इन्द्रस्येव प्र तवसस्कृतानि वन्दे दारुं वन्दमानो विवक्मि॥
मैं पुरियों के भेदकों की वन्दना करता हूँ। वन्दन करके सम्राट, असुर, वीर और मनुष्यों की स्तुति के योग्य तथा बलवान इन्द्र देव की तरह उन्हीं वैश्वानर की स्तुति और कर्मों का कीर्तन करता हूँ।[ऋग्वेद 7.6.1]
I worship those who penetrate various abodes. I worship Vaeshwanar Agni Dev who is the lord of worship-prayers, deserve worship by demons, humans, brave and mighty Indr Dev.
कविं केतुं धासिं भानुमद्रेर्हिन्वन्ति शं राज्यं रोदस्योः।
पुरंदरस्य गीर्भिरा विवासेऽग्नेव्रतानि पूर्व्या महानि॥
अग्नि देवता प्राज्ञ, प्रज्ञापक, पर्वत धारी, दीप्तिशाली, सुखदाता और द्यावा पृथ्वी के राजा है। देवगण उन्हीं अग्नि देव को प्रसन्न करते हैं। मैं पुरी विदारक अग्नि देव के प्राचीन और महान कार्यों की स्तुति द्वारा कीर्ति का गान करता हूँ।[ऋग्वेद 7.6.2]
प्राज्ञ :: बुद्धिमान, समझदार, चतुर, होशियार, ऐसा व्यक्ति) जिसने अध्ययन द्वारा बहुत अधिक ज्ञान प्राप्त किया हो, चतुर व्यक्ति, विद्वान व्यक्ति, जीवात्मा; scholar, enlightened, clever, intelligent.
Vaeshwanar Agni Dev is the king of enlightened, scholars, wears mountains, aurous-radiant, comforting-pleasurous, the earth & heavens. The demigods-deities make him happy. I sing the glory of Agni Dev who destroys the forts-cities & perform the great deals.
न्यक्रतून् ग्रथिनो मृध्रवाचः पणीरँश्रद्धाँ अवृधाँ अयज्ञान्।
प्रप्र तान्दस्यूँरग्निर्विवाय पूर्वश्चकारापराँ अयज्यून्॥
अग्नि देव यज्ञशून्य, जल्पक, हिंसित वचन, श्रद्धा रहित, वृद्धि शून्य और यज्ञ रहित पणिनायक दस्युओं को दूर करें। अग्नि देव यज्ञ न करने वाले को प्रगति रहित बना देते हैं।[ऋग्वेद 7.6.3]
जल्पक :: कहने वाला, बकवादी, वाचाल, मिथ्या तर्क-वितर्क करनेवाला; chatterer, false argumentative.
पणि :: दस्यु; demons, dacoits, stake, wager.
Let Agni Dev repel the dacoits-those who do not perform Yagy, chatterer-false argumentative, violent, without faith, growthless, leader of the stake wagers. Agni Dev stall the progress of those who do not conduct Yagy.
यो अपाचीने तमसि मदन्तीः प्राचीश्चकार नृतमः शचीभिः।
तमीशानं वस्वो अग्निं गृणीषेऽनानतं दमयन्तं पृतन्यून्॥
नेतृतम अग्नि देव ने अप्रकाशमान अन्धकार में निमग्न प्रजा को प्रसन्न करते हुए प्रज्ञा द्वारा प्रजा को सरल गामिनी किया। मैं उन्हीं धनपति, अनत और योद्धाओं का दमन करने वाले अग्नि देव की स्तुति करता हूँ।[ऋग्वेद 7.6.4]
अनत :: पाप, गुनाह, दोष, खराबी, हत्या, हलाकी, मेहनत-मशक्कत, श्रम, तबाही, वर्बादी, फ़साद, झगड़ा; tilted, inclination, inclined.
I worship the leader Agni Dev who directed the populace present in darkness to follow simple route. I worship Agni Dev who is wealthy, tilted and decline the warriors.
यो देह्यो ३ अनमयद्वधस्नैर्यो अर्यपलीरुषसश्चकार।
स निरुध्या नहुषो यह्वो अग्निर्विशश्चक्रे बलिहृतः सहोभिः॥
जिन्होंने आसुरी विद्या को आयुध से हीन किया और जिन्होंने सूर्य पुत्री उषा की सृष्टि की, उन्हीं अग्रि देव ने प्रजा को बल द्वारा रोककर नहुष राजा को कर दाता बनाया।[ऋग्वेद 7.6.5]
Agni Dev made the demonic weapon less, created Usha, obstructed the populace forcibly and made king Nahush pay taxes.
यस्य शर्मन्नुप विश्वे जनास एवैस्तस्थुः सुमतिं भिक्षमाणाः।
वैश्वानरो वरमा रोदस्योराग्निः ससाद पित्रोरुपस्थम्॥
समस्त मनुष्य सुख के लिए जिनकी कृपा पाने के लिए अर्थ हव्य के साथ उपस्थित होते हैं, वहीं वैश्वानर अग्रिदेव पितृ-मातृ तुल्य द्यावा-पृथिवी के बीच स्थित अन्तरिक्ष में आये हैं।[ऋग्वेद 7.6.6]
All humans present them selves with offerings before Vaeshwanar Agni Dev to seek his blessings, who came in between earth & heavens who are like his parents.
आ देवो ददे बुध्न्या ३ वसूनि वैश्वानर उदिता सूर्यस्य।
आ समुद्रादवरादा परस्मादाग्निर्दद दिव आ पृथिव्याः॥
वैश्वानर अग्नि देव सूर्य देव के उदय होने पर अन्तरिक्ष के अन्धकार को हर लेते हैं। अग्नि देव निम्नस्थ अन्तरिक्ष का अन्धकार ग्रहण करते हैं। वे पर समुद्र से द्युलोक और पृथ्वी से अन्धकार समाप्त करते हैं।[ऋग्वेद 7.6.7]
Vaeshwanar Agni Dev eliminates-removes darkness of space when the Sun rises. He accepts the darkness of the lowest space. He eliminates the darkness of the earth & heavens.(29. 11.2023)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (7) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- अग्नि; छन्द :- त्रिष्टुप्।
प्र वो देवं चित्सहसानमग्निमश्वं न वाजिनं हिषे नमोभिः।
भवा नो दूतो अध्वरस्य विद्वान्त्मना देवेषु विविदे मितद्रुः॥
हे अग्नि देव! आप राक्षसादिकों के अभिभविता और अश्व की तरह वेगशाली हैं। आप विद्वान हैं। हमारे यज्ञ के दूत बनें। आप स्वयं देवताओं में "दग्धद्रुम" नाम से विख्यात हैं।[ऋग्वेद 7.7.1]
अभिभविता :: supreme.
दग्धद्रुम :: वृक्ष, पेड़ को जलाने वाला ; one who burn the trees.
Hey Agni Dev! You are supreme amongest the demons etc. and rapid, run like the horse. Become our ambassador in the Yagy. You are famous amongest the demigods & deities, as the one who burn the forests-trees.
आ याह्यग्ने पथ्या३अनु स्वा मन्द्रो देवार्नो सख्यं जुषाणः।
आ सानु शुष्मैर्नदयन्पृथिव्या जम्भेभिर्विश्वमुशधग्वनानि॥
हे अग्नि देव! आप स्तुति योग्य हैं और देवताओं के साथ आपकी मित्रता है। आप अपने तेजोबल से पृथ्वी के तट प्रदेश को शब्दायमान करते हुए अपनी ज्वालाओं से सारे वनों को जलाकर अपने मार्ग से आवें।[ऋग्वेद 7.7.2]
Hey Agni Dev! You deserve worship. You are friendly with the demigods-deities. You burn the forests over the terminal regions of the earth with your your flames making sound by your radiance.
प्राचीनो यज्ञः सुधितं हि बर्हिः प्रीणीते अग्निरीळितो न होता।
आ मातरा विश्ववारे हुवानो यतो यविष्ठ जज्ञिषे सुशेवः॥
हे तरुणतम अग्नि देव! जिस समय आप सुन्दर सुख देने वाले होकर उत्पन्न होते हैं, उस समय यज्ञ किया जाता है और कुश रखा जाता है। स्तुति योग्य अग्नि और होता तृप्त होते हैं और सबके लिए स्वीकरणीय मातृभूत द्यावा-पृथ्वी बुलाई जाती हैं।[ऋग्वेद 7.7.3]
Hey youngest Agni Dev! Yagy is conducted when you evolve & become comforting. Kush is placed right then. Agni deserving worship and the Hota become content and heavens & earth remembered by all are invited
सद्यो अध्वरे रथिरं जनन्त मानुषासो विचेतसो य एषाम्।
विशामधायि विश्पतिर्दुरोणे ३ ग्निर्मन्द्रो मधुवचा ऋतावा॥
विद्वान लोग यज्ञ में अग्नि देव को तत्काल उत्पन्न करते हैं। जो इनका हव्य वहन करते हैं, वहीं विश्वपति, मादक, मधुवचन और यज्ञवान अग्नि देव मनुष्यों के गृहों में निवास करते हैं।[ऋग्वेद 7.7.4]
The learned-enlightened evolve immediately. Lord of the world who bear the offering is toxicating, speak lovely words and reside in the houses of humans.
असादि वृतो वह्निराजगन्वानग्निर्ब्रह्मा नृषदने विधर्ता।
द्यौश्च यं पृथिवी वावृधाते आ यं होता यजति विश्ववारम्॥
जिन अग्नि देव को द्युलोक और पृथ्वी वर्द्धित करती है और जिन विश्व स्वीकरणीय अग्नि देव का होता यज्ञ करता है, वही हव्य वाहक ब्रह्मा और सबके धारक अग्नि देव द्युलोक से आकर मनुष्यों के गृहों में विराजमान हैं।[ऋग्वेद 7.7.5]
Agni Dev who grow-support the heavens & the earth and acceptable to all's Hota perform the Yagy. Brahma Ji and Agni Dev who support the humans come from the heavens and reside in their houses.
एते द्युम्नेभिर्विश्वमातिरन्त मन्त्रं ये वारं नर्या अतक्षन्।
प्र ये विशस्तिरन्त श्रोषमाणा आ ये मे अस्य दीधयन्नृतस्य॥
जिन मनुष्यों ने यथेष्ट मन्त्र का संस्कार किया, जो श्रवणेच्छु होकर वर्द्धित करते हैं और जिन्होंने सत्य भूत अग्नि देव को प्रज्वलित किया, वे अन्न द्वारा हमारा सभी प्रकार से पोषण करते हैं।[ऋग्वेद 7.7.6]
Those humans who used the desired Mantr, became eager to grow-ignite truthful fire, nourish us with all sorts of food grains.
नू त्वामग्न ईमहे वसिष्ठा ईशानं सूनो सहसो वसूनाम्।
इर्षे स्तोतृभ्यो मघवद्भय आनड्यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
हे बल के पुत्र अग्निदेव! आप वसुओं के ईश हैं। हम सब वसिष्ठ गण आपके स्तोता है। आप स्तोता और हविष्मान को सुरक्षा प्रदान करते हुए अन्नादि से परिपूर्ण करें।[ऋग्वेद 7.7.6]
हविष्मान :: एक ऋषि जिनका उल्लेख महाभारत में है। महाभारत सभा पर्व के अनुसार यह एक प्राचीन महर्षि का नाम है, ये देवराज इन्द्र की सभा में रहकर उनकी उपासना करते थे।
Hey son of Bal Agni Dev! You are the lord of the Vasus. We the descendants of Rishi Vashisth are your Stotas. You should protect Rishi Havishyman & the Stotas granting sufficient food grains.(30.11.2023)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (8) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- अग्नि; छन्द :- त्रिष्टुप।
इन्धे राजा समर्यो नमोभिर्यस्य प्रतीकमाहुतं घृतेन।
नरो हव्येभिरीळते सबाध आग्निरग्र उषसामशोचि॥
जिन अग्नि देव का रूप घृत से आहूत होता है और हव्य के साथ बाधा युक्त होकर जिनकी स्तुति विद्वान लोग करते हैं, वही राजा और स्वामी अग्नि देव स्तुति के साथ प्रज्वलित होते हैं। उषा के समक्ष अग्नि देव दीप्त होते हैं।[ऋग्वेद 7.8.1]
The learned-enlightened worship Agni Dev, who is lord and king, make offerings of Ghee, make offerings on being obstructed, ignites on being prayed. Agni Dev shines in front of Usha.
अयमु ष्य सुमहाँ अवेदि होता मन्द्रो मनुषो यह्नो अग्निः।
वि भा अकः ससृजानः पृथिव्यां कृष्णपविरोषधीभिर्ववक्षे॥
यही होता मादक और विशाल अग्रि देव मनुष्यों द्वारा महान कहे जाते हैं। अग्निदेव दीप्ति फैलाते हैं। ये कृष्ण मार्गगामी अग्निदेव पृथ्वी पर उपस्थित होकर औषधियों द्वारा वृद्धि को प्राप्त होते हैं।[ऋग्वेद 7.8.2]
Intoxicating, large Agni Dev is termed-called great by the humans. Agni Dev spreads light. Agni Dev who follows dark path-zone present over the earth and is grown-nourished by the herbs.
कया नो अग्ने वि वसः सुवृक्तिं कामु स्वधामृणवः शस्यमानः।
कदा भवेम पतयः सुदत्र रायो वन्तारो दुष्टरस्य साधोः॥
हे अग्नि देव! आप किस हवि द्वारा हमारी स्तुति को स्वीकार करेंगे? स्तूयमान होकर आप किस स्वधा को प्राप्त करेंगे? हे शोभन दान वाले अग्नि देव! हमें कब अलभ्य धन प्राप्त होगा और हम कब उसको विभाजित करने में समर्थ होंगे?[ऋग्वेद 7.8.3]
स्तूयमान :: प्रशंसा योग्य, worth praising, steamy.
Hey Agni Dev! Which offering will you accept on our prayers-requests? On being praised, which wood would you accept? Hey Agni Dev making beautiful donation! When will we get rare wealth & when will we be able to divide it?
प्रप्रायमग्निर्भरतस्य शृण्वे वि यत्सूर्यो न रोचते बृहद्भा:।
अभि यः पूरु पृतनासु तस्थौ द्युतानो दैव्यो अतिथिः शुशोच॥
जिस समय ये अग्नि देव सूर्य के समान विशाल प्रतापशाली होकर प्रकाश पाते हैं, उस समय वे यजमान द्वारा प्रसिद्ध होते हैं। जिन्होंने युद्धों में पुरु को पराजित किया, वही दीप्यमान और देवताओं के अतिथि अग्नि देव प्रज्वलित होते हैं।[ऋग्वेद 7.8.4]
When Agni Dev become as great as the Sun and glow, he is famed by the Ritviz. Agni Dev who defeated Puru in the wars, is aurous & the guest of the demigods-deities become ignited.
असन्नित्त्वे आहवनानि भूरि भुवो विश्वेभिः सुमना अनीकैः।
स्तुतश्चिदने शृण्विषे गृणानः स्वयं वर्धस्व तन्वं सुजात॥
हे अग्नि देव! आपको यथेष्ट हव्य प्रदत्त हुआ है। समस्त तेजों के लिए प्रसन्न होकर स्तोताओं का स्त्रोत्र श्रवण करें। आप स्तूयमान होकर स्वयं शरीर वर्द्धित करें।[ऋग्वेद 7.8.5]
Hey Agni Dev! You have received desired-sufficient offerings. Listen to the Strotr of the Stotas. On being praised grow your body.
इदं वचः शतसाः संसहस्त्रमुदग्नये जनिषीष्ट द्विबर्हाः।
शं यत्स्तोतृभ्य आपये भवाति द्युमदमीवचातनं रक्षोहा॥
सौ गौओं के विभागकारी और हजार गौओं से संयुक्त तथा विद्या और कर्म से ऋषि वसिष्ठ ने इस स्तोत्र से अग्नि देव की स्तुति की।[ऋग्वेद 7.8.6]
Rishi Vashishth who separated-divided hundred cows associated with thousand cows, worshiped Agni Dev with this Strotr.
नू त्वामग्न ईमहे वसिष्ठा ईशानं सूनो सहसो वसूनाम्।
इषं स्तोतृभ्यो मघवद्भय आनडड्यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
हे बल पुत्र अग्नि देव! आप वशुओं के स्वामी हैं। वसिष्ठगण आपके स्तोता हैं। आप स्तोता और हविष्मान को सुरक्षा प्रदत्त करते हुए अन्नादि से परिपूर्ण करें।[ऋग्वेद 7.8.7]
Hey son of Bal, Agni Dev! You are the lord of animals. Descendants of Vashishth are your Stotas. Protect the Stotas & Havishyman and grant them sufficient food grains.(01.12.2023)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (9) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- अग्नि; छन्द :- त्रिष्टुप।
अबोधि जार उषसामुपस्थाद्धोता मन्द्रः कवितमः पावकः।
दधाति केतुमुभयस्य जन्तोर्हव्या देवेषु द्रविणं सुकृत्सु॥
अग्नि देव सब प्राणियों के जार, होता, मदयिता, प्राज्ञतम और शोधक हैं। वह उषा के बीच जागृत हुए हैं। वह देवताओं और मनुष्यों की प्रज्ञा धारण करते हैं। वह देवताओं को हव्य और पुण्यात्माओं को धन प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 7.9.1]
जार :: किसी स्त्री के विचार से, वह पर-पुरुष जिसके साथ उसका अनुचित संबंध हो, उपपति, यार, जलाने, नष्ट करने या मारनेवाला; eliminating, destructing, illicit relations, friendly.
मदयिता :: मदोन्मत्त करने वाला; मादक; उत्तेजक, नशा उत्पन्न करने वाला, आनंदित करने वाला; intoxicating, pleasurous.
प्रज्ञा :: बुद्धि, समझ; intelligence, understanding.
Agni Dev is a friend of all living beings, Hota, pleasure granting, enlightened and purifier. He possess the understanding of the demigods-deities and the humans. He grants offerings to the demigods-deities and wealth-money to the pious, virtuous, righteous.
स सुक्रतुर्यो वि दूरः पणीनां पुनानो अर्कं पुरुभोजसं नः।
होता मन्द्रो विशां दमूनास्तिरस्तमो ददृशे राम्याणाम्॥
जिन अग्नि देव ने पणियों का द्वार खोला, वही सुकृती है। वे हमारे लिए बहुत सारी दुग्ध युक्ता और अर्चनीय गौवों का हरण करते हैं। वे देवों को बुलाने वाले, मदयिता और शान्त स्वभाव हैं। ये रात्रि और यजमान का अन्धकार दूर करते हुए देखे जाते हैं।[ऋग्वेद 7.9.2]
सुकृती :: अच्छे कर्म करने वाला; one who perform virtuous jobs.
Agni Dev who opened the door of Pani, is righteous. He abducts all milk yielding, worshipable cows for us. He invites-invokes the demigods-deities quits & pleasurous. He is seen removing the darkness of night and the Ritviz.
अमूरः कविरदितिर्विवस्वान्त्सुसंसन्मित्रो अतिथिः शिवो नः।
चित्रभानुरुषसां भात्यग्रेऽपां गर्भः प्रस्व १ आ विवेश॥
जो मूर्ख नहीं है, विद्वान, अदीन, दीप्तिमान, शोभनगृह से युक्त मित्र, अतिथि और हमारे मङ्गल-विधायक अग्नि देव, विशिष्ट दीप्ति से युक्त होकर उषा के मुख में शोभा पाते और सलिल के गर्भरूप से उत्पन्न होकर औषधियों में प्रवेश करते हैं।[ऋग्वेद 7.9.3]
दीन :: दयनीय दशावाला, ग़रीब, दरिद्र; pitiable, poor.
He who is not idiot, learned, radiant, a friend possessing beautiful home, guest, unpitiable and our well wisher. He appears in the morning and enters the herbal medicine as water.
ईळेन्यो वो मनुषो युगेषु समनगा अशुचज्जातवेदाः।
सुसंदृशा भानुना यो विभाति प्रति गावः समिधानं बुधन्त॥
हे अग्नि देव! आप मनुष्यों के यज्ञ काल में स्तुति योग्य हैं। जातधन अग्नि देव युद्ध में सङ्गत होकर दीप्ति पाते हैं। वे दर्शनीय तेज द्वारा शोभा पाते हैं। स्तुतियाँ प्रज्वलित अग्नि को प्रतिबोधित करती हैं।[ऋग्वेद 7.9.4]
हे अग्नि देव! सभी युगों में तुम्हें महिमा मंडित किया जाता है। तुम, जातवेदा, युद्ध में संलग्न होने पर गौरवशाली होते हो; हमारी स्तुतियाँ प्रज्ज्वलित अग्नि को जगाती हैं। तुम विशिष्ट तेज से चमकते हो।
Hey Agni Dev! You are worshipable during the period of Yagy. Agni Dev glow during the Yagy. Hey omniscient! You become glorious during the war. Our prayers shines you brilliantly.
अग्ने याहि दूत्यं मा रिषण्यो देवाँ अच्छा ब्रह्मकृता गणेन।
सरस्वतीं मरुतो अश्विनापो यक्षि देवान् रत्नधेयाय विश्वान्॥
हे अग्नि देव! आप देवताओं के सामने दूतकार्य के लिए जावें। संघ में रहने वाले हम स्तोताओं का वध न करें। हमें रत्न देने के लिए आप सरस्वती, मरुद्गण, अश्विनी कुमारों, जल आदि समस्त देवताओं का यज्ञ करते हैं।[ऋग्वेद 7.9.5]
Hey Agni Dev! You move to the demigods-deities like a messenger. Do not kill us, residing together-n communities. You perform Yagy for the sake of Maa Saraswati, Marud Gan, Ashwani Kumars, Varun Dev and other demigods-deities; granting us jewels.
त्वामग्ने समिधानो वसिष्ठो जरूथं हन्यक्षि राये पुरन्धिम्।
पुरुणीथा जातवेदो जरस्व यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
हे अग्नि देव! वसिष्ठ आपको प्रज्वलित करते हैं। आप कटुभाषी राक्षसों का वध करें। हे जातवेदा अग्नि देव! आप उनके स्तोत्रों द्वारा देवों को प्रसन्न करें तथा हमारा कल्याण करते हुए हमारा पोषण करें।[ऋग्वेद 7.9.6]
Hey Agni Dev! Vashishth evolve, produce, ignite you. Kill the harsh words speakers. Hey omniscient Agni Dev! You please-make happy the demigods-deities & nourish us adopting welfare measures.(02.12.2023)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (10) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- अग्नि; छन्द :- त्रिष्टुप।
उषो न जारः पृथु पाजो अश्रेद्दविद्युतद्दीद्यच्छोशुचानः।
वृषा हरिः शुचि भाति भासा धियो हिन्वान उशतीरजीगः॥
उषा के जार सूर्य देव की तरह अग्नि देव विस्तीर्ण तेज का आश्रय ग्रहण करते हैं। अत्यन्त दीप्तिमान, कामवर्षी, हव्य प्रेरक और शुद्ध अग्नि देव कर्मों को प्रेरित करके दीप्ति द्वारा प्रकाशित होते हैं। अग्नि देव अभिलाषियों को जागृत करते हैं।[ऋग्वेद 7.10.1]
जार :: किसी स्त्री के विचार से, वह पर-पुरुष जिसके साथ उसका अनुचित संबंध हो, उपपति, यार, जलाने, नष्ट करने या मारनेवाला; eliminating, destructing, illicit relations, friendly.
Agni Dev friendly with Usha, takes shelter-asylum under the aura of Sury Dev. Extremely bright, desires accomplishing, carrier of offerings, pure-pious Agni Dev promote the endeavours and shine brilliantly. Agni Dev motivate desires.
स्व १ र्ण वस्तोरुषसामरोचि यज्ञं तन्वाना उशिजो न मन्म।
अग्निर्जन्मानि देव आ वि विद्वान्द्रवद्दूहूतो देवयावा वनिष्ठः॥
दिन में अग्नि देव उषा के समक्ष ही सूर्य देव की तरह शोभायमान होते हैं। यज्ञ का विस्तार करते हुए ऋत्विक गण माननीय स्तोत्रों का गान करते हैं। विद्वान, देवताओं के दूत रूप अग्नि देव देवताओं के पास जाते हैं और प्राणियों को द्रवित करते हैं।[ऋग्वेद 7.10.2]
Agni Dev is shines in the presence of Usha like the Sun-Sury Dev. The Ritviz extend the Yagy and recite glorious Strotr. Enlightened Agni Dev is messenger of the demigods-deities, moves to them and fills the living being with pity-kindness, mercy.
अच्छा गिरो मतयो देवयन्तीरग्निं यन्ति द्रविणं भिक्षमाणाः।
सुसंदृशं सुप्रतीक स्वञ्चं हव्यवाहमरतिं मानुषाणाम्॥
देवाभिलाषी, धन याचक और गतिशील स्तुति रूप वाक्य अग्नि देव के सम्मुख गाये जाते हैं। वे अग्नि देव दर्शनीय, सुरूप, सुन्दर गमनकारी, हव्य वाहक और मनुष्यों के स्वामी है।[ऋग्वेद 7.10.3]
Dynamic stanzas related to desire of wealth-riches and invocation of deities are sung in front of Agni Dev. Agni Dev is beautiful, carrier of offerings and Lord of humans.
इन्द्रं नो अग्ने वसुभिः सजोषा रुद्रं रुद्रेभिरा वहा बृहन्तम्।
आदित्येभिरदितिं विश्वजन्यां बृहस्पतिमृकभिर्विश्ववारम्॥
हे अग्नि देव! आप वसुओं के साथ मिलकर हमारे लिए इन्द्र देवता का आह्वान करें; रुद्रों के साथ संगत होकर महान रुद्र देव का आवाहन करें; आदित्यों के साथ मिलकर संसार की हितैषी माता अदिति को बुलाएँ और स्तुत्य अङ्गिरा लोगों के साथ मिलकर सबके वरणीय बृहस्पति देव का आवाहन करें।[ऋग्वेद 7.10.4]
Hey Agni Dev! You should join Vasu Gan & invoke Indr Dev, invoke Rudr Dev with the Rudr Gan, with Adity Gan invoke Mata Aditi and with worshipable Angira invoke Brahaspati Dev.
मन्द्रं होतारमुशिजो यविष्ठमग्निं विश ईळते अध्वरेषु।
स हि क्षपावाँ अभवद्रयीणामतन्द्रो दूतो यजथाय देवान्॥
होता और तरुण तम अग्नि देव की यज्ञ में अभिलाषी मनुष्य स्तुति करते हैं। अग्नि देव रात्रि में भी प्रकाशित होते हैं। वह देव यज्ञ में हव्य दाता के लिए देवताओं के तन्द्रा रहित दूत है।[ऋग्वेद 7.10.5]
Desirous humans worship-pray Youthful Hota Agni Dev in the Yagy. Agni Dev shines at night as well. He is the messenger of demigods-deities free from laziness-sleep.(03.12.2023)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (11) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- अग्नि; छन्द :- त्रिष्टुप।
महाँ अस्यध्वरस्य प्रकेतो न ऋते त्वदमृता मादयन्ते।
आ विश्वेभिः सरथं याहि देवैर्न्यग्ने होता प्रथमः सदेह॥
हे अग्निदेव! आप यज्ञ के प्रज्ञापक होकर महान हैं, आपके बिना देवता लोग हर्षित अर्थात् प्रसन्न नहीं होते। आप सभी देवताओं के साथ रथ पर आरूढ़ होकर आवे और कुशाओं पर मुख्य होता बनकर विराजें।[ऋग्वेद 7.11.1]
प्रज्ञापक :: सूचित करनेवाला; informant.
Hey Agni Dev! You are informant of the Yagy. The demigods-deities do not become happy without you. Come riding the charoites of the demigods-deities and become the main Hota occupying the main Kush Mat.
त्वामीळते अजिरं दूत्याय हविष्मन्तः सदमिन्मानुषासः।
यस्य देवैरासदो बर्हिरग्नेऽ हान्यस्मै सुदिना भवन्ति॥
हे अग्नि देव! आप गमनशील हैं। हविर्दाता मनुष्य आपकी सदैव दूत कार्य के लिए प्रार्थना करते हैं। जिस यजमान के कुशों पर आप देवताओं के साथ बैठते हैं, उसके आने वाले दिन शुभप्रद होते हैं।[ऋग्वेद 7.11.2]
Hey Agni Dev! You are dynamic. Humans making offerings, always pray to you to deliver the offerings to the Demi Gods-deities. The future of the Ritviz who's the Kush Mat is occupied by you along with the demigods-deities, is bright.
त्रिश्चिदक्तोः प्र चिकितुर्वसूनि त्वे अन्तर्दाशुषे मर्त्याय।
मनुष्वदग्न इह यक्षि देवान्भवा नो दूतो अभिशस्तिपावा॥
हे अग्नि देव! ऋत्विक दिन में तीन बार हव्य दाता मनुष्य के लिए आपके बीच हव्य अर्पित करते हैं। मनु की तरह आप इस यज्ञ में दूत होकर यज्ञ करें और हमें शत्रुओं से बचावें।[ऋग्वेद 7.11.3]
Hey Agni Dev! The Ritviz make offerings thrice in a day, amongest the Hotas making offerings. Like Manu you should act like a messenger of the Yagy and protect us from the enemies.
अग्निरीशे बृहतो अध्वरस्याग्निर्विश्वस्य हविषः कृतस्य।
क्रतुं ह्यस्य वसवो जुषन्ताथा देवा दधिरे हव्यवाहम्॥
अग्नि देव महान यज्ञ के स्वामी हैं; ये सारे संस्कृति हव्यों को स्वामी हैं। वसु लोग इनके कर्म की सेवा करते हैं और देवताओं ने इन्हीं को हव्य वाहक बनाया है।[ऋग्वेद 7.11.4]
Agni Dev is the Lord of the great Yagy and the eternal offerings. Vasus serve him and the demigods-deities have appointed him as the carrier of offerings.
आग्ने वह हविरद्याय देवानिन्द्रज्येष्ठास इह मादयन्ताम्।
इमं यज्ञं दिवि देवेषु घेहि यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
हे अग्नि देव! हव्य का भक्षण करने के लिए देवताओं को बुलावें। इस यज्ञ में इन्द्र देव सहित देवताओं को प्रसन्न करें। इस यज्ञ को द्युलोक में देवताओं के पास ले जावें, जो सदैव स्वस्ति द्वारा हमारा पालन करें।[ऋग्वेद 7.11.5]
Hey Agni Dev! Invoke the demigods-deities for eating the offerings. Please Dev Raj Indr, along with the demigods-deities. Carry this Yagy to the heavens near the demigods-deities who should always nurse us with Swasti.(04.12.2023)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (12) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- अग्नि; छन्द :- त्रिष्टुप।
अगन्म महा नमसा यविष्ठं यो दीदाय समिद्धः स्वे दुरोणो।
चित्रभानुं रोदसी अन्तरुर्वी स्वाहुतं विश्वतः प्रत्यञ्चम्॥
जो अपने गृह में प्रज्वलित होकर दीप्ति पाते हैं, उन्हीं युवा, विस्तीर्ण, द्यावा-पृथ्वी के मध्य में स्थित, विचित्र शिखा वाले, सुन्दर रूप में आहूत और सर्वत्र जाने वाले अग्नि देव के पास हम नमस्कार के साथ गमन करते हैं।[ऋग्वेद 7.12.1]
We salute the young Agni Dev who is broad, present between the earth & heavens, having weird crest, worshiped beautifully, capable of moving every where and shine in the house when ignited.
स मह्ना विश्वा दुरितानि साह्वानग्निः ष्टवे दम आ जातवेदाः।
स नो रक्षिषद्दुरितादवद्यादस्मान्गृणत उत नो मघोनः॥
जातधन अग्नि देव अपनी महिमा द्वारा समस्त पापों का नाश करते हैं। वे यज्ञ गृह में प्रार्थित होते हैं। वे हमें पाप और निश्चित कर्म से बचाते हैं। हम उनकी स्तुति और यज्ञ करते हैं।[ऋग्वेद 7.12.2]
Jat Dhan Agni Dev vanishes all sins by virtue of his glory, majesty. He is worshiped in the Yagy house. He protects us from sins and decided endeavours. We worship and conduct Stuti for him.
त्वं वरुण उत मित्रो अग्ने त्वां वर्धन्ति मतिभिर्वसिष्ठाः।
त्वे वसु सुषणनानि सन्तु यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
हे अग्नि देव! आप ही मित्र और वरुण हैं। वसिष्ठ वंशीय स्तुति द्वारा आपको वर्द्धित करते हैं। आप श्रेष्ठ धन व कल्याणकारी उपायों से हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 7.12.3]
Hey Agni Dev! You are Mitr as well as Varun. Vashishth conduct Stuti for you with his descendants and grow you. Protect us with excellent wealth and welfare means.(05.12.2023)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (13) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- वैश्वानर; छन्द :- त्रिष्टुप।
प्राग्नये विश्वशुचे धियंधेऽसुरघ्ने मन्म धीतिं भरध्वम्।
भरे हविर्न बर्हिषि प्रीणानो वैश्वानराय यतये मतीनाम्॥
सबके उद्दीपक, कर्म के धारक और असुरों का संहार करने वाले अग्नि देव को लक्ष्य कर हम स्तोत्र और कर्म करें। मैं प्रसन्न होकर मनोरथ को पूर्ण करने वाले वैश्वानर अग्नि को लक्ष्य कर यज्ञ में हव्य के साथ स्तुति कर रहा हूँ।[ऋग्वेद 7.13.1]
Let us perform addressing Agni Dev and worshiping him, who lights all, supports endeavours & destroys the demons. I address Vaeshwanar Agni, make offerings in the Yagy and worship-pray him.
त्वमग्ने शोचिषा शोशुचान आ रोदसी अपृणा जायमानः।
त्वं देवाँ अभिशस्तेरमुञ्चो वैश्वानर जातवेदो महित्वा॥
हे अग्नि देव! आपने दीप्ति द्वारा दीप्त और उत्पन्न होकर द्यावा पृथ्वी को पूर्ण किया। हे जात धन वैश्वानर अग्नि देव! अपनी महिमा द्वारा आपने देवताओं की शत्रुओं से रक्षा की।[ऋग्वेद 7.13.2]
Hey Agni Dev! You evolve with your aura and complete the earth & heavens. Hey Jat Dhan Vaeshwanar Agni Dev! You protected the demigods-deities with you glory, majesty.
जातो यदग्ने भुवना व्यख्यः पशून्न गोपा इर्यः परिज्मा।
वैश्वानर ब्रह्मणे विन्द मातुं यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
हे अग्नि देव! आप सूर्य रूप से उत्पन्न हैं व सभी के स्वामी हैं, सर्वत्र गमनशील हैं। जिस प्रकार से गोपालक पशुओं की सुरक्षा करते हैं, उसी प्रकार आप जिस समय भूतों का सन्दर्शन करते हैं, आप निरन्तर हमारा पालन करते हुए कल्याण करें।[ऋग्वेद 7.13.3]
Hey Agni Dev! You evolved from the Sun and is the Lord of everyone, moving all around. The way the protectors-growers of animals protect them, similarly you visualise-perusal the past and continue nurturing us & resort to welfare.
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (14) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- अग्नि; छन्द :- त्रिष्टुप।
समिधा जातवेदसे देवाय देवहूतिभिः।
हविर्भिः शुक्रशोचिषे नमस्विनो वयं दाशेमाग्नये॥
हम हवि वाले हैं। हम समिधा द्वारा जात वेदा अग्नि देव की सेवा करते हैं। देव स्तुति द्वारा हम अग्रि देव की सेवा करेंगे। हव्य द्वारा शुभ्र दीप्ति अग्नि देव की सेवा करेंगे।[ऋग्वेद 7.14.1]
We possess offerings. We serve Jat Veda Agni Dev with Samidha (wood for Yagy-Hawan). We will serve Agni Dev with bright aura-radiance, Stuti-prayers and offerings.
वयं ते अग्ने समिधा विधेम वयं दाशेम सुष्टुती यजत्र।
वयं घृतेनाध्वरस्य होतर्वयं देव हविषा भद्रशोचे॥
हे यजनीय अग्नि देव! समिधा द्वारा हम आपकी सेवा करेंगे। हम स्तुति द्वारा आपकी सेवा करेंगे। हे कल्याणमयी ज्वाला वाले अग्निदेव! हम हव्य द्वारा आपकी सेवा करेंगे।[ऋग्वेद 7.14.2]
Hey worshipable Agni Dev! We will serve you with Samidha. We will serve you with prayers. Hey Agni Dev with beneficial flames! We with serve you with offerings.
आ नो देवेभिरुप देवहूतिमन्ने याहि वषट्कृतिं जुषाणः।
तुयें देवाय दाशतः स्याम यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
हे अग्नि देव! आप हव्य का सेवन करते हुए देवताओं के साथ हमारे यज्ञ में पधारें। आप प्रकाशमान है, हम आपके सेवक बनें। आप सदा हमारा कल्याण करते हुए पालन करें।[ऋग्वेद 7.14.3]
Hey Agni Dev! Come to us along with demigods-deities in the Yagy. You are radiant and we wish to serve you. Always nourish us adopting welfare means.(09.12.2023)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (15) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- अग्नि; छन्द :- गायत्री।
उपसद्याय मीळ्हुष आस्ये जुहुता हविः। यो नो नेदिष्ठमाप्यम्॥
जो अग्नि देव हमारे अत्यधिक निकट रहने वाले मित्र हैं, उन्हीं के समीप बैठने वाले और मनोरथ वर्षक अग्नि देव के लिए उनके मुख में (हम) हव्य देते हैं।[ऋग्वेद 7.15.1]
Agni Dev who remain too close to us is our friend. We make offerings in his mouth. He fulfil-accomplish our desires.
यः पञ्च चर्षणीरभि निषसाद दमेदमे। कविर्गृग गृहपतिर्युवा॥
विद्वान्, गृह पालक और नित्य-युवा अग्नि देव आप पञ्चजनों (चार वर्णों और निषाद) के सामने सभी गृह में प्रतिष्ठित हैं।[ऋग्वेद 7.15.2]
Enlightened, house supporter and always young Agni Dev is established in all the houses, in the presence of all five Varn (Brahman, Kshatriy, Vaeshy, Shudr & Nishad).
स नो वेदो अमात्यमग्नी रक्षतु विश्वतः। उतास्मान् पात्वंहसः॥
वे ही अग्नि देव हमारे मन्त्री हैं। सभी बाधाओं से हमारे धन की रक्षा करते हुए हमें पाप कर्म से बचावें।[ऋग्वेद 7.15.3]
Agni Dev guides us. Let him protect our wealth from all obstacles and sins.
नवं नु स्तोममग्नये दिवः श्येनाय जीजनम्। वस्वः कुविद्वनाति नः॥
हम द्युलोक के बाज पक्षी की तरह शीघ्रगामी अग्नि देव को उद्देश्य कर नया मन्त्र उत्पन्न करते हैं। वे हमें पर्याप्त धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.15.4]
We compose a new Mantr for fast moving Agni Dev like the falcon of heavens. He should grant us sufficient money.
स्पार्दा यस्य श्रियो दृशे रयिर्वीरवतो यथा। अग्रे यज्ञस्य शोचतः॥
यज्ञ के अग्रभाग में देदीप्यमान अग्नि देव की दीप्तियाँ पुत्रवान मनुष्य के धन की तरह नेत्रों को स्पृहणीय होती हैं।[ऋग्वेद 7.15.5]
स्पृहणीय :: प्राप्त करने योग्य, वांछनीय, स्पृहा के योग्य, चाहने योग्य, ललचाने योग्य, covetable, coveted, enviable, preferable, admirable.
The flames of Agni Dev present in the front segment of the Yagy are enviable like the wealth of the one having son, to the eyes.
सेमां वेतु वषट्कृतिमग्निर्जुषत नो गिरः। यजिष्ठो हव्यवाहनः॥
याज्ञिकों के उत्तम हव्य वाहक अग्नि देव इस हव्य को स्वीकार करें और हमारी प्रार्थना श्रवण करें।[ऋग्वेद 7.15.6]
Let the carrier of the offerings of the Ritviz Agni Dev, accept this offering and listen-attend to our prayers.
नि त्वा नक्ष्य विश्पते द्युमन्तं देव धीमहि। सुवीरमग्न आहुत॥
हे समीप जाने योग्य, संसार के स्वामी और यजमानों द्वारा बुलाए गए अग्नि देव! आप प्रकाशमान और सुवीर हैं। हमने आपको स्थापित किया है।[ऋग्वेद 7.15.7]
सुवीर :: बहुत बड़ा वीर या योद्धा; great warrior.
Hey lord of the universe, deserving proximity, invited by the Ritviz, hey Agni Dev! You are a great warrior. We have established you.
क्षप उस्त्रश्च दीदिहि स्वग्नयस्त्वया वयम्। सुवीरस्त्वमस्मयुः॥
आप दिन-रात प्रज्वलित हों। इससे हम शोभन अग्नि वाले होंगे। आप हमारे सुन्दर स्तोत्र से प्रसन्न हों।[ऋग्वेद 7.15.8]
You should be ignited during the day & night. We will possess this bright-lovely fire. You should be happy with us beautiful Strotr.
उप त्वा सातये नरो विप्रासो यन्ति धीतिभिः। उपाक्षरा सहस्त्रिणी॥
हे अग्नि देव! प्रतापी यजमान कर्म द्वारा धन लाभ के लिए आपके पास जाते हैं।[ऋग्वेद 7.15.9]
प्रतापी :: महान, यशस्वी, तेजस्वी, प्रसिद्ध, श्रेष्ठ, श्रद्धास्पद, भव्य, कुलीन, सम्भ्रांत; majestic, glorious, august, aristocratic.
Hey Agni Dev! Glorious Ritviz approach you for attaining wealth through efforts-endeavours.
अग्नी रक्षांसि सेधति शुक्रशोचिरमर्त्यः। शुचिः पावक ईड्यः॥
शुभ्र शिखा वाले अमर, स्वयं शुद्ध, शोधक और स्तुति योग्य अग्नि देव राक्षसों का नाश करते हैं।[ऋग्वेद 7.15.10]
Possessor of bright crest, immortal, auto-self cleansed, cleansing, worshipable Agni Dev destroys the demons.
स नो राधांस्या भरेशानः सहसो यहो। भगश्च दातु वार्यम्॥
बल के पुत्र अग्नि देव! आप जगदीश्वर होकर हमें धन प्रदान करें। भग देवता भी वरणीय धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.15.11]
Hey son of Bal, Agni Dev! Grant us riches by becoming the lord of the universe. Let Bhag Devta too grant us riches.
त्वमग्ने वीरवद्यशो देवश्च सविता भगः। दितिश्च दाति वार्यम्॥
हे अग्नि देव! आप पुत्र-पौत्रादि से युक्त हमें अन्न प्रदान करें। सविता देव भी वरणीय धन प्रदान करें। भग और माता अदिति भी प्रदान करे।[ऋग्वेद 7.15.12]
Hey Agni Dev! Grant us food grains associated with sons & grand sons. Let Savita Dev too grant us desired riches. Bhag Dev and Mata Aditi too should grant us riches.
अग्ने रक्षा णो अंहसः प्रतिष्म देव रीषतः। तपिष्ठैरजरो दह॥
हे अग्नि देव! हमें पाप से बचावें। हे अजर देव! आप हिंसकों (शत्रुओं) को अत्यन्त तापक तेज द्वारा भस्मीभूत करें।[ऋग्वेद 7.15.3]
Hey Agni Dev! Protect us from sins. Hey immortal deity! Burn the violent with your extreme heat.
अधा मही न आयस्यनाधृष्टो नृपीतये। पूर्भवा शतभुजिः॥
आप दुर्द्धर्ष हैं। इस समय आप हम मनुष्यों की रक्षा के लिए महान लौह से निर्मित शतगुणपुरी बनाएँ (ताकि लौहनगरी में शत्रु हमें न मार सकें)।[ऋग्वेद 7.15.14]
Its difficult to defeat you. At this moment build a great iron abode possessing hundreds of qualities to protect us from the enemies.
त्वं नः पाह्यंहसो दोषावस्तरघायतः। दिवा नक्तमदाभ्यः॥
हे अहिंसनीय, रात्रि को अथवा अन्धकार को हटाने वाले अग्नि देव! आप हमें पाप से और पाप कामी व्यक्तियों से हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 7.15.15]
Hey non violent, remover of darkness Agni Dev! Protect us from sins & the sinners.(10.12.2023)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (16) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- अग्नि; छन्द :- अनुष्टुप्, बृहती, पंक्ति।
एना वो अग्निं नमसोर्जो नपातमा हुवे।
प्रियं चेतिष्ठमरतिं स्वध्वरं विश्वस्य दूतममृतम्॥
हे बल के पुत्र अग्नि देव! प्रिय विद्वत्श्रेष्ठ, गतिशील सुन्दर यज्ञ वाले, सबके दूत और नित्य अग्नि देव का आवाहन करते हुए हम उनकी वन्दना करते हैं।[ऋग्वेद 7.16.1]
Hey Agni Dev, son of Bal! We invoke and worship you every day being dear, enlightened, dynamic, performer of beautiful Yagy & messenger of all
स योजते अरुषा विश्वभोजसा स दुद्रवत्स्वाहुतः।
सुब्रह्मा यज्ञः सुशमी वसूनां देवं राधो जनानाम्॥
अग्नि देव रुचिकर और सभी के पालक हैं। वे दोनों अश्वों को रथ में नियोजित करते हैं। वे देवताओं के लिए अत्यन्त तेज गति के साथ जाते हैं। वे सुन्दर रूप से आहूत सुन्दर स्तुति वाले यजनीय और सुकर्मा हैं। ये अग्नि देव ही विद्वानों के उत्तम धन हैं।[ऋग्वेद 7.16.2]
रुचिकर :: स्वादिष्ट, स्वाद, मनोहर, अनुकूल, इष्ट, मन पसंद, सुखद, रुचिर; delectable, tasteful, agreeable, pleasant.
Agni Dev is pleasant and nurturer of all. He deploys two horses in the charoite. He speeds up for the demigods-deities. He is beautifully honoured with excellent prayers and is a performer of virtuous endeavours. Agni Dev is the excellent wealth-possession of the enlightened.
उदस्य शोचिरस्थादाजुह्वानस्य मीळ्हुषः।
उद्यूमासो अरुषासो दिविस्पृशः समग्निमिन्धते नरः॥
अभीष्टकारी और बुलाये जाने वाले इन अग्नि देव का तेज ऊपर उठ रहा है। रुचिकर और आकाश को छूने वाले धुएँ उठ रहे हैं। मनुष्य अग्नि देव को प्रज्वलित कर रहे हैं।[ऋग्वेद 7.16.3]
He accomplish the desires and his aura-radiance rises up on being invoked. Pleasant smoke touching the sky is rising up. Humans are igniting the fire-invoking Agni Dev.
तं त्वा दूतं कृण्महे यशस्तमं देवाँ आ वीतये वह।
विश्वा सूनो सहसो मर्तभोजना रास्व तद्यत्त्वेमहे॥
हे बल पुत्र अग्निदेव! आप यशस्वी हैं। हम आपको दूत बनाते हैं। हव्य भक्षण के लिए देवताओं को बुलावें। जिस समय आपकी हम प्रार्थना करते हैं, उस समय मनुष्यों के भोग योग्य धन हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.16.4]
यशस्वी :: सुख्यात, कीर्तिमान; glorious, celebrated.
Hey son of Bal, Agni Dev! You are celebrated. We appoint you our ambassador. Invite the demigods-deities for accepting-eating our offerings. Grant us riches useful for the humans while we make prayers to you.
त्वमग्ने गृहपतिस्त्वं होता नो अध्वरे।
त्वं पोता विश्ववार प्रचेता यक्षि वेषि च वार्यम्॥
हे विश्व माननीय अग्नि देव! आप हमारे यज्ञ में गृह स्वामी हैं। आप होता, पोता और प्रकृष्ट बुद्धि हैं। वरणीय हव्य का यज्ञ करते हुए भक्षण करें।[ऋग्वेद 7.16.5]
Hey world recognised-celebrated Agni Dev! You are the house owner in our Yagy. You are the assistant priest, invoker of the Yagy and possess excellent intelligence.
कृधि रत्नं यजमानाय सुक्रतो त्वं हि रत्नधा असि।
आ न ऋते शिशीहि विश्वमृत्विजं सुशंसो यश्च दक्षते॥
हे सुन्दर कर्मा अग्नि देव! आप यजमान को रत्न प्रदान करें। आप रत्न दाता हैं। हमारे यज्ञ में सबको तेजस्वी बनावें। जो होता प्रशंसनीय है, उसे आगे बढ़ावें।[ऋग्वेद 7.16.6]
Hey performer of beautiful deeds, Agni Dev! Grant jewels to the host. You are giver of jewels, Make everyone radiant in our Yagy. Promote the assistant priest, who is appreciable.
त्वे अग्ने स्वाहुत प्रियासः सन्तु सूरयः।
यन्तारो ये मघवानो जनानामूर्वान्दयन्त गोनाम्॥
हे सुन्दर रूप से आहूत अग्नि देव! आपको स्तोता प्रिय हैं। जो धनवान दाता लोग जन समुदाय और गौवों का दान करते हैं, वे भी आपकी कृपा के पात्र बनें।[ऋग्वेद 7.16.7]
Hey Agni Dev honoured beautifully! The Stota is dear to you. The rich donors who donate cows to the masses too become eligible of your mercy.
येषामिळा घृतहस्ता दुरोण आँ अपि प्राता निषीदति।
ताँस्त्रायस्व सहस्य द्रुहो निदो यच्छा नः शर्म दीर्घश्रुत्॥
जिन गृहों में घृत हस्ता, अन्न रूपा और हविर्लक्षणा देवी पूर्णा होकर बैठी हुई हैं, उनको हे बलवान अग्निदेव! द्रोहियों और निन्दकों से बचावें। हम आपकी स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 7.16.8]
Hey mighty Agni Dev! Protect those in who's house the deity with the charctrices of offerings, her hands in Ghee, is sitting. Protect them from the malevolent-deceitful. We worship you.
स मन्द्रया च जिह्वया वह्निरासा विदुष्टरः।
अग्ने रयिं मघवद्भयो न आ वह हव्यदातिं च सूदय॥
हे अग्नि देव। आप हव्य वाहक और विद्वान हैं। मोदयित्री और मुख स्थिता जिव्हा दारा हमें धन प्रदान करें। हम हव्य वाले हैं। हव्यदाता की कर्म के लिये प्रेरित करें।[ऋग्वेद 7.16.9]
Hey Agni Dev! You are the carrier of offerings and learned. Grant us wealth with your tongue present in the mouth as the demigods-deities. Inspire the one making offerings for performing deeds-endeavours.
ये राधांसि ददत्यश्वया मघा कामेन श्रवसो महः।
ताँ अंहसः पिपृहि पर्तृभिष्ट्वं शतं पूर्भिर्यविष्ठ्य॥
हे युवा अग्नि देव! जो यजमान महान यश की इच्छा से साधकरूप और अश्वात्मक हव्य दान करते हैं, उन्हें पाप से बचावें और सैकड़ों नगरियों द्वारा उनको सुरक्षित करें।[ऋग्वेद 7.16.10]
Hey young Agni Dev! Protect the Ritviz who make donations as offerings of horses, from sins protecting him by hundred of forts-cities.
देवो वो द्रविणोदाः पूर्णां विवष्ट्यासिचम्।
उद्वा सिञ्चध्वमुप वा पृणध्वमादिद्वो देव ओहते॥
धनदाता अग्नि देवता, आपके हवि पूर्ण स्रुव चमस की इच्छा करते हैं। सोम द्वारा आप पात्र सिद्ध करें, सोमदान करें। अनन्तर अग्नि देवता आपका वहन करेंगे।[ऋग्वेद 7.16.11]
Donor of wealth Agni Dev desires the Struv full of offerings. Accomplish the pot with Som and donate Som. Thereafter, Agni Dev will support you.
तं होतारमध्वरस्य प्रचेतसं वहिं देवा अकृण्वत।
दधाति रत्नं विधते सुवीर्यमग्निर्जनाय दाशुषे॥
हे देवताओं! आपने उत्तम बुद्धि अग्नि देव को यज्ञ वाहक और होता बनाया। वे अग्नि देव परिचर्याकारी हव्य दाताजन को शोभन पराक्रम और रमणीय धन प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 7.16.12]
Hey demigods-deities! You appointed Agni Dev, the possessor of excellent intelligence as the host and carrier of the Yagy. Let him grant beautiful wealth, valour, to those serving & making offerings.(11.12.2023)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (17) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- अग्नि; छन्द :- द्विपदा, त्रिष्टुप्।
अग्ने भव सुषमिधा समिद्ध उत बर्हिरुर्विया वि स्तृणीताम्॥
हे अग्नि देव! शोभन समिधा द्वारा प्रज्वलित होवें। याजक भली-भाँति कुश का आसन बिछाएँ।[ऋग्वेद 7.17.1]
Hey Agni Dev! Glow with bright flames with beautiful Samidha-wood. Let the Ritviz spread the Kush Mats properly.
उत द्वार उशतीर्वि श्रयन्तामुत देवाँ उशत आ वहेह॥
देवकामी द्वारों को आप आश्रित करें। यज्ञाभिलाषी देवताओं को इस यज्ञ में बुलावें।[ऋग्वेद 7.17.2]
Asylum-Protect the doors leading to the endeavours of the demigods-deities. Invite-invoke the deities to the Yagy who desire to be here.
अग्ने वीहि हविषा यक्षि देवान्त्स्वध्वरा कृणुहि जातवेदः॥
हे जातघन अग्नि देव! आप देवताओं के सम्मुख पहुँचकर हव्य द्वारा देवताओं का यज्ञ करें और देवताओं को शोभन यज्ञकर्ता बनावें।[ऋग्वेद 7.17.3]
Hey Jatdhan Agni Dev! You should reach the demigods-deities and conduct the Yagy for the them with offerings; making them glorious performers of Yagy.
स्वध्वरा करति जातवेदा यक्षद्देवाँ अमृतान्पिप्रयच्च॥
हे जातधन अग्नि देव! आप अमर्त्य देवताओं का यज्ञ करें। स्तोत्रों द्वारा आप उन्हें प्रसन्न करें।[ऋग्वेद 7.17.4]
Hey Jatveda Agni Dev! Conduct the Yagy of immortal demigods-deities. Appease them with the help of Strotr-sacred hymns.
वंस्व विश्वा वार्याणि प्रचेतः सत्या भवन्त्वाशिषो नो अद्य॥
हे सुबुद्धि अग्नि देव! हमें समस्त वरणीय धन प्रदान करें। वे आपके आशीर्वाद से फलित हों।[ऋग्वेद 7.17.5]
Hey Agni dev possessing virtuous intelligence! Grant us all sorts of amenities-wealth. Let them be fruitful due to your blessings.
त्वामु ते दधिरे हव्यवाहं देवासो अग्न ऊर्ज आ नपातम्॥
हे अग्निदेव! आप बल पुत्र हैं। आपको उन्हीं देवताओं ने हव्य वाहक बनाया है।[ऋग्वेद 7.17.6]
Hey Agni Derv, son of Bal! You have been appointed as the carrier of offerings by the demigods.
ते ते देवाय दाशतः स्याम महो नो रत्ना वि दध इयानः॥
आप प्रकाशमान हैं। आपको हम हवि अर्पित करेंगे। आप महान और उपास्य हैं। हमें रत्न और धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.17.7]
You are radiant-aurous. We make offerings to you. You are great deserving worship. Grant us jewels and wealth.(12.12.2023)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (18) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप्।
त्वे ह यत्पितरश्चिन्न इन्द्र विश्वा वामा जरितारो असन्वन्।
त्वे गावः सुदुघास्त्वे ह्यश्वास्त्वं वसु देवयते वनिष्ठः॥
हे इन्द्र देव! हमारे पितरों ने स्तुति करते हुए आपसे ही सारे मनोहर धनों को प्राप्त किया। आपसे ही गायें सरलता से दोहन में समर्थ होती हैं। आपमें अश्व हैं, देवाभिलाषी व्यक्ति को आप प्रभूत धन प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 7.18.1]
Hey Indr Dev! Our ancestors-Pitre worshiped you and attained beautiful-glorious wealth. Your cows are easy to milch. You have horses and you grant best wealth to those who wish to invoke demigods-deities.
राजेव हि जनिभिः क्षेष्येवाव द्युभिरभि विदुष्कविः सन्।
पिशा गिरो मघवन् गोभिरश्वैस्त्वायतः शिशीहि राये अस्मान्॥
हे इन्द्र देव! पत्नियों के साथ राजा की तरह आप दीप्ति के साथ रहते हैं। आप विद्वान और क्रान्तकर्मा होकर स्तोताओं को रूप प्रदान करें और गौ एवं अश्व द्वारा रक्षा करें। हम आपकी कामना करते हैं। धन के लिए आप हमें संस्कारवान बनाएँ।[ऋग्वेद 7.18.2]
Hey Indr Dev! You possess aura and live like the king having wives around him. You are enlightened, matured-experienced and intelligent. Grant cows & horses to the Ritviz-Stotas. We wish to invoke you.
इमा उ त्वा पस्पृधानासो अत्र मन्द्रा गिरो देवयन्तीरुप स्थुः।
अर्वाची ते पथ्या राय एतु स्याम ते सुमताविन्द्र शर्मन्॥
हे इन्द्र देव! इस यज्ञ की स्पर्द्धामान और रमणीय स्तुतियाँ आपके पास जाती हैं। आपका धन हमारी ओर आवें। आपकी कृपा प्राप्त कर हम सुखी होंगे।[ऋग्वेद 7.18.3]
Hey Indr Dev! The sacred hymns in the Yagy reach you. Grant us wealth. We will be happy, comfortable by virtue of your grace.
धेनुं न त्वा सूयवसे दुदुक्षन्नुप ब्रह्माणि ससृजे वसिष्ठः।
त्वामिन्मे गोपतिं विश्व आहा न इन्द्रः सुमतिं गन्त्वच्छ॥
उत्तम घास वाली गौशाला की गौ की तरह आपको दूहने की इच्छा से वसिष्ठ वत्स रूप स्तोत्र बनाते हैं। समस्त संसार आपको ही गायों का स्वामी कहता है। हे इन्द्र देव! हमारी सुन्दर स्तुति सुनकर हमारे पास पधारें।[ऋग्वेद 7.18.4]
Vashishth compose Strotr to please you, like the cows of excellent cow shed. Whole world calls you the lord of cows. Hey Indr Dev! Listen to our beautiful prayers and come to us.
अर्णांसि चित्पप्रथाना सुदास इन्द्रो गाधान्यकृणोत्सुपारा।
शर्धन्तं शिम्युमुचथस्य नव्यः शापं सिन्धूनामकृणोदशस्ती॥
हे स्तवनीय इन्द्र देव! आपने परुष्णी नदी के जल के विकट धार होने पर भी सुदास राजा के लिए जल को तल स्पर्श और पार करने के योग्य बना दिया। स्तुति करने वालों को तरंगित नदियों के श्राप से आपने मुक्त किया।[ऋग्वेद 7.18.5]
Hey worshipable Indr Dev! You made the Parushni river show land and made it suitable to cross by king Sudas in spite of its extremely fast currents. You relieved those who were cursed by the wavy rivers.
पुरोळा इत्तुर्वशो यक्षुरासीद्राये मत्स्यासो निशिता अपीव।
श्रुष्टिं चक्नुभृगवो द्रुह्यवश्च सखा सखायमतरद्विषूचोः॥
याज्ञिक और पुरोदाता तुर्वश नाम के राजा थे। जल में मत्स्य की तरह बँधे रहने पर भी भृगुओं और द्रोहियों के धन के लिए सुदास और तुर्वश का साक्षात्कार करा दिया। इन दोनों व्याप्ति परायणों में एक (तुर्वश) का इन्द्रदेव ने स्वयं वध किया और सुदास को तार दिया।[ऋग्वेद 7.18.6]
Turvash was a king who was Yagyik and used to offer Purodas. He went to Sudas for wealth. Tied like a fish in water, you brought Sudas and Turvash face to face, for the wealth of Bhragu and the malevolent; you killed Turvash.
आ पक्थासो भलानसो भनन्तालिनासो विषाणिनः शिवासः।
आ योऽनयत्सधमा आर्यस्य गव्या तृत्सुभ्यो अजगन्युधा नृन्॥
हव्यों के पाचक, कल्याणमुख, तपस्या से अप्रवृद्ध, विषाण हस्त और मंगलकारी व्यक्ति इन्द्र देव की स्तुति करते हैं। सोमरस के पान से मत्त होकर इन्द्र देव आर्य की गौवें हिंसकों से छुड़ा लाए। स्वयं गायों को प्राप्त किया और युद्ध करके गौवों को चुराने वालों का वध किया।[ऋग्वेद 7.18.7]
Virtuous people worship Indr Dev. Intoxicated by drinking Somras Indr Dev got the cows of the Aryans released from the violent people. He himself received the cows and killed those who had stolen the cows, in war.
दुराध्यो ३ अदितिं स्त्रेवयन्तोऽचेतसो वि जगृभ्रे परुष्णीम्।
मह्नाविव्यक् पृथिवीं पत्यमानः पशुष्कविरशयच्चायमानः॥
दुष्ट मनुष्यों और मन्द बुद्धि शत्रुओं ने परुष्णी नदी को खोदते हुए उसके तटों को तोड़ डाला। इन्द्र देवता की कृपा से सुदास विश्व व्यापक हो गये। चयमान का पुत्र कवि पालित पशु की तरह सुदास द्वारा मार दिया गया।[ऋग्वेद 7.18.8]
The wicked and duffers destroyed the banks of Parushni river. Due to the mercy of Indr Derv Sudas pervaded the whole world. Sudas killed the son of Chayman named Kavi, like a tamed animal.
ईयुरर्थं न न्यर्थं परुष्णीमाशुश्चनेदभिपित्वं जगाम।
सुदास इन्द्रः सुतुकाँ अमित्रानरन्धयन्मानुषे वध्रिवाचः॥
इन्द्र देवता द्वारा परुष्णी के तट ठीक कर दिये जाने पर उसका जल गन्तव्य स्थान की ओर नदी की ओर चला, इधर-ऊधर नहीं गया। सुदास राजा का घोड़ा भी अपने गन्तव्य स्थान को चला गया। सुदास के लिए इन्द्र देवता ने मनुष्यों में सन्तति वाले और व्यर्थ बोलने वाले शत्रुओं को उनकी सन्ततियों के साथ वश में कर लिया।[ऋग्वेद 7.18.9]
Indr Dev released the waters of Parushni river in the desired direction, which did not went hither & thither. King Sudas rode his horse and went to his destination. Indr Dev controlled the useless talkers having progeny for king Sudas. He controlled the useless talking enemies too, along with their progeny.
ईयुर्गावो न यवसादगोपा यथाकृतमभि मित्रं चितासः।
पृश्निगावः पृश्निनिप्रेषितासः श्रुष्टिं चक्कुर्नियुतो रन्तयश्च॥
जिस प्रकार से चरवाहों के बिना गौवें जौ की ओर जाती हैं, उसी प्रकार माता द्वारा भेजे गये और एकत्र मरुद्रण अपनी पूर्व की प्रतिज्ञा के अनुसार मित्र इन्द्र देवता की ओर गए। मरुतों के नियुत अश्व भी प्रसन्न होकर गतिमान होते हैं।[ऋग्वेद 7.18.10]
The manner in which the cows move to the barley without the cowherd, the Marud Gan directed by Mata Aditi goes to their friend Indr Dev as per earlier oath. The horses deployed for Marud Gan accelerate happily.
एकं च यो विंशतिं च श्रवस्या वैकर्णयोर्जनान्राजा न्यस्तः।
दस्मो न सद्मन्नि शिशाति बर्हिः शूरः सर्गमकृणोदिन्द्र एषाम्॥
कीर्ति अर्जित करने के लिए राजा सुदास ने दो प्रदेशों के इक्कीस मनुष्यों का वध कर डाला। जिस प्रकार युवक अध्वर्यु यज्ञ गृह में कुश काटता हैं, उसी प्रकार वह राजा शत्रुओं को काटता है। वीर इन्द्र देवता ने सुदास की सहायता के लिए मरुतों को उत्पन्न किया।[ऋग्वेद 7.18.11]
To earn earned fame-publicity king Sudas killed 21 people of two regions. The way a young assistant priest cuts Kush in the Yagy house, he cuts-kills the enemy kings. Brave Indr Dev evolved Marud Gan for helping king Sudas.
अध श्रुतं कवषं वृद्धमप्स्वनु द्रुह्यं नि वृणग्वज्रबाहुः।
वृणाना अत्र सख्याय सख्यं त्वायन्तो ये अमदन्ननु त्वा॥
इसके अतिरिक्त वज्रबाहु इन्द्र देवता ने श्रुत, कवष, वृद्ध और दुह्य नामक व्यक्तियों को जल में डुबो दिया। उस समय जिन लोगों ने उनकी इच्छा करके उनकी स्तुति की थी, वे मित्र माने गए और मित्र बन गए।[ऋग्वेद 7.18.12]
In addition to this Indr Dev with Vajr arms, drowned Shrut, Kavash, Vraddh and Duhy in water. Those worshiped him at this occasion became friends.
वि सद्यो विश्वा दंहितान्येषामिन्द्रः पुरः सहसा सप्त दर्दः।
व्यानवस्य तृत्सवे गयं भाग्जेष्म पूरुं विदथे मृध्रवाचम्॥
अपनी शक्ति से इन्द्र देवता ने उक्त श्रुत आदि की सुदृढ़ समस्त नगरियों को और सात प्रकार के रक्षा साधनों को तत्काल विनष्ट कर दिया। अनु के पुत्र के गृह को तुत्सु को दे दिया। हे इन्द्र देव! हम कटु वचन बोलने वाले मनुष्यों को जीत सकें, ऐसी कृपा करें।[ऋग्वेद 7.18.13]
Indr Dev destroyed the seven types of safety means & strong cities, with his might at random. Awarded the house of Anu's son to Tusyu. Hey Indr Dev! Bless us so that we are able to win those who speak harsh words.
नि गव्यवोऽनवो द्रुह्यवश्च षष्टिः शता सुषुपुः षट् सहस्त्रा।
षष्टिर्वीरासो अधि षड् दुवोयु विश्वेदिन्द्रस्य वीर्या कृतानि॥
अनु और द्रुह्यु की गौओं को चाहने वाले छासठ हजार छासठ सम्बन्धियों को सेवाभिलाषी सुदास के हित के लिए वध किया। यह सभी कार्य इन्द्र देवता की वीरता के द्योतक है।[ऋग्वेद 7.18.14]
Indr Dev killed the 66,066 relatives-warriors of Anu & Druhyu, who wanted to possess the cows of Sudas, who intended to serve them. These deeds signify Indr Dev's bravery-valour.
इन्द्रेणैते तृत्सवो वेविषाणा आपो न सृष्टा अधवन्त नीचीः।
दुर्मित्रासः प्रकलविन्मिमाना जहुर्विश्वानि भोजना सुदासे॥
दुष्ट मित्रों से युक्त ये अनाड़ी तृत्सु लोग इन्द्र देवता के सामने युद्धभूमि में उतरने पर टिक न सके और निम्नगामी जल की तरह दौड़े; परन्तु बाधा उत्पन्न होने पर उन लोगों के द्वारा छोड़ी गई समस्त भोग्य वस्तुएँ सुदास को प्राप्त हुईं।[ऋग्वेद 7.18.15]
Accompanied by the wicked, the unskilled, untrained people-soldiers of Tratsu could not stand in front of Indr Dev in the war and ran away like the water flowing in the downward direction, but on being restrained all their useful goods were obtained by king Sudas.(13.12.2023)
अर्धं वीरस्य शृतपामनिन्द्रं परा शर्धन्तं नुनुदे अभि क्षाम्।
इन्द्रो मन्युं मन्युम्यो मिमाय भेजे पथो वर्तनिं पत्यमानः॥
वीर्यशाली सुदास के हिंसक, इन्द्र शून्य, हव्य दाता और उत्साही मनुष्यों को इन्द्र देव ने धराशायी किया। इन्होंने क्रोध करने वालों का नाश किया। मार्ग में जाते हुए सुदास के शत्रु पलायित होने पर विवश हो गए।[ऋग्वेद 7.18.16]
Indr Dev scattered the mighty enemy of Sudas and killed the enemy's warriors. He destroyed the furious enemies and made them retract.
आध्रेण चित्तद्वेकं चकार सिंह्यं चित्पेत्वेना जघान।
अव स्रक्तीर्वेश्यावृश्चदिन्द्रः प्रायच्छद्विश्वा भोजना सुदासे॥
इन्द्र देवता ने उस समय दरिद्र सुदास के द्वारा एक कार्य कराया। प्रबल सिंह को बकरे द्वारा मरवाया। सुई से यूपादि का कोना काट दिया। समस्त धन सुदास राजा को प्रदान किया।[ऋग्वेद 7.18.17]
Indr Dev made poor Sudas perform a job. He made an old lion killed a goat. A corner of the pillar was cut with a needle. Whole wealth was handed over to Sudas.
शश्वन्तो हि शत्रवो रारधुष्टे भेदस्य चिच्छर्धतो विन्द रन्धिम्।
मर्ता एनः स्तुवतो यः कृणोति तिग्मं तस्मिन्नि जहि वज्रमिन्द्र॥
हे इन्द्र देवता! आपके अधिकांश शत्रु वश में हो गये हैं। अच्छे कर्म करने वालों का अहित करने वाले भेद को वशीभूत करके उस पर अपने वज्र से प्रहार करें।[ऋग्वेद 7.18.18]
Hey Indr Dev! Most of your enemies have been over powered. Identify those who harm the virtuous and strike your Vajr over them.
आवदिन्द्रं यमुना तृत्सवश्च प्रात्र भेदं सर्वताता मुषायत्।
अजासश्च शिग्रवो यक्षवश्च बलिं शीर्षाणि जनुरश्व्यानि॥
इस युद्ध में इन्द्र देवता ने भेद का संहार किया। यमुना ने इन्द्र देवता को सन्तुष्ट किया। तृत्सुओं ने भी उन्हें सन्तुष्ट किया। अज, शियु और यक्षु नामक जनपदों ने इन्द्र देवता को अनेक अश्व उपहार में दिये।[ऋग्वेद 7.18.19]
Indr Dev destroyed the distractions. Yamuna satisfied Indr Dev. Tratsus too satisfied him. Aj, Shiyu and Yakshu regions offered many horses as gift.
न त इन्द्र सुमतयो न रायः संचक्षे पूर्वा उषसो न नूत्ना:।
देवकं चिन्मान्यमानं जघन्थाव त्मना बृहतः शम्बरं भेत्॥
हे इन्द्र देव! आपकी प्राचीन कृपाएँ और धन, उषा के समान वर्णन करने योग्य नहीं हैं। आपकी नई कृपाएँ और धन भी वर्णनातीत हैं। आपने मन्यमान के पुत्र देवक का वध किया और स्वयं विशाल शिला से शम्बर असुर का वध किया।[ऋग्वेद 7.18.20]
Hey Indr Dev! Your obligations and wealth are beyond compare like Usha. Your present obligations and the wealth too are beyond description. You killed the son of Manyman called Devak and killed the demon Shambar with a large rock.
प्र ये गृहादममदुस्त्वाया पराशरः शतयातुर्वसिष्ठः।
न ते भोजस्य सख्यं मृषन्ताधा सूरिभ्यः सुदिना व्युच्छान्॥
हे इन्द्र देव! अनेक राक्षस जिनके वध की इच्छा करते हैं, उन्हीं पराशर, वसिष्ठ आदि ऋषियों ने आपकी इच्छा करके अपने गृह की ओर जाते हुए आपकी स्तुति की है। वे आपका मित्रभाव नहीं भूले; क्योंकि आप उनका पालन करना नहीं भूले, जिससे उनके दिन सदा सुन्दर रहते हैं।[ऋग्वेद 7.18.21]
Hey Indr Dev! You have not forgotten the demons you wished to eliminate. Parashar, Vashishth etc. Rishis remembered & prayed you while returning to their homes. They did not forget your friendship, since you do not forget nurturing them making their days beautiful-pleasant.
द्वे नप्तुर्देववतः शते गोर्द्वा रथा वधूमन्ता सुदासः।
अर्हन्नग्ने पैजवनस्य दानं होतेव सद्म पर्येमि रेभन्॥
हे देवताओं में श्रेष्ठ इन्द्र देव! देववान राजा के पौत्र और पिजवन के पुत्र राजा सुदास की दो सौ गौएँ और दो रथों को मैंने इन्द्र देवता की स्तुति करके प्राप्त किया। जिस प्रकार होता यज्ञ गृह में जाता है, उसी प्रकार मैं भी गमन करता हूँ।[ऋग्वेद 7.18.22]
Hey Indr Dev; best amongest the demigods! I attained two hundred cows and two charoites of king Devvan's grandson and Pitvan's son king Sudas by praying Indr Dev. The way a Hota enters the Yagy site, I too follow him.
चत्वारो मा पैजवनस्य दानाः स्मद्दिष्टयः कृशनिनो निरेके।
ऋज्रासो मा पृथिविष्ठाः सुदासस्तोकं तोकाय श्रवसे वहन्ति॥
पिजवन के पुत्र सुदास राजा के श्रद्धा, दानादि से युक्त, सोने के अलंकारों से सम्पन्न, दुर्गति के अवसर पर सरलगामी और पृथ्वी स्थित चार अश्व, पुत्र की तरह पालनीय वशिष्ठ को पुत्र के समान पुत्र एवं यश प्राप्ति के लिए ले जाते हैं।[ऋग्वेद 7.18.23]
Four honoured horses of king Sudas son of Pijvan, decorated with gold ornaments take Vashishth nursed like a son for having a son like Vashishth and glory, over a tough terrain during tough times.
यस्य श्रवो रोदसी अन्तरुर्वी शीर्ष्णशीर्णो विबभाजा विभक्ता।
सप्तेदिन्द्रं न स्रवतो गृणन्ति नि युध्यामधिमशिशादभीके॥
जिन सुदास राजा का यश द्यावा-पृथ्वी के मध्य में अवस्थित है और जो दातृश्रेष्ठ श्रेष्ठ व्यक्तियों को ही धन प्रदान करते हैं, उनकी स्तुति सातों लोक इन्द्र देवता की तरह करते हैं। नदियों ने युद्ध में युध्यामधि नाम के शत्रु का विनाश किया अर्थात नदियों द्वारा जल में डुबो कर मार दिया गया।[ऋग्वेद 7.18.24]
King Sudas, who's glory is spread-present in between the heavens & earth, who grant donation to the excellent receivers, is worshiped in seven abodes like Indr Dev. The rivers killed the enemy called Yudhyamadhi, in the war by drowning.
इमं नरो मरुतः सश्चतानु दिवोदासं न पितरं सुदासः।
अविष्टना पैजवनस्य केतं दूणाशं क्षत्रमजरं दुवोयु॥
हे नेता मरुतद्गण! यह सुदास राजा के पिता पिजवन हैं। दिवोदास अथवा पिजवन की ही तरह सुदास के निवास स्थान की रक्षा करें। इनका छात्रबल वृद्धि करे, क्षीण न हों।[ऋग्वेद 7.18.25]
Hey leaders, Marud Gan! Here is the father of Sudas, Pijvan. Protect the abode of Sudas either like Divodas or Pijvan. Enhance-boost their might and don't let it go down.(14.12.2023).
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (19) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप्।
यस्तिग्मशृङ्गो वृषभो न भीम एकः कृष्टीश्च्यावयति प्र विश्वाः।
यः शश्वतो अदाशुषो गयस्य प्रयन्तासि सुष्वितराय वेदः॥
जो इन्द्र देवता तीखी सींग वाले बैल की तरह भयंकर होकर अकेले ही सभी शत्रुओं को स्थान च्युत करते हैं और जो हव्य शून्य लोगों के घर को ले लेते हैं, वे ही इन्द्र देवता अतीव सोमाभिषव कर्ता को धन व ऐश्वर्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.19.1]
Indr Dev, who become furious & alone displace the enemy like a bull with sharp horns, snatch the houses of those who do not make offerings; grant riches and grandeur to the one who extract Somras for him.
त्वं ह त्यदिन्द्र कुत्समावः शुश्रूषमाणस्तन्वा समर्ये।
दासं यच्छुष्णं कुयवं न्यस्मा अरन्धय आर्जुनेयाय शिक्षन्॥
हे इन्द्र देव! जिस समय आपने अर्जुनी के पुत्र कुत्स को धन देकर दास, शुष्ण और कुयव को वशीभूत किया, उस समय शरीर से शुश्रूषमाण होकर युद्ध में कुत्स की रक्षा की।[ऋग्वेद 7.19.2]
Hey Indr Dev! When you gave wealth to Kuts the son of Arjuni, at the same moment you protected him in the war and controlled the slaves Shushn and Kuyav by giving them money.
त्वं धृष्णो धृषता वीतहव्यं प्रावो विश्वाभिरूतिभिः सुदासम्।
प्र पौरुकुत्सि त्रसदस्युमावः क्षेत्रसाता वृत्रहत्येषु पूरुम्॥
हे धर्षक इन्द्र देव! हव्य दाता सुदास को वज्र के द्वारा सारी रक्षाओं के साथ आपने बचाया। भूमि लाभ के लिए युद्ध में पुरुकुत्स के पुत्र त्रसदस्यु और पुरु की रक्षा की।[ऋग्वेद 7.19.3]
धर्षक :: दबाने या दमन करने वाला व्यक्ति, अपमान करने वाला, तिरस्कार करने वाला, असहनशील, अनादर या अपमान करने वाला, असहिष्णु, स्त्रियों का सतीत्व नष्ट करने वाला, व्याभिचारी, अभिनेता, नट; supressing, intolerant, insulting.
Hey supressing Indr Dev! You protected Sudas, who used to make offerings, with your Vajr. You protected Trasdasyu son of Purukuts and Puru for gain of land in the war.
त्वं नृभिर्नृमणो देववीतौ भूरीणि वृत्रा हर्यश्व हंसि।
त्वं नि दस्युं चुमुरिं धुनिं चास्वापयो दभीतये सुहन्तु॥
हे नेताओं की स्तुति के योग्य इन्द्र देव! मरुतों के साथ युद्ध में आपने अनेक शत्रुओं को मारा। हे हरि अश्व से युक्त इन्द्र देव! दभीति के लिए आपने दस्यु, चुमुरि और धुनि का वध किया।[ऋग्वेद 7.19.4]
Hey Indr Dev, deserving worship from the leaders! You killed many enemies in the war in association with the Marud Gan. Hey Indr Dev possessing the horse named Hari! You killed Dasyu, Chumuri and Dhuni for the sake of Dabhiti.
तव च्यौत्नानि वज्रहस्त तानि नव यत्पुरो नवतिं च सद्यः।
निवेशने शततमाविवेषीरहश्च वृत्रं नमुचिमुताहन्॥
हे वज्र हस्त इन्द्र देव! आप में इतना बल है कि आपने शम्बराशुर की निन्यानबे नगरियों को छिन्न-विच्छिन्न कर डाला। अपने निवास के लिए सौवें नगर में घुसकर आपने वृत्रासुर और नमुचि का वध किया।[ऋग्वेद 7.19.5]
Hey Indr Dev with the hands-arms like Vajr! You possess so much strength that you destroyed the 99 cities-forts of Shambrasur. Then you killed Vratasur and Namuchi entering the hundredth city for yourself.
सना ता त इन्द्र भोजनानि रातहव्याय दाशुषे सुदासे।
वृष्णे ते हरी वृषणा युनज्मि व्यन्तु ब्रह्माणि पुरुशाक वाजम्॥
हे इन्द्र देव! हव्यदाता यजमान सुदास के लिए आपकी सम्पत्तियाँ सनातन हुई। हे बहुकर्मा इन्द्र देव! आप कामवर्षी हैं, आपके लिए मैं दो अभिलाषदाता अश्वों को रथ में नियोजित करता हूँ। आप बलिष्ठ हैं। हमारे स्तोत्र आपके पास जावें।[ऋग्वेद 7.19.6]
Hey Indr Dev! Your wealth turned eternal for Ritviz Sudas, who used to make offerings. Hey performer of several deeds; Indr Dev! You accomplish desires. I have deploy two desires accomplishing horses in the charoite. You are mighty. Let our Strotr-sacred hymns reach you.
मा ते अस्यां सहसावन्परिष्टावघाय भूम हरिवः परादै।
त्रायस्व नोऽ वृकेभिर्वरूथैस्तव प्रियासः सूरिषु स्याम॥
हे बल और अश्व वाले इन्द्र देव! आपके इस यज्ञ में हम वरदान और पाप के भागी न बनें। हमें बाधा शून्य रक्षा से बचावें, जिससे हम स्तोताओं में प्रिय हों।[ऋग्वेद 7.19.7]
Hey mighty possessor of horses, Indr Dev! We do not wish to become object of boons and sins in your Yagy. Protect us without any obstacles, so that we are popular amongest the Stotas.
प्रियास इत्ते मघवन्नभिष्टौ नरो मदेम शरणे सखायः।
नि तुर्वशं नि याद्वं शिशीह्यतिथिग्वाय शंस्यं करिष्यन्॥
हे धनपति इन्द्र देव! आपके यज्ञ में हम स्तोत नेता, मित्र और प्रिय होकर घर में प्रसन्न हो। अतिथि वत्सल सुदास को सुख देते हुए तुर्वश और यदुवशी को वशीभूत करें।[ऋग्वेद 7.19.8]
Hey wealthy Indr Dev! We should become leaders of the Strotr reciting people, happy, dear-affectionate in your Yagy. Control -subjugate Turvash and Yaduvashi for the sake of Sudas who honours the guests.
सद्यश्चिन्नु ते मघवन्नभिष्टौ नरः शंसन्त्युक्थशास उक्था।
ये ते हवेभिर्वि पर्णीरदाशन्नस्मान्वृणीष्व युज्याय तस्मै॥
हे धनवान इन्द्र देव! आपके यज्ञ के हमीं नेता और मंत्रों के उच्चारण करने वाले हैं। आज उक्थों का उच्चरण करते हैं और आपके हव्य के द्वारा पणियों को भी धन देते हैं। हमें मित्र रूप में स्वीकार करें।[ऋग्वेद 7.19.9]
उक्थ :: कथन, सूक्ति, एक यज्ञ, स्तोत्र-पाठ; sacred compositions.
(1). श्लोक, स्तोत्र, कथन, कथन, उक्ति, स्तोत्र, सूक्ति, साम-विशेष; Strotr, Sukt, spelled, stated, hymns.
(2). भिन्न-भिन्न देवताओं के वैदिक स्तोत्र, प्राण, ऋषभक नाम की अष्टवर्गीय ओषधि; Vaedic Strotr for deities-demigods.
Hey wealthy Indr Dev! We are the once who are the leaders and recitators of Mantr in your Yagy. Today, we will recite Ukth and grant riches to Panis by making offerings. Accept us as friends.
एते स्तोमा नरां नृतम तुभ्यमस्मद्रयञ्चो ददतो मघानि।
तेषामिन्द्र वृत्रहत्ये शिवो भूः सखा च शूरोऽविता च नृणाम्॥
हे नेतृ श्रेष्ठ इन्द्र देव! नेताओं की स्तुतियों ने आपको पूजनीय हव्यदान करके हमारा हितैषी बना दिया है। युद्ध में इन्हीं नेताओं का आप कल्याण करें और इनके मित्र, शूर तथा रक्षक बने।[ऋग्वेद 7.19.10]
Hey excellent leader Indr Dev! Worship by the leaders and making offerings; have made you our well wisher. Look to the welfare of these leaders in the war and protect their friends& the brave.
नू इन्द्र शूर स्तवमान ऊती ब्रह्मजूतस्तन्वा वावृधस्व।
उप नो वाजान्मिमीह्युप स्तीन्यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
हे वीर इन्द्र देव! आज आप स्तूयमान और स्तोत्र वाले होकर शरीर से वर्द्धित होवें। हमें अन्न और गृह प्रदान करें। आप सदा स्वस्ति द्वारा हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 7.19.11]
Hey brave-mighty Indr Dev! You should be praise worthy and possessor of Strotr growing bodily. Grant us food grains and houses. Always protect with Swasti.(15.12.2023)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (20) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप्।
उग्रो जज्ञे वीर्याय स्वधावाञ्चक्रिरपो नर्यो यत्करिष्यन्।
जग्मिर्युवा नृषदनमवोभि स्त्राता न इन्द्र एनसो महश्चित्॥
बलवान और ओजस्वी इन्द्र देवता प्रकाश के लिए उत्पन्न हुए हैं। मनुष्य के जिस हितकारी कार्य को करने की इच्छा वे करते हैं, उसे अवश्य ही करते हैं। तरुण और रक्षा के लिए यज्ञगृह की ओर जाने वाले इन्द्र देव महापाप से हमें बचावें।[ऋग्वेद 7.20.1]
Mighty and radiant Indr Dev has evolved for generating light-enlightenment. He perform the beneficial jobs pertaining to the humans. Let young Indr Dev moving to the Yagy place for protection, save us from the great sins.
हन्ता वृत्रमिन्द्रः शूशुवानः प्रावीन्नु वीरो जरितारमूती।
कर्ता सुदासे अह वा उ लोकं दाता वसु मुहुरा दाशुषे भूत्॥
वर्द्धमान होकर इन्द्र देवता वृत्रासुर का वध करते हैं। वे वीर हैं। वे शीघ्र ही शरण देकर स्तोताओं की रक्षा करते हैं। उन्होंने सुदास राजा के लिए प्रदेश का निर्माण किया। वे यजमान को लक्ष्य कर बार-बार धन प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 7.20.2]
Brave Indr Dev grew up and kill Vratrasur. He quickly grant asylum to the Stotas and protect them. He created a region for Sudas. He repeatedly grant wealth-money to the Ritviz.
युध्मो अनर्वा खजकृत्समद्वा शूरः सत्राषाड्जनुषेमषाळ्हः।
व्यास इन्द्रः पृतनाः स्वोजा अधा विश्वं शत्रूयन्तं जघान॥
इन्द्र देवता योद्धा, निष्पक्ष, युद्ध कर्ता, कलह तत्पर, शूर और स्वभावतः बहुतों की रक्षा करने वाले हैं। वे शत्रुओं के लिए अजेय और उत्तम बल वाले हैं। इन्द्र देवता ने ही शत्रु सेना को पराजित किया। जो लोग उनसे शत्रुता करते हैं, उनका वे वध करते हैं।[ऋग्वेद 7.20.3]
Indr Dev is a neutral warrior, ready for war, quick to settle scores and by nature protective for many people. He is invincible and possessor of excellent strength. Indr Dev defeated the enemy army. He kills those who become his enemy.
उभे चिदिन्द्र रोदसी महित्वा पप्राथ तविषीभिस्तुविष्मः।
नि वज्रमिन्द्रो हरिवान्मिमिक्षन्त्समन्धसा मदेषु वा उवोच॥
हे बहुधन शाली इन्द्र देव! आपने अपने बल और महिमा से द्यावा-पृथ्वी दोनों को परिपूर्ण किया। हे अश्व वाले इन्द्र देव! आप शत्रुओं के ऊपर वज्र फेंकते हुए यज्ञ में सोमरस द्वारा सेवित होते हैं।[ऋग्वेद 7.20.4]
The possessor of various wealth Indr Dev. You supplemented both heavens & earth. Hey possessor of horses Indr Dev! You launch Vajr over the enemies and get served with Somras in the Yagy.
वृषा जजान वृषणं रणाय तमु चिन्नारी नर्यं ससूव।
प्र यः सेनानीरध नृभ्यो अस्तीनः सत्वा गवेषणः स धृष्णुः॥
युद्ध के लिए पिता (कश्यप) ने कामवर्षी इन्द्र देवता को उत्पन्न किया। नारी ने मनुष्य हितैषी उन इन्द्र देवता को उत्पन्न किया। इन्द्र देवता मनुष्यों के सेनापति होकर स्वामी बनते है। इन्द्र देव ईश्वर, शत्रुहन्ता, गौओं के अन्वेषक और शत्रुओं के पराभवकारी हैं।[ऋग्वेद 7.20.5]
Kashyap Rishi evolved desires accomplishing Indr Dev for war. The woman evolved Indr Dev for the benefit-welfare of humans. Indr Dev become the commander of humans becoming their lord. Indr Dev is God, slayer of enemies, caretaker of cows and destroyer of enemies.
नू चित्स भ्रषते जनो न रेषन्मनो यो अस्य घोरमाविवासात्।
यज्ञैर्य इन्द्रे दधते दुवांसि क्षयत्स राय ऋतपा ऋतेजाः॥
जो व्यक्ति इन्द्र देवता के शत्रु विनाशी मन की सेवा करता है, वह कभी भी स्थान भ्रष्ट नहीं होता, कभी क्षीण नहीं होता। जो जन इन्द्र देवता की स्तुति करता है, यज्ञोत्पन्न और यज्ञ रक्षक इन्द्र देवता उन स्तोताओं को धन प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 7.20.6]
One who serves Indr Dev for his might to eliminate enemies, is never displaced or weakened. One who worship-conduct Stuti is granted money by Indr Dev evolved out of Yagy and its protector.
यदिन्द्र पूर्वी अपराय शिक्षन्नयज्ज्यायान्कनीयसो देष्णम्।
अमृत इत्पर्यासीत दूरमा चित्र चित्र्यं भरा रयिं नः॥
हे विचित्र इन्द्र देव! पूर्ववर्ती पिता या ज्येष्ठ भ्राता परवर्ती को जो दान करता है और जो धन कनिष्ठ से ज्येष्ठ प्राप्त करता है तथा जो धन पिता से अमूल की तरह पुत्र प्राप्त कर दूर देश जाता है, इन तीनों तरह के धनों को आप हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.20.7]
Hey amazing Indr Dev! Grant us the wealth of the either the father or elder brother, or younger to elder and the son who leaves his father and goes abroad to us.
यस्त इन्द्र प्रियो जनो ददाशदसन्निरेके अद्रिवः सखा ते।
वयं ते अस्यां सुमतौ चनिष्ठाः स्याम वरूथे अघ्नतो नृपीतौ॥
हे वज्र धर इन्द्र देव! आपको जो प्रिय मित्र हव्य देता है, वह आपके दान में ही अवस्थित रहे। हम अहिंसक होकर आपकी दया प्राप्त करते हुए सबसे अधिक अन्नवान होकर मनुष्यों के रक्षणशील गृह में रह सकें।[ऋग्वेद 7.20.8]
Hey Vajr wielding Indr Dev! One who makes offerings to you, should confine to your donation-charity. Let us become non violent and possessor of largest stock of food grains by virtue of your mercy-kindness, confine to the house under your protection.
एष स्तोमो अचिक्रद्वृषा त उत स्तामुर्मघवन्नक्रपिष्ट।
रायस्कामो जरितारं त आगन्त्वमङ्गशक्र वस्व आ शको नः॥
हे धनशाली इन्द्र देव! आपके लिए बरसकर यह सोम रो रहा है। स्तोता आपकी स्तुति करता है। हे शक्र! मैं आपका स्तोता हूँ। हमें धन की अभिलाषा हुई है। इसलिए आप शीघ्र हम लोगों को धन सहित गृह प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.20.9]
Hey wealthy Indr Dev! This Som is weeping after raining for you. The Stota worship you. Hey Shakr! I am your Stota. We are desirous of money. Hence, grant us house along with wealth.
स न इन्द्र त्वयताया इषे धास्त्मना च ये मघवानो जुनन्ति।
वस्वी षु ते जरित्रे अस्तु शक्तिर्यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
हे इन्द्र देव! अपने दिए हुए अन्न को भोगने के लिए हमें धारण करें। जो हव्यदाता स्वयमेव हव्य प्रदान करते हैं, उन्हें धारित करें। अतीव प्रशंसा योग्य स्तुति कार्य में आप हमारी शक्ति हैं। मैं आपका स्तोता हूँ। आप हमारा सदा स्वस्ति द्वारा पालन करें।[ऋग्वेद 7.20.10]
Hey Indr Dev! Support us so that we can enjoy the food grains provided by you. Support the one who makes offerings by himself. You are our strength in the extreme appreciable worship-Stuti. I am your Stota. You should always nurture us with Swasti.(16.12.2023)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (21) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप्।
असावि देवं गोऋजीकमन्धो न्यस्मिन्निन्द्रो जनुषेमुवोच।
बोधामसि त्वा हर्यश्च यज्ञैर्बोधा नः स्तोममन्धसो मदेषु॥
दीप्त और गव्य मिश्रित सोम अभिषुत हुआ है। ये इन्द्र देवता स्वभावतः इसमें संगत होते है। हे हर्यश्च! आपको हम यज्ञों के द्वारा जाग्रत करते हैं। सोमरस से आनन्दित होकर आप हमारे स्तोत्रों पर ध्यान देवें।[ऋग्वेद 7.21.1]
Somras has been extracted by mixing cow products (Panch Gavy). Indr Dev is automatically involved in this process. Hey Haryshrch! We awake you through the Yagy. On been happy with Somras listen-attend to our Strotr.
प्र यन्ति यज्ञं विपयन्ति बर्हिः सोममादो विदथे दुघ्रवाचः।
न्यु भ्रियन्ते यशसो गृभादा दूरउपब्दो वृषणो नृषाचः॥
यजमान यज्ञ में जाते और कुश फैलाते हैं। यज्ञ स्थान में पत्थर दुर्द्धर्ष शब्द करते हैं। हे अन्न वान! दूर तक शब्द करने वाले ऋत्विकों द्वारा संगत तथा वर्षक प्रस्तर, गृह से गृहीत होते हैं।[ऋग्वेद 7.21.2]
The hosts-Yajman goes to the Yagy and spread Kush. The stones create loud-rattling sound at the Yagy site. Hey possessor of food grains! The stones are used in the house when the Ritviz generate sound reaching far away.
त्वमिन्द्र स्त्रवितवा अपस्कः परिष्ठिता अहिना शूर पूर्वीः।
त्वद्वावक्रे रथ्यो ३ न धेना रेजन्ते विश्वा कृत्रिमाणि भीषा॥
हे शूर इन्द्र देव! आपने वृत्रासुर द्वारा आक्रान्त होकर स्तब्ध हुए, बहुत से जल प्रवाहों को आपने प्रवाहित किया। आपके ही कारण नदियाँ, रथियों की तरह निकलती हैं। आपके डर के कारण समस्त विश्व कम्पायमान होता है।[ऋग्वेद 7.21.3]
Hey brave-mighty Indr Dev! You moved the water stopped-blocked by Vratra Sur. Its you due to whom the river flow like the charioteers. Due to your fear the world keep trembling.
भीमो विवेषायुधेभिरेषामपांसि विश्वा नर्याणि विद्वान्।
इन्द्रः पुरो जर्हषाणो वि दूधोद्वि वज्रहस्तो महिना जघान॥
इन्द्र देवता ने मनुष्यों के सभी हितकर कार्यों को जानकर तथा आयुधों से भयंकर होकर असुरों का वध किया और उनके सारे नगरों को कम्पायमान कर दिया। उन्होंने प्रसन्न, महिमान्वित और वज्र हस्त होकर उनका वध किया।[ऋग्वेद 7.21.4]
Indr Dev acknowledged the welfare means of humans, killed the demons with weapons and destroyed their forts-cities. He happily, on being glorified used Vajr and killed the demons.
न यातव इन्द्र जूजुवुर्नो न वन्दना शविष्ठ वेद्याभिः।
स शर्धदर्यो विषुणस्य जन्तोर्मा शिश्नदेवा अपि गुऋतं नः॥
हे इन्द्र देव! राक्षस हमारा वध न करें। हे बलि श्रेष्ठ इन्द्र देव! प्रजा से हमें राक्षस अलग न करें। स्वामी इन्द्र देवता विषम जन्तु को मारने में उत्साहान्वित होते हैं। शिश्न देवता हमारे यज्ञ में विघ्न न डालें।[ऋग्वेद 7.21.5]
Hey Indr Dev! Do not let the demons kill us. Hey excellent-mighty Indr Dev! The demons should not be able to isolate us from the populace. Lord Indr Dev gets excited while killing the odd organism. Do not let the demigods (Kam Dev, Moon, Brahm Dev) governing pennies interfere in our Yagy.
अभि क्रत्वेन्द्र भूरध ज्मन्न ते विव्यङ्महिमानं रर्जोसि।
स्वेना हि वृत्रं शवसा जघन्थ न शत्रुरन्तं विविदद्युधा ते॥
हे इन्द्र देव! आप कर्म द्वारा पृथ्वी के सभी जीवों को अभिभूत करते हैं। संसार आपकी महिमा से व्याप्त है। आपने अपने बाहुबल से वृत्रासुर का वध किया। युद्ध में शत्रु आपका पार नहीं पा सकते।[ऋग्वेद 7.21.6]
Hey Indr Dev! You enchant the living beings and make them busy with Karm (endeavours, deeds, jobs). You pervade the universe with your glory. You killed Vratra Sur with your might. The enemy can not over power you in the war.
देवाश्चित्ते असुर्याय पूर्वेऽनु क्षत्राय ममिरे सहांसि।
इन्द्रो मघानि दयते विषह्येन्द्रं वाजस्य जोहुवन्त सातौ॥
हे इन्द्र देव! प्राचीन देवगण ने भी बल और शत्रु वध में इन्द्र देवता के बल से अपने बल को कम समझा। शत्रुओं को पराजित करके इन्द्र देवता भक्तों को धन प्रदान करते हैं। अन्न प्राप्ति के लिए स्तोता इन्द्र देवता का आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 7.21.7]
Hey Indr Dev! The ancient-eternal demigods too assessed their might low, as compared to you. Indr Dev defeats the enemy and grant money to the devotees. The Stotas invoke Indr Dev for having food grains.
कीरिश्चिद्धि त्वामवसे जुहावेशानमिन्द्र सौभगस्य भूरेः।
अवो बभूथ शतमूते अस्मे अभिक्षत्तुस्त्वावतो वरूता॥
हे इन्द्र देव! आप ईशान व ईश्वर हैं। रक्षा के लिए स्तोता आपका आवाहन करते हैं। हे बहुत्राता इन्द्र देवता! आप हमारे यथेष्ट धन की रक्षा करें। आपसे जो वैमनस्य करते हैं, ऐसे शत्रुओं का आप विनाश करें।[ऋग्वेद 7.21.8]
Hey Indr Dev! You are Ishan-Lord & Ishwar-God. The Stotas invoke you for protection. Hey protector of many-several, Indr Dev! Protect our desired wealth. Destroy the enemy who has enmity with you.
सखायस्त इन्द्र विश्वह स्याम नमोवृधासो महिना तरुत्र।
वन्वन्तु स्मा तेऽवसा समीके ३ भीतिमर्यो वनुषां शवांसि॥
हे इन्द्र देव! स्तुति द्वारा हम आपको वर्द्धित करते हुए सदा आपके मित्र रूप में रहें। अपनी महिमा के द्वारा आप सबके तारक हैं। आपके रक्षण से आर्य स्तोता संग्राम में आये हुए आक्रमणकारियों पर विजय प्राप्त कर लें।[ऋग्वेद 7.21.9]
Hey Indr Dev! Let us grow-flourish you, with our prayers and remain friendly with you. You are protector of all by virtue of your glory-might. Let the Ary Stotas get victory in the war with the invaders.
स न इन्द्र त्वयताया इषे धास्त्मना च ये मघवानो जुनन्ति।
वस्वी षु ते जरित्रे अस्तु शक्तिर्यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
हे इन्द्र देव! आप हमें धारण करें, ताकि हम आपके दिये हुए अन्न का भोग कर सकें। जो हव्यदाता स्वयं हव्य प्रदान करते हैं, उन्हें भी धारण करें। मैं आपका स्तोता हूँ। अतीव प्रशंसा योग्य स्तुति कर्म में मेरी शक्ति है। आप हमें सदा स्वस्ति द्वारा पालित करें।[ऋग्वेद 7.21.10]
Hey Indr Dev! Support us, so that we are able to utilize the food grains granted by you. My power lies in the excellent prayers to you. Let us be allowed to be protected and nourished through Swasti.(19.12.2023)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (22) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप्।
पिबा सोममिन्द्र मन्दतु त्वा यं ते सुषाव हर्यश्वाद्रिः।
सोतुर्बाहुभ्यां सुयतो नार्वा॥
हे इन्द्र देव! आप सोमरस का पान करें। वह सोमरस आपको मस्त करे। हे हरि नामक अश्व वाले इन्द्र देव! रस्सी द्वारा संयत अश्व की तरह अभिषवकर्ता के दोनों हाथों में परिगृहीत पत्थर ने इस सोम का अभिषव किया है।[ऋग्वेद 7.22.1]
Hey Indr Dev! Drink this Somras. Let this Somras exhilarate you. Hey master of the horses named Hari, Indr Dev! This Somras has been extracted with the stones; like the horse is tied to the cord with both hands by the extractor.
यस्ते मदो युज्यश्चारुरस्ति येन वृत्राणि हर्यश्व हंसि।
स त्वामिन्द्र प्रभूवसो ममत्तु॥
हे हरि नाम के अश्व वाले और प्रभूत धनी इन्द्र देव! आपका जो उपयुक्त और सम्यक प्रस्तुत सोम है और जिसके द्वारा आपने वृत्रादि का वध किया, वही सोमरस आपको आनन्द प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.22.2]
Hey owner of horses named Hari, with abundant riches, Indr Dev! The Somras offered to you is suitable for you, since it led to the killing of Vratra Sur etc., demons. Let the same Somras grant you pleasure.
बोधा सु मे मघवन्वाचमेमां यां ते वसिष्ठो अर्चति प्रशस्तिम्।
इमा ब्रह्म सधमादे जुषस्व॥
हे इन्द्र देव! आपकी स्तुति स्वरूपिणी जो बातें वसिष्ठ कहते हैं, उन वसिष्ठ की इस बात को आप जानें और यज्ञ में इन स्तुतियों की सेवा करें।[ऋग्वेद 7.22.3]
Hey Indr Dev! The Stutis composed by Vashishth in the form of prayers addressed to you, should be recognised accepted by you and serve this Stutis in this Yagy.
श्रुधी हवं विपिपानस्याद्रेर्बोधा विप्रस्यार्चतो मनीषाम्।
कृष्वा दुवांस्यन्तमा सचेमा॥
हे इन्द्र देव! मैंने सोमपान किया है। आप मेरे इस पत्थर की पुकार को सुनें। स्तोता विप्र की स्तुति को जानें। यह जो मैं सेवा करता हूँ, वह सब सहायक होकर बुद्धिस्थ करें।[ऋग्वेद 7.22.4]
Hey Indr Dev! I have drunk Somras. Listen-respond to the sound made by this stone. The Stotas should understand the Stuti of the Brahman. Let my services assist and be grassed.
न ते गिरो अपि मृष्ये तुरस्य न सुष्टुतिमसुर्यस्य विद्वान्।
सदा ते नाम स्वयशो विवक्मि॥
हे इन्द्र देव! आप रिपुञ्जय हैं। मैं आपका बल जानता हूँ। मैं आपकी स्तुति करना छोड़ नहीं सकता। मैं सदैव आपके यशस्वी नाम का उच्चारण करूंगा।[ऋग्वेद 7.22.5]Hey Indr Dev! You are the slayer of the enemy. I recognise your might-strength. I can not stop your worship. I will always recite your glorious name.
भूरि हि ते सवना मानुषेषु भूरि मनीषी हवते त्वामित्।
मारे अस्मन्मघवञ्ज्योक्कः॥
हे इन्द्र देव! मनुष्यों में आपके अनेक सवन हैं। मनीषी स्तोता आपका ही आह्वान करते हैं। अतः आप हमसे दूर कभी भी न रहें।[ऋग्वेद 7.22.6]
Hey Indr Dev! The humans offer you Somras in different ways and timings. Only the thoughtful-enlightened Stotas invoke you. We should never be away from you.
तुभ्येदिमा सवना शूर विश्वा तुभ्यं ब्रह्माणि वर्धना कृणोमि।
त्वं नृभिर्हव्यो विश्वधासि॥
हे शूर इन्द्र देव! आपके ही लिए यह सब सवन है; ये स्तोत्र भी आपका यश बढ़ाने वाला है। आप सब तरह से मनुष्यों के आह्वान के योग्य हैं।[ऋग्वेद 7.22.7]
Hey brave-mighty Indr Dev! All these preparation are meant for you. These Strotr are meant for boosting your glory. You qualify-deserve to be invoked by the humans.
नू चिन्नु ते मन्यमानस्य दस्मोदश्नुवन्ति महिमानमुग्र।
न वीर्यमिन्द्र ते न राधः॥
हे दर्शनीय इन्द्र देव! स्तुति करने पर आपकी महिमा को कौन नहीं तत्काल प्राप्त करेगा? कौन नहीं, जो आपका धन प्राप्त करेगा?[ऋग्वेद 7.22.8]
Hey glorious Indr Dev! On worshiping you, the worshiper will attain your glory instantaneously in addition to riches.
ये च पूर्व ऋषयो ये च नूत्या इन्द्र ब्रह्माणि जनयन्त विप्राः।
अस्मे ते सन्तु सख्या शिवानि यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
जितने प्राचीन ऋषि हुए हैं और जितने नवीन हैं, सभी आपके लिए स्तोत्र उत्पन्न करते है। हमारे लिए आपका मित्र भाव मंगल मय हैं। आप कृपा करके कल्याणकारी उपायों से हम सभी की सुरक्षा करें।[ऋग्वेद 7.22.9]
All ancient Rishis in addition to the new ones, create-compose Strotr for you. For us your friendly gesture is auspicious. Protect us through welfare means.(20.12.2023)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (23) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
उदु ब्रह्माण्यैरत श्रवस्येन्द्रं समर्ये महया वसिष्ठ।
आ यो विश्वानि शवस ततानोपश्रोता म ईवतो वचांसि॥
अन्न की इच्छा से सभी स्तोत्र कहे गये हैं। हे वसिष्ठ! आप भी यज्ञ में इन्द्र देवता की स्तुति करें। बल द्वारा उन्होंने समस्त लोकों को व्याप्त किया। मैं उनके पास जाने की इच्छा करत हूँ। वे मेरे स्तुति वचनों को श्रवण करें।[ऋग्वेद 7.23.1]
All Strotr have been composed-recited for the sake of food grains. Hey Vashishth! You should also resort to the worship of Indr Dev. He has pervaded all abodes with strength-power. Let him respond to my prayers-Stuti.
अयामि घोष इन्द्र देवजामिरिरज्यन्त यच्छुरुथो विवाचि।
नहि स्वमायुश्चिकिते जनेषु तानीदंहांस्यति पर्ण्यस्मान्॥
जिस समय औषधियाँ बढ़ती है, उस समय देवताओं के लिए प्रिय शब्द कहे जाते हैं। मनुष्यों में कोई भी आपकी आयु नहीं जान सकता। आप हमें सभी पापों से पार ले जाएँ।[ऋग्वेद 7.23.2]
Sweet-favourable words are recited, liked by demigods-deities, when the medicines increase. None amongest the humans can ascertain your age. Keep us away from sins.
युजे रथं गवेषणं हरिभ्यामुप ब्रह्माणि जुजुषाणमस्थुः।
वि बाधिष्ट स्य रोदसी महित्वेन्द्रो वृत्राण्यप्रती जघन्वान्॥
मैं हरि नाम के दोनों अश्वों के द्वारा इन्द्र देवता के गो प्रापक रथ को नियोजित करता है। इन्द्र देवता स्तोत्रों की सेवा करते हैं। सब लोग उनकी उपासना करते हैं। उन्होंने अपनी महिमा से द्यावा-पृथ्वी को बाधित किया। इन्द्र देवता ने शत्रुओं के बल का नाश किया।[ऋग्वेद 7.23.3]
I deploy the horses named Hari in the charoite of Indr Dev, which is helpful in the recovery of cows. Indr Dev serve the Strotr. All of us worship him. He controlled the heavens & earth by virtue of his glory. Indr Dev destroyed the might of the enemies.
आपश्चित्पिप्युः स्तर्यो३न गावो नक्षन्नृतं जरितारस्त इन्द्र।
याहि वायुर्न नियुतो नो अच्छा त्वं हि धीभिर्दयसे वि वाजान्॥
हे इन्द्र देव! अप्रसूता गाय की तरह जल बढ़े। आपके स्तोता जल व्याप्त करें। जिस प्रकार वायु नियुत (अश्व) के पास आता है, उसी प्रकार आप मेरे निकट आवें। कर्म द्वारा आप अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.23.4]
Hey Indr Dev! Let the waters increase like the un pregnant cow. Let your Stotas pervade waters. The way air comes to the deployed horses, you should come to us. Grant us food grains through endeavours.
ते त्वा मदा इन्द्र मादयन्तु शुष्मिणं तुविराधसं जरित्रे।
एको देवत्रा दयसे हि मर्तानस्मिञ्छूर सवने मादयस्व॥
हे इन्द्र देव! मदकारी सोमरस आपको मत्त करें। स्तोता को बलवान और बहुधनवान पुत्र प्रदान करें। शूर देवताओं में आप अकेले मनुष्यों के प्रति अनुकम्पा प्रदर्शित करते हैं। इस यज्ञ में प्रमत्त होवें।[ऋग्वेद 7.23.5]
Hey Indr Dev! Let the intoxicating Somras make you tipsy. Grant mighty and brave sons to the Stota. Amongest brave demigods-deities; its only you, who accomplish the desires of the humans. Become tipsy in this Yagy.
एवेदिन्द्रं वृषणं वज्रबाहुं वसिष्ठासो अभ्यर्चन्त्र्कैः।
स नः स्तुतो वीर वद्धातु गोमद्यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
वसिष्ठ लोग इसी प्रकार अर्चनीय स्तोत्र द्वारा वज्रबाहु अभीष्ट वर्षी इन्द्र देवता की पूजा करते हैं। स्तुत होकर वे हमें वीर और गौ से युक्त धन प्रदान करते हैं। वे कल्याणकारी साधनों से हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 7.23.6]
The Vashishth clan-descendents worship mighty, Vajr wielding Indr Dev, who accomplish their desires. He grant us brave sons and cows on being worshipped. Let him protect us through welfare means.(21.12.2023)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (24) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
योनिष्ट इन्द्र सदने अकारि तमा नृभिः पुरुहूत प्र याहि।
असो यथा नोSविता वृधे च ददो वसूनि ममदश्च सोमैः॥
आपके गृह के लिए स्थान किया गया है। हे पुरुहुत इन्द्र देव! मरुतों के साथ वहाँ पधारें। जिस प्रकार आप हमारे रक्षक हुए हैं, जिस प्रकार आप हमारी वृद्धि के लिए हुए हैं, उसी प्रकार हमें धन प्रदान करें। हमारे सोम के द्वारा मत्त होवें।[ऋग्वेद 7.24.1]
पुरुहूत :: जिसका आह्वान बहुतों ने किया हो, जिसकी बहुत से लोगों ने स्तुति की हो; invoked, worshiped by several people.
We have made provision for your stay (home). Hey Indr Dev worshiped by many people! Come to us with Marud Gan. The way you are our protector and ensure for our progress; similarly grant us wealth. Become tipsy by consuming our Somras.
गृभीतं ते मन इन्द्र द्विबर्हाः सुतः सोमः परिषिक्ता मधूनि।
विसृष्टधेना भरते सुवृक्तिरियमिन्द्रं जोहुवती मनीषा॥
हे इन्द्र देव! आप दोनों स्थानों में पूज्य हैं। हमने आपके मन को ग्रहण किया है। सोम का हमने अभिषव किया है। हमने मधु को पात्र में परिषिक्त किया है। मध्यम स्वर में कही जाने वाली यह सुसमाप्त स्तुति बार-बार इन्द्र देवता को आह्वान करके उच्चारित होती है।[ऋग्वेद 7.24.2]
परिषिक्त :: जो अच्छी तरह से सींचा गया हो, जिस पर छिड़काव हुआ हो; watered-spread thoroughly.
Hey Indr Dev! You are worshipable at both places. We have understood your innerself and extracted Somras. We have thoroughly mixed honey in the pot. The Stuti-prayer, hymns are recited repeatedly at medium cord, addressing Indr Dev.
आ नो दिव आ पृथिव्या ऋजीषिन्निदं बर्हिः सोमपेयाय याहि।
वहन्तु त्वा हरयो मद्रयञ्चमाङ्गुषमच्छा तवसं मदाय॥
हे इन्द्र देव! आप हमारे इस यज्ञ में सोमपान के लिए स्वर्ग और अन्तरिक्ष से पधारें और आनन्द के लिए हमारे पास अश्व गण स्तोत्र की ओर ले जावें।[ऋग्वेद 7.24.3]
Hey Indr Dev! Join our Yagy to sip Somras from heavens and space. Let the horses respond to our Strotr for pleasure.
आ नो विश्वाभिरूतिभिः सजोषा ब्रह्म जुषाणो हर्यश्व याहि।
वरीवृजत्स्थविरेभिः सुशिप्रास्मे दध वृषणद्षणं शुष्ममिन्द्र॥
हे हरि अश्व और शोभन हनु वाले इन्द्र देव! आप सब प्रकार की रक्षाओं के साथ वृद्ध मरुतों के संग शत्रुओं को मारते हुए हमें अभीष्टवर्षी तथा बलवान पुत्र देते हुए एवं स्तोत्र सेवा करते हुए हमारी ओर आवें।[ऋग्वेद 7.24.4]
Hey owner of the horses named Hari and possessor of beautiful chin Indr Dev! Please come to us with the Marud Gan, killing the enemies with all sorts of protections, grant us mighty son and listen-respond to the Strotr.
एष स्तोमो मह उग्राय वाहे धुरी ३ वात्यो न वाजयन्नधायि।
इन्द्र त्वायमर्क ईट्टे वसूनां दिवीव द्यामधि नः श्रोमतं धाः॥
रथ के अश्व की तरह यह बलकर्ता मन्त्र महान और ओजस्वी इन्द्र देवता को लक्ष्य कर स्थापित हुआ है। हे इन्द्रदेव! स्तोता आपसे धन माँगता है। आप हमें आकाश के स्वर्ग की तरह यशस्वी पुत्र प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.24.5]
This grate powerful Mantr has been composed targeting aurous-radiant Indr Dev, like the horses of the charoite. Hey Indr Dev! The Stota demand-request money from you. Grant us son glorious like the heavens in the sky-space.
एवा न इन्द्र वार्यस्य पूर्धि प्र ते महीं सुमतिं वेविदाम।
इषं पिन्व मघवद्भ्य: सुवीरां यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
हे इन्द्र देव! इस प्रकार आप हमें वरणीय धन प्रदान करें। हम आपका महान अनुग्रह प्राप्त करें। हम हव्य वाले हैं। हमें वीर पुत्र के सहित अन्न व धन प्रदान करें। आप हमें सदा स्वस्ति द्वारा पालित करें।[ऋग्वेद 7.24.6]
Hey Indr Dev! Grant us desirable-suitable wealth. Let us be obliged by you. We make offerings. Grant us brave son and wealth. Nurse us with Swasti.(22.12.2023)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (25) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
आ ते मह इन्द्रोत्युग्र समन्यवो यत्समरन्त सेनाः।
पताति दिद्युन्नर्यस्य बाह्वोर्मा ते मनो विष्वद्रयी ग्व चारीत्॥
हे ओजस्वी इन्द्र देव! आप महान और मनुष्य हितैषी हैं। आपकी सेनाएँ समान हैं; ऐसा अभिमान कर जब युद्ध किया जाता है, तब आपका हस्त स्थित वज्र हमारे त्राण के लिए गिरता है। आपका सर्वतोगामी मन विचलित न हों और आप हमारे लिए हितकारी कार्यों को करें।[ऋग्वेद 7.25.1]
Hey radiant-aurous Indr Dev! You are great and a well wisher of humans. Considering your armies equitable in the war, leads to raising of your arm wielding Vajr to destroy the enemies and our protection. Do not let your innerself divert and continue to perform for our welfare.
नि दुर्ग इन्द्र श्नथिह्यमित्रानभि ये नो मर्तासो अमन्ति।
आरे तं शंसं कृणुहि निनित्सोरा नो भर संभरणं वसूनाम्॥
हे इन्द्र देव! युद्ध में जो मनुष्य हमारे सामने आकर हमारा अभिभव करते हैं, वे ही शत्रुओं का विनाश करते हैं। जो हमारी निन्दा करने की इच्छा करते हैं, उनको दूर कर दें। हमें पर्याप्त धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.25.2]
अभिभव :: पराजय, तिरस्कार, अनादर, अनहोनी बात, विलक्षण घटना, प्राबल्य, अधिकता; constraint, surrender.
Hey Indr Dev! One who constraint us in the war, destroy the enemy. Those who wish to reproach us, be kept away from us. Grant us sufficient money-riches.
शतं ते शिप्रिन्नूतयः सुदासे सहस्त्रं शंसा उत रातिरस्तु।
जहि वधर्वनुषो मर्त्यस्यास्मे द्युम्नमधि रत्नं च धेहि॥
आप सैकड़ों रक्षा साधनों से हमें संरक्षित करें। हम आपके उत्तम भक्त हैं। आपके द्वारा प्रदत्त धन के हम स्वामी हों। हिंसाकारी शत्रुओं के आयुधों को आप नष्ट करें तथा हमें यश और रत्नादि प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.25.3]
Protect with hundreds of protective means. We are excellent devotees. We should be owner of the wealth granted by you. Destroy the violent enemies with weapons and grant us glory and jewels-gems.
त्वावतो हीन्द्र क्रत्वे अस्मि त्वावतोऽवितुः शूर रातौ।
विश्वेदहानि तविषीव उग्रँ ओकः कृणुष्व हरिवो न मर्धीः॥
हे इन्द्र देव! मैं आपके समान मनुष्यों के कर्म में नियुक्त हूँ। आपके समान रक्षक व्यक्ति के दान में नियुक्त हूँ। हे बलवान् और ओजस्वी इन्द्रदेव! समस्त दिन हमारे लिए स्थान बनावें। हे हरि वाले इन्द्र देव! हमारी हिंसा न करें।[ऋग्वेद 7.25.4]
Hey Indr Dev! I am deployed to perform the endeavours of the humans like you and donations like a protector like you. Hey mighty and aurous Indr Dev! Let all days be made for us. Hey owner of the Hari named horses, Indr Dev! Do not harm us.
कुत्सा एते हर्यश्वाय शूषमिन्द्रे सहो देवजूतमियानाः।
सत्रा कृधि सुहना शूर वृत्रा वयं तरुत्राः। सनुयाम वाजम्॥
हम हर्यश्व इन्द्र देवता के लिए सुखकर स्तोत्र कहते हुए और इन्द्र देवता से देव प्रेरित बल की याचना करते हुए, समस्त दुःखों को लाँधकर बल प्राप्त करेंगे। हम हवि वाले हैं। हमें वीर पुत्र और अन्न प्रदान करें। आप हमें सदा स्वस्ति द्वारा पालित करें।[ऋग्वेद 7.25.5]
हर्यश्व :: जब प्रजापति दक्ष की बनाई मानस सृष्टि में वृद्धि नही हुई तो ब्रह्मा जी ने उन्हें मैथुनी सृष्टि की रचना करने की प्रेरणा दी। इस प्रकार दक्ष ने असिक्नी से विवाह किया। असिक्नी के गर्भ से दस हजार पुत्र उत्पन्न हुए जो हर्यश्व कहलाए।
We will recite comforting Strotr for Haryasv Indr Dev, worshiping him for the strength inspired by the divinity overcoming all pains & sorrow. We make offerings. Grant us brave son and food grains. Nurse with your Swasti.
एवा न इन्द्र वार्यस्य पूर्धि प्र ते महीं सुमतिं वेविदाम।
इषं पिन्व मघवद्भयः सुवीरां यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
हे इन्द्र देव! आपके द्वारा प्रेरित उत्तम बुद्धि हम प्राप्त करें। आप हमें संरक्षणीय धन से पूर्ण करें। हम हवि देने वालों को आप वीर पुत्र सहित अन्न प्रदान करें। आप कल्याणकारी साधनों के द्वारा हमें सुरक्षा प्रदत्त करें।[ऋग्वेद 7.25.6]
Hey Indr Dev! Let us have excellent intelligence. Accomplish us with protected wealth. Grant us, the ones making offerings, brave son and food grains. Ensure our protection though welfare means.(22.12.2023)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (26) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
न सोम इन्द्रमसुतो ममाद नाब्रह्माणो मघवानं सुतासः।
तस्मा उक्थं जनये यज्जुजोषन्नृवन्नवीयः शृणवद्यथा नः॥
जो सोम धनाधिपति इन्द्र देवता के लिए अभिषुत नहीं हैं, उससे तृप्ति नहीं होती। अभिषुत होने पर भी स्तोत्र हीन सोमरस तृप्तिकर नहीं होता। हम लोगों का जो स्तोत्र इन्द्र देवता की सेवा करता है और राजा जिसे श्रवण करता है, उसी नवीन स्तोत्र का पाठ इन्द्र देवता के लिए मैं करता हूँ।[ऋग्वेद 7.26.1]
Somras does not give satisfaction if its not extracted for the lord of wealth Indr Dev. Even when extracted its not effective its not supported by Strotr. Our new Strotr that serves & satisfy Indr Dev and the kings, I recite it for Indr Dev.
उक्थउक्थे सोम इन्द्रं ममाद नीथेनीथे मघवानं सुतासः।
यदीं सबाधः पितरं न पुत्राः समानदक्षा अवसे हवन्ते॥
प्रत्येक स्तोत्र पाठकाल में अभिषुत सोमरस इन्द्र देवता को तृप्त करते हैं। जिस प्रकार पुत्र पिता को बुलाता है, उसी प्रकार से ही रक्षा के लिए परस्पर मिलित और समान उत्साह वाले ऋत्विक्लोग इन्द्र देवता का आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 7.26.2]
Every Strotr satisfy Indr Dev during the recitation of which, Somras is extracted. The Ritviz connected together excitedly invoke Indr Dev just like the son who call his father for protection.
चकार ता कृणवन्नूनमन्या यानि ब्रुवन्ति वेधसः सुतेषु।
जनीरिव पतिरेकः समानो नि मामृजे पुर इन्द्रः सु सर्वाः॥
सोम के अभिषुत होने पर स्तोता लोग जिन सब कर्मों की बातें कहते हैं, उस समस्त कर्मों को प्राचीन काल में इन्द्र देवता ने किया था। इस समय अन्य कर्म भी करते हैं। जिस प्रकार पति पत्नी का परिमार्जन करता है, उसी प्रकार से ही समवृत्ति और सहायक शून्य इन्द्र देवता ने शत्रुओं की नगरियों का परिमार्जन किया।[ऋग्वेद 7.26.3]
परिमार्जन :: साफ़ करने हेतु धोना, साफ़ करना, साहित्यिक त्रुटियों को दूर करना; scrape, scour.
Indr Dev performed all such deeds which were described-discussed by the Stotas during the extraction of Somras. During this period other jobs too are conducted. The way a husband scour the wife, Indr Dev with balanced nature, scrape the forts-cities of the enemies without the aid of anyone-helpers.
एवा तमाहुरुत शृण्व इन्द्र एको विभक्ता तरणिर्मघानाम्।
मिथस्तुर ऊतयो यस्य पूर्वीरस्मे भद्राणि सश्चत प्रियाणि॥
परस्पर मिली इन्द्र देवता की अनेक रक्षाएँ हैं; ऋत्विकों ने इन्द्र देवता के बारे में ऐसा कहा है। यह भी सुना जाता है कि इन्द्र देवता पूजनीय धन को देने वाले और विपत्तियों से उद्धार करने वाले हैं। वे देव हमारा कल्याण करें।[ऋग्वेद 7.26.4]
The Ritviz said that there are mutual safety means of Indr Dev. Its said that Indr Dev grant worshipable wealth and lift out of troubles. Let him resort to out welfare.
एवा वसिष्ठ इन्द्रमूतये नॄन्कृष्टीनां वृषभं सुते गृणाति।
सहस्त्रिण उप नो माहि वाजान्यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
रक्षा के लिए और प्रजा के अभीष्टवर्षण के लिए सोमाभिषव में वसिष्ठ इन्द्र देवता की ऐसी स्तुति करते हैं, जिससे इन्द्र देवता हमें नाना प्रकार के अन्न प्रदान करते हुए हमारा कल्याण करें।[ऋग्वेद 7.26.5]
Vashishth worship Indr Dev for the protection of populace and accomplishment of their desires, so that he grant us various kinds of food grains and look to our welfare.(23.12.2023)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (27) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
इन्द्रं नरो नेमधिता हवन्ते यत्पार्या युनजते धियस्ताः।
शूरो नृषाता शवसश्चकान आ गोमति व्रजे भजा त्वं नः॥
जिस समय युद्ध की तैयारी की तैयारी के कार्य किये जाते हैं, उस समय लोग युद्ध में आपका आवाहन करते हैं। हे इन्द्र देव! आप मनुष्यों के लिए धनदाता और बलाभिलाषी होकर हमें गौपूर्ण गोष्ठ में ले जावें।[ऋग्वेद 7.27.1]
The populace invoke you when preparation for the war are on. Hey Indr Dev! You should become the grantor of wealth to humans and desirous of strength, take us to the cowshed full of cows.
य इन्द्र शुष्मो मघवन्ते अस्ति शिक्षा सखिभ्यः पुरुहूत नृभ्यः।
त्वं हि दृळ्हा मघवन्विचेता अपा वृधि परिवृतं न राधः॥
हे पुरुहूत इन्द्र देव! आपके पास जो बल है, उसे स्तोताओं को दें। आपने सुदृढ़ पुरियों को छिन्न-भिन्न किया; इसलिए प्रज्ञा का प्रकाश करते हुए गुप्त धन को प्रकट कर दें।[ऋग्वेद 7.27.2]
Hey Indr Dev, invoked by many! Grant your strength to the Stotas. You destroyed strong the forts-cities of the enemies. Grant us the secret wealth.
इन्द्रो राजा जगतश्चर्षणीनामधि क्षमि विषुरूपं यदस्ति।
ततो ददाति दाशुषे वसूनि चोदद्राध उपस्तुतश्चिदर्वाक्॥
इन्द्र देवता जङ्गम जगत और मनुष्यों के राजा हैं। पृथ्वी में तरह-तरह के जो धन हैं, उनके भी राजा यही हैं। इन्द्र देवता हव्यदाता को धन देते हैं। वहीं इन्द्र देवता हमारे द्वारा स्तुत होकर हमारे समक्ष धन भेजें।[ऋग्वेद 7.27.3]
Indr Dev is the lord of the vast universe and the humans. He is the lord of various kinds of riches over the earth. He grants riches to one who make offerings. Let him invoke before us, get worshipped & grant wealth.
नू चिन्न इन्द्रो मघवा सहूती दानो वाजं नि यमते न ऊती।
अनूना यस्य दक्षिणा पीपाय वामं नृभ्यो अभिवीता सखिभ्यः॥
हमने धनी और दानी इन्द्र देवता को मरुतों के साथ बुलाया है; इसलिए वह हमारी रक्षा के लिए शीघ्र अन्न भेजें। ये इन्द्र देवता ही मित्रों को जो सम्पूर्ण और सर्वव्यापी दान करते हैं, वही दान श्रेष्ठ मनुष्यों के लिए प्रकट करते हैं।[ऋग्वेद 7.27.4]
प्रकटीकरण :: आविर्भाव, उद्घाटन, चकरानेवाला, पर्दाफ़ाश; evolution, disclosure, manifestation, divulgation, divulgement.
We have invoked donor Indr Dev and the Marud Gan for granting us food grains quickly. Indr Dev make all sorts of donation to the friends leading to the evolution of best donations for the excellent humans.
नू इन्द्र राये वरिवस्कृधी न आ ते मनो ववृत्याम मघाय।
गोमदश्वावद्रथवद्वयन्तो यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
हे इन्द्र देव! धन प्राप्ति के लिए हमें शीघ्र धन प्रदान करें। पूज्य स्तुति द्वारा हम आपके मन को (अपनी ओर) खींच लेंगे। आप गौ, अश्व, रथ और धन से युक्त हों। आप सदैव स्वस्ति द्वारा हमारा पालन करें।[ऋग्वेद 7.27.5]
Hey Indr Dev! Grant us wealth quickly. Let us attract you towards us through virtuous prayers. You should possess cows, chariots and wealth. Nourish us with Swasti.(23.12.2023)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (28) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
ब्रह्माण इन्द्रोप याहि विद्वानर्वाश्चस्ते हरयः सन्तु युक्ताः।
विश्वे चिद्धि त्वा विहवन्त मर्ता अस्माकमिच्छृणुहि विश्वमिन्व॥
हे इन्द्र देव! आप जानकर हमारे स्तोत्र की ओर आवें। आपके अश्व हमारे सामने जोते जाएँ। हे सबको हर्ष देने वाले इन्द्र देव! यद्यपि अलग-अलग सभी मनुष्य आपको बुलाते हैं, फिर भी आप हमारा ही आह्वान सुनते हैं।[ऋग्वेद 7.28.1]
Hey Indr Dev! You should know-recognise our Strotr. Let your horses be deployed in front of us. Hey Indr Dev, granting pleasure to everyone! Though all humans invoke you separately, yet you respond to our invocation only.
हवं त इन्द्र महिमा व्यानड् ब्रह्म यत्पासि शवसिन्नृषीणाम्।
आ यद्वत्रं दधिषे हस्त उग्र घोरः सन्क्रत्वा जनिष्ठा अषाळ्हः॥
हे बली इन्द्र देव! जिस समय आप ऋषियों के स्तोत्रों की रक्षा करते हैं, उस समय आपकी महिमा स्तोता को व्याप्त करती हैं। हे ओजस्वी इन्द्र देवता! जिस समय आप हाथ में वज्र धारण करते हैं, उस समय कर्म द्वारा भयङ्कर होकर शत्रुओं के लिए दुर्द्धर्ष हो जाते हैं।[ऋग्वेद 7.28.2]
Hey mighty Indr Dev! When you protect the Rishis, your glory pervade the recitators-Stotas. Hey aurous Indr Dev! When you wield Vajr in your hands, you become furious performer & invincible for the enemies.
तव प्रणीतीन्द्र जोहुवानान्त्सं यन्नृन्न रोदसी निनेथ।
महे क्षत्राय शवसे हि जज्ञेऽतूतुजिं चित्तूतुजिरशिश्नत्॥
हे इन्द्र देव! आपके उपदेश के अनुसार जो लोग बार-बार स्तुति करते हैं, उन्हें आप द्युलोक और भूलोक में सुप्रतिष्ठित करते हैं। आप महाबल और महाधन के लिए उत्पन्न हुए हैं, इसलिए जो आपके उद्देश्य से यज्ञ करता है, वह अयाज्ञिकों को मारने में समर्थ होता है।[ऋग्वेद 7.28.3]
Hey Indr Dev! Those who worship you as per your instructions-advice repeatedly, you establish them in the heavens and the earth. You evolved for extreme power-strength and wealth. One who perform Yagy for your sake, become capable of killing those who obstruct Yagy.
एभिर्न इन्द्राहभिर्दशस्य दुर्मित्रासो हि क्षितयः पवन्ते।
प्रति यचचष्टे अनृतमनेना अव द्विता वरुणो मायी नः सात्॥
हे इन्द्र देव! दुष्ट मित्र भूत मनुष्य आते हैं। उनसे धन लेकर इन सारे दिनों में हमें प्रदान करें। पाप घातक और बुद्धिमान वरुण हमारे सम्बन्ध में जो पाप देख पावें, उसे दो तरह से छुड़ावें।[ऋग्वेद 7.28.4]
Hey Indr Dev! Wicked-vicious people arrive as friends. Take the riches from them and provide to us all these days. Remover of sins, intelligent Varun Dev should release us from the sins in two ways.
वोचेमेदिन्द्रें मघवानमेनं महो रायो राधसो यद्ददन्नः।
यो अर्चतो ब्रह्मकृतिमविष्ठो यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
जिन इन्द्र देवता ने हमें भली-भाँति आराध्य महाधन दिया है और जो स्तोता के स्तोत्र कार्य की रक्षा करते हैं, उस इन्द्र देवता की हम स्तुति करते हैं। वे धनवान इन्द्र देव सदैव हमारा पालन करते हुए हमारा कल्याण करें।[ऋग्वेद 7.28.5]
We worship Indr Dev who protects the prayers of the Stota and has given us great riches. Let Indr Dev nourish-nurture us resorting to our welfare.(24.12.2023)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (29) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
अयं सोम इन्द्र तुभ्यं सुन्व आ तु प्र याहि हरिवस्तदोकाः।
पिबा त्व १ स्य सुषुतस्य चारोर्ददो मघानि मघवन्नियानः॥
हे इन्द्र देव! आपके लिए यह सोम अभिषुत हुआ है। हे हरि अश्व वाले इन्द्र देव! उस सोम की सेवा के लिए शीघ्र पधारें। भली-भाँति अभिषुत सोमरस का पान करें। हम याचना करते हैं, हमें धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.29.1]
Hey Indr Dev! This Som has been extracted for you. Hey master of the horses called Hari, Indr Dev! Come quickly to be served with Somras. We request you for riches-wealth.
ब्रह्मन्वीर ब्रह्मकृतिं जुषाणोऽर्वाचीनो हरिभिर्याहि तूयम्।
अस्मिन्नू षु सवने मादयस्वोप ब्रह्माणि शृणव इमा नः॥
हे ब्रह्मन और वीर इन्द्र देव! स्तोत्र कार्य का सेवन करते हुए अश्वों पर सवार होकर शीघ्र हमारी ओर आवें। इस यज्ञ में भली-भाँति प्रसन्न होकर हमारे इन स्तोत्रों को श्रवण करें।[ऋग्वेद 7.29.2]
Hey brae Brahman Indr Dev! Ride the horses to reach quickly to attend the Strotr preformation. Listen to these Strotr attentively, being happy-satisfied in the Yagy.
का ते अस्त्यरकृतिः सूक्तैः कदा नूनं ते मघवन् दाशेम।
विश्वा मतीरा ततने त्वायाधा म इन्द्र शृणवो हवेमा॥
हे इन्द्र देव! हम जिन सूक्तों द्वारा आपकी स्तुति करते हैं, उससे कैसी शोभा होती है? हम आपको कैसे प्रसन्न करें? आपकी अभिलाषा से ही मैं सभी स्तुति करता हूँ, इसलिए हे इन्द्र देव! मेरी इन स्तुतियों को श्रवण करें।[ऋग्वेद 7.29.3]
Hey Indr Dev! Describe the glory of the Strotr with which we worship you. How can we please you? I pray with the desire of meeting you. Hence, hey Indr Dev! Listen-respond to my prayers-Stuti.
उतो घा ते पुरुष्या ३ इदासन्येषां पूर्वेषामशृणोऋषीणाम्।
अधाहं त्वा मघवञ्जोहवीमि त्वं न इन्द्रासि प्रमतिः पितेव॥
हे इन्द्र देव! आपने जिन ऋषियों की स्तुति सुनी, वे प्राचीन ऋषि लोग मनुष्यों के हितैषी हैं, फलतः मैं आपका बार-बार आह्वान करता हूँ। क्योंकि पिता की तरह आप हमारे हितैषी हैं।[ऋग्वेद 7.29.4]
Hey Indr Dev! I repeatedly invoke the ancient Rishis, who are the well wishers of humans & who's prayers were responded by you; since you are our well wisher like a father.
वोचेमेदिन्द्रं मघवानमेनं महो रायो राधसो यद्ददन्नः।
यो अर्चतो ब्रह्मकृतिमविष्ठो यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
जिन इन्द्र देवता ने हमें भली-भाँति आराध्य और महाधन प्रदान किया है और जो स्तोता के स्तोत्र कार्य की रक्षा करते हैं; उन धनी इन्द्र देवता की हम स्तुति करते हैं। वे धनवान इन्द्र देवता सदैव हमारा पालन और कल्याण करें।[ऋग्वेद 7.29.5]
We worship wealthy Indr Dev who granted glorious wealth to us and protect the Strotr of the Stota. Hey wealthy Indr Dev always nurse-nurture and resort to our welfare.(24.12.2023)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (30) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
आ नो देव शवसा याहि शुष्मिन्भवा वृध इन्द्र रायो अस्य।
मह नृम्णाय नृपते सुवज्र महि क्षत्राय पौंस्याय शूर॥
हे बली और ज्योतिष्मान इन्द्र देव! बल के साथ हमारे समीप पधारें। हमारे धन के वर्द्धक बनें। हे सुवज्र और नृपति इन्द्र देव! महाबली होवें और शत्रु मारक पुरुषार्थ की वृद्धि करें।[ऋग्वेद 7.30.1]
Hey mighty & radiant Indr Dev! Come to us with your might, power, strength. Hey Vajr wielding and the lord of humans Indr Dev! Possess extreme might and boost your capability.
हवन्त उ त्वा हव्यं विवाचि तनूषु शूराः सूर्यस्य सातौ।
त्वं विश्वेषु सेन्यो जनेषु त्वं वृत्राणि रन्धया सुहन्तु॥
हे इन्द्र देव! आप आह्वान के योग्य हैं। महाकोलाहल के समय शरीर रक्षा के लिए और सूर्य देव को पाने के लिए लोग आपका आवाहन करते हैं। सब मनुष्यों में आप ही सेना के योग्य है। सुहन्त नाम के वज्र द्वारा शत्रुओं को पराजित करके हमारे अधीन करें।[ऋग्वेद 7.30.2]
कोलाहल :: शोर-गुल, हल्ला-गुल्ला; clamour, uproar.
Hey Indr Dev! You deserve invocation. Populace invoke you for the protection of their body and seeking Sury Dev-Sun. You are the only one eligible for army, amongest the humans. Defeat the enemy with the Vajr named Sumant.
अहा यदिन्द्र सुदिना व्युच्छान्दधो यत्केतुमुपमं समत्सु।
न्य१ग्निः सीददसुरो न होता हुवानो अत्र सुभगाय देवान्॥
हे इन्द्र देव! जब अच्छे दिन होते हैं, जब आप अपने को युद्ध के समीपवर्ती जानते हैं, तब होताग्नि हमें उत्तम धन देने के लिए देवताओं को बुलाते हुए इस यज्ञ में विराजते हैं।[ऋग्वेद 7.30.3]
Hey Indr Dev! During the good-auspicious period you sense- recognise the war around you, the Hotagni invoke the demigods-deities for granting us best wealth and present yourself in the Yagy.
वयं ते त इन्द्र ये च देव स्तवन्त शूर ददतो मघानि।
यच्छा सूरिभ्य उपमं वरूथं स्वाभुवो जरणामश्नवन्त॥
हे इन्द्र देव! हम आपके हैं। जो आपको पूजनीय हव्य देते हुए स्तुति करते हैं, वे भी आपके ही हैं। उन्हें श्रेष्ठ गृह प्रदान करें। वे सुसमृद्ध होकर वृद्धावस्था में सुख से रहें।[ऋग्वेद 7.30.4]
Hey Indr Dev! We belong to you. Those who make worshipable offerings too belong to you. Grant them best houses. Let them become wealthy-prosperous and remin comfortable during old age.
वोचेमेदिन्द्रं मघवानमेनं महो रायो राधसो यद्ददन्नः।
यो अर्चतो ब्रह्मकृतिमविष्ठो यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
जिन इन्द्र देवता ने हमें भली-भाँति आराध्य महाधन दिया और जो स्तोता के स्तोत्र कार्य की रक्षा करते हैं, उन्हीं धनी इन्द्र देवता की हम स्तुति करते हैं। वे हमारा सदैव पालन करते हुए कल्याण करें।[ऋग्वेद 7.30.5]
We worship Indr Dev who granted us ultimate wealth, protect the Strotr recitations of the Stotas. Let him always adopt welfare means for us.(25.12.2023)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (31) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
प्र व इन्द्राय मादनं हर्यश्वाय गायत। सखायः सोमपाव्ने॥
हे साधकों! आप लोग हर्यश्व और सोमपायी इन्द्र देवता के लिए आनन्द प्रदान करने वाले स्तोत्रों का गान करें।[ऋग्वेद 7.31.1]
Hey devotees-practitioners! Recite the sacred hymns-Strotr addressed to Haryashrav-Indr Dev for his pleasure.
शंसेदुक्थं सुदानव उत द्युक्षं यथा नरः। चकृमा सत्यराधसे॥
शोभनदानी और सत्य धन इन्द्र देवता के लिए जिस प्रकार स्तोता दीप्त स्तोत्र का पाठ करता है, उसी प्रकार आप भी करें; हम भी करेंगे।[ऋग्वेद 7.31.2]
Make recitations like the Stota who recite aurous Strotr for the glorious and truthful Indr Dev. We will follow you.
त्वं न इन्द्र वाजयुस्त्वं गव्युः शतक्रतो। त्वं हिरण्ययुर्वसो॥
हे इन्द्र देव! आप हमारे लिए अन्नाभिलाषी होवें। हे सौ यज्ञ करने वाले इन्द्र देवता! आप हमें अन्न, गौ और सुवर्ण प्रदत्त करें।[ऋग्वेद 7.31.3]
Hey Indr Dev! Seek food grains for us. Hey performer of hundred Yagy Indr Dev! Grant us food grains, cows and gold.
वयमिन्द्र त्वायवोऽभि प्र णोनुमो वृषन्। विद्धी त्व १ स्य नो वसो॥
हे अभीष्ट वर्षक इन्द्र देव! आपकी इच्छा करके हम विशेष रूप से स्तुति करते हैं। हे वासप्रद इन्द्र देव! आप शीघ्र हमारी स्तुति पर ध्यान देने की कृपा करें।[ऋग्वेद 7.31.4]
Hey desires accomplishing Indr Dev! We make worship-prayers addressed to you. Hey residence granting Indr Dev! Respond to our prayers quickly.
मा नो निदे च वक्तवेऽर्यो रन्धीरराव्णे। त्वे अपि क्रतुर्मम॥
हे आर्य इन्द्र देव! जो कठोर वचन बोलता है, जो निन्दा करता है और जो दान नहीं करता, उसके वशीभूत में हमें न करें। आपसे हम लोग ऐसी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 7.31.5]
Hey Pious, virtuous, righteous truthful Indr Dev! We pray to you that do not let us be controlled by one, who condemn, speak unpleasant words and do not make donations.
त्वं वर्मासि सप्रथः पुरोयोधश्च वृत्रहन्। त्वया प्रति ब्रुवे युजा॥
हे वृत्र घातक इन्द्र देव! आप हमारे कवच हैं। आप सर्वत्र प्रसिद्ध हैं। आप सम्मुख युद्ध करने वाले हैं। आपकी सहायता से मैं शत्रुओं का वध करूँगा।[ऋग्वेद 7.31.6]
Hey destroyer by Vajr Indr Dev! You are our shield-protector. You are famous every where. I will slay the enemy with your help.
महाँ उतासि यस्य तेऽनु स्वधावरी सहः। मम्नाते इन्द्र रोदसी॥
अन्न सम्पन्न द्यावा-पृथ्वी भी जिन इन्द्र देवता के बल को प्रणाम करती हैं। वह महान इन्द्र देव आप ही हैं।[ऋग्वेद 7.31.7]
Prosperous with food grains heavens & earth salute to the might of whom, that great Indr Dev is you.
तं त्वा मरुत्वती परि भुवद्वाणी सयावरी। नक्षमाणा सह द्युभिः॥
हे इन्द्र देव! आपकी सहचरी, तेजोयुक्ता और स्तोत्र सम्पन्ना स्तुति आपको चारों ओर से पहुँचें।[ऋग्वेद 7.31.8]
Hey Indr dev! Let your companion, possessing aura enriched with Strotr, prayers reach you; from all directions.
ऊर्ध्वासस्त्वान्विन्दवो भुवन्दस्ममुप द्यवि। सं ते नमन्त कृष्टयः॥
आप स्वर्ग के पास स्थित और दर्शनीय हैं। हमारे सब सोम आपके उद्देश से प्रस्तुत हैं। सभी लोग आपको नमन करते हैं।[ऋग्वेद 7.31.9]
You are placed close to the heavens and beautiful-glorious. All of our Som (Somras) are ready for you. We all bow before you.
प्र वो महे महिवृधे भरध्वं प्रचेतसे प्र सुमतिं कृणुध्वम्।
विशः पूर्वीः प्र चरा चर्षणिप्राः॥
हे मनुष्यों! आप महाधन के वर्द्धक हैं। महान इन्द्र देवता के उद्देश से सोमरस बनावें। प्रकृष्ट बुद्धि को लक्ष्य कर प्रहृष्ट स्तुति करें। प्रजाओं के अभिलाषा पूरक आप उन लोगों के अभिमुख आगमन करें, जो आपको हव्य द्वारा पूर्ण करते हैं।[ऋग्वेद 7.31.10]
प्रहृष्ट :: अत्यंत प्रसन्न, उठा हुआ, खड़ा हुआ, आह्लादित; delightful.
Hey Humans! You are promotor of great wealth. Produce Somras for Indr Dev. Target the best intelligence making prayers to delight. Move to the populace who make offerings to you for accomplishing their desires.
उरुव्यचसे महिने सुवृक्तिमिन्द्राय ब्रह्म जनयन्त विप्राः।
तस्य व्रतानि न मिनन्ति धीराः॥
जो इन्द्र देवता अतीव व्यापक और महान हैं, उन्हें लक्ष्यकर मेधावी लोग स्तुति और हव्य प्रदान करते हैं। उन इन्द्र देवता के व्रत आदि कर्मों को धीर पुरुष हिंसित नहीं कर सकते।[ऋग्वेद 7.31.11]
The intelligent make prayers addressed to the great and vastly pervaded Indr Dev making offerings for him. Activities of Indr dev do not harm the patient person.
इन्द्रं वाणीरनुत्तमन्युमेव सत्रा राजानं दधिरे सहध्यै।
हर्यश्वाय बर्हया समापीन्॥
सब प्रकार से समस्त जगत के ईश्वर और अबाधित क्रोध इन्द्र देव की सारी स्तुतियाँ शत्रुओं के पराभव का कारण बनती हैं। इसलिए, हे स्तोताओं! इन्द्र देवता की स्तुति के लिए स्वजनों को उत्साहित करें।[ऋग्वेद 7.31.12]
Lord of the universe by all means Indr Dev, with uncontrolled anger leads to the downfall of the enemies. Hence, Hey Stotas! Encourage your own people for the worship of Indr Dev.(25.12.2023)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (32) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
मो षु त्वा वाघतश्चनारे अस्मन्नि रीरमन्।
आरात्ताच्चित् सधमादं न आ गहीह वा सन्नुप श्रुधि॥
हे इन्द्र देव! हमसे दूर ये यजमान गण भी आपके साथ रमण न करें। आप दूर रहने पर भी हमारे यज्ञ में पधारकर स्तुति श्रवण करें।[ऋग्वेद 7.32.1]
Hey Indr Rev! Do not let these Ritviz accompany you away from us. You should join our Yagy, listen to Stuti-prayers, even if you are away from us.
इमे हि ते ब्रह्मकृतः सुते सचा मधौ न मक्ष आसते।
इन्द्रे कामं जरितारो वसूयवो रथे न पादमा दधुः॥
जिस प्रकार से मधु (शहद) पर मधु मक्षिका बैठती हैं, उसी प्रकार से ही स्तोता लोग आपके लिए सोमरस के तैयार होने पर बैठते हैं। जिस प्रकार रथ पर पैर रखा जाता है, उसी प्रकार से ही धनकामी स्तोता लोग इन्द्र देवता को स्तुति समर्पित करते हैं।[ऋग्वेद 7.32.2]
The Stota gets ready for your arrival as soon as the Somras is ready, just like the honey bee sitting over the honey comb. Stotas desirous of wealth-money, pray to Indr Dev like putting food over the charoite.
रायस्कामो वज्रहस्तं सुदक्षिणं पुत्रो न पितरं हुवे॥
जिस प्रकार पुत्र पिता को बुलाता है, उसी प्रकार मैं धनाभिलाषी होकर सुन्दर दान देने बाले इन्द्र देव का आवाहन करता हूँ।[ऋग्वेद 7.32.3]
Desirous of wealth-money, I invoke Indr Dev who make nice donations, the way a son calls his father.
इम इन्द्राय सुन्विरे सोमासो दध्याशिरः।
ताँ आ मदाय वज्रहस्त पीतये हरिभ्यां याह्योक आ॥
दही मिला ये सोमरस इन्द्र देवता के लिए प्रस्तुत हुआ है। हे वज्र हस्त इन्द्र देव! आनन्द के लिए उस सोमरस के पान के निमित्त अश्व पर बैठकर यज्ञ मण्डप की ओर आवें।[ऋग्वेद 7.32.4]
Somras mixed with curd has been prepared for Indr Dev. Hey Vajr wielding Indr Dev! Ride the back of the horse and come to the Yagy Mandap for drinking Somras.
श्रवच्छुत्कर्ण ईयते वसूनां नू चिन्नो मर्धिषद्गिरः।
सद्यश्चिद्यः सहस्त्राणि शता ददन्नकिर्दित्सन्तमा मिनत्॥
याचना सुनने के कर्ण वाले इन्द्र देवता के पास हम धन की याचना करते हैं। वे हमारी प्रार्थना को सुनें, वाक्य निष्फल न करें। जो इन्द्र देवता याचना करते ही तत्काल सैकड़ों और सहस्रों दान करते हैं, उन दानाभिलाषी इन्द्र देवता को कोई रोक नहीं सकता।[ऋग्वेद 7.32.5]
We request for money to Indr Dev possessing ears for listening to our prayers. He should respond to us making our prayers fruitful. None can stop Indr Dev desirous of making charity, from donating hundreds and thousands at once, to one who request him for money.
स वीरो अप्रतिष्कुत इन्द्रेण शूशुवे नृभिः।
यस्ते गभीरा सवनानि वृत्रहन्त्सुनोत्या च धावति॥
हे वृत्र घातक इन्द्र देव! जो आपके लिए गंभीर सोमरस का अभिषव करते हुए आपका अनुगमन करता है, वह वीर है। उसके विरुद्ध कोई कुछ नहीं बोल सकता। वह परिचारकों के द्वारा सदैव घिरा रहता है।[ऋग्वेद 7.32.6]
Hey slayer of Vratr, Indr Dev! One who follows and extract-prepares concentrated Somras for you, is brave. None can talk-speak against him. He is always surrounded by servants.
भवा वरूथं मघवन्मघोनां यत्समजासि शर्धतः।
वि त्वाहतस्य वेदनं भजेमह्या दूणाशो भरा गयम्॥
हे धनवान इन्द्र देव! आप हव्य दाताओं के उपद्रव निवारक कवच बनें। उत्साही शत्रुओं का नाश करें। आपने जिन शत्रुओं का विनाश किया है, उनका धन हमें बाँट दें। आपको कोई विनष्ट नहीं कर सकता। आप हमें अविनाशी धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.32.7]
उपद्रव :: अशांति, बाधा, विकार, अव्यवस्था, विशृंखलता; disturbance, disorder.उत्साही :: उत्साहयुक्त, उत्साहशील, सरगर्म, पुरजोश, उत्कट, उत्सुक, परितप्त; enthusiastic, zealous, ardent.
Hey wealthy Indr Dev! Become the shield of those making offerings for protection from disturbances. Destroy the zealous enemies. Distribute the wealth of the enemies who have been killed by you, amongest us. None can destroy you. Grant us imperishable wealth.(26.12.2023)
सुनोता सोमपाव्ने सोममिन्द्राय वज्रिणे।
पचता पक्तीरवसे कृणुध्वमित्पृणन्नित्पृणते मयः॥
हे याजकों! वज्रधर और सोमपायी इन्द्र देवता के लिए सोमरस का अभिषव करो। इन्द्र देवता की तृप्ति के लिए पचाये जाने योग्य पुरोडाश आदि पकाओ और किए जाने योग्य कार्य का सम्पादन करो। यजमान को सुख देते हुए इन्द्र देवता स्वयं हविष्यान्न ग्रहण करते हैं।[ऋग्वेद 7.32.8]
Hey Ritviz! Extract Somras for Vajr wielding Somras drinking Indr Dev. Back Purodas for the gratification of Indr Dev, which can be digested and complete the related jobs. Indr Dev himself accept the offerings of food grains for the satisfaction of the Ritviz-host.
मा त्रेधत सोमिनो दक्षता महे कृणुध्वं राय आतुजे।
तरणिरिज्जयति क्षेति पुष्यति न देवासः कवत्नवे॥
सोम वाले यज्ञ का विनाश न करना। उत्साही बनो। महान और रिपु घातक इन्द्र देवता को लक्ष्य करके धनप्राप्ति के लिए कर्म करो। शीघ्रता से कार्य करने वाला व्यक्ति ही विजय प्राप्त कर, निवास करता हुआ पुष्ट होता है। कुत्सित कर्म करने में देवगण भी सहायता नहीं करते।[ऋग्वेद 7.32.9]
कुत्सित :: छोटा, तुच्छ, शीतला रोग से ग्रस्त, निकम्मा, घिनौना, वमनजनक, मग़रूर, दुष्ट, घमंडी, कफ निकलनेवाला; ugly, sickening, snotty, measly.
Do not destroy the Yagy associated with Som. Be enthusiastic. Make efforts for earning money-wealth addressing great killer of the enemies, Indr Dev. One who act quickly attain victory while the inactive-lazy become fat. The demigods-deities do not help in measly acts.
नकिः सुदासो रथं पर्यास न रीरमत्।
इन्द्रो यस्याविता यस्य मरुतो गमत्स गोमति व्रजे॥
सुन्दर दान देने वाले व्यक्ति का रथ कोई दूर नहीं फेंक सकता और उसे कोई रोक भी नहीं सकता। जिसके रक्षक इन्द्र देवता और मरुद्गण हैं, वह गौओं वाले गोष्ठ में जाता है।[ऋग्वेद 7.32.10]
None can neither stop one who make beautiful donations nor throw off his charoite. One protected by Indr Dev & Marud Gan visits the cow shed.
गमद्वाजं वाजयन्निन्द्र मर्यो यस्य त्वमविता भुवः।
अस्माकं बोध्यविता रथानामस्माकं शूर नृणाम्॥
हे इन्द्र देव! आप जिस मनुष्य की रक्षा करते हैं, वह स्तोत्र द्वारा आपका यशोगान करते हुए अन्न प्राप्त करता है। हे शूरवीर! हमारे रथ के रक्षक व पुत्रादि के भी रक्षक होवें।[ऋग्वेद 7.32.11]
Hey Indr Dev! One protected by you sings your glory with Strotr and gain food grains. Hey brave! Become the protector of our charoite and sons etc.
उदिन्न्वस्य रिच्यतेंऽशो धनं न जिग्युषः।
य इन्द्रो हरिवान्न दभन्ति तं रिपो दक्षं दधाति सोमिनि॥
जो हरि नामक अश्व वाले इन्द्र देव के लिए सोमरस तैयार कर अर्पित करते हैं, उसे शत्रु नहीं मार सकते। विजयी व्यक्ति की तरह इन्द्र देवता का भाग सभी देवताओं से बढ़-चढ़कर है।[ऋग्वेद 7.32.12]
Those who prepare Somras for Indr Dev, the master of horses named Hari, can not be killed by the enemy. The share of Indr Dev is more than the other demigods-deities like the winner.
मन्त्रमखर्वं सुधितं सुपेशसं दधात यज्ञियेष्वा।
पूर्वीश्चन प्रसितयस्तरन्ति तं य इन्द्रे कर्मणा भुवत्॥
देवताओं में से इन्द्र देवता को ही अनल्प, सुविहित और शोभन स्तोत्र अर्पण करें। जो व्यक्ति कर्मानुष्ठान द्वारा इनके चित्त को आकृष्ट कर लेता है, उसके पास अनेकानेक बन्धन नहीं जाते।[ऋग्वेद 7.32.13]
Make sufficient, properly managed and good offerings to Indr Dev, amongest the demigods-deities. One who attract Indr Dev with his endeavours is not bonded.
कस्तमिन्द्र त्वावसुमा मर्यो दधर्षति।
श्रद्धा इत्ते मघवन्पार्ये दिवि वाजी वाजं सिषासति॥
हे इन्द्र देव! आप जिसे व्याप्त करते हैं, उसे कौन दबा सकता है? हे धनी इन्द्रदेव! आपके प्रति श्रद्धायुक्त होकर जो हवि प्रदान करता है, वह द्युलोक और दिवस में धन प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 7.32.14]
Hey Indr Dev! One pervaded-supported you can not be suppressed by any one. Hey wealthy Indr Dev! One who makes offerings to you with devotion, attain heavens and get money here-in this abode.
मघोनः स्म वृत्रहत्येषु चोदय ये ददति प्रिया वसु।
तव प्रणीती हर्यश्व सूरिभिर्विश्वा तरेम दुरिता॥
हे इन्द्र देव! हवि अर्पित करने वाले यजमानों को आप दुष्टों और दुराचारियों से संघर्ष करने का बल प्रदान करे। हे अश्वों के स्वामी! आपकी प्रेरणा से मेधावीजन पाप मुक्त हों।[ऋग्वेद 7.32.15]
Hey Indr Dev! Grant strength to the Ritviz who make offerings to you to fight the wicked and vicious. Hey lord of horses! Let the intelligent-prudent relieve themselves from sins.
तवेदिन्द्रावमं वसु त्वं पुष्यसि मध्यमम्।
सत्रा विश्वस्य परमस्य राजसि नकिष्टा गोषु वृण्वते॥
हे इन्द्र देव! पृथ्वीस्थ (अधम) धन आपका ही है। अन्तरिक्षस्थ (मध्यम) धन भी आपका ही है। आप समस्त उत्तम धनों के स्वामी हैं। यह बात सत्य है। गौ के सम्बन्ध में आपको कोई भी नहीं हटा सकता।[ऋग्वेद 7.32.16]
Hey Indr Dev! All wealth over the earth or the heavens is yours. Its true that you are the master of all sorts of excellent wealth. No one can discard you in respect-regarding the cows.
Wealth over the earth is rated worst-lowest, in between-the space its considered average while that in the heavens is considered to be the best.
त्वं विश्वस्य धनदा असि श्रुतो य ईं भवन्त्याजयः।
तवायं विश्वः पुरु ऽ हूत पार्थिवो ऽ वस्युर्नाम भिक्षते॥
हे इन्द्र देव! आप संसार के धनदाता हैं। ये सब जो युद्ध होते हैं, उनमें भी आप धनद नाम से प्रसिद्ध है। हे पुरुहूत इन्द्र देव! रक्षा के लिए ये सब पार्थिव मनुष्य आपसे अन्न की भिक्षा चाहते हैं।[ऋग्वेद 7.32.17]
Hey Indr Dev! You are the provider of wealth in the universe. You are famous as Dhanad in the wars. Hey Indr Dev, invoked by many! All perishable humans beg you for food grains for survival.
यदिन्द्र यावतस्त्वमेतावदहमीशीय।
स्तोतारमिद्दिधिषेय रदावसो न पापत्वाय रासीय॥
हे इन्द्र देव! आप जितने धन के ईश्वर हैं, उतने के हम भी स्वामी बनें। हे धनद! मैं स्तोता की रक्षा करूँगा, परन्तु पाप के लिए मैं धन नहीं दूँगा।[ऋग्वेद 7.32.18]
Hey Indr Dev! Let us become deity of the wealth like you. Hey Dhanad! I will protect the Stota but will not give him money for committing sins.
These days people donate money, which indirectly reaches to terrorists for committing sins.
शिक्षेयमिन्महयते दिवेदिवे राय आ कुहचिद्विदे।
नहि त्वदन्यन्मघवन्न आप्यं वस्यो अस्ति पिता चन॥
जिस किसी भी स्थान में विद्यमान पूजक पुरुष को लक्ष्य कर प्रतिदिन दान करूंगा। हे इन्द्र देव। आपके बिना न तो कोई हमारा मित्र है, न ही प्रशंसनीय पिता है।[ऋग्वेद 7.32.19]
I will make donations every day to the worshipable person every day. Hey Indr Dev! In your absence we do not have either friend or appreciable father.
तरणिरित्सिषासति वाजं पुरन्ध्या युजा।
आ व इन्द्रं पुरुहूतं नमे गिरा नेमिं तष्टेव सुद्र्वम्॥
क्षिप्न कर्मकारी व्यक्ति ही महान कर्म के बल से अन्न का भोग करता है। जिस प्रकार विश्वकर्मा उत्तम काष्ठ वाले चक्र को नवाते हैं, उसी प्रकार से ही स्तुति द्वारा पुरुहूत इन्द्रदेवता को मैं अपनी ओर नवाऊँगा।[ऋग्वेद 7.32.20]
A person who make efforts enjoys the food grains by virtue of his endeavours. The manner in which Vishwkarma lowers the wheel made of best wood, I too will make prayers to Indr Dev invoked by all for winning his favours.
न दुष्टुती मर्यो विन्दते वसु न त्रेधन्तं रयिर्नशत्।
सुशक्तिरिन्मघवन् तुभ्यं मावते देष्णं यत्पार्ये दिवि॥
मनुष्य दुष्ट स्तुति से धन प्राप्त नहीं कर सकता, हिंसक के पास धन नहीं जाता। हे धनवान इन्द्रदेव! द्युलोक और दिन में मेरे समान मनुष्य के प्रति जो कुछ आपका दातव्य है, उसे अच्छे कर्म वाला व्यक्ति ही प्राप्त कर सकता है।[ऋग्वेद 7.32.21]
One can not have wealth through wicked prayers (means, methods). The wealth does not flow to the violent. Hey wealthy Indr Dev! Only a virtuous person can attain whatever I have granted by you, either in the heavens or during the day.
अभि त्वा शूर नोनुमोऽदुग्धाइव घेनवः।
ईशानमस्य जगतः स्वर्दृशमीशानमिन्द्र तस्थुषः॥
हे वीर इन्द्र देव! आप इस जङ्गम पदार्थ के स्वामी हैं। आप स्थावर पदार्थों के ईश्वर और सर्वदर्शक है। हम न दुही हुई गाय की तरह आपकी स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 7.32.22]
Hey brave Indr Dev! You are the lord of this movable (perishable, material) wealth. You are the God of the fixed materials and looking-watching all, everything. We worship like an un milched cow.
न त्वावाँ अन्यो दिव्यो न पार्थिवो न जातो न जनिष्यते।
अश्वायन्तो मघवन्निन्द्र वाजिनो गव्यन्तस्त्वा हवामहे॥
हे धनी इन्द्र देव! आपके समान न तो पृथ्वी में कोई जन्मा है, न जन्मेगा। हम अश्व, अन्न और गौ चाहते हैं। इसलिए आपका आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 7.32.23]
Hey wealthy Indr Dev! None comparable to you have ever, neither born of the earth nor will take birth in future. We need horses, food grains and cows, hence we invoke you.
अभी षतस्तदा भरेन्द्र ज्यायः कनीयसः।
पुरूवसुर्हि मघवन्त्सनादसि भरे भरे च हव्यः॥
हे इन्द्र देव! आप ज्येष्ठ हैं और मैं कनिष्ठ हूँ। मेरे लिए उस धन को ले आवें। आप संग्रामों में सहायता करने के लिए आवाहन करने योग्य हैं।[ऋग्वेद 7.32.24]
Hey Indr Dev! You are senior and I am junior. Bring that wealth to me. You are qualified-entitled for invocation during the war.
परा णुदस्व मघवन्नमित्रान्त्सुवेदा नो वसू कृधि।
अस्माकं बोध्यविता महाधने भवा वृधः सखीनाम्॥
हे मघवन! शत्रुओं को पराजित करके हमसे दूर करें। हमारे लिए धन को सुलभ करें। युद्ध में हमारे रक्षक बने। हम आपके मित्र हैं। आप हमारे वर्द्धक बनें।[ऋग्वेद 7.32.25]
Hey Maghvan! Defeat the enemy and repel them away from us. Make wealth easily available to us. Defend us during the war. You are our friend. Become our nurturer-progressor.
इन्द्र क्रतुं न आ भर पिता पुत्रेभ्यो यथा।
शिक्षा णो अस्मिन्पुरुहूत यामनि जीवा ज्योतिरशीमहि॥
हे इन्द्र देव! आप हमें उसी प्रकार पोषित करें, जिस प्रकार पुत्रों को धनादि प्रदान कर पिता उनका पोषण करता है। हे इन्द्र देव! यज्ञ में आप हमें दिव्य तेज प्रदान करें। (जिससे) हम यज्ञकर्ताओं को यज्ञ का पूर्ण फल प्राप्त हो।[ऋग्वेद 7.32.26]
Hey Indr Dev! Nurse us like a father who provide money to his sons for nurturing them. Hey Indr Dev! Grant us divine aura in the Yagy so that the performers are entitled to the rewards-fruits of the Yagy.
मा नो अज्ञाता वृजना दुराध्यो३माशिवासो अव क्रमुः।
त्वया वयं प्रवतः शश्वतीरपोऽति शूर तरामसि॥
हे इन्द्र देव! अज्ञात गति, हिंसक, दुराराध्य और अशुभ शत्रु हम पर आक्रमण न करें। हे शूर! हम आपके निकट नम्र होकर अनेक कार्यों में सफल होवें।[ऋग्वेद 7.32.27]
Hey Indr Dev! Hidden, violent or difficult to control wicked enemies should not attack us. Hey brave! We should be polite & achieve success in many endeavours by virtue of our proximity to you.(27.12.2023)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (33) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
श्वित्यञ्चो मा दक्षिणतस्कपर्दा धियंजिन्वासो अभि हि प्रमन्दुः।
उत्तिष्ठन्वोचे परि बर्हिषो नॄन्न मे दूरादवितवे वसिष्ठाः॥
गौरवर्ण और कर्म पूरक वसिष्ठ पुत्र गण अपने शिर के दक्षिण भाग में शिखा धारण करने वाले हैं। वे हमें प्रसन्न करते हैं; क्योंकि यज्ञ से उठते हुए मैं सबसे कहता हूँ कि वसिष्ठ पुत्रगण मुझसे दूर न जावें।[ऋग्वेद 7.33.1]
Fair coloured-skinned sons of Vashishth devoted to their duties, wear the hair lock towards left. They keep us happy, since when I get up from the Yagy, I ask all, that the sons of Vashishth should not be away from me.
दूरादिन्द्रमनयन्ना सुतेन तिरो वैशन्तमति पान्तमुग्रम्।
पाशद्युम्नस्य वायतस्य सोमात्सुतादिन्द्रोऽवृणीता वसिष्ठान्॥
वयत् के पुत्र पाश द्युम्न का दूर से ही तिरस्कार करके चमस स्थित सोमरस का पान करते हुए इन्द्र देवता को वसिष्ठ पुत्रगण ले आये। इन्द्र देवता ने भी वयत् के पुत्र पाश द्युम्न को छोड़कर सोमाभिषव करने वाले वसिष्ठों का वरण कर लिया।[ऋग्वेद 7.33.2]
Indr Dev discarded Vayat, the son of Pash Dhyumn from a distance, drunk the Somras present in the Chamas and brought the son of Vashishth. He adopted all the sons of Vashishth who were involved in Somabhishav, except Vayat son of Pash Dhyumn.
एवेन्नु कं सिन्धुमेभिस्ततारेवेन्नु कं भेदमेभिर्जघान।
एवेन्नु कं दाशराज्ञे सुदासं प्रावदिन्द्रो ब्रह्मणा वो वसिष्ठाः॥
इसी प्रकार वसिष्ठ पुत्रों ने अनायास ही नदी को पार किया। इसी प्रकार भेद नाम के शत्रु का भी इन्होंने विनाश किया। हे वसिष्ठ पुत्रो! इसी प्रकार प्रसिद्ध "दाश राज्ञ युद्ध" में आपके ही मन्त्र बल से इन्द्र देवता ने सुदास राजा की रक्षा की।[ऋग्वेद 7.33.3]
In this manner the Vashishth's sons crossed the river suddenly. They eliminated the enemy named Bhed. Hey sons of Vashishth! In this manner Indr Dev protected king Sudas with your Mantr Shakti in the famous Dash Ragy Yuddh.
जुष्टी नरो ब्रह्मणा वः पितॄणामक्षमव्ययं न किला रिषाथ।
यच्छक्वरीषु बृहता रवेणेन्द्रे शुष्ममदधाता वसिष्ठाः॥
हे मनुष्यों! आपके स्तोत्र से पितरों की तृप्ति होती है। मैं रथ की धुरी को चलाता हूँ। आप क्षीण न होना। हे वसिष्ठ गण! आपने शक्वरी ऋचाओं और श्रेष्ठ शब्द द्वारा इन्द्र देवता का बल प्राप्त किया।[ऋग्वेद 7.33.4]
Hey humans! Your Strotr leads to the satisfaction of Pitr-Manes. I navigate the excel of the charoite. You should not become weak. Hey Vashishth Gan! You obtained the strength of Indr Dev with Shakkri Richas and excellent words.
उद् द्यामिवेत्तृष्णजो नाथितासोऽदीधयुर्दाशराज्ञे वृतासः।
वसिष्ठस्य स्तुवत इन्द्रो अश्रोदुरुं तृत्सुभ्यो अकृणोदु लोकम्॥
ज्ञाततृष्ण राजाओं द्वारा घिरे हुए और वृष्टि याचक वसिष्ठ पुत्रों ने दस राजाओं के साथ युद्ध में सूर्य देव की तरह इन्द्र देवता को ऊपर उठाया। स्तोता वसिष्ठ का स्तोत्र इन्द्र देवता ने श्रवण किया और तृत्सु राजाओं को विस्तृत लोक प्रदान किया।[ऋग्वेद 7.33.5]
The sons of Vashishth praying for rains, surrounded by the king of Gyat Trashn fought the ten kings and elevated Indr Dev like the Sun. Indr Dev listened the Strotr of the Stota Vashishth and granted broad abode to Tratsu kings.
दण्डाइवेद्गोअजनास आसन्परिच्छिन्ना भरता अर्भकासः।
अभवच्च पुरएता वसिष्ठ आदित्तृत्सूनां विशो अप्रथन्त॥
गौ प्रेरक दण्डों की तरह (तृत्सुओं) भरत कम और छोटे-छोटे थे, किन्तु जब वशिष्ठ गण उनके पुरोहित हुए तो तृत्सुओं की प्रजा बढ़ने लगी।[ऋग्वेद 7.33.6]
Cows inspiring Tratsu-Bharat, were too young, but when Vashishth Gan became their Purohit, their population started increasing.
त्रयः कृण्वन्ति भुवनेषु रेतस्तिस्त्रः प्रजा आर्या ज्योतिरग्राः।
त्रयो घर्मास उषर्से सचन्ते सर्वां इत्ताँ अनु विदुर्वसिष्ठाः॥
अग्नि, वायु और सूर्य ही संसार में जल देते हैं। उनमें आदित्य आदि तीन श्रेष्ठ आर्य प्रजा हैं। दीप्तिमान् वे तीनों उषा का वयन करते हैं। वसिष्ठलोग उन सभी को जानते हैं।[ऋग्वेद 7.33.7]
Agni-fire, Vayu-air and Sury-Sun grant water to the universe. Out of them Adity etc. are three virtuous radiant descendents. They, three host Usha-day break. Vashishth's know them.
सूर्यस्येव वक्षथो ज्योतिरेषां समुद्रस्येव महिमा गभीरः।
वातस्येव प्रजवो नान्येन स्तोमो वसिष्ठा अन्वेतवे वः॥
हे वसिष्ठ पुत्रो! आपकी महिमा सूर्यदेव की ज्योति की तरह प्रकाशित होती है। आपकी महिमा समुद्र की तरह गम्भीर है। वायुवेग के समान आपके स्तोत्र का कोई दूसरा अनुगमन नहीं कर सकता।[ऋग्वेद 7.33.8]
Hey Vashishth's sons! Your glory spread like the Sun's aura. Your glory is calm like the ocean. None can follow your Strotr which has the speed of Vayu Dev.
त इन्निण्यं हृदयस्य प्रकेतैः सहस्त्रवल्शमभि सं चरन्ति।
यमेन ततं परिधिं वयन्तोऽप्सरस उप सेदुर्वसिष्ठाः॥
वे वसिष्ठ गण ज्ञान द्वारा तिरोहित हजारों शाखाओं वाले संसार में विचरण करने लगे। वे सर्वनियन्ता (यम) द्वारा विस्तृत वस्त्र (विश्व-प्रवाह) को बुनते हुए मातृरूप से अप्सरा के निकट गए।[ऋग्वेद 7.33.9]
तिरोहित :: छिपा हुआ, अदृश्य, ढका हुआ; invisible, disappeared, vanished.
Vashishth Gan started roaming by virtue of learning like the invisible thousands of hair locks. They moved to the controller of all; Yam Dev (deity of death); weaving the broad cloth (universe) like a mother to the nymph.
विद्युतो ज्योतिः परि संजिहानं मित्रावरुणा यदपश्यतां त्वा।
तत्ते जन्मोतैकं वसिष्ठागस्त्यो यत्त्वा विश आजभार॥
हे वसिष्ठ! विद्युत की तरह अपनी ज्योति का परित्याग करते हुए आपको मित्र और वरुण देव ने देखा था। उस समय आपका एक जन्म हुआ था। इसके अतिरिक्त वास स्थान से अगस्त्य भी आपको बाहर ले आये थे।[ऋग्वेद 7.33.10]
Hey Vashishth! Mitr & Varun Dev saw you rejecting your aura like the electricity. You were born at that time. In addition to this August brought you out from your residence.
उतासि मैत्रावरुणो वसिष्ठोर्वश्या ब्रह्मन्मनसोऽधि जातः।
द्रप्सं स्कन्नं ब्रह्मणा दैव्येन विश्वे देवाः पुष्करे त्वाददन्त॥
हे वसिष्ठ! आप मित्र और वरुण देव के पुत्र हैं। हे ब्रह्मन्! आप उर्वशी के मन से उत्पन्न हुए हैं। उस समय मित्र और वरुणदेव का वीर्यस्खलन हुआ, तब विश्वदेवगण ने दैव्यस्तोत्र द्वारा पुष्कर के बीच आपको धारण किया।[ऋग्वेद 7.33.11]
Hey Vashishth! You are the son of Mitr & Varun Dev! Hey Brahman! You are born out of the innerself-heart of Urvashi-nymph. The sperms of Mitr and Varun Dev were discharged, then Vish Dev Gan supported you with divine Strotr at Pushkar.
स प्रकेत उभयस्य प्रविद्वान्त्सहस्त्रदान उत वा सदानः।
यमेन ततं परिधिं वयिष्यन्नप्सरसः परि जज्ञे वसिष्ठः॥
प्रकृष्ट ज्ञान वाले वसिष्ठ दोनों लोकों को जानकर सहस्रदान या सर्वदान करने वाले हुए। सर्वनियन्ता द्वारा विस्तीर्ण वस्त्र को बुनने की इच्छा से वसिष्ठ उर्वशी से उत्पन्न हुए।[ऋग्वेद 7.33.12]
Vashishth with enriched learning understood both abodes and turned into donor of thousands of good. Desire of weaving long cloth, of all controller-Yam, Vashishth born of Urvashi.
सत्रे ह जाताविषिता नमोभिः कुम्भे रेतः सिषिचतुः समानम्।
ततो ह मान उदियाय मध्यात्ततो जातमृषिमाहुर्वसिष्ठम्॥
यज्ञ में दीक्षित मित्र और वरुण देव ने स्तुति द्वारा प्रार्थित होकर कुम्भ के बीच एक साथ ही रेतःस्खलन किया। अगस्त्य उत्पन्न हुए। लोग कहते हैं कि ऋषि वसिष्ठ उसी कुम्भ से उत्पन्न हुए।[ऋग्वेद 7.33.13]
Both Mitr & Varun Dev together discharged their sperms in the pitcher meant for worship-prayers. August was thus born. People say that Rishi Vashishth was born out of that pitcher.
उक्थभृतं सामभृतं बिभर्ति ग्रावाणं बिभ्रत्प्र वदात्यग्रे।
उपैनमाध्वं सुमनस्यमाना आ वो गच्छाति प्रतृदो वसिष्ठः॥
हे तृत्सुओं! आपके पास वसिष्ठ आ रहे हैं। प्रसन्न चित्त से आप इनकी पूजा करें। वसिष्ठ अग्रवर्ती होकर उक्थ और सोम के धारणकर्ता तथा प्रस्तर से अभिषव करने वाले (अध्वर्यु) को धारण करते और कर्त्तव्य भी बताते हैं।[ऋग्वेद 7.33.14]
Hey Tratsu Gan! Vashishth is coming to you. Worship him happily. Vashishth come forward and support the helping priests in composing hymns & extracting Somras and guide them towards their duties.(28.12.2023)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (34) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
प्र शुक्रैतु देवी मनीषा अस्मत्सुतष्टो रथो न वाजी॥
दीप्त और अभीष्टप्रद स्तुति, वेगशाली और सुसंस्कृत रथ की तरह हमारे पास से देवताओं के पास जावें।[ऋग्वेद 7.34.1]
Let the aurous-radiant Stuti (prayers) leading to accomplishments reach the demigods-deities like an accelerated decorated charoite.
विदुः पृथिव्या दिवो जनित्रं शृण्वन्त्यापो अध क्षरन्तीः॥
क्षरण शील जल, स्वर्ग और पृथ्वी की उत्पत्ति जानता है। जल स्तुति श्रवण करता है।[ऋग्वेद 7.34.2]
Destructible water is aware of the origin of heavens and the earth. Waters listen-attend to prayers.
Both earth & the heaven evolved out of waters.
आपश्चिदस्मै पिन्वन्त पृथ्वीवृत्रेषु शूरा मंसन्त उग्राः॥
विस्तीर्ण जल इन्द्र देव को पुष्टि प्रदान करता है। उपद्रव होने पर उग्र शूर लोग इन्द्र देव की ही स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 7.34.3]
Vast water grants nourishment to Indr Dev. Brave violent people worship Indr Dev in case of disturbance-trouble.
आ धूर्ध्वस्मै दधाताश्वानिन्द्रो न वज्री हिरण्यबाहुः॥
इन्द्र देवता के आगमन के लिए अश्वों को रथ के आगे नियोजित करें। इन्द्र देव स्वर्णयुक्त हाथ में वज्र धारण करते हैं।[ऋग्वेद 7.34.4]
Deploy the horses in front of the charoite for Indr Dev's arrival. Indr Dev hold the Vajr in his hands wearing gold.(30.12.2023)
अभि प्र स्थाताहेव यज्ञं यातेव पत्मन्त्मना हिनोत॥
हे मनुष्यों! यज्ञ के समक्ष जावें। गन्ता की तरह स्वयमेव यज्ञ मार्ग की ओर जावें।[ऋग्वेद 7.34.5]
Hey humans! Move to the Yagy. Follow the Yagy route.
त्मना समत्सु हिनोत यज्ञं दधात केतुं जनाय वीरम्॥
हे पुरुषों! युद्ध में स्वयं जावें। लोगों के लिए हित व पापों के नाश के लिए यज्ञ करें।[ऋग्वेद 7.34.6]
Hey humans! Go to war. Go to the Yagy for the welfare of humans and release from sins.
उदस्य शुष्माद्भानुर्नार्त बिभर्ति भारं पृथिवी न भूम॥
इस यज्ञ के बल से ही सूर्य देव उदित होते हैं। जिस प्रकार से पृथ्वी जीवों को वहन करती है, उसी प्रकार से यज्ञ भी सबका आधार है।[ऋग्वेद 7.34.7]
The Sun-Sury Dev rises with the power of Yagy. The way the earth support the living being, the Yagy is the basis-support of all.
ह्वयामि देवाँ अयातुरग्ने साधनॄतेन धिर्यें दधामि॥
हे अग्निदेव! अहिंसा आदि विषयों से युक्त यज्ञ द्वारा मनोरथ पूर्ण करते हुए मैं देवताओं को बुलाता हूँ और उनके लिए कर्म करता हूँ।[ऋग्वेद 7.34.8]
Hey Agni Dev! I invoke the demigods-deities, accomplishing desires pertaining to non violence etc., associated with the Yagy. I work for them.
अभि वो देवीं धियं दधिध्वं प्र वो देवत्रा वाचं कृणुध्वम्॥
हे मनुष्यो! देवताओं को लक्ष्य करके दीप्त कर्म करें। देवताओं की स्तुति करें।[ऋग्वेद 7.34.9]
Hey humans! Perform auspicious deeds addressed to demigods-deities. Worship-pray demigods-deities.
आ चष्ट आसां पाथो नदीनां वरुण उग्रः सहस्रचक्षाः॥
ओजस्वी और हजारों आँखों वाले वरुण देव नदियों के जल को देखते हैं।[ऋग्वेद 7.34.10]
Radiant Varun Dev see the water of the rivers with his thousands eyes.
राजा राष्ट्रानां पेशो नदीनामनुत्तमस्मै क्षत्रं विश्वायु॥
वरुण देव राष्ट्रों के राजा और नदियों के रूप हैं। उनका बल अप्रतिहत और सर्वत्र गामी है।[ऋग्वेद 7.34.11]
Varun Dev is the king of nations with the form of rivers. His might is unbound and he is capable of roaming every where.
अविष्टो अस्मान्विश्वासु विक्ष्वद्युं कृणोत शंसं निनित्सोः॥
हे देवताओं! आप हमारी रक्षा करें। निन्दा करने की इच्छा करने वाले शत्रु को दीप्ति करें।[ऋग्वेद 7.34.12]
Hey demigods-deities! Protect us. Expose the enemies with the desire of condemnation.
व्येतु दिद्युद् द्विषामशेवा युयोत विष्वग्रपस्तनूनाम्॥
हे देवताओं! शत्रुओं के अमंगलजनक आयुध चारों ओर से हट जावें। शरीर का पाप हमसे अलग करें।[ऋग्वेद 7.34.13]
Hey demigods-deities! Inauspicious weapons of the enemies should be removed from all direction. Our bodily sins should leave us.
अवीन्नो अग्निर्हव्यान्नमोभिः प्रेष्ठो अस्मा अधायि स्तोमः॥
हव्य भोजी अग्नि देव हमारे नमस्कारों द्वारा प्रसन्न होकर हमारी रक्षा करें। हम अग्निदेव के लिए स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 7.34.14]
Agni Dev who eat the offerings, should be pleased with our prayers-salutations and protect us. We worship-pray Agni Dev.
सजूर्देवेभिरपां नपातं सखायं कृध्वं शिवो नो अस्तु॥
देवताओं के सहचर अग्नि देव को मित्र बनावें। वे हमारे लिए मङ्गलकारी हों।[ऋग्वेद 7.34.15]
Make Agni Dev a companion of demigods-deities our friend. Let they become auspicious to us.
अब्जामुक्थैरहिं गृणीषे बुध्ने नदीनां रजःसु षीदन्॥
मेघों के घातक, नदी स्थान (जल) में बैठे हुए और ज़ल से उत्पन्न अग्नि देव की स्तोत्रों द्वारा स्तुति की जाती है।[ऋग्वेद 7.34.16]
Destructor of clouds Agni Dev, sitting in the rivers, evolved from water is worshiped with Strotr.
मा नोऽहिर्बुध्न्यो रिषे धान्मा यज्ञो अस्य स्त्रिधदृतायोः॥
अहिर्बुध्न्य (अग्नि) हमें हिंसक के हाथ में समर्पण न करें। याज्ञिक का यज्ञ क्षीण न हो।[ऋग्वेद 7.34.17]
Ahirbudhany-Agni Dev should not hand over to the violent. Do not let the Yagy of the Yagyik become weak.
उत न एषु नृषु श्रवो धुः प्र राये यन्तु शर्धन्तो अर्यः॥
हम सब प्रचुर मात्रा में धन, अन्न और यश प्राप्त करें। धन और ऐश्वर्य की प्राप्ति में हमारे प्रति स्पर्धी हमसे दूर हो जाएँ।[ऋग्वेद 7.34.18]
Let us have wealth, food grains and glory in sufficient quantity. Our competitors should be away from us while attaining wealth and grandeur.
तपन्ति शत्रु स्व १ र्ण भूमा महासेनासो अमेभिरेषाम्॥
जिस प्रकार से सूर्य देव समस्त भुवनों को तप्त करते हैं, उसी प्रकार महासेना वाले राजा लोग देवताओं के बल से शत्रु को तपित करते हैं।[ऋग्वेद 7.34.19]
The way Sury Dev heat all abodes, the kings of great armies torture-heat the enemies with the power of demigods-deities.
आ यन्नः पत्नीर्गमन्त्यच्छा त्वष्टा सुपाणिर्दधातु वीरान्॥
जिस समय देव स्त्रियाँ हमारे समक्ष आती हैं, उस समय उत्तम हाथ वाले त्वष्टा वीरों को धारण करें।[ऋग्वेद 7.34.20]
When the divine women, wives of demigods-deities come in front of us, Twasta with excellent hands support the warriors.
प्रति नः स्तोमं त्वष्टा जुषेत स्यादस्मे अरमतिर्वसूयुः॥
हमारे यज्ञ को ग्रहण करने वाला त्वष्टा प्रसन्न होकर अपने मन से हमें पर्याप्त धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.34.21]
Acceptor of our Yagy, Twasta should become happy and grant us sufficient wealth-money of his own.
ता नो रासन्रातिषाचो वसून्या रोदसी वरुणानी शृणोतु।
वरूत्रीभिः सुशरणो नो अस्तु त्वष्टा सुदत्रो वि दधातु रायः॥
दान निपुण देव पत्नियाँ हमारा मनोरथ हमें प्रदत्त करें। द्यावा-पृथ्वी और वरुण पत्नी भी श्रवण करें। कल्याणकर और दानशील त्वष्टा, उपद्रव निवारिणी देव स्त्रियों के साथ हमारे लिए शरणदाता बनें।[ऋग्वेद 7.34.22]
Wives of demigods expert in charity should accomplish our desires. Heaves & earth along with Varun Dev's wife too listen to us. The women folk of the donor, beneficial Twasta and the ones bringing us out of trouble; should grant us shelter.
तन्नो रायः पर्वतास्तन्न आपस्तद्रातिषाच ओषधीरुत द्यौः।
वनस्पतिभिः पृथिवी सजोषा उभे रोदसी परि पासतो नः॥
हमारे उस धन का पालन पर्वतगण करें। सारे जल भी हमारे उस धन का पालन करें। दान परायण देवपत्नियाँ भी उसका पोषण करें। औषधियाँ और द्युलोक भी पालन करें। वनस्पतियों के साथ अन्तरिक्ष भी उसका पालन करें। द्यावा-पृथ्वी भी हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 7.34.23]
The mountains should support our wealth. Waters should also support our wealth. Wives of demigods-deities should nourish-nurture our wealth. Heavens and medicines should also do the same. The space alongwith vegetation support us. Heaven and earth should protect us.
अनु तदुर्वी रोदसी जिहातामनु द्युक्षो वरुण इन्द्रसखा।
अनु विश्वे मरुतो ये सहासो रायः स्याम धरुणं धियध्यै॥
आकाश और पृथ्वी, मरुद्गण, इन्द्र, मित्र तथा वरुण हमारे सहयोगी हों। इनकी कृपा से हम पर्याप्त धन प्राप्त करें।[ऋग्वेद 7.34.24]
Let sky & earth, Marud Gan, Indr Dev, Mitr & Varun should be our associates. We should get wealth by virtue of their mercy-blessings.
तन्न इन्द्रो वरुणो मित्रो अग्निराप ओषधीर्वनिनो जुषन्त।
शर्मन्त्स्याम मरुतामुपस्थे यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
इन्द्र देव, वरुण देव, मित्र, अग्नि देव, जल, औषधियाँ और वृक्ष भी हमारे लिए इस स्तोत्र का सेवन करें। मरुतों के पास निवास कर हम सुख से रहेंगे। आप सदा हमारा स्वस्ति द्वारा पालन करें।[ऋग्वेद 7.34.25]
Indr Dev, Varun Dev, Mitr, Agni Dev, water, medicines and trees should accept our this Strotr-prayer. We will be comfortable residing near Marud Gan. You should always nourish us through Swasti.(31.12.2023)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (35) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
शं न इन्द्राग्नी भवतामवोभिः शं न इन्द्रावरुणा रातहव्या।
शमिन्द्रासोमा सुविताय शं योः शं न इन्द्रापूषणा वाजसातौ॥
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! हमारे लिए रक्षण द्वारा शान्तिप्रद होवें। इन्द्र देव और वरुण देव को यजमान ने हव्य प्रदान किया है। आप लोग हमारे लिए शान्तिप्रद होवें। इन्द्र देव और सोम देव हमारे लिए शान्ति और कल्याण देने वाले हों। इन्द्र देव और पूषा हमें शान्ति और सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.35.1]
Hey Indr Dev & Agni Dev! Stay for our protection and peace with us. The Ritviz-host made offerings to Indr Dev & Varun Dev. You should grant us peace, solace & tranquillity. Indr Dev & Som Dev should grant us peace and welfare. Indr Dev & Pusha Dev grant us pleasure and safety.
शं नो भगः शमु नः शंसो अस्तु शं नः पुरैधिः शमु सन्तु रायः।
शं नः सत्यस्य सुयमस्य शंसः शं नो अर्यमा पुरुजातो अस्तु॥
भग देवता हमारे लिए शान्ति प्रदान करें। हमारे लिए नराशंस शान्तिप्रद हों। हमारे लिए पुरन्धि शान्तिप्रद हों। सभी धन हमारे लिए शान्तिप्रद हों। उत्तम और यम युक्त सत्य का वचन हमारे लिए शान्तिप्रद हो। बहुत बार आविर्भूत अर्यमा हमारे लिए शान्तिदाता हों।[ऋग्वेद 7.35.2]
Bhag Dev should grant us peace. Let the humans, women, wealth be peaceful to us. Excellent words and restraint accompanied with truth grant us solace. Aryma should be peace giver to us.
शं नो धाता शमु धर्ता नो अस्तु शं न उरूची भवतु स्वधाभिः।
शं रोदसी बृहती शं नो अद्रिः शं नो देवानां सुहवानि सन्तु॥
धाता हमें शान्ति प्रदान करें। धर्त्ता वरुणदेव हमारे लिए शान्ति दें। अन्न के साथ पृथ्वी हमारे लिए शान्ति दें। महती द्यावा-पृथ्वी हमारे लिए शान्ति दें। पर्वत हमारे लिए शान्ति दें। देवताओं की सारी उत्तम स्तुतियाँ हमें शान्ति दें।[ऋग्वेद 7.35.3]
Dhata, Dharta Varun Dev give us peace. Let the earth give us peace with food grains. Vast heavens & earth award us peace. Mountains grant us peace. All sacred hymns addressed to demigods-deities grant us peace.
शं नो अग्निज्योर्तिरनीको अस्तु शं नो मित्रावरुणावश्विना शम्।
शं नः सुकृतां सुकृतानि सन्तु शं न इषिरो अभि वातु वातः॥
ज्वालामुख अग्निदेव हमारे लिए शान्ति दें। मित्र और वरुणदेव हमें शान्ति दें। अश्विनीकुमार हमें शान्ति दें। पुण्यात्माओं के पुण्यकर्म हमें शान्ति दें। गतिशील वायुदेव भी हमारी शान्ति के लिए प्रवाहित हों।[ऋग्वेद 7.35.4]
Let Agni Dev with volcanic mouth, Mitr & Varun Dev, Ashwani Kumars grant us peace. Virtuous deeds of the virtuous-righteous and their virtues give us peace. Blowing air-Pawan Dev too give us peace.
शं नो द्यावापृथिवी पूर्वहूतौ शमन्तरिक्षं दृशये नो अस्तु।
शं न ओषधीर्वनिनो भवन्तु शं नो रजसस्पतिरस्तु जिष्णुः॥
प्रथम आह्वान में द्यावा-पृथ्वी हमारे लिए शान्ति दें। दर्शनार्थ अन्तरिक्ष हमको शान्ति दे। औषधियाँ और वृक्ष हमें शान्ति दें। विजय परायण लोकपति इन्द्र देव भी हमें शान्ति प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.35.5]
Heaven & earth should grant us peace with the first call-invocation. For viewing, space should give us peace. Medicines and trees should award us peace. Victorious lord of the abodes Indr Dev should grant us peace.
शं न इन्द्रो वसुभिर्देवो अस्तु शमादित्येभिर्वरुणः सुशंसः।
शं नो रुद्रो रुद्रेभिर्जलाषः शं नस्त्वष्टा नाभिरिह शृणोतु॥
वसुओं के साथ इन्द्र देव हमें शान्ति दें। आदित्यों के साथ शोभन स्तुति वाले वरुणदेव हमें शान्ति दें। रुद्रगण के लिए रुद्र देवता हमें शान्ति दें। देव स्त्रियों के साथ त्वष्टा हमें शान्ति दें। यज्ञ हमारा स्तोत्र श्रवण करें।[ऋग्वेद 7.35.6]
Let Indr Dev along with Vasus grant us peace. Varun Dev with beautiful prayers along with Adity Gan give us peace. Rudr Gan & Rudr Dev should grant us peace. Women folk of the demigods-deities along with Twasta grant us peace.
शं नः सोमो भवतु ब्रह्म शं नः शं नो ग्रावाणः शमु सन्तु यज्ञाः।
शं नः स्वरूणां मितयो भरन्तु शं नः प्रस्व १ : शम्वस्तु वेदिः॥
सोमदेव हमें शान्ति दें। स्तोत्र हमें शान्ति दें। पत्थर हमें शान्त दें। यज्ञ हमें शान्ति दें। यूपों का माप हमें शान्ति दें। औषधियाँ हमें शान्ति दें। वेदी हमें शान्ति प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.35.7]
Let Som Dev, Strotr, stones, Yagy, Yagy staff-Yup, medicines and the Yagy Vedi grant us peace.
शं नः सूर्य उरुचक्षा उदेतु शं नश्चतस्त्रः प्रदिशो भवन्तु।
शं नः पर्वता ध्रुवयो भवन्तु शं नः सिन्धवः शमु सन्त्वापः॥
विस्तीर्ण तेजोमय सूर्यदेव हमारी शान्ति के लिए उदित हों। चारों महादिशाएँ हमें शान्ति दें। स्थिर पर्वत हमें शान्ति दें। नदियाँ हमें शान्ति दें। जल हमें शान्ति दें।[ऋग्वेद 7.35.8]
Vast-broad radiant Sury Dev should rise for our peace. The four great direction should grant us peace. Stationary mountains should give us peace. Rivers should give us peace. Water should grant us peace.
शं नो अदितिर्भवतु व्रतेभिः शं नो भवन्तु मरुतः स्वर्काः।
शं नो विष्णुः शमु पूषा नो अस्तु शं नो भवित्रं शम्वस्तु वायुः॥
कर्म द्वारा माता अदिति हमें शान्ति दें। शोभन स्तुति वाले मरुद्गण हमें शान्ति दें। श्री हरी विष्णु हमें शान्ति दें। पूजा हमें शान्ति दें। अन्तरिक्ष हमें शान्ति दे। वायुदेव हमें शान्ति दें।[ऋग्वेद 7.35.9]
Mata Aditi should grant us peace through endeavours-deeds. Marud Gan having beautiful prayers should give us peace. Shri Hari Vishnu should give us peace. Puja-prayer should grant us peace. Space should grant us peace. Vayu Dev should grant us peace.
शं नो देवः सविता त्रायमाणः शं नो भवन्तूषसो विभातीः।
शं नः पर्जन्यो भवतु प्रजाभ्यः शं नः क्षेत्रस्य पतिरस्तु शंभुः॥
रक्षण करते हुए सविता हमें शान्ति दें। अन्धकार विनाशिनी उषाएँ हमें शान्ति दें। हमारी प्रजा के लिए पर्जन्य शान्ति दें। क्षेत्रपति शम्भु हमें शान्ति प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.35.10]
Savita should grant us peace while protecting us. Ushas eliminating darkness, should give us peace. Let Parjany grant peace for our populace. Kshetr Pati Shambhu should grant us peace.
शं नो देवा विश्वदेवा भवन्तु शं सरस्वती सह धीभिरस्तु।
शमभिषाचः शमु रातिषाचः शं नो दिव्याः पार्थिवाः शं नो अप्याः॥
प्रकाशमान विश्वे देवगण हमें शान्ति दें। कर्म के साथ सरस्वती हमें यज्ञ सेवक शान्ति दें। दान निपुण हमें शान्ति दें। भूलोक द्युलोक और अन्तरिक्ष लोक में उत्पन्न प्राणी हमें शान्ति दें।[ऋग्वेद 7.35.11]
Radiant Vishwe Dev Gan should grant us peace. Saraswati should grant us peace along with endeavours for serving Yagy. Experts in charity-donations give us peace. Living beings born over the earth, heavens and the space should award us peace.
शं नः सत्यस्य पतयो भवन्तु शं नो अर्वन्तः शमु सन्तु गावः।
शं न ऋभवः सुकृतः सुहस्ताः शं नो भवन्तु पितरो हवेषु॥
सत्य पालक देवता हमें शान्ति दें। अश्वगण हमें शान्ति दें। गायें हमारे लिए सुखद दात्री हमें शान्ति दें। पूजा हमें शान्ति दें। अन्तरिक्ष हमें शान्ति दे। वायुदेव हमें शान्ति दें।[ऋग्वेद 7.35.12]
Truthful demigods-deities should grant us peace. Horses should give us peace. Let the comforting cows grant us peace. Puja-prayers should grant us peace. Let the space give us peace. Vayu Dev should grant us peace.
सुकर्म कर्ता और सुन्दर हाथ वाले ऋभुगण हमें शान्ति दें। स्तुति करने पर हमारे पितर भी हमें शान्ति प्रदान करें।
Ribhu Gan performing virtuous deeds with beautiful hands give us peace. On being worshiped our Pitr-manes should also grant us peace.
शं नो अज एकपाद्देवो अस्तु शं नोऽहिर्बुध्न्य १ : शं समुद्रः।
शं नो अपां नपात्पेरुरस्तु शं नः पृश्निर्भवतु देवगोपा॥
अज एकपाद देवता हमें शान्ति दें। अहिर्बुध्न्य देवता हमें शान्ति दें। समुद्र हमें शान्ति दें। उपद्रव शान्ति करने वाले "अपां नपात्" देवता हमें शान्ति दें। देव पालिका पृश्नि हमें शान्ति दें।[ऋग्वेद 7.35.13]
Aj Ek Pad deity should provide us peace. Ahirbudhany Dev grant us peace. Apan Napat Dev calming down disturbances, should provide us peace. Prashni nursing the demigods-deities should grant us peace.
आदित्या रुद्रा वसवो जुषन्तेदं ब्रह्म क्रियमाणं नवीयः।
शृण्वन्तु नो दिव्याः पार्थिवासो गोजाता उत ये यज्ञियासः॥
हम यह नया स्तोत्र बनाते हैं। आदित्यगण, रुद्रगण और वसुगण इसका सेवन करें। द्युलोक-पृथ्वी और पृश्नि से उत्पन्न तथा अन्य भी जितने यज्ञीय हैं, सब हमारा आह्वान श्रवण करें।[ऋग्वेद 7.35.14]
We are composing this new Strotr. Let Adity Gan, Rudr Gan and Vasu Gan enjoy this. All those devoted to Yagy born out of heavens, earth and Prashni should listen-respond to our invocation.
ये देवानां यज्ञिया यज्ञियानां मनोर्यजत्रा अमृता ऋतज्ञाः।
ते नो रासन्तामुरुगायमद्य यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
यज्ञ योग्य देवताओं, यज्ञनीय मनु प्रजापति और यजनीय अमर सत्यज्ञ जो देवगण है, वे हमें आज बहुकीर्त्ति वाला पुत्र प्रदान करें। आप सदा हमारा कल्याण द्वारा पालन करें।[ऋग्वेद 7.35.15]
Let the deities-demigods deserving Yagy, worshipable Prajapati Manu and truthful immortal demigods-deities should grant us son with multiple glory-fame. You should always be inclined to our welfare.(01.01.2024)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (36) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
प्र ब्रहौतु सदनादूतस्य वि रश्मिभिः ससृजे सूर्यो गाः।
वि सानुना पृथिवी सत्र उर्वी पृथु प्रतीकमध्येधे अग्निः॥
यज्ञ स्थान से स्तोत्रादि, उत्तमत्ता से सूर्य देव आदि देवों के पास पहुँचते हैं। किरणों के द्वारा सूर्य देव ने वृष्टि का जल बनाया। पृथ्वी अपने सानुओं को विस्तृत करके व्याप्त हुई। पृथ्वी के विस्तृत अङ्गों के ऊपर अग्नि देव प्रदीप्त होते हैं।[ऋग्वेद 7.36.1]
सानु :: पर्वत शिखर, समतल भूमि; top.
Strotr reach Sury Dev & demigods-deities from the Yagy site with excellence. Sun showered rains through his rays. The earth extended the plane area & peaks of the mountains. Agni Dev lights over all the regions of the earth.
इमां वां मित्रावरुणा सुवृक्तिमिषं न कृण्वे असुरा नवीयः।
इनो वामन्यः पदवीरदब्धो जनं च मित्रो यतति ब्रुवाणः॥
हे बली मित्र और वरुण देव! हव्यरूप अन्न की तरह आपके लिए नवीन स्तुति करता हूँ। आप लोगों में एक स्वामी वरुण देव हैं, जो स्थान के उत्पादक और मित्र हैं, स्तुति किए जाने पर प्राणियों को प्रेरणा प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 7.36.2]
Hey mighty Mitr & Varun Dev! I make new Stuti-prayers like the food grains meant for offerings. One of you Varun Dev, is a lord who is a friend, producer, and inspire the living beings on being worshiped.
आ वातस्य ध्रजतो रन्त इत्या अपीपयन्त धेनवो न सूदाः।
महो दिवः सदने जायमानोऽचिक्रदद् वृषभः सस्मिन्नूधन्॥
गति परायण वायुदेव की गति चारों ओर शोभा पाती हैं। दूध देने वाली गाय बढ़ती है। महान और प्रकाशमान आदित्य के स्थान में उत्पन्न और वर्षणशील मेघ उस अन्तरिक्ष में गर्जना करते हैं।[ऋग्वेद 7.36.3]
Speed of dynamic Vayu Dev is glorified in all four directions. Milch cow grows. Clouds ready to shower, evolved at the site of great and radiant Adity thunder in the space.
गिरा य एता युनजद्धरी त इन्द्र प्रिया सुरथा शूर धायू।
प्र यो मन्युं रिरिक्षतो मिनात्या सुक्रतुमर्यमणं ववृत्याम्॥
हे शूर इन्द्र देव! जो मनुष्य आपके प्रिय, सुन्दर गमन वाले और धारण इन हरि नाम के दोनों अश्वों को स्तुति द्वारा रथ में नियोजित करते है, उसके यज्ञ में पधारें। अर्यमा हिंसा की इच्छा करने वाले शत्रु का क्रोध विनष्ट करते हैं। उन्हीं शोभन कर्म वाले अर्यमा देव को स्तुति से आवाहित करता हूँ।[ऋग्वेद 7.36.4]
Hey brave Indr Dev! Join the Yagy of the human who worship your fast moving horses named Hari and deploy them in the charoite. Aryma destroy the anger of the enemies who wish violence. I invoke Aryma who perform glorious deeds with worship-prayers.
यजन्ते अस्य सख्यं वयश्च नमस्विनः स्व ऋतस्य धामन्।
वि पृक्षो बाबधे नृभिः स्तवान इदं नमो रुद्राय प्रेष्ठम्॥
यजमान लोग, अन्न वाले होकर और यज्ञस्थल में अवस्थित रहकर रुद्र देव का मित्र भाव चाहते हैं। नेताओं द्वारा स्तुत होने पर रुद्र देव अन्न देते हैं। उन रुद्रदेव को नमस्कार करता हूँ।[ऋग्वेद 7.36.5]
The hosts-Ritviz possess food grains, remain at the Yagy site and desire the friendship of Rudr Dev. On being worshiped by the leaders, Rudr Dev grant food grains. I salute Rudr Dev.
आ यत्साकं यशसो वावशानाः सरस्वती सप्तथी सिन्धुमाता।
याः सुष्वयन्त सुदुधाः सुधारा अभि स्वेन पयसा पीप्यानाः॥
जिन नदियों में सिन्धु (नदी) माता है और सरस्वती (नदी) सप्तमा है, वे ही मनोरथपूर्ण करने वाली और सुन्दर धाराओं वाली नदियाँ प्रवाहित होती हैं। अपने जल से बढ़ने वाली, अन्न वाली और इच्छा करने वाली नदियाँ एक साथ ही आवें।[ऋग्वेद 7.36.6]
Sindhu river is motherly and Saraswati river is Saptma (has seven currents-streams, branches) accomplish desires and flows with beautiful-lovely streams. Let the rivers growing through their waters, possessors of food grains, come together.
उत त्ये नो मरुतो मन्दसाना धियं तोकं च वाजिनोऽवन्तु।
मा नः परि ख्यदक्षरा चरन्त्यवीवृधन्युज्यं ते रयिं नः॥
प्रसन्न और वेगवान मरुद्गण हमारे यज्ञकर्म और पुत्र की रक्षा करें। व्याप्त और विचरने वाली सरस्वती देवी हमें छोड़कर दूसरे को न देखें। मरुत और वाक हमारा धन नियत रहने पर भी उसे बढ़ावें।[ऋग्वेद 7.36.7]
Let dynamic and happy Marud Gan protect our Yagy related tasks and our son. Vast and moving Saraswati Devi should not desert us. Marud Gan and Saraswati should increase our riches-asset.
प्र वो महीमरमतिं कृणुध्वं प्र पूषणं विदथ्यं १ न वीरम्।
भगं धियोऽवितारं नो अस्याः सातौ वाजं रातिषाचं पुरंधिम्॥
हे स्तोताओं! महान तथा विशाल पृथ्वी, पूजनीय योद्धा एवं पराक्रमी पूषा, भग तथा वाजदेव को इस यज्ञ में आवाहित करें।[ऋग्वेद 7.36.8]
Hey Stotas! Invoke vast & great earth, worshipable mighty warriors Pusha, Bhag and Vaj Dev in this Yagy.
अच्छायं वो मरुतः श्लोक एत्वच्छा विष्णुं निषिक्तपामवोभिः।
उत प्रजायै गृणते वयो धुर्यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
हमारे ये स्तोत्र मरुद्गणों और श्री हरी विष्णु के पास पहुँचें। हम स्तुति करने वालों को वे अन्न व पुत्र प्रदान करें और सदा हमारा मंगल करने वाले हों।[ऋग्वेद 7.36.9]
Let our prayers reach Marud Gan and Shri Hari Vishnu. They should award food grains and son to us, the worshipers and ensure our welfare-safety.(02.01.2024)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (37) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
आ वो वाहिष्ठो वहतु स्तवध्यै रथो वाजा ऋभुक्षणो अमृक्तः।
अभि त्रिपृष्ठैः सवनेषु सोमैर्मदे सुशिप्रा महभिः पृणध्वम्॥
विस्तृत तेज के आधार ऋभुओं, वाहक, प्रशस्य और अहिंसक रथ पर आरुढ़ होकर गमन करें। हे सुन्दर जबड़ों वाले ऋभुओं! यज्ञ में आनन्द के लिए दूध, दही और सत्तू में मिले सोमरस द्वारा उदरपूर्ति करें।[ऋग्वेद 7.37.1]
Let Ribhus the source (basic-roots) of vast aura ride the glorious, non violent chariot. Hey Ribhus the possessor of beautiful jaws! Enjoy Somras mixed with milk, curd and Sattu-mixture of roasted gram & barley for satisfying hunger and pleasure in the Yagy.
यूयं ह रत्नं मघवत्सु धत्थ स्वर्दृश ऋभुक्षणो अमृक्तम्।
सं यज्ञेषु स्वधावन्तः पिबध्वं वि नो राधांसि मतिभिर्दयध्वम्॥
हे स्वर्ग दर्शी ऋभुओं! आप लोग हविष्मान लोगों के लिए अहिंसक रत्न धारण करें। अनन्तर बलवान होकर यज्ञ में सोमपान करें। बुद्धियों सहित सिद्धि दायक ऐश्वर्य हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.37.2]
Hey visitors-viewers of heavens Ribhus! Wear non violent jewels for the people with offerings. Thereafter, enjoy Somras on becoming strong-mighty. Grant us grandeur along with intelligence, wisdom, prudence.
उवोचिथ हि मघवन्देष्णं महो अर्भस्य वसुनो विभागे।
उभा ते पूर्णा वसुना गभस्ती न सूनृता नि यमते वसव्या॥
हे धनपती! आप विशेष और अल्पधन के दान के समय धन का सेवन करते हैं। आपकी दोनों बाहें धन से पूर्ण हैं। धनप्राप्ति में आपका वचन बाधक नहीं होता।[ऋग्वेद 7.37.3]
Hey wealthy-rich! You enjoy specific and small quantum of wealth at the occasion of donation-charity. Both of your arms-fists are full of money. Your words do not obstruct in receiving money.
त्वमिन्द्र स्वयशा ऋभुक्षा वाजो न साधुरस्तमेष्यृक्वा।
वयं नु ते दाश्वांसः स्याम ब्रह्म कृण्वन्तो हरिवो वसिष्ठाः॥
हे इन्द्र देव! आप यशस्वी, ऋभुओं के ईश्वर और साधक हैं। दूसरे की तरह आप स्तोता के गृह में पधारें। हे हरि अश्व वाले इन्द्र देव! आज हम (वसिष्ठ गण) हव्य प्रदान करके आपकी स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 7.37.4]
Hey Indr Dev! You are the lord of glorious Ribhus and helper. Reach the house of the Stota like others. Hey master of horses named Hari, Indr Dev! Today, we the Vashishth Gan pray and make offerings to you.
सनितासि प्रवतो दाशुषे चिद्याभिर्विवेषो हर्यश्व धीभिः।
ववन्मा नु ते युज्याभिरूती कदा न इन्द्र राय आ दशस्येः॥
हे हर्यश्व! आप हमारी स्तुति द्वारा व्याप्त होते हैं, इसलिए हव्य देने वाले यजमान के लिए धन के दाता हैं। हे इन्द्र देव! आप हमें कब धन प्रदान करेंगे? आज तक हम आपके संरक्षण में सुरक्षित रहते हुए आपका भजन-कीर्तन करते हैं।[ऋग्वेद 7.37.5]
Hey Haryasv! You pervade by virtue of our prayers, hence you grant money to the Ritviz who make offerings. Hey Indr Dev! when will you grant us money? Till today we are under your protection making Bhajan-Keertan (singing prayers).
वासयसीव वेधसस्त्वं नः कदा न इन्द्र वचसो बुबोधः।
अस्तं तात्या धिया रयिं सुवीरं पृक्षो नो अर्वा न्युहीत वाजी॥
आप कब हमारे स्तोत्र रूपी वाक्य को समझेंगे? आप इस समय हमें निवास दे रहे हैं। बली और वेगशाली अश्व हमारी स्तुति से वीर पुत्र से युक्त धन और अन्न हमारे गृह में भेजें।[ऋग्वेद 7.37.6]
When will your respond to our Strotr-prayers? You have provided us shelter at this moment. Grant us brave sons with wealth, through fast moving strong horses to our homes.
अभि यं देवी निर्ऋ ृतिश्चिदीशे नक्षन्त इन्द्रं शरदः सुपृक्षः।
उप त्रिबन्धुर्जरदष्टिमेत्यस्ववेशं यं कृणवन्त मर्ताः॥
प्रकाश मान निऋति जिन इन्द्र देव को अधिपति बनाने के लिए व्याप्त करती है, सुन्दर अन्न वाले वर्ष जिन इन्द्र देव को व्याप्त करते हैं और जिन इन्द्र देव को मनुष्य स्तोता अपने गृह में ले जाते हैं, वही त्रिलोक धारी इन्द्र देव हमें विशाल बल प्रदत्त करें।[ऋग्वेद 7.37.7]
Indr Dev whom radiant Nirati pervade to make lord, the periods of good food grains pervade him and the human Stotas take him to their homes, he the supporter of the three abodes Indr Dev grant us great strength.
आ नो राधांसि सवितः स्तवध्या आ रायो यन्तु पर्वतस्य रातौ।
सदा नो दिव्यः पायुः सिषक्तु यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
हे सविता देवता! आपके यहाँ से प्रशंसा योग्य धन हमारे पास आवे। पर्वत के धन देने पर हमारे पास धन आवे। सर्व रक्षक स्वर्गीय इन्द्र देव सदा रक्षक रूप से हमारी रक्षा करें। हे देवताओं! आप सदैव स्वस्ति द्वारा हमारा पालन करें।[ऋग्वेद 7.37.8]
Hey Savita Dev! Bring appreciable wealth to us. Bring riches from the mountains. The protector of all and lord of heavens Indr Dev should protect us. Hey demigods-deities! Nurse us through Swasti.(03.01.2024)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (38) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
उदु ष्य देवः सविता ययाम हिरण्ययीममतिं यामशिश्रेत्।
नूनं भगो हव्यो मानुषेभिर्वि यो रत्ना पुरूवसुर्दधाति॥
जिस सुवर्णमयी प्रभा का आश्रय सूर्य देव लेते हैं, उसी को प्रकट करते हैं। सविता देव मनुष्यों के लिए स्तुत्य है। अनेक धनों वाले सविता देव स्तोताओं को मनोहर धन प्रदान करते है।[ऋग्वेद 7.38.1]
Sury Dev depend upon the golden aura and release it further. Savita Dev is worshipable for the humans. Savita Dev, the possessor of various types of wealth grant beautiful wealth to the Stotas.
उदु तिष्ठ सवितः श्रुध्य१स्य हिरण्यपाणे प्रभृतावृतस्य।
व्यु १ र्वी पृथ्वीममतिं सृजान आ नृभ्यो मर्तभोजनं सुवानः॥
हे सविता देव! उदित होवें। हे हिरण्य बाहु! आप व्यापक, आभा वाले, मनुष्यों के भोग योग्य धन एवं अन्न प्रदान करते हैं। आप हमारा स्तोत्र श्रवण करें।[ऋग्वेद 7.38.2]
Hey Savita Dev, rise! Hey bearer of golden arms! You possess vast radiance, grant consumable wealth & food grains. Respond to our Strotr.
अपि ष्टुतः सविता देवो अस्तु यमा चिद्विश्वे वसवो गृणन्ति।
स नः स्तोमान्नमस्य १ श्चनो धाद्विश्वेभिः पातु पायुभिर्नि सूरीन्॥
सविता देव हमारे द्वारा स्तुत्य हों। जिन सविता देव की स्तुति समस्त देवता करते हैं, वह पूजनीय सविता देव हमारा स्तोत्र और अन्न को धारण करें। सब प्रकार के रक्षाकार्य द्वारा स्तोताओं का पालन करें।[ऋग्वेद 7.38.3]
Let Savita Dev be worshiped by us. Worshipable Savita Dev, who is worshiped by all demigods-deities; should accept our Strotr and hold the food grains. Nourish the Stotas through all sorts of protective measures.
अभि यं देव्यदितिगृणाति सवं देवस्य सवितुर्जुषाणा।
अभि सम्राजो वरुणो गृणन्त्यभि मित्रासो अर्यमा सजोषाः॥
सविता देव की अनुमति के अनुसार माता अदिति स्तुति करती हैं, वरुणादि देवता सविता देव की स्तुति करते हैं तथा मित्र आदि और समान प्रीति वाले अर्यमा उनकी ही स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 7.38.4]
Mata Aditi pray as per the directives of Savita Dev. Deities-demigods like Mitr & Varun Dev pray to Savita Dev. Equally loveable Aryma worship him.
अभि ये मिथो वनुषः सपन्ते रातिं दिवो रातिषाचः पृथिव्याः।
अहिर्बुध्न्य उत नः शृणोतु वरूत्र्येकधेनुभिर्नि पातु॥
दान निपुण और भक्त यजमान आपस में मिलकर द्युलोक-भूलोक के मित्र सविता देव की सेवा करते हैं। अहिर्बुध्न्य हमारी स्तुति श्रवण करें। विशेष गौवों द्वारा वाग्देवी भी हमारा पालन करें।[ऋग्वेद 7.38.5]
Expert in donations-charity devotee Ritviz together serve the friend of Savita Dev heavens & earth together. Let Ahirbudhany respond to our prayers. Vag Devi should nourish us through specific cows.
अनु तन्नो जास्पतिर्मंसीष्ट रर्त्ने देवस्य सवितुरियानः।
भगमुग्रोऽवसे जोहवीति भगमनुग्रो अध याति रत्नम्॥
प्रजा रक्षक सविता देव हमारी प्रार्थना के अनुसार अपना मनोहर धन हमें प्रदान करें। ओजस्वी स्तोता हमारी रक्षा के लिए भग नाम के देवता को बार-बार बुलाते हैं। जो पराक्रम रहित हैं, वे स्तोता केवल धन की याचना करते हैं।[ऋग्वेद 7.38.6]
Let protector of the populace Savita Dev respond to our prayers and grant us lovely wealth. Energetic Stotas repeatedly call Bhag Dev for our protection. Those Stotas who lack valour request only for the wealth.
शं नो भवन्तु वाजिनो हवेषु देवताता मितद्रवः स्वर्काः।
जम्भयन्तोऽहिं वृकं सनेम्यस्मद्युयवन्नमीवाः॥
यज्ञकालीन हमारे स्तोत्रों में मितद्रव, मितमार्ग और शोभन अन्न वाले वाजी नाम के देवगण हम सभी को सुख प्रदान करें। ये वाजी देवगण अदाता हन्ता और राक्षसों को मारते हुए समस्त जीर्ण रोगों से हमें मुक्त करे।[ऋग्वेद 7.38.7]
Let demigods named Vaji, possessor of Mitdrav, Mitmarg and lovely food grains; grant us all sorts of comforts with our Strotr for the Yagy session. Let these Vaji Dev Gan kill the non donor killers, demons & relieve us from all aging diseases.
वाजेवाजेऽवत वाजिनो नो धनेषु विप्रा अमृता ऋतज्ञाः।
अस्य मध्वः पिबत मादयध्वं तृप्ता यात पथिभिर्देवयानैः॥
हे वाजी देवगण! आप लोग मेधावी, अमर और सत्य ज्ञाता होकर धन के निमित्त भूत सभी युद्धों में हमारा पालन करें। इस सोमरस को पीयें और आनन्दित होवें। अनन्तर तृप्त होकर देवयान मार्ग से प्रस्थान करें।[ऋग्वेद 7.38.8]
Hey Vaji Dev Gan! Become intelligent, immortal, aware of truth and nourish us in all wars for the sake of wealth. Drink this Somras and become happy. Thereafter, on being satisfied depart in the divine aeroplane.(04.01.2024)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (39) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
ऊर्ध्वा अग्निः सुमतिं वस्वो अश्रेत्प्रतीची जूर्णिर्देवतातिमेति।
भेजाते अद्री रथ्येव पन्थामृतं होता न इषितो यजाति॥
अग्नि देव ऊपर उठकर स्तोता की शोभन स्तुति को श्रवण करें। सबको वृद्धावस्था देने वाली उषा देवी पूर्वाभिमुखी होकर यज्ञ में आगमन करें। आदर से युक्त पत्नी और यजमान रथियों की तरह यज्ञमार्ग का आश्रय करते हैं। हमारा भेजा हुआ होता ही यज्ञ करता है।[ऋग्वेद 7.39.1]
Let Agni Dev rise up and respond to the Stuti-prayers of the Stota-worshiper. Let Usha Devi, granting old age to every one, join the Yagy facing East. The woman with respect & the Ritviz follow the Yagy route. The devotee sent by us conduct the Yagy.
प्र वावृजे सुप्रया बर्हिरेषामा विश्पतीव बीरिट इयाते।
विशामक्तोरुषसः पूर्वहूतौ वायुः पूषा स्वस्तये नियुत्वान्॥
वाहन में सवार वायु देव और पूषा देवी रात्रि के अंत में और उषा के पूर्व मनुष्यों द्वारा आवाहित किए जाने पर राजाओं की भांति आगमन करते हैं। उन दोनों के निमित्त यज्ञस्थल पर कुशासन बिछाए जाते हैं।[ऋग्वेद 7.39.2]
Vayu Dev & Usha Devi on being invoked by the humans at the end of night, arrive riding their vehicles like kings. Kush mates are spread at the Yagy site for them.
ज्मया अत्र वसवो रन्त देवा उरावन्तरिक्षे मर्जयन्त शुभ्राः।
अर्वाक् पथ उरुज्रयः कृणुध्वं श्रोता दूतस्य जग्मुषो नो अस्य॥
इस यज्ञ में वसुगण पृथ्वी पर रमण करें। विस्तीर्ण अन्तरिक्ष में स्थित और दीप्यमान मरुद्गण सेवित होते हैं। हे प्रभूतगामी वसुओं और मरुतों! अपना गन्तव्य पथ हमारी ओर करें। हमारा दूत आप लोगों के पास गया है, उसका आह्वान श्रवण करें।[ऋग्वेद 7.39.3]
Let Vasu Gan roam over the earth during this Yagy. Marud Gan present in the vast space are served. Hey possessor in abundance Vasu & Marud Gan! Let your destination be targeted towards us. Our messenger has approached you; listen to him.
ते हि यज्ञेषु यज्ञियास ऊमाः सधस्थं विश्वे अभि सन्ति देवाः।
ताँ अध्वर उशतो यक्ष्यग्ने श्रुष्टी भगं नासत्या पुरंधिम्॥
प्रख्यात, यजनीय और रक्षक विश्वेदेव गण यज्ञस्थान में आते हैं। हे अग्निदेव! हमारे यज्ञ में हमारे अभिलाषी देवताओं के लिए आप यजन करें। हे भगदेव! आप अश्विनी कुमारों और इन्द्र देव की शीघ्र पूजा करें।[ऋग्वेद 7.39.4]
Famous, honourable and protector Vishwedev Gan come to the Yagy site. Hey Agni Dev! Conduct the Yagy for the desired demigods-deities in our Yagy. Hey Bhag Dev! Worship Ashwani Kumars & Indr Dev quickly.
आग्ने गिरो दिव आ पृथिव्या मित्रं वह वरुणमिन्द्रमग्निम्।
आर्यमणमदितिं विष्णुमेषां सरस्वती मरुतो मादयन्ताम्॥
हे अग्नि देव! आप द्युलोक से स्तुति योग्य मित्र, वरुण देव, इन्द्र देव, अग्नि देव, अर्यमा, माता अदिति और श्री हरी विष्णु को हमारे यज्ञ में बुलावें। पृथ्वी को भी बुलावें। देवी सरस्वती और मरुद्रण यहाँ आकर प्रसन्न हों।[ऋग्वेद 7.39.5]
Hey Agni Dev! Invite worshipable Mitr, Varun Dev, Mata Aditi and Bhagwan Shri Hari Vishnu in our Yagy from the heavens including you. Invite earth as well. Let Maa Saraswati and Marud Gan become happy by coming here.
ररे हव्यं मतिर्भिर्यज्ञियानां नक्षत्कामं मर्त्यानामसिन्वन्।
धाता रयिमविदस्यं सदासां सक्षीमहि युज्येभिर्नु देवैः॥
हम यजनीय देवताओं के लिए स्तुति के साथ हव्य प्रदान करते हैं। अग्निदेव हमारी अभिलाषा के प्रतिबन्धक न होकर यज्ञ को व्याप्त करते हैं। हे देवताओं! आप ग्राह्य और सदा संभजनीय धन प्रदान करें। आज हम सहायक देवताओं का आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 7.39.6]
We worship and make offerings to the worshipable demigods-deities. Agni Dev pervade the Yagy without being restricted to our Yagy. Hey demigods-deities! Grant desirable and beneficial wealth. We invoke the associate demigods-deities.
नू रोदसी अभिष्टुते वसिष्ठैर्ऋतावानो वरुणो मित्रो अग्निः।
यच्छन्तु चन्द्रा उपमं नो अर्क यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
वसिष्ठों के द्वारा आज द्यावा-पृथ्वी भली-भाँति स्तुत्य हुए। यज्ञ से युक्त वरुण देव, इन्द्र देव और अग्नि देव भी स्तुत्य हुए। आह्लादकारी देवगण हमें पूजनीय और सर्वोत्तम अन्न प्रदान करें। आप हमारा सदैव स्वस्ति द्वारा पालन करें।[ऋग्वेद 7.39.7]
Vashishths properly worshiped the earth & heavens including Varun, Indr and Agni Dev. Let the pleasure granting demigods-deities grant us best food grains. You should always nurse us through Swasti.(07.01.2024)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (40) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
ओ श्रुष्टिर्विदथ्या ३ समेतु प्रति स्तोमें दधीमहि तुराणाम्।
यदद्य देवः सविता सुवाति स्यामास्य रलिनो विभागे॥
हे देवताओं! आपका चित्त द्वारा सम्पादनीय सुख हमारे पास आवें। हम वेगवान देवताओं की स्तुति करते हैं। इस समय जो धन सविता देव भेजेंगे, हम रत्न वाले सविता देव के उसी धन को ग्रहण करेंगे।[ऋग्वेद 7.40.1]
Hey demigods-deities! Let the comforts desired by you through your innerself, reach us. We worship the dynamic demigods-deities. We will accept the wealth-money granted by Savita Dev, having jewels.
मित्रस्तन्नो वरुणो रोदसी च द्युभक्तमिन्द्रो अर्यमा ददातु।
दिदेष्टु देव्यदिती रेक्णो वायुश्च यन्नियुवैते भगश्च॥
मित्र, वरुणदेव और द्यावा-पृथ्वी हमें वही प्रसिद्ध धन प्रदान करें। इन्द्र देव और अर्यमा हमें प्रकाशमान स्तोताओं द्वारा सेवित धन देवें। वायुदेव और भगदेव हमारे लिए जिस धन की योजना करते हैं, देवी अदिति उसी धन को हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.40.2]
Let Mitr, Varun Dev, heavens & earth grant us the famous wealth. Let Indr Dev and Aryma grant us the wealth used by the radiant Stotas. The money planned by Vayu Dev and Bhag Dev for us should be given to us by Devi Aditi.
सेदुग्रो अस्तु मरुतः स शुष्मी यं मर्त्य पृषदश्वा अवाथ।
उतेमग्निः सरस्वती जुनन्ति न तस्य रायः पर्येतास्ति॥
हे पृषत नामक अश्व वाले मरुतों! जिस मनुष्य की आप रक्षा करते हैं, वही ओजस्वी और बलवान हैं। अग्नि देव और माता सरस्वती आदि देवगण यजमान को प्रवर्तित करते हैं। इस यजमान के धन का कोई विघातक नहीं है।[ऋग्वेद 7.40.3]
Hey Marud Gan, the master of the horse named Prashat! The humans protected by you are strong and radiant. Agni Dev & Mata Saraswati etc. demigods-deities; promote-unleash the Ritviz. The wealth of the Ritviz can not be destroyed by anyone.
अयं हि नेता वरुण ऋतस्य मित्रो राजानो अर्यमापो धुः।
सुहवा देव्यदितिरनर्वा ते नो अंहो अति पर्षन्नरिष्टान्॥
यज्ञ के प्रापक ये वरुण देव, मित्र और अर्यमादेव सबकी शक्ति से युक्त हैं। ये हमारा यज्ञकर्म धारण करते हैं। न रोकी गई और प्रकाशमान माता अदिति शोभन आह्वान वाली हैं। जिससे हमें बाधा न हो, इस प्रकार पाप से हमें ये सब देवता बचावें।[ऋग्वेद 7.40.4]
Recipient of the Yagy Varun Dev, Mitr and Aryma Dev are associated with the power of all. Let them support our Yagy Karm. Unblocked radiant Mata Aditi perform beautiful jobs. The demigods should protect us from obstructions and sin.
अस्य देवस्य मीळ्हुषो वया विष्णोरेषस्य प्रभृथे हविर्भिः।
विदे हि रुद्रो रुद्रियं महित्वं यासिष्टं वर्तिरश्विनाविरावत्॥
अन्य देवगण यज्ञ में हव्य द्वारा प्रापणीय और अभीष्टदाता भगवान् श्री हरी विष्णु के अंश रूप हैं। रुद्र देव अपनी महिमा प्रदान करें। हे अश्विनी कुमारों! आप हमारे हव्य वाले गृह में पधारें।[ऋग्वेद 7.40.5]
Other demigods-deities are available through offerings in the Yagy and are the components of desires accomplishing Bhagwan Shri Hari Vishnu. Let Rudr Dev grant his glory to us. Hey Ashwani Kumars! Come to our house having offerings.
मात्र पूषन्नाघृण इरस्यो वरूत्री यद्रातिषाचश्च रासन्।
मयोभुवो नो अर्वन्तो नि पान्तु वृष्टिं परिज्मा वातो ददातु॥
सबकी वरणीया सरस्वती देवी और दान निपुणा देव पत्नियाँ जो धन हमें देती हैं, हे दीप्ति वाले पृषन देव! उसमें बाधा न देना। सुखप्रद और गतिशील देवगण हमारा पालन करें। सर्वत्र गामी वायुदेव वर्षा का जल हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.40.6]
Hey radiant Prashan Dev! Do not obstruct the donations granted to us by Mata Saraswati and wives of demigods. Let dynamic and comforting demigods-deities support-nurse us. Vayu who roam every where, should grant us rain water.
नू रोदसी अभिष्टुते वसिष्ठैर्ऋतावानो वरुणो मित्रो अग्निः।
यच्छन्तु चन्द्रा उपमं नो अर्कं यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
आज वसिष्ठ गणों के द्वारा द्यावा-पृथ्वी की भली-भाँति स्तुति हुई। यज्ञ वाले वरुण देव, इन्द्र देव और अग्नि देव भी स्तुत्य हुए। आह्लादकारी देवगण हमें पूजनीय और सर्वोत्तम अन्न प्रदान करें। आप सदैव स्वस्ति द्वारा पालन करें।[ऋग्वेद 7.40.7]
The Vashishths properly worshiped the heavens & the earth. Varun Dev, Indr Dev and Agni Dev involved in the Yagy too are worshiped. Comforting demigods-deities should grant us worshipable and excellent food grains. You should always nurse-support us through Swasti.(08.01.2024)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (41) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
प्रातरग्निं प्रातरिन्द्रं हवामहे प्रातर्मित्रावरुणा प्रातरश्विना।
प्रातर्भगं पूषणं ब्रह्मणस्पतिं प्रातः सोममुत रुद्रं हुवेम॥
हम प्रातःकाल अग्नि देव, इन्द्र देव, मित्र और वरुण देव को आवाहित करते हैं तथा प्रातःकाल अश्विनी कुमारों की स्तुति करते हैं। प्रातःकाल भग, पूषा, ब्रह्मणस्पति, सोम और रुद्र देव की स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 7.41.1]
We invoke Agni Dev, Indr Dev, Mitr-Varun Dev and Ashwani Kumars and worship Bhag, Pusha, Brahmanspati, Som and Rudr Dev in the morning.
प्रातर्जितं भगमुग्रं हुवेम वयं पुत्रमदितेर्यो विधर्ता।
आध्रश्चिद्यं मन्यमानस्तुरश्चिद्राजा चिद्यं भगं भक्षीत्याह॥
जो संसार के धारक, जयशील और उग्र अदिति के पुत्र हैं, उन्हीं भग देवता को हम प्रातःकाल बुलाते हैं। दरिद्र स्तोता और धनी राजा दोनों ही भग देवता की स्तुति करते हुए "मुझे भोग-योग्य धन दें" ऐसी प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 7.41.2]
We call Bhag Dev, who is the supporter, winner and furious, a son of Aditi in the morning. Both, the poor Stota and the king pray to Bhag Dev saying grant me useful-consumable wealth and comforts.
भग प्रणेतर्भग सत्यराधो भगेमां धियमुदवा ददन्नः।
भग प्र णो जनय गोभिरश्चैर्भग प्र नृभिर्नृवन्तः स्याम॥
हे भग! आप उत्तम नेता हैं। आप सत्य धन हैं। हमें आप अभिलषित वस्तु प्रदान करके हमारी स्तुति सफल करें। हे देव! हमें गौ, अश्व, पुत्रादि प्रदत्त कर श्रेष्ठ मनुष्यों के समाज वाला बनावें।[ऋग्वेद 7.41.3]
Hey Bhag! You are excellent leader. You are truthful. Make our prayers successful by granting us desired commodities. He Dev! Make us a social being of excellent humans by granting us cows, horses and sons etc.
उतेदानीं भगवन्तः स्यामोत प्रपित्व उत मध्ये अह्नाम्।
उतोदिता मघवन्त्सूर्यस्य वयं देवार्नो सुमतौ स्याम॥
आपकी कृपा से हम भाग्यशाली होवें। दिन के आरम्भ और मध्य में भी आपकी कृपा प्राप्त करें। हे भग! हम सूर्योदय के समय सभी देवताओं का अनुग्रह प्राप्त करें।[ऋग्वेद 7.41.4]
We should be lucky due to your blessings-mercy. We should secure-get your blessings during the beginning of the day and noon. Hey Bhag! We should attain the grace-favour of all the demigods-deities in the morning.
भग एव भगवाँ अस्तु देवास्तेन वयं भगवन्तः स्याम।
तं त्वा भग सर्व इज्जोहवीति स नो भग पुरएता भवेह॥
हे देवताओं! भग ही भगवान् हैं, हम भग के अनुग्रह से ही भगवान् हों। हे भग! सब लोग आपको बार-बार बुलाते हैं। आप इस यज्ञ में हमारे अग्रगामी बनें।[ऋग्वेद 7.41.5]
Hey Demigods-deities! Bhag is God and we should become God by the blessings of Bhag. Hey Bhag! All people call you again & again. You should lead our Yagy.
समध्वरायोषसो नमन्त दधिक्रावेव शुचये पदाय।
अर्वाचीनं वसुविदं भगं नो रथमिवाश्वा वाजिन आ वहन्तु॥
शुद्ध स्थान के लिए दधिक्रावा की तरह उषा हमारे यज्ञ में पधारें। वेगशाली अश्वों के रथ की तरह उषा धनदाता भग देवता को हमारे सामने ले आवें।[ऋग्वेद 7.41.6]
Let Usha join our Yagy like Dadhikrava for a pious-virtuous place. Usha should bring wealth grantor Bhag Dev like the accelerated horses to us.
अश्वावतीर्गोमतीर्न उषासो वीरवतीः सदमुच्छन्तु भद्राः।
घृतं दुहाना विश्वतः प्रपीता यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
समस्त गुणों से प्रवृद्ध और भजनीय उषा, अश्व, गौ और वीर पुरुष से युक्त होकर तथा जलसेचन करके सदा हमारे रात्रिजात अन्धकार का नाश करें। आप सदैव हमारा स्वस्ति द्वारा पालन करें।[ऋग्वेद 7.41.7]
Enriched all qualities, worshipable Usha accompanied with horses, cows and brave people, irrigate with water and destroy the darkness generated by night. Always nurse us with Swasti. (09.01.2024)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (42) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
प्र ब्रह्माणो अङ्गिरसो नक्षन्त प्र क्रन्दनुर्नभन्यस्य वेतु।
प्र धेनव उदप्रुतो नवन्त युज्यातामद्री अध्वरस्य पेशः॥
स्तोता (ब्राह्मण) अंगिरा लोग सर्वत्र व्याप्त हों। पर्जन्य हमारे स्तोत्र की अभिलाषा विशेषरूप से करें। प्रसन्नतादायिका नदियाँ जल सेचन करते हुए गमन करें। आदर सम्पन्ना पत्नी और यजमान यज्ञ के रूप की योजना करें।[ऋग्वेद 7.42.1]
Let Stota-Brahman Angiras pervade every where. Parjany Dev should be desirous of our Strotr specially. Pleasure granting-evolving rivers should flow with the collected waters. Honoured wives and the Ritviz should organise the Yagy.
सुगस्ते अग्ने सनवित्तो अध्वा युक्ष्वा सुते हरितो रोहितश्च।
ये वा सद्मन्नरुषा वीरवाहो हुवे देवानां जनिमानि सत्तः॥
हे अग्नि देव! आपका चिरप्राप्त पथ सुगम हैं। जो श्याम और लोहित वर्ण के अश्व यज्ञगृह में आपके समान वीर को ले जाते हुए शोभा पाते हैं, उन्हें रथ में नियोजित करें। मैं यज्ञगृह में बैठकर देवताओं को बुलाता हूँ।[ऋग्वेद 7.42.2]
Hey Agni Dev! Your eternal path is easy to negotiate. Deploy the red coloured horses in the charoite which take the warriors, as brave you, to Yagy. I will invoke the demigods-deities sitting in the Yagy house.
समु वो यज्ञ महयन्नमोभिः प्र होता मन्द्रा रिरारच उपाके।
यजस्व तु पुर्वणाक देवाना यज्ञियामरमतिं ववृत्याः॥
हे देवताओं! नमस्कार करने वाले ये स्तोता आपके यज्ञ का भली-भाँति पूजन करते हैं। हमारे समीप में रहने वाला होता सर्वोत्तम है। यजमान देवताओं का यज्ञ भली भाँति करें। हे अग्नि देव! बहुत तेज वाले आप, भूमि को आवर्तित करें।[ऋग्वेद 7.42.3]
Hey demigods-deities! These saluting Stotas properly worship your Yagy. Hota near us are excellent. Let the Ritviz properly conduct the demigods-deities Yagy. Hey Agni Dev! Possessing extreme aura-energy, you revolve the land.
यदा वीरस्य रेवतो दुरोणे स्योनशीरतिथिराचिकेतत्।
सुप्रीतो अग्निः सुधितो दम आ स विशे दाति वार्यमियत्यै॥
सबके अतिथि अग्नि देव जिस समय वीर और धनी के गृह में सुख से सोये हुए देखे जाते हैं और जिस समय अग्नि देव घर में भली-भाँति निहित होकर प्रसन्न होते हैं, उस समय वह समीप वर्त्तिनी प्रजा को वरणीय धन प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 7.42.4]
Guest of all Agni Dev, when found sleeping comfortably in the house of brave & rich, pervades the house and become happy granting riches to populace living around, at that moment.
इमं नो अग्ने अध्वरं जुषस्व मरुत्स्विन्द्रे यशसं कृधी नः।
आ नक्ता बर्हिः सदतामुषासोशन्ता मित्रावरुणा यजेह॥
हे अग्नि देव! हमारे इस यज्ञ की सेवा करें। इन्द्र देव और मरुतों के बीच हमें यशस्वी बनावे। रात्रि और उषा के काल में कुशों पर विराजित हों। यज्ञाभिलाषी मित्र और वरुण देव की इस यज्ञ में पूजा करें।[ऋग्वेद 7.42.5]
Hey Agni Dev! Serve this Yagy of ours. Make us glorious-revered between the Marud Gan & Indr Dev. Worship Mitr & Varun Dev desirous of Yagy in this Yagy.
एवाग्निं सहस्यं वसिष्ठो रायस्कामो विश्वप्स्न्यस्य स्तौत्।
इषं रयिं पप्रथद्वाजमस्मे यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
धनकामी होकर वसिष्ठ ने इसी प्रकार बल पुत्र अग्निदेव की बहुरूप वाले धन की प्राप्ति के लिए स्तुति की। अग्नि देव हमें अन्न, बल और धन प्रदान करें। आप हमारा सदैव स्वस्ति द्वारा पालन करें।[ऋग्वेद 7.42.6]
Desirous of wealth Vashishth worshiped the son of Bal Agni dev, in this manner. Let Agni Dev grant us food grains, might and wealth. Always nourish us by Swasti.(10.01.2024)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (43) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
प्र वो यज्ञेषु देवयन्तो अर्चन्द्यावा नमोभिः पृथिवी इषध्यै।
येषां ब्रह्माण्यसमानि विप्रा विष्वग्वियन्ति वनिनो न शाखाः॥
वृक्ष शाखा की तरह जिन मेधावियों के स्तोत्र सब ओर जाते हैं, वे ही देवकामी यज्ञ में स्तुति द्वारा आपको पाने के लिए विशेष रूप से स्तुति करते हैं। वे द्यावा-पृथ्वी की भी स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 7.43.1]
The enlightened-intellectuals who's Strotr spread-move in all directions like the branches of tree, make special prayers in the Yagy for the demigods-deities. They worship the earth & heavens as well.
प्र यज्ञ एतु हेत्वो न सप्तिरुद्यच्छध्वं समनसो घृताचीः।
स्तृणीत बर्हिरध्वराय साधूर्ध्वा शोचींषि देवयून्यस्थुः॥
शीघ्रगामी अश्व की तरह इस यज्ञ में गमन करें। समान मन से आप घृत बहाने वाली स्रुक को उठावें। यज्ञ के लिए बढ़िया कुशा को बिछावें। हे अग्निदेव! आपकी देवकामी किरणें ऊर्द्धवगामी हों।[ऋग्वेद 7.43.2]
Move to this Yagy a fast moving horse. Lift the Struk for Ghee with balanced innerself. Spread good quality Matr for the Yagy. Hey Agni Dev! Let your radiations-rays move up for the Yagy of demigods-deities in the upward direction.
आ पुत्रासो न मातरं विभृत्राः सानौ देवासो बर्हिषः सदन्तु।
आ विश्वाची विदथ्यामनक्त्वग्ने मा नो देवताता मृधस्कः॥
विशेषरूप से प्रतिपालनीय पुत्र जिस प्रकार माता की गोद में बैठते हैं, उसी प्रकार देवगण यज्ञ के उन्नत स्थान पर विराजमान हों। हे अग्नि देव! जुहू आपकी यजनीय ज्वाला को भली-भाँति सिंचित करें, युद्ध में आप हमारे शत्रुओं को पराजित करें।[ऋग्वेद 7.43.3]
Let the demigods-deities be seated at the raised place like the son who sits in the lap of the mother. Hey Agni Dev! Let the Butea wood pot saturate your flames carefully. We should defeat the enemy in the war.
ते सीषपन्त जोषमा यजत्रा ऋतस्य धाराः सुदुघा दुहानाः।
ज्येष्ठं वो अद्य मह आ वसूनामा गन्तन समनसो यति ष्ठ॥
यजनीय देवगण जल की दूहने योग्य धारा को बरसाते हुए यथेष्ट रूप से हमारी सेवा को स्वीकार करें। हे देवताओं! आज धनों में जो पूज्य धन हैं, वह आवे। आप सब समान मन से हमारे यज्ञ में पधारें।[ऋग्वेद 7.43.4]
Let worshipable demigods-deities accept our services causing rain fall. Hey demigods-deities! Let the best worshipable-revered wealth come to us. You all should join our Yagy with the same innerself.
एवा नो असे विक्ष्वा दशस्य त्वया वयं सहसावभास्क्राः।
राजा युजा सधमादो अरिष्टा यूय पात स्वस्तिभिः सदा नः ।।५।।
हे अग्नि देव! आप मनुष्यों को धनादि प्रदान करने वाले हैं। हे बलशाली अग्नि देव! सदा आपके आश्रम में रहकर हृष्ट-पुष्ट तथा अहिंसावृत्ति वाले बनें और धन प्राप्त करें। आप हमारा पालन तथा मंगल करे।[ऋग्वेद 7.43.5]
Hey Agni Dev! You grant wealth etc., to the humans. Hey mighty Agni Dev! We should become strong with non violent temper and get wealth. Support & nurse us.(11.01.2024)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (44) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
दधिक्रां वः प्रथममश्विनोषसमग्निं समिद्धं भगमूतये हुवे।
इन्द्रं विष्णुं पूषणं ब्रह्मणस्पतिमादित्यान्द्यावापृथिवी अपः स्वः॥
आपकी रक्षा के लिए पहले मैं दधिका देवता को आवाहित करता हूँ। इसके पश्चात अश्विनी कुमारों, उषा, समिद्ध अग्नि देव और भग देव का आह्वान करता हूँ। इन्द्र देव, श्रीविष्णु, पूषा, ब्रह्मणस्पति, आदित्यगण, द्यावा-पृथ्वी, जल देवता और सूर्य देव को आवाहित करता हूँ।[ऋग्वेद 7.44.1]
I invoke Dadhikra Dev for your protection. Thereafter, I will invoke Ashwani Kumars, Pusha, Samiddh, Agni Dev & Bhag Dev. I am invoking Indr Dev, Shri Hari Vishnu, Pusha, Brahmanspati, Adity Gan, earth & the heavens, deity of water Varun Dev, Sury Dev.
दधिक्रामु नमसा बोधयन्त उदीराणा यज्ञमुपप्रयन्तः।
इळां बर्हिषि सादयन्तोऽश्विना विप्रा सुहवा हुवेम॥
यज्ञ के प्रारम्भ में हम स्तोत्राओं द्वारा दधिकादेव को प्रबोधित और प्रवर्तित करते हुए और इलादेवी (हवी रूपा देवी) को स्थापित करते हुए शोभन आह्वान से सम्पन्न मेधावी अश्विनी कुमारों को बुलाते हैं।[ऋग्वेद 7.44.2]
In the beginning of Yagy, we Stotas promulgated & enlightened Dadhikra Dev, established Ila Devi and gracefully invoked intelligent Ashwani Kumars.
दधिक्रावाणां बुबुधानो अग्निमुप ब्रुव उषसं सूर्य गाम्।
ब्रध्नं मँश्चतोर्वरुणस्य ब्रभुं ते विश्वास्मद्दुरिता यावयन्तु॥
दधिका को प्रबोधित करके मैं अग्निदेव, उषादेवी, सूर्यदेव और वाग्देवता की स्तुति करता हूँ। मैं अभिमानियों के विनाशकारी वरुणदेव के महान पिङ्गलवर्ण अश्व की स्तुति करता हूँ। वे सभी देवगण समस्त पापों को मुझसे पृथक करें।[ऋग्वेद 7.44.3]
Having promulgated Dadhikra Dev I worship Agni Dev, Usha Devi, Sury Dev and Vag Devta. I pray to the copper coloured horse of Varun Dev who destroy the egoistic. Let all these demigods-deities separate the sins from me.
दधिक्रावा प्रथमो वाज्यर्वाग्रे रथानां भवति प्रजानन्।
संविदान उषसा सूर्येणादित्येभिर्वसुभिरङ्गिरोभिः॥
अश्वों में प्रमुख, शीघ्रगामी और गतिशील दधिका ज्ञातव्य को भली-भाँति जानकर उषा, सूर्य, आदित्य, वसुगण और अंगिरा लोगों के साथ सहमत होकर स्वयं रथ के अग्रभाग में नियोजित हो जाते हैं।[ऋग्वेद 7.44.4]
Leader-chief of the horses, fast moving and accelerated Dadhikra understood the desired, agreed with Usha, Adity, Vasu Gan and Angiras and deployed himself in the front of the charoite.
आ नो दधिक्राः पथ्यामनक्त्वृतस्य पन्थामन्वेतवा उ।
शृणोतु नो दैव्यं शर्धो अग्निः शृण्वन्तु विश्वे महिषा अमूराः॥
यजन मार्ग से जाने के लिए दधिक्रा देव हमारे मार्ग को जल से सिंचित करें। दिव्य रूप वाले वे अग्नि देव और समस्त बलशाली विद्वान हमारी प्रार्थना श्रवण करें।[ऋग्वेद 7.44.5]
Let Dadhrika Dev shower-irrigate our path-route of the Yagy with water. Let all mighty enlightened and divine form Agni Dev listen-respond to our prayers.(12.01.2024)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (45) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
आ देवो यातु सविता सुरलोऽन्तरिक्षप्रा वहमानो अश्वैः।
हस्ते दधानो नर्या पुरूणि निवेशयञ्च प्रसुवञ्च भूम॥
रत्न युक्त, अपने तेज से अन्तरिक्ष के पूरक और अपने अश्वों द्वारा वहन किए जाते हुए सविता देव मनुष्य के लिए हितकर प्रभूत धन, हाथ में धारण करते हुए प्राणियों को अपने स्थान में धारण और अपने कर्म में प्रेरित करते हुए पधारें।[ऋग्वेद 7.45.1]
Savita Dev possessing jewels, supplementing the space with his aura-radiance, carried by his horses, should come with ample-abundant wealth for the humans inspiring the living beings to perform their duties at their places.
उदस्य बाहू शिथिरा बृहन्ता हिरण्यया दिवो अन्ताँ अनष्टाम्।
नूनं सो अस्य महिमा पनिष्ट सूरश्चिदस्मा अनु दादपस्याम्॥
दान के लिए प्रसारित और विशाल स्वर्ण की भुजाओं द्वारा सविता देव अन्तरिक्ष के अन्त को व्याप्त करें। आज हम सविता देव की उसी महिमा की स्तुति करते हैं। सूर्य देव भी सविता देव को कर्मेच्छा प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.45.2]
Let Savita Dev pervade the end of the space with his golden hands for donating. Today, we are worshiping the glory of Savita Dev. Sury Dev too should grant the desire for working to Savita Dev.
स घा नो देवः सविता सहावा साविषद्वसुपतिर्वसूनि।
विश्रयमाणो अमतिमुरूचीं मर्तभोजनमध रासते नः॥
तेजस्वी और धनपति सविता देव ही हमारे लिए धन भेजें। वह बहु-विस्तीर्ण रूप को धारण करते हुए हम मनुष्यों को भोग योग्य धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.45.3]
Radiant and wealthy Savita Dev should send money for us. He should acquire a vast-gigantic form and grant the humans riches for utilisation.
इमा गिरः सवितारं सुजिह्वं पूर्णगभस्तिमीळते सुपाणिम्।
चित्रं वयो बृहदस्मे दधातु यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
ये स्तोत्र रूप वचन उत्तम जिह्वा वाले, धन युक्त और सुन्दर हाथ वाले सविता देव की स्तुति करते हैं। वे हमें विचित्र और विशाल अन्न प्रदान करें। आप हमारा सदैव स्वस्ति द्वारा पालन करें।[ऋग्वेद 7.45.4]
These words in the form of Strotr worship Savita Dev possessing wealth, excellent tongue & beautiful hands. He should grant us amazing and large quantity of food grains. You should always nurse with Swasti.(13.01.2023)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (46) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
इमा रुद्राय स्थिरधन्वने गिरः क्षिप्रेषवे देवाय स्वधाव्ने।
अषाळ्हाय सहमानाय वेधसे तिग्मायुधाय भरता शृणोतु नः॥
सुदृढ़ धनुष्क, शीघ्र गामी बाण वाले, अन्न से पूर्ण, किसी के लिए भी अजेय तथा सबके विजेता और तीक्ष्ण अस्त्र बनाने वाले रुद्र देव को प्रसन्न करें। वे इन्हें श्रवण करें।[ऋग्वेद 7.46.1]
Please Rudr Dev the possessor of sharp weapons, strong bow & fast moving arrows, invincible, winner of all. He should listen-respond to this.
स हि क्षयेण क्षम्यस्य जन्मनः साम्राज्येन दिव्यस्य चेतति।
अवन्नवन्तीरुप नो दुरश्चरानमीवो रुद्र जासु नो भव॥
पृथ्वीस्थ और स्वर्गस्थ मनुष्यों के ऐश्वर्य द्वारा उन्हें जाना जा सकता है। हे रुद्र देव! आपका स्तोत्र करने वाली (हमारी) प्रजा का पालन करते हुए हमारे गृह में निवास करें। हमें रोग मुक्त करें।[ऋग्वेद 7.46.2]
He can be recognised by the glory of humans over the earth & the heavens. Hey Rudr Dev! Stay in our house, supporting the populace reciting your Strotr. Make us free from diseases-ailments.
या ते दिद्युदवसृष्टा दिवस्परि क्ष्मया चरति परि सा वृणक्तु नः।
सहस्रं ते स्वपिवात भेषजा मा नस्तोकेषु तनयेषु रीरिषः॥
हे रुद्र देव! अन्तरिक्ष से छोड़ी गई जो आपकी बिजली पृथ्वी पर विचरण करती हैं, वह हमें छोड़ दे। हे स्वपिवात रुद्रदेव! आपके पास हजारों औषधियाँ हैं। हमारे पुत्र या पौत्र की हिंसा न करें।[ऋग्वेद 7.46.3]
Hey Rudr Dev! The thunder volt released by you in the space should spare us. Hey deadly Rudr Dev! You have thousands of medicines. Do not harm our sons and grandsons.
मा नो वधी रुद्र मा परा दा मा ते भूम प्रसितौ हीळितस्य।
आ नो भज बर्हिषि जीवशंसे यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
हे रुद्र देव! न हमें मारना न छोड़ना। आप क्रोध करने पर जो बन्धन करते हैं, उसमें हम न रहें। प्राणियों के प्रशस्य यज्ञ का हमें भागीदार बनावें। आप सदैव हमें स्वस्ति द्वारा हमारा पालन करें।[ऋग्वेद 7.46.4]
Hey Rudr Dev! Neither kill us nor desert us. The ties generated by you on being angry should not tie-harm us. Make us a participant in the great Yagy by the humans. Always nurse-nurture us with Swasti.(13.01.2024)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (47) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
आपो यं वः प्रथमं देवयन्त इन्द्रपानमूर्मिमकृण्वतेळः।
तं वो वयं शुचिमरिप्रमद्य घृतप्रुषं मधुमन्तं वनेम॥
हे अप देवता! देवेच्छुक अध्वर्युओं के द्वारा इन्द्र देव के लिए पीने योग्य और भूमि समुत्पन्न जो आप लोगों का सोमरस पहले बनाया गया है, उसी शुद्ध, निष्पाप, वर्षाजल सेचनकारी और रस से युक्त सोमरस का हम भी सेवन करें।[ऋग्वेद 7.47.1]
Hey Ap Dev! Desirous of invoking the demigods-deities priests extracted Somras good enough to be drunk by Indr Dev. We wish to drink this pure Somras mixed with juices, yielding rains.
तमूर्मिमापो मधुमत्तमं वोऽपां नपादवत्वाशुहेमा।
यस्मिन्निन्द्रो वसुभिर्मादयाते तमश्याम देवयन्तो वो अद्य॥
अपां नपात् :: अपाम नपात नदियों, झीलों व अन्य स्वच्छ पानी के अधिदेवता हैं।
Fast moving demigods named Apan Nayat & Agni Dev should drink the quality Somras. Indr Dev too drink this Somras with Vasus. We, desirous of invoking demigods-deities too, should get this Somras.
शतपवित्राः स्वधया मदन्तीर्देवीर्देवानामपि यन्ति पाथः।
ता इन्द्रस्य न मिनन्ति व्रतानि सिन्धुभ्यो हव्यं घृतवज्जुहोत॥
अनेक पावन रूपों वाले और लोगों में हर्षोत्पादक तथा प्रकाशमान जल देवता देवताओं के स्थानों में प्रवेश करते हैं। वे इन्द्र देव के यज्ञादि कर्मों की हिंसा नहीं करते। हे अध्वर्युओं! आप सिन्धु आदि के लिए घृत युक्त हव्य का हवन करें।[ऋग्वेद 7.47.3]
Let the radiant deity of water possessing various shapes-forms enter the places of demigods. They do not destroy the deeds like Yagy of Indr Dev. Hey priests! Perform Hawan for the Sindhu-ocean etc., treated with Ghee.
याः सूर्यो रश्मिभिराततान याभ्य इन्द्रो अरदद्गातुमूर्मिम्।
ते सिन्धवो वरिवो धातना नो यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
सूर्य देव, किरणों द्वारा जिन जलों का विस्तार करते हैं और जिनके लिए इन्द्र देव ने गमनीय पथ को विदीर्ण किया, हे सिन्धु गण! हमारे उस धन को आप लोग धारण करें। आप सदैव हमारा स्वस्ति द्वारा पालन करें।[ऋग्वेद 7.47.4]
Sury Dev, the Sun extend the water with its rays. Indr Dev has torned the movable path. Hey Sindhu Gan! Possess our wealth. Nurse-nurture us through Swasti.(15.01.2024)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (48) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
ऋभुक्षणो वाजा मादयध्वमस्मे नरो मघवानः सुतस्य।
आ वोऽर्वाचः क्रतवो न यातां विभ्वो रथं नर्यं वर्तयन्तु॥
हे नेता और धनवान ऋभुओं! हमारे सोमपान से आप मत्त होवें। आप लोग जा रहे हैं। आपके कर्मकर्ता और समर्थ अश्व हमारे सम्मुख होकर मनुष्यों के लिए हितकर रथ आवर्तित करें।[ऋग्वेद 7.48.1]
मत्त :: मस्त, लापरवाह, शराबी, मतवाला, मदहोश, प्रमत्त, उन्मत्त, अल्हड़; overjoyed, carefree, drunk, intoxicate, lust, pride, maddened, frenzied, enraged, exhilarated, pleased.
Hey wealthy leaders Ribhu Gan! Be overjoyed-exhilarated by drinking our Somras. You are going back. Let your capable horses be deployed and move the charoite beneficial to the humans.
ऋभुर्ऋभुभिरभि वः स्याम विभ्वो विभुभिः शवसा शवांसि।
वाजो अस्माँ अवतु वाजसाताविन्द्रेण युजा तरुषेम वृत्रम्॥
हम आपके द्वारा विभु (प्रथित) हैं। आप लोग सामर्थ्यवान हैं। हम आपकी सहायता से सामर्थ्यवान होकर आपके बल द्वारा हम शत्रुओं को पराजित करेंगे। वाज नामक ऋभु युद्ध में हमारी रक्षा करें। इन्द्र देव को सहायक पाकर हम वृत्रासुर के हाथ से बच जाएँगे।[ऋग्वेद 7.48.2]
प्रथित :: प्रसिद्ध, मशहूर, लंबा-चौड़ा, विस्तृत; perceived.
We are famous due to you. You are capable. Let us acquire strength from you and defeat the enemy. Ribhu named Vaj, should protect us in the war. We will be protected on being assisted-helped by Indr Dev.
ते चिद्धि पूर्वीरभि सन्ति शासा विश्वाँ अर्य उपरताति वन्वन्।
इन्द्रो विभ्वाँ ऋभुक्षा वाजो अर्यः शत्रोर्मिथत्या कृणवन्वि नृम्णम्॥
हमारी अनेक शत्रु सेनाओं को इन्द्र देव और ऋभुगण आयुध द्वारा पराजित करते हैं। युद्ध होने पर वे सभी शत्रुओं को मारते हैं। विभ्वा, ऋभुक्षा और वाज नाम के तीनों ऋभु और आर्य इन्द्र देव मन्थन द्वारा शत्रुओं के बल को विनष्ट करें।[ऋग्वेद 7.48.3]
Indr Dev and Ribhu Gan defeat our enemy armies with weapons. In case of war, they kill all the enemies. Vibhva, Ribhuksha and Vaj named three Ribhus and Ary Indr Dev destroy the might-strength of the enemy by churning.
नू देवासो वरिवः कर्तना नो भूत नो विश्वेऽवसे सजोषाः।
समस्मे इषं वसवो ददीरन्यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
हे प्रकाशक ऋभुओं! आप आज हमें धन प्रदान करें। हे समस्त ऋभुओं! प्रसन्न होकर आप हमारे रक्षक बनें। प्रशस्य ऋभुगण हमें अन्न प्रदान करें। आप सदैव हमारा स्वस्ति द्वारा पालन करें।[ऋग्वेद 7.48.4]
प्रशस्य :: प्रशंसनीय, सराहनीय; praise.
Hey radiant Ribhus! Grant us wealth-money today. Hey all Ribhus! Be happy with us and protect us. Praise worthy Ribhus should grant us food grains. Nurse-nurture us with Swasti.(16.01.2024)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (49) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
समुद्रज्येष्ठाः सलिलस्य मध्यात्पुनाना यन्त्यनिविशमानाः।
इन्द्रो या वज्री वृषभो रराद ता आपो देवीरिह मामवन्तु॥
जिन जलों में समुद्र ज्येष्ठ है, वे सदा गमनशील और शोधक जल समूह अन्तरिक्ष के बीच से जाते हैं। वज्रधर और अभीष्टवर्षक इन्द्र देव ने जिनको छोड़ दिया, वे अप देवता यहाँ हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 7.49.1]
The waters in which ocean is senior, are movable and the purified water sources pass through the space. Ap Dev released by Vajr wielding and desires accomplishing Indr Dev should protect us here.
या आपो दिव्या उत वा स्त्रवन्ति खनित्रिमा उत वा याः स्वयञ्जाः।
समुद्रार्था याः शुचयः पावकास्ता आपो देवीरिह मामवन्तु॥
जो जल अन्तरिक्ष में उत्पन्न होते हैं, जो नदी आदि में प्रवाहित होते हैं, जो खोदकर निकाले जाते हैं और जो स्वयं उत्पन्न होकर समुद्र की ओर जाते हैं, वे ही दीप्ति से युक्त और पवित्र जल हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 7.49.2]
The radiant pious-pure water evolved in the space, flow through the rivers or extracted by digging or evolve by itself and flow into the ocean should protect us.
यासां राजा वरुणो याति मध्ये सत्यानृते अवपश्यञ्जनानाम्।
मधुश्रुत: शुचयो याः पावकास्ता आपो देवीरिह मामवन्तु॥
जिनके स्वामी वरुण देवता जल समूह में सत्य और मिथ्या के साक्षी होकर मध्यम लोक में जाते हैं, वे ही रस गिराने वाली, प्रकाश से युक्त और शोधिका जल देवियाँ हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 7.49.3]
The radiant, purifying goddess deities of water, who's master Varun Dev become the witness of truth and falsehood; move through the middle level abodes, releasing saps should protect us.
यासु राजा वरुणो यासु सोमो विश्वे देवा यासूर्जं मदन्ति।
वैश्वानरो यास्वग्निः प्रविष्टस्ता आपो देवीरिह मामवन्तु॥
जिनमें राजा वरुण देव निवास करते हैं, जिनमें सोमदेव निवास करते है, जिनमें अन्न पाकर विश्वेदेव गण आनन्दित होते हैं और जिनमें वैश्वानर निवास करते हैं, वे ही प्रकाशक जल हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 7.49.4]
The radiant waters in which Varun Dev, Som Dev & Vaeshwanar reside, Vishwe Dev Gan enjoy should protect us.(16.01.2024)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (50) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
आ मां मित्रावरुणेह रक्षतं कुलाययद्विश्वयन्मा न आ गन्।
अजकावं दुर्दृशीकं तिरो दधे मा मां पद्येन रपसा विदत्त्सरुः॥
हे मित्र और वरुण देव! इस लोक में आप हमारी रक्षा करें। स्थानकारी और विशेष वर्द्धमान विष हमारी ओर न आवें। अजका (कदाचित् स्तनाकृति) नामक रोग की तरह दुर्दर्शन विष विनष्ट हो जावें। छद्मगामी सर्प हमें पैरों की ध्वनि से न पहचान सकें।[ऋग्वेद 7.50.1]
Hey Mitr & Varun Dev! Protect us in this abode. Not not let the poisons affect us. Dangerous poisons like the specific poison called Ajka should vanish. Do not let the hidden-Pseudogamous snakes recognise us by the sound of our feet.
यद्विजामन्परुषि वन्दनं भुवदष्ठीवन्तौ परि कुल्फौ च देहत्।
अग्निष्टच्छोचन्नप बाधतामितो मा मां पद्येन रपसा विदत्त्सरुः॥
जो वन्दन नाम का विष नाना जन्मों में वृक्षादि के ग्रन्थि स्थान में उत्पन्न होता है और जो विष जानु (घुटना) और गुल्फ (पैरों की ग्रन्थि) को फुला देता है, हे दीप्तिमान अग्नि देव! हमारे इन मनुष्यों को उस विष से दूर रखें। छद्मगामी सर्प पैरों की ध्वनि द्वारा हमें जानने न पावें।[ऋग्वेद 7.50.2]
Hey radiant Agni Dev! Keep off the poison named Vandan evolved out of the trees and the other one which swell the knees and glands in the ankle from us. Keep off our folk-humans from these poisons. Pseudogamous snakes should not be able to recognise us by the sound of our feet.
यच्छल्मलौ भवति यन्नदीषु यदोषधीभ्यः परि जायते विषम्।
विश्वे देवा निरितस्तत्सुवन्तु मा मां पद्येन रपसा दिदत्त्सरुः॥
जो विष शाल्मली में होता है और जो नदी जल में औषधियों से उत्पन्न होता है, विश्वेदेव गण उस विष को हमसे दूर कर दें। छद्मगामी सर्प पैरों की ध्वनि द्वारा हमें जानने न पावें।[ऋग्वेद 7.50.3]
Let the Vishwedev Gan keep us off the poison produced in Shalmali tree and the herbs in the rivers. Pseudogamous snakes should not be able to recognise us by the sound of our feet.
याः प्रवतो निवत उद्वत उदन्वतीरनुदकाश्च याः। ता अस्मभ्यं पयसा पिन्वमानाः शिवा देवीरशिपदा भवन्तु सर्वा नद्यो अशिमिदा भवन्तु॥
जो नदियाँ प्रबल देश में जाती हैं, जो निम्न देश में जाती हैं, जो उन्नत देश में जाती हैं, जो जल युक्त और जल रहित होकर संसार को तृप्त करती हैं; वे सारी प्रकाशक नदियाँ हमारे शिपद नामक रोग का निवारण करके कल्याणकारी बनें। वे नदियाँ हमारे लिए हिंसक न हों।[ऋग्वेद 7.50.4]
The river moving strong regions, lower regions, raised regions quench the world become curing for our disease called Shipad and beneficial. These river should not be violent to us.(17.01.2024)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (51) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
आदित्यानामवसा नूतनेन सक्षीमहि शर्मणा शान्तमेन।
अनागास्त्वे अदितित्वे तुरास इमं यज्ञं दधतु श्रोषमाणाः॥
हम आदित्यों के रक्षण द्वारा नवीन और सुखकर गृह प्राप्त करें। क्षिप्रकारी आदित्यगण हमारे स्तोत्र सुनकर इस यज्ञकर्ता को निरपराध और दरिद्र न करें।[ऋग्वेद 7.51.1]
By virtue of the protection from Adity Gan, we should get new comfortable homes-houses. Quick moving Adity Gan should not make the innocent Yagy performer poor, on listening this Strotr.
आदित्यासो अदितिर्मादयन्तां मित्रो अर्यमा वरुणो रजिष्ठाः।
अस्माकं सन्तु भुवनस्य गोपाः पिबन्तु सोममवसे नो अद्य॥
आदित्यगण, अदिति, अत्यन्त सरल स्वभाव मित्र, वरुणदेव और अर्यमा प्रसन्न हों। भुवन रक्षक देवगण हमारे रक्षक बनें। वे आज हमारी रक्षा के लिए सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 7.51.2]
Adity Gan, Aditi, simple natured Mitr, Varun Dev and Aryma should become happy. Protector of the abode, demigods-deities should become our protectors. They should drink Somras today for our protection.
आदित्या विश्वे मरुतश्च विश्वे देवाश्च विश्व ऋभवश्च विश्वे।
इन्द्रो अग्निरश्विना तुष्टुवाना यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
हमने समस्त आदित्यगण, समस्त मरुद्रण, समस्त देवगण, समस्त ऋभुगण, इन्द्रदेव, अग्निदेव और अश्विनी कुमारों की स्तुति की। आप सदैव हमारा स्वस्ति द्वारा पालन करें।[ऋग्वेद 7.51.3]
We have worshiped all Adity Gan, all Marud Gan, all demigods-deities, all Ribhu Gan, Agni Dev and Ashwani Kumars. You should nurse-nurture us through Swasti.(17.01.2024)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (52) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
आदित्यासो अदितयः स्याम पूर्देवत्रा वसवो मर्त्यत्रा।
सनेम मित्रावरुणा सनन्तो भवेम द्यावापृथिवी भवन्तः॥
हम आदित्यों के आत्मीय हैं; हम अखण्डनीय होवें। देवताओं में हे वसुओं! मनुष्यों की आप रक्षा करें। हे मित्र और वरुण देव! आपका भजन करते हुए हम धन का उपभोग करें। हे द्यावा-पृथ्वी! हम शक्ति युक्त होवें।[ऋग्वेद 7.52.1]
आत्मीय :: अपना, अपने लोग, भाई-बंधु, सजाति, संबंधी; cognate, kindred, intimate, proper.
We are intimate of the Adity Gan. Our relation should persist. Hey Vasus! Protect the humans. Hey Mitr & Varun Dev! We should use the money while remembering you. Hey earth & heavens! We should possess strength.
मित्रस्तन्नो वरुणो मामहन्त शर्म तोकाय तनयाय गोपाः।
मा वो भुजेमान्यजातमेनो मा तत्कर्म वसवो यच्चयध्वे॥
मित्र और वरुणदेव आदि आदित्यगण हमारे पुत्र और पौत्र को सुख प्रदान करें। दूसरों का किया हुआ पाप हम न भोगें। जिस कर्म को करने पर आप नाश करते हैं, हे वसुओं! हम वह कर्म न करें।[ऋग्वेद 7.52.2]
Mitr & Varun Dev should grant pleasure-comforts to our sons and grand sons. We should not suffer due to the sins of others. Hey Vasus! We should not do such things due to which you destroy.
तुरण्यवोऽङ्गिरसो नक्षन्त रत्नं देवस्य सवितुरियानाः।
पिता च तन्नो महान्यजत्रो यो विश्वे देवाः समनसो जुषन्त॥
क्षिप्रकारी अंगिरा लोगों ने सविता देव के पास याचना करके उनके जिस रमणीय धन को प्राप्त किया, उसी धन को यज्ञशील महान पिता (प्रजापति) और समस्त देवगण समान मन से हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.52.3]
The wealth attained by Angiras by approaching and praying Savita Dev should be given to us by great father Prajapati busy with the Yagy to us and all demigods-deities should always be happy-pleased with us.(18.01.2024)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (53) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
प्र द्यावा यज्ञैः पृथिवी नमोभिः सबाध ईळे बृहती यजत्रे।
ते चिद्धि पूर्व कवयो गृणन्तः पुरो मही दधिरे देवपुत्रे॥
जिन विशाल और देवताओं की जननी द्यावा-पृथ्वी को स्तोताओं ने स्तुति करते हुए आगे स्थापित किया, उनसे हम यज्ञ और अन्न के द्वारा कष्ट दूर करने के लिए नमस्कार पूर्वक प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 7.53.1]
We worship & pray saluting with Yagy and food grains, the heaven-earth, the producer of great demigods-deities, installed by the Stotas.
प्र पूर्वजे पितरा नव्यसीभिर्गीर्भिः कृणुध्वं सदने ऋतस्य।
आ नो द्यावापृथिवी दैव्येन जनेन यातं महि वां वरूथम्॥
हे स्तोताओं! आप लोग नई स्तुतियों द्वारा पूर्वज्ञाता और मातृ-पितृभूता, द्यावा-पृथ्वी को यज्ञस्थान के अग्रभाग में स्थापित करें। द्यावा-पृथ्वी अपना महान और वरणीय धन देने के लिए देवताओं के साथ हमारे समक्ष पधारें।[ऋग्वेद 7.53.2]
Hey Stotas! Establish the heaven & earth aware of the past, who are like parents with new Stutis-prayers in front segment of the Yagy site. Let heaven & earth invoke with demigods-deities for granting us suitable wealth in front of us.
उतो हि वां रत्नधेयानि सन्ति पुरूणि द्यावापृथिवी सुदासे।
अस्मे धत्तं यदसदस्कृधोयु यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
हे द्यावा-पृथ्वी! आपके पास शोभन हवि देने वाले यजमान के लिए देने योग्य बहुत रमणीय धन है। धन में जो धन अक्षय हो, उसे ही हमें प्रदान करें। आप हमारा सदैव कल्याण (स्वस्ति) के साथ पालन करें।[ऋग्वेद 7.53.3]
Hey heaven & earth! You have pleasant wealth for the Ritviz who make beautiful offerings. Grant us the imperishable wealth. You should always nurse-nurture us with Swasti-welfare means.(18.01.2024)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (54) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
वास्तोष्पते प्रति जानीह्यस्मान्स्वावेशो अनमीवो भवा नः।
यत्त्वेमहे प्रति तन्नो जुषस्व शं नो भव द्विपदे शं चतुष्पदे॥
हे वास्तोष्पति! आप हमें जगावें। हमारे गृह को नीरोगी करें। हम जो धन माँगें, वह हमें प्रदान करें। हमारे पुत्र-पौत्रादि द्विपदों और गौ, अश्व आदि चतुष्पदों को सुखी करें।[ऋग्वेद 7.54.1]
Hey Vastoshpate! Wake us. Make our home free from illness, diseases, ailments. Grant us the wealth desired by us. Make our sons, grand sons, two hoofed and cows, horses and four hoofed comfortable.
वास्तोष्पते प्रतरणो न एधि गयस्फानो गोभिरश्वेभिरिन्दो।
अजरासस्ते सख्ये स्याम पितेव पुत्रान्प्रति नो जुषस्व॥
हे वास्तोष्पति! आप हमारे और हमारे धन के वर्द्धयिता होवें। हे सोम की तरह आह्लादक देव! आपके मित्र होने पर हम गौओं और अश्वों वाले और जरा रहित होंगे। जिस प्रकार पिता पुत्र का पालन करता है, उसी प्रकार आप हमारा पालन करें।[ऋग्वेद 7.54.2]
Hey Vastoshpate! You should boost our wealth. Hey pleasure-exhilarating granting like Som! Friendly with you, we should possess cows, horses and become free from aging-old age. The way a father cares for his sons you should nurse us like that.
वास्तोष्पते शग्मया संसदा ते सक्षीमहि रण्वया गातुमत्या।
पाहि क्षेम उत योगे वरं नो यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
हे वास्तोष्पति ! हम आपका सुखकर, रमणीय और धनवान स्थान प्राप्त करें। आप हमारे प्राप्त और अप्राप्त वरणीय धन की रक्षा करें और हमारा स्वस्ति के साथ सदैव पालन करें।[ऋग्वेद 7.54.3]
Hey Vastoshpate! We should attain your comfortable, beautiful and rich abode-place. Protect our available and yet to be availed, wealth. Nurse us with Swati.(18.01.2024)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (55) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
अमीवहा वास्तोष्पते विश्वा रूप्याण्याविशन्। सखा सुशेव एधि नः॥
हे वास्तोष्पति! आप हमारे हर प्रकार के रोगों का नाश करें। (क्योंकि) आप सभी प्रकार से हमारे मित्र हैं।[ऋग्वेद 7.55.1]
Hey Vastoshpati! Destroy our all sorts of ailments. You are friendly to us, by all means.
यदर्जुन सारमेय दतः पिशङ्ग यच्छसे।
वीव भ्राजन्त ऋष्टय उप स्रक्वेषु बप्सतो नि षु स्वप॥
हे श्वेतवर्ण और किसी-किसी अंश में पिंगल वर्ण तथा सरमा के ही वंशोद्भूत वास्तोष्पति! जिस समय आप दाँत निकालते हैं, उस समय हमारे पास आहार के समय ओष्ठ प्रान्त में आयुध की तरह दाँत विशेष रूप से शोभा पाते हैं। इस समय आप सुखपूर्वक शयन करें।[ऋग्वेद 7.55.2]
Hey fair coloured and yellow coloured at some places, the descendent of Sarma, Vastoshpati-Sarmey! When you open your teeth with us during meals, they appear beautiful like weapons. You should sleep comfortably at this moment.
स्तेनं राय सारमेय तस्करं वा पुनः सर।
स्तोतृनिन्द्रस्य रायसि किमस्मान्दुच्छुनायसे नि षु स्वप॥
हे सारमेय! आप जिस स्थान में जाते हैं, वहाँ पुनः आते हैं। आप चोर और तस्कर के पास जावें। इन्द्र देव के स्तोता के पास क्यों जाते हैं? हमें क्यों बाधा देते हैं? सुखपूर्वक शयन करें।[ऋग्वेद 7.55.3]
Hey Sarmey! You visit the place again which was visited by you earlier. Go to the thieves and smugglers. Why do you visit the Stotas of Indr Dev? Why do you trouble us? Sleep properly.
त्वं सूकरस्य दर्दृहि तव दर्दर्तु सूकरः।
स्तोतृनिन्द्रस्य रायसि किमस्मान्दुच्छुनायसे नि षु स्वप॥
आप सूअर को फाड़ें और सूअर आपको फाड़े। इन्द्र देव के स्तोताओं के पास क्या जाते है? हमें क्यों बाधा देते हैं? आप अच्छी तरह से शयन करें।[ऋग्वेद 7.55.4]
क्या तुम सुअर को चीरते हो? सूअर तुम्हें फाड़ डाले; आप इंद्र के उपासकों पर आक्रमण क्यों करते हैं?
Why do you tear the hog? Let the pig tear you. Why do you attack the worshippers of Indr? Why do you intimidate us? Go to sleep properly.
सस्तु माता सस्तु पिता सस्तु श्वा सस्तु विश्पतिः।
ससन्तु सर्वे ज्ञातयः सस्त्वयमभितो जनः॥
आपकी माता व आपके पिता शयन करें। आप भी सोएँ। गृह स्वामी भी शयन करें। मित्र लोग भी शयन करे। चारों ओर के ये मनुष्य भी शयन करें।[ऋग्वेद 7.55.5]
Let your parents sleep. You should also sleep. House hold should also sleep. Friend should also sleep. These people around you should also sleep.
य आस्ते यश्च चरति यश्च पश्यति नो जनः।
तेषां सं हन्मो अक्षाणि यथेदं हर्म्य तथा॥
जो व्यक्ति यहाँ है, जो विचरण करता है, जो हमें देखता है, ऐसे सभी की आँखें हम फोड़ देंगे। जिस प्रकर यह हर्म्य (कोठा) निश्चल है, उसी प्रकार वे भी हो जायेंगे।[ऋग्वेद 7.55.6]
We will blind the person who is present here, roam here and look at us. They should become stationary like this house.
सहस्त्रशृङ्गो वृषभो यः समुद्रादुदाचरत्।
तेना सहस्येना वयं नि जनान्त्स्वा पयामसि॥
जो हजारों श्रृंगों या किरणों वाले वृषभ (सूर्य देव) समुद्र से ऊपर उठे हैं, उन विजेता की सहायता से हम सभी मनुष्यों को शयन करा देते हैं।[ऋग्वेद 7.55.7]
The Sun having thousand of rays shinning over the ocean; helps the humans sleep like the winners.
प्रोष्ठेशया वह्येशया नारीर्यास्तल्पशीवरीः।
स्त्रियो याः पुण्यगन्धास्ताः सर्वाः स्वापयामसि॥
जो स्त्रियाँ आँगन में सोने वाली हैं, जो वाहन पर सोने वाली हैं, जो बिस्तरे पर सोने वाली हैं और जो पुण्य गन्धा हैं, ऐसी सब स्त्रियों को हम सुख पूर्वक शयन करा देते हैं।[ऋग्वेद 7.55.8]
The women who sleep in the Verandah, the vehicles, the bed and those who smell like flowers; let us sleep comfortably.(19.01.2024)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (56) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
क ईं व्यक्ता नरः सनीळा रुद्रस्य मर्या अधा स्वश्वाः॥
कान्ति युक्त नेता, समान गृहवासी, महा देवता के पुत्र, मनुष्य-हितैषी और सुन्दर अश्व वाले ये रुद्रगण कौन हैं?[ऋग्वेद 7.56.1]
Radiance possessing leaders, residing in the same home, sons of great deity, favourable-beneficial for the humans, possessing beautiful horses, who are these Rudr Gan.
नकिर्येषां जनूंषि वेद ते अङ्ग विद्रे मिथो जनित्रम्॥
इनकी उत्पत्ति कोई नहीं जानता। ये ही परस्पर अपनी जन्मकथा जानते हैं।[ऋग्वेद 7.56.2]
None is aware of their origin-evolution. They together knows about their birth.
अभि स्वपूभिर्मिथो वपन्त वातस्वनसः श्येना अस्पृध्रन्॥
स्वयं ही भ्रमण करते हुए ये परस्पर मिलते हैं। वायु के समान वेगशाली बाज पक्षी की तरह ये परस्पर स्पर्द्धा करते हैं।[ऋग्वेद 7.56.3]
They meet together while walking. Speeded like air they compete with the fast moving falcon.
एतानि धीरो निण्या चिकेत पृश्निर्यदूधो मही जभार॥
शास्त्रज्ञ मनुष्य इन श्वेतवर्ण मरुतों को जानते हैं। महती पृश्नि ने इन्हें अन्तरिक्ष में धारण कर रखा है।[ऋग्वेद 7.56.4]
Expert in scriptures are aware of these fair coloured-skinned Marud Gan. Great Prashni support them in the space.
सा विट् सुवीरा मरुद्भिरस्तु सनात्सहन्ती पुष्यन्ती नृम्णम्॥
वह बुद्धि मरुतों के अनुग्रह से सदैव शत्रुओं को पराजित करने वाली, धन की पुष्टि देने वाली और वीर पुत्र वाली हैं।[ऋग्वेद 7.56.5]
The intelligence by the blessings Marud Gan, always defeat the enemies, increase wealth and grant brave sons.
यामं येष्ठाः शुभा शोभिष्ठाः श्रिया संमिश्ला ओजोभिरुग्राः॥
मरुत लोग जाने वाले स्थानों को सबसे अधिक जाते हैं। वे अलंकार द्वारा सबसे अधिक शोभा पाते हैं। वे कान्ति पूर्ण और ओजस्वी हैं।[ऋग्वेद 7.56.6]
Marud Gan knows every place as compared to others. They are decorated with ornaments. They are aurous and radiant.
उग्रं व ओजः स्थिरा शवांस्यधा मरुद्भिर्गणस्तुविष्मान्॥
हे मेधावी मरुतों! आपका तेज उग्र तथा बल स्थिर है।[ऋग्वेद 7.56.7]
Hey Intelligent Marud Gan! Your energy is furious and the strength is stable.
शुभ्रो वः शुष्मः क्रुध्मी मनांसि धुनिर्मुनिरिव शर्धस्य धृष्णोः॥
आपका बल सर्वत्र शोभित हैं। आपका चित्त क्रोधशील है। पराभव करने वाले और बलवान मरुतों का वेग स्तोता की तरह बहुविध शब्दकारी है।[ऋग्वेद 7.56.8]
Your might is graced every where. Your mood is full of anger. The speed of defeating Marud Gan produces several kinds of sounds.
सनेम्यस्मद्युयोत दिद्यूं मा वो दुर्मतिरिह प्रणङ्नः॥
हे मरुतों! हमारे पास से पुराने अस्त्र पृथक करें। आपकी क्रूर बुद्धि हमें व्याप्त न करें।[ऋग्वेद 7.56.9]
Hey Marud Gan! Remove the old weapons from us. Do not let your cruelty trouble us.
प्रिया वो नाम हुवे तुराणामा यत्तृपन्मरुतो वावशानाः॥
आप क्षिप्र कर्ता हैं। आपके प्रियनाम को हम पुकारते हैं। प्रिय मरुद्गण इसी से सन्तुष्ट होते हैं।[ऋग्वेद 7.56.10]
You are quick acting. We remember your dear-lovely names. Dear-affectionate Marud Gan are satisfied with this.
स्वायुधास इष्मिणः सुनिष्का उत स्वयं तन्व१ः शुम्भमानाः॥
मरुद्गण सुन्दर आयुध वाले, गतिशील और सुन्दर अलंकार वाले हैं। वे हमारे शरीर को अलंकृत करते हैं।[ऋग्वेद 7.56.11]
Marud Gan possess beautiful weapons, accelerated and wear beautiful ornaments. They decorate our bodies.
शुची वो हव्या मरुतः शुचीनां शुचिं हिनोम्यध्वरं शुचिभ्यः।
ऋतेन सत्यमृतसाप आयञ्छुचिजन्मानः शुचयः पावकाः॥
हे मरुतों! आप शुद्ध हैं। शुद्ध हव्य आपके लिए हैं। आपके लिए हम शुद्ध यज्ञ करते है। जलस्पर्शी मरुद्रण सत्य से सत्य को प्राप्त हुए हैं। मरुद्गण शुद्ध हैं, उनका जन्म शुद्ध है और वे अन्य को शुद्ध करते हैं।[ऋग्वेद 7.56.12]
Hey Marud Gan! Pure offerings are meant for you. We perform pure Yagy for you. Water touching Marud Gan attained truth due to truth. Marud Gan are pure, their birth is pure and they cleanse others.
अंसेष्वा मरुतः खादयो वो वक्षः सु रुक्मा उपशिश्रियाणाः।
वि विद्युतो न वृष्टिभी रुचाना अनु स्वधामायुधैर्यच्छमानाः॥
हे मरुतों! आपके कन्धों पर खादि (एक प्रकार का अलंकार) स्थित है, उत्तम रुक्म (हार) आपके हृदय स्थल में है। जिस प्रकार से वर्षा के साथ बिजली शोभा पाती है, उसी प्रकार से जल प्रदान के समय आयुध (मेघ गर्जन) द्वारा आप शोभा पाते हैं।[ऋग्वेद 7.56.13]
Hey Marud Gan! Khadi-an ornament is decorated over your shoulders and a beautiful Necklace is present over your chest. The way lightening is graced with rains you are graced by the rattling clouds showering rains.
प्र बुध्न्या व ईरते महांसि प्र नामानि प्रयज्यवस्तिरध्वम्।
सहस्त्रियं दम्यं भागमेतं गृहमेधीयं मरुतो जुषध्वम्॥
हे मरुतों! आपका अन्तरिक्ष में उत्पन्न तेज विशेष रूप से गमन करता है। आप विशेष रूप से यजनीय हैं। आप जल वृद्धि करें। हे मरुतों! आप हजारों संख्या वाले, गृहोत्पन्न और गृहमेधियों द्वारा प्रदत्त इस भाग को ग्रहण करें।[ऋग्वेद 7.56.14]
Hey Marud Gan! Your aura move through the space specifically. You are worshiped specially. Increase the quantum of water. Hey Marud Gan! Accept the offerings made by thousands of house holders.
यदि स्तुतस्य मरुतो अधीथेत्या विप्रस्य वाजिनो हवीमन्।
मक्षु रायः सुवीर्यस्य दात नू चिद्यमन्य आदभदरावा॥
हे मरुतों! आप अन्न वाले मेधावी के हव्य से युक्त स्तोत्र को जानते हैं, इसलिए शोभन पुत्र वाले को शीघ्र धन प्रदान करें। क्योंकि उस धन को शत्रु नहीं नष्ट कर सकते।[ऋग्वेद 7.56.15]
Hey Marud Gan! You know the Strotr of food grains possessor intelligent person and hence grant him wealth who has gracious son. The enemy can not destroy that wealth.
अत्यासो न ये मरुतः स्वश्नो यक्षदृशो न शुभयन्त मर्याः।
ते हर्येष्ठाः शिशवो न शुभ्रा वत्सासो न प्रकीळिनः पयो धाः॥
मरुद्रण सततगामी अश्व की तरह सुन्दर गमन करने वाले हैं। उत्सव दर्शक मनुष्यों की सुरह शोभायुक्त हैं और गृहस्थित शिशुओं की तरह सुन्दर हैं। वे क्रीड़ा परायण वत्सों की तरह है और जल के धारक है।[ऋग्वेद 7.56.16]
Marud Gan move like the continuously moving horse. Viewers of festivities are decorated humans wearing silk and kids residing in the house. They are like the playful Vats and supporters of water.
दशस्यन्तो नो मरुतो मृळन्तु वरिवस्यन्तो रोदसी सुमेके।
आरे गोहा नृहा वधो वो अस्तु सुम्नेभिरस्मे वसवो नमध्वम्॥
हमारे लिए धन देते हुए और अपनी महिमा से सुन्दर द्यावा-पृथ्वी को पूर्ण करते हुए मरुद्रण हमें सुख प्रदान करें। हे मरुतों! मनुष्य नाशक आपका आयुध हमारे पाप से दूर रहे। सुख से हमारे सम्मुख पधारें।[ऋग्वेद 7.56.17]
Let Marud Gan grant us pleasure-comforts supplementing the heavens & earth by virtue of their grace granting us wealth. Hey Marud Gan! Your weapon destroying the humans keep off over sins. Invoke in front of us comfortably.
आ वो होता जोहवीति सत्तः सत्राचीं रातिं मरुतो गृणानः।
य ईवतो वृषणो अस्ति गोपाः सो अद्वयावी हवते व उक्थैः॥
होतृगृह में बैठा हुआ होता आपके सर्वत्र गामी दान कार्य की प्रशंसा करके आप लोगों को भली-भाँति बार-बार बुलाता है। हे कामवर्षक मरुतों! जो होता कार्यनिष्ठ यजमान का रक्षक है, वह मायाशून्य होकर स्तोत्रों द्वारा आपकी स्तुति करता है।[ऋग्वेद 7.56.18]
The Hota sitting in the Hotr-Hawan house appreciate your charity and invite you again & again. Hey desires accomplishing Marud Gan! The Hota who is a protector of the Ritviz; busy with duties-Yagy should become free form the cast and worship you with Strotr.
इमे तुरं मरुतो रामयन्तीमे सहः सहस आ नमन्ति।
इमे शंसं वनुष्यतो नि पान्ति गुरु द्वेषो अररुषे दधन्ति॥
ये मरुद्गण यज्ञ में क्षिप्रकारी यजमान को प्रसन्न करते हैं। ये बल द्वारा बलवान् लोगों को नीचे करते हैं। ये हिंसक से स्तोता की रक्षा करते हैं। परन्तु जो हव्य नहीं देता, उससे अत्यधिक रुष्ट हो जाते हैं।[ऋग्वेद 7.56.19]
These Marud Gan please the quick Ritviz. They pull the mighty down. They protect the Stota from the violent. They become unhappy with one, who do not make offerings.
इमे रघ्र चिन्मरुतो जुनान्त भृमिं चिद्यथा वसवो जुषन्त।
अप बाधध्वं वृषणस्तमांसि धत्त विश्वं तनयं तोकमस्मे॥
ये धनी और दरिद्र, दोनों को उत्तेजित करते हैं, जैसा कि देवगण अथवा बन्धुगण चाहते है। हे काम वर्षक मरुतों! आप अन्धकार नष्ट कर हमें यथेष्ट पुत्र और पौत्र प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.56.20]
They excite both the poor and wealthy as per the desire of demigods-deities and the relatives. Hey desires accomplishing Marud Gan! Remove darkness and grant us desired sons and grandsons.
मा वो दात्रान्मरुतो निरराम मा पश्चाद्दध्म रथ्यो विभागे।
आ नः स्पाहें भजतना वसव्ये ३ यदीं सुजातं वृषणो वो अस्ति॥
आपके दान से हम बाहर न हों। हे रथ वाले मरुतों! धनदान के समय हमें पीछे न फेकना। अभिलषणीय धनों में हमें भागी बनाना। हे कामवर्षक मरुतों! आपके पास जो दिव्य धन है, उसका हमें भी भागी बनावें।[ऋग्वेद 7.56.21]
We should not be neglected from your charity-donation. Hey charoite bearing Marud Gan! Do not discard us while granting-donating wealth. Make us partners in the desired donation receivers. Hey desires accomplishing Marud Gan! Share the divine wealth possessed by you with us.
सं यद्धनन्त मन्युभिर्जनासः शूरा यह्वीष्वोषधीषु विक्षु।
अध स्मा नो मरुतो रुद्रियासत्रातारो भूत पृतनास्वर्यः॥
हे रुद्रपुत्र मरुतों! जिस समय विक्रमशाली मनुष्य अनेक औषधियों और मनुष्यों को जीतने के लिए क्रोधित होते हैं, उस समय युद्ध में शत्रु के निकट से आप हमें संरक्षण प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.56.22]
Hey Marud Gan, sons of Rudr! Protect us from the enemy, when mighty humans become angry to gain herbs and win humans.
भूरि चक्र मरुतः पित्र्याण्युक्थानि या वः शस्यन्ते पुरा चित्।
मरुद्भिरुग्रः पृतनासु साळ्हा मरुद्भिरित्सनिता वाजमर्वा॥
हे मरुतों! हमारे पूर्वजनों के लिए आपने अनेक कार्य किये। आपके पहले के जो सब काम प्रशंसित होते हैं, उन्हें भी आपने किया। युद्ध में आपकी सहायता से ओजस्वी व्यक्ति शत्रुओं को पराजित करता है। आपकी ही सहायता से स्तोता अन्नादि प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 7.56.23]
Hey Marud Gan! You performed various deeds for our ancestors. You did the jobs appreciated prior to you. The radiant humans defeat the enemies with your help. The Stotas get food grains etc. with your help.
अस्मे वीरो मरुतः शुष्यस्तु जनानां यो असुरो विधर्ता।
अपो येन सुक्षितये तरेमाध स्वमोको अभि वः स्याम॥
हे मरुतों! हमारा वीर पुत्र बली हैं। वह असुर शत्रुओं का विनाशक हैं। उस पुत्र के द्वारा हम सुन्दर निवास के लिए शत्रुओं का नाश करेंगे। हम आपके आत्मीय स्थान में रहेंगे।[ऋग्वेद 7.56.24]
Hey Marud Gan! Our brave son is strong. He is the destroyer of the demons. We will destroy the enemies for beautiful house. We will reside at a place loved by you.
तन्न इन्द्रो वरुणो मित्रो अग्निराप ओषधीर्वनिनो जुषन्त।
शर्मन्त्यस्याम मरुतामुपस्थे यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
इन्द्र देव, वरुण देव, मित्र, अग्नि देव, जल, औषधि और वृक्ष हमारे स्तोत्र का आश्रय करें। मरुतों की गोद में हम सुख से रहें। आप सदैव हमारा स्वस्ति द्वारा पालन करें।[ऋग्वेद 7.56.25]
Indr Dev, Varun Dev, Mitr, Agni Dev, water, medicines-herbs and the trees shelter should our Strotr. We should reside comfortably in the lap of Marud Gan. Always nourish-nurture us with Swasti.(21.01.2024)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (57) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
मध्वो वो नाम मारुतं यजत्राः प्र यज्ञेषु शवसा मदन्ति।
ये रेजयन्ति रोदसी चिदुर्वी पिन्वन्त्युत्सं यदयासुरुग्राः॥
हे यजनीय मरुतो! मत्त स्तोता लोग यज्ञ काल में बल के साथ आपके नाम की स्तुति करते हैं। मरुद्गण विस्तृत द्यावा-पृथ्वी को कम्पायमान करते हैं। वे मेघों से जल बरसाते हैं और ओजस्वी होकर सर्वत्र जाते हैं।[ऋग्वेद 7.57.1]
Hey worshipable Marud Gan! Happy-intoxicated Stotas recite your names during the period of Yagy along with Bal. Marud Gan tremble the vast heavens & earth. They make clouds to shower rains and move all around having become radiant.
निचेतारो हि मरुतो गृणन्तं प्रणेतारो यजमानस्य मन्म।
अस्माकमद्य विदथेषु बर्हिरा वीतये सदत पिप्रियाणाः॥
मरुद्रण स्तोताओं को खोजते हैं। यजमान का मनोरथ पूर्ण करते हैं। आप लोग प्रसन्न होकर हमारे यज्ञ में सोमपान के लिए कुश पर बैठें।[ऋग्वेद 7.57.2]
Marud Gan search the Stotas and accomplish the desires of Ritviz. Become Happy and sit over the Kush Mats in our Yagy to drink Somras
नैतावदन्ये मरुतो यथेमे भ्राजन्ते रुक्मैरायुधैस्तनूभिः।
आ रोदसी विश्वपिशः पिशानाः समानमञ्ज्यञ्जते शुभे कम्॥
मरुद्गण जितना दान करते हैं, उतना और कोई नहीं करता। ये हार, आयुध और शरीर की शोभा से शोभित होते हैं। द्यावा-पृथ्वी का प्रकाश करने वाले और व्याप्त प्रकाश मरुद्रण शोभा के लिए समान रूप आभरण प्रकट करते हैं।[ऋग्वेद 7.57.3]
Marud Gan are more generous in donating as compered to others. They become gracious by wearing necklace and weapons. Marud Gan illuminate-light up the heavens and earth and display ornaments for glory, similarly.
ऋधक्सा वो मरुतो दिद्युदस्तु यद्व आगः पुरुषता कराम।
मा वस्तस्यामपि भूमा यजत्रा अस्मे वो अस्तु सुमतिश्चनिष्ठा॥
हे मरुद्गणों! आपका प्रसिद्ध आयुध हमसे दूर रहे। यद्यपि हम मनुष्य होने के कारण आपके पास अपराध करते हैं, तब भी हे यजनीय मरुतों! आपके उस आयुध में हम न पड़े। आपकी जो बुद्धि सबसे अधिक अन्न देने वाली है, वह हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.57.4]
Hey Marud Gan! Let your famous arms keep off us. Though we commit faults towards you being humans, yet hey worshipable Marud Gan! We should not be trapped by your weapons. Grant us the intelligence yielding more food grains.
कृते चिदत्र मरुतो रणन्तानवद्यासः शुचयः पावकाः।
प्र णोऽवत सुमतिभिर्यजत्राः प्र वाजेभिस्तिरत पुष्यसे नः॥
हे यजनीय मरुतों! हमारे यज्ञकार्य में मरुद्गण रमण करें। वे अनिन्दित, दीप्तियुक्त और शोधक हैं। कृपा करके अथवा सुन्दर स्तुति के कारण हमारा विशेषरूप से पालन करें। अन्न के द्वारा पोषण के लिए हमें प्रवर्द्धित करें।[ऋग्वेद 7.57.5]
Hey worshipable Marud Gan! You should enjoy-involve in our Yagy. You are happy, radiant and purifying. Nurse-nurture us specially, due to the decent Stuti by us. Grow us by nurturing us with food grains.
उत स्तुतासो मरुतो व्यन्तु विश्वेभिर्नामभिर्नरो हवींषि।
ददात नो अमृतस्य प्रजायै जिगृत रायः सूनृता मघानि॥
हे मरुतों! स्तुत्य होकर मरुद्गण हवि का भक्षण करें। वे नेता हैं और सम्पूर्ण जलों के साथ वर्तमान हैं। हे मरुतों! हमारी सन्तान के लिए जल प्रदान करें। हव्य दाता को सत्य और महान धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.57.6]
Hey Marud Gan! On being worshiped eat the offerings. You are leaders and present in whole water. Hey Marud Gan! Grant water for the sake of our progeny. Grant true & great wealth to the one, who make offerings.
आ स्तुतासो मरुतो विश्व ऊती अच्छा सूरीन्त्सर्वताता जिगात।
ये नस्त्मना शतिनो वर्धयन्ति यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
स्तुत्य होकर मरुद्गण सम्पूर्ण रक्षणों के साथ यज्ञ में स्तोता के समक्ष पधारें। ये स्वयं स्तोताओं को शत संख्या (पुत्रादि) से युक्त करके बढ़ाते हैं। आप सदैव हमारा स्वस्ति द्वारा पालन करें।[ऋग्वेद 7.57.7]
On being worshiped let Marud Gan join Yagy with all means of protection in front of the Stota. They enhance the Stotas in hundreds along with sons. Always nurse us with Swasti.(22.01.2024)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (58) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
प्र साकमुक्षे अर्चता गणाय यो दैव्यस्य धाम्नस्तुविष्मान्।
उत क्षोदन्ति रोदसी महित्वा नक्षन्ते नाकं निर्ऋतरवंशात्॥
हे स्तोताओं! आप सदावर्षक मरुद्वृन्द की पूजा करें। ये देवताओं के स्थान (स्वर्ग) में सबसे बुद्धिमान है। अपनी महिमा से ये द्यावा-पृथ्वी को भग्न करते हैं। भूमि और अन्तरिक्ष से स्वर्ग को व्याप्त करते हैं।[ऋग्वेद 7.58.1]
भग्न :: नष्ट, जो हारा या हराया गया हो, पराजित, हताश, निराश, जीर्ण-शीर्ण, टूटा-फूटा; fractal, dilapidated.
Hey Stotas! Worship the Marud Gan who ensure regular rains. They are most intelligent in heaven-the abode of demigods-deities. They dilapidate the earth and heavens and pervade earth, space and heavens.
जनूश्चिद्वो मरुतस्त्वेष्येण भीमासस्तुविमन्यवोऽयासः।
प्र ये महोभिरोजसोत सन्ति विश्वो वो यामन्भयते स्वर्दृक्॥
हे भीम, प्रवृद्धि बुद्धि और गमनशील मरुतों! आपका जन्म दीप्त रुद्र देव से हुआ है। मरुद्रण तेज और बल से प्रभावशाली हुए हैं। आपके प्रवाहित होने पर सूर्य देव को देखने वाला समस्त प्राणि जगत भयभीत हो जाता है।[ऋग्वेद 7.58.2]
भीम :: बहुत बड़ा, भयंकर, भीषण, too large, furious.
Hey furious, intelligent and dynamic Marud Gan! You are born out of radiant Rudr Dev. Marud Gan have become influential by virtue of their aura and strength. Every living being viewing at Sury Dev-Sun will become afraid with your flow.
बृहद्वयो मघवद्भ्यो दधात जुजोषन्निन्मरुतः सुष्टुतिं नः।
गतो नाध्वा वि तिराति जन्तुं प्र णः स्पार्हाभिरूतिभिस्तिरेत॥
आप हव्य युक्त को बहुत अन्न प्रदान करें। हमारे सुन्दर स्तोत्र का अवश्य श्रवण करें। मरुद्गण जिस मार्ग को प्राप्त होते हैं, वह प्राणियों को विनष्ट नहीं करता। वे हमें अभिलषणीय रक्षण द्वारा प्रवर्द्धित करें।[ऋग्वेद 7.58.3]
Grant food grains with the offerings. Listen to our Strotr. The path over which Marud Gan move-travel never destroy the living beings. Grow us along with the necessary protection.
युष्मोतो विप्रो मरुतः शतस्वी युष्मोतो अर्वा सहुरिः सहस्त्री।
युष्मोतः सम्राळुत हन्ति वृत्रं प्र तद्वो अस्तु धूतयो देष्णम्॥
हे मरुतों! आपके द्वारा रक्षित होकर स्तोता शतसंख्या से युक्त धन वाला होता है। आपके द्वारा रक्षित होकर स्तोता आक्रमणकर्ता शत्रुओं को पराजित करने वाला और सहस्त्र धन वाला होता है। आपके द्वारा रक्षित होकर वह सम्राट और शत्रुनाशक होता है। हे कम्पक! आपके द्वारा दिया हुआ वह धन अत्यधिक वृद्धि करे।[ऋग्वेद 7.58.4]
Hey Marud Gan! The Stota on being protected by you become hundred times rich, is never defeated by the enemy and become thousand times rich. He become king and destroy the enemy. Hey vibrant! He should grow the wealth granted by you many times.
ताँ आ रुद्रस्य मीळ्हुषो विवासे कुविन्नंसन्ते मरुतः पुनर्नः।
यत्सस्वर्ता जिहीळिरे यदाविरव तदेन ईमहे तुराणाम्॥
कामवर्षक मरुतों की मैं सेवा अर्थात उपासना करता हूँ। तब वे कई बार हमारे सम्मुख होते हैं। जिस प्रकट या अप्रकट पाप से मरुद्गण क्रुद्ध होते हैं, उन पापों को हम प्रार्थना से धो देंगे।[ऋग्वेद 7.58.5]
I worship the Marud Gan who accomplish desires. They are in front of us several times. We will remove the sins exposed or unexposed which anger Marud Gan with our prayers.
प्र सा वाचि सुष्टुतिर्मघोनामिदं सूक्तं मरुतो जुषन्त।
आराच्चिद्द्वेषो वृषणो युयोत यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
हमने धनी मरुतों की उस शोभन स्तुति को इस सूक्त में किया। मरुद्रण उस सूक्त का सेवन करें। हे अभीष्ट वर्षक मरुतों! आप दूर से ही हमारे शत्रुओं को पृथक कर दें। आप हमारा सदैव स्वस्ति द्वारा पालन करें।[ऋग्वेद 7.58.6]
We have composed the beautiful Stuti-prayer in this Strotr. Let Marud Gan enjoy this Strotr. Hey desires accomplishing Marud Gan! Isolate our enemies from us. Nurse-nurture us with Swasti.(23.01.2024)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (59) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
यं त्रायध्व इदमिदं देवासो यं च नयथ।
तस्मा अग्ने वरुण मित्रार्यमन्मरुतः शर्म यच्छत॥
हे देवताओं! भय से स्तोता को बचावें। हे अग्नि देव, वरुण देव, मित्र, अर्यमा और मरुतों! आप जिसे सन्मार्ग पर ले जाते हैं, उसे सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.59.1]
Hey demigods-deities! Protect the Stota from fear. Hey Agni Dev, Varun Dev, Mitr, Aryma and Marud Gan! Grant pleasure-comfort to those whom you take to virtuous path.
युष्माकं देवा अवसाहनि प्रिय ईजानस्तरति द्विषः।
प्र स क्षयं तिरते वि महीरिषो यो वो वराय दाशति॥
हे देवताओं! आपके रक्षण से आपके प्रिय दिन में जो यज्ञ करता है, जो शत्रु को भयभित करता है, जो आपको दूसरे स्थान में न जाने देने के लिए आपको बहुत हव्य प्रदान करता है, वह अपनी हर प्रकार से उन्नति करता है।[ऋग्वेद 7.59.2]
Hey demigods-deities! One who perform Yagy under your protection, fear-afraid the enemy, make lots of offerings to keep you close to him, make all round progress.
नहि वश्चरमं चन वसिष्ठः परिमंसते।
अस्माकमद्य मरुतः सुते सचा विश्वे पिबत कामिनः॥
मैं वसिष्ठ आप लोगों में जो अवर (मन्द) हैं, उन्हें छोड़कर स्तुति नहीं करता। हे मरुतों! आज सोमाभिलाषी होकर और आप सब मिलकर हमारे सोम के अभिषुत होने पर सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 7.59.3]
I Vashishth, do not make prayers discarding the slow amongest you. Hey Marud Gan! Desirous of Somras, drink it when extracted.
नहि व ऊतिः पृतनासु मर्धति यस्मा अराध्वं नरः।
अभि व आवर्तुमतिर्नवीयसी तूयं यात पिपीषवः॥
हे नेताओं! जिसे आप अभिलषित प्रदान करते हैं, उसे आपका रक्षण युद्ध में बचाता है। आपकी नई कृपा बुद्धि हमारे समक्ष आवे। सोमपानाभिलाषियों आप शीघ्र पधारें।[ऋग्वेद 7.59.4]
अभिलषित :: पोषित, अभिलषित, दुलारा हुआ, इच्छित; longed for, desired, cherished, welcome.
कृपा :: दयालुता, रहम, रहमत, तरस, सदयता, अनुग्रह, दया, तरस, सहानुभूति, क्षमा; courtesy, mercy, graciousness, compassion.
Hey leaders! One who's desires are accomplished by you is protected by you in the war as well. Come to us with compassion. Desirous of drinking Somras should come quickly.
ओ षु घृष्विराधसो यातनान्धांसि पीतये।
इमा वो हव्या मरुतो ररे हि कं मो ष्व १ न्यत्र गन्तन॥
हे मरुतों! आपका धन परस्पर मिला हुआ है। सोमरूप हवि भक्षण करने के लिए अच्छी तरह से आवें। हे मरुतों! आपको मैं यह हवि देता हूँ, इसलिए आप अन्यत्र न जावें।[ऋग्वेद 7.59.5]
Hey Marud Gan! Your assets are common. To eat the offerings in the form Som come properly. Hey Marud Gan! I offer you this offering, hence do not go else where.
आ च नो बर्हिः सदताविता च नः स्पार्हाणि दातवे वसु।
अस्त्रेधन्तो मरुतः सोम्ये मधौ स्वाहेह मादयाध्वै॥
हे मरुतों! आप हमारे कुशों पर विराजें। अभिलषणीय धन देने के लिए हमारे पास आवें। हे मरुतों! आप लोग अहिंसक होकर इस यज्ञ में मदकर सोमरूप हव्य पर स्वाहा कहकर प्रमत्त होवें।[ऋग्वेद 7.59.6]
Hey Marud Gan! Occupy our Kush Mats. Come to us to grant de3sired wealth. Enjoy offerings, accept intoxicating Somras say Swaha, becoming non violent.
सस्वश्चिद्धि तन्व १ः शुम्भमाना आ हंसासो नीलपृष्ठा अपप्तन्।
विश्वं शर्धो अभितो मा नि षेद नरो न रण्वाः सवने मदन्तः॥
हे अन्तर्हित मरुतों! अपने अंगों को अलंकारों से अलंकृत करके नीलवर्ण हंसों के सदृश पधारें। मेरे यज्ञ में आनन्दित और रमणीय मनुष्यों की तरह विश्व व्याप्त मरुद्गण हमारे चारों ओर विराजमान हों।[ऋग्वेद 7.59.7]
अन्तर्हित :: समाविष्ट, सन्निहित, अंतर्स्थापित, जो भीतर स्थित हो, विलीन; implicit, inherent, inbuilt, embedded, integral.
Hey implicit Marud Gan! Decorate your body organs and come like the blue swans. Whole world pervading Marud Gan, should enjoy in my Yagy around us.
यो नो मरुतो अभि दुर्हृणायुस्तिरश्चित्तानि वसवो जिघांसति।
द्रुहः पाशान्प्रति स मुचीष्ट तपिष्ठेन हन्मना हन्तना तम्॥
हे प्रशंसनीय मरुतों! अशोभन क्रोध करके जो तिरस्कृत मनुष्य हमारे चित्त का विनाश करना चाहता है, वह पाप द्रोही वरुण देव के पाश से हमें बाँधना चाहता है, उसे आप लोग अपने तीक्ष्ण आयुध से नष्ट करें।[ऋग्वेद 7.59.8]
पाश :: वह वस्तु जिसमें कोई वस्तु आदि फँसाई जा सके, रस्सी से बनाया गया घेरा, खंड, टुकड़ा; loop.
Hey appreciable Marud Gan! Destroy the person with undesirable fury, our mood-innerself, with sharp weapons; who want to tie us with the loop of Varun Dev-the destructor of sins.
सांतपना इदं हविर्मरुतस्तज्जुजुष्टन। युष्माकोती रिशादसः॥
हे शत्रु तापक! यही आपका हव्य है। आप शत्रुभक्षक हैं। अपनी रक्षा द्वारा हवि का सेवन करें।[ऋग्वेद 7.59.9]
Hey teaser of the enemy! Here is your offerings. You destroy-eat the enemy. Protect us and accept the offerings.
गृहमेधास आ गत मरुतो माप भूतन। युष्माकोती सुदानवः॥
हे मरुतों! आप गृह में भी शोभनदाता हैं। रक्षा साधनों के साथ यहाँ पधारें। यहाँ से न जायें।[ऋग्वेद 7.59.10]
Hey Marud Gan! You are glorious in the house as well. Come here with the means of protections and stay here.
इहेह वः स्वतवसः कवयः सूर्यत्वचः। यज्ञं मरुत आ वृणे॥
हे स्वयं प्रवृद्ध और क्रान्तदर्शी तथा सूर्य वर्ण मरुतो! मैं यज्ञ की कल्पना करता हूँ अर्थात् इस यज्ञ में मैं आपका आवाहन करता हूँ।[ऋग्वेद 7.59.11]
Hey self growing and radiant Marud Gan with the colour of Sun-Sury Dev! I wish to conduct Yagy and invoke you for the same.
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
हम सुगन्धि और पुष्टि वर्द्धक त्र्यम्बक की पूजा या यज्ञ करते हैं। रुद्र देवता उर्वारुक फल (बदरी फल) की तरह हमें मृत्यु बन्धन से मुक्त करें और अमृत (चिरजीवन या स्वर्ग) से मत मुक्त करें।[ऋग्वेद 7.59.12]
We worship Trayambak growing & nurturing us, with strong with Yagy. Let Rudr Dev release us from the bonds of death like the cucumber and treat us with nectar-elixir.(24.01.2024)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (60) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
यदद्य सूर्य ब्रवोऽनागा उद्यन्मित्राय वरुणाय सत्यम्।
वयं देवत्रादिते स्याम तव प्रियासो अर्यमन्गृणन्तः॥
हे सूर्यदेव! उदित होकर आप आज अनुष्ठान काल में हमें पाप रहित करें। हे अदिति! हम देवताओं के बीच मित्र और वरुण देव के पास यथार्थ हों। हे अर्थमन! आपकी स्तुति करके हम आपके प्रिय होवें।[ऋग्वेद 7.60.1]
Hey Sury Dev! You rise and make us sinless during the period of rituals (Yagy preparations). Hey Aditi! We should be present between the demigods, Mitr & Varun Dev. Hey Aryma! We should become dear to you by reciting prayers for you.
एष स्य मित्रावरुणा नृचक्षा उभे उदेति सूर्यो अभि ज्मन्।
विश्वस्य स्थातुर्जगतश्च गोपा ऋजु मर्तेषु वृजिना च पश्यन्॥
हे मित्र और वरुण देव! यह वही मनुष्यों के दर्शक सूर्य देव अन्तरिक्ष में जाते हुए द्यावा-पृथ्वी को लक्ष्य कर उदित होते हैं। सूर्य देव सम्पूर्ण स्थावर और जंगम संसार के पोषक हैं। वे मनुष्यों के पुण्य और पाप को सदैव देखते हैं।[ऋग्वेद 7.60.2]
Hey Mitr & Varun Dev! Sury Dev rise in the space for the humans over the earth & heavens. Sury Dev-Sun nurture the static and dynamic world. He always observe the sins and virtues of the humans.
अयुक्त सप्त हरितः सधस्थाद्या ईं वहन्ति सूर्यं घृताचीः।
धामानि मित्रावरुणा युवाकुः सं यो यूथेव जनिमानि चष्टे॥
हे मित्र और वरुण देव! सूर्य देव ने अन्तरिक्ष में सात हरिद्वर्ण के अश्वों को रथ में नियोजित किया। वे सातों जल दाता होकर सूर्य देव को ले जाते हैं। जिस प्रकार से गोपालक गो समूह को भली-भाँति देखता है, उसी प्रकार से सूर्य देव उदित होकर संसार के स्थानों और प्राणियों को देखते हैं। वे आप दोनों की कामना करते हैं।[ऋग्वेद 7.60.3]
Hey Mitr & Varun Dev! Sury Dev has harnessed-deployed the green-yellowish coloured horses in his charoite, in the space. They take Sury Dev and grant-generate water. The way a cow herd looks after his cows, Sury Dev rise and care for living beings. He is desirous-takes care of both of you.
उद्वां पृक्षासो मधुमन्तो अस्थुरा सूर्यो अरुहच्छुक्रमर्णः।
यस्मा आदित्या अध्वनो रदन्ति मित्रो अर्यमा वरुणः सजोषाः॥
हे मित्र और वरुण देव! आप दोनों के लिए अन्न और मधुर पुरोडाशादि समर्पित है। सूर्य देव दीप्त अन्तरिक्ष में चढ़ते हैं। समान प्रीति वाले मित्र, अर्यमा, वरुणादि सूर्य देव के लिए मार्ग प्रस्तुत करते हैं।[ऋग्वेद 7.60.4]
Hey Mitr & Varun Dev! Food grains and sweet Purodas are offered to you. Sury Dev rises in the radiant space. Mitr, Varun & Aryma equally affectionate, offers the path for Sury Dev.
इमेचेतारो अनृतस्य भूरेर्मित्रो अर्यमा वरुणो हि सन्ति।
इम ऋतस्य वावृधुर्दुरोणे शग्मासः पुत्रा अदितेरदब्धाः॥
ये मित्र, वरुण देव और अर्यमा यथेष्ट पापों के नाशक हैं। ये सुखकर, अहिंसक और अदिति के पुत्र हैं। ये यज्ञगृह में वृद्धि पाते हैं।[ऋग्वेद 7.60.5]
Mitr, Varun Dev & Aryma are the destroyer of all sins. They are the sons of pleasure granting, non violent Dev Mata Aditi. They grow in the Yagy house.
इमे मित्रो वरुणो दूळभासोऽचेतसं चिच्चितयन्ति दक्षैः।
अपि क्रतुं सुचेतसं वतन्तस्तिरश्चिदंहः सुपथा नयन्ति॥
आदित्य, मित्र और वरुण देव दमन योग्य नहीं हैं। ये अज्ञानी को ज्ञानवान बनाते हैं। ये उत्तम ज्ञान वाले और कर्मानुष्ठान वाले के पास जाकर पापियों का विनाश करते हुए हमें सन्मार्ग पर ले जाते हैं।[ऋग्वेद 7.60.6]
Adity, Mitr & Varun Dev should not be pressurised. They make the ignorant learned. They reach the enlightened and devoted to ritualistic manoeuvres and destroy the sinners and guide us to virtuous path-living.
इमे दिवो अनिमिषा पृथिव्याश्चिकित्वांसो अचेतसं नयन्ति।
प्रव्राजे चिन्नद्यो गाधमस्ति पारं नो अस्य विष्पितस्य पर्षन्॥
ये निर्निमेष होकर द्युलोक और पृथ्वी के अज्ञानी को कर्म में ले जाते हैं। इनके सामर्थ्य से अत्यन्त निम्न देश में भी नदी का तल होता है। ऐसे देव हमें कर्मों से पार लगावें।[ऋग्वेद 7.60.7]
निर्निमेष :: जिसकी पलक न गिरे, स्थिर दृष्टि, एकटक, बिना पलक झपकाए, टकटकी लगाकर; without blinking eye, incontrovertible.
They take the ignorant to manoeuvres without blinking eye, from the earth and heavens. Its due to their power that river water level is maintained in the low lying regions as well. Let such deities lift up us from the manoeuvres-deeds.
यद्गोपावददितिः शर्म भद्रं मित्रो यच्छन्ति वरुणः सुदासे।
तस्मिन्ना तोकं तनयं दधाना मा कर्म देवहेळनं तुरासः॥
अर्यमा, मित्र और वरुणदेव जो रक्षण से युक्त और स्तुत्य सुख हव्य दाता को देते हैं, वही सुख पुत्र और पौत्र के लिए धारण करते हुए हम शीघ्रकारी देवताओं के लिए क्रोध जनक कार्य न करें।[ऋग्वेद 7.60.8]
The protection is granted by Aryma, Mitr & Varun Dev and the desired pleasure to the one, making offerings. Such people should have sons & grandsons and never do any thing which will anger the demigods-deities.
अव वेदिं होत्राभिर्यजेत रिपः काश्चिद्वरुणध्रुत: सः।
परि द्वेषोभिरर्यमा वृणक्तूरुं सुदासे वृषणा उ लोकम्॥
जो हमारा द्वेषी यज्ञ वेदी पर कार्य करते हुए देवताओं की स्तुति नहीं करता, वह वरुण देव के द्वारा मारा जाता है। अर्यमा हमें राक्षसादि से अलग रखें। हे मनोरथ पूरयिता मित्र और वरुण देव! मुझ हव्यदाता को विस्तीर्ण स्थान प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.60.9]
One envious to us, who do not pray the demigods-deities while performing Yagy related deeds is killed by Varun Dev. Let Aryma protect-isolate us from demons. Hey desires accomplishing Mitr & Varun Dev! Grant me, one making offerings, vast space-land.
सस्वश्चिद्धि समृतिस्त्वेष्येषामपीच्येन सहसा सहन्ते।
युष्मद्भिया वृषणो रेजमाना दक्षस्य चिन्महिना मृळता नः॥
इन मित्रादि की संगति निगूढ़ और दीप्त है। ये निगूढ़ बल द्वारा हमारे द्वेषियों को पराजित करते हैं। है अभिमतदाता मित्रादि देवताओं! आपके भय से हमारे विरोधी कम्पायमान होते हैं। अपने बल की महिमा से हमें सुखी बनावें।[ऋग्वेद 7.60.10]
निगूढ़ :: जो जल्दी समझ में न आए, दुरूह, दुर्बोध, अत्यंत गुप्त, रहस्यपूर्ण, छिपा हुआ, अव्यक्त, अप्रकट; undisclosed, hidden, secret, confidential.
Association of Mitr etc. is secret and aurous. They defeat the envious through secret means. Hey Mitr etc. demigods-deities! Our enemy tremble due to your fear. Make us comfortable with your glory.
यो ब्रह्मणे सुमतिमायजाते वाजस्य सातौ परमस्य रायः।
सी क्षन्त मन्युं मघवानो अर्य उरु क्षयाय चक्रिरे सुधातु॥
जो यजमान अन्न और उत्तम धन देने के लिए आपके स्तोत्र में अपनी शोभन बुद्धि को नियुक्त करता है, उसे मित्रादि देवगण ध्यानपूर्वक सुनते हैं और स्तोतागणों को विशाल निवास प्रदत्त करते हैं।[ऋग्वेद 7.60.11]
The Ritviz who make of virtuous intelligence for your Strotr for the sake of excellent wealth and food grains, Mitr etc. demigod-deities listen to it carefully and grant spacious residence to the Stotas.
इयं देव पुरोहितिर्युवभ्यां यज्ञेषु मित्रावरुणावकारि।
विश्वानि दुर्गा पिपृतं तिरो नो यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
हे मित्र और वरुण देव! आप दोनों के यज्ञ में यह स्तुति की गई है। इसकी सेवा करके हमारी समस्त विपत्तियों को तत्काल दूर करते हुए हमें पार लगावें। आप हमारा सदैव स्वस्ति द्वारा पालन करें।[ऋग्वेद 7.60.12]
Hey Mitr & Varun Dev! This prayers has been recited for the sake of your Yagy. By serving this, let all our troubles be eliminated and help us in achieving salvation. Nurse-nurture us with Swasti.(25.01.2024)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (61) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
उद्वां चक्षुर्वरुण सुप्रतीकं देवयोरेति सूर्यस्ततन्वान्।
अभि यो विश्वा भुवनानि चष्टे स मन्युं मर्येष्वा चिकेत॥
हे मित्र और वरुण देव! आप प्रकाशमान हैं। आपके नेत्ररूप और शोभनरूप वाले सूर्य तेज का विस्तार करते हुए आकाश में उठते हैं। सूर्यदेव समस्त भुवनों अथवा प्राणियों को देखते हैं। वे मनुष्यों के बीच प्रवृत्त स्तोत्र को जानते हैं।[ऋग्वेद 7.61.1]
Hey Mitr & Varun Dev! You are radiant. Sun rises as your eyes and glorious aura in the sky. Sury Dev looks at all abodes. He is aware of the Strotr prevalent amongest the humans.
प्र वां स मित्रावरुणावृतावा विप्रो मन्मानि दीर्घश्रुदियर्ति।
यस्य ब्रह्माणि सुक्रतू अवाथ आ यत्क्रत्वा न शरदः पृणैथे॥
हे मित्रा वरुण! सत्य निष्ठ, परम यज्ञकर्ता वसिष्ठ आपके निमित्त स्तोत्र का पाठ करते हैं। आप उन्हें संरक्षित करते हैं।[ऋग्वेद 7.61.2]
Hey Mitr & Varun Dev! Truthful, ultimate performer of Yagy Vashishth recite Strotr for you. You protect him.
प्रोरोर्मित्रावरुणा पृथिव्याः प्र दिव ऋष्वाद्बृहतः सुदानू।
स्पशो दधाथे ओषधीषु विश्वृधग्यतो अनिमिषं रक्षमाणा॥
हे मित्र और वरुण देव! आपने विस्तृत पृथ्वी की परिक्रमा की और गुणों तथा स्वरूप से विशाल द्युलोक की भी प्रदक्षिणा कर डाली। हे शोभन दाता! आप औषधियों और प्रजा के लिए रूप धारित करते हैं। आप निर्निमेष भाव से यज्ञ करने वालों की सुरक्षा करते हैं।[ऋग्वेद 7.61.3]
Hey Mitr & Varun Dev! You revolved around the earth and then you revolved around heavens as well, which is too large due to its characterices, qualities, traits. Hey glorious! You adopt several form for the sake of medicines-herbs and populace. You protect the performers of Yagy without blinking eyes.
शंसा मित्रस्य वरुणस्य धाम शुष्मो रोदसी बद्बधे महित्वा।
अयन्मासा अयज्वनामवीराः प्र यज्ञमन्मा वृजनं तिराते॥
हे ऋषि! आप मित्र और वरुण देव के तेज की स्तुति करें। अपनी महिमा से मित्र और वरुण देव का बल द्यावा-पृथ्वी को अलग-अलग रखे हुए हैं। यज्ञ न करने वाला सन्तान रहित हो तथा यज्ञ करने वाले अपने बुद्धि-बल को बढ़ावें।[ऋग्वेद 7.61.4]
Hey Rishi-sage! Pray for the aura of Mitr & Varun Dev. Mitr & Varun Dev have maintained the distance between earth and heavens by virtue of their strength. One who do not conduct Yagy should be progeny less and one who perform Yagy should grow his strength & intelligence.
अमूरा विश्वा वृषणाविमा वां न यासु चित्रं ददृशे न यक्षम्।
द्रुहः सचन्ते अनृता जनानां न र्वों निण्यान्यचिते अभूवन्॥
हे प्राज्ञ! व्यापक और मनोरथ वर्षी मित्र और वरुण देव आपकी स्तुति में आश्चर्य, यज्ञ और पूजा कुछ भी नहीं दिखाई देता। द्रोही लोग मनुष्यों की मिथ्या स्तुति का सेवन करते हैं। आप दोनों के द्वारा किये जाते हुए रहस्यमय स्तोत्र अज्ञान के लिए न हों।[ऋग्वेद 7.61.5]
आश्चर्य :: ताज्जुब, अचम्भा; wonder, surprise, amazement, astonishment.
द्रोही :: द्रोह करनेवाला, शत्रु, बैरी; malevolent, deceitful.
Hey enlightened! Hey vast and desires accomplishing Mitr & Varun Dev, nothing surprising, Yagy and prayers are witness in your Stuti-prayers. Malevolent-deceitful people accept-use the false prayers of the humans. Confidential-secret Strotr recited for you should not be for ignorance-falsehood.
समु वां यज्ञं महयं नमोभिर्हु र्वों मित्रावरुणा सबाधः।
प्र वां मन्मान्यृचसे नवानि कृतानि ब्रह्म जुजुषन्निमानि॥
हे मित्र और वरुण देव! नमस्कार द्वारा आपके यज्ञ की पूजा करता हूँ। मैं बाधाग्रसित होकर भी आप दोनों का आवाहन करता हूँ। आपकी सेवा के लिए नवीन स्तोत्रों की रचना की जाए। मेरे द्वारा इकट्ठा किया हुआ स्तोत्र आपको प्रसन्न करें।[ऋग्वेद 7.61.6]
Hey Mitr & Varun Dev! I worship your Yagy, after saluting you. I invoke you even though under distress. Let new Strotr be composed for your worship. Collection of my Strotr should please you.
इयं देव पुरोहितिर्युवभ्यां यज्ञेषु मित्रावरुणावकारि।
विश्वानि दुर्गा पिपृतं तिरो नो यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
हे मित्र और वरुणदेव! आप दोनों के यज्ञ में यह स्तुति की गई है। इसकी सेवा करके हमारी समस्त विपत्तियों को दूर करते हुए हमें पार लगावें। आप हमारा सदैव स्वस्ति द्वारा पालन करें।[ऋग्वेद 7.61.7]
पार लगाना :: swim across-tide over.
Hey Mitr & Varun Dev! This Stuti has been made in your Yagy. Bring us out of distress by serving it and swim us across-tide over the difficulties. Always nurse-nurture us with Swasti.(26.01.2024)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (62) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
उत्सूर्यो बृहदर्चीष्यश्रेत्पुरु विश्वा जनिम मानुषाणाम्।
समो दिवा ददृशे रोचमानः क्रत्वा कृतः सुकृतः कर्तृभिर्भूत्॥
ये सूर्य देव ऊपर की ओर उठकर प्रभूत तेज को प्राप्त करते हुए सभी के आश्रय दाता बनते हैं। वे दिन में रुचिकर होकर एक रूप दिखाई देते हैं। वे सबके कर्ता, कृत और प्रजापति द्वारा तेज युक्त होते हैं।[ऋग्वेद 7.62.1]
Sun rises up and attain sufficient energy becoming the protector of all. During the day he become admirable and looks alike. He become the doer-performer, performed and energised by Prajapati.
स सूर्य प्रति पुरो न उद्गा एभिः स्तोमेभिरेतशेभिरेवैः।
प्र नो मित्राय वरुणाय वोचोऽनागसो अर्यम्णे अग्नये च॥
हे सूर्य देव! आप स्तोत्रों द्वारा हरिद्वर्ण और गमनशील अश्वों से ऊद्धर्व मुख होकर प्रत्येक के सम्मुख गमन करें। आप मित्र, वरुणदेव, अर्यमा और अग्निदेवों को हमारी निदोंष भावना की जानकारी दें।[ऋग्वेद 7.62.2]
Hey Sury Dev! Become yellowish facing the ready to move horses and move towards all. Inform Mitr, Varun Dev, Aryma and Agni Dev about our innocence.
वि नः सहस्रं शुरुधो रदन्त्वृतावानो वरुणो मित्रो अग्निः।
यच्छन्तु चन्द्रा उपमं नो अर्कमा नः कामं पूपुरन्तु स्तवानाः॥
दुःख को रोकने वाले और सत्यवान वरुण देव, मित्र और अग्नि देव हमें सहस्र-संख्यक धन प्रदान करें। वे प्रसन्नता देने वाले हैं। हमें स्तुत्य और पूजनीय वस्तु प्रदान करें। हमारे द्वारा स्तुति किये जाने पर हमारी मनोकामनाएँ पूर्ण करें।[ऋग्वेद 7.62.3]
Let Truthful Varun Dev & Agni Dev, who prohibit pains-sorrow grant us wealth-money in thousands. They grant happiness. Grant us worshipable goods. They should accomplish our desires on being worshiped-prayed by us.
द्यावाभूमी अदिते त्रासीथां नो ये वां जजुः सुजनिमान ऋष्वे।
मा हेळे भूम वरुणस्य वायोर्मा मित्रस्य प्रियतमस्य नृणाम्॥
हे द्यावा-पृथ्वी! हे अदिति! आप हमारी रक्षा करें। हम सुन्दर जन्म वाले हैं। आपको हम जानते हैं। हम वरुण देव, वायु देव और मनुष्यों के प्रियतम मित्र के क्रोध में न पड़ें।[ऋग्वेद 7.62.4]
Hey heaven-earth! Hey Aditi! protect us. We are of high origin-birth. We know you. We should not become the target of the anger of those who are dear to Varun Dev, Vayu Dev and humans.
प्र बाहवा सिसृतं जीवसे न आ नो गव्यूतिमुक्षतं घृतेन।
आ नो जने श्रवयतं युवाना श्रुतं मे मित्रावरुणा हवेमा॥
मित्र और वरुण देव अपनी भुजाएँ फैलावें। हमारे जीवन के लिए हमारी गोमार्ग-भूमि को जल द्वारा सिंचित करें। मनुष्यों के बीच हमें विख्यात करें। आप लोग नित्य युवा हैं। हमारा यह आह्वान श्रवण करें।[ऋग्वेद 7.62.5]
Let Mitr & Varun Dev extend their arms. Irrigate the path of cows with water. Make us famous amongest the humans. You are always young. Listen-respond to our invocation.
नू मित्रो वरुणो अर्यमा नस्त्मने तोकाय वरिवो दधन्तु।
सुगा नो विश्वा सुपथानि सन्तु यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
हे मित्र, वरुणदेव और अर्यमा! हमारे लिए और हमारे पुत्र के लिए धन प्रदान करें। हमारे लिए सभी गन्तव्य स्थान सुगम और सुपथ हों। आप हमें सदैव स्वस्ति द्वारा पालन करें।[ऋग्वेद 7.62.6]
Hey Mitr, Varun Dev & Aryma! Grant wealth for us and our sons. Let all movable places be easy and comfortable for us. Always Nurture-nourish us with Swasti.(27.01.2024)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (63) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
उद्वेति सुभगो विश्वचक्षाः साधारणः सूर्यो मानुषाणाम्।
चक्षुर्मित्रस्य वरुणस्य देवश्चर्मेव यः समविव्यक्तमांसि॥
शोभन भाग्य, सर्वदर्शक, सभी मनुष्यों के लिए साधारण, मित्र और वरुण देव के नेत्र स्वरूप तथा प्रकाशमान सूर्य देव उदित हो रहे हैं। सूर्य देव चमड़े की तरह अन्धकार को संवेष्टित करते हैं।[ऋग्वेद 7.63.1]
संवेष्टित :: चारों ओर से घेरा हुआ; encapsulated.
Sury Dev who is auspicious to all men, is like the eyes of Mitr & Varun Dev, is rising encapsulating the darkness like leather.
उद्वेति प्रसवीता जनानां महान्केतुरर्णवः सूर्यस्य।
समानं चक्रं पर्याविवृत्सन्यदेतशो वहति धूर्षु युक्तः॥
मनुष्यों के उत्पादक, महान, सबके सूचक और जलप्रद यह सूर्य देव सबके एक मात्र चक्र को परिवर्तित करने की इच्छा करके उदित होते हैं। रथ में नियुक्त हरिद्वर्ण के अश्वों से जुते हुए रथ में चलते हैं।[ऋग्वेद 7.63.2]
Progenitor of the humans, great, illuminating all, producer of water rises to change the single cycle; Sun rises. Yellowish horses deployed in the charoite pull it.
विभ्राजमान उषसामुपस्थाद् रेभैरुदेत्यनुमद्यमानः।
एष मे देवः सविता चच्छन्द यः समानं न प्रमिनाति धाम॥
अत्यन्त प्रकाशमान ये सूर्य देव स्तोताओं के स्तोत्रों को सुनने में प्रमत्त होकर उषाओं के मध्य में उदित होते हैं। ये हमें अभिलषित पदार्थ प्रदान करते हैं। ये सबके लिए समान हैं। अपने तेज को संकुचित नहीं करते।[ऋग्वेद 7.63.3]
संकुचित :: संकोच युक्त, लज्जित, सिकुड़ा हुआ; narrow, contracted.
Extremely illuminated Sury Dev listen to the Strotr of the Stotas with deep concentration rising amidst the Ushas. Let him grant us desired commodities. He is for all-each & everyone. He do not contract his radiance.
दिवो रुक्म उरुचक्षा उदेति दूरेअर्थस्तरणिर्भाजमानः।
नूनं जनाः सूर्येण प्रसूता अयन्नर्थानि कृणवन्नपांसि॥
ये दूरगामी, त्राता और दीप्तिमान सूर्यदेव शोभन और बहु तेज युक्त होकर अन्तरिक्ष में उदित होते हैं। जीवगण निश्चय ही सूर्य देव से उत्पन्न होकर कर्तव्य कर्म करते हैं।[ऋग्वेद 7.63.4]
त्राता :: रक्षक, बचानेवाला; protector, saviour.
Far reaching, protector-saviour, radiant, glorious Sury Dev possessing various radiations rises in the space. Living being progenated by the Sun perform their duties.
यत्रा चक्रुरमृता गातुमस्मै श्येनो न दीयन्नन्वेति पाथः।
प्रति वां सूर उदिते विधेम नमोभिर्मित्रावरुणोत हव्यैः॥
अमर देवताओं ने जहाँ इन सूर्य देव के लिए मार्ग का निर्माण किया, वह मार्ग श्येन पक्षी की तरह अन्तरिक्ष से होकर जाता है। हे मित्र और वरुण देव! सूर्योदय होने पर प्रातःसवन में नमस्कार और हव्य द्वारा आपकी हम सेवा करेंगे।[ऋग्वेद 7.63.5]
The elliptical path prepared-demarked by the demigods-deities is present in the space the way in which a falcon flies. Hey Mitr & Varun Dev! We serve you in the first segment of the day, when Sun rises and make offerings saluting you.
नू मित्रो वरुणो अर्यमा नस्त्मने तोकाय वरिवो दधन्तु।
सुगा नो विश्वा सुपथानि सन्तु यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
हे मित्र, वरुण और अर्यमा देवों! हमारे लिए और पुत्र के लिए धन प्रदान करें। हमारे सभी गन्तव्य सुगम और सुपथ हों। आप हमारा सदैव स्वस्ति द्वारा पालन करें।[ऋग्वेद 7.63.6]
Hey Mitr, Varun Dev & Aryma! Grant wealth for us and our sons. Let all movable places be easy and comfortable for us. Always Nurture-nourish us with Swasti.(28.01.2024)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (64) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
दिवि क्षयन्ता रजसः पृथिव्यां प्र वां घृतस्य निर्णिजो ददीरन्।
हव्यं नो मित्र अर्यमा सुजातो राजा सुक्षत्रो वरुणो जुषन्त॥
हे मित्र और वरुण देव! आप लोग द्युलोक और पृथ्वी में जल के स्वामी हैं। आपके द्वारा प्रेरित मेघ जल को रूप देता है। मित्र, सुजन्मा अर्यमा, राजा और बली वरुण देव हमारे हव्य को आश्रित करें।[ऋग्वेद 7.64.1]
Hey Mitr & Varun Dev! You are the lord of water in the heaven & the earth. Water inspired by you takes the form of clouds. Let Mitr, Aryma, Raja and Mighty Varun Dev accept our offerings.
आ राजाना मह ऋतस्य गोपा सिन्धुपती क्षत्रिया यातमर्वाक्।
इळां नो मित्रावरुणोत वृष्टिमव दिव इन्वतं जीरदानू॥
आप लोग राजा, महायज्ञ के रक्षक, सिन्धुपति और क्षत्रिय हैं। हमारे समक्ष पधारें। हे शीघ्रदानी मित्र और वरुणदेव! अन्तरिक्ष से जलरूपी अन्न प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.64.2]
You are king & protector of great Yagy, lord of ocean and Kshatriy. Invoke in front of us. Hey quick donating-charity performing, Mitr & Varun Dev! Grant-shower rains from space in the form of food grains-water.
मित्रस्तन्नो वरुणो देवो अर्यः प्र साधिष्ठेभिः पथिभिर्नयन्तु।
ब्रवद्यथा न आदरिः सुदास इषा मदेम सह देवगोपाः॥
मित्र, वरुणदेव और अर्यमा हमें उत्तम मार्ग द्वारा जब चाहें ले जावें। अर्यमा सुन्दर-दाता के पास हमारी कथा कहें। आपके द्वारा रक्षित होकर पुत्र-पौत्रादिकों के साथ अन्न द्वारा पोषित हों।[ऋग्वेद 7.64.3]
Mitr, Varun Dev and Aryma should take us over excellent (virtuous, pious) path as & when they desire. Let Aryma describe our story to the glorious donors. We should be nurtured with food grains with sons & grandsons, protected by you.
यो वां गर्तं मनसा तक्षदेतमूर्ध्वां धीतिं कृणवद्धारयच्च।
उक्षेथां मित्रावरुणा घृतेन ता राजाना सुक्षितीस्तर्पयेथाम्॥
हे मित्र और वरुण देव! जिसने मन के द्वारा आपके इस रथ का निमाण किया है, जो उच्च कर्म करता है और जो यज्ञ में आपको धारण करता हैं; आप लोग राजा हैं, उसे जल द्वारा सिंचित करें और उसे सुन्दर निवास प्रदान कर तृप्त करें।[ऋग्वेद 7.64.4]
Hey Mitr & Varun Dev! One who builds your charoite with his innerself, perform great deeds, accept you as deity in the Yagy, should be satisfied with water and granted a beautiful house for residing-living.
एष स्तोमो वरुण मित्र तुभ्यं सोमः शुक्रो न वायवेऽयामि।
अविष्टं धियो जिगृतं पुरंधीर्यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
प्रज्ञा जाग्रत करने वाले मित्र, वरुण देव और वायु देव के लिए हमने सोमरस के समान हर्षप्रदायक स्तुति की है। आप हमारी बुद्धि और कर्म को संरक्षित करें तथा अपने उत्तम साधनों द्वारा हमारा मंगल करें।[ऋग्वेद 7.64.5]
We composed-made pleasure giving Stuti-prayer to Mitr, Varun Dev and Vayu Dev; who awake our prudence. Protect our endeavours & mind and resort to our welfare through excellent means.(29.01.2024)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (65) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
प्रति वां सूर उदिते सूक्तैर्मित्रं हुवे वरुणं पूतदक्षम्।
ययोरसुर्य १ मक्षितं ज्येष्ठं विश्वस्य यामन्नाचिता जिगलु॥
हे मित्र और शुद्ध बल वरुण देव! सूर्यदेव के उदित होने पर आप दोनों का सूक्त द्वारा मैं आह्वान करता हूँ। इन दोनों का बल अक्षय और प्रचुर है। संग्राम होने पर दोनों विजयी होते हैं।[ऋग्वेद 7.65.1]
Hey Mitr & pure strength Varun Dev! I invoke you with Strotr when the Sun rises. The strength & power of both of these is imperishable and ample. They become victorious in the war.
ता हि देवानामसुरा तावर्या ता नः क्षितीः करतमूर्जयन्तीः।
अश्याम मित्रावरुणा वयं वां द्यावा च यत्र पीपयन्नन्हा च॥
हे मित्रा-वरुण! आप बलशाली की हम स्तुति करते हैं। हमारी संतानों की आप वृद्धि करें। हम आपके यश का चारों ओर गुणगान करते हैं।[ऋग्वेद 7.65.2]
Hey mighty Mitr & Varun Dev! We worship-pray you. Boost-enhance our progeny. We recite your glory every where-all around.
ता भूरिपाशावनृतस्य सेतू दुरत्येतू रिपवे मर्त्याय।
ऋतस्य मित्रावरुणा पथा वामपो न नावा दुरिता तरेम॥
मित्र और वरुण देव बहु-पाश (बन्धन) वाले हैं। वे यज्ञ शून्य व्यक्ति के लिए सेतु की तरह बन्धनकारी हैं। वे शत्रुओं के लिए दुरतिक्रम हैं। हे मित्र और वरुणदेव! जिस प्रकार नौका द्वारा जल को पार किया जाता है, उसी प्रकार हम आपके यज्ञमार्ग से दुःखों से पार हो जाएँ।[ऋग्वेद 7.65.3]
दुरतिक्रम :: जिसका अतिक्रमण न हो सके, जिसके बाहर या विरुद्ध कोई न हो सके, अंडकटाह अमित लयकारी, पार रहित, जिसका पार पाना कठिन हो, अपार; difficult transgression.
Mitr & Varun Dev possess several binding cords. They are like bondage of bridge. Their transgression is difficult. Hey Mitr & Varun Dev! The way water can be crossed with a boat we will override the pains-sorrow with the help of Yagy.
आ नो मित्रावरुणा हव्यजुष्टिं घृतैर्गव्यूतिमुक्षतमिळाभिः।
प्रति वामत्र वरमा जनाय पृणीतमुनो दिव्यस्य चारोः॥
हे मित्र और वरुण देव! हमारे हव्य की सेवा के लिए आप पधारें। अन्न के साथ जल द्वारा हमारे गोचर भूमि को सिंचित करें। आपको इस संसार में उत्कृष्ट हव्य कौन देगा? आप इस संसार के लिए स्वर्गीय और रमणीय जल प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.65.4]
Hey Mitr & Varun dev! Come to accept our offerings. Irrigate our land with water and food grains. Who else would provide you excellent offerings (other than us)? Grant heavenly delightful water to the universe.
एष स्तोमो वरुण मित्र तुभ्यं सोमः शुक्रो न वायवेऽयामि।
अविष्टं धियो जिगृतं पुरन्धीर्यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
हे मित्र और वरुण देव! आपके और वायु देव के लिए दीप्त सोम की तरह यह सोमरस बनाया गया है। हमारे कर्म में प्रवेश करें, स्तुति को श्रवण करें और हमारा सदैव स्वस्ति द्वारा पालन करें।[ऋग्वेद 7.65.5]
Hey Mitr & Varun Dev! This Somras aurous like the Moon, has been extracted for you and Vayu Dev. Help us in our endeavours, listen-respond to our prayers and nurse-nurture us with Swasti.(29.01.2024)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (66) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
प्र मित्रयोर्वरुणयोः स्तोमो न एतु शूष्यः। नमस्वान्तुविजातयोः॥
हमारे स्तोत्र बारम्बार आविर्भूत होने वाले मित्र और वरुण देव का अनुगमन करें।[ऋग्वेद 7.66.1]
Let our Strotr follow Mitr & Varun Dev who invoke again and again.
या धारयन्त देवाः सुदक्षा दक्षपितरा। असुर्याय प्रमहसा॥
शोभन बल वाले, बल के रक्षक और प्रकृत तेज वाले मित्र और वरुण देव को बल के लिए देवताओं ने धारण किया था।[ऋग्वेद 7.66.2]
The demigods-deities retained Mitr & Varun Dev; possessors of might, protectors of strength and aura.
ता नः स्तिपा तनूपा वरुण जरितॄणाम्। मित्र साधयतं धियः॥
वे मित्र और वरुण देव गृह और शरीरों के पालक हैं। आप लोग उपासकों के कर्मरूप स्तोत्रों को सफल करें।[ऋग्वेद 7.66.3]
Mitr & Varun Dev are the nurtures of homes & the bodies. Make the Strotrs of the devotees in the form of Strotr successful.
यदद्य सूर उदितेऽनागा मित्रो अर्यमा। सुवाति सविता भगः॥
आज सूर्योदय होने पर हमारे लिए अपेक्षित धन को पाप नाशक मित्र, सविता, अर्यमा और भग प्रेरित करें।[ऋग्वेद 7.66.4]
Let destroyers of sin Mitr, Savita, Aryma and Bhag grant us desired wealth-money, with the Sun rise.
सुप्रावीरस्तु स क्षयः प्र नु यामन्त्सुदानवः। ये नो अंहोऽतिपिप्रति॥
हे शोभन दान परायण! आप लोग हमारे पापों को दूर करें। अतः आपका आगमन होने पर वह आवास सुरक्षित बनें।[ऋग्वेद 7.66.5]
Hey great donors! Remove our sins, so that our house is protected on your arrival.
उत स्वराजो अदितिरदब्धस्य व्रतस्य ये। महो राजान ईशते॥
मित्रादि और माता अदिति अहिंसक व्रत या कर्म के ईश्वर हैं। वे महाधन के भी ईश्वर हैं।[ऋग्वेद 7.66.6]
Mitr etc. demigods-deities & Aditi are the lords of endeavours-Vrat which do not involve violence. They are the lords of great wealth.
प्रति वां सूर उदिते मित्रं गृणीषे वरुणम्। अर्यमणं रिशादसम्॥
सूर्योदय होने पर मित्र, वरुण देव और शत्रु संहारक अर्यमा के साथ-साथ सभी देवों की मैं स्तुति करूँगा।[ऋग्वेद 7.66.7]
I will worship Mitr, Varun Dev, the destroyer of enemy Aryma and all demigods-deities, with the Sun rise.
राया हिरण्यया मतिरियमवृकाय शवसे। इयं विप्रा मेधसातये॥
हित रमणीय धन के साथ यह स्तुति हमारे अहिंसनीय बल के लिए हैं। आप इसे स्वीकार करें।[ऋग्वेद 7.66.8]
With the wealth pertaining to welfare, this Stuti-prayer is for our non violent strength. Please accept it.
ते स्याम देव वरुण ते मित्र सूरिभिः सह। इषं स्वश्च धीमहि॥
हे मित्र और वरुणदेव! ऋत्विकों के साथ हम आपके स्तोता होंगे। हम अन्न और जल भी धारित करेंगे।[ऋग्वेद 7.66.9]
Hey Mitr & Varun Dev! We will become your Stotas along with the Ritviz. We will have food grains & water with us.
बहवः सूरचक्षसोऽग्निजिह्वा ऋतावृधः।
त्रीणि ये येमुर्विदथानि धीतिभिर्विश्वानि परिभूतिभिः॥
मित्रादि, महान सूर्य देव की तरह दीप्त, अग्नि जिह्न और यज्ञ वर्द्धक हैं। वे परिभव कारक कर्म द्वारा व्याप्त स्थानों को प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 7.66.10]
परिभव :: पराजय, हार, अपमान, अनादर; persecution.
Mitr etc. demigods-deities are the supporters of radiance like the Sun, tip of fire and the Yagy. They grant the places which pervade the efforts along with the persecution endeavours.
वि ये दधुः शरदं मासमादहर्यज्ञमक्तुं चादृचम्।
अनाप्यं वरुणो मित्रो अर्यमा क्षत्रं राजान आशत॥
वर्ष, मास, दिन, यज्ञ, रात्रि और मन्त्र की जिन्होंने रचना की, उन मित्र, वरुण देव और अर्यमा ने शोभमान होकर दूसरों के लिए अप्राप्य शक्ति प्राप्त की।[ऋग्वेद 7.66.11]
Mitr, Varun Dev and Aryma who created the year, month, day, Yagy and Mantr turned glorious and attained powers which not available to others.
तद्वो अद्य मनामहे सूक्तैः सूर उदिते।
यदोहते वरुणो मित्रो अर्यमा यूयमृतस्य रथ्यः॥
हम आज सूर्योदय होने पर सूक्त द्वारा आपसे उन धन की याचना करेंगे, जिसे जल के नेता मित्र, वरुण और अर्यमा धारण करते हैं।[ऋग्वेद 7.66.12]
With the Sun rise, we will pray to you with the recitation of Sukt, for that wealth which is possessed by the lords of water Mitr, Varun and Aryma.
ऋतावान ऋतजाता ऋतावृधो घोरासो अनृतद्विषः।
तेषां वः सुम्ने सुच्छर्दिष्टमे नरः स्याम ये च सूरयः॥
हे ऋत्विजों! आप लोग यज्ञवान, यज्ञ के लिए उत्पन्न, यज्ञवर्द्धक, भयानक और यज्ञ हीन के शत्रु हैं। आपके सुखतम धन के लिए जो अन्य ऋत्विक हैं, वे और हम अधिकारी होंगे।[ऋग्वेद 7.66.13]
Hey Ritviz! You are enlightened, born for the Yagy, boosters-promoters of Yagy, furious and the enemy of the one who does not believe in Yagy. We will be the rightful owners of your pleasant wealth alongwith other Ritviz.
उदु त्यद्दर्शतं वपुर्दिव एति प्रतिह्वरे।
यदीमाशुर्वहति देव एतशो विश्वस्मै चक्षसे अरम्॥
वह दर्शनीय मण्डल अन्तरिक्ष के समीप उदित होता है। शीघ्रगामी और हरितवर्ण अश्व सबको भली-भाँति देखने के लिए उस मण्डल को धारित करते हैं।[ऋग्वेद 7.66.14]
That beautiful-glorious abode rises close to the space. Fast moving yellowish horses support that abode for others to see.
शीर्ष्णः शीर्णो जगतस्तस्थुषस्पर्ति समया विश्वमा रजः।
सप्त स्वसारः सुविताय सूर्यं वहन्ति हरितो रथे॥
मस्तक के भी मस्तक, स्थावर-जंगम के स्वामी और रथारोही सूर्य देव को संसार के कल्याण के लिए सात गति-परायण हरितगण (अश्व) समस्त संसार में जाते हैं।[ऋग्वेद 7.66.15]
The crest of crest i.e., uppermost, the lord of living stationary as well as dynamic, riding charoite pulled by the seven yellowish horses the Sun visits the whole universe.
तच्चक्षुर्देवहितं शुक्रमुच्चरत्।
पश्येम शरदः शतं जीवेम शरदः शतम्॥
वह चक्षुः स्वरूप, देव हितैषी और निर्मल सूर्य देव हमारे समक्ष उदित हो रहे हैं। हे देव! हम सौ वर्षों तक देखें और सौ वर्ष जीएँ।[ऋग्वेद 7.66.16]
Pure-uncontaminated, well wisher of demigods-deities, like the eyes; Sury Dev, is rising in front of us. Hey lord! Let us survive for hundred years.
काव्येभिरदाभ्या यातं वरुण द्युमत्। मित्रश्च सोमपीतये॥
हे वरुण देव! आप और मित्र अहिंसनीय और द्युतिमान हैं। हमारे स्तोत्रों के द्वास सोमरस पान के लिए पधारें।[ऋग्वेद 7.66.17]
Hey Varun Dev! You and Mitr are non violent and radiant. Respond to our Strotr and come to drink Somras.
दिवो धामभिर्वरुण मित्रश्चा यातमगुहा। पिबतं सोममातुजी॥
हे सत्य की वृद्धि करने वाले मित्र और वरुण देव! आप द्रोह रहित हैं। आप द्युलोक से आवें और शत्रु हिंसक होकर सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 7.66.18]
Hey boosters of truth Mitr & Varun Dev! You are free from contempt. Come to the heavens and drink Somras, becoming the destroyers of enemy.
आ यातं मित्रावरुणा जुषाणावाहुतिं नरा। पातं सोममृतावृधा॥
मित्र और वरुणदेव यज्ञ के नेता हैं। आप हमारी आहुति ग्रहण करके यज्ञवर्द्धक सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 7.66.19]
Mitr & Varun Dev are the lords of the Yagy. Accept our offerings and drink the Somras as the booster of Yagy.(30.01.2024)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (67) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
प्रति वां रथं नृपती जरध्यै हविष्मता मनसा यज्ञियेन।
यो वां दूतो न धिष्ण्यावजीगरच्छा सूनुर्न पितरा विवक्मि॥
हे दोनों ऋत्विक, यजमान-स्वामियों! हम हव्य युक्त स्तोत्र के साथ आपके रथ की स्तुति करने के लिए जाते हैं। हे स्तुति योग्य अश्विनी कुमारों! जिस प्रकार पिता पुत्र को जगाता है, उसी प्रकार यह रथ आपके दूत की तरह लोगों को जागृत करता है। उसी रथ को अपने समक्ष आने के लिए मैं आवाहन करता हूँ।[ऋग्वेद 7.67.1]
Hey duo, Ritviz, host, lords! We move to pray your charoite with the Strotr and offerings. Hey worshipable Ashwani Kumars! The way a father awakes his son this charoite awake the populace like a messenger. I invoke that charoite to come in front of me.
अशोच्यग्निः समिधानो अस्मे उपो अदृश्रन्तमसश्चिदन्ताः।
अचेति केतुरुषसः पुरस्ताच्छ्रिये दिवो दुहितुर्जायमानः॥
हमारे द्वारा समिद्ध होकर अग्रि देव दीप्त होते हैं। तब अन्धकार समाप्त हो जाता है। प्रज्ञापक सूर्य देव द्युलोक की पुत्री (उषा) की पूर्व दिशा में शोभा के लिए उत्पन्न होकर जाने जाते हैं।[ऋग्वेद 7.67.2]
Agni Dev illuminate on adding wood. Darkness is eliminated. Illuminator Sury Dev rises in the east-the direction of Usha and is recognised for his glory.
अभि वां नूनमश्विना सुहोता स्तोमैः सिषक्ति नासत्या विवक्वान्।
पूर्वीभिर्यातं पथ्याभिरर्वाक्स्वर्विदा वसुमता रथेन॥
हे नासत्य द्वय! सुन्दर होता और स्तुति वक्ता स्तोम द्वारा हम आपकी प्रार्थना करते हैं। फलतः आप लोग पूर्व-मार्ग से जल ज्ञाता और धन युक्त रथ पर चढ़कर हमारे समक्ष पधारें।[ऋग्वेद 7.67.3]
Hey Nasaty Dvay-Ashwani Kumars! We pray to you with the beautiful Hota and the recitators of Stuti with Stom. As a result of it you should come to us from east, aware of the water, riding the charoite full of wealth.
अदोर्वा नूनमश्विना युवाकुर्दुवे यद्वां सुते माध्वी वसूयुः।
आ वां वहन्तु स्थविरासो अश्वाः पिबाथो अस्मे सुषुता मधूनि॥
हे रक्षक और मधुर सोम के योग्य अश्विनी कुमारों! मैं सोम के अभिषुत होने पर आपकी इच्छा से धनाभिलाषी होकर आपकी स्तुति करता हूँ। इसलिए आज आपके प्रवृद्ध अश्वगण आपको यहाँ ले आवें। हमारे द्वारा अभिषुत और मधुर सोमरस का पान करें।[ऋग्वेद 7.67.4]
प्रवृद्ध :: अतिशय वृद्धि को प्राप्त, प्रौढ़; grown up.
Hey protector and eligible for drinking Somras, Ashwani Kumars! I worship you with the desire of money, having extracted Somras. Let your grown up horses carry you here. Drink the Somras extracted by us.
प्राचीमु देवाश्विना धियं मेऽमृध्रां सातये कृतं वसूयुम्।
विश्वा अविष्टं वाज आ पुरन्धीस्ता नः शक्तं शचीपती शचीभिः॥
हे अश्विनी कुमारों! आप हमारी धनाभिलाषिणी, सरला और अहिंसिका बुद्धि को लाभ के योग्य बनावें। संग्राम में भी हमारी सारी बुद्धि की रक्षा करें। हे शचीपति अश्विद्वय! कर्म द्वारा हमें धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.67.5]
Hey Ashwani Kumars! Make our desirous of money, simple and non violent intelligence, profitable. Protect our intelligence in the war as well. Hey Shachi Pati Ashwidway! Grant us money through labour-efforts.
अविष्टं धीष्वश्विना न आसु प्रजावद्रेतो अह्रयं नो अस्तु।
आ वां तोके तनये तूतुजानाः सुरत्नासो देववीतिं गमेम॥
हे अश्विनी कुमारों! इन कर्मों में हमारी रक्षा करें। हमारा वीर्य क्षीण न हो, योग्य और पुत्रोत्पादन में हम समर्थ हों। आपकी कृपा से पुत्र और पौत्रों को अभिमत धन देकर और सुन्दर धन वाले होकर हम देव-लाभ कर यज्ञ में आवें।[ऋग्वेद 7.67.6]
Hey Ashwani Kumars! Protect us by these means. Do not let our sperms become weak. We should be capable of producing able sons. We should grant sufficient money to our sons & grandsons and possess money, by virtue of your mercy and come to the Yagy for the blessings of demigods-deities.
एष स्य वां पूर्वगत्वेव सख्ये निधिर्हितो माध्वी रातो अस्मे।
अहेळता मनसा यातमर्वागश्नन्ता हव्यं मानुषीषु विक्षु॥
हे मधुप्रिय अश्विनी कुमारों! मित्र के लिए पुरोगामी दूत की तरह हमारा संकल्पित यह सोमरस निधि स्वरूप आपके समक्ष रखा हुआ है। इसलिए क्रोध रहित चित्त से हमारे समक्ष पधारें और प्रजाओं द्वारा दिया हुआ हव्य ग्रहण करें।[ऋग्वेद 7.67.7]
Hey lovers of honey, Ashwani Kumars! We have reserved this Somras as an asset for you, as a friend. Come to us with anger free mood and accept the offerings made by the populace.
एकस्मिन्योगे भुरणा समाने परि वां सप्त स्त्रवतो रथो गात्।
न वायन्ति सुभ्वो देवयुक्ता ये वां धूर्षु तरणयो वहन्ति॥
हे सबके पोषक अश्विद्वय! आप दोनों का मिलन होने पर आपका रथ बहने वाली सात नदियों को पार कर लेता है। सुजन्मा और देव सम्पन्न आपके अश्व रथ को लेकर शीघ्र चलने वाले आपका वहन करते हैं, वे कभी नहीं थकते।[ऋग्वेद 7.67.8]
Hey nurturer of all Ashwidway! When you are together your charoite crosses the seven rivers. Your divine horses drive your fast moving charoite without being tired.
असश्चता मघवद्भयो हि भूतं ये राया मघदेयं जुनन्ति।
प्र ये बन्धुं सूनृताभिस्तिरन्ते गव्या पृश्चन्तो अश्व्या मघानि॥
आप लोग कहीं भी आसक्त नहीं होते। जो धनिक धन के लिए देने योग्य हव्य को देता है, जो मित्र को सच्चे वचनों से प्रवर्द्धित करता है तथा जो गौ, अश्व और धन देता है, आप ऐसे लोगों से दूर न रहते हुए उनके गृह में पधारें।[ऋग्वेद 7.67.9]
You are not attached any where. Visit the houses of such people who are rich, ready to give money for offerings, the friend who speak truth and one who donate cows, horses and money.
नू मे हवमा शृणुतं युवाना यासिष्टं वर्तिरश्विनाविरावत्।
धत्तं रत्नानि जरतं च सूरीन्यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
हे नित्य-युवा अश्विद्वय! आप आज हमारा आह्वान श्रवण करें। हव्य वाले गृह में पधारें। रत्नदान करें। स्तोता को वर्द्धित करें। आप हमारा सदैव स्वस्ति द्वारा पालन करें।[ऋग्वेद 7.67.10]
Hey always young Ashwidway! Respond to our invocation, today. Come to the store of offerings & grant jewels, Grow-flourish the Stota. You should always nurse-nurture us with Swasti.(31.01.2024)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (68) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
आ शुभ्रा यातमश्विना स्वश्वा गिरो दस्त्रा जुजुषाणा युवाकोः।
हव्यानि च प्रतिभृता वीतं नः॥
हे दीप्त और अश्व वाले शत्रु हन्ता अश्वि द्वय! आप यहाँ पधारें जो आपको चाहता है, उसकी स्तुति श्रवण करें और हमारे प्रस्तुत हव्य को ग्रहण करें।[ऋग्वेद 7.68.1]
Hey destroyer of the enemy having radiant horses Ashwidway! Come to us, respond to the Stuti of the one who loves you and accept our offerings.
प्र वामन्धांसि मद्यान्यस्थुररं गन्तं हविषो वीतये मे।
तिरो अर्यो हवनानि श्रुतं नः॥
हे अश्विनी कुमारों! आपके लिए मदकर अन्न (सोम) प्रस्तुत है। आप हमारी हवि का भक्षण करने के लिए शीघ्र यहाँ पधारें। हमारे शत्रु का आह्वान न सुनकर हमारा आह्वान श्रवण करें।[ऋग्वेद 7.68.2]
Hey Ashwani Kumars! Intoxicating food grains (Som) is being offered to you. Come quickly to eat our offerings. Avoid the invocation of our enemy and oblige us.
प्र वां रथो मनोजवा इयर्ति तिरो रजांस्यश्विना शतोतिः।
अस्मभ्यं सूर्यावसू इयानः॥
सूर्या के साथ रथ पर रहने वाले हे अश्विनी कुमारों! मन की तरह वेग शाली और असीम रक्षण से युक्त आपका रथ हमारे लिए प्रार्थित होकर और समस्त लोकों को लाँघते हुए हमारे यज्ञ में आता है।[ऋग्वेद 7.68.3]
Hey Ashwani Kumars accompanying the charoite of Sury Dev! Your charoite accelerated with the speed of innerself-mind, possessing all means of protection, comes to us on being worshiped, crossing all abodes.
अयं ह यद्वां देवया उ अद्रिरूध्र्वो विवक्ति सोमसुद्युवभ्याम्।
आ वल्गू विप्रो ववृतीत हव्यैः॥
जिस समय मैं आपको देवता बनाने की इच्छा करता हूँ और जिस समय आपके लिए सोम का अभिषव करने वाला यह पत्थर उच्च शब्द करता है, उस समय, हे सुन्दर! आपका मेधावी यजमान हव्य द्वारा आपका ही आवाहन करता है।[ऋग्वेद 7.68.4]
When I desire to make you a deity, this stone used for crushing Som makes loud sound, at that moment, hey beautiful! Your brilliant host invoke you only.
चित्रं ह यद्वां भोजनं न्वस्ति न्यन्त्रये महिष्वन्तं युयोतम्।
यो वामोमानं दधते प्रियः सन्॥
आपका जो यापनीय (भोज्य) धन है, उसे हमें प्रदान करें। जो प्रिय होकर आपके दिये हुए सुख को धारण करते हैं, उन अत्रि से महिष्वद् (ऋवीस) को पृथक् करें।[ऋग्वेद 7.68.5]
Grant you useful wealth to us. Isolate Atri Rishi who is dear to you and grant you pleasure; from Mahishvad-Rivis.
उत त्यद्वां जुरते अश्विना भूच्च्यवानाय प्रतीत्यं हविर्दे।
अधि यद्वर्प इतऊति धत्थः॥
हे अश्विनी कुमारों! हव्य प्रदान करने वाले और जीर्ण हुए च्यवन ऋषि को आपके द्वारा वह मृत्यु से संरक्षित करने वाला जो रूप प्रदान किया गया, वह आपका कर्म अत्यधिक प्रसिद्ध हुआ।[ऋग्वेद 7.68.6]
Hey Ashwani Kumars! Your endeavour by virtue of which who granted youth to Chavan Rishi, protecting him death, earned fame for you.
उत त्यं भुज्युमश्विना सखायो मध्ये जहुर्दुरेवासः समुद्रे।
निरीं पर्षदरावा यो युवाकुः॥
(भुज्यु के) दुष्ट बुद्धि मित्रों ने जो भुज्यु को समुद्र के बीच में छोड़ दिया, आप लोगों ने ही उन्हें पार कराया। भुज्यु ने आप लोगों की प्रार्थना की और कभी भी आपके विरुद्धाचरण नहीं किया।[ऋग्वेद 7.68.7]
When wicked friends of Bhujyu left him in the ocean, you sailed him across the ocean. Bhujyu worshiped you and never went against you.
वृकाय चिज्जसमानाय शक्तमुत श्रुतं शयवे हूयमाना।
यावघ्न्यामपिन्वतमपो न स्तर्यं चिच्छक्त्यश्विना शचीभिः॥
जिस समय वृक् ऋषि क्षीण हो रहे थे, उस समय अश्विनी कुमारों आप लोगों ने कर्म और सामर्थ्य द्वारा उन्हें धन प्रदान किया। पुकारे जाने पर शयु ऋषि की बात आप लोगों ने श्रवण की। जिस प्रकार से नदी जल को पूर्ण करती है, उसी प्रकार वृद्धा गाय को आप लोगों ने दुग्ध से परिपूर्ण किया।[ऋग्वेद 7.68.8]
When Vrak Rishi was becoming weak, hey Ashwani Kumars; you granted him wealth and capacity to act. You responded to Shyu Rishi. The way river complement the water, you generated-produced milk in the old cow.
एष स्य कारुर्जरते सूक्तैरग्रे बुधान उषसां सुमन्मा।
इषा तं वर्धदघ्न्या पयोभिर्यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
वह स्तोता (वसिष्ठ) शोभनमति होकर उषाकाल के पूर्व जागकर सूक्तों द्वारा स्तुति करते हैं। आप उसे अन्न द्वारा वर्द्धित करें, दुग्ध द्वारा वर्द्धित करें और उसकी गौवों को वर्द्धित करें। आप सदैव हमारा स्वस्ति द्वारा पालन करें।[ऋग्वेद 7.68.9]
Stota Vashishth Rishi with good will, wake up in the morning at Sun rise (Usha Kal) and worship using Sukt. Grow him with food grains and milk & increase his cows. Always nurse-nurture us with Swasti.(01.02.2024)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (69) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
आ वां रथो रोदसी बद्वधानो हिरण्ययो वृषभिर्यात्वश्चैः।
घृतवर्तनिः पविभी रुचान इषां वोळ्हा नृपतिर्वाजिनीवान्॥
युवा अश्वों से युक्त होकर आपका रथ आवे। वह द्यावा-पृथ्वी को बाधा देने वाला और हिरण्मय है। उसके चक्र में जल है। वह रथ की नेमि (डंडों) के द्वारा दीप्तिमान्, अन्न वाहक और यजमानों का स्वामी है।[ऋग्वेद 7.69.1]
Let your charoite come deploying young horses. It obstructs the heavens & earth. Its wheels contain water. Its radiant by the supporting rods, carries food grains and is lord of the hosts-Ritviz.
स पप्रथानो अभि पश्च भूमा त्रिवन्धुरो मनसा यातु युक्तः।
विशो येन गच्छथो देवयन्तीः कुत्रा चिद्याममश्विना दधाना॥
हे अश्विद्वय! वह रथ पंचभूतों (सभी प्राणियों) को प्रसिद्ध करने वाला तीन बन्धुरों (सारथियों के बैठने के तीन उच्च और निम्न काठ के स्थानों) और स्तुति से युक्त हैं। आप लोग चाहे जिस किसी स्थान में जाने की इच्छा करके इस रथ पर देवाभिलाषी पूजा के पास गमन करें।[ऋग्वेद 7.69.2]
Hey Ashwidway! It fames the five basic ingredients of nature, possess the raised place for the charoite drivers and is worshipped. You may roam any where by making prayers desired by the deities, in it.
स्वश्वा यशसा यातमर्वाग्दत्रा निधिं मधुमन्तं पिबाथः।
वि वां रथो वध्वा ३ यादमानोऽन्तान्दिवो बाधते वर्तनिभ्याम्॥
सुन्दर अश्व और अन्न के साथ आप लोग हमारे समक्ष पधारें। दस्त्रद्वय (शत्रुनाशक), आप मधुमान निधि (सोम) का पान करें। आप लोगों का रथ सूर्य के साथ गमन करते हुए चक्र के द्वारा द्युलोक तक के प्रदेशों को शीघ्र गमन के कारण पीड़ित करता है।[ऋग्वेद 7.69.3]
Come to us with beautiful horses and food grains. Dasttrdway-slayers of enemy, drink this Somras added with honey. Your charoite revolve with the Sun and tease the abodes till heavens by moving quickly, by your wheels.
युवोः श्रियं परि योषावृणीत सूरो दुहिता परितक्म्यायाम्।
यद्देवयन्तमवथः शचीभिः परि घ्रंसमोमना वां वयो गात्॥
रात में स्त्री सूर्य पुत्री आपके रथ को घेरती है। जिस समय आप देवाभिलाषी का कर्म द्वारा रक्षण करते हैं, उस समय रक्षण के लिए दीप्त अन्न आपके यहाँ जाता है।[ऋग्वेद 7.69.4]
The daughter of Sun surrounds your charoite at night. When you protect the devotee by making efforts food quality-radiant grains reaches your abode.
यो ह स्य वां रथिरा वस्त उस्त्रा रथो युजानः परियाति वर्तिः।
तेन नः शं योरुषसो व्युष्टौ न्यश्विना वहतं यज्ञे अस्मिन्॥
हे रथ वाले अश्विद्वय! वह रथ तेजों को भी ढक लेता और अश्व के साथ मार्ग में गमन करता है। हे अश्विद्वय! प्रातःकाल होने पर हमारे इस यज्ञ में उस रथ से, पापों के शमन और सुखों की प्राप्ति के लिए आप उपस्थित होवें।[ऋग्वेद 7.69.5]
Hey possessor of charoite Ashwidway! That charoite cover the radiations and travels over its path with the horses. Hey Ashwidway! Invoke in the morning with the that charoite in the Yagy, to vanish our sins and granting pleasure-comforts.
नरा गौरेव विद्युतं तृषाणास्माकमद्य सवनोप यातम्।
पुरुत्रा हि वां मतिभिर्हवन्ते मा वामन्ये नि यमन्देवयन्तः॥
हे नेतृद्वय! मृगी की तरह विशेषरूप से दीप्यमान सोमरस को पीने की इच्छा करके आज हमारे सवनों में आवें। देवत्व की कामना करने वाले अनेक लोग स्तुति द्वारा आपका आवाहन करते हैं। इसलिए आप (अन्यत्र) न रुकें और यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 7.69.6]
Hey leaders duo! Come to drink the aurous Somras during the three segments of the day. Several people worship you & invoke you with the desire of demigod hood. Thus do not stop any where and come to us.
युवं भुज्युमवविद्धं समुद्र उदूहथुरर्णसो अस्त्रिधानैः। पतत्रिभिरश्रमैरव्यथिभिर्दंसनाभिरश्विना पारयन्ता॥
हे अश्विनी कुमारों! आप लोगों ने समुद्र में फँसे भुज्यु को अक्षत, अश्रान्त और शीघ्रगामी अश्वों और कार्य द्वारा पार करते हुए जल से निकाला था।[ऋग्वेद 7.69.7]
Hey Ashwani Kumars! You made efforts to rescue Bhujyu caught up in the ocean with the help of untiring, immortal and fast moving horses, successfully.
नू मे हवमा शृणुतं युवाना यासिष्टं वर्तिरश्विनाविरावत्।
धत्तं रत्नानि जरतं च सूरीन्यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
सदैव युवा अश्विद्वय! आप लोग आज हमारा आह्वान श्रवण करें। हव्य वाले गृह में पधारें, रत्नदान करें और स्तोता को वर्द्धित करें। आप सदैव हमारा स्वस्ति द्वारा पालन करें।[ऋग्वेद 7.69.8]
Hey always young Ashwidway! Respond to our invocation, today. Come to the house making offerings, donate jewels and grow the Stota. Always nurse-nurture us with Swasti.(03.02.2024)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (70) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
आ विश्ववाराश्विना गतं नः प्र तत्स्थानमवाचि वां पृथिव्याम्।
अश्वो न वाजी शुनपृष्ठो अस्थादा यत्सेदथुध्रुवसे न योनिम्॥
हे सबके वरणीय अश्विनी कुमारों! हमारी (इस) यज्ञ वेदी पर पधारें। पृथ्वी पर आपका यही स्थान कहा जाता है। जिस अश्व पर आप लोग बैठते हैं, वह सुखकर पीठ वाला अश्व आपके ही पास रहे।[ऋग्वेद 7.70.1]
वरणीय :: वरण करने योग्य, वरेण्य, ग्रहण करने योग्य, ग्राह्य, चुनने योग्य, चयनीय, पूजनीय; worshipable, eligible, preferable.
Hey Ashwani Kumars, worshipable by all! Come to our Yagy Vedi-site. This is seat over the earth. Let the horse with comfortable back, over which you sit, should remain with you.
सिषक्ति सा वां सुमतिश्चनिष्ठातापि घर्मो मनुषो दुरोणे।
यो वां समुद्रान्त्सरितः पिपत्र्येतग्वा चिन्न सुयुजा युजानः॥
अतीव अन्न वाली वह सुन्दर स्तुति आप लोगों की सेवा करती है। धर्म मनुष्य के यज्ञगृह में तप रहा है। वह आपको मिलता है। वह घाम नदियों और समुद्रों को वृष्टि (जल) द्वारा भरता है। जिस प्रकार रथ में अश्व नियोजित किए जाते हैं, उसी प्रकार आपको यज्ञ में नियोजित किया जाता है।[ऋग्वेद 7.70.2]
घाम :: गर्मी, ऊष्मा, ताप, गरमी, घाम, तेज, गर्म जोशी, सौहार्द, गरमी, जोश, उत्साह; heat, warmth.
This beautiful Stuti-prayer serves you. Dharm is established in the Yagy house of humans. It is received by you. Warmth of the Yagy fills the rivers and ocean with water. The way horses are deployed in the charoite, you are involved in the Yagy.
यानि स्थानान्यश्विना दधाथे दिवो यह्वीष्वोषधीषु विक्षु।
नि पर्वतस्य मूर्धनि सदन्तेषं जनाय दाशुषे वहन्ता॥
हे अश्विनी कुमारों! आप लोग द्युलोक से आकर विशाल औषधियों और प्रजाओं के बीच में जो स्थान अधिकृत करते हैं, पर्वत के मस्तक पर बैठते हुए अन्नदाता को वही स्थान प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.70.3]
Hey Ashwani Kumars! Grant that place to the food donor which is occupied by you, over the crest of mountain where you sit amongest the populace & large medicines (herbs); when you arrive from the heavens.
चनिष्टं देवा ओषधीष्वप्सु यद्योग्या अश्नवैथे ऋषीणाम्।
पुरूणि रत्ना दधतौ न्य १ स्मे अनु पूर्वाणि चख्यथुर्युगानि॥
हे देवद्वय! आप लोग ऋषियों द्वारा दिए हुए औषधि और जल को व्याप्त करते हैं, अतः हमारी औषधि (चरु-पुरोडाश आदि) और जल (सोमरस) को ग्रहण करें। जैसे पूर्व समय में आप दोनों ने दम्पत्तियों को रत्नादि से परिपूर्ण किया था, उसी प्रकार इस समय में भी बना दें।[ऋग्वेद 7.70.4]
Hey demigod-duo! You pervade the medicines-herbs offered by the Rishis-sages, ascetics; hence accept our Charu-Purodas and Somras. The way you supplemented the couple, do now as well.
शुश्रुवांसा चिदश्विना पुरूण्यभि ब्रह्माणि चक्षाथे ऋषीणाम्।
प्रति प्र यातं वरमा जनायास्मे वामस्तु सुमतिश्चनिष्ठा॥
हे अश्विनी कुमारों! सुनकर आप लोगों ने ऋषियों के अनेक कर्मों का अभिदर्शन किया। इसलिए यजमान के यज्ञ में आप दोनों पधारें। हमारे लिए आपका अत्यन्त अन्नपूर्ण अनुग्रह है।[ऋग्वेद 7.70.5]
अभिदर्शन :: सामने आकर दिखाई देना, देखना, प्रकट होना, सामने पहुँचकर देखना; persuasion.
Hey Ashwani Kumars! You herd and saw-appreciated the efforts made by the rishis. Thus, you join-come to the Yagy of this host-Ritviz. This is your obligation towards us, with the grant of food grains.
यो वां यज्ञो नासत्या हविष्मान्कृतब्रह्मा समर्यो३भवाति।
उप प्र यातं वरमा वसिष्ठमिमा ब्रह्माण्युच्यन्ते युवभ्याम्॥
हे नासत्यद्वय! जो यजमान हव्य युक्त, कृत स्तोत्र और मनुष्यों के साथ मिलता है, उसी वरणीय वसिष्ठ के पास आवें। ये सभी मन्त्र आप लोगों के लिए स्तुत्य होते हैं।[ऋग्वेद 7.70.6]
Hey truthful duo! Come to Vashishth Rishi-Ritviz who make offerings and functional Strotr. All this Mantr are recited for you.
इयं मनीषा इयमश्विना गीरिमां सुवृक्तिं वृषणा जुषेथाम्।
इमा ब्रह्माणि युवयून्यग्मन्यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
हे अश्विनी कुमारों! आपके लिए यह स्तुति और यही वचन हुआ। हे काम वर्षकद्वय! इस शोभन स्तुति की सेवा करें। ये समस्त कर्म आपकी कामना करते हुए सङ्गत हों। आप सदैव हमे स्वति द्वारा पालित करें।[ऋग्वेद 7.70.7]
Hey Ashwani Kumars! Let this Stuti-prayer become a promise. Hey desires accomplishing rain showering duo! Serve this prayers. Let all our efforts be complemented by you. You should always nurse-nurture with Swasti.(04.02.2024)
ऋग्वेद संहिता, सप्तम मण्डल सूक्त (71) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
अप स्वसुरुषसो नग्जिहीते रिणक्ति कृष्णीररुषाय पन्थाम्।
अश्वामघा गोमघा वो हुवेम दिवा नक्तं शरुमस्मद्युयोतम्॥
अपनी बहन उषा के पास से रात स्वयं हट जाती है। कृष्णवर्णा रात्रि अरुष (दिन अथवा सूर्य) के लिए मार्ग प्रदत्त करती है। फलतः हे अश्वधन और गोधन अश्विद्वय! आप लोगों को हम बुलाते हैं। आप लोग दिन-रात हमारे पास से शत्रुओं को दूर करें।[ऋग्वेद 7.71.1]
The night itself separate from her sister Usha. Dark coloured night paves way for the day-Sun. As a result, hey lord of horses & cows Ashwani Kumars! We invoke you. Repel our enemies day & night.
उपायातं दाशुषे मर्त्याय रथेन वाममश्विना वहन्ता।
युयुतमस्मदनिराममीवां दिवा नक्तं माध्वी त्रासीथां नः



